Article,Summary "सभी मित्रों को जेएमसी। की बाइबल वाणी.कॉम में, मैं मोनिका आप सभी का स्वागत करती हूँ। बाइबल विश्व की सबसे अद्भुत पुस्तक है जिसे विश्व की सबसे ज्यादा भाषाओं में अनुवाद किया गया और प्रकाशित किया गया है। बाइबल की शिक्षाओं को सार्वभौमिक रूप से सत्य माना गया है क्योंकि बाइबल के अनमोल वचनों ने दुनिया के प्रसिद्ध लोगों को प्रभावित किया है, जिसमें से हमारे भारत के महात्मा गाँधी जी भी हुए। यहाँ पर हम बाइबल के कुछ अनमोल वचनों को सुनने जा रहे हैं। परमेश्वर के एक श्रेष्ठ दास ने इस प्रकार से कहा, हम वह बाइबल है जिसे दुनिया पढ़ती है। हम वो पंथ हैं जिनकी दुनिया को आवश्यकता है। हम वो उपदेश हैं जिन पर दुनिया ध्यान दे रही है। आइये बाइबल के आज इन अनमोल वचनों को हम भी सुने और अपने जीवन में आशीष ग्रहण करें। यदि परमेश्वर हमारी ओर हैं तो हमारा विरोधी कौन हो सकता है? जो यत्न से भलाई करता है वह औरों की प्रसन्नता खोजता है, परंतु जो दूसरों की बुराइ का खोजी होता है, उसी पर बुरा ई आप पड़ती है। पवित्र शास्त्र बाइबल में बताया गया है जो व्यक्ति दूसरों की भलाई चाहता है और दूसरों के जीवन में प्रसन्नता लाना चाहता है, उसके जीवन में भी प्रसन्नता आएगी और परमेश्वर उसके जीवन में भी भलाई को देंगे। लेकिन जो व्यक्ति दूसरों के लिए हमेशा बुराइ ढूँढता है। उसके लिए बुरा ई ही प्रकट होगी। यह एक अति गहरा नियम है। यह सिद्धांत हमेशा काम करता है। इसका एक उदाहरण बाइबल में हम पाते हैं। मोर कई नामक व्यक्ति था जो हमेशा दूसरों का भला चाहता था। उसी के विपरीत एक और व्यक्ति था जो बुरा था और उसका नाम हाँ मन था जो सभी का बुरा चाहता था। वह मोदी कहीं का भी बुरा चाहता था और उससे और उसकी सारी जाति के लोगों को खत्म कर देना चाहता था। लेकिन हम देखते हैं। अंत में हम मान को बुराइ का बदला बुरा ही मिला। उसे उसी के बनाये हुए फांसी के फंदे में लटका दिया गया और मोदी कई को राजा के द्वारा पूरे देश में सम्मान मिला। बाइबल का परमेश्वर यह होगा जिसने सारे संसार की सृष्टि की। उसने हर एक के लिए अच्छी और भले योजनाएं बनाई हैं जो उस पर परमेश्वर पर पूरी रीती से विश्वास करता है, अपना ईमान रखता है, परमेश्वर कहता है वो उनके जीवन में अपनी आशीषों को पूरा करेगा। वो योजनाएं किसी भी रीती से हानि और नुकसान की नहीं होगी। बल्कि लाभ की होगी। परमेश्वर कभी किसी मनुष्य को परेशान नहीं देखना चाहता। बाइबल बताती हैं परमेश्वर कभी दुष्ट के नाश होने पर भी प्रसन्न नहीं होता। परमेश्वर ने नरक भी शैतान के लिए बनाया है, मनुष्यों के लिए नहीं, लेकिन मनुष्य पापों में पड़कर प्रभु को शोकित करता है। और अपने ही पापों में पढ़कर नरक की आग की ओर जाता है। लेकिन सभी पापियों को बचाने के लिए परमेश्वर ने इस धरती पर अपने इकलौते पुत्र ये शो को भेजा ताकि जो कोई इस पर विश्वास करें वह नाश ना हो बल्कि अनंत जीवन पाए। बाइबल के संदेश हमेशा जीवन को परिवर्तित करने वाले होते हैं। दिल को सुकून देने वाले होते हैं, जीवन को बहाल करने वाले होते हैं। बाइबल में एक इजराइल का ऐसा राजा हुआ जो परमेश्वर के दिल के समान था। वह परमेश्वर को हमेशा स्तुति दिया करता था। अपने परमेश्वर के लिए सब कुछ करने को तैयार था। वह अपने एक भजन में लिखता है या होवा मेरा चरवाहा है, मुझे कोई घटी ना होगी। वह मुझे हरी हरी चारागाहों में ले जाता है अर्थात मेरे जीवन में सभी प्रकार की आशीषों को देता है। दाऊद आगे कहने लगा, परमेश्वर मेरे जी में जी ले आता है, मेरे दिल को सुकून देता है। परमेश्वर अपने चुने हुए लोगों को एक वायदा कर रहा है, मैं तुम्हारे जीवन की रक्षा करूँगा, हम देखते हैं। परमीश ने जो भी वायदा अपने आज्ञा मानने वाले दासों या लोगों को किया था वह पूरा भी किया। उसने अपने दास अब्राहम से जो वायदा किया जिसका पुष्टीकरण हम इजरायलियों पर देखते हैं कि परमेश्वर ने उन्हें गुलामी से छुड़ाकर ले आया। परमेश्वर यहोवा अन्याय पर मेंशन नहीं है, जब हम अपने बच्चों को जो रोटी मांगता है, पत्थर नहीं देती, उसी प्रकार हमारा परमेश्वर भी जो अपने लोगों को जो उस पर विश्वास करते हैं, उनके सहने से बाहर परीक्षा में नहीं डालता। जो कोई प्रभु यीशु मसीह में है वह एक नई सृष्टि है, क्योंकि प्रभु येशु ने हम सभी मानव जाति के लिए अपने प्राणों को दे दिया। इसलिए उसके विश्वास करने वालों को अब नरक नहीं जाना पड़ेगा और इस रीती से विजय वन से भी बढ़कर हो गए हैं। मैं तेरे जीवन के ढाल रहूंगा और दुष्ट से तुझे छुड़ाऊंगा। मैं तुम्हारे थके हुए प्राण को पुनर्स् थापित और ताजा करूँगा। मैं तुम्हारा पिता हूँ और तुम मेरे हाथ की रचना हो। मैं तुम्हें बनाऊंगा, बिगाड़ूँगा नहीं। तुम आशीष के वारिस होने के लिए बुलाए गए हो? पहले मेरे राज्य की खोज करो, तो तुम्हारे जरूरत की हर वस्तुएँ तुम्हें मिल जाएगी। मैंने तुम्हें अपने परिवार का सदस्य बना लिया है, मैंने तुम्हें अपने पुत्र के समान होने के लिए चुना है ताकि तुम मेरे परिवार का हिस्सा बनो। मैंने तुम्हें मसी में जी उठाया और स्वर्गीय स्थानों में बैठाया है। मेरा वचन आकाश तक सदा स्थिर रहता है। तुम मुझसे बुद्धि मांगों और मैं उदारता से तुम्हें दूंगा, मैं अनुग्रह कार्य परमेश्वर हूँ, जो सच्चाई और दया से भरा है। मेरा अनंत आनंद और हर्ष तुम्हारे सभी दुख और शोक को दूर करेगा। तुम उस उम्मीद पर रहना कि मैंने जो प्रतिज्ञा की है, उससे नहीं बदलूंगा। मेरा राज्य सदा का है और मेरा प्रभुत्व सदैव बना रहेगा। अगर तुम मेरे वचन पर मन लगाओ तो मैं तुम्हें फल व न्त और समृद्ध करूँगा। मैं अपनी प्रसन्नता के लिए सभी वस्तुओं को सजा है। धीरज के साथ मेरी प्रतीक्षा करो, मैं तुम्हारी दुहाई सुनूंगा। मैं तुम्हारे आंसुओं को पोंछ डालूंगा और सभी दर्द मिटा दूंगा। मैं तुम्हें अपने असीम प्रेम की विशालता को जानने की शक्ति दूंगा। मेरे निकट आओ तो मैं तुम्हारे निकट आऊंगा। जब तुम अपने विश्वास में कमजोर होते हो तब भी मैं तुम्हारे प्रति विश्वास योग्य रहता हूँ। संकट के समय मुझे पुकार मैं तुम्हें बचाऊंगा। यहाँ पान क्योंकि मैं तेरे साथ हूँ और तुझे कभी ना छोडूंगा। तुम्हारे मांगने से पहले ही मैं जानता हूँ कि तुम्हें किस वस्तु की आवश्यकता है। दूसरों की सेवा करने के द्वारा जो प्रेम तुमने मुझे दिखाया है उसे मैं बुलाना सकूंगा। जो मेरी धार्मिकता के भूखे और प्यासे हैं उन्हें मैं तृप्त करूँगा। मैं संकट के समय में अति सहज से मिलने वाला सहायक हूँ। मेरे मुख का प्रकाश तुम्हारे जीवन भर चमकता रहेगा। मेरी आत्मा निर्बलता में तुम्हारी सहायता करेगा। मैंने जो भला काम तुम में आरंभ किया है उसे मैं पूरा भी करूँगा। मेरा क्रोध तो क्षण भर का होता है, पर मेरी करुणा जीवन भर की है। भोर के समय जब तू पुकारें तब मैं तेरी वाणी सुनूंगा। मुझसे प्रेम रखने वालों के लिए मैंने अद्भुत बातें रखी है। दुखी ना हो क्योंकि मेरा आनंद तुम्हारी ताकत है। मेरा सिद्ध प्रेम तुम्हारे हृदय से भाई को दूर करेगा। मैं पिता हीन का पिता हूँ और विधवाओं का बचाव करता हूँ। मैं तुम्हारा परमेश्वर हूँ जो तुम्हे जो तुम्हारे रोगों को चंगा करता हूँ। तुम्हारे प्रति मेरा प्रेम सदा बना रहेगा। तुम मेरी संतान हों और जब यह शो प्रकट होगा तब तुम उस के समान हो जाओगे। चिंता ना करो मैं तुम्हारा ध्यान रखूँगा। मैं तुम्हारे शो को नृत्य में बदल डालूंगा, तुम्हें उल्लास से घेर लूँगा। मैं जो भी प्रतिज्ञा करता हूँ वह सच होती है क्योंकि मैं झूठ नहीं बोलता। मुझ से प्रार्थना करो और मैं तुम्हें अद्भुत बातें दिखाऊंगा जिन्हें तुम नहीं जानते। मैं तुम्हारी उदासी हटाकर तुम्हें हर्ष का उड़ना उड़ाऊंगा। उद्धार, बुद्धि और ज्ञान की बहुतायत तेरे दिनों का आधार होगी। परमेश्वर का भय तेरा धन होगा। जब मैं अपने हाथ खोलता हूँ तो प्रत्येक प्राणी की इच्छा को संतुष्ट करता हूँ। उनके लिए। कुछ भी असंभव ना होगा, जिनके पास राई के दाने के बराबर भी विश्वास है। जब तुम मासी के कारण दुख उठाते हों, तब मेरा आत्मा तुम में वास् करेगा। मेरा नाम दृढ़ है, जिसमें तुम भाग कर सुरक्षा पाओगे। मैं तुम्हारे लिए तुम्हारे सोच से भी बढ़कर करने में सक्षम हो। मेरे पुत्र यश उसीके एक बार सदा के लिए बलिदान चढ़ाए जाने से तुम पवित्र किए गए हो। मैं सब सताएँ हूँ के लिए न्याय करूँगा। जो मेरी इच्छा पूरी करते हैं, वे सदा जीवित रहेंगे। मैं अनन्त परमेश्वर हूँ। तुम एक चुने हुए राज़ पदाधिकारी और पवित्र लोग हो। यदि तुम ये शो पर विश्वास करो तो कभी निराश नहीं होगी। यदि तुम अपना घर प्रेम में बनाओगे तो मैं तुम में रहूँगा और तुम मुझमें। मैंने तुम्हें अपना आत्मा दिया है और तुम्हारा शरीर पवित्र आत्मा का मंदिर है।",बाइबिल दिन की बाइबिल पद्य बाइबिल से 100 वादे "ब्रेस्ट लॉट हर एरिया। तो दोस्तों मोनिका की ओर से आपको प्यार भरा जैम सी की प्रभु की आशीष आपके जीवन के लिए मांगती हूँ दोस्तों आज लेकर आए हूँ मैं आपके लिए साहस और वीरता से भरी हुई एक बहुत ही सुंदर और प्रेरणादायक कहानी। जी हाँ, जिसका नाम है साहस की ताकत। पुराने जमाने में एक राजा हुआ करता था। सब उसे पागल राजा कहते थे वो पागल था अभी क्यों? क्योंकि छोटी छोटी बातों में वो हर किसी को मृत्यु दंड दे दिया करता था। मौत की सजा फांसी दे दिया करता था। उस राज्य में 30 फूल दानिया थी और वो फूल दानिया राजा को बड़ी ही प्यार लगती थी। उन फूल दानियों को हर सुबह राजा देखता, सोने से पहले देखता और जब भी उस राजमहल में कोई भी मेहमान क्यों ना आए, राजा उन फूल दानियों को जरूर देखा ता और बड़ा खुश होता। उन फूल दानियों में रखे हुए सुंदर सुंदर रंग बिरंगे फूल राजा का मन मोह लेते थे। वो सिर्फ बहुत ही प्रिय थे। 1 दिन की बात है, एक सेवक। जब वो फुल दानियों की सफाई कर रहा था अचानक उसका हाथ एक फूलदानी में लग गया। और फूलदानी गिरकर टूट गई। जैसे ही बात राजा को पता चली राजा बड़ा गुस्से में आ गया। बड़ा झुँझला उठा और उसने अपने सैनिकों को बुलाया और कहा पकड़ लो इस सेवक को जिसने मेरी इतनी प्यारी फूलदानी को तोड़ दिया है और ले जाओ इसे सीधे और फांसी पर चढ़ा दो। फिर क्या था सेवक बड़ा बिलख बिलख कर रोने लगा। अपने जान को मांगने लगा। बोलने लगा राजा जी मेरे प्राण को छोड़ दीजिये, मेरी जान को छोड़ दीजिये। मुझे मत मारिये, मुझे फांसी मत दीजिये, मेरी गलती को समा कर दीजिये, लेकिन राजा तो सनकी था, इसीलिए वहाँ के लोग उसे सनकी राजा जो कहते थे वो कहा सेवक की सुनने वाला था। उसे ले जाया गया उस सेवक को और कारागाह में डाल दिया गया और फांसी की तैयारी शुरू हो गई। उस राज्य में एक बुरा व्यक्ति भी रहता था जो बड़ा बुद्धिमान था और बड़ा अनुभवी व्यक्ति था। वो राजा की हर एक बात से वाकिफ था। वो जानता था कि राजा का स्वभाव कैसा है, कैसे राजा छोटी छोटी बातों में लोगों को मौत की सजा सुना दिया करता है। जैसे ही उसे यह बात सेवक की पता चली वो बड़ा दुखी हुआ। बड़ा परेशान हुआ और राजा के पास आकर कहने लगा की राजाजी राजा जी आप मुझे एक मौका दीजिये। मैं उस टूटी हुई फूलदानी को फिर से जोड़ सकता हूँ फिर से मैं उसे उतना ही सुंदर उतना ही सुंदर बना सकता हूँ जितना आप चाहते हैं। राजा बड़ा खुश हो गया की चलो कोई तो है जो मेरी टूटी हुई फूलदानी को फिर से जोड़ सकता है। फिर से वैसी ही सुन्दर फूलदानी मुझे वापस मिल जाएगी। राजा ने उसे आज्ञा दे दी कि जैसा तू चाहता है वैसा तू कर सकता है। वो बूढ़ा व्यक्ति उस टूटी हुई फूलदानी के पास पहुंचा। उसने देखा की वो फर्श पर पड़ी हुई पूरी बिखरी हुई है। फूल भी तितर बितर पड़े हुए बाकी की 29 फूल दानिया दीवार में टंगी हुई है, जो बड़ी ही सुंदर बड़ी ही मनमोहक लग रही थी। बूढ़े ने अपनी लाठी उठाई और 29 फूल दानियों को भी अपनी लाठी से तोड़ दिया। पूरी फूल दानिया टूटकर फर्श पर बिखर गई। सारे फूल तबाह हो गए, बर्बाद हो गए। जैसे ही ये दृश्य को जैसे ही इस घटना को राजा ने देखा, राजा का क्रोध अब उसके सर चढ़ गया था। उसकी आंखें लाल हो उठी और बड़ा गुस्से में आ करके उसने उस बुजुर्ग व्यक्ति से कहा और ये मूर्ख क्या तुझे नहीं पता ये फूल दानिया मेरे लिए कितनी कीमती है, ये मुझे कितनी प्यारी हैं और तू ने इसे तोड़ डाला। तुझे भी मौत की सजा दी जाती है। तुझे भी फांसी पर चढ़ा दिया जाता है लेकिन पूरे व्यक्ति को ज़रा सा भी डर नहीं था। ज़रा सी भी हिचकिचाहट नहीं थी कि उसने ये जानबूझकर किया है या गलती से किया है, बल्कि वो राजा से कहने लगा, राजन जब एक फूलदानी टूटी तो आपने उस सेवक को मौत की सजा सुना दी? आपने उस सेवक को फांसी की सजा भी सुना दी? बाकी जो 29 फूल दानिया बची थी, मैं सोच रहा था इससे पहले कि भविष्य में ये किसी और सेवक से टूटे या किसी और से टूटे। तो बेहतर था कि इसे मैं ही तोड़ डालूं। इस तरह से मैंने 29 लोगों के प्राण को बचा लिया है। 29 लोगों को फांसी पर चढ़ने से बचा लिया है क्योंकि जो गलती आने वाले समय में 29 लोगों से होती वो गलती मैंने सारी अपने सर पर ले लिया है और इस बात की मुझे कोई भी शिकायत नहीं है। कोई भी गिला शिकवा नहीं है। आप जो चाहें मुझे सजा दे सकते हैं क्योंकि मैंने अपनी इंसानियत का फर्ज अदा किया है। मैंने अपनी जिम्मेदारी को निभाया है और 29 लोगों की जान बचा ली। जैसे ही राजा ने इस बात को सुना बड़ा ही शर्मसार हो गया। अब उसे अपनी गलती का अहसास हो चला था की एक छोटी सी फूलदानी के लिए उसने उस सेवक को सजा सुनाई थी और बिना किसी बुद्धि को लगाये वो गलत फैसलों को अब तक लिया करता था। मेरे प्रिय एक कहानी तो है उस बुजुर्ग, समझदार, साहसी हिम्मत वाले व्यक्ति की जिसने न केवल अपने प्राण को बचाया वरन अपने हिम्मत से, अपने साहस से, उस सेवक के भी प्राण को बचा लिया। और आप को सच बताऊँ आने वाले 29 उन लोगों को भी जिनके साथ शायद ही 29 फूलदान या टूट जाती या उनकी जान खतरे में पड़ सकती थी। मेरे पिता परमेश्वर का वचन इस प्रकार कहता है यह ओशो की पुस्तक अध्याय एक में परमेश्वर यह ओशो से कहते हैं या पान कर दृढ़ हो जा भायनका तेरा मन कच्चा ना हो क्योंकि जहाँ जहाँ तू जायेगा वहाँ वहाँ तेरा परमेश्वर यह होगा तेरे संग रहेगा सो। बिलकुल न डरें, बिल्कुल भयभीत ना हो आपके संग चलने वाला एमैनुअल आपके साथ है और प्लस यू सुनते रहे। कहानी मोनिका की जुबानी कहानी कैसी लगी, मुझे जरूर बताएं बाइ बाइ।","यह एक बुद्धिमान व्यक्ति के बारे में ऑडियो कहानी है जो दैनिक ध्यान, भगवान के साथ समय, जीसस के साथ समय, ईसाई प्रेरणा, विश्वास क्या है, भगवान से प्रार्थना कैसे करें, चमत्कार के लिए प्रार्थना, आशा प्रार्थना का कार्य, विश्वास के लिए प्रार्थना, क्षमा के लिए प्रार्थना पाप, शक्तिशाली प्रार्थना, बाइबिल से विश्वास पर प्रार्थना, हिंदी उपदेश, हिंदी उपदेश-बाइबिल अध्ययन, बाइबिल से हिंदी उपदेश, विश्वास पर हिंदी उपदेश, हिंदी उपदेश, हिंदी उपदेश बाइबिल, हिंदी उपदेश यीशु, हिंदी उपदेश 2021, हिंदी पादरी उपदेश, हिंदी उपदेश वीडियो, हिंदी ईसाई उपदेश वीडियो, हिंदी प्रचार सुसमाचार, हिंदी बाइबिल संदेश, हिंदी बाइबिल अध्ययन, हिंदी बाइबिल, हिंदी बाइबिल कहानी, हिंदी बाइबिल वचन, हिंदी बाइबिल उपदेश, बाइबिल हिंदी संदेश, बाइबिल हिंदी कहानी, बाइबिल हिंदी वीडियो, बाइबिल हिंदी वचन , बाइबिल हिंदी में," "आप सभी को जेएमसी की बाइबल वाणी.कॉम में आप सभी का स्वागत है। आज हम सीखेंगे। पवित्र शास्त्र बाइबल का सिद्धांत पवित्र शास्त्र बाइबल के सिद्धांत का परिचय पवित्र शास्त्र बाइबल का सिद्धांत समझने से पहले हमें ज्ञात होना चाहिए बाइबिल मसीही विश्वास की आधारभूत पुस्तक है, या परमेश्वर का वचन है परमेश्वर प्रारंभ से ही मनुष्य से वार्तालाप करना चाहता है और चाहता है कि मनुष्य जाति परमेश्वर को जाने। इसलिए उसने प्रकृति के द्वारा बातें की। जो एक सामान्य प्रकाशन है लेकिन उसने अपने वचन पवित्र शास्त्र बाइबल के जरिये बातें की जो एक विशेष प्रकाशन है, इसलिए इसे जानना बहुत ज़रूरी है। पहली बार पवित्र शास्त्र बाइबल प्रकाशन है। परमेश्वर को पूरी रीती से और व्यक्तिगत तौर से जानने के लिए हमारे पास सामान्य प्रकाशन से बढ़कर कुछ बातें होनी चाहिए मतलब हमें पूरे प्रकाशन की आवश्यकता है। परमेश्वर ने अपने आप को हम पर दो तरीकों से प्रकट किया है। पहला प्रभु यीशु मसीह के द्वारा ये शम्सी के द्वारा परमिशन ने मनुष्य बनकर हमारे मध्य में डेरा किया और दूसरा लिखित वचन। ये शो मासी के द्वारा परमेश्वर के विशेष प्रकाशन की बातों को लिखित वचन सहित साबित करता है। पवित्र शास्त्र बाइबल परमेश्वर का लिखित वचन है। जिसके द्वारा वह स्वयं को प्रकट करता है और पाप से मानव जाति को बचाने के लिए क्या कर रहा है इन बातों के विषय में पता चलता है। पवित्र शास्त्र बाइबल साबित करता है कि इसकी लिखाई परमेश्वर के आदेश के अनुसार हुई है। पवित्र शास्त्र बाइबल स्वयं को परमेश्वर का वचन कहता है। दुनिया में हर चीज़ को अपग्रेड करने की जरूरत होती है, लेकिन बाइबल में कोई भूल चूक नहीं है। इसे जैसे का तैसा रखने को परमेश्वर कहता है और आज भी वह लोगों की जीवन को बदल रहा है। दूसरी बात, पवित्र शास्त्र, बाइबल की प्रेरणा प्रेरणा ऐसी एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा परमेश्वर स्वयं को हम पर ज्ञात करवातें हैं। इस विचारधारा को दूसरा तीनों 30 तीसरा अध्याय 16 से 17 आयात से लिया गया है जहाँ पर उल्लेखित है। की संपूर्ण पवित्रशास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है। इसका मूल मतलब है परमेश्वर की स्वास्थ्य रचा गया है। आइये इस वचन को देखते हैं हमारे पास जो भविष्यवक्ताओं का वचन है, वह इस घटना से दृढ ठहरा है और तुम यह अच्छा करते हो की जो यह समझकर उस पर ध्यान करते हो कि वह एक दीपक है जो अंधियारे स्थान में उस समय तक प्रकाश देता रहता है जब तक की पड़ना फटे और भोर का तारा तुम्हारे हृदय में ना चमकी। पर पहले यह जान लो कि पवित्रशास्त्र की कोई भी भविष्यवाणी किसी की अपनी ही विचारधारा के आधार पर पूर्ण नहीं होती। क्योंकि कोई भी भविष्यवाणी मनुष्य की इच्छा से कभी नहीं हुई। पर भक्तजन पवित्र आत्मा के द्वारा उभारें जाकर परमेश्वर की ओर से बोलते थे। सृष्टि का विवरण परमेश्वर के मुँह से। निकलने वाले शब्द की वास्तविकता को दर्शाता है। हाँ, परमेश्वर ने कहा और संसार उत्पन्न हुआ। परमेश्वर ने कहा, उजियाला हो और वहाँ उजियाला हो गया। जब परमेश्वर कहते हैं तब कार्य करते प्रेरणा से तात्पर्य है कि परमेश्वर कथन और कार्यवाही दोनों में सम्मिलित हैं पर मिश्र ने कहा और मनुष्य ने उसे उल्लेखित किया लिखित पवित्र शास्त्र बाइबल में प्रेरणा देने के लिए। मानवीय लेखों के जीवन में परमेश्वर कहते हैं और अपनी कार्यवाही को पूरा करते हैं, तीसरी बार पवित्र शास्त्र, बाइबल का अधिकार। पवित्र शास्त्र बाइबल के अधिकार का तात्पर्य है। हर एक परमेश्वर का ही वचन है, इसलिए हमें उसका पालन करना है। यदि हम उसका पालन नहीं करते तो हम परमेश्वर के प्रति अन आज्ञाकारी बनते हैं। पवित्र शास्त्र बाइबल परमेश्वर का वचन होने के कारण सत्य है। प्रेरणा का सिद्धांत इस बात को प्रमाणित करता है कि परमेश्वर स्वयं को मनुष्यों के बीच में प्रकट करते हैं। अधिकार का मामला इस बात से संबंधित है कि पवित्रशास्त्र परमेश्वर का ही वचन है। और वे बिलकुल सत्य है। इसलिए पवित्र शास्त्र बाइबल के अधिकार की भूमिका एक मसीही के जीवन में वह परमेश्वर के वचन को कितना प्राथमिकता देता है, उस पर निर्भर होता है तथा वचन के प्रति उसका प्रतिउत्तर किस प्रकार होता है? पवित्रशास्त्र परमेश्वर का ही वचन होने के कारण वे हमें परमेश्वर की योजना, उद्देश्य और इच्छा को समझने में हमारी सहायता करते हैं। इन बातों के प्रति हमारी सही समझ हमारे जीवन। और सेवकाई को बनाने में सहायक सिद्ध होते हैं। चौथी बात पवित्र शास्त्र बाइबल की विशेषता। क्योंकि परमेश्वर का वचन जीवित प्रबल और हर एक दोधारी तलवार से भी बहुत चोखा है और जीव और आत्मा को और गांठ, गांठ और गूदे, गूदे को अलग करके। वार पार छेड़ता है और मन की भावनाओं को और विचारों को जांचता है, पवित्र शास्त्र बाइबल पवित्र है और आगया भी ठीक और अच्छी है। ये सत्य को जानने के लिए और उसमें जीवन निर्वाह करने के लिए हमें समझ प्रदान करता है। वचन कहता है तेरा वचन मेरे पांव के लिए दीपक और मेरे मार्ग के लिए उजियाला है। पांचवी बाद पवित्र शास्त्र बाइबल बहुमूल्य है या वह परमेश्वर का भय पवित्र है? वहाँ अनंतकाल तक स्थिर रहता है। यहोवा के नियम सख्ती और पूरी रीती से धर्ममय है। वे तो सोने से और बहुत कुंदन से भी बढ़कर मनोहर हैं वे मधु से और टपकने वाले 36 भी बढ़कर मधुर है, इसलिए पवित्र शास्त्र बाइबल भरोसा रखने योग्य है और अब ही यहोवा। तू ही परमेश्वर है और तेरे वचन सत्य है और तू ने अपने दास को या भलाई करने का वचन दिया है। छठवीं बार पवित्र शास्त्र बाइबल का उद्देश्य पवित्र शास्त्र बाइबल मानव जाति के उद्धार के लिए है। उसी में तुम भी जब तुमने सत्य का वचन सुना जो तुम्हारे उद्धार का सुसमाचार है और जिसपर तुमने विश्वास किया, प्रतिज्ञा किये हुए पवित्र आत्मा की छाप लगी। पवित्र शास्त्र बाइबल निश्चयता प्रोत्साहन और आशा के लिए है जो वचन तू ने अपने दास को दिया है उसे स्मरण कर, क्योंकि तू ने मुझे आशा दी है पवित्र शास्त्र बाइबल आश्वासन के लिए है। वचन कहता है मेरे दुख में मुझे शांति उसी से हुई है क्योंकि तेरे वचन के द्वारा मैंने जीवन पाया है। पवित्र शास्त्र बाइबल सुधार के लिए मानवीय कामों में मैं तेरे मुँह के वचन के द्वारा क्रू रोकी चि चाल से अपने को बचाए रहा। मेरे पांव तेरे पदों में स्थिर रहे, फिसले नहीं। सातवीं बात पवित्र शास्त्र बाइबिल किस प्रकार हमारे जीवन में प्रभाव डालता है? परमेश्वर हमसे एक सिद्ध प्रेमी पिता के समान वचन के द्वारा बातें करते हैं, इसलिए हमें वह जो कहते हैं उसे ध्यान से सुनना चाहिए और जो सिखाते हैं उसे सीखना चाहिए और पापों से मन फिरा ने हमारे मनो को नया बनाने और हमारे जीवन को बचाने का प्रयत्न पवित्र आत्मा के अनुग्रह के द्वारा करना चाहिए। मसीही लोग परमेश्वर की आराधना करते हैं, नाकि बाइबल की तुरंत बाइबल हमें बताती है कि परमेश्वर कौन हैं और उनकी आराधना किस प्रकार करनी चाहिए। इसलिए आराधना में बाइबल की अहमियत है। फलस्वरूप हम परिवर्तन के लिए बाइबल के पास आते हैं ना कि केवल जानकारी के लिए। कलीसिया के इतिहास का। एक महान अगुआ मार्टिन लूथर ने इस प्रकार कहा कि जब पवित्रशास्त्र। बाइबल बात करता है तब परमेश्वर स्वयं बातें करते हैं, क्योंकि पवित्रशास्त्र से ही परमेश्वर हमसे बातें करते हैं, इसलिए हम उसे मुँह जुबानी याद करते हैं, मनन करते हैं, अध्ययन करते हैं, सिखाते हैं और जो कोई सुनते हैं उन्हें भी सुनाते हैं। आज के इस ऑडियो के द्वारा परमेश्वर आप सभी को बड़ी आशीष दे। प्रिय मित्रों, यदि इस वेबसाइट के द्वारा अपने आशीष पाई है और आपका कोई और अन्य मित्र हैं। जो विश्वास में बढ़ना चाहता है तो उसे भी इसे जरूर शेयर करे।",मेरा नवीनतम एपिसोड देखें! बाइबिल सिद्धांत "हैलो दोस्तों, कैसे है? आप सभी विश्वास करती हूँ कि आप सभी अपने घरों में सुरक्षित होंगे, कुशल से होंगे, ईश्वर की सुरक्षा आपके साथ और आपके पूरे घर आने के साथ हो। दोस्तों मैं लेकर आयी हूँ आपके लिए एक सुंदर, प्रेरणादायक ऑडियो स्वेट मॉडर्न की लिखी गई पुस्तक एव्रीमैन आ किंग का हिंदी अनुवाद अब तक हम इसके सात भागों को सुन चूके हैं। यदि आपने नहीं सुना है तो आप इसे मेरी ऑडियो में सुन सकते हैं। आज हम सुनने जा रहे हैं इसके आठवें भाग को आत्मविश्वास से आशाओं की पूर्ति। आत्मविश्वास सफलता की सीढ़ियां चढ़ने के लिए आत्मविश्वास का सहारा लेना अति आवश्यक है। आत्मविश्वास ही लोग कठिनाइयों में भी अपना रास्ता ढूंढ लेते हैं। संदेह वाला इंसान निराशावादी है। वह अपने सामने खुले रास्ते को भी नहीं देख सकता और सदा डरता रहता है। आत्मविश्वासी लोग अपने लिए हर प्रकार का मार्ग ढूंढ लेते हैं। ऐसे लोगों के मित्र भी उत्साही और आशावादी ही होते हैं। जब हम अपने द्वारा महान कामों को पूरा करने के लिए। खोलकर पूर्ण आशा करते हैं तो वह विचार हमारा स्वभाव बन जाता है और उसी स्वभाव की प्रेरणा से हम अपने अंदर छिपी हुई शक्ति यों की खोज कर लेते हैं और संसार पर उन्हें प्रकट कर देते हैं। आत्मविश्वास महान शक्ति का दूसरा नाम है जो इंसान को ईश्वर की ओर से उपहार के रूप में मिली है किंतु वह उसका प्रयोग अपने लाभ के लिए कहा तक कर सकता है। ये देखना उसका कार्य है। जंगली जानवरों के पालने वाले को क्या सफलता मिले गी? जो गुस्से से भरे जंगली जानवरों के बाड़े में पहले पहल, संदेह और अविश्वासी होकर उतरा है और मन में कहता जाता है कि मैं इन जंगली जानवरों को बस में करने का प्रयत्न करूँगा। यद्यपि मुझे यह विश्वास नहीं है कि मैं इन्हें अपने वश में कर सकूंगा। अफ्रीका के जंगलों में रहने वाले भयंकर जीते को बस में करना उस पर विजय प्राप्त करना बहुत कठिन कार्य है। ऐसे लोग तो बहुत होंगे जो इन खूनी जानवरों पर काबू पा लेते होंगे। किंतु मुझे तो अपने आप पर संदेह है। की। मैं इन्हें काबू कर सकूंगा। यदि पशु पालक इस प्रकार की मनोवृत्ति लेकर खूंखार जानवरों के सामने आता है, दुर्बलता संदेह और डर के विचारों से भरा हुआ, वह वहाँ पहुंचता है तो संभावना है यही है की वो खूनी जानवर उसकी बोटी बोटी नोच लेंगे। केवल दृढ़ आत्मविश्वास और निश्चय के बल पर वह उन्हें परास्त कर सकता है। इसके लिए यह भी आवश्यक है कि वह पहले अपनी आँखों के वार से ही उन्हें परास्त करें। आँखों का क्रोध उन्हें भयभीत कर सकता है। यदि वह प्राणी डर जाता है तो समझ लो कि उस जानवर की शक्ति पहले से भी कहीं अधिक हो गयी। इससे तो वो अपना जीवन खो बैठेगा। सत्य तो यह है कि जब तक प्राणी को या पक्का विश्वास ना हो जाये की वो जीस पदार्थ को प्राप्त करना चाहता है उसे अवश्य ही प्राप्त कर सकता है। तब तक वो पूरे परिश्रम और लगन से उसे पाने में जुट नहीं सकता, जो सफलता के लिए अति आवश्यक है। यही पक्का निश्चय ही तो उसका आत्मविश्वास है, जो सफलता की ओर ले जाता है। उसकी इच्छा शक्ति दुगनी हो जाती है। उस आदमी को एक कुशल व्यापारी बनने में न जाने कितनी देर लगेंगी, जो हर समय संदेह करता रहता है। करुं या ना करूँ बस इसी दोराहे पर खड़ा वो चिंता के सागर में डूबा रहता तब वह सफल कैसे हो सकता है? इस तरह की मनोवृत्ति से आप कोई महान कार्य नहीं कर सकते। मन को सदा अग्रणी होना चाहिए, उसे आगे आगे चलना चाहिए। शरीर और इन्द्रियां उसी का अनुसरण किया करती है। हम सदा उसी ओर मुँह करके आगे बढ़ते हैं, जिधर हमारा विश्वास हमें ले जाता है, जिसका काम को पूर्ण करने के विषय में अपनी सफलता पर हमारा दृढ़ विश्वास होता है, उसी काम को हम पूर्ण कर सकते हैं। नजाने उस नवयुवक को धन इकट्ठा करने में कितना समय लगी जिसे ज़रा भी विश्वास नहीं की वो धन उपार्जित कर सकता है यदि उसके मन में यह विश्वास जम गया है कि इस संसार में केवल कुछ प्राणी ही ऐसे हैं जो धनी हो सकते हैं। अधिकांश प्राणी गरीब है और गरीब ही रहेंगे। शायद मैं भी उनमें से एक हूँ जो कभी भी धनी नहीं हो सकता। कॉलेज में जाकर जो विद्यार्थी लगातार ही सोचता रहता है कि मैं इस योग्य कहाँ से ग्रैजुएट हो जाऊ, मैंने तो कॉलेज में आकर ही भूल की है। ऐसे लोग कहा ग्रैजुएट हो पाएंगे जब उनके अपने विचार ही इतने छोटे हैं, उनमें विश्वास ही नहीं जो नवयुवक यही सोचता रहता है प्रयत्न करने का क्या लाभ? जब मुझे पता है कि मैं अफसर नहीं बन सकता, ऐसे युवक जीवन भर अफसर नहीं बन सकते। बहुत से युवक जोश में आकर डॉक्टर, वकील या व्यापारी बनने की बातें करने लगते। किंतु इसे पूरा करना कितना कठिन होता है? इसे पूरा कर पाना इतना सरल नहीं। इसमें कोई दृढ़ संकल्प वाली स्थिति नहीं होती। जब आदमी के सपने पूरे नहीं होते, उसके टाइम टाइम फिश तो होती ही होती है, साथ ही उसे अपने आप पर शर्म आने लगती है। इस प्रकार से उन्हें ऐसी कल्पना करने से पूर्व अपने निश्चय को दृढ़ करना होगा और यह प्रतिज्ञा करनी होगी कि उन्होंने अपने लिए जो उद्देश्य चुना है, अवश्य पूरा होकर ही रहेगा। भले ही उसे रात रात भर क्यों ना जाकर पढ़ाई करनी पड़े। उसकी मंजिल तो डॉक्टर, वकील या व्यापारी बनने की होती है। अपनी इस प्रतिज्ञा को दोहराते रहिए की मुझे तो अपने कार्य को सफल बनाने के लिए परिश्रम करना है। ऐसे भी युवक देखने को मिलते हैं जो अपने धंधे में पूरे उत्साह से लगते हैं। वे अपने कार्य को बहुत शौक और लगन से करते हैं। वे अपने निश्चय पर अटल रहते हैं। निरंतर प्रयास करना उनका स्वभाव हो जाता है। ऐसे लोग थोड़े समय में ही उन्नति के शिखर तक जा पहुंचते हैं। यदि हम संसार के महान सफल लोगों की सूची देखेंगे तो हमें उनमें ऐसे ही सफल लोग नजर आएँगे जिनको अपने आप पर पूरा विश्वास था। यह विश्वास ही पुरुष की महान उपलब्धि है, जिससे व्यक्ति को अपने आप पर विश्वास हो जाता है। वह समझने लगता है कि वह जीस काम में हाथ डालेगा, उसमें अवश्य ही सफल होगा। बहुत से लोग धुन के पक्के होते हैं। उन्हें अपने कर्म शक्ति पर पूरा भरोसा होता है, चाहे लोग उनके विश्वास को मूर्खतापूर्ण ही क्यों ना कहे किंतु फिर भी अपनी धुन में आकर वही काम करते हैं जिसकी उन्होंने कल्पना की थी। यही धुन उन्हें अपनी मंजिल की ओर खिंचे लिए जाती है। दृढ़ विश्वास लोगों पर प्रभाव डालता है। ऐसे प्राणी एक ही बात पर हर समय रटते रहते हैं कि हम सफल होकर रहेंगे। यही बात उनकी सहायक सिद्ध होती है। जब कोई आदमी अपने आप को किसी काम का गुरु मानने लगता है और वह होशियार भी हो जाता है, उसके हर शब्द में से आत्मविश्वास की भावना टपकती है। इसे दूसरों के मन में संदेह दूर हो जाते हैं और वे लोग सहायता करने लगते हैं। प्रत्येक मनुष्य को यह पता चल जाता है कि यह विजयी और सफल प्राणी है। ये संसार विजयी लोगों पर ही विश्वास करता है। आत्मविश्वास अपने प्रति ईमानदार होता है और लोग भी इसी के प्रति ईमानदार होते हैं। आत्मविश्वास आदमी के शरीर के हर अंग से गहरा विश्वास प्रकट होता है। उसकी हर कोशिश आत्मविश्वास की भावनाओं को प्रतिबिंबित करती है। लोग उससे अधिक प्रभावित होकर उसे नेता मानने लगते है और उसकी आज्ञा का पालन करने लगते हैं। हम उन्हीं लोगों से प्रभावित होते हैं जो अपनी शक्ति से हमें प्रभावित करते हैं। यदि उनके मन में संदेह या डर होता है तो उसका हम पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ सकता। कुछ लोग ऐसे भी हैं जो अपने वहाँ होने पर भी विजय की भावनाओं का संचार कर देते है। पहले ही भेंट में दूसरों का विश्वास जीत लेते हैं। उनमें यही विशेषता होती है कि वे अपनी यादें सदा के लिए हमारे मन में छोड़ जाते हैं। हर तरह के कामों में हमें दूसरों पर अपना विश्वास ज़माना ही पड़ता है। कारोबारी शब्दों में इसे साख कहते हैं। यही साख ही कारोबार की सबसे बड़ी पूँजी मानी जाती है। विश्वास का दूसरा नाम साख है। इसी साख से हम दूसरों से लाभ उठा लेते हैं। लोग हम पर विश्वास करके उधार देने के लिए तैयार हो जाते हैं। वहीं उधार हमारे कारोबार की पूंजी बन जाता है। इसलिए यदि आप अपने कारोबार को ऊंचा उठाना चाहते हैं, उसे बड़ा बनाना चाहते हैं तो पहले उसकी साख को मजबूत बनाईए लोगों के मन में यह बात बैठा दीजिये की अपनी कंपनी किसी एक का रुपया भी नहीं रखती। बस फिर क्या आप लोगों का नफा ही नफा है? आपने देखा होगा बड़ी बड़ी कंपनियां चालू होने से पहले ही लोगों को अपने शेयर बेचकर करोड़ों रुपये इकट्ठा कर लेती है। ये सब कैसे होता है? केवल गुडविल पर साख पर जीवन तो बहुत लम्बा नहीं, समय भी कम है। हर आदमी आज के युग में अपने काम के पीछे दौड़ रहा है। किसी के पास इतना समय नहीं की वो हमारे रोने सुन सके। हर आदमी की यही इच्छा है कि वह अमीर बन जाए। तो सोचना तो यह है की वो अमीर बने कैसे? बस यही एक प्रश्न हैं जो बार बार आकर हमारी नजरों के सामने घूमने लगता है। फिर हमारे सामने यही समस्या खड़ी होती है की हम धन के अभाव का शिकार है। हम चिंतित होते हैं, निराश होते हैं, हम कुछ करना चाहते हैं किंतु कर नहीं पाते, घबरा जाते है। जब हम स्वयं ही चिंताओं से घिरे हैं तो लोग हमारे पास क्यों आएँगे, आएँगे भी तो विश्वास भी क्यों करेंगे हम? पर हम तो अपना विश्वास खो देते हैं, फिर हमारी सहायता कौन करेगा? एक डॉक्टर के लिए यह जरूरी नहीं है की वो हर एक रोगी को विस्तार से बताएं कि उसकी बिमारी का इलाज उसने बहुत ध्यान से किया है। डॉक्टर का चेहरा देखते ही बीमार पर ऐसा प्रभाव पड़ता है की उसे विश्वास हो जाता है कि वो ठीक इलाज करेगा। उदाहरण के लिए मैं अपने एक मित्र डॉक्टर की बात बतलाता हूँ। वह एक बहुत ही अच्छे, मिलनसार और हंसमुख डॉक्टर जे एम गुलाटी हैं जो अपने हर रोगी को हंसकर देखते हैं और दवाई देने से पहले पड़ी मीठी बातें करके अपने रोगी का मन खुश कर देते है और रोगी को अपनी बातों से यह विश्वास दिला देते हैं कि तुम यह दवा लेते ही ठीक हो जाओगी। किसी प्रकार की चिंता मत करो, खूब खाओ, पियो बस फिर क्या है रोगी उनकी बातों से ही अपने आप को आधा ठीक तो महसूस करने लगता है। उसे पूर्ण विश्वास हो जाता है कि मैं इनकी दवाई से ठीक हो जाऊंगा। यह बात है विश्वास की। जब रोगी को यह विश्वास हो जाता है कि वो ठीक हो जाएगा तो वास्तव में ही ठीक हो जाता है। बात केवल विश्वास की वरना दवाई तो हर डॉक्टर ही अच्छी देता है। आप छात्रों या युवकों की किसी वर्ग की ओर ध्यान दीजिए। आप देखेंगे कि इनमें से कुछ लोग दूर से ही हीरो या नेता नजर आते हैं या उनका प्रभाव है जो उन्हें देखते विश्वास कर लेते हैं कि ये नेता या हीरो है। संसार में सभी लोग अपने अपने स्थान पर व्यस्त नजर आते हैं। इनके पास इतना समय ही नहीं कि वे अपनी योग्यता की परीक्षा करे, आपके गुणों को जान सकें या आपका काम है कि आप अपनी योग्यता और गुणों से अवगत कराएं। अपनी काम। क् ली को स्वीकार करना, दूसरों के मन में अपने प्रति स्नेह पैदा करना, अपनी असफलताओं को बताना, अपने आप पर विश्वास ना करना, यह सब ऐसे दोष है जो आदमी को असफलता की ओर ले जाते हैं। बहुत से लोग इसीलिए असफल होते हैं कि वे अपने आकार प्रकार से ही सुस्त, निराश व्यक्ति नजर आते हैं। उन्हें अपनी ही योजना पर भरोसा नहीं होता तो दूसरे उस पर कैसे विश्वास करेंगे? यदि आप स्वयं ही अपना मूल्य कम करते रहते हैं? अपने को दूसरों से घटिया मानते हैं तो फिर याद रखिये कि दूसरों के पास इतना समय ही नहीं कि वे आप की कीमत बढ़ाए। ऐसा कोई भी आदमी नहीं जो दूसरों की नजरों में स्वयं को गिराता हो और फिर भी उसने कोई महान कार्य ना किया हो। हम अपने आप से जितना काम पानी की आशा करते हैं, उससे अधिक काम हमसे नहीं होगा। यदि हम अपने से किसी महान कार्य करने की आशा करते हैं, अपनी शक्तिओं से उस काम को पूरा करने की मांग करते हैं, अपनी सारी शक्ति को उस कार्य पर लगा देते हैं, तो आप अपनी इच्छा के अनुसार परिणाम प्राप्त करने की योग्य अवश्य हो सकते हैं। यदि आपको विश्वास है कि आप किशोर व्यक्ति हैं, आप साधारण लोगों की भीड़ से अलग है, आप आम लोगों की भांति आराम पसंद या नीचे जाने वाले नहीं हैं। तो आपको अपनी कमजोरियों पर विजय प्राप्त करके इन्हें अपने से दूर रखना होगा। विशेष काम करने के लिए प्रयत्न भी विशेष ही करने पड़ते हैं। कुछ लोग ऐसे भी हैं जो निरंतर अपना हिसाब लगाते रहते हैं। अपनो को दूसरों से कमजोर समझते हैं। उन्हें अंदर ही अंदर यह एहसास खाये जाता है कि हम बड़ी सभा सोसाइटी की योग्य नहीं हैं। यही उनकी भावना उन्हें समझ में छोटा बना देती है क्योंकि उनका विश्वास अपने से उठ जाता है। यही उनकी कमजोरी उनकी बुद्धि को चाट जाती है। यदि आप स्वयं अपने कोई योग्य नहीं समझती तो दूसरा कोई क्या आपको योग्य समझेगा? आप ने जब अपने दाम स्वयं लगा लिए तो दूसरा उन दामों को बढ़ाएगा क्यों? यदि आप अपने को एक साधारण आदमी समझने लग जाते हैं तो आपके चेहरे के भाव भी तो उतने ही साधारण नजर आएँगे। जो लोग अपना सम्मान स्वयं नहीं करते तो फिर दूसरा कौन आपका सम्मान करेगा? यदि आप स्वयं अपने को गरीब समझते हैं तो फिर धनि आप को कौन समझ सकता है? क्योंकि आपके विचार तो आपके चेहरे से प्रकट हो जाएंगे। यदि आप अपने को गुणवान, बुद्धिमान, हर कार्य के योग्य मान लेते हैं और इच्छाओं की पूर्ति की प्रतिज्ञा कर लेते हैं। ऐसा ही विश्वास अपने मन में बैठा लेते हैं तो फिर कोई शक्ति आपकी सफलता का मार्ग नहीं रोक सकती। यह बात याद रखें कि आप का प्रयत्न बाद में शुरू होता है और विचार पहले पैदा होता है। यदि आप यह चाहते हैं कि लोग आपको महान समझे तो आपके चेहरे पर एक महान आदमी के भाव प्रकट होने चाहिए। यही प्रभाव आप को महान सिद्ध कर देंगे। इन सब कार्यों की पूर्ति सफलता का मूल आधार आत्मविश्वास है। अपने ऊपर विश्वास निश्चय की भावना महान शक्ति होती है। आप यह सोचें कि मैं इस काम को कर सकता हूँ। मैं हर हाल में इस काम को पूरा करके रहूंगा। मेरा मन ये ही कहता है मेरे मन के साथ मेरी शक्ति हैं। बस फिर आपको अपने ऊपर अटूट विश्वास हो जाता है और आपकी इच्छाशक्ति अपने आप बढ़ जाएगी। आपको आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकेगा। विश्वास नहीं आता तो उठाओ इतिहास के उन प्रश्नों को जो हमें बताते हैं कि सिकंदर महान जैसे एक युवक ने विश्व विजेता का रूप धारण कर लिया। नेपोलियन ने सारे संसार के राजाओं की जड़ें हिला दी। सिकंदर महान की आयु क्या थी? केवल 20 साल और उसने केवल अपने दृढ़ विश्वास की शक्ति से अपने लिए इतिहास में अमर विजेता का स्थान प्राप्त किया। फिर आप क्यों डरते हैं? क्यों नहीं अपने अंदर आत्मविश्वास की शक्ति पैदा करते हैं? आपके सारी चिंताएं दूर हो जाएंगी। आपको हर कार्य में सफलता मिले गी बस आत्मविश्वास आपके चरित्र को ऊंचा उठाएगा। आप एक विजेता के रूप में इस समाज के सामने आयेंगे। समाज हर विजेता का सम्मान करता है। दोस्तों उम्मीद करती हूँ आज की या ऑडियो आपको प्रेरणा देगी और जीवन में सफल बनाने के लिए आप को उत्साहित करेगी। सुनते रहे मोनिका की आवाज़ में लेखक स्वीट मॉडर्न की लिखी गई महान कृति एव्रीमैन आर किंग का हिंदी रूप।","यह ऑडियो स्वेट मार्डन द्वारा लिखी गई किताब एवरी मैन ए किंग से लिया गया है जिसका अनुवाद है खुशी से कैसे जीना है आप इस ऑडियो को सुनकर अपने जीवन में निराशा से बाहर आ सकते हैं और कई आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं इसमें आपको हिंदी ऑडियोबुक, हिंदी ऑडियोबुक मिलेगी , हिंदी में ऑडियोबुक, प्रेरक ऑडियोबुक, प्रेरक ऑडियो, 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मुँह से यही शब्द निकलते हैं। बहुत ठंडी आये भरकर कहने लगता है। अरे मेरे दुर्भाग्य, मेरी गरीबी मेरी मजबूरियों का कारण ये बच्चे ही तो है मेरे सगे संबंधी भी मेरे दुर्भाग्य की देन हैं। इस संसार में गरीबी ही ऐसा बड़ा नरक है, जिसमें कमजोर दिल वाले लोग सबसे अधिक डरते हैं जबकि शक्तिशाली दिलवाले उसे दूर भगा देते हैं। गरीबी ऐसा खुले मुँह वाला देव है जो सभ्यता तक निगलने के लिए तैयार रहता है। गरीबी का विचार जब मनुष्य के दिल में पैदा होता है तो उसे अपने आप या एहसास होने लगता है कि वास्तव में ही गरीबी का शिकार वो हो रहा है। किसी भी इंसान को ये अधिकार नहीं है। की वह सदा गिरे पड़ी बुरी हालत में पड़ा रहे। जब तक इंसान अपनी मदद करने में बिल्कुल असफल ना हो तब तक उसे यह अधिकार बिल्कुल नहीं है कि वह आशा भंग करने वाले, निराश करने वाले वातावरण में पड़ा रहे। इंसान के अंदर जो आत्मविश्वास है उसकी यह मांग है कि वह दीन्ही निराशा के वातावरण से ऊंचा उठे। धन सम्पत्ति जो उसके चारों ओर बिखरी पड़ी हैं, इनको इकट्ठा करने के लिए बुद्धि से काम लें। हर प्राणी का यह जन्मसिद्ध अधिकार है कि वह गरीबी और मजबूरी से संघर्ष करें और वह सब कुछ पाले जो उसकी इच्छा है। गरीबी नर्क भी है और पाप भी। फिर आप गरीबी से संघर्ष क्यों नहीं करते? इस संसार में आपको अपने ही पांव पर खड़े होना है। संघर्ष करने के लिए अपने अंदर आत्मशक्ति को पैदा करना होगा। यदि आप गरीब हैं तो आपको यह अधिकार नहीं कि आप अपने सगे संबंधियों या मित्रों पर बोझ बन जाए। अपने दुखों को दूसरों पर क्यों लादते हैं अपना बोझ? आप उठाने की आदत डालिए। ईश्वर ने हर इंसान को एक ही जैसा शरीर दिया है, वहीं मस्तिष्क वही हाथ, पांव फिर या दूसरों का सहारा क्यों ढूंढ़ते हैं? यदि वह गरीब है तो इसमें दोष उसकी अपनी बुद्धि का है, अपने परिश्रम का है और अपनी सोच का है। आप किसी भी अमीर आदमी से जाकर ये पूछे कि वह कब से गरीबी के विरुद्ध संघर्ष करता हुआ इन सीढ़ियों पर चढ़ता रहा कितनी बार वह नीचे गिरा किंतु उसने हिम्मत नहीं हारी। फिर ऊपर चढ़ने का प्रयास किया। वह कितनी बार गिरा, कितनी बार चढ़ा, यह लंबी कहानी है। हाँ, जब वह सफल हो गया तो लोग उसकी वह कहानी तो भूल गए जिससे की प्रेरणा मिलती थी। उन्होंने तो उसका अमीरी का रूप देखा। उसे कार में घूमते देखा, बंगले में रहते देखा। फिर ये जानने की कोशिश करता है कि उसने अपनी गरीबी को दूर करने के लिए अपने आराम का परित्याग किया। परिश्रम को गले से लगाया। सारे संसार के सुख त्याग दिए दिन रात का अंतर तक भूल गया था। अब जब वह अमीर हो गया है तो सारे दुख भूल गया है। उसे पता है कि अब गरीबी कभी भूलकर भी उसके निकट नहीं आएगी। अब तो उसमें इतनी शक्ति आने लगी है की वो कभी भी गरीबी से लड़ सकता है। अब गरीबी बढ़ी नहीं बल्कि वह बड़ा है। उसके अथक परिश्रम की शक्ति का ही तो या फल है कि आज उसे संसार का हर सुख मिल गया है। उसे सबसे बड़ी शांति तो इस बात की है कि अब उसके बच्चों को गरीबी से नहीं लड़ना पड़ेगा, जैसा कि उसने लड़ा। आज जब वह धनवान बन गया है तो अपने बच्चों को सुख देने के साथ साथ कितने ही बेकार लोगों को काम दे रहा है। यह भी तो एक भले की ही बात है कि किसी बेकार आदमी को काम दिया जाए। जब भी वह किसी बेकार या गरीब आदमी को देखता है तो उसे अपना ज़माना याद आ जाता है। जब वो गरीब था, ऐसे ही दुख तो उसने सहन किए थे किंतु वह ये नहीं बोला की उसने इस गरीबी के नर्क से निकलने के लिए क्या कुछ नहीं किया। इस सच्चाई के सैकड़ों प्रमाण और सुबूत हैं की इंसान का जन्म महान कार्यों के लिए ही हुआ है ना कि गरीबी और बेबसी की भट्टी में। हर समय जलता रहने के लिए आदमी के आम स्वभाव में आलस और निर्धनता कोई मेल नहीं है। हर गरीबी को इस लिए दुखदाई समझते हैं कि इसे हम स्थायी मान लेते हैं। जबकि ना तो अमीरी ही स्थायी है और ना ही गरीबी। इसका कारण मात्र यही है कि हम में आत्म विश्वास नहीं होता। जो हमें मिल जाता है उसे हम अपना भाग्य समझकर शांत हो जाते हैं। वास्तव में हमारा कार्य इससे विपरीत होना चाहिए। यानी हमें गरीबी को अपना सबसे बड़ा शत्रु मानकर इसके विरुद्ध पूरी शक्ति से लड़ना चाहिए। गरीबी हमारे भाग्य का अंग नहीं जो हम इसे प्यार करते रहें। जो लोग भाग्य को पकड़कर गरीबी की गोद में खेलते रहते हैं, वे कभी भी अपनी हालत सुधार नहीं सकते। भाग्य तो इंसान स्वयं बनाता है। ईश्वर ने तो इंसान को जन्म दिया है, यदि उसे ईश्वर के बनाए भाग्य पर ही निर्भर रहना है तो फिर उसे कोई भी काम करने की आवश्यकता नहीं बैठा रहे। आराम से एक ही स्थान पर यदि भाग्य में होगा तो सब कुछ मिल जाएगा। क्या ऐसा होना संभव है? नहीं नहीं, आप तो स्वयं अपने भाग्य विधाता है। आपके अपने विश्वास के बिना। कुछ नहीं होने वाला या गरीबी का सारा जाल तू धनवान लोग फैलातें रहते हैं। वे गरीबों को तो ये कहते रहते हैं की ये सब तुम्हारे भाग्य में लिखा था और स्वयं उलटे सीधे काम करके धन कमाते रहते हैं। इसका फल क्या होता है? गरीब अधिक गरीब होता जाता है। धनवान अधिक धनवान बनने लगता है। सर्वप्रथम प्राणी के अंदर आत्मविश्वास की आवश्यकता है। हम अपने मन को इतना विशाल ही नहीं बनाते कि उसमें हमारी आत्मा की आकांक्षा समझ सके। हम अपनी मनोवृत्ति को इतना दबा या कुछ ला देते हैं की हमें आत्मा की आवाज ही नहीं सुनाई देती और इसका फल या होता है की हम हर विषय में कंजूस होते जाते हैं। छोटे दिलवाले लोगों की भाँति सोचने लगते हैं। प्रकृति ही एक ऐसी महाशक्ति है जो हर जीव को पैदा करती हैं, वहीं उनका पालन पोषण करती है। उसके यहाँ कंजूसी वाली कोई बात नहीं, वो तो सबको बराबर चीज़ बांटती है। ना ही उसने कंजूसी से संसार बस आया है। प्रकृति के घर से प्राणी को क्या नहीं मिलता? हमारी हर इच्छा की पूर्ति के लिए उसने उदारता से काम दिया है। इस संसार में चारों ओर एक नज़र दौड़ाकर देखो तो आपको पता चलेगा कि प्रकृति ने मनुष्य को इतने बड़े भंडार दे रखे हैं, जिनकी कीमत सारे संसार का धन भी नहीं चुका सकता। हवा, पानी, फूल, प्रकाश, फल इत्यादि क्या आप समझते हैं कि हवा पानी प्रकाश के बदले? प्रकृति आपसे कुछ लेती है या प्रकृति किसी के लिए कम या अधिक ये सब कुछ बांटती है नहीं यह सब तो ईश्वर के घर से सबको बराबर मिलता है। उसके नजरों में ना तो कोई गरीब है ना अमीर और ना ही वो कंजूसी से यह सब कुछ बांटता है। छोटा बड़ा, अमीर, गरीब ये सब किसने बनाया है स्वयं इंसान ने? यहाँ आप क्यों बोलते है कि यदि एक दीपक से दूसरा दीपक जला लिया जाता है तो पहले दीपक का कुछ घिस नहीं जाता, ना ही उसका प्रकाश कम होता है? ठीक उसी तरह यदि हम किसी से मित्रता करते हैं, उसे प्यार बांटते है तो क्या हमारे शरीर में से कुछ कम हो जाएगा? नहीं बल्कि हम दूसरे से प्यार करके अपने लिए और प्यार पाते हैं। इस प्यार के अंदर तो हमारी हार्दिक खुशी छिपी हुई है। मानव जीवन का सबसे बड़ा रहस्य यही है कि हम उस महान शक्ति से अपना संबंध कैसे जोड़ें यदि इंसान उस महाशक्ति से रिश्ता जोड़ने का तरीका समझ जाता है। तू? वह अपनी कार्यकुशलता में लाखों गुना वृद्धि कर सकता है। उसका कारण मात्र यही है कि तब तक वह उस महाशक्ति के भंडार का सहयोगी और भागीदार हो जाएगा, वरना केवल उस महाशक्ति के भंडार से स्वयं शक्ति प्राप्त करने में समर्थ हो सकेगा, बल्कि औरों को भी शक्ति प्रदान करने में समर्थ हो सकेगा। तब अपने आप में एक शक्ति का भंडार हो जायेगा। इतने अद्भुत शक्ति का पहले भी उसने स्वप्न नहीं देखा होगा, जिससे समय हमें ये पता चल जाता है कि सारे शक्ति उसी महाशक्ति से ही आती है और यहाँ पूर्ण आजादी से हमारी ओर खींची चली आती हैं। तब हमारे मन की शक्ति का उस शक्ति से संबंध जुड़ जाता है। तब हमें बेईमानी, स्वार्थ, अन्याय की भावना यह सब जलकर राख हो जाती है। ईश्वर वह नहीं जो हमें अच्छाइयों के प्रति अंधा बना दें, बल्कि ईश्वर वाह है जो इन अच्छाइयों को देखने की दृष्टि प्रदान करता है। हम धन को ही ईश्वर मानकर भूल करते हैं। इसी कारण हम जड़ के स्वामी ना होकर बेईमानी, स्वार्थ, दुष्टता, झूठ को आनंद मानने लगते है। अन्याय के कारण जब हमारी दृष्टि धुंधली हो जाती है तब हम अपने भाई, बहनों और दूसरे सगे संबंधियों का अनुचित लाभ उठाने लगते हैं। जब हमारी दृष्टि से या धुंधलापन दूर हो जाता है। तब हम उस प्रभु के निकट पहुँच जाते हैं, तब विश्व के सारे पदार्थों का प्रवाह स्वयं ही हमारी ओर खींचने लगता है। किंतु हमारी सबसे बड़ी भूल यही है कि हम अपने ही गलत कामों, गंदे विचारों से उसे अपने तक पहुँचने से रोक देते हैं या बाधा डाल देते हैं। हमारा हर बुरा काम हमारी दृष्टि से दूर होकर पापों की नगरी की ओर बढ़ता है, जिसका फल या होता है कि हम ईश्वर से दूर होते चले जाते हैं। इसके विपरीत जब हमारी नजर विशाल और उदार हो जाती है, उसमें पवित्रता आ जाती है। तब हमारा दिल बहुत बड़ा और खुला हो जाता है, कंजूसी भी दूर भाग जाती है। जब हम बुराइयों से दूर चले जाएंगे तो जिन चीजों की तलाश हम भटकते फिरते हैं, वही चीजे हमें तलाश कर रही होंगी। जॉन ब्रोस ने अपनी एक कविता में सच ही कहा है, मैं समय और भाग्य के विरुद्ध कोई शिकायत नहीं करता और देखो जो कुछ मैं चाहता हूँ वह मुझे अपने आप ही मिल जाता है। मैं सो गया और जागा तो क्या देखता हूँ कि जिन मित्रों को मैं ढूंढता फिरता था, वे तो स्वयं मुझे ढूंढ रहे हैं। यदि मैं अकेला खड़ा हूँ तो क्या हुआ? मैं आने वाले वर्षों की खुशी से प्रतीक्षा कर रहा हूँ। मेरा हृदय वहीं फसल काटेगा जैसा उसने बीज बोया था, क्योंकि जो कुछ मेरा है, वह मेरे को अवश्य ही पहचान लेगा। समय का अंतर, स्थान की दूरी, सागर की गहराई और पहाड़ों की ऊँचाई मेरे मन चाहे चीज़ को मुझसे दूर रखने में सफल नहीं हो सकते। हर समय डरते मत रहिये की आपके पास आपकी मनपसंद चीज़े नहीं है। हर समय रोते क्यों रहते हो की आपके पास बढ़िया कपड़े नहीं हैं, ये आपके पास वे सब सुख नहीं जो लोगों के मिले हुए हैं या आप भी काम नहीं कर पाते हैं जो कि दूसरे कर लेते हैं। ये सब कुछ सोचना उचित नहीं। इससे तो आप अपने जीवन में अंधेरे ही अंधेरे भर लेंगे। दूसरों को देखकर मत चलिए अपने बुद्धि से हर काम कीजिए। किसी को देखकर रोने और ठंडी आये। भरने अपने भाग्य को कोसने से आप कुछ नहीं पा सकेंगे। आप जो कुछ भी पाएंगे, अपने परिश्रम और लगन से। इसमें कोई संदेह नहीं कि हर आदमी के मन में धन कमाने की लालसा होती है, किंतु वह उसे तब तक नहीं पा सकता जब तक कि वह अपनी मानसिक स्थिति में विशेष परिवर्तन नहीं कर लेता। जब तक वह अपने अभागे पन और गरीबी का रोना नहीं छोड़ता तब तक उसे धन प्राप्त नहीं हो सकेगा। पहले रोना बंद कीजिए, फिर दूसरों की ओर देखकर जल ना। और ठंडी आए भरना छोड़िए, अपने आप को देखो अपने कष्ट दूर करने के उपाय सोचो। जितना समय आप दूसरों को देखकर जलने में नष्ट करते है, उतने समय में आप अपने आप को अच्छा बनाने का प्रयत्न क्यों नहीं करते? विश्वास करो कि इस संसार में जो अच्छे पदार्थ है, सुख और आराम के साधन है, अच्छे अच्छे मकान है, यात्रा के सारे सुख हैं या सब कुछ आपके अपने लिए भी हो सकते हैं। परंतु जीस समय आपके मन में यह विचार पैदा होते ही धुंधला हो जाता है, उस समय आप अपना सब कुछ खो देते हैं। अपने आप को अभागा मानकर आपको क्या मिलेगा? केवल निराशा और यही निराशा आपकी प्रगति के रास्ते का रोड़ा बन जाएगी। इसलिए सबसे पहले अपने मन से निराशा को निकाल लिए अपने आप को अभागा और छोटा समझने का विचार मन से दूर फेंक दो। अपने आप को छोटी श्रेणी में क्यों गिनते हो? क्यों नहीं छोटे विचारों को इस बंधन को तोड़कर दूर फेंक देते? अपने को छोटा क्यों समझ बैठे हैं आप? आप अपने को इसलिए छोटा समझते हैं कि आपने स्वयं को बंदनों में जकड़ रखा है। आपने अपने हाथ पांव में बंधनों की बेड़ियाँ पहन रखी है। किसने आपका रास्ता रोक रखा है? ऐसा लगता है आपने स्वयं ही अपने चारों ओर बाढ़ बना रखी है। इस बाढ़ से बाहर आने का प्रयत्न ही नहीं करते। इस बार से बाहर निकलकर इस संसार की ओर देखिए जहाँ पर संसार भर की खुशियां आपकी प्रतीक्षा कर रही है। आप प्रकृति के उस विशाल भंडार को क्यों भूल गए जो केवल मानव जाति के लिए ही बना है? तब प्रकृति के किस सिद्धांत के अनुसार वे पदार्थ आपको नहीं मिल सकते? इन पर तो आपका अधिकार है, हाँ, इन्हें पाने के लिए आपको अवश्य थोड़ी मेहनत करनी होगी। यदि आपने अपने मन में यह विचार बैठा लिया है कि गरीबी ही आपके भाग्य में लिखी है तो फिर संपन्नता आपके पास कहाँ से आएगी? ज़रा कल्पना करें कि क्या ऐश्वर्या चाहता है कि उसके द्वारा रची इस दुनिया के लोग दुखी रहे? यह भी सच्ची खुशियों से वंचित रहे। नहीं नहीं, यदि ईश्वर की ऐसी कोई इच्छा होती तो वो सब इंसानों को एक ही जैसा क्यों बनाता? उसने तो सबको एक समान ही बनाया है। यदि हम किसी भी पदार्थ को नहीं पा सकते तो। उसमें दोष किसका है? बात मान लेना सबसे बड़ा अभिशाप है इस संसार में कुछ लोग तो सदा गरीब रहेंगे और इस दुनिया से गरीबी कभी नहीं मिट सकती। कुछ लोग तो अवश्य गरीब रहेंगे और कुछ अमीर। कुछ लोग इस बंधन में जकड़े हुए है की वह सदा गरीब ही रहेंगे, परंतु ईश्वर ने इंसान के लिए जो जीवन योजना बनाई है, उसमें गरीबी, भुखमरी का कोई स्थान नहीं है। इस धरती पर एक भी इंसान गरीब नहीं होना चाहिए, परंतु कुछ चालाक और बेईमान आदमी हेराफेरी से कुछ संपत्ति बटोर लेते हैं और कुछ भोले भाले सीधे लोग अपनी गरीबी प्रकृति की देन समझकर शांत हो जाते हैं। इस प्रकृति के सीने में कितने ही विशाल भंडार पड़े हैं, जिन्हें यदि कोई निकालें तो वह अमीर बनता जाएगा। हाँ, इस कार्य के लिए साधनों की आवश्यकता है। गरीब लोग तो भाग्य का दामन पकड़कर निराश होकर बैठ जाएंगी। इस दुनिया में हर चीज़ है किंतु आपके पास कुछ नहीं। ऐसा क्यों? यही ना आपके पास धनी बनने के साधन नहीं और आपने इस विचार को पूर्ण रूप से मान लिया है। क्या आपका जन्म ही गरीब बने रहने के लिए हुआ है? आप अभाग्य है? अरे भाई उठो तोड़ दो इन बंधनों को जो तुम्हें दिन प्रतिदिन गरीबी की ओर धकेल रहे हैं, अपने विचारों को छोटा नहीं, बड़ा बनाओ अपने क्षाओं को सीमित नहीं, विशाल बनाओ अपने मन से छोटे विचारों को निकाल दो भाग्य का सहारा लेना छोड़कर परिश्रम करो फिर देखो तुम्हें हर चीज़ में लेगी। नई खोज कर रहे वैग्यानिकों का यह मत हैं विचार ही पदार्थ है। विचार ही जीवन का अंग बनकर चरित्र को विशेष स्वरूप प्रदान करते हैं और चरित्र ही हमारी आदतों पर हमारी इच्छा शक्ति पर नियंत्रण रखता है और यदि हम अपने मन में डर के विचारों को पालते हैं या अभाव के विचारों को पनपने देते हैं। यदि हम अपनी गरीबी से डर रहे हैं तो हमारी गरीबी के डर के कारण हमारा जीवन भय के वातावरण में परिचालित होता है। हमारा चरित्र एक बुजदिल प्राणी जैसा बन जाता है। हमारी आदतें एक थके हारे बेदिल निराश आदमी जैसी हो जाती है। इसका फल क्या होगा? यही ना की हम जो बोएंगे सो काटेंगे, जो सोचेंगे वही मिलेगा। हम इसलिए पैदा नहीं हुए की दुखों में अपना जीवन काटते रहे, जीवन की आवश्यकताओं से वंचित रहे, सदा दुखी रहकर से सकते रहे हमारा जन्मे इसलिए नहीं हुआ कि गरीबी के घुटन में सांस ले। ईश्वर ने हमे भी तो सारी शक्तियां प्रदान की है, जिनके सहारे हम अपने जीवन को सुखी, सुंदर, चिंतामुक्त बना सकते हैं। परंतु हमने हार मान रखी है। हम अपने जीवन में कोई परिवर्तन करने को तैयार नहीं। बस दिन रात अपने भाग्य को रोते पीटते या भूल गए कि हमारा कोई कर्तव्य भी है किंतु कितने दुख की बात है ये हमारे विचार ही गलत है। हमारी कल्पना की उड़ान ही कम ऊंची है की ऊंचे विचार ही नहीं रखते। आदर्श मानव होते हुए भी हमने अपने आप को अभागा और बेबस मान लिया है और टूटे हुए मन से सांस ले कर आये भरते रहते हैं। क्यों? आखिर क्यों? यदि हम अपने मन के छोटे विचारों को दूर कर दें, आदर्श मानवता को अपना लें, जीवन को सुंदर, विशाल दुखों से अलग निराशा से दूर करके उसे उदार बनाने का संकल्प करें तो हम क्या नहीं बन सकते? आज ही यह प्रतिज्ञा कीजिए क्या हम गरीबी से मुँह मोड़ लेंगे? गरीबी हमारा सबसे बड़ा शत्रु है। हमें प्रकृति के भरे सुख भंडार से ही सारे सुख प्राप्त करने हैं। इन पर हमारा भी उतना ही अधिकार है जितना सुखी। इंसान का गरीबी संसार का सबसे बड़ा पाप है और उससे बड़ा पाप हैं भाग्य का सहारा लेकर गरीबी को सहन करना उठो या प्रण करो कि हम अपनी सारी शक्ति गरीबी के विरुद्ध लड़ने में लगा देंगे। संसार में क्या नहीं? ईश्वर ने इस दुनिया में हर चीज़ पैदा की है, इंसान के लिए ही तो है क्या किसी वस्तु पर व्यक्ति विशेष का नाम लिखा है? नहीं बिल्कुल नहीं। या तो आपकी हिम्मत पर ही निर्भर है कि आप इतने बड़े भंडारों में से अपने लिए क्या क्या निकाल सकते हैं। यह सत्य है कि हम अपने विचारों के ही जाल में जीवन व्यतीत करते हैं, अपने विचारों के हिसाब से ही अपने जीवन का निर्माण करते है। जैसे भी हमारे विचार होंगे वैसा ही हमारा चरित्र बन जाता है और जैसा हमारा चरित्र बनता है। वैसे ही हमारे काम होते हैं और जैसे हमारे काम होंगे वैसा ही हमारा जीवन भी होगा। वो इंसान तुझे ये संसार का सर्वश्रेष्ठ प्राणी माना गया है तो ईश्वर का ही तो एक अंश है, इस दुनिया में तो कीड़ों की तरह रेंगने के लिए नहीं? तुझे बड़े बड़े महान कार्य करने तुम तो धरती के देवता बन सकते हो। राक्षस बुद्धि मत बनो, तुझे परमेश्वर ने इस धरती पर इस लिए भेजा है, किंतु स्वयं भी जीवन का आनंद लें और अपने किस्म के दूसरे इंसानों की जरूरत का भी ख्याल रखें। इंसान ही इंसान के काम आता है। तुम यदि अपने लिए सुखों की तलाश करते हो तो अपने आसपास के लोगों का ख्याल भी रखो। अपने को गरीब मत समझो। गरीब होना कोई पाप नहीं। गरीबी का विचार सबसे बड़ा पाप है अपने आप को कभी छोटा मत समझो बड़ा बनने के लिए। बड़े विचारों का होना बहुत ज़रूरी है। तुम्हारे अपने ही विचारों का घेरा तुम्हें गरीबी की रेखा से बाहर निकलने नहीं देता। पहले इस घेरे को तोड़ दो, प्रतिज्ञा करो कि हमें गरीबी के विरुद्ध संघर्ष करना है। मजबूरी और बेबसी की कहानियाँ सुनाना बंद कीजिए, सुस्ती छोड़ दीजिये, भाग्य की ओर देखना बंद कीजिये, हिम्मत का दामन थाम लीजिए और गरीबी के विरुद्ध संघर्ष आरंभ कर दीजिये। अपने आत्मविश्वास को जगाकर कहिए कि आज से हम गरीब नहीं रहेंगे। इस संसार की हर चीज़ पर हमारा पूर्ण अधिकार है। हिम्मत मर्दाना मत दे खुदा जो लोग हिम्मत करते हैं, ईश्वर भी उन्हीं की मदद करता है। हमारा अपना विश्वास जब हम पर से उड़ जाता है तभी हम गरीबी में घिसटते रहते हैं और यह भूल जाते हैं कि हमारा जन्मसिद्ध अधिकार क्या है और उसे हम कैसे प्राप्त कर सकते हैं? इंसान के संचरण में, उससे वातावरण में ऐसे बहुत से ऐसे साक्ष्य विद्यमान हैं, जिनसे पता चलता है कि इंसान का जन्म विशेष कार्यों की पूर्ति के लिए हुआ है, उसे अनेक विशेष कार्य करने है, तभी तो वह ईश्वर बन सकता है तभी उसके दुख दूर हो सकते हैं। ऐसे इंसान अपने आप को दुखी, भाग्यहीन, निर्धन और पतित क्यों समझते हैं? क्या वे अपनी वास्तविक शक्ति को भूल गए हैं? यदि इंसान ही इस धरती का सर्वश्रेष्ठ प्राणी है तो वह इस पृथ्वी के हर सुख की कामना क्यों ना करे? जब वह ईश्वर का उत्तराधिकारी है तो फिर उसे ईश्वर के दिए गए हर सुख को पाने का पूरा पूरा अधिकार है। उस महान ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ संतान होकर भी विश्व में बिखरे अनेक पदार्थों को पाने से यदि वह वंचित हैं, यह बात तो अच्छी नहीं। यदि संसार में पदार्थ होते हुए करोड़ों लोग भूखे सोते हैं तो इससे साफ पता चलता है कि कहीं ना कहीं कोई भूलें अवश्य हुई है। जिंदगी के यह हालात, हमारी आर्थिक दशा, हमारी गरीबी या अमीरी, हमारे मित्र या मित्रों की कमी, हमारा तालमेल या विरोध, ये सारी बातें हमारे विचारों की ही संतान है। यदि हमारी मनोवृत्ति अभावों में भरी रहे तो हमारा वातावरण भी उसी के अनुसार आभा वो वाला होगा यदि हमारे विचारों में बड़ा पन ऊंची उड़ान होगी। हम अपने विषय में सुखों की कामना करेंगे तो हमारा आगे बढ़ने का कार्य सरल होगा। हम अपने आशाओं के अनुकूल काम करके मनचाहा फल पाएंगे। जीवन में हम जो कुछ भी पाते हैं, उसमें हमारे विचारों का सबसे अधिक हाथ होता है। यदि हमारे विचार ही पतित है, छोटे हैं तो हम ऊंचा उठने की बात कहा सोच सकते हैं। जो लोग कंजूस हैं, धन के ऊपर साफ बनकर बैठ जाते हैं, भले ही वे कितने बड़े अमीर हो जाए, उनके विचार तो गरीबों जैसे ही रहेंगे। तो दोस्तों आपको ये ऑडियो कैसी लगी है? अपने विचार, अपने सुझाव, कमेंट में जरूर लिखकर बताएं।","यह ऑडियो स्वेट मार्डन द्वारा लिखी गई किताब एवरी मैन ए किंग से लिया गया है जिसका अनुवाद है खुशी से कैसे जीना है आप इस ऑडियो को सुनकर अपने जीवन में निराशा से बाहर आ सकते हैं और कई आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं इसमें आपको हिंदी ऑडियोबुक, हिंदी ऑडियोबुक मिलेगी , हिंदी में ऑडियोबुक, प्रेरक ऑडियोबुक, प्रेरक ऑडियो, सर्वश्रेष्ठ हिंदी प्रेरक ऑडियोबुक, हिंदी में सर्वश्रेष्ठ प्रेरक ऑडियोबुक, हिंदी में सबसे बड़ी ऑडियोबुक, हिंदी में प्रेरणादायक ऑडियोबुक, हिंदी में प्रेरणादायक ऑडियोबुक, हिंदी में जीवन बदलने वाली ऑडियोबुक, हिंदी ऑडियोबुक ऑनलाइन, #हिन्दीऑडियोबुक, #मोटिवेशनलऑडियोबुक , #inspirationalaudiobookinhindi," "हैलो दोस्तों। आज इससे कठिन समय में। जब सब तरफ डर का माहौल है, लोग बीमार हैं। करुणा वायरस फैला हुआ है। फिर से एक लॉकडाउन। लग गया है। ऐसे समय में परमेश्वर के एक वचन मैं आपके सामने पढ़ना चाहता हूँ। स्मरण करना चाहता हूँ। जो पाया जाता है भजन संहिता। 50 की 15 में संकट के दिन तुम मुझे पुकार। मैं तुझे छुड़ाऊंगा। और तू मेरी महिमा करने पाएगा? परमेश्वर का वचन हमसे कहता है। कि संकट के दिन तुम मुझको पुकार। अर्थात परमेश्वर को पुकार। हम परमिशन को क्यों पुकारें? परमिशन क्यों चाहता है कि हम उसको पुकारें? देखिये परमेश्वर स्वयं कह रहा है तू मुझको पुकार। और मैं तुझे छुड़ाऊंगा। कारण क्या है? कारण यह है कि अंत में तो मेरी महिमा कर नहीं पायेगा। परमेश्वर अपनी महिमा के लिए तुमको छुड़ाना चाहता है। उसकी महिमा हो, उसका आदर हो, उसका सम्मान हो। कई बार हमारे जीवन में। कुछ बातें इसलिए घटित होती है। ताकि हम अंत में परमेश्वर की महिमा कर सके। सारा आदर परमेश्वर को दे सके सारी महिमा परमेश्वर को दे सके रिओ। आज पूरे विश्व में जब एक संकट है। उस समय मैं परमेश्वर हम से ये वायदा करता है कि तुम मुझको पुकार मैं तुमको छोडूंगा। और चढ़ाकर। तुमसे अपनी महिमा को लूँगा। यदि हम। दलदल में से निकल आते हैं यदि हम संकट में से छूट जाते हैं। तो ये प्रभु को महिमा देता है। प्रभु नहीं चाहते कि कभी संकट में हम नाश हो जाए, लेकिन प्रभु की महिमा इसलिए होती है। जब हम छूटकर गवाही दे सके, हम जब दलदल में से संकट में से निकलकर परमेश्वर को धन्यवाद दे सके, वो साफ कहता है कि तुम मुझ को पुकारेगा। केस रीती से छुड़ा लूँगा जब तुम मुझ को पुकारेगा। मेरे अपने वेज है मेरे अपने तरीके। मैं अपने अपने तरीके से लोगों को छुड़ाता हूँ। एक उसमें से तरीका मैं आपको बताता हूँ। मेरे परमेश्वर का तरीका हमेशा ही अनोखा तरीका रहा है। कभी भी परमिशन में किसी को भी। अपने दास को। सेम उसी तरीके से नहीं छुड़ाया जैसे उसने पहले व्यक्ति को छुड़ाया या किसी और को छुड़ाया। आज परमिट सर आपको जब छुड़ाएगा हो सकता है आपकी सोच आपकी समझ से बिल्कुल अलग हो लेकिन परमिशन छुड़ाएगा ये उसका वायदा है। एक व्यक्ति था। बताती हैं, वह परमेश्वर का चाहिए था, भविष्यवक्ता था। क्यों चहेता था मैं आगे कहानी मैं बताता हूँ। उसको परमिशन एक बहुत बड़ा टास्क दिया। एक बहुत बड़ा कार्य दिया। जहाँ एक देश है उस देश के लोगों को मेरा प्रवचन सुना। मेरी वाणी को सुना और वो लोग बच जाएंगे वो देश से जो दुनिया की नजरों में गणित देश है लेकिन मैं उससे बहुत प्रेम करता हूँ। परमिशन कहता है जहाँ को जा और मेरे वचन को लेकर जा। यह व्यक्ति परमेश्वर का दाग जरूर था, लेकिन वे के करतूतों को देखकर 99 के कार्यों को देखकर। उनकी। भ्रष्टाचार को देखकर वह कभी भी उस देश को बचाना नहीं चाहता था। और वहाँ से उठता है। और दूसरे देश की और दूसरी दिशा की ओर निकल जाता है। परमिशन कहता है कि। देख मैंने तुझे नेवी के लिए भेजा है तो कहीं और नहीं जा सकता। कई बार हमारे जीवन में भी यही होता है, हमें जो परमिशन कहता है। और हम कहते है उसको टाल देते हैं या फिर हम किसी और काम में लग जाते है और परमेश्वर समय समय पर हमको याद दिलाता है। यह कार्य तेरा नहीं है, जो काम मैंने तुझे दिया है, जो काम मैंने तुझे सौंपा है, उसमें ही तेरी भलाई है, उसमें ही तेरी बरकत है। और ऐसा ही इसके साथ हुआ। इस व्यक्ति का नाम। यो ना था। अर्थात कबूतर। उसके नाम के मतलब क्या होता है कबूतर? और। यह बड़ा भोला सा व्यक्ति बस उठके दूसरी जगह चले जाता है, ये भी नहीं सोचता है उन देशवासियों का क्या होगा जहाँ पर मिशन ने मुझे भेजा है? ये चुपचाप। एक जहाज में सो जाता है। वहाँ पर और भी लोग हैं जो कोई नहीं जानता कि यह कौन है। कहाँ से आया है कहाँ को जा रहा है? बस उसने टिकट लिया है। दूसरे देश अर्थात अर्श उसका और वह सो गया उसमें। परमेश्वर को अपने काम करने। पूरा करवाने के अलग अलग तरीके होते हैं मेरे यू लेकिन परमिशन जब किसी से प्रेम करता है। तो उसको ताड़ना भी देता है उसको सीखाता समझता है। जैसे एक भीड़ भटक जाती है उसको सोते भी लगाता है ताकि वो किसी रीती से। उस मार्ग में आ जाए जिसमे परमिशन ने उसको भेजा है या परमिशन उससे चलाना चाहता है। और ऐसा ही हुआ। परमिशन ने जो भली योजना उसके लिए बनाई थी लाभ की योजना बनाई थी, उसमें वापस लाने के लिए परमिशन ने एक। सारी चीजों को आदेश देना शुरू किया। परमिशन ने हवा को कहा प्रचंड आंधी चलाओ। परमिशन ने पानी से कहा। तूफ़ान की लहरें उठाओ। हवा चलने लगी, आंधी आने लगी। लहरें। बड़ी बड़ी लहरें। ज्वार भाटा के समान उठने लगी। और क्या होता है हाँ? सब लोग डरने लगते है वो नाउ ऐसा लगता है की अब डूबने लगी। और सारे नाविक से लेकर सारे अन्य जातीय लोग जो उसमें होते हैं वो अपना अपना सामान अनाज बहुमूल्य। चीजें भारी चीजें फेंकने लगते है। वो सोचते किसी हालत से तो हम बच जाये, हमारे प्राण बच जाए। उनकी समझ में नहीं आ रहा है कि यह इतना आंधी इतना तूफान क्यों आया है? वो जिसपर भरोसा करती थी और वो सोचने लगी की चलो हम उनकी पूजा करते हैं, उनकी दुहाई देते हैं और वो अपने देवी देवताओं को ने लगे मनाने लगे और कहने लगी की ये देवता हमको बचा। कुछ भी नहीं हो रहा है। लेकिन तभी उनका ध्यान एक व्यक्ति की ओर जाता है कि एक व्यक्ति है जो आराम से सो रहा है। ऐसा कैसे हो सकता है? क्या इस व्यक्ति को पता नहीं कि आंधी और तूफान आ रहा है? इसमें यह डूब के मर सकता है और यह जाते हैं और उससे कहने लगते है तो कौन है? तू देखता नहीं है की यहाँ पर आंधी तूफान हो रही तू सो कैसे सकता है? यो ना बड़ा शांत है। यूना को मालूम है कि मेरा परमेश्वर के अनुमति के बिना पत्ता भी नहीं खेलता। दुनिया में कुछ भी चीज़ उसकी अनुमति के बिना हो ही नहीं सकता। और वो उसके निश्चित स्वभाव को देखकर वो कहने लगते है तो कौन है तेरे देवता को पुकार तू अपने भगवान को अपने परमेश्वर को पुकारता वो कहने लगता है मैं। मैं सच्चे और जीवते परमेश्वर यहोवा का दासु। ये सुनना होता है और वो सब लोग कहने लगते है तब तो पुकारो से। वो कहने लगता है की ये मेरे कारण से ही तूफान आया है, आंधी आई है वो कहते है तेरे कारण से। हाँ, हाँ, मेरे कारण से। तू बता इसको उपाय कैसे क्या होगा, इसका समाधान क्या होगा? कहता कुछ नहीं। मुझे उठाओ और इस समुद्र में फेंक दो। और तुम लोग बच जाओगे। वो कहता है क्या बकवास कर रहा है? हम तुझे फेंक दें। तुम मरना चाहता है। कहता है हाँ। यदि तुम बचना चाहते हो तो यही करो। और वो आओ देखते नहीं था। वो अपनी जान बचाने के लिए उसे उठाकर फेंक देते हैं। वो परमेश्वर की। प्रेम को जानता था परमेश्वर की महिमा को जानता था और ऐसा हुआ कि आंधी और तूफान सब कुछ थम गया। तब परमिशन ने कहा देख। तू मरना भी चाहे ना तो तू मर नहीं सकता जब तक तू मेरा काम पूरा ना कर दे। ओह, प्रभु ने। एक मछली को एक बड़े मछ को। तैयार करके रखा था। बोल के रखा था अभी देखना मेरा बेटा मेरा दास। इस नाव से कूदेगा, उसको हानि नहीं होना चाहिए, उसको दांत मत बढ़ाना, उसको निगल लेना और उसको अपने पेट में रखना। मुझे नहीं मालूम मेरे प्रयोग की ऐसा कैसे हुआ, लेकिन परमेश्वर का वचन कहता है इसलिए ऐसा हुआ है। और उस मछली ने उसे निगल लिया। और उसकी कोई हानि ना करे। यूनान। की पुस्तक में दूसरा अध्याय के दूसरे वचन में यही भाग को हम पाते। वहाँ पर लिखा है। तब यू ना उस बड़े मगरमच्छ या फिर उस बड़े मछली के पेट में गया। और वहाँ से। वह परमेश्वर को। पुकारता है। क्या पुकारता है? देखिये वो क्या कहता है। तू ने मुझे गहरे सागर में समुद्र की था हाँ तक डाल दिया। मैंने संकट में पड़े हुए यहोवा की दुहाई दी और उसने मेरी सुन ली। आधुल ओके उधर में से मैं चिल्ला उठा और तू ने मेरी सुन ली। प्रो। परमेश्वर के लिए कोई भी स्थान ऐसा नहीं है जहाँ आप पुकारें और वो सुन न सकें। हो सकता है कि आज आप हॉस्पिटल में बेड में पड़े हो जहाँ आपकी आवाज ना कोई नर्स सुन रही है, ना कोई व्यक्ति सुन पा रहा है, ना कोई डॉक्टर सुन रहा है, ना कोई आपके प्रिज़न सुन पा रहे हैं लेकिन एक परमेश्वर है जिसने आपको बनाया है वो। अपने दास की पुकार को मछली के पेट से सुन सकता है तो तुम्हारी पुकार को भी सुन सकता है। उसका वायदा है धरती आकाश टल जाएंगी परंतु मेरा वचन कभी भी ना टलेगा तो पुकार और मैं तुझे छुड़ाऊंगा तेरी सुन कर मैं तुझे छुड़ाऊंगा और तू मेरी महिमा करने पायेगा प्रयोग उसने उस यू ना की जिसने उसकी आज्ञा का उल्लंघन किया था। उसके बावजूद उसको बचा लिया। क्यों बचाया? ताकि उसके जरिए परमेश्वर की महिमा हो ताकि उस के लोगों के जरिए परमेश्वर की महिमा हो। प्रयोग आपका जीवन यूं ही नहीं है, आपका जीवन कीमती है, आप पुकारें तो सही। आज आप का अंत नहीं, यह बिमारी आप का अंत नहीं, यह बिमारी आपकी और परमेश्वर की महिमा का कारण होगा। परमेश्वर आपको वो महिमा देगा, परमेश्वर आपको उठाएगा, चट्टान पर खड़ा करेगा, पूरी रीती से सवस्थ करेगा और आप पुकारेंगे और परमेश्वर की महिमा परमेश्वर की महिमा के कारण ये होगा। होने पाए। आज आपको कारें। यदि डॉक्टर नहीं सुन रहा है, नर्स नहीं सुन रही आपके प्रियजन, आपके बेटे, बेटी, माता, पिता कोई नहीं सुन रहा, लेकिन एक है। जिसके कान वह इरेने हुए। जिसका हाथ ऐसा छोटा नहीं हुआ कि वो तुम्हारा उद्धार ना कर सके। आज इसी समय आपको करें और देखें। उसकी महिमा होते हुए देखे, उसका जलाल उतरते हुए देखे, उसकी सके ना ग्लोरी, उसकी चंगाई आपके जीवन में उतरते हुए। आइये छोटी सी दुआ करता हूँ ये सुनाशी के नाम से हम पुकार ते है प्रभु आज कभी नहीं पुकारा कभी हमने नहीं सुना लेकिन आज हम पुकार ते है इस मासी के नाम से। शंघाई और अनुग्रह और जीवन इस भाई और बहन की जीवन में हमारे जीवन में उतरने पाए ईश 79 के नाम से। हाँ, मैं सुनते रहे। परमेश्वर के सुंदर वचन पास्ता राजेश के संग गॉड ब्लेस।","दैनिक ध्यान, भगवान के साथ समय, यीशु के साथ समय, ईसाई प्रेरणा, विश्वास क्या है, भगवान से प्रार्थना कैसे करें, चमत्कार के लिए प्रार्थना, आशा प्रार्थना का कार्य, विश्वास के लिए प्रार्थना, पाप की क्षमा के लिए प्रार्थना, शक्तिशाली प्रार्थना, विश्वास से प्रार्थना बाइबिल, हिंदी उपदेश, हिंदी उपदेश-बाइबिल अध्ययन, बाइबिल से हिंदी उपदेश, विश्वास पर हिंदी उपदेश, हिंदी उपदेश, हिंदी उपदेश बाइबिल, हिंदी उपदेश यीशु, हिंदी उपदेश 2021, हिंदी पादरी उपदेश, हिंदी उपदेश वीडियो, हिंदी ईसाई उपदेश वीडियो, हिंदी सुसमाचार प्रचार, हिंदी बाइबिल संदेश, हिंदी बाइबिल अध्ययन, हिंदी बाइबिल, हिंदी बाइबिल कहानी, हिंदी बाइबिल वचन, हिंदी बाइबिल उपदेश, बाइबिल हिंदी संदेश, बाइबिल हिंदी कहानी, बाइबिल हिंदी वीडियो, बाइबिल हिंदी वचन, बाइबिल हिंदी में," "हिंदी के एक सुप्रसिद्ध लेखक ने क्या खूब कहा है? कोशिश कर हल निकलेगा। आज नहीं तो कल निकलेगा, मेहनत कर पौधों को पानी दें, बंजर में भी फिर फल निकलेगा। ताकत जुटा हिम्मत को आग दे, फौलाद का भी बल निकलेगा सीने में उम्मीदों को जिंदा रख। समन्दर से भी। पवित्र जल निकलेगा कोशिशे जारी रख कुछ कर गुज़रने की जो कुछ थमा थमा है, चल निकलेगा कोशिश कर हल निकलेगा आज नहीं तो कल निकलेगा। जी हाँ दोस्तों मैं हूँ मोनिका और आप सुन रहे हैं कहानी मोनिका की जुबानी आज है मेरे पास आपके लिए एक बहुत ही खूबसूरत कहानी प्रयास आखिरी सांस तक। नए पर्वतारोहियों का एक समूह पहाड़ों पर चढ़ाई कर रहा था। सभी पर्वतारोही चोटी पर पहुंचने के लिए बड़े ही खुश थे। बड़े ही प्रयास में कार्यरत थे। अचानक ही वहाँ बर्फीला तूफान आ गया। अगले ही दिन से सबकी हिम्मत जवाब दे दी और उन्होंने वापस उतरने का फैसला कर लिया। उनमें से एक पर्वतारोही नी इस फैसले को मानने से इनकार कर दिया। उसने कहा चोटी दूर नहीं है और मैं वापस नहीं मुड़ना चाहता। या बोलकर वो चढ़ता चला गया, चढ़ता चला गया। जब वह जीतकर लौटा तो उसके दोस्तों ने पूछा तुम्हें डर नहीं लगा? तब उसने कहा। डर तो लगा था लेकिन मुझे एक बात याद थी। दोस्तों ने पूछा कौन सी बात? उसने जवाब देते हुए कहा। अक्सर लोग तब प्रयास करना छोड़ देते हैं जब वे मंजिल के सबसे ज्यादा करीब होते। मैं यह जोखिम नहीं लेना चाहता था, इसलिए मैं आगे बढ़ता चला गया और जीत गया। उसके दोस्तों को अंत समय पर वापस मुड़ जाने का बहुत पछतावा हुआ। दोस्तों, हमारी लाइफ में हमारे साथ ऐसा कई बार होता है जब हम मंजिल के बहुत करीब पहुँचकर प्रयास करना छोड़ देते हैं या फिर अपना लक्ष्य बदल देते हैं। लेकिन यदि हम थोड़ा सा ही और प्रयास करें तो हम जीत सकते हैं। अक्सर हम उस समय जीत को देखने के बजाय या देखते हैं कि ज्यादातर लोग आगे असफल हो रहे हैं और हमें भी यही लगने लगता है कि हम भी उन्हीं की तरह हार जाएंगी, असफल हो जाएंगे। इसलिए हम आगे बढ़ने की कोशिश नहीं करते। बस ये सोचकर प्रयास करना छोड़ देते हैं की हमारा कुछ भी नहीं होने वाला। आगे बढ़िये रुकिए मत था कि ये मत बस प्रयास करते रही। जीत के करीब पहुँचकर पीछे मत मुड़ी ये। कोशिश कर हल निकलेगा आज नहीं तो कल निकलेगा पवित्रशास्त्र इस प्रकार कहता है सब उपदेशक अध्याय 910 में जो काम तुझे मिले, उसे अपनी शक्ति भर करना। तो सुनते रहे कहानी मोनिका की सुवानी",यह कहानी हमें आखिरी सांस तक कोशिश करने के लिए प्रेरित करती है "प्रेस स्लॉट ह ले लिया सभी को जेम्स की दोस्तों, मैं हूँ मोनिका और मैं विश्वास करती हूँ कि आप सभी अपने अपने घरों में सुरक्षित होंगे और आराम से होंगे। प्रभु की आशीष आपके और आपके परिवार के लिए मैं कहती हूँ, मेरे प्रिय, हम सभी जानते हैं। वर्तमान में बाहर के हालात कुछ ठीक नहीं है। बाहर की परिस्थितियां कुछ बिगड़ी हुई है, लेकिन हमें परेशान होने की जरूरत नहीं है। चिंतित होने की जरूरत नहीं है क्योंकि परमेश्वर सदैव हमारे साथ है। आइये मैं आपको एक छोटी सी कहानी सुनाती हूँ। कहानी को शुरुआत से लेकर अंत तक जरूर सुनना विश्वास करती हूँ। ये कहानी आज हमें एक बहुत सुंदर और बहुत बड़ी सीख जरूर देकर जाएगी। कहानी का नाम है आसमान गिरा। जंगल में सभी जंगली जानवर बहुत प्यार से रहते थे। वि। सारे सुख दुख एक दूसरे के साथ बांटते थे। 1 दिन की बात है। मोनू नाम का एक खरगोश नारियल के पेड़ के नीचे आराम कर रहा था। जैसे ही उसने जब केली दो बड़े से नारियल के फल उसके सिर के ठीक ऊपर गिर पड़े। मोनू फ़ौरन उठ खड़ा हुआ। उसे ऐसा लगा जैसे धरती फटने वाली हो, आसमान गिर रहा हो, वो वहाँ से भागता हुआ ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने लगा, भागो, भागो, धरती फट रही है। आसमान गिर रहा है। वो ऐसा चिल्लाता हुआ वहाँ से जंगल की तरफ आगे बढ़ने लगा। उसके दूसरे खरगोश साथियों ने जैसे ही ये खबर सुनी बिना किसी जांच पड़ताल के इस सब के सब मोनू के साथ चिल्लाते हुए जंगल में आगे बढ़ने लगे, भागने लगे। अब अन्य जानवर भी, जिनमें हिरण, भालू, शेर, जिराफ सभी शामिल थे। मोनू के साथ भागो, भागो, धरती फट रही है, आसमान गिर रहा है, चिल्लाते हुए भागने लगे। ये बात जंगल में आग की तरह फैल गई और सभी जानवर शहर की तरफ भागने लगी। उस जंगल में गोपी नाम का एक समझदार सियार रहता था। सभी को भागता हुआ देखकर उसने हिरण से पूछा आप इस तरह अचानक कहाँ भाग रहे हो? हिरन भाई? हिरन ने कहा, मुझे तो भालू ने बताया है कि हम पर संकट आन पड़ा है, आसमान गिर रहा है, धरती फट रही है इसलिए हम सब भाग रहे। ओह, गोपी इस तरह कहता है गोपी ने भागते हुए भालू से पूछा आप सब कहाँ भाग रहे? भालू ने भी इस बारे में सटीक उत्तर नहीं दिया। कुछ ठीक ठीक नहीं बताया। अन्य जानवरों की तरह उसने इशारा कर दिया। घूम फिर कर। अंत में बात मोनू खरगोश पर आकर रुक गई। मोनू खरगोश से गो पीसीआर ने पूछा आपको कैसे पता चला कि धरती फट रही है, आसमान गिर रहा है। मोनू ने जवाब दिया, जब मैं नारियल के पेड़ के नीचे सो रहा था, तब मैंने ऊपर से आसमान गिरने की आवाज सुनी। मुझे लगा धरती फट रही है। गोपी सियार या बात सुनते ही समझ गया कि आखिर माजरा क्या है? वो सभी जानवरों को लेकर उस नारियल के पेड़ के नीचे जा पहुंचा। पेड़ के नीचे नारियल के फल गिरे हुए थे। गोपी ने मोनू के साथ सभी जानवरों को समझाते हुए कहा कि कोई आसमान नहीं गिर रहा है, कोई धरती नहीं फट रही है। नारियल गिरने पर मुन्नू डर गया था और उसे लगा आसमान फट रहा है और आसमान गिर रहा है। नारियल गिरने की आवाज उसके कानों में ऐसी पड़ी की उसे लगने लगा की धरती फटने वाली और हम सब मरने वाले बिना किसी जांच पड़ताल के वो अनजाने में डरता हुआ आप सब को अपने साथ लेकर भागने लगा और कुछ भी नहीं बाकी और कोई मास्टर नहीं। आप सब जानवरों ने यह बात सुनी तो सबको ठहाका मारकर मोनू पर हँसी आ गई और खुद पर भी सभी को अपनी अपनी गलती का अहसास भी हो गया। सबने गो पीसीआर का धन्यवाद किया और अपने अपने काम में लग गए। तो दोस्तों कहा नहीं, हमें एक बहुत सुंदर सीख देती है। आज सोशल मीडिया का ज़माना है। हर किसी के फ़ोन में वॉट्सऐप हैं, फेसबुक हैं, ट्विटर है, बहुत सारे ऐप्स इन्स्टॉल होते है। हमारे फ़ोन पर कोई संदेश आया नहीं की। हम बिना किसी पुष्टि किये उस संदेश की जांच पड़ताल किए बिना उसे आगे फॉर्वर्ड कर देते हैं, उसे दूसरे लोगों के साथ बाँट लेते है। बिना यह सोचे कि आखिर ये गलत मैसेज भी तो हो सकता है। गलत संदेश भी तो हो सकता है और आप जानते हैं एक गलत संदेश के द्वारा देश में दंगे भी हो सकते हैं। लोग एक दूसरे के खिलाफ़ भड़क भी सकते हैं। एक दूसरे के प्रति नफ़रत भी पैदा हो सकती है। हमारे द्वारा शेयर किया गया एक गलत मैसेज या एक गलत अफवाह साझा करने से सब तरफ पैनिक सिचुएशन क्रिएट हो सकती है। इसलिए ज़्यादा से ज़्यादा सब तरफ खुशियां बांटीं है। अफवाहों से दूर रहिए। तो दोस्तों आज हमारे पास विज्ञान की देन मोबाइल फोन्स है, बहुत सारे ऐसे उपकरण है। हम इसका कैसे इस्तेमाल करते हैं और क्या क्या कर सकते हैं, आप जानते ही होंगे, लेकिन इसका गलत तरीके से इस्तेमाल करना, गलत जानकारी लोगों तक पहुंचाना, बिना संदेशों की सही पुष्टि के उसे आगे फॉर्वर्ड कर दे ना बहुत हद तक नुकसानदेह हो सकता है। जिसप्रकार की मोनू खरगोश से बात करके अफवाह को दूर किया गया। हम उसी प्रकार से सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे अब वह को दूर नहीं कर सकते क्योंकि जानते हैं हम 130,00,00,000 की आबादी वाले देश में रहते हैं जहाँ पर कोई भी छोटी से छोटी अफवाह भी बहुत तेजी से फैलती है और उस अफवाह का खुलासा करना या उसकी पुष्टि करना हमारे लिए संभव नहीं हो पायेगा तो ज्यादा से ज्यादा अफवाहों से दूर रहें और खुशियां बांटे अफवाह नहीं, परमेश्वर का वचन कहता है भजन संहिता अध्याय 56 तीन में जिससमय मुझे डर लगेगा। मैं तुझ पर भरोसा रखूँगा, मेरे प्रिय आज चाहे सिचुएशन डर की हो, चाहे गंभीर हो, लेकिन परमेश्वर पर भरोसा रखिये, वह विश्वास योग्य है। वो आपको हर एक परिस्थितियों से बाहर निकालने के लिए सामर्थी तो सुनते रहे। कहानी मोनिका की जुबानी।","दैनिक ध्यान, भगवान के साथ समय, यीशु के साथ समय, ईसाई प्रेरणा, विश्वास क्या है, भगवान से प्रार्थना कैसे करें, चमत्कार के लिए प्रार्थना, आशा प्रार्थना का कार्य, विश्वास के लिए प्रार्थना, पाप की क्षमा के लिए प्रार्थना, शक्तिशाली प्रार्थना, विश्वास से प्रार्थना बाइबिल, हिंदी उपदेश, हिंदी उपदेश-बाइबिल अध्ययन, बाइबिल से हिंदी उपदेश, विश्वास पर हिंदी उपदेश, हिंदी उपदेश, हिंदी उपदेश बाइबिल, हिंदी उपदेश यीशु, हिंदी उपदेश 2021, हिंदी पादरी उपदेश, हिंदी उपदेश वीडियो, हिंदी ईसाई उपदेश वीडियो, हिंदी सुसमाचार प्रचार, हिंदी बाइबिल संदेश, हिंदी बाइबिल अध्ययन, हिंदी बाइबिल, हिंदी बाइबिल कहानी, हिंदी बाइबिल वचन, हिंदी बाइबिल उपदेश, बाइबिल हिंदी संदेश, बाइबिल हिंदी कहानी, बाइबिल हिंदी वीडियो, बाइबिल हिंदी वचन, बाइबिल हिंदी में," "हैलो दोस्तों, आज हम सुनने जा रहे हैं स्वीट मॉडर्न के द्वारा लिखी गई पुस्तक एव्रीमैन आ किंग का हिंदी अनुवाद। भाग 15 सफलता का रहस्य। मनुष्य सब प्राणियों में श्रेष्ठ है। अन्य प्राणी जिंस परिस्थिति में होते हैं, उसी में ही पड़े रहते हैं। मनुष्य उसमें से ही पड़ा रहना नहीं चाहेगा। उसी दशा में पड़ा रहने का उसे कोई अधिकार भी नहीं है। ईश्वर ने उसे इस योग्य बनाया है की वो उस स्थिति को अस्वीकार करती। उसके अंदर का स्वाभिमान उसे धिक्कारता भी है और वो चाहता है कि उसे सम्मान, स्वतंत्रता और आनंद की स्थिति में रहने को मिली। उसका जीवन सुखी हो ना कोई उसे कष्ट हो और ना उसके द्वारा किसी को कष्ट हो। मनुष्य जब निर्धनता की स्थिति से निकलकर समृद्धि की ओर बढ़ रहा होता है तो वह उसके जीवन की सर्वाधिक आनंद के क्षण होते हैं। संतोष के क्षण होते हैं। अमेरिका के किसी भी ऐसे आदमी से आप मिलिए जो आज बहुत धन्यवाद है। पूछने पर वे यहीं बताएंगे कि जब वे गरीबी से निकलकर सुख समृद्धि की ओर बढ़ रहे थे तब उनके जीवन के सबसे अधिक संतोषपूर्ण और आनंदपूर्ण दिन थे। उससे आप जान लेंगे की उन दिनों उसे ऐसा लगता था की जैसे वह दीनता हीनता से अलग होकर सुख वैभव की धारा की ओर बहता जा रहा था। उस समय उसे अपनी राय बिल्कुल निष्कंटक लगती थी। वह सुख, आनंद और संतोष महसूस करता था। उसका आत्म विकास हो रहा था। वह ऐसा महसूस करता था कि वह आजादी से अपने मनोरथ पूरे कर सकेगा और उसके मित्र भी उससे लाभान्वित हो सकेंगे। जिससे व्यक्ति के अंदर दृढ़ संकल्प शक्ति होती है, वहीं अपने अंदर ऊंचा उठने की शक्ति को महसूस करता है। उसे इस बात का विश्वास हो जाता है कि उसका कार्य क्षेत्र विस्तृत होने लगा है और अपने कार्यों से दुनिया में अपने महत्त्व को सिद्ध करने में समर्थ हैं। आप महान बनने के लिए संसार में आए, आप दिव्य बनने के लिए पैदा हुए हैं। दरिद्रता और मजबूरी के पंजे में फंसे रहने के लिए नहीं आए हैं। इस बात के पक्ष में अनेक प्रमाण दिए जा सकते हैं। मनुष्य के भीतर एक ईश्वरीय शक्ति है, उस ईश्वरीय शक्ति पर भरोसा कीजिये जिसे उस शक्ति पर भरोसा हो जाएगा और ईश्वर पर भरोसा हो जाएगा। वह जान जाएगा कि मनुष्य की प्रकृति आभाव और दरिद्रता के अनुकूल नहीं है। हम यहाँ आप अपने उस आदमी की इच्छा को देखें, उसे प्रकट करें या साहस करें। हमें इस शिक्षा को पूर्ण करना ही है। हम इस पूर्णता को प्राप्त करने का प्रयास करें। पूर्णतः पर हमारा स्वाभाविक अधिकार है। हम सदैव छोटी छोटी वस्तुओं की आकांक्षा करते हैं, इसलिए हमें प्राप्त भी वे ही होती है। हमारी इच्छाएं बिखर जाती है और हम अपनी उस ईश्वरीय शक्ति का प्रयोग ही नहीं कर पाते। अतः वह कुंठित हो जाती है। अपनी अभिलाषाओं को पूरा ना कर के हम अपने जीवन में महान और दिव्य वस्तुओं का प्रवेश द्वार बंद कर देते हैं। तब हमारा मानसिक क्षेत्र संकुचित हो जाता है। हमारा आत्मविश्वास इतना घट जाता है कि हम शुद्धता और संकीर्णता के अतिरिक्त और कुछ देख भी नहीं सकते। हम लोग या आप अर्थात हम सब का दायरा घट जाता है। हमारी जो सोचे है वही तक हम सीमित रहते हैं। हमारे कार्य वही तक रहते हैं अतः सफलताओं की सीमा भी वहीं तक है। यदि आपको यह दृढ़ विश्वास है कि ईश्वर आपकी अभिलाषा पूरी करेगा ही। तो आपकी प्रार्थनाएँ भी सफल है। आप जब भी ईश्वर से प्रार्थना करें, इसी विश्वास को ध्यान में रखकर करें अविश्वास से कार्य नहीं हुआ करती। ईश्वर का खजाना अक्षय है। यह विश्व यह सृष्टि भारी पड़ी है। परम पिता परमात्मा ने सभी पदार्थों की सृष्टि की है और इतनी की है कि आपको देने से उसमें कमी नहीं आ जाएगी। यह तो। ना खत्म होने वाला खजाना है जो कभी कम ना होगा। आप जब उससे जुड़ जाएंगे, आपका संबंध परमात्मा से जुड़ जाएगा तो आप समझ सकेंगे कि उसका तो स्वभाव ही देते रहने का है। जैसे सूर्य का स्वभाव प्रकाश देने का है, वो सब प्राणियों और वनस्पति को प्रकाश देता है, बिना मांगे देता है। उसके प्रकाश में कमी नहीं आती, एक मोमबत्ती से दूसरी जलाये जिससे जलाते हैं, वह भी उसी प्रकार जलती रहती है। कमी नहीं आयी। ज्योति से ज्योति जलती रहती है। कितना भी जल आइये आप इसी प्रकार मैत्रीभाव या प्रेम करते हैं? सबसे वह घटेगा नहीं और बढ़ेगा और फैलेगा। आप यहाँ जान जाएं कि जो ईश्वरीय शक्ति आपके भीतर है, उसे किस प्रकार प्रवाहित होती हुई देख सकते हैं या अपनी इच्छा अनुसार उसकी धारा को मोड़ सकते हैं। तो आपको इस जीवन के अद्भुत रहस्यों का पता लग सकता है। आप विश्वास कीजिये जिसे इस रहस्य का पता लग जाता है। उसकी कार्य करने की शक्ति और क्षमता बहुत बढ़ जाती है। वह उस ईश्वरी शक्ति का हिस्सेदार होता है। उसका संबंध उस अनंत शक्ति से भी हो जाता है जो परमात्मा है। परमात्मा से एकता स्थापित हो जाने से उसकी आत्मा का विकास होने लगता है। स्वार्थ और दरिद्रता उसके हृदय से दूर हो जाते है। उसे इन दोषों से रहित परमात्मा के दर्शन होते हैं, जो सृष्टि के निर्माता हैं उस सृष्टि निर्माता की महानता को समझते हुए वह मनुष्य फिर अपने अंदर उसी के अंश को समझकर रचनात्मक कार्यों में पूरी लगन और परिश्रम से जुड़ जाता है। उसके मन में भी जो भी महल था, वह धुल गया। मन निर्मल हो गया। ईश्वर की कृपा का अधिकारी वही होता है जो मन से पवित्र है। जिसके मन में तनिक भी मेल नहीं हम यहाँ आप अपने मन में जो कुविचार और आप पवित्रता भरे हुए हैं उनके कारण ईश्वरीय शक्ति की धारा हमारे अनुकूल नहीं बहती। प्रवाह हमारी ओर नहीं आ रहा है। अपने मन के कुछ विचारों को त्याग दीजिए, स्वार्थों का त्याग कर दीजिये, निश्चय ही आप उसी परमात्मा के निकट स्वयं को अनुभव करने लगेंगे जो सृष्टि का स्वामी है। फिर आपको इस सृष्टि का प्रत्येक पदार्थ सुंदर दिखाई देने लगेगा। आपके मन से राग द्वेश मिट जाएंगे। आपको बुराईयाँ दिखाई नहीं पड़ेगी। आप कहा आत्मविकास होने लगेगा। बुरे विचार और कार्य आँखों पर पर्दा डाल देते हैं। इस परदे के कारण आपको उस परमात्मा की महानता के दर्शन नहीं होते, आप उसकी श्रेष्ठता को नहीं देख पाते और आप उससे दूर रहते है। आप एक संकीर्ण दायरे में घूमते रहते है। आप अपने इस संकीर्ण दायरे को तोड़िए दृष्टि को कुछ व्यापक बनाकर फिर देखिये तो आप देखेंगे कि जिसे आप पाना चाहते हैं वह वस्तु तो स्वयं आपको पाना चाहती हैं। जो चीज़ आप खोज रहे हैं। वह चीज़ आप को खोज रही है। इसी प्रकार आपकी इच्छित वस्तु आपको प्राप्त होगी। बस आप संकीर्ण दृष्टिकोण को त्याग दीजिए। अपने मन में कभी यह विचार ना पनपने दें कि आप वन नहीं कर सकते जो दूसरे कर सकते हैं। यह ना सोचें कि आपके पास फलां चीज़ नहीं है या ना वो हो सकेगी। यदि आप ऐसी सोचे पाल लेंगे तो आपका जीवन अंधकारमय हो जाएगा। अपने अंदर से आप पूर्णतः और दरिद्रता के विचारों को मत पनपने दीजिये। दूर भगा दीजिये स्वयं से ऐसे विचारों को समझ लीजिये। ऐसे विचारों से आपका कोई संबंध ही नहीं है। जब तक यह विचार आपको घेरे रहेंगे, आपकी छुपी हुई आत्मशक्ति प्रकट नहीं होगी तभी तक आपकी इच्छाएं अपूर्ण रहेंगी। अपने इच्छित वस्तु को पाने में आप असमर्थ ही बने रहेंगे या स्वयं को असमर्थ समझते रहेंगे। अतः सफलता प्राप्त करने के लिए आपको अपने मन के भावों को भी उसी प्रकार ढालना होगा। जिसकी आपको तलाश है। सुख और समृद्धि के विचारों का जन्म पहले मन में होता है, बाद में बाहरी वातावरण में फैल जाते हैं। जब तक मन में विचार तो गरीबी के हैं, भाव तो दूषित है, फिर सुख, समृद्धि और पवित्रता आपके जीवन में आएगी। कहाँ से आपकी इच्छित वस्तुएँ आप से दूर ही रहेंगी? इसका अर्थ यह होगा कि आप पाने का यत्न तो अन्य वस्तु का कर रहे हैं और इच्छा किसी अन्य वस्तु की रखते हैं। दोनों बातें अलग है। अलग रहेंगे, साथ साथ नहीं होसकती आप समृद्ध होना चाहते हैं तो विचारों को भी समृद्धि बनाए, सुखी होना चाहते हैं तो विचारों में भी यही बातें लाइये। आपके दरिद्र और निराशा के भाव, आपके मन के असफलता और भाग्यहीनता के विचार आपके उत्साह के शत्रु हैं। ये सदा निरुत्साहित करते हैं। स्वयं को कभी किसी से कमजोर या मत समझिए। आप स्वयं को हीन मानते हैं तभी तो आप हीनता में है। जब तक आप अपने अंदर हीनता को बनाए हुए हैं, यही आपके साथ हैं और समृद्धि आप से दूर है। जब तक आप असफलताओं को कोसते हैं, उन्हीं में आपका ध्यान अटका है तब तक असफलताएं भी आपके साथ रहेंगी। जब आपके विचार ही समृद्धि की ओर नहीं जा रहे तो वही आपकी और क्यों आएगी? संसार की किसी भी फिलॉसफी के अनुसार यह सिद्ध नहीं हो सकता कि कोई मनुष्य उन वस्तुओं की भी प्राप्ति कर सकता है जिनके विषय में उसकी पक्की या धारणा है। वह उसे नहीं मिले गी। यह एक वास्तविकता है कि संकीर्णता उस परमपिता परमात्मा में नहीं है, बल्कि हम में है। वह ईश्वर तो यही चाहता है कि सबको विश्व की सभी वस्तुएं प्राप्त हो। उसने इन सब वस्तुओं को बनाया भी अपनी इसी प्रजा के वास्ते हैं। हम प्राप्त नहीं कर पाते तो दोष उसका नहीं है, हमारा है। इसका कारण यही है कि आपने या हमने मनुष्य ने अपनी आत्मा को संकीर्ण दायरे में कैद कर रखा है। जितना वह दायरा है, उसमें उतनी ही तो चीजें रहेंगी। बहुत से लोगों का विचार है कि गरीबी तो होती है, उनका विश्वास है कि सब धनवान हो ही नहीं सकती, कुछ को निर्धन होना ही चाहिए। मैं पूछता हूँ ईश्वर ने जो ढांचा मनुष्य के शरीर का बनाया है, उसमें निर्धनता के लिए कोई स्थान नहीं है। परम पिता ईश्वर के खजाने में कोई कमी नहीं है। उसके पास तो अक्षय भंडार है, फिर मनुष्य क्यों निर्धन है, क्यों असफल है, इसका कारण स्पष्ट है। मनुष्य के विचार संकीर्ण है, भावनायें संकुचित है, मन में दरिद्रता, शुद्धता और संकीर्णता है, जो कि ईश्वर के स्वभाव के विरुद्ध है, जो मानव की प्रगति में भी बाधक चीजें हैं। जब तक आप में ये बातें हैं तब तक ही आप एक असफल व्यक्ति हैं। आपके विचारों से ही आपके चरित्र का संगठन होता है। आप यदि अपने विचारों को दरिद्रता और भय से या आशंकाओं से परिपूर्ण रखेंगे तो ये विचार आपका कभी साथ ना छोड़ेंगे। आपके मन में जड़ जमा लेंगे। परिणाम यह होगा कि आप सदा बेबसी का जीवन बिताएंगे, निर्धन और असफल रहेंगे। ईश्वर की इच्छा कभी यह नहीं है कि मनुष्य सदा पेट भरने के लिए ही समय बर्बाद करता रहे। उसे आत्म विकास का अफसर ही ना मिले। आपको यह जीवन इसलिए नहीं मिला की आप सदा दरिद्रता से घिरे हुए अपूर्ण मनुष्य रहे। आप की सबसे बड़ी अभिलाषा यही होनी चाहिए कि आप अपने मनुष्यत्व का विकास करें, जीवन को सौंदर्यपूर्ण और समृद्धशाली बनाए मानवीय गुणों को अधिक से अधिक अपने भीतर संगठित करें। आप अपने मन में ये निश्चय कर लीजिये कि अपने आप को दरिद्रता और हीनता के विचारों से बचाएंगे। अपने मन में सदा पूर्णता और समृद्धि के विचारों को जगह देंगे। विश्वास कीजिये। इससे आपको सुख और समृद्धि प्राप्त करने में अवश्य सफलता मिले गी। आपके इस प्रकार के निश्चय से ही आपको आपकी वांछित वस्तु की प्राप्ति संभव है। अतः आप उन्हीं विचारों को मन में जगह दीजिए जो आपकी इच्छाओं से संबंधित है। संसार का प्रत्येक मनुष्य अपने स्वयं के विचारों के अनुसार ही बना हुआ है। अपने लिए मनुष्य अपने विचारों में जैसी कल्पनाएं करता रहता है, वैसा ही रहता है। बहुत से लोग सुख, समृद्धि और ऐश्वर्य से महकते हुए श्रेष्ठ पावन वातावरण में रहते हुए भी घोर दरिद्र हैं। वे ऐसे विचारों के कारण ही है को विचारों की गंदगी वे अपने मन में समेटे हुए है। वे विचार उसे गंदगी से भरे हुए रखते हैं और वह दरिद्रता भोगता रहता है। आप इस संसार में दरिद्रता भोगने नहीं आए? आप इसलिए आये है की आपकी महत्वाकांक्षा ये हो आप प्रकृति की ऊंचाइयों को छुए आप के अंदर पूर्णतः भरी है। जो छुपी हुई है। आपके अंदर ही समृद्धि और श्रेष्ठता है, फिर आपके स् थिति क्यों दरता की रहती है? इसका कारण और कुछ नहीं। आप ही के विचारों की संकीर्णता है। यदि आप अपने जीवन को आदर्श पूर्ण बनाए, ऐश्वर्य प्राप्ति के दावे करे तो आप ऐसा ही कर सकेंगे। आपका जीवन पूर्ण रूप से समृद्धशाली हो जायेगा। आप पूर्णता को प्राप्त कर सकेंगे, क्योंकि यही सृष्टिकर्ता की इच्छा है। इस मनुष्य जाति का इतिहास इस बात का प्रमाण है। की आपका जनम ही सृष्टि में मौजूद उन सभी सुंदर वस्तुओं के उपभोग के लिए है जो आज बहुत कम लोगों को मिली है। वे इतने कम मनुष्य ही उन्हें प्राप्त कर सके हैं, जबकि सभी प्राप्त कर सकते थे और कर सकते हैं। आप भी कर सकते हैं प्राप्ति का मार्ग एक है, वह है मन, वचन और कर्म से उन पदार्थों की चेष्टा करना जिनकी इच्छा है और चेष्टा में पूर्ण आत्मविश्वास के साथ आस्था बहुत से मानव गरीब और दुखी हैं, भूखे और **** है। आपको समझ लेना चाहिए वे स्वयं अवश्य कोई भूल कर रहे हैं। हमारे जीवन की सभी स्थितियां आर्थिक स्तिथि, सामाजिक स्थिथि, हमारे मित्र, शत्रु और भलाई बुरा ई हमारे ही विचारों के परिणाम स्वरूप है। आप अपने मन को दरिद्रता से भरे रखते हैं और आपको केवल अभाव ही दिखता है तो आपके मन स् थिति ऐसी ही बन जाएगी। परंतु आपके विचार खुले, उदार और विशाल है। आप मन, वचन और कर्म से प्रयत्न करते हैं, तो आपकी परिस्थिति ही आपकी मनोवांछित होने लगे गी। आप जो भी जीवन में प्राप्त करना चाहते हैं, वह प्राप्त होने लगेगा। जो भी आप जीवन में प्राप्त करते हैं, वहाँ आपके अपने विचारों के असर की बातें है। आपकी जो उपलब्धियां हैं, वे आपके विचारों के अनुरूप है। कुछ लोग खास कारण ना होते हुए या दिखाई देते हुए भी गरीबी से लड़े हैं। इसका कारण उनके अपने मन के भावों के विकार है। मनोविकार के कारण ही वे सफलता प्राप्त नहीं कर पाती। यदि आप अपनी वर्तमान स्थिति से संतुष्ट नहीं है, जीवन दूभर लगता है, आप भाग्य को कोसते हैं तो समझ लीजिए यह सब आपके विचारों का ही परिणाम है। आपके आदर्शों में कमी है, विचारों में दोष है, कोई दूसरा दोषी नहीं है। अच्छे विचार ही आपके जीवन को सुधार सकते हैं। विचार जब शुद्ध रहेंगे तो जीवन भी स्वच्छ और शुद्ध रहेगा। आज मनुष्य जाति एक ही रोग से पीड़ित हैं, वह रोग है, गरीबी या रोग या गरीबी क्यों है? इसका उत्तर यही है कि मनुष्य को परमात्मा की शक्ति पर भरोसा नहीं है, अपनी शक्ति में विश्वास नहीं है। आप उस परम पिता से पुत्र और पिता जैसा रिश्ता कायम कीजिए। यदि आपको विश्वास है कि आपको खाने की कमी नहीं है, आप सब कुछ खा सकते हैं। आप को यह डर है कि खाने को तो कुछ है ही नहीं, तब आप भूखे रहते है। अपनी संभावनाओं पर भी विश्वास कीजिये, दृढ़तापूर्वक या मानिये कि जीस वस्तु की आपको आवश्यकता है। हाँ, आपके पास है जब आप चाहेंगे उसे प्राप्त कर लेंगे। प्राप्त करने के लिए मन, वचन और कर्म से प्रयत्न करना पड़ेगा। संदेह न रखें। विश्वास रखें की प्राप्ति की पूरी संभावना है। विजय उसी की होती है जिसका मन विजय से भरा रहता है, सफलताएं उसी के कदम चूमती है जिसे सफलताओं का विश्वास होता है जिसे अपनी योग्यता पर भरोसा होता है। धन की बात लीजिए, धन वे लोग कमा पाते हैं जिन्हें अपनी धन कमाने की योग्यता पर विश्वास होता है, जो दरिद्रता से कभी नहीं डगमगा कर कदम रखता, उसके रहन सहन और चाल ढाल में दरिद्रता का लेशमात्र भी नाम नहीं रहता। उसकी सारी शक्तियां उसी ओर मुड़ जाती है जिधर उसकी मंजिल है। ऐसे बहुत लोग हैं, अपनी गरीबी की स्थिति को कुछ कुछ स्वीकार करते हैं और उसी में कुछ संतुष्टि अनुभव करते हुए आगे बढ़ने के प्रयास नहीं करते हैं। ऐसे लोग चाहे कितना भी प्रयास करें, सफल नहीं हो सकते क्योंकि वे वर्तमान स्थिति को उचित मान बैठे हैं और उनकी आशाएं मिट गई है। निर्धनता के भय से भी लोग निर्धनता के शिकार हुए देखे जा सकते हैं। बहुत से बच्चों को ही पाठ पढ़ा दिया जाता है। वे बेचारे सारा दिन केवल उसी शब्द गरीबी के सुनते है। वेज इस ओर भी देखते हैं। उन्हें गरीबी की प्रेरणा मिलती है। यही सुनते हैं, यही देखते हैं। यही सोचते हैं तो बड़े होने पर यही संस्कार उनकी सफलता के रास्ते में सबसे बड़ा रोड़ा बनता है। उनके आत्मविश्वास की जड़ें बचपन में ही खोखली हो जाती है जो निर्धनता से भय खाते हैं, जो सफलता नहीं प्राप्त कर पाते या जो आशंकाओं और भय से ग्रस्त रहते हैं, उनकी आर्थिक दशा को सुधार पाने की शक्ति भी नष्ट हो जाती है। वे अपने सिर पर पहले लदे बोझ को और भारी कर लेते हैं और भी असमर्थ हो जाते हैं। आपके निकट का परिवेश यदि और भी भयानक हो गया है या होता जा रहा है तो कोई परवाह नहीं करनी चाहिए। जिंस चीज़ से आपके भीतर की आजादी छिन गई है। या जो चीज़ आप को जकड़े है उससे मन हट आइए और उस स्थिति से स्वयं को दूर हटाईये जब तक आपके मन में दुःख और दरिद्रता हैं तब तक आप कभी समृद्धशाली नहीं बनेंगे। किसी की दशा वही होती है जो उसके मनोभाव होते हैं। आप पर भी यही तो सिद्धांत लागू होता है। जब कोई लड़का यदि किसी परीक्षा की तैयारी कर रहा है और उसे पास होने की आशा नहीं है तो ये निश्चित है कि वो पास नहीं हो सकता क्योंकि जिसकी आशा होती है वही तो प्राप्त कर सकता है। कोई भी नदी अपने निकलने के स्थान से उस पर्वत से ऊंची नहीं उठ सकती जिसे निर्धनता की आशा है। जिसे निर्धनता की अपेक्षाएं वह और कुछ बन ही नहीं सकता। आप अपने लक्ष्य की ओर देखिये। अपने सौभाग्य की आशा की जी सुख, समृद्धि और विजय आपका अधिकार है, अपने अधिकार को प्राप्त कीजिये। कोई भी वह व्यक्ति निर्धन नहीं माना जा सकता जिसके पास कोठियां नहीं है या अतुल धनराशि नहीं बल्कि वह निर्धन है, जिसके विचारों में निर्धनता है, जो मन से दरिद्र है, क्योंकि निर्धनता एक मानसिक रोग है। मन की दरिद्रता से ही आर्थिक दरिद्रता उत्पन्न होती है। जो लोग करोड़पति बने हैं उनमें आत्मविश्वास था। उनके मन में धनवान बनने के सपने के साथ साथ वैसे ही आशाएं थीं, लगन थी और आत्मविश्वास था। तभी समृद्धि भी उनकी ओर बढ़ती चली गई। तो दोस्तों आप सुन रहे थे महान लेखक स्वेट मॉडर्न के द्वारा लिखी गई पुस्तक एव्रीमैन किंग का हिंदी अनुवाद आपको यह ऑडियो कैसी लगी हैं? मुझे कमेंट करके प्लीज़ जरूर बताएं। पसंद आई है तो इसे लाइक करना ना भूलें। आप चाहे तो ऐसे ही प्रेरणादायक विचारों को पढ़ने और सुनने के लिए हमारी वेबसाइट मीठी वाणी.कॉम पर विजिट कर सकते है सुनने के लिए धन्यवाद।","यह ऑडियो स्वेट मार्डन द्वारा लिखी गई किताब एवरी मैन ए किंग से लिया गया है जिसका अनुवाद है खुशी से कैसे जीना है आप इस ऑडियो को सुनकर अपने जीवन में निराशा से बाहर आ सकते हैं और कई आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं इसमें आपको हिंदी ऑडियोबुक, हिंदी ऑडियोबुक मिलेगी , हिंदी में ऑडियोबुक, प्रेरक ऑडियोबुक, प्रेरक ऑडियो, सर्वश्रेष्ठ हिंदी प्रेरक ऑडियोबुक, हिंदी में सर्वश्रेष्ठ प्रेरक ऑडियोबुक, हिंदी में सबसे बड़ी ऑडियोबुक, हिंदी में प्रेरणादायक ऑडियोबुक, हिंदी में प्रेरणादायक ऑडियोबुक, हिंदी में जीवन बदलने वाली ऑडियोबुक, हिंदी ऑडियोबुक ऑनलाइन, #हिन्दीऑडियोबुक, #मोटिवेशनलऑडियोबुक , #inspirationalaudiobookinhindi," "हैलो फ्रेंड्स कैसे है? आप सभी विश्वास करते हैं। आप सभी सुरक्षित होंगे और अच्छे से होंगे। मित्रों हम सुन रहे हैं स्वेट मॉडर्न की लिखी गई महान प्रति एव्रीमैन आ किंग का हिंदी अनुवाद अब तक हम इसके एक से लेकर आठ भाग को सुन चूके हैं। यदि आपने नहीं सुना है तो आप मेरी ऑडियो उसको सुन सकते हैं। आज हम सुनने जा रहे हैं इसके नौ वें भाग को आत्म प्रोत्साहन। पहले आप अपने अंदर यह विश्वास पैदा कर लें कि जो कार्य आपके हाथ में है, उसे आप बड़े आराम से पूरा कर सकते हैं। इसी आत्मविश्वास को अब निरंतर बढ़ाते जाये। जैसे जैसे यह आत्मविश्वास बढ़ेगा, वैसे वैसे आपकी सफलताएं भी बढ़ेंगी। अपने हृदय में यह भावना पैदा कीजिए कि आप सर्वश्रेष्ठ हैं तो वास्तव में आप सर्वश्रेष्ठ बन जाएंगे। ऐसे अनेक लोग इस संसार में है जो बुद्धिमान होते हुए भी जीवन भर अपने को छोटा और हीन समझते रहते हैं। ऐसे लोग अपने ही विचारों की गिरावट का शिकार होते। जब भी ऐसे लोग किसी महान कार्य को पूरा करने की बात सोचते हैं तो उनका सारा शरीर कांप उठता है। भय के बादल उन्हें घेर लेते हैं। वे सोचते हैं कि यदि वे असफल हो गए तो क्या होगा? बस उनका उत्साह मर जाता है, वे घबरा जाते हैं। असफलता का विचार ही उन्हें ढीला करके उनके शक्ति को छीन लेता है। यह विचार उसकी आत्मशक्ति को अपंग बना देता है। इंसान के मन में यदि ये घुल जाए की वहाँ अभागा है तो उसमें हिम्मत नाम की कोई चीज़ नहीं रहती। इसके विपरीत जो भी आदमी यह समझता है कि मैं करता हूँ और अपना भाग्य विधाता स्वयं हूँ, मैं किसी भी तरह से दुर्बल नहीं बल्कि इस संसार का सबसे सर्वश्रेष्ठ प्राणी हो, वहीं अपने भाग्य को अच्छा बनाने में सफल होता है। वहीं अपने जीवन की हर घटना को अपनी इच्छानुसार संचालित करने लगता है। हर रोज़ हमको बहुत से ऐसे लोग मिलते हैं जिनमें से कुछ एक की जुबान पर तो यही शिकायत होती है कि हम शहरी वातावरण से बहुत दुखी हैं है। कुछ एक य शिकायत करते हैं। अरे भाई हम तो गांव में रहकर बहुत दुखी हैं जो आनंद शहर में भला वो गांव में कहा। दोनों पक्ष अपनी असफलता के लिए शहर और गांव को दोषी बना देते हैं, किंतु उन्हें यह नहीं पता होता कि शहर और गांव में अनेकों लोग ऐसे हैं जिन्होंने अपने जीवन में सफलता के रंग भरें है। तुम इस वातावरण और हालात का रोना रो कर अपनी कमजोरियों पर पर्दा डाल रहे हो, फिर ये भाग्य का दोष क्यों? वातावरण को दोषी क्यों बताते हो? यह सब अपनी असफलताओं को छुपाने का प्रयास? क्या आप यह नहीं देख सकते क्या आप के चारों ओर कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्होंने कामों में सफलता प्राप्त करके खूब धन कमाया है? इसका कारण क्या है? हम अपने इस गरीबी का कारण बाहर खोजते रहते हैं जबकि यहाँ कारण हमारे अंदर होता है। हीन मनोवृत्ति इसका एकमात्र कारण है। यही हमारी प्रगति के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा है, जो हमारे अंदर छिपी हुई है। हमें इसे भगाने का प्रयास ही करना है। या हमें कभी भी विश्वास नहीं होने देती है की हम उन्नति कर सकते हैं। तो हमें क्या करना चाहिए? सर्वप्रथम हमें मन में हीन विचार को निकाल देना चाहिए। अपनी आशाओं और उम्मीदों को आदर्शवादी बनाना चाहिए। अपने अंदर या विश्वास पैदा करना चाहिए कि हम अपने जीवन की दरिद्रता को दूर करके अवश्य बड़े आदमी बनेंगे। यह महसूस करना चाहिए कि हमारे शरीर में ईश्वर ने महाशक्ति भर्ती हैं, उसी ईश्वर की शक्ति के सहारे हम हर बुराइ से लड़ सकते हैं बस ऐसी आशाएं। आप अपने मन में पैदा कीजिये, फिर आपको सफल बनने से कोई नहीं रोक सकता। आगे बढ़ने और इच्छा पूर्ति की भावनाएँ आपके मन में पैदा होनी चाहिए। चोटी इच्छा मत कीजिये, बड़ी आशा मन में होगी तो आपका चरित्र भी महान हो जायेगा। आपके कार्य शक्ति भी ऊंची और महान रूप धारण कर लेगी और सफलता आपके द्वार पर खड़ी होगी। यदि आप अच्छे स्वास्थ्य की आशा करते हैं तो अपने मन में बिमारी का विचार भी मत आने दीजिए। इसी प्रकार से यदि आप अमीर बनना चाहते हैं तो गरीबी के विचारों को मन में घुसने ना दे। उत्साह और साहस की भावनाओं से अपने मन को सदा भरते रहिए। अपनी कल्पना, अपनी आदतें धनवान लोगों की भांति बना लीजिये। चोटें विचारों से घृणा कीजिये, निराशा की बातों का त्याग कर दीजिये और ये दृढ़ निश्चय कर लीजिये की हम धनवान बन कर ही रहेंगे। इससे हमें कोई नहीं रोक सकता। यदि आप धीरे धीरे साहसी बनते जाते हैं, तो निराशा और बुजदिली जैसी आपके शत्रु विचारधारा अपने आप भाग जाएंगी। यदि आपके मन में सदा डर रहता है तो आप इस डर को मन से निकाल दे। इसके स्थान पर या विचार लाएं की डर नाम की कोई चीज़ इस संसार में नहीं हैं। ईश्वर की संतान इंसान तो महान है, जो बलवान है। अपने काम की उपेक्षा मत करिए। शर्म, डर और चिंता सब का त्याग करके आप आगे बढ़ते जाईये। किसी के भी आगे अपने दुर्भाग्य का रोना मत रोइए आंसुओं से हर प्राणी घृणा करता है, कभी भी आपके मन में डर पैदा हो तो उसी समय यह मंत्र पढ़िए। मैं इस काम को करने के लिए पैदा हुआ हूँ। मुझे मेरे काम से कोई नहीं रोक सकता। सफलता सदा मेरे साथ होगी। यही मंत्र सफलता का मंत्र है जो आपके हृदय में आत्मविश्वास पैदा करता है, जो आपको आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। अपने मन को उन्नति के सुझाव स्वयं भी देते रहने से इंसान का मनोबल ऊंचा होता है। जितनी बार भी आप किसी व्यक्ति से भेंट करते हैं, वहाँ हर बार यही देखेगा की आपने पहले से कुछ प्रगति की है या फिर अब भी वहीं पर बैठे हुए हैं। यह सब मित्रों की आदत होती है। दूसरे के बारे में सोचना, छानबीन करना आपको भी चाहिए। जब ऐसे मित्रों से मिलें तो पहले से आगे बढ़कर ऐसे ही जब आप लोगों से मिलते हैं तो सबसे पहले यहीं देखते है की उसकी नजरें ऊंची है, सिर ऊंचा है क्या उसके कंधे सीधे इस प्रकार की सब बाते जब आप सोचते हैं तो आपके मित्र भी अवश्य ऐसी बातें सोचते होंगे। फिर क्यों ना आप पहले से होशियार रहें? हर प्राणी को यह सोचना चाहिए कि वह ईश्वर की संतान हैं, उनके अंदर उसी ईश्वर की महान शक्ति है जिसके कारण वह भी महान है। उसे कोई छोटा नहीं कह सकता। यदि तुम महान हो तो तुम्हे महान काम करने होंगे। आपको यह मानने से बिल्कुल ही इनकार कर देना होगा कि आप किसी काम में असफल हो सकते हैं। यदि आप हर समय अपने मन में सफलता का पाठ पढ़ते रहते हैं, सदा आशाओं और उम्मीदों के झूले में झूलते रहते हैं। धन की भावनाओं से ओतप्रोत उसी के गुणगान करते हैं। यही धुन आप पर हर समय सवार रहती है तो समझ लीजिए कि अब आपकी सफलता का मार्ग कोई नहीं रोक सकता। हमेशा पूर्ण कुशलता, पूर्ण सफलता और पूर्ण विजय की कामना कीजिये। थोड़ी चीज़ से संतुष्ट होने की आदत छोड़ दीजिये, हर चीज़ की पूरी आशा कीजिये। इसका प्रभाव हमारे विचारों पर भी पड़ता है। विचारों की शक्ति से ही तो हम महान बनते हैं। विचारों से हम अपने वातावरण हालात का निर्माण करते हैं। विचार ही हमारे मन में सबसे पहले पैदा होता है। अपने जीवन को आदर्श मूर्ति हम स्वयं बनाते है। सत्य, ईमानदारी, शराफत, पवित्रता, प्रेम दयालुता जैसी आदर्श भावनाओं को जो प्राणी हृदय में बसा लेता है, उन्हें सफल होने से कोई नहीं रोक सकता। जब भी कभी डर की भावना आपके मन में घुसने लगे, उसे उसी समय वहीं पर रोक दीजिये। उसी समय अपनी शक्ति, सफलता, अतीत की संपूर्ण सफलताओं को याद कीजिए, निडर और आत्मविश्वासी होकर इन सब का मुकाबला कीजिये और अपने मन में इस प्रकार के विचार लाइये। मैं दिल नहीं मैं हर बुराइ से लड़ने की शक्ति रखता हूँ। मैं ईश्वर की संतान हूँ, ईश्वर की शक्ति मेरे अंदर है, उस शक्ति से कोई नहीं टकरा सकता। संसार की कोई बुरा ई मुझे हरा नहीं सका। डर तो केवल बच्चों के लिए होता है तो फिर आप बड़े होकर इस डर से क्यों भयभीत होते हैं? क्यों नहीं इसके सामने सीना ठोक कर कहते हो की तुम मेरे शत्रु हो, मैं तुमसे लड़ने के लिए तैयार हूँ। यदि आप इस डर को मन से भगाने में सफल हो जाते हैं तो संसार की सारी सफलताएं आपके साथ होंगी। भाग्य या दुर्भाग्य नाम की कोई चीज़ इस संसार में नहीं। या तो केवल मन के ही वहम है, जो भाग्य के भरोसे बैठे रहते हैं, उनका भाग्य विधाता भी उनसे रोड जाता है और वे सबसे पिछड़ जाते हैं। भाग्य का भरोसा छोड़ कर अपनी शक्ति, बुद्धि और आत्मविश्वास का सहारा लेकर एक बार तो देखिए, आपका सारा जीवन बदल जाएगा, सुख आपके पास आएँगे और दुख भाग जाएंगे। दोस्तों आप सुन रहे थे? मोनिका की आवाज़ में महान लेखक स्वेट मॉडर्न के द्वारा लिखी गई। पुस्तक एव्रीमैन आ किंग का हिंदी अनुवाद।","यह ऑडियो स्वेट मार्डन द्वारा लिखी गई किताब एवरी मैन ए किंग से लिया गया है जिसका अनुवाद है खुशी से कैसे जीना है आप इस ऑडियो को सुनकर अपने जीवन में निराशा से बाहर आ सकते हैं और कई आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं इसमें आपको हिंदी ऑडियोबुक, हिंदी ऑडियोबुक मिलेगी , हिंदी में ऑडियोबुक, प्रेरक ऑडियोबुक, प्रेरक ऑडियो, सर्वश्रेष्ठ हिंदी प्रेरक ऑडियोबुक, हिंदी में सर्वश्रेष्ठ प्रेरक ऑडियोबुक, हिंदी में सबसे बड़ी ऑडियोबुक, हिंदी में प्रेरणादायक ऑडियोबुक, हिंदी में प्रेरणादायक ऑडियोबुक, हिंदी में जीवन बदलने वाली ऑडियोबुक, हिंदी ऑडियोबुक ऑनलाइन, #हिन्दीऑडियोबुक, #मोटिवेशनलऑडियोबुक , #inspirationalaudiobookinhindi," "तुम सत्य को जानोगे। सत्य तुम्हें स्वतंत्र करेगा सभी को जेल की मित्रों प्रभु यीशु मसीह के नाम से मैं आपका स्वागत करती हूँ। अपने इस चैनल में जहाँ परमेश्वर के वचनों को सुनते हैं, क्या आपने सुना अभी अभी जो वचन मैंने आपके सामने पड़ा यह लिखा है सुसमाचार अध्याय 8:00 बज न 32 में जहाँ लिखा है तुम सत्य को जानोगे, सत्य तुम्हें स्वतंत्र करेगा। जी हाँ मित्रों, यह दावा है हमारे प्रभु यीशु मसीह का, जो लोगों के मध्य में खड़े हैं। भीड़ के मध्य में खड़े हैं जहाँ लोग वाद विवाद कर रहे हैं, लोग प्रभु के विरोध में बोल रहे हैं, उनके विरोध में षड्यंत्र को रच रहे हैं और उनको समझाने के लिए प्रभु कहते हैं कि यदि तुम सत्य को जानोगे, सत्य तुम्हें स्वतंत्र करेगा तो लोगों का प्रतिउत्तर कुछ इस प्रकार का है। लोग कहते हैं कि हम तो किसी के नहीं हैं, हम तो अब्राहम के वजह से है। हम किसी के गुलाम नहीं है। हम कैसे स्वतंत्र हो सकते हैं तो प्रभु कहते हैं कि तुम पात के गुलाम तुम पाप के गुलाम हो और तुम इस पाप की गुलामी से आजाद हो सकते हो। सत्य को जानने के द्वारा तुम सत्य को जानोगे और तुम आजाद हो जाओगे। हर एक पाप से हर एक बुराइ से पाप जो है हमें गुलामी में लेकर जाता है, बनवाई में लेकर जाता है, शैतान की कैद में लेकर जाता है, लेकिन सत्य हमें आजादी को प्रदान करता है, स्वतंत्रता को प्रदान करता है तो क्या है? सत्य सत्य है। प्रभु यीशु मसीह यूहन्ना रचित सुसमाचार अध्याय 14 वचन छे में लिखा है। प्रभु ने कहा मार्ग सत्य और जीवन में ही हूँ। बिना मेरे कोई भी पिता तक पहुँच नहीं सकता। जी हाँ, मेरे प्रिय संपूर्ण मानव जाति के लिए एकमात्र सत्य प्रभु यीशु मसीही हैं, जिन्होंने प्रभु यीशु मसीह को जान लिया, वह हर एक प्रकार के पाप से आजाद हो गया। हर एक बुराइ से आजाद हो गया। बाइबल में ऐसे हम कई उदाहरण पाते हैं। जिन्होंने सत्य को जान लिया और वे आजाद हो गए। हम जानते हैं शाऊल के विषय में शाहुल जो नाम से ही लोग उसके थर थर कांपते थे। आउल एक ऐसा व्यक्ति था जो बड़े अधिकार को बड़े पद को रखता था, जो परमेश्वर के लोगों को सताने वाला था, लोगों को मार देने वाला था, लोगों को दंड सजा देने वाला था। लेकिन जीस समय उसके जीवन में सत्य आया। उसका जीवन बदल गया, साहुल पॉलिश बन गया, परमेश्वर का सेवक बन गया। तो लोगों को सुसमाचार सुनने वाला लोगों को जीवन को बचाने वाला बन गया। हम बाइबल में एक और उदाहरण पाते हैं एक स्त्री का उदाहरण जिसे हम सामरिक स्त्री के नाम से जानते हैं जिससे समय उसका जीवन पार्क मई जीवन था। उसकी जाति से लोग घृणा करते थे। यहाँ तक कि जब वो पानी भरने आती थी, ऐसे समय आती थी की लोग कोई उसका सामना नहीं करना चाहते थे। वो एक ऐसे समय में पानी भरने के लिए कुएं पर आती है। उस समय सत्य की मुलाकात उस स्त्री से होती है। और जब सत्य को वह जान जाती है, प्रभु यीशु मसीह को वह जान जाती है, उसका जीवन पूरी तरह से बदल जाता है, वो लोगों को बचाने वाली बन जाती है, वो परमेश्वर की सेविका बन जाती है। जी हाँ, मित्रों जब सत्य हमारे जीवन में आता है, सच हमारे जीवन में आता है, हमारा जीवन बदल जाता है। हम पाप के गुलाम नहीं रहते। हम पाप के अधीन नहीं रहते, लेकिन हम पाप से आजाद हो जाते है। इतिहास इस बात का गवाह है। हर एक प्राणी सत्य की खोज में लगा हुआ है। आज भी हम देखे लोग सत्य को ढूंढ रहे हैं। हर एक जगह सत्य को ढूंढ रहे लोगों ने अपना घर, परिवार सबकुछ छोड़ दिया ताकि वह सत्य को ढूंढ ले। लोग सत्य को ढूंढने के लिए जान देने के लिए तैयार है, लेकिन सत्य को जानना कोई नहीं चाहता है। सत्य क्या है? कहती है सत्य हैं प्रभु यीशु में परमेश्वर का वचन कहता है परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्यार किया की उसने अपना एकलौता पुत्र दे दिया जो कोई इस पर विश्वास करेगा। वन नाश नहीं होगा परन्तु अनन्त जीवन को प्राप्त करने ना। जी हाँ मित्रों प्रभु यीशु मसीह एकमात्र संपूर्ण मानव जाति के लिए सत्य है और जो कोई इस सत्य को जानता है वह आजाद हो जाता है, वो नाश नहीं होता परन्तु अनन्त जीवन को प्राप्त करता है। आइये हम उस सत्य को और अच्छे तरीके से जानने पाए और समझ नहीं पाए और कहने पाए प्रभु आप के सत्य को हम समझने पाए। आपको हम समझने पाए। ताकि हर एक पाप से आज हम आजाद हो जाए और बहुत का जीवन हम जी सके। परमेश्वर के नाम से आप सभी को की।",आपको सच्चाई का पता चलेगा और सच्चाई आपको मोनिका द्वारा मुफ्त / ऑडियो हिंदी प्रवचन देगी "अवसर को बहुमूल्य जानों, क्योंकि दिन बुरे है। नमस्कार पियो मैं राजेश बावरिया इस दुआ के घर में आपका स्वागत करता हूँ खबरी चैनल में आपका स्वागत करता हूँ, हम धन्यवाद देते हैं और आज हम सुन रहे हैं। अवसर के विषय में बाइबल में प्रेरित के द्वारा लिखी हुई की पत्री उसके पांचवां अध्याय उसके आयात में हम पाते हैं कि अवसर को बहुमूल्य जानों क्योंकि दिन बुरे है। बाइबल में हम एक उदाहरण को पाते हैं। प्रभु यीशु यरीहो को शहर से होकर जा रहे थे और उस शहर में रोड के किनारे एक व्यक्ति बैठा हुआ था जो जन्म से अंधा था, जिसका नाम भर तिमाही था। बढ़ तिमाही अपने बचपन से ही कुछ नहीं देखा था। उसने बचपन से एक काम किया था। जो भीख मांगने का था उसके घरवालों ने उससे कभी प्रेम नहीं किया। अपने जीवन में कभी भी उसने एक अच्छे अवसर को नहीं प्राप्त किया। कुछ अच्छा उसके जीवन में कभी नहीं हुआ उस शहर में जहाँ वो रहता था वहाँ पर चोर और डाकू भी रहा करते थे। हम एक गीत गाते हैं, अपनी कलीसिया में की यारी हो के किनारे अदमु आप आया उसने डाक रस और तेल उंडेला इसका मतलब यह है कि यदि हो एक ऐसा शहर था जहाँ पर चोर और डाकू भी रहा करते थे। ऐसे जगह में एक व्यक्ति है जो अंधा है। जन्म से अंधा है और भीख मांगने का काम करता है। बाइबल बताती हैं कि वो सुन सकता था और 1 दिन उसने सुना आराधना हो रही है। 1 दिन उसने सुना बड़ा कोलाहल हो रहा है वहाँ से होकर जा रहे हैं और बड़ी भीड़ उसके पीछे पीछे हो ली है। वो समझ गया कि यह कोई अद्भुत व्यक्ति हैं और शायद वो किसी से पूछने लगा और लोगों ने बताया क्या तू नहीं जानता? ये जो उद्धार करने वाला है ये जो लोगों को चंगाई देता है, ये लोगों का जीवन बदल देता है। वो प्रभु हमारे बीच में से होकर जा रहे हैं। बढ़ती माही को समझने में देर नहीं लगी। यही उसके जीवन का सबसे बड़ा अवसर है और वह आव देखा न ताव अपना सारा कटोरा फेंक कर चिल्लाने लगा है दाऊद की सन्तान तसू मुझ पर दया कर हे दाऊद की सन्तान ईसू मुझ पर दया कर बाइबल बताती हैं प्रभु जो सारे ब्रह्मांड का बनाने वाला है उसके दिल से निकली हुई आवाज के कारण रुक गया। हाँ आज प्रभु रुक गए, किसकी आवाज़ पे रुक गए? एक अंधे भिखारी की आवाज पर रुक गए। और प्रभु ने कहा कि जाओ उसको बुलाओ, उसको बुलाया गया। लोगों ने कहा ढांढस बंद देख प्रभु यीशु में से तुझे बुला रहे है। उसने अपना कपड़ा, लाठी कटोरा फेंककर इस मौसी के पास आया टटोलते टटोलते आया इस मशीन है उसको देखा कहा बढ़ती माई। तू क्या चाहता है की मैं तेरे लिए करूँ भर तिमाही कहने लगा प्रभु मैं देखना चाहता हूँ। मैं आपको देखना चाहता हूँ, मैं अपने आप को देखना चाहता हूँ, मैं दुनिया की इस सुंदरता को जिसे आपने सजा है उसे देखना चाहता हूँ निहारना चाहता हूँ। कहाँ जा तेरे विश्वास ने तुझे चंगा कर दिया बाद में बताती है कि वो उसी समय उसकी आंखें खुल गईं। वो देखने लगा और फिर वो श्रापित शहर, फिर वो चोर और डाकू को शहर और वह जहाँ उसको प्रेम कभी नहीं मिला था उस शहर को उसने छोड़कर इश्यू के पीछे हो लिया। उसने अवसर को बहुमूल्य जाना आज हमारे और आपके लिए एक अवसर है प्रभु यीशु मसीह को अपना उद्धारकर्ता ग्रहण करने का और जब हम उसको उद्धारकर्ता करके ग्रहण करते हैं, हमारे जीवन में हम एक ऐसे स्थान पर पहुंचते हैं जहाँ बाइबल में इस प्रकार से लिखी है की वो लोग येरुसलेम पहुंचे जो शांति का शहर है। परमेश्वर शांति का राजकुमार है। वो हमें शांति देता है। वो कहता है दुनिया जो नहीं दे सकती, मैं तुम्हें दे सकता हूँ, बशर्ते तुम अवसर को बहुमूल्य जानों। हम रिप्यू समय बीतता चला जा रहा है। आइये आज का दिन परमेश्वर के पीछे हो लेने का दिन है। आज का दिन यह हुआ नहीं बनाया है। हम इसमें आनंदित हो जाए। अवसर को बहुमूल्य जानें। गॉड ब्लेस यू आपका दिन शुभ रहे थे। रहे खबरी चैनल में राजेश बावरिया को।",अवसर का लाभ उठाएं क्योंकि दिन खराब हैं "सभी को जयमि सी की आज प्रभु के वचन में से मैं आपको बताना चाहती हूँ की बुद्धि कानों से घुसती हैं। इसलिए जो कोई मेरी ये बातें सुनकर उन्हें मानता है, बहुत बुद्धिमान मनुष्य के समान ठहरेगा, जिसने अपना घर चट्टान पर बनाया और मह बरसा और आंधियां चलीं और उस घर से टकराई, फिर भी वो नहीं गिरा क्योंकि उसकी नींव चट्टान पर डाली गई थी। परंतु जो कोई मेरी ये बातें सुनता है और उन पर नहीं चलता, वह उस निर बुद्धि मनुष्य की समान ठहरेगा जिसने अपना घर बालों पर बनाया और मैं ही बचा। में आई और उस घर से टकराई और वह गिरकर सत्यानाश हो गया। मति अध्यक्ष सात वचन 24 से वचन 27 तक मैं बच्चों को कहानी सुनाते समय अक्सर या पूछती हूँ कि परमेश्वर ने हमें एक मुँह और दो कान क्यों दिए है? मुँह से तो बोलते भी हैं, खाते भी हैं, दो दो काम करते हैं लेकिन कानों से तो केवल एक काम करते है। सुनने का तो एक मु और दो कान क्यों? तब कई बच्चे मजाक में उत्तर देते हैं। की एक कान से सुनने के लिए और दूसरा कान निकालने के लिए। लेकिन गंभीरता से विचार करें तो पता चलता है दो कान हमें ज्यादा सुनने ध्यान से सुनने और एक मुँह कम बोलने के लिए दिया गया है। एक बालक जब ध्यान से सुनता है 1 दिन शिक्षक बन जाता है। सुनना सीखने की प्रक्रिया में एक पहला और महत्वपूर्ण कदम है। हम अपने माता पिता गुरुजनों की सुनकर ही अपने जीवन और व्यवहार में अच्छी संस्कृति की नींव रखते हैं। यार वो ये शो नहीं भी सुनने पर ज़ोर दिया है और वो पवित्रशास्त्र में कहते हैं जिनकी कान हो वे सुन ले। उन्होंने कहानी सुनाई की दो राजमिस्त्री थी जो घर बनाना सीख रहे थे। इस सुंदर महल के सामान घर बनाना चाहते थे। दोनों परिश्रमी थे। दोनों अपने गुरु से सुनते थे, सीखते थे परंतु दोनों में एक भारी अंतर था। एक राजमिस्त्री तो जैसा सुनता वैसा ही करता था परंतु दूसरा सुनता अवश्य था। परन्तु उसके अनुसार कार्य नहीं करता था। 1 दिन आया जब उनकी सीखने का समय पूरा हुआ। अब उन्हें यह शुद्ध करना था की जो कुछ उन्होंने सीखा है, उसे प्रमाणित किया जाए। दोनों को अपना अपना महल बनाना था। दोनों के पास पर्याप्त धन था। एक ही समय में दोनों ने अपना अपना महल बनाना आरंभ किया। एक ने गहरी नींव खोदकर उसमें चट्टान के पत्थर रखकर गहरी नींव भरी, जिसमें ज्यादा समय लगा परंतु दूसरे ने जो सुनता तो था परंतु अपने जीवन में लागू करके सीखना नहीं चाहता था। उसने रेत के ऊपर बिना नींव के ही अपना महल बनाने लगा। उसका महल समय से पहले बनकर तैयार होने लगा। वो नींव वाले महल को और उसकी बनाने वाले अपने साथी को देखकर हंसता परंतु नींव वाले महल का राजमिस्त्री उसका बुरा नहीं मानता था। 1 दिन आया जब दोनों का महल बनकर तैयार हो गया। दोनों खुश थे अपने गृह प्रवेश के लिए, लेकिन जब बारिश का मौसम आया तो आंधी और तूफान में भारी मूसलाधार वर्षा के कारण तो हम महल जो रेत में बिना नींव के बना था उसकी दीवारें गिर गई और पूरा महल धराशायी होकर गिर गया। परंतु जिसमें हल्की नीवि चट्टान पर पड़ी थी, उसका महल आज भी स्थिर था। आज उसके मालिक के पास मुस्कुराने का समय था। प्रभु येशू ने कहा, जो मेरी बातों को सुनकर उन्हें मानकर अपने जीवन में लागू भी करता है, वह उस बुद्धिमान राजमिस्त्री के समान होगा, जिसने अपना घर चट्टान पर बनाया है, परंतु जो सुनता तो है परंतु परंतु मानता नहीं। वो निर बुद्धि व्यक्ति के समान होगा, जिसने अपना घर रेत के ऊपर बनाया है। महल हो या घर हो, हमारे जीवन को दर्शाता है। आज हमारे सामने एक सवाल है कि हम इन दोनों राजमिस्त्रियों में से किसके समान है? परमेश्वर आपको बहुत आशीष दे।",बाइबिल की कहानी "कहते है मन के हारे हार है, मन के जीते जी यदि मन हार गया तो फिर दुनिया के कोई भी ताकत आपको जीतने नहीं देगी और यदि आप का मन जीतने की आस रखता है, जीतने की उम्मीद रखता है तो दुनिया की कोई भी ताकत आपको हरा नहीं सकती। दोस्तों लेकर आये हो आपके लिए आज हिम्मत से भरी हुई उत्साह से भरी हुई एक सुंदर प्रेरणादायक कहानी जिसका नाम है शोभा। दरवाजे की घंटी बजी। लो अब कौन आ गया इस समय? मेरी नजर दरवाजे पर पड़ी हल्की यह नीले रंग की बॉर्डर वाली साड़ी हाथों में छोटा सा पर्स लिए अधेड़ उम्र की एक महिला खड़ी थी। जैसे ही उसने नमस्ते दीदी कहा, मुझे एक सेकंड भी नहीं लगा उसे पहचानने में। मैं आवाक रह गई। अरे शोभा, तुम यहाँ कैसे? इस शहर में कब कहाँ कैसे? आओ अंदर आओ, यहाँ बैठो। काफी अरसे हो गए तुमसे मिले हुए। ढेर सारी बातें करनी है तुमसे। मैं चाय बनाकर लाती हूँ, मैं किचन में चली गई। चाय के उबाल के साथ साथ मेरे दिमाग में शोभा की आस से 20 साल पहले की तस्वीर घूम गई कि कैसे उसने पति के कैंसर से मृत्यु के बाद बड़ी मुश्किलों से अपने आप को इस दुख से उबारा था। उसके दो छोटे छोटे से बेटे और एक छोटी सी बच्ची का ख्याल आ रहा था। की कैसे शोभा घर घर जाकर झाड़ू बर्तन धोने का काम मांग रही थी। उसी दौरान मैं उससे मिली थी। मैंने उसे कई लोगों से बात भी करवाई। उसे लगभग चार पांच घरों में काम भी मिल गया था। कुछ दिनों के बाद मेरी पोस्टिंग दूसरे शहर में हो गई थी। उसके बाद मैं शोभा से नहीं मिली थी। हाथ में चाय की ट्रे थी। तभी शोभा बोली। मेरा बेटा भी आया है, नीचे खड़ा है आप कहे तो बुला लूँ। शोभा मोबाइल से बात करने लगी। और मैं उत्सुकता पूर्वक बालकनी से नीचे देखने लगी। एक बड़ी सी गाड़ी खड़ी थी। एक युवक अंदर से निकल रहा था। मैं फिर से शोभा के पास ड्राइंग रूम में आ गई थी। कुछ ही मिनटों में दरवाजा खुलने की आवाज आई और मेरी नज़र गठीला शरीर सफेद शर्ट पहने आँखों पर आधे फ्रेम का चश्मा सुनहरी घड़ी पहने युवक पर पड़ी। अब ये शोभा बोली। ये वही राहुल है जिसे आप किताबें और टॉफी देती थी। आपके घर से जाने का नाम नहीं लेता था। इसने इसी साल आईएएस की परीक्षा पास कर ली है। इसी शहर में इसके ट्रेनिंग हो रही है। मैं फिर अवाक रह गई और खुश भी हो रही थी। शोभा बताने लगी। आपके जाने के बाद दीदी मैं कहीं और घरों में काम करने लगी थी। रात दिन एक कर दी थी, इसलिए कि बच्चों को खूब पढ़ाउंगी। मैं इन सब कामों से कुछ समय बचाकर एक ब्यूटी पार्लर में ब्यूटीशियन का काम सीखने लगीं और धीरे धीरे कपड़े सीखने का काम भी करने लगी। मुझे काम भी बहुत मिलने लगा था और थोड़ा ठीक ठाक पैसे भी। मैंने एक छोटा सा लोन भी ले लिया और खुद का एक पार्लर खोल लिया। उसके बाद मैं खूब मेहनत करने लगी। मैंने बच्चों का दाखिला अच्छे स्कूल में करवाया, उनकी पढ़ाई में कभी कमी आने नहीं दिया। आज मेरे तीनों बच्चे बहुत ही अच्छी जगहों पर है। बड़ा बेटा ऑस्ट्रेलिया की कंपनी में मैनेजर हैं। बेटी दिल्ली में वकील हैं और ये राहुल कलेक्टर बन गया है। मैं शोभा को एकटक देखती रह गई। उसके संघर्ष को ना हारने की इच्छा को और आगे बढ़ने की चाहत। और उसके दिल की हौसले की उड़ान को दिल से सलाम करने को जी चाहे रहा था। उसके इस जज्बे का। दोस्तों, कई बार हमारे जीवन जब हम हृदय से दिल से हार जाते हैं तो हमें कोई भी हिम्मत नहीं बना पाता है। जरूरत है हम अपने इरादों को बुलंद बनाएं। मन से जीतने की चाह रखे तो हर एक मुश्किलें भी आसान हो जाएंगी और दरवाजे अपने आप खुलने लगेंगे। जैसा की शोभा के लिए हुआ आप सुन रहे थे। कहानी मोनिका की जुबानी कहानी कैसी लगी हैं? मुझे कमेंट करके जरूर बताएं। यदि पसंद आई है तो बिना लाइक किये ना जाए सुनते रहे कहानी मोनिका की जुबानी","यह कहानी शोभा की प्रेरणा एक प्रेरणादायक कहानी है प्रेरक कहानियों में हमें ऊपर उठाने, हमें मुस्कुराने, प्रोत्साहित करने, प्रेरित करने और हमें जीवन के बहुमूल्य सबक सिखाने की क्षमता होती है। यहाँ कुछ प्रेरक कहानियाँ हैं जो उम्मीद है कि आपको उस प्रेरक भावना को जगाने में मदद करेंगी। वे हमें आशा की एक सशक्त भावना देते हैं, कि यदि 'वह/वह' ऐसा कर सकता है, तो मैं भी कर सकता हूं। प्रेरक कहानियों में हमें ऊपर उठाने, हमें मुस्कुराने, प्रोत्साहित करने, प्रेरित करने और हमें जीवन के मूल्यवान सबक सिखाने की क्षमता होती है। यहाँ कुछ प्रेरक कहानियाँ हैं जो उम्मीद है कि आपको उस प्रेरक भावना को जगाने में मदद करेंगी। वे हमें आशा की एक सशक्त भावना देते हैं, कि यदि 'वह/वह' ऐसा कर सकता है, तो मैं भी कर सकता हूं। पूरे इतिहास में, लोगों ने प्रेरणादायक कहानियों को सिखाने, प्रोत्साहित करने और इस उम्मीद में प्रेरित करने के लिए उपयोग किया है कि श्रोता इसे एक कदम के रूप में उपयोग करेंगे। पत्थर और एक बेहतर जीवन जीने के लिए एक उदाहरण के रूप में।" "दोस्तों, इस दुनिया में हम अपनों के लिए बहुत भागा दौड़ी करते हैं, बहुत कुछ उनके लिए करना चाहते हैं, चाहते हैं कि उनके लिए वो सारी चीजें हम जुटा दे जो उनकी आवश्यकता से जुड़ी हुई हों, क्योंकि हम हमेशा उन्हें खुश देखना चाहते हैं, लेकिन कई बार ऐसा होता है कि उनके लिए ही काम करते करते कई बार हम उनको ही भूल जाते हैं। आज हम सुनने जा रहे हैं रिंकी यादव के द्वारा लिखी गई कहानी टेलर ही उँगली रेखा और सुमित दोनों मध्यम वर्गीय परिवार से थे। उनके अलावा उनके परिवार में उनका 12 साल का बेटा टिंकू और 10 साल की बेटी पूजा थी। सुमित एक बड़ी कंपनी में सुपरवाइजर था। उसके तनख्वा ज़्यादा नहीं थी। रेखा ने भी अपने एक छोटा सा बुटीक खोल रखा था जिससे अच्छी खासी आमदनी हो जाती थी। दोनों मिलकर किसी तरह अपने परिवार की गाड़ी को खींच रहे थे। दोनों मिलकर अपने बच्चों की पढ़ाई और उनकी हर जरूरत को पूरा करने की हरसंभव कोशिश करते थे। टिंकू और पूजा भी पढ़ाई में बहुत अच्छे थे। दोनों अपनी कक्षा में हमेशा अच्छे नंबरों से पास होते थे। लेकिन दूसरे बच्चों को देखकर उनका भी मन करता था कि वह भी महंगे कपड़े पहने, मॉल घूमने जाएं, बाहर खाना खाएं। लेकिन ऐसा हो नहीं पाता था। रेखा और सुमित चाहकर भी ऐसा ना कर पाते थे। उनके मन में हमेशा ये बात रहती थी कि दिन रात मेहनत करने के बाद भी वो अपने बच्चों की इच्छाओं को पूरा नहीं कर पा रहे। फिर भी उन्होंने कभी हार नहीं मानी। अपनी तरफ से पूरी मेहनत करते रहे। आखिरकार उनकी मेहनत रंग लाई। सुमित का प्रमोशन हो गया। अब वो सुपरवाइजर थे, मैनेजर बन गया था। उसकी तनख्वाह भी अच्छी खासी हो गई थी। अब वो कभी कभी अपने परिवार को बाहर घूमाने भी ले जाता था। अब उनके रहन सहन में पहले से काफी अंतर आ गया था। रेखा भी बहुत खुश थीं लेकिन उनके बच्चे अभी भी खुश नहीं थे। क्योंकि उन्हें दूसरे अमीर बच्चों की तरह हाथ में ब्रैंडेड घड़ी, मोबाइल फ़ोन और बड़ी गाड़ी चाहिए थी, वो भी अपने दोस्तों को दिखाने के लिए। वो किसी भी बात मैं उनसे कम नहीं होना चाहती थी और 1 दिन ईश्वर ने उनकी सुन ली। सुमित का एक बार फिर से प्रमोशन हो गया। अब वो अपनी कंपनी के सबसे बड़े अधिकारियों में गिना जाने लगा। उसकी तनख्वाह में भारी उछाल आ गया था। मतलब उसकी तनख्वाह काफी बढ़ गई थी। अब उसके घर में पैसों की कोई तंगी भी ना थी। सुमित ने अब एक बड़े घर में शिफ्ट कर लिया था। रेखा ने भी अपना एक बड़ा सा बुटीक खोल लिया था, बुटीक को बढ़ा लिया था, सारी जरूरत के सामान को भी उसमें रख लिया था। अब उनके घर के हर कमरे में महंगे महंगे एसी, सोफे और कारपेट बिछे हुए थे। सुमित ने एक बड़ी कार भी खरीद ली थी जिसमे आप टिंकू और पूजा खुशी खुशी स्कूल जाया करते थे। अब वो दोनों भी बाकी बच्चों की तरह बन गए थे। पहले जो बच्चे उनसे ज्यादा बात करना पसंद नहीं करते थे वो अब उनके आगे पीछे घूमने लगे थे। दोनों बच्चे खुश थे। रेखा भी आप बन ठनकर रहने लगी थी और अपना सारा समय बुटीक में ही बिताती थी। अपने मनोरंजन और दूसरी महिलाओं की नजरों में खुद को अमीर दिखाने के लिए उसने किसी पार्टी में भी जाना शुरू कर दिया था। टिंकू और पूजा भी अब आए दिन बर्थडे पार्टी कभी पिक्चर तो कभी मॉल घूमने जाते थे। अब उनका पढ़ाई में भी ज्यादा मन नहीं लगता था। सुमित भी अब अपने काम में बहुत व्यस्त रहने लगा था। अब उसके पास अपने परिवार के लिए समय भी नहीं था। सबके जिंदगी जीने का तरीका पूरी तरह से बदल गया था। आज उनके घर में किसी चीज़ की कमी न थी, सिवाय वक्त की। एक समय था जब सुमित और उसका परिवार एक साथ बैठते थे, खाना खाती थी, बातें करते थे लेकिन अब उनके पास एक दूसरे के पास बैठने बात करने का समय नहीं रहा। 1 दिन रेखा अचानक बीमार पड़ गई। डॉक्टर ने उसे पूरी तरह से आराम करने की सलाह दी। तो अब वह सारा दिन घर पर ही रहती। लेकिन अकेले घर में उसका ज़रा भी मन ना लगता। बिमारी में उसका ध्यान रखने वाला कोई न था। सुमित अपने काम में और टिंकू और पूजा अपने आप में ही व्यस्त थे। घर के सोने पन्ने जैसे उसे झकझोर कर रख दिया था। अब उसका ध्यान इस बात पर गया कि सबसे आगे निकलने की दौड़ में वो अपनों से कितने दूर हो गए। लेकिन अब उसने ठान लिया कि वो सब कुछ पहले की तरह ठीक करके ही रहे गी। उसने सुमित और बच्चों से बातें की और कहा की आज से रात का खाना हम सब लोग एक साथ खायेंगे। किसी ने भी उसकी बात को गंभीरता से नहीं लिया। तब उसने सोचा की सीधी ऊँगली से घी नहीं निकलेगा, ऊँगली टेढ़ी करनी ही पड़ेगी। तब उसने सख्त कदम उठाया और कहा कि अगर वो ऐसा नहीं करेंगे तो वो किसी से बात नहीं करें। मजबूरन सबको उसकी बात माननी पड़ी और सब रात का खाना एक साथ खाने लें। धीरे धीरे सबको ऐसा करना अच्छा लगने लगा। अब पूरा परिवार सिर्फ खाना ही एक साथ नहीं खाता था बल्कि अपने पूरे दिन की बातें भी एक दूसरे के साथ शेयर करता था। अब सब रेखा के इस फैसले से खुश थे। रेखा भी बहुत खुश थी ये देखकर कि उसकी कोशिश सफल हो गई तो दोस्तों जिंदगी में सबसे बड़ी खुशी है परिवार की एकता। दिन भर भले ही काम करें, लेकिन परिवार के लिए एक ऐसा समय हमारे पास जरूर होना चाहिए कि जिनके लिए हम काम कर रहे हैं। जिन अपनों के लिए हम भागा दौड़ी कर रहे हैं, उन अपनों के लिए हमारे पास वक्त। थोड़ा ठहरी उनसे बाते कीजिये। उनके साथ रिश्ते को बितायी। इस तरह से आपका रिश्ता मजबूत रहेगा और प्रेम भी बढ़ेगा। दोस्तों आप सुन रहे थे? कहानी मोनिका की जुबानी कहानी कैसी लगी मुझे कमेंट करके जरूर बताएं। यदि पसंद आई है तो अपने दोस्तों के साथ शेयर करना बिल्कुल ना भूलें। सुनते रहे। कहानी मोनिका की जुबानी।","ठंडी ऊँगली एक प्रेरणादायक कहानी प्रेरक कहानियाँ हमें ऊपर उठाने, हमें मुस्कुराने, प्रोत्साहित करने, प्रेरित करने और हमें जीवन के मूल्यवान सबक सिखाने की क्षमता रखती हैं। यहाँ कुछ प्रेरक कहानियाँ हैं जो उम्मीद है कि आपको उस प्रेरक भावना को जगाने में मदद करेंगी। वे हमें आशा की एक सशक्त भावना देते हैं, कि यदि 'वह/वह' ऐसा कर सकता है, तो मैं भी कर सकता हूं। प्रेरक कहानियों में हमें ऊपर उठाने, हमें मुस्कुराने, प्रोत्साहित करने, प्रेरित करने और हमें जीवन के मूल्यवान सबक सिखाने की क्षमता होती है। यहाँ कुछ प्रेरक कहानियाँ हैं जो उम्मीद है कि आपको उस प्रेरक भावना को जगाने में मदद करेंगी। वे हमें आशा की एक सशक्त भावना देते हैं, कि यदि 'वह/वह' ऐसा कर सकता है, तो मैं भी कर सकता हूं। पूरे इतिहास में, लोगों ने प्रेरणादायक कहानियों को सिखाने, प्रोत्साहित करने और इस उम्मीद में प्रेरित करने के लिए उपयोग किया है कि श्रोता इसे एक कदम के रूप में उपयोग करेंगे। पत्थर और एक बेहतर जीवन जीने के लिए एक उदाहरण के रूप में।" "सभी को चैनसी की मित्रों, मैं मोनिका आपका स्वागत करती हूँ, सुन्दर समय में जहाँ हम परमेश्वर के सुंदर भजनों को सुनने के लिए एकत्रित हुए हैं, आज परमेश्वर का सामर्थ्य और सुंदर वचन मैं आपके लिए लेकर आई हूँ जिसे मैं पढ़ना चाहती हूँ। व्यवस्था विवरण अध्याय 31 वचन आठ से जहाँ लिखा है और तेरे आगे आगे चलने वाला यहोवा है, वह तेरे संग रहेगा और ना तो तुझे धोखा देगा। और ना छोड़ देगा इसलिए मत, डर और तेरा मन कच्चा ना हो। परमेश्वर अपने वचन के पढ़े जाने में सुने जाने में हम सभी को आशीष दे। प्रिय भाइयों और बहनों परमेश्वर का वचन यहाँ पर कहता है जो मूसा के द्वारा उस ने कहा कि परमेश्वर तेरे आगे आगे चलने वाला या हुआ है। हम यदि इस घटना को इस सिचुएशन को देखें तो क्या है? ये सिचुएशन जब हम बाइबल पढ़ते हैं, हम देखते हैं कि मोहसाब एक ऐसा परमेश्वर का दास था जो परमिशन की आवाज को लोगों तक पहुंचाता था। परमेश्वर की हर एक बातों को लोगों तक पहुंचाने वाला एक हुआ पर मिश्र कहता हैं की मुँह सा धरती में सबसे नम्र व्यक्ति हैं क्योंकि मुँह सा एक सही अगुवाई को करने वाला दास और सेवक था। हम देखते है की जब मूसा की आयु पूरी हो गयी अब वो बूढ़ा हो चला है। तब उसने अपनी लीडरशिप को, अपने अगवा पन को यह ओशो को सौंप रहा है यहोशु जो अब एक उत्तराधिकारी बनने जा रहा है, अगुवाई करने वाला जो लाखों की तादाद में जो इज़राइली हैं उनकी अगुवाई करने के लिए यह ओशो को चुना गया है। उस समय जनता भी ये जानती थी की मूसा जो कुछ कहता है वह परमेश्वर की ओर से होकर बोलता है। मूसा जो भी बातों को कहता है वो परमेश्वर के दिल की आवाज़ होती है। लोग अच्छी तरह से जानते थे कि किस तरह से उन्होंने चट्टान से पानी को पिया। किस तरह से उन्होंने आकाश से मन्ने को खाया, किस तरह से वो दिन में बादल के खंभे के सहारे चले, रात में अग्नि की ज्वाला के सहारे चले। उन्होंने देखा कि मूसा जो कुछ परमिशन से प्राप्त करता था, जो भी वचन को प्राप्त करता था वो लोगों तक हूबहू वैसे का वैसा ही पहुंचाता था। वो अच्छी तरह से जानते थे कि मुँह से जो कुछ कहता है, सही कहता है। लेकिन यहाँ पर हम देखते हैं एक बहुत बड़े परिवर्तन को एक ऐसा परिवर्तन जब मुँह सा अपने अगुवाई को, अपने अगवा पन को यह ओशो को सौंप रहा है, उस समय जनता भी डरी हुई है। इस्राइली भी डरे हुए हैं कि अब आगे क्या होगा? अब यह ओशो पे यहाँ पर हम देखते हैं कि घबराया हुआ है। उसे भी लग रहा है कि मैं लाखों की तादाद में इन इजराइल की अगुवाई कैसे कर पाऊंगा? अभी तक तो मूसा की अगुवाई में होकर सारे लोग चल रहे थे। मूसा सब कुछ परमेश्वर की अगुवाई में होकर सब कुछ संभाल रहा था। परंतु अब मैं अकेला कैसे सब कुछ कर पाऊंगा? एक बड़े परिवर्तन को हम यहाँ पर देखते हैं, लेकिन बाइबल कहती हैं कि मूसा को ढांढस बंधा आता है, उसे अपने पास बुलाता है और उसे एक बेटे की तरह सहलाकर कहता है वो क्या कहता है की तेरे आगे आगे चलने वाला यहोवा है? वह तेरे शंग रहेगा और ना तो वो तुझे धोखा देगा और ना तो वह तुझे छोड़ देगा। इसलिए मत, डर और तेरा मन कच्चा ना हो। प्रिय हूँ यह वचन आज आपके लिए है। हो सकता है आज आप अपने जीवन में एक बड़े परिवर्तन को देख रहे हो। आपको लग रहा हो कि इस परिवर्तन के बाद आगे मेरे जीवन में क्या होगा? या आपको लग रहा होगा कि अब तो जिसकी अगुवाई में हम चल रहे थे, अब वो भी हमारे साथ आगे चल नहीं पाएगा? हम कैसे आगे के निर्णयों को ले पाएंगे? हम कैसे आगे कदम बढ़ा पाएंगे? तो आज का यह वचन आपके लिए है। परमेश्वर का वचन कहता है की यह ओवत तेरे आगे आगे चलेगा। वास्तव में यदि देखा जाए तो यह वचन मूसा तो बोल रहा है परंतु यह वाणी स्वयं परमेश्वर यहोवा की है। परमेश्वर मूसा के द्वारा होकर लोगों से कह रहा है तुम घबराओ नहीं, तुम डरो नहीं, तुम्हारा मन कच्छा ना हो, तुम हियां को बांधे रखो क्योंकि जब तुम कदम बढ़ाओ गे, तुम्हारे आगे आगे चलने वाला तुम्हारा परमेश्वर यहोवा है, जिसने तुम्हें अब तक संभाले रखा, वह तुम्हें आगे भी संभाले रखेगा। वचन कहता है आगे परमेश्वर कहता है की वो ना तो तुम्हे धोखा देगा ना तो तुम्हे वहाँ छोड़ेगा, है ना इसलिए मत डरो और ना ही तुम्हारा मन कच्चा हो। कई बार हम डर के कारण बड़े निर्णय नहीं ले पाते, बड़े फैसले नहीं कर पाते, कदम आगे नहीं बढ़ा पाते हैं, लेकिन परमेश्वर का वचन कहता है मत, डर या बान तेरा मन कच्चा ना हो क्योंकि तेरे आगे आगे चलने वाला तेरा परमेश्वर यहोवा है, वो तुझे रखेगा, वो तुझे हर कार्य में सफलता देगा। हम देखते हैं या होश हो इस वचन को थाने रखता है। इस वचन के द्वारा उसके जीवन मेँ उसके हृदय में परमेश्वर का परमेश्वर की सामर्थ आती है। परमेश्वर उससे भी बातें करता है और परमेश्वर कहता है की यह होश हो तुम मेरी व्यवस्था से दाएँ और बाएँ मत मारना। इसी पर दिन और रात ध्यान की ये रहना तब तो जीस भी काम में हाथ लगाएगा। वह काम तेरा सफल होगा और तू प्रभाव शाली होगा और हम देखते हैं लाखों लोगों की अगुवाई करने के लिए या होश हूँ। एक अच्छा बन करके निकला उसने एक अच्छी अगुवाई को किया क्योंकि वह परमेश्वर के वचन को थामे रखा आज इस वचन को आप अपने जीवन में थाम ले यदि आपको डर लग रहा है आपकी हिम्मत टूट रही है, आपको किसी बात की चिंता परेशान कर रही है, आपका मन कच्चा हो रहा है, आपको लग रहा है की मैं आगे कैसे बढ़ दूंगा? कोई नहीं है मेरा साथ देने वाला। तो आज इस वचन को बार बार बार बार अपने मुँह से अपने लिए दोहराएँ कहे की तेरे आगे आगे चलने वाला तेरा परमेश्वर यहोवा है वो तुझे कभी न छोड़ेगा, कभी ना त्यागें का वो तुझे कभी धोखा नहीं देगा। इसलिए मत, डर या बांध आगे बढ़ता चल परमेश्वर आपको इस संदेश के द्वारा बहुत आशीष दे। मैं धन्यवाद करती हूँ की आपने बड़ी ही विनम्रता के साथ इस संदेश को सुना है। अगली विडिओ में मैं फिर से आप के साथ मिलती हूँ तब तक के लिए सभी को।",भगवान का अनमोल वचन (मोनिका द्वारा हिंदी ऑडियो प्रवचन) #monika #hindiaudiosermon "प्रभु यीशु मसीह के तुले नाम मैं आप सभी को प्यार भरा जैम सी केपरियो आज हम परमेश्वर के वचन में से सुनने जा रहे हैं। दूसरा, इतिहास की पुस्तक उसका 32 अध्याय सात और आठ आयात। हिलाओ बांधों और दृढ़ हो। तुम न तो असुर के राजा से डरो और न उसके संगीत सारी भीड़ से और न तुम्हारा मन कच्चा हो क्योंकि जो हमारे साथ हैं वे उसके संगियों से बढ़ा है अर्थात उसका सहारा तो मनुष्य ही है परंतु हमारे साथ हमारी सहायता और हमारी ओर से युद्ध करने को हमारा परमिशन यह हुआ है। इसलिए प्रजा के लोग यहूदा के राजा जी क्या की बातों पर भरोसा किए हैं? परमेश्वर अपने वचन के बढ़ जाने में और सुने जाने में आशीष दे। ये घटना तब की है जब असुरों के राजा ने यहूदा पर आक्रमण कर दिया। तब हिचकियाँ परमिशन की आत्मा भरकर खड़ा होता है और अपने लोगों को सहारा देता है और अपने लोगों को ऐसे शब्द कहता है जिससे वो लोग जाओ, बांधते हैं, दृढ़ हो जाते हैं और बहुत उत्साहित और भरोसा रखने लगते हैं। प्रो। ये शब्द आपको भी और हमें भी सहारा देने पाए। भरोसा देने पाए इनकरेज। परमेश्वर हमारे संग हैं तो हमारा विरोधी कौन हो सकता है? जो हमारे साथ हैं वो उनसे बड़ा है। मेरे प्यू जो हमारे इर्दगिर्द हम को घेरे हुए। हो सकता है की आज आपके व्यापार, आपका कार्य, आपके बिज़नेस, आपकी परिस्थितियां आपको घेरे हुए हों। ऐसा लगता है की सब कुछ मेरे विरोध में जा रहा है। सब कुछ गिर रहा है, लेकिन बाइबल कहती है। हिम्मत मत हारो हिलाओ बांधों दृढ़ हो जाओ, देख हमारा युद्ध करने के लिए परमेश्वर हमारे साथ है। संग्राम यहोवा का है युद्ध परमेश्वर का है परमेश्वर इन वचनों के द्वारा आप सभी को बहुत आशीष दे प्रयोग। हमेशा दुआ करें। प्रार्थना करें कि परमेश्वर मुझे इतनी हिम्मत दे सकती दें ताकि मैं ये बात को समझ पाउ की मैं अकेला नहीं हूँ। परमेश्वर सर्वशक्तिमान परमेश्वर मेरे साथ है। वो न तो कभी छोडूंगा न तो कभी त्यागें गा वो कभी नहीं भूलता। आइए हम लोग दुआ करें स्वर्गीय पिता ही सुनाशी के नाम से हम आपके चरणों में आते हैं और प्रार्थना करते हैं जो कोई भी आज यहाँ पर परेशान हैं, हताश निराश हैं। हम दुआ करते प्रो जी आप उनको हिम्मत दे। प्रतिदिन सामर्थ्य ताकि यह बात को समझ पाए कि आप हमारे साथ हैं, आप उनके साथ है और जब आप हमारे साथ है तो हमारा विरोधी कोई नहीं हो सकता। हमारे सम्मुख कुछ भी। कोई भी खड़ा नहीं हो सकता। परमिशन इन वचनों के द्वारा सभी को आशीष दे आम आम प्रार्थना सुनने के लिए धन्यवाद। इस 79 के नाम से मांगते हैं आ मेल। गॉड ब्लेस यू सुनते रहे परमेश्वर के सुंदर वचन भाषा राजेश किशन","यह बाइबिल मार्ग का ऑडियो लघु उपदेश है, सुनो और धन्य हो" "सभी को जेएमएसी की दोस्तों, मैं मोनिका आपका स्वागत करती हूँ, धन्यवाद करती हूँ परमेश्वर का की परमेश्वर ने हमें फिर से एक बार इस सुंदर समय दिया है कि हम प्रभु के वचनों को सुन सकें। जी हाँ, मित्रों आज का दिन परमिशन ने बनाया है इसलिए आज के दिन हम परमेश्वर के वचन को सुनने जा रहे हैं। कई बार हमारे मन में विचार आता है कि प्रभु एक विषय के लिए मैं बहुत दिनों से प्रार्थना कर रहा हूँ पर वो प्रार्थना मेरी सुनी क्यों नहीं जा रही है? क्या मेरी प्रार्थना में कुछ कमी है? ये कई बार हमारे मन में विचार आता है। और वो अब ये प्रार्थना मेरी सुनी नहीं जा रही। ऐसा करता हूँ मैं प्रार्थना का विषय ही बदल देता हूँ और मैं कुछ और प्रार्थना करने लगता हूँ। कई बार हम इस तरह की समस्या का सामना करते हैं तो हमारे मन में विचार आता है। क्या मेरी प्रार्थना में कोई कमी है या प्रार्थना करने के तरीके में कोई कमी है? जब इस तरह का विचार मेरे मन में भी आया तब उन्हें बाइबल पढ़ रही थी और प्रभु ने मुझे अपने वचन के द्वारा जो सिखाया, वही चीज़ आज मैं आपके सामने बांटना चाहती हूँ। यहाँ लिखा है लुका रची सुसमाचार अध्याय 18 वचन नौ से वचन 14 तक यहाँ एक घटना का जिक्र प्रभु यीशु मसीह ने किया है। प्रभु ने बताया है यहाँ दो व्यक्तियों के विषय में वो मैं आपके लिए यहाँ पढ़ना चाहती हूँ। लुका अध्याय 18, वजन नौ से वजन 14 तक उसने उनसे जो अपने ऊपर भरोसा रखते थे कि हम धर्मी है और दूसरों को तुच्छ जानते थे या दृष्टांत कहा। दो मनुष्य मंदिर में प्रार्थना करने के लिए गए एक फरीसी था और दूसरा चुंगी लेने वाला। फरीसी खड़े होकर अपने मन में योग प्रार्थना करने लगा। हे परमेश्वर नित्य का धन्यवाद करता हूँ कि मैं दूसरे मनुष्यों के समान अंधेर करने वाला अन्याय और विचार ही नहीं हूँ और नाइस चुंगी लेनेवाले के समान हूँ। मैं सप्ताह में दो बार उपवास रखता हूँ। मैं अपनी सब कमाई का दसवां अंश भी देता हूँ, परन्तु चुंगी लेनेवाले ने दूर खड़े होकर स्वर्ग की ओर आंखें उठाना भी ना चाहा वरन अपनी छाती पिट पीटकर कहा। ही परमेश्वर मुझ पापी पर दया कर मैं तुमसे कहता हूँ की वो दूसरा नहीं, परंतु यही मनुष्य धर्म में ठहराया जा कर अपने घर गया, क्योंकि जो कोई अपने आप को बड़ा बनाएगा वह छोटा किया जाएगा और जो अपने आप को छोटा बनाएगा, वह बड़ा किया जाएगा। परमेश्वर अपने वचन के पढ़े और सुने जाने में हम सभी को आशीष दे। मित्रों, इस घटना से इस दृष्टान्त से प्रभु हमें कुछ बातों को सीखाना चाहते हैं। जो मैंने सीखी वही आपके सामने बांटती हूँ। मैंने ये सीखा प्रभु यहाँ दो व्यक्तियों का जो ज़िक्र कर रहे हैं पहला व्यक्ति था फ ऋषि जो मंदिर में आराधनालय में प्रार्थना करने के लिए गया। प्रभु ने बताया कि जब वो प्रार्थना करने गया तो वो खड़ा होकर अपने मन में प्रार्थना करने लगा। कई बार जब हम प्रार्थना करने के लिए परमेश्वर की समीर जाते हैं तो हो सकता है हमारी परिस्थिति भी कुछ ऐसी ही है। हम परमेश्वर के समीप बैठना ही नहीं चाहते हो। हो सकता है कई बार हम सोचते हैं की हम खड़े होकर खड़े मतलब में शारीरिक कृति की बात नहीं कर रहे हैं। कई बार हम आत्मिक रीती से हम सोचते हैं कि जो चीज़ हम परमिशन से मांग रहे हैं वो पाने के हम बकायदा हकदार हैं। वो पाने की कैपेबिलिटी हमारे अंदर है, वो योग्यता हमारे अंदर है। कई बार ऐसा सोचकर हम बड़े जुनून के साथ और बड़े जलाल के साथ हम परमेश्वर से माँगने लगते हैं। फ्रीश जो इस प्रकार से खड़े होकर वह एक घमंड के साथ बड़े गर्व के साथ परमेश्वर से मांग रहा है और यहाँ लिखा है मांग भी नहीं रहा है। एक प्रकार से वो अपनी योग्यताओं को जो जो काम वो करता है उसका बखान कर रहा है। वो बता रहा है कि मैं उपवास रखता हूँ, मैं दान देता हूँ, मैं दशवंत भी लाता हूँ। मतलब वो सारी चीजों को एक के बाद एक गिना रहा है। कई बार जब हम प्रार्थना करते हैं, क्या हम भी ऐसा करने लगते हैं? हम भी कहते हैं कि प्रभु देख हम धर्मी है। प्रभु देख हमने ये किया, प्रभु हमने दान दिया प्रभु हमने ये भलाई की, हम ने वो किया हमारी प्रार्थना को तो सुन लेना याद रखिये। परमेश्वर हमसे कहता है कि हम नम्र बने, दिन बने, हम परमेश्वर चाहता है हम उस नम्रता के स्वभाव को धारण करें, जैसा कि उस चुंगी लेनेवाले ने किया चुंगी लेने वाला वह व्यक्ति जो जो समाज की दृष्टि में तुच्छ गिना जाता था। तो समाज की दृष्टि में कैसा व्यक्ति गिना जाता था, जो दूसरों का हक अधिकार को मारता हो, ऐसा व्यक्ति गिना जाता था, लेकिन देखिये उसके प्रार्थना करने के तरीके को वो किस तरह से प्रार्थना कर रहा है। वो वचन कहता है बाइबल इस प्रकार व्याख्यान करती है की वो जिससमय मंदिर में गया। वो दूर खड़े होकर मतलब वो अपने अंदर इतना भी अपने आप को योग्य नहीं समझ रहा। वो कह रहा है प्रभु मित्र समीप आने के भी योग्य नहीं हूँ। मैं तो अधर में पुरुष हूँ। प्रभु वो स्वर्ग की ओर लिखा है की आंखें उठाना भी ना चाहा। मतलब उसके अंदर ना तो कोई घमंड यहाँ प्रभु बता रहे हैं और ना ही कोई गर्व यहाँ पर बता रहे हैं। कह रहे है की वो छाती पिट पीटकर एक पश्चाताप वाले हृदय के साथ प्रार्थना कर रहा है। इस प्रकार से कहती हैं कि यदि एक लाचार व्यक्ति प्रार्थना करता है, टूटा है हृदय जब प्रार्थना करता है परमिशन उसकी प्रार्थना को जरूर सुनता है। चुंगी लेने वाला जो व्यक्ति हैं वो टूटे हृदय के साथ पश्चातापी हृदय के साथ परमेश्वर के पास गया है। परमिशन से उसकी दया को मांग रहा है। दया जो सारी चीजों से उत्तम है जब परमेश्वर की दया मिलती है किसी और चीज़ की जरूरत हमें होगी ही नहीं क्योंकि दया के साथ सारी चीजें परमेश्वर हमें देंगे। चुंगी लेने वाला कहता है परमेश्वर मुझ पर दया कर वो अपने आप को परमेश्वर के सामने पापी कहकर अंगीकार कर रहा है। संत पॉल इस जिन्होंने नए नियम में सबसे ज्यादा पत्तियों को लिखा, जिन्होंने लोगों को आत्माओं को बचाने में सबसे बड़ा माध्यम जो बन गए। प्रभु की ओर से वो कहते है की खेप परमेश्वर में संसार का सबसे बड़ा पापी हूँ। क्या हम जब प्रार्थना करते हैं, हम परमेश्वर के पास नम्र हृदय के साथ आते हैं, दिन हृदय के साथ आते हैं या फिर उस परिशी लेने वाले के समान? हम दूसरों को तुच्छ समझता हुआ आते हैं, बजाय इसके कि हम प्रार्थना करें और दूसरों के लिए आशीष को मांगे। क्या हम ऐसा कर रहे हैं कि हम दूसरों को तुच्छ समझ रहे हैं? परमेश्वर कहता है कि जो दूसरों को तुच्छ समझ रहा है और अपने आप को धर्मी समझ रहा है। वो व्यक्ति कभी भी बड़ा नहीं किया जाएगा। चुंगी लेने वाला व्यक्ति अपने आप को नीचा करता है। अपने आप को छोटा अपने आप को हम बल नम्र बनाता है पर मिश्र कहता है की वो फरीसी व्यक्ति नहीं परंतु ये ही चुंगी लेने वाला व्यक्ति जिसने आप अपने आप को नम्र बनाया, दिन बनाया वही व्यक्ति बड़ा किया जाएगा अर्थात उसी की प्रार्थना सुनी जाएगी। आज हमारी प्रार्थनाएँ कई बार अनसुनी क्यों रह जाती है? कई बार ये कारण भी हो सकता है की हम अपने आप को कुछ ज्यादा ही बड़ा समझने लगे और दूसरों को अपनी दृष्टि में तुच्छ समझने लगे। आइए हम भी परमिशंस के सामने गिड़गिड़ाए नम्र हृदय के 7 दिन हृदय के साथ जाए और परमेश्वर से कहें कि हे परमिशन मुझ पापी पर दया कर क्योंकि वचन कहता है कि जो नम्र है वे पृथ्वी के अधिकारी होंगे, परमेश्वर उन्हें अधिकारी बनाएगा। किन चीजों का जिन्हें आप प्रार्थनाओं में आज मांग रहे हैं जिनके लिए आज परमिशन के सामने आप गिड़गिड़ा रहे हैं, याद रखिए परमिशन नम रहे। परमेश्वर चाहता है हम भी नम्रता का स्वभाव धारण करे, हम भी नम्र बन जाये। हम भी उस तरह का स्वभाव रखें जैसा हमारा परमेश्वर है। आइये परमेश्वर आपको इस घटना से दृष्टि से इस वचन से बहुत आशीष दे, आपकी प्रार्थनाओं को सुनें, आशीषित करें, गॉड ब्लेस यू।",प्रभु यीशु ने एक सुंदर कहानी सुनाई जिसमें हम प्रार्थना करना सीखते हैं #monikabavaria #howtoprayinhindi "खबरे सुनने वालों को मोनिका का प्यार भरा जमसी की मित्रों में लेकर आई हूँ। परमेश्वर का बहुत ही सुंदर वचन लेकिन उस वचन को सुनने से पहले यदि आपने अब तक फॉलो बटन नहीं दबाया है तो फॉलो बटन दबा दें क्योंकि ऐसा करने से आप मेरे द्वारा बोले गए संदेशों को सबसे पहले सुन सकेंगे और परमेश्वर की आशिषों को ग्रहण कर सकेंगे। कई बार हम अपने जीवन में लोगों के स्वभाव से बहुत ज्यादा प्रभावित होते हैं। हम कहते हैं व्यक्ति का स्वभाव बहुत सीधा है इसलिए वह व्यक्ति मुझे बहुत पसंद है। कई बार हम कहते हैं उस बहन का स्वभाव बहुत कड़क है, बहुत तेज तर्रार है इसलिए वो बहन मुझे बिल्कुल पसंद नहीं है। बाइबल क्या कहती हैं स्वभाव के विषय में? आइए जानते हैं कि एक मसीही भाई का स्वभाव कैसा होना चाहिए? एक मसीही बहन का स्वभाव कैसा होना चाहिए? परमेश्वर के वचन में से जब हम फिलिप की पत्री अध्याय दो वचन पांच पढ़ते है वहा लिखा है जैसा मसीह यीशु का स्वभाव है, वैसा ही तुम्हारा स्वभाव हो। परमेश्वर का दास कहता है परमेश्वर के लोगों के लिए। एक मसीही भाई का स्वभाव एक मसीही बहन का स्वभाव मासी के स्वभाव के समान होना चाहिए। तोमसी का स्वभाव कैसा है? आइए हम सीखते हैं पांच बातों को जो मसीह के स्वभाव के भीतर पाई जाती है। पहली बात जो मासी के स्वभाव के भीतर पाई जाती है, वाह है, नम्रता मासी के स्वभाव में नम्रता है, पर मिश्रा का वचन कहता है कि उसने स्वर्ग की महिमा को स्वर्ग के वैभव और गौरव को छोड़कर मनुष्य रूप लेकर इस दुनिया में आ गया। इससे बड़ी नम्रता और कहा है, प्रियम, परमेश्वर का वचन कहता है ये। शम्सी ने कहा कि मुझसे सीखो, मैं मन में नम्र हूँ, मन में मैं दिए इन हूँ वचन कहता है धन्य हैं वे जो मन में नम रहे, क्योंकि वे पृथ्वी के अधिकारी होंगे। परमेश्वर चाहता है की एक मसीह भाई का स्वभाव, एक मसीही बहन का स्वभाव नम्रता का स्वभाव हो, दूसरा मैं मासी के स्वभाव से, जो गुण को सीखती हुआ है। प्रेम का स्वभाव मछली का स्वभाव प्रेम का स्वभाव है। वचन कहता है की की परमिशन ने जगत से ऐसा प्यार किया की अपना एकलौता पुत्र दे दिया ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे वो नाश ना हो परंतु अनंत जीवन पाए। जी हाँ पियो। जब हम पापी ही थे तब परमिशन ने हमसे प्यार किया। आइए हमारे स्वभाव में प्रेम झलकने पाए उन लोगों के लिए जो आज हम से प्रेम नहीं करते हैं, जो हमारे ऊपर कुड़कुड़ाते है। हम उनको प्रेम दिखाने पाए। मासी के स्वभाव का तीसरा गुण है पवित्रता का गुण मासी के स्वभाव में पवित्रता है। वचन कहता है कि मसीह यीशु सब बातों में परखा गया, परंतु पवित्र निकला, पवित्र पाया गया। जी हाँ पियो आज हमारे स्वभाव में पवित्रता का स्वभाव आने पाए, पर मिश्रा का दासी बनना कहता है। ये परमेश्वर का मेम्ना जो सारे जगत का पाप उठा ले जाता है, परमेश्वर उसे एक निर्दोष, निष्कलंक मेमना कहकर पुकारता हैं। मसीह के स्वभाव का चौथा गुण है दया का स्वभाव दया का गुण मससी के स्वभाव में दया है। उसने लोगों के साथ दया को दिखाया जहाँ पर लोग उसको बुरी बुरी बातें कह रहे थे, जहाँ पर लोग उसके साथ भलाई को नहीं कर रहे थे। वहाँ पर भी उसने दया को दिखाया देने के स्वभाव को दिखाया। वचन कहता है बाइबल कहती हैं कि उसने अपना पूरा जीवन अपने आप को हम मनुष्यों के लिए दे दिया। इस प्रकार से उसने अपनी दया को हमारे भीतर दिखाया है। आइए हमारे स्वभाव में दया का स्वभाव आने पर ताकि जो लोग निस्सहाय हैं, बी आसरा है। उनके साथ हम दया को दिखाने पर मस्सी का स्वभाव दिखाने पाए। पांचवा गुण जो मैम 80 के स्वभाव से सीखती हूँ, वह है क्षमा का स्वभाव। क्षमा का गुण मासी के अंदर क्षमा है। उसने क्रूज पर चढ़ते वक्त कहा उन लोगों के लिए जो उसे क्रूस पर चढ़ा रहे थे, परमेश्वर से प्रार्थना की, जो सबसे अद्भुत सबसे बड़ी प्रार्थना थी। उसने कहा कि हे पिता इन्हें क्षमा कर क्योंकि ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं। उसने उन लोगों के लिए जो पाप कर रहे थे, उन लोगों के लिए परमेश्वर से क्षमा को मांगा है। आइए हम भी लोगों के लिए क्षमा मांगने वाले बन जाए क्योंकि वचन कहता है कि जब तुम दूसरों के अपराधों को क्षमा करोगे तो तुम्हारे अपराध भी क्षमा किए जाएंगे। तो आइये प्रिय हमारे स्वभाव में नम्रता हो, प्रेम हो, पवित्रता हो, दया हो और क्षमा हो, क्योंकि वचन कहता है जैसा मसीह यीशु का स्वभाव है, वैसा ही तुम्हारा स्वभाव भी हो, मशीन तुम्हें इस वचन के द्वारा बहुत आशीष दे।",मसीह की प्रकृति "दोस्तों, इस दुनिया में हर कोई इंसान अपने जीवन के लिए एक सपने को देखता है, किसी का सपना होता है की उसे एक अच्छी नौकरी मिले, किसी का सपना होता है, उसके पास एक अच्छा घर हो, कोई अच्छे जीवनसाथी का सपना देखता है वगैरह वगैरह। मैं समझती हूँ आपने भी अपने जीवन के लिए कोई ना कोई सुंदर सपना जरूर देख रखा होगा। सपने कई बार बंद आँखों से देखे जाते हैं और कई बार खुली आँखों से भी। और विश्वास करती हूँ कि आपके पास भी आपके जीवन के लिए एक चुनिंदा स्वप्न होगा। उस सपने को पूरा करने के लिए आप भी प्रयास कर रहे होंगे, लेकिन तब क्या जब वो सपने को पूरा करते वक्त कुछ समस्याओं का सामना करना पड़े? क्या समस्याओं के आने के कारण आपने अपने सपने की ओर बढ़ना छोड़ दिया है या बंद कर दिया है? तो आपको कहना चाहती हूँ यदि दिल में हिम्मत हो उस सपने तक पहुँचने की उस सपने तक पूरा करने के लिए तो सपना जरूर पूरा होता है। आइये आपको सुनाती हूँ हिम्मत की दास्तां। ये कहानी है सन 1938 की एक हंगरी सेना के जवान की जिसका नाम था कैरोली। वो एक पिस्तौल शूटिंग का बेहतरीन खिलाड़ी था और उसका सपना भी यही था की आर्मी में काम करने वाली कैरोली टेक कास्ट। वे एक बेहतरीन पिस्टल शूटर थे। उन्होंने सन् 1938 के नैश्नल गेम्स में बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए प्रतियोगिता जीती थी। उनके प्रदर्शन को देखते हुए पूरे हंगरी वासियों को विश्वास हो गया था कि सन 1940 के ओलिंपिक्स में कैरोली देश के लिए गोल्ड मेडल जीतेंगे। लेकिन सन् 1938 के नैश्नल गेम्स के तुरंत बाद 1 दिन आर्मी ट्रेनिंग कैंप में उनके सीधे हाथ में ग्रेनेड फट गया, जिससे वे निशाना लगाते थे, जिसे उन्होंने बचपन से ही ट्रेंड किया था। और हमेशा के लिए व हाथ शरीर से अलग हो गया। सारा हंगरी गम में डूब गया। उनका ओलिंपिक्स गोल्ड मेडल का सपना समाप्त होने की कगार पर था, लेकिन कैरोली ने हार नहीं माना। उसे ओलिंपिक में गोल्ड मेडल जीतने के अलावा कुछ नहीं दिखाई दे रहा था। हाथ शरीर से अलग होने के बाद भी वह हार नहीं माना। उसने किसी को बिना बताये अपने बाएं हाथ से प्रैक्टिस शुरू की। इसके लगभग 1 साल के बाद सन् 1939 में वो वापस आया जहाँ हंगरी में नेशनल चैंपियन शिप हो रही थी। उसमें हिस्सा लेने। तब तक किसी को पता नहीं था कि कैरोली अपने बाएं हाथ से अभ्यास कर रहा था। तो जैसे दूसरे प्रतियोगियो ने कैरोली को देखा तो सब चौंक गए और फिर उन्हें लगा कि शायद कैरोली यहाँ हमारा हौसला बढ़ाने आया है। सब उस का धन्यवाद करने लगी, लेकिन सब को तब झटका लगा जब करौली ने कहा मैं यहाँ आप लोगों का हौसला बढ़ाने नहीं आया, आप से मुकाबला करने आया हूँ, आप लोगों से लड़ने आया हूँ। उसे गेम्स में भाग लेने की इजाजत मिल गई। वो पिस्टल शूटिंग में भाग लिया और चमत्कार करते हुए गोल्ड मेडल जीता। लोग अचंभित की आखिरी कैसे हो गया जिंस? हाथ से वो 1 साल पहले तक लिख भी नहीं सकता था। उसने इतना ट्रेंड कैसे कर लिया की वो गोल्ड मेडल जीत गया? कैरोली वहाँ तक नहीं रुका। उसका तो बचपन से एक ही सपना था। उसे तो दुनिया का सबसे बेहतरीन निशानेबाज बनना था, इसलिए उसने अब सुन 1940 में होने वाले ओलिंपिक का अभ्यास शुरू कर दिया और फिर से सबको लगने लगा था कि हाँ इस बार यही ओलिंपिक में स्वर्ण पदक जीतेगा। लेकिन शायद किस्मत को यह मंजूर नहीं था। 1940 के ओलिंपिक गेम्स विश्व युद्ध की वजह से रद्द हो गए। लेकिन करौली हार मान जाए ऐसा हो नहीं सकता था। उसने कहा, कोई बात नहीं, यह नहीं तो आने वाले ओलिंपिक 1944 में स्वर्ण पदक जीतूंगा और उसने अपनी मेहनत अभ्यास जारी रखा, लेकिन किस्मत भी उसका बार बार इम्तिहान ले रही थी। 1944 में विश्व युद्ध की वजह से फिर से ओलिम्पिक रद्द हो गए। 1948 में होने वाले ओलंपिक की तैयारियां वो करने लगा और इस बार ओलिंपिक में भाग लिया। उस समय करौली की उम्र अड़तीस साल की हो गयी थी और उसके प्रतिस्पर्धी बहुत ही जवान जोशीले थे। सब अपने बेहतरीन हाथ से मुकाबला कर रहे थे और करौली अपने बाएं हाथ से। फिर भी करौली ने उनका मुकाबला किया और उसने पिस्तौल निशानेबाजी में स्वर्ण पदक जीत लिया। उसने कर दिखाया नामुमकिन को भी मुमकिन और उसका सपना सिर्फ सपना नहीं हकीकत बन गया तो दोस्तों जो सपना आपने अपने जीवन के लिए देखा है। जो लक्ष अपने अपने जीवन के लिए तय किया है, बस उसको पूरा करने के लिए जुड़ जाइए। ज़िंदगी चाहे जीतने इम्तिहान क्यों ना ले। यदि आप कोशिश करते रहेंगे, प्रयास करते रहेंगे और हिम्मत रखे रहेंगे तो ज़ाहिर सी बात है आपका सपना मुमकिन होने से कोई भी नहीं रोक सकता। आप सुन रहे थे? कहानी मोनिका की जुबानी।","Hindi Moral Stories for kids,3D Animated Hindi Moral Stories for kids,Hindi Stories For kids,Hindi kahaniya,moral stories,stories for children,hindi 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स्वतंत्र करेगा तो लोगों का प्रतिउत्तर कुछ इस प्रकार का है। लोग कहते हैं कि हम तो किसी के नहीं हैं, हम तो अब्राहम के वंश से हैं। हम किसी के गुलाम नहीं है। हम कैसे स्वतंत्र हो सकते हैं तो प्रभु कहते हैं कि तुम पात के गुलाम तुम पाप के गुलाम हो और तुम इस पाप की गुलामी से आजाद हो सकते हो। सत्य को जानने के द्वारा तुम सत्य को जानोगे और तुम आजाद हो जाओगे। हर एक पाप से हर एक बुराइ से पाप जो है हमें गुलामी में लेकर जाता है, बनवाई में लेकर जाता है, शैतान की कैद में लेकर जाता है, लेकिन सत्य हमें आजादी को प्रदान करता है, स्वतंत्रता को प्रदान करता है तो क्या है? सत्य सत्य है। प्रभु यीशु मसीह यूहन्ना रचित सुसमाचार अध्याय 14 वचन छे में लिखा है। प्रभु ने कहा मार्ग सत्य और जीवन में ही हूँ। बिना मेरे कोई भी पिता तक पहुँच नहीं सकता। जी हाँ, मेरे प्रिय संपूर्ण मानव जाति के लिए एकमात्र सत्य प्रभु यीशु मसीही हैं, जिन्होंने प्रभु यीशु मसीह को जान लिया। वाहर एक प्रकार के पाप से आजाद हो गया। हर एक बुराइ से आजाद हो गया। बाइबल में ऐसे हम कई उदाहरण पाते हैं। जिन्होंने सत्य को जान लिया और वे आजाद हो गए। हम जानते हैं शाऊल के विषय में शाऊल जो नाम से ही लोग उसके थर थर कांपते थे। साल एक ऐसा व्यक्ति था जो बड़े अधिकार को बड़े पद को रखता था, जो परमेश्वर के लोगों को सताने वाला था, लोगों को मार देने वाला था, लोगों को दंड सजा देने वाला था। लेकिन जीस समय उसके जीवन में सत्य आया। उसका जीवन बदल गया, साहुल पॉलिश बन गया, परमेश्वर का सेवक बन गया। तो लोगों को सुसमाचार सुनने वाला लोगों को जीवन को बचाने वाला बन गया। हम में एक और उदाहरण पाते हैं एक स्त्री का उदाहरण जिसे हम सामरिक स्त्री के नाम से जानते हैं। जिससे समय उसका जीवन पार्क मई जीवन था। उसकी जाति से लोग घृणा करते थे। यहाँ तक कि जब वो पानी भरने आती थी, ऐसे समय आती थी कि लोग कोई उसका सामना नहीं करना चाहते थे। वो एक ऐसे समय में पानी भरने के लिए कुएं पर आती है। उस समय सत्य की मुलाकात उस स्त्री से होती है। और जब सत्य को वह जान जाती है, प्रभु यीशु मसीह को वह जान जाती है, उसका जीवन पूरी तरह से बदल जाता है, वो लोगों को बचाने वाली बन जाती है, वो परमेश्वर की सेविका बन जाती है। जी हाँ, मित्रों जब सत्य हमारे जीवन में आता है, सच हमारे जीवन में आता है, हमारा जीवन बदल जाता है। हम पाप के गुलाम नहीं रहते। हम पाप के अधीन नहीं रहते, लेकिन हम पाप से आजाद हो जाते है। इतिहास इस बात का गवाह है। हर एक प्राणी सत्य की खोज में लगा हुआ है। आज भी हम देखे लोग सत्य को ढूंढ रहे हैं। हर एक जगह सत्य को ढूंढ रहे लोगों ने अपना घर, परिवार सबकुछ छोड़ दिया ताकि वह सत्य को ढूंढ ले। लोग सत्य को ढूंढने के लिए जान देने के लिए तैयार है, लेकिन सत्य को जानना कोई नहीं चाहता है। सत्य क्या है? कहती है सत्य हैं प्रभु यीशु मसीह बाइबल में परमेश्वर का वचन कहता है। परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्यार किया कि उसने अपना एकलौता पुत्र दे दिया जो कोई इस पर विश्वास करेगा। वन नाश नहीं होगा परन्तु अनन्त जीवन को प्राप्त करने। जी हाँ मित्रों प्रभु यीशु मसीह एकमात्र संपूर्ण मानव जाति के लिए सत्य है और जो कोई इस सत्य को जानता है वह आजाद हो जाता है, वो नाश नहीं होता परन्तु अनन्त जीवन को प्राप्त करता है। आइये हम उस सत्य को और अच्छे तरीके से जानने पाए और समझ नहीं पाए और कहने पाए प्रभु आप के सत्य को हम समझने पाए। आपको हम समझने पाए। ताकि हर एक पाप से आज हम आजाद हो जाए और बहुत का जीवन हम जी सके। परमेश्वर के नाम से आप सभी को की।",यह सत्य पर लघु हिंदी उपदेश आपको मुक्त कर देगा "नमस्कार मित्रों, मैं राजेश बावरिया दुआ के घर में आपका स्वागत करते हैं सभी खबरें सुनने वालों को मैं प्यारभरा नमस्कार कहता हूँ आज हम परमेश्वर के वचन पवित्रशास्त्र से अर्थात बाइबल में से प्रकाशितवाक्य की पुस्तक उसका तीसरा अध्याय उसकी 20 वीं आयत पढ़ रहे हैं। यहाँ पर हम इस प्रकार से पाते हैं देख मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूँ। यदि कोई मेरी आवाज सुन कर द्वार खोले तो मैं उसके पास भीतर आकर उसके साथ भोजन करूँगा और वह मेरे साथ अपने वचन के पढ़े जाने में सुने जाने में आशीष दे। ये परमेश्वर का वचन है यहाँ पर प्रभु कह रहे हैं लोधी किया की कलीसिया को वो कलीसिया जो पॉलिसी के द्वारा बनाई गई थी एक कलीसिया, जिससे पर मिश्रा प्रेम भी करते है। वो उसको समझाते हुए कहते हैं, 15 वचन में तेरे कार्यों को मैं जानता हूँ तो ना तो ठंडा है, ना तो गर्म इसीलिए की तो गुनगुना है, ना तो ठंडा है और ना गर्म मैं तुझे अपने मुँह से उगलने पर हूँ प्रिय परमेश्वर की कलीसिया से प्यार करता हैं हमसे प्यार करता है कलीसिया अर्थात बुलाये हुए लोग हम परमेश्वर के चुने हुए बुलाये हुए लोग हैं। परमेश्वर हमसे प्यार करता है परन्तु परमेश्वर कहता है कि मैं तुम्हारे कामों को जानता हूँ। हमारे काम क्या है? वो परमेश्वर की नजर में खुल्लमखुल्ला है, वो देखता है और कहता है की मैं तेरे कामों को जानता हूँ। तेरे कामों से पता चलता है की तू ना तो ठंडा है, ना तो गर्म हैं तो गुनगुना है तो बीच का है, बहुत अच्छा काम नहीं कर रहा, बहुत बुरा काम भी नहीं कर रहा है, लेकिन तू गुनगुना है अपनी कलीसिया से, अपने लोगों से इस प्रकार से कह रहे हैं देख ध्यान दें, मैं द्वार पर खड़ा हूँ। खटखटाता हूँ, तेरे पास आना चाहता हूँ भीतर आना चाहता हूँ प्रमुख हमारे पास आना चाहते हैं, हमारे भीतर आना चाहते है प्रॉब्लम कहाँ है? समस्या कहाँ है, समस्या है, चटकनी अंदर से लगी हुई है किवाड़ दरवाजा अंदर से लगा हुआ है, बाहर से प्रमुख खटखटा रहे हैं। प्रभु कहते है की मैं यदि अंदर आऊंगा, तेरे साथ भोजन करूँगा और तू मेरे साथ। यदि हम अपना सर्वोच्च परमेश्वर को देते हैं, सर्वप्रथम परमेश्वर को देते हैं। बाइबल कहती हैं, प्रभु भी हमें वायदा करता है की तू भी मेरे साथ करेगा और परमिशन अपनी चीजें हमारे लिए खोल देता है। हाँ प्रयोग यदि आज हमारे जीवन में कुछ ऐसी बातें हैं जिसके कारण से हम प्रभु को अंदर आने नहीं दे रहे हैं, वो दरवाजे पर बार बार खड़ा खड़ा हुआ खटखटाता है, कहता है भीतर आना चाहता हूँ। आज यदि किसी के जीवन में भी इस प्रकार का जीवन चल रहा है की वो खुद जानता है की वो अच्छा नहीं है, बहुत अच्छा नहीं है, बहुत खराब भी नहीं है, लेकिन गुनगुन है कहीं ना कहीं कुछ गुनगुना बना चुका है। तो आइए हम फिर से सरगर्म हो फिर से प्रभु के काम में लगे हैं। उठे हिम्मत बांधे परमेश्वर हमें आशीष देना चाहता है, वो हमारे अंदर आना चाहता है, वो बार बार खटखटाता है। इसका मतलब है वो हमसे प्यार करता है। प्रिय प्रभु, बहुत आशीष दिन आपके लिए शुभ हो और यूं ही सुनते रहे। पढ़ते रहे प्रभु आपको बहुत सीधे गॉड ब्लश","यीशु ने कहा, देख, मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूं। यदि कोई मेरा शब्द सुनकर द्वार खोलेगा, तो मैं भीतर आकर उसके साथ भोजन करूंगा, और वह मेरे साथ (प्रकाशितवाक्य 3:20)।" "खबरी सुनने वाले को राजेश का जैम एसी की दुआ के घर में हम आपका स्वागत करते हैं। आज हम परमेश्वर के वचन में से प्रार्थना के विषय में सीखने जा रहे हैं। प्रभु यीशु ने प्रार्थना के विषय में बहुत ही खूब कहा है। लू कराची सुसमाचार उस के 18 अध्याय की एक से लेकर सात वचन में हम देखते हैं। इस मशीन में एक दृष्टांत कहा, एक कहानी सुनाई और उस वो कहानी इस प्रकार से है। फिर उसने इसके विषय में की नित्य प्रार्थना करना चाहिए और यह होना छोड़ना चाहिए। उसने यह दृष्टान्त कहा कि श्रीनगर में एक न्याय रहता था जो ना परमेश्वर से डरता था, ना किसी मनुष्य की परवाह करता था। उसी नगर में एक विधवा भी रहती थी जो उसके पास आकर कहा करती थी। मेरा न्याय चुकाकर मुझे मुद्दा ही से बचा लें। उसने कितने समय तक तो ना माना परंतु अंत में मन में विचार करके कहा यद्यपि मैं से डरता हूँ ना मनुष्यों की कुछ परवाह करता हूँ तो अभी ये विधवा मुझको सताती रहती है इसलिए मैं उसका न्याय चुकाऊंगा। कहीं ऐसा ना हो की घड़ी घड़ी आकर अंत में मेरी नाक में दम कर दे। प्रभु ने कहा, सुनो यह अधर्मी न्याय क्या कहता है? सो क्या पर मि सर अपने चुने हुए के न्याय ना चुकाएगा जो रात दिन उसकी दुहाई देते रहते हैं और क्या वह उनके विषय में देर करेगा? प्रिय कहानी में हम लोग इस बात को सीखते हैं ये विधवा के पास। और कोई नहीं था। ना कोई जवान बेटा। विधवा है तो पति भी जवानी में खत्म हो चुका। आज उसके पास एक बहुत बड़ा मुद्दा है उसके जीवन का। वो शायद उसका जमीन किसी ने कब्जा कर लिया है और वो चाहती है कि किसी रीती से वो मुद्दई से बचा लें कि इस केस से बच जाएं और वो उसका जमीन, जायजाद, उसके जीवी जीविका का साधन उसे छीन ना लिया जाए। इसके लिए वो है एक व्यक्ति के पास आती है और लिखा है कि वो अन्याय व्यक्ति था। वो ना मनुष्य से डरता था, ना परमिशन से डरता था। वो किसी की कोई परवाह नहीं करता था और न्याय जरूर था लेकिन उसको उसके लिए सब कुछ पैसा ही हुआ। बाइबल बताती हैं कि वो बार बार बार बार उसके पास आने लगी। वो शायद अपना दरवाजा खोलता था तो सामने वो खड़ी रहती थी। वो बाहर जाता, टहलने तो सामने खड़ी रहती, वो खाने खाने के लिए जाता। जो कुछ भी काम करता है वो सामने खड़ी रहती थी और वो बार बार जब प्रार्थना करती रही जब उसे विनती करती रही। उसका कोई ना होने के बावजूद भी उसका पैसे लगता। कुछ भी नहीं रहा उसके बावजूद भी उसकी लगातार की प्रार्थना उस अन्याय व्यक्ति के मन को पिघला दी। प्रिय परमेश्वर, प्रभु यीशु मसीह इस प्रकार से हमसे कहते हैं क्या परमेश्वर और इस अन्याय व्यक्ति को दोनों की तुलना यदि की जाए तो क्या हमारा परमिशन इस अन्यायी व्यक्ति से? भी ज्यादा बुरा है क्या? नहीं परमिशन कहता है वो है तो दया का सागर है। वह हमसे कहता है की तुम मुझसे मांग और मैं तेरी सुनकर तुझे बड़ी बड़ी बाते बताऊँगा जो तुम अभी नहीं समझते। हाँ परमेश्वर हमें आशीष देना चाहता है जो जो उसके लिए लगातार दुआ करते हैं, जो उसे लगातार प्रार्थना करते हैं, दुहाई देते रहते हैं, दिन रात दुहाई देते रहते हैं, क्या उनको ये नहीं सुनेगा, क्या उनके विषय में देर करेगा? पर उन्होंने कहा क्या उनके विषय में देर करेगा? जवाब है नहीं, हमारा परमेश्वर तुरंत हमारा जवाब देगा। हमारी प्रार्थनाओं को सुनेगा। प्रार्थना में खेत में लगे रहे। धीरज रखें प्रार्थना। धीरज रखे हमारे लिए कुछ उत्तम परमिशन नहीं रख छोड़ा है। हम एक छोटी सी प्रार्थना करने पाए। हे प्रभु मुझे प्रार्थना में धीरज में और लगी रहना सीखा दे ना केवल ये बातें जिनके लिए मुझे प्रार्थना करना है परंतु वचन में दी गई सारी प्रतिज्ञाएं भी सीखा ताकि प्रार्थना करते समय उनमें मैं दावे कर सकूँ। अपनी प्रार्थना के द्वारा मेरी सहायता कर। मैं अपने हृदय से महसूस करने वाला हो जाऊं, मैं प्रार्थना को उत्तर पाने के लिए अपने समक्ष रख सकूँ। जब मैं दिनों दिन प्रार्थना करूँ, आप मुझे उत्तर देने में विलंब कर रहे हैं तो मुझे समझ दीजिए, प्रभु की मेरे लिए बेहतर कुछ रखा हुआ है। सर गीता जीतने लोग आज यहाँ पे है इस प्रार्थना को सुन रहे हों, उन्हें छू लीजिये अनुग्रह और आशीष से भर दीजिए प्रभु यीशु मसीह के मीठे पवित्र नाम से माँगता हूँ।",प्रभु यीशु ने कहा कि प्रतिदिन प्रार्थना करो और हिम्मत मत हारो "दोस्तों कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता, हमारी सोच ही उसे छोटा या बड़ा बनाती है। बड़ी सफलता के पीछे छोटी शुरुआत जरूर शामिल होती है। मेरे कहने के मतलब को आप इस कहानी के बाद जरूर समझ जाएंगी। आज हम सुनने जा रहे हैं सरोज प्रजापति के द्वारा लिखी गई कहानी मिट्टी के घड़े। वीरसिंह कुमार हरियाणा दिल्ली बॉर्डर से सटे एक छोटे से गांव में अपनी माँ, पत्नी और बेटे सोहित के साथ रहता था। पिता की असामयिक मृत्यु के कारण बीच में ही अपनी पढ़ाई छोड़ उन्होंने अपने पुश्तैनी काम को संभाल लिया था। वीर सिंह के हाथों का कमाल कहें या उसकी अपने हुनर पर पकड़ की। उसके हाथों के बने घड़े और सुराही का पानी इतना ठंडा रहता था कि वो फ्रिज को भी मात देता था। साथ ही उसके बनाए मिट्टी के बर्तन ज्यादा मजबूत और टिकाऊ होते थे। इसी कारण आसपास के गांवों में उसके बनाए मिट्टी के बर्तनों की मांग इतनी तेजी से बढ़ती जा रही थी, उसने भी अब अपने काम को धीरे धीरे बढ़ाना शुरू कर दिया था। वीर सिंह ने बेटे को पांचवीं कक्षा तक गांव में ही पढ़ाया था क्योंकि सोहित पढ़ाई में अच्छा था लेकिन वहाँ कोई बढ़िया स्कूल नहीं था। इसलिए उन्होंने का दाखिला शहर की प्रतिष्ठित स्कूल में करवा दिया। वीरसिंह कम पढ़ा लिखा जरूर था लेकिन उसकी सोच ऊंची थीं। तभी तो जहाँ गांव में सभी के कई कई बच्चे थे, उसने केवल एक संतान ही की क्योंकि वह जानता था कि इस कमाई में वह एक बच्चे की परवरिश ढंग से कर सकता है। सोहित ने भी कभी अपने पापा को निराश नहीं किया था। वो पढ़ाई लिखाई के साथ साथ उनके काम में भी हाथ बंटाता था। किंतु जब से वह ग्यारहवीं कक्षा में आया था, वीर सिंह को उसके स्वभाव में कुछ परिवर्तन नजर आने लगा था। पहले तो उन्हें लगा शायद किशोरावस्था के कारण या पढ़ाई लिखाई के बढ़ते दबाव की वजह से वह चिड़चिड़ा हो रहा है। इसलिए उन्होंने इस बात को नज़रअन्दाज़ कर दिया लेकिन धीरे धीरे सोहित की फरमाइश बढ़ती ही जा रही थी। महंगे कपड़े, जूते, यहाँ तक कि वो अब उन्हें कार खरीदने के लिए कहने लगा था। उन्हें उसे कई बार समझाया भी। कि हमारी हैसियत इतनी नहीं की कार खरीदे और कार के हमें जरूरत भी क्या है? लेकिन सोहित तर्क देता है कि स्कूल में उसके सब दोस्तों के घर में कार है, मुझे नहीं अच्छा लगता आप मेरे स्कूल बस से आए वीर सिंह समझ गया था कि बेटा नए जमाने की हवा में बहकर उसके सिखाये संस्कार को भूलने लगा है। वो अपनी तरफ से उसे समझा बुझाकर थक चुका था। और किशोर बच्चों को ज्यादा कुछ कह भी नहीं सकता था क्योंकि वह है एक अलग ही दुनिया में जीते हैं। जहाँ सारे तर्क वितर्क फेल हैं। अब तो सोहित अपने पापा के काम से भी काटने लगा था। लेकिन 1 दिन तो उसने हद ही कर दी। जब उन्होंने उसे फ़ोन पर अपने दोस्त को यह कहते सुना कि उसके पापा बिज़नेस के सिलसिले में बाहर गए हुए यह सुन उन्हें बड़ा धक्का लगा कि उनका बेटा ही उनके काम को छोटा समझने लगा है। कल तक जो खुद नन्हें हाथों से चाक चलाया करता था, आज उसे अपने दोस्तों को उस काम के बारे में बताने में शर्म आने लगी है। अगले दिन जब सोहित स्कूल से आया तो वह कुछ परेशान सा था। पूछने पर उसने बताया, स्कूल से एक प्रोजेक्ट मिला है कि किसी ऐसे व्यक्ति का इंटरव्यू लेकर आना है, जिसने अपने दम पर अंधेरों से निकलकर अपनी पहचान समाज में बनाई हो। वीर सिंह ने कहा, बस इतनी सी बात के लिए परेशान हो रहा है। रविवार को मेरे साथ चलना मैं तुम्हारा प्रोजेक्ट पूरा करवाता हूँ। आप जानते हैं क्या ऐसे व्यक्ति को कहा रहते है? वो? सोहित ने उत्सुकता से बोला। क्योंकि उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसके पापा किसी ऐसे इंसान को जानते होंगे। वीर सिंह ने मुस्कुराते हुए बोला रविवार को तुम्हारे अपने सारे सवालों के जवाब मिल जाएंगे। रविवार को वह अपने पापा के साथ उस व्यक्ति से मिलने उसके घर पहुंचा। उस बड़े से बंगले को देख सोहित हैरान था। थोड़ी ही देर में एक नौकर ने उन्हें ड्राइंग रूम में बिठाया। उस कमरे में अनेक ट्रॉफियां और मेडल लगे हुए थे और उनके साथ एक व्यक्ति की तस्वीर भी थी। वीरसिंह ने उससे कहा। यह तस्वीर देख रहे हो? यह हैं उनके बचपन का मित्र रमेश जिससे मैं तुम्हें मिलवाने लाया हूँ हैरानी से उनकी ओर देखने लगा। इतनी देर में एक छोटे से कद और सांवले रंग का व्यक्ति जिसने साधारण सा कुर्ता पजामा पहन रखा था, बाहर आया। और बहुत गर्मजोशी से उनसे मिला। वीर सिंह ने सोहित का परिचय करवाया और उसके प्रोजेक्ट के बारे में बताया। तो वो हंसकर बोला। अरे असली हीरो तो तुम्हारे पापा है और तुम मेरा इंटरव्यू लेने आये हो। सोहित को लगा कि शायद वो मजाक कर रहे। इसलिए वो झिझकते हुए बोला नहीं अंकल जी हीरो तो पापा है ही लेकिन मुझे ऐसे व्यक्ति का इंटरव्यू लेना है जिसने समाज में अपने दम पर पहचान बनाई हो। तो क्या तुम्हारे पापा ने अपने हुनर और लगन के दम पर समाज में अपनी पहचान नहीं बनाई? ज़रूरी नहीं है कि तमगे मिले या अखबार में फोटो छपे। इस में तुम्हारी गलती नहीं है बरखुरदार अपितु ये हमारे देश की विडंबना है कि हमारे देश के असली हीरो ऐसे ही गुमनामी के अंधेरों में खोए रह जाते हैं और उन्हें वो मान सम्मान नहीं मिल पाता जिसकी वो असली हकदार हैं। उनकी ये बातें सुनकर की आंखें शर्मिंदगी से झुक गई। तभी चाय नाश्ता आ गया। वीर सिंह और उनके मित्र अपने पुराने किस्सों में मग्न हो गए और सोहित की आंखें फिर से कमरे का मुआयना करने लगी। तभी उसकी नजर इन पुरस्कारो के बीच टंगी झाड़ू पर गयी। जिसपर फूल माला भी चढ़ी हुई थी। उसे बड़ी हैरानी हो रही थी कि इतने सुंदर कमरे में उन्होंने ये झाड़ू क्यों लगा रखी है भला? वो इस बारे में उनसे पूछना चाहता था, लेकिन हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था, रमेशजी ने उसके चेहरे के भाव पढ़ लिए। सोहित तुम्हारे जिज्ञासा का कारण वो झाड़ू है ना सोहित ये सुनकर मानो उसकी चोरी पकड़ी गयी हो। वो बोला। नहीं अंकल, ऐसी कोई बात नहीं है, मैं तो बस यही ना कि ये झाड़ू यहाँ क्यों टंगी है तुम पहले इंसान नहीं हो अक्सर अंजान लोग मुझसे इस बारे में जरूर पूछते हैं। तुम्हारे पापा को तो पता है। शायद उन्होंने तुम्हें नहीं बताया होगा चलो मैं तुम्हारी उलझन दूर करता हूँ ये जो तुम आलीशान बंगला मान सम्मान देख रहे हो, वो सब इसकी बदौलत ही है। एक झाड़ू की वजह से मैं समझा नहीं अंकल जी। सोहित ने हैरानी से पूछा, रमेशजी ने वीर सिंह की और मुस्कुराते हुए देखा और बोला, बेटे, मैं जीस समाज से आता हूँ। उन लोगों का पेशा साफ सफाई करना है। मेरे पिता एक सफाई कर्मचारी थे और माँ लोगों के घरों से कूड़ा उठाती थी। उस समय शायद ये हमारी बिरादरी में किसी ने अपने बच्चे को पढ़ाने की सोंची हैं। किंतु मेरे माता पिता ने हम बहन भाइयों को स्कूल भेजा। तुम्हारे पापा को तो पता ही है उस समय गांव में छुआछूत कितनी फैली हुई थी? बच्चे मुझे अपने पास नहीं बैठने देते थे, ना ही मुझसे बात करते थे। तब तुम्हारे पिता ने आगे बढ़कर मुझसे मित्रता की। ये बात मैं कभी नहीं भूल सकता। हम दोनों ही पढ़ाई में एक दूसरे की खूब मदद करते थे। बारहवीं तक हम साथ पड़े। लेकिन तुम्हारे दादाजी की मृत्यु के कारण इसे बीच में ही पढ़ाई छोड़नी पड़ी। नहीं तो आज ये भी किसी ऊंचे पद पर होता। इसके बाद मैंने कॉलेज में ऐडमिशन लिया। सफर इतना आसान नहीं था। मेरी काबिलियत की सभी तारीफ करते हैं, लेकिन जैसे ही उन्हें मेरे काम धंधे के बारे में पता चलता है, सब मुझे हें दृष्टि से देखने लगते हैं। लेकिन मैंने मन में ठाना हुआ था की कभी भी अपने माता पिता के पेशे को किसी से नहीं छुपाऊंगा अगर मैं ऐसा करता हूँ तो उनके काम और संघर्ष का इससे बड़ा अपमान हो ही नहीं सकता था। और इसका अर्थ तो यही होता है ना कि और लोगों की तरह। मैं भी इस काम को बुरी नजर से देखता हूँ। मेरा मानना था कि कोई भी काम छोटा नहीं होता। चोटी होती है लोगो की सोच। इसलिए मैं लोगों की बातों को नज़रअन्दाज़ करके आगे बढ़ता रहा। बस मेरे मन में एक ही धुन सवार थी। कि जो लोग आज हम एहि नजरों से देखते है, कल वो हमारी मेहनत और काम को भी सम्मान दें, क्योंकि शिक्षा केवल अमीरों की विरासत नहीं। बल्कि इस पर सबका अधिकार है। आज इसी शिक्षा और अपने माता पिता के अथक परिश्रम और आशीर्वाद से मैंने उनके सपने को साकार कर दिखाया है। मैं आज भी अपने ऑफिस में खुद सफाई करता हूँ और इसे करने में मुझे कोई शर्म नहीं। साथ ही हर सप्ताह अपने गली मोहल्ले में सफाई अभियान चलाता हूँ, जिसमें सभी लोग बढ़ चढ़कर के हिस्सा लेते हैं। अब तो तुम्हें अपने सवालों का जवाब मिल गया होगा। हाँ ये मुझे नहीं पता कि तुम्हें अपने प्रोजेक्ट के लिए इससे कुछ मदद मिल पाएगी या नहीं? नहीं अंकल मुझे अपने प्रोजेक्ट के लिए एक नहीं दो कहानियाँ मिल गई है और दो असली हीरो दो हीरो वीर सिंह ने पूछा, हाँ पापा पहले हीरो आप हैं और दूसरे अंकल मुझे माफ़ कर दो पापा मैंने आपका दिल दुखाया है नहीं बेटा तुम्हें अपनी गलती का एहसास हो गया, इससे बढ़कर मेरे लिए कुछ नहीं और तुम कच्चे मिट्टी के घड़े से तरीके ही हों। उन्होंने प्यार से सूहीत के सर पर हाथ रखते हुए कहा दोस्तों यह कहानी उन युवक युवतियों के लिए एक छोटा सा संदेश देती हैं जो गांव छोटे कस्बे से बड़े शहरों में अपने सपने पूरे करने आते हैं। किंतु यहाँ की चकाचौंध में अंधे हो अपनी जन्मभूमि जन्मदाताओं के जीवन संघर्ष को भूल जाते हैं और उनके और उनके काम धंधों को ही दृष्टि से देखने लग जाते हैं। इसलिए जो काम भी हमारे पास है उसे आनंद के साथ करें, अपनी शक्ति के साथ करें और कभी भी कार्य को करने में शर्म महसूस ना करें, क्योंकि कहाँ है? कोई भी कार्य छोटा या बड़ा नहीं होता है। हमारी सोच ही उसे छोटा या बड़ा बनाती है। आज समाज में सब्जी देने वाले सफाई कर्मचारी, दूधवाले, न्यूस पेपर वाले यदि नहीं हो तो समाज में रहने वाले व्यक्तियों का जीवन मुश्किल में पड़ सकता है। संघर्ष में पड़ सकता है। उनके द्वारा दी जाने वाली सेवा भी एक बड़ा प्रयास है। एक बड़ा कार्य है, सब के कार्यों की सराहना करें। स्वयं में अपने कार्य को भी सराहना दे तो सुनते रहे। कहानी मोनिका की जुबानी।","प्रेरक कहानियों में हमें ऊपर उठाने, हमें मुस्कुराने, प्रोत्साहित करने, प्रेरित करने और हमें जीवन के मूल्यवान सबक सिखाने की क्षमता होती है। यहाँ कुछ प्रेरक कहानियाँ हैं जो उम्मीद है कि आपको उस प्रेरक भावना को जगाने में मदद करेंगी। वे हमें आशा की सशक्त भावना देते हैं, कि यदि 'वह' ऐसा कर सकता है, तो मैं भी कर सकता हूँ।" "हैलो दोस्तों मैं लेकर आई हूँ आज आपके लिए एक सुप्रसिद्ध लेखक स्वीट मॉडर्न के द्वारा लिखी गई पुस्तक एव्रीमैन किंग का हिंदी अनुवाद विश्वास करती हूँ कि आपको पिछली सारी ऑडिओ उस पसंद आ रही है, आपके अच्छे कमेंट्स के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। तो दोस्तों आज हम सुनेंगे इसका सोलवा भाद एक्स आपूर्ति कई मनुष्य उच्च योग्यता और ज्ञान रखते हैं, किंतु उन्हें कार्य करने की शुरुआत का साहस नहीं होता क्योंकि उनको इस बात की शिक्षा नहीं दी गई कि वे किस प्रकार अपने अव्यवों का उपयोग करके योग्य और विद्वान बन सकते हैं, यद्यपि यह कोई कठिन बात नहीं होती, केवल उन्हें साहस नहीं होता कि वे ऐसे काम शुरू कर दें, जिन्हें करने के वे हर प्रकार से पात्र होते हैं और जिन्हें आरंभ करके वे पूर्ण भी कर सकते हैं। यदि बचपन में समुचित शिक्षा दीक्षा दी जाए तो बहुत कम लोग असफल रहे। जो लोग इस संसार में पड़े बड़े काम करते हैं, उनकी कल्पना शक्ति बहुत प्रगतिशील होती है। वह कल्पना में ही अपने इच्छाओं की पूर्ति का चित्र खींच सकते हैं और उसे हरदम अपनी दृष्टि के सामने रख सकते हैं। हम उन लोगों की अव्यवहारिकता की बहुत बातें सुनते हैं जो मात्र काल्पनिक घोड़े दौड़ाते हैं, परंतु विश्व इतिहास की हर महत्वपूर्ण खोज, हर आविष्कार और हर कारनामा ऐसे स्वप्न देखने वालों की आभारी हैं। ऐसे लोगो का जो घटना से पहले उसकी कल्पना कर सकते थे जो मानवता की आवश्यकताओं का चित्र अपने मस्तिष्क में खींच सकते थे। जिन लोगों की कल्पना शक्ति निर्बल होती है या होती ही नहीं जो लोग कल्पना तट पर चित्र खींचने के पात्र नहीं होते, जो लोग अपने आदर्श का केवल धुंधला और मलिन चित्र खींच सकते हैं, वे लोग बड़े कारनामे नहीं दिखाया करते। हम एज इस काम को करने की इच्छा है। उसका अपने मस्तिष्क में काल्पनिक चित्र बनाना और काम की अवधि में इस पूर्ण चित्र को हरदम आँखों के सामने रखना एक वास्तविक शक्ति है या एक ऐसा नमूना हमारी आँखों के सामने कर देता है जिसके इर्द गिर्द हमारे समस्त उच्च उद्देश्य केंद्रित हो जाते हैं। यह शक्ति हमारे जीवन में अनुशासन और शिक्षण उत्पन्न करती है और एक कार्यक्रमानुसार। कार्य करने में हमारा पथ प्रदर्शन करती है। जहाँ तक संभव हो बच्चों को बचपन से ही अपने सपनों और कल्पनाओं का सही चित्र खींचने का ढंग सीखाना चाहिए। उन्हें बताया जाए कि पहले मस्तिष्क में प्रत्येक वस्तु की रचना का चित्र जगाये, उसी प्रकार जैसे की एक भवन निर्माता निर्माण आरंभ करने से पहले भवन का चित्र अपने दिमाग में बना लेता है। बालकों को उनके अपने विचार अनुसार सूत्रण और सुंदर और भव्य हवाई किले बनाने और उनकी कल्पना करने और स्वप्न देखने का साहस उत्पन्न करना चाहिए। उसी प्रकार वह युवा होकर कर्मभूमि में अधिक प्रभावशाली कार्य कर सकेंगे जो इस्थिति आप पैदा करना चाहते हैं। जिंस मानसिक शक्ति को बढ़ाना चाहते हैं। अपने जीवन की साधारण स्थिति में जो परिवर्तन आपका इक्षित हो और जीस वस्तु को प्राप्त करने की अभिलाषा। आपके हृदय में अंगड़ाई ले रही है, उसका सही मूल्यांकन करना दूभर है। किंतु यदि आप अपने उद्देश्य का चित्र, साहस, सफाई और स्थिरता के साथ सामने रखेंगे तो वह चित्र आपके हृदय पर अंकित हो जाएगा और उठते, बैठते, लेटते, सोते, जागते हर समय आपके सम्मुख रहेगा और आप जीस प्रकार के इस स्त्री या पुरुष बनना चाहेंगे? आपके जीवन के अंग वैसा ही आदर्श प्रस्तुत करने में व्यस्त हो जाएंगे। अधिकतर लोगों के बार बार यह शब्द दोहराने से बड़ी सहायता मिलती है। मैं योग्य हूँ, प्रसन्न हूँ, मुझमें कोई कमी नहीं। मुझे एक पूर्ण और सफल जीवन का निर्माण करना है। मस्तिष्क में अपनी पूर्ति का चित्र रखने से आश्चर्यजनक सहायता मिलती है। इसके विपरीत छोटा, हीन और घृणापूर्ण चित्र निराशा और हतोत्साहित का कारण हुआ करता है और विशेषकर चिंता और पीड़ा और भी हमें हतोत्साह कर देता है। कोई व्यक्ति भी उस समय तक सफल, स्वस्थ्य और निरोग नहीं हो सकता जब तक कि वह अपने दिमाग में निराशा, लाचारी और रोग का चित्र बनाए रखता है। हमें चाहिए कि जैसा हम बनना चाहते हैं, वैसा ही अपने आप को समझें। यदि हम पूर्ण रूप से मानसिक और शारीरिक आरोग्य करना चाहते हैं या रहना चाहते हैं तो हमें अपने आपको पूर्ण सवस्थ और बलशाली समझना चाहिए, क्योंकि हमारे शरीर के अव्यव और दिमाग के अंग हमारे इस काल्पनिक चित्र को ही वास्तविक रंग में प्रस्तुत करते हैं, जिसका हम स्वप्न देख रहे होते हैं। अपने दिमाग में अपना अपूर्ण। हीन घृणापूर्ण और शिथिल चित्र का अंकन करना पाप है। आप शारीरिक और मानसिक रूप से जैसा बनना चाहते हैं वैसा ही चित्र अपने सामने रखें। आपकी शारीरिक और मानसिक दशा उस चित्र से चाहे कितनी ही भिन्न क्यों ना हो। यदि आप इस काल्पनिक चित्र को हरदम अपने सामने रखेंगे तो आपका नकारात्मक चित्र स्वमेव आपके दिमाग से लुप्त हो जाएगा। यदि आप अपने शरीर का अपने अंतर साथ समझे। तो आपको आश्चर्यजनक सहायता मिले गी क्योंकि विज्ञान हमें बताता है। शरीर के काम अधिक सभी अवयव समझ बूझ रखते हैं। हड्डियाँ और पुट्टी ना केवल विनिमय प्रकट करते हैं बल्कि समझ बूझ और बुद्धि और दूसरे लक्षण भी व्यक्त करते हैं जिससे समय जीस क्षण हम कोई महान कार्य करने का संकल्प करते हैं। उसी समय हमारे आंतरिक अव्यय हमारी सहायता करने के लिए दौड़ते हैं और हमारे निश्चय को पूर्ण करने के लिए हमारी सहकारी और सहायक होते हैं। तो दोस्तों आज की ऑडियो आपको कैसी लगी हैं? मुझे अपने विचार और अपने सुझाव कमेंट करके जरूर बताइए। यदि पसंद आई है तो उसे लाइक करना बिल्कुल ना भूलें। अपने मित्रों के साथ अपने सहयोगियों के साथ इसे शेयर जरूर करें और अगले भाग में मैं फिर से उपस्थित होंगी। तब तक के लिए सभी को नमस्कार","यह ऑडियो स्वेट मार्डन द्वारा लिखी गई किताब एवरी मैन ए किंग से लिया गया है जिसका अनुवाद है खुशी से कैसे जीना है आप इस ऑडियो को सुनकर अपने जीवन में निराशा से बाहर आ सकते हैं और कई आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं इसमें आपको हिंदी ऑडियोबुक, हिंदी ऑडियोबुक मिलेगी , हिंदी में ऑडियोबुक, प्रेरक ऑडियोबुक, प्रेरक ऑडियो, सर्वश्रेष्ठ हिंदी प्रेरक ऑडियोबुक, हिंदी में सर्वश्रेष्ठ प्रेरक ऑडियोबुक, हिंदी में सबसे बड़ी ऑडियोबुक, हिंदी में प्रेरणादायक ऑडियोबुक, हिंदी में प्रेरणादायक ऑडियोबुक, हिंदी में जीवन बदलने वाली ऑडियोबुक, हिंदी ऑडियोबुक ऑनलाइन, #हिन्दीऑडियोबुक, #मोटिवेशनलऑडियोबुक , #inspirationalaudiobookinhindi," "सभी विश्वासी भाई बहनों को राजेश काज एम ए सी की। दुआ के घर में आपका स्वागत है। आज हम प्रार्थना कैसे करें असरदार प्रार्थना के लिए सात आवश्यक बातों को हम सीखेंगे प्रार्थना परमेश्वर से बातें करना है। बाइबल हमें बताती है सभी परमेश्वर के दास दासी प्रार्थना करते थे। क्योंकि प्रार्थना इस धरा की सबसे बड़ी सामर्थ है डॉक्टर भी जब किसी बीमार को चंगा नहीं कर पाते तो कहते हैं कि अब दुआ करें। क्योंकि दावा नहीं लग रही है प्रार्थना योद्धा के आदर्श के रूप में हम प्रभु यीशु मसीह को पाते हैं। लुक अच्छी सुसमाचार उसके पांचवें अध्याय के 16 वचन में पाते हैं। परंतु प्रभु यीशु मसीह जंगलों में से अलग जाकर प्रार्थना करते थे। प्रभु यीशु भोर को तड़के प्रार्थना किया करते थे, शाम को प्रार्थना करते थे, अनेक बार पूरी रात भी प्रार्थना किया करते थे। यह बात उनके इससे सिग्नल भी भली भांति जानते थे। इसलिए उन्होंने कहा, प्रभु हमें प्रार्थना करना सिखाइए। उन्होंने ये नहीं मांगा की प्रभु हमें चमत्कार करना सिखायें, जैसे कि प्रभु ने अद्भुत चमत्कार भी किये थे। प्रभु यीशु ने उन्हें सिखाया इसी रीती से प्रार्थना किया करो। ये हमारे पिता तू जो स्वर्ग में है तेरा नाम पवित्र माना जाए तेरा राजा भी जैसी तेरी इच्छा स्वर्ग में पूरी होती है, वैसे ही पृथ्वी पर भी हो। हमारे दिनभर की रोटी आज हमें दें और जीस प्रकार हमने अपने अपराधियों को क्षमा किया है, वैसे ही तो भी हमारे अपराधों को क्षमा कर हमें परीक्षा में नाला परन्तु बुराइ से बचा क्योंकि राज्य पराक्रम और महिमा सदा तेरी हो। आमेन इस रीती से प्रभु ने उन्हें सिखाया। इस प्रार्थना में हम साथ मुख्य बातों को देखते हैं। सबसे पहली बात जो है कि अपने परमेश्वर को जाने जिससे हम दुआ कर रहे हैं जिससे हम बातें कर रहे हैं, प्रार्थना कर रहे हैं वो हमारा स्वर्गीय पिता हैं जिसके जिसने सारे संसार को सजा है बनाया है। वह सुनता है, उसने हमें कान दिए हैं, उसके भी कान है। यदि हमारी कोई सुनने वाला ही ना हो तो हम प्रार्थना क्यों करेंगे या किस्से करेंगे? धन्यवादी हूँ धन्यवाद दे अनेक बार हमारे पास शब्द ही नहीं होते प्रार्थना में बोलने के लिए। आप केवल धन्यवाद भी दे सकते हैं। लगातार धन्यवाद देना हमारे मन को हल्का कर देता है और शांत कर देता है। हर एक बात छोटी से छोटी बातों के लिए भी परमिशन का धन्यवाद देना प्रारंभ करें। तीसरी मुख्य बात यह है कि परमेश्वर की मर्जी को जानने के लिए प्रार्थना करें। प्रभु यीशु ने अपनी प्रार्थना में सिखाया है की तेरी मर्जी तेरी इच्छा पूरी हो। हमें अपनी मर्ज़ी या इच्छा को परमेश्वर में थूकना नहीं चाहिए, बल्कि हमारे जीवन में प्रभु की मर्जी पूरी हो, ऐसी मांग करनी चाहिए। हमारी योजना या इच्छा हो सकता है की छोटी या सीमित हो परन्तु परमेश्वर ने जो हमसे प्यार करता है, उसने हमारे लिए बड़ी योजनाएं बनाई हैं और भी योजनाएं हानि की नहीं वरन लाभ की है। इसलिए उसकी इच्छा पूरी हो ऐसी प्रार्थना करें। चौथे बिन्दु में हमलोग देखते है की अपनी आवश्यकताओं को परमिशन के पास रख सकते हैं। पहले हमने जब इस प्रकार से कहा कि प्रभु ने कहा आज हमारी आज की रोटी हमें दे। परमेश्वर की इच्छा को मांगने के बाद आप अपनी आवश्यकताओं को भी परमेश्वर के सामने रख सकते हैं। इसका मतलब यह नहीं कि परमेश्वर आपकी आवश्यकताओं को जानता ही नहीं, वो हमारी सारी आवश्यकताओं को पहले से ही जानता है। लेकिन बाइबल में हम पाते हैं की की तुमने मांगा नहीं, इसलिए पाया नहीं। प्रभु ने जो सिद्धांत बनाया है, उस सिद्धांत के कारण की मांगो तो तुम्हें दिया जाएगा। हमें अपनी आवश्यकताओं को भी परमिशन को बताना चाहिए। उसके चरणों में रखना चाहिए। पांचवां बिंदु है कि हमें अपने अपराधों के लिए क्षमा मांगना चाहिए, अपने अपराधों के लिए क्षमा मांगें। अनेक बार जाने अनजाने हमारे जीवन में वो बातें निकलती है जो यहाँ हो जाती है जो परमेश्वर को नहीं भाँति इसलिए हमें परमेश्वर से अपने अपराधों के लिए क्षमा मांगना चाहिए। असरदार प्रार्थना में ये पांचवा पहलू है। परमेश्वर से प्रार्थना करें की आप भी लोगों को क्षमा कर सके। छठवां हैं परमेश्वर के वचनों को दावा करते हुए प्रार्थना करें प्रभु के वचन बाइबल की प्रतिज्ञाएँ हर एक विश्वासी और प्रार्थना करने वालों के लिए यदि हम उन्हें जानते हैं और उसे बोलकर प्रार्थना करते हैं वो बहुत ही प्रभावशाली प्रार्थना होती है। इसके लिए हमें परमेश्वर के वचनों को स्मरण करना चाहिए। याद करना चाहिए, पढ़ना चाहिए, बार बार कंठ से करना चाहिए। सातवाँ और आखिरी बिंदु है, के नाम से प्रार्थना करें प्रभु ईसा मसीह ने कहा देखो धरती और आकाश का सारा अधिकार मुझे दिया गया है प्रभु इस मशीन ने दावा किया कि जो कुछ तुम पिता से मेरे नाम से मांगोगे वो सब कुछ तुम्हें मिलेगा। प्रभु ईसा मसीह ने सारे मानव जाति के लिए अपना लहू बहाया है। उसने इस धरती पर अपने आप को दे दिया है। उसका नाम सारे नामों से ऊंचा नाम है। आकाश के नीचे और धरती के ऊपर केवल एक ही नाम दिया गया है जिससे हम उद्धार पा सकते हैं। इसलिए यदि हम उसी के नाम से प्रार्थना करते हैं तो वो सारी प्रार्थनाएँ हाँ और आ मन में सुनी जाती है। प्रभु आप को इन सब में आशीष दे प्रार्थना करते रहे, गॉड ब्लेस यू।",यहोवा परमेश्वर कहता है कि तुम मुझसे प्रार्थना करो और मैं तुम्हें उत्तर दूंगा और तुम्हें वे रहस्यमयी बातें बताऊंगा जिन्हें तुम अब नहीं समझते "गुड मॉर्निंग दोस्तों, खबरें सुनने वाले सभी भाई बहनों को राजेश का प्यार भरा जय मेसी की आज हम परमेश्वर के वचन रोमियो की पत्री उसका आठ अध्याय उसकी 28 में से पढ़ रहे हैं जहाँ हम इस प्रकार से पाते हैं। हम जानते हैं कि जो लोग परमेश्वर से प्रेम रखते हैं उनके लिए सब बातें मिलकर भलाई ही को उत्पन्न करती है अर्थात उन्हीं के लिए जो उसकी इच्छा के अनुसार बुलाये हुए हैं। परमेश्वर अपने वचन के पढ़े जाने में सुने जाने में आशीष दे। हमने पढ़ा की किस रीती से परमेश्वर जो उससे प्रेम करते हैं उनके लिए सारी बातें मिलकर भलाई को उत्पन्न करते हैं। हमारा दुर्भाग्य भी हमारा संकट भी सौभाग्य में बदल जाता है। जब हम परमेश्वर के पास आते हैं, उससे प्रेम रखते हैं। पुराने नियम में एक चरित्र है जिसका नाम यूसुफ था। यूसुफ अपने 12 भाइयों में से एक भाई था। बाइबल बताती है कि उसका पिता उससे बेहद प्यार करता था क्योंकि उसका पिता उससे ज्यादा प्यार करता था। उसके भाई लोग उससे नफरत करने लगे। नफरत इस कदर तक बढ़ गई की 1 दिन तो उन भाइयों ने उसे अकेला पाकर मार डालना चाहा, घात कर देना चाहा। आप अपनी सलाह मशविरा करके उन्होंने सोचा क्यों ना हम इसे गड्ढे में डालकर मार डाले? उन्होंने उसे एक सूखे कुएं में फेंक दिया। जब वो सोच ही रहे थे कि क्यों ना हम इसे मिट्टी डालकर खत्म कर दें। उसी समय वहाँ से एक कारवां जा रहा था जो मिस्र की ओर जा रहा था। लोग जा रहे थे वहाँ पर बड़े धनी लोग जा रहे थे। उनके भाइयों ने सोचा क्यों ना हम इस अपने भाई को इनके हाथ भेज देते है। एक दास के समान भेज देते हैं। उन्होंने उसे सारे कपड़े उतार कर अपने ही भाई को मिस्त्रियों के हाथ बेच दिया। यूसुफ तब भी इस दुर्भाग्य को भी आनंद की बात समझ रहा था और वह मिस्र में गया और उसने सोचा यह मेरे लिए शाहिद अवसर हो सकता है कि मैं मिस्र देश की भाषा सीख सकूँ। मिस्र देश के कल्चर को, उनकी संस्कृति को, शिक्षकों और मिस्र देश में आता है। बताती है और भी बड़ा संकट उसके सामने खड़ा था। वह पोती पर के हाथ में भेज दिया जाता है। पोती पर एक बहुत बड़े घराने का मालिक है। उसका घर किसी राजमहल से कम नहीं है। वह उस घर में जब जाता है, युसूफ तो यूसुफ देखता है कि इतने बड़े घर में शायद यह भी मेरे लिए अवसर है। और वो वहाँ पर इस बड़े घर में काम करना शुरू कर देता है। लेकिन उसे नहीं पता था कि 1 दिन उसकी मालकिन ही उसकी ओर गलत दृष्टि से देखेगी और ये उसके लिए एक बड़ी परीक्षा का समय था। बताती हैं कि पोती पर की पत्नी उसे सम्मोहित करना चाहती थी। जैसे ही पति पर की पत्नी ने उसे अपने पास बुलाया। बाइबल बताती हैं कि यूसुफ जो परमेश्वर से प्रेम करता था, वहाँ से भाग खड़ा हुआ। पोती वर्ग की पत्नी ने उस पर गलत आरोप लगा दिया, जिसके कारण से यूसुफ को जेल जाना पड़ा। जेल में भी परमेश्वर उसके संग था। यूसुफ हमेशा प्रसन्न रहता था। वह लोगों के दर्शन को बताता था। स्वप्न का अर्थ को बताता था परमिशन उसे इतना ज्ञान दिया था कि वह उन तमाम बन्दियों के बीच में एक प्रधान बंदी बन गया। उनका लीडर के रूप में वहाँ पर वहाँ रहने लगा और ये जेल भी उसके उसे निराश नहीं कर पाई। उसे हताश नहीं कर पाई। 1 दिन जो मिस्र का राजा था, वह स्वप्न देखता है। स्वप्न में देखता है की सात पतली पतली गाये हैं और सात मोटी मोटी गाय। पतली गायों ने मोटी गायों को खा लिया। ये स्वप्न उसे बेचैन कर देता है, परेशान कर देता है और वह सभी बड़े बड़े विद्वानों से पूछने लगता है। इसका क्या अर्थ हो सकता है? सभी लोग शांत हो जाते हैं। किसी के पास कोई उत्तर नहीं होता है। तब कोई एक व्यक्ति बताता है कि हमारे जेलखाने में हमारी बंदीगृह में एक बुद्धिमान व्यक्ति हैं। एक ऐसा व्यक्ति है जिसके साथ परमेश्वर यहोवा रहता है। और परमिशन उसे आशीष देता है। वो दर्शन की बातें, स्वप्न की बातें यूं ही बता देता है। उसी समय राजा के आदेश के अनुसार यूसुफ को राजमहल में लाया जाता है, उसे अच्छी वस्त्र पहनाए जाते हैं और राजा उससे पूछता है, क्या तू मेरे स्वप्नों को बता सकता है? आती है कि यूसुफ परमेश्वर से प्रार्थना कर के उसके स्वप्न को बताता है। बताता है कि किस प्रकार से सात मोटी गाय मतलब 7 साल बहुत अच्छी वर्षा होगी, बहुत अच्छी खेती बाड़ी होगी और बहुत धन धान्य से परिपूर्ण रहेंगे। लेकिन साथ आने वाले उसके बाद के 7 साल है। वो भयानक अकाल के होंगे, पूरी दुनिया में अकाल पड़ेगा। राजा को ये बात पसंद आती हैं। राजा कहता है बताओ यूसुफ तब हम क्या करे यूसुफ उसी दिन वहाँ का प्रधानमंत्री बन जाता है। परमेश्वर उसे उसे उठाता है। उसके दर्शन को जो बचपन से उसने देखा था, उसके तमाम संकट और दुर्भाग्य को परमिशन सौभाग्य में बदल देता है। बताती हैं कि वो 7 साल तो उसने बहुत बड़े बड़े भंडार गृह बनाए और सारे अनाज पूरी दुनिया से इकट्ठा करने लगा। सोना, चांदी, हीरे जवाहरात सब कुछ घटना होने लगा। और जब 7 साल अकाल के पढ़ें पूरी दुनिया के लोग सोना देकर, चांदी देकर हीरे जवाहरात देकर अनाज वहाँ से खरीदने लगे। इसी रीती से यूसुफ उस पूरे देश में पूरी दुनिया में एक सुनाम व्यक्ति बन गया। 1 दिन ऐसा भी हुआ की उसके स्वयं के भाई लोग वहा पर अनाज मांगने के लिए आए और यूसुफ उनको पहचान कर। उन्हें गले लगा लिया। उसने उन पुरानी बातों को याद नहीं किया। उन पुरानी बातों को लेकर उनसे बदला नहीं लिया, परंतु अपने उस सौभाग्य की कारण से उनको भी उसने सहभागी बनाया और परमेश्वर की आशीष उनके जीवन में भी आई। प्रो। आज हम इस वचन में से सीखते हैं कि हमारे जीवन में परमेश्वर कैसे भी कैसे भी दिन की योजना लाए, हम को धन्यवाद देना चाहिए। हम उन आने वाले सौभाग्य के बारे में कई बार नहीं देख पाते। इसलिए जो वर्तमान संकट है। उसमें हम कुरान ए लगते हैं। आइये अपने वर्तमान संकट के लिए भी हम परमिशन का धन्यवाद दे। उस बड़ी दृष्टिकोण को देखें जो परमिशन हम हमें दिखाना चाहता है बताती हैं कि तुम्हारे विचार और मेरे विचार में जमीन और आसमान का अंतर है। तुम्हारी गति में और मेरी गति में जमीन और आसमान का अंतर है। निसंदेह जो परमेश्वर से प्रेम करते हैं, उनके लिए सब बातें मिलकर भलाई को उत्पन्न करेंगे। सर आपको आशीष दे, गॉड ब्लेस यू।","हम जानते हैं कि जो लोग परमेश्वर से प्रेम रखते हैं, अर्थात उन के लिये जो परमेश्वर की इच्छा के अनुसार बुलाए हुए हैं, सब बातें मिलकर भलाई ही को उत्पन्न करती हैं (रोमियों 8:28)।" "सभी को जेएमसी। की मित्रों प्रभु यीशु मसीह के नाम से मैं आपका स्वागत करती हूँ जहाँ हम परमेश्वर के सुंदर वचनों को सुनते हैं। आइए आज के सुंदर मनन के लिए मैं लेकर आई हूँ प्रभु का बहुत ही सुंदर और सामर्थ्य वचन जिसे मैं आपके लिए पढ़ना चाहती हूँ। रची सुसमाचार अध्याय 11 वचन 28 से जहाँ लिखा है ये सब परिश्रम करने वालों और वह से दबे हुए लोगों मेरे पांच जाओ, मैं तुम्हें विश्राम दूंगा। जी हाँ, प्रिय हो परमिशन अपने वचन के पढ़े जाने में सुने जाने में हम सभी को आशीष दे। बाइबल में हम एक बेहतरीन निमंत्रण को पाते हैं। यह निमंत्रण जो अभी अभी मैंने आपके लिए पढ़ा है, ये निमंत्रण कौन दे रहा है? ये निमंत्रण देने वाले हैं। हमारे प्रभु यीशु जो सारे ब्रह्मांड के परमेश्वर है, जिन्होंने सब कुछ बनाया, सारी धरती को सारी कायनात को बनाने वाले परमेश्वर ने यह निमंत्रण दिया है। यह निमंत्रण उन्होंने किसके लिए दिया है? जब हम इस वचन को पढ़ते है वहा लिखा है ये सब परिश्रम करने वालों और बोझ से दबे हुए लोगों यहाँ निमंत्रण है संपूर्ण मानव जाति के लिए सभी उन व्यक्तियों के लिए जिनके अंदर प्राण है, श्वास है जो जीवित पाए जाते हैं। जी हाँ, आपने हूँ जब इस वचन को हम पढ़ते हैं। हम देखते हैं परमेश्वर के एक सामर्थी निमंत्रण को एक बेहतरीन निमंत्रण को, जो वह अपनी सृष्टि को देता है, जो वह उन लोगों को देता है जो इस धरती पर रहते हुए कराते हैं, जो इस धरती पर रहते हुए पाप और परिश्रम के बोझ से दबे हुए हैं। प्रभु कहते है की हिप परिश्रम करने वाले बोझ से दबे हुए लोगों मेरे पास वहाँ उन्हें अपने पास बुलाता है। क्यों बुलाता है अपने पास? बाइबल का वचन आगे कहता है की मेरे पास आओ, मैं तुम्हें विश्राम दूंगा। किस प्रकार के विश्राम की बात करते हैं, विश्राम है, शांति का विश्राम हैं, सुकून का विश्राम है, अनंतकालीन जीवन का विश्राम है, हर एक समृद्धि का विश्राम है, हर एक सुख का। विश्राम में हर एक उन आशीषों का बरकतों का जो आज आप अपने जीवन के लिए चाहते हैं। प्रभु कहते हैं कि ही परिश्रम करने वाले पोस्ट से दबे हुए लोगों मेरे पास आओ, मैं तुम्हें विश्राम दूंगा। जी हाँ, मित्रों जब हम अपने जीवन में जीते हैं, हर दिन हर दिन हम विश्राम पानी की खोज में रहते हैं। हम सोचते हैं कैसे हमारा बोझ हल्का हो? कैसे हम अपनी चिंताओं को दूर करे? क्या कुछ हम ऐसा कर लें जिससे हमारा बोझ हल्का हो जाए? तो आज प्रभु आपको निमंत्रण देते हैं? वे कहते हैं की मेरे पास आओ क्यों आओ मेरे पास ताकि मैं तुम्हें विश्राम दे सकूँ। चलिए मैं आपको एक छोटी सी कहानी सुनाती हूँ। एक बार की बात है, एक कलीसिया के पासवानजी कलीसिया में भीतर आते हैं और अपने हाथ में एक पानी से भरा हुआ गिलास लेकर आते हैं। तभी कलीसिया के सारे लोग उन्हें देखते हैं और सोचते हैं मन ही मनमें की अब तो पासवानजी बस यही पूछेंगे कि गिलास में कितना पानी है, गिलास आधा भरा हुआ है या आधा खाली है। इससे पहले कि लोग कुछ और मन में सोचते, पासवान जी ने उनसे एक सवाल पूछा, उन्होंने बोला की आप लोग मेरे हाथ में क्या देखते हैं? सभी ने कहा पासवान जी आपके हाथ में पानी से भरा हुआ एक गिलास तभी पासवान जी ने फिर पूछा की आप बताइए आपको क्या लगता है इस पानी से भरे हुए गिलास का भार कितना होगा? सभी अलग अलग जवाब देने लगे। सभी ने कहा कुछ कह रहे थे इस प्रकार से की 125 ग्राम होगा। कुछ कह रहे थे 200 ग्राम होगा सब अलग अलग जवाब देने लगे। पासवान जी ने उन्हें फिर एक सवाल पूछा। उन्होंने कहा की आप बताईये क्या होगा? यदि इस पानी से भरे हुए गिलास को मैं 5 मिनट तक लेकर इस तरह से एक ही अवस्था में खड़ा रहा हुँ। सभी लोग कहने लगे पासवान जी कुछ नहीं होगा। यदि 5 मिनट तक आप पानी से भरे हुए गिलास को लेकर खड़े रहते हैं, कुछ भी नहीं होगा। पासवान जी थोड़ा मुस्कराये फिर बोलने लगे की यदि इस पानी से भरे हुए गिलास को लेकर मैं एक घंटा तक एक ही स्थिति में खड़ा रहूं तो क्या होगा? तो लोगों ने अलग अलग जवाब दिया। कुछ लोग कह रहे थे कि पासवानजी आपको थोड़ी थकावट होने लगे गी। कुछ लोग कहने लगे आपका हाथ दर्द करने लगेगा। कुछ लोग कहने लगे पानी गर्म हो जाएगा। पकड़े पकड़े अलग अलग जवाब देने लगे। तभी पासवान जी एक और सवाल कलीसिया के सामने रखती है और वो कहते है की आप बताइए यदि इस पानी से भरे हुए गिलास को लेकर मैं पूरा 1 दिन एक ही स्थिति में खड़ा रहूं तो क्या होगा? तो लोग आश्चर्यचकित होने लगे की पूरा 1 दिन एक ही अवस्था में खड़े रहना और हाथ को यू इस तरह से करके खड़े रहना एक कठिन बात होगी। लोग अलग अलग जवाब देने लगे। लोग खड़े हो गए जवाब देने के लिए और कहने लगे कि पासवानजी आप कहाँ सुन्न हो जाएगा? कुछ कहने लगे कि आपका हाँ तो लकवाग्रस्त हो जाएगा। कुछ कहने लगे कि पासवानजी आप कहाँ काम करना ही बंद कर देगा। पूरी तरह से हमेशा के लिए अलग अलग जवाब देने लगे। तभी पासवान जी ने उन्हें एक अंतिम सवाल पूछा। उन्होंने कहा की आप मुझे एक अंतिम सवाल का जवाब बताइए कि यदि मुझे अपने हाथ को लकवाग्रस्त होने से बचाना है, दर्द होने से बचाना है? शून्य होने से बचाना है तो मुझे क्या करना चाहिए? तभी उस भीड़ में से एक बहन तुरंत खड़ी हुई और उस कहने लगी पासवान जी से की पासवानजी आप अपने हाथ में लिए हुए गिलास को जमीन पर रख दीजिए, इससे आपका हाथ ठीक रहेगा। आपका हाथ सही रीती से काम करेगा और आपको दर्द भी नहीं होगा। तकलीफ भी नहीं होगा। पासवानजी मुस्कुराए और कहने लगे, आज कुछ इसी तरह का हम अपनी चिंताओं के साथ अपने बोझ के साथ भी करती। अपने पापों के साथ भी कुछ हम इसी तरह का करते हैं। जब हम अपनी चिंताओं को अपने बोझ को कुछ मिनट के लिए अपने दिल में रखते है, उसका हम पर कोई असर नहीं पड़ता। हम निरंतर अपने काम में लगे रहते हैं। हम अच्छी तरह से जीवन को जीते हैं, लेकिन जब हम उन बोझ को उन चिंताओं को कुछ घंटों तक लिए रहते हैं तब भी मेरे ख्याल से कुछ नहीं होता। इस तरह से पासवानजी लेकिन पासवान जी कहते है, जब हम उन चिंताओं को उन बोझों को अपने जीवन में एक लंबे समय तक लिए रहते हैं तो उसका असर हमारे पूरे जीवन पर पड़ने लगता है। हमारे दिलों दिमाग पर पड़ने लगता है, हमारा दिमाग काम करना बंद कर देता है और पूरी तरह से चिंता के अधीन हो। पूरी तरह से बोझ के अधीन हो जाता है। तो यदि हमें इस बोझ से इस चिंता से बचना है तो हमें क्या करना है? इस पाप को इस बोझ को इस चिंता को प्रभु के ऊपर डाल देना, क्योंकि बाइबल में वचन लिखा है प्रभु कहते हैं कि अपनी सारी चिंता मुझ पर डाल दो क्योंकि मुझको तुम्हारा ध्यान है और वो कहता है कि मैं तुमसे इतना प्यार करता हूँ कि तुम्हारे चित्र को मैंने अपनी हथेली पर खोद कर रखा हैं। मैं वचन लिखा है। की जब परमेश्वर कहते हैं कि जब तू अपनी माँ के गर्भ में पड़ा था तब मैंने तुझ पर अपना चित्र लगाया है। तेरे उत्पन्न होने से पहले मैंने तेरा अभिषेक किया हैं, मैंने तुझे नाम लेकर बुलाया है, तू मेरी दृष्टि से कभी भी दूर नहीं हुआ है। मित्रों याद रखें, आज आप चिंताओं को ढो रहे बोझ को ढो रहे पाप को ढो रहे हो सकता है आज आप थक गए हैं तो आज प्रभु आपको निमंत्रण देते हैं। वे कहते हैं कि मेरे पास आओ, मैं तुम्हें विश्राम दूंगा। जी हाँ, आज पाप से चिंताओं से बोझ से विश्राम चाहिए तो प्रभु के पास आये क्योंकि विश्राम केवल प्रभु ही दे सकता है। वह आपको निमंत्रण देता है, अपने पास बुलाता है। आज दुनिया में ऐसा कौन व्यक्ति है? कौन ऐसी सृष्टि है जो आप का बोझ लेने के लिए तैयार होगी? तो आज मैं आपसे कहना चाहती हूँ कहता है मेरे पास आओ, मैं तुम्हें विश्राम दूंगा। पर मैं शराब को इस संदेश के द्वारा बहुत",भगवान का महान निमंत्रण (मोनिका द्वारा हिंदी ऑडियो प्रवचन) "क्या आप निराशा से मुक्ति पाना चाहते हैं या एक सफल व्यक्ति बनना चाहते हैं? तो आइये सुनते हैं महान लेखक स्वेट मॉडर्न के द्वारा लिखी गई उनकी महान कृति एव्रीमैन आ किंग का हिंदी अनुवाद अब तक हम इसकी 13 भाग को सुन चूके हैं। यदि आपने नहीं सुना है तो आप मेरी पिछली ऑडियो उसको सुन सकते हैं। आइए आज सुनते है इसके 14 वें भाग को। हृदय की गहराई। किसी भी मनुष्य के चरित्र का गठन या व्यक्तित्व का निर्माण उसके सुंदर वस्त्रों और उसकी ऊंची बातों मात्र से नहीं हो जाता, बल्कि मनुष्य के अपने विचारों द्वारा ही चारित्रिक गठन और व्यक्तित्व बनता है। मनुष्य के हृदय में बड़ी बड़ी आकांक्षाएं व्यर्थ नहीं पैदा होती। भावनाएँ बेकार ही मन में उत्पन्न नहीं हुआ करती। ये भावनाएँ और महात्वाकांक्षाएं मनुष्य को काम करने के लिए प्रेरणा देती है। इन्हीं के विचारों से मनुष्य काम करने की शक्ति के ग्रहण करता है। और प्रेरणा पाता है और इन्हें पूर्ण करता है। जब आप अपने हृदय की गहराइयों से एक किसी चीज़ की इच्छा करते हैं तब वह आपको अवश्य मिल जाती है। मन, वचन और कर्म से किया हुआ कुछ भी प्रयास निष्फल नहीं हो जाता। उसका सुफल अवश्य सामने आता है। आप जब किसी चीज़ की हृदय से इच्छा करते हैं तो उस चीज़ से आप का संबंध जुड़ जाता है। जितनी भी आप मन से उसकी इच्छा करेंगे, आपका मन उसका विचार करेगा। आप मन, वचन और कर्म से उसे पाने का उद्यम करेंगे। वह संबंध मजबूत से मजबूत होता चला जाएगा और 1 दिन आप उस वस्तु को अवश्य पालेंगे। आप जो कुछ करना चाहते हैं या बनना चाहते हैं या किसी क्षेत्र में सफल होना चाहते हैं। तो इसके लिए आपको अपने उद्देश्य पर अटल रहते हुए तन मन से उसके लिए कोशिश करनी चाहिए। आपके इरादे मजबूत होने चाहिए, आपकी जीत होगी। आपकी आकांक्षाएं आश्चर्यजनक रूप से पूर्ण होगी। आप जीवनपर्यन्त स्वास्थ्य और जवान बने रहना चाहे तो ऐसा भी हो सकता है बशर्ते कि आप अपने मन में। इसके लिए ऐसे विचार स्थिर किये रहे मन में और आत्मा में आप सदा। मेरी पवित्रता सुंदरता रखेंगे तो आपका मन और आत्मा सदा सदा सुंदर और पवित्र रहेगा, जिसके परिणामस्वरूप आपके चेहरे पर भी तेज आभार और सौंदर्य झलकता रहेगा। बुढ़ापा नहीं आ सकता, आपके नैतिक शक्ति बढ़ जाएगी। शारीरिक और मानसिक शक्ति यो में भी वृद्धि होगी। आपके कुछ आदर्श य अवश्य होने चाहिए। आदर्श उत्तम हो, बिना आदर्श के। मनुष्य कुछ नहीं है, आदर्श उत्तम हो तो हर वस्तु नवीन और सुंदर है। वहाँ कुछ भी पुरातन और कुरूप नहीं होता। यदि आप आदर्श पर स्थिर रहे तो आपका हर समय पूर्णतः ही प्राप्त होगी। आप कभी अपूर्ण नहीं पाएंगे। आपको अपनी इच्छाएं पूर्ण की दृढ़ आशा रहेंगी, जिससे आप श्रद्धा, प्रेम और परिश्रम से कार्य करते रहेंगे। दृढ़तापूर्वक आदर्श को बनाए रखने से मनोबल बढ़ा रहता है। और वहाँ मनोबल आपको अपने अभीष्ट की सिद्धि में यथार्थ, जो आप करना चाहते हैं, उस में सहायक होगा। जो कुछ भी आप बनना चाहते हैं, उसके लिए कोई आदर्श आपके सामने होना चाहिए। आप किसी के सामान बनना चाहते हैं तो अपने सामने उसी का आदर्श रखिये। सदा ऐसा अनुभव कीजिये आप वैसा बन गए आप मैं वही क्षमताएं, वे ही पूर्णता ए आप में सभी गुण वे ही है। कोई भी तो आभाव आपके अंदर नहीं है। किसी प्रकार की हीन भावना या विचार हो तो सर्वप्रथम उन्हें मन से दूर कर दें। अपने लक्ष्य को आप निश्चित रूप से पा लेंगे। आप वही बन जाएंगे जो आपका आदर्श हैं। आप सदा आशावादी रहिए, कभी निराशावादी मत बनिए। आशाओं से परिपूर्ण विचारों में बड़ी शक्ति होती है। इसका प्रत्यक्ष अनुभव करके देख सकते हैं। यदि आप यह दृढ़ निश्चय कर लें, अपने मन में इन विचारों को दृढ़ कर ले। की आप के लिए सब कुछ अच्छा ही होगा तो आप पाएंगे कि सचमुच आपकी प्रगति में सब कुछ अच्छा ही हो रहा है। ये आशा से भरे विचार आपके सभी शक्तियां में वृद्धि कर देते है। आपके ये आशा से भरे विचार आपकी आदत बन जाएगी। आप फिर प्रगति पथ पर बढ़ते चले जाएंगे और जो आप करना चाहते हैं या जो आप बनना चाहते हैं वही करते जाएंगे और बनते जाएंगे। इस संसार में ईश्वर ने सभी को किसी उद्देश्य से भेजा है। सभी कोई ना कोई कार्य करने के लिए संसार में आए हैं। आप भी आएं, आप को भी परमेश्वर ने भेजा है। आपको उसने जीस कार्य के लिए भेजा है, उसे आप करेंगे। कोई भी संदेह नहीं होना चाहिए। यदि हो तो निकाल दीजिए। मन में संदेह के भावों को ना आने दीजिये। संदेह के भावों को बिल्कुल निकाल फेंकी। आप अच्छे ही विचारों को मन में उत्पन्न करें। जो आपके हित में हो, वही आप सोचें। ऐसी प्रत्येक वस्तु को जो आपको दुख, निराशा और असफलता की ओर ले जाने वाली है, उसे अपने पास आप आने ही क्यों देते हैं? ऐसे विचारों को अपने पास ना आने दीजिए, ऐसे विचार बिल्कुल त्याग दीजिये। उन भावों का तिरस्कार कीजिये जो निराशा से भरे हुए हैं, जो संदेहजनक है, जो आपके प्रगति में बाधक है। जब आपकी आदत सदा शुभ और आशावादी विचार ही बनाए रखने की होगी आपके मन में। सदा आनंद और उत्साह भरा रहेगा तब आप निश्चित रूप से अधिक कार्य करेंगे। सफलताएं प्राप्त करेंगे। कभी दुखों और निराशाओं का मुँह नहीं देखना पड़ेगा। आपके भाव सदा आशा मय और सुब सूचक रहते हैं। आप आनंदमय और प्रसन्न रहते हुए दृढ़ता पूर्वक कार्य करते रहने की आदत बना लेती है तो सदा आगे ही बढ़ते और जो शत्रु आपकी सफलता, सुख और शांति में बाधा पहुंचाते हैं। आप उन्हें परास्त कर सकते हैं। आप की धारणा यदि यही है की बिना धन पूंजी के संसार में सफलता नहीं मिलती तो इसे निकाल दें। मन बच्चन और कर्म से आप प्रयत्न करें कि आपका भविष्य उज्ज्वल होना चाहिए। आप सभी प्रकार से सुखी, सफल और उन्नत हो तो आपको सभी आवश्यक चीजें प्राप्त होती चली जाएगी। सफलता के लिए संसार में प्रवेश करते समय जो धन पूंजी आपके पास बिल्कुल नहीं थी। वहाँ आती चली जाएगी, क्योंकि आपके पास आशा मय उत्तम विचारों की पूंजी है, जो की सबसे बड़ी पूंजी है। कुछ लोग अपनी इच्छाओं को स्वयं कमजोर बना लेते हैं। वे नहीं जानते कि इच्छाओं की पूर्ति के लिए दृढ़ निश्चय और भाव जरूरी है और निरंतर मन, वचन और कर्म से प्रयास करते रहने से ही अपनी इच्छाओं को पूर्ण करने की शक्ति मिलती है। एक शायद तभी पूर्ण हो सकती है जब इस सवाल होती है। कमजोर इच्छाएं अपूर्ण रहती है। प्रारंभ में यदि इच्छाएं पूर्ण होती दिखाई ना दे, किसी प्रकार की रुकावट है तो तनिक भी घबराने की बात नहीं। प्रयत्न जारी रहे। आशा में विचार उसी प्रकार दृढ़ रहें। निश्चित रूप से आप उन रूकावटों को पार कर लेंगे, आप की ही जीत होगी। बस यह मत भूलिए की अभिलाषाएं तभी पूरी होती है जब दृढ़ निश्चय के साथ साथ परिश्रम और प्रयत्न किए जाते हैं। दृढ़ निश्चय ही सफल हुआ करते हैं। उत्पादक शक्ति बढ़ाने के लिए इच्छा और दृढ़ निश्चय के साथ प्रयास करना आवश्यक है तभी सफलता प्राप्त होती है। आप ईश्वर की अंशन यहाँ आपको प्रत्येक क्षण ध्यान रखना चाहिए। ईश्वर ने आपको भी पूर्ण बनाकर भेजा हे। जब आपका यह विश्वास दृढ़ होगा तो आपको शक्ति और इस पूर्ति प्राप्त होगी। कमजोरी दूर हो जाएगी, उत्पादक शक्ति बढ़ जाएगी। आप अधिक कार्य करेंगे। आपके विचारों में सदा वही बातें हो, वही सोचे और कहीं जिन्हें आप पूर्ण करने की इच्छा रखते हैं। तरह तरह की व्यर्थ बातें सोचने या कहने से। भला क्या लाभ? कुछ लोग घोर निराशावादी होते हैं और वे सदा अपने दुर्भाग्य पर आंसू बहाते हैं। सदा अपनी असफलताओं का रोना रोते रहते हैं और भाग्य या ईश्वर को दोषी ठहराते हैं। वे नहीं जानते कि यह निराशा से मेरे विचार और रोना धोना ही उनके शत्रु हैं और इन्हीं के कारण ये असफलताएं और दुख बार बार उनकी ओर लौट आते हैं। अतः अपने मन से ऐसे बुरे विचारों को बिल्कुल निकाल रोने धोने की बिमारी से छुटकारा पाइये। आप यही सोचे की ऊंचे, पवित्र और उत्तम विचारों से ही आत्मा को सुख, शांति और आनंद प्राप्त होता है। आप जीस विषय में निपुण होना चाहते हैं, उसकी गहराइयों को जानना और ऊंचाईयों को छूना चाहते हैं तो पूरी शक्ति से मन से उसमें तब तक लगे रहे जब तक आपको सफलता के दर्शन ना होने लगे। आपको उसमें संदेही ना रहें। आपके जीवन को वास्तविक जीवन आपका आदर्श ही बनाता है। जैसा आपका आदर्श होगा, वैसे ही आप होंगे। आप अपने आदर्श को अपने चेहरे, हावभाव से प्रकट करते हैं। यह स्वाभाविक ही है, आप छुपा नहीं सकते। आप को देखते ही आपके आदर्श का पता लग सकता है। अतः अपना आदर्श, अपने विचार और मन के भाव सदा उत्तम ही रहने चाहिए। श्रेष्ठता और दिव्यता आपके विचारों में भरी हुई हो। आपका यह दृढ़ विश्वास और निश्चय हो कि आपका किसी भी प्रकार का संबंध निर्धनता, कमजोरी और अज्ञानता से नहीं है। रोग शोक से आपका कोई वास्ता नहीं है, आपके हाथों में कोई कार्य बुरा नहीं है, आप अच्छा कार्य ही करते है, बुराइयों से आपका संबंध नहीं है। आपको अक्सर उस वस्तु की तलाश रहती है जिसकी सहायता से आपकी आत्मा प्रगति के मार्ग पर आगे बढ़ सकती है। आप अक्सर यह सोचते हैं कि इस दिव्य पदार्थ के द्वारा आत्मा आनंदमय है। वाह है आपकी आदर्श से उत्पन्न प्रभाव आप ही के अपने मन से निकली हुई पवित्र ज्योति आपके मन की ही ज्योति आपके मार्ग को प्रकाश से भर्ती हैं। वे दो चीजें आपको अपने आदर्श तक पहुंचने में बड़ी सहायक होती है। वे दो चीजें हैं श्रद्धा और आस्था। श्रद्धा ही तो आपकी इच्छाओं का मूल है। और आस्था आपकी भक्ति है। आप जो आदर्श अपनाए हुए हैं, सामने रखे हुए हैं, उसके प्रति मन में सदैव श्रद्धा और उसमें आस्था भी बनाए रखें। ईश्वर में भी। श्रद्धा और आस्था इसी प्रकार बनाए रखे। इन दोनों चीजों से भी बढ़कर एक चीज़ और है। केवल इन्हीं से काम नहीं बनेगा। इन्हीं के साथ साथ वह भी परम आवश्यक तत्व है और वो क्या है? वो महत्वपूर्ण तत्व है। सत्य ऐसा तत्व है कि अन्य आवृत्तियों की सुप्त होने पर भी यहाँ आश्चर्यजनक रूप से कार्य करता है। यह सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। अता सत्य का मार्ग कभी ना छोड़े मनुष्य दृढ़तापूर्वक जिसपर विश्वास करता है, वह उसे अवश्य प्राप्त होता है। यहाँ उत्पादक शक्ति का नियम है। आप इस बात को यूं समझ सकते हैं। मान लिया आप एक प्रभावशाली व्यक्ति बनना चाहते जिसे लोग सम्मान देते हैं और जिसकी बातें मानते हैं जिसमें कई गुण हो और जिसे सब सुख भी हूँ। ऐसा सोचते हुए आप प्रयत्न भी करने लगे और विश्वास भी रखें कि आप ऐसे ही बनते जा रहे हैं। आपके अंदर एक अलौकिक शक्ति का संचार होगा और आप ऐसे ही बनते चले जाएंगे। आप अपने उद्देश्य को पूर्ण करना चाहते हैं, तो आप अपने विचारों को उसी उद्देश्य पर केंद्रित करें। अपने लक्ष्य के लिए मन, वचन और कर्म से प्रयत्न करे और सफलता। आपके कदम चूमेगी। मनुष्य की शक्तियां क्रियाशील होती है। यदि इन शक्तियां का प्रयोग करना मनुष्य जानता है तो बड़ी से बड़ी विपत्ति मेँ भी अपने आदर्श पर अडिग रह सकता है। अतः किसी भी कार्य को करने से पूर्व मन की समस्त शक्ति यों को उसी ओर लगा दी और इच्छाओं को दृढ़ रखें क्योंकि दृढ़ इच्छा ये ही पूर्ण होती हैं। आपके जीवन का जो उद्देश्य है उस पर दृढ़ रहिए, अपनी शक्तिओं को उस पर केंद्रित रखिए। बराबर यही विचार मन में रखिये की आप वही बनते जा रहे हैं जो बनना चाहते हैं, बराबर आपकी प्रगति हो रही है। आप आगे बढ़ रहे हैं, अपनी सफलता का अनुभव करते रहे। कोई भी कार्य किया तो बाद में जाता है परंतु उसके करने का विचार मन में पैदा होता है। सबसे पहले कारीगर भी कुछ बनाता है तो पहले उसका विचार करता है, उस वस्तु की कल्पना करता है। कल्पनाओं की सृष्टि भी व्यर्थ नहीं होती। पहले कल्पनाएँ ही आती है, उन्हें साकार रूप बाद में दिया जाता है। जो विचार या कल्पनाएं मन में जन्म लेती हैं, उन्हीं का रूप बाद में सामने आता है। कल्पनाएँ ही इस जीवन रूपी महल का नक्शा है। या नक्शा अवश्य बना लेना चाहिए। जब तक मन में किसी महल का नक्शा नहीं है, तब तक यह पता ही नहीं होता कि कैसे बनाना है। अतः मन में विचार पहले स्थिर किए जाते हैं। कल्पना पहले जन्म लेती है और उसे बाद में साकार रूप दिया जाता है। हाँ, यह भी सत्य है कि यदि कल्पना को साकार रूप देने के प्रयास ना किए जाएं तो यह केवल कल्पना ही रह जाएगी। जितनी भी संसार में महापुरुष हुए हैं, उन्होंने प्रथम अपने आदर्श की कल्पना की थी। उन सफल और महान लोगों में जिसने भी जितना प्रयत्न अपनी कल्पना को साकार करने का किया, उसे उतनी ही सफलता प्राप्त हुई। वह उतनी ही ऊंचाईयों तक पहुंचा। आप भी अपने आदर्श पर दृढ़ रहते हुए प्रयत्न करते रहें। आप जैसा भी बनना चाहते हैं वैसे ही लोगों में बैठे वैसे ही रहें, उन्हीं की बाते सुने वैसे ही चीजे पढ़े। आपका वातावरण आपके आदर्श के अनुकूल होना चाहिए। प्रत्येक मनुष्य को आत्म विकास करने के लिए अवसर मिलता है। समय होता है। मनुष्य यदि अपनी कल्पनाओं के अनुरूप कार्य भी करता जाएगा तो उसकी आकांक्षाएं भी पूरी होती जाती है। आप अपनी कल्पनाओं को ध्यान में रखकर अपने आदर्श के अनुसार आचरण करते हुए प्रयत्न करते हैं तो आपको निकट वैसा ही वातावरण निर्मित होने लगता है। सफलता आपकी ओर बढ़ने लगती है। केवल बैठकर सपने देखते रहें और उसके लिए मेहनत ना करे तो कोई बात नहीं बनती। आप जब रात्रि को सोये, तो कुछ शहरों तक शांतचित्त होकर अपने आदर्श और उद्देश्य पर विचार करें और अपने आदर्श का उच्चतम और सुन्दरतम रूप अपनी कल्पनाओं में देखें। ये बे कल्पनाएँ और आकांक्षाएं है जो सदैव आपको ऊंचाइयों की ओर जाने की प्रेरणा देती है। काल्पनिक जगत् के स्वप्नों को पूर्ण करने के लिए निरंतर। प्रेरित करती रहती हैं। ऐसी ही इच्छाएं आत्म विकास में सहायक होती है। ये ही आपकी सहायता करती है। आप को इन्हीं से पूर्णता प्राप्त होती है। आपके भीतर एक दैवीय शक्ति है या दैवीय शक्ति आप को प्रेरित भी करती है और सही मार्गदर्शन भी कराती किसी प्रश्न का उत्तर भी देती है और आप की रक्षा भी वही करती है वो है आत्मशक्ति जो ईश्वर की ही देन है। हार्दिक शिक्षाओं से ही शक्ति बढ़ती है और योग्यता में वृद्धि होती है। अपने लक्ष्य पर पहुंचने के लिए इसी शक्ति से निर्देशन लेते हुए बढ़ता हुआ मनुष्य सफल होता है। प्रत्येक पेड़ पौधा अपने समय पर निश्चित रूप से फलता फूलता है। यदि ऐसा नहीं होता तो कहीं ना कहीं कोई कमी या गडबड है। कोई भूल या असावधानी मानव के जीवन पर भी यही बातें लागू होती है। कुछ लोग ही पूर्ण आयु प्राप्त करते हैं। कुछ ही लोग आयु पर्यंत युवा और सुखी रहते हैं लेकिन कुछ लोग जल्दी मर जाते हैं और दुख भोगने लगते हैं। ऐसा किसी ना किसी कमी हीनता असावधानी के कारण ही होता है। मनुष्य स्वयं या उसके साथ किसी के द्वारा कोई ना कोई गडबड की जाती है। सावधानीपूर्वक दृढ़ निश्चय के साथ आशा मय विचारों वाला व्यक्ति निरंतर प्रयत्नशील रहें तो अपने आदर्श और लक्ष्य को पा लेता है। क्योंकि प्रत्येक मनुष्य के भीतर उसे पूर्ण आदर्श बनाने वाली सामग्री है, प्रत्येक मनुष्य पूर्ण बनने के लिए कुछ ना कुछ गुण अपने अंदर लाया है। सभी में आदर्श बनाने वाली सामग्री है जो उसे पूर्ण और महान बनाने में सहायक है आवश्यकता तो सच्ची लगन और परिश्रम की है आशावान विचारों की है। ईश्वर भी यही चाहता है कि मानव पूर्ण बने क्योंकि मानव के भीतर पूर्ण। मानव ईश्वर अंश विद्यमान हैं, वैसी ही शक्तियां हैं। अतः सफलता प्राप्त करने के लिए उद्देश्य प्राप्ति के लिए ईश्वर पर आस्था रखते हुए दृढ़ विश्वास से भरे विचारों के साथ प्रयत्न करना चाहिए। तो दोस्तों, आपको यह ऑडियो कैसी लगी है? अपने विचार और अपने सुझाव मुझे जरूर लिखें। यदि यह आप को पसंद आई है तो प्लीज़ इसे लाइक करें। अपने मित्रों के साथ इसे शेयर भी करें। सुनते रहे अगले भाग को। फिर मिलूँगी सभी को नमस्कार।","यह ऑडियो स्वेट मार्डन द्वारा लिखी गई किताब एवरी मैन ए किंग से लिया गया है जिसका अनुवाद है खुशी से कैसे जीना है आप इस ऑडियो को सुनकर अपने जीवन में निराशा से बाहर आ सकते हैं और कई आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं इसमें आपको हिंदी ऑडियोबुक, हिंदी ऑडियोबुक मिलेगी , हिंदी में ऑडियोबुक, प्रेरक ऑडियोबुक, प्रेरक ऑडियो, सर्वश्रेष्ठ हिंदी प्रेरक ऑडियोबुक, हिंदी में सर्वश्रेष्ठ प्रेरक ऑडियोबुक, हिंदी में सबसे बड़ी ऑडियोबुक, हिंदी में प्रेरणादायक ऑडियोबुक, हिंदी में प्रेरणादायक ऑडियोबुक, हिंदी में जीवन बदलने वाली ऑडियोबुक, हिंदी ऑडियोबुक ऑनलाइन, #हिन्दीऑडियोबुक, #मोटिवेशनलऑडियोबुक , #inspirationalaudiobookinhindi," "सभी को जेएनएसी की मित्रों प्रभु यीशु मसीह के नाम से आपके जीवन में आशीष बरकत हो, धन्यवाद देती हूँ आपके प्यार और आपके सपोर्ट के लिए, अच्छे कमेंट्स के लिए जिसे पढ़कर मुझे प्रेरणा मिलती है कि परमेश्वर के सुंदर वचनों को मैं आप तक पहुचाऊं आज मैं परमेश्वर का बहुत ही खूबसूरत वचन आपके लिए लेकर आई हूँ, जिसे मैं पढ़ना चाहती हूँ। भजन संहिता 37 में से जहाँ लिखा है भजन संहिता 37 के चार में या हुवा को अपने सुख का मूल जान और वह तेरे मनोरथों को पूरा करेगा। प्रभु अपने वचन के पढ़े जाने पर हमें आशीष दे प्रिय हो। परमेश्वर का वचन कहता है कि अपने सुख का मूल हमें परमेश्वर को जानना है। हमें यह समझना है कि मेरे सुखी होने का कारण परमेश्वर है। मेरे आनंदित होने का कारण मेरा परमेश्वर है। आपने कई बार लोगों को सुना होगा। यह कहते हुए लोग कहते हैं, आज मेरा मन बड़ा दुखी, दुखी सा है। आज मेरा मन बहुत उदास है। आज मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा है। आज का दिन ही बेकार है। आज मन में मानो बहुत सारी चिंताएं ऐसे कहते हुए अपने लोगों को अक्सर सुना होगा। लेकिन जब उनसे पूछते हैं क्या आप दुखी क्यों है? आप उदास क्यों है? तो वो बोलते है, पता नहीं क्यों? लेकिन आज मन बड़ा दुखी, दुखी सा है। सोचिए ज़रा बिना कारण के हम दुखी हो जाते हैं और खुश होने के लिए सूखी होने के लिए अक्सर हम कारण ढूंढ़ते हैं। परमेश्वर का वचन कहता है अपने सुख का मूल परमेश्वर को जान उसका कारण अपने सुखी होने का कारण अपने परमेश्वर को जान जब हम अपने परमेश्वर के कारण आनन्दित होते हैं, जब हम अपने परमेश्वर के कारण सुखी होते हैं। स्माइल करते हैं। परमेश्वर को यह बात अच्छी लगती है। परमेश्वर की एक विच वचन में लिखा हुआ है, इस प्रकार से कि परमेश्वर अपने देशों का कुशल होता देखकर खुश होता है, प्रसन्न होता। वो उनकी प्रॉस्पैरिटी को देखकर खुश होता है की मेरा दास सुखी है। मेरा दास आनंदित है, पर मिश्रा चाहता है हम उसमें सदा आनन्दित रहे। परमेश्वर का एक दास हुआ, जिसका नाम था जब उसने सेवा शुरू की। वचन कहता है कि उसने बहुत सारी धारणाओं को बहुत सारे कष्टों को भोगा। बहुत सारी बातों से होकर उसके जीवन को गुजरना पड़ा। यहाँ तक कि लोगों ने उसे बहुत सारे कोड़े मार कर लेते, मार कर के लज्जित कर के जेलखाने में डाल दिया। जेलखाने में होने के बावजूद वो पूरी जंजीरों से जकड़ा हुआ है, पहरे में है लेकिन वह कहता है प्रभु में सदा आनन्दित रहो, मैं फिर कहता हूँ प्रभु में सदा आनन्दित रहो, फ्री हो। जो व्यक्ति इस बात को जानता है कि मेरे आनंदित होने का कारण मेरा परमेश्वर है। मेरे सुखी होने का कारण मेरा परमेश्वर है, मेरे मुस्कुराने का कारण मेरा परमेश्वर है तो वचन कहता है, प्रतिज्ञा के रूप में वह तेरे सारे मनोरथों को पूरा करेगा। आज हम अपने दिल की इच्छाओं को पूरा करने के लिए क्या कुछ नहीं करते। हम कोशिश करते हैं कि किसी न किसी तरह से मेरे दिल की एक इच्छा पूरी हो जाए। मेरा दिल का एक मनोरथ पूरा हो जाए, लेकिन परमेश्वर का वायदा कहता है की या हुवा को परमेश्वर को अपने सुखी होने का कारण जान लें। इससे तेरे सारे मनोरथ पूरे हो जाएंगे। एक दो मनोरथ की बात पर मिश्रा का दास यहाँ नहीं कहता, परंतु कहता है तेरे सारे मनोरथ पूरे हो जाएंगे। दाऊद कहता है कि आज का दिन परमिशन ने बनाया है। हम इस में आनन्दित और मगन हो कहता है दाऊद की। जब उन्होंने मुझसे कहा की आओ हम परमेश्वर के भवन को चले, मैं आनंदित हुआ। मैं खुश हो गया हूँ। याद रखिए जब हम अपनी खुशी होने का कारण सुखी होने का कारण परमेश्वर को जानते हैं, परमेश्वर को यह बात बहुत अच्छी लगती है। और परमेश्वर देखते हैं कि मेरा बेटा मेरे कारण हंस रहा है, मुस्कुरा रहा है। आज लोगों ने उसके दिल को दुखाया है। लोगों ने आज उसको बुरा भला कहा है। हो सकता है लोगों ने उसको चोट पहुंचाई है। हो सकता है आज भलाई के बदले उसको बुरा ही मिल गई है। बावजूद इसके कि वो दुखी हो जाएं, परेशान हो जाए, अपने चेहरे को लटका ले। लेकिन वो इस वचन को याद रखता है कि यहोवा को अपने सुख का मूल्य जान मूल कारण जान मुख्य विषय जान की मेरा परमेश्वर मेरे साथ है। इसलिए मैं सुखी हूँ, इसलिए मैं आनंदित हूँ। तब परमेश्वर कहता है वो तेरे सारे मनोरथों को पूरा करेगा। आज हम सुख दुनिया भर की चीजों में ढूंढ़ते हैं। कई बार हम सोचते हैं कि शायद धन हमें सुख दे सकता है। कई बार हम सोचते हैं हमारी सुन्दरता हमें सुख दे सकती है। कई बार हमें लगता है हमारी ताकत, हमारा बल हमें सुख दे सकता है, लेकिन परमेश्वर का वचन कहता है कि अपने परमेश्वर को अपने सुख का मूल जाए अपने सुखी होने का कारण अपने समृद्ध इवान होने का कारण अपने आनंदित होने का कारण अपने मुस्कुराने का कारण अपने परमेश्वर को जाल तो वह तेरे मन की हर एक इच्छा को पूरा करेगा। प्रिय आज परमेश्वर का वचन आपके लिए है। आज कौन सी इच्छा है जिसे आप चाहते हैं? आपके जीवन में पूरी हो जाए? आज कौन सा ऐसा मनोरथ है जिसके लिए आप जद्दोजहद कर रहे हैं? लगातार प्रयत्नशील है तो आज परमेश्वर के इस वचन को याद करें जो कहता है परमेश्वर को अपने सुख का मूल जान, तो वो तेरे सारे मनोरथों को पूरा करेगा पर वो आप सभी को इस संदेश के द्वारा बहुत आशीष दे।",भगवान आपकी मनोकामना पूरी करेंगे "हैलो दोस्तों कैसे है? आप सभी विश्वास करते हैं। प्रभु की दया से आप सभी सुरक्षित होंगे, कुशल से होंगे जैसा कि आज के वातावरण को यदि हम देखे बहुत सारे जीवन इस समय निराशा की गर्त में जा रहे हैं। बहुत सारे लोगों का सुख चैन, नींद सब कुछ खो रहा है। बहुत सारे चेहरों पर इस समय आंसू नजर आ रहा है। हर दूसरा घर इस समय मातम मना रहा है क्योंकि परिस्थितियां कुछ इस प्रकार की परंतु प्रिय मेरे पास एक पुस्तक है। स्वेट मॉडर्न की लिखी गई सुख कैसे पाएं उस पुस्तक की आज मैं ऑडियो आपके लिए लेकर आई हूँ, आज हम सुनेंगे सुख कैसे पाएं? भाग एक? महान दार्शनिक हेलन ने सुख के विषय में अपने विचार इस प्रकार से प्रकट किए हैं जो धैर्य और हिम्मत से ये कह सकता है। मैं सफलता की प्रतीक्षा करूँगा। उसका सौभाग्य उसकी ओर अत्यंत तीव्र गति से भाग आता है और उसके प्रत्येक आवश्यकता की पूर्ति। करके उसे ऐसे ऐश्वर्य संपन्न बना देता है। एक ताकतवर इंसान यदि इस विश्वास के विचार में खोया हुआ हो की वो कुर्सी से नहीं उठ सकता, यही विचार उसे कुर्सी से उठने योग्य नहीं रहने देता, जब तक वह इस विश्वास से मुक्त नहीं हो जाता। उसके दिमाग से या वहन नहीं हट जाता। एक दुबली पतली स्त्री एक मोटे इंसान को पानी में डूबने से बचाने में तो सफल हो सकती है, यदि उसके मन में या विचार आ जाये की मुझे उसका जीवन बचाना है। ये दोनों कार्य केवल प्रेरणा से ही हो सकते हैं। भावना और प्रेरणा से इंसान ऐसे भी काम कर जाता है जो साधारण जीवन में असंभव नजर आते हैं। उस कार्य में हमारे विचारों की शक्ति और मन की शक्ति का कितना योगदान हो सकता है, इसका केवल हम अंदाजा ही लगा सकते हैं। लड़ाई का मैदान हो या व्यापारिक क्षेत्र, सामाजिक परिवर्तन हो या चारित्रिक सुधार, विश्व विजेता हो या आविष्कारक, इन सबने जो भी सफलता प्राप्त की वह केवल अपने मानसिक शक्ति से पाई है। युवकों के मन में यह बात बैठा देनी चाहिए कि वे ठीक ढंग से सोचने के द्वारा ही सफलता को यथाशीघ्र प्राप्त कर सकते हैं। किसी भी महान कार्य को करने के अंतर नहीं। शक्ति का ज्ञान, मनोवांछित कार्यों की सफलता में दृढ़ विश्वास, असफलता को ईश्वरीय शक्ति के विरुद्ध मानकर उससे बचने का प्रयत्न इन सब बातों से व्यक्ति के जीवन में आमूल परिवर्तन ला सकता है। इसे हम जीवन क्रांति का नाम भी दे सकते हैं। अपनी शक्ति पर विश्वास रखना, यह मान लेना कि मैं अपने वातावरण से ऊंचा नहीं उठ सकता, यही सोचकर बैठ जाना या तो हमारे भाग्य का दोष है, किसी इंसान को ऊंचा उठने नहीं दे सकते हैं। इनसे वह अपनी शक्ति को और भी कम कर लेता है जिसके फल वो अपने ही साथियों से पिछड़ जाता है। इस संसार की अधिकतर गरीबी, बेकारी का मुख्य कारण ही यही बातें। अपने को कमजोर समझ बैठना, वातावरण का गुलाम मान लेना, हालात के आगे घुटने टेक देना, ये सब मनुष्य के लिए आप प्राकृतिक अस्वाभाविक बताते हैं। अरे इंसान तुने अपने आप को गरीब क्यों माना? बेबस मजबूर जानकर अपने आप को हालात का दास बना लिया क्या तुमने कभी ये सोचा कि संसार की खुशियों पर तेरा भी तो अधिकार है? ईश्वर ने तेरे भाग्य में यह सब कुछ लिखा है उठ हिम्मत कर दिल छोटा मत कर अपना अधिकार पाने के लिए संघर्ष भी करना पड़ता है तो संघर्ष के लिए तैयार हो जाओ। यदि तो यही कहता रहेगा कि मेरे भाग्य में यह सब कुछ था ही नहीं, तो तेरे जैसा मूड इस संसार में और कौन होगा? अरे भाग्य लिखा नहीं जाता, स्वयं बनाया जाता है, मांगने से जब कुछ ना मिले तो छीना जाता है। किंतु इंसान को यह सब कुछ पाने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। अपने आप में एक ऐसा आत्मविश्वास पैदा करना पड़ता है। संसार में अभी तक ऐसी कोई विद्या नहीं बनी जो इंसान के अंदर झांककर यह देख सकें कि वह इस काम को कर सकता है या नहीं। क्या कोई ऐसा दर्शनशास्त्र है जिसे जानकर वह मनुष्य की उन्नति कर सके? जो ये समझ बैठा है की वो ऊंचा नहीं उठ सकता। इंसान सदा से दो चीजों का शिकार रहा है। संदेह और निश्चय। जिन्हें हम दो विपरीत दिशा ये कह सकते हैं एक इंसान एक समय में दो विपरीत दिशाओं की ओर कैसे चल सकता है? उसे यदि सफल होना है तो उसे संदेह की दिशा से बचना ही होगा। संदेह तो मानव का सबसे बड़ा शत्रु है या असफलता का मार्ग है? इस मार्ग की ओर तो भूलकर भी न देखें। निश्चय आपको सफलता की ओर ले जाता है तो फिर निश्चय को अपना मित्र समझ लीजिये। अपने दिल की स्लेट पर से भाग्य संदेह और मैं नहीं कर सकता वाले शब्द सदा के लिए मिटा डालिए और उस पर यहाँ लिख दीजिये की मुझे सफल होना है। मैं सफल होकर ही रहूंगा। मुझे आत्मविश्वास है यही मेरा दृढ़ निश्चय यही मेरा प्रण आपको करना होगा, यही प्रतिज्ञा करनी हो। कई इंसान ऐसे देखे गए हैं जो अपने खराब स्वास्थ्य के बारे में ही हर समय सोचते रहते हैं और यही सोच सोचकर ठंडी आहें भरते रहते है की मैं कब ठीक होगा? अरे भाई, सोचने से कुछ नहीं होता। भाग्य के भरोसे बैठे रहने से कुछ होने वाला नहीं है। इस विज्ञान के युग में हर बिमारी का इलाज है। ये छोटी मोटी बीमारियां तो साधारण डॉक्टर भी ठीक कर देते है। बस खाली हिम्मत करने की बात है। मन में ये धारणा बिठा लो कि मेरी यह बिमारी तो कुछ भी नहीं। मैं एक बार दवाई खाने से ठीक हो सकता हूँ। यदि आप अपनी कमजोरी के बारे में ही सोचते रहेंगे तो कभी बलवान नहीं बन सकते। यदि आप गरीबी का रोना ही रोते रहेंगे तो कभी अमीर नहीं बन सकते। उठिये सोचिये और कर डालिए मुझे गरीबी के जाल से बाहर आकर अमीर बनना है मुझे एक असफल इंसान नहीं बनना, मैं सफल इंसान बनकर सारा सुख पाना चाहता हूँ। इस संसार के हर सुख पर मेरा अधिकार है। मैं सुख पाना चाहता हूँ और सुख पाकर रहूंगा।","यह ऑडियो स्वेट मार्डन द्वारा लिखी गई किताब एवरी मैन ए किंग से लिया गया है जिसका अनुवाद है खुशी से कैसे जीना है आप इस ऑडियो को सुनकर अपने जीवन में निराशा से बाहर आ सकते हैं और कई आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं इसमें आपको हिंदी ऑडियोबुक, 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कार्य करने की शक्ति बढ़ जाएगी और उस शक्ति पर आप स्वयं विस्मित होंगे। यदि अधिकाधिक श्रेष्ठ कार्य करना चाहते हैं तो अपने मस्तिष्क को प्रकाश, सत्य, सौंदर्य, सद्विचार, हर्ष और प्रसन्नता के विचारों से प्रकाशमान रखें। जो बात आपको दुखी करें। आपके स्वभाव को ठेस पहुंचा ये और आपके समुचित स्वतंत्रता में बाधा डाले, उसे मिटा डाले, नष्ट कर दें पूर्व इसके की वहाँ आप को मार डाले या नष्ट कर दें। एक व्यापारिक फर्म का मालिक एक व्यक्ति को नौकर रखने के लिए जब उससे प्रश्न करने लगा तो उम्मीदवार ने भाग्य का रोना रोया, अपने दुर्भाग्य की चर्चा आरंभ कर दी। इस पर संचालक ने बिगाड़ कर कहा, मैं अभागे व्यक्तियों को कभी नहीं रखता। यहाँ ऐसे आदमियों के लिए कोई स्थान नहीं जो हरदम भाग्य का रोना रोया करते हैं। आपको चाहिए की अपनी पीड़ा और विपत्तियों को अपने तक ही सीमित रखें। आपकी कठिनाइयों का ज्ञान जीतने कम लोगो को होगा, उतना ही आपके हित में होगा। आप लोगों के उपहास से बच जाएंगे। आप पर कोई हंसेगा नहीं और कोई आप पर व्यंग बाण नहीं छोड़ेगा। आप की कहानी सुनकर लोग ये निष्कर्ष तो अवश्य निकालेंगे कि आपकी कठिनाइयों और विपत्तियों का कोई ना कोई कारण अवश्य है, किंतु कोई व्यक्ति किसी की दुर्दशा पर दया करके उसे नौकर नहीं रखता है। आशावान व्यक्ति के लिए सारे द्वार खोले जाते हैं। उसे किसी प्रकार के औपचारिक परिचय की आवश्यकता नहीं। जाड़े की धूप की तरह हर कोई उससे प्रेम करता है। जो व्यक्ति सफलता का इच्छुक है, उसे हर घड़ी मुस्कुराते रहना चाहिए। इससे न केवल उसके मित्रों में वृद्धि होगी वरन उसे जानने वाले लोगों की संख्या भी बढ़ जाएगी। यदि वह दुकानदार है तो उसकी दुकान पर ग्राहक अधिक आएँगे और उसके अपने जीवन पर भी गहरा प्रभाव पड़ेगा। यदि आपका मन विपत्तियों और कष्टों से छलनी हो चुका है, संकट और संताप से आपका जीवन दूभर हो गया है फिर भी यदि आप हर समय मुस्कुराते रहे, विनम्र और हंसमुख बने रहे तो आप अपने जीवन में एक बदलाव का अनुभव करेंगे। आपके जीवन उपवन में दुखों के स्थान पर सुखो प्रसन्नता ओं मुस्कुराहटों के सदाबहार फूल खिलने लगेंगे। लाडिया मेरी चाइल्ड का कथन है, मैं यथासंभव प्रसन्न रहने का प्रयत्न करती हूँ। मैं सर्वदा प्रसन्न और हर्ष की ही बाते सोचती हूँ। केवल कुछ चुनी हुई पुस्तकें पढ़ती हूँ, खिड़कियों में षट्कोण बिल्लोर के टुकड़े लगाती हूँ ताकि मेरा कमरा इंद्रधनुष के सुंदर और मनोहर रंगों से भरा रहे। यही है प्रसन्नचित्त आ का दर्शन यह मन के लिए सर्वश्रेष्ठ खुराक है। मानव शरीर के लिए सर्वश्रेष्ठ पौष्टिक औषधि है और यही सबसे अच्छा स्वास्थ्यप्रद भोजन है जो अब तक ज्ञात हुआ है। यदि आप में या शक्ति विद्यमान है कि हर गाड़ी, विनम्रता और प्रसन्नचित्त का प्रकाश अपने अंतर में रख सकें, हर समय अपने मानस में उज्ज्वल दीप जलाये रखें तो आपका मार्ग चाहे कितना ही कठिन हो, आप का बोझ कितना ही भारी हो। किंतु समय आने पर उस बोझ को उठा लेंगे। और अभीष्ट स्थान का मार्ग कितना ही दुर्गम हो पूरा कर लेंगे। सफलता के सोपानों पर चढ़ते चले जाएंगे जब तक आपको कोई काम करने का अवसर ना दिया जाए या जब तक आपको व्यवस्था की स्थिति में कोई कार्य ना करना पड़े, उस समय तक आप नहीं बता सकते कि आप क्या कर सकते हैं। आप में किस काम को करने की सामर्थ है? विश्व इतिहास में कुछ ऐसी विभूतियां हुई है जब तक वे अपने व्यक्तित्व और अपने साहस और हिम्मत के अतिरिक्त सब कुछ गवां बैठे, उनके अपने व्यक्तित्व तक पहुंचना हो सकी या फिर जब उन पर विपत्तियों के पहाड़ टूट पड़े उनको अपने आप को इस विपत्ति से बचाने के लिए यथाशक्ति हाथ पैर मारने पड़े। भिक्षा और आवश्यकता की पाठशाला में भीमकाय मनुष्य उत्पन्न होते हैं। उनको भीम का इसलिए कहा जाता है क्योंकि वे कठिनाइयों की चिंता नहीं करती। अत्यंत दूभर स्थितियों पर भी विजय प्राप्त करने में उन्हें दक्षता होती है। उन्हें उन कठिनाइयों, बाधाओं और विपत्तियों के पहाड़ों से शक्ति प्राप्त होती है और वहाँ उनका पुरुष की ही तरह सामना करके उन पर विजय प्राप्त करते हैं। संसार के महान व्यक्तियों में से अधिकांश को उस समय तक अपनी यथार्थ शक्ति का रत्ती बराबर भी अनुमान नहीं हुआ, जब तक किसी आकस्मिक दुर्घटना या इसकी विपत्ति ने उनके घरौंदे को नष्ट नहीं कर दिया। जिन लाठियों के सहारे वे खड़े थे, उन्हें ठोकर मारकर नहीं गिरा दिया। आप मन में ठान लें कि जो हो चुका सो हो चुका। भविष्य में आप हरगिज ऐसा नहीं करेंगे। कल प्रातः या दृढ़ संकल्प करके कार्य आरंभ कर दें कि आप किसी कर्तव्य को कल पर नहीं डालेंगे और जो कार्य आवश्यक है उन्हें तुरंत संपन्न करेंगे। कठिनाइयों के पहाड़ का निर्भीकता से सामना करेंगे। फिर आपको यह देखकर आश्चर्य होगा कि आपके संकल्प, स्थिरता और लौह स्थिरता के सामने कठिनाइयों और विपत्तियों के पहाड़ किस प्रकार धुआं बनकर उड़ जाते हैं। वह उस अवसर पर स्वयमेव निकलेगा और अपना प्रदर्शन करेगा या उसकी हिम्मत, साहस, आत्मविश्वास और अन्य कारणों परिणाम निकालने की शक्ति की परीक्षा का समय है। यदि किसी व्यक्ति में सफलता के तत्व लुप्त है तो उत्तरदायित्व के बोझ से अवश्य उनका प्रदर्शन होगा। हम में असंख्य लोग ऐसे मिलेंगे जो निर्थक और व्यर्थ बोझ लिए लिए चलते फिरते हैं। हम ऐसे बिस्तर और बाहर उठाएं। करते है जो हमें लाभ तो क्या उल्टी हानि पहुंचाते हैं? हमारी शक्ति नष्ट कर देते हैं और हम से काम करने की सामर्थ छीन लेते हैं। यदि हम यह आदत डाल लें कि सिर्फ काम की बातें तो याद रखेंगे और व्यर्थ की बातें और निरर्थक वस्तुओं को भूल जाएं और उन बातों को जो हमारी उन्नति में बाधक होती है। बी स्मरण कर दें, भूल जाये तो हम ना केवल सफलता की मंजिल तय करने लग जाएंगे। वर्णन हमारे सुख में भी वृद्धि हो जाएगी। सही ढंग से जीवन व्यतीत करने का एक भेद तो ये है की जो हमारे सामर्थ और शक्ति को नष्ट कर हमारी भावी उन्नति के मार्ग में रोड़े अटकाए उसको मिटा दिया जाए। हमें चाहिए कि अपने विगत कटु अनुभवों को भूल जाये, उनकी याद तक मस्तिष्क से निकाल दें। हमें अपनी त्रुटियों और दुर्बलताओं को याद नहीं रखना चाहिए। हाँ यदि उद्देश्य हो कि कहीं दोबारा गलती ना हो जाए तो पहली भूलो पर दृष्टि करना अच्छा है किंतु उन्हें बार बार मस्तिष्क में घुसाना ठीक नहीं। यदि उनकी याद रह रहकर सताती है तो बेहतर यह है कि उन्हें अपने मानस पटल से खुदरा छुड़ा लें ताकि उनका कोई चिन्ह शेष ना रहें। अपने वर्तमान जीवन पर उनकी छाया न पड़ने दें ताकि जो आप आइन्दा करने वाले हैं उसकी सामर्थ ना खो बैठें। जो पाठ आप ने सीखे हैं, उनसे निसंदेह लाभान्वित हो। आपको कोई नहीं रोकता दोस्तों आपको यह ऑडियो कैसी लगी है? अपने सुझाव और विचार मुझे जरूर बताएं और। आप हमारी वेबसाइट मीठी वाणी.कॉम पर भी विजिट कर सकते हैं और ऐसे ही प्रेरणादायक स्पीच को पढ़ सकते हैं। थैंक यू।","यह ऑडियो स्वेट मार्डन द्वारा लिखी गई किताब एवरी मैन ए किंग से लिया गया है जिसका अनुवाद है खुशी से कैसे जीना है आप इस ऑडियो को सुनकर अपने जीवन में निराशा से बाहर आ सकते हैं और कई आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं इसमें आपको हिंदी ऑडियोबुक, हिंदी ऑडियोबुक मिलेगी , 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निराशा आपके साथ है। आशाओं के द्वीप आपने बुझा दिये हैं तो फिर सफलता की आशा का स्वप्न कहाँ देख पाएंगे? आप तो अंधेरे में डूबे खड़े हैं, फिर भी क्यों आशा की बातें सोच रहे? ऐसे मैं तो आपके सारे शक्ति बेकार हो जाएंगे, आपकी बुद्धि नष्ट हो जाएगी या सबकुछ यदि हो भी जाये तो इसमें आश्चर्य कैसा? बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो जीवन की सच्चाई का मुकाबला ठीक ढंग से नहीं करते। वे अपने ही प्रयत्नो के बहुत सारे भाग को अपनी ही गलतियों से नष्ट कर देते हैं क्योंकि उनकी मानसिक स्थिथि और उनके प्रयत्नो में कोई तालमेल नहीं होता। जो भी आप काम करना चाहते हैं, उसमें आप की इच्छा और विचारों का भी मेल होना चाहिए। यदि ऐसा नहीं होगा तो आपके किसी भी कार्य में सफलता नहीं मिले गी। यदि आप अपने विचारों को कार्यों की सफलता का रूप देना चाहते हैं तो मन और शरीर का मिलन करना सीखिए। यदि मन, बुद्धि, आत्मा, शरीर सब मिलकर काम करेंगे तो आपको सफलता ही सफलता मिले गी धनवान बनने की आशा और सदा निर्धन बने रहने की सोच, दोनों ही एक दूसरे के विपरीत दिशाएँ। आप किसी वस्तु को पाने की आशा रखते हैं, यदि उसे प्राप्त करने की योग्यता पर स्वयं ही विश्वास नहीं है। तो या तो वही बात हो गयी की आप जा रहे हैं। पूर्व की ओर सोचा था। पश्चिम की ओर जाने के लिए सफल होने के सिद्धांत तो यही है कि आप जीस चीज़ की इच्छा करते है, उसे ही पाने की आशा भी करें और उसे पाने के लिए अपनी पूरी शक्ति लगा दें। इसमें ही आपको सफलता मिल सकती है। यदि आप ऐसा नहीं करते, तन और मन को मिलाकर नहीं चलते तो आपको सफलता नहीं मिल सकती। जो लोग वास्तव में ही सफल होना चाहते हैं उनके लिए अति आवश्यक है कि वे सदा अपने आप को आशा और सफलता की भावनाओं से भरे उनके सामने एक ही मंजिल होना चाहिए। सफलता सफलता का निश्चय ही आपके मन की इच्छाएं पूरी करेगा। आपकी भावनाओं की पूर्ति का एकमात्र मार्ग यही है। आशा, आत्मविश्वास, दृढ़ निश्चय यही आपकी सफलता के सच्चे साथी हैं। आप जीस दिशा की ओर मुँह किए हैं, उधर ही तो जाएंगे। यदि आपका मुँह गरीबी और आभाव की ओर है तो फिर आपको वही तो मिलेगा जिसके विपरीत यदि आपका मूलधन और संपत्ति की ओर है तो फिर आप उस दिशा में बढ़ते रहेंगे। आपकी सारी शक्ति उधर ही लगे गी, फिर आपको वह सब कुछ मिल जाएगा जिधर आप चल रहे हैं। हम में से बहुत से लोग परस्पर विरोधी कार्य करने में लगे रहते हैं। उनकी अपनी ही एक कोशिश दूसरी कोशिश को काट देती है। जब हम अपने मन में यह विश्वास कर लेते है कि धनी नहीं बन सकते तो फिर हम यह कैसे आशा कर सकते हैं कि हम अमीर बन जाएंगे? जब हमारे विचारों में गरीबी घुस गई है और हम यह सोच चूके हैं कि अब हम गरीब ही रहेंगे? तो फिर तो हमारा ईश्वर मालिक है, हमें रहना ही गरीब हैं। हमें अमीर कौन बना सकता है? यदि हमारे विचारों में दरिद्रता, निराशा बेदिली, बेव सी और मजबूरी भरी पड़ी है तो हम कैसे आशा रखें कि हम कभी जीवन में बड़े आदमी भी बन जाएंगे? सच बात तो ये है की हमारे यहाँ विचार ही हमें ले डूबेंगे, हम आगे नहीं बढ़ सकते हैं। यदि आप वास्तव में धनवान बनना चाहते हैं यदि आपने अपने जीवन के हर शक्ति धनवान बनने के लिए लगा रखी है तो फिर आप अपने विचारों को भी धनी बना लीजिये और समझ लीजिये की आप अमीर बन गए हैं। अपनी विचारधारा और चाल ढाल में भी वही बात पैदा कीजिये जो एक अमीर आदमी में होती है। आपके किसी बात से गरीबी की बू नहीं आनी चाहिए, भले ही आपकी जेब में खर्चे के लिए थोड़े रूपये भी नहीं है। किंतु फिर भी अपने आप को ऐसा बना के रखिये जैसे आपकी जे बी नोटों से भरी पड़ी हो, मित्रों में बैठकर अपनी गरीबी का रोना मत रोने लगी है। आपके इस व्यवहार से सब लोगों के मन में यह बात तो बैठी जाएगी कि अब आप अमीर आदमी बन गए हैं। आपकी यह छवि आपके लिए बहुत लाभदायक सिद्ध होगी। जो लोग आपको गरीब समझकर दूर भागते थे, वही आपको अमीर जानकर आगे पीछे घूमना आरंभ कर देंगे, जो आपको मांगने से कुछ रुपये भी उधार नहीं देते थे। वही कहने लगेंगे कि भाई कुछ रुपए पैसे की आवश्यकता हो तो ले लेना। इसके विपरीत जब आप अपनी गरीबी का रोना रोते हैं तो फिर समझ लो कि आपके सगे संबंधी भी आप से दूर भागना शुरू हो जाएंगे। जो लोग आपके प्रिय मित्र थे, वहीं गरीबी का नाम सुनते ही दूर भाग जाएंगे। जो कारोबार आप चला रहे हैं उसके सारे लेनदार एक ही दिन में इकट्ठे होकर आपके पास आ जाएंगे। इसका परिणाम क्या होगा? यही ना कि आप सब ओर से ठुकराए जाएंगे, कोई आपको अपने पास खड़ा होने नहीं देगा। लोगों को यही डर लगेगा कि आप उन से कुछ मांगना लें। इस प्रकार से आप अकेले पड़ जाएंगे और आपका या अकेलापन स्वास्थ्य के लिए कितना हानिकारक सिद्ध हो सकता है, इसकी कल्पना करके देखिये। ज़रा सोचिये कहीं आप गरीबी को स्वयं ही तो नहीं अपने पास बुला रहे है। विचार तो चुंबक के समान होते हैं। वे अपने ही अनुकूल पदार्थों को अपनी ओर खींचते हैं। यदि आपका मन दिन रात गरीबी के बारे में ही सोचता रहता है तो फिर आपका मन रूपी चुंबक गरीबी को ही अपनी ओर खींचता रहता है। हाँ, यदि आपका मन बीमारियां महसूस कर रहा है तो फिर आप बिमारी को अपनी ओर खींच लेते हैं। यदि आप यह सोचते हैं कि इस काम को करने से मुझे घाटा हो जायेगा तो फिर समझ लो की आपको घाटा अवश्य होगा, उसे नफे में कोई नहीं बदल पाएगा। इस सारी कहानी के पीछे केवल आपकी उस मनोवृत्ति का ही हाथ है, जो आप सोचते हैं, वही तो आपके मन पर प्रभाव डालता है, वैसे ही आपकी मनोवृत्ति भी हो जाती है। यह बात याद रखिये कि आपकी इन सब बातों की जड़ मूल आपका मन ही है। जो मन सोचेगा उसी का प्रभाव शरीर पर पड़ेगा, विचारों पर पड़ेगा और आपके पूरे जीवन पर पड़ेगा। विशेष रूप से कारोबारी लोग जब हर समय यही कहते रहेंगे मंदा है, मंदा है इस समय तो कारोबार बहुत घाटे में चल रहा है तो फिर समझ लो कि आपको घाटा भी हुआ है और मंदा भी आया है और आपके मन पर बोझ भी पड़ा है, ये सब कुछ क्यों हुआ? केवल इसलिए कि आप हर समय रोते रहते थे, घाटे की बातें करते रहते थे, होना वही था जो आपके मन से निकला। असफलता, निराशा, चिंता ये सब मिलकर इंसान की प्रबल ताकतों को भी मदद कर देती है। इससे आपकी प्रगति के द्वार एक एक करके बंद होने लगते हैं। इन हालात में जो भी कार्य किया जाता है, उसमें घाटा ही घाटा होता है। धीरे धीरे मनुष्य हार जाता है, थक जाता है, उसमें काम करने की शक्ति दम तोड़ने लगती है, कमजोरी, चिंता, परेशानियां मिलकर उसे घेर लेती है। फिर एक अभागा दिन ऐसा भी आता है जब मनुष्य आत्महत्या की बात सोचने पर मजबूर हो जाता है। अब आप यहाँ बस से पूछेंगे कि इसका उपाय क्या है? लो सुनो, आपको हर काम पड़े ही ध्यान से देखना चाहिए। उसके उज्ज्वल लक्ष्य की ओर पहले देखना आवश्यक है। उस काम को आशा समझकर ही करना चाहिए। यह समझ लें कि इसमें सफलता अवश्य मिले गी। इसलिए मन से असफलता और निराशा को निकाल दें। मन में यह निश्चय कर लें कि अंत में विजय सच्चाई की होगी। अच्छे काम करने वाले कभी घबराया नहीं करती, अपने हृदय की आवाज सुनो, फिर कदम आगे बढ़ाओ। कोरी कल्पना से कुछ नहीं होता। काम करने में ही आनंद है। दृढ़ इरादा, आत्मविश्वास, कुछ करने की अभिलाषा, जिंस भी प्राणी के साथ ये सब कुछ होगा, वह हार नहीं सकता। जो लोग इन बातों पर दृढ़ता से कायम रहेंगे। विजय श्री सदा उनके साथ रहे गी अच्छा स्वास्थ्य और सफलता ही वास्तव में सकते हैं। बीमार प्राणी और असफलता इन्हीं के अभाव की स्थिति के नाम हैं। यदि आपके अंदर आशा की शक्ति है तो इसी के बल पर आप सफलता प्राप्त कर सकते हैं। आशावादी निर्माता है। आशावाद की स् थिति, मानसिक सूर्योदय जैसे सुबह का सूर्य, आशा की किरणें सारे संसार के लिए लेकर आता है। वहाँ आशा ही मानव जीवन का सबसे बड़ा चिन्ह है या किरण्य हमें आशा की याद दिलाती है। हमें बार बार जीवन की उस अनमोल ज्योति का अहसास करवाती है जो हमारा मार्गदर्शन हैं। निराशावाद इंसान का सबसे बड़ा शत्रु है। निराशावाद एक नरक है। आशावाद स्वर्ग अब आपको अपने लिए इन दोनों में से एक को चुनना है। आशावाद से सारी मानसिक योग्यताओं का विकास होता है। निराशावाद आप को ले डूबेगा और जीवन की हर खुशी से वंचित कर देगा। आशा से जीवन का विकास होता है। हमें जीवन से कभी हार नहीं माननी चाहिए। निराशा का दामन छोड़ने का अर्थ ही चिंताओं से मुक्ति प्राप्त करना है। आओ एक बार फिर यह प्रतिज्ञा करें कि हम जीवन में निराशा को पास नहीं आने देंगे, चिंतामुक्त होकर जीवन व्यतीत करेंगे तो दोस्तों विश्वास करती हूँ। आज का यह भाग आपको पसंद आया होगा? पसंद आया है तो अपने मित्रों के साथ इसे बांटे और इसे लाइक करें। अपने सुझाव और कमेंट भी मुझे लिखना ना भूलें। सुनते रहे मोनिका को बाइ बाइ।","यह ऑडियो स्वेट मार्डन द्वारा लिखी गई किताब एवरी मैन ए किंग से लिया गया है जिसका अनुवाद है खुशी से कैसे जीना है आप इस ऑडियो को सुनकर अपने जीवन में निराशा से बाहर आ सकते हैं और कई आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं इसमें आपको हिंदी ऑडियोबुक, हिंदी ऑडियोबुक मिलेगी , हिंदी में ऑडियोबुक, प्रेरक ऑडियोबुक, प्रेरक ऑडियो, सर्वश्रेष्ठ हिंदी प्रेरक ऑडियोबुक, हिंदी में सर्वश्रेष्ठ प्रेरक ऑडियोबुक, हिंदी में सबसे बड़ी ऑडियोबुक, हिंदी में प्रेरणादायक ऑडियोबुक, हिंदी में प्रेरणादायक ऑडियोबुक, हिंदी में जीवन बदलने वाली ऑडियोबुक, हिंदी ऑडियोबुक ऑनलाइन, #हिन्दीऑडियोबुक, #मोटिवेशनलऑडियोबुक , #inspirationalaudiobookinhindi," "हैलो फ्रेन्ड्स आज हम सुनेंगे महान लेखक स्वेट मॉडर्न के द्वारा लिखी गई पुस्तक एव्रीमैन आ किंग का हिंदी अनुवाद। भाग 10 निराशा इंसान की सबसे बड़ी शत्रु है। ये बात तो आप प्रमाणित हो चुकी है कि इंसान की सारी चिंताओं का इलाज केवल आत्मविश्वास है। जब कभी भी आप निराशा और आशंका से भयभीत होने लगे और अपने उद्देश्य पर दृढ़ विश्वास हो तो रास्ते तो अपने आप मिल जाते, जैसा कि खुश रहना बहुत सरल है, उत्साही रहना कठिन नहीं, साहसी बनना बहुत सरल है, उपाय सोचना आसान है। यह चारों काम बड़े आसान है, किंतु इन सरल कामों से कभी कभी ऐसे कठिन कार्य पूर्ण हो जाते हैं जिनकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। उनको पूर्ण होते देख बहुत लोग हैरान रह जाते हैं जिसका मन अशांत हो व सोचने विचारने की शक्ति खो देता है। उसका दृष्टिकोण स्पष्ट नहीं होता, उसके विचार उत्साही नहीं होते। चिंता उसके मस्तिष्क को धुंधला कर देती हैं। अच्छे स्वास्थ्य की बाते कीजिये तो आप सवस्थ रहेंगे। सफलता की बातें कीजिये तो आप सफल रहेंगे। विजय की बाते कीजिये तो आपको विजय प्राप्त होगी। इसके विपरीत यदि आप हर समय चिंता में खोए रहते हैं तो साफ तौर पर कुछ नहीं सोच सकती। अच्छी योजना नहीं बना सकते। अपने काम करने की शक्ति को इकट्ठा करके अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए नहीं लगा सकते। आपकी चिंता आप पर बोझ तो है ही किंतु इसका प्रभाव तो आपके सगे संबंधियों और मित्रों पर भी पड़ सकता है। वे लोग भी आपको उदास देखकर दुखी होंगे। ऐसी चिंता का क्या लाभ जो सबके लिए दुख लाए? क्यों ना आप हर समय खुशी की बातें करें। इससे आप भी खुश और सब मिलने जुलने वाले सगे संबंधी भी खु़श खुशी तो सारे संसार की प्रिय चीज़ का नाम है। खुश रहने वाले प्राणी में सर्वाधिक उत्साह होता है। वह साहसी होता है जबकि उदास और चिंतित आदमी में कोई उत्साह नहीं होता। वह हिम्मत हारकर बैठ ता है। इसलिए अपने आप को सदा खुश रखो, गम को अपने पास ना आने दो, चिंता की परछाई भी ना अपने ऊपर पड़ने दो। काल दिल का कथन है कि कुछ लोग संकट आ जाने पर और भी प्रबल हो जाते हैं। इसके विपरीत कुछ लोग जहा पर जाते हैं। डर की भावना, संकट का डर ख्याल करके दुख के विचार फैलातें रहते हैं। वे अपने चिंता, डर, निराशा का जहर चारों ओर फैला देते हैं। वे बार बार यही कहते हैं कि हमारा तो जन्म ही दुख पाने के लिए हुआ है, इसलिए यह चिंता और दुख हमारे नसीब में लिखे गए हैं, जिन्हें हम सहन कर रहे हैं। इन मूर्खों से कोई पूछे कि ईश्वर ने किसी भी इंसान को दुःख सहने के लिए भेजा है। यह संसार तो स्वर्ग है इस संसार को नर्क बनाने का आप को क्या अधिकार है? इंसान का जन्म तो खुशियां पाने के लिए हुआ है। और मन हो शकल वालों को अपने मित्रों और सगे संबंधियों के पास जाने का कोई अधिकार नहीं। कुछ लोग ऐसे भी हैं जब उन्हें चिंता का दौरा पड़ता है तो वे उसका स्वागत करते हैं। वे अपने दुखों को खूब खोल खोलकर बताने लगते हैं। अपने दुखों को दूसरों के आगे खोलने से उन्हें आनंद आने लगता है। आज के युग में दुखी और रोने वाले इंसान की कहीं पर कोई जगह नहीं। दुखी लोग भी दुःख सुनाने वाले से घृणा करते हैं। यह संसार दुखों के बोझ से पहले ही दबा पड़ा है। आप और बोझ इस पर क्यों लाते हो? चिंता छोड़ो को दूर भगाओ, उदासी से घृणा करो, रोने की आदत छोड़ो। अपने आप को संभालो। नहीं तो लोग आपकी रोनी सूरत देखकर आपको छोड़ देंगे, आप बिल्कुल अकेले पड़ जाएंगे। निराशावादी लोग आशावादी लोगों के भी सबसे बड़े शत्रु होते हैं। वे अपने दुखों का रोना सूखी लोगों के पास अधिक रोते है। वे कितने भी उत्साही, परिश्रमी, सुखी हंसने वाले क्यों ना हो किंतु यह अपना रोना रो रोकर उन्हें निराशावादी बनाने के मूड में ही रहते हैं। इसलिए ऐसे लोगों से सदा अपने आप को दूर रखिए। ईश्वर ने इतना सुंदर संसार बनाकर हमें इस पर भेजा है, किस लिए, रोने के लिए नहीं। कोई भी माली जब सुंदरबाग तैयार करता है उसमें हजारों रंग बिरंगी फूल बहारों का स्वागत इसलिए नहीं करते कि वे रोते रहे नहीं, ऐसा नहीं सोचना चाहिए। यह बात तो हंसने के लिए रोग कर आप संसार की सुन्दरता को नष्ट मत कीजिये। इमर्जेंट ने कहा है खुशी से खिला बुद्धिमत्तापूर्ण चेहरा? सभ्यता और संस्कृति की चरमसीमा है। श्रेष्ठता का शिकार है। इस प्रकार के खेले चेहरे को हम जितनी बार भी देखते हैं, हमें उतना ही आनंद आता है जिसकी झलक ना तो इस धरती पर है और ना ही सागर। उस व्यक्ति के दर्शन करके ऐसा लगता है जैसे हमने प्रभु के दर्शन कर लिए। यह सब खेले हुए हंसमुख चेहरों को देखकर ही होता है। इसी तस्वीर का दूसरा रोग है वि निराश, उदास, रोते हुए चेहरे जो सबसे पहले तो अपने परिवार में ही निराशा फैला देते हैं, फिर इस पूरे समाज को निराशा में डुबो देते। अब आप ही बताइए कि ऐसे लोगों का जीवन भी किस काम का, जो स्वयं तो मौत जैसा जीवन व्यतीत कर रहे हैं, किंतु दूसरों को भी दुखी करते? महान लोग वही होते हैं जो दुखों को अंदर ही अंदर पीकर सुख बढ़ते दे तो ईश्वर का संदेश फैलातें हैं। महामूर्ख वे हैं जो दुख का रोना रोते हुए जगह जगह निराशा बांटते फिरते है। जो आदमी घटिया विचारों का गुलाम हैं, वह कभी भी महान नहीं बन सकता, भले ही वो कितना बुद्धिमान, होशियार, चालाक क्यों ना हो। वह समाज में घृणा की दृष्टि से देखा जाएगा। बुद्धि के साथ विचारों का मेल। जब तक नहीं बैठता तब तक बुद्धि की कोई कीमत नहीं उत्साहहीनता आने से आदमी के निर्णय और न्याय की ताकत कम हो जाती है। भाई के हालात में आकर वह गलत निर्णय कर बैठता है। शीतल बुद्धि, मानसिक संतुष्टि इन सभी विशेष योग्यताओं को वह खो बैठता है जिससे समय किसी इंसान पर संकट आ जाता है। ये किसी बड़े आदमी की जिम्मेवारी आ जाती है, उसी समय तो उसके धैर्य की परीक्षा होती है। किंतु ऐसे समय वही आदमी उसका मुकाबला करने में समर्थ हो सकता है जो मन की शान्ति और धैर्य को नष्ट ना होने दे। अपना संतुलन बनाए रखें। अपनी स्थिति को धैर्य से विश्लेषण करें, अपने चारों ओर के हालात का निरीक्षण करें, फिर निर्णय करें। अपने मन को शांत रखें। बुद्धि पर ज़ोर डालें, जल्दबाजी से काम, नाले बस सफलता उसके साथ है। इंसान का जन्म इंद्रियों का गुलाम बनने के लिए नहीं हुआ। मनोभावनाओं का दास बनने के लिए नहीं हुआ है। उसकी बहादुरी इसी में है कि वह इनका स्वामी बने। जो लोग इन चीजों के स्वामी बनकर इन्हें अपना दास बना लेते है, वही सफल होते हैं और वही विजेता कहलाते हैं। उठो, एक बार या प्रतिज्ञा करो कि हम कभी इंद्रियों के गुलाम नहीं बनेंगे, भावनाओं की आग में नहीं जलेंगे। हमें ईश्वर ने अच्छे काम करने के लिए इस धरती पर भी जाए और हम ईश्वर की आज्ञा का पालन करेंगे। तो दोस्तों आप सुन रहे थे मोनिका की आवाज में प्रेरणादायक लेखक की महान कृति एव्रीमैन कीलिंग का। हिंदी अनुवाद जिसका आज हमने 10 वां भाग सुना है।","यह ऑडियो स्वेट मार्डन द्वारा लिखी गई किताब एवरी मैन ए किंग से लिया गया है जिसका अनुवाद है खुशी से कैसे जीना है आप इस ऑडियो को सुनकर अपने जीवन में निराशा से बाहर आ सकते हैं और कई आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं इसमें आपको हिंदी ऑडियोबुक, हिंदी ऑडियोबुक मिलेगी , हिंदी में ऑडियोबुक, प्रेरक ऑडियोबुक, प्रेरक ऑडियो, सर्वश्रेष्ठ हिंदी प्रेरक ऑडियोबुक, हिंदी में सर्वश्रेष्ठ प्रेरक ऑडियोबुक, हिंदी में सबसे बड़ी ऑडियोबुक, हिंदी में 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आध्यात्मिक संकेतों और अवस्था का। सुधारजनक प्रभाव पड़ता है और अवश्य पड़ता है और उससे मानसिक प्रगति में पर्याप्त सहायता मिलती है। जब हमें ये ज्ञात हो जाएगा की व्याकुलता, चिंता, रोग और प्रत्येक कष्टदायक और शोक पद वस्तु का यथार्थ कारण कल्पना का त्रुटिपूर्ण ढंग हैं, तब हमें वास्तविक स्वास्थ्य का भेद ज्ञात हो जाएगा और हमें वैज्ञानिक नियमों के अनुसार जीवनयापन का ढंग आ जायेगा। फिर हम अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण वातावरण में भी रह कर उच्चतम वस्तुएँ उत्पन्न कर सकेंगे और नितांत प्रतिकूल और विरोधी परिस्थितियों में साफ, निर्मल और संतुलन प्रिय जीवन की महक और सुगंध बिखेर सकेंगे। हर समय कल्याण और अच्छाई की कल्पना करें, बुरा ई का विचार मस्तिष्क में ना आने दें। अपने हृदय और दिमाग को सदाचार, सौंदर्य और सत्य के विचारों से भरा हुआ रखें ताकि वहाँ दुराचार, कुरूपता और झूठ को स्थान न मिल सके। जब आप ऐसा करने में सफल हो जाएंगे तो फिर आप यदाकदा ही रोग ग्रस्त होंगे। आपका स्वास्थ्य दिन प्रतिदिन उन्नति करेगा। इसके अतिरिक्त आप वृद्धावस्था से बच जाएंगे और आपकी तरुण आए सदा बनी रहेंगी। जब तक आप का अंतर इस बात की अनुभूति ना दे, आपके मुख से आपकी आयु का पता नहीं चल सकता। मानव हृदय प्रस्ता कार की तरह है और आपके मुखाकृति से आपकी आत्मा का प्रतिबिंब झलकता है। जब हमारे विचारों में परिवर्तन हो जाता है तो हमारा शरीर भी परिवर्तित हो जाता है। विचार परिवर्तन से आदतें बदल जाती है, मानसिक संतुलन से मानसिक शांति प्राप्त होती है और मानसिक शांति से आयु बढ़ती है। यह एक अत्यंत लाभप्रद निदान है। जो बात हमारे मस्तिष्क को चिंतित और दुखी करती है या हमारी मानसिक शांति को नष्ट भ्रष्ट कर देती है वही बात व्याकुलता, बेचैनी और द्वंद उत्पन्न करती है। और इस दौरान दही से जीवन के कोमल यंत्र के पुर्जे शीघ्र घिस जाते है। बहुत कम लोगों को अपने आसपास के घुटे घुटे, थकावट भरे और चिंताजनक वातावरण के प्रभाव से बचाने का साधन विदित है। इसीलिए तो आए दिन वे किसी ना किसी रोग में फंसे रहते हैं। यदि दिमाग में हष्ट पुष्ट, सवस्थ और आशावादी और पूर्ण यौवन का चित्र रखा जाए, उन भव्य कारनामों की कल्पना की जाए जो केवल यौवन का अंश है। यौवन के सपनों, विचारों और आशाओं को हर क्षण अपने सामने रखा जाए तो आपका योवन बना रहेगा। आपका यौवन प्रगति करेगा और आप पर समय की तीव्र गति का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। यदि आप हर समय सोचते रहेंगे कि आप युवा हैं, सवस्थ हैं और हष्टपुष्ट है तो आप युवा ही बने रहेंगे और निश्चय ही हष्ट पुष्ट और सवस्थ रहेंगे। स्टीवेन्सन कहा करता था यौवन की आत्मा को। जीवित और सुदृढ़ बनाए रखना समस्त मानसिक अंगों का स्थायी स्रोत है। सोना बनाने के इच्छुक और बि पासु जिंस वस्तु को युगों तक पीतल और पारे में ढूंढ़ते रहे। यह 21 ईयर स्वयं हमारे शरीर के अंदर विद्यमान है। उसका भेद हमारी अपनी प्रवृत्ति में हैं, जो हमारे विचारों द्वारा नियंत्रित होती है। शुद्ध और निरोग विचारों के द्वारा सदा युवा बना रहना संभव है। जियोर्जियो हम अपने आप को बूढ़ा और निर्मल समझने लगते हैं। क्यों? क्यों हम बूढ़े, निर्मल और शक्तिहीन होते जाते हैं क्योंकि हमारे विचार और कल्पनाएं हमारी प्रकट और गुप्त स्थिति में परिवर्तन करती रहती है। हमारा स्वास्थ्य शक्ति हमारे विचारों के अनुसार ही बनती है। आशा के कितने ही लहलहाते खेतों के लिए दुर्बलता और निम्नता का काल्पनिक संकेत प्रचंड वायु और तूफान सिद्ध हुआ है। कितने ही बहुमूल्य जीवन मात्र इस अनुभव के कारण नष्ट हो गए। माता पिता और शिक्षक के बालक को हर समय दुर्बुद्धि और मुर्ग कहने से अंत में जो हानि होती है, उसका अनुमान भी नहीं किया जा सकता। यदि बालक को बार बार या कहा जाए कि तुम बुद्धू हो, मूर्ख हो। तुम सदा गलतियाँ करते रहते हो, तुम्हारा कोई काम ठीक नहीं होता, तुम कभी कुछ नहीं बन सकती। ये सब बालक के कोमल और उदार हृदय और दिमाग पर इस प्रकार छा जाता है कि युवा होने पर भी उस चिन्ह को मिटाना अत्यंत दुष्कर हो जाता है और फलस्वरूप व भारी क्षति का कारण सिद्ध होता है। क्या आप बालक की बुद्धिहीनता और प्रकट मूर्खता का कारण जानते हैं? इसका अधिकांश कारण बालक का डर, लज्जा और संकोच होता है। बालक को अपने विचारों की निर्भीक अभिव्यक्ति का साहस नहीं होता। उसे अपना विचार प्रकट करते हुए एक अज्ञात सा डर अनुभव होता है। वो समझता है कि उसके माता पिता और अध्यापकों का ज्ञान और अनुभव, उसकी योग्यता और समस्या बढ़कर है। वो डर जाता है और अपने मन में कहता है की इसमें संदेह नहीं कि मुझसे अधिक शिक्षित और अनुभवी हैं। वह मुझे मूर्ख और अज्ञानी कहने में कदाचित न्यायपूर्ण हो। फिर मैं वास्तव में मूर्ख और अज्ञानी होगा। जब उसे इस बात का अनुभव होता है कि वह वास्तव में मूर्ख है तो वो हताश हो जाता है, उसका सुकुमार और कोमल हृदय टूट जाता है और बाद में चाहे कितना ही प्रयत्न क्यों ना किया जाये, कुछ बनाया नहीं बनता। मैं एक ऐसे मनुष्य को जानता हूँ जो पड़े शानदार कार्य कर सकता था किंतु उसका जीवन केवल इस कारण से नष्ट हो गया की जब आप बच्चा था तो बहुधा उसके कानों में ये ही आवाज़ पड़ती थी की तुम मूड हो, निरक्षर हो, अज्ञानी हो। उसका कहना है कि बाद में जब कभी उसे सार्वजनिक रूप से या निजी रूप से किसी दायित्व का पद प्रस्तुत किया जाता तो उसकी दुर्बलता का चित्र जो उसके मानस पटल पर अंकित था, उसके सामने घूम जाता और उससे उसके विश्वास को धक्का लगता। उसके आत्मविश्वास को ठेस पहुंचती। और वहाँ अनुभव करने लगता कि मुझमें वह योग्यता नहीं है जिसकी मेरे दूसरे साथियों में बहुलता है। मेरी प्रकृति में ही कुछ कमी है और कमजोरी है। इस प्रकार वह बड़े घाटे में रहता और हानि उठाता, किंतु कर्मभूमि में वह कभी अपने पौरुष के साथ सामने नहीं आया और इस प्रकार अपने जीवन का श्रेष्ठतम भाग उसने खो दिया। यदि उसके माता पिता और शिक्षक बचपन में ही यह समझ लेते की यह बालक भी रु। और लजीला है। इसके दिमाग में किसी प्रकार की कोई त्रुटि नहीं संभव है। इसकी प्रगति की गति मंद हो तो उसका परिणाम यह होता कि उसका जीवन बिल्कुल ही बदल जाता। वहाँ आजीवन डरपोक और लज्जालु बने रहने की अपेक्षा साहसी और पराक्रमी बन जाता। उसके अतिरिक्त दुर्बलता और निम्नता का अनुभव और भी अनेक कठिनाइयों और विपत्तियों का उत्तरदायी है। हमारे देश में सहस्त्रों मनुष्य ऐसे हैं जिनके मन में यह विचार घर कर लेता है। की हमारे कारखानों के मालिक या कार्यालय के हेड क्लर्क और हम में बहुत अंतर है। वे उच्च वर्ग से संबंध रखते हैं और हम निकृष्ट संस्था के सदस्य हैं। इसी प्रकार वे अपने आत्मविश्वास, आत्म सम्मान, साहस, उत्साह, स्थिरता और सफलता की अन्य समस्त शक्ति यों को भारी क्षति पहुंचाते हैं। इस प्रकार के व्यक्ति हर स्थान पर चाटू कार्य करते शीर्ष रगड़ते। और बूट की तो चाटते हुए दिख पड़ते हैं, वे सर्वदा यही कहा करते है। हाँ हाँ साहब जी हुज़ूर। हुजूर ने ठीक कहा महाराज, आप का कथन सर्वदा सत्य और उचित है। जब उनका कोई शक्ति धारी अधिकारी उनसे कोई वस्तु मांगता है। तो वह मांग चाहे कितनी हास्यास्पद और अनुचित क्यों ना हो, उन लोगों के व्यवहार से यह प्रकट होता है कि उनके कोई अधिकार है ही नहीं और यदि है भी तो वह जो उसने अपने स्वामी या अधिकारी से अस्थाई रूप से ले लिए हैं। माना की आप निर्धन है, दरिद्र है और आपका मालिक लखपति हैं तब भी आपको भी तो परमात्मा की पृथ्वी पर रहने का उतना ही अधिकार है जितना आप के मालिक को यदि आपके संकल्प कुछ और महान है और आप यथाशक्ति प्रयत्न भी करते हैं तो आपको भय किस बात का? आपको अपना सिर ऊंचा रखना चाहिए और मालिक और दुनिया वालों की आँखों से आंखें मिलाने में किसी प्रकार का संकोच अनुभव नहीं करना चाहिए। यदि आप अपने आप को बहुत निम्न और साधारण योग्यता का व्यक्ति समझते हैं तो आप हें और नीचे ही रहेंगे। यदि आप स्वयं अपना आदर नहीं करते तो आपके चेहरे और आपकी बातों से आपके विचार और अनुभूतियाँ प्रकट होंगी। आपके निर्मलता और विवशता पुकार पुकारकर कहेगी कि आप अपने संबंध में बहुत बुरी राय रखते हैं, आपकी सफलता तो संदिग्ध हो ही जाएगी, किंतु यह स्मरण रहे कि संसार आपको वही कुछ समझेगा जो आप खुद अपने मन में समझे बैठे हैं। आज का दिन मेरा है, आज मैं हृदय से प्रण करता हूँ कि किसी को विचार गलानी। डाह, क्रोध, भय लोभ की बुराइयों से स्वयं को बचाऊंगा। आज इस हर समय संसार में स्वास्थ्य, सुरक्षा, मेलजोल, प्रसन्नता और सदाचार मेरे साथ है। मानव शरीर की रचना इस बात की साक्षी है कि इंसान को प्रकृति के हाथों ने एक पूर्ण जीवन प्रदान किया है। उसकी शारीरिक बनावट में किसी प्रकार की विशेष कमी त्रुटि प्रकट नहीं होती। उसको 100 में से। 100 नंबर मिले हैं ना 50 ना 25। प्रकृति के कलाकार ने उनको अपनी कला का चमत्कार प्रकट करने के लिए उत्पन्न किया है। अतएव हमें जो आधे या चौथाई व्यक्तित्व दिखाई देते हैं, वे अनियमित और अपूर्ण है। मेरी उत्कंठा की काश मैं अपने देश के नवयुवकों के संयोग इस बात का महत्त्व स्पष्ट कर सकता कि जो कुछ बनने की इच्छा हृदय में है। हर घड़ी उस इस्थिति का चित्र अपनी आँखों के सामने रखना कितना आवश्यक है? यदि हमें ज्ञात हो जाए कि अपने दिमाग में आप पूर्ण, धुंधले और दोषपूर्ण चित्र की अपेक्षा अपने पूर्ण और दोषहीन चित्र रखने से क्या लाभ होता है तो हम अपने स्वभाव और विचारों को बहुत जल्द सुधार सकते हैं यदि हम अपने मस्तिष्क में उन्हें गुणों और विशेषताएं को रखें, जिन्हें प्राप्त करने की हमें हार्दिक दिक्षा होती है तो पूर्ति और प्रस्तावित श्रेष्ठता की ओर हमारे डग द्रुत गति से उठने लगेंगे। यदि आप अपनी आत्मा की इच्छाओं की पूर्ति चाहते हैं तो यह अत्यंत आवश्यक है कि आप यहाँ कल्पना कर लें कि आप उन्हें पूर्ण कर चुकें हैं क्योंकि ऐसी मानसिक कल्पना से वहाँ अंडा उत्पन्न होगा, जिसमें से यथार्थ के मुर्गे का प्रादुर्भाव होगा और यही वह स्थान है जहाँ आपके जीवन की रूपरेखा तैयार होती है। प्रत्येक व्यक्ति इस दृष्टि से एक सृजन करता है कि वह अपने जीवन के चित्र बनाता है, रूपरेखा तैयार करता है और उस में रंग भरता है। हमारा जीवन अपने आदर्श का अनुसरण करता है। हम वही कुछ बनते हैं जो कुछ बनने की हमारे हृदय में उत्कंठा होती है। यदि हम सदा उच्च, महान और सुयोग्य बनने की इच्छा करें और फिर यथाशक्ति उसके लिए सचेत रहें तो असंभव है। की हमारी दिशा में उन्नति ना हो, ऐसी अभिलाषा को हृदय में स्थान ना दीजिये जो उद्देश्यों की उड़ान ना भर सके। ऐसे विचार ही उत्पन्न ना होने दीजिए जो आपकी प्रकृति को उन्नति के मार्ग की ओर प्रवर्तन ना करें। आपको अपनी कल्पना पर ऐसा अधिकार होना चाहिए कि वह सदैव उच्च उद्देश्यों के बारे में सोचें। हृदय में कोई विचार भी ना लाएं जिसका लक्ष्य ऊंचा उड़ना और आगे बढ़ना ना हो। आपके हृदय में चाहे कोई भी विचार आए, आप कोई भी संकल्प करें। आपकी वृत्ति कैसी ही हो, उस विचार का, उस इरादे का, उस वृत्ति का, आपके समस्त शरीर और शरीर के रोम रोम पर अवश्य प्रभाव पड़ेगा। जब आप अपना विचार बदलते हैं और आपकी मानसिक दशा में किसी प्रकार का परिवर्तन आता है तो आपके शरीर में भी वैसा ही परिवर्तन आ जाता है। यदि आपकी मानसिक शक्ति क्षीण है और आप उसे बलशाली बनाना चाहते हैं तो उसका तरीका ये है कि हर समय अपने उद्देश्य को सामने रखे, उसी पर विचार करें, उसी को सोचें और उसी के अनुसार व्यवहार करें। यहाँ तक की आप उस व्यक्ति को मजबूत कर लें जिससे शक्ति का या अंग विशेष का दोष है। वह बढ़ता नहीं है तो उसको बढ़ने और शक्तिमान बनाने का यही तरीका है। हमें ऐसी शक्ति होनी चाहिए। की हम अपने मानसिक मनोरंजन के लिए सज्जनता, पूर्ण विचार, महान उद्देश्य और भव्य कल्पनाएँ रख सके। सुन्दर सुगढ़ और सच्ची वस्तुओं पर चिंतन मनन करने और उनके बारे में सोचने से हमारे मानसिक शक्ति में वृद्धि होती है। यदि आप लोकप्रिय बनना चाहते हैं तो आपको हर ऊंचनीच से प्रेम, सहानुभूति और विनम्रता के साथ व्यवहार करना चाहिए और अपने ऋण और दुर्बल अव्यवों को इतना सक्रिय बना देना चाहिए कि वे बलवान बन जाए। यदि आप वीर नरकेसरी और साहसी नहीं है तो अन्य अंगों की भाँति साहस और दृढ़ता में भी अभ्यास द्वारा वृद्धि करें। अपना रंग ढंग वीरों का सा बना लें और साहसी और शूरवीर बनने का प्रयत्न करें। फिर लोगों को विश्वास हो जाएगा कि आपके अंदर एक नई शक्ति है। क्योंकि आपका सिद्धांत और व्यवहार वीरों का सा होगा, जो संसार को कुछ करते और बनकर दिखाते हैं। आप के अंतर में जो कुछ होता है, आपके मानसिक और शारीरिक अव्यय अत्यंत ईमानदारी से उसी के पदचिह्नों पर चलते हैं। इसलिए आज जैसी कल्पना करेंगे, किसी ना किसी रोज़ वैसे ही हो भी जाएंगे। क्या आप जानते हैं कि आपका जीवन इतना है और आपकी योग्यता इतनी कम क्यों है? इसका कारण ये है की आप अपनी योग्यताओं को बहुत साधारण समझते हैं और अपने कारनामों को बहुत संकुचित कर देते हैं। जीवन की जिन अच्छी बातों के लिए हम प्रयत्न करते हैं, हमारे संदेह, हमारे भय और हमारे आत्मविश्वास का अभाव इन्हें हमसे दूर कर देते हैं। मूर्तिकार के मस्तिष्क में मूर्ति का जैसा नमूना और मॉडल होगा, मूर्ति उससे अधिक सुंदर और आकर्षक नहीं बन सकती। इसके लिए आवश्यक है कि वह अपने मस्तिष्क में एक भव्य मूर्ति की कल्पना करें, उसके बाद वह पत्थर और छैनी से वैसी मूर्ति का सृजन कर सकेगा। परिस्थितियां कितनी ही प्रतिकूल क्यों ना हो आप सदा अपने सामने एक उच्च उद्देश्य रखें। यदि आप अपनी योग्यताओं की स्पष्ट कल्पना। स्थापित नहीं कर सकेंगे तो आपके उद्देश्य में कोई ना कोई दोष होगा। वह साधारण हीर वक्र और थोड़ा मोड़ा होगा और ये ही सारे खराबियाँ आपके जीवन में आ जाएंगी। इस बात का निश्चय की मैं उच्च योग्यताओं का मालिक हूँ। मेरे यथार्थ आत्मा है, शरीर नहीं। एक बहुत बड़ी बात है क्योंकि जो कुछ आप स्वयं को समझें बैठे हैं। अपने सदाचार तथा शक्ति यों का आपने जो अनुमान लगाया है, अपने उद्देश्य के लिए जो प्रयत्न आपने किये है और जीस कार्य के लिए आप संसार में आए हैं, वस्तुतः यही बाते हैं जिनसे आपके जीवन में स्थिति बनती है और आपका पद और सम्मान बढ़ता है। आपके हृदय पर आप का अनुमान अंकित हो जाता है। आपका विश्वास कर्मों और कृत्यों का स्रोत है। यदि आप अपने अनुमान के अनुसार कम योग्यता रखते हैं तो आपके मस्तिष्क पर उस कमी का अनुमान जम जाएगा। महान विभूतियों जैसे कार्य आप कर सकेंगे। यदि आप अपने जीवन में किसी प्रकार का परिवर्तन करना चाहें तो वह आप अपने मानसिक प्रयत्नो द्वारा ला सकते हैं या परिवर्तन आपके अपने टिप टॉप और गर्व और सम्मान से हो सकता है। बाहें आडंबर तथा दिखावे से नहीं, वरन आंतरिक टिप टॉप और आडंबर द्वारा आपके संकल्प, आपके उद्देश्य, आपके साहस का केवल एक उद्देश्य होना चाहिए की आप कुछ बनाये, कुछ उत्पन्न करे, कुछ प्राप्त करे, वह कुछ बनकर देखा, ये जिसको संसार आदर की दृष्टि से देखता है। यदि आप ऐसा करेंगे तो आपकी अपनी बड़ी हुई योग्यता पर आश्चर्य होगा। आप में कार्य करने की शक्ति बढ़ जाएगी और उस शक्ति पर आप स्वयं आश्चर्यचकित होंगे। तो दोस्तों आपको यह ऑडियो कैसी लगी हैं? मुझे कमेंट करके जरूर बताएं। यदि पसंद आई है और आपने इस से प्रेरणा पाई है, तो प्लीज़ इसे अपने दोस्तों के साथ भी बांटे ऑडियो सुनने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।","यह ऑडियो स्वेट मार्डन द्वारा लिखी गई किताब एवरी मैन ए किंग से लिया गया है जिसका अनुवाद है खुशी से कैसे जीना है आप इस ऑडियो को सुनकर अपने जीवन में निराशा से बाहर आ सकते हैं और कई आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं इसमें आपको हिंदी ऑडियोबुक, हिंदी ऑडियोबुक मिलेगी , हिंदी में ऑडियोबुक, प्रेरक ऑडियोबुक, प्रेरक ऑडियो, सर्वश्रेष्ठ हिंदी प्रेरक ऑडियोबुक, हिंदी में सर्वश्रेष्ठ प्रेरक ऑडियोबुक, हिंदी में सबसे बड़ी ऑडियोबुक, हिंदी में प्रेरणादायक ऑडियोबुक, हिंदी में प्रेरणादायक ऑडियोबुक, हिंदी में जीवन बदलने वाली ऑडियोबुक, हिंदी ऑडियोबुक ऑनलाइन, #हिन्दीऑडियोबुक, #मोटिवेशनलऑडियोबुक , #inspirationalaudiobookinhindi," "हैलो दोस्तों मैं हूँ मनिका में लेकर आई हूँ आपके लिए आज एक बहुत ही सुंदर ऑडिओ, एक प्रेरणादायक ऑडियो और आपको मेरे द्वारा बोली गई ऑडियो उस कैसी लगती हैं आपने? सुझाव और अपने विचार मुझे कमेंट में जरूर लिखिएगा आज हम सुनने जा रहे हैं स्वेट मॉडर्न के द्वारा लिखी गई महान कृति एव्रीमैन आ किंग का हिंदी अनुवाद जिसका आज हम 11 वां भाग सुनेंगे। जिसका नाम है संकटों का। और मन पर प्रभाव। जीवन में असफल होने वाले लोग यह नहीं जानते कि इन असफलताओं के पीछे उनकी अपनी ही त्रुटियों का हाथ है। इन त्रुटियों को दूर करने का प्रयास उन्हें सबसे पहले करना चाहिए। यदि आप सफलता चाहते हैं तो कोई कार्य आरंभ करने से पहले अपने अंदर झांककर देखिये। अपने अंदर जो भी त्रुटी, कमजोरी नजर आये पहले उसे दूर कीजिये फिर उस कार्य को आरंभ कीजिए जो भी कार्य अपने त्रुटियों को दूर करके आरंभ किया जाएगा। उसमें सफलता तो अवश्य ही मिले गी। यह सफलता गुणकारी और लाभ दायक होगी। लोग इस सफलता पर आपकी वाह वाह करेंगे। हर अच्छा ई के साथ बुरा ई अवश्य जुड़ी रहती हैं। कुछ लोग अच्छा काम करते हैं। कुछ बुरा बुद्धि तो एक ही होती है। भले ही अच्छे काम में लगाए या बुरे काम में। चाकू तो एक ही होता है, भले ही सब्जी काटें, चाहे किसी के पेट में घोंप कर उसकी हत्या कर दी जाये। इस प्रकार से हर मानव के दो रूप हैं अच्छा और बुरा। मानव जीवन पर या दोनों प्रभाव पड़ते रहते हैं। कई बार आदमी के मन पर दुर्विचारों का हमला हो जाता है, वे मानव मनोवृत्ति को पूरी तरह से आक्रांत कर लेते हैं, जैसे कि जिद्दी प्रवृति रूढ़ीवाद कायरता थी। रशिया इन सबके अलग अलग लक्षण और स्वरूप होते हैं। शुरू में तो यहाँ कोई नुकसान नहीं देते, परन्तु जैसे जैसे यहाँ बढ़ते जाते हैं वैसे वैसे मन में ऐसे जड़ें जमा लेते हैं कि इन्हें वहाँ से हटाना कठिन हो जाता है। फिर तो वे जीवन में ही ऐसे घुलमिल जाते हैं कि सौभाव से ही प्रकट होने लगते हैं। सबसे कठिन पाठ जो हमें सबसे पहले पढ़ना चाहिए, वह यह है कि हम अपने शरीर का निर्माण कैसे कर सकते हैं, जैसे हमारे विचार होते हैं, यही है इस प्रश्न का उत्तर आप हमें इस विषय में गंभीरता से सोचते हुए यह निर्णय करना होगा कि इन विचारों को अपने पास जगह मत दो। कोई भी बुरा विचार आपके निकट आता है, उसे भगा दो। इसके स्थान पर अच्छे विचारों का स्वागत करो। अच्छे विचारों से ही आपका मन अच्छा होगा। जिसप्रकार से आप हर रोज़ अपने घर की सफाई करते हो उसी प्रकार से हर रोज़ अपने मन की सफाई भी करनी चाहिए। यदि कूड़ा साफ हो जाएगा, तुम मन साफ हो जाएगा। साफ मन ही तो शांति का प्रतीक है। हमारे मन और शरीर में निरंतर विकास की प्रक्रिया जारी रहना स्वाभाविक है। इसमें रुकावट तब पड़ती है जब गंदे विचार हम पर आक्रमण करते हैं या हमला उस समय होता है जब हमारे मन से रचनात्मक विचार गायब हो जाते हैं। ऐसे में बुरे विचार आकर हमारे मन पर हमला बोल देते है। इसलिए मन की सफाई करने में ही लाभ होता है। इस सफाई के अनेक उपाय है और इस विषय में सबके अलग अलग अनुभव हो सकते हैं। हम देखते है की कई बार हमारे मन में दुख की छाया, निराशा की छाया आश्चर्यजनक ढंग से गायब हो जाती हैं, दुख के बादल छंट जाते हैं और खुशी की धूप चारों ओर फैल जाती है। कई बार हम उत्साही और निराश हो जाते हैं। फिर अचानक ही कोई शुभ समाचार आ जाता है और उसे सुनते ही हमारा मन खुशी से नाच उठता है या फिर कोई ऐसा मित्र मिलने आ जाता है जो बहुत ही खुशमिजाज और खुले दिल का हो। हमें हंसा हंसाकर पागल कर देता है या फिर हमें विदेश यात्रा का निमंत्रण मिल जाता है, जिससे हमारे मन में खुशियां ही खुशियां भर जाती है। ऐसे वातावरण में हमारे दुःख पर सुख का लेप चढ़ जाता है। हमारे जख्म भर जाते हैं, हम सारे दुख भूल कर सुखी हो जाते हैं। कुछ लोगों का यह विचार होता है कि मन बाहरी प्रभावों को ग्रहण करने में असमर्थ होता है और इसकी स्थिति में विशेष परिवर्तन नहीं किया जा सकता। इसकी खुशी हँसी की सीमाओं का निर्माण वंशया भाग्य द्वारा होता है, परंतु यह विचार सिरे से गलत है। हमारे सामने ऐसे हजारो उदाहरण है जब लोगों की मनोवृत्ति में आमूलचूल परिवर्तन हुए। उनके मस्तिष्क के एक भाग में पूरी क्रांति होती देखी गई। बहुत से लोग जो जन्म से ही मानसिक शक्तियां से वंचित थे किंतु प्रयत्नो द्वारा उन में भारी परिवर्तन आ गया। उनका कमजोर व्यक्तित्व प्रबल व्यक्तित्व में बदल गया। साहस का ही उदाहरण लीजिए। बहुत से अत्यंत सफल लोग पहले इस गुण से वंचित थे। खतरा था उनका समस्त भविष्य अंधेरे में डूब जाएगा, किंतु माता पिता और गुरु की शिक्षा का उन पर ऐसा प्रभाव हुआ कि उनके जीवन की धारा ही बदल गई। इससे यह पता चलता है कि इंसान उपदेश या शिक्षा प्राप्त करके और निरंतर अभ्यास से अपने विचारों में क्रांति ला सकता है। गुरु पहले दुर्बल व्यक्ति में आत्मविश्वास की भावना पैदा करता है, फिर बार बार साहस के उदाहरण देकर उसे साहस करने के सुझाव देता है। वह इतिहास के वीर पुरुषों का जीवन उनके सामने रखता है, जिससे उसके मन में बसा हुआ डर, बुजदिली, चिंता दूर होकर आत्मविश्वास पैदा हो जाए। धीरे धीरे उसका मन परिवर्तित होने लगता है। वह फिर निर्माण की ओर ध्यान देने लगता है। उसके मन में साहस के भाव पैदा होने लगते हैं। उसके मन से बुजदिली और भय भाग जाते है। वह शेर की भांति निडर होकर काम करने लगता है। जब आप डर, संदेह, निराशा की हालत में हों तब आप कोई भी ठीक निर्णय नहीं कर सकते। उचित और ठोस निर्णय उसी हालत में संभव हो सकता है जब मानव मस्तिष्क ठीक हालात में हो। वह क्रोध, निराशा, डर और चिंता के बादलों में घिरा अंधेरे में ना डूबा हो। भय और चिंता में डूबा निराश मन कभी कोई ठीक निर्णय नहीं कर सकता। इसलिए ऐसे हालात में कोई महत्वपूर्ण निर्णय नहीं करना चाहिए। यदि इंसान ठीक शिक्षा पाकर मन को अभ्यास कराएं तो वह क्रोध, निराशा, चिंता और डर से मुक्त हो जाएगा। उसे खुशी प्राप्त हो सकती है। खुशी, आशा, उत्साह और जागृति इन भावनाओं के पैदा होते ही। मन का अंधेरा दूर हो जाता है इसलिए भावनाओं को अपने से दूर ना होने दें। सभ्यता की हर नई जरूरत मानव मस्तिष्क को नए काम करने की चुनौती देती है। जिसप्रकार जानवर और मनुष्य के शरीर में जलवायु और उनके वंश रक्षा के उद्देश्य से समय की आवश्यकताओं के हिसाब से उनमें निरंतर सुधार होता गया है। उसी प्रकार आज के युग की आवश्यकताओं को सामने रखकर। मनुष्य को अपने मस्तिष्क में सुधार करना होगा। मस्तिष्क पर जिन कामों के बारे में सोचने का बोझ पड़ता है, उसके हिसाब से ही वह अपने में परिवर्तन कर लेता है। यह एक अच्छी आदत है जो प्राणी को सफलता की ओर ले जाती है। प्राध्यापक ने कुत्तों पर कुछ मस्तिष्क परीक्षण किए थे। एक ही आयु और एक ही नस्ल के कुत्तों को लेकर उसने उनके भिन्न भिन्न मस्तिष्क शैलो का वैज्ञानिक प्रक्रियाओं द्वारा विकास किया। कुछ मस्तिष्क से लोको तो उसने पूरी तरह से विकसित किया तथा मस्तिष्क सेल्स पूर्ण और निष्क्रिय रहने दिये, जिनसे उनका विकास ना हो सका। मस्तिष्क जो सेल्स रंगों की पहचान को अनुशासित करते हैं। वे उन कुत्तों में इतने विकसित हो गए थे कि वे लाल, हरा आदि सात रंगों में चमक रहे थे। चेष्टाओं की हालत में स्थितियों द्वारा मस्तिष्क सेल्स में परिवर्तन किया जा सकता है। जो लोग बड़े शहरों के शोरोगुल में काम करते हैं, उनकी मस्तिष शक्ति विविध रूपों में विकसित होगी। वि शीघ्र सोचेंगे। उनके विचार बहुत तेजी से भागेंगे। इसके विपरीत छोटे नगरों गांव में रहने वाले लोगों के मस्तिष्क अलग अलग प्रकार से विकसित होते हैं, किंतु वहाँ का जीवन ही धीमी गति से चलता है। उसे तेजी से चलने की जरूरत ही नहीं पड़ती। मस्तिष्क को अत्यंत ग्रहणशील है। हर धंधा मस्तिष्क के सामने कई प्रकार की चुनौती उपस्थित करता है और उसकी आवश्यकता के अनुरूप मस्तिष्क अपनी योग्यताओं का विकास करता है। अलग पेशों +2 नौकरियों, व्यापारियों और व्यवसायियों में अलग अलग प्रकार के मस्तिष्क की आवश्यकता होती है। जिंस प्राणी का मस्तिष्क जितना तेज होगा, उतना ही वह अपने कार्यों में सफल होगा। जिंस आदमी का जीवन अध्यापन या बौद्धिक हलचलों में लीन रहता है। उसके मस्तिष्क के सेल्स का विकास व्यापारी के मस्तिष्क से भिन्न होता है। दोनों ही भिन्न दिशाओं की ओर चलते हैं। व्यापारी धन कमाने के लिए और शिक्षक ज्ञान देने के लिए एक मस्तिष्क में धरती और आकाश का अंतर होते हुए भी वे एक होते हैं। महत्वाकांक्षा के उत्तेजना मस्तिष्क के विकास में परिवर्तन लाने या सुधार लाने की बड़ी ताकत है। महत्वाकांक्षा का निर्धारण या जिंदगी के उद्देश्य को पा लेना स्वयं अपने आप में मस्तिष्क संबंधी महत्वपूर्ण घटना है। यही घटना मस्तिष्क के भविष्य में होने वाले परिवर्तनों का कारण है। और साथ ही अब तक हुए परिवर्तनों का परिणाम भी है। विश्व के महान वैज्ञानिक अब मस्तिष्कों को विकसित करने की संभावनाओं पर खोज करने में लगे बहुत दिन दूर नहीं जब इंसान मस्तिष्क के रहस्यों को जान लेगा या एक महान आविष्कार होगा। जब तक यह आविष्कार नहीं होता तब तक हमें इतना ही जान लेना चाहिए की यदि हम अपने मस्तिष्क का विकास चाहते हैं की हमारा व्यक्तित्व सर्वजन प्रिय बने। तो हमें अपने मन से नफरत, जलन, स्वार्थ, एशिया, बुरा ई इत्यादि सब चीजों को निकालकर बाहर फेंकना होगा और इनके स्थान पर रचनात्मक कार्यों, मानवता की भलाई, सत्य, जन सेवा की भावनाओं को महत्त्व देना होगा। आत्मविश्वास और आशा दोनों को अपने जीवन का सबसे प्रिय साथी बनाकर अपने मस्तिष्क में स्थान देना होगा। इसी प्रकार से हमारा जीवन सुखी होगा और हम जो चाहेंगे वही पाएंगे। तो दोस्तों आपको यह ऑडिओ कैसी लगी हैं? मुझे अपने सुझाव और विचार जरूर लिखें और आप चाहें तो हमारी वेबसाइट मीठी वाणी.कॉम पर हमें विजिट कर सकते हैं और पढ़ सकते हैं तो मिलते है अगली ऑडियो में तब तक के लिए सभी को। बाइ बाइ।","यह ऑडियो स्वेट मार्डन द्वारा लिखी गई किताब एवरी मैन ए किंग से लिया गया है जिसका अनुवाद है खुशी से कैसे जीना है आप इस ऑडियो को सुनकर अपने जीवन में निराशा से बाहर आ सकते हैं और कई आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं इसमें आपको हिंदी ऑडियोबुक, हिंदी ऑडियोबुक मिलेगी , हिंदी में ऑडियोबुक, प्रेरक ऑडियोबुक, प्रेरक ऑडियो, सर्वश्रेष्ठ 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हाथ बढ़ाकर छू सकते है? हाँ आप में इतनी कमी अवश्य है कि आप अचानक ही हीन भावनाओं के शिकार हो गए। हीन भावनाओं के कारण ही आपका अपने ऊपर से विश्वास उठ चुका है। हीन भावनाओं के कारण ही आप खुद पर संदेह करने लगे हैं। ऐसा तभी होता है, जब आप अपने भीतर छिपी हुई दिव्यशक्तियों को पहचानने में असमर्थ होते हैं। जब आप अपने लाभ को नहीं देख पाते हैं। अपने जीवन में भलाई यों की उस बातों से लाभ नहीं उठा पाते हैं। उन्हें पहचान कर व जान कर आप उस तक नहीं पहुँच पाते हैं, अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाते हैं, तब ऐसा होता है। कई बार दूसरों के द्वारा गुमराह किए जाने पर भी आपके भीतर हीन भावना उत्पन्न हो जाती है। अगर आप जीवन में कुछ बनकर दिखाना चाहते हैं, यदि आप भी अन्य लोगों की तरह खुशहाल जीवन जीना चाहते हैं तो आपको हीन भावनाओं से उबरना होगा। उसमें से निकलना होगा। हीन भावनाओं के रहते आप किसी भी क्षेत्र में कामयाबी हासिल नहीं कर सकते। हीन भावना एक ऐसा गुण है जो आपको भीतर ही भीतर खोखला करते रहता है। हीन भावनाओं के कारण आप हर पल निर्धनता, दुर्लभता और रोगों और चिंताओं से चारों तरफ से जैसे गिरे से रहते हैं। हीन भावनाओं के कारण आप अपनी मानसिक शांति गंवा देते हैं। इन भावनाओं के कारण ही आपके। ये जीवन में भलाई को आप नहीं देख पाते हैं हिन् भावनाओं में एक ऐसा वहम है जिसका वास्तव में कोई अस्तित्व नहीं है। जब आपको अपनी शक्तिओं का अहसास हो जाएगा तो आपके मन में वो जो वेहेम है वो पूरी रीती से दूर हो जाएगा, नष्ट हो जाएगा। ज़रा सोचिए कि आप स्वयं को दूसरे से अयोग्य, निर्बल और निर्धन क्यों समझते हैं? आप भी तो अपने मित्रों की तरह उसी विद्यालय में पढ़े है जहाँ आपके दूसरे दोस्तों ने पढ़ाई की है। वही डिग्री आपने भी प्राप्त की है, वहीं हुनर आपके पास भी है फिर आप पीछे कैसे रह गए? अपनी तरक्की करते हुए मित्रों को देखकर अपने भीतर ही इन भावनाओं के ना आने दीजिये। इस बात पर गौर कीजिए कि उन्होंने किस प्रकार से अपने लिए उन्नति के अवसर को तलाश किए और उस पर काम किया। अगर आप भी चाहें तो प्रगति के सर्वोच्च शिखर तक पहुँच सकते हैं। आप हर प्रकार से ही सुयोग्य है। आप के लिए कोई भी कार्य असंभव नहीं है, लेकिन पहले आपको अपने भीतर छिपी उस दिव्यशक्ति को उस महान शक्ति को पहचानना होगा, उन्हें जगाना होगा। उसके बाद तुम उन से लाभ उठाकर प्रगति के सर्वोच्च शिखर पर पहुँच सकते हो। किसी मनुष्य के जैसे विचार होते हैं, वैसे ही उसके प्रयास भी होते हैं। वैसे ही उनके परिणाम भी होते हैं और वहीं उनकी उपलब्धि और सारी चीजों में असर डालती है। अगर आपके विचार कामयाबी हासिल करने के लिए है तो आप निश्चय ही कामयाब होकर रहेंगे। किसी व्यक्ति की सफलता या विफलता उसके कार्यों पर निर्भर होती है। यदि आपके विचारों में हताशा है, निराशा है, विफलता भरी हुई है, आप सोचते हैं या सफल हो जाऊंगा तो आपके प्रयास भी वैसे ही होंगे, उस संतोषजनक नहीं हो सकते। जब तक आपके प्रयास संतोषजनक नहीं होंगे तब तक आप कामयाबी भी नहीं हासिल कर पाएंगी। जब आप हीन भावनाओं से घिरे रहेंगे, कामयाबी आप से दूर भागती रहेंगी। अगर आपके विचारों में खुश शादी का रास्ता नहीं है तो आप उस पर चलने का कभी भी साहस नहीं कर सकेंगे। यदि आप खुशहाली का रास्ता अपनाना चाहते हैं तो पहले अपने विचारों को खुशहाली की कल्पना कीजिये। दुख दर्द रहता को अपने जीवन से दूर कीजिये। उन विचारों को भगा दीजिये। अशुभ विचारों को त्याग दीजिये। देखिये एक सच्चाई है कि जैसे विचार हमारे मन मस्तिष्क में होते हैं, वैसे ही हम बन जाते हैं तो स्वयं को असहाय और दुर्लभ अयोग्य नहीं मानना। हमेशा सोचो कि आप सामर्थ्यवान हो, आप मजबूत हो, आपका मनोबल बहुत सामर्थ्य है। आप कुछ भी बन सकते हैं कुछ भी कर सकते हैं। हमें सोचना चाहिए, मैं बहुत कुछ कर सकता हूँ। तभी हम सफलता को प्राप्त कर सकते हैं। यदि हम 24 घंटे अपने मन में उत्तम विचारों से परिपूर्ण रहेंगे और इसमें हीन भावनाओं को कोई स्थान भी नहीं देंगे तो जरूर है हम उन्नति के रास्ते पर चल पड़ेंगे। हीन भावनाओं से मुक्ति पाते ही हम अपने। भीतर जो छिपी हुई दिव्य शक्तियां हैं, उसको पहचानने लगते हैं। हम अपनी योग्यताओं को पहचानने लगते हैं अपनी सामर्थ को। उन अनुभवों को। पहचान कर हम आशावान हो जाते हैं। फिर ऐसा होते ही हम अपने रुके हुए कार्य को पूरा करने के लिए कमर कस कर तैयार हो जाएंगे। अगर आपको लगता है कि आप बीमार हैं। तो घबराइए नहीं क्योंकि किसी भी बिमारी का उपचार घबराहट से नहीं है क्योंकि डॉक्टर की सलाह से और दवाइयों से होता है या कोई जरूरी नहीं है कि आप वास्तव में बीमार ही हो, क्योंकि यह आपके मन का कोरा वे हम भी हो सकता है। कई बार ऐसा भी देखने के लिए आया है कि हिन् भावनाओं के उत्पन्न होने से एक सवस्थ आदमी भी खुद को रोगी समझ जाता है। वो सोचने लगता है कि मैं बीमार हूँ और वो सोचते सोचते सच में बीमार पड़ जाता है, वे अपने स्वास्थ्य का कोई भी लाभ नहीं उठा पाता। जब तक आपको चिकित्सक बिमारी के बारे में ठीक ठीक नीती इसे डाइअग्नोस करके बता कर। ये प्रूफ ना कर दें कि आप बीमार हैं। तब तक आप अपने आप को बीमार बिलकुल भी मत समझिए। रोगों की कल्पना से सवस्थ व्यक्ति भी बीमार हो जाता है। अगर आपको कोई रोग हो भी गया है तो किसी अच्छे डॉक्टर के पास जाइए, उपचार कराइए और कुछ हीरोज में आप बिल्कुल ठीक हो जाओ। आज के युग में चिकित्सकों के पास किसी भी प्रकार के रोग का उपचार है। दवाइयां है, इलाज है, कोई भी रोग असाध्य रोग नहीं है। यदि आप पर परिस्थिति बस अधिक कर्ज का बोझ बढ़ गया है तो घबराइए नहीं ये सोचो कि आप उस कर्ज से कैसे मुक्ति पा सकते हैं, कैसे उस कर्ज को चुका सकते हैं। देखिये गरीबी में बने रहना ये तो सरासर गलत बात जीवन की कोई भी स्थिति सदैव एक जैसी नहीं बनी रहती है। जीवन में सुख है तो दुख भी है। सुख, दुख ये सब आते जाते रहेंगे। प्रत्येक समस्या अपने समाधान से जुड़ी हुई होती है। आज के युग में कोई भी समस्या ऐसी नहीं है जिसका समाधान नहीं हो सकता हो। यदि कोई कर्तव्यनिष्ठा के साथ प्रयास करें, पूरी लगन के साथ मन के साथ लग जाएं और अपनी समस्याओं को समाधान ढूंढने लग जाए। तो हो नहीं सकता कि उसको समाधान मिले ना। अगर आप में ऋण का बोझ बढ़ गया है तो आप अपने किसी मित्र के शुभचिंतक से या परिचित से ब्याज मुक्त ऋण लेकर और मदद लेकर उसको उसको चुका दीजिये। यदि ऐसा भी संभव ना हो तो किसी बैंक के पास जाइए, लोन लीजिये। और उस कर्ज को उतार दीजिए क्योंकि एक बार जब आपके दिमाग से या आपके जीवन से कर्ज निकल गया, आपके दिमाग से बहुत बड़ा बोझ उतर गया। अब हाथ पर हाथ रखे बैठे रहने से कुछ होगा तो है नहीं। ठीक भावनाओं से गिरकर आप अपना समय बर्बाद कर रहे हैं। इस प्रकार की हीन भावना ए इस प्रकार की। निचली विचारधाराएं जस्ट अपने दिमाग से दूर कीजिए अपनी सख्ती क्षमता, योग्यता के प्रति आशावान बनिए। इसी योग्यता और शक्ति के बल पर पहले भी आपने बहुत सारे सराहनीय और बड़े बड़े काम किए हैं। उनका उनको इसे याद कीजिए, उनको स्मरण कीजिये। इससे आपको एक नई प्रेरणा मिले गी तथा जीवन में नए उत्साह का संचार होगा। यदि आप अपनी योग्यता, अनुभव पहले किये हुए सराहनीय कार्यों को स्मरण करेंगे तो आपके मन में हीन भावना उत्पन्न ही नहीं होगी। परमेश्वर का वचन इस प्रकार से कहता है कहता है की उसमें जो मुझे सा मर देता है, मैं सब कुछ कर सकता हूँ। आप परमिशन पर भरोसा करते हैं, आप अपने आप पर भी भरोसा कीजिए, आप अपने आप पर भी आत्म विश्वास रखिये। आप विश्वास कीजिए कि परमेश्वर बड़े बड़े काम करता है, वह आप के जरिए भी कर सकता है। अपने दुर्भाग्य के रोते रहना और उसे कोसना। ये रोज़ रोज़ के एक रोग के समान है। ये इसे इसे दूर कीजिए। यदि किसी मनुष्य के मन मस्तिष्क में सदैव विचार रहते हैं कि वह शक्तिहीन हैं, रोगी हैं, बीमार है, दुर्बल है, उसकी सेहत खराब है तो पक्की बात है कि कुछ दिनों के बाद वो ऐसा हो ही जायेगा। यदि हम अपने सामने आसपास हमेशा दुख चिंता को रखेंगे तो जरूर है की वो दुख चिंता हमारे से चिपट जाएगी। और हम ऐसे ही विचार से फिर भाग नहीं पाएंगे। तो इसीलिए जैसे ही ऐसे विचार आते हैं उनको दूर भगाइए। अपने मस्तिष्क में शरीर पर अत्यधिक ध्यान न देने से स्वास्थ्य नष्ट हो जाता है। सुस्त और निकम्मे लोग हमेशा अपनी ही चिंता करते रहते हैं। याद होता है की नाड़ीमंडल में और कल्पनाशक्ति में बड़ा गहरा सम्बंध होता है। कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनकी आंखें हमेशा अपने व्यक्तित्व पार्टी की रहती है तथा उनका ध्यान हर वक्त उसी पर केंद्रित रहता है। हर समय उन्हें खुद से ही शिकायत रहती है। ऐसे लोग कभी भी अपने जीवन में पूर्ण सवस्थ और तंदरुस्ती को महसूस नहीं कर सकते। वे फौरन घबरा जाते हैं। ऐसे लोगों को ज़रा सी बात, ज़रा सा रोग या किसी भी प्रकार की इससे नकारात्मक बातें सुनाई दी और वह तुरंत टूट जाता है। अपनी हीन भावनाओं के कारण वे राई का पर्वत बना देते हैं, बूंद का सागर बना डालते हैं। अगर आप खुद को पूर्णतः सवस्थ और सुखी और समृद्ध खुशहाल बनाना चाहते हैं तो मन से हीन भावना दिन भावना पूरी रीती से निकाल दीजिए। इसी वक्त निकाल दीजिये जिसप्रकार किसी नए किरायेदार को रखने से पूर्व पुराने किरायेदार को निकाल देना जरूरी है। उसी प्रकार से आपके मन से शुभ विचारों को भरने के लिए पुराने अशुभ विचारों को त्याग देना बहुत जरूरी है। एक हकीम का कथन इस प्रकार से है कि यदि सोच विचार, चिंताओं से मनुष्य होगी हो जाता है तो क्या विचार द्वारा ही सवस्थ नहीं हो सकता है? बिल्कुल हो सकता है यदि मुझे भ्रम हो जाए की मैं बीमार हूँ तथा मैं वास्तव में चारपाई पकड़ कर बैठ जाता हूँ, तो क्या मैं तंदुरुस्ती और स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए सवस्थ नहीं हो सकता हो सकता हूँ? अवश्य हो सकता है। प्रत्येक व्यक्ति को चाहिए कि वह जैसा भी बनना चाहता है। उसकी पूर्ण योजना व चित्र बनाकर अपने मन मस्तिष्क में केंद्रित कर लें। साथ ही आपने इच्छा व कामनाओं को भी मस्तिष्क में अंकित कर लेना चाहिए। आप देखेंगे जिम जब जाते हैं, जिम में बड़े बड़े पोस्टर लगे रहते हैं। बॉडी बिल्डर लोगों की क्यों? क्योंकि एक मेहनत करने वाला परिश्रम करने वाला व्यक्ति जब उस बॉडी बिल्डर को देखता है तो उसके मन मस्तिष्क में ही आता है कि मैं भी ऐसा बन सकता हूँ। और वो धीरे धीरे उस उस मार्ग में चल पड़ता है। उसी रीती से हमारे जीवन में भी हम हमें अपने आपको सवस्थ देखना है। देखना है कि हम सवस्थ है, हम वो चीज़ कर पा रहे हैं उन लक्ष्य की ओर दौड़ पा रहे है, कर पा रहे है उसके लिए बहुत जरूरी है कि हम अपने मनोमस्तिष्क से। उन शोक संताप दुख चिंता वाली बातें पूरी रीती से दूर कर दें। किसी भी व्यक्ति में रोग तभी उत्पन्न होता है जब वह गलत तरीके से सोचने लगता है। जब वे जीवन में उज्वल पक्ष को कल्पना करना बंद कर देता है हम बुरे विचारों को अपनाने, रहन सहन, गलत ढंग और स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही बरतने के कारण ही बीमारियों में गिर जाते हैं। जब तक हम अपनी इन भूलोका सुधार नहीं करेंगे, हम सवस्थ नहीं हो पाएंगे। मनुष्य का प्रत्येक विचार मस्तिष्क के रिकॉर्ड में दर्ज होता है। उसकी प्रत्येक इच्छा अंकित हो जाती है। कोई भी मनुष्य इस प्रकार अपने शरीर, अपने जीवन की कहानी स्वयं लिखता है और इस प्रकार फरिश्ते? प्रत्येक व्यक्ति को आप बीती उसके शरीर में लिखी हुई पाते हैं। हम जीस प्रकार किसी दूसरी जरूरी और उपयोगी वस्तु की नींव रखते हैं, उसी प्रकार से हमें स्वास्थ्य की बुनियाद भी रखना चाहिए। इन भावनाओं को ग्रसित व्यक्ति को जीवन में सही मायने में जी जीवन नहीं कहा जा सकता। वह अपने जीवन का सच्चा सुख नहीं पा रहा है। ऐसा व्यक्ति कभी खुशहाल हो ही नहीं सकता। वास्तविक जीवन उसी व्यक्ति का है जो स्वयं को हीन भावनाओं की दलदल से निकालने में कामयाब हो जाता है, जो कर्म में विश्वास रखता है। जो भाग्य के भरोसे कभी बैठे नहीं रहता। देखिये भाग्य का कोई अस्तित्व है ही नहीं। जो उत्तम विचारों से श्रम की पूजा करता है, श्रम को जीवन में अपनाता है, उसी कर्मयोगी का जीवन सार्थक है। ऐसे व्यक्ति का नौ तो कोई गुना तो कोई गुमराह कर सकता है और ना ही कभी उसके हीन भावनाओं से उसको कोई ग्रस्त कर सकता है। सही मायनों में मनुष्य वही है जो कभी भी अपने मन को। मन का जो संतुलन है उसको होता नहीं है, जो अपने भीतर दृढ़ संकल्प किये रहता है तथा कर्तव्य के प्रति समर्पण की भावना रखता है। अगर आप जीवन में कुछ बनकर दिखाना चाहते हैं यदि आप अपने लिए खुशहाली का मार्ग प्रशस्त करना चाहते हैं तो हीन भावनाओं को पूरी रीती से त्याग दीजिए। जब तक आप हीन भावनाओं से घिरे रहेंगे, खुशहाली आप से दूर भागती रहेंगी। आप भी मोहन बन सकते हैं। आप भी लोगों की तरह मान प्रतिष्ठा बढ़ा सकते हैं, खुशहाली के साधन जुटा सकते हैं। इन भावनाओं को त्याग ने में ही आपकी भलाई है। इन्हें त्यागकर ही आप अपने जीवन को एक नई दिशा प्रदान कर सकते हैं। अगर आप खुशहाली के पथ पर आगे बढ़ना चाहते हैं तो हीन भावनाओं का मोह त्याग दीजिए। इन्हें त्यागकर ही आप मनचाहा फल पा सकते हैं।",हीन भावना से कैसे छुटकारा पाएं। #selfhelphindi #selfhelp #motivationalspeechhindi #powerfulhindispeech #motivationalhindiaudio "दोस्तों हम सुनने जा रहे हैं स्वीट मॉडर्न की लिखी गई महान कृति हैलो रीमैन आ किंग का हिंदी रूप भाग दो आशा और निराशा आशा और निराशा के दो रूप हैं और इनमें से एक तीसरा रूप निकलता है और वो है अभिलाषा का। किंतु आशा और अभिलाषा का एक रूप होते हुए भी दो नामों के घेरे में फंसी रहती है। आशा और अभिलाषा किसी वस्तु की आकृति को गीली मिट्टी में तैयार करके उसे सांचे में ढाल देती है और कर्म जीवन में उसे सफेद पत्थर जैसा साकार पक्का बनाकर प्रकट कर देता है। आप अपने मन की गहराइयों से निकले शब्दों द्वारा जो प्रार्थना करते हैं उसे आपका विश्वास और मान्यता नहीं कहा जा सकता। आपका विश्वास तो केवल आपकी आशा है। विश्व में ऐसी कोई खुशी नहीं जिसके लिए आपकी आत्मा बेचैन हो। और वहाँ आपको ना मिल सके और ना ही कोई ऐसी आशा है जिसे आपने अपने मन में धारण किया हो और वह पूरी ना हुई हो। परंतु आपको मनचाही खुशी और आपकी इच्छाओं की पूर्ति तभी होगी जब आप स्वयं को उसके योग्य बना सके। इच्छा ही आपको अपने मनचाहे फल के निकट ले जाती है। हाँ, यह बात मत भूलें की इच्छा की गति जितनी भी तेज होगी, उतनी ही तेजी से आपको सफलता मिलेंगे। आपके मन में जैसे ही इच्छा का जन्म होता है वही चीज़ जिसकी आपने इच्छा की है वह दूर पड़ी हुई आपकी प्रतीक्षा कर रही होती है। वह दूर नहीं होती बल्कि कहीं आस पास ढकी छुपी पड़ी रहती हैं परंतु एक शर्त और है कि यदि वहाँ आप के लिए इतनी ही आवश्यक है तो सर्वप्रथम आपको उसे पाने की योग्यता भी पैदा करनी होगी। बस योग्यता पैदा होते ही आपकी एक आवाज पर वह आपके पास पहुँच जाएगी। आप अपनी आत्मा को जो शिक्षा देंगे, जो विचार पैदा करेंगे, वही सब आपके जीवन में आएगा, वहीं पाएंगे। हमारे दिल की आशाएं, हमारी आत्मा की चाल, यह सब कल्पना के घोड़े नहीं है। इनकी नींव तो वही वस्तुएँ जिन्हें हम पा सकते हैं, आशा की किरणों के द्वीप मनो में सजाकर हमें सफलता के निकट ले जाने वाली महाशक्ति आत्मा ही तो है जो आशा को यथार्थ रूप देती है। हमारे विचार कैसे है, कितने ऊंचे हैं? हम जो चाहते हैं उसे मिलना चाहिए। जिंस पदार्थ पर हमारा चंचल मन आ जाए, वह हमें लिखना चाहिए, ऐसी हमारी धारणा होती है। हम यदि अपने आदर्शों को मानते हैं, आदर्श और आशा का जब भी मिलन होता है तो ऐसा कोई कारण नहीं कि हमें सफलता ना मिले। आदर्श का अर्थ पवित्रता है। यदि आत्मा पवित्र है तो आशा अवश्य पूरी होगी। एक चित्रकार अच्छी तरह जानता है कि उसने अपने मन में चित्र का जो आदर्श सोच रखा है, वह केवल उसकी कल्पना ही तो है, हाँ, वो इसी कल्पना की नींव अपने चित्र को कागज पर उतार कर वह अपना वास्तविक रूप संसार के सामने लाता है। कल्पना ही उसकी कला की नींव है। हम जब भी किसी चीज़ की इच्छा रखते हैं। उसी इच्छा की कल्पना हमारे मन में जन्म ले लेती है। तभी से हम उस वस्तु के साथ अपना संबंध जोड़ लेते हैं। फिर हम प्रयास करते हैं जो कल्पना का दूसरा साथी हैं। असफलता हमारे कष्टों का कारण बनती है। सुख का आधार है सफलता हमारी असफलता से पैदा होने वाले कष्टों का कारण यही होता है कि हम अपनी शक्ति से अधिक आशाएं पैदा करते हैं, जो बातें हो ही नहीं सकती, उनकी कल्पना कर लेते हैं। जैसा की हमारी इच्छा यही होती है की हमारी सुन्दरता सदा बनी रहे, हम सदा जवान रहे। अब आप यदि ऐसी कल्पना को जन्म देंगे तो उसका फल क्या होगा? निराशा, असफलता और इस निराशा असफलता के जिम्मेदार तो आप स्वयं ही हैं, जिन्होंने एक ऐसी कल्पना कर डाली जो असंभव है। हाँ, इस कल्पना का यह लाभ तो आपको अवश्य होगा कि आप सपनों के संसार में खोए रहेंगे। आशा की यह मूर्ति जब तक हमारे मन में सजी हुई है तब तक तो हम मस्ती रहेंगे, सपने देखते रहेंगे। हमारी आशा बढ़ती है क्योंकि आत्मा के प्रकाश में हमारा आत्मविश्वास छिपा रहता है। वास्तव में यही विश्वास हमारी आशाओं का सच्चा प्राणी होता है। इसी विश्वास पर तो हमारी आशाओं के महल खड़े होते हैं, जो हमें आशावादी बनाकर जीने के लिए मजबूर करते हैं। हम अपनी आशा को जिंस रूप में देखना चाहते हैं, उसी रूप में ही उसकी कल्पना होनी चाहिए। हर आशा का रूप स्वयं प्राणी ही बनाता है। हाँ उसे अपने मनचाहे रूप में ढालने के लिए आपको अपने अंदर दृढ़ विश्वास को जन्म देना होगा। यही दृढ़ विश्वास हमें सफलता की ओर ले जाएगा। जिंस वस्तु की हमने कल्पना की है। तो हम से दूर नहीं होगी। अपने दृढ़ विश्वास की शक्ति से तो लोगों ने ईश्वर को भी पा लिया है तो फिर क्या आपकी इच्छा पूरी नहीं होगी? आपके मन में कभी कभी यह लालसा पैदा होती है कि आप उस पुरुष या उस नारी के जैसे बने? यह एक प्रेरणा का आधार है। यदि आप उसे सामने रखकर उसे अपनी मंजिल बांध कर चलेंगे तो सफलता आपके द्वार पर होगी। यह भी मत भूलिए कि आपके हर आशा कभी भी पूरी नहीं हो सकती। जब भी कभी आप किसी कल्पना को अपने मन में जन्म देते है तो उसकी त्रुटियों और कमजोरियों को सामने रखते हुए यह भी याद रखें कि इस में आपको असफलता भी हो सकती है। आशा में अपारशक्ति भरी हुई है और यह विश्वास भी कि हम जो कुछ भी चाहते हैं उसे अवश्य पाकर रहेंगे। हमने जो सपने देखे है या अवश्य पाकर रहेंगे, अपने मन को इस संसार में ऊंचा उठाकर उसे खुश रखने से बढ़ कर और कोई अन्य बात इस संसार में नजर नहीं आती। हमारी यहाँ कल्पना की हम जीस पदार्थ को चाहते हैं, वह अवश्य हमें मिलने वाला है। हमारे लिए जो होगा वह अच्छा ही होगा। यही हमारा आत्मविश्वास है। हमें यह सदैव याद रखना चाहिए कि हम। अवश्य सफल होंगे। विजय हमारी ही होगी। इस संसार की खुशियों पर हमारा भी अधिकार है। निराशा हमारी सबसे बड़ी शत्रु है। आशा हमारा जीवन है। इन बातों को निरंतर अपने मन में बसाये रखें। आशावाद ही जीवन का सबसे बड़ा अंग है। जीवन की घटना से आशा की झलक नजर आने लगी। यही आपके विशेषता है, अंधेरों से दूर प्रकाश की ओर देखने में ही लाभ है। जो काम शुरू करे, उसमें आपका पूरा विश्वास शामिल होना चाहिए और आप यह सोच लें कि इसमें मुझे हर हाल में सफलतामिलेगी एक क्षण के लिए भी अपने मन में अविश्वास की एक झलक तक ना आने दीजिए। यदि यह रेखा एक क्षण के लिए भी मन में घुस गई तो समझ लो कि आपके आशाओं के सारे महल एक झटके के साथ गिर जाएगी। अविश्वास मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है। इसलिए इस शत्रु से सदा होशियार रही। परिश्रम भी आपकी सफलता का एक अटूट अंग है। कोरी कल्पना से कुछ भी नहीं होने वाला। कल्पना, आशा, विश्वास, परिश्रम मिलकर ही सफलता का द्वार खोलते हैं। अपने सबसे बड़े शत्रु निराशा अविश्वास, उत्साह हीनता से सदा दूर रहिए। रद्दी कागज की भाँति इन्हें अपने से दूर फेंक दीजिए। सदा सुबह के सूर्य की ओर देखिए, वहीं आशा का प्रतीक होता है। अब क्या पाना चाहते हैं, क्या पाने जा रहे हैं, इसकी कोई चिंता नहीं। आपका लक्ष्य कितना ऊंचा है या सोचकर आप अपने मन में गिरावट ना आने दें। आशा को कहें कि जब भी निराशा हमारे द्वार पर आए तो उसे बाहर से ही भगा दे। यदि आपके मन में उत्साह है, भावनाओं की शक्ति है तो आपकी योग्यता का अद्भुत विकास हो जायेगा। आपको खुश रहने की आदत पड़ जाएगी। खुशियां आपके साथ होंगी। जब दिल को एक बार खुश रहने की आदत पड़ जाएगी तो आपका स्वास्थ्य भी अच्छा रहेगा। जिसका स्वास्थ्य अच्छा है। वो अपने सारे काम मन लगाकर करता है। जो आदमी मन लगाकर काम करता है उसे सफलता भी मिलती है। ऐसी सब आदते हम अपने बच्चों को डाल दे तो बड़े होकर उनका जीवन सुखी रहता है। छोटे बच्चे के मन में आप जो बात बैठा देंगे, बड़े होकर वह बात पत्थर की भांति सख्त होकर उसके मन में बैठ जाएगी। यही सबसे बड़ी क्रांति होगी कि हम यह सब बातें बच्चों के मन में बैठा दें। आशावाद के प्रशिक्षण को प्राप्त करने से मन स्वभाव से ही ऐसा हो जाता है कि अपनी अधिकतम शक्ति को प्राप्त करने में समर्थ हो जाता है। तवा निराशा के स्थान पर आशा को पकड़ लेता है। वह कठोर हृदय ना होकर दयालु हो जाता है। भविष्य की चिंता इस संसार में किसी नहीं भविष्य अच्छा है ऐसा विचार करने की आदत बना लेने मात्र से। आप अच्छे पदार्थों को धन संपत्ति को अपनी ओर खींचने लगते हैं। आप जल्दी ही बहुत धन प्राप्त करने जा रहे हैं, आपके भाग्य में बहुत सारी खुशिया लिखी है जो आपको प्राप्त होने वाली है। आपका एक सुंदर परिवार होगा जिसमें चारों ओर सुख ही सुख होंगे। आपके मन में जो विशाल विचार है आप उनकी रक्षा के लिए जी रहे हैं। ऐसे विश्वास ही जीवन क्षेत्र में उतरते समय कार्य व्यापार की सबसे कीमती पूंजी है। इस तरह का विश्वास जिसके पास है उसे अपने किसी भी व्यापार में पूंजी की कमी नहीं आएगी। हमारे मन में यदि किसी वस्तु विशेष को पाने की आशा पैदा हो गई और उसके लिए हम निरंतर प्रयास भी करते रहे, वो आप पहले चाहे कितनी भी असंभव नजर आती हों किंतु धीरे धीरे यह संभव बनती जाती। मनुष्य की लगन महान है, यदि कोई प्राणी या प्रतिज्ञा करता रहे कि मैं इस चीज़ को पा कर रहूंगा, भले ही मुझे इसके लिए कितना भी कष्ट उठाना पड़े, अच्छी नौकरी हो या कारोबार, सफलता में दोनों बराबर होते हैं। हर प्राणी की आशा का रूप यही रहता है। वे अपने आदर्शों की प्राप्ति के लिए पूरी शक्ति लगा देते हैं। फिर इसमें आश्चर्य क्या होगा कि हम अपनी हर इच्छा को पूरी करके सुख प्राप्त कर लें? कई बार यह देखा गया है कि बहुत से लोग अपनी इच्छाओं को दबाना शुरू कर देते हैं। ऐसा करना अपने आप पर अत्याचार करना है। यदि इच्छा को अपने मन में दोहराया जाए और इस बात का दृढ़ संकल्प लिया जाए कि मैं इसे पूरा करके ही रहूँगा तो सफलता आपके चरणों में पड़ी रहेंगी। उत्साह, जोश, भावना ये सब मिलकर मनुष्य की कार्य शक्ति को बढ़ावा देते हैं। इनसे ही उसे अपना उद्देश्य प्राप्त करने में सफलता मिलती है। सिद्धि के लिए निरंतर आशावादी पहली शर्त है। एक शा के जीवित रहने से ही व्यक्ति में ऐसी शक्ति आती है कि वह अपने सपनों को साकार कर लेता है। भले ही आपकी आकांक्षा कितनी कठिन लगती हो, उसकी प्राप्ति कितनी दूर लगती हो। भले ही इन आशाओं को आप अंधेरे में डूब महसूस करें, यदि आप निराशा का दामन छोड़ आशा को अपने गले से लगा लें, परंतु जिंस आशा के लिए आप प्रयत्न ही नहीं करते, वह आशा बेकार है। उसमें ना तो कोई आनंद होता है, किंतु उसका पाना भी संदेहपूर्ण है। इच्छा भी तभी सार्थक होती है जब उसे प्रयत्न की दृढ़ निश्चय द्वारा परिपुष्ट किया जाए। उत्साह समन्वित दृढ़निश्चय वाली एक शाही इंसान के अंदर दृढ़ निश्चय पैदा करती है। इच्छाशक्ति कामना यदि उत्साह से भरी हो तो उससे आपकी मनोकामना पूरी होगी और मुँह मांगा फल भी मिलेगा। यह बात ना भूलिए कि आप अपने विचारों द्वारा भावनाओं द्वारा या तो आप अपने आदर्श उद्देश्य के पास जा रहे हैं या उनसे दूर यदि आप अपने आदर्श उद्देश्य को अपने मन में सबसे ऊंचे स्थान पर रखते हैं। यदि आप अपना सारा ध्यान उसी पर लगा देते हैं, उसे एक पल के लिए भी अपने से जुदा नहीं होने देते और अपने को पूर्व लोगों में सर्वश्रेष्ठ मानते हुए अपने कार्य शक्ति पर पूर्ण विश्वास किए रहते हैं। अपने को उस महान ईश्वर का अंश मानकर अपने अंदर या दृढ़ विश्वास पैदा कर लेते हैं। अपने ही छोटे और घटिया विचारों को दबाने की प्रक्रिया को निरंतर जारी रखते हुए यदि आप उत्साह और उल्लास मन में भरे अपने लक्ष्य की ओर कदम कदम बढ़े ही चले जाते हैं तो आपके लिए उद्देश्य की पूर्ति कोई कठिन नहीं। आप जो करना चाहते हैं आप जो बनना चाहते इसी पर अपना सारा ध्यान लगा दीजिये, उसे बुला ने के लिए कोई बहाना मत तलाश कीजिए। अपने को कभी थका हारा, सुस्त, ढीला मत महसूस कीजिये, बस एक ही बात कहते रहिये मैं करूँगा या मरूंगा हाँ यदि आप सफलता की सीढ़ियों पर निरंतर चढ़ते रहना चाहते हैं तो आप फिर अपने को कभी भी अभागा मत कहिये, ये मत कहिए कि मेरी तो किस्मत ही फूट गयी। मैं तो हार चुका हूँ या सब कुछ सफलता का शत्रु है। दिल से यह बात भी निकाल दीजिए कि मैं गरीब हूँ। यदि गरीब है भी तो लोगों को कभी मत हवा, लगने दो की मैं गरीब हूँ। अपनी गरीबी का ढिंढोरा पीटने वालों से लोग घृणा करने लगते हैं। गरीब होना कोई गुनाह नहीं किंतु गरीबी का रोना रोना सबसे बड़ा गुनाह है या भी याद रखें कि आपके शत्रु आपकी कमजोरियों की तलाश में रहते हैं। यदि आपको आगे बढ़ना है, सफलता प्राप्त करनी है तो अपने मस्तिष्क में निराशा और पराजय की भावना को मिटा देना होगा और आगे बढ़ते रहने के इस मंत्र का सदा जाप करना होगा। मैं आशावादी हूँ, मैं दृढ़ विश्वास ई हूँ, मैं सदा से विजेता हूँ और विजेता रहूंगा। मैं सफल हूँ और सफलता प्राप्त करना मेरा अधिकार सफलता के रास्ते के रोड़े और भी है। जैसे बिमारी का विचार, दुर्बलता का विचार, हार का विचार, यह विचार भी आपके शत्रु है। यह उस अवसर की तलाश में व्याकुल रहते हैं जब कभी आप सफल ना हो। इनसे सजा होशियार रहें या कभी भी आप पर आक्रमण कर देंगे। यदि एक बार आप इनके बस में हो गए तो समझो सदा के लिए बेबस हो गए। आपको सर्वप्रथम हर निराशा के विचार को अपने से दूर भगाना होगा। ये तभी संभव हो सकेगा जब अपने अंदर यह विश्वास पैदा कर लेंगे कि मुझे मेरे आदर्शों से कोई भी पीछे नहीं हटा सकता। हर रोज़ सुबह उठकर और रात को सोते समय यह विचार मन में लाइये क्या आप सर्वश्रेष्ठ प्राणी हैं? आप को ईश्वर ने इस संसार में कोई ना कोई महान कार्य करने के लिए भेजा है। आप सर्वशक्तिमान ईश्वर के ही अंशअवतार है, उसी ने आपको धरती पर कुछ महान कार्य करने के लिए भेजा है, फिर आप में एक शक्ति पैदा होगी, ऐसी शक्ति है जिसके आगे आपके शत्रु कुछ भी नहीं कर पाएंगे। आप आगे बढ़ेंगे और निरंतर ऊंचे उठते जाएंगे। आपके मन में नया उत्साह पैदा होगा। यही उत्साह आपके जीवन की सफलता का विशेषांक निराशा से बचने का यह भी एक मार्ग है कि अपने में उत्साह पैदा कीजिए और पूरे विश्वास से कहिए कि मैं अपने लक्ष्य में कामयाब होगा। मैं असफलता का मुँह नहीं देखना चाहता। सफलता ही मेरे मित्र हैं। अनेक लोगों का जीवन उनके आदर्श का अनुसरण करता है, उसी के अनुरूप प्राणी का अपना चरित्र बनता है। यही आदर्श प्राणी के जीवन पर शासन किया करता है। आदर्श ही एक ऐसा सांचा है जिसमें प्राणी का जीवन डालता है। जिंस प्राणी का आदर्श श्रेष्ठ है तो उसका जीवन भी श्रेष्ठ ही होगा। यदि आदर्श सुन्दर है तो जीवन भी सुन्दर ही होगा। मनुष्य के यही आदर्श उसके चेहरे से साफ दिखाई दे जाते हैं क्योंकि यह आदर्श हमारे दिल में हर समय विराजमान रहे थे। हम जिन विचारों, भावनाओं और आकांक्षाओं को पुष्ट करते प्रबल बनाते रहते हैं, उन्हें हाथों में हमारे जीवन की बागडोर आ जाती है। इसलिए हमारा यह कर्तव्य हो जाता है कि हम अपने विचारों को आदर्शवादी बनाए, उनमें मिठास प्यार भरते रहें, इससे आपके जीवन को एक विचित्र सुख मिलेगा। ऐसा सुख जिसकी आप कल्पना भी नहीं कर पाते। आपको इस बात पर दृढ़ निश्चय करना होगा। क्या आपके मन में छोटे पन के विचार ना आये? यदि आपके मन में छोटे विचार जन्म ले लेते हैं तो उससे आपके दैनिक जीवन पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ेगा। अब छोटी सी दुनिया में ही बंद होकर रह जाएंगे। इसलिए आपको यह संकल्प लेना होगा कि हम सदा छोटे विचारों को अपने से दूर रखेंगे और वही करेंगे जिससे हमारा जीवन ऊंचा उठ सके। महान और श्रेष्ठ बनने के लिए पहले अपने विचारों को महान बनाना पड़ता है। छोटे विचारों वाले व्यक्ति कभी भी महान नहीं बनते। इस संसार में आजतक जीतने महान लोग हुए। उनके विचार ही महान थे। उनके मन में कभी भी हीन भावना ने जन्म नहीं लिया था। वे मानवता को अपना धर्म मानते हुए मानव की सेवा के विचार मन में लिए हुए थे। उनको देखते हुए यदि आप भी प्रयत्न करें कि आपका जीवन आदर्शवादी हो, ऊंचे स्तर का हो, तो आपको वैसे ही विचार अपने मन में भी पैदा करने होंगे। आदर्श प्रधान जीवन में वह आदर्श ही हमारा ऐसा सांचा है जिसमें हमारा चरित्र और स्वरूप आकार ढलते हमारे जीवन के स्वरूप का निर्माण करने में हमारे आदर्शों को बहुत महत्वपूर्ण योगदान होता है। हमारे हृदय की इच्छा हमारे जीवन में प्रकट होकर ही रहती है। यदि हम अपने कामों, अपने चरित्र और अपने जीवन पर श्रेष्ठता की छाप लगी देखना चाहते हैं तो सर्वप्रथम अपने आदर्शों को महान बनाना होगा। आत्मविश्वास इंसान के जीवन की सबसे बड़ी पूंजी है। विश्वास, निश्चय, प्रतिज्ञा, आशा ये सब आत्मविश्वास के ही दूसरे नाम हैं जिन्हें उसके सहायक का रूप दिया जा सकता है। आशा हमारे आदर्शों की बाहरी रूपरेखा है। कार्य उसमें अनेक प्रकार के रंग भरता है। कार्य और प्रयत्नो के बिना आशा केवल एक कोरी कल्पना है। यदि आशा को हम कोरी कल्पना नहीं रहना देना चाहते बल्कि उसे सत्य में बदलना चाहते हैं तो हमें कर्म और प्रयत्न का दामन पकड़ना होगा। हर सफल और सुंदर रचना के पीछे विश्वास, आशा और हार्दिक इच्छा विराजमान रहती है। यदि वह ना हो तो रचना कभी सफल नहीं हो सकती। हमारा आत्मविश्वास ही जिसे सफलता का विचार कहते हैं। या ऐसा चुंबक है जो कार्य शक्ति प्रेरणा रूपी लोहे को अपनी ओर खींचता रहता है? प्राणी का विश्वास जितना भी प्रबल होगा, उतनी कार्यशक्ति उसके अंदर बढ़ती जाएगी। मकान का सपना लीजिये, धन का सपना लीजिये, महान बनने की कल्पना कीजिये, अपने उद्देश्य को पूरा करने का सपना लीजिये, स्वयं को महान बनाने की कल्पना कीजिए तो आपके मन में एक ऐसी शक्ति पैदा हो जाएगी जो इन सपनों को साकार करने की हिम्मत आपके शरीर में भर देगी। ये हिम्मत आपकी सफलता का भेद ए। आपके विचारों का संपूर्ण प्रवाह आपके आदर्शों की ओर प्रवाहित होना चाहिए, उससे विपरीत किसी दूसरी दिशा में नहीं। विचारों को एक मंच पर इकट्ठा करके ही इंसान सभ्यता के सभी चमत्कारों को प्रकट होने का मौका मिलता है।","यह ऑडियो स्वेट मार्डन द्वारा लिखी गई किताब एवरी मैन ए किंग से लिया गया है जिसका अनुवाद है खुशी से कैसे जीना है आप इस ऑडियो को सुनकर अपने जीवन में निराशा से बाहर आ सकते हैं और कई आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं इसमें आपको हिंदी ऑडियोबुक, हिंदी 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रहे हैं। निराशा आपसे बहुत दूर रह गई है। आशा और सफलता आपके साथ हैं। चिंता से अपने आपको दूर रखेंगे तो विश्वास की शक्ति आपको मंजिल तक ले ही जाएगी। बहुत से लोगों को यह कहते सुना गया है कि सपने देखना एक पूरी आदत है। कल्पनाओं में उलझे रहना बेकार होता है। सपने देखने और कल्पनाओं के सागर में डूबे रहने से जीवन व्याकुल रहने लगता है। ऐसे लोग कुछ नहीं पा सकते। बस सपनों और कल्पनाओं के सागर में डूबे रहते हैं। ऊपर लिखी सब बातें बिल्कुल व्यर्थ है। कल्पना के सहारे ही तो मनुष्य ने संसार में बड़े बड़े काम कर डाले। कार्य से पूर्व कल्पना का ही जन्म हुआ था इसलिए कल्पना के बिना तो कोई कार्य असंभव नहीं। ऐसी ही बात मनुष्य के सपनों के बारे में कही जा सकती है। वह कुछ ऐसे सपने देखता है जिससे उसके जीवन को आगे बढ़ने से प्रेरणा मिलती है या प्रेरणा ही उसकी प्रगति का प्रतीक है। यह सपने और कल्पना पवित्र है, यह तो प्रकृति की ओर से मानव को वरदान मिला हुआ है। यदि इस संसार में सपने और कल्पना ना होती तो मानव की उन्नति का यह इतिहास शायद बिल्कुल ही विपरीत होता। कल्पना द्वारा हम अब तक ना बनी हुई वस्तुओं को देख सकते हैं। अभी तक ना प्रकट हुए सौंदर्य के सपने देख सकते हैं। यही सपने हमें अपने आदर्शों के अनुकूल जीवन ढालने में मदद करते हैं। इनसे ही हमारे मन में नई भावना जन्म लेती है। इन भावनाओं से हमारे अंदर जोश और उत्साह जन्म लेता है, जबकि हमें बहुत से कष्टदायक और ऐसे काम भी करने पड़ते हैं जिनमें हमारी रुचि नहीं होती। इन सपनों के कारण तो हम सच्चाई के निकट पहुँच पाते हैं। यह सत्य है जो दूर होते हुए भी हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। सब ने इस बात के साक्षी हैं कि यह कार्य संभव है, जिसे संसार सदा असंभव मानता रहा है, वहीं सपने संभव कर देते हैं। कल्पना के महल खड़े करना, हवाई किले बनाना, इसे आप मस्तिष्क का मनोरंजन नहीं कह सकते बल्कि सभी निर्माणों और सारी दिव्य रचनाओं का मूल रूप यही है। यदि इस संसार में सपने ना होते तो हमें कोई सुन्दर कलात्मक रचना देखने को ना मिलती। कोई भी विचित्र और गौरवशाली निर्माण ना होता। पहले हम चित्र में महल बनाते हैं। आकांक्षा में हम उसकी विस्तृत रूपरेखा बनाते हैं, उसके पश्चात ही उसके नींव रखते हैं। तब उसका निर्माण कार्य आरंभ होता है। हर बड़े महल, हर घर, हर मकान से पहले तो कल्पना ही थी। केवल एक सपना ऐसे सपने यदि ना लिए जाती तो हमारा क्या होता? इस प्रश्न का उत्तर तो आप सोया में ही भलीभाँति दे सकते हैं और यह बात खुलकर कह सकते हैं कि आज पूरा संसार जंगलों में भटक रहा होता। यह बात ना भूलें कि हर अच्छा स्वप्नदृष्टा अच्छा निर्माता बन सकता है जो मानव इच्छाओं को वास्तविक रूप प्रदान करने का अथक प्रयत्न करता है वह अपने सपनों को सिद्ध कर के दिखला देता है। जिसके लालसा करते हैं, जिंस चीज़ की इच्छा करते हैं, जिसे पाने की आशा करते हैं, उसी का हमारे मन में विश्वास होता है, उसी के लिए हम प्रयत्नशील होते हैं। यदि इन सुंदर और विशाल भवनों के मानचित्र कलाकार ना बनाती तो हमें ये सब कुछ देखने को कहा से मिलता सुन्दर भवनों और ऐतिहासिक निर्माण के पीछे भी कल्पना बोल रही है। आखिर किसी ना किसी कल्पना के सहारे ही तो इनका निर्माण हुआ है। जीवन में हम जिंस वस्तु को साकार रूप में देखते हैं। उसे पहले अपनी कल्पना या सपने के आधार पर बना पूरा विश्व का मानचित्र जब हमारी आँखों के सामने आता है तो वास्तव में आश्चर्य भी होता है और गर्भ भी। पूरी मानव जाति ने यदि अपनी विशेषता सिद्धिकी है तो उसमें सपनों और कल्पनाओं का बहुत बड़ा योगदान रहा है, इसमें कोई संदेह नहीं। हमारे सपने ही उत्साहपूर्ण प्रयत्नो की सबसे बड़ी शक्ति है। उत्साहपूर्ण प्रयत्न ही हमारे सपनों को साकार रूप प्रदान करते हैं। ये सबकुछ तो हम विश्व के सुंदर भवनों के निर्माण से देख ही सकते हैं। विश्व में विस सभी लोग जो महान कार्य कर गए, वे सब सपनों को ही देखकर प्रेरणा पाते रहे। उनके हर काम की सुंदरता का अनुपाद बिल्कुल उनकी कल्पना के विवरण से मिलता जुलता होता है, जिसे अनुपात में कल्पना सुंदर होगी। उसी अनुपात में प्रयत्न कुशलता पूर्ण होगा और उसी अनुपात में सफलता का स्वरूप भी सुंदर होगा। ये सब सपनों और कल्पनाओं पर ही निर्भर है। यदि आपको कोई सपना अधूरा और स्पष्ट नजर नहीं आता तो उसका परित्याग नहीं करना चाहिए क्योंकि मनुष्य काम को पूर्ण हुआ तब तक नहीं देख सकता जब तक काम पूरा ना हो जाए। अपनी कल्पना को हाथ से ना जाने दीजिये। जब तक की आप जो कार्य कर रहे हैं, वह पूरा नहीं हो जाता क्योंकि जब आप कार्य पूरा भी कर लेंगे तब भी आपको यह देखना होगा कि इसमें कोई कमी तो नहीं रह गई। अपने सपनों को सदा उज्ज्वल रखी। यह मत सोचिये की जीवन में रोज़ी कमाना ही सबसे बड़ा काम है, जिसके कारण आपको स्वप्न की भी उपेक्षा करनी पड़े या फिर आपके आदर्श धूमिल पड़ जाए। अपने चारों ओर ऐसा वातावरण बनाएं जिससे आपको अपना आदर्श उद्देश्य प्राप्त करने के लिए निरंतर उत्साह प्राप्त होता रहे। उन लोगों के साथ बैठिये जो लोग अपने उत्साह और आत्म शक्ति पर विश्वास रखते हैं। जो की कुछ करने के लिए व्याकुल है, ऐसी पुस्तकें पढ़ी है जो अपने लक्ष्य मार्ग पर चलने के लिए प्रेरणा दे, जिन से आपकी इच्छाशक्ति दृढ़ हो, उन लोगों के साथ विचार विमर्श करते रहें जो आपको आगे बढ़ने की प्रेरणा दें, जो आपके सपनों को साकार करने में सहायता दे। अपने आदर्श उद्देश्य की ऐसी स्पष्ट रूपरेखा अपने मस्तिष्क में बना लीजिए जिससे आप अपने कार्य को यथाशीघ्र निपटा सके। अपने विचारों में कभी भी छोटा पन्ना आने दें। विशाल हृदय लोग विशाल विचारों के होते हैं। आप यदि अपने जीवन में शांति चाहते हैं तो अपने लिए यह आवश्यक है। कि रात को सोते समय जब आप अपने बिस्तर पर लेटने जाते हैं तो कुछ क्षणों के लिए एकांत में जाये और फिर विचार कीजिये कि आज दिन में आपने क्या क्या किया? कौन से ऐसे कान थे जो आपने करने थे, वे हुए या नहीं, कौन सा ऐसा काम रह गया जिसमें कुछ त्रुटियां थीं और इन त्रुटियों को आप कैसे दूर कर सकते हैं? शांत मन और एकांत में जब आप अपनी समीक्षा स्वयं करने लगेंगे तो आपको अपनी पूरी शक्ति का पता चल जाएगा और अपनी उन कमजोरियों का पता चल जाएगा, जिनके कारण आपके काम में बाधा पड़ी है। कल्पना वह शक्ति है जो मनुष्य को अपूर्व दिव्य वस्तु के दर्शन कराती है। महान वस्तु की झांकी दिखलाती हैं, रास्ते की सारी बाधाओं को दूर करके उस आदर्श को पूरा करने का मार्ग दिखाती है जो आपकी कल्पना में आए थे। सपनों में स्वर्ग की कल्पना करना हमें निराशा से दूर करता है। असफलता के दुख में डूबे मन को शांति देता है। हमारी कल्पना यदि सुन्दर है तो हमारा मन भी उससे अधिक सुंदर हो जाएगा। कल्पना का अर्थ मृगतृष्णा या आकाशकुसुम की आशा करना नहीं है। कल्पना वास्तविक उचित, कल्याणकारी, उपयोगी और आत्मा की उदारता से उद्भूत होना चाहिए। कल्पना ऐसी होनी चाहिए जो हमें अपने जीवन को ऊंचा उठाने की प्रेरणा देती है। भले ही हमारे हालात और वातावरण कितने ही प्रतिकूल हो। श्रेष्ठ कल्पना हमारे प्रयत्नो में ढील या रुकावट नहीं आने देती। श्रेष्ठ कल्पना हमें हर समय अपने दामन की रोचकता से बांधे रहती है। हमारे प्रबल इच्छा के पीछे कोई ना कोई शक्ति अवश्य होती है। इंद्रियों के भोगों की लालसा के पीछे नहीं बल्कि आम जनता के कल्याण के लिए हमारी भावनाओं का उत्पन्न होना यह एक दिव्य शक्ति विद्यमान रहती है। आत्मा की गहराइयों से निकली कल्पना कभी भोग विलास तक सीमित नहीं रहती। आदर्श उद्देश्य के लिए की गई इच्छा के पीछे ईश्वर का आशीर्वाद शामिल होता है, जिसे व्यक्ति पाकर सफलता की ओर निरंतर बढ़ता रहता है। आत्मा की ऊंची उड़ान और चिंतन के क्षणों में ही ऐसा श्रेष्ठ एक दिव्य सपना हम देखते हैं, जिससे हमें कोई आत्मिक सुख नहीं मिल सकता। जब तक प्राणी का आदर्श या सपना गरीबी का हो तब तक वह गरीब ही रहेगा। हमारे मन की प्रवृत्ति हमारे दिल की इच्छा ही वह निरंतर की जाने वाली प्रार्थना है, जिसका उत्तर प्रकृति को देना पड़ता है। प्रकृति का यह वसूल है की यह प्रतिक्रिया प्रकट करती है कि हम अपनी इच्छा के अनुसार ही फल पाते हैं। प्रकृति यह भी मानती हैं कि हम अपनी इच्छा के अनुसार ही कदम उठाते हैं और प्रकृति ही उसे बढ़ाने की शक्ति प्रदान करती है। प्रकृति ही हमारे मस्तिष्क की प्रार्थनाओं के अनुरूप फल देती है। जब आप जैसा भी फल चाहते हैं वैसी इच्छा करे, वही आपको मिलेगा। इसमें कोई संदेह नहीं कि यदि हम अपनी मनोवृत्ति को उदार रखते हैं और सच्चे मन से प्रयत्न करते हैं और अपनी इच्छा पूर्ति के लिए संघर्ष करते रहते हैं, तो कोई कारण नहीं की प्रकृति हमें सफलता प्रदान ना करे। यहाँ तो स्वयं प्रकृति का अपना ही नियम है। आशा और आशंका पर अपने मन को इकट्ठा करने में बड़ी भारी शक्ति छिपी है। इस एकाग्र चिंतन द्वारा हम वस्तुओं को अपनी ओर खींचते रहते हैं, जिसे हम पाने की इच्छा रखते हैं या हमारी संघर्ष पूर्ण शक्ति का ही कमाल है, जो हृदय की भावनाओं की पूर्ति करती है। जिसकी आशा, आकांक्षा हर समय करते रहते है, उसे हम क्षण क्षण अपनी ओर खींचते रहते हैं। यही सिद्धि का पहला महामंत्र है। हमारे मन की इच्छाएं हमारी रचनात्मक शक्ति यों को परवान चढ़ाने के लिए उन का संचार करती है। इसी से उनकी शक्ति बढ़ती है। फिर हम उस पदार्थ को पानी योग्य हो जाते हैं जिसकी इच्छा हमारे मन में होती है। हम जो चाहते हैं उसे पाने के लिए संघर्ष अवश्य करते। हमारा यह संकल्प हमें हमारी इन आशाओं को पूरा करने का एकमात्र साधन बन जाता है। प्रकृति के पास मनुष्य के लिए हर प्रकार का महान भंडार है। अब यह सब तो मनुष्य पर निर्भर करता है कि वह उस भंडार में से मनचाहा फल कैसे प्राप्त कर सकता है, किंतु कभी हमने यह सोचा है कि हम प्रकृति को इसका मूल्य क्या दे रहे हैं? क्या हम इस संसार में हर वस्तु मुफ्त में लेते हैं? यदि इस प्रश्न का उत्तर नहीं है तो प्रकृति के घर से आप उस विशाल भंडार में से अपना मनचाहा फल पाने के लिए क्या उसे तपस्या भक्ति भी नहीं दे सकते? हमारे विचार जड़ के समान है या निराकार? शक्ति के सागर में अपनी अनेक जड़ें कई दिशाओं में फैलातें रहते हैं। यह विचार रूपी जड़े जब हर ओर फैल जाती है तो इनमें से तरंगें उठने लगती है। परिणाम यह होता है की हमारी एक शायद फैल जाती है। प्रकृति ने पक्षियों को उड़ने की शक्ति ना दी होती तो आकाश में आदमी में उड़ने की इच्छा पैदा ही ना होती। ईश्वर यदि हमें हमारी इच्छाओं की पूर्ति की शक्ति ना देते तो फिर हमारे मन में इसकी चाबी उत्पन्न होती या इच्छाएं? आशाएं केवल महान कार्य करने के लिए ही है। हमारा जीवन साधारण जीवों से ऊंचा उठा रहे इसी कामना को हमारे अंदर जन्म दिया। आदमी जब अपने आप को महान समझता है और गुणवान, बुद्धिमान समझता है तो उसके पीछे प्रकृति की इन आशाओं और इच्छाओं की। बहुत बड़ी देन को वो कभी नहीं भूल सकता। आज जब हम चारों ओर खिले हुए रंग बिरंगे फूलों को देखते हैं, अनेक प्रकार के फलों को देखते हैं तो हमें यह भी पता चलता है कि यह सब अपने समय पर ही पैदा होते हैं। हर फूल फल का अपना अपना मौसम और समय है। बिना मौसम के कोई फल फूल नहीं मिलता। क्या ये सब प्रकृति की महान देन नहीं है? क्या यह उस महान शक्ति के भंडार से निकली? अनमोल वस्तुएं नहीं है जिसे हम ईश्वर कहते हैं। यह मत भूलो की जो ईश्वर फल फूल पैदा कहता है, मौसम बनाता है, धरती और आकाश जिसकी देन हैं। जीव जंतु पहाड़ों और पानी में रहकर भी अपना भोजन तलाश कर लेते हैं। क्या वह ईश्वर तुम्हारी इन आशाओं को पूरा नहीं करेगा? कल्पना और आशाओं और सपनों का संसार बसा कर आप भी जीवन का आनंद लें। चिंताओं का त्याग करके जीवन का सच्चा सुख पाएं। दोस्तों, आपको यह ऑडियो कैसी लगी? आप मुझे अपने विचार जरूर लिखें। यदि आपके पास कोई सुझाव है प्लीज़ आप उसे भी मुझे साझा कर सकते हैं।","यह ऑडियो स्वेट मार्डन द्वारा लिखी गई किताब एवरी मैन ए किंग से लिया गया है जिसका अनुवाद है खुशी से कैसे जीना है आप इस ऑडियो को सुनकर अपने जीवन में निराशा से बाहर आ सकते हैं और कई आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं इसमें आपको हिंदी ऑडियोबुक, हिंदी ऑडियोबुक मिलेगी , हिंदी में ऑडियोबुक, प्रेरक ऑडियोबुक, प्रेरक ऑडियो, सर्वश्रेष्ठ हिंदी प्रेरक ऑडियोबुक, हिंदी में सर्वश्रेष्ठ प्रेरक ऑडियोबुक, हिंदी में सबसे बड़ी ऑडियोबुक, हिंदी में प्रेरणादायक ऑडियोबुक, हिंदी में प्रेरणादायक ऑडियोबुक, हिंदी में जीवन बदलने वाली ऑडियोबुक, हिंदी ऑडियोबुक ऑनलाइन, #हिन्दीऑडियोबुक, #मोटिवेशनलऑडियोबुक , #inspirationalaudiobookinhindi," "हैलो दोस्तों आप सुन रहे हैं स्वीट मॉडर्न की लिखी गई महान कृति एव्रीमैन आ किंग का हिंदी रूपांतरण हमने सुना अब तक इसके छह भागों को आज हम सुनेंगे सात वां भाग, विचार और संघर्ष। यदि इंसान के विचार उत्साहहीन निराशाजनक होंगे तो उनका हाल गंदे धागों जैसा होगा, जो या तो ताने में टूट जाते हैं। यदि नहीं भी टूटेंगे तो उनसे बुना हुआ कपड़ा भी वैसा ही गंदा होगा। जैसे विधा के गंदे हैं। यदि विचार रूपी धागे सुंदर, पवित्र और आशावादी हैं तो उनसे बना हुआ कपड़ा भी वैसा ही सुंदर और टिकाऊ होगा। मानव विचारों का उसके शरीर पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है। आप बार बार इसी विश्वास को अपने मन में दोहराते रहिए कि आप ठीक वैसे ही प्राणी है जैसे कि आपने बनने की आशा की थी। ऐसे विचार आपको अपार शक्ति देंगे और आपका मनोबल ऊंचा होगा। आपका हर कदम प्रकृति की ओर उठेगा, आपका जीवन आशावादी और सुखी होता जायेगा। हम अपने जीवन का जैसा स्वरूप निर्माण करना चाहते थे, क्या हम वैसा निर्माण कर पाए? इस विचार पर ध्यान देने से हमारे मन को बहुत बल मिलता है क्योंकि हम अपने बारे में हर चीज़ पर पूर्ण ध्यान दे सकते हैं। हमारा मन उस व्यापारी के समान है जो अपने कारोबार का पूरा लेखाजोखा साम होते ही कर लेता है। उसे उसी समय पता चल जाता है कि आज उसने क्या खोया? अगर क्या पाया है यदि उसे शाम को लाभ नजर आता है तो उसे बहुत ही खुशी होती है। यदि घाटा नजर आता है तो वो बहुत उदास हो जाता है। ठीक इसी भाँति इंसान को भी हर रात सोते समय अपने मन का लेखा जोखा करना चाहिए। उसे यह बात बहुत ध्यान से देखनी होगी कि उसे कहीं नुकसान तो नहीं हुआ है। उसके विचार वैसे ही आदर्शवादी है। उसकी भावना ये वैसी ही शुद्ध और स्वच्छ है। काम करने की शक्ति में तो कहीं कमी नहीं आयी। हम अपने जीवन को महान रूप देना चाहते। ऐसा रूप जो निर्माण करता है, जो मनुष्य को आगे ही आगे ले जाता है। हमारे एक सा यही है कि हम इस समाज में सम्मानजनक स्थान प्राप्त करे। हम धनवान भी बनना चाहते हैं। हमें संपत्ति की भी आवश्यकता है। हम अपने आप को छोटे कहलाना पसंद नहीं करती। इस विचारधारा से आपके जीवन में क्रांति हो सकती है। जब हम अपने जीवन में आशाओं और खुशियों के सारे रंग भर लेंगे, जब हमारे मन की सारी भावनाएँ पूर्ण होकर शांत हो जाएगी। मन की शांति सबसे कठिन कार्य है। बस इसी विचारधारा के पैदा होते ही मानव जीवन ऊंचा उठता है, हमारे विचार आदर्शवादी हो जाते हैं। निराशाओं के अंधेरे अपने आप चढ़ जाते हैं, आशाओं के द्वीप जल उठते हैं, हमें प्राप्त होता है जीवन का सच्चा सुख, मन की शांति। यही तो श्रेष्ठ गुण है। हमारे जीवन पर श्रेष्ठ गुणों का शासन होना चाहिए। अवगुण हमारे मन पर कभी हावी ना हो इसके लिए हमें हर समय सतर्क रहना होगा। जो विचार हमारे मन को अशांत करते हैं, जो विचारधारा हमें आगे बढ़ने से रोकती है, उसे अपने मन में से निकालकर बाहर फेंकना चाहिए। जिससे धरती में अच्छा बीज बोया जाता है, उसमें अच्छी खाद डाली जाती है, पानी अच्छी तरह और समय दिया जाता है। उस फसल की हरियाली देखकर लोगों के मन खुश हो जाते हैं। जब वो फसल पककर तैयार हो जाती है तो उससे सब को ही लाभ होता है। इसी भांति मानव हृदय के सारे विचार उसके साथ साथ सारे समाज पर ही प्रभाव डालते हैं। विचारों की इस खेती से आप कौन सी फसल तैयार करना चाहते हैं या तो स्वयं आप पर ही निर्भर है? हाँ, आप पहले अपने में आत्मविश्वास पैदा कीजिये, स्वयं को इस योग्य बनाने का प्रयत्न कीजिये। की किसी प्रकार के बुरे विचार आपके मन में प्रवेश न कर सकें। आपके मन में ज्ञान का प्रकाश इतना तेज होना चाहिए कि अज्ञान की परछाइयां भी इसके निकट तक ना पहुँच सके। यदि आपके मन में ज्ञान का दीपक जल रहा है तो कोई भी बुरा ई इस तक प्रवेश नहीं कर सकेंगी। हाँ, यदि आपका मन कच्चा है, तेज हवा के झोंके से आपके मन काया दीपक बूझ जाता है तो समझ लो आप के चारों ओर बुरा ई के साये फैल रहे हैं। आप की शक्ति दम तोड़ रही है। आप बड़े से छोटे बनने की ओर जा रहे हैं। आपको सर्वप्रथम यही प्रयत्न करने होंगे की बुराइ की परछाइयाँ आपके मन से दूर रहें। यदि आप अपने मन को चंचल बनाए रखते हैं और दूसरों के कहने पर अपना उद्देश्य छोड़ने को तैयार रहते हैं, इसलिए तो आपके जीवन का नाश हो जाता है। ऐसे सुझाव देने वाला, इन सुझावों को मानने वाला और इन्हें सुनने में आनंद लेने वाला प्राणी अवश्य पथ भ्रष्ट हो जाता है। यदि हम चाहें तो अपने उद्देश्य को मन ही मन में बार बार दोहराते हुए कहते रहे। की। हम अपने उद्देश्य को पाकर रहेंगे और हमारी मंजिल एक ही है। हम उस मंजिल तक पहुँचने के लिए अपना सबकुछ दांव पर लगा देंगे। तभी हम अपने जीवन धारा के प्रवाह को पूर्णतः उद्देश्य की ओर मोड़ सकते हैं और अपनी संपूर्ण कार्य शक्ति को उसकी सिद्धि के लिए नियोजित कर सकते हैं। फिर हम अपनी सारी योग्यताओं को उद्देश्य की पूर्ति के लिए केंद्रित कर सकते हैं। कुछ समय पश्चात हमारी कार, योग्यता और कर्म सामर्थ्य की ऐसी प्रचंड लहर उठेगी। जो समस्त विघ्न बाधाओं को अपने साथ बहाकर ले जाएगी और हम अपने आदर्श मंजिल तक पहुँच जाएंगे जिसके लिए हम संघर्ष करते रहते हैं। ये भी ध्यान रखें कि हर अच्छे कार्य में रुकावटें अवश्य आती है। जब भी हम मंजिल के निकट पहुंचने लगते हैं तो विरोधी धाराएं हमारा मार्ग रोकने के लिए आगे बढ़ती है। इनसे हमें हर समय होशियार रहना होगा। कर्म सिद्धिकी विद्या तक विचार तरंगें हैं, घृणा की भावना बदले की भावना, ईर्ष्या की भावना। कठोरता, जिद ये सारी भावनाएँ हमारे मार्ग में बाधा डालने का प्रयत्न करती रहती है। यह बातें ध्यान रखने योग्य है कि जिंस बात या काम के द्वारा वैमनस्य बढ़ता है, उससे हमारे प्रयत्न पंगू और असफल हो जाते हैं। हम लक्ष्यहीन हो जाते हैं। संतुलन से, मानसिक शांति से और विचारों की स्वतंत्रता से हमारे कार्य शक्ति बढ़ती है। यह बात बार बार आपसे कही जा रही है कि हमारी विचारधारा सदा रचनात्मक होनी चाहिए ना की निराशाजनक हिम्मत की विचार तरंग, आत्मविश्वास की विचार तरंगों, दृढ़ संकल्प की विचार तरंगों यह है मन रूपी बिजली, घर की बिजली की तरंगें जो हमें सफलता के निकट लेकर जाती है, जो लोग असफल होते हैं या पूर्ण सफल नहीं हो पाते, वे भी यदि मन से बुरी तरंगों को निकाल दें तो वे पूर्ण सफलता प्राप्त कर सकते हैं। इसके लिए उन्हें थोड़े प्रयास की आवश्यकता पड़ेगी। बुरे निराशाजनक विचारों को मन से कूड़ा समझकर बाहर फेंक देना बुद्धि का ही काम है। यह कूड़ा हैं। डर का विचार, चिंता का विचार, ईर्षा, द्वेष का विचार, निराशा का विचार, संशय का विचार, बहन, संकोच इत्यादि। इन विचारों को गंदगी समझें और अपने मन को शुद्ध करने के लिए सदा इनसे बाहर निकलें और इन्हें बाहर निकालकर फेंकते रहे। मन शुद्धि से ही आत्म शुद्धि होती है और आत्म शुद्धि के लिए। मन को शुद्ध रखना अति आवश्यक है, उसके लिए हमें या उपाय करने होंगे। उत्साह का विचार, आशा का विचार, उल्लास का विचार, हर प्राणी से प्रेम, हर एक पर दया करने का विचार संयम, सहनशक्ति इन विचारों द्वारा आपका मन ऊंचा उठ जाएगा। इनसे आपका मन शुद्ध होगा। यही आत्मज्ञान की जड़ है। यदि आप इन को पूर्ण कर लेते हैं तो संसार की कोई भी शक्ति आपको आगे बढ़ने से नहीं रोक सकती। हमारी मनोवृत्ति का। दूसरों पर भी प्रभाव पड़ता है। यदि हम आशावादी हैं तो दूसरों को भी हमसे प्रेरणा मिले गी। यदि हम आत्मविश्वास ही है तो हमें देखकर दूसरे लोग भी आत्मविश्वास ही बन सकते हैं। यदि हम अपने जीवन में सफल है तो हमें देखकर दूसरे लोग भी सफलता प्राप्त करने के लिए प्रयत्न आरंभ कर देंगे। यदि हमें समाज में सम्मान मिलता है, हमारे पास कुछ ज्ञान प्राप्त करने के लिए आते हैं तो उनको देख और कई लोग हमारी बुद्धि से लाभ उठा सकते हैं। ये याद रखो। दीप से दीप जलता है। खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है। आत्मविश्वास, साहस, निर्भयता की भावना प्रतिबिंबित करने का अर्थ है विजय स्वभाव। दूसरों को यदि आप बस में करना चाहते हैं तो ऐसा स्वभाव बनाइये। यदि हमारा ऐसा स्वभाव प्रकट होता है तो लोगों को हम पर विश्वास हो जाएगा कि भविष्य में अवश्य विजयी होंगे। लोगों को यह प्रतीत होगा कि हम चढ़ते सूरज की पूजा करते हैं। इसके विपरीत। यदि दुर्बलता हिंता के भावों को लोगों के सामने पेश करेंगे तो लोगों को हम पर विश्वास नहीं जमेगा। इसका दूसरा रूप तो यह है कि जितना आत्मविश्वास जरूरी है, उससे अधिक आवश्यक है लोगों का विश्वास प्राप्त करना। इसलिए हमें अपने आभार, चेष्टा, भाषण, हावभाव से आत्मविश्वास की सफलता की विजय की भावना को प्रकट करना चाहिए। जो व्यक्ति विजेता की भाँति जीता है, जो संसार में एक पराक्रमी की भाँति जीता है। उस पर लोगों का दृढ़ विश्वास हो जाता है कि वो अवश्य महान कार्य को पूरा करेगा। इसके विपरीत जो व्यक्ति अपने हावभाव और चेष्टाओं से डरे रहना बुजदिली कायरता का प्रदर्शन करता है, वो कभी भी प्रभावशाली व्यक्तित्व का मालिक नहीं बन सकता, बल्कि उपहास का पात्र अवश्य हो सकता है जिससे व्यक्ति के रोम रोम से उज्ज्वल व्यक्तित्व की आशा जलती है, जिसके चेहरे पर हर समय। विजय के चिन्ह नजर आते हैं, जिसकी बातों में आशा ही आशा की गंध हो। ऐसे लोग जो चाहे कर सकते हैं, उनके रास्ते में कभी रुकावट नहीं आती। उनके आदेशों का पालन करने में लोग खुशी महसूस करते हैं। इसके विपरीत जो लोग डरते हैं, बुजदिल है, निराशावादी है, वे अपने को तो चाहिए और कमजोर समझने लगते हैं। ऐसे लोग जीवन की दौड़ में पीछे रह जाते हैं जिसके चेहरे से उत्साह और आशा की भावनाएँ प्रकट हो रही है। जो निराशावादी ना हो, जो खुशियाँ वार्ता हो, जो अपने दुखों का रोना रोता हो, उसे लोग सिर आँखों पर बैठाते हैं। अपनी शक्तिओं का निरंतर ध्यान करने से प्राणी में आत्मविश्वास की भावना पैदा होती है या झलक उनके चेहरे पर देखी जाती है और वे दूसरों को प्रभावित किए बिना नहीं रहते या बात तो अनुभवों के आधार पर सिद्ध हो ही चुकी है कि बुद्धिजीवी और महान कार्य करने वाले लोगों के चेहरे पर ऐसी झलक हर समय ही देखी जा सकती है। जिससे हर आदमी प्रेरित होता है। उनमें जो लगन होती है, उत्साह होता है, वह तो सब उनको ईश्वर की ओर से उपहार के रूप में मिला होता है। कुछ लोग ऐसे होते हैं जिन्हें देखते ही मन पर या प्रभाव पड़ता है की यहाँ आदमी कभी भी विजय प्राप्त कर सकता है। ऐसे लोग केवल अपने भाग्य के सहारे ही बैठे रहते है। हिम्मत वाली कोई बात उन में नहीं आती। वे अपने मन की आशाओं की पूर्ति की बात भी नहीं सोचती। वे तो केवल घटिया किस्म के काम करके अपना पेट पाल लेते हैं। वे परिश्रम तो अधिक करते हैं किंतु उसके बदले में वे ना तो कुछ पा ही सकते है। पेट की आग बुझाने तक ही उनकी इच्छा सीमित रहती है। ऐसे लोग यदि समाज में पिछड़ जाएं तो कोई अनहोनी बात तो नहीं होगी। उनका अपना चरित्र यदि इतना पतित हो वे कुछ करने से दिल चुराते हो, बुद्धि का प्रयोग करने की जरूरत ही नहीं समझते हो। उन लोगों के आगे बढ़ने की बात भी सोंची नहीं जा सकती है। उनके चेहरे से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि केवल अपने नसीब के सहारे ही पड़े हुए हैं। वे केवल मजदूरी करके ही अपना पेट भरेंगे। इससे आगे उनके पास सोचने के लिए कुछ नहीं। धीरे धीरे उनका जीवन इसी सांचे में ढलकर रह जाता है। जीवन को काटने के लिए पशुओं वाले जीवन की बात तो सोच ही नहीं जा सकती। हाँ, यदि आप मानव जाति में जन्म लेकर आए हैं तो फिर आपका जीवन स्तर ऊंचा होना चाहिए। खुशियां ही खुशियां पाकर आपका हर आने वाला दिन कल की खुशियों को भूलकर आज की खुशियों के सागर में डूब जाए। यही तो सच्चे जीवन का असली आनंद होता है। ज़रा सोचिये की आपका यह जीवन कितने समय तक चलेगा? इस संसार में कोई चीज़ इस था ही नहीं। हर चीज़ अस्थायी है, नाशवान है तो फिर आप इस जीवन के लिए इतने व्याकुल और चिंतित क्यों है? जीवन के लिए चिंतित होने से पहले आप इसकी खुशियों की चिंता तो करें, ईश्वर नहीं है, जीवन तो आपको आनंद करने के लिए दिया है, फिर आप इस चिंता की आग में क्यों जलते? क्यों आने वाले कल की चिंता करके आज की सुंदरसुबह को भी कस्टमर बनाते हैं? क्या आपको ये पूरा ही विश्वास है? की आनेवाला कल अवश्य आएगा और यदि वह कल आएगा भी तो हमें पायेगा भी की नहीं। ऐसे कल के लिए आप चिंतित क्यों है? उठो आने वाले कल की चिंता छोड़ो, वो तो एक कल्पना है। उसे भूलकर आज की सुहावनी सुबह का स्वागत करके उसे गले लगाकर कहो, हमें खुश रहना है। खुशी का नाम जीवन है। रोने का नाम मृत्यु आप इन दोनों में से जिसे भी चाहे चुन लें। यदि आप अपने खुशी के लिए चुनते हैं तो आप विजयी है। विजेता इंसान को प्रतिबिंबित करने की भावना से बढ़कर हितकारी भावना दूसरी कोई है ही नहीं। वह लोग अपने अनुयायी वर्ग पर शासन कर सकते हैं, जो विजयी रहते हैं। विजय ही सफल शासक होता है। छोटी आयु में हर बच्चे के मन में यह भावना कूट कूटकर भरी जानी चाहिए कि उसके शरीर की शक्ति ही उसे संसार में आगे ले जाने में सहायक सिद्ध होगी। तुम्हारा जन्म ही संसार में विजय प्राप्त करने के लिए ही हुआ है। बस इसी बात से वह पराक्रमी बन जाएगा और विजय सदा उसके साथ रहे गी। यदि हम अपने बच्चों के मन में छोटी आयु में ही ऐसी भावना ये भर दें और उन्हें ये सिखला दिया जाये की उन्हें आत्मसम्मान को सबसे उच्च समझना चाहिए, उन्हें आंतरिक शक्ति का बोध करवा दिया जाए तो वे बड़े होकर अवश्य ही बहादुर और विजेता बनेंगे। उन्हें जीवन के किसी भी क्षेत्र में असफलता का मुँह नहीं देखना पड़ेगा। बच्चों का पालन पोषण इतना कठिन नहीं होता। मैं तो ईश्वर के सहारे भी पल ही जाते हैं किंतु उनके जीवन को उज्ज्वल और उपयोगी बनाना ये सबसे कठिन कार्य है, जिसकी जिम्मेदारी केवल माँ बाप पर ही आती है। शारीरिक जीवन को सुंदर और आकर्षक बनाने के लिए पहले मानसिक जीवन को सामंजस्यपूर्ण समन्वित संतुलित बनाना अति आवश्यक है। आपके साथ जिन लोगों का मेलजोल है, उनसे आपके संबंध मित्रतापूर्ण विश्वास भरे होने चाहिए। आपको अपने भाई बहनों के साथ। प्रेम और मिलजुल कर रहना चाहिए। उसके पश्चात ही आप बाहर वालों के साथ सवस्थ, सुंदर, मधुर संबंध बना सकते हैं। यदि आप न्यायप्रिय है, सवस्थ हैं, खुश रहते हैं और अपने संपर्क में आने वाले हर प्राणी से बड़े प्यार से बोलते हैं तो आपका जीवन सुखी ही सुखी है। यदि वास्तव में आप महान और सफल बनना चाहते हैं तो आपके लिए जरूरी है कि अपने मन से एशिया जलन, घृणा, बदले की आग जैसी भावनाओं को अलग करना होगा। कार्यकुशलता और खुशी का दर्शन शास्त्र कहता है कि अपने जीवन को सुखी बनाने के लिए अपने अंदर ऐसी शक्ति पैदा करें जिससे आपके मन में विजय की भावना पैदा हो सके। इससे आपके मन में उत्साह पैदा होगा और यही उत्साह विजय श्री को निकट लाता है। जो नवयुवक जीवन क्षेत्र में पहले पहल उतरा हो और वहाँ सफल होने के लिए व्याकुल हो, उससे पहले कभी ये नहीं कहना चाहिए कि मैं सफल होना चाहता हूँ। किंतु मुझे यह विश्वास नहीं की मेज इस धंधे मेँ लग गया हूँ। मैं उसके योग्य हूँ भी की नहीं क्योंकि जो धंधा में करने जा रहा हूँ उसमें तो पहले से ही लोगों की भीड़ लगी हुई है। इस धंधे में कुछ ऐसे लोग भी हैं जो ठीक से अपना गुजरा भी नहीं कर पा रहे हैं। मुझ जैसे अनेक लोग बेकार फिरते हैं। मैं सोचता हूँ कि इस धंधे में लगकर मैंने बहुत बड़ी भूल की है। चलो अब जो है इसको ठीक है, अब तुम्हें इस धंधे में पड़ ही गया हूँ। अब तो जो होगा देखा जाएगा। हमने जो भी काम करूँगा, मन लगाकर करूँगा। अब तो मुझे इसी धंधे में ही जीना और इसी में मरना है। जो लोग इस प्रकार से सोचते हैं और काम करते हैं, उसे अच्छा करता नहीं कहा जा सकता। इस तरह की सोच रखने वाले लोग धंधे को छोड़ जाएंगे। हम क्या है, इस से नहीं बल्कि हम क्या कहते हैं, इससे लोग हमारे बारे में अनुमान लगाते हैं, आपके शब्दों का ही दूसरों पर प्रभाव डालता है। इस बात को भी कभी मत भूलिए कि हमें अपनी असली योग्यताओं को ही दूसरों के सामने प्रकट करना चाहिए। हम मुँह से जो चाहे कह सकते हैं, किंतु यह बात ध्यान रखें कि मुँह से हम जो कहते हैं, उसी से लोग हमारा मूल्यांकन करते हैं। हमारे आकार, चेष्टा और वार्तालाप का लोगों पर बहुत प्रभाव पड़ता है। उसी से हमें लोग ऊंचा नीचा समझते हैं। हमारी बाते जैसी भी होगी वैसा ही स्थान हमें समाज में मिलेगा। कुछ लोग बनावटी शब्दों द्वारा अपने आप को बड़ा बताने का प्रयत्न करते हैं। इससे उनकी असलियत तो छिप नहीं सकती। आप अपने असली विचारों को कब तक दूसरों से छुपा कर रखेंगे? बनावट का पर्दा कुछ देर तक ही तो पड़ा रह सकता है। आगे चलकर तो ये पर्दा उठेगा और जब आप का असली चेहरा सामने आएगा तो फिर क्या बनेगा? इसलिए आप झूठ का सहारा न लेकर सत्य की राह पर चलो उस आदमी की हालत पर विचार कीजिये जो अमीर बनने के चक्कर में दिन रात एक कर रहा है। उसकी भावनाएँ और मन यही कहता है। की हेडन मैं तुम्हें पाने के लिए पागल हो रहा हूँ दिन रात तुम्हें खोज रहा हूँ अब तो मुझे भी ये लगता है कि तुम मेरे पास नहीं आओगे, मैं तुम्हें पाना तो चाहता हूँ किंतु तुम मेरे हाथ नहीं लगते हों किंतु फिर भी मुझे तो जीवन भर नम्र और दीन हीन होकर काम करना है। यही मेरे भाग्य में लिखा है। भाग्यशाली ही इन सुखों को पा सकता है। अब आप ही कल्पना करो कि ऐसी सोच वाले प्राणी के पास कभी धन आएगा जो पहले से ही डरा हुआ और निराश है। उससे तो धन दूर भाग जाएगा। ये ठीक है कि लोग धन को अपने से दूर नहीं करना चाहती परंतु अपनी मनोवृत्ति को ऐसी दीन हीन बनाए रखते हैं की धन उनके पास तक आने को तैयार नहीं होता। जिनके मन में पहले ही निराशा, उदासी, सुस्ती भरी पड़ी हो, भला धन क्या करने को आएगा? बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो जीवन में ना कभी सफल होते हैं और ना असफल। वेन ना तो अमीर होते हैं और ना गरीब। बस जितना कमाते हैं उतना ही खा लेते। ऐसे लोगों के बारे में आप क्या सोच सकते हैं? आओ ज़रा इनके बारे में कुछ सोचे, जिन्हें कोई चिंता नहीं आने वाले, कल से उन्हें क्या लेना देना, इन्हें तो आज के बारे में सोचना है। इन लोगों का मन दो भागों में बंटा रहता है। आधे मन में तो रचनात्मक निर्णयात्मक धनात्मक विचार भरे रहते हैं और शेष शादी में निषेधात्मक नकारात्मक विचार भरे रहते हैं। चक्की के इन दो पाटों में पिसने वाले प्राणी कभी तो ये सोचते है की आज मैं बहुत कुछ कर लूँगा। मुझमें हर काम करने की शक्ति है। मेरे लिए कोई काम कठिन नहीं, बस कल्पना के सागर में भी महान बन जाते हैं। फिर दूसरे दिन उनका मन यह कहने लगता है अरे यार अपने तो भाग्य ही खोटा है। यदि हम दिन रात भी परिश्रम करेंगे तू भी कुछ नहीं होगा। जब भाग्य मेँ ही गरीबी लिखी है तो दिन रात मरने से क्या लाभ? बस इसी से वे अपनी हिम्मत छोड़कर पुराने धंधे मेँ लग जाते हैं। समय आ गया है अपने को बदलिए अपने मन को हर समय आशाओं से भरे रखिये, अपनी मनोवृत्ति को निरंतर आगे बढ़ने के विचारों से भरपूर रखिये। आगे बढ़ने की कला से ही आप कुछ पा सकते हैं। उम्मीद करती हूँ दोस्तों आज की ऑडियो आपको प्रेरित करेगी तो सुनते रहे मोनिका की आवाज़ में स्वेट मॉडर्न की लिखी गई महान कृति एव्रीमैन हॉकिंग का हिंदी अनुवाद।","यह ऑडियो स्वेट मार्डन द्वारा लिखी गई किताब एवरी मैन ए किंग से लिया गया है जिसका अनुवाद है खुशी से कैसे जीना है आप इस ऑडियो को सुनकर अपने जीवन में निराशा से बाहर आ सकते हैं और कई आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं इसमें आपको हिंदी ऑडियोबुक, हिंदी ऑडियोबुक मिलेगी , हिंदी में ऑडियोबुक, प्रेरक ऑडियोबुक, प्रेरक ऑडियो, सर्वश्रेष्ठ हिंदी प्रेरक ऑडियोबुक, हिंदी में सर्वश्रेष्ठ प्रेरक ऑडियोबुक, हिंदी में सबसे बड़ी ऑडियोबुक, हिंदी में प्रेरणादायक ऑडियोबुक, हिंदी में प्रेरणादायक ऑडियोबुक, हिंदी में जीवन बदलने वाली ऑडियोबुक, हिंदी ऑडियोबुक ऑनलाइन, #हिन्दीऑडियोबुक, #मोटिवेशनलऑडियोबुक , #inspirationalaudiobookinhindi," "स्वीट मॉडर्न विश्व के उन महान लेख को में से एक हैं जिन्होंने केवल जीवन उपयोगी साहित्य ही लिखा है। ऐसा साहित्य जो आपके दुखी जीवन को सुखी बना सकता है, जो आपकी खोई हुई खुशियों को वापस ला सकता है, जो आपकी चिंताओं को जड़ से उखाड़ सकता है और जो आपको नया जीवन दे सकता है। स्वेट मॉडर्न की हर कृति महान है। आपकी सारी समस्याओं के हल के लिए आइये आज हम सुनते हैं महान लेखक स्वेट मॉडर्न के द्वारा लिखी गई पुस्तक। एव्रीमैन आ किंग का हिंदी अनुवाद भाग 18 सफलता का दौर। एक अत्यंत सफल व्यक्ति की मेज पर एक लक्ष्य लटका हुआ है। सबसे कठिन कार्य को सबसे पहले करो। उसने मुझे बताया कि उस छोटे से वाक्य ने उसके जीवन में पूरा परिवर्तन कर दिया है। उसने बताया 1 दिन अचानक मेरे मन में विचार आया कि मुझे दुख, पद, कर्तव्य को टाल ले। प्रतिकूल और कठिन कामों से बचने की आदत सी पड़ गई है। यहाँ तक की इन भूतों ने चारों ओर से मेरे मार्ग को बाधा डाल रखी है। आता। मैंने ये लक्ष्य दीवार पर लटका दिया और रोजाना इसके अनुसार कार्य करना शुरू कर दिया। अंत में जब मैं बहुत से रुके हुए कामों को समेट चुका तो मैंने ये नियम बना लिया की रोजाना कर्तव्यों में से जिसको सबसे बड़ा और सबसे अधिक कठिन समझता था, उसी को सबसे पहले मैं शुरू कर देता। जिंस प्रकार के कार्य को मैं सबसे पीछे डाला करता था। उस काम में अब मैं सबसे पहले जुटने लगा। अधिक समय नहीं हुआ था की मुझे मालूम हुआ कि जो काम मुझे कठिनाई के पहाड़ जैसे दिखाई देते थे, जब मैंने उन्हें स्थिरता और दृढ़ता के साथ निपटाना शुरू किया तो वस्तु ताव असाधारण और अपेक्षाकृत सरल दिखाई देने लगी। अधिकतर मैं इसी लक्ष्य का आभारी हूँ और इसी चीज़ को संसार मेरी सफलता के नाम से पुकारता है। संसार की दृष्टि में कुछ बनने के लिए दृढ़ संकल्प के साथ कार्य आरंभ करना चाहिए। हमें ऐसे कार्य करने चाहिए जिनके करने से हमारे सामर्थ और योग्यता की प्रगति हो। आला से और ऐश्वर्य जिसमें बहुत सा समय और शक्ति नष्ट हो जाती है, त्याग देना चाहिए। मानव सर्वदा ऐसे काम पसंद करता है जिनमें कम से कम कठिनाई हो जहाँ सरलता ही सरलता हो जहाँ अधिक परिश्रम ना करना पड़े। किंतु यह याद रखें की इस कार्यपद्धति से कोई प्रशंसनीय और इस स्पष्ट कार्य संपन्न नहीं हो सकता। विश्राम प्रियता और आलस्य आपके सामर्थ और योग्यता को इसी प्रकार नष्ट कर देता है। जिसप्रकार अफीम, चरस, भांग का नशा जो व्यक्ति इसकी प्रतीक्षा कर रहा हो की कब उसके मन में कार्य करने की इच्छा उत्पन्न होती है। जो व्यक्ति आदतों का दास बन जाता है, वह कभी संसार में कुछ बनकर नहीं दिखा सकता। बल्कि वह व्यक्ति जो अपने समय का कार्यक्रम बनाता है और चाहे वह कठिन हो या सरल, उस पर अमल करता है। बड़ा नाम और यश प्राप्त करता है। कार्य करने वाले व्यक्ति सर्वदा अपनी प्रकृति के स्वामी होते हैं। वे आदतों के दास नहीं होते। उनको कभी इसका विचार नहीं आता कि हमारे मन में कार्य करने की उमंग पैदा होती है या नहीं। उनके मन में यदि कोई प्रश्न उठता है। तो यही की यह काम हमारे लिए सर्वश्रेष्ठ है या नहीं? यदि उनका अंतःकरण इस प्रश्न का उत्तर सकारात्मक दे तो वे तुरंत उसके करने के लिए कटिबद्ध हो जाते हैं। जो जातियां संगठित और एकजुट हैं, जिन लोगों का कार्यक्रम नियत है, वे कठिनाइयों का उल्लेख बहुत कम करते हैं। वे कभी यह प्रश्न ही नहीं उठाते की सफलता का मार्ग दुर्गम है या सरल उनको केवल अपने अभीष्ट स्थान का ध्यान होता है। चाहे कठिनाइयों का सामना हो या नहीं, काम उनकी इच्छानुसार हो या नहीं, वे निर्भीक हो अपनी डगर पर बड़े जाते हैं। यदि आप अपने स्वाभाविक सुस्ती और आलस्य पर विजय प्राप्त नहीं कर सकती, तो विश्वास करें कि आप औसत श्रेणी के व्यक्ति की सतह से कभी आगे नहीं बढ़ सकेंगे। संभव है आप सर्वदा असफल ही रहे। ठीक प्रकार से समझ लें कि संसार को जीस चीज़ की आवश्यकता है। वह उपलब्ध हो सकती है और उसे उपलब्ध करने वाला भी कोई ना कोई पैदा हो जाता है। यदि आप में इतनी योग्यता, साहस और दृढ़ संकल्प नहीं है तो शायद कोई दूसरा व्यक्ति जो संभव है आप से अधिक दूरी पर नहीं, उस वस्तु को उपलब्ध कर सकता है और करेगा। यदि आपको मार्ग का ज्ञान नहीं तो वह मार्ग पूछेगा और उस वस्तु को प्राप्त करने में अपना तन, धन और मन लगा देगा। मंतव्य या है। के अपने दृढ़ संकल्प और स्थिरता के कारण संसार में कीर्ति फैलाएगा। अब स्वभावित आ या प्रश्न उठता है की यदि अन्य व्यक्ति। इन्हीं स्थितियों और वातावरण में रहकर यश प्राप्त कर रहा है तो आप क्यों नहीं कर सकते? बात तो केवल इतनी है कि जो कार्य आपके सुपुर्द है उसको पहले की अपेक्षा अधिक सुंदरता से और कार्यकुशलता से करना है और हर वस्तु को उसकी चरमसीमा तक पहुंचाना है। आपको याद रखना चाहिए की आप से भी अधिक बुरी परिस्थितियों में रहकर लोगों ने प्रशंसनीय और महान कार्य संपन्न किये हैं। यदि वे ऐसे कार्य कर सकते थे तो आप क्यों नहीं कर सकते? जो व्यक्ति किसी कष्ट साध्य कार्य को टाल देता है, पीछे डाल देता है, उसे वास्तव में वही कार्य दो बार करना पड़ता है। विलंब का विचार ही उसका पीछा नहीं छोड़ता। व्याकुलता उसे लगी ही होती है। हेनरी वार्ड वे चक्र से जब प्रश्न पूछा गया आपने इतना काम इतनी सरलता से कैसे कर लिया? तो उन्होंने क्या अच्छा उत्तर दिया था? मैंने किसी काम को दोबारा नहीं किया। बहुधा लोग अपने कामों के बारे में एक बार नहीं, दो बार नहीं बल्कि 1212 बार सोचते है। अकारण ही चिंता घेरे रहती हैं। वे अपना समय और शक्ति कार्य आरंभ से पूर्व यह सोचने में नष्ट कर देते है की ना जाने क्या घटित हो जाये, कौन सी विपत्तियाँ पड़े। यद्यपि काम करने में इतना समय नहीं लगता, कल्पना से अधिक आवश्यक व्यवहार है। जब संकल्प का दूध किसी नव युवक के कान में आकर कहता है तुम्हें यह कार्य करना होगा तो वह नवयुवक तुरंत उत्तर देता है, हाँ, मैं इस काम को अवश्य करूँगा। खेद है कि गिने चुने नवयुवक ही ऐसे हैं जो दवा को हिम्मत के साथ तीख ही बार में पी जाए। बहुमत तो ऐसे लोगों का है जो दवा पीने से पहले काफी देर तक चम्मच के साथ खेलते रहते हैं। यही उदाहरण व्यावहारिक जीवन पर चरितार्थ होता है। प्रायः नवयुवक काम और व्यवसाय अपनाने से पहले झिझकते हैं और उन कामों को अपनाने में आलस्य और विलंब प्रियता से काम लेते हैं जो उनके लिए लाभकर और श्रेष्ठ सिद्ध होते हैं। उनकी उन्नति के लिए जीना बन सकते हैं। जो उनको बढ़ाई और महानता प्रदान कर सकते हैं। उनकी अपेक्षा वे उन कामों में लग जाते हैं जिनमें सरलता और सुविधा हैं, जिनमें वे स्पर्धा के बिना ही बहते चले जाते हैं, चाहे उनमें उभरने और उन्नति करने की संभावना। ये बिल्कुल ना हो। सुबह सवेरे कठिनतम कार्य आरंभ करना एक हर्षदायक टैब है ताकि यदि कोई वस्तु रह भी जाए तो वह उतनी आवश्यक नहीं होगी। सुबह सवेरे ही मेज पर बैठकर अनावश्यक पत्र कागज देखने, साधारण बातों पर झगड़ने और साधारण और अनावश्यक कामों को सबसे पहले पूरा करने की कोशिश से इंसान के विचार और मन और दिमाग की ताजगी नष्ट हो जाती है। इस प्रकार सारे महत्वपूर्ण कार्य पड़े रह जाते हैं। यदि पड़े नहीं रहते तो अनिच्छा से पूरे होते हैं। उन्हें करते समय किसी प्रकार की प्रसन्नता। यह सुविधा प्राप्त नहीं होती। बहुत से लोग केवल इसलिए उन्नति नहीं कर सकते क्योंकि वह कठिन दूभर कार्यों और प्रतिकूल स्थितियों से घबरा जाते हैं। अपनी प्रकृति के अनुकूल और सरल कार्य तो वि चुन चुनकर पहले कर लेते हैं। इस प्रकार दुख, पद और कठिन कार्य अंत तक पड़े रहते है, फिर भी उनको प्रतिकूल विपत्ति का, जिसे उन्हें बाद में पूरा करना पड़ता है। हर समय खटका लगा रहता है। इस अनुभूति से कि जब कोई कठिनाई सामने आये, यह संकट उत्पन्न हो जाए तो पौरुष के समूह या सब भाग जाते है। इंसान के आत्मविश्वास और स्वाभिमान में वृद्धि होती है या अनुभव करके की? मैं प्रतिकूल और दुखद अभियान को पूरा कर सकता हूँ। मैं आलस्य और विलंब की कठिनाइयों से सुरक्षित हूँ। व्यर्थ और दुखद चिंताओं से मैं मुक्ति प्राप्त कर चुका हूँ। इन सब से मनुष्य का अपने ऊपर विश्वास बढ़ जाता है। कर्तव्य के समूह अपने व्यक्तित्व पर ध्यान करें। जो व्यक्ति सफलता का इच्छुक है उसे अपने होश, आंख, नाक, मस्तिष्क, अपना ध्यान, अपने प्रयास आदि एक सफलता पर ही केंद्रित कर देने चाहिए। उसे अपने व्यक्तित्व का परिष्कार और संस्कार सबल रूप से करना चाहिए जैसे कि शिक्षक छात्र का और माता पुत्र का करती हैं या जीस प्रकार घोड़ा साधने वाला, घुड़दौड़ के घोड़े को बाजी ले जाने। और जीतने के लिए सदा या करता है उसे चाहिए की वो सफलता के मानदंड का पूरा उतरे। उसे अपने विचारों और प्रकृति की चिंता नहीं करनी चाहिए। वह तनकर सीधा खड़ा हो जाए। अपने आप को ठीक कर लें और अपने मन और तन को बाध्य करें कि वह ईमानदारी के पद से ना डिगेगा उसे अपने ऊपर और अपने शरीर से प्रतिदिन ऐसी ही ईमानदारी से काम लेना चाहिए मानो वह किसी ऋणदाता से मामला तय कर रहा हो। या किसी ऋण की मांग कर रहा हो। कोई व्यक्ति अपने ऋण की वापसी से इस कारण इनकार नहीं कर सकता कि साहब इस समय तो मन रुपए देने को नहीं चाहता। दुनिया उस आदमी को क्या कहेगी जो केवल इस कारण अपने कथन या वचन से फिर जाये की उसकी तबियत नहीं चाहती या उसके विचारों में किसी प्रकार का परिवर्तन आ गया है? यदि आप में दुखद कर्तव्यों को टालने और प्रतिकूल कार्यों में विलंब करने की आदत है। ऐसी स्त्रियाँ और पुरुषों की बहुसंख्या विद्यमान हैं, जिन्हें उस समय तक अपनी सामर्थ्य और योग्यता का ज्ञान नहीं हुआ, जब तक उनसे हर वस्तु जिसपर उन्हें भरोसा था कि वह सफलता की अवस्था तक उनकी अगुवाई करेगी, छीन नहीं गई जब तक कि जीवन से प्यारी और पसंदीदा चीज़ उनसे अलग नहीं कर ली गई। हमारी बड़ी से बड़ी शक्ति ऊंची से ऊंची योग्यता हमारी प्रकृति के अंदर इतने गहरे कुएं में पड़ी है। की उसे बाहर निकालने के लिए बड़े साहस और दृढ़ संकल्प की आवश्यकता है। हमें अपनी आंतरिक और वास्तविक शक्ति का ज्ञान उस समय होता है जब हमें दिखाई दे की वापसी असंभव है। पीछे हटने के सारे मार्ग अवरुद्ध है और हमें कहीं से बाहरी सहायता प्राप्त नहीं हो सकती। जब तक हमें दूसरे से मदद मिलती रहती है, हमारी व्यक्तिगत योग्यता ये हमारे अंतर में स्वप्निल रहती है। बहुदा पुरुष और स्त्रियाँ अपनी सफलता और विजय का यही कारण बताएंगे कि उन पर सहसा संकट आ पड़ा। कोई निकट संबंधी या कुटुम्बी जिससे सहायता मिलती थी, मर गया या व्यापार में घाटा हो गया, घर लौट गया, चोरी हो गयी, नौकरी से जवाब मिल गया या ऐसी ही कोई और आ पड़ी या उस कारण उन्हें अपने व्यक्तित्व पर भरोसा करना पड़ा और लंगर लंगोट कसकर कर्मभूमि में उतरना पड़ा? जिन नवयुवकों पर आ पड़ती है या उनके जीवन में कोई दुर्घटना घट जाती है तो उन्हें बड़े दायित्व का स्थान संभालना पड़ता है। 6 मार्च अतीत हो जाने के पश्चात अधिकतर नवयुवक वह नहीं रहते जो उससे पहले थे। उनके अंदर वहाँ पुरुषोत्तम शक्तियां उत्पन्न हो जाती है। वो सामर्थ उभर आती हैं जिनके बारे में किसी को किंचित संदेह भी नहीं हो सकता था। दायित्व उनको पुरुष बल्कि साहसी पुरुष बना देता है। दायित्व, शक्ति और सामर्थ्य के विकास करने में बड़ा सहायक सिद्ध होता है। जिन लोगों को किसी उत्तरदायित्व का पद नहीं दिया गया है, नौकरी पर गुजरे हैं, उनमें शक्तिशाली जबरदस्त व्यक्तित्व बहुत कम मिलते हैं। ऐसे लोग जीवन की दौड़ में दूसरों से पीछे रहते क्योंकि उन पर ना तो किसी प्रकार का उत्तरदायित्व का बोझ पड़ता है और ना उन्हें अपने सामर्थ्य की परीक्षा करने और अपने व्यक्तिगत जौहर। प्रकट करने का अवसर मिलता है। जो कुछ उन्हें स्वयं सोचना होता है, वह कोई और सोचता है। दूसरों के नियत किए हुए कार्यक्रम के अनुसार व्यवहार करते हैं। उन्हें अपने पैरों के बल खड़ा होना नहीं आता। व्यवहार तो बहुत दूर की बात है, उन्हें तो स्वयं सोचने का ढंग नहीं आता। उत्तरदायित्व के कामों को वर्षों संपन्न करने के अनंतर ही नए नए विचार, सोचने, घटनाओं को सही क्रमबद्ध करने। और आकस्मिक बातों का सामना करने की शक्ति प्राप्त होती है। यही वह शक्ति है जो इंसान को कठिनाई हो और के घोर समुद्र में सुरक्षा सहित तैरा कर ले जाती है और इस शक्ति के सहारे इंसान जीवन की कठिन परीक्षाओं और दुखों में सफलता से पूरा उतरता है। इस दर्शन से अधिक भट्ट का पूर्ण दर्शन दूसरा नहीं की। यदि किसी नवयुवक के अंदर योग्यता है तो वह एक ना 1 दिन। अवश्य बाहर निकलेगी और अपना रंग दिखाएगी। संभव है कि वह जौहर बाहर निकलें। संभव है ना निकले इस बात का दारोमदार स्थितियों पर है। यदि साहस बढ़ाने वाले वातावरण के अंदर उस नवयुवक का पालन पोषण हुआ तो वो जौहर प्रकट होगा और अवश्य होगा। यदि उस नवयुवक का निराशाजनक और हिम्मत तोड़ने वाला वातावरण से संबंध हुआ तो उसका ये जौहर अंतर ही में नष्ट होकर रह जाएगा या आवश्यक नहीं। ये उच्च योग्यता वाले व्यक्ति का विश्वास ही द्रोण साहस पड़ा हुआ है और उसका संकल्प दृढ़ होता है। उदाहरण के तौर पर एक व्यक्ति पर बहुत बड़े दायित्व का बोझ डाले और उससे अलग हो जाये तो आप देखेंगे की उसके अंदर जौहर हैं या आपके मानसिक संतुलन को बिगाड़ देती हैं। उन्हें भूल जाएं और उनके बारे में कभी कुछ ना सोचे। आपका समय इससे अधिक मूल्यवान है की आप उसे भूलें। विस्तृत और भूलों पर खेद प्रकट करने में नष्ट कर दें। यदि आप निराश और हतोत्साहित रहते हैं तो निराशा और उत्साह हीनता को इस प्रकार मन से निकाल दें, जैसे चोर को घर से बाहर धकेल दिया जाता है। अपनी कमजोरियों के लिए द्वार बंद कर दें और उसे बंद ही रखें। स्वभाव, जिंदादिली और प्रसन्नता की प्रतीक्षा न करें कि वह कब आएगी बल्कि उसका पीछा करें और उसे प्राप्त करके फिर अपने पास से जाने ही ना दें। यदि आपको कोई कटु अनुभव हो चुका है तो उसे भूल जाएं यदि आपको भाषण देने में असफलता हुई है यदि गीत गाते समय आपसे कोई चूक हो गई है, यदि आपके लिखी हुई पुस्तक और लेख में कोई त्रुटि रह गई है, यदि किसी परिस्थिति विशेष के कारण आपका कदम गलत है, ये गिर पड़े या चोट आ गई है, यदि आप पर लांछन लगाया गया है, आपको गालियां दी गयी है तो इन सब बातों के बीच जाने पर उन्हें दोबारा याद करने से कोई लाभ नहीं। यदि आप उन्हें बार बार दोहराएंगे तो बहुत हानि होगी। संतोष और सुख के अनेक क्षण नष्ट हो जाएंगे। यदि आपसे कोई भूल हो गई है, आपके ख्याति को कोई ठेस पहुंची है और आपको शंका है कि आप पुनः उस पद तक नहीं पहुँच सकते तो ईश्वर के लिए इस भयानक, पिंजर और डरावने साये अपने साथ साथ मत लिए। फिर ये उन्हें अपनी स्मृति के पद से मिटा दें। और सर्वदा विस्मृत कर दें। यदि आप भविष्य में अपने मस्तिष्क को साफ रखेंगे, उसे प्राचीन स्मृतियों से दूषित नहीं होने देंगे तो आप या देखकर चकित रह जाएंगे कि आपके जीवन में एक नया सूर्य उदय हो गया है और आप के आसपास के लोग भी आपको एक नया बदला हुआ इंसान पाएंगे किंतु उन्हें बराबर याद करके व्यर्थ ही अपना दिन थोड़ा ना करे, छोटा ना करे। जो चीज़ आपको आगे बढ़ने से रोकती है, उससे चिपके रहने से क्या लाभ? जिंस घटना की स्मृति से आपको दुख होता है, उसे दोबारा क्यों याद करें? शोक संताप को छोड़ दे, दुख और चिंता से बचें, एशिया, द्वेश और दाह रखना त्याग दें। स्वार्थ को तिलांजलि दी मूर्खों निरक्षरों, निकम्मों, आलसियों और कामचोरों की संगति में ना बैठें। झूठ और। आडंबर को छोड़ दें और उस नाक को काट डाले जो लोगों के सामने बार बार कटती है और फिर भी जइयो की त्यों पूरी होठों के ऊपर और आँखों के नीचे मौजूद रहती है। उन दूर विचारों को मन में ना लाएं जो आपकी ***** की प्यास को भड़काते हैं, आपको दुराचार की ओर प्रवृत्त करते हैं। यदि आपने यह सब बातें छोड़ दी तो आप यह देखकर चकित रह जाएंगे की आप का बोझ कितना हल्का हो गया है। आप कितने स्वतंत्र है? जीवन की दौड़ में भाग लेने के लिए आप अपने अंदर अधिक शक्ति और उत्साह का अनुभव करेंगे। आपको अपनी सफलता और विजय पर और भी अधिक विश्वास हो जाएगा। अनगिनत लोग ऐसे भी हैं जो इन बातों को छोड़ना जानते ही नहीं। परिणाम स्वरूप उनकी अव्य सर्वदा तने रहते हैं। उनकी न से और पट्टे खींचें रहते हैं। संसार में उनके लिए कठिनतम कार्य ही होता है। कि वे कैसे अपनी त्रुटियों को भूलें। इस रोज़ से प्राण लीजिये की कुछ भी हो आप मृत और भग्न ढांचों के स्वप्न नहीं देखा करेंगे। आप बीती हुई बिसार देंगे और आगे की सुध लेंगे। दृढ़ निश्चय कर लें कि अपने मस्तिष्क और हृदय से उन सब विचारों को निकाल देंगे। वे कितने ही भयानक क्यों ना हो, कोई भय की बात नहीं, वे आपके मन में कितनी ही बार क्यों ना आये, आप उन्हें फूल जाए और उन से कोई संबंध न रखें। चिंता और परेशानी को दूर कर दें। कहीं ऐसा ना हो कि वे आप की शक्ति और सामर्थ्य को नष्ट कर दें क्योंकि आपके शक्ति ही आपकी आगामी कामनाओं की पूंजी हैं। जो बातें आपको अच्छी नहीं लगती, आपके स्वभाव को दूषित करती है या मैं 4:00 बजे उठ जाऊंगा। यदि आपके शब्दों में विश्वास और दृढ़ निश्चय है तो कोई कारण नहीं की आप 4:00 बजे ना उठ जाएं। आप प्रतिज्ञा करले क्या आप कभी बीमार नहीं होगी? यदि आप मन से ऐसी प्रतिज्ञा करते हैं, आपके द्रोण इक्षा है और आपको विश्वास है तो आप बीमार हो ही नहीं सकती। आप अपने कर्तव्य, प्राण और इच्छा के लिए जब आप अपनी शक्ति लगा देंगे तो आप जो चाहते हैं वक्त कैसे ना होगा। आप जो चाहते हैं कर सकेंगे। आप क्या नहीं कर सकेंगे यदि आप शर्माते है, झिझकते हैं जिसके कारण अपने व्यवसाय, नौकरी या सामाजिक क्षेत्र में पिछड़ रहे हैं। जो करना चाहते हैं उसमें सफलता प्राप्त नहीं कर पा रहे है तो अकेले में बैठकर कहिए। मैं सब कुछ करने में समर्थ हूँ। मेरे पास शक्तियां हैं, जो मेरे भीतर छुपी हुई है, उन्हें प्रयोग में लाऊंगा, साहस के साथ आगे बढ़ूंगा सफलता पर मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है, मुझे सफल होने से कोई रोक नहीं सकता। मैं आत्मविश्वास ही हूँ अपनी शक्तिओं पर और ईश्वर पर मुझे पूरा भरोसा है। आप पाएंगे क्या आप सफलता की ओर बढ़ रहे हैं? आपके झिझक दूर हो रही है। प्रतिज्ञाएं और संकल्प आत्म विकास के उपाय आत्म सुझावों और संकल्प मय बातों से मानव पर्याप्त ऊंचाईयों को छू सकता है। एकांत में स्वयं से बाते कीजिये अपने निश्चयों को दोहराइये अपने प्राण को शब्दों में व्यक्त कीजिये। जब आप मन में या वाणी से अपने संकल्प और प्रतिज्ञा को दोहराते हैं तो उसमें आप यह महसूस करते हैं कि आपके शक्ति बढ़ रही है। आपका आत्मविश्वास और आत्म शक्ति में निरंतर वृद्धि हो रही है। इसलिए अपने सम्मुख आप प्रतिज्ञा करें, दृढ़ संकल्प करें, ऊंचे स्वर में दोहराएँ। स्वयं को सुझाव दें, स्वयं से बातचीत करें। यही एक उपाय है जिसके द्वारा मनुष्य अपने अर्धचेतन मन में छिपी शक् ति यों को जगा सकता है। जब आप दृढ़ संकल्प को मन में बार बार दोहराते हैं, वाणिज्य कहते कार्यरूप प्रयास करते हैं तो सफलताएं तो आपकी और स्वयं ही आती हैं, आपकी मानसिक शक्तियां भी बढ़ जाती है। जो आपके लिए आश्चर्यजनक रूप से उपयोगी है। शब्दों की शक्ति भी बड़ी विचित्र है। शब्दों को बार बार दोहराने और ज़ोर ज़ोर से बोलने का स्थायी प्रभाव पड़ता है। सच्चे मन से जो शब्द कहे जाते हैं, वे इस स्थायी प्रभाव डालते हैं। बहुत बार हम अपने ने शब्द, विचारों की बातें भुला देते हैं। उन्हीं विचारों को यदि ज़ोर से शब्दों में दोहराते हैं तो मानसिक शक्तियां जागरूक होकर इच्छाओं पर केंद्रित हो जाती है। ज़ोर से प्राण को दोहराने का मन पर गहरा असर होता है और शक्ति में भी वृद्धि होती है। अपने लिए ऊंची आवाज में कोई उत्साहवर्धक बात कही इससे आश्चर्यजनक परिणाम प्राप्त होगा। मन की दुर्बलता नष्ट होगी और आप की त्रुटियां दूर होंगी। अपनी त्रुटियां अपने आप को बताई। त्रुटियां और कमजोरियां दूर होने लगेंगी। आश्चर्यजनक रूप से आपको सफलता प्राप्त होगी। जब हृदय अपने से ही बात करता है तब बिना किसी संकोच की कमजोरियों को प्रकट करता है। इससे कमजोरियां दबी नहीं रहती, उनका रहस्य प्रकट हो जाता है, फिर मनुष्य उन्हें दूर करने का प्रयत्न करता है। आप यदि यह समझते हैं कि आपकी महत्वाकांक्षा में कोई कमी है तो मानसिक अभ्यास द्वारा अपनी महत्वाकांक्षा को और तीव्र। और शक्तिशाली बनाइये। यदि आप समझते हैं कि आपके कार्य करने का ढंग यह स्तर निम्न है तो आत्म संबोधन द्वारा अपने कार्य करने के ढंग को उत्तम और इस स्तर को ऊंचा कीजिये। आपका विश्वास उद्देश्य पर दृढ़ नहीं है तो स्वयं से बातचीत करके विश्वास को दृढ़ बनाइये। आप बड़ा आदमी बनना चाहते हैं। यदि चाहते हैं तो प्रतिदिन सुबह को दृढ़ निश्चय कीजिये। क्या आप बड़ा आदमी बनने जा रहे हैं? दृढ़ शब्दों को कहिये। मैं बड़ा आदमी बनना चाहता हूँ, बनता जा रहा हूँ और बनने के लिए ही पैदा हुआ हूँ। शाम को भी इसी प्रकार के शब्दों में दोहराइए। मैं बड़ा आदमी हूँ, आज मैंने जो जो भूले की है, वे मेरे लिए ठीक नहीं थी, क्योंकि बड़े आदमी ऐसी फूल नहीं करती। अब मैं सामान्य व्यक्ति नहीं हूँ। ऐसी गलतियाँ तो सामान्य व्यक्ति करते हैं। महान लोग ऐसी गलतियाँ नहीं कर सकते जो मैंने आज की है, जबकि मैं भी महान बनता जा रहा हूँ। आइंदा बिल्कुल नहीं करूँगा। आप में यदि या कमी है की आप देर में निर्णय लेते हैं या आप आला से के कारण काम को कल पर टालते हैं। ये दोनों ही आदतें बुरी है। सफलता के लिए ये बुराइयाँ है, मार्ग में रोड़ा है। आप विलंब या आदत छोड़ दीजिये, क्योंकि जब आप समय पर निर्णय नहीं लेते तो ठीक समय सिर पर आ जाने पर आपको हड़बड़ी में निर्णय लेना पड़ेगा, यह भी भूल है। जल्दबाजी में आप गलत निर्णय भी ले सकते हैं। इसी प्रकार जब आप काम को कल पर टालते हैं तब भी आपका काम लेट होता है। समय व्यर्थ चला जाता है। समय व्यर्थ जाने से अनेक हानियाँ है। समय पर कार्य ना होने पर समय सिर पर आ पहुंचने पर भी वह करना पड़ता है। इससे आप काम में भूल भी कर सकते हैं और शक्ति भी अधिक लगानी पड़ेगी। हड़बड़ी में सब काम गलत और अधिक शक्ति खर्च करने पर होते हैं। अतः आप इस आदत को छोड़िये। अपनी भूल को रात्रि के समय अपने आप से कहिये और दृढ़ शब्दों में प्रतिज्ञा कीजिये की आप आप इस गलती को नहीं किया करेंगे। भूल कोई भी हो, भूल तो है ही, हर भूल आपकी उन्नति में बाधक होती है। जब आप अपनी भूलों को अपने सामने कह कर उन्हें दूर करने का प्रण करते हैं, संकल्प दोहराते हैं तो वह भूल अपने आप दूर हो जाती है। आप समय का पालन नहीं करते, क्रोध आता है, जल्दी भड़क जाते है, किसी के साथ गलत व्यवहार करते हैं तब आप कामन दुर्बल हो जाता है। मन की इस दुर्बलता को दूर कीजिये। इसके लिए दिनभर में की हुई ऐसी भूलों पर रात को विचार करके भविष्य में ना करने का दृढ़ निश्चय कीजिए। दृढ़ शब्दों में संकल्प कीजिए जब आप स्वयं को सुनाकर दृढ़ संकल्प करते हैं या दोहराते हैं तो आप अपने श्रेष्ठ, उच्च और दिव्य स्वरूप को प्रकट करते हैं, तब आप साक्षात उस आदर्श को देखते है, जैसा बनना चाहते हैं। सफलता के लिए आत्म संबोधन सबसे सरल। और उत्तम उपाय है। आप सवेरे उठते हैं, नहीं उठते हैं तो उठिये इसके लिए सोते समय आप संकल्प ले सकते है की आपको इतने बजे उठ जाना है। सवेरे उठकर शुद्ध हवा में टहल ले जाइए। एकांत स्थान में अपने आप से कहिए, मैं प्रत्येक परिस्थिति का मुकाबला शांत मन से बुद्धि और विवेक से करूँगा। आप मुझे क्रोध नहीं आएगा। मैं आगे बढ़ रहा हूँ और निरंतर बढ़ता रहूंगा। आज चाहे कुछ भी हुआ है भविष्य में मेरे मन में कोई क्रोध दुर्बलता, ये चिंताएँ, स्वार्थ और हीनता के भाव नहीं आ पाएंगे। मैं सज्जन हूँ, मैं ऊँचा हूँ और ऐसा ही बनते जाना है। इस प्रतिज्ञा और संकल्प से आपकी आत्मशक्ति पड़ती है। आत्मसुधार होगा, आप और आगे बढ़ेंगे। आपके दिन दूनी और रात चौगुनी प्रगति होती चली जाएगी। इन विधियों से आप स्वयं ही अपनी सहायता कर सकते हैं। आशातीत लाभ प्राप्त कर सकते हैं। आपको आत्म संबोधन का अवसर प्राप्त कर लेना चाहिए और जब भी अवसर मिले उसे काम में लाई ये अपने निश्चय, संकल्प और प्राण को दोहराइये। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आपको लाभ होगा। मान लिया की आप अस्वस्थ रहते हैं तब भी यह आपके काम की चीज़ है तब भी आप इस आत्म संबोधन निश्चय और संकल्प के द्वारा स्वास्थ्य लाभ कर सकते हैं। यह एक अचूक औषधि का काम देगी। आप अपने आप से सवेरे शुद्ध हवा में खुले एकांत में बैठकर कहीं ये मैं अब सदा सवस्थ रहूंगा। मैं सवस्थ होता जा रहा हूँ। मेरे स्वास्थ्य में निरंतर सुधार हो रहा है, शक्तियां बढ़ती ही जा रही है। प्रत्येक मनुष्य में कोई ना कोई ऐसी आदत अवश्य होती है जो उसको प्रगति की दौड़ में आगे नहीं बढ़ने दे रही है। आप अपनी इच्छा के अनुकूल सफल नहीं हो रहे हैं। इस आदत को छोड़ने का उपाय आत्म संबोधन है। आत्म संबोधन की प्रक्रिया से आप इस आदत को छोड़ सकते हैं। आप दृढ़ शब्दों में कहिये यहा आदत मुझे आगे बढ़ने से रोकती है। मैं इसे छोड़ता हूँ और आगे बढ़ता हूँ। अब मैं उत्साह और साहस के साथ आगे बढ़ता रहूंगा। कमजोर और दिन बनाने वाली या बुरी आदत अब मुझमें नहीं रहे गी, क्योंकि मुझे जीवन में पिछड़ा हुआ नहीं रहना है। इसी के कारण मैं उपहास का पात्र बना हूँ। अब मेरा दृढ़ निश्चय की इस बुरी आदत से पीछा छुड़ाकर ही रहूंगा। मुझे हर प्रकार से उन्नति ही करते जाना है। आप में कोई भी दुर्घटना हो जैसे दुराचार, झूठ, बोलना, क्रोध आना, छल, कपट, हिंसा, द्वेष, स्वार्थ, एशिया इत्यादि। सभी आत्म संबोधन के द्वारा ठीक किए जा सकते हैं। जब आप बार बार किसी संकल्प को दोहराते हैं तो जड़ से आप की दुर्बलता मिटती है, आपके दोष चले जाते हैं। आप लगातार आगे बढ़ते हैं। मन के साथ किए गए वार्तालाप से आपको आशातीत लाभ होगा। आप स्वयं दंग रह जाएंगे। आप देखेंगे और अनुभव करेंगे कि आपके मन और शरीर में एक परिवर्तन आ गया है। आपके चाल, ढाल और हाव भाव बदल गए, आपके कार्य विधि ही बदल जाती है, आपकी दिनचर्या ही बदलती जाती है, मनचाही प्रगति होने लगती है, प्रारंभिक दिनों में आपको स्वयं से बातचीत करना। यह स्वयं से ही निश्चय को कहना विचित्र सा लगेगा और इसका महत्त्व भी आपके समझ में नहीं आएगा, परंतु जब आप धैर्यपूर्वक देखेंगे निरंतर ऐसा करते रहेंगे तो आपको स्वयं लाभ दिखाई देने लगेगा। आपकी शक्ति निरंतर बढ़ती जाएगी। किसी भी प्रकार का दोष हो इस विधि से दूर किया जा सकता है। मान लिया आप बनना तो चाहते हैं नेता, अभिनेता या प्रचारक और आपका स्वभाव है दब्बू जे पु या शर्मिला? और कहीं भी समूह के सामने मंच पर बोल नहीं सकती। आप इस विधि से इस कमी को भी दूर कर सकते हैं। एकांत में जाकर बोलिए इस प्रकार बोलिए जैसे आप लोगों के सामने बोल रहे है। अभ्यास होगा, आत्मविश्वास बढ़ेगा और आपके दोष निरंतर अभ्यास से दूर होते चले जाएंगे। आप बड़े बड़े काम करने के लिए पैदा हुए हैं, आप पतन के गर्त में गिरने के लिए नहीं जन्मे हैं। लजाने शर्मा ने के लिए नहीं पैदा हुए। बुरे काम करने, बदनाम होकर जीने, अपराध करके स्वयं को अत्यंत छोटा बनाने या गरीब बनकर दयनीय स्थिति में जीने के लिए आप दुनिया में नहीं आए हैं, आप मनुष्य हैं, मनुष्य इस धरती पर ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ रचना है। वह ईश्वर के सबसे निकट है, अतः उसे दिन ही या गिरा हुआ नहीं होना चाहिए। लोगों की दृष्टि में आप बुरे दूसरे लोगों में वे गुण है जो आप में नहीं, दूसरे लोग उन गुणों के बल पर आपसे आगे निकल रहे हैं तो आप सोचिये कि वे कौन कौन सी अच्छाइयां हैं, वे कौन कौन से गुण है। आप उन गुणों को अपने अंदर पैदा कीजिये। अपने आप से कहिये की अब मैं अपने अंदर ऐसे गुणों को पैदा करके रहूंगा। अब मैं भी इसी प्रकार उन्नति कर सकूंगा। अपने संकोची और लचीले स्वभाव के कारण आपका मित्रों का दायरा छोटा है। आप मित्र बनाने की कला नहीं जानती या स्वयं को छोटा मानते हैं? समझते हैं कि आप में कमियां हैं तो स्वयं से बातें करके देखिए, आत्म संबोधन करिए। आपके सारे त्रुटियां और बुराइयां उसी समय से कम होने लगेंगी और आप ऊपर उठने लगेंगे। आप मन में यह बात क्यों आने देते है कि लोगों की दृष्टि आप का उपहास कर रही है? आप सबके साथ अच्छा व्यवहार कीजिये। आप स्वयं को श्रेष्ठ मनुष्य समझिये क्योंकि आप श्रेष्ठ बनने के इच्छुक हैं और बनते जा रहे हैं। आप उन सब श्रेष्ठ कामों को कर सकते हैं, जिन्हें कोई अन्य मनुष्य कर सकता है। पूर्ण मनुष्य बनना मेरे जीवन का लक्ष्य है। मैं हस्ते हस्ते बिना मस्तिष्क में तनाव पैदा किये। प्रत्येक परिस्थिति का सामना कर सकता हूँ। ऐसा अपने आप से बार बार कहिये। आप निर्णय लेने में बहुत समय लगाते हैं और आपको बहुत सोचना पड़ता है या दुविधा जैसे रोग से ग्रस्त होते हैं तो समझ लीजिए आपके निर्णय शक्ति कमजोर पड़ गई है जो आत्म संबोधन से दृढ़ हो जाएगी। अपने आप से इसी प्रकार से कहिये। और बाते कीजिये, प्रतिज्ञा करें, दृढ़ शब्दों में संकल्प करें और इन कमियों को कुछ ही दिनों में दूर कर लें। अपने मन को आप कह सकते है तुम जल्दी और सही निर्णय लिया करो और ऐसा होने लगेगा। आप जल्दी और सही निर्णय ले लिया करेंगे। आत्मविश्वास को प्रबल करने के लिए भी आत्म संबोधन सबसे श्रेष्ठ विधि है। ऐसे बहुत से लोग हैं जो आत्म संबोधन के द्वारा ही बदले हैं। मैं स्वयं ऐसे कईयों को जानता हूँ। जिन्होंने आत्म संबोधन की इस विधि के द्वारा अपनी काया पलट कर दी। जो लोग बातें कर रहे तक में डरते झिझकते थे, वे अब समाज में प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं और हज़ारों लोगों में ऐसे बोलते है जैसे फूल झड़ रहे हो। लोग उनकी पड़ी प्रशंसा करते हैं। आप भी आत्म संबोधन के द्वारा अपने सभी दुर्गुणों को दूर कर सकते हैं, सद्गुणों का विकास कर सकते हैं और जो आभाव आप में हैं। उन्हें दूर कर सकती है। दोस्तों यदि हम हर समय यही सोचते रहे है की हमारे भाग्य में तो गरीबी थी और हम सदा गरीब ही रहेंगे, ये कितना बड़ा पागलपन है। अरे संसार के चारों तरफ नजर डालकर देखिये कितने अमीर माँ के पेट से धन लेकर आए थे? वे यदि भाग्य के सहारे पड़े रहते तो शायद आज हमारी ही तरह दरिद्र हो जाती। धनवानों के माथे पर कहीं नहीं लिखा होता है कि धन इन्हीं को मिलेगा। धन तो हर उस इंसान को मिल सकता है। जिसके पास उसे कमाने के लिए बुद्धि है। इस संसार में +7 लेकर आज तक कोई नहीं आया। सारे धनवान इस संसार में आकर बने हैं आप क्यों नहीं इनसे प्रेरणा लेते क्यों नहीं सोचते की हम भाग्य के विधाता आ से स्वयं ही है? छोटी छोटी बातों को मन से निकाल दीजिये क्योंकि यह आपके रास्ते का रोड़ा बन सकती है। जो धरती पर गिरे पड़े हैं, उनके साथ आप क्यों गिरते हैं? आप तो उनको देखिये जो आपके सामने दौड़ रहे भाग रहे, उड़ रहे, अथक परिश्रम कर रहे हैं। आप पाएंगे वही जो आप प्रयत्न करेंगे। तो आइये आज हम मिलकर अपने मन से असफलता के निराशा के सारे उन विचारों को निकालकर बाहर फेंक दी। और दुनिया में एक सफल, एक सुखी व्यक्ति बनकर दिखाए और दूसरों के लिए एक प्रेरणा का स्रोत भी बने। दोस्तों, आपको यह ऑडियो कैसी लगी है? विश्वास करती हूँ या ऑडियो आपको पसंद आई होगी? पसंद आई है तो प्लीज़ इसे लाइक करें, शेर करें, अपने कमेंट और अपने सुझाव भी मुझे जरूर लिखें। थैंक यू सो मच इस ऑडियो को सुनने के लिए।","यह ऑडियो स्वेट मार्डन द्वारा लिखी गई किताब एवरी मैन ए किंग से लिया गया है जिसका अनुवाद है खुशी से कैसे जीना है आप इस ऑडियो को सुनकर अपने जीवन में निराशा से बाहर आ सकते हैं और कई आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं इसमें आपको हिंदी ऑडियोबुक, हिंदी ऑडियोबुक मिलेगी , हिंदी में ऑडियोबुक, प्रेरक ऑडियोबुक, प्रेरक ऑडियो, सर्वश्रेष्ठ हिंदी प्रेरक ऑडियोबुक, हिंदी में सर्वश्रेष्ठ प्रेरक ऑडियोबुक, हिंदी में सबसे बड़ी ऑडियोबुक, हिंदी में प्रेरणादायक ऑडियोबुक, हिंदी में प्रेरणादायक ऑडियोबुक, हिंदी में जीवन बदलने वाली ऑडियोबुक, हिंदी ऑडियोबुक ऑनलाइन, #हिन्दीऑडियोबुक, #मोटिवेशनलऑडियोबुक , #inspirationalaudiobookinhindi," "हैलो दोस्तों कैसे है? आप सभी विश्वास करती हूँ आप सभी सुरक्षित होंगी। ईश्वर की सुरक्षा आपके और आपके परिवार के संग और साथ हो। पिछले दिनों हमने सुना स्वेट मॉडर्न की लिखी गई महान कृति एव्रीमैन आ किंग का हिंदी रूपांतरण, जिसके तीन भाग हम सुन चूके थे, आज हम सुनेंगे चौथा भाग चिंता से मुक्ति विश्वास करती हूँ। आज की यह ऑडिओ आपके जीवन को सफल बनाने में सहयोगी सिद्ध होगी। हम बहुत से लोगों को देखते हैं जो वर्षों से गरीबी का रोना रोते हुए चिंता के सागर में डूबे रहते हैं। उनकी गरीबी का कारण यदि आप सुनेंगे तो वह यहीं कहेंगे कि परिवार में कोई पापी है, कोई दोषपूर्ण मानसिक वृत्ति वाला अपराधी है, कोई ऐसा प्राणी है जो जुआ खेलता है, शराब पीता है, वेश्यावृत्ति करने वाला दोषी है, जिसके कारण सारा परिवार आर्थिक संकट का शिकार हो गया है। हो सकता है इस परिवार का मुखिया ही दोषी हो। इस प्रकार से यह अपने दुर्भाग्य का रोना रोते हुए नजर आते हैं। ये सब बातें आम लोगों को आप कहते हुए सुन सकते हैं। ऐसी बातें कहने वाले हो सकता है कि स्वयं ही दोषी हो। उसका कारण केवल उनकी अपनी गलत विचारधारा है। उन लोगों ने अपने मन में गलत विचारों को घुसने दिया। उसका परिणाम हमारे सामने है। उनकी गरीबी और चिंता। यदि आप अपनी वर्तमान स्थिति से असंतुष्ट हैं और आप यह महसूस करते हैं कि आपका जीवन निरंतर चिंताओं में डूब रहा है तो आप यदि अपने ही मन में झांककर देखेंगे तो समाज में आपकी जो हालत है जो सदा आपके अपने ही विचारों की देन है। आप इसके लिए किसी को दोषी नहीं ठहरा सकते। यदि आपके विचार शुद्ध है, यदि आप ठीक से सोचते हैं तो फिर आपका जीवन कैसे गलत हो सकता है? प्रश्न तो आपके विचारों का है, यदि आप अपनी गरीबी का दोष दूसरों को ना देखकर उन हालात को दें जो आपके आसपास चारों ओर कांटों की भाँति फैले हुए हैं, तो आप क्या इन में ही उलझकर नहीं रह जाएंगे? पहले आप इन विचारों को शुद्ध कीजिये। गरीबी का रोना छोड़कर औरों को दोषी ना मानकर उन हालात से निकल आये जिन्होंने आपको गरीब बनाया है जिनके कारण आप चिंतित हैं। बस फिर कोई कारण नहीं कि आप अपनी इच्छाओं को फिर से पूर्ण कर लें। हमें ईश्वर पर विश्वास रखना होगा। धैर्य से उन सब बाधाओं को दूर करना होगा जो कि हमारे मार्ग का रोड़ा बन गई है। दूसरों से ईर्ष्या मत कीजिए बल्कि उनसे प्रेरणा लीजिये। किसी भी सुखी परिवार धनवान, सुखी प्राणी की ओर देखकर ये सोचिये कि उसने यह सब कुछ कैसे पा लिया आपने? यदि अपना सब कुछ खोया है तो क्यों यहाँ प्रश्न स्वयं अपने आप से करने पर आपको अपनी भूल का पता चल जाएगा? अपनी आर्थिक दशा को सुधारने के लिए हर संभव प्रयत्न कीजिए। इस काम में अपने संपूर्ण शक्ति लगा दीजिये। यदि आप इस कार्य में जुट जाएंगे, अपनी हर भूल का सुधार कर लेंगे तो वह दिन दूर नहीं होगा जब आप की दशा सुधर जाएगी और आपकी खोई हुई खुशियां फिर से वापस आ जाएगी। आप के चारों ओर खुशियां ही खुशियां बिखरी पड़ी है किंतु इन्हें पाने के लिए खाली थोड़ा मार्ग तलाश करना है। वहाँ मार्ग आपको हर इंसान नहीं दिखा सकता। किसी साधारण विद्वान के बस की बात नहीं। आज विश्व में इतना साहित्य प्रकाशित हो चुका है कि उसकी गणना करना ही कठिन कार्य है, किंतु जब हमारे जीवन उपयोगी साहित्य की तलाश की जाती है तो शायद गिनती की ही पुस्तकें मिल पाएंगी, जिन्हें हम आटे में नमक भी तो नहीं कह सकते। इसलिए अपने जीवन मार्ग को स्वयं तलाश कीजिए। पहले तो जीवन उपयोगी साहित्य तलाश कीजिये जो आपको जीवन के अंधेरों से निकालकर प्रकाश में ले आए। जिसप्रकार बच्चा अपने माता पिता से अपने मनपसंद चीज़ मांगता है, वैसे ही आप अपनी मनपसंद ज्ञानवर्धक जीवन उपयोगी पुस्तकें मांगी। इन पुस्तकों के साथ साथ इस संसार के मालिक से भी यह प्रार्थना कीजिये कि वहाँ आपको आपका अधिकार दें। भाग्य में उसने जो लिखा है उसे कोई पढ़ तो नहीं सकता। हाँ प्रयत्न करने से उसे पा सकता है। हम उस महाशक्ति से धन की मांग ही नहीं करते। क्या आप यह नहीं समझते कि संसार में जो इतना धन है उसमें आप भी तो उतनी ही भागीदार है जितनी की अन्य लोग? क्योंकि आप भी तो उसी ईश्वर की संतान हैं जिसकी धनवान लोग ईश्वर की नज़र में कोई छोटा बड़ा नहीं। ये ईश्वर की इच्छा है कि प्राणी ही विश्व के समस्त विपुल और अनन्त पदार्थ भंडारों का स्वामी बने, प्रकृति के असंख्य भंडारों का वही मालिक बने। उसे हर वस्तु मिलनी चाहिए जो सुंदर, उपयोगी और अच्छी हैं परंतु बहुत से लोगों ने अपने विचारों से ही अपने को गिरा रखा है। वि दुखी जीवन व्यतीत करते रहते है। पता नहीं वे इस स्थिति को सहन कैसे करते हैं। ऐसी स्थिति होने पर वे अकर्मण्य होकर कैसे बैठे रहते हैं। सुन्दर आवश्यक उपयोगी वस्तुओं की कमी का अभाव की इस्थिति प्राणी के लिए स्वाभाविक नहीं। फिर इस स्थिति को आप क्यों सहन करते है? आप जीस चीज़ की आशा करते हैं, उसे पाने के लिए दीवाने हो जाइए, बस उसी की धुन में अपने समूचे विचार को लगा दीजिए। उसके बारे में इस प्रकार से सोचिये की आप उसे अपनी ओर कैसे आकर्षित कर सकते हैं। अपने मन को उत्साह पूर्वक उसी पर लगा दीजिये और अपने आप में यह विश्वास पैदा करें कि इसे हम अवश्य पा सकते हैं, तब आप उसे पाने की स्थिति में आ जाएंगे। गरीबी एक मानसिक विकार या मनोरोग है। यदि आप इस रोग का शिकार है तो इसका इलाज अवश्य कीजिये और आपको यह जानकर भी आश्चर्य होगा कि इसका ऐलान आज बहुत सरल है। पहले अपने मन की वृतियों में परिवर्तन लायें, अपने मन की हालत को बदल दीजिये और दिल से छोटे पन कायरता सुस्ती के सहारे भाव निकाल दीजिये और साथ ही गरीबी के चित्र को फाड़ डालिए। मसाले डालिए, तोड़ डालिए, उसके स्थान पर खुशहाली और अमीरी का चित्र लगा दीजिये और इस बात की पक्की धारणा कर लीजिये की हम आज से दुखों का अंत कर देंगे। अब गरीबी हमारे करीब नहीं आ पाएगी। अब तो वह सदा के लिए भाग चूके हैं। यही आपकी महान सफलता होगी। सफलता पूर्णतया वैज्ञानिक मानसिक प्रक्रिया की पैदावार होती है। जो आदमी दृढ़ विश्वास रखता है कि वह अवश्य ही धनवान होने वाला है, केवल वही धन पाने में सफल होता है। पूर्ण विश्वास सब प्रकार की उपलब्धियों की पहली अनिवार्य शर्त है। पूर्ण विश्वास रखने वाले प्राणी अपने मन से संदेह और भय को सदा के लिए निकाल देते हैं। वे अपने मन में गरीबी के विचार तक नहीं आने देते। वि। दिवालिया आदमी की भांति नहीं बोलती। उनकी वेशभूषा किसी भिखारी की भांति नहीं होती, वो तो उसी मंजिल की ओर सीधा चलता है जिधर उसकी मनचाही वस्तुएँ पड़ी है। उसका लक्ष्य धन प्राप्त करना, बस और कोई भी चीज़ उसका रास्ता नहीं रोक सकती। हमारे देश में चारों ओर ऐसे लोग हैं जो आधीआबादी के करीब गरीबी से घिरे हुए हैं किंतु वे फिर भी इससे संतुष्ट हैं। बस उनके मुँह से एक ही बात निकलेगी जो हमारा भाग्य था। वही हमें मिल गया। इसलिए और किसी चीज़ की आशा करना बेकार है। ऐसे लोगों का जन्म भी गरीबी में होता है और मृत्यु भी। अमीर बनना जब उनके भाग्य में ही नहीं, उसके लिए प्रति नहीं कैसे करेंगे? गरीबी की भट्टी में गिरकर बहुत से लोग अपने आपको निरंतर गरीब रखते हैं। वे धन की कमी और आभाव को ही अपना भाग्य समझकर सिर झुकाकर कहते है हे ईश्वर जो तू ने दे दिया वहीं ठीक है, हम तुम्हारी इच्छा के आगे सिर झुकाते हैं। हमें तुम जिंस हाल में रखो, वही ठीक है। अब ऐसे लोगों का जीवन कौन बदलेगा? कौन उन्हें ये समझाएगा कि जीस प्रभु को आप दोषी करार दे रहे हो? उस प्रभु ने तुम्हारे लिए इस संसार में हर चीज़ पैदा की है और साथ ही तुम्हें यह बुद्धि दी है हाथ, पांव, आंखें, नाक, कान क्या नहीं दिया उस प्रभु ने तुम्हें उस प्रभु को दोष देने से पहले अपने आपको दोषी क्यों नहीं मानते जो हिम्मत ही नहीं करती? बहुत से परिवारों में बच्चों के मन में गरीबी का भय बैठा दिया जाता है। सुबह से शाम तक घर वाले बच्चों के सामने गरीबी का रोना रोते हैं। उन्हें देखकर बच्चे भी वही रोना रोने की आदी हो जाते हैं। इससे बच्चे छोटी आयु में ही गरीबी का शिकार हो जाते हैं। बड़े होकर उनके मन में यही धारणा घर कर लेती है की उनके माँ बाप गरीब थे और अब वे भी गरीब ही रहेंगे। इस तरह के वातावरण में पले हुए बच्चे बड़े होकर गरीबी से संघर्ष नहीं करेंगे। उनके मन में तो गरीबी का भूत बैठा ही चुका है, उसे निकालने के लिए तो बहुत बड़े प्रयत्न करने पड़ेंगे, फिर भी शायद सफलता न मिल सके। इसलिए ऐसे माँ बाप को यह सुझाव दिया जाता है कि वे भले ही गरीब हो किंतु अपनी संतान के आगे गरीबी का रोना ना रोए। उन्हें बचपन से ही ऐसे खादे की यदि हम आज गरीब है तो क्या हुआ? हम सदा तो गरीब नहीं रहेंगे ना। जब हमारे बच्चे बड़े हो जाएंगे तब तो खूब धन कमा लेंगे। हमारी गरीबी तो अपने आप भागते नजर आएगी। बस फिर आप स्वयं देखेंगे की वहीं बच्चे बड़े होकर गरीबी के विरुद्ध खुला संघर्ष छेड़ने के लिए तैयार रहते हैं। बहुत से लोग दुखों में बहुत भयभीत हो जाते हैं। इस डर के मारे विस सहमे रहते हैं। ये डर उनकी कार्य शक्ति पर बुरा प्रभाव डालता है। उनके उत्साह और उल्लास को छीन लेता है। इस प्रकार वे अपनी गलत कल्पना के कारण अपने जीवन पर अधिक बोझ डाल लेते हैं। चाहे आप का वातावरण कितना ही अंधेरे में डूबा हुआ हो, चाहे आप के हालात कितने ही खराब हो, फिर भी निराशा को अपने मन में घुसने ना दे। ये मत सोचिए कि हमारे पास धन का अभाव है, पदार्थों का अभाव है। निराशा के वातावरण में आप सोचेंगे तो फिर आशा धूमिल हो जाएगी। इसलिए निराशा का दामन छोड़ आशा का दामन पकड़ ले। फिर आपके सुखों को आपसे कोई नहीं छीन सकता। चाहे आप के हालात कितने ही खराब क्यों ना हो। निराशा के सारे बंधन आशा की तेजधार छुरी से काट दीजिये। फिर देखिये क्या आपके मन को कैसे शांति मिलती है। निराशा सदा प्राणी को व्याकुल करती है, आशा शान्ति देती है। जो हालात आपको आगे बढ़ने से रोकते हैं। आपकी इच्छाशक्ति को कम करते हैं। उन्हें बदल डालिए। जो इस्थिति आपको किसी बंधन में जकड़ कर दास बनाती है उस स्थिति को समर्पित कर दें और उसे बदलकर अपनी आशाओं और प्रेरणाओं के ढांचे में ढाल दे। बस फिर क्या है आप आगे ही बढ़ते जाएंगे। सुखों के भंडार आपके स्वागत के लिए तैयार खड़े होंगे। निराशा भागेगी तो आशा के दीप जलेंगे, जो आपके अंधेरे मन में प्रकाश भर देंगे। जो भी युवक पढ़कर वकील बनना चाहता है उसे कानून के विश्वविद्यालय या लॉ कॉलेज में ही दाखिला लेना होगा। अन्यथा उसकी मनोकामना कैसे पूरी होगी? हम जीस चीज़ की आशा करते हैं उसे पाने की और हमारी प्रवृत्ति होती है। नदी अपने मूल स्रोत से अधिक ऊँचाई तक कैसे जा सकती है? इसलिए यदि आपके मन में गरीबी के घटिया विचार है तो आप की आर्थिक दशा उनसे ऊंची कैसे हो सकती है? यदि आप थोड़े से धन से ही संतुष्ट है तो फिर आपको अधिक धन कहाँ से मिलेगा? आप अपने विचारों के अनुकूल ही तो पा सकेंगे। जो लोग अपने विजय मैं दृढ़ विश्वास रखते हैं। जिनको यह पक्का इरादा है कि वे 1 दिन धनवान बन कर ही रहेंगे। वे सबसे पहले अपने मन को समझा कर मना लेते हैं कि वे अमीर बनने जा रहे हैं, सफल होने जा रहे हैं। उनका जीवन तो अब बदलने जा रहा है। उनके मुँह से आप यह कभी नहीं सुनेंगे की प्रयत्न करने से कोई लाभ नहीं होता। प्रयत्न से कोई काम नहीं होता। बड़े बड़े अमीर व्यापारी ही सारे अवसरों का लाभ उठा लेते हैं। उनके होते हुए हमारा कहाँ चान्स है? मुझे तो कभी उम्मीद ही नहीं कि मैं अपनी वर्तमान स्थिति को बदल डालूंगा। फिर मैं क्यों ना आपने ही हालात में जीवित रहा हूँ? ऐसे विचार विजयी लोगों के मन में कभी नहीं आते बल्कि वो ऐसे निराशाजनक विचारों को अपने मन में घुसने ही नहीं देती। अपने सामने सही आशा रखिये निराशा की ओर हर समय अपनी पीठ ही रखें। इसी में आपकी भलाई और इसी में सुख है। आपकी हर सफलता की जड़ मन ही है। सफलता के बीच सबसे पहले मन में ही बोई जाते है। वही से इन का अंकुर फूट कर पौधा बनता है। इसलिए यदि आपकी भावना धन, संपत्ति के विचारों से परिपूर्ण है तो वह समय पाकर अंकुर से बड़ा वृक्ष बन जाएगा। जैसे आपके विचार होंगे वैसा ही पदार्थ बनकर तैयार होगा। बहुत से लोग धन इकट्ठा करना चाहते हैं किंतु वे अपने मन को बहुत छोटा तंग रखते हैं की उसमें धनवान बनने का विचार प्रवेश नहीं कर सकता। ऐसे लोग विचारों में खोकर ही रह जाते हैं। जो आदमी अमीर बनना चाहता है, उसके विचारों और मस्तिष्क में सदा यही बात हर समय घूमती रहेंगी। वह हर समय धन इकट्ठा करने के चक्कर में ही फंसा रहता है। वह यही योजनाएं बनाता रहता है। मानसिक रूप में वहाँ आर्थिक ढांचा खड़ा करता रहता है। सबसे पहले अपने मन में धन को इकट्ठा करने का चित्र तो बनाना ही चाहिए। उसके पश्चात उस चित्र से भवन बनाना सरल हो जायेगा। जितना विचार, सूचना कठिन है उतना ढांचा खड़ा करना कठिन नहीं। मकान का नक्शा बनाना ही सबसे कठिन है। नक्शा बन जाने के पश्चात तो कारीगर उसे बड़े आराम से बनाते रहते हैं। जो इंसान अमीर बनने के सपने देखता है वह अपने आप ही सोचने लगता है। वह अपनी कार्यकुशलता, अपने परिश्रम, अपनी शक्ति पर विश्वास करने लगता है। बस या विश्वास ही सफलता की निशानी है। इस विश्वास की शक्ति से वहाँ अमीर बन जाता है। उसे देखकर लोग हैरान रह जाते हैं कि कल का कंगला आज हमें यह कैसे बन गया? जैसे ही आपके मन में अमीर बनने की कोई नई कल्पना पैदा हो आपकी यहाँ प्रबल इक्षा अंगड़ाइयां लेने लगे की मुझे हर हाल में अमीर बनना है तो उसे संपूर्ण विवरण से लिख ले। बस फिर ये सोचना आरंभ करें कि इस कार्य को पूरा कैसे करना है, उसके साधन कौन कौन से होंगे उन लोगों की भी सूची बना लीजिये जो इस कार्य में आपकी सहायता कर सकते हैं। बस जुट जाइए अपने सच्चे दिल से इस कार्य में ईश्वर पर पूरा भरोसा रखिये, उसकी उपासना कीजिये, फिर विश्वास पैदा कीजिये या आपकी सफलता का रहस्य होगा? इससे पूर्व तक शायद आप गरीबों के देवता की ही पूजा करते आये होंगे। हर समय वही आपके मस्तिष्क में छाया रहा। अब पिछली बातें भूलकर उस ईश्वर को, अपने मन में स्थान दो जो सब का दाता है, जिसके पास सारे भंडार है, जो देता है, लेता नहीं। जो देकर ऐसा नहीं करता, बस उसी की कृपा से आप अपने मन में यह दृढ़ निश्चय कीजिये कि अब हमें अमीर बनना ही है। इस धारणा पर दृढ़ विश्वास रखिये और अपने हिम्मत में कहीं कमी ना आने दीजिये। सदा ईश्वर का सहारा लीजिये, सच्चे मन से उसकी पूजा कर उसी से प्रार्थना कीजिये कि हे प्रभु हे दाता हे सर्वशक्तिमान मुझ पर दया कर मुझे इतनी शक्ति दे दाता की मैं अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए संघर्ष कर सकूँ। आपके पास तो सारे संसार का खजाना है, इसमें से थोड़ा सा हिस्सा मुझे भी दे दो, मेरे प्रभु सच्चे मन से की गई प्रार्थना कभी खाली नहीं जाती। उस ईश्वर के घर में किसी चीज़ की कोई कमी भी तो नहीं है। कमी है तो केवल उस इंसान के पास बुद्धि की गरीब उसे नहीं कहते, जिसके पास धन नहीं, संपत्ति नहीं, गरीब तो वो है जो मन का दरिद्र है, कंजूस है जो धन रखते हुए भी उसका प्रयोग नहीं करता, जो दूसरों के धन को देख कर जलता रहता है, जो परिश्रम से मन चुराता है, बस हेराफेरी 400 बीसी के कामों से धन कमाना चाहता है उससे बड़ा गरीब और कौन होगा? जो लोग दरिद्रता के विचारों को त्याग देते हैं, दूसरों से हमदर्दी रखते हैं, जो दूसरों की सच्चे मन से प्रशंसा करते हैं, जो दूसरों को देखकर जलते नहीं, जो धन संपत्ति की निंदा नहीं करते, जो परिश्रम को जीवन का एक विशेष अंग मानते हैं, ऐसे लोग 1 दिन अवश्य ही सफल होते हैं, उनकी इच्छाएं पूर्ण होती हैं, उन्हें धन भी मिलता है और सम्मान भी। इसके विपरीत जो लोग दरिद्र हे उनके पास यही शब्द होते हैं, अरे यार गरीब है क्या करे ये तो किसी के बस की बात नहीं। जो अपने भाग्य में था वो मिल गया। ऐसे लोग अपने भाग्य को दोषी मानकर गरीबी की गोद में पड़े रहते हैं। वे यह नहीं सोचते हैं कि गरीबी ईश्वर की देन नहीं, यह तो अपने ही मस्तिष्क की उपज है। यदि आप परिश्रम नहीं करोगे, गरीबी से मुक्ति पाने की कोई योजना नहीं बनाओगे तो गरीबी तो तुम्हें प्यार करेगी और एक बार यदि आप इसकी गोद में गिर पड़े तो कहाँ निकल पाओगे? वास्तव में हमारा मस्तिष्क दिवालियापन ही हमें दिवालिया बना देता है। गरीबी का जन्म भी मानसिकता से ही होता है। मानसिकता यदि रोगी हैं तो आप अच्छे कहाँ से हो पाएंगे? आपको यह याद रखना चाहिए की जो रचना होती है उसका जन्म मन से होता है। हर चीज़ का आरंभ विचार से ही हुआ है इसलिए आप पहले अपने मन में विचारों को लाए। अमीर बनने के लिए गरीबी के विचारों को मत अपने मन में घुसने दें। कोई मोर्गन या रॉकफेलर पहले मानसिक रूप से ऐसे हालात का निर्माण करता है, जिससे धन उसकी ओर बेरोकटोक आने लगे। दुनिया में जो लोग सबसे अधिक अमीर हैं, वे अपने हाथों से कम काम करते रहे हैं। वे लोग तो कल्पना का सहारा लेकर। फिर अपनी तीव्र बुद्धि से कार्य करके धन कमाते रहे हैं। यदि केवल परिश्रम से लोग धनवान बन जाए तो सबसे अधिक परिश्रम तो वो जड़ होने वाले कुली करते हैं, बिल्डिंगें बनाने वाले मजदूर करते हैं, वे सब के सब तो वही पर है जहाँ से चले थे। बिल्डिंग मालिक मजदूरी तो नहीं करते, कारखानों और मिलों के मालिक कितना काम करते हैं? यही ना कि वे लोग शांति से बैठे नित नए कामों की योजनाएं बनाते रहते हैं। शरीर पर बोझा ढोना और बात है। किंतु मस्तिष्क की शक्ति से प्लैन बनाकर उसे असली रूप देना सबसे कठिन कार्य है। कल्पना का जन्म पहले होता है फिर बनती है आगे की दुनिया। बड़े बड़े भवन कारखाने में ले व्यापारिक संस्थान पहले तो एक बीज के रूप में ही मनुष्य के मस्तिष्क में उभरे थे या बीज अंकुरित हुआ फिर धीरे धीरे बढ़ता हुआ एक महान वृक्ष बन गया। यदि आपको धनवान बनना है, गरीबी से मुक्ति पाना है तो फिर आप अपनी मनोवृत्ति में परि वर्तन लाये अपने विचारों को धनवान बनने की रुचि पैदा कीजिये। हर कार्य को चुस्ती से करें, दरिद्रता का साथ छोड़ दें। ऐसे लोगों से मिलना आरंभ कर दें जो महान है, बुद्धिमान हैं। जिन्होंने अपनी बुद्धि से धन कमाया है, उनसे पूछिए कि आप कैसे धनवान बने? इसके पश्चात स्वयं अपने आप को देखिये कि आपके कामों में और उनके कामों में क्या अंतर है? अपनी कमियों को दूर कीजिए, बस फिर आप अपने में एक नया परिवर्तन महसूस करेंगे। अपने को धोखा मत दीजिए, किसी को धोखा देना पाप है। आप जीस काम को कर सकते हैं। उसे करते क्यों नहीं? क्या आप केवल भाग्य के सहारे बैठे यही सोचते रहेंगे कि यदि हमारे नसीब में होगा तो ये काम भी हो ही जाएगा? ये मत भूलो कि संसार में जीतने भी धनवान बने हैं। उनमें से एक भी भाग्य का सहारा लेकर अमीर नहीं बना। हाँ, आज हमें जीतने भी गरीब और परेशान लोग नजर आते हैं। इनमें से आधे से भी अधिक लोग ऐसे हैं जो केवल भाग्य के सहारे आशाएं लगाकर बैठे रहे और सागर के किनारे बैठकर उस लहर की प्रतीक्षा करते रहे। जो उनके लिए मोती लेकर आएगी, उनकी अपेक्षा जो हिम्मत वाले परिश्रमी लोग थे, वे सागर में डुबकियां लगाकर, मोती निकाल करके ले भी आए। भाग्यविधाता ने जो कुछ आपके भाग्य में लिख दिया है, उसे आप पढ़ तो नहीं सकते, फिर उसके पीछे लट लेकर क्यों घूमते रहते हैं? भाग्य को बनाने के लिए प्रयत्न करने पड़ेंगे। आटा घर में रखा है वह भाग्य की शक्ति से अपने आप रोटी तो नहीं बनेगी। उसकी रोटी बनाने के लिए भी तो परिश्रम करना पड़ेगा तभी तो उसकी रोटी खा पाएंगे। अपने दिल में या विचार निकाल दीजिए की आप कंजूस मक्खीचूस बन अमीर बन जाएंगे। धनवान बनने के लिए तो बहुत बड़े दिल की आवश्यकता पड़ती है। जो धनवान है वो खर्च भी खुले दिल से करता है। जो खर्च नहीं करता वो कमाए गा ही क्या? यदि हम हर समय यही सोचते रहे कि हमारे भाग्य में तो गरीबी थी और हम सदा गरीब रहेंगे और यह कितना बड़ा पागलपन है? अरे संसार के चारों ओर नजर डालकर देखो। की कितने अमीर माँ के पेट से धन लेकर आए थे? वे यदि भाग्य के सहारे पड़े रहते तो तुम्हारी तरह दरिद्र ही हो जाते हैं। धनवानों के माथे पर कहीं नहीं लिखा कि धन इन्हीं को मिलेगा। धन तो हर उस इंसान को मिलता है जिसके पास उसे कमाने की बुद्धि है। इस संसार में +7 लेकर आज तक कोई नहीं आया। सारे धनवान इस संसार में आकर बने हैं फिर तुम क्यों नहीं इनसे प्रेरणा लेते? क्यों नहीं सोचते है की हम भाग्य के विधाता आज से स्वयं ही है? हम भी इन लोगों की भांति धन कमाएंगे। भाग्य का सहारा तो हम छोड़ रहे हैं। इसके सहारे तो हम बहुत पिछड़ गए थे, वो तो हमारे लिए जहर है। प्रभु ने आपको हर प्रकार का कार्य करने के लिए अंग दे रखे हैं। इनका उपयोग अपने जीवन के सुखों के लिए क्यों नहीं करते? हीन भावनाओं को मन से सदा के लिए निकाल दीजिये चोटी छोटी बातों को मन से निकाल दीजिये क्योंकि यह आपके रास्ते का रोड़ा बन सकती है। जो धरती पर गिर पड़े हैं, उनके साथ आप क्यों गिरते हैं? आप तो उनको देखिये जो आपके सामने भाग रहे उड़ रहे हैं। अथक परिश्रम कर रहे हैं, पाएंगे वहीं जो प्रयत्न करेंगे अपने मन से एक गरीबी के सारे विचार निकाल दीजिये। और प्रतिज्ञा कीजिये की हमे भी गरीबी के विरुद्ध संघर्ष करना है। हमें भी गरीबी से पीछा छुड़वाना है। हम भी धनवान बनेंगे तो दोस्तों विश्वास करती हूँ आपको आज की ऑडियो पसंद आई होगी, यदि पसंद आई है तो इसे लाइक कीजिए और अपने विचार, अपने सुंदर सुझाव मुझे कमेंट करके जरूर बताएं।","यह ऑडियो स्वेट मार्डन द्वारा लिखी गई किताब एवरी मैन ए किंग से लिया गया है जिसका अनुवाद है खुशी से कैसे जीना है आप इस ऑडियो को सुनकर अपने जीवन में निराशा से बाहर आ सकते हैं और कई आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं इसमें आपको हिंदी ऑडियोबुक, हिंदी ऑडियोबुक मिलेगी , हिंदी में ऑडियोबुक, प्रेरक ऑडियोबुक, प्रेरक ऑडियो, सर्वश्रेष्ठ हिंदी प्रेरक ऑडियोबुक, हिंदी में सर्वश्रेष्ठ प्रेरक ऑडियोबुक, हिंदी में सबसे बड़ी ऑडियोबुक, हिंदी में प्रेरणादायक ऑडियोबुक, हिंदी में प्रेरणादायक ऑडियोबुक, हिंदी में जीवन बदलने वाली ऑडियोबुक, हिंदी ऑडियोबुक ऑनलाइन, #हिन्दीऑडियोबुक, #मोटिवेशनलऑडियोबुक , #inspirationalaudiobookinhindi," "हैलो दोस्तों आप सुन रहे हैं? मोनिका की आवाज़ में स्वेट मॉडर्न की लिखी गई महान कृति एव्रीमैन आ किंग का हिंदी अनुवाद। आज हम सुनेंगे भाग छे। जो चाहो सो पांव किंतु चिंता को मिटाओ। क्या हम जो चाहते हैं वह पा सकते हैं? हमें अपने जीवन के लिए हर सुख की आवश्यकता है, किंतु जब हम ये सोचते है की हमें ये सुख मिल सकते हैं या नहीं तो हम सोया नहीं, चिंता के सागर में डूब जाते हैं। हम ऐसे बहुत से लोग ऐसे हैं जो बुरे परिणाम और असफलता का ही विचार कर कर के अंदर ही अंदर घुलते रहते हैं। हमें केवल अंधेरा ही अंधेरा नजर आता है। जीवन में आ रहे संकटों को रोकने का प्रयास तो अवश्य करते हैं। किसी भी चीज़ को आकर्षित करने का सबसे उत्तम साधन है। उसका विचार हर चीज़ का प्रतिबिंब उसके बिंब के अनुसार होता है। इसी प्रकार वस्तु वैसी ही होती है जैसे उसके बारे में हमने विचार किया है। इसे हम यूं ही कह सकते हैं की जैसे भी हमारे मन में विचार होते हैं, वैसे ही हमारी कल्पना होती है। यदि कोई प्राणी खुश रहना चाहता है और अमीर बनना चाहता है तो उसे सबसे पहले अपने हृदय में खुशियों की ओर हर समय विशाल संपत्ति का ध्यान करना होगा। विचारों से इंसान अपना मार्ग बनाता है। जैसे भी इंसान के विचार होंगे वैसा वह कार्य करेगा। इसलिए सर्वप्रथम आपके लिए यह आवश्यक है कि आप अपने विचारों को शुद्ध कीजिए, भय को छोड़ो, निर्भय बनो, आलस्य त्यागो, परिश्रमी बनो, रास्ते में आई बाधाओं से मत डरो। या तो केवल आपको ही ऊंचा उठाने के लिए चलती है। यदि आप सच्चा सुख प्राप्त करना चाहते हैं तो मन से दुखों को निकालदो धन प्राप्त करना चाहते हो तो मन की शुद्धि का पूरा ध्यान रखो। जिन बातों को आपका मन पसंद नहीं करता, जिनमें आपकी रुचि नहीं, उन बातों को भुला दो। ये सब चीजें आपके शत्रु हैं इसलिए इनसे बच्चों अपने काम के प्रति उचित मनोवृत्ति अपनाइए। आप कितने भी गरीब है, किंतु यह आशा मत छोड़िए, क्या आप अमीर नहीं बन सकते? मन में यह विश्वास अवश्य पैदा करें कि आपकी या गरीबी सजा नहीं रहे गी, जैसे रात का अंधेरा छंट कर प्रकाश में बदल जाता है। पतझड़ के बाद बहारें आती है। ऐसे ही दुख के बाद सुख भी आते हैं और गरीबी के बाद अमीरी आती है या मत भूलिये कि आपके विचारों का ही प्रभाव आपके सारे दैनिक जीवन पर पड़ता है। सुंदर सुद्ध उत्कृष्ट विचार आपके लिए बहुत उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं। तन मन का आपसी मेल अति आवश्यक है। मन की कल्पना के साथ शरीर का कार्य आरंभ होता है। मन में यह दृढ़ विश्वास रखिये कि 1 दिन मन में सोचा हुआ काम अवश्य पूरा करेंगे। भले ही इसके लिए हमें कोई उपाय नहीं सूझ रहा। कोई मार्ग दिखाई नहीं दे रहा, किंतु फिर भी यदि हम सफलता के दृढ़ विश्वास को अपने मन में स्थान दे दे तो वे दिन दूर नहीं जब हम अपना मनचाहा फल पालेंगे। दृढ़ विश्वास आपकी सफलता के द्वार खोल देगा। आवश्यकता कल्पना दोनों ही मिलकर प्रयास ओं को जन्म देते हैं। प्रयास सफलता को जन्म देता है इसलिए मन के हर तार को दूसरे तार से जोड़ते जाये यही सफलता की सीढ़ियां है। आत्मविश्वास सफलता की कुंजी है। जो आदमी अपने पर भरोसा रखता है वो हर समय अपने उद्देश्य के बारे में सोचते रहते हैं और अपनी कार योग्यता के बारे में आत्मविश्वासी हैं। जो अपनी दृष्टि को निरंतर अपने लक्ष्य पर एकाग्र किए रहते है, वही तो सफल होते हैं। अपने मन को सदा ऊंचा उठाएं, रखें या ऊँचाई विचारों से होती है ना कि लंबे कद की या ऊंची बिल्डिंगों पर खड़े होने की। अपने मन को सदा इसी ओर खींचते रहें कि आपका दृष्टिकोण सदा निर्णायक, रचनात्मक रहे। अपने आप पर संदेह मत कीजिये। अपने कार्य शक्ति पर कभी भी संशय मत कीजिए। तब आप जीस काम में भी हाथ डालेंगे, वो अवश्य ही पूरा हो जायेगा जिससे आपकी आशाओं के फूल खिल उठेंगे। संदेह और संशय सबसे बड़े धोखेबाज है। संस आयात मक और संदेह दोनों मिलकर इंसान की प्रगति के द्वार बंद कर देते है। सफलता के लिए या अति आवश्यक है। क्या आप हर रोज़ सुबह उठ कर एक प्रकार का यह पाठ आरंभ कर दीजिये? मुझे जीस चीज़ की तलाश है, उसे मैं अवश्य ही पाकर रहूंगा। वह मुझे हर हाल में मिलनी ही चाहिए। उसे पाने का मुझे पूर्ण अधिकार है और मैं यह प्रतिज्ञा कर चुका हूँ कि मैं अब उसे पाकर ही रहूंगा। मन में सफलता का विचार निरंतर धारण किए रहने में एक विचित्र शक्ति है। स्वास्थ्य और खुशी के विचारों से यदि आपका मन हर समय परिपूर्ण रहता है तो संसार की कोई शक्ति आपको इनसे दूर नहीं रख सकती। आप स्वाभिमानी बनिए, अभिमानी नहीं, आप बहादुर बनी है, बुजदिल नहीं अपने विजय पर विश्वास रखिये, हार को निकट मत आने दीजिए। अपने उल्लासपूर्ण मन से बाधाओं को सदा दूर रखें। सदा आगे बढ़े, पीछे मुड़कर मत देखे। इसी प्रकार से आप अपनी मंजिल तक अवश्य पहुँच जाएंगे। मैंने एक ऐसे आदमी को देखा है जब उसके आधे जीवन के संघर्ष का संपूर्ण परिणाम एक ही दुर्घटना में मटियामेट हो गया था और उसके पास केवल बचा था कठोर परिश्रम और आत्मविश्वास। बस यही उसके जीवन की अंतिम पूंजी बाकी रह गई थी। उस पर अपने सारे परिवार का पेट भरने की जिम्मेदारी थी। उसने हिम्मत नहीं हारी। निरंतर उसने आत्मविश्वास का दामन थामे रखा। इसका कारण यही था कि उसने कभी भी अपने हार नहीं मानी। उसने यह विचार ही अपने मन से निकाल दिया कि वह अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो सकता। उसने अपनी मंजिल पा ली थी और एक बार फिर से पूर्ण विश्वास के साथ। काम के लिए उतर पड़ा और उसका परिणाम यह हुआ कि वो थोड़े ही समय में मालामाल हो गया। आप क्या अपने लिए भी ऐसे ही दृढ़ विश्वास ही सिद्ध हो सकते हैं? क्या आप भी बस सब कुछ नहीं पा सकते जिसकी इच्छा आपके मन में है या सब कुछ असंभव है? आप इंसान हैं, संसार के श्रेष्ठ प्राणी हैं। ईश्वर ने आपको हालात के हाथों खिलौना बनने के लिए नहीं भेजा। हालात का गुलाम बनने से साफ इनकार कर दीजिये, हालात का मुकाबला करने की शक्ति पैदा कीजिए। ईश्वर ने आप को जन्म देकर एक महाशक्ति के रूप में धरती पर भेजा है, फिर क्यों अपने आप को छोटा महसूस करते हैं? बिना कारण के कोई काम नहीं होता? पहला कारण मानसिक ही होता है। मन की प्रवृत्ति ही सफलता या असफलता के लिए वातावरण का निर्माण करती है। हमारे कामो का फल वही होगा जैसे हमारे विचार होंगे। मन की शक्ति से तन की शक्ति कार्य करती हैं। हमारे विचारों का प्रभाव पूरे शरीर पर पड़ता है। हमारा स्वभाव, हमारी प्रवृत्तियाँ, हमारी आदतें यह सभी हमारे विचारों का प्रतिबिंब ही होती है। इनका ही हमारे कामों पर पूर्ण प्रभाव पड़ता है। हमें यदि आगे बढ़ना है तो अपने आप को आदर्शवादी मानव बनाना होगा। अपने विचारों और कल्पनाओं के संसार को ऊंचा उठाना होगा। हमारे मानसिक योग्यता ये हमारी दासियां है। इन दासियों से हम क्या क्या काम ले सकते हैं? या हमें सोचना है? जो भी प्राणी इन पर विश्वास करता है, उसे यह सर्वोत्तम पदार्थ देती है। यदि हम डरे हुए हैं तो हमारी मानसिक योग्यता ये भी ठंडी पड़ जाती है। नकारात्मक चरित्र वाले लोग घटनाओं के घटने की प्रतीक्षा करते रहते हैं। कुछ भी हो जाये उसे भी सहन कर लेते हैं। जो कुछ हो जाए, जो कुछ बन जाये उसे भी सहन कर लेते हैं। वे समझते हैं कि उनमें होने वाली घटनाओं में कोई भी परिवर्तन करने की शक्ति नहीं है। इसके विपरीत रचनात्मक धनात्मक आदत वाले लोग घटनाओं में परिवर्तन करते रहते हैं। ऐसे लोग घटनाओं को अपने अनुकूल मोड़ने की ताकत भी रखते हैं। रचनात्मक मनोवृत्ति के द्वारा ही इंसान महान कामों को करने की आदत रखता है। जो आदमी निर्माण के लिए बेचैन रहता है, वह अग्रणी होता है, काम को आगे धकेलने वाला होता है। उसमें उत्साह उल्लास और साहस होता है जिसकी शक्ति से मनचाही वस्तु का उत्पादन कर के संसार को दिखला देता है कि उसमें कितनी ताकत है। मन पर पूर्ण विश्वास रखने वाला प्राणी ऐसे हालात का निर्माण करता है जिसका परिणाम उसकी आशाओं के अनुकूल हो। वह बुरे हालात को भी अपनी इच्छा के अनुसार ढाल लेता है। उसे पता होता है कि अपने आप कुछ नहीं होता, इसलिए वह कार्यकारिणी शक्ति यों को पूर्ण सामर्थ्य के साथ लगा देता है। वह हर चीज़ को अपने मनचाहे रंग में रंग लेता है, अपने इच्छा के सांचे में ढाल लेता है। कई लोगों के मन पर दूसरों का प्रभाव पड़ता रहता है। वास्तव में भी इतने कमजोर होते हैं की दूसरों के बहकावे में आ जाते हैं। उनका आत्मविश्वास कम हो जाता है। ऐसे में दूसरे लोग सुझाव देते हैं कि आप इस काम को करने की योग्यता ही नहीं रखते। आप में इतनी बुद्धि नहीं की इस व्यवसाय कारोबार को समझ सके। आप जीस पद पर विराजमान है, आप इसके योग्य नहीं। इस तरह से वह व्यक्ति काम करने से डरने लगता है। उसकी इच्छाशक्ति कमजोर हो जाती है और यह बात आपसे पहले भी कही जा चुकी है कि जीस प्राणी की इच्छा शक्ति कम हो जाए। उसकी पराजय दूर नहीं होती। उसे अपने पास अच्छे गुण होने के बावजूद दूसरों के पीछे चलना पड़ता है। हमने जीस काम को पूरा करने का इरादा कर लिया है, उसे पूर्ण होने का हमें पूर्ण विश्वास होना चाहिए। उसकी सफलता में हमें ज़रा भी संदेह नहीं होना चाहिए। इस काम के लिए तन मन लगा देना ही आपका कर्तव्य मन में भी यह दृढ़ विश्वास होना चाहिए कि हमारे मानसिक शक्तियां इसे पूरा करके रहेंगी। आपके मन की आशा पर ही आपका उत्साह निर्भर करता है। आशा जितनी ही तीव्र होगी, उत्साह भी उतना ही तीव्र होगा। सफलता भी उतनी ही अद्भुत होगी। इसे आप यूं भी कह सकते हैं की हमारी मानसिक शक्ति यों का रूप हमारी आशा और संकल्प का ही दूसरा रूप होता है। जिंस, चीज़ को हमारा दिल चाहता है, उसके स्वरूप का निर्माण हमारी आशा आवश्यकता हमारा विश्वास हमारे दृढ़ संकल्प द्वारा हमारे प्रयत्नो द्वारा होता है। इस प्रकार से हमारी इच्छा की वस्तु हमें प्राप्त हो जाती है। हमने अपने हृदय में वस्तु का जो चित्र बना रखा है, उसके आधार पर ही हमारे शरीर की सारी रचनात्मक शक्तियां काम करने लगती है। अंत में उस मॉडल के अनुरूप हमारी उपलब्धि होती है जिसे पुरुष को अच्छी आशा करने का वरदान मिला हुआ है। यदि वह अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए दृढ़ निश्चय कर लेता है तो उसके मार्ग में चाहे कितनी ही रुकावटें क्यों ना आए, वो अपनी मानसिक शक्ति से उन्हें दूर कर देता है। ऐसा करने से वह अपने काम में सफल हो जाता है। उसे अपने विरोधी विचारों पर विजय प्राप्त होती है। यदि वह हिम्मत से कामना लेकर शत्रु विचारों का दास बन जाता तो उसे लोग असफल कहकर घृणा करते। हमारे शरीर में महान शक्तियां छिपी हुई हैं। उन्हें हम साफ साफ नहीं समझ पाते, परन्तु हम अनुभव ही करते हैं कि वे शक्तियां वहाँ पर विराजमान है। विश्व शक्तियां हमारी आशाओं की आज्ञा का पालन करती हैं। वे हमारे दृढ़ निश्चय की पूर्ति का ध्यान रखती है। जैसा कि आप अपने ही यह विचार करते रहे की मैं कुछ नहीं हूँ, मैं तो तू छु बीमार हूँ, मेरे अंदर योग्यता नहीं है, बस फिर क्या है? यह भावनाएँ दिन प्रतिदिन जौ पकड़ती जाएंगी। ऐसी ही भावनाओं का मानव हृदय में उत्पन्न होना सबसे अधिक घातक सिद्ध हो सकता है। ऐसी भावना ये आपकी महान शत्रु हैं, इनसे बचिए। इन्हें अपने मन में ना घुसने दीजिये। इसके विपरीत यदि आप दृढ़ता का दावा करते हुए या कहे की मैं विश्व के सारे उत्तम पदार्थों को प्राप्त करने का अधिकारी हूँ यदि मैं यह घोषणा कर दूँ की श्रेष्ठ व्यक्तित्व का मेरा अधिकार है और निरंतर इस पर ज़ोर देता रहो कि मेरे जीवन का उद्देश्य महान है जो मेरे प्रवत्तियों से मेरे रुझान से प्रकट होता है और यह दावा करूँ की शक्ति पर मेरा पूर्ण अधिकार है। सवस्थ रहना मेरा कर्तव्य है। कमजोरी से मेरा कोई रिश्ता नहीं। निराशा को मैं अपने पास नहीं आने दूंगा। मैं तोड़फोड़ की वजह निर्माण कार्यों पर अधिक विश्वास रखता हूँ। मैं आशाओं की गोद में खेलना चाहता हूँ। मैं उन सब पदार्थों को उपलब्ध करवा सकता हूँ जिनकी अभिलाषा मेरे मन में है। ऐसे दृढ़ विश्वास ओं से भरा आपका जीवन आपको सफलता के द्वार पर ले जाकर खड़ा कर देगा। हमारे योग्यताएं इसीलिए है कि हम पदार्थों का उत्पादन करें, निराशा और बेदिली तो आपको कुछ भी नहीं करने देगी। आशा ही जीवन है निराशा मृत्यु इन दोनों में से केवल आप अपने लिए जीवन को ही चुनें तो मृत्यु से तो हर प्राणी घृणा करता है, डरता है इसलिए जीवन की इस धारा को अपने से कभी भी अलग ना होने दीजिये। उत्साहपूर्ण, उल्लासपूर्ण, शक्तिशाली, उच्च कोटि की भावनाओं से भरपूर जीवन का नाम ही तो वास्तविक जीवन है। मानसिक प्रवृत्ति व्यक्ति की सबसे बड़ी संरक्षिका है। कई बार हम अपनी ही गलतियों से गलत काम कर बैठते है। जैसे की किसी भी सौदे में हमें हाँ करनी है परंतु हमारे मुँह से ना निकल जाती है। उस सौदे में यदि हम हाँ कर देते हैं तो हमें काफी लाभ हो सकता था किंतु यह हमारे जल्दबाजी का निर्णय हमें लेट होगा। अंत में यह सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि इसमें दोष किसका था? हालात का, यमन का ये हमारे मन की बात है। हमारा मन जब इस स्थिति में नहीं होता या वो हमारे काबू में नहीं होता तो ऐसे फैसले कर लेता है जिससे समय हम गलतियाँ करते हैं। फूले होती है, जब हम हिम्मत दिखाते समय रुक जाते हैं और जब रुकने का समय होता है, हम रुक नहीं पाते, उस समय हमारा मन असंतुलित होता है और आराम की हालत में पहुंचने से पहले कुछ भी करने को तैयार होता है। हर समय हम रचनात्मक विचारों में डूबे जाते हैं और कुछ अच्छा काम करने में खोए हुए होते है। उस समय। उत्साहहीन विचार निराशा भरे विचार हमारे मन में प्रवेश नहीं कर पाते। बुरे विचार जैसे डर, चिंता, घृणा, नफरत थी। रशिया तोड़फोड़ जैसे विचारों का हमारे मन पर आक्रमण होता है। यह सब उस समय होता है जब हम अच्छाई से भागकर बुरा ई का दामन थाम लेते हैं। इसलिए बुरे विचारों से अपने आप को बचाए रखना और अच्छे विचारों को मन में स्थान देने से मनुष्य बहुत सारी बुराइयों से बच जाता है। रचनात्मक चिंता का अर्थ है सेहत, धन, संपन्नता, हमारे योग्यताएं। इसीलिए की कुछ उपयोगी और लाभदायक काम करते रहें। निषेधात्मक विचारों का अर्थ है दरिद्रता, गरीबी, दीनहीनता, बिमारी और इस प्रकार के अनेक कष्ट जो हमारे लिए निराशा लाते हैं। हमारी कार्यकुशलता का पैमाना यही है कि हम अपने कार्यों में कितनी शक्ति लगाते हैं। कुछ लोग इस ढंग से काम करते हैं कि उनकी गति इतनी धीमी होती है। हर काम लटका रहता है। इससे यह बात स्पष्ट हो जाती है कि वे मन से अपने काम को नहीं करते। ये धीमी गति उनके हर अच्छे काम में बाधा डालने का कारण बनती है। हम किसी भी आदमी से मिलते ही यह जान सकते है की उनकी काम करने की गति धीमी है। ये तेज क्योंकि बाते करते समय ही वह आदमी अपनी इस गति को स्पष्ट कर देगा। हमारी बातों में भी या रहस्य छिपा रहता है, जिसे इंसानी लोग ही जान सकते हैं। रचनात्मक कार्य करने वाला प्राणी जहाँ कहीं जाता है, अपने काम करने की शक्ति को भी साथ ही ले जाता है। ऐसे बहुत से लोग हैं जो काम करने की महान अतः अनथक शक्ति रखते हैं। ऐसे लोग जहाँ कहीं भी जाते हैं, अपनी छाप छोड़ जाते हैं। इनकी इस छाप से बुद्धिमान लोक प्रेरणा लेते हैं जिससे सभा सोसाइटी में ये लोग जाते हैं, वहीं पर इनकी प्रशंसा होती है। कुछ लोग उनसे मिलने में भी गर्व महसूस करते हैं। कुछ लोग ऐसे भी हैं जो इन रचनात्मक काम करने वाले लोगों को देखकर जलते हैं। ऐसे लोगों के बारे में तो केवल इतना ही कहा जा सकता है कि वे पिछड़े हुए होते हैं। उनकी अपनी कार्य शक्ति बहुत कम होती है। विस जीवन में आगे नहीं बढ़ पाती, बस दूसरों को देखकर ही चलते रहते हैं। वे अपनी मंजिल से भटक जाते हैं, वे केवल ठंडी आहें भरते हैं और फिर निराश होकर अपने भाग्य को कोसने लगते हैं। कुछ अपरिचित हमारे सामने आते ही अपनी रचनात्मक शक्ति से हमें प्रभावित कर देते हैं। उनका यह प्रभाव ही इतना शक्तिशाली और जोरदार होता है कि लोग यह मानने पर मजबूर हो जाते हैं कि वास्तव में ही या कोई बहुत बड़ा काम करने जा रहे हैं। उन्हें देखते ही ऐसा एहसास होने लगता है कि कोई बड़ा नेता या अभिनेता आ गया है या आदमी जीस भी काम में हाथ डालेगा वह अवश्य ही पूरा हो जाएगा। हालात भले ही कैसे हो क्या आदमी उन्हें अपने ही सांचे में ढालने के लिए सफल हो जाएगा? यह समय का बादशाह है। समय इसका गुलाम है। इसके विपरीत कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनकी शक्ल देखकर ही या अंदाजा लगाया जा सकता है कि हम यह सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि यह प्राणी जीवन में आसफल ही रहा है और इसका कोई विशेष स्थान समाज में नहीं है। यदि आप लोगों पर यह प्रभाव डालना चाहते हैं कि हम काम करने वाले हैं, ऐसे लोग बातों ही बातों में दूसरों को पागल बनाने के प्रयत्न करते है, सब कलाओं में श्रेष्ठ कला है, जीवन श्रेष्ठ, सफल और विजयी बनाना। इस कला का ज्ञान पाकर हर प्राणी कुशल, सफल और चतुर बन सकता है, जो इस स्नातक सफलता की कला में प्रशिक्षित हुए बिना जीवन के क्षेत्र में उतरा है, जिसे किसी ने यह सिखाया पढ़ाया नहीं की रचनात्मक मनोवृत्ति और असफल निधि किसे कहते हैं और दोनों में क्या अंतर है और दोनों के विभिन्न अंगों में क्या फर्क होता है? वह केवल असफल होकर ही घर लौटता है। इस प्रकार से उसकी कायरता संशय, डर आत्मविश्वासहीनता का भेद अपने आप ही खुल जाता है। उसके उदासीनता भावनाओं के द्वारा उसकी स्वाभाविक रचनात्मक दब जाती है। बुद्धि भी मंद हो जाती है पर जो काम आरंभ करता है वही उसे बोझा सा लगता है। वह योग्य प्राणी होते हुए भी अनजाने में घटिया प्रवृतियों का शिकार हो जाता है। कॉलेजों की शिक्षा की बजाय हर युवक युवतियों को यह जानना बहुत जरूरी है कि मन की रचनात्मक शक्ति यों को प्रभावशाली कैसे बनाया जाए? मन को शांत कैसे रखा जाए, बुरे विचारों से कैसे बचा जाए? मन की शांति को कैसे संतुलित रखा जा सकता है? कई छात्र जो कॉलेज में सदा ही प्रथम श्रेणी प्राप्त करते हैं, जब डिग्री प्राप्त करके कॉलेज से बाहर निकलते हैं तो उनके सामने एक बड़ी समस्या यह होती है कि अपने मन को रचनात्मक कैसे बनाया जाए। और उसे बुरे विचारों से कैसे दूर रखा जा सकता है? बहुत से बुद्धिमान छात्रों के साथ भी ये घटनाएं घटती देखी गई है कि वे निषेधात्मक मनोवृत्ति से इस प्रकार आक्रांत होते हैं की रचनात्मक कार्यों में। निर्माणात्मक काम में भी असफल हो जाते हैं। ऐसे हालात में या अति आवश्यक है कि ऐसे छात्रों को स्नातक होने के बाद भी एक ऐसे शिक्षा का प्रबंध किया जाए जिससे उन्हें जीवन के सच्चे ज्ञान का परिचय प्राप्त हो सके। कॉलेजों की कोर्स की पुस्तकें पढ़कर जीवन ज्ञान प्राप्त नहीं होता। इसके लिए जीवन संबंधी पुस्तकों का सहारा लेना ही पड़ता है, जिससे कि उनकी मानसिक शक्ति यों को जागृत किया जा सके। उसके अंदर से डर संशय कमजोरियों को दूर करने का एकमात्र मार्ग है मानसिक प्रशिक्षण। इसके बिना तो उनकी सारी शिक्षा ही बेकार हो जाती है। भले ही वह डिग्री लिए घूमते हैं, किंतु उनके पास जीवन ज्ञान नहीं होता है। धनात्मक विचारों से प्राणी में रचनात्मक और उत्पादकता का गुण आ जाता है और इस प्रकार के विचारों से निषेधात्मक रुचि समाप्त हो जाती है। यदि आप में कार्य करने की रुचि नहीं। यदि आप कोई भी नया काम शुरू करने की इच्छा ही नहीं रखते तो फिर आपको गुड वन कौन कहेगा? ऐसे लोग तो असफल लोगों की सूची में आ जाते हैं। धनात्मक प्रशिक्षण द्वारा थोड़े ही समय में एक बुद्धिमान अनुभवी प्राणी माने जा सकते है। आपकी क्रियात्मक शक्ति में और इस प्रशिक्षण के बाद आप जीस काम को भी आरंभ करेंगे। उसी में आप नया निखार ले आएँगे। सफलता आपसे दूर नहीं रह सकती। आप का मनोरंजन भी होता रहेगा जिससे आपके मन का बोझ कम हो जाएगा। चोटें और असफलता के विचार मन में लाना अपने आप को दुर्बल करना है। मैं यह भी नहीं कर सकता वो अभी नहीं कर सकता वाली मनोवृत्ति प्राणी के सारे कामों को उलझा कर रख देती है। इससे प्राणी के अंदर हीन, निराशा, असफलता की भावना पैदा होती है, जिससे उसकी प्रगति रुक जाती है। वह निराशाओं की गोद में गिरकर आशाओं से दूर चले जाते है। निराशावादी मन और आशावादी मन में बहुत अंतर होता है। अन्य सारी योजनाएं समान होने पर आशावादी होने पर आपका मार्गदर्शन अपने आप प्रकाश में आ जाएगा। आपको खुशियां, आशाएं, सफलताएं नजर आएंगी। जीवन मार्ग बड़ा सरल नजर आएगा। आप हँसी प्राप्त करेंगे। निराशावादी होने पर आप केवल अपने आप को अंधकार में फेक देंगे, जिससे आपके जीवन की सारी प्रगति रुक जाएगी। आप अपने सारे मित्रों से पीछे रहते चले जाएंगे। यहाँ तक की 1 दिन ऐसा भी आएगा कि आप दुखी और चिंतित होकर सबसे अलग बैठे होंगे। आपके अपने मित्र भी आपको निराश देख कर दूर भाग जाएंगे। यही निराशा आप के सबसे बड़े शत्रु होगी। ऐसे शत्रु से आपको सर्वप्रथम बचने के उपाय सोचने होंगे अन्यथा या निराशा तो दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जाएगी और आपका मनोबल गिरता जायेगा और 1 दिन। ऐसा भी आ सकता है कि जब आप सबसे पिछड़ जाएंगे, आपकी सारी आशाएं दम तोड़ देंगी, आपके सामने होगी निराशा वास्तव में निराशावादी लोग स्वयं धीमी गति की आत्महत्या का शिकार होते हैं या आत्महत्या उस जहर की भाँति होती है जो इंसान के मन में धीरे धीरे फैलता जाता है और ऐसे प्राणी अपना सब कुछ खो देते हैं। चिंता और चिता एक समान चिंता इंसान को धीरे धीरे जलाती है। और चिता एक बार इसलिए चिंता से अपने आपको दूर रखिये नहीं तो याद रखिये, चिंता आपको चिंता में ले जाएगी। तो दोस्तों विश्वास करती हूँ। आपको आज की ऑडियो पसंद आई होगी, यदि पसंद आई है तो उसे लाइक करना बिल्कुल ना भूलें। अपने सुझाव अपने विचार मुझे कमेंट में लिख कर जरूर बताएं और अपने मित्रों के साथ इसे शेयर करें। सुनते रहे मोनिका के साथ स्वेट मॉडर्न की लिखी गई महान कृति एव्रीमैन आ किंग का हिंदी अनुवाद।","यह ऑडियो स्वेट मार्डन द्वारा लिखी गई किताब एवरी मैन ए किंग से लिया गया है जिसका अनुवाद है खुशी से कैसे जीना है आप इस ऑडियो को सुनकर अपने जीवन में निराशा से बाहर आ सकते हैं और कई आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं इसमें आपको हिंदी ऑडियोबुक, हिंदी ऑडियोबुक मिलेगी , हिंदी में ऑडियोबुक, प्रेरक ऑडियोबुक, प्रेरक ऑडियो, सर्वश्रेष्ठ हिंदी प्रेरक ऑडियोबुक, हिंदी में सर्वश्रेष्ठ प्रेरक ऑडियोबुक, हिंदी में सबसे बड़ी ऑडियोबुक, हिंदी में प्रेरणादायक ऑडियोबुक, हिंदी में प्रेरणादायक ऑडियोबुक, हिंदी में जीवन बदलने वाली ऑडियोबुक, हिंदी ऑडियोबुक ऑनलाइन, #हिन्दीऑडियोबुक, #मोटिवेशनलऑडियोबुक , #inspirationalaudiobookinhindi," "हैलो फ्रेन्ड्स आज हम सुनेंगे महान लेखक स्वीट मॉडर्न के द्वारा लिखी गई महान कृति एव्रीमैन आ किंग का हिंदी अनुवाद भाग 13 प्रसन्नता एक बालक ने कहा कि मैं इतना प्रसन्न हूँ कि मेरी प्रसन्नता का कोई अंत ही नहीं और मेरी प्रसन्नता उस समय तक मेरा साथ देगी जब तक मैं जवान नहीं हो जाता। एन पी वेल्स के मतानुसार जो लोग प्रसन्न रहते हैं उन्हीं के यहाँ बरकत भी होती है। यदि सारे माता पिता इस बात को समझ लें कि बच्चों के साथ हर स्थान पर अधिक से अधिक प्रेम किया जाए तो इससे जनसाधारण के सुख में भी वृद्धि हो जाए। दुख का विषय है कि बहुत कम माता पिता को अपनी इस पवित्र धरोहर का अनुभव है। कुछ अधिक समय नहीं हुआ जब बच्चों को भेड़ बकरियां समझा जाता था और उनके साथ जानवरों का असर व्यवहार किया जाता था। उन्हें इस प्रकार उठाया बैठाया जाता था मानो उनका अलग से कोई अस्तित्व ही नहीं, उनके अधिकार तो है किंतु नाममात्र के उन्हें बड़ी निर्दयता से मारा पीटा जाता था। अब अधिकांश माता पिता की धारणा है कि जीवन में स्वयं उनके अस्तित्व की देखभाल अत्यंत महत्वपूर्ण है। यद्यपि वास्तविकता यह है कि बच्चों का पालन पोषण और शिक्षा उनके अपने अस्तित्व की देखभाल से अधिक आवश्यक है और उनका यह कर्तव्य हो जाता है कि अपने इस दायित्व को यथाशक्ति पूरा करने का यत्न करें। अब सरकार को भी यह अनुभव हो रहा है कि बालक राष्ट्र की बहुमूल्य धरोहर है। और उसे माता पिता की उदासीनता और शिक्षकों की गलत और पथभ्रष्ट शिक्षा और पोषण का शिकार नहीं बनने देना चाहिए। यदि बालकों की शिक्षा दीक्षा समुचित ढंग से की जाए तो वे भारी रकम में जो अपराधियों के मुकदमो, जेलखानों और सुधार ग्रहों पर व्यय होती है, बच जाए। इसके अतिरिक्त निकम्मों और बेकारों को काम दिलाकर बहुत से व्यय को आय में परिवर्तित किया जा सकता है क्योंकि लाभप्रद और कार्य करने वाले नागरिक राष्ट्र के लिए असीम संपत्ति और धन का साधन है। इसके विपरीत निकम्मे और बेकार लोग राष्ट्र की पीठ पर निरुप योग है। यदि आराम से ही बालकों की शिक्षा दीक्षा आधुनिक और प्रगतिशील ढंग पर दी जाए तो ऐसे निर उपयोग लोगों का अस्तित्व ही ना रहे। हंसमुख और दीक्षित बालक ही देश के प्रसन्नचित्त और उल्लसित एवं उपयोगी नागरिक बन सकते हैं। बालक के लिए खेलकूद उतना ही आवश्यक है जितना की एक पौधे के लिए सूर्य का प्रकाश और गर्मी। खेल कूद और सैर सपाटे से बच्चे का विकास होता है और इस प्राकृतिक खाद्य पर भी बढ़ते और फूलते फलते हैं। इसने ही और दयालु माँ के हृदय का प्रकाश और प्रेम इस वियोग में सहायक सिद्ध होते हैं। बालकों को घर के बाहर नहीं बल्कि घर के अंदर भी खेलकूद की स्वतंत्रता होना चाहिए। देखा गया है कि प्राय घरों में अत्यधिक गंभीर व्यवहार होता है। बालकों को अपनी इच्छानुसार खेलने का अवसर नहीं दिया जाता। यदि उनकी इस स्वाभाविक इच्छा को दबाने का यत्न किया जाता है तो इसके परिणाम अत्यंत भयानक होते हैं। उनके माता पिता को यथासंभव उनकी इच्छा के प्रति सजग रहना चाहिए। इससे लाभ यह होगा कि जब वे व्यवहारिक जगत में। कदम रखेंगे और उन्हें वहाँ विफलताओं का सामना करना पड़ेगा तो वे सहर्ष उनसे लोहा ले सकेंगे। इसके अतिरिक्त बच्चों को प्रसन्न रहने का अवसर प्रदान किया गया है। तो बजाय चुपचाप गुमसुम, खिन्न मन और दबे दबे रहने के माता पिता के लिए सहायक सिद्ध होंगे और अच्छे नागरिक बनेंगे। जिन बच्चों को खेलकूद में अपने हार्दिक विचारों की अभिव्यक्ति का अवसर प्रदान किया जाता है, वे न केवल अच्छे नागरिक ही बनते हैं बल्कि अच्छे व्यापारी और नागरिक ति अभी अपने जीवन में अधिक सफल होते हैं और उनका अपने वातावरण पर पर्याप्त प्रभाव पड़ता है। प्रसन्नता और मनोरंजन से मानव बढ़ता है और उसकी आंतरिक योग्यताओं और शक्ति यों को व्यक्त होने का अवसर मिलता है। मलिन और दुखद घरेलू वातावरण, कठोर हृदय और कुसवा भावी माता पिता त्रुटिपूर्ण शिक्षा दीक्षा, सांसारिक संकट, दुख पीड़ा हो, अपराध हो और निचले वर्गों की अकथनीय दशाओं के लिए अधिकतर उत्तरदायी हैं। इस युग में अनेक ऐसे दरिद्रों और अभाग्य है जो अपनी असफलताओं और निराशाओं का कारण बाल्यावस्था की उत्साहहीनता बता सकते हैं। यदि बालक को हर समय झिड़कियां दी जाए, आँखों से ओझल ना होने दिया जाए, उसे बात बात पर टोका जाये तो उसके पिता कभी उसे योग्य नहीं बना सकते। जिन बालकों को हर समय कोसा जाता है, बात बात पर झिड़कियां दी जाती है, चुन चुनकर उनके दोष निकाले जाते हैं। उनका दिल टूट जाता है। वे सब कुछ खो बैठते हैं। यहाँ तक कि वे अपने आत्म स्वाभिमान से वंचित हो जाते हैं। दिन रात जब उनके कानों में ये ही आवाज़ पड़ती है तो उन्हें विश्वास हो जाता है कि वे वास्तव में हमेशा निकम्मे हैं। संसार में उनका कोई आदर नहीं, ना प्रतिष्ठा ना ही संसार को उनकी जरूरत है। एक दरिद्र बालक को उसके माँ बाप उम्रभर निकम्मा कहकर पुकार ते है। उसे जब काम करने के लिए झोपड़ी से खेतों पर ले गए तो वह काम से जी चुराने का यत्न करने लगा। पूछने पर उसने अपने साथियों को बताया, मैं कुछ नहीं जानता, मैं सदा ऐसा ही रहा हूँ। मेरे माँ बाप मुझे हमेशा निरर्थक कहा करते थे। कहते थे मैं कभी भी कुछ नहीं कर सकता। बच्चों को हर घड़ी निकम्मा और बेकार कहने से वो इतना हतोत्साहित हो जाता है कि अंत में बिल्कुल लापरवाह हो जाता है और यथाशक्ति प्रयत्न करने से बच जाता है। उससे उसके साहस और शक्ति को ऐसा धक्का लग जाता है कि आजीवन उसकी उन्नति रुक जाती है। प्रायः माता पिता बालक को इस प्रकार संबोधित करते है। अरे जल्दी करो वो सुस्त और निकम्मे लड़के तुम इतने मूर्ख को निरीक्षण क्यों गधा कहीं गा तू मेहनत क्यों नहीं करता? मैं कहता हूँ तू कभी कुछ नहीं कर सकता। इस प्रकार बालक की स्वाभाविक शक्ति का पतन हो जाता है। यह एक अपराध पूर्ण कृत्य है कि बालक को अपनी बातों से यह विचार उत्पन्न हो जाए कि वो संसार में कभी भी कुछ बनकर नहीं दिखाएगा। माता पिता इस बात पर। ध्यान नहीं देते कि बालक के कोमल और भावुक हृदय पर ऐसा चित्र अंकित कर देना जो आजीवन उसके लिए निंदा का कारण सिद्ध बहुत सरल है, किंतु उसके परिणाम अत्यंत भयंकर है। माता पिता अपने परिचितों से कहा करते हैं कि हमारा लड़का बिलकुल निकम्मा और खराब है। ऐसा कहते हुए उन्हें तनिक अनुभव नहीं होता कि बालक के हृदय से ये शब्द नहीं मिट सका। यदि किसी वृक्ष पर कोई व्यक्ति अपना नाम अंकित कर दे तो वृक्ष की वृद्धि के साथ साथ वो नाम भी बढ़ता है और फैलता जाएगा। इसी प्रकार जो शब्द बाल्यावस्था में, बालक के मस्तिष्क पर और हृदय पर अंकित कर दिए जाते हैं, वे उसकी आयु के साथ साथ बढ़ते हैं। बालक बहुत जल्दी हिम्मत हार बैठते हैं। उनका विकास अधिकतर वाह, वाह और शाबाश पर निर्भर है। यदि उनकी प्रशंसा की जाए तो वे और अधिक रुचि से मन लगाकर काम करते हैं। जो माता पिता या शिक्षक बालकों पर विश्वास करते हैं, उनको उत् प्रेरित और उत्साहित करते हैं, उनकी सहायता करते हैं तो बालक भी ऐसे माता, पिता और शिक्षकों पर प्राण निछावर करते हैं। परंतु यदि उन्हें आए दिन दिख कार आ जाए और घृणा की दृष्टि से देखा जाए तो हतोत्साहित हो जाते हैं। हर घड़ी की झिड़की और डांट फटकार से विदा वे से रहने लगते हैं और उनके हर्षोल्लास का गगन शीघ्र ही अत्यंत मलिन और अंधकारमय हो जाता है। यदि किसी बालक में बहुत सी त्रुटियां और शिथिलता ए पाई जाए तब भी उसे हर समय उनका स्मरण ना कराया जाना चाहिए। माँ बाप और शिक्षकों को सर्वदा उज्ज्वल पहलू पर दृष्टि रखना चाहिए। बालक की अच्छाइयों और उसके गुणों को देखना चाहिये और उन्हीं के बारे में बातचीत करनी चाहिए। हर मनुष्य चाहे वह युवा हैं तो आपको उसके साथ मधुरता और नम्रता का व्यवहार करना पड़ेगा, क्योंकि मानव प्रकृति, शत्रुता, गलानी टीका, टिप्पणी डपट के विरुद्ध विद्रोह करती है। यदि किसी व्यक्ति का बेटा या किसी गुरु का शिष्य मूर्ख और बुद्धिहीन भी है तो भी उसे हर घड़ी यह नहीं कहना चाहिए कि तुम तो निपट बुद्धू निकले। हमें यह नहीं भूलना चाहिए की योग योग के बड़े बड़े महारथी भी अपने समय में मूर्ख और वो दूँ समझे जाते रहे हैं जो बालक शिक्षा में उन्नति ना करें पढ़ने लिखने में। निर बुद्धि और शिथिल मस्तिष्क का प्रतीत हो, उसे भी झड़कना नहीं चाहिए। संभव है वो अपने योग्यता प्रकट करने का प्रयास कर रहा हो। समझदार माँ बाप और बुद्धिमान शिक्षक बालक के इस प्रयास में उसकी सहायता करते हैं। उन्हें उसकी कठिनाइयों का अनुभव होता है क्योंकि उसके लिए तो यही वास्तविक कठिनाइयां हैं। यदि कोई सहानुभूति व्यक्ति उसे मात्र आलसी समझे तो उसे भारी दुख होगा। संभव है उसका शरीर इतना विकास उन्मुख हो की उसके सारे अव्य उस विकास के कार्यान्वयन में व्यस्त हो, शिक्षकों के लिए या आवश्यक है। कि वह अपने शिष्य को उसकी शिथिलता ए और त्रुटियां बताने की अपेक्षा यह कहकर प्रोत्साहित करें कि तुम्हारा सृजन विफलता और निराशा के लिए नहीं बल्कि सफलता और प्रसन्नता के लिए हुआ है। तुम्हें इसलिए उत्पन्न किया गया है कि तुम विश्व में ऊंचे हों और उन्नति करो, इसलिए नहीं कि तुम छिपे छिपे हैं। फिर वो हर गाड़ी क्षमा याचना करते रहो और स्वयं को अयोग्य समझकर बैठे रहो। उन्हें तो बताना चाहिए कि तुम यह काम कर सकते हो। या नहीं की तुम ये काम नहीं कर सकते। माता पिता को बालक के मस्तिष्क में भय की अपेक्षा, साहस और शंका के स्थान पर आत्मविश्वास उत्पन्न करना चाहिए। यदि वे इस प्रवृत्ति को ग्रहण करेंगे तो थोड़े ही दिनों में उन्हें ज्ञात हो जाएगा की उनका बालक कुछ से कुछ बन गया है। उसके विचारों और अभिलाषाओं में क्रांति उत्पन्न हो गई है। जब वह निराशा और थकन की बजाय आशा और उत्साह, शंका के स्थान पर आत्मविश्वास और भय के बदले साहस और स्वतंत्रता का बीजारोपण करेंगे तो वह बालक के जीवन की एक बहुत बड़ी समस्या का समाधान कर लेंगे। अधिकतर माता पिता और शिक्षकों को इस बात का ज्ञान है कि जब बच्चों की प्रशंसा की जाए उनको प्रोत्साहित किया जाए तो वे सैनिकों की भाँति भागमभाग और चुस्ती और चालाकी से काम करते हैं। यदि उत्तम परिणाम प्राप्त करने हो तो उनके मार्ग में कोई बाधा नहीं होनी चाहिए। गुरु और शिष्य के बीच किसी प्रकार की कटुता। नहीं होनी चाहिए। शिष्य सर्वदा उन गुरुओं से आघात प्रेम करते हैं जो कृपालु और दूरदर्शी होते हैं, लड़कों के काम में उनकी स्थितियों में रुचि लेते हैं, किंतु जो शिक्षा को स्वभावी, डांट डपट करने वाले और कठोर हृदय के होते हैं, उनकी सूरत देखते ही विद्यार्थियों के मन में उनके प्रति गलानी दो वैमनस्य उत्पन्न हो जाता है और यह बात प्रायः उनके प्रगति पथ में बाधक से धोती है। बुरा कार्य करने पर बालक को तुरंत दोषी ठहरा दिया जाता है। उसको उलाहना दिया जाता है, किंतु जब वह कोई अच्छा काम करे तो उसकी सराहना नहीं की जाती। शाबाश या वाह वाह कह कर उसको प्रोत्साहन नहीं दिया जाता और इसी के फलस्वरूप बालक का कोमल हृदय टूट टूट हो जाता है। ये दीक्षा का उचित ढंग नहीं, जो भावी जीवन में उसके लिए भारी कठिनाइयों का कारण बन जाता है। एक माँ ने प्रोत्साहन के नियमों पर अपने बच्चों को दीक्षा और उनका पालन पोषण किया। जब कभी उसका कोई बच्चा अच्छा और प्रशंसनीय कार्य करता तो वह तुरंत उनको सराह दी। जब उसका कोई बच्चा कोई शुभ काम करने की चेष्टा करता तो वह उसके उस प्रयास की प्रशंसा करती और कहती की इस प्रकार मीरा अपने बच्चों पर उन माताओं से अधिक प्रभाव है जो अपने बच्चों को हर समय झड़ती घूरती और बुरा भला कहती रहती है। बड़े होकर भी उसके बालक अत्यंत सुसवा, भावी और आज्ञाकारी पुत्र सिद्ध हुए। हर समय बालकों को नहीं नहीं ऐसा मत करो कहने से। वे सा हसीन और डरपोक हो जाते हैं। उनकी योग्यता और शक्ति क्षीण हो जाती है। जो लोग बालकों के स्वभाव से अनभिज्ञ हैं, उनके निष्ठुरता और मारपीट ने कतिपय प्रखर बुद्धि और उज्ज्वल मस्तिष्क वाले भावुक बालकों को विनाश तक पहुंचा दिया है। विद झिड़कियों घुड़कियों और मारपीट से उन्हें आज्ञाकारिता का सज्जनता का पाठ सीखाना चाहते हैं। यदि वे नहीं जानते कि ऐसा करने से अनंतता बुद्धिमान और उद्यमी बालक भी आलसी और ढीठ बन जाती। बहुत कम माता पिता और शिक्षा के जानते हैं कि एक दुबले पतले, कोमल और लजीले बालक से किस प्रकार बड़े से बड़े काम को लिया जा सकता है। ऐसे बच्चे जो साधारणतया दुर्बल होते हैं, बहुत जल्दी बात बात पर बिगड़ जाती है। अतः उनके स्वभाव को भली प्रकार समझ लेना घरवालों के लिए अतिशय कठिन होता है। बहुधा उनकी माताएं भी उनके स्वभाव से परिचित नहीं होती और गलती कर जाती है। ऐसे माता पिता भी है विशेषता या माताएं जो बच्चे की चूक या किसी अपराध पर दूसरों के सामने उसे दंड देना आवश्यक समझती है क्योंकि उनके विचारानुसार ऐसा करना बालक के लिए लाभकर होता है जिसे व्यक्ति ने स्वयं लग जाए या पश्चाताप का अनुभव नहीं किया वह बालक की उस रुष्ट ताया पीड़ा का अनुभव नहीं कर सकता, जो उसे व्यवहार के कारण सहन करनी पड़ती है। जिन बालकों को दूसरों के सामने इस प्रकार अपमानित किया जाए, वे कई कई दिन तक उदास और खिन्न रहते हैं। एक बार किसी शिक्षिका ने एक बालक को पूरी कक्षा के सामने एक कहकर गोद में बैठा लिया। तुम अभी दूध पीते बच्चे हो, आओ तुम्हें गोद में ले लो। इस पर सारे विद्यार्थियों ने ठहाका लगाया। उस लड़के को इस बात का इतना दुख हुआ कि वह कई मास उदास, उदास रहा और किसी से आंख मिलाकर बात ना करता था। तथ्य यह है की अधिकतर माता पिता और शिक्षक अपने बालकों और शिष्यों की कठिनाइयों का अनुमान नहीं लगाते और वे बालक बहुत जल्दी हतोत्साहित हो जाते हैं। यदि उन्हें बार बार अयोग्य और निकम्मा कहकर पुकारा जाएगा तो उनका दिल टूट जाएगा और वो किसी प्रकार की चिंता या पीड़ा का सामना करेंगे तो क्योंकि ये उनके लिए अपने ढंग की पहली मुसीबत होती है और वे संसार के उतार चढ़ाव से अनभिज्ञ होते हैं। अतएव अपने छोटे से दिल को ये कहकर सांत्वना नहीं दे सकते की ऐसा हुआ ही करता है। निजी मीठी बातों और भाषा के माधुरे से बालकों के अंदर ऐसी शक्तियां उत्पन्न की जा सकती है जिन पर स्वास्थ्य, सफलता और साहस निर्भर करता है। हम में से अधिकांश इस बात को जानते हैं कि हमारे वातावरण, हमारे साहस, दृढ़ संकल्प और आशा का हमारी शक्तिओं और योग्यताओं पर कितना प्रभाव पड़ता है। यदि बाल्यावस्था में साहस, प्रसन्नता और हर्ष के अव्यवों को विकसित किया जाए और उन पर ज़ोर दिया जाए तो हम अपने जीवन की दिशा मोड़ सकते हैं। हम वर्षों मलिनता, उत्साह, हीनता और आत्मिक वेदना और निराशा के कारण रुक रुक कर नहीं जाएंगे। बल्कि हमारी चाल में दृढ़ता, स्थिरता और मजबूती आ जाएगी। प्रत्येक दयावान और सहानुभूतिशील माँ अपने पुत्र की चोट को अच्छा करने के लिए हर वक्त अपने विचारों द्वारा उस पर प्रभाव डालती है। वह बालकों के पैरों और उसकी चोट को चूमकर उसे ये कहती है की अच्छा हो गया। ऐसा करने से बालक को ना केवल संतोष प्राप्त होता है बल्कि वास्तव में उसे विश्वास हो जाता है कि माँ का चुम्बन घाव का इलाज है। माँ हर घड़ी बीड़ आओ और उसके दुखों को। अपने विचारों द्वारा दूर करती रहती है। जो पिता अपने बालकों को साहसी और बलवान देखना चाहता है, उसे चाहिए कि वह हर समय पराक्रम और बहादुरी की ओर ध्यान दें। जो कुछ दूसरों को विचारों द्वारा बताया जाता है, उसमें वहाँ वैसी ही योग्यता उत्पन्न कर सकता है। पिता को चाहिए कि वह पुत्र को पराक्रमी, बलवान, बहादुर और अपने ऊपर विश्वास करने वाला समझे। कौन नहीं जानता कि इस आयु में जबकि प्रत्येक बात हृदय पर अंकित हो जाती है, जो चित्र बालक के सामने रहता है, उन्हीं सांचों में उसका जीवन ढलता है। क्रोध, रोष, टि, आलोचना और धिक्कार बालक के हृदय में कभी भी अच्छे और। सद्गुण उत्पन्न नहीं कर सकती। 50 वर्ष पूर्व जब लोगों का ध्यान अधिकतया गलत ढंग से बुरा ई और दूर जनता की ओर दिलाया जाता था, धार्मिक भयावह परिणामों का उल्लेख करते थे, जो बुरे काम करने वालों के सामने आएँगे। वे उस समय राष्ट्र विनाश और लोगों की गिरावट का जिक्र करते थे। किंतु आप विचारों ने पलटा खाया है? अब उनके उपदेशों में जनता के सद्गुणों के सुपरिणाम अधिक यह बताए जाते हैं और दुर्गुणों का या पाप का उल्लेख कम होता है। इस युग में लोगों को अपनी भयानक त्रुटियों के दुष्परिणाम उतने नहीं बताए जाते। आप पुण्य को बढ़ा चढ़ाकर बताया जाता है और पांव की ओर यदा कदा ही ध्यान किया जाता है। माता पिता का हृदय चुंबक की भांति होता है। वहाँ बालक की प्रकृति और स्वभाव से आकर्षण द्वारा वही सब कुछ प्राप्त करता है जो विचारों के द्वारा बालक के मानस पटल पर अंकित किया जाता है। यदि बालक के हृदय पट्ट पर यथा समय सदाचार। सुभिक्षा दानशीलता, प्रमाणिकता, सत्य, परिश्रम और प्रसन्नता के विचार प्रकट होते रहते हैं तो विश्वास किया जा सकता है कि युवा होने पर वह वालक सफलता और प्रसन्नता का अधिकारी बनेगा। बालक के आत्मविश्वास को हर प्रकार से बढ़ाना चाहिए। किंतु इतना भी नहीं कि उसे अपनी योग्यता और पात्रता पर गर्व हो जाए और वह इतराने लगी बल्कि उसके रोम रोम में यह विचार उत्पन्न कर देना चाहिए। कि माता पिता उसके लिए ईश्वरीय देन है और उसे सारी योग्यता और शक्ति प्रदान करने वाला परम पिता परमेश्वर है। यदि माता पिता बालकों के आत्मिक प्रकृति से अपील करें और उन्हें ईश्वर की एक पवित्र दिन समझे तो उनके बच्चे अत्यंत योग्य, बुद्धिमान और सदाचारी बन सकते हैं। ये कितनी विचित्र बात है कि किंडरगार्डन शिक्षा प्रणाली के द्वारा बच्चों को खेल खेल ही में सब कुछ सीखा दिया जाता है। पराक्रम और बहादुरी के खेलों से भी साहस और पौरुष सीखते हैं। न्याय के खेलों से न्याय वादिता नैतिक खेलों से उनका स्वभाव और आदतें सुधर जाती है। गरीबों के बच्चे जिनका पालन पोषण, निरक्षरता, गंदगी और दरिद्रता के वातावरण में होता है, जिनको संसार की अच्छी और ऊंची बातों का ज्ञान तक नहीं होता। जब सामाजिक और नैतिक खेल खेलकर घर जाते हैं तो वे अपने मस्तिष्क में नए विचार लेकर जाते हैं। वे विनम्र और स्वभाव ही बन जाते हैं और हर किसी को झुककर अभिवादन करते। उनके माँ बाप को यह स्वीकार करना पड़ता है कि किंडरगार्डन शिक्षण पद्धति से प्रभावित होकर अधिकतर बालक अपने घरों की कायापलट कर देते हैं। महत्वपूर्ण बात उसके स्वभाविक यथार्थ और हर्ष उत्पादक विचारों की अभिव्यक्ति को प्रोत्साहन देता है, किंतु बहुत कम बच्चों की शिक्षा दीक्षा स्वाभाविक ढंग से की जाती है। ताकि उनके स्वाभाविक विकास में कोई बाधा या उनके अव्यवों की वृद्धि में कोई रोक टोक ना हो, उन्हें अपने हृदय की बात स्पष्ट रूप से और इच्छा के विरुद्ध बलात् कुछ काम लिया जाए तो उनके मानसिक अंग शिक्षण या क्रिया विहीन हो जाते हैं। जब आप देखें कि बच्चा अपने काम या पढ़ाई में रुचि नहीं लेता तो समझ लीजिए कि कोई ना कोई दोष उसने नी संदेह है क्योंकि हर बात में रुचि लेना बालक के लिए ऐसा ही स्वाभाविक और आवश्यक है। जैसा कि पक्षियों के लिए चहचहाना यदि आप यह चाहते हैं कि वह अपने अध्ययन और मैं बहुत शीघ्रता से प्रगति करे तो उसके मस्तिष्क से अध्ययन या काम को कोई विपत्ति समझने का विचार दूर करने की चेष्टा कीजिए। प्रेसिडेंट इलियट का कथन है कि आधुनिक शिक्षा प्रणाली का उद्देश्य यह है कि उसकी प्राप्ति में प्रसन्नता और हर्ष का प्रदर्शन हो। कहना होगा कि स्वतंत्रता इस हर्ष के लिए अवश्यंभावी है? हमारी शिक्षा प्रणाली का सबसे बड़ा दोष यह है कि स्कूलों में बच्चों को इतना काम करने के लिए दिया जाता है जिसे वह भलीभाँति संपन्न नहीं कर सकती। यह एक अक्षम्य पाप है। हमारा आदर्श प्रसन्नता को बढ़ाना और जीवन को सुखद बनाना है और यदि हम इस आदर्श पर दृढ़ता से डटे रहे तो कोई कारण नहीं कि हम उसे प्रार्थना कर सकें। इसकी प्राप्ति के लिए हमें आधुनिक शिक्षा प्रणाली और अन्य अनेक मूल्यों को बदलना होगा। जिससे अनुदार लोग निश्चय ही नाक भौं चढ़ाएंगे। परंतु यदि हमें सुखद परिणाम प्राप्त करने है तो ऐसे लोगों की परवाह किए बिना आगे बढ़ना होगा। यहाँ तक कि हम अपने लक्षित स्थान को पहुँच जाए, अपने आदर्श को सदैव अपने सामने रखें क्योंकि यदि आप शक्ति और स्थिरता से अपने जीवन के लक्ष्य का पालन करेंगे तो दुनिया स्वमेव आपकी उन्नति का मार्ग प्रशस्त कर देगी, क्योंकि वह ऐसे ही लोगों का सम्मान करना जानती है। यदि आप कुछ भी अस्तित्व रखते हैं, यदि आप के अस्तित्व की कुछ भी वास्तविकता है तो आप जीवन की निकृष्टतम परिस्थितियों में भी निर्वाह कर सकते हैं। यदि कोई घटना या दुर्घटना आपके आदर्श को कम करके आंके तो भयभीत होने की आवश्यकता नहीं। आप तो केवल चिंताजनक विचारों से दूर रहें, किंतु अपने आदर्श पर दृढ़ता से डटे रहे। आपके आदर्श को परिवर्तित करने का अर्थ यह है ये आपका कोई आदर्श है ही नहीं। और यह अत्यंत भयंकर स्थिति है, जो किसी भी व्यक्ति के जीवन में उत्पन्न हो सकती है। मानो उसके जीवन नौका की पतवार खो गई हो। वह चरम बिंदु से एकदम नीचे गिर गया हो। यहाँ तक कि व साधारण और निम्न कोटि का जीवन अनिशा से व्यतीत करने पर विवश हो जाता है। वह अपने अस्तित्व को जीवन सागर की लहरों के सुपुर्द कर देता है ताकि वह उसे जिधर चाहे वह आकर ले जाएं। जबकि स्वयं व जीवन के अधिकारों को। उदासीनता पूर्वक सहन कर रहा होता है उसे अपने जीवन के उद्देश्यों और लक्ष्यों के निम्नतर होने का अनुभव होता है। तथापि उसमें वह उत्साह और उमंग नहीं होता जिसके बल पर मानव उच्च लक्ष्यों को प्राप्त कर लेता है। खेद है इस विनाशकारी स्थिति पर जो अंदर के समाप्त होने पर प्रकट होती है, शायद हमारे आदर्श का उज्ज्वल सितारा वास्तव में मलिन नहीं पड़ता, अपितु हमारी दृष्टि के सम्मुख पर्दा पड़ गया है। इस समय हमें रुककर अपने अंतःकरण से प्रश्न करना चाहिए कि क्या हम अपने जीवन उद्देश्य से आगे तो नहीं निकल गए? क्या हमारे साहस से हमारा उद्देश्य पीछे तो नहीं रहा? एक चरम लक्ष्य है जो अपने जीवन में हमारे सामने आ सकता है। इस समय हमें अपने आगे पीछे देखना चाहिये। जियो जो जीवन के राजपथ पर हमारी दृष्टि व्यापक होती जाती है, हमारे उद्देश्य भी उच्चतर और महान तर होते जाते हैं, किंतु अच्छा यही है की हमारे लक्ष्य गंभीर और संतुलित होने चाहिए। उनमें किसी प्रकार की कमी वृद्धि नहीं होनी चाहिए। और भी संतुलन के मार्ग से हटने ना पाए। ईश्वर से प्रार्थना की जानी चाहिए और अपनी कल्पना को व्यवहार में परिणत किया जाए, फिर उत्साह और साहस के बाजुओं के साथ अपने पंख ऊंचे करने चाहिए। केवल स्वप्निल संसार में विचरण ना किया जाए बल्कि आँखों के साथ विवशता के तथ्यों का पर्यवेक्षण किया जाए। अंततः सर्वश्रेष्ठ और सदाचारिता पूर्ण चरित्र पर अपने जीवन को ढालने का प्रयत्न करें। प्रख्यात रशीद धाराप्रवाह वक्ता और उदार दलीय राजनीति नेता सर्विन वर्ण लॉसन का कथन है कि जो लोग जीवन यात्रा आरंभ करें, वे मेरे इस उपदेश को ध्यानपूर्वक सुनें कि जब तक वे अपने जीवन का लक्ष्य स्थिर ना कर लें, एक डग भी आगे ना चले और जब वे अपना जीवन उद्देश्य निश्चित कर लें। तो फिर पीछे ना हटें ताकि उनका लक्ष्य प्राप्त होने से रह ना जाये। उन्हें इस बात की तनिक चिंता ना करनी चाहिए कि संसार उसे सफलता के नाम से पुकारता है या दुर्भाग्य या विफलता कहता है। सुप्रसिद्ध अमेरिकी लेखा और दार्शनिक इमर्शन ने कहा है कि जो कुछ तुम्हारे हृदय में है, वही तुम्हारे होंठो पर होना चाहिए। यदि उसे कोई ईश्वर नहीं मिलता तो उसका कारण यह है कि स्वयं हमारे मन में कोई ईश्वर नहीं यदि तुम्हारे अंदर स्वयं महानता के चिन्ह लुप्त है। तो संसार उन्हें ढूंढ निकालेगा और तुम्हें सत्ता के सिंहासन पर आसीन करेगा। परंतु यदि तुम टूटे फूटे सपने देखते रहते हो और तुम्हारे विचार छिन्न भिन्न और हे है तो तुम जीवन भर कुछ नहीं कर सकते और संसार में। तुम्हारा कहीं मानना होगा। यह भी सत्य है कि हमारा जीवन उद्देश्य चिरस्थायी नहीं बल्कि वह परिस्थितियों के साथ परिवर्तित होता रहता है। कल जो हमारा उद्देश्य था वह आज हमारे सामने नहीं बाल्यावस्था, युवावस्था और वृद्धावस्था में मानव के जीवन उद्देश्य विभिन्न होते हैं। इस परिवर्तन में अधिकतर अनुभव का हाथ होता है और इस स्तर के परिवर्तन से भी ऐसा हो जाता है। अधिकतर वृद्ध लोगों का कथन है। की आँधी आयु तक अपने और अपने माता पिता के लिए जीवित रहता है और उसकी शेष अाधी आयु अपने संतान के लिए व्यतीत होती है। उसके प्रयत्नो का झुकाव निश्चित रूप से उस ओर होता है कि उसके बच्चों की दशा बेहतर हो और उनका भविष्य उज्वल हो। पिता इस विचार से कार्य करता है की जब उसकी मृत्यु हो जाएगी तो उसके बाद पुत्र उसका स्थान ले लेगा। इसलिए पिता का युवावस्था का उद्देश्य वृद्ध होने पर बदल जाता है। लेकिन लक्ष्य ऐसा भी है जिसमें किसी प्रकार के परिवर्तन की आवश्यकता नहीं है और वह है सच्चे उल्लास और उज्ज्वल चरित्र का आदर्श बाल्यावस्था और युवावस्था की सीमाओं को पार करने के बाद जब मानव वृद्धावस्था में प्रवेश करता है। और उसका शरीर क्षीण और दुर्बल हो जाता है तो उसे समय उल्लास एक ऐसी वास्तविक और स्थायी संपत्ति है जो उसका साथ देता है। या एक ऐसा अमित अनंत भंडार है जो इस समय की टूट फूट और प्रभाव से सर्वदा बचा रहता है। यह एक ऐसा आदर्श है जो नश्वर नहीं, यह एक ऐसी वस्तु है जिसका फल इस लोक में तो मिलता ही है, परलोक में भी अवश्य मिलेगा या एक ऐसी नश्वर देन है जिसके समूह संसार के अन्य सारे उपहार और संपत्तियां हैं। आत्मा की योग्यता की परीक्षा उस समय होती है जब उससे बलिदान मांगा जाता है और यह देखा जाता है कि वह आदर्श प्राप्ति के लिए कितना बलिदान देने के लिए तैयार है। आपने संदेह या कहें कि मैं अमुक काम करने के लिए तैयार हूँ, किंतु प्रश्न यह है कि आप अपने उद्देश्य प्राप्ति के लिए प्रयास में कितनी बलि दे सकते हैं? कथनी और करनी में बड़ा अंतर है। किसी वस्तु को प्राप्त करने की मात्र इच्छा प्रकट करना और उसे पाने के लिए दृढ़ संकल्प करना चाहे मार्ग में कितनी ही बाधाओं का सामना क्यों ना करना पड़े। इन दोनों में भारी अंतर है। बहुत से लोग ठंडी आए, भरते हैं, कराहते हैं और कहते हैं कि यदि हमें सांसारिक झंझटों से मुक्ति मिल जाए, पेट की समस्या मार्ग में बाधक न हो, दारिद्रता का भय ना हो, बिमारी की आशंका ना हो तो हम अनेक महान कार्य करके दिखा सकते परंतु सत्य तो यह है और इसमें रत्ती भर भी अतिशयोक्ति नहीं की। काम करने वालों ने संसार के बड़े बड़े कार्य, कष्ट और संकट और दुख पीड़ा से घिरकर किए हैं और यह काम ऐसे लोगों ने संपन्न किये हैं जो एक और तो अपने शारीरिक शक्ति और मानसिक शक्ति के बल पर जीव को पार जन के लिए संघर्ष करते हैं और दूसरी ओर उन्हें प्रतिकूल स्थितियों में रहकर अपने जीवन के उद्देश्य की प्राप्ति में सचेष्ट रहते हैं। जिन नवयुवकों और बुद्धि की चारों ने सभ्यता या संस्कृति को प्रगति की ऊंची सोपान पर पहुंचाया है और मानवीय संस्कृति को जिला या है उनका संबंध अवकाश चाहने वाले लोगों से नहीं था, बल्कि वहाँ उन संस्थाओं से संबंध रखते थे जो जीवनोपयोगी वस्तुओं की प्राप्ति के लिए धक्के खाती और संघर्ष करती हैं और जिन्हें जीवन की गहन व्यस्तता में। बहुत कम अवकाश मिलता है इसका कारण तो विदित नहीं किंतु साधारण दिया या विचार है। की व्यस्त और सक्रिय जीवन प्रायः मानव प्रकृति के कविता प्रेम को समाप्त करते हैं व सौंदर्य और लाल एपी की अनुभूति को नष्ट कर देता है। बहुत ही चालाक व्यक्ति जीवन की मृदुल ताओं और ललित ताओं की तह तक पहुँच सकते हैं। किंतु वास्तविकता यह है कि बहुदा अत्यंत सुंदर और ललित चमत्कार ऐसे पुरुषों और स्त्रियों ने कर दिखाए जो संकट और विपत्तियों में घिरे हुए थे। और जिन्हें गैनिक व्यस्तताओं में सिर खुजाने की भी फुर्सत नहीं मिलती थी। संसार की गति पर सर्वश्रेष्ठ और महानतम पुस्तकें, दरिद्रता और विपत्ति के दिनोंमें ही लिखी गई है। कुछ शाहकार ऐसे लोगों ने प्रस्तुत किए हैं, जिन्हें दय नंदनीय दुख भरे जीवन में संतोष की सांस लेने का अवकाशप्राप्त ना हुआ। जीवनोद्देश्य या आदर्श अनश्वर होता है। स्थितियों के कारण आदर्श नष्ट नहीं हो सकता, ना उसकी प्यास बूझ सकती है। हाँ, यदि इंसान ना चाहे तो वह कुछ भी नहीं कर सकता। बहुत कम लोग ऐसे हैं जो जीवन को ललित कला मानते हैं। बहुमत ऐसे व्यक्तियों का है जो जीवन के कार्यों को बहुत अनिशा और उकताहट के साथ पूरा करते हैं। वे अपने बहुमूल्य समय और प्रयत्नो को अपनी वासनापूर्ति और निम्न उद्देश्यों की प्राप्ति में नष्ट कर देते हैं, जबकि उन्हें अपनी हिम्मत तो और प्रयत्नो का ऊंचे और पवित्र उद्देश्यों की प्राप्ति में लगाना चाहिए। या मूल्यहीन और निरर्थक है कि हम अपने मूल्यवान समय को मात्र नश्वर और भौतिक वस्तुओं पर नष्ट कर दें और अपने अनश्वर और चिरस्थाई को भूल जाए, उसे वीं स्मृति के गर्भ में पहुंचा दे। तथ्य यह है कि हमारा अधिकांश समय इन्हें नश्वर और क्षणभंगुर वस्तुओं की प्राप्ति में नष्ट हो जाता है और फिर भी हम आगे बढ़ते रहते हैं और अभिलाषा रखते हैं। की काश हम अपने आदर्श को प्राप्त कर लेते। हम धन दौलत के लिए बड़े से बड़ा बलिदान दे सकते हैं। किंतु अपनी आत्मा की उच्चता, मेहता और व्यापकता के लिए व्यावहारिक रूप में कुछ भी नहीं करते। हम जानते हैं कि किसी वस्तु को प्राप्त करने की मात्र इच्छा जिसके साथ व्यवहार ना हो, रेल की इंजिन की गर्म पानी की तरह है, जीवन के रेल को चलाने के लिए उद्देश्य और संकल्प खौल अब की सीमा तक होना चाहिए। यदि गर्म पानी से ही इंजिन को चलाना चाहेंगे तो वहाँ एक मेल तो क्या एक गज भी नहीं चलेगा? हमारी दृष्टि सदैव छोटी छोटी वस्तुओं पर रहती है जो हमारे आसपास होती है, परंतु महान और उच्च उद्देश्य बहुत दूर दिखाई देते हैं। यही कारण है कि निम्न वस्तुएँ और साधारण उद्देश्य हमारे महान और उच्च उद्देश्य के मार्ग में बाधक हो जाते हैं और यही कारण है कि हम उच्च और महान आदर्श के सामने रुपए की ओर से आंखें बंद नहीं कर सकती। हमें हर स्थान पर समुचित मार्ग पर चलने वाले इंसान अत्यन्त निम्न कोटि का जीवन व्यतीत करते हुए मिलते हैं। वे अपने कार्य में हेड क्लर्क बैरिस्टर वकील, अध्यापक या इंजीनियर के रूप में सफल होते हैं, किंतु एक मानव की दृष्टि से वे असफल और अभाग्य रहते हैं। प्रत्येक स्थान पर ऐसे लोग देखने में आते हैं जो है और साधारण वस्तुओं के लिए उच्च और महान जीवन उद्देश्य की बलि दे देते हैं। वे अपने सर्वश्रेष्ठ स्वाभाविक योग्यताओं को सतही और भौतिक लाभ की वेदी पर बलि दान कर देते हैं। अपने भव्य 100 भावी उद्देश्यों को कुछ सुनहरी और रुपहली सिक्कों के बदले बेच देते हैं। यह सत्य नहीं कि लोग वस्तुतः विनम्रता और नैतिकता पर धन को प्रधानता देते हैं। अपने जीवन के स्वप्न की पूर्ति कुछ ₹1000? एकत्रित करने और संपत्ति बनाने तक सीमित समझते हैं, अपितु तथ्य यह है कि वह साधारण प्रसिद्धि और फैशन परिस्थिति के उन्माद में लोक कल्याण और सिद्धि के मार्ग से भटक जाते हैं। दूसरे शब्दों में हम यूं कह सकते हैं कि वे उच्च आध्यात्मिक आदर्श की अपेक्षा संसार की साधारण डगर पर चल खड़े होते हैं, परंतु मानव और उसका जीवन आदर्श वस्तु ता धन संचय और चांदी सोने के समूह के सामने। एक अत्यंत बहुमूल्य रत्न है जिसकी चमक के समूह सब कुछ ही है। जिन लोगों के नाम लोक कल्याण के आकाश पर सूर्य बनकर चमके हैं, उनके समूह सर्वदा उच्च लक्ष्य और आदर्श रहे हैं। उन्होंने कभी अपने उद्देश्य से मुँह नहीं मोड़ा बल्कि स्थिरता और दृढ़ता के साथ उस पर डटे रहे और अपनी भरसक शक्ति उसकी प्राप्ति में लगा दी। ऐसे ही सक्रियता और निष्ठा के साथ जीवन उद्देश्य की प्राप्ति का प्रयत्न करना स्वमेव एक महान कार्य है। यदि आप उस आह्वान को सुनी जो सदैव आपको उस मार्ग की खोज के लिए तत्पर करता है तो उचाई की ओर जाता है यदि आप उस ध्वनि को ध्यानपूर्वक सुनें और उसके अनुसार व्यवहार करि जो आपको आगया देती है की गिरावट के बजाय ऊँचाई पर दृष्टि रखो जो आगे डग भरने और उन्नति करने के लिए। अनु प्रेरित करती है तो आपका जीवन कभी असफल नहीं हो सकता, चाहे संसार और संसार वाले कुछ ही क्यों ना कहें। मुझे अटल विश्वास है कि वह युग आने वाला है जब लोगों की सेवा और सुधार के लिए अपना व्यक्तित्व, अपनी माता, अपनी संतान की बलि सबसे बड़ी संपत्ति समझी जाएगी और इस प्रकार की बलि देने वाले व्यक्ति का जीवन अत्यंत सफल समझा जाएगा। आज संसार महात्मा गाँधी और मिस्टर जिन्ना को इसी कारण सफल व्यक्ति समझता है कि उन्होंने तन, मन, धन सब कुछ अपनी जाति को अर्पित कर दिया। वास्तविक और अनश्वर संपत्ति के स्वामी विवेक ति है, जो जीवन को सुखद बनाने और मानवता के कल्याण के लिए प्रयत्न करते है, ना कि वे लोग जिन्होंने स्वार्थ, धोके और आडंबर द्वारा रुपए पैसे के ढेर एकत्रित कर लिए हैं। जो व्यक्ति वस्तु का दान शील और पर मारती है, वह पारस पत्थर की भाँति है। पारस जीस को स्पर्श करता है। उसे सोना बना देता है जो कोई ऐसे व्यक्ति की संगति में रहता है वह अनुभव करता है कि उसने कुछ खोया नहीं वरन पाया है। उसका जीवन सुधर गया है। एक ऐसे यंत्र का आविष्कार हुआ है जिसके पुर्जे इतने कोमल और ललित बनाए गए हैं कि उनके द्वारा शारीरिक शक्ति के कम से कम व्यय का अनुमान किया जा सकता है। किंतु दुर्भाग्य नहीं तो और क्या है कि गुणों का अनुमान करने और सफल जीवन को मापने का आज तक कोई यंत्र नहीं बना? यदि कोई ऐसी कल संसार में बन जाती तो कई लखपति अपना नाप देकर आग बबूला हो जाते और अनेक राष्ट्रीय सेवक और नेता अपने सक्रिय प्रयत्नो और सेवाओं का भव्य नाप देखकर चकित रह जाते। मेरा विश्वास है कि वह समय समीप है जबकि पीले, रद्द, विशाल और गगनचुंबी भवन बड़ी बड़ी संपत्तियां विस्तृत और व्यापक जा गिरे और बड़े बड़े कारखाने, वास्तविक संपत्ति और धन के प्रचलित मानदंड नहीं रहेंगे। वरण मानसिक और नैतिक विस्तार उनका स्थान लेंगे, जिनके कारण किसी व्यक्ति का जीवन अधिक लाभदायक और बेहतर हो सकता है। किसी व्यक्ति की महानता का अनुमान उसकी आत्मा के मापदंड से किया जाएगा। सज्जनता, उदार हृदयता सभ्यता और संस्कृति, उसकी महत्ता और उच्चता का मानदंड होंगे। ना की एक मोटी सी चेकबुक जिसमें से वह रुपयों के चेक काटकर अपने विरोधियो के मुँह बंद कर सकता है। फिलिप ब्रुक्स का कथन है कि प्रत्येक व्यक्ति को जीवन में एक बार तो अवश्य पूर्ण जीवन की कल्पना का स्वप्न दिखाई देता है। हमें अपनी वर्तमान परिस्थिति में यह अनुभव होता है की हमें क्या बनना है? ईश्वर ने हर मानवीय आत्मा में कोई ना कोई लक्ष्य छिपा रखा है। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में एक समय ऐसा आता है जबकि उसके हृदय में महान कल्याण या परमार्थ करने की अभिलाषा जागृत होने लगती है। उसके मस्तिष्क में श्रेष्ठ कार्य करने की प्रबल इच्छा उत्पन्न होती है और उसी समय इंसान के सामने उच्च जीवन उद्देश्य दृष्टिगोचर होता है। यदि कोई व्यक्ति दैनिक जीवन के झमेलों में उस समय की व्याकुल दशा को व्यावहारिक रूप दे दें और अपने जीवनों देश की प्राप्ति के लिए सर्वस्व उत्सर्ग करने को तत्पर हो जाए तो उस व्यक्ति का आदर्श बन जाता है और एक ऐसी। शक्ति का रूप धारण कर लेता है, जो एक बार तो समस्त संसार को झकझोर देती है और सब विस्मित रह जाते हैं। तो दोस्तों आपको ये ऑडियो कैसी लगी है? अपने सुझाव और अपने विचार मुझे कमेंट करके जरूर बताएं। यदि पसंद आई है तो उसे लाइक कीजिये अपने मित्रों के साथ इसे शेयर कीजिये। मिलती हूँ अगली ऑडियो में तब तक के लिए नमस्कार।","यह ऑडियो स्वेट मार्डन द्वारा लिखी गई किताब एवरी मैन ए किंग से लिया गया है जिसका अनुवाद है खुशी से कैसे जीना है आप इस ऑडियो को सुनकर अपने जीवन में निराशा से बाहर आ सकते हैं और कई आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं इसमें आपको हिंदी ऑडियोबुक, हिंदी ऑडियोबुक मिलेगी , हिंदी में ऑडियोबुक, प्रेरक ऑडियोबुक, प्रेरक ऑडियो, सर्वश्रेष्ठ हिंदी प्रेरक ऑडियोबुक, हिंदी में सर्वश्रेष्ठ प्रेरक ऑडियोबुक, हिंदी में सबसे बड़ी ऑडियोबुक, हिंदी में प्रेरणादायक ऑडियोबुक, हिंदी में प्रेरणादायक ऑडियोबुक, हिंदी में जीवन बदलने वाली ऑडियोबुक, हिंदी ऑडियोबुक ऑनलाइन, #हिन्दीऑडियोबुक, #मोटिवेशनलऑडियोबुक , #inspirationalaudiobookinhindi, https://www.meethivani.com/home" "हैलो दोस्तों, आज आप सुनेंगे मोनिका की आवाज़ में जैसा तुम सोचते हो पुस्तक की ऑडियो। सन् 1904 में लगभग एक अनजान अंग्रेज जेम्स एलन ने एक छोटी पुस्तक आसामान थिंक इट लिखी या पुस्तक विश्व भर में स्वयं सहायक पुस्तकों में से एक महान पुस्तक बन गई है। स्वयं को सामर्थ्य देना ज्यादा उचित वर्णन है, क्योंकि यह न केवल यह उजागर करती है कि हमारे सफलता की कुंजी हमारे स्वयं के मन में है, बल्कि यह भी दिखलाती है कि हम कैसे इन कुंजियों का इस्तेमाल करें। जिससे की उस महानतम संतुष्टि को प्राप्त कर सके जिसकी हमने कभी कल्पना की थी। इस संशोधित संस्करण में मार्क एलेन ने इस उत्कृष्ट प्रति का नवीनीकरण किया है। उसकी भाषा को बदला है जो पुरानी और अप्रचलित हो गई है और संदेश की स्पष्टता को प्रखर किया है। उन्होंने जैसा तुम सोचते हो का उद्देश्य सभी के लिए दर्शित किया है और विवरण किया है कि कैसे यह सिद्धांत। वास्तव में सर्व अलौकिक है और सब पर लागू होते हैं, चाहे उनका लिंग, उम्र, जाति, मत, सामाजिक वर्ग या शिक्षा। कुछ भी क्यों ना हो जैसा तुम सोचते हो एक साधारण लेकिन फिर भी शक्तिशाली इस मरण है कि हम जो भी प्राप्त करते हैं और जो भी प्राप्त करने में असफल होते हैं, वह हमारे अपने विचारों का साक्षात फल है। हम अपने भाग्य के निर्माता हैं। तो चलिए शुरू करते हैं भाग प्रथम विचार और चरित्र जैसा हम दिल और दिमाग से सोचते है। हम वैसे है इस मुहावरे में न केवल हमारा संपूर्ण अस्तित्व समेटा है। ये हमारे जीवन के हर एक दशा और परिस्थितियों के लिए पूर्ण रूप से सही तौर पर उपयुक्त काम करता है। हम वास्तव में वही है जो हम सोचते हैं, हमारा चरित्र हमारे समस्त विचारों का पूरा फल है, जैसा कि पौधा उपजता है और बिना बीच के नहीं उग सकता। इसीलिए हमारे हर कर्म हमारे विचारों के छिपे बीजों से उपजते हैं और बिना उनके नहीं प्रकट हो सकते या उन कर्मों पर भी उतना ही लागू होता है जिन्हें स्वतः प्रेरित और अपूर्व आयोजित कहा जाता है और उन पर भी जो सोच समझकर किए जाते हैं। गर्म विचार का मूल है और सुख दुख उसके फल है अतः हम अपनी उपज के मीठे और कड़वे फल अपने हाथों से चुनते हैं। हम जो है वह हमारे मन में उभरते विचारों द्वारा रचित और निर्मित है। यदि हम अज्ञानी और बुरे विचारों को पोषित करेंगे, शीघ्र ही दर्द उनका परिणाम होगा। यदि हमारे विचार सवस्थ और हितकारी है तो आनंद उसी तरह हमारा पीछा करेगा जैसा कि उजली धूप में परछाई हमारा पीछा करती हैं। पुरुष और स्त्री एक उन्नति है। नियम की ना की कौशल द्वारा रची गई कोई रचना और। ऐसा कारण प्रभाव विचार के छिपे लोक में उतना ही पूर्ण और दृढ़ है जितना की प्रकट और भौतिक जगत में है। महान और ईश्वरीय चरित्र किसी एहसान या संयोग से नहीं होता, बल्कि वह सही सोचने के लगातार प्रयत्न का और ईश्वरीय विचारों से एक लंबे अरसे से संबंध रखने का प्रभाव है। इसी प्रक्रिया के अनुसार नीच और पशु जैसे चरित्र वाले मनुष्य? लगातार पोषित किए जा रहे हैं। घृणित विचारों का नतीजा है। हम स्वयं द्वारा भले ही या बुरे इंसान बनते हैं, हम अपने विचारों की शस्त्र शाला में उन शास्त्रों को गढ़ते हैं जिनका इस्तेमाल हम अपना नाश करने के लिए करते हैं और हम उन उपकरणों को ही डालते हैं जिनका प्रयोग हम स्वयं के लिए आनंद और सामर्थ, शांति के स्वर्गीय भवन को बनाते हैं। सही चुनावों और अपने विचारों के सच्चे प्रयोग द्वारा हम दिव्य पूर्णता तक ऊपर उठते हैं, गालियों और अपने विचारों के गलत प्रयोग द्वारा हम पशुओं के भी नीचे के स्तर तक गिर जाते हैं। इन दोनों चरम रूपों के बीच में सभी स्तर के चरित्र है और हम ही उनके कारीगर हैं और उनके स्वामी भी हैं। इस युग में प्रकाशित और पुनः स्थापित आत्मा से संबंधित आकर्षक सत्यों में जो सबसे अधिक दिलों को खुश करता है या जो दिव्य वचन और विश्वास से भरा है वहाँ है तुम अपने विचारों के मालिक हो, अपने चरित्र को ढालने वाले हो और अपनी परिस्थिति, वातावरण और भाग्य के कारीगर और रचिता हो शक्ति, बुद्धि और प्रेम की सत्ता रखने वाले। और अपने स्वयं के विचारों के स्वामी के रूप में हर परिस्थिति की चाबी तुम्हारे हाथों में है और तुम में निहित है वह रूपांतरणकारी और पुनरुत्थान की शक्ति, जिसके द्वारा तुम स्वयं को वहाँ बनाते हो, जो बनाना चाहते हो तुम हर हाल में मालिक होते हो, यहाँ तक कि तुम्हारी सबसे कमजोर और दुराचारी अवस्था में भी। परंतु तुम्हारी कमजोरी और बेकद्री में तुम एक मूर्ख मालिक हो, जो अपनी गृहस्थी को गलत ढंग से चला रहा होता है। जब तुम अपनी दशा के बारे में सोचते हो और उस नियम को अपनी पूरी मेहनत लगाकर ढूंढ़ते हो, जिसपर तुम्हारा अस्तित्व बना है, तब तुम एक बुद्धिमान मालिक के नजरिये से अपनी शक्तिओं को बुद्धिमत्ता से निर्देशित करते हो और अपने विचारों को एक फलदायी रूप देने लगते हो। ऐसा होता है एक जागरूक मालिक। और अपने अंतर में विचारों के नियमों को खोजकर तुम भी एक जागरूक मालिक बन सकते हो। यह खोज प्रयोग आत्म विश्लेषण और अनुभव द्वारा ही की जा सकती है। बहुत ढूँढने और खनन द्वारा ही सोना और हीरा मिलता है, और यदि तुम अपनी आत्मा की खान में गहरा खो दोगे तो तुम अपने अस्तित्व से जुड़े हर सत्य को खोज पाओगे यदि तुम अपने विचारों को देखो। उन्हें नियंत्रित करो और उन्हें बदलो दूसरों की और अपने जीवन और परिस्थितियों पर हो रहे प्रभाव को देखकर, धैर्यपूर्ण अभ्यास और जांच द्वारा कारण और प्रभाव को जोड़ते हुए और अपने हर अनुभव को, यहाँ तक कि हर दिन के एकदम तुच्छ अनुभव भी स्वयं के विषय में जान पाने के लिए इस्तेमाल करो जिससे की वह समझ, बुद्धि और शक्ति तुम्हें प्राप्त हो जाए। तो तुम शायद बिना चूके इस सत्य को सिद्ध कर पाओगे कि तुम अपने चरित्र के बनाने वाले हो, अपने जीवन को सही ढांचे में ढालने वाले हो और अपने भाग्य के निर्माता हो। इस दिशा में यह नियम परम सत्य है कि जो खोजेंगे उन्हें मिलेगा। वे जो दस्तक देंगे उनके लिए दरवाजा खुलेगा, क्योंकि धैर्य, अभ्यास और निरंतर दृढ़ता द्वारा ही तुम ज्ञान के मंदिर में प्रवेश कर सकते हो। भाग द्वितीय परिस्थितियों पर विचार का प्रभाव तुम्हारे मन को एक बगीचे जैसा समझा जा सकता है, जिसे या तो बुद्धिमानी से जूता जा सकता है या उसे लापरवाही से जंगली तौर पर बढ़ने दिया जा सकता है, परंतु चाहे उसे जोता जाये या उसकी उपेक्षा की जाए, बहुत जरूर ही और अवश्य ही फलीभूत होगा। यदि कोई उपयोगी बीज उसमें नहीं बोई जाती तो बेकार के खरपतवार के बीज उसमें गिरेंगे और उसी प्रकार की उपज होगी। जिसतरह से माली अपने बगीचों को जोतते हैं उन्हें खरपतवार से दूर रखते हैं और उन फल फूल को लगाते हैं जिनकी उन्हें चाह होती है। उसी प्रकार तुम्हें भी अपने मन रूपी बगीचे की देखभाल करनी चाहिए। अनुचित दे कार और अशुद्ध विचारों को मन से निकाल फेंकना चाहिए और सही उपयोगी और शुद्ध विचारों के पूर्ण फल और फूलों को पोषित करना चाहिए। इस प्रकार की प्रक्रिया का पालन करते हुए तुम देर सवेर या ज्ञान पाओगे कि तुम अपनी आत्मा के प्रमुख माली हो, अपने जीवन के निर्देशक हो, तुम अपने में विचार के नियमों को प्रकट कर पाते हो और सदा बढ़ती सत्यता से यह समझ पाते हो कि कैसे विचार की शक्तियां और मन के घटक तुम्हारे चरित्र, परिस्थितियों और भाग्य का निर्माण करने में कार्यरत होते हैं। विचार और चरित्र एक है और क्योंकि वातावरण और परिस्थितियों द्वारा ही चरित्र स्वयं को प्रकट कर पाता है। इसलिए तुम हरदम पाओगे कि तुम्हारे जीवन की बाहरी परिस्थितियां तुम्हारी अंतर परिस्थिति के परस्पर संबंध और तालमेल में रहेंगी। इसका यह मतलब नहीं है कि किसी भी समय पर जैसी तुम्हारी परिस्थितियां हैं, वे तुम्हारे पूरे चरित्र को प्रदर्शित करती है। इसका अर्थ है कि वह परिस्थितियां तुम्हारी विचारधारा के किसी जरूरी पहलू से उस समय के लिए इतना करीब से जुड़ी है कि वे तुम्हारी प्रगति के लिए अत्यावश्यक है। आज तुम जहाँ हो वहाँ तुम्हारी सत्ता के नियम के कारण ही है। वह विचार जो तुमने अपने चरित्र में समा रखे है वह तुम्हें यहाँ लाये हैं। तुम्हारे जीवन की संरचना में सहयोग की कोई जगह नहीं है, परंतु सब कुछ। उस नियम का परिणाम है जो कभी चूक नहीं सकता। यह बात उनके लिए उतनी ही सही है जो अपनी परिस्थितियों के तालमेल से अलगाव का अनुभव करते हैं, जितना कि उनके लिए जो परिस्थितियों से संतुष्ट रहते हैं। एक प्रगतिशील और जागरूक सत्ता के रूप में तुम जहाँ पर हो वहाँ इसलिए हो जिससे की सिक्स को और आगे बढ़ सकू और जैसे तुम परिस्थिति में निहित आध्यात्मिक शिक्षण को सीख लेते हो। और निकल जाती है और दूसरी परिस्थितियों के लिए जगह बनाती है। तुम तब तक परिस्थितियों द्वारा मार खाते रहोगे जब तक तुम इस में विश्वास करते रहोगे कि तुम्हारी बाहरी परिस्थितियों द्वारा प्रभावित प्राणी हो। परंतु जब तुम्हें यह एहसास होगा कि तुम एक रचनात्मक शक्ति हो और उस छिपी भूमि और बीज जिससे परिस्थितियां पनपती हैं, पर अपना अधिकार जमा सकते हो, तब तुम सही मायने में अपने स्वामी बन जाते हो। वे समस्त लोग जिन्होंने आत्म परीक्षण और आत्म संयम का अभ्यास किया है, यह जानते हैं कि परिस्थितियां विचारों से ही पनपती है क्योंकि उन्होंने यह देखा है कि उनकी परिस्थितियों में फेरबदल उनकी मानसिक स्थिति में फेरबदल के सीधे अनुपात में होता है। यह सत्य है कि जब तुम उत्सुकता से अपने चरित्र की कमियों को दूर करने में स्वयं को लगा देते हो तुम बहुत शीघ्रता से प्रगति करते हो और बहुत सारे परिवर्तनों से जल्दी ही गुजरते हों। आत्मा जो गुप्त रूप में चाहती है, जिससे प्रेम करती है और जिसका उसे भय है, उसको आकर्षित करती है। वह संजोई हुई आकांक्षाओं की ऊँचाई तक पहुंचती है और वह आ निश्चित बार बार प्रकट होने वाले भय की गहराइयों में गिर जाती है। परिस्थितियां वह माध्यम है जिसके द्वारा आत्मा स्वयं को प्राप्त करती है। हर विचार रूपी बीज जिसे मन में बोया जाता है या उसमें जड़ पकड़ने दिया जाता है, उपज देता ही है और देर सबेर किसी कार्य के रूप में फूलता है। उसमें परिस्थिति रूपी फल लगते हैं, अच्छे विचार, अच्छा फल और बुरे विचार बुरा फल देते हैं। परिस्थिति का बाहरी जगत विचार के अंतर जगत का निर्माण करता है और दोनों ही प्रिय और अप्रिय बाहरी परिस्थितियां वे घटक है जो किसी व्यक्ति के लिए चरम अच्छा ई का निर्माण करती है। अपनी फसल को स्वयं काटने वाले होने के नाते तुम कष्ट और आनंद दोनों से ही सीखते हो। अपनी उन अंतरतम इच्छाओं, आकांक्षाओं, विचारों का अनुसरण करते हुए जिन्हें तुम अपने पर हावी होने देते हो, तुम अंततः अपने जीवन की बाहरी परिस्थितियों के रूप में उनकी पूर्णतः तक पहुंचती हो, प्रगति और बैठ बिठा के नियम सब जगह लागू होते हैं। कोई भी व्यक्ति गटर में या जेल में भाग्य या परिस्थिति की क्रूरता के कारण नहीं पहुंचता, वरन तुच्छ विचारों और निम्न इच्छाओं के रास्ते के कारण पहुँचता है, ना ही एक सच्चे मन वाला व्यक्ति या का एक। किसी बाहरी शक्ति के दबाव में आकर अपराध से गिर जाता है। उसके दिल में अपराधी विचार गुप्त रूप से पनप रहा होता है और अवसर के आते ही वह अपनी पूरी शक्ति के साथ प्रकट होता है। परिस्थितियां व्यक्ति को नहीं बनाती, वह व्यक्ति जैसा है, उसे उसके लिए प्रकट करती है। कोई भी ऐसी परिस्थितियां हो ही नहीं सकती, केवल हमारे स्वयं के बुरे इरादों के सिवाय जो हमें बुराइ हो या उसके साथी कष्ट की ओर हमें नीचे ले जा सके। उसी प्रकार ऐसी कोई स्थिति नहीं हो सकती जो बिना अच्छी और सफल आकांक्षाओं को निरंतर उपजाए। हमें पुण्य और सफलता और उससे जुड़े सच्चे आनंद की ओर हमें ऊपर उठाएं। इसलिए हम अपने विचारों के स्वामी और मुखिया होने के नाते स्वयं को बनाते हैं, अपने वातावरण को आकार देते हैं और उसके रचयिता भी है। जन्म के समय एक आत्मा अपने पूर्ण रूप में आती है और उसकी धरती की तीर्थ यात्रा के हर एक कदम द्वारा वहाँ उन स्थितियों के मिश्रण को आकर्षित करती है जो स्वयं प्रकट होती है, जो उसकी पवित्रता और अपवित्रता को कमजोरी और सामर्थ को प्रतिबिंबित करती है। हमें जो चाहिए हम उसे नहीं आकर्षित करते, वरन उसे करते है जो हम हैं। हमारी महत्वाकांक्षा है सनक और पसंद हर कदम पर निष्फल होती है, परंतु हमारे अंतरतम विचार और इच्छाएं स्वयं के भोजन चाहे अच्छा हो या बुरा द्वारा पोषित होती है। बहुत दिव्यता जो अंत में हमें आ कर देती है, हमारे अंतर में है। वह हमारी आत्मा है इसलिए हम स्वयं द्वारा ही बंदी बनाए जाते हैं। हमारे स्वयं के विचार और कर्म हमारे भाग्य के जेलर हैं। यदि तुझे हैं तो बंदी बनाते हैं, वे मुक्ति के दूत भी हैं। यदि अच्छे है तो मुक्ति देते हैं, हमें वहाँ नहीं मिलता, जिसकी हमें अच्छा करते है या जिसके लिए हम प्रार्थना करते हैं। हमें वहाँ मिलता है जो हम सही तरीके से कमाते हैं। हमारे इच्छाएं और प्रार्थनाएँ तभी पूर्ण होती है और हमें उसका फल मिलता है। जब भी हमारे विचारों और कर्मों के तालमेल में होती है तो इस सत्य के दृष्टिकोण से परिस्थितियों के विरुद्ध लड़ने का हमारे जीवन में क्या अर्थ है? इसका अर्थ है कि हम हर दम बाहर हो रहे प्रभाव के विरुद्ध जा रहे होते हैं और साथ ही साथ अपने हृदय में उसके कारण को पोषित और संरक्षित कर रहे होते हैं। यहाँ कारण या तो जागरूक, बुरा ई या फिर अं जागरूक कमज़ोरी का रूप ले सकता है परंतु चाहे वह कुछ भी हो वह धारण करने वाले के प्रयत्नो को दृढ़ता से रोकता है और किसी हल को खोजने को मजबूर करता है। हममें से अधिकतर लोग अपनी परिस्थितियों में सुधार लाना चाहते हैं परंतु स्वयं में बिल्कुल भी सुधार नहीं लाना चाहते और इसीलिए। हम बंधन में रहते हैं। यदि हम सच्चे आत्म परीक्षण से मुँह छिपाए तो हम कभी भी वहाँ पाने से वंचित नहीं होंगे, जो हमारा दिल चाहता है। यह सभी भौतिक विषयों के लिए उतना ही सत्य है जितना कि दैवी विषयों के लिए। यदि हम केवल संपत्ति प्राप्त करना चाहते हैं तो अपने लक्ष्य को पाने के पहले हमें अनेक महान व्यक्तिगत त्याग करने को तैयार होना चाहिए और हममें से वे जो सशक्त और शांत जीवन चाहते हैं, उनके लिए तो कितना और कुछ करना होगा कुछ उदाहरण लेते हैं। कुछ लोग हैं जो बहुत ही गरीब हैं, वे बहुत व्याकुल रहते हैं। क्या उनके आसपास का माहौल और घरेलू सुख सुविधाएं सुधरनी चाहिए? फिर भी वे अपने काम से मुँह चुराते हैं और यह मानते हैं कि अपने मालिको को धोखा देकर वे सही कर रहे हैं क्योंकि उन्हें बहुत कम तनख्वाह मिलती है। ये लोग इस साधारण से मूलभूत सिद्धांत जो की सच्ची समृद्धि का आधार है, कौन नहीं समझ पा रहे हैं और ना केवल अपनी गरीब स्थिति से बाहर निकलने के लिए अयोग्य है वरन बुरी परिस्थितियों के बारे में सोच सोचकर उसे वास्तव में अपने जीवन में आकर्षित कर रहे हैं। ऐसे लोग कमजोर, आलसी और भ्रम के विचारों में जी रहे हैं। कुछ अमीर लोग हैं जो पेट ओपन के कारण दर्दनाक और लगातार बिमारी से ग्रस्त हैं। देश बिमारी से छुटकारा पाने के लिए खूब पैसा खर्च करने को तैयार हैं परंतु ज्यादा खाने की अपनी आदत को छोड़ने को तैयार नहीं हैं। वे अधिक मात्रा में चटपटे और मजेदार खाने की अपनी इच्छा को संतुष्ट करना चाहते हैं। और अच्छा स्वास्थ्य भी चाहते हैं। ऐसे लोग अच्छे स्वास्थ्य के लिए अयोग्य हैं क्योंकि उन्होंने सवस्थ जीवन के पहले सिद्धांत को भी अभी तक नहीं सीखा है। कुछ मालिक हैं जो गलत रास्ते अपनाते हैं जिससे कि उन्हें सही वेतन ना देना पड़े और ज्यादा मुनाफा के लिए वे काम कर रहे लोगों का वेतन कम कर देते हैं। ऐसे मालिक समृद्धि के बिल्कुल योग्य नहीं है और जब उनका दीवाला निकल जाता है, दोनों ही प्रतिष्ठा और समृद्धि में वे परिस्थितियों को दोष देते हैं और यह नहीं जानते कि उनकी स्थितिके वे एकमात्र लेखक है। मैंने यह तीन वाकया मात्र इस सत्य को प्रस्तुत करने के लिए बताएं कि लोग कारण है। यद्यपि लगभग बिना जाने अपनी परिस्थितियों के और अगर वे चाहते हैं कि अंतर अच्छा हो, वे निरंतर उन विचारों और इच्छाओं को प्रोत्साहित कर रहे हैं जो उन अच्छे फल से संभवता तालमेल नहीं रखते जो वे चाहते हैं और ऐसा करते हुए अच्छे फल को निरंतर निष्फल कर रहे हैं। ऐसे किसी कई गुना बढ़ सकते हैं और लंबे काल तक घट सकते हैं परंतु इसकी जरूरत नहीं है। क्योंकि यदि हम दृढ़ निश्चय कर लें कि हम अपने मन और जीवन में विचार के नियम को कर्म को ढूंढेंगे और जब तक ऐसा नहीं होगा तब तक केवल बाहर ही तथ्य तर्क के लिए पर्याप्त नहीं हो सकता। परिस्थितियां फिर भी इतनी जटिल है। विचार इतना गहराई से बैठा है और व्यक्ति में प्रसन्नता की अवस्था इतनी भिन्न है कि हमारी समस्त आत्म दशा केवल जीवन के बाहरी पहलू के तहत किसी के भी द्वारा आंकी जा सकती है। कोई व्यक्ति कितनी कार्यों से ईमानदार हो सकता है, परंतु अभावग्रस्त है, जबकि दूसरा व्यक्ति कई कार्यों में बीमान हो सकता है, फिर भी खूब संपत्ति हासिल करता है। और इसका अधिकतर या मतलब निकाला जाता है कि कोई व्यक्ति इसलिए असफल होता है क्योंकि वह ईमानदार है और दूसरा व्यक्ति इसलिए सफल है क्योंकि वह बेईमान है और यह सतही निर्णय के फलस्वरूप होता है जो यह मान लेता है की बईमान व्यक्ति लगभग पूरी तरह से भ्रष्ट है, और ईमानदार व्यक्ति लगभग पूरी तरह से पुण्यात्मा है। गहन ज्ञान और विस्तृत अनुभव के आधार पर यह निर्णय लेना गलत माना जाता है। बेईमान व्यक्ति में ऐसी कुछ प्रशंसनीय गुण हो सकते हैं जो दूसरे में नहीं है और ईमानदार व्यक्ति में ऐसे कुछ दुर्गुण हो सकते हैं यद्यपि सूक्ष्म ही हो जो दूसरों में नहीं है। ईमानदार व्यक्ति अच्छे विचारों और कर्मों का अच्छा फल पाता है, परंतु अपने दुर्गुणों के कारण कष्ट का भी अनुभव करता है। बेईमान व्यक्ति उसी तरह से कष्ट या हर्ष का अनुभव करता है। मानव आ हमको यह मानना अच्छा लगता है कि व्यक्ति अपने सद्गुणों के कारण कष्ट में होता है, परंतु जब तक हम अपने मन से हर रोगी, कटु, अशुद्ध विचार को निकाल नहीं सकती और अपनी आत्मा से हर अस्वस्थ दाग को। नहीं साफ कर देते। हम क्या उस स्थिति में हो सकते हैं जहाँ यह जान पाएं और घोषित कर पाए कि हमारा कष्ट हमारे अच्छे न की बुरे गुणों के फलस्वरूप है? उस परम पूर्णता के पद पर पहुंचने से बहुत पहले हमें अपने जीवन और मन में कार्यशील उस महान नियम का पता चल जाएगा जो पूर्णतः न्याय संगत है और जो इसीलिए बुरे के बदले अच्छा या अच्छे के बदला। बुरा नहीं लगेगा। जब हमे ऐसा ज्ञान मिलता है तब हम यह जान पाते हैं अपने पूर्ण। कि अज्ञान और अंधेपन को देखते हुए कि हमारा जीवन अभी और सदा से ही न्यायसंगत रहा है और हमारे पूर्व के सारे अनुभव। अच्छे और बुरे हमारे विकसित होते हुए फिर भी अविकसित आत्मा के ही उचित परिणाम है। अच्छे विचार और कर्म कभी भी बुरे परिणाम नहीं दे सकते। बुरे विचार और कर्म कभी भी अच्छे परिणाम नहीं दे सकते। बस यही कहना है कि मकई से मकई ही मिलेंगी और कांटे से कांटा और कुछ नहीं। हम प्राकृतिक जगत में इस नियम को समझते हैं और इसके अनुसार कार्य भी करते हैं परंतु कुछ ही इसे मानसिक और नैतिक जगत में समझते हैं जबकि वहाँ भी उसका कार्य उतना ही सहज और अटल है और वे इसलिए सहयोग नहीं देते। कष्ट या पीड़ा गलत दिशा में लगाए गए गलत विचार का प्रभाव है। यह एक संकेत है कि हमारा अपने आप से अपने अस्तित्व के नियम से तालमेल नहीं हो रहा है। कष्ट का एकमात्र और उच्चतम कार्य है शुद्धि करना। वह सब जो बेकार और अशुद्ध है उसे जला देना। वे जो शुद्ध है उनके लिए कष्ट खत्म हो जाते हैं। एक बार जब सोने से लोहमन। मैल हट जाता है तो उसे जलाते रहने का कोई मतलब नहीं है और इसी तरह पूर्ण रूप से शुद्ध और साक्षात्कार ई पुरुष कष्ट में नहीं रहता। वह परिस्थितियां जिनका हम कष्ट से सामना करते हैं, वे हमारी मानसिक असंगति का परिणाम है। वह परिस्थितियां जिनका हम कृपा और आनंद से सामना करते हैं, वे हमारी मानसिक संगति का नतीजा है। कृपा आनंद, मानसिक पवित्रता और बहुत इक संपत्ति नहीं सही विचार का माप है कष्ट और क्लेश भौतिक संपत्ति की कमी नहीं। गलत विचार का माप है। कुछ लोग दुखी और अमीर होते हैं। कुछ लोग धन्य और गरीब होते हैं, पवित्रता और अमीरी तब ही जुड़ते हैं जब धन को सही और विवेक से इस्तेमाल किया जाता है और गरीब अधिक पीड़ा का अनुभव करते हैं। जब उन्हें लगता है कि बिना वजह के उनका बोझ उन पर ला दिया गया है। गरीबी और भोग शक्ति पीड़ा के दो चरम पहलू हैं। वे दोनों ही अस्वाभाविक है। मानसिक असंतुलन का नतीजा है। जब तक हम खुश सवस्थ और समृद्ध नहीं होते, हमारे सही अवस्था नहीं होती। खुशी, स्वास्थ्य, समृद्धि का हमारी परिस्थितियों के अंतर और बाहरी। तालमेल का परिणाम है जब हम शिकायत और तिरस्कार करना बंद करते हैं और उस छिपे हुए नियम को जो हमारे जीवन को संचालित करता है डूबना शुरू करते हैं। तब हम खुश सवस्थ और समृद्ध होना शुरू करते हैं और एक बार जब हम अपने मन में उस संचालित। करने वाले घटक को अपना लेते हैं। हम दूसरों पर अपने कष्ट का कारण होने का आरोप लगाना बंद कर देते हैं और हम सशक्त और सवस्थ विचारों को चिल्लाना बंद कर देते हैं और अपनी तीव्र प्रगति के लिए और अपने अंतर में छिपी शक्तियां और सम्भावनाओं को खोजकर के एक साधन के रूप में प्रयोग शुरू कर देते हैं। नियमन आंकी गड़़बड़। ब्रह्माण्ड का प्रमुख सिद्धांत है न्याय, ना कि अन्याय। जीवन की आत्मा और सार है और ईमानदारी ना कि भ्रष्टाचार जगत की आध्यात्मिक सरकार को रूप देने वाली और चलाने वाली शक्ति है। ऐसा होने से हमें अपने आप को सही करना है जिससे कि हम समझ सकें कि ब्रह्मांड सही है और अपने आप को सही करने की प्रक्रिया में हम पाएंगे कि जब हम घटना हो और दूसरे लोगों के प्रति अपने विचारों को बदलते हैं तब वही घटनायें और लो हमारे प्रति बदल जाते हैं। इस सत्य का प्रमाण हर एक व्यक्ति में है और इसलिए नियमित आत्म परीक्षण और आत्म विश्लेषण के सरल पड़ताल द्वारा इसे जाना जा सकता है। हम मूलभूत तौर पर अपने विचारों को अगर बदलते हैं तो अपने जीवन की भौतिक परिस्थितियों में आये त्वरित रूपांतरण को देख बहुत छक्के रह जाएंगे। हमें लगता है कि हम अपने विचारों को गुप्त रख सकते हैं, परंतु ऐसा नहीं है बहुत जल्दी ही आदत में बदल जाते हैं और आदत परिस्थिति का रूप ले लेती है। नीच विचार, आक्रोश, शराबीपन की आदत बनती जाते हैं जो कि कष्ट, पीड़ा और दरिद्रता के रूप में। आते हैं किसी तरह के भी। विनाशकारी विचार उलझाने वाली और थकाऊ आदतें बन जाती है जो ध्यान भंग करने वाली और विपरीत परिस्थितियों का आकार होती है। भय, संशय और अनिर्णायक विचार कमजोर और बेमेल आदतों का रूप लेते हैं, जो गरीबी और नीचता का आकार लेती हैं। गणित और दंडनीय विचार हिंसा और आरोप लगाने की आदत का रूप लेते हैं जो चोट लगने और दंड मिलने वाली परिस्थितियों का आकार लेती है। हर तरीके के स्वार्थी विचार स्वार्थीपन का रूप लेते हैं, जो उन परिस्थितियों को आकार देते हैं जो दुखदायी होती है। दूसरी ओर हर तरह के सुंदर विचार, कृपा और अच्छा ई का रूप लेते हैं जो प्रिय और सुखद परिस्थितियों को आकार देते हैं। रचनात्मक विचार, आत्म संयम और संतुलित मन का रूप लेते हैं, जो शांति और विश्व शांति की परिस्थितियों का आकार लेती है। साहस। आत्मनिर्भरता और निर्णय की विचार सशक्त और फलदायी आदतों का रूप लेते हैं जिससे सफलता प्रचुरता और मुक्ति की परिस्थितियों को आकार देती है। ऊर्जा पूर्ण विचार, सफाई, पसंद और उद्यमी आदतों का रूप लेते हैं, जो सुंदरता और आनंद की परिस्थितियों को आकार देती है। मृदुल और क्षमाशील विचार मृदुलता की आदत का रूप लेते हैं, जो सुरक्षित। और स्वस्थ्य परिस्थितियों को आकार देती हैं। प्रेमपूर्ण और निस्वार्थ विचार विचारों के लिए स्वयं को फूल जाने की आदत का रूप लेते हैं, जो निश्चित और स्थाई प्रचुरता और सच्ची समृद्धि की परिस्थितियों को आकार देती है। लंबे समय तक एक ही तरीके की विचारधारा चाहे वह अच्छी हो या बुरी, चरित्र और परिस्थितियों पर अपना प्रभाव जरूर छोड़ती है। हम अपनी परिस्थितियां प्रत्यक्ष तरीके से नहीं चुन सकते, परंतु अपने विचारों को चुन सकते हैं। और इस तरह अप्रत्यक्ष रूप से जरूर ही परिस्थितियों को आकार दे सकते हैं। प्रकृति हमारे साथ और हमारे द्वारा काम करती है जिससे कि हम उन विचारों का आनंद उठा सकें जिन्हें हम पोषित करते हैं और ऐसे अवसर प्रस्तुत होते हैं जो बहुत जल्दी, अच्छे और विनाशकारी विचारों का सतह पर ले आते है। जैसे ही हम अपने नकारात्मक और विनाशकारी विचारों को त्याग दें है पूरा संसार हमारे प्रति मृदुल हो जाता है और हमारी मदद करने को तैयार हो जाता है। जैसे ही हम अपने कमजोर और दूषित विचारों से दूर रहते है, हर तरफ ऐसे अवसर उमड़ने लगते हैं जिससे कि हमारे सशक्त संकल्प को मदद मिले। जैसे ही हम अच्छे विचारों को बढ़ावा देते हैं तो कोई भी दुर्भाग्य हमें शर्म और कष्ट से घेर नहीं सकता। संसार हमारा बहुरूपदर्शक सी केलिडोस्कोप है और हर क्षण पर जिन विभिन्न रंगों को प्रस्तुत करता है, वह हमारे सतत उभरते विचारों के अद्भुत चित्र है। जो तुम बनना चाहते हो वह तुम बनोगे झूठे में खुश होने दो, असफलता को वातावरण के उस बेचारे शब्द में क्योंकि आत्मा उपेक्षा करती है और है मुक्त वह काल पर प्रबुद्ध करती है, अंतरिक्ष पर विजय पाती है। संयोग से गर्वीले धोखेबाज को डराती है और अत्याचारी परिस्थिति को पद्य चित करके उसे निकालती है और नौकर बनाती है। मानव इक्षाशक्ति वहाँ शक्ति आ दृश्य अनंत आत्मा का परिणाम किसी भी लक्ष्य तक काट छांटकर अपना रास्ता बना सकती है। चाहे डाले बाधा ग्रेनाइट की दीवार देरी में ना हो अधीर करो इंतजार समझदार की तरह जब आत्मा जागेगी और देगी आगया सभी ईश्वरी आज्ञा पालन करने को होंगे तैयार। भाग तीन शरीर और स्वास्थ्य पर विचार का प्रभाव। शरीर मन का सेवक हैं। वहाँ मन के क्रियाकलापों का पालन करता है, चाहे वे सोच समझकर चुने गए हो या फिर सोता ही अभी वक्त प्रकट हो जाते हैं। दूषित विचारों के कारण शरीर जल्दी ही बिमारी और पतंग से कमजोर पड़ने लगता है। हर्ष पूर्ण और सुंदर विचारों की आज्ञा पर बहुत सुंदरता और यौवन से सुसज्जित हो जाता है। रोग और स्वास्थ्य की परिस्थितियों की तरह विचारों में जड़े हैं। रोगग्रस्त विचार स्वयं को रोगी शरीर द्वारा प्रकट करेंगी। ऐसा पाया गया है कि भय के विचार व्यक्ति को उतना जल्दी ही मार डालते हैं जितना कि बुलेट और वे हजारों लोगों को निरंतर इसी तरह लेकिन धीरे धीरे मार रहे हैं। जो लोग किसी बिमारी के डर में रहते हैं, वहीं हैं जिन्हें यह बिमारी पकड़ती है। चिंता बहुत ही जल्दी पूरे शरीर को निरुत्साहित कर देती है और रोग के प्रवेश के लिए कमजोर बना देती है। अशुद्ध विचार चाहे शारीरिक तौर पर वार्ना करें परंतु नाड़ीमंडल पर जरूर प्रभावित होंगे। सशक्त, शुद्ध और प्रसन्न विचार शरीर को जोश और लावण्य से सुसज्जित कर देते हैं। शरीर नाजुक और ढालने वाला यंत्र हैं और उन विचारों पर तत्परता से प्रतिक्रिया करता है जो उस पर अपना प्रभाव जमा ते है और विचार करने की आदत उस पर अपने प्रभाव छोड़ेंगे। चाहे वे अच्छे हों या बुरे। जब तक लोग अस्वच्छ विचारों को फैलातें रहेंगे, उनमें अशुद्ध और जहरीला रक्त बहता रहेगा। शुद्ध हृदय से शुद्ध जीवन और शुद्ध शरीर उत्पन्न होता है। दूषित मन से दूषित जीवन और अशुद्ध शरीर ही पैदा होता है। विचार, कर्म जीवन और प्रगटीकरण का स्रोत है। स्रोत को शुद्ध करेंगे और सब शुद्ध हो जायेगा। भोजन की शैली बदलना। उन लोगों की मदद नहीं करेगा जो अपने विचारों को नहीं बदलना चाहते। जब हमारे विचार शुद्ध होते हैं, तब हमें अशुद्ध भोजन की चाह नहीं होती। स्वच्छ विचार स्वच्छ आदतें बनाते हैं। जिन्होंने अपने विचारों को सशक्त और शुद्ध किया है, उन्हें हानिकारक जीव से डरने की जरूरत नहीं है। यदि तुम अपने शरीर को पूर्ण सवस्थ रखना चाहते हो, अपने मन की रक्षा करो, यदि तुम शरीर का नवीनीकरण करना चाहते हो। तो मन को सुंदर बनाओ। दुर्भावना, ईशा, निराशा, उदासी के विचार, शरीर के स्वास्थ्य और उसकी चमक को लूट लेते हैं। चिड़चिड़ा चेहरा एकाएक नहीं बन जाता। वह उग्र विचारों से बनता है। झुर्रियाँ जो चेहरे पर खराब दिखती है, वह मूर्खता, पीड़ा और घमंड के कारण उत्पन्न होती है। मैं एक ऐसी महिला को जानता हूँ। जो 96 साल की है और उनका चेहरा तेजस्वी और एक छोटी लड़की के भोलेपन से भरा है। मैं एक ऐसे आदमी को जानता हूँ जो अधेड़ उम्र के हैं और उनका चेहरा आज सामंजस्यता की झुर्रियों से भरा है। एक खुश दिल का नतीजा है और दूसरा कष्ट और असंतुष्टि गा। जैसे कि तुम रहने के लिए एक सुंदर और परिपूर्ण जगह का निर्माण तब तक नहीं कर सकते जब तक तुम हवा और रौशनी को अपने कमरे में मुक्त रूप से आने जाने ना दो, वैसे ही एक सशक्त शरीर और चमकीला खुश और शांत चेहरा तभी हो सकता है जब तुम अपने मन में हर्ष, सद्भावना और शांत विचारों को आने की खुली छूट दो वृद्ध लोगों के चेहरों पर सहानुभूति की झुर्रियां होती है, कुछ सशक्त और शुद्ध विचार से बनती है और बहुत नकारात्मक भावनाओं द्वारा और कौन इनमें फर्क नहीं देख पाता? जिन्होंने धर्म संगत जीवन जिया है, उनका जीवन शांतिपूर्ण, स्तब्ध और मृदुल हो चुका है। अस्त होते सूर्य की तरह। हाल ही में मैंने एक दार्शनिक को उसकी मृत्यु शैया पर देखा। वहाँ उम्र के अलावा बूढ़ा नहीं था। उसकी मृत्यु उतनी ही मीठी और शांतिपूर्ण थी जितना की उसका जीवन था। शरीर की बीमारियों को दूर भगाने के लिए खुश दिल विचार से अच्छा कोई चिकित्सक नहीं है। दुख और शोक की परछाई को हटाने के लिए सद्भावना जैसी तसल्ली देने वाली कोई चीज़ हो ही नहीं सकती। सदा दूसरों के बारे में बुरा सोचना, द्वेष रखना, शक करना और ईर्ष्या के विचार रखना ऐसा ही है जैसा स्वनिर्मित कारावास में रहना, परंतु सब के बारे में अच्छा सोचना, सबके साथ खु़श रहना, धैर्य के साथ यह सीखना कि उनमें केवल अच्छा ही देखना, ऐसे निःस्वार्थ विचार स्वर्ग की ओर ले जाते हैं। दिन प्रतिदिन हर प्राणी के प्रति शांति के विचार रखना। विचार रखने वाले में अद्भुत शांति लाएगी आग चार विचार और उद्देश्य। जब तक विचार उद्देश्य के साथ नहीं जोड़ा जाता, कोई प्रतिभा पूर्ण उपलब्धि नहीं होती। बहुत लोगों के साथ विचार की छाल को जीवन के सागर में ऐसे ही दिशाहीन बहनें दिया जाता है। दिशाहीनता बुरी होती है और जो लोग विपत्ति और विनाश से दूर रहना चाहते हैं, उन्हें इस प्रकार के बहने से स्वयं को रोकना चाहिए। जिन लोगों के जीवन का कोई मुख्य उद्देश्य नहीं होता, वे बहुत ही जल्दी। उच्च चिंताओं, भय, दिक्कतों और अपने प्रति दया रखने के भाव से ग्रस्त हो जाते हैं और यह सब कमजोरी के चिन्ह हैं और यह असफलता अप्रसन्नता कमी की ओर ले जाते हैं ठीक वैसे ही जैसे सोच समझकर आयोजित किए गए अपराध क्योंकि कमजोरी शक्ति विकसित ब्रह्मांड में टिक नहीं सकती। हमें अपने हृदय में एक न्यायसंगत उद्देश्य के बारे में। सोचना चाहिये और उसे यथार्थ बनाने के लिए कार्यशील होना चाहिए। हमें इस उद्देश्य को। अपने विचारों का केंद्र बिन्दु बना लेना चाहिए। उस समय हमारी प्रकृति कैसी है? उसके अनुसार वह किसी आध्यात्मिक लक्ष्य का या फिर भौतिक वस्तुओं का रूप ले सकता है। परंतु जो भी वह हो, हमें अपने समक्ष रखी इस वस्तु पर अपने विचार शक्ति को दृढ़ता से केंद्रित करना चाहिए। हमें इस उद्देश्य को अपना उच्चतम कर्तव्य बनाकर उसकी प्रगति के लिए स्वयं को समर्पित कर देना चाहिए। और अपने विचारों को क्षणिक रूचियों, चाहतों और कल्पनाओं के पीछे नहीं भागने देना चाहिए। यहाँ आत्म संयम का राजसी मार्ग है और विचार की सच्ची एकाग्रता है। यदि हम बार बार अपने उद्देश्य को पाने में असफल हो या तब तक होता रहेगा जब तक हम अपनी कमजोरी के ऊपर नहीं उठ जाते। चरित्र की सामर्थ जो हम पाएंगे वह सच्ची सफलता का। मापदंड होगी और यहाँ भविष्य की सामर्थ और विजय की नई शुरुआत होगी। वे जो अपने किसी महान उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए तैयार नहीं है, उन्हें विचारों को अपने कर्तव्य के अचूक प्रदर्शन पर केंद्रित करना चाहिए, फिर चाहे उनका कार्य कितना ही छोटा क्यों ना प्रतीत हो। केवल इसी तरीके से विचारों को एकत्रित करके केंद्रित किया जा सकता है और संकल्प और ऊर्जा को। विकसित किया जा सकता है। ऐसा हो जाने पर कुछ भी ऐसा नहीं है जिसे प्राप्त नहीं किया जा सकता। कमजोर आत्मा अपने कमजोरी को जानते हुए और इस सत्य में विश्वास रखते हुए कि सामर्थ्य, प्रयत्न और अभ्यास द्वारा ही विकसित की जा सकती है, तुरंत ही प्रयत्नशील हो जाती है और प्रयत्न जोड़ के सदा विकसित होती रहती है और अंत में दिव्य रूप में। सशक्त हो जाती है। जैसे शारीरिक तौर पर कमजोर लोग सतर्क और धैर्यपूर्ण प्रशिक्षण द्वारा अपने आप को सशक्त बनाते है, वैसे ही कमजोर विचार वाले लोग सही सोच का अभ्यास करके अपने आप को सशक्त बना सकते हैं। दिशाहीनता और कमजोरी को दूर हटा कर और किसी उद्देश्य के साथ सोचना उन सशक्त लोगों की श्रेणी में पहुंचना है जो कि असफलता को प्राप्ति के एक मार्ग के रूप में पहचानते हैं और जो सब परिस्थितियों को अपने अनुकूल बनाते हैं और जो सशक्त सोचते हैं, बिना किसी भय से कोशिश करते हैं और कुशलता से प्राप्त करते हैं। अपने उद्देश्य को सोचने के बाद हमें मानसिक तौर पर उसको प्राप्त करने का एक सीधा मार्ग बिना दाएँ या बाएँ देखकर तैयार करना चाहिए। संशय और भय को तीव्रता से निकाल फेंकना चाहिए। ये वहाँ विच्छेदक तत्व है जो प्रयत्न की सीधी रेखा को तोड़ते हैं और उसे तिरछा आप प्रभावी और बेकार बना देते। संशय और भय के विचारों ने ना तो पहले कभी कुछ पाया है और ना कभी पाएंगे। वे हरदम असफलता की ओर ले जाते हैं। उद्देश्य ऊर्जा करने की शक्ति और सब सशक्त विचार रुक जाते हैं। जब संशय और भय घुस आते हैं, कुछ करने की इच्छा इस ज्ञान से उभरती है। की हम कुछ कर सकते हैं। संशय और भय ज्ञान की सबसे बड़े शत्रु हैं और वह लोग जो उसे बढ़ावा देते हैं, उन्हें मारते नहीं, स्वयं को हर कदम पर निष्फल करते हैं, जिन्होंने संशय और भय पर विजय पा ली है, उन्होंने असफलता को जीत लिया है। उनका हर विचार सामर्थ्य से जुड़ा है और समस्त दिक्कतों का साहस के साथ सामना करके उन्हें बुद्धिमानी से वश में किया जा सकता है। उनके उद्देश्य मौसम के हिसाब से बोए जाते हैं और वे ऐसे फल फूल देते हैं जो समय से पहले ही गिर नहीं जाती। बिना किसी भय को मन में रखते हुए उद्देश्य से जुड़ा हुआ विचार रचनात्मक शक्ति बन जाता है। वे जो यह जानते हैं, वे तैयार हैं। भटकते विचारों और चढ़ते उतरते संवेदनाओं की पोटली से ज्यादा। कुछ उच्चतम और सशक्त बनाने के लिये जो ये करते है, अपने विचारों को अपने उद्देश्य के साथ जोड़ते हैं, वे अपनी मानसिक शक्ति के जागरूक। और बुद्धिमान शासक बन जाते हैं। भाग पांच उपलब्धि में विचार एक घटक। वह सब जो तुम पाते हो और वह सब जो तुम पाने में असफल होते हो, वह तुम्हारे विचारों का सीधा नतीजा है। इस नए पूर्ण व्यवस्थित जगत में जहाँ संतुलन की कमी विनाश ला सकती है, व्यक्तिगत जिम्मेदारी जरूर पूर्ण होनी चाहिये। तुम्हारी कमजोरी और ताकत, शुद्धता और अशुद्धता तुम्हारे अपने हैं, वो किसी और के नहीं तुम्हारे दर्शा भी तुम्हारी अपनी है, किसी और की नहीं। तुम्हारा दुख और तुम्हारा सुख दोनों ही अंतर से प्रकट होते हैं। जैसा तुम सोचते हो वैसे तुम हो जैसा तुम सोचते रहते हो, वैसे तुम बनते रहते हो। सशक्त लोग कमजोर लोगों की तब तक मदद नहीं कर सकते जब तक कमजोर लोग मदद लेने के लिए तैयार ना हो और तब भी कमजोर को स्वयं सशक्त होना पड़ेगा। उन्हें अपने प्रयत्नो द्वारा उस सामर्थ्य को विकसित करना होगा। जिसे भी दूसरों से सराहते हैं केवल हम ही अपनी दशा को बदल सकते हैं। दबाने वाले और दबने वाले दोनों ही अज्ञान में सहयोग देते हैं और देखने में एक दूसरे को सताते है। वास्तव में वह अपने आप को सता रहे होते हैं पूर्ण ज्ञान कर्म के नियम को दबने वाले की कमजोरी में और दबाने वाले की दुष् प्रयुक्त शक्ति में देखता है पूर्ण प्रेम दोनों के ही कष्ट को देखकर किसी का भी हनन नहीं करता पूर्ण करुणा दबाने वाले। और दबने वाले दोनों को ही अपनाती हैं जिन्होंने कमजोरी पर विजय पा ली है और सभी स्वार्थी विचारों को त्याग दिया है। ना तो अत्याचारी है और ना ही वह जिन पर अत्याचार हो रहा है वे मुक्त है। हम अपने विचारों को ऊपर उठाकर ही ऊंचे उठ सकते हैं, विजय पा सकते हैं और कुछ पा सकते हैं। अपने विचारों को ऊपर ना उठने देकर हम केवल कमजोर और नीच बने रह सकते हैं। कुछ भी पाने के पहले चाहे वह सांसारिक चीजें हो, हमें अपने विचारों को अति भोग शक्ति से ऊपर उठाना चाहिए। हमें सफलता के लिए सब स्वारथ छोड़ने की जरूरत नहीं है, परंतु उनके कुछ हिस्सों को जरूर छोड़ना चाहिए। यदि हमारे प्रमुख विचार भोगा शक्ति के हैं तो हम ना तो स्पष्ट तरीके से सोच पाते हैं और ना ही ठीक से योजना बना पाते हैं और इसलिए हर क्षेत्र में असफल होते है। हमने अब तक अपने विचारों को प्रभावशाली तरीके से नियंत्रित नहीं किया है और इसलिए हम बाकी मुद्दों को और भी गंभीर जिम्मेदारियों को अपनाने के लिए योग्य नहीं होते। हम ना तो अकेले कार्य करने में स्वतंत्र है। और ना ही अकेले खड़े रहने में हमने जो विचार चुने हैं, हम उनके द्वारा सीमाबद्ध है। बिना त्याग के ना तो कोई प्रगति हो सकती है ना कोई उपलब्धि और हमारी सांसारिक सफलता इस बात के सीधे अनुपात में होगी कि हमने किस हद तक स्वार्थ, भोग सशक्त विचारों पर काबू पा लिया है? और अपने मन को अपनी योजनाओं के विकास और अपने संकल्प और आत्म निर्भरता को सशक्त करने में लगाया है। जीतने उच्च हम अपने विचारों को करेंगे, उतने ही अधिक धर्म संगत, सही और आदर्शवादी हम बन पायेंगे। उतनी ही ज्यादा हमारी सफलता होगी और हमारी उपलब्धियां उतनी ही अधिक आशीर्वाद इत और स्थायी होगी। लो भी बेईमान दुष्ट इंसान का साथ ब्रह्मांड कभी नहीं देता। यद्यपि सरसरी तौर पर लग सकता है की ऐसा हो रहा है, वह ईमानदार, उदार हृदय पुण्य आत्मा की मदद करता है। समस्ती युगों के महान शिक्षकों ने यहाँ अलग अलग तरीके से बताया है और इसको जानने और सत्य साबित करने के लिए आपको विचारों को उच्च करके अपने आप को पुण्यात्मा बनाने में कार्यरत रहना है। बौद्धिक उपलब्धियां ज्ञान की खोज यह जीवन और प्रकृति में सुंदरता और सत्य की खोज में अर्पित विचारों का नतीजा है। ऐसी उपलब्धियां कई बार महात्वाकांक्षाओं और अभिमान से जोड़ी जा सकती है, परंतु वे इन विशेष ताओं का परिणाम नहीं है वरन लंबे और कठिन परिश्रम का और शुद्ध और निश्स्वार्थ विचारों का स्वाभाविक नतीजा है। आध्यात्मिक उपलब्धियाँ पवित्र महात्वाकांक्षाओं की सिद्धि है। जो लोग लगातार पुण्य और उच्च विचारों की भावना रखते हैं, जो उन सब पर चिंतन करते हैं, जो शुद्ध और नी स्वार्थ है, सूर्य और चाँद की तरह। अवश्य ही अपने चरित्र में पुण्यात्मा और ज्ञानी बनते हैं और एक प्रभावशाली और धन्य इस्थिति तक ऊपर पहुंचते है। किसी भी प्रकार की उपलब्धि प्रयत्न का मुकुट है। विचार का ताज है, सुन निर्देशित विचार, संकल्प, आत्म संयम और साधुता की मदद से हम ऊपर उठते है। आलस से, आत्म संयम की कमी से, विचारों में, गडबड की वजह से हम नीचे गिरते हैं। हम संसार में उच्च सफलता पा सकते हैं और आध्यात्मिक लोक में भी उच्च स्थिति तक उठ सकते हैं और फिर दम भी। स्वार्थी और दूषित विचारों को अपने में समा कर हम कमजोर और दुर्भाग्य स्थिति में गिर सकते हैं। सही विचार द्वारा प्राप्त विजय को केवल सतर्कता द्वारा ही बनाए रखा जा सकता है। जब सफलता मिलना तय होता है तो बहुत सी चूक जाते हैं और शीघ्र ही असफलता को चखते हैं। समस्त उपलब्धियां चाहे व्यापार, बौद्धिक या आध्यात्मिक जगत में हो, निश्चित रूप से। निर्देशित विचारों का फल है और उसी नियम के अधीन है। उसका वही तरीका है। फर्क सिर्फ प्राप्ति के लक्ष्य में हैं। वे जो थोड़ा पाते हैं उन्हें थोड़ा त्याग करना चाहिए। जो अधिक प्राप्त करते हैं उन्हें ज्यादा त्याग करना चाहिए। वे जो उच्चतम पाते हैं उन्हें महान त्याग करना चाहिए। भाग छे परिकल्पनाएँ और आदर्श। स्वप्न देखने वाले इस संसार के मसीहा हैं। जिसतरह से दृश्य जगत अदृश्य द्वारा पोषित हैं उसी तरह हम मानवता, सभी परीक्षाओं और गलतियों और कष्ट में उसके योगी स्वप्न देखने वालों की सुंदर परिकल्पनाओं द्वारा पोषित होती है। मानवता अपने स्वप्नदृष्टा ओं को भूल नहीं सकती। वे उनके आदर्शों को ऐसे ही फीका पड़ कर मर जाने नहीं दे सकती। वह उनमें रहती हैं। वहाँ उन्हें वास्तविकता वो जैसा मानती है जैसे कि 1 दिन वह उसे देखेगी और जान पाएंगी। संगीतकार, मूर्तिकार, चित्रकार, कवि, पैगम्बर, ऋषि ये जगत के परे की दुनिया के बनाने वाले हैं। स्वर्ग के शिल्पकार हैं। यह जगत सुंदर है क्योंकि ये इसमें रहे हैं। उनके बिना श्रम कारी मानवता मिट जाएगी जो अपने हृदय में एक सुंदर परिकल्पना को और उच्च आदर्श को संजोते हैं, 1 दिन उसे साकार कर पाएंगे? कोलंबस ने एक दूर देश की कल्पना को संजोया था और उसने उसे खोज निकाला। कोपर्निकस ने संसारों की अनेकता और एक विस्तृत ब्रह्मांड के होने की परिकल्पना को पोषित किया था और उसने उसे प्रकट भी किया। ईश्वर बुद्ध ने निष्कलंक सुंदरता और पूर्ण शान्ति के आध्यात्मिक जगत की परिकल्पना को संजोया था और उन्होंने उसमें प्रवेश भी किया। अपनी परिकल्पनाओं को पोषित करो, अपने आदर्शों को पोषित करो, तुम्हारे हृदय में जो संगीत उमड़ता है। मन में जो सुंदरता रूप लेती है, तुम्हारे सूक्ष्मतम विचारों को जो खूबसूरती लपेटती हैं, उसे पोषित करो, क्योंकि उन सबमें से हर्ष पूर्ण परिस्थितियां स्वर्ग पूर्ण वातावरण पनपेंगे और बढ़ेंगे। यदि तुम इन के प्रति सच्चे रहो तो तुम्हारे संसार का अंततः निर्माण होगा चाहने से तुम पाओगे आकांक्षा रखने से प्राप्त करोगे क्या हमारी निम्नतम इच्छाओं को? संतुष्टि का पूर्ण माप मिले और हमारे शुद्धतम आकांक्षा है। पोषण की कमी से नष्ट हो जाए। ब्रह्मांडीय नियम ऐसा नहीं है। ऐसी दशा में चीजों को प्राप्त नहीं किया जा सकता। मांगों और तुम्हें मिल जाएगा। उच्च स्वप्न देखो और जैसे तुम स्वप्न देखोगे, तुम वैसे बन जाओगे। तुम्हारी परिकल्पना उस का वचन है जो तुम 1 दिन बन जाओगे। तुम्हारे आदर्श उसकी भविष्यवाणी है, जिसे तुम अंत में पर्दा उठा कर देख सकोगे। महानतम उपलब्धियां सबसे पहले और लंबे समय तक एक स्वप्न थी। शाहबलूत का वृक्ष अंजू फल में छिपा होता है। चूड़ियां अंडे में पलती है और आत्मा की उच्चतम परिकल्पना में जागृत देवदूत चलते है स्वप्न वास्तविकता के बीज है, तुम्हारी परिस्थितियां हो सकता है, प्रतिकूल हो, परंतु वे ऐसा लंबे समय तक नहीं रहेंगी यदि तुम एक आदर्श को मन में रखकर उसे पाने के लिए जीजान लगा दो। तुम अंतर में यात्रा नहीं कर सकते। एक युवती है और एक युवक है। दोनों ही गरीबी और काम के बोझ तले दबे हुए हैं। लंबे समय तक अस्वस्थ वातावरण वाली वर्कशॉप में बंद। अशिक्षित और सभी प्रकार के शिष्टता से कोसों दूर परंतु दोनों ही बेहतर जिंदगी के सपने देखती है और वे बुद्धि, कृपा, शिष्टता और सुंदरता की कल्पना करते हैं। वे मानसिक तौर पर एक आदर्श जीवन परिस्थिति की कल्पना करते हैं, एक विस्तृत स्वतंत्रता की परिकल्पना करते हैं और एक बड़ी आकांक्षा उन पर हावी हो जाती है, व्याकुलता, उन्हें कर्म करने के लिये। उकसाती है और वे अपने खाली समय और साधनों को चाहे वे अभी कम है, अपने सोई शक्ति हो और साधनों के विकास में लगाते हैं। शीघ्र ही उनके मन इतने परिवर्तित हो जाते हैं कि वह वर्कशॉप उन्हें बांधकर नहीं रख पाती। उनकी सोच से वह इतने बेमेल हो जाती है कि वह उनके जीवन से वैसे ही बाहर हो जाती है जैसे कोई कपड़ा उतारकर फेंक दिया जाता है। जैसे जैसे उनके लिए वे अवसर बढ़ते जाते हैं जो कि उनकी विस्तृत होती शक्ति ओके कार्य क्षेत्र को समा सके। वे उसे हमेशा के लिए बाहर निकल जाते हैं। सालों बाद हम उन्हें फिर देखते है। बहुत ही विशिष्ट तरीकों में हम उन्हें मन की कुछ एक शक्ति यों के अधिकारी पाते हैं जिनके प्रयोग से वि दुनिया भर पर प्रभाव और लगभग आप प्रतिम सामर्थ्य से शासन करते हैं। वे अपने हाथों में विशाल जिम्मेदारियों के सूत्रों को थामे हैं, वे बोलते हैं और जीवन रूपांतरित हो जाते हैं। स्त्री और पुरुष उनके शब्दों में विश्वास करते है, अपने चरित्र को पुनः डालते हैं और सूरज की तरह ये ऐसे स्थाई और प्रकाशित केंद्र बन जाते हैं जिसके चारों ओर असंख्य जीव घूमते रहते हैं। उन्होंने अपने यौवन की परिकल्पना को पा लिया है। वे अपने आदर्शों से एक हो गए हैं और तुम भी नौजवान पाठक अपने हृदय की परिकल्पना को पाओगे, व्यर्थ इच्छाओं को नहीं, चाहे वह ऊंची हो या सुंदर या फिर दोनों का मिश्रण, क्योंकि तुम सदा उसकी ओर खिंचे जाओगे, जिससे तुम गुप्त रूप से सबसे ज्यादा प्यार करते हो। तुम्हारे हाथों में तुम्हारे अपने विचारों का फल मिलेगा तुमने जो कमाया है। वहाँ तुम पाओगे ना ज्यादा नाकाम तुम्हारे वर्तमान का वातावरण चाहे कैसा भी क्यों ना हो, तुम्हारे विचार हो तुम्हारी परिकल्पना तुम्हारे आदर्श द्वारा तुम या तो गिरोगी वैसे ही रहोगे या फिर उठोगे तुम अपने नियंत्रित इच्छाओं जितना छोटे बन जाओगे या तुम अपनी प्रबल अभिलाषाओं जैसे महान बन जाओगे स्टैनटन किरखम दबिश के सुंदर शब्दों में। तुम वही खाते संभाल रहे हो और तुम अभी उन दरवाजों से बाहर निकलते हो जो इतने समय से तुम्हें लगता था की तुम्हारे आदर्शों के लिए रुकावट थी और अपने आप को श्रोताओं के सामने पाते हो। पैन अभी भी तुम्हारे कान पर अटका है उंगलियों पर शाही के धब्बे हैं और तभी उसी क्षण में तुम्हारे अंतर में प्रेरणा की वर्षा होने लगती है। तुम बकरियों को चरा रहे होते हो। और शहर में घूमते हुए पहुँच जाते हो। फटे मुँह देहाती की तरह और आत्मा के निर्भय मार्गदर्शन में तुम एक गुरु के आश्रम में पहुँच जाते हो और एक समय के बाद वे कहते हैं। तुम्हें सिखाने के लिए मेरे पास और कुछ नहीं है। अब तुम स्वयं गुरु बन गए हो जो थोड़े समय पहले तक बकरियां चराते हुए महान कार्यों के घटने के स्वप्न देखा करता था। बेपरवाह, अज्ञानी और आलसी केवल चीजों के हुए प्रत्यक्ष प्रभाव को देखते हुए ना की स्वयं चीजों को भाग्य, किस्मत और सहयोग के बारे में बात करते हैं। किसी को धनवान बनता देखकर कहते हैं। कितना भाग्यशाली है किसी को सुप्रसिद्ध विद्वान् बनता दे। वे आश्चर्य से कहते हैं, उस पर कितनी कृपादृष्टि है? और किसी साधु प्रवृत्ति वाले व्यक्ति और उसका अन्य लोगों पर प्रभाव पड़ते देख कर वे टिप्पणी करते हैं, देखो किस्मत कैसे हर कदम पर उसका साथ दे रही है। वे उन परीक्षाओं, असफलताओं और संघर्ष को नहीं देखते जो इन स्त्री पुरुषों ने अनुभव पाने के लिए सहर्ष स्वीकार आ हैं। उन्हें इनके द्वारा किए गए त्याग का साहसिक प्रयत्न का और विश्वास जिसे उन्होंने अपनाया है, का ज़रा भी ध्यान नहीं है जिससे कि वे अलग दिखने वाले लक्ष्य को प्राप्त कर सके और अपने हृदय की परिकल्पना को पा सकें। उन्हें मन के अंधकार और दिल के टूटने का कोई अहसास नहीं होता। उन्हें केवल प्रकाश और प्रसन्नता दिखती है और वे उसे भाग्य कहते हैं। विल लंबी और कठिन यात्रा नहीं देखते, केवल सूखी परिणाम को देखते हैं और वे उसे सद्भाग्य कहते हैं। वे प्रक्रिया को नहीं समझते, केवल नतीजा देखते हैं और उसे सहयोग कहते हैं। हर मानव कार्य में प्रयत्न है और फल भी है। और प्रयत्न कितना सशक्त है। इसे फल से मापा जाता है या कोई संयोग नहीं है। कहे जाने वाले उपहार शक्ति, बहुत इक बौद्धिक और आध्यात्मिक अधिकार प्रयत्न किए हैं। वे पूर्ण किए हुए विचार है, प्राप्त किये हुए लक्ष्य है और साकार परिकल्पनाएँ है वहाँ परिकल्पना जिसकी तुम अपने मन में प्रशंसा करते हो, वहाँ आदर्श जिसे तुमने अपने हृदय में। विराजित कर रखा है उससे तुम अपने को बनाओगे और यही तुम। भाग साथ प्रशांति। मन की शांति ज्ञान का एक सुंदर मणि है। वहाँ आत्म संयम के लंबे और धैर्यपूर्ण प्रयत्न का नतीजा है। उसकी उपस्थिति परिपक्व अनुभव का और नियम और विचारों के उच्च ज्ञान और कार्यकलाप का चिन्ह है। हम उसी मात्रा में शांत होते हैं जितना हम विचार विकसित अस्तित्व के रूप में स्वयं को समझते हैं, क्योंकि ऐसा ज्ञान विचार के फल शुरू निश्चित ही। दूसरों को समझने की क्षमता रखता है और जैसे हम सही समझ को विकसित करते हैं और कारण और प्रभाव के आधार पर आंतरिक भावनाओं और विचारों को अधिक स्पष्टता से समझते हैं। हम चीखते चिल्लाते नहीं और चिंतित और दुखी नहीं रहते। हम संतुलित वचनबद्ध और शांत रहते हैं। वे लोग जो शांत है, जिन्होंने स्वयं को नियंत्रित करना सीखा है। जानते हैं कि स्वयं को दूसरों के माफी कैसे बनाया जाए और ये दूसरे बदले में शांत लोगों की आध्यात्मिक सामर्थ का सम्मान करते हैं और यह सोचते हैं कि उससे सीख सकते हैं और उस पर भरोसा कर सकते हैं। जीतने अधिक प्रशांत हम बन जाते हैं, उतनी अधिक होती है हमारी सफलता, हमारा प्रभाव और अच्छा ई के लिए हमारा सामर्थ। उदाहरण के लिए, साधारण से बिक्री करने वाले लोग भी जैसे जैसे अपने आत्म नियंत्रण और समभाव हो बढ़ाएंगे। उनकी व्यावसायिक प्रचुरता बढ़ती जाएगी, क्योंकि लोग ऐसे लोगों के साथ ही काम करना पसंद करेंगे जिनका व्यवहार अच्छा और स्थिर है। सशक्त और शांत लोगों को सदा सम्मान मिलता है और उनसे प्यार किया जाता है। वे प्यासी भूमि में छांव देने वाले पेड़ और फिर तूफान में पनाह देने वाली चट्टान की तरह होते हैं। शांति, हृदय, मीठा स्वभाव और संतुलित जीवन किसे पसंद नहीं है? इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वर्षा होती है या सूरज चमकता है या इन आशीर्वादों को पाने वाले के जीवन में क्या परिवर्तन आते हैं। वे हर दम मधुर और शांत रहते हैं। वह चरित्र की शिष्टता जिसे शांतता कहते हैं, संस्कृति का आखिरी सबक है, वह जीवन का फूलना है। आत्मा का फल ना है। वह ज्ञान की तरह मूल्यवान है और उसकी सोने से भी ज्यादा कामना करनी चाहिए। हाँ, उत्कृष्ट सोने से भी ज्यादा पैसे को पाने की चाह कितनी तो अच्छी लगती है, जब उसकी तुलना एक शांत जीवन जो सत्य के सागर में लहरों के नीचे आंधी तूफान की पहुँच के परे शाश्वत शांति में बसता है, हम ऐसे कितने ही लोगों को जानते हैं जो अपने जीवन को आप प्रिय बना लेते हैं। जो अपने विस्फोटक गुस्से के कारण वह सब जो मधुर और सुन्दर है उसे। तबाह कर देते हैं जो अपने चरित्र की शिष्टता का नाश कर देते हैं और मनमुटाव पैदा कर देते हैं। यहाँ एक प्रश्न है कि क्या बड़ी मात्रा में लोग अपने जीवन को तबाह नहीं करते और क्या वे नासमझी और आत्म नियंत्रण की कमी के कारण अपने जीवन की खुशियों को मार नहीं देते? हम अपने जीवन में ऐसे कितने कम लोगों से मिलते है जो शांत होते हैं। जिनमें अद्भुत शिष्टता होती है। जो कि एक परिपक्व चरित्र की विशेषता है। हाँ अनियंत्रित गुस्से से मानवता आवेश में आती है। अनियंत्रित दुख से उत्तेजित हो जाती है, व्यग्रता और संशय से प्रभावित होती है केवल वैज्ञानिक जिनके विचार नियंत्रित और शुद्ध है, आत्मा की तेज हवाओं और तूफानों और हवा को काबू में ला सकते हैं। तूफान में डाँवाडोल आत्मा चाहे तुम कहीं भी क्यों ना हो, चाहे किसी भी परिस्थिति में क्यों न रहते हों, यह जानती है की जीवन के समुद्र में पवित्रता के द्वीप मुस्कुरा रहे हैं और तुम्हारे आदर्शों का उजला किनारा तुम्हारे आने का इंतजार कर रहा है। विचारों की पतवार को अपने हाथों में एक कसकर पकड़ रखो, तुम्हारी आत्मा के जहाज में प्रबल स्वामी आराम करता है, बा केवल सोता है, उसे जगाओ, आत्मनियंत्रण सामर्थ है। सही विचार श्रेष्ठता है, शांतता शक्ति है, अपने हृदय से कहो, शांत रहो, स्थिर रहो।","यह ऑडियोबुक जेम्स एलेन द्वारा लिखी गई है जिसका नाम ऐज़ मैन थिंकथ है जिसका हिंदी अनुवाद लिया गया है जैसा मैन थिंक करता है आप इस ऑडियो को सुनकर अपने जीवन में निराशा से बाहर आ सकते हैं और कई आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं इसमें आपको हिंदी ऑडियोबुक, हिंदी ऑडियोबुक, हिंदी ऑडियोबुक, हिंदी ऑडियोबुक, हिंदी में ऑडियोबुक, प्रेरक ऑडियोबुक, प्रेरक ऑडियो, सर्वश्रेष्ठ हिंदी प्रेरक ऑडियोबुक, हिंदी में सर्वश्रेष्ठ प्रेरक ऑडियोबुक, हिंदी में सबसे बड़ी ऑडियोबुक, हिंदी में प्रेरणादायक ऑडियोबुक, हिंदी में प्रेरणादायक ऑडियोबुक, हिंदी में जीवन बदलने वाली ऑडियोबुक, हिंदी ऑडियोबुक ऑनलाइन, #हिन्दीऑडियोबुक, #मोटिवेशनलऑडियोबुक, #inspirationalaudiobookinhindi, #asmanthink" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपके लिए लेकर आई हूँ वो एक जादू की कहानी है। आज की हमारी कहानी का टॉपिक है जादू की पतीली। बहुत समय पहले की बात है, एक घाव था, उस गांव का नाम था राम नगर। राम नगर में एक स्त्री अपने छोटे से मकान में रहती थी। उस स्त्री का नाम था पारु। पारू की एक लड़की भी थी वह दोनों माँ बेटी उस मकान में अकेली लेकिन खुश रहती थी। पारो के पास एक पतीली थी। वह पतीली उसे विरासत में मिली थी। वह पतीली कोई साधारण पति ली नहीं थी बल्कि एक जादुई और चमत्कारी पति ली थी उस पतीली का उन दोनों माँ बेटियों को बहुत सहारा था। वह पतीली उन्हें अच्छे अच्छे खाने बना कर देती थी। इसलिए उन दोनों को खाने की कोई चिंता तो रहती ही नहीं थी। जब कभी उन्हें भूख लगती तो वह उस पतीली को चूल्हे पर चढ़ा कर कहती पतीली, पतीली तुरंत पका भूख लगी है खीर पका इतना कहते ही उस पति में खीर उबलने लगती थी और पूरे घर में उसकी महक फैल जाती। फिर दोनों माँ बेटी अपने अपने बर्तन में खीर उतारती और पेट भरकर मज़े से खाती। जब उन दोनों का खाने से दिल भर जाता तो वह पतीली से कहती पतीली, पतीली, होजा पर भूख हमारे भागी बस। इतना सुनते ही पतीली एकदम शांत पड़ जाती और उसमें खीर पकना भी बंद हो जाता। पारो के पड़ोस में एक बूढ़ा व्यक्ति रहता था। वह हर समय उन दोनों माँ बेटियों के विषय में ही सोचता रहता। उस बूढ़े का नाम था राम दास। पारो और उसकी बेटी उस बूढ़े रामदास को चाचा कहकर पुकारतीं थी। वह बूढ़ा हर समय उनके विषय में यही सोचता कि पारो और उसकी बेटी आखिर क्या खाकर अपना गुज़ारा करती है। कामकाज तो कुछ करती नहीं जिससे इनका गुज़ारा चले। उसे यही बात सोच सोचकर आश्चर्य होता था। उन्हें इस बात का आज तक अंदाजा नहीं हो पाया था। रामदास की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी थी इसीलिए वह उन माँ बेटी के बारे में ज्यादा सोचता था। 1 दिन उसने फैसला कर ही लिया की आज मैं खिड़की से झांककर अंदर जरूर देखूंगा कि यह माँ बेटी आखिर क्या खाकर अपना गुज़ारा करती है। वह रात के समय चुपचाप पारो की खिड़की के पास आकर खड़ा हो गया और अंदर झांक कर देखने लगा कि जब इन्हें भूख लगेंगी तो ये क्या खाएगी? कुछ देर के पश्चात ही पारो की बेटी वहाँ आकर अपनी माँ से बोली, माँ भूख लगी है। अभी 2 मिनट इंतज़ार कर मैं अभी खीर बनाती हूँ। उसने अपनी बेटी से प्यार से कहा। फिर पारो ने पतीली उठाई और उसे चूल्हे पर चढ़ा कर कहने लगी। पति ली पति ली तुरंत पक्का भूख लगी है खीर पका। यह देखकर रामदास हैरान हो गया। उसे पतीली का रहस्य समझ में आ चुका था। अब वह सोच रहा था कि यह तो बड़े काम की पति ली है। इस पतीली को पाने का कोई ना कोई उपाय तो करना ही पड़ेगा। उसने सोचा की जब ये माँ बेटे किसी काम से बाहर जाएँगी तो मैं उस वक्त इनके घर में जाकर वह पति भी चुरा लाऊँगा। किसी को पता भी नहीं चलेगा। अब 1 दिन दोनों माँ बेटी किसी काम से बाहर गई तो राम दास ने देख लिया। दोपहर का समय था वह चुपचाप उनके घर में घुसा और पतीली चुरा लाया। घर पर आकर उसने पतीली को देखा। फिर वह पारो की तरह उस पतीली को चूल्हे पर चढ़ा कर बोला। पतीली, पतीली तुरंत पका भूख लगी है। खीर पका पतीली में खीरू बनने लगी। यह देखकर रामदास की खुशी का ठिकाना न रहा। उसने खूब खीर खाई, लेकिन खीर खाते खाते उसका पेट भर चुका था और खीर पतीली में उबलती ही जा रही थी। धीरे धीरे पूरी पतली खीर से भरने लगी। रामदास ने केवल पकाने का ही मंत्र सुना था। उसे बंद करने का मंत्र वोट नहीं जानता था। अब वो परेशान हो गया की क्या करें खीर, पतीली से बाहर निकलना शुरू हो गई। देखते ही देखते खीर पूरे फर्श पर फैलने लगी। वह घबराकर बोला बस बस बस करो, अब मुझे खीर नहीं चाहिए, लेकिन उसके कहने का कोई असर नहीं हुआ। पतीली से खीर बराबर उबल कर बाहर निकल रही थी। रसोई में रास्ते पर सब जगह खीर ही खीर हो गई थी। पूरे घर में गर्म गर्म खीर बिखरकर फैल गई। यह देखकर रामदास घबरा गया। वह इधर उधर अपना बचाव करने के लिए दौड़ रहा था। जब घर में कहीं भी जगह न बची तो वह चिल्लाता हुआ बाहर निकल गया और ये कोई जल्दी से आओ और इस पतीली से कुछ कहो वरना पूरे गांव में खीरी खीरी हो जाएगी। खीर खाने के लिए अभी कुएं को झंड भी उतर जाएगा। अरे जल्दी से आओ और मेरी जान बचाओ। लेकिन खीर बराबर उबलती ही जा रही थी और पतीली से बाहर निकल रही थी। उसी समय पारो और उसकी बेटी वापस आ गए। गली में खीर पहली देखकर वह हैरान रह गई। पारो की समझ में बात आ चुकी थी, वह जान चुकी थी कि उसकी पति ली रामदास चाचा ने ही चुरा ली है। वे जल्दी से रामदास चाचा के घर गई और उसने पति ली के कान में फुसफुसाया पति ली पति ली हो जा बंद, भूख हमारी भागी बस। इतना सुनते ही पतीली में खीर उबालनी बंद हो गई। पारो रामदास के पास आकर बोली, चाचा तुम्हारी समस्या का समाधान मैंने कर दिया है, अब आप अंदर चले जाईये। पैरों मुझे माफ़ कर दो, तुम्हारे घर में घुसकर मैं यह पतीली चुरा लाया था अब मुझे खीर नहीं चाहिए और यह पतीली तुम अपने पास ही रखो। पारो ने पतीली के कान में कौन सा मंत्र फूंका था इसका पता रामदास को नहीं चल पाया था। मगर जब कभी भी वह सो जाते तो उन्हें सपने में खीर खीर दिखाई देती है और वह चौंक कर जाग जाते हैं तो बच्चों इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है की हमे कभी किसी की भी चीजें नहीं चुरानी चाहिए वरना अंजाम बुरा होता है। ओके बाय।",यह एक महिला और उसकी बेटी की शानदार कहानी है। वे खुशी-खुशी अपने घर में रहने लगे। उनके पास एक जादुई बर्तन है। जब भी उन्हें भूख लगती वे उस बर्तन को आज्ञा दे देते और तुरंत ही उस बर्तन में कुछ खाना आ जाता। यह एक जादू था और उनके पड़ोसी रामदास को जादुई बर्तन के बारे में पता चल गया। रामदास ने उस महिला के घर से बर्तन चुरा लिया। सुनिए पूरी कहानी और जानिए आखिर हुआ क्या। "हैलो बच्चों, आज जो कहानी में आपको सुनाने जा रही हूँ उसका टाइटल है चमत्कारी दीपक की कथा। महात्मा जिलानी की प्रसिद्धि दूर दूर तक फैली थी। उन जैसा विद्वान और सदाचारी व्यक्ति ढूँढें भी ना मिलता था। देखा जाता है कि कुछ व्यक्ति विद्वान तो बहुत होते हैं, पर नैतिक आचरण की दृष्टि से गुणी नहीं होते। फिर भूल जाते हैं कि ज्ञान की शोभा सदाचरण से ही होती है। सदाचार के अभाव में ज्ञान भी निरर्थक बन जाता है और जिलानी इसके अपवाद थे। एक बार महात्मा जीलानी के पास नगर के अनेक संभ्रांत व्यक्ति और सामान्य जन आये। उन्होंने निवेदन किया, महात्मन आप बड़े ज्ञानी है, वैसे भी आप धन्य हैं क्योंकि आपका समय श्रेष्ठ कार्यों में लगता है। आप परोपकार, ईश्वर, चिंतन और सद्ग्रंथों के अध्ययन में लगे रहते हैं। आपके ज्ञान से हम भी लाभ पा सकें ऐसा कोई उपाय कीजिये। जिलानी बोले पुत्र, मेरी कुटिया का द्वार तुम सब के लिए सदैव खुला हुआ है। तुम जब चाहो यहाँ आओ, इस विषय पर चाहो चर्चा करो। तभी एक नागरिक बोला। महरोज यह ठीक है क्या? आपके प्रेरणा भरे वचन हमें सन्मार्ग पर ले जाते हैं, हमारा उत्थान करते हैं, पर हम ठहरे गृहस्थ परिवार के भरण पोषण में समाज के उपयोगी कामों में हमारा सारा समय निकल जाता है। जब हम चाहे तभी तो आपके पास आ नहीं सकते। इसलिए मेरा निवेदन है, कृपया आप हमारे लिए कोई पुस्तक लिखें, उसे हम कभी भी पढ़ सकते हैं। सभी को यह सुझाव बहुत अच्छा लगा। जीलानी ने भी यह कार्य प्रसन्नता से स्वीकार किया। ज्ञान की उपयोगिता भी इसमें है कि वह किसी के काम आये। जिलानी ने नीती संबंधी पुस्तक लिखना प्रारंभ कर दिया। राजा ने उसके लिए सारी सुविधाएं जुटा दी। दिन में वे बड़े व्यस्त रहते थे। मनुष्य की सेवा सहायता मैं उनका बहुत सारा समय निकल जाता था। उनका विचार था कि अपने लिए तो पशु पक्षी भी जीते हैं। मनुष्य की सार्थकता तो इसी में है कि वह दूसरों के काम आये। दिन में जब भी थोड़ा समय मिलता वे पुस्तक लिखने बैठ जाते। जीलानी ना तो खाली बैठते थे, ना ही समय नष्ट करते थे। जिसमें ये दोनों गुण आ जाते है वो सदैव उन्नति करता है। जिलानी सोचते थे की अधिक सोने से भी समय नष्ट नहीं होता है। इतना ही सोना चाहिए जितना शरीर के लिए आवश्यक है। मनुष्य जैसी चाहे वैसी आदतें डाल सकता है। दिलानी रात में केवल तीन 4 घंटे सोते हैं और अाधी रात में। जब सारा संसार सोया होता वे उठकर अपने काम में लग जाती। नित्य कर्म करके वे अपना अध्ययन आरंभ कर देते हैं। जीलानी के साथ उनके कई शिष्य भी रहते थे। अपने गुरु का भी बड़ा सम्मान करते थे, उनकी सेवा करते थे। गुरु का प्रत्येक कार्य उनके लिए अनुकरणीय था। उनके कार्यों को वि ध्यान से देखते थे। 1 दिन की बात है। सारे शिष्य सुझाते हुए आपस में बात कर रहे थे। वाहिद बुला एक चीज़ देखी तुमने क्या? जलाल मोहम्मद ने पूछा अरे वही चमत्कारी दीपक जब महात्मा जी लिखते हैं तो वहीं चमत्कारी चिराग जलाते हैं और जब वे पढ़ते हैं या पूजा करते हैं तो सादा दीपक जलाते हैं सावर जो कि अब तक अपने धैर्य को रखे हुए था और उनकी सारी बातें सुन रहा था, अचानक बोल पड़ा अच्छा अब्बास समझ में आयी की वे इतना अच्छा क्यों लिखते हैं? वे जो कुछ भी लिखते हैं और सीधा हमारे दिमाग पर असर करता है। इसका कारण वही चमत्कारी दीपक है। और इसीलिए वे इतनी जल्दी जल्दी लिख जाते हैं। हम तो इतनी देर में बात सोचते ही रह जाएंगे। उनको तो पूरा पन्ना ही बढ़ जाता है। अब्दुल्ला कहने लगा सभी शिष्यों ने तय किया कि चल कर गुरूजी से ही चमत्कारी दीपक के बारे में कुछ अधिक जानकारी ली जाए। सावर और नाहिद तो यह भी सोच रहे थे कि महात्मा जी से हम उस दीपक को जलाकर लिखने की आज्ञा ले लेंगे। उस के प्रकाश में हम जो कुछ भी लिखेंगे वो उतना ही प्रभावकारी होगा जितना स्वयं महात्मा गिलानी का होता है। साबिर आगे बढ़कर बोला गुरु जी आपको दीपक। जलाकर ही तो लिखते। जब आप भजन करते हैं या पढ़ते हैं तब तो उसे बुझा कर दूसरा दीपक जलाते हैं। अब जिलानी जी की समझ में सारी बात का चुकी थी। वे बोले, पुत्रों। तुम उन दो दीपकों का रहस्य नहीं समझे। कोई भी दिमाग चमत्कारपूर्ण नहीं है। बात सिर्फ इतनी है कि जब मैं पुस्तक लिखता हूँ तो वो दीपक जलाता हूँ जैसे राजा साहेब ने भेजा है। मुझे लिखने में कोई परेशानी ना हो इसलिए उनका दरबारी चिराग तेल, कागज, कलम आदि दे गया था। जब मैं अपना काम करता हूँ तो उस दीपक को बुझा देता हूँ, तब मैं वह दीपक जलाता हूँ जिसमें घर का तेल होता है। ऐसा आप क्यों करते हैं? भला राजा साहब के बेटे दीपक को ही देर तक जला लेंगे तो क्या हानि है ना इतने पूछा। जीलानी ने समझाया, राज्य के कार्य में ही राज्य का धन खर्च होना चाहिए। यदि उसे मैं अपने काम में लगाता हूँ तो यह चोरी है। राजकोष तो सीमित होता है, उसकी कौड़ी कौड़ी जनता के कल्याण में लगनी चाहिए। जिंस देश। ये मनुष्य राज्य की एक पाई भी अपने ऊपर खर्च करते हैं। वह देश कभी उन्नति नहीं कर सकता, इसलिए वह आदमी जो राज्य का पैसा अपने स्वार्थ को पूरा करने में लगाता है, निंदनीय है। महात्मा जिलानी की बात सुनकर शिष्यों का सिर श्रद्धा से झुक गया तो बच्चो इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है की हमे सरकार और राज्य का पैसा अपने निजी कार्यों पे कभी खर्च नहीं करना चाहिए और ना इतना स्वार्थी होना चाहिए और अपने समय की हमेशा कद्र करनी चाहिए। समय का सदुपयोग करना चाहिए। ओके बाइ?",सभी को नमस्कार मैं सभी बच्चों को सोने के समय की कहानियाँ बता रहा हूँ। मेरी कहानियाँ अभिनव और प्रेरणादायक हैं। अपने बच्चों के साथ मेरी कहानियाँ सुनें। यह निश्चित रूप से आपके बच्चे के व्यक्तित्व के निर्माण में मदद करेगा। "क्या आप भी अपना पॉडकास्ट बनाने का सोच रहे हैं? तो ऐंकर ट्राई कीजिए, ये पॉडकास्ट बनाने का सबसे आसान तरीका है। नंबर एक ये फ्री है नंबर दो। इसमें कई सारे ऐसे टूल्स है जो आपको अपने फ़ोन और कंप्यूटर पर रिकॉर्ड और एडिट करने की फैसिलिटीज देते हैं। नंबर तीन आप अपने पॉडकास्ट को डिस्ट्रीब्यूट भी कर सकते हैं, जिससे इसे इस स्पॉटिफाइ और दूसरे प्लैटफॉर्म्स पर सुना जा सकें। डाउनलोड कीजिये ये फ्री एंकर ऐप या विजिट कीजिए ऐंकर डॉट ऐफ़ एम अपना पॉडकास्ट स्टार्ट करने के लिए? हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपके लिए लेकर आई हूँ, उसका टाइटल है विद्या का महत्त्व। अजय अपने भाई बहनों में सबसे छोटा था। उसकी माँ उसे बहुत प्यार करती थी। प्यार करती तब भी ठीक था, वे तो उसे अंधा दुलार करती थी। अजय की गलती पर यदि कोई उससे कुछ भी कहता तो वह अजय से कुछ ना कहकर उल्टे उसे ही डांट लगाती। भाई बहनों को यह अच्छा नहीं लगता। पिताजी कहते तुम इसे लॉर्ड, प्यार में बिगाड़ोगी। इस पर माँ कहती अजी रहने भी तो बच्चा है, ये तो अभी बड़ा होगा तो अपने आप समझ आ जाएगी। वे यह भूल जाती की बचपन में जो आदतें अपना लेते हैं, वे सहज नहीं छूटती। यही कारण है कि समझदार माता पिता बच्चों के सही विकास का बहुत अधिक ध्यान रखते हैं। प्रारंभ से ही उनमें कोई गलत आदत नहीं पनपने देते। जिन बच्चों को माता पिता केवल प्यार देते हैं, अनुशासन नहीं उनके बिगड़ने का डर बना ही रहता है। अजय के साथ भी यही बात थी। वह बड़ा ही शरारती बन गया था। पढ़ने लिखने में तो उसका तनिक भी लगता था। वह सारे दिन इधर उधर ही उछल कूद मचाता रहता। बड़े भाई यदि पढ़ने के लिए डांटते तो वह रोने लगता। उसे रोते देखकर माउस का पक्ष लेने लगती। भाई बेचारे चुप रह जाते। अजय स्कूल जाता पर वहाँ भी उसका तनिक भी मन ना लगता था। कक्षा में जब सारे बच्चे ध्यान से पढ़ते होते तो अजय बाहर देखता रहता था और फिर कोई नई शरारत सोचता रहता। वह सदैव पीछे बैठता और पढ़ाई के समय इधर उधर ही देखता रहता। उससे कोई प्रश्न पूछा जाता तो कभी भी वह उसका उत्तर न दे पाता था। कक्षा में वह अध्यापकों की दृष्टि से बचने का ही प्रयास करता रहता। पर अजय लंबा था, अतएव पीछे बैठने पर भी वह शिक्षकों को अच्छी तरह दिखाई देता था। अजय के हिंदी के अध्यापक उसके पिताजी के घनिष्ठ मित्र थे। वे उसे प्रायः समझाया करते। बेटे देखो यदि तुम ठीक से पढोगे लिखोगे तो बड़े आदमी बनोगे, सभी तुम्हारा आदर करेंगे। यदि तुम यूं ही शरारत करते रहोगे तो अपना समय बर्बाद करते रहोगे। थोड़ा बहुत भी ना पढ़ोगे तो बड़े होकर तुम्हें बहुत परेशानी होगी। यह समय तुम्हारे जीवन के निर्माण का है। इसका सदुपयोग करो अन्यथा फिर जीवन भर पछताना ही शेष रहे। गा बीता हुआ समय कभी लौटकर नहीं आता। अजय उनकी बातें ध्यान से सुनता और दूसरे ही क्षण वह उन सब को भूल जाता। माँ के अंधे लड़ते, उसमें यह आदत पड़ गयी थी कि जो अच्छा लगे वह करो, जो न लगे वह न करो। पढ़ाई उसे तनिक भी अच्छी नहीं लगती। त्यावर ना कक्षा में ध्यान से पढ़ता था, ना घर आकर पढ़ने की कोशिश करता था। बड़े भाई के डर से थोड़ी बहुत देर पड़ने भी बैठता तो इधर उधर देखता रहता, कागज पर खेलता खेलता रहता या फिर किताब खोलकर कुछ ना कुछ सोचता रहता था। इस सबका परिणाम जो होना था, वही हुआ। अजय बार बार अनुत्तीर्ण होने लगा। एक एक कक्षा से वह दो तीन बार में उत्तीर्ण होता और वह भी तब जब उसकी माँ स्कूल में कुछ रुपए दे आती। यह स्थिति देखकर उसके पिताजी बड़े चिंतित हुए। अजय को गांव से उसके बड़े भाई के पास मैनपुरी भेज दिया गया। अजय के भाई मैनपुरी में वकील थे। अजय के माता पिता सोचते थे कि मैनपुरी जाकर वह सुधर जाएगा। पर हुआ इसका उल्टा। अजय के भाई को तो बिल्कुल भी समय ना मिलता था। उन्होंने उस के लिए एक अध्यापक रख दिया था। अजय उनसे भी ना पढ़ता था। पढ़ने की अपेक्षा उसका अधिकतर समय गप्पे मारने, अध्यापक को तंग करने में ही बीत जाता। वह ना कभी स्कूल का काम करता और ना कभी अध्यापक का। अध्यापक के आने पर जैसे तैसे उनका थोड़ा बहुत काम कर लेता था। 1 दिन वे उसे जो पाठ पढ़ाते, दूसरे दिन उसे ध्यान ही नहीं रहता। कभी भी वह उसे दोहराने की कोशिश भी ना करता। इस सबका परिणाम जो होना था, वही हुआ। अजय मैनपुरी में नवीं कक्षा में तीन बार अनुत्तीर्ण हुआ। उसके भाई ने उसे प्यार से डाट से मार से सभी प्रकार से समझाकर देख लिया था। 1 दिन तो वह मन लगाकर पढ़ने की प्रतिज्ञा करता और दूसरे दिन भूल जाता। अजय को आखिर फिर गांव भेज दिया गया। अब वह 18 साल का किशोर बन गया था। इस आयु में काम करने की बहुत शक्ति होती है। बुरे लड़कों की संगति में पड़कर अजय कहीं बिगड़ न जाए यह सोचकर उसके पिता ने उसे खेती के काम में अपने साथ लगा लिया पर अजय कामन खेती में भी बिल्कुल ना लगता था। धूप जड़ा आंधी तूफान सह कर कठोर परिश्रम करके ही अन्न के दाने उगते हैं परंतु परिश्रम करना तो अजय के स्वभाव में हीना था। कुछ समय बाद अजय की माँ भी गुजर गई। पिताजी अब बहुत बूढ़े और अशक्त हो चले थे। अजय न घर पर ही कुछ काम करता था, ना खेती ही देखता था। वह सारे दिन निठल्ला ही घूमता था। उसके भाई उससे बहुत नाराज रहने लगे। भाई तो मुँह से कुछ ना कहते, परंतु भाभियाँ ताने मारने से ना चूकती। अजय के निठल्लेपन को वे जब तक कोसती रहती, यहाँ तक कि उसे चैन से भरपेट खाना मिलना भी दूभर हो गया था। अब अजय बड़ा उदास और परेशान रहने लगा। वह अपने भाइयों को देखता था कि सभी खूब कमाते हैं और मस्त रहते हैं। वह अपने आप को कोसता कि वह क्यों ना पड़ा। अब उसे अनुभव होता था कि यदि माउस का पक्ष न लेती, पढ़ाई के विषय में कठोरता अपनाती तो संभव था वह भी पढ़ लिख जाता और अपने भाइयों की तरह ही शान से रहता। पिताजी भी अजय के लिए चिंतित रहते थे। वे सोचते थे की मुझे भी भगवान न जाने कब बुला ले, तब मेरे पीछे कौन अजय की देखभाल करेगा? अच्छा होगी यह मेरे सामने ही स्वावलंबी बन जाए। अतः उन्होंने अजय को समझा बुझाकर उसके लिए गांव में ही एक दुकान खुलवा दी। अभी भी अजय अपनी उस छोटी सी दुकान पर काम करता है जैसे तैसे अपना और अपने परिवार का पालन पोषण करता है। अब अजय अपने भाइयों को देखकर ठंडी आस भरकर सोचता है कौश मैं भी पढ़ लिख जाता विद्यार्थी जीवन में जो ठीक से नहीं पढ़ते, अपना समय बेकार गंवाते हैं, उन्हें अंत में पछताना ही पड़ता है तो बच्चो। इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है। की हमे अपने विद्यार्थी जीवन में पढ़ाई लिखाई पर विशेष ध्यान देना चाहिए क्योंकि जब हम समय रहते नहीं पढ़ते है, अपना काम नहीं करते हैं तो बाद में हमें बहुत पछताना पड़ता है। ओके बाइ?","सभी को नमस्कार, यह एक लड़के की नैतिक कहानी है। लड़के का पढ़ाई में मन नहीं लगता था। वह इतना नटखट था कि जीवन में कोई काम नहीं कर पाता था। लेकिन समय बहुत तेजी से दौड़ता है जब वह बड़ा हुआ तो उसे अपनी गलती और पढ़ाई के महत्व का एहसास हुआ इसलिए अपने समय का एक भी मिनट बर्बाद न करें क्योंकि आप अपने जीवन के निर्माता हैं। इसे सफल बनाना या बेकार करना आप पर निर्भर करता है। कड़ी मेहनत करें और हमेशा अपना सबक सीखें। शिक्षा अमूल्य है। अच्छी शिक्षा अच्छे जीवन का निर्माण करती है। पूरी कहानी सुनें और कहानी के नैतिक के बारे में जानें।" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपके लिए लेकर आई हूँ उसका शीर्षक है सतरंगी टिफिन। छपाक धप, ऊंची छलांग और कुलांचे भरता हुआ अपनी टोली के साथ जंगल में पेड़ों की ओट में चला गया। रेशमी सुनहरी त्वचा और उस पर भूरे सफेद रंग के धब्बे, खूबसूरत बड़ी बड़ी आंखें, चौकन्ने कान फुर्तीला इतना की एक पल में यहाँ से वहाँ उड़नछू यह था सोना मृग अरे मम्मा, यहाँ आओ, मुझे कुछ पूछना है। वान्या ने अपनी कहानी की किताब पढ़ते हुए माँ को पुकारा। अब क्या हुआ? कहाँ टक गई कहानी तुम्हारी माँ ने वान्या के पास आते हुए कहा। कहानी में ऊपर लिखा है सोना, हिरण और नीचे लिखा है सोना अमरिक तो बताओ ना मेरी क्या है और ये मेरी हिरण को ही तुम रख कहते हैं। समझाते हुए माँ सोचने लगी कि वान्या अभी कक्षा पांच में है, लेकिन उसे वन्य प्राणियों और वन्य जीवन से बहुत लगाव है। बड़ी उत्सुकता से पूछती रहती है, जंगलों और जानवरों के बारे में ठीक है मा थैंक यू पता नहीं कब मैं वापस स्कूल जाउंगी। 3 दिन से घर पर ही हूँ, तबियत ठीक हो जाए तो मैं स्कूल जाकर दोस्तों के साथ मस्ती करूँ ऐसा सोचने लगी। माँ कहने लगी, हाँ, हाँ तुम बिल्कुल स्कूल जाओगी। जब तुम्हें कहते है की तुम न्यूट्रिशस डाइट लो तब तुम अनसुनी कर देती हो, नहीं तुम्हें सब्जियां अच्छी लगती है, ना ही दूध पीना पसंद है। तुम जो फास्ट फूड खाती रहती हो, उसमें तमाम प्रिजर्वेटिव होते हैं, फिर उन्हें खाकर तुम अक्सर बीमार पड़ जाती हो। तभी पापा ने मम्मी को आवाज लगाई और बताने लगे कि कैसे उनके दोस्त की बेटी श्रेया स्कूल में रेस में भाग लेने की तैयारी कर रही है। कैसा है मेरा बच्चा? पापा ने सिर पर हाथ फेरते हुए कहा। पापा, मैं जल्दी से ठीक होना चाहती हूँ, मुझे भी रेस में भाग लेना है, हाँ, तुम जल्दी ठीक होजाओ। ताकत बढ़ाने वाली चीजें खाओ है। पापा कहते हुए वान्या ने किताब खोली और फिर कहानी में खो गई। अपने परिवार के साथ निकल पड़ा सोना अमरीक सर्दियों की धूप सेकने के लिए साथ में हरी भरी घास और उछल उछल कर सेब और मैं पल के पेड़ों की छोटी छोटी शाखाओं को तोड़कर खा रहा था। खा पीकर सो ना अपनी माँ के पास आकर बैठ गया और बोला माँ कहानी सुनाओ ना हिरण की माँ कहानी सुनाने लगी। कहानी में है इंसानों की बातें। सोना एक बार एक परिवार हमारे यहाँ आया और जानते हो? उसने देखा कि हम लोग कितनी तेजी से उछलते है, सबसे लंबी कूद है। हमारी और उनका नन्हा बेटा बड़े ध्यान से अपनी माँ की बातें सुन रहा था की हम हिरण शाकाहारी हैं लेकिन हमारे अंदर गजब की फुर्ती है। और हम वन से प्राप्त खाद्य पदार्थ खाते हैं। गाजर से भरी पत्तियाँ, अंगूर, नाशपाती हम सब बड़े शौक से खाते हैं। माँ फिर बोली देखा सोना कितने प्यार से हमारे बारे में बात करते हैं ये इंसान अरे वाह सोना की आंखें गर्व और खुशी से चमक उठी। मैं अभी तोड़कर जाता हूँ और शहर को हरा कर आता हूँ। माँ मर गयी फिर समझाया अभी तो तुम्हे हरी घास, सब्जियां, फल खाकर और मजबूत बनना है ताकि तुम्हारी हड्डियों में ताकत हो और तुम्हारे सीन भी इस फ्रॉड हो जाए। ठीक है मैं उसके बाद तो शेर को कुश्ती में पछाड़ ही दूंगा और इसी तरह कहानी पढ़ते पढ़ते वान्या को भी नींद आ गई। शाम में जब वह सोकर उठी तो कुछ ताजगी महसूस हो रही थी। उसे और ताकत भी। दूसरे दिन सुबह उसने ऐलान किया मा मैं स्कूल जा रही हूँ और मुझे भी रेस में भाग लेना है, ठीक है तुम भी रेस में भाग लो, लेकिन यह जो मैंने टिफिन बना कर रखा है, इसको ज़रा ध्यान से देखो मैंने आज तुम्हारे लिए क्या बनाया है। वन्य ने टिफिन खोला तो देखा कि उसमें पांच रंग थे। हरी गोभी की सब्जी, ताजे पीले फल, मिक्स ग्रेन परांठा, गाजर, टमाटर, हरी धनिया का चीज़ से लड़ कुछ ड्राई फ्रूट एक छोटा सा टुकड़ा मिलके का भी ऐसा रंग बिरंगा। लंच देखकर तो उसे कुछ समझ ही नहीं आया और वो स्कूल चली गई। अपना टिफिन बॉक्स अपने बैग में रखकर इस स्कूल में आज पहली क्लास गणित की थी। हिंदी के पीरियड के बाद साइंस की क्लास हुई। साइंस टीचर ने आते ही बताया कि हमारे शरीर के लिए आवश्यक मिनरल वाटर मीन्स और उनके फायदे यहाँ हमें मिलते हैं। टीचर ने बताया कि हमारा भोजन अगर इंद्रधनुषी रंग का होगा यानी रंगीन होगा तो हम भी उतने ही चुस्त दुरुस्त और सेहतमंद हो सकेंगे। तभी लंच की घंटी बज गई और वन्य को अपना रंग बिरंगा। लंच आज अचानक से बहुत खूबसूरत लगने लगा। उसने सारा लंच मन से खाया और उसके बाद प्ले ग्राउंड मैं रेस प्रैक्टिस करने चली गई। यह सोचते हुए कि इस बार तो रेस में मुझे ही जीतना है। शाम को घर पहुंचते ही उसने अपनी माँ को सारी बातें बताई और कहा माँ इसी तरह मुझे हमेशा रंग बिरंगा टिफिन चाहिए? माँ सुनकर खुश हो गई और बोली, हाँ जरूर, तभी तो तुम उस सोना मृत की तरह दौड़ेगी और छलांग लगा पाओगी? इस पर पापा भी बोले। चलो आज से मैं तुम्हें शाम के समय रनिंग ट्रैक पर ले जाया करूँगा। और आखिर वह दिन भी आ गया जब वान्या ने अपने आप को इतना फुर्तीला और ताकतवर बना लिया की रेस जीतकर विजेता का खिताब हासिल किया। इस तरह वन्य को अपने प्रिय कहानी वाले दोस्त सोना मृग से और अपने रंग बिरंगे टिफिन से कई बातें सीखने को मिली थी, जिसे उसने हमेशा याद रखा और अब वन्य के पास आने से बिमारी ने भी तौबा कर ली थी। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है। कि हमें हमेशा माँ की दी हुई अपनी सभी चीजों को खाना चाहिए, क्योंकि माँ हमारी हमेशा हमें न्यूट्रिशंस फूड ही खिलाना चाहती है और हमारा टिफिन रंग बिरंगा ही होना चाहिए जिससे हमे हर प्रकार के मिनरल मिल सके। ओके बाइ","सभी को नमस्कार, यह एक छोटी लड़की की नैतिक कहानी है। लड़की को सब्जियां और फल पसंद नहीं थे 🍎🍉 . जब उसने एक छोटे हिरण 🦌 की कहानी पढ़ी तो उसे प्रेरणा मिली। अच्छे भोजन के महत्व को जानने के बाद वह पौष्टिक भोजन लेना शुरू कर देती है। उसे अपने बदले हुए आहार का प्रतिफल जल्द ही मिलता है क्योंकि वह अपने स्कूल की दौड़ प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त करेगी। इसलिए बच्चों को अपने माता-पिता के निर्देशों का पालन करना चाहिए और हमेशा स्वस्थ भोजन लेना चाहिए। पूरी कहानी सुनें और कहानी के नैतिक के बारे में जानें।" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपको सुनाने जा रही हूँ उसका शीर्षक है कहानी एक चित्र की। देखो शशांक या चित्र कैसा है? राकेश ने एक चित्र दिखाते हुए अपने मित्र से पूछा, बहुत सुन्दर शशांक उसे देखकर उछल पड़ा, फिर पूछने लगा, पर दोस्त तुमने इसे बनाया कैसे है? कबूतर, चिड़ियों के झड़े हुए पंखों और जली हुई तीलियां आदि बेकार की चीजों से बना है। मेरी माँ ने इन बेकार की वस्तुओं का उपयोग करना सिखाया है। राकेश ने उत्तर दिया, शशांक उस चित्र को दो पल ठगा सा देखता रहा। फिर मन ही मन उसने सोचा कि वह उससे भी सुंदर चित्र बनाकर राकेश को दिखाएगा। कई दिनों तक शशांक सोचता रहा। फिर सहसा ही उसे एक विचार आया कि यदि वह पूरा चित्र के पंखों से बनाएं तो वह बड़ा ही सुन्दर लगेगा। फिर क्या था शशांक अपने विचार को पूरा करने में जुट गया। उसके घर के पास ही उसके मित्र का एक बहुत बड़ा बाग था। वह प्रतिदिन उसमें जाने लगा पर तितलियों के जड़े हुए पंख खोजने में शशांक को बड़ी परेशानी हुई। यो उस बाघ में रंग बिरंगी मनभावन अनेकों तितलियां उड़ती रहती थी। एक फूल से दूसरे फूल पर मंडराती रहती थी, पर वहाँ मरी हुई तितलियों के पंख बहुत ही कम मिल पाते थे। शरारती शशांक ने अब दूसरा ही उपाय निकाल लिया। वह फूलों का रस पी तितलियों को धागा फंसाकर पकड़ने लगा। धागे में फंसकर तितलियाँ छटपटाती पर शशांक उन्हें छोड़ने का नाम भी ना लेता। उल्टे उनकी छटपटाहट देख कर प्रसन्न नहीं होता। बाग के रखवालों को शशांक किया। आदत तनिक भी अच्छी नहीं लगती थी। वे बार बार कहते देखो शशांक किसी भी जीव को कष्ट देना अच्छी बात नहीं जो आत्मा हम में है वही सब में हैं। जैसे हमें शरीर से कष्ट होता है, वैसे ही छोटे छोटे जीव जंतुओं को भी होता है। हम कुछ कर पाए तो उनकी सेवा सहायता ही करें। उन्हें दुख देना हमारी मूर्खता है। पर शशांक था कि उस पर इन बातों का कोई प्रभाव ही नहीं पड़ता। वह एक कान से सुनता था और दूसरे से निकाल देता था। 1 दिन शशांक आम के पेड़ की छाया में बैठकर चित्र बना रहा था, तभी चुपचाप उसके पिता के मित्र और बाग के मालिक उसके पीछे आकर खड़े हो गए। बाघ के रखवाले से उन्हें सारी बात पहले ही पता लग चुकी थी। उन्होंने पीछे से आकर शशांक का चित्र छीन लिया और उसके देखते देखते टुकड़े टुकड़े करके उसे हवा में उड़ा दिया। यह देखकर शशांक रह गया, तभी उसने सुना कड़कड़ाती आवाज में उसके मित्र के पिता जी कह रहे थे। समझ में नहीं आता कि आखिर यह क्या सोचकर तुमने तितलियों को मारना शुरू किया है? क्यों तुम्हें नाचती बलखाती जीती जाती थी या नहीं? भाई और तुम उनके प्राण लेने के लिए उतारू हो गए तो मनुष्य नहीं राक्षस हो। राक्षस राक्षस कैसे चाचा जी? शशांक के मुँह से बस इतना ही निकला जो अपने थोड़े से सुख के लिए, थोड़े से स्वार्थ के लिए क्षणिक प्रसन्नता के लिए दूसरों को सताए और उनके प्राणों को भी ले ले और राक्षस नहीं तो और क्या है? मनुष्य कहलाने का अधिकारी तो वो होता ही नहीं है जो औरों के लिए हंसते खेलते हैं और सुखों को निछावर कर दें। वही मनुष्य चाचाजी गंभीर होकर बोले शशांक चुपचाप सिर झुकाए सुनता रहा। चाचा जी फिर बोले सो तो ज़रा जितनी तितलियाँ तुमने मारी है सारी की सारी तुम्हारे शरीर से आगे चिपक जाए। मुँह पर फड़फड़ाने लगे तुम से बदला लेने लगे तो तुम्हे कैसा लगेगा? याद रखो किसी को सताकर हम कभी सुखी नहीं रह सकते, कभी ना कभी हम को इसका दंड अवश्य मिलता है। ईश्वर के यहाँ देर हो सकती है पर अंधेर नहीं। अपराधी सा शशांक कह रहा था मैंने सोचा था चाचा जी एक सुंदर चित्र बन जाएगा बेटे तुम्हें चित्र बनाना है तो रंगबिरंगे फूलों की पंखुड़ियों से तरह तरह के पत्तों से बनाओ। वह सौंदर्य जिसके मूल में प्राणों की बलि है, उसकी प्रशंसा नहीं की जा सकती। उसकी तो जितनी उपेक्षा की जाए, जितनी निंदा की जाये, वह कम है। चाचा जी ने कहा आगे ऐसा नहीं करूँगा। यह कहकर शशांक चुपचाप वहाँ से चल दिया। अपनी गलती उसकी समझ में आ रही थी। रास्ते भर वह सोचता रहा कि चाचा जी ठीक ही कह रहे थे कि अपने स्वार्थ के लिए दूसरों का अहित करना मनुष्य था नहीं है। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है कि हमें अपने मतलब के लिए कभी भी किसी भी प्राणी को मारना नहीं चाहिए, क्योंकि सभी प्राणियों में जीवन होता है और उसे ईश्वर ने ही रचना है। ओके बाय।",यह एक ऐसे लड़के की कहानी है जो एक तस्वीर बनाने में अपने दोस्त की बराबरी करना चाहता है। उसके मित्र ने बेकार सामग्री का उपयोग करके एक चित्र बनाया। कहानी सुनिए और जानिए कि क्या हुआ जब लड़के को वे चीजें नहीं मिलीं जिनसे वह चित्र बनाएगा। "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपको सुनाने जा रही हूँ उसका टाइटल है परिवर्तन। नंदन उद्यान में मीलों तक आम क वन फैला हुआ था। उस वन में अनेक को पक्षी निवास करते थे। तोता, मोर, गिलहरी, कबूतर, नीलकंठ, खरगोश, कोयल ना जाने कितने प्राणी उस में रहते थे। सभी हँसी खुशी से गाते खेलते उड़ते और थिरकते पूरे के पूरे उद्यान मेँ उदास रहता था तो बस अंशु नाम का खरगोश। आम के पेड़ के नीचे वह चुपचाप गुमसुम बैठा रहता। ना किसीसे बोलता ना किसी से बातें करता। सभी प्राणियों ने उसका बहिष्कार कर रखा था। एक बार मैत्री नाम की एक कोयल दूर देश से उड़ते उड़ते आई। वो आम के उस पेड़ पर ही आकर रुकी जिसके नीचे अंशु का घर था। अंशु पर निगाह पड़ते ही बोली नमस्ते भाई मैं मैत्री कोयल हूँ दूर देश से उड़ते उड़ते यहाँ आई हूँ। अंशु ने उसकी और आंख उठाकर भी ना देखा। नीची निगाह करके ही बोला, रहोगे और कुछ दिन हाँ अभी कुछ दिन तो यहीं रहूंगी। इसके बाद अंशु ने उससे एक भी बात ना की जो चुपचाप अपने काम में लगा रहा। मैत्री को यहाँ बड़ा बुरा लगा एक अपरिचित से कुछ तो बाते करनी ही चाहिए दूर देश से आए थके यात्री से कुछ तो उसकी जरूरत पूछनी ही चाहिए थी पर अंशु में तनिक भी शिष्टाचार ना था। मैत्री को तेज प्यास लगी थी। अत है वह इच्छा ना रहते हुए भी बोली क्या यहाँ कहीं पानी मिल सकता है? अंशु बिल के अंदर गया एक हाथ में पानी और एक हाथ में खाना लाया। पानी देने के बाद बोला वो वो की होगी, लो खाना भी ले लो। पानी का खाली बर्तन उठाकर वह फिर मिल के अंदर घुस गया। मैत्री समझ गई कि खरगोश का दिल तो बुरा नहीं है पर इसमें बोलने का शिष्टाचार नहीं है। मैत्री अब नंदन उद्यान में ही रहने लगी थी। उसने देखा कि अंशु से कोई पशु पक्षी बात करना भी पसंद नहीं करता। वह खुद किसी से मिलना जुलना नहीं चाहता था। कोई उसके घर आया तो वो इधर उधर छिप जाता था। फिर बच्चों से कहलवा देता की पिताजी घर में नहीं है। पति, पत्नी और बच्चे सभी वहाँ पर रहते थे। पत्नी, बच्चों से भी वह प्यार तो बहुत करता था लेकिन बातें बहुत कम करता था। हर समय खींच लाया सा रहता था। एक बार अंशु की पत्नी बच्चों को लेकर मायके चली गई। घर में रह गया अकेला अंशु। 1 दिन अचानक ही उसको तेज बुखार आ गया। रातभर वह बिल में पड़ा बड़ा कराता रहा। जब वह सुबह भी घर से न निकला तो मैत्री सोचने लगी कि जरूर अंशु बीमार पड़ गया है। पहले तो उसने सोचा। बीमार हैं तो रहने दो ठीक से सीधे मुँह बात तक तो करता नहीं है। हर समय ना जाने क्यों मुँह फुलाए रहता है। पर दूसरे ही क्षण अपने आप को इन विचारों के लिए करते हुए कहने लगी की यदि बुरे के साथ हम भी बुरा करने लगे तो फिर हमारी सज्जनता का मूल्य भी क्या रहा? बुरे को बुरा ई से नहीं, अच्छा ई से ही सुधारा जा सकता है। मैत्री अंशु के घर गई तो पाया कि बाद तेज बुखार से तप रहा था। शरीर दर्द से छटपटा रहा था। मैत्री ने उसके मुँह में पानी डाला तो अंशु ने तुरंत आँखें खोल दीं। उसकी आँखों में बड़ी कृतज्ञता के भाव थी। ओह मैत्री दीदी तुमने इतना कष्ट किया कहकर अंशु ने तेज बुखार के कारण आंखें फिर मूली। मैं भी डॉक्टर को लेकर आई कहकर मैत्री उड़कर तेज चली गई और चेता लोमड़ी के यहाँ से उसे बुला लाई। उसने ना अपने खाने की परवाह की और ना आराम की। 24 घंटे उस केस रहाणे बैठी रहीं। निश्चित समय पर दवाई देती, फल खिलाती, सिर पर ठंडे पानी की पट्टी रखती और उसका बदन दबाती अंशु को इस सबसे मनी मन बड़ी लग जाती पर सोचता मैंने तो इससे कभी सीधे मुँह बात भी ना की थी। कभी इससे इसके सुख दुख की भी पूछना ली थी, फिर भी यह मेरी कितनी सेवा कर रही है या सोचकर उसे अपने ऊपर बड़ी ग्लानि आती? चेता लोमड़ी द्वारा नंदन उद्यान में सभी को अंशु की बिमारी की बात पता चल गयी थी, पर कोई भी उसे देखने तक नहीं आया। 1 दिन उससे ना रहा गया। वह मैत्री से कहीं बैठा दीदी मैं इतना बीमार रहा फिर भी कोई पशु पक्षी मुझे देखने ना आया। तुम ना आयी होती तो मेरे प्राणी निकल गए होते बुरा ना मान ना अंशु भैया एक बात पूछूं मैत्री बोली। अपने कान हिला कर गर्दन टेढ़ी कर कर उसने स्वीकृति में सिर हिला दिया। याद तुम भी किसी के सुख दुख में भाग लेते हो। मैत्री ने पूछा नहीं, धीमे स्वर से पुतली हिलाकर अंशु बोला तो फिर दूसरों से कैसे उम्मीद करते हो की वो तुम्हारे दुख दर्द में साथ देंगे? गंभीर बनी मैत्री कह रही थी बुरा न मानना भाई जो किसी से मिलना जुलना नहीं चाहता, दूसरों के आने पर मुँह लटका लेता है, घर में छिप जाता है। ऐसे मनहूस से कौन संबंध रखेगा? हम किसी को क्या दे सकते हैं? पर हाँ, मीठी प्यार भरी वाणी से सभी का मन जीत सकते हैं। चुप्पी और कठोर बोली छोड़कर मीठे स्वर में सभी से बाते करो फिर देखो कौन तो मैं नहीं चाहता जैसा व्यवहार तुम करते हो उससे ना तुम्हें सुख मिल सकता है और ना दूसरों को दूसरों से वह व्यवहार ना करो जो तुम्हें अपने लिए पसंद नहीं। आज पहली बार किसी ने अंशू को इतने कड़े शब्दों में उसके व्यवहार की कमी बताई थी। यह सुनकर उसकी आंखें खुल गई थी। ओह, मेरे रूखे व्यवहार के कारण सभी मुझसे दूर रहना चाहते हैं। वह मानो अपने आपसे कहने लगा और क्या दिल से तो तुम बहुत अच्छे हो पर दिल की गहराई तक जा का कैसे जा सकता है? मन में क्या है, यह व्यवहार से ही तो पता लगता है। मन को अच्छा बना और व्यवहार को मीठा, फिर देखो सभी तुम्हें सिर माथे पर बिठाएंगे। मैत्री ने कहा। मैं कितनी गलती पर था? अपनी गलती जल्दी ही सुधार लूँगा। मन ही मन उसने कहा और फिर सिर को खोजते हुए कुछ सोचने लगा। अंशु जब ठीक हो गया तो उसने नंदन उद्यान के सभी पशु पक्षियों को निमंत्रण दिया। सभी आश्चर्य कर रहे थे कि किसी से कोई संबंध न रखनेवाला अंशु आज इतना उदार कैसे बन गया? किसी खुशी में इतनी मजेदार दावत दी गई है। चटकारे भर्ती हुई चंचल गिलहरी पूछने लगी। अपने ठीक होने की खुशी में यदि यह दीदी ना होती तो मेरे प्राण पखेरु उड़ गए होते। इन्हीं ने अपनी सेवा से मुझे जीवनदान दिया है। मेहमानों को खाना परोसती मैत्री की ओर इशारा करके अंशु ने कहा, अंशु की पत्नी और बच्चे भी उसके स्वभाव और व्यवहार के परिवर्तन पर बड़े खुश थे। वे इसके लिए मन में मैत्री कोयल को बहुत बहुत धन्यवाद दे रहे थे। कुछ दिनों के बाद मैत्री, कोयल, अंशु और नंदन उद्यान के सभी प्राणियों से विदा लेकर अपने देश और जली। अंशु पोस्ट के जाने का बहुत दुख हो रहा था। उसने मैत्री को ढेरों उपहार दिए। दूर तक वह उसे छोड़ने गया। दो महीने बाद मैत्री को अंशु का पत्र संदीप कबूतर द्वारा मिला। उसमें लिखा था। मैत्री दीदी जीवन भर में तुम्हें भूल नहीं सकता। तुमने अपने प्यार भरे व्यवहार से मेरे जीवन की धारा ही बदल दी तो मैं जानकर खुशी होगी कि नंदन उद्यान के सभी पशु पक्षी अब मुझे बहुत चाहने लगे हैं। संतोष से घूम घूमकर उठी मैत्री फिर वह अपने मन में कहने लगी दूसरों की अच्छा ई का रास्ता दिखाने में ही जीवन की सार्थकता है। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि व्यक्ति का व्यवहार ही उसके व्यक्तित्व का दर्पण होता है, इसलिए हमें सभी के साथ अच्छा व्यवहार करना चाहिए। ओके बाय।","इस कहानी में मैं आपको एक छोटे से खरगोश के बारे में बताऊंगा। खरगोश स्वभाव से बहुत कठोर होता है, वह जंगल में किसी से बात नहीं करता। एक बार एक कोयल आती है। कोयल खरगोश का स्वभाव पूरी तरह से बदल देती है। यह एक शिक्षाप्रद कहानी है। कहानी सुनें और जीवन का नैतिक प्राप्त करें।" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी में आपको सुनाने जा रही हूँ। उसका टाइटल है राजकुमार की चतुराई। सम्राट सौमित्र सेन अपने रत्न जड़ित सिंहासन पर बैठे थे। उनका मुख दर्प और प्रसन्नता से दमक रहा था। सम्राट के चारों ओर बैठे सभी सभासद सभी मंत्री मुक्त कंठ से कुशल नेतृत्व की प्रशंसा कर रहे थे। बात भी कुछ ऐसी ही थी। कल ही तो सौमित्र सेन ने अपने बड़े शक्तिशाली शत्रु रत्नपुर के राजा को युद्ध में ऐसा खदेड़ा था कि वह लड़ाई का मैदान छोड़कर ही भाग गया था। सभासद राजा की इतनी बढ़ा चढ़ाकर प्रशंसा कर रहे थे कि उसका घमंड और भी बढ़ता जा रहा था। बाईं ओर बैठा एक चारण राजा की प्रशंसा में कविता सुना रहा था। महाराज आपके यश के द्वारा समस्त संसार को ही क्षेत्र बना दिया गया है। इससे देवताओं को बड़ी परेशानी हो रही है क्योंकि इन्द्र अपनाएं रावत ब्रह्म आप अपना हंस विष्णु अपना शिरसागर और शंकर अपना कैलाश ढूंढ़ते फिर रहे हैं। चरण के इस प्रकार की स्तुति को सुनकर राजा कहने लगा सचमुच में कितना महान? कितनी शक्ति है मुझमें रत्नपुर के राजा की सेना के कैसे दांत खट्टे किए मैंने? कोई ऐसा जो मुझे हरा सके? राजा पर मदिरा के नशे के साथ साथ प्रशंसा का नशा भी गहरा चढ़ता जा रहा था। तभी राजा का ध्यान राजकवि चालुक्य की ओर गया और चुपचाप बैठे थे। राजा की प्रशस्ति में कोई भी कविता नहीं सुना रहे थे। रोज़ को भी आपको हमारी वजह से प्रसन्नता नहीं हुई, क्या वे पूछने लगे? ऐसा कैसे हो सकता है? महाराज राज़ कभी सिर झुकाकर हाथ जोड़कर बोले। तो फिर हमारी स्थिति में हमारी शक्ति की प्रशंसा मैं कविता क्यों नहीं बना रहे हैं? क्षमा करें देव मैं केवल भगवान की स्तुति करता हूँ, उसी की शक्ति की प्रशंसा करता हूँ। उसी की शक्ति से आप विजयी हुए हैं। राज़ कभी विनम्रतापूर्वक बोला यह सुनकर राजा की भृकुटी तन गई। अपनी लंबी लंबी मूंछों को गर्व से ऐड कर वे क्रोध से हम करते हुए बोले। रोज़ को भी जो लुक य ईश् वर कुछ नहीं है, राज्य का कर्ता धर्ता मैं ही हूँ तुम यहाँ ईश्वर की इच्छा से नहीं, मेरी इच्छा से नियुक्त किए गए हो। मैं तुम्हें एक सप्ताह का समय देता हूँ। यहाँ तो मेरी प्रशंसा में काव्य लिखो नहीं तो आठवें दिन तुम्हें फांसी पर लटका दिया जाएगा। चल ओके, उस समय तो चुप रह गए। कुछ भी गहना राजा के गुस्से को और बढ़ाना था और हम मन ही मन वह सोचने लगे की मैं अपनी आत्मा की हत्या करके कुछ भी नहीं लिखूंगा। मैं कवि हूँ, ब्रह्मा जैसा महान, मेरा काम व्यर्थ की बकवास करना नहीं है। मनुष्य को सन्मार्ग की प्रेरणा देना, उन्हें उद्बोधन देना ही मेरा कर्तव्य है। राज़ कभी मृत्युदंड की प्रतीक्षा करने लगा और निरंतर भगवान के चिंतन में डूबा रहता आत्मा परमात्मा के विषय में मन भी करता रहता। दैवयोग की बात है, इस घटना के 4 दिन बाद ही राजमहल में हाहाकार मच गया। सांप के काटने से राजा का इकलौता पुत्र मर गया। कभी तुरंत राजभवन दौड़ा चला गया। राजा सिर पटक पटक कर विलाप कर रहा था। हे भगवान तुने ये क्या किया है इसके साथ साथ तू मेरे भी प्राण ले लेता, अब मैं कैसे जिऊंगा कभी को देखते ही राजा बिलख उठा। रोज़ को भी भगवान ने मेरी आंखें खोल दीं। उसी की इच्छा के अनुसार सब कुछ होता है। अब मैं व्यर्थ में अहम में डूबा रहता हूँ। किसी को मुझे दंड मिला है। ठीक कहते हो, पिताजी सहसा मरा हुआ पुत्र बोल पड़ा। सभी आश्चर्य से दंग रह गए। राजा ने कसकर पुत्र को हृदय से लगा लिया, उसका माथा चूमते हुए भरे हुए गले से केवल इतना ही निकल पाया। हाँ बेटा। वास्तव में बात यह हुई थी कि राजकवि के मृत्युदंड की बात जानकर राजकुमार को बड़ा दुख हुआ था और जानता था कि कभी कभी ऐसा ग्रंथ नहीं लिखेगा, जैसा कि उसे आज्ञा मिली है। कभी को बचाने के लिए यूज़ ने या नाटक किया था? योगाभ्यास से शरीर को बिल्कुल निश्चित और निष्पादन कर लिया था। सेवक में योजना के अनुसार राजकुमार के मरने की खबर उड़ा दी और तब राजा ने चालुक्य से ईश्वर की प्रशस्ति में महाकाव्य लिखने का अनुरोध किया। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें कभी भी अहंकार में डूबकर इतना नहीं खो जाना चाहिए की हम अपने अच्छे और बुरे को भी भूल जाए। ओके बाय।",सभी को नमस्कार यह एक राजकुमार की बुद्धिमत्ता की एक शैक्षिक कहानी है। मैं सभी बच्चों को सोने के समय की कहानियां नैतिकता के साथ सुना रहा हूं। मेरी कहानियाँ अभिनव और प्रेरणादायक हैं। अपने बच्चों के साथ मेरी कहानियाँ सुनें। यह निश्चित रूप से आपके बच्चे के व्यक्तित्व के निर्माण में मदद करेगा। मेरे यूट्यूब चैनल STORICO को सब्सक्राइब करें "हैलो बच्चों, आज जो कहानी में आपके लिए लेकर आई हूँ उसका शीर्षक है होनहार बालक। सौरभ और विक्रम दोनों के घर आसपास थे। वे एक ही स्कूल में एक ही कक्षा में पढ़ते थे। वे साथ साथ स्कूल जाते थे और साथ ही साथ अपने अपने घर लौटते थे। उनके पिताजी भी एक ऑफिस में काम करते थे। सौरभ और विक्रम दोनों को ही प्रतिदिन जेब खर्च के लिए पैसे मिलते थे। विक्रम अपने सारे पैसे स्कूल में ही खर्च कर डालता, कभी चाट खाता तो कभी चुइंगम। उसके अभिभावक कभी उससे यह तक ना पूछते कि वह पैसा किस चीज़ में खर्च करता है। धीरे धीरे विक्रम बड़ा चटोरा बन गया। विक्रम देखता कि सौरभ स्कूल में चीजें खरीदकर बहुत कम खाता है। वह अपने घर से ही खाना या नाश्ता ले आता और वही खा लेता। विक्रम उससे प्रायः कहता, चलो भी हम सभी दोस्त मिलकर चाट खायेंगे, परंतु सौरभ बड़ी विनम्रता से मना कर देता वह बहुत कम कभी कभी ही उनके साथ जाता। यह देखकर विक्रम को बड़ा गुस्सा आता। उसने अपने मित्रों में यह बात फैला दी कि सौरभ कंजूस है, मक्खी जूस है। अब तो उठते बैठते सारे साथी उसे चिढ़ाया करते कुंजू से पक्की चूस कंजूस मक्खीचूस प्रारंभ में तो सौरभ इतने सारे बच्चों के *** चढ़ाए जाने से हो गया। फिर उसने सोचा कि यदि मैं इनके सामने रो गया या चढ़ने लगा तो ये सभी मुझे और चढ़ाएंगे। बच्चे जब चिड़ा चिड़ा कर थक गए और सौरभ पर कोई भी असर ना पड़ा तो आखिर वे ऊब गए 1 दिन विनय से ना रहा गया और वह पूछ ही बैठा। सौरभ तुम्हें जेब खर्च के लिए रोज़ पैसे तो मिलते होंगे ना? हाँ मिलते तो हैं। सौरभ ने उत्तर दिया तो फिर तुम इतने कंजूस क्यों हो? क्यों उन्हें खर्च नहीं करते? विनय ने पूछा, भाई तुम मुझे कंजूस तो नहीं? पर हाँ मैं दी वे ही जरूर कह सकते हो। सौरभ बोला, कंजूसी और मितव्ययता में क्या अंतर है? विनय फिर कहने लगा भाई अंतर है, बहुत अंतर है। सौरभ समझाने लगा मितव्ययिता का अर्थ कंजूसी बिल्कुल नहीं। मितव्ययिता तो फिजूलखर्ची और कंजूसी के बीच की वस्तु है। फिज़ूलखर्च आ बिल्कुल भी नहीं करें। यह बात तो गरीब और अमीर। सभी के लिए समान रूप से आवश्यक है। ओहो, उपदेशक महोदय, हम तुम्हारी बात समझ नहीं पाए विक्रांत कहने लगा, सौरभ ने फिर समझाया। देखो भाई कंजूस तो वह होता है जो जरूरत होने पर भी पैसा खर्च नहीं करता। ऐसा पैसा व्यर्थ है, मिट्टी है जो ना अपने काम आए और ना दूसरों के। पर मितव्ययी वाह होता है, जो यह सोच समझकर पैसा खर्च करता है कि कहा व्यय करना चाहिए कहा नहीं और फिजूलखर्ची वहाँ होता है जो बिना सोचे समझे कहीं भी धन व्यय कर देता है। ओह छोड़ो यहाँ पचड़ा, यह बताओ। मितव्ययी बनने से लाभ भी क्या? पंकज ने पूछा। ऐसा ना कहो सौरभ बोला, अपव्यय अंत में बड़ा ही दुख देता है, चाहे वह धन का हो, समय का हो या फिर शारीरिक और मानसिक शक्ति यों का। शारीरिक, मानसिक और आर्थिक संयम बरतकर ही सदैव सुखी, संतुष्ट और स्वाभिमानी जीवन जिया जा सकता है। ओहो, किसने सिखाया है तुम्हें? यह सब? विनय तुरंत ही पूछने लगा। मेरे माताजी और पिताजी ने सौरभ ने गर्व से सिर उठाकर कहा। विक्रम ने पूछा, और जजों पैसे तुम्हें मिलते हैं, तुम उनका क्या करते हो? मैंने उन्हें में डाल दिया है। जब कोई आवश्यकता होती है तो कोई चीज़ ले लेता हूँ। सौरभ बोला। यो जोड़ने के लिए मितव्ययी बनने के लिए पूरा जीवन पड़ा है। विक्रम ने नाग बहुत सिकोड़कर कहा। पर तुम भूल जाते हो की बचपन में हम जैसी आदतें डाल लेते हैं, वहीं बड़े होकर बनी रहती है। सौरभ कहने लगा तो भाई, हमारी आदतें, गंदी जई विक्रांत थोड़ा सा चिढ़कर बोला। सभी बच्चे सौरभ को उलाहना देते हुए चले गए। या सौरभ का बच्चा अपने आप को न जाने क्या समझता है? पढ़ने में ज़रा कुछ होशियार है, इसलिए बड़े उपदेश झाड़ता रहता है। मास्टर साहब भी इसे ही प्यार करते हैं इसलिए हम सब पर रौब गांठता है। ये सब आपस में बातें करते हुए चले जा रहे थे। उस दिन के बाद से अधिकांश बच्चों ने सौरभ से बोलना ही छोड़ दिया था। विक्रम और उसके साथ ही सभी बच्चों को सौरभ के विरुद्ध भड़काते रहते थे। एक दो बच्चे ही ऐसे थे जो उनकी बातों में ना आते थे। वे सौरभ के पास बैठ थे। विक्रम और उसके साथी उन बच्चों को भी तंग किया करते थे। इसके कुछ ही दिनों की बात है। अचानक ही अपने देश का पड़ोसी देश के साथ युद्ध छिड़ गया। देश की रक्षा के लिए बच्चे, बूढ़े सभी में उत्साह की लहर दौड़ गई। रक्षा कोष के लिए स्थान स्थान पर धन एकत्रित किया जाने लगा। सौरभ की गुल्लक में कई वर्षों से जेब खर्च के लिए दिए जाने वाले पैसे इकट्ठा हो रहे थे। उसने सोचा कि इस पवित्र कार्य में मैं ही क्यों पीछे रहा हूँ? उसने अपनी सारी की सारी एकत्र धनराशि रक्षा कोष में देने का विचार किया। उसके पास अब तक कुल ₹470 जमा हो गए थे। सौरभ ने अपने पिताजी से जब यह बात कही तो वह बड़े प्रसन्न हुए। मातृभूमि की रक्षा करना हमारा पहला कर्तव्य उन्होंने सौरभ को समझाया। सौरभ को प्रोत्साहन देने के लिए पिताजी ने ₹31 अपनी जेब से और मिला दिए, सौरभ ने उसी दिन ₹501 का ड्राफ्ट प्रधानमंत्री के पास रक्षा कोष में भेज दिया। साथ में उसने एक पत्र भी रखा था, जिसमें उसने लिखा था कि आप चिंता मत करिए, देश पर संकट आने पर हम नन्हें मुन्ने बच्चे भी एकजुट होकर काम करेंगे और अपना सब कुछ मातृभूमि पर न्योछावर कर देंगे। लगभग एक सप्ताह बाद ही प्रमुख समाचार पत्रों में सौरभ का फोटो। और पत्र छपा था। साथ ही यह समाचार विस्तार से दिया गया था कि किस प्रकार 110 वर्ष के छठी कक्षा के छोटे से बच्चे ने अपने वर्षों के जेब खर्च से बचाए हुए पैसे अपने देश की रक्षा हेतु रक्षा कोष में दिए हैं। बच्चे के त्याग भरे इस कार्य से बड़े बड़ों को भी प्रेरणा मिली। सौरभ के प्रधानाध्यापक ने जब यह समाचार पढ़ा तो वे गदगद हो उठे। सौरभ ने न केवल अपना अपितु अपने स्कूल का भी नाम उज्ज्वल किया था। ऐसे बच्चे ही तो समाज और देश का गौरव हुआ करते हैं। उन्होंने मन ही मन सोचा। फिर उन्होंने सौरभ को सम्मानित करने का विचार किया। प्रधानाध्यापक ने स्कूल में बच्चों की एक सभा की। उन्होंने सभी बच्चों के सामने सौरभ की बड़ी प्रशंसा की। उसे बहुत शाबाशी दी और प्रोत्साहन के लिए एक सुंदर पण और कुछ अच्छी पुस्तकें भी उपहार में दी। उस दिन स्कूल भर के सारे बच्चे सौरभ की ही बात कर रहे थे। विक्रम और उसके साथी आजमनी मन बड़े लज्जित थे। इस सौरभ के पास आए और बोले। भाई? तुमने तो आज हमारी आंखें खोल दीं। हमारे विचार खराब थे जो तुम्हें इतना तंग किया और तुम्हारी बुराइ भी की। अब हम कभी ऐसा काम नहीं करेंगे। इस बार माफ़ कर दो ना हमें। अब हम भी तुम्हारे जैसा ही महान बनेंगे। छि कैसी बातें करते हो तुम सब? मैं तो पहले ही तुम्हें प्यार करता था और हमेशा करता रहूंगा। यह कहते हुए सौरभ ने अध्यापकों से मिले हुए टॉफियों के डिब्बे से एक टॉफी निकाल कर सभी बच्चों के मुँह में खिला दी। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें कभी भी फिजूलखर्ची नहीं करनी चाहिए और हमेशा सौरभ की तरह ही विचार रखने चाहिए। ओके बाइ?",सभी को नमस्कार यह एक छोटे लड़के की नैतिक कहानी है। लड़का एक स्कूल में पढ़ता है। वह बहुत समझदार लड़का है। स्कूल के अन्य लड़कों के बजाय वह कभी भी कैंटीन का खाना खरीदने में अपनी पॉकेट मनी खर्च नहीं करते थे। उसे अपनी बचत का पूरा लाभ तब मिला जब उसे उसके स्कूल में पुरस्कृत किया गया। पूरी कहानी सुनें और नैतिकता के बारे में जानें। "क्या आप भी अपना पॉडकास्ट बनाने का सोच रहे हैं? तो ऐंकर ट्राई कीजिए, ये पॉडकास्ट बनाने का सबसे आसान तरीका है। नंबर एक ये फ्री है नंबर दो। इसमें कई सारे ऐसे टूल्स है जो आपको अपने फ़ोन और कंप्यूटर पर रेकोर्ड और एडिट करने की फैसिलिटीज देते हैं। नंबर तीन आप अपने पॉडकास्ट को डिस्ट्रीब्यूट भी कर सकते हैं, जिससे इसे इस स्पॉटिफाइ और दूसरे प्लेटफॉर्म पर सुना जा सकें। डाउनलोड कीजिये? ये फ्री एंकर ऐप या विजिट कीजिए ऐंकर डॉट ऐफ़ एम अपना पॉडकास्ट स्टार्ट करने के लिए? हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपको सुनाने जा रही हूँ उसका शीर्षक है चालाक लोमड़ी। एक बार संजू खरगोश अपने बच्चों को जंगल में घूमाने ले गया। सुहावना मौसम था। बच्चे वहाँ घूमकर बड़े प्रसन्न हुए। जब वे घूम फिर कर खूब थक गए तो उन्हें बड़ी ज़ोर की भूख लगने लगी। नन्हा रोहू। कहने लगा पिताजी अब तो जल्दी से कुछ खाने के लिए ले आये। इस पर संजू बोला बच्चो तुम यहीं चुपचाप बैठे रहना, चरों साथ साथ रहना इधर उधर मत दौड़ना, मैं जल्दी ही खाना लेकर आऊंगा। ऐसा कहकर संजू ने चारों बच्चों को एक शॉल उड़ा दिया। बहुत दिन हुए संजू को यह शॉल बड़ा मिला था। अब जाड़ों में यह बड़ा काम आ रहा था। संजू के जाने के बाद कुछ देर तक तो बच्चे चुपचाप बैठे रहे पर उन चंचल बच्चों को चैन ना पड़ा। सबसे पहले बड़कू निकला और बोला। तुम सब यहीं रहना, मैं ज़रा झाड़ी से बाहर तक घूम कर आता हूँ। इस पर छोटु कहने लगा दादा मैं भी साथ चलूंगा। वह भी फुदक कर निकल आया? तभी मोंटू और रोहू कहने लगे वह पर यह हम क्यों नहीं चलेंगें और वे दोनों भी शॉल उतारकर झाड़ी से बाहर निकल आये। अभी वह कुछ ही दूर बड़े थे की अचानक बड़कू ने पीछे मुड़कर देखा कि मुर्गी उनका शॉल चोंच में दबाकर ले जाने की कोशिश कर रही थी। वो वहीं से चिल्ला या टेरो टेरो ये शो तो हमारा है। मुर्गी ने तब तक शॉल कसकर अपने शरीर से लपेट लिया और बोलीं वाह तुम्हारा यह शुल्क ऐसे ये तो मुझे पड़ा मिला है। नहीं नहीं चाची, ये तो हमारा है, हम चारो ही उसे उड़कर बैठे थे। अभी अभी ही निकल कर बाहर आये हैं। चारों बच्चे एक साथ बोलने लगे। ये मेरे पास है इसलिए मेरा है मुर्गी कर्कश स्वर में बोली और आगे बढ़ चली। चारों बच्चों ने मिलकर उसका रास्ता रोक लिया। छोटु बोला। हम तुम्हें शॉट नहीं ले जाने देंगे, पिताजी आकर बहुत नाराज होंगे। मुर्गी बच्चों को धक्का देकर आगे बढ़ने ही वाली थी कि तभी बहुत सी गाजर मूली लेकर संजू खरगोश आ गया। बच्चे उसे देखते ही तुरंत बोल पड़े। पिताजी, पिताजी, ये मुर्गी हमारा शो छीनकर ले जा रही है। इस पर खरगोश बोला बहन जी ये तो हमारा है। नहीं, ये मेरा शॉल है, मुर्गी बोली। वह इस शॉल को किसी भी हालत में छोड़ने के लिए तैयार न थी। बहुत मन में सोच रही थी कि अबकी बार जाने खूब मज़े से कटेंगे, वह और उसके बच्चे बड़े आराम से बैठेंगे। खरगोश बार बार यही दोहराता रहा की यह शॉल उसका ही है, उसे दे दिया जाए। मुर्गी भी यही कहती रहीं कि हम मेरा है, मैं ऐसे नहीं दूंगी। वे दोनों अपनी अपनी बात दोहराते हुए एक दूसरे से झगड़ने लगे। जब संजू ने देखा कि मुर्गी किसी हालत में शॉल नहीं देगी तो वह बोला क्यों लोग वनराज के पास चले वही हमारा न्याय करेंगे। चलो चले मुर्गी भी अकड़ कर बोली। खरगोश और मुर्गी की बात झाड़ी में छिपी एक लोमड़ी सुन रही थी। उन दोनों को देखकर उसके मुँह में पानी भर आया था। वह। मन ही मन सोचने लगी कि कैसे उन्हें पाया जाए। सहसा ही एक उपाय उसे सूझा और लोमड़ी उछल पड़ीं। खरगोश और मुर्गी थोड़ी दूर चलने के बाद ठिठक कर खड़े हो गए। सामने बरगद के एक पेड़ के नीचे ऊंचे चबूतरे पर लोमड़ी पालथी मारकर मौन बैठी थी। उसकी आँखें बंद थीं और बिना हिले डुले वह बैठी हुई थी। दोनों बड़ी देर तक उसे ध्यान से देखते रहे। लोग तो यहाँ पूजा कर रही है। संजू बोला संजू की बात सुनकर लोमड़ी ने आंखें खोलीं और बोली बच्चे आज मेरा उपवास है, मैं ध्यान कर रही हूँ यहाँ पर शोर ना करो। मौसी तुम कब से उपवास रखने लगी, कब से ध्यान करने लगी? संजू आश्चर्य से अपने मुँह पर हाथ रखते हुए बोला। जब से तीर्थयात्रा करके आई हूँ, मेरा मन बदल गया है। मुझे बहुत शिक्षा मिली है। अब मैं अपने लिए जानवरों को मारती भी नहीं थी। कितने घृणित होते हैं वे जो दूसरे को निर्दयता से मार कर उनके प्राण लेकर अपना पेट भरते हैं, स्वाद लेते हैं? लोमड़ी एक ही सांस में कह गई। ओहो मौसी, तुम तो संत बन गयी हो काश सभी तुम्हारे जैसे बन पाते और दूसरों को भी अपने जैसा समझ पाते। खरगोश और मुर्गी बोले। मुर्गी खरगोश से कहने लगी की लोमड़ी से न्याय करा लेते हैं। वनराज कहीं किसी बात पर नाराज ना हो जाए। संजू को भी पूरा विश्वास था कि लोमड़ी संत हैं। सही न्याय करेगी। इसलिए उसने हामी भर दी। खरगोश और मुर्गी दोनों अपना अपना पक्ष रखने लगे। तब लोमड़ी बोली बच्चों यों में किसी के बीच में नहीं पड़ती, पर तुम दोनों बहुत कह रहे हो, इसलिए तुम्हारी बात सुन लेती हूँ, यहाँ ज़रा पास आकर तो बैठो, धीरे धीरे एक एक करके अपनी बात समझाओ, जिससे मैं सही न्याय कर सकूँ। दोनों ने अपनी अपनी बात कही लोमड़ी, सारी बात जानकर गुस्से से भर उठीं और बोलीं। मैं गलत बात कह नहीं सकती। फिर उसने झपटकर मुर्गी को दबोच लिया और बोली। दूँ दूसरों की चीज़ हड़पने की कोशिश करती है। मुर्गी कुकुडुकु करते रही, रोती रही की मुझे छोड़ दो। पर तभी लोमड़ी ने पट्टा मारकर दूसरे हाथ से खरगोश को भी दबोच लिया। ओह मृतु निरपराध हूँ, मुझे क्यों मारती हो? खरगोश सीखा। तब लोमड़ी हंसते हुए बोली। मैंने न्याय किया है। तो उसका पारिश्रमिक है। आप मुर्गी और खरगोश दोनों की समझ में लोमड़ी की चाल आ गयी। दोनों लोमड़ी को भला बुरा कहने लगे और ज़ोर ज़ोर से रोने लगे। सहायता के लिए चीखने लगे। इस शोर शराबे से पास ही की झाड़ी में पीछे सोए हुए शेर की आंख खुल गई। उसने गुस्से से आंखें खोलकर देखा तो पीछे से लोमड़ी दिखाई दीं। शेर ज़ोर से गरजा डर से कांप उठी। उसके हाथों से मुर्गी और खरगोश दोनों छूट गए। वे जान बचाकर वहाँ से भागे। अब थर थर, कांपते हुए मुर्गी और खरगोश शेर के सामने खड़े हुए थे। डरो मत मैं तुम्हें नहीं खाऊंगा, मेरा पेट भरा हुआ है तो मुझे बस ये बताओ कि शोर क्यों मचा रहे थे? शेर ने आंखें लाल करके पूछा। तब खरगोश ने काँपते हुए सारी बात बताई। कांपते हुए और शॉल खरगोश को देते हुए मुर्गी बोली अन्नदाता या इसी का है, मुझे नहीं चाहिए, मुझे क्षमा कर दीजिये। शेर गुस्से में भरकर बोला पहले ही दे देती तो इतना उत्पाद क्यों मचा? दूसरों की चीजें हड़पकर सुखी रहना चाहती हैं। याद रख दूसरों की चीजें हड़पनेवाला का अंत सदा ही दुखदायी होता है। मुर्गी शेर के पन्नों पर गिरती हुई बोली क्षमा कीजिए महाराज, अब मैं ऐसा कभी नहीं करूँगी। फिर शेर ने खरगोश की ओर मुड़कर कड़क कर पूछा। क्यों रे, क्या तू उस दुष्ट लोमड़ी से न्याय करने लगा? सीधा मेरे पास क्यों नहीं आया? क्या तुझे मेरे न्याय में विश्वास नहीं था? तब संजू कांपते हुए और दोनों हाथ जोड़कर झुकते हुए बोला वनराज जी? तो हम आप ही के पास रहे थे, बीच में ही लोमड़ी मिल गई। हमें क्या पता था कि यह ऐसी ढोंगी होगी? तब शेर कहने लगा। हाँ, सो तो है ही सज्जन और दुर्जन की पहचान सरल नहीं होती। दोनों का व्यवहार तो एक सही लगता है पर दुष्टों का मन स्वार्थ झूठ, छल, कपट से भरा होता है। अपने प्रारंभिक परिचय में तो वे अपनी बनावटी व्यवहार से दूसरों को बड़ा आकर्षित कर लेते हैं। पर कभी न कभी उनका छल खुलता ही है, तब वे घृणा और तिरस्कार ही पाते हैं। हाँ महाराज, ऐसा ही है खरगोश और मुर्गी विनत होकर बोले शेर फिर बोला इसीलिए किसी अनजान की बातों में नहीं आना चाहिए बिना जाने बूझे समझे? किसी से अधिक घनिष्ठता भी नहीं बढ़ानी चाहिए। आपकी शिक्षा सदैव याद रखेंगे। खरगोश बोला। और तब शेर को प्रणाम करके खरगोश और मुर्गी दोनों ही अपने अपने घर लौट आए। रास्ते में संजू मुर्गी से कह रहा था दुष्ट तो दोषी हैं ही, जो दूसरों की मीठी बातों में फंस कर अपना स्वार्थ पूरा करते हैं, उनके कुचक्र में। फंसने वाले भी कम दोषी नहीं। पहले तो अपनी आंख कान बंद कर के बिना सोचे समझे उनकी बात पर विश्वास करते और फिर अंत में पछताते हैं। बातें करते करते दोनों अपने घर पहुँच गए तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है की हमें कभी भी किसी अनजान व्यक्ति से मित्रता नहीं बढ़ानी चाहिए और ना ही इतनी सरलता से बिना जाने समझे उन पर विश्वास करना चाहिए अन्यथा हम भी मुसीबत में पड़ सकते हैं। ओके बाइ।","सभी को नमस्कार, यह दो छोटे जीवों और एक चतुर लोमड़ी की शानदार शिक्षाप्रद कहानी है। इस कहानी में आपको क्रूर और चतुर लोमड़ी के गलत व्यवहार के बारे में पता चलता है। शेर राजा खरगोश और मुर्गी को क्या सबक देता है। कैसे उन दोनों को क्रूर लोमड़ी से मुक्ति मिलती है। पूरी कहानी सुनें और कहानी के नैतिक के बारे में जानें।" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपके लिए लेकर आई हूँ, उस कहानी का टाइटल है साहसी बालिका। कुटीर विद्यालय नगर के मध्य में था। रुचि और उसकी छोटी बहन सूची इसी विद्यालय में पढ़ती थी। रुचि सात वर्ष की थी और तीसरी कक्षा में पढ़ती थीं। जबकि सूची तीन वर्ष की थी। उसने कुछ महीने पहले ही विद्यालय में पढ़ने जाना प्रारंभ किया था। 1 दिन की बात है। रूचि शुचि की। उँगली पकड़कर विद्यालय के फाटक में घुस रही थी तभी पीछे से एक व्यक्ति आया और बोला रुचि तुम्हारे पिताजी तुम्हें बुला रहे। कहाँ है? पिताजी रुचि पीछे मुड़ते हुए बोली उस आदमी ने रुचि की बांह पकड़कर दूसरी ओर खींचते हुए कहा, देखो तुम्हारे पिताजी वहाँ खड़े हैं थोड़ी दूर चलने के बाद वह बोला, पिताजी कह रहे थे की तुम्हारे कुंडल सुनार को देखकर बदलवाने है लाओ अपने कुंडल मुझे दे दो, तुम्हारे पिताजी ने ही मुझे भेजा है। नहीं, मैं कुंडल नहीं दूंगी, रुचि बोली तो फिर अपने पिताजी को ही दे देना उन्होंने तुम्हे इसीलिए बुलव आया है, वह अपरिचित बोला। अब रुचि का माथा ठनका। उसे लगा कि जरूर दाल में कुछ काला है। उसके पिताजी प्रायः कहा करते थे कि ठग बच्चों को बहकाकर ले जाते हैं। वे उनके गहने उतार लेते हैं और बच्चों को बेच देते हैं। रुचि का दिल ज़ोर से धक धक करने लगा पर दूसरे ही पल उसने सोचा की मुझे पिताजी की शिक्षा के अनुसार साहसिक काम लेना चाहिए। मैं यदि उनके सामने ज़रा भी घबरा आउंगी तो यह मुझ पर हावी हो जाएगा। इस समय वे एक सुनसान गली में थे। जैसे वे एक कुएं के पास आये तो व्यक्ति आंखें निकालकर बोला लाओ अपने कुंडल उतारू नहीं उतारूंगी रुचि ज़ोर से बोली तो मैं तुम्हें उठाकर अभी इस कुएं में फेंकता हूँ। ऐसा कहकर वह रुचि की ओर बढ़ा। साथ ही उसने झटके से रुचि के कान से कुंडल खींच लिए। खून की धारा बह उठी। तभी रुचि की निगाह गली के मोड़ पर जाते हुए दो युवकों पर पड़ी। वह अपना पूरा ज़ोर लगाकर चिल्लाई। भाई साहब भैया भाईसाहब। किसी बच्चे की घबराई हुई पुकार सुनकर उन युवकों ने पीछे मुड़कर देखा। वह व्यक्ति भागने लगा पर रुचि ने तुरंत दौड़कर उसका पैर कसकर पकड़ लिया। तब तक दोनों युवक भी वहाँ आ गए। उन्होंने उस आदमी की गर्दन पकड़ ली। अब उसका भागना मुश्किल हो गया। तब तक वहाँ और भीड़ भी जुटाई थी। सभी ने उसे थप्पड़ जूतों से मारना शुरू कर दिया। वह रिरियाते हुए कह रहा था, मुझे छोड़ दो, मैंने कोई गलती नहीं की है। गलती की है या नहीं यह तो तुझे थाने जाकर ही पता लगेगा। कहते हुए एक आदमी ने उसके गाल पर कसकर तमाचे लगाए। इससे उसके मुँह में रखा हुआ रुचिका कुंडल छिटककर दूर जा पड़ा। वारा मेरा कुंडल रुचि ज़ोर से चिल्लाई। अब भी कह रहा है की तेरी कोई गलती नहीं है, हम ही मूर्ख है जो बिना बात तेरे पीछे पड़े हैं। कहते हुए एक आदमी ने उसे थाने की ओर धक्का दिया। अब उस व्यक्ति के सामने और कोई उपाय था ही नहीं। भीड़ ने उसे मारते पीटते थाने में ले जाकर ही दम लिया। थानेदार ने भी पूरी बात सुनकर उसकी पिटाई की और हवालात में बंद कर दिया। सभी ने रुचि की प्रशंसा की। उसने साहस और बुद्धि से काम लेकर अपना बचाव तो किया ही था, साथ ही अपराधी को भी पकड़वाया था। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है कि हमें विपत्ति के समय हमेशा साहस से काम लेना चाहिए, कभी भी घबराना नहीं चाहिए तभी हम संकट से बच सकते हैं। ओके बाइ?","सभी को नमस्कार, यह एक छोटी लड़की की साहसी कहानी है। दोनों लड़कियां बहुत छोटी हैं लेकिन वे अपनी बुद्धि और साहस से चोर को हरा देती हैं। बच्चों को अपने आस-पास के चोरों के बारे में पता होना चाहिए यदि वे किसी भी समय असुरक्षित महसूस करते हैं तो उन्हें बहादुरी से काम लेना चाहिए। पूरी कहानी सुनें और कहानी के नैतिक के बारे में जानें।" "क्या आप भी अपना पॉडकास्ट बनाने का सोच रहे हैं? तो ऐंकर ट्राई कीजिए, ये पॉडकास्ट बनाने का सबसे आसान तरीका है। नंबर एक ये फ्री है नंबर दो। इसमें कई सारे ऐसे टूल्स है जो आपको अपने फ़ोन और कंप्यूटर पर रिकॉर्ड और एडिट करने की फैसिलिटीज देते हैं। नंबर तीन आप अपने पॉडकास्ट को डिस्ट्रीब्यूट भी कर सकते हैं, जिससे इसे इस स्पॉटिफाइ और दूसरे प्लैटफॉर्म्स पे सुना जा सकें। डाउनलोड कीजिये ये फ्री एंकर ऐप या विजिट कीजिए ऐंकर डॉट ऐफ़ एम अपना पॉडकास्ट स्टार्ट करने के लिए? हैलो बच्चों, आज मैं आपके लिए जो कहानी लेकर आई हूँ, उस कहानी का टाइटल है बुद्धि का चमत्कार। वनराजसिंह न्याय करने के लिए सिंहासन पर बैठे हुए थे। दरबार में भीड़ लगी थी। फैसला सुनाने को लोमड़ी, सियार, भालू बाद तक बंदर सभी उपस्थित थे। दरबार की शोभा निराली थी। वनराज के एक और मंत्री रिज और दूसरी ओर सेनापति वानर बैठे थे। तभी एक मुर्गी आयी। वो बिलख बिलख कर रो रही थी। उसकी आंखें लाल पड़ी हुई थी, पंख टूटे हुए थे, पीठ से रक्त बह रहा था, पंजाबी आधा टूट गया था। मुर्गी की यह करुण दशा देखकर उसकी जीत कारें सुनकर सारे दरबार में पहुंचा गया। तुम्हारी यह दशा किसने की है? मंत्री रीच ने खड़े होकर पूछा। महाराज? मुर्गी सिर झुकाते हुए बोलीं, आज मैं बच्चों के लिए खाना जुटाने जंगल के उस ओर चली गई थी। वहीं एक वनमानुष ने मेरी ये दुर्दशा की है। पर वनमानुष तो हमारे जंगल में कोई है नहीं, शेरनी गरजते हुए पूछा। मुर्गी ने फिर प्रणाम करते हुए कहा। वह दूसरे जंगल से आया है। महाराज कह रहा था की हमारे राजा तुमसे राज्य छीन लेंगे और तुम्हारे राजे पर हमला करेंगे। इसी बात पर मेरी उससे चिक चिक हो गयी तभी उसने मेरी ऐसी दुर्दशा की है। यह सुनकर सिंह चौक उठा। वह जानता था कि पड़ोसी जंगल का राजा बहुत खूंखार हैं। युद्ध में व्यर्थ ही जानवर मरेंगे। अतएव किसी तरकीब से युद्ध रुकवाना ही चाहिए। सिंह ने कुछ समय विचार किया फिर सेनापति वानरदेव के कान में कुछ कहा और उसे वनमानुष के पास भेजा। सेनापति बड़ी तीव्र बुद्धि वाला था। वह लंबी चौड़ी सेना लेकर निकला और रास्ते में प्रधान सैनिकों के कान में न जाने क्या क्या कहता रहा। अपने जंगल की सीमा पर जैसे ही बानर पहुंचा उसे वनमानुष की गर्जना सुनाई पड़ी। आओ जाओ लड़ाई के लिए तैयार हो जाओ अपने महाराज को सूचित कर दो हमारे राजा सेना सहित आ रहे हैं। वानर कुछ न बोला कुछ समय बाद उसने देखा कि पड़ोसी सिंह अपनी सेना के साथ हांफता कांपता पसीना टपकता हुआ चला रहा है। आते ही बोला भोल पानी पी लो, पानी पिलाओ बोला प्यासा हूँ। आपके स्वागत के लिए ही तो मैं आया हूँ श्रीमान वार्नर ने कहा उसने चुटकी बजाई। तुरंत ही कुछ सैनिक चमचमाते ग्लास लेकर आ गए। वे सभी सुंदर सुंदर आवरण से ढके हुए थे। जैसे ही सिंह ने आवरण हटाया वह खुद हो उठा। ये क्या पानी की जगह ग्लास में मिट्टी और पत्थर भरे पड़े थे? यह क्या है? सिंह ने भवें चढ़ाते हुए पूछा। महाराज आप हमारे राज्य पर विजय प्राप्त करने आये हैं ना? इसलिए आपके स्वागत में यह मिट्टी रखी गई है। अरे जल्दी हमें पानी पिलाओ, हम सब तेज प्यास से मरे जा रहे हैं। सिंह पापड़ी पड़े, होंठों पर जीप फिर आते हुए बड़ी कठिनाई से बोला। वार्नर देव ने तुरंत चुटकी बजायी। अनेक सैनिक ठंडा, ठंडा शर्बत लेकर झाड़ियों के पीछे से निकल पड़े। सिंगर उसकी सेना तृप्त होकर शरबत पीने लगी। सेनापति वानर अपनी बुद्धिमत्ता पर मनी मन मुस्कुरा रहा था। हुआ यह था कि उसने अपनी सेना पहले ही सिंगल के जंगल में भेज दी थी। उसने वहाँ नदी के सारे पानी को गंदा कर दिया था, इसीलिए शेर और उसके साथियों को पीने के लिए पानी नहीं मिला और पानी के लिए उन्हें तरसना पड़ा। वार्नर ने देखा कि शरबत पीकर शेर संतोष से अपनी मुझे पूछ रहा है। उसने आगे बढ़ते हुए कहा। राजन चली युद्ध शुरू करें। ये युद्ध। लाते हुए बोलने लगा। तुमने तो हमारे प्राणों की रक्षा की है, तुम तो हमारे मित्र वे। जानते हो? मीलों दूर से हम कड़ी धूप में पानी पीने के लिए तरसते हुए चले आ रहे हैं। शरबत पिलाने की जगह यदि तुम लड़ाई शुरू कर देते तो हम तो कब क्यों मर चूके होते? एक दूसरे की सहायता करना, मिलजुल कर रहना, ये तो हमारा धर्म है। वह हर गंभीर होते हुए बोला। और तुमने पहले मिट्टी भर ग्लास क्यूँ रखे थे हमारे सामने? महाराज आप हमारी जमीन पर अधिकार करने ही तो आये थे न? जमीन पाकर यदि प्यास बूझ सकती तो इस मिट्टी से बुझाए यह बताने समझाने के लिए ही ऐसा किया गया था। बानर बोला। वार्नर की इस बुद्धिमानी पर सिंघ की आंखें आश्चर्य से फैल गई। वार्नर आगे कहने लगा। महाराज एक दूसरे की जमीन हड़पकर। यदि हम सुखी रह सकते हैं तो अवश्य ऐसा होता जमीन से पेट नहीं भरता। अच्छा यही है कि अपनी अपनी सीमाओं में रहकर अपने राज्य को सभी प्रकार से सुखी बनाएं। यदि आज आप हमसे युद्ध करेंगे तो कल हम आपसे करेंगे न आपकी प्रजा सुखी रह पाएगी, ना हमारी। हम जियें और जीने दे। एक दूसरे से प्रेम और भाई चारे का ही व्यवहार करें। वार्नर की बात सिंघ की समझ में आ रही थी। वह सोच भी रहा था कि युद्ध करना व्यर्थ ही है। इससे कोई लाभ नहीं होगा। तभी बानर बोल पड़ा। वैसे हम युद्ध के लिए भी तैयार हैं, हम डरपोक और कायर नहीं है महाराज। नहीं नहीं भाई तुमने मेरी आँखें खोल दी, अब युद्ध की कोई जरूरत नहीं है। आज से हम तुम्हारे राजा के मित्र हुए। सिंह अपनी आया लो पर हाथ फिराता हुआ बोला। तभी वार्नर के आदेश से एक सैनिक झाड़ियों के पीछे विश्राम कर रहे अपने वनराज सिंह को बुला लाया। ओम इत्र तुम्हारा स्वागत है। उधर, जंगल के सिंह ने अपना पंजा आगे बढ़ाते हुए कहा। नमस्कार मेरे नए मित्र। इधर जंगल के सिंह ने भी अपना पंजाब आगे बढ़ाकर मिलाया। दोनों मित्र परस्पर गले मिले। सेनापति वार्नर ने इस अवसर पर प्रीति भोज भी दिया। फिर इसके बाद दोनों ने एक दूसरे को अनेक उपहार दिए। फिर वे अपने अपने जंगल को वापस चले गए। इस प्रकार वार्नर और वनराजसिंह की बुद्धिमानी से शत्रु भी मित्र बन कर वापस लौटा। सच ही तो है कि सोच विचार कर कार्य करने से कोई भी बुरी से बुरी बड़ी से बड़ी कठिनाई और बड़ी से बड़ी खराब स्थिति भी छोटी हो जाती है और हम उस पर आसानी से विजय प्राप्त कर सकते हैं। ओके बाय।","सभी को नमस्कार, यह जंगल की एक अद्भुत कहानी है। इस कहानी में आपको शेर और बंदर की बुद्धि के बारे में पता चलता है। पूरी कहानी सुनें और कहानी के नैतिक के बारे में जानें।" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी में आपको सुनाने जा रही हूँ उसका टाइटल है हाथी और चींटी। एक बार हर को किसान ने अपने खेत में गन्ने बॉय खूबी, मीठे, मीठे और लंबे लंबे गन्ने ऐसे की देखते ही खाने को मन लग जाये। रास्ते में जा रही एक चींटी ने उस खेत को देखा। उसने अंदर घुसकर गन्ने का स्वाद लिया। उन्हें चखते ही वह प्रसन्न हो गई। दौड़ी दौड़ी अपनी रानी चीनू चींटी के पास पहुंची चीनू चींटी वहाँ से मील भर की दूरी पर आम के पेड़ की जड़ में घर बनाकर रह रही थी। उसके राज्य में हजारों अन्य चिट्ठियां भी रहती थी। गुप्तचर चींटी ने महारानी चीनू को लाकर गन्ने के खेत की सारी बात बताई। चीनू चींटी ने आदेश दिया तुरंत ही उनकी सारी सेना आम के पेड़ की जड़ में से निकल पड़ी। आगे आगे चली गुप्तचर चींटी वह गन्ने के खेत का रास्ता बता रही थी। उसके पीछे महारानी जीती आ रही थी और उसके पीछे थी उनकी पूरी की पूरी सेना, जिसमें हजारों चिट्ठियां चल रही थी। चींटियों की यह फौज गन्ने के खेत में पहुंची। गुप्तचर सिटी में रहने के लिए अच्छी सी भुरभुरी मिट्टी वाली जगह तलाश रखी थी। चीटियाँ तुरंत उसमें घुस गई। तेजी से उन्होंने अपने घर बनाए और फिर चीनू रानी को अंदर ले आये। 1015 दिनों तक चीटियां बड़े मज़े से नहीं खाने को जी भरकर गन्ने और घूमने के लिए लंबा चौड़ा खेत था। बात करने को आसपास की अनेक चीटें चीटियों के घर थे। तीनों चींटी दूसरों को सम्मान देती थी। ध्यान से सभी की बातें सुनती थी, दूसरों की सहायता भी करती थी। बोलती तो कम थी पर काम अधिक करती थी। उसके इन्हीं गुणों के कारण आसपास के चींटी चींटियां उसका बहुत आदर और सम्मान करने लगे। कभी उसकी बातों को ध्यान से सुनने और मानने लगे थे। 1 दिन हाथियों का एक बड़ा सा झुंड गन्ने के खेत में घुस आया। उन्होंने जी भरकर जड़ सहित गन्ने उखाड़े और खेत में घूम घूमकर खूब खाएं। चींटियों के बहुत सारे बिल हाथियों के भारी भारी पैरों से तहस नहस हो गए थे। कुछ तो चीटियां भाग निकली थी और कई 1000 चिट्ठियां वहीं मर गई थी। तीनों चींटी ने देखा कि खेत से जाते समय हाथियों का सरदार अपनी सूँड दूसरे हाथी के सिर पर फिर आते हुए कह रहा था इस खेत को पता देने के कारण मैं तुमसे बहुत खुश हूँ। अब हम सभी प्रतिदिन यो यो करेंगे। यह सुनकर चीनू चींटी के तो प्राणी सूखने लगे। डर के कारण बहुत हद तक अपने लगी खेत में इधर उधर छुपे चीटें चीटियों ने देखा कि आप सभी हाथी जा चूके हैं। वे तेजी से दौड़कर आये अपने अपने परिवार के मृतकों को देखकर उनका कलेजा फटने लगा। वे रोने लगे। इतने में चीनू रानी भी वहाँ आयी। वह बोली भाइयों और बहनों, अब रोने से कुछ नहीं होगा। यह बड़े ही दुख की बात है की हमारे इतनी भाई और बहनें मारे गए। पर अब दुख मनाने और रोने की जगह हम यह सोचें कि कल हम सब अपनी रक्षा कैसे करेंगे? मैंने खुद सुना है कि वे दुष्ट हाथी अब रोज़ यहाँ आया करेंगे। यह सुनकर तो सभी अचंभे में आ गए। सभी कहने लगे हम भी तो बहुत छोटे छोटे हैं हाथियों का हम क्या बिगाड़ सकते हैं पर संगठन और बुद्धिबल में बहुत शक्ति होती है। हम छोटे हैं तो क्या कल सभी मिलजुलकर उन्हें मज़ा चखाएंगे डरकर भागना कायरता होती है? चीनू कह रही थी फिर जिन्होंने अपनी सारी योजना उन सभी को बदलाई सभी के सभी ने अपना सिर हिला हिलाकर कहा ठीक है, ठीक है, हम सब यही करेंगे। दूसरे दिन खेत में जैसे ही यहाँ थीं घुसे तो इधर उधर छिपी हुई लाखों चीटियां निकल पड़ी। सभी अधिक गुस्से से भरी हुई थी। चींटियों की एक एक सेना एक एक हाथी पर झपट पड़ी। पेट, पीठ, पैर पूछ नाक, कान, सून सभी में घुसकर काटने लगी। प्रति सून हिला हिलाकर चिंघाड़ने लगे। सबसे पहले हाथियों का नेता ही खेत में घुसा था। तैयार बैठी चीनू चींटी तुरंत उसकी सून में घुस गई। वहाँ आगे बढ़ती ही जा रही थी। उसने हाथी के दिमाग में जाकर ज़ोर से काटा और बोली बता अब मारेगा में हाथियों का नेता बोला, अरे मैं मरा तू जल्दी से निकल जा, तेरे हाथ जोड़ता हूँ, अब हम यहाँ कभी नहीं आएँगे। यह सुनकर चींटी उस हाथी की सूंड से तुरंत ही बाहर निकल आएँगे। हाथियों का नेता अपनी सुर ऊपर उठाकर दांतों को निकाल कर ज़ोर ज़ोर से चिंघाड़ भाई या खैर नहीं है तुरंत भाग चलो। अपने नेता की बात सुनकर सारे हाथी तेजी से खेत से बाहर निकलने लगे। चींटियों ने भी अब उनका पीछा करना छोड़ दिया और सभी नीचे उतर आएँगे। सभी चींटियों ने चीनू की जय जयकार की। व्यापक मैं कह रही थी महारानी जीतू ने ठीक ही कहा था। आपत्ति में भी यदि धैर्य रखा जाये, सभी मिलजुलकर युवती से समस्या सुलझ जाये तो बड़े से बड़ा संकट भी डाला जा सकता है। संगठित होकर गहरे पूर्वक काम करने वाले सदाई विजयी होते हैं। तो इस प्रकार चीन ने अपनी सूझबूझ से हाथियों के उस झुंड पर विजय पाई और अपने सभी साथियों की रक्षा की। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि संगठन में ही शक्ति होती है और। सूझबूझ और युवती से किया गया कार्य कठिन समय में भी काम आता है। ओके बाइ?",सभी को नमस्कार मैं सभी बच्चों को सोने के समय की कहानियां नैतिक रूप से बता रहा हूं। मेरी कहानियाँ अभिनव और प्रेरणादायक हैं। अपने बच्चों के साथ मेरी कहानियाँ सुनें। यह निश्चित रूप से आपके बच्चे के व्यक्तित्व के निर्माण में मदद करेगा। "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपके लिए लेकर आई हूँ, उसका टाइटल है राजद्रोह का दंड दंडकारण्य में जब सींगों का राजा गुजर गया तो उन्होंने नए राजा का चुनाव किया। दिवाकर को सभी सिंगो ने अपना राजा चुना। नया पद पर आकर दिवाकर ने सोचा की अब मुझे इनके विश्वास की रक्षा करनी चाहिए। मुझे अपना अधिक से अधिक समय प्रजा की भलाई में ही व्यतीत करना चाहिए। दिवाकर अपने राज्य की सर्वांगीण प्रगति के लिए अनेक योजनाएं बनाता रहा। इन योजनाओं की पूर्ति करने और कराने के लिए उसे अनेक राज्य कर्मचारियों की नियुक्ति की आवश्यकता थी। उसने पूरे जंगल में यह घोषणा करा दी कि कल महाराज मंत्रियों और अन्य कर्मचारियों की नियुक्ति करेंगे। अतएव जंगल के सभी जानवर प्रातः 10:00 बजे नदी के उत्तर दिशा वाले मैदान में इकट्ठा हो जाए। दिवाकर राज्य कर्मचारियों के चुनाव को लेकर कुछ चिंतित सा था। यह बात वह बहुत अच्छी तरह जानता था कि राजकर्मचारी राजा की बहुत बड़ी शक्ति होते हैं। राजा इन्हीं के माध्यम से राज्य कार चलाता है। वे जैसा अच्छा या बुरा काम करते हैं, वैसे ही विचार प्रजा राजा के विषय में बना लेती है। ईमानदार और कर्तव्य परायण ही राज्य की उन्नति करते हैं। भ्रष्ट और चरित्रहीन राजकर्मचारी तो राजा को पूरे के पूरे राजतंत्र को बदनाम ही कर दिया करते हैं। दिवाकर ने राज्य कर्मचारियों का खूब सोच समझकर ठोक बजाकर चुनाव किया था। उसे अपने निरीक्षण शक्ति पर दूसरों को परखने के गुण पर विश्वास था। दिवाकर का यह विश्वास काफी सीमा तक सही भी सिद्धू हुआ। उसके अधिकांश मंत्री और कर्मचारी बड़े ही परिश्रमी, ईमानदार और प्रजा के हित के लिए निरंतर जुटे रहने वाले थे। राज्य कर्मचारियों के उस समूह में भूल से एक धूर्त गीदड़ भी आ गया था। गलती इसमें दिवाकर की भी नहीं थी। वह गीदड़ जग्गू बात करने में बड़ा ही कुशलता, उससे बातें करते समय ऐसा लगता था कि वह बड़ा ही योग्य और ज्ञानी है। उसकी व्यावहारिकता और बात करने की कला दूसरों को बड़ी जल्दी प्रभावित कर देती थी। उसकी बातें सुनकर लगता था कि वह न जाने कितना आशावादी हैं, पर अंदर से जग्गू इससे बिल्कुल भिन्न था। वह बड़ा ही धूर्त, कपटी और आलसी था। जब उसने देखा कि महाराज दिवाकर और प्रजा दोनों ही उस पर विश्वास करने लगे हैं तो अपना वास्तविक रूप दिखाना प्रारंभ कर दिया। अब वह काम बहुत थोड़े नाममात्र को करता, सारे दिन आराम ही करता रहता और छोटे छोटे जीव जंतुओं से अपनी सेवा कर आया करता। जब चाहे किसी को डरा धमकाकर उनका माल हड़प जाता। जग्गू चाहे किसी को भी अपमानित कर देता चाहे किसी पर अपना रौब गांठने लगता। यह तो महाराज का विश्वासपात्र हैं, उनसे ना जाने कब जाकर यह कह दें। इस भैंसे उसके सामने कोई नहीं बोलता था। इसका परिणाम यह हुआ। कि जगगों और अधिक मनमानी करने लगा। अत्याचारी का यदि विरोध ना किया जाए तो उसे और शोषण करने के लिए बढ़ावा मिलता ही है। दूसरे कर्मचारियों को प्रारंभ में ही जग्गू के सारे दुर्गुणों का पता तो लगा नहीं था, परंतु उसकी काम चोरी की आदत उनके सामने आ गई। उन्होंने कई बार जग्गू को टोका भी कि तुम ठीक से काम किया करो, पर जग्गू उनकी बातों को कानों से उतार देता। 1 दिन मंत्री गजराज ने जब जग्गू को कामचोरी के लिए डांटा, तो जग्गू भड़क उठा, तुम कौन होते हो? मुझे टोकने वाले उसने बड़ी ही दृष्टता से कहा, गजराज ने उसके मुँह लगना उचित न समझा। जग्गू के स्वभाव का प्रभाव अब कुछ दूसरे जानवरों पर भी पड़ने लगा। वे भी उसी की भांति काम चोरी करते, खाते और पड़े रहते कुछ दिनों तक ऐसे ही चलता रहा। फिर यह सूचना महाराष्ट्र दिवाकर के पास भी पहुँच गई। उन्हें कर्मचारियों के विषय में जब यह पता लगा तो उन्हें बड़ा दुख हुआ। दिवाकर ने स्वयं इस विषय की जांच पड़ताल की और इस बात को सच पाया। तब उन्होंने जग्गू और सभी कामचोर जानवरों को काम से निकाल दिया। यही नहीं अपितु दो दिनों के अंदर उन्हें जंगल छोड़कर चले जाने का आदेश भी सुना दिया। गजराज और अन्य मंत्रियों ने महाराज दिवाकर से अनुरोध भी किया कि वे जग्गू और अन्य कर्मचारियों को इतना कठोर दंड ना दें। पर दिवाकर ने भयंकर गर्जना करते हुए कठोर स्वर में कहा, मुझे एक कामचोर रिश्वत लेने वाले कर्मचारी बिल्कुल भी पसंद नहीं। ये राजद्रोही है। इन्हें तो जितना दंड दिया जाए उतना ही कम होगा। बुरे विचार वाले, बुरी आदतों वाले व्यक्ति समाज से दुष्परिणाम को पैदा करते हैं। उन्हें हटाया जाना ही अच्छा है। ऐसा व्यक्ति नस केवल स्वयं बुरे विचार रखता है। अबे तू अपने संपर्क में आने वाले से भी ऐसा ही व्यवहार करता है या हमारे स्वभाव की विशेषता होती है कि दूसरों की अच्छाई तो हम अपने अंदर ग्रहण कर लेते हैं पर बुरा ई जल्दी ही सीख लेते हैं। इसलिए तो अच्छे व्यक्तियों की संगति को इतना महत्त्व दिया गया है। कहा भी गया है। जख्मियों हर 30 इंच अतिवादी सत्यम मानो उन्नति दिष्टि पापा, करोति चेता प्रसादयति दिक्षु तनोति कीर्तिं सत्संगति कथा है कि हम न करोति पुंसां अर्थात मन की जड़ता का नाश करती हैं। वाणी को सत्य से सींचती है, सम्मान और उन्नति की दिशा दिखाती है, पापों को दूर करती है, कहो सज्जनों की संगति मनुष्य का क्या भला नहीं करती। महाराज बात तो ठीक है आपकी गजराज और अन्य मंत्रियों ने कहा जग्गू और दूसरे जानवर दिवाकर के सामने बहुत गिड़गिड़ाए कि अब वे ऐसा कार्य नहीं करेंगे। पर दिवाकर ने स्पष्ट कह दिया यह दुंड तो तुम्हें भुगतना ही होगा। हाँ, यह हो सकता है कि यदि तुम अपनी गलतियाँ सुधार लो तो परीक्षा लेने के बाद तुम्हें फिर से इस जंगल में रहने की अनुमति मिल सकती है। हारकर जग्गू और उसके साथी अपना सा मुँह लेकर उस जंगल से चले गए तो बच्चो। इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है। ये हमें कभी भी बुरे कार्य नहीं करने चाहिए और अच्छे लोगों की संगति में ही रहना चाहिए। ओके बाइ?","सभी को नमस्कार, यह एक शेर 🦁 राजा की कहानी है। सिंह बहुत उदार हैं। वह अपने लोगों का बहुत ख्याल रखते हैं। लेकिन उसका एक दरबारी बड़ा शातिर है। यह एक सियार है। सियार बहुत आलसी साथी होता है। वह हमेशा जंगल के दूसरे जानवरों को परेशान करता है। जब राजा को सच्चाई का पता चलता है तो वह उसे दंडित करता है और निर्वासन देता है। पूरी कहानी सुनें और नैतिकता के बारे में जानें।" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपको सुनाने जा रही हूँ, उसका टाइटल है घमंड का फल। गंगा, यमुना, कावेरी, गोदावरी आदि अनेक नदियां इठलाती हुई चली आ रही थीं। वे कल कल छल छल करके सागर के जल में गिर रही थी। समुद्र बड़े ध्यान से उनका आना देख रहा था। उसने देखा कि किसी नदी का जल सफेद है, किसी का हरापन लिए हुए है तो किसी कार नीलिमा लिए हुए हैं। उसने देखा कि नदियों के वेग के साथ कहीं कहीं बड़े बड़े पहाड़ी पत्थर भी बहे चले आ रहे हैं। कई विशालकाय वृक्ष तैर रहे, कहीं घास फूस, फूल, पत्ते आदि दिख रहे समुद्र को उन नदियों के पानी में कभी भी धूप और सरकंडे दिखाई नहीं दिये। गंगा जब पास आई तो समुद्र ने पूछा। हे गंगे? मैं देख रहा हूँ कि तुम सब ने दिया बड़े बड़े वृक्षों और पत्थरों को बड़ी सहजता से बाहर आती हो। पर मैंने किसी के जल में सरकंडे बहते नहीं देखे, क्या बात है? वह तुम्हारे रास्ते में नहीं पड़ते या फिर तुम उनसे बहुत छोटा समझकर बात नहीं किया करती? गंगा बोली नहीं स्वामी ऐसा नहीं। सरकंडों का तो वन का वन हमारी किनारे उग आता है। हम उनसे कल कल करके घंटों बातें भी करते हैं। सरकंडा छोटा है तो क्या है बड़ा ही विनम्र उसे पता है कि किस स्थिति में क्या करना चाहिए। हमारी लहरें जब तक को तोड़ तोड़कर बहती है, जब हमारा जल सरकंडों तक पहुँच जाता है तो वह झुक जाते हैं। झुकते भी उसी ओर है। जीस तरफ हमारा बहाव होता है। सरकंडे की जड़ें गहरी नहीं होती, उनका तन भी नहीं होता। फिर भी हम उन्हें बहार नहीं पाते जैसा की हमारा पानी उतरता है, वह फिर शान से खड़ा हो जाता है और हस्ते हस्ते जीता है। तेज हवा चलती है तब भी वह यही करता है और इतने बड़े बड़े वृक्ष कैसे रह जाते हैं? समुद्र ने फिर पूछा गंगा बताने लगी वृक्ष बड़े घमंडी होते हैं, घमंड से सिर ताने खड़े रहते हैं। हमारा जल उनके तनु से टकराता है तो वे बढ़िया बईमान से कहते हैं, अरे ये लहरों भागो यहाँ से, नहीं तो टकराकर चूर चूर हो जाओगी। उन्हें अपने बड़प्पन का बड़ा अहंकार है, उसी अहंकार से विरह जाते हैं। घमंडी, सदैव दुख पाते हैं। समुद्र ने सोचा वही उन्नति कर पाता है जो व्यर्थ का अभिमान नहीं करता, चाहे वह रूप का हो, धन का हो अथवा शक्ति का अभिमान। सभी बुरे होते हैं तो बच्चों आज की इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है की हमें भी। चाहे छोटा हो, चाहें बड़ा कभी भी किसी को घमंड नहीं करना चाहिए और अपने रूप, गुण और धन का कभी भी मान नहीं करना चाहिए। ओके बाय।",सभी को नमस्कार मैं सभी बच्चों को सोने के समय की कहानियां नैतिक रूप से बता रहा हूं। मेरी कहानियाँ अभिनव और प्रेरणादायक हैं। अपने बच्चों के साथ मेरी कहानियाँ सुनें। यह निश्चित रूप से आपके बच्चे के व्यक्तित्व के निर्माण में मदद करेगा। "हैलो बच्चों, आज जो कहानी में आपको सुनाने जा रही हूँ उसका टाइटल है मित्रता की मर्यादा। गणक और दया दोनों सहेलियां थी। कक्षा में साथ साथ ही बैठती पड़ती और घर पर भी साथ साथ ही खेला करती थी। दया अक्सर अपनी ही माँ की आज्ञा लेकर कनक के घर चली जाया करती थी। कनक बड़े ही धनी परिवार की थी। उसके पिताजी उसके लिए अधिक से अधिक खिलौने लाते रहते थे। कनक उनसे दया को भी खेलने देती थी। ये खिलौने दया के नहीं हैं, वह उन्हें छुए नहीं। ऐसा तो कुछ विचार कभी उसके मन में भी ना आता था। यही नहीं, दया जो भी खिलौना मांगती, कनक उसे खुशी खुशी दे दिया करती थी। धीरे धीरे दया को यहाँ आदत पड़ गयी कि वह कनक से कुछ ना कुछ मांगकर ले जाती। कभी कोई खिलौना मांगती, कभी कोई पेन तो कभी कोई फ्रॉक भी ले जाती। कनक की माँ भी उदार विचारों वाली बड़ी ही ऑसर दे महिला थी। वे दया के घर की स्थिति भी जानती थी। अतएव वे कनक को कुछ देने से कभी रोका नहीं करती थी। दया सब चीजें अपने घर ले जाती। माँ को दिखाती तो वे अच्छी हैं। कह कर अपने काम में लग जाती। कभी भी उन्होंने दया से यह नहीं कहा कि तुम इस प्रकार चीजें ना मांगा करो। उल्टे जब दया को कोई भी चीज़ की जरूरत होती तो वह माँ के आगे कोई फरमाइश शक्ति तो वह यही कह देती की खनक से ले आना। अपनी माँ से इस प्रकार का प्रोत्साहन मिलने का यह फल हुआ कि दया अब तो हर तीसरे चौथे दिन कोई ना कोई मांग करने लगती। यही नहीं वह कोई भी चीज़ उठाकर खड़ी हो जाती। इसे मैं ले जा रही हूँ। कनक कह कर चलती बनती कनक बेचारी संकोच के कारण कुछ बोल भी नहीं पाती। दया का इस तरह रोज़ चीजें मांगना अब कनक को भी बुरा लगने लगा। उसने एक दो बार घूमा, फिराकर दयाल से इसके लिए मना भी किया, पर दया पर इसका कोई असर न पड़ता। बहुत तो पक्की मंगती बनती जा रही थी। 1 दिन तो हद ही हो गयी। कनक के पिता जी ने उसे देश विदेश की रंगबिरंगी अनेक गुड़िया लाकर दी। अभी कनक उनको खेल ही रही थी कि दया भी आ गई। दोनों सहेलियों ने अलमारी में सारी गुड़िया सजाई। दोनों देर तक उनके कपड़े, गहने आदि के बारे में बातें करती रहीं। घर चलते समय रोज़ की आदत के अनुसार दया ने जापानी और कश्मीरी गुड़िया उठा ली। वे उसे बहुत ही अच्छी लग रही थी। जैसे ही दया चलने लगी, कनक ने उसका हाथ पकड़ लिया और बोली। ये मैं नहीं ले जाने दूंगी। क्यों? बहुएं चढ़ा कर दिया, ऐसे बोली जैसे वो अपनी ही चीज़ ले जा रही हो। मैं अपना नया सेट बिगाड़ने नहीं दूंगी। कनक ने कहा, ओहो दो गुड़िया अगर ना रखी जाएंगी तो क्या नुकसान हो जाएगा? दया बोली और कनक से हाथ छुड़ाने की कोशिश करने लगी। लाओ मेरी गुड़िया मुझे देदो। अब गुस्से में भर के कनक ने उसके दोनों हाथ पकड़ लिए। दया ने भी तो न कर पूरे ज़ोर से जमीन पर उन्हें पटक दिया। कनक को लगा जैसे किसी ने उसको ही मार दिया हो दौड़कर उसने गुड़िया उठाई और अपने हृदय से लगा ली, गुट्टी अब हमारी तुम्हारी दोस्ती खत्म दया चीख कर बोली। सभ्यता से बोलो दया हमारी तुम्हारी दोस्ती तो वैसे भी खत्म हो जाती। आखिर मित्रता की कोई मर्यादा होती है जो अपने दोस्त से रोज़ रोज़ कुछ ना कुछ मांगते हैं तो उसकी दोस्ती जल्दी ही खत्म हो जाती है, जो बहुत मांगता है, उसे सभी दूर रहना चाहते हैं। वह व्यक्ति जिन्हें अपने पास की चीजों से संतोष नहीं होता, दूसरों की चीजें देखकर लाल जाते रहते है, कभी सुख और संतोष नहीं पा सकते। कनक ने उस दिन अपने दिल की बात कह दी। अब मैं तुम्हारे घर जाउंगी भी नहीं कहकर पैर पटकती दया वहाँ से चली गयी। अब दया और लड़कियों को अपनी सहेली बनाना चाहती थी। शुरू में तो उसका साथ सबको अच्छा लगता। और कुछ दिनों बाद ही सभी दोस्त उससे अपनी मित्रता तोड़ लेते। इसका कारण है दया की मांगने की आदत। फल यह होता कि अब वे उससे अलग ही हो जाते। उसके साथ ना कोई बैठने को तैयार होता ना कोई खेलने को। दया अपने मन में सोचा करती। आकाश और बच्चों की माँ की तरह मेरी माँ ने भी शुरू में ही दूसरों से चीज़े मांगने पर मुझे टोका होता तो आज यह दिन देखने को ना पड़ता। क्यों सभी मेरा तिरस्कार करते मुझसे दूर रहते हैं? इस प्रकार दया अपने मन में सोच विचार करने लगी तो बच्चों इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें कभी भी दूसरों की चीजें नहीं लेनी चाहिए। अपनी चीजों से संतुष्ट रहना चाहिए। ओके बाइ?",यह दो दोस्तों की कहानी है। वे बहुत तेज दोस्त हैं। लेकिन इनमें से एक गरीब है। वह हमेशा अपने अमीर दोस्त से भीख मांगती थी। कुछ देर बाद उसने कुछ भी देने से मना कर दिया। कहानी सुनें और आनंद लें। "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आप सबके लिए लेकर आई हूँ, उसका टाइटल है क्रिसमस की। सैंटा क्लॉस का चेहरा क्रिसमस आते ही खुशी से खिल उठता था पर इस साल उन्हें समझ में नहीं आ रहा था की बच्चो ने आउटडोर गेम्स के लिए कुछ नहीं मांगा था। उन्होंने लिस्ट पढ़ते हुए पास खड़े एक बौने से पूछा। क्या बात है फुटबॉल क्रिकेट किट हॉकी किसी भी बच्चे ने नहीं मांगी है। गोल मटोल बोनी ने अपनी बूंदें वाली टोपी को हिलाया और सोचते हुए बोला, शायद उन्होंने बाहर खेलना बंद कर दिया हो। कुछ बच्चो का तो मैं समझ सकता हूँ कि टेस्ट और एग्ज़ैम के कारण उन्होंने कुछ समय के लिए छोड़ दिया हो पर सारे बच्चे ऐसा कर सकते हैं। सैंटा क्लॉज ने आश्चर्य से जवाब दिया। और जो बच्चे हर साल फुटबॉल मांगते थे, उन्होंने 20 साल कुछ नहीं मांगा। दूसरे बौने ने अपनी वाली टोपी को झटका देते हुए कहा। सेंटा ये सुनकर परेशान हो गए और खिड़की से बाहर झांकने लगे। हवा में उड़ते हुए सफेद बर्फ़ के गोले बहुत सुंदर लग रहे थे। उन्होंने बहुत देर तक इस बात को समझने की कोशिश की। पर कोई बात उनकी समझ में नहीं आ रही थीं। वे सोचने लगे कि आखिर ऐसा क्या हुआ होगा कि बच्चों ने बाहर खेलने वाले सारे खेल पूरी तरह से छोड़ दिए होंगे? तभी एक रेनडियर सांटा के पास आकर बोला। शैलेश तैयार करवा दी है। आप बच्चों के उपहार रखवा सकते हैं। हाँ, मैं अभी खिलौने वाली फैक्टरी में जाकर देखता हूँ। बच्चों की लिस्ट पूरी हो गई या नहीं सेंटा ने जवाब दिया। तभी बोला। पर इस बार मुझे उपहार बहुत कम नजर आ रहे हैं। मैं भी यही सोच रहा हूँ। कहते हुए सेंटा के चेहरे पर उदासी छा गई और वे खिलौने देखने चले गए। कम उपहार देकर सेंटा का चेहरा उतर गया और वे अपने कमरे में चले गए। क्रिसमस आने में 2 दिन बचे थे पर सेंटा एक पल के लिए भी अपने कमरे से बाहर नहीं निकले। उन्हें चिंता के कारण नींद भी नहीं आ रही थी। उन्होंने सोचा की अगर बच्चे ही क्रिसमस पर उपहार नहीं मांगेंगे तो भला कौन मांगेगा? सेंटा तो क्रिसमस के दूसरे दिन से ही अगले क्रिसमस का इंतजार करने लगते और पूरे साल लगातार बहनों के साथ मिलकर खिलौने बनाते रहते हैं। तब भी क्रिसमस की शाम तक किसी को सांस लेने की भी फुर्सत नहीं मिलती थी और इस साल पहली बार ऐसा हुआ की क्रिसमस में 2 दिन बचे थे और सारा काम खत्म हो गया था। उन्होंने दीवार पर लगी हरे रंग की घंटी बजाई तो दीवार पर बिंगो बोना दिखाई देने लगा। बिंगो सैंटा को देखते ही मुस्कुरा दिया। बच्चों के सभी उपहारों को स्लेज में रखवा दो और क्रिसमस की शाम तक मुझे कोई बुलाना मत। सैंटा ने धीरे से कहा और लाल रंग की घंटी बजा दी। लाल रंग की घंटी बजते ही दीवार से बौना गायब हो गया और दीवार फिर से पहले जैसी हो गई। 2 दिन तक सेंटर इसी उधेड़बुन में रहे कि अगर वे पता लगा पाते कि बच्चों ने आखिर खेलना कूदना क्यों बंद कर दिया तो वह जरूर ही उसका कोई उपाय निकालते और ऐसे ही 2 दिन निकल गए। क्रिसमस की शाम को सेंटा अपने कमरे से बाहर निकलें और सीधे जाकर में बैठ गए। सभी रेनडियर सैंटा को देखकर खुश हो गए और खुशी से चिल्लाते हुए बोले हैप्पी क्रिसमस। सैंटा मुस्कुराए और बोले पी क्रिसमस सेंटा के जवाब देते ही अर्थ खुश हो गए और आसमान में उड़ चले सैंटा अनमने से बैठे थे की तभी बोने चीखते हुए कहा। अरे, रुको, हमें यहाँ से शुरुआत करनी है। सेंटा ने आश्चर्य से बहनों को देखा क्योंकि उन्हें याद था कि इस शहर से तो किसी बच्चे ने कोई उपहार मांगा ही नहीं था और जब बहनों ने सेंटा को उपहार का किट पकड़ाया तो सैंटा बच्चों की तरह खुश हो गए और तुरंत बहनों के संग उनके बताए हुए घरों की ओर चल पड़े। घरों के अंदर जाकर सैंटा की खुशी का ठिकाना नहीं रहा क्योंकि सभी घरों में रंग बिरंगी झालरों से जगमगाते हुए क्रिसमस, डेढ़ सारी सुनहरी घंटियां, सितारे, कैंडी स्टिक्स और चॉकलेट सजी हुई थीं। सभी बहुत खूबसूरत लग रहे थे। सेंटा ने मुस्कुराते हुए एक के बाद एक करके उस शहर के सभी घरों में उपहार रख दिए। जैसे ही इस ले जुड़ी तो बोने दूसरे शहर को देखते हुए कहा। अब हमें उन जगमगाते हुए रोशनियों के पास उतरना है। पर क्या हमारे पास इतने उपहार है? सेंटा ने आश्चर्य से पूछा, हाँ बिलकुल है। आपने उपहारों की तरफ तो देखा ही नहीं था। एक ने हंसते हुए कहा, सैन्ट ने तुरंत पीछे मुड़कर देखा तो आश्चर्यचकित रह गए। हजारों उपहार चमकीली पन्नियों में लिपटे हुए रखे थे। सैंटा की आंखें चमक उठीं। उन्होंने उत्सुकता से पूछा और। तभी एक नटखट बौना ताली बजाकर उछलता हुआ बोला। जब आप दुखी होकर कमरे में बंद हो गए थे तब हम सबको बहुत बुरा लगा और हमारे इस बात का पता लगाने निकल पड़े की आखिर बच्चो ने। हॉकी, फुटबॉल और क्रिकेट किट वगैरह क्यों नहीं मांगे? हाँ क्यों नहीं मांगे? कहते हुए सैन्ट ने अपनी लंबी सफेद दाढ़ी पर हाथ फेरा। क्योंकि करीब 200 देशों में को फिट 19 नाम का वायरस फैला हुआ है, जो सांसों के जरिए एक दूसरे में फैलता है और इसीलिए बच्चों के साथ साथ बड़ों ने भी बाहर निकलना बहुत कम कर दिया है। बौने ने कहा, ओह, तो फिर तुम लोगों ने उपहारों में उन बच्चों को क्या दिया है? सैन्ट नी हैरान होते हुए पूछा। हमने उन्हें दिया तो फुटबॉल और हॉकी वगैरह ही है और साथ में मास्क भी दिया है ताकि वे इस बिमारी से बच सकें। मैं बता नहीं सकता कि मैं कितना खुश हूँ। कहते हुए सेंटा ने बोनी को गले से लगा लिया और सलेस सभी बोने और सैंटा की खिलखिलाहट के साथ हवा में और ऊपर उड़ चली। जिससे घुंघरुओं की रुनझुन बादलों के पार तक सुनाई दे रही थी। तो बच्चो ये कहानी थी क्रिसमस की सैंटा क्लॉस की और उन सारे उपहारों की जो तुम सभी के लिए सैंटा क्लॉस क्रिसमस के दिन लेकर आएँगे। ओके बाइ?","सभी को नमस्कार, क्रिसमस ईसा मसीह के जन्म की याद में एक वार्षिक उत्सव है, जिसे मुख्य रूप से 25 दिसंबर को दुनिया भर के अरबों लोगों के बीच एक धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव के रूप में मनाया जाता है। यह क्रिसमस 🎄 की एक नैतिक कहानी है। हम अच्छी तरह जानते हैं कि क्रिसमस बच्चों का पसंदीदा त्योहार है। बच्चे साल भर क्रिसमस का इंतजार करते हैं। अब यह लगभग यहाँ है. इस साल कोविड 19 की वजह से बच्चे कोई भी त्योहार पूरे मन से नहीं मना सकते लेकिन चिंता न करें दुनिया बहुत जल्द कोरोना मुक्त हो जाएगी। इस कहानी में सांता 🎅 क्लॉज सभी बच्चों को अपने स्वास्थ्य के प्रति सावधान रहने का संदेश दे रहा है। पूरी कहानी सुनें और आगामी त्योहार क्रिसमस 🎄 का आनंद लें।" "क्या आप भी अपना पॉडकास्ट बनाने का सोच रहे हैं? तो ऐंकर ट्राई कीजिए, ये पॉडकास्ट बनाने का सबसे आसान तरीका है। नंबर एक ये फ्री है नंबर दो। इसमें कई सारे ऐसे टूल्स है जो आपको अपने फ़ोन और कंप्यूटर पर रिकॉर्ड और एडिट करने की फैसिलिटीज देते हैं। नंबर तीन आप अपने पॉडकास्ट को डिस्ट्रीब्यूट भी कर सकते हैं, जिससे इसे इस स्पॉटिफाइ और दूसरे प्लैटफॉर्म्स पर सुना जा सकें। डाउनलोड कीजिये ये फ्री एंकर ऐप या विजिट कीजिए ऐंकर डॉट ऐफ़ एम अपना पॉडकास्ट स्टार्ट करने के लिए? हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आप सबको सुनाऊंगी उसका शीर्षक है बंदर की बुद्धिमानी बहुत पुरानी बात है। सागर के किनारे एक नारियल का बहुत बड़ा पेड़ था। वह बहुत ऊंचा पेड़ था, उसी पेड़ पर चंपू नाम का एक बंदर रहा करता था। वह वहाँ अकेला ही रहता था, इसलिए बहुत दुखी रहता था। वह सोचता कि काश मेरा भी कोई दोस्त होता। जिसके साथ मैं खूब खेलता और मन की अपनी सारी बातें करता। फिर मुझे इस तरह बैठकर बोर नहीं होना पड़ता। इस प्रकार वह अकेला बैठ कर ही समय गुजारता था। इस तरह बहुत दिन बीत गए परंतु उसे कोई भी मित्र नहीं मिला। वह पेड़ पर अकेला ही रहा करता था। एक बार किसी तरह वह उदास बैठा हुआ था कि तभी एक बड़ा सा मगरमच्छ पानी से निकलकर उसी पेड़ के नीचे ठंडी ठंडी रेत पर लेट गया। बॉबी अकेला था। बंदर ने उसे देखा और सोचा कि यह मगरमच्छ भी अकेला है और मैं भी अकेला हूँ। क्यों ना हम दोनों आपस में दोस्ती ही कर ले? इस प्रकार हमारा भी समय कट जाएगा। यह सोचकर वह बंदर पेड़ से नीचे उतरा और मगरमच्छ के पास जाकर बड़े ही प्यार से बोला। मगरमच्छ बाई यदि तुम्हें ऐतराज न हो तो तुम मुझसे दोस्ती करोगे। हो हो क्यों नहीं मगरमच्छ बोला बंदर दोबारा बोला। परंतु तुम तो सागर में रहते हो और मैं धरती पर रहता हूँ। क्या हम दोनों में मित्रता हो सकती है? मगरमच्छ हंसकर बोला, इससे क्या फर्क पड़ता है? मैं तो खुद ही यह सोच रहा हूँ की धरती पर रहने वाला मेरा कोई दोस्त बने क्योंकि धरती पर खाने की बहुत अच्छी अच्छी चीजें मिलती हैं। धरती पर तो बहुत स्वादिष्ट चीजें मिलती हैं। बन्दर बोला? क्या तुम ऐसी स्वादिष्ट चीजें मुझे लाकर खिलाओगे? मगरमच्छ ने बंदर से पूछा अब तो बन्दर की खुशी का ठिकाना न था क्योंकि उसे एक मित्र जो मिल गया था। वह बोला। अपनी मित्रता बनाए रखने के लिए मैं कुछ भी करने को तैयार हूँ। इस प्रकार अब बंदर और मगरमच्छ में मित्रता आरंभ हो गयी। बंदर ने मगरमच्छ से कहा, आज से हमारी मित्रता आरंभ हुई है, इसलिए मैं तुम्हारे लिए एक बहुत बढ़िया सी चीज़ लेकर आता हूँ। बंदर कूदता हो गया हूँ और एक जामुन के पेड़ पर चढ़ गया। उस पेड़ पर बहुत सारी पकी हुई जामुन लग रही थी, उसने कुछ जामुन तोड़ी और मगरमच्छों को लाकर दे दी। मगरमच्छ उन जामुनों को लेकर सागर के अंदर अपनी पत्नी के पास गया और जामुन अपनी पत्नी को दे दी। उसकी पत्नी ने जामुन खायी तो वे उससे बड़ी स्वादिष्ट लगी। उसने इतने स्वाद भरे जामुन पहले कभी नहीं खायी थी। उसने मगरमच्छ से पूछा। स्वामी आप इतनी स्वादिष्ट जामुन कहा से लाये हो? मगरमच्छ ने अपनी पत्नी को बताया कि सागर के किनारे एक बहुत बड़ा नारियल का पेड़ है और उस पर एक बंदर रहता है। वह बंदर मेरा मित्र बन गया है। उसी ने ये मीठी जामुन मुझे लाकर दी थी। इस प्रकार वह बंदर मगरमच्छ को रोज़ मीठी जामुन लाकर देता और मगरमच्छ वह जामुन अपनी पत्नी को दे देता था। 1 दिन मगरमच्छ की पत्नी मगरमच्छ से बोली स्वामी वो बंदर रोज़ इतनी मीठी जामुन खाता है तो उसका हृदय तो बहुत मीठा हो गया होगा इसलिए आप मेरे लिए उस बंदर का कलेजा ले आओ। मैं उसे खाना चाहती हूँ, आप उसे लाकर मुझे दे दीजिएगा। नहीं, नहीं, मैं ऐसा नहीं कर सकता। वह बंदर तो मेरा परम मित्र है, मैं उसे धोखा नहीं दे सकता। भला मैं अपने मित्र को कैसे मार सकता हूँ? यह सही नहीं होगा। मगरमच्छ ने अपनी पत्नी को समझाया परंतु मगरमच्छ की पत्नी नहीं मानी। वह जिद करने लगी कि यदि वह उसे बंदर का कलेजा लाकर नहीं देगा तो वह भोजन त्याग देगी और भूखी रहकर अपने प्राणों का परित्याग कर देगी। वह अपने पति से बोली स्वामी मुझे ऐसा लगता है क्या आप मुझसे प्रेम नहीं करते? तभी तो मुझे उस बंदर का कलेजा नहीं लाकर दे रहे हो, आपको मेरे जीवन की भी फिक्र नहीं। आप के लिए मुझसे अधिक व बंदर परंपरा भी हैं। मगरमच्छ ने खूब समझाया की नहीं ऐसी कोई बात नहीं है। मैं तो तुमसे बहुत प्रेम करता हूँ, परंतु वह बंदर भी तो मेरा दोस्त है। इस प्रकार समझाने पर भी वह नहीं मानी और अपनी जिद पर अड़ी रही। पत्नी की बात सुनकर मगरमच्छ धर्म संकट में पड़ गया और आखिरकार पत्नी की जिद के सामने उसे हार माननी ही पड़ी। बहुत देर तक मत सोचता रहा कि बंदर का दिल कैसे निकाला जाए। फिर वह सोचने लगा कि यदि वह किसी तरह बंदर को समुद्र में ले आए तो यही उसका दिल निकालकर अपनी पत्नी को दे देगा। पूरी योजना बनाकर वह सागर के तट पर गया। वहाँ बन्दर पहले से ही उत्सुकता से उसको इंतज़ार कर रहा था। वह बहुत उदास होकर बंदर के पास गया। उसको उदास देखकर बंदर ने पूछा। मित्र आज तो उदास क्यों हो? मगरमच्छ बोला बूंद और भाइयो, तुम्हारी भाभी मुझसे बहुत रूठी हुई हैं। वो कहती हैं कि तुम तो अपने धरती के मित्र से रोज़ मिलते हो और मुझे कभी नहीं मिलवाते तो तुम आज मेरे साथ चल सकते हो क्या? तो इसमें कौन सी बड़ी बात है? मुझे भाभी के पास ले चलो परंतु मैं उनसे मिलने जाऊंगा। कैसे बंदर ने कहा तभी मगरमच्छ झट से बोल पड़ा, यदि तुम वास्तव में मेरे साथ चल कर अपनी भाभी से मिलना चाहते हो तो मेरी कमर पर बैठ जाओ और मैं तुम्हें शाम को ही वापस भी छोड़ जाऊंगा। ठीक है मैं तैयार हूँ। भाभी से मिलने के लिए बन्दर बोला फिर वहाँ मगरमच्छ बंदर को अपनी पीठ पर बैठाकर सागर की तरफ चल पड़ा। वह गहरे पानी में पहुंचा तो उसने सोचा की अब तो बन्दर कहीं नहीं जा सकता इसलिए अब उसे सारी हकीकत बता देनी चाहिए। तभी मगरमच्छ बोल पड़ा। बंदरभैया सच बात तो यह है कि मैं तुम्हें सागर में तुम्हारी भाभी से मिलवाने नहीं बल्कि तुम्हें मारने लाया हूँ। मगर तुम मुझे यह बताओ की तुम मुझे मारना क्यों चाहते हो? मगरमच्छ बोला तुम्हारी भाभी तुम्हारा कलेजा खाना चाहती है, यदि मैं तुम्हारा कलेजा लाकर उसे नहीं दिया तो वह मर जाएगी, इसलिए मुझे तुम्हें धोखा देना पड़ा। मौत की बात सुनकर बंदर का दिल कांपने लगा और वह बचने का उपाय सोचने लगा। कुछ सोचने के बाद वह हंसने लगा। उसे हर देखकर मगरमच्छ बोला मौत तुम्हारे सामने और तुम हंस रहे हो? इस पर बंदर ने कहा। मैं इसलिए हस रहा हूँ की तुम इतनी सी बड़ी बात के लिए परेशान हो रहे हों यदि तुम्हें मेरा दिल चाहिए था तो पहले बताती मैं तो उसे पेड़ पर ही छोड़कर आया हूँ अपने साथ नहीं लाया और छो तो अब हम क्यों करें? मगरमच्छ ने बंदर से पूछा। तब बन्दर बोला तो मुझे वापस सागर के तट पर ले चलो, मैं जल्दी से पेड़ पर चढ़ कर दिल को ले आऊंगा और फिर तुम्हारे साथ सागर में चल पडूंगा। अब मगरमच्छ बोला सॉरी करते हैं, परंतु तुम थोड़ा जल्दी करना अन्यथा मेरी पत्नी मर जाएगी। इस तरह बंदर मगरमच्छ को बुद्धू बना कर वापस सागर के किनारे ले आया और मगरमच्छ के किनारे आते ही कूदकर पेड़ पर चढ़ गया और मगरमच्छ से बोला। तुम एक मूर्ख हो क्या कभी कोई अपना दिल अपने शरीर से अलग कर सकता है? तुम्हें एक विश्वासघाती मित्र हो तुम्हें एक धोखेबाज और पापी हो, इसलिए मैं तुम से मित्रता समाप्त करता हूँ। आज के बाद मुझसे मिलने मत आना। ऐसा सुनकर मगरमच्छ अपना सिर पीटता हुआ वापस चला गया। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि धोखेबाज और विश्वासघाती मनुष्य से कभी मित्रता नहीं करनी चाहिए। वह मनुष्य किसी के लिए भी हानिकारक सिद्ध हो सकता है और जब भी कोई किसी से दोस्ती और प्रेम करे तो उसके साथ विश्वासघात नहीं करना चाहिए। यही सच्ची दोस्ती की पहचान है। ओके बाइ?","सभी को नमस्कार, यह बंदर नाम के एक जानवर की बुद्धि की कहानी है। बंदर 🐒मगरमच्छ से खुद को बचाता है 🐊 . पूरी कहानी सुनें और कहानी की नैतिकता के बारे में जानें।" "क्या आप भी अपना पॉडकास्ट बनाने का सोच रहे हैं? तो ऐंकर ट्राई कीजिए, ये पॉडकास्ट बनाने का सबसे आसान तरीका है। नंबर एक ये फ्री है नंबर दो। इसमें कई सारे ऐसे टूल्स है जो आपको अपने फ़ोन और कंप्यूटर पर रिकॉर्ड और एडिट करने की फैसिलिटीज देते हैं। नंबर तीन आप अपने पॉडकास्ट को डिस्ट्रीब्यूट भी कर सकते हैं, जिससे इसे इस स्पॉटिफाइ और दूसरे प्लैटफॉर्म्स पे सुना जा सकें। डाउनलोड कीजिये ये फ्री एंकर ऐप या विजिट कीजिए ऐंकर डॉट ऐफ़ एम अपना पॉडकास्ट स्टार्ट करने के लिए? गणेशजी के जन्म की कथा अत्यंत निराली है। शिवपुराण के अनुसार एक बार माता पार्वती ने अपने उबटन से एक पुतला बनाया। और उसमें प्राण डाल दिए। उन्होंने उस बालक को अपने भवन का द्वारपाल भी बना दिया और स्वयं? स्नान करने चली गई। उन्होंने बालक को आदेश दिया कि वो किसी को भी अंदर प्रवेश ना करने दें। संयोग से वहाँ पर भगवान शिव आ गए। उन्हें इस सारी घटना के विषय में कुछ भी पता नहीं था। उन्होंने जब भवन में प्रवेश करने का प्रयास किया तो उस बालक ने उन्हें रोक दिया। बार बार समझाने पर भी बालक ने शिवजी को भीतर नहीं जाने दिया। क्रोधित होकर शिवजी ने अपने त्रिशूल से उस बालक का सिर काट दिया। पार्वती जी को जब ये सारा वृत्तांत पता लगा तो वे अत्यंत दुखी हुई। वे रोते हुए शिवजी से अनुनय विनय करने लगी। कीवे। उनके पुत्र को जीवित कर दे। और शिवजी उसका जोड़ दें। परन्तु त्रिशूल का प्रहार अत्यंत तीक्ष्ण था। गणों द्वारा पूरी सृष्टि में ढूंढने पर भी उनका शीश नहीं मिला। इस पर शिवजी ने अपने गणों को आदेश दिया कि वे जाए और सर्वप्रथम जिंस भी प्राणी का शीश उन्हें मिले, वे ले आये। शिव जी के गणों को सबसे पहले एक हाथी मिलता है, वे उसी समय उस हाथी का शीर्ष शिवजी को लाकर दे देते हैं। शिवजी ने गणों द्वारा लाए गए। हाथी के शीश को मंत्रों द्वारा उस बालक के धड़ से जोड़ दिया। धड़ जोड़ते ही उस बालक में प्राण जाते हैं। इसके पश्चात शिव जी ने। उन्हें अनेक शक्तियां से विभूषित किया और गणों का देवता भी बनाया। गणेशजी के जन्म की यह कथा सर्वविख्यात है। इस प्रकार गणेश जी का जन्म होता है। उनका फिर हाथी का है और शरीर मनुष्य का। गणेश जी के पास हाथी का सिर है, मोटा पेट हैं और चूहा जैसा छोटा वाहन हैं। लेकिन इन सारी समस्याओं के बाद भी वे विघ्नविनाशक, संकट मोचन आदि उपाधियों से सुसज्जित है। कारण यह है कि उन्होंने अपनी कमियों को कभी अपना नकारात्मक पक्ष नहीं बनने दिया बल्कि अपनी ताकत बनाया। उनकी टेढ़ी मेढ़ी सूंड बताती है कि सफलता का पथ सीधा नहीं है। यहाँ खोज करने पर ही सफलता और सच प्राप्त होगा। हाथी की भांति चाल भले ही धीमी हो लेकिन अपना पथ अपना लक्ष्य न भूलें। उनकी छोटी आंखें। बड़ी पहनी है। यानी चीजों को वे सूक्ष्मता से देखते हैं और विपक्ष विलक्षणता से उसका विश्लेषण करते हैं। कान बड़े है यानी एक अच्छे श्रोता का गुण हम सब में अवश्य होना चाहिए। तो बच्चो ये थी गणेश जी की महिमा। ओके बाइ?","सभी को नमस्कार यह भगवान गणेश की एक पौराणिक कहानी है। गणपति हिंदू पौराणिक कथाओं में सबसे महत्वपूर्ण देवताओं में से एक हैं और उन्हें जैन धर्म और बौद्ध धर्म में भी पूजा जाता है। गणपति हिंदू संप्रदाय के लिए, गणेश सबसे महत्वपूर्ण देवता हैं। गणेश अपने हाथी के सिर और मानव शरीर के साथ अत्यधिक पहचाने जाने योग्य हैं, जो क्रमशः आत्मा (आत्मान) और भौतिक (माया) का प्रतिनिधित्व करते हैं। वह लेखकों, यात्रियों, छात्रों, वाणिज्य और नई परियोजनाओं (जिसके लिए वह किसी के रास्ते से बाधाओं को दूर करता है) का भी संरक्षक है और मिठाई का शौकीन है, अपने फिगर के मामूली नुकसान के लिए। प्रारंभिक जीवन गणेश शिव और पार्वती के पुत्र हैं और वे युद्ध के देवता कार्तिकेय (या सुब्रह्मण्य) के भाई हैं। उसे उसकी माँ ने मिट्टी से बनाया था जिसे उसने एक लड़के के आकार में ढाला था। चूंकि शिव अपने ध्यान भटकने पर दूर थे, पार्वती ने स्नान करते समय अपने नए बेटे को गार्ड के रूप में स्थापित किया। अप्रत्याशित रूप से, शिव घर लौट आए और, लड़के को पाकर, और पार्वती होने का दावा करने में उसकी ढिठाई पर नाराज हो गए ..." "हैलो बच्चों, आज जो कहानी में आपको सुनाने जा रही हूँ उसका टाइटल है स्नेह की शक्ति, छोटु और मोती खरगोश। दोनों घूमने निकले उनकी माँ कहने लगी मत क्यों बहुत दूर तक मत जाना बहुत जल्दी ही घर वापस आ जाना। माँ तो हमारी चिंता ना करना हम जल्दी ही कर वापस आ जाएंगे छोटु ने कहा। छोटु और मोती दोनों ही अभी छोटे थे इसलिए उनकी माँ उन्हें अकेले घूमने कम ही भेजा करती थीं। दोनों घूमते घूमते गाजर के खेत में घुस गए। लाल लाल गाजर देखकर दोनों बड़े खुश हुए और जल्दी जल्दी गाजर खाने लगे। वे खाते भी जाते और चारों ओर देखते भी जाते थे। मीठा लोमड़ी ने छोटु और मोती दोनों को खेत में घुसते हुए देख लिया था। मोटे ताजे खरगोश देखकर मुँह में पानी उसके भर आया। आज तो सुबह सुबह बड़ी अच्छी दावत हो गई। उसने अपने मन में कहा और अपनी मूंछों पर हाथ फिराया मीठा चुपके चुपके दबे पांव छोटु के पीछे जा पहुंची। वो अभी उसे पकड़ने के लिए लपकी ही थी कि सामने बैठे मोती ने मीता को देख लिया, तुरंत उसे छोटु को अपनी ओर पकड़कर खींचा और वहाँ से भाग छूटे। छोटु और मोती के दिल ज़ोर ज़ोर से धड़क रहे थे। वे तेजी से भागते ही जा रहे थे। परमिता लोमड़ी भी शिकार हाथ से छूट जानें। हुई थी, वो भी बराबर उनके पीछे ही दौड़ रही थी। दोनों बार बार पीछे मुड़कर देख लेते हैं और फिर दौड़ने लगते छोटु और मोती। दोनों गीली घास पर दौड़ रहे थे। मीता लोमड़ी को भी घास पर दौड़ने का अभ्यास ना था इसलिए वह पीछे रह गई। भागते भागते छोटु और मोती दोनों नदी के किनारे पहुँचे। थोड़ी देर बैठकर दोनों ही थे कि तभी उनकी दृष्टि दूर से आती मीता पर पड़ी। अब क्या करना चाहिए? चोट्टू ने कहा घबराने से काम नहीं चलेगा भाई हमें धैर्य पूर्वक अपने बचाव का उपाय सोचना है। जो आपत्ति आने पर घबरा उठते हैं, वह कभी उन पर विजय प्राप्त नहीं कर पाते। मोटी बोला। तभी से ऐसा मोती की निगाह घास से बने एक गड्ढे पर गयी। चलो हम दोनों इसमें छुप जाते हैं। मोती ने छोटु से कहा दोनों तुरंत जाकर गड्ढे में बैठ गयी। ऊपर से उन्होंने गड्ढे को घास से ढक लिया, जिससे वे बिल्कुल दिखाई न पड़े। नीता लोमड़ी वहाँ आई तो उसने चारों ओर देखा देख देख कर वह थक गई पर कहीं भी उसे छोटु और मोती दिखाई नहीं पड़े। वो बड़ी निराश। दुखी मन से वापस लौटने लगी। वह बार बार अपने को दिक्कत आती जा रही थी। कैसी है भागी हूँ मैं? दो दो मोटे कार्य शिकार खो बैठी, एक को भी ना पकड़ पायी। निराश और खींच भरे विचारों से सदैव शक्ति का हर आज ही होता है। मीता का पैर भी चलते चलते एक गड्ढे में जा फंसा और वह मुँह के बल गिर पड़ी। गिरने से उसके पैर की हड्डी टूट गई। मीता ने उठने की लाख कोशिश की पर उसका पैर जमीन पर सीधा रखा ही नहीं जा रहा था। अब नीता लोमड़ी अपनी सहायता के लिए चिल्लाने लगी, अरे जो भी यहाँ पर हो वह मुझे पड़ी विपत्ति में सहायता करे। उसकी आवाज़ छोटु और मोती ने भी सुनी। छोटु बोला, लगता हैं, मीठा लोमड़ी मुसीबत में फंस गई है? मुसीबत में बड़ो की सहायता करना हमारा धर्म है, चाहे वह शत्रु हो या मित्र मोती बोला। चलो चलकर देखते है हम क्या सहायता कर सकते हैं छोट? उन्हें भी अपना सिर हिलाते हुए कहा, दोनों ने जाकर देखा तो लोमड़ी पड़ी करा रही थी। छोटु और मोती को देखते ही वह बोली भाईयो अब मैं तुम्हें कभी नहीं सकता आऊंगी मेरी सहायता करो। मोती बोला, फायदा करो कि आज से तुम हम जैसे छोटे छोटे जीवों को नहीं सताओगी तुम ठीक कहते हो, प्राणियों को सताना कोई अच्छी बात नहीं है। मीता बोली, छोटु और मोती जाकर डॉक्टर को बुला ले। उसने खास रखकर लोमड़ी के पैर पर पट्टी बांध दी, जिससे वह चलने फिरने लायक हो गयी। धन्यवाद भाई छोटु और मोती तुमने मुझे शिक्षा दी है। यह आपत्ति में पड़े हुए की वैरभाव भूल कर ही रक्षा करनी चाहिए। तुम आज यदि मेरी सहायता ना करते तो ना जाने मैं कब तक यहाँ पड़ी कराहती रहती। मैं भी आज प्रतिज्ञा करती हूँ कि सदैव दूसरों की सहायता किया करूँगी। ने कहा। यदि तुम अपना मन बदल लेती हो तो हमारी सेवा सहायता सार्थक हो जाती है। मोती बोला मोती और छोटु दोनों खुशी खुशी अपने घर वापस आ गए। स्वार्थी मीता लोमड़ी की भावनाओं को बदलने में उन्हें सफलता मिली है। यह सोचकर से भर प्रसन्न रहें। छोटु खरगोश बोला, देखा तुमने मोती भाई, किसी को डांट डपटकर नहीं बनाना इसने और सद्भावना से बदल सकते हैं। मोती कहने लगा, हाँ तुम ठीक कहते हो। प्यार और भाई चारे से सभी कुछ संभव है तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है की इसने हमें बड़ी शक्ति होती है। ओके बाय।","नमस्कार, यह दो छोटे खरगोशों की कहानी है। इस कहानी में मैं बच्चों को एक छोटे से प्राणी के साहस और बुद्धिमत्ता के बारे में बताता हूँ। यह बच्चों के लिए एक नैतिक और प्रेरणादायक कहानी है।" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपको सुनाने जा रही हूँ, उसका टाइटल है चिड़िया की बच्ची। माधवदास ने अपनी संग मरमर की नई नई कोठी बनवाई है। उसके सामने बहुत सुहावना बगीचा भी लगवाया है। उनको कला से बहुत प्रेम है, धन की कोई कमी भी नहीं है। सुन्दर अभिरुचि के आदमी है फूल पौधे रकाबियों से होजों में लगे फव्वारों में उछलता हुआ पानी उन्हें बहुत अच्छा लगता है। समय भी उनके पास काफी उस दिन संध्या समय उनके देखते देखते सामने की गुलाब की डाली पर एक चिड़िया आन बैठी। चिड़िया बहुत सुन्दर थी, उसकी गर्दन लाल थीं और गुलाबी होते होते किनारों पर ज़रा सा नीला रंग पड़ा था। पंख ऊपर से चमकदार स्याही जैसे थे उसका नन्हा सा सर तो बहुत प्यारा लगता था और शरीर पर चित्र विचित्र चित्रकारी चित्रकारी थी। चिड़िया को माना और माधव दास की सत्ता का कुछ भी पता न था और मानो तनिक देर का आराम भी उसे नहीं चाहिए था। कभी पर ही लाती थी, कभी फुदकती थी, वो खूब खुश मालूम होती थी। अपनी रणनीति जोश से प्यारी प्यारी आवाज़ निकाल रही थी। माधव दास को वह चिड़िया बड़ी मनमानी लगी। उसकी स्वच्छंदता बड़ी प्यारी जान पड़ती थी। कुछ देर तक वह उस चिड़िया को इस डाल से उस दाल पर थिरकते हुए देखता रहा। इस समय वह अपना सब कुछ भूल गया। उन्होंने उस चिड़िया से कहा। आओ तुम बड़ी अच्छी हुई यह बगीचा तुम लोगों के लिए ही बना है तुम्हारे बिना तो यह बगीचा सुना है, तुम बेखटके यहाँ आया करो। चिड़िया पहले तो असावधान रही, फिर जानकर की बात उस से की जा रही है। एकाएक तो घबराई फिर संकोच को जीतकर बोलीं, मुझे मालूम नहीं था ये बगीचा आपका है, मैं भी चली जाती हूँ अल पर सांस लेने में यहाँ टिक गई थी। माधव दास ने कहा हाँ बगीचा तू मेरा है यह संग मरमर की कोठी भी मेरी है, लेकिन तुम इन सब को अपना ही समझो, सब कुछ तुम्हारा है, तुम कैसी बोली हो, कैसी प्यारी हो जाओ नहीं बैठो मेरा मन तुमसे बहुत खुश होता है चिड़िया बहुत कुछ सा कुछ आ गई, उसे बोध हुआ की या उसकी गलती तो नहीं कि वह यहाँ आकर बैठ गई। उसका थिरकना अचानक रुक गया। मैं भी सिवा बोली मैं थककर यहाँ बैठ गयी थी, मैं भी चली जाउंगी बगीचा आपका है। मुझे माफ़ कर दें। माधव दास ने कहा, मेरी भोली चिड़िया तुम्हें देखकर मेरा चित्त प्रफुल्लित हुआ मेरा महल सुना है वहाँ कोई चाह चाहता नहीं है चिड़िया बोली मैं माँ के पास जा रही हूँ, सूरज की धूप खाने और हवा से खेलने फूलों से बातें करने में ज़रा घर से उड़ाई थी, अब साज हो गई और माँ के पास जा रही है। अभी अभी मैं चली जा रही हूँ, आप सोचना करें। माधव दास ने कहा प्यारी चिड़िया पगली मत बनो, देखो तुम्हारे चारों तरफ कैसी बहार है, देखो वह पानी खेल रहा है, उधर गुलाब हंस रहा है भीतर महल में चलो जाने क्या क्या न पाओगी मेरे पास बहुत सारा सोना मोती है और तुम्हें क्या चाहिए? मैं तुम्हारे लिए सोने का एक सुंदर सा पिंजरा बनवा दूंगा। इसमें मोतियों की झालर ए लटका दूंगा चिड़िया इन सब बातों से बहुत डर गई। बहू बोली मैं भटक कर तनिक आराम के लिए डाली पर रुक गई थी। अब भूलकर भी ऐसी गलती ना होगी। यहाँ से उठ जा रही हूँ तुम्हारी बातें मेरी समझ में नहीं आती मेरी माँ घोंसलें के बाहर बहुत तेरी धूप सुनहरी बिक्री रहती है। मुझे क्या करना है? इनसे दो दाने माला देती है जब मैं खेलने बाहर जाती हूँ माँ मेरी बात देखती रहती है मुझे तुम और कुछ मत समझो, मैं अपनी माँ की हूँ भगवान दास ने कहा, भोली चिड़िया तुम कहाँ रहती हो? तुम मुझे नहीं जानती हो? चिड़िया कहती हैं, मैं माँ को जानती हूँ, भाई को जानती हूँ, सूरज को जानती हूँ, उसकी धूप को जानती हूँ, घास, पानी और फूलों को जानती हूँ महा मारने मैं आपको नहीं जानती। माधवदास उस भोलीभाली चिड़िया को बहलाने की भरसक प्रयास कर रहा था। सेठ ने कहा अच्छा चिड़िया जाती हो तो जाओ पर इस बगीचे को अपना ही समझो, तुम बड़ी सुन्दर हो। यह कहने के साथ ही सेठ ने अचानक एक बटन दबा दिया। उसके दबने से दूर कोठी के अंदर आवाज हुई, जिससे दो सुनकर एक झटपट भागकर आया। यह सब क्षण भर में हो गया और चिड़िया को समझ में ना पायी। सेठ कहते रहे तुम अभी माँ के पास जाओ, माँ बाप देखती होगी और कल आओगी ना आना, कल भी आना, परसों भी आना रोजाना यह कहते कहते दास को सेट नहीं इशारा किया और वह चिड़िया को पकड़ने के जतन में चला। सेठ कहते रहे तुम सच में बड़ी सुन्दर हो, तुम्हारे भाई बहन हैं, कितने भाई बहन है? चिड़िया बोली दो बहन, एक भाई और मुझे देर हो रही है हाँ हाँ जाना अभी तो उजेला है दो भाई एक बहन बड़ी अच्छी बात है पर चिड़िया के मन उनके भीतर जाने क्यों बेचैनी थी? वह चौकन्ने हो चारों ओर देखती थी। उसने कहा मुझे देर हो रही है। सेठ ने का डेरा भी कहा, अभी तो झेला है मेरी प्यारी चिड़िया तुम अपने घर का हाल सुनाओ बेर मत करो चिड़िया ने कहा। सीट मुझे डर लगता है माँ मेरी दूर है रात हो जाएगी। राह नहीं सोचेगी मुझे। इतने में चिड़िया को बोध हुआ कि जैसे एक कठोर स्पर्श उसकी देह को छू गया। और चीख देखकर चिल्लाई और एकदम उड़ी नौकर की फैले हुए पंजे में आकर भी ना आ सके। तब वह उड़ती हुई एक सास में माँ के पास पहुँच गई और माँ की गोद में गिरकर सुबकने लगी। माँ ने अपनी बच्ची को छाती से चिपटाकर पूछा क्या है मेरी बच्ची? क्या हुआ? और बच्ची कांप कांप कर मा को छाती से और चिपक गई। बोली कुछ नहीं बस सुबकती रही वो मा उमा बड़ी देर में उसे ढांढस बता और तब वह पलक खींचकर वहीं सो गयी ऐसे सोई की जैसे आप कभी भी पलक न खोली। तो बच्चो ये थी एक नन्ही सी चिड़िया की कहानी। इस चिड़िया के बच्चे से हमें यही शिक्षा मिलती है की हमें जब कभी भी अपने घर से बाहर जाने का मौका मिले तो हमें कभी भी अपने घर को नहीं भूलना चाहिए और किसी की बातों में नहीं आना चाहिए। इधर उधर नहीं भटकना चाहिए। ओके बाइ?","सभी को नमस्कार, यह एक छोटी चिड़िया की कहानी है। मैं सभी बच्चों को सोने के समय की कहानियां नैतिकता के साथ सुना रहा हूं। मेरी कहानियाँ अभिनव और प्रेरणादायक हैं। अपने बच्चों के साथ मेरी कहानियाँ सुनें। यह निश्चित रूप से आपके बच्चे के व्यक्तित्व के निर्माण में मदद करेगा।" "प्रिय बच्चों। ये तो आप जानते ही होंगे कि बुद्धि के देवता कौन है? जी हाँ, गणेश जी को बुद्धि के देवता कहा जाता है। गणेश जी का एक दांत है। इसके पीछे भी अनेक कथाएं हैं। गणेश जी बुद्धि के देवता क्यों कहे जाते हैं? उनका एक दांत टूटा हुआ क्यों है, उनका वाहन मूषक क्यों है? इसके पीछे अनेक कथाएं हैं। इन पौराणिक कथाओं से हमें गणेशजी के बारे में काफी जानकारी मिलती है। आइए मैं आपको इन दो कथाओं से अवगत कराती हूँ। तो पहले सुनते हैं कि गणेशजी को एकदंत क्यों कहा जाता है। गणेश जी के एकदंत इस नाम को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। उन्हीं में से एक कथा के अनुसार जब महर्षि वेदव्यास महाभारत लिखने के लिए बैठे तो उन्हें एक ऐसे व्यक्ति की जरूरत थी जो उनके मुख से निकली। महाभारत की कहानी को लिखें। इस कार्य के लिए उन्होंने श्री गणेश जी को चुना। गणेशजी भी इस बात के लिए मान गए। और उनकी एक शर्त थी कि पूरा महाभारत लेखन को एक पल के लिए भी बिना रुके पूरा करना होगा। गणेश जी बोले की अगर आप एक बार भी रुकेंगे तो मैं लिखना बंद कर दूंगा। महर्षि वेदव्यास ने गणेश जी की इस शर्त को मान लिया। लेकिन वेद व्यास जी ने भी गणेशजी के सामने एक शर्त रखी और कहा कि गणेश आप जो भी लिखोगे समझ समझ कर ही लिखोगे। गणेश जी ने भी उनकी शर्त मान ली। दोनों महाभारत के महाकाव्य को लिखने के लिए बैठ गए। असल में महाभारत महाकाव्य संस्कृत में है और संस्कृत एक विशिष्ट और कठिन भाषा है जिसको लिखना और समझना दोनों ही कठिन और समय परख है। वेद व्यास जी महापाप काव्य को अपने मुख से बोलने लगे और गणेश जी समझ समझ कर जल्दी जल्दी लिखने लगे। कुछ देर लिखने के बाद अचानक गणेश जी की कलम टूट गई। दरअसल कलम महर्षि के बोलने की तेजी को संभाल न सकी। गणेश जी समझ गए कि उन्हें थोड़ा सा घमंड हो गया था और उन्होंने महर्षि की शक्ति और ज्ञान को नहीं समझा। उसके बाद उन्होंने धीरे से अपना एक दांत तोड़ लिया और स्याही में डूबा कर दोबारा महाभारत की कथा लिखने लगे। क्योंकि शर्त के अनुसार यदि गणेशजी रुके तो भी महाभारत की कथा अधूरी रह जाती और यदि वेदव्यासजी रुके तो भी अधूरी रह जाती। जब भी वेद व्यास जी को थकान महसूस होती, वे एक मुश्किल सा चंद बोलते। इसको समझने और लिखने में गणेश जी को ज्यादा समय लग जाता था और महर्षि को आराम करने का भी समय मिल जाता। कहते हैं कि महर्षि वेद व्यास जी और गणेश जी को महाभारत लिखने में तीन वर्ष लग गए। वैसे तो कहा जाता है कि महाभारत के कुछ छंद गुम हो गए हैं परन्तु आज भी इनमें करीब 1,00,000 छंद उपस्थित हैं। तो ये थी गणेश जी की एकदंत होने की कथा। अब इसके बाद। गणेश जी का वाहन मूषक। कैसे उन्हें प्राप्त हुआ और मूषक कौन है? आइये सुनते है इसकी कथा। गणेश जी ने अपना वाहन मूषक क्यों चुना? इस संबंध में भी अनेक कथाएं मिलती है। एक कथा के अनुसार एक बहुत ही भयंकर असुरों का राजा गजमुख था। वह बहुत ही शक्तिशाली और धनवान बनना चाहता था। साथ ही वह सभी देवी देवताओं को अपने वश में भी करना चाहता था। इसलिए हमेशा भगवान शिव से वरदान पाने के लिए उनकी तपस्या करता रहता था। शिवजी से वरदान पाने के लिए वह अपना राज्य छोड़कर जंगल में जाकर रहने लगा और शिवजी से वरदान प्राप्त करने के लिए बिना भोजन और पानी के रात दिन तपस्या करने में जुट गया। कुछ साल बीत गए, शिवजी उसके अपार तब को देखकर प्रभावित हुए और उसके सामने प्रकट हो गए। शिवजी ने खुश होकर उसे दैविक शक्तियां प्रदान की जिससे वह बहुत शक्तिशाली बन गया। सबसे बड़ी ताकत जो शिवजी ने उसे प्रदान कर दी थी, वह थी उसे किसी भी शस्त्र से नहीं मारा जा सकता। असुर गजमुख को अपनी शक्तिओं पर बड़ा घमंड हो गया और वो अपने शक्तिओं का दुरुपयोग करने लगा। दुरुपयोग कैसे करने लगा? वो सभी देवी देवताओं पर आक्रमण करने लगा। मात्र शिव, विष्णु, ब्रह्म और गणेश जी ही उसके आतंक से बचे हुए थे। गजमुख चाहता था कि हर देवता उसकी पूजा करे उसके सामने नतमस्तक रहे। यह सब देखकर शिवजी ने असुर गजमुख को यह सब करने से रोकने के लिए कहा। परन्तु वो नमाना इस पर उन्होंने गणेशजी को उसे रोकने के लिए भेज दिया। गणेश जी ने असुर गजमुख के साथ युद्ध किया और उसे बुरी तरह से घायल कर दिया। लेकिन तब भी वह नहीं मरा क्योंकि उसे अमरता का वरदान प्राप्त था। उस राक्षस ने स्वयं को एक मूषक के रूप में बदल लिया और गणेश जी पर फिर आक्रमण करने के लिए दौड़ पड़ा। जैसे ही वो गणेशजी के पास पहुंचा, गणेश जी कूदकर उसके ऊपर बैठ गए। गणेश जी ने गजमुख को हमेशा के लिए एकमुश्त में बदल दिया और अपने वाहन के रूप में जीवन भर के लिए उसे रख लिया। बाद में गजमुख भी अपने इस रूप से खुश हुआ और गणेश जी का प्रिय मित्र बन गया। तो बच्चो यह कथा थी गणेशजी के वाहन मूषक की। ओके बाइ?","सभी को नमस्कार, इस पॉडकास्ट में भगवान गणेश की 2 पौराणिक कहानियाँ हैं। आपको भगवान गणेश एकदंत कथा और उनकी वाहन मूषक कथा के बारे में पता चल जाएगा। पूरी कहानी सुनें और कहानी की नैतिकता के बारे में जानें।" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी में आपको सुनाने जा रही हूँ, उसका टाइटल है संगठन की शक्ति। पीपल के एक पेड़ की जड़ में बहुत सारी चींटियां घर बनाकर रहती थी। वे सभी बड़े सहयोग से काम करती थी। सदैव मिलजुल कर काम किया करती थी। यही कारण था कि उन्हें किसी बात की परेशानी नहीं थी। सुबह होते ही सारी चींटियां तेजी से अपने काम में जुट जाती। कुछ तो दिन में बिल की सफाई करती कुछ चिट्ठियाँ भोजन की खोज में निकल पड़ती। इस प्रकार बड़े सुख से वे चीटियां रह रही थी। एक बार की बात है चींटियों की एक कतार खाना खोजने निकली कतार में बहुत सारी चींटियां थी। वे अलग अलग जगह चली गयी। जान ई नाम की एक चींटी किसी रसोई घर में घुस गई। वहाँ उसने देखा की थाली में चीनी भरी रखी चांदी की थाली में घुस गई। वहाँ जी भरकर मीठी मीठी चीनी खायी। फिर उसने सोचा की अब अपनी सहेलियों को भी बुला लाती हूँ। सभी मिलकर यहाँ से चीनी ले जाएंगे। चानी ने चीनी का एक दाना अपनी सहेलियों को चखाने के लिए मुँह में दबाया और चल पड़ी। रसोई के एक कोने में बैठा दिल चिट्टा जाने की हरकतों को बड़े ध्यान से देख रहा था। वह कहने लगा बुरा ना मान ना बहन, तुम इतनी देर से पेट भर के चीनी खा रही हो, फिर यह चीनी तुम किसके लिए ले जा रही हो? फिर चिट्टी ने अपनी मूंछों को फड़ पर आया और बोला, ओह तुम चीटियां की बुद्धि का तो जवाब ही नहीं एक दूसरे के लिए मर ही जाती हो। यही कारण है कि तुम सारे दिन काम में जुटी रहती हो। अरे अपना अपना काम अलग अलग करो। और कम समय में छुट्टी पर जाओ। परदादा साथ काम करने में मिलजुल कर रहने में जो आनंद है वह अकेले रहने में कहा जानी ने पूछा। दिल जीता फिर बोला अरे अकेले काम करने में तो और भी आनंद है, जल्दी से अपना काम करो, छुट्टी पाओ फिर सारे दिन आराम करो, मुझे ही देखो जब भूख लगती है, खाना खा लेता हूँ फिर मज़े से आराम करता हूँ, ना किसी की चिंता, ना किसी की परवाह जानी। सीटी भी तिलचट्टे की बातों में आने लगी। जैसा साथी होता है वैसे ही विचार बन जाते हैं। चानी सोचने लगी कि मैं सुबह से शाम तक भागदौड़ करती रहती हूँ। और मेरा पेट तो छोटा सा है, जल्दी ही भर जाता है फिर दूसरे के लिए क्यों मरुं क्यों ना अकेले ही रहूं चांदी, तिलचट्टे से बोली तुम ठीक कहते हो दादा? मैं भी तुम्हारी तरह मर्जी से अकेले ही रहूंगी। फिर चानी लौटकर अपनी सहेलियों के पास नहीं गई तो चिट्टे की कुछ सीट से उसके विचार ही बदल गए। वो सोचने लगी कि मैं रहूंगी, कहा इतनी जल्दी से नया घर नहीं बन पायेगा जैसा चानी को पेड़ पर बने एक वोटर का ध्यान आया। उसने सोचा ठीक है, कुछ दिन इस स्कूटर में ही रहूंगी तब तक कुछ सामान जमा कर लूँगी, क्योंकि जल्दी ही सर्दियां आने वाली है। इसके बाद घर बनाउंगी चांदनी ने पेड़ के कोटर में अपने लिए सामान जमा करना शुरू कर दिया। वह बार बार रसोई घर में आती और चीनी के दाने मुँह में दबाकर ले जाती। इस तरह उसने काफी चीनी और अन्य इकट्ठा कर लिया। आते जाते वह अपनी सहेलियों से मुँह छुपाती थी, उनसे बचकर जाती थी, जिससे वे कुछ पूछना लें। जानें यही सोचती की उसकी सर्दियाँ बड़े आराम से गुजरेंगी बिना कुछ काम करें गुजरेंगी। परचानी का सोचना सोचना भरी रह गया ये क्रोध बड़ी तेज वर्षा हुई, खूब ओले पड़े। वोटर में अकेली पड़ी पड़ी चांदी, घबराने लगी वाट ठंड से ठिठुर रही थी। उसे अपनी सहेलियों की मिट्टी के गर्म गर्म घर याद आए। वर्षा होती जा रही थी। वर्षा की बौछार, सोने चांदी की सारी चीनी बहार डाली, सारा कोटर भीग गया, उसमें चांदी का टिकना असंभव हो गया। जैसे तैसे वर्षा रुकी जानी सूखी जगह की तलाश में कोटर से निकली और सारा पेड़ ही भीगा पड़ा था। कहीं पैर रखने की जगह न थी। अब जाने घूमते घूमते बहुत थक चुकी थी। सहसा उसका पैर फिसला और वह नीचे गिर पड़ी। गिरकर वह बेहोश हो गई। सुबह जब धूप निकली तब बहुत सी जीतिया पीपल के पेड़ की जड़ में बने अपने घर से निकल पड़ी वह चिल्ला उठी अरे ये तो जानी है। सत्ता बढ़ती है, हमने इसे खोज रहे थे। सारी चिट्ठियां जाने के आसपास जमा हो गई। सभी ने मिल जुलकर उसकी सेवा की और जल्दी ही उसकी बेहोशी दूर की। चानी ने आंखें खोलीं तो सारी सहेलियों को अपने आसपास जुटे हुए पाया। अरे तुम ठीक हो ना? तुम्हे क्या हो गया था तुम कहाँ चली गयी थी? इस प्रकार वे अनेक प्रश्न कर रही थी। उनकी बातें सुनकर जाने का दिल भर आया। वो मन ही मन अपने आप को धिक्कारने लगीं। वह सोच रही थी की मैं कितनी स्वार्थी हूँ कितने नीचे विचारों की हूँ अपनी इन ममता मई सहेलियों को छोड़कर क्यों अलग हुई दुख? सुख में एक दूसरे से सहारा मिलता है। सभी मिल जुल कर रहे हैं। इसी में आनंद चानी बोली। मेरी प्यारी सहेली हूँ मैं रास्ता भूल गयी थी, मैं तिलचट्टे के बहकावे में आ गई थी, मुझे माफ़ कर दो और फिर अपने साथ रख लो। अरे तुम तो हमारे साथ ही रहोगी? हम तो सप्ताह भर से तुम्हें ढूंढ ढूंढकर परेशान हो रहे थे। सारी चींटियां कहने लगी, फिर वे सभी जानी को अपने साथ बिल मिले गई। वहाँ उसे खिलाया पिलाया और खूब सत्कार किया। ईश्वर को धन्यवाद है कि मैं सही राह पर आ गई। जानी ने मन ही मन सोचा। इसके बाद वह सभी के साथ मिलजुल कर रहने लगी। काम करने लगी। अब चानी दूसरों को सदा यही उपदेश दिया करती की मिलजुल कर रहना चाहिए। इसी में आनंद है। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है की हमें हमेशा सबके साथ मिलजुल कर ही रहना चाहिए। ओके बाय।",सभी को नमस्कार मैं सभी बच्चों को सोने के समय की कहानियां नैतिक रूप से बता रहा हूं। मेरी कहानियाँ अभिनव और प्रेरणादायक हैं। अपने बच्चों के साथ मेरी कहानियाँ सुनें। यह निश्चित रूप से आपके बच्चे के व्यक्तित्व के निर्माण में मदद करेगा। मेरे यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब करें लिंक नीचे साझा किया गया है https://www.youtube.com/channel/UC09eViQqLT8N0aArbjDInEQ "हैलो बच्चों। हम सभी जानते हैं कि जो चीजें हम बचपन मैं सीखते हैं वो हमेशा हमारे साथ धरोहर के रूप में रहती है और हमेशा काम भी आती है। हम अपने रोज़मर्रा के कार्य कलापों के बीच में थोड़ा सा समय ईश्वर पूजा और भक्ति में भी कुपित आते हैं। हमारे बड़े हमें हमेशा यह कहते हैं कि आओ भगवान के सामने हाथ, जोड़ों और थोड़ी सी प्रार्थना करो। बच्चों हनुमान जी के बारे में तो हम सभी जानते हैं। उनकी शौर्यगाथा, उनकी लीलाओं का हम सभी को थोड़ा थोड़ा सा ज्ञान तो होता ही है। हनुमान जी भगवान श्रीराम के न केवल सहायक बल्कि उनके मित्र भी थे। रावण के साथ युद्ध करते समय उन्होंने श्रीराम को हर विपत्ति से बचाया और हर प्रकार से हर संभव प्रयास करके उनकी सहायता भी की थी। हनुमान चालिसा। हनुमान जी की। गाथा और उनके। शूरवीरता से भरे हुए कार्यों का ही एक गान है। हनुमान चालिसा एक बेहद सहज और सरल बजरंगबली की आराधना में की गई एक काव्यात्मक 40 छंदों वाली रचना है। तुलसीदासजी बाल्यावस्था से ही श्रीराम और हनुमान जी के भक्त थे, इसलिए उनकी कृपा से उन्होंने महाकाव्यों की रचना की। ऐसा माना जाता है कि हनुमान चालीसा के पाठ से कई तरीकों की तकलीफों का भी नाश हो जाता है और सुख, समृद्धि तथा विद्या और बुद्धि में भी वृद्धि होती है। यदि किसी कारण मन अशांत है तो हनुमान चालीसा का पाठ करने से मन को शांति मिल जाती है। हर तरीके से भय का नाश भी होता है। एक पुरानी मान्यता है कि हनुमान जी को एक बार बचपन में जब भूख लगी तो वह सूर्य को फल समझकर खा गए थे। बजरंगबली के पास अपार शक्तियां दी। इसका उपयोग कर जब वह सूर्य को निगलने के लिए आगे बढ़ें तो देवराज इंद्र ने अपने वज्र से प्रहार करके उन्हें मूर्छित कर दिया। हनुमानजी के मूर्छित होने की बात जब पवनदेव को पता चली तो वह काफी क्रोधित हो गए। ऐसे में देवताओं को हनुमानजी के रुद्र अवतार होने का पता चला। तो सभी ने उन्हें कई शक्तियां प्रदान की। ऐसा भी माना जाता है कि देवताओं ने जिन मंत्रों और हनुमान जी की विशेष ताओं को बताते हुए उन शक्तियां प्रदान की थी, उन्हीं मंत्रों के सार को गोस्वामी तुलसीदास जी ने हनुमान चालीसा में समाहित किया। असल में हनुमान चालीसा में मंत्रणा होकर हनुमानजी के पराक्रम की विशेषताएं ही बदली गई है। आज मैं आपको हनुमान चालिसा। का अर्थ सरलतम शब्दों में बताऊंगी, जिससे आपको हनुमान चालीसा याद करने में भी सुविधा होगी और आपको उसका आनंद भी आएगा। तो आइए सबसे पहले प्रारंभ करते हैं दोहे से। श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मन्नू मुकुरु सुधारि। बरनऊं रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि। ये सबसे पहला दोहा है हनुमान चालीसा का। इसका अर्थ है कि मैं अपने श्री गुरु जी के चरण कमलों की धूल से अपने मन रूपी मुकुट को सच करके श्री रघुवर के निर्मल यश का वर्णन करता हूँ, जो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को देने वाला है। बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरौं पवन कुमार बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कॉलेज बिकार। अर्थात ये पवनपुत्र मैं आप का उपासक हूँ। आप तो यह जानते ही है कि मेरा शरीर और बुद्धि निर्मल है। मुझे शक्ति सु बुद्धि एवं ज्ञान दीजिए और मेरे दुखों और चिंताओं का अंत कर दीजिये। तो बच्चो। हनुमान चालीसा के प्रारंभ में ये दो दो हे हैं जिनका अर्थ अभी आपको मैंने बताया। अब प्रारंभ करते हैं हनुमान चालीसा की चौपाइयां। तो पहली जो पाई है जय हनुमान ज्ञान गुन सागर, जय कपीस तिहुं लोक उजागर। अर्थात हे हनुमान जी, हे कपीश आप ज्ञान व अंतः करण को शुद्ध करने वाले अनंत गुणों के सागर है। आप तीनों लोगों को प्रकाशमान करते हैं, अतः आप की जय हो। रामदूत अतुलित बलधामा, अंजनीपुत्र पवनसुत नामा। आप राम जी के दूत और असीम एवं अद्वितीय बाल शक्ति के भंडार हैं। आप अंजनीपुत्र और पवन पुत्र के नाम से भी विख्यात है। हनुमान जी की माता का नाम अंजनी था। उसी का यहाँ पर उल्लेख हुआ है। आगे बढ़ते हैं। महावीर विक्रम बजरंगी, कुमति निवार सुमति के संगी। हे महावीर आप अत्यंत वीर पराक्रमी है, आपके अंग वज्र के समान बलिष्ठ है। आप पाप बुद्धि को दूर करने वाले और सद्बुद्धि का साथ देते है। कहने का तात्पर्य यह है कि हनुमानजी बहुत पराक्रमी और बहुत बलशाली थे और वो हमेशा सब को सद्बुद्धि ही देते है। इसलिए हनुमान जी की प्रार्थना सद्बुद्धि देने वाली और कुबुद्धि का नाश करने वाली ही होती है। अगला है। कंचन बरन बिराज सुबेसा, कानन कुंडल कुंचित के साथ। आप का रंग स्वर्ण के समान है, सुंदर वेशभूषा है। आप सुशोभित है आप कानों में कुंडल धारण करते हैं, आपके केश घुंगराले व अति सुंदर है इस। चोपाई में हनुमान जी के। सौंदर्य का रूप का वर्णन किया गया था। अब आगे सुनते हैं हाथ और ध्वजा विराजे, कांधे मूंज जनेऊ साजे। इसमें हनुमान जी ने क्या धारण किया है और कैसे वे दिखते हैं, उसका वर्णन है। आपके एक हाथ में वज्र दूसरे में ध्वजा सुशोभित है। आपके कंधे पर यज्ञोपवित अर्थात जनयु शोभायमान रहता है। शंकर सुवन, केसरीनंदन तेज प्रताप महा जग बंदन। हनुमान जी। प्रभु शिव शंकर जी के पुत्र कहे जाते हैं और केसरी जी को आनंद देने वाले हैं। अर्थात् व केसरीजी के पुत्र हैं तो आपकी यश, प्रतिष्ठा महान है। सारा संसार आपकी पूजा करता है। विद्यावान गुनी अति चातुर, राम काज करिबे को आतुर। अर्थात आप सभी विद्याओं के पूर्ण, अनुभवी है और राम जी के सभी कार्य संपन्न करने को व्याकुल रहते हैं। हनुमानजी प्रभु श्रीराम के सारे कार्य करने के लिए सदैव तत्पर रहते थे। प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया। आप श्री राम जी की कथा सुनने के रसिया है? आपके हृदय में राम, लक्ष्मण व सीता जी सदा निवास करते हैं। एक कहावत भी है कि जहाँ भी श्री राम जी की पूजा अर्चना होती है, वहाँ हनुमानजी स्वतः ही उपस्थित हो जाते हैं। सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा, बिकट रूप धरि लंक जरावा। अर्थात आप योग बल से छोटा रूप बनाकर सीताजी के आगे प्रकट हुए और विशाल एवं भयंकर रूप धारण करके लंका को जला डाला। जैसा कि श्रीरामचरितमानस में बताया गया था कि जब सीताजी को खोजते हुए हनुमान जी लंका नगरी पहुंचे थे तो लंका नगरी में अगर वो अपने सामान्य शरीर के माध्यम से जाते तो उन्हें पकड़ लेते अथवा कोई भी वहाँ पर युद्ध हो जाता परंतु गुप्त रूप से उन्हें वहाँ पहुँचकर सीताजी की खोज करनी थी इसीलिए हनुमानजी ने अपना सूक्ष्म रूप धारण किया था और उसके बाद जब उनकी पूछ में आग लगाई गई थी तो उन्होंने अपना विशाल रूप धारण करके पूरी लंका को जला दिया था। आगे बढ़ते हैं। भीम रूप धरि असुर संहारे, रामचंद्रन के काज संवारे। राम रावण युद्ध में आपने विशाल भयंकर रूप धारण कर राक्षसों का संहार किया रामचंद्रजी के अनेक अनेक कार्य संपन्न किए। लाय संजीवन लखन जियाये श्रीरघुबीर हरषि उर लाये। रघुपति कीन्ही बहुत बढ़ाई, तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई। एक बार जब युद्ध के समय। लक्ष्मण जी को संजीवनी बूटी की आवश्यकता थी उन्हें। मेघनाथ ने। बाढ से मूर्छित कर दिया था। तब हनुमानजी ने संजीवनी पर्वत से संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मण जी को जीवित किया था। इस पर प्रभु श्रीराम ने प्रसन्न होकर उन्हें हृदय से लगाया और कहा कि हनुमान तुम मेरे भरत के समान ही मेरे प्रिय भाई हो। आगे पढ़ते हैं। सहस बदन तुम रोजस गावे। स्क ही श्रीपति कंठ लगावें। सहस्त्रों मुख आप का यशोगान करते हैं। यह कहकर भगवान श्रीराम ने श्री लक्ष्मीपति जी ने आपको गले से लगा लिया था, सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा, नारद, सारद सहित अहीसा यह सारे ऋषि, मुनि, देवी, देवता, ब्रह्मा जी, सरस्वती, नारदजी सभी आपके साथ हैं। जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते कभी कोबिद कहि सके कहाँ थे। राजपुर, बेर जी और अन्य ज्ञानीजन सभी आप का गुणगान करते हैं। बोलो पवनपुत्र हनुमान जी की जय। तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा, राम मिलाय राज़, पद दीन्हा। आपने सुग्रीवजी को श्रीराम से मिलवाकर उन पर महान उपकार किया। राम मिलन से ही उन्हें किशकिन्दा का राज्य वापस प्राप्त हुआ था। यह भी कथा राम चरित मानस में दी गई है कि एक बार जब प्रभु श्रीराम और लक्ष्मणजी किसकिन्दा की पहाड़ियों पर घूम रहे होते हैं तो वहाँ पर हनुमान जी से उनकी भेंट होती है। हनुमानजी उन्हें अपने महाराज सुग्रीव के पास ले जाते हैं। सुग्रीव अत्यंत खिन्न और दुखी होते हैं क्योंकि उनके भाई बाली ने उनका सारा राज्य उनसे छीन लिया होता है। प्रभु श्रीराम की कृपा से। सुग्रीव को उनका राज्य वापस मिलता है। तुम रो मंत्र बिभीषन माना। लंकेश्वर भए सब जग जाना इसी प्रकार आपका परामर्श मानकर विभीषण प्रभु श्रीराम की शरण में गए जिसके कारण वे लंका के राजा बने और यह बात सारा संसार जानता है। जो को सहस्त्र जोजन पर भानु लील्यो, ताहि मधुर फल जानू। आपने बालि काल में हजारों योजना की दूरी पर स्थित सूर्य को एक मधुर मीठे फल की तरह मुँह में रख लिया था। प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं, जलधि लांघ गए, अचरज नाहीं वह मुद्रिका जो समस्त कार्यों को पूर्ण करने वाली थी तथा सब विघ्न बाधाओं को हरने वाली थी, उसे मुँह में रख आपने विशाल सागर को पार किया, इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है। बच्चों ये मुद्रिका वही है जो प्रभु श्रीराम ने अपनी निशानी के लिए सीता माता को दिखाने के लिए हनुमानजी को दी थी कि जब हनुमान जी सीता माता को खोज लें और सीता माता से मिले। साक्षी के रूप में निशानी के रूप में हनुमान जी सीता माता को क्या दिखाएंगे, उन्हें कैसे विश्वास दिलाएंगे कि वो प्रभु श्री राम के दूत है? इसीलिए प्रभु श्रीराम ने हनुमानजी को वो अंगूठी दी थी और उस अंगूठी को मुँह में दबाए हनुमान जी ने हजारों लाखों योजना। बड़े समुद्र को भी। कुछ ही समय में पार कर लिया था और सीताजी को खोज निकाला था। दुर्गम काज जगत के जेते, सुगम अनुग्रह तुम्हारे तेते संसार में लोगों के जीतने भी कठिन कार्य है। वे आपकी कृपा से सरल हो जाते हैं। आप अपने भक्तों पर बहुत अनुग्रह रखते हैं। हनुमान जी भक्तों के प्रति बहुत सहृदय रहते हैं। भक्त जब हनुमानजी का ध्यान करते हैं तो उनके सभी कष्टों को श्री हनुमान जी दूर भी करते हैं। राम दुवारे तुम रखवारे, होत न आज्ञा बिनु पैसारे प्रभु श्रीराम के द्वारा बैकुंठ के आप रखवाले हैं। आपकी आज्ञा के बिना कोई भी उस धाम में प्रवेश नहीं कर सकता। सब सुख लहै तुम्हारी सरना, तुम रक्षक काहू को डरना, जो आपकी शरण में आता है, वो सब सुखों को प्राप्त करता है और जब आप स्वयं उसके रक्षक है तो फिर उसे किस बात का डर? आपन तेज समारोह आप ये तीनों लोग हांकते का पे। आपका तेज अत्यंत प्रचंड है। उसे स्वयं आप भी संभाल सकते है। आपकी एक हुंकार से ही तीनों लोग कांप उठते है। आप त्रिभुवन मैं सर्वशक्तिमान है। आगे हैं। भूत पिशाच निकट नहीं आवे, महावीर जब नाम सुनावे। नासै रोग हरे सब पीरा। जपत निरंतर हनुमत बीरा। अर्थात यदि किसी को भूत पिशाच दिखाई देते हैं। तो हे महावीर आप का नाम लेने मात्र से वे तुरंत भाग जाते है। आपका नाम रामबाण की भाँति है। आपके नाम का निरंतर जाप करते रहने से सब रोग व पीड़ाये चाहे वो आदि भौतिक हो अथवा आदि दैविक या आध्यात्मिक, तीनों ताप भी दूर हो जाते हैं। संकट तें हनुमान छुड़ावै मन क्रम बच्चन ध्यान जो लावे जो व्यक्ति मन, वाणी व शरीर से हनुमान जी का स्मरण व पूजा करते हैं, हनुमानजी उनके सबक, संकट और कष्ट भी दूर कर देते है। सब पर राम तपस्वी राजा तिन के काज सकल तुम साजा और मनोरथ जो कोई लावै, सोई अमित जीवन फल पावे। तपस्वी राम सारे संसार के राजा हैं, फिर भी है हनुमानजी। आपने उनके सारे कठिन कार्य सम्पन्न किए। जो कोई अपनी सांसारिक इच्छा लेकर आता है उसे आप पूरा करते हैं पर साथ ही राम भक्ति का मार्ग भी दिखाते है जिससे मनुष्य जीवन का अमूल्य फल अर्थात मोक्ष प्राप्त करता है। आगे हैं बच्चों, चारों झुक परताप तुम्हारा है परसिद्ध जगत उजियारा। आपका प्रभाव चारों युगों चार यू कौन कौन से होते है? सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग और कलयुग चारों युगों में फैला हुआ है। वह प्रताप जगत को प्रकाशमान करने के लिए प्रसिद्ध है। साधु संत के तुम रखवारे, असुर निकंदन राम दुलारे। आप सज्जन हो, प्रभु भक्तों की रक्षा करने वाले पर दुष्टों का नाश करने वाले हैं, प्रभु श्रीराम को पुत्र के समान प्रिय है। अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता असबर दीन जानकी माता। आपको माता सीता की ओर से आठों सिद्धियां और नौ निधियों का वरदान मिला हुआ है। उनकी शक्ति से अब किसी को भी सब प्रकार की संपत्ति दे सकते हैं। राम रसायन तुम्हारे पासा सदा रहो रघुपति के दासा। आपके पास राम भक्ति रूपी रसायन है, जो किसी को भी सर्वश्रेष्ठ बना सकता है। आप रघुपति दास के रूप में लोगों को रामभक्त बनाते हैं। इसका तात्पर्य है बच्चों की जो भी हनुमान जी की पूजा प्रार्थना करता है वो सहज रूप से ही प्रभु श्रीराम का भक्त बन जाता है। क्योंकि हनुमानजी स्वयं प्रभु श्रीराम के सर्वश्रेष्ठ भक्त हैं। आगे हैं। तुम्हारे भजन राम को पावै, जनम जनम के दुख बिसरावै। आप के लिए किये गए सभी भजन श्री राम तक पहुंचते हैं जिससे जन्म जन्मांतर के दुख दूर हो जाते हैं। अन्तकाल रघुबर पुर जाई जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई। आपके भजनों की कृपा से ही प्राणी अंत समय श्रीराम के धाम को प्राप्त करते हैं। और यदि मृत्युलोक में जन्म लेंगे तो भक्ति करेंगे, वाह री की भक्ति करके हरि भक्त कहलाएंगे। और देवता चित्त न धरई, हनुमत सेई सर्व सुख करई। रामभक्ति में कृष्ण, विष्णु, शिव सब एक ही है। ये हनुमान जी जो भक्त सच्चे मन से आपकी सेवा करते हैं, उन्हें सब सुख प्राप्त होते हैं। संकट कटे मिटे सब पीरा, जो सुमिरै हनुमत बलबीरा। अर्थात महावीर जी की उपासना भक्ति से मनुष्य के सारे संकट, कष्ट, दुःख मिट जाते हैं। वह जन्म मरण की पीड़ा से मुक्त हो जाते हैं। जय जय जय हनुमान गोसाईं, कृपा करूँ गुरुदेव की नाईं। ये हनुमानजी, हे गोस्वामी जी। जिसने 10 इंद्रियों को वश में किया हो, आपकी जय हो गुरु की भांति मुझ पर कृपा करे जो सत बार पाठ कर कोई छोटे ही बंदि महा सुख होई जो यहाँ पढ़ें हनुमान चालीसा होय सिद्धि साखी गौरीसा जो व्यक्ति हनुमान चालीसा का निरंतर पाठ करता है, वजन मरण के बंधन से मुक्ति हो, शाश्वत आनंद प्राप्त करता है, निर्भय हो जाता है, वह व्यक्ति जो व्यक्ति हनुमान चालीसा को पड़ता है उसकी सभी मनोकामनाएं भी। सफल होती है इस बात की साक्षी स्वयं भगवान शंकर ने दी है। तुलसीदास सदा हरि चेरा की जय नाथ हृदय मंह डेरा। तुलसीदासजी कहते हैं कि हे प्रभु आप श्रीराम के दास हैं और मैं आपका दास हूँ। अतः हे श्री हनुमान जी आप मेरे हृदय में विराजे। पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भु अर्थात ये पवनपुत्र संकटों, दुखों, कष्टों को दूर करने वाले एवं परम कल्याण की साक्षात मूर्ति और आप जो देवताओं के राजा हैं। राम, लक्ष्मण, सीता जी के साथ मेरे हृदय में सदा निवास कीजिए तो बच्चो यह थी हनुमान चालिसा।","Listen to the full meaning of Hanuman Chalisa. Doha: Shri Guru Charan Saroj Raj, Nij Manu Mukuru Sudhari. Barnaun Raghubar Bimal Jasu, who is the bearer of fruits. Foolish Tanu Janike, Sumiraun Pawan-Kumar. Strength, wisdom, knowledge, the body is attracted, every disease is diseased. Chaupai: Hail Hanuman, the ocean of knowledge and wisdom. Jai Kapis Tihun Lok Ujagar.. Ramdoot Atulit Bal Dhama. Anjani-son Pavansut Nama. Mahabir Bikram Bajrangi. The one who removes the evil thinking and grants companionship of the noble.. Kanchan Baran Biraj Subesa…" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी आपके लिए लेकर आई हूँ, उसका टाइटल है आलस का परिणाम। राजेश के विद्यालय का रखें वाला दरवाजे पर खड़ा लगातार आवाजें लगा रहा था। जल्दी जल्दी में राजेश को ना अपना एक मोजा मिल रहा था और ना ही बैग का पूरा सामान पर ज़ोर ज़ोर से आवाजें लगा रहा था। मा उमा राजेश की माँ रसोई घर में नाश्ता तैयार कर रही थी। राजेश के छोटे भाई, बहन, पिताजी सभी के जाने का समय हो रहा था। जल्दी जल्दी उन सभी के लिए खाने के बॉक्स तैयार करके रखने दे इसलिए उन्होंने वहीं से पूछा। क्या बात है मेरा एक मुझे नहीं मिलना है, रबर पेंसिल भी गायब है। कहते कहते हो कर राजेश रसोई घर के दरवाजे पर आकर खड़ा हो गया। माँ झल्ला पड़ी। रोज़ रोज़ यही दोहराता है। कितनी बार कहा है कि अपना सामान संभालकर रखा करो पर तुमने तो एक भी नहीं सुनी। सुबह का समय वैसे भी कितना काम होता है? अपना काम अधूरा छोड़कर माँ उठी। राजेश का सामान खोजने में 10 मिनट लग गए और परिणाम यह हुआ कि उसके पिताजी को ऑफिस के लिए देर हो गई। यह 1 दिन की बात न थी। लगभग प्रतिदिन यही होता था। स्कूल से आकर राजेश लापरवाही से अपनी चीजें इधर उधर पटक देता और स्कूल जाते समय ढूंढता फिरता फिर माँ को तंग करता। यू राजेश अच्छा लड़का था, परंतु उसमें आलस और लापरवाही का बड़ा दुर्गुण था। राजेश के पिता जी बड़े समझदार थे। वे उसकी माँ से इतना बोले देखो बचपन में बच्चे में जैसी आदतें पड़ जाती है, वह हमेशा ही बनी रहती है। यदि अपने बच्चों में हम अच्छी आदतें न डाल पाएं, उन्हें सुसंस्कार न दे पाए तो असफलता हमारी ही है। बालक तो नासमझ होते हैं, उन्हें अच्छी बातें सिखाने का काम भी अभिभावकों का होता है। सो तो है ही राजेश की माँ ने भी समर्थन किया अपना और राजेश हो तो अच्छा लड़का है पर इसमें अभी से कितना अलग है? सुबह बार बार उठाने पर जागता है। किसी भी काम को फुर्ती से नहीं करता। कुछ करने को कहा जाए तो टालता ही रहता है। इस आयु में तो बच्चो में बहुत पूर्ति होती है। पिताजी कहने लगे माँ कहने लगी राजेश की यहाँ तक छुड़ानी ही होगी। निश्चित ही क्योंकि आलस्य और दुर्भाग्य दोनों एक ही है। आलसी का भविष्य भी अंधकार भरा होता है। परिश्रम करना जिसे अच्छा नहीं लगता, जो आरामतलब है, समय को बर्बाद ही करता है, वह व्यक्ति जीवन में कभी भी कोई उपलब्धि पा नहीं सकता। ऐसे व्यक्ति के लिए सफलता के द्वार बंद हो जाते हैं। राजेश के पिता जी गंभीर हो उठे। आपकी बात बिल्कुल सच है पर प्रश्न तो यह है कि राजेश की आदत छुड़ाई कैसे जाए? माँ परेशान सी कह रही थी। इस पर राजेश के पिता जी फिर बोले। किसी भी बुरी आदत में साथ देना उसे बढ़ावा देना ही है। तुम राजेश का हर काम कर देती हो, इसलिए वह और अधिक लापरवाह बनता जा रहा है। उसका काम ना करूँ तो वह स्कूल जा ही नहीं पायेगा। माँ कहने लगी। यही तो बात है दो 4 दिन नहीं जायेगा फिर अपने आप अकल आ जाएगी। पिताजी ने माँ को अच्छी तरह समझाया ठीक है अब ऐसा ही होगा। माँ ने समर्थन में अपना सिर हिला दिया। उन्होंने मन ही मन निश्चय किया कि वे अपने मन को कड़ा बनाकर राजेश की एक आदत छुड़ा कर ही रहेंगी। अच्छे माता पिता वे नहीं होते जो बच्चों को अंधा दुलार देते हैं। सुयोग्य माता पिता वे होते हैं जो बच्चो में। अच्छी आदतें डालते हैं, उन्हें अच्छे संस्कार देते हैं, भले ही उन्हें स्नेह के साथ साथ कठोरता ही क्यों ना अपनानी पड़े। राजेश को माता पिता की इन बातों के बारे में कुछ भी पता नहीं था। उसका तो वही रवैया था। इस स्कूल से आकर वहीं बैग फेंक ना वही कपड़े डालना, घंटों तक आलस में लेटे रहना और समय की बर्बादी करना। माँ उसे अब टोकती भी न थी और ना ही उसका काम करती थी। वह लेटेलेटे कहता माँ पानी पीला दो तो माँ भी यही कह देती की स्वयं लेकर पी लो, मैं काम कर रही हूँ गृहकार्य के लिए वे पहले की भांति उसकी खुशामद नहीं करती, वे कह देती कि तुम स्वयं समझदार हो, स्कूल में सजा पाना पसंद नहीं करते। तो अपने आप अपना ग्रहकार्य कर लो। राजेश अपनी आदत के अनुसार स्कूल जाते समय अपनी चीजें ढूंढता और माँ को आवाजें लगाने लगता। माँ अब पहले की भांति सारा काम बीच में छोड़कर नहीं आती थी। राजेश चीजें ढूंढता जाता और जलाता जाता। अब उसे प्रायः स्कूल को देर होने लगी। बाहर निकलते ही रिक्शे वाला उस पर ज़ोर से नाराज होता और इस स्कूल में भी सजा मिलती कराकर राजेश माँ से कुछ भी कहता तो कह देती बेटे तुम शाम को ही अपना बस्ता लगाकर रख दिया करो। तुम सदैव देखते हो की सुबह मेरे पास कितना कम समय रहता है। तुम तो काफी समझदार हो, स्वयं अपना काम कर सकते हो। राजेश आखिर स्कूल कब तक देर से जाता? अब वह चिंता करके स्कूल की अपनी सारी चीजें रात को ही सहेजकर रख लेता। उसकी किताबों की अलमारी और कपड़ों की अटैची भी साफ सुथरी रहने लगी। राजेश का आलसी स्वभाव भी अब कम होता जा रहा था। अपना काम वह स्वयं करने का प्रयास करता। अब तो उसके माता पिता को उससे कोई भी शिकायत नहीं रही। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है। ये हमे ना तो कभी समय की बर्बादी करनी चाहिए और ना ही कभी आलस करना चाहिए क्योंकि यदि हम आलस करेंगे तो हमारे सारे कार्य बिगड़ जाएंगे और हम आगे सफल भी नहीं हो पाएंगे। ओके बाइ?","सभी को नमस्कार, यह एक लड़के की नैतिक कहानी है। लड़का इतना आलसी है कि वह कभी भी अपना काम समय पर पूरा नहीं करता। न तो उसने अपना सामान सही जगह पर रखा और न ही वह सही समय पर स्कूल पहुंचा। उसके माता-पिता उसके लिए चिंतित हैं। एक बार उसकी मां ने उसे सबक सिखाने का फैसला किया। उसका आइडिया काम करता है। कुछ दिनों के बाद लड़के को अपनी गलती का एहसास होता है। पूरी कहानी सुनें और कहानी के नैतिक के बारे में जानें।" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपके लिए लेकर आई हूँ, उसका टाइटल हैं यात्रा। गंगोत्री भारत का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है। हिमालय पर्वत से उतर कर गंगा की धारा जहाँ समतल मैदान में आती है, वह स्थानीय गंगोत्री है। प्रकृति की सुंदरता को देखने का यह बड़ा ही सुंदर स्थान है। मनीष और प्रशांत ने भी इसी बार गर्मियों में गंगोत्री जाने का विचार किया। वे दोनों घनिष्ठ मित्र थे। उन्होंने सोचा कि इसी बहाने प्रकृति की सुंदरता को बहुत पास से देखने का अवसर मिलेगा और एक तीर्थ की यात्रा भी हो जाएगी। वे दोनों ऋषिकेश से उत्तरकाशी बस से पहुंचे। वहाँ से उन्होंने गंगोत्री तक जाने के लिए दूसरी बस ली। उन्हें तो मालूम हुआ था कि गंगोत्री जाने के लिए बस से उतरकर केवल दो किलोमीटर ही चलना पड़ेगा। सहयोग की बात की बीच रास्ते में ही पड़ी ज़ोर का आंधी तूफान आया, जिससे बस का रास्ता बंद हो गया। बस ने उनको गंगोत्री से लगभग 30 किलोमीटर दूर एक गांव के पास छोड़ दिया। यहाँ से गंगोत्री तक उन्हें पैदल ही जाना था। यह सब देख सुनकर प्रशांत एकदम हड़बड़ा गया। वह मनीष से कहने लगा। ओह, हम इतनी दूर पहाड़ी रास्ते पर पैदल कैसे चढ़ पाएंगे भाई? आगे जाने का तो मेरा वर्ष भी नहीं। चलो हम आसपास के स्थान देख ले और वापस चलें। मनीषा सुनकर ठहाका लगाकर हंस पड़ा और बोला। वाह क्या खूब बात कही अरे ऐसी निराशा भरी कायरता की बातें शोभा नहीं देती। हम धीरे धीरे आराम से चलेंगें जब यहाँ तक आए ही है तो फिर गंगोत्री के दर्शन ना करके लौटना भी क्या कोई बुद्धिमानी का काम है? अच्छे व्यक्ति जिसका कार्य की सोच लेते हैं उसे पूरा करके ही रहते है। मनीष की बात सुनकर प्रशांत को चिढ़ता गया और बोला। हम दोनों साथ साथ आए हैं। तुम्हें मित्र का भी आखिर कुछ ध्यान रखना चाहिए। मनीष उसी सहज मुस्कान के साथ बोला, भाई मुझे तुम्हारा पूरा ध्यान है। जरूरत होगी तो मैं तुम्हें पीठ पर भी ला दूंगा। रास्ते में हर प्रकार से तुम्हारी सेवा करूँगा। इस सब के लिए मैं पूरी तरह से तैयार हूँ। तुम्हे तो बस प्रसन्नतापूर्वक चलना होगा। चलते चलते जहाँ तुम रुक जाओगे वही मैं रुक जाऊंगा, थक जाने पर तुम्हारे पैर भी दबा दिया करूँगा। प्रशांत ने देखा कि मनीष किसी भी प्रकार वापस लौटने के लिए तैयार नहीं है। उसने यह भी समझ लिया कि मना करने पर वह अकेला ही आगे बढ़ जाएगा। अतएव बेमन से प्रशांत आगे बढ़ने के लिए तैयार हुआ। पहाड़ी पगडंडी पर दोनों बढ़ चले। उनके आगे और भी अनेक यात्री चले जा रहे थे। वे दोनों तो वाद विवाद में ही उलझकर रह गए थे, जबकि दूसरे काफी आगे बढ़ गए थे। रास्ते में प्रशांत ने देखा कि मनीष उससे सदैव आगे रहता है। बड़े ही उत्साह से वो कठिन रास्ता भी पार कर लेता है और हाथ पकड़कर उसे भी पार करा देता है। वह पहाड़ों पर पहली बार आया था पर ऐसे चल रहा था जैसे पहाड़ी रास्ते उसके जाने पहचाने है। यह देखकर प्रशांत से न रहा गया और वह पूछ ही बैठा, मनीष तुम यहाँ पहली बार आये हो और तुम इतनी आसानी से पहाड़ी रास्ते पर कैसे चल लेते हो? कैसे तुम दूसरों को भी रास्ता बता देते हो? रास्ते में तुम्हारे मुख पर कहीं भी थकान के चुनने तक दिखाई नहीं देते। तुम तो मुझसे भी दुबले पतले और छोटे हो तुम्हे तो मुझसे भी पहले थकना चाहि ए। मनीष कहने लगा दो स्त यौ शरीर का थकना ज़रूरी तो नहीं शरीर का सवस्थ होना आवश्यक है और शरीर को संचालित करने वाला मन है। मन का उत्साह ही शरीर को आगे बढ़ाता है। आशावादी दृष्टिकोण ही जीवन को सफल बनाता है। हम जैसा अपना दृष्टिकोण बना लेते है, वैसे ही परिस्थितियां भी बन जाया करती हैं। अतएव हर स्थिति में हम प्रसन्न रहें। हर काम में सफल होने का उत्साह रख के फिर देखें कि कौन सी परिस्थितियां में खिन्न बनाती है, कौन सी से हमारा काम अधूरा रह जाता है। मनीष की बातें सुनकर प्रसाद का उत्साह और भी बढ़ गया। वह भी अब प्रसन्नता पूर्वक आगे बढ़ने लगा। उसने पाया कि उसकी गति में भी अंतर आ गया है। पहले की अपेक्षा वह जल्दी से रास्ता पार कर लेता है। मन में प्रसन्नता बने रहने से थकान भी नहीं लगती। रास्ते के सुंदर दृश्यों का आनंद लेते हुए घूमते घामते वे 4 दिन में गंगोत्री पहुँच गए। वहाँ का दृश्य देखकर वे ठगे से रह गए। लगभग 20 मीटर की उचाई से छे सात मीटर चौड़ी गंगा की धारा गिर रही थी। चांदी से साफ चमकीले जल से ऊंची ऊंची लहरें उठ रही थी। जल पर सूरज की किरणें पढ़कर उसे सतरंगी इंद्रधनुष सा बना रही थी। वो तुम्हारे ही कारण मैं यह दुर्लभ दृश्य देख सकता हूँ। कैमरे में उस दृश्य को अंकित करते हुए भावे बल होता हुआ प्रशांत कहने लगा। मनीष मुस्कुरा उठा और बोला, मैं तो पहले ही जानता था कि तुम सामने खड़ा ऊंचा पहाड़ देखकर वेड थी, डर रहे हो भाई कोई भी कार्य असंभव नहीं हुआ करता। धैर्य और निरंतर तत्परता से हर काम सरल बन जाता है। कोई भी काम तभी तक कठिन लगता है जब तक कि हम उसे प्रारंभ नहीं करते। सो तो देख ही रहा हूँ प्रशांत बोला। मनीष फिर कहने लगा देखो यहाँ आकर अब तुम्हें इतना सबक तो ले ही लेना चाहिए कि जीवन में निराशा भरी नहीं बल्कि आशा और उत्साह से भरी बातें सोचनी चाहिए। किसी भी काम को करने से पहले या नहीं हो सकता ऐसा नहीं ऐसा नहीं कहेंगे। इसी से हमारी शक्ति क्षीण होती है। मिलने वाली सफलता दूर हटती चली जाती है। ठीक कहते हो बंधु आज मैं यहाँ यही संकल्प लेता हूँ। सफल और सुखी जीवन के लिए या आवश्यक है। प्रशांत ने सहमति में सिर हिलाते हुए कहा। फिर दोनों मित्र लौट पड़े। अब की बार उन्हें कुछ ही मील चलना पड़ा। रास्ता बन चुका था, अतएव जल्दी ही उन्हें बस मिल गई। वे बस में बैठकर ठीक प्रकार से अपने घर पहुँच गए। गंगोत्री यात्रा ने प्रशांत का न केवल शरीर और मन भी सवस्थ बना दिया था, अपितु जीवन की परिस्थितियों के प्रति उसका दृष्टिकोण भी आशावादी कर दिया था। प्रशांत इसके लिए अभी भी मनीष का बड़ा ही आभारी हैं। तो बच्चों इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है की हमें कभी भी परिस्थितियों में धैर्य नहीं खोना चाहिए और हर परिस्थिति का डटकर सामना करना चाहिए। ओके बाइ?","सभी को नमस्कार, यह दो दोस्तों की यात्रा की एक नैतिक कहानी है। उन्हें अपने रास्ते में कई समस्याओं का सामना करना पड़ा। पहाड़ी क्षेत्र पर चढ़ना बहुत कठिन है लेकिन इन समस्याओं का सामना करने के बाद वे अपने गंतव्य तक पहुंचे। कहानी सुनें और नैतिकता को जानें।" "हैलो बच्चों। आज जो कहानी में आपको सुनाने जा रही हूँ उसका टाइटल है चूहे की विदेश यात्रा। लंदन के एक बड़े से भवन में जॉर्ज नाम का एक छुआ रहता था। वह विदेश भ्रमण में बड़ी रूचि रखता था। अनेक देशों में वह घूमा था। यही कारण था कि जगह जगह के लोगों को उनकी वेशभूषा, आचार, व्यवहार, संस्कृति, रहन सहन को देखने परखने से उसका ज्ञान भी बड़ा व्यापक हो गया था। जो और जीने भारतवर्ष की बड़ी प्रशंसा सुनी थी, अतएव उसके मन में भारतवर्ष देखने की प्रबल इच्छा उत्पन्न हुई। एक बार मौका देखकर जॉर्ज चुप कैसे कर्मचारियों की नजर बचाकर लंदन से आने वाले एयर इंडिया के एक वायुयान में सवार हो गया। कहीं कोई उसे बीच में ही मारकर भगा न दे इस बहसें वह चुपचाप प्रसाधन में छुपकर बैठा रहा। दिल्ली का पालम हवाई अड्डा आने पर ही उसने चैन की सांस ली। जब सब यात्री उतर कर चल दिए और हवाई जहाज पूरी तरह खाली हो गया तो जॉर्ज भी चुपचाप सभी की नजर बचाकर उतर गया। झिलमिलाती हुई रौशनी में ***** दिल्ली की चहल पहल और रंगीनियों को देखते हुए जॉर्ज चुपचाप जला जा रहा था। इस अपरिचित देश में कहाँ रुकना चाहिये? यही वह मन में सोचता जा रहा था तभी उसकी निगाह सामने से आते चूहे और चुहिया पर पड़ी। वे दोनों उसके पास जाकर रुक गए। चूहा कहने लगा नमस्ते हमारे विदेशी अतिथि आप कुछ परेशान लगते हैं। कहिये हम आपकी क्या सेवा कर सकते हैं? जॉर्ज उनके मृदु व्यवहार से बड़ा ही प्रभावित हुआ। बोला मोई तुम ने ठीक पहचाना? मैं अभी भी लंदन से आया हूँ। यहाँ मैं किसी को जानता नहीं आता है। अब कहा रुकू यही सोचकर चिंता कर रहा था। भाई, यदि ऐसी बात है तो आप मेरे अतिथि बने, इससे मुझे बड़ी खुशी होगी। मेरा नाम तन्मय है। आप मुझे तनु कह सकते हैं और यह तुम्हारी भाभी जी। तन्मय जुहा बोला नो मूल स्कोर भाभीजी भारतीय परंपरा के अनुसार दोनों हाथ जोड़कर जॉर्ज बोला तन्मय की पत्नी ने भी प्रतिउत्तर में हाथ जोड़कर अभिवादन किया। चलो फिर घर चले, वहाँ बैठकर बातें होंगी। तन्मय ने कहा। रास्ते में वह जॉर्ज को बदलता जा रहा था कि अशोक होटेल के बहुत पास ही उसका घर है। अतएव खाने की कोई कठिनाई नहीं नहीं नहीं। खाने की चीजें रोज़ खाने को मिल जाती है। कुछ मील का रास्ता पार करके सभी घर पहुंचे। एक छोटे से बर साफ सुथरे बिल में तन्मय का घर था। तन्मय और उसकी पत्नी ने जॉर्ज का खूब स्वागत सत्कार किया। भोजन के बाद तन मैंने जॉर्ज के स्वागत में अपने चार पांच मित्रों को एकत्रित कर लिया। कोई नाचने लगा तो कोई गाने। बड़ा ही हँसी खुशी का मनोरंजक वातावरण बन गया। जॉर्ज इतनी देर से सुन रहा था कि तनु और उसके दोस्त अंग्रेजी में ही बातें कर रहे हैं। अंग्रेजी गाने गा रहे हैं। उसने बड़े आश्चर्य से पूछा। क्या आपके देश की कोई भाषा नहीं है? है क्यों नहीं? हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी है? तनु बोला पर आपकी समझ में आ जाये इसलिए हम आपकी भाषा में बातें कर रहे हैं। दूसरा दोस्त बोला। मैंने यहाँ आने से पहले आपकी भाषा अच्छी तरह सीख ली है और हम विदेशी तो बाहर जाने पर सदैव अपनी भाषा का ही प्रयोग करते। अपनी राष्ट्रभाषा अपने देश के गौरव का प्रतीक है। जॉर्ज गर्व से सिर तानकर बोला। हमारे यहाँ तो अंग्रेजी का बहुत ही प्रचार है, विशेष रूप से शिक्षा में सरकारी कामकाज में तन्मय बोला ओह तभी तुम्हारा देश उतनी प्रगति नहीं कर पा रहा है जितनी की वह कर सकता है। अपनी मातृ भाषा और राष्ट्रभाषा को छोड़कर दूसरी भाषा के प्रयोग से भला कहीं अपनी प्रतिभा का भी विकास हो सकता है। जॉर्ज ने कहा। तन्मय और उसके मित्र बड़े ही लज्जित हुए। बात उनकी भी समझ में आ रही थी। उन्होंने प्रतिज्ञा की कि अब वे सदैव मातृभाषा का ही प्रयोग करेंगे। अपने बच्चों में भी विदेशी भाषा के प्रति मोहर नहीं जगाएंगे। दूसरे दिन तन्मय ने जॉर्ज को दिल्ली घुमानी शुरू कर दी। लाल किला, कुतुब मीनार, जंतरमंतर, चिड़ियाघर आदि अनेक स्थान दिखाए। जॉर्ज तनु की अतिथि परायणता से भी बड़ा प्रसन्न था। जितनी आत्मीयता और इसने उसे भारतवर्ष में मिला था, उतना तो अपने देश में भी नहीं मिला था। वहाँ तो भौतिक सुख सुविधा का ही हम बार था, पर सच्चा प्यार पाने के लिए प्राण तरस उठते थे। 15 दिन तक दिल्ली की खूब सैर करने के बाद जॉर्ज ने अपने मित्र से विदा लेनी चाही, जिससे वह भारत के अन्य दर्शनीय स्थानों को देख सकें। विदा के पूर्व तनु ने एक विशाल प्रीतिभोज का आयोजन किया, जिसमें उसके बहुत से मित्र भी थे। जॉर्ज अपने मित्र के स्नेहपूर्ण व्यवहार से बड़ा ही कृत्य था। विदा के दिन तन्मय ने पूछा दोस्त बताना हमारा देश तुम्हे कैसा लगा? मैं जो भी कहूंगा सच कहूंगा, सच कहने के लिए चाहे वह कठोरी क्यों ना हो, मैं बहुत ही बदनाम हूँ। अपनी बड़ी बड़ी सुंदर आँखों को ऊपर उठाकर मूंछों को फड़फड़ाकर जॉर्ज बोला फिर पलभर चुप रहकर बोला दोस्त तुम्हारा देश जैसा सुना था, वैसा ही पोर पृथ्वी पर स्वर्ग जैसा लगता है। प्रकृति ने इसे खुले हाथों से वरदान दिया है। पारंपरिक प्यार और सहानुभूति जितनी मैंने यहाँ पाई और किसी देश में नहीं है। ईश्वर में आस्था विश्वास तुम्हें बहुत से पापों से बचा लेता है। तुम्हारा देश और संस्कृति बहुत महान है पर। कहते हुए बड़े ही श्रद्धा के भाव भरे थे जॉर्ज जी की आँखों में। पर क्या तन्मय ने तुरंत पूछा पर भाई किसी देश की संस्कृति की महानता तभी तक रहती है जब तक कि वहाँ के रहने वाले लोग उसे बनाए रखें। तुम्हें सुनकर तो बुरा लगेगा और सच है तो कहूंगा ही की तुम लोग अपने देश के गौरव को उसकी महत्ता को भूला बैठे हो। तुम विदेशी भाषा का विदेशी सभ्यता कांदा अनुकरण कर रहे हो, ध्यान रखो, हमारी भौतिकता तुम्हें कभी सुख नहीं दे सकती। यदि भौतिक सुख साधनों से ही आत्म शांति मिल पाती तो फिर हजारों विदेशी उसे पाने के लिए तुम्हारे देश में ही क्यों आते? यदि तुम अपना ही चाहते हो? तो हमारे गुण हमारे साफ सफाई, ईमानदारी, शिष्टाचार, नैतिकता आदि अपना। ओह, मैं तो अब देश ही देने लग गया। तुम भी मन में क्या सोच रहे होंगे? कहते कहते जॉर्ज अनायास ही चुप हो गया। नहीं मित्र तुम सच कह रहे हो, अपने देशवासियों को मैं तुम्हारा संदेश अवश्य दूंगा, तन्मय भाव भरे स्वर में बोला। तन्मय ने जॉर्ज को बहुत सारे उपहार दिए। दोनों दोस्त देर तक एक दूसरे के गले मिलते रहे। जॉर्ज कहने लगा। भाभी जी को लेकर आओ ना कभी। जरूर जरूर तनु की पत्नी प्रसन्न होते हुए बोली। मैं तुमको तुम्हारे स्नेह आत्मीयता को कभी नहीं भूल सकता। जॉर्ज रून है गले से बोला और आंसू भरकर चलने लगा। चलते चलते जॉर्ज बार बार पीछे मुड़कर अपने स्नेही मित्रों को देखता जा रहा था। तन्मय और उसकी पत्नी देर तक खड़े हाथ हिला हिलाकर उसे विदाई दे रहे थे। जॉर्ज जब आँखों से ओझल हो गया तो तनु बोला चलो वापस चले। हाँ, चलना ही होगा, सुने रास्ते को एकटक देखती हूँ। उसकी पत्नी बोलीं, दोनों ने घर की ओर कदम तो जरूर बढ़ाएं, पर उन्हें लग रहा था कि उनके जीवन भर का परम स्नेह मित्र बिछुड़ गया है। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें अपने देश की भाषा और संस्कृति को महत्त्व देना चाहिए, तभी हमारे देश का विकास संभव है। ओके बाय।",यह एक छोटे से चूहे की कहानी है। चूहा सभी लोगों को अपनी भाषा और संस्कृति से प्यार और सम्मान करने की सीख देता है। "क्या आप भी अपना पॉडकास्ट बनाने का सोच रहे हैं? तो ऐंकर ट्राई कीजिए, ये पॉडकास्ट बनाने का सबसे आसान तरीका है। नंबर एक ये फ्री है नंबर दो। इसमें कई सारे ऐसे टूल्स है जो आपको अपने फ़ोन और कंप्यूटर पर रिकॉर्ड और एडिट करने की फैसिलिटीज देते हैं। नंबर तीन आप अपने पॉडकास्ट को डिस्ट्रीब्यूट भी कर सकते हैं, जिससे इसे इस स्पॉटिफाइ और दूसरे प्लैटफॉर्म्स पर सुना जा सकें। डाउनलोड कीजिये ये फ्री एंकर ऐप या विजिट कीजिए ऐंकर डॉट ऐफ़ एम अपना पॉडकास्ट स्टार्ट करने के लिए? हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपके लिए लेकर आई हूँ वो एक शेर की कहानी है। आप सभी जानते हैं कि शेर जंगल का राजा होता है, लेकिन बच्चों, शेर जंगल का राजा कैसे होता है और उसे राजा बनकर क्या क्या काम करने पड़ते हैं? आज हम इस कहानी के माध्यम से जानेगे राजा बनना बहुत गर्व की बात होती है, लेकिन राजा के पद की गरिमा को बनाकर रखना और अपनी प्रजा की रक्षा करना। एक बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य होता है। तो आइए सुनते है आज की हमारी कहानी देशद्रोह का दंड। अब बिहार अन्य में अग्नि रूप नाम का एक सिंह रहता था। बहुत बड़ा ही उदार और प्रजा का हित करने वाला था। उसकी प्रजा उसे जी जान से प्यार करती थी। अग्नि रूप बड़ा वीर था आसपास के जंगलों के अनेक शेर तथा जीते उसे कई बार हार चूके थे। अन्य जिंस किसी जानवर ने भी अग्नि रूप से लड़ने का दुस्साहस किया था। वह जीवित नहीं लौटा था। उसकी इस बहादुरी के कारण आसपास के जंगलों के जानवर बड़ा चिढ़ते थे। उससे। उन्होंने कई बार उसकी प्रजा में विद्रोह करने का भी प्रयास किया पर वे असफल ही रहे। अग्नि रूप की प्रजा अपने राजा पर इतना विश्वास रखती थी, इतनी समझदार थी कि अन्यों की बातों में ही ना आती थी। अग्नि रूप को जब उसके शत्रु एक एक करके हरा नहीं पाए तो उन्होंने कूटनीति से कार्य किया। उन सभी ने मिलकर अग्नि रूप पर आक्रमण कर दिया। उन्हें पूरा विश्वास था कि इस बार युद्ध में वह जीत नहीं पाएगा। लेकिन शेर और उसकी सेना इस बार इतनी कुशलता, साहस और बहादुरी से लड़े कि उन सभी को हारकर मैदान छोड़कर भागना ही पड़ा। अपनी पराजय से सभी जानवर बहुत अधिक चिढ़ उठे। अब वे नीच से नीच कार्य करने के लिए भी तैयार हो गए। उन्होंने अपने चार पांच विश्वसनीय गुप्तचरों को बुलाया और आदेश दिया कि अग्नि रूप के राज्य में पानी पीने के जीतने भी स्थान हो। उन सभी में चुपके से विषैली जड़ी बूटियां मिलाये। शेर और उसके साथी या तो जहरीला पानी पीकर मर जाएंगे या फिर प्याज से ही तड़प तड़पकर। अग्निरूपी कम कुशल शासक ना था, हारा हुआ शत्रु क्या क्या कर सकता है इसका अनुमान उसने पहले ही लगा लिया था। अग्नि रूप ने पानी पीने के सभी स्थानों पर पहले से ही अपने कर्मचारी नियुक्त कर दिए। उसके राज्य में पानी पीने के कुल चार बड़े स्थान थे। उन चारों पर बारी बारी से प्रत्येक जानवर को पहरा देना पड़ता था। सभी को मालूम था कि यह कार्य कितना महत्वपूर्ण है। अतएव वे सभी बड़ी सतर्कता और ईमानदारी से यह कार्य किया करते थे। परन्तु उन जानवरों में जितौरा नाम की एक लोमड़ी ऐसी थी जो पड़ी कामचोर और लापरवाह थी। रखवाली करने की जब भी बारी आती कोई न कोई बहाना करके चली जाती, कभी विवश होकर उसे कार्य करना भी पड़ता तो बैठे बैठे सोती ही रहती। 1 दिन अग्नि रूप के मंत्री मुक्तक हाथी ने उसे इस प्रकार सोते हुए देख लिया। मुक्तक ने लोमड़ी को जगाकर बड़ी ज़ोर से डांटा और डांटने के बाद उसने गुर्राते हुए चतुराई ने बोला। ओज तो तुम्हारी गलती माफ़ कर दी जाती है, पर आगे से तुम प्रतिदिन काम पर आओगी और ईमानदारी और परिश्रम से कार्य करेगी। चित्रा मुँह से तो कुछ ना बोली पर मन ही मन उसे मुक्त का डांटना बहुत बुरा लगा। अपनी गलती मानने की अपेक्षा वह मुक्तक से भी जुड़ गई। कुशल मुक्त किहता गया। इस पर वह बोला सूत्रों नी अपनी गलती को स्वीकार करो और उसे सुधारने का प्रयास करो। यही जीवन की उन्नति का रास्ता है। यदि अपनी स्वीकार नहीं करेगी और दूसरों की सही बात में भी दोष ढूँढो गी तो जीवन में पछताना पड़ेगा। मुक्त की बात से एक चतुरा को और भी गुस्सा आ गया। बाद में मुक्त ने उसे समझाते हुए यह भी कहा कि कभी भी कोई भी कार्य बिना परिश्रम के सफल नहीं होता जैसा कि कहा भी गया है कि उद्यम में नई व सिद्धांत इंकार यानी न मनोरथैः नहीं सुपता से सिंह से प्रविशन्ति मुखे मृगाः। अर्थात बिना मेहनत के कोई भी उपलब्धि नहीं मिलती। जैसे सोते हुए शेर के मुँह में हिरण स्वयं प्रवेश नहीं करते, उसे शिकार के लिए स्वयं जाना पड़ता है। चित्रा के व्यवहार में अभी भी कोई अंतर नहीं आया। मुक्तक की बात से चतरा का गुस्सा बढ़ चुका था। वह मुक्त घाटी पर क्रोध भरी दृष्टि डालकर मुँह फिराकर चुपचाप वहाँ से चली गई। वह तो पहले के ही समान काम में लापरवाही बरतती रही। अग्नि रूप के सभी गुप्तचरों ने उसकी काम चोरी की शिकायत भी कर दी। आखिर 1 दिन अग्नि रूप ने चतुरा को बुलाकर कहीं दिया? देखो काम करते हुए जीने में ही सार्थकता है। बिना परिश्रम किए खाने पीने वालों को धिक्कार है तुम कामचोरी करोगी तो दूसरे जानवर तुम्हें पानी क्यों पीने देंगे? जाओ इमानदारी और परिश्रम से कार्य करो। अब मुझे तुम्हारी कोई शिकायत सुनाई ना दे। चतुरा को शेर की बात बुरी लग गयी मन ही मन उसने कहा इसे अपनी शक्ति का बड़ा अभिमान हो गया है। देखो तो कैसे ज्ञान बघार रहा है, इसे भी मज़ा ना चखा दिया तो मेरा नाम चतरा नहीं, इसका सारा घमंड चूर चूर ना कर दिया तो मेरा नाम बदल देना चतुराई से शत्रुओं से जाकर मिल गई। उसने उन्हें अपने राज्य के सभी जल संस्थानों की पूरी जानकारी दे दी। साथ ही साथ यह भी बता दिया कि कहाँ कब किस जानवर की रखवाली की बारी है और कैसे उन्हें आसानी से हराया जा सकता है। शत्रु चतरा की जानकारी से बड़े प्रसन्न हुए। अब तो उन्हें पूरा पूरा विश्वास हो गया कि वे अग्नि रूप और उसकी प्रजा को मारने में सफल हो जाएंगे। सच है कि एक देशद्रोही पूरे देश पर देश की सुरक्षा और स्वाधीनता पर कलंक होता है। योग्य शास् शत्रु की ओर से कभी असावधान नहीं रहते, साथ ही साथ नागरिको से गद्दारी का भय भी रहता है। उन पर भी वह कड़ी निगाह रखते। अग्नि रूप के गुप्तचर भी चतरा के विषय में पूरा विवरण भेजते रहते थे। उसके शत्रु पक्ष से जाकर मिल जाने की बात अग्नि रूप को पता लग गयी थी और अग्नि रूप इससे सतर्क हो गया था। एक रात की बात है जब चतरा शत्रुओं के साथ मिलकर पानी में विषैली जड़ी बूटियां मिलवा रही थी, तभी अग्नि रूप के सैनिकों ने उसे जा पकड़ा। सतर्क शत्रु तो खतरे का आभास होते ही भाग छूटे, पर चतुरा लोमड़ी पकड़ी गई। चतरा को तुरंत ही अग्नि रूप के सामने लाया गया। पूरी बात जानकर अग्नि रूप क्रोधित हो उठा और भयंकर गर्जना करते हुए बोला दुष्ट बिना दंड के नहीं सुधरता। इस दोष दो ही को जितना दंड मिले उतना कम है। फिर शेरनी उस लोमड़ी की पूंछ पकड़कर उसे जमीन पर दे पटका। लोमड़ी की पूंछ उखड़कर शेर के हाथ में आ गई। फिर वह उसे भूमि पर पटकते हुए बोला जो तेरे प्राण नहीं लेता। अबकी बार तुझे फिर छोड़ता हूँ खबरदार जो फिर मेरे राज्य में पैर रखा, यहाँ आयी तो जीते जी नहीं जा पाएगी अपनी कटी पूंछ को देखकर तू अपने देशद्रोह के पाप को याद करती रहना, उस दिन के बाद से फिर पूंछ कटी लोमड़ी को उस जंगल में किसी भी जानवर ने नहीं देखा। तो बच्चो, ये कहानी थी एक कुशल शासक, एक कुशल योद्धा की। शेर जंगल का राजा ऐसे ही नहीं बनता, उसे बहुत सतर्क रहना पड़ता है। उसे अपने सभी जानवरों की रक्षा भी करनी पड़ती है। एक कुशल राजा और एक कुशल शासक के यही गुण होते हैं। ओके बाइ?","सभी को नमस्कार, यह एक नैतिक कहानी है। इस कहानी में आपको पता चलता है कि कैसे एक शेर राजा अपनी प्रजा को खतरे से बचाता है। कहानी सुनें और कहानी के नैतिक के बारे में जानें।" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी में आपको सुनाने जा रही हूँ उसका टाइटल है नंदू की नौकरी। नन्दू के पिता बचपन में ही गुजर गए थे। उसके तीन छोटे छोटे भाई बहन भी थे। नंदू की माँ सारे दिन जी तोड़ कर मेहनत करती तब कहीं जाकर उन्हें रूखी, सूखी रोटी मिल पाती थी। नन्दू 13 साल का ही था, उसकी माँ ने 1 दिन कहा। बेटा, अब तुम बड़े हो गए हो, अब इस परिवार की नैया तुम ही पर लगाओ, तुम्हें कुछ न कुछ कार्य खोजना होगा। नन्दू के पड़ोस के गांव में ही एक सेट रहता था। नंदू की माँ उससे लगातार नंदू की नौकरी दिलवाने के लिए कहती थी। आखिर 1 दिन उसका प्रयास सफल हो गया। नंदू की नौकरी पास के शहर में एक मिठाई की दुकान पर लग गई। खुशी खुशी नंदू घर से चला, चलते समय माँ ने उसे ₹100 का नोट दिया और बोलीं, बेटा तुम्हारे लिए मैं यहाँ ₹100 महाजन से उधार लेकर आई हूँ, तुम पर देश जा रहे हो, वहाँ न जाने कब पैसे की जरूरत आ पड़े, अतः तुम इसे संभाल कर रख लो भी आने वाले हैं रजाई गद्दे बनवा लेना। नंदू ने भाई बहनों को प्यार किया, माँ के पैर छुए और थैला उठाकर चल पड़ा। रास्ते में माँ उसे समझा रही थी। देखो बेटा सदा ईमानदारी से कार्य करना, पैसे के लिए अपनी इज्जत और ईमानदारी मत बेचना। हाँ यदि इस के लिए यदि कभी पैसे से भी एक बार हाथ धोना पड़े तो उसमें भी संकोच न करना। इज्जत जब एक बार चली जाती है तो न पैसे से वापस आती है और ना 1000 प्रशंसाओं से। माँ सदैव यह बात याद रखूँगा। नंदू ने कहा और बस में बैठ गया नन्दु मिठाई की दुकान पर सारे ही दिन बड़ी मस्ती से काम करता। उसकी यह कोशिश हमेशा रहती थी कि किसी को उसके काम से उसके व्यवहार से कोई शिकायत ना रहे। मालिक भी उससे खुश रहते थे। नंदू को काम करते हुए एक सप्ताह ही बीता होगा कि 1 दिन एक घटना घटी। हुआ यह कि जब हलवाई रात को हिसाब मिलाने बैठा तो पूरे ₹100 कम पड़ें। उसने बार बार हिसाब मिलाया और हर बार यही बात। नन्दु ₹100 का चक्कर पड़ जाए? ₹100 न जाने कहाँ गए? आज तक तो कभी ऐसा झंझट नहीं पड़ा। बार बार गिन रहा हूँ, फिर भी कम हो रहे हैं वो बार बार नन्द उसे यही कह रहा था। नंदू समझ गया कि हलवाई उस पर शक कर रहा है। नंदू को सहसा ध्यान आया कि उसके पास भी ₹100 ही थे। वह सोचने लगा कि नई नई नौकरी है। मालिक जरूर उसकी चीजों की तलाशी लेंगे। और जब उन्हें ₹100 ही उसके थैले में मिलेंगे तो वो ये सोचेंगे की ये रुपए दुकान से चोरी किए गए उस गरीब की बात पर कौन विश्वास करेगा? उसका इतने दिनों का सारा परिश्रम, सारी ईमानदारी धूल में मिल जाएगी। माँ की बात उसके कानों में गूंजने लगी। इज्जत और ईमानदारी बनाए रखने के लिए एक बार को यदि पैसे से हाथ भी धोना पड़े तो उसमें तनिक भी संकोच नहीं करना है। वह तुरंत घर के अंदर गया। थैले में 100 का नोट निकाला। चुपचाप मुट्ठी में दबाएँ और दुकान में आ गया। नंदू कुछ देर तक इधर उधर रुपए देखने का बहाना करता रहा, फिर सेठजी के पास जाकर हथेली पर ₹100 का नोट फैलाकर बोला। सेठजी यह रुपए रहे कहाँ मिले हलवाई जो शुरू से ही उस पर शक कर रहा था, बोला यही पड़े थे तिजोरी के पास नंदू ने थोड़ी आंख के नीचे करके कहा झूठ बोलता है। हलवाई ने कड़क कर गुस्से में कहा और नंदू के गाल पर तरह तरह के तमाचे योजना शुरू कर दिए। नंदू की आँखों से टप टप आंसू झरने लगे तभी सेठ जी ने झकझोर कर पूछा सो सुबोतो ₹100 कैसे? कैसे गायब किया तुने? नहीं तो मार मार कर दूंगा। अब नंदू भक्त पक कर रो उठा। रोते रोते उसने सारी सच बात सेठ जी को बता दी पर सेठजी बला उसकी बात पर कैसे विश्वास कर लेते? उसने नंदू की पीठ पर एक धौल जमाते हुए कहा, सॉलिड कहानी तो गढ़ लेता है, पर हाँ आगे से रुपए पैसे के मामले में ज़रा भी गड़बड़ी हुई तो तुझे सीधा पुलिस के हवाले कर दूंगा। यह सुनकर रन दूर सिहर उठा। यदि उसने सेठ को ₹100 निकाल कर न दिए होते तो आज वह निश्चित ही उसे पुलिस के हवाले कर देते। रुपए भी जाते और इज्जत भी। नौकरी छूटती सो अलग। गांव भर में बदनामी होती अपने छोटे भाई, बहन और माँ के भूखे और करोड़ चेहरे नंदू की आँखों के आगे घूम गए। कोई बात नहीं इस बार बिना रजाई गद्दों के सोना, बस एक नन्द उसे बोला। उस रात नंदू के गले से पानी की एक बूंद भी न उतरी। वह चुपचाप भूखा प्यासा जाकर जमीन पर लेट गया। हलवाई के परिवार का कोई व्यक्ति भी उससे पूछ लेना आया। अगले तीन चार दिनों तक उससे ठीक से कुछ ना खाया गया, न पिया गया। दो 4 अगस्त से खाता और उठ जाता सारा दिन मुँह लटकाए घूमता। यह देखकर हलवाई की पत्नी का दिल भर आया। उसने अपने पति से कहा सुनिए कहीं ऐसा ना हो कि नंदू की बात सच हो। चोरी करने वाला इतना अधिक परेशान नहीं रहा करता। हलवाई ने डांटकर उसे चुप करा दिया। तुम भी मूर्ख हो। ऐसे ही मनगढ़ंत बातों पर विश्वास करना चाहती हो? बात आई गई हो गई, किसी ने इस पर अधिक विचार भी ना किया। चौथे दिन हलवाई का लड़का दूसरे शहर से वापस आया। जब सभी खाना खाकर गपशप कर रहे थे तो सहजानंद वो वाली बात की चर्चा हुई। हलवाई का लड़का चौंककर बोला, अरे पिताजी मैं तो आपको बताना ही भूल गया, आप दुकान पर थे नहीं, मैं जल्दी में था, इसलिए आपसे बिना कहे ही ₹100 का नोट निकालकर बाहर चला गया था। तू नंदू निर्दोष है, जी कर हरवाई और उसकी पत्नी बोले। उसकी बात सच्ची है। लड़का कहने लगा और नंदू को आवाज लगाई गई रात में इतनी देर। मालिक की आवाज सुनकर नन्दू एक बार तो कांप उठा, अब पता नहीं क्या दुर्घटना होगी ऐसा? मन में सोचते हुए वह कोठरी से बाहर निकला और सिर झुकाकर सामने खड़ा हो गया। हलवाई ने आगे बढ़कर उसे गले लगा लिया और बोला बेटा तुम्हारी ही बात सच थी, हमसे बहुत बड़ी गलती हो गयी, अब आगे ऐसा ना होगा। हमें माफ़ कर दो। यहीं नहीं, सेठ ने दूसरे ही दिन अपने पास से ₹200 दिए और बोले जॉब तुम अपनी माँ से मिलाओ और उसे भी रुपए दे आना। ₹100 महाजन का कर्ज उतारने के लिए और ₹100 घर का खर्च चलाने के लिए की आँखों मैं कृतज्ञता के आंसू भराए पर सोच रहा था कि ईमानदारी और सूझबूझ व्यक्ति का सदैव आदर कराती है। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है कि हमें हमेशा ईमानदारी और सच्चाई का साथ देना चाहिए। ओके बाइ?",यह एक ईमानदार लड़के की कहानी है। वह किसी काम से दूसरे शहर चला गया। वहां उनसे 100 रुपये का झांसा दिया। यह बच्चों के लिए एक अच्छी और नैतिक कहानी है। "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपके लिए लेकर आयी हूँ, उसका टाइटल है जैसे को तैसा बहुत पहले की बात है। किसी नगर में एक व्यापारी रहता था। दुर्भाग्यवश उस समय व्यापारी की सारी संपत्ति समाप्त हो चुकी थी। व्यापारी के मरने के बाद उसके बेटे के लिए कुछ भी बाकी नहीं बचा था। जब संपत्ति समाप्त हो गई तो व्यापारी का बेटा भूखों मरने लगा। उसे दो समय का भोजन जुटाना भी मुश्किल हो जाता था। वो बहुत परेशान होने लगा। कुछ दिनों बाद उसने सोचा की दूसरे देश में जाकर कोई व्यापार करना चाहिए। यहाँ रहकर इस प्रकार कब तक भूखा मरता रहा हूँ? यहाँ तो मुझे नौकरी भी नहीं मिले गी। लेकिन शहर जाने के लिए भी तो पैसे चाहिए और उसके पास पैसे थे नहीं। वो सोचने लगा कि किस प्रकार शहर जाने का प्रबंध हो? फिर अचानक उसे याद आया कि उसके पास उसके पिताजी का एक भारी और कीमती तराजू है। जिसका वजन 1000 लोहे के बाहर के बराबर था। उसने सोचा कि यह तराजू सेठ के पास गिरवी रख देता हूँ। इस प्रकार जो पैसे मुझे मिलेंगे, मैं उन पैसों को लेकर शहर चला जाऊंगा। यह सोचकर वह तराजू लेकर एक सेट के पास पहुंचा और उसने व तराजू सेठ के पास गिरवी रख दी। सेठ ने व कीमती तराजू रखकर उसे कुछ पैसे दिए जिन सेवा शहर जा सका। उन पैसों को लेकर व्यापारी का पुत्र घर आया। उसने उसी दिन शहर जाने की पूरी तैयारी कर ली। फिर अगले दिन सुबह सवेरे ही और घर में ताला लगाकर शहर के लिए रवाना हो गया। इसी प्रकार व कई देशों में घूमा सारी बातें देखभाल करके उसने अपना व्यापार शुरू कर दिया। भाग्यवश व्यापार में उसे दिन रात चौगुनी तरक्की भी मिलने लगी। उसने कुछ ही दिनों में उस व्यापार से बहुत सदन इकट्ठा कर लिया जब उसके पास काफी धन इकट्ठा हो गया तो उसे अपने देश की याद आने लगी। उसने सोचा की धन तो काफी कमा लिया। अब मुझे अपने देश लौट जाना चाहिए और वहीं जाकर मैं अपना नया व्यापार शुरू करूँ गा या सोचकर वह अपने देश लौट आया। वापस लौटने के कुछ दिनों बाद ही उसे तराजू की भी याद आई। उसने सोचा। की आप मुझे वो तराजू उस सेट के पास से छुड़ा लेना चाहिए। उसके पास पैसे तो भरपूर थे, इसलिए उसने सोचा कि यह मेरे पिताजी की निशानी है तो मेरे पास ही होनी चाहिए। सो अगले दिन जब व्यापारी का पुत्र तराजू छुड़ाने के लिए सेठ के पास पहुंचा। तो उसने तराजू देने से साफ इंकार कर दिया। सेठ सरासर बेईमानी पर उतर आया था। इस पर व्यापारी का लड़का बोला की तुम मेरी तराजू इस प्रकार हड़प नहीं सकते, मुझे तराजू चाहिए पर सेठ कहने लगा की बड़े अफसोस की बात है भाई तुम्हारा तराजू तो चूहे खा गए। ये क्या कह रहे हो तुम? भला तराजू को चूहे कैसे खा सकते? व्यापारी बोला क्यों नहीं खा सकते भैया मैं क्या तुमसे झूठ बोलूँगा भला? सेठ बोला अब व्यापारी के पुत्र ने मनी मन सोचा की सेट तो सरासर बेईमानी पर उतर आया है या सीधी तरह से तराजू नहीं देगा। इसके लिए कुछ तो करना ही पड़ेगा। फिर वह सोचने लगा सोचते सोचते बाहर गया, तभी उसकी निगाह सेठ के लड़के पर पड़ी। सेठ का लड़का व्यापारी के लड़के का मित्र था। दोनों मित्रों ने आपस में एक योजना बनाई। और उस योजना के तहत व्यापारी का लड़का सेट के पास जाकर बोला की सेठजी मैं नदी पर स्नान के लिए जा रहा हूँ, आप अपने बेटे को भी मेरे साथ भेज दीजिये। पहले तो सेठ को कुछ संदेह हुआ, उसने सोचा की पता नहीं क्या है इसने मन में सोचा है कही ये मेरा झूठ जान तो नहीं गया। ये सोचते सोचते सेठ इधर उधर घूमने लगा। पर फिर बोला की ठीक है, जाओ दोनों लोग घुमाओ। सेट को यह विश्वास था कि दोनों मित्र है और उसका बेटा भी वयस्क है। उसे कोई चिंता की जरूरत नहीं थी। परन्तु जैसे ही वो दोनों नदी के किनारे गए दोनों ने योजना के अनुसार ऐसा काम किया जिसे देखकर सेठ भी अचंभित हो गया। जब व्यापारी का लड़का सेठ के पास लौटा तो सेठ ने पूछा कि मेरा बेटा कहाँ है? अरे कुछ बोलते क्यों नहीं मेरा बेटा कहाँ है? इस पर व्यापारी के पुत्र ने उत्तर दिया कि जब हम नदी में नहा रहे थे, सेठ जी को एक बड़ा सा बाज़ वहाँ आया और झपट्टा मारकर आपके पुत्र को उठा ले गया। मैंने काफी कोशिश की मगर नहीं बचा पाया। उसकी बात सुनते ही सेठ जी को बहुत गुस्सा आया। वह जानते थे कि ये झूठ बोला ये। तो वो चिल्लाकर बोलने लगे की तुम झूठे हो, मक्कार हो कोई बात इतने बड़े लड़के को उठाकर कैसे ले जा सकता है? तुम मुझसे झूठ बोल ले अब बताओ मेरा लड़का कहा हैं। नहीं नहीं। सेठजी मैं झूठ नहीं बोल रहा हूँ, मेरी बात का यकीन कीजिए व्यापारी का लड़का कहे जा रहा था। इस पर सेठ बोले नहीं, मुझे तुम्हारी बात पर कोई विश्वास नहीं है, तुम एक नंबर के झूठे हो कमाल है। तुम मेरी बात का यकीन क्यों नहीं कर रहे हैं, जबकि मैं सच कह रहा हूँ? देखो तुम शराफत से मेरे बेटे को मुझ तक ले आओ, वरना कोई दूसरा कदम उठाना पड़ेगा। तब व्यापारी के लड़का बोला ऐसा कदम। सेट बोला की मैं राजा के पास जाऊंगा तुम्हारी शिकायत करने, वहाँ तुम्हें अब कठोर दंड मिलेगा। ना व्यापारी का लड़का बोला की अगर आप की यही इच्छा है तो देख लीजिये ये भी कर लीजिए लेकिन मैं सच कह रहा हूँ, मैं बता रहा हूँ आपको। मुझे तुम्हारी बात पर विश्वास नहीं सेठ बोला तब व्यापारी का लड़का बोला, अगर तुम्हें मुझे विश्वास नहीं करना तो फिर हम दोनों न्याय पाने के लिए राजदरबार में चलते हैं। वही इसका फैसला हो जाएगा। दोनों न्याय पाने के लिए राज़ दरबार में पहुंचे सेठ ने व्यापारी के बेटे पर अपने पुत्र के अपहरण का आरोप लगाया, जबकि व्यापारी का बेटा इस बात से इनकार कर रहा था। जेठ की बात सुनकर राजा ने व्यापारी के पुत्र से कहा कि तुम इस सेठ के बेटे को वापस कर दो। इस पर व्यापारी का बेटा बोला की मैं तो नदी में नहाने गया था कि तभी एक बड़ा सा बाज झपट्टा मारकर सेठजी के लड़के को अपने पंजों में दबाकर ना जाने कहाँ ले गया? अब मैं सेठ के लड़के को कैसे वापस करूँ? मैं तो खुद ही नहीं जानता कि वो कहाँ गया है? तब राजा बोला की तुम झूठ बोल रहे हो, एक बार इतने बड़े लड़के को नहीं ले जा सकता है। अब इस पर व्यापारी का पुत्र बोल पड़ा। अगर 1000 लौह भार की मेरे लोहे की तराजू को साधारण चूहे खाकर पचा सकते हैं। तो क्या बाज सेठ के लड़के को नहीं ले जा सकता? यह सब क्या मामला है? राजा क्रोधित होकर बोला। आखिर में सेठ ने पूरी बात राजा को बता दी, तब राजा ने व्यापारी के बेटे को उसकी तराजू दिला दी और सेट का बेटा उसे वापस मिल गया। माजरा ये था कि दोनों मित्रों ने आपस में ऐसी योजना बनाई। की जब नदी पर नहाने के लिए वो दोनों जाएंगे। तो सेठ के लड़के को व्यापारी का लड़का अपने घर में छुपा देगा और सेट से कह देगा कि उसे बाज उठाकर ले गया। सेठ के लड़के ने व्यापारी के लड़के की इस योजना में उसका साथ दिया और इसका परिणाम ये हुआ कि सेठ की बेमानी की पोल खुल गई और व्यापारी के लड़के को उसका न्याय मिल गया। तो बच्चो इस कहानी में हमने देखा कि जो व्यक्ति बुरा कर्म करता है उसको उसका फल भी बुरा ही मिलता है। ओके बाइ?","सभी को नमस्कार, यह एक लड़के की नैतिक कहानी है। पैसे नहीं होने पर लड़के को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। लेकिन उसके पास उसके पिता का अनन्य तराजू है। उसने वह पैमाना एक धनी व्यक्ति को दे दिया और कुछ समय के लिए कुछ पैसे ले लिए। लेकिन जब लड़का वापस आया और उससे तराजू वापस करने का अनुरोध किया तो अमीर आदमी ने उसे देने से इनकार कर दिया। अमीर आदमी ने उसे बताया कि तराजू को चूहे ने खा लिया है। पूरी कहानी सुनिए और जानिए उस लड़के की वह तरकीब जिससे उसने अपना वजन वापस पाया।" "हैलो बच्चों। परी कथाएँ तो आपने बहुत सी सुनी होंगी लेकिन आज जो परी कथा में आपके लिए लेकर आयी हूँ वो बहुत स्पेशल हैं। तो आइये सुनते है आज की हमारी कहानी। मोम की जलपरी। सोनू मोनू के पिता मोम के पुतले बनाते थे। एकदम सजीव इतने सजीव की नजदीक से कोई ये भी नहीं पहचान पाए की असली है इंसान या नकली? सोनू मोनू को सागर के तट पर गेंद खेलने में बड़ा मज़ा आता था। एक शाम उनकी गेंद पानी में चली गई। उन्हें तैरना नहीं आता था। अगले दिन वे दूसरी गेंद लेकर तट पर पहुंचे। वहाँ एक पेड़ था। उस पेड़ के नीचे उन्हें उनकी पुरानी गेंद रखी हुई वापस मिल गई। उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ कि आखिर ये कैसे हो गया? उस दिन खेलते खेलते उनकी दोनों गेंद ने बारी बारी से पानी में चली गई। उन्हें अपनी लापरवाही पर बहुत गुस्सा आ रहा था। वे घर वापस आ गए। नई गेंद के लिए अब उनके पास पैसे भी नहीं बचे थे। अगली शाम वे उदास मन से खाली हाथ तट पर आए, लेकिन ये क्या उनके आश्चर्य का ठिकाना ही नहीं रहा जब उन्होंने देखा कि उसी पेड़ के नीचे उनकी दोनों गेंदें रखी हुई है। वे समझ गए कि हो ना हो कोई उनकी मदद कर रहा है और उन्हें इसका पता लगाना ही पड़ेगा। उस दिन भी उन्होंने ऐसा ही किया। यानी खेल खेल में दोनों गेंदें फिर अपने। तरीके से पानी में डाल दी। उनकी दोनों गेंदें फिर सागर में जा पहुंची। हल्का सा अंधेरा हो गया था। तो दोनों भाई एक झाड़ी की ओट में छिप गए। थोड़ी देर में उन्होंने देखा की सागर में से एक जलपरी निकल आयी और पानी पर चलने लगी। अचानक दोनों उसे देखकर ठिठक गए। सोचने लगे वो सपना देख रहे हैं या ये कोई हकीकत है? अचानक उस जलपरी ने उन दोनों गेंदों को उठाया और पेड़ के नीचे रख दिया। ऐसा करके वो वापस जाने लगी। तभी सोनू मोनू हक्के बक्के रह गए जब जलपरी सागर के भीतर पानी में वापस जाने के लिए उतरने लगी। तभी सोनू मोनू झाड़ी से निकल कर बाहर आये और ज़ोर ज़ोर से जलपरी को आवाजें लगाते हुए बोले जलपरी रुको, जलपरी रुको। जलपरी लौटकर सोनू और मोनू के पास वापस आ गई। दोनों को अपनी आँखों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था तभी जलपरी बोल पड़ी। तुम दोनों बहुत ही प्यारे बच्चे हो पे हर शाम तुम्हारा खेल देखने आती हूँ। मेरे पास बहुत सुन्दर सुन्दर गिने हैं उन्हें मैं कल तुम्हें और ला कर दूंगी तुम कल जरूर आना और हाँ, यह बात किसी को बताना नहीं। अब तो जलपरी रोज़ उनके पास आने लगी। जलपरी तरह तरह के उपहार लाकर उन्हें देती 1 दिन जलपरी ने बताया कि सागर में उसका एक बड़ा सा महल है और उस महल में वो अपनी रानी माँ के साथ रहती है। वहाँ कई और जल परिया भी है और वे सब मिल जुल कर खूब मज़े करती है। जलपरी ने बच्चों को एक जादुई छड़ी देते हुए कहा। तुम दोनों ही इस छड़ी के सहारे आसानी से हमारे महल में आ जा सकते हो। कभी जरूर आना तुम्हारा हम स्वागत करें। एक शाम सोनू और मोनू सागर के तट पर गेंद खेलते खेलते अचानक थक गए। बहुत इंतजार करने पर भी जलपरी नहीं आयी। उसके बाद तो कई शाम में निकल गई लेकिन जलपरी उनका खेल देखने के लिए नहीं आई। सोनू और मोनू को लगने लगा की जलपरी जरूर किसी संकट में है। उन्होंने उसकी मदद करने का निश्चय किया। अगले दिन सोनू और मोनू जादुई छड़ी लेकर सागर के पानी में उतर गए। थोड़ी गहराई में नीचे जाने के बाद उन्हें जलपरी का महल दिखाई देने लगा। अंदर जाकर उन्होंने देखा बहुत तो चारों ओर सन्नाटा था। वहाँ कोई दिख नहीं रहा था। दोनों महल में घुसे, वहाँ मुख्य कक्ष में उन्होंने जो देखा उसे देखकर उनकी आँखें खुली की खुली रह गई। वहाँ तो कुछ राक्षसों रहे थे। वे समझ गए कि जरूर महल में राक्षसों का हमला हुआ है। राक्षसों ने जलपरी और दूसरी परियों को कैद कर लिया होगा। दोनों सावधानी से आगे बढ़ने लगे। वहाँ पर एक तहखाना था। तहखाने में सीढ़ियां बनी थी। दोनों भाई सीढ़ियों से नीचे उतर गए। वहाँ कई कमरे थे तभी एक कमरे से किसी के कराहने की आवाजें सुनाई देने लगी। खिड़की से झांककर उन्होंने कमरे में देखा तो सचमुच वहाँ जलपरी और मापारी कही थी। सोनू और मोनू को देखकर जलपरी खिड़की के पास आ गई और रोते हुए उसने उन्हें सारी बातें बता दी। उसने उन्हें बताया की एक बहुत बड़े राक्षस ने उन्हें कैद कर रखा है। वो माया भी है और उसके पास राक्षसों की एक बड़ी सेना भी है। बच्चों ने जलपरी से पूछा कि वो कैसे उसे कैसे छुड़ाएं? उसके बारे में और भी कुछ उन्हें बताएं वो? तभी जलपरी बोली रोज़ शाम को राक्षस हमारा भोजन लेकर यहाँ आता है। उस समय कमरा खुला रहता है। राक्षस भोजन के समय हमें लगातार दिखता रहता है, लेकिन वह बीच में 1 मिनट के लिए जबकि भी लेता है उस समय हम भाग तो सकते हैं मगर नींद खुलते ही वह हमें पकड़ लेगा और फिर कैद कर देगा। 1 मिनट का समय इतना कम होता है, इतने कम समय में हम महल और सागर से बाहर नहीं निकल सकते। सोनू और मोनू वापस अपने घर आ गए और उन्होंने अपने पिता को जलपरी और परी माँ की पूरी बात बताई। उनके पिता ने कहा, तुम दोनों जलपरी और परिमा के रूप, रंग और कद काठी के बारे में मुझे विस्तार से बताओ, मैं हूँ बहु उनके जैसे मोम के पुतले बना दूंगा, फिर तुम उनकी मदद कर सकोगे। दोनों ने जलपरी और परी माँ के बारे में बताया तो उनके पिता ने बिलकुल उनके जैसे मोम के पुतले बना दिए। अगली शाम सोनू मोनू पुतले लेकर तहखाने में कमरे के किनारे छुप कर बैठ गए। तभी राक्षस आया, उसने भोजन की थाली रखी और जलपरी तथा परी माँ को एकटक देखने लगा। तब जलपरी ने कहा, हमें भूख नहीं है। इस पर राक्षस गुस्सा हो गया। परंतु इस बीच राक्षस को झपकियां गई मौका पाकर जलपरी और परी माँ कमरे से बाहर आ गए। सोनू और मोनू ने झट से उनके स्थान पर मोम के पुतले रख दिए। 1 मिनट बाद राक्षस की झपकी टूटी तो सामने मोम की परियों को देखकर उसे ज़रा भी शक नहीं हुआ क्योंकि वो मोम की परियां बिल्कुल असली परियों जैसी लग रही थी। शाम के समय सभी राक्षसों रहे थे। सोनू मोनू और जल परिया सागर से बाहर आने में सफल हुए। उन्हें कोई भी परेशानी नहीं हुई। फिर जल्दी ही सागर के तट पर आ गए। तब जलपरी ने कहा, आगे एक जगह पर नदी की धारा उल्टी दिशा में बहती है। अगर हम व धारा मोड़ दे तो राक्षसों का जादू टूट जाएगा और वे खत्म हो जाएंगे और हम जलपरियां मुक्त हो जाएंगी। सोनू और मोनू एक बड़ी नाव ले आए। उसे धारा के पास लगा दिया। धारा की दिशा बदल गई तभी सागर मेँ जोरों से लहरें उठने लगी। राक्षसों के चिट कारों की आवाजें गूंजने लगीं और कुछ ही देर में सब कुछ शांत हो गया। तो इस तरह राक्षसों का अंत हो गया। इसके साथ ही सभी जलपरियां मुक्त हो गई। जलपरी और परिमा सागर में वापस जाने लगी। तभी सोनू दौड़कर जलपरी के पास गया और उसने कान में कहा, जलपरी हमारा खेल देखने के लिए आना मत भूलना। इस पर जलपरी ने कहा। तुम बच्चों ने हमारी मदद की है। हम यह कमी नहीं भूलेंगे। मैं तुम बच्चों से वादा करती हूँ की मैं तुम्हारा खेल देखने रोज़ आऊंगी। तो इस तरह जलपरी अपने महल में अपनी माँ के साथ खुशी खुशी वापस चली गई। तो ये थी एक जलपरी और मॉम की परियों की कहानी। ओके बाइ?","सभी को नमस्कार, यह एक निष्पक्ष कहानी है। इस कहानी में दो छोटे लड़के राक्षसों से जलपरी की मदद करते हैं। पूरी कहानी सुनिए और आनंद लीजिए।" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपको सुनाने जा रही हूँ उसका टाइटल है सौदागर की निडरता। बहुत समय पहले, कौशल देश में एक राजा राज्य करते थे। उन्हें अच्छे अच्छे घोड़े चलाने और पालने का बहुत शौक। परंतु राजा को इस विषय में ज्ञान नहीं था कि कौन सा घोड़ा बहुत अच्छा होता है। वह जो भी पुष्ट घोड़ा देखते मुँह मांगे दामों पर उन्हें खरीद लेते हैं। धीरे धीरे राजा की इस आदत का पता न केवल कौशल के अपितु दूर दूर के सौदागरों को भी लग गया। अधिकांश सौदागर यह करते हैं कि देखने में मोटा ताजा घोड़ा ले आते, राजा से उसकी झूठी प्रशंसा करते। फिर मनमाने दाम लेकर खुशी खुशी विदा होती। इस प्रकार राजकोष का बहुत सारा धन उन चापलूसों और झूठों की जेब में जाने लगा। यह देखकर मंत्री बड़ा दुखी हुआ। उसने राजा से कहा भी। मुँह रोज़ ये सौदागर साधारण से घोड़े को बल्ख, बुखारा और अरबी घोड़ा बताकर धन ले जाते हैं। इस प्रकार दूसरों की बात पर विश्वास करके घोड़े खरीदना उचित नहीं है। पर राजा ने फिर भी अपना हठ ना छोड़ा। मंत्री था बड़ा स्वामिभक्त। वह किसी भी प्रकार से राजा को सही काम सीखाना चाहता था। राजकोषीय और बर्बादी वह सह नहीं सकता था। कौशल नगरी में ही अच्छे घोड़े के लक्षणों को जानने वाला एक सौदागर भी रहा करता था। तू रंग शास्त्र के अपने ज्ञान के लिए वह दूर दूर तक प्रसिद्ध था। पर वह कभी भी कौशल के राजदरबार में नहीं जाता था। क्योंकि वह जानता था की राजा चापलूस और खुशामद करने वालों से खुश रहता है, जबकि वह सात सौदागर सदैव सच्ची बात कहता था। मंत्री सौदागर के पास गया और उससे बहुत देर तक बातें करने लगा। बहुत कहने सुनने, निवेदन करने के बाद सौदागर राज्यसभा में जाने को तैयार हो गया। दूसरे भी दिन प्रतिदिन की भांति घोड़ा लेकर एक व्यक्ति राज़ दरबार में आया। गुढ़ा देखने में बहुत सुंदर था। दूध जैसे सफेद रंग का था, लम्बा तगड़ा था। राजा उसे देखकर प्रसन्न हो गया। वह व्यक्ति बोला, ऐन या घोड़ा अभी अभी अरब से आया है, मैं इसे तुरंत लेकर दौड़ा चला आया हूँ या आपके अस्तबल की शोभा बढ़ाएं या मेरा सौभाग्य होगा आप जैसे घोड़ों के पार की ना आज तक हुए हैं और न होंगे। तभी दरबार में घोड़ा लिए हुए एक दूसरा व्यक्ति भी आ गया। वह बोला महाराज यह शुद्धि और भी नस्ल का घोड़ा है। सभी गुणों से युक्त एक बार में कम से कम 300 मील तक दौड़ता है। ऐसा घोड़ा आपके अस्तबल में नहीं होगा। आपको पसंद हो तो ले सकते हैं। राजा ने देखा कि दूसरे सौदागर का घोड़ा पहले वाले घोड़े से। उतना सुंदर नहीं है। और दुबला पतला भी है। राजा ने पहले घोड़े की ओर इशारा किया और कहा देखो तुम्हारे घोड़े से तो यही अच्छा है। पहले घोड़े के मालिक ने भी कहा। महाराज मेरे घोड़े से तो इसकी घोड़े की कोई तुलना ही नहीं हो सकती। अब उन दोनों व्यापारियों में विवाद छिड़ गया। दोनों ही अपने अपने घोड़े को अच्छा बताने के लिए अनेक तर्क देने लगे। राजा ने उनकी लड़ाई शांत करने के लिए दरबारियों से निर्णय जानना चाहा। अनेक दरबारी ऐसे थे जो राजा की चापलूसी करते थे और अपना लाभ करते थे। वे सभी कहने लगे, महरोज अब तो गुणों के बहुत बड़े गया ता है। आपकी बात भला झूठ कैसे हो सकती है? अब तो राजा को भी गुस्सा आ गया। वह बोला झूठ बोलने वाले को अपराध के लिए 500 कोड़े लगाए जाएं। तभी सोच रहे थे की सौदागर गिराएगा राजा से माफ़ी मांगेगा। परंतु ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। उसने सोचा कि जब मैं झूठ नहीं बोल रहा हूँ तो क्यों डरूं? वह गर्व से सीना तानकर कहने लगा। आप सब जिंस घोड़े को अच्छा बता रहे हैं। जब वह दो महीने का था तब गिर पड़ा था। इसका असर उसकी टांग पर अभी भी है। यह न तो तेज दौड़ सकता है नहीं अधिक दूर तक दौड़ सकता है। इतनी देर से चुपचाप बैठा मंत्री अब कड़क कर बोला सच सच बताओ नहीं तो तुम्हें इस के दुगने कोड़े लगाए जाएंगे। अब पहला सौदागर डर के मारे पीला पड़ गया। हाथ जोड़कर बोला ये महाराज। राजा को यह सुनकर बड़ा ही आश्चर्य हुआ कि दूसरे सौदागर ने यहाँ कैसे जाना? पूछने पर पता लगा की घोड़े की पीछे वाली टांग पर एक निशान है। उसी के आधार पर सौदागर ने यह कहा हैं। दूसरा सौदागर यह कह रहा था। महाराज दोनों घोड़ों को साथ साथ दौड़ाकर देख लीजिए। सच क्या है सभी को पता लग जाएगा। राजा ने गुस्से में भरकर कहा उसको घोड़ों रख लो और भगा दो। इसे यहाँ से राजा के अंगरक्षकों ने उसे धक्का देकर बाहर निकाल दिया। आप तो घोड़ों के बहुत बड़े पार्क ही लगते हैं। कहाँ से पधारे हैं आप? राजा ने अब दूसरे सौदागर से पूछा, उसने तुरंत अपनी नकली दाढ़ी उतार डाली। राजा ने देखा कि वह तो उसी के राज्य का प्रसिद्ध सौदागर है। दूसरों की बातों में आकर राजा ने उसका तिरस्कार किया था, इसीलिए वह कभी दरबार में नहीं आता था। अब राजा की आँखें खुल गई थी। उसकी समझ में आ गया था कि दूसरे किस प्रकार उसे ठगते हैं। राजा ने उस सौदागर की तुरंग पारखी के पद पर नियुक्ति कर दी। भीड़ सारा धन देखकर राजा ने उसे विदा किया। उसके साथ साथ कौशल नगरी में राजा की ओर से यह घोषणा भी करा दी गई कि जो कोई दोषयुक्त और साधारण घोड़ा दरबार में ले आएगा या अपने घोड़े की बढ़ा चढ़ाकर तारीफ करेगा, उसे 500 कोड़े मारे जाएंगे। साथ ही उसका घोड़ा भी छीन लिया जायेगा। इसके बाद राजा से झूठ बोलकर धन ऐंठने का किसी को भी साहस ना हुआ। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है। कि हमें चापलूसी करने वालों से हमेशा बचना चाहिए और सही और गलत को पहचानना चाहिए। ओके बाय।","सभी को नमस्कार, यह एक राजा और घोड़े के सौदागर की कहानी है। मैं सभी बच्चों को सोने के समय की कहानियां नैतिकता के साथ सुना रहा हूं। मेरी कहानियाँ अभिनव और प्रेरणादायक हैं। अपने बच्चों के साथ मेरी कहानियाँ सुनें। यह निश्चित रूप से आपके बच्चे के व्यक्तित्व के निर्माण में मदद करेगा।" "क्या आप भी अपना पॉडकास्ट बनाने का सोच रहे हैं? तो ऐंकर ट्राई कीजिए, ये पॉडकास्ट बनाने का सबसे आसान तरीका है। नंबर एक ये फ्री है नंबर दो। इसमें कई सारे ऐसे टूल्स है जो आपको अपने फ़ोन और कंप्यूटर पर रेकोर्ड और एडिट करने की फैसिलिटीज देते हैं। नंबर तीन आप अपने पॉडकास्ट को डिस्ट्रीब्यूट भी कर सकते हैं, जिससे इसे इस स्पॉटिफाइ और दूसरे प्लेटफॉर्म पर सुना जा सकें। डाउनलोड कीजिये? ये फ्री एंकर ऐप या विजिट कीजिए ऐंकर डॉट ऐफ़ एम अपना पॉडकास्ट स्टार्ट करने के लिए? हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आप सबके लिए लेकर आई हूँ, उसका शीर्षक है नीलकंठ दादा। कुछ देर पहले वर्षा होकर रुकी थी। आकाश में इंद्रधनुष निकला शीतल वायु बह रही थी। वृक्ष ना धो कर हवा में अपने पत्ते हिला हिलाकर मानो नाच रहे थे। अभयारण्य में चारों ओर हँसी खुशी का वातावरण छाया हुआ था। जीव जंतु इधर उधर से निकलकर घास के मैदान में इकट्ठा हो रहे थे। मननुम ओर कल्लू को हुआ मन दावत तक लालू खरगोश, कन्नु, केंचुआ तथा अन्य अनेक प्राणी वहाँ आ गए थे। सभी आराम से बैठे बतिया रहे थे। की। तभी सहसा मन्नू मोर की निगाह इंद्रधनुष पर गई और वह नाच उठा। थोड़ी देर नाचने के बाद फिर अपनी जगह पर बैठे हुए कहने लगा, यो इंद्रधनुष भी मेरी ही तरह सुंदर है। अब कल्लू कुएं से कहा सहन होती है उसकी बात और तुरंत बोल पड़ा। केवल पंखी तो सुन्दर है तुम्हारे कभी अपने पैरों की ओर देखा है पे कितने भद्दे और बदसूरत है। मन्नू की आंखें गुस्से से लाल हो उठी। वह कड़क कर बोला। चुप रहे वे काले कलूटे तू मेरी सुंदरता देखकर चिढ़ता है? को इतने पर भी संतोष नहीं हुआ। उसने जाकर कुएं की पीठ पर ज़ोर से अपनी चोट से नोच लिया। यह देखकर मन दावत तक को अच्छा नहीं लगा। वह कल्लू के पक्ष में बोलने जा ही रही थी पर कल्लू 4 दिन पहले उससे लड़ चुका था। इसलिए वह सोच रहा था की मानना भी मोर की भांति अपनी सुंदरता पर गर्व करते हुए उसे जली कटी बातें सुनाएगी। वह कर्कश स्वर में जल्दी से बोला, हाँ हाँ, रानी जी तो मैं भी अपने दूध जैसे रंग का, शरीर की सुंदरता का बड़ा गर्व होगा। कहने सुनने में जो कमी रह गई हो उसे तुम भी पूरा कर दो। यह सुनकर मंदा को गुस्सा आ गया। वह बोली, तू ज़रा धीरज से सुनता तो सही की मैं क्या बोलने जा रही हूँ? तू शरीर से जैसा कुरूप, वैसा ही मन का काला और अक्ल का मोटा है। तुझे व्यवहार की सभ्यता तक नहीं पता की पहले दूसरों की बात सुन लें, तब अपनी कहें। मंदा, बत्तख और कल्लू कौए की नोकझोंक सुनकर लालू खरगोश दांत निकाल कर हँस पड़ा। कनु के जुए को यह बहुत बुरा लगा। वह बातचीत के बीच में ही बोल पड़ा। वह भाई साहब दूसरों पर कितना हँसते हो? कभी अपने कान भी देखे, लगता है कि ना जाने तुमने कितनी गलतियाँ की हैं, जो तुम्हें भगवान ने खींच खींचकर इतने लंबे कानून वाला बना दिया? कन्नू की बात सुनकर गुस्से से दांत निकालकर मूंछों को बड़बड़ाते हुए बोला। ओरे मुर्गी ले सूद का पास तू चुप ही रहे ज्यादा बकवास ना कर कहीं ऐसा ना हो की मेरे पैरों से कुचल कर मर जाये। इन सब की सारी बातें पेड़ पर बैठे नीलकंठ दादा बड़ी देर से सुन रहे थे, वे सोच रहे थे कि आपस में ही झगड़ा निपटा लेंगे। और जब उन्होंने देखा की लड़ाई कम होने की अपेक्षा और बढ़ती चली जा रही है तो उन्होंने बीच में बोलना ही उचित समझा। पेड़ की ऊंची डालते ही वह बोले इतने सुहाने मौसम को लड़ झगड़कर क्यों बर्बाद कर रहे हो? आपस में इसने और भाई चारे से राहों सुख और शांति से जियो और जीने दो। एक हो दादा, ये मन्नू और कितना घमंडी है। कलुवा कितना दूर है? उन दो और खुश हुए लालू खरगोश कितना उद्दंड है, कितना लड़ाकू है जानवरों की ये आवाजें नीलकंठ दादा को चारों ओर से सुनाई देने लगीं। वे एक दूसरे की शिकायत कर रहे थे। तभी लालू खरगोश बोला दादा जी, कृपया नीचे आइये और हमारे झगड़े का निपटारा कीजिये। बहुत दादा जी आप ही आकर निर्णय कीजिये कि हम में से कौन कैसा है? सभी एक साथ कहने लगे नीलकंठ दादा को अब पेड़ से नीचे उतरना ही पड़ा। ब। फुर्र से उड़कर उन लड़ाकों के बीच में जाकर बैठ गए। बड़ी गंभीरता से और उन सब को समझाते हुए बोले। बच्चों, एक दूसरे के दोस्त ढूंढने से क्या लाभ होगा? अच्छाई और बुराइ तो सभी में है, स्वयं हम में भी है। दूसरों के तो तिल भर दोष भी हमें ताड़ के समान दिखाई देते हैं। परन्तु अपने बड़े से बड़े दोष को हम देखते हुए भी नहीं देखना चाहते। सोचो जितना समय हम दूसरों पर दोषारोपण करने में लगाते है, उतने समय में यदि गंभीरता से अपने दोषों पर विचार करें, उन्हें हटाने की कोशिश करें तो हम कितने अच्छे बन जाएंगे। अपनी बुराइयों को दूर करना, अपने आप को अच्छा बनाना हर किसी का पहला कर्तव्य है पर हम यही प्रमाद कर जाते हैं। हम तो दूसरों के दोष ढूंढ ढूंढकर निंदा, चुगलखोरी झूठ और लड़ाई के दुर्गुण और अपना लेते हैं। जैसा कि कहा भी गया है। नाइस मृत्यु पुकारा, नाम, माप या त् व थैया ***** धूप कारण कृत्य ने नई केन दुष्यंत। ये पंक्तियाँ वाल्मीकि ऋषि द्वारा रामायण में लिखी गई थी। इसमें भगवान श्रीराम के चरित्र के विषय में बताया गया है ये भगवान राम किसी के द्वारा अपने प्रति किए गए सैकड़ों अपराधों को भी स्मरण नहीं करते। किंतु यदि कोई भी किसी भी प्रकार उनका उपकार कर दे तो वे उस से ही संतुष्ट हो जाते हैं। श्री राम के इसी गुण के कारण उन्हें अनुसूय कहा जाता है। दूसरों के गुणों में दोष देखना असूया है। पर दोष दर्शन के दोष से मुक्त होने के लिए। पर गुण चिंतन की आदत डालनी चाहिए और प्रतिपक्ष के गुणों पर विचार करना चाहिए। अर्थात हमारे सामने जो व्यक्ति है हमें उसके गुणों पर ध्यान देना चाहिए। इससे दो बातें होंगी एक तो हमारे अंदर दूसरों की बुराइ करना, झगड़ा करना, ये सारी गंदी आदतें नहीं पड़ेगी और दूसरा ये होगा कि हम कभी भी दुखी नहीं रहेंगे। नीलकंठ दादा की बात बिलकुल सही थी। उसे सुनकर मन्नू, कल्लू, मंदा, लालू और कनु अभी सभी की गर्दन शर्म से झुक गई। दादा फिर बोले। बुराइ की बुराइ करके हम किसी को सुधार नहीं सकते। दूसरे की बुरी आदत को हम इस स्नेह और सद्भावना और सद्व्यवहार से ही छुड़ा सकते हैं। दादा जी बिल्कुल सही कह रहे है आप मन्नू मोर बोला। शरीर तो भगवान की दी हुई देन है। हमारा कर्तव्य तो यही है की हम अपने गुणों से सुंदर बनाने की कोशिश करें, अपने ही गुणों और कर्मों और स्वभावों का परिष्कार करें। कल्लू को हुआ कहने लगा। कल्लू भाई तुम कितने अच्छे हो अपनी रोटी मिल बांटकर खाते हो लगन और धैर्य तुम्हारा सबसे बड़ा गुण हैं। किसी काम में असफल होने पर भी निरंतर प्रयास करते रहते हो। अंत में सफलता पाकर ही चैन लेते हो। तुम्हारा यह गुण काक चेसता के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध। मन नो मोर। उसकी बात बीच में ही काटते हुए कल्लू को हुआ बोला। बस बस भाई, मैं इतनी प्रशंसा के योग्य नहीं आज से मेरी आंखें खुल गई है। अब मैं अपने दुर्गुण दूर करने की कोशिश करूँगा। फिर वहाँ मंदा बाद तक से माफी मांगते हुए बोला, बड़ी दीदी? मुझे तुम से इस तरह अभद्रता से बातें नहीं करनी चाहिए थी। गुस्से में मैं अपना आपा ही खो बैठा था। मेरे कहने सुनने को माफ़ करना। मंदा बोली। भैया तू भी मुझे माफ़ करना, मैं भी तो तुझसे बड़ी कठोरता से बोली थी, कौन कैसा है? इसकी पहचान उसके व्यवहार से होती है। बाहर से सुंदर होने से क्या व्यवहार की मधुरता और वाणी की मृदुता भी तो सुन्दरता होती है। सुन्दर वही है जिसने अपनी वाणी में इस स्नेह और सौजन्य का उचित समावेश कर लिया हो। जैसा की कहा भी गया है प्रिय वाक्य प्रदा ने इन सर्वे तुष्यन्ति जनता वाह। 10 मात दे वक्तव्यं व चने का दरिद्रता अर्थात प्रिय वचन बोलने से सब प्राणी प्रसन्न होते हैं तो हमें हमेशा मीठा ही बोलना चाहिए। मीठे वचन बोलने में कंजूसी नहीं करनी चाहिए। उधर उल्लू, खरगोश, कनु, केंचुए ये सब बैठे हुए थे। एक दूसरे से कह रहे थे छोटे भैया क्रोध के आवेश में मैंने तुमसे ना जाने क्या क्या कह दिया, कैसा मूर्ख और अब ये भी की हूँ मैं छोटी छोटी बातों पर उत्तेजित हो जाता हूँ, अपना मानसिक संतुलन खो बैठता हूँ भाई तुम क्षमा करना अब मैं अपना स्वभाव ऐसा नहीं करूँगा, मैं उसे संतुलित करने की पूरी कोशिश करूँगा। ओहो, तुम कितने अच्छे हो, परोपकारी हो, तुम ही तो पृथ्वी के नीचे मिट्टी ऊपर लाते हो। भूमि को उपजाऊ बनाते हो, खेती को हरी भरी बनाने में तुम्हारा ही तो योगदान है, हमें कभी भूलना नहीं चाहिए। इन सभी की बातें सुनकर नीलकंठ दादा मनी मन बड़े प्रसन्न हो रहे थे। वह बोले वो जो इस तरह एक दूसरे की अच्छा ही देखना और अपनाने की कोशिश करना, दूसरे की बुराइ पर ध्यान तो सभी दे लेते हैं पर हमें उससे बचे रहना चाहिए। कभी किसी की तीखी और भद्दी आलोचना नहीं करनी चाहिए। अपने दुर्गुणों का ध्यान रखना चाहिए। उनकी कटु आलोचना करना और इसमें डील ना देना, जीवन की सफलता का अच्छे बनने का यह एक बहुत बड़ा रहस्य है। दादाजी आपके सुन्दर सी को हम सदैव याद रखेंगे, हम अपने आप को ऐसा ही बनाएंगे। सभी एक स्वर में बोले। फिर उन्होंने सिर झुकाकर नीलकंठ दादा को प्रणाम किया और खुशी खुशी अपने घर की ओर लौट चलें तो बच्चो ये कहानी बहुत ही प्रेरणादायक थी। इस कहानी से जो सीख हमें मिलती है वो ये है की हमें कभी भी दूसरों के अवगुणों को, बुराइयों को दोषों को इतना नहीं अपने ऊपर हावी होने देना चाहिए कि हर समय हमें यही दिखता रहा है कि दूसरों में ये बुरा है। दूसरों में ये खराबी है हमें। दूसरों से उनकी अच्छाइयों को देखना चाहिए। उनकी अच्छाइयों की सीख लेनी चाहिए, तभी हम जीवन में आगे बढ़ सकते। ओके बाइ?","सभी को नमस्कार, यह जंगल में कई बड़े और छोटे जानवरों की एक अद्भुत कहानी है। मोर 🦚, खरगोश 🐇, कौआ 🐦, केंचुआ 🪱 सब आपस में झगड़ रहे हैं। एक बूढ़ा मोर था। सभी जानवर उसका सम्मान करते हैं और उसका पालन करते हैं। सुनिए पूरी कहानी और जानिए मयूर 🦚 द्वारा दी गई सीख के बारे में।" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी में आपको सुनाने जा रही हूँ उसका टाइटल है घमंडी का सिर नीचा प्राचीन काल की बात है। किसी गांव में चंद्रभूषण नाम का एक विद्वान पण्डित रहता था। उसकी वाणी में गजब का आकर्षण था वह भागवत की कथा सुनाने में निपुणता। उसकी वाणिज्यिक कथासार सुनकर लोग मुक्त हो जाते थे इसीलिए उसके यहाँ हर रोज़ कथा सुनने वालों की भीड़ लगी रहती थी। दूर दूर से लोग चंद्रभूषण से भागवत की कथा सुनने आते थे। उसी गांव में एक दूसरे पंडित जी भी रहते थे। नाम था नाम्बियार पढ़े लिखे तो बहुत थे पर थे बहुत घमंडी, स्वयं को बहुत बड़ा विद्वान समझा करते थे। सोचते कहा कल का छोकरा चंद्रभूषण जो अटक अटक कर कथा पड़ता है और कहा मैं शास्त्रों का मर्म जानने वाला पंडित किंतु जब भी नम्बिआर चंद्रभूषण के घर के सामने से गुजरते, उसके श्रोताओं की भीड़ देखकर उनका मन ईर्ष्या से भर उठता। मन ही मन सोचते ये आप चंद्रभूषण किया जादू करता है। इसके यहाँ दिनों दिन श्रोताओं की भीड़ बढ़ती ही जा रही है। ऐसे तो मेरी ना मीठी हो जाएगी, मुझे कुछ करना चाहिए। 1 दिन की बात है लंबी और थके हारे घर लौटे वो भी जोरों की लगी थी लेकिन घर आकर देखा तो उनकी पत्नी दिखाई नदी एक दो बार आवाज भी लगाई मगर चुप्पी छाई रही। अचानक नं बीआर कामन आशंका से भर उठा। कहीं मेरी पत्नी चंद्रभूषण के यहाँ कथा सुनने तो नहीं चली गयी। ईर्ष्या और क्रोध से नाम्बियार के नथुने फड़कने लगे। एक एक पल उन्हें 1000 घंटों के बराबर लगने लगा। जब रहा नहीं गया तो वह चंद्रभूषण के घर की ओर चल दिए। चंद्रभूषण के दरवाजे पर पहुँचकर नमबी आठ अटक गए। वहाँ श्रोताओं की अपार भीड़ थी। सब मंत्रमुग्ध होकर कथा सुन रहे थे। नंबियार ने देखा श्रोताओं के बीच उसकी पत्नी भी बैठी है। बस फिर क्या था उनका क्रोध भड़क उठा और दनदनाते हुए चंद्रभूषण के आसन के पास पहुँच गए और चिल्लाकर बोले चंद्र भूषा तुम दुनिया के सबसे बड़े मूर्ख हो और तुम से बड़े मूर्ख ये सारे लोग हैं जो यहाँ इकट्ठा होकर तुम्हारी बकवास सुन रहे हैं। लंबी यार की इस बात को सुनकर चंद्रभूषण आश्चर्य में पड़ गया। कथा बीच में ही छूट गई। सारे श्रोता नाम्बियार को बुरा भला कहते हुए अपने अपने घर लौट गए। घर पहुँचकर बाकी बचा गुस्सा नंबियार ने अपनी पत्नी पर निकाला, बोले। क्या जरूरत थी? तो मैं वहाँ जाने की क्या मुझसे बड़ा विद्वान है? चंद्रभूषण मेरे पास शास्त्रों का भंडार है, मगर तुम्हे कौन बताये? लगता है तुम्हारी खोपड़ी में बुद्धि नहीं है। क्यों अपने मुँह मियां मिट्ठू बनते हो? तुम ऐसे ही पड़े हो तो चंद्रभूषण की तरह इतने लोगों को इकट्ठा करके दिखाओ। मैं तुम्हारे ज्ञान को मान लूंगी, मैं तुम्हारी जली कटी रोज़ सुनती हूँ। अब तुम दूसरों को भी अपमानित करने लगे। तुम्हें कोई और काम नहीं है सिवाय ईशा के? इतना कहकर तिलमिलाती हुई नाम्बियार की पत्नी भीतर चली गई। उस रात दोनों में से किसी ने भोजन नहीं किया। पत्नी तो थोड़ी देर में सो गयी पर नंबियार की आँखों में नींद नहीं थी। शाम की सारी घटना जैसे उसकी आँखों में तैर रही। रेकर उसी घटना के बारे में बात सोचते, आखिर मैंने चंद्रभूषण का अपमान क्यों किया? वो जितना सोचते हैं उनकी बेचैनी उतनी ही बढ़ जाती। बाहर काफी सर्दी थी, मगर गला सूखने के कारण वह बार बार पानी पी रहे थे। यही बात सोचते सोचते उनका सारा गुस्सा पश्चाताप में बदल गया। ओह, या मैंने क्या किया मेरे मन में भगवान की भक्ति के नाम पर इतना दुश और चंद्रभूषण के स्वभाव में इतनी विनम्रता इतना अपमान सहने के बाद भी वह एक शब्द नहीं बोला। जैसे ही भोर का तारा दिखा नंबियार ने पश्चाताप प्रकट करने हेतु चंद्रभूषण के घर जाने के लिए दरवाजा खोला। उन्होंने देखा की चौखट के पास कोई व्यक्ति कंबल ओढ़े बैठा है। वो जाड़े से सिकुड़ रहा था। जैसे ही नंबियार ने कदम आगे बढ़ाया, वह उनके पैर छूने के लिए आगे बढ़ा। योर क्यों करते हो कौन हो तुम कहते हुए नम्बिआर पीछे हट गए। उस व्यक्ति को ध्यान से देखा तो सामने हाथ जोड़े खड़ा व्यक्ति और कोई नहीं था। कथा वाचक चंद्रभूषण ही था। जब तक नाम्बियार कुछ कहते चंद्रभूषण बोल उठा, आपने अच्छा ही किया, जो मेरे दोस्त मुझे बता दिए, लेकिन लगता है आप मुझसे अभी भी नाराज हैं। मैं रात भर बैठकर यहाँ आपका इंतजार कर रहा था। शायद आप बाहर आये और मैं आपसे क्षमा मांगू। नाम्बियार तो पहले ही लज्जित थे। उन्होंने लपककर चंद्रभूषण को अपने गले से लगा लिया। बोले बोल दोष मेरा है तुम्हारा नहीं, मैं घमंड में अंधा हो गया था, तुमने अपनी विनम्रता से मेरा घमंड चूर चूर कर दिया, सच कहता हूँ तुमने मेरी आँखें खोल दीं। वास्तव में यदि विनम्रता ना हो तो ज्ञान भी नष्ट हो जाता है। दोनों की आँखों में आंसू थे, उसके बाद नंबियार ने इरशाद, वेश और घमंड का या कर दिया तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है। की हमे कभी अपने ज्ञान और हुनर पर घमंड नहीं करना चाहिए। ओके बाइ?",यह एक दयालु और विनम्र पुजारी की कहानी है। वह गांव के लोगों को भागवत कथा सुना रहे हैं। लेकिन गाँव में एक और पुजारी है जो हमेशा उससे नाखुश रहता था। "हैलो बच्चों, आज जो कहानी में आपको सुनाने जा रही हूँ उसका टाइटल है दो भाई। आग्रा में लाल किले के पीछे नीम का एक पुराना पेड़ है। उस पेड़ पर कौए रहते थे। बड़े का नाम था कृष्णु और छोटे का नाम था विशु। यद्यपि वे दोनों सगे भाई थे पर उनके स्वभाव में काफी अंतर था। बड़ा भाई जितना सज्जन था तो छोटा उतना ही दुर्जन। भोर होते ही दोनों भाई भोजन की तलाश में उड़ चलते किले के पीछे ही यमुना नदी बहती है। वहाँ प्रतिदिन इस स्नान करने वालों की भीड़ लगी रहती थी। स्नान करने वालों में महिलाएं भी होती। दोनों भाई वही बैठते वे अपने बच्चों को भी साथ साथ नहलाती थीं। नहाने के बाद बच्चों के हाथ में रोटी, पूड़ी, मिठाई आदि दे देती और स्वयं पालथी मारकर आंखें बंद कर पूजा पाठ करने बैठ जाती। विशु तो बस इसी मौके की ताक में रहता। वह पत्तों में छुपकर चुपचाप बच्चों को घूरता रहता। अपनी एक पुतली को कभी दाईं आंख में तो कभी बाईं आंख में घुमाता। जैसे ही उसे किसी बच्चे के हाथ में मिठाई, पूरी, पापड़ आदि दिखते तो वह झट से चुपचाप झपट्टा मारकर उन्हें छीन ले जाता। बेचारा बच्चा इस आकस्मिक हमले से भौचक्का रह जाता। वह टुकुर टुकुर कौए को ऊंची डाल पर बैठकर अपना खाना खाते देखता। छोटे बच्चे तो ज़ोर ज़ोर से रोने ही लगते, उनके मुँह का गुस्सा दूसरे के मुँह में चला जाए। उनके पेट भूख से कुलबुला आते रहे तो भला भी रोएंगे नहीं तो और क्या करेंगे? किसी न किसी बच्चे के तो विशु चौंच मारकर खून भी निकल जाता था। बच्चा जब कसकर चीजें पकड़े तो विश उसे झपटने के लिए यह तरकीब अपनाया करता था। विष्णु को विशु की आबाद तनिक भी नहीं भाती थी। जब विशु मासूम बच्चों के हाथ से चीजें छीनकर चटकारे भरकर खाता था तो कृष्णु कामन जल उठता। उसने उसे लाख बार समझाया। की किसी को सता कर अपना पेट न भरो दुखियों की आयेशा भी देती है। ले सकते हो तो दूसरों की शुभकामनाएं और उनके आशीर्वाद ही लोग पर विशु पर इन सब बातों का कोई असर ना होता। उल्टे वह बड़े भाई की बात सुनकर मुँह बिचकाने लगता और कहता अरे छोड़ो भी क्या रखा है इन सब बातों में थोड़ी सी ही तो है जिंदगी जब तक जियो का उपयोग और मौज मनाओ जी जिसके हाथ में उसी की होती है दूसरे की वस्तु जब हमारे हाथ में आ गई तो हमारी हो गयी किशनु को उसकी ये बातें सुनना बहुत बुरा लगता। लगता भी क्यों नहीं? उसका स्वभाव तो इसके बिल्कुल विपरीत ता उसे किसी को सताना तनिक भी अच्छा नहीं लगता था। उसे तो अपने परिश्रम से कमाई गई सूखी रोटी ही मीठी लगती थी। जो कुछ भी कुछ उसे मिलता, उसी को खा कर खुश रहता। उसने कभी किसी के हाथ से कोई चीज़ नहीं छीनी थी। वह कितना भी भूखा होता, संतोष से चुपचाप बैठा रहता। बच्चे कभी कभी उसे एक का टुकड़ा डाल देते या पीछे से बचा कुछ और जो भी जमीन पर बिखर जाता, उसी को खा कर वह मस्त घूमता। उसे कभी भरपेट खाना मिल जाता तो कभी वह भूखा ही रह जाता था, पर वह उसमें भी कभी असंतुष्ट नहीं होता था। अब तो बच्चे भी कृष्ण और विष्णु को अच्छी तरह पहचान गए थे। वे इन दोनों का स्वभाव जान गए थे। बच्चे एक लंबा सा बांस लेकर बैठते। जैसे ही विशु को आते हुए देखते बास फटकार देते। बिशु भी कम चालक न था। वह उड़ता हुआ आता और चुपचाप जी छीनकर भाग जाता। इस काम में विशु बड़ा निपुण हो गया था। वह इतना खाना छीन लाता था कि ठूस ठूसकर दिन में कई बार खा लेता। इतना ही नहीं गांव का वो करके दूसरे कामों को इकट्ठा कर लेता और बचा खुचा खाना उन्हें दे देता। फलियाँ हुआ की सब इशू के आगे पीछे फिरते उसकी खूब झूठी प्रशंसा करते। अपनी ही तारीफ प्रशंसा सुनकर विष्णु महिम्न फूल कर कुप्पा हो जाता था और तब दूसरे कौए उसे और भी चीज़े हड़पने के लिए प्रोत्साहित करते एक बार एक चालक बच्चे ने विशु को मारने का उपाय सोचा। वह घर से लाल लाल फूले हुए रस भरे मालपुए लाया था। उसने बड़ी सावधानी से थोड़ा थोड़ा करके कटोरदान से निकालकर पुए खाएं। उस दिन विशु की एक न चली। वह ललचाई आँखों से उसे पूरे खाते हुए देखता रहा। जब अंतिम पुआ बच गया तो बालक ने उसमें कुछ दबा लगा दी और जमीन पर रख दिया। बिशु तो बस इसी मौके की ताक में था। उसने आव देखा न ताव पुआ पंजों में दबाया और पेड़ पर आकर बैठ गया। पुआ उसे इतना अधिक स्वादिष्ट लगा था की दो ही बार में गपागप करके खा गया। विशु आज इतना मीठा मालपुआ खाकर बड़ा ही खुश था पर थोड़ी ही देर में उसकी सारी खुशी धरी की धरी रह गई। धीरे धीरे उसका जी जोरों से मिचलाने लगा। गला प्यास से बुरी तरह सूखने लगा। विशु अब ज़ोर से तड़फड़ाने लगा उसने कहा गांव करके सारे ही कहो को इकट्ठा कर लिया इशू ने सारी स्थिति उनका वो को बदलाई। लुक तो है तुम्हें किसी ने जहर दे दिया है एक बूढ़े का हुए ने कहा उसकी बात सुनकर बिशु ज़ोर ज़ोर से रोने लगा। मैं मरा मुझे बचा लो, बहुत विलाप करने लगा पर अफसोस की किसी कुएं का दिल न पसीजा। आग बचा कर चुपचाप धीरे धीरे एक एक करके वे सभी कुएँ वहाँ से उड़ने लगे। दर्द और अपमान से भी शु छटपटा रहा था। कराहते हुए वह बोला, ओह, मैं तुम सबको खिलाने के चक्कर में इतना खाना इकट्ठा करता था। ना ऐसा करता। न मेरी जान जाती। हमने कब कहा था कि तुम हमें दूसरों को सताकर खिलाओ, अपनी करनी का फल तो अब तुम्हें भुगतना ही पड़ेगा। तू ना कर एक कवी बोली आँखें बंद किये, बिशु सोच रहा था, ये वही हैं जिनके लिए मैंने सब करनी या करनी की इनके वाहवाही पाने के लिए मैं दूसरों की चीजें हड़पता रहा। इनकी चापलूसी को मैंने अपनी प्रतिष्ठा, इनका प्यार और आदर समझा। आज मेरी आंखें खुल गई है। मृत्यु की इस घड़ी में इनकी सच्चाई मेरे सामने आ गयी है। ओह, कितना अच्छा होता है कि मैं कृष्ण हूँ दादा की बात मानता सच्चाई के रास्ते पर चलता बिना किसी का दिल दुखाये रूखी सूखी खाकर संतोष करता पर अब पछताने से भी क्या होगा? दुख और पश्चाताप से विशु की आँखों से आंसू झरने लगे। अब उस पर बेहोशी छाती चली जा रही थी। उसी स्थिति में विशु को लगा जैसे कोई सिर को सहला रहा है। वह सोचने लगा कि यह मेरा भ्रम मात्र है। भला मुझको कर्मी की सहायता कौन करने लगा? सच है बुरे काम का फल तुरंत नहीं मिलता और राख में जैसे आग दबी रहती है और समय पाकर वह भयंकर रूप धारण कर लेती है, वैसे ही कुकर्मों का फल कुछ समय बाद मिलता है और भयंकर रूप में मिलता है। तभी विशु को लगा जैसे कोई आवाज़ दे रहा है, विशु आँखें खोलो अड़ाकर आँखें खोल दीं। देखा कि सामने कृष्णा बैठा था। सहानुभूति पाकर बिशु की आँखों से आंसुओं की धारा बह निकली। लो। इसे जल्दी से खा लो कहकर कृष्ण उने पंजे में दबाई हुई कोई जड़ी बूटी बिशु को दे दी। बिशु बेहोशी की हालत में उसे खाने लगा। बात यह हुई थी किजब कृष्णा नदी के किनारे खाना खा रहा था तो उसने दूसरे कारणों से यह बात सुनी की विशु को किसी ने जहर खिला दिया है। वह मुँह का गुस्सा वहीं छोड़कर तुरंत तेजी से उड़ा। जल्दी जल्दी में जड़ी बूटी ढूंढकर तोड़ी और हफ्ता हफ्ता बिशु के पास पहुंचा। इतने में बीशू को विमन हुआ और विषैला खाना पेट से निकल गया। धीरे धीरे बेहोशी भी दूर होने लगी। किशनू ने उसकी बहुत सेवा की। दूर दूर से खोज कर सप्ताह भर उसके लिए जड़ी बूटी और खाना लाया। विशु तो इतना कमजोर हो गया था कि अपनी जगह से हिल भी नहीं पाता था। यदि कृष्णु सहायता ना करता तो वह मर ही गया होता। इस घटना के बाद से तो विशु का स्वभाव एकदम ही बदल गया। वह अच्छी तरह से समझ गया कि धूर्तता और चालाकी से नहीं, ईमानदारी और सच्चाई से चलने में ही अंत में सुख मिलता है। जीवन का सच्चा आनंद वही पा सकता है जो सहानुभूति और प्रेम भरे व्यवहार से दूसरों का स्नेह और आशीष पाता है। अपने बुरे व्यवहार से औरों का दिल दुखाने वाला अंत में स्वयं भी कष्ट निश्चित ही भुगतता है। अब जब भी कृष्ण और विशु की कोई बात चलती तो सभी कुएँ यही कहते हैं कि दोनों भाई रंग रूप में ही नहीं स्वभाव और गुणों में भी एक से ही है। यह सब सुनकर विशु गर्व से अपना शरीर फुला लेता। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें कभी किसी का दिल नहीं दुखाना चाहिए और जो कुछ मिलता है उसी में संतोष करना चाहिये। ओके बाई।",यह दो कौवों की कहानी है। बड़ा कौआ बहुत कोमल है लेकिन छोटा बहुत चालाक और लालची है। किशु हमेशा इंसानी बच्चों के हाथों से चीजें छीन लेता है। उसके बुरे बर्ताव का नतीजा यह होता है कि एक बार उसे कोई जहर दे देता है। कहानी सुनें और आनंद लें। "हैलो बच्चों, आज जो कहानी में आप सब के लिए लेकर आई हूँ उसका शीर्षक है सच्ची खुशी। टिंकू की मम्मी बहुत दिनों से महसूस कर रही थी कि टिंकू अपनी प्रिय दोस्त चिंकी से कटा कटा सा रहने लगा है। चिंकी उसे खेलने के लिए बुला ने आती तो कह देता आज मेरा खेलने का मन नहीं है। बहुत दिनों से यही सिलसिला चला आ रहा था। बेचारी चिंकी अपना समूह लेकर अपने घर वापस लौट जाती। टिंकू और चीन की अब पहले की तरह साथ साथ स्कूल भी नहीं जाते थे। चिंकी से बचने के लिए टिंकू समय से पहले ही अपनी साइकिल लेकर स्कूल की तरफ निकल जाता। यह सब देखकर चिंकी और टिंकू की मम्मी बहुत परेशान थी। उन दोनों ने टिंकू और जिनकी के दूसरे दोस्तों से इस बात का कारण जानना चाहा। तो पता चला कि वे दोनों क्लास में भी साथ साथ नहीं बैठते। लंच के समय भी अपना अपना लंच अकेले बैठकर खाते। दूसरे दोस्तों ने बताया कि टिंकू सबसे चिंकी की बुराइ करता फिरता है। स्कूल में सबसे चिंकी के लिए कहता है घमंडी कई की क्लास में फर्स्ट आती हैं तो जानें अपने को क्या समझती है? यहाँ पता लगते ही टिंकू की मम्मी को सारी बात समझ में आ गई। उन्हें याद आया कि पिछले साल जब स्कूल के वार्षिक उत्सव में चिंकी अपना अवॉर्ड लेने मंच पर गई थी तब टिंकू कितना उदास था। बाकी बच्चों की तरह चिंकी को चीयर्स करने के लिए ताली भी नहीं बजा रहा था। ओह, तो ये बात है टिंकू की मम्मी ने पुरानी घटनाओं को याद करके स्वयं से कहा। मम्मी ने सोचा मुझे टिंकू को समझाना होगा रात को जब टिंकू मुझसे कहानियाँ सुनता है, तब मैं मौका देखकर उससे सारी बात पूछूंगी। टिंकू तुम आज का चिंकी के साथ नहीं खेलते और स्कूल भी अकेले जाते हो, क्या तुम दोनों में लड़ाई हो गयी है? रात को मम्मी ने फटाफट एक कहानी सुनाने के बाद पूछ ही लिया। जिनकी मुझे बिल्कुल अच्छी नहीं लगती, टिंकू चढ़कर बोला। मगर क्यों मेरे ख्याल से तो वो बहुत अच्छी लड़की है? मम्मी आपको कुछ पता नहीं है उसके बारे में एक नंबर की घमंडी लड़की है वो। वो कैसे ज़रा मुझे भी तो बताओ? फर्स्ट रहती है ना बस उसी की शान दिखाती पड़ती है सबको। और नहीं तो क्या? क्यों उसने तुमसे ऐसा कुछ कहा क्या? बुद्धू नहीं हूँ मैं समझ सकता हूँ सब कुछ अरे मुझे तो ऐसा नहीं लगता और दूसरे बच्चो को भी। उसके बारे में कोई शिकायत नहीं है। फिर तुम्हे ही क्यों परेशानी है? टिंकू की मम्मी समझ गई कि परेशानी की जड़ क्या है? जब से चिंकी टिंकू के स्कूल में आई थी वह अपनी क्लास में सेकंड आने लगा था और चिंकी फर्स्ट? वो समझती है की मैं बुद्धू टिंकू थोड़ी देर की चुप्पी के बाद बुरा सा मुँह बनाकर बड़बड़ाया। ऐसा तुमने सोचा कैसे जब तुम खुद कह रहे हो की चिंकी ने तो तुमसे कुछ नहीं कहा? मम्मी ने कठोर स्वर में कहा। टिंकू को कोई जवाब न सूझा, बस इधर उधर ताकता रहा। उसे चुप देखकर मम्मी अपनी बात आगे बढ़ाते हुए बोलीं, हर इंसान के अपने अपने गुण होते, उन्हें अपने गुणों को निखारने का काम करना चाहिए, दूसरों में दोष निकालने का नहीं, दूसरों से ईर्ष्या करने से खुद का भला नहीं होता। टिंकू ने कोई जवाब नहीं दिया। बस चुपचाप पंचतंत्र की कहानियों की किताब को उलट पुलट करता रहा। समझदार तो वह था ही इसलिए शायद मम्मी की बात उसे थोड़ी थोड़ी समझ में भी आ गई। दूसरे दिन से ही वह फिर से चिंकी के साथ खेलने लगा। स्कूल जाने के लिए वह खुद ही चिंकी के घर उसको बुलवाने के लिए पहुँच जाता। फिर दोनों साइकिल चलाते हुए स्कूल जाते। ऐसा करते करते पढ़ाई का यह साल भी खत्म हो गया। चिंकी फिर से क्लास में फर्स्ट आई और उसके लिए उसे वार्षिक समारोह में फिर से अवॉर्ड मिल रहा था। लेकिन इस बार एक फर्क था। टिंकू दूसरे बच्चों के साथ ज़ोर ज़ोर से तालियाँ बजाकर चिंकी को चीयर्स कर रहा था, किंतु उसकी आंखें आंसुओं से भरी थी। उसकी आँखों में आंसू छलक रहे थे। यह देखकर पास बैठी उसकी मम्मी ने उससे पूछ ही लिया, टिंकू, तुम चिंकी को चीयर्स करने के लिए तालियां बजा रहे हो। प्रियांसू किस लिए है? इस पर टिंकू मुस्कुरा कर बोला, मम्मी आप इतना भी नहीं समझती, ये तो खुशी के आंसू हैं मेरी प्रिय मित्र चिंकी को अवॉर्ड मिलने की खुशी के। टिंकू अब दूसरों की खुशी में खुश होना सीख गया था। मंच पर अवॉर्ड लेकर खड़ी चिंकी ने अपना एक हाथ हवा में ऊपर की तरफ हिलाकर टिंकू की तरफ इशारा किया और फिर धीरे से मुस्कुरा दीं। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है कि हमें अपनी खुशी में तो खुश होना ही चाहिए, लेकिन हमें दूसरों की खुशी में भी खुश होना सीखना चाहिए क्योंकि दूसरों से ईर्षा, द्वेष ये सब हमें असफलता की ओर ले जाते हैं, लेकिन दूसरों को देखकर उनसे प्रेरणा लेकर आगे बढ़ना हमें हमेशा सफलता का रास्ता दिखाता है। ओके बाइ?","सभी को नमस्कार, यह एक लड़के की नैतिक कहानी है। उसे अपनी गलतियों से सबक मिलता है। पूरी कहानी सुनें और कहानी के नैतिक के बारे में जानें।" "क्या आप भी अपना पॉडकास्ट बनाने का सोच रहे हैं? तो ऐंकर ट्राई कीजिए, ये पॉडकास्ट बनाने का सबसे आसान तरीका है। नंबर एक ये फ्री है नंबर दो। इसमें कई सारे ऐसे टूल्स है जो आपको अपने फ़ोन और कंप्यूटर पर रिकॉर्ड और एडिट करने की फैसिलिटीज देते हैं। नंबर तीन आप अपने पॉडकास्ट को डिस्ट्रीब्यूट भी कर सकते हैं, जिससे इसे इस स्पॉटिफाइ और दूसरे प्लैटफॉर्म्स पर सुना जा सकें। डाउनलोड कीजिये ये फ्री एंकर ऐप या विजिट कीजिए ऐंकर डॉट ऐफ़ एम अपना पॉडकास्ट स्टार्ट करने के लिए? हैलो बच्चों, आज जो कहानी में आपको सुनाऊंगी वो एक चालाक कुएं की कहानी है। अभयारण्य में नु नाम का एक खरगोश रहा करता था। एक बार उसने सोचा की घर के आगे बगीचा लगाना चाहिये। इससे हरियाली भी रहे, गी और खाने को भी मिलेगा। अनु ने खूब मेहनत की, बकरी मौसी के यहाँ से घास लाकर लगाई गाय दीदी के यहाँ से गाजर मूली लाकर लगाई। चंचल गिलहरी के यहाँ से लाकर फूलों की पौध लगाई भैस काकी से गेहूं लाकर बोई तरह तरह के फूलों के पेड़ भी लगाएं। खरगोश सारे दिन कड़ी मेहनत करता, सूरज निकलते ही उठ बैठता। बाल्टी लेकर नदी पड़ जाता। वहाँ से पानी लाता और पौधों में लगाता। दोपहर में उनकी निराई करता। फिर वह बगीचे में बने मकान में दिन भर बैठा रहता। चिड़ियों और चूहों से वह अपने बगीचे की रक्षा करता। इस प्रकार कुछ ही दिनों में अनु खरगोश का बगीचा हरा भरा और सुंदर बन गया। अनु खरगोश का एक भाई था। उसका नाम था कानून। वह उसके पड़ोस में रहता था। उसने अनु का बगीचा देखा तो उसका मन ललचा उठा। कनु ने भी अपने घर के सामने वैसा ही बगीचा लगा लिया। अनु और कनु अपने अपने बगीचे में मचानों पर बैठे रहते थे। वे एक दूसरे से बिल्कुल बोलते नहीं थे। दोनों में लड़ाई थी। उन्होंने अपने बगीचे के बीच में मिट्टी की एक ऊंची सी दीवार बना ली थी। 1 दिन की बात है। अनु अपने बगीचे में पानी लगा रहा था। कनु फल तोड़ तोड़कर टोकरी में रख रहा था। एक्वा उड़ते उड़ते आया और दीवार पर आकर बैठ गया। कनु की भलो से भरी टोकरी देखते ही उसके मुँह में पानी भर आया। कौए ने सोचा की कोई ऐसा उपाय करना चाहिए जिससे उसे कुछ भी खाने को मिल सके। सहसा कनु का ध्यान कौए की ओर गया। गांव गांव गांव करके कुएं ने उसे नमस्ते की। नमस्ते भाई कन्नू ने कहा। फिर पूछा तुम हमारे देश के तो लगते नहीं हो, कहीं बाहर से आये हो भैया? हाँ, मैं तुम्हारे पड़ोसी देश से आया हूँ, वहाँ के राजा का न्यायाधीश हूँ, कुएं ने कहा। तुमसे मिलकर खुशी हुई मैं तुम्हारा स्वागत करता हूँ, कनु दांत निकालते हुए बोला। फिर उसने कौए को खाने के लिए मीठे मीठे फल दिए। कनु खाना खाने घर के अंदर चला गया। फल सचमुच इतने स्वादिष्ट थे की कौआ उन्हें जल्दी जल्दी खा गया। उनसे उसकी भूख और भी ज्यादा भड़क उठी। तभी कौए ने पौधों में पानी लगाते हुए अनु को देखा। वह उससे बोला। अरे भाई तुम्हारे पड़ोसी के बगीचे के भर तो बड़े मीठे है। यह सुनकर अनु को भी जोश आ गया। उसने अपने बगीचे से बहुत सिंपल तोड़कर कुएं को दिए और कहा। तुम इन ए खाओगे तो पहले वाले फल का स्वाद भूल जाओगे। कौआ उन्हें बैठा बैठा खाता रहा और फिर हिला हिलाकर उनकी भी तारीफ करने लगा। उन्होंने पूछा को हो किसके भाई मीठे है? तुम्हारे ने उत्तर दिया। उधर कन्नो खाना खाकर वापस आ गया। उसने अनु और कुएं की बातें सुन ली थी। उसे बड़ा गुस्सा आया। उसने खूब सारे फल तोड़े और कुएँ से कहा। तुम पहले प्राणी हो, जिसने मेरे फलों की तारीफ नहीं की लो और लो फल इन्हें ठीक से चखो तब न्याय करो कि किसके फल मीठे है। कौए ने अपना पंजाब बढ़ाकर भल्ले लिए। मनी मन वो अपनी चतुराई पर बड़ा प्रसन्न हो रहा था। कनु के फल खाते हुए उसने पहले की ही बात तीसरे हिला हिलाकर उनकी भी तारीफ की। इधर अब अनु को भी जोश आ गया। वह नहीं सह सकता था कि कोई उसके फलों की उपेक्षा करें। कनु के फल मीठे बताए। उसने बहुत से फल तोड़े और कुएं को फिर दे दिए जिससे वह ठीक ठीक न्याय कर सके। अब तो यही क्रम चलता रहा। एक बार अपनी बगिया से फल तोड़ता तो दूसरी बार कनु वे दोनों ही मूंछों पर ताव देकर तन कर बैठ गए। दोनों इस प्रतीक्षा में थे कि जल्दी से उनके फलों को श्रेष्ठ बताया जाए। उनके आसपास उनकी पत्नियां और बच्चे भी गिराए थे। सभी आतुरता से निर्णय की प्रतीक्षा में लगे थे। तभी कौए को एक उपाय सूझा। वह बोला भाई मैंने पता लगा लिया है कि किसके पलच्छे है, पर यह भी देखना है की किसके पल कितने दिनों तक ताजे रहते हैं। तभी में निर्णय दे पाऊंगा मुझे क्षमा करना। अभी तो मुझे न्याय करने के लिए दूसरी जगह जाना है। ये कौन सी बड़ी बात है? अनु बोला? ऐसा करते है हम दोनों अपने अपने फल तोड़ कर तुम्हे देते हैं, तुम लौटकर हमें बता देना। अनु और कनु प्रशंसा के भूखे थे। दोनों ने थोड़े थोड़े फल टोकरी में रखें और कुएं को पकड़ा दिए। कौए ने एक पंजे में कनु की टोकरी पकड़ी और दूसरे में अनु की। दोनों को नमस्ते की दो 4 दिन के बाद आने की बात कही और उड़ चला। कौआ मन ही मन बड़ा प्रसन्न हो रहा था। सचमुच आज उसने अपना इतना खाना खाया की उससे उड़ा भी नहीं जा रहा था। फिर दोनों पंजों में टोकरियों का बोझ वो अलग। एक दो बार उसने सोचा कि इन टोकरियों को रास्ते में ही रख दें। पर लालच के कारण वह ऐसा कर न सका। तभी चलते चलते कौआ अचानक एक पहाड़ी से जा टकराया। बोझ के कारण वह संभाल न सका। लड़खड़ाकर नीचे बहती हुई नदी में जा गिरा। अनु और कनु इधर 810 दिन तक कुएं का इंतजार करते रहे, आखिर कन्नू से रहा न गया। 1 दिन वह बोली पड़ा। चलो ऐसा करते है, हम दोनों एक दूसरे के फल खाते हैं, फिर ईमानदारी से बताएं कि किसके फल अधिक मिनट है? अनु को भी यह बात जंच गई। दोनों अपने अपने फल तोड़कर लाए। पर यह क्या खाते ही वे आश्चर्यचकित रह गए। दोनों के पल एक ही जैसे थे। अब वे कौए की चालाकी को समझ गए थे। देखो झगड़ा करने से दूसरे लोग ठग लेते हैं। अनु बोला हाँ भैया, मिलजुल कर रहना ही ठीक है। बात उसकी भी समझ में आ गई थी। दोनों एक दूसरे के गले लगे। उन्होंने प्रतिज्ञा की कि भविष्य में कभी भी झगड़ा नहीं करेंगे। दोनों ने मिलकर यह भी तय किया कि कुएं के आने पर वे उसकी खबर लेंगे। इसी बहाने अनु और कनु में अब बोलचाल भी हो गई है। दोनों ने मिलकर बीच की दीवार तोड़ दी है। अब वे अपनी अपनी मचानों पर बैठे बतियाते रहते हैं और अपने बगीचे की रक्षा करते हैं। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें कभी भी दूसरों की बातों में आकर आपस में मतभेद नहीं करना चाहिए। ओके बाय।","सभी को नमस्कार, यह एक चतुर कौवे और दो छोटे खरगोशों की एक शानदार कहानी है। इस कहानी में आप कौए के लालच और खरगोश की दोस्ती के बारे में जानेंगे। पूरी कहानी सुनें और कहानी के नैतिक के बारे में जानें।" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपको सुनाने जा रही हूँ। उसका टाइटल है सच्ची सिद्धि तो गंगा नदी के तट पर एक साधु रहते थे। वह अपनी कुटिया में। बैठकर जाप करते तो कभी विविध आसान लगा लगाकर देखते। अन्य यौगिक साधनाएं भी किया करते थे। धीरे धीरे साधु को अपनी साधना पर गर्व होने लगा। वह अपने आगे सभी को तुच्छ समझने लगे। साधु की कुटिया के सामने एक मल्लाह भी रहता था। चाहे वर्षा हो, चाहे कड़ी धूप हो, चाहे बदन को कपाने वाली ठंड हो और सदैव नाव चलाया करता था। सारे दिन कठोर परिश्रम करके वो अपना और अपने बच्चों का पेट भरता था। साधु मल्लाह को बड़ी उपेक्षा की दृष्टि से देखता था। वह उसे उपदेश देता था और ये मूर्ख तू अपना जन्म यूही को व्यर्थ गंवा रहा है, ना कोई योग करता है और ना कोई। जब मल्लाह जादू की बात सुनता था और चुप रह जाता था। वह जानता था कि अपनी साधना से साधु ने एक सिद्धि प्राप्त की है और वह है जल पर चलने की। कई बार जन समुदाय के मध्य और इसका प्रदर्शन भी कर चूके थे। लोग उनकी प्रशंसा करते नहीं रखते थे। एक बार गंगा नदी में भयंकर बाढ़ आ गई। लहरें उफन उफन कर आगे बढ़ने लगी। सागर की लहरों से ऊंची ऊंची लहरें पल भर में सभी खुश था। आने को तैयार हूँ। चारों ओर बड़ी तेजी से पानी बहने लगा। मल्लाह की झोपड़ी में भी पानी के बहाव में। मैं चली। बाल बच्चों को पहले ही उसने एक ऊंचे पेड़ पर बैठा दिया था। और वह स्वयं तैर तैरकर लोगों को पानी से निकालने में जुटा हुआ था। एकाएक मल्लाह को दूर से साधु की चीख सुनाई पड़ी बचाओ बचाओ मल्लाह ने देखा की साधु जल में डूब रहा है। बहुत तेजी से उधर तैरने लगा। बड़ी फुर्ती से उसने साधु को डूबने से बचाया और पीठ पर लादकर किनारे पर लिटा दिया। जादू के पेट और मुँह में पानी भर गया था। बड़ी देर तक मल्ला उसे निकालने का प्रयास करता रहा। कुछ देर बाद साधु की बेहोशी टूटी और वह उठकर बैठ गया। अपनी मेहनत सफल होते देख मल्ला बड़ा प्रसन्न हुआ। साधु के पैर छूते हुए बोला महाराज मेरे धन्य भाग यह नाचीं शरीर आपके काम आया। साधु को मलला से सारी बातें पता चली, मल्लाह ने पूछ ही लिया महात्मा, आपको तो जल पर चलने की सिद्धि प्राप्त फिर आप कैसे डूबने लगे थे? अरे गज गज भर ऊंची लहरें मेरी और बढ़ती चली आ रही थी। उनमें मेरी सिद्धि क्या काम आती? साधु बोली साधु को पश्चाताप होने लगा की व्यर्थ ही अब तक वे मल्लाह को दूध काटते रहे थे। यदि यह तैयार कर उनकी रक्षा ना करता तो सिद्धि का अहंकार कब का प्रण ले चुका होता। उनका कंठ गदगद हो गया और वे मल्लाह से बोले, भाई, आज मैं समझ गया कि सच्ची सिद्धि वही है। जिससे हम दूसरों का भला कर पाए। सिद्धि का अर्थ भीड़ इकट्ठा करके चमत्कार दिखाना नहीं है। मैंने इतने वर्ष व्यक्ति ही गंवाए हैं। मुझसे बड़े साधक तो तुम हो जो दूसरों का भला करते हो। यह कहकर साधु जन कल्याण का संकल्प लेकर खड़े हुए और हरिओम कहकर लोक सेवा के लिए पीड़ितों को राह दिखाने के लिए चल पड़े तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें अपने जीवन में कभी अहंकार नहीं करना चाहिए। और हमेशा दूसरों की मदद करने के लिए तत्पर रहना चाहिए। ओके बाइ।",सभी को नमस्कार मैं सभी बच्चों को सोने के समय की कहानियां नैतिक रूप से बता रहा हूं। मेरी कहानियाँ अभिनव और प्रेरणादायक हैं। अपने बच्चों के साथ मेरी कहानियाँ सुनें। यह निश्चित रूप से आपके बच्चे के व्यक्तित्व के निर्माण में मदद करेगा। "हैलो बच्चों, आज जो कहानी में आपको सुनाने जा रही हूँ उसका शीर्षक है पोल खुल गई। एक थे बगुला भगत जब वह बुड्ढे हो गए तो उनके खाने की एक बड़ी समस्या हो गई। बुढ़ापे के कारण शरीर भी अशक्त सा हो गया था, अतएव शिकार करने में उन्हें बड़ी परेशानी होती थी। भरपेट खाना ना मिल पाने के कारण वे धीरे धीरे दुबले हो गए। ऐसे कब तक चलेगा? 1 दिन उन्होंने सोचा और वे कोई तरकीब सोचने लगे। वे कुछ देर सोचते रहे, सोचते रहे फिर सहसा ही उछल पड़े। दूसरे ही दिन से बगुला भगत ने अपनी योजना के अनुसार ही काम करना शुरू कर दिया। अपने दो चार साथियों को लेकर वे गंगा की ओर बढ़ चले। गंगा के तट पर बस्ती के किनारे बगुला भगत ने डेरा डाला। वहाँ वे गंगा में एक पैर से खड़े होकर राम राम का जप करने लगे। उनके साथ ही जगह जगह जाकर प्रचार करते की बगुला भगत पहुंचे हुए संत हैं, तपस्वी है। गंगा के किनारे रहने वाले पक्षियों से बार बार यही बात कहते। पक्षी भी बगुला भगत को सदैव साधना में लगा हुआ ही देखते फल यह हुआ कि धीरे धीरे वे सभी उन्हें संत और तपस्वी मानने लगे और उनके भक्त बन गए। अब बगुला भगत जी के नाम से प्रसिद्ध हो गया। 1 दिन जब भगत जी के दर्शन के लिए बहुत सारे जीव जंतु एकत्रित थे, तब वे बोले भाई यो मेरी साधना सफल हो चुकी है, भगवान ने मुझे दर्शन दिया है। उन्होंने आदेश दिया है कि मेरी बनाई हुई श्रेष्ठ की सेवा ही सबसे बड़ी साधनाएं अत यदि तुम मेरा आशीर्वाद चाहते हो तो दूसरों के उत्थान में जुट जाओ। धन्य है आप धन्य हैं आप सभी के मुँह से निकला भगत जी ने आगे फिर कहा, मैं सोचता हूँ कि बच्चों की भावी पीढ़ी का निर्माण बहुत बड़ा काम है। मैं बच्चो का एक बड़ा विद्यालय खोलना चाहता हूँ, मैं उन्हें शाह दूंगा। अपने सामान ज्ञानी बनाऊंगा, चरित्रवान बनाऊंगा और बहुत ऊंचा उठाऊंगा। आप सभी अपने बच्चों को विद्यालय भेजें। फिर क्या था दूसरे ही दिन से मुर्गा तो ताक, कोयल, चिड़िया, गिलहरी, सारस, मोर आदि सभी ने अपने अपने बच्चे वहाँ भेजने शुरू कर दिए। स्कूल चलाने से बगुला भगत को कई फायदे हुए। एक तो यही की बच्चे अपने घरों से खाने पीने का कुछ ना कुछ सामान लेकर आते थे। उनके माता पिता श्रद्धा बस कुछ न कुछ भेजते ही रहते थे। बच्चों से दूसरा लाभ यह भी था की भगत जी उनसे अपनी खूब सेवा कर आया करते थे। कभी शांता कोयल से अपने पैर दबाते तो कभी श्वेता गिलहरी से अपनी पीठ सुशील सारस उनके घर का बहुत सारा काम कर दिया करता था। गुरु महाराज की पाठशाला के दो बच्चे शुचि गिलहरी और अमित सारस बड़े ही शरारती थे। वह पढ़ने में बहुत तेज थे। एक बार बताई हुई बात को अच्छी तरह समझ जाते थे। उन्हें भगत जी की यह बात बड़ी बुरी लगती थी कि वह बच्चों को कुछ सिखाते हैं और खुद उसका उल्टा काम करते हैं। बच्चो से तो यह कहा करते कि जीवों की हत्या बहुत बुरी बात है। इससे हिंसा होती है, पाप चढ़ता है जैसी जान दूसरों में, वैसे ही हम सब में। अतएव हम कभी भी किसी को मन से दुगना पहुँचाए पर सूची और अमित ने अनेकों बार देखा था कि भगत जी गंगा के तट पर पूजा करते करते सबकी आंख बचाकर चुपके से मछली गप कर जाते हैं। पहली बार तो उन्हें अपनी आँखों पर विश्वास ही ना हुआ था। वह तो उन्हें बड़ा ही सज्जन और। निष्पाप समझते थे और बार बार छिप कर देखने पर उन्होंने यही पाया तो फिर अपनी आँखों पर विश्वास करना ही पड़ा। उस दिन से उन्होंने उनका नाम भगत घंटाल ही रख दिया था। अमित और सूजी ने कई बार कहा, गुरूजी जैसा आचरण आप हमें करने को कहते हैं, वैसा ही आप स्वयं तो करते ही नहीं है। और मैं बड़ा हूँ, तुम अभी छोटे हूँ, अपने आप को नियंत्रित रखने की तुम्हे जरूरत है। गुरु जी अपनी लंबी सी गर्दन हिलाकर कहते हैं 1 दिन शुचि से न रहा गया वह कहीं बैठी गुरु जी आप जो कुछ बच्चों को सिखाते हैं, बड़े ही यदि वैसा नहीं करेंगे तो कैसे काम चलेगा? यदि बड़े भी वही करें तो यह पृथ्वी स्वर्ग बन जाएगी। अरे कल की बच्ची मुझे उपदेश देने लगी। गुस्से में अपना डंडा फटकारते हुए भगत जी बोले अमित और सूजी ने सलाह की कि गुरु जी को मछली खाने की आदत से छुड़वाकर ही रहेंगे। यदि वे मांस खाते हैं तो फिर प्राणियों की हिंसा छोड़ दी है। ऐसा कहकर ढोंग क्यों रस्ते है जैसे अंदर से है वैसे ही बाहर से रहे जो अंदर से कुछ और सोचता और बाहर से कुछ और करता तो उसके जैसा पापी और नीचे कोई दूसरा नहीं है। अमित और शिवजी ने एक योजना बनाई। वे सभी बच्चों के घर गए, सभी के माता पिता से बोले। बगची एक बहुत बड़ी साधना करने जा रहे हैं, उसे देखने के लिए उन्होंने आपको बुलाया है। कृपया कल ब्रह्म मुहूर्त में गंगा नदी के किनारे बेंत की झाड़ियों के पीछे आप सभी इकट्ठा हो जाए। वहाँ किसी तरह का शोर शराबा ना करें नहीं तो साधना में विघ्न पड़ेगा। कोयल, तोता, मुर्गा, चिड़िया, गिलहरी, सारस आदि सभी के घर घूम घूमकर उन्होंने यह संदेश दे दिया और दूसरे दिन गंगा के किनारे भेद की। घनी झाड़ियों के पीछे सभी बच्चों के माता पिता उपस्थित थे। भगत जी की साधना देखने के लिए कोयल, तोता, चिड़िया, मोर आदि सभी पंक्ति बनाकर मौन होकर चुपचाप बैठ गए थे। भगत जी को इस बात का तनिक भी पता न था। झाड़ियों के पीछे छिपे अनेकों अभिभावकों को के हल्के अंधेरे में देख भी ना पाए। रोज़ की ही भांति पूजा का बहाना करते करते उन्होंने बीच बीच में खूब गप्पस लिया खायी। यह देखकर तो सभी अभिभावकों में खलबली मच गई। वे सभी उनकी आलोचना करने लगे। भगत जी ने आंखें उठायी। सामने से बच्चों के अभिभावकों को आते देखा। तुरंत उन्होंने अपना पैंतरा बदला। राम राम कहते हुए अपने शिष्यों को आशीर्वाद देने के लिए आगे बढ़ें। सबसे आगे कमल सारस था। गुस्से में भरकर लंबी गर्दन हिलाता हुआ वह बोला नहीं चाहिए हमें तुम्हारा आशीर्वाद जान लिया तुम्हारी सच्चाई तुम वैसे हो नहीं जैसा ढोंग रस्ते हों, कलियाँ कोयल चोट फड़फड़ाकर भी बोल रही थी सच्ची है बाहर से संत बन जाने से हमेशा के लिए कोई वैसा नहीं बन जाता। सद्गुणों का निरंतर अभ्यास करना होता है। ऐसा ना होने पर सज्जन भी ना जाने कब धीरे धीरे दुगुनी हो जाते हैं। आपके उदाहरण से स्पष्ट ही हो जाता है। मीना गिलहरी पूछ फटकार कर पंजों के बल बैठकर बोली हम भी कितने मूर्ख थे, जो आपकी प्रसिद्धि सुनकर विश्वास करने लगे? कभी हमने आंखें खोलकर आपको जज ने परखने की कोशिश भी नहीं की? सच ही है जो अपनी बुद्धि से काम नहीं करता, दूसरों की देखादेखी बातें सुनता है, विश्वास करता है। वह हमेशा धोखे में ही रहता है। पर यह तोता बोला। ध्यान रखो पोल कभी न कभी खुली ही जाती है। अच्छा यही है की जैसे हम अंदर से है बाहर से भी अपने आप को वैसा ही दिखाए। बगुला भगत से यह कहकर बुजुर्ग कछुए ने सभी को शांत किया। जैसे तैसे वहाँ एकत्रित सभी जानवरों के पक्षियों के बच्चों को घर लेकर जल्दी नहीं तो सब के सब भगत जी को सबक सिखाने के लिए उतारू थे। दूसरे दिन कोयल, तोता, चिड़िया, सारस आदि सभी ने अपने अपने बच्चों को स्कूल भेजना बंद कर दिया। उनके बच्चे तो पहले ही भगतजी की शिकायत करते थे, पर उसे तब वे बच्चों की मूर्खता समझते थे। अब उनकी बात पर विश्वास करना ही पड़ा। भगत गुरु का सारे समाज में अपमान भी हुआ। बालवाड़ी भी बंद हुई। पुजापा चढ़ाना भी खत्म हो गया सो अलग। उनकी पोल खुल जाने पर मछलियां भी अब दूसरी जगह चली गई है। भगत जी अब गंगा के तट पर अकेले उदास बैठे रहते हैं। पेट भर खाना भी उन्हें मुश्किल से ही मिल पाता है। सच ही है की ढोंगी अंत में दुखी पाता है। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें कभी भी। सच्चाई का ढोंग नहीं करना चाहिए। जैसा हम अंदर से विचार रखते हैं वैसे ही हमें बाहर भी अपना व्यवहार रखना चाहिए। दूसरों को धोखा नहीं देना चाहिए। ओके बाइ?",यह एक पुराने सारस की कहानी है। क्रेन ने एक पुजारी के रूप में नाटक किया। इसने जानवरों और पक्षियों को धोखा दिया। लेकिन आखिरकार दो पक्षियों ने सच्चाई का खुलासा किया और बगुला भगत का सच सामने आया। "हैलो बच्चों। मैं जानती हूँ कि बंधन किसी को भी पसंद नहीं होता। इस कोरोना संकट के समय आप सभी बहुत दुखी होंगे, क्योंकि खेलना, कूदना, उछलना कूदना ये बाल स्वभाव है। बच्चे अगर खेलें नहीं कूदे नहीं घुमे नहीं, साइकलिंग नहीं करें। तो उन्हें आनंद नहीं आता, पर निराश होने की जरूरत नहीं। आइए आज जो मैं आप को कहानी सुनाने जा रही हूँ वो कहानी इसी परिपेक्ष्य में है। और मेरा मानना है कि इस कहानी को सुनने के बाद निश्चित रूप से आपको कुछ डस बनेगी, तो आज की मेरी कहानी का शीर्षक है बरसात। नन्हा रवि अपने घर की बालकनी में उदास बैठा हुआ था। बाहर बहुत तेज बारिश हो रही थी। मम्मी ने उसे इस तरह बैठा देखकर पूछा क्या हुआ बेटा? कितना अच्छा मौसम है और तुम इस तरह उदास क्यों बैठे हो? रवि रूआंसा होकर बोला। मोमो हर साल में दोस्तों के साथ बरसात में खूब मस्ती करता था। हम कागज की नाव तैर आते थे। फिर हम इन दिनों पिकनिक पर भी जाते थे। सब बंद हो गया है। ये बरसात मुझे बिल्कुल अच्छी नहीं लग रही है। मम्मी ने उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा। बेटा माना हम इस सुहाने मौसम में घूम फिर नहीं पा रहे, तुम स्कूल नहीं जा पा रहे। यह भी माना कि बारिश का स्वागत करने का उत्साह मंद पड़ गया है। पर देखो तो ज़रा कितनी सुंदर प्रगति है। बरसात की बूंदों का स्पर्श पाकर पेड़ पौधे मुस्कुरा उठे। जो बरसात हमारे लिए मनोरंजन का साधन मात्र है, समूची सृष्टि के प्राण उस पर टिके हुए हैं। ये सिर्फ किसान की ही नहीं समस्त जीव जगत के लिए बहुत आवश्यक है। माना की आज करुणा के संक्रमण के कारण हम घरों में रुकने को विवश हैं, लेकिन वह दिन भी आएगा जब हम बेफिक्र होकर बरसात का मज़ा ले सकेंगे। लेकिन तब तक तुम्हे हम सब को अरे रखना होगा, वैसा ही धैर्य जैसा धरती रखती है, ये सहती हैं, सूर्य के प्रखरता आपको जलती है, पर बिखरती नहीं क्योंकि वह माँ है, उस पर उसकी असंख्य संतानों के प्राण निर्भर है और जब इस तपस्या के बाद में एक उमड़ घुमड़ कर बरसते हैं तो धरती ही नहीं सृष्टि का रोम रोम पुलकित हो उठता है। इसलिए बेटा इस बरसात का आनंद लो और थोड़ा धैर्य रखो। ये बरसात आज हम से कह रही है कि 1 दिन करो ना खत्म होगा और हम सब भीड़ से मुस्कुराएंगे बारिश ही क्यों? हर मौसम का आनंद लेंगे। मम्मी की बातें सुनकर रवि चहक उठा। वाउ, मेरी मम्मी तो बहुत अच्छी बाते करती है। मन की सारी उदासी खत्म कर दी आपने मम्मा मैं बहुत खुश हूँ, अब मैं बरसात का स्वागत करूँगा, अब मैं दुखी नहीं हूँगा रवि और मम्मी की खिलखिलाहट बारिश की बूंदों जैसी ही प्यारी लग रही थी तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि चाहे कितना बड़ा भी संकट हो, हमें अपना धैर्य नहीं खोना चाहिए। संकट के समय धैर्य ही सबसे बड़ा अस्त्र होता है। और इसी से मनुष्य अपने कष्टों पर विजय पाता है। ओके बाइ?","अगर वह न छापता तो बारिश का लुत्फ उठाता। बच्चा इसी उदासी में बैठा था कि मां फुहार बनकर बारिश का मतलब समझाने आ गई। यह एक मां और उसके बेटे के बीच की बातचीत है। बच्चा वर्तमान स्थिति से तंग आ चुका है। वह खेलने और साइकिल चलाने के लिए बाहर नहीं जा सकता। ऐसे में उनकी मां ने उन्हें धैर्य रखने को कहा, अच्छे दिन जल्द आएंगे।" "हैलो बच्चों। आज जो कहानी में आपके सामने सुनाने जा रही हूँ, उसका टाइटल है बुद्धि का चमत्कार। वनराजसिंह न्याय करने के लिए सिंहासन पर बैठे थे। दरबार में भीड़ लगी थी। फैसला सुनने को लोमड़ी, सीआर पत्थर, भालू, बंदर सभी उपस्थित थे। दरबार की शोभा निराली। वनराज के एक और मंत्री रीच विराजमान। और दूसरी ओर सेनापति वानर बैठे थे। तभी एक मुर्गी आयी, वह बिलख बिलख कर रो रही थी। उसकी आंखें लाल पड़ी हुई थी, पंख टूटे हुए थे और पेड़ से रक्त बह रहा था। पंजा आधा टूट गया था। मुर्गी की या करुण दशा देखकर उसकी जीत कार्य सुनकर सारे दरबार में मौन छा गया। तुम्हारी यह दशा किसने की है? मंत्री रीच ने खड़े होकर पूछा। महाराज? मुर्गी सिर झुकाते हुए बोलीं, आज मैं बच्चों के लिए खाना जुटाने जंगल के उस ओर चली गई थी। वहीं एक वन मानस ने मेरी ये दुर्दशा की है। पर वनमानुष तो हमारे जंगल में कोई है नहीं। क्षीर ने पूछा। मुर्गी ने फिर प्रणाम करते हुए कहा, वह दूसरी जंगल से आया है। वह कह रहा था कि हमारे राजा तुम्हारे राज्य पर हमला करेंगे। इसी बात पर मेरी उससे चकचक हो गई थी। तभी उसने मेरी ये दुर्दशा की। यह सुनकर सिंह चौंक उठा। वह जानता था कि पड़ोसी जंगल का राजा अब बड़ा खूंखार है। युद्ध में व्यर्थ ही जानवर मरेंगे अतएव किसी तरकीब से युद्ध रुकवाना चाहिए। सिंह ने कुछ समय तक विचार किया फिर सेनापति वानरदेव के कान में कुछ कहा और उसे वनमानुष के पास भेजा। सेनापति बड़ी तीव्र बुद्धि वाला था पर लंबी सेना लेकर निकला और रास्ते में प्रधान सैनिकों के कान में ना जाने क्या क्या कहता रहा। अपने जंगल की सीमा पर जैसे ही वार्नर पहुंचा उसे वनमानुष की गर्जना सुनाई पड़। आ जाओ लड़ाई के लिए तैयार हो जाओ अपने महाराज को सूचित कर दो हमारे राजा सेना सहित आ रहे हैं। वार्नर कुछ न बोला। कुछ समय बाद उसने देखा कि पड़ोसी सिंह अपनी सेना के साथ हफ्ता का हफ्ता पसीने टपकता हुआ चला आ रहा है। आते ही वह बोला पानी बिलों बड़ा प्यासा हूँ, आपके स्वागत के लिए ही मैं आया हूँ, श्रीमान वानर ने कहा। उसने चुटकी बजायी। तुरंत ही कुछ सैनिक चमचमाते हुए ग्लास लेकर आए। वे सभी सुन्दर सुन्दर आवरणों से ढके थे। जैसे ही सिंह ने आवरण हटाया ब खुद थोड़ा पानी की जगह ये क्या ग्लास और मिट्टी और पत्थर बड़े पड़े थे। यहाँ क्या है? सिंह ने भौंहे चढ़ाते हुए पूछा महाराज आप हमारे राज्य पर विजय प्राप्त करने आये है ना? इसीलिए आपका स्वागत या मिट्टी रखी है। अरे जल्दी से हमें पानी पिलाओ, हम सब तेज प्यास से मरे जा रहे हैं। सिंह अपने बड़े होठों पर जीभ चिढ़ाते हुए बड़ी कठिनाई से बोला, वनदेव ने फिर से चुटकी बजायी। अनेक सैनिक ठंडा शर्बत लेकर झाड़ियों के पीछे से निकल पड़े। सिंह और उसकी सेना होकर शरबत पीने लगी। सेनापति वार्नर अपनी बुद्धिमता पर मन ही मन मुस्कुरा रहा था। असल में हुआ यह था कि उसने अपनी सेना पहले ही जंगल के जंगल में भेज दी थी। उसने वहाँ नदी के सारे पानी को गंदा बना दिया था, इसलिए शेर और उसके साथियों को पानी के लिए तरसना पड़ा था। वार्नर ने देखा कि शरबत पीकर सिंह संतोष ने अपनी मुझे पूछ रहा है। उसने आगे बढ़ते हुए कहा राजन् चलिए युद्ध शुरू करें। युद्ध सिंह गलाते हुए कहने लगा। तुमने हमारे प्राणों की रक्षा की है, तुम तो हमारे मित्र हुए जानते हो। मीलों से दूर से हम कड़ी धूप में पड़ी पीने के लिए तरसते चले आ रहे हैं। शरबत पिलाने की जगह तुम लड़ाई शुरू कर देते तो हम कब क्यों मर चूके होते, एक दूसरे की सहायता करना और मिलजुल कर रहें है ना, ये सभी का धर्म है। वानर सोचने लगा और तुमने पहले मिट्टी भरे ग्लास क्यों सामने रखे? सिंग पूछने लगा, महाराज आप हमारी जमीन पर अधिकार करने ही तो आये थे ना? जमीन पाकर ही दी, प्यास बूझ सकती तो इस मिट्टी से बुझा, ये ये बताने समझाने के लिए ही ऐसा किया था ऑनर बोला। वार्नर की इस बुद्धिमानी पर सिंघ की आंखें आश्चर्य से फैल गई। मानना आगे कह रहा था महाराज एक दूसरे की जमीन हड़पकर हम सुखी नहीं रह सकते, जमीन से पेट नहीं भरता। अच्छा यही है की अपनी अपनी सीमाओं में रहकर अपने राज्य को सभी प्रकार से सुखी बनाएं। यदि आप आज हम से युद्ध करेंगे तो कल हम आपसे करेंगे ना आप की प्रजा सुखी रह पाएगी ना हमारी हम जी और जीने देंगी। एक दूसरे से प्रेम और भाई चारे का ही व्यवहार करें। पार्लर की बात सिंह की समझ में आ रही थी। वह सोच भी रहा था कि युद्ध करना व्यर्थ है, इससे कोई लाभ ना होगा। तभी मानव बोला, वैसे हम युद्ध के लिए भी तैयार हैं। हम डरपोक और कायर नहीं है, ना ही नहीं भाई तुमने मेरी आँखें खोल दी। अब युद्ध की कोई जरूरत नहीं है। आज से हम तुम्हारे राजा के मित्र हुए। सिंह अपनी यालू पर हाथ फेरता हुआ बोला। तभी वार्नर के आदेश से एक सैनिक झाड़ियों के पीछे विश्राम कर रहे हैं। अपने माँ वनराज सिंह को बुलाया आओ मित्र तुम्हारा स्वागत है। उधर, जंगल सिंह ने अपना पंजाब आगे बढ़ाते हुए कहा। नमस्कार मेरे नए मित्र। इधर जंगल के सिंह ने भी अपना पंजाब आगे बढ़ाकर हाथ मिलाया। दोनों मित्र परस्पर गले मिले। सेनापति वार्नर ने इस अवसर पर प्रीति भोज भी दिया। फिर इसके बाद दोनों ने एक दूसरे को अनेक उपहार दिए, फिर भी अपने अपने जंगल को वापस चले गए। इस प्रकार वार्नर और वनराजसिंह की बुद्धिमानी से शत्रु भी मित्र बन कर वापस लौटा। सच्ची ये सोच विचार कर कार्य करके। कोई भी बुरी से बुरी स्थिति पर बड़ी बड़ी कठिनाइयों पर विजय प्राप्त कर सकता है। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है की हमे एक दूसरे के साथ प्रेम और भाई चारे के साथ ही व्यवहार करना चाहिए और एक दूसरे के साथ मिलकर ही रहना चाहिए। ओके बाय।",सभी को नमस्कार मैं सभी बच्चों को सोने के समय की कहानियां नैतिक रूप से बता रहा हूं। मेरी कहानियाँ अभिनव और प्रेरणादायक हैं। अपने बच्चों के साथ मेरी कहानियाँ सुनें। यह निश्चित रूप से आपके बच्चे के व्यक्तित्व के निर्माण में मदद करेगा। "हैलो बच्चों, आज जो कहानी में आपको सुनाने जा रही हूँ, उसका टाइटल है पक्षियों की पंचायत। अमरकंटक जंगल में पीपल के एक पेड़ पर बहुत से पक्षी रहा करते थे। चित्रग्रीव कबूतर, सोनी चिड़िया, हरियल, तोता मानी मैं ना नंदा कुआं एवं और भी अनेकों पक्षी ना सभी अपने अपने घर का काम पूरा करके वहाँ आती थी। खाली समय में वे आपस में बातें करते थे। 1 दिन मानी में ना बोली। हम यू आपस में बातें करती रहती है। उसमें बहुत सारा समय यूं ही बीत जाया करता है। क्यों ना खाली समय में कुछ काम ही सीखा जाए? मानी की यह बात सभी पक्षियों को बहुत पसंद आई। चित्र लीव कबूतर मैं अपनी गर्दन हिलाकर सोनी चिड़िया ने पंख फड़फड़ा कर हरियाली तोता ने टेंट है करके और नंदा को उन्हें कहाँ कहाँ करके उसकी इस बात का समर्थन किया? अब सभी आपस में मिलकर। यह विचार करने लगे की क्या काम सीखा जाए जिससे खाली समय का उपयोग। तय हुआ कि हर पक्षी एक 1 दिन सभी को काम सिखाएगा। सबसे पहले चित्र ग्रीफ कबूतर की बारी आई। चित्र ग्रीफ बोला, भाइयों और बहनों, मैं चाहता हूँ क्या आज तेज उड़ने का अभ्यास किया जाए? कई बार ऐसा होता है की तेज ना उड़ सकने के कारण हम शत्रु के मुँह में फंस जाते हैं। और उस दिन मानी मैना की बारी आयी। बोलीं, आज मैं आप सभी पक्षियों को आदमियों की बोली में बातचीत करना सिखाउंगी। माँ नी मैना ने सभी को आदमियों की भाषा में बात करना सिखाया, पर बस एक हरियल तो होता ही ऐसा था जो मानी कपाट सीख सका। उस दिन हरियल तोता को प्रथम स्थान मिला। तीसरे दिन हरियल तोते की बारी आयी। वह बोला मित्रों, मैं आज आप सभी को भगवान का भजन करना सिखाऊंगा। मैं आज जब उड़ते उड़ते नगर के पास से निकल रहा था। तो मैंने एक मंदिर में इस मंत्र की आवाज सुनी थी। ओम भूरभुवा स्वाहा तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्। यार। मंदिर में कट्टा आदमी कह रहे थे कि इस मंत्र का जाप करने से बुद्धि शुद्ध होती हैं, विपत्तियां समाप्त होती है। चित्रग्रीव कबूतर, सोनी चिड़िया, हरिया तोता आदि सभी पक्षियों ने मिलकर अपने अपने स्वरों को मिलाकर कहा ओम भूरभुवा स्वत भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न प्रचोयदयात्। फिर नंदा का हुआ हंसते हुए बोला लोग तो ही तोतेराम तुम सब को पंडितजी बनाकर छोड़ोगे पर ध्यान रखना कि बगुला भगत की भांति ना बन जाना। कौए की इस बात पर सभी पक्षी ज़ोर से हँस पड़े। अगले दिन नंदा कुएं की बारी आई। कुआं कहने लगा भाइयों और बहनों मेरा अपना अनुभव है कि प्रसन्न रहने के लिए गाना गुनगुनाना आवश्यक है। इसलिए मैं आज सभी को आज गाना सीखाना चाहता हूँ। क्यूँ ये ने कहा वो कहा वो करके किसी गीत की पहली पंक्ति गयी, फिर सभी ने उसे दोहराना शुरू किया। माफ़ करना क्यूँ है भाई? तुम्हारी आवाज तो बड़ी कठोर है, गाना सिखाने के लिए तो मीठी आवाज चाहिए। हरियल तोता कह रहा था हाँ भाई आजकल आ कुछ खराब मालूम पड़ता है। सर्दी जुकाम का कुछ असर हो गया है लगता है अपने पंजे से गले को पकड़कर का हुआ बोला। अरे तो आज तबियत ठीक नहीं है तो रहने दो मत सिखाओ, हम गाना फिर कभी सीख लेंगे। सभी पक्षी एक ही स्वर में कहने लगे तभी नंदा कुएं की नजर कलियां कोयल पर पड़ी पर उड़ते उड़ते अभी अभी पास के आम के पेड़ पर आ बैठी थी और बहुत अच्छी गायिका थीं। पूरे अमरकंटक वन में उसके बराबर अच्छा कोई नहीं गाता था। नंदा का हुआ बोला गलियाँ दीदी। हमने तुम्हारे गाने की बड़ी प्रशंसा सुनी है। आज तुम इन सभी पक्षियों को अच्छा सा गाना सीखा दो। कलिया गोयल अपनी प्रशंसा सुनकर घमंडी हो गयी। नंदा की बात सुनकर बोली अभी तो मैं थकी हूँ, अभी तो आकर यहाँ बैठी हूँ मुक्के भी हो थोड़ा सुस्त आलू और कुछ खा पी लूँ तब मैं तुम्हारी कोई बात सुनूंगी। अरे दीदी तुम भूखी हो तो तुम पहले क्यों नहीं बताया हमें? हम भी तुम्हारे लिए खाने का कुछ लेके आते ना मैं सारे पक्षी एक साथ कहने लगे हर ये तोता उड़ा और एक मीठा सा अमरूद लेकर आया चित्र ग्रीफ कबूतर अनाज के दाने ले आया नंदा का हुआ मिठाई का एक टुकड़ा लाया सोनी चिड़िया रोटी लायी। कल्या कोयल ने उस दिन खूब छककर खाना खाया। खाना खाने के बाद बोलीं, अब मुझे नींद आ रही है, मैं थोड़ा सा सोऊंगी। अच्छा दीदी तुम सो जाओ, हम सभी तुम्हारे जागने की प्रतीक्षा करेंगे। सब पक्षी कहने लगे। कलियां को एक विराम के पेड़ पर जा कर सो गए। इधर पीपल के पेड़ पर बैठे पक्षी बतियाने लगे। हरियल तोता बोला, आज तो हम बहुत अच्छा गौरव सीखेंगे चित्रग्रीव कबूतर बोला और गाना सीखने के लिए कितना भी कष्ट उठा रहे हैं हम? माँ नी मैं ना और सोनी चिड़िया बोली ऐसा ना कहो भैया गुरु की सेवा करके ही विद्या मिलती है पर्यत तोते ने अपना सिर हिलाकर समर्थन किया हो। जो गुरु के प्रति श्रद्धा रखता है वो ही सच्चा ज्ञान पाता है, उसी की विद्या सफल होती है। नन्दा कवर समझाने लगा, जो गुरु की निंदा करते हैं, उनसे बुरा और कोई नहीं होता है। इतनी देर में कलियां कोयल भी वहाँ उड़कर आ गई। वास्तव में वह सोई हुई नहीं थी। वो आँखें बंद करके आम के पेड़ पर केवल बैठी थी और सभी की बातें सुन रही थी। मन ही मन वो अपने आप को दिखा रही थी की मैं क्यों अपनी विद्या का इतना घमंड कर रही थी? ये सभी पक्षी मेरे प्रति कितना श्रद्धा भाव रखते हैं, मुझे इन्हे गाना सीखाना ही चाहिए। कल्या कोयल ने प्रसन्न मन से सभी को गाना सिखाया। उसकी मधुर आवाज सुनकर सभी पक्षी बड़े खुश हुए। शाम तक का लिया। कोयल ने उन्हें कई गीत सीखा दिए। सूर्य अस्त होने तक पक्षी गाने का अभ्यास करते रहें। अंत में उन्होंने कलियां कोयल को बहुत बहुत धन्यवाद दिया। कल या फिर आने का वादा करके वहाँ से उड़ गई। रात गिर रही थी। सारे पक्षी भी अपने अपने घरों के लिए उड़ चले। रास्ते भर वे कलियां कोयल की प्रशंसा करते गए। नंदा कौआ कह रहा था, ज्ञान की सार्थकता इसी में है। हमारे पास जो कुछ भी है वो दूसरों को भी सिखाये। जो ऐसा करता है उसकी विद्या बढ़ती ही है, वही सफलता प्राप्त करता है, वहीं प्रसिद्धि पाता है और उसी का ज्ञान सार्थक होता है।",यह जंगल में पक्षियों की कहानी है। सभी पक्षी एक दूसरे के साथ कुछ दिलचस्प काम करना शुरू करते हैं। "हैलो बच्चों, आज की हमारी कहानी का टाइटल है, चूहे और तराजू। रामपुर गाव में सतीश कुमार राम का एक बनिया रहता था। उसका कारोबार काफी अच्छा जमा हुआ था, जिसके कारण उसके घर में खुशियां ही खुशियां थीं। सारा परिवार आनंदपूर्ण जीवन व्यतीत कर रहा था पर भाग्यवश आध कुछ ही दिनों में लक्ष्मी जैसे उससे रूठ गई हो। और कारोबार में सतीश कुमार को जबरदस्त घाटा होने लगा। जिसके कारण उसका मन गांव से उखड़ गया। उसने सोचा की अब इस गांव में रहना बेकार है। वह इस गांव को छोड़कर शहर जाने की तैयारी करने लगा। मगर अजीब इत्तेफ़ाक की बात थी कि उस बेचारे के पास थोड़ा बहुत धन भी नहीं था जिसे लेकर वह शहर चला जाता बनी है की आन और शान तराजू में होती है। उसके पूर्वजों की एक तराजू थी, जिसके मुठे में सोने के तार जुड़े हुए थे। उसने दुखी होकर उस तराजू को गिरवी रखने का फैसला कर लिया। त राजू सेठ तोलाराम के पास गिरवी रखकर सतीश कुमार शहर चला गया। वह काफी होशियार और तेज दिमाग का आदमी था। शहर में आते ही उसने अपना धंधा शुरू किया और उस धंधे में कुछ ही दिनों में उसे काफी लाभ भी होने लगा। कुछ ही दिनों की मेहनत के पश्चात जब उसके पास काफी धन हो गया तो वह वापस गांव की ओर चल पड़ा। गांव में पहुंचते ही सबसे पहले उसने अपने खानदानी तराजू को छुड़वाना ही उचित समझा। घर जाने से पूर्व सीधा सेठ तोलाराम की हवेली पर गया और जाते ही बोला की भाई अब मेरा खानदानी तराजू मुझे वापस कर दो और अपने रुपए सूद समेत ले लो। तोलाराम की नीयत खराब हो चुकी थी, वह उस तराजू को देना नहीं चाहता था। उसे पता था कि उसमें सोने के तार लगे हुए हैं। इसलिए उसने सतीश कुमार से कहा कि भैया सतीश मैं तुम्हें क्या बताऊँ, मुझे तो यह कहते हुए भी बड़ी शर्म आ रही है कि तुम्हारे उस तराजू को तो चूहे खा गए। सतीश असली बात की जड़ में पहुँच चुका था। उसने बड़े धैर्य से कहा की भैया जी आप क्यों दिल छोटा कर रहे? ऐसा हो ही जाता है। समय समय की बात है, कभी हमारे पास फूटी कौड़ी नहीं थी। हमें अपना व खानदानी तराजू गिरवी रखना पड़ा था। आज हमारे पास धन है तो वह तराजू चूहे खा गए। राम राम कैसा बुरा? वक्त आ गया है कि चूहे तराजू भी कहा जाते हैं। यह कहकर सतीश अपने घर की ओर चला गया, मगर अंदर ही अंदर उसका मन क्रोध से भर उठा। वह जान चुका था कि वह तोलाराम उससे झूठ बोल रहा है। अब वह बेईमान हो चुका है उसके लिए उसको उसकी सजा मिलनी ही चाहिए। सीख देने के अवसर की प्रतीक्षा में सतीश कुमार ताक लगाए बैठा था। आखिर बहुत दिन आ ही गया। जब तोलाराम का बेटा नहाने के लिए नदी पर गया तो उसने उस लड़के को पकड़कर एक गुफा में बंद कर दिया और गुफा के द्वार पर कुछ बड़े पत्थर लगा दिए। तोलाराम का लड़का जब घर वापस नहीं आया तो उससे बड़ी चिंता हुई। वह पागलों की तरह भागता हुआ सतीश कुमार के पास आया क्योंकि उसका घर ही नदी के किनारे पड़ता था। भाई सतीश क्या तुमने मेरे लड़के को इधर आते देखा है? वो नदी पर नहाने के लिए आया था, मगर अभी तक घर नहीं पहुंचा। अच्छा अच्छा आप अपने बेटे बोल आराम की बात कर रहे हैं, हाँ, हाँ, मेरा ही तो बेटा है। तोलाराम का बेटा भोला, उसके सिवा और मेरा है ही कौन? सेठ तोलाराम, अब तो आप घर जाओ और रोने लगो रो रोकर ही अपना जीवन काट लेना। हाँ सेठ तोलाराम मैंने अपनी आँखों से आपके बेटे को देखा है। एक बात उसे उठाकर ले गया। बहुत अच्छा लड़का था बेचारा बोला राम सेठ तोलाराम चीख चीख कर बोलने लगा नहीं, नहीं या नहीं हो सकता। भला इतने बड़े लड़के को बाज कैसे उठा सकता है? यह क्या कह रहे हो? यह क्या बोल रहे है आप? सेठजी ज़रा सोचो तो सही जब लोहे के तराजू को चूहा घा सकता है तो फिर बाज क्या लड़के को उठा नहीं सकता? तुम झूठे हो। मक्कार हो धोखेबाजों तुमने ही मेरे लड़के को गायब किया है। मैं तुम्हें छोड़ूंगा नहीं, मेरा लड़का वापस दे दो, वापस करो मेरे लड़के को। बस फिर क्या था, दोनों में इसी बात को लेकर लड़ाई हो गयी। दोनों मारपीट पर उतर आए। इन दोनों को इस प्रकार लड़ते देखकर गांव के लोग भी इकट्ठा हो गए। उन्होंने दोनों को एक दूसरे से अलग किया। मगर तोलाराम तो अपने बच्चे के लिए पागल हो रहा था। वहाँ बार बार गहरा था की मेरा बेटा वापस दो, मैं तुम्हे छोडूंगा नहीं, मैं तुम्हे छोडूंगा नहीं। गांव के पंचों ने सतीश से कहा की देखो भाई तुम क्यों झगड़ा बढ़ा रहे हो? इस का बेटा है, इसको वापस दे दो। किसी के बेटे को उठाना या गायब करना बहुत बुरी बात है और ये कानूनी अपराध भी है। इससे पूरे गांव की भी बदनामी होती है। पंच जी अब मैं क्या करूँ? जब उसे नदी के तट से बाज ही उठाकर ले गया। यह क्या मेरे बस की बात है। जब इसका निर्णय पंचों के बस मेन आ रहा तो ये राजा के पास पहुंचे। राजा ने सतीश से कहा, तुम तोलाराम के बेटे को वापस कर दो। अब भी इसका जवाब यही था की महाराज उसे तो बाजी उठा ले गया। राजा चीखकर बोला की तुम झूठ बोल रहे हो भला इतने बड़े लड़के को बाज़ कैसे उठाकर ले जा सकता है? मैं आपकी बात से सहमत हूँ महाराज मगर आप भी तो सोचिये कि मेरे खानदानी लोहे के तराजू को चूहे कैसे खा सकते हैं? तब राजा ने आश्चर्य से पूछा कि यह तुम क्या कह रहे हो? मैं सत्य कह रहा हूँ महाराज यह सब बातें यदि आप सेठ जी से पूछ लें तो आपको पूर्ण विश्वास हो जाएगा कि मैं झूठ नहीं बोल रहा। राजा ने जब टोल आराम से पूछा तो वह लज्जित सा होकर बोला, महाराज, यह तो मेरी ही भूलती। मैंने इसके साथ धोखा किया और बोल दिया की तुम्हारे तरह जू को क्यों है? खा गए, मगर यहाँ तो सिर पे सवा सेर निकला मैं इसका तराजू वापस कर दूंगा, ठीक है मैं आपका लड़का वापस कर दूंगा। ऐसा कहते ही सतीश ने उसके लड़के को गुफा से निकालकर तोलाराम को दे दिया और तोलाराम ने भी सतीश का तराजू उसे वापस कर दिया। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है कि कोई भी व्यक्ति किसी भी चीज़ को यदि चुरा लेता है तो उसका चोरी कभी ना कभी पकड़ी ही जाती है। ओके बाय।","सभी को नमस्कार, यह एक आदमी 🏃‍♂️और उसके संतुलन ⚖️ की एक शानदार कहानी है। इस कहानी में एक आदमी है जिसने अपना कीमती बैलेंस किसी को दे दिया लेकिन वह उसे धोखा देने की कोशिश कर रहा था। पूरी कहानी सुनें और कहानी की नैतिकता के बारे में जानें।" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आप सब के लिए लाई हूँ, उसका टाइटल है जादुई शीशा। ये कहानी जादू की कहानी है। बहुत समय पहले की बात है, एक ठंडा नगर था वहाँ 12 महीने बर्फ़ गिरती। इस तरह वहाँ ठंड भी खूब पढ़ती थी। उस राज्य में एक राजा राज्य करता था। उसका महल एक पुराने किले पर बना था। उस राजा की रानी भी बेहद खूबसूरत थीं। राजा अपनी रानी को बहुत प्यार भी करता था लेकिन रानी के कोई औलाद न होने के कारण वो हमेशा गुमसुम रहती थी। रात दिन बस यही गम उसे खाये जा रहा था। सारा दिन रानी महल की खिड़की पर उदास बैठी रहती। और अपना समय गुजारने के लिए किसी ना किसी काम में लगी रहती थी। इस प्रकार उसका समय कट जाता था और जब सर्दियां आती थी तो रानी कामन और भी उदास हो जाता क्योंकि सर्दियों के मौसम में बर्फ़ कितनी गिरती थी कि पूरा मैदान, वृक्ष जितनी भी चीज़े होती थी वे सब सफेद ही सफेद नजर आती थी। बाहर बर्फ़ के सिवा कुछ भी दिखाई नहीं पड़ता था। रानी महल की खिड़की पर उदास बैठी रहती और बर्फ़ की गिरती बूंदों को घूरती रहती 1 दिन की बात है। रानी ऐसे ही खिड़की पर बैठी थी, तभी भगवान को उस पर कुछ दया आ गई और उसके बाद रानी ने एक सुन्दर सी बच्ची को जन्म दिया। धीरे धीरे वह बच्ची बड़ी होने लगी। बच्ची के होने से राजा रानी बहुत खुश थे। उन्होंने प्यार से उसका नाम रोज़ी रखा था। वह बच्ची थी भी बड़ी सुन्दर अभी रोज़ी कुछ बड़ी हुई ही थी की रानी बहुत बीमार हो गयी और उस बिमारी के कारण रानी गुजर गई। रानी के गुज़रने के बाद रोज़ी एकदम अकेली रह गई। रोज़ी इतनी छोटी थी की उसकी समझ में कुछ भी नहीं आता था लेकिन कभी कभी उसे अपनी माँ की बहुत याद आती और वो बहुत रोने लगती थी। राजा जब रोज़ी को रोते देखता तो उसे बहुत दुख होता था इसीलिए उसने दूसरे विवाह का निश्चय किया। कुछ समय के पश्चात राजा ने दूसरा विवाह भी कर लिया ताकि रोज़ी को माँ का प्यार मिल सके। राजा की दूसरी रानी बहुत सुन्दर थी। उसकी जैसी नारी पूरे देश में नहीं थी। रानी को अपनी सुंदरता पर घमंड भी बहुत था परंतु उसका स्वभाव अच्छा नहीं था। उस रानी के पास एक जादुई शीशा था, लोग तो उसे जादूगरनी भी कहते थे। उस शीशे को रानी बहुत संभालकर रखती। उसी के द्वारा रानी कितनी ही बातें जान लेती थी। हर रोज़ सुबह उठकर सबसे पहले रानी शीशे में देखती और उस शीशे से पूछती की शीशे, शीशे बता इस देश में सबसे ज्यादा सुन्दर नारी कौन है? शीशा रानी को जवाब देता की रानी इस पूरे देश में तुमसे ज्यादा सुन्दर और कोई नहीं। यह सुनकर रानी की खुशी का ठिकाना नहीं रहता। वो मन ही मन गर्व करती। इस प्रकार दिन गुजरते रहे। 1 दिन की बात है। सुबह सवेरे रानी शीशे में अपना मुँह देखकर रोज़ की तरह उस शीशे से पूछ बैठी कि शीशे, शीशे बता इस देश में मुझसे ज्यादा कोई नारी है या नहीं? शीशे ने जो जवाब दिया उसे सुनकर रानी सन्न रह गई। इस देश में सबसे सुंदर लड़की रोज़ी है। यह सुनते ही रानी के क्रोध का ठिकाना नहीं रहा। वह आग बबूला होने लगी। रानी ने सोचा कि मैं रोज़ी को यहाँ से बहुत दूर भिजवा दूंगी, जहाँ से वो कभी वापस नहीं आ सकेगी और फिर इस देश में मुझसे ज्यादा सुन्दर और कोई नहीं होगा। रानी ने तुरंत एक सेवक को अपने कक्ष में बुलाया या उसका भरोसे का नौकर था। रानी ने नौकर को अपने कमरे में ले जाकर कहा, तुम मेरा एक जरूरी काम करोगे। हुकुम दीजिये? रानी व नौकर बोला, तुम इस रोज़ी की बच्ची को कहीं दूर ले जाकर छोड़ा व् इसे ऐसी जगह छोड़ ना की कभी लौट कर वापस न आ सके और ये काम आज ही होना चाहिए। इतना कहकर रानी ने। उस नौकर को सोने की मोहरों की एक थैली पकड़ा दी। सेवक रानी की बात समझ गया था, लेकिन इतनी प्यारी छोटी सी बच्ची को मार देना उसके लिए बहुत मुश्किल काम था। सेवक ने रोज़ी को ले जाकर जंगल में छोड़ दिया और उसने रोज़ी को सारी बातें बता दी और फिर कहा की जाओ राजकुमारी जंगल में भाग जाओ और फिर कभी महल में लौट कर नहीं आना। उसकी बात सुनकर रोज़ी रोने लगीं, मगर वो करती भी क्या? और वो नौकर भी क्या करता? उसे तो उसे छोड़कर वापस आना ही था। नौकर ने महल में आकर रानी को बताया कि मैंने जंगल में रोज़ी को जान से मार डाला है। नौकर की बात सुनकर रानी बहुत खुश हुई। अब उसे लगा की मुसीबत से पीछा छूट गया। उधर जंगल में रोज़ी इधर उधर भटक रही थी, वह इतनी सुन्दर और इतनी पवित्र थी की किसी भी जानवर ने उसे कोई नुकसान नहीं पहुंचाया और जंगल में भी वा सुरक्षित रही। एकाएक रोज़ी की नजर सामने बने एक घर पर पड़ी, रोज़ी ने अंदर झांक कर देखा तो वह देखती रह गई, वहाँ कोई था नहीं। परन्तु पूरा घर एकदम खाली और सभी चीजें बड़े कायदे से सजी हुई थी और चुपचाप घर के अंदर दाखिल हो गयी। कमरे में सभी चीजें बहुत छोटी छोटी थी। कमरे के बीच में एक छोटी सी टेबल रखी हुई थी और उसके आसपास सात छोटी छोटी कुर्सियां भी थी। टेबल पर सात छोटी छोटी प्लेट ग्लास। चम्मच सब सजे हुए थे। हर गिलास में दूध भरा था। प्लेटों के अंदर खाने पीने की चीजें भी थी। रोज़ी को बहुत ज़ोर से भूक लगी थी तभी उसकी नजर कोने में पड़ी जहाँ उसने देखा की लाइन से छोटे छोटे सात बिस्तर लगे हुए। इस घर में हर चीज़ बहुत छोटी है और संख्या में साथ यह देखकर उसी को बहुत आश्चर्य हो रहा था। खैर, रोज़ी को तो भूख लगी थी। उसने समय ना बरबाद करते हुए सारी प्लेटों में से थोड़ा थोड़ा खाना और कुछ ग्लासों में से थोड़ा थोड़ा दूध पी लिया और उसके बाद एक बिस्तर पर कंबल ओढ़कर लेट गई और उसे गहरी नींद भी आ गई। यह घर सात बहनों का था, सात बोने एक साथ ही यहाँ रहा करते थे। पास एक पहाड़ था। वहाँ बौने जाकर सोने की खान में काम करते थे। जब शाम हुई तो सात तो बौने घर वापस लौटे। इस समय वह काफी थके हुए थे। वो जल्दी जल्दी खा पीकर सो ना चाहते थे परंतु अंदर आकर उन्होंने मोमबत्ती जलाई। जब उन्हें पता चला कि किसी ने उनकी प्लेटों और तश्तरियों में से कुछ खाया है और छेड़छाड़ की है तो पहला बोना बोला। मुझे लगता है कि मेरी कुर्सी पर आकर कोई बैठा था। दूसरा बोला मेरा बिस्किट किसने खाया है? ये तो आधा रह गया। तीसरा बोला। मैं भी अपनी रोटी पूरी छोड़कर गया था, किसी ने आ दिखाई है। चौथा बोला मेरा चम्मच तो बिल्कुल साफ था, किसी ने झूठा करके रख दिया। पांचवा बोला मेरा मुरब्बा भी किसी ने चांटा है। देखो उंगलियों के निशान हैं। छठा और सातवाँ भी इसी प्रकार अपनी बेटों और ग्लास को देखकर बोला तभी उनकी नजर अपने बिस्तर पर पड़ी। उन्होंने देखा कि एक पलंग पर एक बहुत सुन्दर सी लड़की सो रही है। पहला बोना आश्चर्य करके बोला अरे ये देखो कितनी सुंदर लड़की सो रही है। दूसरा बोला अरे ज़रा यहाँ आकर तो देखो उसके बाल कितने सुन्दर है, देखो इसकी आंखें कितनी सुन्दर है, देखो इसका रंग कितना सुंदर है। यह तो बिल्कुल गुड़िया जैसी लग रही है। सभी बौने एक एक करके उस लड़की के सौंदर्य की प्रशंसा करने लगे फिर उन्होंने सोचा की लड़की कहाँ से आई है? अब इसे सोने दिया जाए। जब ये जाग जाएगी तब इससे पूछेंगे। उन्होंने रोज़ी को कंबल में लपेटकर सोने दिया और उसकी प्रतीक्षा में बैठ गए। सभी बहनें सोने की तैयारी करने लगे। उनमें से एक बौने का बिस्तर नहीं था लेकिन वो बहुत खुश था की उसकी बिस्तर पर एक सुंदर सी लड़की सो रही है। वो बौना दूसरे के साथ उसी के बिस्तर पर लेट गया। जैसे ही सुबह हुई रोज़ी जाग गई। नींद में वो भूल चुकी थी कि इस समय वो अपने महल में नहीं है। उसे ज़रा भी ख्याल नहीं आया कि वह एक घने जंगल में है। आंख खुलते ही उसकी नज़र साथ बहनों पर पड़ी। हाँ उसके आसपास ही बैठे थे और उसे अपनी तरफ देखते हुए देख कर वे साथ तो बौने मुस्कुरा दिए। पहले लड़की उन्हें देखकर आश्चर्य में पड़ गयी। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह कौन है? उनमें से एक बोने ने पूछा कि अरे खूबसूरत लड़की तुम कौन हो और कहाँ से आई हो? यह सुनते ही रोज़ी तो रोने लगी, फिर उसने अपनी पूरी कहानी उन बहनों को सुना दी। उसकी कहानी सुनकर बहनों को बहुत दुख हुआ। और उन्होंने रोज़ी को सांत्वना दी। एक बोना बोला वह रानी बड़ी दुष्ट है इतनी सुन्दर बच्ची को इस प्रकार छुड़वा दिया। दूसरा बोना बोला। अब तुम उस दुष्ट रानी के पास कभी लौट कर मत जाना। तीसरे ने कहा, अब तुम हमारे साथ ही रहना, हम मज़े करेंगे। चौथा बोला क्यों? ठीक है ना? अब तुम हमारे साथ ही रहोगी ना? नहीं मैं कहीं नहीं जाउंगी। अब मैं आप लोगों के साथ ही रहूंगी। रोज़ी बोलीं, यह तो बहुत अच्छी बात है। एक बोना बोला मैं यहीं रहकर आपके घर का सारा कामकाज कर दिया करूँगी वह बोली। फिर वह सुबह सवेरे जल्दी उठती, तैयार हो जाती और सभी बहनों के लिए नाश्ता तैयार करती। सभी बहनों ने मेज पर बैठकर एक साथ नाश्ता किया। फिर वे लोग नाश्ता करके अपने अपने काम पर पहाड़ी की ओर चल दिए। जाने से पहले उन्होंने रोज़ी को हिदायत दी, देखो तुम ज़रा होशियार रहना, बाहर बिल्कुल मत जाना। रूसी सारा काम करके एक तरफ बैठ गई बैठे बैठे। वह सोचने लगी कि क्या मुझे जिंदगी भर इन्हीं बहनों के साथ रहना पड़ेगा? अगर ये लोग मुझे परेशान नहीं करेंगे और मैं भी यहाँ परेशान नहीं होंगी? तो फिर मैं कहा जाउंगी तभी रोज़ी की नजर पड़ी वो जमीन पर बैठी शहद का मज़ा ले रही थी। रोज़ी ने भाग कर स्थिति को पकड़ना चाहा, मगर वह तितली उड़ गईं और बोलीं, मुझे मत पकड़ो रोज़ी, मैं यहाँ तुम्हारी मदद करने के लिए आई हूँ, मैं तुम्हारी दोस्त हूँ। रोज़ी आश्चर्य में पड़ गई। उसने उस तितली को देखा तो देखते ही रह गयी। उसकी समझ में नहीं आया की तितली का रहस्य क्या है? वह तितली देखते ही देखते एक परी में बदल गई और रोज़ी को देखते हुए मुस्कुराने लगी। मैं जानती हूँ तुम्हारा नाम रोसी हैं, मैं तुम्हारे बारे में सबकुछ जानती हूँ। तुम मेरे बारे में सब कुछ कैसे जानती हो? रोज़ी ने आश्चर्यपूर्वक पलकें झपकाते हुए पूछा। मैं परी हूँ ना, इसलिए मैं सब कुछ जानती हूँ। परी ने मुस्कराते हुए बताया, फिर तो तुम भविष्य के बारे में सब कुछ जानती होगी। उससे हैरानी से पूछा, परी बोली हाँ, क्यों नहीं? बिल्कुल जानती हूँ तो फिर मेरा भविष्य बताईये ना? बताती हूँ बिलकुल बताती हूँ। परी बोली की कुछ समय के बाद यहाँ एक राजकुमार आएगा और वो तुम्हें अपने साथ विवाह करके ले जाएगा। यह सुनकर रोज़ी बहुत खुश हो गई। परी ने रोज़ी ने कहा ये लोग अंगूठी जब भी तुम्हे मेरी याद आए या जरूरत पड़े तो इसे पहन लेना मैं आ जाउंगी। रोज़ी ने वह अंगूठी ले ली और बोली शुक्रिया पर इजी। फिर परी वहाँ से चली गई। उसके जाने के बाद रोज़ी परी के बारे में सोच रही थी। कुछ देर के बाद रोज़ी खिड़की में जाकर बैठ गई। उसने देखा कि वहाँ एक बुढ़िया से बेच रही है। उस बुढ़िया ने रोज़ी को देखकर नीचे आने का इशारा किया। रोज़ी नीचे चली गई, बुढ़िया बड़े प्यार से सेव देते हुए बोली लो बेटी ये सेफ मेरे सामने ही खा लो। रोज़ी थोड़ा हिचकिचाते हुए बोली लेकिन अब मा मैं यहाँ से अब कैसे कहूं मेरे पास तो पैसे भी नहीं पर बुढ़िया बोली की तुम से पैसे किसने मांगे? तुम ऐसे ही सेब खा लो। रोज़ी ने जैसे ही इस एप का टुकड़ा काटकर अपने मुँह में रखा वह बुढ़िया ज़ोर ज़ोर से हंसने लगी और फिर हंसते हंसते वह बुढ़िया अपने असली रूप में आ गई। रोज़ यह देखकर चौंक गई और उसने हैरानी से पूछा कि तुम यहाँ कैसे आ गई और तुम्हें किसने बताया की मैं यहाँ हूँ वो बुढ़िया कोई और नहीं रानी थी। रानी बोली की मैंने अपने शीशे से पूछा था, उसी ने बताया कि तुम यहाँ पर हो उसी ने तुम्हें। मुझे पहचानने में देर नहीं करवाई। रोज़ी इतना सुनते ही बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ी, फिर उसे कोई सुध नहीं। वह बुढ़िया खुश होती हुई अपने महल की ओर लौट गईं। वह बुढ़िया। रूप बदलकर रानी के रूप में महल में दाखिल हुई। शाम को जब सा तो बौने घर पहुंचे और उन्होंने रोज़ी को जमीन पर पड़ा हुआ देखा तो उनके होश उड़ गए। एक बौने ने जल्दी से उसकी कलाई पकड़कर देखी। अरे ये तो मर गई सात दो बौने यह देखकर रोने लगे। कुछ देर बाद उन्होंने उसे एक ताबूत में रखा और ताबूत जंगल में छोड़कर अपने घर वापस आ गए। उसी जंगल में एक राजकुमार शिकार करने आया था। उसने देखा कि एक ताबूत जंगल में रखा है। वो ताबूत को देखकर घबरा गया और वापस महल लौट आया। तभी उस ताबूत के पास वही परी आई जो रोज़ी से तितली बनकर मिली थी। उस पर ही ने ताबूत खोला और एक शरबत पीला कर रोज़ी को फिर से जीवित कर दिया। कुछ देर के पश्चात ही रोज़ी ने आंखें खोलीं तो सामने उस परी को खड़ा पाया। रोज़ी ने परी से पूछा कि मैं यहाँ पर कैसे आ गई पर इजी मुझे क्या हो गया था? तब परी ने बताया कि तुम्हारी सौतेली माँ ने तुम्हें जहरीला सेब खिला दिया था। मगर अब उससे पके जहर का असर खत्म हो चुका है और अब मैं जा रही हूँ। फिर वह परि चली गई। पर राजकुमार जो उस ताबूत को देखकर हैरानी में था, उसे वो ताबूत। बार बार याद आने लगा। राजकुमार उस ताबूत की तरफ से काफी बेचैन था। वह फिर उसी ताबूत की तरफ जंगल में चल दिया। उसकी उत्सुकता बढ़ती ही जा रही थी। जब राजकुमार उस ताबूत के पास पहुंचा तो उसने देखा कि एक खूबसूरत लड़की ताबूत पर बैठी। राजकुमार उस लड़की के पास पहुंचा और बोला कि तुम कौन हो? तब रोज़ी ने रोते रोते सारी बात राजकुमार को बता दी। उसकी पूरी बात सुनकर राजकुमार ने कहा कि मैं तुमसे शादी करना चाहता हूँ। रोज़ी क्या तुम तैयार हो? रूसी ने सहमति में सिर हिला दिया। उसकी सहमति पाकर राजकुमार बहुत खुश हुआ और उसे अपने राजमहल ले जाकर शादी कर ली। उधर सौतेली माँ जब शीशे के सामने बैठी और पूछने लगी की शीशे शीशे बता सबसे सुंदर नारी कौन है? शीशे ने फिर वही जवाब दिया कि रोज़ी ही सबसे सुंदर है। यह सुनकर सौतेली माँ ने शिक्षक को तोड़ दिया और स्वयं भी आत्महत्या कर ली। तो बच्चो ये कहानी थी उस जादुई शीशे की जिसमें देखकर रानी अलग अलग तरीके के प्रपंच क्या करती थी? अलग अलग तरकीबें निकालती थी जिससे वो संसार की सबसे सुंदर महिला बनी रहे परंतु अंत में। उस शीशे के तिलस्म के कारण ही रानी अपनी जान से हाथ धो बैठी। ओके बाय।","सभी को नमस्कार, यह छोटी राजकुमारी की एक जादुई कहानी है। राजकुमारी बहुत सुंदर थी उसने बचपन में ही अपनी माँ को खो दिया था। जल्द ही उसके राजा पिता ने एक खूबसूरत महिला के साथ दोबारा शादी कर ली। वह सुंदर है लेकिन उसका स्वभाव अच्छा नहीं है। उसने एक जादुई दर्पण प्राप्त किया। वह अक्सर उस आईने से सवाल करती थी। एक बार जब आईने ने उसे बताया कि छोटी राजकुमारी इस दुनिया की सबसे खूबसूरत महिलाओं में से एक है तो वह इतनी क्रोधित हुई कि उसने उसे महल से बाहर निकाल दिया। छोटी राजकुमारी के साथ क्या हुआ कि वह कैसे बची? पूरी कहानी सुनें और इसके बारे में जानें।" "क्या आप भी अपना पॉडकास्ट बनाने का सोच रहे हैं? तो ऐंकर ट्राई कीजिए, ये 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होशियार नहीं हो सकता? जब कभी भी इन दोनों की मुलाकात होती तो वह आपस में किसी प्रकार की डींगे मारते थे। बंदर तो कभी खामोश भी हो जाता था, मगर गीदड़ को अपनी होशियारी पर बहुत घमंड था। 1 दिन की बात है। एक हाथी रास्ते से गुजर रहा था। वह काफी मोटा हाथी था। उस समय बंदर एक पेड़ पर बैठा हुआ था, जिसपे पेड़ पर बंदर बैठा था। हाथी भी उसी पेड़ के नीचे से गुजर रहा था। बंदर उस हाथी को घूर घूरकर देख रहा था। जिससे समय वह हाथी पेड़ के नीचे आया। वह बंदर खूब करते हुए कूदकर उसकी पीठ पर जा बैठा। हाथी चिढ़कर बंदर को अपनी सूंड से पकड़ने की कोशिश करने लगा, लेकिन बंदर उसकी पकड़ में नहीं आया। वह उसकी पकड़ से दूर था। हाथी पूरी ताकत से तो बंदर डर गया। बहुत जल्दी से कूदकर फिर पेड़ की डाल पर पहुँच गया। हाथी को उस समय बहुत प्यास लगी थी। वह पानी पीने के लिए नदी की तरफ जा रहा था। वह सीधा उसी तरफ चला गया। जब हाथी आगे बढ़ गया तो बंदर इतना आकर इधर से बोला इधर बॉय तुमने आज देख ली मेरी चपलता या अब भी कोई शक है? इस पर गीदड़ बोला तुम भी इतनी सी बात पर इतराने लगे भला ये भी कोई बात है? तू फ़ोन तुम ही कुछ दिखा दो ना और जो फैसला हुआ जाता है। बन्दर बोला गीत और फिर कहने लगा आप तुम कल मेरी होशियारी देखना, मेरे बात करना मुझसे। अगले दिन फिर हाथी पानी पीने के लिए नदी की तरफ जा रहा था। बंदर और गीदड़ पहले से ही उसकी ताक में बैठे थे की कब हाथी आये और कब उसको बेवकूफ़ बनाए। तभी उनकी नजर दूर से आते हुए हाथी पर पड़ी। बंदर हाथी को देखते ही बोला लो भोगी दौड़ होती है। ज़रा पास तो आ जाने दो फिर देखना तुम मेरी होशियारी, गीत और घमंड के साथ बोला। वैसे तुम आज क्या करने वाले हो? ज़रा मुझे भी तो पता चलना चाहिए। बंदर ने पूछा इस बात का फैसला तो तभी होगा जब वहाँ थी, पास में आ जाएगा। हाथी काफी नजदीक आ चुका था, तभी गीदड़ ने पेड़ से नीचे छलांग लगाई और लंगड़ा बन गया। वह लंगड़ाता लंगड़ाता हाथी के सामने से गुज़रने लगा। उसे लंगड़ाता हुआ देखकर हाथी ने पूछा। अरे गीदड़ भैया, तुम्हें क्या हुआ है? क्या करूँ भाई मेरे पैर में आज मोच आ गई है इसलिए मैं चल फिर नहीं सकता ये तुम्हारे पैर में अचानक मोच कैसे आ गयी? हाथी नहीं हमदर्दी से पूछा क्या बताऊँ भैया आज सुबह पेड़ से कूदते समय मेरे पांव में मोच आ गई। उसने बताया लेकिन तुम जा कहाँ रहे हो भैया तुमने ये तो बताया नहीं हाथी ने फिर पूछा मुझे बहुत ज़ोर से प्यास लगी थी मैं नदी पे पानी पीने जा रहा हूँ। उसने बताया, अरे तो तुम्हे इतनी सी बात के लिए परेशान होने की जरूरत है क्या तुम मेरी पीठ पर बैठ जाओ, मैं तुम्हे वहाँ तक पहुंचा दूंगा नहीं सहानुभूति जताते हुए कहा, नहीं भाई, भला मैं तुम्हारी पीठ पर कैसे बैठ सकता हूँ? रहने दो, मैं चला जाऊंगा। उसने कहा, अरे तुम कैसी बात करते हो? मैं अभी तो नदी पर पानी पीने जा रहा हूँ। हाथी ने कहा। ठीक है भैया अगर तुम इतनी जिद कर रहे हो तो मैं तुम्हारी पीठ पर बैठ जाता हूँ गीदड़ बोला फिर गीदड़ तुरंत उछलकर हाथी की पीठ पर बैठ गया बंदर ऊपर से सब कुछ देख रहा था गीदड़ उसको देख कर इतना आने लगा और अपनी होशियारी पर गर्व करने लगा नदी पर जाकर हाथी ने गीदड़ को अपनी पीठ से नीचे उतारा, फिर दोनों ने नदी पर पानी पीया। पानी पीने के बाद गीदड़ ने हाथी से कहा धन्यवाद धन्यवाद ये तो मेरा फर्ज था। इतना कहकर हाथी अपने रास्ते को जल दिया। गीता अपने निवास की ओर लौट चला। वहाँ जाकर वहाँ बन्दर से मिला और कहने लगा दे ली। मेरी हँसी आ रही बंदर ने कहा इसमें होशियारी नहीं बल्कि ठगी कहते हैं। मगर याद रखना किसी को बार बार ठगा नहीं जा सकता। वह सिर्फ एक ही बार ठगा जा सकता है। यह बात सुनकर गीदड़ बुरी तरह चिढ़ गया और जलाकर बंदर से बोला अगर तुम्हें इतनी मेरी होशियारी पर शक है तो फिर देखना मैं कल फिर हाथी को मूर्ख बनाऊंगा। कुछ समय पश्चात एक बार फिर हाथी नदी पर पानी पीने के लिए जा रहा था, उसने रास्ते में गीदड़ को देखा, गीदड़ फिर डगमगाता हुआ चल रहा था, ऐसा लग रहा था की जैसे वक्त कई दिनों से बीमार है। हाथी, गीदड़ का यह नाटक समझ गया था, उसने गीदड़ को सबक सिखाने का फैसला किया और पहले की तरह इधर को पीठ पर बैठाकर नदी तक पहुँच गया। इस बार हाथी नदी में काफी आगे तक पहुँच गया। यह देखकर गीदड़ बहुत बुरी तरह घबरा गया क्योंकि उसे तैरना नहीं आता था। आगे जाकर हाथी ने नदी में डुबकी लगायी, गीदड़ हाथी की पीठ से सड़क कर नदी में जा गिरा और तेज बहाव के साथ बह गया। हाथी ने उसकी मदद भी नहीं की। तो इस तरह गीदड़ की होशियारी उसे ही भारी पड़ गयी तो बच्चो इस कहानी में हमने क्या सीखा? हमने यही सीखा की गीदड़ जिसप्रकार हाथी को मूर्ख बनाकर अपनी को होशियार साबित करने की डींगे मारता रहता है, वो गलत है। हम कभी भी किसी के सामने डींग मारकर अपने को अच्छा और बड़ा साबित नहीं कर सकते क्योंकि उसका परिणाम बुरा ही होता है। ओके बाइ?","सभी को नमस्कार, यह दो जानवरों की एक दिलचस्प कहानी है। बंदर और सियार दोस्त हैं। ये हमेशा खुद को दूसरों से ज्यादा स्मार्ट साबित करने की कोशिश करते हैं। एक दिन वे आपस में झगड़ रहे हैं कि कौन ज्यादा स्मार्ट है। इसे साबित करने में सियार को अपने अति आत्मविश्वास की सजा मिलती है। पूरी कहानी सुनें और कहानी के नैतिक के बारे में जानें।" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपको सुनाने जा रही हूँ, उसका टाइटल है स्वावलंबन। नन्दा लोमड़ी को अंगूर बड़े पसंद वह जहाँ भी हरे भरे अंगूरों के गुच्छे देखती, उसके मुँह में पानी भरा था। पर अंगूर उसे मुश्किल से ही खाने को मिलते। लंबू, हाथी, पप्पू, खरगोश, चंचल गिलहरी इनके यहाँ अंगूर थी, बहुत सी बेले लगी थी। वे सभी बड़ी मेहनत से उन्हें उगाते थे। नन्दा लोमड़ी सभी से अंगूर मांगती पर एक दो देकर सभी मना कर देते। चंचल गिलहरी ने तो साफ कह दिया मौसी तुम्हें रोज़ रोज़ अंगूर खाने हैं तो अपने आप मेहनत करो, अपने परिश्रम से उगाकर खाओ। चंचल गिलहरी की यह बात नंदा को लग गई। वह सोचने लगी, यह ठीक ही कहती हैं। रोज़ रोज़ किसी से मांगना उचित नहीं है। मैं भी मेहनत कर सकती हूँ, फिर भी क्यों मांगूं? और फिर नंदा लोमड़ी ने भी अंगूर की बेलें लगायी। और सुबह शाम उनमें पानी देती, खाद देती। सारे दिन बैठी और उनकी देखभाल करती। धीरे धीरे अंगूर की बेलें बढ़ती गई। और उन पर बड़े प्यारे प्यारे गुच्छे लटकने लगे। अपनी मेहनत को सफल होते देख नंदा भूली न समाती, धीरे धीरे अंगूर पकने लगे। नंदा ने एक गुच्छा चक्कर देखा। बड़े ही मीठे अंगूर थे। कुछ गुच्छे नंदा ने अपने पड़ोसियों को भी बांटे। सभी ने बड़े स्वाद से उन्हें खाया। 222 ए और पप्पू खरगोश को अंगूर बहुत अच्छे लगे, फिर जब भी नंदा लोमड़ी के खेत के आगे से निकलते निगाहों से अंगूर को देखते जाते। उनकी इच्छा अंगूर खाने की होती, पर नंदा लोमड़ी वहाँ हमेशा देखभाल करती थी, इसलिए खेत के अंदर जाने की उनकी हिम्मत न पड़ती। मांगने पर नंदा कहीं मना ना करदे, इस कारण भी उससे अंगूर मांगते भी नहीं थे। तू तू तू हाँ और पप्पू खरगोश दोनों इसी ताक में रहते की कब नंदा लोमड़ी? ज़रा सा खेत से हटे और काव्य अंगूरों की दावत उड़ाएं? वे उसके खेत के कई कई चक्कर लगाते। उनको बार बार चक्कर लगाते देखकर नंदा भी समझ गई कि ये दोनों ही चोरी करना चाहते हैं। 1 दिन 22 है और पप्पू खरगोश ने देखा कि नंदा खेत में नहीं है। बस फिर क्या था वे दोनों चुपचाप खेत में घुस गए। दोनों ने जीभरकर खूब अंगूर तोड़े। पेट भरकर उन्हें खाया और कुछ ले चलने के लिए बांध लिए। दोनों चलने ही वाले थे कि तभी एकाएक पीछे से नंदा ने आकर उन्हें पकड़ लिया। अब चूहा और पप्पू खरगोश दोनों ही नंदा की गिरफ्त में थे। वे बार बार गिड़गिड़ा रहे थे। मौसी हमें माफ़ कर दो, अब हम तुम से बिना पूछे अंगूर नहीं तोड़ेंगे। नन्दा बोली। तुम जानते हो कि बिना पूछे दूसरे की चीज़ लेना चोरी कही जाती है तुमने चोरी की है इसका दंड तो तुम्हें अवश्य मिलेगा ही। तुम मुझसे मांग कर अंगूर लेते तो कुछ बात नहीं थी, परंतु खरगोश को नंदा ने। एक बाल्टी पकड़ आई और बोली जाओ और बाहर कुएं से 10 बाल्टी पानी खींचकर लाओ, यही तुम्हारा दंड है। फिर चूहे से बोली। चलो तुम अपने दांतों से इन बिलों की कटाई करो, तभी तुम्हे छुटकारा मिल सकता है। लाचार होकर चूहे और पप्पू खरगोश दोनों को काम करना पड़ा। कुएं से पानी खींचते खींचते पप्पू की सॉरी पीठ दुख गई। उसने इतनी कड़ी मेहनत कभी ना की थी। उधर बेलों को कटाई करते करते चूहे के सारे दांत घिस गए। परवाह करता भी क्या? वह छूट भी कैसे सकता था? पूरे 2 घंटे की कड़ी मेहनत करने के बाद नंदा ने उन्हें छुटकारा दिया। और बोली। आज से तुम दोनों यह बात अच्छी तरह समझ लो कि जो चीज़ तुम्हे चाहिए उसे अपनी मेहनत से प्राप्त करो। अपने परिश्रम से मिलने वाली रूखी सूखी चीज़ भी अच्छी है। पड़ोसी की चीज़ पर कभी ललचाऊँ मत चोरी करके किसी चीज़ को लेने की कोशिश ना करो। चोरी का दंड कभी ना कभी तो मिलता ही है। अब हम चोरी नहीं करेंगे। जुए और पप्पू खरगोश दोनों ने अपने अपने कान पकड़कर कहा। उनकी इस बात पर नंदा लोमड़ी बड़ी प्रसन्न हुई। फिर दोनों को उसने तोड़े हुए अंगूर देते हुए कहा। तुम्हारी इस प्रतिज्ञा की खुशी में मैं तुम्हें या उपहार देती हूँ कुछ दिन पहले मैं भी मुफ्त का माल खाने की सोचती थी पर धीरे धीरे मुझे समझ आ गया। मैंने सोचा की दुसरो से मांग नहीं की अपेक्षा खुद मेहनत करके खाया जाए। इससे स्वाभिमान भी बना रहेगा। दूसरों के सामने हाथ भी नहीं फैलाना पड़ेगा और मनचाही चीज़ भी मिले गी। आज तुम मेरी मेहनत का फल देख ही रहे हो। तुम ठीक कह रही हो मौसी, अब हम तुम्हारी तरह मेहनत करेंगे और अंगूर उगाएंगे जू जू जू है पप्पू खरगोश ने कहा और खुशी खुशी अपने घर चले गए। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें हमेशा मेहनत करनी चाहिए। कभी भी दूसरों की चीजें बिना पूछे नहीं लेनी चाहिए। ओके बाइ?",यह एक आलसी लोमड़ी की नैतिक कहानी है। पहले लोमड़ी दूसरे जानवरों से भीख माँगती थी लेकिन जब कड़ी मेहनत करने के बाद उसे आत्म-सम्मान के महत्व का एहसास हुआ। "हैलो बच्चों, आज जो कहानी में आपको सुनाने जा रही हूँ उसका शीर्षक है बंदर की नादानी। बरगद के पेड़ पर बहुत से प्राणी रहते थे। प्रवेश सभी चुन्नू बंदर की शैतानी से बहुत ही तंग आ गए थे। बात भी दंग होने की ही थी। चुन्नू कभी पीछे चुपचाप जाकर किसी बूढ़े बंदर की पूंछ खींचकर भाग जाता। बंदर पीछे मुड़कर देखें। इतनी देर में चुन्नू गायब। कभी वह किसी दल को ज़ोर से हिला जाता। इससे घोंसलें में बैठी चिड़ियों के नन्हे बच्चे ज़ोर ज़ोर से डरकर चींचीं करने लगते चिड़िया उड़कर देखने आती की क्या हुआ। इतनी ही देर में चुन्नू भाग खड़ा होता। सोनू गिलहरी के तो चुन्नु पीछे ही पड़ गया था, कभी कहता। और ये छुट्टी शीशे में अपना शरीर तो देख भगवान ने तुझे इतनी छोटी सी दे दी है अभी कहता वाउ, तू कैसी धारीदार रोएँदार है जैसे होने का कंबल ही हो। दुनिया की बातें सुनते सुनते सोनी गिलहरी तंग आ गई, कभी कभी उसका खून खौल ने लगता, कभी कभी वह सोचती थी की इस दुष्ट को ऐसा सबक दू की या दूसरों को तंग करना ही भूल जाये। पर सोनी सोचकर मन मसोस कर रही रह जाती थी क्योंकि उसके दो छोटे छोटे बच्चे थे। वह जानती थी कि गुस्सा आने पर चुन्नू अच्छा बुरा कुछ भी नहीं देखता है। गुस्से में आकर या बच्चों को बहुत परेशान कर सकता है। बरगद के उसी पेड़ पर एक वृद्ध लंगूर भी रहता था। वो इतना बूढ़ा था कि उसे ना तो ठीक से कुछ दिखाई देता था ना वह कुछ काम ही कर सकता था। उसके हाथ पैर कांपते रहते थे। वह सारे दिन बैठा बैठा भगवान का भजन करता रहता था। भगत अंगूर के नाम से वह सारे जंगल में प्रसिद्ध था। उस जंगल के सारे जानवर रोज़ शाम को बरगद के पेड़ के नीचे इकट्ठे हो जाते थे। भगत अंगूर सभी को उपदेश देता था, अच्छी अच्छी बातें सीखाता था। भगत की इस सेवा के बदले पक्षी उसे अपने अपने भोजन में से थोड़ा सा अंश निकालकर दे जाया करते थे। वह भी दिन में बस एक बार प्रसाद रूप में उसे ग्रहण करता था। शेष भोजन व वृक्ष के सभी पक्षियों में बांट देता था। 1 दिन भगत लंगूर बैठा भोजन कर रहा था कि तभी अचानक चुन्नु बंदर वहाँ से निकला। उसने देखा कि भगत के खाने में दो मोटे मोटे रस भरे फूले फूले मालपुए भी रखे हुए। उन्हें देखकर चुनो के मुँह में पानी भर आया। बस समझ गया कि ये मालपुए जरूर का लुकुए निधि होंगे। जुलूस से मालपुए मांगता रहा पर कालूकुआं उसे दिखा दिखाकर सारे पुए चट कर गया था। चुन्नू ने गर्दन घुमाकर चारों ओर देखा। इस समय वहाँ कोई न था। बस फिर क्या था वो अपने लालच को ना रोक पाया। उसने चुपचाप भगत लंगूर के आगे से एक मालपुआ उठा लिया। जैसे ही वह उसे मुँह में रखने वाला था की उसने सुना कि सोनी गिलहरी ज़ोर ज़ोर से चीख रही थी। चोर चोर पकड़ो सोनी की पुकार पर सारे पक्षी वहाँ जमा हो गए थे। वहाँ वास्तव में हुआ यह था कि सोनी चुपचाप पत्तों की आड़ में अभी सारी बातें देख रही थी। पक्षियों को सोनी गिलहरी ने सारी बातें बताई कि किस प्रकार भगत के खाने से या चुन्नु चोरी कर रहा था। यह सुनकर सभी पक्षी बड़े नाराज हुए। वे लगे चुन्नू को धिक्कारने। चुन्नू बेचारा शर्म से गड़ गया। मालपुआ उसके हाथ में धरा का धरा ही रह गया। तेजू बाजने चलते समय अपनी लाल लाल आंखें निकालकर चुन्नू से कहा की अब की बार यदि उसने ऐसा किया तो उसकी खैर ना होगी। उसे बरगद के पेड़ से निकाल दिया जाएगा। इतना अपमान और लज्जा चुन्नू ने कभी न पाया था। उसने दिन भर कुछ भी नहीं खाया। रात भर वह भूखा बैठा रहा। क्रोध सेवा भुनता रहा। उसने सोनी गिलहरी से बदला लेने का निश्चय किया क्योंकि उसके कारण ही चुन्नू को इतना अपमान सहन करना पड़ा था। सोनी को इसकी आशंका पहले से ही हो गई थी। वह मधुमक्खियों से गुपचुप ना जाने क्या बातें कराई थी। सुबह सारे पक्षी अपने अपने काम पर चले गए। चुन्नू बंदर ने देखा सोनी गिलहरी भी खाने की खोज में चली गयी है। बस फिर क्या था वह चुपचाप दबे पांव आया। सोनी गिलहरी के घर की ओर धीरे धीरे बढ़ने लगा। बरगद के पेड़ की एक छोटी सी खो में सोनी का घर था। चुन्नू को पता था कि वहाँ उसके छोटे छोटे बच्चे होंगे। चुनूं सोच रहा था की हाथ डालकर उन्हें बच्चों को उस खोज से निकाल लेगा। और यह क्या? चुन्नू का हाथ तो खोल से बाहर ही नहीं आ रहा था। अब चुनें। ध्यान से देखा कि खो का क्षेत्र तो बड़ा सकरा था। उसने उस पर बिना ध्यान दिए आवेश में हाथ डाल दिया। अब चुन्नू बड़ा परेशान हुआ कि हाथ कैसे निकालें। अभी वह कुछ सोच ही रहा था कि मधुमक्खियों ने आकर हमला कर दिया। 36 से सहस्त्र मधुमक्खियां निकलकर उस पर झपट पड़ी। अब चुन्नू का एक हाथ तो पेड़ की कोटरों में फंसा था और एक हाथ से वह मक्खियाँ उडाता हुआ। इधर उधर उछलता कूदता रहा। मधुमक्खियां उसे खूब काटती रही। छोड़ दो मुझे छोड़ दो मुझे ऐसा कहकर वह बार बार चिल्लाता रहा तभी फुदकती हुई सोनी गिलहरी भी वहाँ आ गई। उसने देखा मधुमक्खियों ने चुन्नू को चारों ओर से घेर रखा है। बे उसे खूब काट रही है, तंग कर रही है, चुन्नु चीख रहा है, रो रहा है। यहाँ देखकर सोनी की बहरी कर उदय पसीज उठा। उसने मधुमक्खियों से अनुनय की। बहनों अभी इसे छोड़ दो। यह मना कर रहा है की कभी किसी को नहीं सताएगा। सच है, मैं सच कहता हूँ, मैं अब किसी को तंग नहीं करूँगा। एक हाथ से अपना कान पकड़ते हुए चुन्नू बोला, मधुमक्खियों की रानी ने अपनी सेना को कुछ आदेश दिया और सारी की सारी मधुमक्खियां तुरंत ही वहाँ से चली गई। अब सोनी गिलहरी चुन्नु के पास आयी। उसने अपने तेज दांतों से पेड़ की कोटर काटनी शुरू की। बड़ी कठिनाई से तब चुनो का हाथ वहाँ से निकला। इतनी ही देर में चुन्नू का सारा शरीर सूज गया था। मधुमक्खियों ने बड़े ज़ोर से काटा था। उसे सोनी दौड़कर नीतू लोमड़ी के यहाँ से दवा लायी। उसे कई दिनों तक चुनो के शरीर पर लगाया तब कहीं जाकर वह ठीक हुआ। उस दिन से चुनने, दूसरों का मजाक बनाना, उन्हें सताना छोड़ दिया है। अब वह सबकी सहायता क्या करता है? सभी उसे बहुत प्यार करते हैं, उससे प्रसन्न रहते हैं। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है की हमे कभी किसी को सताना नहीं चाहिए क्योंकि इससे नुकसान अपना ही होता है। ओके बाय।","नमस्कार, यह एक शरारती बंदर की कहानी है जो हमेशा दूसरों को परेशान करता है। कुछ समय बाद उसे सबक मिल गया और वह एक अच्छा बंदर बन जाएगा।" "क्या आप भी अपना पॉडकास्ट बनाने का सोच रहे हैं? तो ऐंकर ट्राई कीजिए, ये पॉडकास्ट बनाने का सबसे आसान तरीका है। नंबर एक ये फ्री है नंबर दो। इसमें कई सारे ऐसे टूल्स है जो आपको अपने फ़ोन और कंप्यूटर पर रिकॉर्ड और एडिट करने की फैसिलिटीज देते हैं। नंबर तीन आप अपने पॉडकास्ट को डिस्ट्रीब्यूट भी कर सकते हैं, जिससे इसे इस स्पॉटिफाइ और दूसरे प्लैटफॉर्म्स पर 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प्रकार बच्चे, जवान, बूढ़े खूब दावतें उड़ाते। दावत के बाद उनका सांस्कृतिक कार्यक्रम होता। कभी गानविद्या प्रतियोगिता होती और वह विविध राग अलापते, कभी तेज दौड़ होती तो कभी लंबी कूद का आयोजन होता, फिर जगत पति के हाथों पुरस्कार पाते। मेंढकों के झुंड के झुंड हँसते गाते नाचते एक मोहल्ले में से दूसरे मोहल्ले में जाते। कभी किसी के यहाँ उत्सव मनाया जाता तो कभी किसी के यहाँ। किसी के यहाँ नए बच्चों का नामकरण होता तो किसी के यहाँ विवाह होता। किसी के यहाँ अखंड कीर्तन होता तो किसी के यहाँ जन्मदिन का समारोह। इस प्रकार जब तक वर्षा ऋतु रहती वे हँसते गाते और मौज मनाते। पेड़ पौधे नहा धोकर नए और सुंदर सुंदर वस्त्र पहनकर उनका स्वागत करते। वे अपने हाथों से ताली बजा बजाकर उन्हें प्रोत्साहन देते। वर्षा की समाप्ति पर कुंभकरण की भाँति पूरा मेंढक समाज अगली वर्षा आने तक गहरी नींद में सो जाता। वर्षा से बिना किसी विघ्न बाधा के उनका यही क्रम चला रहा था। पर एक बार उनके इस क्रम में आखिर व्यवधान पड़ ही गया। देशाटन पर निकले एक मगरमच्छ और एक मगरमच्छ को वह स्थान इतना पसंद आया कि उन्होंने वही रहने का निश्चय कर लिया। गंगा का शीतल और पवित्र जल चारों ओर देखते सुंदर पर्वत, वृक्षों की शीतल छाया बन जंगली फलों की मोहक खुशबु। सभी ने उनका मन मोह लिया था। फिर क्या था उन्होंने वहीं पर अपना डेरा डाल दिया। अब तो मगरमच्छ और मगरमच्छी जल में यूं ही घूमते मानो वे ही वहाँ के एकछत्र राजा और रानी हो मेंढकों का जल में इधर उधर तैरना उन्हें बिलकुल न भाया। मेंढकों की संख्या भी बहुत सारी थी। उनकी फौज जब पानी में तैरती तो कभी कोई मेंढक मगरमच्छों से टकरा जाता तो कभी कोई। मगरमच्छ इसे अपना अपमान समझते। वे सोचते थे कि मैं जानबूझकर उन्हें टक्कर मारते है। 1 दिन मगरमच्छी और मगरमच्छ गंगा के किनारे लेटे थे। हल्की सुहावनी धूप में दोनों की आंख लग गई। तभी बहुत से मेंढक घूमते हुए वहाँ आये और उनसे टकरा गए। वास्तव में इसमें मेंढकों का कोई दोष ना था। मगरमच्छ और मगरमच्छी उस समय पेड़ों के तनों की भाँति लग रहे थे इसलिए मेंढक गलती से उनसे टकरा गए ना कि जानबूझकर। पर मगरमच्छ और मगरमच्छी ने इसे मेंढकों की शरारत समझा। उन्होंने गुस्से में अपनी पूछ फटकारी। दांत निकाले और आंखें लाल लाल करने दांत किटकिटा किट किट आकर मगरमच्छ बोला। याद रखना मैं तुमसे 1 दिन इसका बदला लेकर रहूंगा तुम में से एक को भी जिंदा नहीं छोडूंगा मैं दूसरे दिन मगरमच्छों का मेंढक मारो अभियान शुरू हो गया। जितनी मेंढक उसने मारे जाते मारता कुछ खा लेता। कुछ को बहुत अच्छा लगता तो जमीन में बालू में गाड़ देता। हर रोज़ का उसका यही क्रम चलता रहा। तेजी से मेंढकों की संख्या कम होने लगी। समीर मेंढक घबराने लगे। आखिर करें तो क्या दिक् करें? इतने बड़े जीव का वे बिगाड़ भी क्या सकते थे? अब तो उन्हें एक ही रास्ता सूझता था कि अपने प्राणों की रक्षा के लिए वे बेहद जगह छोड़कर कहीं अन्यत्र चले जाए, पर जगतपति इसके लिए बिल्कुल भी तैयार न था। उसका कहना था, हमने मेहनत करके इस जगह को रहने लायक बनाया है। हम वर्षों से यहाँ रह रहे हैं। इस पर पहला अधिकार हमारा है। ये हमारी मातृभूमि है, हम मर जाएंगे पर इसे छोड़कर कहीं पर भी नहीं जाएंगे। पर कुछ न कुछ तो सोचना ही होगा। आखिर कब तक हम यूं ही विनाश देते रहेंगे? सारे के सारे मैडम एक स्वर में बोले। हम संख्या में उनसे बहुत अधिक है। शत्रु के विरुद्ध हम एकजुट होकर मोर्चा लेंगे, शारीरिक बल से नहीं, बुद्धि से उसे हटा कर ही मानेंगे। जगत पति बोला दूसरे दिन तड़के ही जगत पति ने अपने कुछ सहायकों को साथ लिया और मगरमच्छ से बात करने उसके पास पहुंचा। उसने अपने साथ लाया उपहार मगरमच्छ के सामने रख दिया और दोनों हाथ जोड़कर कहने लगा मगरमच्छ जी मैं आपसे कुछ बात करना चाहता हूँ पर मगरमच्छ ने उसकी बात अनसुनी कर दी। जगतपति सोचने लगा कि मगरमच्छ ने उसकी बात सुनी नहीं है, अतएव वह दूसरी बार और अधिक ज़ोर से बोला। मगरमच्छ ने गुस्से से आंखें तरेरकर हुंकार कहा। क्या है जल के कीड़े? जगतपति को ये बहुत बुरा लगा। आखिर आपको ऐसा नहीं कहना चाहिए। हम सभी एक दूसरे के साथ मिलजुल कर प्रेम से रहे। ये अच्छा है। भगवान की दृष्टि में सभी समान हैं। ना कोई छोटा है और ना बड़ा। मगरमच्छ घर जा। ज़्यादा बढ़ चढ़कर न बोल आखिर किस बात पे तू मेरे सामान है? हर बात में जगत पति बोला। मगरमच्छ बोला लवर बॉय छोड़ तू? हाँ, जगत पति बोला। देख ज्यादा घमंड न करें हारेगा तो यहाँ से हमेशा के लिए बागता ही नज़र आएगा। आप भी तो भाग सकते हैं जगत पति धीरे से बोला। यह सुनकर मगरमच्छ का गुस्सा और भड़क उठा। वह बोला। दुष्ट जुबान चलता है तो इतना तुच्छ है की मैं समझ ही नहीं पा रहा हूँ की तेरे संत क्या शर्त लगाऊं? अब जगतपति बोला, हम दोनों ही जल में रहने वाले जीव हैं। चलिए हम नदी में तैरने की शर्त रखे जो तैर कट जल्दी ही ऊंचे पत्थरों पर चढ़कर बैठ जाएगा, वहीं जीता हुआ माना जाएगा। मगरमच्छ को यह शर्त बड़ी मामूली मालूम लगी। बस सोचने लगा कि मेंढक निश्चित ही हार जायेगा। तभी जगत पति पूछ बैठा ये अभी तो बताइए की जीतने वाले को क्या मिलेगा? गर्व से अकड़ कर मगरमच्छ बोला। जीतने वाला यहाँ रहेगा और हरने वाला को यहाँ से भागना पड़ेगा, तैयारी कर लें अब तू अपने पूरे कुनबे से इतिहास से भागने की और देख शर्त तो लगा गया है कल यदि तू समय पर नहीं आया तो तेरी खैर नहीं। मैं जरूर आऊंगा। यह कहकर जगतपति अपने साथियों सहित वहाँ से लौट पड़ा। उसके सभी साथी हक्के बक्के थे। वे समझ नहीं पा रहे थे कि राजाजी को आखिर आज क्या सूझी की ऐसी शर्त लगाएं। घर जाकर जगतपति ने 100 एक जैसे मेंढकों को बुलाया। वे सभी रंग रूप में जगत पति से मिलते जुलते थे। उन्हें उसने अपनी योजना समझायी। दूसरे दिन जगतपति और मगरमच्छ निश्चित समय पर आ पहुंचे। विजय की कामना से मगरमच्छी ने मगरमच्छ के और मेंढकों ने जगत पति के बालू का तिलक लगाया। फिर वे दोनों जल में अपना अपना पराक्रम दिखाने कूद पड़े। मगरमच्छ आराम आराम से तैर रहा था। वह मन ही मन में यह सोच सोचकर खुश हो रहा था कि आज सारे मेंढक हमेशा के लिए यहाँ से चले जाएंगे। पर यह क्या? जैसे ही उसने आगे की ओर देखा वह यह देखकर दंग रह गया कि जगत पति उसके आगे तैर रहा था। मगरमच्छ ने अपनी चाल बढ़ा दी जिससे वह जल्दी से जल्दी पत्थरों की टेकरी पर चढ़ सकें। पूरी तेजी से तैरता हाफ था। मगरमच्छ रास्ते में यह देखकर चकित रह जाता कि जगत पति उसके आगे आगे ही तैर रहा है। यहाँ तक कि पत्थर की टेकरी पर भी उससे पहले ही चढ़ा हुआ मिला। मगरमच्छ का सिर शर्म से झुक गया। एक छोटे से जीव से वह हार गया था जो अपने आप पर घमंड करता है और काम में लापरवाही बरतता है, उसे नीचा देखना ही पड़ता है। सफल वही होता है जो बेकार का घमंड नहीं करता अपितु पूरे मन से काम करता है। अपने वायदे के अनुसार मगरमच्छ और मगरमच्छी दोनों ही गंगा का 72 छोड़कर चुपचाप भी हमेशा के लिए वहाँ से चले गए। अपनी योजना सफल होती देख जगतपति आज बहुत खुश था। मगरमच्छ से जीत पाना मुश्किल था। उसने अपने ही जैसे रंग रूप वाले 100 मेंढक जगह जगह पानी में अंदर ही की ओर छुपा रखे थे। वह पहले से ही पत्थरों के पास पानी में छिपकर बैठ गया था। मगरमच्छ को आते हुए देखकर जगतपति तेजी से छलांग लगाकर पत्थर पर चढ़ गया था। सभी मेंढक इकट्ठा होकर ज़ोर ज़ोर से जगतपति की जय जयकार कर रहे थे। जगत पति कह रहा था भाइयो, विपत्ति में कभी भी धैर्य नहीं खोना चाहिए। आपत्ति में रोने और परेशान होने से वहाँ बढ़ती ही है, कम नहीं होती। यदि हम मुसीबत में गहरे पूर्वक विचार करे उसके अनुसार कार्य करें तो निश्चित ही कोई ना कोई हल तो निकलता ही है। मुसीबतें भला किस पर नहीं आया करती पर जो साहस से मनोबल से उनका सामना करता है, उसकी ईश्वर भी सहायता करता है। वोही विजय पाया करता है जगत पति ने देखा कि कुछ मेंढक खुसुरपुसुर कर रहे हैं वह चौंका, कुछ समझा और फिर बोला, साथियों, हमने शत्रु को छल बल से जीता है, पर मातृभूमि की रक्षा करना नित्यानता आवश्यक है। शत्रु की दुष्टता दूर करने के लिए उसी की नीती से उसे हराना होता है, बस स्वयं वैसा नहीं बनना चाहिए। जगतपति का मंत्री कहने लगा। महाराज ठीक ही कहते हैं, यह हमारी मातृभूमि है। जो भी इस पर अपना अधिकार ज़माना चाहेगा, हम उसके दांत खट्टे कर देंगे। जिंस रीतिसे भी संभव होगा। शत्रु को भगाकर ही दम लेंगे। सभी मेंढकों ने अपने राजा और मंत्री की बात का समर्थन किया तथा उन्होंने विजय की खुशी में शानदार दावत भी की। उस दिन तो वे खुशी के मारे फूले न समा रहे थे। सारे दिन उछलते, कूदते खाते पीते धमाचौकड़ी मचाते रहे। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें सदैव अपनी मातृभूमि की रक्षा करनी चाहिए और विपत्ति के समय कभी भी धैर्य नहीं छोड़ना चाहिए। ओके बाइ?",यह मेंढक 🐸और मगरमच्छ 🐊 की एक नैतिक कहानी है। इस कहानी में मेंढक 🐸 एक देशभक्त है। वह कभी भी अपने पैतृक स्थान से दूर नहीं जाना चाहता। उसने अपनी बुद्धि और बुद्धिमत्ता से बड़े और विशालकाय मगरमच्छ 🐊 को हरा दिया। पूरी कहानी सुनें और नैतिकता के बारे में जानें। "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपको सुनाने जा रही हूँ, उसका टाइटल है कपट का फल दूर ता नाम की लो बड़ी बड़ी ही चालाकी थी। वह सदैव दूसरों का माल झपटने का अवसर ढूंढती रहती थी। वह खुद तो आलसी थी, सारे दिन उगती रहती थी, घर का काम भी ठीक से नहीं करती थी। उसकी आदतों से घर वाले भी परेशान थे और बाहर वाले भी एक बार दूर था। लोरी आटा पिसाने निकली। 3 दिन से घर में खाना नहीं बनाता। बच्चे बड़े भूखे थे। 2 दिन तक तो वो टालती रही पर आज उसे गेहूं का बुरा पीठ पर रखकर निकलना ही पड़ा। रास्ते में दूर ता को प्रीतू खरगोश मिला पर थैला लटकाए गाजर खरीदने बाजार जा रहा था। नमस्ते का की तू बोला नमस्ते बेटा दूर था मुँह लटकाए बोली अरे काकी, आज आप इतनी उदास क्यों है? क्या तुम्हारी तबियत ठीक नहीं है? तुमने पूछा क्या बताऊँ बेटा? पूरे दिन से पेट में अन्न का एक दाना भी नहीं पड़ा। काकी कराते हुए बोली, चलो का की आज मेरे यहाँ भोजन करना, खरगोश बोला और तुम तो कहीं बाहर जा रहे हो ताकि अनजान बनते हुए बोली नहीं, मैं तो गाजर खरीदने जा रहा हूँ। रीतू ने उत्तर दिया तभी अचानक दूर ता की निगाह रीच के बगीचे पर पड़ी। उसमें लाल लाल टमाटर और हरी हरी गाजर लगी हुई थी। फिर क्या था वो वही रुक गई। उसने अपनी पीठ से अन्य की बोरी उतारी, फिर प्रीत उसे बोली, अरे भाई, सब्जी वाले की दुकान तक क्यों जाते हो? देखो तो यहाँ कैसी अच्छी गाजर हैं, आज यहीं से ले लो और काकी बिना पूछे गाजर तोड़ना तो चोरी होगी। मैं ऐसा बुरा काम नहीं करता हूँ। सहसा ही लोमड़ी की तेज बुद्धि में एक उपाय आया। वह बोलीं, अरे रे, बिना पूछे क्यों लेंगे? केस से पूछकर गाजर तोड़ेंगे ना खींचती बातें करता है। प्रीतू ने पूछा हाँ देखो बोलेंगे दूर था बोलिए। फिर उसने ऊंची आवाज में खेत से पूछा ये तो भैया हम बड़े भूखे हैं कहो तो गाजर तोड़ लें। इसके कुछ पल बाद ही वो आवाज़ बदलकर बोली तोड़ लो बहन भूख मिटा लो। अभी तो कुछ देर पहले पेड़ के कुछ दूर खड़ा था आता वह लोमड़ी की चालाकी समझ न पाया। उसने सोचा जरूरी खेत ने उत्तर दिया होगा। लोमड़ी ने जीभरकर गाजर थोड़ी खरगोश का पूरा तह ला गाजरो से भर गया। अब लोमड़ी के मुँह में पानी भर आया। उसने सोचा किसी प्रकार खरगोश को यहाँ से रफादफा करें और सारी गाजरे अकेले ही खा ले। मेहनत तो आखिर मैं नहीं की है। खरगोश क्यों खाएं इन्हें? यही सोचते हुए धूर्तता कराते हुए प्रीत उसे बोली भाई मेरा बड़ा दर्द हो रहा है, मुझसे अब जला नहीं जा रहा तुम यदि यह गेहूं पीस वाला हो तो मेरा बड़ा उपकार होगा। तब तक मैं यहाँ पेड़ की इच्छा हो, मैं बैठती हूँ। रितु बड़ा उप परोपकारी था। तुरंत बोल पड़ा अभी भी सवालाया का की तुम यहाँ बैठो। खरगोश ने पीठ पर बोरा रखा और जल पड़ा, जबकि की ओर जैसे ही वह आँखों से ओझल हुआ, लोमड़ी ने बगीचे के बीच में बैठकर गाजर खाना शुरू कर दिया। पर यह क्या? अभी दो चार गाजर ही खायी थी की झाड़ी के पीछे से रीच घूमता हुआ निकल आया। जैसे ही उसकी निगाह दूर ता पर और गाजरो से भरी टोकरी पर पड़ी तो वह गुस्से से लाल होकर बोला। लोमड़ी को फटकारते हुए उसने बोला अरे दूर ता तुझे दूसरों की चीज़ चुराते खाते है शर्म नहीं आती मैंने नहीं चुराई ये गाजर, ये तो खेत से पूछ कर ली है दूर था, अकड़ कर अपनी गर्दन तानकर बोली अच्छा अच्छा, मैं भी खेत से बातें करता हूँ। रिच बोला वास्तव में हुआ यह था कि रिज झाड़ी के पीछे खड़ा लोमड़ी और खरगोश की सारी बातें सुन रहा था। उसे भी एक तरकीब सूझी। प्ले भाई क्या इस लोभ? उदंड दूर। बृज ने पूछा जरूर दो आवाज बदलकर इस ने फिर कहा। इसके बाद लोमड़ी ने 20 से बहुत मनुहार की, पर रीच ने गाजर की टोकरी छीन ली। फिर एक बाल्टी दूर ता को पकड़ाते हुए कहने लगा लो येह। और कुएं से पानी खींच खींचकर बगीचे की सिंचाई करो। जब तक यह काम पूरा नहीं करोगे तब तक तुम्हे छुटकारा नहीं मिलेगा। मरता क्या न करता वाली बात हुई? वह विवश होकर बाल्टी उठाकर कुएं की ओर चली दूर था। जानती थी कि बिना काम किए इससे छुटकारा पाना संभव नहीं है। कुएं से पानी खींच खींचकर दूर तक की कमर दुखने लगी। ये एक बाल्टी, दो बाल्टी, 10 बाल्टी और फिर तो 20 बाल्टी पानी उसने खींचा तब कहीं जाकर सिंचाई पूरी हुई। निकम्मी और आलसी लोमड़ी के लिए या दंड बहुत बड़ा था। उसने मन ही मन प्रतिज्ञा की कि अब ऐसी चालाकी कभी नहीं करेगी। ईमानदारी और परिश्रम की कमाई ही ग्रहण करेगी। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है की हमें कभी भी किसी की चीज़ नहीं चोरी करनी चाहिए। किसी को धोखा नहीं देना चाहिए।",सभी को नमस्कार मैं सभी बच्चों को सोने के समय की कहानियां नैतिक रूप से बता रहा हूं। मेरी कहानियाँ अभिनव और प्रेरणादायक हैं। अपने बच्चों के साथ मेरी कहानियाँ सुनें। यह निश्चित रूप से आपके बच्चे के व्यक्तित्व के निर्माण में मदद करेगा। "क्या आप भी अपना पॉडकास्ट बनाने का सोच रहे हैं? तो ऐंकर ट्राई कीजिए, ये पॉडकास्ट बनाने का सबसे आसान तरीका है। नंबर एक ये फ्री है नंबर दो। इसमें कई सारे ऐसे टूल्स है जो आपको अपने फ़ोन और कंप्यूटर पर रेकोर्ड और एडिट करने की फैसिलिटीज देते हैं। नंबर तीन आप अपने पॉडकास्ट को डिस्ट्रीब्यूट भी कर सकते हैं, जिससे इसे इस स्पॉटिफाइ और दूसरे प्लेटफॉर्म पर सुना जा सकें। डाउनलोड कीजिये? ये फ्री एंकर ऐप या विजिट कीजिए ऐंकर डॉट ऐफ़ एम अपना पॉडकास्ट स्टार्ट करने के लिए यही गाइस आज मैं आपके लिए एक बहुत ही शानदार और मजेदार कहानी लेकर आई हूँ। तो आज सुनते है कहानी फूलों का देश। आज फिर वही हुआ। छे वर्ष की नन्ही रंजू चुपचाप मम्मी की आंख बचाकर भाग में निकल गई। फिर उसने मन भर कर खूब सारे फूल तोड़े। गुलाब, गेंदा, चमेली, हरसिंगार, बेला के ढेर सारे फूलों से उसकी टोकरी भर गई। तब रंजू दबे पारो अपने कमरे में चली गई। टोकरी जमीन पर रखकर वह भी फर्श पर बैठ गई। सुई धागा लेकर हरसिंगार के फूलों की दो मालाएं बनाई, एक गुड़िया को पहनाई और दूसरी गुड डे को। गेंदे के फूलों को तोड़ तोड़कर उनकी पत्तियों से उनका सिंहासन सजाया। गुलाब की नन्ही कली गुड्डी के कोर्ट में लगायी चमेली की छोटी सी कली, गुड़िया के जुड़े में सजाई। अभी रंजू के साथ सजग चल ही रही थी की मम्मी आ धमकी और हर बड़ा उठी। रंजू को लगा कि उसकी मम्मी को पूरी तरीके से जासूसी करने की आदत है और वो करने आ भी गयी। मम्मी की निगाह जमीन पर पड़े फूलों के ढेर पर गई। उसे देखते ही उन्हें बहुत गुस्सा आ गया और वो बोली। देखो, रंजु तुम्हें लात बार समझाया की फूलना तोड़ा करो और तुम सुनती ही नहीं हो। तुम हमारी बात ना मानोगी तो हम तुमसे बोलेंगे ही नहीं हमारी तुम्हारी कट्टी आज से। रंजू जानती है कि मम्मी को फूल तोड़ना बहुत बुरा लगता है। वे कभी अपने जूड़े में भी फूल तोड़कर नहीं लगाती। रंजू से पीएफ कहती हैं कि जो फूल अपने आप टूट कर गिर जाए, उन्हें उठाओ। फूल तो पौधों पर ही लगे सुन्दर लगते हैं। पर उसकी आदत ही पड़ गई थी कि जैसे ही वो खेलते हुए फूलों को देखती उसका हाथ उन्हें तोड़ने के लिए आगे बढ़ जाता। वह बार बार सोचती की मम्मी की बात मानेगी। अब कभी फूल नहीं तोड़ेगी, परंतु उन्हें देखते ही बस सब कुछ भूल जाती। रंजू ने फूलों के उस ढेर से अपने गुड्डे गुड़िया को खूब सजाया। उनकी छटा देख देख कर वह खूब मुग्ध हुईं, पर उन्होंने उससे बात तक न की। रंजू की आदत है मम्मी से कहानी सुनते सुनते सोने की उसने मम्मी से कहानी सुनाने को कहा तो उन्होंने करवट बदल ली। वह चुपचाप उतरकर दूसरी ओर से जाकर उनसे लिपटते हुए बोली, मम्मी कहानी सुनाओ ना पर उन्होंने उसका हाथ झटक दिया। वे यह कहकर कमरे से चली गई। की हम फूल तोड़ने वाले गंदे बच्चों से बात भी नहीं करते। रंजू को बड़ा रोना आया, रोते रोते उसकी आंख लग गयी। कुछ समय बाद उसने पाया कि एक सुन्दर सी परी उसके सिरहाने खड़ी है। उसके वस्त्र, सोने चांदी के बने हुए हैं। पर ये रंजू से प्यार से पूछने लगी। क्या तुम फूलों के देश चलोगी? रंजू फौरन बोल पड़ी। हाँ हाँ चलूँगी परी ने रंजू की ऊँगली पकड़ी और आकाश में उड़ चली, उसे समझा दिया की उँगली कस कर पकड़े रहे। उसने मजबूती से ऊँगली पकड़ी, वे रुई से सफेद गुदगुदे बादलों को पार करती आगे बढ़ने लगी। इंद्रधनुष के भव्य द्वार के उस पार फूलों के राजा का महल था। जल्दी ही दोनों वहाँ तक पहुँच गई। उस महल को देखकर रंजू दंग रह गई। ऐसा लग रहा था मानो फूलों से महकता ताज महल बनाया गया हो। चमेली के फूलों से बने द्वार पर अनेक लाल गुड़हल प्रहरी खड़े हुए थे। परी ने उनसे अंदर घुसने की अनुमति मांगी। अंदर घुसने पर रंजू ने देखा कि महल की सारी दीवारें सूरजमुखी के फूलों से बनी हुई थी। छतें गेंदे से बनाई गई थी। बहुत से कमरों को दिखाने के बाद परी रंजू को राजा रानी के दर्शन कराने के लिए ले गई। रास्ते में पड़ा दो तीन मील लंबा मैदान। इसमें दोनों और कतारों में आम, संतरा आदि फलों के वृक्ष खड़े थे। रंजू के मुँह में उन्हें देखकर पानी भर आया। परी ने जमीन पर गिरा सुर्ख लाल सेप उसे पकड़ा दिया वह उसे कुतरती कुतरती आगे बढ़ने लगी। एक बड़े से कमरे के द्वार पर परी रुक गई। द्वार पर खड़े प्रहरी उन्हें अंदर ले गए। सामने ही बेला और लिली से बने दो भव्य सिंहासन थे। उन पर राजा कमल और महारानी गुलाब विराजमान थे। सहसा ही राजा रानी की अंग रितशिका सामने आई और डाँटकर बोली, रंजु बोलो तुम क्यों बोल तोड़ती हो राजा और रानी को ध्यान भी सहसा तुम ही खींचती हो, हमेशा पोल तोड़ती रहती हो। तभी राजा रानी ने भी ध्यान दिया न्याय मंत्री हरसिंगार ने आगे बढ़कर निवेदन किया, मोरोज इस लड़की में फूलों को तोड़ने की बड़ी गन्दी आदत है या अकारण ही हम सब को तंग किया करती है? इसे दंड दिया जाए। महाराज को भी सारी बातें याद आ गई। उन्होंने आदेश दिया। जब तक यह लड़की वायदा न करें या आगे से कभी भी फूल नहीं तोड़ेगी उसे हमारे रहने के तालाब में डूबो दिया जाए। यह आदेश सुनकर रंजू बेबी तो उठी, वह तुरंत महाराज के पैरों पर गिर पड़ी और आगे से कभी फूल न तोड़ने का वचन दिया। पर रानी गुलाब अभी शांत नहीं हुई थी। उनके आदेश से अंगरक्षक उसे घसीटते हुए बाहर ले आए और फिर वहाँ से धक्का दे दिया। चोट लगने से रंजू चीख पड़ी। वह उठकर बैठी तो पाया कि पलंग की बजाय जमीन पर पड़ी है। सूरज की सुनहरी किरणों से कमरा चमक रहा था और उसका छोटा भाई अपने खिलौनों से खेल रहा था। रंजू की आँखों के आगे काफी देर तक फूलों का महल ही तैरता रहा। बस समझ नहीं पायी कि यह सपना था या सच जो भी हो अब उसने फूल तोड़ना बिल्कुल छोड़ दिया है। अब मम्मी भी उससे नाराज नहीं होती तो बच्चो इस कहानी से हमने यही शिक्षा ली कि हमें भी कभी भी अनावश्यक पेड़ पौधों को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए। केवल अपने मन बहलाव के लिए पेड़, पौधों की पत्तियाँ और फूलों को नहीं तोड़ना चाहिए। ओके बाय।","सभी को नमस्कार, यह एक छोटी लड़की की नैतिक कहानी है। इस कहानी में एक नैतिक और कुछ जादू भी है। पूरी कहानी का आनंद लें और कहानी की नैतिकता के बारे में जानें।" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपको सुनाने जा रही हूँ उसका टाइटल है मीठे अंगूर अमरकंटक वन में तरह तरह के फलों के वृक्ष लगे हुए थे। जीनू बंदर के वहाँ सबसे अधिक आनंद थे। कभी वह आम खाता तो कभी अमरूद कभी किसी पेड़ पर बैठा रहता है तो कभी किसी पेड़ पर। आम के पेड़ पर अंगूरों की एक बड़ी सुंदर बेल फैली हुई थी। उसके रस भरे बड़े बड़े पीले, हरे उन अंगूरों की सारे जंगल में प्रसिद्धि थी। कलिया, कोयल, हरियल, तोता, जानी, चिड़िया, चीनू बंदर आदि। बहुत से अन्य पक्षी उस वृक्ष पर सारे दिन बैठे रहते थे। 1 दिन अमरकंटक वन में पास के जंगल से एक लोमड़ी आ गयी। उसका नाम था वाणी अमरकंटक। वन में वाणी की बहन रहती थी, उसी से मिलने के लिए वो वहाँ आयी थी। चलते चलते वाणी थक गई, थक कर व आम के पेड़ के नीचे आ बैठी। ठंडी ठंडी हवा ने उसकी सारी थकान दूर कर दी। सहसा वाणी की निगाह पेड़ के तने पर पहुंची। उस पर बड़ी सुंदर अंगूरों की बेल चढ़ी हुई थी। रस भरे सुन्दर सुन्दर गोल मटोल अंगूरों को देखकर वाणी के मुँह में पानी भर आया और उसकी ला टपकने लगी। वाणी ने अंगूरों पर छलांग लगाई पर अंगूर उचाई पर लगे थे उसका छलांग लगाना बेकार ही हो गया। मानी का बार बार ही कूदना देखकर पर बैठी कल ही आपको एल हरियाल तोता जानी चिड़िया और चीनू बंदर सभी हंस पड़े। वाणी की जीभ चटकारे भर रही। अंगूर पाने के लिए बेताब हो रही थी। उसने देखा कि पेड़ पर बैठा पक्षियों का झुंड आ आराम से अंगूरों की दावत उड़ा रहा है। वाणी ने सोचा कि मैं अंगूरों तक तो पहुँच नहीं पाऊंगी। पेड़ पर बैठे इन पक्षियों से ये मांग लेती हूँ वह कलियां, कोयल सी बोली कलियां बहन कृपा करके दो चार अंगूर मेरे लिए भी गिरा दो चार बार कहने पर तो कल या कोयल ने कहीं जाकर लोमड़ी की बात सुन फिर वह बोली सी गुड़ खाने की भी क्या जरूरत है? कुछ और कहकर पानी पी लेना मुझे देर हो रही है। मैं तो घर जा रही हूँ। इसके बाद वह कुक करती हुई फुर्र से उड़ चली। वाणी लोमड़ी फिर चीनू बंदर से बोली भैया मैं बड़ी थकी हुई हूँ मुझे कुछ अंगूर गिरा दो तुम्हारी बड़ी मेहरबानी होगी जीनो बंधन मुँह चिढ़ाकर बोला। ओह, काकी, तुमने भी कभी किसी को अंगूर खेला है, क्या तुम भी किसी को कुछ देती हो क्या? जो दूसरों को देता नहीं और पानी का भी अधिकार ही नहीं है। जो देता है वही पड़ता है। फिर वाणी हरियल तोता से बोली भैया तुम्हें मुझे कुछ अंगूर केला दो। हरियल तोता बोला, मौसी 1 दिन मैं तुम्हारे घर गया था तो तुमने मुझे बिठाया तक नहीं था? मैं कहता कहता थक गया मौसी में प्यार जाऊं, मैं प्याजा हूँ, मुझे ज़रा सा पानी पीला दो, पर नहीं तुमने मुझे एक बूंद पानी तक नहीं पिलाया। चानी चिड़िया बोली मौसी माफ़ करना हम सब मिलजुल कर प्रेम से रहे, यही अच्छा है, तुम देख ही रही हो की हम सब पक्षी आपस में कैसे भाई चारे से रहते हैं। तुम्हारी बुरी आदत है तुम दूसरों में फूट डलवाती हो, कभी किसी की सहायता नहीं करती। यही कारण है कि कोई तुम्हारी सहायता नहीं करता की समझ में अपनी गलती आ रही थी और वह बोली रहने दो अंगूर खट्टे हैं। मैं नहीं खाऊंगी। जानी चिड़िया कहने लगी, नहीं मौसी, अंगूर खट्टे नहीं है अमरकंटक बनके ये अंगूर तो दूर दूर तक प्रसिद्ध है तुम्हारे लिए मैं कुछ अंगूर गिराऊंगी उन्हें खाकर देख ना तब बताना की ये कैसे है? पर पहले वादा करो कि तुम कभी किसी को सताओगी नहीं। सभी की सहायता करोगी, सबके साथ प्रेम से रहोगी। वाणी भी अपनी गलती समझ रही थी। उसने सभी के सामने प्रतिज्ञा की कि अब वह सभी से सज्जनता का व्यवहार करेगी, सभी के साथ मिल जुल कर रहे गी और दूसरों की सहायता करेगी। उसकी इस प्रतिज्ञा से खुशी से अरे यार तोता जानी चिड़िया चीनू बंदा सभी ने पेड़ से खूब सारे अंगूर गिराए। बड़े ही मीठे थे अंगूर वाणी ने उन्हें चटखारे ले लेकर खाया, जो बचे वो अपनी बहन के लिए पोटली बांधकर रख लिया। पहले वाणी सभी से कहती थी कि अमरकंटक बनके अंगूर बड़े खट्टे हैं। क्योंकि वह किसी भी तरह उनको पा नहीं सकती थी, पर अब बस अभी से कहती है की अंगूर बड़े अच्छे हैं। सहयोग संगठन से वाणी के लिए खट्टे अंगूर भी मीठे बन गए थे तो बच्चों। इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है की हमें मिलजुल कर सब के साथ रहना चाहिए। सभी की सहायता करनी चाहिए। बुक के बाय।","सभी को नमस्कार, यह एक भूखी लोमड़ी और जंगल के अन्य जानवरों और पक्षियों की कहानी है। मैं सभी बच्चों को सोने के समय की कहानियां नैतिकता के साथ सुना रहा हूं। मेरी कहानियाँ अभिनव और प्रेरणादायक हैं। अपने बच्चों के साथ मेरी कहानियाँ सुनें। यह निश्चित रूप से आपके बच्चे के व्यक्तित्व के निर्माण में मदद करेगा।" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आप सब के लिए लाई हूँ उसका टाइटल है विश्वास का चमत्कार। गोलू यूं तो बहुत समझदार लड़का था लेकिन भूलने की आदत के कारण वह पूरी क्लास में हमेशा हँसी का पात्र बना रहता था। हर कोई उसे भुलक्कड़ भुलक्कड़ इसी नाम से पुकारा करता था। 1 दिन हिंदी के क्लास टीचर ने सभी को कुछ सवालों के उत्तर याद करके आने को कहा। गोलू ने सब कुछ याद भी कर लिया, लेकिन दूसरे दिन जब अपनी बारी पर गोलू से सवाल पूछे गए तो बेचारा हमेशा की तरह सिर खुजाते रह गया। शिक्षक ने उसे सजा दी और उसके दोस्तों ने भी उसका खूब मजाक उड़ाया। गोलू को उस दिन बहुत बुरा लगा। यही क्रम गणित और सोशल की क्लास में भी हुआ। जब कभी भी टीचर कोई सवाल याद करने को बोले तो गोललु उसे याद तो कर के आये लेकिन जब टीचर पूछे तो गोलू फिर भूल जाये। गोलू इन सब बातों से बहुत व्यथित हो गया और बहुत परेशान रहने लगा। छुट्टी होने के बाद वह गांव से थोड़ी दूर एक नदी के किनारे जाकर बैठ जाता। वहाँ आज कुछ ज्यादा ही दुखी था। उसी समय एक ऋषि वहाँ से गुजर रहे थे। नदी देखी तो प्यास बुझाने किनारे पर आ पहुँचे। उन्होंने देखा कि एकांत में कोई लड़का बैठा हुआ है। वे गोलू के पास पहुँचकर बोले बेटा तुम यहाँ अकेले क्या कर रहे हो? घोलू ने देखा कि पीले वस्त्रों में हाथ में कमंडल लिए, कंधे पर थैला लंबी सफेद दाढ़ी में एक बुजुर्ग उसके सामने आकर खड़े गोलू अपने गालों पर हाथ फेरता हुआ बोला कुछ नहीं। ऋषि ने उसके आंसू देख लिए थे। वह आश्चर्य से बोले अरे तुम तो रो रहे हो, वह खामोश आ वे फिर बोले कोई समस्या है मुझे बताओ बेटा शायद मैं तुम्हारी सहायता कर सकूँ। तब गोलू ने कहा मैं भुलक्कड़ हूँ, मुझे कुछ याद नहीं रहता, जो भी पड़ता हूँ सब भूल जाता हूँ। मुझे बोलने की आदत है इसलिए सब मेरा मजाक बनाते हैं। ऋषि ज़रा सा मुस्कुराए और कहने लगे। ओछो तो यह बात है, मैं तुम्हारी सहायता कर सकता हूँ। उन्होंने कहा कैसे? गोलू ने चमकती आँखों से पूछा अब गोलू को लगने लगा कि ऋषि जरूर उसकी सहायता करेंगे और अब वो भी दूसरे बच्चों की तरह पढ़ाई में आगे बढ़ पाएगा। ऋषि ने उसी समय अपने थैले में हाथ डाला और एक कागज की पुड़िया निकालकर गोलू के हाथ में दे दी। गोलू को देते हुए वह बोले, यह बुद्धि को तेज करने की औषधि है। रोज़ एक चुटकी। इसका सेवन करने से तुम्हारी बुद्धि कुशाग्र हो जाएगी। फिर तुम कुछ भी नहीं भूलोगे और हमेशा क्लास में अव्वल आओगे। गोलू प्रसन्न हो गया और उसे लेकर चला गया। मन ही मन गोलू खुश होते हुए अपने घर जा रहा था और यह निश्चय कर रहा था कि मैं भी अब क्लास में हमेशा अव्वल आऊंगा और दूसरे बच्चों को पीछे छोड़ दूंगा। कुछ महीनों में तो जैसे चमत्कार ही हो गया, उसका जीवन पूरी तरीके से बदल गया। अब उसे सब कुछ याद रहने लगा। उसके मित्र व शिक्षक आश्चर्यचकित ए। धीरे धीरे वह कक्षा में प्रथम आने लगा। उसकी छवि बिल्कुल विपरीत हो गई। सभी बच्चे व शिक्षक उसे प्रोत्साहित करने के लिए हमेशा उसकी तारीफ भी करने लगे। 1 दिन अचानक से रास्ते मैं गोलू को वहीं ऋषि फिर मिल गए। उन्हें देखकर वह फूला नहीं समाया। उसने उनके चरण पकड़ लिए और कहने लगा गुरुदेव चमत्कार हो गया, आपने तो मेरा जीवन ही बदल दिया। उन्होंने अनजान बनते हुए कहा। अरे ऐसा क्यों कर दिया मैंने और कौन हो तुम? अरे आपने मुझे नहीं पहचाना? मैं वही बालक हूँ जो आपको नदी के किनारे मिला था। आपने मुझे एक औषधि दी थी ना सचमुच उस औषधि से मेरी बुद्धि तेज हो गयी और मेरी भूलने की आदत भी खत्म हो गयी। गोलू बोला इस पर वे हंसने लगे। गोलू चकित होकर उन्हें देखने लगा। उसे लगा की पता नहीं ये ऋषि क्यों हस रहे हैं पर थोड़ी ही देर में ऋषि बोले वो कोई औषधि नहीं थी, वो तो मात्र शंकर का चूर्ण था। और तुम्हें कोई भूलने की बिमारी नहीं थी, बस तुम्हें यह लगता था की तुम भूल अक्कड़ों इसीलिए तुम जो कुछ भी पढ़ते थे वो भूल जाते थे। तुमने उस चूर्ण को औषधि समझकर खाया और विश्वास कर लिया कि इससे तुम अव्वल आने लगोगे और तुम्हारी भूलने की आदत खत्म हो जाएगी। सो उसने अपना चमत्कार दिखा दिया या मेरा नहीं बल्कि तुम्हारे विश्वास का चमत्कार है। गोलू आश्चर्यचकित रह गया। ऋषि उसकी पीठ थपथपाते हुए आगे चले गए। वह उन्हें जाते हुए देखता रहा। तो बच्चो ये थी गोलू की कहानी जब हमें अपने ऊपर विश्वास होता है तो हम बड़ी से बड़ी जीत हासिल कर लेते हैं, लेकिन यदि हमें अपने ऊपर विश्वास नहीं है तो हम हमेशा अपने को दूसरों से कम ही मानते हैं और आगे बढ़ने में हमेशा ही एक जाते हैं तो हमेशा हमें अपने ऊपर विश्वास रखना चाहिए। तभी हम जीवन में सफलता हासिल कर सकेंगे। ओके बाइ?","सभी को नमस्कार, यह एक लड़के की नैतिक कहानी है। लड़के को अपनी क्षमताओं पर भरोसा नहीं था। एक बार उनकी मुलाकात एक संत से हुई। संत ने उसकी समस्या को समझा और उसे एक दवाई दी। उसे लेने के बाद लड़का समझदार हो गया। जब वह उस संत के पास गया तो उसने उसे सच-सच बता दिया। दरअसल उसने उसे सिर्फ चीनी का पाउडर ही दिया था। केवल आत्मविश्वास और भरोसे ने ही उनका जीवन बदल दिया। पूरी कहानी सुनें और कहानी के नैतिक के बारे में जानें।" "हैलो बच्चों। आज जो कहानी मैं आपको सुनाने जा रही हूँ, उसका टाइटल है सुन्दर की उदारता। पीपल के पेड़ के नीचे सोनू कुत्ता चुपचाप बैठा था। उसे बड़ी तेज भूख लग रही थी। कहीं से खाना मिल जाये, यही सोचता हुआ वह बैठा था। तभी सुंदर कौआ उड़ता हुआ पीपल के पेड़ पर आ गया। उसकी जो जमें पूरी का एक टुकड़ा था, पूरी देखकर सोनू की भूख और भड़क उठी। सुंदर से किसी भी तरह से रोटी छीनी चाहिए। उसने मन ही मन सोचा। सोनू बोला, सुन्दर भाई मुझे पता ही न था की तुम इतना अच्छा गाते हो। आज तो बड़ी सभा में वनराज सिंह ने तुम्हारे गाने की प्रशंसा की है। एक गाना तो सुनाओ सुंदर और दिनों की भांति अपनी प्रशंसा सुनकर अभिमान से फूला नहीं, क्योंकि कई बार ऐसा हो चुका था कि सोनू कुत्ता, चिंटू, लोमड़ी, लाली, मुर्गी उसकी चापलूसी करके चालाकी से रोटी का टुकड़ा लेकर भाग गए थे। उनकी चालाकी अब सुंदर कौआ अच्छी तरह समझ गया था, इसलिए वह सतर्क हो गया था। रोटी का टुकड़ा बड़ी सावधानी से उसने अपने पंजे में दबाया, फिर बोला। भाई भूके पेट में तुम्हे अच्छा गाना नहीं सुना पाऊंगा। पहले रोटी तो खा लूँ, तब गाना सुनाऊंगा, सुंदर कौआ आराम से कुतर कुतर के रोटी खाता रहा सोनू पेड़ के नीचे बैठा ललचाई निगाहों से उसे देखता रहा। सोनू बहुत भूखा था, रोटी देखकर उसके मुँह से ला टपक रही थी। सुंदर के मन में आया की एक गुस्सा व सोनू को भी दे दे। और सोनू कई बार उसे धोखा देकर पूरी की पूरी रोटी छीनकर भाग चुका था। इसलिए इसे सबक मिलना ही चाहिए। सुंदर ने अपने मन में कहा। रोटी खा चुकने के बाद सुन्दर पूरी आवाज़ में चिल्ला या कहा कांव कांव कांव सोनू कुछ देर तो सुनता रहा, फिर चिल्ला या। बंद करो अपनाया बेसुरा राग सुन्दर बोला तुमने भी तो कहा तो गोंना सुनाने को, पर मैं तो भूखा हूँ भूखे पेट गाना सुनना भी अच्छा नहीं लगता सोनू ने कहा तू तुम खाने की तलाश क्यों नहीं करते? सुंदर ने कहा सोनू सकुचा गया। उससे कुछ उत्तर देते ही ना बना, वह तो अधिकतर दूसरों की रोटी छीन झपट कर ही खाता था। सोनू दादा अपनी मेहनत से कम आ कर खाओ, सुंदर बड़ी गर्व से बोला। पर भाई आज तो मुझे खाना कहीं भी नहीं मिला। सोनू झूठ मूठ बहाना बनाने लगा। मैं बताता हूँ तुम्हें यहाँ से पूर्व की ओर चले जाओ। वहाँ शिवजी का एक मंदिर है। आज सुबह सुबह बहुत से यात्री वहाँ आए थे। उन्होंने वहाँ खाना बनाकर खाया था। उनका बहुत सा भोजन वहाँ अभी भी पड़ा हुआ है। मैं भी रोटी वही से लाया हूँ सुन्दर बोला सोनू को सहजा विश्वास ना हुआ। तुम ज़रा पांच जाकर कष्ट उठाकर देखो तो सही। माँ कुछ भी नहीं होगा सोनू ने ऐसा कहा। पर सुंदर ने सोनू की बात को काटते हुए कहा, ऐसा नहीं है तुम वहाँ जाने का कष्ट तो करो जाओ देखो जाकर वहाँ पे जरूर खाना मिलेगा। लाचार खाने की आस में सोनू उसी ओर चल पड़ा पर वह बहुत डरते डरते जा रहा था। वह सोच रहा था कि कहीं सुंदर उसके विरुद्ध कोई षडयंत्र न रच रहा हो। उससे बदला न ले रहा हूँ तभी उसने भर भर की आवाज सुनी जरूर ऐसा ही है। उसने सोचा और तेजी से उल्टा वापस लौटने लगा। कुछ दूर आकर सोनू रुका। सहसा उसने गांव की आवाज़ सुनी। फिर उठाकर ऊपर देखा तो सामने सुंदर का हुआ पेड़ पर बैठा था तो मुझे धोखा दे रहे हैं। वह सुंदर पेड़ों के पीछे शिकार ही बैठे है तो मुझे फंसाना चाहते हो। सोनू बोला सोनू की बात सुनकर सुन्दर खूब हंसा और फिर बोला मैं तुम्हें धोखा नहीं दे रहा हूँ। तेज हवा से पेड़ों के पत्ते भर भर की आवाज़ कर रहे हैं इसलिए तुम्हें वहाँ शिकारी होने का भ्रम हो गया है। तुम सदैव मुझे धोखा देते रहे हो इसलिए तुम सोच रहे हो की तुम्हे मैं भी धोखा दूंगा। जो जैसा होता है, वह दूसरों के प्रति भी वैसा ही सोचता है। मैं बुरे के साथ बुरा नहीं करता। मैं तो सदैव सबकी अच्छा ही देखता हूँ। सोनु यह सुनकर बड़ा लज्जित हुआ, सुन्दर की बात ठीक ही थी। फिर सोनू सुंदर के साथ शिवजी के मंदिर के पास गया। वहाँ बहुत सारा खाना पड़ा था। देख लो मैं झूठ नहीं कह रहा था सुन्दर बोला सोनू तेजी से खाने पर झपट पड़ा, खूब भरपेट उसने खाना खाया, सुंदर का काम करता चारों ओर घूम रहा था। सुन्दर भाई आज तुमने मेरी आँखें खोल दी, अब मैं किसी को धोखा नहीं दूंगा, अपनी मेहनत से कमाकर खाऊंगा, बेकार का डर छोड़ दूंगा सोनू कहने लगा। चलो तुम सही रास्ते पर तो आ गए। सुंदर ने कहा और वह काम काम करते हुए उड़ता हुआ चला गया तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें सभी के साथ अच्छा व्यवहार करना चाहिए और किसी को भी धोखा नहीं देना चाहिए। ओके बाइ?","यह एक दयालु कौवे की कहानी है। कौआ भूखे कुत्ते की मदद करता है, जब तक कि कुत्ता हमेशा कौवे को धोखा न दे। यह एक नैतिक कहानी है। बच्चों को दूसरों की मदद करने की प्रेरणा मिलती है। यह निश्चित रूप से उनमें मदद करने वाला स्वभाव विकसित करेगा।" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आप सब के लिए लाई हूँ, उसका टाइटल है पेड़ की उदारता। शरद ऋतु ति सुहावना मौसम था। रात में शीतल वायु बहती हरसिंगार के ढेरों फूल झरझर करके गिरते। हरसिंगार के उस पेड़ के नीचे ही पत्थर की एक बड़ी सी शीला थी। अधिकांश फूल उसी पर गिरते पत्थर की शिला को बड़ा गुस्सा आता। उसने कई दिन उस पेड़ को चेतावनी दी। देखो अपने फूलों को मुझ पर ना गिराया करो, अच्छी बात न होगी। और इसके उपरांत भी प्रतिदिन यही घटना घटती। अब पत्थर की शिला गुस्से से भर उठी। ठीक है इस अपमान का बदला तो लेकर ही रहूंगी। उसने अपने आप से कहा और दूसरे ही दिन से शिला ने फूलों को कुचलना प्रारंभ कर दिया। नन्हे नन्हे फूल झड़ते शीला निर्ममता से उन फूलों को कुचल देती, फूलों का झड़ना तब भी बना हुआ। शीला सोच रही थी कि फूलों को यह कुचलते जाते देखकर पेड़ उस से माफ़ी मांगेगा, उसके ऊपर फूल गिर ना बिल्कुल बंद हो जाएगा पर फूल तो जइयो के त्यों गिरते ही रहे उल्टे शिला ही फूलों को कुचलते, कुचलते थक गयी। आखिर उससे रहा न गया। उसने पेड़ से पूछा ही। क्यों तुम देखते नहीं की तुम्हारे फूलों को हमेशा कुचल डालती हूँ, और तुम फिर भी ढेरों फूल मुझ पर डालते ही रहते हो या फूलों के यो नष्ट होने से तुम्हें पीड़ा नहीं होती? पेड़ हंसा और बोला। दीदी, मैं सोच लेता हूँ की तुम मेरा उपकार ही कर रही हो। तुम फूलों को कुचलकर उनकी सुगंध और दूर दूर तक फैला देती हो। पीड़ की इस महानता के सामने खिला नतमस्तक हो गई। वह उसके सामने अपने आप को बहुत छोटा अनुभव करने लगी। वह पश्चाताप से भर उठी। सोचने लगी, ओह, बुरा करने वालों के लिए भी इसके मन में कोई दुर्भावना नहीं है। सामान्य रूप से तो ज़रा सा बुरा करने वाले को हम अपना शत्रु ही मान लेते हैं। कैसा उदार दृष्टिकोण है इसका? वह पेड़ से बोली भैया मुझे माफ़ करना मैं तुम्हारे जैसी महान तो नहीं हूँ, मैं तो बड़ी अधम हूँ मैंने तो बड़े ही गुस्से में भरकर तुम्हारे उन फूलों को कुचला और मसला था। पेड़ उसकी बात सुनकर कुछ पल चुप रहा। फिर वह दूर क्षितिज की ओर देखते हुए मानो अपने आप से ही कह रहा हो। ऐसे धीमे स्वर में वह बोला। हर बार के दो पहलू होते हैं अच्छा और बुरा। यदि हमारा स्वभाव बुरा ई खोजने का ही बन जाता है तो हमारा जीवन कुढ़न खीज असंतोष से भर उठता है। न हम किसी पर विश्वास कर पाते हैं और ना कोई हम पर। यह तो बिल्कुल ठीक कहते हो तुम? शीला बोलीं। पेड़ आगे कहने लगा और जब हम बुरा ई में भी भलाई पक्ष खोज लेते हैं तो यहाँ आवश्यक नहीं कि बुरा करने वाले का हम उस समय ही प्रतिकार कर पाए। पर इतना तो कर सकते हैं कि उसका बुरा पक्ष बार बार देखकर अपने विचारों को उत्तेजन और घृणा से दूषित न बनाएं। अपनी शक्तिओं को व्यर्थ न करें। इस पर शीला कहने लगी तुम जैसा कोई महान ही ऐसा कर सकता है। वृक्ष फिर हंसा और बोला बहन जन्म से न तो कोई महान होता है, ना कोई तुच। हम जैसा सोचते हैं जैसा करते हैं वैसे ही बन जाते हैं। बड़ों की महानता के पीछे विचारों की उच्चता आचरण की पवित्रता ही होती है। असंभव कुछ भी नहीं है। प्रयास करने से हर कोई वैसा बन सकता है। वृक्ष की बातों से। पत्थर की वह शिला बड़ी प्रभावित हुई। कहने लगी बॉल तुम तो बड़े ज्ञानी हो, परोपकारी हो, आज तुमने मुझे जीवन जीने की सही दिशा दिखाई है। मैं भी अपने अनुसार चलने का पूरा पूरा प्रयास करूँगी। अपने जीवन को सफल और सार्थक बनाउंगी तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि अच्छा और। महान बनने के लिए कोई बहुत मेहनत करने की आवश्यकता नहीं होती, बस अपने विचारों को उच्च करना चाहिए। यदि हम अपने विचारों को उचित करते हैं, अर्थार्थ, घृणा आदि दोषों से दूर रखते हैं तो हम निश्चित रूप से जीवन पथ पर आगे बढ़ सकते हैं। ओके बाइ?","सभी को नमस्कार, यह एक पेड़ और एक पत्थर की कहानी है। पत्थर बहुत कठोर होता है और सोचता है कि वह पेड़ से भी ज्यादा ताकतवर है। यह उस पर पेड़ के फूलों के शेड को बर्दाश्त नहीं करता है. आप जानेंगे कि पेड़ कैसे पत्थर को सबक देता है। पूरी कहानी सुनें और कहानी के नैतिक के बारे में जानें।" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपको सुनाने जा रही हूँ उसका टाइटल है अपना और पराया। मनोहर वन में एक बार बहुत जोरो का तूफान आया वैसा पहले ना किसी ने देखा था और ना ही सुना था। मूसलाधार पानी बरस रहा था, रह रहकर बिजली कड़क रही थी। हवा इतनी तेज थी कि सभी को उड़ाया लिए जा रही थी। वृक्षों के कोटरों में रहने वाले नन्हें पक्षियों के दिल काँप उठे। उस भयंकर तूफान में वृक्ष भी ना खड़े रह पाए और एक एक करके भी गिरने लगे। जैसे जैसे तूफान खत्म हुआ पक्षी डरते डरते अपने अपने घोसलों से निकले। पूरे वन में 10 पक्षी ही जीवित थे, शेष सभी उस तूफान की भेंट चढ़ चूके थे। अपने अपने संबंधियों के शोक में फिर सभी रोने लगे। 2 दिन तक उन्होंने खाने की ओर मुँह तक नहीं उठाया। पूरे के पूरे वन में बस एक बरगद दादा ही बचे थे और सारे वृक्ष तूफान में गिर चूके थे। बरगद दादा से पक्षियों का दुख दिखाना गया। उन्होंने प्यार से सभी को अपने पास इकट्ठा किया और बोले। बच्चों जैसी भी इस्थिति है उसका धैर्य से सामना करो। सोचो भगवान की इस लीला के आगे अब किया भी क्या जा सकता है सुख और दूँ कि या तो जीवन में निश्चित रूप से आते ही है उठो साहस से स्थिति का सामना करो, दुख को भी भगवान के प्रसाद के रूप में ले लो और नए सिरे से निर्माण में जुट जाओ। दूसरा जीवन। तुम्हारा अद्भुत और जगमगाएगा। रजत कबूतर को वट दादा की ये बातें तनिक भी अच्छी ना लगी। वह बोला। दादाजी, मेरे बहू, बेटे, बच्चे सभी तो तूफान में चले गए। अब आप ही बताइए की मैं भला जी हूँ तो किसके लिए? मैं तो आपकी डाली मैं फंस जाऊंगा। यह कहकर वह सचमुच बरगद के पेड़ की डाल पर लटकने लगा। पट दादा का तो दिल्ही कांप गया। उसे अपनी गोद में छुपाते हुए वे बोले ना बेटा। ऐसा बुरा काम न करो। फिर और पक्षियों को समझाते हुए बोले देखो संसार मेँ कोई अपना है और ना ही कोई पर आया जिससे हम अपना मानकर चलते हैं। जिसके साथ अच्छा व्यवहार करते हैं वही हमारा बन जाता है। जिसके साथ हम बुरा व्यवहार करते हैं वहीं पर आया बन जाता है हमारा परिवार ये हमारा घर नहीं है, केवल पूरा संसार हमारा घर है। तुम सभी आपस में मिलजुल कर परिवार की भांति रहो। तुम सभी के अकेले पन का संबंधियों के चले जाने का दुख धीरे धीरे दूर हो जाएगा। सभी पक्षियों को वट दादा की यह बात अच्छी लगने लगी। आखिर कोई भी तो ऐसा नहीं था जिसके घर में कोई। चला ना गया हो। अतएव सभी पक्षी उसी दिन से मिलजुलकर वाट के उस विशाल वृक्ष पर रहने लगे। सभी आपस में प्यार भरा व्यवहार करते थे, एक दूसरे की सहायता करते थे, मिलजुल कर काम करते थे। कल्लू को हुआ वहाँ खाने पीने की चीजें देखता तो कहाँ कहाँ करके सभी को जुटा लेता श्यामा कोयल सभी के लिए मीठे मीठे आम तौर लाती। हरियल तोता दूर दूर जाकर अनार और अमरूद ले आता रजत कबूतर अनाज के दाने इकट्ठा करके ला देता बस एक श्वेत आप सारा सी ऐसा था जो कुछ भी काम ना कर पाता। वह वास्तव में बहुत बूढ़ा था। उसे कम दिखता था। काम करने में उसकी गर्दन कांपती थी। शुरू शुरू की बात है वह और पक्षियों से कुछ भी ना लेता था। कहता था कि औरों पर भार नहीं बनेगा, जो कुछ भी जैसे भी जुटा पाता, खा लेता। और 1 दिन रजत कबूतर से यह देखा न गया। वह बोला दादा जी क्या बच्चों का यह फर्ज नहीं है कि वे बूढ़े माँ बाप की सेवा करें या आपके बच्चे होते तो आप इस प्रकार कष्ट पाते? उसके बाद बीच में ही काटकर श्वेता बोला। आखिर जरूरत? किस बात की है? जरूरी तो नहीं कि वह मेरी सेवा करते ही रहते? देश में भरकर रजत फिर कहने लगा, ओह दी है बच्चों को जिनके लिए माता पिता जीवन भर त्याग करते हैं और बड़े होने पर उनकी परवाह तक नहीं करते वे ऐसे बच्चों से तो बच्चे ना हो तो ही अच्छा है। दो पल रुककर रजत फिर कहने लगा पर दादा जी हम आपके नालायक बच्चे नहीं है, यदि आप हमें पराया नहीं समझते, आप हमें ज़रा भी स्नेह करते हैं तो आप हमारी सेवाएं ले लीजिए। श्वेता आपकी आँखों में खुशी के आंसू भर आए और सोचने लगा कि मेरे अपने भी बच्चे होते तो क्या वे इतना ध्यान रख पाते? तभी वहाँ कूदकर श्यामा, कोयल, चतुरी में ना कल्लू कहूंगा। महादेव, नीलकंठ आदि सभी पक्षी आ गए। महादेव कहने लगा। दो दो जी अब आपको खाना खोजने के लिए कहीं नहीं जाना पड़ेगा। यह सभी आपको थोड़ा थोड़ा खाना लाकर देंगे, बस आप का पेट भर जाएगा। खुशी से श्वेता आपका कंठ गदगद हो गया और वह एक शब्द भी उनके आगे ना बोल पाया। 1 दिन जब सभी साथ साथ खाना खा रहे थे तो श्यामा कोयल बोली। हमे ऐसा लगता है की आजकल वट दादा बड़े उदास रहते हैं। हमको भी कई दिनों से ऐसा अनुभव हो रहा है। लगता है वे अपनी गंभीरता में कोई दुख छुपाये है सभी एक पक्षी एक ही स्वर में बोले। चलो चलकर उनसे पूछते हैं रियल तोता बोला। खाना खाने के बाद सभी वट दादा को घेरकर बैठ गए और उनकी उदासी का कारण पूछने लगे। बड़ी देर तक वे नाना करते रहे। बहुत आग्रह करने पर बोले बच्चों मैं कभी कभी यही सोचता हूँ। की 1 दिन ये जगह कैसी चहल पहल से भरी हुई थी। अब तो यहाँ पर चारों ओर धूल ही धूल उड़ती दिखाई देती है। और दादाजी हम सब तो सुबह ही काम पर निकल जाते हैं, साये साये करती सुनीं। दोपहर में आपको बहुत ही अकेलापन लगता होगा ना? श्यामा कोयल बड़े भोलेपन से अपनी आंखें बंद दादा पर टिकाकर बोली। सो तो होगा ही। बट दादा एकदम बोल पड़े। सभी पक्षियों ने उनका समर्थन भी किया। श्वेता अब सारस कहने लगा। दादाजी, आप हमारे प्राण रक्षक है, जीवनदाता है यदि हम आपका दुखन दूर कर पाए तो देख कार हमे हम जल्दी ही आप के चारों ओर एक नई बस्ती बसा देंगे, आशीर्वाद दीजिए कि इस प्रयास में सफल हो। इसके बाद श्वेता अपने सभी पक्षियों को कुछ समझाया। बस फिर क्या था दूसरे दिन से अभियान शुरू हो गया। रजत कबूतर कल्लू का हुआ। श्यामा कोयल, हरियल, तोता आदि जो भी वापस लौटता उसकी जोज में जरूर कुछ ना कुछ विशेष चीज़ लगी होती। कभी वे कोई पका हुआ बेर ले आते। तो कभी आम कभी अनार ले आते तो कभी उनकी जो जमें पीपल की कोई टहनी ही लगी होती। वॉट? दादा के आसपास की जमीन को पंजों से भी थोड़ा थोड़ा खोदते फिर कभी उसमें बीज डाल देते तो कभी कोई नहीं घड़ा देते। 1520 दिन बाद वर्षा ऋतु भी आ गई और कुछ ही दिनों में बरगद के चारों ओर हरियाली उग आयी। नन्ही नन्ही दूर घास का गलीचा बीच गया। कहीं नीम, कहीं पीपल, कहीं बेरियाँ तो कहीं जामुन, कहीं अनार के पौधे उगाए तरह तरह के फूलों के पौधे भी उग आने लगे। कुछ ही वर्षों में वे सभी खूब बड़े बड़े हो गए। अब तो वहाँ दूसरे पक्षी भी आकर अपना बसेरा बस आने लगे। कुछ ही समय में पेड़ों पर पक्षियों की अच्छी खासी बस्ती ही बस गई। श्वेता आप, सारस और वट दादा ने रजत कबूतर, श्यामा कोयल, महादेव, नीलकंठ, हरियल, तोता, कल्लू कुआं आदि सभी का विवाह भी करा दिया। उनके नन्हे नन्हे बच्चे अब दादा की कोटर में रहते थे। सारस दादा पास ही तलैया पर बैठे बैठे सभी की रखवाली किया करते थे। 1 दिन रजत कबूतर फँस करवट दादा से बोला क्यों दादा जी, अब तो दोपहर में आपको सुना पर नहीं लगता होगा ना बतियाने को? अब तो आप के चारों ओर ढेर सारे पेड़ पौधे हैं। व्हाट दादा भी मुस्कुराकर बोल पड़े और भाई तुम्हारा भी खूब मन लग गया ना, अब तो मेरी दाल में गर्दन फंसाने की कोशिश नहीं करोगे ना? दादा और रजत की चुहलबाजी से सभी पक्षी मुस्कुरा उठे। उन्हें सहसा ही तूफान वाला दुनिया दा गया। बेमानी मन सोच रहे थे कि जब हम एक दूसरे को पढ़ाया समझ लेते हैं तो दुखी दुख पाते हैं। सबको अपना बना कर चलने में ही जीवन का सच्चा सुख है। धैर्य और विवेक से मिलजुल कर काम करने में बुरी से बुरी स्थिति भी दूर हो जाती है। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है की हमे सभी के संग आत्मीय भरा व्यवहार करना चाहिए और किसी को भी पराया नहीं समझना चाहिए। ओके बाइ?","यह एक जंगल की कहानी है। एक बार जंगल में वज्रपात हुआ। उस आंधी में अधिकांश पशु, पक्षी और पेड़ नष्ट हो गए हैं। केवल कुछ पक्षी और एक पुराना पेड़ ही बचा है। कहानी सुनें और जानें कि कैसे वे पक्षी और पेड़ फिर से उस जंगल को हरियाली और पक्षियों से भर देते हैं।" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपको सुनाने जा रही हूँ उसका टाइटल है तीन मित्र काली कौआ आज बड़ा उदास था। किसी काम में उसका मन ही नहीं लग रहा था। कभी वह पर बैठता तो कभी उस पेड़ पर काम करता होगा। बेचैन सा घूम रहा था। वो घूमने चले बूढ़े गिद्ध ने कहा। नहीं काका, अभी मैं नहीं जाऊंगा। कहकर काली का हुआ फिर उदास सा बैठ गया। असल में वह अपने मित्र सुंदर हिरण का इंतजार कर रहा था। 2 घंटे हो गए पर सुन्दर नहीं आया। काली कौआ घबराहट से भर उठा। कहीं ऐसा तो नहीं कि सुंदर हिरण किसी शिकारी के चंगुल में फंस गया हो? हिरणों के पीछे शिकारी पड़े ही रहते है। जंगल के जानवर और पशु पक्षियों का जीवन उनके कारण बड़े खतरे में रहता है। ना भी काली कुएं ने देखा कि सामने से सुंदर हिरण चला आ रहा है। नमस्ते कौएभाई सुन्दर बोला काली ने मुँह फेरा लिया। उसे बड़ा गुस्सा आ रहा था। क्या बात है आज तुम कुछ बोल क्यों नहीं रहे हो? सुंदर निर्णय फिर पूछा काली अब भी कुछ ना बोला लो मैं तो तुम्हारे लिए इतनी दूर से दौड़ता, हांफता चला आ रहा हूँ, रास्ते में कहीं रुका तक नहीं। मेरी सांस फूल रही है और एक तुम हो कि मुँह फुलाए बैठे हो, अब तो सुन्दर को भी बहुत गुस्सा आने लगा था। कम क्यों आए हो? नाते आने की जल्दी ही क्या थी? गाली ने कहा, मुझे क्या पता था कि तुम बोलोगे तक नहीं? नहीं तो मैं ना आता सुंदर कहने लगा सुबह से ही तो आंख फाड़ फाड़कर तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूँ, कहाँ चले गए थे? तुम इतनी देर क्यों लगा दी? गाली का गुस्सा अभी भी कम नहीं हुआ था। आज मुझे अपनी पत्नी के साथ जबरदस्ती घूमने जाना पड़ा, घूमते घूमते बहुत दूर निकल गए वहाँ से लौटने पर सीधा तुम्हारे ही पास दौड़ता दौड़ता आ रहा हूँ सुन्दर बोला। ओह तो जाओ पत्नी के साथ ही घूमो दोस्त की, तुम्हे चिंता भी क्या है? काली बड़े गुस्से में बोला और मुँह फिर आकर बैठ गया। अब सुन्दर को भी गुस्सा आ गया। ठीक है नहीं बोलना तो मत बोलो मैं चला। उसने कहा और पास की झाड़ी में मुँह लटका कर बैठ गया। सुंदर बहुत थका था, बैठते ही उसे नींद आ गई। जब उसकी आंख खुली तब उसने अपने गले में रस्सी का एक बन्दा पड़ा पाया। एकाएक को समझ ही नहीं पाया कि यह क्या हुआ? तभी उसकी निगाह झाड़ी के पास खड़े एक शिकारी पर गयी। अब सुन्दर की समझ में आ गया कि वह शिकारी की गिरफ्त में फंस चुका है। शिकारी अपने हाथ में रस्सी की डोर था, मैं पढ़ रहा था उसके पीछे पीछे उदास सुंदर मुँह लटकाए चला जा रहा था। उसकी समझ में नहीं आ रहा था की क्या करे। तभी काली कौए ने पेड़ पर बैठे हुए यह दृश्य देखा। बहुत तुरंत होता हुआ सुंदर के पास जा पहुंचा। सुंदर सोच रहा था कि वह काली से कुछ देर पहले बड़े कड़वे अपने ढंग से बात करके आया है। इसलिए काली उससे नहीं बोले गा पर यह उसका भ्रम ही निकला। काली का काम करता हुआ कह रहा था, घबराना नहीं मित्र, मैं तुम्हें छुड़ाने का कोई उपाय सोचता हूँ, घबराना नहीं। गाली तुरंत उड़ता हुआ भासुर हिरण के पास गया। भासुर ने पूरी कथा सुनकर कहा और मैं सुंदर की कैसे कर सकता हूँ? काली ने उसे बड़ा अच्छा उपाय सुझाया। उसे सुनकर बात सुन बड़ा ही प्रसन्न हुआ। दोनों सुंदर को छुड़ाने के लिए चल पड़े। काली आगे आगे चलकर रास्ता दिखा रहा था। दोनों ने देखा कि शिकारी धीरे धीरे चल रहा है। बांसुरी, हिरण रास्ते में सांस रोककर लेट गया। शिकारी की निगाह भासुर पर पड़ी। अरे आज तो खूब शिकार मिल रही है। आज तो बड़ा ही शुभ दिन है। वह खुशी से चिल्ला या जिंस रस्सी से सुंदर हिरण बंधा था। उसी के दूसरे सिरे से उसने बस उसको बांधना चाहा और तभी एकाएक बांसुरी छलांग लगाकर भाग गया। शिकारी चौंक उठा। उसके हाथ से रस्सी का सिर छूटने लगा। तभी काली कुएं में जाकर तेजी से उसकी नाक पर अपनी चोंच मारी। शिकारी की नाक से खून निकलने लगा। वह दर्द के कारण कराह उठा। उसके हाथ से रस्सी छूट गई। सुंदरण रस्सी सहित तेजी से जंगल में भाग गया। यह देखकर शिकारी करने लगा। अरे मैंने ज़रा से लूप के कारण ही रणवीर खो दिया और 80 भी ना मैं दूसरे हिरण के लालच में पड़ता और ना ऐसा होता सच्ची है कि लाल जी का हमेशा नुकसान ही होता है। लोग के कारण हानि उठानी पड़ती है। सुंदर और बांसुर हिरण तथा काली कौआ जब खूब दूर पहुँच गए तो एक पेड़ के नीचे जाकर बैठे। सुन्दर कहने लगा। मैंने तो सोचा था कि काली तुम मुझ से बोलोगे भी नहीं क्योंकि मैंने कटु वचन बोले थे। काली कहने लगा। पर तुम संकट में थे विपत्ति में, बैरभाव भुला कर मित्र की सहायता करनी चाहिए जो मित्र की ज़रा सी बात का बुरा मान जाए और आपत्ति में पड़ने पर मुँह फेरा ले वो कैसा मित्र? वे तो मात्र केवल मित्रता का ढोंगी हैं। भासुरी बोला, जीवन में सच्चे मित्र बड़ी कठिनाई से मिलते हैं। भाई जो सच्चे मित्र पा लेता है, वह बड़ा ही भाग्यवान होता है, उसे विपत्तियां भी विपत्ति जैसी नहीं लगा करती। सुख दुख दोनों ही स्थितियों में उसके मित्र भागीदार होते हैं। हमारी मित्रता ऐसी ही पक्की हो कहकर तीनों ने हाथ मिलाया। फिर सभी प्रसन्न मन से अपने अपने घर लौट गए। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है की मित्रता में दिखावे का कोई स्थान नहीं होता और सच्चे मित्र सुख दुख हर एक परिस्थिति में भागीदार होते है। ओके बाइ?",यह तीन दोस्तों की कहानी है। एक कौआ और दो हिरण मित्र हैं। इस कहानी में मैं आपको बताता हूं कि कैसे वे अपने दोस्त को शिकारी से बचाते हैं। "क्या आप भी अपना पॉडकास्ट बनाने का सोच रहे हैं? तो ऐंकर ट्राई कीजिए, ये पॉडकास्ट बनाने का सबसे आसान तरीका है। नंबर एक ये फ्री है नंबर दो। इसमें कई सारे ऐसे टूल्स है जो आपको अपने फ़ोन और कंप्यूटर पर रिकॉर्ड और एडिट करने की फैसिलिटीज देते हैं। नंबर तीन आप अपने पॉडकास्ट को डिस्ट्रीब्यूट भी कर सकते हैं, जिससे इसे इस स्पॉटिफाइ और दूसरे प्लैटफॉर्म्स पे सुना जा सकें। डाउनलोड कीजिये ये फ्री एंकर ऐप या विजिट कीजिए ऐंकर डॉट ऐफ़ एम अपना पॉडकास्ट स्टार्ट करने के लिए? हमारा भारतवर्ष त्योहारों का देश है। यहाँ समय समय पर अनेक त्योहार मनाये जाते हैं। दीपावली का त्यौहार सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण त्यौहार कहा जाता है। दीपावली से 2 दिन पहले धनतेरस का पर्व आता है। धनतेरस का पर्व क्यों मनाया जाता है और उसका क्या महत्त्व है? कौन सी पौराणिक कथाएं इसके पीछे है, आइए जानते हैं आज। कार्तिक मास की कृष्ण त्रयोदशी को धनतेरस कहते हैं। ये त्योहार दीपावली आने की पूर्व सूचना देता है। इस दिन नए बर्तन खरीदना शुभ माना जाता है। धनतेरस के दिन यमदेव और भगवान धनवंतरी की पूजा भी की जाती है। भारतीय संस्कृति में स्वास्थ्य का स्थान धन के ऊपर माना जाता है। यह कहावत आज भी प्रचलित है कि पहला सुख निरोगी काया, दूजा सुख घर में माया। इसलिए दीपावली में सबसे पहले धनतेरस को महत्त्व दिया जाता है जो भारतीय संस्कृति के परिपेक्ष्य में बिल्कुल अनुकूल भी है। शास्त्रों में वर्णित कथाओं के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान कार्तिक कृष्ण चित्र ञयोदशी के दिन भगवान धन्वंतरि अपने हाथ में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए। मान्यता है कि भगवान धनवंतरी विष्णु के अंशावतार ही है। संसार में चिकित्सा विज्ञान के विस्तार और प्रसार के लिए ही भगवान विष्णु ने धनवंतरी का अवतार लिया था। भगवान धनवंतरी के प्रकट होने के उपलक्ष्य में ही धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है। धनतेरस के दिन हमें अपनी सामर्थ्य के अनुसार किसी भी रूप में चांदी अथवा अन्य धातु खरीदना चाहिए। यह अत्यंत ही शुभ माना गया है। धन संपत्ति की प्राप्ति हेतु कुबेर देवता के लिए घर के पूजा स्थल पर दीप दान करें एवं यमदेव के लिए मुख्य द्वार पर भी दीपदान करें। धनतेरस से जुड़ी हुई एक कथा अत्यंत प्रचलित है। कथा के अनुसार देवताओं को राजा बलि के भय से मुक्ति दिलाने के लिए भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया और राजा बली के यज्ञ स्थल पर पहुँच गए। शुक्राचार्य जो कि असुरों के गुरु थे, उन्होंने वामन रूप में भी भगवान विष्णु को पहचान लिया। और राजा बलि से आग्रह करने लगे कि वामन कुछ भी मांगे तो उन्हें इनकार कर देना। वामन साक्षात भगवान विष्णु ही है, जो देवताओं की सहायता के लिए तुमसे कुछ भी पाने के लिए आ रहे हैं। बलिनी शुक्राचार्य की बात नहीं मानी भगवान द्वारा मांगी गयी तीन पग भूमि दान करने के लिए कमंडल से जल लेकर संकल्प करने लगे। बलि को दान करने से रोकने के लिए शुक्राचार्य राजा बली के कमंडल में लघु रूप धारण करके प्रवेश कर गए। इससे कमंडल से जल निकलने का मार्ग बंद हो गया। बामन भगवान शुक्राचार्य की इस युवती को समझ गए थे। भगवान बामन ने अपने हाथ में रखे हुए कुशा को कमण्डल में ऐसे रखा कि शुक्राचार्य की आंख में उसका 1 दिन का लग गया, जिससे उनकी आंख आहत हो गई। शुक्राचार्य छटपटाकर कमण्डल से बाहर निकल गए। इसके बाद बलि ने तीन पग भूमि दान करने का संकल्प ले लिया। तब भगवान बामन ने अपने एक पैर से संपूर्ण पृथ्वी को नाप लिया और दूसरे पैर से अंतरिक्ष को तीसरा पग रखने के लिए कोई स्थान न होने पर बलि ने अपना सिर भगवान वामन के चरणों में रख दिया। बलि दान में अपना सबकुछ गंवा बैठे। इस तरह देवता भय से मुक्त हुए और बलि ने जो संपत्ति, धन, ऐश्वर्य, देवताओं से छीन लिया था, उससे कई गुना अधिक धन संपत्ति देवताओं को मिल गई। इस उपलक्ष्य में भी धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है। तो यह था धनतेरस के आज के त्योहार का महत्त्व।","सभी को नमस्कार, कई त्यौहार हैं। हर कोई अलग-अलग प्रकार के त्योहार मनाता है लेकिन दिवाली सबसे बड़ा त्योहार है। यह रोशनी का त्योहार है। दिवाली से पहले हम धनतेरस मनाते हैं। क्यों है यह त्यौहार महत्वपूर्ण और क्या है इसे मनाने के पीछे की कहानी? पूरी कहानी सुनें और इसके बारे में जानें।" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपको सुनाने जा रही हूँ, उसका टाइटल है मंत्री का चुनाव। अब अभयारण्य में। भा। सूरत नाम का एक सिंग रहता था। वह बड़ा ही शक्तिशाली था। उसने वहाँ के सिंह राजा को युद्ध में हरा दिया था क्योंकि वह जंगल के जानवरों पर अत्याचार करता था। जो उसकी चापलूसी करते थे बस उन्हें ही वो पसंद करता था। बहादुर और उसके स्थान पर अब स्वयं राजा बन गया था 1 दिन भास्कर रखने सोचा की इतने बड़े राज्य पर तो अकेले शासन करना बड़ा कठिन है। किसी साफ बात करने वाले और बुद्धिमान जानवर को मंत्री बनाया जाए। जिससे की वह अच्छी सलाह दे और राज्य का हित भी हो। 1 दिन सिंह ने घर से यह सोचकर कदम बढ़ाया कि आज जरूर मंत्री का चुनाव करेगा। राज्यसभा में पहुँचकर उसने आदेश दिया कि जंगल के सभी जीव जंतु तुरंत यहाँ एकत्रित हो जाए। फिर क्या तुम सारा जंगल ही उमड़ पड़ा? रीच भालू, हाथी, चीता, लोमड़ी, गीदड़ कुत्ता। आदेश सभी अपने नियत स्थानों पर आकर बैठ गए। सिंह कहने लगा, भाइयों और बहनों, मैंने आज एक विशेष कारण से तुम्हें बुलाया है। पड़ोसी राजा ने उपहार में इत्र भिजवाया है। सारे दरबार में वह छिड़कवाया गया है। तुम सब को उसकी सुगंध आ रही होगी। बहुत अच्छी सुगंध आ रही है। कितने दिन को प्रसन्न करने वाली है? चिंटू खरगोश सिंह की बात बीच में काटता हुआ ही बोल पड़ा। साथ ही वह ना तुने ज़ोर ज़ोर से सिकोड़कर गहरी सांसें भर रहा था जैसे सारी की सारी सुगंध को अपने अंदर भर लेने की कोशिश कर रहा हो। यूँ तो चिंटू खरगोश सारे जंगल में अपनी चापलूसी के लिए प्रसिद्ध ता सभी उसकी आदत जानते थे पर आज तो इस बात पर सभी उसकी शक्ल देखने लगे। जम्मू। सियार सोचने लगा की क्यों ना मैं भी इसकी हाँ में हाँ मिला हूँ। फिर मैं भी राजा का कृपा पात्र बन जाऊंगा। उसने भी खड़े होकर और भी अधिक ज़ोर ज़ोर से कहा महाराज आज तो सौरव दरबार महक रहा है। जम्मू सीआर की भांति टिंकू हाथी ने भी सोचा की मुझे भी राजा की चापलूसी करनी चाहिए। इसी प्रकार एक एक करके जंगल के सभी जीवों ने वही सोचा। धीरे धीरे करके सभी यही कहने लगे वह महाराज आज तो यहाँ सुगंध भरी पड़ी है। कुछ जानवर तो वास्तव में ही चापलूस थे। वे राजा को प्रसन्न करना चाह रहे थे। कुछ कोई यह भय था कि पहले राजा की भाँति कहीं समर्थन ना करने पर भा सूरत भी नाराज ना हो जाए, इसलिए वे झूठी झूठी प्रशंसा कर रहे थे। सारे दरबार में बस एक टीपू भालू ही ऐसा था कि चुपचाप बैठा था। भाई सूरत ने एक उड़ती निगाह सभी के चेहरे पर डाली। सभी अपनी पूँछ हिला हिलाकर आंखें नचा नचा कर राजा का समर्थन कर रहे थे, पर टीपू बिल्कुल चुप चाप बैठा था। टीपू। तुमने इत्र की कोई तारीफ नहीं की, भाई सूरज ओर से तारा। चुपचाप खड़े होते हुए हाथ जोड़कर वह भास्कर से बोला। महाराज मुझे तो कोई गंध नहीं आ रही है, तू झूठ बोलते हो, तुम गुस्से में भरकर बोला नहीं राजन मैं जैसा अनुभव कर रहा हूँ वैसा ही कह रहा हूँ। भालू सिर झुकाकर बोला। तो क्या यह सारी प्रजा झूट कह रही है? फिर पूछने लगा। इनकी बात तो मैं नहीं जानता और जब मुझे सुगंध आई ही नहीं रही है तो मैं कैसे कह दूँ? टीपू ने कहा तुम मेरी बात करते हो, तुम्हें इसका दंड भुगतना ही होगा। सिंह बोला फिर उसने कहा की भालू को छे महीने के लिए जेल में डाल दिया जाए। सेनापति वार्नर देव ने आकर तुरंत उसके हाथों में हथकड़ियां डाल दी। अब भी अपनी गलती मान लो सिंह निभा लू से कहा। मैं किसी के दबाव में आकर गलत काम नहीं कर सकता। भालू कहने लगा और आगे बढ़ने को तैयार हो गया। महाराज यह बड़ा दूर थे। आप की अवज्ञा कर रहा है। चिंटू और जम्मू ने राजा के कान भरे सभी को लगा की अब जरूर भालू को और कड़ा दंड मिलेगा। जरूर सिंगल से मार डालेगा। सभी ने देखा कि बांसुर तक अपने सिंहासन से उठकर भालू की ओर बढ़ रहा है। उनकी सांसें रुक गईं। उन्हें लगा कि भालू अब दो चार पल का ही मेहमान हैं और यह क्या? सिंह ने आगे बढ़कर टीपू के बंधन खोल दिए थे। वो टीपू को गले लगाते हुए कह रहा था टीपू मैं तुम्हारी निर्भीकता से प्रसन्न हूँ, तुम्हें अपना प्रधानमंत्री बनाता हूँ। बहादुर रखने टीपू को अपने पास वाले सिंहासन पर बैठाया। फिर अपनी प्रजा से बोला मुझे जॉन को और बड़ा दुख हुआ की मेरी प्रजा चापलूसी पसंद करती है। दरबार में कैसा भी इत्र नहीं बिखराया गया था। इतना धन हम क्यों व्यर्थ कार्यों में खर्च करेंगे? इसे राज्य के हित में ही लगाना चाहिए। भाइयों, आप यह भूल जाइए कि पहले राजा की भाँति मुझे भी चापलूसी पसंद है, श्रेष्ठ कार्य नहीं। मैं चाहता हूँ कि आप गुंडों से मेरे लिए प्रिय बने। मुझे काम ही पसंद है। चापलूसी कतई पसंद नहीं है। फिर टीपू की प्रशंसा करते हुए कहने लगा राज्य की उन्नति की पूजा से निर्भीक और सच बोलने वालों से हुआ करती है। अब मैं यह पूर्ण रूप से आशा करता हूँ कि मेरी समस्त प्रजा टीपू जैसी महान बनेगी। सभी जानवरों ने तालियां बजा बजाकर राजा की बात का समर्थन किया। सारा दरबार बहादुर की जय टीपू मंत्री की जय के नारों से गूंज उठा। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है। की हमें हमेशा सच का साथ देना चाहिए और अपनी बात पर अडिग रहना चाहिए। ओके बाइ?",सभी को नमस्कार मैं सभी बच्चों को सोने के समय की कहानियाँ बता रहा हूँ। मेरी कहानियाँ अभिनव और प्रेरणादायक हैं। अपने बच्चों के साथ मेरी कहानियाँ सुनें। यह निश्चित रूप से आपके बच्चे के व्यक्तित्व के निर्माण में मदद करेगा। "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपको सुनाने जा रही हूँ उसका टाइटल है प्यासा चातक। जनश्रुति के अनुसार चातक पक्षी स्वाति नक्षत्र में बरसने वाले जल को बिना पृथ्वी में गिरे ही ग्रहण करता है। इसलिए उसकी प्रतीक्षा में आसमान की ओर टकटकी लगाए रहता है। वह प्यासा रह जाता है लेकिन ताल तलैया का जल ग्रहण नहीं करता। उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में चातक पक्षी को चोली कहा जाता है, जिसके बारे में लोक विश्वास है कि वहाँ एक तक आसमान की ओर देखते हुए उससे विनती करता है कि सरग दीदा पानी दे, पानी दे अर्थात आसमान भाई पानी दे पानी दे। सोली के जन्म के विषय में गढ़वाल क्षेत्र में एक रोचक कथा प्रचलित है। वहाँ के किसी हरे भरे गांव में एक वृद्धा अपनी युवा, बेटी और बहू के साथ बहुत ही हँसी खुशी के दिन बिता रहीं। वह बहू और बेटी के बीच कोई मतभेद नहीं करती थी। दोनों को समान भोजन देती और सामान काम करवाती थी। दोनों बहु बेटी भी हिलमिल कर रहती थी। ना आपस में लड़ना झगड़ना और ना कोई इरशाद वेश। दोनों में अंतर था तो बस यही की बहु अपना काम पूरी ईमानदारी और तन्मयता से संपन्न करती थी। जबकि बेटी उसे जैसे तैसे फटाफट निपटाने की फिराक में रहती। माँ इस बात के लिए उसे कई बार टोक भी चुकी थी और बार बार उसे अपनी भाभी से सीख लेने के लिए कहती थी लेकिन उसके कान पर जूं तानर इंगती। उस पर जैसे कोई असर ही नहीं होता था। एक बार की बात है। गर्मियों के मौसम में लगातार कोहलू पेड़ से पेड़ ते बैल थक गए थे। वृद्धा को समझ में आ गया कि बेल प्यासे ये लेकिन घर में बैलों को पिलाने लायक पर्याप्त पानी मौजूद ही ना था। बैलों की प्यास बुझाने का एकमात्र उपाय था उन्हें गधेरे यानी पहाड़ी नदी तक ले जाना जो गांव से लगभग एक डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर था। गर्मियों के मौसम में। बैलों को गधेरे तक ले जाकर पानी पिलाना अपने आप में कठिन काम था। तपती दोपहर में बैलों को ले बहू को भेजे या बेटी को, इस बात को लेकर वृद्धा मुश्किल में पड़ गई। दोनों में से किसी एक को भेजना उसे उचित नहीं लग रहा था। अंत में सोचकर उसने एक युक्ति निकाल ही ली। उसने बहू और बेटी दोनों को प्रलोभन देते हुए कहा कि वे एक एक बैल को पानी पिलाकर ले आए और दोनों में से जो पहले पानी पिलाकर घर लौटेगा उसे गरमा गर्म हलवा खाने को मिलेगा। हलवे का नाम सुनते ही दोनों के मुँह में पानी भर आया। हामी भरते हुए बहू और बेटी दोनों ही अपने अपने बैल को लेकर चल पड़ी। बहु बिना कुछ सोचे अपने बैलों को हांके जा रही थी कि गधेरे की ओर, जबकि बेटी का खुराफ़ाती दिमाग बड़ी तेज़ी से कोई उपाय तलाश रहा था। अंत में मन ही मन कुछ सोचकर वह भाभी से बोली की दोनों अलग अलग रास्तों से जाते हैं। देखते हैं गधेरे तक पहले कौन पहुंचता है। सीधी साधी भाभी ने चुपचाप हामी भर ली। बेटी को तो रह रहकर घर में बना हुआ गरमा गर्म हलवा याद आ रहा था। ऊपर से इतनी ज्यादा गर्मी की उसका गधेरे तक जाने का मन ही नहीं हो रहा था। अचानक उसे अपनी बेवकूफ़ी पर ह सीबीआई और गुस्सा भी बस सोचने लगी जानवर भी क्या कभी बोल सकता है, इसे पता लगेगा की मैंने बैलों को पानी नहीं पिलाया। माँ से जाकर कह दूंगी लड़ाई पानी बेल को यह विचार आते ही बिना आगा पीछा देखे उसने बैल को घर की दिशा में मोड़ दिया। बेचारा प्यासा बैल बिना पानी पिए ही घर की ओर चलने लगा। बेटी को देखते ही माँ ने प्रसन्न होकर पूछा ले आयी बेटी पानी पिलाकर बैलों को। हाँ, हाँ। कहते हुए सीधे हलुए की ओर लपक गई। खूंटे पर बंधा प्यासा बैल उसे मज़े से हलुआ खाते हुए देख रहा था, लेकिन वह बेज़ुबान कुछ बोल न सका। प्याज के मारे थोड़ी देर में ही उसके प्राण पखेरू उड़ गए। वह मरते समय लड़की को शाप दे गया की जैसे तू ने मुझे पानी के लिए तरसाया है वैसे ही सृष्टि पर्यंत तू भी चोली यानी चातक पक्षी बनकर बूंद बूंद पानी के लिए तरसती रहना। कहते है की लड़की बैल के हिसाब से उसी समय चोली बन गई और पानी के लिए तरसने लगी। ताल तलैया पानी से भरे थे, लेकिन उसे उनमें जल के स्थान पर रखते ही रखते नजर आ रहा था। तब से वह आसमान की ओर टकटकी बाँधे आज भी चिलाती रहती है सर अगर दीदा पानी दे, पानी दे अर्थात आसमान भाई पानी दे दो, पानी दे दो। तो बच्चो, यह थी एक दंतकथा चातक पक्षी के विषय में ओके बाइ।",यह एक लड़की की कहानी है। वह बहुत शरारती है। एक बार उसने अपनी मां के आदेश का पालन नहीं किया और उसका जानवर प्यासा रह गया। जब जानवर मरने वाला था तो उसने लड़की को श्राप दिया कि वह भविष्य में प्यासी चिड़िया बनेगी। यह एक कहावत है। इस दंत कथा को सुनें और आनंद लें। "हैलो बच्चों। आज जो कहानी मैं आपके लिए लेकर आई हूँ, उसका टाइटल है परख। धनपति राय बहुत बड़े उद्योगपति थे। उनके कारखाने में सैकड़ों आदमी काम करते थे। एक बार अचानक ही उनके कारखाने के व्यवस्थापक चल बसे। धनपति राय महत्वपूर्ण पदों पर उन्हीं कर्मचारियों को नियुक्त करते थे जो योग्य होने के साथ साथ गुणवान भी होते थे। वह कहा करते थे कि वह व्यक्ति जिसमें केवल बौद्धिक योग्यता है और नैतिकता की कमी है, विशेष महत्त्व नहीं रखता, अतएव उन्होंने ऐसे व्यक्ति की खोज प्रारंभ कर दी जो बौद्धिक योग्यता के साथ साथ शिष्ट व्यवहार, ईमानदार और अच्छे विचारों वाला हो। कारखाने के व्यवस्थापक का पद बड़ा महत्वपूर्ण था। अधिकांश व्यक्ति इस पद को पाना चाहते थे। निश्चित दिन पर उन सभी को साक्षात्कार के लिए बुलाया गया, परंतु प्रश्न यह उठा कि उनकी बौद्धिक योग्यता के विषय में तो साक्षात्कार से जाना जा सकता है? परन्तु चारित्रिक योग्यता के विषय में कैसे पता लगे? धनपति राय ने मन ही मन इस बात पर गंभीरता से विचार किया। आखिर में उन्होंने एक युक्ति खोज ही ली। साक्षात्कार लेने के लिए स्वयं धनपति राय और उनका पुत्र बैठे। पहले वे प्रतियोगी से बौद्धिक योग्यता से संबंधित विविध प्रश्न पूछते। उससे संतुष्ट होने पर अपनी योग्यता के अनुसार पिता पुत्र कार्य करते। वे किसी एक दूसरे प्रतियोगी को लेकर आपस में बातचीत करते उसकी प्रशंसा करते। फिर जो प्रतियोगी उनके सामने बैठा होता, उससे पूछते कि क्या आपकी दृष्टि में अमुक व्यक्ति व्यवस्थापक पद पर उचित रहेगा? ऐसे व्यक्तियों की कमी नहीं जो दूसरों को गिराकर आगे बढ़ने में तनिक भी नहीं झिझकते। उनके लिए अपना स्वार्थ प्रमुख होता है। जिसके लिए वह नीच काम करने के लिए भी। तैयार रहते हैं और समझदार व्यक्ति उनकी मीठी बातों में छुपे ओछेपन को जान जाते हैं। प्रायः सभी प्रतियोगियो ने यहीं किया, जैसा कि धनपति राय सोच रहे थे। जैसे ही वे किसी व्यक्ति को इस पद के योग्य बताते सामने बैठा प्रतियोगी उसके अवगुणों को बदला नहीं लगता, उसको उस पद के सर्वथा अयोग्य और स्वयं को योग्य सिद्ध करने का जीजान प्रयास करता। दूसरे की सज्जनता पर कीचड़ उछालने में उसे तनिक भी झिझक नहीं लगती। केवल एक प्रतियोगी इसका अपवाद निकला। जब उस से धनपति राय ने दूसरे प्रतियोगी की प्रशंसा करते हुए उसके विषय में सलाह मांगी। तो उसने अन्य प्रतियोगियो की भांति उस व्यक्ति की बुराइ नहीं की। उसने दूसरे प्रतियोगी के सद्गुणों का ही वर्णन किया। उसने अपनी योग्यता को बढ़ा चढ़ाकर भी नहीं बताया। दूसरे व्यक्ति की अपेक्षा स्वयं को अधिक योग्य सिद्ध करने का प्रयास भी नहीं किया। धनपति राय ने बहुत प्रयास किया पर उसने दूसरों की बुराइ आई न की और ना ही अपनी पढ़ाई की। उल्टे यही कह दिया की आप तो सब की कार्यक्षमता को और योग्यता अयोग्यता को अच्छी तरह जानते ही हैं। धनपति राय की परीक्षा में वह व्यक्ति खरा उतरा था। अपने स्वार्थ को गौड़ बनाकर दूसरे को महत्त्व देने का कार्य दृढ़ चरित्र वाला, उदात्त विचारों वाला व्यक्ति ही कर सकता है। ऐसा व्यक्ति प्रारंभ में भले ही महत्त्व ना प्राप्त कर सकें पर एक ना 1 दिन जब उसकी सच्चाई से लोग परिचित होते हैं तो वह उनकी नजरों में बहुत ऊंचा उड़ जाता है। कहा भी गया है। आत्मज्ञान, मसम आरंभ तितिक्षा धर्म नित्यता ऑ अँ र थाना पर शांति सवई पंडित उच्च तय अर्थात जो व्यक्ति अपनी योग्यता से भलीभाँति परिचित हो और उसी के अनुसार कल्याणकारी कार्य करता हो, जिसमें दुख सहन करने की शक्ति हो, जो विपरीत स्थिति में भी धर्म पथ से विमुख न होता हो, ऐसा व्यक्ति ही सच्चे अर्थों में ज्ञानी होता है। व्यवस्थापक पद के लिए तुरंत ही उस व्यक्ति का चयन कर लिया गया एक समारोह में सभी कर्मचारियों की उपस्थिति में उत्तीर्ण प्रतियोगी प्रबोधचंद्र की व् यवस् थापक पद पर नियुक्ति की घोषणा की गई। धनपति राय ने उसकी प्रशंसा करते हुए कहा, भाइयों श्री प्रमोद चंद्र को इस कारखाने के व्यवस्थापक के पद पर नियुक्त करते हुए हमें प्रसन्नता है। हमें विश्वास है कि हम उनकी बौद्धिक योग्यता से तो लाभान्वित होंगे ही। साथ ही साथ उनकी सज्जनता, चारित्रिक दृढ़ता और सद्व्यवहार, हम सभी को गौरवान्वित करेगा। सज्जनता में ही मनुष्य का सच्चा बड़ा पंच छुपा रहता है, वही उसकी सबसे बड़ी योग्यता है। प्रबोधचंद्र की नियुक्ति से सभी श्रमिक भी प्रसन्न थे, क्योंकि उनके सद्व्यवहार के पहले से ही वे प्रशंसक थे। दूसरों को सम्मान देने वाला स्वयं भी सदैव सम्मानित होता है। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें ज्ञान प्राप्त करने के साथ साथ चरित्र को दृढ़ बनाने वाले कार्य भी करने चाहिए, तभी हम जीवन में सफल हो सकते हैं। ओके बाइ?","सभी को नमस्कार, यह एक आदमी की नैतिक कहानी है। प्रत्येक व्यक्ति जो बुद्धिमान है वह एक सफल मानव नहीं है, यह उसके चरित्र का निर्माण नहीं कर सकता है। उनके स्वभाव में स्वाभिमान, दृढ़ संकल्प और सत्यवादिता के गुणों ने उन्हें सर्वश्रेष्ठ बनाया। कहानी सुनें और एक सफल व्यक्ति के गुणों के बारे में जानें।" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपको सुनाने जा रही हूँ उसका टॉपिक है नदी पार की दावत रावी नदी के किनारे घना जंगल था, उसमें बहुत सारे जानवर रहा करते थे। एक बार भास्कर नाम के आती और कांत नाम के एक बंदर ने गहरी दोस्ती हो गई। दोनों साथ साथ रहते थे। साथ साथ घूमा करते थे, एक दूसरे की सहायता करते थे। जंगल के सभी जानवर भास्कर से कहते कि कांत बड़ा चालाक है। कभी भी तुम्हें धोखा दे सकता है। पर भास्कर उनकी बातों पर कभी ध्यान नहीं दिया करता था। 1 दिन कान से एक बहुत ऊंचे बरगद के पेड़ पर चढ़ गया। वहाँ बैठकर कुछ देर तक वह गूलर खाता रहा। फिर उन्हें खाते खाते उसका मन भर गया तो वहाँ एक ऊंची शाखा पर चढ़कर इधर उधर देखने लगा। सहसा उसकी निगाह नदी के पार गई। वहाँ ऊंचे ऊंचे गन्नों का हरा भरा खेत था। इतने अच्छे गन्ने देखकर कांत का मन ललचा गया। और गन्ने मिल कैसे सकते हैं? उसने मन ही मन सोचा क्योंकि गन्ने पाने के लिए नदी पार करनी पड़ती और कांत नदी पार कैसे कर सकता था? एकाएक उसे अपने मित्र भास्कर का ध्यान आया। बस फिर क्या था वह तुरंत ही उछलता। कूदता भास्कर के पास पहुंचा और बोला दोस्त चलो आज तुम्हे एक बढ़िया सी दावत दूँ। किस चीज़ की दावत दोगे मुझे? भास्कर ने अपने दाँत हिलाते हुए पूछा, तुम्हारी सबसे प्रिय चीज़ गन्ने की दावत दूंगा? कांत कहने लगा और गुन्नू तो नदी के उस पार पर लगे हुए है, तुम कैसे नदी पार कर पाओगे? दोस्त? भास्कर ने पूछा कांत बोला मैं तुम्हारी पीठ पर बैठ जाऊंगा। इस प्रकार दोनों इस बार जाएंगे। भास्कर ने ऐसा ही किया। दोनों नदी के उस पार गन्ने के खेत में पहुँच गए। दोनों दोस्त गन्ने खाने में जुट गए। शांत कामन जल्दी ही भर गया और भास्कर का पेट अभी भरा न था। वह गन्ने खाने में जुटा हुआ था। कांत इधर उधर उछल कूद मचाने लगा। ज़ोर ज़ोर से आवाजें करने लगा। भास्कर बोला कौन थी? तुम इस तरह छोड़ना मत जाओ तुम्हारा शोर सुनकर खेत का मालिक आ जाएगा फिर वह दोनों को यहाँ से मार भगाए गा कुछ देर तक तो कान तो चुप रहा पर अन्त में उससे ना रह गया वो फिर उछल कूद करने लगा ज़ोर ज़ोर से शोर करने लगा। खेत की रखवाली ने जब कांत की आवाज सुनी तो डंडा लेकर दौड़ा। चतुर कांत तुरंत ही खेत से बाहर दौड़ गया। रखवाला आया तो उसने भास्कर को बैठे देखा। बस फिर क्या था उसने पीछेसे भास्कर परी 810 डंडे कसकर जमा दिए। चोट खाकर भास्कर चुन भाड़। वो तुरंत खेत से बाहर भाग। मन ही मन उस एकांत पर बड़ा गुस्सा आ रहा था। क्योंकि उसके कारण ही आज भास्कर को इतनी चोट खानी पड़ी थी। भास्कर सीधा नदी की ओर दौड़ा तभी उसने सुना की का तो पीछे से पुकार रहा है, रुको दोस्त मैं भी आ रहा हूँ इस अनजान प्रदेश में छोड़कर न जाओ। भास्कर ने मन ही मन सोचा की आज इसे सबक सिखाऊंगा और रुक गया। उसने कांत को पीठ पर बैठा लिया। पानी में पहुँचकर भास्कर बैठ गया। अब तो कांत घबराने लगा बोला अरे अरे यार तुम क्या कर रहे हो? ऐसे तो मैं डूब जाऊंगा और ये मेरी चोट में बड़ा दर्द हो रहा है। मैं तो पानी में ही ले लूँगा, खासकर बोला अब कांत गिड़गिड़ाने लगा बोला मैं तुम्हारी पीठ सहला देता हूँ, तुम लेटना नहीं। मैं डूब जाऊंगा पर मैं तो दर्द के मारे मरा जा रहा हूँ। भास्कर ने कहा और तुरंत नदी में डुबकी लगा दी। अब तो बान नदी का पानी कांत की आंख, नाक, कान गले में घुस गया और उसका दम सा घुटने लगा। भास्कर मित्र मुझे बचा लो, अब मैं कभी भी तुम्हारा बुरा नहीं करूँगा। रोते हुए कांत ने कहा तुरंत भास्कर उठ खड़ा हुआ। कांत की जान में जान आई। भास्कर तेजी से किनारे की ओर बढ़ा। अपनी पीठ पर उसने कांत को उतारा और बोला, कौंत नदी में नहाने का मेरा कोई विशेष विचार नहीं था। मैं तुम्हें सबक देना चाहता था। सदैव अपनी मन की करना अच्छा नहीं होता। परिस्थिति देखकर कार्य करना चाहिए कि कब क्या करना उचित है और क्या अनुचित? जो हर स्थिति में अपने मन की करता है उससे बड़ा मूर्ख और कोई नहीं है। मैंने क्या किया अपने मन का? कांत पूछने लगा जब मैं गन्ने खा रहा था तुमने ज़ोर ज़ोर से आवाजें क्यों की? तुम अपने पर ज़रा भी नियंत्रण नहीं रख सके। तुम यह नहीं सोच पाए कि तुम्हारे मित्र पर विपत्ति आ सकती है या क्या तुम्हारे मित्र के साथ तुम्हारा विश्वासघात नहीं है? भास्कर ने उत्तेजित होते हुए पूछा, कान तो उसके पैरों में गिर पड़ा और बोला दोस्त तुम ठीक कहते हो? वह मेरी भयंकर भूलती। मेरे मनमानी करने के कारण ही तुम्हें इतनी चोट सहनी पड़ी। जो भी कार्य हम करें, सोच समझकर करें। कोई कार्य ऐसा ना करें जिससे दूसरों का अहित तो अपने लाभ के साथ साथ दूसरे के लाभ का भी ध्यान रखें। अब तुम बिल्कुल सही रास्ते पर हो। भास्कर ने प्रसन्न होते हुए कहा भास्कर ने अपनी सूँड़ बढ़ाई और कांत ने अपना हाथ। दोनों ने सदैव दूसरे का हित ध्यान में रखने की प्रतिज्ञा ली और विदा हुए तो बच्चो इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है की हमें ऐसा कोई भी कार्य नहीं करना चाहिए जिससे दूसरों का अहित हो। हमें हमेशा कार्य को सोच समझकर ही करना चाहिए। ओके बाइ।","इस कहानी में हर किसी को दोस्ती में विश्वास, विश्वास और सम्मान का पाठ मिलता है। हाथी अपने दोस्त बंदर को सबक देता है। ताकि बंदर अपना ही नहीं अपने मित्र का भी भला सोचना कभी न भूले।" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपको सुनाने जा रही हूँ उसका टॉपिक है जंगल के फल। पुराने समय की बात है। अमरावती नगरी में एक धनी वणिक् रहता था। एक बार उनका पुत्र रत्न गुप्त देश विदेश में व्यापार करने घर से निकला। चलते समय रत्ना गुप्ता की माँ उसे समझाने लगीं बेटा तुम मित्रों के साथ व्यापार करने जा रहे हो? पर रास्ते में संभलकर रहना विविध देशों में ना जाने कैसी परिस्थितियां सामने आएंगी। कोई बुजुर्ग तुम्हारे साथ होता तो अच्छा रहता, पर खैर मेरा तुम्हारे लिए यही उपदेश है कि रास्ते में सदा आंख खोलकर रहना और चलना, चीजों को अच्छी तरह से ही देखना और समझना। व्रत गुप्त ने माँ को वैसे ही सब करने का आश्वासन दिया। माता पिता के पैर छूकर उनका आशीर्वाद लेकर वह यात्रा के लिए निकल पड़ा। रत्न गुप्त और उसके साथियों ने अनेकों देशों में जाकर व्यापार किया और बहुत सा धन कमाया माँ के सीख। पर ध्यान देने के कारण कई जगह उसकी और उसके साथियों की रक्षा भी हुई। अंत में वे सभी घर की ओर लौटे। उनके रास्ते में बहुत बड़ा जंगल पड़ा। कई दिनों तक लगातार उस जंगल में चलते चलते रत्न गुप्त और उसके साथी थक गए। यहाँ तक कि उनके पास खाने का सारा सामान भी खत्म हो गया। भूख से विकल हो वे आगे बढ़ने लगे। कई दिनों से खाना न मिलने से सभी के प्राण कुलबुला रहे थे जैसे तैसे जाकर उस जंगल का अंत हुआ। जंगल के किनारे जाकर वे बैठ गए। पास में ही भीलों का एक घाव दिखाई दे रहा था। रत्ना गुप्ता का मित्र प्रवर गुप्त बोला। बताओ नहीं, भील हमारा स्वागत करेंगे या गांव में घुसने से मना कर देंगे? बी लो के गांवों में न जाने की बात तो बाद में सोंची जाए। पहले तो कुछ खाने का जुगाड़ कर लिया जाए। धन गुप्त कहने लगा सहसा सभी की निगाह सामने खड़े जामुन के पेड़ पर गई। काले काले रसीले जामुनों से वहाँ लदा खड़ा था। उसे देखकर सभी की भूख भड़क उठी, धन गुप्त उठा और ढेर सारे जामुन तोड़ कर ले आया। सभी मिलकर खाने ही वाले थे कि एकाएक रत्न गुप्त जो अभी कुछ सोच रहा था, चिल्ला उठा। मित्रों इन जमीनों को छूना भी नहीं अन्यथा बुरा परिणाम होगा। उसकी बातें सुनकर सभी आश्चर्यचकित रह गए। अच्छी खासी गोल मटोल जामुन ए जोरों से लगती भूख। फिर भला रत्ना गुप्ता ने खाने को क्यों मना कर रहा है? सभी उसकी ओर ऐसे देखने लगे जैसे वह कोई बहुत बुरी बात कह रहा हो। तुम्हें मेरी बात बुरी लग रही है ना? ये फुल विषैले है। कहीं ऐसा ना हो की हम उन्हें खाकर सो जाएं। रत्ना गुप्ता बोला, अरे तुम्हें कैसे पता लगा? रबर गुप्त पूछने लगा? देखो इस पेड़ पर असंख्य चिड़िया बैठी है, पर किसी ने भी इन फलों को जगह तक नहीं सभी के सभी ज्यों के त्यों लगे हैं। क्या यह संभव है कि फल खाने योग्य हो और पक्षी उन्हें चखे नहीं? नष्ट न करें और फिर पास ही भीलों का गांव है। यदि ये फल अच्छे होते तो बिल भी आकर सबसे पहले इन्हें तोड़कर ले जाते। रत्ना गुप्ता बोला, क्या तुम अपनी बात सिद्ध कर सकते हो? प्रवर गुप्त कहने लगा। रत्न गुप्त ने इधर उधर निगाह दौड़ाई। फिर सहसा ही उसने प्रवर गुप्त के पिंजरे में रहने वाले तोते को निकाला और उसके आगे एक जामुन रख दी। तोते ने उसे बड़े प्रेम से खाया, परंतु खाने के कुछ समय बाद ही गर्दन एक ओर लुढ़क गई और प्राण पखेरु उड़ गए। सभी मित्र रत्न गुप्त की ओर प्रशंसा भरी नजरों से देख कर कहने लगे मित्र, आज तुम्हारी दूरदर्शिता ने हम सबके प्राण बचाए हैं। वास्तव में वह जामुन जैसे देखने में लगता है पर वह जामुन है नहीं। रास्ते में मिलने वाले सुन्दर सुन्दर पेड़ पौधों और फलों में न जाने कौन सा विषैला निकल आए? इसलिए बिना कोई परीक्षा किए किसी भी पल को चकना उचित नहीं है। रत्ना गुप्ता बोला इस प्रकार माँ की शिक्षा पर चलते थे। रतन गुप्त ने सबकी रक्षा कर ली। भूख की परवाह ना करके सभी मित्र खुशी खुशी वहाँ से उठकर आगे बढ़ गए तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है। की हमें हमेशा चीजों को देख परख के ही इस्तेमाल करना चाहिए। ओके बाइ?",यह कुछ व्यापारियों की कहानी है। वे व्यापार के सिलसिले में कई देशों में गए। रतन गुप्त एक अमीर आदमी का बेटा है। कहानी सुनें और जानें कि कैसे उसने अपने दोस्तों को समस्याओं से बचाया। "क्या आप भी अपना पॉडकास्ट बनाने का सोच रहे हैं? तो ऐंकर ट्राई कीजिए, ये पॉडकास्ट बनाने का सबसे आसान तरीका है। नंबर एक ये फ्री है नंबर दो। इसमें कई सारे ऐसे टूल्स है जो आपको अपने फ़ोन और कंप्यूटर पर रेकोर्ड और एडिट करने की फैसिलिटीज देते हैं। नंबर तीन आप अपने पॉडकास्ट को डिस्ट्रीब्यूट भी कर सकते हैं, जिससे इसे इस स्पॉटिफाइ और दूसरे प्लेटफॉर्म पर सुना जा सकें। डाउनलोड कीजिये? ये फ्री एंकर ऐप या विजिट कीजिये ऐंकर डॉट ऐफ़ एम। अपना पॉडकास्ट स्टार्ट करने के लिए हैलो बच्चों, आज मैं आपके लिए एक प्राचीन पौराणिक कथा लेकर आई हूँ। इस कहानी का शीर्षक है दो राक्षस प्राचीन काल में सुन तौर उप सुध नाम के दो शक्तिशाली राक्षस हुआ करते थे। वे दोनों भाई थे। उनका नाम सुनकर देवता भी थर थर कांपते थे। वे अनेक बड़े बड़े योद्धाओं को चित कर चूके थे। इसी कारण प्रत्येक सम्राट उनके आगे घुटने टेक देता था। एक बार उन दोनों राक्षसों के मन में त्रिलोक का सम्राट बनने का विचार कौन था? फिर क्या था वे उसका उपाय ढूंढने में लग गए। अंततः उन्होंने इसका समाधान खोज ही लिया। बे धरती के साथ साथ आकाश और पाताल का भी सम्राट बनने के उद्देश्य से भगवान शिव की तपस्या में रत हो गए। उन्हें कठोर तपस्या करते करते कई महीने बीत गए। आखिरकार भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिए और बोले की भक्तों मैं तुम्हारी आराधना से अत्यंत प्रसन्न हूँ, बोलो तुम क्या चाहते हो? भगवान शिव द्वारा दर्शन देने और मनचाहा वर मांगने की बात सुनकर वे एकदम बौखला उठे। स्वार्थ के आगे उनकी बुद्धि ने काम करना बंद कर दिया। इसलिए वे त्रिलोक का सम्राट बनने के बजाय बोले कि प्रभु आप हमें इंद्रलोक की अप्सरा दे दीजिए। इंद्रलोक की अप्सरा मांगने से उनकी उद्दंडता साफ झलक रही थी। इस पर भगवान शिव बहुत क्रोधित हो गए, लेकिन वे वचन देने के लिए विवश थे, सो उन्होंने दे दिया। अतएव उन्होंने मन ही मन शुद्ध होकर इंद्रलोक की अप्सरा को उन दोनों राक्षस भाइयों के हवाले कर दिया। लेकिन इंद्रलोक की अप्सरा एक थी और वे दो। अब इंद्रलोक की अप्सरा किसके साथ जाएं? इसी बात पर उनमें विवाद होना शुरू हो गया। जब वे आपस में कोई निर्णय ना कर सके तब किसी ज्ञानी व्यक्ति की खोज शुरू कर दी ताकि वह समस्या का समाधान बता सके। दोनों राक्षसों के मन की बात जानकर भगवान शिव ब्राह्मण का रूप धर के उधर से गुज़रने लगे, तभी दोनों ने उन्हें बुलाकर अपनी समस्या बताई और निष्पक्ष निर्णय देने के लिए प्रार्थना की। इस पर ब्राह्मण रूप धारी भगवान शिव बोले भाइयो, ब्राह्मण की श्रेष्ठता, उसके ज्ञान से क्षत्रिय की श्रेष्ठता, उसके बाहुबली से वैश्य की श्रेष्ठता, धन धान्य से और शुद्ध की श्रेष्ठता उसके सेवा भाव से आंकी जाती है। अब तुम लोग जीस वर्ण के हो, उसे के अनुसार अपनी श्रेष्ठता प्रमाणित करके इस कन्या का वर्णन करो यह सुन कर सुन ध और उपसुंद राक्षस बोले मान्यवर हम तो क्षत्रिय है। क्या हमें अपनी श्रेष्ठता बाहुबल से सिद्ध करनी पड़ेगी? हाँ, अगर तुम क्षत्रिय हो तो तुम्हारी श्रेष्ठता का निर्णय बाहुबल से ही होगा। इसके अलावा कोई और विकल्प नहीं है। ब्राह्मण रूप धारी शिव ने कहा कि जो इस युद्ध में विजयी होगा, वहीं इस अप्सरा के वर्ण का अधिकारी होगा। यह सुनकर दोनों राक्षस तत्काल ही एक दूसरे से युद्ध करने लगे जिसको जैसा अवसर मिलता वह अपनी गदा का प्रहार दूसरे पर कर देता। इस आघात प्रतिघात में दोनों राक्षस लहूलुहान होकर धरा पर गिर पड़े। कुछ ही देर में प्राण उनकी काया से निकलकर हम लोग चले गए तब भगवान शंकर कैलाश पर्वत की ओर तथा वह अप्सरा इन्द्रलोक की ओर प्रस्थान कर गई। तो बच्चो इस कहानी में हमने यह जाना कि प्राचीन काल में दो राक्षसों ने आपसी लड़ाई की वजह से अपने प्राण खो दिए। ओके बाय।","सभी को नमस्कार, यह दो राक्षसों की एक अद्भुत कहानी है। ये दो दशक आपस में भाई हैं लेकिन एक खूबसूरत अप्सरा के लिए आपस में लड़ पड़े। यह एक पौराणिक कथा है । पूरी कहानी सुनें और अपने परिवार और दोस्तों के साथ इसका आनंद लें।" "हैलो दोस्तों, आज जो कहानी मैं आपके सामने लाई हूँ उसका शीर्षक है नीलकंठ। उस दिन एक अतिथि को स्टेशन पहुंचाकर मैं लौट रही थी की चिड़ियों और खरगोशों की दुकान का ध्यान आ गया और मैंने ड्राइवर को उसी ओर चलने का आदेश दिया। बड़े मियाँ चिड़िया वाले की दुकान के निकट पहुंचते ही उन्होंने सड़क पर आकर ड्राइवर को रुकने का संकेत दिया। मेरे कोई प्रश्न करने के पहले ही उन्होंने कहना आरंभ कर दिया सलाम गुरु जी पिछली बार आने पर आपने मोर के बच्चों के लिए पूछा था? शंकरगढ़ से एक चिड़ीमार, दो मोर के बच्चे पकड़ लाया। एक मोर है एक मोरनी आप पाल लें। मोर के पंजों से दवा बनती है, सो ऐसे ही लोग खरीदने आए थे। आखिर मेरे सीने में भी तो इंसान का दिल है, मारने के लिए ऐसी मासूम चिड़ियां को कैसे दे दूँ? टालने के लिए मैंने कह दिया गुरु जी ने मंगवाए हैं वह से ये कमबख्त रोजगार ही खराब है, बस पकड़ो पकड़ो मारो मारो। बड़े मियाँ के भाषण की तूफान मेल के लिए कोई निश्चित स्टेशन नहीं है। सुनने वाला थककर जहाँ रोक दें वहीं स्टेशन मान लिया जाता है। इस तथ्य से परिचित होने के कारण ही मैंने बीच में उन्हें रोककर पूछा। मोर के बच्चे हैं कहाँ? बड़े मियाँ के हाथ के संकेत का अनुसरण करते हुए मेरी दृष्टि एक तार के छोटे से पिंजरे तक पहुंची, जिसमें तीतरों के सामान दो बच्चे बैठे थे। पिंजरा इतना संकीर्ण था कि वे पक्षी शावक जाली के गोल फ्रेम में किसी जड़ें चित्र जैसे लग रहे थे। मेरे निरीक्षण के साथ साथ बड़े मिया की भाषण मेल चली जा रही थी। इमान कसम गुरूजी चिड़ीमार ने मुझसे इस मोर के जोड़े के नकद ₹30 लिए हैं। बरहा कह ज़रा सा तो है, इनमें मोर के कोई खासियत भी है, किंतु इतनी बड़ी कीमत मांग रहा है। पर वहाँ पूंजी क्यों सुनने लगा? आप का ख्याल करके अस्ता पचता कर देना ही पड़ा। अब आप जो मुनासिब समझे। अस्तु, 30। चिड़ी मार्ग के नाम के और पांच बड़े मियां के इमान के देखकर आप मेरे को छुट्टी दीजिए। ऐसा बोलकर। बड़े मियाँ आगे बढ़ गए मैंने। उन्हें ₹35 देकर वह छोटा पिंड आकार में रखवा लिया। जैसे ही वो पिंजरा कार में रखा गया। तब मानो व जाली के चौखट का चित्र जीवित हो गया। दोनों पक्षी शावकों के छटपटाने से लग रहा था, मानो पिंजड़ा ही सजीव और उड़ने योग्य हो गया है। घर पहुंचने पर सब कहने लगे, तितर हैं मोर कहकर ठग लिया है। कदाचित अनेक बार ठगे जाने के कारण ही ठगे जाने की बात मेरे चिढ़ जाने की दुर्बलता बन गई है। अप्रसन्न होकर मैंने कहा मोर के क्या सुरखाब के पर लगे हैं? है तो पक्षी ही। चढ़ा दिया जाने के कारण ही संभव ता। उन दोनों पक्षियों के प्रति मेरे व्यवहार और यत्न में कुछ विशेषता आ गयी। पहले अपने पढ़ने लिखने के कमरे में उनका पिंजरा रख कर उसका दरवाज़ा खोला। फिर दो कटोरे में सत्तू की छोटी छोटी गोलियां और पानी रखा। वे दोनों चूहेदानी जैसे पिंजरे से निकलकर कमरे में मानो खो गए। कभी मेज के नीचे घुस गए, कभी अलमारी के पीछे। अंत में इस लुका छुप्पी से थककर उन्होंने मेरे रद्दी कागजों की टोकरी को अपने नए बसेरे का गौरव प्रदान किया। दो 4 दिन वे इसी प्रकार दिन में इधर उधर गुप्तवास करते और रात में रद्दी की टोकरी में प्रकट हो रहे थे। फिर आश्वस्त हो जाने पर कभी मेरी मेज पर तो कभी कुर्सी पर और कभी कभी तो मेरे सिर पर अचानक आविर्भूत होने लगे। खिड़कियों में तो जाली लगी थी पर दरवाजा मुझे निरंतर बंद रखना पड़ता था। खुला रहने पर चित्रा यानी की मेरी बिल्ली इन नवागंतुकों का पता लगा सकती थी और तब उसके शोध का क्या परिणाम होता यह अनुमान करना कठिन नहीं है। वैसे वह चूहों पर भी आक्रमण नहीं करतीं, परंतु यहाँ तो दो सर्वथा अपरिचित पक्षियों का अनाधिकार। चेसता का प्रश्न था उसके लिए दरवाजा बंद रहे। ये दोनों। अरे गैरे, मेरी मेज को अपना सिंहासन बना ले। यह स् थिति चित्रा जैसी अभिमान ही नहीं, मार्जरी के लिए असहाय ही कही जाएगी। जब मेरे कमरे का कायाकल्प चिड़ियाघर के रूप में होने लगा। तब मैंने बड़ी कठिनाई से दोनों चिड़ियों को पकड़कर जाली के बड़े घर में पहुंचाया जो मेरे जीव जंतुओं का सामान्य निवास हैं। दोनों नवागंतुकों ने पहले से रहने वालों में वैसा ही कौतूहल जगा दिया जैसा नववधू के आगमन पर परिवार में स्वाभाविक है। लक्का कबूतर नाचना छोड़कर दौड़ पड़े और उनके चारों ओर घूम घूमकर गुटूरगुं की रागिनी अलापने लगे। बड़े खरगोश सभ्य सभासदों के समान क्रम से बैठकर गंभीर भाव से उनका निरीक्षण करने लगे। उनकी गेंद जैसे छोटे खरगोश उनके चारों ओर उछल कूद मचाने लगे। तोते मानो भलीभाँति देखने के लिए एक आंख बंद करके उनका परीक्षण करने लगे। उस दिन मेरे चिड़ियाघर में मानो भूचाल आ गया। धीरे धीरे दोनों मोर के बच्चे बढ़ने लगे। उनका कायाकल्प वैसा ही क्रमशः और रंगमय था जैसा दिल्ली से तितली का बनना होता है। मोर के सिर की कलगी और सघन ऊंची तथा चमकीली हो गई चोंच अधिक बंकिम और पैनी हो गई गोल आँखों में इंद्राणी। की नीलाभ ज्योति चमकने लगी। लंबी नील, हरित ग्रीवा। की हर भंगिमा में धूप चाहे तरंगें उठने लगी। दक्षिण वाम दोनों पंखों में सलेटी और सफेद आलेखन स्पष्ट होने लगी। पूँछ लंबी हुई और उसके पंखों पर चंद्रिका ओके इंद्रधनुषी रंग उदित हो उठे। रंगरहित पैरों को गर्वीली गति ने एक नई गरिमा से वंचित कर दिया। उसका गर्दन ऊंची कर देखना, विशेष भंगिमा के साथ उसे नीची कर दाना चुगना, पानी पीना टेढ़ी कर शब्द सुनना आदि क्रि याओं में जो सुकुमारता और सौंदर्य था उसका अनुभव देखकर ही किया जा सकता है। गति का चित्र नहीं आंका जा सकता। मोरनी का विकास मोर के समान चमत्कारिक तो नहीं हुआ परंतु अपनी लंबी पूछा ही गर्दन। हवा में चंचल कलगी, पंखों की शाम सूरत, पत्रलेखा, मंथर गति आदि से भाभी मोरकी उपयुक्त सहचारिणी होने का प्रमाण देने लगी। नीलाभ ग्रीवा के कारण मोर का नाम रखा गया नीलकंठ और उसकी छाया के समान रहने के कारण मोरनी का नामकरण हुआ राधा। मुझे स्वयं ज्ञात नहीं की कब नीलकंठ यू अपने आप को चिड़ियाघर के निवासी जीव जंतुओं का सेनापति और संरक्षक नियुक्त कर लिया। सवेरे ही वह सब खरगोश, कबूतर आदि की सेना एकत्र कर उस ओर ले जाता जहाँ दाना दिया जाता है और घूम घूमकर मानो सबकी रखवाली करता रहता। किसी ने कुछ गडबड की और वह अपने तीखे चंचु प्रहार से उसे दंड देने दौड़ा। खरगोश के छोटे बच्चों को वह चोट से उनके कान पकड़कर ऊपर उठा लेता था और जब तक वे अर्थ कंदन न करने लगते, उन्हें अधर में लटकाए रखता है। कभी कभी तो उसकी पैनी चौक से खरगोश के बच्चों का कर्णवेध संस्कार हो जाता था। पर वे फिर भी उसे क्रोधित होने का अवसर न कभी देते। दंड विधान के समान ही उन जीव जंतुओं के प्रति उसका प्रेम भी असाधारण था। प्रायः व मिट्टी में पंख फैलाकर बैठ जाता और वे सब उसकी लंबी पूंछ और सघन पंखों में छुआ छुई। अल्का खेल खेलते रहते। ऐसे ही किसी स्थिति में एक सांप जाली के भीतर गया सब्जी जंतु भागकर इधर उधर छुप गए। केवल एक शिशु खरगोश सांप की पकड़ में आ गया। निगलने के प्रयास में सामने उसका आधा पिछला शरीर तो मुँह में दबा रखा था। शेष आधा जो बाहर था, उससे चींचीं का स्वर भी इतना तीव्र नहीं निकल सकता था कि किसी को स्पष्ट सुनाई दे। नीलकंठ दूर ऊपर झूले में सो रहा था। उसी के चौकन्ने कानों ने उस मंद स्वर की व्यथा पहचानी और वह पूंछ पंख समेट कर सर से एक झपट्टे में नीचे आ गया। संभवत अपनी सहज चेतना से ही उसने समझ लिया होगा कि सांप के फन पर चोंच मारने से खरगोश भी घायल हो सकता है। उसने सांप को फन के पास पंजों से दबाया और फिर चोंच से इतने प्रहार किए कि वह अधमरा हो गया। पकड़ ढीली पड़ते ही खरगोश का बच्चा मुँह से निकले तो गया परंतु निश्चेष्ट था वहीं पड़ा रहा। राधा ने सहायता देने की आवश्यकता नहीं समझी, परंतु अपनी मंदके का से किसी असामान्य घटना की सूचना सब ओर प्रसारित कर दी। माली पहुंचा। फिर हम सब पहुंचे। नीलकंठ जब साहब के दो खंड कर चुका, तब उस शिशु खरगोश के पास गया। और रातभर उसे पंखों के नीचे रखे उष्णता देता रहा। कार्तिकेय ने अपने युद्ध वाहन के लिए मयूर को क्यों चुना होगा? या उस पक्षी का रूप और स्वभाव देखकर समझ में आ जाता है। मयूर कलाप्रिय वीर पक्षी हैं। हिंसक मात्र नहीं। इसी से उसे बाज, चीन आदि की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता, जिनका जीवन ही क्रूर कर्म है। नील कंठ में उसकी जातिगत विशेषताएं तो थी ही, उनका मानवीकरण भी हो गया था। मेघों की सांवली छाया में अपने इंद्रधनुष के गुच्छे जैसे पंखों को मंडलाकार बनाकर जब वह नाचता था तब उस नृत्य में एक सहजाद, लय ताल। बन पड़ता था। आगे पीछे दाहिने बाएं क्रम से घूमकर वह किसी अलक्ष्य सम्पत है, ठहर जाता था। राधा नीलकंठ के समान नहीं नाच सकती थी, परंतु उसकी गति में भी एक छंद रहता था। वह नृत्य मग्न नीलकंठ की दाहिनी ओर के पंख को छूती हुई बाईं ओर निकल जाती थी और बाएँ पंख को स्पर्श कर दाहिनी और इस प्रकार उसकी परिक्रमा में भी एक पूरक ताल परिचय मिलता था। नील कंठ ने कैसे समझ लिया कि उसका नृत्य मुझे बहुत भाता है, यह तो नहीं बताया जा सकता, परंतु अचानक 1 दिन वह मेरे जाली घर के पास पहुंचते ही अपने झूले से उतर कर नीचे आ गया और पंखों का संतरंगी मंडलाकार छाता तानकर नृत्य की भंगिमा में खड़ा हो गया। तब से यह नृत्य भंगिमा नृत्य का क्रम बन गई है। प्रायः मेरे साथ कोई न कोई देशी विदेशी अतिथि भी वहाँ पहुँच जाता था और नीलकंठ की मुद्रा को अपने प्रति सम्मानपूर्वक समझकर विस्मय अभिभूत हो उठता था। कई विदेशी महिलाओं ने उसे परफेक्ट जेंटलमैन की उपाधि दे डाली थी। जिंस नुकीली, पैनी चोट से वह भयंकर विश्वधर को खंड खंड कर सकता था। उसी से मेरी हथेली पर रखे हुए उन्हें चने ऐसी कोमलता से होली होली उठाकर खाता था। की हँसी भी आ जाती थी और विस्मय भी होता था। फलों के वृक्षों से अधिक उसे पुष्पित और पल्लवित वृक्ष भाते थे। बंसत में जब आम के वृक्ष सुनहली मंजिल लियो से लड़ जाते थे, अशोक ने लाल पल्लवों से ढक जाता था, तब जाली घर में वह इतना अस्थिर हो उठता की उसे बाहर छोड़ देना पड़ता था। नील कंठ और राधा की सबसे प्रिय ऋतु वर्षा तो थी ही वर्षा। ओके? उमर आने से पहले ही वे हवा में उसकी सहज आहट पा लेते थे और तब उनकी मदद के का की गूंज अनुगूंज तीव्र से तीव्रता हुई मानो बूंदों के उतरने के लिये सोपन पंक्ति बनाने लगती थी। मेघ के गर्जन की ताल पर ही उनके तन्मय नृत्य का आरंभ होता और फिर मेघ जितना अधिक गरजता बिजली जितनी अधिक चमकती बूंदों की रिमझिम आहट जितनी तीव्र हो जाती थी, नील कंठ के नृत्य का वेग उतना ही बढ़ता जाता था और उसकी के काका स्वर उतना ही मंत्र से मंदिर तर होता जाता। वर्षा के थम जाने पर वह दाहिने पंजे पर दाहिना पंख और बाएँ पर बायां पंख फैलाकर सुखाता। कभी कभी वे दोनों एक दूसरे के पंखों से टपकने वाली बूंदों को चोट से पी पीकर पंखों का गीलापन दूर करते थे। इस आंदोलन की रागिनी में बेमेल स्वर कैसे बज उठा, यह भी एक करुण कथा है। 1 दिन मुझे किसी कार्य से नखास कोने से निकलना पड़ा और बड़े मियाँ ने पहले के समान कार को रोक ही लिया। इस बार किसी पिंजड़े की ओर नहीं देखूंगी। यह संकल्प करके मैंने बड़े मिया की विरल दाढ़ी और सफेद डोरे से कान में बंधी हनक को ही अपने ध्यान का केंद्र बनाया। पर बड़े मियां के पैरों के पास जो मोरनी पड़ी थी, उसे अनदेखा करना कठिन था, मोरनी राधा के समान ही थी। उसके मूंज से बँधे दोनों पंजों की उंगलियां टूटकर इस प्रकार एकत्रित हो गई थी कि वह खड़ी ही नहीं हो सकती थी। बड़े मियाँ की भाषण मेल फिर दौड़ने लगी। देखिए गुरु जी कमबख्त चिड़ीमार ने बेचारी का क्या हाल किया है ऐसे कभी चिड़िया पकड़ी जाती है भला आप ना ही होती तो मैं उसी के सिर पर इसे पटक देता और आपसे भी याद मरी मोरनी ले जाने को कैसे कहूं? सारांश यह कि ₹7 देकर मैं उसे अगली सीट पर रखवाकर घर ले आई और एक बार फिर मेरे पढ़ने लिखने का कमरा अस्पताल बना। पंजों की मरहम पट्टी और देखभाल करने पर वह महीने भर में अच्छी हो गयी। उंगलियां वैसी ही टेढ़ी मेढ़ी रही परंतु वह टूट जैसे पन्नों पर डगमगाती हुई चलने लगी। तब उसे जाली घर में पहुंचाया गया और नाम रखा गया कुप जा। नाम के अनुरूप ही वह स्वभाव से भी कुब्जा ही प्रमाणित हुई। अब तक नीलकंठ और आधा साथ साथ रहते थे। अब उपजा उन्हें साथ देखते ही मारने को तोड़ती। चोंच से मार मारकर उसने राधा की कलगी नोच डाली, पंख नोच डाले। कठिनाई यह थी कि नीलकंठ उससे दूर भागता था और वह उसके साथ रहना चाहती थी। ना किसी जीव जंतु से उसकी मित्रता थी न वह किसी को नीलकंठ के समीप आने देती थी। उसी बीच राधा ने दो अंडे दिए, जिनको वह पंखों में छिपाए बैठी रहती थी। पता चलते ही कुछ जानें क्यों चमार मारकर राधा को धकेल दिया और फिर अंडे फोड़कर ठूंठ जैसे पैरों से सबोर चित्र आदि। इस कलह कोलाहल से और उससे भी अधिक राधा की दूरी से बेचारे नीलकंठ की प्रसन्नता का अंत हो गया। कई बार वह जाली के घर से निकलकर भागा। 1 दिन। भूखा प्यासा शाम को आम की शाखा में छिपा बैठा रहा। जहाँ से बहुत पुचकार कर मैंने उसे उतारा। एक बार मेरी खिड़की के शेड पर छिपा। मेरे दाना देने जाने पर वह सदा की बात थी। पंखों का मंडलाकार आकार बनाकर खड़ा हो जाता था, पर उसकी चाल में थकावट और आँखों में शून्यता रहती थी। अपने अनुभवहीनता के कारण ही मैं आशा करती रही कि थोड़े दिन बाद सब मैं मेल हो जाएगा। अंत में तीन चार मास के उपरांत 1 दिन सवेरे जाकर देखा कि नीलकंठ पूंछ पंख फैलाए धरती पर उसी प्रकार बैठा हुआ है जैसे खरगोश के बच्चों को पंखों में छिपाकर बैठता था। मेरे पुकारने पर भी उसके न उठने पर संदेह हुआ। वास्तव में नीलकंठ अब नहीं रहा। क्यों का उत्तर तो अब तक नहीं मिल सका ना उसे कोई बिमारी हुई ना उसके रंग बिरंगे फूलों के। इस तक जैसे शरीर पर किसी चोट का चिन्ह मिला। मैं अपने शॉल में लपेटकर उसे संगम ले गई। जब गंगा की बीच धार से उसे प्रवाहित किया गया, तब उसके पंखों की चंद्रिका ओसे बिंबित प्रतिबिंबित होकर गंगा का चौड़ा पाठ एक विशाल मयूर के समान तरंगित हो उठा। नीलकंठ के न रहने पर। राधा तू निश्चेष्ट सी हो गई? कई दिन कोने में ही पड़ी रही। वह कई बार भाग कर लौट आया था। अतः वह प्रतीक्षा के भाव से द्वार पर दृष्टि लगाए रहती थी। पर कुछ जानें। कोलाहल के साथ खोज डूंड आरंभ की खोज के क्रम में वह प्रायः जाली का दरवाजा खुलते ही बाहर निकल जाया करती थी और आम, अशोक, कचनार आदि की शाखाओं में नीलकंठ को ढूंढती रहती थी। 1 दिन आम से उतरती ही थी कि कजली अल्सेशियन डॉग सामने पड़ गई। स्वभाव के अनुसार उसने कजली पर भी चोट से प्रहार किया। परिणामतः कजली के दो दांत उसकी गर्दन पर लग गए। इस बार उसका कलह को लाहौर, द्वेश, प्रेम भरा जीवन बचाया न जा सका। परंतु इन तीन पक्षियों ने मुझे पक्षी प्रकृति की विभिन्नता का जो परिचय दिया है वह मेरे लिए विशेष महत्त्व रखता है। राधा अब भी प्रतीक्षा में ही दुखी ली है। मैं जब आकाश मेघाच्छन्न हो जाता है तब वह कभी ऊंचे झूले पर और कभी अशोक की डाल पर अपनी के काको तीव्रतर करके नील कंठ को बुलाती रहती है। तो, दोस्तों। इस कहानी से हमें। पक्षियों की स्वाभाविक प्रवृति। का पता लगता है। ओके बाइ?","सभी को नमस्कार, यह एक मोर और मोरनी की एक अच्छी कहानी है। उस पिंजरे में जिसे जलीघर कहा जाता है, वहाँ बहुत से पक्षी और छोटे जानवर रहते थे। कहानी में मोर 🦚 की वृद्धि और विकास को दर्शाया गया है। कहानी इतनी मार्मिक है कि आपने पहले कभी नहीं सुनी होगी। सुनिए पूरी कहानी और जानिए इससे जुड़ी सभी घटनाओं के बारे में।" "क्या आप भी अपना पॉडकास्ट 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और बहुत बड़ा गुण था, वह था सब की सहायता और भलाई करने का। एक बार हरियल तोता पैर तोड़ कर बैठ गया। तो वह 7 दिन तक उसके लिए नीतू लोमड़ी के यहाँ से दवाई लाती रही पट्टी बांधती रही। चित्रग्रीव कबूतर को बुखार आ गया तो वह उसकी सेवा भी करती रहीं। जो भी बीमार पड़ता, चित्रा सभी की सेवा को हाजिर रहती। जो भी दुख मुसीबत में होता चित्रा उसे दूर करने को तैयार रहती। यही कारण था कि सभी चित्रा को बहुत प्यार करते थे। एक बार की बात है, नदी के उस पार से एक बारहसिंगा उस जंगल में आया। चिड़िया, कबूतर, तोता, मैना सभी ने जगह जहाँ आकर उसका स्वागत किया। बारहसिंगे ने पेड़ों पर बैठे सभी पक्षियों को एक बार देखा फिर वह मुँह फिराकर चल दिया। जाकर वह नदी के किनारे हरी हरी घास पर आराम से बैठ गया। उसका यह व्यवहार सभी पक्षियों को बुरा लगा। कबूतर बोला। कोई ऐसा हो, ये हमारी बात का कोई जवाब ही नहीं दिया। तोता बोला घमंडी है इसीलिए मुँह फिराकर चल दिया है। मैं ना बोली ये तो हमारा मेहमान हैं, चलो हम एक बार और उसका स्वागत करते हैं। फिर वह चित्रा से बोली चित्रा दीदी तुम्हारा सिंह के स्वागत में सुन्दर सा गाना गाओ ना। चित्रा मीठे स्वर में गाना गाने लगी। बड़े दादा तुम्हारा स्वागत कु करते हम सब पक्षी आज, कुहू। यह भी घर अपना समझो, कू मिलजुल कर रहें हम सब कु। पर बार संघ पर इसका कोई प्रभाव न पड़ा। बस सोच रहा था की मैं तो बड़ा हूँ, बड़े घर का हूँ। इन छोटे छोटे पक्षियों से क्यों मित्रता करूँ? और वह वहाँ से छलांग लगाकर जंगल की ओर भाग गया? चित्रा को यहाँ बड़ा बुरा लगा। पहले तो उसे गुस्सा आया और फिर उसने सोचा कि यह तो उसके माता पिता की ही गलती है की उसे अच्छा व्यवहार करना नहीं सिखाया। चित्रा ने सोचा कि मैं उसे ठीक से व्यवहार करना सिखाउंगी। वह जंगल बड़ा ही हरा भरा और सुहावना था। खाने को भी वहाँ खूब मिल जाता था, इसलिए बारहसिंगा वहाँ रोज़ जाता, पर वह बोलता किसी से नहीं था। अकेला ही झाड़ियों में सींग उलझा उलझा कर खेलता रहता था। कबूतर, मैना, तोता। कोई भी उससे बोलने का प्रयास नहीं करते थे। बोलती तो उससे चित्रा भी नहीं थी, पर उसका आना चित्रा को अच्छा लगने लगा था। वह घंटों उसके लंबे घने सींगों को चंचल को दानों को देखती रहती थी। 1 दिन अचानक ही जंगल की शांति भंग होने लगी। खटखट धाए, धाए की आवाजें सुनाई देने लगी। तोता, कबूतर आदि सभी घबरा गए। वे अपने अपने पंखों को फड़फड़ा कर। कभी किसी पेड़ पर तो कभी किसी पेड़ पर उड़ने लगे। इतने में कौआ भागा, भागा आया और बोला, भागो यहाँ से दुष्कर्मियों रहे हैं, उनके पास बंदूकें भी है, भून डालेंगे हम सभी को। कौए की बात सुनते ही सभी पक्षी अपने घोसलों को छोड़कर तेजी से नदी के उस पार उड़ चले। रास्ते में चित्रा ने देखा कि बारहसिंगा दौड़ा दौड़ा उसी जंगल में जा रहा है। जितना चिल्लाई दादा वहाँ न जाना शिकारी है, भून डालेंगे। बारहसिंगा ने जैसे की उसकी आदत थी, पक्षियों को देखकर भी अनदेखा कर दिया था। चित्रा अभी कहीं रही थी और वह तेजी से छलांग लगाकर आगे बढ़ गया था। चित्रा की पूरी बात भी वह ना सुन पाया। जंगल में जाते ही बारहसिंघे ने शिकारियों को देखा। अब उसकी समझ में सारी बात आ गयी। बहुत तेजी से वहाँ से भागा। उसने पीछे मुड़कर भी ना देखा पर शिकारियों ने उसे भागते हुए देख लिया। फिर क्या था वे लगे उसका पीछा करने बारहसिंगा अपने को झोपड़ियों में छिपाकर भागते हुए तंग आ गया। पर अंत में एक गोली आकर उसके पैर में लगी गई। और वह बेहोश होकर घनी झाड़ियों के पीछे एक गड्ढे में गिर पड़ा। शिकारी अपने शिकार को ढूँढते ढूँढते आये। उन्होंने चारों ओर देखा पर कहीं भी वह दिखाई नहीं दिया। घनी झाड़ियों और गड्डों ने उसकी दृष्टि से बारहसिंगे को छुपा लिया था। अंत में भी निराश होकर लौट गए। रात होने पर भी जब 12 सिंगर ना लौटा तो जंगल के उस पार आम के पेड़ पर बैठी चित्रा को चिंता होने लगी। एक बार उसके मन में यह भाव भी आया कि बारहसिंगा जब बोलता तक नहीं तो फिर क्यों वो उसकी परवाह करें? और दूसरे ही क्षण उसने सोचा। कि हम सब जीव जंतुओं को मिल जुलकर ही रहना चाहिए। एक दूसरे की सेवा सहायता करनी चाहिए। फिर क्या था, सारा आलस्य त्यागकर नींद से भरी आँखों को खोलकर चित्रा ने अंगड़ाई ली। अपने पंखों को फड़फड़ा या और जंगल की ओर उड़ चली चाँदनी रात थी। हर जगह चांदनी छिटकी हुई थी। सभी कुछ साफ साफ दिखाई दे रहा था। चित्रा नहीं नदी के किनारे पेड़ों के नीचे हरी हरी घास पर झाड़ियों के बीच में सभी जगह घूम घूमकर बारहसिंगा को देखा और वह कहीं भी दिखाई नादिया। अंत में निराश होकर चित्रा उड़ चली। झाड़ियों के बीच में से वह उड़ ही रही थी कि तभी उसकी निगाह एक जगह पड़ी जहाँ बारहसिंगा पड़ा हुआ था। वह तुरंत नीचे उतरी, उसने देखा बारहसिंगा बेहोश पड़ा है। वह अपनी चोंच में भर भरकर तीन चार बार पानी लाई और उसे 12 सिंगर की मुँह में डाला। तब कहीं जाकर उसे होश आया। आंखें खुलने पर बारहसिंगा ने अपने सामने चित्रा कोयल को देखा। सुबह की घटना उसकी आँखों के सामने घूम गई। पल भर में उसकी समझ में सारी बातें आ गई। यह सोचकर कि वही चिड़िया मेरी सहायता कर रही है, जिससे मैं बात तक नहीं करता था। की आँखों में आंसू भर आए। अभी आयी दादा कहकर चित्रा उड़ गई। थोड़ी देर बाद लौटी तो उसकी चोंच में लगी थी हरी हरी घास और फल आते ही बोली सुबह से भूखे उन लोग खा लो, भूखा तो था ही बारासिंगा वो जल्दी जल्दी खाने लगा। अंत में उससे ना रहा गया और वह पूछ ही बैठा जो उतरा बहन एक बात बताओ तो मेरी इतनी सहायता इतनी सेवा क्यों कर रही हो? मैं तो तुमसे बोलता तक नहीं था। सुबह भी मैंने तुमसे बात नहीं की। और ना तुम्हारी बात सुनी। चित्रा मुस्कुरायी और बोली भैया हम दूसरों के काम आ पाए, उनकी सहायता कर पाए। इसी में जीवन की सार्थकता है जो केवल अपने लिए जीते हैं और सोचते है की वो बड़े तुम छोटे हैं। अरे सिंग ए की समझ में भी बात आने लगी, बोला हो हम सबको एक ही ईश्वर ने बनाया है। हम सब भाई बहन हैं। सभी को मिलजुल कर ही रहना चाहिए। रात आंधी के करीब बीच चुकी थी। चित्रा ने 12 सिंघे से। सोने के लिए कहा और स्वयं भी आम के पेड़ पर बने अपने घोंसलें में जाकर सो गई। दूसरे दिन यमुना नदी के उस पार के सभी पक्षी भी वापस आ गए। अब बारहसिंगा, तोता, मैना, कौआ, कबूतर सभी के बड़े स्नेह पूर्वक बातें होने लगीं। किसी को भी उससे शिकायत नहीं रही। चित्रा कोयल ने नीतू लोमड़ी के यहाँ से रोज़ दवा ला लाकर बारहसिंगे को सवस्थ बना दिया था। वह तो अब उसकी पक्की सहेली बन गई है। दोनों दोपहर में आम की अमराई में बैठे बैठे। बतियाते रहते हैं तो बच्चों ये कहानी थी सच्ची मित्रता की। ओके बाइ।","सभी को नमस्कार, यह दोस्ती की एक अद्भुत कहानी है। इस कहानी में एक मंच और एक कोयल है। पूरी कहानी सुनें और कहानी की नैतिकता के बारे में जानें।" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपके लिए लेकर आई हूँ, उसका टाइटल है व्यक्तित्व की परख। एक बार हाथियों का एक झुंड हिमालय की उपत्यकाओं में घूम रहा था, तभी से ऐसा जो रोका तूफान आया। सभी तेजी से भागने लगे, जिसे जिधर ते रास्ता सुलझाओ, वह उधर भागने लगा। ज़रा सी देर में झुंड तितर बितर हो गया, भटकता हुआ एक हाथी सुरक्षित स्थान खोजते खोजते एक छोटी सी गुफा में पहुंचा। उसमें बस आराम से हाथ पैर फैलाकर बैठने भर की जगह थी। और ये इतनी सी ही जगह है। ऐसा मन में सोचते हुए वो हाथी गुफा में जा बैठा। उसने अपनी आसमान की ओर उठाई और दोनों हाथ जोड़कर चिंघाड़। प्रभु तू ही आश्रितों को शरण देता है। तभी बाहर जोरों की बिजली कड़की, मानो वह भी कड़क कड़क कर हाथी की बात का समर्थन कर रही हो। बिजली के प्रकाश में गुफा के द्वार से सटे पत्थर की दीवार में हाथी ने देखा कि एक अजगर बाहर बैठा है, वह ओलों की मार से ठिठुर रहा है। विशालकाय अजगर दीवार से बिल्कुल सटकर बैठा जिससे ओलों की मार से कुछ बचाव हो सके। यह देखकर हाथी को दया आ गई। उसने तेजी से गुफा के द्वार पर रखा पत्थर हटाया। हाथी ने अपना सिर थोड़ा सा बाहर निकाला और बोला। अजगर भाई आओ अंदर आ जाओ। आखिर ओले पानी से कुछ तो बचा होगा ही आज। ऐसा तूफान आ रहा है, लगता है प्रलय आ जाएगी। अजगर की आंखें कृतज्ञता के भाव से भर उठी और जैसे ही उसने सिर गुफा में डाला वह बोल उठा अरे यहाँ तो तुम अकेले ही आराम से बैठ सकते हो। ओरम से नहीं तो थोड़े घिचपिच के बैठ जाएंगे भाई आखिर सदा यहाँ थोड़ी ना रहना है कभी ना कभी तूफान थमेगा ही अपनी आंखें मिचमिचाती हुए दीवार से सटकर बैठे हुए हाथी बोला। अजगर भी जितनी कम से कम जगह में बैठ सकता था बैठ गया। फिर वह बोला। आरती बाई। तुमसे परिचय पाकर धन्य हो गया हूँ। संकट की घड़ी में जो दूसरों की बात सोचते है, अपना सुख छोड़कर उनकी सहायता करते हैं, वो वास्तव में महान होते हैं। तभी हाथी जोरों से चिंगड़ा उत्तर में लगा जैसे दूर से कोई हल्की सी आवाज आई हो। तुमने कुछ सुना क्या? कानों को हिलाता और ध्यान से सुनने की कोशिश करता हुआ हाथी बोला। मुझे तो कुछ सुनाई नहीं देता, आज घर भी चौकन्ना होकर बोला। लगता है द्वार पर कोई है। हाथी ने कहा अपनी जगह से और उठकर दरार में से झांकने लगा। बाहर एक मोटा भालू खड़ा था। तूफ़ान के कारण वह अधमरा सा हो रहा था। हाथी ने जल्दी से द्वारका पत्थर हटाया और बोला। तेजी से अंदर आ जाओ। भालू अंदर तो घुस आया पर वहाँ अब तीनों के खड़े होने तक की जगह न थी। ऐसा करता हूँ भाई मैं बाहर चला जाता हूँ, तुम दोनों बैठो। अजगर ने कहा और बाहर की ओर खिसकने लगा। मैंने बेकार ही तुम्हें कष्ट दिया, मैं भी बाहर चला जाता हूँ। जीवन होगा तो बच ही जाऊंगा। भालू ने कहा और वह भी थके कदमों से बाहर की ओर जाने लगा। हाथी ने अजगर की पूंछ खींचते हुए कहा अरे कहा जल है तुम बड़ी जल्दी मचाते हो। समस्या का हल मैंने सोच लिया है। क्या तुम बाहर जाओगे? अजगर और भालू दोनों एक साथ पूछने लगे। नहीं, हम में से कोई बाहर नहीं जाएगा। हाथी गंभीर स्वर में बोला। फिर कैसे होगा आज घर में आश्चर्य से पूछा? होगा यह कि भालू भैया मेरी पीठ पर बैठ जाएगा। इस प्रकार हम तीनों को ही यहाँ बैठने की जगह मिल जाएगी। तीनों का ही तूफान से बचाव हो जाएगा। हाथी ने कहा। भालू अब तक कुछ सोच विचार भी ना पाया कि हाथी ने झट से अपनी सूंड से पकड़कर उसे पीठ पर बैठा लिया। हाथीदादा मुझे मोटे के बोझ से तुम्हारे पेट दुख जाएगी। गदगद कंठ से भालू बोला जो प्रय ज्यादा ना बोल, बहुत करें तो तूफान थमने पर बाहर निकलकर मेरी पीठ दबा दी जइयो, मालिश कर दीजिये और हाँ नहीं। हाथी प्यार से उसके सिर पर चपत लगाते हुए बोला। पूरे 1 दिन और एक रात तूफान चलता रहा। तूफान थमने पर हाथी, अजगर और भालू बाहर निकलें। असंख्य प्राणी मरे पड़े थे। उसे देखकर भालू सिहर उठा। बोला अति दादा तुम रक्षा ना करते तो हमारी भी यही गति होती। हाथी ने उत्तर दिया रक्षा करने वाला तो भगवान होता है भैया मैं तो बस इतनी सी बात मानकर चलता हूँ कि जैसे सुख दुख हमें होता है, वैसे ही दूसरों को भी होता है। इसलिए अपने साथ साथ औरों का भी ध्यान रखें। पर कितने ऐसे व्यक्ति हैं जो ऐसा कर पाते हैं? उपदेश देना तो सरल है, उसे व्यवहार में लाना कठिन ही है। अजगर बोला, भालू सिर हिलाते हुए बोला, हाँ इसलिए तो व्यक्ति जो कुछ कहता है उससे नहीं। जो कुछ उस आचरण करता है उससे उसकी परख होती है। व्यवहार ही वह दर्पण है जिससे किसी व्यक्ति का वास्तविक रूप सहजता से देखा जा सकता है। मोड़ पर आकर सहसा ही हाथी ठिठका और बोला। अच्छा भाई, अब विदा मेरा रास्ता तुम सबसे अलग होता है। भालू और अजगर दोनों विनम्रता से सिर झुकाकर हाथ जोड़कर बोले दादाजी, आपने स्वयं कष्ट सहकर भी हमें शरण दी, हमारा जीवन बचाया या हम कभी नहीं भूलेंगे। ये हमारा सौभाग्य होगा कि आप के लिए भी हम कुछ कर पाए। भगवान तुम्हारी यह भावना सदैव बनाए रखें, तुम्हें सुख शांति दें। हाथी ने आसमान की ओर सूंड उठाकर कहा। फिर वह दोनों के सिर पर प्यार से हाथ थपथपाकर आगे बढ़ गया। जब तक वह आँखों से ओझल नहीं हो गया, भालू और अजगर उसे एकटक देखते रहे। अजगर फुसफुसाकर बोला संसार में ना धूर्तों की कमी है न मान आत्माओं की। हमें अच्छे व्यक्तियों का ही अनुकरण करना चाहिए, जिससे हर जीवन सफल और सार्थक बने। भालू ने भी सहमति में सिर हिलाया फिर हाथी की उदारता की प्रशंसा करते हुए उन दोनों ने भी विदा ली और अपने अपने रास्ते चल दिए। तो बच्चो। इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है कि हमें सदैव दूसरों की सहायता करने के लिए तत्पर रहना चाहिए। ओके बाइ?","सभी को नमस्कार, यह एक हाथी 🐘 की एक नैतिक कहानी है। हाथी बहुत दयालु होता है। संकट की स्थिति में उसने जंगल के दो और जानवरों की मदद की। वह बहुत उदार है क्योंकि उसने बेचैनी को सहन करते हुए भालू और अजगर की मदद की। पूरी कहानी सुनें और कहानी के नैतिक के बारे में जानें।" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपको सुनाने जा रही हूँ, उसका टाइटल है सच्ची सुंदरता। दंडकारण्य में भास्कर नाम का एक खरगोश रहता था। उसकी एक ही बेटी थी वह बड़ी सुन्दर थी, गुलाबी और सफेद रोएँदार शरीर, लंबे कान, मोटी पूंछ, गुलाबी, प्यारी आँखें जो भी उसे देखता, मुग्ध हो जाता। भास्कर ने बड़े प्यार से उसका नाम रखा था रूपा। वास्तव में वह अपने नाम के अनुरूप ही थी। इतना सम्मान पाकर रूपा को अभिमान होने लगा। वह अपने सामने सभी को तुच्छ समझने लगी। घमंड में भरकर और दूसरों का अपमान भी करने लगी थी। 1 दिन जब चुहिया उसके साथ खेलने आई तो अपनी आंखें चढ़ाकर रूपा बोली, मैं तुम जैसे गंदे जीवों के साथ नहीं खेलूंगी, ना ही मैं तुम्हें सहेली बना सकती हूँ। ओह क्या रूप रंग पाया है? मटमैला घिनौना जाओ तुम अपने जैसे ही लोगों में शोभा पाओगी। प्रीति को रूपा की यह बात बहुत ही बुरी लगी। उसने कठोर उत्तर भी देना चाहा पर शालीनतावश बस इतना ही कह पाई, रूपाया शरीर तो जैसा भी है सुंदरी करू भगवान का दिया हुआ है हम सब तो बस इस शरीर को गुणों से ही सुंदर बना सकते हैं। 1 दिन रूपा अपनी सहेलियों के साथ अमलताश के पेड़ के नीचे बैठी हुई थी, तभी उसकी निगाह पेड़ पर चढ़ते हुए गिरगिट पर गयी। उस गिरगिट को देखते ही वह अपने नन्हें नन्हें दांत निकाल कर हँस पड़ी और बोली। वाह भाई वाह क्या रूप है जन आपका? गिरगिट ने जब यह सुना तो उसे बड़ा गुस्सा आया। गुस्से में अपनी पूछ फटकार कर, आंखें निकालकर और रंग बदलकर। वह ज़ोर से बोला और ये घमंडी ज़रा ठीक से बात कर सारा रूप रंग तेरी ही बपौती नहीं है। छेह सात रंग बदलने का वरदान ईश्वर ने बस मुझे ही दिया है घमंड करना। बाद में पहले ज़रा मेरी तरह रंग बदलकर तो दिखा, रूपा कुछ कहने ही जा रही थी पर गिरगिट की क्रोध से भरी आंखें देखकर उसकी सहेली ने उसे चुप करा दिया। 1 दिन हाथी का बच्चा बिशु केले के नीचे बैठा आराम कर रहा था। रूपा उसकी पीठ पर चढ़ गई और फुदकते हुए बोलीं वाह वाह ना खो तो भी शु जैसी जमीन झाड़ती आसमान छूती पैर हो तो ऐसे लगे जैसे मकान के चार खंभे ही चल रहे हैं। दांतों तो ऐसे तलवारों जैसे मुँह फाड़ कर निकलते हुए। रूपा अभी कुछ और ही बोल रही थी कि विशु ने गुस्से में भरकर उसे अपनी सूंड से उठाया और दूर फेंक दिया। वह चिंघाड़कर बोला और यदि कोई हो तो विशु जैसा जैसा जो गलत करे उसे तुरंत दंड देने वाला। विश उन्हें रूपा को इतने ज़ोर से फेंका था कि वह केले के पेड़ से बहुत दूर एक गड्ढे में जाकर गिर पड़ीं। बरसात के दिन थे। गड्ढे में खूब पानी भरा था, रूपा उसमें डूबने लगी। तभी उसकी निगाह गड्ढे में रहने वाले राजेश मेंढक पर पड़ी। वह हाथ जोड़कर और रिया कर बोली भैया मुझे अभी इस गड्ढे से निकाल दो नहीं तो मैं मर जाऊँगी। मेंढक को रूपा पर दया आ गई। उसने उसे अपनी पीठ पर बिठाया और एक ही छलांग में उसे साथ लेकर गड्ढे से बाहर निकल आया। गड्ढे से बाहर निकलकर रूपा करा उठी। उसकी एक आंख बुरी तरह दर्द कर रही थी, खुल ही नहीं रही थी। जैसे तैसे उसने घर जाने के लिए कदम बढ़ाए पर यह क्या उसका दाहिना पैर तो आगे बढ़ ही नहीं रहा था, उससे एक कदम भी चला नहीं जा रहा था। रूपा सोच भी नहीं पाई कि वह कैसे घर जाए। तभी उसकी निगाह सामने से आते हुए मेंढक, गिलहरी और बत्तख के झुंड पर पड़ी। उसने लाख अनुनय विनय की पर उनमें से कोई भी उसे घर तक छोड़ जाने के लिए तैयार नहीं हुआ। उन सभी को अपना अपमान याद आ रहा था। वह अपमान रूपाने घमंड में भरकर समय समय पर किया था। सच है कि घमंड की सहायता करने के लिए कोई भी तैयार नहीं होता। सब उससे मुँह फेरा लेते हैं। आखिर हार कर रूपा अकेले ही लंगड़ाती हुई, घर की ओर चली। शिकारी कुत्तों, लोमड़ी आदि से बचती बचाती घंटों में वह घर पहुँच पायी। उसके माता पिता उसकी प्रतीक्षा कर रहे थे। उसे देखते ही वह बोले, अरे बिटिया। इतनी देर से कहाँ रह गयी थी तुम? रूपा ने रोते रोते सारी बात बताई। भास्कर तुरंत उसे लेकर प्रसिद्ध डॉक्टर चिनमय खरगोश के यहाँ गया। चिन्मय ने रूपा की आंख से एक लंबा काँटा निकाला। कांटा निकालते ही खून की धार फूट पड़ी। बड़ी मुश्किल से खून निकलना बंद हुआ। पैर पर भी प्लास्टर बांधना पड़ा, क्योंकि हड्डी टूट गई थी। दो महीने बाद रूपा का पैर तो ठीक हो गया पर उसकी आंख हमेशा के लिए खराब हो गई थी। अंत में चिन्मय डॉक्टर ने भी कह दिया किसी भी प्रकार ठीक नहीं हो सकती है। डॉक्टर की बात सुनकर घर आकर रूपा फूट फूटकर रोने लगीं, जिससे सुंदरता पर उसे गर्व था। वहीं अब सदैव के लिए समाप्त हो गई थी। रूपा का नी हो गयी थी। आग के कारण उसकी सारी की सारी सुंदरता नष्ट हो गई थी। निरंतर आंसू बहाती हुई रूपा को भास्कर समझाने लगा। बेटी शरीर की सुंदरता तो कभी भी नष्ट हो सकती है, उस पर गर्व करना मूर्खता ही है। हम स्वयं नहीं जानते कि हमारा शरीर कब तक सुन्दर रहेगा और किस स्थिति में रहेगा। ना जाने कौन सा रोग कौन सी विपत्ति इस शरीर पर आ पड़े। पिता की बातें सुनकर रूपा से सकते हुए बोली हाइ मैं तो कुरूप हो गयी है, मुझे कोई प्यार नहीं करेगा। रूपा की माँ उसे समझाते हुए बोली, बेटी शरीर की सुंदरता वास्तविक सुंदरता नहीं है। और शरीर की कुरूपता भी वास्तविक रुकता नहीं है। सच्ची सुंदरता होती है गुणों में व्यवहार में तुम अपने मन को व्यवहार को सुंदर बनाओ तब सभी तुम्हें प्यार करेंगे और सदैव सदैव के लिए सम्मान भी करेंगे। हमेशा याद रखना कि अच्छा स्वभाव सुंदरता की कमी को सहज ही पूरा कर देता है। उसके आकर्षण में बंधकर सुंदरता की याद भी नहीं आती, परन्तु सौंदर्य की पराकाष्ठा भी अच्छे स्वभाव की कमी को पूरा नहीं कर सकती। भास्कर खरगोश पी रूपा को समझाते हुए बोला स्वच्छता सर्वे की ओर सुरुचि ये तीनों गुण जहाँ आ जाते हैं वहाँ सुंदरता भी दिखाई देने लगती है। तुम्हारा बाहरी चमक दमक में ना पड़ो, इसी सच्ची सुंदरता को अपनाने का प्रयत्न करो। रूपा अपने नथुने सिकोड़कर पूँछ हिलाते हुए बोली, हाँ, आप ठीक कहते हैं? फिर वह अपने आंसू पोंछ कर धीरे धीरे वहाँ से चली गई। मुझे अब अपने व्यवहार को सुंदर बनाना होगा। वह सोचती हुई जा रही थी तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें कभी भी अपनी सुंदरता पर घमंड नहीं करना चाहिए और हमेशा सभी का सम्मान करना चाहिए। किसी का अपमान नहीं करना चाहिए। ओके बाइ?","सभी को नमस्कार, यह एक छोटे से प्राणी खरगोश 🐰 की कहानी है। खरगोश अपने बचपन में बेहद खूबसूरत होता है। वह दूसरे जानवरों का अपमान करती थी। लेकिन एक दिन उसे अपने बुरे बर्ताव की सजा मिली। पूरी कहानी सुनें और इसके बारे में नैतिकता के बारे में जानें।" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी में आपको सुनाने जा रही हूँ, उसका टाइटल है सोने का पिंजड़ा। एक शहर में कपड़ों का एक बहुत बड़ा व्यापारी था। आसपास के गांवों के लोग उसकी दुकान पर कपड़ा खरीदने आते थे। सेठ कभी कभी अपने ग्राहकों को उधार कपड़ा भी देता था, इसलिए आसपास के गांवों में सेठ को उगाही करने जाना पड़ता था। एक बार सेठ गांव में उगाही करने गया था। वहाँ से लौटते समय एक पेड़ के नीचे वहाँ आराम करने बैठ गया और थोड़ी ही देर में उसे नींद आ गई। जवान नींद से जागा तो उसने अपने आस पास तो तो का समूह देखा। हरे रंग, लाल चोंच और गले पर काली पट्टी वाले तोतों को देखकर सेठ ने सोचा कितने सुंदर है ये तोते एक दो तोतों को घर साथ ले जाऊंगा तो परिवार के लोग बहुत खुश होंगे। ये सोचकर सेठ ने अपना गमछा तोतों के झुंड पर फेंका और एक तोता पकड़ लिया। इस तोते को सेट अपने घर ले गया। सेठ ने घर पहुँचकर तोते के लिए सोने का एक किला बनवाया, उसमें तोते के लिए बैठक और एक झूला रखवाया। पानी पीने के लिए कटोरी और खाने के लिए एक छोटी सी तश्तरी भी रखवाई। तोता सोने के पिंजरे में रहने लगा। उसे अमरूद, मिर्च आदि मनपसंद वस्तुएं खाने को दी जाने लगी। घर के बच्चे तथा सेठ तोते से बातें भी करते तो था थोड़ा थोड़ा बोलना भी सीख गया। तोते के साथ बातें करने में सब को बहुत आनंद आने लगा। दूसरी बार जब सेट उगाही करने निकला तो उसने तोते से कहा तोते रोम मैं उगाही करने जा रहा हूँ, लौटते समय मैं तेरे माता पिता व सगे संबंधियों से मिलूंगा। तुझे उनके लिए कोई संदेश भेजना हो तो बता। तोते ने कहा, सेठजी उन सबसे कहना तोता भूखा नहीं है, तोता पैसा नहीं है, तोता सोने के पिंजरे के अंदर आनंद से रह रहा है। सेठ उगाही कर लौटते समय उसी पेड़ के नीचे आराम करने के लिए रुका। तभी तो तो का एक समूह उस पर टूट पड़ा। वे उसे चोट से मारने लगे। उनमें से एक तोते ने सेठ से पूछा, हमारा तोता क्या कर रहा है? सेठ ने उसे शांत करते हुए कहा। तोता भूखा नहीं है, तोता प्यार तो नहीं है। तोता सोने के पिंजड़े के अंदर आनंद कर रहा है। यह सुनकर सभी तोते बिना कुछ बोले जमीन पर मुर्दो की तरह लुढ़क गए। सेठ उनके पास गया। उसने तोतों को हिला डुला कर देखा और ऐसा लगा जैसे सारे तोते आघात से मर गए हो। सेठजी घर वापस आये सेठ को देखते ही तोते ने अपने माता पिता एवं सगे संबंधियों के समाचार पूछें। सेठ ने कहा। तेरे माता पिता और सगे संबंधियों को जब मैंने तेरा संदेश सुनाया तो सभी लुढ़क गए। क्या उन्हें आघात लगा होगा? पिंजड़े के तोते ने कोई जवाब नहीं दिया। सेठ की बात सुनकर वह स्वयं भी पिंजड़े के झूले से नीचे गिर पड़ा। सेठ ने यह देखा तो उसे बहुत आश्चर्य हुआ। उसने पिंजरे का दरवाजा खोला और तोते को हिला डुला कर देखा। सेठ जी को लगा वह तोता भी आघात से मर गया है। सेठ जी ने तोते को पिंजरे से बाहर निकाल कर थोड़ी दूर पर रख दिया। मौका देखकर तोता पंख फड़फड़ाता हुआ उड़ गया। जाते जाते। उसने कहा, सेठ जी। मैं आपका आभारी हूँ मुझे अपने माता पिता का संदेश मिल गया है, मैं उनसे मिलने जा रहा हूँ। आपका पिंजरा सोने का था, लेकिन था वह पिंजरा मेरे लिए वह जेल थी। तोता उड़ता हुआ जंगल में अपने माता पिता और सगे संबंधियों के पास पहुँच गया। उसे लौटकर आया हुआ देख सब खुश हो गए। अब मुक्त वातावरण में तोता सबके साथ आनंद से रहने लगा। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि घर। चाहे सोने का हो, लेकिन अगर किसी को भी घर के अंदर बंद कर दिया जाएगा तो वह सुखी नहीं रहेगा। सभी को स्वच्छंदता पसंद होती है। ओके बाइ?",यह एक तोते की कहानी है। एक बार एक व्यापारी ने एक तोते को पकड़ कर सोने के पिंजरे में डाल दिया। तोता पिंजरे में जीवन जीने के लिए खुश नहीं था लेकिन उसके लिए मुक्त होना संभव नहीं है। जब उसे अपने रिश्तेदारों का संदेश मिला तो तोता पिंजरे से मुक्त हो गया। कहानी सुनें और एक छोटे से जीव तोते की बुद्धि के बारे में जानें। "क्या आप भी अपना पॉडकास्ट बनाने का सोच रहे हैं? तो ऐंकर ट्राई कीजिए, ये पॉडकास्ट बनाने का सबसे आसान तरीका है। नंबर एक ये फ्री है नंबर दो। इसमें कई सारे ऐसे टूल्स है जो आपको अपने फ़ोन और कंप्यूटर पर रिकॉर्ड और एडिट करने की फैसिलिटीज देते हैं। नंबर तीन आप अपने पॉडकास्ट को डिस्ट्रीब्यूट भी कर सकते हैं, जिससे इसे इस स्पॉटिफाइ और दूसरे प्लैटफॉर्म्स पे सुना जा सकें। डाउनलोड कीजिये ये फ्री एंकर ऐप या विजिट कीजिए ऐंकर डॉट ऐफ़ एम अपना पॉडकास्ट स्टार्ट करने के लिए? हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपके लिए लेकर आई हूँ उस कहानी का शीर्षक है करनी का फल बरगद का एक विशाल पेड़ था। उस पर एक महीना अपना घोंसला बनाकर रहती थी। उस मैं ना की एक बड़ी पक्की सहेली कोयल थी। बरगद के पेड़ को छोड़कर एक आम के वृक्ष पर वो रहा करती थीं। दोनों सहेलियां साथ साथ काम करने निकलती, साथ साथ अपने बच्चों के लिए कपड़े बुनती थी। मैं ना जो भी पकवान बनाती थी तो कोयल के घर जरूर भिजवाती। इसी प्रकार कोयल भी मैना के यहाँ बढ़िया चीज़ है भिजवाती फिर वह उन्हें खाती थी। 1 दिन में ना ने गोल गोल फूले फूले मालपुए बनाए। वह उन्हें तश्तरी में रखकर कोयल को देने निकलीं। बरगद के पेड़ की ऊपर वाली डाल पर एक धूर्त कौआ बैठा था। गरमगरम रस टपकते मालपुए देखकर उसके मुँह में पानी भर आया। उसका मन हुआ किस सारे के सारे मालपुए गपा गप गपा गप करके खाता ही चला जाए पर उसे मेहना से मांगने में शर्म आयी। कुछ यह भी लगा की पता नहीं वो देगी भी या नहीं। उसने तुरंत ही एक उपाय सोचा। बहुत तेजी से डाल से उतरकर महीना के सामने आ गया और बोला। नमस्ते दीदी। तो वो पूछने लगा इतनी सुबह सुबह कहाँ चलती है दीदी? बस ज़रा कोयल के घर जा रही हूँ मैं ना कहने लगी कौआ अपनी आवाज़ को थोड़ा और मीठा बना कर बोला, ओहो मैं ना दीदी तुम कितनी सुन्दर हो तुम कितनी अच्छी हो तुम कितनी परोपकारी भी हो तुम सबको कितना प्यार करती हो। तुम मुझे बड़ी अच्छी लगती हो, मैं तुम्हारी कुछ सेवा कर पाऊँ, तुम मुझे बड़ी प्रसन्नता होगी। मैं ना अपनी तारीफ सुनकर प्रसन्न होने लगी। कुआं उसके चेहरे को बड़े ध्यान से देख रहा था। बस समझ गया था कि उसकी बातें मैं ना पर असर डाल नहीं है। कौआ आगे कहने लगा, दीदी तुम क्यों कष्ट करती हो? लाओ मैं ही इन्हें दे आऊँ? मैं इस समय खाली ही तो हूँ। मैं ना कहोगे की बातों में आ गई। उसे जल्दी भी थी। घर जाकर बच्चों को नहलाना जो था। उसने तश्तरी कुएं को पकड़ा दी और खुद घर के अंदर चली गयी। गोवा मालपुए लेकर फुर्ती से नीम के पेड़ पर जा बैठा। यहाँ उसने जी भरकर मालपुए खाएं। उसका पेट भर गया पर स्वादी स्वाद में वह खाता ही चला गया। दशहरी में निकला रस भी उसने चाट चाटकर खाया, फिर तश्तरी पेड़ के नीचे फेंक दी। झरने पर जाकर आराम से ठंडा ठंडा पानी पीया। फिर नियम के पेड़ की क्वार्टर में जाकर छिप कर सो गया। इधर, मालपुए बनाने की खुशबू कुईल के घर तक पहुँच चुकी थी। बड़ी देर से इंतज़ार कर रही थी कि कब मैं ना मालपुए भिजवाये और कब वह बच्चो को खिलाये। वो की खुशबू सुनकर उसने बच्चों का खाना भी तैयार नहीं किया था। कोयल इंतजार करती रही कि मालपुए अब आये। अब आये और ऐसे ही शाम बीतती चली गई। ना मैं, ना खुदाई और ना ही उसने पूरे भिजवाए, उसे बड़ा गुस्सा आया। बस सोचने लगी क्योंकि अब मैं कभी भी मैन आके यहाँ कोई पकवान नहीं भिजवाया करूँगी। कोयल गुस्से में भारी खाना खा रही थी कि तभी मैं ना आयी। और वो बोली बहन, ज़रा तश्तरी तो दे दो कौन सी तश्तरी गोयल मुँह फुलाये बोली अरे वही जिसमें मालपुए भिजवाए थे। कैसे माल यहाँ तो कोई कुछ नहीं लाया, कोयल बोली? मैं ना समझ गईं कि यह सब चालाकी कुएं की है। उसने कोयल को सारी बातें बताई। कौए ने यह शरारत पहली बार न की थी, वह बड़ा ही आलसी था। काम कुछ करता नहीं था। दूसरों को धोखा देकर उनकी चापलूसी करके उनसे कुछ ना कुछ हड़प लिया करता था। मुर्गी, तोता, बट तक चिड़िया, बकरी, कुत्ता आदि सभी पशु पक्षी उससे तंग आ गए थे। मैं ना और कोयल ने तय किया कि आज तो कुएं को दंड देना ही चाहिए, जिससे की आगे वह किसी और को धोखा न दे सके। मैं ना और कोयल दोनों कुएं को ढूंढने निकली। मैना की निगाह नीम के पेड़ के नीचे पड़ी हुई तश्तरी पर पड़ी। उसने सोचा कि कौआ भी यही आस पास कहीं होना चाहिए। दोनों सहेलियों ने मिलकर नीम के सारे पेड़ को छान मारा। आखिर एक कोटर में कौआ मिल ही गया और सो रहा था। उसने इतना खा लिया था कि उसका पेट आगे की तरफ फूल गया था। कोयल ने अपनी चोट उसमें घर आई तो वह हड़बड़ा कर उठ बैठा। जैसे ही वह कोटर से निकल कर भाग रहा था की एक नुकीली डाल उसकी आंख के अंदर घुसती चली गई। आग से खून निकलने लगा। मैं ना दौड़कर डॉक्टर नीतू लोमड़ी लिख को ले आयी। उसने दवा लगाई, पट्टी बांधी पर कौए की आंख ठीक ना हो पायी। आज तक वह एक ही पतली से काम करता है। जंगल के सभी जानवर आपस में यही कहते रहते हैं कि जो दूसरों का बुरा करता है, भगवान उसे दंड जरूर देता है। भगवान के यहाँ न्याय में देर हो सकती है अंधेर नहीं। कौए को अपनी करनी का फल मिल गया। सदाचारी और दूसरों का भला करने वाला व्यक्ति ही सुख संतोष से रहता है। उसी को ईश्वर भी प्यार करते हैं तो बच्चों इस कहानी से जो सीख हमें मिली वह यह है कि हमें कभी भी किसी को परेशान नहीं करना चाहिए और ना ही किसी की चीज़ ऐसे धोखा दे के हड़पनी चाहिए। ओके बाय।","सभी को नमस्कार, यह एक लालची कौवे की एक अद्भुत कहानी है। कौआ सब गौरैया और कोयल का आहार है। उसके साथ क्या हुआ और वे उसे कैसे सबक देते हैं। पूरी कहानी सुनें और कहानी की नैतिकता के बारे में जानें।" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी में आपको सुनाने जा रही हूँ, उसका टाइटल है सोने का कब हुआ? बात बहुत पुरानी है। किसी गांव में एक गरीब स्त्री रहती थी, उसकी एक नातिन थी जो उस वृद्ध स्त्री के साथ ही रहा करती थी। उसका नाम था चंदा। चंदा बहुत सुन्दर, सुशील और गुणवान लड़की थी। एक बार माँ ने उसे एक थाली में चावल दिए और कहा कि इन्हें धूप में सुखा दें। जब वह थाली लेकर आगे बढ़ी तो माँ ने उसे एक विशेष निर्देश देकर कहा। चंदा देखना पक्षी कही चावल ना खा जाए तुम्हे पक्षियों से इन चावलों की रक्षा करनी है। थोड़ी देर बाद अचानक वहाँ पर एक अद्भुत सा कौवा आ गया। चंदा अभी चावलों को थाली में सुखा ही रही थी की उसको वे ने चावला को खाना शुरू कर दिया। चंदा यह देखकर आश्चर्य में पड़ गई कि उसका वे के पंख सोने की क्यों चांदी की थी? ऐसा अद्भुत पक्षी उसने कभी नहीं देखा था। उसे चावल खाता देखकर चंदा रोने लगी। वह कुएं से अनुरोध कर रही थी की चावल ना खाएं क्यों? क्योंकि उसकी माता बहुत गरीब है और उसके पास खाने के लिए और कुछ भी नहीं है। चंदा की बात सुनकर कौआ बोला। बच्ची चिंता मत करो, कल्पना तक सूर्योदय होने पर तुम गांव के बाहर लगे पीपल के वृक्ष पर आ जाना, मैं तुम्हें चावलों का मूल्य दे दूंगा। चंदा उस रात खुशी के मारे सो भी ना पाई और सूर्योदय से पहले ही उठ गई। वह कुएं की बताई हुई जगह पर पहुँच भी गई। पेड़ के ऊपर जैसे ही चंदा ने देखा तो उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा। वहाँ एक सोने का महल था। जैसे ही कौवा सोकर उठा, उसने सोने की खिड़की से झांककर नीचे देखा। अरे बच्ची तुम आ गई, मैं तुम्हारे लिए सीढ़ी की व्यवस्था करता हूँ या बताऊँ तुम सोने की सीढ़ी से ऊपर आओगी, चांदी की या तांबे की चंदा के लिए? यह सब बहुत अद्भुत था। वह बोलीं मैं तो गरीब हूँ, थामी की सीढ़ी से ही में आ जाती हूँ लेकिन कौए ने उसके लिए सोने की सीढ़ी रखी। काफी देर तक चंदा उसके भवन के अद्भुत चीजों को देख रही थी। उसे भूखा देखकर कुएं ने कहा की पहले तुम कुछ खा लो। कौए ने चंदा से फिर प्रश्न किया तुम सोने की थाली में खाओगी? चांदी की या फिर तांबे की थाली में? चंदा ने फिर तांबे की थाली में ही खाना मांगा, लेकिन कौए ने उसे सोने की थाली में खाना परोसा। चंदा ने इससे स्वादिष्ट खाना आज से पहले कभी भी नहीं खाया था। अब कौआ बोला। मैं चाहता तो हूँ कि तुम हमेशा यहाँ रहो, परंतु तुम्हारी माँ अकेली है, वो तुम्हारा रास्ता देख रही है इसलिए तुम्हें अब घर जाना चाहिए। यह कहकर कौए ने कमरे में से तीन बक्से निकालें और चंदा से उनमें से एक लेने के लिए कहा। चंदा ने सबसे छोटा वाला बक्सा चुना और यह कहकर किया मेरे चावलों का मूल्य हो गया है वहाँ से चली गई। घर आकर जब उसने अपनी माँ को सारी घटना बताई और दोनों ने उस बक्से को खोला तो उनके आश्चर्य का ठिकाना ही ना रहा। यह क्या यह तो हीरे जवाहरातों से भरा है। उस दिन से उनके गरीबी के दिन दूर हो गए और वे सुख से रहने लगे। उसी गांव में एक लालची बुढ़िया भी रहती थी। उसकी भी एक लड़की थी। जब उन्हें चंदा और सोने के कौए की कहानी का पता लगा तो उन्होंने भी उसी प्रकार थाली में चावल सूखने रखें और फिर कुएं का इंतजार करने लगे। फिर सोने का कौआ उनके भी घर पर आया और यह क्या? उस लालची बुढ़िया की लड़की ने तो कुएं से बहुत बुरी तरह बात की और अपने चावलों का मूल्य मांगना शुरू कर दिया। गोवा समझ गया कि ये सारा सॉन्ग लालच के कारण रचा गया है। कौए ने उस लड़की को भी उसी प्रकार पीपल के पेड़ के नीचे बुलाया पर सीढ़ी रखने के समय कौए ने उस लड़की के लिए तांबे की सीढ़ी रखी। खाना परोसने के समय उसको तांबे की बर्तनों में खाना दिया क्योंकि वह जानता था की ये लड़की लालच के कारण ही यहाँ पर आई हैं। अब जाते समय कौए ने उसी प्रकार तीन बक्से उस लड़की के सामने भी रखती हैं और उससे उनमें से एक लेने को कहा। लड़की ने सबसे बड़ा वाला बक्सा चुना और जल्दी से उसको उठाया और अपने घर की तरफ दौड़ पड़ी। जैसे ही खुशी खुशी वह दौड़कर अपने घर पहुंची उसने माँ के सामने उस बक्से को खोला और यह क्या? उन दोनों की तो उस बक्से को खुलते ही हालत खराब हो गयी। उस बक्से में हीरे जवाहरात तो थे नहीं बल्कि एक निकला। दोनों इधर उधर के मारे भागने लगी। उस दिन के बाद से उन्होंने कान पकड़कर तौबा कर ली की आप कभी भी लालच नहीं करेंगी तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है की कौए ने उन लालची बुढ़िया और उसकी बेटी को लालच की सजा दी। तो हमें कभी भी लालच में पड़कर कोई काम नहीं करना चाहिए। ओके बाय।","हैलो, यह एक छोटी लड़की और एक सुनहरे कौवे की कहानी है। लड़की बहुत गरीब है। वह एक जादुई कौए से मिली। कौवा अपने जादू से गरीब लड़की और उसकी माँ को अमीर बना देता है।" "प्रिय मित्रों। नए साल की इस पावन बेला पर स्टार इको की ओर से सभी के लिए एक छोटी सी भेंट। आइये सुनते हैं। सूर्य संवेदना, पुष्प ए दीप्ति, कारुण्य कंदने। शुभम नववर्ष यस्मिन। कुर्यात सर्वस्य ओम मंगलम। अर्थात जिसतरह सूर्य प्रकाश देता है संवेदना करुणा को जन्म देती है। पुष्प सदैव मेहता रहता है, उसी तरह आने वाला हमारा यह नूतन वर्ष आपके लिए हर दिन हर पल के लिए मंगलमय हो। हर किसी को नए साल की प्रतीक्षा होती है। 31 दिसंबर की रात जैसे ही घड़ी का कांटा 12:00 बजे पर पहुंचता है, नया साल लग जाता है। कोरोना काल में सार्वजनिक स्थानों पर जश्न की अनुमति नहीं है, इसलिए सोशल मीडिया पर ही शुभकामनाओं का दौर शुरू हो जाता है। लोग सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म्स पर अपनों को बधाइयां देते हैं और कामना करते हैं कि साल 2021 सभी के लिए खुशियाँ भरा हो। लोग 2020 की कड़वी यादें भुलाकर नए साल में प्रवेश कर रहे हैं। हर चीज़ की सीमा होती है। नया साल आ गया है साल 2020 काफी कुछ सीखा गया। जैसे भी था पर अब। चला गया। जाते हुए को जाने दिया जाता है। वैसे भी हमारे हाथ में यह गिनती नहीं है। करुणा का दौर जारी है, सोशल डिस्टैन्स बना रहे तो उसमें ही बचाव है। अब अपनों को संदेश तो भेजने हैं। उन्हें नववर्ष 2021 की शुभकामनाएं भी देनी है। हो सकता है की इस बार गले ना मिल पाए, लेकिन ऐसे संदेश जरूर भेज जा सकते हैं जो उन्हें प्यारे रिश्ते में बरकरार मोहब्बत का एहसास करवा दे। शाखों पर सजता रहे नए पत्तों का श्रृंगार मीठे पकवानों की होती चारों तरफ बहार मीठी बोली से करते सब एक दूजे का दीदार, खुशियों के साथ चलो मनाएं नववर्ष इस बार। एक खूबसूरती, एक ताजगी, एक सपना, एक सच्चाई, एक कल्पना, एक एहसास, एक आस्था, एक विश्वास यही है एक अच्छे साल की शुरुआत। नया साल आप सभी को मुबारक हो।","सभी को नमस्कार, आप सभी को एक बहुत ही खुशहाल और स्वस्थ नव वर्ष की शुभकामनाएं। आज हम एक स्वस्थ समृद्ध और समृद्ध नया साल मना रहे हैं। भगवान आपको खुशियां दे 💐🙏।" "हैलो बच्चों। हिस्टोरिक को मैं आप सबका स्वागत है, आज मैं आपको। बहुत सुन्दर सी बहुत स्पेशल एक कहानी सुनूंगी, मेरी कहानी को सुन के उसमें दिए हुए मॉडल को अपने जीवन में आपको फॉलो करना है। आज हम कहानी सुनेंगे। धरती के भोजन लिटल एन्जल स्कूल में लंच का समय है। इस स्कूल कैंटीन के बाहर बच्चों की भीड़ जमा है। वे कैंटीन से तरह तरह की चीजें खरीद रहे हैं और आपस में गप्पे लगाते हुए खा रहे हैं। कुछ बच्चों ने चिप्स चॉकलेट के पैकेट इधर उधर जमीन पर फेंक दी है। फाइबर प्लेट और प्लास्टिक के ग्लास भी जहाँ तहाँ छितराए हुए रोहित ने भी मैंगो जूस पीकर पैकेट वहीं जमीन पर फेंक दिया। कैंटीन से आ रही सपना मैम ने उसे ऐसा करते हुए देख लिया। मैडम बोलिए रोहित तुमने जूस का पैकेट जमीन पर क्यों फेंक दिया? इस पर रोहित बोला, माम्, आपने बताया था कि थोड़े दिन बाद तो या मिट्टी में दबकर खत्म हो जाएगा। प्लास्टिक और पन्नी मिट्टी में नहीं गलती रोहित मैडम ऐसा बोली पर क्यों नहीं गलती माम्? इस पर मैम कहती है कि तुम ईंट पत्थर खा सकते हो क्या? नहीं ना? उसी तरह धरती भी प्लास्टिक और बहुत सारा सूखा कचरा जैसे पॉलीथीन, फाइबर, इलेक्ट्रॉनिक गुड्स, कॉन्क्रीट आदि नहीं खा सकती। रोहित कहता है की धरती को भी भूख लगती है माम्। रोहित के आश्चर्य का ठिकाना था। रोहित ऐसी उम्मीद कर रहा था कि शायद माम् उससे कहीं नहीं नहीं, धरती नहीं खा सकती। तभी पास में खड़ी। एक रिया नाम की लड़की भी वहाँ आ गयी। वो मैडम की बातें ध्यान से सुन रही थी और माम् क्या पास आकर बोली? माम् मैं भी जानना चाहती हूँ कि आखिर धरती कैसे खाना खाती है। इस पर माम् कहती हैं कि क्यों नहीं जिसतरह हमें भोजन, पानी, धूप और हवा की जरूरत होती है, बिल्कुल उसी तरह धरती को भी सवस्थ और उपजाऊ रखने के लिए पौष्टिक खाना चाहिए। प्रिया कहती है की धरती को पौष्टिक खाना कैसे खिलाया जा सकता है माम्? बिलकुल आसान है। रसोई के डस्टबिन से ढेर सारा कचरा निकलता है जैसे खराब सब्जियां, सब्जियों के छिलके, बीच, पत्तियाँ आदि। अगर इस कचरे को हम मिट्टी में दबाते जाये तो कुछ ही समय में मिट्टी उर्वर हो जाएगी। मिट्टी उर्वर है तो इसका मतलब ये है की धरती सवस्थ है। कचरे से मिट्टी कैसे उर्वर होगी माम्? रिया का अगला प्रश्न था। इस पर माम् कहती हैं कि प्राकृतिक चीजों का कचरा मिट्टी में सड़कर खाद बन जाता है। यही खाद मिट्टी को उपजाऊ बनाती है। इस तरह धरती पर कचरा भी नहीं फैलता और उसकी उर्वरता भी बनी रहती है। तो फिर इस प्लास्टिक के कचरे को कौन खायेगा? माम् और रोहित की बात सुनकर सभी हंस पड़े। माम् कहती है की बेटा इन्हें हमें हमेशा डिस्ट्रीब्यूट में डालना चाहिए। कुछ प्लास्टिक रिसाइकल होकर फिर से इस्तेमाल में लाए जा सकते हैं। मगर कुछ प्लास्टिक सिंगल यूज़ वाले होते हैं। इन्हें दोबारा इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। रोहित अचानक बोल पड़ा माम्, फिर ऐसे प्लास्टिक का क्या होता है? ऐसे प्लास्टिक को बड़ी बड़ी मशीनों में डालकर जलाया जाता है। मगर हमारे यहाँ कूड़े को कूड़ा घर तक पहुंचाने की व्यवस्था बहुत अच्छी नहीं है। इसलिए अधिकतर सिंगल यूज़ प्लास्टिक इधर उधर डाल दी जाती है। इस तरह धीरे धीरे या हमारी धरती को बंजर और बीमार बना रही है। रिया कहती है माम्, फिर धरती को बचाने के लिए क्या किया जाना चाहिए। धरती को बचाने का बस एक ही उपाय है सिंगल यूज़ प्लास्टिक का इस्तेमाल बंद कर देना और कूड़े के निस्तारण यानी डिस्पोज़ल की उचित व्यवस्था करना, कूड़े को जमीन में फेंकने के बजाय डस्टबिन में डालना। ये एक अच्छी आदत है और इस आदत के चलते। काफी कुछ हम अपनी धरती को इन बुरी चीजों से बचा सकते हैं। आज से हम कूड़े को हमेशा डिस्टर्ब इन में ही डालेंगे और अपनी धरती को अच्छा खाना खिलाएंगे। रिया और रोहित ज़ोर से बोले माम् उन दोनों की बातें सुनकर बहुत खुश हूँ और उन्हें एक आशा भी मिली की हमारी युवा पीढ़ी आने वाली पीढ़ी हमेशा हमारी धरती का ध्यान रखने के लिए तत्पर रहे गी तो बच्चो इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है कि हमें अपनी धरती माता की हमेशा रक्षा करनी चाहिए। प्लास्टिक हमारी प्रकृति के लिए बहुत ही घातक है। हमें प्लास्टिक का उपयोग कम से कम करना होगा, तभी हम अपनी धरती को, अपने नेचर को प्रकृति को बचा पाएंगे। ओके बाइ","यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि प्लास्टिक प्रदूषण ग्रह को नष्ट कर रहा है - और यह बहुत तेजी से हो रहा है जितना कई लोगों ने अनुमान लगाया होगा। सिर्फ 31 साल में समुद्र में मछलियों से ज्यादा प्लास्टिक होगा। लगभग 513 मिलियन टन प्लास्टिक समुद्र में जाता है। उस द्रव्यमान में से, दुनिया के 20 देश 80% कचरे के लिए जिम्मेदार हैं। यहां 5 आसान तरीके दिए गए हैं जिनसे आप पृथ्वी को प्लास्टिक प्रदूषण से बचाने में मदद कर सकते हैं बीसवैक्स रैप्स एक आदर्श प्लास्टिक-मुक्त विकल्प, बहुमुखी रैप किसी भी प्लास्टिक रैप की तरह ही काम करते हैं लेकिन पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना। थोक में भोजन खरीदें बड़े पैमाने पर उत्पाद खरीदने से पैकेजिंग प्लास्टिक की मात्रा कम हो जाती है। बायोडिग्रेडेबल बैग सड़ने वाले खाद के बैग के लिए प्लास्टिक बैग स्वैप करें। लैंडफिल में नियमित प्लास्टिक बैग को टूटने में 1,000 साल लग जाते हैं। बिन स्ट्रॉ प्लास्टिक स्ट्रॉ को मना करें और इसके बजाय स्टेनलेस स्टील, कागज, बांस या यहां तक कि अनानास से बने विकल्प खोजें। उत्पादन बैग में निवेश करें ताज़े फल और…" "क्या आप भी अपना पॉडकास्ट बनाने का सोच रहे हैं? तो ऐंकर ट्राई कीजिए, ये पॉडकास्ट बनाने का सबसे आसान तरीका है। नंबर एक ये फ्री है नंबर दो। इसमें कई सारे ऐसे टूल्स है जो आपको अपने फ़ोन और कंप्यूटर पर रिकॉर्ड और एडिट करने की फैसिलिटीज देते हैं। नंबर तीन आप अपने पॉडकास्ट को डिस्ट्रीब्यूट भी कर सकते हैं, जिससे इसे इस स्पॉटिफाइ और दूसरे प्लैटफॉर्म्स पर सुना जा सकें। डाउनलोड कीजिये ये फ्री एंकर ऐप या विजिट कीजिए ऐंकर डॉट ऐफ़ एम अपना पॉडकास्ट स्टार्ट करने के लिए? दीपावली पर सभी माता लक्ष्मी के साथ श्री गणेश की पूजा करते हैं। लेकिन कुछ ही लोगों को पता है कि माता लक्ष्मी के साथ श्री गणेश जी की पूजा क्यों की जाती है? और ऋद्धिसिद्धि कौन है? साथ ही दीवाली पूजन में शुभलाभ क्यों लिखा जाता है? धनतेरस से शुरू होने वाला दिवाली का यह त्योहार पांच दिनों तक चलता है। माँ लक्ष्मी जी के साथ गणेश जी की पूजा जरूरी है। माता लक्ष्मी श्री अर्थात धन संपदा की स्वामिनी है। वहीं श्री गणेश बुद्धि विवेक के बिना बुद्धि विवेक के धन संपदा प्राप्त कर पाना दुष्कर है। माता लक्ष्मी की कृपा से ही मनुष्य को धन समृद्धि की प्राप्ति होती है। माँ लक्ष्मी की उत्पत्ति जल से हुई थी और जल हमेशा चलायमान रहता है। उसी तरह लक्ष्मी भी एक स्थान पर नहीं ठहरती। लक्ष्मी के संभालने के लिए बुद्धि विवेक की आवश्यकता पड़ती है। बिना बुद्धि विवेक के लक्ष्मी को संभाल पाना मुश्किल है। इसलिए दिवाली पूजन में लक्ष्मी जी के साथ गणेश जी की पूजा भी की जाती है ताकि लक्ष्मी जी के साथ बुद्धि भी प्राप्त हो। कहा जाता है कि जब तक लक्ष्मी मिलती है तब उसकी चकाचौंध में मनुष्य अपना विवेक खो देता है और बुद्धि से काम नहीं करता। इसलिए लक्ष्मी जी के साथ हमेशा गणेश जी की पूजा करनी चाहिए। 18 महापुराणों में वर्णित कथाओं के अनुसार मंगल के दाता श्री गणेश श्री की दात्री माता लक्ष्मी के दत्तक पुत्र हैं। एक बार माता लक्ष्मी को स्वयं पर बड़ा अभिमान हो गया था। तब भगवान विष्णु ने कहा कि भले ही पूरा संसार आपकी पूजा पाठ करता है और आप को प्राप्त करने के लिए हमेशा व्याकुल रहता है, लेकिन अभी तक आप अपूर्ण हैं। भगवान विष्णु के यह कहने के बाद माता लक्ष्मी ने कहा कि ऐसा क्या है कि मैं अभी तक अपूर्ण हूँ? तब भगवान विष्णु ने कहा कि जब तक कोई स्त्री माँ नहीं बन पाती, तब तक वह पूर्णता को प्राप्त नहीं कर पाती। आप नहीं संतान होने के कारण ही अपूर्ण है। यह जानकर माता लक्ष्मी को बहुत दुख हुआ। माता लक्ष्मी का कोई भी पुत्र न होने पर उन्हें दुखी होता देख माता पार्वती ने अपने पुत्र गणेश को उनकी गोद में बैठा दिया। तभी से भगवान गणेश माता लक्ष्मी के दत्तक पुत्र कहे जाने लगे। माता लक्ष्मी दत्तक पुत्र के रूप में श्री गणेश जी को पाकर बहुत खुश हूँ। माता लक्ष्मी ने गणेश जी को वरदान दिया कि जो कोई भी ऐसे मेरी पूजा के साथ तुम्हारी पूजा नहीं करेगा, लक्ष्मी उसके पास कभी नहीं रहे गी। इसीलिए दीपावली पूजन में माता लक्ष्मी जी के साथ दत्तक पुत्र के रूप में भगवान श्री गणेश जी की पूजा की जाती है। अब यहाँ विस्तार से जान लें की माँ लक्ष्मी के साथ भगवान श्रीगणेश की पूजा क्यों होती है? बात कुछ ऐसी है कि एक वैरागी साधु था। एक बार एक वैरागी साधु को राज़ सुख भोगने की लालसा हुई और उसने लक्ष्मी जी की आराधना की। उसकी आराधना से लक्ष्मीजी प्रसन्न हुई और उसे साक्षात दर्शन देकर वरदान दिया कि उसे उच्च पद और सम्मान प्राप्त होगा। दूसरे ही दिन वह वैरागी एक राज़ दरबार में पहुँच गया। वरदान मिलने के बाद उसे अभिमान हो गया। उसने राजा को धक्का मारा, जिससे राजा का मुकुट नीचे गिर गया। राजा व उसके दरबारी गण उसे मारने के लिए दौड़ें ही थे कि इसी बीच राजा के गिरे हुए मुकुट में से एक काला नाग निकलकर भागने लगा। फिर क्या था, राजा ने इसे साधु की चमत्कारी युक्ति समझ कर उसे अपना मंत्री बना लिया। वह उसे रहने के लिए अलग से एक महल भी दे दिया। इसी तरह फिर 1 दिन उस साधु ने राजा के अंजाने में ही जान बचा ली और ऐसे साधु को वाहवाही मिल गई। इससे उसका अहंकार और भी ज्यादा बढ़ गया। इसके बाद उस अहंकारी साधु ने भगवान गणेश की प्रतिमा को बुरा बताते हुए महल से हटवा दिया। फिर क्या बुद्धि और विवेक के दाता श्री गणेश जी उससे नाराज हो गए? उसी दिन से उस मंत्री बने साधुओं की बुद्धि बिगड़ गई। वहाँ उल्टा पुल्टा कुछ भी करने लगा। तभी राजा ने उस साधु से नाराज होकर उसे कारागार में डलवा दिया। साधु कारागार में पुन लक्ष्मीजी की आराधना करने लगा। उसे अपनी करनी पर अफसोस था। फिर माँ लक्ष्मी ने दर्शन देकर उससे कहा की तुमने गणेश जी का अपमान किया है इसलिए गणेश जी की आराधना करके उन्हें प्रसन्न करो। फिर सादु ने ऐसा ही किया जिससे भगवान गणेश का क्रोध शांत हो गया। गणेश जी ने राजा के स्वप्न में आकर कहा कि साधु को पुनः मंत्री बनाओ। राजा ने गणेश जी की आदेश का पालन करा और साधु को मंत्री पद देकर सुशोभित किया। इस तरह लक्ष्मी जी और गणेश जी की पूजा साथ साथ होने लगी। इसीलिए कहा जाता है कि बुद्धि के देवता गणेश की भी उपासना लक्ष्मी जी के साथ अवश्य करनी चाहिए, क्योंकि अगर घर में लक्ष्मी आए तो बुद्धि के उपयोग के बिना उन्हें रोक पाना मुश्किल ही नहीं असंभव ही होता है। अतः इस कारण दीपावली की रात्रि में लक्ष्मी जी के साथ गणेश जी की भी आराधना की जाती है। ज्योतिषाचार्य के अनुसार श्री गणेश जी की पूजा सभी देवताओं में सर्वप्रथम की जाती है। जहाँ श्री गणेश जी की पूजा होती है वहाँ उनके साथ उनकी पत्नी रिद्धि और सिद्धि अपने पुत्रों शुभ और लाभ के साथ भी वर्तमान में मौजूद रहती है। इससे पूजा करता के गृह में। विघ्न टल जाता है। ऋद्धिसिद्धि ब्रह्मा जी की पुत्रियां हैं। माता हमेशा अपने पुत्र के दाएं हाथ पर विराजती हैं। इसलिए गणेश जी की मूर्ति की स्थान माता की मूर्ति के बायें और किया जाना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार माता लक्ष्मी के धन संपदा के भंडार की देखरेख और रक्षा का कार्यभार भगवान कुबेर के जिम्मे पर है। किसको कितना धन देना है, कब देना है? इसका भार माता ने कुबेर जी को दिया है। इसीलिए दीपावली पर माता लक्ष्मी गणेश के साथ कुबेर जी की भी पूजा आवश्यक होती है। तो यह था माता लक्ष्मी और गणेश की पूजा। साथ में क्यों की जाती है इसका व्याख्यान?",यहां विस्तार से जानें क्यों की जाती है मां लक्ष्मी के साथ भगवान गणेश की पूजा- आपको बता दें कि इसके पीछे बैरागी साधु की कहानी भी प्रचलित है. दरअसल एक बार एक वैरागी साधु को राज-सुख भोगने की लालसा हुई तो उसने लक्ष्मी जी की पूजा की। उनकी पूजा से लक्ष्मी जी प्रसन्न हुईं और उन्हें साक्षात दर्शन कर वरदान दिया कि उन्हें उच्च पद और सम्मान प्राप्त होगा। अगले दिन वह वैरागी साधु दरबार में पहुंचा। और… "क्या आप भी अपना पॉडकास्ट बनाने का सोच रहे हैं? तो ऐंकर ट्राई कीजिए, ये पॉडकास्ट बनाने का सबसे आसान तरीका है। नंबर एक ये फ्री है नंबर दो। इसमें कई सारे ऐसे टूल्स है जो आपको अपने फ़ोन और कंप्यूटर पर रेकोर्ड और एडिट करने की फैसिलिटीज देते हैं। नंबर तीन आप अपने पॉडकास्ट को डिस्ट्रीब्यूट भी कर सकते हैं, जिससे इसे इस स्पॉटिफाइ और दूसरे प्लेटफॉर्म पर सुना जा सकें। डाउनलोड कीजिये? ये फ्री एंकर ऐप या विजिट कीजिए ऐंकर डॉट ऐफ़ एम अपना पॉडकास्ट स्टार्ट करने के लिए? हैलो बच्चों, आज जो कहानी में आप सब के लिए लेकर आयी हूँ उसका शीर्षक है नंदू को दंड। नन्दू चूहे में एक बहुत बुरी आदत थी, वह थी बहुत बोलने की। हर समय वह कुछ ना कुछ बोलता ही रहता था। उसकी माँ उसे समझाया करती की बेटा बहुत बोलने की आदत ठीक नहीं। व्यर्थ बोलने में बहुत सी शक्ति खर्च होती है और काम की बात ही बोलो पर नन्दु था कि मानता ही ना था। धीरे धीरे नन्दू में चुगलखोरी की आदत भी आ गई। वह इधर की उधर लगाने लगा। झूठ भी बोलने लगा। वह झूठ बोलकर चुगलखोरी करके दूसरों में लड़ाई करने लगा। ऐसा करने में उसे मज़ा आने लगा। नंदू रोज़ ही कुछ ना कुछ शरारत करता। 1 दिन उसने देखा कि मी तू बत तक अपनी चोंच पे खाना दबाएँ चली जा रही है। मीतू या खाना अपने बच्चों के लिए ले जा रही थी। खाना देख कर नंदू को भी भूख लगने लगी। वह सोचने लगा कि वैसे तो मीतू कुछ देने से रही, इसलिए उसके पास वो पहुँच गया और बोला नमस्ते मैं तो मौसी नमस्ते बेटा खुश हो मिथु कहने लगी। नन्दू फिर बोला, मौसी सारस मामा कह रहे थे की तुम कुछ भी काम नहीं करती हो, तुम्हारा खाना भी वही खोजते हैं। यह सुनकर मीतू एकदम भड़क उठीं और बोलीं, मैं तो निकम्मी हूँ, मैं क्यों ढोंगी अपना खाना? फिर वह अपने मुँह से ज़ोर ज़ोर से बक बक बक बक की आवाज निकालते हुए आंखें नचाते हुए बोलीं यह सोना सौरभ भी ना जाने अपने आप को क्या समझता है 1 दिन खाना क्या खिला दिया रोज़ रोज़ गाता फिरता है अभी देखती हूँ उसे कहाँ जा कर। और वह पैर पटकती अपना खाना छोड़कर तुरंत ही जल्दी। नन्दू चूहे ने बड़ी खुशी से सारा खाना खा लिया। फिर संतोष से अपनी मूंछों पर हाथ फिराया। इसके बाद वो मीतू बतख और सोना सारस की लड़ाई देखने चल दिया। सोना सारस को तो कुछ भी पता न था। मीतु बाद तक ज़ोर ज़ोर से लड़ती ही जा रही थी। नंदू चूहे को उनकी इस लड़ाई में खूब मज़ा आया। ऐसी अनेक तरह की लड़ाईयां कराना नंदू चूहे के लिए बड़ी मामूली सी बात थी। उसकी माँ उसे हमेशा समझती थी कि नंदू तुम जैसा काम करोगे, वैसा ही तुम्हे फल मिलेगा। बुरे काम करने वालों को सदैव बुरा भली मिलता है। अच्छा नहीं। पर नंदू को अभी तक कोई बुरा फल मिला ना था, इसलिए वह बुरे काम छोड़ नहीं पा रहा था। 1 दिन नंदू घूमते घूमते महाराजसिंह की गुफा तक पहुँच गया। महाराज बैठे आराम कर रहे थे। नंदू को यहाँ भी सह शरारत सूझी। उसकी झूठ बोलने की आदत यहाँ भी ना झूटी। उसने हाथ जोड़कर महाराज के आगे झुककर नमस्कार किया। और बोला। राजन आप जैसे प्रतापी राजा कभी कभी ही भाग्य से मिलते हैं? सिंह ने अपने नथुनों को ज़ोर से हिलाया और मूंछों पर गर्व से भर पढ़ाया निनदु आगे कहने लगा। महाराज पर कोई आपकी बुरा ई करें तो मुझसे सहन नहीं होता। किस में है इतना साहस शीट? नंदू ने दोनों हाथ जोड़ते हुए झुककर कहा महाराज आपका मंत्री भोलू भालू या कह रहा था की आप तो सारा दिन ही पड़े पड़े। आराम फरमाते जनता के सुख दुख से आपको कोई मतलब ही नहीं है। ओछो यह कहकर सिंह फिर से घर जा। उसने नंदू को वहीं रुकने का आदेश दिया और एक सैनिक को हुक्म देकर भेजा की जाकर भोलू भालू को बुलाये। नन्दू मन में सोचने लगा कि आज तो बड़ा बुरा फंसा। उसने तो सोचा था कि सिंह को भड़काकर वह चला जाएगा। पीछे सेंसिंग और भालू दोनों आपस में लड़ेंगे। भरत सिंह ने तो यही बैठने का आदेश दे दिया। अब तो वहाँ से बाहर निकलना भी संभव न था। तभी नंदू के दुर्भाग्य से मैं तू बत्तख और सोना अदालत भी वहाँ पहुँच गए। अब उन दोनों में सुलह हो गई थी। नन्दू की वह चालाकी उन्हें पता लग गयी। वे उसकी चुगलखोरी की आदत की शिकायत महाराज से करने ही आए थे। मीतू भटकने विस्तार से सारी घटना बताई। उसे सुनकर सिंगु तो नंदू के ऊपर भड़क उठे। तभी दरबार में लोमड़ी, हाथी, ऊंट, बालू आदि सभी जानवर पहुँच गए। वे भी कभी न कभी नंदू की शरारतों उसे परेशान हो चूके थे। सभी ने नंदू की बुराइ की। भोलू भालू कह रहा था मुँह रोज़ मैंने तो कभी किसी से आपकी बुराइ नहीं की ये नंदू ही है सभी की बुराइ करता फिरता है। ऊंट, हाथी, लोमड़ी आदि सभी ने अपनी अपनी गर्दन हिलाकर इस बात का समर्थन भी किया। अब दो सिंह को बहुत ज़ोर से गुस्सा आ गया। उसने नंदू को दंड सुनाया नन्दु तुम्हारी इस आदत से सभी में झगड़ा होता है। दूसरों में लड़ाई कराकर तुम तमाशा देखते हो मुझे तुम पर बहुत गुस्सा आ रहा है। मन कर रहा है कि तुम्हें फांसी पर चढ़ा दूँ, पर अभी ऐसा नहीं होगा। एक बार तुम्हे समझने का मौका जरूर दूंगा। मैं अपने सैनिकों को आज्ञा देता हूँ कि तुम्हारी मूंछ और पूंछ काट लें। सिंह के सैनिकों ने तुरंत आगे बढ़कर ऐसा ही किया। मीतू बट तक बोली। कितनों ही समझाया तो नंदू को पर ये अपने चुगलखोरी और झूठ बोलने की आदत को छोड़ता ही नहीं था। आखिर में से इसका दंड तो मिल ही गया। अब यह अपनी सब गलत आदतें छोड़ देगा। सोना सारस भी कह रहा था। बुरे काम का फल निश्चित ही मिलता है। आज नहीं तो कल भुगतना ही पड़ता है। रितु कोई प्राणी किसी का बुरा सोचें और ना ही किसी का बुरा करें। हमेशा सबका भला सोचो और भला करो, इसी में बुद्धिमानी है। वो लो भालू भी कहने लगा। नन्दू चूहे का सिर शर्म से झुक गया था। पट्टी पूछ और कटी मूंछों को लेकर माँ के सामने वह दहाड़े मार मार कर रोने लगा। माँ सिर पर हाथ फिराती हुई बोली की बेटा जो हुआ उसे भूल जाओ, मूंछ और पूंछ तो दुबारा आ जाएंगी, अब तुम अच्छा बनने की कोशिश करो। हाँ माँ। ऐसा कहकर नंदू अपनी माँ के गले से लिपट कर रोने लगा। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें कभी भी अपने अंदर ऐसी बुरी आदतों को पनपने नहीं देना चाहिए, ना कभी अनावश्यक ज्यादा बोलना चाहिए और ना किसी की चुगलखोरी करनी चाहिए। ओके बाय।","सभी को नमस्कार, यह एक शरारती चूहे की शानदार कहानी है 🐁। जंगल में चूहा हर जानवर को चिढ़ाता है। एक बार तो अपने ही जाल में फंसा लिया। पूरी कहानी सुनें और कहानी की नैतिकता के बारे में जानें।" "हैलो बच्चों, आज मैं आपको जो कहानी सुनाने जा रही हूँ उसका टाइटल है सबक। सन नी एक बहुत शैतान लड़का था। हर दिन वह धमाचौकड़ी और शरारती करता था। घर में सब उसकी शरारतों से परेशान रहते थे। सब उसे प्यार से समझाकर डांटकर हर तरीका अपनाकर थक गए थे, पर वह कुछ समझता ही नहीं था। सर्दियों की छुट्टियां चल रही है। मम्मी सनी को लेकर मौसी के घर आई हुई थी। सनी की मौसी का एक छोटे से कस्बे में खूब बड़ा सा घर था। हर सुबह धूप निकलते ही सब छत पर आ जाते हैं। वहाँ ढेर सारे पक्षी, बंदर, गिलहरी आदि छत पर घूमते रहते थे। सनी को उन सबको देखकर बड़ा मज़ा आता। जब कोई पक्षी बैठता तो वह तेजी से दौड़कर उसे उड़ा देता। गिलहरियाँ आती तो उसे पकड़ने को भागता। आज कल उसने एक नया खेल शुरू कर दिया था। जब भी कोई गिलहरी को वो देखता तो दबे पांव आगे बढ़ता और अचानक से उसकी पूछुं लेता। वो बेचारी घबराकर भाग जाती और सननी अपने इस करतब पर खूब हस्ता। अपनी सफलता पर खुश होकर। उसने अब गिलहरी को पकड़ने की योजना बनाई। एक गिलहरी की पूंछ पकड़ने की कोशिश की तो बेचारी किसी तरह जान बचाकर भागी। सनी के हाथ में उसकी पूछ के कुछ बाल आ गए। वो काफी खुश हुआ। अब वह हर वक्त घात लगाए बैठा रहता। 1 दिन वह इंतज़ार में छत पर अकेले बैठा था। अचानक न जाने कहाँ से गिलहरियों का एक धंदा गया और उन्होंने चन्नी को घेर लिया। अब घबराने की बारी सन नी की थी। वह डर के कारण पीछे हटने लगा। उस पर सैकड़ों गिलहरियों ने एक साथ हमला कर दिया। तभी ठोकर खाकर सनी जमीन पर गिर पड़ा और गिलहरियाँ उस पर चढ़ने लगीं। उनके नुकीले पंजे उसे चुप रहे थे और वह चीख रहा था। अचानक एक मोटी गिलहरी आगे आयी और इंसान की आवाज में बोली क्यों सन नी अब आ रहा है मज़ा? नहीं रानी जी, इसे तो हम परेशान करेंगे। ये तो हमें परेशान कर के मज़े लेता है ना, आज इस की बारी है। अब हमें मज़ा आएगा इसे काटने में। सन नी ज़ोर से चिल्ला या। नहीं प्लीज़, मुझे माफ़ कर दो, मैं तुम्हें कभी परेशान नहीं करूँगा। हमें परेशान नहीं करेगा का क्या मतलब है और जानवरों को तो करेगा ना? नहीं, मैं किसी को परेशान नहीं करूँगा, मैं प्रॉमिस करता हूँ बस एक बार मुझे माफ़ कर दो। बोलते बोलते सनी ज़ोर ज़ोर से रोने लगा। ठीक है, आज इसे छोड़ देते हैं। अगर ये अभी भी नहीं सुधरा तो इससे बढ़िया मज़ा चखाएंगे रानी रानी ने आदेश दिया। उसके कहते हैं सभी गिलहरियाँ उसके शरीर से उतरकर गायब हो गई। अचानक उसी समय उसे ज़ोर से किसी ने हिलाया। उस समय सनी ने आंखें खोली तो देखा मम्मी सामने खड़ी थी ये क्या? सनी तो सपना देख रहा था। डर के मारे वो मम्मी के गले से कसके चिपक गया। क्या हुआ बेटा तुम इतनी ज़ोर ज़ोर से क्यों चिल्ला रहे थे? उन्होंने उसके सिर पर हाथ फेरा। मम्मी मैं प्रॉमिस करता हूँ, अब मैं किसी को नहीं परेशान करूँगा, ये तो बहुत अच्छी बात है बेटा मम्मी ने उसके माथे को चूमा तभी सनी को महसूस हुआ कि वहाँ घूमती हुई एक गिलहरी मुस्करा रही है। वह और कसकर मम्मी से चिपक गया और बार बार यही कहने लगा कि अब मैं वादा करता हूँ मैं किसी को कभी नहीं सकता हूँगा। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें कभी भी किसी को नहीं सताना चाहिए।","सभी को नमस्कार, यह एक शरारती लड़के की शिक्षाप्रद कहानी है जो हमेशा पक्षियों और जानवरों को परेशान करता है। मैं सभी बच्चों को सोने के समय की कहानियां नैतिकता के साथ सुना रहा हूं। मेरी कहानियाँ अभिनव और प्रेरणादायक हैं। अपने बच्चों के साथ मेरी कहानियाँ सुनें। यह निश्चित रूप से आपके बच्चे के व्यक्तित्व के निर्माण में मदद करेगा।" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपको सुनाने जा रही हूँ, उसका टाइटल है सच्ची कमाई? सुंदरबन के सभी जानवर कालू कुत्ते से तंग आ गए थे। तंग होने का कारण उसका लालजी बंद था। युवक आलू, कुत्ता सभी की भलाई किया करता था। उसमें परोपकार की भावना कूट कूटकर भरी थी। पर दूसरे जानवरों की भांति औरों की बुराइ करने में अपना समय नहीं बिताया करता था। अपने इन गुणों के कारण वह दूसरों को प्यार करने लगता था। पर कालू के चटोरेपन के कारण जंगल के सभी जानवर उससे परेशान थे। कालू की गंदी आदत थी कि वह खाना खाने की कोई भी चीज़ देखता तो उसके मुँह से लार टपकने लगती थी। उसका विवेक समाप्त हो जाता था। वह भूल जाता था कि मेरी चीज़ है या दूसरे की। इसे मुझे खाना चाहिए या नहीं? पराये माल को वह लबालब खा जाता था। 1 दिन की बात है। डॉक्टर नीतू लोमड़ी मरीजों को देख रही थी। वो बड़ी थ की थी। आते ही उसने अपने खाने की पोटली खोली। किसी रोगी जानवर ने ठीक होने पर डॉक्टर नीतू लोमड़ी को वह पोटली उपहार में दी थी। उसमें बड़े बढ़िया, बढ़िया पकवान थे। भीनी भीनी गंध आ रही थी। लोमड़ी उन्हें खाने लगी कि ना जाने कहाँ से कालू कुत्ता आँक का बिना नीतू से पूछे ही वह बहुत सारी मिठाईयाँ चट कर गया। नीतू लोमड़ी शिष्टाचारवश कुछ भी ना कह पायी और उसे भूखा ही उठना पड़ा। इसी प्रकार एक बार। कुल्लू का हुआ, कहीं से खीर भरा पत्ता ले आया। वह घास पर बैठा बैठा चटकारे लेकर उसे खा ही रहा था कि तभी एकाएक कालू कुत्ता उसका पूरा का पूरा पत्ता लेकर तेजी से भाग गया। कुल्लू का हुआ अपना सा मुँह लेकर रह गया। कालू की इन शरारतों से तंग आकर जंगल के जानवरों ने एक सभा की। उसमें उन्होंने विचार किया कि जैसे भी हो कालू को सबक सिखाया जाए, जिससे वह इस प्रकार सभी को तंग करना भूल जाए। लम्बू खरगोश जो बड़ा बुद्धिमान समझा जाता था उसने कालू को सबक देने की जिम्मेदारी अपने ऊपर ली? पांच 6 दिन बाद की बात है। कालिया, कोयल कुक कर जंगल के सभी पशु पक्षियों के यहाँ निमंत्रण दे आई। उसने बताया की कल लंबू खरगोश के बेटे का विवाह है। शाम को सभी उत्सव में जरूर सम्मिलित हों। दूसरे दिन शाम को सभी जानवर नियत समय पर लम्बू खरगोश के आ पहुँच गए। लम्बू ने उन सभी का बड़ा स्वागत किया। जब सभी विदा होने लगे तो लंबू खरगोश बोला। भाइयो और बहनो, इस शुभ अवसर पर मैं सभी को कुछ उपहार देना चाहता हूँ। फिर लंबू खरगोश उपहारों के ढेर की ओर संकेत कर के बोला। कृपया मेरी याद तो छु ट्, स्वीकार करे आपको जो भी अच्छा लगे वह उपहार ले ले। कालू बड़ी लालची निगाहों से उपहारों के ढेर की ओर देख रहा था। जैसे ही लंबू की बात समाप्त हुई तो वह तेजी से सबसे आगे बढ़ा। उसने उपहारों के ढेर से अलग रखे हुए एक पैकेट को उठा लिया। सभी को कालू का यह व्यवहार बहुत बुरा लगा। लोमड़ी काकी ने तो कह भी दिया। कालू, तुम्हें बड़े बूढ़ों का तो कुछ लिहाज करना चाहिए, पहले उन्हें उपहार लेने देते। सभी जानवर अपने मनपसंद उपहार के पैकेट उठाकर अपने अपने स्थान पर लौट आए। बया खोल कर देखने लगे की लंबू खरगोश ने उन्हें क्या क्या भेज दी है। तभी से ऐसा सबका ध्यान कालू की भौहों पर गया। सभी पक्षियों ने देखा कि कालू बहुत ही परेशान होकर तेजी से इधर उधर दौड़ रहा है और चीख पुकार कर रहा है। असल में बात यह हुई कि कालू ने जैसे ही पैकेट खोला तो उसके अंदर ढेर सारी मधुमक्खियां बना रही थी। और वे निकल पड़ीं। निकलते ही वे कालू पर चिपट गई। कालू उनसे बचाव करने के लिए कभी अपनी पूँछ हिलाता, कभी पन्नियों से उन्हें भगाता तो कभी कान पकड़ पकड़ कर माफी माँगता पर मधुमक्खियां ही भागने का नाम ही नहीं ले रही थी। जगह जगह काट कर उन्होंने कालू का बदल सुजा दिया था। आखिर लंबू खरगोश ने मधुमक्खियों से विनती की। बहनो, कालू ने गलती से आपको तंग किया है, कृपया आप इसे छोड़ दीजिए। मधुमक्खियों ने लंबो खरगोश की बात मान ली। वे उड़कर दूर जा बैठी। कालू कुछ देर तक तो दर्द से कराहता रहा, फिर गुस्से में आकर बोला। क्यों भाई लंबू, क्या आपने इस अपमान के लिए ही मुझे यहाँ बुलाया था? लम्बू कहने लगा देखो भाई गलती तुम्हारी ही थी, मैंने तो उपहारों के ढेर में से कुछ लेने को कहा था। यह मधुमक्खियों का छत्ता तो मैं अपने बेटे और बहू के लिए शहद निकालने के लिए लाया था। यह तो डेढ़ से अलग पड़ा था। तुमने लालच में इसे ही क्यों उठाया? तुम्हारे लालच का ही तो मैं फल मिला है। बूढ़ी लोमड़ी का की भी कहने लगी। कालू, तुम बहुत ही लालची होते जा रहे हो, तुम्हे जो खाना पीना हैं, स्वयं कमाकर खाओ। दुसरो की चीजों को देखकर कभी लालच ना करो इमानदारी से अपने हाथ पैरों से मेहनत करके जो चीज़ पा स को उसी का उपयोग करो इसी में सुख है इसी में सफलता है और इसी में शांति है जो दूसरों की चीज़ हर पता है वह अंत में दुखी पाता है। बूढ़ी काकी की बात कालू की समझ में आने लगी। उस ने भरी सभा में प्रतिज्ञा की कि वह सदैव ईमानदारी और परिश्रम से कमाई चीज़ ही ग्रहण करेगा। दूसरों की चीजों को झपटने की कभी कोशिश नहीं करेगा। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें दूसरों की चीजों पर कभी अधिकार नहीं करना चाहिए। ओके बाइ?",यह एक लालची कुत्ते की अद्भुत कहानी है। इस कहानी में मैं आपको बताउंगा कि हमें कभी भी दूसरे की चीजें नहीं लेनी चाहिए। अगर हम कुछ लेना चाहते हैं तो उसके लिए प्रयास करें। इस कहानी में एक सीख है। कहानी सुनें और नैतिक प्राप्त करें। "क्या आप भी अपना पॉडकास्ट बनाने का सोच रहे हैं? तो ऐंकर ट्राई कीजिए, ये पॉडकास्ट बनाने का सबसे आसान तरीका है। नंबर एक ये फ्री है नंबर दो। इसमें कई सारे ऐसे टूल्स है जो आपको अपने फ़ोन और कंप्यूटर पर रेकोर्ड और एडिट करने की फैसिलिटीज देते हैं। नंबर तीन आप अपने पॉडकास्ट को डिस्ट्रीब्यूट भी कर सकते हैं, जिससे इसे इस स्पॉटिफाइ और दूसरे प्लैटफॉर्म्स पर सुना जा सकें। डाउनलोड कीजिये ये फ्री ऐंकर ऐप या विजिट कीजिए ऐंकर डॉट ऐफ़ एम। अपना पॉडकास्ट स्टार्ट करने के लिए हैलो बच्चों, आज जो कहानी में आपके लिए लेकर आई हूँ, उसका टाइटल है प्रेम की कसौटी। गर्मियों के दिन थे सूरज भगवान गुस्सा होकर मानो आग की वर्षा सी कर रहे थे। जीव जंतु सभी इस भीषण गर्मी से परेशान थे, परेशान थी पर वह सुबह से लगातार काम कर रही थी। इस भयंकर गर्मी के बाद निश्चित रूप से वर्षा होने वाली थी। मन्नू के बिल का सारा राशन समाप्त हो चुका था। अचानक ही एक सप्ताह के लिए उसके यहाँ खूब सी मेहमान जीतिया जो आ गई थी उनका सत्कार तो करना ही था। मेहमानों के आते ही सारी जीतिया राशन इकट्ठा करने के लिए जुट पड़ी थी। यही कारण था गर्मी में उनके सारा दिन काम करने का। 1 दिन मन्नू कार्य करते करते अचानक बेहोश हो गई। ना जाने वह कितनी देर तक ऐसे ही पड़ी रही। हो सकता है उसे मरीज समझकर कोई खा ही जाता और सहसा ही एक मधुमक्खी की निगाह उस पर पड़ गई। उसने देखा की सांस चल रही है। मधुमक्खी पलभर में समझ गई कि गर्मी के कारण जीटी बेहोश हो गई है। वह सुबह से ही उसे लगातार काम करते हुए देख रही थी। मधुमक्खी थी बड़ी दयालु वो झट से गयी और अपनी सूँड़ में पानी भर लाईं। टीटी के मुँह में वह बार बार पानी डालने लगी। थोड़ी देर में मन्नू को होश भी आ गया। आँखें खुली तो उसने देखा कि उसके सिरहाने एक मधुमक्खी बैठी है। वही पानी पीला रही है। कृतज्ञता से मन्नू की आँखों में आंसू भर आए मधुमक्खी का हाथ अपने हाथ में पकड़कर वह बोली। मुहिम तुम ने मुझ अपरिचित की सहायता की है प्राणों की रक्षा की है, मैं हृदय से तुम्हारी कृतज्ञ हूँ। गुड पगली हँसते हुए मधुमक्खी कहने लगी दुखियों की सेवा सहायता तो सभी को करनी चाहिए। उसमें परिचय परिचय का भेद कैसा? जो दीन, दुखी, असहाय को सामने देखकर भी उसकी सहायता करने से झिझकता है, पहले परिचय परिचय के रिश्ते ढूँढता है, वह नीच है, दुष्ट हैं। मधुमक्खी के ऊंचे विचार सुनकर चींटी गदगद हो गयी। वह कहने लगी बहिन सदा ही तुम्हारे यहाँ सद्विचार बने रहे। तुम ऐसे ही सदैव पीड़ितों की सहायता करती रहो। अभी तुम थकी हुई हो, ज्यादा मत बोलो। ऐसा कहकर मधुमक्खी ने चींटी को चुप करा दिया। फिर वह थोड़ा सा शहद उसे देते हुए बोली लो जहाँ पट्टी से खा लो, जल्दी ही ठीक हो जाओगी। मन्नू चींटी प्रसन्नता और कृतज्ञता से भर उठी। उसने धीरे धीरे शायद खाया। वो बड़ा ही मीठा और स्वादिष्ट था। उसे खाकर मन्नू जल्दी ही सवस्थ हो उठी। फिर मन में कुछ सोचते हुए वह मधुमक्खी से बोली। महिमा। क्या सिंह तुम मेरी मित्र बनूँगी मधुमक्खी स्वयं ही मन्नू से उसकी श्रम से बड़ी प्रभावित थी और उसे मित्र बनाना चाहती थी। वह अच्छी तरह जानती थी कि हम जैसे व्यक्तियों के साथ रहते हैं, धीरे धीरे वैसे ही बनते चले जाते हैं। इसलिए सदा अच्छे व्यक्तियों को ही मित्र बनाना चाहिए। बाँटते हुए बोली बनेंगे क्या बन ही गए चलो इसी उपलक्ष्य में तुम्हारी दावत हो जाए। और हाँ, अपना नाम तो बताना ही भूल गयी मुझे रानी कहते हैं। मन्नु के बहुतेरे ना ना करने पर भी रानी नाम की वह मधुमक्खी उसे अपने छत्ते पर ले गई। वहाँ अनेक मधुमक्खियों ने उसका स्वागत किया। चलते समय उन्होंने मन्नू को ढेर सा शहद दिया। अब मन्नू और रानी नित्य प्रति मिलती थी। उनकी मित्रता धीरे धीरे घनिष्ठ होती चली जा रही थी। फिर नहीं संकोच एक दूसरे से अपने सुख दुख की बातें करती एक दूसरे से सलाह लेती सच्चा मित्र सही सलाह देकर मित्र का उपहार ही करता है। रानी प्रायः ही मन्नू को रोज़ शहद लाकर देती ताजा और स्वादिष्ट शहद। मन्नू को रोज़ रोज़ शहर लेते शर्म आने लगी पर रानी? तुम्हे मेरी कसम बहन या तो तुम्हे लेना ही होगा। ऐसा कहकर उसे शहद खिला ही देती 1 दिन मन्नू ने कहा तुम तो रोज़ रोज़ ही मुझे शायद खिलाती हो और मैं तुम्हें कुछ भी नहीं दे पाती। क्या अच्छा लगता है? रानी गंभीर होते हुए बोली देव को बहन मित्रता व्यापार नहीं होती तुम मुझे सच्चे हृदय से प्यार करती हो, वही मेरे जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है, घबराती क्यों? कभी तो समय आएगा ही। जब तुम्हें मेरे लिए कुछ करने का अवसर मिलेगा इन छोटी छोटी चीज़ो के लेनदेन में भला क्या रखा है? और जल्द ही वह अवसर भी आ गया 1 दिन संध्या के झुटपुटे में? थकी हुई मन्नू पेड़ के नीचे विश्राम कर रहीं थीं, उसी पेड़ पर रानी का छत्ता था। कुछ ही देर बाद मन्नू ने देखा कि वहाँ दो आदमी आकर खड़े हुए हैं। उनके हाथ में डंडे थे। वे बार बार रानी के छत्ते की ओर इशारा करके कुछ कह रहे थे। पलभर में ही सारी बातें समझ गई। वहाँ वहाँ से तुरंत तेजी से दौड़ी और अपनी पूरी सेना बुला ले। तब तक वे दोनों आदमी पेड़ पर चढ़ चूके थे और छत्ता तोड़ने ही वाले थे। सैकड़ों चीटियां उन आदमियों के शरीर पर चढ़ चढ़कर जोरों से काटने लगी। वे उछल कूद करके तंग आ गए पर चींटियां थी कि उनके शरीर पर यहाँ वहाँ लगातार चलेगी, चली जा रही थी। अरे बाप रे चींटियों ने हमें घेर लिया है यहाँ हम कहाँ आकर फंस गए हैं कहे कर भी दोनों आदमी अपना अपना शरीर झाड़ते हुए वहाँ से कूद पड़े। आदमियों की चीख पुकार थे तब तक रानी और उसकी मधुमक्खियां भी जाग गई थी। बिग सभी के सभी उन आदमियों पर टूट पड़ी। मन्नू ने उन्हें सारी बात बता दी थी। मधुमक्खियों ने उन मनुष्यों को खूब काटा और दूर तक पीछा किया जिससे वे वहाँ दोबारा आने की बात सोच भी ना सके। संकट की स्थिति दूर हो जाने पर रानी ने मन्नू को गले लगा लिया। फिर चैन से बैठकर उसने मन उसे सारी बातें पता की। मन्नू और उसकी सहेलियों ने अपने प्राण संकट में डाल कर भी मधुमक्खियों की रक्षा की थी। रानी और दूसरी मधुमक्खियों ने उनका बहुत बहुत आभार माना। फिर रानी ने सभी चींटियों को शहद की जोरदार दावत खिलाई। रानी हंसकर मन्नू से पूछने लगी, कहो अब तो तुम्हे हमारे लिए जी भरकर कुछ करने का अवसर मिल गया ना? तुम तो रोज़ रोज़ इसी चिंता में दुबली हुई जा रही थी। रानी की इसी बात पर सभी चिट्ठियां और मधुमक्खियां भी हँस पड़ी। तभी एक बूढ़ी मधुमक्खी कहने लगी, बेटी सच्चे मित्र से सहायता मांगनी नहीं पड़तीं, वह तो सहायता के अवसर ढूंढता रहता है और बिना कहे ही मित्र की सहायता करता है। मधुमक्खियों की रानी उसकी बात का समर्थन करते हुए बोली और कहा की ठीक ही कहती हो तुम इसके विपरीत दिखावटी मित्रता वाला झूठा मित्र तो सहायता का अवसर देखकर मुँह छुपा लेता है। मित्र की विपत्ति की बात जानकर भी वह ऐसे दिखता है जैसे उसे कुछ पता ही नहीं है। ओह संकट की घड़ी में ही तो हम अपने मित्र, परिचित और संबंधियों की परख कर पाते हैं। एक मधुमक्खी गंभीरतापूर्वक बोलीं रानी मधुमक्खी फिर कहने लगी त्याग और बलिदान ही प्रेम की कसौटी है। हमारे इसने ही जन हमें कितना चाहते हैं, इसका पता इस बात से लगाया जा सकता है कि वे हमारे लिए कितना कष्ट सहने को कितना क्या करने को तैयार रहते हैं। मन्नू बहन हम सब धन्य है जो तुम्हारा और तुम्हारे माध्यम से तुम्हारी सभी बहनों का सच्चाई स्नेह पा सकें। रानी अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाई थी की सारी मधुमक्खियों ने सिर हिला हिलाकर जोरों से पंख फड़फड़ा कर उसकी बात का समर्थन किया। विनय से सिर झुकाकर मन्नू बोली ये तो हमारा कर्तव्य था, क्या हम आपके लिए इतना भी नहीं करते? इस पर रानी कहने लगी, सोनकुटकी घोड़ी ने हमारी मित्रता को और अधिक निखार दिया है। फिर से एक बार सभी मधुमक्खियों ने कृतज्ञता व्यक्त की और मन्नू तथा उसकी सहेलियों की प्रशंसा करते हुए वे अपने छत्ते की ओर बढ़ चलीं। तो बच्चो इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें हमेशा दूसरों की सहायता करने के लिए तत्पर रहना चाहिए। यही हमारा कर्तव्य है और यही मानवता की सबसे बड़ी कसौटी है। ओके बाय।","सभी को नमस्कार, यह एक चींटी और मधुमक्खी की एक प्रेरणादायक कहानी है। चींटी 🐜 बहुत मेहनती प्राणी है। एक बार गर्म 🔥 मौसम के कारण चींटी बेहोश हो जाती है। मधुमक्खी 🐝 उसकी मदद करती है। पूरी कहानी सुनें और कहानी की नैतिकता के बारे में जानें।" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपको सुनाने जा रही हूँ उसका टाइटल है वर्ग का चुनाव। अलकनंदा के तट पर एक वृद्ध राजवंत रहता था। युवावस्था में ही उसकी पत्नी गुजर गई थी। उसे संसार से वैराग्य हो गया था। अपनी एकमात्र छोटी सी पुत्री को लेकर वह अपने घर से निकल पड़ा। देश विदेश में घूमते घूमते अंत में चंद्रशेखर नाम का वह राजहंस यहाँ आकर बस गया था। या जीवन समाज की भलाई में जितना काम आ सके उतना ही अच्छा है ऐसा चंद्रशेखर का विचार था। अतएव वह सभी प्राणियों की किसी ना किसी प्रकार से सहायता करता रहता था। खाली समय में वह पास पड़ोस के पक्षियों के बच्चों को पढ़ाता रहता था। सभी पक्षियों को इस बात पर गर्व था कि चंद्रशेखर के पढ़ाए बच्चे बड़ें ही सच्चरित्र और योग्य बनते हैं। जिंस किसी को कोई कठिनाई होती वह चंद्रशेखर के पास दौड़ा चला आता। वह अपनी बुद्धि से ज्ञान से चुटकी बजाते हुए सुलझा देता। कोई भी पक्षी ज़रा सा बीमार पड़ता, चंद्रशेखर तुरंत वहाँ पहुँच जाता। वह इतनी मीठी मीठी बातें करता की रोगी अपना दुख दर्द भूल जाता। और चाहता कि चंद्रशेखर उसके पास ही बैठा रहे। किसी को कोई काम करना होता तो चंद्रशेखर सबसे पहले हाजिर रहता। अपने इन सभी गुणों के कारण अलकनंदा के तट से दूर दूर तक भी चंद्रशेखर की बड़ी ही प्रसिद्धि हो गई थी। सभी पशु पक्षी उसका बहुत सम्मान करते थे। चंद्रशेखर की पुत्री मंदाकिनी बहुत ही गुणवती थी। रूप में तो उस के समान सुन्दर हंसनी दूर दूर तक ढूंढे नहीं मिलती थी। 1 दिन अचानक ही चंद्रशेखर का ध्यान गया कि उसकी पुत्री युवती हो गई है। अब उसे उसके विवाह की चिंता होने लगी। अपनी पुत्री के योग्य पर मैं कहाँ जाऊं? रात दिन वह इसी चिंता में घुलने लगा। उसे अपनी मृत पत्नी की याद आती। यदि वह इस समय जीवित होतीं तो अपनी सलाह देती। विवाह शादियों के मामले में स्त्रियां ही अच्छी तरह सलाह दे सकती है। चंद्रशेखर मंदाग्नि से कुछ बातें करना चाहता तो वह शर्मा कर भाग जाती। वह समझ ही ना पा रहा था कि क्या करें, क्या ना करे? इन सब का प्रभाव उसके स्वास्थ्य पर भी पड़ा। वह दिन पर दिन दुबला होने लगा। चंद्रशेखर का एक पक्का मित्रता मृत्युंजय वो एक सारस था 1 दिन वह पूछ ही बैठा दोस्त किस चिंताओं में तुम दुबले होते चले जा रहे हो। देख तो रहे हो तुम मंदाकिनी युवती हो गई है इसके विवाह की चिंता मुझे रात दिन खाये जाती है। कहा पाऊंगा मैं इसके योग्य वर ज्यादा भागदौड़ तो सकता नहीं। बूढ़ा चंद्रशेखर दुख से अपनी गर्दन एक और लटका के बोला। आस पास दो तीन राजहंसों के परिवार रहते है। उनसे बात चलाओ, मृत्युंजय ने सलाह दी, ओं उन परिवारों का चाल चलन मुझे बिल्कुल पसंद नहीं है। मैं चाहता हूँ कि मेरी बेटी को धनी ना मिले यानी ना मिले तो कोई हानि नहीं। हाउस से जरूर मिलें सच्चरित्र जरूर मिले चरित्र ना रहने पर धन और ज्ञान का भी कोई मूल नहीं रहता। चरित्र रहने पर ये चीजें भी आ सकती है। तुम्हारे विचार तो बहुत ही ऊंचे और अच्छे है मृत्युञ्जय प्रशंसा के भाव से बोला। मित्र तुम तो जानते हो की राजहंसों की संख्या वैसे भी बहुत कम है। यहाँ रहने वाले राजन से मुझे पसंद नहीं बुढ़ापे के कारण मुझ से चला भी नहीं जाता। मैं क्या करूँ कहाँ ढूंढू समझ नहीं पा रहा क्या मेरी बेटी कुंवारी ही रह जाएगी? कहते कहते पीड़ा की अधिकता से रो उठा राजन उसकी बड़ी बड़ी आँखों से गर्म गर्म आंसू टपकने लगे। मृत्युंजय कुछ देर तक तो सोचता रहा फिर चंद्रशेखर के आंसू पोंछ कर बोला, भाई रो मत, मुझे एक बहुत ही अच्छी तरकीब सूझी है। क्या मानो आँखों में ही राजन से प्रश्न किया। क्यों ना हम मंदाकिनी बिटिया का स्वयंवर रस्ते अपने एक पंजे को दूसरे में उलझाते हुए कहने लगा। मृत्युंजय। बात तो तुम्हारी अच्छी है पर स्वयंवर के लिए कौन आएगा? दूर दूर तक बुलाना देने कौन जाएगा? चंद्रशेखर बोला सुनो तुम्हारे काम के लिए तो अलकनंदा के तट का कोई भी प्राणी मना नहीं करेगा, जो दूसरों की सहायता करता है। सभी उसका काम करने को तैयार रहते हैं। ऐसा करते हैं कि चिनमय कबूतर को बुलाते हैं। वह देश विदेश में घूम घूमकर स्वयंवर का संदेश दिया जाएगा। इस काम में डेढ़ तो जरूर लगे गी पर योग्य वर पास रखोगे। फिर विवाह के मामले में वैसे भी सोच विचार करें, कदम उठाना चाहिए। जल्दबाजी कभी नहीं करनी चाहिए, नहीं तो जीवन भर पछताना ही पड़ता है। अनुभवी मृत्युंजय सारस ने कहा। मित्र तुम्हारी ही बात सही है। गर्दन हिलाते हुए राजहंस बोला। दूसरे ही दिन चिनमय कबूतर राजहंस दादा का काम करने की खुशी से उड चला। देश विदेश में अनेक स्थानों पर वह गया। जगह जगह राजहंसों के परिवारों को खोजा। मंदाकिनी के रूप गुण का परिचय दिया। वह सभी राजहंसों को वसंत पंचमी के दिन स्वयंवर में आने का निमंत्रण दिया आया। निश्चित दिन स्वयंवर का आयोजन किया गया। कमल के फूलों से पत्तों से अनेक लताओं से पास के तालाब को सजाया गया। एक ऊंचे से अनेक लताओं से आसपास के तालाब को सजा दिया गया। एक ऊंचे से तालाब पर लता मंडप पर चढ़कर चंद्रशेखर और मंदाकिनी बैठे देश विदेश से आए सभी राजहंसों को आदरपूर्वक बढ़ाया गया। सजी संवरी गोरी गोरी लाल चोंच वाली मंदाकिनी को देखकर सभी मुग्ध हो उठे। गर्दन झुकाकर आँखें नीचे करके बैठी थी। वहाँ सभी राजहंसों के मन में विचार उठने लगा कि वह सनी मुझे ही मिल जाए। बे उसकी सुंदरता से तो नहीं स्वभाव से सभ्यता से अधिक आकर्षित? सम्माननीय अतिथियों में आप सभी का हार्दिक स्वागत करता हूँ। आप सभी ने यहाँ आकर सचमुच ही मुझ पर असीम कृपा की है। कृपया अब आप सभी बारी बारी से अपना परिचय देते जाइए हर्ष विफल चंद्रशेखर बोला, अब परिचय का क्रम आरंभ हुआ। सबसे आगे बैठा था जीतेंद्र नाम का हंस और वह उठकर खड़ा हुआ। गर्दन ऊंची करके। पकड़ कर वह बोला। महोदय, मैं डॉक्टर हूँ, बहुत से धनवानों के प्रस्ताव मेरे लिए आ रहे है। आप चाहें तो अपनी बेटी मुझे दे सकते हैं। इसके बाद उनका दूसरा हंस बोला, मैं बहुत ही धनी व्यापारी हूँ, दूर दूर तक मेरा व्यापार फैला है। आपकी बेटी को हाथों हाथ ही रखूँगा। उसकी धन का यह दर्द देखकर चंद्रशेखर को बहुत बुरा लगा। भला ढंग से भी कोई खुशी खरीद सकता है मरीमन उसने कहा। इसके बाद आलोक नाम का हंस बोला। मेरे जैसा सुंदर आपको इस पृथ्वी पर ढूंढे ना मिलेगा सचमुच ही वो बहुत सुन्दर था। पल भर को तो चंद्रशेखर भी उसकी ओर टकटकी लगाकर देखते रहे। फिर सोचने लगे कि शरीर की सुंदरता से अधिक मन की सुंदरता जरूरी है। इसी प्रकार एक एक करके सभी राजन अपना परिचय देते जा रहे थे। अपने गुणों को बढ़ा चढ़ाकर भी गान कर रहे थे पर चंद्रशेखर के मन को कोई भी नहीं भर रहा था पर उदास सा होने लगा। सबसे अंत में परिचय दिया देवेंद्र हंसनी सम्मानीय दादा जी और उपस्थित मित्रों परिचय का जो क्रम प्रारंभ हुआ उसके अनुसार क्या परिचय दूँ? मैं भला आपको? क्योंकि मेरी दृष्टि में किसी का रूप प्रमुख नहीं है, धन प्रमुख नहीं है, ज्ञान प्रमुख नहीं है, प्रसिद्धि और सम्मान भी प्रमुख नहीं है। मैं तो सोचता हूँ कि गुण, कर्म और स्वभाव का ही परिचय किसी का सही परिचय होता है। कोई बड़ा है या छोटा, इसका मूल्यांकन हम उसके गुण, कर्म, स्वभाव के आधार पर ही कर सकते हैं। जिसने अपने स्वभाव को अच्छा नहीं बनाया, जीवन को गुणों से नहीं सजाया तो वह ऊंचे पद पर बैठकर भी ऊंचा नहीं होता। भवन के सर्वोच्च शिखर पर बैठा कौआ भी क्या कभी राजहंस हो सकता है? उसका यह बोलना था कि पूरा का पूरा तालाब तालियों से गूंज उठा। पलभर कुछ रुककर देवेंद्र फिर आगे बोला। मैं आपकी बेटी के लिए सुख सुविधाएं जुटा पाऊंगा या नहीं नहीं कह सकता, मैं तो बस अपने उच्च विचार सच्चरित्रता की निधि उसे सौंपकर। उनके संग जीवन बिताने का वादा कर सकता हूँ? देवेन्द्र की बातें सुनकर असीम प्रसन्नता से भर उठा। चंद्रशेखर। कितनी विनम्र वाणी थी उसकी धीमे से पंजा हिलाकर मंदाकिनी को इशारा किया। वह लज्जा पूर्वक उठी और कम लाल तथा कमल के पुष्पों से बनाई गई सुगंधित जयमाला देवेंद्र की गली में डाल दी। अलकनंदा के तट पर रहनेवाले सभी पक्षी खुशी से चहचहाने लगे। रानी कोयल ने मंगल गीत गाए, मंगल बजाई। वृद्ध चंद्रशेखर मंच पर खड़ा होकर कह रहा था, मौनी अतिथियों, मैं आपसे इस निर्णय के लिए क्षमा चाहता हूँ। वास्तव में प्यार और सहयोग से भरा पूरा परिवार ही धरती पर स्वर्ग जैसा होता है। ऐसा परिवार बनता है। अच्छे गुणों से, अच्छे स्वभाव से और अच्छे व्यवहार से इसी विचार से प्रेरित होकर सौभाग्य का आखिरी मंदाकिनी ने देवेंद्र के गले में जयमाला डाली है। देवेंद्र के अतिरिक्त सभी राजहंस उदास है इसका मुझे खेद है। देवेन्द्र की विवाह से सभी राजहन्स उदास तो थे। यहाँ तक कि विवाह होने के बाद होने वाला भव्य प्रीतिभोज भी उन्हें नीरज लग रहा था। मन प्रसन्न ना होने पर बाहरी चीजें भला क्या खुशी दे पाती है? भोज के बाद अपने अपने घर जाने के लिए वे सभी पंक्ति बनाकर वहाँ से उड़ चले। आकाश में ऊंची उड़ान भरते समय वे आपस में बात कर रहे थे। हम तो सोचते थे कि जीवन में ज्ञान ही प्रमुख होता है, धनी प्रमुख होता है इसलिए उसी का अर्जन करते रहे। गुण भी जीवन में प्रमुख हो सकते हैं। या तो हमने कभी विचार तक नहीं किया था। हम अब कितने ही महत्वपूर्ण विचारों से वंचित थे। अब हम अपने को गुणवान बनाने और स्वभाव और व्यवहार को अच्छा बनाने की साधना में जुट जाएंगे। ऐसा बे सब हंस आपस में बातें कर के कह रहे थे तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि जीवन में गुण, व्यवहार, कर्म यही सर वो परी होते हैं। इसी से मानव एक श्रेष्ठ मानव बनता है। ओके बाइ?","यह एक बूढ़े हंस की कहानी है। हंस अपनी बेटी की शादी तय करना चाहता है। लेकिन सही व्यक्ति का चयन करने में झिझकते हैं। इस कहानी में हम एक व्यक्ति की वास्तविक खूबियों को जानेंगे। पैसा, सुंदरता, ये सभी चीजें जीवन में महत्वपूर्ण नहीं हैं। केवल एक अच्छा चरित्र ही व्यक्ति को अच्छा और श्रेष्ठ बनाता है।" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपके लिए लेकर आई हूँ उसका शीर्षक है अच्छा ई का परिणाम एक बार की बात है। किसी जंगल में आम के दो पेड़ थे, उनमें से एक पेड़ तो काफी बूढ़ा हो चुका था और दूसरा पेड़ जवान था। उसकी उम्र काफी कम थी। पुराना वाला पेड़ बूढ़ा होने के कारण फल भी बहुत कम देता था। मगर उसका पहलाव अधिक होने की वजह से राहगीर उसी पेड़ के नीचे आराम करते थे। यह देखकर पूरे पेड़ को बड़ा सुकून और खुशी प्राप्त होती थी। दूसरा पेड़ जवान और नया होने के कारण बहुत अधिक फल देता था। उसके मीठे फलों की तारीफ सभी खाने वाले व्यक्ति करते थे। इस प्रकार उसमें काफी घमंड पैदा हो चुका था। वहाँ अपने आप पर बहुत इतर आता था। धीरे धीरे बरसात का मौसम शुरू हो गया। एक रात बहुत तेज बारिश हुई। एक किसान के सारे आम के बीच उसी बरसात के अंदर बह गए थे। फिर अगले दिन जब वर्षा थमी तो हवा की नजर उन्हीं बीजों पर पड़ी। हवा ने सोचा कि मुझे इन बीजों को अच्छी जगह पर जाकर बोल देना चाहिए। वह उन बीजों को उड़ाती हुई जवान आम के पेड़ के पास ले गईं और बोलीं, अरे आम भाई मैं तुम्हारे लिए छोटे छोटे आम के बीच लाई हूँ, तुम इन्हें शरण दे दो। आम का पेड़ बड़ा घमण्डी था। वह बोला क्यों? मैंने ही इन सब का ठेका ले रखा है? मैंने अपनी शरण में जगह नहीं दूंगा। किसी दूसरी जगह बोल दो इन्हे हवा को आम की बात ज़रा भी अच्छी नहीं लगी। फिर भी उसने नम्रतापूर्वक कहा अगर मैं इन बीजों को मैदान में बोल दूंगी तो इन्हें कोई भी जानवर खाकर बचपन में ही नष्ट कर देगा या फिर ये छोटे छोटे पौधे दिए जान दी तूफान का सामना किस तरह कर पाएंगे ये तो बड़े होने से पहले ही टूट जाएंगे पर पेन ने कहा अब चाहे कुछ भी हो जाए, मगर मैंने अपने बराबर में जगह बिल्कुल नहीं दूंगा। ये बात सुनकर हवा नाराज होकर आगे चल दी। उसे पेड़ की बात बहुत बुरी लगी थी। दरअसल बात यह थी कि आम का पेड़ हरगिज नहीं यह चाहता था कि उन बीजों में से कोई भी पेड़ बड़ा होकर मीठे पल दे और सभी उसके सामने उस पेड़ की तारीफ करे। हवा बहुत ज्यादा नाराज और दुखी हो रही थी। आम के पेड़ ने उन बीजों को किस प्रकार ठुकरा दिया था। फिर वह चलते चलते बूढ़े आम के पेड़ के पास पहुंची और कहने लगी बाबा जी मैं आपके लिए छोटे छोटे आम के बीच लाई हूँ, क्या आप इन्हें शरण देंगे? बूढ़ा आम खुश होकर बोला क्यों नहीं हवा रानी? उन्हें यही बोल दो मैं इन बीजों को अपने बच्चे समझकर पालूंगा पूछुंगा और इनकी रक्षा भी करूँगा। उसकी बात सुनकर हवा खुश हो गई। उसने बीजों को बूढ़े पेड़ के पास ही बो दिया। कुछ दिन पश्चात ही उन बीजों में से नन्हें नन्हें पौधे फूटने लगे। यह देखकर बूढ़ा आम बहुत खुश हो रहा था। कुछ समय बाद ही बहुत तेज तूफान आया। बूढ़े पेड़ को उन छोटे छोटे पौधों की चिंता हुई। उसने अपनी एक डाल से उन पौधों को ढक लिया। तूफान के रुक जाने के बाद जब बूढ़े आमने उन सभी पौधों को सही सलामत देखा तो उसे बड़ा इत्मीनान हुआ। सभी छोटे पौधे बूढ़े आम की तरफ ही देख रहे थे। धीरे धीरे आम के पौधे बड़े होने लगे। रात दिन बूढ़ा पेड़ उन पौधों की हिफाजत ही करता रहता था। कितने ही मौसम बदले अब आम के पौधे बड़े हो चूके थे। बूढ़ा पेड़ उन्हें देखकर बहुत खुश होता रहता था। एक बार फिर बरसात शुरू हो गई मगर इस बार कुछ ज्यादा ही बरसात हुई। आसपास के गांवों में तो बाढ़ आ गई थी लेकिन बूढ़ा आम का पेड़ सही सलामत था क्योंकि जिन पेड़ों को उसने सहारा दिया था। वह उसी का सहारा बन गए थे। उन पौधों ने आसपास की मिट्टी को जकड़ कर रखा था। दूसरी तरफ जवान आम का पेड़ घमंड के कारण अपने आप को संकट में डाल चुका था। वह अपने आसपास कोई भी पेड़ उगने नहीं देना चाहता था। जो भी पौधा उसके बराबर में उगता था वह उस पर धूप ही नहीं आने देता था। वह पौधा कुछ ही दिनों में मर जाता था। इस वजह से वह केवल अपनी जड़ों से ही मिट्टी को कसकर पकड़ पाया था। मगर तेज बरसात के सामने उसकी एक भी ना चली। उसके आसपास की मिट्टी कट कट कर बहने लगी। अंत में जवान आम का पेड़ निढाल होकर गिर पड़ा। वह मन ही मन अपने किए पर पछता रहा था। अगर वह इन पौधों को आश्रय दे देता तो वह बरसात की तेज बौछार का सामना कर पाता। वह सोच रहा था कि उसका घमंड ही उसे आज ले डूबा है। वह अपनी गलती पर बहुत शर्मिंदा था। तो बच्चो इस कहानी से हमें क्या शिक्षा मिलती है? इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें कभी भी अपनी शक्ति और सामर्थ्य का घमंड नहीं करना चाहिए अन्यथा परिणाम खराब ही होता है तो के बाइ।",यह जंगल में दो पेड़ों 🎄🎄 की एक नैतिक कहानी है। बड़ा आम 🥭 का पेड़ बहुत पुराना हो गया है लेकिन वह सबको आश्रय देता है। बल्कि दूसरा आम का पेड़ 🎄 जवान और आम के फलों से भरा होता है। वह बहुत घमंडी है। वह कभी किसी अन्य छोटे पौधे को आश्रय नहीं देता। इसका परिणाम बहुत बुरा होता है। जब जंगल में आंधी ⛈️ होती है तो आम का युवा पेड़ गिर जाता है और उसकी जड़ें उसे पूरा सहारा नहीं दे पाती हैं। लेकिन सभी को हमेशा प्यार और छाया देने वाले पुराने पेड़ को कोई नुकसान नहीं हुआ। पूरी कहानी सुनें और कहानी के नैतिक के बारे में जानें। "हैलो बच्चों। आज मैं आपके लिए। बहुत सुन्दर सी लोरी लेके आयी। तो आइये शुरू करते हैं आज की अपने प्यार इन नन्हें मुन्ने बच्चों के लिए लोरी। देखो देखो, रीकनड। यो प्यारों बसिया बजाएं। वो तो ठंड ओह, एक कदम बल की छैया। गो विचार आए। वृंदावन की कुंज काल इनमें लूटे, लूटे दिखाएं गोबिंद के संगरा, सर जाकर मुरली मधुर बजाये देखो, देखो री कन्हैया प्यारों बसिया बजाएं। वो तो ठंडो है कदम। की जे यांगून विचारा ये। ओपन सुधा का चीर दुशासन, कई जगह मुसिया ये दुकान सुधा का चिरथ शासन कई चु कैच मुसिया ए मुरलीवाला श व सुंदर व हस हस जिक्र बढ़ावे देखो देखो रि कन्हैया प्यार उँ ब सी या बजाय वो तो ठाडो है कदम। की छैया गवे चार आये। देखो देखो रिका नया प्यारों बसिया बजाये। उठाणों है कदम की चैन या गाउन में चरा वैन।","सभी को नमस्कार, यह एक गीत के रूप में एक लोरी है। मुझे उम्मीद है कि हर माता-पिता इसे पसंद करेंगे। यह आपके शिशुओं और बच्चों के सोने 😴 में मददगार हो सकता है। गाने का आनंद लें और एक प्यारा सा सपना देखें।" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपके लिए लेकर आई हूँ, उसका टाइटल है साहस का परिणाम गंगा नदी में एक कछुआ और एक कछुए रहते थे। कछुए का नाम था राजा और कछुए का नाम था रानी। दोनों का जीवन बड़ी हँसी खुशी से बीत रहा था। खाने की वहाँ कमी न थी। डेरों, मछलियां, कीड़े और पौधे बीते दोनों भरपेट खाते गंगा में तैरते रहते हैं और जब मनाता तो एकांत में बालू के किनारे पर आ जाती। वहाँ पे अपनी गर्दन और सिर अपने खोल में छिपाकर लेटे रहते या फिर घंटों आने जाने वाले यात्रियों को देखा करते। यात्री गंगा में स्नान करते वहाँ बैठकर पूजा आरती करते। रानी को यह सब देखना बहुत अच्छा लगता। राजा और रानी का यह सुखमय जीवन बहुत दिनों तक मैं चल सका। कहीं से एक घड़ियाल भी वहाँ आ गया। वह घड़ियाल राजा रानी को बहुत तंग करता बहुत चाहता था की कैसे भी करके मैं इन्हें मार डालू, जिससे कुछ दिनों तक मिली दावत हो जाए। परंतु राजा और रानी उससे सावधान रहते और उससे बचते ही रहते। पर घड़ियाल उनका पीछा करता रहता। वह इतनी शानदार दावत को खोना नहीं जाता था। राजा रानी नदी के तट पर आराम करते होते तो वहाँ भी पहुँच जाता। उसके चेहरे पर सदैव मुस्कान रहती पर राजा रानी से मित्रता करने का प्रयास भी करता। राजा रानी उसकी चिकनी चुपड़ी बातों में न फंसते। बुद्धिमान वे होते हैं जो परिस्थिति को अच्छी तरह देख कर काम करते हैं। स्वयं विचार न करने वाले आंख बंद करके दूसरों की सलाह पर चलने वाले ठोकर ही खाते हैं। राजा रानी ने भी मगर मच्छ की बातों को न माना। राजा रानी का चयन सेरेना अब दूभर हो गया था। 1 दिन दोनों घूमते घूमते दूर निकल गए। वे वहाँ बैठकर अपनी स्थिति पर विचार करने लगे। राजा बोला। रानी घड़ियाल तो मारेगा तब मारेगा, परन्तु चिंता और भय ने तो हमें अधमरा कर दिया है। विपत्ति की आशंका करके हम इतने दुर्बल हो जाएंगे कि शत्रु हमें आसानी से मार डालेगा। रानी कहने लगी, हाँ, जल्दी से जल्दी कोई उपाय सोचना चाहिए। कठिनाइयों से केवल चिंतित होना रहना मूर्खता ही है। कठिनाइयों से संघर्ष करके, उलझनों को सुलझाकर धैर्य और साहस से काम करने पर ही उपलब्धि मिलती है। राजा बोला, यह तो है ही, अब हमें साहस से काम लेना होगा। ऐसा करें कि गंगा तट छोड़कर कहीं और चले चिंता और तनाव से मुक्ति हो जाएगी। पर हम तो आज तक कभी कहाँ से कहीं गए ही नहीं। अनजान पथ पर कहा जाएंगे। रानी कुछ रुक रुककर गंभीरता से सोचते हुए बोलीं, यह सब ठीक है कि पद अंजान हैं, पर कहीं तो कोई रास्ता मिलेगा ही। मनस्वी और धैर्यशील के लिए सुख और सफलता के सारे रास्ते अपने आप खुल जाते हैं। चिंता और तनाव में घुल घुलकर, जीने की अपेक्षा कठिनाइयों से जूझ कर हंसते हंसते मर जाना ही अदिक अच्छा है। राजा ने कहा। तुम्हारी बात बिलकुल सही है, बस यही हमारा अंतिम निर्णय है। अब अधिक सोच विचार करना बेकार है। चलो आज से अभी से अपनी यात्रा का शुभारंभ करें। रानी कछुए उत्साह से आगे बढ़ती हुई बोली। कहा भी गया है। नहीं कश्चित विजन आती किम कस्य भविष्यति, अतः सवाक अरण्यानि कुरिया देव बुद्धिमान अर्थात कोई नहीं जानता कि कल क्या होने वाला है। इसलिए बुद्धिमान लोगों को चाहिए कि कल के कार्य को आज ही कर ले। राजा रानी गंगा छोड़कर लंबी यात्रा पर उसी समय निकल गए। रास्ते में दोनों को कोई विशेष कठिनाई नहीं हुई। जगह जगह पानी खाना सब मिल जाता था। अब उनके मन में न कोई चिंता थी और न ही तनाव। दोनों ही आपस में कहते की हमारी सारी आकांक्षाएं। अब पूरी हो जाएंगी बेकारी हम आशंका कर रहे थे। हम पहले ही यात्रा पर चल पड़ते तो और भी अच्छा रहता। परन्तु कुछ समय चलने के बाद उनके सामने कठिनाइयां आरंभ हो गई। कभी खाना मिलता तो कभी दूर दूर तक पानी भी दिखाई नहीं देता। 1 दिन सुबह से चलते चलते दोपहर हो गई। कड़ी धूप थी प्याज से उनके गले सूखे जा रहे थे। रानी घबरा गयी। वह हताश होकर एक पेड़ के नीचे बैठ गई और बोली लगता है आज तो प्याज से प्राण ही निकल जाएंगे। राजा समझाते हुए बोला, घबराओ नहीं रानी, कुछ धैर्य रखो, कोई ना कोई उपाय तो मिलेगा। राजा यह कहकर मिट्टी के ऊंचे ढेर पर चढ़ गया। उसने दूर दूर तक निगाह दौड़ाई। सहसा ही उसे थोड़ी दूर पर पानी बहता हुआ दिखाई पड़ा। वह खुशी से चिल्ला या रही। अब बस थोड़ी दूर ही चलना है, वहाँ पानी ही पानी है। पानी का नाम सुनकर रानी भी उत्साह से भर उठीं। दोनों तेजी से उसी दिशा में बढ़ चले जहाँ पानी दिखाई दे रहा था। वहाँ सचमुच ही मीठा और ठंडा पानी था। दोनों ने जीभर कर अपनी प्यास बुझाई। राजा कहने लगा। जब विपत्ति सामने आती है तो उसका हल भी साथ होता है, परंतु वह विचार कर कार्य करने वालों को ही मिलता है। जैसा कि उचित ही कहा गया है कि उद्यमी नेवल सिद्धांत इंकार यानी न मनोरथैः नई सुपता से सिंहस्थ से प्रविशन्ति मुखे मृगाः अर्थात बिना मेहनत के कोई भी उपलब्धि नहीं मिलती। जैसे सोते हुए शेर के मुख में हिरण स्वयं प्रवेश नहीं करते, उसे शिकार के लिए स्वयं जाना ही पड़ता है। राजा और रानी दोनों पानी पीकर फिर आगे बढ़ते गए और अंत में खेत के कुएं के पास पहुँच गए। राजा ने कुएं में झांककर देखा तो वहाँ बहुत सारा जल था। वह बहुत प्रसन्न हुआ और बोला रानी हम हमेशा पानी में रहना चाहते थे ना देखो यहाँ कितना सारा पानी है? पर पानी कितनी गहराई पर है। कैसे माँ तक पहुँचेंगे और वहाँ से निकलेंगे कैसे रानी उदास होते हुए बोली उसने कभी कुआं देखा भी ना था। हमें इस बार फिर साहस और जोखिम भरा निर्णय लेना होगा। ऐसा करता हूँ कि कुएं में छलांग लगाता हूँ यदि ठीक लगा तो तुम्हे आवाज़ दे दूंगा। रानी ने कुछ कहा उससे पहले ही राजा ने छलांग लगा दी। रानी भौचक्की इसी देखती रह गई। तभी उसे कुएं में से राजा की आवाज सुनाई पड़ी। वह खुशी से चिल्ला कर कह रहा था रानी जल्दी आओ अब रानी जल्दी आओ। रानी ने भी कुएं में छलांग लगा दी। दोनों ही खुश होकर नाचने लगे। बहुत दिनों की यात्रा के बाद लंबे संघर्ष के बाद दोनों को निश्चिंत होकर रहने की जगह जो मिल गई थी। राजा ने रानी का हाथ पकड़कर पूरे कुएं का एक चक्कर लगाया और झूमते हुए बोला। यहाँ पर कोई भी नहीं है यहाँ से अब हम कहीं नहीं जाएंगे मैं यहाँ का राजा हूँगा और तुम रानी। तो बच्चो ये कहानी एक कछुए और एक कछुए के साहस की थी। परंतु इस कहानी से जो प्रेरणा हमें मिलती है, जो शिक्षा हमें मिलती है वह है कि हमें कभी भी परिस्थितियों से घबराना नहीं चाहिए और साहस और। बुद्धिमानी से काम लेना चाहिए। ओके बाइ?","सभी को नमस्कार, यह एक ऐसे छोटे जीव कछुआ 🐢 और उसकी पत्नी की एक अद्भुत कहानी है। दो कछुओं का गंगा किनारे रहना मुश्किल हो रहा है 🌊 . वे एक कठिन निर्णय लेते हैं और जगह छोड़ देते हैं। कहानी बताती है कि अगर हम किसी से डर जाते हैं तो हमें कुछ साहसी निर्णय लेने चाहिए। पूरी कहानी सुनें और कहानी के नैतिक के बारे में जानें।" "क्या आप भी अपना पॉडकास्ट बनाने का सोच रहे हैं? तो ऐंकर ट्राई कीजिए, ये पॉडकास्ट बनाने का सबसे आसान तरीका है। नंबर एक ये फ्री है नंबर दो। इसमें कई सारे ऐसे टूल्स है जो आपको अपने फ़ोन और कंप्यूटर पर रिकॉर्ड और एडिट करने की फैसिलिटीज देते हैं। नंबर तीन आप अपने पॉडकास्ट को डिस्ट्रीब्यूट भी कर सकते हैं, जिससे इसे इस स्पॉटिफाइ और दूसरे प्लैटफॉर्म्स पर सुना जा सकें। डाउनलोड कीजिये ये फ्री एंकर ऐप या विजिट कीजिए ऐंकर डॉट ऐफ़ एम अपना पॉडकास्ट स्टार्ट करने के लिए? हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आप सबके लिए लेकर आई हूँ, उसका टाइटल है क्रिसमस की। सैंटा क्लॉस का चेहरा क्रिसमस आते ही खुशी से खिल उठता था पर इस साल उन्हें समझ में नहीं आ रहा था की बच्चो ने आउटडोर गेम्स के लिए कुछ नहीं मांगा था। उन्होंने लिस्ट पढ़ते हुए पास खड़े एक बौने से पूछा। क्या बात है फुटबॉल क्रिकेट किट हॉकी किसी भी बच्चे ने नहीं मांगी है। गोल मटोल बोनी ने अपनी बूंदें वाली टोपी को हिलाया और सोचते हुए बोला। शायद उन्होंने बाहर खेलना बंद कर दिया हो। कुछ बच्चो का तो मैं समझ सकता हूँ कि टेस्ट और एग्ज़ैम के कारण उन्होंने कुछ समय के लिए छोड़ दिया हो और सारे बच्चे ऐसा कर सकते हैं। सैंटा क्लॉस ने आश्चर्य से जवाब दिया। और जो बच्चे हर साल फुटबॉल मांगते थे, उन्होंने 20 साल कुछ नहीं मांगा। दूसरे बोने ने अपनी वाली टोपी को झटका देते हुए कहा। सेंटा ये सुनकर परेशान हो गए और खिड़की से बाहर झांकने लगे। हवा में उड़ते हुए सफेद बर्फ़ के गोले बहुत सुंदर लग रहे थे। उन्होंने बहुत देर तक इस बात को समझने की कोशिश की। पर कोई बात उनकी समझ में नहीं आ रही थी। वे सोचने लगे कि आखिर ऐसा क्या हुआ होगा की बच्चों ने बाहर खेलने वाले सारे खेल पूरी तरह से छोड़ दिए होंगे? तभी एक रेनडियर सांता के पास आकर बोला। सुरेश तैयार करवा दी है। आप बच्चों के उपहार रखवा सकते हैं। हाँ, मैं अभी खिलौने वाली फैक्टरी में जाकर देखता हूँ। बच्चों की लिस्ट पूरी हो गई या नहीं सेंटा ने जवाब दिया। तभी बोला। पर इस बार मुझे उपहार बहुत कम नजर आ रहे हैं। मैं भी यही सोच रहा हूँ। कहते हुए सेंटा के चेहरे पर उदासी छा गई और वे खिलौने देखने चले गए। कम उपहार देकर सेंटा का चेहरा उतर गया और वे अपने कमरे में चले गए। क्रिसमस आने में 2 दिन बचे थे पर सेंटा एक पल के लिए भी अपने कमरे से बाहर नहीं निकले। उन्हें चिंता के कारण नींद भी नहीं आ रही थी। उन्होंने सोचा की अगर बच्चे ही क्रिसमस पर उपहार नहीं मांगेंगे तो भला कौन मांगेगा? सेंटा तो क्रिसमस के दूसरे दिन से ही अगले क्रिसमस का इंतजार करने लगते और पूरे साल लगातार बहनों के साथ मिलकर खिलौने बनाते रहते हैं। तब भी क्रिसमस की शाम तक किसी को सांस लेने की भी फुर्सत नहीं मिलती थी और इस साल पहली बार ऐसा हुआ की क्रिसमस में 2 दिन बचे थे और सारा काम खत्म हो गया था। उन्होंने दीवार पर लगी हरे रंग की घंटी बजाई तो दीवार पर बिंगो बोना दिखाई देने लगा। बिंगो सैंटा को देखते ही मुस्कुरा दिया। बच्चों के सभी उपहारों को स्लेज में रखवा दो और क्रिसमस की शाम तक मुझे कोई बुलाना मत। सैंटा ने धीरे से कहा और लाल रंग की घंटी बजा दी। लाल रंग की घंटी बजते ही दीवार से बौना गायब हो गया और दीवार फिर से पहले जैसी हो गई। 2 दिन तक सेंटर इसी उधेड़बुन में रहे कि अगर वे पता लगा पाते की बच्चों ने आखिर खेलना कूदना क्यों बंद कर दिया तो वह जरूर ही उसका कोई उपाय निकालते और ऐसे ही 2 दिन निकल गए। क्रिसमस की शाम को सेंटा अपने कमरे से बाहर निकलें और सीधे जाकर में बैठ गए। सभी रेनडियर सैंटा को देखकर खुश हो गए और खुशी से चिल्लाते हुए बोले हैप्पी क्रिसमस। सैंटा मुस्कुराए और बोले हैप्पी क्रिसमस। सेंटा के जवाब देते ही रेनडियर खुश हो गए और आसमान में उड़ चले। सैंटा अनमने से बैठे थे की तभी बोने चीखते हुए कहा। अरे, रुको, हमें यहाँ से शुरुआत करनी है। सेंटा ने आश्चर्य से बहनों को देखा क्योंकि उन्हें याद था कि इस शहर से तो किसी बच्चे ने कोई उपहार मांगा ही नहीं था और जब बहनों ने सेंटा को उपहार का किट पकड़ाया तो सैंटा बच्चों की तरह खुश हो गए और तुरंत बहनों के संग उनके बताए हुए घरों की ओर चल पड़े। घरों के अंदर जाकर सेंटा की खुशी का ठिकाना नहीं रहा, क्योंकि सभी घरों में रंग बिरंगी झालरों से जगमगाते हुए क्रिसमस, डेढ़ सारी सुनहरी घंटियां, सितारे, कैंडी स्टिक्स और चॉकलेट सजी हुई थीं। सभी बहुत खूबसूरत लग रहे थे। सेंट ने मुस्कुराते हुए एक के बाद एक करके उस शहर के सभी घरों में उपहार रख दिए। जैसे इसले जुड़ी तो बोने दूसरे शहर को देखते हुए कहा। अब हमें उन जगमगाते हुए रोशनियों के पास उतरना है। और क्या हमारे पास इतने उपहार है? सेंटा ने आश्चर्य से पूछा, हाँ बिलकुल है। आपने उपहारों की तरफ तो देखा ही नहीं था। एक ने हंसते हुए कहा, सैंटा ने तुरंत पीछे मुड़कर देखा तो आश्चर्यचकित रह गए। हजारों उपहार चमकीली पन्नियों में लिपटे हुए रखे थे। सैंटा की आंखें चमक उठीं। उन्होंने उत्सुकता से पूछा और। तभी एक नटखट बौना ताली बजाकर उछलता हुआ बोला। जब आप दुखी होकर कमरे में बंद हो गए थे तब हम सबको बहुत बुरा लगा और हमारे इस बात का पता लगाने निकल पड़े की आखिर बच्चो ने। हॉकी, फुटबॉल और क्रिकेट किट वगैरह क्यों नहीं मांगे? हाँ क्यों नहीं मांगे? कहते हुए सैन्ट ने अपनी लंबी सफेद दाढ़ी पर हाथ फेरा। क्योंकि करीब 200 देशों में कॉफी डे 19 नाम का वायरस फैला हुआ है, जो सांसों के जरिए एक दूसरे में फैलता है और इसीलिए बच्चों के साथ साथ बड़ों ने भी बाहर निकलना बहुत कम कर दिया है। बौने ने कहा, ओह, तो फिर तुम लोगों ने उपहारों में उन बच्चों को क्या दिया है? सैन्ट ने हैरान होते हुए पूछा। हमने उन्हें दिया तो फुटबॉल और हॉकी वगैरह ही है और साथ में मास्क भी दिया है ताकि वे इस बिमारी से बच सकें। मैं बता नहीं सकता कि मैं कितना खुश हूँ। कहते हुए सेंटा ने बोनी को गले से लगा लिया और सलेस सभी बोने और सैंटा की खिलखिलाहट के साथ हवा में और ऊपर उड़ चली। जिससे घुंघरुओं की रुनझुन बादलों के पार तक सुनाई दे रही थी। तो बच्चो ये कहानी थी क्रिसमस की सैंटा क्लॉस की और उन सारे उपहारों की जो तुम सभी के लिए सैंटा क्लॉस क्रिसमस के दिन लेकर आएँगे। ओके बाइ?","सभी को नमस्कार, क्रिसमस ईसा मसीह के जन्म की याद में एक वार्षिक उत्सव है, जिसे मुख्य रूप से 25 दिसंबर को दुनिया भर के अरबों लोगों के बीच एक धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव के रूप में मनाया जाता है। यह क्रिसमस 🎄 की एक नैतिक कहानी है। हम अच्छी तरह जानते हैं कि क्रिसमस बच्चों का पसंदीदा त्योहार है। बच्चे साल भर क्रिसमस का इंतजार करते हैं। अब यह लगभग यहाँ है. इस कहानी में सांता 🎅 क्लॉज सभी बच्चों को अपने स्वास्थ्य के प्रति सावधान रहने का संदेश दे रहा है। पूरी कहानी सुनें और आगामी त्योहार क्रिसमस 🎄 का आनंद लें।" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपको सुनाऊंगी उसका शीर्षक है मेहनत की कमाई। राजा वीर सिंह शूरवीर तथा प्रजा कई हितैषी थे किंतु कुछ चापलूस दरबारी हर समय उन्हें घेरे रहते। वीरसेन को बात बेबात पर भड़काते रहते और कभी कभी वो उनकी बातों में भी आ जाते थे। एक बार की बात है, एक चापलूस दरबारी ने भीड़ से इनसे कहा। महाराज हमारे राज्य में चंद्रसेन नाम का एक व्यक्ति है। कुछ दिनों से उसने बहुत सारी संपत्ति बना ली है। यकीनन व संपत्ति ईमानदारी की नहीं होगी। अता आप उसे जब्त कर लीजिए। बीरसेन उस चापलूस की बातों में आ गया और अपने मंत्री को बुलाकर चंद्रसेन की संपत्ति को जब्त करने का आदेश दे दिया। मंत्री समझदार था, उसने वीर से इनसे कहा। महाराज संभव है, चंद्रसेन ईमानदार हो और उसने सारी संपत्ति अपनी मेहनत से जुटाई हो। अतः आपसे विनती है कि एक बार चंद्रसेन को अपना पक्ष रखने का मौका दे दे। राजा को भी यह बात उचित लगी। उसने पहले चंद्रसेन से बात करना ही उचित समझा। चन्द्रसेन को महल में बुलाया गया। वीर सेन ने उससे पूछा। क्या तुमने बहुत ही कम समय में ढेर सारी संपत्ति बनाई है? जी महाराज। परवाह मेरी मेहनत की कमाई है और आपकी संपत्ति के सामने तो वह सुई की नोक के बराबर है। इस पर वीर सेन बोला। तो ठीक है सुई की नोक के बराबर जगह ना आप लो और सारी संपत्ति हमें दे दो। किंतु महाराज यह मेरी मर्जी होगी कि मैं सुई की नोक के बराबर जगह कहीं भी ना आप लू चंद्रसेन ने कहा। वीरसिंह ने उसकी शर्त स्वीकार कर ली और उसे स्वी मंगवाकर दे दी गई। चन्द्रसेन ने झट से वह सुई राजा के सिंहासन पर गाड़ दी। यह देखकर वीर से इन परेशान हो गया। अव्व सिंहासन पर बैठ नहीं सकता था। राजा ने चंद्रसेन से कहा भाई तुम यहाँ सिंगल सन छोड़ दो, इसके बदले में मैं तुम्हें एक गज जमीन कहीं भी दे सकता हूँ। चन्द्र सिंह ने तुरंत सिंहासन के ठीक सामने एक गज जमीन पर कब्जा कर लिया। वीरसेन के लिए अब भी परेशानी थी, क्योंकि सिंहासन पर बैठते समय पैर चंद्रसेन की जमीन पर होते। कुछ पल सोचने के बाद राजा वीरसेन ने फिर कहा। तुम या महल छोड़कर कहीं भी 1000 गज जमीन ले लो। लेकिन मुझे यहाँ एक जमीन वापस दे दो। चन्द्रसेन मान गया। उसने महल के बाहर मुख्य द्वार के ठीक सामने 1000 गज जमीन पर कब्जा कर लिया। ऐसे में महल में आने जाने के लिए लोगों को उसकी जमीन पर से होकर जाना पड़ता। वीरसेन समझ गया था कि चंद्रसेन बेहद समझदार है, पर वह भी वचन का पक्का था। उसने चंद्रसेन के सामने फिर एक प्रस्ताव रखा। चन्द्रसेन तुम महल से दूर 100 एकड़ जमीन कहीं भी ले लो, किंतु यह 1000 गज जमीन मुझे दे दो। इस पर चंद्रसेन ने कहा। महाराज मेरी कुल जमा संपत्ति मात्र 50 एकड़ जमीन से भी कम होगी। और आप मुझे एकड़ जमीन देना चाहते हैं? मुझे कुछ नहीं चाहिए। क्षमा कीजिए महाराज आपकी आज्ञा हो तो मैं विदा लेना जाऊंगा। चन्द्रसेन की बात सुनकर राजा वीर सिंह को एहसास हुआ कि वह चापलूस दरबारी की बातों में आकर अनर्थ करने जा रहा था। उसने उस चापलूस को बुलाकर दंड दिया और चंद्रसेन को इनाम देकर विदा किया। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि जब मेहनत की कमाई होती है तो उसे कोई नहीं ले सकता। मेहनत और ईमानदारी की सदैव कद्र होती है।","सभी को नमस्कार, यह एक राजा और एक मेहनती व्यक्ति की अद्भुत कहानी है। राजा ने सोचा कि मामन एक धोखेबाज है और वह उसे सजा देने जा रहा है। लेकिन आदमी अपनी बुद्धि और बुद्धि से राजा का दिल जीत लेता है। पूरी कहानी सुनें और कहानी की नैतिकता के बारे में जानें।" "बच्चों आज की हमारी कहानी एक कौए और सांप की है। किसी जंगल में बरगद के एक पुराने पेड़ पर कौआ और कवि रहा करते थे। वे दोनों पति पत्नी थे। दोनों में बड़ा प्यार था। इसी प्यार के कारण दोनों हर समय खुश रहते थे। उसी पेड़ की जड़ में एक काला सांप रहता था जो इन बेचारो के अंडों को हर बार खा जाता। अपनी संतान की शक्ल देखने को तड़प रहे वो पति पत्नी मन ही मन साहब को गालियां देते क्योंकि सांप के आगे उनका कोई बस नहीं चलता था। कमजोर पुरानी गाड़ियों और बद्दुआओं का सहारा ही तो लेता है। संतान के न होने के दुख से वे कौआ कभी हर समय चिंता और दुख के सागर में डूबे रहते। कौआ जब अत्यंत दुखी हो गया, तो उसे याद आया कि सात वाले जंगल में उसका एक मित्र गीदड़ रहता है। जो ऐसे संकट के समय काम आ सकता है। यही सोचकर कौआ अपने मित्र गीदड़ के पास जाकर अपनी दर्द भरी कहानी सुनाने लगा। गीदड़ ने अपने मित्र कौए को। इस पीड़ा में देखकर बहुत अफसोस जताया। उसे पता था। की, जिसके खेत नदी के किनारे हो। जिंस गांव के बाहर सांप रहता हो, उस गांव के निवासियों को हर समय दुख रहना पड़ता है। गीदड़ ने कुएं को धैर्य देते हुए कहा देखो भाई तो मेरे मित्र हो, मैं तुम्हारी सहायता अवश्य करूँगा। फिर तुम जानते हो की गीदड़ जाति का दिमाग शैतान की दिमाग से तेज होता है। अब तुम देखना कि मैं किस प्रकार बिना कोई उद्यम किए ही उस तरफ को मार देता हूँ? यह कहते हुए गीदड़ पहले तो हंसता रहा, फिर एक दम से गंभीर हो गया। क्योंकि वो समझ गया था कि कौआ उसकी हँसी देखकर मन ही मन दुखी हो रहा है। गंभीरता के स्वर में गीदड़ बोला देखो भाई तुम इसी समय दोनों पति पत्नी उड़ते हुए राजा के महल में जाओ और वहाँ से महारानी का सोने का कीमती हार उठा लो, बस आगे का काम मैं सब कर लूँगा। यह सब दिमाग से मारा जाएगा ताकत से नहीं। गीदड़ की बात सुनते ही कौआ वहाँ से बड़ी तेजी से उड़ा और रास्ते में उसने अपनी पत्नी को साथ लेकर राजमहल चलने की योजना बताई। दोनों राजमहल की ओर चल पड़े। दोनों उड़ते उड़ते राजमहल के पास पहुंचे तो उन्होंने महारानी को एक नदी में स्नान करते देखा। उसने अपना कीमती हार गले से उतार कर एक दासी को दे दिया था, जो किनारे पर उसे अपने हाथ में लिए हुए बैठी थी। कौए ने उस समय अपनी पत्नी को इशारा किया कि इससे अच्छा मौका जीवन में तुम्हें और कहाँ मिलेगा। होशियारी से उड़ती हुई जाओ और उस हार को उस दासी के हाथों से छीन लाओ। कवि भी उसी को छीनने की फिराक में थी। वह बिजली किसी तेजी से उड़ती हुई नदी के किनारे पर गयी और उस दासी के हाथों से हार उड़ा लायी। और दोनों उस हार को लेकर उड चले। दासी ने ज़ोर ज़ोर से शोर मचाना शुरू कर दिया। हाय हाय हाय मेरा हार, मेरा हार चोरी हो गया। पास ही के जंगल में जो सैनिक दस्ता रानी की रक्षा के लिए बैठा हुआ था, उसके अवसर ने जैसे ही यह सुना की रानी का हार चोरी हो गया है। तत्काल अपने सैनिकों को हुक्म दिया जाओ रहाणे जी का हार लेकर आओ चोर ले गए हैं उसे। सैनिक जंगल में चारों ओर भागने लगे। सैनिक हार की तलाश में भाग रहे थे। उधर गीदड़ ने कुएं से कहा कि इस हार को इस सांप के बिल में आधा अंदर आधा बहार रख दो। जैसे ही कौए ने हार को सांप के बिल पर रखा, सांप तुरंत बाहर आ गया। ठीक उसी समय वहाँ राजा के सैनिक भी आ गए। उन सैनिकों ने जैसे ही देखा की रानी का कीमती हार इस सांप ने चुराया है, क्रोध से भरे एक सैनिक ने उस सांप का गला काट दिया। कौआ और कभी दोनों खुशी से नाचने लगे। कौए ने अपने मित्र गीदड़ का बहुत बहुत धन्यवाद किया। तो बच्चो शत्रु को पराजित करने के लिए कई बार शक्ति नहीं बल्कि बुद्धि काम आती है।","सभी को नमस्कार, यह एक कौवा 🐦‍⬛ और सांप 🐍 की एक अद्भुत कहानी है। इस कहानी में आपको पता चलता है कि कभी-कभी बौद्धिक शक्ति शरीर की शक्ति से बेहतर होती है।" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी में आपको सुनाने जा रही हूँ। उसका शीर्षक है सही रास्ता। जाड़े शुरू होने वाले थे। इसलिए सारी की सारी चींटियां भोजन जमा करने में जुटी हुई थी। शाली और रेनू भी खाने की तलाश में सुबह ही निकल जाती थी। दोनों को चिंता थी की सर्दियों से पहले ही सामान इकट्ठा कर लें, जिससे बच्चों को परेशानी ना हो। जाड़ों में दुख न उठाना पड़े। शा ली और रेनू कभी किसी खेत में जाती और कभी किसी के घर में अपने मुँह में कभी गेहूं का दाना लाती, कभी चीनी लाती, कभी दाल लाती तो कोई कभी बड़ा सा कीड़ा उठा लाती। बार बार आकर ये अपने मुँह की चीजें अपने अपने बिलों में रख जाती। इस प्रकार दिन में कई कई चक्कर लगाकर भी खाने का सामान जुटाती। दिन में सुस्ताना आराम करना तो दोनों को जैसे मना ही था, वे अपनी धुन की पक्की थी, निरंतर काम करती ही रहती थी। शाली और रेनू के घर के पास ही रोहू नाम की एक चींटी भी रहा करती थी। वो अब बड़ी याद सी थी। कुछ काम करती ना थी। सारे दिन पड़ी पड़ी अल जाती ही रहती थी जब उसे बहुत भूख लगती थी या जब उसके छोटे छोटे बच्चे भूख से रोने लगते थे तब कहीं जाकर वह खाने की तलाश में निकलती थी। रोगों के इस आलसीपन के कारण उसके बच्चे तंग आ रहे थे। बेबी प्राय भूखे ही रह जाया करते थे। रुके बच्चे देखते की पड़ोसी चीटियां अपने बच्चों को अच्छी अच्छी चीजे खिला रही है। कभी बेची नहीं खाते है, कभी दाल खाते हैं तो कभी रोटी खाते हैं तो कभी मिठाई रोगों के बच्चों को अधिकतर मिलते थे। सूखे कीड़े या सूखा अन्न उसे खाते खाते वे ऊब गए थे। 1 दिन रोहू का छोटा बच्चा बोला माँ तुम सदैव रूखा सूखा खाना खिलाती हो, उनकी माँ उन्हें कितना प्यार करती है? और तरह तरह की चीजें भी लाकर देती है। रघु ने बच्चों की बातें सुनी तो उन्हें झिड़क दिया। बोली मैं इससे ज्यादा मेहनत नहीं कर सकती। तुम बड़े हो जाओ तो अपने आप अच्छी अच्छी चीजे लाके खाना बेचारे बच्चे चुप रह जाते मज़े वे कह भी क्या सकते थे? शाली और रेणु चींटी जब खाना ढूंढने जाती तो देखती की रोहू जीटी आराम से सोई पड़ी है। वे आपस में कहती देखो जाड़े पास आ रहे हैं। इसके छोटे छोटे बच्चे या तो कुछ भी सामान एकत्रित नहीं करती है। जाड़ों में क्या खाएगी? क्या बच्चों को खिलाएगी? 1 दिन? आखिर उन दोनों से न रहा गया वे रोगों के पास पहुंची शाली बोली। बहन क्या तुम जाड़े के लिए खाने का सामान नहीं जुटा रही? हो हो अभी से क्या चिंता करना? समय आने पर देखा जाएगा। रोहू बोली शाली और रेनू तो चली गयी पर उनकी बातें रोहू चींटी के मन पर असर कर दी। वह सोचने लगी की ये ठीक कहती है समय पर एकाएक भोजन जुटाना तो बड़ा कठिन हो जाएगा, पर इतनी दूर जा जाकर भोजन जुटाना मेरे वश की बात नहीं है। रु। बड़ी देर तक सोचती रही की क्या करना चाहिए? सहसा उसे एक उपाय सूझा वह मणि मन मुस्कुरा उठी। दूसरे दिन से रोहू ने उस उपाय के अनुसार काम करना शुरू कर दिया। जब शाली और रेनू अपने अपने घरों से जाती तो रहूँ वहाँ से थोड़ा थोड़ा सामान चोरी करके ले आता। कई दिनों तक राहु इसी तरह चोरी करती रहीं। जल्दी ही उसका घर भी तरह तरह के भोजन से भर उठा। इधर, शाली और रेनू परेशान थी कि वह सारे दिन मेहनत करके सामान जुटाती हैं, पर उनका सामान आधा ही मिलता है। वह आखिर कहाँ चला जाता है? शाली बोली। जरूर, हमारे पीछे कोई और आता है और चोरी करके चला जाता है। बच्चों और को ढूंढेंगे कैसे? रेनू ने पूछा। मुझे तो रहूँ पर शक है। सारी चिट्ठियां भोजन जुटाने जाती है और वह आराम से पड़ी रहती है। दोनों सोचने लगी, चलो उसके घर चलकर देखें। रेनू बोली और दोनों सहेलियां रोगों के घर की ओर चल पड़ी। वहाँ उन्होंने देखा कि उनका जमा किया हुआ बहुत सारा अन्न रूम के घर में रेनू और शालीन ए आँखों में एक दूसरे को कुछ इशारे किये। शाली कहने लगी तुमने तो अन्य जुटा लिया है। और क्या रू आँखें न जाती हुई बोली पर तुम कभी हमें भोजन की तलाश में घूमती हुई तो नहीं मिलती हो? रेनू बोली। इतने में राहु का छोटा बच्चा बोल पड़ा। माँ तो ज़रा सी देर में जाकर अन्यथा लाती है, पड़ोस में ही कहीं जाते हैं और जल्दी से वापस आ जाती है। रोने अपने बच्चे की आंख में देखा और उसे धमकाया। रोहित, तुम बुरा न मानना तुमने यहाँ अन्ना हमारे घरों से चुराया है ना? शा ली और रेनू दोनों ने एक साथ ही बोला, ऐसा तुम किस आधार पर कह रही हो? रोगों ने जोश में आकर पूछा। गोबरीलाल दादा कह रहे थे कि हमारे घरों से जाने के बाद तुम रोज़ हमारे घरों में घुसती हो। शाली बोली, रोओ चुप हो गई, वो कहती भी क्या गुरिल्ला तो उसे रोज़ रास्ते में मिलता था। रेनू समझाने लगी देखो बहन चोरी करना बहुत बुरा है। चोरी करके जो चीज़ हम लेते हैं वो कभी नहीं फलती है। उसका सीधा बुरा परिणाम ही होता है चुराकर जो उन्हें खाया जाता है वो बिमारी बना डालता है। हमें परिश्रम और ईमानदारी से कमाना चाहिए। रोगों के बच्चों की समझ में अब सारी बाते आ गई थी की माँ कैसे अन्य इकट्ठा करती हैं। वे सभी बोल पड़े माँ माँ सियों को उनका सम्मान लौटा दूँ। हम चोरी की कमाई नहीं खायेंगे, नहीं खायेंगे, तुम खाना इकट्ठा करने नहीं जाओगी तो हम सब मिलकर चले जाएंगे। अपने नन्हें नन्हें हाथ पैरों से जितनी मेहनत होगी कर लेंगे और खायेंगे, ईमानदारी का। बच्चों की इस प्रताड़ना से रहूँ की आंखें खुल गई। वह बोलीं, बच्चों तुम ठीक कहते हो तुम सभी ने मिलकर आज मुझे सही रास्ता दिखा दिया है। फिर उसने रेनू और शाली से भी कहा बेनू मैं अपना अपराध स्वीकार करती हूँ, मैंने तुम्हारे घरों से ही चोरी की है, तुम अपना यहाँ सामान ले जाओ और चोरी का दंड जो कुछ मुझे चाहो वो दे दो, मैं उसे स्वीकार करूँगी। शाली बोली तुमने अपना अपराध स्वीकार किया है, यह जानकर हमें बड़ी खुशी हुई। गलती तो सभी से होती ही रहती है। बुरा वहाँ नहीं है। जो गलती करता है बुरा वह है जो गलती करके उसे स्वीकार नहीं करता है। जो अपनी गलती मानते हैं वही उसे दूर कर पाते। वेणु ने भी कहा, हमारे लिए ही दंड है की तुम झाड़ू के लिए अपना भोजन स्वयं जुटाओ। हाँ वो तो मैं करूँगी तुम सभी ने मिलकर मेरी आंखें जो खोल दी है, अब मैं मेहनती बनूँगी आलस कभी नहीं सुख पाता है, किसी का सम्मान नहीं मिलता उसे। मैंने बहुत सा जीवन आलस्य, प्रमाद में व्यर्थ गंवा दिया है। रोहू बोली और फिर उसने शाली और रेनू को खुशी खुशी उनका सारा अन्न वापस कर दिया। उसी दिन से रोहू ने अपना सारा आलस्य त्याग दिया। अब वह सारे दिन मेहनत करती। उसकी बहुत सी सहेलियां भी बन गई है। सभी उससे खुश रहती है। रोगों के बच्चे भी उससे बहुत प्रसन्न रहते तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है की हमें कभी भी दूसरों की चीजें चोरी नहीं करनी चाहिए। मेहनत और ईमानदारी से ही कमाई करनी चाहिए। ओके बाइ?","सभी को नमस्कार, यह एक छोटी सी चींटी की कहानी है। वह बहुत आलसी है क्योंकि वह कड़ी मेहनत करने के बजाय भोजन चुराती है। मैं सभी बच्चों को सोने के समय की कहानियां नैतिकता के साथ सुना रहा हूं। मेरी कहानियाँ अभिनव और प्रेरणादायक हैं। अपने बच्चों के साथ मेरी कहानियाँ सुनें। यह निश्चित रूप से आपके बच्चे के व्यक्तित्व के निर्माण में मदद करेगा। मेरे यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब करें लिंक नीचे साझा किया गया है https://www.youtube.com/channel/UC09eViQqLT8N0aArbjDInEQ" "क्या आप भी अपना पॉडकास्ट बनाने का सोच रहे हैं? तो ऐंकर ट्राई कीजिए, ये पॉडकास्ट बनाने का सबसे आसान तरीका है। नंबर एक ये फ्री है नंबर दो। इसमें कई सारे ऐसे टूल्स है जो आपको अपने फ़ोन और कंप्यूटर पर रिकॉर्ड और एडिट करने की फैसिलिटीज देते हैं। नंबर तीन आप अपने पॉडकास्ट को डिस्ट्रीब्यूट भी कर सकते हैं, जिससे इसे इस स्पॉटिफाइ और दूसरे प्लैटफॉर्म्स पे सुना जा सकें। डाउनलोड कीजिये ये फ्री एंकर ऐप या विजिट कीजिए ऐंकर डॉट ऐफ़ एम अपना पॉडकास्ट स्टार्ट करने के लिए? हैलो बच्चों, आज मैं आपके लिए जो कहानी लेकर आई हूँ उसका शीर्षक है धन का लोभ बहुत दिनों की बात है। भारतवर्ष में गंगा नदी के तट पर हिरण्याभ नाम का एक साधु रहता था। उसने अपना घर, परिवार सभी त्याग दिया था। वह अकेला ही वन में रहता और भगवान का भजन करता था। उस सादु में अनेक गुण थे जैसे वह दूसरों की सहायता करता। प्राणी मात्र पर दया करता। पर उसमें एक बहुत बड़ा अवगुण भी था। वह था लालच। उसने बहुत सी स्वर्ण मुद्राएं अपने पास जमा कर रखी थी। ना तो वह उन्हें किसी को देता था और ना ही स्वयं उस धन का कोई उपयोग करता था। एक बार वह साधु सोचने लगा की मेरी आयु बहुत हो गयी है, पता नहीं कब मुझे मृत्यु का ग्रास बनना पड़े। अतएव एक बार सभी तीर्थों की यात्रा करनी चाहिए। इसी बहाने परोपकार भी हो जाएगा। वस्तुतः प्राचीन भारत की प्रथा थी कि सन्यासी तीर्थों में एकत्रित जन समुदाय को उपदेश देते थे, उनकी विविध समस्याओं को सुलझाने का प्रयास भी करते थे। इस प्रकार से वे जन कल्याण भी करते थे। हिरण्याभ ने यात्रा की पूरी तैयारी कर ली। अपने वस्त्र और सत्तू एक पोटली में बांध लिए धार्मिक पुस्तकें जब करने की माला आदि भी रख ली। अपनी स्वर्णमुद्राओं की थैली भी उसने पोटली में छिपाकर रख ली। पीठ पर पोटली लादे एक हाथ में कमंडल और एक हाथ में लाठी लेकर पर गंगा नदी के किनारे किनारे पदयात्रा करने लगा। इस प्रकार मार्ग में रुकते रुकते वह सादु कुछ दिनों बाद सात ऋषियों की तपस्थली सप्त सरोवर में जा पहुंचा। वहाँ एक 2 दिन रुकने के बाद उसे बद्रीनाथ जाना था। अब तक का रास्ता तो सीधा सादा था। वह गंगा जी के किनारे किनारे चलता जा रहा था। मार्ग में अनेक तीर्थ यात्री भी मिल रहे थे। पर अब तो उसे पहाड़ों की दुर्गम चट्टानों पर चढ़ाई करनी थी। रास्ते में बहुत से यात्रियों के मिलने की आशा भी नहीं थी। हिरण्य आपने सुन रखा था कि पहाड़ी कंदराओं में अनेक घने जंगल हैं और उन घने वनों में लुटेरे छिपे रहते हैं और रास्ता चलते यात्रियों को वे लूट लेते हैं। उसे अपने धन के विषय में चिंता होने लगी। बस समझ नहीं पा रहा था कि धन का क्या करें, कहाँ रखें उसे वो? साथ ले चलने से तो डर था कि कहीं डाकू धन के लोभ में उसके प्राण ही न ले लें। जहाँ साधु रुका था वह स्थान भी उसके लिए नया था। सभी व्यक्ति अपरिचित थे, अतएव वह किसी को धन सौंपने में रुचि भी नहीं रखता था। कई दिनों तक सोच विचार करने के बाद हिरण्य आपको सहसा अद्भुत उपाय सूझा। दूसरे दिन वह रात्रि के। द्वितीय पहर में ही उठ बैठा। गंगा जी के किनारे जाकर नित्यकर्म से निवृत्त हुआ स्नान, ध्यान आदि किया। फिर वह नदी के बालू का में तट पर निर्जन स्थान की ओर बढ़ता ही गया। लगभग दो ढ़ाई मील चलने के बाद हिरण्य आप रुक गया। उसने चारों ओर निगाहें दौड़ाई। अभी भी अंधेरा छाया था। वह स्थान जनशून्य था, वहाँ कोई भी आता जाता नहीं था। हिरण्य आपने बालू में दो हाथ गहरा गड्ढा खोदा। फिर स्वर्णमुद्राओं की थैली निकाल कर चुपचाप उसमें रख दी। ऊपर से बालू से उसे पाटा फिर उसके ऊपर गंगा जी के काले काले पत्थर चुन कर बालू और पत्थरों से ऊँचा सा शिवलिंग बनाया। पुष्प आदि से उसकी पूजा की। फिर हिरण्य आप खुशी खुशी आगे तीर्थयात्रा पर बढ़ गया। हिरण ने अब तो चला गया। चार 5 दिन के बाद 3040 यात्रियों का दल वहाँ से निकला। उस दल में श्रेष्ठ बुद्धि का एक वाणिज्य भी था। उसकी दृष्टि पत्थर और बालू के बने शिवलिंग पर पड़ी और यात्रियों को उसने वहीं रुकने के लिए कहा और बोला और देखो इस स्थान पर किसी ने शिवलिंग बनाया है, इसकी पूजा भी की है। चलो हम सब भी यही करे। इसमें निश्चित ही पुण्य मिलेगा। फिर क्या था सभी यात्री जुट पड़े। एक ही घंटे में वहाँ वैसे ही उतने ही बड़े 40 शिवलिंग दिखने लगे। भीड़ तो यात्रियों का जो भी दला था, वो ऐसे ही शिवलिंग बनाता, उनकी पूजा करता फिर आगे बढ़ता। लगभग एक महीने बाद, हिरण्य आप तीर्थयात्रा से वापस लौटा। परंतु यह क्या? जहाँ धन गाड़ा था उस स्थान को देखकर तो उसके होश ही उड़ गए। दो तीन मील के घेरे में एक से सैकड़ों शिवलिंग बने हुए थे। यह पता लगाना भी बहुत कठिन था कि उसका बनाया हुआ शिवलिंग कौन सा है? हिरण्य आपका सिर चकराने लगा और वो सिर पकड़ के वहीं बैठ गया। वह बहुत देर तक शिवलिंगों के उस मेले को देखता रहा। सूर्यास्त हो चला था। किनारे पर बहती हुई गंगा कलकल करके मानो उससे कुछ कहना चाह रही थी। वह सोचने लगा। देखो, किसी ने ठीक ही कहा है कि वह धन नष्ट हो जाता है जिससे हम न तो दूसरों का भला करते हैं और ना ही अपने लिए उसका उपयोग करते हैं। मैं तो सन्यासी हूँ, मुझे तो धन के लोभ में पड़ना ही नहीं चाहिए था। भगवान ने मुझे शिक्षा देने के लिए ही यह सब किया है। इस आत्मबोध से हिरण्य आपका सारा दुख दूर हो गया। वह कमंडल और डंडा लेकर फिर से खुशी खुशी आगे की यात्रा पर बढ़ गया। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें अनावश्यक धन को नहीं जमा करना चाहिए और ना ही उस के मोह में पढ़ना चाहिये। ओके बाय।","सभी को नमस्कार, यह एक संत की एक अद्भुत कहानी है जो हमेशा अपने पैसे का ख्याल रखता है लेकिन कुछ समय बाद वह गायब हो जाता है। संत के साथ क्या हुआ? उसे उसका पैसा दोबारा मिला या नहीं ? पूरी कहानी सुनें और कहानी की नैतिकता के बारे में जानें।" "क्या आप भी अपना पॉडकास्ट 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की साफ सफाई और रखरखाव का कार्य प्रारंभ हुआ। इस प्रक्रिया में बेसमेंट में रखी कुछ चुनिंदा पेंटिग्स को म्यूजियम के प्रदर्शनी कक्ष में रखा जाने लगा। यह देख संग्रहालय के बेसमेंट में रहने वाली कई मकड़ियां अपना जला छोड़ कर अन्यत्र चली गई। लेकिन कोने की पेंटिंग की मकड़ी ने अपना जाल आ नहीं छोड़ा। उसने सोचा कि सभी पेंटिग्स को तो प्रदर्शनी कक्ष में नहीं ले जाया जाएगा। हो सकता है इस पेंटिंग को भी ना ले जाये। कुछ समय बीतने के बाद बेसमेंट से और अधिक पेंटिग्स उठाई जाने लगी। लेकिन तब भी मकड़ी ने सोचा की ये मेरे रहने की सबसे अच्छी जगह है। इससे बेहतर जगह मुझे कहाँ मिल पाएगी? वह अपना घर छोड़ने को तैयार नहीं थी, इसीलिए उसने अपना जाला नहीं छोड़ा। लेकिन एक सुबह संग्रहालय के कर्मचारी उस कोने में रखी पेंटिंग को उठा ले जाने लगे। अब मकड़ी के पास अपना जाला छोड़कर जाने के अतिरिक्त कोई और विकल्प नहीं था। झालाना छोड़ने की स्थिति में वह मारी जाती। बुझे मन से उसने अपनी इतनी मेहनत से बनाया हुआ जाला छोड़ दिया। संग्रहालय से बाहर निकलने के बाद वह कई दिनों तक इधर उधर भटकती रही। कई परेशानियों से उसे दो चार भी होना पड़ा। वहाँ बड़ी दुखी रहा करती थी। की उसका खूबसूरत घर भगवान ने उससे छीन लिया और उसे इस मुसीबत में ढकेल दिया। बहा संग्रहालय के अपने पुराने घर के बारे में सोचकर और दुखी हो जाती और उससे अच्छा स्थान अब उसे कभी हासिल नहीं होगा। यही सोचा करती, लेकिन उसे अपने रहने के लिए स्थान तो खोजना ही था इसलिए वह लगातार प्रयास करती रही। आखिर में 1 दिन वह एक सुंदर बगीचे में पहुंची। बीच में एक शांत कोना था जो मकड़ी को बहुत पसंद आया। उसने फिर से मेहनत प्रारंभ की और कुछ ही दिनों में पहले से भी सुंदर जाल तैयार कर लिया। उसका अबतक का सबसे खूबसूरत घर था। अब वह खुश थी कि जो हुआ अच्छा ही हुआ, अन्यथा वह इतनी सुंदर स्थान पर इतने सुंदर घर में कभी नहीं रह पाती। वह खुशी, खुशी वहाँ रहने लगी। तो बच्चो इस छोटी सी कहानी से हमें क्या सीख मिलती है हमें कभी कभी जीवन में ऐसा कठिन समय का सामना करना पड़ता है। कि जब हमारा बना बनाया सब कुछ बर्बाद हो जाता है। ये हमारा व्यवसाय, नौकरी, घर, परिवार, रिश्ता कुछ भी हो सकता है। ऐसी स्थिति में हम अपनी किस्मत को कोसने लगते है या भगवान से शिकायतें करने लगते हैं, लेकिन वास्तव में कठिन परिस्थितियों से हमारे हौसले की परीक्षा होती है। यदि हम अपना हौसला मजबूत रखें और कठिनाइयों से जूझते हुए जीवन में आगे बढ़ते जाते हैं तो परिस्थितियां बदलने में देर नहीं लगती। हमारा हौसला, हमारा जुझारूपन, हमारी मेहनत हमें बेहतरी की ओर ही ले जाती हैं। यकीन मानिये हौसला है तो बार बार बिखरने के बाद भी आसमान की बुलंदियों को छुआ जा सकता है। ओके बाय।","सभी को नमस्कार, यह एक छोटे से जीव स्पाइडर 🕷️ की एक अद्भुत कहानी है हम सभी जानते हैं कि मकड़ी बहुत छोटी होती है लेकिन हम यह कभी नहीं भूलते कि हमें एक छोटे से जीव से भी प्रेरणा मिल सकती है। मेरी नई कहानी सुनें और कहानी के नैतिक के बारे में जानें।" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी में आप सब के लिए लेकर आई हूँ उसका टाइटल है, चतुर खरगोश। एक वन में भा सूरत नामक एक सिंगर हाँ करता था। वह अपनी शक्ति के मद में इतना डूबा हुआ था कि रोज़ अनेक पशुओं का वध किया करता। कुछ को तो खाकर अपनी भूख शांत करता। लेकिन अधिकतर पशुओं को मारकर यूं ही डाल देता और वन में दहशत फैलाता। ऐसे में बचे हुए वन के जीवों ने सोचा कि इस तरह तो 1 दिन हम सब मारे जाएंगे और हमारी नस्ल भी खत्म हो जाएगी। इसलिए इस शक्तिशाली और खूंखार शेर को रोकना बहुत जरूरी है। यह विचार करके वन में बचे हुए प्राणियों ने एक बैठक बुलाई। सबने अपने अपने विचार रखे। एक चालाक लोमड़ी ने अपनी राय प्रकट करते हुए कहा। मेरे विचार से हमें अपनी ओर से एक प्रतिनिधि भेजकर शेर के सामने यह प्रस्ताव रखना चाहिए की भूख मिटाने के लिए उसे प्रति दिन एक प्राणी की जरूरत होती है तो इतने जीवों की हत्या करने से क्या लाभ हैं? सबको लोमड़ी का विचार ठीक लगा और उसे सभी अन्य जीवों ने स्वीकार भी कर लिया। उन्होंने गीदड़ को ही सर्वसम्मति से अपना प्रतिनिधि चुना और शेर के पास भेज दिया, गीदड़ शेर के पास आया और उसको नमस्कार करते हुए बड़े ही आदर के साथ बोला। महाराज में वन के प्राणियों की ओर से उनका दूत बनकर आया हूँ। कहो क्या कहना चाहते हो शीरनी गुर्राते हुए पूछा। हमने आपस में मिलजुलकर विचार किया है कि यदि आप इन वन की किसी भी जीवों को अनावश्यक रूप से न मारे तो हम आश्वासन देते हैं कि प्रतिदिन आपकी भूख शांत करने के लिए एक पशु आपके पास भेज दिया करेंगे। इससे आपको भी शिकार की खोज में भटकना नहीं पड़ेगा और हमारा भी असमय हो रहा विनाश रुक जाएगा। गीदड़ ने बड़े ही आदर भाव के साथ कहाँ? शेर ने की धड़ की बातों पर विचार किया। उसके बाद उसने उसका प्रस्ताव स्वीकार कर लिया किंतु थोड़ी देर में चेतावनी भरे स्वर में शेर बोल पड़ा। मुझे तुम्हारा और तुम्हारे साथियों का प्रस्ताव स्वीकार है, लेकिन एक शर्त है मेरी। कैसी शुद्ध महाराज? गीदड़ ने पढ़े ही शंकित स्वर मेँ पूछा। जिसकी सी दिन भी मेरा शिकार नहीं आया, उसी दिन मैं वन के सारे पशुओं को मारकर खा जाऊंगा। हमें आपकी शर्त मंजूर है। महाराज आपको नियमित रूप से भोजन के रूप में एक पशु मिल जाया करेगा। इसका वादा मैं वन के अन्य पशुओं की ओर से आपसे करता हूँ। उस दिन के बाद बारी बारी से एक पशु। शेर का भोजन बनने के लिए रोज़ उसके पास जाया करता जिसे खाकर वह अपनी भूख मिटाता रहे। कुछ दिनों के बाद एक चतुर खरगोश की बारी आयी। उसने सोचा कि जब आज मरना ही है तो जल्दी किस बात की है? आराम से जाऊंगा ताकि कुछ देर और जीवित रहने का अवसर मिल जाए। इसके अलावा वो ये भी सोच रहा था कि कोई ऐसी युक्ति निकले जिससे मैं शेर को हमेशा के लिए समाप्त कर सकू, परंतु ये तो छोटा मुँह बड़ी बात हो गयी। इतना छोटा खरगोश इतने बड़े शेर को कैसे मार सकता है? लेकिन खरगोश ने अपनी बुद्धि और चालाकी से एक युक्ति निकाली ली। सहसा खरगोश ने एक उपाय सोचा और अपनी योजना के अनुसार सायंकाल होने पर वह शेर के पास पहुँच गया। शेर खरगोश को देखकर आग बबूला हो गया। अरे दुष्ट एक तू इतना छोटा है की तुझे खाकर मेरी भूख मिटेगी ही नहीं उस पर तू इतनी देर से आया है। कॉल प्रातः काल होते ही तेरे सारे ज्योति बंधुओं का विनाश कर दूंगा मैं सबको खा जाऊंगा। महाराज ऐसा मत कहिए, मैं तो प्रातःकाल होते ही घर से निकल पड़ा था और ठीक समय आपके पास पहुँच भी जाता लेकिन लेकिन रास्ते में मुझे दूसरे शेर ने घेर लिया महाराज मैं किसी भी तरह अपनी जान बचा कर आपके पास आया हूँ। दूसरा शेर इस वन में मेरे अलावा और कोई शेर नहीं है। भादुरखाँ तुरंत भड़क उठा। मैंने अपनी आँखों से देखा है मारा, उसने मेरा रास्ता रोका और मुझे खाने की चेष्टा भी की थी। लगता है उस दृष्टि की मृत्यु निकट आई है जिसने मेरे रहते मेरे वन में आने की हिम्मत की है। भा सूरत दहाड़ते हुए खरगोश से बोला। चलो, दिखाओ मुझे कहाँ है वो दुष्ट। खरगोश मनी मन खुश हुआ और बोला आइये महाराज। खरगोशभाई सड़क को एक सुनसान जगह पर ले गया और इधर उधर देखने का अभिनय करने लगा। फिर बोला महाराज लगता है आप के डर से इस कुएं में छुप गया है वो? ओहो डरपोक कहीं का यह क्या कर? शेर ने कुएं में झांका तो पानी में उसे अपना प्रतिबिंब नजर आया। भूख और प्यास से व्याकुल बासु रखने समझा कि ये वही दुष्ट शेर है जो इस मन में मेरा एकछत्र राज्य छीनने के लिए आया है। गुरु धावेश में बांस सूरत बहुत ज़ोर से दहाड़ा तो उसकी दहाड़ की प्रतिध्वनि लौटकर उसके एक कानों में पड़ी भूख, प्यास और क्रोध की आग में जलता हुआ वह उस पर झपटा और उसका वध करने के लिए उसने कुएं में छलांग लगा दी। कुएं में कूदते ही भा सूरत डूब गया और डूब कर मर गया। खरगोश ने लौटकर अपने बुद्धिबल से बांसुर ओके कुएं में गिरकर। परलोक सुधारने का समाचार अपने सभी पशुओं को सुनाया तो सभी प्रसन्नता से झूम उठे और उसका काफी आदर सत्कार किया तथा उसकी बुद्धिमत्ता को सराहा। छोटे से खरगोश की बुद्धि के कारण आज जंगल के सभी जानवर सुख और चैन से रह सकते हैं। तो बच्चों इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि बुद्धि बल से बड़ा कोई दूसरा बल नहीं होता। बुद्धि बल से निर्मल प्राणी भी शक्तिशाली को धराशायी करने में समर्थ रहता है। अन्यथा इतने छोटे खरगोश की क्या मजाल थी जो शेर को खत्म कर पाता। संकट में भी बुद्धि का दामन कभी नहीं छोड़ना चाहिये। ओके बाय।","सभी को नमस्कार, यह एक बुद्धिमान खरगोश 🐰 की एक अद्भुत कहानी है। जंगल में एक क्रूर शेर राजा था। शेर हमेशा जानवरों को असामान्य रूप से मारता है। जानवर उसके व्यवहार से चिंतित हैं। एक बुद्धिमान खरगोश समस्या का समाधान करता है। पूरी कहानी सुनें और कहानी के नैतिक के बारे में जानें।" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपके लिए लेकर आई हूँ, उसका शीर्षक है बड़प्पन का मार्ग। फल्गु नदी के पास ही एक बड़ा तालाब था। वह देखता की फल्गु दिन रात बहती रहती। कभी भी आराम नहीं करती उससे रहा न गया 1 दिन वह पूछ ही बैठा बहिन। तुम निरंतर चलती हो, कहाँ जाती हो, क्या करती हो? फल्गु बोली तालाब भाई पे जाकर गंगा में मिल जाती हूँ। हम दोनों मिलकर प्राणिमात्र का कल्याण करते हैं, कहीं किसी की प्यास बुझाते हैं, कहीं खेतों को सींचते हैं, कहीं दूसरों को अपने शीतल जल में स्नान कराते हैं। इस स्थान पर दूसरी नदियां भी हम में आकर मिल जाती है। फिर हम सब मिलकर गाते, हंसते हुए सागर तक की यात्रा करते हैं और अंत में हम सभी सागर में मिल जाते हैं। यह सुनकर तालाब बोला दूसरों का उपकार करने के लिए ही तो तुम इतनी लंबी यात्रा किया करती हो ना? और क्या फल्गु ने उत्तर दिया? तो फिर इसके लिए इतनी दूर जाने की थकने की क्या जरूरत है? औरों का उपकार तो हम घर बैठकर भी कर सकते हैं। मुझे देखो मुझसे ना जाने कितने पेड़, पौधे, पशु, पक्षी लाभ उठाते हैं। क्या मैं परोपकारी नहीं हूँ? पर तुम्हारी तरह दौड़ दौड़कर समय बर्बाद करना मूर्खता समझता हूँ? अरे, जब हम घर बैठे ही दूसरों का कल्याण कर सकते हैं तो फिर भागने दौड़ने की क्या आवश्यकता है? तालाब कहने लगा। फल गुने अधिक बहस करना उचित न समझा। उसने हंसकर उसकी बात टाल दी और काम पर निकल पड़ीं। जब भी फल्गु पल दो पल सुस्ताने बैठती तो तालाब उससे यही बात दोहराता की तुम्हारा इतना दौड़ दौड़कर थकना बेकार है। इस प्रकार तुम स्वयं कष्ट सहती हो और समय भी बर्बाद करती हो। फल्गू जब कभी इसके विरुद्ध कुछ कहती तो तालाब अपने अकाट्य तर्कों से उसकी बात काट देता। धीरे धीरे फल्गु को भी तालाब की ही बात ठीक लगने लगी। अच्छे या बुरे जैसे भी संगीत साथियों में हम रहते हैं तो विचार भी अनायास ही धीरे धीरे वैसे ही बन जाते हैं। अब फल्गु ने गंगा की ओर बहना छोड़ दिया। उसने अपनी लहरों को उधर से सिकोड़ लिया। अब वह दिन रात सुस्ताती कुछ दिन तो आराम करना ठीक लगा। और फिर जल्दी ही फल्गु उदास रहने लगी। निरंतर काम करते रहने की इच्छा फिर से बलवती होने लगी। तालाब ने 1 दिन फल्गु की उदासी का कारण समझा और बोला। तुम मुझसे आकर मिल जाओ, हम दोनों मिलकर साथ साथ काम करते रहेंगे। उदास फल को अब तालाब की ओर ही बढ़ने लगी। कुछ दूर तक तो वह खुशी खुशी चली। वह मन ही मन नए ढंग से काम करने की योजना बनाती रही, परंतु तालाब से थोड़ी दूर रह जाने पर ठिठक कर खड़ी हो गई। उसने देखा कि तालाब जो दूर से बड़ा सा लगता है वो तो बड़ा छोटा है। चारों ओर से उसका जल बंधा है। यही नहीं तालाब का पानी किनारों पर बड़ा गंदा हो रहा है। वहाँ खूब सी कीचड़ है, जिसमें कई शैवाल है। मैं इस से जाकर मिल जाउंगी तो मेरी भी यही स्थिति हो जाएगी। फल्गु सोचने लगी, वह रुआंसी हो आयी और मन ही मन कहने लगी, हाई मैंने अपनी विवेक बुद्धि से काम नहीं लिया। इस संकीर्ण मन वाले की बातों में फंसकर मैं यहाँ तक आ गई। अब भी समय क्या करूँ? लौट जाऊं वापस? तभी उसके कानों में हल्की स्वर में गाने की एक आवाज सुनाई दी। सोचकर ही चलो विचार कर ही चलो, गलत कदम मत उठाओ सोचकर चलो ज़िंदगी अपने लिए जीते हैं, सभी दूसरों को सुख नहीं देते हैं कभी जो करे कल्याण दे सबको हँसी छोड़कर वह मार्ग अपनी उच्चता का मत चलो। श्रेष्ठजन की संगति से श्रेष्ठ बनकर ही चलो सोचकर ही चलो विचार कर ही चलो। यह सुनकर फल्गु रोने रोने को हो आई। भरे हुए कंठ से बोली तुम कौन हो भाई कहाँ से बोल रहे हो, तुम सामने क्यों नहीं आते? तभी पास के पेड़ से एक सुंदर सा श्वेत कबूतर फुदक कर आ गया और हंसता हुआ बोला। मेरा नाम मयूख है, मुझे गंगा माँ ने भेजा है, तुम बहुत दिनों से उनके पास जाना बंद कर चुकी हो, वे कुछ दिन तो तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही पर फिर भी तुम नहीं पहुंची तो वो परेशान हो उठी। सोचने लगी कि तुम्हारे साथ ना जाने कौन सी दुर्घटना घट गई है? मुझसे उनकी उदासी देखी न गई। मैंने कहा मैं जाता हूँ तुम्हारा समाचार लेकर और आता हूँ। मैं बहुत देर से बहुत दूर से तुम्हारा पीछा कर रहा था पर तुमने कुछ ध्यान ही नहीं दिया। तुम्हे तो तालाब की ओर बढ़ने से ही फुर्सत न थी। तुम भी अब वैसे ही संकीर्ण बनने का विचार कर चुकी हो तो तुम से कुछ भी कहना सुनना तो बेकार है। हाई तुम्हारी दुर्बुद्धि गंगा जैसी महान विभूति का साथ छोड़कर इस नीच का साथ अच्छा लगा। अच्छा तो मैं चलता हूँ, गंगा माँ को सन्देश दे दूंगा जिससे कि तुम्हारी प्रतीक्षा में बेकार दुखी चिंतित ना होवे। यह सुनकर फल्गु के आंसू निकल पड़े। धीमे स्वर में तुरंत बोली भाई। बस बस अब और अधिक प्रताड़ना ना दो। मेरी आंखें खुल गई है। इस संकीर्ण मन वाले के साथ रहकर मेरे विचार भी वैसे ही बन गए थे। अब मैं विवेक पूर्वक विचार कर चुकी हूँ। इस के साथ रहकर मैं भी वैसे ही बन जाऊंगी। कांदली और संकीर्ण नहीं मैं ऐसा नहीं करूँगी। मैं तो गंगा का ही साथ दूंगी, महान कार्यों में सहयोग दूंगी। जब मैं बड़े काम कर सकती हूँ, बड़ों को सहयोग दे सकती हूँ तो तनिक से स्वार्थ भावना से बरकर छोटे छोटे कामों में ही क्यों अपना जीवन व्यर्थ कर दूँ या तो कोई भी कर सकता है। अपने आप को बड़े कामों में लगाने में ही बड़प्पन है। यह सुनकर प्रसन्नता से भर उठा। उसने झूमकर अपने पंख फड़फड़ाए और नाचते हुए बोला, अब किया तुमने सही ढंग से विचार, हमारे साथी जो कहते हैं, उसे हमें यही सच नहीं मान लेना चाहिए। अच्छी तरह से सोचना विचारना चाहिए। उनकी बात कितनी उचित है? कितनी अनुचित? तभी उनके अनुसार ये काम करना चाहिए। फल्गु चुप रही। माँ युग की बात ही सस्ती मयूख ने पंख फड़फड़ाए और आकाश में उड़ते हुए बोला मैं तो अब चलता हूँ और जल्दी ही जाकर गंगा माँ को तुम्हारा सन्देश देता हूँ, तुम जल्दी से आना। फल्गू ने वेग से अपनी लहरें गंगा की ओर बढ़ाना शुरू कर दिया। अब फिर वह कल कल छल छल करती खुशी से गीत गाती मुक्त मन से गंगा की ओर तेजी से बढ़ चलीं। गंगा ने उसे देखते ही आगे बढ़कर अपने से लिपटा लिया और बोली। बहन मुझे प्रसन्नता है कि तुम सही रास्ते पर आ गई हो। अपने लिए तो सभी जीते हैं पर जीवन उन्हीं का सार्थक है जो दूसरों का अधिक से अधिक कल्याण करते हैं, संकीर्ण मन वाले इन विचारों में बाधा देते हैं, दूसरों को भी अपने जैसा बनाना चाहते हैं, परंतु प्रलोभनों में न फंसना ही मानवता का और महानता का पहला चरण है। तुम ठीक कहती हो दीदी? फल्गु बोली और चल पड़ी गंगा के साथ मिलकर बड़े बड़े काम करने। दोनों जहाँ भी गईं वहाँ प्यासों को नया जीवन मिला, भूमि अधिक उपजाऊ बनी और खेत लहला उठे। जड़ चेतन सभी ने उनका स्वागत सम्मान किया, जय जयकार किया। छोटे भी जब बड़ों के साथ मिलकर दूसरों के कल्याण के काम में जुट जाते हैं तो उनकी शक्ति और योग्यताएं भी बढ़ जाती है और बड़प्पन के मार्ग पर चलते हुए महान और अमर हो जाते हैं। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है की हमें अपने विचारों को कभी संकीर्ण नहीं करना चाहिए। हमेशा बड़ा सोचना चाहिए तभी हम बड़प्पन के मार्ग पर आगे बढ़ सकते हैं। ओके बाइ?","सभी को नमस्कार, यह एक नदी और एक तालाब की एक अच्छी कहानी है। संकीर्ण सोच वाला तालाब बड़ी नदी को पवित्र गंगा का रास्ता छोड़ने के लिए कहता है। नदी को समझ नहीं आया कि उसने तालाब में विलीन होने का फैसला किया लेकिन कुछ समय बाद गंगा नदी नदी को संदेश भेजती है और नदी वापस पवित्र और विस्तृत गंगा की ओर लौट जाती है। पूरी कहानी सुनें और कहानी के नैतिक के बारे में जानें।" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपके लिए लेकर आई हूँ, उसका टाइटल है संकल्प। अभय अपने भाई बहनों में सबसे बड़ा था। उसके माता पिता उसे बड़ा इसने ही करते थे। उनकी इच्छा थी कि उनका बेटा योग्य बने गुणवान बने उसे निरंतर अच्छी बाते सिखाते रहते। अबे भी माता पिता का कहना मानता उनको प्रसन्न रखने के लिए अच्छे अच्छे काम करता, अच्छे गुणों को अपनाता। पर अभय के बहुत सारे अच्छे गुण भी उसके एक दुर्गुण से फीके पड़ जाते। बहादुर गुण था ज़रा ज़रा सी बात पर गुस्सा करना। अभय की माँ उसे बहुत समझती कि वह इतना क्रोध ना किया करे। अभय भी कई बार यह कह देता कि अब वह गुस्सा नहीं करेगा। पर समय आने पर वह अपनी बात भूल जाता और फिर अपना आपा खो बैठता। अभय के माता पिता बहुत से गुणों के कारण जहाँ अपने बेटे पर गर्व करते थे वहीं दूसरी ओर उसकी तुनकमिजाजी और गुस्से के कारण उन्हें कभी कभी दूसरो के सामने भी अपना सिर झुका लेना पड़ता था। कहा भी गया है कि क्रोधाद्भवति सम्मोहक संमोहात्स्मृतिविभ्रमः म स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धि नाशाद। अर्थात क्रोध से अत्यंत मूढ़ भाव उत्पन्न हो जाता है। मूड भाव से स्मृति में भ्रम हो जाता है और स्मृति में भ्रम हो जाने से बुद्धि अर्थात ज्ञान शक्ति का नाश हो जाता है और बुद्धि का नाश होने से मनुष्य अपनी स्थिति से गिर जाता है। एक बार अभय का जन्मदिन था। घर मेहमानों से खचाखच भरा था। अभय को खूब सारे उपहार दिए जा रहे थे। बच्चे गाना सुना रहे थे। बड़ा ही प्रसन्नता भरा वातावरण था। सहसाई किसी चीज़ के गिरने की ध्वनि हुई और इसके साथ ही सबका ध्यान अब एक थप्पड़ और एक बच्चे के ज़ोर ज़ोर से रोने की आवाज में आकर्षित कर लिया। बच्चा अब और ज़ोर से चीखे जा रहा था। उसके गाल पर अभय की उंगलियों के निशान उभर आए थे। मुँह से खून बह रहा था। बच्चे की माँ तुरंत वहाँ दौड़कर आई। अपने बेटे को उसने गोद में उठाया और अभय से बोली। बेटा ये छोटा बच्चन नादान है, मारने से क्या लाभ? फिर वह बच्चे को चुप कराने बाहर चली गई, जिससे वातावरण बोझिल ना बने। बच्चे के बहुत ज़ोर से लगी। बाहर से भी उसकी ज़ोर ज़ोर से लगातार चीखने और रोने की आवाजें आ रही थी। सभी मेहमान अभय को बड़ी तिरस्कार भरी दृष्टि से देख रहे थे। वे सोच रहे थे कि इतनी छोटी सी बात पर इतना ज़ोर का गुस्सा क्या आखिर उचित था? बात यह थी कि वह छोटा बच्चा चंचल बहुत था और सारे कमरे में दौड़ रहा था। कभी किसी के पास जाता तो कभी किसी के अभय के पास भी वह दौड़ दौड़ कर जा रहा था। इस बार दौड़कर जाने में वह उसके पास रखी उपहारों की मेज से टकरा गया था। अभय को उपहार में मिली शीशे की एक मछली सहसा ही नीचे गिर पड़ी और चूर चूर हो गई। यह देखकर अभय अपना आपा खो बैठा और पूरी शक्ति से उसने बच्चे के गाल पर तमाचा जड़ दिया था। मेहमानों ने मुँह से तो कुछ ना कहा था और उनके चेहरे पर अभय के इस काम के प्रति उपेक्षा और दरस कार साफ झलक रहा था। इसके बाद वातावरण बोझिल हो गया। अभय की माँ ग्लानि से भर उठी पर उन्होंने मेहमानों के सामने उससे कुछ न कहा। मेहमानों के चले जाने पर अभय की माँ ने उसे समझाते हुए कहा। बेटा इतना क्रोध न किया करो, तुम समझते नहीं आज तुम्हारे गुस्से के कारण मुझे और तुम्हारे पिताजी को कितना लज्जित होना पड़ा है। यह सुनते ही अभय तुनक कर बोला। और उस बच्चे ने जो इतना गलत काम किया था, उससे कुछ ना बोला गया। डेढ़ साल का नादान बच्चा था। क्या कहती है मैं उससे माँ बोली अभय तेज आवाज में बोला, तुम्हे तो बस हर समय, हर काम में मेरी ही गलती दिखाई देती है, कोई मेरा काम बिगाड़े या मैं नहीं सहन कर सकता, मैं उसे मारूंगा ही, मुझे कोई नहीं रोक सकता। इसके बाद अभय खाना बीच में ही छोड़ कर उड़ गया। माँ के बार बार मनाने और समझाने पर भी वह रूट कर लेता ही रहा और भूखा ही सो गया। इसके कुछ समय बाद की बात है। अभय के माता पिता को अचानक ही गांव जाना पड़ा। वहाँ अभय की दादी बहुत बीमार हो गयी थी। अभय को घर और छोटे भाई बहनों का उत्तर दायित्व सौंपकर माता पिता गांव चले गए। अभय कुशल तो था ही उसने बड़ी होशियारी से छोटे भाई बहनों को संभाल लिया। खाना बनाने से लेकर भाई बहनों को नहलाने, घर की साफ सफाई करना, सारा काम अभय कर लेता था। भाई बहनों का मन लगा रहे उन्हें माता पिता की अधिक यादन आए। इसके लिए वह उन्हें भांति भांति के खेल भी खिलाता था। 1 दिन खेलते हुए छोटा भाई अभय को चिढ़ाने लगा। अभय के बार बार मना करने पर भी वह नहीं माना। गुस्से में आकर उसने अपनी नुकीली पेन्सिल जिससे वो ड्रॉइंग बना रहा था भाई की और कस कर फेंक दी। पेन्सिल तेजी से आकर उसकी आंख में लगी। छोटा बच्चा दर्द से बिलबिला उठा। उसके मुँह से चीख निकल गई। अभय अभी उसे और डांटना चाह रहा था की उसकी दृष्टि बाईं आंख से टपकते हुए खून पर गयी। अब तो अभय डर गया। पापा सजाकर भाई को पुचकारने लगा। बड़ी मुश्किल से बहुत देर बाद वह चुप हुआ। अभय ने उसे अच्छी तरह धमका दिया कि माँ को इस विषय में उसने कुछ भी बताया तो उसकी खैर नहीं। दूसरे दिन प्रातःकाल माता पिता लौट आए। पिता तो खा पीकर ऑफिस चले गए। बाद में माँ का ध्यान छोटे भाई संजय की आंख की ओर गया। अरे क्या हुआ तेरी आंख में? उन्होंने पूछा? पास बैठा अवैध तुरंत बोल पड़ा। मो। पता नहीं क्यों इसकी आंख अपने आप ही सूझ गई है। अभय की आंख देख कर संजय की कुछ भी बोलने की हिम्मत नहीं हुई। संजय की आंख का दर्द और सूजन लगातार बढ़ते ही जा रहे थे। इसलिए माँ उसे लेकर डॉक्टर के पास गई। पूरी तरह आग को देखने जांचने के बाद डॉक्टर बोले। इसमें तो जरूर कुछ लगा है। क्या लगा है? पूरी बात बताइए किस से मैं ठीक से इलाज कर सकूँ? देखो बच्चे तुम्हारी आंख की पुतली में भी घाव हो चुका है। बस यूं समझ लो कि यदि तुमने अभी भी सच्ची बात नहीं बतायी तो तुम्हारी आंख फिर कभी ठीक नहीं होगी। फिर तुम्हें एक आंख से ही देखा करोगे। डॉक्टर ने सही बात बता दी तो संजय ने डरते हुए पूरी बात कह दी। ओह, तभी मैं सोच रहा था कि नुकीली वस्तु के चुभाए बिना इतना गहरा घाव आंख में हो ही नहीं सकता। संजय की माँ की ओर देखते हुए डॉक्टर बोला। डॉक्टर की बात सुनकर माँ तो परेशान ही उठी। अब मैं क्या करूँ? डॉ साहब या कैसे ठीक होगा? घबराकर वह कहने लगी। बच्चियों को लेकर तुरंत आप अलीगढ़ चली जाएगी और वहाँ के नेत्र चिकित्सालय में दिखाई दिए। वहीं इसका इलाज संभव है। डॉक्टर समझाने लगा उसने वहाँ के डॉक्टरों के नाम पत्र भी लिखकर दे दिया। दूसरे ही दिन संजय को लेकर माता पिता दोनों अलीगढ़ पहुँच गए। आंख देखकर डॉक्टर ने कहा और अपने आने में देर कर दी है फिर भी हम प्रयास करेंगे। पुतली में बहुत गहरे घाव हो गए। ऑपरेशन ही करना पड़ेगा। संजय को अस्पताल में भर्ती करा दिया गया। डेढ़ महीने वह वहाँ रहा। थोड़े थोड़े दिनों में उसकी आंख के तीन ऑपरेशन किए गए। आंख की रौशनी तो वापस आ गयी थी पर संजय को हमेशा के लिए चश्मा लगाना पड़ गया। अभय को तनिक भी उम्मीद न थी कि उसका क्रोध दुष्परिणाम इतना बड़ा सामने लेकर आएगा। भाई की इस्थिति के लिए वह स्वयं को जिम्मेदार समझ रहा था। वह सोच रहा था कि माता पिता उसे खूब डाटेंगे, डांटना भी चाहिए। कितनी बड़ी भूल की है उसने? वह मन ही मन कह रहा था। घर लौटने के बाद भी न तो संजय ने और न ही माता पिता ने अभय से कुछ भी कहाँ हाँ, माँ ने उससे बोलना जरूर कम कर दिया था। अभय को बड़ी आत्मग्लानी होती चश्मा लगाकर भी संजय को आंख में कुछ भेड़ आप ऐसा लगता था? अभय जब भी उसे देखता, मन ही मन यही सोचता ओम मेरे ही कारण मेरे सुन्दर भाई की आंख खराब हो गयी। मन ही मन वह बड़ा दुखी रहता। उसने संकल्प किया कि अब कभी भी गुस्सा नहीं करेगा। गुस्से में तोड़फोड़ और मारपीट नहीं करेगा। जब भी ऐसा घटना घटती है उसे गुस्सा आने को होता है तो वह तुरंत वहाँ से हट कर अकेले ही जा बैठता। अपने आप को वह ज़ोर ज़ोर से बोलकर समझा। तुम्हें गुस्सा नहीं करना है? गुस्से से बहुत हानि होती है। तुम्हें तो अच्छा लड़का बनना है। गुस्सा कम होने पर वह बाहर आकर फिर सब के साथ इस प्रकार हंसने बोलने लगता जैसे कुछ हुआ ही ना हो। इस प्रकार धीरे धीरे अभ्यास और लगन से अभय की गुस्सा करने की आदत छूट गई। जिसे आदत को हम सच्चे मन से बदलने की प्रतिज्ञा कर लेते हैं, वह निश्चित ही बदल जाती है। अभय घर बाहर सभी का इस नहीं पात्र बन गया है। सभी की दृष्टि में वह एक गुण मान और हँसमुख बालक है। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें कभी भी अति का क्रोध नहीं करना चाहिए, क्योंकि क्रोध करने से दूसरों के साथ अपना भी नुकसान ही होता है। ओके बाय।","सभी को नमस्कार, यह एक लड़के की नैतिक कहानी है। लड़का बहुत उदार और प्रतिभाशाली है लेकिन उसकी एक बुरी आदत है। वह छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा हो जाता है। उसे एक भी गलती बर्दाश्त नहीं होती है। अपनी बुरी आदत से उसने अपने ही भाई को चोट पहुँचाई और दोष से भर गया। पूरी कहानी सुनें और कहानी के नैतिक के बारे में जानें।" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी में आपको सुनाने जा रही हूँ, उसका टाइटल है मित्र का कर्तव्य। तोरा दो खरगोश को अन्य खरगोशों के साथ अमिताभ की माँ ने पालतू बना लिया था। राधु और अन्य तीन खरगोश पिंजरे में रहते रहते तंग आगये सभी को जंगल से पकड़कर लाया गया था। मैं यही सोचते रहते हैं कि किस प्रकार वापस जंगल को लौटे। एक बार राजू को मौका मिला और वह अमिताभ के घर से भाग निकला। पीछे फुलवारी में से होकर वह भागा और तेजी से दौड़ता ही चला गया। काफी देर तक दौड़ने के बाद जंगल में जाकर उसने सांस ली। उसे डर था कि मालिक के घर का कोई व्यक्ति कहीं उसे फिर ना पकड़ ले जाए। रादु लता के झुंडों के बीच बैठकर सुस्ता ही रहा था। तभी झाड़ियों में से मुन्नू खरगोश निकला। राजू को देखते ही मुन्नू खुशी से उछल पड़ा। बड़े दिनों से राजू जंगल में गायब था। कहो मित्र कहाँ चले गए थे? राजू के कंधे पर हाथ रखते हुए मुन्नू ने पूछा अपने बिछड़े हुए मित्र से मिल कर रहा तू भी बड़ा प्रसन्न हुआ। उसने अपनी सारी कथा सुनाई की किस प्रकार उसे बंदी बना लिया गया था और कैसे वह छूटकर आया है तो इसका मतलब यह हुआ कि तुम मूर्ख हो हैलो मैं अभी दौड़कर तुम्हारे लिए खाना लाता हूँ। मुन्नू बोला मुन्नू तेजी से वहाँ से चला और एक गाजर के खेत में घुस गया। उसने गाजर उखाड़ी, कुछ फल तोड़े। और राजू के पास ले गया। खा पीकर राजू को थोड़ी तसल्ली मिली मुन्नू बोला, चलो अब घर चलो। मैं अगर बाद में जाऊंगा, मैं पंजरे में अपने तीन दोस्तों को छोड़कर भागा हूँ। जब तक मैं उन्हें छुड़ा नहीं देता तब तक मुझे चैन कहाँ मित्र वही है जो दुख मुसीबत में साथ दे। अपने दोस्तों को आपत्ति में छोड़कर मैं सुख से कहूं तो मुझे दिखा रहे हैं रादू बोला और तुमने उन्हें छुड़ाने का क्या उपाय सोचा है? मुन्नू ने पूछा, राजू अपने सिर पर हाथ रखकर कुछ देर तक बैठा बैठा सोचता रहा। फिर से ऐसा वहाँ उछल पड़ा। एक बड़ा उपाय मेरी समझ में आया है। वह खुशी से बोला क्या मुन्नू पूछने लगा, रादु बोला। अपना जो मित्र है ना कुटकुट चूहा उसके पास चलते हैं, कूट कूट के दांत बड़े पहने हैं, रात में चुपचाप जाकर कुटकुट पिंजरे के तारों को काट देगा। इस प्रकार तीनों बंदी खरगोश बाहर निकल आएँगे। मुन्नू को भी रादू का यह उपाय पसंद आया। दोनों तुरंत कुटकुट चूहे के घर गए। कुटकुट को उन्होंने सारी बातें बताई। अरे, मैं अपने मित्रों की कुछ सहायता कर पाऊँ, यह मेरा सौभाग्य होगा। कुटकुट अपनी मूंछ और पूंछ हिलाता हुआ बोला और तुरंत चलने के लिए तैयार हो गया के सदस्य सो जाएंगे तब तुम्हें एक काम करने में सुविधा होगी। रादू ने समझाया। रात में अचानक बहुत तेज पानी पड़ने लगा। मुन्नू बोला, आप कैसे चलेंगे? कुटकुट भैया कुटकुट बोला, एक बार जीस काम को करने की सोच लेते है, उसे कठिनाइयों में भी पूरा किया करते है। संकल्प दृढ़ रहना चाहिये, फिर बाहरी कठिनाइयां हमारा रास्ता नहीं रोक सकती। हम आज ही अपने मित्रों को मुक्त कराएंगे। पानी और आंधी में भी कुटकुट, जुआ, रादू और मुन्नू खरगोश निकल पड़े पानी से जैसे तैसे बचाव करते हुए अमिताभ के घर पहुंचे। आ गया, आ गिरा दो खरगोश चलकर रास्ता दिखा रहा था। घर की नाली में होकर तीनों घुसे। रादु उस कमरे में उन्हें ले गया जहाँ तीनों खरगोश पिंजरे में बंद थे। कमरे में घर का कोई भी सदस्य नहीं था, इसलिए कुटकुट दुए ने बड़े आराम से अपना काम प्रारंभ कर दिया। पिंजरे में बंद तीनों खरगोश रादू और मुन्नू को देखकर उछल पड़े, भेरू अभी थोड़ी सी देर में तुम सब कैसे छूट जाओगे? रादु बोला रादू मुन्नू और कुटकुट जुआ तीनों से मिलकर पिंजड़े को काटना प्रारंभ कर दिया। तार पतले पतले थे पर थे बड़े बड़े इन तीनों के दांत दुखने लगे। थोड़ी सी देर की बात है, बस ये अभी काटा जाता है। ऐसा कहकर रादू खरगोश सभी का उत्साह बढ़ा रहा था। हमने जो काम सोचा है उसे हर हर पे पूरा करके ही दम लेंगे। खुद को छुआ कह रहा था। लगन और परिश्रम से कौन सा काम नहीं होता? थोड़ी सी देर में उन्होंने पिंजरे के कुछ तार काट डाले और कुछ निर्णय कर दिए। पिंजरे में बैठे तीनों खरगोश तेजी से बाहर निकल आये। बाहर आकर वे मुसीबत में काम आने वाले इन तीनों साथियों से गले मिले। बार बार उन्हें धन्यवाद दिया। एक खरगोश बोला मित्रों धन्य तुम तीनों का साहस जो इतनी आंधी पानी में भी तुम निकल पड़े। तीनों खरगोश रादू से कहने लगे, राजू भैया तुम हमारे सच्चे मित्र हों और सच्चे हितैषी हो। सच्चा मित्र अपने मित्र का दुख देख नहीं सकता। तुम्हारे परिश्रम और योजना से ही आज हम कहते से छूट पाए हैं मुन्नू खरगोश बोला, दादू या इसकी विशेषता है कि मुसीबत में पड़ने पर भी यह धैर्य से काम लेता है। आपत्ति पड़ने पर भी विवेक बुद्धि नहीं होता। जो दुख में भी नहीं घबराता से काम लेता है, उसका कौन सा काम भला नहीं होगा? हमें राजू भैया की बात थी साहसी और परोपकारी बनना चाहिए। तीनों खरगोश खोलें। चलो अब घर चलते हैं आज तुम सब की दावत मेरे घर पर होगी। तुम्हारी भाभी प्रतीक्षा कर रही है कुटकुटी हुआ ऐसा बोला सब खुशी खुशी कुटकुट जुए के घर की ओर चल पड़े। गैस से मुक्त होने पर तीनों खरगोश खुशी से दौड़ते ही जा रहे थे। कुटकुट चूहा बोला जो सुख स्वतंत्रता में है वह परतंत्रता में कहा जंगल में भूखे रहकर भी कठिनाईयां सहकर भी हम प्रसन्न रहते हैं। परिणय में भरपूर खाना मिलने पर भी मन दुखी रहता है। सच है स्वतंत्रता ही सच्चा सुख है। सभी ने कुटकुट चूहे के समर्थन में अपना सिर हिलाया। सभी कुटकुट चूहे का घर आ गया और सभी दावत खाने के लिए उसमें घुस पड़े। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें हमेशा धैर्य से काम लेना चाहिए क्योंकि बुद्धि और विवेक बड़ी बड़ी विपत्तियों को भी टाल देता है। ओके बाइ?",यह एक छोटे से खरगोश की कहानी है जो अपने दोस्तों से बच निकला। इस तरह के एक छोटे से जीव ने बेहतरीन तरीके से अपने दोस्तों की जान बचाई। कहानी सुनें और नैतिकता को जानें। "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपके लिए लेकर आई हूँ, उसका टाइटल है भाइयों का। इस स्नेह अभयारण्य में अनेक जीव जंतु रहा करते थे। मुनमुन और चुनमुन खरगोश भी उन्हीं में से थे। वे दोनों सगे भाई थे। दोनों ही एक दूसरे को बहुत प्यार करते थे पर एक बार कुछ जानवरों ने दोनों को भड़का दिया। ये दोनों आपस में लड़ पड़े और अलग अलग रहने लगे। उनकी लड़ाई देखकर कुछ दुष्ट जानवरों को बड़ा अच्छा लगा। वे मुनमुन से चुनमुन की बुराइ करते। झूठी झूठी बातें एक दूसरे के विषय में कहते पर चुनमुन और मुनमुन सदा आँखें बंद करके दूसरों की बातों पर विश्वास कर लेने वाले मूर्ख भी ना थे। अब वे सच्चाई को जानने लगे थे और एक दूसरे को समझकर चलने की कोशिश करने लगे थे। कुछ ही दिनों में दोनों ने यह बात समझ ली कि दूसरों के बहकावे में आकर उन्होंने गलत किया है। अब दोनों को बड़ा ही पछतावा होता कि हाइ ना जाने किस को घड़ी में दूसरों की बातों में आकर उन्होंने अपना घर बिगाड़ दिया। गलती करना उतना बुरा नहीं जितना की गलती को समझ कर भी उसे सुधारने की कोशिश ना करना। दोनों भाई सोचने लगे की गलती को कैसे दूर किया जाए। जहाँ चाह होती है वहाँ राह निकल ही आती है। जल्दी ही उन्हें रास्ता मिल गया। मुनमुन खरगोश कई दिनों से देख रहा था कि चुनमुन दुबला होता जा रहा है। बेचारा छोटा भाई पता नहीं कुछ ठीक से ढूंढकर खा भी पाता है या नहीं? मैंने उसे अलग करके बहुत बुरा किया। मुनमुन ने सोचा, उधर चुनमुन भी कई दिनों से देख रहा था की बड़े भैया बड़े ही उदास और थके हुए रहते हैं। उसने मन ही मन सोचा की भैया पर बहुत अधिक काम आ गया है। पहले तो घर का काम मैं कर लिया करता था और भैया खाना ढूंढकर लाते थे। अब वे बाहर का भी काम करते हैं और घर का भी थकेंगे नहीं तो क्या होगा? दुबले नहीं होंगे तो क्या होगा? धिक्कार है मुझ पर जो दूसरों के कहने में आकर इतना स्नेह करने वाले शुभचिंतक भाई को छोड़ दिया अरे वे बड़े हैं, गुस्से में कुछ कह दिया तो क्या हो गया, मैंने बुरा क्यों मान लिया? मैं उनके पैरों में गिर जाता तो क्या वो मुझे घर से निकाल देते? बस फिर क्या था, दूसरे ही दिन चुनमुन सुबह से ही यह देखने लगा कि भैया कब काम पड़ जाए। मुनमुन के जाते ही वह तुरन्त उसके घर में घुस गया। सारा सामान इधर उधर बिखरा पड़ा था। खाने पीने की चीजें यूं ही पड़ी थी। बहुत दिनों से किसी ने उनसे हाथ भी ना लगाया था। पता नहीं भैया ठीक से खाते पीते भी हैं या नहीं? जुम्मन मन ही मन सोचता रहा। फिर वह सफाई के काम में जुट गया। कुछ ही समय में घर का कोना कोना चमकने लगा। मन लगाकर जो काम किया जाता है इसका प्रभाव ही निराला होता है। अपने घर जाकर चुनमुन ने दो चार गाजरे खाई और ऊपर से पानी पी लिया। खाने के लिए एक छोटा सा गाजर का ढेर चुनमुन के पास था, जो अलग होते समय भाई ने उसे दिया था। बहुत भूख लगने पर चुनमुन उसी में से थोड़ी सी गाजर निकालकर खा लिया करता था। अकेले अकेले उसकी ना तो कुछ खाने की इच्छा होती थी और ना ही उसे भूख ठीक से लगती थी। सूना सूना घर भी काटने को दौड़ता था। यही कारण था कि वह गाजरे अभी तक पड़ी हुई थी। उधर, उस दिन मुनमुन अपने घर से निकलकर सबसे पहले चुनमुन के यहाँ गया था। जब उसे यह विश्वास हो गया कि घर में कोई नहीं है तो वह चुपके से अंदर घुस गया। उसकी निगाह गाजर के ढेर पर पड़ी। ओह देखो तो छोटा कुछ भी नहीं खाता, सारी गाजरे ज्यों की त्यों पड़ी है मुनमुन बड़बड़ाया फिर उसने पोटली खोलकर साथ लाई हुई गाजरे उस ढेर में मिला दी। रास्ते भर मुनमुन सोचता गया कि प्यारे भाई को उसने गुस्से में भर कर अलग कर दिया। यह बहुत ही गलत हुआ कैसे? अब उसे वह वापस बुलाए जिसे हम सच्चे हृदय से स्नेह करते हैं, उसे दुखी नहीं देख सकते। उसके सुख और संतोष के लिए हम हरसंभव उपाय अपनाते हैं। दिनभर का थका हरा मुनमुन शाम को घर पहुंचा। घर में घुसते ही वह चौंक पड़ा। सारा घर साफ सुथरा पड़ा था और झमाझम चमक रहा था। सहसा ही उसे चुनमुन की याद आ गई। मुनमुन की आँखों में आंसू भर आये। जरूर वही आया होगा, नहीं तो किसे पड़ी है? यह सब काम करने की क्यों करने लगा यह हम मन में मुनमुन ने सोचा थका हुआ मुनमुन बिना कुछ खाये पिए ही लेट गया। आज उसे चुनमुन की बहुत याद आ रही थी। सहसा ही उसे वह दिन याद आ गए जब चुनमुन और वह मिलकर रहते थे, हंसते बतियाते थे। मुनमुन के बाहर से लौटकर आते ही चुनमुन खुशी से भर उठता था। वह तुरंत दौड़कर खाने पीने की चीजें लाता था। बड़े आग्रह के साथ भाई को खिलाता था। फिर चुनमुन बड़े भाई के कभी पैर दबाता तो कभी सिर सहलाता। दोनों भाई मौज मज़े में रहते थे। उनकी यही खुशी तो पड़ोसियों से देखी नहीं गयी थी और उनमें फूट डलवा दी थी। यही सोचते सोचते मुनमुन को नींद आ गई। दूसरे दिन जब मुनमुन की आंख खुली तो सूरज काफी चढ़ चुका था। वहाँ आंखें मलता हुआ उठ बैठा। फिर वह जल्दी से तैयार होकर बाहर जाने के लिए निकल पड़ा। आज वह चुनमुन को अच्छी लगने वाली ढेर सारी चीजें जल्दी उसके घर पहुंचाना चाहता था। मुनमुन जब घर से बाहर दूर निकल गया तो उसे सहसा ही याद आया की आज तो वह टोकरी लाना ही भूल गया है। ढेर सारा सामान फिर चुनमुन के पास कैसे पहुंचाया जा सकता है? तुरंत वह वापस घर की ओर चल पड़ा। द्वार पर जाकर मुनमुन ठिठक गया। दरवाजा खुला पड़ा था। मेरी अनुपस्थिति में यह कौन घुस आया? कहीं चुनमुन ही तो नहीं है? ऐसा सोचकर मुनमुन तेजी से अंदर घुसा। उसने देखा कि चुनमुन उसकी और पीठ की ये तेज़ी से सफाई में जुटा है। मुनमुन ने पीछे से जाकर उसे कसकर पकड़ लिया। सहसा ही चुनमुन चौंक पड़ा। उसने हड़बड़ाहट में गर्दन घुमाई तो देखा कि सामने बड़े भैया खड़े संकोच से पल भर को चुनमुन की आंखें झुक गई। फिर वहाँ मुनमुन के गले से लिपटते हुए बोला। द। मुझे माफ़ कर दो, अब मैं कभी गलती नहीं करूँगा, तुम्हारी बात का बुरा नहीं मानूंगा। मुनमुन प्यार से उसके सिर पर हाथ फिराते हुए बोला, छोटे अब तू कही नहीं जायेगा हम तुम सदैव एक साथ ही रहेंगे। दूसरों के बैग काव्य में आकर गुस्से में हम दोनों ने ही गलती की थी। आओ अपनी गलती सुधार ले। उस दिन बहुत दिनों बाद दोनों भाइयों ने भरपेट खाना खाया। घंटों तक वे एक दूसरे को अपनी अपनी बाते बताते रहे। मुनमुन चुनमुन का प्रेम देखकर जंगल के कुछ जानवरों को बड़ा बुरा लगा। उन्होंने फिर से उनमें फूट डलवाने की कोशिश की। पर इस बार उन्हें निराश ही होना पड़ा। चेता लोमड़ी, कालू सियार और कक्कू भेड़िया जब भी मोटे, ताजे, चुनमुन को देखते हैं तो होंठो पर जीप फिर आकर ही रह जाते हैं। भीख ही तो है। संगठन से ही सुरक्षा और बल मिलता है। अपने शुभचिंतकों से आत्मीय जनों से लड़ झगड़कर रहने से तो दुर्जनों को लाभ उठाने का अवसर मिल जाता है और हमारी परेशानियां ही बढ़ती है। तो बच्चो इस कहानी से यही सीख हमें लेनी चाहिए कि हमें कभी भी अपने भाइयों से अपने परिजनों से लड़ाई नहीं करनी चाहिए अन्यथा इसका लाभ दूसरे लोग उठा लेते हैं और हमें परेशान करते है। ओके बाइ?",यह दो छोटे खरगोशों की नैतिक कहानी है। खरगोश 🐰भाई आपस में बहुत प्यार करते थे। लेकिन उनके पड़ोसियों को यह बर्दाश्त नहीं हुआ। उन्होंने उनके बीच गलतफहमी पैदा की। कुछ देर बाद खरगोशों को अहसास हुआ कि वे गलत कर रहे हैं। पूरी कहानी सुनें और कहानी के नैतिक के बारे में जानें। "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपके लिए लेकर आयी हूँ, उसका टाइटल है अच्छी सेहत। चन्दो चुहिया का एक ही बच्चा था। वह उसे प्यार से गुल्लू कहकर पुकारतीं थी। इकलौता होने के कारण चंदो उसको कुछ ज्यादा ही प्यार करती थी। यह भी कहना अनुचित न होगा कि उसने प्यार प्यार में गुल्लू को बिगाड़ दिया था। वह गुल्लू को किसी काम से हाथ न लगाने देती, सारे काम खुद ही भाग भाग कर करती, भले ही थक थक कर चूर हो जाए। वह गुल्लू को खूब ठूस ठूसकर खाना खिलाती। खुद कई बार भूखी रह जाती। वह उसे घर से बाहर ना निकलने देती। उसके बाहर जाने पर उसे लगातार यही डर बना रहता कि कई बार रास्ते में पिछड़ न जाए। कहीं **** मौसी उसे पकड़ न ले चंद ओके, इस अंधे दुलार का फल यह हुआ कि गुल्लू कामचोर, पेटू और डरपोक बन गया। बचपन में जो आदतें पड़ जाती है, वे बड़े होने पर विकसित होती है। इसलिए बुद्धिमान माता पिता बचपन से ही अपने बच्चों को अच्छी बाते सिखाते हैं। उनकी गलतियों को बचपना कहकर बढ़ावा नहीं देते चंदो अब गुल्लू को यदि कुछ सिखाने की कोशिश भी करती तो वह कानों पर उतार देता। कुछ भी सीखने का करने का उसका मन ना करता, उसे तो बस दो ही काम अच्छे लगते खाना और पड़े रहना। गुल्लू दिन पर दिन मोटा होता जा रहा था। पड़ोसी बच्चे उसे मोटूराम कहकर चिढ़ाते। चंदू को या बहुत बुरा लगता, वह सोचती हाई ये मेरे लाल को नजर लगा देंगे, इसलिए वह अपने पड़ोसियों से कहती। बहिन मेरा लाल गुल्लू तो कुछ खाता पीता ही नहीं। जो भी लाती हूँ इधर उधर पड़ा रहता है। पड़ोसी ने उसके सामने तो सहानुभूति दिखाती और बाद में हस्ती मजाक बनाती और आपस में कहती हौ में बेचारा गुल्लू तीन वर नहीं खाता पर फिर भी मोटा होता जाता है। 1 दिन चंदो, गुल्लू और पड़ोस के कुछ बच्चों के साथ किसी दावत में गई वहाँ सभी ने छककर खाना खाया और चटकारे बढ़ते हुए घर वापस लौटे। रास्ते में पूसी मौसी से भेंट हो गई। वहाँ उनके आने की घात लगाकर बैठी थी। **** को देखकर सारे बच्चे झट से भाग छूटे। पर गुल्लू कोशिश करके भी तेजी से भागना पाया। चंदू उससे बार बार भागने के लिए कह रही थी। पर थोड़ा सा भागने के बाद ही उसकी सांस फूल गई। आखिर चन्दो ने उसे धक्का देकर नाली में गिरा दिया, तब कहीं जाकर वह आप उसी के पंजे से बचा। घर जाकर चंदू ने गुल्लू को खूब डांटा। वह कह रही थी। मैं तुम्हारे पीछे आखिर कब तक लगी रहूंगी? तुम और कुछ चाहो ये सीखो या न सीखो और अपना बचाव करना तो सीख लो नहीं तो किसी दिन जान से हाथ धोना पड़ेगा। माँ ने आज तक कभी गुल्लू को नहीं डाटा था वह रुआंसा हो गया और बोला माँ मुझसे भागा नहीं जा रहा था, मैं करूँ भी तो क्या ज़रा सा दौड़ता हूँ, चलता हूँ तो मेरी सांस फूलने लगती है, ज़रा सा काम करता हूँ तो थक जाता हूँ। गुल्लू की बातें सुर कत चंदो चिंता से बरोटी आ बेटे ये तो कमजोरी के लक्षण हैं कल ही तुम्हें दादा को दिखाऊंगी वह बोली। नन को पड़ोस का बुड्ढा छुआ था। वह बड़ा अनुभवी था। बीमार होने पर सभी चूहे उसी से सलाह लेते थे और सवस्थ हो जाते थे। दूसरे दिन ननकू दादा ने आकर गुल्लू की अच्छी तरह जांच की। उसे कोई बिमारी नहीं थी, जगह जगह उसके शरीर पर चर्बी लटक पड़ी थी। उसी के कारण चलने फिरने में परेशानी होती थी। नन को पूछने लगा बेटे तुम क्या क्या काम करते हो? जवाब दिया चन्दो ने बोली क्या बताऊँ दादा जी ज़रा सा काम करता है तो हाँ आपने लगता है आप इसलिए मैं इससे कुछ काम नहीं करती। ननकू बोला, बस यही तुम्हारी गलती है, तुम्हारा बेटा किसी रोग का शिकार नहीं हैं। अधिक खाने का, बदहजमी का, अपच और आ लत का शिकार है। मैं समझी नहीं। दादाजी चंदू कहने लगी, ननकू उसे समझाने लगा, देखो अधिक कहने से खाकर पड़े रहने से शरीर बीमारियों का घर बन जाता है। अच्छे स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है कि अधिक न खाया जाए, सारे दिन न खाया जाए और श्रम करके खाये हुए को पचा ए। जो खूब श्रम करता है उसका खाना अच्छी तरह पचता है जिससे शुद्ध खून बनता है और शरीर बलिष्ठ होता है। बात तो आप ठीक कहते हैं, चंदू बोली। तुमने अपने बेटे में खूब खाने की आदतें डाल दी है और काम करने की नहीं। इसलिए उसके शरीर पर चर्बी बढ़ती जा रही है। चर्बी का बढ़ना स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं खराब ही है। इससे अनेक बीमारियां पनपने लगती है। तुम इसका जल्दी ही इलाज करो। ननकू कह रहा था। क्या इलाज करूँ? दादाजी रुआंसी होकर चंदावली। ननकू ने समझाया, समय से खाना दो बार बार और स्वाद स्वाद में अधिक खाने की आदत छुड़ा दो। गुल्लू को काम में मन लगाकर काम करने के लिए बोलो। सुबह शाम इसे दो मील घूमाने ले जाओ। कसरत कर आओ। कुछ ही दिन में इसकी चर्बी घट जाएगी। चंदू उन्हें धन्यवाद देकर ननकू को विदा किया। फिर वहाँ गुल्लू को सुधारने में जुट गई। उसकी काम चोरी की अधिक खाने की आदत छुड़ाने में उसे बड़ा श्रम करना पड़ा। मन को कठोर बनाना पड़ा। पर अंत में चंदू अपने काम में सफल ही रही। छे महीने की लगातार कोशिश से गुल्लू दूसरे बच्चों की तरह फुर्तीला और काम करने वाला बन गया। चंदो अब कभी गुल्लू से अधिक खाने का भी आग्रह नहीं करती। वह सब समझ गयी है कि कम खाने से कोई हानि नहीं होती। ठूस ठूसकर खाने से ही बीमारियां शरीर में घर करती है। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि यदि अच्छा स्वास्थ्य चाहिए। तो हमें मेहनत करने की आदत डालनी पड़ेगी और खाना जरूरत के हिसाब से ही खाना चाहिए, तभी हम अच्छे स्वास्थ्य का लाभ उठा पाएंगे। ओके बाइ?","सभी को नमस्कार, यह एक छोटे से चूहे 🐀 की नैतिक कहानी है। मां अपने बच्चों से बहुत प्यार करती है। वह हमेशा उसे अधिक खाना खिलाती है। अधिक खाने से चूहे के स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ता है। वह आलसी और मोटा हो गया। वह कभी काम नहीं करता। जब उसकी मां को उसकी बीमारी का कारण समझ में आया तो उसने छोटे चूहे का सही तरीके से इलाज किया। पूरी कहानी सुनें और नैतिकता के बारे में जानें।" "हैलो बच्चों, आज मैं आपको जो कहानी सुनाने जा रही हूँ उसका टाइटल है चंगु मंगू चले घूमने चुनमुन चूहे के दो छोटे छोटे बच्चे थे यो उन्होंने अभी अभी चलना सीखा ही था पर वित्त है बड़े शरारती सारे दिन कुछ ना कुछ उछल कूद मचाते ही रहते थे, पल भर भी बेचैन से नहीं बैठ सकते थे। चुनमुन चूहा उनकी शरारतों से तंग आ गया था। कभी भी एक दूसरे से ही लड़ने लगते थे। कभी बिल से बाहर जाने लगते हैं। चुनमुन जुआ उन्हें समझाता रहता था। चुनमुन जुहा बार बार उन्हें बताता कि तुम दोनों अभी बहुत छोटे हो। बिल से बाहर ना जाया करो। बड़ी मुश्किल से वहाँ उन्हें घर में रोके रखता। 1 दिन की बात है। चुनमुन जुबा खाना लेने बाहर चला गया उसका बड़ा बेटा चंगु अपने छोटे भाई से बोला, मंगू, आज तो घर में बैठे बैठे बड़ी घुटन सी लग रही है। चलो बाहर घूमने चले मंगू बोला भैया पिताजी को बाहर जाने के लिए मना करते हैं, वह वापस लौटकर आएँगे और हम घर पे नहीं होंगे तो नहीं होंगे और हम जोरासी देर को ही तो जाएंगे। पिताजी के लौटने से पहले ही हम घर आ जाएंगे चंगु बोला, मंगू भी चंगू की बातों में आ गया। अब वे दोनों तुरंत ही घूमने के लिए निकल पड़े। बिल से बाहर आकर उन्हें बहुत अच्छा लगा। वे चिन्मय के सारे घर में घूमे। खाने की मेज पर दोनों भाई चढ़ गए। वहीं चंगु मंगू ने छककर दावत उड़ाई। तरह तरह की मिठाईयां और फल खाएं। उन्होंने इतना आदत खा लिया कि उनसे चला भी नहीं जा रहा था। तभी जिनमें और उसकी माँ खाना खाने के लिए आ गए, विवश होकर चंगु मंगू को मेघ से उतरना ही पड़ा। मेज से उतरकर दोनों धीरे धीरे अपने बिल की ओर बढ़ने लगे, पर रास्ते में उन्होंने देखा कि बिल्ली क्योंकि चिनमय की पालतू थी, वो उनकी तरफ आ रही है। वे दोनों सोचने लगे है की आज तो हमारी खैर नहीं। आज तो निश्चित रूप से हम मरे मंगू अपनी मूंछों को हिलाता हुआ चंगुल से कहने लगा, बैयाँ आज तुम्हारी बातों को मानने का ये फल मिला है ना तुम कहते ना हम बाहर आते, पिताजी की बात मान लेते तो आज हमें मौत के मुँह में न जाना पड़ता। बड़ों की बात न मानने का ये फल होता है। चंगु बोला हाँ, यह बात तो मैं भी समझ पा रहा हूँ की हमें पिताजी की आगया वो पालन करना चाहिए था। परंतु इस समय धैर्य रखो, ये बिल्ली सामने खड़ी है और तुम मुझ से धैर्य रखने की बात करते हो। मंगूजी जाते हुए बोला, भाई अधीरता से कोई काम नहीं चलेगा। धैर्यपूर्वक स्थिति पर विचार करके ही संकट दूर होगा। जब वो सोचता हुआ बोला। पर मेरी बुद्धि। काम नहीं कर रही। सिर्फ गुजरते हुए मंगू कहने लगा, जंग उन्हें समझाया, भाई विपत्ति में जो सोच विचार कर कार्य करता है, वह निश्चित रूप से विपत्ति को दूर भगा देता है। इसलिए विचारों को संयमित रखो। फिर चाह उन्हें मांगू को एक उपाय बताया। वह बोला, अब हम साथ साथ ही चलेंगें तुम दाहिनी तरफ से बिल में क्योर जाना और मैं बाईं तरफ से जाऊंगा। इस प्रकार बिल्ली का ध्यान विभाजित हो जाएगा। उसे चकमा देते हुए हम बिल में घुल जाएंगे। यदि मरेगा तो भी एक ही भाई मरेगा क्योंकि इस प्रकार बिल्ली एक कोई झपट्टा मार के खा पाएगी। एक भाई तो बिल में सुरक्षित पहुँच ही जाएगा और पिताजी को सारी बातें बता देगा। ये बात मांगू को भी पसंद आ गयी। आप दोनों तेजी से। दोनों ओर से बिल्ली की तरफ बढ़े। बिल्ली ने मांगों पर झपट्टा मारा तभी चंगु पीछे से बिल्ली पर फुदक पड़ा। बिल्ली चौंक पड़ी, उसका पंजा ढीला पड़ गया। इतने में पंजे में फंसा मंगू दौड़कर बिल में घुस गया। बिल्ली ने जितनी देर में पीछे मुड़कर देखा उतनी देर में चंगु भी बिल में घुस चुका था। इस प्रकार से जैसे तैसे चंगु मंगू की जान बची। मंगू के शरीर पर कई जगह कुछ खरोंचें भी आ गई थी। चंगू ने उन खरोंचों पर दवा लगाई। अब दोनों भाइयों ने अपने कान पकड़े और निश्चय किया की जब तक वे बड़े नहीं हो जाएंगे तब तक पिताजी की आज्ञा के बगैर घर से बाहर नहीं निकलेंगे। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है की हमे अपने बड़ों की बात को मानना चाहिए और जब तक इस लायक हम ना हो जाए कि अपना ध्यान खुद रख सके, घर से अकेले नहीं निकलना चाहिए। ओके बाय।","सभी को नमस्कार, यह दो शरारती चूहों की कहानी है। मैं सभी बच्चों को सोने के समय की कहानियां नैतिकता के साथ सुना रहा हूं। मेरी कहानियाँ अभिनव और प्रेरणादायक हैं। अपने बच्चों के साथ मेरी कहानियाँ सुनें। यह निश्चित रूप से आपके बच्चे के व्यक्तित्व के निर्माण में मदद करेगा।" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपके लिए लेकर आई हूँ, उसका टाइटल है घोंसलें की कहानी। उमा एक छोटी सी बच्ची है। उमा के घर के पीछे एक बबूल का पेड़ था। उमा अपने कमरे की खिड़की से उसे देखती रहती थी। 1 दिन उसने देखा कि एक चिड़िया बार बार आ जा रही है। वह अपनी चोंच में छोटे बड़े तीन के लाती, उन्हें पेड़ पर रखती और फिर दूसरे दिन के लाने चली जाती। वो माँ ने देखा कि एक बड़ा सुन्दर सा घोंसला बनना भी शुरू हो गया है। उसने अपनी माँ से पूछा माँ ये चिड़िया कैसा सुन्दर घोंसला बना रही है? पर हमारे घर में जो चिड़िया घोंसला बनाती है वो तो इतना अच्छा नहीं होता। ऐसा क्यों है? इस पर माँ ने कहा बेटी पेड़ पर तुम जो घोंसला देख रही हो वो बयां नाम की चिड़िया का है। बया घोंसला बनाने के लिए बड़ी प्रसिद्ध है। इसके घोंसलें बड़े ही सुंदर होते हैं। इसका कारण यह है कि यह जी जान से अपने काम में जुटी रहती है। यह अपने काम को पूरी मेहनत और लगन के साथ करती है। इससे इसका काम अच्छा होता है। यह कहकर माँ तो रसोई में खाना बनाने चली गई। अब उमा को शरारत सूझी। उसने खिड़की में से एक डंडा डाला, डंडे से धीरे धीरे हिलाकर घोंसला गिरा दिया। इतने में दाना चूककर चिड़िया वापस आयी। उसने देखा की घोषणा टूटा पड़ा है, कुछ दिन के बिखर गए हैं और कुछ हवा में उड़ गए। अपनी मेहनत यो बेकार। होती देख बया को बड़ा दुख हुआ। वह थोड़ी देर तक चींचीं करके रोती रही। फिर सोचा की रोने से क्या होता है? रोते रहने से तो कोई काम पूरा नहीं हो सकता। इससे अच्छा तो यही है की मैं दुबारा से ही घोंसला बनाना शुरू करूँ। अतएव वह फिर से अपने काम में जुट गई। दूसरे दिन बयां जब खाना खाने गई तो उमा ने फिर उसका घोंसला गिरा डाला। उसने यह ना सोचा कि इससे उसे कितनी परेशानी और दुख होगा। 2 दिन तक यह होता रहा बयां घोंसला बनाती और उसके ज़रा हटने पर उमा उसे तो डालती। 1 दिन जब उमा घोंसला गिरा रही थी तो उसकी माँ ने उसे देख लिया। उन्होंने कहा, उमा तुम ये क्या कर रही हो? किसी को सताते नहीं है, किसी के काम को बिगाड़ते नहीं है। बया चिड़िया है तो क्या तुम्हारे इस काम से उसे बड़ी कठिनाई होती है? तुम्हे उसकी सहायता करनी चाहिए? उसे तंग नहीं करना चाहिए। मनुष्य हो या पशु, पक्षी किसी को परेशान नहीं करते। परमा की बात का भी उमा पर कोई असर नहीं हुआ। जैसे ही वह कमरे से बाहर जाती तो वह डंडा उठाकर घोंसला गिरने लगती। पर बया थी कि बार बार घोंसला बनाई जा रही थी। बस सोचती थी कभी तो उसकी मेहनत सफल होगी। माँ ने देखा कि उमा गलत काम करती जा रही है, वह उनकी बात भी नहीं मानती। उन्होंने एक उपाय सोचा। माँ ने उमा के सामने उसकी गुड़िया तोड़ दी। उस गुड़िया को माँ बहुत प्यार करती थी। प्यारी गुड़िया के दो टुकड़े देखकर वह बडी दुखी हुई। वह फूट फूटकर रोने लगी। तब माँ ने कहा मैं तुम्हारी गुड़िया जरूर ज़ोर दूंगी। पर तब जब कि तुम भी बया का घोंसला बनाकर आओगी, अब तक तो उसका पूरा घोंसला बन जाता तुमने उसकी मेहनत बेकार कर दी। माँ की बात सुनकर उमा दौड़कर कमरे से निकली। उसने अपने घर के बगीचे से तिनके और टूटी घास भी नी। वह पीछे से निकलकर जल्दी से पेड़ के पास पहुंची। वह सोच रही थी की मैं अभी मिनटों में घोंसला बनाकर तैयार किए देती हूँ। वह डाल पर तीन की रखती घास से उन्हें लपेटती जाती पर तिनके थे कि डाल पर टिकते ही ना थे। वह बार बार कोशिश करती और सब बेकार हो जाता। अंत में वहाँ खींचकर पेड़ के नीचे बैठकर रोने लगी। जिसे वह छोटा सा काम समझ रही थी, वह तो बड़ा कठिन काम निकला। थोड़ी देर बाद उसे लगा कि उसके सिर पर किसी ने हाथ फिराया है। उमा ने पीछे मुड़कर देखा तो माँ सामने खड़ी थी। वे कह रही थी कोई काम बिगाड़ ना तो सरल है पर बनाना कठिन होता है। यदि कर सकती हो तो दूसरों की सहायता करो। किसी को न तो सत्ताओं और न ही उसका काम बिगाड़ो। उमा को लगा कि माँ की बात न मानकर उसने बड़ी भारी भूल की है। अब वह सदैव उनकी हर आज्ञा मानेगी। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें किसी का भी काम नहीं बिगाड़ना चाहिए बल्कि हमें सबकी सहायता ही करनी चाहिए। ओके बाइ?","सभी को नमस्कार, यह एक छोटी लड़की और एक पक्षी 🐦 की नैतिक कहानी है। लड़की कई बार चिड़िया का घोंसला तोड़ती है लेकिन चिड़िया बार-बार अपना घोंसला बनाती है। कुछ समय बाद कैसे छोटी लड़की उमा को प्रेरणा मिलती है और चिड़िया आखिरकार अपना घोंसला बना लेती है। पूरी कहानी सुनें और कहानी के नैतिक के बारे में जानें।" "हैलो बच्चों। हम सभी जानते हैं कि जो चीजें हम बचपन मैं सीखते हैं वो हमेशा हमारे साथ धरोहर के रूप में रहती है और हमेशा काम भी आती है। हम अपने रोज़मर्रा के कार्य कलापों के बीच में थोड़ा सा समय ईश्वर पूजा और भक्ति में भी गुड बिताते हैं। हमारे बड़े हमें हमेशा यह कहते हैं कि आओ भगवान के सामने हाथ, जोड़ों और थोड़ी सी प्रार्थना करो। बच्चों हनुमान जी के बारे में तो हम सभी जानते हैं। उनकी शौर्यगाथा, उनकी लीलाओं का हम सभी को थोड़ा थोड़ा सा ज्ञान तो होता ही है। हनुमान जी भगवान श्रीराम के न केवल सहायक बल्कि उनके मित्र भी थे। रावण के साथ युद्ध करते समय उन्होंने श्रीराम को हर विपत्ति से बचाया और हर प्रकार से हर संभव प्रयास करके उनकी सहायता भी की थी। हनुमान चालिसा। हनुमान जी की। गाथा और उनके। शूरवीरता से भरे हुए कार्यों का ही एक गान है। हनुमान चालिसा एक बेहद सहज और सरल बजरंगबली की आराधना में की गई एक काव्यात्मक 40 छंदों वाली रचना है। तुलसीदासजी बाल्यावस्था से ही श्रीराम और हनुमान जी के भक्त थे, इसलिए उनकी कृपा से उन्होंने महाकाव्यों की रचना की। ऐसा माना जाता है कि हनुमान चालीसा के पाठ से कई तरीकों की तकलीफों का भी नाश हो जाता है और सुख, समृद्धि तथा विद्या और बुद्धि में भी वृद्धि होती है। यदि किसी कारण मन अशांत है तो हनुमान चालीसा का पाठ करने से मन को शांति मिल जाती है। हर तरीके से भय का नाश भी होता है। एक पुरानी मान्यता है कि हनुमान जी को एक बार बचपन में जब भूख लगी तो वह सूर्य को फल समझकर खा गए थे। बजरंगबली के पास अपार शक्तियां दी। इसका उपयोग कर जब वह सूर्य को निगलने के लिए आगे बढ़ें तो देवराज इंद्र ने अपने वज्र से प्रहार करके उन्हें मूर्छित कर दिया। हनुमानजी के मूर्छित होने की बात जब पवनदेव को पता चली तो वह काफी क्रोधित हो गए। ऐसे में देवताओं को हनुमानजी के रुद्र अवतार होने का पता चला। तो सभी ने उन्हें कई शक्तियां प्रदान की। ऐसा भी माना जाता है कि देवताओं ने जिन मंत्रों और हनुमान जी की विशेष ताओं को बताते हुए उन शक्तियां प्रदान की थी, उन्हीं मंत्रों के सार को गोस्वामी तुलसीदास जी ने हनुमान चालीसा में समाहित किया। असल में हनुमान चालीसा में मंत्रणा होकर हनुमानजी के पराक्रम की विशेषताएं ही बदली गई है। आज मैं आपको हनुमान चालिसा। का अर्थ सरलतम शब्दों में बताऊंगी, जिससे आपको हनुमान चालीसा याद करने में भी सुविधा होगी और आपको उसका आनंद भी आएगा। तो आइए सबसे पहले प्रारंभ करते हैं दोहे से। श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मन्नू मुकुरु सुधारि। बरनउँ रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि। ये सबसे पहला दोहा है हनुमान चालीसा का। इसका अर्थ है कि मैं अपने श्री गुरु जी के चरण कमलों की धूल से अपने मन रूपी मुकुट को समक्ष करके श्री रघुवर के निर्मल यश का वर्णन करता हूँ, जो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को देने वाला है। बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरौं पवन कुमार बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कॉलेज बिकार। अर्थात ये पवनपुत्र मैं आप का उपासक हूँ। आप तो यह जानते ही है कि मेरा शरीर और बुद्धि निर्मल है। मुझे शक्ति सु बुद्धि एवं ज्ञान दीजिए और मेरे दुखों और चिंताओं का अंत कर दीजिये। तो बच्चो। हनुमान चालीसा के प्रारंभ में ये दो दो हे हैं जिनका अर्थ अभी आपको मैंने बताया। अब प्रारंभ करते हैं हनुमान चालीसा की चौपाइयां। तो पहली जो पाई है जय हनुमान ज्ञान गुन सागर, जय कपीस तिहुं लोक उजागर। अर्थात हे हनुमान जी, हे कपीश आप ज्ञान व अंतः करण को शुद्ध करने वाले अनंत गुणों के सागर है। आप तीनों लोगों को प्रकाशमान करते हैं, अतः आप की जय हो। रामदूत अतुलित बलधामा, अंजनीपुत्र पवनसुत नामा। आप राम जी के दूत और असीम एवं अद्वितीय बाल शक्ति के भंडार हैं। आप अंजनीपुत्र और पवन पुत्र के नाम से भी विख्यात है। हनुमान जी की माता का नाम अंजनी था। उसी का यहाँ पर उल्लेख हुआ है। आगे बढ़ते हैं। महावीर विक्रम बजरंगी, कुमति निवार सुमति के संगी। हे महावीर आप अत्यंत वीर पराक्रमी है, आपके अंग वज्र के समान बलिष्ठ है। आप पाप बुद्धि को दूर करने वाले और सद्बुद्धि का साथ देते है। कहने का तात्पर्य यह है कि हनुमानजी बहुत पराक्रमी और बहुत बलशाली थे और वो हमेशा सब को सद्बुद्धि ही देते है। इसलिए हनुमान जी की प्रार्थना सद्बुद्धि देने वाली और कुबुद्धि का नाश करने वाली ही होती है। अगला है। कंचन बरन बिराज सुबेसा, कानन कुंडल कुंचित के साथ। आप का रंग स्वर्ण के समान है, सुंदर वेशभूषा है। आप सुशोभित है आप कानों में कुंडल धारण करते हैं, आपके केश घुंगराले व अति सुंदर है इस। चोपाई में हनुमान जी के। सौंदर्य का रूप का वर्णन किया गया था। अब आगे सुनते हैं हाथ और ध्वजा विराजे, कांधे मूंज जनेऊ साजे। इसमें हनुमान जी ने क्या धारण किया है और कैसे वे दिखते हैं, उसका वर्णन है। आपके एक हाथ में वज्र दूसरे में ध्वजा सुशोभित है। आपके कंधे पर यज्ञोपवित अर्थात जनयु शोभायमान रहता है। शंकर सुवन, केसरीनंदन तेज प्रताप महा जग बंदन। हनुमान जी। प्रभु शिव शंकर जी के पुत्र कहे जाते हैं और केसरी जी को आनंद देने वाले हैं। अर्थात् व केसरीजी के पुत्र हैं तो आपकी यश, प्रतिष्ठा महान है। सारा संसार आपकी पूजा करता है। विद्यावान गुनी अति चातुर, राम काज करिबे को आतुर। अर्थात आप सभी विद्याओं के पूर्ण, अनुभवी है और राम जी के सभी कार्य संपन्न करने को व्याकुल रहते हैं। हनुमानजी प्रभु श्रीराम के सारे कार्य करने के लिए सदैव तत्पर रहते थे। प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया। आप श्री राम जी की कथा सुनने के रसिया है? आपके हृदय में राम, लक्ष्मण व सीता जी सदा निवास करते हैं। एक कहावत भी है कि जहाँ भी श्री राम जी की पूजा अर्चना होती है, वहाँ हनुमानजी स्वतः ही उपस्थित हो जाते हैं। सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा, बिकट रूप धरि लंक जरावा। अर्थात आप योग बल से छोटा रूप बनाकर सीताजी के आगे प्रकट हुए और विशाल एवं भयंकर रूप धारण करके लंका को जला डाला। जैसा कि श्रीरामचरितमानस में बताया गया था कि जब सीताजी को खोजते हुए हनुमान जी लंका नगरी पहुंचे थे तो लंका नगरी में अगर वो अपने सामान्य शरीर के माध्यम से जाते तो उन्हें पकड़ लेते अथवा कोई भी वहाँ पर युद्ध हो जाता परंतु गुप्त रूप से उन्हें वहाँ पहुँचकर सीताजी की खोज करनी थी इसीलिए हनुमानजी ने अपना सूक्ष्म रूप धारण किया था और उसके बाद जब उनकी पूछ में आग लगाई गई थी तो उन्होंने अपना विशाल रूप धारण करके पूरी लंका को जला दिया था। आगे बढ़ते हैं। भीम रूप धरि असुर संहारे है, रामचन्द्र के काज संवारे। राम रावण युद्ध में आपने विशाल भयंकर रूप धारण कर राक्षसों का संहार किया रामचंद्रजी के अनेक अनेक कार्य संपन्न किए। लाय संजीवन लखन जियाये श्रीरघुबीर हरषि उर लाये। रघुपति कीन्ही बहुत बढ़ाई, तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई। एक बार जब युद्ध के समय। लक्ष्मण जी को संजीवनी बूटी की आवश्यकता थी उन्हें। मेघनाथ ने। बाढ़ से मूर्छित कर दिया था। तब हनुमानजी ने संजीवनी पर्वत से संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मण जी को जीवित किया था। इस पर प्रभु श्रीराम ने प्रसन्न होकर उन्हें हृदय से लगाया और कहा कि हनुमान तुम में भारत के समान ही मेरे प्रिय भाई हो। आगे बढ़ते हैं। सहस बदन तुम रोजस गावे। स्क ही श्रीपति कंठ लगावें। सहस्त्रों मुख आप का यशोगान करते हैं। यह कहकर भगवान श्रीराम ने श्री लक्ष्मीपति जी ने आपको गले से लगा लिया था, सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा, नारद, सारद सहित अहीसा यह सारे ऋषि, मुनि, देवी, देवता, ब्रह्मा जी, सरस्वती, नारदजी सभी आपके साथ हैं। जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते कभी कहीं सके कहाँ थे। राजपुर, बेर जी और अन्य ज्ञानीजन सभी आप का गुणगान करते हैं। बोलो पवनपुत्र हनुमान जी की जय। तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा, राम मिलाय राज़, पद दीन्हा। आपने सुग्रीवजी को श्रीराम से मिलवाकर उन पर महान उपकार किया। राम मिलन से ही उन्हें किशकिन्दा का राज्य वापस प्राप्त हुआ था। यह भी कथा राम चरित मानस में दी गई है कि एक बार जब प्रभु श्रीराम और लक्ष्मणजी किसकिन्दा की पहाड़ियों पर घूम रहे होते हैं तो वहाँ पर हनुमान जी से उनकी भेंट होती है। हनुमानजी उन्हें अपने महाराज सुग्रीव के पास ले जाते हैं। सुग्रीव अत्यंत खिन्न और दुखी होते हैं क्योंकि उनके भाई बाली ने उनका सारा राज्य उनसे छीन लिया होता है। प्रभु श्रीराम की कृपा से। सुग्रीव को उनका राज्य वापस मिलता है। तुम रो मंत्र बिभीषन माना। लंकेश्वर भए सब जग जाना इसी प्रकार आपका परामर्श मानकर विभीषण प्रभु श्रीराम की शरण में गए जिसके कारण वे लंका के राजा बने और यह बात सारा संसार जानता है। जो को सहस्त्र जोजन पर भानु लील्यो, ताहि मधुर फल जानू। आपने बालि काल में हजारों योजना की दूरी पर स्थित सूर्य को एक मधुर मीठे फल की तरह मुँह में रख लिया था। प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं, जलधि लांघ गए, अचरज नाहीं वह मुद्रिका जो समस्त कार्यों को पूर्ण करने वाली थी तथा सब विघ्न बाधाओं को हरने वाली थी, उसे मुँह में रख आपने विशाल सागर को पार किया, इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है। बच्चों यह मुद्रिका वही है जो प्रभु श्रीराम ने अपनी निशानी के लिए सीता माता को दिखाने के लिए हनुमानजी को दी थी कि जब हनुमान जी सीता माता को खोज लें और सीता माता से मिले। साक्षी के रूप में निशानी के रूप में हनुमान जी सीता माता को क्या दिखाएंगे, उन्हें कैसे विश्वास दिलाएंगे कि वो प्रभु श्री राम के दूत है? इसीलिए प्रभु श्रीराम ने हनुमानजी को वो अंगूठी दी थी और उस अंगूठी को मुँह में दबाए हनुमान जी ने हजारों लाखों योजना। बड़े समुद्र को भी। कुछ ही समय में पार कर लिया था और सीताजी को खोज निकाला था। दुर्गम काज जगत के जेते, सुगम अनुग्रह तुम्हारे तेते संसार में लोगों के जीतने भी कठिन कार्य है। वे आपकी कृपा से सरल हो जाते हैं। आप अपने भक्तों पर बहुत अनुग्रह रखते हैं। हनुमान जी भक्तों के प्रति बहुत सहृदय रहते हैं। भक्त जब हनुमानजी का ध्यान करते हैं तो उनके सभी कष्टों को श्री हनुमान जी दूर भी करते हैं। राम दुवारे तुम रखवारे, होत न आज्ञा बिनु पैसारे प्रभु श्रीराम के द्वारा बैकुंठ के आप रखवाले हैं। आपकी आज्ञा के बिना कोई भी उस धाम में प्रवेश नहीं कर सकता। सब सुख लहे तुम्हारी सरना, तुम रक्षक काहू को डरना जो आपकी शरण में आता है वो सब सुखों को प्राप्त करता है और जब आप स्वयं उसके रक्षक है तो फिर उसे किस बात का डर? आपन तेज समारोह आप ये तीनों लोग हांकते का पे। आपका तेज अत्यंत प्रचंड है। उसे स्वयं आप भी संभाल सकते है। आपकी एक हुंकार से ही तीनों लोग कांप उठते है। आप त्रिभुवन मैं सर्वशक्तिमान है। आगे हैं। भूत पिशाच निकट नहीं आवे, महावीर जब नाम सुनावे। नासै रोग हरे सब पीरा। जपत निरंतर हनुमत बीरा। अर्थात यदि किसी को भूत पिशाच दिखाई देते हैं। तो महावीर आपका नाम लेने मात्र से वे तुरंत भाग जाते है। आपका नाम रामबाण की भाँति है। आपके नाम का निरंतर जाप करते रहने से सब रोग व पीड़ाये, चाहे वह आदि भौतिक हो अथवा आदि दैविक या आध्यात्मिक, तीनों ताप भी दूर हो जाते हैं। संकट तें हनुमान छुड़ावै मन क्रम बच्चन ध्यान जो लावे जो व्यक्ति मन, वाणी व शरीर से हनुमान जी का स्मरण व पूजा करते हैं, हनुमानजी उनके सबक, संकट और कष्ट भी दूर कर देते है। सब पर राम तपस्वी राजा तिन के काज सकल तुम साजा और मनोरथ जो कोई लावै, सोई अमित जीवन फल पावे। तपस्वी राम सारे संसार के राजा हैं, फिर भी है हनुमानजी। आपने उनके सारे कठिन कार्य संपन्न किए। जो कोई या अपनी सांसारिक इच्छा लेकर आता है उसे आप पूरा करते हैं और साथ ही राम भक्ति का मार्ग भी दिखाते है, जिससे मनुष्य जीवन का अमूल्य फल अर्थात मोक्ष प्राप्त करता है। आगे हैं बच्चों, चारों ओर झुक परताप तुम्हारा है परसिद्ध जगत उजियारा। आपका प्रभाव चारों युगों चार यू कौन कौन से होते है? सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग और कलयुग चारों युगों में फैला हुआ है। वह प्रताप जगत को प्रकाशमान करने के लिए प्रसिद्ध है। साधु संत के तुम रखवारे, असुर निकंदन राम दुलारे। आप सज्जन हो, प्रभु भक्तों की रक्षा करने वाले पद दुष्टों का नाश करने वाले हैं। प्रभु श्रीराम को पुत्र के समान प्रिय है। अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता असबर दीन जानकी माता। आपको माता सीता की ओर से आठों सिद्धियां और नौ निधियों का वरदान मिला हुआ है। उनकी शक्ति से अब किसी को भी सब प्रकार की संपत्ति दे सकते हैं। राम रसायन तुम्हारे पासा सदा रहो रघुपति के दासा। आपके पास राम भक्ति रूपी रसायन है, जो किसी को भी सर्वश्रेष्ठ बना सकता है। आप रघुपति दास के रूप में लोगों को रामभक्त बनाते हैं। इसका तात्पर्य है बच्चों की जो भी हनुमान जी की पूजा प्रार्थना करता है वो सहज रूप से ही प्रभु श्रीराम का भक्त बन जाता है। क्योंकि हनुमानजी स्वयं प्रभु श्रीराम के सर्वश्रेष्ठ भक्त हैं। आगे हैं। तुम्हारे भजन राम को पावै, जनम जनम के दुख बिसरावै। आप के लिए किये गए सभी भजन श्री राम तक पहुंचते हैं जिससे जन्म जन्मांतर के दुख दूर हो जाते हैं। अन्तकाल रघुबर पुर जाई जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई। आपके भजनों की कृपा से ही प्राणी अंत समय श्रीराम के धाम को प्राप्त करते हैं। और यदि मृत्युलोक में जन्म लेंगे तो भक्ति करेंगे, बाहरी की भक्ति करके हरि भक्त कहलाएंगे। और देवता चित्त न धरई, हनुमत सेई सर्व सुख करई। रामभक्ति में कृष्ण, विष्णु, शिव सब एक ही है। ये हनुमान जी जो भक्त सच्चे मन से आपकी सेवा करते हैं, उन्हें सब सुख प्राप्त होते हैं। संकट कटे मिटे सब पीरा, जो सुमिरै हनुमत बलबीरा। अर्थात महावीर जी की उपासना भक्ति से मनुष्य के सारे संकट, कष्ट, दुःख मिट जाते हैं। वह जन्म मरण की पीड़ा से मुक्त हो जाते हैं। जय जय हनुमान गोसाईं, कृपा करूँ गुरुदेव की नाईं। ये हनुमानजी, हे गोस्वामी जी। जिसने 10 इंद्रियों को वश में किया हो, आपकी जय हो, गुरु की भांति मुझ पर कृपा करे जो सत बार पाठ कर कोई छोटे ही बंधी महा सुख होई जो यहाँ पढ़ें हनुमान चालीसा होय सिद्धि साखी गौरीसा जो व्यक्ति हनुमान चालीसा का निरंतर पाठ करता है, वजन मरण के बंधन से मुक्ति हो, शाश्वत आनंद प्राप्त करता है, निर्भय हो जाता है, वह व्यक्ति जो व्यक्ति हनुमान चालीसा को पड़ता है उसकी सभी मनोकामनाएं भी। सफल होती है इस बात की साक्षी स्वयं भगवान शंकर ने दी है। तुलसीदास सदा हरि चेरा की जय नाथ हृदय मंह डेरा। तुलसीदासजी कहते हैं कि हे प्रभु आप श्रीराम के दास हैं और मैं आपका दास हूँ। अतः हे श्री हनुमान जी आप मेरे हृदय में विराजे। पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भु अर्थात हे पवनपुत्र संकटों, दुखों, कष्टों को दूर करने वाले एवं परम कल्याण की साक्षात मूर्ति और आप जो देवताओं के राजा हैं। राम, लक्ष्मण, सीता जी के साथ मेरे हृदय में सदा निवास कीजिए तो बच्चो यह थी हनुमान चालिसा।","सभी को नमस्कार, यह पूर्ण हनुमान चालीसा का एक आसान और वास्तविक अर्थ है। मैं चाहता हूं कि सभी बच्चे प्रतिदिन इस स्तुति का पाठ करें क्योंकि यह उनके जीवन में अच्छाई का आनंद लेगी। हनुमान चालीसा हमारी संस्कृति का भक्ति गीत है। इस अमर और भक्ति गीत को अपनी दैनिक पूजा में शामिल करें। पूरा अर्थ और स्पष्टीकरण सुनें और हनुमान चालीसा को आसानी से जानें।" "हैलो बच्चों आर्ट जो कहानी मैं आपके लिए लेकर आई हूँ, उसका टाइटल हैं वाणी का संयम। रावी नदी के किनारे एक बड़ा पेड़ था। उस पर दो पक्षी रहते थे सुनंदा नाम की एक चील और प्रेमा नाम की एक चिड़िया जो उस वृक्ष पर अनेक पक्षी थे परंतु एक भयंकर तूफान में फिर सभी मर गए थे। सुनंदा बड़ी थी और गंभीर भी। वह बोलती भी बहुत कम थी। बेकार की बक बक करना, एक दूसरे की बुराइ करना उसे तनिक भी पसंद ना था। बस सोचती थी कि व्यर्थ बोलने से अधिक बोलने से शक्ति ही नष्ट होती है। प्रेमा छोटी थी और चंचल भी। उसकी एक आदत यह भी थी कि उससे चुप न रहा जाता था। सारे दिन कुछ ना कुछ बोलती ही रहती थी। वह हमेशा काम कम करती और बातें अधिक से अधिक किया करती थी। दिन में तो सुनंदा और प्रेमा साथ साथ कम ही बैठती थी। सुबह होते ही उड़ जाती दाना पानी की खोज में दोनों थकी हारी। शाम को ही लौट पाती दोनों एक ही दाल पर पास पास बैठ जाती। सुनंदा छुपी बैठी रहती वह दिन भर की घटनाओं के बारे में सोचती कि कहीं उससे आज कुछ गलत तो नहीं हुआ था। उसने अपने लिए किसी को सताया तो नहीं था। परंतु चंचल प्रेमा का मन होता की खूब बोले, खूब बातें करके दिनभर की थकान दूर कर लें पर बाते किस्से करती सुनंदा तो अधिकतर छुपी रहती थी। प्रेमा जो भी कुछ कहती उसका सुनंदा संक्षेप में उत्तर देकर फिर चुप हो जाती। सुनंदा की कम बोलने की आदत प्रेमा को बड़ी बुरी लगती। वह मन ही मन उसे मनहूस, घमंडी ऐसा कहती वह अपने आप से ही। कहती। इससे तो अच्छा ये होता कि मैं अकेली ही बनी थी। वह जहाँ जाती सुनंदा की बुराइ करती पर प्रेमा का या भ्रम जल्दी ही टूट गया। आवश्यक नहीं कि दूसरे के बारे में जैसा सोचते हैं वैसा ही हो। अवसर आने पर ही व्यक्ति की अच्छा ई बुरा ई का पता लगता है। 1 दिन प्रेमा बैठी सुनंदा से बातें कर रही थी जैसे की उसकी आदत थी। बाते करते समय वह भूल गयी थी कि उसके आसपास क्या हो रहा है। सुनंदा चौकन्नी बैठी थी, प्रेम अपनी बाते पूरी भी ना कर पायी थी कि अचानक ही सुनंदा ने उसे धक्का दे दिया। प्रेमा डालते गिर पड़ी पर गिरते ही सम्भल गयी। यहाँ क्या पागल बने, बहुत ज़ोर से चीखी और ऊपर की ओर उड़ाई। बट सुनंदा भी उससे पहले वाली डाल पर नहीं थी। आज मैं तुम्हें छोडूंगी नहीं सोचती हुई। प्रेमा उसे खोजने लगी। सहसा ही उसकी निगाह पेड़ की सबसे ऊपर वाली डाल पर गई जहाँ सुनंदा बैठी थी वह गुस्से में भरकर वही उड़ चली और तमतमाती हुई बोली लगता है तुम्हें व्यवहार सीखाना पड़ेगा। तुम बड़ी हो, इसका मतलब ये नहीं की उल्टा सीधा गलत कुछ भी करो, तुम्हें तमीज नहीं है प्रेमा अभी और भी ना जाने क्या क्या कहती पर सहसा उसकी निगाह सुनंदा के पंखों से बहते खून पर पड़ी। यह क्या? गुस्से में प्रेमा ने पूछा सुनंदा ने नीचे की ओर इशारा किया। प्रेमा यह देखकर कांप उठी कि वहाँ तीर कमान लिए खड़ा एक शिकारी उन्हीं को खोज रहा है। क्षण भर में ही प्रेमा की समझ में सारी बातें आ गई। ओह तो तुमने मुझे बचाने के लिए ही ज़ोर से धक्का दिया था। वह पूछने लगी, उस समय तुम्हें बचाने का कोई और उपाय था ही नहीं? सुनंदा गंभीर स्वर में बोली प्रेमा अपनी गलती को सोचकर दुख से काफी भर उठी। उसने सबसे पहले तो सुनंदा के खून बंद करने का उपाय किया। खून बंद होने पर हाथ जोड़कर बोली दीदी मुझे माफ़ कर दो, मैं भी कैसी पागल हूँ कि गुस्से में न जाने क्या क्या बकझक कर गाती हूँ? तब सुनंदा बोली। तुम मुझसे छोटी हो, मैंने तो तुम्हे हम आप हमेशा ही किया है, मेरी तो कोई बात नहीं पर दूसरों से बोलते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि हम क्या कह रहे। ध्यान रखो कि हम जो कुछ भी बोलते है उसका दूसरों पर गहरा प्रभाव पड़ता है। एक बार मुँह से निकले शब्दों को फिर लौट आया नहीं जा सकता। माफी मांगकर भी नहीं। जैसा कि कहा भी गया है ऐसी बाड़ी बोलिये मन का आपा खोए। अपना मन शीतल करे और इनको सुख हुए अर्थात हमें हमेशा ऐसी वाणी बोलनी चाहिए जिससे हमें खुद भी सुख मिले और दूसरों को भी सुनकर अच्छा लगे। दीदी मैं क्या करूँ? बहुत तेरा सोचती हूँ की तुम्हारी सीख के अनुसार चलूं। तुम मुझे बार बार माफ़ कर देती हो, दूसरे थोड़ी ही करेंगे, पर जब जब गुस्सा आता है तो अपने आप को ही भूल जाती हूँ। प्रेमा बोली सुनंदा समझाने लगीं यही तो ध्यान देने की बात है, यही तो मन का संयम है। यदि हम अपनी गलत आदत को छोड़ने का ध्यान नहीं रखेंगे, अपने आप पर नियंत्रण नहीं रखेंगे तो वह कभी छूट ही नहीं सकती। प्रेमा सिर हिलाते हुए फिर बोली, हाँ बात तो तुम्हारी बिल्कुल ठीक है। फिर वह सुनंदा के पंखों को सहलाती हुई बोली दीदी एक बात पूछूं बुरा तो ना मानोगी पूछो पूछो सुनंदा ने सहमति में सिर हिलाया। वह बोली। तुम यूं तो मुझसे ठीक से बात भी नहीं करती, पर मेरे लिए तो तुमने अपने प्राण भी संकट में यूं ही डाल दिए, ऐसा क्यों? सुनंदा समझाने लगी देखो प्रेमा मित्र की परक बातों से नहीं होती, मित्र की पहचान होती है अवसर आने पर उसके काम से मित्र की सच्ची पहचान होती है किसी भी संकट की घड़ी में। सच्चा मित्र बातें नहीं बनाता। अवसर पर सहायता करने के लिए सबसे आगे खड़ा मिलता है तो ठीक ही कहती हो दीदी, आज की इस घटना ने मुझे जीवनभर के लिए ही सबक दे दिया है। कहते हुए प्रेमा सुनंदा के गले से लिपट गयी तो बच्चो इस कहानी से हमें दो शिक्षाएं मिलती हैं। पहली ये कि हमें हमेशा बोलते समय ध्यान रखना चाहिए कि हमारी वाणी से किसी के दिल को दुख ना पहुंचे और दूसरी ये की हमें हमेशा ऐसे मित्र बनाने चाहिए जो सच्चे हो क्योंकि सच्चा मित्र ही विपत्ति के समय हमारे काम आता है। ओके बाय।","सभी को नमस्कार, यह दो पक्षियों की एक नैतिक कहानी है 🐦🦅। उनमें से एक बाज 🦅 था। वह स्वभाव से बहुत गंभीर थी लेकिन दूसरी एक छोटी सी चिड़िया थी 🐦 . छोटी चिड़िया बहुत नटखट थी। चिड़िया उसके अशिष्ट व्यवहार को नापसंद करती है। लेकिन एक घटना के बाद नन्ही चिड़िया सारी बातें और अच्छे बोलने का महत्व समझ जाती है। पूरी कहानी सुनें और कहानी के नैतिक के बारे में जानें।" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी में आपको सुनाने जा रही हूँ उसका टाइटल है शालू, बकरी, शालू, बकरी की माँ रोज़ सुबह जंगल की ओर चली जाती थी। घर पर रह जाती थी अकेली शालू। शालू का मन करता था कि वह भी बाहर घुमे। वह चाहती थी की उसके भी मित्र बनें पर माँ की आज्ञा थी कि वह घर से बाहर ना जाए। उसकी माँ कहती थी कि वह अभी छोटी है और घर से बाहर निकलने पर उसकी सुरक्षा नहीं है। उसे कालू भेड़िया खा सकता है। भा सुरंग सिंह पकड़ सकता है और भी ना जाने किस किस के नाम माँ घिन आती रहती थीं। इन सबसे शालू बकरी इतनी डर गई थी कि वह घर से बाहर निकलने की हिम्मत ही नहीं करती थी। 1 दिन माँ ने शालू को डांट दिया शालू मन ही मन खूब गुस्सा हुई, सोचने लगी ठीक है आज मैं बहार चली जाउंगी, आज मैं माँ की बात नहीं मानूंगी। उस दिन माँ के घर से बाहर निकलती शालू भी गुफा से बाहर निकल आयी। आज घूमकर मानो माँ से बदला लेना चाहती थी वह उसे माँ की डांट बहुत बुरी लगी। शालू बकरी को गुफा से बाहर निकलकर बहुत अच्छा लगा भंडी ठंडी हवा बह रही थी, मीठी मीठी खुशबू आ रही थी, हरे भरे वृक्ष खड़े थे। उसने जी भरकर ताज़ी ताज़ी पत्तियाँ खूब खाई। फिर वह ठंडा ठंडा पानी पीने के लिए झरने पर चली गयी। झरने पर भीड़ का बच्चा भी बैठा था। शालू ने उससे नमस्ते की। फिर पानी पिया, भेड़ के बच्चे ने पूछा तुम यहाँ रोज़ आती हो, क्या? क्या नाम है तुम्हारा? मेरा नाम शालू है। मैं आज यहाँ पहली बार आई हूँ। मेरी माँ मुझसे घर से निकलने को मना कर दी है। शालू ये सब बात एक सांस में कह गयी, ओह मेरी माँ भी मुझसे मरना करती है पर मैं तो हर रोज़ घूमता हूँ, उन्हें पता भी नहीं लगता खुली हवा में घूमने से मेरी सेहत अच्छी हो गयी है। बीयर का बच्चा शांत से अपने शरीर पर निगाह डालते हुए बोला, शालू ने भी अपने शरीर पर निगाह डाली पर वह तो बहुत दुबली पतली थी। तभी भीड़ का बच्चा तुरंत बोल उठा शो लू तुम वीर जी तो रोज़ घूमने हो या करो, मेरी ही बातें खूब मोटी हो जाउंगी। पर मेरी माँ तो मना करती है शालू बोली ओह ओह तुमाके पीछे आ जाया करो, मैं भी तो ऐसा ही करता हूँ। भेड़ के बच्चे ने समझाया, अब तो शालू हर रोज़ यहाँ प्रतीक्षा किया करती थी कब माँ से? बिना पूछे वह घर से निकल जाये। माँ घर से जाए और शालू घर से बाहर निकल जाए। माँ को उसने इस बारे में कुछ भी नहीं बताया था। तीन चार दिनों तक दोनों सुरक्षित घूमते रहे। अब उनका साहस भी बढ़ गया था। दोनों ही सोचते थे की अब हम बहुत होशियार हो गए हैं। हम जब चाहे कहीं अकेले आ जा सकते हैं। अब वे दूर दूर तक घूमने जाने लगे। 1 दिन दोनों घूमते घूमते अचानक शेर की गुफा के ओर जा पहुंचे। वहाँ शेरनी अपने चार छोटे छोटे बच्चो को शिकार करना सीखा रही थी। उसका सबसे छोटा बच्चा चालू को देखकर बोला मा इस पर वार करके बताओ तब तक शेर नहीं की। दूसरे बच्चे ने अपना पंजाब शालू पर मारी दिया। यह देखकर भीड़ का बच्चा चुपचाप वहाँ से भाग गया। आपत्ति में पड़े मित्र की ओर से उसने मुँह फेरा लिया। उस दिन शेर का बच्चा शालू बकरी को फाड़ ही डालता पर उसके सौभाग्य से तभी शेर आ गया। वो एक बड़ा सा भेड़िया घायल करके लाया था शेरनी और उसके बच्चों का सारा ध्यान बट गया शालू बकरी सबकी आज बचा कर चुपचाप भी वहाँ से खिसक आयी पेड़ों की आड़ में छिप टी हुई सर पर पैर रखकर बहुत तेजी से भागी जा रही थी। उसका नन्हा सा दिल भय के कारण तेजी से धड़क रहा था। उसकी पीठ से खून निकल रहा था। जैसे तैसे वह झरने के किनारे पहुंची। वहाँ भेड़ का बच्चा पहले से ही बैठा था। उसे देखकर शालू ने मुँह फेरा लिया, पेड़ का बच्चा बोला। मैं तुम्हें बचा नहीं सकता था, इसलिए मैं हाथीदादा को बुलवाने आया था। शालू बोली अरे नहीं दो भाई अब झूठ बोलने की जरूरत नहीं। सच्चा मित्र वही होता है जो मुसीबत में काम आता है। जो अपने साथी को दुख मुसीबत में छोड़कर चला जाए वहाँ नीच है, दुष्ट है, कायर है ऐसे मित्र से तो मित्र का ना होना ही है, अच्छा है आज से मेरी तुम्हारी मित्रता खत्म। इतनी ही देर में झाड़ियों के पीछे से श्याम अंबिली वो भेड़ के बच्चे की ओर इशारा करते हुए बोली, तुम ठीक कह रही हो या तो दोस्ती के लायक है ही नहीं, इसने मेरे साथ भी धोखा किया है। सामान्य शालू की पीठ का खून, झरने से पानी लाकर धोया, फिर पेड़ों की पत्तियाँ रखकर पट्टी बांधी तब कहीं जाकर खून निकलना बंद हुआ। श्यामा शालू को घर तक छोड़कर आई शालू मन में सोच रही थी श्यामा मुझ से अपरिचित हैं, फिर भी वो मेरी कितनी सहायता कर रही है? या तो इसकी बड़ी महान सज्जनता है। सज्जनता और मधुरता का व्यवहार ही दूसरों को अपना मित्र बनाता है। शालू को छोड़कर श्यामा लौटाई शालू की माँ आयी तो बोली, मुझे रास्ते में ही पता लग गया था कि आज हमारी बेटियां घूमने निकली थी और बचकर आ गयी है। माँ मुझे माफ़ कर दो, अब मैं तुम्हारी आज्ञा के बिना कहीं नहीं जाउंगी। शालू माँ के पैर पड़कर बोली शालू जो बच्चे अपने माता पिता का कहना नहीं मानते, वे हमेशा दुख पाते हैं। हम डांटते हैं तो तुम्हारे भले के लिए ही डांटते है। जो बच्चे अपने माता पिता का कहना मानते हैं, वे ही अच्छे बनते है। शालू की माँ उससे यह कह रही थी। माँ मैं अब सदा तुम्हारा कहना मानूंगी आप मैं अच्छी बनूँगी शालू माँ से लिपटते हुए बोली आप शालू सदा अपनी माँ का कहना मानने लगी। श्यामा बिल्ली अब उसकी पक्की सहेली बन गई है और उसके घर आती जाती रहती है तो बच्चो। इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है की हमे किसी भी बहार वाले की बातों में नहीं आना चाहिए और हमें अपने बड़ों की बातों को मानना चाहिए, नहीं तो हम मुसीबत में पड़ सकते हैं। ओके बाय।",यह एक छोटी सी बकरी की कहानी है जिसे अपनी गलतियों से सबक मिलता है। "हैलो बच्चों, आज जो कहानी में आपको सुनाने जा रही हूँ, उसका टाइटल है नकल का फल। राहुल चार वर्ष का था पर था वह बड़ा शरारती, वरना तो चुपचाप बैठ सकता था और ना बिना बोले रह सकता था। हर समय कुछ ना कुछ करता रहता था ना ***** भी वो बहुत था एक बार किसी काम को करते देख ले बस फिर वही काम खुद करने लगता था। उसने 1 दिन माँ को स्टॉप जलाते देखा। माँ अंदर गई तो राहुल खुद ही स्टॉप जलाने बैठ गया। 1 दिन उसने अपने घर में बड़े ही को लकड़ी काटते देखा। बड़े ही खाना खाने गया तो राहुल बिहार ही लेकर खुद लकड़ी काटने में जुट गया। बेचारा बड़ों को हर काम करते देखता और फिर उनका काम करने लगता। सभी इसे डांट खाता और अपना समूह लेकर लौट आता। या उसके माता पिता की भी गलती थी कि वे उसे किसी कार्य को करने में नहीं लगाते थे। जिसमें उसकी प्रतिभा का सदुपयोग बच्चे को तो कुछ ना कुछ काम करने को ही चाहिए, उसकी शक्ति का सदुपयोग अच्छे काम में नहीं कराया जाएगा तो वह गलत कार्यों में ही निकलेगी। राहुल को जानने की जिज्ञासा भी बहुत थी। माँ से हर समय वह कुछ ना कुछ प्रश्न करता ही रहता था। एक बार राहुल के नाना जी आए गांव में रहते थे, वहाँ वे खेती करते थे। नानाजी ने चलते समय कहा चलो राहुल कुछ समय हमारे साथ बिताओ, हमारे घर पर रहना। रास्ते में तो मैं बहुत सी नई चीजें भी दिखेंगी। गांव भी तुमने कभी देखा नहीं है। वो अच्छी अच्छी चीजे खाने को मिलेंगी। राहुल नाना जी के साथ जाने को तैयार हो गया। बस में उसने बहुत ही नई नई चीज़े देखी और वह रास्ते पर नानाजी से उनके विषय में पूछता रहा। राहुल घर पहुंचा तो नानी उसे देखकर बहुत खुश हूँ। वहाँ राहुल के मामा का लड़का सोनल भी था व आयु में राहुल के बराबर था। राहुल उसके साथ खेलता रहता। वह गांव में खूब मन लगाकर रहने लगा। 1 दिन राहुल के नाना जी राहुल और सोनल दोनों को खेत पर ले गए। वहाँ उसने देखा कि दो सुंदर बैल बंधे हुए वे सफेद रंग के हैं बहुत प्यारे और सुंदर है। उन दोनों बैलों के नुकीले और घुमावदार तीन भी थे। ये बैल कहाँ से आये और यहाँ क्या करेंगे? नाना जी, राहुल पूछने लगा। बेटे बैलों को हल में लगाकर हल जोता जाएगा। ये खेतों के लिए बड़े ही उपयोगी होते हैं। इनके गोबर से बहुत अच्छी खाद बनती है। घर पर चलेंगे तो इन्हें बैलगाड़ी में जो तलेंगे नाना जी ने समझाया। राहुल खेत में बैठा बैठा बड़े ध्यान से बैलों का हल चलाना देखता रहा। दोपहर को नानी भी खाना लेकर खेत पर ही आ गई। सबने मिलकर खाना खाया। घर चलते समय नानाजी ने बैलों को बैलगाड़ी में जूता। नाना जी, नानी राहुल, सोनल सभी गाड़ी में बैठ गए। बैलों को हाँ कर नाना जी गाड़ी आगे बढ़ाने लगे। नाना जी, ये बेल तो दो है, ये हम सबका और गाड़ी का इतना सारा बोझ कैसे ढूंढ लेती है? राहुल ने बड़ी उत्सुकता से पूछा, नाना जी बोले ये भूसा, घास और दानक हते हैं। इन सब चीजों में बड़ी ताकत होती है। कुछ सोचते हुए राहुल ने फिर कहा हाँ, माँ भी कहती हैं हम जैसी चीजें खाते हैं वैसे ही बनते हैं। दूध पीने से ताकत वर बनते हैं, चाट, पकौड़े आदि खाने से पेट खराब भी होता है और बीमार पड़ते हैं। हाँ, राहुल यह बात सच है ना नी बोली। पर माँ ने कभी यह तो नहीं बताया की भूसा और घास खाने से ताकत बढ़ती है। उन्होंने ना ही मुझे ना पिताजी को ये चीजें कभी खिलाई है। राहुल अभी भी ना जाने की सोच में डूबा हुआ कह रहा था। राहुल की यह बात सुनकर सभी खिलखिलाकर हंस पड़े। नाना जी बोले पगले ये चीजें तो जानवर खाते हैं तभी घर आ गया और सभी गाड़ी से उतर पड़े। पूरे 1 दिन राहुल मणि मन सोचता रहा की भूसा खाने से ताकत आती है, मैं भूसा कहूंगा, तुम मुझमें भी खूब शक्ति आ जाएगी, फिर कोई भी। भाई बहन उसे सींकिया पहलवान कहकर नहीं चढ़ाएगा। और उसे यह बात नाना नानी से कहने की हिम्मत न पड़ी। राहुल सोच रहा था। उन्हें अगर बताऊँगा तो वे हंसेंगे। इसलिए जब मैं भूसा खा खा कर पहलवान हो जाऊंगा तभी बताऊँगा। दूसरे दिन शाम को राहुल चुपचाप घर के दरवाजे पर आ गया। वहाँ बैल बंधे हुए थे और अपनी अपनी नादम एस आनी खा रहे थे। राहुल ने चोर निगाहों से इधर उधर देखा। सब ठीक है। नानी रसोईघर में खाना पका रही है और ना न चारपाई पर बैठे अखबार पढ़ने में लीन हैं। अभी घर के अंदर थे, सोना लाया राहुल को चुपचाप देखकर वह बोला। यहाँ क्यों खड़े हो राहुल? टू प्रभु मुँह पर ऊँगली रखते हुए राहुल बोला। फिर वह सोनल के कान में बोला। सोनल आज बहनों की कहानी खायेंगे। और आखिर क्यों? सोनल ने पूछा। ओह, तुम जानते नहीं बैल सानी खाते हैं, इसलिए इनमें इतनी शक्ति है। हम खाएंगे तो हम भी बहुत शक्तिशाली बन जाएंगे। फिर गांव के टीपू पहलवान को हम मिनटों में हरा देंगे। राहुल ने उसे समझाया। सोनल को भी हद तक अच्छा लगा। अब क्या था राहुल और सोनल? दोनों ने ही बैलों की नांद में से घास और बू से किसानी खाना शुरू कर दी। प्रारंभ में तो उनका जी बहुत कुछ लाया। मुँह में भूसा भी जुबां पर पहलवान बनने के लालच में राहुल और सोनल ने बहुत ही खास निगल ली। रात को नानी ने खाना खाने के लिए दोनों को पुकारा और उन्होंने कह दिया कि भूख नहीं है। राहुल और सोनल के पेट में धीरे धीरे दर्द होने लगी। थोड़ी देर तक तो वो उसे सहन करते रहे पर चुप चाहा नहीं गया तो ज़ोर ज़ोर से रोने लगे। रोने की आवाज सुनकर उनके नाना जी दौड़ें चले आए। वे तुरंत भागे, भागे डॉक्टर के पास गए। डॉक्टर ने उनका पेट टटोला, वक्त था। डॉक्टर ने पूछा बच्चों तुमने क्या खाया है? सच सच बताओ, नहीं तो फिर इंजेक्शन लगाना पड़ेगा। इंजेक्शन के डर के कारण राहुल और सोनल दोनों ही बोल पड़े डॉक्टर साहब। अपनी पूसा खाया है, घास खाई है। वाक्य डॉक्टर ने आश्चर्य चकित होकर पूछा। अब उन दोनों ने उन्हें भूसे खाने की सारी कथा विस्तार से सुना दी। उनकी बातें सुनकर डॉक्टर नाना नानी खूब हंसे। नाना जी बोले बेटा अनुकरण सोच समझकर ही करना चाहिए। सब काम सबके अनुकूल नहीं हुआ करता बिना अकल के जो नकल की जाती है और सफल नहीं होती। डॉक्टर ने दोनों को कड़वी कड़वी दवा पीने के लिए दी। उस दिन से राहुल ने अपने कान पकड़े कि अब वह किसी की नकल नहीं करेगा और अकल से ही काम लेगा। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है की हमे कभी किसी की नकल नहीं करनी चाहिए क्योंकि नकल करने में हम मुसीबत में पड़ सकते हैं। ओके बाइ?",यह चार साल के एक लड़के की प्रेरणादायक कहानी है जो हमेशा दूसरों की नकल करने की कोशिश करता है। "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपको सुनाने जा रही हूँ उसका शीर्षक है ज्योतिषी सीआर की करामात एक बार भा सूरत सिंह अपने राजदरबार में बैठा था। सभा जुड़ी हुई थी। बानर हाथी, चीता आदि सभी सभासद अपने अपने आंसुओं पर बैठे थे। तभी द्वारपाल ने प्रवेश किया और कहा, महरोज दूर देश से कोई जानवर आपके दर्शन करने आया है। सिंह ने उसे अंदर बुला ने की आज्ञा दे दी। द्वारपाल रिज उसे लेकर अंदर आया आगंतुक एक सीआर था। एक गेरुए रंग के वस्त्र पहने था। उसके माथे पर लंबा सा तिलक लगा हुआ था। गले में बड़े बड़े काले दानों की माला पड़ी हुई थी। वेशभूषा से वहाँ पंडित लग रहा था। कोई ये आपका आगमन कहाँ से हुआ है? आपका शुभ नाम क्या है, आप क्या कार्य करते हैं? भासू रखने उसके वेश से प्रभावित होते हुए और आसन देते हुए कहा महाराज मेरा नाम कप्पू कपिल है यहाँ से सात जंगल पार से अस्थि बहुल नाम के जंगल से मैं आया हूँ, हमारे मन में बड़ा अकाल पड़ गया हैं। मेरे बाल बच्चे भूखे हैं इसलिए जीविका की खोज में यहाँ आया हूँ। पेशे से मैं ज्योतिषी हूँ। अस्थि बहुल वन के राजा हमेशा मेरे कहने से कार्य किया करते हैं। उन्हें हर कार्य में सफलता भी मिलती है। भासुर कपू की बातों से बड़ा प्रभावित हुआ। उसने हाथ जोड़कर उसे प्रणाम किया फिर अपना हाथ आगे बढ़ाकर बोला, पण्डित जी मेरा हाथ देखकर भी कुछ बताईये, असल में बड़ा आलसी था वहाँ पड़ा पड़ा खाता रहता था। वो सोचता था कि परिश्रम करने से क्या लाभ? भाग्य में जो होगा वह मिलेगा। कपिल से यह जानना चाहता था कि उसको जीवन में धन और सुख कैसे और कब मिलेगा और नहीं मिलेगा तो क्यों नहीं मिलेगा? पहले से ही बाजु रख के विषय में जानता था। उसने बाजारों का हाथ अपने हाथ में लिया, नाक पर चश्मा चढ़ाया और ध्यान से देखने का ढोंग कर रचने लगा। दो 4 मिनट तक वह मुँह से धीरे धीरे कुछ बुदबुदाता रहा और सिर हिलाता रहा। अब सिंह से ना रहा गया वह बोला ज़ोर से स्पष्ट बताइए। राजन आप तो बड़े ही प्रजावत्सल न्यायप्रिय है, परोपकारी हैं, दूसरों के लिए सर्वस्व त्याग ने वाले है। पुणे सिंह की प्रशंसा के पुल बांधने प्रारंभ कर दिए। सिंह अपनी तारीफ सुनकर खुशी से फूल कर कुप्पा होने लगा। अपनी मूंछ को ज़ोर ज़ोर से हिला कर प्रसन्नता व्यक्त करने लगा। कुंफू ने मंत्री, सेनापति आदि के विषय में भी पहले से ही पता कर लिया था। राजा का भी हाथ देखकर उसने सभी के विषय में सच सच बात बता दी। अब तो वे सभी मंत्रमुग्ध उसे देखते ही रहे। सभी उसकी योग्यता की बड़ी प्रशंसा करने लगे। सारा दरबार वाह वाह कर उठा बताते बताते कुप्पू अचानक रुक गया। बासु रखने सोचा ना जाने क्या बात हुई? उसने कहा बताइये अब बताते जाईये। छोड़िये राजाजी हकलाते हुए कुप्पु कपिल ने कहा और राजा का हाथ छोड़ दिया, अपना चश्मा भी उतार कर थैले में रख लिया। सिंघ घबरा उठा। उसे लगा कि ना जाने क्या बात हो गयी है वो जल्दी जल्दी बोला क्या बात है आखिर हमें भी तो कुछ बताईये बात कुछ ऐसी ही है, आपको विश्वास ना होगा आप मुझ पर व्यक्ति को पिट होंगे, भगवान ना करे की ऐसा हो कुप्पू बड़ा गंभीर और उदास होते हुए बोला। अरे जो कुछ भी है उसे नी संकोच होकर कहिए बांसुरा घबराया ऐसा बोला। क्या बताऊँ राजन अरे यह बात भी मुझे अपने मुँह से ही बनानी थी। बात यह है है कुंफू हकलाते हुए कहने लगा, आपके राज्य पर गौर विपत्ति आने वाली है। यदि आपके राज्य में दो 4 दिन में आसमान में धनुष दिखाई देगा तो सभी बर्बाद हो जाएंगे, घोर तबाही आएगी। अरे मेरे भाग्य में यह देखना भी बदला था। ऐसा कहकर कुप्पू सीआर झूठे आंसू बहाने लगा। यह सब सुनकर तो बड़ा ही घबरा उठा। कांपती आवाज में वह बोला इससे बचने का कोई उपाय बताइए? महाराज उपाय उपाय तो एक ही है। अपने माथे पर हाथ रखता हुआ सोचने की मुद्रा में बोला, वह यह है कि जैसे ही धनुष दिखाई दे तो आप जंगल के सभी जानवरों को लेकर यहाँ से निकल जाए। यहाँ से उत्तर दिशा में आप चलते जाए। 10 मील चलने के बाद जो भी जंगल में ले, उसी में बस जाएं, वहाँ आपकी बहुत अधिक उन्नति होगी। इस राज्य से भी अधिक उन्नति होगी। इस राज्य से भी अधिक सुख सुविधाएं मिलेंगी। सभी के सभी जानवर कुप्पू की बातें सुनकर भयभीत हो रहे थे। एक शब्द भी उनके मुँह से नहीं निकल रहा था और जो अब मैं चलता हूँ ऐसा कहकर राजन अपने मंत्रियों से मंत्र अता करने लगा। गुबू ने अपना झोला उठाया और बोला आपका पट मंगल मय हो आगे बढ़ गया। बासु रखने आगे बढ़कर अपने गले से कीमती हार उतारा और पारिश्रमिक के रूप में कुप्पू के गले में डाल दिया। अरे ओम मरी ओम कहता हुआ कुप्पू ज्योतिषी वहाँ से जाने के लिए उठ खड़ा हुआ पर तब तक घनघोर वर्षा प्रारम्भ हो गई थी, अतएव रखने उससे राजभवन में अतिथि बनने का निवेदन किया। उपपु को और क्या चाहिए था? प्रसन्नतापूर्वक इसके लिए वह तैयार हो गया। उसका वहाँ खूब स्वागत हुआ। खा पीकर व गहरी नींद में सो गया। सहयोग की बात है कुप्पु सियार जब शाम को सोकर उठा तो आसमान पर धनुष छाया हुआ था। वास्तव में हुआ यह था कि वर्षा तो दोपहर में ही बंद हो गई थी, फिर हल्की सी धूप निकल आई थी और आकाश में इंद्रधनुष ठा गया था। पर बेचारे जंगल के भोले भाले जानवर ने कभी आसमान की ओर गर्दन उठाकर इंद्रधनुष देखा ही ना था। इतने में राजा भासुरंगी दौड़ा दौड़ा आया। उसने तुरंत ही वहाँ से भागने की सोच ली थी। भा। सूरत ने कपिल के चरण स्पर्श किए और अपनी सारी प्रजा को लेकर उस जंगल से विदा हो गया। कपिल कुछ ही देर तक खड़ा खड़ा उन्हें जाते हुए देखता रहा। जब केवल धूल ही उड़ती दिखाई देने लगी तो वह खूब अट्टहास करके हंसा। खूब बेवकूफ बनाया। मुर्ग जीवन हाथ की रेखाओं से नहीं, कर्म से बनता है। मन ही मन कहने लगा फिर सोचने लगा कि जो पुरुषार्थ में नहीं, भाग्यवाद में विश्वास रखते हैं, ज्योतिषियों के चक्कर में पड़ते हैं, उनका यही नतीजा होता है। मैंने आज खूब उल्लू सीधा किया। ऐसा कहकर सीआर ज़ोर ज़ोर से ताली बजाकर नाच उठा। फिर वह तुरंत दौड़कर गया और रात में ही अपनी पत्नी और अपने बच्चों को लेकर उस जंगल में आ गया। सभी जानवरों के घर पूरे सामान से भरे पड़े थे। वह सीआर वर्षों तक वहाँ आराम से रहा तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें बिना कोई जानकारी के किसी पर भी विश्वास नहीं करना चाहिए और किसी की भी वेशभूषा को देखकर यह नहीं अनुमान लगाना चाहिए कि वो बहुत पहुंचा हुआ संत हैं, ज्योतिषी हैं। हमेशा देख परख के ही काम करना चाहिए। ओके बाइ?",यह एक शातिर सियार की कहानी है। सियार ने जंगल के राजा शेर और अन्य जानवरों को गुमराह किया। सुनिए पूरी कहानी और जानिए आखिर हुआ क्या। "हैलो बच्चों। आज जो कहानी में आपको सुनाने जा रही हूँ उसका टॉपिक है घास की चोरी और जमाखोरी अभयारण्य में खरगोशों की एक बस्ती थी। वहाँ अनेक को खरगोश अपने अपने परिवारों के साथ रहा करते थे। उनका मुखिया भी बड़ा दयालु, परोपकारी और सब की सहायता करने वाला था। अतएव सभी सुख शांति से रहा करते थे। खरगोशों का मुखिया पुनीत सभी खरगोशों को अनेक अच्छी बातें बताया करता था। वह प्राय कहता था आर यू चाहे हमारे पास सुख सुविधा की कम सामग्री हो और हम सभी मिल जुलकर प्रेम से रहे। दुख मुसीबत में एक दूसरे की सहायता करें, सभी की भलाई चाहे कभी किसी का बुरा ना सोचें, जीवन का यही सबसे अच्छा मार्ग है। मुखिया की बात को अधिकतर खरगोश बड़े ध्यान से सुनते थे और वैसा ही बनने की कोशिश भी किया करते थे। ठीक भी है जो अच्छी बात सुनी भर जाये पर उसका पालन न किया जाए। वह निरर्थक ही है। एक बार अभयारण्य में बरसात के मौसम में एक बूंद भी पानी नहीं पड़ा। इसका फल यह हुआ कि सारी की सारी घास और वनस्पति सूखने लगी। पर खैर वहाँ पर इतनी घास थी कि सूखा पड़ने पर भी सभी खरगोश थोड़ा बहुत खा सकते थे। उनके बिल्कुल भूखा मरने की इस्थिति नहीं आई। पूरी बस्ती में चंदू खरगोश अपनी चालाकी के लिए प्रसिद्ध था। बहुत बड़ा ही दूर था, काम करने में आलसी था। चालाकी से दूसरों की चीजें हर पता रहता था, अतएव उससे सभी दूर रहना चाहते थे। चंदू ने सोचा कि सूखा पड़ रहा है। यही अच्छा मौका है जब मैं अमीर बन सकता हूँ। बस दूसरे ही दिन से उसने अपनी योजना शुरू कर दी। रात के अंधेरे में और सन्नाटे में जब सारे खरगोश अपने अपने बिलों में सोए पड़े रहते तो चंदू अपनी पत्नी और चार बच्चों के साथ निकल पड़ता। रातभर वे अपने पैने दांतों से घास काटते फिर अंधेरे में ही गट्ठर बनाकर अपनी अपनी पीठ पर लादकर घर की ओर चल देते। रोज़ उनका यही काम था। धीरे धीरे चंदू के गोदाम में ढेरों घास जमा हो गई। पहले तो अन्य खरगोशों ने घास के कम होने पर ध्यान नहीं दिया। पर जब वो बहुत कम हो गई तो उनका ध्यान इस ओर गया। सभी आश्चर्य में थे कि उन्होंने इतनी खास इतनी जल्दी कैसे खाली? 1 दिन अचंभे की सीमा न रही जब उन्होंने देखा कि सारी घास नदारद थी, अब तो सारे खरगोश बड़े परेशान हुए। वे खुद तो एक 2 दिन भूखे रह सकते थे पर उनके बच्चे तो भूख से बिलबिला रहे थे। आखिर वे सब मिलकर मुखिया के पास जा पहुंचे और रोक कर कहने लगे। बच्चों की भूकंप से तो देख ही नहीं जाती और अब हम भी कब तक भूखे रहेंगे? लगता है अब हम सभी की मृत्यु निकट ही है। वर्षों से हम इस वन में रह रहे हैं पर ऐसा अकाल तो हमने कभी नहीं देखा और नहीं सुना है। अब आप ही बताइए कि हम क्या करें, कहाँ जाएं? सभी खरगोशों की बात सुनकर मुखिया भी रो पड़ा। वह बोला भाइयों जो स्थिति तुम्हारी है वही मेरी भी है, पर दुख में घबराने से काम नहीं चलेगा। संकट का जब हम मन को स्थिर बनाकर बहादुरी से सामना करते हैं तभी उस पर विजय पाते हैं। तू तो है ही। खरगोश एक साथ बोले फिर आगे कहने लगे अब बताइए हम क्या करे? पुनीत बोला मुझे आश्चर्य है कि इतनी सारी घास आखिर कहीं तो गयी कहा मैं सोचता था कि उससे हम सभी का काम चल जाएगा। हम भी बड़े आज टू मुंबई में है। हम भी यही सोच रहे थे। सब खरगोश एक साथ बोले खैर मैं कोई ना कोई हल निकालने की कोशिश करूँगा। पुनीत बोला। फिर उसने सभी खरगोशों को शाम को इकट्ठा होने की बात कहकर विदा कर दिया। पुनीत ने अपने मित्र अभय को बुलाया। उसके कान में कुछ समझाया। अभय एक एक करके सभी खरगोशों के घर गया। सभी को उसने मुखिया का यह संदेश दिया कि शाम को प्रत्येक खरगोश को अपने पूरे परिवार के साथ उत्तरी मैदान में इकट्ठा होना है। वहाँ सभी की एक सभा होगी और उसमें संकट से निपटने का उपाय सोचा जाएगा। पूरी बस्ती का चक्कर लगाने के बाद अभय पुनीत के पास गया और बोला। दोस्त चंदू के ऊपर संदेह ठीक लगता है। जब मैं उसके घर पहुंचा तो घास की बहुत तेज महका रही थी। साथ ही रास्तो में काटो की झाड़ियों के पीछे यह भी सुना था कि चंदू का बेटा दूसरे खरगोशों के बच्चों से कह रहा था कि मेरे पिताजी बहुत दूर से थोड़ी सी गास लाये हैं। यदि तुम्हें जरूरत हो तो ले सकते हो पर इसके बदले घर का कीमती सामान तुम्हें देना होगा। अब तो पुनीत के संदेह की और भी पुष्टि हो गई। शाम को भरी सभा में पुनीत ने कहा, मित्रों, हमें संदेह है कि किसी ने घास की चोरी की है। यदि कोई ऐसे सज्जन यहाँ हो तो तुरंत बता दें उनका अपराध क्षमा कर दिया जाएगा। पुनीत की बात सुनकर सभी चुप बैठे रहे। पुनीत फिर बोला देखिये गलती को मानना दोष नहीं होता। गलती तो सभी से हो जाया करती हैं, पर उस गलती को स्वीकारना करना। अपराध है। इस समय जब हम सभी प्रकरण संकट में है तो जमाखोरी करना भयंकर पाप है। सभी खरगोश हाथ हिला हिलाकर कहने लगे कि उन्होंने घास की चोरी नहीं की है। पुनीत को बड़ा बुरा लगा। वह फिर बोला ठीक है, अब आप एक एक करके खड़े होकर यह बात दोहरा? ये अब एक एक करके प्रत्येक खरगोश अपने दोनों पैरों पर खड़ा होता, दोनों हाथ जोड़ता और कहता मैं अपनी पत्नी और बच्चों की कसम खाकर कहता हूँ, मैंने यहाँ की कहानी नहीं चुराई है और वह मेरे पास नहीं है। अंत में बारी आई चंदू खरगोश की। बेधड़क होकर उसने यही बात दोहरा दी। पुनीत को बड़ा गुस्सा आया। उसकी गुलाबी आंखें गुस्से से और भी लाल हो गई न तुने फड़फड़ाकर वह बोला सच कहते हो तुम? बिल्कुल सच कहता हूँ चंदू गर्दन तानकर बोला आप सभी इसकी सच्चाई अभी जान जाएंगे। मेरे पीछे पीछे आइए। पुनीत ने कहा और तेजी से आगे बढ़ गया। सभी खरगोश उसके पीछे पीछे चल दिए। पुनीत की आज्ञा से अभय ने चंदू और उसके परिवार के सदस्यों के पैरों में बेड़ियाँ डाल दी, जिससे वे कहीं भाग लेना पाए। पुनीत ने चंदू के घर के सामने रखा बड़ा सा पत्थर हटाया और सभी अंदर घुसे। गोदाम के किवाड़े खुलते ही सभी की आंखें फटी की फटी रह गईं। वह घास से खचाखच भरा था। पूरी बस्ती के खरगोश एक महीने तक आराम से खा सकते थे। सभी खरगोश गुस्से से भड़क उठे। उछल उछल कर हाथ के पंजे उठा उठा कर वे कहने लगे इस निश, विश्वासघाती चंदू को जान से मार डालेंगे, हम देखो इस गंदे इंसान ने ना जाने क्या क्या काम किया है, जमाखोरी करके बैठा है। यह तो गनीमत थी कि चंदू वहाँ नहीं था नहीं तो अब तक उसकी बोटी बोटी नोंच गई होती। पुनीत सभी को शांत करके बोला मित्रों, हमें किसी के प्राण लेने का तो अधिकार नहीं है। हाँ, पर चंदू को दंड तो मिलेगा ही, अपराधी को दंड न देकर यूं ही छोड़ देना अपराध को बढ़ावा देना ही है। आप ही बताइए कि चंदू को क्या दंड दिया जाए? सभी खरगोश गर्दन हिलाकर आपस में घूस फूस करने लगे। थोड़ी देर बाद अभय खड़ा होकर कहने लगा। हम सभी ने यह निर्णय लिया है कि चोरी और जमाखोरी करके चोर बाजारी की कोशिशे करके चंदू ने जीस समाज के साथ विश्वासघात किया है। वह उसके साथ रहने योग्य नहीं है। अतः उसे परिवार सहित अभयारण्य से बाहर निकाल दिया जाए। ठीक है, आप सब ठीक कहते हैं। समाज में सभी एक दूसरे की सहायता से ही रहते है और उन्नति करते हैं जो सभी के साथ विश्वासघात करना चाहता है और साथ रहने योग्य नहीं है। पुनीत ने भी सहमति में अपनी गर्दन हिलाकर कहा। चंदू और उसके परिवार को सभी के सामने उपस्थित किया गया। चंदू बड़ा गिड़गिड़ाया पर उन्होंने उसकी एक न सुनी। अंत में अपनी रिश्तेदारी की दुहाई देते हुए बोला, मुखियाजी आखिर में आपका साला हूँ। आपकी पत्नी का सगा भाई क्या है? इस प्रकार का दंड आपको शोभा देता है। पुनीत गंभीर होकर बोला देखो चंदू दंड सभी के लिए समान होता है। वह मुखिया जो भाई भतीजावाद फैलाता है, मुखिया के आसन पर बैठने योग्य नहीं है। उस भ्रष्टाचार के मुखिया होने से तो मुखिया ना होना अच्छा है। फिर मैंने तो तुम्हे ना जाने कितनी बार समझाया था कि तुम गलत ना चलो, बुरे काम ना करो पर तुमने मेरी बात कब मानी? अब लाचार होकर नंदू को वहाँ से निकलना ही पड़ा। हाँ मुखिया ने दया करके घास का एक एक गट्ठर उन सभी को दिया। जिससे वे रास्ते में भूखे न मरे। घास का गट्ठर पीठ पर लादे अपने कुकर्मों को रोता, दुखी होता चंदू और उसका परिवार अभयारण्य छोड़कर आगे बढ़ गया। सच ही है कुकर्म जब किए जाते हैं तब वे बड़े मीठे लगते हैं और सुख देने वाले होते हैं पर जब उनका फल भोगते हैं तो वे कड़वे और असंतोष देने वाले बन जाते हैं। चंदू आँखों से ओझल हो चुका था, तब तक अभय गोदाम से सारी घास निकलवाकर बाहर रह चुका था। सभी खरगोश भूखे तो थे ही। तेजी से घास पर टूट पड़े। उस दिन खूब पेट भरकर उन्होंने घास काई फिर वे अपने अपने घरों की ओर चल पड़े। रास्ते में सभी मुखिया की बड़ी प्रशंसा कर रहे थे। कह रहे थे यदि मुखिया बुद्धिमान हो, कर्तव्यपरायण हो, ईमानदार हो तो चोर बाजारी और चोरी पनप नहीं सकती। भगवान हमारे मुखिया को लंबी आयु दें और इसी प्रकार कर्तव्य पर अरुण रहने की शक्ति दें। अभय भी कहने लगा, अपनी बुद्धिमानी से उन्होंने हम सबके प्राण बचाए हैं। ऐसे नेता के लिए तो जरूरत पड़ने पर हम अपने प्राण भी हस्ते हस्ते दे देंगे जरूर जरूर। खरगोशों ने ताली बजाकर खुशी से दांत निकाल कर कहा, मुसीबत दूर हो जाने पर आज उनकी खुशी की सीमा न थी। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें कभी भी अपने लोगों के साथ विश्वासघात नहीं करना चाहिए और संकट के समय कोई भी ऐसी गलती नहीं करनी चाहिए जिससे बाकी लोग मुसीबत में पड़ जाए। ओके बाय।",यह एक चालाक खरगोश की कहानी है। खरगोश ने अपने ही खेत से घास चुरा ली। जब सभी खरगोशों को सच्चाई का पता चल गया। वे बहुत क्रोधित हुए। कहानी सुनें और आनंद लें। "हैलो बच्चों, आज जो कहानी में आपको सुनाने जा रही हूँ, उसका टाइटल है कालू सागर। पेट आउट हो कितनी देर हो गयी? चिल्लाते चिल्लाते आज फिर लेट होना है, क्या स्कूल बजाती होगी बस वहाँ 2 मिनट में उठ रहा हूँ। हे भगवान क्या करूँ मैं इस लड़के का रोज़ कर्नाटक है, लगता है फिर स्कूल बस छूटेगी इसकी? माँ की बातें सुनकर खींचता हुआ सागर उठा और बाथरूम में घुस गया तैयार होकर बैठ टांगा और माँ के सामने आ खड़ा हुआ मारो उसकी तरह रसोई में व्यस्त इ सागर को देख खुश होते हुए बोलीं अरे मेरा राजा बेटा तैयार हो गया, हम ले तेरा टिफिन और पूरा खत्म करके आना। सागर अर्थ क्लास में पढ़ता है, पढ़ाई में शुरू से ही होशियार है, लेकिन साथ ही थोड़ा शरारती भी है। कहते है इकलौते बच्चे ज्यादा लाड़, प्यार पाकर थोड़े शैतान भी हो जाते हैं। सागर के पापा एक छोटी सी फैक्टरी में नौकरी करते हैं, लेकिन उन्होंने हमेशा अपनी हैसियत से बढ़कर बेटे को रखा है इसलिए उसको अजमेर के एक बड़े स्कूल में पढ़ा रहे हैं। सागर बस्ता लिए नुक्कड़ पर आ खड़ा हुआ। कुछ ही समय में एक स्कूल बस आ गई। जैसे ही बस रुकी, उसके दोस्तों ने उसे आवाज दी। सागर बस में सबसे पीछे वाली खिड़की वाली सीट पर जा बैठा, जहाँ दोस्त उसका इंतजार कर रहे थे। बस रोज़ की तरह ही बच्चों को लेते हुए अपने निर्धारित रास्तों से गुजर रही थी। जैसे ही घंटाघर चौराहे के पास से निकलने लगीं, सागर बस की खिड़की से मुँह बाहर निकालकर चिल्ला या। बिल्ली ने मारा पंजा मोटा कालू गंजा यह सुनते ही चौराहे पर बरगद के पेड़ के नीचे चाट पकौड़ी का ठेला लगाने वाला कालू गुस्से में खींचता हुआ बच्चों को मुँह चिढ़ाने लगा। उसको देख कर सब हंसने लगे। आज की ही बात नहीं है यह पिछले 3 साल से यह सिलसिला जारी है। बस जब भी चौराहे से गुजरती सागर खिड़की से चिल्लाता कालू, उसको देख कर मुँह बिगाड़ता हाथ से मारने का इशारा करता, कभी कभी ये ठेले पर पड़ा हुआ बड़ा चमचा भी हवा में लहराता। उसकी इन हरकतों को देखकर बस के सारे बच्चे हंसने लगते। कालू नाम का ही कालू नहीं था। वह रूप रंग में भी नाम के ही अनुरूप था। क्या जाने उसकी पैदाइश पर घरवालों ने उसके रंग को देखते हुए उसका यह नाम रखा। साथीवा शरीर से मोटा भी था छोटा कद मोटी सी तोंद और सिर पर गिनती के बाल धूप में उसका सिर दूर से ही चमक उठता था, लेकिन उसको अपने रंग रूप से शिकायत नहीं दी। ना ही अपने नाम से। बल्कि इसके उलट उसे अपना नाम बहुत प्रिय था। यही कारण था कि उसने अपने ठेले पर लिखवा रखा था कालू चाट भंडार। पूरे शहर में उसके जितनी बढ़िया चाट पकौड़ी कहीं नहीं मिलती थी, वह सारे दिन ग्राहकों से घिरा रहता था। कड़ी कचौड़ी, गोलगप्पे, दही, बड़े भेलपूरी, टिक्की, छोले और भी बहुत ही स्वादिष्ट चीजें उसके ठेले की शान बढ़ाती थी। जिन की प्रसिद्धि दूर दूर तक थी। उसकी सबसे बड़ी खूबी थी कि उसके ठेले पर साफ सफाई बहुत रहती थी जो कि ग्राहकों को अनायास ही आकर्षित करती थी। सागर के घर पर भी जब भी जाट पकौड़ी की फरमाइश होती तो वह कालू के यहाँ से ही आती थी। ज़ाहिर है वहाँ से खरीदारी के लिए सागर कभी खुद नहीं जाता, जिसका कारण उसके पापा कभी समझ नहीं पाते थे। कालू शरीर से जैसा भी हो, दिल का बहुत साफ था। बच्चों के सामने खींच दिखाना, उन्हें चढ़ाना जैसे उसकी दिनचर्या का हिस्सा बन गया था। जब कभी स्कूल की छुट्टी होती तो उसको ऐसा लगता है जैसे दिन कुछ खाली खाली सा गुजरा हों। समय इसी तरह बीत रहा था। बस का रोज़ गुजरना, सागर का चिल्लाना, कालू का मुँह, बिगाडना और बच्चों की ठहाके। अब यह सब सामान्य सी बात हो गयी थी। चौराहे के दूसरे ठेले और दुकानवाले अब इस बात पर ज्यादा ध्यान नहीं देते थे लेकिन कालू को तो जैसे स्कूल बस का इंतजार ही रहता था। सागर ने दसवीं कक्षा 85% अंकों से पास कर ली। ग्यारहवीं में उसने विज्ञान विषय लिया क्योंकि वह आगे मेडिकल की पढ़ाई कर डॉक्टर बनना चाहता था। जो उसके माँ बाप का भी सपना था। अब वो अपनी पढ़ाई को लेकर और ज्यादा गंभीर हो गया था, लेकिन सुबह बस में से उसका कालू को देखकर बिल्ली ने मारा। पंजाब मोटा कालू गंजा कहना बंदना हुआ उसको भी इतने सालों में कालू से एक लगाव हो गया था। यह वह भी जानता था कि अगर कालू वास्तव में कभी गुस्सा हुआ तो वह कभी भी बस को रुकवाकर उससे लड़ने आ सकता था या स्कूल जाकर उसकी शिकायत कर सकता था, जो उसने इतने वर्षों में नहीं की थी। दिन दिन कर महीने निकल गए। महीने महीने कर साल बारहवीं में सागर ने बोर्ड में टॉप किया। पापा के एक दोस्त के सुलझाने पर सभी ने निर्णय लिया कि सागर को मेडिकल प्रवेश परीक्षा की कोचिंग के लिए कोटा जाना चाहिए। अपने इकलौते बेटे को दूसरे शहर भेजने का निर्णय करना हालांकि आसान न था। लेकिन यह जानते हुए कि यह उनके भविष्य के लिए जरूरी है, माँ पापा ने उसको कोटा भेजने का मन बना लिया। बेटा मेरे एक मित्र कोटा में है, वे तुम मेरा रहने की व्यवस्था कर देंगे। हम रविवार को दिन की ट्रेन से निकलेंगे। पापा की आवाज़ में बेटे से दूर होने का दर्द साफ झलक रहा था। ठीक है, मैं अपनी तैयारी कर लेता हूँ। सागर में बिना नजरें मिलाएं औपचारिक जवाब दिया। रविवार को पापा चौराहे से ऑटो ले आए। पापा के साथ स्टेशन के लिए वहाँ रवाना हुआ। ऑटो स्टेशन की ओर बढ़ रहा था कि घंटाघर चौराहे से होकर गुजरा। जैसे ही चौराहा आया सागर ने बाहर देखकर आवाज लगाई। मोटा कालू गंजा अचानक आवाज सुन कालू इधर तो देखने लगा, लेकिन उसे सिर्फ दूर जाते। ऑटो से बाहर हिलता हुआ एक हाथी नजर आया, जो शायद उस से विदा ले रहा था। ऑटो में पापा ने सागर को विस में भरी नजरों से देखा तो अब इस इतना ही बोला कुछ नहीं पापा, वह एक दोस्त गया था। कोटा में पापा ने अपने दोस्त की सहायता से कोचिंग में ऐडमिशन की सारी व्यवस्था कर दी। सागर को हॉस्टल में कमरा भी मिल गया। वक्त बीत रहा था। सागर। हर रविवार को घर पर फ़ोन करता, हर दो तीन महीने में मम्मी पापा भी मिलने आ जाते थे। दिवाली की छुट्टी पर सागर जब घर आया तो इस स्टेशन से घर जाते वक्त उसकी नजर घंटाघर चौराहे पर बरगद के पेड़ के नीचे गई, लेकिन कालू का ठेला वहाँ नहीं था। वापसी के समय देर रात की ट्रेन होने के कारण वह कालू कोना देख सका, जिसका उसे बड़ा अफसोस हुआ। इधर कालू की दिनचर्या भी अब पहले जैसी ही ना रही थी। उसको चिढ़ाने वाला व्यक्ति जो अब बस में ना था। रोज़ की तरह स्कूल की बस तो आती थी लेकिन अब उसको कोई आवाज नहीं लगाता था। बड़ी अजीब सी बात थी जब उसे चढ़ाया जाता था तब वह हंसमुख था और जब कोई नहीं चढ़ाता वो स्वभाव से चिड़चिड़ा हो गया था। ग्राहकों से भी छोटी छोटी बातों पर झगड़ा कर लेता। उसका धंधा भी अब पहले जैसा न रहा। किसी को भी उसके बदले व्यवहार का कारण मालूम ना था। समय भी अपनी गति से बीत रहा था। उधर सागर की कोचिंग पूरी हुई। प्रवेश परीक्षा भी हुई और जैसा कि सबको आशा थी उसने जयपुर के अच्छे मेडिकल कॉलेज में अपनी जगह सुनिश्चित कर ली थी। एक बार फिर देर रात की ट्रेन से सागर अपने घर आया। आज घर पर रिश्तेदारों और दोस्तों के बधाई देने आने का सिलसिला दिनभर चलता रहा। अगले दिन सागर ने पापा से कालू की कड़ी कचौड़ी की फरमाइश की तो घरवालों को बड़ा आश्चर्य हुआ और यहाँ आश्चर्य तब और बढ़ गया जब उसने खुद पापा के साथ जाकर लाने की इच्छा जताई। स्कूटर के पीछे बैठ सागर पहुँच गया। घंटाघर दूर से कालू के ठेले पर नजर गई तो वह अपने काम में कुछ बेमन से लगा जान पड़ा। जैसे ही स्कूटर ठेले के पास पहुंचा सागर की आवाज़ में बिल्ली ने मारा। पंजाब कालू सुनते ही ज़ोर से चिल्ला या। मोटा कालू गंजा उस सागर की अचानक सामने से आती हुई आवाज और सागर को देखकर रोमांचित हो उठा। सागर। पहले कुछ संकोच में था की आज कालू पक्का उसको मारेगा पिटेगा या कुछ भला बुरा कहेगा। वह उस सब के लिए तैयार भी था। जैसे ही कालू उसकी ओर लपका, वह कुछ पीछे होने या बचने का प्रयास करता, उससे पहले ही कालू ने उसको कसकर अपनी बांहों में जकड़ लिया और रोना शुरू कर दिया। पापा और आसपास के लोग कुछ समझ ही न सके कि यह क्या हो रहा है? वे सब कालू को रोते बिलखते देख आश्चर्य कर रहे थे। 1 साल से भी अधिक समय बाद आज कालू दोबारा अंदर से एक ऊर्जा से भर उठा था। उसे पुन सामान्य होने में कुछ समय लगा। फिर उसने सागर से हालचाल पूछें। इतने दिन दूर रहने का कारण जाना और उसकी सफलता की उसे बधाई भी दी। फिर खाने की बहुत सारी चीजें तैयार करके एक थैले में सागर के पापा को पकड़ा दी। जो अब तक वहाँ खड़े हुए मानो कृष्ण और सुदामा के मिलन का दृश्य देख रहे थे। पापा की बहुत आग्रह पर भी कानूनी पैसे नहीं दिए कालू से सागर ने इस आश्वासन के साथ विदा ली कि अब जब भी कभी शहर आएगा तो मिलने जरूर आएगा। 3 दिन जयपुर जाने की तैयारी में बीत गए। माँ पापा से विदा लेकर सागर ऑटो में बैठ स्टेशन के लिए रवाना हुआ। अब वह अपने को पहले से ज्यादा परिपक्व महसूस कर रहा था। माँ पापा भी कुछ अधिक आश्वस्त हो गए थे। एक बार फिर घंटाघर पहुँचकर जैसे ही सागर ने ऑटो से बाहर मुहँ निकाला तो कालू के ठेले पर लगे हुए नए बोर्ड पर नजर पड़ी, जिसे पढ़कर सागर के मुँह से निकलने वाली आवाज बीच में ही दब गई। बोर्ड पर लिखा था मोटा कालू गंजा चाट भंडार। तो बच्चो ये थी आज की कहानी कालू की। इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है। की रूप रंग कभी भी व्यक्ति के जीवन में मायने नहीं रखता, उसका व्यवहार, उसका आत्मसम्मान सबसे बड़ा होता है। ओके बाय।","सभी को नमस्कार, यह एक स्कूल जाने वाले लड़के की कहानी है। लड़का बस से स्कूल जाता था। बस रोज एक खास इलाके से गुजरती है, वहां उसे एक आदमी मिलता है जो बहुत छोटा और गंजा दिख रहा है। लड़का हमेशा उसे चिढ़ाता था। लेकिन नमकीन बेचने वाले को इसकी कोई परवाह नहीं है। वह बस और लड़के का इंतजार कर रहा है। पूरी कहानी का आनंद लें। यह एक अद्भुत कहानी है और यह बच्चों को एक अच्छी सीख देती है।" "क्या आप भी अपना पॉडकास्ट बनाने का सोच रहे हैं? तो ऐंकर ट्राई कीजिए, ये पॉडकास्ट बनाने का सबसे आसान तरीका है। नंबर एक ये फ्री है नंबर दो। इसमें कई सारे ऐसे टूल्स है जो आपको अपने फ़ोन और कंप्यूटर पर रेकोर्ड और एडिट करने की फैसिलिटीज देते हैं। नंबर तीन आप अपने पॉडकास्ट को डिस्ट्रीब्यूट भी कर सकते हैं, जिससे इसे इस स्पॉटिफाइ और दूसरे प्लैटफॉर्म्स पर सुना जा सकें। डाउनलोड कीजिये ये फ्री ऐंकर ऐप या विजिट कीजिए ऐंकर डॉट ऐफ़ एम। अपना पॉडकास्ट स्टार्ट करने के लिए एक आइस आज मैं आपके लिए लेकर आई हूँ एक साहसी बालक की कहानी। जी हाँ, आज हम सुनेंगे कहानी साहसी बालक ज्ञान चंद और गुरदीप दोनों मित्र थे। वे अंबाला में रहते थे। दोनों सेवंथ क्लास के स्टूडेंट थे। वे पढ़ने में तो होशियार थे। साथ ही साथ अच्छे इस काउंट भी थे। दोनों ही अपने अपने दल के हेड थे। उनके स्काउट मास्टर, बड़े योगी और साहसी व्यक्ति थे। फिर बच्चों को खेल खेल में ही बहुत सी बातें सीखा दिया करते थे। उन्होंने स्काउट में सेवा, कार और साहस की भावनाएँ कूट कूट कर भर दी थी। बच्चे सबसे अधिक उन्हीं से प्रभावित होते थे। ज्ञानचन्द और गुरदीप के शिक्षक सुयोग्य थे और वह उन्हें चरित्र निर्माण करना भी सिखाते थे। उन्हें सद्गुणी भी बनाते थे। 1 दिन ज्ञान और गुरदीप स्कूल से लौट रहे थे। उनका घर बस्ती से बाहर बनी हुई कॉलोनी में था। बहुत चहल पहल वैसे भी कम रहती थी, उस दिन लू भी चल रही थी। सड़क प्रयास सुनसान थी। ज्ञान और गुरदीप दोनों बातें करते हुए चले जा रहे थे। 1 दिन बाद ही उनका स्काउटिंग का कैंप लगने वाला था। वे उसी के लगने की बातें कर रहे थे। बच्चों की आदत होती है कि वे प्रायः सड़क पर बात करते हुए चलते हैं तो बातों में डूबकर सब कुछ भूल जाते हैं। अधिकांश दुर्घटनाएं इसी प्रकार होती है। कोई स्कूटर की चपेट में आ जाता है तो कोई ड्रग की कोई किसी से टकरा जाता है तो कोई ठोकर खाकर गिर जाता है। परन्तु ज्ञान और गुरदीप की ऐसी आदत नहीं थी। वे तो इस स्काउट थी। हर समय सावधान। ज्ञानचंद को थोड़ी देर से लग रहा था कि कोई उनका पीछा कर रहा है। इसलिए बाते करते हुए भी वो चौकन्नी निगाह रख रहा था। उसकी आशंका गलत निकली। सहसा ही एक व्यक्ति ने पास आकर पीछे से गुरदीप के मुँह पर कपड़ा डाला और उसे घसीटकर ले जाना चाहा। ज्ञानचन्द सहसा पीछे मुड़ा। वैसी भयंकर स्थिति देखकर वह तनिक भी नहीं घबराया। उसने सूझबूझ से काम लिया। उस व्यक्ति को धक्का देकर वह भागता ही चला गया। वह पूरी शक्ति से चिल्ला या कि बचाव, बचाव, बचाव भागते हुए भी ज्ञान की निगाह उस व्यक्ति पर थी। उसने देखा कि उस आदमी ने अब गुरदीप के चेहरे पर डाला हुआ कपड़ा कस लिया है। उसे में बोरे में डालकर पीठ पर लादकर वा दूसरी दिशा में भागने लगा। यह देखकर ज्ञान ने अपनी दिशा बदल दी। अब वहाँ लुटेरे के पीछे चिल्लाता हुआ भागा। ज्ञान की चीख आसपास के घरों में बैठे हुए व्यक्तियों ने सुनी। वे अपने अपने घरों से बाहर निकल आए। दूर सड़क पर एक दो राहगीर जा रहे थे। वे भी ठिठक कर खड़े हो गए। ज्ञान ऊँगली से इशारा करते हुए लगातार भाग रहा था, चीख रहा था लुटेरा बचाव लुटेरा बचाव दूसरे व्यक्ति भी ज्ञान के पीछे पीछे भागे। उसने तेजी से जाकर उस व्यक्ति की कमीज पीछे से पकड़ ली। तब तक अन्य व्यक्ति भी वहाँ पहुँच चूके थे। सभी ने उसे घेर लिया। गुरदीप ने लुटेरे की पकड़ से छूटने के लिए बहुत प्रयास किए और उस लंबे चौड़े आदमी ने उसे दबोच रखा था। चेहरे पर मोटा कपड़ा पड़ा होने के कारण गुरदीप को सामने का कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। दुष्ट व्यक्ति ने इसका लाभ उठाकर गुरदीप की गर्दन में फंदा कस कर उसे बोरे में डाल दिया। फंदा कस जाने के कारण वह बेहोश हो गया था। ज्ञानचंद जल्दी से बोरे की ओर बढ़ा और उसका मुँह खोला। उसने कुछ व्यक्तियों की सहायता लेकर बेहोश गुरदीप को बोरे से बाहर निकाला। मेरा घर पहुंची है चलो वहाँ चले कहकर एक व्यक्ति ने गुरदीप को अपने कंधे पर लिटाया। और चल पड़ा। आप ज्ञानचंद भी उसके पीछे पीछे चलने लगा। साथी को छुड़ाने और लुटेरे को पकड़वाने का काम पूरा हो चुका था। जिन व्यक्तियों ने उस बच्चे को। चुराने वाले चोर को पकड़ा था। वे अब उसकी अच्छी तरह धुनाई कर रहे थे। ज्ञान और उस व्यक्ति ने घर आकर गुरदीप को लिटा दिया, उसके मुँह पर पानी डाला और उसे बनावटी सादी जल्दी ही उसे होश भी आ गया था। कहूं मैं क्या हुआ है? मुझे कहा गया वो आदमी कहते हुए आँखें मलकर गुरदीप उठ बैठा। गुलाबराव नहीं तुम बिल्कुल सुरक्षित हो बेटे गृहस्वामी ने गुरदीप के सिर पर हाथ फिराते हुए कहा। ज्ञानचंद ने उस लुटेरे के पकड़े जाने की वह पूरी घटना बताई। ओह तो आज तुमने सहज पूर्वक स्वयं को खतरे में डालकर मेरी रक्षा की है। गुरदीप कहने लगा। वह तो मेरा कर्तव्य था, मुझे करना ही चाहिए था भगवान मेरी यह भावना और शक्ति बनाए रखी ज्ञान बोला। गृहस्वामी उन दोनों बच्चों की बातचीत से मन ही मन बड़े प्रसन्न हो रहे थे। उन्होंने उन्हें स्नैकस खिलाएं और उन्हें घर पर छोड़कर आयी। उधर उस लुटेरे को पकड़कर व्यक्ति थाने ले गए। ये थानेदार ने बताया की यह एक कुख्यात अपराधी है। बच्चों को चुराना और बेचना ही प्रायः उसका काम है। पुलिस को भी काफी समय से उसकी तलाश थी। सिपाहियों ने उसकी बहुत पिटाई की और धक्का देकर कोठरी में बंद कर दिया। अपने कौन से पकड़ा? इसे थानेदार नी अपने साथ आए व्यक्तियों से पूछा और सारी जानकारी जाननी चाहिए। जब उन्हें पता लगा की एक छोटे बच्चे की बहादुरी से वह अपराधी पकड़ा गया है तो भी बहुत प्रसन्न हुए। उस बच्चे से मिलने वे उसके घर पहुंचे। उन्होंने ज्ञान चंद की पीठ थपथपाई और उसे बहुत शाबाशी दी और कहा बेटे तुम जैसे साहसी बालक ही समाज का गौरव है, सदा ऐसे ही बहादुरी के काम किया करो। कुछ दिनों बाद एक सार्वजनिक समारोह में नगर के मुख्य पुलिस अधीक्षक ने ज्ञान चंद को वीरता का पुरस्कार दिया और उसका अभिनंदन किया। यही नहीं वीरता के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार पाने वाले बच्चों के नामों के लिए ज्ञान चंद का नाम भी दिया गया। प्रधानमंत्री ने ज्ञान चंद को पुरस्कार देकर सम्मानित किया। प्रधानमंत्री से पुरस्कार लेते समय ज्ञानचंद बहुत खुश था। वह मणि मन संकल्प कर रहा था कि मैं सदैव बुरा ई अनीति और अत्याचार से संघर्ष करूँगा। समाज और राष्ट्र के निर्माण के लिए मेरा जीवन समर्पित है। तो बच्चो ये कहानी थी एक साहसी बालक की। हमेशा हमें अपने जीवन में चौकन्ना रहना बहुत जरूरी है। हमारे आसपास क्या हो रहा है? यदि कुछ गलत हो रहा है तो तुरंत उसकी कम्प्लेन करनी चाहिए और साहस से हमेशा काम करना चाहिए। कभी भी किसी भी विपत्ति में घबराना नहीं चाहिए, क्योंकि यदि हम घबराएंगे तो हम अपना बुद्धि और विवेक खो देंगे, सोचने समझने की शक्ति कम कर लेंगे और फिर हम उस स्थिति से सामना नहीं कर पाएंगे। इसलिए हमेशा साहस से काम करना चाहिए।","सभी को नमस्कार, यह एक लड़के की प्रेरणादायक हिंदी कहानी है। छोटा लड़का बहुत बहादुर है। वह अपने दोस्त को लुटेरों के चंगुल से छुड़ाता है। पूरी कहानी सुनें और कहानी की नैतिकता के बारे में जानें।" "क्या आप भी अपना पॉडकास्ट बनाने का सोच रहे हैं? तो ऐंकर ट्राई कीजिए, ये पॉडकास्ट बनाने का सबसे आसान तरीका है। नंबर एक ये फ्री है नंबर दो। इसमें कई सारे ऐसे टूल्स है जो आपको अपने फ़ोन और कंप्यूटर पर रिकॉर्ड और एडिट करने की फैसिलिटीज देते हैं। नंबर तीन आप अपने पॉडकास्ट को डिस्ट्रीब्यूट भी कर सकते हैं, जिससे इसे इस स्पॉटिफाइ और दूसरे प्लैटफॉर्म्स पे सुना जा सकें। डाउनलोड कीजिये ये फ्री एंकर ऐप या विजिट कीजिए ऐंकर डॉट ऐफ़ एम अपना पॉडकास्ट स्टार्ट करने के लिए? हैलो गाइस आज मैं आपको सुनाऊंगी सोने का अंडा और गरीब किसान की कहानी। एक गांव में एक किसान अपनी पत्नी के साथ रहता था। उनका एक छोटा सा खेत था। किसान और उसकी पत्नी दिनभर खेत में कड़ी मेहनत करती, किंतु कड़ी मेहनत के बाद भी खेती से होने वाली आमदनी उनके गुजर बसर के लिए पर्याप्त नहीं थी। दोनों बड़ी मुश्किल से अपनी जीविका चला रहे थे और निर्धनता का जीवन व्यतीत करने पर विवश थे। 1 दिन किसान की मुलाकात गांव के एक विवाह समारोह में अपने एक पुराने मित्र से हुई। उसे देखकर किसान बहुत खुश हुआ। दोनों कई साल बाद मिले थे इसलिए बैठकर बातें करने लगे। इन सालों में किसान के मित्र ने काफी धन कमाया और उसकी गिनती अपने गांव के धनी व्यक्तियों में होती थी। किसान उसके ठाठ बाट को देखकर बहुत खुश हुआ और उससे काफी उसकी उन्नति का कारण पूछा। मित्र ने बताया कि किसानी के साथ साथ वह मुर्गियों के अंडे का क्रय विक्रय का व्यापार भी करता था और उसका दूध भी बेचता था। यही उसकी उन्नति का कारण है। ये सुनकर किसान ने उसे अपना दुखड़ा सुनाया कि कैसे वह बड़ी मुश्किल से अपना जीवन यापन कर रहा है। तब मित्र ने उसे अंडों का व्यापार प्रारंभ करने की सलाह दी। किसान ने कहा कि उसके पास मुर्गिया खरीदने के लिए भी धन नहीं है। तो वो व्यापार कहाँ से शुरू कर पायेगा? तब मित्र ने उसे कुछ धन उधार दिया ताकि वह मुर्गिया खरीद सके। किसान ने उनका धन्यवाद किया और आश्वासन दिया कि व्यापार फलने फूलने पर वह उसका धन वापस कर देगा। उसी शाम किसान ने बाजार से कुछ मुर्गियां खरीदीं और उन्हें लेकर घर पहुंचा। पत्नी ने जब मुर्गियां देखी तो वह चकित हो गयी। तब किसान ने उसे बताया कि इन मुर्गियों से जो अंडे मिलेंगे, वह उन्हें बेचकर धन अर्जित करेगा। पत्नी उसकी योजना सुनकर बहुत प्रसन्न हुई। उसी समय दोनों ने साथ मिलकर घर के आंगन में एक छोटा सा स्थान बनाया और उसमें मुर्गियों को रख दिया। दोनों थक हार कर चूर कर खाना खाकर रात में गहरी नींद में सो गए। सुबह होने पर दोनों ने जब मुर्गियों के स्थान पर झांक कर देखा तो उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा। वहाँ अन्य अंडों के साथ एक सोने का अंडा भी पड़ा हुआ था। किसान ने अंडा उठा लिया। पत्नी ने उससे कहा कि वह उसे जौहरी के पास बेच आये। किसान में सोने का अंडा जौहरी को बेच दिया। बदले में उसे अच्छी कीमत मिली। वह खुशी खुशी घर लौट आया। अगले दिन जब उन्होंने फिर उस स्थान पर झाँका तो वहाँ पर फिर से सोने का अंडा पड़ा हुआ था। उन्हें समझते देर न लगी कि उनके द्वारा पाली जा रही मुर्गियों में से एक चमत्कारी मुर्गी है। वह चमत्कारी मुर्गी सोने का अंडा देती हैं किंतु वे उस चमत्कारी मुर्गी को पहचान नहीं पा रहे थे। इसीलिए दोनों ने रात में पहरेदारी करने का निश्चय किया। उस रात दोनों सोए नहीं बल्कि उस स्थान की पहरेदारी करते रहे और उस सोने का अंडा देने वाली चमत्कारी मुर्गी को पहचान गए। उस दिन के बाद से फिर उसका खास ख्याल रखने लगे। उस मुर्गी से उन्हें रोज़ सोने का अंडा मिलने लगा जिससे जौहरी को बेचकर किसान को अच्छे पैसे मिलने लगे। कुछ ही महीनों में सोने के अंडों की वजह से किसान ने ढेर सारा धन अर्जित कर लिया और उसकी गिनती गांव के धनी व्यक्तियों में होने लगी। अब किसान अपने जीवन से संतुष्ट था, किंतु उसकी पत्नी लो भी प्रवृत्ति की थी। 1 दिन वह किसान से बोलीं कि आखिर कब तक हम हर रोज़ एक अंडे को बेचकर धन प्राप्त करते रहेंगे? क्यों ना हम मुर्गी के पेट को फाड़ कर एक साथ सारे अंडे निकालें? इस तरह हम उन्हें बेचकर एक बार में इतने धनवान हो जाएंगे की हमारी सात पुश्तें आराम से जीवन व्यतीत करें। पत्नी की बात सुनकर किसान के मन में भी लोग जाग गया। उसने मुर्गी को मार कर उसके पेट से एक साथ सारे अंडे निकाल लेने का मन बना लिया। उसने पत्नी से कहा कि मैं बाजार जाकर एक बड़ा चाकू खरीदकर लाता हूँ। आज रात ही हम चमत्कारी मुर्गी के पेट से सारे के सारे अंडे निकाल लेंगे। इसके बाद वह बाजार गया और चाकू खरीद लाया। घर आकर उसने चाकू की धार तेज की ताकि मुर्गी का पेट फाड़ ने में कोई समस्या ना आए। उसके बाद वह अपनी पत्नी के साथ रात होने का इंतजार करने लगा। रात होते ही दोनों मुर्गियों के स्थान में गए। वहाँ देखा कि सोने का अंडा देने वाली मुर्गी सो रही है। किसान ने उस मुर्गी को पकड़कर स्थान से बाहर निकाला फिर आव देखा न ताव, एक ही बार में उसका पेट काट दिया। उसके बाद किसान और उसकी पत्नी ने उत्सुकता से मुर्गी के पेट में देखा, लेकिन वह भीतर से सामान्य मुर्गियों की तरह ही था। उसके पेट में सोने के कोई अंडे नहीं थे। यह देखकर किसान और उसकी पत्नी अपनी गलती पर पछताने लगे। अधिक सोने के अंडों के लोग भी पढ़कर फिर रोज़ मिलने वाला एक सोने का अंडा भी खो बैठे थे। तो बच्चो, इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि अत्यधिक लालच विनाश का कारण होता है। लालच बुरी बला है। हमें कभी भी अधिक लालच नहीं करना चाहिए। जितना मिलता है उसी में संतोष करने में ही भलाई होती है। ओके बाय।","सभी को नमस्कार, यह एक गरीब किसान और उसकी पत्नी की कहानी है। किसान को एक जादुई मुर्गी मिली जो सोने के अंडे देती है। सुनिए पूरी कहानी और जानिए आखिर हुआ क्या था." "क्या आप भी अपना पॉडकास्ट बनाने का सोच रहे हैं? तो ऐंकर ट्राई कीजिए, ये पॉडकास्ट बनाने का सबसे आसान तरीका है। नंबर एक ये फ्री है नंबर दो। इसमें कई सारे ऐसे टूल्स है जो आपको अपने फ़ोन और कंप्यूटर पर रिकॉर्ड और एडिट करने की फैसिलिटीज देते हैं। नंबर तीन आप अपने पॉडकास्ट को डिस्ट्रीब्यूट भी कर सकते हैं, जिससे इसे इस स्पॉटिफाइ और दूसरे प्लैटफॉर्म्स पे सुना जा सकें। डाउनलोड कीजिये ये फ्री एंकर ऐप या विजिट कीजिए ऐंकर डॉट ऐफ़ एम अपना पॉडकास्ट स्टार्ट करने के लिए? हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपके लिए लेकर आई हूँ उसका शीर्षक है परिवार की सुख और शांति। एक किसान था, उसके दो बेटे थे और अनोखे। उन दोनों में आपस में बिल्कुल भी ना बनती। किसान उन्हें बहुत समझाया करता था। की आपस में मिलजुलकर प्यार से रहना चाहिए। उस समय तो दोनों सोचते की ऐसा ही करेंगे। फिर यह भूल जाते हैं और लड़ने झगड़ने लगते। एक बार की बात है। किसान बहुत बीमार पड़ गया और चल बसा। कुछ दिनों तक तो दोनों भाई साथ रहे और पिता के जाने के बाद कुछ समय के बाद ही बड़ा भाई कहने लगा और लुक्खे देखो पिता तो रहे नहीं, अब हमारा भी साथ में रहना मुश्किल है। घर में जो कुछ भी है उसे आधा आधा बांट लें। अलग होने की इतनी जल्दी ना करता। पर बीच बहुत से पड़ोसी उसके कान बढ़ते रहे थे। कुछ व्यक्तियों का स्वभाव ही होता है की बिना मतलब दूसरों की बुराइ करते रहे उनके घरों में फूड डलवाते। पड़ोसी कहते की भाई अनोखे, तुम मूर्ख और आलसी है, वह आराम से बैठकर खायेगा। अच्छा हो उसे अलग ही करदो जी में आए, काम करे या ना करे? इस पर पूछता है। पर हमारे पास इतना सामान तो है नहीं कि बंटवारा करके हम आराम से रह पाए और खा पाए। कल्लू का का जो बंटवारा करने के लिए दूसरों को लड़ाने भिड़ाने के लिए प्रसिद्ध थे, आंख झपक कर बोले। दोस्त कुछ मिले तो कल लुका का ऐसा बंटवारा कर आएगा कि तुम जीवन भर के गुण गाते रहो। उस बात पर तैयार हो गया था। इसलिए उसने आज अनोखे को बंटवारे के लिए बुलाया। अनोखे पिता की मृत्यु से यूं ही बहुत दुखी था और चुपचाप उदास आकर बैठ गया। चोखे ने उससे अलग होने की बात कही तो वह रोने लगा। बोला भैया पिता के बाद एक तुम्हीं तो मेरे लिए सब कुछ हो तुम्हीं तो मेरे बड़े हो, मुझे अलग ना करो। अनोखे की बात अनसुनी करते हुए चोखे कहने लगा, 100 ट्रेनों की बात तो पिता के साथ ही गयी। हम दोनों बड़े है समर्थन तुम अपना अलग कमाओ खाओ, घर के सामान में से बताओ क्या लोगे? आधा आधा सामान बांट लेते हैं हम। यह सुनकर अनोखे रोने लगा। वह था भी सीधा साधा, रुंधे हुए कंठ से बोला, भाई जो भी चाहो दे दो। अब तो चोखी और कल्लू का का का काम बड़ा सरल हो गया। चोखे। बनावटी उदासी अपने चेहरे पर लाकर कल्लू काका से कहने लगा। काका, दुख की इस घड़ी में मेरे हाथ पैर तो चलते नहीं, तुम ही बंटवारा कर दो ना हम दोनों का हम उसे ही मान लेंगे। कल्लू काका ने तुरंत अच्छा अच्छा माल चौके के हिस्से में कर दिया। बच गए। बस एक कुत्ता और गाय समस्या थी कि इन का बंटवारा कैसे किया जाए। कल्लू काका बोले ऐसा करो एक इनका पीछे का भाग ले लो और एक आगे का। चोखी ने अनोखे से पूछा, बताओ तुम कुत्ते को आगे का भाग लोगे या पीछे वाला? वह जानता था कि अनोखा कुत्ते से बहुत प्यार करता है। वह उसका आगे वाला भागी मांगेगा। का सोचना सच हुआ। अनोखे ने कुत्ते का आगे वाला भाग ही मांगा और उसके सिर पर हाथ फिराकर उसे प्यार करने लगा। चोखे कहने लगा। तो फिर गाय का भी तुम आगे वाला ही भाग लेते हो। अनोखे तब उसकी बात का मतलब समझ ही ना पाया। दूसरे दिन सुबह जब वह गाय का दूध धोने लगा तो चोखे ने झिड़क दिया। क्यों रे कैसे निकाल रहा है तू दूध? गाय का पीछे वाला भाग तो मेरा है इसलिए दूध पर मेरा अधिकार है। अब होता यह की गाय और कुत्ता दोनों को ही खाना खिलाने का अनोखे का जिम्मा होता। कुत्ता तो जरूर उसके घर की रखवाली करता था पर गाय से उसे कोई लाभ न था। घर का सामान भी उसे कम मिला। इसीलिए उसे परेशानी भी ज्यादा उठानी पड़ती थी। एक सप्ताह के बाद अनोखे की पत्नी वापस आ गई। घर आकर जैसे ही उसे बंटवारे का बात पता लगी, उसने अपना फिर ठोक लिया। वह जानती थी कि उसका पति बहुत सीधा है, बड़े भाई के आगे कुछ बोलता भी नहीं। परन्तु जूनियर ने सोचा की इस तरह की धोखाधड़ी को सहन करना कहाँ का न्याय है? अन्यायी के सामने सिर झुकाना कायरता होती है। सही न्याय होना ही चाहिए। इसीलिए दूसरे ही दिन वह अपने पति को समझा बुझाकर पंचायत में ले गई। गांव के मुखिया ने सारी बातें बड़े ध्यान से सुनी। फिर को यह आज्ञा दी। की आज से तुम दोनों बँटवारे का भाग बदल लोगी। तुम अनोखे का भाग लो, गे और अनोखा तुम्हारा। यह सुनकर घबरा गया। वैसे भी वह भाई को अलग करके उसका फल भुगत ही चुका था। जिन्हें वह मित्र समझता था, वे किसी न किसी बहाने उससे धन ऐंठने में लगे हुए थे। अनोखे के बिना खेती संभाल पाना भी मुश्किल हो रहा था। पहले तो दोनों मिल जुलकर काम करते तो कुछ पता ही नहीं लगता था। वह पछताता था की बेकार ही उसने लोगों की बातों में आकर अपने भाई को कमजोर मान लिया था। ने मुखिया के पैरों पर गिरते हुए कहा मुझे माफ़ कर दीजिए, मुखिया जी माफ़ कर दीजिए, आज से हम दोनों मिल जुलकर रहेंगे। फिर उसने उठकर आँखों में आंसू भरकर अनोखे को अपने गले से लगा लिया। और कहा, भाई मुझे क्षमा कर दो। अनोखे की आँखों में भी पानी भर आया दोनों भाई, गले मिलकर खूब रोए। यह दृश्य देखकर मुखिया जी कहने लगे कि मुझे बड़ी खुशी हुई कि तुम दोनों ने अपने आप मेल कर लिया। भाइयों मिलजुल कर रहने में ही जो सुख है वह फूट में कहा है। परिवार में जब हम सुख शांति से रहते हैं, एक दूसरे का भला सोचते हैं तो स्वर्ग सा वातावरण हो जाता है। आपसी द्वेश, ई रिक्शा और कलर से ही परिवार नरक जैसा बन जाता है। टोक्यो और अनोखे दोनों भाइयों ने प्रतिज्ञा की कि अब वे एक दूसरे के हित में अपना हित समझेंगे। परिवार में सदैव इसने है और आत्मीयता का वातावरण बनाए रखेंगे। आपसी कलह छोड़कर बच्चों को अच्छा बनाने में अपना समय लगाएंगे। दूसरों की बातों में ना आकर दोनों भाई अपनी बुद्धि से काम करेंगे। इसके बाद अनोखे और चुन य सभी खुशी खुशी पंचायत से अपने घर लौटे। अब उनके मन में एक नया संकल्प था। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें कभी भी आपस में कलह नहीं करनी चाहिए। मिलजुल कर ही सारे कार्य करने चाहिए तभी परिवार में सुख और शांति बरकरार रह सकती है। ओके बाइ?","सभी को नमस्कार, यह दो भाइयों की एक नैतिक कहानी है। इस कहानी में दो भाई हर बार आपस में झगड़ते हैं लेकिन एक घटना के बाद उन्हें एहसास हुआ कि एकता में ही ताकत होती है। पूरी कहानी सुनें और कहानी के नैतिक के बारे में जानें।" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपको सुनाने जा रही हूँ, उसका टाइटल है। समुद्र में क्यों उठती है लहरें? फिलिपीन्स में एक लोक कथा प्रचलित है कि बहुत पहले सारी दुनिया में देवताओं का राज्य था। पृथ्वीलोक, समुद्र लोक और आकाश लोक के देवता अपने अपने लोक के पूर्ण स्वामी हुआ करते थे। आकाश लोक के राजा सूर्य देवता थे। जिनकी पुत्री लूना यानी चंद्रिका को घुड़सवारी का बड़ा शौक था। उसके पास एक सोने का रथ था जिसमें बैठकर वह स्वर्ग में सैर किया करती थीं। 1 दिन वह अपनी धुन में। आकाश लोक की सैर करते करते अपने पिता के साम्राज्य के आखिरी छोर पर पहुँच गई, जहाँ सूर्य देवता का साम्राज्य समाप्त होता था और समुद्र लोक का साम्राज्य शुरू होता था। विशाल समुद्र को पहली बार देखकर वह आश्चर्यचकित रह गई। उसने इतना सुन्दर नजारा पहले कभी नहीं देखा था। समुद्र की निरंतर उठती लहरों की गर्जना उसके लिए एकदम नया अनुभव था। तभी वह अपने पास की उपस्थिति से जॉब पड़ी। लूना के सामने एक सुंदर सा युवक खड़ा था। उसने लोना से पूछा, उस सुंदरी तुम कहाँ से आई हो? मैं सूर्यदेव की पुत्री लूना हूँ। युवक ने जोकर उसको नमस्कार किया और बोला मैं समुद्र देवता का पुत्र मार हूँ, हमारे साम्राज्य में तुम्हारा हार्दिक स्वागत है। उनमे बहुत जल्द ही गहरी दोस्ती हो गई। वे एक दूसरे को अपने साम्राज्य के किस्से सुनाते और मिलकर बहुत आनंदित होते। धीरे धीरे में प्रति दिन उसी स्थान पर मिलने लगे जहाँ वे पहली बार मिले थे। समय के साथ उनमें गहरी दोस्ती हो गई, लेकिन अभी तक उनके प्रेम की जानकारी किसी को नहीं थी। 1 दिन जब लूना मार्ग से मिलकर आकाश लोक में अपने महल में पहुंचीं तो बहुत प्रसन्न थी। उसकी चचेरी बहन ने उसकी प्रसन्नता का कारण पूछा ना तुम बहुत प्रसन्न दिख रही हो क्या बात है लू ना? पहले तो शर्म आ गयी। फिर उसने अपनी चचेरी बहन को सब बता दिया पर उसने यह वचन ले लिया कि वह उसके पिता को कुछ नहीं बताये गी। लेकिन चचेरी बहन बड़ी दुष्ट थी। उसने सूर्य देवता को लूणा के बारे में सबकुछ बता दिया। सूर्य देवता यह सुनकर बहुत क्रोधित हो गए। उनकी अपनी ही बेटी ने देवताओं के नियमों को तोड़ा था। उन्होंने अपनी बेटी को बुलाकर उससे पूछा मुझे पता चला है कि तुम छुप छुपकर समुद्र देवता के बेटे से मिलती हो। लूना डर कर चुपचाप खड़ी रही उसको चुप देखकर सूर्य देवता समझ गयी। यह बात सच तब उन्होंने आदेश दिया कि अब से राजकुमारी लूना स्वर्ग के उपवन में अकेली रह करेगी और सिपाही उस पर निगरानी रखेंगे। इसके साथ ही सूर्य देवता ने समुद्र देवता के पास एक दूध से संदेश भिजवाया। की उनके बेटे ने देवताओं के नियमों को तोड़ा है। संदेश मिलते ही समुद्र लोक के देवता ने भी मार से पूछा कि क्या वह सुरेश लोग की राजकुमारी से छिपकर मिलता रहा है? अपने पिता के सामने सच्चाई प्रकट हो जाने के कारण मार चुप रहा। मार के पिता ने देवताओं के नियमों को तोड़ने के लिए अपने पुत्र को समुद्र के गुफ़ा में कैद करने का आदेश दे दिया। इस प्रकार मार और लू ना एक दूसरे से भी छोड़कर बहुत उदास रहने लगे। 1 दिन उपवन में कोई सिपाही ना देखकर राजकुमारी लूना उपवन से निकलकर अपने सोने के रथ में बैठकर समुद्र लोक की ओर चल दीं। समुद्र लोक में पहुँचकर वहाँ उसी स्थान पर पहुंची जहाँ वह मार्ग से मिला करती थी। वह मार्ग की प्रतीक्षा करती रहीं, लेकिन मार का कोई पता नहीं था। दुख से कतार होकर वह मार मार कहकर पुकारने लगे। एकाएक मार्को अपनी गुफा से समुद्र के पानी में लूना की परेशानी दिखाई पड़ी। उस गुफा से निकालने के लिए उसने बहुत ज़ोर लगाया। इससे गुफा की दीवारें हिल गईं और समुद्र में ऊंची ऊंची लहरें लगी। लूना ने बहुत देर तक मार्ग की प्रतीक्षा की। लेकिन उसे मार दिखाई नहीं दिया। आखिर वह उदास मन से अपने घर लौट आई। इसके बाद जब भी उसको मार की याद आती वह अपने सोने के रथ में बैठकर समुद्र लोक में उसी स्थान पर पहुंचती जहाँ वह मार्च से मिली थी। मार पानी में उसकी परछाई देखकर गुफा में संघर्ष करता और समुद्र में ऊंची ऊंची लहरें उठने लगती। आज भी फ़िलिपीन्स में जब मछुआरे पूर्णिमा के दिन जो आता हुआ देखते हैं तो यही कहते हैं कि लूना से मिलने के लिए मार अपनी गुफा से निकालने की कोशिश कर रहा है। तो बच्चो ये थी आज की हमारी कहानी की समुद्र में लहरें कैसे उठती हैं? इसे हमने एक प्राचीन दंत कथा के माध्यम से जाना। ओके बाइ?",यह समुद्री लहरों की एक पौराणिक कहानी है। इसमें मैं आपको फिलीपींस के एक मिथक के बारे में बताऊंगा। "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपके लिए लेकर आई हूँ, उसका टाइटल है जहरीला वृक्ष। बहुत समय पहले की बात है। किसी जंगल में फल का एक पेड़ लगा हुआ था। उस पेड़ में सुंदर पके हुए फल लगते थे, लेकिन उन फलों को कोई खा नहीं सकता था क्योंकि वह फल जहरीले थे इसलिए नगर में रहने वाले लोग उन फलों को छूते तक नहीं थे जो कोई इंसान उस फल को भूल से खा लेता था। वो तुरंत मर जाता था या फिर घंटों तक बेहोश रहता। कोई अंजान राहगिरी उन फलों को खाता था बाकी लोग तो उन फलों से अच्छी तरह वाकिफ थे। उस नगर में कुछ दुष्ट लोग भी निवास करते थे जिनका काम चोरी करना, डाका डालना और लोगों को लूटना ही था। जब इन लोगों को उस पेड़ के बारे में पता चला तो उनकी खुशी का ठिकाना ही ना रहा। उन चारों लुटेरों ने मिलकर एक फैसला किया, क्यों ना हम उस पेड़ के फल तोड़कर लाए और दूसरे लोगों को खिलाकर उनका धन लूट ले? दूसरे ने कहा नहीं यह ठीक नहीं रहेगा। हम लोग वही पेड़ के पास ही छिपने का ठिकाना ढूंढ लेते हैं। फिर जो भी आदमी को फल उठा कर बेहोश होगा हम उसे लूट लिया करेंगे। ये उपाय सभी को पसंद आ गया और उन्होंने इस बात के लिए अपनी अपनी सहमति दे दी। वह सोच रहे थे कि कोई न कोई राहगीर तो उन फलों को खायेगा ही, इस प्रकार हम रोज़ किसी ना किसी को लूट लिया करेंगे। बस फिर क्या था चारों चोर खुशी से नाच उठे। अब उनकी खुशी का ठिकाना न रहा। अब वह चारों चोर अपने काम की शुरुआत में जुट गए थे। उन्होंने उसी पेड़ के नीचे एक बड़ा सा गड्ढा खोदना शुरू किया। उस गड्ढे के अंदर ही उन्होंने अपने छिपने का ठिकाना बनाया। किसी को भी इस बात का पता नहीं चल पाया था। अब जो भी मुसाफिर थका हारा उस पेड़ के नीचे आकर बैठ ता उसका मनिया सुंदर फल खाने को जरूर चाहता था। वह पल थे ही इतने खूबसूरत। जैसे ही वह व्यक्ति फल तोड़कर खाता था, तुरंत बेहोश होकर नीचे गिर पड़ता। उसके गिरते ही चारों लुटेरे बाहर निकल आते और उस आदमी का पूरा धन लूट लेते थे। जब तक उस व्यक्ति को होश आता था तब तक वो तो चारों चोर वहाँ से फरार हो चूके होते थे। अब उन चारों चोरों को बहुत मज़े आ रहे थे। वह जहरीला पेड़ उन लोगों के लिए वरदान साबित हुआ था। अब इन्हें कुछ भी करने की जरूरत नहीं पड़ती थी। अब तो उन्हें एक ही जगह पर बैठे बिठाये सब कुछ मिल जाता था। इस प्रकार उन चारों चोरों के मज़े आ रहे थे। धीरे धीरे वे चारों चोर बहुत अमीर हो गए। पहले वो टूटी फूटी झोपड़ियों में रहते थे मगर अब उनके पास शानदार महल हो गया था। उन लुटेरों को इस प्रकार मालामाल होते देखकर सारे नगरवासी हैरान रह गए थे। यहाँ तक कि वहाँ के राजा को भी आश्चर्य होने लगा। क्योंकि महाराज के महल से अच्छा महल इन लुटेरों का था, वह किसी राजा से कम नहीं थे। बहुत कोशिश करने के बाद भी नगर निवासी या राजा को कोई सबूत उनके खिलाफ़ प्राप्त नहीं हुआ। सभी लोग हैरान थे कि ये लोग रातों रात इतने धनु मान कैसे बन गए? इधर वो लुटेरे रात दिन लोगों को लूटकर धन बढ़ते जा रहे थे। उनकी दौलत में दिन प्रतिदिन तरक्की हो रही थी। उनके काम में कोई बाधा या रुकावट भी नहीं थी। एक बार की बात है। कुछ व्यापारियों का काफिला इसी तरफ से जा रहा था। एकाएक उनकी नजर उस फलदार पेड़ पर पड़ी तो उनके मुँह में उसे देखकर पानी आ गया। वह किसी भी तरह अपने आपको रोक नहीं पा रहे थे। वह कुछ देर वहीं बैठ गए और उस पेड़ के फलों को तोड़ने लगे। उन्हें फल तोड़ते देखकर लुटेरे मन ही मन खुश हो रहे थे। वे सोच रहे थे कि अभी व्यापारी फल खाएंगे तो फल खाते ही बेहोश होकर गिर पड़ेंगे। बस फिर क्या उनके बेहोश होते ही हम सारा माल लूट लेंगे। वह बड़ी बेसब्री से उन व्यापारियों के फल खाने का इंतजार करने लगे। उसी समय एक व्यापारी वहाँ आया, वह बोला। अरे भाई यह क्या कर रहे हो, इन फलों को तोड़कर क्या करोगे? फलों को तोड़कर क्या किया जाता है? आओ हम तुम्हे दिखाते है। वह बोले अरे भाई ये फल मत खाना क्यों मैं तुम्हें कह रहा हूँ, इन फलों को खाना नहीं है, सही बात नहीं होगी। उसने उन्हें समझाया, अरे भाई अभी तो हमने इन फलों को चक्कर भी नहीं देखा है। व्यापारी बोले और छो, ये क्या अपने भाई इन फलों को चखा नहीं, मगर क्यों? ये सारे फल जहरीले हैं। अगर आप लोग इन्हें खा लेते तो अबतक मर चूके होते हो भाई मेरी बात का विश्वास करो मैं भला तुम लोगों से झूठ क्यों बोल दूंगा? उसकी बात सुनकर सभी व्यापारी सहम गए। वह हैरानी से उसी की तरफ देख रहे थे। उन्होंने पूछा। लेकिन तुम्हें यह बात मालूम कैसे हुई की पहल जहरीला है। सीधी सी बात है भाई। यह पेड़ फलों से हमेशा लदा हुआ रहता है। उसने बताया क्या मतलब? इस नगर के लोग ही अच्छी तरह जानते हैं कि यह फल जहरीले वरना कब के तोड़कर खा चूके होते। वह सब उसकी बातों को आश्चर्य से सुन रहे थे। जैसे की उन्हें उसकी बात पर यकीन ही ना हो। इस प्रकार क्या देख रहे हो भाई? क्या तुम्हे मेरी बात पर विश्वास नहीं? नहीं, यह बात नहीं है। देखो भाई यू इस नगर के लोग इस पेड़ के फल को छूते तक नहीं। उसने बताया। तुम शायद ठीक कह रहे हो भाई, हम लोग बहुत बड़ी गलती करने जा रहे थे। वह बोली तुम लोग ऐसी गलती करने जा रहे थे, जिसका बाद में कोई उपाय नहीं था। उसने कहा। कहते है मरने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है। एक दूसरा व्यापारी बोला, भगवान ने ऐसे समय में आपको बेचकर में बचा लिया, वरना हम सभी लूट जाते। भाइयो सब भगवान की कृपा है, वरना मैं कौन होता हूँ तुम्हें बचाने वाला? आप तो महान हैं, हम सब आपके आभारी हैं, हम आपका यह एहसास कभी नहीं भूल सकते। सभी व्यापारी कृतज्ञता से बोले भाईयो इसमें एहसान की कोई बात नहीं है तो मेरा फर्ज था दूसरों की जान बचा कर हर इंसान को अपना फर्ज पूरा करना चाहिए। मैंने भी वही किया है तुम्हारा शुक्रिया। हम किन शब्दों में अदा करे दोस्त समझ नहीं आता। सिर्फ शुक्रिया से काम नहीं चलेगा। आपको मेरे लिए कुछ करना भी होगा। भाइयो या पेड़ न जाने कितने लोगों की जान ले लेगा, इसलिए हम सबको मिलकर इस पेड़ को काट देना चाहिए ताकि कोई और इसका शिकार न बन सके। बस फिर क्या था सभी व्यापारियों ने मिलकर देखते ही देखते वह पेड़ काट डाला। उस पेड़ के छोटे छोटे टुकड़े करके फेंक दिए। उसके बाद ही वह लोग अपने अपने काफिले के साथ अपने अपने स्थानों की ओर चल दिए। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि दुराचारी वस्तु अथवा इंसान का जड़ से विनाश कर देना चाहिए, वरना उसकी शरण में आए न जाने कितने लोग इसका शिकार होते रहेंगे। ओके बाय।","सभी को नमस्कार, यह एक जहरीले पेड़ 🎄 की नैतिक कहानी है। पेड़ सुंदर फलों से भरा है लेकिन कोई नहीं जानता कि ये जहरीले होते हैं। कई लोग इनकी ओर आकर्षित होते हैं और इन्हें खा जाते हैं। ऐसा जहरीला फल खाने का परिणाम बहुत घातक होता था। लेकिन कुछ समय बाद उन फलों की सच्चाई जानने वाला व्यक्ति कई लोगों की जान बचा लेता है। पूरी कहानी सुनें और कहानी के नैतिक के बारे में जानें।" "क्या आप भी अपना पॉडकास्ट बनाने का सोच रहे हैं? तो ऐंकर ट्राई कीजिए, ये पॉडकास्ट बनाने का सबसे आसान तरीका है। नंबर एक ये फ्री है नंबर दो। इसमें कई सारे ऐसे टूल्स है जो आपको अपने फ़ोन और कंप्यूटर पर रेकोर्ड और एडिट करने की फैसिलिटीज देते हैं। नंबर तीन आप अपने पॉडकास्ट को डिस्ट्रीब्यूट भी कर सकते हैं, जिससे इसे इस स्पॉटिफाइ और दूसरे प्लेटफॉर्म पर सुना जा सकें। डाउनलोड कीजिये? ये फ्री एंकर ऐप या विजिट कीजिए ऐंकर डॉट ऐफ़ एम अपना पॉडकास्ट स्टार्ट करने के लिए? हैलो बच्चों, आज जो कहानी में आप सब को सुनाऊंगी उस कहानी का शीर्षक है अंधा विश्वास। रामा सेठानी को गहने पहनने का बहुत शौक था। गले में सोने की ज़ंजीर, हाथों में मोटी मोटी चूड़ियां और कानों में बड़े बड़े झुमके हमेशा पहने रहती। उनके पति इसके लिए सदैव उन्हें टोका करते। वे कहते देखो और आज कल का ज़माना ठीक नहीं है। घर में भले ही सोने की इतनी चीज़े पहन लो परंतु घर से बाहर निकलते समय तो इन्हें उतार कर रख जाया करो। इन्हें पहनकर बाहर जाना खतरे को निमंत्रण देना है। पता नहीं कब किस मुसीबत में फंस जाओ तुम दिनदहाड़े लूटपाट होती रहती है। पर रामा सेठानी हंसकर गर्दन नचा कर कहती वाजी व कहीं नहीं रखे थी, पढ़ी जा रही है इतने घने मोहल्ले में तो हम रहते मुझे इतनी बड़ी को भला कौन लूट ले जाएगा? अब तो बेकार ही डरा करते हैं। सेठजी हंस देते और कहते, मुझे तुम्हारे बुद्धिमानी पर तो भरोसा है, परंतु ठगों की नीयत पर विश्वास नहीं अच्छे भले आदमी को तो पता नहीं वो कब कैसे मूर्ख बना दे। इस बात को वर्षों बीत गए, बात आई गई, हो गयी। सेठानी नित्य नियम से मंदिर जाया करती थी। वहाँ भगवान से वे प्रति दिन यही प्रार्थना करती कि उनका घर धन वैभव से भरा रहे। व्यापार खूब फले, फूले सेठानी इतनी ज़ोर ज़ोर से बुदबुदाती की आसपास बैठे व्यक्ति उनकी बात सुन लेते थे। मंदिर में आने वाले साधु संतों से भी वे यही आशीर्वाद मांगा करती। मोहल्ले भर को यह पता लग गया की सेठानी के मन में अधिक से अधिक पैसा पाने की बड़ी लालसा है। 1 दिन किसी ने सेठानी का दरवाजा खटखटाया। दरवाजा खोलने पर उन्होंने पाया कि गेरुए वस्त्र धारण किए हुए साधु वेशधारी तीन व्यक्ति वहाँ खड़े है। माँ कुछ भिक्षा देंगी? उनमें से एक साधु बोला। हाँ हाँ, जरूर कह कर सेठानी अंदर भागी और खूब सा आटा ले आयी, पर दूसरे व्यक्ति ने मना कर दिया और कहने लगा हम तो सादु है, अपरिग्रह ही है, इतने सारे आटे का क्या करेंगे? हम तो केवल उतना ही भिक्षा लेते हैं जितनी कि हम 1 दिन में आवश्यकतानुसार खा पाए। आप हैं भी तो तीन व्यक्ति ये तो अधिक नहीं है रामा सेठानी बोली। तब बीच में खड़े जटा जूट धारी साधु की ओर इशारा करके दूसरा व्यक्ति बोला, मौ। ये हमारे गुरूजी है, ये तो अन्य ग्रहण नहीं करते। हम भी दिन में एक बार ही थोड़ा सा खाते हैं। रामा ने पूछा तुम्हारे गुरु जी अन्न नहीं खाते हैं तो फिर क्या खाते हैं? इस पर वह शिष्य बोल पड़ा। ये हिमालय पर तपस्या करते हैं। चार छे वर्ष बाद कभी नीचे उतरते हैं। वायुहीन का भोजन है रामा उनकी बातें सुनकर सोचने लगी कि जरूर या कोई पहुंचे हुए योगी है। तत्काल ही उसके मन में यह बात याद आ गई कि यदि इनकी कृपा हो जाए तो वह संपत्ति बढ़ा सकती है। अतएव वह हाथ जोड़कर उनसे बोली। महाराज धन्य आप मुझे भी आप अपनी सेवा का सौभाग्य दीजिए ना। उत्तर में शिष्य ने कहा, गुरूजी तो 12 वर्ष से निरंतर मोहन धारण किए हुए हैं इसलिए उत्तर में ही दीये देता हूँ। इन जैसे पहुंचे हुए सिद्धियों गी आपकी सेवा क्या लेंगे? हाँ, यदि आपकी कोई मनोकामना हो तो मैं अवश्य पूरा कर देंगे। सेठानी ने उसकी बातों पर विश्वास कर दिया। अब उसका लालच बढ़ गया। वह बोली महाराज, आपके दर्शन से ही मैं कृतार्थ हो गई, मैं ठहरी बाल बच्चे वाली आज की महंगाई के जमाने में गुज़ारा करना भी कठिन हो जाता है। यदि आपकी कृपा हो जाती तो एक शिष्य महाराज की ओर देखता हुआ बोला। महाराज प्रसन्न या आप पर बताइए किस रूप में आप पर कृपा करें? इस पर सेठानी गदगद होते हुए बोलीं अरे महाराज, पहले अंदर तो आइए आसन और जल ग्रहण कीजिए। तीनों अंदर आ गए, सेठानी ने उन्हें आदरपूर्वक बिठाया, मीठी वाणी से उनका सत्कार किया, फिर उनसे धन की वृद्धि की याचना करने लगी। इस पर एक शिष्य बोल पड़ा, आपके पास जो भी धन और सोना हो उसे ले आइए। एक घड़ा और उसका ढक्कन भी ले आइए गुरु जी आपके सामने ही अपनी मंत्र तंत्र विद्या से उसे बिना छुए ही दोगुना कर देंगे। चिंतित होते हुए बोली पर स्वामी जी सेठ जी तो इस समय बाहर गए तिजोरी की चाबी उन्हीं के पास रहती है। मैं क्या करूँ? ओह तो फिर हम चले उठते हुए एक शुभ बोला। इतना अच्छा अवसर बेकार ही हाथ से निकल गया। यह सोचकर सेठानी दुखी हो ही रही थी कि सहसा उसकी निगाह अपने हाथ में पड़ी हुई सोने की चूड़ियों पर गई। उन्होंने तीनों को रुकाते हुए कहा महाराज रुकिए, रुकिए मेरे पास इस समय थोड़ा सोना है। इसको ही दे देती हूँ। शिष्य ने पूजा का सामान और घड़ा आदि लाने के लिए कहा। सेठानी दौड़ दौड़कर सारा सामान लाती रही। घर में उसका एक किशोर पुत्र रोहित भी था। उसे यह सब अच्छा नहीं लगा। उसने इन सब के लिए माँ को मना भी किया। पर सेठानी ने उसे यह कहकर डांट दिया कि तुम अभी बालक हो, सिद्धू के चमत्कार को तुम नहीं समझते। शिशु ने दीपक जलाया, धूप बत्ती जलाई गुरूजी इस स्पष्ट स्वर में मंत्र बोलते रहे और हाथों से जादू टोना करते रहे। तब सेठानी के ही सामने एक शिष्य ने सोने का हार, चूड़ी, कुंडल, अंगूठी आदि सभी घड़े के अंदर डाल दिए। दूसरे ने ढक्कन लगाकर उसके मुँह पर कसकर कपड़ा बांध दिया। 10 मिनट तक वे फिर ना जाने क्या क्या पाठ करते रहे। तब एक शिष्य बोला मा कल प्रातः काल ना धोकर पूजा करके इस गड्ढे को खोलना आपको गुरु जी का चमत्कार दिखाई देगा। आप का सौभाग्य है जो महाराज आप पर इतने अधिक प्रसन्न हुए हैं। तीनों विदा लेकर चले गए। उन्होंने न सेठानी के घर अन्न खाया, ना उनसे कोई और वस्तु ही ली। सिडनी उनकी निस्पृहता से बहुत प्रभावित थीं और सोच रही थी की आज के जमाने में ऐसे जादु कहाँ मिलते है? उधर रोहित को चैन ना था। वह बार बार यही सोचे जा रहा था की माँ कही आज ठग न जाए। उसने देखा कि कहने सुनने पर माँ पर कोई असर ही नहीं है तो वह चुप हो गया। उसने मन ही मन कुछ निर्णय लिया। जैसे ही वे गेरुआ वस्त्रधारी व्यक्ति घर से बाहर निकले तो रोहित माँ से बिना कुछ कहे उनके पीछे लग गया। वह छिपकर उनके पीछे पेट से बढ़ता गया। वे तीनों शहर से दूर निकल गए। जंगल में एक टूटे फूटे खंडहर में जाकर रुके। जाते ही उन्होंने नकली जटाजूट उतारकर फेंक दिए। गुरु बने आदमी ने अपनी कुरते की बाह से रोहित की माँ के गहने निकाले। वे तीनों अट्टहास करते हुए कहने लगे कि कुछ दिन तक तो अब चैन की छनेगी। अब रोहित ने और देर करना उचित न समझा। बहुत छिपते छिपाते तुरंत वहाँ से निकल गया। जंगल से बाहर आते ही रिक्शा किया और जल्दी से थाने पहुँच गया। वहाँ उसके दोस्त प्रभात के पिताजी इन्स्पेक्टर थे। उन्होंने ध्यान से रोहित की सारी बाते सुनी। तुरंत ही वो रोहित को लेकर अपने दल बल के साथ उस स्थान पर पहुँच गए। उन तीनों आदमियों को तो सपने में भी यह आभास न था। वे नशे में धुत पड़े हुए थे। पुलिस को सामने खड़ा पाकर वे हक्के बक्के से रह गए और आये बाएँ बकने लगे। उन्हें इतना अधिक नशा चढ़ा हुआ था कि उनके मुँह से ठीक से आवाज़ भी नहीं निकल पा रही थी। पुलिस ने उनके हाथों में हथकड़ियां डाल दी और ले जाकर थाने में बंद कर दिया। शाम को प्रभात के पिताजी सारे गहने लेकर रामा सेठानी के यहाँ पहुंचे। अपने गहने देखकर वह आश्चर्य में पड़ गई। उन्होंने जल्दी जल्दी से घड़ा खोला, पर यह क्या? वह तो खाली पड़ा था। वो समझ ही नहीं पा रही थी कि घड़ा कैसे खाली हो गया और कैसे उनके सारे आभूषण प्रभात के पिता जी के हाथों में आ गए। रोहित ने भी घर जाकर माँ को कुछ भी नहीं बताया था। तब इंस्पेक्टर साहब ने रामा को सारी बातें बताईं। उन्हें सुनकर वे भौचक्की रह गई। उन्होंने तो सपने में भी ना सोचा था कि वे तीनों गेरुए कपड़े पहने ठग होंगे। वे तो उन्हें पहुंचा हुआ सन्यासी समझ रही थी। प्रभात के पिता सेठानी को समझाते हुए कहने लगे, भाभी जी साधु यदि सच्चा है तो वास्तव में आदर का पात्र है, परंतु गेरुए कपड़े पहन लेने से कोई सन्यासी निश्चयी व्यक्ति दुर्लभ हो, ऐसा नहीं हो सकता। जो है, वे यूं ही घर घर घूमते नहीं फिरते। वे लोगों को लालच नहीं देते, उन्हें आत्म कल्याण का रास्ता दिखाते हैं। हाँ आपकी बात ठीक है रहमा सेठानी बोली तभी हंसता हुआ रोहित भी वहाँ आ गया। प्रभात की पिताजी कहने लगे की रोहित की सूझबूझ और बुद्धिमानी के कारण ही आज वे इस धोखाधड़ी से बच गई। रोहित मुस्कुराते हुए बोला, मा व्यक्ति धनी बनता है अपने श्रम से, कौशल से, बुद्धि से दूसरा कोई भी व्यक्ति धनी बन जाए बिना शर्म किए ऐसा संभव नहीं है। रामा सेठानी चुपचाप सुनती रहीं। इस विषय में वे कहती भी क्या? पर उनकी समझ में एक बात कभी भी नहीं आ रही थी कि उस आदमी ने उनकी आँखों के सामने घड़े में गहने डालें और फिर उसके साथ चल दिए थे। प्रभात के पिताजी कहने लगे। भाभीजी यह और कुछ नहीं हाथ की सफाई मात्र होती है, देखा नहीं है आपने जादूगरों को की कैसे? कैसे अनोखे करतब दिखाते है रामा सेठानी की समझ में अब ठगी की सारी बात साफ साफ आ गई थी। उस दिन से उनकी दो बातें झूठ गई। हर समय गहने पहने रहना और किसी भी अपरिचित की बात पर बिना सोचे समझे अंधा विश्वास कर लेना तो बच्चो इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है कि हमें कभी भी अधिक से अधिक धन पाने की लालच नहीं करनी चाहिए और दूसरा किसी भी व्यक्ति पर वो अनजान है। यदि उस पर विश्वास नहीं कर लेना चाहिए। अपने बुद्धि और विवेक से काम लेना चाहिये। ओके बाय।","सभी को नमस्कार, यह एक महिला की एक अद्भुत हिंदी कहानी है जिसे तीन लोगों ने धोखा दिया है। पूरी कहानी सुनें और कहानी की नैतिकता के बारे में जानें।" "क्या आप भी अपना पॉडकास्ट बनाने का सोच रहे हैं? तो ऐंकर ट्राई कीजिए, ये पॉडकास्ट बनाने का सबसे आसान तरीका है। नंबर एक ये फ्री है नंबर दो। इसमें कई सारे ऐसे टूल्स है जो आपको अपने फ़ोन और कंप्यूटर पर रिकॉर्ड और एडिट करने की फैसिलिटीज देते हैं। नंबर तीन आप अपने पॉडकास्ट को डिस्ट्रीब्यूट भी कर सकते हैं, जिससे इसे इस स्पॉटिफाइ और दूसरे प्लैटफॉर्म्स पर सुना जा सकें। डाउनलोड कीजिये ये फ्री एंकर ऐप या विजिट कीजिए ऐंकर डॉट ऐफ़ एम अपना पॉडकास्ट स्टार्ट करने के लिए? हैलो बच्चों। तो आज हम सुनेंगे दो बकरियों की कहानी। पहले की कहानी में दो फुलिश गोड्स की कहानी होगी। यानी कि मूर्ख बकरियों की और दूसरी कहानी में दो इन्टेलिजेन्स गोड्स की कहानी यानी की। समझदार बकरियों की कहानी। तो आइये सुनते है आज की हमारी कहानी दो बकरियों की। नदी किनारे एक छोटा सा गांव था। गांव में रहने वाले लोगों ने नदी पार करने के लिए उस पर एक पुल बनाया हुआ था, लेकिन वह पुल इतना संकरा था कि एक बार में केवल एक ही व्यक्ति उसे पार कर सकता था। 1 दिन की बात है। एक बकरी नदी पर बने उस पुल को पार कर रही थी। पुल पर चलते चलते उसने देखा कि दूसरी बकरी उसी पुल पर विपरीत दिशा से आ रही है। कुछ ही देर में दोनों पुल के बीचोबीच पहुँच गई। पुल को एक बार में केवल एक ही बकरी पार कर सकती थी। इसलिए दोनों बकरियां कुछ देर तक इंतजार करती रही कि सामने वाली बकरी पीछे हट जाएगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। दोनों में से कोई भी अपनी जगह से नहीं ली बल्कि अकड़ कर खड़ी रही। तब एक बकरी दूसरी बकरी से बोली। तुम मुझे जाने का रास्ता दो क्योंकि मैं तुमसे बड़ी हूँ। इस बात पर दूसरी बकरी हंस पड़ीं और बोलीं हर गीत तुम मुझसे बड़ी, लेकिन मैं तुझ से कहीं ज्यादा ताकतवर हूँ मैं तुझ से जल्दी ये पुल पार कर लूँगी इसलिए तुम मुझे रास्ता दो। पहली बकरी बोली मैं तुमसे बड़ी भी हूँ और ताकतवर भी हूँ इसलिए हट जाओ यहाँ से। कुछ देर तक दोनों में इस बात पर बहस होती रही कि दोनों में से कौन ज्यादा ताकतवर है? फिर बहस लड़ाई में बदल गई। दोनों अपनी अपनी सींगों से एक दूसरे पर वार करने लगी। धीरे धीरे उनकी लड़ाई बहुत बढ़ गई। परिणाम ये हुआ कि उनका संतुलन बिगड़ा और वे दोनों पुल से नीचे नदी में जा गिरी। नीचे नदी की तेज धार उन्हें बहा ले गई और अंततः दोनों मर गई। तो बच्चो अब हम सुनते हैं टू वाइज गॉड्स की कहानी यानी की दो समझदार बकरियों की कहानी। कुछ देर बाद दो और बकरियां विपरीत दिशा से उस पुल पर चलते हुए आ गई और बहस करने लगी। ये कौन पीछे हटेगी और कौन दूसरे को रास्ता देगी? इस बार एक बकरी ने समझदारी से काम लिया। और कुछ देर सोचकर दूसरी बकरी से बोली। ये पुल बहुत सकरा है। इसे एक बार में कोई एक ही बार कर सकता है यदि हमने लड़ाई लड़ने में मूर्खता की। तो नदी में गिरकर अपनी जान गंवा देंगी। इसलिए ऐसा करते हैं कि मैं पुल पर लेट जाती हूँ और तुम मुझे लांघकर दूसरी ओर चली जा ना। दूसरी बकरी को ये भी बात समझ में आ गई और उसने पहली वाली बकरी की बात मान ली। पहली बकरी पुल पर लेट गयी और दूसरी बकरी उसे लांघकर दूसरी ओर चली गई। इस तरह दोनों ने पुल पार कर लिया। तो बच्चो इस कहानी से हमें शिक्षा क्या मिलती है? हमें यह शिक्षा मिलती है की गुस्सा और अहंकार बर्बादी को ही लेकर आता है, लेकिन वही समझदारी से काम लेने पर हम समस्या का समाधान निकाल पाते हैं। बच्चों इस कहानी में दो अलग अलग सोच और निर्णय लेने के तरीके को दर्शाया गया है। एक तरीका गुस्सा और अहंकार से भरा हुआ था, जबकि दूसरा समझदारी से लिया हुआ निर्णय था। ओके बाय।","सभी को नमस्कार, यह दो मूर्ख बकरियों और दो बुद्धिमान बकरियों की एक शानदार कहानी है। दोनों पुल कैसे पार करते हैं और कहानी के अंत में क्या हुआ? पूरी कहानी सुनें और कहानी की नैतिकता के बारे में जानें।" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपको सुनाने जा रही हूँ उसका टाइटल है गुणों का प्रभाव। तो वाराणसी नदी के पास एक बहुत बड़ा तालाब था। वह सदा जल से लबालब भरा रहता था, उसमें बड़े सुंदर, सुंदर कमल खेला करते थे। मार्च का महीना था। सारा तालाब कमलों से भरा हुआ था। तालाब का पानी कमल के फूल और उसके चौड़े पत्तों से पूरा का पूरा ढक गया था। किनारे पर उगी घास। भी सुन्दर लगती थी। तालाब के आसपास कई वृक्ष भी थे उन पर पक्षी छह जाया करते थे। और मनुष्य भी उसकी छाया में विश्राम करते थे। वायु कमल के पार आग को दूर तक उड़ा देती थी। इससे फूलों की सुगंध चारों ओर फैल जाती थी। उस गंध से अनेकों मधुमक्खियां भी आकर्षित हो जाती थी। उनके झुंड आ कर कमलों के रस को चूस लेते थे। माँ नी नाम की एक मधुमक्खी वहाँ रोज़ आया करती थी। इसी प्रकार शीलू भौरा भी रोज़ आता था। दोनों एक दूसरे को आते जाते, उठते, बैठते देखते रहते थे। धीरे धीरे दोनों में मित्रता हो गई। वे घंटों बैठे कमल का रस चूसते और आपस में बातें करते रहते थे। जैसे ही सूरज डूबता शीलू पुल से उड़ जाता, क्योंकि उसका घर वहाँ से कई मील दूर था। मधुमक्खी के साथ ऐसी कोई कठिनाई नहीं थी। तालाब के पास ही एक किसान की झोपड़ी थी। उस झोंपड़ी के पास एक आम के पेड़ पर उसका घर बना हुआ था। किसान भी रानी को बड़ा प्यार करता था। एक बार बोहरे के पंख में चोट लग गई। माँ नी बोली। हिलो भाई तुम्हारा घर तो बहुत दूर है, तुम्हारे पंख में चोट भी लगी है, तुम घर कैसे जाओगे? आज मेरे ही साथ चलो शीलू को मानने की आवाज़ बहुत अच्छी लगी। वह धीरे धीरे उड़ता हुआ मानी के साथ चला। मानी का घर वृक्ष की ऊंची डाल पर था शीलू वहाँ तक उड़ नहीं सकता था। तो मा नी बोली तुम यहाँ पेड़ के नीचे बैठो, मैं तुम्हारे लिए मीटर शहर लेकर आती हूँ। यह कहकर मानी घर से अपने घर चली गयी। बहुत पेड़ के तले बैठने लगा। वहीं किसान अपने छोटे बेटे के साथ बैठा हुआ था। भौरें का संतुलन बिगड़ गया। वह किसान के बेटे से जा टकराया। शीलू का डंक उसके गाल से छू गया और वहाँ से खून झलकने लगा। किसान ने हाथ का रुमाल उस पर मारते हुए कहा यहाँ ना जाने कहाँ से मरने को आ गया है। बोहरा जल्दी जल्दी जान बचाकर भूखा प्यासा भागा, उसे बड़ा दुख हुआ। कि वह जहाँ जाता है सभी उससे भगाते हैं और बचते हैं। कोई मनुष्य से प्यार से नहीं देखता, ना ही बातें करता है। बोहरा निराश होकर तालाब के पास ही वृक्ष पर सो गया। दूसरे दिन मानी मक्खी उसे खोजते खोजते वहाँ आ गई और आते ही बोली वहाँ महाशय आप भी खूब है, कल हम आपके लिए खाना लेकर आये, खूब ढूंढ़ते रहे और आप नदारद थे। शीलू ने दुखी मन से कल की सारी घटना कह सुनाई, फिर बोला। मौनी बहन एक बात पूछूं? बुरा तो नहीं मानोगी नहीं नहीं बताओ क्या पूछ रहे हो? मानी ने कहा। मुझ में और तुम में बहुत समानता है, मैं काला हूँ, तुम भी काली हो मेरे पंख है तुम्हारे भी पंख मैं डंक मारता हूँ, तुम भी डंक मारती हो, मैं फूलों का रस पीता हूँ, तुम भी पीती हो, पर क्या कारण है कि मैं जहाँ भी जाता हूँ, लोग मुझे हट हट कहकर भगा देते हैं। तुम्हें तो वह घर में भी पालते हैं। देखा जाए तो सुन्दर मैं हूँ ज्यादा पर मेरा इतना अपमान क्यों होता है? तुम एक तरह से कुरूप हो, फिर भी तुम्हें सब प्यार क्यों करते हैं, तुम्हें ही क्यों पालते हैं? बहुत हो या रोया पूछ रहा था। माँ नी थोड़ा गंभीर होते हुए कहने लगी, भाई तुम सुंदर हो तो क्या हुआ, तुम्हारी सुंदरता से किसी को क्या लाभ हैं? सुंदरता तो क्षण भर के लिए आकर्षित करती है। वास्तविक और स्थायी आकर्षण तो गुणों का ही होता है। गुणी व्यक्ति का ही सब सम्मान करते हैं। मैं गुरु हूँ तो क्या हुआ? मनुष्यों को जितना लाभ पहुंचाती हूँ यह भी कभी तुमने सोचा है? मैं जिससे शहद को बनाती हूँ, वह उनके हजारों कामों में आता है। मैं डंक मारती हूँ तो क्या समाज के लाभ की बात ज्यादा नहीं सोचती? दूसरों का उपकार अधिक करती हूँ मेरे बहुत से गुणों से या बुरा ई भी ढक जाती है। सच बात तो यह है कि शीलू भाई गुण ही सौंदर्य का स्थायी स्थान है। गुण ही सच्चा प्यार पाता है। बहरा सारी बात समझ गया था। वह भी सोच रहा था कि कैसे वह स्वयं को समाज के लिए उपयोगी बनाएं। बच्चों, इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है की हमें भी। मधुमक्खी की तरह उपयोगी और गुणी बनना चाहिए और दूसरों की और समाज की भलाई में कार्य करना चाहिए। ओके बाइ?","सभी को नमस्कार, यह मधुमक्खी 🐝 और भौंरा की एक अद्भुत कहानी है। इस कहानी में आप अच्छे व्यवहार के लाभों के बारे में जानेंगे। मैं सभी बच्चों को सोने के समय की कहानियां नैतिकता के साथ सुना रहा हूं। मेरी कहानियाँ अभिनव और प्रेरणादायक हैं। अपने बच्चों के साथ मेरी कहानियाँ सुनें। यह निश्चित रूप से आपके बच्चे के व्यक्तित्व के निर्माण में मदद करेगा। पूरी कहानी सुनें और कहानी की नैतिकता के बारे में जानें।" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी में आपको सुनाने जा रही हूँ उसका टाइटल है मित्रता का अंत अन्ना जो या बढ़िया आलसी थी, कुछ कामकाज न करती तो ना सही, पर जुबान की भी बड़ी तीखी थी। वह इतना कड़वी बातें बोलती थी कि सभी काजी उससे भरा गया। 1 दिन उसकी किसी बात से नाराज होकर सभी चूहे चूहों ने उसे बिल से बाहर निकाल दिया। बिना सोचे समझे बोलने वाला। बट बोलने वाला दूसरों से तिरस्कार ही पाता है। अन्ना अकेली रहने के लिए चल पड़ी। रास्ते में उसे सुंदर सा हरा भरा बगीचा दिखाई पड़ा। अन्ना को रहने के लिए या स्थान बहुत ही पसंद आया। वह उस बगीचे में घुस गई। वहाँ अन्ना ने बिल बना लिया। खाने पीने की चीजों की कमी न थी। बगीचे में बहुत फल यो ही हवा के झोंकों से गिर जाया करते थे। उन्हें अन्ना बड़े मज़े से खाया करती। जब कभी फल खाने से मन भर जाता तो बगीचे के पास ही भोला की रसोई में घुस जाती। वहाँ अनेक प्रकार के पकवान खाती पर खाना ढूंढने के लिए अन्ना को अब मेहनत तो करनी ही पड़ती थी। उसकी आदत तो बिना परिश्रम किए खाने की पड़ गई थी। इसलिए अन्ना कोई अच्छा न लगता था पर मजबूर थी। पेट में जब जोरों की भूख लगती तो खाना ढूंढने जाना ही पड़ता। अन्ना अकेली अकेली बड़ी उदास रहने लगी। उसने सोचा कोई मित्र बनाया जाए, अकेलापन भी दूर होगा और समय पर कुछ सहायता भी मिले गी। 1 दिन अन्ना ने एक बड़ी सी चींटी को देखा। वह कचनार के पेड़ के नीचे लेटी थी। चींटी ठंडी ठंडी हवा का आनंद ले रही थी। उसके मुख पर प्रसन्नता और संतोष झलक रहा था। उसे देखकर अन्ना बड़ी प्रभावित हुईं। वह उसके पास गई और बोली प्यारे चेट्टी मैं तुम को अपना मित्र बनाना चाहती हूँ, क्या तुम बनना चाहोगी? जीटी उसकी बात सुनकर बैठ गई। वह विनम्रता से बोली देखो बहन, मित्र तो बहुत सोच समझकर ही बनाना चाहिए। जो सामान स्वभाव के समान गुणों के और वफादार होते हैं, उन्हीं से मित्रता सफल होती है। पर बहन मैं इस उद्यान में अकेली हूँ, मेरा कोई साथी नहीं है। यदि तुम मेरा प्रस्ताव मान लेती हो तो मुझ पर बहुत बड़ा उपकार होगा। अन्ना ने प्रार्थना की चींटी कुछ सोचते हुए बोली तुम्हारी बात सुन कर मेरा मन दया से भर गया है। चलो मैं तुम्हें मित्र बनाना स्वीकार करती हूँ पर ध्यान रखना सच्चे मित्र की पहचान है अपने मित्र का सदैव सदैव हित सोचना, उसे सही सलाह देना और समय पर उसकी सहायता करना। तुम देखना की तुम्हारी कितनी अच्छी मित्र से दूंगी। मैं मुँह फिराकर अन्ना बोली। मेरा नाम राज़ है इसी कचनार के पेड़ की जड़ में ही मेरा घर हैं। चींटी ने अपने हाथ से इशारा करते हुए कहा, जल्दी ही अन्ना और राजकीय मित्रता पक्की हो गई। अन्ना बड़ी खुश थी क्योंकि उसका अकेलापन अब दूर हो गया था। रात के साथ उसका मन खूब भी लगा रहता था। वे दोनों साथ साथ घूमती थी। गर्मी और बरसात इस प्रकार आराम से कट गए। बरसात के 1 दिन राज़ बोलीं अन्ना बहन कल से अब मैं तुम्हारे साथ अधिक घूमना पाऊंगी। अन्ना को लगा कि कहीं किसी बात पर राज़ नाराज तो नहीं हो गई है। उसने घबराते हुए पूछा क्यों इसलिए कि अब जड़ें आने वाले जाड़ों से पहले ही मुझे खाने पीने का सामान इकट्ठा करना है, राज़ बोली। अन्ना तुनककर बोलीं, ओहो हो तो इसमें तुम्हें परेशान होने की क्या बात है? धीरे धीरे जुड़ती रहना राज़ बोली नहीं मेरी प्यारी बहन या संभव नहीं है। मुझे तो जड़े आने से पहले बहुत काम करना है अब कल से तुम्हारे साथ बिलकुल भी घूम नहीं पाऊंगी। गर्मी आने तक विदा यह सुनकर अन्ना कामन बड़ा दुखी हुआ। वह सोचने लगी कि जैसे तैसे तो यहाँ मिली है अब इसका भी साथ छूटता जा रहा है। वह कुछ देर उदासी बैठी रही, फिर सहसा ही उसे एक उपाय सूझा। खुशी से चमकते हुए अन्ना कहने लगी, सुन ओर आज तुम्हारी समस्या मैंने हल कर दी। खाने पीने का सामान इकट्ठा करने में मैं भी तुम्हारी सहायता करूँगी। तुम तो बहुत छोटी सी हो, एक बार में थोड़ा सा हिला पाओगी, तुम अपने साथ मुझे ले चलना। मैं एक बार में बहुत सी चीजें ले आऊंगी। इस प्रकार जल्दी जल्दी तुम्हारा राशन पूरा हो जाएगा। फिर हम आराम से अब की तरह ही घूमा करेंगे। दूसरे दिन अन्ना ने राज़ को बहुत मना किया। वह स्वयं अपना काम करेगी, पर अन्ना ने इसकी एक न सुनी। वह बोली, सुनो ऐसा करो की तुम मुझे यह बताती जाना की कौन कौन सी चीजें कहाँ रखी है, क्या ले जाना है, तुम्हारी सूंघने की शक्ति बहुत तेज है, अतः यह काम आसानी से हो जाएगा। तुम मेरी पीठ पर चढ़ जाओ, दोनों साथ साथ चलती है। रात झिझक रही थी, पर अन्ना ने बहुत आग्रह किया। आखिर मेरा आज उसकी पीठ पर चढ़कर बैठ गई। दोनों सहेलियां अन्न की खोज के अभियान में जुट गई। दो 3 दिन तक यही क्रम चलता रहा। वे अक्सर ही बोला की रसोई में घुस जाती। कभी कुछ उठा लेती तो कभी कुछ राज़ बड़ी खुश थी। वह मन में सोचती थी कि देखो समर्थ से मित्रता करना कितना सुख देता है। मैं अब तक सोचा करती थी कि नालसी या लापरवाह है। अब तो हर साल या मेरी ऐसी ही सहायता करेगी आह दूसरी चीटियां महीनों काम में जुटी रहेंगी। और मैं झटपट अपना काम पूरा कर मौज बनाउंगी। पर राज़ का यह सोचना सच नहीं हुआ। चौथे ही दिन एक दुर्घटना घट गई। हुआ यह कि भोला की माँ रोज़ रोज़ अन्ना के रसोई में घुसने से तंग आ गई थी। उसने एक चूहेदान में रोटी का एक बड़ा सा टुकड़ा लगाकर रख दिया। अन्ना जैसे ही रोटी लेने उस में घुसी वो आप कट से बंद हो गया। अब दो अन्ना और राज़ दोनों ही चूहेदान में बंद हो गई। अन्ना ने बहुत तेरे हाथ पैर मारे पर वह चूहेदान का दरवाजा खोलने में सफल न हो सके। 2 घंटे के लगातार प्रयास के बाद अन्ना थक कर बैठ गई। उसके मुँह से खून भी निकलने लगा और हाथ पैर दर्द करने लगे। राज़ के कारण ही मुझे इस प्रकार बंद होना पड़ा। अब तो निश्चित ही मेरे प्राण संकट में ऐसा सोचकर अन्ना को राज़ पर बड़ा गुस्सा आया। वह पास ही चुपचाप उदास बैठी राज़ पर बड़ी ज़ोर से नाराज हो रही थी। राज़ बोलीं नाराज क्यों होती हो? मैंने तो खुद ही तुमसे कहा था कि अपना काम मैं खुद कर लूँगी तुम ही नहीं मानी थी, पर अब गुस्सा करने से क्या लाभ हैं? तुम्हारे छूटने का कोई उपाय सोचती हूँ बड़ी आई तो उपाय सोचने वाली तू छत्र प्राणी भला मुझे कैसे छुड़ाएगी? अब तू ज्यादा बक बक ना कर मेरी आँखों के आगे से दूर हो जा आंखें लाल लाल करके अन्ना बोली। साथ ही उसने बहुत ज़ोर से अपनी पूंछ घुमाकर राज़ के मारी और उसे दूर धकेल दिया। राज़ को बड़ी चोट लग गई। उसका पैर तुरंत ही टूट गया और अलग हो गया। दर्द से कराह उठी वह। उसका मन भी बड़ा दुखी हो रहा था। लंगड़ाती हुई वो चूहेदान से बाहर निकली तभी उसने देखा कि भोला की माँ चूहेदान उठा रही है। जरूर वन्ना को मारेगी। राजने मन में सोचा। उसने ज़ोर से भोला की माँ के पैर पर काट खाया। अचानक ही बोला की माँ के हाथ से छुए दान छूट पड़ा। छूटते ही वह खुल गया और खुलते ही अन्ना उसमें से निकल भागी। उसने पीछे मुड़कर एक बार भी राज़ को ना देखा। राज़ जैसे तैसे लंगड़ाते हुए अपने बिल में पहुंची। उस की यह दुर्दशा देखकर अनेक को चिट्ठियां दौड़ी चली आईं। उन्होंने उसके उपचार किये तब कहीं जाकर पैर का दर्द कुछ कम हुआ। राज़ आज भी लड़का ती हुई ही चलती है। वह ठीक से काम नहीं कर पाती पर उसके बिल की रानी चींटी ने कह दिया है कि आसानी से जितना काम कर सकती हो करो, आज यदि तुम काम नहीं कर पा रही हो तो क्या हम तुम्हे निकाल देंगे? नहीं कदापि नहीं। तुम अधिकारपूर्वक इस बिल में रहो और आज भी राज़ सभी चींटियों के बीच समानता पूर्वक रहती है। पर हाँ, वह लंगड़ी कैसे हुई इसका रहस्य केवल वही जानती है। उसे अन्ना से दोस्ती की बात किसी को बताने में भी शर्म आती है। वह प्रयास सभी को यह समझाया करती है। हर किसी को मित्र नहीं बनाना चाहिए। मित्रता बड़ी सोच समझकर करनी चाहिए। अंत तक फिर उसका पालन करना चाहिए। जीवन में कोई सच्चा मित्र ना बन पाए या उतना बुरा नहीं है। इससे बुराईयाँ है कि हम बिना पर के किसी अयोग्य और दृष्टि से मित्रता कर लें। लेकिन मित्र शुरू में तो बड़ा मीठा व्यवहार करते हैं। और अंत में पछतावा ही शेष रहता है। इसलिए खूब सोच समझकर ही मित्र बनाने चाहिए। तो इस प्रकार राज़ ने अपने मन की बात अपने साथी जातियों को समझा दी तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें कभी भी किसी का अहित नहीं करना चाहिए और जीवन में मित्र सोच समझकर ही बनाने चाहिए। ओके बाय।",यह एक आलसी चूहे की कहानी है। चूहे अपने जीवन में अकेलापन महसूस करते हैं इसलिए यह दोस्त बनाते हैं। चींटी और चूहे अच्छे दोस्त बन जाते हैं लेकिन जब चूहे को पिंजरे में कैद किया गया तो वह अपनी दोस्त चींटी पर बहुत गुस्सा हुआ। पूरी कहानी सुनें और जानें उनकी दोस्ती के बारे में। "हैलो बच्चों, आज मैं आप सबको कोई कहानी नहीं सुनाने जा रही बल्कि अभी तक की मेरी कहानियों का मर्म बताने जा रही हूँ। तो इसे ध्यान से सुनियेगा। बच्चों आपने एक चीज़ गौर की होगी की इस स्टोरी को चैनल में जो स्टोरीज़ अपलोड होती है, अपडेट होती है, उनमें एक समृद्ध है। अधिकतर इस स्टोरीज़ जानवरों पे बेस्ट है। तो किसी ने मुझसे यह प्रश्न किया था की ह्यूमन बीइंग से रिलेटेड स्टोरीज़ आप अपडेट नहीं करते है। सारी स्टोरीज जानवरों से ही। जुड़ी हुई होती है। ऐसा क्यों है? तो उसके लिए मैं बताना चाहूंगी। की मेरी अधिकतर कहानियों में पात्र जानवर होते हैं और कहानी उन जानवरों के और जंगलों के इर्द गिर्द ही घूमती है। उसका कारण है कारण क्या है? हम अपने जीवन में कभी भी अपने चारों तरफ अपनी प्रगति को देखें। जीव जंतुओं को देखे इंसान इंसान से तो सीखता ही है लेकिन सबसे बड़ा गुरु मनुष्य का होता है नेचर। प्रगति हमारी सबसे बड़ी गुरु है। अब प्रगति ने जीव, जंतु, पशु, पक्षी सब बनाए हैं। कैसे पशु पक्षी मेहनत कर करके, कितनी मशक्कत करके अपना पेट भरते हैं, अपने परिवार का पालन पोषण करते हैं, कितनी मेहनत करते हैं, इन सब चीजों की जानकारी हमें इन कहानियों के द्वारा ही होती है। तो बच्चो हमें इन कहानियों से यही शिक्षा लेनी चाहिए कि किस जज्बे के साथ सभी जीव जंतु इस सृष्टि के नियमों का पालन करते हुए। अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं, अपनी जीविका चलाते हैं और अपनी दिनचर्या को सुचारू रूप से। चलाने का कार्य करते हैं। मित्रता का भाव, कठिन परिश्रम का भाव, अपने परिवार में अपने बच्चों के पालन पोषण का भाव, ये सारी चीजे हमें जानवरों से सीखने को मिलती है। एक छोटी सी चींटी भी हमें मुसीबत में पड़ने पर कैसे उससे बाहर निकाला जाए? यह बताने में सक्षम है। एक पक्षी हमें दूसरों की सहायता करने दुसरो की केयर करना सीखाता है। एक बिल्ली और बंदर इस तरीके के जीव जंतु भी हमें मित्रता करना सिखाते हैं। स्वामीभक्ति अभिमान न करना ये सारी चीजे हमें कहीं और जाने की आवश्यकता नहीं है। मगर अपनी प्रकृति में पलने वाले जीव जंतुओं पे दृष्टि डालें तो हमें उनसे भी वो सब चीजें सीखने को मिल सकती है। तो बच्चों, मेरी इन कहानियों में इन जीवजंतुओं, पशु, पक्षियों से इन सारी चीजों को सीखिये। और अपने जीवन का मूलमंत्र बनाये। इससे आप हमेशा जीवन में तरक्की करेंगे, आगे बढ़ेंगे और कभी भी आपको कठिन परिस्थितियों में परेशानी नहीं होगी। आप उन से भी बचकर निकल जाएंगे। ओके बाइ?","सभी को नमस्कार मैं सभी बच्चों को सोने के समय की कहानियाँ बता रहा हूँ। मेरी कहानियाँ अभिनव और प्रेरणादायक हैं। अपने बच्चों के साथ मेरी कहानियाँ सुनें। यह निश्चित रूप से आपके बच्चे के व्यक्तित्व के निर्माण में मदद करेगा। बचपन और कहानियों का एक अलग रिश्ता होता है। ये केवल कहानियाँ हैं, जो जीवन के छोटे से छोटे पाठ को बहुत ही सहज और सरल तरीके से देती हैं और बच्चों का व्यक्तित्व इसी पाठ पर निर्भर करता है। आज भले ही दिल बहलाने वाले बच्चों की नैतिक कहानियां हमारे दिमाग से धुंधली हो गई हों, लेकिन उनसे सीखी सीख आप सभी के लिए आज भी प्रासंगिक जरूर हैं।" "क्या आप भी अपना पॉडकास्ट बनाने का सोच रहे हैं? तो ऐंकर ट्राई कीजिए, ये पॉडकास्ट बनाने का सबसे आसान तरीका है। नंबर एक ये फ्री है नंबर दो। इसमें कई सारे ऐसे टूल्स है जो आपको अपने फ़ोन और कंप्यूटर पर रिकॉर्ड और एडिट करने की फैसिलिटीज देते हैं। नंबर तीन आप अपने पॉडकास्ट को डिस्ट्रीब्यूट भी कर सकते हैं, जिससे इसे इस स्पॉटिफाइ और 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की। भगवान की आकाशवाणी सुनाई दी है कि मैं जल्दी ही धरती पर देवकी और वासुदेव के पुत्र के रूप में जन्म लूँगा और मेरे साथ श्री बलराम जी और राधा जी भी अवतार लेंगे और तुम भी सभी अपने अपने अंशों से जाकर यादव कुल में अवतार धारण करो। सब देवताओं ने भूरी भूरी प्रशंसा भी की। अब कंस को आकाशवाणी सुनाई देना। मथुरा के राजा उग्रसेन। उग्रसेन के छोटे भाई थे। देवा। उग्रसेन के पांच बेटियां और नौ बेटे थे। देवक महाराज के चार पुत्र और सात बेटियां थीं। जिनमें से अपनी छह बेटियों की शादी सुरसेन के बेटे वासुदेव से वे कर चूके थे। अंत में देवकी की शादी भी। वासुदेव से मंगल मुहूर्त में कर दी गई। ये कंस की चचेरी बहन थी। देवता फूलों की बारिश कर रहे थे। मंगल गाना गाया जा रहा था। महाराज ने बहुत सा सामान अपनी बेटी को दिया। जब विदा का समय आया तो रत में देवकी और वासुदेव दोनों विराजमान है। सबकी आँखों में आंसू थे, कंस भी रो रहा था। कंस को अपनी बहनों से ज्यादा देवकी से प्रेम था क्योंकि घर में वह सबसे छोटी थी। कंस कहते हैं, मैंने अपनी बहन को इतना प्यार दिया है तो क्या मैं इसके घर तक इसे छोड़कर नहीं आ सकता? कौन सी ने सारथी को उतारकर खुद घोड़ों की राज़ पकड़ ली और महलों की ओर चले। जब बीच रात पर पहुंचे तो आकाशवाणी हुई। अरे कौन सी? जिंस बहन को तू इतना लाड प्यार से विदा कर रहा है। इसी का आठवां पुत्र तेरा काल बनेगा। जैसे ही कंस ने सुना तो म्यान से तलवार निकाल ली और देवकी को मारने लगा। जब वासुदेव ने देखा तो उसको रोका और कहा कंस आकाशवाणी की आवाज़ मैंने भी सुनी है। देखो कंस जिससे संसार से जीव पैदा होता है उसी दिन उसकी मौत भी निश्चित हो जाती है। अगर देवकी के बालक से तुम्हारी मृत्यु होने वाली होगी तो उसे कोई टाल नहीं सकता। लेकिन एक बात मैं तुमसे कहना चाहता हूँ, तुम्हें अपनी बहन से डर नहीं है इसके बालकों से है। तुम्हें आज प्रतिज्ञा करता हूँ कि जीतने भी देवकी के बालक होंगे, सब लॉकर तुम्हें दे दूंगा। वासुदेव ने अपने जीवन में कभी झूठ नहीं बोला था इसलिए कंस को विश्वास हो गया। कंस ने देवकी और वासुदेव दोनों को बंधन से मुक्त कर दिया। कुछ समय बाद देवकी के बेटा हुआ नाम रखा कीर्तिमान। वचन के अनुसार वासुदेव। ने बालक को लेकर कंस को दे दिया ने कहा कि मुझे इस बालक से डर नहीं है। आठवें बालक से तुम इसे ले जाओ। वसुदेव बालक को लेकर चले गए। नारदजी का कंज के पास जाना। नारदजी ने सोचा अगर कल से जैसे पापी के मन में दया आ गई तो भगवान का अवतार कैसे होगा? अपनी वीणा लेकर कंस के पास आए और बोले नो यण कंस देवकी के बालकों का क्या हुआ? गन्स ने कहा। अभी पहले पुत्र का जन्म हुआ है, मुझे याद वे पुत्र से डर है, पहले से नहीं। तब नारदजी ने आठ दानों की माला लेकर कंस के हाथ में दे दी और कहा दाने गिनो। कंस ने कहा, इसमें क्या आठ मनका है और क्या है? अब आप पहले मनके से नहीं दूसरे से गिनती शुरू करो और पहले वाले को अंतिम मैं गिनना। ऐसा नारदजी ने कहा। जब कंधे में गिना तो पहले वाला आठवें नंबर पर आया। फिर नारदजी बोले की आप तीसरे मनके को पहले नंबर से गिनो और दूसरे को अंत में गिनना। इस तरह से नारद ने प्रत्येक माला के मनके को आठवां बनाकर दिखा दिया। कंस बोले की आपके बच्चों वाला खेल खिला रहे हैं, मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा है। नारदजी बोले। कंस यही मैं समझा रहा हूँ। जैसे इस माला का प्रत्येक दाना आठवां है, वैसे ही हर बालक में भगवान का वास है। नारदजी कभी बच्चों को मारने की शिक्षा नहीं देंगे, लेकिन की बुद्धि जड़ है। हर बार उल्टा ही सोचती है कंस के मन में आया की देवकी का हर बालक आठवां है और तेरा काल है। फिर नारदजी चले गए। अब कंस ने उस बालक को मंगवाया और उसे मौत के घाट उतार दिया। इस तरह देवकी के छे बालक हुए। कंस ने सभी को मरवा दिया। अब देवकी और वासुदेव को कारागार में बंद कर दिया गया। बलरामजी का जन्म। भगवान ने योगमाया को सातवाँ बालक बनने की आज्ञा दी और कहा कि तुम देवकी के साथ में गर्भ का आकर्षण करो और रोहिणी जी के गर्भ में डाल दो और नंदगांव में चले जाओ। और यशोदा के गर्भ से पुत्री बनकर जन्म लेना तुम्हारी दुर्गा के रूप में पूजा होगी। कोई तुम्हें दुर्गा कहेगा, कोई काली और कोई खपपरवाली कहेगा अनेक नाम तुम्हारे पड़ेंगे और कलिकाल में जो कोई भी तुम्हारी पूजा करेगा उसे मनवांछित फल भी मिलेगा। योगमाया ने सातवें बच्चे यानी की बलराम का आकर्षण किया और रोहिणी जी के गर्भ में डाल दिया। कंज को पता चला कि मेरा काल आने वाला है तो कारागार की और चतुरंगिणी सेना खड़ी कर दी। हाथी, घोड़े, पैदल रथ, देवकी और वासुदेव के पैरों में बेड़ियाँ डाल दी। यहाँ देवकी के गर्भ में भगवान आकर साक्षात विराजे। देवताओं ने भगवान को सत्य कहा और बड़ी ही सुंदर स्तुतियाँ की अब बड़ा सुंदर समय आया। कृष्णपक्ष बुधवार है और चंद्रमा रोहिणी नक्षत्र के तीसरे चरण में प्रवेश कर रहा है। आकाश में तारों का प्रकाश है, एकदम से बादल गरजने लगे और बिजली चमकने लगी। सरोवर के कमल। के फूल खिल रहे हैं। अग्नि कुंडों में अग्नि प्रज्वलित हो गई। मंद मंद बारिश होने लगी। अर्ध रात्रि का समय है। देवकी और वासुदेव के हाथ पैरों की बेड़ियाँ खुल गई और भगवान कृष्ण ने चतुर्भुज रूप में अवतार लिया। देवकी और वासुदेव ने भगवान की स्तुति की है। देव जी ने कहा कि प्रभु आपका रूप। दर्शनीय नहीं है आप और बालकों की तरह छोटे से बंजाइ ये भगवान छोटे से बालकृष्ण बनके माँ की गोद में विराजमान हो गए। वहाँ पर सुंदर टोकरी है। उसमें मखमल के गद्दे लगे हुए हैं। भगवान की प्रेरणा हुई की आप मुझे गोकुल में छोड़ आइये और वहाँ से कन्या को लेकर आजाइये वासुदेव जल्दी ये है कारागार के द्वारा अपने आप खुल गए और सभी सैनिक बेहोश हो गए। रास्ते में यमुनाजी आई वसुदेवजी यमुनापार करने के लिए आगे बढ़े, लेकिन ये क्या? यमुनाजी भगवान श्रीकृष्ण की पटरानी है, इसलिए वे उनका पैर छूना चाहती थी। लेकिन। वासुदेव जी उन्हें टोकरी मिली, ये हुए है। इसलिए यमुना जी ने अपना जलस्तर बढ़ाना शुरू कर दिया। भगवान बोले अरे यमुना ये क्या कर रही है? देख अगर मेरे बाबा को कुछ भी हुआ तो अच्छा न होगा। यमुना जी बोली की आज तो आपके बाल रूप के दर्शन हुए हैं तो क्या मैं आपके चरण स्पर्श ना करूँ? तब भगवान ने अपने छोटे छोटे कमल जैसे पांव टोकरी से बाहर निकाले और यमुना जी ने उन्हें छुआ और आनंद प्राप्त किया। फिर यमुना का जलस्तर कम भी हो गया, लेकिन बारिश बहुत तेज थी। तभी शेषनाग भगवान टोकरी के ऊपर छत्र छाया की तरह आ गए। आज भगवान के दर्शन करने को सब लालायित हैं। वासुदेव जी ने यमुना नदी पार की और गोकुल आगये है। कृष्ण जनम गोकुल कथा। यशोदा और नंदबाबा। चलिए अब थोड़ा दर्शन नंदबाबा और यशोदा मैया के नंदगांव का करते है। बात उस समय की है जब माघ का महीना और मकर संक्रांति का दिन था। नंदबाबा के छोटे भाई के उपनंद। इनके घर ब्राह्मण भोजन करने आए थे। उपनंद ने नंदबाबा से कहा कि आप सभी ब्राह्मणों को तिलक करें और दक्षिणा दें। तिलक करने के बाद सभी ब्राह्मणों ने एक साथ आशीर्वाद दिया। बृजराज आयुष्मान भव बृजराज धन वान भाव बृजराज पुत्रवान भाव नंदबाबा बोले ब्राह्मणों अब हँसी क्यों करते हैं? मैं 60 साल का हो गया हूँ। आप कहते हैं पुत्रवान? ब्राह्मण बोले की हमारे मुखसे आशीर्वाद निकल गया है, आपके यहाँ बेटा ही होगा। आशीर्वाद देकर सभी ब्राह्मण वहाँ से चले गए। माघ मास। एकम तिथि नन्द और यशोदा के सपने में कृष्ण का दर्शन हुआ और उस दिन यशोदा ने नंदबाबा के द्वारा गर्भधारण किया। सावन का महीना रक्षाबंधन का दिन आया। सभी ब्राह्मण नन्द बाबा के पास आये। नंदबाबा ने सबके हाथों में मौली बांधी और सबको दक्षिणा दी फिर वही आशीर्वाद दिया। बृजराज, धनवान, आयुष्मान भव आप उतरवान बावा नन्द बाबा को हँसी आ गयी और बोले आपका आशीर्वाद फल ने तो लगा है लेकिन पुत्रवान की जगह पुत्री वान हो गया, तब क्या करेंगे? ब्राह्मणों ने कहा कि हम ऐसे वैसे ब्राह्मण नहीं है। कर्मनिष्ठ और धर्मनिष्ठ ब्राह्मण यदि आपके यहाँ लड़की भी हो गई। तो कोई बात नहीं, हमें पता है लड़का ही होगा। आप रक्षा मौली बांध दें। जब जाने लगे तो ब्राह्मण तो नन्द बाबा बोले की ये तो बता दीजिए, ये भी लाल है के जन्म में कितना समय? सभी ब्राह्मण एक साथ बोले। आज से ठीक आठवें दिन रोहिणी नक्षत्र की तीसरे चरण में आप के यहाँ बालक का जन्म होगा। ब्राह्मण आशीर्वाद देकर चले गए। नंदबाबा ने 8 दिन पहले ही तैयारियां शुरू कर दी। सारे गोकुल को दुल्हन की तरह सजा दिया। वो समय भी आ गया। रात्रि के 8:00 बज गए। घर के नौकर चाकर सब नन्द बाबा के पास आए और बोले की बाबा नाम तो आज का ही लिया है, हमें नींद आ रही है, 8 दिन से सेवा में लगे हैं, आप कहो तो सो जाए। नन्द बाबा ने बोला, हाँ भैया तुमने काम किया है तो आप आज सो जाओ। घर के नौकर जाकर सब सोने चले गए। 2 घंटे का समय बीता। नन्द बाबा की दो बहनें थीं नंदा और सुनंदा। नंदबाबा ने सुनंदा से कहा कि रात के 10:00 बजे है, मुझे भी नींद आ रही है। तू कहे तो थोड़ी देर के लिए मैं भी सो जाऊं। सुनंदा बोली, हाँ भैया तुम भी सो जाओ। मैं भाभी के पास हूँ जब लाला का जन्म होगा आपको बता दूंगी। नंदबाबा भी सो गए। रात के 11:00 बजे सुनंदा को भी नींद आ गई। यशोदा के पास जाकर बोली भाभी नाम तो आज ही लिया गया है, आज ही जन्म होगा, अगर आप कहो तो थोड़ी देर के लिए सो जाओ, बहुत थकी हूँ। यशोदा जी ने कहा हाँ आप सो जाईये तो लाला की बुआ सुनंदा भी 11:00 बजे सो गई। अब प्रश्न उठता है की सब लोग सो क्यों गए? भगवान के जन्म का समय था क्योंकि पहले आ रही है योग। माया माया का काम है, लेकिन जब भगवान आते हैं तो माया वहाँ से चली जाती है और सबको जगह देते हैं। जब 12:00 बजे का समय हुआ तो लाला की मैया भी सो गई। उसी समय वसुदेवजी आए और लड़की को लेकर चले गए और लाला कृष्ण को यशोदा के बगल में लेटा दिया। भगवान माँ के पलंग पर सोए हुए हैं लेकिन जहाँ से आवाज आती है वही से खर्राटों की आवाज आ रही है। माँ सो रही है, पिता सो रहे हैं, बुआ सो रही है, घर के नौकर जाकर सभी सो रहे हैं। कितने भोले हैं बृजवासी, इनको ये भी पता नहीं है कि मैं पैदा हो गया हूँ। उठकर नाचें, गाएँ ये हमें मैया से कह दूँ कि मैया में पैदा हो गया हूँ, तू जाग जा। भगवान बोले नहीं, यहाँ बोला तुम्हें डर जाएगी, अब क्या करूँ? भगवान ने सोचा की थोड़ा सा रूम जिससे माँ जाग जाएगी लेकिन भगवान को रोना ही नहीं आता है। फिर भी बालकृष्ण ने थोड़ी सी चतुराई की और रोने का प्रयास किया, लेकिन संसार के बालक की तरह नहीं रोए। भगवान जब रोने लगे तो ओम की ध्वनि निकली कृष्णम् ए जगतगुरु अब सबसे पहले लाला की बुआ जाग गईं और ये बहन सुनंदा बधाई हो बधाई लाला का जन्म हो गया। दौड़कर नन्द बाबा के पास गई। और बोली लाला का जन्म हो गया। देखते ही देखते पूरा गांव जाग गया। सभी को बधाई बांटने लगी। सब भगवान कृष्ण के जन्म को उत्साहपूर्वक मनाने लगे। हर तरफ से आवाज आने लगी। नन्द के आनंद भयो, जय कन्हैयालाल की, हाथी घोड़ा पालकी, जय कन्हैया लाल की। तो बच्चो ये थी भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की कथा। ओके बाय।",नमस्कार सभी लोग श्री कृष्ण जन्म की नई कहानी सुनें। उन्होंने अपनी बचकानी लीलाओं से सबका मन मोह लिया है। भगवान श्री कृष्ण के जन्म की कथा बहुत ही सुंदर है। श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव को जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है। आइए सुनते हैं भगवान श्री कृष्ण के जन्म की पूरी कहानी। जय श्री कृष्ण "क्या आप भी अपना पॉडकास्ट बनाने का सोच रहे हैं? तो ऐंकर ट्राई कीजिए, ये पॉडकास्ट बनाने का सबसे आसान तरीका है। नंबर एक ये फ्री है नंबर दो। इसमें कई सारे ऐसे टूल्स है जो आपको अपने फ़ोन और कंप्यूटर पर रिकॉर्ड और एडिट करने की फैसिलिटीज देते हैं। नंबर तीन आप अपने पॉडकास्ट को डिस्ट्रीब्यूट भी कर सकते हैं, जिससे इसे इस स्पॉटिफाइ और दूसरे प्लैटफॉर्म्स पर सुना जा सकें। डाउनलोड कीजिये ये फ्री एंकर ऐप या विजिट कीजिए ऐंकर डॉट ऐफ़ एम अपना पॉडकास्ट स्टार्ट करने के लिए? हे गाइस आज की हमारी कहानी है। गरीब, किसान और सोने का घड़ा। बात बहुत पुरानी है। कान्यकुब्ज में एक राजा राज्य करता था। एक बार उसे अपने खजाने की रक्षा के लिए कोषाध्यक्ष की जरूरत पड़ी। राजा चाहता था कि कोई ईमानदार और निर्लोभी व्यक्ति इस पद पर रखा जाए। पर ऐसे व्यक्ति को ढूँढना सरल नहीं था। अनेक व्यक्ति राजा द्वारा ली गई परीक्षा में असफल हो चूके थे। राजभवन से आधा मील दूर पर एक गरीब किसान रहता था। टूटी फूटी एक उसकी झोपड़ी थी। वर्षा लिए तुम्हें जब उससे पानी टपकता तो वहाँ बैठना भी दूभर हो जाता था। किसान और उसका परिवार दिन में बस एक बार रुकी सुखी रोटी खाता। उसका सारा परिवार फटे पुराने कपड़े पहनता था। 1 दिन किसान सुबह सुबह अपने खेत पर जा रहा था। सहसा उसकी निगाह झोंपड़ी के द्वार पर पड़ी। उसके पास मिट्टी का एक सुंदर सा घड़ा रखा था। उसका मुँह कपड़े से ढका था। किसान को बड़ी उत्सुकता हुई की यह क्या है? उसने घड़े को खोलकर देखा। कपड़ा हटाते ही उसकी आंखें चौंधिया गयीं। घड़ा तो स्वर्ण मोहरों से खचाखच भरा हुआ था। किसान उसे लेकर तुरंत घर में घुस गया। उसने यह घड़ा पत्नी को दिखाया। उसके चारों बच्चे भी वहाँ इकट्ठा हो गए थे। बच्चे सोच रहे थे की अब तो हमारी सारी गरीबी दूर हो जाएगी, हम भी अच्छे कपड़े पहनेंगे, अच्छा खाना खायेंगे। बड़ा बेटा कहने लगा पिताजी इतने ढेर सारे धन से तो अब हमारे सारे दुख दूर हो जाएंगे। इस पर किसान ने कहा पुत्र इस धन पर हमारा क्या अधिकार, इसे तो मैं अभी जाकर राजा के खजाने में जमा करा दूंगा। ध्यान रखो, मुफ्त का धन कभी सुख नहीं देता। वह अपने साथ रोग, शोक, पतन और संकट लेकर आता है। ईमानदारी और परिश्रम की कमाई ही पलती है। किसान और उसकी पत्नी दोनों राजदरबार पहुंचे। सोने की मोहरों से भरा घड़ा राजा के सामने रखते हुए बोले। महाराज ये हमें अपनी झोंपड़ी के द्वार पर पड़ा हुआ मिला है। राजा ने देखा कि एक कृषक अपनी पत्नी के साथ उनके सामने खड़ा या कह रहा है। राजा ने बड़े गौर से उन्हें देखा। दोनों के शरीर पर पैबंद लगे हुए मटमैले कपड़े थे। गरीबी उनकी वेशभूषा से साफ झलक रही थी। राजा बोले। क्या तुम्हें धन की जरूरत नहीं है? पर हम ईमानदारी और परिश्रम से धन कमाएंगे। इस धन को मैं कैसे लेलू यह न जाने किसका है, दूसरे के धन पर मेरा क्या अधिकार? इसलिए मैं इसे राज्य के खजाने में जमा कराने लाया हूँ। किसान कह रहा था। राजा कुछ सोने की मुहरें किसान की पत्नी को देता हुआ बोला। मैं तुम दोनों की ईमानदारी से बहुत खुश हूँ लो यहाँ कुछ इनाम रख लो। राजन या तो हमारा कर्तव्य है। किसान की पत्नी ने कहा और मुहरें लेने से इनकार कर दिया। किसान भी सिर को हिला हिलाकर नहीं नहीं ऐसा ही कह रहा था। अब राजा से रहा नहीं गया, वह अपने सिंहासन से उतर पड़ा। किसान को गले लगाते हुए बोला, मुझे तुम्हारे जैसे ईमानदार कोषाध्यक्ष की ही जरूरत है। आज से तुम राज्य के खजाने की देखभाल करो। किसान और उसकी पत्नी ने यह स्वप्नों में भी ना सोचा था कि कभी वे इतने बड़े पद के अधिकारी बनेंगे। दोनों के मुख प्रसन्नता से चमकने लगे। यह तो उन्हें बाद में पता लगा कि उनकी परीक्षा के लिए ही वह घड़ा राजा ने रखवाया था। अन्य व्यक्तियों ने तो अपने द्वार पर घड़ा पाकर उसमें से मोहरे निकालकर उन्हें अपने अपने घरों में छिपा लिया था। राजा ने उन सब को चोरी के आरोप में कड़ी सजा दी थी। घड़े को जमा कराने वाला एक मात्र व्यक्ति किसान ही था। तो बच्चो इस छोटी सी कहानी से हमने यही सीखा कि हमें हमेशा ईमानदारी से ही कार्य करना चाहिए। ओके बाय।","सभी को नमस्कार, यह एक गरीब किसान की नैतिक कहानी है। वह और उसका परिवार गरीबी से जूझ रहा है लेकिन उसने किसी को धोखा नहीं दिया। संयोग से जो धन मिला, वह सब लौटा दिया। पूरी कहानी सुनें और कहानी की नैतिकता के बारे में जानें।" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपके लिए लेकर आई हूँ, उसका टाइटल है क्रिसमस ट्री का नीला सितारा। नई बात यह नहीं थी कि पहाड़ी पर बर्फ़ पड़नी शुरू हो गई थी। नई बात यह भी नहीं थी कि बच्चों के लाल पीले कोट बाहर निकल आए थे। नई बात तो यह थी कि बच्चों की टोली खाली हाथ लौट आई थी। निराश और मुँह लटकाकर। पूरी पहाड़ी छान मारी थी, पर कहीं भी नहीं मिला था क्रिसमस ट्री, जबकि क्रिसमस के 3 दिन ही बचे थे। ऐसे में माइक ने घोषणा की, मैं अकेला जाऊंगा और क्रिसमस ट्री खोज कर लाऊंगा। बच्चों की टोली माइक को साथ नहीं ले गई थी, सो उसका इस तरह बढ़ चढ़ कर बोल ना किसी को भी अच्छा नहीं लगा रॉबिन तो मुँह बनाकर बोला भी अकेला जाए गा तो बेड़ियाँ तुझे खा जायेगा। लेकिन माइक ने किसी की भी परवाह नहीं की। अपना लाल कोट थोड़ा और कसा और एक छोटी कुल्हाड़ी लेकर जंगल की ओर रवाना हो गया। तभी रुई के फाहों की तरह बर्फ़ पड़नी शुरू हो गई और अंधेरा भी छाने लगा। बहुत देर तक चलता रहा। लौटते चरवाहे और लकड़हारे भी उसे राह में मिले। उसने सबसे क्रिसमस ट्री के बारे में पूछा और उन्हें कुछ भी नहीं मालूम था। हर कोई यही कह रहा था की आज तक इस जंगल में उन्होंने एक भी क्रिसमस ट्री उगा हुआ नहीं देखा। वैसे सच बात तो यह थी कि उन्हें क्रिसमस ट्री की पहचान ही नहीं थी। माइक फिर से आगे बढ़ने लगा और घने जंगल में अंदर की तरफ घुसने लगा। चलते चलते एक विशाल बरगद के नीचे एक बूढ़े आदमी को बैठे देखकर वह चौंक गया। हालांकि उस बूढ़े की दाढ़ी सफेद नहीं थी और ना ही उसने लाल लबादा पहन रखा था। फिर भी माइ कोवा सैंटा क्लॉस जैसा ही लगा। माइक को देखकर बूढ़े ने अपनी झबरी दाढ़ी पर हाथ फेरते हुए कहा, बोलके एक सूखा तालाब है। वहाँ कभी अद्भुत क्रिसमस के क्रिसमस ट्री हुआ करते थे। खोज में दूर दूर से बच्चे यहाँ आया करते थे। कैसी अद्भुत क्रिसमस ट्री, बाबा माइक ने हैरानी से पूछा। बच्चे उस पवित्र ट्री को घर में सजाते थे। अगर वे सच्चे दिल से भले काम करें और प्रभु ईशु के बताए हुए रास्ते पर चलें, तो आधीरात के बाद कोई भी देख सकता था की क्रिसमस ट्री पर एक बड़ा सा नीला सितारा चमकने लगता था। बूढ़े ने अपनी चीजें समेटते हुए कहा। बूढ़े की बात से माइक का उत्साह और बढ़ गया और वह तालाब की खोज में आगे बढ़ चला। तालाब पर पहुँचकर माइक ने देखा कि वहाँ तो बर्फ़ बहुत ज्यादा ही गिरी थी। क्या क्या पत्थर क्या धरती सभी कुछ बर्फ़ में था। आसपास पचासों झाड़ियां थीं पर बर्फ़ से ढकी होने के कारण सभी एक सी लग रही थी। अरे, यह क्या? उसने चौंककर एक छोटी सी झाड़ी की ओर देखा? साथ छोटी छोटी चिड़िया बर्फ़ पर जमी बैठी थी। उसने हाथ बढ़ा कर एक चिड़िया को उठाया। बेबस चिड़िया बर्फ़ की मार से अधमरी थी। उसने झटपट रुमाल निकालकर चिड़िया के शरीर से बर्फ़, झाड़ी और अपनी फर वाली टोपी उतारकर उसमें उसे बैठाकर अपने दस्तानों से उसे इस तरह ढक दिया जिससे उसे ज्यादा से ज्यादा गर्मी मिल सके। इसी तरह एक एक करके उसने सातों चिड़ियों को ढक दिया। गीली चिड़िया अभी भी थरथरा रही थी और उसकी तरफ बड़ी मासूमियत से देख रही थी। उसने आसपास से लकड़ियां और घास इकट्ठा कर आग जलाई। गीली लकड़ियों को जलाने लायक बनाने के लिए उसे अपने मोजे और बनियाइन तक जलाने पड़े। आग की गर्मी से चिड़ियों की जान में जान आ गई पर अब वे चीं चीं करके रोने लगी और चिल्लाने लगी मानो कह रही हूँ, हम भूखी है, हमीद आना चाहिए, खाना चाहिए। माइक ने कहा ठीक है, मैं रिसोर्ट मेरे घर चलो, मैं ढेर सारा खाना तुम्हें दूंगा और इस भयंकर बर्फीली सर्दी से तुम्हारी रक्षा भी करूँगा। दरअसल यह लाल पीली चिड़िया उसे खूब भा गयी थी। उसकी बात सुनकर सभी चिड़िया एक साथ बोली, हमारा घर तो यह जारी है। हम इस झाड़ी को छोड़कर कहीं नहीं जा सकती। अगर ऐसा है तो मैं इस झाड़ी को भी काटकर साथ लिए चलता हूँ। माइक ने कहा और झाड़ी को काटने लगा। बर्फ़ से उसके हाथ सुन्न हो गए थे और अब कुल्हाड़ी चलाने से हाथों में छाले भी पड़ने लगे थे। खैर उसने किसी तरह झाड़ियां काटी फिर उन सातों चिड़ियों को हिफाजत के साथ कोर्ट की जेब में रखकर कंधे में झाड़ी उठाकर घर की ओर चल दिया। टोली के बच्चे उसे इंतजार करते मिल गए। उन्हें देखकर ही उसे याद आया कि वह क्रिसमस ट्री की खोज में गया था लेकिन चिड़ियों के चक्कर में वही सब भूल गया। अरे, वाउ यू क्रिसमस ट्री तुम्हें कहाँ मिला? माइक हमने तो सारा जंगल छान मारा था। डेविड ने चकित होते हुए पूछा कैसा क्रिसमस ट्री? माइक ने सोचा कि सभी लोग उसका मजाक उड़ा रहे हैं, तभी एंजेला बोली ऐसा सुंदर क्रिसमस ट्री तो मैंने आज तक नहीं देखा। माइक ने हैरत से कंधे पर लदा पौधा नीचे उतारा तो चौंकने की बारी अब उसकी थी। इतना रास्ता चल लेने से झाड़ी की बर्फ़ झड़ चुकी थी। वह अंजान झाड़ी एक खूबसूरत क्रिसमस ट्री के रूप में सामने थी। माइ क्यों हमे घर बुलाओगे अपना क्रिसमस ट्री दिखाने डेविड ने पूछा, माइक मित्रों के मन की बात समझकर बोला, दोस्तों यह हम सबका क्रिसमस ट्री है, इसे मैं अपने घर में नहीं ले जाऊंगा। इसे हम चर्च में सजाएंगे और सबको यह जानकर आश्चर्य होगा कि इस झाड़ी पर सात चिड़ियों का बसेरा है। उनकी देखरेख भी हम सब मिल जुल कर ही करेंगे। बस फिर क्या था बच्चों की टोली पूरे जोश के साथ पहाड़ी पर बने चर्च की ओर चल पड़ी। क्रिसमस ट्री को सजाने के लिए हर बच्चा अपने घर से एक एक प्यारा उपहार लाया और चिड़ियों के लिए खाना भी। 2 दिन बाद क्रिसमस के दिन जो भी चर्च में आया सबसे पहले उसकी नजर क्रिसमस ट्री चली गयी। ऐसा अद्भुत क्रिसमस ट्री उनकी कल्पना से भी परे था। सारा गांव ही चर्च की ओर दौड़ पड़ा। चर्च पर पहुँचकर उन्होंने देखा कि क्रिसमस जी की सातों चिड़िया झूम झूमकर गाना गा रही है। सबने देखा कि क्रिसमस ट्री के पीछे एक बड़ा सा नीला सितारा उभर आया है और उसमें से एक हँसमुख लड़के का चेहरा झांक रहा है। वह चेहरा माइक का था। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें भी माइक की तरह हमेशा प्रकृति और प्राणियों के प्रति संवेदनशील होना चाहिए, तभी हम दूसरों की सहायता कर सकते हैं। ओके बाइ?","सभी को नमस्कार, यह एक लड़के की एक अच्छी और नैतिक कहानी है। यह माइक नाम के एक लड़के की दरियादिली की कहानी है। वह बहुत मेहनती और बहादुर लड़का है। इस कहानी में आपको एक छोटे लड़के के विनम्र और सहायक स्वभाव के बारे में पता चलता है। पूरी कहानी सुनें और कहानी की नैतिकता के बारे में जानें।" "क्या आप भी अपना पॉडकास्ट बनाने का सोच रहे हैं? तो ऐंकर ट्राई कीजिए, ये पॉडकास्ट बनाने का सबसे आसान तरीका है। नंबर एक ये फ्री है नंबर दो। इसमें कई सारे ऐसे टूल्स है जो आपको अपने फ़ोन और कंप्यूटर पर रिकॉर्ड और एडिट करने की फैसिलिटीज देते हैं। नंबर तीन आप अपने पॉडकास्ट को डिस्ट्रीब्यूट भी कर सकते हैं, जिससे इसे इस स्पॉटिफाइ और दूसरे प्लैटफॉर्म्स पर सुना जा सकें। डाउनलोड कीजिये ये फ्री एंकर ऐप या विजिट कीजिये ऐंकर डॉट ऐफ़ एम अपना पॉडकास्ट स्टार्ट करने के लिए। सुनते है आज की हमारी कहानी हाथी और चींटी। एक बार हर को किसान ने अपने खेत में गन्ने बोए। खूबी, मीठे, मीठे और लंबे लंबे गन्ने। ऐसी कि देखते ही खाने को मन ललचा जाए। रास्ते में जा रही एक चींटी ने उस खेत को देखा। उसने अंदर घुसकर गन्ने का स्वाद लिया। उन्हें चखते ही वह प्रसन्न हो गई। दौड़ी दौड़ी अपनी रानी चीनू चींटी के पास पहुंची। चीनू चींटी वहाँ से मील भर की दूरी पर आम के पेड़ की जड़ में घर बनाकर रह रही थी। उसके राज्य में हजारों अन्य चीटियां भी रहती थी। गुप्तचर चींटी ने महारानी चिनूकूला कर गन्ने के खेत की सारी बातें बताई। चीनू चींटी ने आदेश दिया। तुरंत ही उनकी सारी सेना आम के पेड़ की जड़ से निकल पड़ी। आगे आगे चली गुप्तचर चींटी। वह गन्ने के खेत का रास्ता बता रही थी। उसके पीछे महारानी चींटी आ रही थी। उसके पीछे उनकी सारी सेना और हजारों चिट्ठियां जल रही थी। चींटियों की यह फौज गन्ने के खेत में पहुंची। गुप्तचर चींटी ने रहने के लिए अच्छी सी भुरभुरी मिट्टी वाली जगह तलाशी। चीटियां तुरंत उसमें घुस गई। तेजी से उन्होंने घर बनाए और फिर चीनू रानी को अंदर ले आयी। 1015 दिन तक चीटियां बड़े ही मज़े से रही। खाने को जी भरकर गन्ने और घूमने के लिए लंबा चौड़ा खेत बात करने को आसपास की अनेक चींटी चींटी चीनू चींटी दूसरों को सम्मान देती थी। घर से सभी की बातें सुनती थी। दूसरों की सहायता करती थी बोलती कम थी, काम अधिक करती थी। उसके इन्हीं गुणों के कारण आसपास के चीटें चीटियां उसका बहुत आदर और सम्मान करने लगे। सभी उसकी बातों को ध्यानपूर्वक सुनते और मानते थे। 1 दिन हाथियों का एक बड़ा सा झुंड गन्ने के खेत में घुस आया। उन्होंने जी भरकर जड़ सहित गन्ने उखाड़े और खेत में घूम घूमकर खूब खाएं। चींटियों के बहुत सारे बिल हाथियों के भारी भारी पैरों से तहस नहस हो गए थे। कुछ तो चीटियां भाग निकली थी पर कई 1000 चीटियां वहीं मर गई थी। चीनू चिट्टी ने देखा कि खेत से जाते समय हाथियों का सरदार अपनी सूँड दूसरे हाथी के सिर पर फिर आते हुए कह रहा था। इस खेत का पता देने के कारण मैं तुमसे बहुत खुश हूँ। अब हम सभी प्रतिदिन यहाँ आया करेंगे। यह सुनकर चीनू चींटी के तो प्राण ही सूख गए, डर के कारण वह थर थर कांपने लगी। खेत में इधर उधर छुपे हुए चीटें चीटियों ने देखा कि सभी हाथी जा चूके थे। विथ तेजी से दौड़ें, दौड़ें आये अपने अपने परिवार के मृतकों को देखकर उनका कलेजा फटने लगा और वे रोने लगे। इतने में चीनू रानी भी वहाँ आ गई। वह बोली। भाइयों और बहनों अब रोने से कुछ नहीं होगा। यह बड़े ही दुख की बात है कि हमारे इतने भाई और बहन मरे पर अब दुख मनाने और रोने की जगह हम यह सोचें कि कल हम सब की रक्षा कैसे होगी? मैंने खुद सुना कि वह दुष्ट हाथी अब रोज़ रोज़ यहाँ आने की बात कर रहे थे। यह सुनकर तू सभी अचंभे में आ गए, सभी कहने लगे। होम्स, अभी तो बहुत छोटे छोटे हाथियों का हम क्या बिगाड़ सकते? पर संगठन और बुद्धिबल में बहुत शक्ति होती है। हम छोटे हैं तो क्या कल सभी मिलजुलकर उन्हें मज़ा चखाएंगे डरकर भागना कायरता है? चीनू कह रही थी। फिर चीनू ने अपनी सारी योजना उन सभी को बताई। सभी के सभी ने अपना सिर हिला हिलाकर ठीक है, ठीक है, कल हम सब येही करेंगे, इस प्रकार कहा। दूसरे दिन खेत में जैसे ही हाथी घुसे तो इधर उधर छिपी लाखों चीटियां निकल पड़ी। सभी अधिक गुस्से से भरी हुई थी। चींटियों की एक एक सेना एक एक हाथी पर झपट पड़ी। पेट, पेट, पैर पूछ ना कान, सूंड़ सभी में घुस घुसकर काटने लगी। हाथी सूंड हिला हिलाकर चिंघाड़ने लगे। सबसे पहले हाथियों का नेता ही खेत में घुसा था। तैयार बैठी चीनू चींटी तुरंत उसकी सूंड़ में घुस गई। वह आगे बढ़ती जा रही थी। उसने हाथी के दिमाग में जाकर ज़ोर से काटा और बोली। बता अब मारेगा हमें? हाथियों का नेता बोला। अरे मैं मरा तू जल्दी से निकल जा, मैं तेरे हाथ जोड़ता हूँ, अब हम यहाँ कभी नहीं आएँगे। यह सुनकर चींटी उस हाथी की सूंड़ से तुरंत ही बाहर निकल आयी। हाथियों का नेता अपनी सूँड ऊपर उठाकर दांतों को निकालकर ज़ोर से चिंघाड़। भाई, यो यो घर नहीं तुरंत भाग चलो यहाँ से। अपने नेता की बात सुनकर सारे हाथी तेजी से खेत से बाहर निकलने लगे। चींटियों ने भी उनका पीछा करना छोड़ दिया और सभी नीचे उतर आई। सभी चींटियों ने चीनू की जय जयकार की। वापस मैं कह रही थी। महारानी टीनू ने ठीक ही कहा था आपत्ति में भी यदि धैर्य रखा जाए तभी मिल जुल कर युवती से समस्या सुलझाए तो बड़े से बड़ा संकट भी डाला जा सकता है। संगठित होकर धैर्यपूर्वक काम करने वाले सदैव विजयी होते हैं। तो इस प्रकार उन नन्ही नन्ही चींटियों ने इतने बड़े बड़े हाथियों को भी परास्त कर दिया। इसीलिए कहा गया है कि विपत्ति के समय सदैव धैर्य ही रखना चाहिए, तभी हम उस समस्या से। मुक्ति पा सकते हैं, उस समस्या को सुलझा सकते।","सभी को नमस्कार, यह एक छोटी सी चींटी और उसकी सेना की अद्भुत कहानी है। चींटी ने अपनी बुद्धि से इतने बड़े जानवर हाथी को हरा दिया। पूरी कहानी सुनें और कहानी की नैतिकता के बारे में जानें।" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपको सुनाने जा रही हूँ, उसका टाइटल है हाथी की सूझबूझ। सोनुसिंह जब बुद्धा हुआ तो सोचने लगा कि अब मुझे सांसारिक लोभ मोह में नहीं पड़ना चाहिए। जीवनभर मैंने अच्छे, बुरे सभी कार्य किये हैं। अब मन लगाकर भगवान का भजन करना चाहिए। बस फिर क्या था सोनू ने तुरंत अपने बेटे को राजगद्दी पर बैठाया। स्वयं माला लेकर भगवान का भजन करने लगा। पूजा करते करते सिंह का मन भगवान के चरणों से भटकने लगा था। 1 दिन बगुला भगत ने सुझाव दिया कि भगवान का चित्र अपनी गुफा में लगा लें। अपने मन को उसमें लगाने का प्रयास करें। शेर ने यही तय किया। उसने अपने राज्य के कुशल चित्रकार विशाल नाम के हाथी को बुलाया। विशाल ने शेर की बात सुनी। फिर उसने अपनी सूंड से ब्रश को दबाया और उस पर रंग लगाकर भगवान का सुंदर सचित्र कुछ ही देर में गुफा की दीवार पर बना दिया। चित्र बड़ा ही सुन्दर बनाया था। शेर अपने मन को उसमें स्थिर करने का प्रयास करने लगा। कुछ दिन तक तो उसका मन उसमें लगा। फिर उसने अरुचि दिखाई, अब शेर ने विशाल को फिर बुलाया और दूसरे देवता का चित्र दीवार पे बनवा लिया। एक 2 दिन की उसने पूजा की अधिक समय तक उसका मन लपकाया। कुछ दिनों बाद विशाल को बुलाकर फिर तीसरा चित्र पर आप सिंह ने यह भी सोचा की दीवारों पर अनेक सारे चित्र सजा ना बस यही भगवान की भक्ति है, वहाँ उन चित्रों की आरती कर देता, अगरबत्ती जला देता और सोच लें ताकि मैंने बड़ी ही पूजा की है। फिर वह सारे दिन मस्त पड़ा रहता, खतरा रहता और जिंस देश की बुराइ करता रहता। धीरे धीरे सारे जानवरों में यह बात पहल गई की सोनू शेर बहुत बड़ा भक्त हो गया है। अपनी तारीफ सुनना भला किसे ये बुरा लगता है? सोनू भी जब अपनी प्रशंसा सुनता तो उसके गाल फूल कर कुप्पा हो जाते। उसका शरीर रोमांचित होने लगता। सोनू ने सोचा कि यदि मैं अपनी पूरी गुफा में भगवान के चित्र बना लू तो फिर मेरी और अधिक प्रशंसा होगी। बहुत बड़े भक्त के रूप में मेरी ख्याति दूर दूर तक फैल जाएगी। सोनू ने यहीं किया विशाल को बुलाया और पूरी की पूरी दीवार पर चित्र बनाने को कहा। विशाल मन में बहुत कूड़ा और वह उसके राज्य में रहने वाला चित्रकार था। साफ साफ आखिर मना भी कैसे करता? विशाल कई दिनों तक चित्र बनाता रहा और सोचता रहा की कैसे मैं इस शेर को सन्मार्ग पर लेकर आवु? भगवान की आड़ लेकर भजन के नाम पर यह तो और भी अहंकार के गड्ढे में गिरता चला जा रहा है। अंत में विशाल हाथी को एक उपाय सूझ गया। उसने सारी दीवार पर थ्रू चित्र बना दिए। बस एक चित्र की जगह पर खाली छोड़ दिया और उस पर काले रंग से उसे पोत दिया। सिंह ने जब यह देखा तो उसने सिंह से यह कहा कि जब वह काला रंग सूख जाएगा तब यह चित्र इस पे बना देगा। विशाल रोज़ आता और काला रंग उसी जगह पर फिरा कर चला जाता। करीब एक महीने तक यही क्रम चलता रहा। 1 दिन सोनू सिंह को बड़ा गुस्सा आया। वह सीधा विशाल के सामने जाकर हाँ हो गया और कहने लगा, चित्रकार महोदय ये किस लोक के देवता का भव्य चित्र बना रहा है? कब तक क्या बनकर पूरा होगा? महरोज गुस्ताखी माफ़ करे छोटा मुँह बड़ी बात पर कहे बिना मैं रह नहीं पाऊँगा ये शाल बोला हाँ हाँ ओह शेर ने कहा, आप इतने सारे ये चित्र आखिर क्यों बनवा रही है? विशाल ने पूछा सिंह बोला, इन चित्रों से मेरा मन पवित्र बनेगा, भगवान के चरणों में लगेगा। विशाल ने गंभीर होते हुए फिर कहा महाराज अप रोज़ क्षमा कीजियेगा चित्र लगाने से मन कभी निर्मल नहीं बनता। मन की गति बढ़ी ही चंचल है या पवित्र बनता है। अच्छे विचारों से, उच्च चिंतन से जब तक लोभ, मोह और अहंकार की स्याही से मन काला बना हुआ है, तब तक उस पर भगवान का चित्र नहीं बन सकता। इन सब को हटाकर सच्चे मन से भगवान का सुमिरन करने वाले को उसकी प्राप्ति अवश्य होती है। अच्छा तो तुम उस जगह काली सी आयी रोज़ रोज़ पोतकर क्या मुझे यही सीखा रहे थे? सिंह सोचते हुए पूछने लगा। विशाल कहता भी क्या चुपचाप खड़ा रहा और से तुम मेरे गुरु हो, तुमने मेरी आंखें खोल दी है कहते हुए सिंह ने विशाल के चरण छू लिए और इसके बाद क्या था? सिंह ने चित्रों का मोह छोड़ दिया। बस सब जगह भगवान की झलक देखता हुआ शांत मन से पूजा करने लगा तो बच्चो इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है की हमें सच्चे मन से भगवान की पूजा पर आराधना करनी चाहिए और चित्रों के मुँह में नहीं पड़ना चाहिए। ओके बाइ","सभी को नमस्कार, यह एक हाथी की कहानी है जो राजा शेर को सबक देता है। मैं सभी बच्चों को सोने के समय की कहानियां नैतिकता के साथ सुना रहा हूं। मेरी कहानियाँ अभिनव और प्रेरणादायक हैं। अपने बच्चों के साथ मेरी कहानियाँ सुनें। यह निश्चित रूप से आपके बच्चे के व्यक्तित्व के निर्माण में मदद करेगा।" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी में आपको सुनाने जा रही हूँ, उसका टाइटल है आज्ञा का पालन। अमित के स्टोर की टाड़पर सोनी कबूतरी ने अपना बना लिया था, पर बहुत सारा सामान भरा पड़ा था। एक बक्से के पीछे खिड़की के सहारे सोनी ने कुछ आरे दिल छीन के रख लिए थे। वहीं उसने दो अंडे दिए सोनी कबूतरी और मोना कबूतर। दोनों बारी बारी से अंडों की देखभाल करते है। थोड़े दिन में ही अंडों से प्यारे प्यारे दो बच्चे निकले। सोनी और मोना बच्चों को देखकर प्रसन्न होते। धीरे धीरे वे बच्चे बड़े होने लगे। उनके छोटे छोटे पंख भी निकल आये। अब उनकी वो भी बढ़ गई थी। इसलिए सोनी और मोना अधिकतर बाहर रहने लगे। फिर सुबह ही खाने की तलाश में निकल जाते। थोड़ी थोड़ी देर बाद वे अपनी चोंच में खाने पीने का सामान भरकर लाते खिड़की के रास्ते से अंदर जाते। दोनों बच्चे अपनी छोटी छोटी लाल आंखें खोलकर देखते। माता पिता को देखते ही वह खुशी से भर उठते। और खुशी से चीन करके चिल्लाते उठते सोनिया मोना उनकी चोंच में अपनी चोंच से दाने रखे। बच्चे उसे करने को लपकते उनके मुँह में दाना रखकर माता पिता बाहर खाने की तलाश में निकल जाते क्योंकि बच्चे बड़े हो रहे थे। सोने और मोना की चोंच में थोड़ा सा खाना आता था। उससे उनका पेट नहीं भरता था इसलिए उन्हें बार बार जाना पड़ता था। 1 दिन की बात है। सोनी और मोना भोजन की तलाश में दूर निकल गए। इधर बच्चों को तेज भूख लगी। बड़ा बच्चा बोला चलो आज हम खुद खाना तलाशने चलते हैं। तुम क्या कहने लगा भैया? माँ कहती है की अभी हमारे पंख छोटे छोटे है। उन्होंने हम से मना किया है यहाँ से कही उड़कर ना जाए। बड़ा बच्चा कहने लगा माँ तो ऐसे ही डरती हैं, वे भी हमें बहुत छोटा समझती है। देखो खिड़की से झांक कर बाहर की दुनिया कितनी सुंदर है? मैं तो खुद आसमान में उड़ाने भरने को आतुर हूँ चलो आज हम बाहर चले पर भाई माँ सुनेगी तो नाराज होंगी, कहेंगी कि तुमने हमारा कहना नहीं माना, मैं तो माँ की आज्ञा का पालन करूँगा। जब तक मैं नहीं कहेंगी, मैं यहाँ से उठाकर कहीं नहीं जाऊंगा तो ठीक है, मैं आज अकेला ही सैर करके आऊंगा। बड़े बच्चे ने कहा, फिर उसने अपने पंख फड़फड़ाए और स्टोर के दरवाजे से बाहर आ निकला कबूतर का बच्चा थोड़ी सी ऊँचाई पर कुछ देर ही उड़ पाया। जल्दी ही वह थक गया। उधर कमरे में अमित और उसके दोस्त भी आ गए। उन्होंने एक कबूतर के बच्चे को उड़ाया और कमरे से भगाना शुरू कर दिया। एक कमरे से दूसरे कमरे में उड़ते उड़ते वह तंग आ गया। अब तेजी सेवा उड़ भी नहीं पा रहा था। अब उसकी समझ में आ रहा था की माँ ने घोंसलें से बाहर निकलने के लिए क्यों मना किया था? काफी देर बाद बड़ी मुश्किल से कबूतर का बच्चा इस स्टोर में आ पाया। वह बच्चों के हुड़दंग से रास्ता भी भूल गया था। बच्चों ने कपड़ा मार मारकर स्टोर से उसे भगाया। उसके अंगों पर कई बार कपड़ा पड़ने से निशान भी पड़ गए थे। उसके सारे शरीर में दर्द हो रहा था। जैसे तैसे कबूतर का बच्चा अपने घोंसलें में पहुंचा। सोनी कबूतरी दाना लेकर अब वहाँ पहुंची थी। छोटे बच्चे ने सोनी को सारी बातें बता दी। कबूतर के बड़े बच्चे ने घोंसलें में माँ को बैठे देखा। शर्म के कारण उसकी गर्दन झुक गई। उसने माँ का कहना जो नहीं माना था, वह बोला मा मैंने नादानी में तुम्हारी आज्ञा का उल्लंघन किया है। आज ठोकर खाकर मेरी समझ में अच्छी तरह आ गया है कि तुम हमारे भले के लिए ही हमें टोकती हो, बहुत से काम करने को मना करती हो। आज मैं बड़ी मुश्किल से अपनी जान बचाकर आया हूँ। सोनी कबूतरी ने अपनी चोंच का खाना बड़े बच्चे के मुँह में रखते हुए कहा बेटा, जो बच्चे अपने माता पिता का कहना नहीं मानती हैं, वे सदैव पत्ती में पढ़ते हैं। तुम्हारी शक्तियां भी सीमित है, तुम्हारा अनुभव अभी कम है इसलिए बड़ों की बात को मानकर काम करो। बड़े बच्चे की समझ में माँ की सारी बातें आ रही गुट और वो करके उसने माँ की बात का समर्थन किया। सोनी कबूतरी ने कई दिनों तक बड़े बच्चे की मालिश की तब कहीं जाकर ठीक हुआ। इसके बाद फिर उसने कभी भी अपनी माँ की आज्ञा का उल्लंघन नहीं किया। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें अपनी शक्ति के अनुसार ही काम करना चाहिए और माता पिता की आज्ञा का पालन भी करना चाहिए। ओके बाइ?","सभी को नमस्कार, यह कबूतर की कहानी है। बच्चे छोटे कबूतर से सीख सकते हैं। मैं सभी बच्चों को सोने के समय की कहानियां नैतिकता के साथ सुना रहा हूं। मेरी कहानियाँ अभिनव और प्रेरणादायक हैं। अपने बच्चों के साथ मेरी कहानियाँ सुनें। यह निश्चित रूप से आपके बच्चे के व्यक्तित्व के निर्माण में मदद करेगा।" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी में आपको सुनाऊंगी उसका शीर्षक है पापी बगुला एक जंगल में बहुत बड़ा तालाब था जिसमें अनेक प्रकार के जीव जंतु रहा करते थे, वहीं पर एक बूढ़ा बगुला भी रहता था जो अब इतना बूढ़ा हो चुका था की उससे किसी मछली का शिकार नहीं हो सकता। वास्तव में, बुढ़ापा सबसे बुरी चीज़ है। इसमें हर प्राणी असहाय हो जाता है। 1 दिन तालाब के किनारे बैठा बूढ़ा बगुला रो रहा था। एक केकड़े ने जब उसे रोते देखा तो उसके मन में दया आ गई। वह बगुले के पास जाकर बोला, मोमो, तुम इस प्रकार अकेले बैठे है, क्यों रो रहे हो? और कुछ खा पी नहीं पा रहे है क्या? बूढ़ा बगुला भरी हुई आवाज में बोला बेटा तुम ठीक कह रहे हो आज वास्तव में मैं बहुत दुखी हूँ। मेरा मन चाहता है कि मैं फूट फूट कर रहा हूँ क्योंकि आज मैं अपने लिए नहीं अपने सभी भाई बंधुओं के लिए रो रहा हूँ। क्यों कर रहे हो मामा? होम सब तो कुशल हैं, हमें क्या हुआ हैं? हुआ नहीं बेटा होने वाला है। मैं कितनी पीढ़ी से तालाब में रह रहा हूँ। यहीं पर पैदा हुआ बूढ़ा हो गया। इसलिए मुझसे इस तालाब में रहने वालों के दुख नहीं देखे जाते। इन दुखों के कारण ही मैंने उपवास रखा हैं ताकि पापों का प्रायश्चित करके इस तालाब में रहने वालों की जान बचा सकूँ। ये क्या कह रहे हो माम् आप? हाँ बेटा मैंने किसी मुनि से यह सुना कि अबकी बार 12 वर्ष तक वर्षा नहीं होगी। चारों ओर अकाल पड़ेगा, कुंड सूख जाएंगे, तालाबों में पानी नहीं रहेगा। लोग जब मरने लगेंगे तो क्या होगा? इधर उधर भागेंगे ही। जब यह तालाब सूख जाएगा तो इसमें रहने वाले जीव जंतुओं का क्या होगा? सब मर जाएंगे नहीं तो भूखे मरते लोग इन्हें खा जाएंगे। मामा, क्या इस विपत्ति से जान बचाने का कोई रास्ता है? किंकड़े ने घबराकर बगुले से पूछा। हाँ, इस तालाब के पास एक बहुत बड़ा तालाब है, जिसका पानी कभी नहीं सूखता। यदि इस तालाब के सभी जंतु मिलकर वहाँ जाने का निर्णय ले ले तो अच्छा है। मेरा क्या है? मैं तो जब भी चाहूं जा सकता हूँ मगर हम लोग उस तालाब तक जाएंगे कैसे? हम सब तो पानी में ही तोड़ सकते हैं। तुम लोग चिंता ना करो मैं अपनी पीठ पर लाद लादकर सबको उस तालाब तक पहुंचा दूंगा, आखिर मैं किस दिन काम आऊंगा? केकड़े ने बगुले की बात सब लोगों को बता दी। अब तो सब के सब डर के मारे चिंतित हो उठे। उन्हें वहाँ से भाग जाने की जल्दी मच गई। हर एक यही चाहता था कि मैं ही पहले बगुले की पीठ पर बैठकर यहाँ से निकल जाऊ बगुला मनी मन बड़ा खुश था क्योंकि उसकी चाल सफल हो गयी थी। हर रोज़ इन जंतुओं में से कुछ को अपनी पीठ पर बैठाकर वह ले जाता और एक पहाड़ी की ओट में ले जाकर उन्हें खा लेता। आकर एक झूठ मूठ की कहानी गढ़कर सुना देता। अब तो बूढ़े बगुले को खाने को खूब मिलने लगा था। अपनी चालाकी और होशियारी से वह कपटी बगुला इन जंतुओं को खाने लगा। केकड़ा उससे रोज़ कहता था। मोमो मुझे भी तो छोड़ आओ ना तो लाभ में। तो मैं भी ले चलूँगा भांजे अभी जल्दी क्या है? धैर्य से बैठो। केकड़े की समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था। कुछ ही दिनों में यह तालाब जीव जंतुओं से खाली होने लगा था। यह बगुला केवल उसे ही लेकर नहीं जा रहा था। 1 दिन दुखी होकर केकड़े ने उससे पूछ ही लिया मोमो और फिर आप मुझे ही क्यों नहीं ले जाते यहाँ से? क्या मैं यहीं पर रहकर मरूँगा? देखो अपने मामा के होते हुए मैं मरना नहीं चाहता, आप मुझे यहाँ से ले चलो ना प्लीज़। बगुला केकड़े की जिद के आगे हार गया। उस दिन काफी देर उड़ने के पश्चात जब कहीं तालाब नजर ना आया तो केकड़े ने पूछा मोमो तलब कितनी दूर है? बगुला हंसा। उसे पता था कि यह मंदबुद्धि जल का जीव इस पहाड़ी पर मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता। अब उससे डरने की जरूरत नहीं। उसने झट से अपनी शान मारते हुए कहा, बेटा अब तो तू तालाब को भूल जा यह सारी कहानी तो मैंने तुम लोगों को पागल बनाने के लिए गढ़ी थी, मैं तो अब केवल अपना शिकार करता हूँ। सीधे ढंग से जब मेरा पेट नहीं भरा तो मैंने उल्टे ढंग से पेट भरने का रास्ता सोच लिया। केकड़ा समझ गया कि यह तो कपटी बेईमान, धोखेबाज हैं। इसने इतने जंतुओं को तो पहले ही खा लिया। अब उसे भी खा जायेगा। मौत सामने खड़ी देखकर केकड़े ने अपनी बुद्धि से काम लेना आरंभ किया। बस फिर क्या था उसने अपने दोनों चंगुल पूरी ताकत से बगुले की गर्दन पर गड़ा दिए। हाइ मैं मरा कहते हुए बबुली के गले से अंतिम चीख निकली और वह धरती पर धड़ाम से आ गिरा। पापी बगुला तो उसी समय मर गया। केकड़ा वापस अपने तालाब में आ गया। उसने अपने साथियों को उस पापी बगुले की कहानी सुनाई तो बाकी बचे लोग केकड़े का धन्यवाद करने लगे। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है कि पापी भले ही कितना झूठ बोले कितने ही धोखा दे, किंतु पापी का जीवन थोड़े ही दिन का होता है। 1 दिन उस पापी का अंत अवश्य होता है। ओके बाइ?","सभी को नमस्कार, यह बच्चों के लिए एक शानदार नैतिक कहानी है। इस कहानी में एक क्रूर सारस है जो कई जीवों को मारकर खा जाता है। एक छोटा सा केकड़ा अपने परिवार की जान बचाता है। पूरी कहानी सुनें और कहानी की नैतिकता के बारे में जानें।" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी में आपको सुनाने जा रही हूँ उसका टाइटल है गुस्से का फल। चंपू बंदर की शरारतों से अमरकंटक वन के सारे जानवर बड़े परेशान थे। उसकी शरारतों का कोई अंत ना था। कभी वह पेड़ की छाया में सोते हुए किसी भालू की पूंछ खींचकर भाग जाता, कभी किसी बूढ़े जानवर का खाना छीन लेता, कभी किसी सोते जानवर पानी झलक देता। चंपू की माँ उसे समझाती थी, बेटा, तुम यह बेकार की शरारत भरे काम छोड़ दो। इनसे दूसरों को परेशानी होती है। इससे तुम्हारा भी कुछ भला नहीं होता। इतनी शक्ति और समय तुम दूसरों की सहायता करने में लगाओगे तो सभी तुम्हारी बढ़ाई करेंगे और तुम से प्यार भी करेंगे। पर चंपू की समझ में माँ किसी आती ही न थी। 1 दिन तो वह शरारत करना बंद रखता पर दूसरे ही दिन से फिर वही काम चालू हो जाता। और इस बार तो चम्पू बंदर की शरारतों की हद ही हो गयी। घटनायों घाटी के चंपू पीपल के पेड़ पर बैठा था। उसी पर नंदा का हुआ उसकी पत्नी काली भी रहते थे। नंदा का हुआ बार बार कहो कहो करके अपनी पत्नी को पुकारता था। चंपू बन्दर बोला, ईश्वर ने कैसी बड़ी आवाज दी है तुम्हें? यह सुनकर नंदा कौआ बोला की हम पू तुम यहाँ से चले जाओ, हमें अपना काम करने दो। यहाँ तक आवाज का प्रश्न है तो हमारी आवाज ही भली है, उससे कोई डरता तो नहीं, हम में घुड़की देकर किसी को डराते तो नहीं? नन्दा कौए की बात सुनकर चंपू को गुस्सा आ गया। उसने तुरंत आगे बढ़कर पेड़ की डाल पर लटका नंदा का गुस्सा तोड़ डाला। उसमें बैठे दो छोटे छोटे बच्चों को भी चंपू ने कुचल दिया। यह देखकर नंदा और काली हाय हाय कर उठे। चंपू ने यह काम जानबूझकर नहीं किया था। गुस्से में ही अचानक हो गया था। काली को ही अपने बच्चों के मरा हुआ देखकर चीख चीख कर रो उठी। नन्दा कौआ की तेज आवाज सुन कर बहुत से पशु पक्षी भी इकट्ठा हो गए थे। सभी पूछ रहे थे क्या बात है, क्या हुआ? सभी ने चंपू की करतूतें सुनी तो उन्हें बड़ा गुस्सा आया। कालू भालू ने चंपू को गिरफ्तार किया और महाराज शेर की अदालत में ले चला। उसके पीछे पीछे नंदा को माँ काली को ही सुन्नी गाय, प्रीता लोमड़ी, चुनिया, बकरी तथा बहुत ही चले आ रहे हैं। महाराज शेर की अदालत जमी हुई थी। बरगद के पेड़ के नीचे एक ऊंचे चबूतरे पर बैठे थे। यह आर्य कराने के लिए आए हुए कई जानवर वहाँ पहले से ही मौजूद थे। उन सभी का न्याय करने के बाद महाराज शेर ने कालू भालू से प्रश्न किया कोई ये आप यहाँ कैसे आए? कालू भालू ने गिरफ्तार किए हुए चंपू की ओर इशारा किया और सारी कथा कह सुनाई। काली को भी रो रोकर कहने लगी महाराज इस दुष्ट चमपो बंदर ने मेरे बच्चों को मारा है। मुझे न्याय चाहिए जब उसे हम गया, वह कह रहा था महाराज मैंने जानबूझकर बच्चों को नहीं मारा, मैं उस समय क्रोध में पागल हो गया था, उसी के कारण मुझे भले बुरे का ज्ञान नहीं रहा, मुझे माफ़ कर दीजिये। सिंह कहने लगा जो हम पू गुस्से की आदत बहुत बुरी होती है, क्रोध में अच्छे बुरे का ज्ञान नहीं रहता, कुछ भी कर डालते हैं हम यह सब तुम मान रहे हो ना? पक्का वादा करो कि आगे से कभी क्रोध नहीं करोगे। चंपू ने अपने कान पकड़े और सभी के सामने प्रतिज्ञा की क्या वक्त रोट नहीं करेगा। तभी सिंघ महाराज के पीछे खड़ा उनका न्याय मंत्री रामू रीच तुरंत बोल पड़ा महाराज चंपू पर हत्या का अभियोग है, उसे दंड दिया जाना चाहिए। चंपू गिड़गिड़ा रहा था, महाराज, उस समय में क्रोध में कारण समझना पाया, मुझे माफ़ कर दीजिये? शेर बोला भाई अपरो तो तुमने किया है तो दंड तुमने इतना ही पड़ेगा। हाँ इतनी बात है कि तुम अपनी गलती स्वीकार कर रहे हो तो तुम्हे दंड कठोर नहीं मिलेगा। फिर काली कॉफी से शेर ने पूछा बहन तुम ही बताओ इसे क्या दंड दिया जाए? काली कॉफी बोली बच्चे तो मेरे आ नहीं सकते, इसका घर तोड़ दिया जाए, आगे से चमपो कभी घर में ना रहें जिससे उसे याद रहे कि किसी के बच्चे उसने मारे थे। सिंह ने यही दंड सुना दिया। चंपू सिर झुकाकर चुपचाप सुनता रहा। सिंह के सैनिक जाकर तुरंत उसका घर गिरा आए। चंपू और उसके माता पिता पेड़ की डालों पर ही तब से रहने लगे। इसी कारण आज तक बंदर घर बनाकर नहीं रहते है। उस दिन से चंपू की सारी शरारतें छूट गई ही। कहा गया है कि अपनी समझ बूझ नहीं खोनी चाहिए। सोच समझकर काम करना चाहिए। क्रोध में जो भी कार्य किया जाता है, उसका फल सदा ही बुरा होता है। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें कभी भी दूसरों को परेशान नहीं करना चाहिए और ना ही क्रोध करना चाहिए क्योंकि क्रोध में किया गया काम हमेशा गलत ही होता है। ओके बाइ?","सभी को नमस्कार, यह एक शरारती बंदर की कहानी है। मैं सभी बच्चों को सोने के समय की कहानियां नैतिकता के साथ सुना रहा हूं। मेरी कहानियाँ अभिनव और प्रेरणादायक हैं। अपने बच्चों के साथ मेरी कहानियाँ सुनें। यह निश्चित रूप से आपके बच्चे के व्यक्तित्व के निर्माण में मदद करेगा।" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी में आपको सुनाने जा रही हूँ उसका टाइटल है शक्ति की सार्थकता। एक बार हिरण्यक चूहा अपनी पत्नी और बच्चों सहित बिल में बैठा था तभी बता रहे थे की आज किस किस ने क्या किया, किस प्रकार से दिन का सदुपयोग किया, दूसरों की क्या सेवा सहायता की। तभी एकाएक ज़ोर का भूकंप आया। हिरण्यक सभी के साथ बिल से बाहर निकल आया। दो सेकंड बाद ही भूकंप समाप्त हो गया और इसके साथ साथ हिरण्य का बिल भी तहस नहस हो गया। हिरण्यक बड़ा दुखी हुआ तभी ज़ोर ज़ोर से तूफान आने लगा। अब वह सोचने लगा कि परिवार के प्राणों की रक्षा के लिए किस स्थान पर जाऊं। तभी उसे अपनी सहेली श्वेता नाम की भीड़ की याद आई। अपने झुंड की नेता व श्वेता यहाँ से चार फर्लांग की दूरी पर में रहा करती है। तूफान से जैसे तैसे बचता बचाता पेड़ों के नीचे चलता हुआ हिरण्य श्वेता की बाड़े पर जा पहुंचा। तेजी से चलने के कारण वह और उसकी पत्नी दोनों ही हांफ रहे थे। उनके दिल तेजी से धक धक कर रहे थे। वे पूरी तरह से भीग गए थे और उनके रोंगटे भी खड़े हो गए थे। बच्चों को तो दोनों ने अपनी अपनी पीठ पर चढ़ा के रख लिया था। बच्चे भी ठंड से बुरी तरह कांप रहे थे। हिरन ने अपने दरवाजे को ज़ोर ज़ोर से खटखटाया। कौन है? अंदर से आवाज आई? मैं तुम्हारा मित्र हिडन एक चूहा बोल रहा हूँ श्वेता अपने मित्र की आवाज़ पहचान गई। उसने तुरंत द्वार को खोल दिया। ठिठुरता सिकुड़ता चूहा अंदर घुसा। सर्दी के कारण सभी के सभी बुरी तरह कांप रहे थे। श्वेता ने उन्हें तुरंत सामने पड़े उनके ढेर में घुसा दिया। उन्हें गर्म गर्म चाय पीला दी। तब कहीं जाकर सर्दी दूर हुई। कांपना बंद हुआ। दो 3 दिन तक श्वेता ने अपने मित्र को कहीं जाने नहीं दिया। उसने अपना मेहमान के खूब सेवा की। और खूब खातिर की। किरण नेट ने सोचा कि पड़े पड़े इतने दिन ऐसे ही बीत गए, अब तो चलकर नया बिल बनाना ही चाहिए। मित्र पर अधिक बोझ डालना उचित नहीं है। मित्र हों या फिर संबंधी दो 4 दिन से अधिक उनके यहाँ रहने पर सम्मान घटता ही है। श्वेता ने बड़ी मुश्किल से हिरण्यक को जाने की अनुमति दी। अपनी सहेली से खूब सारे उपहार लेकर रास्ते के लिए भोजन लेकर फिर जल्दी आने का वायदा करके रणक अपने परिवार के साथ निकल पड़ा। कुछ दूर चलने के बाद चूहे के बच्चे थक गए, अतएव चूहा उनको लेकर बरगद के एक वृक्ष के नीचे जाने लगा। उसने सोचा की थोड़ी देर विश्राम करेंगे, भोजन करेंगे फिर आगे की यात्रा पर निकल पड़ेंगे ही। रहने का छोटा बेटा सबसे आगे उछलता कूदता चला जा रहा था। उसने अपनी मौज में ध्यान ही नहीं दिया के पेड़ के नीचे एक जंगली सुअर सोया हुआ था और उससे जाकर वो टकरा गया। अब क्या था सुअर की आँखें खुल गई। वह अपनी लाल लाल आँखों को खोलकर उतनी को ऊपर नीचे चढ़ाकर गुर्राया गुस्से में भरकर उसने बच्चे को टुकड़ा लिया और अपना हाथ बढ़ाया और उसे कुचल करा दो। मना कर दिया आपने इसे छोड़ दो, इसे छोड़ दो दादा चूहे की पत्नी चिल्लाते हुए बोली। यह नो दो उन बच्चों अनजाने में आपसे झटक रहा है इसको क्षमा करें। हिरण एक अपने दोनों हाथों को जोड़कर सिर को उसके पैरों पर झुक आता हुआ बोला। ये लो बड़े बातें बनाने वाले आज तो मैं इसे मार कर ही छोडूंगा। शुगर गुस्से में भरकर बोला हिरण एक बार बार सिर झुकाकर बच्चे को छोड़ने की विनती करने लगा। जब सुअर ने उसकी एक न सुनी तो चूहा बोला दो दो शक्ति वही सौर तक है जिससे हम दूसरों का भला कर पाए। वहीं शक्तिशाली धन्य है। जो दूसरों की सहायता करता है, उन्हें ऊंचा उठाता है। उस शक्ति से क्या लाभ जो निर्बलों को सताते है? अब तो सुअर और भी भड़क उठा। हाथों को न चाहते हुए बोला, भागो यहाँ से नहीं तो तुम्हारे पूरे परिवार को खा जाऊंगा, नष्ट कर दूंगा। तभी चूहे ने के बच्चे को अवसर मिला और वह सुअर की पकड़ से भाग छूटा। रणक की पत्नी ने तुरंत उसे मुँह में दबाया और वहाँ से भागी। हिरण्य को दूसरा बच्चा भी वहाँ से तुरंत भाग आये। 2530 कदम चलने के बाद हिरण की पत्नी को पेड़ के तने में बड़ा सा खोखला भाग दिखाई पड़ा। वह दौड़कर उसमें घुस गई। इन्होंने एक भी उसमें ही आ गया। वो सभी इतने भयभीत हो गए थे की 1015 मिनट तक वहाँ बैठे कांपते ही रहे। अंत में हिरण्यक में सभी को धैर्य बंधाया और सुअर से चंगुल से बचकर निकल आने के लिए भगवान को धन्यवाद किया। मनी मनवा कहने लगा हे भगवान तू ऐसी शक्ति किसी को न दें जो दूसरों को सताये। फिर सभी ने मिलकर खाना खाया और वही पढ़कर सो रहे। शाम को सोते सोते अचानक ही रहने की आंख खुल गई। किसी का करों चीत्कार उसे सुनाई पड़ रहा था। वह बाहर निकल कर आया। कुछ दूर चलने के बाद उसने देखा की वहीं सुबह वाला सुअर पेड़ से बंधा पड़ा है और ज़ोर ज़ोर से रो रहा है। अपनी सहायता के लिए पुकार रहा है ये पेड़ के पास पहुंचा और बोला अरे भाई तुम्हारा ये हॉल किसने किया? अरे शिकारियों ने बना डाला मुझे बचाव दर्द से कराहते हुए बचाओ, मुझे सुअर के मुँह से निकल गया। हिरण्य चाहता तो मुँह फिराकर चला जाता क्योंकि यह वही सुअर था जिसने सुबह उसे अपना तंग किया था पर वो इतने संकीर्ण मन वाला नहीं था। बस सोचने लगा की विपत्ति मेँ पड़ा हुआ चाहे कोई भी प्राणी हो, शत्रु हो या मित्र हो, उसकी रक्षा करना हमारा धर्म है। यह शरीर दूसरों की सेवा में और सहायता में जितना अधिक काम आ पाए, इसे उतने ही काम में लाना चाहिए। इसी में इसकी सार्थकता है। तुरंत हिरण्यक दौड़ा दौड़ा। वृक्ष के निकट पहुंचा अपनी पत्नी और बच्चों को तुरंत बुला कर लाया। सभी ने मिलकर सुअर के बंधन काट दिए। बंधन से मुक्त होते ही व कृतज्ञता से भर उठा। उसकी आँखों में आंसू भर आये। बस सोचने लगा कि देखो इस चूहे ने मेरा कितना उपकार किया है इसके साथ किये हुए है। मेरे बुरे कर्म को भी इसने बुला दिया। यह कितना महान है? सूअर ने आगे बढ़कर हिरण्य को थपथपाया और बोला ब्लड शक्ति का घमंड से मैं उन्मत्त था मुझे आज यह सब अच्छी तरह मिल गया है कि कोई छोटा बड़ा नहीं होता। समय पड़ने पर सभी एक दूसरे के काम आते हैं। हमें प्रतिज्ञा करता हूँ कि आज किसी को भी नहीं सकता हूँगा किसी को भी तंग नहीं करता है अधिक से अधिक दूसरों की सहायता करता है आप सभी उसे बहुत चाहते हैं। तुम बच्चों, इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है कि हमें शक्ति का सही उपयोग करना चाहिए न कि अपनी शक्ति को दूसरों को कष्ट पहुंचाने में उपयोग करना चाहिए। ओके बाय।",सभी को नमस्कार यह एक छोटे से चूहे की कहानी है। मैं सभी बच्चों को सोने के समय की कहानियां नैतिकता के साथ सुना रहा हूं। मेरी कहानियाँ अभिनव और प्रेरणादायक हैं। अपने बच्चों के साथ मेरी कहानियाँ सुनें। यह निश्चित रूप से आपके बच्चे के व्यक्तित्व के निर्माण में मदद करेगा। "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपको सुनाने जा रही हूँ, उसका टाइटल है फूल देश की यात्रा। आज फिर वही हुआ। छे वर्ष की नन्ही रंजू चुपचाप मम्मी की आंख बचाकर बाग में निकल गई। फिर उसने मन भर कर खूब फूल तोड़े। गुलाब, गेंदा, चमेली, हरसिंगार, बेला के ढेर सारे फूलों से उसकी टोकरी भर गयी। तब रंजु दबे पैरों अपने कमरे में चली गयी। टोकरी जमीन पर रखकर वह भी फर्श पर बैठ गई। सुई धागा लेकर हरसिंगार के फूलों की दो मालाएं बनाई, एक गुड़िया को पहनाई और दूसरी गुड डे को। गेंदे के फूलों को तोड़कर उनकी पत्तियों से उनका सिंहासन सजाया। गुलाब की नन्ही कली गुड डे के कोर्ट में लगायी और चमेली की छोटी सी कली गुड़िया के जुड़े में सजा ई। अभी रंजू की सजा चल ही रही थी की मम्मी आदम की वो हड़बड़ा उठी। रंजू को लगा कि उसकी मम्मी तो पूरी की पूरी जासूस है। मम्मी की निगाह जमीन पर पड़े फूलों के ढेर पर गयी। उसे देखते ही उन्हें गुस्सा आ गया और बोली देखो रंजू तुम्हें लाख बार समझाया है कि फूल न तोड़ा करो और तुम सुनती ही नहीं, तुम हमारी बात नहीं मानोगी तो हम तुमसे नहीं बोलेंगे हमारी तुम्हारी कट्टी। रंजू जानती है कि मम्मी को भूल तोड़ना बहुत बुरा लगता है, वे कभी अपने जूड़े में भी फूल तोड़कर नहीं लगाती है। रंजू से भी यही कहती हैं कि जो फूल अपने आप टूट कर गिर जावे, उन्हें ही उठाओ। फूल तो पौधों पर ही सुन्दर लगते हैं, पर रंजू को तो आदत पड़ गयी है कि जैसे ही वह खेलते हुए फूलों को देखती है, उसका हाथ उन्हें तोड़ने के लिए आगे बढ़ जाता है। वो बार बार सोचती है की मम्मी की बात मानेगी। आप कभी भूल नहीं तोड़ेगी, पर उन्हें देखते ही वह सब कुछ भूल जाती है। रंजू उन्हें फूलों के उस ढेर से अपने गुड्डे गुड़िया को खूब सजाया। उनकी छटा देख देख कर वह खूब मुक्त हुई। पर उन्होंने उससे बात तक न की। रंजू की आदत है मम्मी से कहानी सुनते सुनते सुनने की। उसने मम्मी से कहानी सुनाने को कहा तो उन्होंने करवट बदल ली। वह चुपचाप उतरकर दूसरी ओर से जाकर उनसे लिपटते हुए बोली, मम्मी कहानी सुनाओ ना। और उन्होंने उसका हाथ झटक दिया। वे यह कहकर कमरे से चली गई। हम फूल तोड़ने वाले गंदे बच्चों से बात नहीं करते हैं। रंजू को रोना आ गया, रोते रोते उसकी आंख लग गयी। कुछ समय बाद उसने पाया कि एक सुन्दर सी पड़ी उसके ज़रा ने खड़ी है। उसके कपड़े सोने और चांदी के बने हुए हैं। परी रंजू से प्यार से पूछने लगी। क्या तुम फूलों के देश चलोगी? रंजू फौरन बोल पड़ी चलूँगी परी ने रंजू की ऊँगली पकड़ी और आकाश में उड़ चली, उसे समझा दिया की उँगली कस कर पकड़े रहे रंजू ने मजबूती से उँगली पकड़ ली। फिर रुई से सफेद गुदगुदी बादलों को पार करते हुए आगे बढ़ गए। इंद्रधनुष के भव्य द्वार के उस पार फूलों के राजा का महल था। जल्द ही दोनों वहाँ तक पहुँच गई। उस महल को देखकर रंजू दंग रह गई। ऐसा लग रहा था मानो भूलो से मेहता ताज महल बनाया गया हो। चमेली के फूलों से बने द्वार पर अनेक लाल गुड़हल। प्रहरी खड़े हुए थे। परी ने उनसे अंदर घुसने की अनुमति मांगी। अंदर घुसने पर अंजू ने देखा की महल की सारी दीवारें सूरजमुखी के फूलों से बनी थी। क्षति गेंदे से बनाई गई थी। बहुत से कमरों को देखने के बाद परी रंजू को राजा रानी के दर्शन कराने लेते रास्ते में पड़ा। दो तीन मील लंबा मैदान। इसमें दोनों ओर कतारों में आम, संतरा आदि फलों के वृक्ष खड़े थे। रंजू के मुँह में होने देखकर पानी भर आया। पर इन्हें जमीन पर गिरा। सुर्ख लाल से उसे पकड़ा दिया। वह उसे कुतरती कुतरती आगे बढ़ गई। एक बड़े से कमरे के द्वार पर परी रुक गई। द्वार पर खड़े प्रहरी उन्हें अंदर ले गए। सामने ही बेला और ले ली से बने दो भव्य सिंहासन थे। उन पर राजा कमल और महारानी गुलाब विराजमान थे। सहसा ही राजा रानी की अंगरक्षक आजू ही सामने आई और डाँटकर बोली संजू बोलो तुम क्यों बोल तोड़ती हो? राजा रानी का ध्यान भी सहसा उसकी ओर चला गया। न्याय मंत्री हरसिंगार ने आगे बढ़कर निवेदन किया महाराज इस लड़की में फूलों को तोड़ने की गंदी आदत है। यह अकारण ही हम सब को तंग किया करती है। इसे दंड दिया जाए। महाराज को भी सारी बातें याद आ गई। उन्होंने आदेश दिया जब तक यह लड़की वायदा न कर लें कि आगे से कभी फूल नहीं तोड़ेगी, उसे हमारे रहने के तालाब में डूबा रहने दिया जाए। यह आदेश सुनकर रंजू भयभीत हो उठी। वह तुरंत महाराजा के पैरों पर गिर पड़ी और आगे से कभी भी फूल न तोड़ने का वचन दे दिया। उनके आदेश से अंगरक्षक उसे घसीटते हुए बाहर ले आए और फिर वहाँ से धक्का दे दिया। चोट लगने से रंजू चीख पड़ी। वह उठकर बैठी तो पाया कि पलंग की बजाय जमीन पर पड़ी है। सूरज की सुनहरी किरणों से कमरा चमक रहा था और उसका छोटा भाई अपने खिलौनों से खेल रहा था। रंजू की आँखों के आगे काफी देर तक फूलों का महल ही तैरता रहा। बस समझ नहीं पायी। यह सपना था या सच? जो भी हो, अब उसने फूल तोड़ना बिल्कुल छोड़ दिया है। अब मम्मी भी उससे नाराज नहीं होती है। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है की हमें अपनी। खुशी के लिए कभी भी फूल, पत्तियों, पेड़ पौधों को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए। ओके बाय।",सभी को नमस्कार मैं सभी बच्चों को सोने के समय की कहानियाँ बता रहा हूँ। मेरी कहानियाँ अभिनव और प्रेरणादायक हैं। अपने बच्चों के साथ मेरी कहानियाँ सुनें। यह निश्चित रूप से आपके बच्चे के व्यक्तित्व के निर्माण में मदद करेगा। "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आप सब के लिए लाई हूँ उसका टाइटल है दादी की तरकीब। बिजु का घर बिजनौर में था, वो बड़ा ही निर्धन था। बूढ़ी दादी और कुत्ता टॉमी, इनके सिवाय संसार में उसका कोई नहीं था। बीजू ने दसवीं तक पढ़ाई कर ली थी, वो अब दिल्ली जाना चाहता था। उसने कनवा चाचा की दुकान में राशन लेते समय अखबार में एक ताजा खबर पढ़ ली थी। दरअसल चाचा उसको हर रोज़ अखबार दिया करते थे कि यह लो बीजू इसे पढ़ा करो। उसने पढ़ा की बारहवीं और उसके बाद कॉलेज की पूरी पढ़ाई एक ही जगह हो सकती है, वह भी मुफ्त में। उसने मन ही मन खुश होते हुए कहा कि वाह घर जाकर दादी को बताता हूँ की एक सरकारी संस्थान बिल्कुल मुफ्त में बारहवीं तथा कॉलेज की पढ़ाई करा रहा है। यही नहीं शाम को 1 घंटे साबुन और मोमबत्ती बनाने की ट्रेनिंग भी दी जाएगी और उसके पैसे भी मिलेंगे ताकि छात्र अपनी जरूरी खर्च पूरी कर सके। वो राशन का थैला लेकर वापस लौटने लगा तो उसके पैर जमीन पर ही नहीं पड़ रहे थे। घर पहुंचा तो दादी बाहर ही धनिया मिर्ची की क्यारी में कुदाल से निराई गुड़ाई करती मिल गई। दादी पूरे 60 साल की थी मगर रोज़ 8 घंटे बहुत मेहनत करती थी। उसे गर्व था अपनी दादी पर। पहले तो उसने दादी दादी आवाज लगाई फिर हांफते हांफते दादी को उसने सारी बात बता दी। सुनकर दादी की आँखों से खुशी के आंसू निकल पड़े। वो तो खुद यही चाहती थी की बीजू पढ़ लिखकर अपने पैरों पर खड़ा हो जाए और अच्छी तरह कमाएं खाएं। दादी तो गेहूं के दलीय से भी गुज़ारा कर लेती थी। मगर वो अकेला दिल्ली कैसे जाएगा? यह एक समस्या थी और दादी को मन ही मन कुछ घबराहट भी हो रही थी। यह बात राशन की दुकान वाले कनुआ चाचा को पता लगी और उन्होंने तो जैसे समस्या ही दूर कर दी। उनको अपनी दुकान के काम से दिल्ली जाना ही था। वो बोले, बीयू मेरे साथ जल सकता है। यह संस्थान तो बहुत जाना पहचाना है, किसी भी प्रकार की फिक्र करने की जरूरत नहीं। अच्छा, यह तो बहुत अच्छी बात हुई कहकर दादी ने ईश्वर को धन्यवाद कहा और उसके बाद कमर कसकर काम में जुट गई। दादी ने बीजू के जाने की सभी तैयारियां कर दी, जैसे बीजू की दो पुरानी जीन्स को पूरा खोलकर दो शानदार मजबूत बैग चल दिए। नईम और जामुन के पत्ते सुखाकर उसका दन्त मंजन बना दिया। पुदीने और धनिये के पत्ते सुखाकर चटपटा चूरन बना दिया। जंगल से बेल मंगवाकर उसको सुखा कर ताकत का टॉनिक बना दिया। सूखा आंवला तो घर पर रखा ही रहता था। अब दादी की सब तैयारी हो गयी। मगर दादी के मन में कुछ खटास आ रहा था। वह यह सोच रही थी कि दिल्ली की आबोहवा कहीं अगर अपना असर दिखा गई तो बीजू आलसी और लापरवाह ही न बन जाए। कुछ तो करना ही चाहिए। वो सोच मेँ डूबी रही। अब भी जु के दिल्ली जाने का समय भी आ गया। दादी को अपना चेहरा हंसता हुआ रखना पड़ा और वह मन ही मन बेचैन थी। अपना मन संतुलित करके वह बीजू से बोली कि बीजू मेरे लाड़ले, अब तो तू पांच छे महीने बाद ही गांव वापस लौटेगा। मेरा एक काम करदेना यह 100 पन्ने वाली चित्रकारी की पुस्तक है। तुम रोज़ सुबह उगते हुए सूरज के चित्र इसमें बना देना मैं देखना चाहती हूँ। वा दादी बीजू ने वह खाली पुस्तिका थाम ली तो चित्रकारी का उसे बहुत शौक ही था। उसने एक सवाल पूछा मगर दादी उगता हुआ सूरज तो रोज़ एक सा ही होता है फिर 100 चित्र क्यों? हाँ हाँ, बेटा, यह तो कलाकारी है अलग अलग दृश्यों के सूर्योदय बनाने हैं तुम्हें। और दादी मैं समझ नहीं सका अलग अलग दृश्यों के सूर्योदय। उसने चौंककर पूछा तो दादी ने जवाब दिया, हाँ, बीजू तुम सुबह कभी छत पर से कभी किसी पार्क से, कभी किसी मैदान पर से कभी किसी कॉलोनी के छोर से उगते हुए सूरज को देखना और चित्र बना देना बस एक घंटा लगेगा। फिर तो पूरा दिन तुम्हारा है बेटा। ठीक है, इसमें तो कोई मुश्किल नहीं बिल्कुल पक्का हाँ हाँ दादी बिलकुल जब मैं लौटूंगा तो तुम देखना एक से बढ़कर एक चित्र दादी। दादी ने उसके सिर पर स्नेह से हाथ फेरा और खूब आशीर्वाद दिया। लगभग सात महीने के बाद। बीजू जब वापस लौटा तो दादी उसको देखती ही रह गई। वो बहुत सवस्थ और खुश लग रहा था। दादी को सुकून मिला कि बीजू बिल्कुल भी आलसी नहीं बना। तभी तो वो चुस्त दुरुस्त और लंबा हो गया था। बीजू ने दादी से मिलकर उनको 100 नहीं बल्कि पूरी 200 पेंटिंग थमा दी, जो उसने दादी के दिए हुए उन कागजों पर बना रखी थी। एक से बढ़कर एक चित्र थे सारे। दादी ने सब चित्र गौर से देखें और राज़ खोल दिया कि मैं बस यही चाहती थी कि तुम सुबह सूरज उगने से पहले जाग जाओ और ताज़ी हवा से अपना देश शुरू करो। यह बात सुनकर तो बीजू हैरान रह गया। दादी की इस युवती ने उसको एक नहीं बल्कि दो इनाम दिलवाए थे। दादी ने उसकी वो पुरस्कार देखें। बीजू ने दादी को बताया कि हर रोज़ समय पर जागने के लिए और सबसे अच्छे अनुशासन के लिए यह मेडल और एक सुंदर घड़ी उसे इनाम में मिली है। दादी देखती रह गई। वो अब निश्चिंत हो गयी थी की बीजू अब ना केवल अपने जीवन में सफलतापूर्वक आगे बढ़ेगा बल्कि खूब तरक्की भी करेगा। तो बच्चो इस कहानी से जो शिक्षा हमें मिलती है वो ये है कि हमें हमेशा सुबह जल्दी उठना चाहिए। और जीवन में अनुशासन का पालन करना चाहिए तभी हम जीवन पथ पर आगे बढ़ सकते हैं। ओके बाय।","सभी को नमस्कार, यह एक लड़के और उसकी दादी की नैतिक कहानी है। वे बहुत गरीब हैं लेकिन उनकी दादी की एक बेहतरीन सोच लड़के की जिंदगी बदल देती है। पूरी कहानी सुनें और कहानी के नैतिक के बारे में जानें।" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपके लिए लेकर आयी हूँ, उसका टाइटल है बीमारियों की जड़। एक बार भास्कर नाम का एक सिंघ और उसकी पत्नी रानी घूमते घूमते अपनी गुफा से बहुत दूर निकल गए। बातों ही बातों में उन्हें रास्ते का कुछ पता ही ना रहा और वह नदी के पार बसे हुए दंडकारण्य वन में जा पहुंचे। रानी को यह वन बहुत अधिक पसंद आया। चारों ओर पहाड़िया उनकी गोद में फैली हरियाली, कल कल छल छल करके बहती नदी, सभी ने उसके मन को मोह लिया। सिंघानी ने अपने पति को स्पष्ट निर्णय सुना दिया। आज से हम दंडकारण्य में ही रहेंगे। भास्कर ने भी इसका विरोध ना किया। उसे स्वयं भी देशाटन अच्छा लगता था। वह सदैव यही कहता था कि स्थान स्थान पर घूमने से बहुत अधिक ज्ञान बढ़ता है। दूसरे भास्कर का स्वभाव भी बहुत अच्छा था। वह जहाँ भी जाता था जल्दी ही वहाँ के प्राणियों में घुल मिल जाता था। यही नहीं, विनयशीलता, परोपकार, अनुशासन, सत्यवादिता, सच्चरित्रता आदि गुणों के कारण ही वह बहुत लोकप्रिय भी हो जाता था। भास्कर के गुणों के कारण दंडकारण्य के जीव जंतु भी थोड़े ही दिनों में उसे बहुत चाहने लगे। संयोग की बात की। कुछ ही दिनों बाद दंडकारण्य का राजा मर गया। कौन राजा हो? इस विषय को लेकर सभी प्राणी चिंतित हो उठे। चिंता की बात भी थी आयोग के और अत्याचारी शासक अपनी बुद्धिहीनता से स्वार्थपरता से प्रजा का शोषण करता है। ऐसे राजा से तो राजा के बिना रहना ही अच्छा। दंडकारण्य के प्राणियों ने बड़े सोच विचार कर भास्कर को अपना राजा चुना। पर विजेंद्र नाम के एक सिंह को यह अच्छा नहीं लगा। वह मन ही मन सोच रहा था कि उसे ही राजा चुना जाएगा। वह अपना विरोध प्रकट करते हुए बोला। एक अपरिचित पर अपना विश्वास कैसे कर सकते हैं? हम शुरू में तो सभी अच्छे दिखते हैं पर बाद में ही उनके दोस्त दिखाई देते हैं। राजा चुनना चाहिए उससे जो प्रारंभ से हमारे बीच रह रहा हो, जिसे हम शुरू से ही अच्छी तरह जानते हो, पर विजेंद्र की इस बात का किसी ने कोई समर्थन ना किया। चेता लोमड़ी बोली भास्कर दादा अब हमारे लिए अपरिचित भी कहा है। उन्हें हमारे साथ रहते रहते पूरे आठ महीने बीत चूके हैं। किसी व्यक्ति को जानने के लिए इतना समय क्या कम होता है? राजा भालू बोला कौन कैसा है इसकी परख? बुद्धिमान थोड़े ही समय में कर लिया करते हैं। कोई भी अपने स्वभाव को बहुत दिनों तक छिपा नहीं सकता। कृत्रिमता और आडंबर कुछ ही समय दूसरों को धोखा में डालते है। बदमाश है इतनी बोली? योग्यता और गुणों के आधार पर राजा को चुनाव होना चाहिए ना कि अपने पराये की संकुचित मनोवृत्ति के आधार पर। भास्कर आखिर सर्वसम्मति से दंडकारण्य का राजा चुन लिया गया। विजेन्द्र अपना सामू लेकर रह गया। उसने बड़े अपमान का अनुभव किया और मणि मन प्रतिज्ञा की कि भास्कर से इसका बदला लेकर रहेगा। अब विजेंद्र भास्कर से बदला लेने का कोई मौका ढूंढता रहता वो हर जगह उसकी बुराइ करता जानवरों को भड़काता भास्कर को पदच्युत करने के लिए विजेंद्र ने अनेक षणयंत्र जे। वह बस इसी बात को लेकर सोचता घुलता और कुर्ता रहता कि किसी भी प्रकार भास्कर को अपमानित करें। इसके लिए वह नई नई योजनाएं बनाता, जंगल के प्राणियों को अपनी ओर मिलाने की कोशिश करता। दूसरों के बहकावे में आकर गलत को भी सही कहने वालों की कहीं भी कमी नहीं होती। विजेंद्र ने भी जंगल के कुछ मूर्ख प्राणियों को अपनी ओर मिला लिया। वे सभी मिलकर भास्कर के विरुद्ध षड्यंत्र रचने इधर भास्कर ने अपने गुणों से प्रजा का मन जीत लिया था। दुर्जन ऊंचा पद पाकर अहंकार से भर उठते है। अपनी शक्ति का प्रयोग दूसरों को पीड़ित करने में करते हैं, परंतु इसके विपरीत महान व्यक्ति ऊंचा पद पाकर और अधिक विनम्र बन जाते हैं तथा अपनी शक्ति का उपयोग दूसरों की सहायता और उपकार में करते हैं। कहा भी गया है नमन अतीफ अली नो वृक्षाः नमन तिगुनी नो जनाः, शुष्क काष्ठ अस्त मूर्ख अष्ट ना ना मंती कदाचन। फलदार वृक्ष अपने फलों के भार से झुक जाते हैं और इसी प्रकार गुणी व्यक्ति भी सदा नम्र तथा दूसरों की सहायता करने में तत्पर रहते हैं। इसके विपरीत एक सूखा वृक्ष तथा मूर्ख व्यक्ति झुकना नहीं जानते अर्थात दूसरों के प्रति सहायक और विनम्र नहीं होते। भास्कर भी ऊंचा पद पाकर अधिक विनम्र और परोपकारी बन गया था। प्रजा को भलाई, सोचने और करने में वो हर समय अपने आप को जुटाए रखता था। अपने पद और अधिकार का प्रयोग उसने कभी भी व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए नहीं किया था। ऐसा शासक बड़े सौभाग्य से मिलता है। फिर भला प्रजा उसे प्यार क्यों ना करती? देर या सबेर एक न 1 दिन तो सच्चाई आखिर सामने आनी ही थी। विजेन्द्र के षडयंत्रों का जल्दी ही भंडाफोड़ हो गया। उसकी करतूतों को जानकर जानवर बड़े खुद धुएं और उसे मारने के लिए उस पर टूट पड़े। भास्कर ने बीच बचाव करके बड़ी मुश्किल से उसे बचाया, अन्यथा उस दिन तो विजेंद्र के प्राण ही निकल गए होते। विजेन्द्र की चापलूसी करने वाले हर समय उसके आगे पीछे ले डालने वाले, उसे भड़काने वाले साथियों का पता तक न था। जिनका कोई सिद्धांत नहीं होता, आदर्श नहीं होता। ऐसे चापलूस तभी तक आगे पीछे घूमते है जब तक उनका अहम और स्वार्थ पूरा होता है। वे व्यक्ति को नहीं, पद को प्यार करते हैं। व्यक्ति के अधिकार हीन होते ही वे ऐसे मुँह फेरा लेते है जैसे वे उसे जानते ही ना हो। भास्कर बहुत तेरा ना ना करता रह गया पर जंगल के सभी जानवरों ने सर्वसम्मति से विजेंद्र के देश निकाले का प्रस्ताव पारित कर दिया। लाचार होकर विजेंद्र को 1 दिन अपनी पत्नी के साथ दंडकारण्य से निकलना ही पड़ा। विजेन्द्र ने पास के ही एक जीवन में शरण ली। वह अब भी अपनी गलती मानने को तैयार न था। अभी भी यही कहता रहता और फिर मैं किस बात से उस भास्कर के बच्चे से कम हूँ? ईर्ष्या और देश की भावनाओं से भरे विजेन्द्र का हर समय कुढ़ना और फूंकना हो गया। उसकी पत्नी उसे समझाती, देखो जी जो हुआ उसे भूल जाओ क्यों? हर समय सोचते रहोगे तो तुम बीमार पड़ जाओगे। पत्नी को भी विजेंद्र डांट कर चुप करा देता। उसका स्वभाव भी चिड़चिड़ा हो गया था। वह हर समय जलाता रहता। भल्या हुआ कि जंगल का कोई भी जानवर उससे बात नहीं करता। चिड़चिड़े और बात बात में जलाने वाले दूसरों से ठीक से बात ना करने वाले के पास आखिर बैठता ही कौन है? रंग की भावनाएँ शरीर पर बड़ा गहरा प्रभाव डालती है, मन के विकार पड़े, घातक होते हैं तथा अनेक शारीरिक बीमारियां उत्पन्न कर देते हैं। इर्षा, द्वेश, छल, कपट, मोह, काम, क्रोध आदि विनाश करने वाले घातक रोग है। तन के रोगों को तो देखा जा सकता है पर ये ऐसे भयंकर होते हैं कि अंदर ही अंदर छिपकर जड़ जमा कर बैठ जाते है और धीरे धीरे सर्वनाश कर डालते हैं। मन के रोगों के जाल में विजेंद्र भी कुछ ऐसा उलझ गया कि धीरे धीरे सैयां से लग गया उसके लिए उठना बैठना भी दूभर हो गया। पत्नी शिकार करके ला देती तो वो थोड़ा बहुत जैसे तैसे खा लेता। विजेंदर की ऐसी गंभीर स्थिति को देखकर उसकी पत्नी का मन पीड़ा से कराह उठा। उससे आखिर ना रहा गया और चुपचाप राजवैध देव दत्त के यहाँ दौड़ गई। दुख की अधिकता से उससे कुछ बोला भी ना जा रहा था। उसकी आँखों से निरंतर आंसू बह रहे थे। विजेंद्र की पत्नी ने देवदत्त के पैर पकड़ लिए और इतना ही कह पाई वेज्जी दया कीजिए, मेरे पति को बचा लीजिए। उसकी करोड़ स्थिति देखकर वैध जी का मन भी पिघल गया। बैठो बहन देहरे रखो कहकर उन्होंने उसके आंसू पोंछे। क्या हुआ तुम्हारे पति को? वह जी ने पूछा? विजेंद्र की पत्नी ने नहीं संकोच दंडकारण्य से लेकर अब तक की सारी घटनाएं और स्थितियां कह सुनाई। वेज्जी बड़े ध्यान से सारी बातें सुन कर बोले। ओह, तुम्हारे पति को प्रमुख रूप से मन के रोग है। हमारे मन में भी अनेक रोग छुपे रहते हैं और जब हम इन के प्रति लापरवाह होते हैं, इन्हें पनपने देते हैं तो हमारे विकास को ही रोक देते हैं, जीवन को कला और दुख से भर देते हैं, मन के रोग, ईर्ष्या, द्वेष आदि शरीर के रोगों से भी भयानक होते हैं। यही हमारे असली दुश्मन होते हैं। मन के ये रोक अनेक प्रकार के शारीरिक रोगों को जन्म देते हैं। ये शरीर को बीमारियों का घर बना डालते हैं। इसलिए बुद्धिमान उनसे सदैव बचते हैं। कुछ देर फिर रुक कर कुछ सोचते हुए देवदत्त बोले बहन तू मेरे पास देर करके आई हो, फिर भी तुम्हारे साथ चलता हूँ, शायद कुछ हो सके। वैद्य देवदत्त ने विजेंद्र की पूरी तरह जांच की। ईर्ष्या, द्वेष, कुरान आदि मानसिक बीमारियों से उसका शरीर पूरी तरह से घुल चुका था। वो हड्डियों का ढांचा मात्र रह गया था। उसका चेहरा भी बड़ा भयंकर सा लग रहा था। सच है जैसे हमारे मन के भाव होते हैं, मुख्य आकृति भी पैसे ही बन जाया करती हैं। हमारा मुख्य व शीशा है जिसमें बुद्धिमान व्यक्ति हमारे मन के विचारों को पढ़ लेते हैं। देवदत्त ने विजेंद्र को समझाया, बच्चे अपने आप को संभालो, अपने मन पर संयम रखो, अपनी अच्छी या बुरी स्थिति के लिए हम स्वयं उत्तरदायी हैं। क्यों अपने आपको बर्बाद करते हो, अपने मन को सवस्थ बनाओ, प्रसन्न बनाओ, निर्मल बनाओ तब तुम देखोगे की तुम्हारी शारीरिक बीमारियां भी कितनी जल्दी भाग जाएगी? विजेन्द्र को वैध जी की बातें बिल्कुल अच्छी नहीं लगी। उसने उपेक्षा से मुँह फेरा लिया। उन्होंने भी कुछ कहना ठीक न समझा। दूसरों की बातों को कोई महत्त्व न देने वाले दुराग्रही से अधिक कुछ कहने सुनने से लाभ भी क्या है? वैद्यजी के चले जाने पर विजेंद्र ने अपनी पत्नी को खूब डांटा की वह क्यों उन्हें बुलाकर लाई? उसने उनकी बताई कोई दवा भी नहीं ली। यूही घुलते घुलते 1 दिन विजेंद्र गुजर गया। उसकी पत्नी फूट फूट कर रो उठी। वह बार बार यही सोच रही थी कि मन के विकार, ओने मेरे पति को बुला बुलाकर मार डाला। एक साथ मर जाना उतना कष्ट देने वाला नहीं है जितना मानसिक यंत्रणा सहते हुए तिल तिल करके मरना। विजेंद्र की पत्नी ने 1012 दिन इसी शोकमय स्थिति में बिताए। फिर उसने मन ही मन कुछ विचार किया और एक नए संकल्प के साथ अपनी गुफा से निकल पड़ी। अब वह जगह जगह घूमकर सभी जीव जंतुओं को यही समझाया करती है। यदि जीवन को सुखी बनाना है, सफल बनाना है तो न केवल शारीरिक स्वास्थ्य का ध्यान रखो और मन को भी प्रसन्न और विकारो से रहित बनाओ। ईरशाद, वेश, घमंड, कुरान, काम, क्रोध, लोभ आदि भी रोग है। ये मन के रोग शरीर के रोगों से अधिक भयानक है। शारीरिक रोग तो दिखाई दे जाते हैं और हम उनका उपचार कर लेते हैं पर मन के रोग ऐसे घातक होते हैं कि दिखाई नहीं देते। यह धीरे धीरे चुपचाप हमारे शरीर को और शक्ति यों को खोखला बना डालते हैं, हमें बर्बाद कर देते हैं। बार बार समझाए जाने से उस वन के प्राणी विजेंद्र की पत्नी की बातों के महत्त्व को समझने लगे हैं और उसके बदला ये मार्ग पर चलने की कोशिश करते हैं। विजेंद्र की पत्नी पति के प्रति यही सच्ची श्रद्धांजलि मानती है। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें हमेशा अपने मन में अच्छी भावनाओं को जगह देनी चाहिए। इरशाद, वेश, घमंड, क्रोध इन सबको अपने मन में घर नहीं करने देना चाहिए अन्यथा यह हमारे शरीर पर भी अपना कुप्रभाव दिखाती है। ओके बाय।",यह एक शेर 🦁राजा की नैतिक और शिक्षाप्रद कहानी है। शेर और शेरनी बहुत दयालु और उदार होते हैं। वे हमेशा अपने शिष्यों का ख्याल रखते हैं। शेर की लोकप्रियता ने जंगल के दूसरे शेरों को चिढ़ा दिया। अपने नकारात्मक विचारों के कारण वह बीमार हो गया। उसकी बीमारी उसके मानसिक विकार के कारण होती है। सुनिए पूरी कहानी और जानिए आखिर हुआ क्या। "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपके लिए लेकर आई हूँ, उसका टाइटल है विश्वासघाती गोदावरी नदी के तट पर एक घना जंगल था। उसमें अनेक पशु पक्षी रहते थे। वहाँ पर एक बड़ी ही चालाक लोमड़ी आ गई। वह दूर के जंगल से आई थी। वहाँ के राजा ने दूर तता के कारण उसे निकाल दिया था। नए जंगल में आकर दूर तो लोमड़ी ने सबसे पहला काम यह किया कि वह सब पर अपना विश्वास जमाने लग गई। वह जानती थी कि एक बार सब पशु पक्षियों पर विश्वास जमाकर फिर उसकी आड़ में स्वार्थ सिद्ध किए जा सकते हैं व सभी से मीठी मीठी बातें करती। उसकी बातों में मानो मिश्री गोली होती, उससे बातें करके जी प्रसन्न हो जाता। उसके बाद करने का ढंग इतना आकर्षक था कि जानवर उससे घंटों बातें करते पर उन्हें बिल्कुल भी उड़ना होती। दुख मुसीबत में वह सदैव दूसरों की सहायता करने का वचन देती। यह बात दूसरी है कि दसों से कहती तो एक की सहायता करती। पर दूसरे उसकी चाल क्या समझते? वे तो सोचते थे कि वह उनकी बहुत बड़ी हितैषी है। दुष्टों का ऊपरी व्यवहार बड़ा मीठा होता है। मन में वे दूसरों का बुरा सोचते हैं, पर बाहर से यही दिखाते हैं कि उनके जैसा हितैषी धरती पर दूसरा नहीं है। अपनी लच्छेदार बातों से फिर दूसरों को लुभा लेते हैं। सीधे सादे उनकी बातों से प्रारंभ में तो प्रभावित हो ही जाते हैं। यह तो बहुत बाद में पता लगता है कि वह कितने दूर थे। जैसा कि कहा भी गया है दूर, जनप्रिय वादी के नेतृत्व में विश्वास कारणं मधु तिष्ठति जी हाँ, ग्रे हृदय तो हालाहल हम अर्थात दुर्जन प्रिय बोलने वाला हो फिर भी विश्वास करने योग्य नहीं होता क्योंकि चाहे उसकी जीवा पर शहद हो पर हृदय में हलाहल विष ही होता है। जंगल के सीधे सादे अनेक जानवर धूर्तता लोमड़ी के मित्र बन गए। वे उससे सदा अच्छा व्यवहार करते समय असमय उसकी सहायता करते। दूर था की अब तो सबसे गहरी छनती थी। सुन्दर नाम का खरगोश उसका बड़ा प्रशंसक था। वह उससे कहती। ओहो, मेरे नन्ही से भाई जैसा तुम्हारा नाम हैं, वैसे ही तुम सुंदर हो। तुम्हारा रंग चाँद जैसा है तुम्हारी गुलाबी आंखें कमल के फूल जैसी है, तुम्हारे दांत मोती जैसी है। सुन्दर उसकी बात सुनकर लजा जाता और कहता, बस करो दीदी, बस करो तुम तो पूरी क वेतरी बन गई हो, कैसी बढ़ा चढ़ाकर बातें कर रही हो दूर ता बड़ी ही मुग्धता से उसे देखते हुए कहती। मेरे प्यारे राजा भैया हम अपनी अच्छाई और बुराइ स्वयं उतनी अच्छी तरह नहीं जानते हैं जितना दूसरे जानते हैं मैं भला तुम्हें कैसे ना जानूँगी। सुंदर आंख बंद करके दूर ता की बातों पर विश्वास कर लेता था। वह बड़ा ही सरल हृदय और दुनियादारी से दूर था। छल कपट व नहीं जानता था। सुन्दर के घर कुनबे के बुजुर्गों को सुंदर की धूर्तता से यह गहरी दोस्ती अच्छी न लगती थी। वे उसे बार बार समझाते की लोमड़ी से इतनी घनिष्ठता अच्छी नहीं है। और उस दूर ताने तो अपनी रसीली बातों से सुंदर को मन्नू पागल ही बना रखा था। वह सुंदर तो उस पर अविश्वास की कोई बात सोच ही नहीं सकता था। जंगल के जीव जंतुओं पर अपना विश्वास जम जाने पर उधर दूर था। अंदर ही अंदर दूसरे गुल खिला रही थी। जब भी मौका मिलता, वह छोटे मोटे जीवों पर हाथ साफ करने से नहीं चूकती। एक बार मुर्गी अपने चार बच्चों के साथ कही आती हुई दूर ता को मिली। कहाँ जा रही हो? बहन? सुबह सुबह दूर तक बड़े प्यार से बोली। क्या करूँ बहन? मेरी माँ बीमार है, फिर दूसरे जंगल में रहती है, उन्हीं को देखने जा रही हूँ ये बच्चे घर पर रुके ही नहीं, जबरन मेरे पीछे चले आए। इनके कारण जल्दी नहीं चल पा रही हूँ। मुर्गी कहने लगी। कोई बात नहीं इन्हें मेरे यहाँ छोड़ दो, आराम से खेलते कूदते रहेंगे दूर ता बोली। मुर्गी को भी उसकी बात जंच गई। बेकारी, धूप, ताप में क्यों बच्चों को परेशान करे? वह खाने पीने की चीजों का लालच देकर दो छोटे बच्चों को दूर ताकि यहाँ छोड़ गई। शाम को मुर्गी जब बच्चों को लेने धूर्त आके यहाँ आई तो उसे धूर्तता की बड़े ज़ोर ज़ोर से रोने की आवाज आई। ओह न जाने क्यों अनिष्ट हो गया है। यह सोचकर वह अंदर दौड़ी चली गयी। दूर था, अपनी छाती को पिट पीटकर रो रही थी। मुर्गी को देखते ही। तुरंत वह और जोरों से भड़क उठीं और बोलीं लो बहन संभालो अपने इस बच्चे को, मैं बड़ी देर से इसे चिपकाए हुए बैठी हूँ, मेरा काम तो पूरा हुआ अब मैं तो चली अपनी गलती का फल पाने मुर्गी के मुँह से अचानक निकला कैसी गलती कहाँ चली, दूसरा बच्चा कहाँ है? यह सुनकर लोमड़ी सिर पर हाथ मारकर रो उठी। आंसू बहाते हुए बोली, हाय मैं तो तुम्हें मुँह दिखाने लायक भी ना रही, इसीलिए तो मैं जा रही हूँ शहर के सामने जाकर बैठ जाउंगी वो मुझे खा लेगा और मैं अपनी गलती का दंड भुगत लूँगी मैं जा रही हूँ मैं हुई इस योग्य। मुर्गी कुछ समझ ही न पा रही थी। आखिर क्या बात है साफ साफ बदलाव? वह बोली, धूर्तता, रोते रोते बतलाने लगी। सारे दिन में दोनों बच्चों को खिलाती रही। शाम को उन्हें प्यास लगने पर ताजा पानी लेने नदी पर गई। मैं जब लौटी तो एक ही बच्चा था, एक का पता ही ना था। सारे जंगल में ढूँढकर थक गई और वह नहीं मिला। बहन तुम भी मन में ना जाने क्या क्या सोचोगी अब तो मेरा मर जाना ही ठीक है। कहते हुए धूर्त गुफा के द्वार से बाहर जाने लगी। मुर्गी ने उसे बड़ा ही समझाया बुझाया और बोली दीदी तुम्हारी कोई गलती नहीं, फिर तुम क्यों भला इतना दंड भुगतोगी अभी हम सब मिलकर चलेंगे और बच्चे को ढूंढेंगे, फंस गया होगा वो कहीं झाड़बाड़ी में। बड़ी कठिनाई से दूर ता को मरने से रोका जा सका। मुर्गियों की पूरी की पूरी फौज बच्चे को तलाशते तलाशते थक गई। उन्हें निराश ही होना पड़ा। अंत में मुर्गी बोली हो सकता है भटककर कहीं गुफा में चला गया होगा, अब तो अँधेरा भी गिर गया है। दिन निकलने पर शायद वह अपने आप रास्ता खोजता हुआ आ जाए। पर बच्चे को ना आना था और न आया आता भी कहा से। वह तो धूर्त आके पेट की गुफा में पहुँच गया था। इसी प्रकार दूर ता जब भी छोटे बच्चों को अकेले रास्ते चलते देखती तो वह उन्हें बहला फुसलाकर एकांत में ले जाती और मौका देखकर स्टक जाती। ऐसा वह कई बार कर चुकी थी, पर जंगल के जीवों को उसकी यह चालाकी का पता भी न था। वे तो उस पर विश्वास करते थे। 1 दिन की बात है, सुंदर अपने बच्चों के लिए रसभरी तोड़ रहा था, तभी अचानक उसे कुत्तों की आहट मिली। उसने जल्दी से नजर उठाकर देखा। तो कुछ ही गज की दूरी पर दो शिकारी कुत्ते खड़े थे। सुंदर ने आव देखा न ताव रसभरी। वहीं छोड़कर वह वहाँ से जान बचाकर अंधाधुंध भागा। शिकारी कुत्ते भी उसके पीछे दौड़ें। सुंदर ने अपनी चाल और भी तेज कर दी पर जल्दी में उसे ठोकर लगी और वह कुएं में गिर पड़ा। संयोगवश वह कुआं सूखा हुआ था। सुन्दर छिपकर उसी में बैठ गया। शिकारी कुत्तों के आगे बढ़ने की आहट आ गई थी पर सुंदर का दिल इतनी जोरों से धड़क रहा था कि वह हाथ पैर पसार कर वहीं लेट गया। साथ ही उसे यह भी डर था कि कहीं शिकारी कुत्ते वापस न लौट आए। अतएव सुंदर ने 2 घंटे वहीं रुकना ठीक समझा। सहयोग की बात की। थोड़ी देर बाद धूर्तता भी उसी कुएं के किनारे आ गई। बात यह थी कि वह कुआं जंगल से बहुत दूर बिल्कुल एक दूसरे कोने पर था। वहाँ कोई जानवर कभी आता जाता ना था क्योंकि शिकारियों का डर लगातार बना रहता था। सुंदर ने सुना कि कोई कह रहा है मेरी प्यारी दूर ता बताओ तुमने यहाँ आकर क्या किया? दूर तक कह रही थी आखिर मैं हूँ तुम्हारी पत्नी, तुम्हारे जैसी ही बुद्धिमान यहाँ पर सभी जानवर मेरा बहुत विश्वास करते हैं, बस हमारा काम हो चुका है। तुम्हारे आने पर की देर थी, कल से रोज़ हमारी दावत होगी यहाँ के खरगोश बड़े ही स्वादिष्ट हैं दो चार तो मैंने चेक भी लिए। बस कल से सबसे पहले खरगोशों पर हाथ साफ करेंगे। सुन्दर को अपने कानों पर विश्वास ही ना हुआ। वह मन ही मन कहने लगा नहीं, यह मेरी दूर था। दीदी नहीं हो सकती, या तो कोई और लोमड़ी होगी? पर आवाज पर वह कैसे अविश्वास करता? वह तो बिलकुल दूर ताकि ही लग रही थी। वह कुछ साहस करके धीरे धीरे छिपकर कुएं की दीवार के ऊपर तक चढ़ा और ज़रा सा सिर बाहर निकालकर झांका। उसने आँखें फाड़ फाड़कर देखा, सामने उसकी ही दूर था, दीदी बैठी थी। अब अपनी आँखों और कानों पर अविश्वास करने की कोई बात ही न थी। वह चुपचाप कुएं में नीचे उतर आया। अब यह सब देखकर तो उसका विश्वास चूर चूर हो गया था। विश्वासघात की पीड़ा उसके हृदय को माथे जा रही थी। हताश स्वर में वह बुदबुदाया। हे ईश्वर 13,00,000 लाख धन्यवाद कि समय रहते मेरी आंखें खुल गयी, नहीं तो मैं अपनी पूरी जाति के विनाश का कारण बनता लोम जी और लूमरा जब वहाँ से चले गए तो सुन्दर भी कुएं से निकला। उसने जो कुछ देखा और सुना था वह सभी को जाकर बता दिया। दूर ता की धूर्तता एक ना 1 दिन तो? खुलनी ही थी। अपनी कृत्रिम व्यवहार से शुरू में तो औरो का सम्मान प्राप्त कर लेता है पर जैसे ही सच्चाई खुलती है तो उसे घृणा और तिरस्कार ही मिलता हैं। फिर ना उसे कोई अपना मित्र बनाता है और ना ही उसकी कोई बातों पर विश्वास करता है। सुन्दर की बात सुनकर सभी खरगोश चिंता में पड़ गए थे। वे सोचने लगे कि चालक दूर ता जंगल के सीधे सच्चे जीवों को न जाने कब और कैसे धोखा दे दे। इस दूर ताको तो अब मरवाना ही ठीक रहेगा। खरगोशों का मुखिया बोला। खरगोश, मेढक, मुर्गा, आदि की एक लंबी सेना लेकर वे सभी एक दयालु भालू के पास पहुंचे। उनकी बात सुनकर भालू को भी बड़ा गुस्सा आया। वह बोला, क्यों तुम्हें यह सिद्ध कर सकोगे कि दूर था अपराधी है। हाँ हम आपको उसकी धूर्तता दिखा देंगे। सुंदर खरगोश और उसके साथी बोले ठीक है तभी मैं उसे दंड दे सकता हूँ, मैं निरपराधी पर या जल्दी से किसी पे हाथ नहीं उठाता। भालू ने कहा सुंदर और उसके साथी बैठकर सोचने लगे कि किस प्रकार धूर्तता के छल का भंडाफोड़ किया जाए। आखिर उन्होंने एक उपाय सोच ही लिया। दूसरे दिन भालू दादा को लेकर अनेक प्राणी धूर्त आके घर की ओर बढ़ चले। वे चुपचाप जाकर इधर उधर उसके घर के बाहर झाड़ियों में छिप गए। भालू दादा को ऐसी जगह खड़ा किया गया जहाँ से दूर तक के घर के अंदर का सारा भाग अच्छी तरह से दिखाई देता था। योजना के अनुसार सुंदर के छोटे छोटे दोनों बच्चे लोमड़ी के द्वार पर जाकर उसे खटखटाने लगे। अरे चीनू मीनू तुम अकेले अकेले कैसे चले आए? इधर लोमड़ी तुरंत दरवाजा खोलते ही कुछ आश्चर्य में पड़ कर बोली। बुआ जी आ चम् बिना किसी को कुछ बतलाएँ अकेले अकेले घूमने निकले हैं, अब तो हम बड़े हो गए, हमे अकेले कुछ घूमना भी चाहिये मीनू गर्व से अपना सीना फुलाकर बोला। धूर्तता ने भी दांत निकालते हुए कहा हाँ, बती जो सो तो है माता पिता तो हमेशा टोकते ही रहते हैं, उन्हें अपने बच्चे छोटे ही दिखाई देते हैं। बुआ जी, आज तो हम शाम तक यहीं रहेंगे। जीनू मीनू कहने लगे। खुशी से रहो बेटा ये तुम्हारा ही घर है, दूर था, बोली उसके मुँह में पानी आ रहा था, घर बैठे बिना कुछ किए आज उसकी दावत हो रही थी। थोड़ी देर तक घूरता मीनू चीनू को इधर उधर की बातों में बहलाती रही फिर चीनू से बोली मैंने तुम्हारे लिए गाजर रखी है जाओ उस कोने में जाकर उठा तो लाओ। चीनू के जाते ही दूर ताने मीनू की गर्दन पकड़ ली जैसे ही वह उसे मुँह में रखने वाली थी कि भालू दादा खिड़की तोड़कर अंदर घुस आए और उन्होंने पीछे से दूर ताकि गर्दन दबोच ली। दूर ता ने बहुत कोशिश की पर भालू की मजबूत पकड़ से अपने को छुड़ाना पाई। वह रोते रोते बोली मैंने क्या गलती की है? मुझ निर्दोष को छोड़ दो न ताव भालू भैया तुम तो मांस नहीं खाते पर मुझे क्यों मारते हो भालू उसे और भी जोरों से मसले हुए गुस्से में आँखें लाल करके बोला दूर तुम ले शर्म नहीं आती यह कहते हुए निर्दोष है बताओ मीनू की गर्दन से खून कैसे निकला? मुर्गी का वह बच्चा कहा गया हमारे और अनेक प्यारे बच्चे कहाँ गए? मुझे छोड़ दो, मुझे कुछ नहीं मालूम, मैं तुम्हारे पैरों पड़ती हूँ। धूर्तता यह कहकर री आने लगी भालू ने फिर ज़ोर से कहा हूँ दूसरों को धोखा देकर तो तभी चैन से रह सकती है जब तक तेरी पोल न खुले। पोल खुलने पर तो तुझे दंड मिलेगा ही। दूसरों को धोखा देने वाला या नहीं सोचता कि वह वास्तव में अपने आप को ही धोखे में रख रहा है। उसकी करनी कभी ना कभी तो सबके सामने आयेंगी ही, तुझे तेरे विश्वासघात का फल मिलना ही चाहिए। जिससे की तुम अंतर्मन से अपनी नीचता स्वीकार करें और अपने कुकर्मों के लिए अपने आपको दिक् कारें। दुष्ट मरते समय तो अपने आप को धोखे में मत रख, अब तो सच्चाई स्वीकार कर लें। ऐसा कहते कहते भालू ने लोमड़ी का पेट चीर दिया। भालू ने खरगोशों को भी बहुत डांटा। वह कहने लगा तुम्हारे पूर्वज तो बहुत बुद्धिमान थे पर तुम मूर्ख कैसे हो? क्यों किसी की बात पर आंख कान बंद करके विश्वास करते हो? दुनिया में धूर्तों और स्वार्थियों की कमी नहीं है कभी किसी को बिना परखे उस पर अतिविश्वास न करो ऐसा करोगे तो पग पग पर ठोकर ही खाओगे। प्यारे मित्र, आप ठीक कहते हैं, आपने हमारी आंखें खोल दी है। सुंदर ने धीमे स्वर में कहा। सभी ने भालू को अनेक धन्यवाद दिए। उसी के कारण आज वे बड़ी मुसीबत से बच सकें है। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें कभी भी किसी के ऊपर आंख बंद करके विश्वास नहीं करना चाहिए। हमेशा दूसरों को देख परख करके ही उन पर विश्वास करना चाहिए अन्यथा हमें इसका बहुत बड़ा मुआवजा भुगतना पड़ सकता है। ओके बाय।","सभी को नमस्कार, यह एक शानदार नैतिक कहानी है। इस कहानी में हमें जंगल के जानवरों के प्रति चालाक लोमड़ी 🦊 के व्यवहार के बारे में पता चलता है। लोमड़ी बहुत ही मीठा व्यवहार करती है लेकिन जानवर के माता-पिता की अनुपस्थिति में वह उनके बच्चों को निगल जाती है। लेकिन कुछ समय बाद उसकी सच्चाई सामने आ जाती है और उसे अपनी चालाकी की सजा मिल जाती है। पूरी कहानी सुनें और कहानी के नैतिक के बारे में जानें।" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी में आपको सुनाने जा रही हूँ उसका टाइटल है स्वर्ग के वस्त्र। एक बार एक युवक दलदल के पास से जा रहा था, अचानक उसे लगा कि कोई दलदल में फंसा हुआ है। वह युवक वहीं रुक गया और दलदल के किनारे तक गया। निकट पहुंचने पर उसने देखा कि कीचड़ में एक हंसनी फंसी है और उसके पंख में एक नुकीला बाढ़ घुसा हुआ है। उसकी ऐसी दारी और दशा को देखकर युवक का हृदय पसीज उठा। उसने उसको दलदल से निकाला और अपनी गोद में बिठाकर उस बाढ़ को भी बाहर निकाल दिया। थोड़ी देर बाद वह पीड़ा से मुक्त हो गई। उसको पीड़ामुक्त देखकर युवक ने उसे खुली हवा में विचरण करने के लिए छोड़ दिया और आगे बढ़ गया। एक रोज़ रात बड़ी सुनसान थी। एक तारा भी आकाश में दिखाई नहीं देता था। युवक अपना कमरा बंद किए कुछ काम कर रहा था की किसी ने उसका दरवाजा खटखटाया। युवक ने पूछा कौन है? मैं बहुत विपत्ति मेँ हूँ क्या आप मुझे एक रात यहाँ ठहरने का स्थान दे सकेंगे? एक पतली और करुणा आवाज़ में किसी ने कहा। युवक ने दरवाजा खोलते हुए कहा। क्यों नहीं, ज़रा भी संकोच की बात नहीं है। आइये आप भीतर आ जाइए। युवक के सामने एक बहुत ही सुंदर युवती खड़ी थी। युवक उसे हर देखकर हतप्रभ रह गया। वह बहुत गरीब था, उसके पास ना बढ़िया बिछौना था, ना गुदगुदा पलंग, ना बड़ा कमरा। उसने दुखी स्वर में कहा, देखिये, मुझे बहुत दुख है कि मेरे पास आप जैसी सुंदरियों के लिए अच्छी जगह नहीं है। क्षमा कीजिए, मैं आपकी कुछ सेवा नहीं कर सकता, मेरे यहाँ तो आपको परेशानी ही होगी। यहाँ आप क्या कह रहे हैं? मैं तो कहीं भी रह सकती हूँ, मैं तो एक मामूली लड़की हूँ मधुर स्वर में युवती ने कहा आखिर उस युवक ने आदर और लज्जा के साथ उसको अपना छोटा सा कमरा दे दिया और स्वयं एक कोने में सिकुड़ कर सो गया। अगले दिन प्रातः काल जब युवक गहरी नींद से जागा तो उसने देखा कि लड़की का पलंग खाली हैं। वह घबराकर उसे देखने के लिए गया तो देखा वह रसोई में खाना बना रही है। वो एकदम चिंतित हो गया। उसकी वाणी मुख हो गई और वह जहाँ का तहां खड़ा रह गया। द्वार पर खड़े उस युवक को देख लड़की ने मुस्कुराकर उसका स्वागत किया और अपना सिर झुका लिया। उसको मुस्कुराते देख युवक कांपते स्वर में बोला। होप यू क्या कर रही है खाना तो मैं खुद ही बना लेता हूँ। पर लड़की तो जैसे जवाब सोचकर ही बैठी थी। उसने बड़े, मधुर किंतु आगया भरे स्वर में कहा। नहीं आज की ही बात नहीं है। आपको आप कभी भी खाना नहीं बनाना पड़ेगा आपके लिए और बहुत सारे काम मैं करूँगी आपके पास बहुत अन्य काम नहीं है करने के लिए आपको वे करने होंगे। यह सुनकर युवक को आश्चर्य हुआ। उससे कोई जवाब देते ही ना बना। बाद में उसने देखा कि वह लड़की अत्यंत परिश्रमी हैं। उसे रोटी के लिए ज़रा भी परिश्रम करने की आवश्यकता नहीं थी। युवक उससे काम नहीं करवाना चाहता था, परंतु वह स्वयं ही नए नए काम खोज खोजकर रात दिन कुछ न कुछ करती रहती थी। 1 दिन वह युवती कहीं से कपड़ा बुनने की एक मशीन ले आयी और घर के बाहर के कच्चे कमरे में उसे रखकर कपड़ा बुनने लगी। उस लड़की के हाथ के बुने हुए कपड़े बहुत सुन्दर, पतले और मुलायम होते थे। धीरे धीरे उसके कपड़ों की सर्वत्र चर्चा होने लगी। यहाँ तक कि लोगों में यह विश्वास फैलने लगा कि यह किसी स्वर्ग की परी के बनाये हुए कपड़े है। क्योंकि और कोई इतने सुंदर कपड़े बना नहीं सकता था। कुछ दिनों बाद युवक के कानों में भी यह बात पड़ी और उसने उस लड़की से पूछ्ताछ की। लड़की को जब पता लगा कि लोग उसके बनाए हुए कपड़ों को दैवी कपड़े समझने लगे हैं तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ और उसने युवक से कहा। आपको मेरी इस आग्रह का पालन करना होगा जहाँ मैं कपड़े बुनती हूँ, आप वहाँ कभी नहीं आएँगे। मुझे आशा है कि आप इस आग्रह का पालन करने से नहीं चूकेंगे। यद्यपि युवक ने उसका आग्रह स्वीकार कर लिया, लेकिन उसकी जिज्ञासा बढ़ती गई। 1 दिन बहुत अंधेरी रात थी। युवक चुपचाप उठकर कच्चे मकान की ओर चला गया और कमरे के अंदर घुस गया। देखता क्या है कि वह युवती तो है ही नहीं, परंतु एक हंसनी अपने शरीर के पंखों को उखाड़ उखाड़कर उसे कपड़ा बुन रही है। ऐसे दृश्य को देखकर युवक के मुँह से ज़ोर की चीख निकल गई। चीख सुनते ही हंसिनी ने अपने शरीर से पंखों को उखाड़ना बंद कर दिया और जैसे ही पीछे देखा तो देखा कि युवक उसे हैरानी से देख रहा था। युवक को देखते ही वह गम्भीर हो गई और कुछ रुककर बोली। मुझे अपने इस रूप पर बहुत ही लज्जा आ रही है। मैं आजीवन अपनी इस क्रूरता को किसी को भी दिखाना नहीं चाहती थी, परंतु मैं इसमें विफल हो गई। अब मैं आपसे कुछ भी नहीं छिपाऊंगी मैं वही अनसनी हूँ जो 1 दिन दलदल में फंसी हुई व्याकुल हो रही थी और आपने दया करके मेरी रक्षा की थी, मुझे जीवन दिया था, आपका यह उपकार में कभी नहीं भूल सकी। उसी ऋण को कुछ कम करने के लिए मैं यहाँ आयी थी और दिन रात कपड़ा बनती थी। अब तो आपको सहित मालूम हो गया है कृपा करके मुझे विदा कीजिये। यह कहते ही वह आकाश में उड़ गई और बादलों से भी आगे चली गई। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है की हमेशा हमें दूसरों की मदद करने के लिए तत्पर रहना चाहिए। ओके बाय।",यह एक जादुई पक्षी हंस की कहानी है। एक आदमी ने एक हंस की मदद की और हंस एक खूबसूरत लड़की में बदल गया। पूरी कहानी सुनिए और जानिए आखिर में क्या हुआ "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपके लिए लेकर आई हूँ, उसका टाइटल है सूझबूझ का परिणाम। तारा मेड की का छोटा सा परिवार था, वह और उसके दो बच्चे बस। बहुत दिन पहले उसके पति को किसी सांप ने खा लिया था। पति के जाने के बाद उसके बच्चे बहुत अकेले हो गए थे। तारा ने बड़े धैर्य और लगन से पाल पोस कर उन्हें बड़ा किया था। स्वयं कष्ट झेले पर बच्चों को किसी भी प्रकार के अभाव का अनुभव न होने दिया था। तारा समझदार माँ थी, वह जानती थी कि बच्चों की सबसे बड़ी निर्माता माँ ही होती है। उसने अपने बच्चों में प्रारंभ से ही अच्छी आदतें डाली थी। उन्हें अच्छी अच्छी बाते सिखाई थी। तारा के दोनों बच्चे पप्पू और गप्पू होनहार ही थे। दिमाग की सीख के अनुसार चलते बड़ों का कहना मानते उनका सम्मान करते। सारे ही पड़ोसी उन्हें बहुत प्यार करते थे। पप्पू गप्पू थोड़ा बड़े हुए तो तारा उन्हें विधिवत प्रशिक्षण देने लगी। तैरने कूदने, गाने पढ़ने और शिकार करने का। इन सब में उसका लगभग आधा दिन ही बीत जाता था। 1 दिन तारा ने सोचा कि जितनी देर में केवल अपने ही बच्चों को पढ़ाती हूँ, उतनी देर में पड़ोसी के दूसरे बच्चों को इनके साथ भी पढ़ा सकती हूँ। मेरे तो दो बच्चे हैं, काम भी मेरे पास कम है। पड़ोसिनों के 278 से कम बच्चे किसी के नहीं है। घर में सारा दिन चिल्लपों मची रहती है। बेचारी किसी भी बच्चे की ढंग से देखरेख नहीं कर पाती। अच्छा है कि मुझसे कुछ लाभ उन्हें मिले। शाम को जब पड़ोसी ने घर के काम से निपट कर दो पल सुस्ताने तालाब के किनारे बैठीं तो तारा बोली। महीनों पप्पू गप्पू को तो मैं पढ़ाती हूँ, तुम चाहो तो अपने अपने बच्चों को भी सुबह मेरे पास पढ़ने भेज दिया करो। हाँ बहन अच्छा है कि तुम्हारे पास रहकर कुछ तो सीखेंगे ही। हमे तो इतने बड़े कुटुम्ब के धंधों से ही फुर्सत नहीं मिल पाती। एक पड़ोसन बोली, दूसरे दिन से दो तीन पड़ोसिनों के बच्चे तारा के घर पढ़ने आने लगे। तारा बड़े प्यार से बच्चो को पढ़ाती थी। बच्चे घर जाकर तारा मौसी की बड़ी प्रशंसा करते। कुछ अपने बच्चों से तारीफ सुनकर कुछ औरो की देखा देखी। अब सभी मेडिको ने अपने बच्चे उसके यहाँ भेजने प्रारंभ कर दिए। तारा के यहाँ पढ़ने योग्य बच्चों की इतनी भीड़ जमा हो गई कि घर में बैठने बिठाने की जगह भी न रह गई थी। अब वह तालाब के किनारे पेड़ों की छाया में खुली जगह में कक्षा लेने लगी। अब उसे दो पल सुस्ताने की खाना ढूंढने की भी फुर्सत नहीं मिलती। तारा की एक पड़ोसन बहुत समझदार थी, उसकी नज़र से यह बात छिपी न रह सकी। 1 दिन वह तारा के पास आई और बोली, दीदी। तुम्हारी शिक्षा से हमारे बच्चे दिन पर दिन सुधरते ही जा रहे हैं। क्यों न तुम विधिवत थी की स्कूल ही खोल लो? तुम हमारे बच्चों को पढ़ाने सिखाने का, उन्हें अच्छा बनाने का उत्तरदायित्व लो, हम सब खाने पीने की जरूरत की दूसरी चीजें तुम्हें लाकर दे दिया करेंगे। इससे बिना किसी तनाव और चिंता के तुम अपना काम कर पाओगी। तारा को इसमें क्या आपत्ति हो सकती थी? उसने स्वीकृति में अपनी गर्दन हिला दी। बस फिर क्या था वह पड़ोसी ने छलांग लगा लगाकर सभी को सूचना दे आई। दूसरे दिन प्रातः काल ही एक नए स्कूल का उद्घाटन हो गया। उसका नाम रखा गया तारा विद्यापीठ। उद्घाटन समारोह में मेंढक मेंढकी होने, खुशी से ज़ोर ज़ोर से तरबतर कर के मंगल गीत गाए। मेंढकों के बच्चों ने फुदक फुदक कर सामूहिक नृत्य किया। दूसरे ही दिन से। तारा विद्यापीठ में विधिवत पढ़ाई शुरू हो गई। बच्चे अधिक थे इसलिए तारा ने पढ़ाने के लिए दो मेड क्यों की नियुक्ति की? अब तारा आचार्य जी बन गयी थी। सभी उसे बड़ी दीदी कहते थे और उसका बड़ा सम्मान आदर करते थे। तारा विद्यापीठ में न केवल पढ़ाई अच्छी होती थी अपितु वहाँ अनुशासन और सदाचार पर बल दिया जाता था। न केवल सदाचार सिखाया जाता अपितु मन साहस संगठन आत्मरक्षा पर भी बल दिया जाता था। तारा कहती की जितनी आवश्यकता बच्चों को सदा जारी और ज्ञानी बनने की है, उतनी ही आवश्यकता इस बात की भी है कि उन्हें इस योग्य बनाया जाए कि वे अनीति, अत्याचार से संघर्ष कर सके। यही कारण था कि तारा विद्यापीठ के सारे ही शिक्षार्थी बड़े साहसी और बड़े ही सूझबूझ वाले थे। 1 दिन की बात है। तारा दोनों शिक्षिकाएं और मेंढकों के बच्चे पिकनिक के लिए एक जंगल में गए। सुहावना मौसम था, रिमझिम रिमझिम बादल बरस रहे थे। सभी ने खूब मौज मस्ती की। लौटते समय वे छोटे छोटे समूहों में बंट गए थे। दो बच्चे सबसे पीछे रह गए थे। वे रास्ते भर बड़ी उछल कूद करते आ रहे थे। वे थोड़ी देर खूब तेजी से दौड़ते तो कुछ देर चुपचाप रास्ते में बैठ जाते। जब उनके साथी आगे बढ़ जाते। तब फिर तेजी से उछलकर वे उनसे आगे बढ़ने की कोशिश करते। बड़ी देर से वे यहीं खेल कर रहे थे। शिक्षिकाओं ने ऐसा करने के लिए उन्हें मना भी किया था। पर बच्चे अपनी ही धुन में थे। सहसा ही एक घटना घटी। दोनों बच्चे अपने साथियों से बहुत पीछे रह गए थे। एक साँप बड़ी देर से इसी ताड़ में था। वहाँ अचानक से सामने आ गया और बोला। बेटो कहा जा रहे हो। अपने घर पास के जंगल में। बच्चे बोले। ओहो, अभी तो काफी दिन बाकी है यानी की इतनी भी क्या जल्दी है? तुम दोनों ही हमारे मेहमान हो। हमारे इस जंगल में बहुत अच्छी अच्छी चीजे है उन्हें खाये बिना तुम्हें जाने ना देंगे सांप कहने लगा। बच्चों के मन में अब यह बात आने लगी थी कि कहीं मीठी मीठी बात बनाकर यह हमें ही गटक कर जाए। वे मन ही मन सोचने लगे कि कैसे इस दुष्ट से छुटकारा पाया जाए। शारीरिक बल में तो वे उससे कम थे। वे कोई युक्ति सोचने लगे। सहसा ही एक बच्चे ने दूसरे को आग झपकाकर कुछ इशारा किया। फिर वह सांप से बोला, मा ताऊ जी आज तो बिना खाये पिए, हम अपने घर क्यों जाएंगे? हम दोनों तो आपके इस जंगल की अच्छी स्वादिष्ट चीजें चक्कर ही जाएंगे। सांप मनी मन बड़ा प्रसन्न हुआ। आज तो उस के यहाँ दावत थी। वह सोच रहा था कि दावत में मेढकों को खाकर साफ बड़े प्रसन्न होंगे। कुछ दूर जाने के बाद ही सहसा रुक गए। एक बच्चा कहने लगा। ताऊ जी कोई भी अच्छी चीज़ अकेले अकेले नहीं खानी चाहिए, ऐसा हमारा बड़ी दीदी हमेशा कहती है। हमारे कुछ सबसे पक्के दोस्त थे, वे भी हमारे साथ चलते तो बड़ा अच्छा लगता। अब तो वे सब चले गए। उन्हें लेकर कल अवश्य आ जाना सांप बच्चों से बोला। कल तो पता नहीं हमारी माँ ने यहाँ आने की आज्ञा दी भी या नहीं दी, वे हम से कुछ ही आगे थे, अभी थोड़ी ही दूर गए होंगे। अगर आप कहे तो हम दौड़कर उन्हें वापस ले आए। मेंढक का बच्चा बोला। कितने मित्र हैं तुम्हारे सांप ने पूछा? आठ उत्तर मिला। यह सुनकर साँप के मुँह में पानी भर आया। वाह आज तो दावत में मज़ा आ जाएगा उसने मन ही मन सोचा फिर वह ज़ोर से बोला जो वो बच्चो जल्दी जाओ और तब तक मैं यहीं बैठकर सुस्ता रहा हूँ, ले आओ अपने मित्रों को। दोनों बच्चे तेजी से छलांग लगाकर सांप की आँखों से ओझल हो गए। हफ्ते हफ्ते विद्यालय पहुंचे, वहाँ उन्हीं की खोज हो रही थी। उन्होंने बड़ी दीदी को जाकर सारी बातें बताई। उनकी बात सुनकर तारा को बड़ा गर्व महसूस हुआ। वह बोली। बच्चो तुम संकट में पड़ कर भी नहीं घबराए, तुमने धैर्य और बुद्धिमानी से काम लिया इसलिए तुम बचकर ही यहाँ तक आ पाए हों, नहीं तो तुम दोनों का पता भी नहीं लगता। साहस और विवेक से काम लेकर ही समस्त बड़ी से बड़ी कठिनाइयों पर विजय पाई जा सकती है, इस बात को सदैव ध्यान रखना। दूसरे दिन एक समारोह में दोनों बच्चों को पुरस्कार दिया गया। तारा ने एक छोटा सा भाषण दिया। उसमें उसने बच्चों से कहा बच्चों संसार में छल, कपट और धूर्तता अपनाने वालों की कमी नहीं है। बुद्धिमानी इसमें नहीं है की हम अपने सीधेपन से उनके चंगुल में फंस जाए। ऐसा सीधा अपन तो मूर्खता ही है। बुद्धिमानी इसी बात में है कि उनकी चाल समझी जाए और उनके छल को सफल ना होने दें। बुद्धि से या पराक्रम से हम उनकी कपट भरी योजना से बच जाएं और दूसरों को भी बचा ले जाएं, यही उचित है। सदाचारी हो ना तो हम सबका कर्तव्य है ही, पर समय पड़ने पर दुर्जनों से निपटना भी आना चाहिए। जीवन की विविध स्थितियों में अपनी सूझबूझ से सफल हों सको ऐसा अभ्यास करते रहो। इस प्रकार तारा ने सभी बच्चों का खूब उत्साह बढ़ाया। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें संकट की घड़ी में धैर्य और सूझबूझ से काम लेना चाहिए, तभी हम बड़ी बड़ी मुसीबतों से बच सकते हैं और दूसरों की भी रक्षा कर सकते हैं। ओके बाइ?","सभी को नमस्कार, यह एक छोटे जीव मेंढक 🐸 की एक साहसी कहानी है। मेंढक और बच्चे हमें बताते हैं कि कठिन परिस्थिति में हमें उससे कभी नहीं डरना चाहिए। हम सीखते हैं कि कठिन समय के दौरान सकारात्मक और आत्मविश्वासी कैसे बने रहें। इस कहानी में सुनिए कैसे एक छोटा सा 🐸 एक बड़े सांप🐍 से बच निकला।" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी में आपको सुनाने जा रही हूँ, उसका टाइटल है तोते का निर्णय। एक तोता 1 दिन पेड़ की ऊंची डाल पर बैठा था। वह अभी अभी एक कच्चा अनार तोड़कर लाया था। बड़ा स्वाद लेकर उसे वहाँ खा रहा था। तभी उसने देखा कि सामने वाले गुलाब के एक पुल पर एक तितली और एक मधुमक्खी आ बैठी। दोनों साथ साथ आई थी। दोनों ही उसका रस पीना चाहती थी। वे आपस में झगड़ने लगी। तितली बोली अरे ये पहले मैं यहाँ आई हूँ इस पुल पर मेरा अधिकार है तो और कहीं चली जा मधुमक्खी कहने लगी ऑटो तुम से पहले मैं आई हूँ चलो तुम ही कहीं भाग जाओ। दोनों काफी देर तक आपस में इसी प्रकार तू तू मैं मैं करती रहीं। अंधेरा गिरने लगा था। उन्हें घर भी लौटने की जल्दी थी। दोनों में से कोई भी ना तो उस फूल का र सी पी रही थी और ना उसे छोड़ पा रही थी। सहसा उनकी निगाह डाल पर बैठे तोते पर पड़ी। उन्होंने तोते को पुकारा तो ते भाई तोता भाई कृपया इधर आइये आप हमारे झगड़े का फैसला कर दीजिए, हम आपके बड़े आभारी होंगे। तोता फुदक कर अब गुलाब के पौधे के पास आ गया था। कहिये आप का क्या भला कर सकता हूँ? मैं वहाँ पूछने लगा। दोनों ने अपनी समस्या उसके सामने रखी। तोता कहने लगा। मैं आप दोनों को ही देख रहा था दोनों ही साथ साथ आई थी। ऐसा करो कि आप दोनों ही आधे आधे गुलाब का रस पी लो। ओहो, ये तो संभव नहीं है यह भला कौन सा न्याय हुआ तो तेरे भाई तुमने संकोच दोनों में से किसी एक के पक्ष में अपना निर्णय सुना दो। हम बिना झगड़े उसे मान लेंगे अपनी लंबी सूँड घुमाते हुए तितली बोली। तोता कहने लगा, बहनों मिलजुल कर रहो, संसद खाओ, सत सत प्रेम से बोलो और सत्र हो एक दूसरे को सहयोग करो। किसी के साथ मिलकर न रहने वाले, अलग अलग चलने वाले क्या भला अच्छे कहे जा सकते हैं? क्या वे कभी दूसरों का सम्मान पा सकते हैं? अब तो तेने दो पल सोचा, वह फिर कहने लगा सुनो सुनाता हूँ तुम्हें अपना निर्णय बुरा न मानना ध्यान से सुनना। मधुमक्खी और तितली तोते के पास खिसककर और आ गई। बड़े ध्यान से वे उस की बातें सुनने लगी। इस फूल पर मधुमक्खी का अधिकार है। कहने लगा यह सुनकर मधुमक्खी प्रसन्नता से भर उठी पड़ती इतनी बड़ी ही उदास हो गई। वह अपनी निराश दृष्टि तो थे पर जमा कर पूछने लगी। ऐसा क्यों? कहा तो तेरे भाई मैंने आखिर क्या अपराध किया है? दो पल रुका, फिर अपने पंजे में पंजा उलझते हुए स्थिर स्वर में बोला। देखो जो औरों को देता है वहीं पानी का सच्चा अधिकारी हैं। तुम दोनों ही फूल का रस पीते हो, तुम उसे केवल अपने काम में लेती हो पर मधुमक्खी उसे शहद के रूप में बदलकर दूसरों को दे देती है। फूलों के रस को और भी उपयोगी और गुणकारी बना देती है और स्वयं मारी जाती है पर फिर भी शायद बनाना नहीं छोड़ती। परोपकार में लगे हुए महान व्यक्ति स्वयं कष्ट पाकर भी कल्याण करते हैं। ऐसे व्यक्ति स्वयं भी दुखी नहीं रहते। अनायास ही वे बहुत ही सुविधा संपत्ति पा ही लेते हैं। तोते की बात सुनकर तितली का मुँह लटक गया। वह बिना एक शब्द बोले ही चुपचाप वहाँ से उड़ गयी। धन्यवाद तोता भाई मधुमक्खी ने हंसते हुए कहा और फूल पर बैठकर आराम से रस पीने लगी। वह मणि मन सोचती जा रही थी। उस जीवन से भी क्या लाभ जो दूसरों का उपकार ना कर सके, उनके कुछ काम ना आ सके? तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें हमेशा जीवन में ऐसे कार्य करने चाहिए जिससे दूसरों का भी भला हो और परोपकार करने का प्रयास करना चाहिए। ओके बाइ?",यह एक तोते की कहानी है। एक दिन जंगल में एक तितली और एक मधुमक्खी आपस में झगड़ रहे हैं। तब एक तोता उन्हें एक उपाय देता है। कहानी सुनें और तोते की बुद्धि के बारे में जानें। "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपको सुनाने जा रही हूँ उसका टाइटल है वृक्षों की बातें। कुमाऊँ के जंगल में साल, सागौन, देवदारु आदि के बहुत से वृक्ष थे। अपनी घनी बस्ती में वे वृक्ष बोलते बतियाते रहते थे, सभी सुख से रहते थे। क्या अचानक 1 दिन उन्होंने पाया कि उनका जीवन खतरे में पड़ गया है? 810 आदमी सवेरे से ही कुल्हाड़ी लेकर उनके अंगों पर आघात करते, फिर उन्हें जड़ से काटकर गिरा। डालते। इसी तरह से उन्होंने ये सारे के सारे वृक्ष काट काटकर गिरा दिए। रह गए बस 2 साल, दो सागौन, एक वट और एक देवदारु का वृक्ष थोड़ी थोड़ी दूर पर स्थित ये वृक्ष अपने भाइयों के मरने पर शोक मनाते रहे। ये ना कुछ खाते और ना पीते। परिणाम यह हुआ कि वे जल्दी ही दुर्बल हो गए और उनके पत्ते भी पीले पड़ गए। 1 दिन साल वृक्ष वट से पूछने लगा द। तो मैंने तो यह सुना था कि काटने पर प्रतिबंध है, पर अब तो इसका उल्टा ही हो रहा है। बट दादा अपनी जटाएं हिला कर बोले, और बेटा कानून से तो हमारा काटना सख्त मना है, पर जो अधिकारी हैं वे मनमानी करते हैं, खुद पैसा कमाने के लिए हमें कटवा देते हैं। वह जो बड़ी बड़ी मूंछों वाला लाल लाल आँखों वाला आदमी था, वहीं हमें कटवा रहा था ना दादा? सागौन के पेड़ ने उनसे पूछा। हाँ, तभी तो देवदारु को इतना गुस्सा आ गया कि वह काटते काटते लड़खड़ाकर ज़ोर से उसके ऊपर ही गिर गया था। ज़रा सा बच गया तो बच्चू नहीं तो उस दिन उसका भुर्ता ही बन गया होता। साल में उत्तर दिया। यह मनुष्य भी अपने स्वार्थ के लिए देश के साथ कैसी कैसी गद्दारी क्या करते है ना जाने कब सीखेंगे? ईमानदारी से काम करना सागौन बोला। जिंस देश के नागरिक ईमानदारी से काम नहीं करते, अपने स्वार्थ को देश के हित से अधिक महत्त्व देते हैं, वह देश अवनति के गड्ढे में गिरता ही चला जाता है। वॉट दादा? कुछ गंभीर होकर कह रहे थे हमें काटने का कुफल भी जल्दी ही पड़ेगा देवदारू गुस्से में भरकर बोला। वह कैसे? नन्हें साल ने पूछा, अरे क्या तुम नहीं जानते कि हमारे कारण ही तो बरसात होती है, हमारे कारण ही तो ये लोग जीवित रहते हैं। देवदारु का वृक्ष बोला। सो कैसे? दादा साल पूछने लगा, अरे बेटा कहाँ तक गिना हूँ? क्या क्या उपकार करते हैं? हम संक्षेप में सुनो सुनाता हूँ हम दूषित वायु जैसे कार्बन डाइऑक्साइड कहते हैं, अपने अंदर खींच लेते हैं और बदले में उन्हें एक शुद्ध वायु ऑक्सीजन देते हैं। इससे ही मनुष्य जीवित रहते हैं। हम सूरज की रौशनी को पीते हैं और उसे तरह तरह के खाद के रूप में बदल देते हैं। हमारी प्रकाश संश्लेषण क्रिया के जादू से ही उन्हें अन्न, दाल, फल, चीनी आदि खाद्य पदार्थ मिलते हैं। सबसे बड़ी बात तो यह है कि विविध खाद्य पदार्थों के लिए वर्षा की आवश्यकता होती है वर्षा में भी हम सहायक है। हाँ दादा, यह तो मैं भी जानता हूँ कि हमारी पत्तियों से सूरज की किरणें भाप खींचती है और इससे ही वर्षा होती है। साल कहने लगा। जब हमें यह मनुष्य काट डालेंगे तो वर्षा कहा से होगी। तुम ही बताओ और जब वर्षा नहीं होगी तो क्या ये मनुष्य भूखों नहीं मरेंगे? देवदारु कहने लगा और देवदारु की बात सच भी हो गई। अगले साल ऐसा सूखा पड़ा की फसल हो ही नहीं पायी। अमीरों ने तो अपने अपने घर और गोदाम भर लिए थे, पर साधारण जनता अन्न के एक एक दाने के लिए तरस रही थी। 1 दिन नन्हें साल में देखा कि बहुत से मनुष्य उनके आसपास इकट्ठा हो गए हैं। उनके सिर पर हरे भरे गट्ठर थे, हाथों में औजार थे फिर थोड़ी थोड़ी दूर पर जमीन को खोद रहे थे। ये भगवान अपना जाने क्या मुसीबत आने वाली है, यह सोचकर साल वृक्ष कह आप उठा बहुत डर से चीखा, दादा दादा देखो यह क्या हो रहा है? देवदार उन्हें उसे पुचकारते हुए कहा। डरो नहीं बेटा, आज डरने की कोई बात नहीं है। आज तो तुम्हें यह जानकर खुशी होगी कि हमारे आस पास ही मनुष्य अनेकों पौधे लगाने आए हैं। ठोकर खाकर अकल आ गयी है अभिनय कुछ ही समय में तुम देखोगे कि हमारी बस्ती खूब बढ़ गई है। दादा की बातें सुनकर न केवल साल ने अपितु सभी वृक्षों ने ज़ोर ज़ोर से पत्ते हिला कर तालियां बजाईं। वे सभी खुशी से झूमने लगे और गाने लगे। आज तो उनकी खुशी की सीमा न थी तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें कभी भी अपनी प्रगति को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए क्योंकि प्रगति से ही हमारा जीवन है। ओके बाइ।",यह जंगल में पेड़ों की कहानी है। इस कहानी में पेड़ आपस में बात करते हैं और बताते हैं कि कैसे मनुष्य ने पेड़ों को काटना शुरू किया। इस कहानी में आप पेड़ों को काटने के विपरीत प्रभावों के बारे में भी जानेंगे। "क्या आप भी अपना पॉडकास्ट बनाने का सोच रहे हैं? तो ऐंकर ट्राई कीजिए, ये पॉडकास्ट बनाने का सबसे आसान तरीका है। नंबर एक ये फ्री है नंबर दो। इसमें कई सारे ऐसे टूल्स है जो आपको अपने फ़ोन और कंप्यूटर पर रिकॉर्ड और एडिट करने की फैसिलिटीज देते हैं। नंबर तीन आप अपने पॉडकास्ट को डिस्ट्रीब्यूट भी 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थे। 1 दिन की बात है। उन्होंने सुबुद्धि को सेव दिए। सेब के बड़े लाल लाल ऐसे सुंदर की देखते ही मुँह में पानी भर आए। सेब की टोकरी पीठ पर रखकर सुबुद्धि घर की ओर चल पड़ा। चलते चलते रास्ते में उसे प्यास लगी। उसने टोकरी किनारे पर रखी और झुककर पानी पीने लगा। किनारे पर घनी झाड़ियों में काली नाम की बिल्ली छुपी बैठी थी। उसकी निगाह सेब की टोकरी पर पड़ी। सिंदूर से लाल सुर्ख सेब देखकर उसके मुँह में पानी भर आया। मगरमच्छ पानी पीकर अपनी गर्दन ऊपर उठाता उससे पहले ही काली ने फटाफट आगे बढ़कर दोनों पंजों से टोकरी उठा ली। फिर वह उसे फुर्ती से लेकर पेड़ पर चढ़ गई। पानी पीकर मगरमच्छ पलभर किनारे बैठकर सुस्ताने लगा, तभी उसे ध्यान आया। की घर पर बच्चा भूखा होगा। बस फिर क्या था वह जलने को तैयार हो गया और यह क्या उसकी फल की टोकरी गायब थी। सुबुद्धि ने चारों ओर नजर दौड़ाई, पर कहीं भी वह दिखाई, नदी किनारे पर उसे ढूँढते ढूँढते वह परेशान हो गया और थक भी गया। वह सोच रहा था कि रोगी बच्चे को अब जाकर क्या खिलाएगा? तभी उसकी निगाह पेड़ पर बैठी काली बिल्ली पर गयी। वह गपा गप गपा गप सेब खाये जा रही थी सुबुद्धि बोल उठा और ये बहुत सी यह क्या मेरी टोकरी लेकर तुम पेड़ पर जा बैठी मैं कितनी देर से खोज रहा हूँ अपनी पीली पीली आँखें निकालकर काली बोली चल हर तेरी कहाँ से आई ये टोकरी ये तो मुझे इस पगडंडी पर पड़ी हुई मिली थी मगरमच्छ बड़ी देर तक। काली को मनाता रहा, अपने भूखे बच्चे की दुहाई भी देता रहा और काली का दिल ज़रा भी न पसीजा। उलटे वो सुबुद्धि को चिड़ा चिड़ा कर फल खाने में लगी रही। मगरमच्छ सारे दिन का थका हरा था। चलते चलते उसके पैर भी दर्द कर रहे थे। पर सोचा की इस तरह छूट देने पर तो यह काली और भी उद्दंड हो जाएगी। अतः वह न्याय पाने के लिए वनराजसिंह के द्वार पर पहुंचा। सिंह ने मगरमच्छ की सारी बातें बड़े ध्यान से सुनी, फिर तुरंत अपनी अंग रक्षिका लोमड़ी को दौड़ाया। लोमड़ी जाकर काली को बुला लाई। न्याय के लिए दरबार लगा एक और काली बड़ी कड़कर मूंछों पर बल देकर बैठी। वनराज के दूसरी ओर आंसू बहाता मगरमच्छ बैठा। तुमने सुबुद्धि की टोकरी क्यों उठाई? वनराज ने पूछा महाराज वो तो रास्ते में पड़ी थी, मैंने वही से उठाई है काली आंखें टिमटिमाते हुए बोली और काली रास्ते में पड़ी हुई चीज़ तुम्हारी कैसे हो गई वनराज को? फिर आगे बोले। रास्ते में कुछ भी पड़ा मिले तो वह तुम्हें मेरे पास जमा कराना था। दूसरों की चीज़ को अपना कहते शर्म नहीं आती? दूसरों की आंख बचाकर उनकी चीज़ लेना चोरी करना होता है। तुमने फलों की टोकरी चुराई है अतः इसका दंड तुम्हें भुगतना ही पड़ेगा। वनराज ने ताली बजायी। तुरंत ही मंत्री रीच उपस्थित हो गए। वनराज के आदेश से उन्होंने काली को एक मांस की जेल में डाल दिया। फिर वनराज मगरमच्छ से कहने लगे कोहली के निठल्लेपन और दूसरों को सताने की बात मैं बहुत दिनों से सुन रहा हूँ पर कोई भी न्यायालय में आकर शिकायत दर्ज नहीं कराता। अपराधी को दंड देना भी बहुत जरूरी है जिससे वो आगे बुरे कार्य नहीं करता। तुम्हारे काम से मैं खुश हूँ। सिंह ने बहुत सारे फल देकर मगरमच्छ को विदा किया। रात बहुत बीत चुकी थी पर सुबुद्धि बहुत प्रसन्न था। वह तेजी से अपने घर की ओर लौट आया और अपने बीमा और बच्चे को फल देकर संतुष्ट किया। तो बच्चो इस छोटी सी कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है की हमें कभी भी अन्याय का साथ नहीं देना चाहिए और ना ही अन्याय देखकर भी चुप रहना चाहिए। हमेशा अन्याय के खिलाफ़ आवाज उठानी चाहिए, नहीं तो गलत करने वाले को बढ़ावा मिलता रहेगा। और वो कभी भी सबक नहीं सीख पाएगा। ओके बाइ?","सभी को नमस्कार, यह एक मगरमच्छ 🐊 और एक लालची काली बिल्ली 🐈 की एक दिलचस्प कहानी है। इस कहानी में आपको बिल्ली 😸 की सजा के बारे में पता चलता है। पूरी कहानी सुनें और कहानी के नैतिक के बारे में जानें।" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपको सुनाने जा रही हूँ उसका टाइटल है अंधा अनुकरण बहुत दिनों की बात है भारतवर्ष में गंगा नदी के तट पर हिरण्य आप नाम का एक साधु रहता था। उसने अपना घर, परिवार सभी त्याग दिया था। वह अकेला ही वन में रहता था और भगवान का भजन करता था। उस साधु में अनेक गुण थे जैसे वह दूसरों की सहायता करता था। प्राणी मात्र पर दया करता था, पर उसमें एक बड़ा अवगुण भी था और वह था लालच। उसने बहुत सी स्वर्ण मुद्राएं अपने पास जमा कर रखी थी। ना तो वहाँ उन्हें किसी को देता ही था और ना ही स्वयं पर उसे खर्च करता था। एक बार साधु ने सोचा की मेरी आयु बहुत हो गयी है, पता नहीं कब मृत्यु का ग्रास बनना पड़े। अतः एक बार सभी तीर्थों की यात्रा करानी चाहिए। इसी बहाने परोपकार भी हो जाएगा। वसुधा प्राचीन भारत की प्रथा थी की सन्यासी तीर्थों में एकत्रित जन समुदाय को उपदेश देते थे। उनकी विविध समस्याओं को सुलझाने का प्रयास भी करते थे। इस प्रकार से वे जन कल्याण भी करते थे। हिरन आपने यात्रा पूरी। तैयारी से कर ली। अपने वस्त्र और सत्तू एक पोटली में बांध ली। धार्मिक पुस्तकें जब करने की माला आदि भी रख ली, सभी स्वर्णमुद्राओं की थैली भी उसने पोटली में छुपाकर रख ली। पीठ पर पुतली आधे एक हाथ में कमंडल और एक हाथ में लाठी लेकर व गंगा नदी के किनारे किनारे पैदल यात्रा करने लगा। इस प्रकार मार्ग में रुकते रुकते वह सादु कुछ दिनों बाद सात ऋषियों की तपस्थली। सप्त सरोवर में जा पहुंचा। वहाँ एक 2 दिन रुकने के बाद उसे बद्रीनाथ जाना था। अब तक का रास्ता तो सीधा था वह गंगा के किनारे। किनारे चलता जा रहा था। मार्ग में अनेक तीर्थ यात्री भी मिलते रहते थे, पर अब उसे पहाड़ों के दुर्गम चट्टानें चरनी। रास्ते में बहुत सारे यात्रियों के मिलने की आशा भी नहीं थी। ऋण या आपने सुन रखा था कि पहाड़ी कंदराओं में अनेक घने वनों में लुटेरे छिपे रहते हैं और रास्ता चलते यात्रियों को लूट लेते हैं? उसे अपने धन के विषय में चिंता होने लगी। बात समझ नहीं पा रहा था कि धन का क्या करें, कहाँ रखें? साथ ले चलने से तू डरता था कि कहीं डाकू धन के लोभ में उसके प्राण ही न ले ले। जहाँ साधु रुका था वो स्थान भी उसके लिए नया था। सभी व्यक्ति अपरिचित थे। अता है। वह किसी को दंड सौंपकर भी नहीं जा सकता था। कई दिनों तक सोच विचार करने के बाद, हिरन अन्य आपको सहसा एक अद्भुत उपाय सूझा। दूसरे ही दिन रात्रि के द्वितीय पहर में ही वह उठ बैठा। गंगा नदी के किनारे जाकर नित्यकर्म से निवृत्त हुआ इस स्नान ध्यान दें किया। फिर वहाँ नदी के बालू का में तट पर निर्जर स्थान की और बढ़ गया। लगभग दो ढ़ाई मील चलने के बाद हिरण्याभ रुक गया। उसने चारों ओर निगाह दौड़ाई। अभी भी अंधेरा छाया था। पाकिस्तान जनशून्य था। रन या अपने बालू में दो हाथ गहरा गड्ढा खोदा। फिर स्वर्णमुद्राओं की थैली निकाल कर चुपचाप उसमें रखती। ऊपर से बालू से उसे पाटा। फिर उसके ऊपर गंगा के काले काले पत्थर चुन कर बालू और पत्थरों से ऊंचा शिवलिंग बनाया। उस आदि से उसकी पूजा की। फिर हिरण्य आप खुशी खुशी आगे तीर्थयात्रा पर बढ़ गया। हिरन्या अब तो चला गया। चार 5 दिन बाद 3040 यात्रियों का दल वहाँ से निकला। उस दल में श्रेष्ठ बुद्धि नाम का एक वाणिज्य भी था। उसकी दृष्टि पत्थर और बालू से बने शिवलिंग पर पड़ी। और यात्रियों को वहीं रुका लिया और बोला और ये देखो इस स्थान पर किसी ने शिवलिंग बनाया है, इसकी पूजा भी की है। चलो हम सब भी ऐसा करें, इससे निश्चय ही पुण्य मिलेगा। फिर क्या था सभी यात्री जुट पड़े। एक ही घंटे में वहाँ वैसे ही उतने ही बड़े 40 शिवलिंग दिखाई देने लगे। फिर तो यात्रियों का जो भी दल आता वह ऐसे ही शिवलिंग बनाता, उनकी पूजा करता फिर आगे बढ़ता। लगभग एक महीने बाद, हिरण्य आप तीर्थयात्रा से वापस लौटा। परंतु यह क्या जहाँ धनगार था उस स्थान को देखकर तो वह दंग रह गया। दो तीन मील के घेरे में एक से सैकड़ों शिवलिंग बने हुए थे। यह पता लगाना भी बड़ा कठिन था की उसका शिवलिंग कौन सा है? ऋण आपका सिर चकराने लगा और वह वहीं बैठ गया। बहुत देर तक शिवलिंगों के उस मेले को देखता रहा। सूर्यास्त हो चला था। किनारे पर बहती हुई गंगा कलकल करके मानो उससे कुछ कहना चाह रही थी। वह सोचने लगा, देखो, किसी ने ठीक ही कहा है कि वह धन नष्ट हो जाता है, जिससे हम ना तो दूसरों का भला करते है, ना अपने लिए ही उसका उपयोग करते हैं। मैं तो सन्यासी हूँ, मुझे तो धन के लोभ में पड़ना ही नहीं चाहिए था। भगवान ने मुझे शिक्षा देने के लिए ही यह सब किया है। इस आत्मबोध से हिरण्य आपका सारा दुख दूर हो गया। वह कमंडल और डंडा लेकर फिर खुशी खुशी आगे की यात्रा पर बढ़ चला। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है की हमें कभी भी धन का लोग नहीं करना चाहिए। ओके बाइ?",सभी को नमस्कार यह एक संत की कहानी है। मैं सभी बच्चों को सोने के समय की कहानियां नैतिकता के साथ सुना रहा हूं। मेरी कहानियाँ अभिनव और प्रेरणादायक हैं। अपने बच्चों के साथ मेरी कहानियाँ सुनें। यह निश्चित रूप से आपके बच्चे के व्यक्तित्व के निर्माण में मदद करेगा। "हैलो बच्चों। आज जो कहानी मैं आपको सुनाने जा रही। उसका टाइटल है कटहल तो नहीं खाया। आज से कई 100 वर्ष पहले की बात है। एक व्यापारी किसी अन्य देश से पहली बार बांग्लादेश में व्यापार करने आया और अपने देश से लाया हुआ सामान बाजार में बेचने निकला। दोपहर हुई तो उसे भूख लगी। सामने फलों की एक दुकान थी। उसने सोचा चलो आज कुछ फल ही खाएं। फलों की दुकान में उसे कटहल लटका हुआ नजर आया। वह फल उसके लिए बिल्कुल नया था। वहाँ बड़ी देर तक विस्मय से उसे ताकता रहा और जब उसने उसे सुनूंगा तो मज़ा ही आ गया। उसकी सुगंध इतनी अच्छी थी कि उसके मुँह में पानी भर आया, किंतु उसने सोचा कि जब फल इतना बड़ा है तो मूल्य भी उतना ही अधिक होगा। थोड़ी देर उसने सोचा जब मन्ना माना तो साहस बटोरकर उसने दुकानदार से उसका मूल्य पूछा। दुकानदार ने कहा, छे और ने व्यापारी को अपने कानों पर विश्वास नहीं आया। उसने सोचा दोबारा पूछने पर दुकानदार कहीं अधिक न बता दें। छठ छे आने निकालकर दुकानदार के हाथ पर रख के और कटहल कंधे पर रखकर ये जा और वह जा व्यापारी बार बार कटहल को सूंघता और सोचता कितना सस्ता सौदा किया है उसने और फिर भाग भाग कर रास्ता तय करने लगा। आखिर उससे धीरज नहीं बांधा और वह सड़क के किनारे एक बाग में बैठकर पूरा का पूरा कटहल हड़प कर गया। इतना बड़ा फल खाकर उसका पेट फूल कर गुब्बारा हो गया। कटहल का रस उसके हाथों, चेहरे, दाढ़ी और कपड़ों पर जम गया। उसने सोचा नदी पर जाकर पानी से धो लूँगा। किंतु पानी से धोने पर वह और भी सख्त हो गया। अब व्यापारी की दशा अजीब थी, कपड़ों पर बड़े बड़े धब्बे नजर आ रहे थे और दाढ़ी और मूंछों के बाल एक दूसरे से बुरी तरह चिपक गए थे। व्यापारी को बड़ी उलझन हो रही थी। जब सादे पानी से रसना छूटा तो उसने साबुन माला किंतु उसका प्रभाव ये हुआ की रस्म और भी सख्त हो गया। मिट्टी, धूल और सूखे पत्ते उड़कर उसके बालों और कपड़ों पर चिपक गए जो उसे देखता उसकी दुर्दशा पर हस्ता। जैसे जैसे हवा लगती रस, शोषण होता जाता। व्यापारी के चेहरे और हाथों की खाल पकड़ने लग दाढ़ी और मूंछों के बाल सख्त होने लगी। इससे उसे बड़ा कष्ट होता। इतनी परेशानी में रात हो गई। उसने सोना चाहा किंतु कष्ट के कारण उसे नींद ही नहीं आयी। प्रातःकाल वह उठा तो उसका तकिया उसके सिर से चिपका हुआ था। उसने तकिए को छुड़ाना चाहा तो सिर के कुछ गलियों कर गए। इससे उसे बड़ी पीड़ा हुई। कल का दिन तो बर्बाद हो ही चुका था, उसने सोचा आज का दिन क्यों बर्बाद करें? वह अपनी इसी अवस्था में बाजार चला गया ताकि अपना माल बेचकर नया माल खरीदे और अपने देश वापस जाने की तैयारी करें। जिससे दुकान पर वह लेनदेन के लिए बैठता। उसके हाथों बालों और कपड़ों में कुछ ना कुछ चिपक जाता लोग। जैसे चोर समझकर बुरा भला कहते, इस बात से वह बहुत लज्जित होता। इसी प्रकार वह एक दुकान पर अपना माल बेचने पहुंचा। वह दुकान हीरे जवाहरात की थी। व्यापारी ने अपने तौर पर बड़ी सावधानी बरती। किंतु फिर भी एक हीरा उसके हाथ से चिपक गया। दुकानदार ने उसे उठाईगीर समझ कर मारना आरंभ कर दिया। किंतु यहाँ क्या? दुकानदार ने जैसे ही छपटमारी उसका हाथ व्यापारी के गाल से चिपककर रह गया। दूसरे हादसे उसने व्यापारी की गर्दन पकड़ी तो वह भी गर्दन से चिपक गया। अब दुकानदार को पता चला कि व्यापारी चोर नहीं बल्कि मुसीबत का मारा है। व्यापारी ने रो रोकर सारी व्यथा कह सुनाई। दुकानदार ने कहा अजनबी तुमने बड़ी गलती की जिंस, चीज़ के बारे में तुम जानते नहीं थे, उसका उपयोग करने से पहले उसके बारे में किसी से पूछ तो लेते तुमने जल्दबाजी में काम किया है। व्यापारी ने उत्तर दिया, बंगालीबाबू मैंने अपनी गलती की सजा भुगत ली, अब खुदा के लिए मुझे इस मुसीबत से छुटकारा हासिल करने का कोई तरकीब बताओ। दुकानदार ने कहा एक तरकीब है और वह यहाँ की अपने बाल मुड़वा दो और यह कपड़े उतारकर दूसरे कपड़े पहन लो। बेचारा व्यापारी नाई के पास गया और अपने सारे बाल मुड़वा दिए। इस प्रकार उसके प्राण इस संकट से छूटे। उसके बाद जब भी उसकी मुलाकात किसी ऐसे व्यक्ति से होती जिसके बाल मुड़े हुए होते तो वह उसके कान के पास मुँह ले जाकर पूछता तुमने कटहल तो नहीं खाया था? तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें ऐसी कोई भी चीज़ इस्तेमाल नहीं करनी चाहिए जिसके विषय में हमें जानकारी ना हो। पहले हमें उसके बारे में जानकारी जुटा लेनी चाहिए। ओके बाइ?",यह एक ऐसे व्यापारी की कहानी है जो दूसरे देश से बंगाल आया था। वह कटहल के बारे में नहीं जानता था। कटहल स्वादिष्ट है या बहुत चिपचिपा फल लेकिन व्यापारी को यह पता नहीं था। कटहल खाने के बाद उन्हें कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ा। पूरी कहानी का आनंद लें। "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपको सुनाने जा रही हूँ उसका टाइटल है। सुरक्षा के लिए जरूरी है सावधानी। दूर दूर तक फैले रेगिस्तान में एक बार बहुत सी पहाड़ी भीड़ इकट्ठा हुई। अपनी समस्याओं के बारे में विचार करते हुए सभी ने। बात कही क्योंकि उन्हें अकेला जानकर हिंसक जानवर प्रायः मार डालते हैं। इसलिए या आवश्यक है कि उनसे बचने का कोई उपाय ढूंढ लिया जाए। एक बूढ़ी भीड़ ने समझाते हुए कहा। हमारी सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि हम सभी अलग अलग रहती है, अलग अलग घूमती है और अलग अलग घास चरती हैं। ऐसे में हमें आसानी से पकड़ लिया जाता है। यदि हम सभी हमेशा साथ साथ जुर्माना कर निकले तो हमे कोई भी हानि नहीं पहुंचा सकेगा। सभी भेड़ों ने उसकी बात मानते हुए प्रश्न किया, लेकिन उसके लिए हमें करना क्या है? ये सब पूछने लगे। बूढ़ी भीड़ ने कहा, इसके लिए सबसे अच्छा उपाय है कि हम सभी एक घेरा बनाकर रहे। और घेरे के बाहर किसी भेड़ को हर समय चौकसी के लिए रख दें, जहाँ कहीं भी हम जाए, झुंड बनाकर चलें और चौकस रहें। एक छोटी भीड़ ने आश्चर्य प्रकट करते हुए पूछा क्या 1 दिन हमेशा चौकसी कर सकेगी? बूढ़ी भीड़ ने उत्तर देते हुए कहा। इसके लिए बारी बारी से सभी भेड़ों को चौकसी के लिए रखा जाएगा। सभी इस निर्णय से सहमत हो गए। एक लोमड़ी ने भेड़ों की यह सारी बातें सुन ली। लोमड़ी तुरंत ही भेड़िये के पास गई और बोली भेड़िये भैया मैंने बहुत बढ़िया शिकार देखा है, अब आप जल्दी से मेरे साथ चले। अपनी जीभ लपलपाते हुए भेड़िया बोला। कौन सा शिकार और कहा लोमड़ी ने उत्तर दिया, मैं यह बात तभी बताऊंगी जब आप यह वायदा करें कि शिकार के बाद आप मुझे भूल नहीं जाएंगे। बेड ये ने कहा। नहीं बहन तुम्हे ना भूलूंगा लोमड़ी ने बताया देखो यहाँ से थोड़ी दूर पर भेड़ झुंड बनाकर घास चल रही है। उनकी चौकसी करने वाली भेड़ें समय समय पर अवश्य ही सो जाएँगी। तब आप चुपके से उनके पास पहुँच जाना। पहले यदि एक भेड़ मिलती थी तो अब आप कम से कम पांच आसानी से पकड़ लेंगे। अच्छा चलो चलते हैं भेड़िये ने कहा। अंधेरे में भेड़िया और लोमड़ी पहले तेजी से मैं धीरे धीरे भेड़ों के झुंड की ओर बढ़ने लगे। चौकसी करने वाली भेड़ों ने उनके पैरों की आवाज़ दूर से ही सुन ली और सभी भेड़ों को सावधान कर दिया। बीड़े सुरक्षित स्थान की ओर भाग गई। बेड़ियाँ पछताता रह गया, लोमड़ी भी दुखी थी। बेड़ियाँ और लोमड़ी ने कई बार भेड़ों का पीछा किया, किंतु अपनी चौकसी के कारण भेड़ें हर बार भागने में सफल हो जाती। वे अपने करने का स्थान भी बदल देती थी। भेड़िया और लोमड़ी पछताते रह जाते। भूखा थका भेड़िया इसी तरह लगातार इधर से उधर घूमता रहा, लेकिन उसे हाथ में कुछ भी नहीं लगा। भेड़ों की चौकसी के कारण वे भागने में सफल हो जाती। बूढ़ी भेड़ की सलाह काम आ गई। लोमड़ी को डांटते हुए भेड़िए ने कहा। लगता है या तेरी चाल है, यह कहकर वह लोमड़ी की ओर लपका। यहाँ से कांपती हुई लोमड़ी तुरंत वहाँ खड़ी हुई। उसी समय से आज तक भीड़ झुंड में ही रहती है और साथ साथ ही घूमती और घास चढ़ती है। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है। की जब हम। एक गुट में रहते हैं, एक समूह में रहते हैं, तभी हम सुरक्षित रहते हैं। ओके बाइ?",यह भेड़ियों की कहानी है। उन्होंने हमेशा समूहों में चलने का फैसला किया ताकि जंगली जानवर उन्हें पकड़ न सकें। एक भेड़ हमेशा समूह के बाहर ड्यूटी देती है और खतरे के समय उन्हें सतर्क करती है। इस कहानी में आप एकता की शक्ति के बारे में जानेंगे। कहानी का आनंद लें। "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपके लिए लेकर आई हूँ, उसका टाइटल है बर्थडे गिफ्ट। घर में सब लोग सो रहे थे, केवल चेह जाग रही थी। कल सुबह उसके जन्मदिन पर उसे कौन कैसे बधाई और उपहार देगा? इस उधेड़बुन में उसे नींद नहीं आ रही थी, पर उठकर खिड़की के पास आकर खड़ी हो गयी। चांदनी रात में उसे गमले में रखे पौधे दिखे, जो हल्की हल्की हवा में हिल रहे थे। चहक का ध्यान एक गमले में अटक गया। उसमें रात रानी का पौधा लगा हुआ था। रात रानी की खुशबू कमरे तक आ रही थी। उसमें खिली नन्ही नन्ही कलियां देखकर वो अपने पिछले जन्म दिन की यादों में खो गई। जब पापा उसके लिए रिमोट से उड़ने वाला हवाई जहाज लेकर आये थे। मम्मी ने सुन्दर सा लहंगा चुनरी और दादी ने अपने हाथों से बनाया मोती जड़ा पर्स उपहार में दिया था। दादाजी भी गर्मजोशी में हैप्पी बर्थडे टू यू बोलते हुए छोटे से गमले में लगा नन्हा पौधा पकड़ाने लगे तो उसने तुनक कर उनका हाथ झटकते हुए कहा था। ये भी कोई गिफ्ट? सुनकर दादाजी किसी आ गए थे, तब मम्मी पापा ने उसे डांटते हुए कहा था। चहत बड़ों से ऐसा व्यवहार करते हैं क्या? अपने जन्मदिन पर ऐसे बोलो गी क्या? इस प्रकार डांट पड़ने के कारण उसका मूड खराब हो गया था। दादाजी ने चुपचाप गमला बहार रख दिया। उसके बाद से दादाजी ही गमले में लगे पौधे की देखभाल करते रहें। चहकने पौधे को ध्यान से देखा। 1 साल में वो कितना बड़ा हो गया था और हवा में हिल हिलकर मानो उसके आने वाले जन्मदिन की खुशियां मना रहा था। चहक बिस्तर पर लेटकर पिछले साल मिले जन्मदिन के उपहारों को याद करने लगी। पापा के दिए हवाई जहाज के पंख किसी पेड़ से टकराकर टूट गए थे। मम्मी का दिया लहंगा चोली भी अब पुराना और बदरंग हो गया था। दादी का दिया मोतियों जड़ा पर्स वो पिकनिक पर लेकर गई थी जो वही कहीं छूट गया था, चाहे की आंखें मूंदने लगी। रात में देर से सोने के कारण सुबह देर तक सोती रही पर जब आंख खुली और बड़ी देर तक उसे कोई जगाने नहीं आया तो वह खुद ही बाहर आ गई। दादी पूजा की तैयारी में लगी हुई थी। पूरे घर में आती खुशबू से लगा जैसे रसोई में मम्मी आज कुछ खास बना रही है। पापा उसके जन्मदिन के लिए घर के डेकोरेशन में जुटे हुए थे। दादाजी चुपचाप बैठे अखबार पढ़ रहे थे। चहक ज़ोर से बोलीं, आज मुझे कोई जन्मदिन की बधाई देगा या नहीं? यह सुनकर सब लोग हंस पड़े और एक साथ बोले पी बर्थडे टु यू चेक मुस्कुरा पड़ी बिटिया रानी तुम्हारे लिए आज विशेष पूजा है। जल्दी से नहा धो लो, फिर टीका लगाकर प्रसाद दूँ। पापा और मम्मी कहने लगे। चहक आज खाने के लिए भी तुम्हारे कुछ पसंद की ही चीज़ बनी है ऐसा उसकी मम्मी ने भी बोला। पापा, फिर बोले। आज पूरा घर इतना बढ़िया सजाऊंगा कि तुम और तुम्हारी सहेलियां देखती रह जायेंगी। फिर सब लोग उसे उपहार देने लगे। मम्मी ने सुंदर मोतियों से सजी हुई फ्रॉड? दादी ने सुन्दर सी गुड़िया उपहार में दी। पापा उसके लिए साइकल लाए थे। चेक दादाजी के पास गई दादाजी उसके सिर पर हाथ रखकर बोले सदा खुश रहो बिटिया हैप्पी बर्थडे। चहक उनकी ओर ध्यान से देखते हुए बोलीं, मेरा गिफ्ट कहा है? यह सुनकर दादाजी सकपका गए, वह रूठकर बोली सब लोगो ने मुझे कुछ ना कुछ दिया। आपने क्यों नहीं दिया? लाओ मेरा गिफ्ट दो। तब दादाजी बोले क्या गिफ्ट चाहिए मेरी बिटिया रानी को? इसका मतलब है अभी तक कुछ नहीं खरीदा। वेरी बैड दादाजी वेरी बैड। अब तो पेनल्टी लगेंगी। जहर के इस व्यवहार पर मम्मी पापा हैरान हो गए पर चहक मस्ती से कहीं जा रही थी। मैं और मेरी 15 दोस्त मतलब आपको पूरे 16 पौधे लाने पड़ेंगे। एक मैं रखूँगी बाकी दोस्तों को बाट दूंगी। जहर के मम्मी पापा उसकी बात सुनकर गर्व से भर उठे और दादाजी हैरानी से बोले क्या कह रही हैं बेटियां? दोस्तों, सहेलियों को रिटर्न गिफ्ट में पौधे देगी चेक अपनी बाहें दादाजी के गले में लिपट आती हुई लाड़ से बोली थैंक्यू दादाजी, पिछले साल आपने इतना सुंदर उपहार दिया। इस बार भी मुझे पौधा ही चाहिए। अरे वाह चहक दादाजी चकित थे और चहक अपनी रौ में बोले जा रही थी। देखिये आपके दिए गिफ्ट में कितने सुंदर फूल खिले हैं शाम को मैं इन्हें अपने बालों में भी सजाऊंगी। वाह वाह हमारी चहेतों 1 साल में कितनी बड़ी और समझदार हो गयी? दादाजी और पापा एक साथ उसकी बलैया लेते हुए बोले और दादाजी अभी भी संकोच में थे, फिर फिर बोले सोच लो बिटिया। रिटर्न गिफ्ट में पौधा कुछ अजीब तो नहीं लगेगा? बिल्कुल नहीं। दादाजी, एक यही रिटर्न गिफ्ट हमें ऐसे ही रिटर्न में स्वच्छ हवा, ऑक्सीजन, साफ पर्यावरण और बहुत कुछ। दे जाएगा। वाह भाई वाह आज तो अपनी सुंदर सोच से हमारी बिटिया रानी ने सुबह सुबह ही हमें रिटर्न गिफ्ट दे दिया। जुग जुग जिये हमारी बिटिया रानी दादाजी ने चहक को गले से लगा लिया और दादी गर्दन हिलाती हुई उसे देखकर मुस्कुराते हुए गांव उठी। बिटिया रानी, बड़ी सयानी, अब से तुम हम सबकी नानी। यह सुनकर सब ज़ोर से हँस पड़े। तो बच्चो इस कहानी से जो शिक्षा हमें मिलती है वह यह कि हमें भी पेड़ पौधों और प्रकृति से प्रेम को बढ़ाना चाहिए। यदि हम प्रकृति से प्रेम नहीं करेंगे तो प्रकृति भी हमसे नहीं प्रेम करेगी। ओके बाइ?","सभी को नमस्कार, यह एक छोटी लड़की की नैतिक कहानी है। उन्होंने अपने जन्मदिन पर पेड़-पौधों की देखभाल कर प्रकृति को बचाने की प्रेरणा दी है। पूरी कहानी सुनें और कहानी के नैतिक के बारे में जानें।" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी में आपके लिए लेकर आई हूँ उसका टाइटल है पतंग का संदेश। पतंगोत्सव में अब कुछ ही दिन रह गए थे। सभी बच्चे रंग बिरंगी पतंगें उड़ाने के लिए उत्साहित थे लेकिन नन्हा जी तो किसी चिंता में था। यह देख सभी पतंगें अचरज में पड़ गई। एक हरी पतंग मैं उससे पूछा और ये जीतू? सभी बच्चे व पतंगें पतंग उत्सव को लेकर बहुत खुश और उत्साहित मगर तुम को चिंता में लग रहे हो। जी तुने चिंता का कारण बताते हुए कहा कल ऑनलाइन क्लास में हमारे विज्ञान शिक्षक ने हमें प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग के बारे में पढ़ाया। उन्होंने बताया कि पेड़ों की कटाई वाहन और उद्योगों के कारण पहले वायु प्रदूषण से पृथ्वी का पर्यावरण बिगड़ रहा है। जलवायु परिवर्तन के कारण गंभीर समस्याएं पैदा हो रही है। पीली पतंग ने कहा हाँजी तू ये चिंता का विषय है। मैंने उड़ते हुए कई बार देखा है कि लोग बिना सोचे समझे कैसे पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे हैं। सभी पतंगें चिंता में पड़ गई। जीतू ने आगे कहा। साथ में हमें एक प्रोजेक्ट बनाने के लिए भी कहा गया है, जिसमें हमें ये बताना है कि आसपास के लोगों को हम इस गंभीर समस्या के बारे में बताकर कैसे जागरूक कर सकते हैं। और हाँ, यह प्रोजेक्ट कोरोना की वजह से हमे घर पर रहकर ही बनाना है। मैं प्रदूषण के बारे में चिंतित हूँ ही। प्रोजेक्ट में क्या बनाया जाए, उस बारे में भी सोच रहा हूँ। गुलाबी पतंग ने जीतू की सहायता करने के भाव से कहा। इसके लिए हमें पेड़ पौधों के महत्त्व, ऊर्जा के बचाव और उसके विवेकपूर्ण उपयोग के बारे में लोगों को समझाना होगा। जीतू ने कहा, और कैसे? हर साल तो हम पर्यावरण जागरूकता फैलाने के लिए रैली या प्रदर्शन का आयोजन करते हैं या स्कूल में कार्यक्रम रखते हैं, लेकिन घर पर रहकर हम लोगों तक संदेश कैसे पहुंचाएंगे? जी तो की बात सुनकर सभी पतंगें एकदम चुप हो गई। अब सब प्रोजेक्ट में क्या बनाया जाए, इस बारे में सोचने लगे। इसी बीच नन्ही पतंग ने कुछ उपाय सुझाते हुए कहा, जीतू क्यों? उन्हें इस बार कुछ अलग तरीके से पतंगोत्सव मनाया जाए? जीतू ने अचरज भरे भाव से पूछा, अच्छा वो कैसे? नन्ही ने उपाय सुझाते हुए कहा। पतंग उत्सव के दिन सभी विद्यार्थी पतंगों पर जागरूकता संदेश लिखकर उन्हें उड़ा सकते है। पतंगों पर प्रदूषण के दुष्परिणाम और पेड़ों को बचाने के बारे में लिखा जा सकता है। पेज लड़ने के बाद कटी हुई पतंग जिसके हाथ में जाएगी, उन लोगों तक हमारा संदेश पहुँच जाएगा और इस तरह हम घर पर रहकर ही कई लोगों को पर्यावरण के बारे में बताकर उन्हें जागरूक कर सकते हैं। जी तो को यह विचार पसंद आया, उसने कहा, सुनी तुमने सचमुच बहुत कमाल की बात कही है। कल मैं ऑनलाइन क्लास में अपने विज्ञान, शिक्षक और दोस्तों को इस प्रोजेक्ट के बारे में अवश्य बताऊँगा। जी तो को खुश देखकर सभी पतंगें भी मुस्कुरा उठीं। सबने की तारीफ करने लगे। शाम को जीतू के पापा माजा लेकर आए तो जीतू ने सभी पतंगों के कन्ने बांध दिए। दूसरे दिन ऑनलाइन क्लास के दौरान अन्य विद्यार्थियों के साथ जीतू ने भी अपना प्रोजेक्ट प्रस्तुत किया। विज्ञान शिक्षक ने उसकी प्रशंसा करते हुए कहा, यह बहुत उत्तम विचार है। तुम सब पतंगों पर अच्छे अच्छे स्लोगन लिखो। प्रदूषण के गंभीर परिणामों के चित्र या न्यूज़ पेपर की कटिंग भी तुम अपनी पतंग पर चिपका सकते हो। क्या तुम यह सब काम सफलतापूर्वक कर पाओगे? ऑनलाइन क्लास मैं कल बता सकते हो ये सब करके। सभी बच्चों ने उत्साहित होकर सहमति जताई। अगले दिन सभी बच्चों ने ऑनलाइन क्लास में अपनी अपनी पतंगें दिखाई। कुछ विद्यार्थियों ने पतंगों पर स्लोगन लिखे थे तो कुछ निश्चित लगाए थे। जीतू ने अपनी नन्ही पतंग पर अच्छे अच्छे स्लोगन तो लिखे ही थे, साथ ही प्रदूषण जागरूकता के बारे में एक छोटी सी कहानी लिखकर चित्र भी लगाया था। गुरूजी ने सभी बच्चों की खूब प्रशंसा की। उन्होंने बच्चों का उत्साह बढ़ाते हुए कहा, इन संदेशों को सिर्फ लोगों तक पहुंचाना ही नहीं है। बल्कि हमें खुद भी अपनाना है। हम भी स्कूल या आसपास में कम से कम पेड़ एक अवश्य लगाएं। स्कूल में पैदल या साइकिल पर आए काफी किताबें न वेस्ट करे कागज नफाड़े आखिर कागज भी पेड़ों से ही तो बनते हैं सही? कहा न? फिर जीतू के प्रोजेक्ट को प्रथम पुरस्कार दिया गया तो बच्चों ने तालियां बजाईं। सभी बच्चे अपनी अपनी प्रोजेक्ट वाली पतंग उड़ाने के लिए और भी उत्साहित हो गए। पतंग उत्सव के दिन बच्चों द्वारा प्रोजेक्ट वाली पतंगें उड़ाई गई। आज सभी बच्चों को दूसरों की पतंगें काटने के बजाय खुद की पतंग कट जाने का ज्यादा उत्साह था। क्योंकि उनकी पतंग कटेगी उनका संदेश अन्य लोगों तक पहुंचेगा। दूसरी ओर पतंगें भी कुश्ती। हर साल वे सिर्फ उड़ने का आनंद ले रही थी, मगर इस बार लोगों तक एक अच्छा संदेश पहुंचाने का उत्तम कार्य भी कर रही थी। जब आसपास के लोगों के पास पर्यावरण जागरूकता संदेश लिखी हुई कटी हुई पतंगे आने लगी तो सब अचरज में पड़ गए। सबने बच्चों की खूब प्रशंसा की। पतंगों पर लिखे संदेश से उन्हें यह समझ में आया कि कैसे छोटी छोटी बातों का ध्यान रखकर हम पर्यावरण प्रदूषण को कम करने में सहायक बन सकते हैं। एक कटी हुई पतंग उसी कॉलोनी में रहने वाले वन अधिकारी के पास पहुंची तो उन्होंने इस उत्तम प्रोजेक्ट का विचार रखने वाले जीतू और उसके दोस्तों को विज्ञान शिक्षक के साथ अपने ऑफिस में बुलाया। दूसरे दिन सोशल डिस्टैन्स इनका पालन करते हुए सब उनके ऑफिस में पहुंचे। वन अधिकारी ने सबकी प्रशंसा करते हुए उन्हें सम्मान पत्र भेज दिया। सचमुच आज सबके चेहरे पर एक अच्छा कार्य करने का आनंद उभर रहा था। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि चाहे परिस्थिति कैसी भी हो लेकिन प्रकृति के प्रति जो हमारा कर्तव्य है हमें उसे निभाना ही चाहिए। तभी हम अपने कार्य में और अपने जीवन में सफल हो सकते हैं। ओके बाइ?","सभी को नमस्कार, यह एक लड़के की कहानी है। पर्यावरण संरक्षण के लिए लोगों में जागरूकता फैलाने के लिए उन्हें अपने स्कूल से एक प्रोजेक्ट मिला। काफी सोच-विचार के बाद वह पतंग उड़ाकर इस प्रोजेक्ट को करने का फैसला करता है। वह अपने दोस्तों के साथ पतंग पर संदेश लिखकर अपना प्रोजेक्ट पूरा करता है। पूरी कहानी सुनें और कहानी के नैतिक के बारे में जानें।" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपके लिए लेकर आई हूँ, उसका टाइटल है शक्ति की पहचान। एक बार अभयारण्य में बहुत जोरो का तूफान आया। सहयोग की बात थी कि उसी दिन सारे पक्षियों ने मिलकर घूमने का कार्यक्रम बना लिया था। बे सब सुबह सुबह वहाँ से उड़ गए थे। शाम को जब वे वापस लौटे तो वहाँ का दृश्य देखकर उनका जी धक से रह गया। सारे के सारे पेड़ धरती पर उखड़े पड़े थे। तूफान ने उन्हें जड़ सहित उखाड़कर फेंक दिया था। बस एकमात्र वट वृक्ष ही छोटे सहकर खड़े थे। पक्षियों ने दुखी मन से वृक्षों की संवेदना में शोक सभा की। आखिर उन्हीं की गोद में वे पले बढ़े और रह रहे थे। जीवन के ना जाने कितने सुनहरे दिन उन्होंने उन्हीं वृक्षों की गोद में बिताए थे। साथ ही उनके घोंसलें अंडे बच्चे भी वृक्ष के साथ ही नष्ट हो गए थे। सारे पक्षी बड़े उदास थे, उन्हें लग रहा था जैसे उनके सभी सगे संबंधी गुजर गए हो। उस दिन ना किसी ने खाया, न पिया। कुछ दिन इसी प्रकार शोक की स्थिति में बीते। तब एक वृद्ध नील कंठ से न रहा गया। उसने सभी पक्षियों को इकट्ठा किया और कहने लगा। बच्चों। तुम ऐसे कब तक सुख बनाओगे? इस तरह शोक मनाने से क्या लाभ? मरने वालों के साथ मरा नहीं जाता। पर हाँ, यदि उनके प्रति हम सच्चा प्रेम सच्ची श्रद्धा रखते हैं तो कुछ ऐसा करें कि उनकी स्मृतियां दुनिया में रहे। सभी पक्षियों को नीलकंठ दादा की बात बिलकुल सही लग रही थी। दादाजी, आप ही बताइए कि हम सब क्या करें? वे एक स्वर में पूछने लगे। यदि तुमने वृक्षों को सच्चे मन से प्यार किया है तो उन्हें फिर से लगाओ। वह कहने लगे दादाजी, वह सब कैसे संभव हो सकता है? हम नन्हें नन्हें पक्षी है हमारी इतनी सामर्थ्य भी कहा सुखिया, कोयल मुँह फुलाकर बोली। सुखिया इस दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं। जो काम मन लगाकर किया जाता है वही संभव हो जाता है। जो काम बिना मन के और अलग से करते हैं तो वहीं असंभव हो जाता है। नीलकंठ ने उत्तर दिया। दादाजी कैसे करें यह काम कृपया साफ साफ समझाइए। सारे पक्षी पूछने लगे नीलकंठ बोला बच्चो। तुम शरीर से छोटे हो तो क्या? बहुत कुछ कर सकते हो। तुम सभी अपनी अपनी चोंच में एक एक पेड़ या पौधे का बीज ले आओ। थोड़ी थोड़ी दूर पर अपने पंजों से ज़रा सी जमीन खोदकर उसे दबा दो। जल्दी ही वर्षा आने वाली है। कुछ ही दिनों में तुम देखोगे कि तुम्हारे चारों ओर ढेर सारे नन्हें नन्हें पौधे उग आए हैं। दादाजी, बात तो आपने बहुत अच्छी बताई है, हम ऐसा ही करेंगे। यही वृक्षों के प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी। सभी पक्षियों ने मिलकर कहा और अपने अपने भोजन की खोज में उड़ चले। उस दिन से सभी पक्षियों ने अभियान शुरू कर दिया। शाम को जब वे लौटते थे तो उनके पंजों में किसी ना किसी वृक्ष का बीज लगा रहता था। उस बीज को या तो गड्ढे में डाल देते थे या फिर अपने पंजे से थोड़ी सी जमीन खोदकर उसमें दबा देते थे। कोई कोई पक्षी तो छोटा सा पौधा ही जड़ सहित उखाड़ लाता था। कई पक्षी तपती दोपहरी में भी अपनी चोंच में पानी भरकर लाते और लगाए गए वृक्षों वीडियो में डालते। पक्षियों का यह कठोर परिश्रम देखकर इंद्र भगवान का दिल भी पसीज उठा जो स्वयं अपनी सहायता करता है, भगवान भी उसी की सहायता करते हैं, उसी को आशीर्वाद देते है। जल्दी ही आसमान में काले काले बादल छाने लगे। वर्षा की झड़ी लग गई। सभी पक्षी प्रसन्न हो उठे। मोर के आके आके स्वर में राग अलाप कर नाच उठे। 810 दिन बाद बीजों में से अंकुर निकलने लगे। उन्हें देखकर पक्षी झूम उठे। प्रसन्नता की अधिकता से वे एक दूसरे की चोंच से चोंच मिलाकर नाचने लगे। आखिर उनका परिश्रम जो सफल रहा था नियमित और व्यवस्थित रूप से परिश्रम करने से बड़ा उद्देश्य भी पूरा हो जाता है। कुछ ही दिनों में चारों ओर हरियाली ही हरियाली दिखाई देने लगी। वह अब पहले से भी अधिक सुंदर लग रहा था। सभी पक्षियों ने उसका नवीन नामकरण भी किया था। शीतल कुंज। सभी पक्षी इसके लिए नीलकंठ दादा के आभारी थे। उन्हीं की प्रेरणा से नवनिर्माण हुआ था। 1 दिन साँझ के झुटपुटे में सभी पक्षी आराम से घेरा बनाकर बैठ गए थे, वे सभी खा पीकर निश्चिंत और ठंडी ठंडी हवा में आपस में बतिया रहे थे। चारों ओर फैली हरियाली को देखकर वे फूले न समा रहे थे। सुखिया कोयल कहने लगी दादाजी। हम सभी तो हिम्मत हारकर ही बैठ गए थे। आपकी प्रेरणा से ही या कुंज बसाया जा सका है। बुड्ढे नीलकंठ को सहसा ही उस दिन की बात याद आ गई, जब सुखिया कोयल ने तुनक कर कहा था, हम तन नननी पक्षी है, हमारी इतनी सामर्थ्य कहा है। नीलकंठ दादा मुस्कुराते हुए बोले बेटी दुख मुसीबत में हिम्मत हारकर बैठने से हम रही। सही शक्ति भी खो बैठते हैं। जो साधारण व्यक्ति होते हैं, वे आपत्ति आने पर हिम्मत हारकर बैठ जाते हैं परंतु महान व्यक्ति संकट में और अधिक धैर्य तथा साहस से काम करके चमक उठते है। धैर्य और अध्यवसाय से ये बड़े से बड़े संकट में भी विजय की अमोंग कुंजियाँ है। फिर सभी पक्षियों की ओर देखते हुए नीलकंठ दादा समझाने लगे बच्चों, हमारे अंदर बहुत सारी क्षमताएं हैं, शक्ति का खजाना है, पर खेद है कि हम पहचान नहीं पाते। अधिकांश प्राणी रोते कलपते भटकते रहते हैं, जीवन को बर्बाद करते रहते हैं, जो अपने को पहचान लेते हैं, उनकी आंतरिक शक्ति यों को जानकर उनका सदुपयोग कर लेते हैं, वहीं अपने जीवन को ऊंचा उठा लेते हैं और औरों के लिए भी खुशहाली लाते है। दादाजी, आप ठीक कह रहे हैं सभी पक्षी जो अब तक सात बड़े ध्यान से नीलकंठ दादा की बात सुन रहे थे, गर्दन हिला हिलाकर बोले। इतना बड़ा शीतल कुंज बनाने की बात तो हम कभी सपने में भी नहीं सोच सकते थे। हरियल तोता कहने लगा। दादाजी, हम आपके बड़े ही कृतज्ञ है क्या आपने हमें जीवन का बहुत बड़ा ज्ञान दिया है? अपने आप को पहचानने का अपनी शक्तियां को जानकर आगे बढ़ने का ज्ञान हम आपका यह संदेश लेकर दूर दूर तक जाएंगे और दिन ही प्राणियों में नई चेतना नई जागृति का मंत्र फूंकेंगे। इस प्यार से नीलकंठ दादा की आँखों में आंसू चमक आए। वे रुंधे हुए गले से बोले, बच्चों आज मैं धन्य हो उठा, उ मेरे प्रति यही तुम्हारी सच्ची श्रद्धा होगी, तुम अपने कार्य में सफल हों, ईश्वर का आशीर्वाद सदैव तुम्हारे साथ रहे। नीलकंठ दादा के उपदेश से शीतल कुंज के सब पक्षियों ने न केवल अपना ही नया निर्माण किया अपितु दीन दुखियों अन्य अनेक पक्षियों को भी नए जीवन का जागृति संदेश दिया। सच है? कि महान व्यक्ति की संगति से साधारण जन जीवन भी बदल जाता है और असाधारण कार्य सहज भाव से कर लेता है। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें विपत्ति के समय कभी भी धैर्य नहीं खोना चाहिए, क्योंकि मनुष्य अथाह शक्ति यों का खजाना है। हमारे अपने अंदर ही बहुत सी ऐसी शक्तियां हैं जिसे हम नहीं पहचान पाते। ओके बाइ?",सभी को नमस्कार यह पक्षियों की एक नैतिक कहानी है 🐦🐦। एक बार जंगल में तेज हवा चली। सभी पेड़ नष्ट हो गए हैं। पक्षी बहुत परेशान हो गए। वे बहुत निराश हो गए लेकिन एक बूढ़ा मोर 🦚 उन्हें बताओ कि इस बुरी हालत में क्या किया जाए। पूरी कहानी सुनें और कहानी के नैतिक के बारे में जानें। "क्या आप भी अपना पॉडकास्ट बनाने का सोच रहे हैं? तो ऐंकर ट्राई कीजिए, ये पॉडकास्ट बनाने का सबसे आसान तरीका है। नंबर एक ये फ्री है नंबर दो। इसमें कई सारे ऐसे टूल्स है जो आपको अपने फ़ोन और कंप्यूटर पर रिकॉर्ड और एडिट करने की फैसिलिटीज देते हैं। नंबर तीन आप अपने पॉडकास्ट को डिस्ट्रीब्यूट भी कर सकते हैं, जिससे इसे इस स्पॉटिफाइ और दूसरे प्लैटफॉर्म्स पर सुना जा सकें। डाउनलोड कीजिये ये फ्री एंकर ऐप या विजिट कीजिए ऐंकर डॉट ऐफ़ एम अपना पॉडकास्ट स्टार्ट करने के लिए? हैलो गाइस आज मैं आपके लिए एक बहुत ही शानदार सी कहानी लेकर आई हूँ। हमारी आज की कहानी का टाइटल है सोने का कुआं। बात बहुत पुरानी है। किसी गांव में एक बहुत गरीब स्त्री रहा करती थी। उसकी एक बेटी थी जो उस स्त्री के साथ ही रहती थी। उसका नाम था चंदा। चंदा बहुत सुन्दर, सुशील और गुणवान लड़की थी। एक बार माँ ने उसे एक थाली में चावल दिए और कहा कि धूप में इन्हें सुखा दें। जब थाली लेकर आगे बढ़ी तो माँ ने उसे एक निर्देश दिया। और कहा चंदा देखना पक्षी कही चावल ना कहा जाए। तुम्हें पक्षियों से इन चावलों की रक्षा करनी है? थोड़ी देर बाद अचानक वहाँ पर एक अद्भुत सा कौआ आ गया। अभी चंदा ने चावल सुखाने की प्रक्रिया शुरू की ही थी की वो अद्भुत कुआं आकर वहाँ पर बैठ गया। उस कुएं के पंख सोने के थे और चोंच चांदी की। चंदा ने ऐसा अद्भुत पक्षी कभी नहीं देखा था। उसे चावल खाता देखकर चंदा रोने लगी। वह कैसे उस से अनुरोध करें कि चावल मत खाओ। पर उसने उस कुएं से कहा की मेरी माँ बहुत गरीब है और हमारे पास खाने के लिए इन चावलों के सिवा और कुछ भी नहीं है। आप कृपया इन चावलों को ना खाएं। यह बात सुनकर वह कुआं बोला बच्ची तुम चिंता मत करो, कल सुबह सूर्योदय होने पर तुम गांव के बाहर लगे पीपल के पेड़ पर आ जाना। वहाँ तुम्हें मैं तुम्हारे चावलों का मूल्य दे दूंगा। चंदा उस रात खुशी के मारे सो भी ना पायी। उसे ऐसा अद्भुत अनुभव हुआ था जो पहले कभी ना हुआ था। सूर्योदय से पहले ही उसकी आग लग गई। तभी अचानक से उसे याद आया की कौए ने उसे बुलाया है। वो हड़बड़ा कर उठ गई और कुएं की बताई हुई जगह पर पहुँच गई। पेड़ के ऊपर जैसे ही चंदा ने देखा तो उसके आश्चर्य का ठिकाना ही ना रहा। वहाँ तो एक सोने का महल था। जैसे ही गोवा सोकर उठ। उसने सोने की खिड़की से झांककर कहा। अरे बच्ची तुम आ गयी, मैं तुम्हारे लिए सीडी की व्यवस्था करता हूँ, तभी तो तुम ऊपर चढ़ पाओगी? यह बताओ की तुम सोने की सीढ़ी से आओगी, चांदी की या फिर तांबे की सीढ़ी से? चंदा के लिए यह सब बहुत ही आश्चर्यजनक था। वह बोलीं, मैं तो बहुत गरीब हूँ, मैं सोना और चांदी नहीं जानती तांबे की सीडी ये ठीक रहेंगी आप लगादो मैं उसी से आ जाती हूँ। लेकिन कौए ने उसके लिए सोने की सीढ़ी रखी। काफी देर तक चंदा उसकी भवन का अवलोकन करती रही। अलग अलग तरीके की चीजों को वो देख रही थी। उसे भूखा देखकर कुएं ने कहा पहले तुम कुछ खा लो। कलुआ ने चंदा से फिर एक प्रश्न किया की तुम सोने की थाली में खाओगी? चांदी की थाली में या फिर तांबे की थाली में खाना पसंद करोगी? चंदानी फिर तांबे की थाली में ही खाना चाहिए। परन्तु कौए ने उसे सोने की ही थाली में खाना परोसा। चंदा ने इससे पहले कभी भी इतना स्वादिष्ट भोजन नहीं किया था। अब कौआ बोला, मैं चाहता हूँ की तुम हमेशा यहाँ रहो। परन्तु। तुम्हारी माँ घर पर अकेली होंगी इसलिए अब तुम्हें घर जाना चाहिए। यह कहकर कुएं ने कमरे से। तीन बक्से निकालें और चंदा के सामने रख दिए। चंदा ने उन तीनों बक्सों को ध्यान से देखा। और कौए के ऐसा कहने पर कि वो इन तीनों में से एक बक्सा चुन लें और यही उसके चावलों का मूल्य होगा? चंदा ने सबसे छोटा वाला बक्सा चुना और यह कहकर बाकी बक्सों को छोड़ दिया की मेरे चावलों का मूल्य हो गया। और वह वहाँ से चली गई। घर आकर जब उसने अपनी माँ को सारी घटना बताई तो माँ आश्चर्य में पड़ गई। उसने फटा, फट से वो बक्सा खोला। और जैसे ही उन्होंने वह बक्सा खोला, उनके आश्चर्य का कोई भी अंत नहीं था। यह क्या? यह तो हीरे जवाहरातों से भरा हुआ था। उस दिन उनके गरीबी के दिन दूर हो गए। वो खुशी खुशी रहने लगी और उन्हें कभी भी भूखा न ही सोना पड़ा। उसी गांव में एक लालची बुढ़िया भी रहती थी, उसकी भी एक लड़की थी। जब उन्हें चंदा और सोने के कौए की कहानी का पता चला तो उन्होंने भी उसी प्रकार थाली में चावल सूखने रखें। फिर सोने का कौआ आया। पर यह क्या? उस लालची बुढ़िया की लड़की तो उससे भी ज्यादा लालची थी। उसने कुएं से बहुत बुरी तरह बात की और अपने चावलों का मुहे मांगने लगी। कौए ने उसे पीपल के पेड़ के नीचे आने को कहा। कुआं समझ गया कि ये लालची है इसलिए इसे सबक सीखाना ही होगा। और जब वह लड़की गयी तो कौए ने फिर सीढ़ी रखने से पहले पूछा कि तुम सोने की सीढ़ी से आओगी, चांदी के या फिर तांबे की सीढ़ी से ऊपर आओगी? लड़की ने लालच में आकर कुएं से सोने की सीढ़ी रखने के लिए कहा। लड़की को ये लाल छाया की यदि मैं सोने की सीढ़ी लूँगी तो क्या पता क्या हुआ मुझे सोने की सीढ़ी वापस ही दे दे। पर कौए ने उसके लिए तांबे की सीढ़ी रखी। अब भोजन करने की बारी आयी। तो कौए ने फिर उससे पूछा कि तुम स्वर्ण ताल में खाओगी? चांदी के या फिर तांबे में? परंतु लड़की तो लालची थी, उसने हर बार सोने की थाली मांगी। अब जाते समय कौए ने कमरे से फिर तीन डिब्बे लाकर रख दिए। उसके सामने रखते ही लड़की ने जल्दी से बड़ा वाला डिब्बा उठा लिया और वहाँ से चली आयी। जब वो लड़की अपने घर आई तो उसने माँ से सारा हाल कहा जल्दी जल्दी माँ बेटी ने वो डिब्बा खोलकर देखा अरे ये क्या? जैसे ही उन्होंने वो डिब्बा खोला वो तो बेहोश होते होते बची। दोनों इतना ज्यादा डर गई की जिसकी कोई सीमा नहीं थी उस डिब्बे में से हीरे जवाहरात नहीं बल्कि एक काला सर पर निकल पड़ा। वो दोनों इधर उधर अपने प्राणों की रक्षा करने के लिए भागने लगीं। इस प्रकार उनके लालच का उन्हें मिल गया। इस घटना के बाद उन्होंने लालच का त्याग करके सामान्य जीवन बिताना प्रारंभ कर दिया। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है की कभी भी हमें लालच नहीं करना चाहिये। ओके बाय।","सभी को नमस्कार, यह एक जादुई कौवे की एक अद्भुत कहानी है। एक गरीब लेकिन ईमानदार लड़की को सोने के कौए से इनाम मिलता है। वह इसे कैसे हासिल कर सकती हैं। पूरी कहानी सुनें और कहानी की नैतिकता के बारे में जानें।" "क्या आप भी अपना पॉडकास्ट बनाने का सोच रहे हैं? तो ऐंकर ट्राई कीजिए, ये पॉडकास्ट बनाने का सबसे आसान तरीका है। नंबर एक ये फ्री है नंबर दो। इसमें कई सारे ऐसे टूल्स है जो आपको अपने फ़ोन और कंप्यूटर पर रिकॉर्ड और एडिट करने की फैसिलिटीज देते हैं। नंबर तीन आप अपने पॉडकास्ट को डिस्ट्रीब्यूट भी कर सकते हैं, जिससे इसे इस स्पॉटिफाइ और दूसरे प्लैटफॉर्म्स पर सुना जा सकें। डाउनलोड कीजिये ये फ्री एंकर ऐप या विजिट कीजिए ऐंकर डॉट ऐफ़ एम अपना पॉडकास्ट स्टार्ट करने के लिए? हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आप सबके लिए लेकर आई हूँ, उसका टाइटल है सफलता का रहस्य प्राचीन काल की बात है, संस्कृत के ज्ञाता एक विद्वान गुरु थे। अपने पांडित्य के लिए वि दूर दूर तक प्रसिद्ध थे। देश देशांतर थे। विद्यार्थी उनकी पाठशाला में पढ़ने आया करते थे। उस पाठशाला में जो विद्यार्थी अध्ययन करते थे, वह भी ज्ञानी बन जाते थे। इसका कारण था गुरूजी बड़ी तन्मयता से विद्यार्थियों को पढ़ाते थे। वे सबका ध्यान रखते थे। उसी आश्रम में वोपदेव नाम का एक छात्र भी रहने आया। उसके माता पिता ने सोचा था कि वह आश्रम में रहकर विद्वान बनेगा, गुणी बनेगा, गुरु के पास रहकर सदाचारी बन जाएगा, परंतु गोप देव का मन पढ़ाई में नहीं लगता था। गुरु कक्षा में पढ़ाते और गोल्फ देव बाहर देखता रहता था। कभी किसी से बातें करता तो कभी कुछ करता। उसने सोच लिया था कि मेरे भाग्य में पढ़ना है ही नहीं। गुरूजी को बड़ा दुख होता था कि यदि परिश्रम नहीं करेगा तो मूर्ख का मुर्ग ही रह जायेगा। उन्होंने गोप देव को कई बार समझाया। बेटा मनुष्य का भाग वैसा ही बन जाता है जैसा वह कार्य करता है। विद्यार्थी जीवन जीवन का स्वर्णकाल होता है। तुम इस समय जितना श्रम करोगे उतने ही महान बनोगे, परंतु वोपदेव की समझ में गुरु की बातें नहीं आती थी, उसे तो बस काम से जी चुराने की आदत पड़ गयी थी। खाली दिमाग शैतान का भी घर होता है। वोपदेव सारे दिन तरह तरह की शरारत किया करता था। 1 दिन वोपदेव ने किसी हिरनी के नए पैदा हुए बच्चे को छुपा दिया। हिरनी बेचारी चारों ओर परेशान होकर बच्चे की खोज करती रही, व्याकुल होती रही। खोज करने पर बच्चा आखिर एक कुटी के अंदर बंद मिला। पता लगा की सारी शरारत वोपदेव की है। गुरूजी के पास ये सारी बातें पहुँच गई। उन्हें बहुत क्रोध आया कि वह देव एक तो पढ़ता नहीं और उसके बाद वह दूसरे प्राणियों को सताना सीख गया है। सारे दिन गलत कार्य करता है। उन्होंने वो देव को खूब डांटा और तुरंत आश्रम से निकल जाने को कहा। गुरु की डांट खाकर वो देव को बड़ी ग्लानि हुई। वह खिन्न मन से आश्रम से बाहर निकल गया। वो सोच रहा था कि क्या करूँ, कहाँ जाऊं? गुरु तो मुझ से रुष्ट है, इतने खुद तो वे कभी नहीं हुए थे। उसके मन में आया कि जाकर गुरुदेव से क्षमा मांगे। और कहे की अब मैं परिश्रमपूर्वक पढूँगा पर दूसरे ही क्षण वह सोचने लगा की पढ़ाई तो बड़ी कठिन है, पढ़ना लिखना मेरे वश की बात नहीं। अब तो मैं पिछड़ भी बहुत गया हूँ। सभी आगे बढ़ गए हैं और मुझे मूर्ख कहकर चिढ़ाते रहते हैं। विचारों मेँ मग्न वोपदेव चला जा रहा था, सहसा उसे प्यास लगी। बरगद के वृक्ष के नीचे एक कुएं पर कुछ स्त्रियां पानी भर रही थी। वो देव उनके पास पहुंचा और थोड़ा पानी मांगा। पानी पीकर उसने देखा कि कुएं की जगत पर कई गोल गोल गड्ढे ही गड्ढे किस प्रकार हो गए व सोच में पड़ गया और समझ ही नहीं पा रहा था की ये कैसे हुआ। तभी उसको एक महिला दिखी। उसने उस महिला से पूछा। जी इस पत्थर में ये गड्ढे कैसे पड़ गए हैं? वह स्त्री बोली हम सब अपने घरों में पानी भरकर पत्थर पर रखती है। बार बार पत्थर पर गड्ढा रखने से मिट्टी का घिसाव पत्थर पर पड़ता है और कठोर पत्थर में भी गड्ढा पड़ जाता है। इस बात से वो देव के मन पर गहरा प्रभाव पड़ा। वह कुछ देर वहीं खड़ा खड़ा सोचता रहा। फिर उसे स्त्री ने पूछा बेटे बड़े उदास दिख रहे हो? क्या बात है यहाँ सांझ के झुटपुटे में? इस तरह अकेले क्यों खड़े हो कहाँ जाना है तुम्हे? उस नारी की इस स्नेह सिक्त वाणी सुनकर वो देव की आंखें भर आईं। उसने सारी कथा सुनाई कि किस प्रकार गुरु के आश्रम से वह निकाल दिया गया है। सारी बात ध्यान से सुनकर महिला ने उसे समझाया। मुन्ने संसार में ऐसा कोई भी कार्य नहीं जो निरंतर अभ्यास और लगन से पूरा नहीं होता। इस मिट्टी के घड़े को ही देखो कहाँ मिट्टी और कहा पत्थर दोनों की क्या तुलना है और निरंतर अभ्यास से मिट्टी पत्थर में भी गड्ढे बना देती है। तुम भी इसी प्रकार यदि निरंतर मन लगाकर पढ़ो तो विद्वान बन सकते हो। पर मेरे सर टी भी तो मज़ा मजाक उड़ाते हैं, मुझे चिढ़ाते हैं वो बेव रोते रोते बोला चिढ़ाएंगे नहीं, ये तो पढ़ लिखकर कितना सीख गए हैं तुमने? जीवन के तीन वर्ष यूं ही बेड तक गँवाए समय बहुत कीमती होता है, जो उसे व्यर्थ करता है वो स्वयं भी बर्बाद हो जाता है। तुम अभी जाओ, गुरु से क्षमा मांगो और मन लगाकर पढ़ो, इसी में तुम्हारा कल्याण है। स्त्री कहने लगी। जैसा कि कहा भी गया है। करत करत अभ्यास जन्मती होत सुजान, रसरी आवत जात ते। सिल पर परत निसान अर्थात निरंतर अभ्यास करने से कोई भी अकुशल व्यक्ति कुशल बन सकता है। जैसे एक कोमल रस्सी भी बाल्टी पर बांधकर बार बार पानी निकालने के कारण कुएं के पत्थर पर निशान बना देती है। महिला की बात सुनकर वो दे वहाँ से चल दिया। रास्तेभर वह सोचता रहा कि पत्थर तो बड़ा कठोर होता है, पर घड़ा उसमें भी कट्टे बना देता है। साथी कहते है की मेरी बुद्धि पत्थर जैसी है। पर जब पत्थर में भी गड्ढा हो सकता है तो फिर मेरी बुद्धि में पढ़ाई कैसे समझ में नहीं आ सकती? माताजी कहती थी, उस रोज़ रोज़ के अभ्यास से घड़ा पत्थर में भी गड्ढा डाल देता है। मैं भी मन लगाकर पडूंगा तब फिर जरूर गुरु जी की बातें मेरी समझ में आने लगेंगी। अब तक तो मैं इसलिए पिछड़ा की पढ़ाई में मन नहीं लगता था, इसलिए पढ़ाई मुझे कठिन लगती थी। अब मैं सच्चे मन से पडूंगा तब आखिर कब तक मेरी समझ में बातें नहीं आएंगी? सोचते सोचते वो देव पाठशाला में आया। वह गुरु के चरणों में गिर पड़ा। रुंधे हुए कंठ से बोला, गुरूजी मुझे अज्ञानी को क्षमा कर दीजिए, आपकी बात न मानकर मैंने अपना समय बेकार किया है। अब मैं मन लगाकर पढ़ लूँगा। उसकी बातें सुनकर गुरु ने प्रसन्नता से उसे गले लगा लिया। वोपदेव ने फिर पूछा गुरु जी मिट्टी का घड़ा पत्थर में गड्ढा कर देता है, क्या मैं भी रोज़ रोज़ पढ़कर विद्वान बन सकता हूँ? हाँ, हाँ, क्यों नहीं बन सकते वस्त्र प्रतिदिन मन लगाकर जो काम करते हैं, उसमें जरूर सफलता मिलती है। तब बड़े बड़े काम भी पूरे हो जाते हैं। गुरु जी ने उसे समझाया। उसी दिन से वो देव ने बड़ी लगन से पढ़ना शुरू कर दिया। थोड़े ही दिनों में वह अपनी लगन से विद्वान बन गया। ऐसा कोई काम नहीं जिसे पूरा करने की हम कोशिश करें और वह पूरा ना हो। वो देव ने संस्कृत व्याकरण की एक पुस्तक भी लिखी जिसका नाम है मुक्तिबोध। इसमें उन्होंने बड़ी सरल सुबोध ढंग से संस्कृत भाषा का ज्ञान कराया है। आज भी वे अपने इस ग्रंथ के कारण प्रसिद्ध है। निरंतर अभ्यास और परिश्रम से सभी कार्य सफल होते हैं। वो देव की कथा हमें सिखाती है कि व्यक्ति जन्म से महान नहीं होता। अपने कर्म से, श्रम से, गुण से ही महान बनता है। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है। ये हमें निरंतर अपना कार्य करते रहना चाहिए और पढ़ाई से कभी भी जी नहीं चुराना चाहिए। क्यों? क्योंकि विद्याधन ही सबसे बड़ा धन होता है और जो हमारी पढ़ाई का समय होता है उस सबसे कीमती होता है क्यों? क्योंकि ये स्वर्णकाल होता है, ओके बाइ?","सभी को नमस्कार, यह एक छात्र की नैतिक कहानी है। वह अपना सबक नहीं सीखना चाहता। वह हमेशा शरारती हरकतें करता रहता है। एक बार उनके गुरु ने उन्हें गुरुकुल से निर्वासित कर दिया। कुछ देर बाद उसे अपनी गलती का अहसास हुआ। पूरी कहानी सुनें और कहानी की नैतिकता के बारे में जानें।" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपके लिए लेकर आई हूँ, उसका टाइटल है विद्या का महत्त्व। अजय अपने भाई बहनों में सबसे छोटा था। उसकी माँ उसे बहुत प्यार करती थी। प्यार करती तब भी ठीक था, वे तो उसे अंधा दुलार करती थी। अजय की गलती पर यदि कोई उससे कुछ भी कहता तो वह अजय से कुछ न कहकर उल्टे उसे ही डांट लगाती। भाई बहनों को यह अच्छा नहीं लगता। पिताजी कहते तुम इसे लॉर्ड, प्यार में बिगाड़ोगी। इस पर माँ कहती अजी रहने भी तो बच्चा है, ये तो अभी बड़ा होगा तो अपने आप समझ आ जाएगी। वे यह भूल जाती की बचपन में जो आदतें अपना लेते हैं, वे सहज नहीं छोड़ती। यही कारण है कि समझदार माता पिता बच्चों के सही विकास का बहुत अधिक ध्यान रखते हैं। प्रारंभ से ही उनमें कोई गलत आदत नहीं पनपने देते। जिन बच्चों को माता पिता केवल प्यार देते हैं, अनुशासन नहीं उनके बिगड़ने का डर बना ही रहता है। अजय के साथ भी यही बात थी। वह बड़ा ही शरारती बन गया था। पढ़ने लिखने में तो उसका तनिक भी मन ना लगता था, वह सारे दिन इधर उधर ही उछल कूद मचाता रहता। बड़े भाई यदि पढ़ने के लिए डांटते तो वह रोने लगता। उसे रोते देखकर माउस का पक्ष लेने लगती। भाई बेचारे चुप रह जाते। अजय स्कूल जाता पर वहाँ भी उसका तनिक भी मन ना लगता था। कक्षा में जब सारे बच्चे ध्यान से पढ़ते होते तो अजय बाहर देखता रहता था और फिर कोई नई शरारत सोचता रहता। वह सदैव पीछे बैठता और पढ़ाई के समय इधर उधर ही देखता रहता। उससे कोई प्रश्न पूछा जाता तो कभी भी वह उसका उत्तर न दे पाता था। कक्षा में वह अध्यापकों की दृष्टि से बचने का ही प्रयास करता रहता। पर अजय लंबा था, अतएव पीछे बैठने पर भी वह शिक्षकों को अच्छी तरह दिखाई देता था। अजय के हिंदी के अध्यापक उसके पिताजी के घनिष्ठ मित्र थे। वे उसे प्रायः समझाया करते। बेटे देखो यदि तुम ठीक से पढ़ोगे लिखोगे तो बड़े आदमी बनोगे, सभी तुम्हारा आदर करेंगे। यदि तुम यूं ही शरारत करते रहोगे तो अपना समय बर्बाद करते रहोगे। थोड़ा बहुत भी ना पढ़ोगे तो बड़े होकर तुम्हें बहुत परेशानी होगी। यह समय तुम्हारे जीवन के निर्माण का है। इसका सदुपयोग करो अन्यथा फिर जीवन भर पछताना ही शेष रहे। गा बीता हुआ समय कभी लौटकर नहीं आता। अजय उनकी बातें ध्यान से सुनता और दूसरे ही क्षण वह उन सब को भूल जाता। माँ के अंधे लड़ते, उसमें यह आदत पड़ गयी थी कि जो अच्छा लगे वह करो, जो न लगे वह न करो। पढ़ाई उसे तनिक भी अच्छी नहीं लगती। त्यावर ना कक्षा में ध्यान से पढ़ता था, ना घर आकर पढ़ने की कोशिश करता था। बड़े भाई के डर से थोड़ी बहुत देर पड़ने भी बैठता तो इधर उधर देखता रहता, कागज पर खेलता खेलता रहता या फिर किताब खोलकर कुछ ना कुछ सोचता रहता था। इस सबका परिणाम जो होना था, वही हुआ। अजय बार बार अनुत्तीर्ण होने लगा। एक एक कक्षा से वह दो तीन बार में उत्तीर्ण होता और वह भी तब जब उसकी माँ स्कूल में कुछ रुपए दे आती। यह स्थिति देखकर उसके पिताजी बड़े चिंतित हुए। अजय को गांव से उसके बड़े भाई के पास मैनपुरी भेज दिया गया। अजय के भाई मैनपुरी में वकील थे। अजय के माता पिता सोचते थे कि मैनपुरी जाकर वह सुधर जाएगा। पर हुआ इसका उल्टा। अजय के भाई को तो बिल्कुल भी समय ना मिलता था। उन्होंने उस के लिए एक अध्यापक रख दिया था। अजय उनसे भी ना पढ़ता था। पढ़ने की अपेक्षा उसका अधिकतर समय गप्पे मारने, अध्यापक को तंग करने में ही बीत जाता। वह न कभी स्कूल का काम करता और ना कभी अध्यापक का। अध्यापक के आने पर जैसे तैसे उनका थोड़ा बहुत काम कर लेता था। 1 दिन वे उसे जो पाठ पढ़ाते, दूसरे दिन उसे ध्यान ही नहीं रहता। कभी भी वह उसे दोहराने की कोशिश भी ना करता। इस सबका परिणाम जो होना था, वही हुआ। अजय मैनपुरी में नवीं कक्षा में तीन बार अनुत्तीर्ण हुआ। उसके भाई ने उसे प्यार से डाट से मार से सभी प्रकार से समझाकर देख लिया था। 1 दिन तो वह मन लगाकर पढ़ने की प्रतिज्ञा करता और दूसरे दिन भूल जाता। अजय को आखिर फिर गांव भेज दिया गया। अब वह 18 साल का किशोर बन गया था। इस आयु में काम करने की बहुत शक्ति होती है। बुरे लड़कों की संगति में पड़कर अजय कहीं बिगड़ न जाए यह सोचकर उसके पिता ने उसे खेती के काम में अपने साथ लगा लिया पर अजय कामन खेती में भी बिल्कुल ना लगता था। धूप, जाड़ा, आंधी, तूफान सह कर कठोर परिश्रम करके ही अन्न के दाने उगते हैं परंतु परिश्रम करना तो अजय के स्वभाव में हीना था। कुछ समय बाद अजय की माँ भी गुजर गई। पिताजी अब बहुत बूढ़े और अशक्त हो चले थे। अजय न घर पर ही कुछ काम करता था, ना खेती ही देखता था। वह सारे दिन निठल्ला ही घूमता था। उसके भाई उससे बहुत नाराज रहने लगे। भाई तो मुँह से कुछ ना कहते, परंतु भाभियाँ ताने मारने से ना चूकती। अजय के निठल्लेपन को वे जब तब कोसती रहती, यहाँ तक कि उसे चैन से भरपेट खाना मिलना भी दूभर हो गया था। अब अजय बड़ा उदास और परेशान रहने लगा। वह अपने भाइयों को देखता था। कि सभी खूब कमाते हैं और मस्त रहते हैं। वह अपने आप को कोसता कि वह क्यों ना पड़ा। अब उसे अनुभव होता था की यदि माउस का पक्ष न लेती, पढ़ाई के विषय में कठोरता अपनाती तो संभव था वह भी पढ़ लिख जाता और अपने भाइयों की तरह ही शान से रहता। पिताजी भी अजय के लिए चिंतित रहते थे। वे सोचते थे की मुझे भी भगवान न जाने कब बुला ले, तब मेरे पीछे कौन अजय की देखभाल करेगा? अच्छा हो कि यह मेरे सामने ही स्वावलंबी बन जाए। अतः उन्होंने अजय को समझा बुझाकर उसके लिए गांव में ही एक दुकान खुलवा दी। अभी भी अजय अपनी उस छोटी सी दुकान पर काम करता है जैसे तैसे अपना और अपने परिवार का पालन पोषण करता है। अब अजय अपने भाइयों को देखकर ठंडी आस भरकर सोचता है कौश मैं भी पढ़ लिख जाता विद्यार्थी जीवन में जो ठीक से नहीं पढ़ते, अपना समय बेकार गंवाते हैं, उन्हें अंत में पछताना ही पड़ता है तो बच्चो। इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है। की हमे अपने विद्यार्थी जीवन में पढ़ाई लिखाई पर विशेष ध्यान देना चाहिए क्योंकि जब हम समय रहते नहीं पढ़ते है, अपना काम नहीं करते हैं तो बाद में हमें बहुत पछताना पड़ता है। ओके बाइ?","सभी को नमस्कार, यह एक लड़के की नैतिक कहानी है। लड़के का पढ़ाई में मन नहीं लगता था। वह इतना नटखट था कि जीवन में कोई काम नहीं कर पाता था। लेकिन समय बहुत तेजी से दौड़ता है जब वह बड़ा हुआ तो उसे अपनी गलती और पढ़ाई के महत्व का एहसास हुआ इसलिए अपने समय का एक भी मिनट बर्बाद न करें क्योंकि आप अपने जीवन के निर्माता हैं। इसे सफल बनाना या बेकार करना आप पर निर्भर करता है। कड़ी मेहनत करें और हमेशा अपना सबक सीखें। शिक्षा अमूल्य है। अच्छी शिक्षा अच्छे जीवन का निर्माण करती है। पूरी कहानी सुनें और कहानी के नैतिक के बारे में जानें।" "हैलो बच्चों। आज जो कहानी मैं आपको सुनाने जा रही हूँ उसका टाइटल है जुगनुओं की कैद। एक बार सुन्दर कानन में कुछ आदिवासी घूमते हुए आ गए। उस वन की सुंदरता से वे बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने कहा, कुछ दिन रुकने का निश्चय किया। दिन में तो सूरज की रौशनी रहती थी इसलिए उनका काम चल जाता था पर रात में उस वन में घोर अंधेरा छा जाता था। हाथ को हाथ दिखाई नहीं देता था। गुफा में रहने में आदिवासियों को बड़ी कठिनाई होती थी। आदिवासियों के नेता भगेलू को एक उपाय सूझा। दूसरे दिन वह अपने नन्हें जाली के पिंजरे में ढेर सारे जुगनू भर लाया जब रात हुई तो गुफा हल्के हल्के प्रकाश से भर उठी। इससे सभी आदिवासी बड़े प्रसन्न हुए। आदिवासी तो सो गए, पर जुगनुओं को बोला नींद कहा वे परेशान से पिछड़े में इधर उधर चक्कर काट रहे थे परंतु पिंजरे में उन्हें कोई रास्ता न मिला। पिंजरे में रखी हरी हरी घास की टहनियों को उन्होंने छुआ तक न था। सभी बाहर निकलने को बेचैन पिंजरे में उनका दम घुट सा रहा था। छोटे बच्चे अपने माता पिता और घर को याद कर कर के सो गए। सारे बड़े जुगनू पिंजरे का चक्कर लगाकर थक गए पर उन्हें बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं मिला। अंत में वे सभी थक कर बैठ गए। छोटे बच्चों को उन्होंने कुछ खिलाया पिलाया और सुला दिया। वे सभी मिलकर सभा करने लगे। जुगनुओं का सरदार बोला भाइयो, अचानक ही और विपत्ति हम पर आ पड़ी है। धैर्य खोने से काम नहीं चलेगा। आपत्ति में हताश होना बुद्धिमानी नहीं है। आओ हम सब मिलकर विचार करें। एक वृद्ध जुगनू कहने लगा मित्रों यो हमें इस पिंजरे में तो खाना मिल जायेगा और कोई कष्ट नहीं दिया जाएगा। परंतु पराधीनता सबसे बड़ा दुख बाहर अपने हाथ पैरों से श्रम करके कमाने, खाने और घूमने में जो आनंद है वो इस पिंजरे में कहा बंधन तो आखिर बंधन ही है। पर सवाल ये है की यहाँ से निकला कैसे जाए? हम सब तो कोशिश कर करके थक गए पर इस जाल को अपने मुँह से ज़रा भी न काट पाए। निकलने का तनिक भी रास्ता न पाया लगता है अब तो जिंदगी यहीं बितानी पड़ेगी। एक बूढ़ा सा जुगनू निराशा भरी आवाज में बोला। ऐसी बातें ना कहो काका निराशा और असहायता की बातें सोचना भी उचित नहीं है। इसके स्थान पर हम यह क्यों ना सोचे कि जल्दी से यहाँ से छूटने में ही सफल होंगे? आशा भरे विचारों से हमारा उत्साह बढ़ता है और सफलता भी मिलती है। जुगनुओं के सरदार ने बूढ़े जुगनू को समझाया। इतने में जुगनुओं के सरदार की पत्नी बोलीं मुझे तो एक उपाय सूझा है इस दुख की घड़ी में हमें अपने मित्रों की सहायता लेनी चाहिए। जो समय पर काम आता है वही सच्चा मित्र होता है। मित्र की सहायता लेने में कोई हानि भी नहीं है। सरदार की पत्नी की यह बात सभी युगों को बड़ी पसंद आई। अपने पंखों को ज़ोर ज़ोर से हिला कर चमक चमक कर उन्होंने इस बात का समर्थन किया। तभी सरदार ने गुफा में पंचम स्वर में गा रहे एक झींगुर को आवाज लगाई ओजगुर भाई आओ क्या बात है अपना गाना बीच में ही रोककर मूंछों को हिलाते हुए जुगुरू बोला। तुम हमारी कुछ सहायता करो अपने पहने मुँह से इस पिंजरे को तनिक सा काट डालो। इससे हम सब बाहर निकल आएँगे और स्वतंत्र हो जाएंगे। सरदार बोला। यहाँ तुम्हें दुखी क्या है? आराम से तो रह रहे हो, मैं मित्र नहीं काटूंगा अपने गाने से तुम्हारा मनोरंजन अवश्य कर सकता हूँ नकचढ़ा झींगुर बोलने लगा, माँ। उप करना भाई जेल में रहकर कोई मनोरंजन नहीं होता। सभी जुगनू कहने लगे तो फिर मैं चला गया कर्ज इग्नू जी जी जी करता हुआ गुफा से बाहर भाग गया तभी जुगनुओं के सरदार ने देखा की एक चींटी मुँह में खाना दबाएँ तेजी से गुफा की दीवार पर चली चली आ रही हैं चींटी बहन ज़रा रुको तो सही उसने आवाज लगायी चींटी ने अपनी गर्दन चारों ओर घुमाई और सोचने लगी की आवाज़ किधर से आ रही है? तभी उससे कुछ कहते हुए सुना कोई कह रहा था मैं यहाँ इस पिंजरे में से जुगनुओं का सरदार बोल रहा हूँ चींटी नहीं देखा गुफा के एक कोने में पिजरा लटका हुआ है और उसमें सारे जुगनू चमक रहे हैं। उसे यह देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि वह पिंजरे में कैसे आ गए? चींटी बहन हम कुछ दिनों से बड़ी विपत्ति में पड़े हैं, इसलिए हमारी कुछ सहायता करो हमें धोखा देकर इस पिंजरे में कैदी बनाया गया है। हम ठहरे ऊची ऊची उड़ाने भरने वाले इस जेल में हमारा ही जी कुत्ता है। मैं तुम्हारी सहायता कैसे कर सकती हूँ? अपना एक हाथ अपने सिर पर रखती हुई और कुछ गंभीर स्थिति में सोचती हुई चींटी बोली। फिर कुछ देर बाद कहने लगी मित्र तुम चिंता ना करो, जैसे भी होगा मैं तुम्हें इस कैसे मुक्ति दिलाउंगी सच्चा मित्र वही होता है जो विपत्ति में सहायता करें। बहन और तुमने क्या उपाय सोचा है? उन जगहों के सरदार ने पूछा देखो भाई मैं खुद तो तुम्हारा पिंजरा काट नहीं सकती। मैं अभी अभी चुलबुल के लिए रीको बुला लाती हूँ। वो मेरी पक्की सहेली है और बड़े ही परोपकारी स्वभाव की है। पर क्या वह इतनी रात को यहाँ आने को तैयार होगी? तो सरदार ने पूछा। चींटी कहने लगी मत जरूर आएगी दूसरों की सेवा सहायता करने में चुलबुल गई देरी को बड़ा आनंद आता है और वह इसमें अपना सुख दुख भी नहीं देखती। ऐसा कहकर चींटी तेजी से चुलबुल हरी के घर की ओर दौड़ गयी। बहुत चुलबुल गिलहरी को आधीरात में ही वहाँ लेकर चली आयी। उसने ज़रा सी देर में ही उस मैं अपने पैरे दांतों से सुराग कर दिया। निकलो जुगनू के सरदार बूढ़े जुगनू ने कहा नहीं कहकर पहले और सब निकले सरदार का धर्म है की पहले अन्य सभी को बचाएं। और अपनी रक्षा बाद में करें। सरदार जुगनू कहने लगा से सबसे पहले बच्चे निकले फिर बुड्ढे निकले, फिर सब जुगनू निकले। सबसे अंत में निकले सरदार जुगनू और उनकी पत्नी। उन्होंने पिंजरे से बाहर निकलकर चींटी और गिलहरी को सभी जुगनुओं की ओर से धन्यवाद दिया। रुंधे हुए गले से वे कहने लगे बहनों तुम दोनों ने आज हमारे प्राण बचा लिए। हम कैसे तुम्हारा आभार व्यक्त करे? इसमें आभार की क्या बात है भैया आपत्ति में पड़े हुए की सेवा सहायता करना हम सभी का दर में दीपिका रे उसे जो सिर्फ अपने लिए ही जीता है, हम सभी मिलजुलकर रहे हैं, यही अच्छा है। जुल के लहेरी बोली जुगनू गुफा में ऊंची ऊंची उड़ानें भर रहे थे। जब तक एक दो आदिवासी जब चूके थे वे दो आश्चर्य से यही देख रहे थे की सारे जुगनू पिंजरे से निकल गए। ऐसे आये तब तक सारे जुगनू गुफा से निकलकर भाग भी गए। तू बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है की आशा भरे विचारों से व्यक्ति का उत्साह भी बढ़ता है और सफलता भी मिलती है इसलिए हमें हमेशा आशा की डोर को पकड़े रहना चाहिए। ओके बाइ?",यह एक अच्छी नैतिक और शिक्षाप्रद कहानी है। इस कहानी में हम सीखते हैं कि बुरे हालात से कैसे मुक्ति पाई जा सकती है। #stories ids#kidsstories#bedtimestories# मैं सोने के समय सभी बच्चों को नैतिक शिक्षा देने वाली कहानियां सुना रहा हूं। मेरी कहानियाँ अभिनव और प्रेरणादायक हैं। अपने बच्चों के साथ मेरी कहानियाँ सुनें। यह निश्चित रूप से आपके बच्चे के व्यक्तित्व के निर्माण में मदद करेगा। मेरे यूट्यूब चैनल STORICO को सब्सक्राइब करें "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपको सुनाने जा रही हूँ उसका शीर्षक है चटोरे भागवंती नाम की एक चुहिया थी। उसके दो छोटे बच्चे थे चुनमुन और मुनमुन। भागवंती अपने बच्चों को बहुत प्यार करती थी। बच्चे थे भी बड़े योग्य वे दोनों सुबह जल्दी उठ जाते, मन लगाकर शिक्षा लेते। माता पिता और बड़ों का कहना मानते कुछ दिनों से चुनमुन पड़ोस के बुरे बच्चों के साथ रहने लगे थे। उनमें एक गंदी आदत आ गई थी, वह थी चटोरेपन की। धीरे धीरे वहाँ आदत बढ़ती ही गई। दोनों को घर का खाना बिल्कुल भी ना बहाता माँ जो कुछ खाने को देती, उसमें थोड़ा बहुत मुँह मारते और फिर इधर उधर फेंक आते। माँ के डर से ही वे ऐसा करते थे। एक दो बार भागवंती ने उनका काम देखकर उन्हें डांटा भी था। चुनमुन और मुनमुन का स्वास्थ्य पहले बहुत अच्छा था। मोटा गोल मटोल सा शरीर दमकती काली आंखें सवस्थ होने के कारण वे सुंदर भी बहुत लगते थे। सुंदरता का सबसे बड़ा रहस्य अच्छा स्वास्थ्य ही है। उनके गोलमोल शरीर को देखकर कई बार उसी माँ भी उन पर ताक लगा चुकी थी, पर हर बार उन्हें निराश होना पड़ता था क्योंकि चुनमुन मुनमुन बड़े हीं फुर्तीले थे। उन्हें पकड़ पाना सरल ना था। खतरे का आभास भर होने पर वे बिजली की भांति दौड़ जाते थे। उसी माँ को होंठों पर जीप फिर आकर ही रह जाना पड़ता था, पर धीरे धीरे चुनमुन दुबले होने लगे। भागवंती यह देखकर बड़ी चिंतित हुई। बच्चों के दुबले होने का कारण उसकी समझ में ना आया। वह तो पहले की ही भांति उनके लिए पौष्टिक कीजिये लाती थी। फल, मक्खन, बिस्कुट, रोटी आदि भगवती ने बच्चों पर निगाह रखनी शुरू कर दी। जल्दी ही उनके दुबले होने का कारण उसकी समझ में आ गया। वे घर का खाना तो छूते भरते, वे दोनों चाट पकौड़ी और मिठाई की दुकानों पर पहुँच जाते और वहाँ जी भरकर खाते। भागवंती ने अपने बच्चों को बहुत समझाया, कहा बच्चों तुम जैसा खाना खाओगे वैसा ही तुम्हारा शरीर बनेगा। देखो मिठाई और चाट पकौड़े कभी कभी तो खाना ठीक रहता है। इन्हें रोज़ रोज़ खाने से तुम्हारा स्वास्थ्य बहुत ही खराब हो जाएगा। तुम बीमार पड़ जाओगे। तुम नहीं जानते कि ये चीजें ही खाकर तुम दिन पर दिन दुबले होते जा रहे हो। अब नहीं खायेंगे माँ दोनों बच्चे माँ से कहते और जैसे ही वे घर से बाहर निकलते थे, उनके मुँह में पानी भरा था। पैर अचानक ही उधर बढ़ जाते। मिठाई चाट को देखकर उनके मुँह में लार निकलने लगती। ना भैया हम नहीं खाएंगे खराब चीजें माँ ने मना जो किया है चुनमुन ने कहा। सुन, बट आज ही खा लेते भी नहीं खायेंगे, इधर आएँगे भी नहीं। मुनमुन कहता और दोनों एक दूसरे का हाथ पकड़कर उधर ही बढ़ जाते हैं। रोज़ रोज़ ऐसा ही होता उनका कल कभी नहीं आता। वे बस कल कल करते हुए बाट डाल जाते जो उसी समय काम नहीं करते, कल कल करते हैं। वे हमेशा बेक कल ही रहते हैं। उनका सोचा कभी पूरा नहीं होता। आलसी और अविवेकी ही। आज नहीं कल ऐसा सोचते हैं एक बार किसी त्योहार का अवसर था। कई दिनों पहले से दुकानों पर स्वादिष्ट चीजें बनना शुरू हो गई थी। चुनमुन मुनमुन की खूब बनाई थी। वे सबकी आंख बचाकर छपकर खाते चार। पांच दिनों तक वे ऐसा ही करते रहे। उनके पेट खराब हो गए, पर दोनों ने खाने का मोह न छोड़ा। स्वाद स्वाद में दोनों खूब खा जाते। यहाँ तक कि उनके लिए चलना भी कठिन हो जाता। धीरे धीरे वे घर पहुंचते 1 दिन जब वे टहलते हुए जा रहे थे तो **** मौसी ने उन्हें देख लिया। आज नहीं बचोगे बच्चों मनी मन उसने कहा और पीछे से चुपचाप चुनमुन की पूंछ पकड़ ली। चुनमुन घबराकर तेजी से भागा और सकरी नाली में जाकर छिप गया। उसका दिल जोरों से धड़क रहा था। आज वह **** मौसी के मुँह में जाने से बाल बाल बच गया था। काफी देर बाद चुनमुन मुनमुन दोनों नाली से निकले और यह क्या जुनून की पूंछ गायब थी। अपनी कटी हुई पूछ देखकर चुनमुन बहुत रोया। आप दोनों के पेट में दर्द होना भी शुरू हो गया था। जैसे तैसे वे घर पहुंचे उनके पेट का दर्द बढ़ता ही जा रहा था। रात भर दोनों दर्द से कराहते रहे भागवंती बेचारी दर्द का कारण ही नहीं समझ पा रही थी। वह दर्द कम करने के लिए कभी कोई उपाय करती तो कभी कोई पर इन सबके बाद भी किसी प्रकार का कोई लाभ ही नहीं हो रहा था। सुबह होने पर भागवंती दौड़ी दौड़ी गई और पड़ोस की बूढ़ी कि सोचिया को बुला लाई। बच्चों को दिखाते हुए वह बोली। ताई तुम तो बड़ी अनुभवी हो, बच्चों को बचा लो, मुझे लगता है यमराज को रखे हैं। किस्सों ने चुनमुन उनके पेट ज़ोर ज़ोर से दबाकर देखें अपना सिर हिलाते हुए वह बोलीं, भोगों कोई खास बात नहीं है। तेरे बच्चे ज्यादा खा गए इसीलिए पेट में दर्द हुआ है पर हारी इनकी आंतें भी बड़ी कमजोर हो गई लगती है। इन्हें महीने भर तक इधर उधर की चीजे ना खाने देना नहीं तो ये सचमुच मर जाएंगे। भागवंती ने दिन रात बच्चों पर कड़ी निगरानी रखनी शुरू कर दी। उनका बिल से बाहर निकलना भी बंद कर दिया। वह उन्हें बहुत ही परहेज का रूखा सूखा भोजन देती थी। फिर भी जब तक उनके पेट में दर्द होने ही लगता था, अब चुनमुन की समझ में भी अपनी गलती आ गयी थी। ठीक होने पर फिर भी वे कभी भी चाट पकौड़े की दुकान की ओर नहीं गए। अब वे दूसरे बच्चों को भी अधिक चाट मिठाई खाते देखते तो कहने लगते ना भाई ना अधिक ना खाना नहीं तो बीमार पड़ जाओगे भाई यदि खराब चीज़े खाओगे तो हमेशा के लिए अपना स्वास्थ्य गंवा बैठोगे। स्वास्थ्य खराब होने पर फिर जीवन बाहर सा हो जाता है इसलिए जी पर काबू रखो जो भी खाओ सोच समझकर खाओ। अच्छा स्वास्थ्य और अच्छा जीवन यह बहुत बड़ी संपत्तियां होता है। चुनमुन भी अपना सिर हिलाकर उसकी बात का समर्थन किया करता था। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें अपनी जीभ पर बहुत नियंत्रण रखने की आवश्यकता होती है। हर प्रकार की चीजें, ज्यादा मिर्च, मसाले और तली भुनी चीजें हर दिन नहीं खाना चाहिए। ये स्वास्थ्य के लिए लाभकारी नहीं होता हैं। ओके बाय।",यह एक नैतिक और शैक्षिक कहानी है। इस कहानी में दो छोटे चूहे थे जिनकी एक ही बुरी आदत है वो है ज्यादा खाना। अपनी बुरी आदत से वे अपना स्वास्थ्य खो चुके हैं और बीमार हो गए हैं। पूरी कहानी सुनें और कहानी के नैतिक के बारे में जानें। "हैलो, बच्चू आज जो कहानी में आपको सुनाने जा रही हूँ, उसका टाइटल है साथ मुर्ग। एक किसान के साथ पुत्र थे सभी अव्वल दर्जे के मूर्ख दूर आलसी कोई भी काम करके खुश नहीं था। मेहनत करना उनकी आदत नहीं थी। सारा दिन बेकार घूमने फिरने में बिता देते थे। उनमें से एक भी स्कूल नहीं गया। सभी अनपढ़ ही रह गए। खाने को बढ़िया, स्वादिष्ट भोजन आराम करने को आरामदायक बिस्तर चाहिए था। उन्हें कठिन मेहनत के विचार करने भर से ही उनके हाथ पांव फूल जाते थे। उनका बाप बूढ़ा हो चुका था। वहाँ अब चलने फिरने से लाचार हो गया था। वह अगर आलसी, मूर्ख बेटों को काम करने को कहता तो वे सभी बाप को खरी खोटी सुनाकर खामोश करा देते। किसान अपने नालायक मूर्ख बेटों के सामने बेबस हो जाता। सभी बेटे बाप के नियंत्रण से बाहर हो चूके थे। अपने से बड़ों की नेक सलाह वे नहीं मानते थे। किसान की पत्नी भी गुजर चुकी थी। उसका बुढ़ापा बड़ी कष्टदायक स्थिति से गुजर रहा था। एक बार उसके पड़ोस में किसी किसान के घर बहस भी आयी। उसने मानवता के नाते किसान के मूर्ख बेटों को बहुत सारा दूध दे दिया ताकि वे खीर बनाकर खा सकें। आप दूध तो मिल गया, पर मूर्खों को खीर बनानी नहीं आती थी। सभी नालायक भाई बाप के पीछे पड़ गए कि वह घर बनाकर दे। किसान बीमार था, फिर भी पुत्रों का मन रखने के लिए वह लड़खड़ाते हुए उठा और खीर बनाकर बेटों को दे दी। सातों के साथ बेटे खीर खाने को बेताब। एक ने खीर जगी तो उसमें शक्कर नहीं थी, बड़े भाई ने छोटे से कहा। दुकान पर जाओ और एक आने की शक्कर ले आओ, तब तक की ठंडी भी हो जाएगी जल्दी जाओ। छोटे वाला एकदम घर जा। मैं क्यों जाऊ? दूसरे को बोलो ना, मेरे से नहीं जाया जाता। उसने कूड़ा जवाब दिया और उसने भी छोटे भाई से शक्कर लाने को कहा तो वह दहाड़ उठा। मेरे से नहीं जाया जाता छोटे से कहो, वह ले आएगा शक्कर मेरे तो पैरों में दर्द है। उसने स्पष्ट इंकार कर दिया। इस तरह सा तो अलसी मूर्ख भाई एक दूसरे से शक्कर लाने को कहते रहे, मगर दुकान पर एक भी नहीं गया। तब उन्होंने फैसला किया कि सारे भाई खामोश होकर बैठ जाते हैं। जो पहले बोल पड़ा वहीं शक्कर लेकर आएगा। इस तरह सारे भाई खामोश होकर बैठ गए। सामने भाग छोड़ती गरमगरम डील का पतीला रखा था। काफी देर तक सभी चुप बैठे रहे। उन्हें इंतजार था कि कौन गलती से बोले तो उसे शक्कर लाने को कहे, मगर सातों के साथ भाई अपनी धुन के पक्के थे। एक भी नहीं बोला की ठंडी हो गयी थी। रात के दोपहर गुज़रने को थी, सब एक दूसरे को देख रहे थे। इससे गलती हो और उसे दुकान पर भेजा जाए। काफी समय गुजर गया। तभी घर का दरवाजा खुला देखकर दो आवारा कुत्ते अंदर घुस आए। धीरे धीरे सहमे सहमे हमें घेर के पतीले के करीब आ गए। किसी ने भी उन्हें नहीं भगाया। कुत्ते ताजा खुशबूदार खीर देखकर अपने आपको रोक नहीं पाए। वो तो बने सातों भाइयों को नजर भर देखा। फिर डरते हुए मुँह खीर के पतीले में डाल दिया। इतना सब होने के बाद भी कोई कुछ नहीं बोला। सभी पत्थर की मूर्तियां बने रहे। कुत्तों के हौसले बढ़ गए, जल्दी जल्दी खीर खाने लगे। दो कुत्ते तो खीर खा ही रहे थे। तीन चार आवारा कुत्ते और आ गए सब के सब खाये जा रहे थे। आज तो मूर्खों की वजह से कुत्तों के भाग ही खुल गए थे। भला आवारा कुत्तों को खालिस दूध की खीर कहा खाने को मिलती है। सब भाइयो के सामने उन्हीं की खीर कुत्ते खा रहे थे, फिर भी वे खामोश हैं। कोई भी बोलने की हिम्मत नहीं कर रहा। कहीं दुकान पर शक कर लेना जाना पड़ जाए। उनके देखते ही देखते सारा पतीला खाली हो गया। कुत्तों का पेट भर गया। अब वे खिसकने लगे। उनमें से एक शरारती कुत्ता भी था। जाते जाते एक मुर्ग के मुँह को चाटने लगा। वह अनुमान लगाना चाहता था कि ये सातों भाई जिंदा है या पत्थर बन गए हैं। उसने जैसे ही उनका मुँह चाटना प्रारंभ किया तो वह बड़ी ज़ोर से चीखा। ऐसा करते ही सभी कुत्ते भाग खड़े हुए। बड़ा मूर्ख बोला। छोटा होर गया छोटा हर गया, अब दुकान से जाकर शक्कर लाओ। बड़े भाई का कहना छोटे ने नहीं माना। उसके सामने खीर का पतीला पड़ा था और सभी उसे शक्कर लाने को मजबूर कर रहे थे। किसान भाइयों का विवाद सुनकर उनका बूढ़ा बाप जाग गया। उसने जब सारी बाते सुनी तो अपना सिर पिट लिया। आगे बढ़ा बड़े मुर्गा बेटे को ज़ोर से थप्पड़ मारा। बड़ा बेटा थप्पड़ खाते ही अपना गाल सहलाते हुए बूढ़े बाप को क्रोधित नजरों से घूमने लगा। मैंने तुम्हें थप्पड़ क्यों मारा? बात समझ में आयी बाप ने गंभीरता भरे स्वर मेँ पूछा। मुझे क्या पता कब पड़ा अपने मारा है, आपको पता होगा बुरा सा मुँह बनाते हुए उसने जवाब दिया। मेरे तुम्हे थप्पड़ इसलिए मारा क्योंकि तुम सब भाइयों से बड़े हो। अगर तू आलस्य त्याग कर स्वयं शक्कर लेने चला जाता तो छोटे भाई तेरा ऐसान मानते, तेरी इज्जत करते? खीर का भरा पतीला तुम्हारे पेट में होता। तुम सारे भाई बड़े प्रेम से प्यार से मज़े से नींद ले रहे होते मगर तुम्हारी मूर्खता और आरसी की वजह से तुम्हारा भोजन कुत्ते खा गए। तुम्हें मार पड़ी, तुम भाइयो में द्वेष, नफरत और नाराजगी के भाव पैदा हुए, ये सारा नुकसान तुम्हारा ही हुआ। मूर्खता और आलस्य की वजह। बूढ़ा पिता उसे समझाता रहा। बूढ़े बाप को समझाने से कोई ना रोक सका। पिता के समझाने से सभी को अपनी अपनी गलतियों का एहसास होगा। और उन्होंने भविष्य में सुधारने का निश्चय कर लिया। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है। क्या हमें कभी भी आलस नहीं करना चाहिए, क्योंकि कर्मशील व्यक्ति ही जीवन में तरक्की करता है। ओके बाई।",यह एक बूढ़े व्यक्ति के सात मूर्ख पुत्रों की कहानी है। बूढ़ा अपने बेटों की मूर्खता से बहुत निराश हुआ। ये सात लड़के आलसी और दृष्टा हैं। न तो वे कभी स्कूल गए और न ही वे कोई काम करना चाहते हैं। "क्या आप भी अपना पॉडकास्ट बनाने का सोच रहे हैं? तो ऐंकर ट्राई कीजिए, ये पॉडकास्ट बनाने का सबसे आसान तरीका है। नंबर एक ये फ्री है नंबर दो। इसमें कई सारे ऐसे टूल्स है जो आपको अपने फ़ोन और कंप्यूटर पर रिकॉर्ड और एडिट करने की फैसिलिटीज देते हैं। नंबर तीन आप अपने पॉडकास्ट को डिस्ट्रीब्यूट भी कर सकते हैं, जिससे इसे इस स्पॉटिफाइ और दूसरे प्लैटफॉर्म्स पे सुना जा सकें। डाउनलोड कीजिये ये फ्री एंकर ऐप या विजिट कीजिए ऐंकर डॉट ऐफ़ एम अपना पॉडकास्ट स्टार्ट करने के लिए? हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों में भाई दूज का भी बहुत महत्त्व है। भाई दूज का पर्व दीपावली से 2 दिन बाद आता है। इस दिन बहन अपने भाई को तिलक कर उसकी लंबी उम्र के लिए हाथ जोड़कर यमराज से प्रार्थना करती है। स्कंद पुराण में लिखा है कि इस दिन यमराज को प्रसन्न करने से पूजन करने वालों को मनवांछित फल प्राप्त होता है। इस को मनाए जाने के पीछे एक पौराणिक कथा भी प्रचलित है। शास्त्रों के अनुसार भगवान सूर्य नारायण और संख्या के दो संतानें, एक पुत्र यमराज और दूसरी पुत्री यमुना थी। मगर एक समय ऐसा आया जब संघ या सूर्य का तेज सहन कर पाने में असमर्थ होने के कारण उत्तरी ध्रुव में छाया बनकर रहने लगी। जिसके कारण ताप्ती नदी और शनिदेव का जन्म हुआ। उत्तरी ध्रुव में बसने के बाद संघीय आरोपी छाया का यम व यमुना के साथ व्यवहार में अंतर आ गया। इससे व्यथित होकर यम ने अपनी नगरी यमपुरी बसाई। वही यमुना अपने भाई यम को यमपुरी में पापियों को दंड देते देख दुखी होती। इसलिए वह गोलोक में निवास करने लगी। लेकिन यम और यमुना दोनों भाई बहन में बहुत स्नेह था। इसी तरह समय व्यतीत होता रहा। फिर अचानक 1 दिन यम को अपनी बहन यमुना की याद आई। यमराज अपनी बहन यमुना से बहुत प्रेम करते थे, लेकिन काम की व्यस्तता के चलते अपनी बहन से मिलने नहीं जा पाते थे। फिर कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीया के दिन यमुना ने भाई यमराज को भोजन के लिए निमंत्रण भेजा। उन्हें अपने घर आने के लिए वचनबद्ध कर लिया। ऐसे में यमराज ने सोचा कि मैं तो प्राणों को हरने वाला हूँ, मुझे कोई भी अपने घर में बुलाना नहीं चाहता। बहन जिंस सद्भावना से मुझे बुला रही है, उसका पालन करना मेरा धर्म है। बहन के घर आते समय यमराज ने नरक निवास करने वाले जीवों को मुक्त कर दिया। यमराज को अपने घर आया हुआ देखकर यमुना की खुशी का ठिकाना न रहा। यमुना ने स्नान के बाद पूजा करके स्वादिष्ट व्यंजन परोसकर यमराज को भोजन कराया। यमुना द्वारा किए गए इस आतिथ्य से यमराज ने प्रसन्न होकर बहन को वर मांगने का आदेश दिया। फिर यमुना ने कहा की ये भद्र हे प्रिय भाई आप प्रतिवर्ष इसी दिन मेरे घर आया करो और मेरी तरह जो बहन इस दिन अपने भाई को आदर सत्कार करके टीका लगाकर उसे विदा करे, उसे तुम्हारा भय कभी ना हो। यमराज ने तथास्तु कहकर यमुना को अमूल्य वस्त्राभूषण देकर यमलोक की ओर प्रस्थान किया। तभी से इस दिन से ये पर्व मनाने की परंपरा चली आ रही है। इसी कारण ऐसी मान्यता है कि भाई दूज के दिन यमराज तथा यमुना का पूजन करना भी आवश्यक है। भाई दूज का धार्मिक महत्त्व भी बहुत अधिक है। धर्मग्रंथों के अनुसार कार्तिक शुक्ल द्वितीया के दिन यमुना ने अपने भाई यम को आदर सत्कार शुरू वरदान प्राप्त किया था। जिसतरह उन्होंने ऐसा किया था जिसकी वजह से भाई दूज को यम दुतिया के नाम से भी जाना जाता है। असल में यमराज के वर अनुसार जो व्यक्ति इस दिन यमुना में स्नान करके यम का पूजन करेगा, मृत्यु के पश्चात उसे यमलोक नहीं आना पड़ेगा, वही सूर्य की पुत्री यमुना समस्त कष्टों का निवारण करने वाली देवी स्वरूपा मानी गई है। इस कारण यम द्वितीया के दिन यमुना नदी में स्नान करने। और यमुना व यमराज की पूजा करने का विशेष महत्त्व है। इस दिन बहन अपने भाई को तिलक कर उसकी लंबी उम्र के लिए हाथ जोड़कर यमराज से प्रार्थना भी करती है। पुराणो के अनुसार इस दिन की गई पूजा से यमराज प्रसन्न होकर मनवांछित फल भी प्रदान करते हैं।","सभी को नमस्कार, भाई दूज की पूरी कहानी और भाई दूज का महत्व सुनें।" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपको सुनाने जा रही हूँ उसका टाइटल है अच्छे संस्कार अभयारण्य में सुंदरी नाम की एक शेरनी रहा करती। उसके तीन बच्चे थे। एक बार दो बच्चे बीमार हो गए। उनकी बिमारी ठीक हिना हुई और वे गुजर गए। अब सिंघनी का एक ही बच्चा बच्चा था। उसका नाम था शेरू। शेरू को उसके माता पिता बहुत प्यार करते थे। वह उनका इकलौता बेटा था और उनकी आँखों का तारा था। वह जो भी जिद करता, सुंदरी उसे पूरा करती। वह अपने बच्चे को रोते जीते या उदास होते नहीं देख सकती थी। ममता के कारण वह उसकी गलतियाँ भी नहीं देख पाती थी। शेरू यदि कोई गलत काम भी करता तो वह उसका पक्ष लेती। कहती अभी बच्चा है बड़ा होकर अपने आप समझ जाएगा। डू माता पिता अपने बच्चों की हर जिद को पूरा करते हैं, उन्हें उचित अनुचित का ज्ञान नहीं कराते। उनके बच्चे बिगड़ते हैं। माँ के लाड़ दुलार की अधिकता से शेरू भी बिगड़ता चला गया। बच्चों की बुरी आदतें बचपन में ही अधिक बुरी नहीं लगती, बचपना लगती है, सभी हंसकर टाल देते हैं पर बड़े होने पर छोटी मोटी, खराब आदतें भी बहुत बड़ी बुराइ लगने लगती है। वहीं जानवर जो बचपन में शेरू को लाल और दुलार करते थे अब रोज़ रोज़ उसकी शिकायतें लेकर आने लगे। 1 दिन जगगों लोमड़ियां कर रोने लगी। महारानी जी, आप कृपया अपने बेटे को समझाइए। मैं खाने की खोज में गयी थी। मेरे दो छोटे छोटे बच्चे है। झाड़ियों के पीछे लेटे थे। बिचारों की आंखें भी अभी ठीक से खुल नहीं पाई है। शेरू लल्लू वही गया और खेल खेल में उनकी आंखें इतनी ज़ोर से दबाया कि अभी भी उनमें से खून निकल रहा है। आप जलकर देखिये तो तनिक ही मेरे बच्चों की आंखें न फूट जाए कहीं? यह कहकर जगगों लोमड़ी से सकने लगी। सुंदरी तुरन्त उसके साथ वहाँ दौड़ गई। सुंदरी ने जगगों के बच्चों की आँखों पर जड़ीबूटी बांधी, बहुत प्रयास किया, तब जाकर कहीं खून बहना बंद हुआ। 1 दिन लाली गिलहरी आयी और कराहती हुई बोली देख लीजिये महारानी अपने सपूत की करतूत मुझे जबरदस्ती पकड़कर सोते हुए हाथीदादा की सूँड में घुसा दिया। उनकी सूंड में घुसने से उनकी सांस रुकने लगी। हड़बड़ाकर वो उठ बैठे। उन्होंने ज़ोर से छींक आ तो सूरमे बैठी मैं दूर छिटक गई तभी से मेरे पैर की हड्डी टूट गई है। बड़ी मुश्किल से चल पाई हूँ और आप तक आई हूँ। सुंदरी ने समझा बुझा कर जैसे तैसे लाली को घर भेजा। एक बार हाथियों का एक झुंड आया और शिकायत करने लगा। देखिये यह भी कोई अच्छी आदत है। शेरू हम में फूट डलवाने की कोशिश करते हैं। वह चार 5 दिन से हर हाथी के पास जाते हैं और एक दूसरे की बुराइ करते हैं। वह तो भला हो रनों हथिनी का जिसने सभी को समझाया और शेरू की पोल खोल दी। ऐसा न होता तो हम सभी आपस में लड़ लड़कर मर जाते। चुगलखोरी की एक दूसरे की बुराइ की आदत स्वयं अपना ही अपमान कराया करती है। 1 दिन तो सुंदरी का राजा चीते से झगड़ा होते होते बच गया। सुंदरी खा पीकर सुस्त आ रही थी कि तभी राजा आया और दहाड़ते हुए बोला वो शर्म को बच्चा अब बताओ कहाँ है वो आज मैं तुम्हें बता देता हूँ कभी उसने फिर ऐसी शरारत की तो उसे कच्चा चबा जाऊंगा, नहीं तो अपने कपूत को संभालो। सुंदरी राजा का यह रौद्र रूप देखकर काँप उठीं हे भगवान आज तो जरूर ही कुछ अनहोनी घटने वाली है या शेरू ना जाने क्या क्या करता रहता है। उसने मन ही मन कहा वह राजा से बोलीं, शांत हो जाओ भैया आओ बैठो शेरू बच्चा है, अभी कोई गलती कराया है तो उसे माफ़ कर देना। शेरू आप बहुत छोटा बच्चा नहीं है, फिर बचपन में यदि खराब आते नहीं छुड़ाई जाएंगी तो बड़ी होकर भी बनी रहेंगी। सुनो सुनाता हूँ आज की घटना बताता हूँ की तुम्हारा शेरू कितना दूर थे। मैं अपने छोटे छोटे बच्चों के लिए ताजा शिकार लेकर आया। मैं वहाँ से थोड़ी सी देर के लिए हटा की शेरू सारा मांस लेकर वहाँ से भाग गया। मुझे जब पता लगा तो मैं उसके पीछे दौड़ा, वह साफ झूठ बोल गया। कहने लगा कि मैं अपने आप शिकार करके लाया हूँ। मैंने कसकर एक झापड़ मारा तो भागता ही नजर आया। आज तो छोड़ दिया है पर आगे से ऐसा कभी हुआ तो उसे जान से हाथ धोना पड़ेगा। आप ही बताइए झूठ बोलना, चोरी करना यह कोई अच्छी आदतें है क्या यही सिखाया है आपने? अपने बेटे को? राजा चिता कह रहा था। सुंदरी का सिर लज्जा से झुक गया। वह शेरू के पक्ष में एक शब्द भी न बोल पायी। उसे विश्वास था कि शेरू जरूर ऐसा ही शरारत का कोई काम करके आया है। उसने बड़ी मुश्किल से राजा को वापस भेजा। सुन्दरी आप बड़ी परेशान थी और समझ नहीं पा रही थी कि क्या करें, क्या ना करे? शेरू को समझाती तो उसकी बात कानों पर ही उतार देता। उसकी शरारतें और बुरी आदतें दिन पर दिन बढ़ती जा रही थी। जंगल के सारे जानवर उससे परेशान थे। सुंदरी को डर था कि वे सब मिलकर कहीं किसी दिन उसे मारना दे। सुंदरी के इसी चिंता में गुलगुल कर दुबली होने लगी। 1 दिन सुंदरी उदास बैठी थी तभी उसकी सहेली वीरा आई और आश्चर्य से बोली अरे तुम इतनी दुबली क्यों हो गई हो? क्यों उदास क्यों बैठी हो? सुंदरी ने अपनी उदासी का कारण बताया, वीरा कहने लगी देखो बेन बच्चे माता पिता के व्यक्तित्व का परिचय देते हैं। प्रत्येक माता पिता का कर्तव्य हो जाता है कि बचपन से ही बच्चों में अच्छी आदतें डालें। उन्हें अनुशासन का पालन करना भी सिखाएं। यदि बचपन में ही बच्चों को यह सब नहीं सिखाया गया तो फिर बड़े होकर उन्हें यह सब दिखाना कठिन हो जाता है। यही तो है यही तो है। सुंदरी सिर हिला कर बोली वीरा फिर आगे बोलने लगी। अभी तो बहुत नहीं बिगड़ा। ए अभी भी समय है जब तुम शेरू को सुधार सकती हो, अपनी गलती का परिमार्जन कर सकती हो, गलत करना जितना बुरा है, गलती को समझकर उसे ना सुधारना उससे भी बुरा है। सो तो है ही। सुंदरी बोली। सोचो कल को बड़े होकर जब शेरू बुरे काम करेगा तो क्या तुम्हारा नाम बदनाम ना होगा? सब कहेंगे यह सुंदरी का बेटा है। सुंदरी बहन, माता पिता बच्चे को जन्म ना दे या इतना बुरा नहीं है जितना बुरा है कि वे अपनी संतान को योग्य ना बना पाए। बोलो मैं क्या करूँ, कैसे सुधार हो? उनसे सुंदरी व्याकुल होकर पूछने लगी। वीरा बोली। तुमने अपने लाड़ प्यार से उसे बिगाड़ा है, अब अपने दिल को तनिक खड़ा कर लो। जब वह गलत काम करें तब उसे तनिक भी प्यार ना करो, पर जब वह थोड़ा सा भी अच्छा काम करे उसे पूरा पूरा प्यार और प्रोत्साहन दो। शेरू की समझ में यह बात आ जानी चाहिए कि तुम्हारा प्यार अच्छा ई के लिए ही है। यह दूसरों की भलाई करने पर ही उसे मिल सकता है। उसकी जी इस बात से किसी को थोड़ी सी भी तकलीफ होगी तो स्वयं दुखी होगी और उसे प्यार नहीं कर सकूंगी। तुम बहुत अच्छी बात कह रही हो। सुंदरी बोली वीरा फिर समझाने लगी बहन शेरू की जो भी बुराइयाँ हों, उन पर विचार करो। कड़ाई से उन्हें छुड़ाने का प्रयास करो। अभी भी शेरू पूरी तरह बड़ा नहीं हुआ है। अभी समय है, बहुत सुधर सकता है। वीरा की बात सुंदरी की समझ में आ गई थी। उसके बदला ये उपाय का उसने कठोरता से पालन किया। कुछ ही दिनों में शेरू की आदतें छुड़ाने में वह सफल हो गई। अब कोई जानवर उसकी शिकायत लेकर नहीं आता। सच है। माता ही बच्चे की निर्माता हैं, वही उसे अच्छा बुरा बनाती है। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि बच्चों में जो भी आदतें बचपन में पड़ जाती है, वे जीवन भर उसका साथ रहती है। इसलिए बच्चों में हमेशा ऐसी ही आदतें डालनी चाहिए जो अच्छी हो और जिनका उसे अच्छा प्रतिफल मिले। ओके बाइ।",यह एक शेरनी और उसके शावक की नैतिक कहानी है। शेरनी हमेशा अपने बच्चे की गलतियों को ठीक करती है। इसका परिणाम यह होता है कि उसका बच्चा बहुत शरारती हो जाता है। वह हमेशा दूसरे जानवरों को चिढ़ाता था। पूरी कहानी सुनें और कहानी के नैतिक को जानें। "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपको सुनाने जा रही हूँ, उसका टाइटल है पोखर का जादू। दशहरे की छुट्टियों में मुरारी अपने गांव आया। पूरे दो महीने बाद आया था। वहाँ छुट्टियाँ कैसे बिताएगा? यही सोचते सोचते वह अपने घर जा पहुंचा। दरवाजे से ही पकवानों की सौंधी सोंधी गंध उसकी नाक में घुसने लगी। वह सोच रहा था की आज तो माँ ने उसके स्वागत की जोरदार तैयारियां की होंगी। वह अपने पास बिठाकर खूब सारी चीज़े खिलाएंगी। माने मुरारी का कुशल समाचार पूछा। एक प्लेट में भर कर नाश्ता मुरारी को देते हुए बोलीं, बेटा, जरूरत हो तो अरुणा से कुछ और मांग लेना। और तुम कहाँ जा रही हो, माँ? माँ के हाथ में लगे थाल के पकवानों और फलों पर दृष्टि डालते हुए मुरारी ने उत्सुकता से पूछा। बेटा एक बहुत बड़े साधु इस गांव में आए हैं। बरगद के पेड़ के नीचे बैठे तपस्या करते रहते हैं, हनुमानजी के बड़े ही बाहरी भक्त हैं, वे भूत प्रेत भी उन्होंने सिद्ध कर रखे हैं। मा भाव विभोर होती हुई कहती चली जा रही थी। मुरारी कुछ कहने जा रहा था पर कहते कहते रुक गया। माँ की आस्था को और एकदम चोट नहीं पहुंचाना चाहता था। उसके मन में आया के पीछे जाती हुई माँ को पुकार कर बुला ले। पर ना जाने क्या सोचकर वह चुप रह गया। मुरारी का मन खाने में भी ना लगा। पकवानों की सौंधी गंदगी उसे आकर्षित न कर सकी। अरुणा कहती ही रह गयी भैया कुछ और ले लो। पर मुरारी ने प्लेट में कुछ भी रखने को नहीं दिया। जल्दी जल्दी खा पीकर वह उठ गया। उसने अरुणा से पूछकर पता लगाया कि साधु बाबा ने कहा डेरा डाला है। फिर बहुत तेजी से घर से बाहर निकल पड़ा। शीघ्र ही मुरारी हनुमानजी के मंदिर के पास पहुंचा। उसने दूर से ही देख लिया कि बरगद के पेड़ के नीचे अथाह भीड़ है। लगता था मानो सारागांव ही वहाँ जुट गया हो। मुरारी चुपचाप एक और जाके खड़ा हो गया। फिर वह पड़े ध्यान से साधु की बातें सुनने लगा। उसने देखा की एक व्यक्ति साधु के पास आता जा रहा है। वह बड़ी श्रद्धा से साधु के पैरों में सिर झुकाता। फिर अपनी मांग उनके सामने रखता। एक कहता महाराज मेरी पत्नी बीमार है और ठीक हो जाए। दूसरा कहता महाराज मेरी फसल को बच्ची हो। तीसरा कहता। मेरा घर पक्का बन जाए, चौथा कहता मेरी लड़की को भी वो हो जाये। इस प्रकार एक के बाद एक ग्रामीण साधु के पास आते जा रहे थे। वे बड़े ही गिड़गिड़ा गिड़गिड़ा कर अपनी बातें कह रहे थे। मुरारी ने देखा कि साधु बड़े ध्यान से अपनी बड़ी बड़ी लाल आँखों को खोलकर बात सुनता। फिर वहाँ आंखें बंद कर लेता। मुँह से कुछ मंत्र बोलता। एक पल को मानो समाधि से लगा ली हो। फिर आंखें खोलकर एक चुटकी राख अपने कमंडल से निकालकर अपने पास वाली पोखर में डाल देता। पोखर से यदि आग की लपट निकलती तो इसका मतलब होता की भूत प्रसन्न है। और उस व्यक्ति की मनोकामना पूरी होगी। वह व्यक्ति बड़ी ही प्रसन्नतापूर्वक। साधु को अपनी शक्ति के अनुसार भेंट चढ़ाकर वापस आ जाता। परन्तु जब पोखर से आग की लपटें नहीं निकलती थी तो इसका मतलब होता था कि भूत खुश नहीं है। उसे प्रसन्न करने के लिए और भेंट चढ़ानी होगी। तब कोई धन चढ़ाता तो कोई ज़ेवर। मुरारी ने पाया कि महंगी चीजें भूत को अधिक खुश करती है, क्योंकि चढ़ावे में आने के बाद जब साधु पोखर में रख डालता था तो आग की लपटें निकलने लगती थी। सहसा ही मुरारी के मस्तिष्क में एक विचार कौन देने लगा? वह तुरन्त भीड़ को चीरता हुआ बाहर आ गया। और घर की ओर बढ़ने लगा। दूर से साधु की जय जयकार की ध्वनि काफी देर तक उसके कानों में आती रही। एक 2 दिन में मोरारी के साथियों ने सारे गांव में जोरशोर से यह चर्चा फैला दी कि मुरारी ने भी पोखर वाले भूत को वश में कर रखा है। 1 दिन जब शाम को साधु के आसपास खूब भीड़ जुटी थी, मुरारी और उसके साथी भी वहाँ पहुँच गए। रामू ने भीड़ में घोषणा की कि अब सबकी मनोकामनाएं मुरारी बिना कुछ चढ़ावे और मनौती के ही बूथ से पूरी करवाएगा। लोग आश्चर्य से रामू की बातें सुन रहे थे। भीड़ में फुसफुसाहट होने लगी। कुछ व्यक्ति कह रहे थे की कल का छोकरा है, मुरारी चला है। साधु को चुनौती देने भला यह क्या भूत को वश में करेगा? भीड़ ने देखा कि मुरारी ने भी उसी प्रकार से आंखें बंद करके कोई मंत्र बोला। फिर उसने झोले में से एक चुटकी राख लेकर पोखर में डाली। तुरंत ही आग की लपटें निकलने लगी। लोगों ने पाया कि मुरारी ने भूत को अधिक खुश कर रखा है, क्योंकि मुरारी जो कुछ बूथ से मांगता वह खुशी, खुशी उसे स्वीकार कर लेता और पोकर से आग की लपटें निकलने लगती। सभी की नजरें मुरारी और उसके साथियों की ओर लगी थी। इसी बीच सबकी नजर बचाकर साधु चुपके से भीड़ से निकल लिया। थोड़ी दूर जाकर वह तेजी से भागने लगा, जिससे की जल्दी से गांव से दूर निकल सके। वह जानता था कि यदि पकड़ लिया गया तो उसकी खैर नहीं है। सबसे पहले रामू की नजर साधु के स्थान पर गयी। उसने देखा कि साधु वहाँ। कहीं भी नहीं दिखा। हाँ, उसका कमंडल जरूर एक और लुढ़का पड़ा है। रामू ज़ोर से अट्टहास करने लगा। तो भाई तुम्हारा साधु तो मुरारी से डरकर भाग गया। अब सभी की दृष्टि उजड़ गई। उन्होंने पाया कि सचमुच वहाँ साधु का पता नहीं है। सभी लोगों को बड़ा आश्चर्य हो रहा था। रामू ने खड़े होकर सभी को समझाया की पोखर में भूत का कोई चक्कर नहीं है। तो फिर पानी से आग की लपटें कैसे निकलती है? एक बुजुर्ग ने पूछा। मुरारी सभी को समझाने लगा की यह तो विज्ञान का एक करिश्मा है। उसने पुड़िया खोल कर दिखाई और कहा कि यह साधारण राख नहीं है। यह राख जैसी लगती जरूर है, पर वास्तव में यह सोडियम नाम की एक धातु है या पानी में गिरते ही जलने लगती है। इसलिए पोखर में इसके ढलते ही ऐसा लगता था कि पानी में से आग की लपटें निकल रहेंगी। रामू ने साधु के कमंडल को टटोला, वहाँ दो पुडिया रखी थी, एक मैं सादा राख थी और एक में सोडियम मिली जब साधु। को और चढ़ावा चाहिए होता था तो वह सादा राग पानी में डालता था। मनचाही भेंट मिलने पर बस सोडियम वाली राख पानी में डाल देता था। जब पानी में आग की लपटें निकलने लगती तो व्यक्ति समझते थे कि भूत प्रसन्न हो गया और हमारी मनोकामना पूरी हो गयी है। ये सारी बातें जानकर सभी को बड़ी प्रसन्नता हुई। उस ढोंगी साधु को किसी ने अपनी सोने की अंगूठी चढ़ाई थी तो किसी ने अपनी सारी जमापूंजी ही दे डाली थी। पर अब तो हो भी क्या सकता था? सभी ग्रामवासियों ने प्रतिज्ञा की कि अब वे कभी भी जादू टोना में विश्वास नहीं करेंगे जिससे कि उन्हें कोई ठग और छलना सके। गांव का मुखिया भी वहाँ उपस्थित था। उसने मुरारी और उसके साथियों को इनाम देने की घोषणा की। वास्तव में उन सभी ने मिलकर गांव को बहुत बड़ी ठगी से बचा लिया था। फिर मुखिया ने रामू और अन्य लड़कों को आसपास के गांवों में भी तुरंत भेज दिया। जिससे वे पहले वहाँ उस ढोंगी साधु के विषय में बता आए और उन्हें ठग न सकी। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है की हमें कभी भी किसी भी प्रकार के अंधविश्वास में नहीं पड़ना चाहिए। ओके बाय।",यह एक चालाक संत की कहानी है जिसने मूर्ख ग्रामीणों को धोखा दिया। गांव वाले बहुत मासूम हैं। वे अंधविश्वासों में विश्वास करते हैं। मुरारी नाम का एक लड़का आया और ग्रामीणों के सामने संत की सच्चाई बताई। कथा सुनो और ज्ञान प्राप्त करो। "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपको सुनाने जा रही हूँ उसका टाइटल है आत्मविश्वास। किसी जंगल में एक बहुत बड़ा तालाब था। तालाब के पास एक बगीचा था, जिसमें अनेक प्रकार के पेड़ पौधे लगे थे। दूर दूर से लोग वहाँ आते और बगीचे की तारीफ करते। गुलाब के पौधे पर लगा पत्ता हर रोज़ लोगों को आते जाते और फूलों की तारीफ करते देखता। उसे लगता कि हो सकता है 1 दिन कोई उसकी भी तारीफ करे। पर जब काफी दिन बीत जाने के बाद भी किसी ने उसकी तारीफ नहीं की तो काफी हिट महसूस करने लगा। उसके अंदर तरह तरह के विचार आने लगे। सभी लोग गुलाब और अन्य फूलों की तारीफ करते नहीं थकते, पर मुझे कोई देखता तक नहीं। शायद मेरा जीवन किसी काम का नहीं कहा, ये खूबसूरत भूल और कहा मैं। अपने इन विचारों पर पत्ता काफी उदास होने लगा। दिन यूं ही बीत रहे थे। 1 दिन जंगल में बड़ी ज़ोर की हवा चली और देखते ही देखते आंधी का रूप ले लिया। हवा के कारण बगीचे के पेड़ पौधे तहस नहस होने लगे। देखते ही देखते सभी भूल जमीन पर गिर गए। पत्ता भी अपनी शाख से अलग हो गया और उड़ते उड़ते तालाब में जा गिरा। वो पानीपत तैर रहा था तभी उसने देखा कि उससे कुछ ही दूर पर कहीं से एक चींटी हवा के झोंकों की वजह से तालाब में आ गिरी थी और अपनी जान बचाने के लिए संघर्ष कर रही थी। चींटी प्रयास करते करते थक चुकी थी। और उसे अपनी मृत्यु तय लग रही थी की तभी पत्ते ने उसे आवाज दी, घबराओ नहीं आओ मैं तुम्हारी मदद कर देता हूँ। ऐसा कहते हुए उसने चींटी को ऊपर बैठा लिया। आंधी रुकते, रुकते पत्ता तालाब के एक किनारे पर पहुँच गया। चींटी किनारे पर पहुँच कर बहुत खुश हुईं और बोलीं। आपने आज मेरी जान बचाकर बहुत बड़ा उपकार किया है सचमुच आप म्हाने आपका बहुत बहुत धन्यवाद। यह सुनकर पत्ता भावुक हो गया और बोला धन्यवाद तो मुझे करना चाहिए क्योंकि तुम्हारी वजह से आज पहली बार मुझे मेरी काबिलियत का पता चला, जिससे मैं आज तक का ज्ञान था। आज पहली बार मैंने अपने जीवन के मकसद और अपनी ताकत को पहचाना है। सबको एक जैसी जिंदगी नहीं मिलती और ना ही एक सी एहमियत। तो इसलिए हमें दूसरों की देखा देखी नहीं बल्कि अपने हुनर पर भरोसा करना चाहिए। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है। ये रूप की तारीफ तो समय समय पर होती है। पर अच्छी सीरत की तारीफ? ही सही मायने में तारीफ है। इसलिए मनुष्य को कभी भी अपना आत्मविश्वास नहीं खोना चाहिए। हमेशा अपने कर्मों पर विश्वास रखना चाहिए और अच्छे कर्म करने चाहिए। ओके बाय।",सभी को नमस्कार मैं सभी बच्चों को सोने के समय की कहानियां नैतिक रूप से बता रहा हूं। मेरी कहानियाँ अभिनव और प्रेरणादायक हैं। अपने बच्चों के साथ मेरी कहानियाँ सुनें। यह निश्चित रूप से आपके बच्चे के व्यक्तित्व के निर्माण में मदद करेगा। "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपको सुनाने जा रही हूँ उसका टाइटल है सोच विचार कर काम करें। गेहूं के खेत की मेड़ पर अमरूद का एक पेड़ था, उसी पेड़ पर चंपा गिलहरी रहा करती थी। अमरूद और गेहूं के दाने खाते खाते एक जगह रहते रहते चंपा उग गई। उसने सोचा की कुछ दिनों के लिए अपनी सहेली के पास चलना चाहिए। चंपा की सहेली नीरा नाम की एक गिलहरी थी और शहर में रहती थी। शहर में एक बहुत बड़ा विद्यालय था, वहीं नीरा रहा करती थी। विद्यालय खुद बड़ा था। उसमें तरह तरह के पेड़ लगे थे। खूब घास और फुलवारी लगी थी। मीरा बड़े आराम से एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर फुदकती रहती है। हरी हरी घास में घूमती रहती थी। चंपा चलते चलते नीरा के यहाँ पहुंची नीरा अपनी सहेली को देखकर खुशी से भर उठी। उसने अपनी लंबी पूँछ ज़ोर ज़ोर से हिला कर दौड़कर उसका स्वागत किया। दोनों सहेलियां नीम की छाया मेँ बैठी बैठी देर तक बातें करती रहीं। दोनों अपने अपने सुख दुख की आपबीती बताने लगे। सहसा मीरा को ध्यान आया कि उसने अपनी सहेली से कुछ खाने की बात तो पूछ ही नहीं अरे मैं तो बातों में भूल ही गई की तुम भूखी होगी, मैं अभी जाकर तुम्हारे लिए खाना लाती। नीरा ने कहा और वह खाना लेने दौड़ पड़ी। विद्यालय में लड़कियां तरह तरह की चीजे खाती थी। उसकी कुछ बची हुई चीजें वहाँ उसे मिल जाती थी। नीरा दौड़कर गई और वहाँ से कचौड़ी, मूँगफली आदि चीजें उठा लाई। चंपा ने बड़ा स्वाद लेकर उन्हें खाया। बड़े दिनों के बाद उसे ऐसा भोजन मिला था। वह प्रतिदिन फल और गेहूं ही खाया करती थीं। तुम्हारे यहाँ का भोजन तो बड़ा स्वादिष्ट है, उसने मन में सोचा। चलो कैंटीन में चलते हैं, वहाँ तरह तरह की चीजें और भी हैं। उन्हें खाकर तुम्हें बहुत खुशी होगी। मीरा बोलीं दोनों सहेलियां एक खिड़की के रास्ते से कैंटीन में जा पहुंची। तरह तरह की चीजों से कैन्टीन महक रहा था। तुम क्या खाना पसंद करोगी? नीरा ने पूछा एक बर्तन में बड़ी अच्छी खुशबू आ रही थी, इसमें क्या है? चंपा ने पूछा आलू छोले नीरा ने जवाब दिया दोनों सहेलियों ने भरपेट। आलू छोले खाएं। तभी से ऐसा मालिक के आने की आवाज आई। दोनों वहाँ से तेजी से भाग पड़ी। अब तुम क्या पियोगी चाय या शरबत? नीरा ने पूछा, मेरा तो पेट भर गया, इस समय मुझे खाली पानी ही चाहिए। एक गड्ढे में पानी भरा था, दोनों ने पी लिया। चलो मैं तुम्हें विद्यालय में घुमाती हूँ। नीरा ने कहा नीरा और चंपा दोनों हरी हरी मखमल सी घास पर बहुत देर तक घूमती रही। वहाँ के सुंदर वातावरण में चंपा के रास्ते की सारी थकान दूर कर दी थी। चंपा नीरा के यहाँ कई दिनों तक रही। खूब खुली जगह चारों ओर हरियाली और पेड़ खाने को अनेकों तरह की चीजें चंपा को यह सब बड़ा अच्छा लगा। नीरा बोली चंपा तुम घर जा कर क्या करोगी? अब तुम हमेशा मेरे साथ ही रहो नहीं बहन मैं दो 4 दिन में वापस चली जाउंगी मित्र के यहाँ हमेशा रहने से इसलिए बढ़ता नहीं घटता ही है। चंपा गंभीर होते हुए बोली। संभव है तुम्हारी बात ही सच हो। मीरा कहने लगी। इसके बाद दोनों सहेलियां घूमने निकल गई। घूमते घूमते एक तालाब के किनारे जा पहुंची। चंपा और मीरा तालाब के पास की झाड़ियों में छुपकर बैठ गई। चंपा को तालाब बड़ा ही अच्छा लगा। उसने इससे पहले कभी तालाब नहीं देखा था। तालाब में कुछ लड़कियां खेल रही थी, कुछ नाव चला रही थी। चंपा बड़े ध्यान से देखती रही। चलो हम भी तालाब में नाव चलाएंगे चंपा कहने लगी फिर तुरंत दौड़कर तालाब के किनारे जा पहुंची। अरे रुको रुको तो सही कहती हुई नहीं रहा उसके पीछे दौड़ी चंपा तुम यहाँ भी नयी नयी हो, तुम्हें पता नहीं है ये तनाव बहुत गहरा है, इससे आगे मत जाओ। मीरा ने उसे बहुत समझाया, अरे तुम तो बड़ी डरती हो चलो किनारे पर ही थोड़ा सा नहाते है। चंपा ने कहा और तुरंत तालाब में उतर पड़ीं और यह क्या? छपाक आवाज हुई और चंपा तालाब में डूबने लगी। अब वो सहायता के लिए ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने लगी। चंपा की यह स्थिति देखकर नहीं रहा। पहले तो सकपका गई किंतु तुरंत सहायता के लिए दौड़ी। उसने जल्दी से एक शहतीर का लंबा टुकड़ा उठाया और तालाब के किनारे फेंका। संयोगवश बहुत टुकड़ा चंपा के पास जाकर गिरा। पानी में डूबती उतरती चंपा तुरंत शहतीर के टुकड़े पर चढ़ गई और दौड़कर तालाब के किनारे आ गयी। चंपा अपनी करतूत पर बड़ी शर्मिंदा थी। वह हाथ जोड़कर नीरा से बोली बहन मुझे माफ़ कर दो, तुम्हारी बात न मानकर मैंने बड़ी भयंकर भूल की है। यदि तुम समय पर मेरी सहायता ना करती तो आज में डूबी जाती। नीरा बोली भगवान को बहुत बहुत धन्यवाद कि तुम बच गयी नहीं तो सोचो आज मेरी क्या स्थिति होती? हमें सोच समझकर काम करना चाहिए। अपने से जो ज्यादा अनुभव रखता हो उसकी बात पर विचार करना चाहिए। उसके कहने के अनुसार काम करना चाहिए। जो उतावली में थोड़े से लाभ यहाँ आकर काम करता है वो बाद में दुखी पाता है। तुम ठीक कहती हो बहन, हमें अपनी ही बात नहीं लगानी चाहिए। दूसरों की बात पर भी ध्यान देना चाहिए। चंपा गिलहरी बोली चंपा ने उस दिन प्रतिज्ञा की कि अब वह मनमानी नहीं करेगी। सोच विचार कर ही काम करेगी। उसकी इस प्रतिज्ञा से नीरा बहुत प्रसन्न हुई। उसने अपना हाथ चंपा से मिलाया और बोली। अपने वचन को ध्यान रखना। तीन 4 दिन बाद मीरा ने चंपा को बहुत सारे उपहार देकर विदा किया। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है की हमें कोई भी काम सोच समझकर ही करना चाहिए। ओके बाइ?",यह दो गिलहरियों की कहानी है। वे अच्छे दोस्त हैं । "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपको सुनाने जा रही हूँ, उसका टाइटल है भलाई का रास्ता। किसी गांव में तीन भाई रहते थे। वे बचपन में ही अनाथ हो गए थे। उनके पास जमीन जायदाद कुछ भी नहीं था। सिर्फ सिर छुपाने के लिए एक छोटी सी झोपड़ी भर्ती तीनों भाई दर दर भीख मांगकर अपना जीवन यापन करने लगे। बचपन बीता जवानी आई तो 1 दिन तीनों भाइयों ने यह सोचा की कही दूसरे स्थान पर चल कर मेहनत मजदूरी की जाए। शायद कोई भला आदमी अपने यहाँ पर रख लें। फिर गांव छोड़कर चल दिए। रास्ते मेँ उन्हें एक बूढ़ा रहागीर दिखाई दिया। उसकी दाढ़ी खूब लंबी और सफेद थी। बूढ़े ने भाइयों के पास आकर पूछा बच्चों कहाँ जा रहे हो? मजदूरी की तलाश में अगर तुम्हारी पोस्ट अपनी खेती बाड़ी नहीं है नहीं, भाइयों ने मायूसी से जवाब दिया, काश हमें कोई भला आदमी मिल जाता तो उसके यहाँ हम मेहनत से काम करते और अपनी पिता की तरह उसका आदर करते। बूढ़ा सोच में पड़ गया। खामोशी के बाद बोला और फिर तुम लोग मेरे बेटे हुए और मैं तुम्हारा धर्मपिता, मैं तुम लोगों की सहायता करूँगा। इमानदारी, परोपकार और सच्चाई का रास्ता दिखाऊंगा। तुम लोग अपना फर्ज निभाते चलना, मेरी सीख जीवन में याद रखना। तीनों खुश हुए और भलाई का जीवन बिताने के लिए तत्काल सहमत हो गए। बूढ़े ने उन्हें अपने साथ लिया और आगे बढ़ चला। बियाबान जंगलों और लंबे रास्तों को पार करते हुए वे तीनों बूढ़े के पीछे पीछे चलते रहे। अचानक रास्ते में थोड़ी दूर पर उन्हें एक शानदार हवेली दिखाई दी। हवेली के बगल में चेरी के बगिया। जहाँ एक युवती खड़ी हुई थी, बहू बहू राजकुमारी लग रही थी। उसे देखते ही बड़ा भाई उस पर मोहित हो गया और बोला। काश ये लड़की मेरी पत्नी होती अमीर है इसलिए दहेज में जमीन जायदाद, गाय, बैल, घोड़े भी मिलते। यह सुनकर बूढ़े ने कहा तू आओ तुम्हारा रिश्ता तय करा ही देते हैं, तुम्हारी शादी हो जाएगी और दहेज भी खूब मिलेगा। खुशी खुशी जिंदगी गुजारना बस सच्चाई का रास्ता कभी मत भूलना बूढ़ा उन्हें लड़की वालो के यहाँ ले गया चट मंगनी पट शादी सभी बड़े खुश हुए इस तरह बड़ा भाई हवेली का मालिक बन गया। और सुखपूर्वक रहने लगा। शेष दो अपने मुंहबोले बेटों को साथ लेकर बूढ़ा आगे चल पड़ा। वे पूर्ववत बियाबान जंगलों और लंबे रास्तों को पार करते हुए चलते रहे। चलते चलते उन्हें रास्ते में खूबसूरत सा चमकता हुआ घर दिखाई दिया। घर के बगल में एक तालाब था और तालाब के किनारे पंचक की लगी थी। घर के पास एक युवती अपनी धुन में मगन किसी काम में व्यस्त थी। मंझले भाई ने कहा काश ऐसी ही युवती मेरी पत्नी होती, दहेज में तालाब और पंचक की मिल जाती तो मैं मज़े से चक्की चलाता, गेहू पिसता और चैन से जिंदगी गुजारता तो वो तुम्हारी मर्जी ही सही, बूढ़े ने लड़के से कहा बुरा और उसके साथ दोनों लड़के लड़की वालो के यहाँ पहुंचे। बूढ़े ने शादी तय करा दी। मंजिला भाई भी घर का मालिक बन गया और पत्नी के साथ आनंद से रहने लगा। उस से विदा लेते समय बूढ़े ने कहा बेटे अब हम चलते है तुम खुश रहो लेकिन याद रखना की सच्चाई का रास्ता कभी ना भूलना। अब बूढ़ा और सबसे छोटा लड़का फिर आगे चल बड़े अचानक उन्हें एक साधारण सी झोपड़ी दिखाई दी। ऊषा की लालिमा जैसी सुंदर एक युवती अपनी झोपड़ी से बाहर आ रही थी। वो बहुत गरीब थी। उसके पुराने कपड़ों पर कई पैबंद लगे थे। छोटे भाई ने कहा काश यह युवती मेरी पत्नी होती, हम दोनों कंधे से कंधा मिलाकर मेहनत करते और हमारे यहाँ बस खाने भर का अनाज होता तब हम दीन दुखियों की भरसक मदद करते, खुद खाते और दूसरों को भी खिलाते। यह सुनकर बूढ़े ने कहा शो बोश ऐसा ही होगा और देखो सच्चाई का रास्ता कभी मत भूलना। अब इस छोटे लड़के की शादी भी बूढ़े ने करा दी और बूढ़ा अपनी राह पर चल पड़ा। इधर तीनों भाई अपनी अपनी जिंदगी जीने लगे। बड़ा भाई इतना अमीर हो गया कि उसने अपने लिए अच्छे से अच्छे घर बनवा ली। फिर भी उसे रात दिन यही धुन सवार रहती कि वह कैसे और अधिक अमीर बने। गरीबों की मदद या उन्हें सहारा देने की बात तो उसके कभी मन में भी नहीं आती थी। वह अत्यंत कंजूस भी हो गया। मंझला भाई भी अमीर हो गया। उसके यहाँ भी नौकर चाकर काम करने लगे और वह ऐशो आराम की ज़िंदगी बिताने लगा। वह बस धनवानों की तरह खाता पीता और नौकरों पर हुक्म चलाता रहता। सबसे छोटा भाई मेहनत मजदूरी कर शांति से अपनी गुजर बसर कर रहा था। घर गृहस्थी में या कोई उत्सव होता तो वह दूसरों के साथ मिल बांटकर खाता। जब कुछ ना होता तो संतोष करता पर वह कभी भी अपनी परेशानियों का रोना रोता। इस बीच बूढ़ा दूर दूर का सफर करता रहा। 1 दिन उसे अपने मुंहबोले बेटों का ख्याल आया। कहीं भी सच्चाई के रास्ते से भटक तो नहीं गए? बूढ़े ने भिखारी का वेश बनाया। सबसे पहले वह बड़े लड़के के घर पहुंचा और बड़े दिन भाव से जोड़कर गिड़गिड़ा कर बोला, जुड़ लिया। बहरहाल, इस गरीब लाचार बूढ़े को खाना दे दो बड़े लड़के ने बूढ़े को अपमानित करते हुए कहा अरे ये खूसट तू अभी हट्टा कट्टा तो दिख रहा है, भूख लगी है तो जा कहीं मेहनत मजदूरी कर अभी तो खुद अपने पैर पर किसी तरह खड़ा हो पाया हूँ जहाँ चलता बन। बूढ़ा वापस चल दिया लेकिन थोड़ी दूर जाकर वह ठहर गया। उसने पलटकर बड़े लड़के के घर की ओर देखा तो वह धुआं उगलता हुआ भाग। बूढ़ा अब मंझले लड़के के पास पहुंचा, वह खुद पंचक की पर बैठा हुआ नौकरों को हुक्म दे रहा था। पूरे ने झुककर दैन्य भाव से कहा बेटा भगवान तुम्हारा भला करे, थोड़ा सा आटा दे दो, मैं भिखारी हूँ, दाने दाने को तरस रहा हूँ। वा वा। दूसरे बेटे ने कहा यहाँ तो मैं खुद गरीबी से जूझ रहा हूँ, मेरे पास तो खुद अपने लिए आटा नहीं है तुम जैसे भिखारी तो रोज़ मारे मारे फिरते हैं आखिर किस किस का पेट भरूंगा मैं बूढ़ा दूसरे लड़के के यहाँ से भी मायूस होकर चला पड़ा। और थोड़ी दूर जाकर एक टीले पर ठहर गया। बूढ़े ने पलटकर देखा तो मजरे लड़के का घर और पंचक की डू कर जल उठे। अब बूढ़ा तीसरे लड़के के यहाँ पहुंचा वह सचमुच में गरीब था, उसकी झोपड़ी वैसी ही छोटी सी थी लेकिन साफ सुथरी दिख रही थी। बेटा भगवान तुम्हारा भला करे, मैं बहुत भूखा हूँ, कुछ खाने को दे दो। बाबा अंदर चालू खाना मेरे घर में है। खाना खा लेना और थोड़ा रास्ते के लिए भी साथ लेते जाना बूढ़ा झोंपड़ी के अंदर पहुंचा। उसने घर की मालकिन को देखा व साधारण से कपड़े पहने हुई थी और उसे बूढ़े के फटे पुराने कपड़े देखकर बहुत अफसोस हुआ। वह बूढ़े के लिए कपड़े ले आई और बोली। बाबा ये कपड़े पहन लो बूढ़ा खुशी खुशी कपड़े पहनने लगा। तीसरे लड़के ने देखा कि बूढ़े के कंधे पर एक बड़ा सा घाव है। बूढ़े को बिठाकर उन्होंने भरपेट खाना खिलाया। अचानक लड़के ने पूछा। बाबा, तुम्हारे कंधे पर इतना बड़ा जख्म कैसे है? बेटा यह बड़ा अजीब जख्म अब तो बस मैं चंद्रो उसका ही मेहमान हूँ। इस जख्म की वजह से मेरी मौत भी कभी भी हो सकती है। तौबा तू क्या है? इसकी कोई दवा ही नहीं है। घर की मालकिन ने दुख प्रकट करते हुए कहा। दवा तो है बस एक ही दवा है लेकिन उसे कोई देगा नहीं जबकि हर कोई दे सकता है। तब छोटे लड़के ने कहा आखिर क्यों नहीं देगा वो सोचने लगा ऐसी कौन सी दवा है? दवा बड़ी अजीबो गरीब है। बेटा जाना चाहते हो तो सुनो यदि किसी घर का मालिक अपने घर समेत अपनी सारी दौलत आग लगाकर फूंक दे और उसकी राख मेरे ज़ख्म पर छिड़क दें तो जगम अपने आप सूख जाएगा। छोटा बेटा थोड़ी देर में असमंजस में पड़ गया, फिर अपनी पत्नी से बोला। कहो तुम्हारा क्या ख्याल है? ख्याल मैं तो समझती हूँ मेरी झोपड़ी फिर बन जाएगी बाबा बेचारे की जिंदगी खतरे में है, क्यों ना इन्हें मरने से बचा लिया जाए? फिर देर क्या है? आओ बच्चों को झोपड़ी से बाहर निकाल। दोनों झोपड़ी से बाहर आ गए। छोटे लड़के ने झोपड़ी पर एक नज़र डाली। उसे अपनी जो कुछ भी जमा पूंजी थी उसके लिए अफसोस तो था लेकिन बूढ़े के प्रति उसके हृदय में कहीं ज्यादा तकलीफ थी। अतः उसने झोपड़ी में आग लगा दी। झोपड़ी थोड़ी देर में राख का ढेर बन गई। लेकिन यहाँ क्या अचानक झोंपड़ी के स्थान पर एक खूबसूरत सी हवेली आ खड़ी हुई। उधर बूढ़ा अपनी लंबी लंबी दाढ़ी पर हाथ फेरता हुआ मुस्कुरा रहा था। बेटा तीनों भाइयों में से तुम ही अकेले सच्चाई के रास्ते पर चल रहे हो। खुश रहो और जुग जुग जियो। अब छोटे लड़के की समझ में आया कि यह वही बूढ़े बाबा हैं, जिन्होंने 1 दिन तीनों भाइयों को अपना मुंहबोला बेटा बनाया था। वह बूढ़े की ओर लपका लेकिन तब तक वह गायब हो चूके थे। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है की हमें हमेशा सच्चाई और ईमानदारी के रास्ते पर ही चलना चाहिए। ओके बाइ?","नमस्कार, यह तीन गरीब भाइयों की कहानी है। इस सफर में उन सभी को एक अनजान बुजुर्ग का साथ मिला। बूढ़े ने उन्हें दया और उदारता का पाठ पढ़ाया।" "क्या आप भी अपना पॉडकास्ट बनाने का सोच रहे हैं? तो ऐंकर ट्राई कीजिए, ये पॉडकास्ट बनाने का सबसे आसान तरीका है। नंबर एक ये फ्री है नंबर दो। इसमें कई सारे ऐसे टूल्स है जो आपको अपने फ़ोन और कंप्यूटर पर रिकॉर्ड और एडिट करने की फैसिलिटीज देते हैं। नंबर तीन आप अपने पॉडकास्ट को डिस्ट्रीब्यूट भी कर सकते हैं, जिससे इसे इस स्पॉटिफाइ और दूसरे प्लैटफॉर्म्स पर सुना जा सकें। डाउनलोड कीजिये ये फ्री एंकर ऐप या विजिट कीजिए ऐंकर डॉट ऐफ़ एम अपना पॉडकास्ट स्टार्ट करने के लिए? हैलो बच्चों। हम सभी अपने जीवन में बहुत सारी चीजें सीखते हैं लेकिन हमारी माँ जो सीख हमें देती है उस सबसे महत्वपूर्ण होती है वो। हमें हमारे जीवन भर काम भी आती है। तो आज की हमारी कहानी का शीर्षक यही है माँ की सीख तो आइये सुनते है आज की हमारी कहानी माँ की सीख। चुप चाप तो मुझे रुपए दे रहा है की नहीं दे दे नहीं तो मेरे से बुरा कोई नहीं होगा। विक्रांत कह रहा था, बाबूजी मैंने तो रुपए देखे तक नहीं, मुझे नहीं मालूम। यह छोटु की आवाज थी? अरे तू ऐसे नहीं मानेगा कहकर विक्रांत ने छोटु के गाल पर सड़क से तमाचा मार दिया। छोटु पीड़ा और अपमान से रोने लगा। शोर सुनकर विक्रांत की माँ कमरे से बाहर निकली। वहाँ छोटु दीवार के सहारे खड़ा सुबह सुबह करो रहा था। पूछने पर उसने बताया कि विक्रांत भैया कहते हैं कि पैंट की जेब में 20 का नोट रखा था। छोटु ने दोनों जेब टटोल डाली थी, पर वहाँ मुड़ा तुड़ा कागज का टुकड़ा भी नहीं निकला। अब विक्रांत छोटु को चुपचाप नोट रख देने की धमकी दे रहा था। माँ ने विक्रांत को डांटा। तुम्हें किसी को मारने का क्या अधिकार है? तुम्हे ही अपनी पैंट की जेब देखकर, धुलने के लिए डालनी थी ना? फिर वह छोटु से बोली। छो टू तुम्हारे ऊपर हमको पूरा विश्वास है तुम वर्षों से हमारे कपड़े धो रहे हो। जैसे तैसे समझाबुझाकर उन्होंने छोटु को घर भेजा। फिर उन्होंने विक्रांत को डांटा। तुम्हें इस तरह उस छोटु को मारने का क्या अधिकार है? गलती तुम्हारी थी। दूसरे को तुमने क्यों दंड दिया? मॉ नोट तो पैंट की जेब में ही रखा गया था ना। विक्रांत ने सफाई दी। तुम भूल करते हो, विक्रांत तुमने ही कहीं और रख दिया होगा। मैंने भी कपड़े की जेबें देखकर ही धूल ले डाली है। तुम्हारी पेंट में मैंने भी देखा था कुछ भी ना था उसमें। माँ बोली अब विक्रांत निरुत्तर हो गया। आगे वह कहता भी क्या? उसकी योजना विफल जो हो गयी थी। उसने तो सोचा था कि छोटु को मारपीट कर उस पर चोरी का अपराध लगाकर अंत में वह उससे रुपये झटकने में सफल हो जाएगा। पर हुआ इसका उल्टा। मानेए स्पष्ट घोषणा कर दी तुमने अपनी लापरवाही से घर खर्च के रुपयों को खोया है। अब ये रुपए तुम्हारी जेब खर्च के रुपयों में से काटे जाएंगे। विक्रांत ने बहुत अनुनय विनय की, पर माँ ने इतना मानी। वह अपने निर्णय पर दृढ़़ थी। यही नहीं पिताजी और दीदी ने भी माँ की बात का समर्थन किया। उनका कहना था कि विक्रांत बहुत लापरवाह होता जा रहा है, प्रायः रुपया खो देता है इसलिए उसे दंड मिलना ही चाहिए। अब माँ ने विक्रांत से बाजार का सामान मंगाना भी बंद कर दिया। वह चीजें महंगी लाता और प्रायः रुपए भी बचा लेता था। माँ या पिताजी चाहे कितने ही थकी हो, फिर स्वयं बाजार जाते थे। यही नहीं अब अपने पर्स की भी निगरानी माँ करने लगी थी। वे उसे विक्रांत की पहुँच से बहुत दूर रखती। उन्हें एक दो बार रुपए खो जाने पर विक्रांत पर संदेह भी हो गया था। एक सप्ताह तक विक्रांत घर से कुछ भी न पा सका। उसका जेब खर्च भी बंद कर दिया गया था। विक्रांत के साथ ही उसका उपहास करते और कहते, वो भोलेनाथ मूर्खराज अपने दोस्तों को बहुत ज्यादा मूर्ख समझते हो, कुछ सीखो अपने दोस्तों से। सभी खाते पीते घरों के लड़के थे। वे अपने घरों से प्रतिदिन कुछ रुपए छिपाकर ले ही आते। सभी के रुपए इकट्ठा किए जाते और फिर भी मिलकर खाते पीते और रुपए बिगाड़ते। विक्रांत अभी कुछ दिन पहले ही उनकी मंडली में आया था। चार 6 दिन तो वह जैसे तैसे रुपए लाने में सफल हो गया था। पर अब इस घटना के बाद से तो वो कुछ भी न ला पाया साथ ही पहले तो उसका मजाक बनाते रहे। फिर उन्होंने स्पष्ट कह दिया, यदि तुम दो 4 दिन के अंदर घर से कुछ ना लाएं तो हमारी मण्डली से अलग कर दिए जाओगे। तुम्हारे जैसे मूर्खों की हमें जरूरत नहीं। विक्रांत को उनकी बात बहुत बुरी लगी। घर आकर वह मौके की तलाश में जुट गया। रात को वह कुछ सोचते सोचते जल्दी ही सो गया था। सोते सोते अचानक ही उसकी आंख खुल गई। माँ और पिताजी की बातें उसे स्पष्ट सुनाई दे रही थी। पिता जी कह रहे थे। तुम बहुत दिनों से कार्ड घर खरीदने के लिए कह रही थी, चलो कल बाजार से खरीद लेते हैं। इस पर माँ बोली। पर मैं तो सोचती हूँ कि विक्रांत का कोर्ट सिल्वा दूँ, बहुत दिनों से पीछे पड़ रहा है, मुझे तो कोई खास जरूरत भी नहीं है। अगले वर्ष खरीद लूँगी। पिताजी हंसकर बोले। तुम तो हमेशा ही ऐसा करती हो। उनकी बात सही भी थी। विक्रांत को माँ बहुत प्यार करती थी, वे उसकी इच्छा पूरी करने की कोशिश करती। अपनी चीजों में कटौती करके वे उसके लिए चीजें मंगाती। उनका परिवार मध्यम वर्ग का था, इसलिए मा सदैव बजट के अनुसार ही रुपए खर्च किया करती थी। माँ से छल करने के लिए विक्रांत कामन उसको धिक्कारने लगा उसकी आँखों से आंसू बहने लगे। रात में वह ठीक से सो भी ना सका। सुबह माँ ने उसे स्कूल जाने के लिए उठाया तो उसके सिर में तेज दर्द था। माउस तबियत ठीक नहीं है। मैं स्कूल नहीं जा पाऊंगा, पर बोला उसकी बात सुनकर और लाल आंखें देखकर माँ चिंता से भर उठीं। उन्होंने उसका माथा छूकर देखा और सिर पर हाथ फिराया। फिर रजाई उढ़ाकर सोने के लिए कहकर चली गई। काम छोड़कर बीच बीच में माँ कई बार उसे देखने आई। घर का काम समाप्त होने पर तो वे उसी के पास बैठी रहीं। वे विक्रांत का सिर दबाती तो तेल मालिश करती। अपने प्रतिमा की इतनी अधिक चिन्ता से विक्रांत रो उठा। वो बहुत ही बड़ी ग्लानि का अनुभव कर रहा था। विक्रांत की आँखों में आंसू देखकर माँ ने समझा कि संभव था उसकी तबियत अधिक खराब हो गई है। उन्होंने उसका सिर गोद में रख लिया और प्यार से बोली। मेरे बच्चे बोलता क्यों नहीं तुझे क्या परेशानी है? अब तो विक्रांत माँ से लिपटकर फफक फफक कर रो उठा। वह कहने लगा माँ ओह माँ मैं तुम्हारा गंदा बच्चा हूँ, मुझे खूब मारो, घर से निकाल दो। ना ना हमारा विक्की तो बहुत राजा बिट्टू है माइ स्नेह से भरे शब्दों में बोली। उन्होंने विक्रांत को कसकर अपने सीने से लगा लिया। उन्होंने अपने आंचल से उसके आंसू पोंछे और फिर उसके चेहरे को ऊपर उठाते हुए बोली। राजा बेटे सच सच बताओ क्या बात है? विक्रांत अब माँ से सच्चाई ना छुपा सका। उसने चोरी करने वाले बच्चों के समूह में जाने से लेकर अब तक की पूरी घटना माँ को विस्तार से सुना दी। माँ ने उसके सिर पर हाथ फिराया माथे को चूमा और उसकी आँखों में झांकते हुए बोली। विक्रांत तुम अच्छा, बुरा कोई भी काम करते समय अपनी माँ को सदैव याद रखना यह नहीं भूलना कि बुरे कामों का पता कभी ना कभी तो लगता ही है, तुम्हारे बुरे काम उसे जीते जी मार देंगे, तुम अच्छे काम करोगे तो अपना सिर तो ऊँचा करोगे ही साथ में माँ बाप का भी नाम रोशन करोगे और हस्ते हस्ते जी सकोगे। सारी कठिनाइयों को भी सह सकोगे। माँ जो गलती हुई है उसके लिए मुझे खूब दंड दो। अब मैं आगे से कभी गलती नहीं करूँगा। विक्रांत आंखें नीची करके बोला, माँ ने उसके दोनों गालों पर हल्की सी चपत लगाई और बोली। कल से तुम प्रतिदिन होने वाली अच्छी या बुरी हर बात अपनी माँ को सच सच बताया करोगे यही तुम्हारा दंड है। विक्रांत माँ की बुद्धिमानी को समझना सका। वह उनके सीधेपन पर इतना हल्का सा दंड देने पर मन ही मन मुस्कुरा रहा था। पर माँ की सीख बहुत बड़ी होती है। माँ ने इतने छोटे से बात कहकर विक्रांत को उसका दंड भी दे दिया और उसके आगे के जीवन के लिए उचित मार्ग भी प्रशस्त कर दिया। ओके बाइ?","सभी को नमस्कार, यह एक छोटे लड़के और उसकी माँ की एक अद्भुत कहानी है। लड़का अपनी मां से झूठ बोलने लगा लेकिन उसकी मां ने उसे बड़ी चतुराई से सबक सिखाया। पूरी कहानी सुनें और कहानी की नैतिकता के बारे में जानें।" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपको सुनाने जा रही हूँ, उसका टाइटल है बिना विचारे जो करे। किसी समय बादल गणराज्य में विक्रम सेन नाम का राजा राज्य करता था। बहुत था तो बड़ा दयालु, लेकिन प्रत्येक कार्य को बिना विचारे ही करने का उसका स्वभाव बन गया था। उसके पास एक चिड़िया थी जो उसे अत्यंत प्रिय। वह एक क्षण भी उससे अलग रहना पसंद नहीं करता था। चिड़िया भी सम्राट को बहुत चाहती थी। एक बार चिड़िया ने राजा से अपने संबंधियों से मिलने की इच्छा प्रकट की। राजा ने शीघ्र लौटने का निर्देश देकर उसे अनुमति दे दी। चिड़िया उड़ गई और अपने संबंधियों से मिलकर बड़ी प्रसन्न हुई। लौटते समय चिड़िया के पिता ने उसे सम्राट के लिए एक अमृत फल दिया। चिड़िया, खुशी, खुशी फल को लेकर उड़ चली। रास्ते में रात ज्यादा हो गई। अतः उसने विचार किया की क्यों न पेड़ पर रात गुजार कर सुबह को महल पहुंचे? वह पास ही के एक पेड़ पर बैठ गई। पेड़ की जड़ में एक सांप रहता था, उस रात वह भूखा था। भोजन की तलाश में पेड़ के ऊपरी हिस्से में रंगने लगा। उससे चिड़िया के पास रखे हुए अमृतफल को चख लिया, जिसके कारण वह फल विषैला हो गया। सुबह फल लेकर चिड़िया महल में पहुंची और राजा को भेंट कर दिया। राजा बहुत प्रसन्न हुआ। उसने फल को खाने का विचार किया ही था कि मंत्री ने राजा से कहा, महरोज इसे खोने से पहले इसका परीक्षण करवा लीजिए। अता एक पशु पर उसका परीक्षण कराया गया। पशु फल का टुकड़ा खाते ही मर गया। इस प्रकार वह अमृतफल विश्व फल सिद्ध हो गया। सम्राट ने क्रोधित होकर चिड़िया से कहा, धोखेबाज चिड़िया मुझे मारना जाती थी ले अब तू भी मर और यह कहकर सम्राट ने चिड़िया को। मौत के घाट उतार दिया और महल के बीचोबीच उसे तथा उस फल को भी गड़वा दिया। धीरे धीरे सम्राट इस घटना को भूल गए। कुछ समय बाद उसी स्थान पर एक पेड़ निकल आया और धीरे धीरे बड़ा हो गया। अब उस पर अमृत फल जैसे फल लगने। इस पर मंत्री ने सम्राट को सुझाव दिया। मर्ज ये फल भी विषैले होंगे। अतः किसी को इन के समीप आने की मनाही करवा दीजिये। सम्राट ने आदेश जारी करवा दिया और पेड़ के चारों ओर ऊंची ऊंची दीवारें उठवा दी ताकि कोई पेड़ तक न पहुँच सके। उसी राज्य में एक बूढ़ा और बुढ़िया रहते थे। ये भयंकर बिमारी और रोग से ग्रस्त थे। और भूखों मर रहे थे। बुढ़िया ने बूढ़े से कहा। क्योंकि महल के बगीचे से वो उस फिश फल को तोड़कर ले आये ताकि उसे खाकर हम दुनिया के कष्टों से छूट जाए। अतः बूढ़े ने बड़े प्रयत्न सेवा फल प्राप्त कर लिया और दोनों ने उसे आधा आधा खा लिया परंतु यह क्या? उसे खाते ही वे दोनों सवस्थ और सुंदर हो गए। यह देखकर दोनों बड़े आश्चर्यचकित हुए। और उन्होंने सारा व्रत दान सम्राट को जाकर सुनाया। सम्राट को यह समझते देर नहीं लगी की वह फल वास्तव में अमृतफल था। अब हॉबी क्या सकता था? सम्राट अपने को कृत्य पर बड़ा दुखी हुआ और उसने भविष्य में बिना विचारे कोई भी कार्य करने का दृढ़ निश्चय किया। उसने महल के पास एक भव्य मंदिर का निर्माण करवाया और इस प्रकार चिड़िया की याद को सदा के लिए अमर कर दिया। इसीलिए कहा गया है कि बिना विचारे जो करे सो पाछे बचता ये। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है की हमें कोई भी कार्य बिना विचारे नहीं करना चाहिए। कोई भी निर्णय सोच समझकर ही लेना चाहिए। ओके बाइ?",यह एक छोटी चिड़िया और एक राजा की कहानी है। राजा बहुत विनम्र और दयालु है लेकिन वह स्वभाव से बहुत अधीर है। उसने अपने अधीर स्वभाव के कारण अपनी प्रिय चिड़िया को खो दिया। "हैलो बच्चों, आज जो कहानी में आपको सुनाने जा रही हूँ, उसका टाइटल है अपना काम अपने आप। जीतू को अपने मोती कुत्ते से बहुत प्यार था, वह उसकी खूब देखभाल करता था, रोज़ नहीं लाता था, रोज़ समय पर उसे खाना खिलाता था। जीतू मोती को बहुत सी बातें सीखाता था जैसे तेज दौड़ना, ऊपर उछलना, किसी चीज़ की पहचान करना आदि। धीरे धीरे मोती बहुत शरारती होता जा रहा था। 1 दिन उसने छलांग लगाई। बरामदे में लटके चिड़िया के घोंसलें को गिरा डाला। जीतू स्कूल से आया तो उसने पाया कि घोषणा टूटा पड़ा है। दिन की जमीन पर बिखरे पड़े हैं और चिड़िया ची करके रो रही है। मोती भौ करके चिड़िया को भगाने की कोशिश कर रहा है। ये तो पलभर में समझ गया कि यह सब करतूतें मोती की है। उसने मोती के दोनों कान खींचे गए और समझाया की ऐसा नहीं करना चाहिए। माँ बोली। देखो या बेचारी चिड़ियाँ कितने दिनों से जुटी है? एक एक करके उसने तीन केबीन कर रखे थे, लाती रही। कितनी मेहनत से इसने घोंसला बनाया है। इस मोती ने एक ही झटके में इसकी सारी मेहनत पर पानी फिरा दिया है। ऊह बेचारी नन्ही चिड़िया जीतू के मुँह से निकला, फिर वो सोचकर बोला मा गलती मोती की है, मैं उस गलती का प्रायश्चित करूँगा। कैसे बेटा माँ ने पूछा? मैं चिड़िया को घोसला बनाऊंगा जी तो कहने लगा माँ बोली पर बेटे चिड़िया उसमें बैठेगी नहीं, अंडे नहीं देगी। वा माँ तुम भी क्या बात करती हो? मैं इतना बढ़िया घोंसला बनाऊंगा की चिड़िया देखती रह जाएगी। वो आराम से उसमें बैठेगी भी और मज़े से मंडे भी देगी। जीतू बोला। जी तो की माँ कुछ नहीं बोली। वह जानती थी कि जीतू अपने मन की ही करेगा, फिर जीतू के घोंसलें में चिड़िया भले ही बैठें या ना बैठे, माँ को उसमें कोई भी हर्ज नहीं। जी तो इसी बहाने एक नया काम जो सीख लेगा। दूसरे दिन रविवार की छुट्टी थी। जीतू नाश्ता करके तैयार होकर अपने काम में जुट गया। उसने बाघ से सूखे तीन के इकट्ठा किए कुछ टहनियां लाया, बेकार पड़े तार से घूस लेगा एक सांचा बनाया। फिर उसमें आड़े तिरछी करके दिन के लटकाए जैसे तैसे घोंसला बनकर तैयार हो गए। तब जीतू ने उसके अंदर रुई की मुलायम, मुलायम पढ़ते बिछा दी। ये तो वह घोंसला बाहर से देखने में अधिक सुंदर नहीं था, परंतु अंदर से वह बड़ा आरामदेह लग रहा था। जीतू ने घोंसला शहतीर पर लटका दिया। वो बड़ा ही प्रसन्न हो रहा था। मन ही मन सोच रहा था की चिड़िया आएगी तो घोंसला तैयार देखकर खुशी से खुद के गी। फिर वह इस घोंसलें में ननने ननने अंडे देगी उन से बच्चे निकलेंगे में, चीं चीं करके बोलेंगे घर में। पर जीतू के सारी कामनाएं व्यर्थ हो गयी। शाम को चिड़िया और चिरोटा आई। उन्होंने अपनी चोंच से घोंसलें का एक एक उनका निकालकर फेंक डाला। जीतू दौड़ा दौड़ा माँ के पास गया और वहाँ से होकर बोला चिड़िया ने तो सारा घोंसला ही नोचकर फेंक डाला है बेटे, मैंने तो तुम से पहले ही समझाया था। ये छोटे छोटे जीव जंतु बड़े स्वावलंबी होते हैं, अपनी मेहनत से स्वयं अपना ही काम करते हैं। हम ही है। जो दूसरों पर निर्भर रहते हैं आराम तलवी चाहते हैं माँ बोली तुम आ मेरा आज को सारा परिश्रम में गाड़ी गया जी तो पूछने लगा। माँ ने समझाया नहीं बेटे, पहला सबक तो तुम्हें चिड़िया से यही मिल गया की हमें अपना काम स्वयं करना चाहिए। अपना काम दूसरों से कराने की आदत अच्छी नहीं हैं। दूसरे, भले ही यह चिड़िया तुम्हारे बनाए घोंसलें में ना बैठें, पर तुमने सारी चीजें एक स्थान पर रखकर उसकी सहायता तो की ही है। चितु ने दूसरे दिन स्कूल से आकर देखा। ये चिड़िया और चिरोतरे ने मिलकर उसके बनाए घोंसलें के सारे दिन के निकाल लिए। उन तीन को से उन्होंने पास ही में एक नया और सुन्दर घोंसला बना लिया। वे दोनों ही बड़ी प्रसन्नता से बैठे बैठे जी जी जी जी करके शोर मचा रहे हैं। माँ बोली देखा जीतू आज ये दोनों कितने खुश हैं या खुशी अपने श्रम की सफलता की है। स्वयं परिश्रम करके जो कार्य किया जाता है। उसी में सच्चा आनंद मिलता है। आज ये दोनों दिनभर घोंसला बनाने में ही जुटे रहे हैं। जी तो सोचने लगा की या नन्ही चिड़िया भी अपना काम अपने आप करती हैं, किसी पर बोझ नहीं बनती, फिर मैं भी अपना सारा काम माँ पर क्यों छोडूँ? मैं भी अपना अधिकतर काम अपने आप ही करूँगा। अब जीतू अपने आप जूतों की पॉलिश करता, खुद अपना स्कूल का बैग लगाता, प्यास लगने पर माँ को आवाज नहीं लगाता, वरन अपने आप उठकर पानी लेता और पिता अपनी चीजों को भी संभालकर वह स्वयं ही रखता माँ उसे अब बात बात पर टोकती भी नहीं है, वे उसकी सभी से प्रशंसा भी करती है। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हर व्यक्ति को अपने सभी काम स्वयं करने चाहिए। इससे दो लाभ होंगे। एक तो काम करने से शरीर सवस्थ रहेगा और दूसरा काम के लिए किसी पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। ओके बाइ?",यह एक छोटे लड़के की भयानक कहानी है जो पक्षियों के लिए घोंसला बनाने की कोशिश करता है। "हैलो बच्चों, आज जो कहानी में आपको सुनाने जा रही हूँ उसका शीर्षक है ज्ञानी राजा। अभयारण्य में प्रताप नाम का सिंघ राजी करता था। राजा को राजकार्य में सहायकों की मंत्रियों की आवश्यकता होती थी। प्रताप के भी अनेक मंत्री थे। प्रताप मंत्रियों का चुनाव बहुत ही सोच विचार कर करता था, जो अच्छे विचारों वाला सदाचारी प्रजा का हित चाहने वाला होता था, वहीं प्रताप का मंत्री बन सकता था। प्रताप का विचार था कि जिनके साथ ही अच्छे होते है, उनकी बुद्धि भी अच्छी होती है और वे काम भी अच्छा करते हैं, अतएव साथ ही सदैव योग्य रखने चाहिए। प्रताप के मंत्रिमंडल में ना जाने कैसे चेतू नाम का एक सी आर भी आ गया था। वास्तव में प्रताप उसे समझने में गलती कर गया। वह बड़ा कपटी, स्वार्थी और धूर्त था, पर बाहर से बड़ा विनम्र और परोपकारी होने का ढोंग रचा करता था। यही कारण था कि प्रताप को धोखा हो गया था। पर सच्चाई भला कितने दिनों तक चुप सकती है? एक ना? 1 दिन तो सामने आनी ही थी। कुछ शासक ऐसे होते हैं जो दूसरों की बातों में आ जाती है। बिना परीक्षा किए ही उन पर विश्वास कर लेते। वे अपनी आंख बंद रखते हैं और कान खुले। परिणाम यह होता है कि वह सच्चाई नहीं देख पाते। ऐसे शासक अच्छे मित्रों से सहायकों से दूर हो जाते हैं। उन्हें हर समय चापलूस, स्वार्थी और कामचोर घेरे रहते हैं और शासक को भी गुमराह कर देते हैं। पर प्रताप उनमें से ना था व निष्पक्ष होकर अपने प्रत्येक मंत्री के गुण दोषों का ध्यान रखता था। चेतू जानवरों की बुवाई प्रताप से करता प्रताप उसे सुन लेता बिना स्वयं पर के उस पर विश्वास नहीं करता था। चेतू सदैव प्रताप का विश्वास पात्र बनने का प्रयास करता। वह उसके आगे पीछे घूमता, उसकी झूठी प्रशंसा करता, चापलूसी करता पर प्रताप मन से इससे प्रभावित ना होता था, मात्र सुन भर लेता था। प्रताप की दूसरे मंत्री और जासूस भी चेतू की निंदा करते थे। उन्होंने प्रताप को बताया था कि जे तू मंत्री होने का अनुचित लाभ उठाता है। वह प्रताप का नाम लेकर दूसरे जानवरों को डराता है, उनसे अपनी सेवा कराता है और चीज़ भी छीनता है। पर प्रताप ने उनकी एक बात पर भी पूरा पूरा विश्वास ना किया। उसने सोचा कि हो सकता है कि ये भी चेतु के विरुद्ध कोई षडयंत्र रच रहे हों। बिना परखे हुए किसी को पहचानना भी कैसे जा सकता है? वे शासक को बिना स्वयं पर के दूसरों की बातों पर पूरा विश्वास कर लेते है। सच्चाई जानने से वंचित ही रहते है। प्रताप ने चेतु पर कड़ी निगरानी रखनी शुरू कर दी और कोई होता तो अपनी झूठी प्रशंसा से ही खुश हो जाता। कभी उस पर शंका न करता। पर वह प्रताप था योगी और कोई शास् जो सुयोग्य सहायकों को ही चाहता था, चापलूसों को नहीं। 1 दिन प्रताप घनी झाड़ियों में विश्राम कर रहा था। संयोगवश झाड़ियों के बाहर पगडंडी पर्चे भी आ बैठा। प्रताप सेतु को अपनी जगह से अच्छी तरह देख सुन सकता था। और चेतु को प्रताप के वहाँ होने का कुछ भी पता न था। प्रताप ने देखा कि पगडंडी पर एक सा ही चली आ रही है। उसके पास बहुत से फल, कुकुरमुत्ते और मांस था। उन्हें देखकर चेतु के मुँह में पानी भर आया। उसने स्याही का रास्ता रोका और कहा, ओह आजकल तुम बड़ी घमंडी होती चली जा रही हो। राजा जी को कुछ उपहार भी नहीं देती। कई दिनों से उन्हें प्रणाम करने भी नहीं आयी और तुमसे बहुत नाराज है। यह सुनकर सही घबरा गयी। वह बोली केतु भाई मेरा बेटा बीमार है इसलिए नहीं आ पायी पर प्रताप जी को तो ये पता है। चेतु उसके और निकट पहुँच गया और आंखें नचा कर बोला तुम तो जैंती यह बहन राज़ आखिर राजाई होता है? वह किसी को भी सगा नहीं मानता, उसे तो जैसे भी हो, प्रसन्न रखना ही चाहिए। नहीं तो न जाने कब, कैसे और कहाँ से उसे गुस्सा सहन करना पड़े। यह सुनकर सा ही बड़ी परेशान हुई। बोली। तुम ही बताओ मैं क्या करूँ? बच्चे की बिमारी से मेरा मन बड़ा परेशान हैं, कुछ सोच समझ नहीं पा रही। चेतू ने दिखाया मन ओह साई का कितना बड़ा हितैषी है। वह कहने लगा बहन तुम्हारा दुख देखकर मेरा कलेजा मुँह को आ रहा है। तुम्हारी सहायता करना मेरा कर्तव्य है। तुम जैसा करो, यह सामान मुझे दे दो, मैं तुम्हारी औरतें या राजा प्रताप को दे दूंगा और उन्हें कुछ करने की पूरी पूरी कोशिश करूँगा। साई ने निराश होकर अपना पूरा सामान चेतू को दे दिया। वह बोली मेरा बेटा 4 दिन से भूखा है, बड़ी कठिनाई से मैं उसके लिए जोड़ा के ला पाई थी। क्या किया जाए? बहन दुष्ट को शांत तो करना ही होगा। छे तू मुँह लटकाकर बोला, शाही के पेट फिरते ही चेतू ने उसका मालग अब खाया। जो से अच्छा न लगा वो वहीं फेंक दिया। फिर हाथ मुँह साफ करके वहाँ से उठ खड़ा हुआ। चेतू को पता था कि जाही अगले दिन भी उसी रास्ते से आएगी। अता है। दूसरे दिन वह फिर वहा जाकर बैठ गया। उसके वास्तविक रूप को जानने के लिए प्रताप भी आया था। क्योंकि जो हम कहाँ करते हैं, उससे हमारा सच्चा परिचय नहीं मिलता। जो हम करते हैं उससे हमारा वास्तविक रूप प्रकट होता है। अगले दिन जैसे ही साही आई चेतू बोला बहन राजा तुमसे बहुत अधिक नाराज हैं तुम्हारा उपहार देकर कल मैं जैसे तैसे उनका गुस्सा कम कर रहा था। अभी तो उन्हें कुछ और दिया जाए तब कहीं जाकर राजा का गुस्सा दूर होगा। शाही अपने हाथ के सामान को कसकर पकड़ते हुए बोली। आज तो मैं कुछ भी देने से नहीं कल मेरा बच्चा सारी रात भूख से तड़पता रहा और मैं असहाय थी, चुपचाप देखती रही या राजा का, प्रजा के साथ अन्याय नहीं तो और क्या है? अब और नहीं जाउंगी मैं ये अत्याचार जे तू बोला ठीक है तो फिर तुम ही जानो, उस आलसी राजा का गुस्सा जब सहन करना पड़ेगा तब तुम्हे पता लगेगा। सही जे तू की बात अनसुनी करके तेजी से आगे बढ़ गई चेतु अपने होठों पर जीव फिर आकर ही रह गया। दूसरे दिन प्रताप का दरबार लगा हुआ था। सभी मंत्री बैठे बैठे गंभीर समस्याओं पर विचार कर रहे थे। चेतू बोला महाराज, बड़े अफसोस की बात है कि जंगल के प्राणी आपकी निंदा किया करते हैं, वे आपके शासन संचालन की भी आलोचना करते हैं। प्रताप ने शांत भाव से पूछा कौन है वह प्राणी? चेतू झुककर बड़ी ही विनम्रता से बोला, राजन मैं बहुत समय से सुन रहा हूँ की रानी साई और उसका परिवार भी आपकी बुराइ करता है। यही नहीं रानी जंगल के दूसरे प्राणियों को भी आपके विरुद्ध भड़काती रहती है। इस अपराध का क्या दंड दिया जाना चाहिए? प्रताप ने पूछा। रानी को प्राण दंड दिया जाना चाहिए। चेतू ने जल्दी से बोला। नहीं, यह तो उचित नहीं है। सारे मंत्री एक साथ बोले। तो फिर? उसे परिवार सहित देश से निकाल देना चाहिए। क्या राजा ने ऐसा पूछा? छे तू ने इसकी सहमति में सिर हिला दिया। ठीक है। प्रताप ने गर्दन हिलाकर कहा। फिर उसने अपने अंगरक्षक भालू को इशारा किया। भालू ने तुरंत चेतू को बंदी बना लिया, चेतू सकपका गया और कुछ समझ ही नहीं पाया। ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने लगा। तब प्रताप ने अपने मंत्रियों को चेतू की सारी करतूत सुनाई। वे सब कह रहे थे महाराज हम तो इसकी करतूतों से पहले ही परिचित थे। तब तक भालू प्रताप की आज्ञा से रानी चाही को भी वहाँ बुलाया था। आते ही रानी गिड़गिड़ाने लगी। मेरा बेटा ठीक हो जायेगा, तब मैं आपको ढेर सारे उपहार दूंगी, तब तक के लिए मुझे माफ़ कर दीजिए। महाराज प्रताप की आज्ञा से धावक जीते ने रानी के सामने चेतू की सारी पोल खोल दी। सही बोली। ओहो, तभी तो मैं कहती थी कि हमारे राजा तो ऐसे ही नहीं है। तब तक प्रताप की आज्ञा से जंगल के सारे जानवर वहाँ इकट्ठा हो गए थे। प्रताप ने चेतू और उसके परिवार को तुरंत अभयारण्य छोड़ने की आज्ञा दी। चेतू अपने कुकर्मों, पर्पस चारा आता? चुपचाप वहाँ से चल दिया। सारे जानवर जोरों से घूस फूस कर रहे थे। रानी ज़ोर ज़ोर से कहने लगी, मैं तो आपकी सदैव आभारी रहूंगी। सारे जानवर ई की ओर से मैं आप के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करती हूँ। आप जैसा सुयोग के और विचारशील शासक पाना हमारे लिए गौरव की बात है। हमें विश्वास है कि हम सदैव आप से न्याय ही पाएंगे। सभी जानवर प्रताप की जय जयकार करने लगे। वे कह रहे थे रोजों हो? तो न्याय प्रताप जैसा। उन सब की बात सुनकर प्रताप ने मन ही मन में कहा भगवान करे मेरी यह सुबुद्धि सदैव बनी रहे। अच्छे काम करके मैं अपने साथियों से सदैव सम्मान पाता रहा हूँ। प्रताप ने सभी को धन्यवाद दिया। सभा समाप्त हो गई। राजा की प्रशंसा करते हुए सभी अपने घर लौट गए। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें कभी भी बुरे कर्म नहीं करने चाहिए क्यों? क्योंकि बुरे कर्मों का फल बुरा ही होता है। ओके बाइ?",यह एक महान राजा शेर की कहानी है। शेर ने अपने मंत्रियों का चयन सावधानी से किया लेकिन एक बार शेर ने अपने चयन में गलती कर दी लेकिन वह अपनी बुद्धि से स्थिति को पार कर लेगा। कहानी सुनें और नैतिकता को जानें। "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपको सुनाने जा रही हूँ उसका शीर्षक है अपकार का बदला। शांतिवन में अनेक पक्षी रहा करते थे, कहीं से मल के एक पेड़ पर घोंसला बनाकर जूनियर नाम की एक चिड़िया भी रहा करती थी। 1 दिन दोपहर के समय चुनिया फुदक फुदक कर गाना गा रही थी। उसकी सहेलियां भोजन की तलाश में गई हुई थी। सुबह चुनिया की तबियत कुछ खराब थी इसलिए वह उनके साथ नहीं जा पाई। अब उसका जी ज़रा हल्का हुआ था। इसलिए वह घास में आकर गाने लगी थी। सहसा ही हवा का तेज झोंका आया। चुनिया की आंख में 1 दिन का पड़ गया। वह दर्द से घबरा उठी। उसने ज़ोर से आंख म ली, जल्दी जल्दी उसने आँखें खोली और बंद की परत इनका फिर भी ना निकला चुनिया बड़ी परेशान हो गई। तभी उसने देखा कि सामने से मयूर जी चले आ रहे हैं। चुनिया ने कहा मयूर भाई मयूर भाई मेरी आंख में कुछ पड़ गया है, कृपया इसे जल्दी से निकालिए नहीं तो मैं गन्दी हो जाउंगी। मयूर ने उसकी बात अनसुनी कर दी। उपेक्षा से चुनिया पर दृष्टि डाल कर आगे बढ़ गया। रास्ते में वह बड़बड़ा रहा था हूँ मैं निकाल लूँगा उस कलूटी बस सूरत की आंख से तिनका उसे अपनी औकात देखकर ही बात करनी चाहिए। मयूर वास्तव में बड़ा घमण्डी था। वह छोटे, मोटे, असुंदर पक्षियों से तो बात तक नहीं करता था। वह तोता, नीलकंठ, सारस आदि कुछ पक्षियों से ही मिलता जुलता रहता था। यही कारण था कि चुनिया से बात करना और उसकी सहायता करना मयूर को अपमान लगता था। चुनिया बेचारी बड़ी परेशानी हुई। उसकी आंख से लगातार पानी बह रहा था। शाम तक वह खूब फैल गई और लाल भी हो गई। जब उसकी सहेलियां वापस लौटी तब कहीं जाकर उन्होंने तिनका निकाला। उस आग से अब भी कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। चिड़ियों को मयूर की बात सुनकर बड़ा गुस्सा आया। रनों अपनी आँखें लाल करके बोली ना जाने किस बात का घमंड है? भगवान की दृष्टि में सभी प्राणी बराबर है। उनके लिए ना कोई छोटा है ना कोई बड़ा। माँ नी चिड़िया कह रही थी। घमंडी और अहंकारी प्राणी को भगवान अवश्य दंड देता है। मयूर को भी एक न 1 दिन बड़ा अच्छा सबक मिलेगा। चुनिया बोली जो मुसीबत में पड़ने पर दूसरों की सहायता नहीं करता और फिर मुँह फिराकर चला जाता है, उससे बड़ा नीच और चित्र दूसरा कोई नहीं है। सभी चिड़ियों ने चुनिया को ढांढस बंधाया। उन्होंने तरह तरह की जड़ी बूटियां लाकर उसकी आंख में लगाई। चुनिया की आंख का दर्द थोड़ा कम हो गया। वह पूरी तरह ठीक नहीं हो पा रही थी। इसलिए सभी चिड़ियों ने चुनिया से कह दिया कि वह अब कुछ दिन तक खाना ढूंढने ना जाए। वे सभी उसके लिए खाना ला दिया करेंगी। अब चुनिया चार पांच दिनोंसे पेड़ पर ही बैठी रहती बैठी बैठी वह भगवान के भजन गाया करती दुख मुसीबत में ईश्वर को स्मरण करने से मन को बड़ा धीरज मिलता है और दुख सहन करने की शक्ति भी बढ़ती है। 1 दिन आकाश पर बादल छाये थे, हल्की हल्की बूंदाबांदी हो रही थी। तभी चुनिया ने देखा कि सामने मयूर और मयूरी चले आ रहे हैं। बादलों को देखकर भी बड़े प्रसन्न हो रहे थे। ज़ोर ज़ोर से क्या क्या कह कर अपनी खुशी प्रकट कर रहे थे। कुछ ही देर बाद वे नाचने लगे और सुधबुध खो बैठे। वाह क्या सुंदर नाच है चुनिया के मुँह से निकला तभी चुनिया ने देखा कि कुछ मनुष्य चुपके चुपके पीछे से मयूर की ओर बढ़ रहे हैं। दुनिया को पता था कि मनुष्य मोरों को पकड़ लेते हैं, उनके पंखों को निर्दयतापूर्वक नोच लेते हैं, उन्हें बंदी बना लेते है। पलभर में ही उनके मन में यह बात कौंध गई की ये लोग अब मयूर को पकड़ ले जाएंगे। मयूर नाच में बेसुध हो रहा था। उसे यह सब कुछ भी पता नहीं था। अब खुद पर मुसीबत आएगी तब पता चलेगा बच्चू सारी सुंदरता छीन जाएगी जब तुम्हारे पंख नुचे जाएंगे सारा का सारा घमंड चकनाचूर हो जाएगा चुनिया मन ही मन बोली पर दूसरे ही पल इसकी कल्पना से ही वह काँप उठी उसके मन ने कहा मुसीबत में पड़े हुए की सहायता करनी चाहिए, दूसरा तुम्हारे साथ बुरा करें तो किया करे, तुम अपनी भलाई क्यों छोड़ती हो? सहेली की बातें रह रहकर चुनिया के कानों में गूंज रही थी। जो मुसीबत में दूसरों की सहायता नहीं करता और मुँह फिराकर चला जाता है, उससे बड़ा नीचे अशुद्ध दूसरा कोई नहीं होता। मयूर और मनुष्य के बीच अब बस चार पांच कदम की ही दूरी रह गई थी। तभी चुनिया ज़ोर से चीखी मयूर भाई बच्चों भागो तुम्हारे पीछे कुछ मनुष्य खड़े हैं ये तुम्हें पकड़ने ही वाले हैं। मयूर कान आज सहसा रुक गया। उसने तुरंत पीछे मुड़कर देखा। मयूर और मयूरी दोनों भयभीत होकर तेज़ी से भागे और पास की झाड़ियों में गायब हो गए। वे मनुष्य हाथ मलते हुए वहाँ से वापस चले गए। बहुत देर बाद मयूर झाड़ियों में से निकला और बोला। दुनिया बहन मैं तुम्हारा ये उपकार कभी नहीं भूलूंगा। तुम चाहती तो चुप रहती, पर यह तुम्हारी महानता है की तुमने अपना बुरा करने वाले का भी भला किया। उपकार करने वाले का भला तो सभी करते हैं, किंतु अपकार करने वाली की भलाई कुछ महान ही कर पाते हैं। धन्य है ऐसे व्यक्ति जो दुश्मन का मन भी प्यार और सहानुभूति से जीत लेते हैं उसे अपना बना लेते है। आज तुमने मेरी आँखें खोल दी है। छोटी होकर भी तुमने मुझे बड़ी शिक्षा दी है। तभी शाम होने लगी। एक एक करके सारी चिड़ियाँ सेमल के पेड़ पर आने लगी। मयूर के मुँह से उन्होंने सारी बाते सुनी तो चुनिया के प्रति उनका मन बड़ी श्रद्धा से भर उठा। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें हमेशा दूसरों का उपकार करना चाहिए, दूसरों की सहायता करनी चाहिए तभी हम महान बनते हैं। ओके बाइ",यह एक छोटी चिड़िया 🐦 की एक नैतिक कहानी है। चिड़िया बहुत दयालु होती है। जब वह संकट में थी तब मोर ने उसकी सेवा नहीं की लेकिन पक्षी शिकारियों से मोर और मोरनी को बचा लिया। यह आपके का बदला कहानी का सार है। पूरी कहानी सुनें और आनंद लें। "बच्चों आज जो कहानी में आपको सुनाने जा रही हूँ उसका शीर्षक है अन्यायी शासक अभयारण्य में प्रभास नाम का एक सिंग रहता था। वन के सभी जानवरों ने उसे अपना राजा मान लिया था। वे सभी झुककर आदर करते थे। उसकी बात मानते थे, उसके अनुशासन में रहते थे। जब प्रभास नया नया राजा बना था। तो कुछ दिनों तक तो ठीक चलता रहा। पर फिर धीरे धीरे उसे घमंड होने लगा। वह बनके जानवरों से बड़ा कठोर व्यवहार करने लगा। हर किसी को बिना बात के फटकार देता, चाहे जब कभी किसी को अपमानित कर देता। सभी पशु पक्षियों को व तानाशाह शासक की तरह दबा कर रखता था। उसके राज़ में किसी को भी सिर उठाकर रहने की सच कहने की हिम्मत तक न थी। बात यहीं तक रहती तब भी ठीक था। प्रभास में एक और सबसे बड़ा दुर्गुण था वह यह था कि वह कानों का बहुत कच्चा था। कुछ जानवर उसके सिर चढ़े थे, उसके हर समय चापलूसी करते रहते थे। बस उन्हीं की बात को प्रभास आंख मीच कर सच मान लेता था। बे जानवर किसी से भी अपनी दुश्मनी निकालने के लिए उसकी चुगली राजा से जाकर कर देते। प्रभास बिना सच्चाई पर के उन जानवरों को तंग करता। प्रभास के चुगलखोर, चापलूस, गुप्तचर सारे वन में घूमते रहते उनके सामने किसी की इतनी हिम्मत भी ना होती की खुलकर बात कर पाए। प्रभास के द्वारा अकारण सताए हुए किसी जानवर से ढाढ़स के दो शब्द भी न कह पाए। दिन पर दिन ऐसे ही होता जा रहा था। प्रभास की तानाशाही निरंतर बढ़ती जा रही थी। वह और उसके चापलूस जानवर गुलछर्रे उड़ाते। वे चाहे किसी को मार डालते और चाहे किसी को अपमानित कर देते, कुछ भी काम करते, इसके विपरीत जो काम करने वाले जानवर थे वे हमेशा पिस्ते दिनभर काम करते और ऊपर से फटकार भी खाते। प्रभास और उसके चापलूस सहायक चाहे कभी उनके कामों में दोष निकालते, उनके लिए ना करते। दूसरे जानवर कुछ बोलते भी नहीं थे इसीलिए प्रभास और उसके सहायक सिर पर चढ़ते जा रहे थे। अन्याय को चुपचाप सहने से अन्यायी को बढ़ावा मिलता ही है। उस दिन कपिल भैंसा बैठा था, तभी दूसरे वन से चेता नाम की लोमड़ी आई और उससे उदासी का कारण पूछने लगी। कारण जानकर चेता भड़क उठी। गुस्से से भरकर ज़ोर से बोलीं उस दुष्ट प्रभास के अत्याचारी होने का कारण तुम सभी हो तुम ने ही उसे सिर चढ़ आया है तुम्हारी कायरता ने ही उसे बढ़ावा दिया है तुम उसकी हर बात चुपचाप मान लेते हो, इसीलिए उसके अत्याचार बढ़ते जा रहे दिक्कत है तुम्हारी कायरता को। तब तक मुक्ता हथनी भी वही आ गई थी। उसने भी कहा। अब तो अत्याचार की अति हो गयी है। हम सब मिलकर उस से लोहा ले सकते है। हमें इसकी पहल करनी होगी। मुक्त आहत नीचे था। लोमड़ी और कपिल भैंसा ने मिलकर सभी जानवरों की सभा की। वे जानवर बड़ी मुश्किल से आए थे। प्रभास के डर से वे कायर और डरपोक हो गए थे। प्रभास कही। सभा में उनका जाना न सुन लें। इस बात से वे सभी जानवर बड़े भयभीत हो रहे थे। सभा के प्रारंभ में सबसे पहले मुक्ता हथनी बोली। उसने कहा, प्यारे भाइयों और बहनों, सबसे पहले तो मैं आपको धन्यवाद देती हूँ। क्या आप यहाँ इकट्ठा हुए? मैं यह भी जानती हूँ कि आप मन ही मन डर रहे हैं, पर ज़रा विचार कीजिए कि आखिर आप डर क्यों रहे है? डरना चाहिए, गलत काम से डरना चाहिए। ईश्वर से अन्याय से डरना तो कायरता है बनकर हम अन्याय को बढ़ावा देते हैं। दी कार्य हमें जो अन्याय और अत्याचार को चुपचाप सहते रहते हैं। घुट घुटकर जीते हैं। इससे तो वीरतापूर्वक अत्याचारी का सामना करके मर जाना ही सबसे अच्छा है। कपिल भैंसा भी कहने लगा, साथियों वहीं शासक बनने योग्य होता है जो सभी के समान व्यवहार करता है। जो समय पर कठोर भी होता है और आवश्यकता पड़ने पर कोमल व्यवहार भी करता है, उसी के हृदय में अपने सहायकों के लिए प्रेम और सहानुभूति नहीं, वह कभी उनका मन नहीं जीत सकता। कालू भालू बोला ठकोरो में जो अयोग्य शासन के अधीन हैं, धिक्कार है जो हम संख्या में सैकड़ों होकर भी उसके अत्याचार से आते रहते भाइयो उठो, जागो मिलकर एकजुट होकर उस अन्याय का सामना करो कालू भालू बोल ही रहा था कि तभी वहाँ प्रभात आ गया, आते ही वह दहाड़ने लगा, मैं सोच रहा था कि हर रोज़ की भाति उसकी डरते अभी सारे जानवर वहाँ से भाग जाएंगे। पर हुआ। इसका उल्टा ही मुक्ता के इशारे पर सारे जानवर प्रभास पर टूट पड़े। दूसरे ही क्षण वो अपनी जान बचाने के लिए वहाँ से तेजी से भागा। दूसरे जंगल में जाकर ही प्रभास से सांस ली। अब उस जंगल में दूसरा ही राजा राज्य करता था। वह प्रभास को तरह तरह से अपमानित करता। प्रभास अधिकतर मुँह छुपाए एक गुफा में पड़ा रहता था। मन ही मन पछताता था। हॉल ना मैं जानवरों को सताता और ना ये विरोध होता। अपने चापलूस सहायकों के बहकावे में आकर मैंने अपना ही सर्वनाश कर लिया। वे मुझे मिल जाये तो एक को खत्म कर दूँ। अपमान और प्रतिशोध के इन्हीं भावों से वह कुढ़ता रहता था। कुछ ही दिनों में वह इतना दुबला हो गया था कि मुश्किल से ही पहचाना जाता था। इधर प्रभास के चापरू जानवरों की कम दुर्दशा नहीं थी। उस जंगल के सारे जानवर उनसे चिढ़े हुए थे। जहाँ भी वे निकलते सारे जानवर मिलकर हूँ, हुड़दंग करने लगते। वे अच्छी तरह जानते थे कि उन्हीं की चुगली के कारण प्रभास उन्हें सताया करता था। इसीलिए सारे जानवर उन चापलूसों को सबक सिखाने पर उतारू थे। डर के कारण रात के अंधेरे में ही भोजन की तलाश में निकलते थोड़ा बहुत जो कुछ खाने को मिल जाता उसी से जैसे तैसे अपना गुज़ारा करते। प्रभात के सहायक जहाँ भी जुटते, आपस में लड़ते झगड़ते। सभी एक दूसरे को इस स्थिति के लिए जिम्मेदार और दोषी ठहराते। 1 दिन उनका झगड़ा इतना बढ़ गया कि वे आपस में ही लड़कर मर गए। अब जंगल के सारे जानवरों ने खूब खुशियां मनाई। प्रभास और उसके साथियों के ना होने से वे बड़े प्रसन्न थे। सच है जहाँ अन्याय होता है वहाँ विद्रोह की ज्वाला भी उत्पन्न हो जाती है। अन्याय और अत्याचार करने वाले सांसद थोड़े समय चाहे भले ही मनमानी कर ले और अंत में उनकी दुर्दशा ही होती है। अपने कर्मों का फल तो सभी को मिलता ही है। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है कि हमें कभी भी किसी की बातों में नहीं आना चाहिए और जब हमें सत्ता मिलती है तो हमें उसका सही उपयोग करना चाहिए। अपने अधिकारों को सही मायने में प्रयोग करना चाहिए। ओके बाइ?",यह बच्चों के लिए एक नैतिक कहानी है। इस कहानी में एक शेर 🦁 अपनी प्रजा पर अत्याचार कर रहा है। हमें किसी भी अत्याचार को बर्दाश्त नहीं करना चाहिए। इस कहानी में हमें पता चलता है कि कैसे सभी जानवर कुछ साहस करते हैं और शेर राजा और उसके साथी जानवरों को हरा देते हैं। पूरी कहानी सुनें और कहानी के नैतिक के बारे में जानें। "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपको सुनाने जा रही हूँ, उसका टाइटल है टीपू कैसे सुधरा? कक्षा के सारे बच्चे मन लगाकर पढ़ते वे हर वर्ष उत्तीर्ण होकर अगली कक्षा में चले जाते। गुरु जी उन्हें प्यार करते और टीपू का मन पढ़ने में ज़रा भी न लगता। गुरु जी कक्षा में पढ़ा रहे होते तो उसका ध्यान उनकी बातें हट जाता। कभी घर की बातें सोचता तो कभी दूसरे बच्चों को तंग करने के तरीके। उसे खड़ा करके गुरु जी जब भी कुछ पूछना चाहते तो वह चुपचाप मुँह नीचे करके खड़ा हो जाता। परिणाम यह होता कि उसे बहुत डांट पड़ती, रोज़ का यही क्रम बन गया था। इसमें सारी की सारी गलती टीपू की भी ना थी। बात यह थी कि उसके माता पिता घर पर उसकी पढ़ाई का ध्यान नहीं रखते थे, कभी भी उसे पढ़ाने के लिए नहीं बैठाते थे। स्कूल में वह कैसा काम कर रहा है, यह जानने की कोशिश नहीं करते थे। स्कूल में गुरूजी के पास इतना समय नहीं था कि अकेले वह टीपू को लेकर देर तक पढ़ाते। इस स्कूल में गुरूजी डांटते और जब अनुत्तीर्ण हो जाता तो पिताजी मारते। इन सबका परिणाम यह हुआ कि धीरे धीरे टीपू का मन पढ़ाई से हटता गया। उछल कूद, मारपीट और शरारत ही उसको ठीक लगने लगे। माँ की डांट के कारण टीपू को स्कूल तो रोज़ ही जाना पड़ता था। वहाँ अपने साथियों को तंग किया करता था, जो पढ़ने में अच्छे होते थे। उन्हें गुरूजी प्यार करते थे, उनकी तारीफ करते थे, पर टीपू उन लड़कों से बहुत चिडता और ईर्ष्या भी करता था। आशीष, प्रणव और रॉयल ऐसे ही लड़के थे। एक बार टीपू ने आशीष की तारीफ से चिढ़कर उसका नया पेंट छुपा दिया। उसे जाकर वह भाग में कूड़ेदान में फेंक आया। आशीष के रोने पर सभी लड़कों की तलाशी ली गई। पर किसी के पास पैन हो तो मिले। दूसरे दिन सफाई करने वाले कर्मचारी ने ही गुरु जी को लाकर पहन दिया। गुरु जी समझ गए कि वह टीपू की ही करतूत है। प्रणव अपनी अर्धवार्षिक परीक्षाओं में बहुत ही अच्छे अंकों से उत्तीर्ण हुआ। गुरु जी इतने प्रसन्न हुए कि उन्होंने प्रणब को अपनी ओर से मिठाई खिलाने की बात कही। साथ ही टीपू की ओर मुँह करके बोले और यह हर टीपू महान सभी विषयों में जीरो मिला है। जन आपको शर्म आनी चाहिए तुम्हें टीपू कुछ तो सीखो प्रणाम से। बस फिर क्या था टीपू या सुनकर तो मन ही मन जुड़ गया। मैं ही सिखाऊंगा, इसे तो सबक उसने सोचा पर मुँह से कुछ नहीं बोला। उसी दिन प्रणव के पिता जी उसके साथ टीपू के घर आए। उन्होंने वहाँ बड़े गर्व से बताया कि उनका बेटा कितने अच्छे अंकों से उत्तीर्ण हुआ है। वो बेटे तुम्हारे अंकल कैसे आए हैं? उन्होंने टीपू की ओर देखकर पूछा। वह दो नालायक है, क्या पढ़ेगा, लिखेगा? बड़ा होकर घासी चलेगा या स्कूल जाने लायक ही नहीं है। माता पिता का नाम बदनाम करता है, यह तो बस इस योग्य है। कहते हुए टीपू के पिता जी ने उसके गालों पर कसकर तमाचे लगाने शुरू कर दिया। अरे अरे ये क्या करते है? आप बच्चा मारते नहीं, प्यार से तोंदर सकता है? प्रणव के पिता जी ने कहा और बड़ी मुश्किल से टीपू के पिता को उसकी पिटाई से रोका। मार अपमान से तिलमिला उठाती पूल पिताजी अकेले में उसकी पिटाई करते तो उसे इतना बुरा नहीं लगता। अपने इस अपमान का कारण भी उसने प्रणब को ही समझा और दांत पीसकर उससे बदला लेने का प्रण कर लिया। टीपू रात भर गुस्से से तिलमिला आता रहा। उसके शरारती दिमाग में आव देखा न ताव उसने स्कूल चलते समय चुपचाप एक पहना ब्लेड भी अपने बस्ते में रख लिया। स्कूल में जाकर उस दिन वह प्रणव के पास वाली कुर्सी पर ही बैठा। प्रणव की आंख बचाकर उसकी मेज की दराज में चुपचाप ही वह ब्लेड घुसा दिया। ब्लेड ऊपर को थोड़ा सा निकला हुआ था। प्रणब ने आकर जैसे ही मेज पर हाथ रखा हुआ चीख उठा। ब्लेड अंदर तक उसके हाथ में घुस गया था। खून का फव्वारा भय उठा था। गुरूजी दौड़ते हुए उस की मेज तक आये, उन्होंने देखा मेज पर खून ही खून बिखरा हुआ है। अरे यह कैसे हुआ आश्चर्य से उनके मुँह से निकल पड़ा। प्रणब ने रोते हुए मैच की ओर इशारा किया। मेज में लगे हुए ब्लेड को देखकर भौं चढ़ाकर गुरूजी बोले कि उसने क्यों यो? अब तक सभी बच्चे प्रणव की मेज के आसपास जुटाए थे। गुरूजी, हमने नहीं मालूम। एक स्वर में वे सभी बोले। गुरु जी की निगाह पास खड़े टीपू पर गयी। मुझे नहीं मालूम। उसने बड़े ही उपेक्षा भाव से कहा और दूसरी ओर मुँह फिर आकर खड़ा हो गया। गुरु जी ने उस समय उससे कुछ भी कहना ठीक न समझा। खून से लथपथ प्रणव को उन्होंने गोद में उठाया और चल पड़े उसकी मरहम पट्टी कराने। सभी बच्चे समझ गए थे कि यह करतूत टीपू की ही हो सकती है। आँखों ही आँखों में वे उसे धिक्कारने लगे। उसके डर से कोई कुछ कह तो रहा नहीं था। गुरु जी प्रणब को लेकर वापस आए तो छुट्टी का समय हो चुका था। आप सभी जा सकते हैं। उन्होंने बच्चों से कहा। टीपू की ओर देखकर उन्होंने कहा और हर टीपू, तुम ज़रा सी देर के लिए रुक जाना। सारे बच्चे जा चूके थे। अब टीपू गर्दन झुकाए गुरु जी के सामने खड़ा था। इतनी देर से उसे अपने ऊपर बड़ी ग्लानि भी हो रही थी। प्रणब के इतनी अधिक चोट लग जाएगी, यह तो उसने सोचा भी न था। गुरु जी ने टीपू की पढ़ाई करने के लिए हाथ आगे बढ़ाया। सहसा प्रणव बीच में आ गया। गुरूजी मत मारिये से। कल इसके पिताजी ने भी इसकी पिटाई की थी। क्यों गुरूजी पूछ रहे थे? यह पढ़ता नहीं है, शरारती है ना इसलिए इसके पिता माता इसे बहुत मारते है। प्रणब ने बताया यह सुनकर गुरु जी का हाथ उठाकर उठा रह गया। पल भर में ही वे समझ गए कि इस बालक को सुधारने के लिए प्यार की जरूरत है। वे सोच रहे थे कि बालक स्वयं में बुरा नहीं होता, वह जन्म से भी बुरा नहीं होता। परिस्थितियों से वैसा बन जाता है। यदि अभिभावक और शिक्षक बालक को सुधार नहीं पाते तो यहाँ बच्चे की गलती से अधिक उनकी अपनी ही असफलता होती है। प्रणव का व्यवहार देखकर टीपू का बाल मन पिघल गया। ओह। मैं कितना नहीं छू और यह जो बुरा करने वाले के साथ भी भलाई कर रहा है कितना अच्छा है गुरु जी मुझे खूब मारे। मैं हूँ ही इसी लायक अपने आप को धिक्कार रहा था। तभी उसे अनुभव हुआ कि गुरूजी उसके सिर पर हाथ फिराते हुए कह रहे थे। टीपू बेटे मैं बहुत दिनों से तुमसे कुछ कहना चाह रहा था। तुम कभी कुछ सीखने की कोशिश नहीं करते। ध्यान रखो, अनजान होना उतनी लज्जा की बात नहीं जितनी कि सीखने के लिए तैयार ना हो, ना तुम कुछ जानने की पढ़ने की कोशिश ही नहीं करोगे तो फिर कैसे अच्छे बनोगे? क्यों तुम्हें सब प्यार करेंगे? जो कुछ सीखना नहीं चाहता, अपने आप को सुधारना नहीं चाहता, उसे सभी दूध काटते हैं, बड़े हो कर भी उसे अपमान ही मिलता है। हम सब तुमसे बड़े हैं, जो कुछ कहते है तुम्हारी भलाई के लिए ही तुम्हें अच्छा बनाने के लिए तुम हमारी बात मान कर चलो फिर देखो। किस अभी तुम्हे कितना चाहने लगते हैं? झरझर झर टीपू की आँखों से आंसू बहने लगे। वह गुरूजी के पैरों में लिपट गया। मैं अब किसी का बुरा नहीं करूँगा, बड़ों की बात मानूंगा। रोते रोते जैसे तैसे वह बोला। गुरु जी ने आगे बढ़कर उसे अपने गले से लगा लिया और रूमाल से उसके आंसू पोछे। उस दिन से एकाएक ही टीपू के व्यवहार में परिवर्तन आ गया। उसके माता पिता अभी भी आश्चर्य करते हैं कि वह अचानक कैसे बदल गया? कक्षा के सभी बच्चे उसे प्यार से टीपू सुल्तान कहकर पुकार ते है। टीपू को भी उतनी खुशी कभी नहीं मिली जितनी अब उसे मिलती है। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें हमेशा मन लगाकर पढ़ना चाहिए और नयी नयी चीजें सीखनी चाहिए। ओके बाइ?","यह टीपू नाम के एक नटखट लड़के की कहानी है। वह कभी भी स्कूल में ठीक से नहीं पढ़ता है और स्कूल में उपद्रव करता है। टीपू कैसे एक अच्छा लड़का बना, यह जानने के लिए कहानी सुनें।" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी में आपको सुनाने जा रही हूँ उसका टाइटल है प्रायश्चित मुक्ति बड़ी होनहार लड़की थी। वह अपनी कक्षा में सदैव प्रथम आती थी और पुरस्कार भी जीतती थी। यही नहीं, उसके सद्व्यवहार के कारण स्कूल में सभी उससे प्यार करते थे। वह सदैव सच बोलती थी, सबकी सहायता करती थी। यह सब उसके माता पिता की सीख का ही परिणाम था। उसकी माँ सोते समय अच्छी अच्छी कहानियाँ सुनाती थीं। उनसे उसे अच्छा बनने की प्रेरणा मिलती थी। मुक्ति अप फोर्थ क्लास में आ गई थी। वह क्लास की मोनिटर भी थी। उसकी क्लास में इस बार बाहर से एक लड़की आई। उसका नाम था पूनम। पूनम जल्दी ही मुक्ति की सहेली बन गई थी। यो मुक्ति पढ़ने लिखने में होशियार थी पर पूनम पढ़ने लिखने में होशियार नहीं थी। पर वहाँ रोज़ नए नए कपड़े पहनकर जरूर आती थी। साथियों को खूबी चाट खिलाती थी, इससे बहुत सी लड़कियां उसकी सहेलियां बन गयी थी। पूनम के पिता बड़े धनी थे। वे उससे भी बहुत सारा जेब खर्च देते थे और उसे पूनम अनाप शनाप चीजों में खर्च करती थी। योर जेब खर्च तो मुक्ति को भी मिलता था पर उसकी माँ ने। उस से कह रखा था बेटी बाजार की सड़ी गली चीजें या चॉकलेट चार्ट खरीदने से इसे खर्च ना करना। कभी कभी ये चीजें खा लेना हर रोज़ की आदत ना बनाना अक्सर होता यह था कि जो भी फल या कोई चीज़ के लिए बच्चे कहते हैं तो मुक्ति की माँ स्वयं ही बाजार से लाकर दे देती या फिर घर में बना देती। फिर सब मिलकर उसे खाते। मुक्ति की माँ ने उसे एक सुंदर भालू वाली गुल्लक लाकर दे दी थी। मुक्ति उसे अपने रोज़ के पैसे डालकर भर रही थी। कभी कभी वह गुल्लक से पैसे निकाल भी लेती थी। पूनम का रोज़ का ही काम था खाने की छुट्टी में और तरह तरह की चीजें खाया करती थीं। वह अकेली ही नहीं खाती थी, अपनी सहेलियों को भी खिलाती थी। मुक्ति अपना खाना खा रही होती तो वह जबरदस्ती उसे ले जाती और कहती मुक्ति खाना तो घर पर ही खाते है, आजकल गप्पे खायेंगे। मुक्ति कहती नहीं, मैं पैसे नहीं लायी हूँ, कोई बात नहीं, मैं तुम्हारे पैसे दे दूंगी। पूनम कहती मुक्ति उसे समझती कि तुम मेरे पैसे क्यों दे दोगी? तो पूनम बोलती कि तुम मेरी सहेली हो ना इसलिए? बढ़िया सारा खाना बेकार हो जाएगा। मुक्ति कहती इस पर पूनम कहती है की सारा खाना लेकर रास्ते में कुत्ते को डाल देंगे। धीरे धीरे पूनम के साथ रहकर मुक्ति को भी बाजार की चीजों में पैसे खर्च करने की आदत बन गई। कुछ दिन तक तो पूनम ने अपने पैसों से खिलाया फिर 1 दिन बोली क्यों मुक्ति तुम्हें जेब कर्च नहीं मिलता क्या? हाँ, मिलते तो है, मुक्ति ने उत्तर दिया। तो फिर तुम रोज़ रोज़ पैसे क्यों नहीं लाती हो? पूनम ने पूछा मैं उन्हें जोड़ती रहती हूँ, उनसे कभी कोई चीज़ खरीद लेती हूँ कभी कोई अबकी बार मैं अपने छोटे भाई के जन्मदिन पर उछलने वाला मेंढक खरीदूंगी हो मुक्ति तुम किस चक्कर में फंसी हो? रोज़ रोज़ खींच खाने में जो मज़ा हैं वो पैसे जोड़ने में कहा आता है। पूनम ने सबक दिया। पूनम की संगति से धीरे धीरे मुक्ति भी चटोरी बनने लगी। रोज़ पैसे लाने लगी, घर से लाया खाना हुआ, किसी लड़की को दे देती या कभी कुत्ते के आगे डाल देती। घर की चीजों में अब उसे कोई रस्सी नहीं लगता था। सब चीजें नहीं लगने लगी। 1 दिन मुक्ति की कुलक के सारे पैसे खर्च हो गए। वह सोच रही थी की आज मैं चॉकलेट कैसे खरीदूंगी? तभी उसकी निगाह मेज पर रखे माँ के पर्स पर पड़ी। मुक्ति ने एक बार सतर्क निगाह से चारों ओर देखा और फिर झट से ₹5 का एक नोट निकाल लिया। बस में काफी रुपये थे अतः मुक्ति की यह चोरी किसी की पकड़ में ना आई। अब तो मुक्ति को और भी निर्भिकता आ गयी थी। कभी वह माँ के पर्स में से पैसे निकालती तो कभी पिता की जेब में से माता पिता परेशान थे। क्या आखिर कौन चुरा ले जाता है? उनका संदेह घर की नौकरानी पर आया पर नौकरानी तो कमरे के अंदर आती तक नहीं थी। वह बाहर से ही काम करके लौट जाती थी और दूसरे जब वो काम कर रही होती थी तो दादी अम्मा बाहर बरामदे में बैठ के उसकी निगरानी करती थी। मुक्ति के माता पिता समझ नहीं पा रहे थे कि रुपए आखिर कहाँ जाते है? मुक्ति और उसके भाई बहनों से कुछ माता पिता पूछते हैं तो वे सभी साफ मना कर देते हैं कि हमने तो पैसे देखे भी नहीं है। 1 दिन घर में बहुत सारे मेहमान आने वाले थे। मुक्ति की माँ ने उसके पिताजी ने कहा कि वह मेहमानों के खाने के लिए बाजार से कुछ चीजें लें। पिताजी ने जल्दी से पेंट पतली फैला उठाया और बाजार चल पड़े। बाजार में उन्होंने पहले बहुत सारे फल खरीदे। फिर रुपए देने के लिए जैसे ही जेब से पर्स निकाला। तो देखा ये क्या? वहाँ तो एक रूपया भी नहीं था। कुछ फुटकर पैसे पड़े हुए थे पर आज सुबह ही उन्होने उसमें कुछ नोट रखे थे। अब तो उनका माथा चकरा गया। वैसे आखिर गयी तो गयी गांव किसने और कब नहीं खाई लिए फल वाले ने मुक्ति के पिता जी को बड़ा अपमानित किया। हाँ बाबूजी पहले घर पर अपना पर्स देख लिया कीजिये, फिर बजा रहा है कीजिए, यदि खरीदने की हैसियत नहीं है तो बर्थ में दूसरे भले आदमी को क्यों तंग करते हैं? मुक्ति के पिताजी अपमान का घूंट पीकर रह गए। अपना सा मुँह लेकर वे घर की ओर बढ़ने लगे। उन्होंने समझा की मुक्ति के माने बिना कहे ही पैसे निकाल लिए। इसलिए आते ही वे उन पर झल्लाने लगे पर मुक्ति की माने तो पैसे लिए ही नहीं थे। उन्होंने भी कह दिया की मैंने तो आपका पर छुआ तक नहीं था। घर में जो कुछ भी था वह खिला पीला कर मेहमानों को विदा किया गया। रात के समय प्रतिदिन की भाति घर के सभी सदस्य मिलजुल कर बैठे। मुक्ति के पिता जी ने बताया कि किस प्रकार आज उन्हें फल वाले ने अपमानित किया। उसने किस प्रकार उन्हें लताड़ लगायी। पिता के मुँह से यह सब सुनकर मुक्ति का बाल मन बिलख उठा। वह सोचने लगी, मेरे कारण ही पिताजी को इतना अपमानित होना पड़ा और झिझकते हुए बोली। पिताजी मुझे माफ़ कर दीजिये, मैं नहीं आपकी जेब से आज पैसे चुराए थे। माँ मुक्ति को डांटने ही वाली थी और पिताजी ने उन्हें मना कर दिया। उन्होंने मुक्ति से सारी बातें विस्तार से पूछी की किस प्रकार से उसे चोरी करने की आदत पड़ी है। मुक्ति ने सच्चा सब बता दिया। उसने अपराध स्वीकार करते हुए कहा कि पूनम के साथ रह रह कर उसे चटोरे पर की लत लगी। इसी कारण उसने चोरी करना सीखा है। मुक्ति के पिताजी बोले। जीप पर चटोरेपन की आदत बन जाती है तो हमारा स्वास्थ्य भी खराब होता है। साथ ही हम अनेक बुरी आदतें भी सीख लेते है। तुम देख ही रही हो अपनी इस आदत के कारण तुमने चोरी करना सीखा चोरी को ना खुलने के देने के लिए झूठ बोलना सीखा इस प्रकार कितनी गन्दी आदत है तुम में आ गई है तुम गंदी बच्ची बन जाओगी तो फिर ना हम तुम्हें प्यार करेंगे ना स्कूल में कोई तुम्हें बात करेगा। मुक्ति रोते हुए पिता जी से लिपट गई और बोली, पिताजी अब मैं पूनम के साथ नहीं रहूंगी, उसी से मैंने ये गंदी आदतें सीखी है। अब मैं बाजार की चीजों में पैसे नहीं बिगाड़ दूंगी, सुपारी और चॉकलेटों के लिए चोरी नहीं करुगी अब की बार बस एक बार मुझे माफ़ कर दीजिये। रोती हुई मुक्ति के सिर पर पिता ने हाथ फिराया और बोले बेटी हमें विश्वास है कि तुम अच्छी लड़की बनने की कोशिश भी करूँगी। तुम अच्छे काम करते हो तो हमें बड़ी प्रसन्नता होती है। हमारा सिर गर्व से ऊंचा होता है। पर तुम्हारे बुरे काम करने पर हम सोचते है की हमे कुछ नहीं आता जो हम तुम्हें अच्छा बना पाए, तुम बच्चे हमारे जीवन की साधना हो, तुम्हारे व्यवहार से लोगों को तुम्हारा नहीं, हमारा परिचय मिलता है की हम कैसे यह कहते कहते पिता का गला रुंध गया। पिताजी की बात सुनकर मुक्ति भक्कर रोटी या आंसू पश्चाताप के आंसू थे। उस दिन से फिर मुक्ति ने चटोरापन झूठ बोलना और चोरी करना सब छोड़ दिया। अब वह एक ही बात की कोशिश करती जैसा पिताजी चाहते हैं मैं वैसा ही बनूँगी उससे उन्हें खुशी होगी और ये खुशी मैं उन्हें हमेशा। तो बच्चो, इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें कभी भी गलत संगत में नहीं पड़ना चाहिए और अच्छे और बुरे का ध्यान रखना चाहिए।",यह एक छोटी लड़की की कहानी है जो एक अमीर लड़की की बुरी आदतों से प्रभावित हो गई। जब उसे अपनी गलतियों का एहसास हुआ तो उसने अपने परिवार के सामने प्रायश्चित किया। "क्या आप भी अपना पॉडकास्ट बनाने का सोच रहे हैं? तो ऐंकर ट्राई कीजिए, ये पॉडकास्ट बनाने का सबसे आसान तरीका है। नंबर एक ये फ्री है नंबर दो। इसमें कई सारे ऐसे टूल्स है जो आपको अपने फ़ोन और कंप्यूटर पर रिकॉर्ड और एडिट करने की फैसिलिटीज देते हैं। नंबर तीन आप अपने पॉडकास्ट को डिस्ट्रीब्यूट भी कर सकते हैं, जिससे इसे इस स्पॉटिफाइ और दूसरे प्लैटफॉर्म्स पे सुना जा सकें। डाउनलोड कीजिये ये फ्री एंकर ऐप या विजिट कीजिए ऐंकर डॉट ऐफ़ एम अपना पॉडकास्ट स्टार्ट करने के लिए? हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपके लिए लेकर आई हूँ, उसका टाइटल है क्रिसमस ट्री का नीला सितारा। नई बात यह नहीं थी कि पहाड़ी पर बर्फ़ पड़नी शुरू हो गई थी। नई बात यह भी नहीं थी कि बच्चों के लाल पीले कोट बाहर निकल आए थे। नई बात तो यह थी कि बच्चों की टोली खाली हाथ लौट आई थी। निराश और मुँह लटकाकर। पूरी पहाड़ी छान मारी थी, पर कहीं भी नहीं मिला था क्रिसमस ट्री, जबकि क्रिसमस के 3 दिन ही बचे थे। ऐसे में माइक ने घोषणा की, मैं अकेला जाऊंगा और क्रिसमस ट्री खोज कर लाऊंगा। बच्चों की टोली माइक को साथ नहीं ले गयी थी सो उसका इस तरह बढ़ चढ़ कर बोल ना किसी को भी अच्छा नहीं लगा रॉबिन तो मुँह बनाकर बोला भी अकेला जाए गा तो बेड़ियाँ तुझे खा जायेगा। लेकिन माइक ने किसी की भी परवाह नहीं की। अपना लाल कोट थोड़ा और कसा और एक छोटी कुल्हाड़ी लेकर जंगल की ओर रवाना हो गया। तभी रुई के फाहों की तरह बर्फ़ पड़नी शुरू हो गई और अंधेरा भी छाने लगा। बहुत देर तक चलता रहा। लौटते चरवाहे और लकड़हारे भी उसे राह में मिले। उसने सबसे क्रिसमस ट्री के बारे में पूछा और उन्हें कुछ भी नहीं मालूम था। हर कोई यही कह रहा था की आज तक इस जंगल में उन्होंने एक भी क्रिसमस ट्री उगा हुआ नहीं देखा। वैसे सच बात तो यह थी कि उन्हें क्रिसमस ट्री की पहचान ही नहीं थी। माइक फिर से आगे बढ़ने लगा और घने जंगल में अंदर की तरफ घुसने लगा। चलते चलते एक विशाल बरगद के नीचे एक बूढ़े आदमी को बैठे देखकर वह चौंक गया। हालांकि उस बूढ़े की दाढ़ी सन सी सफेद नहीं थी और ना ही उसने लाल लबादा पहन रखा था। फिर भी माइक कोवा सैंटा क्लॉस जैसा ही लगा। माइक को देखकर बूढ़े ने अपनी जबरी दाढ़ी पर हाथ फेरते हुए कहा, बोलके एक सूखा तालाब है। वहाँ कभी अद्भुत क्रिसमस के क्रिसमस ट्री हुआ करते थे। दिन की खोज में दूर दूर से बच्चे यहाँ आया करते थे। कैसी अद्भुत क्रिसमस ट्री, बाबा माइक ने हैरानी से पूछा। बच्चे उस पवित्र ट्री को घर में सजाते थे। अगर वे सच्चे दिल से भले काम करें और प्रभु ईशु के बताए हुए रास्ते पर चलें, तो आधीरात के बाद कोई भी देख सकता था की क्रिसमस ट्री पर एक बड़ा सा नीला सितारा चमकने लगता था। बूढ़े ने अपनी चीजें समेटे हुए कहा। बूढ़े की बात से माइक का उत्साह और बढ़ गया और वह तालाब की खोज में आगे बढ़ चला। तालाब पर पहुँचकर माइक ने देखा कि वहाँ तो बर्फ़ बहुत ज्यादा ही गिरी थी। क्या क्या पत्थर क्या धरती सभी कुछ बर्फ़ में था। आसपास पचासों झाड़ियां थीं और बर्फ़ से ढकी होने के कारण सभी एक सी लग रही थी। अरे, यह क्या? उसने चौंककर एक छोटी सी झाड़ी की ओर देखा? साथ छोटी छोटी चिड़िया बर्फ़ पर जमी बैठी थी। उसने हाथ बढ़ा कर एक चिड़िया को उठाया। बेबस चिड़िया बर्फ़ की। मार से अधमरी थी। उसने झटपट रुमाल निकालकर चिड़िया के शरीर से बर्फ़, झाड़ी और अपनी फर वाली टोपी उतारकर उसमें उसे बैठाकर अपने दस्तानों से उसे इस तरह ढक दिया जिससे उसे ज्यादा से ज्यादा गर्मी मिल सके। इसी तरह एक एक करके उसने सातों चिड़ियों को ढक दिया। गीली चिड़िया अभी भी थरथरा रही थी और उसकी तरफ बड़ी मासूमियत से देख रही थी। उसने आसपास से लकड़ियां और घास इकट्ठा कर आग जलाई। गिरी लकड़ियों को जलाने लायक बनाने के लिए उसे अपने मोजे और बनियाइन तक जलाने पड़े। आग की गर्मी से चिड़ियों की जान में जान आ गई पर अब वे चीं चीं करके रोने लगी और चिल्लाने लगी मानो कह रही हूँ, हम भूखी है, हामिद आना चाहिए, खाना चाहिए। माइक ने कहा ठीक है, मेरे साथ मेरे घर चलो, मैं ढेर सारा खाना तुम्हें दूंगा और इस भयंकर बर्फीली सर्दी से तुम्हारी रक्षा भी करूँगा। दरअसल यह लाल पीली चिड़िया उसे खूब भा गयी थी। उसकी बात सुनकर सभी चिड़िया एक साथ बोली, हमारा घर तो यह जारी है। हम इस झाड़ी को छोड़कर कहीं नहीं जा सकती। अगर ऐसा है तो मैं इस झाड़ी को भी काटकर साथ लिए चलता हूँ। माइक ने कहा और झाड़ी को काटने लगा। बर्फ़ से उसके हाथ सुन्न हो गए थे और अब कुल्हाड़ी चलाने से हाथों में छाले भी पड़ने लगे थे। खैर उसने किसी तरह झाड़ियां काटी फिर उन सातों चिड़ियों को हिफाजत के साथ कोर्ट की जेब में रखकर कंधे में झाड़ी उठाकर घर की ओर चल दिया। टोली के बच्चे उसे इंतजार करते मिल गए। उन्हें देखकर ही उसे याद आया कि वह क्रिसमस ट्री की खोज में गया था लेकिन चिड़ियों के चक्कर में वही सब भूल गया। अरे, वाउ यू क्रिसमस ट्री तुम्हें कहाँ मिला? माइक हमने तो सारा जंगल छान मारा था। डेविड ने चकित होते हुए पूछा कि ऐसा क्रिसमस ट्री? माइक ने सोचा कि सभी लोग उसका मजाक उड़ा रहे हैं, तभी एंजेला बोली ऐसा सुंदर क्रिसमस ट्री तो मैंने आज तक नहीं देखा। माइक ने हैरत से कंधे पर लदा पौधा नीचे उतारा तो चौंकने की बारी अब उसकी थी। इतना रास्ता चल लेने से झाड़ी की बर्फ़ झड़ चुकी थी। वह अंजान झाड़ी एक खूबसूरत क्रिसमस ट्री के रूप में सामने थी। माइ क्यों हमे घर बुलाओगे अपना क्रिसमस ट्री दिखाने डेविड ने पूछा, माइक मित्रों के मन की बात समझकर बोला, दोस्तों यह हम सबका क्रिसमस ट्री है, इसे मैं अपने घर में नहीं ले जाऊंगा। इसे हम चर्च में सजाएंगे और सबको यह जानकर आश्चर्य होगा कि इस झाड़ी पर सात चिड़ियों का बसेरा है। उनकी देखरेख भी हम सब मिल जुल कर ही करेंगे। बस फिर क्या था बच्चों की टोली पूरे जोश के साथ पहाड़ी पर बने चर्च की ओर चल पड़ी। क्रिसमस ट्री को सजाने के लिए हर बच्चा अपने घर से एक एक प्यारा उपहार लाया और चिड़ियों के लिए खाना भी। 2 दिन बाद क्रिसमस के दिन जो भी चर्च में आया सबसे पहले उसकी नजर क्रिसमस भरी गई। ऐसा अद्भुत क्रिसमस ट्री उनकी कल्पना से भी परे था। सारा गांव ही चर्च की ओर दौड़ पड़ा। चर्च पर पहुँचकर उन्होंने देखा कि क्रिसमस जी की सातों चिड़िया झूम झूमकर गाना गा रही है। सबने देखा कि क्रिसमस ट्री के पीछे एक बड़ा सा नीला सितारा उभर आया है और उसमें से एक हँसमुख लड़के का चेहरा झांक रहा है। वह चेहरा माइक का था। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है की हमे भी माइक की तरह हमेशा प्रकृति और प्राणियों के प्रति संवेदनशील होना चाहिए, तभी हम दूसरों की सहायता कर सकते हैं। ओके बाइ?","सभी को नमस्कार, यह एक लड़के की एक अच्छी और नैतिक कहानी है। यह माइक नाम के एक लड़के की दरियादिली की कहानी है। वह बहुत मेहनती और बहादुर लड़का है। इस कहानी में आपको एक छोटे लड़के के विनम्र और सहायक स्वभाव के बारे में पता चलता है। पूरी कहानी सुनें और कहानी की नैतिकता के बारे में जानें।" "हैलो बच्चों। हम सभी जानते हैं कि जो चीजें हम बचपन मैं सीखते हैं वो हमेशा हमारे साथ धरोहर के रूप में रहती है और हमेशा काम भी आती है। हम अपने रोज़मर्रा के कार्य कलापों के बीच में थोड़ा सा समय ईश्वर पूजा और भक्ति में भी गुड बिताते हैं। हमारे बड़े हमें हमेशा यह कहते हैं कि आओ भगवान के सामने हाथ, जोड़ों और थोड़ी सी प्रार्थना करो। बच्चों हनुमान जी के बारे में तो हम सभी जानते हैं। उनकी शौर्यगाथा, उनकी लीलाओं का हम सभी को थोड़ा थोड़ा सा ज्ञान तो होता ही है। हनुमान जी भगवान श्रीराम के न केवल सहायक बल्कि उनके मित्र भी थे। रावण के साथ युद्ध करते समय उन्होंने श्रीराम को हर विपत्ति से बचाया और हर प्रकार से हर संभव प्रयास करके उनकी सहायता भी की थी। हनुमान चालिसा। हनुमान जी की। गाथा और उनके। शूरवीरता से भरे हुए कार्यों का ही एक गान है। हनुमान चालिसा एक बेहद सहज और सरल बजरंगबली की आराधना में की गई एक काव्यात्मक 40 छंदों वाली रचना है। तुलसीदासजी बाल्यावस्था से ही श्रीराम और हनुमान जी के भक्त थे, इसलिए उनकी कृपा से उन्होंने महाकाव्यों की रचना की। ऐसा माना जाता है कि हनुमान चालीसा के पाठ से कई तरीकों की तकलीफों का भी नाश हो जाता है और सुख, समृद्धि तथा विद्या और बुद्धि में भी वृद्धि होती है। यदि किसी कारण मन अशांत है तो हनुमान चालीसा का पाठ करने से मन को शांति मिल जाती है। हर तरीके से भय का नाश भी होता है। एक पुरानी मान्यता है कि हनुमान जी को एक बार बचपन में जब भूख लगी तो वह सूर्य को फल समझकर खा गए थे। बजरंगबली के पास अपार शक्तियां दी। इसका उपयोग कर जब वह सूर्य को निगलने के लिए आगे बढ़ें तो देवराज इंद्र ने अपने वज्र से प्रहार करके उन्हें मूर्छित कर दिया। हनुमानजी के मूर्छित होने की बात जब पवनदेव को पता चली तो वह काफी क्रोधित हो गए। ऐसे में देवताओं को हनुमानजी के रुद्र अवतार होने का पता चला। तो सभी ने उन्हें कई शक्तियां प्रदान की। ऐसा भी माना जाता है कि देवताओं ने जिन मंत्रों और हनुमान जी की विशेष ताओं को बताते हुए उन शक्तियां प्रदान की थी, उन्हीं मंत्रों के सार को गोस्वामी तुलसीदास जी ने हनुमान चालीसा में समाहित किया। असल में हनुमान चालीसा में मंत्रणा होकर हनुमानजी के पराक्रम की विशेषताएं ही बदली गई है। आज मैं आपको हनुमान चालिसा। का अर्थ सरलतम शब्दों में बताऊंगी, जिससे आपको हनुमान चालीसा याद करने में भी सुविधा होगी और आपको उसका आनंद भी आएगा। तो आइए सबसे पहले प्रारंभ करते हैं दोहे से। श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मन्नू मुकुरु सुधारि। बरनउँ रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि। ये सबसे पहला दोहा है हनुमान चालीसा का। इसका अर्थ है कि मैं अपने श्री गुरु जी के चरण कमलों की धूल से अपने मन रूपी मुकुट को सच करके श्री रघुवर के निर्मल यश का वर्णन करता हूँ, जो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को देने वाला है। बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरौं पवन कुमार बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कॉलेज बिकार। अर्थात ये पवनपुत्र मैं आप का उपासक हूँ। आप तो यह जानते ही है कि मेरा शरीर और बुद्धि निर्मल है। मुझे शक्ति सु बुद्धि एवं ज्ञान दीजिए और मेरे दुखों और चिंताओं का अंत कर दीजिए। तो बच्चो। हनुमान चालीसा के प्रारंभ में ये दो दो हे हैं जिनका अर्थ अभी आपको मैंने बताया। अब प्रारंभ करते हैं हनुमान चालीसा की चौपाइयां। तो पहली जो पाई है जय हनुमान ज्ञान गुन सागर, जय कपीस तिहुं लोक उजागर। अर्थात हे हनुमान जी, हे कपीश आप ज्ञान व अंतः करण को शुद्ध करने वाले अनंत गुणों के सागर है। आप तीनों लोगों को प्रकाशमान करते हैं, अतः आप की जय हो। रामदूत अतुलित बलधामा, अंजनीपुत्र पवनसुत नामा। आप राम जी के दूत और असीम एवं अद्वितीय बाल शक्ति के भंडार हैं। आप अंजनीपुत्र और पवन पुत्र के नाम से भी विख्यात है। हनुमान जी की माता का नाम अंजलि था। उसी का यहाँ पर उल्लेख हुआ है। आगे बढ़ते हैं। महावीर विक्रम बजरंगी, कुमति निवार सुमति के संगी। हे महावीर आप अत्यंत वीर पराक्रमी है, आपके अंग वज्र के समान बलिष्ठ है। आप पाप बुद्धि को दूर करने वाले और सद्बुद्धि का साथ देते है। कहने का तात्पर्य यह है कि हनुमानजी बहुत पराक्रमी और बहुत बलशाली थे और वो हमेशा सब को सद्बुद्धि ही देते है। इसलिए हनुमान जी की प्रार्थना सद्बुद्धि देने वाली और कुबुद्धि का नाश करने वाली ही होती है। अगला है। कंचन बरन बिराज सुबेसा, कानन कुंडल कुंचित के साथ। आप का रंग स्वर्ण के समान है, सुंदर वेशभूषा है। आप सुशोभित है आप कानों में कुंडल धारण करते हैं, आपके केश घुंगराले व अति सुंदर है इस। चोपाई में हनुमान जी के। सौंदर्य का रूप का वर्णन किया गया था। अब आगे सुनते हैं हाथ और ध्वजा विराजे, कांधे मूंज जनेऊ साजे। इसमें हनुमान जी ने क्या धारण किया है और कैसे वे दिखते हैं, उसका वर्णन है। आपके एक हाथ में वज्र दूसरे में ध्वजा सुशोभित है। आपके कंधे पर यज्ञोपवित अर्थात जनयु शोभायमान रहता है। शंकर सुवन, केसरीनंदन तेज प्रताप महा जग बंदन। हनुमान जी। प्रभु शिव शंकर जी के पुत्र कहे जाते हैं और केसरी जी को आनंद देने वाले हैं। अर्थात् व केसरीजी के पुत्र हैं तो आपकी यश, प्रतिष्ठा महान है। सारा संसार आपकी पूजा करता है। विद्यावान गुनी अति चातुर, राम काज करिबे को आतुर। अर्थात आप सभी विद्याओं के पूर्ण, अनुभवी है और राम जी के सभी कार्य संपन्न करने को व्याकुल रहते हैं। हनुमानजी प्रभु श्रीराम के सारे कार्य करने के लिए सदैव तत्पर रहते थे। प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया। आप श्री राम जी की कथा सुनने के रसिया है? आपके हृदय में राम, लक्ष्मण व सीता जी सदा निवास करते हैं। एक कहावत भी है कि जहाँ भी श्री राम जी की पूजा अर्चना होती है, वहाँ हनुमानजी स्वतः ही उपस्थित हो जाते हैं। सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा, बिकट रूप धरि लंक जरावा। अर्थात आप योग बल से छोटा रूप बनाकर सीताजी के आगे प्रकट हुए और विशाल एवं भयंकर रूप धारण करके लंका को जला डाला। जैसा कि श्रीरामचरितमानस में बताया गया था कि जब सीताजी को खोजते हुए हनुमान जी लंका नगरी पहुंचे थे तो लंका नगरी में अगर वो अपने सामान्य शरीर के माध्यम से जाते तो उन्हें पकड़ लेते अथवा कोई भी वहाँ पर युद्ध हो जाता परंतु गुप्त रूप से उन्हें वहाँ पहुँचकर सीताजी की खोज करनी थी इसीलिए हनुमानजी ने अपना सूक्ष्म रूप धारण किया था और उसके बाद जब उनकी पूछ में आग लगाई गई थी तो उन्होंने अपना विशाल रूप धारण करके पूरी लंका को जला दिया था। आगे बढ़ते हैं। भीम रूप धरि असुर संहारे है, रामचन्द्र के काज संवारे। राम रावण युद्ध में आपने विशाल भयंकर रूप धारण कर राक्षसों का संहार किया रामचंद्रजी के अनेक अनेक कार्य संपन्न किए। लाय संजीवन लखन जियाये श्रीरघुबीर हरषि उर लाये। रघुपति कीन्ही बहुत बढ़ाई, तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई। एक बार जब युद्ध के समय। लक्ष्मण जी को संजीवनी बूटी की आवश्यकता थी उन्हें। मेघनाथ ने। बाढ से मूर्छित कर दिया था। तब हनुमानजी ने संजीवनी पर्वत से संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मण जी को जीवित किया था। इस पर प्रभु श्रीराम ने प्रसन्न होकर उन्हें हृदय से लगाया और कहा कि हनुमान तुम मेरे भरत के समान ही मेरे प्रिय भाई हो। आगे पढ़ते हैं। सहस बदन तुम रोजस गावे। स्क ही श्रीपति कंठ लगावें। सहस्त्रों मुख आप का यशोगान करते हैं। यह कहकर भगवान श्रीराम ने श्री लक्ष्मीपति जी ने आपको गले से लगा लिया था, सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा, नारद, सारद सहित अहीसा यह सारे ऋषि, मुनि, देवी, देवता, ब्रह्मा जी, सरस्वती, नारदजी सभी आपके साथ हैं। जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते कभी कहीं सके कहाँ थे। राजपुर, बेर जी और अन्य ज्ञानीजन सभी आप का गुणगान करते हैं। बोलो पवनपुत्र हनुमान जी की जय। तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा, राम मिलाय राज़, पद दीन्हा। आपने सुग्रीवजी को श्रीराम से मिलवाकर उन पर महान उपकार किया। राम मिलन से ही उन्हें किशकिन्दा का राज्य वापस प्राप्त हुआ था। यह भी कथा राम चरित मानस में दी गई है कि एक बार जब प्रभु श्रीराम और लक्ष्मणजी किसकिन्दा की पहाड़ियों पर घूम रहे होते हैं तो वहाँ पर हनुमान जी से उनकी भेंट होती है। हनुमानजी उन्हें अपने महाराज सुग्रीव के पास ले जाते हैं। सुग्रीव अत्यंत खिन्न और दुखी होते हैं क्योंकि उनके भाई बाली ने उनका सारा राज्य उनसे छीन लिया होता है। प्रभु श्रीराम की कृपा से। सुग्रीव को उनका राज्य वापस मिलता है। तुम रो मंत्र बिभीषन माना। लंकेश्वर भए सब जग जाना इसी प्रकार आपका परामर्श मानकर विभीषण प्रभु श्रीराम की शरण में गए जिसके कारण वे लंका के राजा बने और यह बात सारा संसार जानता है। जो को सहस्त्र जोजन पर भानु लील्यो, ताहि मधुर फल जानू। आपने बालि काल में हजारों योजना की दूरी पर स्थित सूर्य को एक मधुर मीठे फल की तरह मुँह में रख लिया था। प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं, जलधि लांघ गए, अचरज नाहीं वह मुद्रिका जो समस्त कार्यों को पूर्ण करने वाली थी तथा सब विघ्न बाधाओं को हरने वाली थी, उसे मुँह में रख आपने विशाल सागर को पार किया, इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है। बच्चों यह मुद्रिका वही है जो प्रभु श्रीराम ने अपनी निशानी के लिए सीता माता को दिखाने के लिए हनुमानजी को दी थी कि जब हनुमान जी सीता माता को खोज लें और सीता माता से मिले। साक्षी के रूप में निशानी के रूप में हनुमान जी सीता माता को क्या दिखाएंगे, उन्हें कैसे विश्वास दिलाएंगे कि वो प्रभु श्री राम के दूत है? इसीलिए प्रभु श्रीराम ने हनुमानजी को वो अंगूठी दी थी और उस अंगूठी को मुँह में दबाए हनुमान जी ने हजारों लाखों योजना। बड़े समुद्र को भी। कुछ ही समय में पार कर लिया था और सीताजी को खोज निकाला था। दुर्गम काज जगत के जेते, सुगम अनुग्रह तुम्हारे तेते संसार में लोगों के जीतने भी कठिन कार्य है। वे आपकी कृपा से सरल हो जाते हैं। आप अपने भक्तों पर बहुत अनुग्रह रखते हैं। हनुमान जी भक्तों के प्रति बहुत सहृदय रहते हैं। भक्त जब हनुमानजी का ध्यान करते हैं तो उनके सभी कष्टों को श्री हनुमान जी दूर भी करते हैं। राम दुवारे तुम रखवारे, होत न आज्ञा बिनु पैसारे प्रभु श्रीराम के द्वारा बैकुंठ के आप रखवाले हैं। आपकी आज्ञा के बिना कोई भी उस धाम में प्रवेश नहीं कर सकता। सब सुख लहे तुम्हारी सरना, तुम रक्षक काहू को डरना जो आपकी शरण में आता है वो सब सुखों को प्राप्त करता है और जब आप स्वयं उसके रक्षक है तो फिर उसे किस बात का डर? आपन तेज समारोह आप ये तीनों लोग हांकते का पे। आपका तेज अत्यंत प्रचंड है। उसे स्वयं आप भी संभाल सकते है। आपकी एक हुंकार से ही तीनों लोग कांप उठते है। आप त्रिभुवन मैं सर्वशक्तिमान है। आगे हैं। भूत पिशाच निकट नहीं आवे, महावीर जब नाम सुनावे। नासै रोग हरे सब पीरा। जपत निरंतर हनुमत बीरा। अर्थात यदि किसी को भूत पिशाच दिखाई देते हैं। तो हे महावीर आप का नाम लेने मात्र से वे तुरंत भाग जाते है। आपका नाम रामबाण की भाँति है आपके नाम का निरंतर जाप करते रहने से सब रोग व पीड़ाये चाहे वह आदि भौतिक हो अथवा आदि दैविक या आध्यात्मिक, तीनों ताप भी दूर हो जाते हैं। संकट तें हनुमान छुड़ावै मन क्रम बच्चन ध्यान जो लावे जो व्यक्ति मन, वाणी व शरीर से हनुमान जी का स्मरण व पूजा करते हैं, हनुमानजी उनके सबक, संकट और कष्ट भी दूर कर देते है। सब पर राम तपस्वी राजा तिन के काज सकल तुम साजा और मनोरथ जो कोई लावै, सोई अमित जीवन फल पावै है। तपस्वी राम सारे संसार के राजा हैं, फिर भी है हनुमानजी। आपने उनके सारे कठिन कार्य संपन्न किए। जो कोई या अपनी सांसारिक इच्छा लेकर आता है उसे आप पूरा करते हैं पर साथ ही राम भक्ति का मार्ग भी दिखाते है जिससे मनुष्य जीवन का अमूल्य फल अर्थात मोक्ष प्राप्त करता है। आगे हैं बच्चों, चारों ओर झुक परताप तुम्हारा है परसिद्ध जगत उजियारा। आपका प्रभाव चारों युगों चार यू कौन कौन से होते है? सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग और कलयुग चारों युगों में फैला हुआ है। वह प्रताप जगत को प्रकाशमान करने के लिए प्रसिद्ध है। साधु संत के तुम रखवारे, असुर निकंदन राम दुलारे। आप सज्जन हो, प्रभु भक्तों की रक्षा करने वाले पर दुष्टों का नाश करने वाले हैं, प्रभु श्रीराम को पुत्र के समान प्रिय है। अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता असबर दीन जानकी माता। आपको माता सीता की ओर से आठों सिद्धियां और नौ निधियों का वरदान मिला हुआ है। उनकी शक्ति से अब किसी को भी सब प्रकार की संपत्ति दे सकते हैं। राम रसायन तुम्हारे पासा सदा रहो रघुपति के दासा। आपके पास राम भक्ति रूपी रसायन है, जो किसी को भी सर्वश्रेष्ठ बना सकता है। आप रघुपति दास के रूप में लोगों को रामभक्त बनाते हैं। इसका तात्पर्य है बच्चों की जो भी हनुमान जी की पूजा प्रार्थना करता है वह सहज रूप से ही प्रभु श्रीराम का भक्त बन जाता है। क्योंकि हनुमानजी स्वयं प्रभु श्रीराम के सर्वश्रेष्ठ भक्त हैं। आगे हैं। तुम्हारे भजन राम को पावै, जनम जनम के दुख बिसरावै। आप के लिए किये गए सभी भजन श्री राम तक पहुंचते हैं जिससे जन्म जन्मांतर के दुख दूर हो जाते हैं। अन्तकाल रघुबर पुर जाई जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई। आपके भजनों की कृपा से ही प्राणी अंत समय श्रीराम के धाम को प्राप्त करते हैं। और यदि मृत्युलोक में जन्म लेंगे तो भक्ति करेंगे, वाह री की भक्ति करके हरि भक्त कहलाएंगे। और देवता चित्त न धरई, हनुमत सेई सर्व सुख करई। रामभक्ति में कृष्ण, विष्णु, शिव सब एक ही है। ये हनुमान जी जो भक्त सच्चे मन से आपकी सेवा करते हैं, उन्हें सब सुख प्राप्त होते हैं। संकट कटै मिटै सब पीरा, जो सुमिरै हनुमत बलबीरा। अर्थात महावीर जी की उपासना भक्ति से मनुष्य के सारे संकट, कष्ट, दुःख मिट जाते हैं। वह जन्म मरण की पीड़ा से मुक्त हो जाते हैं। जय जय हनुमान गोसाईं। कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ये हनुमानजी हे गोस्वामी जी। जिसने 10 इंद्रियों को वश में किया हो, आपकी जय हो गुरु की भांति मुझ पर कृपा करे जो सत बार पाठ कर कोई छूटहि बंदि महा सुख होई जो यहाँ पढ़ें हनुमान चालीसा होय सिद्धि साखी गौरीसा जो व्यक्ति हनुमान चालीसा का निरंतर पाठ करता है, वजन मरण के बंधन से मुक्ति हो, शाश्वत आनंद प्राप्त करता है, निर्भय हो जाता है, वह व्यक्ति जो व्यक्ति हनुमान चालीसा को पड़ता है उसकी सभी मनोकामनाएं भी। सफल होती है इस बात की साक्षी स्वयं भगवान शंकर ने दी है। तुलसीदास सदा हरि चेरा की जय नाथ हृदय मंह डेरा। तुलसीदासजी कहते हैं कि हे प्रभु आप श्रीराम के दास हैं और मैं आपका दास हूँ। अतः हे श्री हनुमान जी आप मेरे हृदय में विराजे। पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भु अर्थात ये पवनपुत्र संकटों, दुखों, कष्टों को दूर करने वाले एवं परम कल्याण की साक्षात मूर्ति और आप जो देवताओं के राजा हैं। राम, लक्ष्मण, सीता जी के साथ मेरे हृदय में सदा निवास कीजिए।","सभी को नमस्कार, यह पूर्ण हनुमान चालीसा का एक आसान और वास्तविक अर्थ है। मैं चाहता हूं कि सभी बच्चे प्रतिदिन इस स्तुति का पाठ करें क्योंकि यह उनके जीवन में अच्छाई का आनंद लेगी। हनुमान चालीसा हमारी संस्कृति का भक्ति गीत है। इस अमर और भक्ति गीत को अपनी दैनिक पूजा में शामिल करें। पूरा अर्थ और स्पष्टीकरण सुनें और हनुमान चालीसा को आसानी से जानें।" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी में आप सब के लिए लेकर आई हूँ उसका शीर्षक है शक्ति से बड़ी बुद्धि। काफी समय पहले मध्य प्रदेश में वर्षा बिल्कुल ना होने के कारण अकाल पड़ गया। नदियां, तालाब आदि सभी सूख गए और उसके कारण प्राणी त्रस्त हो उठे। पानी के अभाव में अनेक प्राणी मृत्यु के काल के गाल में समा गए। उसी देश के एक वन में हाथियों का एक विशाल झुंड रहता था। वर्षा न होने से वे भी प्यास के कारण मरने लगे। जब स्थिति काफी बिगड़ गई तब हाथियों ने अपने मुखिया से कहा। सुदूर अब स्थिति अधिक भयंकर हो गई है। हमारे बच्चे बिना पानी पिए थोड़ा तड़क कर मरने लगे हैं। हम लोगों की भी ऐसी ही दशा हो रही है। कृपया पानी की प्राप्ति का कोई उपाय शीघ्र अतिशीघ्र कीजिए। इस बार हाथियों का सरदार बोला तुम्हारे बार ठीक तो है। हमने पानी की प्राप्ति के लिए काफी प्रयास भी किए, लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ क्योंकि भीषण गर्मी के कारण दूर दूर तक पानी के सभी स्रोत सूख गए हैं। ऐसे में सिर्फ एक ही उपाय रह जाता है कि हम इस स्थान को छोड़कर अन्यत्र चल दें। जहाँ पानी हो जो वर्षा होगी तब हम पुनः इसी स्थान पर लौट आएँगे। अपनी सरदार की बात सभी हाथियों ने मान ली। वे तत्काल उस वन को छोड़कर दूसरे स्थान की ओर चल पड़े। कई दिनों तक चलने के बाद उन्हें एक नदी दिखाई दीं। जिसमें स्वच्छ और पर्याप्त पानी था। उन हाथियों ने भरपेट पानी पिया तथा उसी नदी से थोड़ी दूर पर स्थित वन में अपना पड़ाव डाल दिया। वे दिन भर जंगली फल, पेड़, पौधे आदि खाते और नदी का पानी पीकर चले जाते। लेकिन उस नदी के तट पर रहनेवाले खरगोशों की जान पर बन आई थी। अनेक खरगोश हाथियों के पैरों तले दबकर मर जाते। जमीन के नीचे उनके बने हुए घर भी तहस नहस हो गए। ऐसी स्थिति में खरगोशों ने आपस में विचार विमर्श किया कि किस प्रकार इन हाथियों को यहाँ आने से रोका जाए। लेकिन कोई भी खरगोश ऐसा कोई भी उपाय सुझा सके ऐसा नहीं हुआ। तभी विजय नाम का एक बूढ़ा खरगोश बोला हम लोग अत्यंत शक्तिहीन हैं जबकि हाथी काफी बलवान। ऐसी स्थिति में हम उनसे युद्ध भी नहीं कर सकते। फिर क्या करें? एक नौजवान खरगोश तमककर बोला, क्या हाथ पर हाथ रखकर अपनी जान मकान को बर्बाद होने दें? नहीं नहीं, इन्हें शक्ति से नहीं बल्कि बुद्धि से परास्त करना होगा। लेकिन तुम किसी प्रकार की चिंता मत करो, मैं इसका कोई न कोई उपाय अवश्य ही बता दूंगा। यह कहकर वह बूढ़ा खरगोश विजय वहाँ से चल पड़ा। रास्ते भर उसका दिमाग इसी उधेड़बुन में लगा रहा कि हाथियों को वहाँ से भगाने के लिए क्या उपाय करना चाहिए। तभी चलते चलते उसे एक उपाय सूझ गया। फिर क्या था? वह तत्काल हाथियों के निवास स्थल की ओर चल दिया। शीघ्र ही वह अपने गंतव्य पर पहुँच गया। वह ऐसे एक ऊंचे टीले पर चढ़ गया जिसके नीचे हाथियों का दल बैठा था। विजय खरगोश मनी मन मुस्कुराया और फिर हाथियों के सरदार को संबोधित करते हुए बोला। गुजराज तुम कैसे मूर्ख हो जो इतनी बड़ी गलती कर बैठे हाथियों का सरदार ऊंचे टीले पर बैठे खरगोश को देखता हुआ कठोर स्वर में बोला तुम कान हो और मैंने क्या गलती की है? विजय खरगोश ने फिर कहा। मैं एक खरगोश हूँ, चंद्र देवता का प्रिय दूत हूँ। उन्होंने ही मुझे यार तुम्हारे पास भेजा है। चन्द्र देवता का नाम सुनकर हाथियों का सरदार नंबर पड़ गया। वह शांत सर मैं बोला अच्छा तुम चंद्र देवता के दूत हो? उन्होंने किस लिए तुम्हें मेरे पास भेजा है? तब खरगोश दृढ़ता भरे स्वर में बोला। चंद्र देवता ने कहा है कि तुमने चंद्र नदी की रखवाली करने वाले खरगोशों को वहाँ से हटा कर और उन्हें रौंदकर जघन्य अपराध किया है। ये सब मेरे अनुचर है। मैंने सदैव उनकी रक्षा की है। यही नहीं, उन्होंने यह भी कहा है कि तुम लोगों ने उस चंद्र नदी का पानी पीकर और उसमें नहा कर उसके जल को अपवित्र भी कर दिया है। इसी कारण चंद्र देवता तुम सबसे बहुत कुपित है। यदि तुम लोग तत्काल यहाँ से नहीं गए तो वे तुम्हारा सर्वनाश कर देंगे। सर्वनाश की बात सुनकर हाथियों का सरदार व्याकुल हो उठा। वह घबराकर ऊंचे स्वर में बोला। माननीय दूध जी, हम लोगों को चंद्रदेवता से क्षमा प्रदान करा दीजिए, कृपया ऐसा करा दीजिये। भविष्य में हम ऐसी गलती कभी नहीं करेंगे। हम लोग यहाँ से शीघ्र ही चले जाएंगे। विजय खरगोश अपनी योजना सफल होती देख फूला नहीं समा रहा था। फिर भी उसे आशंका थी कि कहीं आश्वासन देने के बावजूद हाथियों का दल यहाँ से न जाए। इसलिए उसने कहा। ठीक है, तुम लोग स्वयं मेरे साथ उस चंद्र नदी पर चलो, वहाँ पर कुपित चंद्र देवता से अपनी गलती की क्षमा मांगो और यहाँ से चले जाओ। इस उपाय से वे तुम लोगों को माफ़ कर देंगे और तुम्हारी कोई भी गलती पर तुम्हें कोई अहित नहीं होने देंगे। हाथियों के सरदार को खरगोश की यह बात पसंद आ गई। वह अपने साथियों के साथ उस नदी के समीप पहुंचा। पूर्णमासी का चंद्रमा निकल आया था। उसका प्रतिबिंब नदी के जल में दिखाई दे रहा था। मगर जल की लहरों के कारण चंद्रमा का पता सा लग रहा था। विजय खरगोश ने जल में दिख रहे चन्द्रमा का प्रतिबिंब दिखाते हुए हाथियों के सरदार से कहा देखो चंद्र देवता तुम से कुपित होने के कारण क्रोध आवश् काँप रहे हैं, अब देर न करो, इन्हें प्रणाम करके अपनी गलती की क्षमा मांगो। सभी हाथियों ने चंद्रमा के प्रतिबिंब को हाथ जोड़कर नमस्कार किया और अपनी गलती की क्षमा मांगी। इस पर खरगोश ने कहा ये चंद्रदेव इन्हें क्षमा कर दीजिए, अभी यह ऐसी गलती कभी नहीं करेंगे। उन्होंने तत्काल यहाँ से चले जाने का वचन भी दिया है। इसके बाद हाथियों का सरदार विजय खरगोश से विदा लेकर अपने साथियों के साथ अन्यत्र कहीं चला गया। इस प्रकार उस चालाक खरगोश ने अपनी चतुराई के द्वारा शक्तिमान हाथियों को वहाँ से जाने के लिए विवश कर दिया। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमारी बुद्धि सर्वदा शक्ति से ज्यादा बलवान होती है। बुद्धि का प्रयोग कर कर हम शक्तिशाली व्यक्ति और शक्तिशाली जंतुओं पर भी विजय प्राप्त करने में सफल हो सकते हैं।","सभी को नमस्कार, यह एक छोटे से खरगोश 🐇 और एक विशालकाय हाथी 🐘 की शानदार नैतिक कहानी है। हाथी खरगोश के सामने बहुत बड़ा है लेकिन बड़ी चतुराई से खरगोश अपने उद्देश्य में सफल हो गया। पूरी कहानी सुनें और कहानी की नैतिकता के बारे में जानें।" "क्या आप भी अपना पॉडकास्ट बनाने का सोच रहे हैं? तो ऐंकर ट्राई कीजिए, ये पॉडकास्ट बनाने का सबसे आसान तरीका है। नंबर एक ये फ्री है नंबर दो। इसमें कई सारे ऐसे टूल्स है जो आपको अपने फ़ोन और कंप्यूटर पर रिकॉर्ड और एडिट करने की फैसिलिटीज देते हैं। नंबर तीन आप अपने पॉडकास्ट को डिस्ट्रीब्यूट भी कर सकते हैं, जिससे इसे इस स्पॉटिफाइ और दूसरे प्लैटफॉर्म्स पे सुना जा सकें। डाउनलोड कीजिये ये फ्री एंकर ऐप या विजिट कीजिए ऐंकर डॉट ऐफ़ एम अपना पॉडकास्ट स्टार्ट करने के लिए? हैलो बच्चों, आज मैं आपके लिए एक नई कहानी लेकर आई हूँ तो आज की हमारी कहानी का शीर्षक है मंत्री का चुनाव। अभयारण्य में बहा सुरक नाम का एक सिंगर हाँ करता था, वह बड़ा ही शक्तिशाली था। उसने वहाँ के सिंह राजा को युद्ध में हरा दिया था क्योंकि वह जंगल के जानवरों पर अत्याचार करता था, जो चापलूसी करते थे, बस उन्हें ही पसंद करता था। भासुरंगी उसके स्थान पर अब स्वयं राजा बन गया था। 1 दिन बज़ुर्घट ने सोचा कि इतने बड़े राज्य पर अकेले तो शासन करना बड़ा कठिन है। किसी साफ बात करने वाले बुद्धिमान जानवर को मंत्री बनाया जाए, जिससे की वह अच्छी सलाह दे सकें और राज्य का भी हित हो। 1 दिन भासुर घर से सोच कर गया की आज जरूर मंत्री का चुनाव करेगा। राज्यसभा में पहुँचकर उसने आदेश दिया, डोंगल को सभी जीव जंतु तुरंत और एकत्रित हो जाए। फिर क्या था सारा का सारा जंगल ही उमड़ पड़ा। रीच भालू, हाथी, चीता, लोमड़ी, गीदड़, कुत्ता, गधा, बंदर, भैंसा आदि सभी जानवर अपने अपने नियत स्थानों पर आकर बैठ गए। अब सिंघ कहने लगा भाइयों और बहनों, मैंने और एक विशेष कारण से तुम्हें बुलाया है। पड़ोसी राजा ने उपहार में इत्र भिजवाया है। सारे दरबार में वह छिड़कवाया गया है। तुम सब को इसकी सुगंध आ रही होगी। हाँ महाराज बहुत अच्छी सुगंध आ रही है, इतनी दिल को प्रसन्न करने वाली है। यह चिंटू सिंह की बात को बीच में ही काटते हुए बोला। साथ ही साथ चिंटू खरगोश नथुने ज़ोर ज़ोर से सिकोड़कर गहरी गहरी सांस भरने लगा। ऐसा लगा जैसे सारी की सारी सुगंध को वह अपने अंदर भर लेने की कोशिश कर रहा हो। यो चिंटू खरगोश सारे जंगल में अपनी चापलूसी के लिए प्रसिद्ध था। सभी उसकी इस आदत को जानते थे पर आज तो इस बात पर सभी उसकी शकल ही देखने लगे। जम्मू। सियार सोचने लगा, क्यों ना? मैं भी इसकी हाँ में हाँ मिला हूँ। फिर मैं भी राजा का कृपा पात्र बन जाऊंगा। उसने भी खड़े होकर और भी अधिक ज़ोर ज़ोर से कहा। महाराज आज तो सारा दरबार महक रहा है जम्बू सियार की भांति टिंकू हाथी ने भी सोचा कि मुझे भी राजा की चापलूसी करनी चाहिए। इसी प्रकार एक एक करके जंगल के सभी जीवों ने यही सोचा। धीरे धीरे करके सभी यही कहने लगे वो महाराज वह महाराज आज तो यहाँ सुगंध भरी पड़ी है। कुछ जानवर तो वास्तव में ही चापलूस थे, फिर राजा को प्रसन्न करना चाहते थे। कुछ को यह बहता की पहले वाले राजा की भाँति कई समर्थन न करने पर भाई भी नाराज न हो जाए, इसलिए वे झूठ मूठ प्रशंसा कर रहे थे। सारे दरबार में बस एक टीपू भालू ही ऐसा था जो चुपचाप बैठा था। भा। सूरत ने एक उड़ती हुई निगाह सभी के चेहरे पर डाली। सभी अपनी पूँछ हिला कर आँखें नचा कर राजा का समर्थन कर रहे थे, पर टीपू बिल्कुल चुप चाप बैठा था। टीपू भालू तुमने इत्र की कोई तारीफ नहीं की भाई सूरज ओर से नाड़ा? चुपचाप खड़े होते हुए हाथ जोड़कर वह से बोला महाराज मुझे तक कोई गंध नहीं आ रही है। तुम झूठ बोलते हो सिंघ गुस्से में भरकर बोला। नहीं राजन, मैं जैसा अनुभव कर रहा हूँ वैसा ही कह रहा हूँ। भालू, सिर झुकाकर बोला। तो क्या यह सॉरी, प्रजा झूठ कह रही है? सिंह फिर से पूछने लगा। इनकी बात तो मैं नहीं जानता पर जब मुझे गंदा नहीं आ रही है तो फिर मैं कैसे कह दूँ? टीपू ने कहा तुम मेरी बहुत कटते हो, तुम्हें इसका दंड भुगतना ही होगा। सिंह फिर बोला। फिर उसने कहा कि भालू को छे महीने के लिए जेल में डाल दिया जाए। सेनापति वानरदेव ने आकर तुरंत उसके हाथों में हथकड़ी डाल दी और भी अपनी गलती मान लो। सिंह ने भालू से फिर कहा मैं किसी के दबाव में आकर गलत कार्य नहीं कर सकता। भालू कहने लगा और आगे बढ़ने को तैयार हो गया। और आज यह बड़ा दूर थे। आप की अवज्ञा कर रहा है। चिंटू और जम्मू ने राजा के कान भरे सभी को लगा कि अब जरूर भालू को और कड़ा दंड मिलेगा। जरूर सिंग उसे मार ही डालेगा। सभी ने देखा कि बस अपने सिंहासन से उठकर भालू की ओर बढ़ रहा है। उनकी सांस रुक गईं। उन्हें लगा कि भालू अब दो चार पल का ही मेहमान है। पर यह क्या? सिंह ने आगे बढ़कर टीपू के बंधन खोल दिए थे। वह टीपू को गले लगाते हुए कह रहा था टीपू मैं तुम्हारी निर्भीकता से बहुत प्रसन्न हुँ, तुम्हें अपना प्रधानमंत्री बनाता हूँ। भा। सुर्ख ने टीपू को अपने पास वाले सिंहासन पर बैठाया फिर अपनी प्रजा से बोला मुझे जॉन कर बहुत बड़ा दुख हुआ है। मेरी प्रजा चापलूसी पसंद करती है। दरबार में कैसा भी इत्र नहीं बिखराया गया था। इतना धन हम व्यर्थ के कार्यों में क्यों खर्च करेंगे? उसे राज्य के हित में ही लगाएंगे। ना भाइयों आप यह भूल जाइए कि पहले वाला राजा कैसा था? उसे चापलूसी पसंद होगी। पर यह कोई श्रेष्ठ कार्य नहीं। मैं चाहता हूँ कि आप गुणों से मेरे प्रिय बनने की कोशिश करें। मुझे काम ही पसंद है। चापलूसी कतई पसंद नहीं है। फिर टीपू की प्रशंसा करते हुए वह कहने लगा। राज्य की उन्नति टीपू जैसे निर्भीक और सच बोलने वालों से हुआ करती है। अब मैं यह पूर्ण रूप से आशा करता हूँ कि मेरी समस्त प्रजा टीपू जैसी महान बनेगी। सभी जानवरों ने तालियां बजाकर राजा की बात का समर्थन किया। सारा दरबार राजाभाऊ की जय टीपू मंत्री की जय के नारों से गूंज उठा। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है कि हमें कभी भी किसी के भी दबाव में आकर झूठी प्रशंसा उसकी नहीं करनी चाहिए। हमेशा सच का ही साथ देना चाहिए। ओके बाइ?","सभी को नमस्कार, यह एक शेर 🦁 और उसके दरबारियों की एक अद्भुत कहानी है। इस कहानी में शेर अपना मंत्री चुनना चाहता है। वह अपने दरबारियों की परीक्षा लेता है। पूरी कहानी सुनें और कहानी की नैतिकता के बारे में जानें।" "क्या आप भी अपना पॉडकास्ट बनाने का सोच रहे हैं? तो ऐंकर ट्राई कीजिए, ये पॉडकास्ट बनाने का सबसे आसान तरीका है। नंबर एक ये फ्री है नंबर दो। इसमें कई सारे ऐसे टूल्स है जो आपको अपने फ़ोन और कंप्यूटर पर रिकॉर्ड और एडिट करने की फैसिलिटीज देते हैं। नंबर तीन आप अपने पॉडकास्ट को डिस्ट्रीब्यूट भी कर सकते हैं, जिससे इसे इस स्पॉटिफाइ और दूसरे प्लैटफॉर्म्स पे सुना जा सकें। डाउनलोड कीजिये ये फ्री एंकर ऐप या विजिट कीजिए ऐंकर डॉट ऐफ़ एम अपना पॉडकास्ट स्टार्ट करने के लिए? हैलो बच्चों, आज मैं आपके लिए एक नई कहानी लेकर आई और इस कहानी का टाइटल है सुन्दर शिक्षा और संस्कार। साँझ का समय था सूरज छिपने ही वाला था, रमेश जल्दी जल्दी अपने कदम बढ़ा रहा था। आज उसे कुछ देर हो गई थी। उसने सोच लिया था कि जब तक सारे नींबू बिक नहीं जाएंगे पर घर नहीं जाएगा, इसलिए वहाँ बाजार में देर तक रुका रहा था। अब गाता गुनगुना तक खाली डालियाँ हाथ में पकड़े हुए घर की ओर लौट रहा था, उसका घर थोड़ी ही दूर पे था। जल्दी पहुंचने के लिए उससे पीछे वाला रास्ता जहाँ से रेलवे लाइन जाती थी, वहीं पकड़ा था। रमेश अपनी माँ का इकलौता बेटा था। वृद्धा माँ की इच्छा थी कि वह खूब पढ़े लिखे महान बने पर यह संभावना हो सके। घर की स्थिति कुछ ऐसी थी कि रमेश की पढ़ाई बीच में ही छुड़वानी पड़ी। रात दिन माँ बेटे बगीचे की रखवाली करते। हर चौथे पांचवें दिन रमेश बाजार में जाकर फल आदि बेच आता। उसी से वे खाने की व्यवस्था करते। साथ ही बीच बीच में रमेश को कहीं नौकरी भी करनी पड़ जाती थी। रमेश खूब परिश्रम से मन लगाकर काम किया करता। उसकी माँ ने उसे सिखाया था कि परिश्रम से सुख मिला करता है। रमेश की माँ अनपढ़ अवश्य थी पर वह थी बड़ी विचारशील और सुसंस्कारी। वे अपनी असमर्थता वश रमेश को स्कूल में न पढ़ा पाई थी, पर उन्होंने उसे बहुत अच्छे संस्कार दिए थे। माता पिता बच्चों को स्कूल भेजकर अपने कर्तव्य को पूरा हुआ समझ लेते हैं, पर मात्र स्कूलों की पढ़ाई से श्रेष्ठ व्यक्तित्व का निर्माण नहीं हुआ करता। उसके लिए तो अभिभावकों को स्वयं ही प्रयास करना पड़ता है। माँ की शिक्षा के कारण रमेश छोटी आयु में ही बड़ा साहसी, वीर और सूझबूझ वाला बन गया था। माने उसमें दूसरों की सेवा सहायता करने की भावना का विकास किया क्योंकि समाज का निर्माण और देश का विकास इन्हीं गुणों से संभव हुआ करता है। रमेश रास्ते में सोचता जा रहा था कि आज माउस से खूब खुश होंगी। वह घर जाकर खाना खा पीकर उनसे कहानियाँ सुनेगा। तभी से ऐसा उसका ध्यान रेल की पटरी की ओर गया। सामने से धड़धड़ाती हुई रेल गाडी चली आ रही थी। पर एक बुढ़िया इससे बेखबर लाइन के बीचों बीच शान से चली आ रही थी। रमेश ने ज़ोर ज़ोर से आवाजें लगाईं, बुढ़िया माई बुढ़िया माई जल्दी हटो गाड़ी आ रही है। पर कानों से बहरी उस बुढ़िया को कुछ भी सुनाई नहीं दिया। उसे दिखाई भी कम देता था, इसलिए वह इस बात से बेखबर पटरी पर अपनी ही धुन में बड़ी चली जा रही थी। भले ही यमराज के दूत ही क्यों ना उसे पकड़ने आ जाए। गाड़ी निकट आती जा रही थीं। रमेश ने देखा कि बुढ़िया सुनने वाली नहीं तो वह तेजी से भागा, उसे ज़ोर से धक्का दिया। वह पटरी से कुछ ही दूर पर जा पड़ी। पर तब तक गाड़ी वहाँ से आ गई थी। इंजिन से छिटका हुआ कोयला गिरा और रमेश की वहाँ पर जा लगा वह। पॉलिस्टर की बुशर्ट पहने हुए था। हवा में चिंगारी भड़क उठी और उसने आग पकड़ ली। उसे उतारकर फेंकने और बुझाने के चक्कर में रमेश का सीधा पैर बुरी तरह से आग से जल गया। तब तक बुढ़िया माई भी सीधी होकर बैठ चुकी थी। पलभर में ही उसकी आँखों के सामने से रेल गाडी निकल गई। उसकी समझ में अब सारी बाते आ गई थी कि उन्हें क्यों धक्का दिया गया था। वह अपने प्राण बचाने वाले उस बालक के पास तेजी से पहुंची। बुड़िया ने उस बालक की आग बुझाने में पूरी पूरी सहायता भी की। यही नहीं उसने आवाज लगाकर रास्ते चलते दो तीन राहगीरों को भी बुलाया। वे उसे अस्पताल ले गए। डॉक्टर ने रमेश की मरहम पट्टी की उसे ग्लूकोज चढ़ाया। फिर डॉक्टरों ने पूछा की बेटा तुम इतना कैसे जल गए? रमेश ने डॉक्टर को पूरी घटना विस्तार से बताई। उसे सुनकर डॉक्टर गदगद हो उठे। छोटे बालक के साहस और परोपकार की भावना के सामने उनका मस्तक श्रद्धा से झुक गया। बूढ़ी माई की आंखो में आंसू भर आए रमेश के सिर पर हाथ फिराते हुए बोली की बेटा कुछ बुढ़िया को मर जाने देते, क्यों तुने मेरे लिए अपनी जान खतरे में डाली? इस पर रमेश बोला तुम मेरी दादी की माँ के समान हो, तुम्हें इस तरह बचाना मेरा कर्तव्य था, उसका पालन तो मुझे करना ही चाहिए था। इस पर बूढ़ी माई बोलीं कि ईश्वर सदैव तुम्हें ऐसे ही शक्ति और सद्बुद्धि दे, सुखी बनाएं। डॉक्टर ने भी रमेश की पीठ थपथपाते हुए यही कहा। डॉक्टर ने एक चपरासी को रमेश के घर भेजा, उसकी माँ दौड़ी चली आईं। रमेश को उसने हृदय से लगा लिया। उसकी आँखों से अविरल अश्रुधारा बह रही थी। डॉक्टर साहब कहने लगे की बहन धन्य है तुम्हारा मातृत्व तुमने बालक को जो सुन्दर शिक्षा और संस्कार दिए हैं, वे समाज के लिए गर्व का विषय है। अपने लिए तो सभी करते हैं पर जो संकट आने पर भी दूसरों की सहायता की बात सोचते हैं, उनके लिए कुछ करते हैं। उनका यह जीवन धन्य है उनसे महान इस संसार में और कोई नहीं होता। डॉक्टर ने रमेश की माँ से कहा कि वह अस्पताल के इस इलाज के खर्च की चिंता ना करे, उसकी सारी चिकित्सा निशुल्क की जाएगी। रमेश अपनी माँ के साथ कुछ दिन अस्पताल में रहा। अपने सरल, हंसमुख, निश्चल स्वभाव से उसने वहाँ सभी का मन जीत लिया। ठीक होने पर उसे अस्पताल के मरीजों ने नर्सों ने और सभी डॉक्टरों ने खूब सारे उपहार देकर विदा किया। यही नहीं, डॉक्टर साहब ने रमेश की माँ से यह भी कह दिया कि वे उसकी पढ़ाई फिर से शुरू करें। उसका सारा खर्च वह देगा। फिर से स्कूल जाने की बात जानकर रमेश खुशी से फूला न समाया। डॉक्टर साहब ने रमेश का उत्साह ऐसे कामों में और बढ़ाने के लिए उनके साहस और परोपकार की यह सूचना सूचना मंत्रालय तक भी पहुंचाई। प्रधानमंत्री ने गणतंत्र दिवस के समारोह में रमेश को उसकी वीरता के लिए पुरस्कृत किया। तो बच्चो ये थी रमेश की वीरता की कहानी ओके बाइ।","सभी को नमस्कार, यह एक बहादुर लड़के की शानदार कहानी है। छोटा लड़का बहुत बहादुर और समझदार है। वह बूढ़ी महिलाओं को बचाता है। पूरी कहानी सुनें और कहानी के नैतिक के बारे में जानें।" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी में आपको सुनाने जा रही हूँ उसका टाइटल है माँ और बच्चे। दिल्ली में कुतुब मीनार के पास शैला नाम की एक चुहिया रहा करती थी। उसके दो छोटे छोटे बच्चे थे। एक का नाम था चीन और दूसरे का नाम बीनू शैला। दोनों बच्चों को बहुत प्यार करती थी। यहाँ तक कि वह उनके किसी भी काम में रोक टोक नहीं करती थी, जैसा वे चाहते थे, करने देती और चीनू बीनू की दादी को यह बात तनिक भी पसंद ना थी। वह शैला से अक्सर कहा करती अंधा लाड भी किस काम का? बच्चों को उतना ही प्यार करना चाहिए जिससे बिगड़े नहीं। उन्हें सही और गलत काम करने का ज्ञान कराना चाहिए। बच्चों को जब तक यह नहीं बताया जाएगा की क्या सही है, क्या गलत है, तब तक उन्हें कैसे पता लगेगा की वो जो कर रहे हैं वह सही है की नहीं? शैला बुड्ढी सांस की बात को सुनी अनसुनी कर देती। चीनू बीनू को एक बड़ी गन्दी आदत थी। उसकी माँ खाने पीने की जो भी चीजें लाती सारी की सारी मैं सामने लाकर बैठ जाते और मुँह मारने लगते। जितना खाया जाता, जी भरकर खाते, बची हुई जूठन इकट्ठा करके एक और रख देते। रोज़ का ही उनका यह क्रम बन गया था। उनकी दादी को यह बात बड़ी बुरी लगती 1 दिन आखिर उन्होंने शैला से कह ही दिया इन बच्चों की आदत बिगड़ गई है। खाने का यह कौन सा तरीका है या सारी चीजें लेकर बैठ जाते है? जितना जी है, खाते है और बची खुची जूठन उसी में छोड़ देते हैं जितनी चीज़ खानी हुआ करे, अलग नकार कर खाया करें, जो भी हो, चीज़ परिवार के सभी सदस्य है, उसे मिल बांटकर खाएंगे। उनकी यह बात शैला की समझ में आ गई। फिर तो वहाँ जो भी चीज़ लाती, चीनू बीनू के लिए अलग निकालकर रख देती। चीनू बीनू को अब कम चीज़ मिलने लगी थी, इसलिए उन्हें तनिक भी अच्छा नहीं लगता था। कभी वे पिताजी के हिस्से की रखी चीज़ चट कर जाते तो कभी माँ की दादी को यह भी बुरा लगता तो वे कहने लगतीं अरे ये कौन सा ल चं है तुम्हारा अपने हिस्से की चीज़ का हो? अपनी चीज़ का पीकर दूसरों की चीज़ क्यों लल चाहते हो? अपने साथ साथ दूसरों को भी खिलाओ पिलाओ तो यह अच्छी बात होगी पर दूसरों की भी चीज़ हड़प लेना गन्दी आदत है। दादी की डांट के आगे अब वे उसके सामने कुछ न कर पाते पर उनकी ऐसी गन्दी आदत पड़ गयी थी कि अपनी चीज़ खाने के बाद भी वह ललचाते रहते थे। घर में रखी चीजों की कल्पना से चीनू बीनू बेचैन हो जाते। 1 दिन चीनू बीनू ने सलाह की कि वे दादी और माँ से आके बचा कर चुपचाप चीजें खा लिया करेंगे। फिर क्या था वे ऐसे ही चीजें निकालने लगे। माँ को पता ना लगे इस डर से पहले थोड़ी जी लेते थे पर धीरे धीरे उनकी यह आदत बढ़ती ही गई। अब मैं पूरी की पूरी चट कर जाते और ऐसी सफाई से करते कि किसी को कुछ पता भी नहीं लगता। उनसे कोई पूछता तो साफ कह देते कि उन्होंने चीजें नहीं ली है। माँ गायब हुई चीज़ो के बारे में उनसे प्यार से पूछती तो वह यही कह देते कि हमें क्या मालूम कहाँ गयी? बार बार उनका यह उत्तर सुनकर शैला को बड़ा गुस्सा आया। उसने दोनों को सबक सिखाने की सोंची शैला 1 दिन मिठाई का एक बड़ा टुकड़ा ले आई। उसे पता था कि चीनू जरूर इसकी खोज करेंगे। उसने जानबूझकर मिठाई का वह टुकड़ा बिल के संकरे और अंधेरे भाग में रख दिया। चीनू बीनू उसकी खुशबू से बावले हो उठे। वो माँ के पास गए और बोले माँ हमको मिठाई दो बच्चों तुम्हारे पिताजी को भी आ जाने दो, सभी साथ साथ खायेंगे। बच्चे माँ से तो कुछ ना बोले पर भला उन्हें इतना धैर्य कहा। माँ की आंख बचाकर चीनू या खबर ले आया कि मिठाई कहाँ रखी है। चलो भैया जल्दी से मिठाई लेकर खाते हैं। वह बीनू का हाथ पकड़ते हुए बोला, बीनू ने बिल के बाहर बैठी माँ की ओर इशारा किया और बोला बिल पर माँ बैठी है, माँ को पता नहीं लगेगा और चुपचाप से जल्दी से खकरा जाते हैं। जीनोने बीनू को घसीटते हुए कहा। दोनों जल्दी से बिल के उस सँकरे भाग में घुस गए और मिठाई खत्म करने में जुट गए। शैला इसी मौके की तलाश में थी। उसने जल्दी से जाकर लकड़ी के एक बड़े मजबूत टुकड़े से बिलका वह बाघ ठीक तरह से बंद कर दिया। जीनू बीनू खाने में ऐसे लगे थे कि उन्हें पता ही नहीं लगा। चीनू बीनू ने छककर मिठाई खाई। पर यह क्या? इसके बाद जैसे ही उन्होंने निकलना चाहा उन्हें रास्ते ही ना मिला। चारों ओर से घना अंधेरा था। लगता था मानो वे किसी गुफा में बंद हो गए हो। उन्होंने चारों ओर से निकलने की कोशिश की पर सब व्यर्थ उनके मुँह में चोट लग गई। पैर घायल हो गया। वे रास्ते को खोज नहीं पाए। मिल में लगी हुई लकड़ी को भी उन्होंने काटने की बहुत कोशिश की पर उनके दांत टूट गए, हाथ चिपक गए लेकिन लकड़ी टस से मस नहीं हुई। वे समझ भी ना पा रहे थे कि अचानक आखिर या हो क्या गया? चीनू बीनू दोनों बैठ कर रोने लगे। रोते रोते उनका बुरा हाल हो गया। बेहोशी छाने लगी, तब कहीं जाकर शैला ने लकड़ी हटाई। उसने बच्चों से पूछा अब तो नहीं करोगे चोरी? जीनू बोला हमने कौनसी चोरी की है? हम तो किसी से घर में चुराने भी नहीं गए। शैला बोली किसी से बिना पूछे उसकी चीज़ लेना चोरी है। घर में तुम माता पिता की आंख बचाकर चीजें लेते हो व चोरी ही तो हुई जो बच्चा शुरू से अपने घर में चोरी करने लगता है। वह शुरू में खाने पीने की छोटी मोटी चीजे चुराता है। बाद में उसे बड़ी चीजें चुराने की आदत पड़ जाती है। माँ प्यारी माँ, मुझे माफ़ कर दो, हम गलती नहीं करेंगे, हमें अपनी गलती पता लग गयी है। अब हम तुम से बिना पूछे कुछ नहीं लेंगे। चीनू और बीनू दोनों कहने लगे, शैला बोलीं, बच्चों मैं तुम्हें ज्यादा चीज़ नहीं दे सकती, ऐसी बात नहीं है, पर मैं चाहती हूँ कि तुम मिल बांटकर खाना सीखो। सारी चीज़ खुद ही खा जाना, दूसरों को ना खाने देना या बुरी आदत है। बुरी आदत पड़ जाती है तो बढ़ती ही जाती है। फिर उसे छुड़ाने के लिए भी कठिनाई होती है। तुम अभी से ऐसी आदतें डालोगे तो बड़े होकर कैसे अच्छे बन पाओगे? बचपन में हम जैसे बन जाते हैं, बड़े होकर भी वैसे ही रहते है। बचपन के संस्कार ही तो हमारे भविष्य को बनाते हैं। माँ हम वैसे ही बनेंगे जैसे तुम चाहती हो। चीनू और बीनू ने कहा और शैला से लिपट गए मेरे बच्चों मेरी आँखों के सितारों तुम खूब अच्छे बनो, अच्छी आदतें डालो, गुडी बनो बस यही मैं तुमसे चाहती हूँ हम माता पिता अपने बच्चों को खूब आशीर्वाद देते हैं और उनसे यही आशा करते हैं। शैला ने कहा और दोनों के सिर पर प्यार से हाथ फिर आने लगी तो बच्चों इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें हर चीज़ मिल बांटकर खानी चाहिए। और घर में माता पिता की आज्ञा के बिना कोई भी चीज़ नहीं लेनी चाहिए क्योंकि बचपन में जो हमारे संस्कार जो हमारी आदतें पड़ती है वहीं बड़े होने तक रहती है। ओके बाइ?",यह छोटे चूहों और उनके शरारती बच्चों की शिक्षाप्रद कहानी है। हम ऐसे छोटे जीवों से भलाई का पाठ सीख सकते हैं। माँ अपने बच्चों को अच्छा और उदार बनाने की शिक्षा देती है। कहानी और नैतिक को सुनें और आनंद लें। "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपको सुनाने जा रही हूँ उसका टाइटल है मित्रता की कला। यमुना नदी के किनारे केशु नाम का एक कछुआ रहता था। वह सदा अकेले अकेले रहता था। पूरी नदी में उसका कोई भी मित्र नहीं था। केशू इस कारण बहुत उदास रहता था। आखिर कभी बातचीत करने को मन की बात कहने को कोई तो चाहिए ही। केशु के मित्र ना बनने का कारण उसका स्वभाव था। वह हमेशा मुँह लटकाए उदास बैठा रहता था। बोलता बहुत कम था, बोलता था तो बड़ी कर्कश वाणी में। दूसरों को कभी भी वह कोई सहायता नहीं करता था, उनसे कोई मतलब नहीं रखना चाहता था। निराश होने वाले के पास कौन आता है? कठोर बोलने वाले से कौन बातें करना पसंद करता है? दूसरे की सहायता ना करने वाले को कौन चाहता है? यही कारण था कि केशु के पड़ोसी कछुए उससे किसी प्रकार का संबंध नहीं रखते थे। एक बुरे कछुए के रूप में वह पूरी यमुना नदी में कुख्यात था। थोड़ी सी बुराइ भी बहुत बड़ी होकर फैलती है। केशु की थोड़ी बुराईयाँ भी उसके पड़ोसियों द्वारा बहुत बढ़ा चढ़ाकर बताई जाती थी। उसके पड़ोसी उससे डरते भी थे। केशु 1 दिन उदास था, नदी के किनारे बालू पर लेटा था और समझ नहीं पा रहा था कि कैसे रहे सुबह से शाम तक? अकेले रहना न कोई साथ को और न कोई बात करने को। तभी के शो में देखा कि नदी के किनारे एक हिरण आकर बैठा है। चलो इसी से बात करता हूँ। यीशु ने मन ही मन सोचा तब तक हिरण बोल पड़ा नमस्ते दादा उदास उदास से कैसे लेते हो? नमस्ते भाई कुछ नहीं ऐसे ही ज़रा सो रहा था, केशु बोला। रन ने बताया कि उसका नाम सुंदर है, वह पास के जंगल में रहता है। आज घूमते घूमते इधर आ गया हूँ। जल्दी ही सुंदर और केशु पक्के मित्र बन गए। दोनों नदी किनारे बैठकर घंटों बातें करते रहते। नदी के और कछुओं को उन दोनों की मित्रता देखकर बड़ा अचंभा होता। जरूर इसमें के इशू का कुछ स्वार्थ होगा फिर भी सोचने लगते। दिन के इशू ने अपने मित्र सुंदर के सामने यह समस्या रखी कि वह सारी नदी में बदनाम है और उसका कोई साथी भी नहीं है। सुंदर ने बड़े ध्यान से उसकी सारी बाते सुनी फिर वह बोला। दोस्त बदनामी तो बड़ी जल्दी हो जाती है, उसे हटाने के लिए तुम्हें बड़ा प्रयास करना पड़ेगा। तुम सदैव अच्छे कार्य करो, दूसरों की सहायता करो, उनसे अच्छा व्यवहार करो। तुम्हारी अच्छा ही एक न 1 दिन बदनामी को हटा ही देगी। ठीक है, मैं पूरी कोशिश करूँगा। ये इश्यू ने लंबी सांस भरते हुए कहा, उसे दुख हो रहा था। यदि उसने पहले ही ऐसा काम किया होता तो आज उसके भी ढेर सारे मित्र होते। सभी उसकी प्रशंसा करते। उस दिन से ही केशु अपने स्वभाव को पूरी तरह से बदलने में जुट गया। 1 दिन की बात थी नदी के किनारे बरगद के पेड़ पर रहने वाला एक शैतान बंदर का बच्चा एक पेड़ की डाल पर उसे दूसरे पेड़ की डाल पर पूछ रहा था। बहुत पानी में छपाक से गिर पड़ा। बंदर का बच्चा देर तक पानी में डूबता रहा। उसे नदी में तैरता हुआ लकड़ी का एक पट्टा मिल गया। बहुत जल्दी से उस पर चढ़ गया और लकड़ी के तख्ते के सहारे कुछ देर तक नदी में तैर तरह उधर से अचानक तैरता हुआ केशु को छुआ जा रहा था। बंदर का बच्चा उसे देखकर पुकारने लगा मुझे। बचाओ, मुझे बचाओ। पहले तो ऐसी स्थिति में केशू कछुआ मुँह फिराकर चल देता था, पर अब तो वह बदल चुका था। उसने तुरंत बंदर के बच्चे के पास जाकर उसे अपनी पीठ पर बैठा लिया। बंदर के बच्चे ने कि शू कछुए को धन्यवाद देते हुए कहा। ऊदा, आज तुम ना आती तुम्हे डूबी जाता। नदी किनारे बैठे बंदरों ने देखा की एक बंदर का बच्चा केशु कछुए की पीठ पर बैठा है। वे आपस में कहने लगे और ये यहाँ के इश्यू को छुआ तो बड़ा ही दुष्ट है या इस बंदर के बच्चे को तो मार ही डालेगा। आज तो इसकी जान गयी समझो। और वो सभी के आज चारे की सीमा नहीं जब उन्होंने देखा की केशु बच्चे को लेकर किनारे की ओर बढ़ता चला आ रहा है। आज के इशू काका के कारण ही मेरे प्राण बचे हैं, ऐसा उस बच्चे ने उन सबको बताया। किनारे पर आकर केशु की पीठ से बंदर का बच्चा उतरा। सभी बंदरों ने केशु को बहुत धन्यवाद दिया। एक बूढ़ा बन्दर बोला तुम कितने उपकारी हो कि शु तुम्हारे पड़ोसी कछुए वैसे ही तुम्हारी बुराइ ही करते हैं। हो सकता है कि तुम से कोई बैरभाव रखते हो। नहीं नहीं, अब वे मेरी बुराइ नहीं करेंगे। अब मैं बदल गया हूँ, ये इश्यू नहीं उत्तर दिया। सभी बंदरों ने बच्चा बचाने की खुशी में केशू को बढ़िया सी दावत दी। उसे खूब सारे उपहार देकर विदा किया और कहने लगे के इशू हम सभी तुम्हारे मित्र है, तुम हमारे पास प्रतिदिन आया करो, कभी किसी काम की जरूरत हो तो हमसे कहना। ये इश्यू आज बड़ा प्रसन्न था। दूसरों का उपकार करने में जिंस सच्ची प्रसन्नता का अनुभव होता है। उसे आज उनसे प्राप्त कर लिया था। केशु ने बंदर के बच्चे की जान बचाई है। यह खबर उसके पड़ोसी कछुओं तक भी पहुँच गई थी। ये कई दिनों से देख रहे थे की केशु का व्यवहार अब विनम्र होता जा रहा है। इस समाचार से उन्हें बड़ी प्रसन्नता हुई। वे आपस में कहने लगे। की इश्यू अब पहले जैसा नहीं रहा। वो बहुत अच्छा बन गया है कि शो के आने पर सभी कछुए ने उसका स्वागत किया। सभी ने कहा कि तुम आज बड़ा ही अच्छा काम करके आये हो। केशु ने बंदरों से मिले उपहार सभी कछुओं को बांट दिए। अब कछुओं के मन में केशु के प्रति पहले जैसा भाव नहीं रहा था। वे सभी उसके साथ बात करते थे, मिलजुल कर रहते थे, केशू की बहुत सारे मित्र बन गए। सभी उसकी प्रशंसा करते। अब केशु बिल्कुल भी सुस्त और अकेला नहीं रहता है। कभी कछुए, कभी बन्दर कोई ना कोई उसके पास बैठा ही रहता है। केशु को बहुत अच्छा लगता है। मित्र कैसे बनते है, जीवन कैसे जीना चाहिए यह बात उसकी समझ में आ गई है। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें सभी के साथ अच्छा व्यवहार करना चाहिए और सभी की यथासंभव सहायता करनी चाहिए। ओके बाइ।",यह एक बुरे और असभ्य कछुए की कहानी है। उसका कोई दोस्त नहीं है। वह यमुना नदी के किनारे रहता था। एक हिरण की दोस्ती के बाद वह बदल गया। "हैलो बच्चों, आज जो कहानी में आपको सुनाने जा रही हूँ उसका टाइटल है गुड़िया। यो तो सुरभि के पिता जी उसे नए नए खिलौने लाकर देते ही रहते थे, पर उस दिन जब उन्होंने उसके हाथ में एक प्यारी सी गुड़िया पकड़ाई, तू सुर भी खुशी से नाच उठी। इतनी सुंदर गुड़िया तो उसकी सहेलियों आभारी चा इंदु शैव्या सैफाली में से किसी के पास भी न थी। उनमें से किसी ने शायद कभी वैसी गुड़िया देखी भी ना हो। उसकी आँखों की पुतली हिलती थी तो लगता था कि सचमुच चल रही हो। यही नहीं वरन दो चार शब्द भी बोलती थी। सच में जीती जागती थी वह गुड़िया। सुरभि तो उस गुड़िया को पाकर अपने आपको भूल बैठी थी। न नहाने का ध्यान रहा न सोने का माँ डाट डाट कर उससे काम कराती सोती तो गुड़िया को पलंग पर लेकर बाद में कहीं टूट न जाए। इस डर से माँ ही उसे उठाकर रख देती। सुरभि रात भर सपने में भी गुड़िया के साथ ही रहती। गुड़िया का प्यारा सा नाम भी सुरभि ने रखा लाल परी। लाल परी के लिए जिद कर करके उसने माँ से ढेरों कपड़े सिलवाए। वह कभी उसकी चोटी बना देती तो कभी जुड़ा अपने छोटे भाई सौरभ को तो वह उसे छूने भी ना देती। वह बेचारा ललचाया सा देखता रहता, पर क्या मजाल की सुर भी उसे हाथ भी कभी लगाने दे। तीन 4 दिन ऐसे ही निकल गए। सुरभि ने सहेलियों के यहाँ जाना भी छोड़ दिया। पहले तो वह रोज़ ही उनके यहाँ जाया करती थी और सभी सहेलियां मिलकर खेला करती थी। सहेलियों ने सोचा कहीं सुर भी बीमार तो ना पड़ गयी हो, अतएव फिर सभी इकट्ठा होकर उसके घर आये। सुरभी तुम 4 दिन से खेलने क्यों नहीं आ रही हो? ऋचा ने पूछा। ओहो, अब मुझे फुर्सत ही कहाँ मिलती है सारा दिन तो इस गुड़िया के काम में निकल जाता हैं सुर भी इतना आकर हाथ में लगी गुड़िया को दिखाकर बोली। गुड़िया ने जब पुतलियां हिलायी तो सभी सहेलियां मुग्ध हो उठीं। अरे यह गुड़िया तो पलट भी झपकाती है आबा, आश्चर्य से बोली। हाँ और ये बोलती भी है सुनाओ तुम सब को इसकी बोली। कहकर सुरभि ने बटन दबाया और गुड़िया ने बोलना आरंभ किया। उन्होंने सपने में भी ना सोचा था कि गुड़िया बोल भी सकती है। वे सभी सुनकर दंग रह गई। देखिये ज़रा तुम्हारी गुड़िया वास्तव में बड़ी ही अद्भुत है, या इंदु ने उसे लेने के लिए हाथ आगे बढ़ाया? ओहो, मेरे पापा के एक दोस्त अमेरिका से लाए हैं मैं तुम लोगों को इसे छूने भी नहीं दे सकती। खराब हो गयी तो मुँह बिचका कर सुर भी बोली सभी को सुन कर बहुत बुरा लगा। अब तक सभी सहेलियां एक दूसरे की चीजों से खेलती आयी थी। कभी किसी ने अपनी चीज़ को दिखाने के लिए मना तक ना किया था। हमने तो सुर भी तुम्हें कभी किसी देने के लिए मना नहीं किया। शादियां बोली। क्या तुम कभी आभा के बैडमिंटन से नहीं खेली? ऋचा के एक चाइनीज चेक करते नहीं खेलती। मेरे यहाँ टेबल टेनिस नहीं खेलती के हाथ में न हारती नहीं शेफाली कह रही थी। वह बात बीत चुकी अब मैं तुम्हारी किसी भी चीज़ से हाथ भी नहीं लगाऊंगी। मुँह फुलाकर और आंखें नचाकर सुरभि बोली आभा जो सबसे बड़ी थी और कुछ समझदार भी थी तुरंत बोली। तो मैं ऐसा नहीं करना चाहिए। सुर भी ज़रा सा छू भर देने से तुम्हारा क्या बिगड़ जाएगा? आखिर हम इसे छोड़ तो नहीं देंगे ना? पर सुरभि बोली तक नहीं। छोड़ो भी, बड़ी ही नीचे और स्वार्थी है ये चलो यहाँ से शेफाली को गुस्सा आ रहा था। क्या कहा मैं नहीं ठू स्वार्थी हूँ। गुस्से से आग फाड़ कर चीखने लगी सुरभि। हाँ, हाँ, ऐसी ही हो तुम जो दूसरों की चीजें ले सकता है पर दे नहीं सकता। वह नीच नहीं, स्वार्थी नहीं और क्या है? मेरे पापा कहते हैं ऐसे लोग हमेशा दुख पाते हैं। शेफाली ने तो रखकर कहा और सारी की सारी सहेलियों को लेकर वह चली गयी। सुरभि कामन सहेलियों के उलाहनों से बड़ा दुखी हुआ। गुड़िया को लेकर कुर्सी पर ही सो गई। सौरभ ने देखा कि यह अच्छा मौका है जी जी की गुड़िया से खेलने का। उसने धीरे से जाकर गुड़िया पकड़ ली। और सजाई सुरभि की आंख खुल गई। जब उसने सौरभ के हाथ में गुड़िया देखी तो जो ज़ोर का तमाचा उसके गाल पर जड़ दिया। सौरभ दर्द से चीख कर रो उठा। दूसरे छड़ उसने मेज से उठकर पूरी की पूरी काली स्याही की दवा गुड़िया के ऊपर उडे़ल दी। फिर उसे जमीन पर फेंककर तेजी से भाग गया। सुरभि ने जल्दी से जाकर जमीन पे पर ही गुड़िया उठाई तो उसने देखा। और देखते ही वह सन्न रह गई। अब लाल परी काली भूत नहीं लग रही थी, उसका गोरा शरीर, सफेद और लाल रंग का मुख अब आबनूस जैसे काले रंग के होगये। सौरभ ने पहले ही जाकर माँ से उसकी शिकायत कर दी इसलिए उससे भी अधिक कुछ नहीं कह पाई। कमरे में जाकर बस चुपचाप पड़ी पड़ी रोती ही रहीं। 2 दिन उसने ठीक से खाना भी नहीं खाया। तीसरे दिन उसकी सहेलियां आभा और ऋचा फिर आ गई। अरे, यह क्या? बड़ी मेज के कोने में उपेक्षित सी पड़ी काली कलूटी गुड़िया को देखकर वे बोली। सुरभि ने आंसू बहाते हुए सारी घटना सुना दी। तो क्या हुआ? इसे अच्छी तरह रगड़ रगड़कर नहला दो, सारी स्याही छूट जाएगी। आभा ने सलाह दी, ओहो, इतनी छोटी सी बात मेरे दिमाग में नहीं आई। कहते हुए सुरभि तेजी से दौड़ी चोटें भाई का नहाने का टप, साबुन और पानी लेकर तुरंत ही लौटाई गुड़िया के शरीर पर मल मलकर साबुन लगाया। उसे खूब रगड़ा पर स्याही थी कि छूटने का नाम ही नहीं ले रही थी। चलो इसे थोड़ी देर पानी में पड़ा रहने देते हैं। कुछ ना कुछ तो सही छूटेगी ही सुर भी बोली और तब मैं उससे गुड़िया को डाल दिया। 5 मिनट बाद लाल परी को जब निकाला गया तो वह और और भी ज्यादा बदरंग हो गई। जगह जगह काले सफेद धब्बे पड़ गए थे, गर्दन चिपक गई थी और हाथ पैर की कई उंगलियां भी गायब हो गई थी। उसकी यह कुरूपता देखकर सुरभि का जीरो उठा। सुरभि को काटो तो खून नहीं क्या मुँह दिखाएगी वो किसी को? इसी गुड़िया के कारण ही तो उसने भाई से झगड़ा किया था। इसी गुड़िया के कारण ही तो उसने कभी ना लड़ने वाली अपनी पक्की सहेलियों को नाराज कर दिया था। सुरभि अधमरी सी चुपचाप जाकर पलंग पर लेट गयी। सहेलियां उसे मना मनाकर हार गई पर वह एक शब्द भी ना बोली। आखिर वे अपने घर चली गई। शाम को जब पिताजी आए तो सुर भी उनके पैरों से लिपटकर फफक फफक कर रो उठी। अरे ये क्या बात है? उन्होंने घबराकर पूछा और सुरभी का गला इतना रुंध गया कि वहाँ एक शब्द भी नहीं बोल पाई। तब सौरभ ने ही गुड़िया लाकर पिताजी को सारी बातें समझायी। पिताजी ने सुरभि को गोद में बैठाकर। आंसू पोंछते हुए कहा। बेटी अगर तुम भाई को पहले ही खेलने को दे देती तो क्यों वहाँ खराब करता? वे बच्चे जो अपनी चीज़ दूसरों को छूने नहीं देते, देखने नहीं देते, अच्छे नहीं कहे जाते, बड़े होकर भी यदि ऐसा करते हैं तो सभी उनसे दूर रहते है। हम सब मिल कर ही रहे, मिलकर खाएं, मिलकर खेले तभी जीवन में सुख शांति मिलती है। परिवार में समाज में रहकर हम दूसरों की सहायता किए बिना और सहायता लिए बिना नहीं रह सकते, ना आगे बढ़ सकते हैं। इसलिए यह हमारा कर्तव्य हो जाता है कि अपने सुख दूसरों से जरूर शेयर करे। यदि गुड़िया के खराब होने से इतना सबक तुम ले सकती तो जीवन की बड़ी बड़ी हानियों से बच पाओगी। सुरभि चुपचाप मौन होकर पिताजी की बातें सुन रही थी। रानी बिटिया मानोगी ना हमारी बात पिताजी ने उसका आंसुओं से भरा मुख ऊपर उठाकर पूछा। सुरभि ने कुछ लजाकर आँखें और सिर हिला कर स्वीकृति दी और फिर पिताजी के हाथों में अपना मुँह छुपा लिया। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें हमेशा अपनी चीजें सभी के साथ मिल बांटकर ही उपयोग करनी चाहिए, तभी हम आगे बढ़ सकते हैं। ओके बाय।",यह एक छोटी बच्ची की कहानी है। उसे अपने पिता से उपहार के रूप में एक सुंदर गुड़िया मिली। वह गुड़िया की मोहक मुद्रा पर मोहित हो गई। वह हर बार गुड़िया को अपने पास रखती थी। वह किसी को भी अपनी गुड़िया को छूने की इजाजत नहीं देती। कहानी सुनें और जानें कि कुछ समय बाद क्या हुआ। "हैलो बच्चों, आज जो कहानी में आपको सुनाने जा रही हूँ उसका टाइटल है अच्छे बच्चे। अब तुम सो जाओ रोहित माने नींद भरी आँखों से रोहित से कहा। पर रोहित को नींद कहाँ आने वाली थी रह रहकर उसका ध्यान दरवाजे की ओर जा रहा था। वह सोच रहा था कि कब माँ को नींद आए और कब दरवाजा खोलकर वहाँ अमिताभ के यहाँ खेलने भाग जाए। माँ रोहित की इस शरारत को समझ रही थी, अतएव बोली। देखो इस कड़ी गर्मी में बाहर लूँ में खेलने जाओगे तो निश्चित ही बीमार पड़ जाओगे कल नानी के यहाँ भी चलना है, बीमार पड़ गए तो यहीं छोड़ जाऊंगी तुम्हें। रोहित उस समय तो कुछ ना बोला पर जैसे ही माँ की आग लगी वह तुरंत भाग छूटा। दिन में नींद उसे आती नहीं थी। जाने से पहले एक बार उसने सोचा भी कीमा नाराज होंगी पर दूसरे ही पल उसके मन ने तर्क दिया कीमा तो हर काम में टोकती ही रहती है। अमिताभ के यहाँ पहुँचकर रोहित ने उसे कमरे से बाहर निकाला। दोनों बाहर बाग में आकर खेलने लगे। गर्म गर्म लू चल रही थी, कड़ी धूप पड़ रही थी और दोनों को भला इसकी परवाह भी क्या कभी वे तिथियों के पीछे दौड़ते तो कभी बगीचे में पड़े कुत्तों को छेड़ते? कभी कोई अधपका फल तोड़कर खाने लगते हैं तो कभी एक दूसरे के पीछे दौड़कर भागमभाग का खेल खेलते। जब दोपहरी बीच चली तो रोहित को घर जाने की याद आई। उसके सिर में हल्का हल्का दर्द भी होने लगा था। बहुत चुपचाप दबे पांव। घर में घुसा और कमरे में जाकर लेट गया। दर्द था कि बढ़ता ही जा रहा था पर उसे डर था कि वह माँ को बताएगा, तुम्हें नाराज होंगी। दर्द जब बहुत बढ़ गया तो रोहित कराने लगा उसकी करा हें सुनकर माँ दौड़ी दौड़ी आयी, क्या बात है रोहित की माँ ने पूछा। सिर में बहुत दर्द हो रहा है। वो सहमा सा बोला पे पर हाथ रखा तो पाया की तब रहा है वह। कहाँ गए थे तुम? उन्होंने कड़ाई से पूछा अमिताभ के यहाँ कहकर रोहित अचानक रो पड़ा। उसका दर्द और बेचैनी हर पल बढ़ते जा रहे थे। और वहाँ दोपहर ही बार अमिताभ के बगीचे में खेलते होंगे। माँ ने पूछा। रोहित ने रोते रोते सिर हिला दिया। माँ उस समय तो कुछ ना बोली चुप चाप से थर्मामीटर लाइन। उसका बुखार नापा 105 डिग्री था। उन्होंने बड़े लड़के से बर्फ़ मंगाई। उसकी पट्टी भिगो भिगोकर रोहित के सिर पर रखी। 2 घंटे बाद जाकर कहीं बुखार कुछ हल्का पड़ा। शाम को जब पापा आए तो वे रोहित को डॉक्टर के यहाँ लेकर गए। लू लगने के कारण बुखार आ गया है। ऐसा डॉक्टर ने कहा। रोहित को 810 दिन तक कड़वी कड़वी दवाई, गोली और कैप्सूल खाने पड़े। लस्सी, शर्बत, आइसक्रीम सब कुछ बंद हो गया सो अलग। अपने भाई बहनों को वो ये सब चीज़े खाते हुए देखता तो उसका मन ललचाने लगता। रोहित के बीमार पड़ने के कारण उस वर्ष गर्मी की छुट्टियों में नानी के यहाँ भी नहीं गए। सभी भाई बहन इसके लिए रोहित को ही दोष देते। कहते यह माँ का कहना मानता तो ना बीमार पड़ता और ना ही बाहर जाने का कारण बनता। 1 दिन उनकी इस बात पर रोहित तुनक कर बोला। ओहो, बीमार पड़ गया तो इसमें मेरा क्या दोष? माँ बोली देखो रोहित अभी तक तो तुम बीमार थे, इसलिए मैं कुछ बोली नहीं, मैं भी बहुत दिनों से तुमसे कुछ कहना चाहती थी। सच बात तो यह है कि तुम अपने आगे किसी की सुनते ही नहीं। इसलिए बार बार ठोकर खाते हूँ तुम सोचते हो की मैं बात बात में बेकार ही टोका करती हूँ और बेटे, माता पिता बड़े होते हैं, वे समझदार होते। जो बच्चे उनका कहना नहीं मानते वो अच्छे बनते ही नहीं है, दुखी उठाते हैं। जो गंदे बच्चे होते हैं वह माता पिता की बात नहीं मानते और कठिनाई में पड़ जाते हैं। अब तुम ही बताओ की उस दिन कहना मानते तो लूँ। मैं खेलने नहीं जाते तो क्यों बुखार आता? सभी नानी के यहाँ नरौरा चलते सुबह शाम से गंगा नदी में नहाते घूमते। रोहित की समझ में अब अपनी गलती आ रही थी। माँ के आंचल में मुँह छुपाकर वह बोला। माँ मैं तुम्हारी हर बात मानूंगा कभी जिद नहीं करूँगा फिर तो वह अच्छा बन जायेगा। उसने ऐसा पौधा किया। फिर तो माँ बहुत प्यार करेगी मुझे बॉय ऐसा सोचने लगा। अपनी बात याद रखना। मुस्कुराते हुए माँ बोली। रोहित भी हंसते हुए बोला आप कभी चित नहीं करूँगा? यदि करुण तो बदला ना तो बच्चो? इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें अपने माँ बाप की हर बात को ध्यान से सुनना चाहिए और उनका कहना मानना चाहिए। ओके बाइ?",यह एक नटखट लड़के की कहानी है। उसने अपनी माँ के निर्देशों का पालन नहीं किया। गर्मी के मौसम में वह अपने मित्र के साथ खुले मैदान में खेलता था। कुछ समय बाद वह बीमार रहने लगा। कहानी सुनें और घटना के बारे में जानें। "हैलो बच्चों, आज जो कहानी है आपको मैं सुनाने जा रही हूँ उसका शीर्षक है मातृभूमि की रक्षा। बहुत दिनों की बात है। गंगा नदी के एक सूनसान तट पर मेंढकों का एक विशाल राज्य था। मेंढकों के राजा थे जगतपति जगतपति के पूर्वज 10 पीढ़ी पहले आकर बस गए थे। तभी से वे यहाँ रहते चले आए थे। पहले प्रजा की संख्या कम थी, परंतु अब तो उनकी जनसंख्या भी बहुत बढ़ गई थी। वर्षा ऋतु थी, प्रत्येक मेंढक फूल आना समा रहा था। वर्षा की ऋतु तो उनके लिए त्योहार होती है। ढेरों मेंढक अपनी हरी पीली वर्दी पहनकर घर से निकल पड़ते। कहीं बच्चों को चलने कूदने की शिक्षा दी जाती तो कहीं सांप से बचने की। कभी उन्हें भाषा का ज्ञान कराया जाता तो कभी यातायात के नियमों का रोज़ ही कीड़े मकोड़ों की फसल से दावत होती बुजुर्ग मेंढक छोटे मेंढकों को जीप के इधर उधर घुमाकर। उनको विशेष व्यायाम सिखाते। कुछ ही दिनों में वे इतने निपुण हो जाते की उनकी जीभ से छू पर जाने पर कोई भी कीड़ा मकोड़ा बचकर भाग न सके, उनकी जीभ पर लगे गोंद से चिपक जाते। इस प्रकार बच्चे, जवान, बूढ़े खूब दावतें उड़ाते। दावत के बाद उनका सांस्कृतिक कार्यक्रम होता। कभी गानविद्या प्रतियोगिता होती और वह विविध राग अलापते, कभी तेज दौड़ होती तो कभी लंबी कूद का आयोजन होता, फिर जगत पति के हाथों पुरस्कार पाते। मेंढकों के झुंड के झुंड हँसते गाते नाचते एक मोहल्ले में से दूसरे मोहल्ले में जाते। कभी किसी के यहाँ उत्सव मनाया जाता तो कभी किसी के। यहाँ किसी के यहाँ नए बच्चों का नामकरण होता तो किसी के यहाँ विवाह होता। किसी के यहाँ अखंड कीर्तन होता तो किसी के यहाँ जन्मदिन का समारोह। इस प्रकार जब तक वर्षा ऋतु रहती वे हँसते गाते और मौज मनाते। पेड़ पौधे नहा धोकर नए और सुंदर सुंदर वस्त्र पहनकर उनका स्वागत करते। वे अपने हाथों से ताली बजा बजाकर उन्हें प्रोत्साहन देते। वर्षा की समाप्ति पर कुंभकर्ण की भाँति पूरा मेंढक समाज अगली वर्षा आने तक गहरी नींद में सो जाता। वर्षा से बिना किसी विघ्न बाधा के उनका यही क्रम चला रहा था। पर एक बार उनके इस क्रम में आखिर व्यवधान पड़ ही गया। देशाटन पर निकले एक मगरमच्छ और एक मगरमच्छी को वह स्नान इतना पसंद आया कि उन्होंने वही रहने का निश्चय कर लिया। गंगा का शीतल और पवित्र जल चारों ओर देखते सुंदर पर्वत, वृक्षों की शीतल छाया, जंगली फलों की मोहक खुशबु सभी ने उनका मन मोह लिया था। फिर क्या था उन्होंने वहीं पर अपना डेरा डाल दिया। अब तो मगरमच्छ और मगरमच्छी जल में यूं ही घूमते मानो वे ही वहाँ के एकछत्र राजा और रानी हो मेंढकों का जल में इधर उधर तैरना उन्हें बिलकुल न भाया। मेंढकों की संख्या भी बहुत सारी थी। उनकी फौज जब पानी में तैरती तो कभी कोई मेंढक मगरमच्छों से टकरा जाता तो कभी कोई। मगरमच्छ इसे अपना अपमान समझते, वे सोचते थे की मेंढक जानबूझकर उन्हें टक्कर मारते है। 1 दिन मगरमच्छी और मगरमच्छ गंगा के किनारे लेटे थे। हल्की सुहावनी धूप में दोनों की आंख लग गई। तभी बहुत से मेंढक घूमते हुए वहाँ आये और उनसे टकरा गए। वास्तव में इसमें मेंढकों का कोई दोष ना था। मगरमच्छ और मगरमच्छी उस समय पेड़ों के तनों की भाँति लग रहे थे इसलिए मेंढक गलती से उनसे टकरा गए ना कि जानबूझकर। पर मगरमच्छ और मगरमच्छी ने इसे मेंढकों की शरारत समझा। उन्होंने गुस्से में अपनी पूछ फटकारी। दांत निकाले और आंखें लाल लाल करने दांत किटकिटा किट किट आकर मगरमच्छ बोला। याद रखना मैं तुमसे 1 दिन इसका बदला लेकर रहूंगा तुम में से एक कभी जिंदा नहीं छोडूंगा मैं दूसरे दिन मगरमच्छों का मारो अभियान शुरू हो गया जितनी मेंढक उसने मारे जाते मारता कुछ खा लेता। कुछ को बहुत अच्छा लगता तो जमीन में बालू में गाड़ देता। हर रोज़ का उसका यही क्रम चलता रहा। तेजी से मेंढकों की संख्या कम होने लगी। समीर घबराने लगी। आखिर करें तो क्या भी करे? इतने बड़े जीव का वे बिगाड़ भी क्या सकते थे? अब तो उन्हें एक ही रास्ता सूझता था कि अपने प्राणों की रक्षा के लिए वे बेहद जगह छोड़कर कहीं अन्यत्र चले जाए, पर जगतपति इसके लिए बिल्कुल भी तैयार न था। उसका कहना था, हमने मेहनत करके इस जगह को रहने लायक बनाया है। हम वर्षों से यहाँ रह रहे हैं। इस पर पहला अधिकार हमारा है। ये हमारी मातृभूमि है, हम मर जाएंगे पर इसे छोड़कर कहीं पर भी नहीं जाएंगे। पर कुछ न कुछ तो सोचना ही होगा। आखिर कब तक हम यूं ही विनाश सहते रहेंगे? सारे के सारे मैडम एक स्वर में बोले हम संख्या में उनसे बहुत अधिक है। शत्रु के विरुद्ध हम एकजुट होकर मोर्चा लेंगे, शारीरिक बल से नहीं, बुद्धि से है। उसे हटा कर ही मानेंगे। जगत पति बोला दूसरे दिन तड़के ही जगत पति ने अपने कुछ सहायकों को साथ लिया और मगरमच्छ से बात करने उसके पास पहुंचा। उसने अपने साथ लाया उपहार मगरमच्छ के सामने रख दिया। और दोनों हाथ जोड़कर कहने लगा मगरमच्छ जी मैं आपसे कुछ बात करना चाहता हूँ और मगरमच्छ ने उसकी बात अनसुनी कर दी। जगतपति सोचने लगा कि मगरमच्छ ने उसकी बात सुनी नहीं है, अतएव वह दूसरी बार और अधिक ज़ोर से बोला। मगरमच्छ ने गुस्से से आंखें तरेरकर हुंकार कहा। क्या है जल के कीड़े? जगतपति को ये बहुत बुरा लगा। आखिर आपको ऐसा नहीं कहना चाहिए। हम सभी एक दूसरे के साथ मिलजुल कर प्रेम से रहे। ये अच्छा है। भगवान की दृष्टि में सभी समान हैं। ना कोई छोटा है और ना बड़ा। मगरमच्छ घर जा। ज़्यादा बढ़ चढ़ कर बोल आखिर किस बात पे तू मेरे सामान है? हर बात में जगत पति बोला। मगरमच्छ बोला लगो छोड़ तू। हाँ, जगतपति बोला। देख ज्यादा घमंड न करें हारेगा तो यहाँ से हमेशा के लिए बागता ही नज़र आएगा। आप भी तो भाग सकते हैं। जगतपति धीरे से बोला। यह सुनकर मगरमच्छ का गुस्सा और भड़क उठा। वह बोला दुष्ट जुबान चलो तो है तो इतना तुच्छ है की मैं समझ ही नहीं पा रहा हूँ की तेरे संत क्या शर्त लगाऊं? अब जगत पति बोला हम दोनों ही जल में रहने वाले जीव हैं। चलिए हम नदी में तैरने की शर्त रखे, जो तैर कट जल्दी ही ऊंचे पत्थरों पर चढ़कर बैठ जायेगा, वही जीता हुआ माना जाएगा। मगरमच्छ को यह शर्त बड़ी मामूली मालूम लगी। बस सोचने लगा कि मेंढक निश्चित ही हार जायेगा। तभी जगत पति पूछ बैठा ये अभी तो बताइए की जीतने वाले को क्या मिलेगा? गर्व से अकड़ कर मगरमच्छ बोला। जीतने वाला यहाँ रहेगा और हरने वाला को यहाँ से भागना पड़ेगा, तैयारी कर लें अब तू अपने पूरे कुनबे से इतिहास से भागने की और देख शर्त तो लगा गया है कल यदि तू समय पर नहीं आया तो तेरी खैर नहीं। मैं जरूर आऊंगा। यह कहकर जगतपति अपने साथियों सहित वहाँ से लौट पड़ा। उसके सभी साथी हक्के बक्के थे। वे समझ नहीं पा रहे थे कि राजाजी को आखिर आज क्या सूझी कि ऐसी शर्त लगाएं। घर जाकर जगतपति ने 100 एक जैसे मेंढकों को बुलाया। वे सभी रंग रूप में जगत पति से मिलते जुलते थे। उन्हें उसने अपनी योजना समझायी। दूसरे दिन जगतपति और मगरमच्छ निश्चित समय पर आ पहुंचे। विजय की कामना से मगरमच्छी ने मगरमच्छ के और मेंढकों ने जगत पति के बालू का तिलक लगाया। फिर वे दोनों जल में अपना अपना पराक्रम दिखाने कूद पड़े। मगरमच्छ आराम आराम से तैर रहा था। वह मन ही मन में यह सोच सोचकर खुश हो रहा था। कि आज सारे मेंढक हमेशा के लिए यहाँ से चले जाएंगे। पर यह क्या? जैसे ही उसने आगे की ओर देखा वह यह देखकर दंग रह गया कि जगत पति उसके आगे तैर रहा था। मगरमच्छ ने अपनी चाल बढ़ा दी जिससे वह जल्दी से जल्दी पत्थरों की टेकरी पर चढ़ सकें। पूरी तेजी से तैरता हाफ था। मगरमच्छ रास्ते में यह देखकर चकित रह जाता कि जगत पति उसके आगे आगे ही तैर रहा है। यहाँ तक कि पत्थर की टेकरी पर भी उससे पहले ही चढ़ा हुआ मिला। मगरमच्छ का सिर शर्म से झुक गया। एक छोटे से जीव से वह हार गया था जो अपने आप पर घमंड करता है और काम में लापरवाही बरतता है, उसे नीचा देखना ही पड़ता है। सफल वही होता है जो बेकार का घमंड नहीं करता अपितु पूरे मन से काम करता है। अपने वायदे के अनुसार मगरमच्छ और मगरमच्छी दोनों ही गंगा का 72 छोड़कर चुपचाप भी हमेशा के लिए वहाँ से चले गए। अपनी योजना सफल होती देख जगतपति आज बहुत खुश था। मगरमच्छ से जीत पाना मुश्किल था। उसने अपने ही जैसे रंग रूप वाले 100 मेंढक जगह जगह पानी में अंदर ही की ओर छुपा रखे थे। वह पहले से ही पत्थरों के पास पानी में छिपकर बैठ गया था। मगरमच्छ को आते हुए देखकर जगतपति तेजी से छलांग लगाकर पत्थर पर चढ़ गया था। सभी मेंढक इकट्ठा होकर ज़ोर ज़ोर से जगतपति की। जय जयकार कर रहे थे। जगत पति कह रहा था भाइयो, विपत्ति में कभी भी धैर्य नहीं खोना चाहिए। आपत्ति में रोने और परेशान होने से वहाँ बढ़ती ही है, कम नहीं होती। यदि हम मुसीबत में गहरे पूर्वक विचार करे उसके अनुसार कार्य करें। सुनिश्चित ही कोई न कोई हल तो निकलता ही है। मुसीबतें भला किस पर नहीं आया करती, पर जो साहस से मनोबल से उनका सामना करता है, उसकी ईश्वर भी सहायता करता है। वहीं विजय पाया करता है। जगत पति ने देखा कि कुछ मेंढक खुसुरपुसुर कर रहे हैं। वह चौंका, कुछ समझा और फिर बोला, साथियों, हमने शत्रु को छल बल जीता है, पर मातृभूमि की रक्षा करना नित्यानता आवश्यक है। शत्रु की दुष्टता दूर करने के लिए उसी की नीती से उसे हराना होता है, बस स्वयं वैसा नहीं बनना चाहिए। जगतपति का मंत्री कहने लगा। महाराज ठीक ही कहते हैं, यह हमारी मातृभूमि है। जो भी इस पर अपना अधिकार ज़माना चाहेगा, हम उसके दांत खट्टे कर देंगे। जिंस रीती से भी संभव होगा। शत्रु को भगाकर ही दम लेंगे। सभी मेंढकों ने अपने राजा और मंत्री की बात का समर्थन किया तथा उन्होंने विजय की खुशी में शानदार दावत भी की। उस दिन तो वे खुशी के मारे फूले न समा रहे थे। सारे दिन उछलते कूदते खाते पीते धमाचौकड़ी मचाते रहे तो बच्चो। इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें सदैव अपनी मातृभूमि की रक्षा करनी चाहिए और विपत्ति के समय कभी भी धैर्य नहीं छोड़ना चाहिए। ओके बाइ?",यह मेंढक 🐸और मगरमच्छ 🐊 की एक नैतिक कहानी है। इस कहानी में मेंढक 🐸 एक देशभक्त है। वह कभी भी अपने पैतृक स्थान से दूर नहीं जाना चाहता। उसने अपनी बुद्धि और चतुराई से बड़े और विशालकाय मगरमच्छ 🐊 को हरा दिया। पूरी कहानी सुनें और नैतिकता के बारे में जानें। "हैलो बच्चों, आज जो कहानी में आप सब के लिए लाई हूँ, उसका टाइटल है नेचर्स गिफ्ट। जिप्सी जिराफ पेड़ से तोड़कर हरी हरी पत्तियाँ खा रहा था तभी उसे किसी के हंसने की आवाज सुनाई दी। उसकी नजरें ऊपर उड़ गई। पेड़ की सबसे ऊंची वाली डाली पर जम पी बंदर बैठा हस रहा था। तुम अकेले बैठकर क्यों हस रहे हो? जिप्सी ने आश्चर्य से पूछा। तुम्हारी गर्दन देखकर मुझे दिल्ली की कुतुब मीनार याद आ गयी। जंपी फिर खेती कर हँस पड़ा जिप्सी बुरा सा मुँह बनाकर एक और चल दिया। कुछ दूरी पर गन्ने का खेत था जहाँ चिंटू हाथी आराम से गन्ने का रहा था। जिप्सी को आते देख वह गन्ना खाना भूल गया और एक तक उसे निहारने लगा। क्या वह भी अजीब सी गर्दन देख रहा था? सोचते हुए जिप्सी आगे बढ़ा। रास्ते में उसने पीलू हिरण, खरगोश, नौटी, भालू आदि सभी जानवरों को अपनी गर्दन को घूरते हुए ही पाया। इन सभी जानवरों के पास सुंदर गर्दन है बस उसी की गर्दन इतनी लंबी और अजीब सी है क्या करे वह अपनी इस लंबी गर्दन का कैसे जानवरों से छुपाएँ। तभी उसके दिमाग में एक आइडिया आया और वह खुशी से उछल पड़ा। अगले दिन। सुबह जिप्सी ने अपनी गर्दन पर ढेर सारे रंग बिरंगे स्कार्फ लपेट लिए। उसकी अलमारी में जितनी भी टाई रखी थी, उन्हें पहनकर उसने वो भी लगा लिया। उसने स्वयं को शीशे में निहारा और खुश होते हुए जल्दी या बगीचे में। अभी वह बगीचे में घुसा ही था कि डंपी की ठीक है, सुनाई दी वो अब क्या है जिप्सी ने आंखें तरेरीं देखो ना इतने टाई और वो भी तुम्हारी गर्दन को छिपा नहीं पा रहे हैं कि कि। जिप्सी ने गुस्से से जंपी को घूरा और वहाँ से नदी के किनारे जा पहुंचा। वहाँ बड़े बड़े घने पेड़ थे, उसने खुद को एक पेड़ के पीछे पत्तियों में छुपा लिया। तभी वहाँ टिंगटिंग कछुआ आया, जिप्सी को पेड़ के पीछे खड़ा देख वहाँ बोला और एक जिप्सी यहाँ क्यों खड़े हो? जिप्सी ने अपनी गर्दन से पत्तियाँ हटाई और उदास होकर बोला मुझे अपनी गर्दन बिल्कुल पसंद नहीं चाहता हूँ, इसे कोई ना देखए क्यों टिनटिन नहीं बड़ी आंखें करते हुए बोला। अपनी इतनी सुन्दर गर्दन को तुम बदसूरत क्यों बता रहे हो? मुझे तो। मेरी गर्दन बिल्कुल पसंद नहीं है। पर मुझे तो तुम्हारी गर्दन बहुत पसंद जिप्सी ने टिनटिन को गौर से देखा? मैं सच कह रहा हूँ दोस्त मेरी गर्दन बहुत खराब है। नहीं, नहीं। तुम्हारी गर्दन बहुत सुंदर और काम की है तुम इससे पेड़ की ऊंची डालियों पर लगी पत्तियाँ आराम से खा सकते हो, अपने दुश्मन को भी दूर से देख लेते हो काश। मेरी गर्दन भी तुम्हारे जैसी होती। टिंग टिंग की आँखों में आंसू आ गए। जिप्सी हैरान हो उठा। तुम्हारी ये छोटी सी गर्दन मुझे कितनी प्यारी लगती है जैसे ही तुम्हारा दुश्मन आता है या अपने खोल के भीतर घुस जाती है। टिंग टिंग अफसोस करते हुए बोला। किंतु मैं तुम्हारी तरह ऊंचे पेड़ों पर लगी पत्तियाँ और फल नहीं खा सकता। अब देखो ना मेरी केले खाने की इच्छा है। पिछले 10 दिन से मैं इस पेड़ के नीचे केले गिरने की प्रतीक्षा कर रहा हूँ। टिंग टिंग ने हसरत भरी निगाह से केले के पेड़ पर डालते हुए कहा। बस इतनी सी बात कहते हुए जिप्सी ने केले तोड़कर टिंगटिंग के सामने रख दिए। टिंगटिंग ने स्वाद लेकर खूब केले खाएं? अब जिप्सी बोला। टिंग टिंग आज तुम्हारी बातों से मुझे एक सीख मिली है। प्रगति ने हर प्राणी को अलग बनाया है। उसके हर अंग की उपयोगिता, उसकी जरूरत के हिसाब से इसलिए हमें जो कुछ प्रगति नहीं दिया है, उसमें हमें खुश रहना चाहिए। तुम ठीक कह रहे हो जब सी तुम्हारी वजह से ही आज मुझे अपनी गर्दन की उपयोगिता समझ में आयी है। तो फिर आज से हम दोनों पक्के दोस्त हुए। ना जिप्सी ने मुस्कुराते हुए टिंगटिंग के गले में लाल रंग की टाई पहनाते हुए पूछा। हाँ हाँ, बिलकुल पक्के दोस्त टिंगटिंग ने भी जवाब दिया, तभी वहाँ उछलता कूदता, जंपी आ गया और बोला भाई तुम दोनों की जोड़ी भी अजीब है। एक की गर्दन शुरू होते ही खत्म हो जाती है और दूसरे की शुरू होते ही खत्म होने का नाम नहीं लेती। किंतु आज जिप्सी में उसके मजाक का बुरा नहीं माना, वो होकर हंसता हुआ वह टिंगटिंग का हाथ पकड़कर एक और जल दिया। लंबी गर्दन और छोटी गर्दन वाले इन दोनों दोस्तों से सभी जानवर अब बहुत प्यार करने लगे थे। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें प्रकृति ने जो कुछ भी दिया है, उसमें हमें संतुष्ट रहना चाहिए। हर व्यक्ति, हर वस्तु इस प्रकृति में भिन्न प्रकार की है। कोई भी एक जैसा नहीं है और जो दूसरे के पास वस्तु है, आवश्यक तो नहीं की वो हमारे पास भी हो और यदि वह उस वस्तु हमारे पास नहीं है तो हमें इसका अफसोस नहीं करना चाहिए, बल्कि जो हमारे गुण है, जो हमारी शरीर है और जो हमारी वस्तुएं हैं। उस पर हमें गर्व करना चाहिए और उसकी उपयोगिता को समझना चाहिए। तभी हम सुखी रह सकते हैं और हम दूसरों का भी उपकार कर सकते हैं। ओके बाइ?","सभी को नमस्कार, यह जिराफ 🦒 की एक नैतिक और शैक्षिक कहानी है। आप सभी अच्छी तरह से जानते हैं कि जिराफ 🦒 की गर्दन जंगल में सबसे लंबी होती है। वह बहुत परेशान है क्योंकि उसकी गर्दन जंगल में सबसे लंबी है। सभी जानवर उसकी गर्दन का मज़ाक उड़ा रहे हैं। लेकिन एक कछुआ 🐢 उसे दिलासा देता है कि उसकी गर्दन बहुत उपयोगी है क्योंकि प्रकृति हमें अलग-अलग गुण देती है। हमें विभिन्न कार्यों में इसका उपयोग करना चाहिए क्योंकि कछुए की छोटी सी गर्दन खतरे के समय अपने खोल में छिप जाती है। इसलिए हमें प्रकृति द्वारा हमें प्रदान की गई चीजों को हमेशा स्वीकार करना चाहिए। पूरी कहानी सुनें और कहानी के नैतिक के बारे में जानें।" "क्या आप भी अपना पॉडकास्ट बनाने का सोच रहे हैं? तो ऐंकर ट्राई कीजिए, ये पॉडकास्ट बनाने का सबसे आसान तरीका है। नंबर एक ये फ्री है नंबर दो। इसमें कई सारे ऐसे टूल्स है जो आपको अपने फ़ोन और कंप्यूटर पर रिकॉर्ड और एडिट करने की फैसिलिटीज देते हैं। नंबर तीन आप अपने पॉडकास्ट को 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समय पर वहाँ नहीं पहुंचा तो नगरसेठ किसी अन्य ब्राह्मण को बुला लेगा। ऐसी स्थिति में उसे उत्तम भोजन तथा दान दक्षिणा आदि से वंचित रहना पड़ेगा। लेकिन समस्या यह थी कि उसकी पत्नी अभी तक मंदिर से नहीं लौटी थी। वह पुत्र की देखभाल का जिम्मा आखिर किसे सौंपकर जाता? वह इस विषय में सोच ही रहा था कि उसे नेवले का ध्यान आ गया। पुत्र की सुरक्षा का दायित्व नेवले को सौंपकर व नगर सेठ के घर की ओर चल दिया। नेवला बच्चे के पालने के पास बैठकर मुस्तैदी से अपना कर्तव्य निभाने में लगा हुआ था, लेकिन यह क्या? तभी वहाँ कहीं से एक काला सांप घर में प्रविष्ट होकर बच्चे के पालने की ओर बढ़ा। यह देखकर नेवला सतर्क हो गया। उसने सोचा की आस आप बच्चे की ओर ही बढ़ रहा है, इसलिए उसकी रक्षा करने के लिए नेवले ने सांप पर आक्रमण कर दिया। काला सांप बड़ा ही विकराल था। वह नेवले से जूझ पड़ा। काफी देर तक दोनों में संघर्ष होता रहा। अंत में नेवले ने सांप के टुकड़े टुकड़े करके उसे समाप्त कर दिया। संयोगवश जीस समय ब्रह्माणी ने घर की चौखट पर कदम रखा। उसी समय ब्राह्मण भी आ गया। उसने अपने मालिक और मालकिन को देखा तो वह खुशी से उछलने लगा। नेवले को इस प्रकार उछलता देखकर दोनों ही लोग अचानक अपने मन में शंका करने लगे कि आखिर क्या बात है नेवले के मुँह पर? और हाथों पर रक्त भी लगा हुआ था। ब्राह्मण ने नेवले को गोद में उठा लिया, तभी उसकी निगाह नेवले के मुँह पर पड़ी जो रक्त से सना हुआ था। यह देखकर ब्राह्मण और ब्राह्मणी विलाप करने लगे। उनके मन में तरह तरह की आशंकाओं ने घर कर लिया। उन्होंने सोचा कि इस नेवले ने उनके पुत्र को मार डाला है। फिर क्या था, क्रोधवश सच्चाई का पता लगाए बिना ही उन लोगों ने नेवले को पिट पीटकर मार दिया जब माधव और उसकी पत्नी कर के अंदर कक्ष में प्रवेश करते हैं तो क्या देखते हैं कि बच्चा तो आनंदपूर्वक पालने में सो रहा है, लेकिन उस पालने के पास ही एक काले साहब के टुकड़े पड़े हैं। यह देखकर उन्हें सारी बात समझ में आ गई। अब उन्हें नेवले को मार डालने का बहुत अफसोस था। लेकिन अब हो भी क्या सकता था? ब्राह्मण ने बिना विचार किए, बिना सोचे समझे अपने पुत्र की रक्षा करने वाले उस रक्षक निरपराध नेवले को मार डाला था। इस प्रकार उसने अपना अनिश्चित स्वयं ही कर लिया था। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें क्रोध वश बिना सोचे समझे कभी भी कोई कार्य नहीं करना चाहिए क्योंकि उस कार्य का परिणाम बुरा ही होता है। क्रोध हमारी बुद्धि पर अपना कब्ज़ा करके हमसे गलत कार्य ही करवाता है। इसलिए कोई भी कार्य करने से पहले हमें विचार करना चाहिए। क्रोध में आकर कभी भी कोई ना निर्णय लेना चाहिए और ना ही कोई कार्य करना चाहिए। ओके बाइ?","सभी को नमस्कार, यह एक छोटे से जीव नेवले की शानदार नैतिक कहानी है। इस कहानी में आपको एक मासूम जानवर की निःस्वार्थ सेवा और क्रोध के दोषों के बारे में पता चलता है। पूरी कहानी सुनें और कहानी की नैतिकता के बारे में जानें।" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपको सुनाने जा रही हूँ उसका शीर्षक है परिश्रमी सदा सुखी दत्ता नाम की एक मधुमक्खी बड़ियाल सी थी। उसकी सारी सहेलियां सुबह ही काम पर निकल जाती, पर वह देर तक सोती रहती। दिन में भी पड़ी अल जाती रहती कुछ भी काम करना उसे बहुत बुरा लगता था। अन्य मधुमक्खियां मेहनत करके पराग आदि भी इकट्ठा करती। शहद बनाती दत्ता उन्हें पड़े पड़े खाती रहती। दत्ता का यह निकम्मापन अन्य मधुमक्खियों को पसंद न था। उन्होंने 1 दिन सभा की। सभी ने एकमत से समर्थन किया कि दत्ता का बहिष्कार कर देना चाहिए। उसे हमारे साथ रहने का कोई अधिकार नहीं है। वह जहाँ चाहे चली जाए। रानी मक्खी ने दत्ता को यह आदेश सुना दिया किया तो वह काम करे या फिर अलग जाकर रहे। आलसी दत्ता ने काम करने की अपेक्षा अलग रहना अधिक उचित समझा। वह उसी दिन छत्ता छोड़कर चली गई। नया छत्ता बनाना दत्ता जैसी आलसी के लिए संभव ही न था। वह बरगद के एक पेड़ पर चढ़कर बैठ गयी। घूम फिर कर उसने अपने रहने की जगह तलाशी और अंत में एक क्वार्टर में जाकर रहने लगी। उस पेड़ की कोठर में दत्ता सारे दिन आलस में पड़ी रहती। जब उसे बहुत तेज भूख लगती तो इधर उधर जाकर थोड़ा बहुत खाना तलाश लेती। अक्सर आलस्य के कारण वह भूखी रहने लगी। इस प्रकार थोड़े ही दिनों में वो बहुत दुबली हो गई। बरगद के पेड़ पर शालिनी नाम की एक चिड़िया भी रहा करती थी। वह प्रायः दत्ता को समझाती, कुछ काम नहीं किया करो। आलस में समय गवाने से क्या लाभ? आलसी जीवन में कुछ भी प्राप्त करने में सफल नहीं होता। आलस्य से बढ़कर और कोई क्षेत्र नहीं है। इसके रहते हैं हम जीते जी मर जाते हैं। शालिनी की बातों का दत्ता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता और उसकी बातें सुनती और मुँह फेरा लेती। हारकर शालिनी ने उससे कुछ भी कहना बंद कर दिया। एक बार की बात है। एक मकड़ी घूमती हुई बरगद के पेड़ पर चढ़ गई। उसे भी वह अपने रहने की जगह की तलाश थी। दत्ता जीसको टर में रहती थीं। वह उसे बहुत पसंद आया। मकड़ी ने उसको टर्म में अपना जाला पूरा कर लिया। आश्चर्य की बात की। 2 दिन तक दत्ता को यह पता ही नहीं चला की वह कैद हो चुकी है। चौथे दिन सुबह सुबह उसे भूख लगी। अब खाने की तलाश में जाना चाहिए। उसने सोचा पर यह क्या? उसके निकलने के सारे रास्ते बंद थे। सूरज की रौशनी में मकड़ी का जाला चांदी सा चमक रहा था। दत्ता यह देखकर घबरा उठी। उसने मन ही मन सोचा की अब तो मैं निश्चित ही मर जाउंगी मकड़ी मुझे ये किसी दिन खा जाएगी। तभी दत्ता की निगाह पेड़ पर बैठी शालिनी पर पड़ी। वो वहीं से चिल्लाई शालिनी महल मेरी सहायता करो शालिनी ने दत्ता की आवाज पहचानते हुए कहा, पर तुम हो कहाँ कहाँ से बोल रही हो से बोल रही हो? दत्ता चिल्लाई। और वहाँ तो दो 3 दिन से एक मकड़ी है। मैंने सोचा की तुम कोटर छोड़कर चली गई होगी। शालिनी बोली नहीं मैं यही हूँ, मुझे यहाँ से बाहर निकालो दत्ता घबराकर बोली पैर हूँ मैं तुम्हें बचाने का कोई उपाय सोचती हूँ? शालिनी बोली थोड़ी देर तक वह कुछ सोचती रही फिर फुर्र से उड़ी अपनी चोंच में एक लंबी सी टहनी तोड़ लाई। उस टहनी से शालिनी ने मकड़ी का जाला तोड़ डाला। दत्ता जल्दी से अंदर से निकल आई जाली टूटने से। उसमें कैदी कुछ मक्खी, मच्छर और अन्य कीड़े मकोड़े भी भाग निकले। सभी शालिनी को धन्यवाद दे रहे थे। दत्ता को शालिनी अपने घोंसलें में ले गई। वहाँ उसे खाना खिलाया। वह 3 दिन से भूखी जो थी। इसके बाद शालिनी कहने लगी तथा बहन तुम बुरा न मानना। अपने आलस के कारण ही आज तुम मौत के मुँह में जा फंसी थी। आलस करने से क्या लाभ है? जीवन अधिक से अधिक काम करने के लिए मिला है। सोचो तो तुम आलसी ना होती तो क्यों तुम्हें तुम्हारी सहेलियां निकालती? क्यों तुम अकेली पड़ी रहती? आलस छोड़ो, अपनी सहेलियों के साथ मिलजुल कर काम किया करो। इसी में सुख सुरक्षा भी है। तुम ठीक कहती हो बहन आज से मैं अपना लस छोड़कर बिल्कुल काम पे लग जाउंगी। दत्ता बोलीं, वह अपनी सहेलियों के पास गई, उसने जाकर क्षमा मांगी। वह बोली बहन मुझे अपने पास रख लो, अब मैं मन लगाकर काम करूँगी। हमें प्रसन्नता है दत्ता तुम सही रास्ते पर आ गई हो। तुम्हारा स्वागत है सभी के साथ मिलजुल कर रहो मधुमक्खियों की रानी बोली अब दत्ता सारे दिन काम किया करती, किसी को उससे कोई शिकायत नहीं रही। दत्ता को स्वयं आश्चर्य होता है कि पहले वह बिना काम किए आलसी और निकम्मी कैसे पड़ी रहती थी। उसकी समझ में आ भैया अच्छी तरह आ गया की परिश्रम करने में ही सुख होता है तो बच्चो इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है की आलसी कभी सुखी नहीं होता है और ना ही वह जीवन में आगे बढ़ता है इसलिए हमें मेहनत करनी चाहिए। ओके बाय।",यह एक छोटी मधुमक्खी है जो बहुत आलसी थी। लेकिन मकड़ी के जाले में फंसने के बाद वह मेहनत और अपने परिवार के महत्व को समझती है। यह एक नैतिक कहानी है। "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपको सुनाने जा रही हूँ, उसका टाइटल है मित्र की पहचान। अमरकंटक वन में एक पेड़ के नीचे रानी चींटी का घर था। एक बार अमरकंटक वन में अकाल पड़ा, उसकी वजह से जीव जंतुओं को खाना मिलना भी मुश्किल हो गया। रानी की सारी सेना, सारे ही परिवार के सदस्य उस अकाल में मारे गए। रेह गयी अकेली रानी चींटी? पहले तो रानी बड़ी उदास रहा करती थी, फिर 1 दिन वह सोचने लगी की जो मुसीबत आने वाली है, वह तो आएगी। आपत्ति को यदि हस्ते हस्ते सहा जाये तो कठिनाई कम होती हैं। मुसीबत में साहस खोने पर और अधिक परेशानी ही बढ़ती है। फिर मैं अपना धैर्य क्यों खाऊं? जीना है तो हस्ते हस्ते ही जीऊं बहादुरी से जीऊं जो होना था वह तो हो ही गया। रानी ने यह भी सोचा कि अब अमरकंटक छोड़कर और कहीं चला जाए। यहाँ परिवार का कोई सदस्य तो बचा नहीं उल्टे यहाँ रहने से मित्रों की याद ही जताती है। रानी जीटी अपना घर छोड़कर चल दी। चलते चलते वहाँ अमरकंटक मन से बहुत दूर निकल गई। रास्ते में उसने अनेक नगरों को पार किया। शहर की हलचल में रानी का मन लगता ना था इसलिए उसने सतपुड़ा की पहाड़ियों पर निवास करना ही पसंद किया। 1 दिन सुबह सुबह रानी सतपुड़ा के पहाड़ी प्रदेश पर पहुंची। रानी के प्रवेश करते ही उसे एक चींटी मिली। वह कहने लगी तुम कहाँ से आ रही हो बहन? लगता है बड़ी थकी हुई हो आओ, मेरा आतिथ्य स्वीकार करो। रानी बताने लगी। मैं अमरकंटक वन से आ रही हूँ, कई दिनों से लगातार यात्रा कर रही हूँ, मेरे सभी संबंधी मर चूके हैं, अब तो तुम मेरी सहेली ही बन जाओ जिससे मुझे भी कुछ राहत और खुशी होगी। दूसरी चींटी कहने लगी। तुम्हें अपनी सहेली बनाकर मुझे भी खुशी होगी। मुझे संगीता कहते हैं, चलो तुम मेरे घर चलो, वही पर रहना। रानी ने आगे बढ़कर अपना मुँह संगीता के मुँह से मिलाया और दोनों मित्र बन गई। घर पहुँचकर संगीता ने एक विशेष प्रकार की ध्वनि की तब उसकी सारी सेना और परिवार के लोग इकट्ठा हो गए। संगीता ने उन सभी से अपनी नयी सहेली का परिचय कराया। सभी रानी से मिलकर बड़े ही खुश हुए। अब रानी और संगीता साथ साथ रहने लगी। वे साथ साथ काम करती थी और साथ साथ ही घूमती थी। रानी ने संगीता को नई नई चीज़े सिखाई जैसे की नए तरीके से घर बनाना। बच्चों को अच्छी तरह पालना इन सभी के कारण संगीता और उसकी सेना की सारी जीतिया रानी को बड़ा सम्मान करने लगी। संगीता अपनी सेवक चींटियों से कहती थी जो जितना गुणवान होता है उसकी उतनी ही आदर सम्मान होता है। अगर तुम दूसरों से सम्मान पाना चाहती हो तो गुणी बनो। वो हमेशा उदाहरण के रूप में रानी का ही नाम लिया करती थी। 1 दिन की बात है। संगीता और रानी अपनी कुछ सहेलियों के साथ घूमने निकलीं। रास्ते भर वे बड़ी प्रसन्नता से गीत गाती गई। जगह जगह ठहर कर तरह तरह का नाश्ता भी करती गई। घूमते घूमते सभी तालाब के किनारे पहुंची। वहाँ एक संजीव नाम का सारस रहा करता था। वो संगीता का मित्र था। उसने संगीता को एक कमल का फूल उपहार में दिया। संगीता ने संजीव सारस को इसके लिए धन्यवाद दिया। संजीव वापस लौट गया। तब संगीता तालाब के किनारे अपनी सहेलियों के साथ बैठकर उस कमल के फूल का पराग खाने ल। सबने खूब छककर उसकी दावत उड़ाई। इसके बाद वे सारी की सारी चींटियां पानी पीने के लिए तालाब के किनारे उतरी। और तो सब पानी पीकर ठीक से आ गई परन्तु संगीता का पैर फिसल गया। वह पानी में गिर पड़ी। संगीता चीखने लगी। बचाव बचाव संगीता की पुकार सुनकर सारी की सारी चींटियां तालाब के किनारे पर आ गई। सभी खड़ी खड़ी यही सोचती रही की क्या करें, कैसे बचाएं इसको? नीतू चींटी बोली चलो कही से बड़ा सा आये मंसूबों ली, कहीं से पत्ता ले आये खींच के सभी चीटियां आपस में बात कर रही थी कि रानी अपनी जान की परवाह किये बगैर पानी में कूद पड़ी। वह एक पत्ते के टुकड़े पर कूदी थी। पूरी बहादुरी से उस पत्ते को धकेलते हुए रानी संगीता के पास ले गयी। फिर अपना हाथ बढ़ाकर उसे तुरंत संगीता को पत्ते पर खींच लिया। फिर पत्ते को खींचती हुई रानी तालाब के किनारे ले आयी। तालाब के किनारे खड़ी सभी चीटियां रानी का साहस देखकर हैरान थी। वे अभी सोच ही रही थी की रानी अपनी जान की परवाह किये बगैर संगीता को बचा लाई थी। सभी चींटियों ने मिलकर उस पत्ते को किनारे पर खींचा। जिसपर रानी और संगीता बैठी हुई थी। थोड़ी देर बाद संगीता पूरी तरह ठीक हो गयी। रानी का उपकार देखकर संगीता की आंखें भर आईं। वह रानी को गले से लगा कर बोली, महन, आज तुमने मेरे खातिर अपने को मुसीबत में झोंक दिया, यदि मुझे पानी में देरी हो जाती तो मेरा मरा हुआ शरीर इस रहता सुनो कहो संगीता बहन बुरी बात मुँह से नहीं निकलती हैं। अपने हाथ को संगीता के मुँह पर रखकर रानी ने कहा। मित्र की सहायता करना मित्र को धर्म में है। जो समय पड़ने पर मित्र की सहायता नहीं करते, वह सच्चे मित्र नहीं होते, वह तो मित्र होने का बहाना मात्र ही करते है। तुम्हारे लिए जो कुछ भी मैंने किया वो मेरा कर्तव्य था, वह सब मुझे करना ही चाहिए था। अब संगीता की समझ में आ गया कि वास्तव में उस की सच्ची मित्र कौन है? सारी सहेलियों के रहते हुए भी संगीता ने आज यह निश्चित कर लिया कि उसकी सच्ची सहेली रानी ही है। सब सहेलियां खड़ी थी, फिर भी आज संगीता के प्राण चले ही जाते यदि रानी ना होती उस दिन से उसके मन में रानी के प्रति आदर, सम्मान की भावना और अधिक बढ़ गई। अब संगीता की सहेलियां। बीएस समझ गई थी कि मित्र के मुसीबत में पड़ने पर अपनी परवाह किये बगैर उसकी सहायता करनी चाहिए। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि सच्चा मित्र वही होता है जो समय बढ़ने पर अपने मित्र के काम आये। ओके बाय।",सभी को नमस्कार यह दो चींटियों की दोस्ती की कहानी है। मैं सभी बच्चों को सोने के समय की कहानियां नैतिकता के साथ सुना रहा हूं। मेरी कहानियाँ अभिनव और प्रेरणादायक हैं। अपने बच्चों के साथ मेरी कहानियाँ सुनें। यह निश्चित रूप से आपके बच्चे के व्यक्तित्व के निर्माण में मदद करेगा। मेरे यूट्यूब चैनल STORICO को सब्सक्राइब करें "हैलो बच्चों, आज जो कहानी में आपको सुनाने जा रही हूँ, उसका टाइटल है सच्ची मित्रता। तो यमुना नदी के किनारे एक बहुत बड़ा जंगल था। उसमें तरह तरह के पेड़ लगे हुए थे। कोई आम का था, कोई बबूल का, कोई बरगद का था तो कोई पीपल का। उन पेड़ों पर अनेकों पक्षी रहा करते थे। आम के पेड़ पर एक कोयल रहती थी, उसका नाम था चित्रा। चित्रा बड़ा ही मीठा गाना गाती थी। तोता, मैना, कौआ, कबूतर आदि सभी पक्षी सुबह शाम काम में लगे रहते थे। दोपहर में फिर थोड़ा आराम करते थे। उस समय चित्रा सबका मनोरंजन करती थी। चित्रा कोयल में एक और बहुत बड़ा गुण था। वह था सब की सहायता का भलाई करने का। एक बार हरियल तोता का पैर टूट गया तो वहाँ सात दिनों तक उसके लिए नीतू लोमड़ी के यहाँ से दवाई लाती रही। पट्टी बांधती रही जितना ग्रीफ कबूतर को बुखार आ गया तो वह उसकी सेवा करती रहीं। जो भी बीमार पड़ता, चित्रा सभी की सेवा को हाजिरी रहती थी। जो भी दुख मुसीबत होती, चित्रा उसे दूर करने को तैयार रहती। यही कारण था कि सभी मित्रों को वो बहुत प्यार करती थी और सभी चित्रा से भी बहुत प्यार करते थे। एक बार की बात नदी के उस पार से एक बार तुम डाउट जंगल में आ गया। चिड़िया, कबूतर, तोता, मैना सभी ने जहाँ जहाँ कर उसका स्वागत किया। 12। सिंघा ने पेड़ों पर बैठे सभी पक्षियों को एक बार देखा। फिर वह मुँह फिराकर चल दिया। जाकर वह नदी किनारे हरी हरी घास में आराम से बैठ गया। उसका यह व्यवहार सभी पक्षियों को बुरा लगा। कबूतर बोला कैसा है ये हमारी बात का कोई जवाब भी नहीं देता। तोता बोला घमंडी, इसीलिए मुँह फिराकर चल दिया है। मैं ना बोली तुम्हारा मेहमान हैं चलो यार, मैं एक बार भरते हैं, इसका स्वागत करते हैं। फिर वहाँ चित्रा से बोली, चित्रा दीदी तुम्हारा सिंह के स्वागत में सुन्दर सा गाना गाऊं। चित्रा मीठे स्वर में गाना गाने लगी। बड़ी दादा तुम्हारा स्वागत खूब करते हम सभी पक्षी आज कु यह भी घर अपना समझो। कु। मिल जुल कर रहे हैं। हम सभी को और बारहसिंगे पर इसका कोई प्रभाव न पड़ा। वह सोच रहा था मैं तो बड़ा हूँ, बड़े घर का हूँ। इन छोटे छोटे पक्षियों से क्या मित्रता करूँ? और वह वहाँ से छलांग लगाकर जंगल की ओर भाग गया। जितरा को यहाँ बड़ा बुरा लगा। पहले तो उसे गुस्सा आया पर फिर उसने सोचा की ये तो उसके माता पिता की गलती है की उसे अच्छा व्यवहार करना नहीं सिखाया। चित्रा ने सोचा कि मैं उसे ठीक से व्यवहार करना सीखा दूंगी। वहाँ जंगल बड़ा ही हरा भरा और सुहावना था। खाने को भी वहाँ खूब मिल जाता था। इसलिए बारहसिंगा वहाँ रोज़ जाता था, पर वह बोलता किसी से नहीं था, अकेला ही जा रही हूँ। मैं सीन उलझा उलझा कर खेलता रहता था। कबूतर, मैना, तोता कोई भी उससे बोलने का प्रयास नहीं करते थे। बोलती तो उसे चित्रा भी नहीं थी। पर उसका आना चित्रा को अच्छा लगने लगा था। वह घंटों उसके लंबे लंबे घने सींगों को चंचल को दानों को देखती रहती थी। 1 दिन अचानक ही जंगल की शांति भंग होने लगी, खटखट और दाएँ दायें की आज ही सुनाई देने लगी। तोता, कबूतर आदि सभी घबरा गए। वे अपने पंखों को फड़फड़ा पर पढ़ाकर कभी इस पेड़ पर कभी उस पेड़ पर रोने लगे। इतने में कमरा भागा, भागा आया और बोला। भगवान से दो शिकारी आ रही है, उनके पास बंदूकें भी है, बूंद डालेंगे हम सभी को। कुएं की बात सुनते ही सभी पक्षी अपने घोसलों को छोड़ छोड़ कर तेजी से नदी के उस पर उड़ चले। रास्ते में चित्रा ने देखा कि बारहसिंगा दौड़ा दौड़ा उसी जंगल की ओर जा रहा है। जितरा चिल्लाई, डैड जाना शिकारी है, भून डालेंगे बारहसिंगे ने जैसे की उसकी आदत थी, पक्षियों को देखकर फिर अनदेखा कर दिया। चित्रा अभी भी कह रही थी और वो तेजी से छलांग लगाकर आगे बढ़ गया। चित्रा की बुरी बात सुने बगैर जंगल में जाते ही बारासिंघा ने शिकारियों को देखा। अब उसकी समझ में सारी बात आ गयी। बहुत तेजी से वहाँ से भागा। उसने पीछे मुड़कर भी ना देखा, पर शिकारियों ने उसे भागते हुए देख लिया। फिर क्या था वे लगे उसका पीछा करने बारासिंगा अपने को झोपड़ियों में छुपाकर भागते हुए तंग आ गया और अंत में एक गोली उसके पैर में लगी गई। वह बेहोश होकर घनी झाड़ियों के पीछे गड्ढे में जा गिरा। शिकारी अपने शिकार को ढूँढते ढूँढते आये। उन्होंने चारों ओर देखा। पर कहीं भी माना दिखाई दिया। घनी झाड़ियों और गड्ढे ने उनकी दृष्टि से 12 सिंघी को छुपा लिया था। अंत में वे निराश होकर खाली हाथ ही लौट गए। रात होने पर भी जब 12 सिंगर न लौटा तो जंगल के उस बार आम के पेड़ पर बैठी चित्रा चिंता करने लगी। एक बार उसके मन में यह भी आया कि बारहसिंगा जब बोलता तक नहीं, तब फिर क्यों उसकी परवाह की जाए, पर दूसरे ही क्षण उसने सोचा की हम सब जीव जंतुओं को मिलजुल कर रहना चाहिए। एक दूसरे की सेवा सहायता करनी चाहिए। सारा हालत से त्यागकर नींद से भरी आँखों को खोलकर चित्रा ने उड़ाई ली। अपने पंखों को फड़फड़ा या और जंगल की ओर चल पड़ी? चांदनी रात थी, हर जगह जानी छुट्टी हुई थी। सभी कुछ साफ साफ दिखाई दे रहा था। चित्रा ने नदी के किनारे पेड़ों के नीचे हरी हरी घास पर झाड़ियों के बीच में सभी जगह घूम घूमकर बारासिंघा को देखा पर कहीं वह सभी जगह घूम घूमकर बारहसिंघा को नहीं मिलते पाई। अंत में निराश होकर चित्रा उड़ चली। झाड़ियों के बीच में से जब वो उड़ रही थी तो उसकी निगाह एक जगह पर पड़ी। जहाँ बारहसिंगा पड़ा हुआ था, वह तुरंत नीचे उतरी। उसने देखा बारासिंगा बेहोश पड़ा है। वह अपनी चोंच में भरकर तीन चार बार पानी लाई और बारहसिंगे के मुँह में डाला तब कहीं जाकर उसे होश आया। आंखें खुलने पर बारहसिंगा ने अपने सामने चित्रा कोयल को देखा। सुबह की घटना उसकी आँखों के सामने घूम गयी। पल भर में उसकी समझ में सारी बात आ गयी। यह सोचकर की वहीं चिड़िया मेरी सहायता कर रही है, जिससे मैं बात तक नहीं करता था। बाराती की आंसुओं से भर गयी। अभी आज दादी कहकर चित्रा उड़ गई। थोड़ी देर बाद लौटी तो उसकी जांच में लगी थी। हरी हरी घास और फल आते ही बोली। सुबह से भूखे हूँ तो खा लो भूखा तू थाई बारहसिंगा बहुत जल्दी जल्दी खाने लगा। अंत में उससे ना रहा गया और पूछ ही बैठा। चित्रा बहन एक बात बताओ तुम मेरी इतनी सहायता इतनी सेवा क्यों कर रही हो? मैं तो तुमसे ये बोलता तक ना था, सुबह भी मैंने तुम्हारी बात ना सुनी थी। चित्रा मुस्कुराईं और बोलीं, मैं भैया हम तुमको एक दूसरे के काम आने की सलाह देते हैं। हम दूसरों के काम आ पाए, उनकी सहायता कर पाए। इसी में जीवन की सार्थकता है जो केवल अपने लिए जीते हैं और सोचते हैं और बड़े ही तो छोटे हैं। भारत की समझ में सारी बात आने लगी। बोला हाँ, हम सबको एक ही ईश्वर ने बनाया है। हम सब भाई बहन हैं। सभी को मिलजुल कर ही रहना चाहिए। रात आंधी के करीब बीत चुकी थी। चित्रा ने बारहसिंगे से सोने के लिए कहा और स्वयं भी आम के पेड़ पर बने अपने घोंसलें पर जाकर सो गई। दूसरे दिन यमुना नदी के उस पार से सभी पक्षी भी वापस आगये अब बारहसिंगा, तोता, मैना, कबूतर सभी से बड़े स्नेह पूर्वक ढंग से बात करने लगा। किसी को भी उससे शिकायत नहीं रही। चित्रा कोयल ने नीतू लोमड़ी के यहाँ से रोज़ दवा ला लाकर बाला सिंह को सवस्थ बना दिया। वह तो अब उसकी पक्की सहेली ही बन गई है। दोनों दोपहर को आम की अमराई में बैठे बैठे। बतियाते रहते हैं तो बच्चों। इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है की हमें हमेशा दूसरों की मदद करनी चाहिए और कभी भी अपना घमंड नहीं करना।",सभी को नमस्कार मैं सभी बच्चों को सोने के समय की कहानियां नैतिक रूप से बता रहा हूं। मेरी कहानियाँ अभिनव और प्रेरणादायक हैं। अपने बच्चों के साथ मेरी कहानियाँ सुनें। यह निश्चित रूप से आपके बच्चे के व्यक्तित्व के निर्माण में मदद करेगा। "हैलो दोस्तों आटो कहानी मैं आपके लिए लेकर आई हूँ। उसका शीर्षक है छोटी सी सीख। ज़िंदगी के छोटे छोटे अनुभव में बड़ी सीखें छुपी होती है। उनके प्रभाव को बनाए रखें। तो दोबारा भूल करने से बच सकते हैं आज की हमारी कहानी। इसी परिपेक्ष्य में है। तो आइए सुनते हैं छोटी सी सीख। अक्सर ऐसा होता है कि हम अपने जीवन में आगे बढ़ जाते हैं। फिर भी बीती कुछ बातें हमारे ज़हन में हमेशा ताजा रहती है। खासतौर पर वे बातें जिन्होंने कभी हमारे मन पर विशेष प्रभाव छोड़ा हो। जो आज भी एक सबक की तरह बेहतर जिंदगी की सीख की तरह याद रहती है। ऐसा ही मेरे बचपन से एक वाक्य जुड़ा मुझे याद रहता है। बात उस समय की है जब मैं कक्षा चार में पढ़ती थी, मेरी कुछ सहेलियां हुआ करती थी। और जैसा कि दोस्तों के बीच दोस्ती और तकरार कर सिलसिला चलता रहता है, वैसा ही हमारे बीच भी रहता था। जब हम दोस्तों के बीच दोस्ती होती थी। तब हम सब में बड़ी घनिष्ठता होती थी और तकरार होने पर कहासुनी भी हो जाती थी। तब मैं और मेरी एक हम रूम इसका नाम पूजा था। काफी अच्छे दोस्त हुआ करते थे अभी की भाषा में बेस्ट फ्रेंड? हमारे और भी कई दोस्त थे, यानी कॉमन फ्रेंड्स। एक बार मेरे और पूजा के बीच कुछ अनबन हो गई और हमारी दोस्ती में वक्त दरार आ गई। गुस्से में मैंने हमारे कॉमन फ्रेंड्स में से एक से पूजा को लेकर कुछ बातें कह दी। जैसे की उसने अपने जन्मदिन की पार्टी में कितना खराब इंतजाम किया था। एक मिठाई और केक तक की व्यवस्था नहीं की थी। समय बीता। थोड़े दिनों बाद हम दोनों के बीच थोड़ी बातचीत शुरू हो गई और धीरे धीरे हमारी दोस्ती फिर से पहले जैसी होने लगी। पर दो लोगों के बीच तकरार देखने में। लोगों को ज्यादा मज़ा आता है। तो हुआ यूं कि हमारी उस कॉमन फ्रेंड ने अचानक 1 दिन मेरे और पूजा के सामने ये बोलना शुरू कर दिया। कि सुरभि ने यानी मैंने कहा था कि तुम्हारे जन्मदिन की पार्टी कितनी फीकी थी। एक मिठाई तक की व्यवस्था नहीं थी। इस तरह वह पूजा को यह जताना चाह रही थी कि मैं अक्सर उसकी बुराइ करती रहती हूँ। ये सुनकर उस समय मैं मन ही मन बहुत लज्जित महसूस कर रही थी क्योंकि ये तो मैंने वास्तव में कहा था इसलिए भी नहीं सकती थी। हालांकि मैं किसी की बुराइ नहीं करती थी। पर पूजा मेरी सबसे अच्छी दोस्त थी। और उसके साथ हुई अनबन से उन दिनों में काफी परेशान थी। इसी परेशानी और गुस्से के मिलेजुले एहसास में मैंने वो सब कह दिया था। मैं उस समय यही सोच रही थी कि मेरी इस नासमझी की वजह से अब फिर से हमारी दोस्ती में दरार आ जाएगी। पर पूजा ने हमारी कॉमन फ्रेंड को जो उत्तर दिया, उसने ना सिर्फ हमारी उस फ्रेंड को बल्कि मुझे भी आश्चर्यचकित कर दिया। मुझे उससे उस तरह की प्रतिक्रिया की अपेक्षा नहीं थी। पूजा ने उससे कहा, कोई बात नहीं, वह मुझसे गुस्सा थी तो ऐसा कह दिया होगा। गुस्से में कही कही बातें याद नहीं रखने चाहिए, बुरा भी नहीं मानना चाहिए। उसका ये समझदारी भरा जवाब मुझे और भी लज्जित कर के आप साथ ही मुझे एक सीख भी दे गया। उस छोटी सी उम्र में उसके द्वारा कही गई यह बात मुझे आज भी याद है। वक्त काफी आगे निकल चुका है। मुझे इस स्नातक किए हुए काफी साल बीत चूके हैं। अगर आज मैं उससे मिल पाती। तो बताती कि उसके एक वाक्य ने मुझे कितना प्रभावित किया था और उसे मेरी नजरों में कितना बड़ा बना दिया था। तो दोस्तों, इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है। की हमे। दोस्ती में कभी भी कोई बात अपने दिल में नहीं रखनी चाहिए। और। दोस्तों को अपने दिल में सबसे ऊपर का दर्जा देना चाहिए। ओके बाय।","सभी को नमस्कार, यह दो दोस्तों की एक नैतिक कहानी है। हमारे बचपन में हमारे कई दोस्त होते हैं। कुछ दोस्त हमारे बहुत करीब होते हैं। कभी कभी ये क़रीबी दोस्त हमें ज़िंदगी का सबक देते हैं। कहानी सुनें और कहानी के नैतिक के बारे में जानें।" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपको सुनाने जा रही हूँ उसका शीर्षक है अनोखी शादी। बात कुछ साल पुरानी है। चंदा उत्तर प्रदेश के एक जिले में अपने परिवार के साथ सुखपूर्वक रहती थी। आठवीं कक्षा में पढ़ने वाली चंदा पढ़ाई में होनहार होने के साथ साथ अपने परिवार से भी बहुत प्रेम करती थी। एक बार की बात है। चंदा के दूर के बाबा के बेटे यानी की चाचा की शादी पास के ही एक टाउन हरदोई में होना निश्चित हुआ। जून का महीना था, भयंकर गर्मी या चल रही थी क्योंकि शादी पास के ही शहर में थी इसलिए पापा ने चंदा, उसके छोटे भाई और भतीजे को साथ ले चलने का विचार बनाया। यूँ तो चंदा की ताईजी बच्चों को कहीं जाने नहीं देती थी परंतु उस दिन उन्होंने भी ना जाने क्या सोचकर कह दिया कि पास की ही शादी है। लो तुम लोग भी थोड़े मज़े कर लो। सभी बच्चे ताई जी की आज्ञा पाकर खुशी से फूले न समाए। कुछ ही देर में गाड़ी और ड्राइवर दोनों ही गेट पर खड़े हो गए। चंदा सभी बच्चों में सबसे बड़ी थी सो वह अपने छोटे भाई और भतीजे को माँ के समान जिम्मेदारी से साथ ले गई। गाड़ी धीरे धीरे अपने गंतव्य की ओर बढ़ती जा रही थी। शादी के लिए सभी मेहमानों के रुकने की व्यवस्था एक धर्मशाला में की गई थी, क्योंकि छोटा शहर था इसलिए वहाँ होटेल आदि उपलब्ध नहीं होते थे। सभी शाम 5:00 बजे उस धर्मशाला में पहुँच गए। वहाँ पहुँचकर जो दृश्य देखा। उसका वर्णन तो अविस्मरणीय है। क्योंकि गर्मी के दिन थे इसलिए सबसे पहले सभी का स्वागत शरबत से किया गया। अब सब ठहरे बेहद हाइजीनिक बाजार की। बर्फखाना उन्हें सख्त मना था सो शरबत पीना उन्होंने कैंसिल कर दिया क्योंकि शरबत पीने के लिए जैसे ही उन्होंने ग्लास उठाए तो जो नजारा सामने था वह तो हिला देने वाला था। वेटर बर्फ़ को एक चमड़े के थैले में ज़ोर ज़ोर से पटक कर कूट रहा था और फिर उसे ग्लासेस में भर रहा था। इतनी गंदगी से शरबत का निर्माण होते देखकर सबने सादे पानी से ही अपनी प्यास बुझानी उचित समझी। पर यह क्या? पानी के गिलास में तो मोटी परत गंदगी जमा थी। चंदा ने अपना अपने भाई और भतीजे तीनों के ग्लासेस वापस टेबल पर रख दिए। अब कुछ समय बाद पापा और ताऊजी आए और बोले, बेटा, ऊपर कमरे में तुम सब जाकर कुछ आराम कर लो। वहाँ सब के रुकने की व्यवस्था की गई है। सब बहुत थके हुए तो थे ही। सोचा बढ़िया कमरे में आराम करेंगे। पर जैसे जैसे वे सीढ़ियां चढ़कर कमरों की ओर पहुंचते जा रहे थे, उनके सारे अरमान ठंडे पड़ते जा रहे थे। वहाँ थोड़ी थोड़ी दूर पर। पेडेस्ट्रियन फैन लगे हुए थे यानी पंखे। पर यकीन मानिए कि किसी में भी कवर की जगह जाली नहीं लगी हुई थी। सभी पंखों के पंख तेजी से खुलेआम पड़पड़ा रहे थे। ये भयानक नजारा खत्म हुआ नहीं कि जैसे ही हम कमरे की ओर बढ़े तो देखा हर कमरे में 881010 मेहमान भरे पड़े हैं। और उनको मेकअप करने के लिए 110 वॉट के बल्ब की सुविधा दी गई है। खैर। तीनो ही यह सब देखकर जल्दी ही वापस नीचे आ गए। कुछ देर बाद लाइट चली गयी। आप सभी ने जेनरेटर की गुहार लगाई? करीब आधा घंटा इंतजार करने के बाद एक बड़ा जेनरेटर धर्मशाला के आंगन की शोभा बढ़ाने लगा। वह इतना तेज शोर कर रहा था कि किसी को एक दूसरे की बात समझ में ही नहीं आ रही थी। खैर अब आई बारात और बैंड वालों की बारी बैंड बाजे वालों के साथ बारात उसी आंगन में आकर खड़ी हो गयी। इस समय रात के करीब 9:00 बज रहे थे। बारात अपने ज़ोर शोर से बैंडबाजों के 7:00 बजे जा रही थी। और जेनरेटर अपनी ही राग अलाप रहा था। ऐसे माहौल में। रात 9:00 बजे चंदा के भतीजे को अचानक ही नींद आने लगी। उसे कुछ समझ में नहीं आया कि आखिर। इस समस्या का क्या समाधान किया जाए? फिर उसे वहाँ। दो कुर्सियां दिखाई पड़ी। उसने दो कुर्सियों को जोड़कर उसका बेड बना दिया। आश्चर्य तो तब हुआ जब बैंड और जेनरेटर की तेज आवाज के बीच उस कुर्सी रूपी बैठकर चंदा का भतीजा बेधड़क सो गया। धर्मशाला से सभी को शादी वाली जगह जाना था और वह भी बारात के साथ। चंदा ने अपने भतीजे को उठाया और तीनों ने एक दूसरे के हाथ पकड़े। पर यह क्या? बारात में नाचने वालों में इतना हड़कंप मच गया था कि उनका बारात के साथ चलना मुश्किल हो गया। अब तो पापा के सब्र का बांध भी टूट गया था। उन्होंने सब बच्चों का हाथ पकड़ा और कहा कि एक दूसरे का हाथ कस कर पकड़ो। हम सभी खाना खाने चल रहे हैं। सभी एक लाइन में एक दूसरे का हाथ पकड़कर एक के पीछे एक होकर बारात के साइड में जल्दी जल्दी कदम बढ़ाकर आगे बढ़ने लगे। और जैसे ही खाने वाली जगह पहुंचे तो वहाँ खाना शुरू ही नहीं हुआ था। उन्होंने करीब आधा घंटा इंतजार किया और अब तो पानी सिर के ऊपर निकल गया था। ताऊ जी ने ड्राइवर को फ़ोन करके बुला ही लिया। सभी जो इस अनोखी शादी में यह सोचकर बड़े उत्साह से आये थे। की अब अगले दिन ही सुबह वापस घर जाएंगे। बिना कुछ खाये पीए भूखे प्यासे वहाँ से भागे। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है कि हमें ज्यादा सुख के लालच में नहीं पड़ना चाहिए क्योंकि कभी कभी ज्यादा मज़े करने के चक्कर में हम मुसीबत में भी पड़ जाते हैं। ओके बाय।",यह एक छोटी बच्ची चंदा की कहानी है। उसे अपने छोटे भाई और भतीजे के साथ एक शादी में शामिल होने का अवसर मिला। इस पूरी कहानी में आपको कार्यों की व्यवस्था के बारे में पता चलता है। कहानी सुनें और पूरे एपिसोड का आनंद लें। "गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णू गुरुर्देवा महेश्वरा गुरु और साक्षात पर अब राम कसम आई श्री गुरुवे नम आह। गुरुर ब्रह्मा। अर्थात गुरु ब्रह्मा सृष्टि कर्ता के समान है। गुरु विष्णु गुरु विष्णु संरक्षक के समान है, गुरुदेव महेश्वरा गुरु। प्रभु महेश्वर अर्थात शिवजी के समान है। गुरू साक्षात् परं ब्रह्म सत्य गुरु आँखों के समक्ष सर्वोच्च ब्रह्मा के समान है। 10 मई श्री गुरुवे नम हाँ, उन एकमात्र सच्चे गुरु को मैं प्रणाम करती हूँ। गुरु शब्द मैं गु का अर्थ है अंधकार रु। का अर्थ है अंधकार को हटाने वाला। गुरु और शिष्य का संबंध। इस धरती पर सर्वोत्कृष्ट माना जाता है। गुरु हमारे जीवन से अज्ञानता रूपी अंधकार का विनाश करते हैं। गुरु और शिष्य के इसी सुंदर। मनोरम संबंध पर आधारित आज की मेरी कहानी है। इस कहानी का शीर्षक है गुरु एवं शिष्य। आइये प्रारंभ करते हैं आज की हमारी कहानी। एक समय की बात है, एक रमणीय वन में एक आश्रम था, वहाँ महान ऋषि धूम में अपने अनेक कोशिशों के साथ रहते थे। 1 दिन एक तंदुरुस्त एवं सुगठित बालक उपमन्यु आश्रम में आया। वह देखने में शांत महिला व अव्यवस्थित था। बालक ने महान ऋषि धो में को नमन किया और उसे उनका शिष्य स्वीकार करने का निवेदन किया। उन दिनों जीवन के वास्तविक आदर्शों तथा सभी मैं ईश्वर को देखने की शिक्षा प्रशिक्षण देने के लिए। शिष्यों को स्वीकार या अस्वीकार करने का निर्णय गुरु का होता था। ऋषि धूम में इस तगड़े बालक उपमन्यु को स्वीकार करने के लिए सहमत हो गए। हालांकि ऊपर आलसी तथा मंदबुद्धि था और उसे आश्रम के अन्य सभी शिष्यों के साथ रखा गया। वह अपने अध्ययन में ज्यादा रुचि नहीं लेता था। व धर्म ग्रंथों को ना तो समझ पाता और ना ही उन्हें कंठस्थ कर पाता था। उप मन्नू आज्ञाकारी भी नहीं था, उसमें कई उत्तम गुणों का अभाव था। ऋषि धूम में एक ज्ञान संपन्न आत्मा थे। उपमन्यु के सभी देशों के बावजूद वह उससे प्रेम करते थे। वे उपमन्यु को अपने उज्ज्वल शिष्यों से भी अधिक स्नेह रखते थे। उपमन्यु भी ऋषि धोनी को अपना प्रेम लौट आने लगा। वह अपने गुरु के लिए कुछ भी करने को तैयार था। गुरु को ज्ञात था कि उपकरणों अत्यधिक खाता था। और इस कारण सुस्त और मंद था। अत्यधिक भोजन इंसान को उनींदा और अस्वस्थ महसूस कराता है और हम स्पष्ट रूप से सोच नहीं पाते। इससे तमोगुण अर्थात सुस्ती का विकास होता है। ऋषि में चाहते थे कि उनके शेष सभी शिष्य उतना ही खाएं जितना स्वास्थ्य के लिए अनिवार्य हो। तथा चार इंच की निरंकुश जी पर नियंत्रण रखें तथा ऋषि धो में ने उपमन्यु को आश्रम की गायों को चराने के लिए अति सवेरे भेजा। और संध्याकाल लौटने के लिए कहा। ऋषि की पत्नी उपमन्यु के लिए दोपहर का आहार बना कर देती थी। और उपमन्यु की भूख जोरावर थी। भोजन करने के पश्चात भी वह भूखा ही रहता था। अतः वह गायों का दूध धोकर पी लेता था। ऋषि तो हमने देखा कि उपमन्यु मोटा हो रहा था। ऋषि चकित थे की गायों के साथ चरागाह तक चलने और सादा भोजन करने के बाद भी उपमन्यु का मोटापा कम नहीं हो रहा था। उपमन्यु से सवाल करने पर उसने ईमानदारी से बताया कि वह गायों का दूध पी रहा था। ऋषि धाम में ने कहा कि उसे दूध नहीं पीना चाहिए क्योंकि वह गाए उसकी नहीं है। उपमन्यु अपने गुरु की आज्ञा के बिना दूध नहीं पी सकता था। उपमन्यु सरलता से सहमत हो गया। उसने देखा कि बछड़े जब अपनी माताओं से दूध पीते थे तो दूध की कुछ बूंदें गिर जाती थी। वह इस दूध को अपने हाथों से एकत्रित कर पी जाता था। ऋषि धूम मैंने देखा कि अभी भी उपमन्यु का वजन कम नहीं हो रहा था। उन्हें बालक से ज्ञात हुआ कि वह क्या कर रहा था। ऋषि ने उपमन्यु को सप्रेम समझाया कि गायों के मुँह से गिरा हुआ दूध पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। उपमन्यु ने कहा कि वह इस दूध को पुनः नहीं पिएगा। परन्तु उपमन्यु अभी भी अपनी भूख पर नियंत्रण नहीं कर पाया। एक दोपहर उसने पेड़ पर कुछ फल देखे और उन्हें खा लिया। ये फल जहरीले थे और उन्होंने उपमन्यु को अंधा बना दिया। दहल गया और वह यहाँ वहाँ लड़खड़ाते हुए एक गहरे कुएं में जा गिरा। जब गाय उसके बिना घर लौट गई तो ऋषि धाम में उपमन्यु की तलाश में निकल गए। उन्होंने एक कुएं में उसे पाया। और उसे बाहर निकालकर लाए। उपमन्यु के लिए दया और करुणा से परिपूर्ण ऋषि धोनी ने उसे एक मंत्र सिखाया। इस मंत्र के उच्चारण से जुड़वां अश्विनी कुमार जो कि देवताओं के चिकित्सक थे प्रकट हुए और उन्होंने उपमन्यु की दृष्टि वापस लौटा दी। तत्पश्चात ऋषि धूम में ने उपमन्यु को समझाया कि लालच उसे तबाही की ओर ले गया था। लालच ने उपमन्यु को अंधा बना दिया और वह कुएं में गिर गया। वहाँ उसकी मृत्यु भी हो सकती थी। बालक को उसका सबक समझ में आ गया और उसने अत्यधिक खाना छोड़ दिया। जल्दी ही वह दुरुस्त सवस्थ और बुद्धिमान व चतुर भी बन गया। ऋषि धूम में उपमन्यु के हृदय में गुरु के लिए प्रेम उत्पन्न किया अतः गुरु ने ब्रह्मा सृष्टिकर्ता की भूमिका अदा की। ऋषि ने अपने प्रेमपूर्ण सुझाव से उपमन्यु में प्रेम की संरक्षा की। उसे कुएं से मरने से बचाया। अतः गुरु ने विष्णु संरक्षक की भूमिका निभाई। अंततः गुरु ने उपमन्यु की लालच का भी विनाश किया। महेश्वर, तमोगुण के विनाशक की भूमिका अदा की और उपमन्यु को सफलता की ओर अग्रसर किया। तो मित्रों इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि गुरु एवं शिक्षक ही वो है जो हमें उचित आदर्शों की स्थापना और सही मार्ग पर चलने के लिए उचित निर्देश देते हैं। हमें अपने शिक्षक के प्रति सदा आदर और कृतज्ञता दर्श आनी चाहिए। ओके बाय।","सभी को नमस्कार, शिक्षक दिवस शिक्षक की सराहना के लिए एक विशेष दिन है और इसमें किसी विशेष क्षेत्र में, या सामान्य रूप से समुदाय में उनके विशेष योगदान के लिए उन्हें सम्मानित करने के लिए समारोह शामिल हो सकते हैं। शिक्षक दिवस मनाने का विचार 19वीं शताब्दी के दौरान कई देशों में जड़ जमा चुका था; ज्यादातर मामलों में, वे एक स्थानीय शिक्षक या शिक्षा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर मनाते हैं। यह प्राथमिक कारण है कि कई अन्य अंतर्राष्ट्रीय दिवसों के विपरीत, देश इस दिन को अलग-अलग तारीखों पर मनाते हैं। यह कहानी मंत्र गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु गुरुर देवो महेश्वरः गुरुः साक्षात्परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नमः मंत्र के वास्तविक अर्थ को दर्शाती है।" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपको सुनाने जा रही हूँ, उसका टाइटल है भालू की बहादुरी। बघेलों नाम का एक मदारी था। 1 दिन वह जंगल के पास से जा रहा था। उसने देखा कि पगडंडी पर भालू का एक छोटा सा बच्चा पड़ा हुआ है। उसके दोनों पैरों में चोट लगी थी। खून बह रहा था। यह देखकर भगेलू को दया आ गई। उसने अपनी धोती फाड़ कर भालू के बच्चे की पट्टी बांधी। देर तक उसका सिर सहलाता रहा। तब तक खून बहना भी कुछ कम हो गया था। भगेलू आगे चलने के लिए उठ खड़ा हुआ। जैसे ही वह दो चार कदम बढ़ा होगा कि भालू का बच्चा गुर्राकर उसे बुलवाने लगा। भगेलु पीछे लौटा, भालू का बच्चा उसके पैर चाटने लगा। भगेलू समझ गया कि भालू का बच्चा नहीं चाहता है कि वह वहाँ से जाए पर उस जंगल में भला वह कितनी देर और रुक सकता था। इसलिए उसने साइकिल पर पीछे भालू के बच्चे को बांधा और घर की ओर चल पड़ा। घर जाकर भगेलू ने जैसे ही भालू के बच्चे को उतारा की पड़ोस के बहुत से बच्चे उसे देखने के लिए इकट्ठा हो गए। भालू का बच्चा इतनी सारी भीड़ को पहली बार अपने आसपास देख रहा था। वह गुर्राने लगा। भगेलू समझ गया कि उसे यह अच्छा नहीं लग रहा है। जाओ बच्चों फिर आना नहीं तो काट खाएगा। यह कहकर भगेलू ने सभी बच्चों को वहाँ से भगा दिया। बगे लू ने भालू के बच्चे को खूब पुचकारा। उसके घाव पर दबा लगाई। बहुत सी चीजे खाने के लिए दी। भगेलू के पास कई बंदर थे, जिन्हें नचाकर खेल दिखाता था वो। उन्हीं के पास उसने भालू के बच्चे को भी बांध दिया। जल्दी ही भालू का बच्चा सभी से खूब हिल मिल गया। सारे बंदर उसके पक्के मित्र बन गए। वह उनसे खूब बातें करता। बघेल ऊ तो उसे बहुत प्यार से रखता था, वह उसे खाने के लिए अच्छी अच्छी चीजे देता बघेल उन्हें प्यार से उसका नाम भी रखा था मोती उसने मोती को खूब सुंदर नाच भी सीखा दिया। उसके पैरों में घुंघरू बांध दिए थे बघेल उ के इशारे पर मोती ठुमक ठुमक कर ऐसा सुंदर नाश्ता की देखने वाला बस देखता ही रह जाता था। 1 दिन की बात है। भगेलू मोती को लेकर पास के गांव में गया। वहाँ मोती ने तरह तरह का तमाशा दिखाया। भगेलू ने उसे बहुत सारी बाते सिखाई थी। जैसे पालती मारकर बैठना, आँखें बंद करके ध्यान करना, हाथ जोड़कर नमस्कार करना, आरती उतारना, व्यायाम करना, नकल करना, नाचना आदि आदि। एक गांव में खेल दिखाते हुए भगेलू को रात हो गई। वहाँ से जाना तो जल्दी चाहता था पर गांव के बच्चों और बड़ों ने उसे ऐसा घेरा कि उठने ही ना दिया। बघेलों को पैसे भी खूब मिल रहे थे इसलिए भी उसने उठने की जल्दी नहीं दिखाई। जब खेल खत्म हुआ तो रात के 8:00 बजे थे गुफा गुफा अंधेरा हो रहा था, गांव का रास्ता भी उबड़ खाबड़ था। जाड़े के दिन थे, ठंडी हवा बह रही थी, सर्दी के कारण दांत भी बज रहे थे। भगेलू सोच रहा था कि अब घर कैसे जाएं। हल्की हल्की बूंदाबांदी शुरू हो गई थी। वह अलग। तभी गांव के मुखिया ने भगेलू से कहा कि आज की रात वह उसी के यहाँ रह जाए। भगेलू ने खुशी, खुशी उसकी बात मान ली। मुखिया ने भगेलू और मोती को खूब अच्छा खाना खिलाया। मोती को उन्होंने अपनी भैंसों के पास ही बांध दिया। बघेलों अलाव के पास बैठा मुखिया से देर तक गपशप करता रहा। फिर गर्म गर्म रजाई में घुसते ही जल्दी सबको नींद आ गई। नयी जगह होने के कारण मोती को नींद नहीं आ रही थी। बहुत देर तक पर भैंसों से बात करता रहा। जब वे भी सो गयी तो बैठा बैठा ना जाने क्या क्या सोचता रहा। बचपन से लेकर अब तक की सारी घटनाएं उसकी आँखों के सामने कौंध गई। वह अपने मालिक के बारे में सोच रहा था कि वह कितने अच्छे हैं। उसका हर समय ध्यान रखते है और उसे कितना प्यार करते हैं। सहसा तभी मोती ने खटखट की आवाज सुनी। वह चौंक गया, उसने सिर उठा के देखा, उस घने अंधेरे में भी मोती ने देख लिया के सामने दो आदमी खड़े हैं वह सोच रहा था की ये कौन है और कहाँ से आये है? क्यों आये हैं? तभी एक आदमी ने मोती के पास बनी हुई भैस को खोलना शुरू कर दिया। पलभर में ही मोती सारी बात समझ गया हो, ये तो चोर हैं। भैस चुराने आए हैं अपने आप से। उसने कहा, वह सोचने लगा कि मैंने मुखिया का अन्न खाया है, मुझे उनके प्रति वफादार होना ही चाहिए। यह बात भी उसके मन में कौंध गई कि उसका मालिक भी अंदर सोया है। हो सकता है सुबह होने पर वे समझें कि उसी ने चोरी कराई है और उसे मारे पीटे बुरा भला कहीं मुझे प्राण देकर भी मालिक पर आई विपत्ति को दूर करना होगा। मोदी ने मन ही मन कहा तभी मोदी ने पाया की एक आदमी मोती के पास खड़ा होकर उसकी रस्सी खोल रहा है। वो गलती से अंधेरे में मोदी को बहस समझ बैठा था। पलभर में ही एक विचार मोदी के मन में आया और चुपचाप खड़ा रहा और जैसे ही रस्सी खोलकर आदमी उसे ले जाने के लिए आगे बढ़ाओ, मोती ने अपने दोनों पैर पर खड़े होकर बड़े ही साहस के साथ दोनों हाथों से उसे कसकर पकड़ लिया। चोर बुरी तरह हड़बड़ा गया और ज़ोर से चीखने लगा। रस्सी उसके हाथ से छूट गई। अंधेरे के कारण दूसरा चोर भी ना समझ पाया कि मामला क्या है? उसने समझा कि उसका साथी रखोई हाथों पकड़ा गया है। अतएव वह भी बहस छोड़ छाड़कर सिर पर पांव रखकर वहाँ से भागा। चोर की चीख सुनकर मुखिया और भगेलू भी जाग गए थे। दोनों लाठी लेकर बाहर दौड़ें। टॉर्च की रौशनी डालने पर उन्होंने देखा कि मोती एक आदमी को कस कर पकड़े हैं, दांतों से उसे काट रहा है। एक भैस खून से थे खुली पड़ी है और वह भी लम्बा रही है। तुरंत ही उसकी समझ में सारी बात आ गयी। मुखिया ने आगे बढ़कर मोती का सिर थपथपाया। शाबाश मोती और चोर को उसके पंजे से छुड़ाया। भगेलू ने रस्सी से कस कर चोर को बांध दिया। सुबह उसे थाने भेज देंगे। मुखिया ने कहा। मुखिया और भगेलू दोनों ने मोती को खूब प्यार किया और उसकी बहुत तारीफ की। आज तो मूर्ति के कारण हम इतनी बड़ी हानि से बचे हैं। मुखिया कह रहा था सुबह होते ही सारे गांव में मोती की बहादुरी की बात फैल गई। उसे देखने पूरा का पूरा गांव ही इकट्ठा हो गया था। गांव वाले उसके लिए बहुत सारे उपहार भी लाये थे। मुखिया ने भी प्रसन्न होकर बघेल उको बहुत सारा ईनाम दिया था। यही नहीं दूसरे दिन अखबार में भी मोती की बहादुरी की खबर छपी थी। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें हमेशा बहादुरी से काम करना चाहिए। विपत्ति में कभी भी घबराना नहीं चाहिए। उनके बाइ।",यह एक भालू की नैतिक कहानी है। भालू 🐻 एक चोर को पकड़ने में अपने मालिक की मदद करता है। पूरी कहानी सुनें और कहानी के नैतिक के बारे में जानें। "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपके लिए लेकर आई हूँ उसका शीर्षक है संस्कृति की रक्षा। एक सुंदर झील के किनारे तोतों के कुछ परिवार उड़ते हुए आए। वे सभी देशाटन पर निकले थे। झील का रमणीक स्थान उन्हें बहुत अच्छा लगा। चारों ओर पहाड़िया फलों से लदे हरे हरे वृक्ष थे और स्वच्छ जल था। रहने की सारी सुविधाएं वहाँ थी। तोते उड़ते उड़ते बहुत थक भी चूके थे। अतएव उन्होंने विचार किया कि कुछ दिन इसी घाटी में रहकर विश्राम किया जाए तो तो को सुखपूर्वक वहाँ रहते हुए अभी दो 4 दिन ही बीते होंगे कि कौओं का एक बहुत बड़ा झुंड भी वहाँ उड़ता हुआ गया। कौओं को भी झील के किनारे का वह स्थान बहुत अच्छा लगा। उन्होंने मिलकर छलपूर्वक तोतों को बंदी बना लिया। यो भी तोते संख्या में थोड़े से ही थे, अतएव वे जल्दी ही हार गए थे। उस स्थान पर काबू ने अपना अधिकार जमा लिया। कौए अपनी कठोर आवाज़ में सारे दिन वहाँ गांव का वो करते तू तो को उनकी आवाज से कान बंद कर लेने पड़ते। कौए इतनी खराब चीज़े खाते और इतने गंदे ढंग से खाते की देखकर ही तो तो काजी में चिल्ला उठता बे सारे दिन दूसरों की बुराइ करते जिसे सुनकर तोतों को बड़ा बुरा लगता। वे अपना बहुत सा समय बेकार ही कमा देते। काम करने में भी आलस करते तो तू को उनके साथ 1 दिन काटना मुश्किल पड़ रहा था तो दे सोच रहे थे कि कम वे जल्दी ही उन्हें बंधन से मुक्त कर देंगे। पर जब चार 5 दिन तक भी कहो ने उन्हें नहीं छोड़ा तो ये सोच में पड़ गए। आखिर ये चाहते क्या हैं? हमें क्यों नहीं छोड़ देते? आपस में भी एक दूसरे से कहने लगे, एक वृद्ध तोता बोला, हो सकता है कि यह सोच रहे हो की हम उनसे लड़ेंगे और इससे स्थान पर अपना अधिकार जमा लेंगे। तब सारे तो तो ने विचार किया। कि वे कुओं से यह बात कह दें कि उन्हें छोड़ दिया जाए। वे इससे स्थान से चले जाएंगे। जिससे की कौए यहाँ प्रसन्नतापूर्वक रहे। तो तो के नेता ने कुओं से निवेदन किया भाइयो, आप सभी यहाँ आराम से रहिए, उसमें हम बाधक न बनेंगे। कृपया हमें छोड़ दीजिए, हम सब तोते यहाँ से उड़कर और किसी स्थान पर चले जाएंगे। यह सुनकर एक वृद्ध कौआ बड़ी ज़ोर से काम काम करके बोला तो तो इसे स्थान पर तो अब हमारा अधिकार हो ही चुका है पर हम तुम्हें यूं ही नहीं छोड़ेंगे। हम अपनी संस्कृति का प्रचार प्रसार करने निकले हैं। अधिक से अधिक पक्षियों में हम खाद्य संस्कृति का प्रचार करते हैं और यही चाहते है जब तुम हमारी बोली ठीक से सीख जाओगे, हमारा जैसा ही रहन सहन और हमारे जैसे ही खुद अपना लोगे तब हम तुम्हें छोड़ देंगे। कौए की बात सुनकर तोते को आश्चर्य। बहुत हुआ वहाँ आश्चर्य से ठगा सा रह गया एक विद्वान तोता तुरंत बोला भला यह कैसे संभव है आप में और हम में बहुत अंतर है हमारी और तुम्हारी जातियां ही भिन्न भिन्न है। आपकी भाषा भला हम कैसे सीख सकते हैं? बकवास मत करो, चुप रहो। प्रारंभ में सभी पक्षी ऐसा ही कहते हैं पर बार बार प्रयास करने से निरंतर अभ्यास करने से सब संभव हो जाता है। एनी कर्कश स्वर में कहा और उड़ गया। दूसरे ही दिन से कवियों ने प्रशिक्षण देना प्रारंभ कर दिया। तोते यदि उनकी तरह कर्कश स्वर में ना बोलते वैसा ही रहन सहन न अपनाते तो कौए उन्हें चोचों से मारते। कभी तो तोते खून से लथपथ भी हो जाते। वे मन ही मन सोचते कि हे भगवान कहाँ आप हंसे हम? पर वे लाचार थे, उन्होंने निकलने का कोई उपाय ढूंढ नहीं पाया था। कौवे उन पर कड़ी निगरानी रख रहे थे, जिससे वे छूटकर ना भाग जाए। कुछ ही दिनों में तो तेको वो का आचार व्यवहार सीखने लगे। छोटे बच्चे तो कौओं की तरह ही कर्कश स्वर में बोलना, वैसा ही खाना और बुरा ई करना आदि सभी कुछ जल्दी सीख रहे थे। यह देखकर वृद्ध तोता बड़ा ही दुखी हुआ। वह कहने लगा और ये दिक् कारें हमें जो दूसरी भाषा दूसरी संस्कृति अपना रहे हैं। हाँ, ये हमारे ये छोटे छोटे बच्चे परायी भाषा में बोलेंगे तो क्या ज्ञान प्राप्त कर पाएंगे? बच्चों का सर्वांगीण विकास तो तभी संभव है जब उन्हें मातृभाषा में सिखाया जाए। दूसरों की भाषा में सिख कर क्या कहीं प्रतिभा विकसित हुआ करती है? मातृभाषा का अपमान करना माँ का अपमान करने से भी अधिक बुरा है। उसकी माँ ही होती है मातृभाषा उसकी हाँ में हाँ मिलाते हुए विद्वान तोता बोला। और क्या दूसरों की संस्कृति को अपनाने से कहीं कल्याण हुआ है? क्या आप दिक् कार है? इन अभागे मूर्खों को जो अपनी मातृभाषा का गौरव भूलकर औरों की भाषा की नकल करते हैं और खुश होते हैं, धिक्कार है उन्हें जो अपनी उत्कृष्ट संस्कृति की गरिमा को भूलकर औरों की संस्कृति का अवनति के मार्ग पर घसीटने वाली उनकी सभ्यता का अनुकरण करते हैं। सभी तोते विचार करने लगे की हम तो बड़े है, कौओं की शिक्षाएं बाद में भुला भी सकते हैं पर छोटे छोटे बच्चों का क्या होगा? इस नई आयु में तो वह जो कुछ भी सीख लेंगे, वह उनके साथ सदैव बना रहेगा। बच्चों का मन जो कोमल हरी डाल जैसा होता है, उसे एक बार जिधर मोड़ दिया जाए, उधर ही मुड़ जाती है। एक तोता कहने लगा। यदि ये बच्चे गलत सीख लेंगे तो इनकी आने वाली पीढ़ियां भी फर्क कौओं की तरह ही व्यवहार करेंगी ही। यों तो हमारी जाति का एक बहुत बड़ा भाग धीरे धीरे काग संस्कृति में दीक्षित होने लगेगा। ऐसे में तो हमारी जाति का बड़ा ही अपकार होगा और ये ऐसे जीवन से तो मर जाना ही अदिक अच्छा है। बस फिर क्या था दूसरे दिन से तो तो ने सत्याग्रह प्रारंभ कर दिया। बच्चे, बूढ़े, जवान सभी तोतों ने कह दिया कि अब हम आप की शिक्षाएं नहीं लेंगे। कहो ने उन्हें बहुतेरा समझाया, मार डालने की धमकियों भी दी, पर तो तुने एक न सुनी, उन्होंने खाना पीना छोड़ दिया। कौवों को उन्होंने साफ जवाब दे दिया। आप हमें क्या मारेंगे? हम स्वयं ही अपने प्राण छोड़ देंगे। जैसा जीवन आज कल हम जी रहे है ना, वह तो मृतकों से भी बुरा है। तीन 4 दिन तक तो तो ने ना कुछ खाया न पिया। अब वे अचेत से होने लगे। कौए दिन में एक बार उनके पास आते और हठ छोड़ देने का आग्रह करते पर तोते उनकी ओर आंख उठाकर भी ना देखते। वे अभी भी अपने निश्चय पर दृढ़ थे। अब तो मरने वाले ही है। हमारा अन्त समय आने ही वाला है या सोच सोचकर वे मन ही मन भगवान को याद करते रहते थे। पांचवें दिन सहयोग से एक गिलहरी कहीं से घूमती घूमती वहाँ आ गई। जब उसने बहुत से तोतों को लताओं की रस्सियों से बंधे हुए देखा तो वह आश्चर्य से अपने आपको रोक न सकीं। गिलहरी चंचल तो थी ही, पुर से उनके पास दौड़ी आयी। अरे भाइयों यह क्या हुआ, किसने तुम्हारी ऐसी थी कर दी? वह तो तो की दयनीय दशा देखकर बड़ी चिंता भरे स्वर में बोली। गिलहरी की बात सुनकर तो तो ने बड़ी मुश्किल से अपनी आँखें खोली। उन्होंने कुछ कहने के लिए अपनी चोंच खोली ही थी, पर प्याज के कारण उनकी जीभ मुँह में चिपक कर रह गई और उनके मुँह से आवाज निकल ही नहीं पायी। ओह रुको गिलहरी बोली उसने अपने पहने दांतों से तो दो के बंधन काट दिए। फिर वह दौड़कर गई और अपने मुँह में पानी भर लाईं। एक तोते की चोंच में उसने पानी डाला। पानी पीकर उसे कुछ शक्ति मिली, उसने कोशिश की और उड़ जला। पानी लाने के लिए पानी लाकर उसने दूसरे तोतों के मुँह में भी डाला। इस प्रकार बारी बारी से तोते पानी पीकर उड़ते और प्यार से तो तो के मुँह में पानी डालते जब सारे तोते उड़ ने योगी स्थिति में आ गए तो वृद्ध तोता बोला। गिलहरी बहन हम तुम्हारे जीतने कृतज्ञ हो, उतना ही कम हैं तुमसे हम बहुत कुछ कहना चाहते हैं, पर डर है कि वे सभी दुष्ट कुएं कहीं फिर ना आ जाए और तुम्हारा सारा परिश्रम ही व्यर्थ चला जाए। गिलहरी कहने लगी पहाड़ी के पीछे रसीले आड़ुओं का एक बड़ा पेड़ है। उत्तर दिशा की ओर उड़ने से तुम्हें वह पेड़ मिल जाएगा। तुम सब वही उड़ कराओ, मैं भी वहीं पहुँच रही हूँ तभी तुमसे बाते करूँगी तो तो नेकी लहरी को बहुत बहुत धन्यवाद दिया। और वहाँ से उड़ चले। जल्दी ही वे आड़ुओं के पेड़ के पास पहुँच गए। वहाँ पर स्वादिष्ट आलू खाकर उन्होंने अपनी भूख मिटाई। थोड़ी देर बाद गिलहरी भी वहाँ पहुँच गईं। उन्होंने उस झील के पास आने से लेकर अब तक की सारी बातें विस्तार से बताई। गिलहरी कहने लगी तब तो तुम्हारा अब यहाँ पर अधिक देर तक ठहरे रहना उचित नहीं है। जल्दी से तुम्हें ढूंढ़ते हुए वे सारे दुष्ट कहुया आ जाएंगे तुम सब तुरंत ही यहाँ से उड़ जाओ तो तुने गिलहरी का बहुत बहुत आभार प्रकट किया। फिर भाव भरे हृदय से उस से विदा लेकर वे लंबी उड़ान के लिए उड़ चले। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है। ये हमें अपनी संस्कृति, अपनी सभ्यता को कभी नहीं छोड़ना चाहिए। क्योंकि हमारा वास्तविक विकास हमारी सभ्यता और हमारी संस्कृति के द्वारा ही संभव है। ओके बाय।","सभी को नमस्कार, यह एक सुंदर पक्षी तोते 🐦 की नैतिक कहानी है। एक बार तोतों का एक समूह एक झील के पास एक जंगल में गया। वे वहां खुशी से रहने लगे लेकिन दुर्भाग्य से कौओं का एक बड़ा समूह वहां आ गया और उन्हें गुलाम बना लिया। एक गिलहरी वहां आई और उन तोतों की मदद की। पूरी कहानी सुनें और नैतिकता के बारे में जानें।" "क्या आप भी अपना पॉडकास्ट बनाने का सोच रहे हैं? तो ऐंकर ट्राई कीजिए, ये पॉडकास्ट बनाने का सबसे आसान तरीका है। नंबर एक ये फ्री है नंबर दो। 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के उन तीनो बच्चो का मन मचलता जाता। उनका मन करता था कि वे भी तैरे और वहाँ एक बड़ी सी जल मुर्गा भी थी। वह उन्हें पानी में नहीं आने देती थी। शाम को चूहे के बच्चे घर लौटे। चिंटू के साथ बैठकर सबने खाना खाया। चिन्टू के बड़े बच्चे का नाम था मिंटू। वह बोला, गोवी को की तो बड़ी खराब है? क्यों? क्या बात है बेटा उन्होंने क्या किया चिंटू ने पूँछा? पिताजी वो खुद तो सारे दिन पानी में खेलती रहती है, उनके बच्चे भी पानी में तैरते हैं। उन्हें तो वो मना नहीं करती। हम किनारे पर बैठे बैठे उनका खेल देखा करते हैं। हमारा मन करता है कि हम भी उनके साथ खेले और मुर्गा भी काकी ने मना कर दिया। उन्होंने हमें तालाब में पैर तक रखने नहीं दिया। छोटे वाले बच्चे ने बोला। मिंटू की बात सुनकर चिंटू चूहे ने उसे समझाया की बेटा मुर्गा विका कि तुम्हारी भलाई की बात करती है, हम पानी में तैर नहीं सकते, पानी में जाएंगे तो डूब जाएंगे, तुम अभी छोटे हो ना समझ हो तुम्हें बड़ों का कहना मानना चाहिए। दूसरे दिन जब चिंटू बिल से बाहर चला गया तो उसके दोनों बच्चे भी बाहर निकलें। इधर उधर घूमकर पे तालाब के किनारे आकर बैठ गए। बड़ी देर तक वे मुर्गा वीं के बच्चों का खेल देखते रहे। कुछ देर बाद बड़ी मुर्गा वी खाना खाने चली गयी। मिंटू ने सोचा की अब तो हमें कोई रोकने वाला है ही नहीं। क्यों ना आज हम पानी में तेरे? वह अपने छोटे भाइयों से बोला नी तो चलो आज हम भी करेंगे। रितु बोला, मैं या पिताजी ने मना किया था ना? इस पर मिंटू बोला। पिताजी को हम बताएंगे ही नहीं तो ये पानी में खेलना है तो जल्दी चल। प्रीतों की बात बिना सुने ही मिंटू तालाब में तेजी से उतर गया। उसके पीछे पीछे धीरे धीरे नीतू प्ले तू भी आगे बढ़े। वे अभी पानी में उतरने की सोच ही रहे थे की एक आवाज सुनाई दी। कोई ज़ोर ज़ोर से चिल्ला रहा था। बचाव बचाव उन्होंने ध्यान से सुना तो पता चला कि वहाँ आवाज़ तो उनके बड़े भैया मिंटू की है। बात यह हुई कि तालाब का गहरा मिंटू जैसे ही उसमें उतरा तो डूबने लगा। अब वही सहायता के लिए ज़ोर ज़ोर से चिल्ला रहा था। उसकी आवाज सुनकर दूसरे किनारे पर तैर रहे मुर्गा वीं के बच्चे भी दौड़ायें उन्होंने गोता लगाकर मिंटू को निकालने की बहुत कोशिशे की, पर सब बेकार गयी। तालाब गहरा था। मिंटू का कुछ भी पता नहीं लग पा रहा था। नीतू प्रीतू ने भी तालाब में उतरने की कोशिश की और मुर्गा वीं के बच्चों ने रोक दिया। वे बोले की यदि तुम उतरोगे तो तुम भी डूब जाओगे। विवश होकर दोनों तालाब के किनारे बैठकर रोने लगे। थोड़ी देर में मुर्गा वि या घर से लौटकर आयी। नीतू प्रीति ने उन्हें रोते रोते सारी बात बताई। मुर्गा विका की बात समझ गई। तभी उसने अपने बच्चों के पास डूबते बहते मिंटू को देखा। काकी ने झपट अपनी चोंच से उसकी पूंछ पकड़ ली। उसने मिंटू को किनारे पर धूप में लिटा दिया। नीतू प्रीतों भी सहमे से उसके पास बैठ गए। शाम तक मिनटों में चलने फिरने की हिम्मत ना आ सकी। चिंटू चूहा तीनों बच्चों को घर में ना पाकर ढूंढता हुआ तालाब के किनारे आया। सारी बात जानकर वह मिंटू को उठाकर घर ले गया। भीगने से मिंटू को बुखार भी आ गया था। कई दिन तक उसे शीलू लोमड़ी की कड़वी दवाई खानी पड़ी। भूखा प्यासा रहना पड़ा, तब कहीं जाकर ठीक हुआ। उसने और नीतू प्री तुने सोच लिया कि अब वह सदैव बड़ों की आज्ञा मानकर ही काम करेंगे तो बच्चों की छोटी सी कहानी से हमें यही सीख मिलती है की हमें हमेशा अपने बड़ों की बात माननी चाहिए। जब हम छोटे हैं तो हम कोई भी कार्य बिना जानकारी के नहीं कर सकते। इसीलिए कहा गया है कि बड़ों की आज्ञा का पालन करना हर बच्चे का कर्तव्य होता है। ओके बाइ।","सभी को नमस्कार, यह छोटे चूहे और बत्तख की एक छोटी लेकिन प्रेरणादायक हिंदी कहानी है। एक छोटे लेकिन गहरे तालाब में जल मुर्गबी हमेशा अपने भाई-बहनों के साथ खेलते हैं लेकिन चूहे को पानी में खेलने की अनुमति नहीं है। एक दिन चूहे और उसके भाइयों के साथ क्या हुआ। पूरी कहानी सुनें और नैतिकता के बारे में जानें।" "हैलो बच्चों। आज जो कहानी में आपको सुनाने जा रही हूँ उसका टाइटल है केसरी की नादानी। तो वाराणसी में गंगा के किनारे एक घना जंगल है। बहुत समय पहले की बात है, उस जंगल में एक सिंह राज्य करता था। उसका नाम था केसरी। केसरी की प्रजा उसे बहुत चाहती थीं था बी ठीक क्योंकि केसरी प्रजा का बहुत ध्यान रखता था, उसके दुख दर्द में साथ देता था, सभी की सहायता करता था। उसके राज्य में कोई भूखा नहीं रहता था और ना ही किसी को कोई अभाव था। और केसरी में एक बहुत बड़ा दोष था, वह था स्वार्थी। यदि कोई वस्तु उसे पसंद आती थी तो उसे वह दूसरों को बिल्कुल नहीं देखता था। उसकी यह बात भालू रीच, बानर लोमड़ी आदि किसी भी जानवर को अच्छी नहीं लगती थी। पर कहता कोई प्राणी कुछ भी नहीं था। क्योंकि वह बड़ा था, राजा था उसे सभी डरते थे। कहते भी तो कैसे? 1 दिन की बात कैसी घूमने निकला उसके साथ था उसका मंत्री भालू। उसका नाम था भास्कर। भास्कर केसरी घूमते घूमते गंगा नदी के किनारे पहुँचे। वहाँ भास्कर ने नाव में बिठाकर महाराज केसरी को सैर कराई। अचानक केसरी का ध्यान गया कि गंगा का पानी बह बहकर पूर्व दिशा की तरफ जा रहा है। केसरी के राज्य की सीमा तो वहाँ समाप्त हो जाती थी। पर उसने देखा कि पानी बहकर उसके राज्य से बाहर जा रहा है। उसने अपने मंत्री भालू से पूछा। भास्कर उ यहाँ से यहाँ पानी किधर जाता है? मुगलसराय की ओर बहार आज पतवार से नाग आगे बढ़ाते हुए भालू मंत्री ने उत्तर दिया। मुगलसराय में नदी के पास जंगल में भी एक शेर रहता था। मुझे पता है। उस शहर से केसरी बहुत चिढ़ता था। केसरी को बहुत बुरा लगा की उसके राज्य से पानी बहा जाए। वहाँ का राजा उस पानी को अपने काम में लाएं। केसरी ने बिना सोचे समझे भालू को आज्ञा दी। मंत्री जी इस पानी को दूसरे राज्य वाले जंगल में जाने से रोक दो। कल सुबह तक यहाँ बांध बन जाना चाहिए। मंत्री था बड़ा बुद्धिमान। यह सुनते ही उसका माथा ठनका। वह जानता था कि गंगा में पानी बहुत है, यदि बांध बनाया जाएगा तो उनके जंगल में बाढ़ आ जाएगी। उसने बड़ी विनम्रता पूर्वक सिंह से कहा महाराज कहीं ऐसा ना हो कि वह बांध बनाने से हमें ही नुकसान हो। तुम से जो कहा जा रहा है वो करो। न तुने फुलाता हुआ शेर बोला। भालू करता भी क्या वह चुपचाप बैठा रहा। नदी से वापस आकर भालू ने तुरंत सेनापति वार्नर देव को बुलाया। उसे राजा का आदेश पूरा करने को कहा। मोनर देव ने तुरंत सेना के कुशल इंजीनियरों को बुलाया, उन्हें शाम तक बांध बनाने की आज्ञा दी। इंजीनियरों ने जल्दी से पत्थर, ईंट और सीमेंट जुटाए फिर बांध बनाना शुरू किया। शाम तक मजबूत और सुंदर बांध बनकर तैयार हो गया। दूसरे दिन केसरी सूरज निकलने पर भी सोता रहा। और जैसे ही उसकी आंख खुली वह बहुत चक्कर है। क्या यह क्या उसकी सारी गुफा में घुटनों तक पानी भरा था। बड़ी मुश्किल से पार कर के सारी गुफा में। होता हुआ वह गुफा के द्वार तक गया। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि इतना पानी कहाँ से आ गया है। वह अभी सोकर उठा और आंखें मल ही रहा था। उसने देखा कि दूर से भालू मंत्री बड़ी तेजी से नाव खेते हुए वहीं आ रहा है। नाव को पास लाते हुए भालू बोला जो जल्दी कीजिए मुँह रोज़ जल्दी सेनाओं में बैठिये पानी लगातार बढ़ता ही जा रहा है। शेर उछलकर तुरंत गांव में जा बैठा, तब कहीं जाकर उसने चैन की सांस ली। फिर भालू से पूछा इतना सौरव पानी कहाँ से कैसे आया? बांध बनने से सारे जंगल में बाढ़ आ रही है। सभी जानवरों के घरों में पानी भर गया है। सेना सभी को निकाल निकाल कर ऊंचे पेड़ों पर बैठा ले रही है। ये थी उस दिन की घटना। सारी घटना जानकर शेर अपनी मूर्खता पर पछताने लगा। बस सोचने लगा कि पहले ही मंत्री की बात मान लेता तो ऐसी परेशानी कभी ना आती। उसने तुरंत सेनापति को बुलाया और तुरंत बांड तोड़ने की आज्ञा दी। सैकड़ों वार्नर इस काम में जुट गए। कुछ ही समय में बांध टूटकर गिर पड़ा। जंगल में आई बाढ़ दूर हो गई तब सिंह ने चैन की सांस ली। नाश्ता करते हुए शेर भालू से बोला मंत्री जी, आपकी बात न मानकर मैंने भूल कि सभी को इतना कष्ट सहना पड़ा पर मैंने सोचा की सारा पानी जब हमारे पास रहेगा तो हम उससे अधिक फायदा उठाएंगे। पड़ोसी राजा से लेकर फिर उसे पानी देंगे। भालू बोला महाराज नदी का पानी तो भगवान की देन है, उस पर जितना अधिकार हमारा है उतना ही दूसरे का भी है। भगवान के ही बनाएं हम सब है। भगवान ने ही सब चीजें दी है। सभी को मिलजुलकर उनका प्रयोग करना चाहिए। इसी में सबकी भलाई है। जो किसी चीज़ पर अपना अधिकार जमाता है, वह जरूर दुख पाता है। केसरी की समझ में भी यह बात आ गई व सिर हिलाता हुआ बोला ठीक कहते हो तुम मेरी तुच्छ बुद्धि के कारण ही तुम सबको दुख उठाना पड़ा है। इस घटना ने मेरी आंखें खोल दीं। अब से मैं अपने स्वार्थ को प्रमुखता नहीं दूंगा, दूसरों का भला सोचूंगा, क्योंकि स्वार्थी सदैव अंत में दुखी होता है। तो इस तरह से शेर को अपनी गलती का एहसास हुआ। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है की हमे अपने। से ज्यादा दूसरों के हित के बारे में सोचना चाहिये और अपने स्वार्थ को हमेशा पीछे ही रखना चाहिए। इसी में सबकी भलाई होती है। ओके बाय।",सभी को नमस्कार मैं सभी बच्चों को सोने के समय की कहानियां नैतिक रूप से बता रहा हूं। मेरी कहानियाँ अभिनव और प्रेरणादायक हैं। अपने बच्चों के साथ मेरी कहानियाँ सुनें। यह निश्चित रूप से आपके बच्चे के व्यक्तित्व के निर्माण में मदद करेगा। "हैलो बच्चों, आज जो कहानी में आपको सुनाने जा रही हूँ उसका टॉपिक है सपने की सीख। ये शव की शरारतों से पूरा घर परेशान था। उसकी शरारतों का और छोर नहीं था। स्कूल से आया बस्ता, पटका, खाया पिया और कर दिया अपनी शरारतों का दौर शुरू। कभी पीछे से आकर बहन की चोटी खींचकर भाग जाता तो कभी खाना पकाती माँ की गैस चुपके से बंद कर जाता। कभी चूहे की पूंछ में धागा बांधकर उसे ना चाहता तो कभी ततैया के पंखों से पकड़कर कुचल ही देता था। छोटे मोटे जीव जंतुओं की तो के शव के घर में खैर ही ना थी। केशव की माता पिता उसकी इन आदतों से बड़े ही दुखी होते थे। उसके पिताजी ने उसके लिए तरह तरह के खिलौने लाकर रख दिए थे। पर दो 4 दिन तो केशव उनसे खेलता फिरता, फिर उन्हें एक कोने में पटक देता और उसकी शरारतें पुनः प्रारंभ हो जाती। धीरे धीरे दूसरों को परेशान करने में उन्हें सताने में उसे आनंद आने लगा। छोटे छोटे जीवों को तंग करके उन्हें मारकर वह खुश होता था। वह भूल जाता था कि इसमें भी मन और प्राण विद्यमान हैं। ये अबोध प्राणी बोल नहीं पाते तो क्या हुआ? इन्हें भी दुःख और कष्ट होता है। केशव की माँ यह देखकर बड़ी दुखी होती वह उसे समझाया करती। देखो, तुम बेकार के इन कामों में बहुत समय बर्बाद करते हो, उस समय में अच्छी किताबें पढ़ो खेलों। और घर के छोटे छोटे कामों में हमारी सहायता करो। समय का सदुपयोग करो, फिर सभी तुमसे खुश रहेंगे। बेकार के काम करने से उनमें समय गवाने से शक्ति क्षीण होती है। उससे ना अपने को और ना ही दूसरे को कोई लाभ मिल पाता है। माँ की इन बातों का प्रभाव दो 4 घंटे तो के शो पर रहता। फिर वो जैसा का तैसा बन जाता। आखिर उसकी माँ ने ही बार बार कहना छोड़ दिया। पर हाँ, जब वह छोटे जीवों को सताता तो उनका खून खौल उठता और वे कभी कभी तो गुस्से में आकर के शव की पिटाई भी कर देती। वह इतना ढीठ बन गया था कि उस पर कोई भी असर नहीं होता। 1 दिन घर के पीछे नीम के पेड़ पर बने मक्खियों के छत्ते को देखकर केशवलाल जा उठा। उसने सोचा कि मधुमक्खियों को यहाँ से भगा दूंगा तो खूब सारा शहद खाने को मिलेगा। दोपहर में जब माँ सो रही थी तो वह दबे पैरों वहाँ गया। पेड़ के नीचे घास फूस इकट्ठा करके उसमें धुआं कर दिया। धुएं के कारण मधुमक्खी छत्ते से निकल निकलकर उड़ने लगीं। जब वहाँ मक्खियां ना रही तो केशव अपने शरीर को चारों ओर से ढककर पेड़ पर चढ़ा और छत्ता तोड़ने लगा। अभी उसने तोड़ने के लिए हाथ बढ़ाया ही था कि हवा के तेज झोंके से उसके मुँह का कपड़ा उड़ गया। छत्ते में रहने वाले बच्चों के मुँह से उड़ रही मक्खियों का झुंड के शव के मुँह पर टूट पड़ा। केशव इस आकस्मिक हमले से हड़बड़ा उठा और उसका पैर फिसल गया। धड़ाम से वहाँ पेड़ से गिर पड़ा। अप मक्खियों को भी मौका मिल गया। वे उसके शरीर से जगह जगह छिपकर उसे काटने लगी। जैसे तैसे केशव वहाँ से जान बचाकर भागा। घर के अंदर पहुंचते पहुंचते अनेकों जगह मक्खियों ने उसे काट खाया था। उसके मुँह, हाथ, पैर सभी सूझ रहे थे। दर्द से वह बेचैन हो रहा था। माँ को बहुत जगा ये भी तो कैसे? उसकी हिम्मत भी नहीं हो रही थी। जी कड़ा करके खुद दवा की अलमारी के पास गया और जगह जगह जहाँ मधुमक्खियों के डंक लग गए थे वहाँ दवाई लगाई। 1 घंटे की पीड़ा के बाद मधुमक्खियों के काटने की जलन शांत हो गयी। केशव का बायां हाथ दर्द कर रहा था। वह हथेली के ऊपर से हिल भी नहीं रहा था। उसके हिलने पर वह दर्द से कराह उठता था। आखिर जब उससे दर्द न सहा गया तो वह माँ के पास गया। आज क्या शेतानी की है तुमने माँ ने पूछा? कुछ नहीं मा मैं तो चुपचाप कमरे में लेटा था। केशव ने अनजान सा बनकर झूठ बोलना चाहा असंभव बिल्कुल असंभव है ये। या तो संसद चुप चाप से बता दो, नहीं तो भागो यहाँ से भागते रहो दर्द। उसे तीखी न डोसे देखते हुए कठोर स्वर में माँ ने कहा। माँ की डांट से केशवर रो पड़ा। वास्तव में दर्द भी अब तेज हो रहा था। उसने रोते रोते माँ को सारी बात सच बता दी। माँ ने उसका हाथ छुआ तो केशव चीख पड़ा। वे कहने लगी लगता है हड्डी टूट गई है। हड्डी टूटने का नाम सुनकर तो केशव ज़ोर ज़ोर से रोने लगा। माँ बोली दूसरों को सताने वाला कभी न कभी दंड पाता ही है। औरों का बुरा सोचने वाला, बुरा करने वाला कभी सुख पा ही नहीं सकता। जितनी जीवों को तुमने सताया है, सब तुमसे बदला तो लेंगे ही। शाम को पिताजी के शव को डॉक्टर के यहाँ ले गए तो उन्होंने बताया कि उसकी हड्डी टूट गई है। डॉक्टर ने डेढ़ महीने के लिए के शव के हाथ पर प्लास्टर चढ़ा दिया। गले में डाली गई पट्टी में हाथ लटका कर जब के शव घर आया। तो वह हो रहा था। माँ अभी गुस्से में थी, पिताजी भी कह रहे थे। जो जैसा करेगा वैसा ही फल पायेगा। पूरा करने वाले लोग रोग, शोक और संकट सहन ही करते हैं। घर में कोई ऐसा ना था जिसने के शव से सहानुभूति दिखाई हो। सभी उसका तिरस्कार कर रहे थे। केशव ने इतना अपमान कभी नहीं कहा था। वह भूखा प्यासा जाकर सो गया। सोच रहा था कि माँ अगर उठाएंगी। कुछ देर तक तो वह इंतजार करता रहा पर माँ और पिताजी के शब्द उसके कानों में गूंज रहे थे। उनकी बातें सोचते सोचते ही उसकी आंख लग गई। सपने में केशव ने देखा की ढेरों मधुमक्खियां चूहे, ततैया जगह जगह उसके शरीर से चिपक गए। वे उसे खूब ज़ोर ज़ोर से काट रहे हैं। दुष्ट और सताएगा में ले? ये ही फी मिलेगा तुझे अब स्वयं से कर पता लगा। की दुसरो को कैसे कष्ट होता है मूर्ख अभी भी सुधर जा वायदा कर की कभी किसी को नहीं सताएगा नहीं तो काट काट कर तेरी जान ले लेंगे हम। अब नहीं सत आऊंगा कभी नहीं, सत आऊंगा छोड़ दो मुझे छोड़ दो ये शुभ जी का और उसकी आंख खुल गई। केशव ने पाया कि सराहने बैठी माँ उसकी पूछ रही है। क्या बात है केशव? सहमकर के शव माँ की गोद में चिपकते हुए बोला, माँ मैं अब कभी भी किसी को नहीं तंग करूँगा। तब तो तुम हमारे राजा बेटा बन जाओगे, फिर सभी तुम्हें प्यार करेंगे कहकर मानने के शव को हृदय से लगा लिया। अब केशव सचमुच बड़ा अच्छा लड़का बन गया है। सभी को तंग करना, जीवों को सताना सब उसने छोड़ दिया है। उसके पिताजी ने उन्हें नन्हें खरगोश लाकर दिए, जिन्हें वह बड़े प्यार से रखता है। अब तो केशव छोटे छोटे जीव जंतुओं को किसी दूसरे के द्वारा भी सताया जाता देखता तो उनसे भी कहता भाई इन विचारों को दुख देने से हमारा गौरव नहीं पड़ता। अगर कुछ कर सकते हो तो इनकी सुरक्षा और सहायता करो तभी ये तुम्हें दुआएं देंगे। केशव की माँ अक्सर कहा करती की व्यवहार के इस परिवर्तन का कारण उसकी हड्डी का टूटना है। वह यह सुनकर मनी मन मुस्कुरा उठता। अपने आप से कहने लगता कि यह सब सपने किसी का ही परिणाम है। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें कभी भी किसी भी जीव जंतु को नहीं सताना चाहिए क्योंकि ईश्वर ने सभी की रचना की है। सभी में प्राण डाले हैं। अगर हम किसी को सताते है तो उसका दंड हमें अवश्य भुगतना पड़ता है। ओके बाइ?",यह एक नटखट लड़के की कहानी है। वह हमेशा छोटे जीवों के साथ-साथ अपनी बहन और मां को भी तंग करता है। एक दिन वह बुरी तरह घायल हो गया। कहानी सुनिए और जानिए कि लड़का कैसे अच्छा और आज्ञाकारी बना। "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आप सबके लिए लेकर आई हूँ, उसका टाइटल है विद्यार्थी काल। संजय और शिवा सगे भाई बहन थे पर दोनों के स्वभाव में बहुत अंतर था। संजय बड़ा उद्दंड, जिद्दी और कामचोर था। वह स्कूल में पढ़ाई से जी चुराता था जब तक किसी ना किसी बच्चे को पीटा था। माता पिता का कहना मानता। इसके विपरीत शिवा सबका कहना मानती। मन लगाकर पढ़ती माँ के साथ काम भी कर आती। साथियों से अच्छा व्यवहार करती। बड़ों का आदर सम्मान करती। संजय के बिगड़ जाने का सबसे बड़ा और अहम कारण था उसके अभिभावक। वे कहते की बेटा तो खरा सिक्का है और बेटी खोटा सिक्का। उस परिवार में अनेक वर्षों के बाद लड़का हुआ था। अतः दादा, दादी, माता, पिता सभी ने उसे सिर पर चढ़ा रखा था। बात मुँह से निकलने की देर थी कि उसकी जिद पूरी कर दी जाती। संजय की आदत बन गई कि वह अपना हट पूरा करके ही रहता। यदि सीधे सीधे कामना चलता तो वह रोने पीटने और पैर पटकने लगता। प्रारंभ में तो बच्चा है। बड़े होने पर अपने आप समझदारी आ जाएगी। यह सोचकर उसके अभिभावकों ने उसकी बुरी आदतों पर ध्यान नहीं दिया। पर बड़ा होने पर संजय उनके लिए बहुत बड़ी समस्या बन गया। पढ़ाई लिखाई में उसका बिल्कुल मन ना लगता। एक एक कक्षा में वह 3344 वर्ष तक पड़ा रहता। तब भी जैसे तैसे उसे उत्तीर्ण कराया जाता। वह सारे दिन खेलता, बच्चों से मार पिटाई करता उसके माता पिता समझा समझा कर हार गए कि वह मन लगाकर पढ़ें। पर उस पर कोई असर ही ना होता। उसके सामने पुस्तक खुली रहती और वह इधर उधर देखता रहता। घर पर पढ़ाने के लिए अलग अलग तरह के शिक्षकों की नियुक्ति भी की गई। पर वह भी सब बेकार बच्चा ही ना पड़े तो शिक्षक भी क्या कर सकता है? अब संजय के पिता उसके लिए बड़ी चिंतित रहते। वह चाहते थे की थोड़ा बहुत तो पढ़ जाए जिससे बड़ा होकर। अपनी जीविका का निर्वाह कर सकें। अब वह 16 वर्ष का हो चुका था। उसकी मुझे निकलने लगी थी पर अभी भी वह छठी कक्षा में ही था। उस से दो वर्ष छोटी शिवा अब दसवीं कक्षा में आ गई थी। शिवा पढ़ने में होशियार थी। इस स्कूल से भी उसे कोई ना कोई पुरस्कार मिलता ही रहता था। अभिभावकों ने बेटी की सदा उपेक्षा की पर अब उसके गुण उन्हें आकर्षित करने लगे। वे शिवा की प्रशंसा करते तो संजय चिड़ी उठता और किसी ना किसी बहाने शिवा को तंग किया करता उसे मारता। शिवा इसे भी चुपचाप सह जाती कभी भी माता पिता से भाई की उसने कोई शिकायत न की। वह जानती थी कि अंत में वह भाई का ही पक्ष लेंगे। समय के साथ साथ संध्या और शिवा दोनों बच्चे बढ़ते गए। संजय के साथी भी उसके जैसे थे। पढ़ाई से जी चुराने वाले, इधर उधर उधम मचाने वाले। अब संजय ने उनके साथ रहकर सिनेमा देखना, पान खाना, सिगरेट पीना, नारेबाजी, हुल्लड़बाजी आदि ये सब काम भी सीख लिए। पढ़ने वाले अच्छे बच्चे सदा संजय और उसके साथियों से दूर ही रहना पसंद करते थे। क्योंकि किसी से भी झगड़ना, मारपीट करना आदि इनके बाएं हाथ का खेल था। एक बार छात्रसंघ के चुनाव के अवसर पर संजय और उसके गुट ने विद्यालय में खूब हुड़दंग मचाया। तोड़फोड़ की, मारपीट की। परिणाम यह हुआ कि प्राचार्य जी ने उससे क्रोधित होकर विद्यालय से निकाल दिया। संजय के पिता ने बहुत प्रयास किया पर उसे विद्यालय में फिर से प्रवेश नहीं मिला। अन्य दूसरे विद्यालयों में भी अनुशासनहीनता की रिपोर्ट के कारण उसे नहीं लिया गया। परिणाम यह हुआ कि अब संजय को घर ही बैठना पड़ा। संजय के पिता अब बूढ़े हो चले थे। नौकरी से भी वे पद निवृत्त हो गए। संजय की चिंता उन्हें हर समय दुखी करती। विद्यालय से यूं अपमानित होकर निकाले जाने तथा गलत रास्ते पर चलने की प्रेरणा देने वाले साथियों का साथ भी अब छूट गया। अब संजय कुछ गंभीर हो गया। पड़ोसियों और रिश्तेदारों की शंका भरी निगाहें और उलाहने सहते रहते। अब वह अपनी गलतियाँ भी समझने लगा था। संजय के पिता प्रायः बीमार रहने लगे। 1 दिन उन्होंने संजय को अपने पास बुलाया और कहा। देखो संजय आजतक तुमने मेरी अधिकतर बातें यूं ही डाली है। और उसका फल भुगत ही रहे हो। अब मैं अंतिम बार तुम से कुछ कहने का प्रयास कर रहा हूँ यह बेकार घर बैठे या घूमने से क्या लाभ यदि तुम चाहते हो कि तुम्हें छोटी सी दुकान खुलवा दूँ। तो मैं खुलवा दूंगा मैं तो अब बूढ़ा हो गया हूँ कभी भी भगवान के यहाँ से बुलावा आ सकता है। नौकरी के समय जो थोड़ा बहुत पैसा जोड़ा है उससे शिवा का विवाह भी करना है। हमारे पास ना अपना मकान है, ना कोई संपत्ति। मैंने तुम बच्चों के लिए ही अपना सारा पैसा खर्च कर दिया, ना जाने कितने अरमानों से तुम्हें पाला था। कहते कहते संजय के बूढ़े पिता की आँखों से आंसू बहने लगे पर शीघ्र ही उन्होंने अपने ऊपर नियंत्रण कर लिया और फिर से गंभीरतापूर्वक कहने लगे। तुम अच्छी प्रकार से सोच समझकर दो 4 दिन में अपना निर्णय मुझे बता देना। कहीं ऐसा ना हो की मेरे जाने के बाद तुम दाने दाने को मोहताज हो जाओ। यह कहकर संजय के पिता ने करवट बदल ली। संजय की आँखों के आगे अपने भविष्य का चित्र नाच उठा। उसे पिताजी की बातों में आज पहली बार सच्चाई देखी। उसने दूसरे ही दिन पिताजी से कह दिया कि वह दुकान खोलने के लिए तैयार है। संजय के पिता ने थोड़ी पूंजी लगाकर उसके लिए छोटी सी एक दुकान खुलवा दी। साथ ही यह भी कह दिया कि उनके पास जो कुछ भी धन था, वह उन्होंने लगा दिया है। संजय को लाभ हानि सहने के लिए स्वयं तैयार रहना होगा। अब संजय सारे दिन अपनी छोटी सी दुकान पर बैठा रहता। उसकी समझ में यह बात भी आ गई थी कि धन कमाना कितना कठिन है? पढ़ने के समय पिता का धन बिगाड़ने का अब उसे बहुत अधिक दुख था। शिवा सदैव अच्छे अंकों से उत्तीर्ण होती गई। वह बैंक की प्रतियोगिता परीक्षा में बैठीं और वहाँ भी उत्तीर्ण हो गई। अब वह बूढ़े माता पिता का हाथ बंटाने लगी। घर के खर्च की बहुत कुछ जिम्मेदारी उसने अपने ऊपर ले ली और उसने व्रत और पिता की चिंता भी दूर कर दी थी। माता पिता, पड़ोसी, रिश्तेदार सभी शिवा की प्रशंसा करते ना गाते थे। शिवा ने बैंक अधिकारी के रूप में कुशलता से काम करते हुए अपने अधिकारियों और सहकर्मियों के मध्य स्नेह और सम्मानपूर्ण स्थान बना लिया था। एक बार शिवा की यहाँ कार्य के निरीक्षण के लिए क्षेत्रीय अधिकारी आए। वे शिवा की शील, स्वभाव, कार्यकुशलता तथा व्यवहार पर मुग्ध हो उठे। उन्होंने शिवा के घर का पता पूछा और दूसरे दिन उसके पिता के पास जाकर अपने इंजीनियर पुत्र के लिए उसे वधू बनाने की इच्छा व्यक्ति की। उनकी बात सुनकर शिवा के पिता प्रसन्नता से गदगद हो उठे। उनकी आँखों से आंसू बहने लगे और मुख से अनायास ही निकल पड़ा की बेटी तो खरा सिक्का निकली और बेटा खोटा सिक्का। शिवा की ससुराल वालों की इच्छा अनुसार जल्दी ही एक सादगीपूर्ण समारोह में उनका विवाह हो गया। अब घर की जिम्मेदारी पूरी तरीके से संजय पर आ गई थी। पिता की पेंशन घर का खर्च चलाने के लिए पर्याप्त न थी। संजय भी अब गंभीर हो गया। वह स्थिति को समझने लगा था। वह सारे दिन परिश्रम करता तब कहीं जाकर कुछ आय होती। संजय यही सोचता कि यदि वह माता पिता का कहना मानकर मन लगाकर पढ़ता तो आज वह शिवा की भाँति अच्छी नौकरी पर होता। स्वयं सुखी, संतुष्ट रहता और सभी से आदर पाता। पर अब पछताने से होता भी क्या? जीवन का सबसे बहुमूल्य समय विद्यार्थी काल उसने व्यर्थ ही गंवा दिया था। अब तो वह परिस्थिति के अनुसार जीवन चलाने के लिए विवश था। उसे बार बार रामचरित मानस की यही पंक्ति याद आती का वर्षा जब कृषि सुखाने समय चूकि पुनि का पछताने। सच है बचपन से किशोरावस्था तक का समय ही भविष्य को उज्ज्वल बनाने वाले गुण और शिक्षा प्राप्त करने का समय। इसे यूं ही निकम्मेपन। मैं गवां देने पर जीवन भर कष्टों को सहना और असंतुष्ट जीवन बिताते हुए पछताना ही शेष रह जाता हैं। अच्छे बच्चे पूरी तन्मयता से आगे पढ़ते हैं, बढ़ते और ऊंचा उठने के प्रयास में जुटे रहते हैं। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें अपना विद्यार्थी काल जो है, बहुत ध्यान पूर्वक बिताना चाहिए। इधर उधर बातों में गलत कामों में नहीं व्यर्थ करना चाहिए अन्यथा हमें इस काल के बीत जाने के बाद बहुत पछताना पड़ता है क्योंकि ये समय दोबारा लौटकर नहीं आता और ये समय जीवन का सबसे महत्वपूर्ण समय होता है क्योंकि इसी समय हमारा भविष्य निर्माण का काल होता है। ओके बाय।","सभी को नमस्कार, यह एक लड़के की प्रेरणादायक कहानी है। वह बहुत बुरा है क्योंकि वह अपनी पढ़ाई पर कभी ध्यान नहीं देता है। वह हमेशा दूसरों को नुकसान पहुंचाता है। एक बार उन्हें उनके स्कूल से निकाल दिया गया था। क्या हुआ उसके बाद ? पूरी कहानी सुनें और कहानी की नैतिकता के बारे में जानें।" "क्या आप भी अपना पॉडकास्ट बनाने का सोच रहे हैं? तो ऐंकर ट्राई कीजिए, ये पॉडकास्ट बनाने का सबसे आसान तरीका है। नंबर एक ये फ्री है नंबर दो। इसमें कई सारे ऐसे टूल्स है जो आपको अपने फ़ोन और कंप्यूटर पर रिकॉर्ड और एडिट करने की फैसिलिटीज देते हैं। नंबर तीन आप अपने पॉडकास्ट को डिस्ट्रीब्यूट भी कर सकते हैं, जिससे इसे इस स्पॉटिफाइ और दूसरे प्लैटफॉर्म्स पे सुना जा सकें। डाउनलोड कीजिये ये फ्री एंकर ऐप या विजिट कीजिए ऐंकर डॉट ऐफ़ एम अपना पॉडकास्ट स्टार्ट करने के लिए? हमारा भारतवर्ष त्योहारों का देश है। यहाँ समय समय पर अनेक त्योहार मनाये जाते हैं। दीपावली का त्यौहार सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण त्यौहार कहा जाता है। दीपावली से 2 दिन पहले धनतेरस का पर्व आता है। धनतेरस का पर्व क्यों मनाया जाता है और उसका क्या महत्त्व है? कौन सी पौराणिक कथाएं इसके पीछे है, आइए जानते हैं आज। कार्तिक मास की कृष्ण त्रयोदशी को धनतेरस कहते हैं। ये त्योहार दीपावली आने की पूर्व सूचना देता है। इस दिन नए बर्तन खरीदना शुभ माना जाता है। धनतेरस के दिन यमदेव और भगवान धनवंतरी की पूजा भी की जाती है। भारतीय संस्कृति में स्वास्थ्य का स्थान धन के ऊपर माना जाता है। यह कहावत आज भी प्रचलित है कि पहला सुख निरोगी काया, दूजा सुख घर में माया। इसलिए दीपावली में सबसे पहले धनतेरस को महत्त्व दिया जाता है जो भारतीय संस्कृति के परिपेक्ष्य में बिल्कुल अनुकूल भी है। शास्त्रों में वर्णित कथाओं के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान कार्तिक कृष्ण चित्र ञयोदशी के दिन भगवान धन्वंतरि अपने हाथ में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए। मान्यता है कि भगवान धनवंतरी विष्णु के अंशावतार ही है। संसार में चिकित्सा विज्ञान के विस्तार और प्रसार के लिए ही भगवान विष्णु ने धनवंतरी का अवतार लिया था। भगवान धनवंतरी के प्रकट होने के उपलक्ष्य में ही धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है। धनतेरस के दिन हमें अपनी सामर्थ्य के अनुसार किसी भी रूप में चांदी अथवा अन्य धातु खरीदना चाहिए। यह अत्यंत ही शुभ माना गया है। धन संपत्ति की प्राप्ति हेतु कुबेर देवता के लिए घर के पूजा स्थल पर दीप दान करें एवं यमदेव के लिए मुख्य द्वार पर भी दीपदान करें। धनतेरस से जुड़ी हुई एक कथा अत्यंत प्रचलित है। कथा के अनुसार देवताओं को राजा बलि के भय से मुक्ति दिलाने के लिए भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया और राजा बली के यज्ञ स्थल पर पहुँच गए। शुक्राचार्य जो कि असुरों के गुरु थे, उन्होंने वामन रूप में भी भगवान विष्णु को पहचान लिया। और राजा बलि से आग्रह करने लगे कि वामन कुछ भी मांगे तो उन्हें इनकार कर देना। वामन साक्षात भगवान विष्णु ही है, जो देवताओं की सहायता के लिए तुमसे कुछ भी पाने के लिए आ रहे हैं। बलिनी शुक्राचार्य की बात नहीं मानी भगवान द्वारा मांगी गयी तीन पग भूमि दान करने के लिए कमंडल से जल लेकर संकल्प करने लगे। बलि को दान करने से रोकने के लिए शुक्राचार्य राजा बली के कमंडल में लघु रूप धारण करके प्रवेश कर गए। इससे कमंडल से जल निकलने का मार्ग बंद हो गया। बामन भगवान शुक्राचार्य की इस युवती को समझ गए थे। भगवान बामन ने अपने हाथ में रखे हुए कुशा को कमण्डल में ऐसे रखा कि शुक्राचार्य की आंख में उसका 1 दिन का लग गया, जिससे उनकी आंख आहत हो गई। शुक्राचार्य छटपटाकर कमण्डल से बाहर निकल गए। इसके बाद बलि ने तीन पग भूमि दान करने का संकल्प ले लिया। तब भगवान बामन ने अपने एक पैर से संपूर्ण पृथ्वी को नाप लिया और दूसरे पैर से अंतरिक्ष को तीसरा पग रखने के लिए कोई स्थान न होने पर बलि ने अपना सिर भगवान वामन के चरणों में रख दिया। बलि दान में अपना सबकुछ गंवा बैठे। इस तरह देवता भय से मुक्त हुए और बलि ने जो संपत्ति, धन, ऐश्वर्य, देवताओं से छीन लिया था, उससे कई गुना अधिक धन संपत्ति देवताओं को मिल गई। इस उपलक्ष्य में भी धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है। तो यह था धनतेरस के आज के त्योहार का महत्त्व।","सभी को नमस्कार, भारत में कई त्यौहार हैं। हम साल का सबसे बड़ा त्योहार दिवाली मना रहे हैं। दिवाली से पहले हम धनतेरस मना रहे हैं। यहाँ मैं इस त्यौहार के महत्व का वर्णन कर रहा हूँ ताकि प्रत्येक बच्चे को त्योहार के महत्व के बारे में पता चले।" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी हम आपको सुनाने जा रहे हैं उसका शीर्षक है कोयल का बच्चा। एक थी को वी नाम था उसका भीमा सुनसान जंगल में बरगद के एक घने पेड़ पर उसका घोंसला था। घोंसलें में चार छोटे छोटे बच्चे थे। वे अभी कुछ दिन पहले ही अंडों से निकले थे। बीमा रात दिन उन बच्चों की सेवा करती उसका पति कन्नू बड़ा ही आलसी था। वह सारे दिन इधर उधर यूं ही घूमता रहता। मस्त घोंसलें में पड़ा रहता। उसे ना बच्चों की चिंता थी और ना रात दिन। चेक कर के बच्चे पालती हुई पत्नी की सारे दिन बच्चों के लिए भोजन तलाशती बीमा बहुत अधिक थक जाती थी, सांस गिरने पर वह घोंसलें में लौटती तो तुरंत ही थकान के कारण उसकी आंख लग जाती। कुछ दिन तक यही क्रम चलता रहा। बार बार की भागदौड़ के कारण बीमा अधिक देर तक बच्चों के पास भी नहीं बैठ पाती थी। ताकि घोंसलें में पलते हुए सभी बच्चे उसके नहीं है। उसने बड़े ध्यान से उन बच्चों की जांच पड़ताल की तब यह भेद खुला के एक बच्चा उसका नहीं है। कोई कोयल भी माँ की आंख बचाकर उसके घोंसलें में अपना बच्चा रख गई थी। बेचारी भी माँ उसे अपना बच्चा समझकर इतने दिनों से पाल रही थी। भीमा को बड़ा गुस्सा आया, क्रोध से उसकी आंखें लाल लाल हो उठी। कांव कांव करके वह ज़ोर से चीखी। पल भर में उसका पति कन्नू वहाँ आ गया। उसके साथ और भी दो चार का हुए थे। बीमा की बात सुनकर वे सभी गुस्से में अपने पंख फड़फड़ाने लगे। उनके गुस्से का कारण यह भी था कि ऐसी घटना पहली बार नहीं घटी थी। अक्सर ही यह होता था कि कोयल कभी किसी कौए के घोसले में तो कभी किसी के घोंसलें में अपना अंडा रख जाती थी। वे बिचारे उसे अपना समझकर बड़े लाड़ प्यार से पालते। जैसे ही कोयल का बच्चा कुछ बड़ा होता तो फुर्र से वहाँ से उड़ जाता। यही नहीं, इस पर भी कोयले हमेशा कुओं की बुराइ करती रहती थीं। वे अपनी मीठी मीठी चापलूसी भरी बातों से मनुष्यों का मन मोह लेती भला होता कि मनुष्य को यलो की प्रशंसा करते, कवियों की निंदा करते, उन्हें देखते ही खु़श खु़श करके उड़ाने लगते। भीमाने कुओं से एक लंबी रस्सी लाने को कहा। वे जल्दी से गए और वट की लंबी सी जटा ले आए। बीमा और दूसरे कवियों ने उससे कोयल के बच्चे के पंजे कसकर बांध दिए जिससे वह घोंसला छोड़कर उड़ न जाएं। बीमा मनी मन कह रही थी कि तुम मेरे बच्चे बनकर पहले हो तो मेरे ही बच्चे बनकर रहो गे। जल्दी ही सारे बच्चे बड़े होने लगे भी। माँ के तीनों बच्चे थोड़ा थोड़ा उड़ना भी सीख गए थे। वे कभी कभी घोंसलें से बाहर भी थोड़ा बहुत घुमाते थे। पर कोयल के बच्चे को भी माँ कहीं नहीं जाने देती थी। उसके पैरों में बंधी रस्सी भी अब अपने घोंसलें के बाहर बरगद की टहनी पर बांध दी थी। भीमा सभी बच्चों को बड़े प्यार से रखती। वह उन्हें नई नई बातें सिखाती बातचीत करना सिखाती कौवे समाज का रहन सहन से खाती, अनेक गाने सिखाती। कोयल का बच्चा भी साथ रहकर सभी कुछ सीख रहा था। थोड़े ही दिनों में वह कुएं के बच्चों की तरह गाने लगा और वैसे ही रहने लगा। उसे छूट नहीं थी तो केवल आसमान में स्वच्छंद रूप से उड़ने की बीमा। बरगद की टहनी से बंधी रस्सी ढीली कर देती और कोयल का बच्चा पंजे बंधे उड़ने का अभ्यास करता। 1 दिन अचानक ही हवा के तेज झोंके से बरगद की टहनी टूट गई और रस्सी खुल गई। कोयल का बच्चा बेतहाशा वहाँ से उड़ा। उसके पंजे रस्सी में बंधे हुए थे। रस्सी का छोर लटक रहा था। करवा उड़ता ही गया उड़ता ही गया बहुत दूर आम के बाग में जाकर ही उसने चैन की सांस ली। कोयल के बच्चे ने ज़ोर ज़ोर से सहायता के लिए पुकार मचाई। उसे पूरा विश्वास था कि जल्दी ही सारी कोयले दौड़ी चली आएंगी। वे जल्दी से उसके पंजों में बसी रस्सी भी खोल देंगी। उसकी आवाज सुनकर अनेक कोयले आ गई थी, पर उसकी सहायता करना तो दूर, वे तो उससे चोंच मार मारकर वहाँ से भगाने लगीं। वे आपस में कह रही थी की देखो ये कौए का बच्चा हमारा जरूर प्रकार हमें धोखा देने आया है। गोयल के बच्चे ने बहुतेरा समझाया कि वह उनकी जाति का है पर कोयले कह रही थी। तुम रूप बदलकर में धोखा दे सकते हो और आवाज को कैसे बदलोगे? तुम्हारी आवाज़ ही तुम्हारी सच्चाई कह रही है। तुम कोयल नहीं हो कुवें हो कोयल के बच्चे की कुएं के समाज में जाने की हिम्मत नहीं हुई। वहाँ तो रोज़ ही कुएं भी माँ को भड़काते थे कि वह उसे मार डाले। वह अपना दुश्मन क्यों पाल रही है? यह बीमा की ही उदारता थी जो उसे प्यार से रखती थी। इस प्रकार कोयल का बच्चा न कुओं के साथ रह सकता था और ना कोयले के। उसकी आँखों से टप टप आंसू गिरने लगे। वह आम के बाग को छोड़कर तेजी से उड़ चला। उड़ते उड़ते वह जंगल में आया और हांफते हुए नदी के किनारे आकर गिर पड़ा। कहाँ जाऊं क्या करूँ? यह सोचकर वह फूट फूटकर रोने लगा। अपने दुख से उसे इतना बेचैनी थी कि वह यह भी नहीं देख पाया कि एक कोयल बहुत देर से उसका पीछा कर रही थी। अचानक ही उसने सुना। की कोई कोयल सामने बैठी हुई कह रही है? किसी भी स्थिति में डरकर भागना कायरता होती है। प्रत्येक स्थिति का धैर्य और साहस से सामना करो, तभी जीवन में सफलता पाओगे। कोयल के बच्चे को बड़ा गुस्सा आया, बहुत तुनक कर ज़ोर से चीखा, तुम कान भाग जाओ यहाँ से बेटा मैं तुम्हारी माउ कोयल ने उसके सिर पर पंजा फिर आते हुए प्यार से कहा मेरी कोई मावा नहीं कह कर कोयल के बच्चे ने मुँह फेरा लिया। मैं अनाथ हूँ, बीमा का हुए नहीं, मुझे पाला है। वह कह रहा था उसकी बात सुनकर कोयल की आँखों से आंसू बहने लगे। वह रुंधे हुए गले से बोली, बेटा मेरा विश्वास करो, मैं ही तेरी माँ हूँ, हाइ तुझे ठीक से पालपोस ना सकती थी तो मैंने तुझे जनम ही क्यों दिया? मुझे अपनी करनी का बीमा को धोखा देने का फल मिल गया हैं मेरे लाल मेरा मन आज तुझे इस इसी में देखकर बहुत दुखी हो रहा है। इसे तू समझ नहीं पाएगा मेरी गलती का पल तुझ को मिले ये कहाँ का न्याय है? तो मुझे अपनी गलती सुधारने का मौका देगा ना मेरे बच्चे। यह कहकर कोयल ने दोनों पंजों से अपने बेटे को पकड़कर हृदय से ममत्व भाव से लगा लिया। माँ की ममता पाकर बच्चे की आँखों से टप टप आंसू बहने लगे। फिर कोयल ने अपनी चोंच से बार बार कोशिश करके उसके पंजों में बंधी रस्सी को अलग कर दिया। वह उसे लेकर जंगल के सुनसान भाग में चली गई। वहीं एक पेड़ पर दोनों माँ बेटों ने डेरा डाल दिया। बहुत समय तक वहाँ रहकर कोयल अपने बेटे को तरह तरह की शिक्षा देती रही। सिखाने से भी दोगुना समय और शक्ति इस बात में लग रही थी कि बेटे ने जो गलत सीख रखा था, वह उसे भूल जाए। वह सोच रही थी, काश पहले ही मैं इसे सही दिशा दे देती तो क्यों इतने दिनों परेशानी भुगतनी पड़ती? गलत सीखने से तो ना सीखना ही अच्छा होता है। सच्चे मन से जो काम किया जाता है उसे अंत में सफलता मिलती ही है। कोयल भी थोड़े दिनों में अपने बच्चे को सिखाने में सफल हो गई। जब उसकी शिक्षा पूरी हो गई तो वह 1 दिन बच्चे से बोली बेटे अब तुम्हारी शिक्षा पूरी हो गई है। अब तुम गुंडी बन गए हों, शरीर और रंग रूप से नहीं। अच्छे स्वभाव और गुणों से ही कोई सच्चा और आदर पा सकता है। जाओ कोयले तुम्हारा स्वागत करेंगी मेरा कर्तव्य पूरा हो चुका विदा माँ मुझे अंतिम उपदेश तो दे दो माँ के पैर छूते हुए कोयल का बच्चा बोला। कोयल बोली बेटा अंत में मैं तुमसे बस इतना ही कहूँगी की सदैव परिश्रम और ईमानदार से काम करो, दूसरों को धोखा देने से वो भी क्या सकता है? उस समय तुम्हें भला ही अच्छा दिखाई पड़े पर लाभ थोड़े समय का ही होता है। ऐसा करने वालों को अंत में पछताना ही पड़ता है। माँ तुम्हारी ये बात मैं हमेशा ध्यान रखूँगा। गोयल के बच्चे ने माँ को प्यार और आदर की दृष्टि से देखते हुए कहा, फिर उसने पंख फड़फड़ाए और प्रसन्न मन से जीवन की लंबी यात्रा पर निकल गया। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें कभी किसी को धोखा नहीं देना चाहिए। ओके बाइ?",यह एक नन्ही कोयल चिड़िया की कहानी है। इस कहानी में एक कोयल ने अपने बच्चे को कौवे के घोसले में डाल दिया जब कौवे को सच्चाई का पता चला तो वह बहुत क्रोधित हुई। नन्ही कोयल का बच्चा कौवे के साथ रहता था लेकिन कुछ समय बाद वह आज़ाद हो गया और अपनी माँ से मिला। "हैलो बच्चों, आज जो कहानी में आपको सुनाने जा रही हूँ उसका टाइटल है स्वर्ग का सुख। अभयारण्य में चंपा नाम की एक बदरियाँ रहा करती थी। उसे बच्चों से बड़ा प्यार था पर दुख की बात थी कि उसके अपना कोई बच्चा ना था। इस बात से रात दिन किन रहा करती थी तब उसके पति ने उसे समझाया। देखो चंपा योरमनी मन घुलने से कोई फायदा नहीं, उल्टे तुम्हारा स्वास्थ्य और नष्ट हो जाएगा। तुम औरों के बच्चों को प्यार किया करो, उनकी सेवा किया करो। हो सकता है भगवान प्रसन्न होकर तुम्हें भी बच्चा दे दे। चंपा को पति की बात अच्छी लगी। अवार्ड दूसरी बंदरिया के बच्चों की सेवा सहायता करने लगी। वह उन्हें तरह तरह के खेल खिलाती, अच्छी बातें सिखाती और खाने की चीजें भी देती। जल्दी ही पास पड़ोस के सारे बच्चे उससे खूब घुल मिल गए। वे मौसी जी मौसी जी कहकर उसके पीछे आगे घूमते रहते। संयोग की बात की एक वर्ष बाद चंपा के अपना एक बच्चा भी हो गया। वह बड़ी प्रसन्न हुई। मैं बेटी को गुणवान बनाउंगी पश्चिमी बनाउंगी बहुत अच्छा बनाउंगी उसके जन्म के समय चंपा ने मन ही मन सोचा चंपा ने अपने बच्चे का बड़े ध्यान से लालन पालन किया और उसकी हर सुख सुविधा का ध्यान रखती। कुछ बड़े होने पर चंपा ने उसे शिक्षा देना प्रारंभ कर दिया। कुछ ही वर्षों में उसका बेटा किशु बड़ा ही गुण मान और ज्ञान मान बन गया। जो उसे देखता, उससे बातें करता, उसके साथ रहता, उसका जी प्रसन्न हो जाता। वह बड़ा ही विनम्र, मीठा बोलने वाला, दूसरों की सहायता करने वाला और सभी का सम्मान करने वाला था। यहीं वे गुण हैं जिनके कारण दूसरे हमें आदर और स्नेह दिया करते हैं। इशू जब युवा हुआ तो अनेक बंदर यह चाहने लगे कि उनकी बेटी का विवाह उससे हो जाए। वे उसके गुणी स्वभाव से परिचित और अच्छी तरह समझते थे कि उनकी बेटी को या सदैव सुखी रखेगा। धन सम्पत्ति तो नष्ट हो सकती है, पर गुणों की संपत्ति कभी नष्ट नहीं हुआ करती। जैसा कि कहा भी गया है। वृत्त में यत्न एन संगम क्षेत्र, वित्त में इतनी न्याति, कसीनो, वित्त क्षणों वृत्त अस्तु हाँ तो होता अर्थात। अच्छे आचरण और गुणों की मनुष्य को यत्न पूर्वक रक्षा करनी चाहिए। धन तो आता जाता रहता है। धन के कम होने से मनुष्य खीर नहीं होता, परंतु गुणों के क्षीण होने से मनुष्य क्षीण हो जाता है। कि शो का विवाह काली नाम की एक बंदरिया के साथ हो गया कि शु जितना गुणी था, विनम्र था, काली उतनी ही झगड़ालू और क्लेश करने वाली। बहुत छोटी छोटी बात पर लड़ाई करती कि शो की बूढ़ी माता उसे फूटी आँखों नहीं सुहाती। बात बात में इश्यू से वह उनकी बुराइ किया करती। इस बात पर जबकि शु उसे डांटता तो आप हर भक्कर रोने लगती। ऐसे जीवन से किशु बड़ा ही दुखी हो गया था। कहा, नरक में आप हंसा हूँ, मन ही मन वह सोचा करता। अब उसकी समझ में यह बात अच्छी तरह से आ गई कि बुजुर्गों क्यों इस बात को कहते हैं की गृहणी से ही घर बनता है। अतएव पदों के चुनाव में गुणों को प्रमुख स्थान देना चाहिए। हम जैसे व्यक्ति के साथ रहते हैं उसके आचार व्यवहार का गुणों का, स्वभाव का सूक्ष्म प्रभाव निस्संदेह हम पर पड़ता है। कि शुभी अनजाने में धीरे धीरे काली से प्रभावित हो रहा था। काली के भड़काने से 1 दिन वह अपनी माँ से लड़ पड़ा। काली तो पूरी तरह महाकाली थी। उसने किशु को माँ के विरुद्ध और भरा। उसी रात के दोनों चंपा को अकेली छोड़कर वहाँ से चल पड़े। रात भर और दिन भर चलते रहे और दूर एक जंगल में जाकर उन्होंने डेरा डाला। वहाँ के शुरू और काली ने अपनी सुख सुविधा की सारी सामग्री जुटा ली। इशू को जब काली के साथ अकेले रहने का अवसर मिला तब वह समझा की उसका स्वभाव कितना उग्र है। ओह, माँ की नहीं सारी गलती से की है यह बात भी उसकी समझ में अच्छी तरह आ गयी है। किशु तब बैठकर अपनी माँ को याद करता। जब भी वह उसके विषय में सोचता उसका दिल भर आता। बचपन से लेकर बड़े होने तक की सारी घटनाएं एक एक करके उसकी आँखों के आगे घूम जाती। माँ का स्नेह, उसका त्याग सभी कुछ उसे याद आने लगता। ओह ऐसी ममतामयी माँ को अकारण छोड़कर मैंने बहुत बड़ा अपराध किया। बुढ़ापे में तो मुझे उनकी सेवा करनी चाहिए थी ना की यूं ही उन्हें छोड़ देना चाहिए था। वो मन ही मन सोचता और अपने आप को देख कार ता की हूँ ने अनेकों बार काली से माँ के पास लौट चलने का आग्रह किया पर वह किसी भी प्रकार तैयार नहीं हुई। कुछ समय बाद काली के एक बच्चा भी हो गया। इशू ने बच्चे के प्रति अपने मन में उमड़ती भावनाओं से यह अनुभव कर लिया की माता पिता बच्चों को कितना प्यार करते है। मेरी माँ ने मुझसे भी ना जाने कितनी आशाएं की होंगी, वह मन ही मन सोचा करता। 1 दिन बहुत बड़ी दुर्घटना घट गई। किशु और काली पास पास बैठे थे। उनके बीच में बच्चा लेटा हुआ था। तभी अचानक पीछे से एक भेड़िया आया और दबे पैरों आकर बच्चे को ले भागा। किशु और काली ने जब मुड़कर देखा तो भेड़िया दूर भागकर जा चुका था। वे हाहाकार करते हुए उसके पीछे दौड़ें, भेड़िया और भी तेज भागा और कुछ ही देर में उड़न छू हो गया। इशू और काली दोनों बहुत दूर तक भागे परंतु उनके हाथ कुछ भी ना लगा। काली तो बच्चे के शोक में बावली सी हो गई। वो छाती पिट पीटकर करुण क्रंदन कर रही थी। हाँ ये मेरे बेटे हाय मेरे लाल। किशु बड़ी कठिनाई से उसे समझाकर वापस लाया। अब काली का खाना पीना भी छूट गया और चौबीसों घंटे बैठी अपने बच्चे को याद करती रहती। अपने बेटे को खोकर किसी माँ को कैसा लगता है या आप? उसे अच्छी तरह अनुभव हो गया था? वह टिशू से कहती की मैंने तुम्हारी माँ से तुम्हें अलग किया है ना भगवान ने उसी का दंड मुझे दिया है। उधर अब चंपा का भी हाल सुन लेते है। सुबह उठकर जब उसने बेटे बहू को पेड़ पर नहीं पाया तो वह सोचने लगी की प्रातः घूमने चले गए होंगे घूम फिर कर नाश्ता करके थोड़ी देर में लौट आएँगे। बब्बू की प्यास ही बैठी उनकी प्रतीक्षा करती रहीं। पर रात तक भी जब बेटे बहू नहीं लौटे तो वह बड़ी चिंतित हुई। बेचारी अपने अशक्त शरीर से खास थी। लड़खड़ाती आसपास की सारी जगह देखाई पर किशु और काली पांव होते तो मिलते ना। दूसरे दिन चंपा फिर प्रातः से ही अपने अभियान पर निकली। वह जंगल का चप्पा चप्पा छान लाई पर बेटे बहू का कहीं पता न लगा। हाँ, भाऊजी। उल्लू ने यह जरूर बताया कि उसके बेटे बहू को इस जंगल की सीमा को पार कर आगे बढ़ते देखा गया था। बाऊजी की बात सुनकर चंपा का हृदय रो उठा। वह पछाड़ खाकर गिर पड़ीं। हाँ बेटा कौन सा अपराध किया था मैंने जो तुम मुझे छोड़ कर चले गए वो हड़बड़ाई और फिर अचेत हो गई। पास से गुज़रने वाली कांता हथिनी ने उसके मुँह पर पानी के छीटें लगाए। जैसे तैसे उसे होश आया। दुख को अपने हृदय में छुपाए थके थके कदमों से जैसे तैसे वह घर की ओर लौटी। चंपा अब समझ गई थी कि उसका बेटा जानबूझकर उसे छोड़कर गया है। उसकी निष्ठुरता से चंपा के हृदय पर गहरा आघात पहुंचा था। सारा संसार उसे नीरज जान पड़ता था। किसी काम में उसका मन ना लगता। घर तो मानो उसे काटने को ही दौड़ता। बस सुबह होते ही घर से निकल पड़ती और यूं ही सारे जंगल में इधर उधर भटकती रहती। रात होने पर ही घर लौटी और चुपचाप सो जाती। 1 दिन चंपा यूं ही घूमती हुई बहुत दूर भेड़िये की मांद के पास से निकल गई। वहाँ उसने एक अद्भुत दृश्य देखा और वह चौंक उठी। भेड़िये के बच्चों के पास बंदर का भी एक बच्चा बैठा था, चंपा ने आंखें फाड़ फाड़कर बार बार देखा। हाँ, वो बंदर का ही बच्चा था। यह तो हमारी जाति का बच्चा है। या तो हमारी ही बच्चा है। बेड़ियाँ कहीं से खाना जाए, वह मन ही मन बुदबुदाई। मुझे इस नन्हे बच्चे की रक्षा करनी चाहिए। वह मन ही मन कहने लगी। फिर वह अपनी जान को जोखिम में डालकर चुपके से बंदर का बच्चा उठा लाई। और पेड़ पर चढ़ गई। भेड़िया ने देखा तो वो आगबबूला हो उठा। उसने चंपा को बहुत धमकाया, बहुत लालच दिया और वह बच्चा वापस करने के लिए टस से मस न हुई। हार कर भेड़िया वापस चला गया। भेड़िये के चले जाने पर चंपा भी एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर छलांग लगाती हुई जंगल पार करने लगी। उसे डर था कि भेड़िया कहीं वापस ना आ जाए और फिर बच्चे को झपटना ले इसीलिए वहाँ ऐसा करती रहीं। पेड़ पेड़ पर से जाने के कारण चंपा रास्ता भटक गई और दूसरे जंगल में जा पहुंची। चलते चलते जब वह थक गई और सांझ का झुटपुटा भी हो गया तो वह बच्चे को लेकर एक पेड़ पर बैठ गई। उस पेड़ की एक ऊंची डाली पर किशु और काली भी बैठे हुए थे। चंपा ने उन्हें नहीं देखा। चंपा ने आराम से बैठने पर बच्चा अपनी छाती से अलग करके डाल दिया। और उसे अलग डाल पर बैठा दिया। बच्चे को जोरों की भूख लगी थी, अब वह चिल्लाने लगा। आवाज सुनकर काली की निगाह से हँसा नीचे गयी मेरा बच्चा, मेरा लल्ला। ऐसा कहकर वो तेजी से कूद पड़ी और बच्चे को कस कर अपनी छाती से लगा लिया। अब तक की इशू का ध्यान भी बढ़ चुका था। उसने माँ को नीचे बैठे देखा तो वह भी अम्मा अम्मा कहकर उससे लिपट गया। केशू, काली और चंपा तीनों की आँखों से आंसू बह रहे थे। उन्होंने एक दूसरे को अपनी अपनी बात सुनाई। दूसरे दिन प्रातःकाल चंपा अपने घर जाने को तैयार हो गई। जब वह चलने लगी तो किशु ने उसका रास्ता रोक लिया और कहने लगा अकेली कहाँ जाओगी अम्मा, हम भी तो तुम्हारे साथ चलेंगे? काली चंपा के पैरों पर गिर पड़ी। और कहने लगी। माँ जी, मुझे क्षमा कर दीजिये। मैंने बुरे विचारों से परिवार के टुकड़े कर दिए। मिलजुल कर रहने के बड़ों की सेवा करने के महत्त्व को अब मैं समझ गयी हूँ। मुझे समझ आ गया है कि माँ बच्चे के लिए कितना त्याग करती है, कितना कष्ट सहती हैं और उससे कितनी आशाएं रखती है। बच्चे का भी कर्तव्य हो जाता है कि वह बड़ा होकर माता पिता की सेवा करें, जो ऐसा नहीं करता उल्टे अपने माता पिता से बुरा बोलता है, व्यवहार करता है, उसे हैं। हाँ माँ इसने और त्याग से भरा परिवार ही स्वर्ग का सुख देता है की शुभी गंभीर होते हुए बोला। चंपा ने काली को उठाकर अपने हृदय से लगा लिया। प्रसन्नता से उसकी आँखों से आंसू बहने लगे। भगवान तुम्हारे विचार ऐसे ही बनाए रखें। काली और किशु के सिर पर हाथ फिराते हुई वह बोली। इसके बाद चंपा की शु, काली और नन्हा सभी अपने पुराने घर की ओर लौट चलें। उसके हृदय में मिलजुल कर रहने, प्यार और सहकार भरा स्वर्गीय परिवार बसाने की भावना हिलोरें ले रही थी। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही सीख लेनी चाहिए की हमें हमेशा अपने माता पिता के साथ अच्छा व्यवहार करना चाहिए। कभी भी गलत व्यवहार नहीं करना चाहिए। ओके बाइ?","यह एक बंदर 🐒 की एक नैतिक कहानी है। बंदर बहुत उदार है और वह बच्चों के साथ खेलना पसंद करती है लेकिन दुर्भाग्य से उसका अपना कोई बच्चा नहीं है। वह अन्य बंदरों के बच्चों के साथ खेलती है और उन्हें शिक्षित करती है। कुछ समय बाद वह अपने बच्चे को जन्म देती है। युवा बंदर बहुत उदार और दयालु है, जंगल में हर कोई उससे प्यार करता है। लेकिन शादी के बाद वह अपनी मां को अकेला छोड़कर पत्नी के साथ दूसरे जंगल चला जाता है। पूरी कहानी सुनें और नैतिकता के बारे में जानें।" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपके लिए लेकर आई हूँ उसका शीर्षक है ब्राह्मण और तीन ठग। बहुत समय पहले की बात है। किसी नगर में एक ब्राह्मण रहता था, उसका नाम था मित्र शर्मा। वह ब्राह्मण बहुत गरीब परंतु बुद्धिमान था। गांव के पूजा पाठ के कार्य वहीं किया करता था। इस प्रकार उसका गुज़ारा चलता रहता था। एक बार वह किसी पूजा पाठ के काम से पास ही के किसी गांव में गया। वहाँ जाकर उसने पूजा पाठ का काम निपटाया और फिर चलने की तैयारी करने लगा। यजमान ने पूछा साधु महाराज अगर आपको किसी चीज़ की जरूरत हो तो बताईये? जरूरत तो है भाई मगर सोचता हूँ की तुम्हे किस प्रकार बताऊँ, वह बोला की आवश्यकता नहीं है महाराज अपने संकोच के डालिए, उस यजमान के यहाँ एक बकरा बंधा था, ब्राह्मण ने उसकी ओर संकेत किया तुम्हारे यहाँ जो यह सवस्थ बकरा बंदा है, मुझे इस बकरे की जरूरत है। क्यों नहीं मार? आज आप इसे अभी ले जाइए। यह जवान ने खुश होकर कहा। फिर यजमान ने वह सवस्थ बकरा लाकर उस ब्राह्मण को सौंप दिया। बकरा बहुत चंचल था, ब्राह्मण के खींचने पर भी वह आगे नहीं बढ़ रहा था, इसलिए ब्राह्मण ने उसे उठाकर अपने कंधे पर बैठा लिया और आगे चल दिया। जंगल का रास्ता था ब्राह्मण बकरे को लेकर जंगल के रास्ते से अपने घर की तरफ जल्दी जल्दी जा रहा था। शाम भी होने वाली थी। सूर्य आधा छिप चुका था। तभी रास्ते में तीन ठगों की नजर उस ब्राह्मण पर गई। वह उस जंगल के रास्ते में छिप कर बैठ जाते थे और आते जाते लोगों को ठगा करते थे। उनका रोज़ का यही कार्य था। वह किसी ना किसी को रोज़ सकते थे। जब उन ठगों की दृष्टि ब्राह्मण पर पड़ी तो उन्हें ब्राह्मण थे। बकरा छीनने की बात सोंची व तीनों ठग आपस में उससे बकरा छीनने का उपाय सोच रहे थे। रामण अभी उनसे कुछ दूरी पर था तभी एक थक बोला। मेरे पास एक उपाय है। कैसा उपाय? बस तुम देखते जाओ मैं उस ब्राह्मण से किस प्रकार वह हूँ? यह कहकर उसने अपना देहाती वेश बनाया। फिर वह पास आते ब्राह्मण के सामने जाकर खड़ा हो गया। कौन हो भाई तुम? ब्राह्मण ने पूछा वह थक ब्राह्मण को बड़ी हैरानी से देखता रहा, जैसे पहले से उसे जानता हो। इस प्रकार आश्चर्य से क्या देख रहे हो भाई? ब्राह्मण हैरानी से पूछा, अरे मोहरों जो आपको क्या हो गया है? आपके अपनी ये क्या हालत बना रखी है? वह बोला क्यों क्या हुआ है मुझे? अब जैसा पवित्र आचरण वाला व्यक्ति इस कुत्ते को कंधे पर लादकर कहा घूम रहा है, कौन सा कुत्ता यही जो आपने अपने कंधे पर लाद रखा है? उस थकने बकरे की ओर इशारा करते हुए बोला, मित्र शर्मा का गुस्सा आपे से बाहर हो गया। वह क्रोधित होकर उस ठग से बोला कहीं तुम पागल तो नहीं हो गए हो? या बकरा तुम्हें कुत्ता दिखाई देता है। ठग उसकी बात सुनकर हंसने लगा। ब्राह्मण उसे हँसते हुए आश्चर्य से देख रहा था तो हम आज क्या हो रहा है हो? उसने पूछा जो अब तुम बात ही ऐसी करते हो तो भला कुत्ते को बकरा बता रहे हो तो हँसी तो आएगी ना नहीं भाई ये बकरा ही है तुम अपनी आँखों से देख लो ब्राह्मण नेकहा ठग ने नम्रतापूर्वक कहा अरे भाई नाराज क्यों होते हो? जैसी आपकी इच्छा वैसा ही कीजिये। यह कहकर वह ठग वहाँ से चला गया। ब्राह्मण ने बकरे को फिर अपने कंधे पर लादा और अपने गांव की ओर चल पड़ा। सूरज छिपता ही जा रहा था, थोड़ी दूर जाने पर दूसरा ठग उसके सामने आकर खड़ा हो गया और उसे हैरानी से देखने लगा। लेकिन वहाँ तक बराबर उसे देखता ही रहा कैसे वह पहले से जानता हो। इस प्रकार क्या देख रहे हो भाई? ब्राह्मण ने फिर पूछा अरे ब्राह्मण देवता इस मरे हुए बछड़े को कंधे पर लादकर कहा जा रहे हो, उसने पूछा या क्या कह रहे हो तुम? क्या यह तुम्हें मरा हुआ बछड़ा नजर आता है और नहीं तो क्या आपके कंधे पर ये मरा हुआ बछड़ा ही तो है ठग बोला ब्राह्मण को उसकी बात सुनकर गुस्सा आ गया। वह क्रोध भरे स्वर में बोला लगता है तू अंधा हो गया है इसलिए तुझे बकरा मरा हुआ बछड़ा लगता है। ओरे मोरोज आप तो नाराज हो गए जैसी आपकी इच्छा वैसा ही करो। फिर वह थक गया कहकर आगे बढ़ गया। मित्र शर्मा अभी कुछ आगे ही चला था कि तीसरा ठगा कर सामने खड़ा हो गया और उसी प्रकार उसे घूरने लगा। अरे भाई अब तुम कौन हो? ब्राह्मण ने पूछा छि छि छि महाराज ये अपने कंधे पर किसे लादकर ले जा रहे हैं? वह बोला बकरा ही तो है ब्राह्मण नेकहा। तुम जैसे ब्राह्मण हो महाराज, गधे को कंधे पर उठाए घूम रहे हो। थक बोला या तुम क्या कह रहे हो? मैं ठीक ही तो कह रहा हूँ महाराज, इस प्रकार तो लोग आपकी हँसी उड़ाएंगे। वह बोला अब तो ब्राह्मण दुविधा में पड़ गया भला तीन तीन आदमी झूठ कैसे बोल सकते हैं? उसे लगा वह सचमुच अपने कंधे पर किसी अपवित्र प्राणी को लादे हुए हैं। इसलिए उसने बकरे को कंधे से उतार कर वहीं छोड़ दिया और नहाने के लिए नदी की तरफ चला गया। तीनों ठगों ने जल्दी से उस बकरे को उठाया और खुशी खुशी अपने घर की ओर चल दिए। इसीलिए कहते हैं कि इंसान को अपनी बुद्धि का प्रयोग भी करना चाहिए। अगर ब्राह्मण ने ज़रा सी भी बुद्धि का प्रयोग किया होता तो वह ठग उसे कभी भी बेवकूफ नहीं बना पाते। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें हमेशा अपनी बुद्धि का प्रयोग करना चाहिए, तभी हमारे कार्यों में कभी भी बाधा नहीं आ सकती। ओके बाइ?","सभी को नमस्कार, यह एक पुजारी और 3 धोखेबाजों की नैतिक कहानी है। पुजारी जी ने कंधे 🐐 पर एक बकरी 🐐 उठा रखी थी। वह एक जंगल से गुजर रहा था। तीन धोखेबाज़ वहाँ खड़े हैं। उन्होंने पुजारी से बकरी को पकड़ने की योजना बनाई। अपने मकसद को पूरा करने के लिए उन्होंने एक-एक करके पुजारी को मूर्ख बनाया। पूरी कहानी सुनें और कहानी के नैतिक के बारे में जानें।" "क्या आप भी अपना पॉडकास्ट बनाने का सोच रहे हैं? तो ऐंकर ट्राई कीजिए, ये पॉडकास्ट बनाने का सबसे आसान तरीका है। नंबर एक ये फ्री है नंबर दो। इसमें कई सारे ऐसे टूल्स है जो आपको अपने फ़ोन और कंप्यूटर पर रिकॉर्ड और एडिट करने की फैसिलिटीज देते हैं। नंबर तीन आप अपने पॉडकास्ट को डिस्ट्रीब्यूट भी कर सकते हैं, जिससे इसे इस स्पॉटिफाइ और दूसरे प्लैटफॉर्म्स पे सुना जा सकें। डाउनलोड कीजिये ये फ्री एंकर ऐप या विजिट कीजिए ऐंकर डॉट ऐफ़ एम अपना पॉडकास्ट स्टार्ट करने के लिए? हे गाइस आज मैं आपके लिए एक बहुत ही शानदार कहानी लेकर आई हूँ। तो आइए सुनते है आज की कहानी। कालू सुंदर वन के सभी जानवर कालू कुत्ते से तंग आ गए थे। तंग होने का कारण उसका लालजी पन्था यो कालू कुत्ता सभी की भलाई किया करता था। उसमें परोपकार की भावना कूट कूटकर भरी थी। वह दूसरे जानवरों की भाँति औरों की बुआई करने में अपना समय नहीं बिताता था। अपने इन गुणों के कारण वह सभी को प्यारा लगता था। पर कालू के चटोरेपन के कारण जंगल के सभी जानवर काफी परेशान हो गए थे। कालू की गंदी आदत थी कि वह खाने पीने की कोई भी बढ़िया चीज़ देखता तो उसके मुँह से लार टपकने लगती, उसका विवेक समाप्त हो जाता। वह भूल जाता कि वह मेरी चीज़ है या दूसरे की। इससे मुझे खाना चाहिए या नहीं। परिमाल को वह लपालप खा जाता था। 1 दिन की बात है। डॉक्टर नीतू लोमड़ी मरीजों को देख रही थी। वो बड़ी थ की थी। आते ही उसने खाने की पोटली खोली। किसी रोगी जानवर ने ठीक होने पर डॉक्टर नीतू लोमड़ी को वह पोटली उपहार में दी थी। उसमें बड़े बढ़िया, बढ़िया पकवान थे। भीनी भीनी गंदा आ रही थी। लोमड़ी उन्हें खाने लगी की ना जाने कहाँ से कालू कुत्ता टपका बिना नीतू से पूछे वह बहुत सारी मिठाई चट कर गया। नीतू लोमड़ी शिष्टाचारवश कुछ बिना कह पाई और उसे भूखा ही उठना पड़ा। इसी प्रकार एक बार कल्लू को हुआ कहीं से खीर भरा पत्ता ले आया। वह घास पर बैठा चटकारे लेकर उसे खा ही रहा था कि तभी एकाएक कालू कुत्ता उसका पूरा का पूरा पत्ता लेकर तेजी से भाग्य। कल्लू का हुआ अपना समूह लेकर रह गया। कालू की इन शरारतों से तंग आकर जंगल के जानवरों ने एक सभा की। उसमें उन्होंने विचार किया कि जैसे भी हो कालू को सबक सिखाया जाए। जिससे वह इस प्रकार सभी को तंग करना भूल जाए। लम्बू खरगोश जो बड़ा बुद्धिमान समझा जाता था? उसने कालू को सबक देने की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली। पांच 6 दिन बाद की बात है। कलियां, कोयल, कुक, कुकर, जंगल के सभी पशु पक्षियों के यहाँ निमंत्रण दे आयी। उसने बताया कि कल लंबू खरगोश बी के बेटे का विवाह है। शाम को सभी उत्सव में जरूर सम्मिलित हों। दूसरे दिन शाम को सभी जानवर नियत समय पर लम्बू खरगोश के यहाँ पहुँच गए। लम्बू ने उन सभी का बड़ा स्वागत किया जब सभी विदा होने लगे तो लंबू खरगोश बोला। भाइयो और बहनो, इस शुभ अवसर पर मैं सभी को कुछ उपहार देना चाहता हूँ। फिर लंबू खरगोश उपहारों के ढेर की ओर संकेत कर के बोला। कृपया मेरी यह तुच्छ बेटा स्वीकार करे। आपको जो भी अच्छा लगे वह उपहार ले ले। कालू बड़े लालची निगाहों से उपहारों के ढेर की ओर देखें जा रहा था। जैसे ही लंबू की बात समाप्त हुई तो वह तेजी से सबसे पहले आगे बढ़ा। उसने उपहारों के ढेर से अलग रखे हुए एक पैकेट को उठा लिया। सभी को कालू का यह व्यवहार बुरा लगा। लोमड़ी काकी ने तो कह भी दिया, कालू, तुम्हें बड़े बूढ़ों का भी कुछ ख्याल रखना चाहिए, उनका भी लिहाज किया करो, पहले उन्हें उपहार लेने देता चाहिए था ना? सभी जानवर अपने मनपसंद पैकेट उठाकर अपने स्थान पर लौट आए। वे यह खोल कर देखने लगे की लंबू खरगोश ने उन्हें क्या क्या भेज दी है। तभी सहसा सबका ध्यान कालू की भोपर गया। सभी पक्षियों ने देखा कि कालू बहुत ही परेशान होकर तेज़ी से इधर उधर दौड़ा जा रहा है और चीख पुकार कर रहा है। असल में बात यह हुई कि कानून ने जैसे ही पैकेट खोला तो उसके अंदर देर सारी मधुमक्खियां भिनभिनाती हुई निकल पड़ी और कालू पर चिपट पड़ी। कालू उनसे बचाव करने के लिए कभी अपनी पूँछ हिलाता, कभी पंजों से उन्हें भगाता तो कभी कान पर बढ़ाकर उन्हें मारने की कोशिश करता। पर मधुमक्खियां थी कि भागने का नाम ही नहीं ले रही थी। जगह जगह काट कर उन्होंने कालू का बदल सुझा दिया था। आखिर लंबू खरगोश ने मधुमक्खियों से विनती की। बहनो, कालू ने गलती से आपको तंग किया है, कृपया अब इसे आप छोड़ दीजिए। मधुमक्खियों ने लंबू खरगोश की बात मान ली। वे उड़कर दूर जा बैठीं। कालू कुछ देर तक तो दर्द से कराहता रहा फिर गुस्से में आकर बोला। दो भाई लंबू क्या इस अपमान के लिए ही तुमने मुझे यहाँ बुलाया था? लम्बू कहने लगा, देखो भाई गलती तुम्हारी ही थी, मैंने तो उपहारों के ढेर में से कुछ लेने को कहा था। यह मधुमक्खियों का छत्ता तो मैं अपने बेटे और बहू के लिए शहद निकालने के लिए लाया था। ये तो डेढ़ से अलग पड़ा था। तुमने लालच में इसे ही क्यों उठाया? तुम्हारे लालच का ही तुम्हें फल मिला है। बूढ़ी लोमड़ी का की भी कहने लगी। कालू, तुम बहुत ही लालची होते जा रहे हो, तुम्हे जो खाना पीना हैं, स्वयं कमाकर खाओ। दूसरों की चीजों को देखकर कभी लालच ना करो। ईमानदारी से अपने हाथ पैरों से मेहनत करके जो चीज़ पा स को उसी का उपयोग करो, इसी में सुख है। इसी में सफलता है और इसी में शांति है जो दूसरों की चीज़ हड़पता है और अंत में दुख ही पाता है। बूढ़ी काकी की बात कालू की समझ में आने लगी। उसने भरी सभा में प्रतिज्ञा की कि वह सदैव ईमानदारी और परिश्रम से कमाई चीज़ ही ग्रहण करेगा। दूसरों की चीजों को झपटने की कभी कोशिश नहीं करेगा। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें कभी भी दूसरों की चीजों पर अधिकार नहीं करना चाहिए और ना ही उनसे बिना पूछे उनकी कोई भी चीज़ लेनी चाहिए। ओके बाय।","सभी को नमस्कार, यह एक लालची कुत्ते की एक अद्भुत कहानी है 🐕। कुत्ता हमेशा दूसरे जानवरों की चीजें लेता है। वह दूसरों की अनुमति लिए बिना ही उनका भोजन कर लेता था। पूरी कहानी सुनें और कहानी के नैतिक के बारे में जानें।" "हैलो बच्चों। आज मैं आप सब के लिए भगवान कृष्ण के जन्म की कथा लेकर आई हूँ। भगवान श्रीकृष्ण के जन्म को जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है। दुनिया में ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं होगा जिसे भगवान कृष्ण के जन्म की कथा न मालूम हो। भगवान श्रीकृष्ण की एक एक लीला सुनकर मन को तृप्ति मिलती है। वैसे तो उनके जन्म का कौन गान कर सकता है? फिर भी जैसा मैंने अपने गुरुदेव और बड़ों से सुना और सीखा है, उसे मैं अपने शब्दों में आपके सामने रख रही। एक बार धरती माता बहुत दुखी हुई। कंस जैसे बहुत सारे असुरों ने धरती माँ को बहुत परेशान किया। धरती पर पाप बढ़ गया। पृथ्वी ने गेहूं का रूप बनाया और आँखों में आंसू लिए ब्रह्मा जी के पास गई और कहा। बेटा ब्रह्मा, मेरे ऊपर पाप बहुत बढ़ गया है और मैं पाप से दबी जा रही हूँ। पृथ्वी की बात सुनकर ब्रह्मा जी बहुत दुखी हुए और भगवान विष्णु के पास क्षीरसागर में गए ब्रह्मा जी के साथ सारे देवता और भगवान शिव भी थे। सभी देवों ने मिलकर भगवान विष्णु की स्तुति की। भगवान की आकाशवाणी सुनाई दी। ब्रह्मा जी बोले की देवताओं मुझे भगवान की आज्ञा हुई है कि मैं जल्दी ही धरती पर देवकी और वासुदेव के पुत्र के रूप में जन्म लूँगा और मेरे साथ श्री बलराम जी और राधा जी भी अवतार लेंगे और तुम भी सभी अपने अपने अंशों से जाकर यादव कुल में अवतार धारण करो। सब देवताओं ने भूरी भूरी प्रशंसा भी की। अब कंस को आकाशवाणी सुनाई देना। मथुरा के राजा उग्रसेन। उग्रसेन के छोटे भाई थे। देवा। उग्रसेन के पांच बेटियां और नौ बेटे थे। देवका महाराज के चार पुत्र और सात बेटियां थीं। जिनमें से अपनी छह बेटियों की शादी सुरसेन के बेटे वासुदेव से वे कर चूके थे। अंत में देवकी की शादी भी। वासुदेव से मंगल मुहूर्त में कर दी गई। ये कंस की चचेरी बहन थी। देवता फूलों की बारिश कर रहे थे। मंगल गाना गाया जा रहा था। महाराज ने बहुत सा सामान अपनी बेटी को दिया। जब विदा का समय आया तो रत में देवकी और वासुदेव दोनों विराजमान है। सबकी आँखों में आंसू थे, कंस भी रो रहा था। कंस को अपनी बहनों से ज्यादा देवकी से प्रेम था क्योंकि घर में वह सबसे छोटी थी। कंस कहते हैं, मैंने अपनी बहन को इतना प्यार दिया है तो क्या मैं इसके घर तक इसे छोड़कर नहीं आ सकता? कौन सी ने सारथी को उतारकर खुद घोड़ों की राज़ पकड़ ली और महलों की ओर चले। जब बीच रात पर पहुंचे तो आकाशवाणी हुई। अरे कौन सी? जिंस बहन को तू इतना लाड प्यार से विदा कर रहा है। इसी का आठवां पुत्र तेरा काल बनेगा। जैसे ही कंस ने सुना तो म्यान से तलवार निकाल ली और देवकी को मारने लगा। जब वासुदेव ने देखा तो उसको रोका और कहा कंस आकाशवाणी की आवाज मैंने भी सुनी है। देखो कंस जीस संसार से जीव पैदा होता है उसी दिन उसकी मौत भी निश्चित हो जाती है। अगर देवकी के बालक से तुम्हारी मृत्यु होने वाली होगी तो उसे कोई टाल नहीं सकता। लेकिन एक बात मैं तुमसे कहना चाहता हूँ, तुम्हें अपनी बहन से डर नहीं है इसके बालकों से है। तुम्हें आज प्रतिज्ञा करता हूँ कि जीतने भी देवकी के बालक होंगे, सब लॉकर तुम्हें दे दूंगा। वासुदेव ने अपने जीवन में कभी झूठ नहीं बोला था इसलिए कंस को विश्वास हो गया। कंस ने देवकी और वासुदेव दोनों को बंधन से मुक्त कर दिया। कुछ समय बाद देवकी के बेटा हुआ नाम रखा कीर्तिमान। वचन के अनुसार वासुदेव। ने बालक को लेकर कंस को दे दिया। कंस ने कहा कि मुझे इस बालक से डर नहीं है। आठवें बालक से तुम इसे ले जाओ। वसुदेव बालक को लेकर चले गए। नारदजी का कंज के पास जाना। नारदजी ने सोचा अगर कल से जैसे पापी के मन में दया आ गई तो भगवान का अवतार कैसे होगा? अपनी वीणा लेके कंस के पास आए और बोले नो यण कंस, देवकी के बालकों का क्या हुआ? कंस ने कहा। अभी पहले पुत्र का जन्म हुआ है, मुझे याद वे पुत्र से डर है, पहले से नहीं। तब नारदजी ने आठ दानों की माला लेकर कंस के हाथ में दे दी और कहा दाने गिनो। कंस ने कहा, इसमें क्या आठ मनका है और क्या है? अब आप पहले मनके से नहीं दूसरे से गिनती शुरू करो और पहले वाले को अंतिम मैं गिनना। ऐसा नारदजी ने कहा। जब कंधे में गिना तो पहले वाला आठवें नंबर पर आया। फिर नारदजी बोले की आप तीसरे मनके को पहले नंबर से गिनो और दूसरे को अंत में गिनना। इस तरह से नारद ने प्रत्येक माला के मनके को आठवां बनाकर दिखा दिया। कंस बोले की आप क्या बच्चों वाला खेल खिला रहे हैं, मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा है। नारदजी बोले। कंस यही मैं समझा रहा हूँ। जैसे इस माला का प्रत्येक दाना आठवां है, वैसे ही हर बालक में भगवान का वास है। नारदजी कभी बच्चों को मारने की शिक्षा नहीं देंगे, लेकिन की बुद्धि जड़ है हर बार उल्टा ही सोचती है कंस के मन में आया की देवी की का हर बालक आठवां है और तेरा काल है। फिर नारदजी चले गए। अब कंस ने उस बालक को मंगवाया और उसे मौत के घाट उतार दिया। इस तरह देव जी के छे बालक हुए कंस ने सभी को मरवा दिया। अब देवकी और वासुदेव को कारागार में बंद कर दिया गया। बलरामजी का जन्म। भगवान ने योगमाया को सातवाँ बालक बनाने की आज्ञा दी और कहा कि तुम देवकी के साथ में गर्भ का आकर्षण करो और रोहिणी जी के गर्भ में डाल दो और नंदगांव में चले जाओ। और यशोदा के गर्भ से पुत्री बनकर जन्म लेना तुम्हारी दुर्गा के रूप में पूजा होगी। कोई तुम्हें दुर्गा कहेगा, कोई काली और कोई खपपरवाली कहेगा अनेक नाम तुम्हारे पड़ेंगे और कलिकाल में जो कोई भी तुम्हारी पूजा करेगा उसे मनवांछित फल भी मिलेगा। योगमाया ने सातवें बच्चे यानी की बलराम का आकर्षण किया और रोहिणी जी के गर्भ में डाल दिया। कंज को पता चला कि मेरा काल आने वाला है तो कारागार की और चतुरंगिणी सेना खड़ी कर दी। हाथी, घोड़े, पैदल रथ, देवकी और वासुदेव के पैरों में बेड़ियाँ डाल दी। यहाँ देवकी के गर्भ में भगवान आकर साक्षात विराजे। देवताओं ने भगवान को सत्य कहा और बड़ी ही सुंदर इस दुनिया की अब बड़ा सुंदर समय आया। कृष्णपक्ष बुधवार है और चंद्रमा रोहिणी नक्षत्र के तीसरे चरण में प्रवेश कर रहा है। आकाश में तारों का प्रकाश है, एकदम से बादल गरजने लगे और बिजली चमकने लगी। सरोवर के कमल। के फूल खिल रहे हैं। अग्नि कुंडों में अग्नि प्रज्वलित हो गयी। मंद मंद बारिश होने लगी। अर्ध रात्रि का समय है। देवकी और वासुदेव के हाथ पैरों की बेड़ियाँ खुल गई और भगवान कृष्ण ने चतुर्भुज रूप में अवतार लिया। देवकी और वासुदेव ने भगवान की स्तुति की है। देव जी ने कहा कि प्रभु आपका रूप। दर्शनीय नहीं है आप और बालकों की तरह छोटे से बंजाइ ये भगवान छोटे से बालकृष्ण बनके माँ की गोद में विराजमान हो गए। वहाँ पर सुंदर टोकरी है। उसमें मखमल के गद्दे लगे हुए हैं। भगवान की प्रेरणा हुई की आप मुझे गोकुल में छोड़ आइये और वहाँ से कन्या को लेकर आजाइये वासुदेव जल्दी ये है कारागार के द्वारा अपने आप खुल गए और सभी सैनिक बेहोश हो गए। रास्ते में यमुनाजी आई वसुदेवजी यमुनापार करने के लिए आगे बढ़े, लेकिन ये क्या? यमुनाजी भगवान श्रीकृष्ण की पटरानी है, इसलिए वे उनका पैर छूना चाहती थी। लेकिन। वासुदेव जी उन्हें टोकरी में लिए हुए है। इसलिए यमुना जी ने अपना जलस्तर बढ़ाना शुरू कर दिया। भगवान बोले अरे यमुना ये क्या कर रही है? देख अगर मेरे बाबा को कुछ भी हुआ तो अच्छा ना होगा। यमुना जी बोली की आज तो आपके बाल रूप के दर्शन हुए हैं तो क्या मैं आपके चरण स्पर्श ना करूँ? तब भगवान ने अपने छोटे छोटे कमल जैसे पांव टोकरी से बाहर निकाले और यमुना जी ने उन्हें छुआ और आनंद प्राप्त किया। फिर यमुना का जलस्तर कम भी हो गया, लेकिन बारिश बहुत तेज थी। अभी शेष नाथ भगवान टोकरी के ऊपर छत्र छाया की तरह आ गए। आज भगवान के दर्शन करने को सब लालायित हैं। वासुदेव जी ने यमुना नदी पार की और गोकुल आगये है। कृष्ण जनम गोकुल कथा। यशोदा और नंदबाबा। चलिए अब थोड़ा दर्शन नंदबाबा और यशोदा मैया के नंदगांव का करते है। बात उस समय की है जब माघ का महीना और मकर संक्रांति का दिन था। नंदबाबा के छोटे भाई के उपनंद। इनके घर ब्राह्मण भोजन करने आए थे। उपनंद ने नंदबाबा से कहा कि आप सभी ब्राह्मणों को तिलक करें और दक्षिणा दें। तिलक करने के बाद सभी ब्राह्मणों ने एक साथ आशीर्वाद दिया। बृजराज आयुष्मान भव बृजराज धन वान भाव बृजराज पुत्रवान भाव नंदबाबा बोले ब्राह्मणों अब हँसी क्यों करते हैं? मैं 60 साल का हो गया हूँ। आप कहते हैं पुत्रवान? ब्राह्मण बोले की हमारे मुखसे आशीर्वाद निकल गया है, आपके यहाँ बेटा ही होगा। आशीर्वाद देकर सभी ब्राह्मण वहाँ से चले गए। माघ मास। एकम तिथि नन्द और यशोदा के सपने में कृष्ण का दर्शन हुआ और उस दिन यशोदा ने नंदबाबा के द्वारा गर्भधारण किया। सावन का महीना रक्षाबंधन का दिन आया। सभी ब्राह्मण नन्द बाबा के पास आये। नंदबाबा ने सबके हाथों में मौली बांधी और सबको दक्षिणा दी फिर वही आशीर्वाद दिया। बृजराज धनवान, आयुष्मान भव आप उतरवान बावा नन्द बाबा को हँसी आ गई और बोले आपका आशीर्वाद फल ने तो लगा है, लेकिन पुत्रवान की जगह पुत्री वान हो गया, तब क्या करेंगे? ब्राह्मणों ने कहा कि हम ऐसे वैसे ब्राह्मण नहीं है। कर्मनिष्ठ और धर्मनिष्ठ ब्राह्मण यदि आपके यहाँ लड़की भी हो गई। तो कोई बात नहीं, हमें पता है लड़का ही होगा। आप रक्षा मौली बांध दें। जब जाने लगे तो ब्राह्मण तो नन्द बाबा बोले की ये तो बता दीजिये ये भी ला ले के जन्म में कितना समय सभी ब्राह्मण एक साथ बोले। आज से ठीक आठवें दिन रोहिणी नक्षत्र की तीसरे चरण में आप के यहाँ बालक का जन्म होगा। ब्राह्मण आशीर्वाद देकर चले गए। नंदबाबा ने 8 दिन पहले ही तैयारियां शुरू कर दी। सारे गोकुल को दुल्हन की तरह सजा दिया। वो समय भी आ गया। रात्रि के 8:00 बज गए। घर के नौकर चाकर सब नन्द बाबा के पास आए और बोले की बाबा नाम तो आज का ही लिया है, हमें नींद आ रही है, 8 दिन से सेवा में लगे हैं, आप कहो तो सो जाए। नन्द बाबा ने बोला, हाँ भैया तुमने काम किया है तो आप आज सो जाओ। घर के नौकर जाकर सब सोने चले गए। 2 घंटे का समय बीता। नन्द बाबा की दो बहनें थीं नंदा और सुनंदा। नंदबाबा ने सुनंदा से कहा कि रात के 10:00 बजे है, मुझे भी नींद आ रही है। तू कहे तो थोड़ी देर के लिए मैं भी सो जाऊं। सुनंदा बोली, हाँ भैया तुम भी सो जाओ। मैं भाभी के पास हूँ जब लाला का जन्म होगा आपको बता दूंगी। नंदबाबा भी सो गए। रात के 11:00 बजे सुनंदा को भी नींद आ गई। यशोदा के पास जाकर बोली भाभी नाम तो आज ही लिया गया है, आज ही जन्म होगा, अगर आप कहो तो थोड़ी देर के लिए सो जाओ, बहुत थकी हूँ। यशोदा जी ने कहा हाँ आप सो जाईये तो लाला की बुआ सुनंदा भी 11:00 बजे सो गई। अब प्रश्न उठता है की सब लोग सो क्यों गए? भगवान के जन्म का समय था क्योंकि पहले आ रही है योग माया माया का काम है ना? लेकिन जब भगवान आते हैं तो माया वहाँ से चली जाती है और सबको जगह देते हैं। जब 12:00 बजे का समय हुआ तो लाला की मैया भी सो गई। उसी समय वसुदेवजी आए और लड़की को लेकर चले गए और लाला कृष्ण को यशोदा के बगल में लेटा दिया। भगवान माँ के पलंग पर सोए हुए हैं लेकिन जहाँ से आवाज आती है वही से खर्राटों की आवाज आ रही है। माँ सो रही है, पिता सो रहे हैं, बुआ सो रही है, घर के नौकर जाकर सभी सो रहे हैं। कितने भोले हैं बृजवासी, इनको ये भी पता नहीं है कि मैं पैदा हो गया हूँ। उठकर नाचें, गाएँ ये हमें मैया से कह दूँ कि मैया में पैदा हो गया हूँ, जाग जा। भगवान बोले नहीं, यहाँ बोला तुम्हें डर जाएगी, अब क्या करूँ? भगवान ने सोचा की थोड़ा सा रूम जिससे माँ जाग जाएगी लेकिन भगवान को रोना ही नहीं आता है। फिर भी बालकृष्ण ने थोड़ी सी चतुराई की और रोने का प्रयास किया, लेकिन संसार के बालक की तरह नहीं रोए। भगवान जब रोने लगे तो ओम की ध्वनि निकली कृष्णम् ए जगतगुरु अब सबसे पहले लाला की बुआ जाग गईं और ये बहन सुनंदा बधाई हो बधाई लाला का जन्म हो गया। दौड़कर नन्द बाबा के पास गई। और बोली लाला का जन्म हो गया। देखते ही देखते पूरा गांव जाग गया। सभी को बधाई बढ़ने लगी। सब भगवान कृष्ण के जन्म को उत्साहपूर्वक मनाने लगे। हर तरफ से आवाज आने लगी। नन्द के आनंद भयो, जय कन्हैयालाल की, हाथी घोड़ा पालकी, जय कन्हैया लाल की। तो बच्चो ये थी भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की कथा। ओके बाय।",श्रीकृष्ण ने कई बार लीलाएं की हैं। उन्होंने अपनी बचकानी लीलाओं से सबका मन मोह लिया है। भगवान श्री कृष्ण के जन्म की कथा बहुत ही सुंदर है। श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव को जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है। इस वीडियो में सुनिए भगवान श्री कृष्ण के जन्म की पूरी कहानी। जय श्री कृष्ण "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपके लिए लेकर आई हूँ, उसका टाइटल है दादी के नुस्खे। एक जंगल में एक बूढ़ी अम्मा अपने पोते के साथ रहती थी। उसके पोते का नाम राजा था, वो बहुत नटखट स्वभाव का था। अम्मा बहुत समझदार थी। बूढ़ी अम्मा को ढेर सारे नुस्खे भी पता थे। जिससे वो जंगल से लगे गांव के लोगों और राहगीरों का इलाज करती थी। अम्मा बहुत अच्छा खाना बनाना भी जानती थी। गांव के लोग अम्मा का बहुत सम्मान करते थे। भोजन बनाने के बदले वे गांव वाले अम्मा को पैसे और अनाज भी देते थे, जिससे अम्मा अपना गुज़ारा करती थीं। अम्मा अपने पोते राजा को भी यह सब सीखाना चाहती थी, पर वो अपनी ही धुन में मस्त रहता था। ज़रा भी सुनता नहीं था दादी अम्मा ने राजा को समझाते हुए कहा, बेटा को सीख लो, कल के दिन काम आएगा। अम्मा मुझे यह सब खाना वाना बनाना बिल्कुल भी पसंद नहीं है। और इन जड़ी बूटियों को देखकर तो मेरा सिर में दर्द हो जाता है। कैसे आप घास के ढेर में से दवा ढूंढ लेती है? राजा ने दादी से कहा, अरे बेटा करने से सब कुछ हो जाता है, तुम सीखने की कोशिश तो करो। दादी ने समझाते हुए कहा, दादी मुझे नहीं करना। ब्यास ये कहते हुए राजा वहाँ से चला गया। 1 दिन गांव में रहने वाले सेठ धनीराम की बिटिया की शादी थी। धनीराम ने अम्मा को भोजन बनाने के लिए आमंत्रित किया। अम्मानए बहुत शानदार भोजन मनाया। बारातियों ने सेठ धनीराम की खूब प्रशंसा की। धनीराम ने प्रसन्न होकर बूढ़ी अम्मा को ढेर सारा अनाज और एक सोने की अंगूठी उपहार में दी। गांव में चारों तरफ ये बात फैल गई। गांव में दो चोर भी रहते थे। जब दोनों को ये बात पता चली तो उन्होंने बूढ़ी अम्मा के घर चोरी करने की योजना बना ली। वो दोनों रात को बूढ़ी अम्मा के घर चोरी करने पहुँच गए। राजा सोने की कोशिश कर रहा था पर उसे नींद नहीं आ रही थी। वो दादी से कहानी सुनाने की इज्जत कर रहा था। अचानक अम्मा को दरवाजे पर किसी के होने का एहसास हुआ। अब वह ज़ोर ज़ोर से राजा से कहने लगी बेटों आज मैंने जादुई लड्डू बनाए हैं जिनको खाते ही आदमी के अंदर शेर जी ताकत आ जाती है लेकिन ये बात तुम किसी को बताना मत। चोरों के कानों तक वो बात अब तक पहुँच चुकी थी। उन्होंने सबसे पहले वही जादुई लड्डू खाने की बात सोंची। दरवाजा तोड़कर वे अंदर पहुँच गए। अम्मा और राजा उन दोनों को देखकर बहुत डर गए। चोरो ने कहा अरे वो बढ़िया सुना है, तुम्हारे पास जादुई लड्डू है कहाँ है वो लड्डू? हमें तो नहीं तो हम तुम दोनों को मार डालेंगे। नहीं नहीं, हम को मत मारना मैंने वो लड्डू अलमारी में रखे हैं। अम्मा ने कहा, चोरों ने अलमारी खोली और लड्डू खा लिए। लड्डू खाते ही दोनों बेहोश होकर गिर पड़े। अम्मा और राजा ने झटपट चोरों के हाथ पैर बांध दिए और गांव वालों को बुला लिया। गांववालों ने चोरों की खूब पिटाई की और उसे पुलिस वालों के पढ़ती कर दिया। अगले दिन राजा ने दादी से पूछा, दादी, उन लड्डुओं में ऐसा क्या था, जिससे वह बेहोश हो गए और और तुमने वो कब बना लिए थे? मुझे पता था बेटा हम जंगल में रहते हैं, कभी न कभी चोरो को इस बात का पता लगना ही था कि हमारे पास सोने की अंगूठी है, इसीलिए मैंने वो लड्डू पहले ही तैयार कर अलमारी में रख दिए थे। उनमे जंगली जड़ी बूटी मिल आई हुई थी, जिसे खाते ही आदमी बेहोश हो जाता है। दादी ने मुस्कुराते हुए पूरी बात राजा को बता दी। यह सुनकर राजा बोला दादी अब से मैं ये सारे नुस्खे आप से सीखूंगा। ये तो बहुत काम की चीज़ है। दादी मुस्कुराईं और राजा को गले से लगा लिया। दादी जानती थी कि यदि राजा के मन में आज इन नुस्खों को सीखने की बात उजागर हुई है तो उसके पीछे कारण वो चोर ही है। दादी मुस्कुरा रही थी और राजा के मन में अब प्रगाढ़ इच्छा पनप चुकी थी कि उसे दादी से ये सारे नुस्खे सीखकर फिर उन्हें भी आजमाना है। तो बच्चो इस कहानी से जो सीख हमें मिलती है वह यह है कि हमें भी अपने बड़ो की हर बात को मानना चाहिए और जो वो हमे सिखाते हैं, उनसे वो शिक्षा लेकर उसे आत्मसात करना चाहिए। ओके बाइ?","सभी को नमस्कार, यह एक दादी और उसके पोते की एक प्रेरणादायक हिंदी कहानी है। इस कहानी में आपको दादी मां की चतुराई के बारे में पता चलता है। पूरी कहानी सुनें और कहानी के नैतिक के बारे में जानें।" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आप सब के लिए लाई हूँ उसका टाइटल है जादू की दाढ़ ही एक छोटा सा कस्बा था। वहाँ पर टॉफी बेचने वाले एक चाचा की दुकान थी। वैसे तो उनका नाम शिवदयाल था, लेकिन सभी उनको टॉफी वाले चाचा के नाम से जानते थे। सभी उनके टॉफी के दीवाने थे। एक और खास बात थी उनकी वो ये थी कि उनकी लहलहाती चमचमाती मेहंदी से रंगी लाल रंग की दाढ़ी। गली के बच्चे कई बार तो दाढ़ी देखने के लिए ही टॉफी खरीद लिया करते थे। 1 दिन रज्जन, बीरू और गोलू टॉफी लेने गए। टॉफी लेने के बाद रज्जन बोला। चाचा अपनी दाढ़ी से एकबाल दो ना? अरे बेटा ये दाढ़ी कोई ऐसी वैसी नहीं, एक एक बाल जादुई है जादुई वो कैसे चाचा? बच्चों की उत्सुकता बढ़ने लगी। शिवदयाल ने अपनी दाढ़ी से तीन बाल निकालकर तीनों बच्चों को दिए और बोला। ये लोग अपनी किताब में रख लेना। परीक्षा में अच्छे नंबर आएँगे। बहुत सारे कस्बे में फैल गई और सभी बच्चे शिवदयाल के पास आकर दाड़ी का बाल मांगने लगे। अब वार्षिक परीक्षा का समय भी आ गया। सभी बच्चे पढ़ाई में लग गए। मेहनत के साथ साथ गुड लक भी चाहिए था ना और उसके लिए चाहिए थी शिवदयाल चाचा के दाढ़ी के बाल। गली के बच्चों ने आपस में सलाह की क्यों न टॉफी वाले चाचा की दाढ़ी ही काट ली जाए। एक साथ ही हमें सारे बाल मिल जाएंगे। इस तरह हम परीक्षा में अच्छे अंकों से पास हो जाएंगे। योजना बनाई गई वीरू को कैंची चलाने की जिम्मेदारी दी गई। चाचा थोड़ा ऊँचा सुनते थे कोई कुछ बोलता तो सिर ऊँचा करके ज़ोर से कहते। ऐसे में उनकी दाड़ी सामने वाले के बिलकुल पास आ जाती थी। बस इसी क्षण में बच्चों को अपना काम करना था। दूसरे दिन बच्चे शिवदयाल की दुकान पर पहुंचे। चाचा ₹1 की टॉफी दे दो चाचा ने तुरंत अपनी आदत के हिसाब से ऐसी आवाज निकाली और ऐसा करते समय उनकी दाढ़ी ऊपर उठ गई। बीरू ने झट से हाथ आगे बढ़ाया, कच्चे से कैंची चलाई, चर्चा की दाढ़ी अब भी रुके हाथ में आ चुकी थी। चाचा कुछ समझ पाते उससे पहले ही तीनों बच्चे नौ दो गया। राहुल ये। जब चाचा को समझ आया की हुआ क्या है तो उन्होंने शोर मचाना शुरू कर दिया की अरे पकड़ो पकड़ो कोई तो पकड़ो इन बदमाशों को अरे अरे अरे अरे मेरी दाढ़ी काट के ले गए। यूं तो किसी की दाढ़ी काटना अपराध है, सो शिवदयाल ने पुलिस चौकी में शिकायत दर्ज करा दी। अब बच्चे घबरा गए और उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ। डर के मारे मंदिर में जाकर छिप गए। मंदिर के स्वामी जी को पूरी बात सच सच बता दी। स्वामी जी ने तीनों को खूब पीटा और समझाया भी कि उन्होंने कितनी बड़ी गलती की है। परन्तु वह यह भी जानते थे कि यदि पुलिस उन बच्चों को बाल सुधार गृह में ले गई तो तीनों का भविष्य बिगड़ जायेगा। इसलिए उन्हें किसी तरकीब से बच्चों को बचाना भी था। पुलिस बच्चों को ढूँढते ढूँढते मंदिर तक पहुँच गई। जैसे ही पुलिस मंदिर में पहुंची बच्चे सामने आ गए। बीरू आगे आकर बोला की पुलिस अंकल टॉफी वाले चाचा कहते हैं कि उनकी दाढ़ी के बाल तो जादुई है, किताब में रखने से अच्छे नंबर आएँगे। वे एक बाल ₹1 में देते है। इसीलिए हमने सारे बाल काट लिए। शिवदयाल उत्तर दे पाता, उससे पहले ही तीनों बच्चे उसकी ओर बढ़े और बोले की हमें माफ़ कर दो चाचा हमसे गलती हो गयी। पुलिस वाले को खूब गुस्सा आया, उसने शिवदयाल को पकड़ा और कहा की क्यों टॉफी के साथ साथ दाढ़ी भी बेचने लगे हो? शिवदयाल को अपनी गलती का एहसास हो गया। इधर स्वामी जी बोले की शिवदयाल माफ़ कर दो, पुलिस से अपनी शिकायत वापस ले लो, ये जादू की बात तुमने ही करके बच्चों को उकसाया था ना? इस तरह बात तो रफा दफा हो गई पर सभी को सबक भी मिल गया की टॉफी वाले चाचा को भी और बच्चों को भी की। कभी झूठ नहीं बोलना चाहिए तो बच्चो इस छोटी सी कहानी से हमें यही सीख मिलती है कि हमें कभी भी गलत अफवाहें नहीं सुननी चाहिए और ना ही किसी के बहकावे में आना चाहिए। हमारे परीक्षा में अंक हमारी मेहनत और हमारी पढ़ाई से ही आते हैं। ओके बाइ?","सभी को नमस्कार, यह एक विक्रेता और बच्चों की नैतिक कहानी है। विक्रेता बच्चों को कैंडी बेचता है। उसकी बड़ी लाल दाढ़ी है। बच्चे उसकी लंबी दाढ़ी के दीवाने हैं। बच्चे उसकी दाढ़ी के कुछ बाल भीख माँगते थे। एक बार विक्रेता ने उन्हें बताया कि उसकी दाढ़ी जादुई है। उसने अपनी दाढ़ी के बाल बेचने शुरू कर दिए। उन्होंने बच्चों से कहा कि इसे अपनी किताबों में रख लें और वे परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करेंगे। उस गांव में बच्चों ने एक योजना बनाई। क्या थी योजना और उसके बाद क्या हुआ पूरी कहानी सुनिए और कहानी के नैतिक के बारे में जानिए।" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपको सुनाने जा रही हूँ, उसका टाइटल है अपनी सहायता आप करें। उज्जैन में महाकालेश्वर का एक बड़ा प्रसिद्ध मंदिर है। इस मंदिर में बिल बनाकर चींटियों का समूह रहा करता था। सुबह शाम जैसे ही आरती का घंटा बचता सारी चींटियां अपने बिलों से निकल पड़ती। आरती के समय में दोनों हाथ जोड़कर आंखें बंद करके बड़े ही भक्तिभाव से भगवान का ध्यान करती। आरती के समाप्त होने पर भक्तगण और पुजारी के चले जाने पर सारी चींटियां प्रसाद पर टूट पड़ती। उसे वे जी भरकर खाती और जो शेष बचता उसे अपने बच्चों के लिए भविष्य के लिए उठाकर ले जाती। मंदिर के सात्विक वातावरण का प्रभाव रानी जीती पर पड़ा। वह भगवान का दिन रात भजन करने लगी। बात यहीं तक सीमित रहती तब भी ठीक था। रानी जी टी एक गुण मान्यता में फंस गई कि काम छोड़कर भगवान का भजन करने मात्र से ही सारे काम पूरे हो जाएंगे। भगवान प्रसन्न होकर भक्त गणों की मनोकामनाएं स्वयं पूरी कर देंगे। रानी चींटी का प्रभाव उसके दल पर भी पड़ा। परिणाम यह हुआ कि अधिकतर चीटियां कमजोर बन गई। काम से अधिक से अधिक बचने की आदत पड़ गयी। किसी को आते देखती तो झट से दोनों पैर पर खड़ी होकर आंखें बंद करके शिव शिव जपले लगती आने वाला अब भला क्या करता? उन्हें देखकर वह चुपचाप चला जाता। रानी जीती को तो अपने समूह को देखने भाले तक की फुर्सत न थी। सब भगवान करेंगे बस बात बात में वह यही कह दिया करती और काम से अपना बचाव कर लेती। परंतु मंत्री जीटी को यह सब अच्छा ना लगता था। उसने कई बार कहा भी रानी जी दिन भर खाली बैठे जब करने से भगवान प्रसन्न नहीं होता, भगवान प्रसन्न होते हैं सद् विचारों से, परोपकार से, उदारता से पूजा उपासना तो प्रतिदिन कुछ समय इसलिए करनी चाहिए जिससे हमारा मन पवित्र रहे और विचार सात्विक बने। शेष समय हम इस संसार को सुंदर बनाने में लगाए। यही भगवान की सबसे बड़ी सेवा है। ओह नास्तिक है आप जैसी बातें कहती है चुप हो जाईये ज्यादा कुछ कहेंगे तो भगवान दंड देंगे। रानी चींटी ने कहा मंत्री को चुप होना ही पड़ा एक बार दक्षिण देश से चींटियों की एक बड़ी सेना घूमते घूमते उज्जैन आई व उसी मंदिर में ही जा पहुंची। महाकालेश्वर का मंदिर उन सबको बड़ा ही पसंद आया। दल के नेता ने सभी से सलाह की और यह बात तय कर ली कि वे सब अब यही रहेंगी। इस बीच उनका परिचय रानी चींटी से भी हो चुका था। रानी की अकर्मण्यता और अंधविश्वास से वे अच्छी तरह परिचित हो चुकी थी। 1 दिन जब दक्षिण देश की सारी चींटियों की सभा जुटी उनको गुप्तचर ने बताया कि पूरे मंदिर में रहने के लिए सबसे अच्छा स्थान वह है जहाँ रानी चींटी रहती है। चलो हम उस के बिल पर धावा बोलकर खदेड़ दें। उसे एक चींटी बोली। सभी ने इस बात का समर्थन किया। उन्हें पता था कि अलसी और अंधविश्वासी को हराना बड़ा सरल होता है, क्योंकि वह भाग्य के भरोसे हाथ पर हाथ रखकर बैठा रहेगा और भगवान को दोष देता रहेगा। दूसरे ही दिन उन्होंने रानी के बिल पर हमला कर दिया। इस अचानक के हमले से रानी हड़बड़ा उठी। कुछ चींटियों को युद्ध के लिए भेज दिया। वह स्वयं काफी सारी सेना लेकर पूजा करने बैठ गई और सभी शिव शिव का जब करने लगी। रानी को पूरा विश्वास था कि शीघ्र प्रसन्न होने वाले भगवान शंकर युद्ध में स्वयं आकर हमारी रक्षा करेंगे। तभी उनकी गुप्तचर चीटियां दौड़ी दौड़ी आईं। उन्होंने बताया कि युद्ध में भेजी गई सारी की सारी चींटियां मर चुकी है। अब इस समय दक्षिण देश की पूरी सेना बिल में घुसी चली आ रही है। रानी की निगाह सहसा सामने चली आ रही है। अपनी मंत्री जीटी पर पड़ी। गुस्से में वह उसी पर बिफर पड़ीं। यह सारी मुसीबत तुम्हारी बुलाई हुई है। तुम उस दिन पूजा की निंदा ना कर रही होती तो भगवान आज नाराज नहीं होते और ना उन्होंने हमें दंड दिया होता। यह सुनकर मंत्रीजी ने अपना सिर ठोंक लिया। वो युद्ध भूमि से अपनी चींटियों की लगातार हार और मृत्यु देखकर आ रही थी और रानी अभी भी पुरुषार्थ किए पड़ी थी। पर स्थिति की नजाकत को देखते हुए उसने अपने आपको सम्भाला। और कुछ विचार करके बोली रानी जी, मैं तो स्वयं युद्ध भूमि में बैठी शिव शिव का जाप कर रही थी। जिससे शत्रुसेना हार जाए। पर जब मैंने देखा कि हमारी सारी चीटियां मारी गई है तो मैं दौड़ी दौड़ी भगवान शिव के पास पहुंची। रो रोकर मैंने उनसे सारी बातें कही तू भगवान स्वयं आ रहे है ना हमारी रक्षा करने के लिए रानी बोली उसे ऐसा लग रहा था की अब उसकी साधना सार्थक उन्हें ही वाली है। जी नहीं, भगवान ने मुझसे यह कहा कि आप अपनी पूरी की पूरी सेना लेकर तुरंत युद्ध में दौड़ पड़े। वहाँ पूरी शक्ति से युद्ध करें। अभी मैं उनकी सहायता करूँगा और विजय दिलाऊंगा। मेरी भक्त हैं तो मेरा अनुकरण करें। युद्ध क्षेत्र में मैं भी भयंकर रूप धारण कर लेता हूँ। यदि वे ऐसा नहीं करेंगे तो होकर भगवान शिव दंड देंगे। मंत्री ने उसे ऐसी सारी बातें बताई। यह सुनकर रानी डरकर अपनी पूरी सेना के साथ युद्धभूमि की ओर भाग गई। वहाँ सभी ने पूरी वीरता से युद्ध किया। परिणाम यह हुआ कि दक्षिण देश की चीटियां अपने प्राणों के भय से सिर पर पैर रखकर वहाँ से भाग छूटी। विजय के गर्व से झूमती रानी अपनी सेना सहित वापस आ गई। इस महान विजय की खुशी में शाम को एक विशाल प्रीतिभोज का आयोजन किया गया। सभी चिट्ठियां गा रही थी, नाच रही थी और प्रसन्न होकर मधुर मिष्ठान खा रही थी। तभी मंत्री जीटी ने सभी को सच्ची बात कह दी। किस प्रकार उसने भगवान का नाम लेकर झूठ बोल दिया था? सभी चीटियां एक दूसरे का मुँह देखने लगी। मंत्री चींटी कहने लगी। हाँ बहनों भगवान केवल उन्हीं की सहायता करते हैं जो स्वयं अपनी सहायता अपने आप करता है। हाथ पर हाथ रखकर बैठने वाले का भाग्य सो जाता है। कर्मशील का भाग्य सदैव चमक उठता है। रानी चींटी की भी बात समझ में आ रही थी। उसने तालियां बजाकर इस बात का समर्थन किया और की विजय को सौरव श्रेय इनको ही है। ऐसा कहकर रानी ने अपने मंत्री की बहुत प्रशंसा की और उसे अनेक को उपहार भी दिए। अब किसी का साहस नहीं होता है की रानी चींटी के बिल की ओर आग भी उठाकर देख सकें। रानी चींटी इतनी पराक्रमी भी होगी या तो उसने कभी सोचा तक ना था तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें हमेशा अपना कार्य अपने आप करना चाहिये, भक्तिभाव में इतना मग्न नहीं हो जाना चाहिए कि हम अपना कर्म करना ही भूल जाए। ओके बाइ।",यह एक चींटी की कहानी है जो ईश्वर में अधिक विश्वास करती है। यह अपने कर्तव्यों को भूल गया और कुछ समय बाद आलसी हो गया। कहानी सुनें और चींटी और उसके समूह के संघर्ष के बारे में जानें। "हैलो बच्चों। आज जो टॉपिक मैं आपके साथ डिस्कस करूँगी उसका टाइटल है सेहत का राज़। हम सभी जानते हैं कि अच्छा स्वास्थ्य हम सबके लिए बहुत जरूरी है। अभी कोरोना महामारी पूरी तरह सेटल ही नहीं है, ऐसे में हेल्थ से जुड़े रिस्क को नज़रअन्दाज़ नहीं करना चाहिए। आपको इन छे बातों का ध्यान रखना है जो हेल्थ से जुड़ी हुई है। हेल्थवर्ड। कुल। छे ऐल्फाबेट से मिलकर बना है। आज हम इन छे ऐल्फाबेट्स को अलग अलग समझने का प्रयास करेंगे। तो आइये सबसे पहले हेल्थ के सबसे पहले ऐल्फाबेट एच को देखते हैं। एच यानी की हाइड्रेट अर्थात खूब पानी पिएं। बड़ों के मुकाबले बच्चों में पानी की कमी होने की ज्यादा संभावना रहती है। क्योंकि आपको ज्यादा पसीना आता है, लेकिन बच्चे पानी पीना नहीं चाहते। इसीलिए किसी भी रूप में गर्मी के दिनों में तरल पदार्थ की है। हालांकि पानी की मात्रा बच्चों की उम्र और उनके बॉडी साइज पर भी निर्भर करती है। बड़ो को जितना पानी पीना होता है, ये जरूरी नहीं है कि बच्चों को भी उतना ही पानी की जरूरत है। लेकिन फिर भी यदि 8 साल का बच्चा है या उस से छोटा है तो उसे कम से कम चार से छे ग्लास पानी तो पीना ही चाहिए। और अगर बच्चे की उम्र 8 साल से ज्यादा है तो उसे छे से आठ ग्लास पानी बहुत जरुरी है पीना। पानी हमारे शरीर में बहुत सी कमियों को पूरा करता है। इसलिए खासकर गर्मी के दिनों में पानी की कमी को नज़रअन्दाज़ नहीं करना चाहिए। अब आते हैं हेल्थ के दूसरे ऐल्फाबेट यानी की ईपर। ये स्टैंडस फॉर एक्सर्साइज़ यानी की शारीरिक व्यायाम। शारीरिक व्यायाम से मेरा मतलब है कि आप ऐक्टिव रहे। यानी घर हो या स्कूल किसी ना किसी के खेल का हिस्सा जरूर बनें। डांस क्लास जॉइन करें। कुछ देर रस्सी कूदें या साइकिल भी चला सकते हैं। ऐक्टिव रहने से आपके शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता तो बढ़ेगी, साथ ही साथ मसल्स और बोन्स भी मजबूत होंगी। आजकल सभी बच्चों को घर में ही रहना है तो ऐसा जरूरी नहीं की। यदि हम बाहर नहीं निकल पा रहे है तो हम घर में अपना कोई भी शारीरिक व्यायाम नहीं कर सकते। घर के अंदर भी रहकर हम बहुत सारी ऐसी एक्सरसाइज कर सकते हैं जो इंटरटेनिंग भी हो और हमारे शरीर को अच्छा बनाने में हेल्प भी करें। घर पर ही रस्सी कूदना थोड़ी देर गार्डनिंग करना ये भी शारीरिक व्यायाम में शामिल होती है चीजें। तो बच्चो इनका सहारा लेकर हम घर पर भी ऐक्टिव रह सकते हैं। हेल्थ का अगला ऐल्फाबेट है। ए। ए स्टैंड फॉर ऐपिटाइट ऐपिटाइट से मतलब है हमारी भूख से। सवस्थ रहने के लिए हर समय कुछ कुछ ना कुछ खाने की आदत खत्म करनी होगी। चाहे वो कैंडी खाना हो, चिप्स खाना हो, टॉफी खाना हो या फिर जंक फूड ही क्यों ना हो। ये सारी चीजे कभी कभी तो खाने में ठीक लगती है लेकिन यदि आप इन्हें अपनी आदत बना लेते हैं तो ये हमारे शरीर को नुकसान पहुंचाने में देर नहीं करती। समय पर खाना खाएं और हाथों को अच्छी तरह से धोकर ही खाएं। खाने में हेल्थी फूड, फल, सब्जियां, दही, होल ग्रेन की मात्रा को बढ़ा दे और अधिक से अधिक लेने की कोशिश करे। जब हम इन बातों का ध्यान रखते हैं तो हम देखेंगे कि ग्रेजुअली हमारी भूख भी बड़ी और हमारा स्वास्थ्य भी सुधर गया। हेल्थ का अगला वर्ड है। स्टैंडस फॉर लाफ यानी की हँसी और मुस्कुराये। क्या आप जानते हैं कि एक मुस्कुराहट आपकी सैकड़ों परेशानियों को कम कर सकती है? एक पते की बात बताऊँ यदि आप अपने कॉन्फिडेन्स लेवल को बढ़ाना चाहते हैं और अपने सीखने और समझने की शक्ति को मजबूत करना चाहते हैं तो खुश रहिये। मुस्कुराइये और सीए इससे तनाव और चिंता तो दूर भागेगी, साथ ही साथ आपके आसपास का माहौल भी खुशनुमा बना रहेगा। आप एक अपनी हँसी से कितने लोगों को मुस्कुराहट दे सकते है? इसका अंदाज़ आप को नहीं इसलिए बच्चों हमेशा हंसते और मुस्कुराते रहिये। हेल्थ का अगला ऐल्फाबेट है टी। टी स्टैंडस फॉर टाइम टेबल। बच्चों टाइम टेबल बहुत जरूरी है। खासकर लॉकडाउन के चलते इतने समय से स्कूल बंद होने के कारण आप सभी लोगों का इस स्क्रीन टाइम बढ़ गया होगा जो आपकी सेहत पर प्रतिकूल प्रभाव भी डाल रहा है। टाइमटेबल की इम्पोर्टेन्स तो आप सभी को पता होगी क्योंकि सब बच्चे जब स्कूल जाते हैं तो उनके हाथ में सबसे पहले बैग में से क्या चीज़ निकलती है? टाइम टेबल तो बच्चो यही एक वो चीज़ होती है जो हमारे जीवन को आगे बढ़ाने और सक्सेस का रास्ता दिखाने में सबसे पहले काम आती है। यदि आप चाहते हैं क्या आपकी ओवरऑल हेल्थ अच्छी रहे तो आप एक टाइम टेबल बना लीजिये। उस टाइम टेबल में अपना पढ़ने का, खेलने का और खाने का टाइम तय कर लीजिए और उसे फॉलो करके देखिये। कुछ दिन में अब देखेंगे कि आपके पास इन सब कामों को करने के बाद भी काफी एक्स्ट्रा टाइम बच जाता है। इस एक्स्ट्रा टाइम में आप कोई भी अपनी हॉबी को पूरा कर सकते हैं और कुछ ऐक्टिविटी भी जौन कर सकते हैं। इस तरह से आपका समय बर्बाद होने से बचेगा और खासतौर से आपकी आंखें भी सवस्थ रहेंगी। अब आते हैं हेल्थ के लैस्ट, ऐल्फाबेट एच पर। एच स्टैंड फॉर हैव गुड स्लीप। यानी की अच्छी नींद भी जरूरी है। जिसतरह से आपके लिए खाना जरूरी है उसी तरह से आप के लिए नींद भी जरूरी है। बच्चों आप हैरान होंगे जान कर की नींद में वो शक्ति है जो आपके दिमाग को सतर्क और शांत रखती है। हर रात और हर एक झपकी में नींद दिमाग की बैटरी को री चार्ज करती है। अच्छी तरह से सोने से दिमाग की शक्ति बढ़ती है। और आप शारीरिक रूप से तनावमुक्त और मानसिक रूप से सतर्क भी रहते हैं। बच्चों अच्छी नींद लाने के लिए मैं आपको एक ऐसा नुस्खा बताती हूँ जो आपको। अप्लाइ करते ही मज़ा आ जायेगा और आपको हर रात और हर दिन में जब आप झपकी लेना चाहते हैं उस समय आपको नींद लेने के लिए बहुत हेल्प करेगा। ये नुस्खा है कोई भी एक किताब जब भी आप लेटे जबकि लेने के लिए या फिर सोने के लिए हाथ में लेकर लेटे आप अपने बेड के सराहने पर एक अपनी पसंदीदा किताब को रख कर लेती। रात में जब आपको सोना हो तो आप किताब के कुछ पन्ने पढ़ लीजिए। आप महसूस करेंगे कि उस किताब को पढ़ने के बाद आपको इतनी मीठी नींद आएगी जो बिल्कुल आपकी फिर सुबह ही खुलेगी। तो बच्चो एक बार आप मेरा ये आइडिया अपना घर देखिये निश्चित रूप से आपको बढ़िया नहीं ना आने लगे। तो ये थी हेल्थ की पूरी डेफिनेशन। इन सारे स्टेप्स को फॉलो करने के बाद। आप देखेंगे कि आपकी ओवरऑल हेल्थ में बहुत सुधार हुआ है। बच्चों पिछले साल की तरह इस साल भी हम सभी की समस्या से जूझ रहे हैं। इसका मतलब है कि बच्चे अब भी बाहर कम ही जा पा रहे है। फिर भी उन्हें गर्मी से सावधानी बरतनी बहुत जरूरी है। जब भी हम घर के बाहर या फिर अपनी छतों पर निकले। तो पूरे ढके हुए कपड़े पहने, क्योंकि धूप तेज हो गई है। और 19 वायरस से बचने के लिए मास्क का उपयोग हमेशा करें। इस समय कई हानिकारक रेडिएशन भी तापमान की वजह से बढ़ गए हैं। इस प्रचंड गर्मी से तापमान तो असहनी हो ही रहा है जो आपकी आँखों को भी प्रभावित कर सकते हैं। इससे आँखों में लालिमा, खुजली, सूखी आंखें, एलर्जी, यहाँ तक की संक्रामक इन्फेक्शन होने की भी संभावना कई गुना बढ़ गई है। तो अपनी आँखों को रगड़ने से बचाना है। यदि आँखों में कोई भी आपको इचिंग लगती है तो हाथों से नहीं रगड़ना है। कभी भी हमेशा ठंडे पानी से आँखों को धोना है और गर्मी और तेज धूप में तो बिल्कुल भी नहीं निकलना है। इसके अलावा धूप में बाहर जाते समय शरीर के सभी हिस्सों में सनस्क्रीन लगाएं। बाहर निकलने से 10-15 मिनट पहले सनस्क्रीन अप्लाई करे। अगर खेलने के लिए बच्चे बाहर जाना भी चाहते हैं तो सुबह जल्दी उठकर खेले ना की धूप में खेले। गर्मी के मौसम में कीटों का कहर भी होता है। इसलिए। अपने ऊपर स्प्रे और क्रीम का भी उपयोग करें। हर मौसम में बदलाव होने से स्वास्थ्य समस्याएं भी बढ़ती है। इस मौसम में बच्चों को पेट का इन्फेक्शन बहुत आम बात है। इस मौसम में अपनी इम्युनिटी को स्ट्रांग बनाए रखना बहुत जरूरी है। इसके लिए हरी सब्जियां और फल तथा तरल पदार्थ अवश्य खाये। एक्सरसाइज करें कोई ना कोई स्पोर्ट्स ऐक्टिविटी भी जरूर करें। इससे आप सब की इम्युनिटी भी स्ट्रॉन्ग होगी और आप बीमार भी कम पड़ेंगे। तो बच्चो मैंने जो जो बातें आपको हेल्थ से रिलेटेड बताई। वो बातें केवल आपके लिए ही नहीं बल्कि आप इन सारी बातों को अपने घर के बड़े बुजुर्गों से भी साझा करिए क्योंकि ये सभी के लिए जरूरी है। ओके बाइ?","सभी को नमस्कार, यह बच्चों के लिए एक बहुत ही खास पॉडकास्ट है। इस पॉडकास्ट में मैं उन्हें अच्छे स्वास्थ्य के महत्व के साथ-साथ अच्छे स्वास्थ्य के लाभों के बारे में बता रहा हूं। आज हमें लग रहा है कि हमारे छोटे बच्चे अपनी सेहत को नज़रअंदाज कर रहे हैं। वे मोबाइल फोन और कंप्यूटर देखने में अधिक समय व्यतीत करते हैं। इस तरह की आदतें उनकी सेहत पर बुरा असर डालती हैं। मुझे उम्मीद है कि मेरे सुझावों को सुनने और उनका पालन करने से बच्चे अपने स्वास्थ्य की अच्छी देखभाल करने के लिए प्रेरित होंगे।" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी में आपको सुनाने जा रही हूँ उसका टाइटल है चंदा और उसकी सहेली। वाराणसी में गंगा के तट पर एक पीपल का बहुत बड़ा पेड़ था। उस पेड़ पर एक चिड़ियाँ रहती थी। नाम था उसका चंदा। पीपल की जड़ में शालू नाम की एक चींटी रहती थी। धीरे धीरे चंदा और शालू में मित्रता हो गई। दोनों साथ साथ घूमती, साथ साथ बातें करती और एक दूसरे के दुख मुसीबत में सहायता भी करती। चिड़िया थी मस्त काम करती कम, अधिकतर गाती और फुदकती रहती जीटी सारे दिन परिश्रम करती 1 दिन चंदा चिड़िया शालू से बोली अरे ये क्यों तू सारे दिन काम करते करते मरी जाती है? आखिर क्या फायदा है इससे तुझे आराम से भी रहकर चंदा की बातें सुनकर शालू ने अपना सिर ऊपर उठाया और बोली, दीदी बुरा न मानना। परिश्रम ही जीवन की उन्नति का आधार है। यही महान मूलमंत्र है। आलसी और कामचोर कभी सफलता नहीं पाता। हाँ, ये बात तो है। चंदा ने भी उसकी बात के समर्थन में अपना सिर हिलाया। शालू की बात से उसके काम से चंदा बड़ी ही प्रभावित थी। उसे इतनी अच्छी सहेली पा लेने का काफी गर्व था। जाड़े आने वाले थे, अतएव शालू तेजी से जाड़ों के लिए सामग्री इकट्ठा करने में जुट गई। अपने नन्हें से मुँह में दबाकर वह कभी अनाज का दाना लाती, कभी चीनी तो कभी और कुछ उसे सुस्ताने तक की फुर्सत न थी। चंदा सारे दिन देखती रहती कि उसकी सहेली बिना रुके निरंतर काम में लगी रहती है। चंदा की इच्छा हुई कि वह भी शालू की सहायता करें। चंदा तो खाना इकट्ठा नहीं करती थी। जब भूख लगती तभी खाना ढूंढती और खाकर फिर फुदकने लगती थी। चंदा बोली चालू बहन एक बात कहू जरूर कहो पल भर को शालू रुकी और बोली। मैं सोच रही थी की तुम अकेली अकेली खाना इकट्ठा करने जाती हो। छोटा सा तो तुम्हारा मुँह ही है थोड़ा थोड़ा करके लाती हो कल से मैं भी तुम्हारे साथ चलूँगी अपनी चोंच में दबाकर एक बार में अधिक चीजें ले आऊंगी। इस प्रकार तुम्हारा काम जल्दी खत्म हो जाएगा। शालू उन्हें ध्यान से उसकी बात सुनी, विचार किया और बोली ना बहन या उचित नहीं है। क्यों? क्या मैं मित्र होते हुए भी तुम्हारी ज़रा सी भी सहायता नहीं कर सकती? चंदा पूछने लगी बहन बुरा न मानना मित्रता की भी एक सीमा होती है। जो मित्रता, मर्यादाओं को स्वीकार नहीं करती, जिसमें कोई नियम और कोई अनुशासन नहीं होता, वह मित्रता बहुत ही जल्दी नष्ट हो जाती है। ऐसी मित्रता का अंत लड़ाई और मनमुटाव से होता है। शालू ने बताया, चंदा चुप बैठी रही। वह जानती थी कि उसकी यह बहुत बुद्धिमान सहेली चाहे कड़वी बात कहे पर उसकी बात बड़ी ही खड़ी होती है। शालू फिर कहने लगी, खाना इकट्ठा करने का यह काम एक आध दिन का तो है नहीं। या तो बहुत दिन तक चलेगा और हर साल चलेगा। आखिर तुम कब तक मेरी सहायता करोगी? हाँ, दुख मुसीबत में तो मैं जरूर तुमसे आशा करूँगी कि संकट में पड़ कर भी मेरी सहायता करो। सच्चा मित्र वही है जो सुखमय दुख में सभी परिस्थितियों में सदैव मित्रों की सहायता करें। शालू फिर पूछने लगी, तुमने मेरी बात का बुरा तो नहीं माना? बहन? न बहन, न भला मैं बुरा क्यों मानने लगी? मैंने तुमसे आज बहुत अच्छा सबक लिया है कि मित्रता में देह से मर्यादा से काम लो, कभी ऐसा काम ना करो जिससे मित्र के मन में कोई दुराव आये। यदि हम चाहते हैं कि अच्छा मित्र पाकर उसे खोना दे तो कभी ऐसे काम भी ना करें कि मित्र से मनमुटाव की बात उठे। सच्चा मित्र पा लेना जीवन की एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। मुझे तुम जैसी मित्र पर गर्व है। यह कहते कहते चंदा की आंखें भर आईं। चंदा और शालू आज भी पक्की सहेलियां है। सच्ची मित्र के रूप में सदैव उनका उदाहरण दिया जाता है। सच है सोच विचारकर व्यवहार करने वालों की मित्रता सदैव स्थायी रहती है तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें यदि सच्चा मित्र पाना है तो उसकी मर्यादाओं को समझना पड़ेगा। तभी हम जीवन भर कोई अच्छा और सच्चा मित्र पाने में सफलता प्राप्त कर सकते हैं। ओके बाइ।",यह दो नन्हे दोस्तों की नैतिक कहानी है। चिड़िया और चींटी दोस्त हैं। वे हमेशा एक दूसरे के साथ खेलते हैं। लेकिन चींटी पंछी को सच्ची दोस्ती का पाठ पढ़ाती है। सुनिए पूरी कहानी कि छोटी सी चींटी कितनी खूबसूरती से सच्ची दोस्ती का मतलब समझाती है। "हैलो बच्चों। आज मैं आपको गणेशजी के जन्म की कथा एक गीत के माध्यम से बताऊंगी। गणेश जी। शिवजी और पार्वतीजी के पुत्र हैं। गणेश जी का जन्म किस प्रकार होता है, किस प्रकार उनका? शीर्ष। एक हाथी का शीश हो जाता है। आइए जानते हैं इस गीत के माध्यम से। शिव अमरपति चढ़े अक्षत पुष्प बेल पत्री विशंबर बोला ए जी महाराज विषमबर बोला। कैलाशी काशी के वांशिक का केस, कैलाशी काशी के वासी का ध्यान धरे सब लोग, तिथि, ध्यान, दरें सब लोग अति ब्रह्मा मुनिजा की करत तू थी ब्रह्मा मुनि। कंठ बोल सरस्वती नाम शंकर का ए जी महाराज नाम शंकर का। वन्य की सैर शिवजी करने गए वन की सैर शिवजी करने गए बैठी रही वहाँ पर्वती बैठी रही वहाँ पर्वती अपने मैल का पुतला बनाकर अपने मैल का पुतला बनाकर बैठा। जो एक यति नाहन मैं जाऊं चौखट की और गणपति नान में जाऊ। बर्न की सैर शिवजी करिया ए वन की सैर शिवजी क्रियांए चौखट पे बैठे एक अन्य अतिथियों। कौन है तुझे? किसने बैठा यो कौन है तुझे किसने बैठा यु बोला पर्वती चक्र जब मारो जी महाराज जब? अमीर गायों, अमरपुर व थी। नाम शंकर का है जी महाराज नाम शंकर का। मंदिर के अंदर शिवजी पद आरे मंदिर के अंदर शिवजी पद आरे रुदन, एक रथ महा पार्वती करत महा पार्वती अपने को कैसे मारियो अपने सूत को कैसे मारू बिगड़ी? तुम, रीमा टि से जीला डॉ ए जी महाराज ऐसे जी ला। सुन्नत वचन गौरा के शिवाजी सुनत बच्चन गौरा के शिवजी बुल गए सारी उक्ति भूल गए सारी उगती ब्रह्मलोक को सारा ढूंढा ब्रह्मम लोक को सारा ढूंढा शिश्न ही पायो। शीश नहीं पायो एजी महाराज शीश नहीं पायो। सोवत हथिनी को सिर काटो, सोवत हथिनी को सिर काटो, जोड़ दियो, सब रत्ती जोड़ दियो सब रत्ती रत्ती। पड़ गायत्रि ठाम रोपड़ गायत्री चिट्ठा मारु उठ बैठो गणपति प्रथम पूज्य वायो ए जी महाराज प्रथमपूज्य वायो शिव अमरपति चढ़े अक्षत पुष्प बेल पत्री विशंबर भोला। महाराज विशंबर बोला। जय श्री गणेश जी की। गणेशजी के जन्म की कथा अत्यंत निराली है। शिवपुराण के अनुसार एक बार माता पार्वती ने अपने उबटन से एक पुतला बनाया। और उसमें प्राण डाल दिए। उन्होंने उस बालक को अपने भवन का द्वारपाल भी बना दिया और स्वयं? स्नान करने चली गई। उन्होंने बालक को आदेश दिया कि वो किसी को भी अंदर प्रवेश ना करने दें। संयोग से वहाँ पर भगवान शिव आ गए। उन्हें इस सारी घटना के विषय में कुछ भी पता नहीं था। उन्होंने जब भवन में प्रवेश करने का प्रयास किया तो उस बालक ने उन्हें रोक दिया। बार बार समझाने पर भी बालक ने शिवजी को भीतर नहीं जाने दिया। क्रोधित होकर शिवजी ने अपने त्रिशूल से उस बालक का सिर काट दिया। पार्वती जी को जब ये सारा वृत्तांत पता लगा तो वे अत्यंत दुखी हुई। वे रोते हुए शिवजी से अनुनय विनय करने लगी। कीवे। उनके पुत्र को जीवित कर दे। और शिवजी उसका जोड़ दें। परन्तु त्रिशूल का प्रहार अत्यंत तीक्ष्ण था। गणों द्वारा पूरी सृष्टि में ढूंढने पर भी उनका शीश नहीं मिला। इस पर शिवजी ने अपने गणों को आदेश दिया कि वे जाए और सर्वप्रथम जिंस भी प्राणी का शीश उन्हें मिले, वे ले आये। शिव जी के गणों को सबसे पहले एक हाथी मिलता है, वे उसी समय उस हाथी का शीर्ष शिवजी को लाकर दे देते हैं। शिवजी ने गणों द्वारा लाए गए। हाथी के शीश को मंत्रों द्वारा उस बालक के धड़ से जोड़ दिया। धड़ जोड़ते ही उस बालक में प्राण जाते हैं। इसके पश्चात शिव जी ने। उन्हें अनेक शक्तियां से विभूषित किया और गणों का देवता भी बनाया। गणेशजी के जन्म की ये कथा सर्वविख्यात है। इस प्रकार गणेश जी का जन्म होता है। उनका सिर हाथी का है और शरीर मनुष्य का। गणेश जी के पास हाथी का सिर है, मोटा पेट हैं और चूहा जैसा छोटा वाहन हैं। लेकिन इन सारी समस्याओं के बाद भी वे विघ्नविनाशक, संकट मोचन आदि उपाधियों से सुसज्जित है। कारण यह है कि उन्होंने अपनी कमियों को कभी अपना नकारात्मक पक्ष नहीं बनने दिया बल्कि अपनी ताकत बनाया। उनकी टेढ़ी मेढ़ी सूंड बताती है कि सफलता का पथ सीधा नहीं है। यहाँ खोज करने पर ही सफलता और सच प्राप्त होगा। हाथी की भांति चाल भले ही धीमी हो लेकिन अपना पथ अपना लक्ष्य न भूलें। उनकी छोटी आंखें। बड़ी पहनी है। यानी चीजों को वे सूक्ष्मता से देखते हैं और विपक्ष विलक्षणता से उसका विश्लेषण करते हैं। कान बड़े है यानी एक अच्छे श्रोता का गुण हम सब में अवश्य होना चाहिए। तो बच्चो ये थी गणेश जी की महिमा। ओके बाइ?","सभी को नमस्कार, यह भगवान गणेश की एक पौराणिक कहानी है। गणपति हिंदू पौराणिक कथाओं में सबसे महत्वपूर्ण देवताओं में से एक हैं और उन्हें जैन धर्म और बौद्ध धर्म में भी पूजा जाता है। गणपति हिंदू संप्रदाय के लिए, गणेश सबसे महत्वपूर्ण देवता हैं। गणेश अपने हाथी के सिर और मानव शरीर के साथ अत्यधिक पहचाने जाने योग्य हैं, जो क्रमशः आत्मा (आत्मान) और भौतिक (माया) का प्रतिनिधित्व करते हैं। वह लेखकों, यात्रियों, छात्रों, वाणिज्य और नई परियोजनाओं (जिसके लिए वह किसी के रास्ते से बाधाओं को दूर करता है) का भी संरक्षक है और मिठाई का शौकीन है, अपने फिगर के मामूली नुकसान के लिए। प्रारंभिक जीवन गणेश शिव और पार्वती के पुत्र हैं और वे युद्ध के देवता कार्तिकेय (या सुब्रह्मण्य) के भाई हैं। उसे उसकी माँ ने मिट्टी से बनाया था जिसे उसने एक लड़के के आकार में ढाला था। चूंकि शिव अपने ध्यान भटकने पर दूर थे, पार्वती ने स्नान करते समय अपने नए बेटे को गार्ड के रूप में स्थापित किया। अप्रत्याशित रूप से, शिव घर लौट आए और, लड़के को पाकर, और खुद को परवा होने का दावा करने में उसकी ढिठाई पर नाराज हो गए ..." "हैलो दोस्तों आज मैं आपके लिए बापू का प्रिय भजन वैष्णव जन तो तेने कहिए, जे लेकर आई हूँ। ये भजन गुजरात के आध्यात्मिक कवियों में नर्सिंग मेहता शिखर संत का है। सर्वप्रथम इस गुजराती भजन को सुनते है, तदुपरान्त उसकी व्याख्या सुनेंगे। तो आइए शुरू करते हैं। वैष्णव जन तो तेने कहीं ये जे पीर परायी। जानी रे। प्ले वैष्णव जन तो तेने कहीं ये जे। वीर परात आयी जाने रे। अरे? पर दुखे उप कार्य करें तो ये मन भी मानना आड़े। ए वैष्णव जन तो तेने कहीं ये जे। शकल लोक माँ सहू ने वंदे निंदा ना करे के नीरे। वाच कांच मन निशल राखे रे बाज का छु मन। निश्चल राखे रे धन धन जननी। ये नी रे। वैष्णव जन ने तो देने कहीं ये जे पीर परायी जाने रे। ही वैष्णव जन ने तो तेने कहीं ये जे समुद्रे ष्टि ने कृष्णा त्यागी पर इस्त्री जन हे मात रे। ए जीभ आतंकी असत्य ना बोले जीभ आतंकी असत्य ना भोले पर धन्ना बुझा लें हाथ रे। वैष्णव जन तो तेने कहीं ये जे पीर परायी। जाने रे। श्री वैष्णव जनतो तेने कहीं ये जे। मोह माया वया पे नहीं, जे ने दवेरा गजे ना मन मारे। के रामनाम शुम ताली लागि रे राम नाम शुम ताली लागि रे स्क ल ति र थ थे ना तन मारे वैष्णव जन तो तेरे ने कही ये जे पीर परायी। जानी रे। के वैष्णव जन तो तेने कहीं। ए जे। वण लोभी ने कपट रहित छे काम क्रोध नी वार यारे। ये बड़े न रसियों तेनु दर्शन करता न रसियों तेनु दर्शन करता कुल एक को तेरा तारया रे। वैष्णव जनतो तेने कहिए जे पीर परायी। जा डेरे। वैष्णव जन तो तेने कहीं। ए। जे। तो ये था बापू का प्रिय भजन। आइए सुनते हैं इस भजन का हिंदी में भावानुवाद। ये भजन। गुजराती संत श्री नरसिंहा मेहता जी का है। वे फक्कड़ प्रवृत्ति के थे परंतु पारिवारिक दायित्वों से भी बंधे हुए थे। जब वह सिर्फ पांच वर्ष के थे तब उनके माता पिता नहीं रहे। ऐसा कहा जाता है कि कई बार उनकी मदद के लिए भगवान स्वयं विभिन्न रूपों में उनके पास आये थे। 15 वीं शताब्दी के इस शीर्ष कवि का एक भजन महात्मा गाँधी को बहुत प्रिय था। गांधीजी का जीवन इस भजन से बहुत प्रभावित था। यह उनकी दैनिक प्रार्थना का अंग भी था। प्रस्तुत है इस भजन का गुजराती में। उच्चारण। के उपरांत हिंदी में। वैष्णव जनतो तेने कहिए रे जे पीर पराई जाणे रे अर्थात सच्चा वैष्णव वही है जो दूसरों की पीड़ा को समझता हो। पर दुखे उपकार करें तो ये मन अभिमान ना आ ने रे दूसरे के दुख पर जब वह उपकार करें तो अपने मन में कोई अभिमान ना आने दें। सकल लोकमा सहू ने वंदे निंदा ना करे के नीरें अर्थात जो सभी का सम्मान करें और किसी की भी निंदा ना करे। वॉट का? चमन निश्चल रखें धन धन जननी तेरी रे। जो अपनी वाणी, कर्म और मन को निष्फल रखें। उसकी माँ धरती माँ धन्य धन्य हैं। समुद्र स्टिने तृष्णा त्यागी पर स्त्री जने मात्र। जो सबको समान दृष्टि से देखें। सांसारिक तृष्णा से मुक्त हो परायी स्त्री को अपनी माँ की तरह समझे। जी वहा तक की असत्य ना बोले पर धन नवजा लें हाथ रे अर्थात जिसकी जीवा असत्य बोलने पर रुक जाएं, जो दूसरों के धन को पाने की इच्छा न करें। मोह माया व्यापे नहीं जे ने दृढ़ वैराग्य जीना मन मारे। जो मोह माया में व्याप्त ना हो, जिसके मन में दृढ़ वैराग्य हो। राम नाम शुद्धता, लीला गिरे। सकल तिरथ तैनात रन मारे। अर्थात जो हर्षण मन में राम नाम का जप करें उसके शरीर में सारे तीरथ विद्वान है। वर्ण लो भी ने कपट रहित छे काम क्रोध निवारय आरे जिसने लोभ, कपट, काम और क्रोध पर विजय प्राप्त कर ली हो। बड़े ना रसि होते, दर्शन करता कुल एक को 13 तारया रे अर्थात ऐसे वैष्णव के दर्शन मात्र से ही परिवार की 71 पीढ़ियां तर जाती है, उनकी रक्षा होती है। तो ये था इस भजन का हिंदी में भावानुवाद। सौराष्ट्र में जन्मे श्री नरसी मेहता जी एक अत्यंत निर्धन नागर ब्राह्मण थे। एक बार वह निम्न जाति के एक व्यक्ति के घर भजन कीर्तन करने चले गए। इस कारण उनकी बढ़ती लोकप्रियता से ईद शालू कुछ नागर ब्राह्मणों ने उन्हें अपनी जाति से ही निकाल दिया था। श्री नरसी मेहता जी की रजित कई कृतियां। अनेक को प्रकाशनों में प्रकाशित भी हुई है। तो मित्रों ये थी आज हमारे बापू के प्रिय भजन की व्याख्या। ओके बाइ?","Vaishnav jan to tene kiye je peere parayi jaane rahe - If sorrows do you a favor, then this mind should not feel proud, Vaishnav jan to tene kiye je ॥ Sakal Lok Ma Sahune Vande Ninda Kare Keni Re Vaach Kach Man Nischal Rakhe Dhan-Dhan Janani Teni Re Vaishnav Jan To Tene Kahiye Je ॥ Equanimity gave up on the thirst - a woman should not speak untruth if her mother is tired, but Vaishnav people should say that wealth is new in their hands ॥ Strong enmity doesn't exist in love..." "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपके लिए लाई हूँ, उसका टाइटल है बुद्धि और भाग्य। एक बार बुद्धि और भाग्य में तकरार हो गई। दोनों स्वयं को श्रेष्ठ बता रहे थे। दोनों ने यह निर्णय किया कि वे अपनी अपनी शक्ति का प्रदर्शन करेंगे, जिससे खुद ही पता चल जाएगा कि दोनों में श्रेष्ठ कौन हैं। भाग्य और बुद्धि ने अपनी शक्ति प्रदर्शन के लिए एक पात्र चुना और वह पात्र था। एक गड़रिया कहानी में गड़रिये के माध्यम से भाग्य और बुद्धि का शक्ति प्रदर्शन बताया जाएगा। एक बार बुद्धि और भाग्य में किसी बात को लेकर बहस शुरू हो गई। बात अपनी जगह से हटकर आपस की तू तू मैं मैं पर उतर आईं। भाग्य ने बिगाड़ कर कहा मैं तुमसे बड़ा हूँ। समझदार बुद्धि हंसकर बोली। यह तुम मैं भी कह सकती हूँ पर फिर बहस बढ़ेगी। क्या यहाँ अच्छा ना होगा कि हम दोनों अपनी अपनी शक्ति का प्रदर्शन करके देखें? जो जीतेगा वही बड़ा होगा। भाग्य ने इस बात को स्वीकार कर लिया। दोनों अपनी अपनी शक्ति के प्रदर्शन के लिए जगह की खोज में चल पड़े। चलते चलते उन्हें एक गड़रिया नजर आया। जो शांत भाव से अपनी भेड़ें चला रहा था। उसे देख बुद्धि ने कहा। क्या तुम इसे वैभवशाली बना सकते हो? क्यों नहीं मैं चाहू तो इसे सम्राट बना सकता हूँ? भाग्य ने अभिमान से उत्तर दिया। बुद्धि मुस्कुराती हुई बोली। अभागा कई सम्राट बनते बनते प्राणों से हाथ धो बैठे तो अब तुम अपने वचनों से पीछे हटना चाहती हो। भाग्य ने गुस्से में कहा नहीं, बिल्कुल नहीं। मुझे स्वीकार है तुम इसे सम्राट बना दो। मैं जब इसे लोगों पर शासन करते देख लूँगी तब तुम्हारे सामने सिर झुका दूंगी, नहीं तो तुम्हें मेरे सामने सिर झुकाना पड़ेगा। ठीक है। यह कहते ही भाग्य ने गड़रिये पर अपनी कृपा का हाथ रखा और बुद्धि ने उसी समय उसका हाथ छोड़ दिया और एक दर्शक की तरह दूर जाकर खड़ी हो गयी। गड़रिया आगे बढ़ा। उसे रत्नजड़ित खड़ा हूँ का एक जोड़ा मिला। उसने उन्हें उलट पुलट कर देखा और अपने पैरों में पहन लिया। फिर प्रतिदिन की तरह अपनी भेड़ बकरियां चराने लगा। गड़रिया इस बात से बिल्कुल ही अनजान था कि वो सोने की खड़ाऊं है। उसे कतई समझ में नहीं आ रहा था कि जो वस्तु उसने पहन रखी है वो कितनी कीमती है। इसी प्रकार 1 दिन वहाँ से किसी दूसरे देश का सौदागर गुजर रहा था। अचानक उसकी नज़र गड़रिया के पैरों पर पड़ी। उसने हैरानी से पूछा। यह तुमने किस चीज़ की खड़ाऊ पहन रखी है भाई? ये पत्थर की है और बड़ी भारी है। गिरस्ती भी बिल्कुल नहीं है। गड़रिये ने सरल भाव से उत्तर दिया क्या तुम इन्हें बेचोगे में बेचना क्या होता है? यदि तुम्हें पसंद है तो तुम इन्हे ले जाओ इस पत्थर की जोड़ी को तुम्हारे सिवा खरीदेगा भी कौन? और जो बताओ तुम्हे इसकी क्या कीमत दे दू? क्योंकि ये खड़ा हो का जोड़ा मुझे बहुत पसंद है। मैं इसे हर कीमत पर खरीदने के लिए तैयार हूँ। अरे मुझे कुछ नहीं चाहिए, बस तो मेरी झोपड़ी में एक बोरी भुने चने रखवा दो। मैं रोज़ गांव जाने पर थक जाता हूँ, खा पीकर यही मस्त पड़ा रहूंगा। सौदा करने प्रसन्नता से चने की बोरी वहाँ रखवाई और खड़ा होकर जोड़ा लेकर अपनी राह पर चल दिया। अपने देश पहुँच कर उसने वह खड़ाऊ का जोड़ा वहाँ के महामंत्री को भेंट कर दिया। ताकि उसे व्यापार में और अधिक सुविधा मिल सके। इधर गड़रिये को नंगे पांव देख भाग्य ने रत्नों से जुड़ा हुआ एक और उससे भी बढ़िया खड़ा हो का जोड़ा उसके सामने रख दिया। कररिया उसे भी पहनकर अपनी भेड़ें चराने लगा। कुछ दिनों के बाद वही सौदागर उधर से गुजरा, रत्नों से जुड़ा हुआ खड़ा हो का जोड़ा? उसके पैरों में देख वह आश्चर्यचकित रह गया। और मन ही मन सोचने लगा। कि इस घर पर भाग्य की अपार कृपा दिखती है। उसने गड़रिये से कहा। तुम्हें ऐसी बढ़िया खड़ा हूँ कहाँ मिल जाती है भाई? अपने आप ना जाने कौन आकर इन्हें मेरी राह में रख जाता है। मैं तो बस इन्हें पैरों में पहन लेता हूँ। गड़रिये सरलता से उत्तर दिया। क्या तुम इन्हें भी बेचोगे? हाँ हाँ लेलों यह कहकर गड़रिये ने अपने पैरों से खड़ा हूँ उतारकर व्यापारी के सामने रख दी। व्यापारी मन ही मन सोचने लगा कि अपने देश चलकर वहाँ के सम्राट की सेवा में इन्हें भेंट करूँगा। इसके बाद सम्राट से अपना मेल जोल भी बढ़ जाएगा। उसने अबकी बार दो बोरी चने और 10 भेली गुड़ गड़रिये की झोपड़ी में रखवा दिए और खड़ाऊ लेकर अपनी राह चल दिया। अपने देश जाकर वो सम्राट से मिला और अच्छी तरह सजाकर खड़ा होकर जोड़ा उन्हें भेंट कर दिया। सम्राट इतनी बेशकीमती खड़ा हो को देखकर स्तब्ध रह गए। बोले। अरे वाह बहुत ही सुंदर खड़ा हुए तुम्हें कहाँ से प्राप्त हुई? इस पर सौदागर बोला। भारत सम्राट मेरे मित्र हैं। शिकार के समय मैंने उनके प्राणों की रक्षा की थी। इस पर खुश होकर उन्होंने एक खड़ा हूँ, मुझे पुरस्कार में दी है, मैंने सोचा है इतनी बहुमूल्य खड़ा हूँ, सम्राट के पास ही शोभा देगी। आशा है आप इस को स्वीकार करेंगे। सम्राट ने सौदागर की प्रार्थना सहर्ष स्वीकार कर ली। पुरस्कार के तौर पर सम्राट ने उसे 1,00,000 मुद्राएं दी और पूछा। क्या भारत सम्राट की कोई जवान पुत्र भी है? अभी वो खुद ही जवान और अविवाहित, बड़े ही शांत और सज्जन हैं। सौदागर के पास अब झूठ बोलने के सिवा कोई भी चारा नहीं था। वह हर तरह से सम्राट को खुश रखना चाहता था। कैसा रहें यदि उसके साथ मेरी राजकुमारी का विवाह हो जाए? अति सुन्दर वे अपने सौभाग्य ही समझ लेंगे। इसको सौदा कर की आँखों में इस समय लाखों रुपए की बेशकीमती खड़ाऊँ पहने हुए गड़रिया घूम रहा था। सम्राट ने प्रसन्न होकर सौदागर को हर तरीके की सुविधाएं और राजदूत की पदवी भी दे दी। बोले। अब तुम जाकर अपना काम शुरू करो 14 घर प्रणाम करके वहाँ से चला तो गया और उसका दिल बोझ तले दब गया। ऊँटों पर सैकड़ों मन पीतल लदवाकर पर फिर व्यापार के लिए निकला। चलता चलता वो वही उस गड़रिये की झोंपड़ी के पास आ पहुंचा। गड़रिया दूर कहीं भेड़ें चराने गया हुआ था। सौदागर ने अपने नौकरों को ऊंट से सामान उतरवाकर पड़ाव डालने की आज्ञा दे दी। धरती पर पीतल की सिल्लियों का ढेर लग गया। चारों ओर खेमे ही खेमे गाड़ गए। शाम को जब गड़रिया लौटा दोनों एक दूसरे को देखकर खिल उठे। गड़रिये के पैरों में अब एक और बेशकीमती खड़ा हो के जुड़ा था। यह देखकर सौदागर के आश्चर्य की सीमा ना रही। सोचने लगा, जरूर, यहाँ आदमी कोई जादूगर हैं। भाग्य पूरी तरह से इसे सहयोग देने पर तुला हुआ है और इस मूर्ख को पता भी नहीं कि वह अपने पैरों में कितनी कीमती चीज़ पहने हुए है। फिर सोचने लगा कि देखने में बी ए सुन्दर है, इसे सम्राट क्यों न बनाया जाए? कुछ रुपया मेरे पास भी है। यह चरागाह और इधर उधर की जमीन खरीद लूँगा, यही महल और किला बनवा दूंगा। कुछ सैनिक और नौकर रख लूँगा और फिर विवाह के बाद जो कुछ दहेज मिलेगा, वो अभी तो सब अपना ही होगा। यह राजा और मैं मंत्री। यह सोचते हुए उसके होठों पर मुस्कान नाचने लगीं। भाग्य ने उसके हृदय के भाव पर लिए और खेल उठाव वो दी भी मुस्कुरा रही थी। भेड़ बकरियों को अपनी अपनी जगह बांधकर थका हुआ गड़रिया पीतल की सिल्लियों के ढेर के साथ सहारा लेकर बैठ गया और सौदागर से बोला अब की बार तुम बहुत जल्दी लौट आए। हो बहुत काम आ पड़ा था अब मैं तुम्हारे पास कुछ दिन रहूंगा तुम्हें कुछ ऐतराज तो नहीं? अरे वाह कैसी बातें करते हो जंगल में मंगल हो जायेगा बस मेरी भेड़ बकरियों को तुम्हारा कोई आदमी ना छेड़ें अरे अब तुम इन भेड़ बकरियों की चिंता मत करो, मैं तुम्हें सम्राट बनाने वाला हूँ। सम्राट वह क्या भला होती है? गड़रिये ने हैरानी से पूछा, सम्राट महाराज मतलब की आसपास के इलाके के जीतने भी आदमी है, वह अब सब तुम्हारी चाकरी करेंगे। मैं अपने देश की राजकुमारी से तुम्हारा विवाह करूँगा। मेरा विवाह तुम्हारी बाते तो मेरी समझ में नहीं आ रही पर ठीक है जो तुम्हारी इच्छा सो करो बस मेरी भेड़ बकरियों को कोई ना कुछ कहे या कहते कहते वह अजीब मूर्खता से हँस दिया। तभी अचानक सौदागर की नजर पीतल के ढेर पर पड़ी आंखें फाड़कर देखता ही रह गया कि पीतल में एक अजीब सी चमक आ गई थी। अब वह पीतल नहीं रहा, वह तो सोने का ढेर बन गया था। बस सोचने लगा, ओह। यहाँ आदमी कितना भाग्य काबलि है इसे सम्राट बनाना कुछ कठिन काम नहीं होगा या तो बना बनाया सम्राट है। भाग्य ने जीते हुए वीर की तरह अभिमान से बुद्धि की ओर देखा, बुद्धि ने मजाक में ही उत्तर दिया। कोई बात नहीं, अभी आगे बढ़ो। सौदागर ने अपना सोचा हुआ काम शुरू कर दिया। सोना बेचकर जमीन खरीदी, महल और किला बनवाया सेना भर्ती की अब बेशुमार दौलत उसके पास थी। जागीरदारों को मुंहमांगा रुपया देकर कुछ जा गिरे भी खरीद ली। गड़रिये के लिए बढ़िया बढ़िया कपड़े बनवाए। सजा हुआ गड़रिया शक्ल सूरत से तो अब राजा लगी रहा था पर वास्तव में तो उसे राजा का अर्थ भी नहीं पता था। धीरे धीरे सौदागर ने उसकी भेड़ बकरियां भी इधर उधर कर दी। जब गड़रिये ने पूछा तो कह दिया कि रात में खुल जाने के कारण जाने कहाँ चली गयी है। गड़रिया सबके सामने ही बहुत रोया। चीखा, चिल्ला या सौदागर? खीर उठा के अजीब मुर्ग से पाला पड़ा है, बुद्धि तो इसे छू भी नहीं सकती। वह गड़रिये से कड़क कर बोला। खबरदार जो आगे से किसी के सामने चीखे, चिल्लाए जो बात कहनी हो, मेरे कान में आकर कहा करो। यहाँ देखता ना मारते हुए बुद्धि ने भाग्य से कहा, देख रहे हो तुम तुम्हारे सम्राट की क्या दशा हो रही है इस पर भाग्य बोला बुजुर्ग को कहने का अधिकार है। बुद्धि हसदी। इधर सौदागर ने अपने महाराज को विवाह की सूचना भेज दी। बात पक्की हो गयी। विवाह का दिन भी तय हो गया था। समय पर सौदागर गड़रिये को दूल्हा बनाकर शाही बारात सजाकर विवाह के लिए निकला। बारात का ठाट देखते ही बनता था। हाथी, घोड़े और रथों की बहुत लंबी कतार थी। दूल्हे के साथ सौदागर हाथी पर बैठा आगे आगे चल रहा था। उससे आगे शहनाई बजती जा रही थी। लड़की वालो ने भी जोरदार स्वागत किया। पर यह सब देख गड़रिया बहुत परेशान था। उसने सौदागर के कान में कहा, ये लोग क्यों आए है, कहीं मुझे पकड़ तो नहीं ले जाएंगे? कहीं मेरे भेड़ बकरियां इन्हीं के खेत में तो नहीं घुस गई थी? स्वागत करने वालों में से महामंत्री ने सौदागर से पूछा। क्या सम्राट ने कुछ हमारे लिए आदेश दिया है? तब सौदागर ने कहा, हमारे सम्राट का कहना है स्वागत में आये हुए प्रत्येक व्यक्ति को डसा, सोने की मुहरें इनाम में दी जाए। चारों ओर गड़रिया सम्राट की जय जयकार के नारे गूंजने लगे। भाग्य ने लगाते हुए बुद्धि की ओर देखा। बुद्धि शांत, शांत भाव से ही बोली। पर यह सब तो सौदागर की मेहरबानी से हुआ है ना? क्योंकि मैंने सौदागर का हाथ नहीं छोड़ा। सौदागर के सहारे मैं और तुम अपनी अपनी मंजिल की ओर बढ़ रहे हैं। इस कहानी के अंत में हमारी हार जीत का फैसला होगा। बात आगे बढ़ी बारात की अगवानी हुई। दावत का रंग जमा। फिर रात को भंवरे पड़ी। भावनाओं के बाद दूल्हा बना चित्रशाला में चला गया। वो बहुत परेशान था। डर के मारे उसका बुरा हाल था। वह बार बार सोचता क्या? आखिर या क्या है यह हो क्या रहा है सब? मैं फिजूल में ही सौदा कर के चक्कर में पड़ गया। आधीरात को गड़रिये को पायलों की रुनझुन की आवाज सुनाई दी। पायलों की रुनझुन ने कड़ी के मन में बेहद डर भर दिया। वो काँप उठा। उसने बचपन में भूत प्रेतों और डाकिनियों की कहानी सुनी थी और रात के समय आकर लोगों को मार डालती है। उसने अनुभव किया की आवाज और निकट आती जा रही है। कुछ देर बाद किसी ने आकर कमरे का दरवाजा खटखटाया। अभय से पीला पड़ गया, उसका दम फूल गया। अपने बचने का अब उसे कोई उपाय नहीं सूझ रहा था। वह लपका और खिड़की से नीचे छलांग लगाने लगा। अब उसकी मौत नजदीक थी। तभी बुद्धि ने भाग्य से कहा इससे बचाव तुम्हारा सम्राट मौत के मुँह में जा रहा है। भाग्य बिचारा चुप चाप खड़ा था। उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था। वह झुंझलाकर बोला। क्या करूँ? अजीब मूर्ख से पाला पड़ा है तुम से बन पड़ता है तो तुम ही इस मूर्ख को मरने से बचाव मैं अपनी हार मान लूँगा। तू ऐसा ही हूँ। यह कहकर बुद्धि के दिमाग में घुस गई। बुद्धि के आते ही उचाई से धरती को देख गड़रिये ने सोचा नीचे गिरकर मरने से क्या लाभ और फिर राजमहल में डाकिनियों का क्या काम? तभी वहाँ खिड़की को छोड़कर कमरे मेँ लौट आया। फिर उसे ध्यान आया कि जिसके साथ रात को मेरी भाव रे पड़ी थी, उसके पैरों में से ही इस नूपुर की आवाज आ रही है। हो सकता है कि मेरी दुलहनी मुझसे मिलने आई हो। मैं भी कैसी मूर्खता करने जा रहा था। धीरे धीरे सारी कहानी उसके दिमाग में घूमने लगी। अब उसने हँसते हुए द्वारखोला दुल्हन का स्वागत किया। दोनों खिल उठे। दूसरी ओर भाग्य बुद्धि के सामने अपनी हार मान कर सिर झुकाए खड़ा था। तो बच्चो इस लोक कथा से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें कभी भी यह नहीं सोचना चाहिए की हम भाग्य के भरोसे बैठे रहे। हमें अपनी बुद्धि का भी प्रयोग करना चाहिए तभी हम अपने जीवन में सफलता प्राप्त कर सकते हैं। ओके बाइ?","सभी को नमस्कार, यह ज्ञान और भाग्य की एक प्रेरणादायक हिंदी कहानी है। इस कहानी में उनके बीच झगड़ा हुआ था। दोनों बता रहे हैं कि वे ज्यादा ताकतवर हैं। न्याय के लिए उन्होंने एक चरवाहे को चुना। चरवाहा बहुत भोला था। उसके साथ क्या हुआ वह नहीं जान सका। पूरी कहानी सुनिए और जानिए आखिर में कौन जीता।" "क्या आप भी अपना पॉडकास्ट बनाने का सोच रहे हैं? तो ऐंकर ट्राई कीजिए, ये पॉडकास्ट बनाने का सबसे आसान तरीका है। नंबर एक ये फ्री है नंबर दो। इसमें कई सारे ऐसे टूल्स है जो आपको अपने फ़ोन और कंप्यूटर पर रिकॉर्ड और एडिट करने की फैसिलिटीज देते हैं। नंबर तीन आप अपने पॉडकास्ट को डिस्ट्रीब्यूट भी कर सकते हैं, जिससे इसे इस स्पॉटिफाइ और दूसरे प्लैटफॉर्म्स पर सुना जा सकें। डाउनलोड कीजिये ये फ्री एंकर ऐप या विजिट कीजिये ऐंकर डॉट ऐफ़ एम अपना पॉडकास्ट स्टार्ट करने के लिए। हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आप सबको सुनाऊंगी उसका शीर्षक है परी माँ। राजू इस दिन दुनिया में बिल्कुल अकेला था। माता पिता बचपन में ही नहीं रहे थे। भाई बहन कोई था नहीं। वह बच्चों के साथ खेल कर मन बहलाता रहता था। किसी के भी घर जाकर खाना खा लिया करता था। कहीं भी सो रहा था सब उसे प्यार बहुत करते थे। 1 दिन वह समुद्र के किनारे उदास बैठा था। बैठे बैठे उसने मन में सोचा की मेरा तो इस दुनिया में कोई है नहीं। किसके सहारे जीवन गुजार लूँगा मैं। ऐसा सोचकर उसकी आँखों से टप टप आंसू टपकने लगे। व आसमान की ओर देखने लगा। तभी वह रोना भूल गया और यहाँ देखकर आश्चर्यचकित रह गया की एक हाथी आसमान से धरती की ओर चला रहा है। वह हाथी ठीक उसके पास आकर उतरा। उसने राजू से पूछा तुम क्यों रो रहे हो? तब राजू बोला मेरा इस दुनिया में कोई नहीं माँ भी नहीं अकेला मैं कैसे जी हूँ? हाथी ने कहा ऐसा नहीं करते तुम्हारी माँ परियों के देश की रानी है तुम्हें रोते देखकर उन्होंने मुझे तुम्हें लेने के लिए भेजा है, क्या तुम मेरे साथ चलोगे? राजू कुछ सोचकर बोला चल तो सकता हूँ, लेकिन पहले तुम ये बताओ की मुझे वहाँ क्या क्या मिलेगा? तब हाथी बोला तुम्हे जो जो चीजें खेल खिलौने चाहिए वे सब वहाँ मिलेंगे। तभी राजू ने पूछा। क्या मुझे वहाँ बड़े बड़े गुब्बारे, टॉफी या सब मिलेंगे? हाथी बोला तुम्हें वह सब कुछ मिलेगा जो तुम्हें चाहिए फिर राजू कहने लगा। तब तुम्हें जरूर चलूँगा लेकिन कैसी? कैसे चलोगे इसकी चिंता तुम मत करो जब मैं उड़ने लगूं तो तुम मेरी पूंछ पकड़ लेना फिर मैं उड़कर तुम्हारी माँ के पास ले चलूँगा। ठीक है। राजू बोला फिर हाथी धीरे धीरे ऊपर उड़ने लगा, राजू ने उसकी पूंछ पकड़ ली। कुछ ही देर में राजू परियों के देश में पहुँच गया। वहाँ पहुँचकर उसने हाथी से पूछा कहाँ है मेरी माँ? तब हाथी बोला वो सामने ऊंचे सिंहासन पर तुम्हें बांहों में भरने को जो बेचैन दिख रही है, वही है तुम्हारी माँ परी माँ। राजू छोटे छोटे डग भरता हुआ अपनी माँ की ओर बढ़ा। जब करीब पहुंचा तब वह उसे गोद में लेकर बहुत देर तक प्यार करती रही। फिर उसे टॉफ़ियाँ अच्छे अच्छे पकवान खाने को दिए और खेलने के लिए खिलौने व गुब्बारे भी दिए। राजू कुछ दिनों तक बड़े आराम से रहा। उसकी हर सुविधा का वहाँ ख्याल रखा जाता। लेकिन 1 दिन वह उदास हो गया क्योंकि वहाँ उसके संगीत साथी नहीं थे। उसे उदास देखकर उसकी माँ बोलीं बेटे तुम उदास क्यों हो? क्या दुख है तुम्हें किसकी याद सता रही है? तब राजू कहने लगा। वैसे तो मुझे यहाँ कोई परेशानी नहीं है, लेकिन मेरे दोस्तों यहाँ है ही नहीं, मैं यहाँ किस के साथ खेलूं अकेला कब तक के लूँगा मैं। राजू की माँ बाल मन की पीड़ा समझ गयी। उसने उसी हाथी को आदेश देते हुए कहा राजू को भूमि पर ले जाओ इस बार इसके साथ इसके दोस्तों को भी लेते आना। हाथी राजू को लेकर भूमि पर उसी जगह पर उतरा जहाँ से उसे लेकर गया था। फिर राजू वहीं रह गया और हाथी को भेज दिया और बोला कि परसों तुम फिर इसी जगह पर चले आना। राजू अब समुद्र के किनारे बैठ गया था। कुछ देर के बाद एक एक करके उसकी सभी साथी वहाँ इकट्ठा होने लगे। उन्होंने राजू को देखा तो फिर बड़े प्रसन्न हुए और पूछने लगे कि राजू तुम इतने दिनों से कहाँ गायब हो गए थे? हम तुम्हें कितना ढूंढ रहे थे? तब राजू बोला। मैं अपनी माँ के पास परियों के देश गया था। मेरी माँ वहाँ की रानी है, वहाँ बहुत सारी चीजें अच्छे अच्छे खिलौने हैं, बड़े बड़े को पारे टॉफ़ियाँ मिठाइयां क्या तुम मेरे साथ चलोगे? बच्चों को राजू की बात सुनकर बड़ा आश्चर्य हुआ ये सब भूले हम भी तुम्हारे साथ चलेंगें हम भी तुम्हारे साथ चलेंगे। तब राजू बोला ठीक है, परसों उड़ने वाले हाथी को मैंने बुलाया है, जब वो आएगा तब हम सब उसकी पूंछ पकड़कर परियों के देश जाएंगे, बहुत मज़ा आएगा वहाँ पर। निश्चित समय पर उड़ने वाला हाथी आया। राजू व सब बच्चे तैयार थे। राजू ने हाथी की पूंछ पकड़ी, दूसरे बच्चे ने राजू की टांग इसी तरह एक दूसरे की टांग पकड़कर सभी बच्चे हाथी की पूंछ से लटक गए। वे आपस में बातें करते जा रहे थे। सबसे नीचे लटके हुए बच्चे ने पूछा राजू कहाँ? कितने बड़े को पारे मिलते हैं? तब राजू ने कहा वहाँ चलकर ही देख लेना, लेकिन वह बार बार पूछने लगा तो राजू भूल गया कि उसने हाथी की पूंछ पकड़ रखी है। उसने जैसे ही अपना हाथ फैलाकर गुब्बारे का आकार बताने के लिए आगे किया, वैसे ही पहुंचे। उसके हाथ से छूट गई और सारे बच्चे जमीन पर गिर गए। हाथी ऊपर की ओर उड़ता ही चला गया, राजू मामा कहकर पुकारता रह गया। फिर कभी ना वो हाथी लौटा और ना ही राजू परियों के देश जा पाया। तो बच्चो ये एक छोटी सी काल्पनिक कहानी थी, जिसका नाम था परिमा उम्र के बाय।","सभी को नमस्कार, यह एक परी कथा है। इस कहानी में एक छोटा लड़का अपनी परी माँ से मिलता है। बच्चे बहुत मासूम होते हैं। पूरी कहानी सुनें और अपने परिवार और दोस्तों के साथ इसका आनंद लें।" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी में आपको सुनाने जा रही हूँ उसका टाइटल है हाथी का उपदेश। हाथी के दो बच्चे घूमने निकले। वे अभी छोटे थे इसलिए उनके माता पिता उन्हें अकेले घूमने से रोका करते थे। आज पहली बार वे माता पिता को मना कर जैसे तैसे बाहर निकले थे। घूमते घूमते वे एक गन्ने के खेत के किनारे आ खड़े हुए। मोटे मोटे ताजे ऊंचे गन्ने वहा लगे थे। उन्हें देखकर दोनों के मुँह में पानी आने लगा। एक्चुअली पड़ा गन्ना तोड़ने दूसरा रखवाली के लिए खेत के किनारे पर खड़ा रहा। पहले ने गन्ना तोड़ने की बहुत कोशिश। खूब ज़ोर लगाया पर वह उसे पूरी तरह उखाड़ नहीं पाया। दूसरे ने उससे कहा, और तुम सही ज़रा तुम भी सहायता करो मिलजुलकर करने से शायद काम हो जाए। संगठन में शक्ति होती है। दूसरे के सुर लगाते ही गन्ना जड़ से उखड़ा या गन्ने को अपनी सूंड से पकड़कर जीत भाव से झूमते दोनों खेत से बाहर निकल आए। बाई गन्ने के बंटवारे की बात पहला सोचने लगा। सारी कोशिश तो मैंने की है, मैंने ही इसे झकझोरकर कमजोर बना दिया था। इसने तो बस ज़रा सी सू लगाई है इसलिए इसका अधिकार कम ही बनता है। यही बात उसने दूसरे हाथी को भी कह दी। इस बात पर वह बिगड़ कर खड़ा हो गया। गुस्से में भरकर बोला। तुम से कम तो मेहनत मैंने नहीं की है एक इंच बिगड़ना कम नहीं लूँगा। दोनों बहुत देर तक इसी पर झगड़ते रहे, पर वे आपस में कोई भी निर्णय नहीं कर पाए। सहजा पहले वाले की निगाह झाड़ियों के किनारे बैठे एक वृद्ध भालू पर गयी। वह भालू बड़ी देर से चुपचाप उनकी सारी बातें सुन रहा था और मन ही मन उनकी मूर्खता पर हँस भी रहा था। भालू काका आप ही सही सही बताइये कि इस गन्ने पर हम दोनों में से किसका अधिकार सबसे अधिक बनता है। पहला यह बोला। भालू अपनी गर्दन हिलाकर और कुछ गंभीर बनकर बोला। बुच्चु बहुत हँसी है कि मैं वो अनुराग के यहाँ वर्षों न्यायाधीश रहा हूँ। अतएव पूरी बात को अच्छी तरह से सुन समझकर ही निर्णय देने की मेरी आदत है। दोनों बोल उठी हो आप जैसा अच्छा निर्णायक तो हमें खोजने पर भी ना मिलेगा। दोनों ने ही विस्तार से अपनी बात भालू को बता दी। भालू ने ध्यान से उनकी सारी बाते सुनी। इतने बड़े गन्ने में से पहले को ऊपर के पत्तों के साथ दो पूरी तोड़कर दे दी। दूसरे को गन्ने के नीचे की जड़ के साथ दो पूरी तोड़कर दे दी। बाकी बचा शेष हिस्सा मेरी फीस का होता है। ऐसा बोलकर भालू उसे लेकर चलता बना। रास्ते में भालू सोचता जा रहा था, भोपे के लिए अच्छी लौटी मिली है। दोनों हाथी एक दूसरे का मुँह ताकते रह गए। अब दोनों ही बैठकर रोने लगे। पहली पहली कमाई और वह भी कोई यो हड़प कर ले जाए तो सचमुच दुखी होने की तो बात थी ही। उधर से निकला एक वृद्धा ति रोते देखकर उसने उनसे कारण पूछा। दोनों ने सिसकते हुए सारी कथा सुना दी। वृद्ध हाथी ने उन्हें समझाया बच्चों अपनी चीज़ सदैव मिल बांट कर खाओ, इसे अधिक मिलती है मुझे एक कम ऐसी छोटी बात कभी मन में ना लाओ, सोचो की रत्ती भर उधर ज्यादा भी गयी या इधर कम, इस में क्या अंतर पड़ता है, यह तो बस मन को समझाने भर की बात है। खाने पीने की चीजों पर ऐसी ज़रा ज़रा सी बातों पर झगड़ना नीच ताई नहीं, मूर्खता भी है। तुम्हें मूर्ख समझकर भालू सारा हिस्सा हड़प बैठा। हाथी के दोनों बच्चों को अपनी गलती का अहसास हो रहा था। दादाजी, अब हम कभी ऐसा नहीं करेंगे। उन्होंने अपने अपने आंसू पोंछ कर कहा। तभी तो तुम अच्छे बच्चे बनो गे। बुड्ढा हाथी दोनों की ही पीठ थपथपाकर कहने लगा। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें हमेशा मिल बांटकर ही खाना चाहिए और छोटी छोटी बातों पर एक दूसरे से झगड़ा नहीं करना चाहिए। ओके बाय।",यह दो छोटे हाथियों की कहानी है। वे आपस में झगड़ते हैं। उन्हें एक बूढ़े भालू ने धोखा दिया है। कहानी सुनें और जानें कि उसके बाद क्या हुआ। "क्या आप भी अपना पॉडकास्ट बनाने का सोच रहे हैं? तो ऐंकर ट्राई कीजिए, ये पॉडकास्ट बनाने का सबसे आसान तरीका है। नंबर एक ये फ्री है नंबर दो। इसमें कई सारे 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तेरे जज़्बों के निशान। मार तेरी कुर्बानी का चर्चा दैर की महफिल में। सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है। देखना है जो ओर कितना बाजुए का दिल में है।",सभी को नमस्कार आज स्वतंत्रता दिवस के शुभ अवसर पर मैं आपके लिए एक विशेष गीत लेकर आया हूं। पूरा गाना सुनें और हमारे देश के गौरवमयी इतिहास से रूबरू हों। "हैलो बच्चों, आज जो कहानी में आपको सुनाने जा रही हूँ उसका टाइटल है बुद्धिमती चुहिया। रानी चुहिया बरगद के एक पेड़ की जड़ में अपना बिल बनाकर रहती थी। उसके चार छोटे छोटे बच्चे थे। रानी जो या बड़ी मेहनती थी, वह सारे दिन परिक्रमा करती और खाने के लिए खूब सारी चीजें जुटा लेती। जंगल में खाने पीने की कमी भी न थी। इस प्रकार रानी जो या अपने बच्चों के साथ आराम से रह रही थी। पर 1 दिन सहसा पास बहने वाली नदी में बाढ़ आ गई। चारों ओर पानी पानी फैल गया। बरगद का वृक्ष भी पानी में डूबने लगा तो रानी ने घबराकर अपने बच्चों को बिल से बाहर निकाला और सभी के साथ जाकर पेड़ की सबसे ऊपर वाली टहनी की कोटर में छिप कर बैठ गई। पानी था कि रुकने का नाम ही ना ले रहा था। लग रहा था कि वह पूरे वृक्ष को ही डूबा देगा। अब तो रानी बहुत ही घबराई, क्या करे और कैसे अपनी और अपने बच्चों की जान बचाएं? तभी रानी ने सुना कि पेड़ की कोटरों में रहने वाला कोई कौआ अपने बेटे से कह रहा है ले लो, जल्दी ही यहाँ से चले पानी इस पेड़ को डुबाने ही वाला है। विपत्ति में रानी का दिमाग तेजी से काम कर रहा था। बहुत सोचने लगी। क्यों ना इस कुएं से अनुनय विनय कर लू की मुझे यहाँ से ले चलें? जैसे ही कौआ अपने बच्चों सहित घोंसलें से निकला कि रानी ने ज़ोर से पुकारकर कहा। तुम मुझे और मेरे भाइयो को यहाँ से ले चलो, मैं जीवनभर तुम्हारा उपकार कभी नहीं बोलूँगी। कौए ने चारों ओर गर्दन घुमाकर देखा कि आवाज कहाँ से आ रही है? सहसा उसकी निगाह सिकुड़ कर बैठी रानी और डर से कांपते उसके बच्चों पर पड़ी। वह मन ही मन कहने लगा कि कोई जिए या मरे मुझे क्या? मैंने क्या सारी दुनिया की रक्षा का ठेका ले रखा है? कब वो अपने बच्चे से बोला लल्लू तो मैं ठीक से अरुणा तो आता नहीं है इस बाढ़ में अगर कहीं गिर गए तो बच भी ना पाओगे, तुम ऐसा करो की मेरी पीठ पर बैठ जाओ। कहो अपने बच्चे को पीठ पर बैठाकर उड़ने ही वाला था की जो या फिर बोली। कौएभाई हमको भी यहाँ से ले चलो, हम तुम्हारा ये उपकार अवश्य चुकाएंगे। दूसरों की सहायता करने वाले को भगवान आशीर्वाद देते है। वो सोच कर कौआ रुक गया मीठी वाली मैं बोला जो या रानी आखिर तुम समझती नहीं, दूसरों की सहायता करना और उनके प्राण बचाना आखिर किसे बुरा लगेगा? और मेरी परेशानी तो ये है की मैं तुम सब को कैसे ले जाऊंगा। पीठ पर तो मेरा बच्चा बैठा है और खुद उड़ना नहीं जानता, इसलिए उसे तो मैं उतार नहीं सकता। तुम लोग एक दो होते तो भी मैं लेजाता तुम हो भी तो संख्या में पांच आखिर मैं तुम्हें यहाँ से ले भी कैसे जाऊं? रानी को सहसा ही एक तरकीब सूझी कुएं से वह बोली, सुनो ज़रा रुको, तुम्हें इस विषय में अधिक चिंता नहीं करनी होगी। रानी ने जल्दी से बरगद की एक मजबूत जटा अपने पैने दांतों से कुतर डाली। फिर उसे जल्दी से ऊपर खींच लिया। एक एक करके अपने चारों बच्चों के और अपने पंजे उसमें कसकर बांध दिए। अब वह जटा का आगे का भाग कुएं को पकड़ाती हुई बोली लो, इसे पकड़कर ले चलो, कौए ने उसे अपनी चोंच में पकड़ा ही था की छैया बोल उठी ना भाई इसे चोंच में ना पकड़ो। रस्सी में पांच जाने बनी है तुम ज़रा सा भी बोले तो रस्सी छुट्टी और हम सब मरे इसे तो तुम अपने पंजे में पकड़ लो। आखिर एक पंजे से रस्सी छूटेगी तो दूसरे से कसकर पकड़ तो लोगे। कौए ने रानी चुहिया की बात मान ली। वह यह रस्सी को अपने पंजे में मजबूती से पकड़कर बीट पर लल्लू को बिठाकर बरगद की उस पेड़ से उड़ चला। कुएं को यो इस प्रकार जाते देख अनेकों निगाहें उस पर पड़ी। एक गिद्ध ने भी उसे देखा और उसके मुँह में पानी भर आया। उसने अपने मन में सोचा की आज तो खूब छककर दावत होगी। गिद्ध भी छिपकर कुएं के पीछे पीछे उड चला। जब पानी खत्म हो गया और सूखी जमीन आ गई तो कौआ आसमान से उतारा। रानी बोली, कौएभाई, तुमने मेरे परिवार की जान बचाई है, मैं तुम्हारे उपकार से कभी नहीं हो सकती, मैं कभी ना कभी तुम्हारी सहायता जरूर करूँगी। अब अपने पंजे से रस्सी खोलो से हम सब जल्दी ही अपने रहने का और खाने का ठिकाना खोज ले। तभी लल्लू बोला। पिताजी मुझे तो बहुत ही जोरों की भूख लग रही है कुआं कहने लगा आज तो मैं और तुम चक्कर खायेंगे माल सामने है। कौए की बात सुनकर रानी सचेत हो गई। अतएव जैसे ही कौए ने रानी के बच्चे ओके चोंच लगाई। उसने ज़ोर से अपनी पूंछ घुमाकर उसके मुँह पर दे मारी। पूंछ कौए की पुतली पर ज़ोर से लगी वहाँ तिलमिला उठा। रानी बोली विपत्ति में पड़े हुए प्राणियों की रक्षा के बहाने तुम अपना ही स्वार्थ पूरा करना चाहते हो। धिक्कार है तुम्हें याद रखो कभी तुम पर भी ऐसी मुसीबत आ सकती है और तुम्हें भी दूसरों की सहायता की जरूरत पड़ सकती है। मत बोलो, हम भी समझ में रहते हैं दूसरों की सहायता की आवश्यकता हमें पड़ती रहती है कौएभाई मुसीबत में तुम्हारे साथ भी कोई ऐसा ही व्यवहार करें तो तुम्हे कैसा लगेगा? हुआ तुनक कर बोला मैं न तो परोपकारी हूँ, न तो कोई महान आत्मा जो सबकी सेवा करता फिरू गलती मेरी नहीं तुम्हारी है जो तुम मुझ पर इतना विश्वास कर बैठी अब तुम सब को हमारे पेट में जाने से कोई बचा नहीं सकता। रानी ने सोचा कि अंतिम बार इसे विनती करके देखती हूँ। दुष्ट को पहले बातों से ही मनाना चाहिए। यदि कहे हुए का उस पर कोई असर ना हो तो फिर चतुराई से कोई दूसरा रास्ता खोजना पड़ेगा। रानी दोनों पंजों को जोड़कर विनम्रतापूर्वक कहने लगी कु एम आई आखिर कुछ तो लिहाज करो मैंने तुम्हे भाई कहाँ है? ये छोटे छोटे बच्चे तुम्हारे भांजे हुई अपने भांजों को कोई खाओगे क्या? और धूर्तों और स्वार्थियों के लिए कोई रिश्ता नहीं होता। कौए ने रानी की एक न सुनी और सबसे पहले उसे ही खत्म करने के लिए चोंच आगे बढ़ाई। कौआ सोच रहा था कि यह मर जाएगी तो उसके बच्चों को बचाने वाला कोई ना रहेगा और वह चैन से उन्हें खा सकेगा। कौए की चोंच रानी तक पहुंची भी न थी कि गिद्ध बीच में आ गया और चूड़ियां को खाने के लिए लपका। हड़बड़ाहट में उसके पंजे से बरगद की जटा जूट गई पर पलभर में ही उसकी समझ में सारी बात आ गयी। वह गुस्से में भरकर गिद्ध से बोला। इसे यहाँ तक लाने में मैंने मेहनत की है पर मेरा हक है तुम चोर डकैत की तरह बीच में लूटपाट क्यों करते हो गी तो अपनी लाल लाल आंखें घुमाकर कह रहा था तुम में साहस हो तो मेरे सामने इसे खा कर तो देखो फिर कितने ज़ोर से कुएं के पेट पर अपनी चोंच मारी और बोला चलो यहाँ से मुझे करते समय किसी की बकवास सुनना पसंद नहीं है। कौए और गिद्ध की लड़ाई कर रानी ने पूरा फायदा उठाया। उसने अपने बच्चों से धीरे से कुछ कहा। सभी ने तेजी से अपने दांतों से झटक कुतर कुतरकर अपने पंजे छुड़ा लिए और जल्दी से भागकर पास की झाड़ी में जा छिपे। कौए और गद्दे की निगाह जब वहाँ गई तो उन्होंने पाया कि शिकार का कहीं अता पता न था। दोनों एक दूसरे को लाल आँखों से घूरते हुए हाथ मलते हुए वहाँ से उड़ गए। यह देखकर झाड़ी में छुपी रानी और उसके बच्चे जो अभी तक डर से कांप रहे थे, चैन की सांस लेने लगे, वे उससे पूछने लगे, माँ की दुनिया में सभी ऐसे ही स्वार्थी होते हैं। जोया ने उन्हें समझाया बच्चों संसार में अच्छे प्राणी भी होते हैं और बुरे भी। कौन कैसा होगा ये उससे बार बार व्यवहार करने के बाद ही पता लगता है। किसी को परखे बिना उस पर विश्वास ना करों, विश्वास होने पर भी अंधा विश्वास ना करों, दूसरों से अधिक अपने पुरुषार्थ पर अपनी बुद्धि पर भरोसा करो। और उसका प्रयोग करो, तभी तुम जीवन में सफलता पा सकते हो, कठिन स्थिति से उबर सकते हो। तभी छोटा बच्चा बोल पड़ा तुम्हारी बात क्या में ध्यान रखेंगे माँ अब खाना लाओ। चोरों से भूख लगी है। तुम सभी छिपकर झाड़ी में ही बैठे रहना इधर उधर नहीं जाना, यह कहकर जो या उनके लिए खाने की खोज में दौड़ गई। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है की हमें कभी भी मुसीबत में घबराना नहीं चाहिए। अपनी बुद्धि और विवेक से ही कार्य लेना चाहिए। ओके बाइ?","यह एक छोटे से चूहे और उसके बच्चों की कहानी है। चूहे बहुत प्रतिभाशाली हैं, वह बहुत अच्छे तरीके से अपनी और अपने बच्चों की जान बचाकर भागे हैं। कहानी सुनें और कहानी के नैतिक को जानें।" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपको सुनाने जा रही हूँ उसका टाइटल है लल्लू कैसे बदला? तो एक जंगल में लल्लू नाम का कौआ रहा करता था। लल्लू कुएं के माता पिता बचपन में ही गुजर गए थे, उसे पाला भी उसकी मौसी नहीं था। बचपन में लल्लू बुरी संगत में पड़ गया था। इससे वह बहुत शरारती भी हो गया था। कई बुरी आदतें उसमें आ गई थी। वह चोरी करने लगा था और दूसरों की चीजें छीन कर भाग भी खड़ा होता था। वह जब चाहे जीस किसी को परेशान करता रहता था। किसी के कहने सुनने का लल्लू पर कोई असर ही नहीं होता था। 1 दिन चंचल गहरी अपने बच्चे को रोटी का टुकड़ा खाने को दे गयी। वहाँ नदी पर पानी लेने गई थी। बस इतनी देर में ही कहीं से उड़ता हुआ लल्लू आ गया। पीछे से वह चुपचाप से गिलहरी के मुँह से रोटी का टुकड़ा छीनकर भाग गया। दाल पर बैठकर लल्लू उसे खाने लगा। गिलहरी का बच्चा रो उठा। उसे खूब ज़ोर से भूक लग रही थी। मामा मेरी रोटी मुझे दे दो वह बच्चा रोते रोते बोला लल्लू ने अपनी गर्दन नचा कर उसे और भी चुराया। गांव गांव करते हुए लल्लू रोटी लेकर दूसरे पेड़ पर जा बैठा। गिलहरी का बच्चा रोता का रोता ही रह गया। 1 दिन सोनू कुत्ता रसभरी पूरी खा रहा था। आदि पूरी उसने खायी। फिर जमीन में एक गड्ढा खोदा और आदि पूरी उसने दबा दी। सोनू ने अपने दोस्त भानू के लिए भारत की थी। लल्लू कौआ चुपचाप ये सब देख रहा था। सोनू के जाते ही पेड़ से उतरा अपनी चोट से उसने गड्ढा खोदा, फिर पूरी निकाली और पूरी को पंजे में दबाकर वह उड़ गया। नीम के पेड़ पर बैठकर स्वाद ले लेकर उसने वह पूरी खायी। उधर सोनू ने भानु को पूरी गाड़ने की बात बता दी थी। थोड़ी देर के बाद वह वहाँ आया। उसने देखा कि गड्ढा खुदा हुआ है। मिट्टी बिखरी हुई थी। पूरी का वहाँ नाम नहीं था। बस समझ गया कि जरूर किसी ने शरारत की है। सामने पेड़ पर बैठा लल्लू कुआं मीठी नींद में सो रहा था। भानु समझ गया कि जरूरी है। लल्लू की ही शरारत थी क्योंकि लल्लू ऐसे कामों में सारे जंगल भर में बड़ा बदनाम था। भानु वही गड्ढे के पास बैठ गया। लल्लू की आंख खुली तो उसने निराश बैठे भानू को देखा कैसे बैठे हो? लल्लू ने मनी मन मुस्कुराते हुए पूछा। मैं यहाँ अपनी पूरी खाने आया था। मेरे दोस्त सोनू ने मेरे लिए उसे गाड़ा था, पर कोई दुष्ट चुपचाप उसे निकालकर ले गया, मानो पूछ ही लाते हुए बोला। लल्लू को हुआ। कहने लगा बुरा न मानना काका इस अच्छी पुरी को देख कर मेरे मुँह में पानी भर आया था। मैंने ही उसे निकाला था। भानु समझाने लगा लल्लू बेटा तुम चोरी करना छोड़ दो, चोरी करना अच्छी बात नहीं है। इसमें क्या चोरी की बात हुई? लल्लू पूछने लगा दूसरों की चीजों को उनसे बिना पूछे लेना चोरी ही तो होती है। कोई देखे या ना देंखे पर भगवान हमारे कामों को देखता है। बुरा करने वाले को वो सदैव दंड देता है। जो भी बुरा करता है उसे एक ना 1 दिन इसका फल भुगतना ही पड़ता है। भानु बड़ा गंभीर होकर बोला, बुड्डा को तो हमेशा उपदेश देने के आदत सी पड़ जाती है। यह कहकर लल्लू ने मुँह बिरा या पंख फड़फड़ाए और उड चला। बड़ो के उपदेश सुनते सुनते लल्लू तंग आ गया था भानुका का सोनी गाय चंचल गिलहरी कालूकुआं सभी उसे चोरी न करने का उपदेश देते थे पर लल्लू कुएं को उनकी सारी बातें बेकार ही लगती थी क्योंकि उस कुएं को अभी तक कोई भी सबक नहीं मिला था। पर बुरा काम करने वालों को एक न 1 दिन दंड मिलता ही है, बुरे कामों से कभी सफलता नहीं मिलती बुरा काम करने वालों को सभी तिरस्कार की दृष्टि से भी देखते हैं। लल्लू को भी देख कर जंगल के सारे जानवर अपना मुँह फेरा लेते थे। कोई उससे ठीक से बात भी नहीं करना पसंद करता था। कोई भी अपने बच्चों को उसके साथ खेलने भी नहीं देता था। वह अपने को बड़ा ही अकेला महसूस किया करता था। चोरी करके छीन झपट कर के जो मालवा लाता था, उसे लोमड़ी का की लल्लू का हुआ को बहला फुसलाकर ले जाती थी, तो कभी चंपू गीदड़ लल्लू को अधिक चापलूसी करके उस माल पर हाथ साफ कर लेता था। 1 दिन लल्लू को बुखार आ गया। उससे हिला भी नहीं जा रहा था। नीम के पेड़ पर बने अपने कोटर ये सारे दिन वह प्यासा बैठा रहा। लोमड़ी का की और चंपू की दर उस दिन आये भी थे। लल्लू उनसे दो गुट पानी लाने को कह कहकर थक गया पर उन दोनों में से किसी ने भी पानी लाकर नहीं दिया। वे तो उस दिन भी लल्लू का हुए का माल हड़पने के लिए आए थे। लाचार होकर वह प्यासा ही तरसता रहा। लल्लू अपने कोटर में बैठा बैठा यही सोच रहा था कि बुरे काम करनेवाले से अधिक अभागा और कोई नहीं होता। उसे अंत में बड़ा पश्चाताप करना पड़ा। विपत्ति मेँ कोई उसका सहायक भी नहीं हुआ। बुरे काम का फल कभी ना कभी मिलता ही है। समाज में एक दूसरे से मिल जुलकर रहना चाहिए। एक दूसरे की सहायता करनी चाहिए तभी संकट के समय हमारी सहायता होगी। तभी दूसरे हमें अधिक से अधिक प्यार करेंगे और हमें सहयोग करेंगे। लल्लू उसी दिन से बदल गया। विचार बदलने पर व्यवहार भी बदल जाया करता है। अब वह दूसरों की कोई भी चीज़ नहीं छीनता था, चोरी नहीं करता था। वह सदैव दूसरों की भलाई ही करता था। सबकी सहायता करता है। जंगल के सारे जानवर और पक्षी बड़ा ही आश्चर्य करते की लल्लू कैसे बदल गया? अब वे सब उसकी प्रशंसा ही करते रहते थे। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि दूसरों की चीजों को बिना पूछे नहीं लेना चाहिए और ऐसा करना चोरी ही कहलाता है। ओके बाइ?",सभी को नमस्कार यह एक चालाक कौवे की कहानी है। मैं सभी बच्चों को सोने के समय की कहानियां नैतिकता के साथ सुना रहा हूं। मेरी कहानियाँ अभिनव और प्रेरणादायक हैं। अपने बच्चों के साथ मेरी कहानियाँ सुनें। यह निश्चित रूप से आपके बच्चे के व्यक्तित्व के निर्माण में मदद करेगा। मेरे यूट्यूब चैनल STORICO को सब्सक्राइब करें "हैलो बच्चों। आज जो कहानी मैं आपको सुनाने जा रही है। उसका टाइटल है चोर कौन? बहुत समय पहले की बात है। किसी शहर में एक व्यापारी रहता था, उसके चार बेटे थे क्योंकि वह बूढ़ा हो गया था इसलिए उसने अपना सारा कारोबार चारों बेटों में बांट दिया। उसके बाद उसने अपने बेटों से कहा देखो अब मेरा आखरी वक्त आ गया है। तुम चारों भाई मिलजुलकर रहना और अपना अपना काम अच्छी तरह देखना। और सुनो मेरे इस पलंग के चारों पायों के नीचे एक एक रत्न खड़ा हुआ है। जब जरूरत पड़े तो एक एक ले लेना। इसके कुछ ही दिनों बाद व्यापारी मर गया। पिता का संस्कार करने के बाद 1 दिन चारों भाई इकट्ठा हुए और उन्होंने रत्न आपस में बांट लेने के लिए पलंग के पायों के नीचे की जमीन खोद डाली और एक भी रत्न मिला। उन्हें काफी हैरानी हुई कि रत्न कहा गए। लगता है हम में से ही किसी ने उन्हें चुरा लिया है। अब रत्नों को फिर से कैसे हासिल किया जाए? कोई ऐसा उपाय करना चाहिए जिससे रत्न भी मिल जाए और चोर भी पकड़ में आ जाये। इसलिए खूब सोच विचार कर चारों भाइयों ने शिवगढ़ की रानी के पास चलने का फैसला किया। उन दिनों शिवगढ़ की रानी का नाम बहुत था। लोग दूर दूर से उसकी राय लेने आते थे। चारो भाई शिवगण पहुंचे। रानी के सामने अपनी बात रखी। रानी ने उन्हें धर्मशालाओं में अलग अलग टिका दिया और जल्दी ही उनका न्याय करने का वचन दे दिया। रात होने पर एक होशियार नौकर के साथ व्यापारी का भेष बदलकर रानी बड़े भाई के पास पहुंची। थोड़ी ही देर में उससे दोस्ती कर ली और दोनों शतरंज खेलने बैठ गए। खेलते खेलते रानी ने एक कहानी सुनाना शुरू कर दी। एक राजा के लड़के और मंत्री के लड़के में। बड़ी गहरी दोस्ती थी। 1 दिन दोनों ने तय किया कि जिसका विवाह पहले होगा वह अपना सारा धन दूसरे को दे देगा। इसके कुछ दिनों बाद ही राजकुमार का विवाह हो गया। उसने राजकुमारी को सारी बातें बता दी और मंत्री के लड़के के यहाँ धन लेकर जाने के लिए कहा। पहले तो राजकुमारी को बड़ा अजीब लगा और बाद में वह उसकी बात मान गईं। गहनों से सजी धजी थाल लेकर वह मंत्री के लड़के के घर की तरफ चल दी। कुछ ही दूर जाने पर चोरों ने उसे घेर लिया। जो राजकुमारी के गहने धन छीनने लगे। इस पर राजकुमारी ने कहा कि तुम मेरे धर्म भाई हो, मैं राजकुमार की स्त्री हूँ और मंत्री के लड़के के पास जा रही हूँ, थोड़ी ही देर में लौट आऊंगी, तब तुम लोग ये सब धन और गहने ले लेना। चोरों के सरदार के मन में ना जाने क्या आया की उसने उसे छोड़ दिया और कहा ठीक है लेकिन लौटते वक्त अपनी बात याद रखना। उधर मंत्री का लड़का उसका इंतजार कर रहा था। वह बाहर आया और उससे बोला आओ बहन अंदर आओ। वह उसे आदरपूर्वक अंदर ले गया। उसके बाद मंत्री के लड़के ने उसे और कीमती गहने और धन देकर और खूब खिला पिलाकर वापस भेज दिया। मंत्री के लड़के ने राजकुमारी से धन का एक सिक्का भी नहीं लिया बल्कि उसे बदले में और धन देकर विदा कर दिया क्योंकि वह उसे अपनी बहन मानता था। बहन को खाली हाथ जाने नहीं देते घर से। आप राजकुमारी पहुंची सीधे चोर के पास उसकी ईमानदारी को देखकर चोरों के सरदार की आँखों में आंसू आ गए। वह बोला। बेटी जब तुम ने हम लोगों को अपना धर्म भाई बना लिया तो अब हम तुम्हारे गहने कैसे ले सकते हैं और उसने खुशी खुशी उसे विदा कर दिया? राजकुमारी महल लौट आयी। इतना कहकर व्यापारी के वेश में शतरंज खेलने वाली रानी ने उस बड़े भाई से पूछा, अब तुम बताओ की राजकुमार मंत्री का लड़का राजकुमारी और चोर? इनमें से ज्यादा तारीफ किसकी की जानी चाहिए? कौन सबसे ज्यादा महान है? इस पर वह कुछ सोचते हुए बोला कि राजकुमार ने ही सबसे बड़ा तारीफ का काम किया है। ना वह कसम खाता और ना उसे निभाता। मंत्री का लड़का उसका क्या बिगाड़ सकता था? परंतु उसने अपना किया हुआ वायदा पूरा किया। उसकी बात सुनकर रानी को विश्वास हो गया की यह आदमी चोर नहीं हो सकता। इसे अच्छे और बुरे की पहचान है। दूसरे दिन उसी तरह वह दूसरे भाई के पास पहुंची। उसे भी उसने वही कहानी सुनाई और वही सवाल किया। दूसरे भाई ने जवाब दिया कि सबसे अधिक तारीफ तो राजकुमारी की होनी चाहिए जो अपने पति का वचन निभाने के लिए। मंत्री के लड़के के पास पहुँच गई और सारा धन देने को भी तैयार हो गयी। रानी को यह भी भला आदमी मालूम हुआ और उसे विश्वास हो गया कि चोरी किए गए रत्न इसके पास भी नहीं है। इसी तरह वह तीसरे भाई के पास पहुंची और कहानी सुनाने के बाद उससे भी वही सवाल किया। अब तीसरे भाई ने जवाब दिया कि मैं तो मंत्री के लड़के की सबसे ज्यादा तारीफ करूँगा, जिसने राजकुमारी को बहन मानकर उसको और सम्मान दिया और धन देकर विदा किया। रानी को यह लड़का भी भला मालूम हुआ। अब बारी आई चौथे बेटे की। चौथे दिन वो सबसे छोटे भाई के पास पहुंची। जब रानी ने कहानी सुनाकर उससे भी वही सवाल दोहराया तो वह बोला कि मेरे विचार से तो चोर ही सबसे तारीफ के काबिल है। क्योंकि इस तरह मुफ्त में मिले हुए माल को छोड़ देना आसान काम नहीं है। यह सुनकर रानी ने पान का एक डिब्बा निकाला। उसमें से ऐसे पान थे जिसमें अफीम पड़ी हुई थी। उसने अफीम वाला पान छोटे भाई को खिला दिया। थोड़ी ही देर में वह बेहोश हो गया। रानी ने उठकर उसके सामान की तलाशी ली और चारों रत्न बरामद कर लिए। दूसरे दिन सुबह उसने चारों भाइयों को अपनी सभा में बुलाया और चारों रत्न दिखाकर पूछा कि क्या यही रत्न हैं? तुम्हारे चारों भाइयों ने रत्नों के बारे में पिता से सुन रखा था। उन्होंने उन रत्नों को देखकर पहचान लिया और कहा, हाँ यही सारे हमारे रत्न। रानी ने उन लोगों को रत्न दे दी है और पूछा कि मैंने तुम लोगो से। किसी से भी एक सवाल नहीं पूछा, ना कोई पूछ्ताछ की और ना ही यह मालूम होने दिया कि चोर कौन है? कहो तुम लोगों को न्याय कैसा लगा? हो गया तुम्हारा न्याय? चारों भाई रानी की यह बात सुनकर अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने रानी का शुक्रिया अदा किया। वे लोग खुशी खुशी अपने घर लौट गए और आपस में मिलजुल कर रहने लगे। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें कभी भी किसी भी चीज़ की चोरी नहीं पहले तो करनी चाहिए। और दूसरा रानी का जो निर्णय था, जो उसका तरीका था चोर का पता लगाने का, वह भी अद्भुत था तो हमें रानी की तरह बुद्धिमान और कर्मशील होना चाहिए। ओके बाइ?",यह एक बूढ़े आदमी और उसके 4 बेटों की कहानी है। उसने उन्हें अपने 4 रत्नों के संग्रह के बारे में बताया। बूढ़ा अपने बेटों को निर्देश देता है कि वे अपने बिस्तर से उन गहनों को इकट्ठा करें और उन सभी के बीच बांट दें लेकिन वे गहने चोरी हो गए हैं। इस कहानी में आपको चोर के बारे में पता चलता है। "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपको सुनाने जा रही हूँ उसका शीर्षक है सजा मनुजी टी बड़ी आलसी थी। उसके बिल की सारी चींटियां दिन रात काम में जुटी रहती थी। परमाणु कभी सिर दर्द का बहाना बनाती तो कभी पेट दर्द का। कभी बुखार की शिकायत करती तो कभी चक्कर आने की। इस प्रकार वह काम से बचने का कोई न कोई बहाना खोजती ही रहती थी। जब कोई बहाना न बना पाती तो धीरे धीरे बड़ी सुस्ती और लापरवाही से काम करती काम को जानबूझकर बिगाड़ने की कोशिश करती जिससे आगे से उसे कोई काम करने को ना कहें। वह यह नहीं सोचती थी कि ऐसा करने से उसकी अपनी हानि है। उल्टा सीधा काम करेगी तो कोई भी उस पर विश्वास नहीं करेगा और ना ही उसे कोई प्यार करेगा। 1 दिन रानी चींटी ने सभी चींटियों को आज्ञा दी कि वे सभी अंडों को बरगद के पेड़ के पास जाकर कुछ देर धूप में रखेंगी। मधुरानी के आगे कुछ ना कह पाई। मन मारकर उसे जाना ही पड़ा। पेड़ के नीचे जब सारे अंडे रख दिए गए तो राधा नाम की चींटी जो श्रमिक चींटियों की नेता थीं, मन उसे कहने लगी मन्नु हमारे खाने का भंडार खत्म होने जा रहा है। अतएव हम सब खाने की तलाश में जा रही है। तुम्हारे पास चीनू को छोड़कर जा रही हूँ, तुम दोनों मिलकर सावधानी से अंडों की रक्षा करती रहना, लापरवाही ना करना तुम्हारे ऊपर बहुत बड़ी जिम्मेदारी छोड़ रही हूँ। मन्नु ने बड़े नखरे से अपनी गर्दन हिलाकर कहा और अंडों के पास उनकी रखवाली के लिए जाकर बैठ गई। थोड़ी देर तक तो वह आराम करती रही, जीनु से बात करती रही और जल्दी ही उसका मन भर गया। धूप में बैठना भी मानु को अच्छा नहीं लग रहा था। वह छाया में लेटकर सोना चाहती थी। मनुचिन उसे कहने लगी मैं ज़रा सा घूमने जा रही हूँ, अभी आती हूँ। चीनू बोली मानु इस समय तुम्हारा जाना ठीक नहीं है। हमारे ऊपर सारे अंडों की सुरक्षा का दायित्व है। हो अभी बस 5 मिनट में पानी पीकर आती हूँ। मानु कुपित से होकर आंखें न जाकर बोली बिना चीनू की ओर देखें उसकी बात बिना सुने बहुत तेजी से वहाँ से निकल दी। बरगद के पेड़ के पास जाकर मनुरो की ठंडी ठंडी हवा आ रही थी। उसका मन प्रसन्न हो गया। पेड़ के नीचे कुछ फल भी बिखरे पड़े थे। मन उने जी भरकर उन पक्के स्वादिष्ट फलों को खाया। फिर वहाँ पेड़ की जड़ में बने। खेत में होकर नीचे घुसी। वहाँ ठंडी ठंडी जगह में उसने अंगड़ाई ली और हाथ पैर पसार कर आराम से सो गई। अचानक आसमान में काले काले बादल उमड़ने लगे। तीनों जीती को बड़ी चिंता हुई कि कहीं पानी आ जाएगा तो सारे के सारे अंडे बह जाएंगे। उसने सोचा कि अब इन्हें जल्दी से लेकर घर चलना चाहिए। जिन्होंने मन को खूब ज़ोर ज़ोर से सैकड़ों आवाजें लगाईं, परमाणु सुनती कहाँ से? वह तो बरगद की जड़ के अंदर आराम से सो रही थी। आखिर चीनू थक गई, उसने सोचा की यह दुष्ट ना जाने कहाँ चली गयी है जल्दी ही कुछ करना चाहिए, नहीं तो सारे अंडे पानी में बह जाएंगे। कुछ अंडों को मुँह में दबाए तेजी से दौड़ती हांफती चीनू अपने बिल में पहुंची और रास्ते में इतना तेज दौड़ी थी कि उसकी सांस फूलने लगी थी, दम सा घुटने लगा था। क्या बात है चीनू उसे देखकर रानी चींटी चिंता भरे स्वर में पूछने लगी। चीनू ने सारी बात बताई कि किस प्रकार बरगद के पेड़ के पास अंडे असुरक्षित पड़े हैं। पानी आने वाला है। जल्दी ही दूसरी चींटियों को भेजिए नहीं तो सारे अंडे बह जाएंगे। रानी ने तुरंत ही चींटियों की एक लंबी सेना अंडे लेने के लिए भेज दी। फिर वह चीन उसे बोली पर तू माँ अकेली कैसे रह गई? सारी चींटियां खाने की खोज में गयी है। मेरे पास मन्नू को छोड़ गयी थी पर उसका कहीं पता नहीं है। आधे घंटे तक मैं उसे आवाज़ दे देकर थक गई। जब वह नहीं आई तो मैं दौड़कर आई हूँ छीनू हांफते हुए बोली, इतना कहकर वह लड़खड़ाकर बेहोश होकर गिर गई। चींटियों से मिलकर बहुत कोशिश की पर चीनू को होश ना आया। धीरे धीरे उसकी सांसों का आना भी बंद होता चला गया। रानी जीती को बहुत गुस्सा आया। वह बोली चीनू के मरने का कारण तो कामचोर मानु है, उसे कठोर दंड मिलना ही चाहिए। कामचोर, आलसी और निकम्मी अपनी हानि नहीं वरन दूसरों की भी हानि करती है। ऐसे को तो अपने साथ कभी नहीं रखेंगे। हम सभी चीटियां, गर्दन और हाथ हिला हिलाकर कहने लगी ठीक है ति या प्राणी जी ठीक कहती है। खूब पानी पड़ा, बिजली कडकी उसके भी बड़ी देर बाद मन्नू की आंखें खुली। आंखें मलते मलते वह उठीं और बोलीं, अरे आज तो बड़ी गहरी नींद आई। संध्या का छुटपुट हो रहा था मानो तेजी से अपने बिल की ओर बढ़ने लगी। रास्ते में वह मन ही मन सोचकर प्रसन्न होती जा रही थी। आज तक खूब मज़ा आया। काम की बला खूब टली। बिल में पहुंचते ही मनो की पेशी रानी चींटी के सामने हुई। मनुहे बिल छोड़कर जाने की आज्ञा दी जाती है। तुरंत ही यहाँ से चली जाओ। रानी चींटी गुस्से में भरकर बोलीं और उसने मन्नू को देखकर मुँह फेरा लिया। मन्नू ने ऐसी कल्पना भी न की थी। यह आदेश सुनकर वह धक्का सी रह गईं और फूट फूटकर रोने लगी। पर रानी चींटी ज़रा भी न पिघली। मन्नु अपने माता पिता के पास जाकर खूब रोईं पर उन्होंने कह दिया की गलती तुमने की है, हम तुम्हारा थोड़ा सा भी पक्ष लेकर गलत का समर्थन नहीं करेंगे। रानी ही तुम्हें माफी दे सकती है। मन हो फिर रानी जीते के पास गई। उसकी रही सही आशा भी टूट गई थी। उसे उम्मीद थी कि उसके माता पिता उसे बचाने की कोशिश करेंगे। वे तो कुछ बिना बोले थे मनो रोती हुई बोली महारानी जी मुझे माफ़ कर दीजिए। देखो मन्नु तुम बहुत ही निकम्मी हो, लापरवाह और कमजोर होती जा रही हो। इन अवगुणों से जीवन में कभी भी कोई उन्नति नहीं कर सकता। वह सचमुच किसी एक को नहीं पूरे समाज को हानि पहुंचाते हैं। रानी चींटी बोली मनुज बहुत रोई गिड़गिड़ाई तो रानी चींटी कहने लगी दंड तो तुम्हें भुगतना ही होगा तुम्हारे ही कारण हमें वफादार और मेहनती चीनू से हाथ धोना पड़ा है। तुम कह रही हो कि आगे से ध्यान से काम करोगी, लापरवाही नहीं करोगी इसलिए तुम्हारा दंड कम किया जाता है। तुम एक महीने बाद बिल में फिर आ सकती हो पर अपनी आदत सुधार के जो बुराईयाँ तुम में देखी गई है, जिनके लिए उनकी आलोचना है, उन्हें अपने अंदर कभी नहीं आने दूंगी। लगातार मनुज इट इस ए रानी चींटी कहती रही लाचार मनुज ईटी को एक महीने के लिए बिल छोड़कर जाना पड़ा। वह अकेली पुष्कर तालाब के किनारे घूमती रही। ना कोई उससे बात करने वाला है ना कोई ध्यान रखने वाला। वह सारे दिन काम करती रहती जिससे कि उसका आलसीपन छूट जाए। मन्नू चाहती है कि जल्दी से जल्दी एक महीना पूरा हो और अपने परिवार में जाकर हँसी खुशी से रहे। मन्नू ने प्रतिज्ञा कर ली कि अब वह कभी भी आलसी और लापरवाही नहीं बनेगी। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें हमेशा कर्मठ रहना चाहिए अर्थात काम और अपने कर्तव्य पूरी तरह से करने चाहिए। आलस नहीं करना चाहिए। ओके बाय।",यह एक चालाक चींटी की कहानी है। वह बहुत आलसी और गैरजिम्मेदार है। वह हमेशा गलतियाँ करती है ताकि कोई उसे कुछ काम करने के लिए न कह सके। उसके बुरे बर्ताव का नतीजा यह हुआ कि उसकी टीम के एक सदस्य की मौत हो गई। उसकी गलती देखने के लिए रानी चींटी ने उसे दंडित किया। कहानी सुनें और नैतिक प्राप्त करें। "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपको सुनाने जा रही हूँ उसका टाइटल है नंदू को दंड नंदू चूहे में एक बुरी आदत थी, वह थी बहुत बोलने की। हर समय वह कुछ ना कुछ बोलता ही रहता था। उसकी माँ उसे समझाया भी करती थी की बेटा बहुत बोलने की आदत ठीक नहीं है। व्यर्थ बोलने में बहुत ही शक्ति खर्च होती है। काम की बात ही बोलो पर नंदू था कि मानता ही ना था। धीरे धीरे नन्दू में चुगलखोरी की भी आदत आ गई। वो इधर की उधर लगाकर झूठ बोलकर लोगों को परेशान करता था, दूसरों में लड़ाई लगवाता था। ऐसा करने में उसे मज़ा आने लगा। नन्दु रोज़ ही कुछ ना कुछ शरारत करने लगा। 1 दिन उसने देखा कि मी टू बत्तख अपनी चोंच में खाना दबाएँ चली जा रही है। मीतू या खाना अपने बच्चों के लिए ले जा रहे हैं। खाना देख कर नंदी को भी भूख लगने लगी। बस सोचने लगा की वैसे तुमी तो कुछ देगी नहीं। इसलिए उसके पास पहुँच गया और बोला। नमस्ते मी टू मौसी नमस्ते बेटा खुश रहो मीतू कहने लगी, नंदू बोला मौसी सारस मामा कह रहे थे कि तुम कुछ भी काम नहीं करती हो, तुम्हारा खाना भी वही खोजते। यह सुनकर मीतू एकदम भड़क उठीं और बोलीं, हाँ, हाँ, मैं तो निकम्मी हूँ मैं क्यों ढोंगी अपना खाना? फिर वह अपने मुँह से ज़ोर ज़ोर से बक बक की आवाज निकालते हुए आँखें नचाते हुए बोलिये। यह सोना सारस भी ना जाने अपने आप को क्या समझता है। 1 दिन खाना खिला दिया तो रोज़ रोज़ गाता पड़ता है अभी देखती हूँ उसे जाकर। और वह पैर पटकती हुई अपना खाना छोड़कर तुरंत जल्दी। नन्दू चूहे ने बड़ी खुशी से वह सारा खाना खाया, फिर संतोष से अपनी मूंछों पर हाथ फिराया। इसके बाद वह मीतु और सोना जारस की लड़ाई देखने चल दिया। सोना सारस को तो कुछ भी पता न था। मीतु बाद तक ज़ोर ज़ोर से लड़ती ही जा रही। नन्दू उनको उनकी इस लड़ाई में खूब मज़ा आया ऐसी अनेक तरह की लड़ाईयां कराना। नंदू जुए के लिए बड़ी मामूली सी बात थी। उसकी माँ उसे हमेशा समझती थी, नन्दु तुम जैसा काम करोगे वैसा ही तुम्हे फल मिलेगा। बुरे काम करने वालों को सदैव बुरा फल मिलता है वरना को अभी तक कोई भी बुरा फल ना मिला था इसलिए वह बुरे काम छोड़ नहीं पाता था। 1 दिन नंदू घूमते घूमते महाराजसिंह की गुफा तक जा पहुंचा। महाराज बैठे आराम कर रहे थे। नंदू को यहाँ भी शरारत सूझी। उसकी झूठ बोलने की आदत यहाँ भी ना झूठी। उसने हाथ जोड़कर महाराज के आगे झुककर नमस्कार किया और बोला राजन आप जैसे प्रतापी राजा कभी कभी ही भाग्य से मिलते हैं? सिंह ने अपने नथनों को ज़ोर से हिलाया और मूंछों पा गर्व से बड़बड़ाया नन्दु आगे कहने लगा, महाराज कोई आपकी बुरा ई करें तो मुझसे से ये नहीं होता। किस में है इतना सॉस? क्षेत हरा हिंदू ने दोनों हाथ जोड़ते हुए झुककर कहा महाराज आपका मंत्री भोलू भालू ये कह रहा था की आप तो सारे दिन ही पड़े पड़े आराम फरमाते रहते हैं जनता के सुख दुख से तो आपको कोई मतलब ही नहीं। अच्छा क्या करते हो घर जा? उसने नंदू को वहीं रुकने का आदेश दिया था और एक सैनिक को हुक्म देकर भेजा जाओ। भोलू भालू को बुला लाओ। नन्दू मन में सोचने लगा की आज मैं अच्छा फंसा। उसने तो सोचा था कि सिंह को भड़काकर वह तो वहाँ से चला जायेगा। पीछे सिंह और बालू दोनों आपस में लड़ते रहेंगे। पर सिंह ने तो उसे वही बैठने का आदेश दे दिया था। अब तो वो वहाँ से बाहर भी नहीं निकल सकता था। तभी नंदू के दुर्भाग्य से मीतू बदतर और सोन सारद भी वहाँ आ पहुँचे। अब उन दोनों में सलाह हो गयी थी। नन्दू कि वह चालाकी उन्हें पता लग गई थी। वे उसकी चुगल खोरी की महाराज से शिकायत करने आए थे। ने विस्तार से सारी घटना बताई। उसे सुनकर सिंह को नंदू जुए पर बड़ा गुस्सा आया। तभी दरबार में लोमड़ी, हाथी, ऊंट, भालू आदि और भी जानवर आ गए। बेबी कभी ना कभी नंदू की शरारतों को भुगत चूके थे। सभी ने नंदू की बुराइ की। भोलू भालू कह रहा था महाराज मैंने तो कभी आपकी बुराइ किसी से नहीं की या नंदू ही सभी की बुराइ इधर उधर करता फिरता है। ऊंट, हाथी, लोमड़ी आदि सभी ने अपनी अपनी गर्दन हिला हिलाकर इस बात का समर्थन किया। आप सींगों को बड़ी ज़ोर से गुस्सा आ गया। उसने नंदू को दंड सुनाया, नन्दु तुम्हारी इस आदत से सभी में झगड़ा होता है। दूसरों में लड़ाई कराकर तुम तमाशा देखते हो। मुझे तुम पर बहुत गुस्सा आ रहा है। मेरा बस चले तो तुम्हे भाजी पर चढ़ा दूँ, पर अभी ऐसा नहीं करूँगा। एक बार तुम्हे समझने का मौका अवश्य मिलेगा। मैं अपने सैनिकों को आज्ञा देता हूँ की तुम्हारी मूंछ और पूंछ काट लें। सिंघ के सैनिकों ने तुरंत आगे बढ़कर ऐसा ही कर दिया। मीतू बट तक बोली। कितना समझाया था इस नंदू को पर्याप्त अपनी? चुगलखोरी की और झूठ बोलने की आदत छोड़ता ही न था। आखिर में इसको दंड मिल ही गया। अभी आप अपनी गलत आते छोड़ देगा। सोना सारस कह रहा था वो रे काम का फल निश्चित ही मिलता है आज नहीं तो कल भुगतना ही पड़ता है। ना तो कोई प्रोडी किसी को बुरा सोचें और न किसी का बुरा करें। हमेशा सबका भला सोचने और भला करे, वही बुद्धिमान होता है। भोलू भालू ने कहा नंदू जुए का सिर शर्म से झुक गया। कटी पूंछ और कटी मूंछों को लेकर माँ के सामने वह दहाड़े मार मार कर रोने लगा। माँ ने सिर पर हाथ फिराते हुए बोला, बेटा जो हुआ उसे भूल जाओ, मूंछ और पूंछ तो दुबारा आ जाएंगी, अब तो अच्छा बनने की कोशिश करो। फार्मर ऐसा कहकर नंदू अपनी माँ से चिपटकर बिलख बिलख कर रोने लगा। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें कभी भी झूठ नहीं बोलना चाहिए और अपने स्वार्थ के लिए दूसरों में लड़ाई लगवाना नहीं करना चाहिए। ओके बाय।",सभी को नमस्कार यह एक शरारती चूहे की कहानी है जो जंगल में हर किसी को चिढ़ा रहा है। मैं सभी बच्चों को सोने के समय की कहानियां नैतिकता के साथ सुना रहा हूं। मेरी कहानियाँ अभिनव और प्रेरणादायक हैं। अपने बच्चों के साथ मेरी कहानियाँ सुनें। यह निश्चित रूप से आपके बच्चे के व्यक्तित्व के निर्माण में मदद करेगा। मेरे यूट्यूब चैनल STORICO को सब्सक्राइब करें "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपके लिए लेकर आई हूँ उसका शीर्षक है चतुर की दुश्मनी। बहुत समय पहले की बात है। एक बहुत बड़ा विद्वान था। अपने पिछले जन्म के संस्कार के कारण वह चोरी किया करता था। बस यही आदत उसके अंदर सबसे बुरी थी। एक बार की बात है। वह अपने नगर में घूम रहा था तभी उसकी नजर चार ब्राह्मणों पर पड़ी। वह ब्राह्मण कहीं पर्दे से उस नगर में आए हुए थे। उसने बड़ी गौर से उन ब्राह्मणों को देखा। चारों अच्छी हैसियत के मालूम होते थे। उसने उनका पीछा किया। तो देखा कि वे चारों ब्राह्मण बाजार में अपने साथ लाई गई अनेक प्रकार की कीमती व मूल्यवान वस्तुओं को इधर उधर बेच रहे थे। कई दिन तक विद्वान ने उनका पीछा किया। देखते ही देखते उन ब्राह्मणों के पास बहुत सारा धन इकट्ठा हो गया था। विद्वान बराबर उनकी देखरेख कर रहा था। उसका धन देखकर विद्वान की नीयत खराब होने लगी। वह सोच रहा था कि किस प्रकार इन चारों ब्राह्मणों का धन हड़प लूँ? फिर मुझे काफी दिनों तक चोरी करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। मैं बहुत दिनों तक आराम से खाता रहूंगा और मज़े से अपनी जिंदगी बसर करूँगा। यह बात सोचकर वह चारों ब्राह्मणों के पास जा पहुंचा। धीरे धीरे उनसे बातचीत करके उनसे दोस्ती बढ़ानी शुरू कर दी। उसने मीठी मीठी बातें करके उन पर अपना यकीन जमा लिया। वह उनका मन जीतने के लिए उन लोगों की सेवा भी करने लगा। विचारों ब्राह्मण, उसकी सेवा भाव और मीठी मीठी बातों से बहुत जल्दी प्रभावित हो गए। 1 दिन अपना माल बेचने के बाद परदेसी ब्राह्मणों ने सोचा कि क्यों ना इन पैसों का कीमती माल खरीद लिया जाए। इस प्रकार हमारे पैसे भी सुरक्षित रहेंगे या सोचकर उन्होंने उन पैसों से कीमती रत्न और हीरे जवाहरात खरीद लिए? उन्हें डर था कि कहीं रास्ते में कोई चोर डाकू हमारा माल लूट ले। इसलिए उन्होंने एक उपाय सोचा जिससे माल भी सुरक्षित रहे और चोर डाकू भी ना पकड़ सके। उन्होंने चोरी के डर से अपने सारे रत्न अपनी पैर की खाल के अंदर छुपा लिए। फिर वह चारों ब्राह्मण अपने देश लौटने की तैयारी करने लगे। यह देखकर वह चोर विद्वान चिंता में पड़ गया। वह सोच रहा था की ये तो अपने देश जा रहे हैं, फिर मैं इनका माल कैसे लूटूँगा? उसे अब तक कोई मौका नहीं मिल पाया था। उसने सोचा यहाँ तो इनका माल मैं हड़प नहीं कर सकता, इसलिए मैं इनके साथ ही चलता हूँ। फिर रास्ते में कोई अच्छा सा मौका पाकर मैं इन चारों को जहर देकर मार डालूंगा और इन चारों के रतन लेकर वापस लौट जाऊंगा। या उपाय सोचते ही वहाँ मनी मन बड़ा खु़श हो रहा था। उसे खुशी इस बात की थी कि जंगल के रास्ते में उसे बहुत से ऐसे मौके मिलेंगे जहाँ वह आसानी से उन चारों को मार सकता है। फिर उसके बाद तो उसके दिन ऐश से गुजरेंगे। वह इतनी धन दौलत का अकेले ही मालिक होगा। फिर उसने सोचा कि अगर इन चारों ब्राह्मणों ने मुझे अपने साथ ले जाने से इनकार कर दिया तो फिर क्या होगा? मेरी सारी योजना पर पानी फिर जाएगा। अगले ही पल उसका चेहरा खुशी से दमक उठा और वह तुरंत उन चारों ब्राह्मणों के सामने जा पहुंचा। फिर उसने बड़ी दीनता के साथ हाथ जोड़कर कहा, मैं आप लोगों से एक प्रार्थना करना चाहता हूँ, अगर आप उसे स्वीकार कर लें तो कैसी प्रार्थना, तो हमारे सामने क्या कहना चाहते हो? चारों ने पूछा बहुत क्लिअर है कि मैं आप लोगों के मोह में कुछ ऐसा फंस चुका हूँ की अब आप लोगों के बिना मेरा अकेला रहना अपना मुमकिन है। मेरा तो दिल भी नहीं लगेगा। तो फिर तुम क्या चाहते हो? साफ साफ खुलकर क्यों नहीं बताते? उन्होंने पूछा। मैं यह चाहता हूँ की आप लोग मुझे भी अपने साथ लेकर चलिए। उसने प्रार्थना की। मगर तुम हमारे साथ हमारे देश में किस प्रकार रह सकोगे? उन्होंने पूछा, आप मेरी चिंता मत कीजिए, मैं आप लोगों के साथ रहूंगा, आप लोगों की सेवा करता रहूंगा। इस प्रकार मेरा दिल भी लगा रहेगा और आप लोगों का साथ भी हो जाएगा। उसने कहा चारों ब्राह्मणों ने एक दूसरे की तरफ देखा आँखों ही आँखों में उन चारों ने कुछ कहा। फिर उन ब्राह्मणों को उस विद्वान ब्राह्मण पर दया आ गई और उन्होंने उसकी तरफ देखते हुए कहा कि ठीक है तुम हमारे साथ चल सकते हो, हमें तुम्हें ले जाने में कोई आपत्ति नहीं है। बहुत बहुत धन्यवाद। उसने कहा, फिर अगले दिन विचारों उस ब्राह्मण को अपने साथ लेकर अपने देश जाने के लिए निकल पड़े। रास्ते में बहुत घना जंगल पड़ता था। उस जंगल को पार करके ही वह अपने देश पहुँच सकते थे। सावधानीपूर्वक वालों को जंगल को पार कर रहे थे। वे लोग उस जंगल के बीचोबीच से गुजर रहे थे कि तभी एक कौए की आवाज उनके कानों में पड़ी। उन लोगों ने हैरानी से कुएं की तरफ देखा। वह कौआ डाकुओं का पालतू को हुआ था और चिल्ला चिल्लाकर कह रहा था देखो लागों के रत्न लेकर यह धनकुबेर पैदल ही जा रहे हैं। इन्हें मारकर धन लूट लो, लूट लो वह चारों और पांचवा विद्वान भी उस कुएं की तरफ हैरानी से देखने लगा। टाकू ने कौए की आवाज सुनी तो वे सारे के सारे बाहर निकल आए और उन पांचों ब्राह्मणों पर टूट पड़े। उन्होंने उन पांचों ब्राह्मणों को लाठी से पीटना शुरू कर दिया। वह पांचों लाठी से पीटने के कारण बुरी तरह घायल हो गए थे, इसलिए वे सारे ब्राह्मण घायल होकर जमीन पर गिर पड़े। उनके गिरते ही डाकुओं ने उनके कपड़ों की तलाशी लेना शुरू कर दी ताकि उनका माल लूट सके। जब डाकुओं को तलाशी लेने पर कोई रत्न नहीं मिला तो वह हैरान होकर बोले। अरे मुसाफिरों, हमारे इन पक्षियों की बात कभी झूठ नहीं निकलती। तुम लोगों ने अपना धन कहाँ छुपा रखा है? उसे तुरंत निकाल दो। हमारे पास कोई धन नहीं है, अभी तुमने हमारी तलाशी ली है न? उन्होंने कहा। शेरो पुल से माल का पता बताओ, वरना हम लोग तुम्हें मार डालेंगे और तुम्हारा एक एक अंक काट कर देखेंगे। चोर ब्राह्मण ने विचार किया की ये चोर किसी प्रकार नहीं मानेंगे। ये चारों ब्राह्मणों को मार डालेंगे और सारे रत्न लेने के बाद मेरी भी तो हत्या कर देंगे। वैसे भी 1 दिन तो मरना ही है। इन बेचारो की रक्षा करने के लिए अपना ही बलिदान क्यों ना दे दूँ? मैं ऐसा निश्चय करके उसने चोरों से कहा, तुम्हें हमारी बात पर यकीन नहीं आता तो ऐसा करो, पहले मुझे मार कर देखलो हमारे शरीर में कहीं रत्न छुपे हैं या नहीं? उसकी बात सुनकर डाकुओं ने उसे मार डाला। उसके अंगों को देखा खोल कर, लेकिन कहीं कोई रत्न नहीं मिला तो उसकी हत्या करके वे लोग बहुत पछताने लगे। उन्होंने फिर उन चारों ब्राह्मणों को कुछ नहीं कहा। और आजाद कर दिया। विद्वान होने के कारण ही उस चोर ब्राह्मण ने उन चारों ब्राह्मणों की रक्षा कर ली, जिन्हें वह स्वयं लूटना चाहता था। इसीलिए कहा गया है कि मूर्ख की मित्रता से चतुर की दुश्मनी भी अच्छी होती है। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें हमेशा दोस्ती अच्छे और विद्वान लोगों के साथ ही करनी चाहिए। उप के बाइ।","सभी को नमस्कार, यह एक बुद्धिमान व्यक्ति की नैतिक कहानी है। बुद्धिमान व्यक्ति की एक बुरी आदत है, वह लोगों से चीजें चुरा रहा है। एक बार उनकी मुलाकात 4 लोगों से हुई। वे दूसरे शहर से व्यापार के सिलसिले में आए थे। वह उनका पैसा भी चुराना चाहता है लेकिन दुर्भाग्य से वे सभी जंगल में लुटेरों द्वारा पकड़ लिए जाते हैं। अंत में क्या हुआ, क्या वे लुटेरों द्वारा भाग गए या मारे गए? पूरी कहानी सुनें और कहानी के नैतिक के बारे में जानें।" "हैलो बच्चों, आज जो कहानी मैं आपके लिए लेकर आई हूँ, उसका टाइटल है एकता में शक्ति बहुत समय पहले की बात है। किसी जंगल में बरगद का एक विशाल पेड़ था, वह पेड़ बहुत ही घना और पुराना था। उसके ऊपर बहुत से पक्षी रहते थे, उसी पेड़ के ऊपर एक काला सेहत का हुआ भी निवास करता था। एक बार कोई बहेलिया घूमता हुआ उधर आ पहुंचा। अचानक उसकी नजर बरगद के पेड़ पर पड़ी। उसने देखा कि उस बरगद के पेड़ पर बहुत से पक्षी रहते थे। बहेलिया। यह देखकर मन ही मन बहुत खुश हो। उस बहेलिए ने बरगद के पेड़ के नीचे अपना जाल बिछा दिया। उसने वहाँ पेड़ के नीचे कुछ चावल के दाने बिखेर दिए और वही पेड़ के पास ही छिप कर बैठ गया। उसी समय कबूतरों का एक झुंड उड़ता हुआ वहाँ आ पहुंचा। एकाएक कबूतरों की नजर चावल के दानों पर पड़ी। उस समय कबूतरों का राजा चित्रग्रीव भी उनके साथ। उचित अग्रिम और उसका परिवार नीचे उतरकर दाना चुगने लगा भर सभी कबूतर बहुत भूखे थे इसीलिए खाना देखकर अत्यंत व्याकुल हो गए और नीचे उतरकर चावल चुगने लगे। उसी समय सभी कबूतर जाल में फंस गए। अब तो कबूतर अपनी इस गलती पर बहुत पछता रहे थे। वह चावल के लालच में आकर जाल में फंसे थे। उसी समय बहेलिये ने देखा तो वह इतने सारे कबूतरों को फंसा देखकर बहुत खुश हुआ। उसने सोचा, आज तो इतने सारे कबूतर फंसे हैं, बहुत सारी कमाई होगी। चित्र ग्रीफ ने बहेलियों को सामने से आते हुए देखा। तो वह उसे देख कर घबरा गया, लेकिन उसने अपनी हिम्मत नहीं हारी थी। वह अपने साथियों से बोला। हम सब संकट में फंस गए। लेकिन घबराने से कोई लाभ नहीं होगा। तो फिर हम लोग को इस संकट के समय क्या करना चाहिए? उन सब कबूतरों ने पूछा इस संकट की घड़ी में हम लोगो को बहुत बुद्धि से काम लेना होगा। उसने उन्हें समझाया, आप ही हमें बताईये, आप ही ज्यादा समझदार है, अब हम क्या करें? एक उपाय ऐसा बताइए? एक उपाय है मेरे पास क्या महाराज उन कबूतरों ने पूछा देखो साथियों वो बहेलिया सीधा हमारी तरफ ही आ रहा है, अब जैसा मैं कहूं वैसा ही करना। बताओ हम लोगो को क्या करना होगा? वो बहेलिया तो बहुत ही करीब आ गया है। वे सब बोले। अब सब मिलकर ज़ोर लगाओ और इस जाल को अपने साथ लेकर तेजी से उड़ों कबूतरों का राजा बोला तभी हम सब लोगों की जान बच सकती है। राजा किया गया पाते ही सभी कबूतर एक साथ ज़ोर लगाकर आकाश की ओर उड़े व सभी कबूतर जाल के साथ ही आकाश में उड़ गए थे। जब तक वह बहेलिया पास आया तब तक कबूतर उसका जाल लेकर वहाँ से उड़ चूके थे। बहेलिया कबूतरों के पीछे पीछे दौड़ने लगा मगर वह कबूतर काफी उचाई पर उड़ रहे थे। चाहकर भी बहेलिया उन्हें नहीं पकड़ सकता था। वह दूर से ही उन्हें ललचाई नजरों से देखता रह गया। वह सोच रहा था कि इस समय तो इन पक्षियों में गहरा संगठन है लेकिन उड़ते उड़ते इनमें किसी बात पर मनमुटाव जरूर पैदा हो जाएगा। जब इन का पतन हो कर रहेगा? लेकिन कबूतर जाल के साथ जुड़ते ही जा रहे थे, उन्होंने पीछे मुड़कर बहेलिये की तरफ देखा तक नहीं। अब वह काफी उचाई पर उड़ रहे थे। साथियों, अभी उड़ते ही रहो बहेलिया हमारा पीछा भी कर सकता है। चित्र ग्रीफ बोला। सरदार व बेलिया हमें अब कभी नहीं पकड़ सकता, सभी कबूतर बोले। फिर भी कुछ पता नहीं वो कभी भी चकमा देकर हमें पकड़ सकता है। उसने कहा, कबूतर बराबर उड़ते ही जा रहे थे जबकि बहेलिया उनसे काफी पीछे छूट गया था। फिर उसने अपने साथियों से कहा चौथी यू तुम लोग थके तो नहीं? वैसे भी बहुत भारी जाल है। राजा ने पूछा नहीं सरदार। फिर चित्रग्रीव ने पीछे मुड़कर देखा कि कहीं बहेलिया हमारे पीछे तो नहीं आ रहा लेकिन बहेलिया उनकी पहुँच से बहुत पीछे रह गया था। सत्यों लगता है की वो बहेलिया हमसे काफी पीछे छूट गया है। अब डरने की जरूरत नहीं। अब हमे क्या करना चाहिए? सरदार सभी कबूतरों ने एक साथ पूछा। उसने अपने साथियों से कहा अब हम सब को पूर्वोत्तर दिशा की ओर चलना चाहिए। क्यों सरदार? उधर मेरा एक परम मित्र चूहों का सरदार रहता है। उसने बताया वहाँ जाने से हमें क्या लाभ हो सकता है? सभी कबूतरों ने एक साथ पूछा वह उस जाल को काटकर निश्चय ही हमें संकट से मुक्त कर देगा। वह बोला ठीक है सरदार विपत्ति के समय आखिर दोस्त ही तो काम आते हैं। सब कबूतर बोले। फिर सभी कबूतर चूहे के बिल के पास जा पहुंचे और नीचे उतर गए। बिल के द्वार पर पहुँचकर चित्रग्रीव ने चूहों के राजा को आवाज लगाई। अरे भाई जल्दी आओ मैं समय बहुत बड़े संकट में फंसा हूँ। चित्रग्रीव की आवाज सुनकर चूहा बहुत खुश हुआ। वह निडर होकर बिल से निकलकर बाहर आ गया। उसने जाल में फंसे अपने मित्र और अन्य कबूतरों के झुंड को देखा। फिर उसने चित्र गीत से पूछा क्या कैसे हुआ मित्र चित्रग्रीव ने बताया। दोनों चुगने के लालच में हम सब बहेलियों के जाल में फंस गए हैं। अब तुम इस बंधन से हमें जल्दी ही आजाद कर दो। चूहे ने तुरंत अपने पहने दांतों से जाल काट दिया। उसने चित्रग्रीव से कहा। अब आप सब अपने अपने घर जाओ, फिर कोई संकट आए तो मुझे अवश्य याद कर लेना। इस तरह परस्पर सहयोग और एकता की वजह से कबूतर बहेलियों के जाल से मुक्त हो गए। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि एकता में बहुत शक्ति होती है। हमें सदैव मिलजुल कर ही सारी समस्याओं का सामना करना चाहिए। ओके बाय।","सभी को नमस्कार, यह एक छोटी चिड़िया कबूतर 🐦 की एक नैतिक कहानी है। कबूतरों के समूह को एक शिकारी ने जाल में फँसा लिया। लेकिन वे अपनी बुद्धि और एकजुटता से इस विकट स्थिति से मुक्ति पा लेते हैं। पूरी कहानी सुनें और कहानी के नैतिक के बारे में जानें।" "क्या आप भी अपना पॉडकास्ट बनाने का सोच रहे हैं? तो ऐंकर ट्राई कीजिए, ये पॉडकास्ट बनाने का सबसे आसान तरीका है। नंबर एक ये फ्री है नंबर दो। इसमें कई सारे ऐसे टूल्स है जो आपको अपने फ़ोन और कंप्यूटर पर रिकॉर्ड और एडिट करने की फैसिलिटीज देते हैं। नंबर तीन आप अपने पॉडकास्ट को डिस्ट्रीब्यूट भी कर सकते हैं, जिससे इसे इस स्पॉटिफाइ और दूसरे प्लैटफॉर्म्स पे सुना जा सकें। डाउनलोड कीजिये ये फ्री एंकर ऐप या विजिट कीजिए ऐंकर डॉट ऐफ़ एम अपना पॉडकास्ट स्टार्ट करने के लिए? हैलो बच्चों, आज जो कहानी में आपको सुनाने जा रही हूँ उसका शीर्षक है पोल खुल गई। एक थे बगुला भगत। जब वह बूढ़े हो गए तो उनके खाने की एक बड़ी समस्या हो गई। बुढ़ापे के कारण शरीर भी अशक्त सा हो गया था, अतएव शिकार करने में उन्हें बड़ी परेशानी होती थी। भरपेट खाना ना मिल पाने के कारण वे धीरे धीरे दुबले हो गए। ऐसे कब तक चलेगा? 1 दिन उन्होंने सोचा और वे कोई तरकीब सोचने लगे। वे कुछ देर सोचते रहे, सोचते रहे, फिर सहसा ही उछल पड़े। दूसरे ही दिन से बगुला भगत ने अपनी योजना के अनुसार ही काम करना शुरू कर दिया। अपने दो चार साथियों को लेकर वे गंगा की ओर बढ़ चले। गंगा के तट पर बस्ती के किनारे बगुला भगत ने डेरा डाला। वहाँ वे गंगा में एक पैर से खड़े होकर राम राम का जप करने लगे। उनके साथी जगह जगह जाकर प्रचार करते की बगुला भगत पहुंचे हुए संत हैं, तपस्वी है। गंगा के किनारे रहने वाले पक्षियों से बार बार यही बात कहते। पक्षी भी बगुला भगत को सदैव साधना में लगा हुआ ही देखते फल या हुआ कि धीरे धीरे वे सभी उन्हें संत और तपस्वी मानने लगे और उनके भक्त बन गए। अब बगुला भगत जी के नाम से प्रसिद्ध हो गया। 1 दिन जब भगत जी के दर्शन के लिए बहुत सारे जीव जंतु एकत्रित थे, तब वे बोले भाई यो मेरी साधना सफल हो चुकी है, भगवान ने मुझे दर्शन दिया है। उन्होंने आदेश दिया है कि मेरी बनाई हुई श्रेष्ठ की सेवा ही सबसे बड़ी साधनाएं अत यदि तुम मेरा आशीर्वाद चाहते हो तो दूसरों के उत्थान में जुट जाओ। धन्य है आप धन्य हैं आप सभी के मुँह से निकला। भगत जी ने आगे फिर कहा, मैं सोचता हूँ कि बच्चों की भावी पीढ़ी का निर्माण बहुत बड़ा काम है। मैं बच्चो का एक बड़ा विद्यालय खोलना चाहता हूँ, मैं उन्हें एक श दूंगा। अपने सामान ज्ञानी बनाऊंगा, चरित्रवान बनाऊंगा और बहुत ऊंचा उठाऊंगा। आप सभी अपने बच्चों को विद्यालय भेजें। फिर क्या था दूसरे ही दिन से मुर्गा तो ताक, कोयल, चिड़िया, गिलहरी, सारस, मोर आदि सभी ने अपने अपने बच्चे वहाँ भेजने शुरू कर दिए। स्कूल चलाने से बगुला भगत को कई फायदे हुए। एक तो यही की बच्चे अपने घरों से खाने पीने का कुछ ना कुछ सामान लेकर आते थे। उनके माता पिता श्रद्धा बस कुछ न कुछ भेजते ही रहते थे। बच्चों से दूसरा लाभ यह भी था की भगत जी उनसे अपनी खूब सेवा कर आया करते थे। कभी शांता कोयल से अपने पैर दबाते तो कभी श्वेता के लहरी से अपनी पीठ सुशील सारस उनके घर का बहुत सारा काम कर दिया करता था। गुरु महाराज की पाठशाला के दो बच्चे सूची गिलहरी और अमित सारस बड़े ही शरारती थे। वह पढ़ने में बहुत तेज थे। एक बार बताई हुई बात को अच्छी तरह समझ जाते थे। उन्हें भगत जी की यह बात बड़ी बुरी लगती थी कि वे बच्चों को कुछ सिखाते हैं और खुद उसका उल्टा काम करते हैं। बच्चो से तो यह कहा करते कि जीवों की हत्या बहुत बुरी बात है। इससे हिंसा होती है, पाप चढ़ता है जैसी जान दूसरों में वैसे ही हम सब में अटैक हम कभी भी किसी को मन से दुख ना पहुँचाए और सूची और अमित ने अनेकों बार देखा था कि भगत जी गंगा के तट पर पूजा करते करते सबकी आंख बचाकर चुपके से मछली गप कर जाते हैं। पहली बार तो उन्हें अपनी आँखों पर विश्वास ही ना हुआ था। वह तो उन्हें बड़ा ही सज्जन और। निष्पाप समझते थे और बार बार छिप कर देखने पर उन्होंने यही पाया तो फिर अपनी आँखों पर विश्वास करना ही पड़ा। उस दिन से उन्होंने उनका नाम भगत घंटाली रख दिया था। अमित और शिवजी ने कई बार कहा, गुरूजी जैसा आचरण आप हमें करने को कहते हैं, वैसा ही आप स्वयं तो करते नहीं है। और मैं बड़ा हूँ, तुम अभी छोटे हूँ, अपने आप को नियंत्रित रखने की तुम्हे जरूरत है। गुरु जी अपनी लंबी सी गर्दन हिलाकर कहते हैं 1 दिन शुचि से न रह गया वह कहीं बैठी गुरु जी आप जो कुछ बच्चों को सिखाते हैं, बड़े ही यदि वैसा नहीं करेंगे तो कैसे काम चलेगा? यदि बड़े भी वही करें तो यह पृथ्वी स्वर्ग बन जाएगी। अरे कल की बच्ची मुझे उपदेश देने लगी। गुस्से में अपना डंडा फटकारते हुए भगत जी बोले अमित और सूजी ने सलाह की कि गुरु जी को मछली खाने की आदत से छुड़वाकर ही रहेंगे। यदि वे मांस खाते हैं तो फिर प्राणियों की हिंसा छोड़ दी है। ऐसा कहकर ढोंग क्यों रस्ते है जैसे अंदर से है वैसे ही बाहर से रहे जो अंदर से कुछ और सोचता और बाहर से कुछ और करता तो उसके जैसा पापी और नीचे कोई दूसरा नहीं है। अमित और सूची ने एक योजना बनाई। वे सभी बच्चों के घर गए, सभी के माता पिता से बोले। बगची एक बहुत बड़ी साधना करने जा रहे हैं, उसे देखने के लिए उन्होंने आपको बुलाया है। कृपया कल ब्रह्म मुहूर्त में गंगा नदी के किनारे बेंत की झाड़ियों के पीछे आप सभी इकट्ठा हो जाए। वहाँ किसी तरह का शोर शराबा ना करें नहीं तो साधना में विघ्न पड़ेगा। कोयल, तोता, मुर्गा, चिड़िया, गिलहरी, सारस आदि सभी के घर घूम घूमकर उन्होंने यह संदेश दे दिया और दूसरे दिन गंगा के किनारे की घनी झाड़ियों के पीछे सभी बच्चों के माता पिता उपस्थित थे। भगत जी की साधना देखने के लिए कोयल, तोता, चिड़िया, मोर आदि सभी पंक्ति बनाकर मौन होकर चुपचाप बैठ गए थे। भगत जी को इस बात का तनिक भी पता न था। झाड़ियों के पीछे छिपे अनेकों अभिभावकों को ये हल्के अंधेरे में देख भी ना पाए। रोज़ की ही भांति पूजा का बहाना करते करते उन्होंने बीच बीच में खूब गप्पस लिया खायी। यह देखकर तो सभी अभिभावकों में खलबली मच गई। वे सभी उनकी आलोचना करने लगे। भगत जी ने आंखें उठायी। सामने से बच्चों के अभिभावकों को आते देखा। तुरंत उन्होंने अपना पैंतरा बदला। राम राम कहते हुए अपने शिष्यों को आशीर्वाद देने के लिए आगे बढ़ें। सबसे आगे कमल सारस था। गुस्से में भरकत लंबी गर्दन हिलाता हुआ वह बोला नहीं चाहिए हमें तुम्हारा आशीर्वाद जान लिया तुम्हारी सच्चाई तुम वैसे हो नहीं जैसा ढोंग रचते हो। कलिया कोयल चोट पर पड़ा कर भी बोल रही थी। सच्ची है। बाहर से संत बन जाने से हमेशा के लिए कोई वैसा नहीं बन जाता। सद्गुणों का निरंतर अभ्यास करना होता है। ऐसा ना होने पर सज्जन भी ना जाने कब धीरे धीरे दुगुनी हो जाते हैं। आपके उदाहरण से स्पष्ट ही हो जाता है। मीना गिलहरी पूंछ फटकार कर पंजों के बल बैठकर बोली। हम भी कितने मूर्ख थे जो आपकी प्रसिद्धि सुनकर विश्वास करने लगे। कभी हमने आँखें खोलकर आपको जज ने परखने की कोशिश भी नहीं की। सच ही है जो अपनी बुद्धि से काम नहीं करता, दूसरों की देखादेखी बातें सुनता है, विश्वास करता है। वह हमेशा धोखे में ही रहता है। पर यह तोता बोला। ध्यान रखो पोल कभी न कभी खुली ही जाती है। अच्छा यही है की जैसे हम अंदर से है बाहर से भी अपने आप को वैसा ही दिखाए। बगुला भगत से यह कहकर बुजुर्ग कछुए ने सभी को शांत किया। जैसे तैसे वहाँ एकत्रित सभी जानवरों के पक्षियों के बच्चों को घर लेकर जल्दी नहीं तो सब के सब भगत जी को सबक सिखाने के लिए उतारू थे। दूसरे दिन कोयल, तोता, चिड़िया, सारस आदि सभी ने अपने अपने बच्चों को स्कूल भेजना बंद कर दिया। उनके बच्चे तो पहले ही भगतजी की शिकायत करते थे, पर उसे तब वे बच्चों की मूर्खता समझते थे। अब उनकी बात पर विश्वास करना ही पड़ा। भगत गुरु का सारे समाज में अपमान भी हुआ। बालवाड़ी भी बंद हुई। पुजापा चढ़ाना भी खत्म हो गया सो अलग। उनकी पोल खुल जाने पर मछलियां भी अब दूसरी जगह चली गई है। भगत जी अब गंगा के सुनसान तट पर अकेले उदास बैठे रहते हैं। पेट भर खाना भी उन्हें मुश्किल से ही मिल पाता है। सच ही है की ढोंगी अंत में दुखी पाता है। तो बच्चो इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें कभी भी सच्चाई का ढोंग नहीं करना चाहिए। जैसा हम अंदर से विचार रखते हैं वैसे ही हमें बाहर भी अपना व्यवहार रखना चाहिए। दूसरों को धोखा नहीं देना चाहिए। ओके बाइ?","सभी को नमस्कार, यह एक पुराने सारस की कहानी है। क्रेन ने एक पुजारी के रूप में नाटक किया। इसने जानवरों और पक्षियों को धोखा दिया। लेकिन आखिरकार दो पक्षियों ने सच्चाई का खुलासा किया और बगुला भगत का सच सामने आया। इस प्रेरणादायक कहानी को सुनें और नैतिकता को जानें।" "ईगो को दो तरह से डिफाइन कराया जा सकता है। एक डेफिनेशन है कि मैं ही मैं हूँ और दूसरी डेफिनेशन है कि मैं अलग हूँ। ज्यादातर लोग सोचते हैं कि ईगो होने का मतलब है बुरा ऐटिट्यूड होना और मतलब ही होना। लेकिन ईगो का असल में घमंड से कोई लेना देना नहीं होता। ईगो होता हैं, आइ या मैं? यानी जो चीज़ एक इंसान को यह बताती है कि वो बाकी चीजों और ई वन बाकी इंसानों से डिफ़रेंट है और उसे इस आय के प्रेसेंट और फ्यूचर को बेहतर बनाना है, यही रीज़न है कि क्यों जानवरों में ईगो नहीं होती। क्योंकि ना तो उनमे यूनीक्नेस की फीलिंग इतनी स्ट्रांग होती है और ना ही वो फ्यूचर के लिए प्लैन कर सकते हैं, जीस तरह से एक इंसान प्लैन कर सकता है। सिगमन फ्रॉयड ने ईगो को एक ऐसी चीज़ की तरह डिफाइन करा है जो हमारी ऐनिमल इस टेम्पलेस और सोसाइटल नॉर्मस दोनों को ध्यान में रखकर ये डिसिशन लेता है कि वो अपना काम कैसे निकलवाए। ईगो ये सोचती हैं कि कैसे उसकी बायोलॉजिकल इन जस्ट इन केस भी रिलीज हो जाए या नहीं। उसे खाना, ***** पैसा या रिस्पेक्ट भी मिल जाए, लेकिन सोसाइटी में उसका ज्यादा नाम भी खराब ना हो। हमने अपने सेकंड चैनल के स्कूल ऑफ विज़्डम के एपिसोड हियर सेल्फ में ईगो को और अच्छे से एक्सप्लेन करने के लिए उसे एक सिपाही बोला था जो एक महल यानी हमारे दिमाग के गहरे हिस्सों तक जाने वाली इंफॉर्मेशन को जज करता है और यह सोचता है कि क्या उसे इस इन्फॉर्मेशन को अंदर आने देना चाहिए या फिर अननेसेसरी लेवल करके रिजेक्ट कर देना चाहिए? लेकिन यहाँ पर प्रॉब्लम ये है कि ईगो को बेवकूफ बनाना बहुत आसान होता है। जस्ट बिकॉज़ वो बिल्कुल भी वाइज नहीं होती। ईगो बस उसी इन्फॉर्मेशन के बेसिस पर फंक्शन कर सकती है, जो अपने बचपन से थी। आपके पैरंट्स ने आपको दी और जो अपने खुद मूवीज़ देख कर, बुक्स पढ़कर या फिर जो इन्फॉर्मेशन अपने अपने लाइफ एक्सपिरियंस से ली और इस सारे डेटा को मिलाकर ईगो हमें ख्यालों के थ्रू बताती हैं कि कब हम गलत कर रहे हैं और कब कुछ सही? जैसे ही हमारे दिमाग में जाने वाली इन्फॉर्मेशन बदली, वैसे ही हमारी ईगो भी डिफ्रेंट्ली फंक्शन करने लगे गी। इसलिए अपनी ईगो पर रिप्लाय करना, कोई भी डिसिशन या फिर ऐक्शन लेने के लिए यह बहुत फुलिश होगा। अगर हमारी ईगो हमारे कंट्रोल में होती तो फिर भी सही होता, लेकिन असलियत में ईगो हमे कंट्रोल करती है। यही रीज़न है कि क्यों इस थॉट को एटलिस्ट कॉन्सेप्चुअल ली समझ लेना बहुत जरूरी होता है कि मैं दूसरों से अलग नहीं हूँ। यह बस ईगो काबू ना झूठ है। ये झूठ फिजिकल लेवल पर तो हमें खुद को खतरों और धोखों से बचे रहने के लिए मोटिवेटेड रखता है। लेकिन साइकोलॉजिकली हमें हमारी ईगो ही आगे बढ़ने से रोकती है। एक इंसान में ईगो जितनी स्ट्रॉन्ग होगी, उतनी ही उसमें सेल्फ इम्पोर्टेन्स होगी। वो बोले गा कि देखो मैं कितना अलग हूँ, मेरी बात सुनो क्योंकि वो ही सच है और जो कोई इंसान खुद नादान होता है वो ऐसे मिस्टिक इंसान की मूर्खता को कॉन्फिडेन्स समझ बैठता है। इसके साथ ही जो इंसान दूसरों को अपनी ऐडवांटेज लेने देता है और खुद को हमेशा डिस्गस्टिंग देखता है, उसकी ईगो भी बहुत स्ट्रॉन्ग होती है, क्योंकि दोनों केसेस में ही फोकस मैं पर है। हमारा ध्यान इस चीज़ पर नहीं होना चाहिए कि दूसरा इंसान हमारे से आगे है या फिर हमारे से पीछे है, क्योंकि यह ख्याल हमारे मन में रिजिस्टन्स पैदा करता है और हम अपने काम को दिल से एन्जॉय करने के बजाय अपनी जिंदगी को ही एक कॉम्पिटिशन बना देते हैं। इसके बजाय हमें सबसे पहले इसी अन्डरस्टैन्डिंग को एक्वायर करना चाहिए। इसे ऑपरेशन झूठ है। मैं इस से रिलेटेड ख्याल असल में हमारे ख्याल नहीं है। वो हमारे अंदर इन्फॉर्मेशन के हैं और मेरे आप में या आप में और किसी महान व्यक्ति में एग्ज़िस्टन्स लेवल पर कोई अंतर नहीं है। अंतर इमैजिनरी है। यही रीज़न है कि क्यों हम ईगो को एक इल्यूजन बोलते है। एग्जाम्पल के तौर पर अगर कोई इंसान ये बोले कि आप तो एकदम स्टुपिड हो, आप में कोई अकल नहीं है, तो आपके दिमाग में एकदम से वह स्टोरी इन्फॉर्मेशन सबसे आगे आ जाती है जहाँ आपने अपने फ्रेंड्स या पैरेंट से यह सुना था। या फिर टीवी पर देखकर ये समझा था कि स्मार्ट होना अच्छी चीज़ होती है और स्टुपिड होना गलत। जीस वजह से आप ऑटोमैटिकली स्टूपिड लेवल करें जाने पर गुस्सा हो जाते हो। जीस चीज़ को हम ईगो बोलते है। वो ख्याल से ज्यादा कुछ नहीं है। कभी एक ख्याल की वजह से कॉनफ्लिक्ट क्रिएट होता है और कभी दूसरे की वजह से ईगो अपने आप में घमंड को जन्म नहीं देती। लेकिन इस इल्यूजन को सच मान लेना कि इस ईगो की जितनी ज़रूरी चीज़ कोई दूसरी है ही नहीं। ये हुआ घमंड। इसलिए आपका गोल होना चाहिए, अपने इस इल्यूजन के पार जाना क्योंकि सिर्फ ये ही अकेला तरीका है ईगो से फ्री होने का। यानी ये समझ कि ईगो तो है ही नहीं और वो चीज़ जिससे ईगो जुड़ी हुई दिखती है यानी की मैं वो भी बस आपस में जुड़े हुए ख्याल है। जो भी इंसान इसमें से दूर खड़े होकर कभी भी इसे क्वेश्चन नहीं करता, वह इन्हीं बातों से क्न्सर्न रहता है कि मुझे किसी ने क्या बोल दिया। मेरी आइडीओलॉजी को कैसे किसी ने क्वेश्चन कर लिया। मेरी किस्मत खराब है या फिर मुझे कोई प्यार नहीं करता। हर तरह के कंपैरिजन और दुख का मेन रीज़न हमारी ईगो ही है। हमारी कम्प्लेन्ट्स इससे आगे बढ़ती नहीं है। कि मुझे दर्द हो रहा है। मेरी गर्लफ्रेंड मुझे छोड़ गई और मेरे पास पैसे नहीं है क्योंकि मैं एक लूँ सर हूँ। यही सारी बातें तो हमें अंदर से खाती है और खा खा कर खोखला बना देती है। ईगो के इल्यूजन में रहकर जिंदगी जीना तो बिल्कुल ऐसा हुआ कि आप अपनी पूरी जिंदगी ही एक कमरे में लाइट बंद करके बैठे रहो और बाहर की दुनिया कैसी है, ये इमेजिन करते रहो। कोई अगर आ कर आपको बोल दे की नहीं, बाहर की दुनिया तो ऐसी नहीं है, तब आप गुस्सा हो जाते हो? कॉन्शसनेस की इसी लेवल पर तो ज्यादातर लोग जीते हैं। अपनी इमैजिनेशन के ही बंधक बनकर और सच से दूर होकर, लेकिन जो इंसान हिम्मत करके अपने अंधेरे की जिंदगी से बाहर असली दुनिया में आता है, तब वो एक्चुअल में जिंदगी जीना शुरू करता है। साइकोलॉजी में ईगो को सबसे बड़े रिप्रेशन का सिम्प्टम मानते हैं। ये रिप्रेशन हमारी ट्रू सेल्फ की नॉलेज होती है। इसका मतलब जब तक ये नॉलेज दबी रहती है कि हम असल में प्युर अवेर्नेस है, तब तक हम अवेर्नेस यानी कॉन्शसनेस को कही बाहर ही ढूंढने लगते हैं और इसी वजह से हमारी ईगो एग्जिस्ट करती है। जैसे ही हमें समझ आ जाएगा कि कॉन्शसनेस हमारे बाहर कहीं या फिर हमारे दिमाग में नहीं बल्कि हम ही कॉन्शसनेस है वैसे ही सारा रिप्रेशन गायब और ईगो का इल्यूजन भी गायब। ईगो इतनी बड़ी प्रॉब्लम नहीं होती अगर वो इतनी यानी इतनी चिपकू नहीं होती है। वैल्यूएशन की वजह से ईगो हमेशा खुद को प्रोटेक्ट करने के मूड में रहती है और यही चीज़ हमारी सक्सेस और ग्रोथ में अड़चन भी डालती है। वो रिऐलिटी को आस इट इस फेस नहीं करना चाहती और हमें हमारे बिलीव्स को बदलने नहीं देना चाहती। ईगो हमें ऐसा फील कराती है कि अगर हमने अपने बिलीव्स के लिए अपनी आखिरी सांस तक लड़ाई नहीं करी तो पूरी दुनिया ही खत्म हो जाएगी, लेकिन असल में जो चीज़ खत्म होएगी वो है हमारी ईगो और इस प्रोसेसर के साथ हमारी बहुत ग्रोथ भी होती है। एक ताश के पत्तों से बने घर को इमेजिन करो और समझो कि किस तरह से उसमें एक एक कार्ड बहुत संभाल के और एक के ऊपर एक लगाया जाता है, जिसकी वजह से अगर एक पत्ता गिरे तो पूरे घर के ढहने की नौबत आ जाती है। हमारी ईगो भी इस ताश के पत्तों से बने घर की तरह ही है, जो हमारे अलग अलग बिलीव्स और एक्सपिरियंस को साथ में एक नेटवर्क की तरह बनने से बनी है। अगर आपके किसी एक बिलीफ को था पहुंचे तो वह ईगो के लिए एक संकेत होता है लड़ने और खुद की जान बचाने का। लेकिन अगर इस तरह से आपके पुराने बिलीव कभी अपनी पावर खो कर गिरे ही ना तो आपकी दुनिया की अन्डरस्टैन्डिंग ग्रो कैसे करेगी? जितनी बार आप अपने पुराने बिलीव्स के ऊपर से डील छोड़कर उन्हें मरने दोगे उतनी बार ही आपकी ईगो धीरे धीरे खुद ब खुद शांत होने लग जाती है और पहले की तरह मौत से डरती भी नहीं है। यानी ईगो को ओवर कम करने का एक तरीका तो स्प्रे चल हुआ जहाँ आप डाइरेक्टली इस अन्डरस्टैन्डिंग को हासिल कर लेते हो कि ईगो एक इल्यूजन है। और वहीं पर आपकी सारी प्रॉब्लम्स खत्म हो जाती है या फिर आप अपने बिलीव्स को कॉन्स्टेंट ली चैलेंज करते हो। दूसरों से डिब्बेट्स करके कभी आपका ब्रेकअप हो गया तो तब आपकी ईगो को चोट पहुंची। कभी आपने ऑनलाइन ऐसा कुछ रीड कर लिया जिससे आप ट्रिगर हो गए या कभी आपने न्यूस में से ऐसी कोई इन्फॉर्मेशन ले ली जो आपके करेंट व्यूस के अगेन्स्ट है तो यहाँ पर भी आपकी ईगो चोट खाकर कई बार मरने और दोबारा जिंदा होने के प्रोसेसेस से गुज़रने के बाद खुद रास्ते से हट जाएगी, लेकिन आप चाहे जो भी रास्ता चूज करो, जो चीज़ जरूरी है वो है बस किसी भी तरह से अपनी इस ईगो को नम करना ताकि आप अपनी जिंदगी को फालतू कामों में वेस्ट करने के बजाय अपनी बीइंग किस सेंटर में आओ, जहाँ आपके अंदर कोई रेजिस्टेन्स या फिर कोई कॉनफ्लिक्ट बचे ही ना आपके लिए जिंदगी जीना इतना आसान बन जाए जैसे पानी के लिए बहना होता है।","अहंकार एक व्यक्ति का "मैं" या स्वयं है। मनोविज्ञान अहंकार को उस मानसिक तंत्र के भाग के रूप में देखता है जो बाहरी दुनिया का अनुभव करता है और प्रतिक्रिया करता है और इस प्रकार जीव विज्ञान के आदिम ड्राइव और सामाजिक और भौतिक वातावरण की मांगों के बीच मध्यस्थता करता है। लेकिन ज्यादातर लोगों को अहंकार की गलत समझ होती है और वे इसे गर्व के साथ मिला लेते हैं। सबसे गहरे स्तर पर हमारा अहंकार और कुछ नहीं बल्कि हमारी यादों और हमारे द्वारा प्राप्त जानकारी से उत्पन्न होने वाले विचारों का एक संग्रह है। जानकारी बदलें और जिस तरह से हमारे अहंकार कार्य भी बदलते हैं। तो, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम बात करेंगे अहंकार क्या है? इसे बुरा क्यों माना जाता है? और अपने अहंकार पर काबू पाने का सही तरीका क्या है।" "आज हम बात करेंगे ऐसी 10 साइकोलॉजिकल ट्रिक्स की जिनकी मदद से हम अपनी लाइफ को एनहैंस कर सकते हैं। इन ट्रिक्स के साथ हम यह समझ पाएंगे कि कैसे हमारा दिमाग कई बार अपने और दूसरों के बिहेव्यर को इन लॉजिकल समझने लगता है। जबकि हमारी हर मूवमेंट डिसिशन या स्पीच के पीछे हमेशा कुछ ना कुछ लॉजिक जरूर होता है। नंबर 10 यू सर मिरर ऐथिकल गाइड अगर आपकी एक ऐसी जॉब है जहाँ पर आपको काफी सारे लोगो से बात करनी पड़ती है। तो आप अपने डेस्क के पीछे एक मिरर लटका सकते हो क्योंकि ऐसा करने पर जो भी इंसान आपसे बात करने आएगा वो ज्यादा शांत और पोलाइट बिहेव करेगा। साइकोलॉजिस्ट मानते हैं कि यह इफेक्ट इसलिए काम करता है क्योंकि जब भी हम अपने आप को शीशे में देखते हैं तब हम थोड़ा सेल्फ़ कॉन्शस हो जाते हैं और जस्ट बिकॉज़ हमें अपने आपको गुस्सा या फिर चिडचिडा देखना पसंद नहीं होता। हम अपनी रिफ्लेक्शन को देखकर थोड़े सिविल बन जाते हैं। यहाँ तक कि अगर हम अपनी किचन में भी एक मिरर लटका लें तब भी हम अपने आप को देखकर अपने ऐक्शंस के बारे में अवेयर हो जाते हैं और जंक फूड कम खाते है। नंबर नाइन से देर नेम आपने ये तो सुना ही होगा कि जब भी हम किसी से बात करते टाइम उनका नाम लेते हैं तो उन्हें वो अच्छा लगता है। एक रिसर्च में पता लगा था कि जब भी हम अपना नाम सुनते हैं तब हमारे दिमाग में अटेन्शन पे करने और मेमोरी बनाने वाले सेंटर्स ऐक्टिवेट हो जाते हैं जिससे हमें एक डोपामिन हिट मिलती है और ऐसे हमारे लिए हमारा नाम लेने वाला इंसान काफी इम्पोर्टेन्ट बन जाता है और हम उन्हें ईज़ी भूलते नहीं है। तो नेक्स्ट टाइम आप जब भी किसी से दुबारा या इवन पहली बार मिलो ट्री करना कि आप अपने सेन्टेन्स में उनका नाम जरूर लो। इससे उनका पूरा ध्यान इस बात पर आ जाएगा कि आप क्या बोल रहे हो और अगर आप कुछ पॉज़िटिव बोल रहे हो तो चान्सेस है की वो आपको ज्यादा लाइक करने लगेंगे। नंबर एट यूज़्ड पिगमेलियन इफेक्ट ग्रीक मैथोलॉजी में एक काफी फेमस स्टोरी है। एक ऐसे नक्काशी करने वाले इंसान की जिसका नाम था पिगमेलियन। स्टोरी के अकॉर्डिंग पिगमेलियन आइवरी यानी हाथी के दांत से बना एक काफी बड़ा पीस लेता है और उसे तराशकर एक काफी सुंदर औरत का रूप देता है। उसके हिसाब से ये औरत एक पर्फेक्ट फीमेल फिगर को सिविल लाइंस करती है और उसका ये स्टैचू इतना ज्यादा अट्रैक्टिव और रिअलिस्टिक था कि उसे इस स्टैचू से प्यार हो गया। अपने इस बिहेव्यर से शर्मिंदा होकर पिगमेलियन ने लव गॉडेस डाइट को कई भेंट चढ़ाई और उससे प्रे कर रहा कि वो एक ऐसी औरत से मिले जो उस स्टैचू का जीता जागता वर्जन हो। इसके बाद जब पिगमेलियन वापस अपने स्टूडियो पहुंचा, उसने स्टैचू को धीरे से किस करा सरप्राइजिंगली स्टैचू के गर्म थे और जब उसने स्टैचू को दोबारा किस करा तब उसमें जाना गयी और ऐसे पिगमेलियन ने अपनी बनाई औरत के साथ शादी कर ली। ये स्टोरी बताती हैं कि कैसे हमारी खुद की एक्सपेक्टेशन्स अपने आप को सच बना लेती है। मिलियन को जो चीज़ चाहिए थी उसने उस चीज़ का ब्लूप्रिंट बनाया और उसे वो चीज़ मिल गई। साइकोलॉजिस्ट मानते हैं कि ये इफेक्ट हर टाइम हम पर काम कर रहा होता है। जैसे जिन बच्चों को स्कूल में ज्यादा अप्रिशिएट करा जाता है और उन्हें बताया जाता है कि वो बहुत ज्यादा स्मार्ट हैं और उनमें काफी पोटेंशिअल है तो वो बच्चे बाकी स्टूडेंट से बेहतर परफॉर्म करते हैं। और एक स्टडी में जब हाउसमेट्स को बोला गया कि उनकी जो अब इतनी इंटेंस और कैलरी कॉन्शस यूमिंग है, तब उनकी बॉडी एक्चुअल में ज्यादा कैलरीज बर्न करने लग गई। इसका मतलब इस ट्रिक के साथ हम सिर्फ अपनी ही नहीं बल्कि बाकी लोगों की साइकोलॉजी के साथ भी खेल सकते हैं। हमें बस हर सिचुएशन में बेस्ट एक्स्पेक्टेशन रखनी है। जैसे अगर हम किसी से मिल रहे हैं तो हमें उन्हें पॉज़िटिव ली लेबल करना है और उन्हें कॉंप्लिमेंट करना है ताकि अगर वो अच्छा नहीं भी कर रहे हैं तब भी पिगमेलियन इफेक्ट की वजह से उनमें सडेन इम्प्रूवमेंट आ जाएगी और सिमिलरली अगर हम भी नेगेटिव फील कर रहे हैं तो हमें अपनी एडवांटेज इस पर फोकस करना चाहिए और खुद को बताना चाहिए कि हमारे अंदर क्या पॉज़िटिव क्वालिटीज है? नंबर सेवन यूज़ सरप्राइज़ इन रिक्वेस्ट बिकॉज़ रिसर्चर्स नहीं है ढूंढा है कि अगर हम किसी से थोड़ा अजीब या फिर अनकॉमन फेवर मांगते हैं तो उससे उनके लिए हम ज्यादा इंट्रेस्टिंग बन जाते हैं। और ये ट्रिक एक बोरिंग कॉन्वरसेशन या स्पीच में किसी की अटेंशन पाने में बहुत इफेक्टिव हो सकती है। जैसे एक रिसर्च में कई लोगों को एक टास्क दिया गया कि उन्हें लोगों के पास जाकर उनसे पैसे मांगने है और उन्होंने तीन अलग स्टेटमेंट को टेस्ट करा। सबसे पहले उन्हें सीधा सीधा लोगों से ये पूछना था कि क्या आपके पास कुछ खुले पैसे होंगे? दूसरी बार उन्होंने बोला कि क्या आपके पास ₹1 होगा? और तीसरी ट्राई में उन्होंने बोला कि क्या आपके पास ₹11 होंगे? नाउ आप गेस करो कि उन्हें क्या बोलने पर सबसे ज्यादा बार पैसे मिले होंगे? अगर आपका आन्सर थर्ड स्टेटमेंट है तो आप बिलकुल सही हो। रिसर्चर्स ने ये देखा की सबसे हटके और सरप्राइज़ इन रिक्वेस्ट सबसे ज्यादा इंटरेस्ट क्रिएट करती है और यह सरप्राइज़ हमारे दिमाग के लिए कॉफी की तरह होता है। इसका मतलब सबसे हटके क्वेश्चन्स। और अनएक्सपेक्टेड स्टोरीज़ हमारी अलर्ट्नेस को बढ़ाती है। और अगर हम सिंपल वर्ड्स में बोले तो जब हम दूसरे लोगों की तरह ऐक्ट नहीं करते। तब हम ज्यादा से ज्यादा लोगों को अपने अंदर इंट्रेस्टेड रखते हैं पर जब हम बाकी लोगों के जैसा ऐक्ट करने लगते हैं तब लोग ईज़ अली बोर होने लगते हैं और वह हमें भूल जाते हैं। दैट स्वाइ हमें अपनी यूनीकनेस सबको दिखानी चाहिए तो चाहे हम कितने ही बिड हो, सही लोग हमें हमेशा पसंद करेंगे। नंबर सिक्स डी कोई प्राइसिंग ये ट्रिक हमें अक्सर हर फास्ट फूड, जॉइंट क्लोदिंग स्टोर और इवन सूपर मार्केट्स में भी देखने को मिलती है। हमें कई प्रोडक्ट्स के बीच में चॉइस दी जाती है। जैसे मूवी थिएटर्स में पॉप कॉर्न के ज्यादातर तीन साइज होते हैं। स्मॉल रेग्युलर और लार्ज पर अगर आप उनकी प्राइसिंग को नोटिस करो तो आप देखोगे की स्मॉल पॉपकॉर्न ना तो ज्यादा सस्ता होता है और ना ही ज्यादा महंगा। लार्ज पॉपकॉर्न महंगा होता है, पर मीडियम पॉपकॉर्न का प्राइस लार्ज पॉपकॉर्न के प्राइस के आसपास ही होता है, जिससे हमें यह लगता है कि मीडियम साइज का पॉपकॉर्न ले। ना तो बिलकुल बेकार है और स्मॉल साइज के पॉपकॉर्न के लिए अगर हम एक सर्टेन अमाउंट दे ही रहे हैं। तो क्यों ना हम लार्ज पॉपकॉर्न ही ले ले और ब्रैन्डस यही चाहते है नंबर फाइव नॉट टु गेट डाउन सर, जब भी आपको किसी से एक पक्का आन्सर चाहिए हो, ट्राई करो कि आप क्वेश्चन पूछते हैं या फिर रिक्वेस्ट करते टाइम नोट करते रहो। यह ट्रिक आपको रेस्ट्रॉन्ट्स में सबसे ज्यादा देखने में मिलती है। वेटर आपके पास आता है और आपसे पूछते हुए अपना सर हिलाने लग जाता है। इससे कस्टमर को बोलते रहने का प्रेशर फील होता है और ऐसे रेस्ट्रॉन्ट्स ज्यादा खाना बेच पाता है। नंबर फ़ोर शोर्ड इस सैटिस्फैक्शन अगर आप कोई डील लैंग्वेज शीट कर रहे हो और आपको ऑलरेडी एक ठीक ठाक सा ऑफर मिल गया है पर आपको पता है कि शायद आपको एक बेटर ऑफर भी मिल सकता है तो आपको बस बिना कुछ बोले थिस सैटिस्फैक्शन दिखानी है। यानी अगर आप बैठे हुए हो तो आप अपनी आमस क्रॉस करके बता सकते हो कि आप अगरी नहीं करते हैं और पीछे होकर आप डिसइंगेजमेंट सिग्नल कर सकते हो और इसके साथ ही अगर आप खड़े हुए हो तो आप बस कुछ सेकंड के लिए साइलेंट रहकर वेट कर सकते हो कि क्या आपको एक बेटर ऑफर मिलता है? नंबर थ्री साइकिल और सेल्फ अप आपने कई बार नोटिस करा होगा कि अगर कई बार आपका दिन शुरू से ही खराब होता है तो वो खराब होता चला जाता है और अगर आप किसी मीटिंग या फिर स्पीच से पहले नर्वस होते हो तो आपकी नर्वस्नेस आपकी एबिलिटीज़ के रास्ते में आ जाती है और आप अपना बेस्ट नहीं दे पाते हैं। इसलिए जैसे ही आप सुबह उठो आपको अपने आप को एक साइट करना है और हाथ ऊपर करके अपने आप से बोलना है कि मैं बहुत एक्साइटेड हूँ। आज मैं अपने गोल्स पर काम करूँगा। मुझे बहुत मज़ा आएगा। येस और जब आप ऐसा करते हों तब एक बहुत स्ट्रेंज चीज़ होती है। आप एक्चुअल में एक्साइटेड और एनर्जेटिक फील करते हो और ये फीलिंग पूरे दिन को अच्छा बना देती है। नंबर टू मेक आदर्श रिपीट देर जोक्स अगर कोई इंसान आपके एक्स्पेन्सस पर जोक मार रहा है तो आप ऐसे ऐक्ट कर सकते हो कि आपने जोक ढंग से सुना ही नहीं और उसे सिम्पली बोल सकते हो कि वह जो रिपीट करे क्योंकि ज्यादातर जो क्स्प्न आफ्नी एलिमेंट खो देते हैं, जब उन्हें दुबारा बोलना पड़ता है। इसके अलावा हम उन्हें ये भी बोल सकते हैं कि वो अपने जो को एक्सप्लेन करें कि इस जोक मैं एग्ज़ैक्ट्ली क्या फनी हैं? और ऑब्वियस्ली वो जो कोई जोक नहीं रहता, जब उसे एक्सप्लेन करना पड़ता है। नंबर वन यूज़ थे वर्ड बिकॉज़ जब भी हम किसी इंसान से अपनी बात मनवाना चाहते हैं तो अपनी रिक्वेस्ट ये ओपिनियन में बिकॉज़ ऐड करने से सुनने वाले को एक रीज़निंग मिल जाती है। की वो हमारी बात क्यों माँ ने एक एक्सपेरिमेंट में पार्टिसिपेंट्स को तीन लाइन्स में डिवाइड कर आ गया जो फोटो कॉपी मशीन को यूज़ करने का वेट कर रहे थे। फर्स्ट ग्रुप को बोलना था की मुझे फाइव पेजेस की फोटोकॉपी चाहिए। दूसरे ग्रुप को बोलना था कि क्या मैं ज़ेरॉक्स मशीन यूज़ कर सकता हूँ? बिकॉज़ मैं जल्दी में हूँ और थर्ड ग्रुप को काफी स्टुपिड एक्स्क्यूस देकर बोलना था कि क्या मैं ज़ेरॉक्स मशीन यूज़ कर सकता हूँ? बिकॉज़ मुझे कॉपी निकालनी है और सरप्राइजिंगली जीवन ये अजीब एक्स्क्यूस भी काम कर गया और 93% लोगों ने बिकॉज़ बोलने वाले ग्रुप्स को मशीन यूज़ करने दिए। इसका मतलब चाहे आप के रीजन्स या एक्स्क्यूस बेकार भी हो, पर अगर आप अपने सेन्टेन्स में बिकॉज़ बोलो तो आपको एक पॉज़िटिव रिस्पॉन्स मिलने के चान्सेस बढ़ जाये।","मनोविज्ञान की समझ अपने स्वयं के भत्तों के साथ आती है। एक बार जब आप समझ जाते हैं कि मनुष्य कैसे और क्यों व्यवहार करते हैं, तो आप अजीब परिस्थितियों से गुजर सकते हैं, वेतन बढ़ा सकते हैं, अधिक बिक्री कर सकते हैं, दूसरों की मदद कर सकते हैं और बहुत कुछ कर सकते हैं। हमें Youtube पर खोजें: www.youtube.com/psychologyinhindi" "हमारे साथ अक्सर ऐसा होता है कि हम लाइफ में बहुत सी चीजों को लेकर कन्फ्यूज हो जाते हैं। जब हम लॉस्ट फील करते हैं तो हमें यह नहीं समझ आता कि हमें आगे क्या करना है और हम अकेला महसूस करने लगते हैं। हमारे दिमाग में इतने थॉट्स एक साथ भर जाते हैं कि किसी सही डिसिज़न को लेना बहुत ही मुश्किल हो जाता है। इससे पहले कि हम यह समझे कि हमें क्या करना चाहिए, जब हम लॉस फील करते हैं, हमें यह जानना जरूरी है कि हम ऐसा फील क्यों करते हैं? जब हम लॉस होते हैं तो हमें यह नहीं समझ आता कि हमने अपनी लाइफ में क्या करना चाहिए। हमारे साथ ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि हम अपने आप को दूसरों से कम समझते हैं और अपने आप को दूसरों से कंपेर करते हैं। हम अपने रूस के पास पहुंचने की बजाय दूसरों की एक्सपेक्टेशन्स के पीछे दौड़ने लग जाते हैं। जैसे कि बहुत से लोग अपनी फैमिली और सोशल प्रेशर की वजह से अपनी पसंद का करियर नहीं चूज कर पाते और आगे चलकर यही लोग लॉस्ट फील करते हैं। और तो और हम अपने कंफर्ट ज़ोन से भी कभी बाहर नहीं निकलते हैं और ना ही कभी ऐसा करने की कोशिश करते हैं। इसलिए आज के एपिसोड में हम डिस्कस करेंगे। कुछ ऐसे सिंपल टिप्स जिनसे आप ये समझ पाओगे कि आपको क्या करना चाहिए जब आप लॉस फील करते हो नंबर वन खुद को एक्सेप्ट करना सीखो। हम हमेशा लाइफ में खुद को कम समझते हैं और खुद की कैपेबिलिटीज को दूसरों से कंपेर करने लग जाते है। हम कोशिश करते हैं की। हम जितना हो सके उतना दूसरों की तरह बन जाए। लेकिन अगर आप अपनी लाइफ में आगे बढ़ना चाहते हो तो आपको यह एक्सेप्ट करना बहुत जरूरी है कि आप जैसे हो और आपने जो कमियां हैं, उसमें कुछ गलत नहीं है। हम हमेशा अपनी लाइफ की बहुत सी चीजो के लिए अपने आप को गलती मान लेते हैं। लेकिन जब आप खुद को एक्सेप्ट कर लेते हो तब आप अपनी लाइफ की हर चीज़ को आसानी से बदल पाते हो और उन्हें डीपी समझ पाते हो। जब तक आप खुद को एक्सेप्ट नहीं करोगे तब तक आप अपनी प्रॉब्लम की असली जड़ों तक नहीं पहुँच पाओगे। नंबर टू अपने कंफर्ट ज़ोन से बाहर निकलो बचपन से लेकर अब तक अगर आप अपने कंफर्ट ज़ोन में ही रहे हो तो वो टाइम है जब आपको कुछ नया ट्राई करना चाहिए। अगर आप खुद को चैलेंज करना सीखो गे तो आपको यह समझ जाएगा कि आप अपनी लाइफ में ऐसी और कौन सी चीजें कर सकते हो जिनसे आपको खुशी और फुलफिलमेंट मिले है। यानी कुछ नया एक्सप्लोर करो और उन्हें एक टीचर की तरह ट्रीट करो। ऐसे आपको अपनी कहीं छिपी कैपेबिलिटीज के बारे में भी पता चलेगा और जब आप अपने एक कंफर्टेबल बबल से बाहर निकलोगे तो आप और भी ज्यादा फिअरलेस और कॉन्फिडेंट फील कर पाओगे। नंबर थ्री अपनी प्रायोरिटी इसको सेट करो लाइफ में कन्फ्यूजन इसलिए होता है क्योंकि हमें यही नहीं पता होता की हमारी प्रायोरिटी ज़ क्या है? जब हमें ये समझ जाएगा कि हमें किस चीज़ को प्राइस करना चाहिए और किसको नहीं, तब हमें डिसिशन्स लेने में और आसानी होगी। जब आप अपनी प्रायोरिटी इसको सेट करते हो, तब आपको यह समझाता है कि आपने अपने आप को दुनिया में किस तरह से ओरिएंट करना है, जैसे जैसे हम बड़े होते हैं, हमारी प्रायोरिटी ज़ भी बदलती है और इन बदलती प्रायोरिटी इसको समझना बहुत जरूरी होता है ताकि हम कन्फ्यूज़ कम हो और हमारी लाइफ का पैथ क्लिअर रहे। नंबर फ़ोर खुद की केयर करना और सेल्फ लव। जब हमने अपनी लाइफ में कुछ समझ नहीं आता तब हम अपनी बॉडी का ख्याल रखना बंद कर देते हैं। हम जंक फूड खाना शुरू कर देते है, ट्रैन करने लगते हैं और आलसी बनने की आदत डाल लेते हैं। लेकिन अगर आप अपनी लाइफ में आगे बढ़ना चाहते हो तो सबसे ज्यादा अपनी फिजिकल और साइकोलॉजिकल हेल्थ पर ध्यान दो। जब तक आपकी बॉडी ढंग से काम नहीं करेगी और आप हेल्थी फील नहीं करोगे, तब तक आप हेल्थी सोच नहीं पाओगे। आपको यह कोशिश करनी चाहिए कि हर रोज़ आप एक्सरसाइज और मेडिटेट भी करो। रोज़ सेम टाइम, परसों और उठो और हेल्थी खाना खाओ। बिना अपने आप की रिस्पेक्ट और केयर करे ना तो कभी भी अपनी लाइफ के बड़े डिसिशन्स को सही से ले पाओगे और ना ही अपना सही रास्ता ढूंढ पाओगे। नंबर फाइव कुछ टाइम बस जीने के लिए निकालो हम दुनिया की प्रॉब्लम्स को लेकर इतना परेशान हो जाते हैं कि हम अपने खुद के दिल की आवाज सुन ही नहीं पाते। हम चाहते कुछ और है और लाइफ में करते कुछ और, लेकिन जब आप अपने लिए थोड़ा टाइम निकालना शुरू करोगे तो आप अपनी लाइफ को अच्छे से समझ पाओगे और बहुत जल्दी इम्प्रूव भी कर पाओगे। जब आप खुद से बात करना स्टार्ट करोगे तो आपको अपनी प्रॉब्लम्स के बारे में ज्यादा अंडरस्टैंडिंग मिले गी और उनके सल्यूशनस भी। लेकिन बिना किसी तरह की के आप कभी भी यह समझ ही नहीं पाओगे कि वो एक्चुअल में कौन सी चीज़ है, जो आपको परेशान कर रही है? इसलिए रोज़ कुछ टाइम नेचर में वॉक करते हुए बताओ या फिर अकेले में अपने थॉट्स को ऑब्जर्व करो और उनका पीछा करो।","जीवन में खोया हुआ महसूस करना एक ऐसी चीज है जो आमतौर पर उन लोगों में देखी जाती है जिन्होंने किसी संकट का सामना किया है या वे लोग जिन्होंने अपने सभी मूल्यों/विश्वास प्रणालियों को खो दिया है और अब वे नहीं जानते कि अपने जीवन में क्या करना है। जब सब कुछ व्यर्थ लगता है, तो एक व्यक्ति को उम्मीद से ज्यादा की जरूरत होती है। इसीलिए इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम इस अस्तित्वगत समस्या को हल करने की कोशिश करते हैं और यह पता लगाते हैं कि कैसे हम एक स्वस्थ जीवन शैली में वापस आ सकते हैं जहाँ हमारा जीवन अर्थ और आनंद से भरा हो।" "ये डिमांड ऑलमोस्ट हर रिलेशनशिप में कभी ना कभी जरूर करि जाती है कि मैं जैसा हूँ मुझे वैसे ही एक्सेप्ट करो और मुझे बदलने की कोशिश मत करो और इसके पीछे सोच ये होती है कि अगर एक इंसान एक्चुअल में दूसरे से सच्चा प्यार करता है, तो वो उसे क्यों ही बदलना चाहेगा? बदलने की कोशिश बस वो इंसान करेगा जो अपने पार्टनर को खुद की एक ट्रोफी की तरह समाज में दिखाना चाहता है और उसका फोकस सिर्फ खुद की नीड्स को पूरा करने और खुद को एक सर्टन तरह से प्रेज़ेंट करने मेँ है। फिर चाहे वो इस प्रोसेसर में अपने पार्टनर को हर्ट ही क्यों ना करे। एक इंसान की अच्छी और बुरी दोनों तरह की क्वालिटीज को एक्सेप्ट करना किसी को प्यार समझा जाता है, लेकिन रीऐलिटी में हमें कभी भी वैसे ही नहीं रहना चाहिए जैसे हम हैं। अगर आपकी अपने पैरेंट फ्रेंड या पार्टनर से लड़ाई हो जाती है और वो आपकी कमियों को पॉइंट आउट करते है तो ये ओब्विअस्ली बात है कि आपको वह सुनना बिल्कुल अच्छा नहीं लगेगा। लेकिन अगर आप खुद के अंदर झांक कर देखो तो आप समझोगे कि आप किसी भी बात पर ऑफ एंड सिर्फ तभी होते हो जब उस बात में कोई सच्चाई होती है जैसे अगर आप दिन रात हार्ड वर्क करते हो। और धीरे धीरे अपने ड्रीम्स की तरफ पहुंचते जा रहे हो तब अगर कोई इंसान आपको यह बात बोल भी दे कि आप तो बहुत आलसी हो और आप कुछ काम नहीं करते तो आप हंसकर यह सोचोगे कि यह इंसान तो आपको बिलकुल भी नहीं जानता। वहीं अगर आप एक्चुअल में अपना 100% नहीं दे रहे और आप में डीप इनसाइड ऑलरेडी इस बात का गिल्ट भी है कि आप काम कम और मस्ती ज्यादा कर रहे हो तब किसी भी इंसान से यह सुनना कि आप लेज़ी हो। यह बात बहुत ज्यादा चुप्पी है। इसलिए अगर कोई इंसान जो आपसे प्यार करता है वो आपको यह बताएं कि आप कैसे वो नहीं हो जो आप बन सकते हो। तो इसमें कोई बुरी बात नहीं है। प्यार का मतलब ये होता है कि दो लोग मिले और एक दूसरे को ऊपर उठाने और अपनी पोटेंशिअल के पास पहुंचने में मदद करें। अगर कोई इंसान प्यार से अपना हाथ आगे बढ़ाकर हमें ट्रांसफॉर्म होने में मदद करता है तो इसमें कोई डाउनसाइड नहीं बल्कि इसमें हमारा ही फायदा है। प्यार टाइम्लेस होता है जिसका मतलब जब एक इंसान आपसे प्यार करता है तब उसे आपका पास्ट, प्रेज़ेंट और फ्यूचर सब चाहिए होता है। लेकिन अगर आप खुद को बदलना नहीं चाहते तो आप उन्हें बस अपने पास्ट और प्रेसेंट का ही एक्सिस देते हो। क्योंकि एक बहुत बेकार डील है। प्यार होल यानी कंप्लीट है और वो आपको भी ऐसा होल ही एक्सेप्ट करता है। लेकिन जब हम दूसरों से प्यार के बारे में गलत आइडियास बोरो कर लेते हैं तब हम दूसरों से नजूल इस टिक एक्सपेक्टेशन्स रखने लगते हैं। हम सोचते हैं कि प्यार टोटल एक्सेप्टेंस है जो कि बिल्कुल सही बात भी है। लेकिन अगर इस टोटेलिटी में से आप अपने बेस्ट वर्जन बनने की पोटेंशिअल को निकालदो तो ये प्यार तो इन्कम्प्लीट हुआ ना? इसी इन्कम्प्लीट अन्डरस्टैन्डिंग की वजह से हम अपने प्यार करने वालों को अच्छे टीचर्स लवर्स इनस्पिरेशन और कोच की तरह नहीं बल्कि हम बस उन्हें अपने मन में एक वन डाइमेंशनल खिलौना बना देते हैं, जिसका काम है हमें अनकन्डिशनल लव देना। अगर वो हमें पॉज़िटिव इमोशन्स नहीं दे रहे तो उसका मतलब हम यह समझते हैं कि वो हमें प्यार नहीं करते हैं लेकिन एक दूसरे को अपनी हाइएस्ट पोटेंशिअल तक पहुंचाना ये प्यार का सेन्ट्रल गोल होता है। इसी वजह से अगर हमें कोई प्यार से हमारी गलती या कमी पॉइंट आउट करके ये बताये कि हम और बेहतर कैसे बन सकते हैं तो हमें उसे एक अटैक की तरह नहीं बल्कि एक कॉलिंग की तरह देखना चाहिए। एक ऐसी कॉल जो हाइएस्ट रिऐलिटी से नीचे आ रही है उस इंसान के थ्रू वरना अगर किसी केस में आप किसी को ये बोल देते हो की वो जैसा हैं, वो वैसा ही पर्फेक्ट है और उसे चेंज होने की कोई जरूरत नहीं है। तो आप उस इंसान को ऐसा फील करा देते हो कि उन्होंने अपनी हाइएस्ट पोटेंशिअल ऑलरेडी रीच कर ली है। चाहे वो जितना भी जवान नादान और अपनी पोटेंशिअल से कितना ही दूर ही क्यों ना हो, वह यह सोचता है कि उसका काम तो पूरा हो गया है। जीवन दो उसने इस दुनिया में कुछ कॉन्ट्रिब्यूट ही नहीं करा है। एक बीज को कभी भी ये मत बोलो। की वो जैसा हैं वो वैसा ही ठीक है क्योंकि ऐसे तो उसके पास ग्रो करने और फूल बनने का कोई रीज़न बचेगा ही नहीं। यह सोचकर कि हम किसी की फीलिंग्स को हर्ट ना करें, हम उनकी प्रिज़न फॉर्म को पर्फेक्ट बोलकर उनके इनर चाइल्ड को एक बूस्ट तो दे देते हैं, लेकिन इससे हम उन्हें बेहतर बनने से रोक देते हैं और अच्छा करने के चक्कर में हम उनकी जिंदगी बर्बाद करना चालू कर देते हैं। एक इंसान अपने आप में इन्कम्प्लीट होता है और वो तब तक अधूरा रहता है जब तक वह जिंदगी की ऊंचाइयों से एक रिश्ता नहीं बना लेता और ऊंचाइयों की तरफ बढ़ना नहीं चालू कर लेता। यही रीज़न है, क्योंकि बहुत से लोग कोई भी गोल सेट करने से डरते हैं। क्योंकि जैसे ही आप एक बहुत ऊंचे पर्वत पर चढ़ने की सोचते हो तो वह पर्वत आपको जज करने लगता है और आपको बोलता है की तू तो कितना छोटा है। तू मेरे आगे बहुत कमजोर है और तू वो नहीं है जो मुझ तक पहुँच सके। इस तरह से हमारा हर गोल हमें अपनी इन कम्प्लीटनेस की याद दिलाता है, लेकिन इसी के साथ वो हमें आगे बढ़ने के लिए एक डायरेक्शन और जीने का रीज़न भी देता है। अगर हम ये सुनना चाहते हैं कि हम ऑलरेडी पर्फेक्ट है तो उसका मतलब अब क्या उस पर्वत की चढ़ाई करनी या फिर कुछ महान काम करना? हर एफर्ट बराबर है और अच्छा ई और बुरा ई सेम लेवल पर हैं। इसी तरह की सोच लोगों की जिंदगी से मीनिंग और खुशी को खत्म कर देती है। इसलिए अगर आपका दुश्मन भी आपको आकर आपकी कमियों को पॉइंट आउट करें तो उस के इस ऐक्शन में भी प्यार ढूंढो। इसके बाद आपको समझ आएगा कि हर क्रिटिसिजम एक सीधी लाइन नहीं बल्कि वह एक सर्कल है। क्रिटिसिजम प्यार से ही शुरू होती है और प्यार पर ही खत्म बस यह देखने के लिए सही नज़र होनी चाहिए।","लगभग हर रिश्ते में एक व्यक्ति प्यार करने और उसे स्वीकार करने की मांग करता है। और यदि व्यक्ति को उसके वर्तमान रूप में सराहा और स्वीकार नहीं किया जाता है और इसके बजाय उसे किसी तरह से खुद को बदलने की सलाह दी जाती है, तो यह स्वतः ही कुछ ऐसा माना जाता है जो प्रेम का विरोधी है। क्योंकि आम धारणा यह है कि सच्चा प्यार जज नहीं करता है और यह पूरी तरह से स्वीकार करता है। लेकिन ज्यादातर लोग यह भूल जाते हैं कि उनकी भविष्य की क्षमता यानी वह सब कुछ जो वे अभी भी हो सकते हैं, वह भी इसी समग्रता का हिस्सा है। अपनी क्षमता को हटा देना और अपने व्यक्ति के एक अधूरे हिस्से की पेशकश करना प्रेम नहीं है। इसलिए, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम इस विचार में गहराई से जाएंगे और यह पता लगाएंगे कि लोग जो हैं उसके लिए प्यार क्यों चाहते हैं और वे नहीं जो वे बन सकते हैं।" "एम। फील करने का मतलब है कि एक इंसान की लाइफ में अब कोई पैशन नहीं बचा है और वो इस वजह से इमोशनल नमन एस या फिर होपलेस ने इस महसूस कर रहा है जब आपके आस पास आपको खुश और ऐसे लोग दिखते हैं जिनकी लाइफ मीनिंग से भरी हुई है लेकिन आप उनसे रिलेट नहीं कर पाते तब आपको अपने अंदर कुछ ना कुछ मिसिंग फील होता है। आपका ध्यान रोज़ के कामों से हटकर दुनिया के सबसे डीप क्वेश्चन्स या फिर पैसे मिजं से भर जाता है और जहाँ शॉर्ट टर्म में यह फेस एक इंसान को लाइफ और अपने बारे में कई इनसाइट्स देकर जा सकता है, वहीं अगर यह फेस कुछ हफ्तों या महीनों तक चलता है और आप इससे कुछ सीखने के बजाय और ज्यादा डिप्रेस्ड, ऐस और होपलेस होते जा रहे हो तो आपको इस स्टेट से जरूरी स्टेप्स लेकर बाहर निकलना होगा। इसलिए आज के एपिसोड में हम ऐसे पांच रीज़न को डिस्कस करेंगे जो आपको समझाएंगे कि आप एम टी क्यू फील कर रहे हो और आपको इससे बाहर निकलने के लिए क्या करना होगा। नंबर वन लाइफ में कोई गोल ना हो ना हमे अपनी लाइफ में अपना मोटिव या पर्पस हमेशा पता होना चाहिए, जिससे हमें यह आइडिया रहे हैं कि हमारी जिंदगी किस दिशा में जा रही है। हमारे गोल्स और ड्रीम्स हमें बताते हैं कि हमें मूवमेंट टू मूवमेंट किस तरह से ऐक्ट करना चाहिए और जब हमारी लाइफ में कोई वैल्यूज गोल ही नहीं होता तो हमें ये भी नहीं पता होता कि हमें हर मोमेंट में क्या करना चाहिए और क्यों? कुछ भी करना इम्पोर्टेन्ट है और इस वजह से हम एम टी फील करने लगते है। नैचुरली आपके पास जब कुछ मीनिंगफुल काम करने के लिए नहीं होगा और आपको अपनी रिस्पॉन्सिबिलिटी ज़ भी मीनिंग लेस लगेंगी तो आप अपनी लाइफ में बोर्ड और डिमोटिवेट फील करोगे। इसलिए जो भी काम आप को मीनिंगफुल लगे उसमें अपना पूरा एफर्ट, डालो और धीरे धीरे करके डेली बेसिस पर कुछ ना कुछ अचीव करने की कोशिश करो। इससे आपकी बॉडी आपको आगे बढ़ते रहने के लिए पॉज़िटिव इमोशन्स भी देगी और आप एमटीबी फील नहीं करोगे। नंबर टू खुद को न समझ पाना हमारी लाइफ में सबसे इम्पोर्टेन्ट ये होता है कि हम अपनी फीलिंग्स और अपने ट्रू सेल्फ को समझें। हमें हमारी वैल्यूज़ और बिलीव के बारे में पता होना चाहिए कि हम क्यों और किसलिए जी रहे हैं? जैसे जैसे हम बड़े होते हैं हमें धीरे धीरे अपने बारे में और अपनी फीलिंग्स या इमोशन्स के बारे में समझाने लगता है। लेकिन कई बार ये प्रोसेसेस किसी रीज़न की वजह से स्लो या एकदम रुक जाता है और हमारा काम होता है अपने अंदर जाकर वापस से ट्रैक पर आना और सेल्फ अवेर्नेस हासिल करना। इसलिए आपको यह कोशिश करनी चाहिए किया पूरे दिन में से थोड़ा सा समय अपने आप को जानने और अपनी स्टोरी को समझने के लिए निकालो, क्योंकि जो इंसान अपने अंदर जाकर खुद को पूरी तरह से समझ लेता है वो दूसरों और दुनिया को भी समझ जाता है। नंबर थ्री मीनिंग लेस रिलेशनशिप्स, रिलेशनशिप्स। इंसान की लाइफ का सबसे इम्पोर्टेन्ट पार्ट होता है चाहे वो आपके पैरेन्ट्स, फ्रेन्डस या पार्टनर के साथ रिलेशनशिप सी क्यों ना हो। हर इंसान को ही इन रिलेशनशिप की बहुत जरूरत होती है और ये वो लोग होने चाहिए जिनसे हम इमोशनली अपनी बातें शेयर कर पाए और एक दूसरे का ख्याल रख पाए। ऐसा जरूरी नहीं है कि आपकी फ्रेंड्स का एक बहुत बड़ा ग्रुप होना चाहिए या फिर आपको हर कोई जानता हो। जो चीज़ मैटर करती है वह यह है कि आपके पास बस कुछ गिने चुने लोग होने चाहिए जिन पर आप ट्रस्ट कर सको। और ऐसा फील कर सको कि आपको भी कोई डीपी समझता है, लेकिन जब आपके पास ऐसे रिलेशनशिप्स नहीं होते तब आपको ऐसा लगता है कि आप इस दुनिया में अकेले सफर कर रहे हो और कुछ भी मैटर नहीं करता। प्यार एक ऐसी चीज़ है जिसे हम फील्ड ज्यादा क्लियरली कर सकते हैं, लेकिन एक्सप्लेन नहीं। इसलिए इवन दो हमें यह तो लग सकता है कि रिलेशनशिप्स उतने इम्पोर्टेन्ट नहीं होते हैं। लेकिन जब हम एक्चुअल में किसी इंसान के साथ क्लोज़ बॉन्ड बनाते हैं, तब हमारी लाइफ खुद ब खुद मीनिंग से भर जाती है और हमारी एमटीएस की फीलिंग भी गायब हो जाती है। नंबर फ़ोर जरूरत से ज्यादा सोशल मीडिया यूसेज सोशल मीडिया बहुत हेल्पफुल है। अगर हम इसे ऐक्चुअल में ज्यादा प्रोडक्टिव और अपनी लाइफ की क्वालिटी को इम्प्रूव करने के लिए यूज़ कर रहे हैं लेकिन जब हम जरूरत से ज्यादा ऐप्स और वेबसाइट्स को यूज़ करने लगते हैं तब ये हमारी लाइफ की क्वालिटी को बढ़ाने के बजाय हमें और ज्यादा डिप्रेस्ड और एम टी फील कराने लगती है। जब हम अपने फ्रेंड्स ये सेलिब्रिटीज़ को सोशल मीडिया पर एन्जॉय करते हुए देखते हैं और हमें ये लगता है की वो हमारे से ज्यादा खु़श है तो हम कही ना कही उनसे जेलस हो जाते हैं और हमें ऐसा लगता है कि सिर्फ हम ही ऐसे हैं जो मिस आउट कर रहे हैं। जिसके बाद हम भी खुद अपनी पोस्ट डालकर या फिर दूसरों के एंटरटेनिंग कन्टेन्ट को देखकर डोप तीन हिट्स लेते रहते हैं और अपने आप को इस चीप लेज़र के साथ टॉर्चर करते रहते हैं। हम लोग सोशल मीडिया से इतने एडिक्टेड हो जाते हैं और अपने सारे पॉज़िटिव इमोशन्स अपने गैजेट्स में ही ढूंढने लग जाते हैं कि हम अपनी खुद की रियल लाइफ में कुछ अच्छा करने के लिए टाइम निकाल ही नहीं पाते हैं और यही इक्स्टर्नली पॉज़िटिव फीलिंग्स को चेस करने की साइकल तब तक चलती रहती है जब तक हम कोई बड़ी ठोकर नहीं खा लेते हैं। इसलिए सोशल मीडिया को सिर्फ एक प्रोडक्टिव टूल की तरह यूज़ करो ना कि एक प्लेजर देने और एंटरटेन करने वाली चीज़ की तरह नंबर फाइव को ओवर कम ना कर पाना। बहुत से ऐसे लोग होते हैं जो कभी भी अपने पास से बाहर निकल ही नहीं पाते और ऐसे ये अपने मिसिंग पार उसको मेमोरीज़ या पुराने लोगों में ढूंढने की वजह से एम टी फील्ड करने लगते हैं। यह पास्ट सिचुएशन एक इमोशनल ब्रेकअप भी हो सकती है। किसी की डेथ या फिर हमारा कोई फेल्यर। जीस वजह से हम गिलटी या फिर रिग्रेट फुल महसूस करते हैं। इसलिए ऐसी सिचुएशन में ये बहुत जरूरी होता है कि हम अपने आप को और दूसरों को माफ़ करना सीखे है और समझें कि हमारे पास में एग्ज़ैक्ट्ली क्या हुआ था? क्योंकि बिना अपने पास्ट को समझें हमारा दिमाग उन मेमोरीज़ के ऊपर से अपनी ग्रिप को लूज़ करेगा ही नहीं और बिना अपने आप को या दूसरों को माफ़ करे। हम अपने अंदर ही शेम या फिर जैसे टॉक्सिक इमोशन्स को पालते रहेंगे जिनसे सिर्फ हम ही नहीं बल्कि हमारे आसपास के लोगों को भी नुकसान पहुंचेगा। इसलिए अगर आप भी एमटी फील करते हो तो अपने आप से पूछो कि क्या आपने अपने पास्ट को ओवर कम कर लिया है?","खाली महसूस करने का अर्थ है स्वयं जीवन के प्रति जुनून को खो देना जो बदले में निराशा और उदासी की भावना पैदा करता है। जब आप अपने जीवन के इस चरण में होते हैं, तो आप हर चीज पर सवाल उठाने लगते हैं और जीवन आपको अर्थहीन लगने लगता है। आप रोजमर्रा के कामों से हटकर अस्तित्वगत विचारों और निराशावाद पर ध्यान केंद्रित करते हैं। अल्पावधि में, खालीपन की यह भावना आपको विकसित होने और नई अंतर्दृष्टि प्राप्त करने में अत्यधिक मदद कर सकती है, लेकिन लंबी अवधि में, यह भावना न केवल आपको निराश करेगी बल्कि यह आपके जीवन के अर्थ को भी लूट लेगी। इसलिए इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम उन कारणों पर चर्चा करते हैं कि हम खाली क्यों महसूस करते हैं और हम इसके बारे में क्या कर सकते हैं।" "इनकम को मल्टीप्लाई करने और वेल्थ जेनरेट करने में कई चीजें लगती है और इस एपिसोड में हम कुछ ऐसी ही चीजों को लिस्ट करने वाले हैं जो रिच लोग करते हैं और ज्यादा पैसे कमाने के लिए इस नॉलेज के साथ आपके रिच बनने के चान्सेस भी बढ़ जाएंगे और आपको यह भी समझ आ जाएगा कि क्यों पुअर लोग कभी भी अपनी पावर्टी से बाहर क्यों नहीं निकल पाते हैं। इसलिए एक एक पॉइंट को ध्यान से सुनो और हमेशा इन्हें याद रखने के लिए इन्हें नोट करो। नंबर वन दे डू वर्क नाउ इन फन लेटर रिच लोगों की ये आदत होती है कि उन्हें खुद को काम करने के लिए पहले मोटिवेट नहीं करना पड़ता। बल्कि वो पहले किसी भी हाल में अपना काम करते हैं और उसके बाद बाकी चीजों को समय देते है। वो ये बात जानते हैं कि उनकी किस्मत एक रात में ही नहीं बदल जाएगी बल्कि उन्हें अगले कई महीनों और सालों तक कॉन्स्टेंट ली। अपने सपनों को समय देना होगा, उन्हें अपने आज की बलि देनी होगी अपने कल को अच्छा बनाने के लिए। लेकिन पुअर लोग अपनी बुरी सिचुएशन में थोड़ा सा अच्छा फील करने के लिए अपने बेकार प्रेज़ेंट को ही प्लेजरेबल बनाने की कोशिश करते हैं और वो इसी रीज़न की वजह से कभी सक्सेसफुल नहीं बन पाते हैं। अगर आपके घर में पैसों की कमी रहती है और आप फिर भी इस सच का दुख कम करने के लिए उलटे सीधे और टाइम वेस्ट करने वाले काम करते हो तो आपकी गरीबी आप डिज़र्व करते हो। नम्बर टू रीच पीपल बिकम रिच बी स्टडी इनके रिच ज्यादातर अमीर लोग अपनी सक्सेस का क्रेडिट उन लोगों को देते हैं, जिन्होंने उन्हें सही रास्ता दिखाया और सही माइंडसेट दिया। ऐसा इसलिए क्योंकि जब भी आप किसी महान इंसान की ऑटोबायोग्राफी को पढ़ते हों, तब आपको मौका मिलता है उस इंसान की ग्रेटनेस को रिवर्स इंजीनियर करने का। आपको समझ आ पाता है कि क्या स्टेप लेने से क्या रिज़ल्ट मिल सकता है। और कैसे फालतू की गलतियों को अवॉर्ड करा जा सकता है? इसलिए खुद सक्सेसफुल बनने के लिए दूसरों की चालक को भी स्टडी करो और उनकी वैल्यूएबल इन साइट्स को अपना बनाओ। नंबर थ्री रिच पीपल फोकस ऑन चेंजिंग थे वर्ड दुनिया के सबसे रिच लोगों में से एक और ऐमज़ॉन कंपनी के ओनर जेफ बेजोस बोलते हैं कि उनकी इन्वेस्टमेंट स्ट्रैटिजी सिर्फ पैसों पर बेस्ट नहीं होती, बल्कि वो उन कंपनीज़ या प्रोजेक्ट्स में अपना पैसा इन्वेस्ट करना प्रिफर करते हैं जो लोगों की जिंदगी में एक बड़ा परिवर्तन ला सकते हैं। जहाँ पुअर माइंडसेट रखने वाले लोगों को हर चीज़ फ्री में चाहिए होती है। और उनका फोकस दुनिया से बस हर चीज़ लेने पर होता है। वहीं रिच लोग ये बात जानते हैं कि उनके पास दूसरों का पैसा सिर्फ तभी आएगा जब वह उन्हें कुछ वैल्यू प्रोवाइड करेंगे और उनकी कोई बड़ी प्रॉब्लम को सॉल्व करेंगे। यह फैक्ट बहुत से लोगों के लिए ऑफेंसिव होता है क्योंकि इसमें सच्चाई है। दुनिया की हर इन्नोवेटिव चीज़ को फंड करने और उसे लोगों तक पहुंचाने में पैसा लगता है जो की यूँ चली रिच लोगों या फिर ऑर्गनाइजेशन्स की जेब से आता है। अगर रिच लोग रिस्क ना लेकर मेडिकल, टेक्नोलॉजिकल या फिर एजुकेशन सेक्टर में इन्वेस्ट करना बंद कर दें। तो पूरी दुनिया की ग्रोथ भी रुक जाएगी। इसलिए अपने सक्सेसफुल बनने के ख्यालों को जोड़ों, दूसरे लोगों की जिंदगी बदलने और उनकी मदद करने से सिर्फ ऐसे ही आप एक्स्ट्रीम वेल्थ को जेनरेट कर पाओगे। नंबर फ़ोर द रिच फोकस ऑन क्रिएटिंग नॉट प्रो टेस्टिंग जो भी इंसान अपनी लाइफ में हाइली सक्सेसफुल बन गया होता हैं, वो अक्सर अपनी इस जगह तक सिर्फ और सिर्फ दूसरों को वैल्यू प्रोवाइड करके ही पहुंचा होता है। उनका फोकस हमेशा इस बात पर रहता है कि वो कैसे अपने आउटपुट और रेवेन्यू को बढ़ा सकते हैं। जहाँ गरीब सोच रखने वाले लोगों को जब भी कोई चीज़ पसंद नहीं आती जब वो उसे बॉयकॉट करने या फिर उसके खिलाफ़ प्रोटेस्ट करने लगते हैं, वहीं रिच लोग भी बहुत बार दूसरों की बातों से डिसऐग्री तो करते हैं, लेकिन उनका फोकस कभी भी क्रिएशन और इनोवेशन से हटकर डिस्ट्रक्शन और बॉयकॉट नहीं आता। यही तो रीज़न है की क्यों? मुश्किल समय में गरीब लोग बॉयकॉट और प्रोटेस्ट करते रह जाते हैं, जबकि अमीर लोग अपने पैसों की मदद से हर रूल या फिर प्रॉब्लम में लूप्होल ढूंढ लेते हैं। आप भी यह डिसाइड कर सकते हो कि आपको इकोनॉमिक्स की किस साइट पर रहना है। क्या आप वो बनना चाहते हो जो हमेशा बस नारे लगाता रह जाता है और कभी उम्मीद नहीं बन पाता? और जैसे ये लगता है कि सोसाइटी और सरकार दोनों से यूज़ कर रहे हैं और वो पावरलेस है या फिर आप अमीर बन कर इन छोटे मोटे झंझटों से फ्री होना चाहते हो। ये बात शायद आप में से बहुत से लोगों को बुरी लगे, लेकिन असली फ्रीडम सिर्फ वेल्थ लोगों के पास ही होती है। नंबर फाइव दे यूज़ चेंज फॉर देर ऐडवांटेज दुनिया को इस बारे में बिल्कुल फर्क नहीं पड़ता कि आप किन चीजों के साथ कंफर्टेबल हो चूके हों। हर समय दुनिया करोड़ों तरह से बदलती रहती है और अगर आप इस बदलाव को थोड़ा भी समझ लो तो आपके पास इनोवेट करने और मार्केट में कोई नया आइडिया लाने की बहुत बड़ी ऑपर्च्युनिटी होती है। रिच लोग फोकस करते है पैसों के फ्लो पर कि पैसा कहाँ जा रहा है। एग्जाम्पल के तौर पर टेक्नोलॉजी का अगला बड़ा स्टेप है मेटावर्स यानी एक ऐसी दुनिया जो कि कंप्यूटर जेनरेटेड होती है और जहाँ लोग एक वर्चुअल दुनिया में जी सकते हैं। इसी वजह से समझदार इन्वेस्टर्स में टावर से रिलेटेड प्रोजेक्ट्स में अपना पैसा लगा रहे हैं। 30 साल पहले तक बहुत से लोग ये बोल रहे थे कि इंटरनेट एक फैड है और यह बहुत ही जल्दी बंद हो जाएगा। लेकिन उस समय पर जिन लोगों को इस बदलाव में एक बड़ी ऑपर्च्युनिटी दिखीं, उन्होंने इन्टरनेट बिज़नेस बिल्ड करके अरबों रुपये कमाए। इसलिए रिच लोगों की तरह सोचो और बदलाव को अपने बेनिफिट के लिए कैसे यूज़ करना है? यह फ़िगर आउट करो नंबर सिक्स रिच पीपल, रीड ए लॉट ऑफ बुक्स, बहुत से बिलिनेयर्स और हाई लेवल ऑन्ट्रप्रनर्स हर साल एटलिस्ट 25 से 50 बुक्स पढ़ते है यानी हर महीने दो से चार बुक्स और हर हफ्ते आँधी से एक बुक। और अगर आप भी रीडिंग को एक रेग्युलर हैबिट बना लो तो आपको भी पता चल जाएगा कि हर हफ्ते एक नई बुक को पढ़ना कोई बहुत बड़ी बात या फिर मुश्किल काम नहीं है। नंबर सेवन रीच पीपल स्पेंड मनी टू मेक मनी यह भी एक बड़ा लेकिन सबसे बेसिक माइंडसेट डिफरेन्स होता है रिच और पुअर पीपल में और अगर आपने इसे नहीं समझा तो आप कभी अमीर नहीं बन पाओगे। एक बोलता है कि मैं क्यों इतनी मेहनत करू पैसा कमाने के लिए है। इसलिए वो अपने पैसों को काम पर लगाता है और ज्यादा अमीर होने के लिए रिच लोग पैसा इसलिए नहीं कमाते हैं ताकि वह खुद के एंटरटेनमेंट के लिए चीजों पर उस पैसे को खर्च कर सके। वो पैसा कमाने के लिए मेहनत करते हैं ताकि वो फिर अपनी उस अर्न इनकम को ऐसी जगहों पर इन्वेस्ट कर सके जो इनकम जेनरेट करती है। ये इन्वेस्टमेंट खुद के बिज़नेस में भी हो सकती है और दूसरों के बिज़नेस में भी। स्टॉक्स के रूप में एक गरीब इंसान अपनी अर्न इनकम से ही गाड़ी, घर या फिर लैपटॉप जैसी चीजें ले लेता है और ये चीज़े उसके लिए लाइबिलिटी बनकर हर साल वैल्यू में गिरती है, जबकि अमीर लोगों के द्वारा परचेस किए गए ऐसेट्स वैल्यू में बढ़ते हैं। इसलिए अपनी इनकम के एक बड़े हिस्से को हमेशा इन्वेस्ट करो बजाय इन्फ्लेशन से उसकी वैल्यू गिरवाने या फिर फालतू की चीजों को खरीदने में नंबर एट रिच पीपल नेवर थिंक इन टर्म्स ऑफ स्केर सिटी वैन लैख रिच लोगों के दिमाग में ये कहानी नहीं चल रही होती है कि उनके पास हर चीज़ की कमी है। या फिर रिसोर्सेस कितने लिमिटेड है? बल्कि उनकी सोच अब नट् यानी अनंत होती है। उन्हें ये दिख रहा होता है कि दुनिया में उनके कमाने के लिए इन्फिनिट पैसा है। गरीब से गरीब देशों में भी उन लोगों के लिए हमेशा करोड़ों रुपए अवेलेबल होते हैं जो बड़ा सोचते हैं और अपनी गरीबी से बाहर निकलने के लिए दुनिया को बदले में वैल्यू प्रोवाइड करते है। इसलिए आप भी अपने सोचने के तरीकों को बदलो और ये देखो कि आप दुनिया से करोड़ों रुपये का फ्लो अपनी तरफ मोड़ने के लिए दुनिया को बदले में क्या दे सकते हो?","जब आपके पैसे को गुणा करने और अमीर और अमीर बनने की बात आती है, तो इसमें कई कारक शामिल होते हैं। ऐसी चीजें हैं जो आप करते हैं और ऐसी चीजें हैं जिन्हें आपको हर कीमत पर करने से बचना चाहिए। जिनमें से अधिकांश से एक गरीब व्यक्ति अनजान होता है, इसलिए वह गरीब ही रहता है। एक विशिष्ट सफल उद्यमी या व्यवसाय गलती से अपनी स्थिति में नहीं आता है। कोई भी सफलता आकस्मिक नहीं होती। इसलिए आपको सही कदम उठाने की जरूरत है और यह पॉडकास्ट सेगमेंट इसमें आपकी मदद करेगा।" "डॉक्टर कालिंग ने एक बार बोला था कि सेम 100 लीटर इमोशन है क्योंकि जब भी हम से महसूस करते हैं तब हम अपने सपनों का पीछा करने, अपनी प्रॉब्लम्स को सॉल्व करने या खुद को बेहतर बनाने पर ध्यान नहीं देते हैं। बल्कि हम एक ही जगह अटक जाते हैं और अपना पूरा फोकस अपनी कमियों को छुपाने पर ले आते है। बाकी इमोशनस जैसे गुस्से या सैडनेस की तरह इतनी आसानी से पकड़ में नहीं आती क्योंकि शेम होती ही ऐसी चीज़ है जिसे छुपाया जाता है जिसकी वजह से हम किसी भी एक दुखी इंसान और एक शर्म महसूस करने वाले इंसान दोनों में डिफरेन्स नहीं बता पाते। यह फीलिंग हमारे अंदर तब आती है जब हम खुद के ही बनाए मॉडल या सोशल स्टैन्डर्ड को तोड़ते हैं और अपनी इस गलती की वजह से जिंदा रहने के लिए भी बुरा फील करते हैं। लेकिन हम कभी भी ये नहीं समझ पाते कि हमने ये स्टोरी खुद ही अपने मन में बना रखी होती है कि अगर हमने एक पर्टिकुलर तरह से ऐक्ट नहीं करा या वो चीजें नहीं बोली जो दूसरे हमसे एक्सपेक्ट करते हैं, तब वो हमारे बिहेव्यर कोड इस अप्रूव़ कर देंगे और यही डिसअप्रूवल हमें खुद से डिस्गस्टिंग फील कराता है। इस तरह की डिसअप्रूवल या लोगों की रिजेक्शन से बचने के लिए हम अपने एनवायरनमेंट या सोसाइटी की वैल्यू उसको आस इट इस अपने दिमाग में डाल लेते हैं और फिर उन्हीं रूल्स के अकॉर्डिंग खुद के बिहेव्यर को पुलिस करने लगते हैं क्योंकि खुद को पनिश करना दूसरों की पनिशमेंट लेने से ज्यादा आसान होता है। लेकिन इसका एक डायरेक्ट रिज़ल्ट ये होता है कि हम खुद के दिमाग में ही एक बंधक बनकर रह जाते हैं और हमारी शेम घटती नहीं बल्कि बढ़ती है। हम सब के आगे अपने आप को इतना ज्यादा अच्छा दिखाना चाहते हैं कि हम अपनी पर्सनैलिटी, अपने बिहेव्यर और अपनी अपीयरेंस की हर उस चीज़ को जिसे हम ज़रा सा भी नेगेटिव मानते है, उसे छुपाते हैं। शेम उन लोगों में सबसे ज्यादा देखने को मिलती हैं जिन्हें बचपन में बुरा काम करने और बुरा होने में डिफरेन्स नहीं समझाया गया था। यानी जब आप छोटे थे तब आपको कोई क्वेश्चन पूछने, बड़ों के आगे कुछ बोलने या खुद को ज्यादा एक्सप्रेस करने के लिए ये बोला जाता था कि आप कितने बुरे बच्चे हो बजाय यह बोलने के कि आप शायद कोई बुरा काम कर रहे हों तब आप इस बुरे होने और किसी पर्टिकुलर टास्क या मोड ऑफ बिहेव्यर के बीच एक कनेक्शन बना लेते हो और जब जब आप वो काम करते हों तब आप खुद को ही बुरा मानने लगते हो जो पैरेंटस वाइज नहीं होते। नहीं ये नहीं समझ आता कि एक बच्चा दुनिया और खुद को एक्स्प्लोर करते करते ही सीखता और बड़ा होता है जिसकी वजह से यह पक्का है कि वो इन एप्रोप्रियेट क्वेश्चन्स पूछेगा। वो अपने प्राइवेट पार्ट्स को टच करेगा और अपने पैरेन्ट्स की हर बुरी आदत को कॉपी भी करेगा। लेकिन अगर उन्हें अपनी इस एक्सप्लोरेशन और क्वेश्चनिंग के लिए डांटा जाए बजाए उन्हें प्यार से आन्सर देने और अच्छी चीजें समझाने के तो उस बच्चे के दिमाग में कई स्पेसिफिक चीजों और कामों को लेकर नए रूल्स बनना चालू हो जाते हैं और वो इसी तरह से खुद की ग्रोथ को लिमिट कर लेते हैं। एक बच्चा अपने ऐक्शंस को नहीं बल्कि खुद को ही नेगेटिव समझने लगता है और उसे ऐसा फील होता है कि वो इस बारे में कुछ नहीं कर सकता क्योंकि वो है ही ऐसा गिल्ट और शेन को यही चीज़ डिफ्रेंशीएट करती है, क्योंकि गिल्ट हमारे ऐक्शन से जुड़ा होता है, लेकिन शेम हमसे जीस वजह से। अगर हम अपनी शेम को दूर करना चाहते हैं तो हमें सबसे पहले यही काम करना होगा कि हम खुद को अपने मन में चलती इन आवाजों से दूर करे कि मैं प्यार के लायक नहीं हूँ। मैं सबसे अजीब हूँ। मैं एग्ज़िट करना डिज़र्व नहीं करता। मेरे नसीब में कोई अच्छी चीज़ नहीं लिखी। मैं सब की मार और गालियाँ खाने के लायक ही हूँ और मैं एक गलती हूँ। इन आवाजों की वजह से हम दूसरे लोगों को खुद के ज्यादा क्लोज़ नहीं आने देते क्योंकि हमें ऐसा लगता है कि अगर इस इंसान को मेरी असलियत पता चल गई तो ये मुझे वैसे भी छोड़ कर ही जाएगा। हम बहुत से सीक्रेट्स रखते हैं क्योंकि हमारे बारे में ज्यादातर बातें अंडे सारे बल है। हम किसी सोशल इवेंट में जाना पसंद नहीं करते। इस सोच की वजह से की हमें कौन ही देखना चाहता है हम खुद की हेट को कुछ देर के लिए भुलाने के लिए और ये नेगेटिव आवाजों को शांत करने के लिए अलग अलग नशों का यूज़ करते हैं। और अपने इन बिहेव्यर की वजह से और ज्यादा शेमफुल महसूस करने लगते हैं। ये आवाजें हमें बोलती है कि हम हर बुरी चीज़ को डिज़र्व करते हैं क्योंकि हम हैं ही यूज़लेस इसलिए आपने यह समझना है कि ये आवाजें आपकी खुद की आवाज नहीं है। आपने बस खुद को इन नेगेटिव लेबल्स के साथ आइडेंटिफाइ कर रखा है। हमें यह समझना होगा कि दुनिया में आने वाला हर इंसान ही कमियों से भरा और इमपरफेक्ट रहा है। अच्छे या बुरे लोग नहीं होते है। लोग अच्छे या बुरे काम करते हैं। हम गलतियाँ करते हैं, लेकिन गलतियाँ करना नॉर्मल है। जो डार्क थॉट्स आपके मन में आते हैं, वहीं डार्क थॉट्स इस एपिसोड को सुनने वाले हर इंसान के मन में आते हैं। खुद को प्रॉब्लम की जड़ की तरह नहीं बल्कि अच्छाई और बुराइ के पेड़ पर उगने वाले उस फल की तरह देखो जो खट्टा भी है और मीठा भी, जो बुरे काम भी करता है और अच्छे भी। शेम को जड़ से उखाड़ने का मतलब है खुद की स्टोरी और खुद की विनेस को ऐस इट इस एक्सेप्ट करना और खुद को थोड़ी काइंडनेस दिखाना बजाय खुद को या दूसरों को एक बॉक्स में डाल लें और अच्छा या बुरा लेबल करने के फिलॉसफर्स जानना चाहते हैं कि एग्ज़िस्टन्स एक ट्रैजिडी है। या एक कॉमेडी लेकिन वो लोग जो अपने दिल से सच को महसूस करते हैं बजाए अपना दिमाग ज्यादा चलाने के? वो ये जानते हैं कि एग्ज़िस्टन्स कॉमेडी और ट्रैजिडी दोनों है और हर इंसान सिर्फ राक्षस या फरिश्ता नहीं बल्कि वो दोनों है। भगवान या शैतान बस कहानियों में नहीं बल्कि वो हर इंसान में है और अगर आप अपने सच की बस एक साइड को ही ढूंढ पाए हों तो ये समझ जाओ कि आपके सच की दूसरी साइड दबी हुई है और आपको खुद को हॉल बनाने के लिए अपनी नज़र का दायरा बढ़ाना है, जो पॉसिबल होगा। खुद के थॉट्स को ऑब्जर्व करने और ये समझने से तो ये थॉट्स असल में आप अपनी मर्जी से जेनरेट नहीं कर रहे हैं, बल्कि जो इन्फॉर्मेशन आपके सिस्टम में डाली गई थी, बस ये उन्हीं का नतीजा है, तो अपने थॉट्स और बिहेव्यर को चेंज करने के लिए अपने पुराने थॉट्स और अपनी आइडेंटिटी को एक दूसरे से अलग करो और खुद को एक नयी स्टोरी सुना हो जिसमे आप हॉल और बाकी सब की तरह सबसे बुरे और महान काम करने दोनों के कैपेबल हो। क्योंकि यह रियलाइजेशन एक इंसान के सिस्टम को रीसेट करने के लिए काफी होती है।",""शर्म एक आत्मा खाने वाली भावना है" स्विस मनोचिकित्सक कार्ल जंग ने कहा। जब हम शर्म महसूस कर रहे होते हैं, हम अपने सपनों पर ध्यान केंद्रित नहीं कर रहे होते हैं, हम किसी भी समस्या का समाधान नहीं कर पाते हैं, हमारे पास सफलता के बारे में सोचने का समय नहीं होता है क्योंकि हमारा दिमाग अपनी खामियों को छिपाने की लालसा से पूरी तरह से ग्रस्त हो जाता है। शर्म के साथ यही समस्या है यानी यह आपको गुप्त और आत्म आलोचनात्मक बनाती है। तो, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम बात करेंगे कि शर्म क्या है और हम मनोविज्ञान का उपयोग करके इसे कैसे दूर कर सकते हैं।" "मेच्युर होने का मतलब है कि आपके एनवायरनमेंट में चाहे कितना भी बड़ा चेंज क्यों ना आ जाए, आप उसे रिस्पॉन्सिबिलिटी हैंडल कर पाओगे और उसके अकॉर्डिंग अडैप्ट कर पाओगे। मैच्योरिटी किसी भी उम्र में आ सकती है। यानी कई केसेस में एक बच्चा ज्यादा मैच्योर हो सकता है। एक ऐडल्ट से क्योंकि बहुत से ऐडल्ट से रिस्पॉन्सिबिलिटीज से दूर भागते हैं और ज़रा सी प्रॉब्लम आता ही हड़बड़ाने लग जाते हैं। इस तरह से मैच्योरिटी हमारे ऐटिट्यूड और डिसिशन मेकिंग स्किल्स में दिखाई देती है। जो इंसान हर प्रॉब्लम को सही तरह से नाप सकता है और उस पर ठंडे दिमाग से ऐक्शन ले सकता है, वो मैच्योर होता है। और तभी एक क्राइसिस के स्ट्रेसफुल टाइम में भी मच्योर होने के लिए हमें सबसे पहले अपने माइंड सेट को फिक्स करना होगा। फर्स्ट ऑफ ऑल ये समझो की मैच्योर बनने के रास्ते में आने वाली सबसे बड़ी अड़चन क्या है? ये होता है हमारा चाइल्डहुड यानी जब हम छोटे होते हैं तब हमारे लिए हर नया इक्स्पिरीयन्स, हर नया इंसान और हर नई जगह बहुत डरावनी होती है। जस्ट बिकॉज़ हमने उन्हें एक्स्प्लोर नहीं करा होता और हमारी इमैजिनेशन उन अन्य एक्स्प्लोर चीजों को मॉन्स्टर्स भूतों या जानवरों से भरी होती हैं जिनसे हमें डर लगता है। लेकिन जब हमारे बचपन में किसी वजह से स्ट्रेस डर और ऐंगज़ाइइटी बहुत ज्यादा होते है और कोई भी हमें गले लगाकर ये बोल के कम्फर्ट नहीं करता कि सब ठीक है और हम सेफ है तो यही नेगेटिव फीलिंग्स औरफिर फुल ऐटिट्यूड हम अपने ऐडल्ट हुड तक कैर्री कर लाते हैं और हमारे अंदर एक कंफर्टिंग आवाज गूंजने के बजाय सिर्फ हमारा डर गूंज रहा होता है। बड़े होने के बाद भी इन मेच्युर होना यही होता है कि आप अभी तक अपने बचपन के वर्ल्डव्यू को साथ लेकर घूम रहे हो और पूरी दुनिया को उसी कलर में देख रहे हो जिसे कलर का आपका बचपन था। यही होता है उन लोगों के साथ जो एक क्राइसिस के समय घबरा जाते हैं और कोई ऐक्शन लेने के बजाय चीखने चिल्लाने लग जाते हैं कि अब तो सब खत्म होने वाला है, जिससे दूसरे लोगों में होप और हिम्मत आने के बजाय डराने लगता है। इनमे लोगो के साथ किसी क्राइसिस को फेस करना नर्क से कम नहीं होता क्योंकि वो ऑलरेडी एक बड़ी प्रॉब्लम को और बुरा बना रहे होते हैं अपने गलत ऐक्शन के थ्रू। इसलिए सबसे पहले तो एक क्राइसिस के डेन्जर को इग्ज़ैजरैट करना बंद करो। ये मैटर नहीं करता की वो क्राइसिस कितनी बड़ी है? आपका डर उस क्राइसिस को आपकी नजर में और बड़ा मॉन्स्टर बना देगा और आप उस पर ओवर रिऐक्ट करने लगोगे। इस तरह से बिखरने के बजाय अपने आप को कट्टा करो और शांत रहो। हर बुरी सिचुएशन में दो तरह के लोग होते हैं। वो जो खुद भी डरते हैं और दूसरों को भी डराकर पैनिक क्रिएट करते हैं और वो लोग जो खुद भी अंदर से शांत होते हैं और दूसरों को भी काम कर पाते हैं, ऐसे लोग एक क्राइसिस के असली मैग्निट्यूड और उसके डेन्जर को ऐनालाइज कर पाते हैं और ज्यादा ऐक्युरट सॉल्यूशन्स निकाल पाते हैं। अंदरूनी शांति मेनटेन करने का मतलब है एक आउटर क्राइसिस को इनर क्राइसिस ना बनने देना, क्योंकि ऐसे समय पर आपको बहुत से लोग ऐसे भी मिलेंगे जो उस क्राइसिस को एक ऑपर्च्युनिटी की तरह देखते हैं और लोगों को डरा धमका के उनका फायदा उठाने की कोशिश करते हैं। इन बातों को अगर दो पॉइंट्स मैं सिंप्लिफाइ करा जाए तो नंबर वन रिमेन, स्टेबल, स्टेबल और शांत रहना भी एक माइंडसेट और आदत है जिसे आप कभी भी प्रैक्टिस करना स्टार्ट कर सकते हो। यह सबसे सिंपल तरीका होता है। अपने बचपन की प्रोग्रामिंग को ओवरराइड करके उसे चेंज करने के लिए। अगर आप ऑलरेडी एक क्राइसिस में हो तब भी हिम्मत मत हारो और इस बात को समझो कि आप अपने नेगेटिव ऐटिट्यूड से प्रॉब्लम को बद से बदतर बना रहे हो। जबकि प्रॉब्लम का सही सॉल्यूशन निकालने के लिए आपको इस तरह से डल नहीं बल्कि शार्प और फोकस रहना होता है। नंबर टू आउटवर्ड फोकस क्योंकि डर एक बहुत पर्सनल चीज़ होती है जो आपका सारा फोकस आप पढ़ ले आती है कि आप का क्या होगा अगर मार्केट क्रैश हो गई आपके किसी चाहने वाले को कुछ हो गया? आपके पैरेन्ट्स या भाई बहन की तबियत खराब हो गयी या फिर आपकी खुद की हेल्थ खराब हो गई? हम सोचते हैं कि जब भी हम इस तरह से किसी की चिंता करते हैं और डरते हैं तब हम उसी इंसान की वेल बीइंग पर फोकस होते हैं। लेकिन असल में हम इस थॉट से ज्यादा कॉन्सर्ट होते हैं कि अगर उन्हें कुछ हो गया तो हमें कैसा फील होगा? येस लीडर की जड़ है और तभी अगर आप एक क्राइसिस में मैच्योर रहना चाहते हो तो अपने डर पर नहीं बल्कि दूसरों के डर पर अपना फोकस लाओ और उन्हें मदद करने की कोशिश करो।","परिपक्व होने का अर्थ है स्थिर रहना चाहे आपके सामने कैसी भी परिस्थिति या समस्या क्यों न आई हो। आप हमेशा ज़िम्मेदार होते हैं और अनुकूलन करने में निपुण होते हैं, चाहे कुछ भी हो। भावनात्मक या मनोवैज्ञानिक परिपक्वता किसी भी उम्र में आ सकती है, जैसे एक बच्चा अपने आसपास के अधिकांश वयस्कों की तुलना में अधिक परिपक्व हो सकता है। किसी समस्या का सबसे सटीक तरीके से विश्लेषण करने और आवश्यक निर्णय या कार्रवाई करने में सक्षम होना ही परिपक्वता है। तो, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम बात करेंगे कि संकट के समय आप भी कैसे परिपक्व हो सकते हैं और यह क्यों आवश्यक है।" "हमारे में से आधे से ज्यादा लोग अपनी लाइफ के किसी न किसी पॉइंट पर डिप्रेशन को इक्स्पिरीयन्स करेंगे। लेकिन डिप्रेशन के बारे में इन्कम्प्लीट नॉलेज होने की वजह से ज्यादातर लोग कभी भी अपने डिप्रेशन के कॉस्ट तक पहुँच ही नहीं पाते हैं। जहाँ डिप्रेशन से जूझने वाले लोगों की एक छोटी संख्या उन लोगों की है, जिनकी इस प्रॉब्लम का रीज़न उनके जेनेटिक्स है और वो नैचुरली ही डिप्रेस रहते हैं। अपनी प्रोग्रामिंग की वजह से, वहीं दूसरी तरफ डिप्रेशन में जाने वाली मैच्योरिटी की पॉप्युलेशन ये सिचुएशन अपने लिए खुद बनाती है यानी इस बात की बहुत ज्यादा चान्सेस हैं। कि अगर आप डिप्रेशन में हो तो आप अपनी चौ। सेस डिसिशन्स और अपनी डिसिप्लिन की मदद से उसे ओवर कम कर सकते हो। डिप्रेशन सैडनेस के जितना स्ट्रेट फॉर्वर्ड नहीं होता जहाँ आप को एटलिस्ट इतना मालूम होता है कि आप उदास किस वजह से हो और आपको क्या काम करना है अपनी साइड नेस को दूर करने के लिए, लेकिन डिप्रेशन के केस में यह हमारे लिए इतना ऑब्वियस नहीं होता कि हम डिप्रेस्ड है। इसलिए इसी वजह से हम किसी एक पर्टिकुलर प्रॉब्लम को नहीं बल्कि अपनी पूरी लाइफ को ही नेगेटिव तरह से देखने लगते हैं। यहीं से ज्यादातर डिप्रेस लोगों की 22 इस बढ़ना चालू होती है। क्योंकि अगर आपको अपने डिप्रेशन का कोई क्लिअर रीज़न नहीं मिलेगा तो आप भी यही सोचने लागोंगे कि हाँ, शायद आपका डिप्रेशन भी जेनेटिक और नैचरल कॉज़िज़ की वजह से ही है और आप इस बारे में कुछ नहीं कर सकते हैं। हाउएवर ये ख्याल आपको अपनी डार्कनेस और सैडनेस के टुवार्ड्ज़ ज्यादा कंफर्टेबल बना सकता है। बहुत से लोग डिप्रेशन से कभी भी बाहर इसलिए नहीं निकल पाते क्योंकि उन्हें डिप्रेस्ड रहना ही ज्यादा साल लगता है बजाए अपनी असली प्रॉब्लम को ढूंढने गए और ऊपर से आजकल का कल्चर भी ऐसा बन गया है, जहाँ लोग आपको डिप्रेस्ड होने के लिए ज्यादा अटेंशन और ज्यादा कॉम्प्लिमेंट्स देंगे बिलकुल वैसे ही जिसतरह से एक बच्चा छोटी उम्र में ही ये सीख जाता है कि उदास होने और रोने धोने से उसे ज्यादा टेंशन मिलती है। आज की मॉडर्न दुनिया में विक्टिम कल्चर इसलिए बढ़ गया है क्योंकि हम ऐडल्ट को भी बच्चों की तरह ट्रीट कर रहे हैं। मॉडर्न डिप्रेशन लोगों की एक्चुअल प्रॉब्लम से कम और उनकी वीक माइंडसेट से ज्यादा जुड़ा है। ऑफ कोर्स आपके पास कई अच्छे रीजन्स भी हो सकते हैं। हो प्लेस फील करने के लिए में बी आपके किसी करीबी इंसान की डेथ हो गयी है। आप अपने एग्जाम्स में फेल हो गए हो। आपकी फैमिली आपको परेशान करती है। आपके पास ज्यादा पैसे नहीं है या फिर आपका करियर आगे नहीं बढ़ पा रहा? हर इंसान के पास दुखी होने के अनंत रीजन्स है, लेकिन यहाँ भी यह समझो कि यह रीजन्स भी अपनी मेंटल हेल्थ और अपनी लाइफ की रिस्पॉन्सिबिलिटी ना लेने के वैलिड एक्स्क्यूस नहीं है। अगर आपके हाथ पैर सही चल रहे हैं और आपका दिमाग भी अभी वर्किंग ऑर्डर में है तो आपको कौन रोक रहा है? अपनी लाइफ को बदलने से? यह बात बहुत से लोगों के लिए कॉन्ट्रोवर्शल और ऑफेंसिव होगी कि ज्यादातर लोगों के लिए डिप्रेशन 164 है। एक आम इंसान के लिए अपने डिप्रेसिव थॉट पैटर्न्स को तोड़ने का सबसे इफेक्टिव सल्यूशन हो सकता है। अपनी सेल्फ वर्थ या फिर अपनी एग्ज़िस्टन्स वैल्यू को री कैलकुलेट करना और कई गिनी चुनी चीज़ो मैं अपनी वैल्यू ढूँढना बंद करना। हर इंसान यह फील करना चाहता है कि उसकी लाइफ की कोई वैल्यू है और वह यहाँ पर बस जगह घेरने, रिसोर्सेस को कॉन्स्यूलर करने और अंत में मरने के लिए नहीं आया। यह खुद की और दूसरों की नजरों में अच्छा बनने की चाह ही हमारी पर्सनैलिटी और लाइफ को शेप देती है। अगर हमें लगता है कि हम एक वैल्यूएबल इंसान नहीं है और हमारा जीना व्यर्थ है तो हम साइकोलॉजिकली और फिज़िकली सफर करने लगते हैं। इसी वजह से जो भी हम जॉब लेते हैं, जिन लोगों के साथ रहते हैं, जितना काम करते हैं और जिन सोशल प्रॉब्लम्स में हिस्सा लेते हैं, हमारा हर डिसिशन और ऐक्शन ही इस क्वेश्चन्स होता है कि वो चीज़ हमारी वैल्यू को बढ़ा रही है या फिर घटा हमारी लाइफ। मैं अपनी वैल्यू पता करने के जीतने ज्यादा सोर्स होते हैं और जितना ज्यादा वो सोर्सेस हमारे कंट्रोल में रहते हैं उतनी ही हमारी मेंटल हेल्थ बेहतर रहती है। लेकिन कई लोग अपनी वैल्यू उन गिनी चुनी चीज़ो के बेसिस पर कैलकुलेट करने लगते हैं। जो लिमिटेड है और उनके कंट्रोल से बाहर है। जैसे कई लोग अपने बारे में अच्छा फील करने के लिए दूसरों पर बहुत ज्यादा लाइक करते हैं और उनकी इंडिविजुअलिटी उतनी स्ट्रॉन्ग नहीं होती। कई लोग अपनी पास्ट की अचीवमेंट के दम पर अपनी सेल्फ अर्थ को नापते हैं और कई लोग रिऐलिटी को अपने ट्रॉमा स्केल से देखते हैं, जहाँ वो एक अच्छे इंसान होते हैं और उन्हें अपनी अच्छाई की वजह से इतनी सफरिंग झेलनी पड़ी है। खुद सोचो क्या होगा अगर आप अपनी सारी सेल्फ वर्थ अपने पार्टनर की सुंदरता, अपने पैसों या फिर अपनी छोटी मोटी अचीवमेंट पर टिका होगे तो और फिर आपका पार्टनर आपको छोड़कर चला जाए। आपके पैसे ज़्यादा बहुत कम हो जाए और आप ज्यादा कुछ अचीव भी ना कर पाओ। जो भी आपके अपने बारे में ख्याल आपकी ईगो से जुड़े थे, वह सारे ख्याल ही चकनाचूर हो जाएंगे। डिप्रेशन यूज़्वली एक इंसान की लाइफ में तभी आता है जब उसका सोशल मास्क फोर्स्फुली उतरता है और उसे ये पता चलता है कि जिंस गोलपर वो अपनी वैल्यू टिकाए बैठा था। वो गोल तो आप बदल चुका है तो अब उसकी वैल्यू कहा है क्या वो अब वैल्यू लैस है? ये रिज़ल्ट होता है अपनी पर सोना या फिर अपने सोशल मास्क को ही अपना ट्रू सेल्फ समझना आप तब तक डिप्रेस फील करोगे जब जब आप अपनी वैल्यू एक बाहरी और अनगिनत तो लेवल चीज़ में डालोगे हाउएवर अगर आपकी कोई वैल्यूएबल चीज़ जैसे कोई इंसान, आपकी पुरानी आइडेंटिटी या फिर आपका गोल वो आपकी लाइफ से चला भी जाए तब भी उसके बाद आने वाला डिप्रेसिव पीरियड वर्थ्लिस नहीं होता बल्कि आप अपने डिप्रेशन से बहुत कुछ सीख सकते हो। यूँ चली वो एक डिप्रेसिव फेस ही होता है जिसमें एक इंसान के सारे इल्ल्यूशंस और फॉल्स बिलीफ टूटते हैं और वो दुनिया को ज्यादा क्लियरली देख पाता है। इसलिए अगर आप अपने डिप्रेशन से बाहर निकलना चाहते हो तो आपको इसके लिए एक ऐक्टिव अप्रोच लेनी होगी और आपको नई नई चीजें ट्राई करके ये देखना होगा कि कौन सी चीज़ या फिर ऐक्टिविटी या लाइफ स्टाइल आपके थॉट्स और बिहेव्यर सको। पॉज़िटिव इमोशन से भर देते हैं कौन सा टास्क या फिर गोल पर काम करने से जुड़ा फोर्वर्ड मोमेंटम थोड़ी देर के लिए डिप्रेशन का ख्याल आपके दिमाग से निकाल देता है। ऐसे काम को करो और जैसा कि स्विस साइकिऐट्रिस्ट अपनी बुक सिविलाइज़ेशन इन ट्रांसलेशन में बोलते हैं कि हमें अपनी मेंटल हेल्थ प्रॉब्लम्स से छुटकारा पाने की नहीं बल्कि उन्हें समझने की कोशिश करनी चाहिए। आपका डिप्रेशन या फिर न्युरोसिस आपको कुछ सीखाना और बताना चाहता है। हमें इसके लिए शुक्रगुजार होना चाहिए क्योंकि यह एक ऑपर्च्युनिटी है खुद को जानने की। हम डिप्रेशन का नहीं बल्कि डिप्रेशन हमारा इलाज करता है। आप अभी बीमार हो, लेकिन एक बिमारी प्रकृति की कोशिश है आप को ठीक करने की।","हम में से लगभग आधे लोग अपने जीवन के किसी न किसी मोड़ पर अवसाद का अनुभव करेंगे लेकिन अवसाद की अधूरी समझ के कारण हम इसके मूल कारण तक कभी नहीं पहुँच पाते हैं। जबकि अवसादग्रस्त लोगों का एक मामूली प्रतिशत अपने आनुवंशिक कारण से इस समस्या से ग्रस्त है, अधिकांश लोग केवल अपनी जीवन शैली में बदलाव करके अवसाद पर काबू पा सकते हैं, और इस पॉडकास्ट खंड में, हम आपकी मानसिकता, जीवन शैली और आदतों को बदलने के सटीक तरीके पर चर्चा करेंगे।" "क्या आप जानते हो कि हमें दूसरों का खाना खुद के बनाए खाने से बेहतर क्यों लगता है? क्यों हम उन चीजों के बारे में ज्यादा सोचते हैं जो हमारे पास नहीं है या क्यों झूठ बोलना हमारे दिमाग के लिए इतना मुश्किल होता है? इस एपिसोड में हम ऐसे ही बहुत से इंट्रेस्टिंग और शॉकिंग साइकोलॉजिकल फ़ैक्स को डिस्कस करेंगे और साइनस की मदद से ये जान लेंगे कि हम जैसे बिहेव करते है, उसके पीछे के साइंटिफिक रीज़न क्या है? इसलिए अगले 10 मिनट तक अपनी अटेन्शन यहीं पर रखो ताकि आप कुछ नया सीख सकों और अपने टाइम की इस इन्वेस्टमेंट से एक बहुत बड़ा रिटर्न निकाल सको। नंबर वन मनी कैन बी हैपिनेस नोर्मल्ली हम सब से यही सुनते हैं कि पैसों का पीछा करने से खुशी नहीं मिलती लेकिन 2010 में हुई एक स्टडी में पता लगा कि हम सबका एक सैटिस्फैक्शन पॉइंट होता है जहाँ पैसों से जुड़ी खुशी पिक करती है और इस पॉइंट के बाद पैसा चाहें जितना मर्जी मिलता रहे उसका हमारी खुशी पर कोई असर नहीं पड़ता। यूएस में ये पॉइंट आता है जब एक इंसान की पर मंथ इनकम $8500 यानी तकरीबन ₹6,00,000 जितनी हो जाती है। इंडिया में लाइफ स्टाइल कंपैरटिव्ली सस्ता होने की वजह से हम इस पॉइंट को 6,00,000 से थोड़ा नीचे बन सकते हैं। ये एक ऐसा पॉइंट होता है जहाँ हम लोगों की बेसिक नीड्स पूरी हो जाती है। हमें खाने की परवाह नहीं करनी पड़ती। हम खुलकर शॉपिंग कर पाते हैं। हम लेटेस्ट गैजेट्स को अफोर्ड कर पाते हैं और थोड़े समय में ही हमारे पास गाड़ी और घर को लेने के लिए भी एनफ रिसोर्सेस कटे हो जाते हैं। लेकिन इन सारी बेसिक नीड्स के पूरा हो जाने के बाद एक्स्ट्रा पैसा कोई खुशी नहीं देता। वो बस हमारे लालच और हमारे खोखलेपन को बढ़ता है। नंबर टू लॉन्ग टर्म डेडलाइन से इफेक्टिव नहीं होती। हमारा दिमाग कुछ इस तरह से काम करता है कि अगर आप उसे बोलो कि कोई काम है जो आपको एक लंबे समय बाद करना है तो वो सुस्त बन जाएगा। यह सोचकर कि अभी तो बहुत टाइम पड़ा है, अभी से क्यों नहीं एनर्जी वेस्ट करनी उसके बारे में सोचते हुए या फिर उसकी तैयारी करते हुए हमारा दिमाग ऑप्टिमल ली तब परफॉर्म करता है जब हमारे ऊपर कोई अर्जेंन्सी हो और हमें फटाफट कोई जरूरी टास्क को पूरा करना हो। यही रीज़न है की वो हमारे न्यू ईयर रिज़ॉल्यूशन भी ज्यादातर फेल हो जाते हैं और गर्मियों की छुट्टियों में जब हमें होमवर्क दिया जाता है तब भी हम अपना 90% समय यही सोचकर वेस्ट कर देते हैं कि अभी तो बहुत समय है। और एंड के कुछ दिनों में फिर जल्दी जल्दी सब करने बैठ जाते हैं। इसलिए अपने बड़े गोल्स को हमेशा छोटे छोटे टुकड़ों में डिवाइड करो ताकि आपके पास हर समय कुछ ना कुछ करने के लिए जरूर हो वरना आपका दिमाग सुस्त बन जाएगा। नंबर थ्री वे ओवरऑल लैक ये साइकोलॉजिकल फैक्ट बोलता है कि जीस चीज़ की भी हमारे पास सबसे ज्यादा कमी होती है। हम उसी के बारे में हर टाइम सोचने लगते हैं। 2014 में पब्लिश हुई एक स्टडी में देखा गया किसकेर सिटी का एक्सपिरियंस हमारे माइंड में 22 इस पैदा करता है। जाम पल के तौर पर जिंस फैमिली में एक समय पर पैसों की बहुत कमी थी। तब उनके दिमाग में ये चीज़ बैठ जाती है कि उनकी हर प्रॉब्लम सॉल्व होजायेगी जब उनके पास पैसा होगा, लड़के को अच्छी लड़की तभी मिले गी जब उसका बैंक अकाउंट भरा हुआ होगा या फिर दुनिया में इतनी ज्यादा नफरत इसलिए है क्योंकि लोग बस एक दूसरे के जलते हैं या फिर खुद को दूसरों से ऊपर समझते हैं, जिससे इंसान को कभी सच्चा प्यार नहीं मिला या फिर उसे धोखा दिया गया था तब वो भी यही सोचेगा की दुनिया की सारी प्रॉब्लम्स का रूट कॉज है कि लोगों में इतनी नफरत है और किसी को भी सच्चा प्यार नहीं मिलता। इस तरह से हम हर एक्सटर्नल प्रॉब्लम मैं खुद किसकेर सिटी माइंड को ही प्रोजेक्ट करने लगते हैं और दुनिया को एक तरफ ई नज़र से ही देखने और समझने लगते है। इसलिए खुद की इस बायरस को समझो और दुनिया को इतना सिम्पली स्टिक बनाने के बजाय ये सोचो कि आप खुद को लाइफ के हर एरिया में कैसे बेहतर बना सकते हो, बजाय सिर्फ अपनी लाइफ के एक एरिया के पीछे भागने के नंबर फ़ोर सम कलर कॉम्बिनेशन आर हार्ड ऑन योर आइज़ हम ऑलरेडी ये बात जानते हैं कि रेड कलर की वेवलेंथ विजिबल लाइट स्पेक्ट्रम में काफी हाई होती है, लेकिन ब्लू कलर की वेव लेन्थ काफी कम इस वजह से जब हम इन दोनों कलर्स को साथ में देखते हैं तब हमें ऐसा लगता है कि रेड ब्लू से ज्यादा पास है और ये चीज़ हमारे दिमाग की बहुत ज्यादा प्रोसेसिंग पावर लेती है। सेम चीज़ रेड और ग्रीन के कॉम्बिनेशन के साथ भी होती है। यही रीज़न है कि पुलिस और एंबुलेंस की लाइट्स भी रेड और ब्लू ही होती है। रोड पर लगे साइन यूज़्वली रेड, येलो, ब्लू या ग्रीन कलर के होते हैं और ई वन यूट्यूब पर भी आपका सबसे ज्यादा ध्यान वही थंबनेल खींचते हैं जिन्होंने इन कलर्स को जानबूझकर साथ में लगाया होता है। नंबर फाइव अदर्स फूड टेस्ट बेटर या कभी आपने ये क्वेश्चन करा है कि क्यों स्कूल में किसी दूसरे का लंच हमेशा आपको मिले? खाने से बेहतर लगता है। ये क्यों एक साधारण सी मील एक रेस्टोरेंट में ज्यादा टेस्टी लगती है? बजाय वही मील घर में खुद बनाकर खाने के साइंस मैगजीन में पब्लिश हुई एक स्टडी में पता चला कि जब भी हम खुद अपना खाना बनाते हैं तब हम उसके पास इतने ज्यादा समय के लिए होते हैं कि जब तक वो मील तैयार होती है तब तक हमारी अाधी से ज्यादा एक्साइटमेंट खत्म हो गयी होती है और जब हम खाना शुरू करते हैं तब चाहे वो जितना भी टेस्टी हो, हमें उतनी ज्यादा सैटिस्फैक्शन नहीं मिलती। जितनी हमें बना बनाया खाने पर मिलती है क्योंकि उस केस में हमने खाने से जुड़े सरप्राइज़ को ऑलरेडी उतना फील नहीं करा होता और वो मील हमारे लिए प्लेट तक आते आते नॉर्मल नहीं बन गई होती। नंबर सिक्स वे केर मोर अबाउट सिंगल पर्सन देन बिग ट्रैजिडी स् यूनिवर्सिटी ऑफ पेन्सिलवेनिया में हुई एक स्टडी में देखा गया कि जब एक ग्रुप को पता लगा कि एक इंसान भूख के मारे तड़प रहा है और उसके पास खाने के लिए बिल्कुल भी पैसे नहीं है और दूसरे ग्रुप को ये पता लगा कि दुनिया में करोड़ों लोग भूखे मर रहे हैं। लेकिन तीसरे ग्रुप को इन दोनों ही सिचुएशन के बारे में अवेयर कराया गया। जब उस अकेले इंसान को टोटल दोगुना ज्यादा डोनेशन से मिली बजाय यह पता होने के कि दुनिया में ऐसे बहुत लोग हैं, सिर्फ यह अकेला नहीं ह्यूमन बिहेव्यर कुछ ऐसे ही काम करता है कि हमें ये लगता है कि बड़ी प्रॉब्लम तो रहेंगी ही, तो क्यों ना हम अट्लीस्ट उस प्रॉब्लम को फिक्स कर लें, जो हमारे सामने है? यही रीज़न है कि क्यों? हम दुनिया भर की ट्रैजिक न्यूज़ सुनकर थोड़ा बुरा तो फील करते हैं, लेकिन जब न्यूस या फिर सोशल मीडिया पर किसी अकेले इंसान की स्टोरी वायरल हो जाती है तब हम उस अकेले इंसान से ज्यादा इन्फ्लुयेन्स होते हैं और उसके लिए ज्यादा प्रे या फिर डोनेट करते हैं। नंबर सेवन लाइन इस रियली हार्ड हम अक्सर सोचते हैं कि सच बोलने और उसके नतीजों को फेस करना बहुत मुश्किल चीज़ होती है जिसकी वजह से हम झूठ का सहारा लेते हैं और उसे एक चीट कोड की तरह देखते हैं जिसका शायद हमें कोई नतीजा ना भुगतना पड़े। लेकिन रियल लाइफ ऐसे काम नहीं करती। प्रोफेशनल कोच आर्नोल्ड पेटेंट बोलते है कि जब भी हम अपने दिमाग में कोई ऐसा इल्यूजन क्रिएट करते हैं जो यूनिवर्स के बेसिक लॉ यानी सच के परे होता है तब हमें उस झूठ को मेनटेन करें। रखने के लिए अपनी बहुत एनर्जी देनी पड़ती है। यानी हम अपने हर झूठ को एक ब्राउज़र में खुले टैब की तरह सोच सकते हैं। जैसे ही हम एक झूठ बोलते हैं वैसे ही हमें कुछ टैप्स और खोलनी पड़ती है उस झूठ को छुपाए रखने के लिए और हम ये एक हद तक कि कर सकते हैं। इसलिए झूठ को अपना साथी मत बनाओ और दूसरों के आगे खुद को एक बहुत बड़ा विक्टिम या एक हीरो की तरह भी मत दिखाओ। रिऐलिटी जैसी हैं, वैसी ही उसे एक्सेप्ट करो और सच से दोस्ती करो। नंबर एट वी ऑलवेज फाइन्ड प्रॉब्लम खाली दिमाग शैतान का घर ये से इंग्लिश पॉइंट को बहुत अच्छे से समझाती है, क्योंकि यह हमारे साथ हमेशा होता है। कि हमारी एक प्रॉब्लम सॉल्व नहीं होती कि दूसरी पहले ही रेडी खड़ी होती है। 2018 में हुई एक रिसर्च में लोगों को अलग अलग फेस दिखाए गए और यह पूछा गया कि उन्हें कौन सा फेस सबसे ज्यादा गुस्से में लग रहा है? लेकिन जैसे जैसे रिसर्चर्स ने गुस्सैल फेस दिखाना बंद ही कर दिया तब सब्जेक्ट की एक गुस्सैल फेस की डेफिनेशन भी बदल गई और वो उन फेस को भी डरावना और गुस्सैल बोलने लगे जिन्हें उन्होंने पहले स्वीट और हैप्पी बोला था। इससे हमे ये पता लगता है कि अगर हमने अपने दिमाग को पहले से ही प्रॉब्लम ढूंढने के लिए ट्रेन कर रखा हो वो प्रॉब्लम के ना होने पर भी वहाँ कहीं ना कहीं से प्रॉब्लम निकाल ही लेता है। यही रीज़न है क्योंकि वो पॉज़िटिव फॉर्मेंशन्स यानी खुद को अच्छी बात है। बोलना और प्रे करना इतना हेल्दी होता है। नंबर नाइन वे हेट चेंजिंग माइंड हम सब दुनिया को एक पर्टिकुलर तरह से देखते हैं। लोगों के बारे में हमारी अलग ही राय होती है और हर आइडिया पॉलिसी या रूल के ऊपर हमारा अपना ही ओपिनियन होता है और हम इस ओपिनियन को बदलना नहीं चाहते। यह इसलिए होता है क्योंकि हम में से बहुत से लोग खुद की आइडेंटिटी को ही अपने बिलीव्स और आइडीओलॉजी इस पर बहस करते हैं। सैंपल के तौर पर अगर कोई इंसान आपके फेवरेट सेलिब्रिटी या एथलीट के बारे में ये बोलता है की वो असल में कितना बुरा है तो आपकी बायरस आपको वो चीज़ मानने से रोकती है और आप बिना ऐक्चुअल फैक्ट को जाने ही अपनी पोज़ीशन डिक्लेर कर देते हो या फिर बस हो जाते हो क्योंकि अगर ऐसी कोई बात सच निकली तो वो हमारी ईगो के लिए एक थ्रेट होगा। हम झूठ तक का साथ दे देते हैं ताकि हमारी ईगो सही सलामत रहे। इसलिए खुद की आइडेंटिटी इन छोटी मोटी चीजों पर मत बनाओ और अगर आप किसी दूसरे शैलो इंसान को देखो यही गलती करते हुए तो उससे लड़ने के बजाए या तो उसे असलियत समझाओ। या फिर उससे दूर रहो।","मनोविज्ञान की समझ अपने स्वयं के भत्तों के साथ आती है। एक बार जब आप समझ जाते हैं कि मनुष्य कैसे और क्यों व्यवहार करते हैं, तो आप अजीब परिस्थितियों से नेविगेट कर सकते हैं, वृद्धि प्राप्त कर सकते हैं, अधिक बिक्री कर सकते हैं, दूसरों की सहायता कर सकते हैं, अधिक सफल हो सकते हैं, अधिक पैसा कमा सकते हैं, लोगों को प्रभावित कर सकते हैं, अपने जीवन की गुणवत्ता में सुधार कर सकते हैं और बहुत कुछ कर सकते हैं। इन मनोवैज्ञानिक हैक्स का उपयोग करके आप न केवल अच्छी तरह से संवाद करने और बेहतर सामाजिक संबंध बनाने में सक्षम होंगे बल्कि आप खुश भी होंगे, अपनी उत्पादकता बढ़ाएंगे, अपने स्वास्थ्य में सुधार करेंगे और तेजी से सीखेंगे/पढ़ेंगे। हमने 9 सरल लेकिन चौंकाने वाले मनोवैज्ञानिक तथ्यों और तरकीबों पर चर्चा की है जो मनोविज्ञान और मानव व्यवहार के बारे में आपके ज्ञान को बढ़ाएंगे।" "इंसान की हर साधारण लगने वाले बिहेव्यर के पीछे कई अनोखे साइकोलॉजिकल फैक्टर छुपे होते हैं और आज का ये एपिसोड ऐसे ही कई इंट्रेस्टिंग फैक्ट के बारे में है जो आपको हैरान भी करेंगे और साथ साथ साइकोलॉजी के बारे में एजुकेट भी। फैक्ट नंबर वन लो कॉन्फिडेन्स लीडस् टू मोर सक्सेस हाँ आपने सही सुना वो लोग जो शुरुआत में खुद को बहुत ज्यादा डाउट करते हैं और उन में कॉन्फिडेन्स की कमी होती है, उनके आगे चलकर सक्सेसफुल बनने के चान्सेस दूसरे हाइ कॉन्फिडेन्स वाले लोगों से ज्यादा होते है। हम यूज़्वली सोचते हैं। कि सिर्फ हाई कॉन्फिडेन्स ही सक्सेस तक पहुंचने की अकेली स्किल है। लेकिन अमेरिकन साइकोलॉजिस्ट थॉमस कामों ने अपनी रिसर्च में यह पाया है कि सेल्फ कॉन्फिडेंस सिर्फ तभी यूज़फुल होता है जब वो एक इंसान में कम होता है और उसके तीन मेन रीज़न होते हैं फर्स्ट्ली लो सेल्फ कॉन्फिडेंस आपको नेगेटिव फीडबैक पर ज्यादा टेंशन पे करने पर मजबूर करता है। आपको सेल्फ क्रिटिकल बना के ज्यादातर लोग खुद की ही फैन्टैसी इसमें फंसे रहते हैं और हर नेगेटिव पॉसिबल आउटकम को इग्नोर कर देते हैं। इससे वह दूसरों के आगे कॉन्फिडेंट तो लगते हैं। लेकिन खुद की की नॉलेज ना होने की वजह से उनकी प् लैनिंग हमेशा ही अधूरी रहती है। लेकिन जब एक इंसान का लो सेल्फ कॉन्फिडेंस उसकी ऐम्बिशन के साथ मिलता है तब उसकी परफॉर्मेंस और रिजल्ट्स एक टिपिकल इंसान से बहुत बेहतर होते है। सेकंडली लो सेल्फ कॉन्फिडेन्स आपको मोटिवेट करता है। ज्यादा मेहनत करने के लिए बहुत से लोग एक्सेप्शनल तो बनना चाहते हैं, लेकिन उन्हें यह नहीं पता होता कि सबसे अलग बनने के लिए उन्हें कितना ज्यादा एफर्ट लगाना पड़ेगा, जिसकी वजह से कॉन्फिडेंस की कमी एक इंसान को कॉन्स्टेंट ली। अपना बेस्ट देने के लिए मोटिवेटेड रखती है और थर्ड ली लो। सेल्फ कॉन्फिडेंस हमें ज्यादा सेल्फ वेर बनाता है। हमारे अंदर से अकड़ और सेल्फ डिसेप्शन को कम करके। फैक्ट नंबर टू डिफरेंट लैंग्वेज चेंज योर डिसिशन्स जो आपके ख्याल आपकी मदर टंग या फिर आपकी नेटिव लैंग्वेज से जुड़े होते हैं, वो ख्याल बहुत ही अलग होते हैं। किसी फॉरेन लैंग्वेज से जुड़े ख्यालों से जैसे अगर आपकी मातृभाषा हिंदी है लेकिन आपको इंग्लिश या फिर फ़्रेंच बोलने भी आती है तो इंग्लिश या फिर फ़्रेंच बोलते समय आपकी चौ। सेस और आपकी डिसिशन्स ज्यादा रैशनल होंगे। यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो में हुई एक स्टडी में पता चला कि एक फॉरेन लैंग्वेज का यूज़ लोगों को कम इमोशनल बनाता है और उन्हें ज्यादा क्लियरली सोचने पर मजबूर करता है। ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि बचपन से ही हम अपने सारे इमोशन्स का चार्ज अपनी लैंग्वेज में ही समझते और एक्सप्रेस करते आए हैं, जिसकी वजह से कोई दूसरी लैंग्वेज में वो इमोशनल कनेक्शन फिर से बन ही नहीं पाता। फैक्ट नंबर थ्री मीनिंग लेस, ऐक्टिविटीज़ ऑर्डर और जीन्स हम सभी खुश होना चाहते हैं, लेकिन फिज़िकली और मेंटली ज्यादा हेल्थी रहने के लिए हमें खुशी को नहीं बल्कि मीनिंग को प्रायोरिटी देनी चाहिए। 2013 में हुई एक स्टडी बताती हैं कि जो लोग ऐसी ऐक्टिविटीज़ में पार्टिसिपेट करते हैं, जो उन्हें बस अच्छा फील कराती है, लेकिन उनमें कोई भी असली मीनिंग नहीं होता। उनके जीन्स खुद को ऐसे एक्सप्रेस करने लगते हैं जैसे वह एक बहुत ही बीमार इंसान के जीन्स हो, इसलिए अपने लाइफ में मीनिंग को ढूंढ हो और चान्सेस है कि उसके साथ खुशी और सैटिस्फैक्शन खुद ब खुद आपको मिल जाएंगे। फैक्ट नंबर फ़ोर डेज़ इट इस मोर कॉमन इन द वेस्ट 1,50,000 लोगों पर हुई एक स्टडी में यह देखा गया ये कौन सी कंट्री के लोग अपनी कंट्री की हाइअर या फिर लोअर इनकम की वजह से ज्यादा खुश या फिर दुखी थे और रिज़ल्ट में पता लगा कि कम वाली कंट्रीज़ जैसे वेस्ट के ज्यादातर देशों में ऐंग्जाइटी डिस्ऑर्डर ज्यादा होते हैं जबकि जिन कंट्रीज़ की आर्थिक स्थिति उतनी अच्छी नहीं है उनमें इस तरह की मेंटल हेल्थ प्रॉब्लम्स कम देखने को मिलती है। इस शॉकिंग फाइन्डिंग के पोटेंशिअल रीजन्स में से एक रीज़न यह हो सकता है कि जहाँ एक हाइर इनकम कंट्री में कंफर्ट की सुविधा ज्यादा होती है, वहीं वहाँ के लोगों को इस कम्फर्ट की कीमत एक भागा दौड़ी वाले लाइफ स्टाइल कॉन्स्टेंट चिंता और अपने बिल्स या फिर लोन्स पे करने की टेंशन से चुकानी पड़ती है और यही सारी चिंताएं या फिर हेक्टिक लाइफ स्टाइल उनकी पुअर मेंटल हेल्थ के रूप में दिखता है। फैक्ट नंबर फाइव साइड म्यूजिक मेक्स इन प्रोस्पेक्टिव ब्रेन इमेजिंग स्टडीज़ बताती हैं कि सैड म्यूजिक सुनने से हमारा दिमाग अपनी एक जगह पर फोकस करने की एबिलिटी खो देता है और हमारा मन बस अलग अलग आइडियास फैंटसी स् या फिर मेमोरीज़ के बीच भटकता रहता है। जहाँ हाइ टेम्पो वाला और लाउड म्यूजिक हमारी अटेंशन एक्सटर्नल चीजों की तरफ खींचता है। वही सैड और स्लो म्यूसिक हमारा फोकस अपनी इनर रिऐलिटी की तरफ मोड़ देता है और हमें खुद के बारे में सोचने पर मजबूर कर देता है। यही रीज़न है की क्यों? चाहे आप एक जिम में हो या फिर एक शॉपिंग मॉल में आपका ध्यान एक्सटर्नल चीजों पर लाने के लिए लाउड और हाइ टेम्पो वाला म्यूसिक का इस्तेमाल करना जाता है ताकि आप अपने दिमाग से बाहर निकलकर ज्यादा शॉपिंग करो या फिर ज्यादा एक्सरसाइज पर ध्यान दो। फैक्ट नंबर सिक्स हेल्पिंग अदर्स में हेल्प यू लीव लॉन्गर ये साइकोलॉजिकल फैक्ट रेग्युलर वॉलनटिअर्स पर हुई एक रिसर्च से आ रहा है जो बताती हैं कि किस तरह से जो लोग अक्सर दूसरों की मदद करते हैं, उनके समय से पहले मरने के चान्सेस 22% कम होते हैं। एस कंपेर्ड टु वो लोग जो कभी भी वॉलनटिअर इन ग् या फिर दूसरों की मदद नहीं करते हैं। यानी आपकी बहुत सी हेल्थ प्रॉब्लम्स ज्यादा सोशली कॉन्ट्रिब्यूट करने से खुद ब खुद कम हो जाती है, जिसकी वजह से आप दूसरों की हेल्प करने से खुद एक लंबी और हेल्थी लाइफ जी पाते हो। फैक्ट नंबर से वन अन्न फ्रेंडली पीपल फ़ोन मोर, अग्रेसिव डॉग ब्रीड ज़ जिसतरह से हमारे अंदर 122 अपने पार्टनर को चुनते हुए भी ये होती है कि उनके फीचर्स हमारे फीचर्स से ही मिलते जुलते हों और उनकी पर्सनैलिटी भी कुछ हद तक हमारे जैसी ही हो। वैसे ही हम अपने पेट्स के साथ भी अपने स्वभाव एक सबकॉन्सियस मैनर में उनके स्वभाव से मिलाने की कोशिश करते हैं। जिसकी वजह से जो लोग शांत होते हैं वो नैचुरली उन डॉग ब्रीड से ज्यादा रिलेट कर पाते हैं जो खुद भी लविंग और शांत स्वभाव के होते हैं। जबकि जिन लोगों को गुस्सा ज्यादा आता है वो एग्रेसिव ब्रीड ज़ जैसे रॉटविलर या फिर जर्मन शेफ़र्ड जैसे ब्रिज को अपना पेट बनाते हैं। डॉग्स को ह्यूमन्स का बेस्ट फ्रेन्ड इसी रीज़न की वजह से बोला जाता है, क्योंकि हम अपनी मर्जी से एक ऐसे डॉग को ढूंढ सकते हैं, जिसकी पर्सनैलिटी हम से मेल खाएं और जो हमेशा ही हमारी तरह ही ऐक्ट करना चाहे। अगर आप हमेशा एनर्जेटिक और ऐडवेंचर के लिए रेडी रहते हो तो आप एक डॉग भी ऐसा ही चुनोगे जो ज्यादा ऐक्टिव रह सके बजाय एक आलसी डॉग के। और अगर आप ज्यादा बोलते नहीं हो तो नैचुरली आप भी एक ऐसे डॉग को ही अपना पैठ बनाना चाहोगे जो ज्यादा शोर ना मचाये। और आप की शांति में ही आपके साथ एन्जॉय कर पाए। फैक्ट नंबर एट वी डोंट चेंज योर बिहेव इरबा इअरिंग दैट इस बैड अगर आप किसी इंसान के बुरे बिहेव्यर को बदलना चाहते हों तो साइकोलॉजी के हिसाब से आपको अपने मैसेज के साथ एक पॉज़िटिव आउटकम जोड़नी चाहिए। अगर किसी इंसान को कूड़ा फैलातें रहने की आदत है तो उसके आगे ये बोलो कि यहाँ पर हर कोई ही अपनी गंदगी कचरे के डिब्बे में फेंकता है और ऐसा दिखाओ कि यह बिहेव्यर तो एक सोशल नाम है और हर अच्छे इंसान को ऐसे ही बिहेव करना चाहिए। या फिर अगर किसी को सिगरेट पीते रहने की आदत है तो उसे भी ये मत बोलो की वो सिगरेट पीने के लिए कितना बुरा है बल्कि ये बोलो कि हर समझदार इंसान अपनी हेल्थ की परवाह करता है और वो इतने वाइस होने के बाद क्यों इस तरह से स्मोक कर रहा है? जब भी हमें ऐसा लगता है कि हमारे पास खुद को बेहतर बनाने की ऑपर्च्युनिटी है, तब हम ज्यादातर अपने बिहेव्यर को बदलने की कोशिश जरूर करते हैं। फैक्ट नंबर नाइन ओवरथिंकिंग ऐंड नॉट इन गेट ऑल बोथ आर बैड नोर्मल्ली बस ज्यादा सोचने को ही गलत और अनहेलथी हैबिट माना जाता है, लेकिन बहुत कम सोचना भी ईक्वली गलत होता है। क्योंकि अगर आप ओवर थिंक करते हो, तो आप कोई प्रॉब्लम ना होने पर भी अपनी लाइफ में मीनिंग फील्ड करने के लिए खुद प्रॉब्लम्स को क्रिएट करते रहोगे और अगर आप अन्डर थिंक करते हो तो तब भी आपके लिए ईज़ अली मैनिपुलेट होने और अपनी प्रॉब्लम्स के सल्यूशनस ना ढूंढ पाने के चान्सेस बहुत बढ़ जाते हैं। फैक्ट नंबर 10 फियर ऑफ फ्यूचर इज़ द सिम्प्टम ऑफ द पास्ट यानी जीस तरह से आप अपने फ्यूचर को देखते हो? वो डिपेंड करता है आपके पास्ट के ऊपर की वो कैसा था? साइकोलॉजी में इस तरह केफिर को बोलते हैं ऐन्टी सिपेट्री ऐंगज़ाइइटी यानी अभी फ़्यूचर और फ्यूचर से जुड़ी प्रॉब्लम्स आई भी नहीं है लेकिन आप उनके खयालों की वजह से ही सफर करने लगे हों इसलिए अगर आप अपने इस फीचर को फिक्स करना चाहते हो तो पहले अपने पास्ट को फिक्स करो थोड़ी सेल्फ अवेर्नेस हासिल करके।","मनोविज्ञान की समझ अपने स्वयं के भत्तों के साथ आती है। एक बार जब आप समझ जाते हैं कि मनुष्य कैसे और क्यों व्यवहार करते हैं, तो आप अजीब परिस्थितियों से नेविगेट कर सकते हैं, वृद्धि प्राप्त कर सकते हैं, अधिक बिक्री कर सकते हैं, दूसरों की सहायता कर सकते हैं, अधिक सफल हो सकते हैं, अधिक पैसा कमा सकते हैं, लोगों को प्रभावित कर सकते हैं, अपने जीवन की गुणवत्ता में सुधार कर सकते हैं और बहुत कुछ कर सकते हैं। इन मनोवैज्ञानिक तथ्यों का उपयोग करके आप न केवल मानव मस्तिष्क को बेहतर ढंग से समझ पाएंगे और बेहतर सामाजिक संबंध बना पाएंगे बल्कि आप खुश भी रहेंगे, अपनी उत्पादकता बढ़ाएंगे, अपने स्वास्थ्य में सुधार करेंगे और तेजी से सीखेंगे/अध्ययन करेंगे। हमने 10 सरल लेकिन आश्चर्यजनक मनोवैज्ञानिक तथ्यों और तरकीबों पर चर्चा की है जो मनोविज्ञान और मानव व्यवहार के बारे में आपके ज्ञान को बढ़ाएंगे।" "मेल्स के केस में यूज़्वली ये बोला जाता है कि वो उतने चूज ही नहीं होते हैं और उन्हें जीस टाइप की भी फीमेल मिले। वो उसके साथ मेट करने के लिए रेडी रहते हैं और ये बात एक हद तक सच भी है क्योंकि मेल्स के लिए री प्रॉडक्शन की कॉस्ट बहुत कम होती है, जिसकी वजह से उन्हें एक पार्टनर के बारे में उतना नहीं सोचना पड़ता, जितना फीमेल्स को सोचना पड़ता है और वो अपनी पार्टनर की बहुत सारी बुरी क्वालिटीज को इग्नोर भी कर देते हैं। लेकिन अगर आप ये जानना चाहते हो की ऐक्चुअल मैं एक रिलेशनशिप को हेल्थी कैसे रखा जाता है तो आपको थोड़ा पिकी बनना ही पड़ेगा। जब कोई स्पेसिफिक टाइप्स की फीमेल से दूर रहना होगा। इसलिए इस एपिसोड में हम कुछ ऐसे ही फीमेल्स की बात करेंगे जो टॉक्सिक होती है और आपको उनसे दूर ही रहना चाहिए। नंबर वन ए प्रिन्सेस इस टाइप की फीमेल यूज़्वली काफी ब्यूटीफुल होती है और इस वजह से उसे बचपन से ही हर समय कॉम्प्लिमेंट्स मिलते रहते है। पर जब एक बच्चे की हर समय तारीफ करी जाती है, उसे कभी भी डाटा नहीं जाता। उसके बुरे ऐक्शन के बाद भी उसे किसी तरह के कॉन्सिक्वेन्स नहीं फेस करने पड़ते और उसे हर चीज़ काफी इजली मिल जाती है तो उसमें एक सेन्स ऑफ एनटाइटलमेंट आ जाता है की मेरे अंदर तो कोई कमियां हैं ही नहीं। और मैं बिना कुछ काम करे ही हर अच्छी चीज़ डिज़र्व करती हूँ। इस तरह की लड़की को डेट करने पर आपको हमेशा यह फील कराया जाएगा कि आप की प्रॉब्लम्स उतनी मैटर नहीं करती। वो हर इंसान से सुपिरिअर है और उस लड़की की हर नीड और प्रॉब्लम आपसे ज्यादा इम्पोर्टेन्ट है। इसलिए अगर आप भी किसी ऐसी लड़की से मिलो जिससे ये प्रिन्सेस सिंड्रोम है तो उससे दूर रहो नंबर टू वो लड़की जो कभी रेडी नहीं होती। यहाँ पर हम फिजिकल और इमोशनल अटैचमेंट की बात कर रहे हैं। यानी जब एक लड़की को अपने पास में किसी लड़के से धोखा मिला था, वो उसे छोड़कर चला गया था। उससे अब यूज़ करता था। उसने इस लड़की पर चीट करा था या किसी और तरह से डिसअप्पोइंट करा था तो इस लड़की के लिए दोबारा किसी और इंसान पर ट्रस्ट करना बहुत मुश्किल बन गया। अगर आप उसे अच्छे से भी ट्रीट करते हो और वह यह बात जानती भी है कि आप बुरे नहीं हो पर फिर भी वो कहीं ना कहीं अपने अंदर यह एक्सपेक्ट कर रही होती है कि 1 दिन आप अपना असली रंग जरूर दिखाओगे और इस वजह से वो कभी भी आपके साथ फिजिकली और इमोशनली इन्वॉल्व नहीं हो पाती बल्कि वो अपने पास्ट को आपके ऊपर प्रोजेक्ट करके आपको ऐसा फील कराती है जैसे आपने कुछ गलत करा हो। जहाँ कई लड़कियां सिर्फ कुछ समय बाद ही अपने पास रिलेशनशिप्स और ट्रॉमा सको ही कर लेती है, वहीं कई लड़कियों के इमोशन्स पास में ही अटके रह जाते हैं। और अगर आपको लगे कि एक लड़की इस सेकंड कैटेगरी में आती है तो उससे थोड़ा दूर ही रहो और कोई ऐसी स्वीट सी लड़की ढूंढ लो जिसके अंदर अभी भी होप हो और जिसके साथ आप सैन इनडिविजुअल ग्रो कर पाओ। नंबर थ्री द गोल्ड डिगर सी कोई भी लड़की एक ऐसे लू सर के साथ जिंदगी नहीं बिताना चाहेंगी जो कोई पैसे नहीं कमाता या फिर जो उसके बच्चों को जरूरी रिसोर्सेज़ नहीं प्रोवाइड कर पायेगा। यानी हर लड़की कॉन्शस ली। ये सब कॉन्शस ली आपका स्टेटस जरूर चेक करेगी। पर प्रॉब्लम तब आती है जब एक लड़की सिर्फ और सिर्फ आपके स्टेटस की वजह से आपसे अट्रैक्ट होती है। हाउएवर ये फिनोमिनल उतना कॉमन नहीं है जितना आपको लगता है। यानी अगर आप एक लड़की के आगे नोटों की गड्डियां फेकोगे तो वो ऑटोमैटिकली आपके प्यार में पागल नहीं हो जाएगी। उल्टा ज्यादातर लड़कियां तो आपको तब भी एक लूँ सर बोलके ही साइड कर देंगे। यह इसलिए क्योंकि ***** की करेन्सी हेल्थ है और एक पार्टनरशिप की करेन्सी म्यूचुअल अन्डरस्टैन्डिंग है और अगर आपको ये दोनों चीज़े ही सिर्फ पैसे के दम पर मिल रही है तो उसका मतलब आप अपने पार्टनर के साथ कुछ भी बिल्ड नहीं कर रहे हो और एक दूसरे की पोटेंशिअल को बाहर लाने में एक दूसरे की मदद नहीं कर रहे हो। ऐसे रिलेशनशिप्स बहुत ज्यादा शैलो होते हैं और अगर आप के लिए आप की ग्रोथ बहुत जरूरी है तो आपको एक गोल्ड डिगर को बिल्कुल एंटरटेन नहीं करना चाहिए और अपना टाइम और एनर्जी किसी ऐसी फीमेल को देनी चाहिए जो आपके बेस्ट वर्जन को बाहर लाये ना कि सिर्फ आपके वॉलेट को नंबर फ़ोर द मैन हीटर यहाँ पर सीधा सीधा बात आती है। एक फीमेल और उसके फादर के रिलेशनशिप की, क्योंकि एक आइडियल मेल या फीमेल कैसा होना चाहिए? ये आइडिया हम अपने ऑपोजिट ***** पैरेंट से लेते हैं। यानी हर मेल के दिमाग में एक फीमेल की इमेज होती है और हर फीमेल के दिमाग में मेल की। और इस केस में जब एक फादर अपनी बेटी को ढंग से यह नहीं समझा पाता कि एक मेल कैसा होना चाहिए या फिर वो अपने खुद के कॉन्ट्राडिक्ट्री ऐक्शन की वजह से अपनी बेटी को कन्फ्यूज कर देता है तो इस लड़की को खुद ही एक्स्ट्रीम वेज में जाकर देखना पड़ता है कि एक आइडियल स्ट्रांग मेल कैसा होता है? ये फीमेल्स की बेसिक नेचर होती है। कि वह मेल्स को टेस्ट करती है क्योंकि कोई भी में लाकर ये क्लेम कर सकता है कि देखो मैं ऐल्फा हूँ और मेरे जीन्स बहुत अच्छे है और तभी फीमेल्स नैचुरली हरमेल को एक तरह से डॉमिनेट करने की कोशिश करती है और देखती है की वो मेल कैसे रिऐक्ट करता है। क्या वो डर कर अपने करेक्टर से बाहर आ जाता है या फिर वो तब भी एक स्ट्रॉन्ग मेल की तरह अपनी बात पर डटा रहता है बट जब एक लड़की को ये आइडिया ही नहीं होता की एक आइडियल मेल कैसा होता है? जस्ट बिकॉज़ उसका खुद का फादर ऐब्सेंट वीक या अब्यूसिव था। तो उसके अंदर मेल्स की मेंटल इमेज करप्ट बन जाती है जिससे उसे ऐसा लगता है कि वो मेल से ज्यादा मेनली है और बाकी सारे मेल्स वर्थ्लिस हैं। ये लड़कियां तब तक मेल्स को हेट डिस रिस्पेक्ट और क्यूस करती है जब तक इन्हें कोई ऐसा मेल नहीं मिल जाता जो इन्हें डोमिनेट कर सके। इसलिए कभी भी अपना टाइम ऐसी लड़कियों को मत दो जो हमेशा ही मेल्स को एक्स्क्यूस करती रहती है और यह नहीं समझ पाती कि उनकी रीऐलिटी की परसेप्शन उनके ट्रामा की वजह से डीस्टॉर्टेड है। नंबर फाइव एक फीमेल जिसके सिर्फ मेल फ्रेंड्स होते है। एक इंसान जिसकी अपने सेंसैक्स से उतनी नहीं बनती और वो सिर्फ ऑपोजिट ***** के लोगों के साथ ही हैंग आउट करता है। यह भी एक बहुत बड़ा रेड फ्लैग होता है और फीमेल्स के केस में अगर वो अपने जेंडर को ही ट्रस्ट नहीं करती या फिर अपने पीछे काफी लड़कों को घुमाना सही मानती हैं और उन्हें बैकअप की तरह रखती है तो ऑब्वियस्ली वो एक ऐसी फीमेल नहीं है जिससे आपको अपना टाइम और एनर्जी देनी चाहिए क्योंकि ऐसा बिहेव्यर एक बहुत अनहेलथी जगह से आ रहा होता है और ज्यादातर केस में वो ऐसे मेल फ्रेंड्स ही होते हैं। जो बस एक मौके की तलाश में होते हैं। इसलिए इस तरह की फीमेल के चक्कर में पड़ना एकदम बेकार है। नंबर सिक्स के कंप्लेन अर या फिर से विक्टिम इन दोनों टाइप्स में ज्यादा डिफरेन्स नहीं है। एक कंप्लेन अरहर समय ही रहती है और एक विक्टिम हमेशा ये फील करती है कि पूरी दुनिया या दूसरे लोग उसके साथ अनफेयर है। इन फीमेल्स के लिए आप जितना भी कर लो और इनके साथ कितना भी अच्छा हो जाए लेकिन इनका बेस लाइन इमोशन कभी भी चेंज नहीं होता और ऐसा रिज़ल्ट इनकी इस डिप्रेसिंग एनर्जी से आपको भी डील करना पड़ता है। और इवन अगर आप काफी पॉज़िटिव भी रहते हो तब भी इस टाइप की फीमेल्स की नेगेटिविटी आपकी लाइफ की क्वालिटी को काफी नेगेटिव ली इन्फ्लुयेन्स कर सकती है। इसलिए अगर आपको भी कभी कोई कंप्लेन अर या विक्टिम माइंडसेट वाली लड़की मिले तो उससे दूर रहो नंबर सेवन ओवर ली एक्सपिरियंस वन ऑफ कोर्स हर इंसान की अपनी चॉइस है की वो कितने लोगों को डेट करता और उनके साथ इंटिमेट होता है। पर जब आप अपने लिए एक पार्टनर को ढूंढ रहे होते हो तो उन फीमेल से दूर रहना बहुत जरूरी है जिनके पास में बहुत सारे पार्ट्नर्स रह चूके हैं। या फिर वो पहले काफी थी? ये एक बहुत बड़ा रेड फ्लैग होता है क्योंकि एक साइकोलॉजिकली हेल्थी फीमेल इस बात को इन्टूइटिव ली समझती है की उसकी 64 और ऐक्शन सीन बहुत ज्यादा मायने रखते हैं। जस्ट बिकॉज़ उसकी रीप्रोडक्टिव कॉस्ट बहुत ज्यादा है। यानी अगर उसकी चौसा गलत निकली और उसने एक यूज़लेस लड़के के साथ मेट कर लिया तो उसे उस लू सर मेल केनवर्दी जीन्स को अगली जेनरेशन में पहुंचाना पड़ेगा और ऐसी सिचुएशन एक फीमेल की बायोलोजी के अगेन्स्ट जाती है। इसलिए अगर एक फीमेल बार बार अपना पार्टनर चेंज करती है तो उसका मतलब वो पैरेंटिंग या अपने चाइल्डहुड एक्सपिरियंस इसकी वजह से साइकोलॉजिकल ड्रामा टाइस है और उसने अभी तक अपने आप को हील नहीं करा है। इसलिए ना तो आपको ऐसी फीमेल्स को कुछ बुरा भला बोलना चाहिए और एट के सम टाइम आपको इनके साथ रिलेशनशिप में भी नहीं आना चाहिए। नंबर एट नार्सिसिस्ट यहाँ पर हम उस टाइप की फीमेल की बात कर रहे हैं, जो काफी सेल्फ सेंटर्ड होती है और उसे हर टाइम सबकी अटेन्शन अपने ऊपर चाहिए होती है। अटेन्शन और अप्रूवल लेने का इनका ये बिहेव्यर कई फार्म्स में दिख सकता है जैसे मेबी वो एक ड्रामा क्वीन हैं और हमेशा चीखकर और चिल्लाकर या बच्चों की तरह नाराज हो अटेन्शन अपनी तरफ लाती है या वो बहुत गॉसिप करती है और इधर की बात उधर पहुंचाती है ताकि वो अपने सर्कल में पॉपुलर बन सके और सबका ट्रस्ट पा सकें या फिर वो एक पार्टी गर्ल टाइप भी बन सकती है जो हमेशा ड्रिंक करने के बाद तमाशा करती है ताकि लोग उसे अटेन्शन ले और ये आपकी रिस्पॉन्सिबिलिटी है कि आप इन बिट्स को शुरू में ही आइडेंटिफाइ करो और ऐसी लड़कियों से दूर रहो। नंबर नाइन ओनली ब्यूटी और नो ब्यूटी यानी या तो उसके पास सुंदरता के अलावा कुछ ऑफर करने के लिए नहीं है या फिर वो अपनी फिजिकल इमोशनल और साइकोलॉजिकल हेल्थ की बिल्कुल परवाह नहीं करती है क्योंकि साइंस के हिसाब से ब्यूटी एक इंसान की हेल्थ को रिप्रजेंट करती है, जिससे लड़की के अंदर ब्यूटी के अलावा कुछ नहीं है। उसके साथ शुरू में तो आपको बहुत अच्छा लगेगा क्योंकि सुंदरता एक मेल को बना देती है। पर टाइम के साथ साथ जब आप को समझाने लगेगा कि जीस इंसान को आप अपनी लाइफ में एक ऐसेट समझ रहे थे उसके साथ आप कभी भी कुछ मीनिंगफुल चीज़ नहीं क्रीएट कर सकते हो क्योंकि आप दोनों के रिलेशनशिप में कोई डेथ ही नहीं है और उस पॉइंट पर आप इन्नर ब्यूटी की वैल्यू समझोगे। दूसरी तरफ जीस लड़की में किसी भी तरह की ब्यूटी नहीं है। यानी ना तो वो अपनी बॉडी को हेल्दी रखती है और ना ही वो साइकोलॉजिकली हेल्थी है तो ऐसी लड़की के साथ रहने का भी कोई रीज़न नहीं होता। इसलिए इन्नर ब्यूटी और आउटर ब्यूटी दोनों को प्रायोरिटी दो। और अगर एक लड़की में ये क्वालिटीज मिसिंग है तो ये पक्का है कि आपको प्रेज़ेंट में नहीं तो थोड़े समय बाद अपनी लाइफ में इस ब्यूटी की कमी जरूर रियलाइज होगी।","जब डेटिंग और रिश्तों की बात आती है, तो कुछ पुरुष वास्तव में नए अनुभवों के लिए खुले होते हैं और विभिन्न प्रकार की महिलाओं से मिलते हैं, लेकिन कुछ पुरुष उन महिलाओं के बारे में अधिक सावधान रहते हैं जिन्हें वे डेट करना चुनते हैं और यह वास्तव में अच्छे कारण के लिए है। यदि आपको मानव व्यवहार की थोड़ी समझ है, तो आप जान सकते हैं कि समूह में एक व्यक्ति की आदतें और व्यवहार अन्य सदस्यों पर भी प्रभाव डालते हैं। यदि आप अपने आप को उन लोगों से घेरते हैं जो सफलता का पीछा कर रहे हैं, तो संभावना है कि आप भी अपनी क्षमता को बाहर लाने पर काम करना शुरू कर सकते हैं, जबकि यदि आप नकारात्मक और दूसरों से ईर्ष्या करने वाले लोगों के साथ अधिक समय बिताते हैं, तो आप भी वही बन सकते हैं या अपने लक्ष्य से भटक जाते हैं। यही कारण है कि इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम सबसे सामान्य प्रकार की महिलाओं के बारे में चर्चा करते हैं जो आपको पीछे धकेलेंगी और इसलिए हर कीमत पर इससे बचना चाहिए।" "ओपन इस टू इक्स्पिरीयन्स फाइव पर्सनैलिटी ट्रेड्स में से सबसे पहला ट्रेड है विच इज़ द मेज़र ऑफ इंट्रेस्ट ऑफ आइडियास आर्ट लिटरेचर, ऐब्स्ट्रैक्ट थिंकिंग, फिलॉसफी ऐंड जेनरल क्रिएटिविटी और वो पर्सनैलिटी ज़ जो ओपन इसमें हाइ स्कोर करती हैं, उन्हें करेक्ट राइस किया जाता है। ऐस बीइंगस्मार्ट क्रिएटिव क्युरिअस विजनरी, देर हाइली इंट्रेस्टेड इन लर्निंग दे विल सीक आउट कल्चरल इवेंट्स लाइक मूवीज़, कॉन्सर्ट्स ओर आर्ट शोज़ देर वेरी लाइक्ली टू इन्जॉय फाइटिंग दे एन्जॉय ऐब्स्ट्रैक्ट आइडिआ सैंड लव टू सॉल्व कॉम्प्लेक्स मल्टीडाइमेंशनल प्रॉब्लम्स देर हाइली लाइक्ली टू बी प्रोलिफिक रीडर्स दे हैव ब्रॉडबैंड टिप वो कैवलरी दे यार वेरी प्रोफैशन टेट फोर्मुले टि न्यू आइडियाज़ ऐन्टेन स्ट्रोंगली टु बी आर्टिकल एट पर्टिकुलरली इफ देर ऐवरेज ओर अबोव ऐवरेज इन एक्स्ट्रा वर्जन औलसों दे सीट चेंज ऑफ टू मेक थिस बेटर बट ऑल्सो जस्ट फॉर 10 एक ऑफ चेंज दे टाइम टु डू लैस वेल इन सिचुएशन दैट आर रूटीन अनप्रिडक्टेबल ऐंड दिस स्ट्रोंगली 10 टु बी ऑन्ट्रप्रनर इन स्पिरिट हाउएवर हम इन सारे करेक्टर स्टिक्स को दो पार्ट्स में डिवाइड कर सकते हैं इनटेल्लेक्ट और ओपननेस जहाँ पर इनटेल्लेक्ट इन्टलेक्चुअल आइडियाज़ की केओ सिटी से रिलेटेड है और ओपननेस क्रिएटिविटी वर्बल इन्टेलिजेन्स और इमैजिनेशन से है। अगर हम जेंडर डिफरेंस की बात करें, तो फीमेल्स वन थर्ड ऑफ स्टैंडर्ड डेविएशन हाइअर होती है। क्रिएटिविटी में और मेल्स वन थर्ड ऑफ स्टैंडर्ड डेविएशन हाइअर होते है। इंट्रेस्टिंग आइडियाज़ या फिर इनटेल्लेक्ट में बट दोनों करेक्टर स्टिक्स एक दूसरे को कई डोमेन्स में ओवरलैप भी करते है। हम जैसे दोनों ही ऐस्पेक्ट रिलेटेड है इन्टेलिजेन्स से, क्योंकि इंट्रेस्टिंग आइडियास एक इंसान की इन्फॉर्मेशन को गैदर करने की 10 सीज़ को बढ़ाता है और ओपननेस सीधा सीधा रिलेटेड है ऐस्थेटिक एक्सपेरिएनसे और ये एक्सप्लेन कर सकता है कि क्यों विमिन फिक्शन ज्यादा रीड करती है। ऐस कम्पेरड टू मैन ऐंड तभी उनकी वर्बल इन्टेलिजेन्स भी ज्यादा होती है। यह ट्रेड उन लोगों में होना बहुत ज़रूरी होता है। तो लीडरशिप वाली पोज़ीशन पे होते हैं क्योंकि मार्केट हमेशा चेंज हो रही होती है और अगर ऑरगनाइजेशन में क्रिएटिव और नॉवल आइडियाज़ प्रोड्यूस करने वाले लोग नहीं है तो उस ऑर्गेनाइजेशन में चाहे जीतने भी हार्ड वर्किंग लोग क्यों ना हो, बिना चेंज के वो ज़्यादा टाइम तक मार्केट में नहीं टिक पाएगी। औलसों जस्ट बिकॉज़ हाइली ओपन लोगों के इतने सारे इंट्रेस्ट होते हैं। उनके लिए लाइफ में एक सिंगल पैड्स को फॉलो करना या फिर एक फील्ड में स्पेशलिस्ट करना काफी मुश्किल हो जाता है। ऐसी सिचुएशन काफी प्रॉब्लम मैटिक हो सकती है। इसपे शिल्ली अगर वो ट्रेड न्यूरॉटिसिज्म में हाँ ये है या फिर कॉन्शसनेस मेलों है क्योंकि वो समझ ही नहीं पाते हैं कि वो अपने ऐब्स्ट्रैक्ट आइडियाज़ को कॉन्क्रीट एक्शन्स में कैसे ट्रांसलेट करें। ऑन द अदर एंड ऑफ द स्पेक्ट्रम जो लोग ओपननेस में लो होते हैं उन्हें कलेक्टर इस किया जाता है। एस कन्वेंशनल कौन सर्व एटिव दे यार डिस इंट्रेस्टेड इन लर्निंग पर्टिकुलरली फॉर इट्स ऑन से एक दे ऑलमोस्ट ने वर इन गेज इन प्रो लॉन्ग ऐब्स्ट्रैक्ट थिंकिंग ऐंड देइर ली कन्सिडर्ड फिलॉसोफिकल इशूज़ देर इरली अटेंड कल्चरल इवेंट्स दे डोंट एन्जॉय राइटिंग दे हैव नैरो रेन्ज ऑफ इन्ट्रेस्ट, दे हैव समवॉट रिस्ट्रिक्टेड वोकैबुलरी दे हैव डिफिकल्टी गैटिंग, देर थॉट्स, अक्रॉस टु अदर्स पर्टिकुलरली इफ देर ऐवरेज ओर बिलो एक्स्ट्रा वर्जन दे फाइन्ड सैटिस्फैक्शन इनके ट्राइड। जी सुन्दर दी है। पिछले दो डेज़ में हुई रिसर्च हमें बताती है की ओपन एस टु एक्सपाइर इन स्ट्रेट के दो मेन अंडरलाइन कॉग्निटिव मेकनिजम है। इम्प्लिसिट लर्निंग और रिड्यूस लेटेन्ट। इन्हें बिशन इम्प्लिसिट लर्निंग का मतलब है जो भी चीज़ हम सीखते और समझते हैं विदाउट आर कॉन्शस, अटेन्शन और अवेर्नेस। और जब हम ओपन एस टु इक्स्पिरीयन्स में से इन्टरनेट को अलग कर देते हैं, ओपननेस से तब हमें पता चलता है कि इनटेल्लेक्ट काफी क्लोजली रिलेटेड है। वर्किंग मेमोरी से जबकि ओपन एस रिलेटेड है। इम्प्लिसिट लर्निंग से दूसरी तरफ लेट एंड इन्हीं बिशन का मतलब होता है एक पुराने स्टिमुलस को करेंट सिचुएशन के कॉन्टेस्ट में लेबल करना रेलेवेंट और इर्रेलेवेंट नोर्मल्ली ये मेकनिजम ब्रेन को सिग्नल देता है की अगर एक स्टिमुलस को वो ऑलरेडी प्रोसेसर कर चुका है तो उसे दुबारा उतना टाइम और अटेन्शन देने की जरूरत नहीं है। बट जो लोग ओपननेस में हाई होते हैं, उनकी लेटेस्ट इन्हीं बेशन काफी कम हो जाती है। यानी वो किसी भी इन्फॉर्मेशन को सीधा सीधा इर्रेलेवेंट नहीं बोल पाते, जिससे उनकी अलग अलग कॉन्सेप्ट को जोड़ने और नए कॉन्सेप्ट्स को बनाने की कैपेबिलिटी काफी बढ़ जाती है और तभी रिसर्च इंडिकेट करती है की रिड्यूस लेट एंड इन्हें बिशन रिलेटेड है। डाइवर्जन थिन किन्ग सिस्टम और इवन फेथ इन इन्टूइशन से बट। हमें यह भी समझना चाहिए कि जीस इंसान में लेट एंड इन्हीं बिशन कम हो जाती है। उसे बहुत ज्यादा इन्फॉर्मेशन को प्रोसेसर करना होता है और एक इंसान जिसका इन्टेलिजेन्स लेवल ऐवरेज या फिर उससे ज्यादा होता है। सिर्फ वो ही इस कन्टिन्यूअस स्ट्रीम को हैंडल कर पाता है जिससे उसकी क्रिएटिविटी और अपनी सराउन्डिंग् ज़की अवेर्नेस बढ़ जाती है। दूसरी तरफ जिन लोगों का इन्टेलिजेन्स लेवल ऐवरेज या फिर उससे कम होता है वो उतनी इन्फॉर्मेशन से डील नहीं कर पाते और या तो वो कोई मेंटल इलनेस डेवलप कर लेते है या फिर अपनी सेन ***** को ओवर लोड कर लेते हैं। ये लिंक हो सकता है ओपननेस का स्किन टाइप और स्किट्जोफ्रेनिया से। यानी जो लोग स्कित्जोफ्रेनिया की बस कुछ साइन शो कर रहे होते हैं वो ज्यादा क्रिएटिव और इन्टलेक्चुअल हो सकते हैं, पर जो लोग फुल ब्लोन्स्की जो फिनिक्स बन जाते हैं, उनकी सारी क्रिएटिविटी खत्म हो जाती है ऐंड दिस ब्रिग्स टू +1 चैपटर जीनियस ऑफ मैडनेस। युअर हिस्टरी में ज्यादा डीप जाने की जरूरत नहीं है। ये ऑब्जर्व करने के लिए की हाइली क्रिएटिव लोगों में। हमेशा से ही एक चीज़ कॉमन रही है। मेंटल इलनेस और इस फैट को सपोर्ट करने के लिए हमारे पास कई एग्जाम्पल्स है। सबसे पहले अगर हम वर्जिनिया वुल्फ़ की बात करें तो 13 ईयर्स ऑफ एस से लेकर 59 इयर्स ऑफ एज तक उसने कई बार डिप्रेशन और मैंने कपि सोच के साथ डील किया। बट फाइनली 1 दिन वर्जन ने डिसाइड किया की वो अपने आप को एक रिवर डुबाकर मार देगी और उसने अपने सूइसाइड लेटर में ये चीज़ मेन्शन भी की कि वो फिर से पागल हो रही है और उससे कहीं अवाज भी सुनाई देती है जो कि प्रॉबब्ली जो था। सिमिलरली फ्रेंड्स काफ्का ने भी अपनी पूरी लाइफ डिप्रेशन से डील किया। फ्रेड्रिक नीचा को एक मैन कैंपस ओल्ड के बाद डिक्लेर कर दिया गया था। स्वीडिश डीजे ही सूइसाइड के बाद उसकी फैमिली ने एक्सप्लेन करा था की कैसे वो हमेशा से ही मीनिंग और लाइफ के थॉट से स्ट्रगल करता था। मर्लिन मुनरो ने अपनी फ्रिक्वेंट डिप्रेशन की वजह से सूइसाइड की थी। और प्लस के ऊपर तो एक पूरे फिनोमिनल को ही नाम दे दिया गया है जो बोलता है की पॉइंट्स ज्यादा मेंटल इलनेस डेवलप करते हैं। ऐस कम्पेरड टु अदर क्रिएटिव राइटर्स नाउ जब हम बायोलॉजिकल लेंथ के साथ इन क्रिएटिव लोगों को देखते हैं, तब हमें कई चीजें कॉमन मिलती है। कहीं जीन्स और कई न्यूरोट्रांस्मीटर्स जैसे एक ग्रोथ फैक्टर जैसे बोलते है न्यू रेग्युलर इन यानी एन आर जीवन और डीएआरपी। 32 ये वो जीन होता है जो हमारे ब्रेन में डोपामिन को कंट्रोल करता है। और हमें पता है कि डोप और सिरोटोनिन इनवर्स ली रिलेटेड है, यानी चाहें तो अपने आप से बड़े या फिर सेरेटोनिन के कम होने पे हमें उसका इफेक्ट, शोर्ट बर्स्ट ऑफ हैपिनेस, क्रिएटिविटी और मेंटल इलनेस इसके साथ ही दिखेगा औलसों हाइली ओपन लोगों में ये भी देखा गया कि जब वह किसी नॉर्मल आइडिया या फिर मास्टरपीस पर काम कर रहे होते है, उस वक्त जब वो फ्लो में आते हैं तब उनके ब्रेन के डिफ़ॉल्ट मोड नेटवर्क का एरिया ऐक्टिवेटेड रहता है। सिंपल लैंग्वेज में एक फ्लो स्टेट वो होती है जब हम अपने काम में इतना अब ज़ोर होते हैं की हमें टाइम का पता ही नहीं चलता और कुछ देर के लिए हम अपना सेन्स ऑफ सेल्फ खो देते हैं। बट क्रिएटिव लोगों में ऐसा नहीं होता क्योंकि जब वो लोग फ्लो स्टेट में आते हैं तब उनका सेन्स ऑफ सेल्फ इंटैक्ट रहता है और उनके लिए वो एक्सपिरियंस काफी सब्जेक्टिव हो जाता है। इससे वो अलग अलग आइडियाज़ को कनेक्ट कर पाते हैं और डाइव अरजेन्टली सोच पाते हैं। इसके साथ ही एक और तरीका जिसके थ्रू ओपन लोगों की डाइवर्जन थिंकिंग कैपेबिलिटीज बढ़ जाती है। वो है ऐप ऑफ एन इ। अँ यानी ह्यूमन्स की उन चीजों में पैटर्न्स देखने की 10 सी जो एक दूसरे से बिलकुल अनरिलेटेड होती है। जैसे कई लोगों के लिए एक फ्रूट और एक प्लैनेट के मोशन में कोई रिलेशन नहीं होता। पर आइजक न्यूटन ने एक गिरते ऐप्पल को कनेक्ट कर दिया। एक फोर्स से जो दिखती भी नहीं है ऐंड नॉट सरप्राइजिंगली ऐप काफी बढ़ जाता है जो टाइप लोगों में और वो इग्ज़ैजरैट हो जाता है। बढ़ने से कॉलिंग। सो, इस वीडियो में हमने सीखा कि जो लोग इंटलेक्चुअल आइडियाज़ में इंटरेस्टेड होते हैं या फिर क्रिएटिव होते हैं वो लोग ओपन एसके हाइ होते हैं। यह जरूरी नहीं है की ओपन लोगों का आइक्यू हमेशा ज्यादा हो, बट डेफिनेटली दोनों चीज़ो में कई को रिलेशन्स है। कई टॉप के एक्टिवेट होने पर क्रिएटिविटी बढ़ जाती है। बट ये पैथ वेस्ट काफी क्लोजली टाइड है इंपल्सिव इ टी डिसोर्डर लिन एस और मेंटल इलनेस इससे ओपन एस डाइवर्जन थिंकिंग कैपेबिलिटीज से भी रिलेटेड है जो की पॉसिबल होती है। बलिस्टिक लर्निंग रिड्यूस लेटेस्ट इन्हें बिशन और अनकॉन्शियस पैटर्न रिकॉग्निशन बिहेव्यर जैसे ऐप ऑफ इंडिया ऐंड ओपन लोगों के ब्रेन का डिफ़ॉल्ट मोड नेटवर्क स्लो स्टेट में भी ऐक्टिवेटेड रहता है, जिससे उनके लिए वो मोमेंट काफी सब्जेक्टिव हो जाता है और उनका वर्क काफी यूनीक। इस सीरीज के बाकी पार्ट्स में हम डिस्कस करेंगे की ओपननेस कैसे इंटरैक्ट करता है। बाकी पर्सनैलिटी ट्रेड से हाइली ओपन लोगों को कौन सा करियर चूज करना चाहिए और किस तरह से उन्हें अपनी लाइफ में आगे बढ़ना चाहिए?","अनुभव के लिए खुलापन बिग 5 व्यक्तित्व लक्षणों का रचनात्मकता आयाम है। इसके दो उप-घटक हैं बुद्धि (विचारों में रुचि) और खुलापन (रचनात्मकता, कल्पना)। यह वह विशेषता है जहां बौद्धिक रूप से जिज्ञासु, रचनात्मक, कलात्मक और कल्पनाशील हममें आते हैं। तो, हम चित्रकारों, लेखकों, संगीतकारों और विज्ञान, दर्शन और फिल्मों के क्षेत्र से कुछ सबसे रचनात्मक लोगों (सभी नहीं) के बारे में बात कर रहे हैं। खुले लोग वे हैं जो हमें सौंदर्य संबंधी कार्यों को देखना, महसूस करना और संवेदनशील होना सिखाते हैं। वे लोग हैं जो बदलते बाजार में संगठन को बचाते हैं। लेकिन वे दुर्लभ, विषम और आमतौर पर कर्तव्यनिष्ठा में कम हैं। वीडियो में, मैंने इस बात पर भी चर्चा की कि रचनात्मकता और पागलपन के बीच एक संबंध क्यों है। हमें Youtube पर खोजें: www.youtube.com/psychologyinhindi" "कभी कभी खुद को अपने आलस के दलदल से बाहर निकालना बहुत मुश्किल हो सकता है। स्पेशल अगर आप एक लेज़ी पर्सन हो तो बट लेज़ी लोग भी अपनी लाइफ को ज्यादा प्रोडक्टिव बना सकते हैं। कई साइंटिफिक हैंक्स को यूज़ करके इसलिए इस एपिसोड में हम कई ऐसे ही हेक्स को डिस्कस करेंगे जो आपके आलस के बावजूद आपको इफेक्टिव वर्क करना सिखाएंगे है। एक नंबर वन क्रिएटा क्राइसिस जब भी आप काम करने की मोटिवेशन नहीं ढूंढ पा रहे होते, तब आप अपनी मेहनत को कंटिन्यू रखने के लिए रिलीज कर सकते हो। सेल्फ डिसिप्लीन की सबसे बेसिक फॉर्म पर कभी कभी हमें ज्यादा कुछ नहीं बस थोड़ा सा धक्का ही चाहिए होता है और इसके लिए आप खुद के लिए एक इमर्जेन्सी क्रिएट कर सकते हो। बहुत से आलसी लोग अपने काम को पूरा करने में फेल हो जाते हैं। अगर उन्हें डिसिप्लिन रखने के लिए उन पर कोई रूल्स नहीं होते तो अगर आपके पास किसी भी समय कुछ भी करने की छूट है तो आप ओब्विअस्ली ज्यादा काम नहीं कर पाओगे और प्रो। करोगे लेकिन खुद के लिए एक इमर्जेन्सी क्रिएट करके आप खुद को दो सबसे बड़े मोटिवेटर्स दे पाते हो। यानी टाइम और प्रेशर। हम नैचुरली ज्यादा तेजी और लगन के साथ काम करते हैं। जब हमें पता होता है कि हमें कोई काम समय पर पूरा करना है। इसलिए खुद के डेली को बहुत से जरूरी कामों से भर लो। अगर आपको हर समय कुछ ना कुछ काम करने की अर्जेंन्सी फील नहीं हो रही तो उसका मतलब आपका टाइम टेबल अभी एम पी है और आपके पास एनफ इमर्जेन्सी ज़ नहीं है। खुद को मोटिवेटेड और कॉन्स्टेंट ली ऑन रखने के लिए है एक नंबर टू स्किप ब्रेकफस्ट इंडिया में ये उठता ही खाने की आदत कभी पॉपुलर नहीं थी। जीवन योग भी हमें दिन में सिर्फ एक या फिर दो बड़ी मील्स लेने की सलाह देता है। वो भी 8 घंटे के गैप के साथ। हमारे पेट में खाना जाते ही शरीर का फोकस उस खाने को डाइजेस्ट करने पर लग जाता है। इस वजह से हमारे सोचने, समझने और काम करने की शक्ति कम हो जाती है और इवन हम बहुत आलसी फील करते है। अर्ली 1900 तक अमेरिकन्स भी काफी हल्का फुल्का सा ब्रेक फास्ट करते थे। इसी वजह से वहाँ की कई बड़ी कंपनी ने सोचा कि वो अमेरिकन सिटिज़न्स की सिरिअल और बेकन जैसी चीजों की कन्सम्शन को बढ़ाएगी। यह प्रोपगैंडा फैला के कि ब्रेकफस्ट दिन की सबसे हेल्थी मिल होती है। यह काम दिया गया था अमेरिकन पॉप अगेन डिस्ट ऐडवर्ड बर्नेस को बर्डन एस ने मैनिपुलेटेड साइंटिफिक स्टडीज़ को ऑर्गनाइज कराया। और हर जगह पर ब्रेकफस्ट की इम्पोर्टेन्स को एडवर्टाइज करा और देखते ही देखते वेस्ट और उनसे इन्फ्लुयेन्स होकर हमारा देश भी नाचते को जरूरी मानने लगा। अब समय आ गया है कि आप इस झूठ को पहचानो और अपनी हेल्थ और मेंटल क्लैरिटी को इम्प्रूव करो। फास्टिंग के साथ यानी सुबह उठते ही खाना खाने के बजाय पांच 6 घंटे रुको। आप नोटिस करोगे कि जब आप का पेट खाली रहता है तब आप काफी एनर्जेटिक एलर्ट और मोटिवेटेड रहते हो। जबकि आप खाना खाते ही काफी सुस्त बन जाते हो। इसलिए खुद को फास्टिंग के बारे में एजुकेट करो। और इस हैक के थ्रू अपनी प्रोडक्टिविटी को बढ़ाओ है। एक नंबर थ्री क्रिएटर लेज़ी इन्वाइरनमेंट लेज़ी होकर भी हाइली प्रोडक्टिव बना जा सकता है। खुद के लिए हर काम को ईजी और ऐक्सेसिबल बना के अगर आपको जिम जाना है लेकिन जिम जाने से पहले तैयार होने या फिर वहा तक ड्राइव करने में आपको आलस आता है तो सिम्पली घर पर कुछ डंबल्स, स्किपिंग रोप या फिर स्ट्रेचिंग बैन्डस रख लो। अगर आपको पैसा कमाना है लेकिन एक बिज़नेस को शुरू से चलाना, लोगों को हायर करना और 100 झंझटों को मैनेज करना आपके बस में नहीं है तो सिम्पली लो रिस्क इन्वेस्टमेंट्स जैसे इंडेक्स फंड्स में इन्वेस्ट करो हैक नंबर फ़ोर इक्स्पोज़ योर आइज़ टूलाइट अर्ली इन द मॉर्निंग हमारे दिमाग के कई ऐसे हिस्से भी हैं जो हमारी खोपड़ी से बाहर निकलते हैं। हमारा नर्वस सिस्टम खोपड़ी और रीड में होता है। लेकिन हमारी आँखों के पीछे नर्वस सिस्टम का आखिरी फैलाव होता है, जिसकी वजह से हम ये नहीं बोल सकते कि आंखें हमारे दिमाग से बस अटैच्ड है बल्कि आँखें एक तरह से हमारा दिमाग ही है। आँखों के पीछे मौजूद न्यूरल रेटिना एवोल्यूशन के दौरान खोपड़ी से इतना बाहर इसलिए ही निकला ताकि वो बाहर मौजूद रौशनी को सेन्स कर सके। हमारी आंखें हमारे बाकी के नर्वस सिस्टम को ये बताती हैं कि कब उसे एकदम एलर्ट होना है और कब सोना है। हमारे एन्वॉयरनट में जितनी रौशनी होती है और जीस क्वालिटी की रौशनी होती है। हमारा दिमाग हमारे शरीर को उतनी ही एनर्जी और अलर्ट्नेस को प्रोड्यूस करने का सिग्नल देता है। इसी वजह से यह ज़रूरी है कि आप सुबह उठते ही सर झुकाकर अपने एक रूम में काम करने के बजाय बाहर निकलो और सूरज की रौशनी को अपने आंखो में 1.75 है। एक नंबर, फाइव यूज़ स्कूल बेल टेक्नीक स्कूल में हर पीरियड यूज़्वली 45 मिनट्स का इसी वजह से होता था क्योंकि हमारा फोकस इतने समय से ज्यादा एक चीज़ पर नहीं टिक पाता। इसलिए आप भी अपने हर टास्क पर 45 मिनट्स तक फुल्ली कमिटेड रहकर काम कर सकते हो। उसके बाद 10-15 मिनट का ब्रेक ले सकते हो ऐंड अगेन 45 मिनट्स तक काम है एक नंबर सिक्स कॉन्ट्रास्ट के वर्क कई काम लॉजिकल होते हैं और कई आर्टिस्टिक। इस वजह से जब कुछ देर काम करने के बाद आप ब्रेक लेते हो तब उस काम की ऑपोजिट चीज़ करो। लॉजिकल काम आपके दिमाग की लिफ्ट हम इस फेर को ज्यादा यूज़ करते हैं। और क्रिएटिव काम राइट हेमिस्फर को अगर आप पिछले 45 मिनट्स से लॉजिक ही लगाए जा रहे थे तो अपने ब्रेन को रीसेट करो। अब टोटली कुछ फन और क्रिएटिव करके जैसे रीड इन्फेक्शन लुकिंग आउट ऑफ थे विंडो या फिर सिम्पली किसी से कुछ हँसी मजाक कर लो। हैक नंबर सेवन इग्नोर ऑल योर सोशल मीडिया इन द मॉर्निंग एक लेज़ी इंसान अगर एक बार सोशल मीडिया के जाल में फंस जाए तो वह उसे घंटों तक बाहर नहीं निकल पाता। इसलिए सुबह के समय जब आप सनकी रौशनी को एक्सपिरियंस करके एक काम करना शुरू करते हो और एटलिस्ट उसके एक 2 घंटे बाद तक भी अपनी कोई भी नोटिफिकेशन को चेक मत करो। इस बात की कि ऑडियो सिटी को छोड़ दो कि आपकी पिक्चर्स किस ने लाइक करी होंगी, किसका डीएम या फिर वॉट्सऐप मैसेज आया हुआ होगा या फिर आपने किन ई मेल्स के रिप्लाय करना होगा? दिन का यह समय सिर्फ और सिर्फ अपने काम को डेडिकेट करो और इस तरह से एक लेज़ी इंसान भी अपनी प्रोडक्टिविटी और वर्क आउटपुट को बढ़ा सकता है।",कभी-कभी आलस्य की आदत से खुद को बाहर निकालना वाकई मुश्किल होता है। लेकिन एक आलसी व्यक्ति भी वैज्ञानिक उपाय अपनाकर अधिक उत्पादक बन सकता है। इसलिए इस कड़ी में हम आलसी लोगों के लिए 7 प्रोडक्टिविटी हैक्स के बारे में चर्चा करेंगे। "अट्रैक्टिव ने सिर्फ हमारी एक्सटर्नल अपीरियंस नहीं डिसाइड करती। बल्कि हर इंसान अपने आप को ज्यादा अट्रैक्टिव बना सकता है। अपने ऊपर काम करके और अपनी बुरी आदतों को कंट्रोल करके। इसलिए आज हम ऐसी नौ चीजों के बारे में बात करेंगे जो आपको अट्रैक्टिव बनाती है और अपनी पर्सनल ग्रोथ के लिए इनको सुधारना बहुत जरूरी है। नंबर वन अपने आप को दूसरों से सुपिरिअर समझना जो लोग अपने आप को सुपिरिअर यानी दूसरों से ऊपर मानते हैं, वो हमेशा लोगों से अपनी तारीफ सुनना चाहते हैं। वो लोग अपनी गलती नहीं मानते, अक्सर अपने आप को दूसरे लोगों से कंपेर करते हैं और हर चीज़ को अपने अराउंड देते है। ये बिहेव्यर लोगों के लिए अनअट्रैक्टिव होता है और लोग ऐसे इंसान से दूर रहना प्रिफर करते हैं, क्योंकि ऐक्चुअल में अपने आप को दूसरों से सुपिरिअर दिखाना एक डिफेन्स मेकनिजम होता है, जो वो लोग अपनाते हैं जो अपने आप को डीप इनसाइड वर्थ्लिस और दूसरों से कम समझते हैं। ये लोग अपनी कमियों को छुपाने के लिए ऐसा बिहेव करते है जैसे ये दूसरों से बेहतर है। इसलिए कभी भी दूसरों को नीचे धकेल के अपने आप को उनसे बेहतर मत दिखाओ। यह बिहेव्यर बहुत ही अनअट्रैक्टिव और इन मैच्योर होता है। नंबर टू पुअर लिसनिंग स्किल्स कम्यूनिकेशन एक ऐसी चीज़ है जिसपर सारे रिलेशनशिप डिपेंड करते हैं। भले ही आप किसी से डील कर रहे हो, चाहे वो कोई फैमिली मेम्बर हो, फ्रेंड हो या लवर हो, अगर आपसे कोई बात कर रहा है और आप अपने ही ख्यालों में खोए हुए हो या अपने फ़ोन में कुछ देख रहे हो तो लोगों के पास यह सिग्नल जाता है कि आप उनकी बातों में इन्ट्रेस्ट नहीं ले रहे हो और जो रिस्पेक्ट वो डिज़र्व करते हैं वो उन्हें नहीं दे रहे हो। यू अर लिसनिंग स्किल्स आपको अन्य ट्रैक्टर बनाती है, क्योंकि ऐसा करने से आप कन्वर्सेशन मैं अपनी वैल्यू ऐड करने की कैपेबिलिटी खो देते हो और किसी के साथ भी एक दीप कनेक्शन बना ही नहीं पाते। नंबर थ्री इमोशनल इन मेच्युरिटी एक इंसान के इमोशन्स उसके बिहेव्यर को डाइरेक्टली इफ़ेक्ट करते हैं। बट अगर वो अपने बिहेव्यर को कॉन्शस ली कंट्रोल नहीं कर पाता और इमोशंस में बहकर कुछ भी बोल देता है, यह गलत तरह से बिहेव कर देता है, तो उसका मतलब वो इमोशनली इम्मेच्युर है। लोग अक्सर इमोशनली इम्मेच्युर लोगों से दूर रहना प्रिफर करते हैं, क्योंकि इन लोगों का बिहेव्यर इनके मूड के साथ ही चेंज होता रहता है और ये इतने अनप्रिडक्टेबल होते हैं कि आपको पता ही नहीं होता कि अगले मूवमेंट में ये क्या कर देंगे। नंबर फ़ोर झूठ बोलना अगर आप किसी को झूट बोल देते हो तो वो बंदा आपको अगली बार ट्रस्ट करने में 100 बार सोचता है क्योंकि जब आपका झूठ पकड़ा जाता है और सामने वाले का आपको देखने का नजरिया ही चेंज हो जाता है और उसके बाद वो इंसान आपकी बोली हुई हर बात को क्वेश्चन करने लगता है की आप सच बोल रहे हो या फिर फिर से झूठ बोल रहे हो। लोग झूठ बोलने वालों को अनअट्रैक्टिव मानते हैं क्योंकि झूठे लोगों के अक्सर कोई वैल्यूज़ और मॉडल्स नहीं होते जिससे दूसरे लोग उस इंसान के मोटिव को डाउट करने लगते हैं और वो फील करते हैं कि आप उनसे झूट बोलके उनको डिस रिस्पेक्ट कर रहे हो। यही रीज़न है कि क्यों कोई भी इंसान झूठे लोगों के साथ ज्यादा समय तक रह ही नहीं पाता। नंबर फाइव हमेशा नेगेटिव सोचना कोई भी इनडिविजुअल एक पैसा मिस्टेक यानी हर समय नेगेटिव सोचने वाले इंसान के साथ टाइम स्पेंड नहीं करना चाहता। पैसे मिस्टिक ऐटिट्यूड ना सिर्फ आपको मेंटली इमोश्नली और इवन फिज़िकली इफ़ेक्ट करता है बल्कि वो आपके आसपास रहने वाले लोगों के मूड को भी इफ़ेक्ट करता है। अब भले ही कितने भी अट्रैक्टिव दिखते हों, लेकिन अगर आप हमेशा नेगेटिव स्टेट ऑफ माइंड में रहते हो और हमेशा बात करते टाइम नेगेटिविटी ही बांटते रहते हो तो लोग आपके साथ टाइम स्पेंड करना पसंद नहीं करेंगे। अगर आप चाहते हो कि लोग आपकी कंपनी को एन्जॉय करे तो आपको अपनी इस टॉक्सिक हैबिट को चेंज करना पड़ेगा। नंबर सिक्स ओवर कॉन्फिडेंट या अंडरकॉन्फिडेंट रहना कॉन्फिडेन्स एक ऐसी चीज़ है जो आपकी अट्रैक्टिवनेस को डाइरेक्टली इफेक्ट करता है। जहाँ कॉन्फिडेंट लोगों को अट्रैक्टिव माना जाता है, वहीं अगर आप ओवर कॉन्फिडेंट हो या आपने बिल्कुल भी कॉन्फिडेन्स नहीं है तो आप लोगों के लिए अनअट्रैक्टिव ही रहोगे, क्योंकि अगर आप ओवर कॉन्फिडेंट हो यानी आप अपनी एबिलिटीज़ को ओवर एस्टीमेट कर रहे हो तो उसका मतलब आपका सेल्फ इवैल्यूएशन ठीक नहीं है और आप बिल्कुल भी सेल्फ वेर नहीं हो। वहीं अगर आप अंडरकॉन्फिडेंट हो तो इसका मतलब आपको अपने आप में विश्वास ही नहीं है और जब आप ही अपने आप में भरोसा नहीं कर सकते तो दूसरे लोगो की तो दूर की बात है। कॉन्फिडेन्स का एक सही लेवल जो कि सेल्फ अवेर्नेस से आता है वो लोगों के लिए ज्यादा अट्रैक्टिव होता है। क्योंकि कॉन्फिडेंट लोग ये सिंगल करते हैं कि उनके पास ऑफर करने के लिए कुछ वैल्यूएबल हैं और उनकी क्वालिटी ज़ या टैलेंट्स दूसरों के काम भी आ सकती है। नंबर सेवन ऐडिक्शन अपनी बुक इन्दर एम ऑफ हंगरी गोस्ट में डॉक्टर बोलते हैं की हमें उन्हीं चीजों से अडिक्शन होती है, जो हमें हमारे दर्द और हमारी रिऐलिटी से दूर करते हैं। चाहे किसी को अल्कोहल, शॉपिंग, ड्रग या मैस्टरबेशन जैसी ऐडिक्शन हो। हर ऐडिक्शन के पीछे ही एक दर्द और एक सच छिपा होता है जिसको वो बंदा फेस नहीं करना चाहता। इसलिए वो इन चीजों का सहारा लेता है। ऐडिक्शन सिर्फ एक टॉक्सिक ट्रेट नहीं है बल्कि एक ऐसी बुरी आदत है जिसके पीछे कई गहरी साइकोलॉजिकल प्रॉब्लम छिपी होती है। अगर एक इंसान अपनी खुशी बाहरी चीज़ो में ढूँढता है तो यह चीज़ बताती हैं कि वो अपनी लाइफ में खुश नहीं है और उसका ध्यान अपनी पर्सनल ग्रोथ पर कम और अपने आप को टेंपोररिली अच्छा फील कराने में ज्यादा है और उनकी ये हैबिट दूसरे लोगों को उनसे दूर करती है। नंबर एट रिलायबिलिटी भले ही वो लोगों के बर्थडे और स्पेशल ओकेशन को भूलना हो मुश्किल समय में गायब हो जाना हो या फिर हर जगह लेट पहुंचना हो। बिटी एक ऐसा ट्रेट है जो ज्यादातर लोगों के लिए अन्य अट्रैक्टिव होता है। होने का मतलब है कि आप अनप्रिडक्टेबल, केर्लेस और इ रिस्पॉन्सिबल हो। आपका ये बिहेव्यर लोगों को सिग्नल करता है कि आप उन्हें अपनी लाइफ का एक वैल्यूएबल पार्ट नहीं मानते है क्योंकि वहाँ पर किसी भी चीज़ के लिए डिपेंड नहीं हो सकते हैं और अन् रिलाएबल होना भी आपकी लेवल ऑफ इम मेच्युरिटी को ही दर्शाता है। एक ऐडल्ट जो चीज़ करने को बोलता है वो उसे पूरा करता है क्योंकि उसे पता होता है कि 1 दिन उसे भी दूसरों की जरूरत पड़ सकती है और अगर ये चीज़ आप में भी मौजूद है तो थोड़ा से बनो और दूसरों को अपनी रिलायबिलिटी के थ्रू ये दिखाओ कि आप भी उनकी परवाह करते हो। नंबर नाइन जेलसी और कन्ट्रोलिंग बिहेविरल जेलेसी एक ऐसा इमोशन है जिसके पीछे हमेशा एक ऑफिस छुपा होता है की कहीं आपका पार्टनर या फ्रेंड आप को छोड़ के ना चला जाए। जेलस लोग अक्सर इस फीचर से डील करने के लिए कन्ट्रोलिंग बिहेव इयर्स का यूज़ करते हैं ताकि उनका पार्टनर कही जाना पाए और हर चीज़ उनकी मर्जी से ही करें। ये बिहेव्यर लोगों के लिए अन्य अट्रैक्टिव होता है क्योंकि यहाँ पर एक इंसान क्लियरली देख सकता है कि आपको अपने आप में बिलकुल कॉन्फिडेन्स नहीं है। और तभी आप कन्ट्रोलिंग बिहेव इयर्स का सहारा ले रहे हो। इसलिए अगर आप ज्यादा अट्रैक्टिव बनना चाहते हो तो अपने इस बिहेव्यर के बारे में डीपी सोचो, अपनी वर्ड्स को जानो और दूसरों को भी स्पेस दो।",हमारा आकर्षण केवल हमारे बाहरी रूप-रंग से कहीं अधिक है। इसलिए कोई भी न केवल अपने संभावित भागीदारों के लिए बल्कि सभी के लिए अधिक आकर्षक बनने पर काम कर सकता है। इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम 9 मनोवैज्ञानिक चीजों/आदतों के बारे में जानेंगे जो आपको दूसरों के लिए कम आकर्षक लगती हैं और स्वस्थ जुड़ाव और रिश्ते बनाने के लिए आप इन चीजों को कैसे रोक सकते हैं। "मेडिटेशन से एक पर्सनल नोट्स का कलेक्शन है, जिसे रोम के सम्राट और स्टॉक फिलॉसफर मारकस ओर एलियंस ने सन् 170 से 180 के बीच हुए मिलिट्री कैंपेन्स के दौरान लिखा था। मारकस ने अपने इन नोट्स में स्टॉक फिलॉसफी पर बेस्ट वो सारी तरीके पे लिखी है जो एक इंसान की लाइफ को बेहतर बना सकती है और उसे ये सीखा सकती है कि एग्ज़िस्टिंग से जुड़े दुख और मुश्किलों से कैसे डील करा जाता है और इस एपिसोड में हम मारकस के बताए कुछ ऐसे ही प्रिन्सिपल्स को डिस्कस करेंगे। जो हमें सिखाएंगे की एक की तरह जिंदगी कैसे जी जाती है? नंबर वन हमारा कंट्रोल सिर्फ अपने दिमाग पर है, आउटसाइड इवेंट्स पर नहीं। ये इस बुक का सेंट्रल थीम है जो हमें सीखाता है कि किस तरह से हम हर सिचुएशन की पर्सनल रिस्पॉन्सिबिलिटी ले सकते हैं, ये डिसाइड करके कि हमने उस पर कैसे रिऐक्ट करना है। मारकस का मानना था कि इस माइंडसेट के साथ हमारी रुकावटें हमें आगे बढ़ाती है और जो चीज़ हमारे रास्ते को रोकती है, वही हमारा रास्ता बन जाती है। पर अगर आप अपने दिमाग में सिर्फ नेगेटिव थॉट्स रखते हो तो आपकी परसेप्शन भी वैसी ही शेप ले लेती है और इस नेगेटिविटी के चंगुल से बाहर निकलने के लिए कई लोग वेकेशन पर जाते है। परमार कस के हिसाब से ये अप्रोच काफी अन्न फिलॉसफिकल है, क्योंकि अपने नेगेटिव थॉट्स या एक नेगेटिव इन्वाइरनमेंट से ब्रेक लेने के लिए जीस जगह पर जाने की आपको सबसे ज्यादा जरूरत है वह है आपका डीपेस्ट पार्ट जहाँ आपको वह कंट्रोल मिल सकता है जो बाहरी दुनिया में पॉसिबल नहीं है। और ये कंट्रोल आपको अपनी किस्मत की रिस्पॉन्सिबिलिटी लेना सीखाता है। यानी आपके साथ चाहे अच्छा हो या बुरा, दोनों की वजह आप ही हो। साइकोलॉजी में इस कॉन्सेप्ट को बोलते हैं इन्टरनल लोकस ऑफ कंट्रोल नंबर टू एक मिनिमलिस्ट लाइफ जियो एक एम्पाइअर के रूलर होने के बाद भी मारकस और इलियास ने कभी भी अपने ऊपर घमंड नहीं करा। वो शाही कपड़े या आरामदायक बेड को अवॉइड करते थे और एक काफी सिंपल लाइफ जीते थे। फिलॉसफी हमें जीने के दो तरीके समझाती है। यानी या तो हम अच्छे से रह सकते हैं या फिर अच्छे से जी सकते हैं। पहले के लिए आपको खूब सारा पैसा और दुनिया की अच्छी से अच्छी फैसिलिटीज चाहिए, पर अच्छे से जीने के लिए आपको बस एक अच्छा माइंड सेट चाहिए। मारकस के हिसाब से किसी भी तरह की लग्जरी हमारे माइंड को सॉफ्ट बनाती है जिससे हमारे टाइम और अटेन्शन कुछ मीनिंगफुल काम करने के बजाय आराम देने वाली चीजों को इकट्ठा करने में वेस्ट हो जाते हैं। इसलिए ये चिंता मत करो कि आपका पड़ोसी कौन सी गाड़ी चलाता है। या फिर आपके पास किन चीजों की कमी है? बल्कि अपने आपको मेंटली टफ बनाओ, अपनी नीड्स को कम करके और एक मिनिमलिस्ट की तरह के नंबर थ्री मौत से डरो मत, उसे अपना एक दोस्त समझो। बुक के कई हिस्सों में मार कसने, डेथ और ई वन नेगेटिव विज़ुअलाइज़ेशन जैसे टॉपिक्स को डिस्कस कर रहा है, जिन्हें यूज़्वली अवॉर्ड करा जाता है। पर डेथ के बारे में बात करने से हम ये समझ सकते है की लाइफ कितनी नाजुक है और हमारे पास कितना थोड़ा सा समय है। हमारी लाइफ की वैल्यू ही इस बात पर डिपेन्डेन्ट है। कि हम 1 दिन मर जाएंगे और तभी बोलते है कि अपनी बची हुई जिंदगी के हर दिन अपने आप को यह याद दिलाओ कि शायद आज आपका इस धरती पर आखिरी दिन है और जो भी काम आप आज करने वाले हो वो आपका आखिरी काम होगा। जीवन अगर आप किसी दोस्त या एक रिश्तेदार से मिलते हो तो उस इंसान की लिमिटेड लाइफ को कंसिडर करो और सोचो की शायद आप दोनों की ये आखिरी मुलाकात है। इस प्रैक्टिस का काम है आपको हर चीज़ की टेंपरेरी ने समझाना और आपको याद दिलाना। की ये दुनिया कौन से लॉस पर काम करती है क्योंकि एक बार जो आपका टाइम चला गया वो वापस कभी नहीं लौटेगा। नंबर फ़ोर ग्रेटनेस का पीछा करो ये प्रिन्सिपल हमें समझाता है कि किस तरह से हम अपनी लाइफ में जो कुछ भी करते है वो सिर्फ हमारी लाइफ को ही नहीं बल्कि दुनिया में मौजूद हर इंसान की लाइफ को इन्फ्लुयेन्स करता है। आपका एक आइडिया जेनरेशन बी जेनरेशन आगे बढ़कर ह्यूमैनिटी की पूरी शक्ल बदल सकता है और तभी मारकस ने एक थॉट एक्सपेरिमेंट देते हुए बोला है की सोचो, टाइम की शुरुआत से कितने ही लोग कितने ही जगहों पर पैदा हुए। उन्होंने कितनी मेहनत करी और वो एंड में उसी धरती में मिल गए जहाँ से वो निकले थे और ऐसे ही कितने ही लोग पैदा हुए जिन्होंने अपना सारा टाइम फालतू की चीजों में और खाली बैठकर वेस्ट कर दिया। टाइम के साथ साथ दोनों तरह के लोगों का नाम भी किसी को याद नहीं रहेगा और उनकी हर मेमोरी या निशानी भी एग्ज़िट नहीं करेगी जो एग्ज़िट करेगा वो है उनकी ग्रेटनेस का। पूरी ह्यूमैनिटी पर इन्फ्लुयेन्स और तभी उन चीजों पर फोकस करो जो इम्पोर्टेन्ट है, ग्रेटनेस का पीछा करो, ग्रेट लोगों की बातें करो और सोचो कि आप किस तरह से अपनी लाइफ को जस्टिफाई करना चाहते हो। नंबर सिक्स बुरे लोगों से बुरा ई के साथ मत लड़ो। इस प्रिन्सिपल के साथ मारकस ने एक प्रैक्टिस डिस्कस करी है। यानी रोज़ सुबह उठते ही अपने आप से बोलो कि आज मैं काफ़ी बुरे चालक, जलस, गुस्सैल और इरिटेटिंग लोगों से मिलूंगा। वो अपने आप को बुरा बनने से नहीं रोक सकते हैं क्योंकि उन्हें अच्छा ई और बुरा ई का डिफरेन्स नहीं पता बट जस्ट बिकॉज़ मुझे ये डिफेन्स पता है और मैं भी उनके साथ समय ह्यूमन नेचर शेयर करता हूँ। मुझे उन पर गुस्सा नहीं होना है। किसी को भी गुस्से में हेट करना नेचर के लॉस के खिलाफ़ है क्योंकि हम इंसान एक दूसरे के साथ कॉर्पोरेट करके काम करने के लिए बने हैं। बुरे लोगों से डील करने की ये स्ट्रैटिजी हमे दुबारा से स्टोरी सिस्टम का कोर प्रिन्सिपल याद दिलाती है। यानी आउटसाइड इवेंट्स में चाहे कितनी भी केऑस चलती रहे, आपने अपने अंदर के ऑर्डर को हर समय मेनटेन करें रखना है। नंबर सिक्स चेंज नॉर्मल है। एक स्टोरी के लिए कोई भी लॉस जैसे एक कीमती चीज़ का खोना या फिर एक प्यार करनेवाले की मौत असल में लॉस नहीं बल्कि एक चेंज होता है और चेन स्नैचर का बेसिक रूल है, जिसके साथ हर इंसान को फैमिलियर होना चाहिए। अगर आप अपने आसपास देखो तो आपको समझ आएगा कि हर चीज़ या ऐक्टिविटी एक चेंज का ही रिज़ल्ट है। दुनिया को चैन से ज्यादा कुछ नहीं पसंद पुरानी चीजों को रीअरेंज करा जाता है। नयी चीजें बनाने के लिए जिसकी वजह से आपके आसपास मौजूद कोई भी चीज़ अपनी फाइनल फॉर्म में नहीं है और तभी हर अनएक्सपेक्टेड चीज़ को पहले से ही एक्सपेक्ट कर लो ताकि अगर आपके साथ कुछ भी अच्छा या बुरा हो तो आप इमोशंस में बहकर गलत कदम लेने के बजाय एकसेनसे बल ऐक्शन ले सको। मारकस का बोलना है कि एक इंसान के साथ कभी भी कुछ ऐसा नहीं हो सकता जिसे वह सहन नहीं सकता। नंबर सेवन कभी भी अपने आप को एक विक्टिम की तरह ट्रीट मत करो, क्योंकि जो कहानी आप अपने आप को सुनाते हो उसने आप या तो एक हीरो बन सकते हो या फिर एक लूँ सर और जब भी कोई इंसान अपने आप को एक विक्टिम समझने लगता है तो उसका माइंडसेट भी एक लूँ। सर वाला ही बन जाता है। इसलिए अगर आप अपनी लाइफ का एक्सपिरियंस चेंज करना चाहते हो तो पहले अपना ओपिनियन चेंज करो और अपनी किस्मत का ब्लेम दूसरों पर डालना बंद करो। वन अगर आपके साथ किसीने कुछ बुरा करा है पर आपका माइंड सेट और कैरेक्टर सही दिशा में हैं, तब आपके अंदर उस बुरी सिचुएशन से बाहर निकलने के लिए मोटिवेशन भी होगी। और अपनी ताकत का एहसास भी नंबर एट एक की लाइफ प्लेजर से नहीं डिसिप्लिन से जस्टिफाई होती है। क्योंकि एक सर्टन पॉइंट के बाद जो चीज़ हमें पहले प्लेजर दे रही थी वो बाद में एक पनिशमेंट बन जाती है और तभी हमेशा डिसिशन लेते टाइम अपनी वैल्यूज़ और लॉजिक पर रिली करो, अपनी बॉडी की सेनसेशन पर नहीं हाउएवर इसका मतलब यह नहीं है कि आपको अपनी फीलिंग्स या डिज़ाइनर्स को दबाना चाहिए। इसकी बजाए हर सेनसेशन को नैचर का एक पार्ट समझो। और याद रखो कि प्लेजर या पेन कभी भी ऐक्यूरेट्लि यह नहीं बता सकते कि कौन सी चीज़ आपके लिए अलटिमेटली अच्छी है और कौन सी नहीं। नंबर नाइन कभी भी किसी इंसान को उसकी दिखावट पर नहीं बल्कि उसकी मुश्किलों को झेलने की क्षमता से जज करो। दूसरों में ऑब्जर्व करो कि वो किन चीजों के पीछे भागते हैं और किन चीजों को अवॉइड करते हैं। ये इसलिए क्योंकि मानते हैं कि एक इंसान का असली करेक्टर मुश्किल वक्त में और बुरे लोगों के आगे रिवील होता है। अगर एक इंसान सिर्फ लो क्वालिटी प्लेयर्स के पीछे भागता है और मुश्किल के टाइम गायब हो जाता है तो उसका कैरेक्टर वीक है। मारकस ने बोला है कि अपने आप को एक रस लरकी तरह इमेजिन करो, जिसको भगवान ने एक हाई स्पिरिट के साथ प्रिपेर करके भेजा है ताकि आप एक ऑलिम्पिक क्लास मटिरीअल बन सको। हाउएवर कई इंसान अपनी इस हाईएस्ट पोटेंशिअल तक पहुंचने के बजाय खुद भी एक मिडिओकर लाइफ जीते हैं और दूसरों को भी आगे बढ़ने से रोकते हैं। सो ऐसे इंसानों से दूर रहो। नंबर 10 नेक काम करो और अपना बेस्ट वर्जन बनो ताकि अपनी मौत के समय आप नहीं बल्कि ग्रैटिट्यूड फील करो। दुनिया में सबसे डरावनी चीज़ है अपनी मौत के टाइम उन कामों को रिग्रेट करना जो आपने कभी करें ही नहीं और सैड ली ये फिनोमिनल काफी कॉमन है। मारकस का बोलना है कि बहुत से लोग ऐसे हैं जो एक कड़वाहट के साथ मरते हैं। ये याद करते हुए कि उन्होंने कौन सी चीजें नहीं सीखीं, कौनसी बुक्स नहीं पड़ी लोगों की मदद नहीं करी या फिर अपनी पोटेंशिअल वेस्ट कर दी। इसलिए छोड़ो और अपने हर मूवमेंट को प्रोडक्टिव बनाओ। हर अच्छा काम करने के बाद दूसरों को उसके बारे में मत बताओ बल्कि उसे अपनी ड्यूटी समझो ताकि आप जब अपने डेथ बेड पर लेटे हों तब आप निराशा या गुस्से के साथ नहीं बल्कि इस सैटिस्फैक्शन के साथ इस दुनिया को छोड़ोगे की आपने अपने इंसान होने के दर्जे को सही तरह से यूज़ करा।","ध्यान 161 से 180 ईस्वी तक रोमन सम्राट मार्कस ऑरेलियस द्वारा व्यक्तिगत लेखन की एक श्रृंखला है, जो अपने निजी नोट्स को स्वयं और स्टोइक दर्शन पर विचारों को रिकॉर्ड करता है। इस पॉडकास्ट सेगमेंट में मैं उन 10 सिद्धांतों पर जा रहा हूं जिनका मार्कस ने इन लेखों में उल्लेख किया है। 📽️ हमें यूट्यूब पर ढूंढें: WWW.YOUTUBE.COM/PSYCHOLOGYINHINDI" "ट्रॉमा का मतलब होता है आपके पास का कोई ऐसा स्ट्रेसफुल इवेंट, जिसे आप अभी तक ओवर कम नहीं कर पाए हों। जब भी हमारी लाइफ में हम किसी ट्रैजिडी को फेस करते हैं, जो इतनी ज्यादा इंटेन्स होती है कि हम उसके साथ कोप नहीं कर पाते और हमारे आगे क्या हो रहा है यह नहीं समझ पाते। तब हमारी में एक घाव बन जाता है और यह घाव हमारे शरीर पर लगी चोट की तरह फिजिकल नहीं बल्कि यह घाव साइकोलॉजिकल और फिजियोलॉजिकल होता है, जिसके बेसिस पर हमारे थॉट्स और बॉडी में रिलीज होने वाले केमिकल्स दोनों होते हैं। एक नेगेटिव वे में जैसे मैं बी आपके साथ बचपन में या फिर बड़े होने के बाद भी कुछ समय पहले ही कोई अब्यूस ब्रेक अप किसी की डेथ या फिर रिजेक्शन हुआ और उस मेमोरी का दर्द और स्ट्रेस अभी भी ऐक्टिव है और आपकी पर्सनैलिटी या बिहेव इयर्स को कंट्रोल कर रहा है। इसलिए अगर आप डाउट में हो कि क्या आप जो फील कर रहे हो वो ट्रामा है या कुछ और? तो इस एपिसोड में डिस्कस करे साइंस को अपने आप से मैच कर के देखो। साइन नंबर वन फेल्यर का डर फेल होना किसी को पसंद नहीं होता लेकिन जिन लोगों में फेल होने का डर इतना ज्यादा होता है की वो सक्सेस हासिल करने के लिए जो जरूरी ऐक्शन है वो उसे परफॉर्म ही नहीं कर पाते और उनका यह डर उन्हें डीमोटीवेट कर देता है तो चान्सेस है की ऐसे इंसान की साइकोलॉजी किसी ट्रामा से इन्फ्लुयेन्स है। इस तरह से एक इंसान अपने बिहेव्यर की वजह से हमेशा डिसिशन्स लेते टाइम कन्फ्यूज़ रहता है और जब उसके आगे कोई अच्छी ऑपर्च्युनिटी आती भी है तो वो उसे पहचान नहीं पाता और उसे मिस कर देता है। ऐसे लोगों को अननोन को फेस करने से इतना ज्यादा डर लगता है कि यह कभी भी अपने एक्सपिरियंस के स्कोप को इक्स्पैन्ड ही नहीं करते और अपनी ग्रोथ को लिमिट कर देते हैं। साइन नंबर टू सक्सेस का डर जहाँ कई लोग फेल्यर से डरते हैं, वहीं कई लोग ऐसे भी होते हैं जो खुद को जानबूझकर किसी न किसी मुश्किल में फंसा लेते हैं ताकि वह अपने दिमाग में चलती वही पुरानी चोरी को रिपीट कर सके कि वो एक लूँ सर हैं। दुनिया उनके खिलाफ़ हैं, बाकी सब सक्सेस हासिल कर रहे हैं, सिर्फ वो नहीं और वो कभी भी कुछ अच्छा डिजर्व ही नहीं करते हैं। जब भी हम अनकॉन्शियस पैटर्न्स की बात कर रहे होते हैं तब हम ऐसी ही स्टोरी की तरफ इशारा कर रहे होते हैं। ये स्टोरी हमारी आवाज नहीं बल्कि हमारे पैरेन्ट्स, गार्डन्स या दूसरे बड़े लोगों की आवाज होती है जैसे हमने अपने बचपन में इंटरनल आइस कर लिया था और अब हम अपने ट्रू सेल्फ की आवाज को इस दूसरे लोगों की आवाज से डिफ्रेंशीएट ही नहीं कर पाते हैं और जाने अनजाने में सेल्फ बिहेव्यर सयानी खुद को ही नुकसान पहुंचाने वाली चीजें करते रहते हैं। साइन थ्री लो सेल्फ एस्टीम और लोग कॉन्फिडेन्स ये यूज़्वली उन लोगों में देखने को मिलता है जिन्हें बचपन में अप्रिशिएट नहीं करा गया था और उनकी अचीवमेंट्स को भी ज्यादा इम्पोर्टेन्स नहीं मिली थी। जो भी बच्चा इस तरह से निग्लेक्ट ऐड या अनलोड फील करता है वह अपनी ही वैल्यू को डाउट करने लग जाता है कि क्या उसमें खुद में कोई कमी है जिसकी वजह से उसे कोई प्यार नहीं करता और यही ट्रामा टेस्ट बच्चे बड़े हो कर लो सेल्फ एस्टीम और लोग कॉन्फिडेन्स शो करते हैं। साइन नंबर फ़ोर वन साइडेड किन किन गयें एक और ऐसा साइन है जहाँ एक इंसान अपनी एम टी एन एस को फाइल करने और लव फील करने के लिए अलग अलग ग्रुप्स का हिस्सा बन जाता है और दुनिया को 122 वें देखने लग जाता है। कई लोगों का यह ड्रामा पॉलिटिक्स में दिखता हैं जहाँ वो अपनी पार्टी की हर चीज़ को सही मानते हैं। दूसरी पार्टी को एकदम ईवल समझते हैं और यह चाहते हैं कि उनकी ऑपोजिशन धरती से गायब ही हो जाए या फिर ये लोग ट्रेंड में भी अपनी आइडेंटिटी ढूंढने की कोशिश कर सकते हैं। फैशन फूड या सोशल मीडिया, चैलेंजेस से लेकर फाइनेन्स तक हर फील्ड के ट्रेंड्स और ग्रुप बिहेव इअर्स इन्हें एक सेन्स ऑफ बिलॉन्ग फील कराते हैं, जिससे ये क्रिटिकली सोचने के बजाय रिऐलिटी को एकतरफा बना लेते है। साइन नंबर फाइव कभी भी पूरी तरह से खुश न हो पाना रोमैन्टिक लोग या तो ये थिंकिंग रखते हैं की वो कभी भी पूरी तरह से खुश नहीं हो पाते। या फिर जब उनके पास खुशी आती भी है तब भी उस मोमेंट को एन्जॉय करने के बजाए वह इस में डूब जाते हैं कि यह खुशी तो बस टेंपरेरी है और एक्चुअल में उनकी किस्मत में दुखी लिखा है। इस तरह के लोग भी अपनी इंटरनल स्टोरी को चेंज नहीं कर पा रहे होते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि यह नेगेटिव थिंकिंग उनकी डेस्टिनी है, जबकि ये बस उनका पैटर्न है, जिससे वह ब्रेक कर सकते हैं। साइन नंबर सिक्स हमेशा अनसेफ फील करना यानी हमेशा ऐसा फील हो ना कि जल्द ही कुछ ना कुछ बुरा हो जाएगा और उस बुराइ से बचने का कोई चारा नहीं है। इसका मतलब ये होता है कि इस इंसान की बॉडी और माइंड में अभी तक उस ट्रोमा को प्रोसेसर ही नहीं करा है और उससे जुड़े स्ट्रेस अभी भी बॉडी में कॉन्स्टेंट ली ही रहते हैं, ताकि इस इंसान की बॉडी उस ट्रॉमा के दोबारा आने के केस में पहले से ही तैयार रहें। साइन नंबर सेवन स्लीप यह पॉइंट भी अनसेफ फील करने से ही रिलेटेड है, क्योंकि जब एक इंसान की बॉडी हमेशा स्ट्रेस केमिकल से भरी रहती है तो वो हमेशा फाइट और फ्लाइट मोड में रहता है, जो की हमें चौकन्ना बनाता है और इस वजह से डीबी ट्रॉमा टाइस लोग तब तक ढंग से नहीं सो पाते जब तक वह अपने ट्रामा को हील नहीं कर लेते।","एक मनोवैज्ञानिक आघात एक तनावपूर्ण अतीत की घटना का परिणाम है जिसे आप अभी तक दूर नहीं कर पाए हैं। जब कोई दुखद घटना तीव्रता में इतनी अधिक होती है, तो हमारा शरीर काम करना बंद कर देता है और हम उत्तरजीविता मोड में प्रवेश कर जाते हैं। यदि घटना का ज्ञान कभी संसाधित नहीं होता है, तो जीवित रहने का तरीका घटना के वर्षों बाद भी बना रहता है। लेकिन बहुत से लोग यह कभी नहीं समझ पाते हैं कि उन्हें जो हुआ है वह आघात है या कुछ और। इसलिए इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम अनहेल्दी ट्रॉमा होने के 7 संकेतों के बारे में जानेंगे।" "अपने अंदर सेल्फ कंट्रोल या डिसिप्लिन होने का मतलब है की एक इंसान को ये फरक नहीं पड़ता कि उसके आसपास कितनी टेम्पटेशन्स है या फिर बाकी लोग क्या कर रहे हैं। वो सिर्फ वही करेगा जो उसे सही लगता है। ये एक ऐसी एबिलिटी है जिसकी मदद से आप जरूरी कामों को पोस्टपोन करना बंद कर सकते हो और अपनी बुरी आदतों को फाइनली ओवर कम करके अपने गोल्स को अचीव कर सकते हो। एक स्टडी में देखा गया था कि जिन लोगों में सेल्फ कंट्रोल ज्यादा होता है वो अपने स्कूल और कॉलेज में अच्छा परफॉर्म करते हैं। उनकी सेल्फ एस्टीम ज्यादा होती है। उन्हें ईटिंग डिसॉर्डर कम होते हैं और उनके रिलेशनशिप्स की क्वालिटी भी बेटर होती है। पर यूज़्वली सेल्फ कंट्रोल के रास्ते में जो चीज़ आती है वो होती है किसी इंसान, चीज़ या काम के लिए हमारी डिज़ाइरड जो हमें लालच देती है की हमे प्रेज़ेंट मूवमेंट में कुछ मजेदार चीज़ करनी चाहिए और अपने जरूरी कामों को इग्नोर कर देना चाहिए। साइकोलॉजी में सेल्फ कंट्रोल को डिफाइन करा जाता है एक ऐसे मेंटल प्रोसैस की तरह जो एक इंसान के बिहेव्यर को अजस्ट करता है। किसी स्पेसिफिक गोल को अचीव करने के लिए और रिसर्च बताती है की हमे सेल्फ कंट्रोल को एक मसल की तरह देखना चाहिए जो यूज़ करने पर इम्प्रूव होती है क्योंकि जब भी हम सिर्फ एक छोटे समय के लिए सेल्फ कंट्रोल को यूज़ करते हैं तब एक पॉइंट के बाद हमारा सारा कंट्रोल खत्म हो जाता है। लेकिन जब हम सेल्फ कंट्रोल को एक लंबे समय के लिए प्रैक्टिस करते हैं, जैसे महीनों या सालों तक, तब हम अपना डिसिप्लिन ज्यादा आसानी से मेंटेन कर पाते हैं। हाउएवर सबसे जरूरी क्वेश्चन ये है की हम सेल्फ कंट्रोल को प्रैक्टिस करना शुरू कहाँ से करें? वेल सबसे पहले ये समझो कि आपकी चाहे जो भी डिस्ट्रैक्शन हो चाहे आप बस आलस करके अपने कामों को इग्नोर करते हो, टेंशन दूर करने के लिए किसी बुरी आदत का सहारा लेते हो या फिर आप मीठा खाकर बार बार अपनी डाइट खराब कर लेते हो तो वहाँ गलती कभी भी उस चीज़ की नहीं होती जो आपको टाइम पे करती है और आपको अपना डिसिप्लिन तोड़ने को बोलती है। सो ऐसी एडवाइस जो आपको बोलती है की हमे सेल्फ कंट्रोल बढ़ाने के लिए अपने आगे से सारी टेम्पटेशन्स हटा लेनी चाहिए। वो एडवाइस गलत है। एक अमेरिकन साइकोलॉजिस्ट जिनका नाम जोनाथन ब्रेकर हैं, उन्होंने अपनी रिसर्च में देखा है। प्लीज़ सेल्फ कंट्रोल बढ़ाने का सिर्फ एक ही तरीका है जो की है विलिंगनेस यानी जब आप अपनी मर्जी से अपनी क्रेविंग को आते और जाते हुए देखते हो और कॉन्शस ली अपना फोकस अपने अनकॉन्शस माइंड से निकले ऑटोमैटिक प्रोसेसेस पर ले आते हों, तब आपको पता चलता है कि आपकी और आप मैं कितना ज्यादा गैप है और आपकी सारी क्रेविट्ज़ असल में आपकी है ही नहीं। जैसे अगर आप एक कॉन्शस डिसिशन लेते हो की आपको कुछ देर बैठकर पढ़ना चाहिए, उस टाइम पर आपके दिमाग में चल रहे हैं अनकॉन्शियस प्रोसेसेस आपको डिस्ट्रैक्ट करने लगते हैं और आपको बोलते हैं की आपको अब अपना मोबाइल चेक करना चाहिए या फिर कुछ खाने के लिए ढूंढना चाहिए। ऐसे समय पर ये मत सोचो की ये मोटिवेशन आपकी अपनी है क्योंकि यह आपके कंट्रोल से बाहर है। साइकोवनैलिसिस में इन मोटिवेशन सको हमारी सब पर्सनैलिटीज माना जाता है। इसका मतलब हमारी हर हैबिट। ये रिएक्शन अपने आप में एक पर्सनैलिटी की तरह काम करते हैं। एक्साम्पल के तौर पर आप अपनी बुक को ही देख लो कि कैसे जब भी आपको कुछ जरूरी काम करते हुए एकदम से बहुत भूख लग जाती है जब आपका पूरा बिहेव्यर ही बदल जाता है और आप अपने एनवायरनमेंट को एक अलग नजर से देखना स्टार्ट कर देते हो, आप ढूंढने लगते हो की कौन सी खाने की चीज़ आप को सैटिस्फाइड करेगी? वो आपसे कितनी दूर पड़ी है और आपको क्या करना होगा? उसके पास पहुंचने के लिए? आप सोचते हो की आप बस जल्दी से कुछ खाओगे और वापस से अपने काम को कंटिन्यू करने लग जाओगे पर ऑब्वियस्ली ऐसा ऑलमोस्ट कभी भी नहीं होता। आप पहले कुछ खाना शुरू करते हो और देखते ही देखते आप अगले सेकंड टीवी पर कोई मूवी देखना स्टार्ट कर देते हो और अपने काम को भूल जाते हो। इस तरह से आपकी एक के बाद एक अलग सब पर्सनैलिटी या फिर मोटिवेशन से बाहर आती है और आपको आपके गोल से भटकाती है ये मोटिवेशन स् हमारी बायोलोजी में इतना डीप्ली रूटेड होती है कि हम इन्हें चाहकर भी शांत नहीं कर सकते हैं क्योंकि इनकी अपनी ही एक पर्सनैलिटी होती है जो आपसे अपना काम कराती है और काम पूरा होने के बाद आपके एक्शन्स और थिंकिंग का कंट्रोल आपको वापस दे जाती है। और तभी डॉक्टर ब्रेकर ने बताया है कि आप कभी भी अपनी इन मोटिवेशन से लड़कर अपना सेल्फ कंट्रोल नहीं बढ़ा सकते हैं। क्योंकि आप हर बार इस लड़ाई में हार जाओगे। इसलिए अपने आप को डिसिप्लिन बनाने का सही तरीका है अपनी क्रेविंग ज़, डिस्ट्रेक्शन्स या इमोशन्स को एक डिटैच्ड माइंड के साथ ऑब्जर्व करना। ये आइडिया स्टोर सिस्टम और बुद्धिज़म दोनों प्रिन्सिपल्स में डिस्कस कर आ गया है कि हमें अपनी नेचर के अगेन्स्ट नहीं जाना चाहिए बल्कि हमें अपनी नेचर के साथ अजस्ट करना चाहिए और कोशिश करनी चाहिए कि हम अपने इमोशन्स और अपने गोल्स कोलाइन कर पाए जितना आपके इन कॉन्शस और अनकॉन्शियस मेंटल प्रोसेसेस में दूरी होगी। उतना ही आप अपना सेल्फ कंट्रोल खोते जाओगे और आपके सारे अनकॉन्शियस इमोशन्स, रिएक्शन्स और क्रेविंग ज़ आप को कंट्रोल करने लगेंगी। और देखते ही देखते आप या तो एक अडिक्ट बन जाओगे या फिर लाइफ मैं कभी भी कुछ यूनीक नहीं कर पाओगे। इसका मतलब जब भी आपके मन में ये ख्याल आये कि आपको कुछ अनप्रोडक्टिव काम करके अपना टाइम वेस्ट करना चाहिए, तब बस इस ख्याल को दूर से देखो, उससे जो बोलना है बोलने दो और देखो की क्या वो ख्याल अपने आप शांत होता है? ज्यादातर केसेस में आप यही ऑब्ज़रव करोगे। की ये ख्याल इतना कन्विन्सिंग नहीं है और अगर हम इसे उतनी अटेंशन नहीं देते तो ये खुद ब खुद चला भी जाता है।","अपने जीवन में संयम और अनुशासन का अर्थ है कि आप किसी प्रलोभन या व्याकुलता से विचलित नहीं हैं, आपने नियंत्रण के गुण से अपने मनोविज्ञान में महारत हासिल कर ली है। यह एकमात्र तरीका है जिससे आप अधिक अच्छे के लिए संतुष्टि में देरी करना सीख सकते हैं। तो, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, मैं अमेरिकी मनोवैज्ञानिक, डॉ. जोनाथन ब्रिकर के शोध पर जाता हूं जो आपको आत्म-नियंत्रण और अनुशासन प्राप्त करने का एकमात्र मार्ग समझने में मदद करेगा। 📽️ हमें यूट्यूब पर ढूंढें: WWW.YOUTUBE.COM/PSYCHOLOGYINHINDI" "हमारी लाइफ में सिर्फ एक ही ऐसा टाइम और जगह है जहाँ हम रह सकते हैं और जैसे हम कंट्रोल कर सकते हैं यानी ये प्रेज़ेंट मूवमेन्ट बट। इसके बावजूद भी हम में से ज्यादातर लोग या तो पास्ट मेमोरीज़ की वजह से डिप्रेस्ड रहते हैं या फिर फ्यूचर में क्या होगा ये सोचकर गैंगस्टर्स हो जाते हैं और अगर हमारा प्रेसेंट मूवमेंट भी अच्छा नहीं है तो हम सोचते हैं कि हमारा पास कितना अच्छा था या फिर फ़्यूचर कितना अच्छा होगा। यानी हमारा दिमाग कभी भी हमें प्रेज़ेंट मूवमेंट को खुलकर एन्जॉय करने ही नहीं देता। जैसे जब हम सिंगल होते हैं तब हम सोचते हैं कि काश हम एक रिलेशनशिप में होते हैं और जब हम एक रिलेशनशिप में होते हैं तब हम सोचते हैं कि ये कितना स्ट्रेसफुल है और काश हम सिंगल होते हैं। बट हमें ये समझना बहुत जरूरी है कि हमारे थॉट्स का पास्ट और फ्यूचर में जाने के पीछे एक इवैल्यूशन रीज़न है। सो, सबसे पहले हम बात करते हैं अपने पास्ट की, यानी अगर आपके साथ आपके पास में कुछ बुरा इंसिडेंट हुआ और आप उसके डेढ़ 2 साल बाद भी उस इंसिडेंट को नहीं भुला पा रहे हो तो इस केस में आपकी साइट की आपको बताना चाहती हैं कि आपने अभी भी उस इन्सिडन्ट को ढंग से नहीं समझा है और आपकी रिऐलिटी की समझ इन्कम्प्लीट है एवल्यूशन अरी साइकोलॉजिस्ट बताते हैं कि हमें हमारा पास्ट बस इसलिए याद नहीं रहता ताकि हम बस बीते हुए इवेंट्स का रिकॉर्ड रख पाए। बल्कि पास्ट का काम है। हमें ऐसी इन्फॉर्मेशन देना, जिसके बेसिस पर हम अपने आप को फ्यूचर के लिए प्रिपेर कर पाए और हमारा दिमाग हमें तब तक अकेला नहीं छोड़ता, जब तक हम अपने पास में से यह इन्फॉर्मेशन नहीं निकाल लेते हैं। एक्ज़ाम्पल के तौर पर जब आपका एक काफी सिरियस ब्रेकअप होता है तब आप सोचने लगते हो कि क्या आपने इस इंसान के साथ रिलेशनशिप में आकर गलती करी थी? क्या ये रिलेशनशिप पूरे टाइम वन साइडेड था? क्या आपको डिसिशन्स लेने ही नहीं आते? क्या आप इतने बेवकूफ हो कि आपको कोई भी पागल बना सकता है? क्यों आप इतने बेवकूफ हो और इसके अलावा अपने कितनी ही ऐसी गलतियाँ करी है क्योंकि आपकी गलती करने की भी एक लिमिट है और उस लिमिट के पार जाने पर आप अपनी लाइफ भी हो सकते हो और आप के बोरे टाइम पर आपका दिमाग आपको इन क्वेश्चन्स के साथ ये समझने पर मजबूर करता है कि आप एग्ज़ैक्ट्ली कहाँ गलत थे और कैसे आप इस गलती को समझ सकते हो ताकि फ्यूचर में अगर आपको यह गड्ढा दुबारा देखे तो आप इसमें गिरने के बजाय इसके साइड से निकल जाओ। हमारी साइट की का यह मेकनिजम हमारे सर्वाइवल के लिए बहुत जरूरी है। पर ज्यादातर लोगों की सबसे बड़ी गलती होती है अपने पास्ट को इग्नोर करना या फिर उसे भुलाने की कोशिश करना। क्योंकि जब हम ऐसा करते हैं तब हमारी मेमोरीज़ हमें सबकॉन्शियस ली कंट्रोल करने लगती है और हम प्रेज़ेंट में भी पास्ट को रिपीट करते रहते हैं। नाउ अपने पास को ओवर कम करने के लिए हमें उस मेमोरी में वापस जाना है। और हर इवेंट को डिटेल में ऐलिस करना है ताकि अगर फ्यूचर में हम अपने आप को उसी सिचुएशन में पाए तो हम दुबारा उसके शिकार ना बने। जैसे अगर हम सोल्जर्स की बात करें तो उनमें पीटीएसडी यानी पोस्ट ड्रमैटिक स्ट्रेस डिसॉर्डर होना काफी कॉमन है, क्योंकि उन्हें अपने मिशन्स पर कई ट्रॉमैटिक इवेंट्स को विट्नेस करना पड़ता है। कई बार उनके साथी मर जाते हैं और कई बार उन्हें कोई जानलेवा चोट लग जाती है और जब वो एक साइकोथेरपिस्ट के पास जाते हैं तो उन्हें बोला जाता है कि वो अपने इवेंट्स को एक सिक्वेन्स में लिखे हैं और उनका एक प्रॉपर अकाउंट बनाएं। इससे उनको यह समझ जाएगा कि बुरा ई का मतलब क्या होता है और दुनिया में कितनी सफरिंग है। ये कॉन्सेप्ट 1986 में साइकोलॉजी प्रोफेसर जेम्स पे निबे करने डिस् कवर कर रहा था। उसने अपने स्टूडेंट्स को बोला कि वो अपने सबसे बड़े ट्रामा के बारे में लिखें और अगर उन्होंने कभी कोई ट्रोमा नहीं एक्सपिरियंस करा है तो वो बस अपनी लाइफ के सबसे मुश्किल टाइम के बारे में ओके और ज्यादातर स्टूडेंट्स के लिए ये काफी डरावनी प्रैक्टिस थी, पर उन्हें छे महीने तक मॉनिटर करने पर पता लगा कि शुरू के डिस्कम्फर्ट के बाद वह अब अपने पास से उतने इन्फ्लुयेन्स नहीं थे। उनका इम्यून सिस्टम ज्यादा अच्छे से फंक्शन करने लगा था और उनकी अटेन्शन वापस से प्रेज़ेंट मूवमेंट पर आ चुकी थी। यानी अगर आप अपनी अटेन्शन पास्ट से हटाना चाहते हो तो आपको भी एक पेपर पर अपने सबसे बुरे एक्सपीरियंस के बारे में लिखना है। और उसे पूरी तरह से समझना है जितना आप अपनी लाइफ को एक स्टोरी की तरह ना रेट करोगे उतना ही आप अपने आप को पास के चंगुल से छुड़ा पाओगे। सेकंडली अगर आप अपनी फ़्यूचर से जुड़ी ऐंगज़ाइइटी कम करना चाहते हो तो आपको यह समझना है कि आपका दिमाग बोल रहा है कि आपकी फ्यूचर की अन्डरस्टैन्डिंग इन्कम्प्लीट और इन सफिशंट है और आपको अपने गोल्स और प्लैन्स के बारे में लिखना है। इन शोर्ट प्रेज़ेंट मूवमेंट में नाजी पाना हमारी अपनी और दुनिया की पुअर अन्डरस्टैन्डिंग का रिज़ल्ट होता है। और अगर आप मेडिटेशन या किसी और माइंडफुल प्रैक्टिस में अपना टाइम नहीं इन्वेस्ट करना चाहते तो इस तरह से अपनी लाइफ के बारे में लिखना अपने आप को प्रेज़ेंट मूवमेंट में लाने का बेस्ट तरीका है।","यह कहना गलत नहीं होगा कि अब के सिवा कुछ नहीं है। इस समय सब कुछ हो रहा है। अतीत "अब" है जिसे हमने अनुभव किया है। भविष्य वह "अभी" है जिसे हमने अभी तक अनुभव नहीं किया है और वर्तमान "अभी" है जिसे हम वर्तमान में अनुभव कर रहे हैं। लेकिन जो चीज ज्यादातर लोगों को परेशान करती है वह अतीत का अवसाद या भविष्य की चिंता है। इसलिए, इस पॉडकास्ट में, मैं अतीत को जाने देने, भविष्य के बारे में चिंता को दूर करने और पल में जीने के सबसे कुशल तरीके पर चर्चा करता हूं। हमें Youtube पर खोजें: www.youtube.com/psychologyinhindi" "जब हम स्कूल में होते हैं तब हम अच्छे मार्क्स लाने की कोशिश करते हैं ताकि हमें आगे चलकर अच्छी कैरिअर ऑपर्च्युनिटीज मिल सके और लोग हमारी रिस्पेक्ट करे। लेकिन कई बार हमें यह देखने को मिलता है कि ऐसे लोग जो स्कूल के समय में एक बहुत ही ब्राइट स्टूडेंट थे और क्लास में हमेशा टॉप करते थे, वो लाइफ में फेल हो चूके हैं। लेकिन जो लोग स्कूल में बेकार परफॉर्म करते थे और हमेशा फेल होते थे वो रियल लाइफ में काफी अच्छा कर गए। जो लोग पहले हमेशा अपने टीचर्स और पैरंट्स से तारीफें सुनते रहते थे, वह अब एक काफी होकर जिंदगी जी रहे हैं, जिससे रास्ते में उनको तरक्की दिलानी थी। उसी रास्ते में उनकी मेहनत को मिट्टी में मिला दिया। लेकिन ऐसा क्यों होता है? वेल इसके चार बड़े रीज़न है नंबर वन स्कूल्स फैक्टरी की तरह काम करते हैं। यहाँ पर बच्चे रॉ प्रोडक्ट्स होते हैं और उन सबको एक जैसा बनाने की कोशिश करी जाती है। हर स्टूडेंट को कुछ रूल्स बताए जाते हैं और कुछ याद करने को दिया जाता है, जिसके बाद उसे उस इन्फॉर्मेशन को पेपर पर उगलना होता है। स्कूल्स में इन बच्चों को इंडिविजुअल्स नहीं बल्कि एक ग्रुप या एक नंबर समझा जाता है और उन्हें एक रोल नंबर दिया जाता है जैसे वो कोई कैदी या फिर एक मैन्युफैक्चर्ड प्रोडक्ट्स हो। इस वजह से अगर किसी बच्चे में कोई यूनीक टैलेंट या यूनिवर्सिटी होती भी है तो वो भी इस सिस्टम के बोझ के नीचे दबा दी जाती है। यही रीज़न है की क्यों? जो लोग स्कूल्स में एग्ज़ैक्ट्ली वो करते हैं जो उनसे एक्सपेक्ट कर आ जाता है, वो रियल लाइफ में ऐवरेज ही रह जाते हैं। जबकि फेल होने वाले स्टूडेंट्स अपने टैलेंट को खुद ही तरसते हैं और कुछ महान काम कर पाते हैं। इवन महान इन्वेन्टर थॉमस ऐडिशन की टीचर उन्हें बोलती थी कि यह बच्चा तो हमेशा कन्फ्यूज़्ड रहता है। जस्ट बिकॉज़ थॉमस बाकी बच्चों जैसे नहीं थे नम्बर टू स्कूल्स में रील लाइफ स्किल्स नहीं सिखाई जाती है। अपने एक इंटरव्यू में लिंकडइन के सीईओ विनर बोलते है की एक्स की वैल्यू ढूंढने से आप कभी भी जॉब नहीं ढूंढ पाओगे। स्कूल्स में आज हमें एल्जेब्रा ट्रिगनॉमेट्री और सेल डिविज़न तो पढ़ाई जाती है लेकिन हमें रियल लाइफ स्किल्स जैसे क्रिटिकल थिंकिंग, टैक्सेस कम्यूनिकेशन या वाइस डिसिशन्स कैसे लेते हैं, ये नहीं सिखाया जाता। एक इंसान को रियल लाइफ में सक्सेसफुल होने के लिए एक होलिस्टिक डेवलपमेंट की जरूरत होती है। आपकी सक्सेस आपकी स्किल्स पर डिपेंड करती है ना कि आपकी डिग्री इसपे। लेकिन स्कूल्स मैं बस आपको एक सपना दिखाया जाता है कि अगर आपके मार्क्स अच्छे है तो आपको रियल लाइफ में गैरन्टी सक्सेस मिले गी। यही वजह होती है कि अक्सर जो स्टूडेंटस ब्रिलियंट होते है वो हमेशा ज्यादा मार्क्स लाने की कोशिश करते हैं और अपनी सोशल लाइफ या हॉब्बीज़ पर बिल्कुल ध्यान नहीं देते हैं जिसकी वजह से वो बस एक ही डायरेक्शन में अपने आप को ग्रो करते रहते हैं। जहाँ उनकी लर्निंग स्किल्स और मेमोराइज़ एशन तो अच्छी होती है। वहीं इस रेस में वो पर्सनैलिटी डेवलपमेंट के कई जरूरी को मिस कर देते हैं जितना आप ओवरऑल अपने ऊपर काम करते हो और नयी नयी चीज़े सीखते हो। सक्सेस को पाना उतना ही ईजी होता चला जाता है। नंबर थ्री स्कूल हम में से खाता है कि फेल्यर की कोई वैल्यू नहीं होती है। रिच एक पुअर डैड के ऑथर रॉबर्ट कियोसाकी अपनी बुक ए स्टूडेंटस वर्क फॉर सी स्टूडेंट्स एंड 20 स्टूडेंटस वर्क फॉर द गवर्नमेंट में बोलते है की स्कूल्स हमारे में फेल्यर का बहुत बड़ा डर डाल देते हैं। स्कूल में अगर किसी के मार्क्स अच्छे नहीं आते तो ऐसा समझा जाता है कि वो बच्चा स्मार्ट नहीं है। लेकिन असलियत में इसका मतलब बस यह है कि वो बच्चा बस वो नहीं कर रहा जो स्कूल ने उसे करने को बोला है। अक्सर जो बच्चे स्कूल में अच्छा स्कोर करते हैं उनके अंदर हमेशा यह डर रहता है कि कोई भी स्टूडेंट उनसे आगे ना निकल जाए। इसलिए वो हमेशा मार्क्स के पीछे ही भागते रहते हैं। वही कई स्टूडेंटस मार्क्स पर बिल्कुल फोकस नहीं करते। ऐसे बच्चों में फेल्यर का बिल्कुल डर नहीं होता क्योंकि वो उसे बहुत बार फेस कर चूके होते हैं। यही रीज़न है कि क्यों? ज्यादातर एक रेट लाने वाले स्टूडेंट्स अक्सर सी ग्रेड वाले स्टूडेंट्स की कंपनीज में काम कर रहे होते है। ए ग्रेड स्टूडेंट्स में रिस्क लेने का डर होता है। वो फेल्यर से डरते हैं और इवन। वो एक दो फेल्यर के बाद ज्यादातर गिवअप भी कर देते हैं। वहीं सिगरेट स्टूडेंट्स ज्यादा रिस्क लेते हैं और फेल्यर से नहीं डरते हैं बल्कि उससे कुछ सीख कर आगे बढ़ने की कोशिश करते हैं। नंबर फ़ोर हमें स्कूल में एक ब्लाइंड फॉलोवर बनाना सिखाया जाता है क्योंकि अगर आप क्लास में एक भी मिनट लेट आते हो तो टीचर आपको क्लास में एंट्री नहीं देगी। आपको घंटों तक अपनी सीट पर ही बैठे रहना होता है। इवन आप को वॉशरूम भी टीचर से पूछ के जाना होता है। सीटी बजने पर खड़ा होना होता है। बजने पर आपको कुछ खाने का समय मिलता है और बेल बजने के बाद ही आपको घर जाने दिया जाता है। आपको सिखाया जाता है कि जो भी रूज़ आपको बताए जा रहे हैं, आप ने उन्हें बिना क्वेश्चन करे फॉलो करना है और अगर आपने कुछ क्वेश्चन करा तो आपके घर कंप्लेंट जाएगी कि आप में डिसिप्लिन नहीं है। ये चीज़ रियल लाइफ के रूल्स से बहुत अलग होती है क्योंकि असली लाइफ का अल्टीमेट रोल ये होता है कि आपको हर रूल पता होना चाहिए ताकि आप जरूरत पड़ने पर उन्हें तोड़ सको और अगर आपके सामने कुछ गलत हो रहा है तो आप उसके खिलाफ़ आवाज उठा सकें। अगर आपके कोई यूनीक ओपिनियन्स नहीं है या आप झुंड को ब्लाइंडली फॉलो करते हो तो उसका रिज़ल्ट यही होगा कि आप एक फेल्यर ही रह जाओगे और यही हालत उन रोबोट जैसे स्टूडेंट्स की होती है जो बस मार्क्स का पीछा करते हैं नाकि एक्सिलेन्स का।",ऐसा क्यों होता है कि अच्छे छात्र जो कक्षा में शीर्ष पर आते हैं वे वास्तविक जीवन में असफल हो जाते हैं और बुरे छात्र जो स्कूल में असफल हो जाते हैं वे आम तौर पर अलग दिखते हैं और अधिक प्राप्त करते हैं? यह पैटर्न वास्तव में सामान्य है और इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम इसका पता लगाने की कोशिश करेंगे। "व्हाई डू विमिन नीड अटेन्शन? एक ऐवरेज मेल को आदत होती है रिजेक्शन की रिप्लेस ना मिलने की या फिर सिम्पली ब्लॉक या इग्नोर होने की। बट ऐसा फीमेल इट डज नॉट मैटर वो कितनी ऐवरेज या फिर ब्यूटीफुल लुकिंग है? शी विल, गेट अटेन्शन नो मैटर वॉट हरमेल फीमेल्स के आगे खुद की वैल्यू को प्रूफ करके ये दिखाने की कोशिश कर रहा होता है कि क्यों वो दूसरे मेल से बेटर और ज्यादा केपेबल है? विमिन प्रिफर्ड, हाई वैल्यू इन ऐंड दैट, स्वाइम एन्ट्री टू बिकम हाई वैल्यू इन ऑर्डर टु बी मोर, अट्रैक्टिव टू विमिन और एक मिल की अटेन्शन डाइरेक्टली लिमिट होती है। उसकी वैल्यू से बिकॉज़ एक हाई वैल्यू मेल बहुत डिमांड में होता है। हर समय उसे कहीं पहुंचना होता है, कोई उसे बुला रहा होता है, लोग उसकी मदद चाहते हैं और उसका समय बेटर यूटिलाइज होता है जब वो ज्यादा से ज्यादा लोगों से इंटरैक्ट करता है और अपनी स्किल्स को काम में लाता है। फॉर एग्ज़ैम्पल एक मिल जो साल के 12,00,00,000 कमाता है, महीने का 1,00,00,001 दिन का 3,00,001 घंटे का ₹14,000 उसका अर्ली रेट बहुत एक्स्पेन्सिव होता है। एक लो वैल्यू मेल से एक लो वैल्यू मेल जैसे कहीं पहुंचना नहीं है, जिससे जरूरी लोग मिलना नहीं चाहते। और जिसका अर्ली रेट बहुत कम होता है, उसकी अटेन्शन भी चीप होती है और तभी फीमेल्स लो वैल्यू मेल्स की अटेन्शन को कभी रिस्पेक्ट नहीं देती। फीमेल्स ऐसे मेल्स को अपनी ढाल की तरह यूज़ करती हैं क्योंकि उनकी एवोल्यूशनरी बोलती है की जस्ट बिकॉज़ वो फिज़िकली उतनी स्ट्रॉन्ग नहीं है की वो लड़ाईयां कर सके या फिर बड़े जानवरों को मार सके तो वो अकेले नहीं बल्कि झुंड में चले और हमेशा खुद को लोगों से सराउंडेड रखे हैं। फीमेल्स को अटेंशन अच्छी लगती है क्योंकि कॉन्स्टेंट अटेन्शन का मतलब होता है की वो क्रिटिकल सिचुएशन में पहला शिकार नहीं बनेंगी और उनके और खतरे के बीच बेटा मिल्स का बफर है। एक हाई वैल्यू मेल इस सच को जानता है और तभी वो एक फीमेल कोचेस करके यह प्रूफ करने के बजाय की उसका टाइम फिजूल का है। वो अपनी अटेन्शन कोविद होल्ड करता है और सबसे अट्रैक्टिव फीमेल्स को इग्नोर करता है। नाउ अब समझते हैं कि अटेन्शन का ये खेल एक डेटिंग सीन में कैसा दिखता है? नंबर वन इग्नोरिंग मेक सम्मान स्टैंड आउट एक फीमेल जितनी ज्यादा ब्यूटीफुल होती है उतनी ही ज्यादा उसके पास मेल्स की अटेन्शन होती है और उतना ही ईजी होता है उसकी नजर में स्टैंड आउट करना उसे अपनी टेंशन ना देकर एक हाई वैल्यू मेल कभी भी अपने अटेन्शन सबको फ्री में नहीं बांटता। फिरता उस के टाइम प्रेज़ेंस और एनर्जी एक कीमत पर आते हैं। वो एक सुंदर लड़की से मिलकर उसे जाता सकता है कि वो उसे कितनी अट्रैक्टिव लगी या उसे उस लड़की से बात करना कितना अच्छा लगा। बट एट द सेम टाइम वो इसके बाद पूरी तरह से वापस अपने काम में अब ज़ोर हो सकता है। बिना उस लड़की का पीछा करें या फिर एक लो वैल्यू मेल की तरफ से बार बार टैक्स करें। इस तरह से वो उस लड़की के नोटिस में भी आ जाता है लेकिन वह उसे ऐसा फील कराता है कि उसमें उसकी टेंशन को पाने के लिए कुछ भी स्पेशल नहीं है। यह चीज़ एक फीमेल को खुद को और उस मेल के कॉंप्लिमेंट को क्वेश्चन करने पर मजबूर करती है। वो जानना चाहती है कि वो मेल दूसरे मेल्स की तरह उसे चेस क्यों नहीं कर रहा? इस तरह से चाहे उस लड़के में कुछ स्पेशल ना भी हो तब भी एक फीमेल उसके बारे में सोच सोचकर ही उसे अपनी नजरों में बाकी सब मर्दों से ऊपर प्लेस कर देती है। नंबर टू सिम्स लाइक हिज़ लाइफ इस सोर्टेड लड़कियां भी ये जानती है कि वो एक वेला लड़का ही होता है, जिसके पास और कुछ करने को नहीं होता, जो उन्हें इतनी अटेंशन देता है। जबकि जिन मेल्स के सपने बड़े गुड हैबिट्स और विनर माइंडसेट होता है वो सबसे बड़े खजाने का पीछा कर रहे होते हैं और उनके पास बीच रास्ते में चवन्नियां ठीक करने का समय नहीं होता। हाई वैल्यू मेन मीनिंग लेस फ्लर्टिंग, एम्प्टी, रिलेशनशिप्स और कैजुअल हुकअप में खुद को नहीं फंसाते हैं। उनका टाइम सिर्फ और सिर्फ उन्हीं चीजों को बिल्ड करने पर लगता है जो लंबे समय तक टिके है और तभी एक फीमेल इग्नोर होने पर एक मेल को ज्यादा रिस्पेक्ट करने लगती है। नंबर थ्री मास्टरी ओवर हिस्सा इन सेस एक सुपिरिअर मेल अपने सेन्सस का मास्टर होता है। उसे प्लेजर के एंड पॉइंट तक पहुंचने की कोई जल्दी नहीं होती ही। लव्स के प्रोसेसेस ही फाइन्ड जॉइन पेन एक फीमेल को इग्नोर करना उसे ये सिग्नल करता है कि उस मेल के पास से चलो ऑपर्च्युनिटी की कोई कमी नहीं है क्योंकि वो इन छोटी छोटी चीजों में इंटरेस्ट भी नहीं लग रहा और उसकी अटेन्शन लेने के लिए शरीर से कुछ ज्यादा लगेगा। फीमेल्स ये सेंस कर सकती है कि एक मर्द कितना डेस्पेरेट है जिसकी वजह से फ्री में अपनी अटेन्शन देने से एक मेल अपनी सारी अट्रैक्शन लूज़ कर देता है। नंबर फ़ोर ही डज़न्ट प्ले गेम्स, हाई वैल्यू मैन, काफी डायरेक्ट और स्ट्रैट फॉरवर्ड होते हैं। उनके लिए किसी फीमेल से रिजेक्ट होना बेटर होता है, बजाय फालतू की गेम खेलने के। जब भी एक फीमेल इस तरह के मेल के साथ गेम्स खेलती है तब वह सीधा उससे बात करना ही बंद कर देता है। वो ये बात समझती हैं कि इस बंदे के साथ पंगे लेने या फिर इसका टाइम वेस्ट करने से ये दूर हो जाएगा। इसलिए वो उसके अराउंड बहुत ही अच्छे से बिहेव करती है और उसे उसकी वैल्यू के अकॉर्डिंग ट्रीट करती है। नंबर फाइव देर कंफर्टेबल अलोन कभी नोटिस करना वो सबसे लो वैल्यू में नहीं होते हैं, जिन्हें हमेशा अकेले रहने में तकलीफ होती है। ऐसे लोग अपनी फ्रेंड्स की क्वांटिटी, अपने पार्टनर, लोगों के अप्रूवल इन सब चीजों से ही अपनी सेल्फ को मेजर करता है। ऐसे मिल्स या तो एक रिलेशनशिप से निकलते ही दूसरे रिलेशनशिप में एंटर करने की तैयारी करने लगते हैं। या फिर अपनी ऐक्सिस का पीछा नहीं छोड़ते हैं जबकि हाई वैल्यू मेल्स अकेलापन ही ज़्यादा प्रिफर करते हैं। उन्हें पता है कि वो बिना एक फीमेल के ही कंप्लीट है और उन्हें एक्सटर्नल लव या वैलिडेशन की डेस्परेट नीड नहीं है। लो वैल्यू मेल्स फीमेल्स को खुद से ऊपर समझते हैं और कहीं ना कहीं उनकी ब्यूटी से डरते हैं। बट ब्यूटी की पावर को फुली एक्सपिरियंस करने के लिए डर या उसे पानी की डिप्रेशन नहीं बल्कि साफ मन चाहिए होता है। सिर्फ एक सेल्फ डिसिप्लीन मेल ही फीमेल्स को टोटली एक्सेप्ट प्रोटेक्ट और प्यार कर सकता है।","एक औसत पुरुष को अस्वीकार किए जाने, अनदेखा किए जाने और यहां तक कि ब्लॉक किए जाने की आदत हो गई है। लेकिन एक महिला के रूप में, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह कितनी सुंदर या औसत दिखती है, उसे ध्यान मिलेगा चाहे कुछ भी हो। पुरुष महिलाओं को अपनी काबिलियत साबित करने के लिए कई तरह की कोशिश करते हैं लेकिन जिन पुरुषों की काबिलियत खुद जाहिर होती है, उन्हें खुद को साबित करने की जरूरत नहीं होती।" "अगर आप इंस्टाग्राम पर ऐक्टिव रहते हो तो आपने भी अपने एक्स्प्लोर पेज पर एक ट्रेंड को बढ़ते हुए देखा होगा। कई लोग इस लाइन के साथ खेल रहे होते हैं। कई विडियोज में बस प्रेशर वॉशिंग होती है, कई विडियोज का फोकस ऑडियो होती है और कई विडियोज होती है काइनेटिक सैंड को काटने की। पर इन सब अलग अलग कामों में सिमिलैरिटी हैं। इनसे मिलने वाली ऑड सैटिस्फैक्शन एक क्विक सर्च बताती हैं कि इंस्टाग्राम पर इस वक्त दो मिलियन से ज्यादा वीडिओज़ हो चुकी है जिन पर और डली सैटिसफाइंग# लगा हुआ है और आपको इस टाइप की विडीओ ज़, फेसबुक, स्नैपचैट, यूट्यूब हर जगह पर मिलेंगी। और सुनने में इस टाइप की विडियोज बिल्कुल सेन्स नहीं बनाती थी। वन अगर हम साइन्टिफिक पर्सपेक्टिव से देखें तो ये विडीओ ज़ काफी डल है। पर इसके बावजूद कई विडीओ ज़ 1 घंटे से ऊपर की है और उन पर मिलियन ऑफ यूज़ है। और इसके पीछे साइकोलॉजी में कई रीजन्स है। क्योंकि इस टाइप की वीडियो देखते टाइम हमारे दिमाग में काफी सारी चीजें चल रही होती है जो हमें रिलैक्स्ड, स्लीपी और यहाँ तक की कई बार एक सेशन देती है, जैसे एक फैक्टर हैं इन विडियोज में हाथों पर फोकस अगर आप नोटिस करो तो ज्यादा तर ओडली सैटिस्फाइड वीडिओज़ में लोग अपने हाथों से कोई स्किल परफॉर्म कर रहे होते हैं और एवल्यूशन की वजह से हम ज्यादातर मोटर स्किल्स दूसरों के हाथों को देखकर सीखते हैं। की उनके हाथ कैसे मूव कर रहे हैं। यानी हम दूसरों की हाथों की मूवमेंट को ऑब्जर्व करने के लिए हार्डवर्ड है। इसी वजह से इन विडीओ उसको इग्नोर या फिर स्किप करना इतना मुश्किल होता है। सेकंडली ये विडीओ ज़ हमें एक सेन्सस ऑफ अचीवमेंट देती है। ये इसलिए होता है क्योंकि हमारे दिमाग में न्यूरॉन्स की एक वराइटी होती हैं जिन्हें बोलते है मिरर न्यूरॉन्स और ये न्यूरॉन्स तब ऐक्टिवेट होते हैं जब हम खुद एक काम करते हैं या फिर दूसरों को काम करता देखते हैं। यानी हमारे दिमाग के लिए खुद एक काम करना और एक काम को होते देखना बहुत सिमिलर है जिसकी वजह से जब भी हम एक ओर ली सैटिसफाइंग विडिओ मैं एक काम प्रॉपर्ली होते हुए देखते हैं तब हमारा दिमाग डोपामाइन रिलीज करता है और हमें ऐसा फील कराता है जैसे हमने कुछ अचीव करा है। ये वही फीलिंग ऑफ सैटिस्फैक्शन है जो हमें अपनी फेवरेट मूवीज़ या फिर टीवी शोज़ देखते हुए फील होती है क्योंकि हर शो के शुरुआत में आपके दिमाग में एक प्रॉब्लम प्लांट करी जाती है और पूरा एपिसोड उस प्रॉब्लम को सॉल्व करने के ऊपर होता है और जब तक वो प्रॉब्लम सॉल्व नहीं हो जाती तब तक आपके लिए कुछ और काम करना मुश्किल हो जाता है, क्योंकि आपके दिमाग को ऐसा लगता है जैसे वो प्रॉब्लम आप की ही थी और साइकोलॉजी में इस इफेक्ट को बोलते हैं। ज़िग गार्ड ने की इफेक्ट यानी अगर आप एक काम को बीच में ही छोड़ देते हो तो आप के लिए उसे भूलना मुश्किल हो जाता है, पर एक वीडियो को एंड तक देखने पर आपको ऐसा लगता है कि आपने एक काम पूरा करा है जीवन दो एक इंसान को स्लाइन के साथ खेलते हुए देखना किसी भी सेन्स में प्रोडक्टिव तो बिल्कुल नहीं है। थर्ड ली इस टाइप की विडीओ ज़ आपके अंदर एक चाइल्ड लाइक फोकस जगाती है यानी जस्ट बिकॉज़। आपने अपनी डेली लाइफ में इतनी सिंपल चीजों पर कभी ध्यान ही नहीं दिया। ये विडीओ ज़ आपके अंदर कई नए इमोशन्स को ट्रिगर करती है जिससे आप में एक सिटी और इंट्रेस्ट बढ़ने लगता है। मैं आपको केक डेकोरेशन, वुड वर्क या रोबोटिक असेंबली लाइन देखने को मिलती है और इस टाइप की इमेजरी हमारी अटेन्शन ग्रैप करती है ताकि हमें ये समझ आ सके की ये चीजें कैसे बनती और काम करती है। इस वीडियो सिटी से जुड़ा फोकस हमें फ्लो स्टेट में ले जाता है, जिससे हम रिलैक्स्ड और काम फील करने लगते हैं और ऐसे ही धीरे धीरे हमें इन विडियोज को देखने की आदत पड़ जाती है फोर्ट ली और ली सैटिस्फाइड वीडिओज़ के इतना अपीलिंग होने का रीज़न है। उनमें दिखाई गई सिमेट्री क्योंकि एवल्यूशन की वजह से हमें सिमेट्री बहुत अच्छी लगती है और कई बार हम इन विडियोज को बस इनकी ब्यूटी और परफेक्शन की वजह से देखते हैं। साइनस बताती हैं कि हमारे अंदर सिमेट्री ऑब्जर्व करने की ये आदत हमें दूसरों की हेल्थ के बारे में बताती है। जैसे किसी भी इंसान से मिलते टाइम हम ऑब्जर्व करते हैं कि उनका फेस और उनकी बॉडी कितनी सिमेट्रिकल है यानी उनकी लेफ्ट साइड उनकी राइट साइड से कितनी मैच करती है। क्योंकि एक प्रॉपर सिमेट्री दर्शाती है उनकी जीन्स की ऐवरेज नेस और यूथफुलनेस और तभी अपने पार्टनर्स चूज करता है टाइम भी। हमारे दिमाग में एक सबसे बड़ा सब कॉन्शस फैक्टर होता है सिमेट्री और तभी जो सैटिस्फैक्शन हमें एक सुंदर चेहरे को देखने पर मिलती है। वहीं सैटिस्फैक्शन हमें इन विडियोज को देखकर मिलती है। इसके साथ ही ये विडीओ ज़ हमारी एक अनकॉन्शियस डिज़ाइनर को कंप्लीट करती है, जो बोलती है कि हम चीजों को डिस्ट्रॉय करें। क्योंकि बचपन से ही हमें सिखाया जाता है कि हम अपनी सराउन्डिंग् को साफ सुथरा और ओरगनाइसड रखें जिसकी वजह से हमारे अंदर की चीजों को तोड़कर देखने की हमेशा के लिए दबी रह जाती है। जीवन बड़े होने के बाद भी आपके ऊपर सोसाइटी लिमिट्स होती है कि आप कितने डिस्ट्रक्टिव बन सकते हो और असली लाइफ में आप रैन्डम चीजों को डिस्ट्रॉय करने के बारे में शायद 10 बार सोचो। पर इन विडियोज की मदद से आप को मौका मिलता है अपने अंदर छुपी इस विश को पूरा करने का। और लास्टली ओर ली सैटिस्फाइड विडीओ ज़ हमारे दिमाग के एक सिस्टम को एक्टिवेट करती है। आप ये कॉन्शस ली फील नहीं करते, पर एक इंसान को स्लाइन के साथ खेलते देखने से आपके अंदर और टोनी मस सेन्सरी मेरिडीन रिस्पॉन्स यानी एस एम आर ट्रिगर होता है और आपको एक तरह की प्लेज़न्ट सेनसेशन फील कराता है और जेनरली एस एम आर ऐक्टिवेट होता है। साउंड या एक सॉफ्ट च जैसी चीजों से इससे आपकी बॉडी में कई सूदिंग सेनसेशन फैल जाती है। जैसे कामनेस और स्लीप इन एस और इन विडीओ ज़की इसी क्वालिटी की वजह से कई लोग इन्हें मेडिटेशन या सोने से पहले देखना प्रिफर करते हैं। साइकोलॉजी बताती हैं कि एस एम आर की ये फीलिंग सिर्फ विडीओ ज़ और ऑडियो तक ही सीमित नहीं है, बल्कि जब आप एक बार बार शॉप पर एक रिलैक्सिंग हेर्कट ले रहे होते हो तब आपके सर पर ट्रेनिंग मशीन या सीज़र्स की भी आपके दिमाग के इसी पार्ट को एक्टिवेट करती है। और आपको उससे मिलती है एक ऑड सैटिस्फैक्शन।",कभी आपने सोचा है कि अचानक काइनेटिक सैंड या स्क्विशिंग स्लाइम को काटते हुए खुद को रिकॉर्ड करके इंटरनेट पर अपलोड करने का चलन क्यों हो गया है? बहुत सारे कारक हैं जो अजीब-संतोषजनक को इतना संतोषजनक बनाने में जाते हैं और इस पॉडकास्ट में हम ऐसे 5 कारकों को शामिल करते हैं। "एस्ट्रोलॉजी एक ऐसी फील्ड है जो बोलती है कि हम इंसानों की लाइफ और दुनिया के फ्यूचर के बारे में जान सकते हैं। स्टार्स प्लैनेट्स और मूल जैसे सेलेक्शन ऑब् जेक् ट्स को ऑब्जर्व करके एस्ट्रोलॉजी के सबसे पुराने रेफरेन्सेस मेसोपोटेमिया की एन सिटी में ढूंढने गए हैं। और ये एट लिस्ट 25,000 साल पुरानी फील्ड है। लेकिन क्या एस्ट्रोलॉजी के पीछे कोई रियल साइंस है भी सही? या फिर ये बस लोगों का अंधविश्वास है कि करोड़ों किलोमीटर दूर उड़ते स्टार्स और प्लैनेट्स हमारी पर्सनैलिटी के बारे में बता सकते हैं या फिर हमारी सक्सेस हेल्थ ये रिलेशनशिप्स को इन्फ्लुयेन्स कर सकते हैं वेल इसका जवाब पाने के लिए हमें साइकोलॉजी और न्यूरोसाइंस की मदद लेनी होगी। अपनी बुक ओरिजिन सैंड हिस्टरी ऑफ कॉन्सियसनेस में साइकोलॉजिस्ट एरिक नौ मन बताते हैं कि हम इंसान हमेशा से ही इतने सेल्फ वेर नहीं थे और एक समय पर हम लोगों में ईगो या फिर सेल्फ आइडेंटिटी जैसी कोई चीज़ भी नहीं होती थी। इस समय पर हमारे सिस्टर्स बिना किसी कॉन्शस कंट्रोल कैट करते थे, जहाँ मॉडर्न, ह्यूमन्स के मन को रफली तीन हिस्सों में डिवाइड करा जा सकता है यानी कॉन्सियस, सबकॉन्सियस और अनकॉन्शियस कॉन्शस माइंड हमारे दिमाग का सबसे पुराना हिस्सा है, जिसमें हमारी पूरी स्पीशीज़ की मेमोरीज़ भी होती है और हमारी भी ये वो ही हिस्सा है जहाँ पर खयालों, बेसिक, इंग्लिश और सपनों का जन्म होता है। लेकिन अनकॉन्शियस होने की वजह से हम अपने मन के इस हिस्से को डाइरेक्टली ऐक्सिस नहीं कर सकते हैं। सेकंडली सबकॉन्शियस माइंड वो होता है जिसके बारे में हम पार्शियली अवेर होते है, जैसे हमारी हैबिट्स और कॉन्शस माइंड वो होता है जो हमारे मन का सबसे नया पार्ट है और यह हमारी सेल्फ आइडेंटिटी और डिसिशन मेकिंग जैसी चीजों से रिलेटेड होता है। वही हमारे एन्सिस्टर्स सिर्फ और सिर्फ अपनी अनकॉन्शस माइंड के कंट्रोल में होते थे। बिल्कुल वैसे ही जैसे बाकी जीव जंतु होते हैं। अनकॉन्शस माइंड से निकली कमान डस उनके लिए भगवान की दी डायरेक्शन्ज़ की तरह होती थी, जो उन्हें गाइड करती थी कि उन्हें हर सिचुएशन में क्या करना चाहिए? मॉडर्न साइंस बताती हैं कि हमारा अनकॉन्शस माइंड और उसके ऑटोमैटिक प्रोसेसेस हमारे दिमाग के राइट है। मिस फेर से जुड़े होते हैं राइट हेमिस्फर का काम होता है एक एनवायरनमेंट की होलिस्टिक अन्डरस्टैन्डिंग को इकट्ठा करना और इस इन्फॉर्मेशन को लेफ्ट हम इस फेर में भेजना जो इस इन्फॉर्मेशन को लैंग्वेज में कन्वर्ट करके इस पर रैशनैलिटी अप्लाई करता है। अपनी बुक देबी कैमरन माइंड में ऑथर जूलियन जेन्स बोलते है की इंसानों की लैंग्वेज को यूज़ करने की एबिलिटी सिर्फ एक हेमिस्फेयर से इसलिए ज्यादा रिलेटेड है, क्योंकि दूसरा हेमिस फेर भगवानों के आइडियास फैन्टैसी स् और स्टोरीज़ बनाने में इन्वॉल्व था। सिंपल भाषा में बोले तो लेफ्ट हम इस फेर लॉजिक, रैशनैलिटी और नॉन चीजों से डील करता है, जबकि राइट है। मिस फेर क्रिएटिविटी और अननोन चीजों से डील करता है। हमारे उसके दिमाग का राइट हेमिस्फर ज्यादा डोमिनेंट था। इस वजह से वो दुनिया को समझने के लिए अपनी ऑब्जर्वेशन को भगवानों की स्टोरीज़ में डालकर कॉन्सेप्चुअल कर रहे थे और इसी वजह से जब उन्होंने स्टार्स के पैटर्न्स को ऑब्जर्व करना शुरू करा तब वो अपनी इन स्टोरीज़ को उन कॉन्स्टिलेशन पर प्रोजेक्ट करने लग गए। हमारे एन्सिस्टर्स नॉर्थ स्टार को डायरेक्शन्ज़ जानने के लिए यूज़ करने लगे और अपने इस बिहेव्यर से उन्हें अंदर ही अंदर ये समझ आने लग गया कि वो आसमान की तरफ देख सकते हैं और अपने आप को भगवानों की तरफ मोड़ सकते हैं। सो इस साइकैट्रिस्ट का साइकोलॉजिकल मॉडल बताता है कि हम अपने अनकॉन्शस माइंड के कन्टेन्ट को बाहरी दुनिया पर प्रोजेक्ट करते हैं ताकि हम उसे कॉन्शस बना पाए। इसी तरह से एक समय पर हम पूरे ब्रह्मांड पर अपनी इमैजिनेशन को प्रोजेक्ट कर रहे थे, ताकि हम अपनी इमैजिनेशन को ऑब्ज़रव करके उसमें ऐसी कहानियाँ ढूंढ पाते हैं जो हमें ये समझाती कि हम कौन हैं, कौन सी चीज़ सही या गलत है और हमें हर अलग सिचुएशन को कैसे हैंडल करना चाहिए। हर वो स्टोरी, करेक्टर या राजा जो सबसे अच्छे गुण दिखाता उसे इन भगवानों के बीच प्लेस कर दिया जाता था ताकि हर इंसान ऊपर देख सके और उन महान कैरेक्टर्स की क्वालिटीज को अपने अंदर ढूंढने की कोशिश कर सके। यही रीज़न है की क्यों? हर प्लैनेट को अलग अलग पर्सनैलिटी ज़ साइन कर ली गई? जुपिटर आपकी गुडनेस से रिलेटेड है। आपकी ब्यूटी और प्यार करने की कपैसिटी है। मार्स आपका गुस्सा और एनर्जी है और सैटर्न आपको टाइम और स्ट्रक्चर की वैल्यू समझाता है। यानी स्टार्स और प्लैनेट्स हमारे के लिए लिटरल और मोरल कम्पास के जैसे थे और इस वजह से वो उन्हें एक लॉन्ग टर्म की घड़ी की तरह समझते थे और उसके थ्रू अपने फ्यूचर को पता करने की कोशिश करते थे। तो अब क्वेश्चन ये आता है कि क्या एस्ट्रोलॉजी बस आसमान में छपी हमारी मिथोलॉजी है? वेल नो अपनी बुक आइन में कार्य प्लेटॉनिक मंथ का ज़िक्र करा है की किस तरह से हमारे एन्सिस्टर्स इतने स्मार्ट थे कि बिना ज्यादा साइंटिफिक इन्स्ट्रूमेंट्स के भी वह यह फ़िगर आउट कर पाए कि अर्थ जायरोस्कोप एक मोशन में घूमती है जिसे बोलते हैं प्रेस सेशन यानी एक फिक्सड ऐक्सिस के अराउंड रोटेट करना। ये मूवमेंट बहुत स्लो होती है और अर्थ को लगभग 25,920 साल लगते हैं इस रोटेशन को पूरा करने में और अगर हम इस टाइम को 12 से डिवाइड करें तो हमें यह पता चलता है कि एक सर्टन टाइम पीरियड में कौन से जोड़ें। लाइन का थीम डोमिनेट होगा। ये बनता है 2160 साल और इस टाइम पीरियड को बोला जाता है प्लेटॉनिक मंथ 100 अराउंड वन ऐड से लें करिअर 2000 तक अगर हम इक्वेटर के पास से सनकी पोज़ीशन को देखते हैं तो उसकी डिरेक्शन में हमें पाइसीस का कॉन्स्टेलेशन दिखता, जिसका मतलब पिछला प्लेटॉनिक मंथ एज ऑफ पीस इसका था और पिछले 2000 सालों का मेन थीम रिलिजन बिलीफ और सैक्रिफ़ाइस रहे हैं। लेकिन अब हम नए प्लैटोनिक मंथ यानी एज ऑफ एक्वेरियस में एंटर कर रहे हैं और लगभग अगले 2000 सालों का मेन थीम ऐन्टी रिलिजन साइंस, इनोवेशन और मटिरीअल इज़म है। हर बदलती एज के बीच का टाइम डिस्ट्रक्शन कन्फ्यूजन और वोर से भरा होता है और इस ट्रांजैक्शन से जुड़े चेंजेज को हम फील भी कर सकते हैं और लोगों के बीच बढ़ते डिवाइड में देख भी सकते है। सिमिलरली कई थीम्स हजारों सालों नहीं बल्कि हर अगले दिन बदलते हैं और ये आपका डेली हॉरोस्कोप होता है। हर प्लैनेटरी अलाइनमेंट को रिपिटेटिव, हिस्टोरिकल थीम्स और उन प्लैनेट्स की आर्किटेक्ट पल क्वालिटीज से रिलेट कर के देखा जाता है और उनके बेसिस पर प्रोडक्शन्स दी जाती है। यानी ये प्रोडक्शन्स इस हद तक एक्युरेट होती है कि यह हमें यूनिवर्स मैं रिपीट होने वाले पैटर्न्स के बारे में बता सकती है लेकिन इससे ज्यादा कुछ नहीं और अगर हम पर्सनैलिटी से रिलेटेड प्रोडक्शन्स को देखें तो उसमें सबसे बड़ा रोल होता है आपके पैदा होने के समय वाले सीज़न का क्योंकि जो बच्चे विंटर्स में पैदा होते हैं, उन्हें बचपन में अलग खाना अलग न्यूट्रिअन्ट्स और अलग एटमॉसफेयर मिलता है। बजाय जो बच्चे समर या मॉनसून के दौरान पैदा होते हैं, इसके ऊपर से एक माँ की फिजियोलॉजी भी अलग अलग सीज़न में बच्चे की डेवलपमेंट को बदलने और उसकी पर्सनैलिटी को चेंज करने के लिए काफी होती है और जिन स्टडीज़ में इन पैटर्न्स को ऑब्जर्व कर आ गया उनके हिसाब से मार्च से लेकर जुलाई में पैदा होने वाले लोग यानी जो लोग रीज़ डॉलर्स जमीन या कैंसर है उनमें अल्कोहल अभी वो सबसे ज्यादा होता है। स्किजोफ्रेनिया जैन्यूअरी, फेब्रुअरी और मार्च यानी एक्वेरियस, पाइसीस और एरीज़ में सबसे ज्यादा होता है। बाइपोलर डिसॉर्डर एक्वेरियस, टॉरस, एरीज़ और पीसेज़ में सबसे ज्यादा होता है और डाउन सिंड्रोम कैन्सर लिओ और वर्गों में नाउ इन सीज़नल प्रॉब्लम्स को ईजी सीज़न से डिस्कनेक्ट करके सिर्फ लोगों के जोड़ी एक साइन से जोड़ा जा सकता है और उनको पागल बनाया जा सकता है। यही रीज़न है की क्यों? आपको बस इतना समझना है कि हाँ, यूनिवर्स के कई ऐसे पैटर्न्स है जो हमारी लाइफ और पर्सनैलिटी को फिट करते हैं। लेकिन ये पैटर्न्स बस एक लू सब प्रॉक्सी मेंशन को दर्शाते हैं ना कि आपकी फाइनल डेस्टिनेशन को। अगर इन पैटर्न से डील करने के लिए कोई कॉन्शस अपोज़िट फोर्स नहीं है। यानी अगर एक इंसान अपनी लाइफ में अनकॉन्शियस ली जीता है, जो उसका मन कहता है वो उस चीज़ को मान लेता है। उसका खुद पर कंट्रोल नहीं है, उसमें कोई पावर नहीं है तो ऐसे इंसान पर इन पैटर्न्स का इन्फ्लुयेन्स ऑब्वियस्ली ज्यादा स्ट्रांग और प्रेडिक्टेबल होगा। दूसरी तरफ जितना आप कॉन्शस ली ऐक्ट करोगे, खुद को डिसिप्लिन बनाओगे और अपने डरो का सामना करोगे, उतनी ज्यादा अपने फ्री वेल होगी और उतना ही आप अपनी डेस्टिनी को कंट्रोल कर पाओगे। यहाँ तक कि वेदिक एस्ट्रोलॉजी भी यही बोलती है कि एस्ट्रोलॉजी हमारी डेस्टिनी और फ्रीविल का कॉम्बिनेशन है और सही कर्मों के साथ हम अपनी जिंदगी की डायरेक्शन अपने मन मुताबिक बदल सकते हैं।","ज्योतिष कम से कम 25,000 साल पुराना अध्ययन का क्षेत्र है जो कहता है कि हम सितारों और ग्रहों की गति को देखकर दुनिया और व्यक्तिगत घटनाओं की भविष्यवाणी कर सकते हैं। लेकिन यह दावा कितना सच है? क्या ज्योतिषीय विधियों के पीछे कोई विज्ञान है? और प्राचीन मानव ने किस प्रकार दूर आकाशीय पिंडों की गतियों को मनुष्य के जीवन से जोड़ना प्रारंभ किया। इन सभी सवालों के जवाब पाने के लिए पूरा पॉडकास्ट सेगमेंट सुनें" "साइकोलॉजी बहुत से लोगों के लिए खुद को समझने का जरिया है। खुद के बिहेविरल और मन के बारे में नॉलेज हासिल करने से हम लोग यह फ़िगर आउट कर पाते हैं कि हम खुद के मास्टर कैसे बनें और अपनी नॉलेज की मदद से अपनी लाइफ को सक्सेस के लिए ऑप्टिमाइज़ कैसे करें? जर्मन पॉलिटिशन क्विड ने एक बार बोला था इन लाइफ पर्टिकुलरली इन आर पब्लिक लाइफ साइकोलॉजी इस मोर पॉवरफुल धन लॉजिक यानी असली ज़िंदगी में जब हम भारी दुनिया से इंटरैक्ट करते हैं तो वो साइकोलॉजी की ही समझ होती है, जो हमें सोशलाइज करने, नए कॉन्टैक्ट्स बनाने और जल्दी जल्दी सोशल नेटवर्क को क्लेम करने के काबिल बनाती है। बिना साइकोलॉजी के ना तो आपको ये पता होगा कि दूसरे लोग कैसे हैं और आपसे क्या चाहते हैं और मोर इम्पोर्टेन्ट ली आपको इस बात का भी कोई क्लियर आइडिया नहीं होगा कि आप कौन हो और आप क्या चाहते हो। इसलिए इस स्पेशल एपिसोड में हम उन सबसे गहरे फ़ैक्स को डिस्कस करेंगे जिन्हें समझने से आप अपनी सेल्फ बिज़नेस को बढ़ा सकते हो। नंबर वन अन्डरस्टैन्डिंग हैपन्स विद कॉन्सन्ट्रेशन अननोइंग हैपन्स विद लैटिन गो। इस पहले फैक्ट में हम ख्यालों की बात कर रहे हैं। की। अगर आपको किसी भी एक चीज़ को समझना या फिर याद करना है तो उसके लिए आपको एक लेज़र फोकस चाहिए होता है। यह फोकस इतना इन्टेन्सिव होना चाहिए कि कुछ देर के लिए आप की नज़रों में उस एक चीज़ के अलावा दुनिया में कुछ एग्ज़िट ही ना करता हो। हाउएवर ये कॉन्सन्ट्रेशन का तरीका सिर्फ नॉलेज हासिल करने के लिए काम आता है, लेकिन परम सच तक नॉलेज और अन्डरस्टैन्डिंग से नहीं बल्कि नोइंग से पहुंचा जाता है। जहाँ नॉलेज के केस में आप खुद के मन को इन्फॉर्मेशन से भर रहे होते हो, वहीं नोइंग के लिए आप अपने मन को खाली करके सिर्फ अपनी इन्टेलिजेन्स को नहीं बल्कि उस इन्टेलिजेन्स को ऐक्सेस करने की कोशिश कर रहे होते हो जिसने इस पूरे ब्रह्मांड को बनाया है। इसलिए नॉलेज के लिए बुक्स को रीड करो और दुनिया को फोकस के साथ ऑब्जर्व करो। लेकिन इस दुनिया और खुद से भी बड़े सच को जानने के लिए किसी भी तरह की नॉलेज को क्लेम मत करो और खुद में इस फीलिंग को बढ़ाओ कि आपको कुछ नहीं पता। नंबर टू इन फ्लेक्सिबिलिटी किल श्योर पोटेंशिअल लाउड जोरदार में बोलते हैं कि इंसान मुलायम और कोमल पैदा होता है लेकिन जब वो मरता है तब उसका शरीर अकड़ जाता है और ठोस बन जाता है। एक पौधा भी मुलायम और लचीला पैदा होता है लेकिन मरने पर सूखा और बुरा बुरा बन जाता है। इसी वजह से जो भी इंसान इनफ्लेक्सिबल और अकड़ा हुआ होता है वो मौत का शिष्य होता है। अगर आप कभी भी सिचुएशन के हिसाब से अपने मन को नहीं बदल सकते और आपकी बिलीव ज़ पत्थर की तरह आपके मन में अड़ गए हैं और आपकी बिलीव्स पत्थर की तरह आपके मन में अड़ गए हैं तो जिंदगी के लिए आपको तोड़ना बहुत आसान होगा, क्योंकि असली दुनिया कॉन्स्टेंट ली चेंज होती रहती है। यहाँ पर सफलता अकड़ने से नहीं बल्कि बदलने से मिलती है। नंबर थ्री देर इस नो आइ सेल्फ अवेयरनेस का सबसे बड़ा पैराडॉक्स यह है दैट देर इस नो सेल्फ सेल्फ बस, एक इल्यूजन और एक सर्वाइवल टूल है। बिना ये मानें कि आप मुझसे और बाकी सब लोगो या फिर चीजों से अलग हो। आप खुद को सुरक्षित रख ही नहीं सकते हैं। इसी वजह से आपका मन आपके बचपन में ही एक झूठ को जन्म देता है, जो आपको यह फील्ड कराता है कि आप सबसे अलग हो और आपकी एग्ज़िस्टन्स इस पूरे ब्रह्मांड से सेपरेट है। लेकिन इवन लॉजिकल टर्म्स में भी यह कोई सेंस नहीं बनाता क्योंकि ब्रह्मांड से ही बने होने की वजह से और उसमें मौजूद होने की वजह से आप उससे अलग हो ही नहीं सकते। यही रीज़न है कि क्यों? अगर आप अपनी सर्वाइवल नीड्स के ऊपर बढ़कर खुद के सच को ढूंढना शुरू करो तब आपको समझाता है कि आप तो हो ही नहीं, आपकी पूरी आइडेंटिटी ही मेड अप है। किसी ने रैंडमली आपको एक नाम दे दिया। आप बी चांस किसी सब्जेक्ट की पढ़ाई या फिर जॉब कर रहे हो और यह 24 टोटली आपकी नहीं थी। आपके चेहरे पर मौजूद एक एक फीचर भी सिर्फ आपके पैरंट्स के जीन्स की बदौलत है और आपका हर नया ख्याल उससे पहले आए ख्याल से आप जैसे अभी आये समझ रहे हो वो बस मेमोरी से ज्यादा कुछ नहीं है। आपका शरीर और फेस एवल्यूशन अली और जेनेटिक मेमोरी है और आपके ख्याल मेंटल इम प्रिन्स यही रीज़न है कि क्यों? जिंदगी में कभी ना कभी यह पूछना आपकी ग्रोथ के लिए बहुत जरूरी होता है कि आखिर आप हो कौन? ये हुए मायके ख्याल पर मेडिटेट करने का मेथड सबसे पहले रमण महर्षि ने पॉपुलर आइस करा था, जो ये मानते थे कि ये क्वेश्चन की मैं कौन हूँ? यह सबसे आसान स्टेप होता है सेल्फ विनेस गेन करने का और अपने पुराने बिलीव्स को नष्ट करने का। नंबर फ़ोर वॉट एवर यू थिंक बिकम्स रिऐलिटी इंसान की इच्छाशक्ति ने ही इस धरती पर मौजूद आपके हर सुख साधन को बनाया है। आपके मोबाइल फ़ोन से लेकर बेड, टी वी लाइट, बल्ब, इन्टरनेट या एसी, ये सारी चीजे ही पहले किसी इंसान की बस कल्पना थी। पहले ख्याल आता है और फिर एक चीज़ सच्चाई बनती है। उपनिषद् में बोला गया है कि अपने ख्यालों पर ध्यान दो। वह शब्द बन जाते हैं अपने शब्दों पर ध्यान दो, वही ऐक्शन बन जाते हैं। अपने ऐक्शन पर ध्यान दो, वह हैबिट्स बन जाते हैं। अपनी हैबिट्स पर ध्यान दो। वो तुम्हारा करेक्टर बन जाती है और अपने करेक्टर पर ध्यान दो क्योंकि वो तुम्हारी डेस्टिनी बन जाती है। आप वो हो जो आप सोचते हो। आपकी डेस्टिनी की शुरुआत आपके मन से ही हो जाती है और खुद को इंपावर करने के लिए आपको यह पता होना बहुत जरूरी है कि आप की कहानी को लिखने का कंट्रोल सिर्फ और सिर्फ आपके पास ही है। आप में इतनी अवेरनेस्स होनी चाहिए कि आपको हर घड़ी यह याद रहे कि आप अभी जो भी काम कर रहे हो और जीस भी चीज़ को अपना समय दे रहे हो, वो आपकी जिंदगी को या तो बदतर बना सकती है या फिर वो आपकी मैक्सिमम पोटेंशिअल तक पहुंचने का साधन बन सकती है। नंबर फाइव यू टर्न टू रिलिजन आइडीओलॉजी वेन यू डोंट ट्रस्ट योरसेल्फ सेल्फ अवेयरनेस और खुद पर ट्रस्ट की कमी ही आपको अलग अलग फिलॉसफी, ज़, आइडीओलॉजी, ज़ या फिर रिलिजन को अपनी अथॉरिटी बनाने पर मजबूर करती है। हम ऐसा इसलिए क्योंकि एक इग्नोर इंसान खुद के सच से ही डरता है और तभी वो कम्फर्ट ढूंढने के लिए एक बने बनाए बिलीफ सिस्टम को अपनाता है। इसलिए आपकी ग्रोथ के लिए यह जरूरी है कि आप अपने हर बिलीफ या फिर फिलॉसफी को क्वेश्चन करो और ये समझो कि टोटल फ्रीडम सिर्फ उन्हीं लोगों को मिलती है। जो खुद की टोटल रिस्पॉन्सिबिलिटी लेते हैं।",मनोविज्ञान कई लोगों के लिए स्वयं को समझने का एक उपकरण है। मानव व्यवहार के बारे में ज्ञान न केवल हमें दूसरों को समझने में मदद करता है और वे क्या चाहते हैं बल्कि यह हमें यह पता लगाने में भी मदद करता है कि हम कौन हैं और हम क्या चाहते हैं। इसलिए इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम 5 मनोवैज्ञानिक तथ्यों के बारे में बात करेंगे जो आपकी आत्म जागरूकता बढ़ाने में आपकी मदद करेंगे। "नोर्मल्ली मन की कॉम्प्लेक्सिटी को सिंप्लिफाइ करने के लिए उसे दो भागों में बांटा जाता है यानी कॉन्शस और सबकॉन्शियस कॉन्शस वो, जिसके बारे में आप अवेर होते हो। जैसे आपके ख्याल और सब कॉन्शस हो, जिसके बारे में आप बस एक हद तक ही अवेर होते हो, जैसे आपकी हैबिट्स या फिर ताज़ी मेमोरीज़ लेकिन जिसने भी मन को डीपी स्टडी करा है, उसने यह बताया है कि हमारे मन में एक तीसरी जगह भी है, जिसमें जिंदगी के पूरे इतिहास की मेमोरी है और इस मन के बारे में हम बिल्कुल भी अवेयर नहीं होते है। इसे बोलते हैं अनकॉन्शस माइंड अनकॉन्शियस इसलिए क्योंकि ये हमारी अवेर्नेस के नीचे काम करता है और वो हमारा अनकॉन्शस माइंड ही होता है, जो हमारी पर्सनैलिटी को शेप देता है। हर मेंटल प्रोसेसेस जो ऑटोमैटिकली चल रहा होता है, उसका संबंध अनकॉन्शस माइंड से ही होता है, इसलिए अनकॉन्शस माइंड को और डीप्ली स्टडी करने के लिए और खुद को इस रियल टॉपिक के बारे में एजुकेट करने के लिए। अब बात करते हैं इसके कई फ़ैक्स की फैक्ट नंबर वन अनकॉन्शस माइंड इस टाइम्लेस टाइम जो होता है वो पास्ट और फ्यूचर में एग्जिस्ट करता है। जीवन जब आप एक घड़ी में टाइम को देखते हो तब जैसे ही आप रिज़ल्ट टाइम को पकड़ने की कोशिश करते हो वैसे ही वो पास्ट बन जाता है क्योंकि प्रेज़ेंट टाइम्लेस होता है और एग्ज़ैक्ट्ली यही नेचर होती है। हमारे अनकॉन्शस माइंड की उसमें पास्ट, प्रेज़ेंट और फ्यूचर साथ में हो रहे होते हैं। इसलिए जब भी हमें बोला जाता है कि प्रेज़ेंट में रहो तब उसका मतलब ये होता है कि अपने अनकॉन्शस माइंड के बारे में अवेयर हो जाओ। भूलो मत की एक एग्ज़िस्टन्स ऐसी भी हैं जो समय और जगह के परे होती है। यह बहुत अलग चीज़ है हमारे कॉन्शस माइंड से जो की बस पास्ट की इन्फॉर्मेशन पर काम करता है। यानी जो कुछ भी आपने बड़े होते हुए सुना देखा या पड़ा सिर्फ उस इन्फॉर्मेशन के ही कुछ हिस्से आपके कॉन्शस माइंड की रीच में होते हैं। फैक्ट नंबर टू थॉट्स आर बोर्न आउट ऑफ द अनकॉन्शियस कॉन्शियस और सबकॉन्शियस एक तरह के कंप्यूटर प्रोसेसर की तरह काम करते हैं। यानी आप जो भी डेटा उन्हें दोगे वो बस उसी के साथ खेल सकते हैं और उन्हीं को तोड़ मरोड़कर कुछ नया बनाने की कोशिश कर सकते हैं। लेकिन अनकॉन्शस माइंड कंप्यूटर प्रोसेसर की तरह नहीं बल्कि इंटरनेट की तरह होता है जिसमें जाकर आप नयी नयी चीज़े डिस् कवर कर सकते हो। जीस तरह से आप एक सर्च इंजिन में अपना कोई क्वेश्चन लिखते हो और आपको उसका आन्सर मिलता है वैसे ही आप अपने अनकॉन्शस माइंड से भी कोई भी क्वेश्चन पूछ सकते हो और आपको उसका आन्सर सपनों या फिर इंटरवेंशन के रूप में मिलता है। जीवन अगर आप कोई क्वेश्चन नहीं भी पूछते तब भी आपका अनकॉन्शस माइंड एक एल्गोरिदम की तरह आपको जरूरत के मुताबिक कुछ ना कुछ इनसाइट ऑफर कर ही रहा होता है। फैक्ट नंबर थ्री अनकॉन्शस माइंड क्रिएट से ड्रीम्स ऐंड साइकेडेलिक विजन्स अगर आप ऐसे इंसान हो जिसे बहुत विविध ड्रीम्स आते हैं या आपने कोई साइकेडेलिक मेडिसिन ट्री करी हुई है तो आपको यह पता होगा कि कैसे आपका मन बहुत ही कलरफुल और अजीब विज़न बनाने के कैपेबल होता है और यह विजन्स नॉर्मल रिऐलिटी से भी ज्यादा रियल लगते हैं। ऐसा तब होता है जब हम अपनी ईगो से थोड़ी दूरी बना लेते हैं और अपने अनकॉन्शस माइंड पर लगे ढक्कन को हटा देते हैं। लेकिन ये विजन्स कभी भी ज्यादा देर तक नहीं चल पाते हैं क्योंकि अनकॉन्शस माइंड की खुद की कोई रौशनी यानी अवेर्नेस नहीं होती। वो प्यूरली अंधेर नगरी है, जिसमें सपनों के समय कॉन्शस माइंड की मदद से थोड़ा उजाला हो पाता है या फिर ट्रिप के समय साइकेडेलिक्स लेने से जिसतरह से चाँद की कोई अपनी रौशनी नहीं होती और उसकी खूबियाँ हमें बस तब दिखती है जब वह सूरज की रौशनी को रिफ्लेक्ट कर रहा होता है वैसे ही अनकॉन्शस माइंड की भी अपनी कोई लाइट नहीं होती और वो बिना कॉन्शस अवेर्नेस या एक्सटर्नल सबस्टैन्स के खुद को हमारे सामने नहीं ला सकता। लेकिन जीस तरह सुबह के समय सूरज की रौशनी ज्यादा होने से हमें चाँद दिखना बंद हो जाता है। वैसे ही जिन लोगों की कॉन्शसनेस बहुत बढ़ चुकी होती है, उन्हें भी सपने आना बंद हो जाते हैं और उन्हें साइकेडेलिक्स लेने की कोई जरूरत नहीं पड़ती। जैसे सूरज की रौशनी अंधेरे को अपने आप में संभाल लेती है, वैसे ही इन लाइट एंड लोग अनकॉन्शियस को हमेशा ही अपनी अवेर्नेस में रख पाते हैं। फैक्ट नंबर फ़ोर स्पिरिट गाइड और साइकिक आरके टाइप्स। आपको ये इन्फॉर्मेशन किसी भी बुक में नहीं मिले गी क्योंकि यह मेरी पर्सनल रिलेशन है। बहुत से लोगों के सपनों में बात करने वाले जानवर या कहीं ऐसे लोग आते हैं जो उन्हें एक स्टोरी या ड्रामा के थ्रू कुछ समझा रहे होते हैं। और अगर आपको ये ऑलरेडी नहीं पता तो मैं बता दूँ कि कई लोग ऐसे भी होते हैं जो अपने विज़न समे आए इन करैक्टर्स से बात भी कर सकते हैं। और उनकी विस्डम उनसे डाइरेक्टली मांग सकते हैं। जिसतरह से एक शिष्य अपने गुरु से ज्ञान मांगता है यूज़्वली लोग इन करैक्टर्स को गाइड, स्पिरिट, ऐनिमलस या फिर पावर ऐनिमलस बोलते हैं क्योंकि ये ऐसे ही फील होते है जैसे ये आपके अंदर मौजूद किसी बहुत गहरे सोर्स से बाहर निकलकर आपसे बात कर रहे हो और इन ऐनिमलस या गाइड्स की विस्डम आपकी लाइफ में एकदम सही काम करती है। लेकिन ये गाइड किसी मेटाफ़िज़िकल और सुपर नैचरल चीज़ की तरफ इशारा नहीं करते, बल्कि यह हमारी की गहराइयों में मौजूद आरके टाइप्स होते हैं। हर जानवर, इंसान और करेक्टर दुनिया को एक अलग तरह से देखता है, जिसकी वजह से एक नॉर्मल इंसान की डेथ में उन सारे जानवरों की थिंकिंग पावर है जो एवल्यूशन से गुजरते हुए अनकॉन्शस माइंड में छनी रह गई। हम सोचते हैं कि जानवरों में कोई इन्टेलिजेन्स नहीं होती, क्योंकि अनलाइक ह्यूमन्स जानवरों का कॉन्शस माइंड उतना डेवलपट नहीं होता और वो बस अनकॉन्शियस लीड कर रहे होते हैं। लेकिन उनका यही अनकॉन्शियस गाइड उन्हें एक सेट ऑफ ऐक्शन स् और एक पर्टिकुलर तरह के वे ऑफ लिविंग के अकॉर्डिंग जीने को बोलता है। एक फिश को अनकॉन्शियस ली गार्डन्स मिलती है। छोटे मोटे इन ***** खाने और बड़ी फिशिज़ से बचने की एक ईगल को अनकॉन्शियस ली जाती है, सबसे ऊपर उड़ने और ऊँचाई से अपने शिकार को ढूंढने की और ऐसे ही हर जानवर की अपनी अलग विज़्डम होती है जिसे ऑब्जर्व करके या अनकॉन्शियस ली ऐक्सेस करके हम भी उस विजन को अपनी लाइफ में अप्लाई कर सकते हैं। सिमिलरली कई आर्किटाइप सनन लिविंग भी होते हैं जो हमारी साइट की मैं बस उन्हें ऑब्जर्व करने से ही आ गए। जैसे पानी, पहाड़, पत्थर या आग। यही रीज़न है कि क्यों एक ऐसा इंसान जिसे सच की प्यास लगी होती है, उसे हर पत्थर और हर पत्ते पर ही ज्ञान लिखा हुआ दिखने लगता है। वो हर चीज़ को ऐसे ट्रीट करता है जैसे उसमें एक स्पिरिट हो। यही रीज़न है क्योंकि वो बहुत से कल्चर्स में लोगों को नल लिविंग थिंग्स के आगे भी झुकना सिखाया जाता है ताकि वो अपना घमंड छोड़कर जो नॉलेज अनकॉन्शियस और अननोटिस्ड पड़ी है, उसे हासिल कर सके हैं। फैक्ट नंबर फाइव ऑल योर पोटेंशिअल इस अनकॉन्शियस नोर्मल्ली चीजों को आसान रखने के लिए ये बोला जाता है कि आपका सब कॉन्शस माइंड सबसे ज्यादा पावरफुल है, लेकिन सब कॉन्शस माइंड में अपनी कोई इन्टेलिजेन्स नहीं होती। वो बस हमारी लर्न है। इस पर काम करता है और आप उसे जैसे मर्जी अपने फायदे के लिए ट्रेन कर सकते हो। असलियत में इन्टेलिजन्स पैदा होती है अनकॉन्शस माइंड के पेट से और आप अपने अनकॉन्शस माइंड को ज़रा सा भी बदल नहीं सकते है। आप बस उसके बारे में अवेयर हो सकते हो और उसी से आपकी ग्रोथ हो जाती है। सेल्फ रियलाइजेशन का मतलब ये होता है कि आपने अपने अनकॉन्शस माइंड के अंधेरे में रौशनी यानी अवेर्नेस का दिया जला दिया है और अब आप उन बातों को भी क्लियरली देख और समझ पा रहे हो जो पहले आपकी समझ के परे थी। अनकॉन्शस माइंड वह सोया हुआ राक्षस है। जो एक खजाने की रक्षा कर रहा है। खजाना आपकी पोटेंशिअल है लेकिन मैं अनकॉन्शस माइंड को एक राक्षस से इसलिए कंपेर कर रहा हूँ क्योंकि आप बिना खुद की ईगो को मारे और अपनी दरों को फेस करे, अपनी गहराइयों में उतर ही नहीं सकते है। आपकी ईगो आपके अनकॉन्शस माइंड तक जाने का सबसे पहला दरवाजा होती है और जब तक ये ईगो का दरवाजा किसी ट्रॉमैटिक इवेंट, ऑब्जर्वेशन या मेडिटेशन से नहीं टूटता, तब तक आप अपनी पोटेंशिअल से बहुत दूर रहते हो। अपनी ईगो के पार जाने पर भी आप अनकॉन्शस माइंड के अंधेरे में होते हो और अगर आपकी कॉन्शस अवेर्नेस बहुत कम है, तो आप इस अंधेरे को खुद ही अपने सबसे डरावने खयालों से भर देते हो। सिंपल वर्ड्स में बोले तो आप अपनी पोटेंशिअल तब तक नहीं रीच कर सकते जब तक आप अपनी अंदर जाकर अपने डरो को फेस नहीं करते और अपनी अवेर्नेस बढ़ाकर जिंदगी के सच को नहीं जान लेते हैं। फैक्ट नंबर सिक्स अनकॉन्शस माइंड लीव ऐंड थिंग्स इन स्टोरीज़ क्या आपने कभी सोचा है कि क्यों आपके सारे सपने कोई सेन्स नहीं बनाते या क्यों हमें पोएट्री, मूवीज़, गाने या मुहावरे इतने ज्यादा अच्छे लगते हैं? यह इसलिए होता है क्योंकि हमारा अनकॉन्शस माइंड हमे कन्टिन्यूसली उन चीजों की इन्फॉर्मेशन देने की कोशिश कर रहा होता है। जो हमारी करेंट अन्डरस्टैन्डिंग के परे होती है और इसलिए उसे स्टोरीज़ या फिर में बात करना पड़ता है। अगर यह फैक्ट सच नहीं होता तो जब भी कोईलवर अपने प्यार से बोलता की मैं तुम्हारे लिए चाँद तारे तोड़ लाऊंगा तो हमें यह नहीं समझ आता कि वह लवर एक्चुअल मैं ये बोलना चाहता है कि वो उस इंसान को इतना चाहता है कि वो नामुमकिन को भी मुमकिन बना सकता है और अपने प्यार को साबित करने के लिए अपनी जान भी दांव पर लगा सकता है। हर कहानी, गाना या मुहावरा हमें तभी से ही लगता है जब वह हमारे अनकॉन्शस माइंड के इस रूल को फॉलो करता है। यही रीज़न है की वो जो मूवीज़ सूपर हिट हो जाती है, वो भी बस इंसान की कलेक्टिव अनकॉन्शस माइंड की शाश्वत बातों को हमारे कॉन्शस माइंड तक पहुंचा दी होती है। इसी वजह से कहानियाँ हमारी पर्सनल ग्रोथ के लिए बहुत जरूरी होती है। और जैसा कि एक बार बोला था कि हमारी गहराइयों में एक जंगल है, हम उसे अनकॉन्शियस बोलते हैं क्योंकि हम उसे पूरी तरह से कंट्रोल नहीं कर सकते हैं और ना ही हम उसके कन्टेन्ट को बदल सकते हैं। कलेक्टिव अनकॉन्शियस एक प्राकृतिक जगह है जिससे वाकिफ होकर हम डाइरेक्टली लाइफ के सोर्स के टच में आ सकते हैं।","मानव मानस की जटिलता को कम करने के लिए, इसे आम तौर पर दो श्रेणियों में विभाजित किया जाता है अर्थात चेतन और अवचेतन। लेकिन हमारे मन में एक गहरी वास्तविकता भी है, जिससे हममें से अधिकांश लोग अनजान हैं और वह है अचेतन मन। अचेतन क्योंकि यह हमारी चेतना के स्तर से नीचे संचालित होता है। यह हमारे मानस का वह हिस्सा है जो पूरी तरह से स्वायत्त है, यह सपने बनाता है और हमारे सभी शारीरिक और मनोवैज्ञानिक कार्यों का ख्याल रखता है जो हमारे सचेत हस्तक्षेप के बिना होने वाले हैं। अत: अचेतन मन के रहस्य को समझने के लिए हम इसके बारे में 6 तथ्यों पर चर्चा करने जा रहे हैं।" "एक इंसान कॉन्फिडेंट तब कहलाता है जब उसे अपने अंदर से यह लगता है कि वो जो भी ऐक्शन या डिसिशन ले रहा है, वह एकदम सही है और उसे किसी के अप्रूवल लेने की जरूरत नहीं है। लेकिन अगर आप भी हाइली कॉन्फिडेंट लोगों की तरह बनना चाहते हो तो आपको पहले ये समझना होगा कि वो किन गलतियों को किसी भी कॉस्ट पर अवॉर्ड करते हैं और इस एपिसोड में हम यही डिस्कस करेंगे। नंबर वन वो क्रिटिसिजम को पर्सनली नहीं लेते हैं। जो लोग बहुत ही कॉन्फिडेंट होते हैं वो हर तरह की क्रिटिसिजम को काफी रिस्पेक्टफुल वे में लेते हैं। वो दूसरों के फीडबैक से सीखने की कोशिश करते हैं और अपने आपको इंप्रूव करते हैं। ज्यादातर लोग जो कॉन्फिडेंट नहीं होते क्रिटिसिजम से डरते हैं और जब भी उन्हें कोई ज़रा सा भी क्रिटिसाइज कर देता है तब वो डिफेंसिव हो जाते हैं और या तो वह गुस्सा करने लगते हैं या फिर खुद उदास होकर बैठ जाते हैं, चाहे सामने वाला कुछ जेन्यूइन फीडबैक ही क्यों ना दे रहा हो। ऐसे लोग हमेशा ये सोचते है की उन्हें टारगेट कर आ जा रहा है। जीस वजह से वो क्रिटिसिजम देने वाले लोगों के मोटिव को भी क्वेश्चन करते हैं। लेकिन आप यह याद रखो कि सिर्फ वो लोग ही सबसे ज्यादा पीसफुल और फ्री होते हैं, जो किसी भी चीज़ को पर्सनली नहीं लेते हैं। इसलिए क्रिटिसिजम को मानने के बजाए उससे कुछ सीखने की कोशिश करो जितना आप लोगों की बातों को दिल पर लगाओगे। उतना ही आप अपने आप को ग्रो करने से रोकोगे। नंबर टू कॉन्फिडेंट लोग अपने आप को अंडर सेल करने की गलती नहीं करते है। अगर एक इंसान को अपनी वैल्यू नहीं पता होती तो वो अपनी स्किल्स और सर्विसेज़ को सस्ते में दे देता है। इमेजिन करो कि आप एक इंटरव्यू में गए और वहाँ आपको पता चला कि वो लोग आपकी एक्स्पेक्टेशन से बहुत कम पे कर रहे हैं, लेकिन निगोशिएट करने की जगह आप सीधा उनका ऑफर एक्सेप्ट कर लेते हो। जस्ट बिकॉज़ आपको यह लगता है कि आपकी वर्थ शायद उतनी ही है और अगर आप दूसरी जगह गए तब भी आपको कम पैसे ही मिलेंगे। ऐसे में कंपनी का तो फायदा हो जाता है, लेकिन आप फाइनैंशली और इमोशनली घाटे में चले जाते हो। ऐसा तब होता है जब आपको खुद की वैल्यू नहीं पता होती है। इवन कई लोग टॉक्सिक रिलेशनशिप्स। यह हमेशा एक हारी हुई मेंटल स्टेट में रहते हैं क्योंकि उन्हें ये लगता है कि वो यही डिज़र्व करते हैं। इसलिए हाइली कॉन्फिडेंट लोगों से अपनी वैल्यू जानना सीखो। अपने बिलीव्स और आइडियाज़ में विश्वास रखो और अपनी स्किल्स को इतना डेवलप कर लो कि आपको कभी सेल्फ डाउट आये ही ना नंबर थ्री कॉन्फिडेंट लोग कभी भी अपनी खामियों को रिजेक्ट नहीं करते हैं क्योंकि जब भी आप अपनी पर्सनैलिटी, स्टोरी या बॉडी के एक हिस्से को रिजेक्ट कर देते हो तब आप इन्कम्प्लीट बन जाते हो। अपनी डेथ को खो देते हो और आपने कुछ भी यूनीक नहीं रहता। लेकिन कॉन्फिडेंट लोग ऐसा कभी नहीं करते बल्कि वो अपने फ्लॉस को बैजेस की तरह पहनते हैं और साथ ही साथ ये भी दिखाते हैं कि जिन कमियों पर काम करा जा सकता है वो उन्हें इम्प्रूव करने की भी कोशिश कर रहे हैं। यानी आप अपनी जिन खामियों को दूर नहीं कर सकते हो, उन्हें एक्सेप्ट करो, क्योंकि यही चीज़ आपको यूनिक बनाएगी और जिन खामियों पर काम करना पॉसिबल है, उन पर काम करो क्योंकि यह चीज़ आपको कन्टिन्यूसली ग्रो करेगी। नंबर फ़ोर वो किसी भी अनएक्सपेक्टेड चीज़ से डरते नहीं है। यह एक और ऐसी चीज़ है जो अच्छे अच्छे लोगो की हवा निकाल देती हैं। क्योंकि कोई भी इंसान तब तक कॉन्फिडेंट दिखने की एक्टिंग तो कर सकता है जब तक हर चीज़ उनकी एक्सपेक्टेशन्स के मुताबिक चल रही होती है। लेकिन जैसे ही चीजें एक अनएक्सपेक्टेड टर्न लेती है, वैसे ही सिर्फ वो लोग जो एक्चुअल में कॉन्फिडेंट होते है वो ही इस सदन चेंज को सर्वाइव कर पाते है। ट्रूली कॉन्फिडेंट लोग फेल्यर और परेशानियों को सिर्फ एक्सपेक्ट ही नहीं, बल्कि वो उन्हें एक ऑप्टिमिस्टिक ऐटिट्यूड के साथ वेलकम भी करते हैं। क्योंकि कहीं ना कहीं कॉन्फिडेंट होने का मतलब ही यह है कि एक ऐसे इंसान ने लाइफ के बहुत से उतार चढ़ाव को देख और मास्टर कर रखा होता है। इसलिए आप भी अनसर्टेनिटी से दूर भागने की गलती कभी मत करना और आपको कभी कोई अनअवेलेबल फेल्यर मिले भी तो उसे भी एक टीचिंग की तरह एंब्रेस करो नंबर फाइव वो खुद को ऊपर उठाने के लिए दूसरों को नीचे नहीं धकेलते हैं। यानी एक हाइली कॉन्फिडेंट इंसान को खुद को अच्छा दिखाने या आगे बढ़ाने के लिए दूसरों को पीछे धकेलने की जरूरत नहीं पड़ती। इसके बजाय वो मानते हैं कि उनकी ग्रोथ सिर्फ तभी पॉसिबल होगी जब वो दूसरों को ग्रो करने में मदद करेंगे। यही रीज़न है की क्यों जितना वो अपने ओपिनियन शेर करना चाहते हैं उतना ही वह दूसरों के ओपिनियन सुनना चाहते हैं या फिर वो खुद जितना सक्सेसफुल होना चाहते हैं, उतना ही वो दूसरों के लिए भी विश करते हैं। इस ऐटिट्यूड या पर्सपेक्टिव की वजह से एक इंसान कॉन्फिडेंट लगने के साथ साथ चार्मिंग भी लगता है और जितना आप इन पांच गलतियों से दूर रहो गे और इनके ऑपोजिट एक्शन्स को प्रैक्टिस करोगे उतना ही आपके अंदर कॉन्फिडेन्स बढ़ता चला जाएगा। और जैसा कि मोटिवेशनल स्पीकर और ऑथर ब्रायन ट्रेसी बोलते है की कॉन्फिडेन्स एक हैबिट है जिसे एक्टिंग के थ्रू डेवलप किया जा सकता है। यानी ऐसे ऐक्ट करो कि आपके पास ऑलरेडी वो कॉन्फिडेन्स है जिसे आप पाना चाहते हो।","किसी को "आत्मविश्वास" कहा जाता है जब वे आंतरिक रूप से महसूस करते हैं कि वे जो भी निर्णय या कार्रवाई करते हैं वह सही है और उन्हें अनुमोदन प्राप्त करने की आवश्यकता महसूस नहीं होती है। लेकिन अगर आप भी अत्यधिक आत्मविश्वासी लोगों की तरह बनना चाहते हैं, तो आपको ऐसी गलतियाँ नहीं करनी चाहिए जिनसे आत्मविश्वासी लोग हर कीमत पर बचते हैं। तो, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम 5 ऐसी गलतियों या चीजों के बारे में जानेंगे जो आत्मविश्वासी लोग कभी नहीं करते हैं।" "एक जेंटलमैन एक ऐसे मेल को बोला जाता है जो कि ऑनरेबल, शिव डर्स और वेल मेनर होता है। यानी एक जेंटलमैन होना आपकी रिफाइनमेंट से रिलेटेड होता है कि आपने अपने ऊपर कितना काम करा है और आपका करेक्टर कैसा है। आज बहुत से कम ऐसे मिल्स बचे हैं, जो अपने वर्ड चूस या एथिक्स के बारे में बोलते नहीं बल्कि उसे अपने बिहेव्यर में दिखाते हैं। जेंटलमैन अपने हाई लेवल एटिकेट्स की वजह से आम लोगों के कंपैरिजन में बात करने, उठने, बैठने, धंधा करने या जिंदगी जीने के तरीके में वो हर वे में ही सुपिरिअर होते हैं और आम लोग उन्हें अपनी इनस्पिरेशन की तरह देखते हैं। जिसकी वजह से इस एपिसोड में हम एक जेंटलमैन की कई जरूरी रूल्स को डिस्कस करेंगे और ये जान लेंगे कि मॉडर्न दुनिया में भी हम क्लासी और ऑनरेबल बनकर कैसे सक्सीड कर सकते हैं। रोल नंबर वन और जेंटलमैन इस वाइल्ड ऐट कल्चर्ड एक जेंटलमैन इसलिए इतना यूनीक होता है क्योंकि उसकी एक साइड प्रिमिटिव और क्यों टिक होती है जबकि दूसरी साइड शांत और सोफिस्टिकेटेड एक जेंटलमैन सूट पहनकर भी जेंटलमैन रहता है और धोती कुर्ता पहनकर भी क्योंकि उसके कपड़े उसे नहीं बल्कि वो अपने कपड़ों को डिफाइन करता है। याद रखो जेंटलमैन होना एक क्वालिटी है ना कि एक फिक्स्ड इमेज जो कि वेस्टर्न आइडल्स पर बेस्ड है। इसलिए अगर आपने भी केऑस और ऑर्डर या फिर वाइल्ड ने सौर, सिविल इ टी हर तरह के ऑपोजिट को बैलेंस करने की ताकत है तो उसका मतलब आप मैं नैचुरली ही जेंटलमैन क्वालिटीज मौजूद हैं। रोल नंबर टू नेवर गेट वेस्टेड वाइल पार्टी एक जेंटलमैन की तरह पार्टी करने या फिर किसी इवेंट को एन्जॉय करने का मतलब है कि आप कभी भी अपने साथ होने वाली चीजों का कंट्रोल नहीं हो रहे हैं। और एक बेवकूफ की तरह ज्यादा ड्रिंक करके अपना मजाक नहीं बनवा रहे। ऐसी सिचुएशन में भी एक जेंटलमैन की वाइल्ड और कल्चर्ड साइड दोनों थोड़ी थोड़ी दिख रही होती है क्योंकि वो एन्जॉय तो करता है लेकिन खुद के रूल्स को इतना लूज़ नहीं बना लेता कि वो दूसरों की नजर में अपनी रिस्पेक्ट खोदे बीच का रास्ता यानी मॉडरेशन दिखाता है कि आप कितने ओपन माइंडेड हो। आप एक चीज़ में इंडस भी करते हो, उसका मज़ा भी ले लेते हो लेकिन उसको खुद को खराब भी नहीं करने देते हैं। इसलिए अगर आप कभी किसी पार्टी में जाओ या फिर दोस्तों के साथ ड्रिन्क्स का प्लान बनाओ वो ड्रिन्क्स को इक्स्पिरीयन्स तो करो, लेकिन कभी भी हद से ज्यादा नहीं। हर पार्टी में जरूरत से ज्यादा पीने वाला खुद की बेइज्जती भी करवाता है और ऐसे इंसान का कोई फ्यूचर भी नहीं होता। इसके ऊपर से आपको ये नॉलेज भी होनी चाहिए कि आप क्या पी रहे हो और उसको पीने या फिर पूरी तरह से एन्जॉय करने का सही ढंग क्या होता है। फॉर एग्ज़ैम्पल वाइन को पीने का तरीका बहुत अलग होता है की पीने से और अगर आप वाइन को भी विस की तरह पीने लगे तो वो चीज़ बहुत ही लो वैल्यू औरन सोफिस्टिकेटेड लगती है। लोगों को ऐसा लगता है कि आप में ना तो कोई मैनर्स हैं। और ना ही आपको अपने शरीर में जाने वाली किसी चीज़ की जानकारी है। इसलिए अगर आपने किसी ओकेज़न पर ड्रिंक करनी ही है तो एक जेंटलमैन की तरह ड्रिंक करो। रोल नंबर 320 जो भी लू सर ये बोले की शिवली इस डैड ऐंड विमिन है वकिल ऑडिट तब समझ जाओ कि वो इतना लो वैल्यू है कि उसकी ना इसने इसपर भी कोई फीमेल पॉज़िटिव ली रिस्पॉन्ड नहीं करती शिवली का मतलब होता है, मेल्स का फीमेल्स के टुवार्ड्ज़ एक पोलाइट काइन्ड और रिस्पेक्टफुल ऐटिट्यूड होना। अगर आप किसी फीमेल के पीछे ही पड़ जाओ और एकदम उसके नौकर की तरह उसका हर काम करने लगो। तो ऑब्वियस्ली आपको रिजेक्शन और यू मिलिए शन ही मिलेगा। सिर्फ तभी काम करती है जब आपकी खुद की बाउंड्रीज होती है और आपके पास भी वैल्यू प्रोवाइड करने के लिए बहुत कुछ होता है। रोल नंबर फ़ोर नेवर गिव अनसॉलिसिटेड एडवाइस एक जेंटलमैन के मुँह से निकला हर शब्द भारी और जादुई होना चाहिए, लेकिन इन शब्दों की गहराई सिर्फ वो लोग फील कर पाते हैं जिनमें खुद को ही गहराई होती है। इसी वजह से एक जेंटलमैन कभी भी किसी इंसान को बिना मांगे कोई एडवाइस या फिर अपनी इनसाइट नहीं देता। आप भी अपने शब्दों की वैल्यू करना सीखो। अपनी स्पीच और लोगों पर अपने वर्ड्ज़ के इम्पैक्ट को बढ़ाने के लिए फालतू बाते ना करना बहुत जरूरी होता है। यानी आपको लोगों की मदद तो करनी चाहिए लेकिन सिर्फ उनको अपनी मदद दो जो आपसे मदद लेने और उस पर काम करने के लिए तैयार है। हर किसी को एडवाइस देना और लेना तो अच्छा लगता है लेकिन उसे फॉलो करना किसी को नहीं पसंद थी। वन अगर आपकी इन टेंशन्स बहुत अच्छी है तब भी अपनी नॉलेज को फ्री में मत बांटते फिर हो इससे आपके वर्ड्स की भी वैल्यू कम होगी और आपकी भी रोल नंबर फाइव टेक केयर ऑफ योर हेल्थ हाइजिन चाहे वो अपनी बॉडी के हाइजिन की बात हो, हेल्दी खाने की या फिर शरीर को तंदुरुस्त रखने की, एक जेंटलमैन यह बात जानता है कि उसकी लाइफ सैटिस्फैक्शन उन चीजों पे डिपेंड करती है जिन्हें वह खुलकर एक्सपिरियंस कर सकता है और जितना आप हेल्थी होंगे उतना ही आपका हर एक्सपिरियंस डीप होगा। हर मेल को यह बात तो पता होती है कि उससे मेंटली एफिशिएंट बनने के लिए अपनी बॉडी पर भी ध्यान देना पड़ेगा। लेकिन ज्यादातर लोग इस चीज़ पर कोई ऐक्शन नहीं लेते हैं। इसी वजह से ज्यादातर मेल्स लो वैल्यू होते हैं और हर तरह का मेल चाहे वो एक हाई वैल्यू सुपिरिअर मेल हो या फिर एक ऐवरेज लूजर। हर कोई अपने जैसे माइंडसेट वाले लोगों के साथ रहना चाहता है। इसलिए हमेशा हेल्थ और हाइजीन को अपनी टॉप प्रायोरिटी बनाओ। रोल नंबर सिक्स ही होल्ड सहाइ एक्सपेक्टेशन्स फ्रॉम सर कल वैसे तो एक जेंटलमैन को फरक ही नहीं पड़ता कि उसके आसपास वाले अपनी लाइफ में कितना अच्छा या फिर बुरा कर रहे हैं। वो किसी अनजान इंसान को जज नहीं करता और उससे कुछ एक्सपेक्ट भी नहीं करता। लेकिन अगर उसने किसी इंसान को अपनी टीम का हिस्सा बनाया है तो ऑब्वियस्ली बात है कि वो किसी ऐसे इंसान के साथ अपना समय बिताना नहीं पसंद करेगा। जो अपनी लाइफ को वेस्ट कर रहा हो। इसी वजह से एक जेंटलमैन कॉन्स्टेंट ली अपने सबसे करीबी लोगों को और बेहतर बनते रहने के लिए पुश करता रहता है। रोल नंबर सेवन है वह कॉन्फिडेंट ऐट रिलैक्स बॉडी लैंग्वेज बॉडी लैंग्वेज का हमारे ऐटिट्यूड से बहुत सीधा संबंध होता है। जैसे आप अपनी बॉडी को कैर्री करोगे, उसका सर सीधा आपकी साइकोलॉजी पर पड़ेगा। इसी वजह से एक जेंटलमैन की बॉडी लैंग्वेज बहुत ही ओपन और रिलैक्स तो होती है यानी हाथ और पैर नेक्रोसिस लेकिन इसके साथ ही साथ वो ज्यादा जगह घेरकर ये भी सिग्नल कर रहा होता है। कि उसमें किसी का डर नहीं है और ना ही वो किसी को प्लीज़ करना चाहता है। बॉडी लैंग्वेज का एक और इफेक्टिव टूल होता है आपका आई कॉन्टैक्ट यानी किसी से भी बात करते हुए ज्यादा इधर उधर मत देखो बल्कि अपना ध्यान उन्हीं पर रखो और मिनिमम एक बारी में तीन से पांच सेकंड का आई कॉन्टैक्ट जरूर मेनटेन करो। रोल नंबर एट बी अट्रैक्ट टु ग्रेटनेस एक जेंटलमैन वो जौहरी होता है जो एक हीरे को दूर से ही पहचान लेता है। यानी अगर आप किसी से मिलो तो आपकी नजरों में इतनी स्किल होनी चाहिए कि आप अपनी पहली मुलाकात में ही यह फ़िगर आउट कर पाओ। की उस इंसान में कितनी पोटेंशिअल है ताकि जो इंसान महान बन सकता है लेकिन अभी कुछ नहीं है। आप उसे अपनी टीम का हिस्सा बना पाओ और उसकी पोटेंशिअल को बाहर निकालने में उनकी मदद करके साथ में कुछ बड़ा कर पाओ। प्रोटेक्ट की और लव्ड वंस अगर एक आदमी अपनी फैमिली, फ्रेंड्स या फिर पार्टनर को सेफ नहीं रख सकता तो वह आदमी ही कहा हुआ एक जेंटलमैन, इस मैं स्कूल इन पर पूरा खरा उतरता है और खुद को इतना कैपेबल बनाता है कि वो अपने चाहने वालों को मुश्किल समय में बचा सके। रूल मटन ही ऑल्वेज़ गेट्स वोट ही वॉन्ट्स एक जेंटलमैन जिंदगी और इंसानों के हर मैटर रूल से वाकिफ होता है। उसे पता होता है कि किसी भी चीज़ या फिर इंसान को पाने के लिए उसे क्या करना है और कितना ज़ोर लगाना है उसके लिए दुनिया में कोई भी चीज़ उसकी लीग से बाहर नहीं है और यही ऐटिट्यूड एक जेंटलमैन की एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी लाइफ का राज़ होता है। रोल नंबर 11 नेवर बेक डोर मैट एक जेंटलमैन सबके साथ काइन्ड तो होता है बट एट द सेम टाइम उसके खुद के ओपिनियन्स बाउनड्रीज़ और प्रिन्सिपल से इतने स्ट्रांग होते हैं। कि उसे दूसरों के आगे झुककर उनकी वैलिडेशन लेने की कभी जरूरत नहीं पड़ती है। जब भी एक मेल ज्यादा नाइस बनकर अपनी बाउनड्रीज़ को मिटा देता है तब हमेशा ही उसे लोग यूज़ करना शुरू कर देते हैं। इसलिए कभी भी एक डोर मैट मत बनो और दूसरों को खुद को यूज़ मत करने दो। रोल नंबर 12 लिव लाइफ इंटेन्शनली एक जेंटलमैन की जिंदगी आम मेल्स की तरह बोरिंग नहीं होती बल्कि खुद इतना इन्टेन्सिव करेक्टर रखने की वजह से उसकी पूरी जिंदगी ही इंटेनसिटी से भरी हुई होती है। वो हर दिन नए रिस्क्स लेता है। कभी भी किसी को अपने मन की बात बोलने से डरता नहीं है। और उसकी हर बात या हर काम एक ऐसे पर्पस से जुड़ा होता है जो उससे भी बड़ा है।","एक सज्जन व्यक्ति वह होता है जो सम्माननीय, शिष्ट और शिष्ट होता है। मतलब सज्जन होने का संबंध मनुष्य के परिष्कार से है यानी उसने खुद पर कितना काम किया है। आपका चरित्र जितना मजबूत और अनुकूल होगा, आप उतने ही सज्जन व्यक्ति होंगे। लेकिन जीवन जीने के कुछ ठोस सिद्धांतों के बिना, ऐसा व्यक्ति कभी भी इतना उच्च मूल्य नहीं बन सकता। इसीलिए इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम उन 12 नियमों के बारे में बात करेंगे जिनका पालन एक सज्जन करते हैं।" "हर इंसान सोसाइटी में एक बहुत अहम रोल निभाता है और ये हर इंडीविजुअल पर डिपेंड करता है कि वो अपने टाइम को वेस्ट करके अपने रिलेशनशिप्स पर ध्यान न देके और हर समय कंप्लेन कर के एक यूज़लेस इंसान बनता है या फिर एक बेहतर इंसान बन के और अपनी कमियों पर काम करके सिर्फ अपने आप को और अपनी फैमिली को ही नहीं बल्कि पूरी कम्यूनिटी को बेहतर बनाता है। जब हम छोटे होते हैं तब हम कई बार गलत तरह से ऐक्ट करते हैं। कभी हम किसी टास्क या पनिशमेंट से बचने के लिए झूट बोल देते है। कभी हम किसी बदकिस्मत इंसान का मजाक उड़ा देते हैं और कभी हम इनोसेंट लोगों को भी बुरी तरह से ट्रीट कर देते हैं। लेकिन जब आप मैच्योर होते हो तब आप गिल्ट महसूस करते हो और ये ठान लेते हो कि अब आप बेहतर बनोगे। पर यह चेंज शुरू कहाँ से करना है, ये जानना थोड़ा कन्फ्यूजिंग हो सकता है और तभी इस एपिसोड में हम ऐसी 10 क्वालिटीज के बारे में बात करेंगे जो एक बेहतर इंसान बनने के लिए बहुत जरूरी है। नम्बर 10 पेशेंट्स पेशेंट्स का मतलब होता है अपनी प्रॉब्लम्स, सफरिंग या फ्रस्ट्रेशन को हैंडल कर पाना। बिना चिड़चिड़े या दुखी हुए साइकोलॉजी में पेशेंट्स को एक डिसिशन मेकिंग टूल की तरह देखा जाता है। क्योंकि एक अन् फेवरेबल सिचुएशन को आप कितना टॉलरेट कर सकते हो? ये आपकी फिजिकल और मेंटल स्टेट को दर्शाता है कि आप ओवरऑल कितना हेल्थी और अपने आप में कितना पीसफुल हो। नंबर नाइन पोलाइटनेस यूज़्वली पोलाइटनेस को कवर्स ये पॉलिटिकल करेक्टनेस जैसी चीजों से कन्फ्यूज कर आ जाता है। लेकिन पोलाइट होने का असली मतलब है दूसरे लोगों के आगे कुछ इस तरह से बिहेव करना, जिससे वो इंसान आपके साथ रिलैक्स्ड और कम्फर्टेबल फील करता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हर इंसान ही ऐसा फील करना चाहता है कि दूसरे लोग उसे लाइक करते है और उसे समझते हैं। ये क्वालिटी इन ग्रुप ट्रस्ट और कॉर्पोरेशन बढ़ाने में काफी इफेक्टिव होती है। इवन अगर आप एक स्ट्रेंजर के साथ भी बिहेव करते हो तब भी आप अपने इस छोटे से जेस्चर से उनका पूरा दिन बना देते हो। जस्ट बिकॉज़ ये एटिकेट इतना बन चुका है नंबर एट ऑनेस्ट, ये क्वालिटी बताती है कि आप कितने ट्रूथ फुल और स्ट्रेट फॉर्वर्ड हो। अमेरिकन फिलॉसफर थॉमस जेफरसन ने बोला है की विज्डम की बुक का पहला चैपटर ऑनेस्टी ही है क्योंकि वो सिर्फ कमजोर और डरपोक लोग होते हैं जो हर समय झूठ बोलते रहते हैं, जबकि सच बोलने और उसके नतीजे को सहने के लिए हिम्मत चाहिए होती है। इसके साथ ही 119 लोग झूठ बोलने से पैदा हुई शेम और डर को दबाते हैं जिससे ना तो वो बिना किसी बायरस के सोच पाते हैं और ना ही कभी भी खुद के लिए कोई रिस्पेक्ट डेवलप कर पाते हैं। नंबर सेवन फॉरगिवनेस यानी किसी भी तरह के गुस्से या कड़वाहट को अपनी मर्जी से जाने देना। ये क्वालिटी हमें याद दिलाती है कि दुनिया में हर तरह के लोग हैं, कहीं हमारी बातों से अग्रि करेंगे, कई नई करेंगे और बाकी तो किसी भी केस में हमारे साथ बुरा ही करेंगे। लेकिन ऐसे समय पर खुद के अंदर नेगेटिव इमोशन्स और टॉक्सिसिटी बढ़ने के बजाय हमें अपने बेहतर वर्जन को आगे कर देना चाहिए। जो ये जानता है कि शांति रखने के लिए गलतियों को माफ़ करना जरूरी होता है। नंबर सिक्स एम्पथी यानी दूसरे लोगों की फीलिंग्स और उनके पॉइंट ऑफ क्यूँ को समझ पाने की एबिलिटी। इस तरह से जब आप दूसरों के एक्सपिरियंस को ऐसे समझ पाते हो जैसे वो आपका खुद का एक्सपिरियंस हो तब आप उनसे लड़ने के बजाए ऐक्चुअल प्रॉब्लम की जड़ तक पहुंचने की कोशिश करते हों। इसके साथ ही रिसर्च बताती है कि जो लोग ज्यादा एम पथेटिक होते हैं वो अपने आप को ज्यादा खुशकिस्मत समझते हैं और वो ज्यादा प्रो सोशल बिहेव्यर यानी दूसरों की मदद करने की इच्छा जताते हैं। नंबर फाइव मेंटल टफनेस ये क्वालिटी बताती है कि आप एक क्राइसिस के दौरान अपने इमोशन्स और मेंटल स्टेट को कितना स्टेबल लग सकते हो। मेंटल टफनेस का मतलब है ये एक्सेप्ट करना कि आपकी लाइफ भी हर इंसान की लाइफ की तरह मुश्किल है और अगर हमें हर दिन मर मर के नहीं काटना तो हमें अपने आपको टफ बनाना ही होगा। नंबर फ़ोर सेन्स ऑफ ह्यूमर क्योंकि अगर हम लाइफ की मुश्किल नेचर से बिना किसी हँसी मजाक के ही लड़ते रहे तो 1 दिन हम ऐसे ही दुखी और दर्दनाक जिंदगी जीकर मर जाएंगे। यही रीज़न है की क्यों? जिन लोगों ने अपनी लाइफ में सबसे ज्यादा मुश्किल है फेस करि होती है, वही लोग सबसे ज्यादा हंसमुख और मज़ाकिया होते हैं। क्योंकि बिना सेंस ऑफ ह्यूमर के लाइफ की सफरिंग और भी ज्यादा कड़वी और मीनिंग लेस लगती है। नंबर थ्री सैक्रिफ़ाइस यानी अपनी किसी वैल्यूएबल चीज़ को त्यागना। एक बेहतर चीज़ पाने के लिए कई बार ये वैल्यूएबल चीज़ हमारी पुरानी आइडेंटिटी भी हो सकती है, जो अब हमारी ग्रोथ को रोक रही है या फिर ये हमारी प्रेज़ेंट की मस्ती और आराम भी हो सकता है। हर इंसान अंदर ही अंदर इस सच्चाई को ऑलरेडी जानता है कि अगर उसे बेहतर बनना है तो उसे अपने शोर्ट टर्म प्लेयर्स को गिवअप करना पड़ेगा और बिना इस सेल्फ कंट्रोल के कोई भी इंसान ज्यादा आगे जा ही नहीं सकता। नंबर टू ऑप्टिमिजम यानी लाइफ के टूवर्ड्स एक पॉज़िटिव ऐटिट्यूड रखना। रिसर्च बताती है कि ऑप्टिमिस्टिक लोगों के रिलेशनशिप्स बेटर होते हैं, उनका सोशल स्टेटस ज्यादा होता है और किसी क्राइसिस के बाद वो रिकवर भी जल्दी कर पाते हैं और जैसे जैसे हम बड़े होते हैं, हमारी रिस्पॉन्सिबिलिटीज बढ़ती जाती है और हम अपने आसपास ट्रैजिडी को विटनेस करने लगते हैं। तब थोड़ी बहुत ऑप्टिमिजम भी हमें उस अंधेरे में रौशनी दे सकती है। नंबर वन सेल्फ अवेर्नेस यानी अपनी पर्सनैलिटी बिहेव, इअर्स हैबिट्स, फीलिंग्स और इंडिविजुअलिटी की अन्डरस्टैन्डिंग होना ये अन्डरस्टैन्डिंग आपको बोलती है। कि आप अपने मूड या परेशानियों के लिए दूसरों को दोषी नहीं ठहरा सकते हैं। अगर आपके अंदर कोई ऐसा ख्याल या इमोशन आ रहा है जो आपको परेशान कर रहा है तो उसे अवॉइड करने के बजाय उसका सामना करो। जैसा कि चाइनीज फिलोसफर लव ज़ू का बोलना था कि दूसरे लोगों को जानना इन्टेलिजेन्स है, लेकिन अपने आप को जानना असली है। दूसरे लोगों को मास्टर करना स्ट्रेंथ है लेकिन अपने आप को मास्टर कर लेना असली पावर हैं।","एक बेहतर इंसान बनने के लिए काफी परिपक्वता और साहस की आवश्यकता होती है, इसलिए बेहतर बनने की आवश्यकता का एहसास भी युवावस्था में बहुत सारी गलतियाँ करने के बाद होता है। लेकिन हम इस प्रक्रिया को कैसे शुरू करें? इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम 10 गुणों पर चर्चा करते हैं जो आपको आत्म-सुधार के स्तंभों को समझने में मदद करेंगे और एक बेहतर इंसान बनने के लिए आप उन्हें अभी कैसे लागू कर सकते हैं।" "आइक्यू या फिर इन्टेलिजेन्स क्वेश्चन एक ऐसा स्कोर होता है जो एक इंसान की जेनरल मेंटल कैपेबिलिटी को मेजर करता है। यानी एक इंसान कितनी जल्दी मुश्किल प्रॉब्लम्स को सॉल्व कर सकता है। नई चीजों को कितनी जल्दी सीख सकता है। हर समय बदलते एनवायरनमेंट में कितने अच्छे डिसिशन ले सकता है और एब्सट्रैक्ट ली सोचकर कितनी चीज़ो में पैटर्न ढूंढ सकता है? आइ क्यू एक ऐसा स्टेट है जो बहुत से लोगों को अटेंड करता है लेकिन सम टाइम पर अगर आप ये समझना चाहते हो कि आपको किस तरह का कैरिअर सूट करेगा, आपको किस तरह की एजुकेशन चाहिए होगी? या फिर अगर आप ये प्रिडिक्ट करना चाहते हो कि एक इंसान अपनी जिंदगी में कितनी सक्सेस हासिल कर सकता है, तो आइक्यू इन एरियाज का सबसे ऐक्यूरेट्लि डॉक्टर है और तभी आज हम आईक्यू के कुछ ऐसे फैक्स डिस्कस करेंगे जो सच होने के बावजूद काफी कॉन्ट्रोवर्शियल है। नंबर वन आईक्यू को बढ़ाना इम्पॉसिबल है। आपको इंटरनेट पर ऐसी बहुत सारी विडीओ ज़ और आर्टिकल्स मिलेंगे, जो आपको बताएंगे कि आप अपना आई क्यू कैसे बढ़ा सकते हो। पर असलियत में ये क्लेम झूठा है। अभी तक हम कोई ऐसा साइंटिफिक मेथड डिस् कवर ही नहीं कर पाए हैं, जो हमारे उनको पॉज़िटिव ली इन्फ्लुयेन्स कर सकें। हम किसी इन्टेलिजन्ट इंसान का आइक्यू कम तो कर सकते हैं, उससे पढ़ाई लिखाई ना कराके और उसे एक बेकार डाइट देखें पर एक इन्टलेक्चुअल ली इंसान का आइक्यू नहीं बढ़ाया जा सकता। जितना एविडेन्स अभी हमारे पास अवेलेबल है वो यह बताता है कि आइक्यू कुछ हद तक बस बचपन में बढ़ता है। उसके बाद हमारे ऐडल्ट हुड में एकदम स्टेबल जाता है और जब हम बूढ़े होने लगते हैं तब हमारा खुद ब खुद कम होने लगता है। इसका मतलब आप टाइम के साथ साथ अपनी प्रॉब्लम सॉल्विंग एबिलिटीज़ खो देते हो। यानी आपकी फ्लूइड इन्टेलिजेन्स और जीस टाइप की इन्टेलिजेन्स आपके पास रह जाती है। वो होती है आपकी क्रिस्टलाइज्ड इन्टेलिजेन्स यानी जो भी स्किल्स, फैक्स या नॉलेज आपके पास पहले से होती है। नंबर टू आइक्यू मोस्टली हमारे जेनेटिक्स इन्फ्लुयेन्स होता है। क्यू की इतना स्टेबल होने का एक बहुत बड़ा रीज़न यह है कि वो जेनेटिक है। इसका मतलब इवन अगर एक इंसान का बचपन काफी अच्छा था, उसे हेल्थी डाइट दी गई थी और अच्छी एजुकेशन भी प्रोवाइड करि गयी थी। तब भी वो इंसान सिर्फ उतना ही इंटेलीजेंट बन पाएगा। जितना उसके जीन्स उसे अलाउ करेंगे। नंबर थ्री, सबसे ज्यादा और सबसे कम इंटेलीजेंट दोनों कैटिगरीज के लोग मेल्स ही होते हैं। यह इसलिए होता है क्योंकि इन्टेलिजन्स एक ऐसा ट्रेड हैं, जो हमारे सर्वाइवल के चान्सेस को बढ़ाता है। इसके साथ ही जस्ट बिकॉज़ फीमेल्स के लिए री प्रॉडक्शन की कॉस्ट मेल्स के कंपैरिजन में ज्यादा होती है और इसकी वजह से वो काफी चूजी होती है ताकि वो सिर्फ सबसे इंटेलीजेंट और कैपेबल मेल के जीन्स को ही अगली जेनरेशन में पहुंचा। ये ना कि एक लूँ सर के तो नैचुरली मेल्स के बीच इन्टेलिजेन्स डिजीज और इवन फिटनेस की वैरिएबिलिटी काफी ज्यादा होती है, ताकि फीमेल्स के पास सफिशंट चॉइस हो और वो इतने सारे मेल्स में से सबसे फिट और इंटेलीजेंट मेल को चूज कर पाए हैं। इस वजह से आइक्यू डिस्ट्रीब्यूशन में ज्यादातर फीमेल्स ऐवरेज स्कोर करती है, पर जब हम ग्राफ के एक स्ट्रीम्स में जाते हैं तो वहाँ सिर्फ मेल्स ही होते है। नंबर फ़ोर आपका आइक्यू आपकी डेस्टिनी नहीं है, आपने ये कोड तो सुना ही होगा कि हार्डवर्क बीट्स, टैलेंट, टैलेंट डस नॉट वर्क हार्ड इसका मतलब ईव नाउ आपके अंदर कोई जीनियस लेवल इन्टेलिजेन्स नहीं है और आप दुनिया के सबसे टैलेंटेड इंसान नहीं हो आप फिर भी अपनी लाइफ में बहुत कुछ हासिल कर सकते हो क्योंकि ज़िन्दगी में सक्सेस हासिल करने के लिए हमें दो ट्रेड चाहिए होते है। जो की है इन्टेलिजेन्स और हार्ड वर्क। जिसे इंसान के पास एक ट्रेड की कमी होती है वो उसे दूसरे से कॉमपेनसेट करता है सो अपनी डिसएडवांटेज इस पर ध्यान देने के बजाय अपनी ऐडवांटेज एस के नंबर बढ़ाओ नंबर फाइव हर 10 में से एक इंसान किसी भी काम को करने के कैपेबल नहीं होता। यहाँ हम बात कर रहे हैं उन लोगो की जिन का आइक्यू 85 से कम है जो कि दुनिया की लगभग 10-15 परसेंट पॉपुलेशन है और ये प्रॉब्लम कभी भी खोले में डिस्कस नहीं करी जाती। जस्ट बिकॉज़ ये इतनी सी पॉज़िटिव चीज़ है कि कई लोगों के लिए दुनिया में कुछ काम है ही नहीं। इसके ऊपर से कन्टिन्यूसली बदलती टेक्नोलॉजी को समझना तो और भी मुश्किल है। हमें ये ही नहीं पता कि हम ऐसी कौन सी जॉब क्रिएट करे जो इतनी रिपिटिटिव और समझने में सिंपल होगी की इतने लो एक वाले लोग भी उसे ईजली कर पाए। यह एक काफी सैड फैक्ट है पर अभी तक ना तो साइकोलॉजी इसका सलूशन निकाल पाई है और ना ही गवर्नमेंट नंबर। सिक्स आइक्यू हमारे सिर के साइड से को रिलेटेड है यानी जब हम बॉडी साइज़ जैसे फैक्टर्स को हटा देते हैं जो लोग आइक्यू टेस्ट में काफी हाइ स्कोर करते हैं उनके दिमाग का साइज और उस वजह से उनके सिर का साइज ऐवरेज लोगों से थोड़ा ज्यादा होता है। इसके साथ ही उनकी न्यूरॉन्स पर टैक्स यानी न्यूरॉन का लंबा धागे जैसा पार्ट वो भी बाकी पॉप्युलेशन से ज्यादा मोटा और डैन्स होता है जिससे कोई भी इलेक्ट्रिकल इंपल्स जो कुछ इन्फॉर्मेशन कैर्री कर रही होती है वो दिमाग तक ज्यादा एफ़्फ़िशिएण्ट्ली पहुँच पाती है। नंबर सेवन हाइली इन्टेलिजन्ट लोग हाइली स्टुपिड भी हो सकते हैं। ये आइरनी इसलिए एग्जिस्ट करती है क्योंकि आइक्यू और विज़्डम में कोई रिलेशन नहीं है। एक इंसान आइक्यू टेस्ट में काफी हाई स्कोर कर सकता है और एट के सम टाइम वो कुछ ऐसा काम कर सकता है जो एक ऐवरेज इंसान अपनी कॉमन सेन्स और विज़्डम की वजह से कभी नहीं करेगा। ये डिफरेन्स होता है नोइंग और अन्डरस्टैन्डिंग में। इस कैटगरी में वो लोग आते हैं जो अपनी इन्टेलिजन्स की वजह से काफी ईगोइस्टिक बन जाते हैं और प्रैक्टिकल दुनिया से टच खो देते हैं। नंबर एट डेवलप्ड कन्ट्रीज में बाकी कन्ट्रीज के मुकाबले आईक्यू तेजी से बढ़ रहा है और इसके कई रीजन्स है। जैसे डेवलप्ड कन्ट्रीज में ऐसी पॉप्युलेशन बहुत कम है। जैसे हेल्दी ग्रोथ के लिए सफिशंट न्यूट्रिअन्ट्स और डाइट नहीं मिलती इसके साथ ही आज कल के ज्यादातर बच्चों को शुरू से ही इतनी सारी इन्फॉर्मेशन और गैजेट्स का ऐक्सेस दे दिया जाता है, जिससे उनका दिमाग शुरू से ही इतनी इन्फॉर्मेशन को प्रोसेसर करने की आदत डाल लेता है। हाउएवर इसका मतलब यह नहीं है कि हम आस पीसी स्मार्ट बन रहे हैं, क्योंकि कुछ डेज़ में जब हम दुनिया के हर इंसान को खाना और हेल्थ केयर प्रोवाइड कर देंगे और ग्लोबल लाइक यू एकदम स्टेबल हो जाएगा, तब हम इसी ट्रैप में वापस आकर फंस जाएंगे की हम अपना आइक्यू कैसे बढ़ाएं। नंबर नाइन किसी भी तरह की ब्रेन फसल या फिर ब्रेन ट्रेनिंग गेम आपको स्मार्ट नहीं बनाती। ओंधु ऐप स्टोर्स ऐसी ऐप्स से भरे हुए हैं जो क्लेम करती है की वो आपके दिमाग को बनाएंगी या फिर उस पर्टिकुलर गेम को खेलने से आपके दिमाग की एक्सरसाइज होगी। पर अभी तक ऐसा कोई सॉलिड प्रूफ बाहर नहीं आया है जो ये बताये कि ये गेम्स आपकी कॉग्निटिव एबिलिटीज़ को इम्प्रूव कर सकती हैं। जितनी भी रिसर्च हुई है वो ये बताती है कि जब भी आपको ये ब्रेन ट्रेनर गेम खेलते हो तब आप ओवर टाइम बस उस पैसिफ़िक गेम और उस से सिमिलर गेम्स में बेटर होते हो। किसी भी दूसरे टास्क में नहीं पर एक रील ब्रेन ट्रेनिंग ऐप वो होगी जो आपकी जेनरल प्रॉब्लम सॉल्विंग एबिलिटीज़ को इम्प्रूव करेगी। नंबर 10 लोअर आइक्यू हियर क्राइम रेट से रिलेटेड है। अमेरिकन साइकोलॉजिस्ट आर्थर जेन्सेन ने अपनी बुक केजी फैक्टर में बताया है कि जिन लोगों का आइक्यू 8290 की रेंज में होता है उनके बीच क्राइम रेट सबसे ज्यादा होते है। इसका एक बड़ा रीज़न होता है दूसरे लोगों या फिर लाइफ के लिए कड़वाहट। क्योंकि जब एक इंसान को लगता है कि उसके पास तो लाइफ कि इस गेम को खेलने के लिए कोई स्किल ही नहीं है। और ना ही वो कभी कोई स्किल डेवलप कर पाएगा तो उसका लैस्ट ऑप्शन बचता है अग्रेशन। जिसकी वजह से वो दुनिया में एटलिस्ट किसी तरह से अपना इम्पैक्ट छोड़कर जा सके। फिर चाहे वो इम्पैक्ट नेगेटिव ही क्यों ना हो।","IQ या इंटेलिजेंस कोशेंट के बारे में चर्चा लगभग हमेशा एक विवादास्पद या असुविधाजनक रास्ते की ओर ले जाती है, कोई भी IQ से संबंधित शोध के बारे में बात नहीं करना चाहता क्योंकि यह कुछ लोगों को ट्रिगर करता है लेकिन इससे किसी को भी रोकना नहीं चाहिए जो IQ और रहस्यों की वास्तविक प्रकृति को समझने के लिए उत्सुक हैं। इसके चारों ओर सदियों पुराने प्रश्न की तरह "क्या हम अपना आईक्यू बढ़ा सकते हैं"। आईक्यू ज्यादातर उन लोगों के लिए ट्रिगर होता है जो सोचते हैं कि अगर आप काफी मेहनत करते हैं, तो आप कुछ भी हासिल कर सकते हैं लेकिन क्या यह सच है? क्या कोई आनुवंशिक सीमा नहीं है कि कोई कितना बुद्धिमान या सक्षम हो सकता है? इन और अन्य सवालों के जवाब जानने के लिए इस एपिसोड को सुनें। 📽️यूट्यूब पर हमें खोजें: WWW.YOUTUBE.COM/PSYCHOLOGYINHINDI" "आज कल के ऐवरेज लोग सोचते हैं कि हेल्थी लविंग दीप और लॉन्ग टर्म रिलेशनशिप तो सिर्फ में होते हैं, लेकिन यह स्टेटमेंट एक्स्क्यूस होता है हर ऐसी मेहनत से बचने का जो आपको ज्यादा डिज़ैर एबल बनाती और आपके पोटेंशिअल पार्टनर्स के ऑप्शंस को बढ़ाती। जितनी ज्यादा आपके पास ऑप्शन्स होंगे उतना ही ज्यादा आप केपेबल होंगे। सबसे अच्छे इंसान को चूज करने के अगर आप खुद अपनी पोटेंशिअल से बहुत दूर हो तो ये ओब्विअस्ली बात है कि आपको पार्टनर भी आपके जैसा ही मिलेगा और एंड में आप ये बोलोगे की रिलेशनशिप्स में तो खुशी से ज्यादा दुख मिलता है। और हर पार्टनर ही आपके ऐक्सिस की तरह अब्यूसिव पैसिव कम प्लेनिंग या इन्कॉम्पिटेंट होता है लेकिन ये एपिसोड सिर्फ उन लोगों के लिए है जो बस बेस्ट चाहते हैं। वो किसी ऐवरेज इंसान के साथ सेटल नहीं करने वाले जस्ट बिकॉज़ वो खुद पर बिना रुके काम कर रहे हैं। इसलिए अब हम बात करते हैं कि एक फीमेल एक आइडियल मेल को कैसे स्पोर्ट कर सकती है और एक मेल आइडियल कैसे बन सकता है नंबर वन ही इस नॉट सेल्फिश यह याद रखो कि एक ऐसा इंसान जो हमेशा खुद की तारीफ करता रहता है वो भी सेल्फिश है और एक ऐसा इंसान जो खुद को एक विक्टिम की तरह दिखाता है वो भी क्योंकि ये दोनों लोग ही खुद के मैटर से जरूरत से ज्यादा क्न्सर्न है। एक अच्छे रिलेशनशिप को बनाने में दो लोग लगते हैं और अगर ऐसे में कोई एक इंसान दूसरे जीतने, एफर्ट देने और अपनी लाइफ उस रिलेशनशिप में इन्वेस्ट करने के लिए रेडी नहीं है तो ऐसे रिलेशनशिप का क्या ही फ्यूचर होगा? अगर एक मेल कई बार आपकी ओर ई वन दूसरों की नीड्स को खुद की नीड्स के ऊपर रखता है तो यह एक बहुत अच्छा इंडिगेटर होता है उसके करेक्टर की इंटेग्रिटी का। वह जानता है कि दुनिया उसके अराउंड नहीं घूमती। और उसे दूसरों को ऊपर उठाने के लिए कई बार खुद की डिज़ाइनर्स को भी सैक्रिफ़ाइस करना होगा। इसलिए अगर एक मेल सेल्फलेस है और जितना वो खुद की केयर करता है, उससे भी कई गुना ज्यादा वह दूसरों की केयर करता है तो ये क्वालिटी उसे बहुत रेर और वैल्युएबल बनाती है। नंबर टू हिस, नॉट टू जेनटल ओर टू एग्रेसिव किसी भी तरह का इम्बैलेंस लंबे समय तक स्टेबल नहीं रहता, क्योंकि भी डेफिनेशन इम्बैलेंस अनस्टेबल और क्यों टिक है। इसी रीज़न से अगर एक मेल बहुत ही ज्यादा सॉफ्ट और जेंटल है या फिर वो बहुत ही हार्ड और एग्रेसिव है। तो यहाँ दोनों केसेस में ही एक हेल्थी रिलेशनशिप रखना इम्पॉसिबल है क्योंकि एक ऐसा मेल जो बहुत ही सॉफ्ट है वो आपको अपनी फैमिली नेचर के टच में आने से रोकेगा और आप रिलेशनशिप में उसकी ड्यूटी ज़ और उसके रोज़ पूरे करते रहोगे और इससे ज्यादा अन्य अट्रैक्टिव एक मेल में कुछ नहीं होता कि वो पैसे वीक और इम्मेच्युर है। सिमिलरली एक मेल जो बहुत ज्यादा अग्रेसिव है वो भी आपको आपकी फैमिली से दूर रखेगा। क्योंकि फेमिनिटी एक ऐसी मिस्ट्री है जो जबरदस्ती से नहीं बल्कि प्यार और केयर से खुलती है। फेमिनिटी एक गार्डन में खिले हुए फूल की तरह होती है। गार्डन के आसपास मैस्कुलिनिटी के फैन्स तो चाहिए उसे सेफ रखने के लिए लेकिन अगर यही मैस्कुलिनिटी उस फूल के एसएमएस को लेने के लिए ज्यादा ज़ोर लगा दे तो वो फूल टूट जाता है और ऐसे ना तो गार्डन की शान रहती है और ना ही उसे सेफ रखने की कोई जरूरत। इसलिए एक मेल रिलेशनशिप में काइंड भी होना चाहिए और टफ भी टफ ताकि वह दुनिया की के उसको आप से दूर रख सकें और काइन्ड इसलिए ताकि वो खुद आपको ना तोड़ने लग जाए। जहाँ बैलेंस होगा वहीं असली प्यार होगा। वरना आप बस अपने पार्टनर पर खुद के ही मिसिंग एलिमेंट्स को प्रोजेक्ट करते रहोगे और वह अपनी मिसिंग क्वालिटीज को आप पर इसी ट्रान्ज़ैक्शन को आप प्यार समझ बैठोगे और सोचोगे कि आप लाइफ में खुश क्यों नहीं हो? नंबर थ्री ही रिस्पेक्ट स्यू जहाँ पहले सब को यह मालूम था कि किसी भी रिलेशनशिप में रिस्पेक्ट कितनी जरूरी होती है वहीं आजकल इतने ड्रामा की वजह से लोग खुद इतने इनसेक्युर और लोनली महसूस करते हैं कि अगर उन्हें उनका पार्टनर रिस्पेक्ट ना भी करे और उनको यूज़ करें तो वो तब भी इस चीज़ को नॉर्मल समझते हैं। ये बिहेव्यर मेल्स और फीमेल्स दोनों में है। लेकिन फीमेल्स इस प्रॉब्लम में ज्यादा आसानी से फंसती है। जस्ट बिकॉज़ हर फीमेल को टॉप मेल चाहिए जो कमजोर और डरपोक सा नहीं बल्कि वो सब का लीडर हो और सब उसकी सुने। इसलिए कही बार सही पैरेंटिंग की कमी की वजह से फीमेल स्मेल्स की डिस रिस्पेक्ट को कॉन्फिडेन्स का साइन समझने लगती है और एक टॉक्सिक इंसान से अटैच होने की वजह से उन्हें ये लगता है कि रिलेशनशिप्स तो ऐसे ही होते हैं। इसलिए रिस्पेक्ट को सबसे ज्यादा प्रायोरिटी दो और अगर एक मेल आपसे डिसऐग्री भी करें तो यह पक्का रखो कि वो अपना डिस अग्रीमेंट रिस्पेक्टफुल्ली ही दिखाएं। नंबर फ़ोर हिस, कैपेबल ऑफ प्रोटेक्टिंग यू कई फीमेल्स इस बात को कॉन्शस ली समझती हैं और कई अनकॉन्शियस ली कि चाहे वो खुद काफी स्ट्रांग और फाइनैंशली स्टेबल हों तब भी उन्हें यह फील करना बहुत ज़रूरी होता है कि उनका पार्टनर उनसे एक स्टेप आगे है और अगर कुछ भी मुश्किल पड़े तो वह आपको गिरने से बचा पाए। यह फैक्ट फीमेल्स को तब तक नहीं समझ आता जब तक वो एक्चुअल में किसी बहुत बड़ी मुश्किल में नहीं पड़ती, तब या तो उन्हें खुद बनाना पड़ता है या फिर उनके पास ऑलरेडी एक रिलाएबल पार्टनर होता है जो उन्हें ऐसी सिचुएशन में सपोर्ट दे सके। अगर एक फीमेल खुद बन जाती है तो ये चीज़ उसकी बॉडी के लिए बहुत एग्ज़िस्टिंग होती है और वो धीरे धीरे अपने आप को घिस घिस के बर्न आउट कर लेती है। इसी वजह से कई काम ऐसे होते हैं जो सिर्फ मेल्स बेहतर कर सकते हैं और कई काम ऐसे जो सिर्फ फीमेल्स अगर एक जेंडर दूसरे की वैल्यू नहीं समझता तो उसका यही डिसिशन उसकी डाउनफॉल का कारण बनता है। नंबर फाइव ही स्पीक द ट्रूथ एक मेल के कलेक्टर का बहुत बड़ा हिस्सा सच बोलने से जुड़ा होता है, क्योंकि फीमेल्स की नेचर ऐसी होती है कि वो सच को फील्ड करती है, लेकिन मेल्स सच को ढूंढ़ते हैं, उसके बारे में सोचते हैं और तभी कॉन्क्लूज़न निकालते हैं। सच और झूठ या सही और गलत का इसलिए फीमेल्स अगर सच ना भी बोले लेकिन सच के बेसिस पर ऐक्ट करें तब भी वो अपनी लाइफ ठीक ठाक से काट लेती है। लेकिन मेल्स का सच बोलना उतना ही इम्पोर्टेन्ट होता है जितना उनका सच को जीना होता है। स्पीच सिम्बॉलिक अली। मैस्कुलिन होती है क्योंकि वो साइलेंट में से पैदा होती है। इसलिए जिसमें लकी स्पीच में गडबड है, उसका मतलब उसकी मैस्कुलिनिटी और पूरे करेक्टर में कोई गडबड है। हमारी हर एक चीज़ दूसरी चीज़ से जुड़ी हुई होती है। बस इन पैटर्न्स को पकड़ने के लिए अपने पुराने ब्लीच को छोड़ने की देरी होती है और सच पहले ही हमारे सामने खड़ा होता है। नंबर सिक्स नोमान सीन्स मैंने एनफ इन फ्रन्ट ऑफ हिं यह एक और साइन होता है जो बताता है कि आप एक सही मेल के साथ हो और इसकी सिग्निफिकन्स सिर्फ साइकोलॉजी तक सीमित नहीं होती क्योंकि यह फीलिंग स्पिरिचुअल होती है। जब एक मेल की लाइट बहुत ब्राइट होती है तब वह किसी भी दूसरी लाइट को एक फीमेल की नजरों में पड़ना ही नहीं देती। यही रीज़न है कि क्यों? जहाँ एक मेल की लॉयल्टी ज्यादा लॉजिकल होती है और सेल्फ कंट्रोल पर बेस्ड होती है। वहीं एक फीमेल की लॉयल्टी इससे ज्यादा डीप जाती है, क्योंकि उसके आगे पहले कोई इंसान इतना ब्राइट चमका ही नहीं था। यह भी आपको सिर्फ तभी समझाएंगे जब आप इन्हें अपने इनटेल्लेक्ट से नहीं बल्कि अपने माइंड को खाली और शांत करके सुनोगे। जहाँ लॉजिक हैं वहाँ फेमिनिटी एग्जिस्ट नहीं करतीं और जहाँ प्यार है वहाँ मैस्कुलिनिटी एग्जिस्ट नहीं करतीं। लेकिन अगर एक जगह पर इन दोनों एनर्जी में बैलेंस आ जाए तो आपको दोनों ऑपोजिट की क्वालिटीज मिल सकती है। इसी वजह से एक आइडियल मेल सबके बीच आपको अलग ही दिखेगा क्योंकि जितना वो आपकी फेमिनिटी को नर्चर करेगा, उतना ही वो आपकी हेल्थी मैं स्कूल इन साइट को भी बाहर लाएगा। नंबर सेवन ही मेक्स यू फुल्ली ब्यूटीफुल बट ऑल्सो हेल्प यू टु बिकम बेटर ब्यूटी प्यार का है और प्यार सच का जो इंसान ब्यूटी को बुरा बोलते हैं, यह उसकी वैल्यू नहीं समझते। वो सच को मना करके अपने इल्ल्यूशंस में ही खोए रहने की इच्छा जताते रहे होते हैं। इसी वजह से एक फीमेल को ये फील करा ना की वो ब्यूटीफुल है। इसका मतलब यही हुआ की वो ही सच है और वो ही प्यार है। अगर आपका पार्टनर आपकी इनर और आउटर ब्यूटी दोनों या दोनों में से एक को भी नहीं देख पाता तो उसका मतलब वो आपसे प्यार ही नहीं करता जबकि सच्चे प्यार में एक मेल आपकी ब्यूटी को भी रिकग्नाइज करेगा। लेकिन एट द सेम टाइम वो आपको आपकी कमियां भी बताएगा और आपको बेहतर बनने की तरफ धकेल देगा। नंबर एट ही इस ऑलवेज इम्प्रूविंग हिमसेल्फ क्योंकि एक आइडियल मेल अपना सारा समय और एनर्जी सिर्फ आपको ही नहीं दे देता बल्कि उसके खुद के भी ड्रीम्स है और उसे पूरी दुनिया को अपने साथ में ऊपर उठाना है। ये साइन ऐसे मेल को उन मेल से डिफ्रेंशीएट करता है जिनकी खुद की कोई लाइफ नहीं होती और उनका सारा एंटरटेनमेंट आपसे ही आता है और वो आपकी एनर्जी पर फीड करते हैं। लेकिन सच तो यह है कि कोई भी फीमेल किसी ऐसे मेल के साथ नहीं रहना पसंद करती जो स्टेग्नन्ट हो गया है और उसकी कोई ग्रोथ ही नहीं हो रही। ग्रोथ को भी सिर्फ पैसों में नहीं बल्कि जीने के ढंग बोलने के ढंग दुनिया को देखने का नजरिया हर चीज़ में मेजर करो। सिर्फ एक ऐसा मेल ही अपनी पार्टनर को खुशी, मेंटल पीस और सैटिस्फैक्शन दे सकता है।","ज्यादातर लोग सोचते हैं कि एक स्वस्थ, प्यार भरा, गहरा और दीर्घकालिक संबंध केवल परियों की कहानियों में ही संभव है लेकिन यह केवल एक बहाना है कि आप उन सभी कामों को न करें जो आपको दूसरों के लिए अधिक वांछनीय बनाते हैं और आपके संभावित भागीदारों की संख्या बढ़ाते हैं। तो, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम उन गुणों पर ध्यान देंगे जो एक आदमी को एक आदर्श साथी बनाते हैं और आपको ऐसे आदमी को कभी जाने क्यों नहीं देना चाहिए।" "कभी कभी हमारी लाइफ में कई ऐसे दिन होते हैं जब हमारे लिए कुछ भी काम करना या पॉज़िटिव रहना बहुत मुश्किल होता है। जीस वजह से हम ज़्यादा ऐस और पैसे मिस्टेक होने लगते हैं। चाहे हम कितना भी अपने मूड को इम्प्रूव करने की कोशिश कर लें लेकिन ऐसे दिनों पर हमे वो चीजें खुशी देना बंद कर देती है जो हमें नॉर्मल दिनों पर हमेशा एक्साइटमेंट से भर देती थी। इसलिए इस एपिसोड में हम कुछ ऐसी छोटी छोटी चीजों को डिस्कस करेंगे जिन्हें आप यूज़्वली इग्नोर कर देते हो। लेकिन यह आपके मूड कोई चली बेटर बनाकर आपको अब लिफ्ट कर सकती है। नंबर वन अपनी हर छोटी बड़ी अचीवमेंट को सेलिब्रेट करो, हमारे दिमाग में कई ऐसे सर्किट्स मौजूद है। जो हमें पॉज़िटिव इमोशन्स बनाने वाले केमिकल से भर देते हैं। जब भी हम अपने किसी गोल को अचीव करते हैं। जीस वजह से अगर आप लो फील कर रहे हो तो उस दिन काफी छोटे और ईजी बनाओ जैसे सही टाइम पर उठना, एक सर्टन टाइम पीरियड में काम करना या फिर घर के छोटे मोटे काम करना। हर छोटी अचीवमेंट आपको पॉज़िटिव इमोशन्स देगी और इस अचीवमेंट को सेलिब्रेट करने से आप अपने दिमाग तक ये सिग्नल भेजोगे कि आप दुखी रहने का नहीं बल्कि खुशी का समय है क्योंकि आप मेहनत करके अपने आप को हाइरार्की में ऊपर ले जा रहे हो। नंबर टू अपने एनवायरनमेंट को पीसफुल बनाओ। एक दल एनवायरनमेंट जैसे वहीं चारदीवारी जिसमें आप हर रोज़ अपना सारा समय काटते हो। वो एक पॉइंट के बाद आपको डिप्रेस करने लगता है और आपको उसमें कुछ चैन चाहिए होता है। इसलिए हर टाइम एक ही जगह पर समय बिताने, शोर शराबे वाली जगह पर बैठने या डिस्ट्रैक्शन से भरे एनवायरनमेंट से बाहर निकलो। अगर आपको कुछ समय बाहर आकर बस आसमान की तरफ देखना है तो वो करो। कोई भी ऐसी चीज़ जो आपसे आपका पीस छिनतई है और बदले में आपको ऐंगज़ाइइटी देती है, उससे दूर रहो। नंबर थ्री अपनी एनर्जी और टाइम यूज़लेस कामों में वेस्ट मत करो क्योंकि अलटिमेटली सिर्फ आप ही अपनी सेहत और खुशी के लिए रिस्पॉन्सिबल हो और अगर आप खुद को उन कामों में या फिर उन लोगों के साथ इन्वॉल्व कर लेते हो जो बस आपका टाइम और एनर्जी वेस्ट करते है और आपको अपने बारे में बुरा फील कराते हैं तो ऐसे केस में आपको वहाँ बाउनड्रीज़ बनानी पड़ेगी और यह डिसाइड करना पड़ेगा कि आप किन चीजों को अपना टाइम देना बिल्कुल अफोर्ड नहीं कर सकते हैं। सिर्फ आप जानते हो कि कब आप लो फील कर रहे हो और कब आपको अपनी प्राइऑरटी इसको लेकर काफी सिलेक्टिव होना है। इसलिए अपने टाइम को ऐसी जगह पर लगाओ जो प्रोडक्टिव हो और जिससे आपको सैटिस्फैक्शन मिले जैसे आपकी कोई हॉबी या फिर पैशन नंबर फ़ोर दूसरों की मदद करना क्योंकि जब भी हम दुखी होते हैं तब हमारी सारी अटेन्शन खुद पर होती है और हम खुद की प्रॉब्लम से इतना ज्यादा कॉन्सर्ट होते हैं। की। हम ये भूल जाते हैं कि दुनिया में बहुत से लोग ऐसे हैं जो इस समय हमारे से ज्यादा सफर कर रहे हैं। जीस वजह से किसी की भी हेल्प करने और उनके चेहरे पर खुशी लाने से हम ऑटोमैटिकली इस सेल्फ कॉन्सर्ट होने की साइकल को ब्रेक कर पाते हैं और दूसरों को खुशियां बांटने से अपने अंदर खुशी ढूंढ पाते हैं। यह मैटर नहीं करता कि आपकी मदद कितनी छोटी या बड़ी हो। आप अपने किसी चाहने वाले को हक कर सकते हो, गरीबो में कुछ दान कर सकते हो, अपने फ्रेंड्स और फैमिली मेंबर्स को ये बता सकते हो की वो आपके लिए कितना मायने रखते हैं या फिर आप अपने किसी लोनली फ्रेंड के पास जाकर उसका भी मूड अच्छा कर सकते हो। हर तरह की खुशी घूम फिर के हमारे पास ही आएगी और आप का दिन उसी टाइम अच्छा बन जायेगा। नंबर फाइव नेचर को ऑब्जर्व करो नेचर में जाना और चिड़ियों की चहचहाहट और पेड़ों के बीच वॉक करना हमारे लिए एक थेरपी का काम करता है। हमने अपने बंद कमरों, क्लासरूम्स, ऑफिसेस और रेस्ट्रॉन्ट्स में रहने की इतनी ज्यादा आदत डालनी है कि हम नेचर को एक्सपिरियंस करने की इम्पोर्टेन्स भूल गए हैं, लेकिन वहाँ पर रेग्युलर बेसिस पर सिर्फ कुछ मोमेंट्स बिताने से ही हम फिज़िकली, इमोशनली और मेंटली ज्यादा हेल्थी महसूस करते हैं। नंबर सिक्स अपने घर ये रूम को साफ करो और उसे ब्यूटीफुल बनाओ क्योंकि ये छोटी सी प्रैक्टिस हमें एक पीसफुल मोड में आने में बहुत मदद करती है। जैसे जैसे हमें हर चीज़ सिमटती हुई और सुन्दर बनती हुई दिखती है, वैसे वैसे हम अपने अंदर उस ब्यूटी को फील कर पाते हैं। ये इसलिए होता है क्योंकि हमारा एन्वॉयरनट हमारी इंटरनल साइकिक स्टेट को इन्फ्लुयेन्स करता है। जीस वजह से अगर हमारा घर या रूम बिल्कुल गंदा हुआ पड़ा है और हर जगह चीजें बिखरी पड़ी है तो यही मैस हम इंटरनली भी फील कर पाते हैं। नंबर सेवन सोशल मीडिया पर नहीं, रियल लाइफ में लोगों से मिलो क्योंकि आज कल हम किसी से भी टैक्सट या वर्चुअली बात करके ये सोचते हैं। की हमें सोशलाइज कर लिया, लेकिन ऐसा नहीं होता। हमें रिलेशनशिप्स के नाम पर किसी की सेकंड हैण्ड प्रेस नहीं चाहिए होती है, बल्कि हमें उनसे फेस टु फेस मिलना होता है, जहाँ हम उस इंसान को टच कर सके, उनके माइक्रो एक्स्प्रेशन्स को नोटिस कर सके। एनवायरनमेंट की स्मेल्स हमारे एक्सपिरियंस में कलर डालें और हम किसी ऐसी ऐक्टिविटी को परफॉर्म कर सकें जो हमें उनके क्लोज़ लाये और हम साथ में मज़ा कर सकें। इसलिए जब भी आप अच्छे मूड में नहीं होते और आपका किसी से बात करने या फिर उनसे मिलने का मन करे तो उन्हें ऑनलाइन मेसेजेस भेजने के बजाय रियल लाइफ में मिलों और अपने एक्सपिरियंस में वह डेथ है। जो आपकी क्लोज़ रिलेशनशिप की नीती को पूरा कर सके।","कभी-कभी जब हम उदास महसूस करते हैं, तो सामान्य चीजें जो हमें प्रेरित करती थीं और हमें खुश करती थीं, अब काम नहीं करती हैं। आप अपने मूड को ऊपर उठाने और खुश रहने की कितनी भी कोशिश कर लें, कुछ भी उक्त कार्य को पूरा नहीं करता है। लेकिन कुछ ऐसी छोटी-छोटी चीजें हैं जिन्हें हम अक्सर नजरअंदाज कर देते हैं जो हमें आसानी से अपनी सामान्य स्थिति में वापस लाने में मदद कर सकती हैं या अधिमानतः इससे भी बेहतर। इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम ऐसी ही 7 बातों पर चर्चा करने जा रहे हैं।" "ज्यादातर लोग अपनी ग्रोथ को खुद ही रोक देते हैं। अपनी अनकॉन्शियस प्रोग्रामिंग की वजह से बचपन में रिजेक्शन, अब्यूस, निग्लेक्ट या किसी और तरह के ट्रोमा की वजह से एक बच्चा कभी भी ये नहीं समझ पाता कि उसके पैरेंट स्केट रोमांस उसे नेगेटिवली इन्फ्लुयेन्स कर रहे हैं बल्कि उसे यह लगने लगता है कि वो दुनिया है जो इतनी अनसेफ है और इस दिन के साथ एक इंसान काफी छोटी उम्र में साइकोलॉजिकल कॉम्प्लेक्स डेवलप कर लेता है। एक कॉम्प्लेक्स बेसिकली एक सेट ऑफ पैटर्न्स को बोला जाता है। जो हमारे सबसे डीप एक्सपिरियंस से बनता है। यह शुरू होता है जीस तरह से। हम अपने पैरेन्ट्स को इक्स्पिरीयन्स करते हैं और जीस तरह से अलग अलग सिचुएशन्स में हम फील करते हैं बड़े होने का हर स्टेज एक चैलेंज की तरह होता है जिसमें हर कदम पर ट्रामा मिलने के काफी ज्यादा चान्सेस होते हैं। जो इवेन चली एक कॉम्प्लेक्स को जन्म दे सकते हैं। ज्यादातर कॉम्प्लेक्स एक बच्चे की को बचाने के लिए डेवलप हो जाते हैं। जैसे अगर आपको बचपन में अपने मन की करने के लिए बहुत डेटा या फिर मारा गया था या फिर आपको ऐसा फील कराया गया था कि आप जो भी करते हो वो गलत ही होता है। जब आप एक ऐसा कॉम्प्लेक्स डेवलप कर लोगे जो आपकी सेल्फ एस्टीम को खत्म कर देगा और अब दूसरों से अप्रूवल लेना शुरू कर दोगे। इस तरह से एक कॉम्प्लेक्स अनकॉन्शियस ली हमारे थॉट्स फीलिंग ज़, डिसिशन्स और बिहेव्यर को नेगेटिवली इन्फ्लुयेन्स करता है। यही रीज़न है कि क्यों कई लोग बिना ज्यादा कुछ करे इतना कुछ अचीव कर लेते हैं जबकि दूसरे जो किसी अनकॉन्शियस पैटर्न में फंसे हुए होते हैं वो कभी भी आगे नहीं बढ़ पाते और उनकी लाइफ एक कभी ना खत्म होने वाली बुरी किस्मत की साइकल में चलती रहती है। स्विच साइकैट्रिस्ट कार्य में एक बार बोला था कि जब तक आप अपने अनकॉन्शस माइंड के कॉन्टेंट को कॉन्शस माइंड में नहीं लाओगे, तब तक वो आपकी लाइफ को कंट्रोल करेगा और आप उसे अपनी किस्मत बोलोगे। इवन जर्मन साइकोएनालिस्ट और फ्रॉड की स्टूडेंट कैरन होर्नी ने भी अपने काम में ये बताया है कि हर इंसान के अंदर ही सेल्फ रियलाइजेशन हासिल करने की एक ड्राइव नैचुरली ही होती है। पर अगर एक इंसान को बचपन में सही इन्वाइरनमेंट नहीं मिलता तो वो इस रास्ते से भटक जाता है और अपनी फुल पोटेंशिअल तक कभी नहीं पहुँच पाता। और तभी आज के एपिसोड में हम यही डिस्कस करेंगे कि आप भी अपने आप को इन अनकॉन्शियस पैटर्न्स के चंगुल से छुड़ाकर सेल्फ रियलाइजेशन कैसे हासिल कर सकते हो। सेल्फ रियलाइजेशन का मतलब है खुद को जानना और ये समझना कि आपका इतने बड़े यूनिवर्स में क्या रोल है, ताकि आप इस दुनिया में कुछ यूनीक काम कर सको? अगर आपके अंदर किसी भी तरह का फोबिया डिप्रेशन अडिक्शन को डिपेंडेंसी या फिर किसी भी तरह का खालीपन नहीं है, आप खुद को आगे बढ़ने के लिए नहीं रोकते और ना ही आप अपनी एग्ज़िस्टन्स को लेकर इतने ए नाइस होते हो तो उसका मतलब आप सेल्फ रियलाइज हो। यानी सेल्फ रियलाइजेशन हमारी ग्रोथ के लिए एक चौसा ही नहीं बल्कि यह हमारी जरूरत है। साइकोएनालिसिस के फाउंडर सिगमन फ्रॉयड ने अपने पेशेंट्स को ट्रीट करते हुए ये डिस कवर करा था कि उनके पास आने वाले हर पेशंट के सारे सिम्पटम्स गायब हो जाते थे। जैसे ही उनकी अनकॉन्शियस, मेमोरीज़ या इमोशन्स को कॉन्शस बना दिया जाता था, फ्रॉड का मानना था कि एक इंसान अपने अनकॉन्शस माइंड की मटिरीअल को सिर्फ एक थेरपिस्ट से बात करके ही डिस् कवर कर सकता है। पर वो कैरन हॉर्न आई थिंक जिनका बोलना था की हम ये अकेले ही कर सकते हैं। सेल्फ अनैलिसिस की मदद से होर्नी के हिसाब से सेल्फ एनालिसिस ज्यादातर केसेस में ट्रेडिशनल थेरेपी से बेहतर हो सकती है। क्योंकि जब भी आप एक थेरपिस्ट के पास जाते हो तो उसको एट लिस्ट कुछ साल नहीं तो कुछ महीने जरूर लगते हैं। यह समझने में कि आपकी प्रॉब्लम और आपकी स्टोरी क्या है? लेकिन आप अपनी स्टोरी से सबसे ज्यादा अच्छे से वाकिफ हो। इसके ऊपर से जब आप अपने अनकॉन्शस माइंड के पैटर्न्स को खुद एक्स्प्लोर और एक सपोज़ करते हो तब आपके अंदर एक कॉन्फिडेन्स आने लगता है। और आप मेंटली स्ट्रॉन्ग फील करते हो क्योंकि आपने एक अननोन टेरिटरी को सिर्फ अपने दम पर ही मैप आउट कर लिया होता है। हाउएवर जो चीज़ हमें सेल्फ अनैलिसिस में जाने से रोकती है वो है हमारा फिर् अगर हम सिम्बॉलिक अली बोले तो ज्यादातर लोग अंधेरे में जाने से डरते हैं। अंधेरा रिप्रजेंट करता है नरियल इस पोटेंशिअल को जैसे हमारा अनकॉन्शस माइंड, क्योंकि अंधेरे में कुछ भी हो सकता है। फिजिकल रिऐलिटी में हम अंधेरे में छुपे जानवरों भूतों या किसी और ऐसे ही दूसरे क्रीचर से डरते हैं। क्योंकि वो हमें फिज़िकली मार सकते हैं और साइकोलॉजिकल रिऐलिटी के अंधेरे में हम अपने खुद के ट्रामा से और बुरी मेमोरीज़ को फेस करने से डरते हैं क्योंकि वो हमारी ईगो को मार सकते हैं। ईगो यानी हमारी करेंट आइडेंटिटी की। हम अपने बारे में अपने आप को क्या कहानी सुना रहे हैं? यही रीज़न है की क्यों? आम लोग अपनी साइट की डेथ में जाने से घबराते हैं और न शो या फिर सेल्फ रिसेप्शन की मदद लेकर अपनी सेल्फ रियलाइजेशन की नैचरल को दबाते हैं। हाउएवर जितना दर्दनाक अपने दरों को फेस करना होता है, उससे कई गुना ज्यादा वो हमारे लिए बेनेफिशियल होता है। अगर आपके लिए पर्सनल डेवलपमेंट बहुत जरूरी है और आप अपनी हाइएस्ट पोटेंशिअल तक पहुंचने के लिए कुछ भी कर सकते हो तो बस सबसे पहले अपने इन्हीं डरों को फेस करो और सुनो की आपका अनकॉन्शस माइंड आपको क्या बताना चाहता है? बोलना था की वो हमारी पर्सनल ग्रोथ की मोटिवेशन ही होती है जो सेल्फ अनैलिसिस के सक्सेस या फेल्यर को सबसे ज्यादा करती है। होर ने अपनी बुक सेल्फ अनैलिसिस में बोलती है की मेरा एक्सपिरिएंस बिना किसी डाउट के मुझे यह बताता है कि एक इंसान सेल्फ ऑब्जर्वेशन की काफी एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी सिटी डेवलप कर सकता है। अगर उसने जिद पकड़ ली है कि वो अपनी प्रॉब्लम्स को कुछ भी करके समझना चाहता है। ज्यादातर लोग जिन्हें किसी तरह का कॉम्प्लेक्स होता है वो अपनी प्रॉब्लम्स को एक्सेप्ट करने के बजाय अपनी लाइफ डेनियल में जीते हैं। उनकी फॉल्स आइडेंटिटी, उनकी ईगो और उनकी पर्सनल बेसिस उन्हें ये जाने से रोकती है की वो असलियत में कौन हैं और उनकी पोटेंशिअल उनकी सोच से कितनी ज्यादा है। यही रीज़न है की क्यों सेल्फ रियलाइजेशन इम्पॉसिबल होता है? बिना सेल्फ एक्सेप्टेंस के अगर आप शीशे के सामने खड़े होकर अपने फ्लॉस को डाइरेक्टली नहीं देख सकते तो आप उनकी डेथ वो कभी नहीं समझ पाओगे और अपने कई सिलेक्टेड पार्ट्स को रिजेक्ट करते रहोगे। जैसे कि हॉर्न का बोलना था कि अगर एक इंसान में इतनी हिम्मत है कि वो अपने बारे में एक कड़वा सच सुन सके तो वह इंसान अपनी हिम्मत पर सेफ्ली इतना ट्रस्ट कर सकता है कि वो उससे डर की दूसरी साइट पर पहुंचाने के काबिल है और अपने बारे में कडवे सच जानने के। यानी सेल्फ रियलाइजेशन हासिल करने के कई मेथड्स होते हैं, जो हमने इस चैनल पर ऑलरेडी डिस्कस करे हुए है। जैसे की यूनियन साइकोलॉजी पर बेस्ट शैडो वर्क, जिसमें आपने अपने रिऐक्शन और जजमेंट को ऑब्ज़रव करना होता है। अपने आप से ही अपनी लाइफ के बारे में एक क्वेश्चन्स पूछने होते हैं और अपनी यानी आपको क्या सही और क्या गलत लगता है उन्हें क्वेश्चन करना होता है। सेल्फ रिलेशन का दूसरा तरीका है राइटिंग, क्योंकि अमेरिकन सोशल साइकोलॉजिस्ट जेम्स पेनीबैकर की रिसर्च इस बारे में काफी क्लियरली बताती हैं कि जितना आप अपने पास्ट के बारे में लिखते हो, उतनी ही आपको वह सारी मेमोरीज वापस से याद आने लग जाती है, जिन्हें आप भूल चूके हों और इस तरह से आप यह समझ पाते हो कि आपकी प्रॉब्लम्स शुरू कहाँ से हुई थी? सेल्फ रियलाइजेशन हासिल करने का तीसरा तरीका है मेडिटेशन जो आपके कॉन्शस ब्रेन को शांत करता है और आपकी अनकॉन्शस माइंड की आवाज को एम्प्लिफायर कर देता है ताकि आप वो सब चीजें सुन सकूँ और देख सको जिन्हें आप इतने टाइम से इग्नोर कर रहे थे। तीनों में से आप चाहे कोई भी मेथड चूज कर लो या फिर आप चाहें इन तीनों को ही अपने रुटीन में ऐड कर लो। सबसे पहला और मेन गोल हमारा यहाँ पर यही है कि हम अपने इल्ल्यूशंस और 22 को खत्म कर सके ताकि हमें ये समझ आ सकें कि हमारे असली गोल्स विशेस फीलिंग्स या आइडल्स क्या है और हमारी थिंकिंग के कौन से पार्ट्स? असल में बस हमारी प्रोग्रामिंग थे। लास्ट ली हमने अपने इन्वाइरनमेंट को भी सेल्फ रियलाइजेशन के लिए ऑप्टिमाइज़ करना होगा, क्योंकि अगर आप खुद को इम्प्रूव करना चाहते हो, पर आप के आसपास रहने वाले लोग आपकी इस नई स्लाइड को लेकर डाउटफुल है और वो आपको चेंज होता हुआ नहीं देखना चाहते हैं तो ऑब्वियस्ली वो आपकी ग्रोथ में रुकावट डालेंगे और जीवन अगर आपकी खुद की ही कई बुरी आदतें हैं तब भी सलूशन यही होगा कि आप बाउनड्रीज़ बनाना सीखो। और अपना ऐटिट्यूड ऐसा रखो कि आपके रास्ते में चाहे कुछ भी रुकावट आये वो हमेशा आपके गोल्स के आगे छोटी ही पड़े और जब भी आपके मन में ये आवाज आये कि नहीं यह प्रॉब्लम तो बहुत बड़ी है और मैं इससे कभी भी बाहर नहीं निकल पाऊंगा तो यह समझ जाओ कि यह आवाज भी आपकी अनकॉन्शियस प्रोग्रामिंग की ही है जो आपकी कॉन्शस थिंकिंग को लिमिट कर रही है।",आत्म-साक्षात्कार करने का अर्थ है इस सच्चाई को जानना कि आप वास्तव में कौन हैं या अपनी वास्तविक क्षमता को जानना। लेकिन हम इस स्तर की स्पष्टता कैसे प्राप्त कर सकते हैं? पूरे पॉडकास्ट सेगमेंट को सुनें क्योंकि मैं आत्म विश्लेषण के माध्यम से आत्म चिकित्सा की उपयोगिता और उन तकनीकों के बारे में बताता हूं जिनके माध्यम से आप आत्म-साक्षात्कार प्राप्त कर सकते हैं। "आज कल के मेल्स कभी भी अपना टाइम यह सोचने मैं नहीं लगाते कि एक मेल होने का मतलब क्या है? अलग अलग मैगज़ीन्स टीवी शोज़ और मूवीज़ के थ्रू हम लोगो को इतने अलग अलग किस्म के एग्जाम्पल्स बेचे गए हैं जो ये बताते हैं कि एक मेल कैसा होता है और वो क्या करता है। हाउएवर आज के टाइम पर जहाँ हर जरूरी इन्फॉर्मेशन शेयरिंग प्लैटफॉर्म में पॉलिटिक्स आ चुकी है। कोई भी यंग इंडिविडुअल चाहकर भी सेल्फ अवेर्नेस हासिल नहीं कर सकता, क्योंकि उन्हें यह पता ही नहीं होता कि कौन सी इन्फॉर्मेशन सच्ची है और कौन सी बस एक टेंपरेरी ट्रेंड ये प्रोपगैंडा है और ऐसे में जब एक इंसान खुद को ही नहीं समझ पाता तो वो दूसरों को कैसे समझेगा। इसलिए आज के एपिसोड में हम सीधा उन क्वालिटी ज़ और हैबिट्स पर नजर डालेंगे जो ऑलमोस्ट हर मेल नैचुरली परफॉर्म करता है बिना किसी इन्वाइरन्मेन्टल, पैरेंटल या सोशल इन्फ्लुयेन्स के ताकि हम इन क्वालिटीज को रिवर्स इंजीनियर करके ये समझ पाएं कि एक हेल्थ ई मेल की साइकोलॉजी क्या होती है? नंबर नाइन मेल्स ऑटोमैटिकली कई आवाजों को इग्नोर कर देते है। नेदरलैंड्स में हुई एक स्टडी में 17 से 25 साल के ऐडल्ट लिया गया और उनमें यह देखने को मिला कि फीमेल्स का दिमाग व्हाइट, नॉइस और म्यूसिक दोनों तरह की साउंड पर ही एक इन्टेंस रिस्पॉन्स देता है। जबकि मेल्स के केस में वो म्यूजिक सुनते टाइम तो एक सिमिलर रिस्पॉन्स दे रहे थे लेकिन उन्हें वाइट् नॉइज़ तो सुनना ही नहीं दी। ये इसलिए हो सकता है क्योंकि जब एक मेल का दिमाग डेवलप हो रहा होता है तब टेस्टॉस्टोरोन उनके ऑडिटर ही सिस्टम को किसी भी तरह की अनवॉन्टेड ये रिपिटिटिव आवाज को ब्लॉक करने के केपेबल बना देता है। ये रिलेशनशिप्स में अक्सर होता है। एक लड़की कुछ बोलती है पर मेल को वो सुनाई नहीं देता। वो अपने आप को कही बार रिपीट करेगी जिससे उस मेल का ब्रेन एक अनवॉन्टेड रिपिटिटिव स्ट्रीम ली की तरह ट्रीट करता है और ऐसा रिज़ल्ट फीमेल्स ये बोलने लग जाती है कि ये तो मेरी बात कभी भी सुनता ही नहीं है और मेल्स बोलते है कि यह तो हमेशा कंप्लेन ही करती रहती है। नंबर एट मेल्स फीमेल से ज्यादा कॉन्स्टेंट होते है। मेल्स की लाइफ में मेजर हॉर्मोनल शिफ्ट सिर्फ कुछ बड़े ओकेयन्स पर ही आते है जैसे जब वो में होते हैं से गुजरते हैं। जब वो एक बाप बनते हैं। और जैसे जैसे वो बूढ़े होते हैं, लेकिन फीमेल्स के हॉर्मोनल चेंजेज ज्यादा फ्रिक्वेंट और इंटेन्स होते है। वो कॉन्स्टेंट ली अपनी मंथ्ली साइकल के इन्फ्लुयेन्स में होती है और ये मूड चेंज एस जितना हम सोचते हैं, उससे कई गुना ज्यादा बड़े होते हैं। एक फीमेल की साइकल की शुरुआत में उनके हिप्पोकैम्पस में 25% ग्रोथ देखने को मिलती है और एस्ट्रोजेन उनके दिमाग को ज्यादा शार्प और सोसिअल्ली रिलैक्स बनाता है और रिलेशन के टाइम प्रोजेस्टेरॉन, एस्ट्रोजन के इफेक्ट्स को रिवर्स कर देता है और सारे नए कनेक्शन्स को खत्म कर देता है। साइकल की आखिरी दो हफ्तों में एक फीमेल को ज्यादा इर्रिटेबल अनफोकस्ड और सुस्त बनाता है और उसके बाद प्रोजेस्ट्रोन खत्म होते होते एक फीमेल के ब्रेन को सेन्सिटिव सेंटी, मेंटल स्ट्रेस और जीवन अनफ्रेंडली बनाता है। इस वजह से एक फीमेल हर हफ्ते एक अलग तरह से ऐक्ट कर सकती है और उनकी बायोलोजी, उनकी पर्सनैलिटी में कई पार्ट्स लगा ये हटा सकती है जबकि मेल्स के केस में वो इमोशनली ज्यादा स्टेबल और कॉन्स्टेंट रहते हैं। नंबर सेवन मेल्स अपनी एबिलिटीज़ को ओवर एस्टीमेट करते हैं, चाहे वो उनकी इन्टेलिजेन्स हो। या फिर एक फीमेल का उनमें इंट्रेस्ट मेल्स अपनी बहुत सी एबिलिटीज़ और क्वालिटीज को ओवर एस्टीमेट करते हैं और ये इसलिए होता है क्योंकि जब हमें ये लगता है कि हम किसी चीज़ में अच्छे हैं तब हम उस चीज़ को बार बार करने के लिए मोटिवेटेड और कॉन्फिडेंट फील करते है। जाम पल के तौर पर जब एक लड़के को ये लगता है कि एक लड़की उसमें बहुत इंटरेस्टेड है और वो इसके हिट्स भी दे रही है जबकि असलियत में लड़की का इन्ट्रेस्ट बहुत कम या फिर ना के बराबर होता है तब इवन दो वो लड़का अपने आप को ओवर एस्टीमेट कर रहा होता है। वो कॉन्स्टेंट ली उस लड़की को पाने के लिए मोटिवेटेड रहता है। जिससे उसके अपने जीन्स अगली जेनरेशन में पहुंचाने के चान्सेस भी बड़े रहते हैं। यानी अगर हम एक रेवल्यूशनरी पर्सपेक्टिव से देखें तो मेल्स को लॉस हो सकता है एक पार्टनर का इंट्रेस्ट अंडरएस्टीमेट करने से क्योंकि ऐसे उसकी मीटिंग ऑपर्च्युनिटी ज़ कम हो जाएंगी और फीमेल्स को लॉस हो सकता है एक पार्टनर का इंट्रेस्ट ओवर एस्टीमेट करने से, क्योंकि ऐसे में वो एक अन् रिलाएबल मेल के साथ मेड कर लेंगी जो उन्हें कमिट नहीं कर सकता। नंबर सिक्स मेल्स के लिए स्ट्रगल बहुत जरूरी होती है। यहाँ तक कि मेल्स में तोकॉम्पिटिशन और किसी इंसान के साथ हुई टकराव के समय भी ज्यादा पॉज़िटिव केमिकल्स रिलीज होते हैं। ऐसा इसलिए होता है ताकि एक मेल कॉन्स्टेंट ली अपनी लिमिट्स को पुश कर सके और अपने बेस्ट पॉसिबल वर्जन को दुनिया के आगे पेश कर सकें। इसके साथ ही स्ट्रगल हरमेल के लिए एक टेस्ट की तरह होती है जो सिर्फ उन्हीं मेल्स के जीन्स को अगली जेनरेशन में पहुंचने देती है जो सबसे ज्यादा स्ट्रांग, हेल्थी, कॉन्फिडेंट और क्रिएटिव होते हैं। बिना स्ट्रगल के मेल्स कभी भी एक ऐसा स्ट्रांग करेक्टर डेवलप कर ही नहीं सकते जो उनके सोसाइटी और पूरी दुनिया के लिए प्रोडक्टिव हो साइकोलॉजी की अन्डरस्टैन्डिंग हमें बताती है कि मेल्स वाइज़ और मैच्योर बनते हैं। सबसे ज्यादा इंटरफेरेंस और अच्छी गाइडन्स है, पर फीमेल्स मेच्योर और वाइस बनती है। सबसे कम इंटरफेरेंस और अच्छी गार्डन से जहाँ ज्यादातर मेल्स मुश्किल से मुश्किल समय से गुज़रने के बाद भी फिर से नॉर्मल और हेल्थी बन सकते हैं, वहीं फीमेल्स के लिए मुश्किल सिचुएशन्स एक पॉइंट के बाद काउंटर प्रोडक्टिव बन जाती है और वो उनकी हेल्थ को परमानेंटली नुकसान भी पहुंचा सकती है। नंबर फाइव मेल्स की स्पेशल प्लीज़ ज्यादा अच्छी होती है। यानी अपने माइंड में चीजों और जगहों की पोज़ीशन ऐक्यूरेट्लि विजुअलाइज कर पाना ये डिफरेन्स बच्चों में 5 साल की उम्र में ही देखने को मिल जाता है। फीमेल्स नैविगेट करने के लिए लैंडमार्क इसको यूज़ करती है और मेल से नेविगेट करते हैं। डायरेक्शन स् और डिस्टैन्स का यूज़ करके यही रीज़न है की क्यों? मेल्स की ड्राइविंग और नेविगेट इन गे बिल इट इज़ फीमेल से बेटर होती है पर एट द सेम टाइम जब ड्राइविंग एबिलिटीज़ से जुड़ा कॉन्फिडेन्स मिलता है अपनी एबिलिटीज़ को ओवर एस्टीमेट करने के बिहैवियर और रिस्क लेने की आदत से तब हम ये देखते हैं। कि रोड ऐक्सिडेंट में ज्यादातर घायल होने वाले लोग भी मेल्स ही होते है। नंबर फ़ोर लड़के ज़्यादातर ऐक्शन सीन्स को ड्रॉ करते हैं। एक स्टडी में देखा गया कि गर्ल्स लोगों, एनिमल्स और प्लांट जैसी चीजों को ड्रॉ करती है, जो ड्रॉइंग को देखने वाले को फेस कर रहे होते है। वो बहुत से कलर्स को यूज़ करती हैं और ज्यादातर कलर्स वोर्म होते हैं जबकि बौस ड्रॉ करते हैं। ऐक्शन सीन्स वो यूँ चली छह से ज्यादा कलर्स कभी भी यूज़ नहीं करते और उनके कलर ज्यादातर कूल होते हैं। इससे हमें पता चलता है कि मेल्स की ऐक्शन वायलेंस और एक एनवायरनमेंट को ऐनालाइज कर पाने की एबिलिटी उनमें बचपन से ही होती है। नंबर थ्री मेल से ज्यादा कंपैरटिव्ली खेलते हैं। अगर हम जगह जगह के प्ले ग्राउंड मैं लड़कों को खेलते हुए देखें तो उनमें ज्यादातर लड़के गेम को लेकर काफी पैशनेट होते हैं। वो कंपैरटिव्ली खेलते हैं और अपनी डॉमिनेंस दिखाकर हाइरार्की एस्टैब्लिश करने की कोशिश करते हैं। बॉस का ये बिहेव्यर मेल्स की सोशल और एवल्यूशन रिस्पॉन्सिबिलिटी को दर्शाता है, जो हैं दुनिया को फेस करना और उन मेल्स को आइडेंटिफाइ करना जो एक कॉस्ट के लिए पैशनेटली लड़ सकते हैं। यानी अगर एक बच्चा अपने बचपन में काफी कॉम्पिटिटिव था और उसमें जीतने की चाह बहुत ज्यादा थी तो चान्सेस है कि वो बड़ा होकर भी अपनी इसी स्पिरिट के साथ सोसाइटी में कुछ कॉन्ट्रिब्यूट कर के जायेगा। नंबर टू फादर्स अपने बच्चों को ज्यादा चैलेंज करते हैं। पैरेंटिंग एक ऐसा टास्क है जहाँ पर मेल्स और फीमेल्स एक दूसरे को परफेक्टली कॉम्प्लीमेंट करते हैं। जहाँ फीमेल्स घर में स्टेबिलिटी, कम्फर्ट, नर्चर और प्रॉडक्ट एबिलिटी लाती है, ताकि उनके बच्चे अपने एनवायरनमेंट में से कयुर फील कर सके। और उनमे इतना कॉन्फिडेन्स हो कि उनकी भी इस दुनिया में वैल्यू हैं और लोगों को उनकी जरूरत है। वहीं मेल्स घर मेन्स स्टेबिलिटी, टीज़िंग, चैलेंजेस और स्टिम्युलेशन के थ्रू अनप्रेडिक्टेबल इ टी लाते हैं ताकि उनके बच्चे मुश्किलों का सामना करके स्ट्रांग बन सके, फिज़िकली और मेंटली ग्रो कर सके और दुनिया की अनप्रिडक्टेबल नेचर के लिए रेडी हो सके। हाउएवर अगर इन दोनों फोर्स में एक इम्बैलेंस आ जाये जैसे एक घर जो बहुत ज्यादा अनस्टेबल होता है या फिर बहुत स्टेबल और कम्फर्टेबल होता है। दोनों ही एक्स्ट्रीम केस बच्चों की डेवलपमेंट में बाधा डाल सकते है नंबर वन हाइएस्ट सेल्फ एस्टीम मेल्स को ज्यादा प्रॉमिस को इस बनाती है अपनी बुक के मोरल ऐनिमल में अमेरिकन ऑथर रॉबर्ट राइट ने बताया है कि जो मेल्स अपनी स्किन में काफी कॉन्फिडेंट फील करते हैं, उन्हें यह लगता है कि वो सोसाइटी के लिए बहुत वैल्युएबल है और वो अपनी एबिलिटीज़ में भी बिलीव करते है। उन मेल्स के एक से ज्यादा कैज़ुअल इंटिमेट रिलेशनशिप्स होते हैं। जबकि जो फीमेल्स अपनी स्किन में कॉन्फिडेंट होती है और उनकी सेल्फ एस्टीम भी ज्यादा होती है वो बाकी लड़कियों के कंपैरिजन में कम प्रॉमिस कोर्स होती है। यह इसलिए, क्योंकि जिन फीमेल्स की सेल्फ एस्टीम कम होती है, उन्हें अट्रैक्ट करने में कम मेहनत लगती है और उन फीमेल्स को एक्सटर्नल वैलिडेशन भी ज्यादा चाहिए होती है। वर्ड फील करने के लिए पर जिन फीमेल्स को अपनी सेल्फ एस्टीम आउटसोर्स नहीं करनी पड़ती वो अपने पार्टनर को लेकर काफी पि की होती है और उनके स्टैन्डर्ड भी काफी हाई होते हैं। दूसरी तरफ मेल्स में हाइ सेल्फ एस्टीम होने से वो ज्यादा से ज्यादा फीमेल्स को अपनी तरफ अट्रैक्ट कर पाते हैं और ऐसा रिज़ल्ट वो जितना हो सके उतना अपने जीन्स को डिस्ट्रीब्यूट करने की कोशिश करते हैं।","जब हमारे जीव विज्ञान के साथ-साथ हमारे मनोविज्ञान की बात आती है तो नर और मादा वास्तव में भिन्न होते हैं। हम जानकारी को अलग तरीके से संसाधित और उपयोग करते हैं, हम अलग-अलग प्राथमिकताओं के साथ विकसित हुए हैं और हमारी अलग-अलग ताकत, कमजोरियां और प्रतिभाएं हैं। लेकिन अगर किसी को पुरुषों और महिलाओं के बीच बुनियादी अंतरों का ज्ञान नहीं है, तो उसे समाज में उनकी भूमिका का पता नहीं चलेगा, कैसे कोई अपनी प्रतिभा का कम उपयोग कर रहा है और कैसे कोई अपने शरीर को सुनने के बजाय आँख बंद करके सामाजिक प्रवृत्तियों का अनुसरण करने लगता है। ." "इंसान को सबसे समझदार और सोशल ऐनिमल बोला जाता है। लेकिन इन नामों के साथ अगर हम इंसानों को एक सफरिंग एनीमल का लेवल भी दे दे तो वो गलत नहीं होगा जहाँ बाकी सारे जानवर प्रेज़ेंट में सफर करते हैं। रिसोर्स की कमी या फिर चोट लगने की वजह से वही इंसान एक अकेला ऐसा जानवर है जो खुद अपनी सफरिंग क्रिएट करता है। इतनी एक्सटर्नल कम्फर्ट होने के बाद भी हम पास्ट के बारे में सोचकर निराश होते हैं और फ्यूचर के बारे में सोचकर चिंता करते हैं। लेकिन सफरिंग हमारी जिंदगी का इतना बड़ा हिस्सा होने के बावजूद ज्यादातर लोग उसकी अहमियत को समझ ही नहीं पाते हैं। यूश़ूअली हम उसे इग्नोर करना ही सही मानते हैं। हम सब कॉन्शस ली। ये सोचते हैं कि अगर हम अपनी प्रॉब्लम्स पर ध्यान नहीं देंगे तो वो एग्ज़िट करना बंद कर देंगी और इसी तरह कई लोग अपनी पूरी लाइफ खराब करने के बाद भी यह फिगर नहीं कर पाते कि उनकी इसमें क्या गलती थी। अपनी सफरिंग को एक बोझ या फिर रुकावट समझकर उसे इग्नोर करना बंद करो। इस एपिसोड में हम यही समझेंगे कि आप सफरिंग को खुद को कमजोर बनाने देने के बजाए उसे की तरह कैसे यूज़ कर सकते हो? ज्यादा स्ट्रांग ज्यादा प्रोडक्टिव और एक बेहतर इंसान बनने के लिए जर्मन फिलॉसफर फ्रेड्रिक नेचर सफरिंग को मीडिऑक्रिटी से बाहर निकलने का एक रास्ता मानते थे। वो अपनी बुक देगा। साइनस में बोलते हैं कि सबसे महान और कामयाब लोगों की जिंदगी को स्टडी करो और खुद से पूछो कि क्या एक पेड़ जो बहुत ऊँचाई तक पहुंचने की क्षमता रखता है, क्या वो कभी भी बुरे मौसम और तूफानों से बच सकता है? और क्या यह सच नहीं है कि बड़ी मुसीबतें और बाहरी अड़चनें विकास का ही हिस्सा है, जो जहर कमजोर लोगों को मारता है? वही जहर ताकतवर लोगों को और ज्यादा ताकतवर बनाता है। नीचा ये जानना चाहते थे कि क्यों कई लोग सफल और महान बन पाते हैं जबकि दूसरे अपनी लाइफ में फेल हो जाते हैं और उन्हें आखिर में यह समझ आया कि हर इंसान में सफरिंग को सहने की क्षमता अलग होती है और जितनी गहराई के साथ एक इंसान अपनी सफरिंग को एक्सपिरियंस करता है, उतना ही उसके अपने गिफ्ट्स या फिर टैलेंट को बाहरी दुनिया में लाने के चान्सेस ज्यादा होते है। इस तरह की दीप सफरिंग उस सफरिंग से बहुत अलग होती है जो आम लोग एक्सपिरियंस करते हैं। डीप सफरिंग एक इंसान के अंदर कड़वाहट और निराशा नहीं बढ़ती बल्कि वो उसे और ज्यादा मजबूत बनाती है और उसकी सोई हुई ताकत को जगाती है। नीचा के हिसाब से अगर एक इंसान सेल्फ रियलाइजेशन और पीक साइकोलॉजिकल हेल्थ तक पहुंचना चाहता है तो उसे अपनी सफरिंग से दूर नहीं भागना चाहिए, बल्कि उसे एक डीप मैनर में सफर करना सीखना चाहिए। बहुत से लोगों की खुद की सेल्फ परसेप्शन इल्ल्यूशंस फैन टीसीएस और 22 इस से भरी होती है जो कि उनकी अन्डरस्टैन्डिंग को इन्कम्प्लीट बनाए रखती हैं। वो खुद के बनाए एक बबल में जीते हैं और उन सचो को नज़रअन्दाज़ कर देते हैं। जिनके कॉन्टैक्ट में वो कॉन्टिन्यूअस ली रहते हैं। नीचा मानते थे कि डीप सफरिंग का एक और बड़ा बेनिफिट होता है कि वो हमें अपनी सिचुएशन को ज्यादा क्लियरली देखने के काबिल बनाती है। अपनी बुकड ए ब्रेक में वो लिखते हैं कि एक इंसान जो बहुत ज्यादा सफर करता है वह बाहरी चीजों को बहुत ही शांति और गहराई के साथ देख पाता है। नोर्मल्ली हर चीज़ ही झूठ से लिपटी होती है और दीप सफरिंग इन सारे झूठों को एक एक करके नष्ट कर देती है। जिसतरह से एक फॉरेस्ट फाइर पुराने और यूज़लेस मटीरीअल को जलाती है नयी जिंदगी के लिए जगह बनाने के लिए वैसे ही हमारी सफरिंग और पेन का पर्पस भी यही होता है कि वो हमारे अंदर मौजूद हर झूठी, नकली और कमजोर चीजों को नष्ट कर दें। हम सब के अंदर ही कई ऐसी इमोशनल 10 सीज़ बुरी हैबिट्स और अनप्रोडक्टिव बिलीव्स होते हैं जिन्हें जलाना ही सही होता है। लेकिन जब हमारी लाइफ मुरली चल रही होती हैं तब हम इन चेंज के बारे में रियली ही सोच रहे होते हैं क्योंकि हर बड़ा चेंज अपने साथ बहुत सा दर्द भी लाता है। पर जब हम ऑलरेडी काफी समय से सफर कर रहे होते हैं तब हमारे लिए अपने अंदर इन बड़े बदलावों को लाना काफी आसान होता है। सफरिंग को अपने बेनिफिट के लिए यूज़ करने के लिए नीचा बोलते है कि खुद को एक क्रीचर और एक क्रिएटर के कॉम्बिनेशन की तरह देखो। हमारे अंदर का क्रीचर वह है जो हमारी का रॉ मटीरीअल है। यानी हमारी सारी डिज़ाइनर्स और इम्पल्स एस। अगर हमने अपने इस जानवर जैसे हिस्से को खुला छोड़ दिया तो ये हमें एकदम अनप्रोडक्टिव औरन फिलिंग कामों में उलझा देगा। जबकि हमारे अंदर मौजूद क्रिएटर इस क्रीचर को एक्चुअल फॉर्म देने के काबिल होता है, जिससे हम खुद को तराशकर ज्यादा फोकस्ड और ज्यादा प्रोडक्टिव इंसान बन सकें। हाउएवर हर क्रिएशन को रेग्युलरली डिस्ट्रक्टिव पीरियड से भी गुजरना पड़ता है, फिर चाहे वो पूरा ब्रह्मांड हो या फिर एक इंसान। खुद के नए वर्जन को जन्म देने के रास्ते में हमें कई छोटी मौतें मनी होंगी और हमें कई बार अपने कई हिस्सों को जलाना भी पड़ेगा। आपकी लाइफ में आप का एक हिस्सा बैकसीट पर बैठकर हमेशा तमाशा देखता रहता है और दूसरा ज्यादा इवोलव्ड हिस्सा ड्राइवर सीट पर बैठकर आपकी ज़िंदगी की दिशा को कंट्रोल करता है और जितना ज्यादा आप इस फैक्ट के बारे में अवेयर होते हो उतना ही आप अपनी लाइफ के बुरे से बुरे दौर से भी कुछ अच्छा निकाल पाते हो। प्रॉब्लम ये नहीं है कि आप अभी सफर कर रहे हो। प्रॉब्लम बस आपकी सोच में है कि आप बिना वजह के सफर कर रहे हो। नीचे अपनी बुक 10 जिओलॉजी ऑफ मॉडल्स में लिखते हैं कि इंसान सबसे बहादुर जानवर है, जैसे सफरिंग की आदत है जिसकी वजह से वो सफरिंग को डाइरेक्टली अपनी ज़िंदगी से हटाता नहीं बल्कि वो कही ना कही सफरिंग कोड ज़ाहिर करता है और अपनी जिंदगी के हर कोने में सफरिंग को ढूँढता है। बस शर्त ये है कि उसे डीप इनसाइड इतना मालूम हो की उसकी उस सफरिंग में भी कोई मीनिंग है सफरिंग की मीनिंग लेस इंसान को खाती है ना कि सफरिंग खुद हमारी साइट की हमे सेल्फ रियलाइजेशन तक पहुंचाने के लिए ही इन्वोल्व हुई है, जिसकी वजह से चाहे हम जितना मर्जी सच को अवॉर्ड करने की कोशिश कर लें, हमारा मन हमें मुश्किलों में फंसा कर और दर्द देखकर हमेशा यही याद दिला रहा होता है कि हम कुछ गलत कर रहे हैं और किसी सच को समझ नहीं पा रहे है। आपकी सफरिंग आपको बुरी इसलिए लग रही है क्योंकि आप उसे अभी एक दूरी से नहीं देख पा रहे हैं और उसकी अपनी लाइफ में अहमियत नहीं समझ पा रहे है। जीवन डेनिस फिलॉसफर सोरेन किर्केगार्द भी यही मानते थे कि निराशा और दुख इंसान के लिए सबसे कीमती बीमारियां हैं। क्योंकि अगर आप अपनी सफरिंग के रास्ते में आने के बजाए उसे एक कड़वी दवाई की तरह एक्सेप्ट कर लेते हो तो वो आपके रास्ते में आने वाली कोई बाधा नहीं बल्कि आपकी फ्रीडम की टिकट बन जाती है और आपको आपके इल्यूजन से फ्री कर देती है।","मनुष्य, अन्य जानवरों के विपरीत, खाने के लगातार डर या चिकित्सा सहायता प्राप्त करने में सक्षम नहीं होने के कारण पीड़ित नहीं होते हैं, हमारे आधुनिक समाज में इन समस्याओं का अच्छी तरह से ध्यान रखा जाता है। लेकिन फिर भी हम अपने लिए अधिक से अधिक समस्याएं पैदा कर रहे हैं, हम अपने परम सौभाग्य को भोग रहे हैं और हमारा आराम हमारी क्षमता को नष्ट कर रहा है। हम दुख से दूर भागते हैं और इसीलिए, विरोधाभासी रूप से, हम इसे और अधिक प्राप्त करते हैं। इसलिए, दुख के मूल्य को समझने के लिए, हम जर्मन दार्शनिक फ्रेडरिक नीत्शे के कुछ विचारों पर चर्चा करेंगे और उनका मानना है कि अपने दुख को स्वीकार करना और फिर उससे ऊपर उठना, एक श्रेष्ठ इंसान बनने का सबसे अच्छा तरीका है।" "इंसान ने अभी तक कई अचीवमेंट्स पाई है। हम मून पर जा चूके हैं। हमने अपनी बनाई मशीन सको। कॉमेट ऐस्टरॉइड वीनस टाइटन और मार्च पर भेजा है। हमने वैक्सीन्स बनाकर जानलेवा डिज़ीज़ को कम करा है। यहाँ तक कि हमने अपनी पूरी यूनीवर्स की अन्डरस्टैन्डिंग को भी बेहतर बनाया है थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी और क्वांटम मैकेनिक्स की मदद से। पर अभी तक हम उस मिस्ट्री को ही नहीं सॉल्व कर पाए हैं जो हमारी बॉडी के अंदर है। यानी हमारा दिमाग अभी तक दुनिया में मिली सबसे कॉम्प्लेक्स चीज़ यही है। हमने पिछले 5 साल में जितना अपने दिमाग को जाना है उतना हम पिछले 5000 सालों में भी नहीं जान पाए थे। यानी दिमाग को समझने का प्रोसेसेस स्लो है और इस स्पीड के साथ हम आने वाले डेज़ में दिमाग को और भी अच्छे से जान पाएंगे। पर यहाँ पर आती है सबसे बड़ी प्रॉब्लम। यानी अगर हम अपने दिमाग को समझ भी लेते हैं तब भी हमारे में से हर एक इंसान 1 दिन मर जायेगा और इट डज नॉट मैटर वो कितना इम्पोर्टेन्ट इन्टेलिजन्ट या क्रिएटिव है उसका टाइम और उसकी इन्टलेक्चुअल कैपेबिलिटीज को हम चाहकर भी नहीं बचा सकते हैं। पर वॉट इफ साइंस आगे बढ़ती बढ़ती इतनी ऐडवान्स हो जाए कि हम अपना दिमाग एक कंप्यूटर में डाल दें और कभी मरे ही ना माइंड अपलोडिंग का आइडिया कोई नयी डिस्कशन नहीं है। लगभग 20 साल पहले मूवी मेट्रिक्स रिलीज हुई थी, जो एक ऐसे फ्यूचर के बारे में थी, जहाँ पर टेक्नोलॉजी इतनी ऐडवान्स हो गई कि उनके और ह्यूमन्स के बीच एक जंग छिड़ गई पर जस्ट बिकॉज़ मशीन्स को काम करते रहने के लिए ज्यादा पावर चाहिए थी। उन्होंने ह्यूमन बॉडीज़ को एक बैटरी की तरह यूज़ करना स्टार्ट कर दिया। यह ह्यूमन्स ना तो किसी चीज़ को असल में महसूस कर सकते हैं, ना ही अपनी मर्जी से मूव कर सकते हैं और ना ही यह पैदा होते हैं, बल्कि ये ह्यूमन्स उगाए जाते हैं और इनका दिमाग एक आर्टिफिशियल रिऐलिटी प्रोग्राम में चल रहा होता है जहाँ पर इनके पास एक आर्टिफिशियल आइडेंटिटी होती है। पर उन्हें ये सब एकदम असली और नोरमल लगता है। इस तरह से सारे इंसान रिस्ट्रिक्टेड रहते हैं और बिना अपनी मर्जी के अपनी एनर्जी से मशीन्स को चालू रखते हैं। ये स्टोरी हमें सोचने पर मजबूर करती है कि क्या होगा अगर हम भी अपना दिमाग एक कंप्यूटर में डाल दें और एक वर्चुअल रिऐलिटी में जीने लगे हैं। हम अभी से ही देख सकते हैं कि कैसे वर्चुअल रिऐलिटी गेम्स इतनी रियलिस्टिक हो गई है और उनको चलाने वाले कंप् यूटर्स इतने पॉवरफुल इन गेम्स की दुनिया अलग ही होती है और यहाँ पर जीतना और रूल्स को तोड़ना असली लाइफ के कंपैरिजन में काफी आसान होता है और तभी यह इतनी टेंपरिंग होती है, हाउएवर अगर हम इन मशीन्स को अपने दिमाग से कंपेर करे तो ये उसके आसपास भी नहीं है। आपका कंप्यूटर एक ऑपरेटिंग सिस्टम पर काम करता है जैसे विंडोस, मैक ओएस या लिनक्स, जिन्हें प्रोग्रामर्स शुरू से एंड तक लिखते है, पर दिमाग इस तरह से काम नहीं करता क्योंकि वो एवल्यूशन का रिज़ल्ट है। यानी वो करोड़ों सालों तक अपने हर टाइम बदलते एनवायरनमेंट में अडैप्ट करने की एलईटी थी, जिसने हमारे दिमाग को इतना कॉम्प्लेक्स बना दिया। फॉर एग्ज़ैम्पल अगर हमारे किसी के डीएनए में कोई रैन्डम चेन जाता जिससे हम ये याद रख पाते हैं कि खाना कहाँ पर है, हम अपने से बड़े जानवरों को कैसे चकमा दे सकते हैं? या फिर हम अपनी एनर्जी कैसे बचा सकते हैं? तो उस के जिंदा रहने और अपना डीएनए अगली जेनरेशन में पास करने के चान्सेस उन एन्सिस्टर्स के कंपैरिजन में बढ़ जाते हैं, जिनके डीएनए में वो चेंज नहीं था। हमारे दिमाग में कई सारी ऐसी चीज़े हैं जिनको हम समझ भी नहीं सकते की वो आई कहाँ से क्योंकि दिमाग का हर पार्ट और इवन। हर न्यूरल कनेक्शन का रीज़न हमारे जेनेटिक पास्ट में काफी डीप्ली गड़ा हुआ है। ये पार्ट्स मेनली तीन फंक्शनैलिटी, ज़ को रिप्रेजेंट करते हैं। रेप, टेलिन में मिलियन और प्राइमेट और जीस तरह से ये तीनों लेयर्स आपस में बात करती है। हमारी पर्सनैलिटी वैसी ही बन जाती है और अगर आप अपने माइंड को एक कंप्यूटर में डालना चाहते हो तो आपको इन तीनों लेयर्स दिन में हर एक न्यूरॉन और उसके सारे कनेक्शन्स को सेम टु सेम बनाना पड़ेगा वरना आपके वर्चुअल सेल्फ की पर्सनैलिटी, उसके डिसिशन्स और चौ सेंस आप से अलग होंगी। एक रीसेंट कंपनी जिसका नाम है नेक्स्ट ओम। वो एक काफी स्ट्रेन्ज प्रॉडक्ट ऑफर करती है जिससे हम अपने दिमाग का एक बैकअप बनवा सकते हैं। पर इसके लिए हमें सूइसाइड करनी होगी। लाइक लिटरली नेक्स्ट टाइम बोलता है कि हमारे दिमाग को कंप्यूटर में ट्रांसफर करने का सिर्फ एक तरीका है। यानी एक जिंदा दिमाग को फ्रीज़ करके न्यूरो स्टे से हासिल करना और उन्होंने इस टेक्नीक को पेटेंट भी करा लिया है। इससे कोई भी इंसान अपने दिमाग को सिर्फ कुछ 100 सालों के लिए ही नहीं बल्कि हजारों सालों के लिए प्रिजर्व कर सकता है और जब भी फ्यूचर टेक्नोलॉजी इतनी एडवांस हो जाएगी कि वो उसके नर्वस सिस्टम को एक सॉफ्टवेयर की तरह कंप्यूटर में डाल सकें, तब उस इंसान के माइंड को इस लंबी नींद से जगाया जाएगा। पर चान्सेस है कि उस टाइम हम एक बॉडी के साथ एक ऑपरेटिंग रूम में नहीं बल्कि एक डेटा सर्वर में उठे हैं। अनलेस वो हमारे माइंड को एक रोबोटिक बॉडी के साथ अटैच कर पाए। पर इस प्रोसीज़र में एक ट्विस्ट यही है की हमें ये होप करना होगा कि हम फाइनली 1 दिन वापस आ सके और उसके लिए नेक्स्ट तुमको हमारा जिंदा दिमाग निकालने के लिए हमें मानना होगा क्योंकि अगर वो उस टाइम का वेट करे, जब हम नैचुरली मरेंगे तो उस प्रोसीज़र का कोई फायदा ही नहीं होगा क्योंकि दिमाग के सबसे इम्पोर्टेन्ट फंक्शन्स जैसे मेमोरी ऐक्चुअल डेस्क पर डैमेज हो सकती है और क्योंकि दिमाग बिना ऑक्सीजन के 4 मिनट तक जिंदा रह सकता है। कस्टमर को डायरेक्ट साइंटिस्ट के बीच में मारना और 4 मिनट के अंदर उसे लिक्विड नाइट्रोजन में डूबा देना स्टेटस हासिल करने का अकेला तरीका है। पर ऑब्वियस्ली ये तरीका ज्यादातर लोगों के लिए इतना डरावना और इन लॉजिकल है, जिसकी वजह से इस प्रोसीज़र में जाने वाले लोगों की लंबी लिस्ट उन लोगों से भरी हुई है जिनको कोई जानलेवा बिमारी है। और वो ऑलरेडी मरने वाले हैं तो वो बोलते है क्यों ना हम अपनी लाइफ को इस होप में खत्म कर दे कि हम 1 दिन बिना किसी सफरिंग और दर्द के दुबारा जी पाएंगे? पर अगर हम ये अस्यूम भी कर लें कि माइंड अपलोडिंग 1 दिन पॉसिबल होगा तब भी हमें एक फिलॉसफिकल क्वेश्चन अपने आप से पूछना होगा कि क्या वो अपलोडेड माइंड आप ही होंगे? आइ मीन हूँ आर यू वो क्या होता है जिसे हम बोलते है माइसेल्फ या फिर योरसेल्फ? क्या आप अपनी मेमोरीज़ हो ओर गन्स, बॉडी पार्ट्स या फिर अपने थॉट्स कई रिलिजन्स और जीवन फिलॉसफर्स ने इस प्रॉब्लम को अलग अलग ऐंगल से सॉल्व करने की कोशिश करी है? पर सब से कंपलिंग और प्रैक्टिकल आन्सर हमें के कॉन्सेप्ट्स में मिलता है। ऐलिस इसके फादर सिगमेंट फ्रॉड का स्टूडेंट था। पर कई डिफरेन्स इसकी वजह से वो दोनों अलग हो गए हैं जहाँ पर फ्रॉड का मानना था कि हम एक ब्लैंक मेमोरी के साथ पैदा होते हैं। और हमारा सेल्फ वो होता है जो हमें बताता है कि क्या सही है और क्या गलत। वही युग की अन्डरस्टैन्डिंग इससे थोड़ी ज्यादा डीप थी। उसके हिसाब से ह्यूमन माइन्ड के अंदर हमारे की कॉन्शस मोटिवेशन स् और बायोलॉजिकल मेमोरी बची रहती है। यानी एक बच्चा एक ब्लैक स्लेट की तरह नहीं बल्कि एक नए कंप्यूटर की तरह होता है, जिसमें पुराने कंप्यूटर्स के बेसिक फंक्शन्स भी होते हैं और नई चीजें स्टोर करने की कैपेबिलिटी भी युग का मानना था कि सेल्फ हमारी साई का सेंटर होता है, जिसमें कॉन्शस और अनकॉन्शस माइंड दोनों होते हैं। इसका मतलब हमारी पूरी लाइफ में हमारी पर्सनैलिटी, डार्क साइड या कॉन्शस आइडेंटिटी सब चेंज होंगे। पर जो चीज़ सम रहे गी वो है हमारा सेल्फ, क्योंकि जो कुछ भी अभी हम है और जो कुछ भी हम बन सकते हैं वो सब सेल्फ के अंदर ही आता है। सिंपल वर्ड्स में बोले तो हमारा सेल्फ। हमारी पोटेंशिअल है जिससे हमारी साइट के बाकी सारे पार्ट्स कनेक्टेड हैं और ओलु युगों इस बात के लिए काफी क्रिटिसाइज भी करा गया था पर उसने अपनी बुक साइकोलॉजी ऐंड रिलिजन में 10 सेल्फ को द गॉड विधि नस बोला और ये भी समझाया कि कैसे ज्यादातर रिलिजन्स में जीस चीज़ को सोल या फिर आत्मा बोला जाता है। वो असल में 10 सेल्फी होता है क्योंकि सिर्फ यही एक ऐसी चीज़ है जो हमें हमारे सबसे पहले और इवन पूरे यूनिवर्स से जोड़ती है। नाउ अगर हम अपने फिजिकल ब्रेन में इस सेल्फ को ढूंढें तो न्यूरोसाइन्स बताती हैं कि हमारी आइडेंटिटी ब्रेन के कई पार्ट्स में एक नेटवर्क की तरह फैली होती है, जैसे हमारी ऑटोबायोग्राफिकल मेमोरी स्टोर होती है। हिप्पोकैंपस रेट्रो स्पॉइल को टैक्स पैरा हिप्पोकैम्पस और पोस्ट इरिन फिर ईयर पे रिटेल लोन में। पर अगर हम बात करें पर्सनल इन्फॉर्मेशन को प्रोसेसर करने की या फिर फ़्यूचर गोल्स के बारे में सोचने की तो वो काम मीडिल प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स का होता है। इसका मतलब अगर हम अपने सेल्फ या अपनी आइडेंटिटी को अपलोड करना चाहते हैं तो हमें कुछ ऐसा करना होगा कि हम ब्रेन के इन पार्ट्स में से इन्फॉर्मेशन को रीड कर पाए और उसे एक कंप्यूटर में रीक्रिएट कर पाए। न्यूरोलॉजिस्ट बताते हैं कि हमारे दिमाग में इन्फॉर्मेशन सिनैप्टिक कनेक्शन्स में स्टोर होती है, जो न्यूरॉन्स के बीच में होते हैं और हमारे दिमाग में तकरीबन 1000 करोड़ न्यूरॉन्स होते हैं। जिसमें हर न्यूरॉन एटलिस्ट हजारों कनेक्शन्स बनाता है। इसका मतलब हम बात कर रहे हैं टोटल खरबों सिनैप्टिक कनेक्शन्स की, जिसमें से हर कनेक्शन हमारे लाइफ एक्सपीरियंस की वजह से किसी न किसी तरह से इन्फ्लुयेन्स है। यानी माइंड अपलोडिंग के लिए हमें इन खरबों कनेक्शन्स को एकदम ऐक्युरेसी के साथ स्कैन करना होगा और उसके बाद इन्हें डिजिटल फॉर्म में दुबारा बनाना होगा। नाउ ये चीज़ सुनने में तो काफी इंट्रेस्टिंग है। पर अभी तक हमने एक भी ह्यूमन ब्रेन को पूरा स्कैन नहीं करा है, पर इसका मतलब यह भी नहीं है कि साइनस ने इस एरिया में कोई प्रोग्रेस नहीं करी है। दुनिया के अलग अलग कोनों में साइंटिस्ट दिमाग को स्कैन और कॉपी करने के प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहे हैं ताकि हम हेल्थकेर और मेडिसिन इंडस्ट्री के अगले रेवोल्यूशन तक पहुँच पाए और तभी ज्यादातर ऐकैडैमिक्स के हिसाब से दुनिया भर के लोगों का यह एफर्ट हमें हमेशा जिंदा रखने के लिए नहीं बल्कि हमारे दिमाग की मिस्ट्री को समझने के लिए है। 2014 में रिसर्चर्स ने एक राउंड वर्म के ब्रेन को स्कैन करके उसकी कॉपी एक रोबोट में लगा दी और इस कॉपी ब्रेन के साथ रोबोट बिना किसी प्रोग्रामिंग के फ्रीली मूव करने लग गया। इसके साथ ही ऐसे कई दूसरे प्रोजेक्ट्स भी हैं जहाँ पर ब्रेन को रिवर्स इंजीनियर करके लोगों के अंदर नई मेमोरीज़ डालने की कोशिश करी जा रही है। हाउएवर अब तक का सबसे बड़ा ब्रेन स्कैनिंग प्रोजेक्ट चल रहा है। सिऐटल के एलेन इन्स्टिट्यूट में, जहाँ पर उन्होंने एक चूहे के दिमाग के एक क्यूबिक मिलीमीटर को डिजिटली रीकंस्ट्रक्ट करा है। एक क्यूबिक मिलीमीटर का मतलब है रेत के एक दाने जितना साइज जिसमें 1,00,000 न्यूरॉन्स और करोड़ों साइनैप्स से जा जाते हैं और सिर्फ इतने से पार्ट को स्कैन करने के लिए पहले ब्रेन को 25,000 स्लाइस में काट कर आ गया, जिनकी थिकनेस हमारे एक बाल के पांचवें हिस्से जितनी थी यानी 40 नैनो मीटर्स। इसके बाद उन स्लाइस इसकी लाखों पिक्चर्स ली गई और सिर्फ तब रिसर्चर्स समझ पाए थे। की उस चूहे के दिमाग को एग्ज़ैक्ट्ली कैसे डिजिटल बनाना है? इससे आपको आइडिया हो गया होगा कि एक इंसान के दिमाग को स्कैन करने और डिजिटल बनाने में कितनी मेहनत, टाइम और पैसा लगेगा। यहाँ तक कि हमारे पास उतनी टेक्नोलॉजी ही नहीं है जिसकी मदद से हम एक ह्यूमन ब्रेन को ऐक्यूरेट्लि कैप्चर कर पाए। इस फील्ड में काफी सारे प्रोफेशनल्स का मानना है कि ऐसा एक प्रोसीज़र काम कर जाएगा और हम एक इंसान की एग्ज़ैक्ट पर्सनैलिटी कंप्यूटर में डाल पाएंगे। पर दूसरे लोग डाउट करते हुए बोलते है कि अभी हम कुछ भी शुरली नहीं बोल सकते कि शायद हम किसी और प्रॉब्लम को तो नहीं भूल रहे हैं। यह डिस्कशन और भी इंट्रेस्टिंग बन जाती है जब हम कॉन्वरसेशन में पॉपुलर फिज़िसिस्ट मिर्ची काकू की बुक द फ्यूचर ऑफ माइंड की बात करते हैं। इसमें बताया गया है कि कैसे टेलिपैथी अब रिसर्चर्स के लिए एक काफी सिरियस सब्जेक्ट बन गया है। साइअन्टिस्ट ऑलरेडी एडवान्स्ड सेन्सर्स को यूज़ करके किसी भी इंसान के दिमाग में से इनडिविजुअल वर्ड, फोटो और इवन थॉट को भी रीड कर सकते हैं। और आईबीएम के लीड साइअन्टिस्ट का मानना है कि अगले 5 साल के अंदर हम अपने कंप्यूटर से मेंटली बात करने लगेंगे, जिससे हमें माउस या फिर वौस कमांड की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। यहाँ तक कि जिन अनबिलीवेबल साइकिक एबिलिटीज़ को हम सिर्फ मूवीज़ में देखते हैं जैसे टैली कौन इसिस वो भी हमारी डेली लाइफ का पार्ट बनने के बहुत पास है और 2012 में हमें इस टेक्नोलॉजी का सबसे पहला डेमो मिल गया था। जब एक पैरालाइज फीमेल ने अपने दिमाग पर लगी एक छोटी सी चिप की मदद से एक रोबोटिक आम को हिलाना शुरू कर दिया। इसके साथ ही मिर्चियों आर्टिफिशियल माइंड की इन्टेलिजन्स का एग्जाम्पल देते हुए आईबीएम कंप्यूटर वॉटसन के बारे में बताता है, जिसने 2011 में पॉपुलर गेम शो जेपर्डी में बाकी दोनों कंटेस्टेंट्स को हरा दिया और ऐसे एक कंप्यूटर वन मिलियन डॉलर का प्राइस जीत गया। ने बताया कि वॉटसन की डेटा को प्रोसेसर करने की स्पीड 500 फ्लाइट्स पर सेकंड है, जो कि एक सेकंड में 10,00,000 बुक्स पढ़ने के बराबर है और उसकी रैम 16 बाइट्स है। वॉटसन की इस जीत के बाद काफी सारे लोग बहुत डर गए थे कि फ्यूचर में मशीन्स हमारी दुनिया और हम पर राज़ करेंगी। पर अगर हम सारी हाइप को हटाकर सिर्फ वॉटसन की कैपेबिलिटीज को स्टडी करे तो वो बस एक ऐसी ऐडवान्स मशीन है जो डेटा फाइल्स को ह्यूमन ब्रेन के कंपैरिजन में तेजी से छंट सकती है। पर उसमें कोई सेल्फ अवेर्नेस या फिर कॉमन सेंस नहीं है। यानी हम घूमा फिराकर एक टिपिकल रोबोट पर ही आ जाते हैं, जिसमें कंप्यूटर पावर के अलावा कोई इमोशनल अन्डरस्टैन्डिंग या फिर कॉन्शसनेस है ही नहीं। आर्टिफिशियल इन्टेलिजेन्स की डेवलपमेंट प्रोसेसर में इतने बूम और बस्ट के साइकल्स की वजह से ये बताना बहुत मुश्किल है कि इसकी किस्मत में क्या लिखा है। जैसे 1950 ज़ में बंदे बेसिक रोबोट्स को देखकर लोग ये सोचने लगे थे। की मेकनिकल मेड्स और बटलर तो बस कुछ सालों के अंदर ही सच्चाई बन जाएंगे और यही मैसेज 1950 ज़ के कार्टून्स जैसे रिची रिच की मदद से बच्चों तक पहुंचाया जा रहा था। पर 19 सेवन टीज़ के आते आते लोगों की ये सारी ऑप्टिमिजम खत्म हो गई जब उन्हें यह समझ आया कि उनकी यह इतनी ऐडवान्स मशीन्स सिर्फ एक स्पेशलिस्ट काम ही कर सकती है जैसे एक इंसान को चेस में हराना और भारी चीज़ो को एक जगह से दूसरी जगह पर रखना आर्टिफिशियल इन्टेलिजेन्स के पुराने मॉडल्स का फेल्यर हमें उनकी एक हामी के बारे में बताता है। यानी साइअन्टिस्ट ने हमेशा दिमाग को एक ऐसे डिजिटल कंप्यूटर की तरह देखा है जो एक सीपीयू की तरह काम करता है। पर दिमाग की ये अन्डरस्टैन्डिंग काफी सिम्पली स्टिक हैं क्योंकि अगर हम एक पेंटियम चिप में से सिंगल ट्रांज़िस्टर निकाल दें तो कंप्यूटर उसी टाइम क्रैश हो जाएगा। पर दूसरी तरफ अगर हमारा आधा दिमाग निकाल लिया जाता है। भी हमारा बचा हुआ दिमाग काफी अच्छे से काम कर सकता है और अभी तक ऐसे कई पेशेंट्स के केसेस हैं जिनके दिमाग के एक हेमिस्फेयर को सर्जरी की मदद से हटाया गया है इस प्रोसेसर को बोलते हैं। इन साइट्स के साथ रिसर्चर्स की दिमाग को समझने की नई अप्रोच एवल्यूशन को इम्पोर्टेन्स देती है और एक होलिस्टिक वैल्यू रखती है। मिर्चियों काकू के हिसाब से ये समझने के लिए कि कंप्यूटर्स अभी तक अवेर्नेस हासिल क्यों नहीं कर पाए हैं, हमें उनकी कॉन्शसनेस के लेवल को समझना होगा, क्योंकि कॉन्सियसनेस के फॉर लेवल्स होते हैं, लेवल ज़ीरो पर होते हैं, थर्मोस्टेट और प्लांट्स यानी जिन चीजों में बस गिने चुने फीडबैक लूप होते हैं, जैसे टेम्परेचर ना अपना या फिर सनलाइट को ऐब्सॉर्ब करना लेवल वन पर होते हैं। इन ***** और रेप्टाइल्स जिनके पास एक सेंट्रल नर्वस सिस्टम होता है और जो मूव कर सकते हैं, लेवल टू पर होते हैं। वो एनिमल्स जो दुनिया को समझ पाते हैं, अपने स्पीसीज़ के ऐनिमलस के साथ रिलेशन बना कर जैसे चिम्पैंजी ज़ और फाइनली कॉन्शसनेस लेवल थ्री पर होते हैं। ह्यूमन्स जो टाइम और सेल्फ अवेयरनेस की मदद से अपने फ्यूचर के बारे में सोच पाते हैं, ज्यादातर साइंटिस्ट इस बात पर एग्री करते हैं कि ट्वेंटिएथ सैंचुरी के रोबोट्स लेवल ज़ीरो पर थे और मॉडर्न रोबोट्स लेवल वन पर यानी इवन दो। हम अभी भी एक ह्यूमन जैसे कंप्यूटर बनाने और उसमें अपना माइंड अपलोड करने से कुछ डेकेड्स दूर है पर रोबॉट्स की यह प्रोग्रेस इम्प्रेसिव भी है और एट के सम्टाइम डरावनी भी। हर नई टेक्नोलॉजी की तरह आर्टिफिशियल इन्टेलिजेन्स को भी शुरू में डाउट करा जाएगा। बिल्कुल वैसे ही जैसे लोगों ने वैक्सीन्स मोबाइल फोन्स, इंटरनेट और सोशल मीडिया को डाउट कर रहा था। पर जैसे जैसे ये चीजें कॉमन होती गई वैसे वैसे इन चीजों को डाउट करने वाले लोग भी हार मानकर इन्हें अपनाने लगे। और अगर हम अपने रोबोट्स की ह्युम्न्स को मारने के इस डर को साइड रख के आर्टिफिशियल इन्टेलिजेन्स की पॉसिबिलिटीज़ को देखें तो ये रिस्क काफी सेंसिबल साउंड करता है। जैसे हम अपने अपलोडेड माइंड को एक दूर की गैलैक्सी तक भेज सकते हैं, जहाँ पर वह अपनी और कॉपीस बनाकर उस गैलैक्सी को पॉप्युलेट करने लगेगा या फिर अगर हम चाहते हैं कि हम बायोलोजी या फिर टैंक में अपना करियर बनाएं तो हम सिम्पली अपने अपलोडेड माइंड की दो कॉपी बनाकर उन्हें दोनों फील्ड में एक सेल करने को बोल सकते हैं। यहाँ तक कि हम सबसे इंटेलीजेंट लोगो के माइंड के डेटा को आपस में मर्ज करके उससे दुनिया और लाइफ के सबसे बड़े क्वेश्चन्स के आन्सर्स मांग सकते हैं। पर जहाँ इतनी सारी पॉसिबिलिटीज़ हमारी लाइफ को आसान बना देंगी वहीं इसकी वजह से काफी सारे क्वेश्चन्स भी आते हैं। जैसे क्या अपलोडेड माइंड उस इंसान के मरने के बाद उसकी रिस्पॉन्सिबिलिटीज लेगा या फिर अगर एक अपलोड दूसरे अपलोड को डिलीट कर दें तो क्या वह एक क्राइम माना जाएगा? और अगर फ्यूचर में इंडिया का प्रेज़िडेंट मर जाए तो क्या उसका अपलोडेड माइंड प्रेज़िडेन्सी जैसी पोज़ीशन को हैंडल कर पाएगा? फ्यूचर में आने वाली जेनरेशन सको, इन सारे क्वेश्चन्स को फेस करना होगा। पर सबसे डरा देने वाला क्वेश्चन तो ये है कि क्या तब हमारे डिजिटल माइंड को डिस्ट्रॉय करने वाला कोई वायरस भी होगा? या फिर तब क्या होगा जब हमारे अपलोडेड माइंड को हैक कर लिया जाएगा?","अपनी चेतना को कंप्यूटर में अपलोड करना आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) की दुनिया में काफी चर्चा का विषय रहा है। पिछले कुछ दशकों में, मशीन लर्निंग एक ऐसी चीज़ में विकसित हुई है जो केवल विज्ञान-फाई फिल्मों में देखी गई थी। संक्षेप में, हम डिजिटल हो गए हैं और इन सभी नई तकनीकों के साथ, इस युग ने हमें एक डिजिटल मानव की संभावना के बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया है जो हमेशा के लिए जीवित रह सकता है। इस डॉक्यूमेंट्री में, हम AI के साथ एक होने के पक्ष, विपक्ष, संभावनाओं और तरीकों का पता लगाते हैं, हमें Youtube पर खोजें: www.youtube.com/psychologyinhindi" "जेलेसी एक बहुत ही कॉमन फीलिंग है जो एक इंसान किसी ऐसे दूसरे इंसान को लेकर एक्स्पेन्स करता है जिससे वह खुद से किसी एरिया में बेहतर मानता है। जेलसी ने आज तक बहुत से क्लोज़ रिलेशनशिप को खराब कर रहा है क्योंकि यह एक ऐसी टॉक्सिक फीलिंग होती है जो आपके फ्रेंड्स और फैमिली में ज्यादा होती है और पराई लोगों में कम। जहाँ एक स्ट्रेंजर को आपके सक्सेस या फिर फेल्यर से ज्यादा कुछ फर्क नहीं पड़ेगा, वहीं अगर आप ज्यादा पैसे कमाओ, तो आपकी रिलेटिव्स कुछ न कुछ बातें बनाने लगेंगे। या फिर स्कूल या कॉलेज में अगर आप एक अट्रैक्टिव इंसान को अपना पार्टनर बना लो तो वो चीज़ आपके 100 कॉल्ड फ्रेंड को जेलस बना देती हैं। ये लोग ऊपर से तो हमारे भले के लिए विश करते हैं लेकिन अंदर ही अंदर हमें हेट कर रहे होते हैं। इस तरह की जेलसी सबसे ज्यादा खतरनाक होती है क्योंकि यह आपकी नजर में नहीं आती और आपके फ्रेंड्स या फिर फैमिली मेंबर्स को स्लोली आपका दुश्मन बना देती है। इसी वजह से आपके डाउट्स को दूर करने के लिए हम आज डिस्कस करने वाले हैं। जेलेसी के कई ऑब्वियस साइनस को साइन नंबर वन देर कॉंप्लिमेंट सार्इं शेर एक चीज़ जो जेलस लोग कभी ऐडमिट नहीं करेंगे, वह यह है की वो आपसे जलस है। जब भी आपके साथ कुछ अच्छा होता है तब वह बहुत ही सपोर्टिव बन जाते हैं और आपको या फिर फेक कॉम्प्लिमेंट देने लगते हैं। लेकिन आपकी पीठ पीछे वो आपको बहुत ही बुरा भला बोलने लगते हैं और आपको अपनी अचीवमेंट के लिए अन्न डिज़र्विंग लेबल कर देते हैं। ये एक इनसेक्युर और जेलस इंसान की निशानी होती है कि आपको एक गुड न्यूस मिलते ही वो आपको कॉन ग्रैजुएट करने से पहले एक हैरानी और दबे हुए गुस्से वाला पोज़ लेते हैं और उसके बाद आप के आगे खुश होने की एक्टिंग करते है। जीवन कई जेलस लोगों के तो कॉंप्लिमेंट में भी एकता ना होता है। जैसे अगर आपको एक नयी जॉब मिले तो वो जेलस इंसान बोले गा कि वैसे तो वो कंपनी इतने अन्य एक्सपिरियंस लोगों को जॉब नहीं देती है लेकिन मैं तुम्हारे लिए खुश हूँ कि तुम्हें यह ऑपर्च्युनिटी मिली। ऐसी चीज़ सुनकर आप भी सोच में पड़ जाते हो की वो आपकी तारीफ कर रहे हैं या फिर बेजती साइन नंबर टू दें ओवर इंफोसिस देर अचीवमेंट्स जहाँ आप बहुत से केसेस में अपनी अचीवमेंट के बारे में बताने या फिर खुद की तारीफ करने में शर्म आओगे, वहीं जेलस लोग अक्सर खुद को आपसे दिखाने के लिए अपनी ही अचीवमेंट के बारे में बात करते नहीं थकते हैं। वो इतने ज्यादा इनसेक्युर होते हैं कि वो हमेशा अपने मन में खुद को आपसे कंपेर कर रहे होते हैं और यही कंपैरिजन उनकी खुद की सक्सेस को ओवर एम्फेसिस करने के रूप में दिखता है। साइन नंबर थ्री दें गिव यू बैड वाइस जेलस लोग आपको सिर्फ फेल होता हुआ देखना चाहते हैं। वो नहीं चाहते कि आप उनसे और ज्यादा बेटर बनो। इसलिए जब भी आप किसी ऐसे इंसान से एक जेन्यूइन एंड वाइज़ लेने की कोशिश करोगे तब वो हमेशा जानबूझकर आपको बहुत ही बुरी एडवाइस देंगे या फिर आपको कुछ भी नया ट्राई करने से रोकने की कोशिश करेंगे। अगर आप उन्हें अपने गोल्स फिर फ्यूचर के प्लैन के बारे में बताओ तो वो कुछ भी करके उसमें बहुत ही छोटी और इग्नोर करने लायक कमियां निकालने लगेंगे ताकि आप अपने ड्रीम्स के पास कभी ना पहुँच को और उनके लेवल पर ही रहो। साइन नंबर फ़ोर दे, ऑलवेज हैव नेगेटिव बॉडी लैंग्वेज अराउंड यू यह एक और मेजर साइन है। एक ऐसे इंसान का जो आपसे जेलस है और आपको पसंद नहीं करता। यानी वो आपके अराउंड कभी भी एक काम और ओपन बॉडी लैंग्वेज के साथ नहीं, बल्कि हमेशा एक क्लोज़ बॉडी लैंग्वेज के साथ बैठेगा और उसके लेग्स या आर्म्स यूज़्वली आपसे बात करते हुए हमेशा क्रोस रहेंगे। इसलिए जब भी आप अपनी अचीवमेंट को दूसरों के आगे शेर करो तब उनके लेग्स और आर्म्स को ऑब्जर्व करो और अगर वो हमेशा ही ऐसे पॉइंट पर एक नेगेटिव बॉडी लैंग्वेज दिखाने लगते हैं तो समझ जाओ कि वो आपकी सक्सेस से बिल्कुल खुश नहीं हैं। साइन नंबर फाइव दे डाउन प्ले योर अचीवमेंट्स एक जेलस इंसान को यह बात सबसे ज्यादा चुभती है कि जीस इंसान से वो जलते है। वो कॉन्स्टेंट ली कुछ ना कुछ अचीव करें जा रहा है और ऐसे सिचुएशन में वो उस इंसान की अचीवमेंट को छोटा और अन्य इम्पोर्टेन्ट ट्रीट करने लगते हैं। वो ऐसा करते है आपकी अचीवमेंट को आपकी स्किल से नहीं बल्कि आपकी अच्छी किस्मत और आपकी चालाकी से जोड़कर जैसे अगर आपको अपनी जॉब में प्रमोशन मिले तो वह यह मानने के बजाय कि आप उन से कई में बेटर हो, वह आपके पीठ पीछे यह बोलेंगे कि आपको प्रमोशन इसलिए मिला क्योंकि आप बॉस को मक्खन लगाते रहते हो या फिर आपने कोई और टेढ़ा रास्ता चुना। साइन नंबर, सिक्स दे कॉपी यू जेलस लोग आपसे और आपकी हर एक चीज़ से बहुत ज्यादा ऑफिस जो होते है और वो आपकी हर अच्छी चीज़ को अपना बनाना चाहते हैं जिसकी वजह से उनकी यही डिज़ाइनर दिखती है। उनकी आपके हर मूव या फिर बिहेव्यर को कॉपी करने की कोशिश में है। अगर आपने कोई नई तरह के कपड़े लिए तो थोड़े दिनों बाद आप उन्हें भी वैसा ही कुछ पहना देखोगे। वो आपके बोलने का स्टाइल या फिर आपके रेग्युलरली बोले जाने वाले स्पेसिफिक वर्ड्स को भी कॉपी करने लगेंगे। या फिर अगर आप अपनी फिटनेस पर ध्यान देने लगे हो तो वो आप की बराबरी करने के लिए खुद भी एक जिम जॉइन कर लेंगे या फिर आपको अपने फिटनेस रूटीन के बारे में बताने लगेंगे। ऐसे में आप भी एक पॉइंट के बाद सोचने लागोंगे कि यह इंसान आप को कॉपी करके या फिर आपसे हमेशा कंप्लीट करके हासिल किया करना चाहता है। नंबर सेवन दे टेक सैटिस्फैक्शन इन योर मिस्टेक्स जेलस लोग आपको हमेशा कुछ भी अच्छा करने से रोकेंगे ये बोलकर कि वो आपके लिए बेस्ट डिसिशन नहीं है और इस तरह से अगर आप एक रिस्क लेकर उस काम को उनके मना करने के बावजूद भी करते हो और बी चान्स उसमें फेल हो जाते हो तो वो कहेंगे कि देखा मैंने तो बोला ही था। यानी आपके फेल्यर में वह आपको लोन ना फील कराने के लिए कभी भी यही बोलेंगे कि अपने फेल्यर से सीखो या फिर नेक्स्ट टाइम और अच्छे से कोशिश करना। इसके बजाय वो आपकी गलतियों में ही अपना प्लेजर ढूंढने की कोशिश करेंगे। इस तरह के कमेंट को इग्नोर करना आपके लिए बहुत टफ हो सकता है। क्योंकि आप कभी भी ये नहीं चाहेंगे कि आपको कोशिश करने के लिए कोई डिमोरलाइज करें क्योंकि जब भी एक इंसान के मन में यह बैठ जाता है कि फेल्यर टोटली नेगेटिव होता है और फेल होने का मतलब है कि आपको कभी दुबारा ट्राई नहीं करना चाहिए तो ऐसा इंसान कभी भी आगे नहीं बढ़ पाता। इसलिए अपने क्लोज़ सर्कल में ऐसे लोगों को नोटिस करो जो आपको ट्री करने के लिए अप्रिशिएट नहीं बल्कि बस फेल होने के लिए आपको ताने मारते है और आपकी गलतियों में खुद की सैटिस्फैक्शन ढूंढ़ते हैं। लाइन नंबर एट दे डोंट रिस्पेक्ट योर डिसिशन्स एक जेलस इंसान कॉन्स्टेंट ली आपके डिसिशन्स और एक्शन्स को गलत प्रूफ करने की कोशिश करता है। जैसे अगर आप काम से ब्रेक लेकर कही घूमने जाओ तो वो बोलेंगे कि आप अपने काम को लेकर सीरियस नहीं हो और अगर आप हमेशा काम करते रहो तब भी वो बोलेंगे कि आप लाइफ को खुलकर नहीं जीते हैं। यानी चाहे आप कुछ भी करो उनकी नजर में आप हमेशा कुछ ना कुछ गलत ही कर रहे होते हो। इसलिए हमेशा दूसरे इंसान के डिसिशन्स को गलत बोलना और किसी की सोच की बिल्कुल भी रिस्पेक्ट ना करना यह भी एक जेलसी का साइन होता है। नंबर नाइन यू ऑलवेज हियर रूमर्स अबाउट देर गॉसिप्स यानी आप अपने उस सो कॉल्ड अच्छे फ्रेंड के बारे में अक्सर दूसरों से सुनते हो। की वो आपकी पीठ पीछे आपकी बुराइ करता है। लेकिन जब भी आप उसे कॉन्फ्रेंस करके इस बारे में पूछो तो वो हमेशा इन बातों को झूठ ही बोलता है। जीवन आप ऐसे इंसान को अपने साथ भी यही करते हुए देखोगे कि जब वो आपके साथ होता है तब वो आपकी नहीं बल्कि दूसरों की बुराइ और उनकी अचीवमेंट्स को छोटा दिखाने की कोशिश कर रहा होता है। इसका मतलब वो आपकी पीठ पीछे आपकी बुराइ करता है और दूसरों की पीठ पीछे उनकी जीस वजह से ऐसा बिहेव्यर एक बहुत ही बड़ा रेड फ्लैग और जेलेसी का साइन होता है। नंबर 10 दे आर नॉट सपोरटिव ये बात अब हमेशा याद रखना कि ऐसे दोस्तों, रिलेटिव, ज़ या फिर फैमिली मेंबर्स का कोई फायदा नहीं होता, जो आपको एक बेहतर इंसान बनने में ना तो मदद कर सकते हैं और ना ही करना चाहते हैं। एक हेल्दी रिलेशनशिप वो होता है जहाँ आप अपने सर्कल के हर एक इंसान की उनकी अंदर मौजूद पोटेंशिअल को बाहर लाने में उनकी मदद कर सकू हो और वो यही सेम चीज़ आपके लिए करें। लेकिन जेलस लोगों के केस में जब भी आप किसी मुश्किल में फंसे होते हो या फिर आपको अपने एक लो पॉइंट पर उनका सपोर्ट चाहिए होता है तब आपको वो इंसान कहीं नहीं दिखता और यह भी एक क्लिअर साइन हो सकता है। कि आपका वह दोस्त या फिर रिश्तेदार आपको एक्चुअल में पसंद ही नहीं करता और वो आपसे जेलस है? साइन नंबर 11 दे चेन्ज इन फ्रन्ट ऑफ अदर्स एक जेलस इंसान आपके सामने आपकी तारीफ कर सकता है और बहुत ही स्वीट बन सकता है। लेकिन जस्ट बिकॉज़ वो रेग्युलरली आपकी पीठ पीछे आपकी बुराइ कर रहा होता है तब जब भी आप दोनों दूसरे लोगों के साथ होते हो तब वो आप से थोड़ी दूरी बनाने लगता है और शांत रहने लगता है। यह भी एक बहुत ही बुरा साइन होता है क्योंकि अगर कोई इंसान दुसरो के आगे आपके बारे में ज़रा सा भी पॉज़िटिव बोलने में कतराता है। तो उसका मतलब वो असलियत में आपको तारीफ के काबिल समझता ही नहीं है और जैसा कि अमेरिकन बिशप फुल्टन शेन बोलते थे कि जेलेसी बस एक मीडियम होता है, जिससे मीडिया जीनियस को रिस्पेक्ट पे करती है।","ईर्ष्या वास्तव में एक सामान्य भावना है जो एक इंसान किसी ऐसे व्यक्ति के प्रति अनुभव कर सकता है जिसे वह अपने से बेहतर समझता है। ईर्ष्या ने अपने विषैले स्वभाव के कारण कई रिश्तों को नष्ट कर दिया है। जहां कोई अजनबी वास्तव में आपकी सफलता या असफलता की परवाह नहीं करेगा, ऐसे परिदृश्य में आपके मित्र और परिवार सबसे खुश या सबसे ईर्ष्यालु होंगे। इसलिए यह जानने के लिए कि आपकी मंडली में कोई आपसे ईर्ष्या करता है या ईर्ष्या करता है या नहीं, हम आपसे अत्यधिक ईर्ष्या करने वाले व्यक्ति के 11 प्रमुख संकेतों पर चर्चा करने जा रहे हैं।" "मेंटली स्ट्रॉन्ग लोग बचपन से ही अपनी मेंटल मसल्स के साथ पैदा नहीं होते, बल्कि असलियत में मेंटल स्ट्रेंथ डेवलप कर दी जाती है। अच्छी हैबिट्स के थ्रू और यही वो हैबिट्स होती है जो इन लोगों को बाकियों से अलग बनाती है। हम सभी कभी ना कभी एक ऐसे पॉइंट पर जरूर आते हैं जब लाइफ हमारी मेंटल टफनेस को टेस्ट करती हैं। फिर चाहे वो एक ब्रेकअप हो, एकं फिलिंग कैरिअर। पैरेन्ट्स के सपोर्ट की कमी या फिर कोई और बड़ी प्रॉब्लम? हर फेस से डील करने के लिए आपका स्ट्रॉन्ग होना बहुत ज़रूरी है। हाउएवर मेंटली स्ट्रॉन्ग बनना जितना आसान साउंड करता है, उतना ये है नहीं। जितनी बार भी आप अपनी आदतें बदलने की कोशिश करोगे उतनी बार ही या तो आपकी आसपास रहने वाले लोग आपको चेंज होने से रोकेंगे या फिर आप खुद ही डिस्कम्फर्ट की वजह से अपने ऊपर मेहनत करना बंद कर दोगे। इसलिए आज हम कहीं ऐसी हैबिट्स के बारे में बात करेंगे जो काफी सिंपल भी है और एट द सेम टाइम अगर आप इन्हें प्रैक्टिस करना शुरू करो तो बहुत जल्द ही आप भी अपनी मेंटल स्ट्रेंथ को डेवलप कर पाओगे। नंबर 12 मेंटली स्ट्रॉन्ग लोग अपने प्रेज़ेंट को सैक्रिफ़ाइस करते हैं एक बेहतर फ्यूचर के लिए, क्योंकि हर मेंटली स्ट्रॉन्ग इंसान ये बात जानता है। की। अगर उन्होंने अपने प्रेज़ेंट में मज़ा कर लिया तो उससे उनका फ्यूचर खराब हो जाएगा। जबकि जो लोग मेंटली वीक होते हैं उन्हें हर पॉज़िटिव चीज़ अभी के अभी चाहिए होती है क्योंकि उन्हें प्लेजर लेने की आदत होती है और वो पेन से डरते हैं। सैक्रिफाइजिंग का ये आइडिया इतना ज़्यादा डीप है कि हम इसे जितना डिस्कस कर ले उतना कम है। ज्यादातर लोग इस बात को कभी समझ ही नहीं पाते कि प्रेज़ेंट में अपनी खुशी को सैक्रिफ़ाइस करने का असली मतलब है कि आप टाइम और रिऐलिटी के स्ट्रक्चर को समझते हों। जो लोग हमेशा अपने जरूरी कामों को टालते रहते हैं। ना तो उन्हें टाइम की समझ होती है और ना ही उनको ये रियललाइज होता है कि उनकी ये बुरी आदत उन्हें मेंटली वीक बना रही है और अगर वो अपनी लाइफ में कुछ हासिल करना चाहते हैं तो उन्हें खुद ही अपने आप को काम करने के लिए मोटिवेट करना होगा। इसलिए हमेशा सबसे पहले अपने जरूरी कामों को खत्म करो और सिर्फ उसके बाद अपने आप को रिवॉर्ड करो। नंबर 11 वो डेथ को अच्छे से समझते हैं और मरने से बिल्कुल नहीं डरते हैं। ज्यादातर मेंटली वीक लोगों का डेथ का डर इनडायरेक्टली दिखता है। जैसे या तो वो अपने आप को चेंज करने से डरते हैं या फिर वो सच को नहीं है। टैप कर पाते हैं और डेथ की एक डी पर ने स्टैंडिंग आप को मेंटली काफी सारे इश्यू से फ्री कर देती है। आप इस चीज़ के साथ काफी केर्फुल होते हो की आप अपना टाइम किन ऐक्टिविटीज़ या लोगों को दे रहे हो और कौन सी प्रॉब्लम्स एक्चुअल मैं आपकी लाइफ को इफेक्ट करती है और कौन सी प्रॉब्लम्स को सॉल्व करना बस टाइम वेस्ट है क्योंकि आपको पता होता है कि आपके पास बहुत लिमिटेड टाइम है और 1 दिन आप मर जाओगे। इसलिए अपनी डेथ पर मेडिटेट करो और ये देखो कि आप इस नेगेटिव चीज़ में से पॉज़िटिव क्या निकाल सकते हो। नंबर 10 वो हमेशा सच बोलते हैं। ये मेंटली स्ट्रॉन्ग बनाने की सबसे जरूरी है। बिट है क्योंकि झूठ आप को कमजोर बनाता है। जितनी बार भी आप दूसरों से झूठ बोलते हो, उतनी ही बार ही कहीं ना कहीं आप अपनी मेंटल रिऐलिटी को भी जूता बना रहे होते हो और जो आपका ट्रू सेल्फ है उससे दूर जा रहे होते हो। ज्यादातर लोग झूठ का सहारा इसलिए लेते हैं क्योंकि सच्चाई को फेस करना बहुत दर्दनाक होता है क्योंकि हम अपने हर एक्सपिरियंस या लर्निंग के बेसिस पर अपनी ईगो को फॉर्म करते हैं, जो हमें ये बताती है कि हम हैं कौन पर अगर किसी पॉइंट पर हमें ये लगता है यार हम तो शायद अपने आप को अपने बारे में गलत कहानी सुना रहे थे और अपने आप से झूठ बोल रहे थे तो वो पॉइंट हमारी ईगो के लिए एक की तरह होता है, क्योंकि आपके दिमाग में ये क्वेश्चन आता है की अगर आप वो नहीं हो जो आप अपने आप को समझ रहे थे तो आप हो कौन? ये क्वेश्चन अपने आप में काफी होता है एक इंसान के कई झूठे पार्ट्स को मारने के लिए और ये पूरा प्रोसेसर बहुत जरूरी होता है। आपकी ट्रांसफॉर्मेशन और पर्सनल ग्रोथ के लिए यही रीज़न है की क्यों? अगर आप मेंटली स्ट्रॉन्ग बनना चाहते हो तो आपको अपने आप से और दूसरों से सच बोलना होगा। नंबर नाइन। वो अपना फोकस सिर्फ अपनी और अपने चाहने वालों की लाइफ पर रखते हैं। यानी मेंटली स्ट्रॉन्ग लोग अपनी मेंटल एनर्जी को न्यूज़ पॉलिटिक्स जेलसी, टॉक्सिक रिलेशनशिप्स। ये किसी और की बुराइ करते हुए वेस्ट नहीं करते हैं बल्कि वो अपनी लाइफ को बेहतर बनाने पर ध्यान देते हैं। यहाँ पर हम प्राइवेट ईज़ और एक इंसान की सेल्फ एस्टीम की बात कर रहे हैं। क्योंकि मेंटली स्ट्रॉन्ग लोग अपने आप में काफी सिक्योर होते हैं और उन्हें किसी का अप्रूवल लेने की जरूरत नहीं होती। ऐसा रिज़ल्ट उन्हें ऐसा नहीं लगता कि उन्हें किसी को नीचा दिखाने की जरूरत है। अपने बारे में बेहतर फील करने के लिए इसलिए आप भी अपनी इन साइकोलॉजिकल प्रॉब्लम्स पर ध्यान दो और दूसरों की लाइफ में इन्ट्रेस्ट लेने के बजाय पहले अपनी प्रॉब्लम्स को सॉल्व करो। नंबर एट वो अपने हर ऐक्शन और डिसिशन की रिस्पॉन्सिबिलिटी लेते हैं और वो कभी भी अपनी मुश्किलों की वजह से अपने लिए सॉरी फील नहीं करते हैं। हर मेंटली स्ट्रॉन्ग इंसान चाहे कितनी भी मुश्किल सिचुएशन में फंसा हो, वो कभी भी ये नहीं बोलता की वो एक विक्टिम है या फिर उसकी किस्मत किसी और इंसान ने खराब कर रही है, बल्कि उन्हें अपने हर ऐक्शन और डिसिशन की रिस्पॉन्सिबिलिटी लेने की आदत होती है। इसलिए दूसरों पर रिलाय करने के बजाय अपनी लाइफ की रिस्पॉन्सिबिलिटी लो और जो भी ऐक्शन का रिज़ल्ट निकले उसे एक्सेप्ट करो। ये चीज़ आप को मेंटली स्ट्रॉन्ग भी बनाएगी और मैच्योर भी। नंबर सेवन वो अपने इमोशन्स को स्टेबल रखने के लिए रूटीन्स का सहारा लेते हैं। यानी लॉन्ग टर्म के लिए गोल सेट करना और फिर उन्हें अचीव करने के लिए डेली रूटीन बनाना अपनी मेंटल स्ट्रेंथ को बढ़ाने में बहुत यूज़फुल साबित होता है। क्योंकि जब आपका हर दिन काफी स्ट्रक्चर्ड होता है, तब आपके दिमाग में बाकी जरूरी चीजों से डील करने के लिए ज्यादा का पैसा ठीक होती है। दूसरी तरफ अगर आप अपना टाइम है, फिश इटली नहीं यूज़ कर रहे होते तो आप हमेशा इसी कन्फ्यूजन में फंसे रहते हो। कि आपको हर अगले मूवमेंट में क्या करना चाहिए और यही कन्फ्यूजन आपकी डिसिशन मेकिंग, रिस्क असेसमेंट और आपकी मुश्किलों से डील करने की एबिलिटी को नेगेटिवली इन्फ्लुयेन्स करके आपको मेंटली वीक बनाती है। नंबर सिक्स उन्हें ऐसा लगता है कि उनकी लाइफ उनके कंट्रोल में है। अपनी जिंदगी पर अपना कंट्रोल होने की फीलिंग को साइकोलॉजी में बोला जाता है। इंटरनल लोकस ऑफ कंट्रोल और रिसर्च बताती है कि जिन लोगों को ऐसा लगता है कि उनकी किस्मत उनके खुद के ऐक्शन पर डिपेंड करती है और बाहरी सर्कमस्टान्सेस पर कम उन लोगों की साइकोलॉजिकल वेल बीइंग उन लोगों के कंपैरिजन में ज्यादा होती है, जो ये मानते हैं कि उनकी लाइफ का कंट्रोल उनके हाथ में नहीं है। इसलिए हर समय अपने आप को यह याद दिलाओ कि आपका हर अगला मूव या डिसिशन आपकी किस्मत को बनाने या बिगाड़ने की ताकत रखता है। इस अंडरस्टैंडिंग के साथ आप अपनी जिंदगी पर ज्यादा कंट्रोल फील करोगे और अपने आप को मेंटली स्ट्रॉन्ग बना पाओगे। नंबर फाइव वो अपनी बॉडी की केयर करते हैं। यहाँ पर हम 7-8 घंटे की नींद रेगुलर एक्सर्साइज़ और फ्रूट्स वेजिटेबल्स और एक से भरी एक डाइट के बारे में बात कर रहे हैं क्योंकि जीस तरह से आप अपनी बॉडी को ट्रीट करते हो, उसका असर आपकी थिंकिंग और आपकी मेंटल कैपेबिलिटीज पर भी पड़ता है। अगर आप फिजिकली फिट हो तो आप साइकोलॉजिकली ज्यादा प्रॉब्लम्स को इंदौर कर पाओगे और किसी भी सिचुएशन में ईजी गिवअप नहीं करोगे, जबकि एक वर्ड लाइट या फिर सैनिटरी लाइफ स्टाइल आपको फिज़िकली और मेंटली वीक बनाता है, यही रीज़न है की क्यों? मेंटली स्ट्रॉन्ग लोग जितना ध्यान डाइरेक्टली अपनी मेंटल एबिलिटी को डेवलप करने में लगाते हैं, उतना ही ध्यान वो अपनी फिजिकल एबिलिटीज़ पर भी लगाते हैं। नंबर फ़ोर मेंटली स्ट्रॉन्ग लोग सॉलिट्यूड से दूर नहीं भागते हैं क्योंकि सॉलिट्यूड सेल्फ अवेर्नेस के लिए बहुत जरूरी होता है। बिना कुछ टाइम अकेले बिताएं आपको यह समझ ही नहीं आती कि आपके दिमाग में जो इतने सारे कॉन्ट्राडिक्ट्री थॉट्स चल रहे हैं, उसमें से कौन से थॉट्स आपके है और कौन से थॉट्स आपने न्यूस अपने फ्रेंड्स, मूवीज़, अपने पैरेन्ट्स या फिर सोसाइटी से बॉरो कर रखे हैं जितना आप अपने थॉट्स को अकेले रहकर क्वेश्चन करते हो, उतना ही आप अपने बेस्ट पॉसिबल वर्जन को निखार पाते हो। यही रीज़न है की वो मेंटली स्ट्रॉन्ग लोग सॉलिट्यूड में जाने से डरते नहीं है बल्कि वो टाइम टु टाइम उसे प्रिफर करते है। नंबर थ्री वो मुश्किल सिचुएशन उसमें कंप्लेन नहीं बल्कि अपने आप को अडैप्ट करते है। ये आज के समय के लिए बहुत जरूरी है। बिट है। जहाँ हर चीज़ काफी तेजी से बदलती रहती है तो ऐसे में जो लोग चेंज से डरते हैं और उसे एक्सेप्ट नहीं कर पाते वो पीछे रह जाते हैं। दूसरी तरफ मेंटली स्ट्रॉन्ग लोगो की मेंटैलिटी कुछ ऐसी होती है की वो चेंज और मुश्किलों को अपने आप को ग्रो करने की ऑपर्च्युनिटीज की तरह देखते हैं और आप भी इस हैबिट को डेवलप कर सकते हो। धीरे धीरे अपने आप को नए सिचुएशन्स में इक्स्पोज़ करके नंबर टू वो पास्ट या फ्यूचर में नहीं बल्कि प्रेज़ेंट में जीते हैं। स्टोइक फिलॉसफर सैनिक आने ये बात बिलकुल सही बोली थी। ये की हम रिऐलिटी से ज्यादा अपनी इमैजिनेशन में सफर करते हैं। ज्यादातर लोग एक कड़वाहट रिग्रेट या एंजाइटी से भरी लाइफ जीते हैं और उनकी ये बुरी हैं भी उन्हें मेंटली कमजोर बनाए रखती है। इस हैबिट का ज़िक्र हमने हैबिट्स ऑफ अनहैप्पी पीपल वाले एपिसोड में भी करा है क्योंकि बिना अपने प्रेज़ेंट में जिए आपके पास सफर करने के अलावा कोई ऑप्शन नहीं बचता। इसलिए अपनी डिस्ट्रैक्शन को हटाओ और प्रेसेंट पर फोकस करने की आदत बनाओ। नंबर वन वो हेल्थी बाउंड्रीज़ बनाते हैं और दूसरों से एक्सपेक्टेशन्स कम रखते हैं। मेंटली स्ट्रॉन्ग होने का मतलब है कि आपको दूसरे लोगों की चालें और दो के मैटर नहीं करते क्योंकि आप पहले ही उनसे कोई एक्सपेक्टेशन्स नहीं रखते हैं। अगर वो आपको कुछ बुरा भला बोलते हैं तो आप उनकी बातों को पर्सनली नहीं लेते और साथ ही साथ आप उन्हें क्लियरली ये बता देते हो कि आपकी कुछ बाउंडरीज है और अगर उन्हें क्रॉस करा जाता है तो आप उन्हें सीरियसली नहीं ले सकते हैं। ये हैबिट बहुत इफेक्टिव ली काम करती है उन सिचुएशन्स में जहाँ आप किसी टॉक्सिक इंसान से डील कर रहे होते हो।","मानसिक मजबूती कोई ऐसी चीज नहीं है जिसके साथ आप पैदा हुए हैं, बल्कि यह उन आदतों का परिणाम है जो आप रोजाना करते हैं। लेकिन मानसिक दृढ़ता का निर्माण करना उतना आसान नहीं है जितना लगता है, इसलिए इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम 12 बहुत ही सरल लेकिन प्रभावी आदतों पर चर्चा करते हैं जो आपको मानसिक रूप से मजबूत व्यक्ति बनने में मदद करेंगी।" "क्रिटिकल थिंकिंग का मतलब है कि आपके अंदर एबिलिटी है, क्लियरली सोचने की और आपरेशनल ली इस कॉन्क्लूज़न पर आ सकते हो कि आपको क्या करना चाहिए और किन बातों में बिलीव करना चाहिए। इस तरह की थिंकिंग आपको हर चीज़ के बारे में डीप्ली सोचने के काबिल बनाती है जिससे आप टीवी न्यूस, सोशल मीडिया, पैरेन्ट्स, टीचर्स या अपने कल्चर से ट्रूथ को नहीं करते हो, बल्कि आप खुद ही हर इन्फॉर्मेशन को लॉजिकली ऐनालाइज करते हो और खुद तीरथ को ड्राइव करते हो। दूसरी तरफ जो लोग क्रिटिकली नहीं सोच पाते वो अपने इमोशन्स या अपनी साइकोलॉजिकल कन्डिशनिंग के बेसिस पर रिऐक्ट करते हैं। ऐसे लोग बिल्कुल भी टॉलरेट नहीं होते और जब भी उनके आगे कोई ऐसी आर्ग्यूमेंट या फैक्ट रखा जाता है जो उनकी कन्डिशनिंग के अगेन्स्ट जाता है। तब यह एक सॉलिड काउन्टर आर्ग्यूमेंट देने के बजाय आप को चिढ़ाते हैं या फिर गुस्से और सर के जिम का सहारा लेते हैं आपकी रेपुटेशन खराब करने के लिए ताकि इवन अगर आपकी बात सही भी हो तब भी दूसरे लोग आपको गलत मान ले। अगर आप भी हमेशा काम रहकर दूसरों की आर्गुमेंट्स को ऐनालाइज करते हो तो ये चीज़ आपके लिए बहुत रिलेटेबल होगी क्योंकि आजकल ज्यादातर लोग अपनी थिंकिंग को आउटसोर्स करते हैं और बिना कुछ सोचे समझे ये डिक्लेर कर देते हैं कि उनका सच ही असली सच है और बाकी सब बकवास है। हाउएवर अच्छी न्यूस यह है कि ऑलमोस्ट हर इंसान ही एक क्रिटिकल थिन कर बन सकता है। बिना कोई बुक पड़े और बिना किसी टीचर के। सो इस एपिसोड में हम ऐसे छे तरीकों को डिस्कस करेंगे जिन्हें प्रैक्टिस करने पर आप अपनी क्रिटिकल थिंकिंग स्किल्स और इवन अपनी डिबेटिंग स्किल्स को काफी आसानी से डेवेलप कर पाओगे। नंबर वन अपनी आर्ग्यूमेंट पक्की करने से पहले दूसरे की आर्ग्यूमेंट को पक्का बना हो। यह इसलिए क्योंकि अगर आप सच तक पहुंचना चाहते हो तो जब भी आप कुछ रीड करते हो सुनते या फिर किसी से डिबेट करते हो तो पहले उनकी भी इन्फॉर्मेशन को ढंग से समझो, क्योंकि अगर आपको ये ही नहीं समझ आया है कि सामने वाला बोलना क्या चाह रहा है और आप बिना कुछ सोचे समझे एकदम से रिऐक्ट कर देते हो तो आप उसी टाइम वो आर्ग्यूमेंट हार जाते हो और ऊपर से आपको ये भी नहीं पता चलता कि आपकी खुद की आर्ग्यूमेंट असली में सही थी। या फिर नहीं? ये एक जेन्यूइन कॉन्वरसेशन और क्रिटिकल थिंकिंग का काफी जरूरी हिस्सा है क्योंकि किसी भी नई इन्फॉर्मेशन को एक्स्प्लोर करने के लिए आपको अपना मुँह बंद करना होता है ताकि आप बस वही बातें ना रिपीट करते रहो जो आपको पहले से पता है और ताकि आप एक अच्छे लिसनर की तरह दूसरी आर्ग्यूमेंट पर अटेन्शन पे कर सको। इवन जब आप अकेले में कुछ सोच रहे होते हो तब भी आप यही कर रहे होते हो। आप अपने अलग अलग थॉट्स को एक दूसरे से कंपीट करने देते हो और देखते हो कि किस थॉट में ज्यादा वजन है। हाउएवर इस केस में ज्यादातर लोग यह गलती करते हैं। आई जस्ट बिकॉज़। वो अपनी थिंकिंग को नहीं बदलना चाहते तो वो हमेशा अपने दिमाग में अपने अपोनेंट का एक काफी वीक वर्जन डेवलप करते हैं ताकि वो उसे ईज़ी हरा सके और अपनी आर्ग्यूमेंट को रेशनलाइज कर सके। लेकिन यहाँ पर आप कुछ डीप्ली नहीं सोच रहे होते हो। आप बस अपने कॉन्क्लूज़न को यूज़ कर रहे होते हो अपने प्रूफ को जस्टिफाई करने के लिए। जबकि असल में आपको अपने प्रूफ को यूज़ करना चाहिए अपने कॉन्क्लूज़न को जस्टिफाई करने के लिए। सो कभी भी कॉन्क्लूज़न पर आने की जल्दी मत मचाओ और ये पक्का करो कि जो इन्फॉर्मेशन आपको मिली है, आप उसे ढंग से समझ चूके हो। नंबर टू दूसरे पॉइंट्स ऑफ यू को एक्स्प्लोर करो। यानी जब आप एक आर्ग्यूमेंट के वोट को समझ लेते हो तब उसके पीछे के वायको ढूँढो जैसे अगर आप पॉलिटिक्स में इंटरेस्ट लेते हो तो अपने आप से पूछो कि क्यों इतने ज्यादा लोग एक पार्टी और उसकी पॉलिसीज को सपोर्ट करते हैं जबकि आपके हिसाब से तो दूसरी पार्टी बेटर है? जीवन अगर आप एक पार्टी की हर बात से डिसऐग्री भी करते हो तब भी उनके सारे व्यूप्वाइंट्स को एक्स्प्लोर करने की यह मेंटल एक्सर्साइज़ आपको यह समझने में मदद करेगी कि जो आइडियास और पॉलिसी ज़ आपको बेकार लगती है वो दूसरे लोगो को क्यों लुभाती है और ये अन्डरस्टैन्डिंग आपको ओपन माइंडेड बनाएगी और ज्यादा इन्फॉर्म डिसिशन्स लेने में मदद करेगी। नंबर थ्री सही क्वेश्चन्स पूछो जैसे काफी सारी डिबेट्स का एक कॉमन टॉपिक हैं कि क्या कोई गॉड है या नहीं और अगर कोई इंसान आपसे पूछता है कि क्या आप गॉड में बिलीव करते हो? तो सीधा सीधा अपना जवाब देने के बजाय ये अजीम मत करो की आपकी गॉड की डेफिनेशन और उस इंसान की गॉड की डेफिनेशन स में होगी। इसके साथ ही आपको ये भी नहीं पता की वो इंसान ये क्वेश्चन किस कॉन्टेस्ट में पूछ रहा है। क्या वो आपकी मेटाफ़िज़िकल रिऐलिटी की अन्डरस्टैन्डिंग जानना चाहता है? या क्या वो इस क्वेश्चन की मीडियम से ये कौन क्लाउड करना चाहता है कि आप एक समझदार इंसान हो या नासमझ? हर कॉन्टेस्ट में आपका आन्सर अलग होगा, तो कुछ भी आन्सर करने और कॉन्क्लूज़न निकालने से पहले उस इन्फॉर्मेशन को क्वेश्चन करना चालू करो और साथ ही साथ अपने आप से भी क्वेश्चन पूछो की आपको पहले से क्या पता है आपको ये कैसे पता है और आप क्या प्रूफ या डिस प्रूफ करना चाहते हो? इवन डच फिलॉसफर डी कार्ड और ग्रीक फिलॉसफी भी लोगों को एंटरटेन करने के लिए उनसे क्वेश्चन्स पूछते थे क्योंकि सही क्वेश्चन्स आपको सही आन्सर्स तक पहुंचा सकते हैं। नंबर फ़ोर अपनी थिंकिंग में एरर्स को ढूंढना सीखो क्योंकि जीस स्पीड से हमारे दिमाग में ऑटोमैटिकली थॉट्स आते है। वो बहुत तेज है पर इस स्पीड को अचीव करने के लिए और अपने एन्वॉयरनट को जल्दी से समझने के लिए कई बार हमारा दिमाग नैचुरली शॉर्टकट्स को यूज़ करता है। यह इसलिए होता है क्योंकि ज्यादातर लोगों को कभी भी स्कूल या कॉलेज में लॉजिकल थिंकिंग सिखाई ही नहीं होती। इसी वजह से ज्यादातर लोगों में कॉमन सेंस की कमी होती है। पर सबसे कॉमन थिन गेर्स की नॉलेज आपको इन गलतियों से बचा सकती है। जैसे एक थिंक इन गैर हैं। ओवर जनरलाइजेशन यानी यह करना की एक फैक्ट हर चीज़ पर अप्लाई होगा, जबकि रिऐलिटी में ज्यादातर ऐसा नहीं होता। दूसरा कॉमन थिन घर है। अपील टु अथॉरिटी यानी जब भी आप किसी से कोई आर्गुमेंट कर रहे होते हो तब वो अपनी बात प्रूफ करने के लिए किसी अथॉरिटी की तरफ इशारा कर देता है कि उसने ये बोला था। तो इसका मतलब ये सच होगा पर ऑब्वियस्ली ये तरीका अपने आप में किसी चीज़ को प्रूव करने के लिए काफी नहीं है और तीसरा कॉमन थिन गैर है कॉग्निटिव डिजैन्स जो तब आता है जब एक इंसान सेम टाइम पर दो या दो से ज्यादा कॉन्ट्राडिक्ट्री बिलीव्स रखता है। जैसे अगर आप बोलते कुछ हो करते कुछ, लेकिन आपको यह लगता है कि आप वही करते हो जो आप बोलते हो तो उसका मतलब आपकी थिंकिंग में भी एरर आता है और जब तक आप अपने ऐसे एरर्स को अटेन्शन देकर दूर नहीं करोगे तब तक आप क्रिटिकल ही नहीं सोच पाओगे। नंबर फाइव लिखना सीखो और कोई भी रैंडम चीज़ नहीं। किसी ऐसी चीज़ के बारे में लिखो जो आपको सोचने पर मजबूर करे, क्योंकि जब आप कुछ लिखते हो, तब आप अपने थॉट्स को ऑर्गनाइज करना सीखते हो ताकि आप अपनी बातों को एक वेल पार्टिकुलेटेड फॉर्म में एक्सप्रेस कर पाओ। आप कहीं अलग चीजों के बारे में लिख सकते हो, जैसे कोई भी प्रॉब्लम जिसपर आपका कोई स्ट्रॉन्ग ओपिनियन है और जब आप लिखना स्टार्ट करो गे, तब आपको समझ आएगा कि जीतने भी आइडियाज़ आपके दिमाग में फैले हुए हैं, उन्हें एक जगह पर सम्मराइज़ कैसे करना है? आपके मांग में इस पर्टिकुलर टॉपिक को लेकर जो कॉन्ट्रैक्शन्स है, उन्हें कैसे दूर करना है, कौन से वर्ड्स को चूज करना है और अपने सेन्टेन्स को किस तरह से ऑर्गनाइज करना है ताकि आपकी आर्ग्यूमेंट ऑर्डर ली और लॉजिकल लगे। जितना आप लिखोगे उतना आप अपनी क्रिटिकल थिंकिंग एबिलिटीज़ को शाप बनाते जाओगे। नंबर सिक्स चीजों को रिवर्स करके ऐलिस करो इस तरीके का काफी अच्छा एग्जाम्पल है मुर्गी और अंडे की प्रॉब्लम की पहले कौन आया, मुर्गी या अंडा? शुरू में हमें ये ऑब्वियस लगता है कि अंडा देने के लिए मुर्गी को ही पहले आना पड़ेगा, पर आपको यह समझने में ज्यादा समय नहीं लगता की बिना अंडे की मुर्गी को भी तो कहीं से आना होगा और जस्ट बिकॉज़ मुर्गियां अंडे से आती है तो शायद अंडा ही पहले आया होगा राइट सो जब भी आप किसी से करते हो या फिर कुछ रीड करते हो तो अपने दिमाग में खुद ही उस इन्फॉर्मेशन को हर एंगल से देखने की कोशिश करो। जैसे अगर हम पहले वाले एग्जाम्पल को दुबारा यूज़ करें तो अगर आप कहीं से सुनते हो की हमें भगवान ने बनाया है तो यहाँ पर एक क्रिटिकल थिन कर ना तो सीधा सीधा हाँ बोले गा और ना ही वो सीधा यह बोले गा की आप यह बिलीव करने के लिए एकदम नादान हो। बल्कि वो इस स्टेटमेंट के सब्जेक्ट्स को रिवर्स करके सोचेगा की सच में भगवान ने इन्सानों को बनाया है या फिर इंसानों ने भगवान को बनाया है? यह तरीका उन सिचुएशन में काफी यूज़फुल साबित होता है जब आप एक प्रॉब्लम में फंसे हुए होते हो और आपको आगे बढ़ने का कोई रास्ता नहीं मिल पा रहा होता।","आलोचनात्मक सोच स्पष्ट रूप से सोचने की क्षमता है, समस्याओं को हल करने के लिए तर्क का उपयोग करें, विचारों के बीच की कड़ी को देखें और विचारों को स्वीकार करने के बजाय उन पर सवाल उठाएं। यह एक स्वतंत्र विचार प्रक्रिया होने की एक विधा की तरह है। यदि आप गंभीर रूप से सोचते हैं तो आप आसानी से बहस जीत सकते हैं और उन पैटर्न को देख सकते हैं जिन्हें ज्यादातर लोग अनदेखा करते हैं। तो, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम इस बारे में विस्तार से जानेंगे कि महत्वपूर्ण सोच क्या है और आप अपने जीवन में और अधिक हासिल करने के लिए इस कौशल को कैसे विकसित कर सकते हैं।" "जिसे एक्स्पेक्टेशन के साथ हम एक रिलेशनशिप में एंटर करते है। यूश़ूअली रिऐलिटी उससे काफी अलग होती है। हम किसी भी इंसान को कमिट करने से पहले इतनी सारी फैंटसीज़ बनाते हैं और सोचते हैं कि हमारा पार्टनर बहुत ही अन्डरस्टैन्डिंग और स्वीट होगा। वह मुश्किल समय में हमारा सहारा बनेगा और आपके अंदर उनके अट्रैक्शन हमेशा बढ़ेगी ही। लेकिन असलियत में जब हमारे रिलेशनशिप का शुरुआती पीरियड खत्म होता है और दोनों लोगों के असली चेहरे सामने आने लगते हैं तब हम कहीं ना कहीं अपने पार्टनर को लेकर थोड़े डाउटफुल होने लगते हैं। और हमारे अंदर उनके लिए कड़वाहट बढ़ने लगती है। हम सोचते हैं कि क्या यह इंसान ही हमारा बेस्ट ऑप्शन है? क्या मैं इस से बेटर नहीं कर सकता और क्या मुझे इसके साथ ही सेटल करना पड़ेगा? हमारे दिमाग में प्यार की एक इमेज बनी होती हैं। प्यार के गानों, मूवीज़ और महान कहानियों के बेसिस पर हम सोचते हैं कि प्यार में जाते ही और अपने प्यार करने वाले को पाते ही हमारी लाइफ खुशियों से भर जाएगी और हमारी सारी मुश्किलें आसान हो जाएंगी। पर असलियत में प्यार कभी भी हमारी एक्सपेक्टेशन पर खरा उतर ही नहीं पाता। थोड़े समय एक इंसान के साथ रहने के बाद हम अपनी पेशेंट्स खोने लगते हैं और अगर वो हमें ज़रा सा भी कुछ बोले जितना हम एक्सपेक्ट कर रहे हैं उतना हमें समझे ना या फिर हमे ज़्यादा अटेन्शन ना दे तो इतनी छोटी बातों पर भी जो गुस्सा और उदासी हमारे अंदर इतने समय से कटे हो रहे थे, वो हम एक ही बार में उन पर निकाल देते हैं। हम अपने रिलेशनशिप से निराश होते हैं और हमारा पार्टनर हमारे गलत बिहेव्यर की वजह से हमारे से इस पॉइंट पर हमें यह फील होने लगता है कि कुछ न कुछ गलत हो रहा है क्योंकि प्यार कैसा फील हो ही नहीं सकता इतना इन्कम्प्लीट और इतना डल तो हम अकेले रहने पर भी फील नहीं करते थे जितना हम प्यार के इस पॉइंट पर करते हैं और इस प्रॉब्लम का मेन रीज़न होता है हमारी एक्सपेक्टेशन्स हम बिलीव करते है सोलमेट्स के कॉन्सेप्ट में। हम सोचते हैं कि हर इंसान के लिए एक राइट पार्टनर जरूर होता है, लेकिन इस तरह की सोच हमें हमेशा ज्यादा दुख देती है, क्योंकि अगर कोई इंसान हमारे आइडियल पार्टनर की इमेज से थोड़ा भी दूर जाए तो हम सोचने लगते हैं कि हम एक मिस्टर या मिस राइट के साथ नहीं बल्कि एक रॉन्ग इंसान के साथ है। रिलेशनशिप्स के बारे में इस बात को बहुत ही ध्यान से समझो कि दुनिया में आपके लिए कोई भी परफेक्ट पार्ट्नर एग्ज़िट ना तो करता है और ना ही कभी करेगा। आपके हर पोटेंशिअल पार्ट्नर में बस रॉन्ग एड्रेस की अलग अलग डिग्री से होंगी। कोई आपके लिए बहुत ज्यादा रॉन्ग पार्टनर होगा और कोई बहुत कम लेकिन प्रॉब्लम्स प्यार होने के बाद भी एग्जिस्ट करेंगी। कभी आप प्यार की चोटी पर होंगे और कभी नीचे उसकी घाटियों में जिंस वजह से ये एक्स्पेक्टेशन रखना बेवकूफ़ी होगी कि आप हमेशा ही प्यार के पीक एक्सपीरियंस पर रहोगे। जिसतरह का प्यार आप दूसरों में ढूंढ़ते हो दो स्तर का प्यार सिर्फ आप ही खुद को दे सकते हो की वन आपके पैरेंटस भी आपकी एक सर्टन इसके बाद यही चाहेंगे कि आप सेल फ़ोन लाइन यानी आत्मनिर्भर बन हो और खुद की इमोशनल, फिजिकल, साइकोलॉजिकल और फाइनैंशल रिक्वायरमेंट को खुद मैनेज करो। मेच्युरिटी का सबसे क्लिअर साइन यही होता है कि आप अपने आप में कंप्लीट हो बजाए एक छोटे बच्चे की तरह जैसे अनकन्डिशनल लव अपने पैरेंट से लेना पड़ता है। यही रीज़न है कि क्यों? जो इंसान अपने रिलेशनशिप्स में बहुत ही नीडी होता है उसे या तो बचपन में अपने पैरेंट से उतना प्यार नहीं मिला होता। या फिर उसे इतना ज्यादा प्यार और अटेंशन मिली होती है कि उसके लिए नॉर्मल रिलेशनशिप्स भी काफी नहीं होते है। एक क्रोमेटिड इंसान अपने पार्टनर में भी अपने पैरेन्ट्स को ही ढूंढ रहा होता है और जब वो इस खोज में फेल हो जाता है तब उसे यह लगने लगता है कि उसके प्यार को लेकर जीतने भी ड्रीम्स और एक्सपेक्टेशन्स थे। वो सब अब नष्ट हो चुका है। जहाँ हमें बचपन में बिना प्यार दिये ही प्यार मिलता रहता था, वहीं बड़े होने पर हमें यह समझाने लगता है कि हम बिना खुद प्यार का स्रोत बने दूसरे से प्यार नहीं ले सकते हैं। अगर हमें प्यार चाहिए तो हमें प्यार देना भी पड़ेगा। प्यार को खरीदा जाता है प्यार से जब कि हमें शुरू से आदत लगी होती है, फ्री के प्यार की इसी अन्डरस्टैन्डिंग की कमी आजकल के बहुत से रिलेशनशिप्स को खराब कर रही है। आप अपने रिलेशनशिप से इसलिए निराश नहीं हों कि आपको एक बेकार या फिर गलत पार्टनर मिल गया है, बल्कि इसलिए क्योंकि आपको अब आपकी सिचुएशन खुद अपने अंदर प्यार को प्रोड्यूस करने को बोल रही है, लेकिन आप अपनी इस रिस्पॉन्सिबिलिटी को शुरू से टालते आए हो? अगर आप एक इंसान से प्यार करते हो और हर चीज़ एकदम वैसी है जैसे आपने इमेजिन करी थी, लेकिन फिर भी वो प्यार आपको इन्कम्प्लीट लग रहा है तो ये एक साइन हो सकता है कि आप अभी भी बड़े नहीं हुए हों और आप प्यार के रिसीविंग गेंद पर ही रहना चाहते हो। सूफी रूमी हमेशा ये बात बोलते थे कि प्यार एक ऐसी पवित्र चीज़ होती है जिसके साथ हर इंसान पैदा होता है। यानी आप इस दुनिया में प्यार को ऑलरेडी अपने साथ लेकर आये हो। आप बस अपनी जिंदगी में इस प्यार को बांट सकते हो ताकि आपके मरने के बाद भी लोग आपको आपके स्वार्थहीन कामों के लिए याद रखें। आपका हर वो काम जिससे आप प्यार के साथ करते हो वो काम ही आपका लवर और सच तक पहुंचने का पुल बन जाता है। रूमी के लिए ये काम था पोएट्री। वो अपने अंदर मौजूद इस प्यार के सोर्स को अप्रीशीएट करते हुए लिखते हैं कि तुम्हारी रौशनी ने मुझे प्यार करना सिखाया। तुम्हारी खूबसूरती ने मुझे एक कवि बनाया। तुम मेरे अंदर नाचते हो बिना किसी की नजर में आए, लेकिन कभी कभी मुझे तुम्हारी एक झलक मिल जाती है और वही एक झलक मेरी एक कला बन जाती है। अपने रिलेशनशिप्स की गहराई को रूमी के प्यार से कंपेयर करो और समझो कि कैसे प्यार से जुड़ा पागलपन बिना प्यार को रिसीव करने वाले के भी उत्तेजित हो जाता है। अगर आप अपने अंदर झांकना शुरू करो तो। अगर आपको लगता है कि आप के बाहर कोई ऐसा इंसान एग्जिस्ट करता है जिससे आप कभी मिलोगे और आपकी प्यार की प्यास या फिर उसकी खोज उस पॉइंट पर ही खत्म हो जाएगी तो आप गलत हो। दूसरे इंसान से प्यार लेने का ख्याल ही आपको उनसे दूर कर देता है। आपके और उनके बीच एक इमैजिनरी सेपरेशन क्रीएट कर के और जैसा कि रूमी लिखते हैं कि प्यार करने वाले आखिर में कहीं एक दूसरे से नहीं मिलते हैं बल्कि वो शुरू से ही एक दूसरे में मौजूद होते हैं।","हम हमेशा बहुत सारी उम्मीदों के साथ एक रिश्ते में प्रवेश करते हैं कि किसी के साथ प्यार करना कितना अद्भुत होगा, हम प्यार और परवाह महसूस करेंगे, हम कहानियां साझा करेंगे और जब हम अपने प्रियजन के साथ होंगे तो हर दूसरी समस्या कम बोझिल महसूस होगी। लेकिन प्रारंभिक चरण के बाद, हमारे सपने अधूरे होने की भावना के रूप में गायब होने लगते हैं और हमारे भीतर एक निश्चित शून्य पैदा हो जाता है। हमें लगने लगता है कि हमारा प्यार उतना अच्छा नहीं है जितना मैंने सोचा था। इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम इस भावना पर चर्चा करने जा रहे हैं और समझेंगे कि प्यार कभी भी उतना अच्छा क्यों नहीं होता जितना होना चाहिए और यह हमारी उम्मीदों पर खरा क्यों नहीं उतरता।" "हमारे व्यूअर्स और लिसनर्स में हर इंसान एक अलग तरह की लड़ाई लड़ रहा है। कई लोग अपने बिज़नेस को बड़ा करना चाहते हैं। कई स्टूडेंट्स अच्छे मार्क्स लाना और किसी एग्ज़ैम को क्लियर करना चाहते हैं। कई लोगों के घर में लड़ाईयां और नेगेटिविटी चलती रहती है तो वो उससे कम करना चाहते हैं। कई लोग अपने दिल और दिमाग को शांत करके अपने अंदर झांकना चाहते हैं और कई लोग एक अच्छा पार्टनर या दोस्त ढूढ़ना चाहते है। लाइफ के हर एरिया में ही फेल्यर के बहुत ज्यादा चान्सेस होते हैं जिसकी वजह से आपके लिए ये जानना बहुत फायदेमंद होगा कि लोगों के फेल होने के सबसे कॉमन रीजन्स क्या होते हैं ताकि आप जो भी गोल अचीव करना चाहते हो। आपको पता हो कि उसके रास्ते में आप किन गड्ढ़ों में गिर सकते हो और हम ऐसे सेवन रीजन्स को डिस्कस करेंगे। नंबर वन बी इन ग्रीडी यानी जो भी इंसान लालच करता है और कम समय में खुद का ज्यादा बेनिफिट निकालने की सोचता है वह अलग अलग शॉर्टकट्स को यूज़ करता है और अपने आप को इसी जाल में फंसा लेता है क्योंकि रियल लाइफ में कोई शॉर्टकट्स नहीं होते हैं। आपको हर चीज़ को पाने के लिए मेहनत करनी होती है और स्मार्ट डिसिशन्स लेने होते हैं और इस रास्ते पर रिजल्ट्स यूज़्वली लेट आते हैं, लेकिन वो लॉन्ग लास्टिंग होते हैं जबकि जल्दी आए बेनिफिटस टेंपरेरी होते हैं। हर बिज़नेस को कुछ साल लगते हैं जिससे पहले वो अपने आप चल सके। हर रिलेशनशिप को भी महीनों और सालों लग जाते है। दो लोगों के बीच ट्रस्ट डेवलप करने में लाइफ में जो जो चीजें इम्पोर्टेन्ट है उनके लिए कोई शॉर्टकट नहीं होते हैं। इसलिए अपने आपको लॉन्ग रन में सक्सेसफुल होते हुए देखो, बजाय अपनी पेशेंट्स लूज़ करने और जल्दी जल्दी में गलत ऐक्शन लेने के नंबर टू कंपेरिंग योरसेल्फ टू अदर्स अपने एपिसोड आर यू आलू सर मैं हमने डिस्कस कर रहा था कि किस तरह से हर इंसान एक अलग रेस में भाग रहा है और अपनी प्रोग्रेस को दूसरों की प्रोग्रेस से कंपेर करना जब आपको पता ही नहीं है कि उसकी एडवांटेज एस या डिसएडवांटेज एस क्या थी या फिर क्या उसकी लाइफ का गोल भी आपके जैसा ही है या अलग? ये कंपैरिजन गलत है। दूसरी तरफ इस ऐडवा इसमें बहुत है कि आपका कॉम्पिटिशन सिर्फ आप खुद हो और आपको बस अपने कल वाले वर्शन से ज़रा सा बेहतर बनना है। डेली बेसिस पर करी गई छोटी छोटी इम्प्रूवमेंटस ओवर टाइम इकट्ठी होती है और अगर आप कौनसी स्टेट रहो तो कुछ समय बाद लोग आपको पहचानेंगे भी नहीं। आप इतना ट्रांसफॉर्म हो चूके होंगे नंबर थ्री फियर ऑफ फेल्यर और सक्सेस। क्योंकि यह दोनों चीजें ही एक दूसरे के बहुत सिमिलर है। अगर आप फेल होने से डरते हो तो आप कभी ना कभी इसी डर की वजह से अपना काम खराब कर लोगे और अपनी इसे इग्नोर की वजह से खुद का नुकसान करवा लोगे। या फिर अगर आप सक्सेसफुल बनने से डरते हो तब भी आप अपनी इस स्टोरी के साथ कॉन्स्टेंट रहने के लिए खुद ब खुद अपनी लाइफ में प्रॉब्लम्स को इन्वाइट करोगे और बोलोगे कि देखा मैंने बोला था ना कि मेरी किस्मत में सक्सेस नहीं लिखी या फिर मेरी लाइफ दूसरों के कंपैरिजन में एक्स्ट्रा हार्ड है? दोनों ही केसेस की जड़ होती है उन कामों को अवॉइड करना, जिनसे आपको डर लगता है। नंबर फ़ोर नॉट वर्किंग यू टॉक यानी आप की बातें तो बहुत बड़ी बड़ी और आपके वर्ड्स तो भारी होते हैं लेकिन जस्ट बिकॉज़ आप उन वर्ड्स को अपने ऐक्शंस के साथ मैच नहीं करते, धीरे धीरे आपके वर्ड्स और आपके प्रॉमिसेस अपनी वैल्यू खोना शुरू कर देते हैं। आप कभी लोगों को बताते हो कि आप एक नई बुक रीड करना शुरू कर रहे हो, आप जिम में ज्यादा मेहनत करने लगे हों, आपने ब्लॉगिंग चालू कर रही है या फिर आपने इन्वेस्ट करा है आप एक फ्रेंड और कूल चीज़ से जम्प करते हो दूसरे पर लेकिन आपके पास दिखाने लायक रिज़ल्ट कभी नहीं होता। इसलिए या तो इतनी बड़ी बड़ी बाते करो ही मत जिन्हें आप बैकअप नहीं कर सकते या फिर आप जो भी बोलते हो उसे हमेशा पूरा करो। नंबर फाइव प्रोजेक्ट इन एनी एडवाइस एक और रीज़न क्यों लोग अक्सर फेल होते है? वो ये है कि उन्हें अच्छी और बुरी एडवाइस दोनों के बीच अंतर बताना नहीं आता। जीस वजह से जब भी वो किसी की बुरी अडवाइस को सच मानकर उसे अपनी लाइफ में अप्लाई करना शुरू करते हैं और उन्हें उससे बुरे रिजल्ट्स मिलते हैं, तब वो हर इंसान की एडवाइस को इग्नोर करने लगते हैं। यहाँ आपको बस यह पता होना चाहिए कि आपने एडवाइस लेनी किस तरह के लोगों से है। अगर आपने अमीर होना है तो ये ऑब्वियस बात है कि जिसके पास खुद कोई पैसा नहीं है वो आपको गलत एडवाइस ही देगा। अगर आप एक हैप्पी हल्दी और लविंग रिलेशनशिप में आना चाहते हो तो ऐसे इंसान से एडवाइस लेना जो खुद अपने पार्टनर को हिट करता है या फिर अभी भी अपने एक्स के गम में रोता है, उनकी एडवाइस ऑब्वियस्ली आपके लिए बेस्ट एडवाइस नहीं होगी। इसलिए जहाँ पर आप पहुँचना चाहते हो वहाँ ऑलरेडी पहुंचे हुए लोगों से एडवाइस लो। वह आपको बताएंगे कि सही रास्ते पर कैसे चलना है और रास्ते में आने वाली मुश्किलों को कैसे पार करना है। नंबर सिक्स ज़ीरो सेल्फ डिसिप्लीन जिसे किसी भी इंसान को डिसिप्लीन की अहमियत नहीं पता होती कि उसे अपने काम की इतनी ज़्यादा समझ होने के बाद भी वह फेल क्यों हो जाता है? एक बार जब आप अपने गोल को सेट कर लेते हो और आपको अपना प्लैन पता होता है तब आपको बस डिसिप्लिन चाहिए होता है जो आपको कॉन्स्टेंट ली, अपनी लिमिट्स को पुश करने के केपेबल बनाए और आपको गिवअप करने से रोके और ऑफ कोर्स, अपने इमोशन्स को कंट्रोल करना और सेल्फ कंट्रोल मास्टर करना आसान नहीं होता। लेकिन अगर आप ऐक्चुअल में अपने गोल तक पहुँचना चाहते हो तो आप इस बाधा को भी पार कर लोगे। नंबर से वन यू अंडरएस्टीमेट के नीडेड सैक्रिफ़ाइस इस क्योंकि जब आप खुद किसी काम में पूरी तरह से इन्वॉल्व नहीं होते, तब दूर खड़े होकर देखने से हर काम लगता है। और आप सोचते हो कि आप भी वही जली कर सकते हो? किसी भी सक्सेसफुल इंसान की सक्सेस को देखकर ये बोलना तो बहुत ईजी होता है कि आप भी एकदम उसके जैसे ही हो और अगर आप चाहो तो आप भी वह सब कर सकते हो जो वो करते है। लेकिन यह फीलिंग सिर्फ तब तक ही रहती है जब तक आप खुद उस काम को करना शुरू नहीं करते हैं। तब आपको समझाता है कि कोई भी स्किल डेवलप करने में कितना टाइम और मेहनत लगती है। जीस वजह से अगर आप इस इन्वेस्टमेंट को अंडरएस्टीमेट करते हो तो यह तय है कि आपने जीतने मोटिवेशन के साथ अपना काम शुरू करा था। आप उतने ही डिमोटिवेट हो जाओगे। और क्विट कर दोगे। इसलिए हर चीज़ के एंड रिज़ल्ट को देखने के बजाय उसके प्रोसेसर पर ध्यान दो और यह पूछो कि किसी भी ख्याल को रिऐलिटी बनाने में क्या स्टेप्स होते हैं? सिर्फ तभी आप अपने फेल्यर को ओवर कम कर पाओगे और अपने लाइफ के हर एरिया में सक्सेसफुल बन पाओगे।","हमारे कई श्रोता और दर्शक अपने जीवन में अलग-अलग लड़ाई लड़ रहे हैं, और जीवन के किसी भी क्षेत्र में, चाहे वह करियर हो, रिश्ते हों या खुद की मानसिक शांति हो, असफल होना और उस स्थिति में बने रहना इतना आसान है। तो, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम 7 कारण बताएंगे कि लोग असफल क्यों होते हैं और आप अपनी असफलताओं को सफलता में बदलने के लिए इस जानकारी का उपयोग कैसे कर सकते हैं।" "प्रोग्रेस लिनेट करने का मतलब है कि आप अपनी मर्जी से अपने किसी जरूरी काम को डिले करते हो। इस अन्डरस्टैन्डिंग के बावजूद कि यह डिले आपको आगे चलकर नुकसान पहुंचाएगा। ज्यादातर लोगों के लिए अपने काम को टालना एक हैबिट बन जाती है और जितना ज्यादा वो करते है उतना ही उनके अपनी इस बुरी आदत को फ्यूचर में रिपीट करने के चान्सेस बढ़ जाते हैं। यह हैबिट आपको आपके गोल्स तक ना पहुंचने देने के साथ साथ आपकी सेल्फ एस्टीम को भी नेगेटिव ली करती है और आपकी बॉडी में स्ट्रेस को ट्रिगर करती है क्योंकि आप काम को टाल तो देते हों लेकिन अंदर ही अंदर एक यूज़लेस इंसान बनने की फीलिंग आपको खाती रहती है। नाउ अगर हम यह समझे कि हम प्रोग्रेस टेनेंट करते क्यों हैं तो ज्यादातर लोग अपने फेल्यर को सीधा प्रोक्रैस्टिनेशन से ही जोड़ देते हैं। लेकिन हर प्रॉब्लम की ही तरह यहाँ भी नेशन रूट कॉज़ नहीं है। वो बस एक अंडरलाइन इश्यू का सिम्प्टम है। ये एक तरीका होता है अपनी एंजाइटी को मैनेज करने का। स्ट्रेस और डर को अवॉर्ड करके यानी प्रोग्रेस टि नेशन और बार बार अपने जरूरी कामों को उनकी अर्जेंन्सी पता होने के बावजूद हम उन्हें ना करने के एक्स्क्यूस बनाते हैं ताकि हम स्ट्रेस से बच सकें। तो क्रिस्टी नेशन का पर्पस बस आपको, आपके स्ट्रेस और ऐंग्जाइटी से टेंपरेरी रिलीफ दिलाना होता है और अगर आप इसे ओवर कम करना चाहते हो तो आपको यह पता करना पड़ेगा कि इससे क्या चीज़ ट्रिगर करती है। ज्यादातर लोगों के लिए यह ट्रिगर उस काम का साइज और उससे ईज़ी बाहर निकलने की कैपेबिलिटी होती है कि अगर एक इंसान के पास काम बहुत ज्यादा है, लेकिन उसे पता होता है कि वो अपने काम को डिले करना काफी आसानी से जस्टिफाई कर सकता है, तब वह प्रोग्राम करता है जितना आप अपने इन ट्रिगर्स को नोटिस करना शुरू करोगे, उतना ही आपको यह समझ जाएगा कि आप अपने स्ट्रेस को अवॉर्ड करने के लिए क्या बहाने बनाते हो और किस तरह से देखते ही देखते अपना पूरा दिन वेस्ट कर देते हो, लेकिन इस साइकल को ब्रेक करने के लिए आपको बस थोड़ी सी ही विलपॉवर चाहिए होती है। अपनी बुक सॉल्व इनके प्रोक्रैस्टिनेशन फसल में ऑथर टीम टिपिकल ने भी यही बताया है कि ज्यादातर लोग प्रोग्रेस टि नेशन जैसी हैबिट्स को ओवर कम इसलिए नहीं कर पाते क्योंकि वो बस अपने इमोशन्स पर ही फोकस होते हैं जो यूज़्वली नेगेटिव होते हैं। असली है अपने इमोशन्स को इग्नोर करके अपने काम को बस शुरू करना। जीस तरह से आप एक फसल के छोटे छोटे टुकड़ों को जोड़कर कुछ बड़ा बना रहे होते हो वैसे ही अपने एक एक काम को देखो। हम यह सोचते हैं कि हम इतने बड़े बोरिंग या मुश्किल टास्क को खत्म कैसे करेंगे? जबकि असलियत में हमें किसी भी काम की एंडिंग पर फोकस करने के बजाय बस उसकी स्टार्टिंग पर फोकस करना चाहिए? हमें ये लगता है कि कुछ भी जरूरी काम करने के लिए हमें पहले अपने मूड के अच्छा होने का वेट करना चाहिए, लेकिन दुनिया हमारे मूड के ठीक होने तक रुक नहीं जाती। वो चलती रहती है और टाइम आपके हाथों से निकलता जाता है। अपनी बुक ऐंटीडोट में ऑथर ऑल ओवर वर्कमैन बोलते हैं कि किसने बोला कि आपको तब तक वेट करने की जरूरत है जब तक आपको किसी काम को शुरू करने की फीलिंग नहीं आती है? इस सोच में प्रॉब्लम यह नहीं है। की आप कभी मोटिवेट नहीं होते हैं, बल्कि प्रॉब्लम यह है कि आपको यह लगता है कि हमेशा मोटिवेटेड रहना जरूरी है। अगर आप अपने प्रोग्रेस नेशन के थॉट्स और इमोशन्स को बदलते हुए मौसम की तरह देखो तो तब आपको समझ आएगा कि आपकी किसी काम को ना करने की फीलिंग कोई ऐसी चीज़ नहीं है जिसको आप को खत्म करना चाहिए या उसे पॉजिटिविटी में बदलना चाहिए। आप इस फीलिंग के साथ भी काम कर सकते हो। आप अपनी करने की फीलिंग्स को नोटिस कर सकते हो और उसके बावजूद अपने काम पर ऐक्शन ले सकते हो। ऑल ओवर बोलते हैं कि हमें ये चीज़ नोटिस करनी चाहिए कि दुनिया के आज तक सबसे महान राइटर्स और आर्टिस्ट जो हर दिन बहुत से कामों को पूरा करते हैं, उनकी डेली रिचुअल्स और वर्किंग रूटीन्स में कभी भी कोई मोटिवेशनल या इन्स्पाइअर्ड फील करने की टेक्नीक रियली ही होती है, क्योंकि वो सीधा अपने काम के मेकन इस पर फोकस करते है, ना कि अपने मूड को। सही करने में वो फिज़िकली ऐक्शन लेते हैं, चाहे वो कैसा भी फील कर रहे हो। इसलिए आप भी सिर्फ अपने काम को करने के प्रोसेसर पर ध्यान दो बजाए उस काम को जल्दी से जल्दी खत्म करने के या फिर उससे ना करने के बहाने ढूंढने के असली मेच्युरिटी यही होती है कि आप वो करो जो ज़रूरी है ना कि जो आपका मन आपको करने को बोलें। छोटे छोटे हम को पूरा करने से शुरू करो। इससे आपको वो पॉज़िटिव इमोशन मिलेंगे जो आप को और मुश्किल कामों को करने की ताकत देंगे और यह याद रखो कि काम करते हुए चाहे आपको प्रोवाइड करने के कितने भी ख्याल आए हैं और चाहे आप अपनी आदतों को बदलने के प्रोसेसर के बीच एक दो बार ढीले भी पड़ जाओ, तब भी कोई बात नहीं। अपनी बॉडी और माइंड के अगेन्स्ट जाने के बजाय उनके साथ मिलकर काम करो और खुद को नाकाम करने के लिए टोकने के बजाय बस अपनी लॉन्ग टर्म ट्रांसफॉर्मेशन के बारे में सोचो, क्योंकि सेल्फ क्रिटिसिजम हमारी विल पावर और सेल्फ कंट्रोल को कम करता है। अपने अंदर खुद की मदद करने की चाह रखो और यही चाहा और खुद में विश्वास आपकी हर बुरी आदत को खत्म करवा देगा।","टालमटोल करने का मतलब है कि आप स्वेच्छा से किसी महत्वपूर्ण कार्य को इस समझ के साथ विलंबित करते हैं कि यह अंततः आपको नुकसान पहुँचाएगा। अधिकांश लोगों के लिए शिथिलता एक आदत बन जाती है और जितना अधिक वे टालमटोल करते हैं, उतनी ही अधिक संभावना है कि वे भविष्य में भी ऐसा करेंगे। यह आलस्य और प्रेरणा की कमी का कारण बनता है, जो व्यक्ति को अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने से रोकता है। तो, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम शिथिलता के पीछे के वास्तविक कारण और आप इसे कैसे रोक सकते हैं, के बारे में बात करेंगे।" "इस एपिसोड में हम बात करने वाले हैं कि कैसे एक लड़का एक मर्द बनता है और क्यों यह पूरा प्रोसेसर एज इन्डिपेन्डेन्ट है। बिकॉज़ आज कल एक बहुत ज़्यादा इंट्रेस्टिंग चीज़ हो रही है। लड़के उम्र में, कदम में और अपनी नॉलेज में तो बढ़ रहे हैं, बट 2530 और 35 साल की उम्र में भी वो एक रिस्पॉन्सिबल टीनेजर किधर ऐड कर रहे हैं? बिकॉज़ लड़के ये भूल चूके हैं कि एक आदमी बनने के लिए कितनी ज्यादा मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। अगर हम एक फीमेल के पास जाकर उससे पूछें कि विमिन तो वो बोलेंगे की तुम पागल हो क्या? ये कैसा क्वेश्चन है? ऑफ कोर्स टाइम इन बट अगर आप एक मेल के पास जाओ और इवन चाहे वो खुद से भी ये क्वेश्चन पूछे या मैन? दैट्स होल्ड डिफरेंट स्टोरी है। यहाँ तक की एक फीमेल को बहुत कर ली और इस बात का अंदाजा हो जाता है कि फेमिनिन और एक विमिन होने का मतलब क्या होता है, जब वह अपना पहला मिशन साइकल इक्स्पिरीयन्स करती है, बट एक मेल की लाइफ में किसी भी पॉइंट पर उसको अंदर से कोई ऐसा सिग्नल नहीं मिलता जो उसको बता सके कि अब तो मर्द बन चुका है या फिर अब तेरे को रिस्पॉन्सिबिलिटी लेनी है या फिर ये सारे काम करने है, कुछ नहीं पता। एक मर्द को जीवन अगर एक मिल्क को मैं स्कूल बनाने की कोशिश भी करता है तो सोसाइटी करती है। जैसे कुछ टाइम पहले मैं एक फैमिली इवेंट में था और मेरा एक डिस्ट्रिक्ट कज़न मेरे से आके बोलता है की सौरव कुछ टिप्स दे जिससे मैं खुद को इम्प्रूव कर सकूँ तो मैं उसे बता रहा था की तू बिगनर है तो इस तरह से वर्क आउट कर यह वाली बुक्स को पढ़ इस तरह से तो अपने माइंड को और अपनी लाइफ को कंट्रोल में ला सकता है। सो नैन सो फोर्थ और उसी टाइम मैंने अपने लाइफ में देखा। वहाँ पर मेरा एक दूसरा कदम खड़ा हुआ था और वो मुझे काफी डिस ऑगस्ट वाले में मैं देख रहा था। उसके फेस पर ही लिखा था कि वो मुझे जज कर रहा है और उसके हिसाब से जो भी मैं एडवाइस इस यंग लड़के को दे रहा हूँ कि खुद को मदद कैसे बना सकता है। खुद की लाइफ को इंप्रूव कैसे कर सकता है। क्यों रिस्पॉन्सिबिलिटी लेना जरूरी है? ये सब गलत है। लो वैल्यू लोग हमेशा तुम्हें बुरा फील कराने की कोशिश करेंगे। जब भी तुम खुद को इम्प्रूव करोगे, जैसे अगर तुमने जिम जॉइन करा और तुमने बॉडी बनाना शुरू कर दिया है तब वो तुम्हे बोलेंगे की यार तुम इतने इनसिक्योर हो क्योंकि तुम्हें मैं स्कूल इन फील करने के लिए बॉडी बनानी पड़ रही है। क्यों तुम इतनी ज्यादा बुक्स रीड करते हो? क्यों तुम हमेशा अपने काम के बारे में बात करते रहते हो? क्यों तुम हम जब भी पार्टी मैं तुम्हें बुलाते हैं, तुम आते नहीं हो, तुम बहुत ज्यादा बोरिंग हो। इस तरह के लोग दूसरों को डीमोटीवेट इसलिए ही करते है बिकॉज़ मिस्री लव्ज़ कंपनी एक लूँ सर, अपने आसपास के लोगों को भी लू सर बनाए रखना चाहते हैं ताकि वो खुद के बारे में अच्छा फील कर सके। दैट स्वाइ जो भी मेल सिर्फ ट्रांसफॉर्मेशन और सिर्फ ऐक्चुअली स्टेशन की जर्नी पर चलना शुरू करता है, उससे बहुत ज्यादा अकेलापन एक्स्पेन्स करना पड़ता है। बट डोंट वरी इस एपिसोड में हम एक मेल होने के चार डिफ़रेंट ऐस्पेक्ट के बारे में बात करने वाले हैं और मेरा गोल ये है कि इस एपिसोड के एंड तक आपको इतना समझ आ जाए की एक मेल का पर्पस क्या होता है और उस पर्पस को पूरा करने के लिए किन टूल्स की जरूरत पड़ती है। आइ कॉल दीज़ फ़ोर टूल्स आस फॉर एम्स दैट इस मनी मसल माइंडसेट एंड मुक्ति सबसे पहले बात करते हैं मनी की बिकॉज़ थिस इस ए फर्स्ट थ्रेशहोल्ड टु बिकम इनका मैन यानी मैं स्कूल इन होने का एक बहुत जरुरी क्वालिटी होती है। अपने पीछे एक बोझा उठा पाना और शुरुआत का भी छोटे लेवल से करो। यानी तुम्हारी खुद की जो भी नीड्स हैं उनको पूरा करने के पेबल बनो। जितना भी तुम्हारा रेन्ट हैं जितना भी तुम पर मंथ अपना इंटरनेट काबिल पे करते हो जितना भी तुम्हारा का खाने का कपड़ों का इन सब का खर्चा है बेसिक नीड्स जो भी है तुम्हारी खुद की पहले उनको पूरा करो चाहे तो मैं जॉब कर रहे हो, चाहे तुम फ्रीलान्सिंग करो या फिर तुम्हारा खुद का बिज़नेस है। तुम्हारा फर्स्ट स्टेप बौसे मैन में बनने के लिए यही है की तुम खुद का बोझ उठा पा रहे हो और जब आपके पास इतना पैसा आने लग जाए की आप खुद की नीड्स को सस्टेन कर पा रहे हो तब आपका अगला गोल होना चाहिए। इस पैसे को ग्रो करना, जिसके लिए आपको सबसे जरूरी चीज़ चाहिए। अटेन्शन जहाँ पर भी अटेन्शन होगी वहाँ पर पैसा होगा। मैं हमेशा यह बोलता हूँ की मार्केट में वो प्रॉडक्ट नहीं बिकता जो बेस्ट होता है बल्कि मार्केट में सबसे ज्यादा वो प्रॉडक्ट बिकता है जो बेस्ट नॉन होता है। जैसे अगर आपका एक प्रॉडक्ट है तो आपका मेन फोकस उस प्रॉडक्ट को बेस्ट बनाने पर नहीं आपका मेन फोकस होना चाहिए कि आप गि वन टाइम में उस प्रॉडक्ट को जितना अच्छा बना सकते हैं उतना अच्छा बनाओ और बाकी का सारा टाइम उसे प्रोमोट करने में लगा हो और उसके बाद उस प्रमोशन से जितनी ज्यादा सेल्स होंगे और जितना ज्यादा प्रॉफिट होगा उस प्रॉफिट को री इनवेस्ट करो। अपने प्रॉडक्ट को बेहतर बनाने के लिए ओवरटाइम आप जितनी बार इस साइकल को रिपीट करोगे, जितनी बार आप री इन्वेस्ट करोगे अपने प्रॉडक्ट को स्ट्रॉन्ग बनाने में उतना ही ज्यादा आपके पास कॉम्पिटिटिव एडवांटेज आती जाएगी और दूसरों के लिए बहुत मुश्किल होगा। कैच अप करना सिमिलरली अगर आप एक जॉब करते हो तब भी आपको ये पता होना चाहिए की आपका मेन गोल एक कोने में बैठकर हार्ड वर्क करना नहीं है। क्योंकि कोई नहीं आपको नोटिस कर रहा है वहाँ पे आपका काम होना चाहिए की हार्ड वर्क करते हुए आपका बॉस आपको देखे और उसको ये समझ जाये की आप कितने वैल्यूएबल हो। कंपनी को आगे बढ़ाने के लिए ऐसे ही अगर आप एक फ्रीलान्सर हो तब भी आपका मेन गोल यह नहीं है कि आप अपनी स्किल को बेस्ट बना लो। आपका गोल है बेस्ट नॉन बनना जैसे अगर मैं ऑनलाइन जाकर एक वीडियो एडिटर को ढूंढूं तो जो भी रिज़ल्ट आएँगे आपका काम है ऐसा फ्रीलान्सर बेस्ट रेटिंग लेना लोगों से और कुछ भी करके चाहे ऐड लगाना या फिर कुछ भी ऐसी को समझकर टॉप रिजल्ट्स पढ़ाना। पोस्ट जहाँ पर अटेन्शन है वहाँ पर पैसा है। सेकंड चीज़ जो आपको चाहिए अपने पैसों को ग्रो करने के लिए, वो है स्पेशलाइजेशन अगर आपका गोल है पूरी दुनिया को समझना और सच के पास पहुंचना देन यू नीड टु बी होलिस्टिक और आपको जेनरल नॉलेज चाहिए, बट अगर आपका गोल हैं सिर्फ और सिर्फ बहुत ज्यादा पैसा कमाना नथी वेल्थ क्रिएट करना देन यू नीड टु बी द बेस्ट ऑफ द बेस्ट इट ऑनली वन थिंग। मेरे को बहुत ज्यादा हैरानी होती है लोगों को ये देख के की उनको ये पता ही नहीं है की वो किस चीज़ में अच्छे हैं और वो किस चीज़ में स्पेशलिस्ट करके ऑलरेडी बैठे हैं। जैसे जब मैं रैक बिल कर रहा था और यहाँ पर मैंने अपनी बुक्स को प्लेस करा, तब मैंने नोटिस करा की 80% ऑफ मी बुक्स आर, अराउंड स्पिरिचूऐलिटी और इस तरह की साइकोलॉजी जो मटिरीअल और स्पिरिचुअल को जोड़ती है और इससे मेरेको ये समझ आया कि जो भी चीज़ हम हमेशा होल्ड कर रहे होते हैं, जो भी एक्वायर कर रहे होते हैं, इस बारे में बात कर रहे होते हैं, हम उसी में स्पेशलिस्ट करके बैठे होते है, हम उसी के एक्स्पर्ट होते हैं। मेरी बुक्स ये बता रही है कि मेरी स्पेशलाइजेशन है लोगों को उनकी स्पिरिचुअल पोटेंशिअल के पास पहुंचाना और आई नो की। हम बहुत सारी फालतू की चीजों को भी इकट्ठा करते हैं और फालतू की चीजों के बारे में भी बात करते हैं। बट यू नीड टु फाइन्ड आउट दैट वन थिंग जिससे आपको बहुत ज्यादा प्यार है। किस चीज़ के बारे में आप घंटों तक बात कर सकते हो? अगर आपको अगर मैं आपको बोलूं की मेरे को एक पर्टिकुलर टॉपिक के बारे में घंटों तक कुछ समझा मेरे को नॉलेज दे। क्या है वो चीज़ अगर आपको अभी भी यह नहीं समझ आ रहा है की वो चीज़ क्या है? देन यू नीड टु ट्री डिफ़रेंट थिंग्ज़? आपको अलग अलग चीजें ट्राई करके देखना पड़ेगा की कौन सी चीज़ सही बैठ रही है। आपकी पर्सनैलिटी और आपकी 10 सी के साथ डिफरेंट चीजों को शुरू में ट्राई करके देखो बट देन पिक वन थिन गो ऑल इन तीसरी चीज़ जो आपको चाहिए अपने पैसों को ग्रो करने के लिए, वो है दैट यू नीड टु बिल्ड आ टीम आसपास पॉसिबल। यह एक मेरी गलती है जो मेरे को अगर बहुत जल्दी समझ आ गई होती तो साइकोलॉजी हिंदी बहुत बड़ा होता है और गाँधी यूनिवर्सिटी बहुत बड़ा होता और मेरे ऊपर से लोड बहुत जल्दी उतर गया होता क्योंकि एक अकेला बंदा सोचो, मैं अपनी ब्रैंड पर बस 10 घंटे काम कर सकता हूँ। बट अगर मेरे पास 10 लोग और हैं जिनको मैं हार करके बैठा हूँ तो मेरी बैंड पर पर डे बस 10 घंटे का काम नहीं हो रहा मेरी ब्रैंड पर पर डे 100 घंटों का काम हो रहा है। शुरू में प्रॉब्लम नहीं होती है कि जब भी आप दूसरे लोगों को हायर करते हो दे आर नॉट इस गुड यू जो भी वो काम करते हैं, आपको पता है कि आप उनसे बेटर कर सकते हो और आप ये सोचते हो की फिर क्यों ही दूसरे लोगों को हायर करना है? यह काम तो मैं खुद ही कर लूँगा। बट यही वो रीज़न है, जो बहुत सारे लोगों की अर्निंग पोटेंशिअल को दबाएँ रखता है और उनकी ग्रोथ को डिले करता है। अगली चीज़ जो आपको चाहिए खुद को एक बौसे माम् मैं ट्रांसफर करने के लिए इस मसल ऐसा यंग मैन इट इस रियली इम्पोर्टेन्ट फॉर यू टु हेवेन इम्प्रेसिव फिज़ीक बिकॉज़ इस पॉइंट पर आप कैपेबल हो खुद के शरीर को बहुत ज्यादा ब्यूटीफुल बनाने के लिए ओवर टाइम जैसे जैसे आपकी एज बढ़ेगी। आपकी मसल बिल्ड करने की पोटेंशिअल तो करेगी ही लेकिन साथ ही साथ जी स्पीड के साथ आप आप अपने फ्रेम पर मसल पुट ऑन करते हो वो भी स्पीड बढ़ जाएगी। मैं अराउंड 2013 से वेटलिफ्टिंग कर रहा हूँ और ओवर टाइम मेरी फिटनेस की फिलॉसफी काफी यूनिक बन चुकी है। मेरी नजर में मसल बिल्डिंग काफी सिमिलर है। मनी मेकिंग के हैं। जिसतरह से जब आपके पास शुरू में पैसा नहीं होता तब आपके लिए पैसा बनाना बहुत मुश्किल होता है। लेकिन जब एक पॉइंट पर आपके पास एक हेल्थी सम ऑफ मनी कट्टा हो जाता है तब उसको स्लोली कंपाउंड करके उसके थ्रू एक वास् सम ऑफ वेल्थ क्रिएट करना आसान बन जाता है। ऐसे ही जब आपने कभी वेट लिफ्टिंग नहीं करी होगी और आपके पास मसल नहीं होती तब आपके पास माइंड मसल कनेक्शन भी नहीं होता। आप पहले दिन जाके बी सेफ कॉल्स मारते हो और आप अगले दिन बोलते हो कि मेरे शोल्डर्स की सो रहे है। बिकॉज़ आपके माइंड को नहीं पता कि सारा वेट यहाँ से उठाना है। इसलिए शुरुआत में अपनी ट्रेनिंग फ्रिक्वेन्सी को ही रखो और हर मसाला ग्रुप को हर हफ्ते दो से तीन बार ट्रेन करो और एक पॉइंट पर जब आप को यह लगने लगे कि आपका माइंड मसल कनेक्शन बन गया। थ्रूआउट द बॉडी और आप अपने मसल्स को अपनी मर्जी से हिला पा रहे हो तो उस पॉइंट पर आप अपनी ट्रेनिंग फ्रिक्वेन्सी को थोड़ा गिरा सकते हो। और बस तीन से चार बार जिम जाकर ही आप अपनी बॉडी को मेंटेन भी कर सकते हो और और ज्यादा मसल भी बना सकते हो। बिकॉज़ नाउ, यू हैव द माइन्ड मसल कनेक्शन अगला है माइंडसेट एक मेल के लिए सही माइंड सेट होने का मतलब है कि उसे फाइनली ये समझ आ गया है कि इस पूरी दुनिया में जिसे अकेली चीज़ को हम कंट्रोल कर सकते हैं वह है हमारा माइंड। एक मर्द जिसका मन टोटली उसे कंट्रोल में है, वो जैसी चाहे वैसी रिऐलिटी क्रिएट कर सकता है। बट कंट्रोल कम्स फ्रॉम पावर इनपावर कम्स फ्रॉम रिस्पॉन्सिबिलिटी नोर्मल्ली ये बोला जाता है दैट विद ग्रेट पावर कम्स ग्रेट रिस्पॉन्सिबिलिटी। बट इन रिऐलिटी रिस्पॉन्सिबिलिटी पहले आती है और पावर बाद में और जब भी तुम हर चीज़ की रिस्पॉन्सिबिलिटी लेते हो, जब भी तुम बोलते हो की मैं जिम्मेदार हूँ इस चीज़ का, तब वो तुम्हारे ऊपर एक बर्डन नहीं है। बर्डन से ज्यादा पॉसिबिलिटी है इस कोर्ट को अपने दिमाग में डाल लो दैट एवरी रिस्पॉन्सिबिलिटी इस पॉसिबिलिटी मैं अपने दिमाग में ये माइंडसेट बिठाना पड़ेगा। दैट एवरीथिंग इस योर रिस्पॉन्सिबिलिटी ऐंड एवरीथिंग इज़ योर फॉल्ट। अगर घर में किसी की तबियत खराब है, तुम्हारी गलती है अगर तुम्हारे घर के आगे गड्ढे हैं, तुम्हारी गलती है, घर में पैसे नहीं हैं, तुम्हारी गलती है अगर घर में आपस में लोग ढंग से बात नहीं कर रहे हैं, तुम्हारे रिलेशनशिप्स पुअर हैं। तुम्हारी गलती है जब भी तुम खुद को बोलते हो दैट एवरीथिंग इस मी फॉल्ट एवरीथिंग इस माइ रिस्पॉन्सिबिलिटी और हर चीज़ की जिम्मेदारी मेरी है तब तुम खुद को इंपावर करते हो। दुनिया की बड़ी से बड़ी प्रॉब्लम्स को सॉल्व करने के लिए है ना? वो फोर्थ मुक्ति के बारे में बात करते हैं। बट मुक्ति की तरफ बढ़ने से पहले हमें कर्मा को समझना जरूरी है। बिकॉज़ यह समझने से पहले कि आप को मुक्त कैसे होना हैं? आपको यह समझना चाहिए कि आपको मुक्ति चाहिए। किस चीज़ से, किस चीज़ ने हमें बांध रखा है। अगर हम सबसे सिंपल वर्ड्स में बोले तो बंधन होता है। पास्ट के अकॉर्डिंग प्रेज़ेंट में एक्ट करना। यही जेनरेशन ड्रामा है। यही मेमोरी है और यही हमारी बॉन्डेज है। मेरी एवोल्यूशनरी मुझे सर टन में मैं करने को बोल रही है। मेरी जेनेटिक मेमोरी के थ्रू मेरे सिस्टर्स मुझे कंट्रोल कर रहे हैं। ऐसे ही मेरी इस लाइफटाइम की मेमोरी है और मेरी कार्मिक मेमोरी है। मतलब मेरा खुद पर कंट्रोल कम है और मुझे दूसरी फोर्स ज्यादा कंट्रोल कर रही है। जीस तरह से एक भूत शरीर को छोड़ने के बाद भी इस दुनिया में वापस आना चाहता है, वैसे ही पास्ट होता है। पास्ट गुजर चुका है, लेकिन वह वापस आना चाहता है और वो जिंदा रहना चाहता है। आपको करके और जब भी आप पोस्ट को खुद को कंट्रोल करने देते हो तब आप अपनी पूरी ऑटोनोमी और अपनी फ्री विल खो देते हो इसलिए हमारा काम होता है खुद को इस भूत से इस पास से दूर करना और इसकी शुरुआत होती है ज्यादा कॉन्शस होने से कॉन्शस होने का मतलब है खुद को हर तरह से खाली कर लेना और कोई भी ऐसा काम ना करना जो आपकी वॉन्ट या आपकी डिज़ाइनर से रिलेटेड हो, बल्कि ऐसा काम करना जो काम करना जरूरी है, क्योंकि जो भी आपकी वॉन्ट है, जो भी आपकी डिज़ाइनर है, वो हमेशा ही पास से मेमोरी से रिलेटेड होगी। लेकिन जब भी आप कोई ऐसा काम करोगे जो काम करना मूवमेंट में जरूरी है। और वो आपकी कॉन्शसनेस से रिलेटेड होगा और वोन कौन ऑडिशन होगा? इस पॉइंट से आप अपने पास या फिर अपनी कन्डिशनिंग के अकॉर्डिंग ऐक्ट करना बंद कर देते हो, उसी पॉइंट से आप अपना कर्मा कम करना शुरू कर देते हो और मुक्ति की तरफ चलने लगते हों। मनी मसल, माइंडसेट और मुक्ति अगर तुम इन चारों चीजों पर ध्यान दे रहे हो तो तुम्हें किसी चीज़ की टेंशन लेने की जरूरत नहीं है। तुम रिस्पॉन्सिबिलिटी को लेने के बाद भी खु़श रहोगे। तुम लॉन्ग लास्टिंग रिलेशनशिप्स बिल्ड कर पाओगे और तुम किसी भी चीज़ की कमी महसूस नहीं करोगे। बिकॉज़ थिस इस नॉट बी इनाम इस ऑल अबाउट दैट यू आर इन एग्ज़ॉस्ट टेबल ऐन्युअल वे वे अब ऑफ थे एवरेज","इस पॉडकास्ट सेगमेंट में मैं उन 4 चीजों के बारे में बात करता हूं, जिन पर हर आदमी को एक मजबूत इंसान बनने के लिए ध्यान देने की जरूरत है।" "हर इंसान अपनी पोटेंशिअल के एक अलग लेवल पर जीरा होता है। ऐसे ही जहाँ कई फीमेल्स अपने ही बनाए एक साइकोलॉजिकल ट्रैक में अटकी हुई होती है और वो खुद की वैल्यू को ही गिरा री होती है। गलत हैबिट्स को डेवलप करके और अपने स्टैन्डर्ड जना सेट करके वही एक टाइप की फीमेल ऐसी भी होती है जिसकी लाइफ ट्रैक पर होती है और उसकी एग्ज़िस्टन्स सिर्फ उसके लिए नहीं बल्कि दूसरों के लिए भी मीनिंगफुल होती है। इसी वजह से हम ऐसी विमिन को एक सुपिरिअर वुमन बोलते हैं। सुपिरिअर इसलिए नहीं कि कोई दूसरी औरत उसके जितना अचीव नहीं कर सकती पर पीरियड इसलिए क्योंकि वो ऑलरेडी अपनी पोटेंशिअल को काफी हद तक रिऐलिटी बना चुकी है और हर फीमेल को ऐसी सुपिरिअर वो मन से इन्स्पिरेशन लेनी चाहिए। इसलिए अब बात करते हैं एक सुपिरिअर विमिन के साइंस की साइड नंबर वन शी इज़ द लीडर ऑफ द ट्राइब एक सुपिरिअर वुमन कभी भी उन फीमेल्स में से नहीं होती जो झुंड में सबसे पीछे खड़े होकर दूसरों के एक्शन को कॉपी करती है, बल्कि वह पत्थरों के बीच हीरे की तरह चमक रही होती हैं। जीवन अगर वो अपनी मर्ज़ी से लीडर ना भी बने फिर भी लोग उसे इस पोज़िशन पर बिठा देते हैं। जस्ट बिकॉज़ उसकी इनसाइट्स इतनी वैल्युएबल होती है साइट नंबर टू शे इस इन टच ऑफ सैन्स यही वो चीज़ होती है जो एक सुपीरियर रूम इनकी इनसाइट्स में वजन डालती है। आपके दिमाग में भी शायद ऐसी कई स्ट्रॉन्ग फीमेल स्कीमें जाए जिनकी हर एक बात आपको एक बहुत गहरे लेवल पर हिट होती है। ऐसी फीमेल्स अपनी फेमिनिटी की कोर से बोल रही होती है। कही सुनी बातें जो एक कल्चर में ट्रेंड हो रही होती हैं, उन्हें तो हर कोई तोते की तरह दोहरा सकता है पर अपने पर्सनल एक्सपिरियंस को अपनी से जोड़ना ये चीज़ बहुत कम लोग कर पाते हैं। इसलिए अपने लाइफ इक्स्पिरीअन्सिज़ की डेथ को समझो उन्हें इक्स्पिरीयन्स इसमें से खुद को हटाकर सिर्फ ऐसे ही आपको यह समझ जाएगा कि आपकी स्टोरी असल में हर लड़की और हर इंसान की स्टोरी है। नंबर थ्री शी एंब्रेस द ग्रेट मदर आर्किटाइप एक सुपीरियर रोमन की हर बात, उसकी बॉडी लैंग्वेज, उसकी बोलने का ढंग, उसके कपड़े, उसकी हर चीज़ ही यह बता रही होती है कि एक औरत होने का मतलब क्या होता है? एक औरत की सबसे बड़ी ताकत होती है उसकी यानी एक तरह से इस पूरी दुनिया को पैदा करने वाली जी फेमिनिन ही है और एक सुपिरिअर विमिन इस एनर्जी का चलता फिरता रूप होती है। लाउड ज़ू, जोसेफ कैंबल और कार्यों जैसे वाइज लोग इस कॉस्मिक एनर्जी यानी इस दुनिया को पैदा करने वाली ताकत को द ग्रेट मदर की आर्केटाइप से सिंबला इस करते हैं। एक ऐवरेज फीमेल तब तक फुल्ली डेवलप नहीं हो सकती और एक लड़की से औरत नहीं बन सकती। जब तक वह इस पावर को अपने अंदर महसूस नहीं कर लेती। साइन नंबर फ़ोर शी ने वर चेसमैन यह फैक्ट ऐवरेज लोगों के लिए बहुत ऑफेंसिव होगा क्योंकि एक ऐवरेज फीमेल अपनी वैल्यू ना पता होने की वजह से लड़कों को चेस करती है और एक ऐवरेज मेल यह न पता होने की वजह से कि वो अपनी वैल्यू को बढ़ा सकता है और हाइएस्ट क्वालिटी की फीमेल को अपना पार्टनर बना सकता है, वो भी यही सोचता है कि काश कोई फीमेल खुद ही उसको अप्रोच कर लें। आज की कन्फ्यूज दुनिया आपको बोले गी कि एक मेल फीमेल्स कोचेस करें या फिर फीमेल मेल्स को ये दोनों सेम चीज़े हैं, लेकिन असलियत में फीमेल्स का मेल्स को परसू करना और मेल्स का साइड में खड़े रहकर किसी ऑफर का वेट करना, यह बेहेवियर हमारी ट्रू नेचर के बिलकुल ऑपोजिट है। नैचुरली एक फीमेल ज्यादा चूजी होती है और एक मेल अपने आप को हर तरह से डेवलप करता है, ताकि वो फीमेल्स की नजरों में कहीं स्टैंड कर सके। फीमेल्स की चूज चिनेस आती है उनकी इ नेट वैल्यू और रीप्रोडक्टिव कॉस्ट की वजह से। इसलिए एक सुपिरिअर विमिन यह बात जानती है कि उसे किसी भी मेल का पीछा करने की जरूरत नहीं है और अगर वो अपनी ट्रू वैल्यू को समझ जाए तो मेल्स खुद बा खुद उसके पीछे चले जाएंगे। साइन नंबर फाइव वेरे वर्षीय इस शी सेट होम एक सुपिरिअर वुमन चाहे कही भी हो वो हमेशा ही काम और पीसफुल होती है। ऐसी फीमेल खुद के साथ इतनी कम्फर्टेबल होती है कि चाहे वो अपने दोस्तों और फैमिली से दूर भी हो, वह हमेशा ही ईज़ में रहती है। यह ईज़ या फिर पीसफुल ने स्व फीमेल्स इक्स्पिरीयन्स नहीं कर पाती, जो हमेशा ही ऐस रहती है और खुद के साथ ही लड़ती रहती है। सीन नंबर सिक्स शेस रिअलिस्टिक एक सुपिरिअर वुमन के पैर जमीन पर होते हैं और नज़रें सितारों पर वो हम्बल भी होती है और एट के सम्टाइम अपने टैलेंट से या फिर स्किल्स के बारे में अवेयर भी। जहाँ बहुत सी फीमेल्स या तो खुद को लेकर इनसिक्योर होती है या फिर ओवर कॉन्फिडेन्स में जी डी होती है, वहीं एक सुपरवुमन का फोकस खुद को दूसरों से ऊपर या फिर नीचे रखने पर नहीं बल्कि दूसरों को ऊपर उठाने पर होता है। साइन नंबर सेवन शी इज़ अननैचरल सोशल जीनियस यानी एक सुपिरिअर वुमन को अपनी सोशल इन्टेलिजेन्स को बढ़ाने के लिए किताबों का सहारा नहीं लेना पड़ता बल्कि वो नैचुरली ही लोगों के साथ दीप बॉन्ड बना पाती है। ऐसा इसलिए क्योंकि जब भी एक इंसान की कई सेल्फिश मोटिव्स नहीं होते और वो लोगों को बिना किसी जजमेंट के ट्रीट करता है। तो उसके लिए किसी से भी और कहीं पर भी बात करना, नए दोस्त बनाना और इवन अनजान लोगों को भी ऐसा फील करवाना जैसे वो बहुत पुराने दोस्त हैं। यह चीज़ ऐसे इंसान के लिए बहुत ही आसान होती है। नंबर एट शीप, सिट सिंपल, एक सुपिरिअर वुमन कभी भी खुद को अटेन्शन सीकिंग, क्लोज़, हेवी मेकअप या फिर जूलरी से नहीं ढकती। ऐसी फीमेल की नैचरल और वाइल्ड ब्यूटी के आगे ये सब चीजे भी फीकी पड़ जाती है। आज जहाँ हर कोई शो ऑफ करके एक झूठी अटेंशन अपनी तरफ लाना चाहता है वो भी कही सेल्फिश रीजन्स के लिए। वही एक सुपिरिअर विमिन सिम्प्लिसिटी से ही सबका दिल जीत लेती है। ऐसी फीमेल का जीने का तरीका ही उसकी पर्सनैलिटी, करेक्टर और उसकी सोच के बारे में बहुत कुछ बता देता हैं। वो अपनी वैल्यू भारी चीज़ो से आउटसोर्स नहीं करती और अपना कॉन्फिडेन्स अपनी इन्नर रिऐलिटी पर बेस करती है। और जैसा कि अमेरिकन ऑथर कैमल पलिया बोलती है कि एक वो मन में करिज्मा एक ऐसी चीज़ होती है, जो सेल्फ मास्टरी की सिम्प्लिसिटी से आ रही होती है। ऐसी गिफ्टेड पर्सनैलिटी अपनी मैस्कुलिन और फेमिनिन एनर्जी को बैलेंस करना जानती है। वो इंसान कम और इंसानियत ज्यादा होती है और उसकी यही अनोखी खूबी उसके चेहरे को ग्लोइंग और उसकी बातों को भारी बनाती है।","हर महिला के अलग-अलग मानक और मूल्य होते हैं जिनका वह पालन करती है, और जबकि ज्यादातर महिलाएं औसत होती हैं, कुछ महिलाएं सर्वश्रेष्ठ के लिए लक्ष्य रखती हैं और इसलिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ मिलता है। इन महिलाओं को श्रेष्ठ महिला के रूप में जाना जाता है। तो, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम एक बेहतर महिला के 8 संकेतों पर चर्चा करेंगे।" "हमारा ऐटिट्यूड हमारे हर ऐक्शन को इन्फ्लुयेन्स करता है और सिर्फ सही ऐटिट्यूड ही हमें हमारे डिज़ाइरड रिजल्ट्स तक पहुंचा सकता है। नोर्मल्ली ऐटिट्यूड रखने को एक बुरी चीज़ माना जाता है और यह समझा जाता है कि ऐटिट्यूड होने का मतलब है कि एक इंसान काफी ऐरोगेंट और अनफ्रेंड ली है। लेकिन असलियत में ऐटिट्यूड कई तरह के होते हैं और वो हमारी डे टु डे लाइफ में बहुत ज़रूरी भी होते हैं। एक बिज़नेस मैन का ऐटिट्यूड बहुत ही अलग होता है। एक गरीब और कर्ज में डूबते हैं इंसान से और एक इंसान जीसको बहुत से लोग अट्रैक्टिव मानते हैं। उसका ऐटिट्यूड भी एक अन्य अट्रैक्टिव माने जाने वाले इंसान से अलग होता है और ऐटिट्यूड की अच्छी बात यह है कि आप इसे प्रैक्टिस के साथ डेवेलप भी कर सकते हो, क्योंकि सही ऐटिट्यूड एक सोशल स्किल की तरह होता है। इसलिए अब बात करते हैं सबसे जरूरी और अट्रैक्टिव ऐटिट्यूड्स की नंबर वन अब ऐटिट्यूड बहुत से लोग दूसरों को टेस्ट करते हैं। उनसे दूरी बनाकर जैसे अगर आपकी अपने दोस्त या फिर पार्टनर से किसी छोटी सी बात पर आर्ग्यूमेंट हो जाए और वो इंसान उस बात को जबरदस्ती बढ़ाता है और आप से दूरी बना लेता है। यह सोच कर या आप खुद उसके पास आओगे तो ऐसे केस में आप या तो उसका पीछा करके उसे प्लीज़ करने की कोशिश कर सकते हो या फिर आप एक बंडल ऐटिट्यूड रखकर सिम्पली खुद की लाइफ पर फोकस कर सकते हो। ऐटिट्यूड रखने का मतलब है कि आपको ये फरक ही नहीं पड़ता कि कौन आपकी लाइफ में आ रहा है या फिर आपकी लाइफ से जा रहा है। आपको पता है कि आपकी ड्यूटी है बस एक्सिलेंस का पीछा करना और जो इंसान आपके इस गोल के साथ रिलेट करेगा वो आपके साथ टिका रहेगा। जबकि डिफ़रेंट गोल्ड रखने वाले लोग खुद ही आपसे अलग अलग बहाने बनाकर दूर हो जाएंगे। इसलिए अगर आप सबसे हाई क्वालिटी लोगों को अपनी तरफ अट्रैक्ट करना चाहते हो तो पैराडॉक्सिकल लिए आपको उन्हें अट्रैक्ट करने की नहीं, बल्कि एक बंडल से ऐटिट्यूड रखने और खुद की ग्रोथ पर काम करने की जरूरत है। नंबर टू बीइंग मिस्टीरीअस खुद सोचो कि किस तरह का बिहेव्यर आपको दूसरों की तरफ ज्यादा अट्रैक्ट करेगा। एक तरफ एक ऐसा इंसान है जो हमेशा आपको अपने बारे में हर सीक्रेट बताता रहता है या फिर वह जो बस इतना बताता है जिससे आपको उसके बारे में और जानने का मन करे। यह पावर होती है मिस्ट्री की यानी आपने दीप लगने की कोई एक्टिंग नहीं करनी कूल देखने के लिए अपने बस खुद को हर इंसान के आगे एक सपोज़ नहीं करना है। आपने अपनी गेम के पीठ पर रहना है और दूसरों की नजरों से दूर खुद को बिल्ड करना है। इस तरह जब लोग बाहर से आपको उनके बिना उन से एक बेटर लाइफ जीते देखेंगे तो यह चीज़ उनमें आपके सिटी जगाएगी। नंबर थ्री हैव कन्विक्शन जीतने भी लोगों ने मुझे अपनी लाइफ में एक्सपाइर करा है। यह ऐटिट्यूड उन सब में कॉमन था यानी जो उन्होंने एक बार बोल दिया वो उसे हमेशा पूरा करते हैं। आपके शब्द कभी भी कमजोर और खोखले नहीं होने चाहिए, क्योंकि ऐसे तो सब को यह मैसेज मिलेगा। कि आप एक कमजोर और अंडर लेबल इंसान हो। इसके बजाय अपने शब्दों को भारी बनाओ उन कामों को कर के जिनका प्रॉमिस करते हो। लोगों को यह पता होना चाहिए कि अगर आपने अपना मुँह खोला है तो आप कुछ सच बोलने वाले हो और आपकी बातों पर वो अंधा विश्वास कर सकते हैं। इसलिए जब भी आप किसी से मिलो तो धीरे धीरे उसके दिमाग में अपनी कुछ इस तरह की इमेज बनाओ कि आप ट्रस्ट के काबिल हो क्योंकि आपके वर्ड्स पत्थर की लकीर की तरह है। रशियन ऑथर आइरन रेन बोलती थी की मेरी सबसे बड़ी गलती है अपने मुँह से ऐसे शब्दों को निकलने देना। जिन्हें मैं सच नहीं मानतीं और जिन पर मैं खुद नहीं टिक्की रहती। हमारा हर वर्ड, हर ऐक्शन और हर मूवमेंट मैटर करता है, क्योंकि यही वो चीजें होती हैं जिनकी वजह से बहुत से लोग क्लियरली सोच नहीं पाते हैं और वो इंटर्नैशनल बन जाते हैं। यानी वो अपने शब्दों को अपने ऐक्शन से नहीं मिलाते हैं। नंबर फ़ोर बीइंग सोफिस्टिकेटेड यहाँ पर हम बात कर रहे हैं ऐनस या फिर आपकी रिफाइनमेंट की। यानी क्या बदतमीजी से बात करते हो? आपका ड्रेसिंग सेन्स बेकार है, आप में टेबल मैनर्स नहीं है या फिर क्या आपको खुद के इमोशन्स को मैनेज करना नहीं आता? सुफिस्टिकेशन एक ऐसी चीज़ है जिसे एक इंसान में या तो उसके पैरंट्स डालते हैं या फिर ये उसे खुद ही सीखनी पड़ती है। सुफिस्टिकेशन आपको एक चलती फिरती लग्जरी बनाती है, क्योंकि आप अपने ऊपर काम कर करके खुद को इतना वैल्यूएबल बना देते हो कि जो भी इंसान आपसे मिलता और बात करता है, उसे यह पहली इंटरैक्शन में ही समझ आ जाता है कि आप बाकी लड़कों या फिर लड़कियों की तरह नहीं हो और आपको अपने हाथ से जाने देना बेवकूफ़ी होगी नंबर फाइव ऐटिट्यूड ऑफ पावर क्योंकि पावर का डिस्प्ले भी लोगों की नजरों में उतना ही इफेक्टिव होता है। जितना असली पावर होती है, पावर का डिस्प्ले दिखता है। आपकी बॉडी लैंग्वेज, आपकी आवाज की पिच, आपके कॉन्टैक्ट और इवन आपके चॉइस के शब्दों में भी पावर दूसरों को अट्रैक्टिव इसलिए लगती है क्योंकि पावर होने का मतलब है कि लोग आपकी सुनते है। सोसाइटी में आपकी इज्जत है और आपने अपनी जिंदगी में कुछ अचीव कर रखा है। इस ऐटिट्यूड का बिज़नेस और सोशल सिचुएशन्स में बहुत ज़रूरी रोल होता है। इमेजिन करो कि आप एक बिज़नेस डील क्लोज़ करने की कोशिश कर रहे हो, लेकिन सामने वाली पार्टी आप के ऊपर कम पैसों को लेने का दबाव बना रही है। तो ऐसे समय पर आपको जरूरत होगी पॉवरफुल देखने और पॉवरफुल ली सोच पाने की, ताकि आप उस नेगोशिएशन को अपने फेवर में लासको और ताकि कोई इंसान आपका फायदा न उठा सके। नंबर सिक्स रिस्की ऐटिट्यूड अगर आप अपनी लाइफ को टोटली एन्जॉय करना चाहते हो और सोशल एनवायरनमेंट में भी सबसे ज्यादा अट्रैक्टिव और एन विअरेबल बनना चाहते हो, तो आप में रिस्की ऐटिट्यूड जरूर होना चाहिए। यानी आपको अपने बिज़नेस में, अपने रिलेशनशिप्स में और जेनरली अपनी पूरी लाइफ में ही कुछ इस तरह से रहना है कि आप किसी भी सिचुएशन में डरकर वहाँ से पीछे नहीं हट जाते हैं। लोग रिस्क लेने वालों को शुरू में पागल बोलते हैं लेकिन जब वो इंसान खुद पर भरोसा रखकर और उसर इसके कॉन्सिक्वेन्सस को कैलकुलेट कर के वह स्टेप लेता है और अपने रिजल्ट्स तक भी पहुँच जाता है तब लोग उसे ज्यादा रिस्पेक्ट करते हैं। क्योंकि उस इंसान ने ये प्रूफ कर दिया कि लोग बस उसे अंडरएस्टीमेट कर रहे थे और उसकी असली पोटेंशिअल किसी को नहीं पता। इसके साथ ही रिस्की ऐटिट्यूड आपको ज्यादा इंट्रेस्टिंग बनाता है, क्योंकि बहुत सी रिस्की सिचुएशन में पार्टिसिपेट करने की वजह से आपके पास बहुत सी इंटरेस्टिंग स्टोरी होती है। जबकि जीस इंसान ने कभी कोई रिस्क लिया ही नहीं होता और कभी कोई ऐडवेंचरस चीज़ नहीं करी होती। उसके पास दूसरों को सुनाने के लिए कोई इंट्रेस्टिंग स्टोरी नहीं होती और वो दूसरों की नजरों में बोरिंग होता है। नंबर सेवन ऐटिट्यूड एक फ्रेंड या पार्टनर को जो चीज़ यूनीक और वैल्युएबल बनाती है, वह है उनकी लौटी और अगर आप भी किसी इंसान को इस लेवल की कमिटमेंट दे सकते हो तो यह बिहेवइयर उनके लिए काफी अट्रैक्टिव होता है। आज जहाँ हर कोई ही अपने मतलब के लिए दोस्ती करता या फिर रिलेशनशिप में आता है, वहीं अगर आप अपने सर्कल में सबको क्लियरली ये बता दो कि आप सिर्फ उन्हीं लोगों के साथ उठते बैठते हो, जिनके लिए आप अपनी जान भी दे सको तो यह चीज़ उनको बतायेगी कि आप उनके बाकी दोस्तों या फिर पुराने पार्टनर्स की तरह नहीं हो और इस तरह से आप उनकी प्रायोरिटी लिस्ट में सबसे ऊपर आ जाओगे। इसलिए ऐटिट्यूड को जरूर अपने करेक्टर का हिस्सा बनाओ। नंबर एट लीडरशिप ऐटिट्यूड ये ऐटिट्यूड डेटिंग के केस में मेल्स के ज्यादा काम आता है और लाइफ के दूसरे एरियाज में दोनों जेंडर्स के। ऐसा इसलिए क्योंकि लीडरशिप ऐटिट्यूड जुड़ा होता है। एक इंसान की डिसाइसिवनेस उसकी लीड करने की एबिलिटी, डिसिशन मेकिंग स्किल्स और उसकी इमोशनल स्टेबिलिटी से है। और इस ऐटिट्यूड को वर्कप्लेस में इसलिए डिजायरेबल माना जाता है, क्योंकि अच्छे डिसिशन ले पाने, मेहनत करने और रिस्क को मैनेज करने की एबिलिटी बहुत जरूरी होती है। किसी भी इंसान या फिर ऑर्गेनाइजेशन को सक्सेसफुल बनाने के लिए हाउएवर डेटिंग के कॉन्टेस्ट में फीमेल्स लीडरशिप ऐटिट्यूड मेल्स में ज्यादा ढूँढती है, जबकि मेल्स को इस बात का ज्यादा फर्क नहीं पड़ता कि उनकी पोटेंशिअल पार्टनर लीड करने के काबिल है या फिर नहीं, क्योंकि रिलेशनशिप के केस में मेल्स फीमेल्स में फर्टिलिटी ढूंढ़ते हैं, जबकि फीमेल्स ढूँढती है काबिलियत इसलिए लीडरशिप ऐटिट्यूड को अपने यूनीक केस के हिसाब से यूज़ करो और सही जगह पर उसका फायदा उठाओ। नमन नाइन ऐटिट्यूड ऑफ मैगनेटिजम यहाँ पर हम बात कर रहे हैं चार्मिंग बनने और लोगों को अपनी तरफ अपने यूनीक करेक्टर की मदद से अट्रैक्ट करने की। आपने ये चीज़ बहुत ही रेयर इंडिविजुअल्स में नोटिस करी होगी कि जब भी वह किसी रूम में आते हैं और कुछ बोलना शुरू करते हैं, तब सब लोगों की नजर सिर्फ उस एक इंसान पर ये होती है। उसकी प्रेजेंस में कोई ऐसी चीज़ होती है जो लोगों को उसकी तरफ एक ह्यूमन मैग्नेट की तरह खींच लाती हैं। यह होता है उसका ऐटिट्यूड ऑफ मैगनेटिजम। और इससे ऐटिट्यूड के कई पार्ट्स होते हैं जैसे कॉन्फिडेन्स कैर्री करना, अपने मन की बातों को बिना डरे सबके आगे बोल देना और अपनी अपीयरेंस को काफी क्लीन और सिम्पल रखना। हम सोचते हैं कि अटेन्शन पाने का सबसे अच्छा तरीका होता है स्पेक्ट्रम के एकदम एक्स्ट्रीम में चले जाना और ज्यादा नॉइज़ी बन जाना या फिर ऐसे कपड़े पहनना जो अटेंशन के लिए चीख रहे होते है। हाउएवर असलियत में इस तरह का बिहेव्यर अटेन्शन तो खींचता है, लेकिन इसके साथ हमें कोई रिस्पेक्ट नहीं मिलती इसलिए पॉज़िटिव और रिस्पेक्टफुल अटेन्शन हासिल करने के लिए सिम्प्लिसिटी और क्लासिक्स का पीछा करो। सच बोलो हम बोल रहे हो आवास को भारी और अपनी स्पीच में क्लैरिटी रखो, टाइमलेस फैशन का इस्तेमाल करो बजाय ट्रेंड के पीछे भागने का। इस तरह से लोग आपकी तरफ अट्रैक्ट भी होंगे और आपके जाने के बाद भी आपकी तारीफ करते हुए आपको याद करेंगे।",एक नजरिया अक्सर कुछ नकारात्मक के रूप में देखा जाता है लेकिन सच्चाई यह है कि हमारे सभी व्यवहार हमारे नजरिए पर निर्भर करते हैं और एक सही रवैया अधिक आकर्षक और सफल बनने में मदद करेगा। इसलिए इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम 9 दृष्टिकोणों पर चर्चा करेंगे जो आकर्षक और प्रशंसनीय हैं। "लगभग 2200 साल पहले भारत के एक गांव में एक आदमी रहता था, जिसका नाम था तीरा। तीरा 35 साल का था, जो एक काफी धार्मिक फैमिली से बिलॉन्ग करता था और वो पैसों के लिए अपने दोस्तों के साथ मिलकर लोगों का फ़्यूचर बताता था। गांव में स्टोरी कुछ ऐसी फैली हुई थी कि उनके सातवें पहाड़ की सबसे ऊंची चोटी पर एक राक्षस रहता है जो एक जादुई अंगूठी की रक्षा कर रहा है और जो कोई भी रास्ते की मुश्किलों को पार करके इस अंगूठी तक पहुंचेगा, दुनिया की सारी नॉलेज उसके कदमों में आ जाएगी। गांव के लोगों को लगता है कि पिछले हजारों सालों में तीरा ऐसा पहला इंसान है जो उस अंगूठी को छू पाया है। पर उन्हें यह नहीं पता कि तीरा एक फ्रॉड है जो लोगों की मासूमियत का फायदा उठा रहा है। लोगों की इसी नादानी की वजह से अथिरा ऑलरेडी काफी अमीर बन चुका था और हर दिन उसके पास कई लोग अपनी मुश्किलें लेकर आते हैं। कई लोग अपना फ़्यूचर जानने आते और कई लोग अपनी पास्ट लाइफ को पर 1 दिन गांव से गुजरता हुआ एक बूढ़ा साधु तीरा के बारे में सुनकर उसे टेस्ट करने के लिए उसके पास अपने पिछले जन्म के बारे में पूछने आया तेरा ने भी बिना किसी शक के, हर बार की तरह कुछ रैन्डम मंत्र पढ़ें और वो बोला तुम अपने पापों की वजह से पिछले जन्म में एक कीड़े थे और अगर तुमनें इस जन्म में भी अपनी बुरी आदतें नहीं छोड़ी तो तुम अगला जन्म भी कचरे में जीते हुए काटोगे। साधु को यह सुनकर बहुत गुस्सा आया। क्योंकि उसे पता था कि तीरा पूरे गांव से झूठ बोल रहा है, जिसकी वजह से वह गुस्से में खड़ा हुआ और उसने तीरा को एक शराब दिया। तेरे इस धोखे की कीमत है तेरे चाहने वालों की ज़िंदगी। जब तक तू अपने झूठ को सच में नहीं बदलेगा तब तक तेरे चाहने वाले मरते रहेंगे। ये बोलकर साधु वहाँ से चला गया और आसपास खड़े लोग भी तीरा के बारे में बुरा भला बोलने लग गए। घर पहुंचने पर तीरा ने देखा कि उसकी माँ जमीन पर पत्थर की तरह बेजान पड़ी हुई है और वह फूट फूटकर रोने लगा। और उसी वक्त उसने यह ठान लिया कि अब वो खुद सातवें पहाड़ की सबसे ऊंची चोटी पर जाएगा और उस जादुई अंगूठी की मदद से उसे असलियत में सारा पास्ट और फ्यूचर पता लग जाएगा। अगली सुबह जब तीरा अपनी इस जर्नी के लिए निकलने लगा तब उसके दोस्तों ने उसे दिलासा दिया और साथ ही साथ वो उसे सातवें पहाड़ पर जाने से रोकने लगे और बोले की अगर तू इस रास्ते पर निकला तो तू मर भी सकता है, क्योंकि किसी को नहीं पता कि पहाड़ की चोटी पर कौन ये क्या रहता है? तीरा ने कोई जवाब नहीं दिया। उसने एक गहरी सांस ली और वो मुड़कर पहाड़ की तरफ निकल गया। पूरा दिन बिना कुछ खाये और पीए और तीरा चलता रहा और चलता रहा और सोचने लगा कि क्या उसने सच में इतनी बड़ी गलती करी थी? लोगों से झूठ बोलकर क्या वो अपनी माँ को अब दुबारा कभी नहीं देख पाएगा? कहाँ चली गयी वो माँ जिसने उसे इतना प्यार दिया और उसे दुनिया के बारे में समझाया? उस रात वह कुछ पत्तियाँ और सूखी लकड़ियाँ कट्टी करके उन्हीं पर सो गया और उसने अपने सपने में उस जादुई अंगूठी को देखा। उसकी चमक उस पर लिखे हुए मंत्र और कैसे उस अंगूठी को बनाया गया था? अगले दिन तीरा उठते ही काफी भूखा और प्यासा महसूस कर रहा था। उसने देखा कि कुछ मील दूर पेड़ काफी हरे लग रहे हैं और वहाँ से एक झड़ने की भी आवाज़ आ रही है तो वो उसी तरफ निकल गया। झरने तक पहुंचने पर उसने खूब सारा पानी पीया और अपनी प्यास बुझाई। जब उसने दोबारा ऊपर देखा तब उसे किनारे पर एक छोटा सा घर नजर आया। उसने वहाँ जाकर दरवाजा खटखटाया और वहाँ से एक काफी बूढ़ा सा आदमी बाहर आया। तीरा ने उससे पूछा, क्या आपके पास कुछ खाने का होगा? आदमी ने कुछ जवाब नहीं दिया। क्या आप यहाँ पर अकेले रहते हो? अथिरा ने दोबारा पूछा तू उस अंगूठी तक अकेला नहीं पहुँच पाएगा? बूढ़े आदमी ने बोला तीरा चौंक गया आपको पता है अंगूठी के बारे में? हाँ और मुझे यह भी पता है की तू उस तक क्यों पहुंचना चाहता है? तीर आश्रम से कुछ नहीं बोला और बूढ़े आदमी ने उसे अंदर आने का इशारा किया। उसने तीरा को अपने खेत में उगाई फ्रेश सब्जियों का सूप। और साथ में खाने के लिए ब्रेड दी। बूढ़े आदमी ने चुप्पी तोड़ते हुए बोला मैं भी कई बार चोटी तक पहुंचने की कोशिश कर चुका हूँ पर मुझे पता था कि यह काम में अकेले नहीं कर सकता। सिर्फ एक ऐसा इंसान ही उस अंगूठी के पास पहुँच सकता है जिसका कोई काम अधूरा रहता हो। मैं तुझे चोटी तक पहुंचने में मदद करूँगा और तुझे जिन्दा वहाँ तक पहुंचने में यह मदद चाहिए भी होगी। तीरा ने बोला, बुरा मत मानना पर आप काफी बूढ़े और कमज़ोर हो। आप कैसे मेरी मदद करोगे? मुझे चोटी तक पहुंचने का सबसे आसान रास्ता पता है। बूढ़े आदमी ने भरोसा दिलाते हुए बोला और मैं यह भी जानता हूँ कि वहाँ पर रहने वाले राक्षस को कैसे मानना है। तीरा ने सहमति दिखाई और वो दोनों चोटी की तरफ निकल गए। बूढ़े इंसान का बताया आसान रास्ता भी कुछ ज्याद आसान नहीं था। जगह जगह पर सांप और गहरे गड्ढे होने की वजह से उनका हर कदम उन्हें काफी चौकन्ना होकर लेना पड़ रहा था। कुछ देर चलने के बाद पहाड़ पर तेज बारिश होने लग गयी और वो दोनों आसमान साफ होने तक एक घने पेड़ के नीचे रुक गए। इतनी ऊपर से अपने गांव की तरफ देखते हुए तीरा ने फिर से बूढ़े आदमी से क्वेश्चन पूछने चालू कर दिए हैं। क्या आप भी हमारे गांव के ही हो? हाँ तो आप अकेले इस पहाड़ पर रहने के बजाय नीचे हमारे साथ आकर क्यों नहीं रहते है? क्योंकि सिर्फ यही एक ऐसी जगह है जहाँ पर मैं इस दुनिया के रस को चक पाता हूँ। ये पेड़, ये घास, यहाँ के जानवर और यह बारिश सब मेरे दोस्त है और ये सभी मुझे सिखाते हैं। की जिंदा होने का असली मतलब क्या है? तुम लोगो ने तो इंसान की हर खुशी, हर गम और हर मज़े को धंधे में बदल दिया है तो ये सब बदला कब तीरा ने पूछा और आप मेरे बारे में कैसे जानते हो? इसके साथ ही आप क्यों जादुई अंगूठी तक पहुंचना चाहते थे? बूढ़े आदमी ने हंसते हुए बोला, तुझे अपने इन सारे सवालों के जवाब अंगूठी तक पहुँचने पर मिल जाएंगे। बारिश रुकने के बाद उन दोनों ने अपना यह सफर जारी रखा। देखो वो रहीं चोटी तीरा ने बादलों के बीच इशारा करते हुए बोला बूढ़े आदमी का मुँह काफी गंभीर और चिंताजनक हो गया पर उसके बाद दोनों में से कोई कुछ नहीं बोला और वो चलते रहें। इतनी ठंड और कोहरे में चलना अपने आप में ही एक चुनौती थी। ना तो वो ज्यादा दूर तक देख पा रहे थे और ना ही उनके पास कुछ खाने का बचा था। जो हवा कुछ देर पहले तक फूलों और पौधों की खुशबू से उनका स्वागत कर रही थी, अब वही हवा डर और मौत से भरी हुई थी। रौशनी की कमी होने की वजह से उन्हें यह भी नहीं पता चल रहा था कि कब सुबह हो रही है और कब रात चलते चलते तीरा ने बर्फ़ के बीच कुछ चमकते हुए देखा। उसने बूढ़े आदमी से पूछा ये क्या है? बूढ़े आदमी ने बोला ये उन लोगों के हथियार और औजार है जो चोटी तक पहुंचने में नाकाम रहे थे। उसने तीरा को उस ढेर में से एक तलवार और ढाल निकालकर दिए और उसे बताया कि उसे इनकी जरूरत पड़ेगी। उसी समय उन्होंने देखा कि कोहरे के बीच से एक काफी सुंदर औरत चोटी से उतरते हुए उनकी तरफ आ रही है और तेरा ने उसे रोककर पूछा तुम चोटी से वापस आ रही हो? औरत बोली हाँ तुम चाहो तो मैं तुम्हें एक छोटे रास्ते से ले जा सकती हूँ। तीरा ऑलरेडी इस औरत की खूबसूरती में डूब चुका था और बूढ़े आदमी के बहुत बार मना करने के बाद भी वो उस औरत के साथ एक अलग रास्ते पर निकल गया। रास्ते में उन्होंने खूब बातें करी और अपने अपना नाम सुनीरा बताया और तीरा को बहकाने के लिए उसने उसके आगे नाचना शुरू कर दिया। अब तेरा ने एक औरत को इस रूप में कभी नहीं देखा था। सुनीरा के हर मूव के साथ पूरा पहाड़ काँपने लगा और उसके वश में आकर तीरा भी उसके साथ नाचने लगा। वो दोनों घंटों तक नाचते रहे। तीरा जादुई अंगूठी अपनी माँ की मौत और अपने गांव सबको भूल चुका था। क्या पता ये सब एक मजाक था क्या पता ये पूरी दुनिया ही एक मजाक है, सब भाड़ में जाए क्या फर्क पड़ता है? सोनीरा ने गाते हुए बोला लोग तो मरते ही रहते है झूठ सच ये सब एक खेल है। किसी चीज़ का कोई मतलब नहीं है और हमारी गलतियों का कोई नतीजा नहीं है। उसी वक्त तीरा ने नोटिस करा सुनीरा की शक्ल बदल रही है और देखते ही देखते वो एक राक्षस बन गई। तीरा ने ज़ोर से उसे धक्का दिया और अपनी तलवार उठाकर उसे पहले ही वार में मार दिया। कुछ देर बाद अप ईरा को होश आया और उसने देखा बूढ़ा आदमी कुछ दूर बैठा उस पर हँस रहा था और तीरा ने गुस्से में उससे पूछा यह क्या हो रहा है? मेरे साथ कौन और क्या थी वो औरत और आप यहाँ पर कैसे आये? वो एक छलावा था। बूढ़े आदमी ने बताया ये चीजें अपना हुलिया बदलकर लोगों को बहकाती है और फिर उन्हें मार देती है। तू खुशनसीब हैं जो बच गया तीरा ने शांत होकर उससे माफी मांगी और वो दोनों पहाड़ के आखिरी हिस्से की तरफ बढ़ने लगे। अब तेरा को लगने लगा था कि उसके बुरे कामों की वजह से अगर वो जिंदा बच भी गया तब भी उसके आने वाले दिन नर्क से कम नहीं होंगे। पर अगर वो चाहता है कि गांववाले उसे फिर से पहले जैसी इज्जत दें और उसके चाहने वाले सही सलामत रहे तो उससे वो जादुई अंगूठी हर हालत में हासिल करनी होगी। रास्ते में तीरा की नजर एक लाल पानी के तालाब पर गई। पास जाने पर पता चला कि वो कोई तालाब नहीं बल्कि खून से भरा झरना था। जो पहाड़ की चोटी से बह रहा था। उसने पीछे मुड़कर देखा तो बूढ़ा आदमी अब उसके साथ नहीं था और वो समझ गया कि इससे आगे का सफर उसे अकेले ही पूरा करना है और उसने इस झड़ने के साथ साथ चलना शुरू कर दिया। एक मोड़ के बाद उसने देखा पहाड़ पर कई लोगों की मूर्तियां लगी हुई है। उसने यह चेहरे पहले भी देखे हुए थे। हाँ, यह तो वह लोग हैं जिन्होंने इस गांव को ढूंढा था। उसे याद आया हर जंग जो उसके पूर्वजों ने लड़ी, हर महान इंसान की कुर्बानी किस तरह उसके जैसे ही करोड़ों लोग इस बड़े नीले पत्थर पर आकर जा चूके हैं पर जिंदा रहने के इतने खतरों के बाद भी उन्होंने एक मीनिंगफुल लाइफ जी और तेरा अपने इतिहास को देख कर काफी खुश नसीब महसूस करने लगा। और उसे पता था कि वो अपने से पहले आने वाले लोगों का एहसान कभी नहीं चुका पाएगा। आखरी मूर्ति तक जाने पर वह हैरान रह गया। आखिरी मूर्ति बूढ़े आदमी की थी और अपने आप से पूछने लगा कि यह मूर्ति यहाँ पर क्या कर रही है? क्या हमारे गांव को ढूंढने में उस बूढ़े आदमी का भी कोई योगदान था? तीरा ने अपने सवालों और अपनी भावनाओं को समेटा क्योंकि उसे पता था कि अंगूठी यहाँ से ज्यादा दूर नहीं है। मौसम फिर से खराब होने लगा था। चोटी उसके सामने थी और कुछ कदम चलने पर ही उसे अंगूठी का पहरेदार राक्षस दिख गया। उसके बड़े बड़े शेर जैसे भारी हाथ और सांप जैसी चमड़ी देखकर शापिरा ने अपनी तलवार निकाली और तभी वो राक्षस गुस्से में आ गया। इस दाने का हर वार पीरा के 10 वार के बराबर था, पर मौका मिलते ही तीरा ने अपनी तलवार उसके पेट से आर पार कर दी और वह राक्षस वहीं पर मर गया। तीरा ने सामने देखा और वो जादुई अंगूठी वहीं पड़ी हुई थी। उसने इस अंगूठी के बारे में सिर्फ कहानियों में ही सुना था पर असलियत में वो और भी अनमोल लग रही थी। उसने अंगूठी को पहना और एकदम से वो पूरी दुनिया बन गया। उसने पहली बार अपने दिमाग की सीमा के पार जाकर समझा। हमारे आसपास हर वक्त कितनी डाइमेंशन्स होती है, किस तरह से स्पेस और टाइम एक दूसरे से लिपटा हुआ एक मजाक है और क्यों दूसरी दुनिया में रहने वाले लोग इंसानों में दिलचस्पी रखते हैं? वो जान चुका था कि हर चीज़ के पीछे एक वजह और पागलपन होता है। उसने देखा सिर्फ अगले 1,00,000 साल में ही धरती पर रहने वाले इंसान नाम के जानवर का नामोनिशान नहीं रहेगा। 50,00,00,000 साल बाद सारे पौधे मर जाएंगे। धीरे धीरे करके आसमान में चमकने वाले सारे तारों की शक्ति खत्म हो जाएगी और खुद क्या क्या ये पूरी दुनिया ही नहीं बचेगी? अथिरा ने अपनी आंखें खोलीं और एक गहरी सांस ली। पीछे से हंसते हुए आवाज़ आई। कैसा लगा इस बूढ़े और कमज़ोर आदमी का आविष्कार? तीरा की आँखों में आंसू थे। पूरे समय वह यह नहीं समझ पाया कि वो बूढ़ा आदमी ही था जिसने इस अंगूठी को बनाया था। क्या तुने सच में सोचा था कि अकेला तू इस पूरे गांव को पागल बना सकता है? बूढ़े आदमी ने पूछा मैं जानता था कि तू इस गांव की मदद कर सकता है और तभी मैंने तुझे इस परीक्षा से गुज़ारा। तुझे एक अच्छा इंसान बनाने के लिए हमने बचपन से ही तुझे सब दिया। पर फिर भी तेरे दिमाग में अपने सेवा कुछ आया ही नहीं और तेरी शिकायतें कभी खत्म ही नहीं हुई। मेरे दोस्त की शादी हो गयी, लेकिन मेरा क्या होगा? मेरे पड़ोसी ने नया घर लिया है, लेकिन मेरा क्या होगा? इतनी बड़ी दुनिया में तू बस थोड़े से समय के लिए जिंदा रहेगा तीरा एक अच्छा इंसान बन लोगों का भविष्य बताने के बजाय उन्हें बता की वो मुश्किलें ही होती है जो हम लोगों को एक इंसान बनाती है। घर जा आतिरा तेरी माँ तेरा इंतज़ार कर रही है। ने बूढ़े आदमी को अलविदा बोला और वो चल दिया। अपनी इस नई समझ को गांव वालों में बांटने।","इस कहानी का उद्देश्य कई संदेशों और अंतर्दृष्टि को व्यक्त करना है जो गहरे रसातल में खुद को खोजने पर खुद को उपयोगी साबित कर सकते हैं। आपकी नश्वरता का गहरा अहसास, ब्रह्मांड में आपका (इन) महत्व और हर चीज का अंतर्संबंध वास्तव में आपको तोड़ सकता है, लेकिन अगर आप वास्तव में इसका सामना करने के लिए खुद को धक्का देते हैं, तो आपको पुरस्कृत किया जाएगा और जैसा कि विरोधाभासी लग सकता है, आपका अस्तित्व होगा अधिक सार्थक महसूस करें।" "कॉमन बिलीफ यह है कि हम जितनी ज्यादा चीजों को अपनी लाइफ में इकट्ठा कर पाएंगे, हम उतने ही खुश और हेल्थी रहेंगे। लेकिन कई चीजों को पाने के साथ साथ हैपिनेस और मेंटल पीस पाने के लिए आपको अपनी लाइफ से कई चीजों को निकालना भी होता है। यह वह चीजें होती हैं जो आपके अंदर नेगेटिविटी, कड़वाहट, गुस्सा या कायरता भरे रखती है। हमेशा से महान फिलॉसफर्स और स्पिरिचुअल टीचर हमे लैटिन गो के बारे में सिखाते आए हैं क्योंकि चाहे वो आपकी बुरी आदतें हो या फिर लोग हर अनप्रोडक्टिव चीज़ को जबरदस्ती पकड़े रहने में आपकी एनर्जी भी लगती है। और आपकी ग्रोथ भी रुक जाती है। इसी वजह से ये एपिसोड स्पेसिफिकल्ली उन चीजों के बारे में है जिन्हें आपको अभी के अभी अपनी लाइफ से निकाल देना चाहिए। हैपिनेस और फुलफिलमेंट पाने के लिए नंबर वन फीलिंग ऑफ सेफ्टी आप अभी के अभी ये डिसाइड करो कि आपको झूठ पसंद है या फिर सच। अगर आप सच जानना चाहते हो तो सच यह है कि आप अपनी लाइफ में बहुत ज्यादा सेफ्टी और अपने कंफर्ट ज़ोन में फंसे हुए हों। से फील्ड करने के लिए पहले आप अपने आस पास कंफर्टिंग झूठों, कमजोर बिलीव्स और एक नकली सेल्फ आइडेंटिटी की दीवारें तो बना लेते हो। लेकिन आपकी सेफ्टी की यही दीवाने बहुत ही जल्दी आपका पिंजरा बन जाती है। सेफ्टी और कंफर्ट एक जाल है जिसमें हर सॉफ्ट माइंडेड इंसान फंस जाता है। जबकि आपको अपनी सारी ग्रोथ डिस्कम्फर्ट और अनसेफ एनवायरनमेंट को एक्सपिरियंस करने से ही मिले गी। लेकिन आप अभी अपने रैन्डम स्कूल, कॉलेज या फिर जॉब को पाकर ही स्टेग्नन्ट यानी आलसी और स्लो बन गए हो। आप को इस बात का भी आइडिया भी नहीं है कि अगर बाईचान्स आपने अपने डरो को फेस करके और अपने करेक्टर के हर एरिया पर काम करके अपनी हाइएस्ट पोटेंशिअल को रिऐलिटी बना दिया तो उससे दुनिया में कितना ज्यादा बड़ा बदलाव आ सकता है? सिर्फ रेवोल्यूशन शुरू करने वाले लोगों को देखो या फिर सुनो ही मत, बल्कि रेवोल्यूशनरी लोगों की तरह जीना शुरू करो। बहुत से रिस्कस लो। आपकी मेहनत और सैक्रिफ़ाइस भी मायने रखते हैं इसलिए अपने कंफर्ट को लात मारो। अपने अंदर थोड़ा गुस्सा लाओ कि क्यों आप अभी तक अपनी पोटेंशिअल से इतना दूर हो और सेफ्टी के नहीं बल्कि फ्रीडम के नशे को एक्सपिरियंस करने की कोशिश करो। ये माइंडसेट शिफ्ट बहुत जरूरी है। सिर्फ आपकी हैपिनेस ही नहीं बल्कि आपकी ट्रांसफॉर्मेशन के लिए भी नंबर टू सीन द वर्ल्ड इन ब्लैक एंड व्हाइट यानी दुनिया की डूऐलिटी में फंसे रहना। एक स्ट्रीम्स में सोचने वाले और सिर्फ एक साइट को दूसरे से बेहतर मानने वाले लोग इग्नोरेंट होते है फॉर एग्ज़ैम्पल आज बहुत से लोग एक पॉलिटिकल साइट को दूसरे से बेहतर मानते हैं। एक जेंडर को दूसरे से ज्यादा सुपिरिअर या फिर इन्फिरीअर में मैं ट्रीट करते हैं और अपने ओपिनियन के अलावा कोई दूसरा ओपिनियन सुनते ही ट्रिगर हो जाते हैं। अगर हम एक स्ट्रेट लाइन को इमेजिन करें, जहाँ दोनों एंड पॉइंट्स एक्स्ट्रीम ओपिनियन्स या फिर ऑपोजिट बिलीव्स को दर्शाते हैं तो ब्लैक एंड व्हाइट में सोचने वाले लोग बस किसी एक छोर को ही पकड़कर बैठ जाते हैं। और सोचते हैं कि उनका डिसिशन और उनकी पोज़ीशन पर्फेक्ट है। हाउएवर जिंदगी खुद इतनी इम पर्फेक्ट है कि इसमें दोनों अपोज़िट का मिलन कन्टिन्यूसली फॉर्वर्ड मूवमेंट के लिए चाहिए ही होता है। अगर आप रात से प्यार करते हो तो आप सुबह को एन्जॉय नहीं कर पाओगे और अगर आप एक रिलिजन को सच बोलते हो तो आप दूसरे रिलिजन की विजडम को मिस कर दोगे। सच हर तरफ फैला हुआ है सच एक लाइन के एक्स्ट्रीम पॉइंट्स पर नहीं बल्कि वो पूरी लाइन ही सच है। इसी वजह से जो भी इंसान एकतरफा बन जाता है, वो हमेशा ही एम टी और अनहैप्पी फील करता है। जबकि जो इंसान फ्लेक्सिबल जाता है और सच को दोनों पोलर ऑपोजिट मैं देख पाता है सिर्फ उसे ही असली ज्ञान की प्राप्ति होती है। नंबर थ्री पॉइन्ट लेस इन टॉक्सिक हैबिट्स एज इंसान अपनी लाइफ में क्या करेगा ये डिपेंड करता है उसकी 10 सीज़ और उसकी अपनी 10 डेज़ के कंट्रोल के ऊपर 10 सीज़ डेवलप होती है। हमारी हैबिट्स है। आप सोचते हो कि क्यों कई लोग बहुत आसानी से अमीर बन जाते हैं और क्यों कई गरीब रह जाते हैं या क्यों कई लोग 1000 बार कोशिश करने के बाद भी अपनी अडिक्शन को छोड़ ही नहीं पाते हैं? इस सबके पीछे का रीज़न है उनकी 10 सी यानी वो एक सर्टेन तरह के बिहेव्यर या फिर थॉट पैटर्न की तरफ झुकने के लिए प्रोग्राम्ड है। ये साइकोलॉजिकली भी सच है और स्पिरिचुअली भी क्योंकि हमारे स्पिरिचुअल टैक्स भी यही बोलते है कि एक इंसान की एनर्जी जीस, प्रोडक्टिव या फिर अनप्रोडक्टिव बन सकती है। उसकी हैबिट्स के बेसिस पर आज इतने सारे यंग लोग अलग अलग तरह की एडिक्शन के शिकार बनते जा रहे हैं क्योंकि उन्हें यह नहीं पता कि हर रोज़ छोटे छोटे कदम लेकर किसी काम को रिपीट करने से नहीं ऐडिक्शन सबन भी सकती है और पुरानी ऐडिक्शन से टूट भी सकती है। आपकी किस्मत का कंट्रोल जितना आप सोचते हो, उससे कई गुना ज्यादा आपके पास है। इसलिए अपनी पुरानी टॉक्सिक हैबिट्स को रिपीट करना बंद करो और उन हैबिट्स को डेवलप करना शुरू करो जो आपको लाइफ में आगे ले जाएंगे। नंबर फ़ोर अन्न रिलाएबल ऐंड अनप्रोडक्टिव पीपल बुरी आदतों के बाद जो चीज़ आपको हमेशा दुख और डिसअप्पोइंट देगी वह है अनिल लेबल और अनप्रोडक्टिव लोग जो आपके गले के अराउंड सांप की तरह लिपटकर बैठ जाते हैं और हर तरह से आपकी ऐडवांटेज लेने या फिर आपको डिमोटिवेट करने की कोशिश करते हैं। लेकिन बहुत से लोगों को ये समझ नहीं आता की वो अपने टॉक्सिक फ्रेन्ड पैरेंट या फिर सिबलिंग से दूरी कैसे बनाएं? जीवन एक बारी को आप अपने फ्रेंड या फिर पार्टनर को तो अपनी लाइफ से निकालने की सोच सकते हो, लेकिन उन टॉक्सिक और डिमोटिवेट इन लोगों का क्या जो आपके साथ समय घर में रहते हैं? वेल ऐसे केस में आपको फोकस करना होता है अपने मन में सिर्फ उन्हीं बातों को जाने देने पर जो आपके काम आएंगी। यानी अगर आपका भाई बहन या फिर एक पैरेंट आपको बहुत ही बेकार एडवाइस देता रहता है तो सिम्पली उस पर गुस्सा करने या फिर उससे उदास होने के बजाय उसे इग्नोर करो। अनप्रोडक्टिव और नेगेटिव लोगों से कभी भी लड़ाई हो और आर्ग्यूमेंट इसमें मत उलझो बल्कि बस ये सोचो कि कैसे आप उनके माइंडसेट को अपने दिमाग में बैठने से रोक सकते हो? नंबर फाइव बीइंग ऐवरेज पहली बात तो अगर आप साइकोलॉजी हिंदी को सुनने के बाद भी ऐवरेज हो तो दैट्स बिग प्रॉब्लम और सेकंडली ऐवरेज होने को मजाक में मत लो। क्योंकि आज के समय पर एक ऐवरेज इंसान एक ब्रेनवॉश जो लू सर हैं, जो वही करता है जो उसका टीचर, बॉस, पैरेंट या फिर कोई और अथॉरिटी उसे बोलती हैं, जिनको खुद अपनी लाइफ के बारे में कुछ नहीं पता। ऐवरेज रहना भी कंफर्ट ज़ोन से चिपके रहने का ही नतीजा होता है। वरना ऐवरेज लेवल से ऊपर उठना काफी सिंपल है। जिम जाकर थोड़ी सी मसल्स बनाओ और स्ट्रेंथ को बढ़ाओ तो आप एक ऐवरेज इंसान से ज्यादा स्ट्रांग बन जाते हो। अगर आप अपनी स्किल्स पर कुछ टाइम काम करके किसी बिज़नेस या फिर साइड हंसल को शुरू करके महीने के सिर्फ दो से ₹3,00,000 कमाओ तब भी आप ऐवरेज से बेहतर हो और अगर आप लोगों से एक क्लियर माइंड के साथ डिस्कशन हैंडल कर सको तो तब भी आप ऐवरेज से ज्यादा मेंटली शाप हो। आज मीडिया से बाहर निकलना बहुत ही आसान है और बस बात है आपकी चॉइस और खुद को चेंज करने की। बिज़नेस की। इसलिए अगर आप इस पॉइंट पर भी ग्रेटनेस के पीछे पागलों की तरह नहीं पढ़े हुए तो आप जिंदगी भर ही अनहैप्पी रहोगे। नंबर सिक्स पास ट्रॉमा बाइबल में जीसस एक एडवाइस देते हुए बोलते हैं, फॉलो मी ऐट द डेड बड़ी देर डैड। इसका मतलब जो पास में है वो मर चुका है और कई बार पास की मेमोरीज़ और इवन पास के लोगों से डील करने का बेस्ट तरीका होता है सिम्पली उनसे दूर हो जाना। अगर आप अभी भी अपने सालों पुराने रिलेशनशिप्स, फ्रेन्ड, ज़ या फिर मेमोरीज़ के बारे में सोचकर परेशान होते रहते हो और यह चीजें आप को एग्ज़िस्टिंग शिल्ली टॉर्चर करती है। तो ये एक क्लियर इंडिकेशन है कि आप अभी भी अपने अतीत में ही जी रहे हो और अपने इस प्रेसेंट मूवमेंट को खो रहे हो। पास्ट की बातों की वजह से अपने अंदर कड़वाहट, गुस्सा या फिर उदासी रखना बेवकूफ़ी है, इसलिए अपने पास्ट को अपने पास में ही छोड़ो। और आगे क्या करना है इसका प्लान बनाओ नंबर सेवन, फीलिंग सॉरी फॉर योरसेल्फ हाँ मैं जानता हूँ कि आपकी लाइफ में बहुत सी मुश्किलें हैं, लेकिन मुश्किलें कौन नहीं एक्सपीरियंस करता। अगर आपको हिस्टरी की ज़रा सी भी नॉलेज हो तो आपको यह पता होगा कि आप एक्चुअल में कितने लकी हो और पास में रहने वाले लोग कितनी ज्यादा सफरिंग और ट्रॉमा से गुजरे थे। अगर नल खोलते ही आपके घर में पानी आता है, आपके पास खाने के लिए एनफ समान है और पीने के लिए पानी है। अगर आपके हाथ पैर सही से काम कर रहे हैं तो आप क्यों अपने बारे में इतना सॉरी फील कर रहे हो? क्यों आप अपनी मैनेजेबल प्रॉब्लम्स की वजह से खुद को एक विक्टिम की तरह देख रहे हो? अपनी लाइफ को एक ट्रैजिडी की तरह देखना बंद करो, बल्कि उसमें छुपी ऑपर्च्युनिटीज को ढूंढो। इस बात को दिमाग में बिठा लो कि आपकी लाइफ भी 99% पॉपुलेशन की तरह वेस्ट नहीं जानी चाहिए और आपने ग्रेटनेस हासिल करनी है। इसलिए अपनी स्टोरी में खुद के कलेक्टर को एक विक्टिम नहीं बल्कि उस स्टोरी का हीरो बना वो और अपने लिए सॉरी फील करना बंद करो।","आमतौर पर यह माना जाता है कि खुश रहने के लिए हमें बहुत कुछ हासिल करने की जरूरत होती है। हालांकि, वास्तव में खुशी और मानसिक शांति बहुत सी बेकार चीजों को छोड़ देने और उनसे जुड़े रहने से आती है। कई दार्शनिक और आध्यात्मिक गुरुओं ने जाने देने के महत्व के बारे में बात की है। इसलिए इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम उन 7 अनुत्पादक चीजों के बारे में बात करेंगे जिन्हें आपको खुश रहने के लिए छोड़ देना चाहिए।" "रशियन नॉवलिस्ट फ्यू डॉक्टर्स की का नाम सबसे महान फिलॉसोफिकल और लिटरेरी जाइल्स की लिस्ट में लिया जाता है। बचपन में एक हॉस्पिटल कॉम्प्लेक्स में बड़े होने और रशियन फेरी टेल्स पड़ने की वजह से उनके पास शुरू से ही इंसान के दिमाग के बारे में वो इनसाइट्स थी जो एक नॉर्मल बच्चे के पास नहीं होती। यही रीज़न है की वो डॉक्टर्स की नॉवेल्स, मेनली, एग्ज़िस्टन्स और ह्यूमन सफरिंग जैसी प्रॉब्लम्स से डील करते हैं और उनकी हर राइटिंग में ही आपको इतनी इनसाइट्स मिल सकती है, जितनी आपको किसी ग्रंथ से मिलती है। इसी वजह से उन्हें फिलॉसफर ये नॉवलिस्ट कम और एक साइकोलॉजिस्ट ज्यादा माना जाता है। डॉक्टर्स की बुक्स हमें याद दिलाती है कि ह्यूमन बिहेव्यर को समझने के लिए साइकोलॉजी बुक्स, रिसर्च पेपर्स ये दिमाग की स्टडीज़ की नहीं बल्कि इनसे ज्यादा फिक्शन की जरूरत है, क्योंकि जो बातें और दुनिया के सच एक कहानी हमें समझा सकती है वो हमें किसी साइंस पेपर या नॉन फिक्शन बुक में कभी नहीं मिलेंगे। इसलिए इस एपिसोड में हम डोर के नॉवल्स में दिए कई जरूरी लाइफ लाइसेंस को समझेंगे। नंबर वन लाइफ कैननॉट बी अंडरस्टुड थ्रू यूनिटी डॉक्टर्स की अपने नॉवेल द इडियट में लिखते हैं कि हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हमारे ऐक्शंस उन ऐक्शन की एक्सप्लेनेशन से बहुत ज्यादा कॉम्प्लेक्स होते हैं। हम अपने बिहेव्यर को समझने की कोशिश तो कर सकते हैं लेकिन जब हम मुँह खोलकर अपने एक्सपिरियंस को किसी को समझाने की कोशिश करते हैं तब हमारे वर्ड्स हमेशा एक अधूरा मैसेज ही दे पाते है। वो हमारे ऐक्चुअल एक्सपिरियंस के एक हद तक पास तो पहुँच पाते हैं लेकिन सच का एक ऐसा हिस्सा हमेशा रह जाता है जिसे शब्दों में फिट नहीं करा जा सकता। इसी वजह से डॉक्टर्स की बोलते हैं की इंसान काफी इरैशनल है। उसका प्यार भी कोई सेन्स नहीं बनाता और उसकी सफरिंग भी नहीं और ना ही उसकी दोस्ती इंसानों को शब्दों में डिफाइन करने की कोशिश ही अपने आप में इंसानियत की बेजती होगी। यही रीज़न है की वो लॉजिक लाइफ की सुंदरता और उसके चाँद को कम कर देता है और वो लाइफ को समझने का सबसे इफेक्टिव टूल नहीं है। नंबर टू दी पीपल सफर मोर डॉक्टर्स की बोलते है कि एक इन्टेलिजन्ट और गहरे दिल के लिए दुख और दर्द से रिश्ता तोड़ पाना नामुमकिन होता है। हर महान इंसान को अपनी महानता की कीमत अपनी उदासी से चुकानी पड़ती है। रिऐलिटी को एक पैकेज डील की तरह देखो, जिसमें हर चीज़ के साथ उसकी ऑपोजिट हमेशा फ्री मिलती है। अगर आप खुशी के पीछे भागो तो आपको उसके साथ साथ दुख भी मिलेगा। और अगर आप सक्सेस के पीछे भागो, तो तब भी आपको कहीं फेल्यर इकट्ठे करने पड़ेंगे जिससे पहले कि आप सक्सेस तक पहुँच पाओ। दुनिया इसी रूल को फॉलो करती है यानी बैलैंस। इसलिए जीस भी इंसान को नेचर ने बहुत से टैलेंट से या फिर महानता की पोटेंशिअल दी होती है। उसे इस पोटेंशिअल के साथ सफरिंग फ्री मिलती है। जितनी ज्यादा एक इंसान की अच्छाई की पोटेंशिअल होगी, उतना ही उसका रिश्ता बुराइ से भी होगा। बिना पहले हेट और दुख से रिश्ता बनाए एक इंसान प्यार और खुशी की असली वैल्यू समझ ही नहीं पाता इसलिए सफरिंग से डरो मत उसे भी अपने घर में जगा दो नंबर थ्री मोरैलिटी इस इनबिल्ट नर्स अपने नॉवल क्राइम एंड पनिशमेंट में डॉक्टर्स की एक गरीब इंटलेक्चुअल रिस्क कल नेकॉफ की बात करते हैं। उसके पास अभी महानता का कोई प्रूफ नहीं है लेकिन उसमें अक्कड़ इतनी ज्यादा है कि वो खुद को नेपोलियन जैसे लीडर से कंपेर करता है। और ये सोचता है कि हर ऐसा लीडर ही एक क्रिमिनल होता है जो पुराने रूल्स को तोड़कर और लोगों को मारकर नए रूल्स बना देता है। एक बार जब रस खोलने का आपको पैसों की बहुत जरूरत होती है तब उसकी यही टॉक्सिक फिलॉसफी उसे एक ही गिरवी दार यानी पॉन ब्रोकर को जान से मारकर उसके सारे पैसे चुराने को बोलती है। वो अपने मन में इस मर्डर को हर तरह से रेश्नलाइज कर लेता है कि वो औरत वैसे भी कितनी बुरी है। वो किसी से ढंग से बात नहीं करती, किसी को ढंग से ट्रीट नहीं करती। वो वैसे भी ज्यादा समय तक जिंदा नहीं रहे गी। और उसके पैसे मेरे जैसे स्मार्ट और इन्टलेक्चुअल के काम ज्यादा आ सकते हैं। रिस्क लेने को अब उस औरत का मर्डर तो कर देता है और वो पुलिस की पकड़ में भी नहीं आता। लेकिन धीरे धीरे करके उसके अंदर गिल्ट बढ़ने लगता है और वह खुद को टॉर्चर करते रहने के एक पॉइंट के बाद खुद को पुलिस के हवाले कर देता है। हम किसी इंसान का खून तो नहीं करते लेकिन यहाँ पर ये समझने की बात है कि हम चाहे कितना भी खुद से झूठ बोलकर, खुद को बुरा काम करने, आलस करने या सेल्फिश बनने के लिए कन्विंस तो कर लेते है पर हमारा यही झूठ हमें कॉन्शस ली, नहीं तो अनकॉन्शियस ली जरूर टॉर्चर करता है। हम चाहकर भी दुनिया के रूल्स को बदल नहीं सकते क्योंकि यह रूज़ हमारे शरीर के एक एक्सेल में लिखे हुए हैं। मोरैलिटी कागज के पन्नों या फिर हमारे संविधान से नहीं बल्कि वो हमारे अंदर से ही आती है। इसलिए जब भी आप के अंदर किसी इंसान के टुवार्ड्ज़, गुस्सा, खुद के ऐक्शन के टुवार्ड्ज़ गिल्ट या बुरे ख्याल आएं तो समझ जाओ कि आप ही कुछ गलत कर रहे हो और आपको खुद के बिहेव्यर को बदलने की जरूरत है। नंबर फ़ोर डोंट टेक लाइफ टू सीरियसली डॉक्टर्स की बोलते है की मेरे हिसाब से सबसे समझदार इंसान वो है जो महीने में एटलिस्ट एक बार खुद को पागल जरूर बोलता है। डॉक्टर्स की एक तर्फी होने के डेनजरस से बहुत अच्छे से वाकिफ थे क्योंकि जो भी इंसान खुद को अच्छा और बुरा या चालाक और नादान जैसे ऑपोजिट का कॉम्बिनेशन नहीं समझता, वो अपनी जिंदगी के आधे एक्सपिरियंस को रिजेक्ट कर देता है और इस तरह से उसकी पोटेंशिअल भी आदि ही रह जाती है। जो इंसान हर रोज़ कोट पेण्ट पहन कर ऑफिस जाता है, वहाँ काम करके वापस घर आता है और स्ट्रेस कम करने के लिए टीवी देखता है। कुछ खाता है और फिर सो जाता है। ऐसा इंसान चाहे दुनिया के लिए कितना भी समझदार क्यों ना हो लेकिन उसमें विस्डम ज़रा भी नहीं होती। बिल्कुल यही केस है उन लोगो का जो हर समय सिर्फ हेट्रेड को प्रोमोट करते हैं या फिर सिर्फ प्यार को जब कि ये दोनों चीजें तो अलग हो ही नहीं सकती। हम बस खुद को इस इल्यूजन में रख सकते हैं कि एक चीज़ सिर्फ अच्छी या सिर्फ बुरी है। लेकिन असल में जहाँ हेट्रेड है वही प्यार होता है और जहाँ बुराइ है उसी के सेंटर में अच्छा ही जरूर होगी जिससे इंसान ने कभी प्यार ही नहीं करा होता। सिर्फ वो ही है, ट्रेड से डरता है क्योंकि जब भी आपका प्यार बस एक ढोंग होगा तब हेट्रेड उसे नष्ट कर देगी। इसी तरह से कई लोग जो हमेशा सीरियस रहते हैं वो भी अपने ही बबल में जी रहे होते हैं और वो मस्ती करने से डरते हैं क्योंकि ज़रा सा भी मज़ा आया खेल उनके इस सिरियस ने इसके ढोंग को नष्ट कर सकता है। नंबर फाइव लाइन नैरोजी और कॉन्शसनेस डॉक्टर्स की बोलते है कि जो इंसान खुद से झूठ बोलता है और अपने झूठों को ही सच मान लेता है वो खुद में और दूसरों में सच को पहचानने के इन केपेबल बन जाता है। ऐसे वो खुद के लिए भी रिस्पेक्ट खो देता है और दूसरों के लिए भी और जब उसके अंदर दूसरों के लिए कोई रिस्पेक्ट नहीं बचती तब वो प्यार नहीं कर पाता। खुद का ध्यान इस फैक्ट से दूर भटकाने के लिए कि उसमें प्यार की कमी हो गयी है। वो अपनी बेसिक के थ्रू प्लेजर की लोवेस्ट फोरम्स में प्यार ढूंढने लगता है और एक जानवर की तरह ही ऐक्ट करने लगता है। ये सब शुरू हुआ बस उसके झूठ बोलने से। यहाँ पर डॉक्टर्स की ये पॉइंट आउट कर रहे है की ऑलमोस्ट हर इंसान में सच को जानने या एट लिस्ट उसके पास पहुंचने की चाहत जरूर होती है। लेकिन जब एक इंसान किसी वजह से झूठ बोलने लगता है ताकि उसका दर्द कम हो जाए या फिर उससे कोई पनिशमेंट नहीं मिले। तब उसकी यही नहीं आदत उसे सच की रौशनी से दूर अंधेरे के पास ले जाती है। बहुत से लोग इसी तरह से खुद को डिस ईव कर कर के खुद की अवेर्नेस को बहुत छोटा बना लेते हैं और फिर सफर करते हैं। इसलिए अगर आप ज्यादा कॉन्शस बनना चाहते हो तो सच बोलने से शुरुआत करो। नंबर सिक्स एवरी ह्यूमन हैज़ा डार्क साइड कोई भी इंसान 100% अच्छा हो ही नहीं सकता। जीवन एक पुजारी, एक मंक या वह एक इंसान जिसने कभी कुछ बुरा नहीं करा उसके अंदर भी ईवल और डाक क्वालिटीज है। डॉ। स्ट्राइप्स की बोलते है कि कई चीजें ऐसी होती हैं जो एक इंसान खुद को बताने से डरता है और हर अच्छे इंसान के दिमाग के कोने में ऐसी कई चीजें छुपी पड़ी होती है। इसका मतलब जीस तरह से हमारे एक्सपीरियंस के बारे में कही इतनी अच्छी दीप और मीनिंगफुल बातें होती हैं कि उन्हें इक्स्पिरीअन्सिज़ को वर्ड्स में डालते ही वो खराब हो जाती है। वैसे ही हमारी जिंदगी के बहुत डार्क एक्सपिरियंस मेमोरीज़ और बुरे ख्याल होते हैं जिन्हें वर्ड्स में डालना तो दूर उन्हें तो हम अपने कॉन्शस माइंड में भी नहीं आने देते हैं। इस फैक्ट की नॉलेज आपकी पर्सनल ग्रोथ में बहुत काम आ सकती है क्योंकि जब तक आप अपनी डार्क साइड के बारे में अवेयर नहीं हो जाते तब तक आप उसी के नियंत्रण में रहते हो इसलिए खुद के मन में आने वाले हर उस ख्याल का पीछा करो जो आपको सेल्फिश होने या दूसरों को नीचे दबाने के लिए बोलता है। यही ख्याल आपको आपकी डार्क साइड की रियलाइजेशन कराएंगे और आपको उसके चंगुल से बाहर निकालेंगे।","रूसी उपन्यासकार, फ्योडोर दोस्तोवस्की के काम को मानवीय अनुभव और पीड़ा के सर्वश्रेष्ठ साहित्यिक, दार्शनिक और मनोवैज्ञानिक चित्रण में से एक माना जाता है। अस्पताल परिसर में पले-बढ़े और बहुत सारी रूसी परियों की कहानियां पढ़ते हुए, फ्योडोर अपनी उम्र के किसी भी बच्चे की तुलना में मानव मन के बारे में अधिक जानते थे। इसलिए उन्हें एक उपन्यासकार या दार्शनिक की तुलना में एक मनोवैज्ञानिक के रूप में अधिक देखा जाता है। उनकी किताबें हमें याद दिलाती हैं कि वैज्ञानिक कागजों और सूखी पाठ्यपुस्तकों के शब्दजाल से अपने दिमाग को भरने की कोई जरूरत नहीं है, काल्पनिक सत्य हमें जीवन और मनुष्यों के बारे में सिखाने में बेहतर हैं। तो, इस कड़ी में, हम दोस्तोवस्की के 6 प्रमुख जीवन पाठों पर चर्चा करते हैं।" "निहाल इज़म, पार्ट थ्री, मिहिजाम ऐंड नेचर वॉल्ट, डिज़्नी हाइ जमीन दैट के हाइएस्ट वैल्यू डि वैल्यू, देमसेल्व्स एम इस लॉकिंग, वाइ फाइ, नो ऐन्सर, फ्रेड्रिक नेचर। जहाँ पर कई फिलॉसफर्स अपने आपको निहाल लिस्ट बोलते हैं, वही निहाल इज़म के कॉनसेप्ट को सबसे ज्यादा फ्रेड्रिक नीचे के साथ जोड़ा जाता है। पर हैरानी की बात ये है कि नीचे अपनी डेफिनेशन के हिसाब से खुद एक निहलिस्ट नहीं था। उसके हिसाब से दुनिया का हमारे दिए गए मीनिंग के अलावा कोई पक्का मीनिंग नहीं है और एक नहाइ लिस्ट सोसाइटी के बनाए इन नकली स्ट्रक्चर्स को तोड़कर ये समझ जाता है की सारी वैल्यूज़ बेसलेस है और किसी चीज़ को सच मानना बिल्कुल बेतुका है। हमने इस सीरीज के पिछले पार्ट में डिस्कस किया था। की एक फुल फिलिंग लाइफ जीने के लिए हमें मीनिंग चाहिए होता है क्योंकि यही मीनिंग हमारे लाइफ पर्पस को वैल्यू देता है। नीचा ने भी इंसानों की इस जरूरत के बारे में काफी सोचा और उसने अपनी बुक देगा। साइनस के एक पैराग्राफ में बोला, टाइम के साथ साथ इंसान एक ऐसा जानवर बन गया है जो सबसे हटके है और उसे अपनी लाइफ की एक और शर्त पूरी करनी होती है। जो बाकी जानवरों को नहीं पूरी करनी होती है उसे टाइम टु टाइम ये जानना होता है की वो किस लिए जीता है और उसकी पूरी जाति लाइफ में भरोसा करे बिना आगे नहीं बढ़ सकती। नीचा ने ये भी बताया कि निहाल इज़म सिर्फ एक ऐसा बिलीफ नहीं है जिसमें एक इंसान सोचता है की हर चीज़ तबाह हो जानी चाहिए बल्कि इसमें एक इंसान खुद ही इस काम को पूरा करने में जुट जाता है। ये बोलकर नीचा निहाल इज़म से जुड़ी अपनी डिस अपॉइंटमेंट् को दर्शा रहा था और ये समझा रहा था की लंबे टाइम तक एक निहाल इसकी ये डिसअप्पोइंट आगे चलकर चीजों को नष्ट करने की इम्पल्स बन सकती है। इसका काफी अच्छा एग्जाम्पल है डीसी यूनिवर्स का सुपरविलन जोकर, क्योंकि जोकर एक निहाई लिस्ट है। अभी तक जो करके करेक्टर को और मूवीज़ में काफी बार रिवाइज़ किया गया है पर एक चीज़ जो अवेलेबल बैकस्टोरी में कनसिस्टेंट रही है वह यह है कि जोकर सुपर विलेन बन जाता है। एक बुरे दिन के बाद यानी जीस दिन उसके जोक्स पर कोई नहीं हस्ता उसे उसकी वाइफ की डेथ के बारे में इन्फॉर्म करा जाता है। उसके पीछे गुंडे पड़ जाते हैं और उसके बाद वह केमिकल से भरे एक टब में गिर जाता है। इस स्टोरी के पॉपुलर होने के बाद कॉमिक्स एनिमेटेड सिरीज़ और गेम्स में जो करके ओरिजिन को इसी डिप्रेसिंग बैकस्टोरी की मदद से एक्सप्लेन किया गया है, पर ये काफी अच्छा एग्जाम्पल है कि कैसे एक इंसान अपनी सफरिंग की वजह से लाइफ के मीनिंग को क्वेश्चन करने लगता है और इसी रास्ते पर चलते चलते एक निहाई लिस्ट बन जाता है। इसके साथ ही नीचा ने एक और चीज़ भी ऑब्जर्व करि की टाइम के साथ साथ रिलिजन और कल्चरल बिलीव्स में लोगों का ट्रस्ट कम होता जा रहा है और इसी नोट पर उसका एक कोट काफी पॉपुलर भी हुआ था जिसमें उसने बोला था, गॉड इस डैड गॉड विमेन्स डैड ऐंड वी हैव टोल्ड हिं इस स्टेटमेंट के साथ नीचा मेटाफोर निकली ये प्रीडिक्ट कर रहा था की साइंस और टेक्नोलॉजी की वजह से लोग अपना भगवान में भरोसा खो देंगे और ये कोई अच्छी बात नहीं है क्योंकि ये चीज़ उन्हें निहाल इज़म तक लेकर जाएगी। हाउएवर सेम टाइम पर नीचा हमें थोड़ी होप देते हुए यह भी बोलता है की निहाई जमके डेनजरस के बाद भी उसे सिर्फ पैसे मिस्टेक वे उसे देखना नहीं चाहिए क्योंकि ये एक इंसान की लाइफ का वो जरूरी प्रोसेसेस हो सकता है जिसमें वो अपनी पुरानी वैल्यू स् कन्डिशनिंग और बिलीव्स को डीकंस्ट्रक्ट और फिर नई वैल्यूज़ को रीकंस्ट्रक्ट करता है यानी नेहल इज़म इस दी कॉन्स्ट्रक्शन और रीकॉन्सट्रक्शन के बीच का पाठ भी हो सकता है, जो हमारी डेवलपमेंट के लिए बहुत जरूरी होता है। बट ये काफी पेनफुल भी हो सकता है, क्योंकि इस टाइम पर हम अपने पुराने बिलीफ छोड़ चूके होते हैं, पर हमने उन्हें किसी नए बिलीफ या नॉलेज से रिप्लेस नहीं किया होता और ये नी हेली जम का दूसरा प्रोबेबल कौन से क्वीन्स भी हो सकता है, जहाँ एक इंसान कॉमन बिलीफ और सोसाइटी के रूल्स को ओवर कम करके अपनी नई वैल्यूज़ बनाता है। नीचा के हिसाब से हर इंसान सेल्फ ओवर कमिंग के प्रोसेसेस में होना चाहिए और जब एक इंसान अपनी डेवलपमेंट की रूकावटों को पार करता है। और उसके दौरान अपने फेल्यर को भी एक्सेप्ट करता है। तब वो बन जाता है एक ऊबर मैन्स जिसका लिटरल मीनिंग है। ओवरमैन या सूपर मैन नीचे बोलता है की ह्यूमैनिटी का यही गोल होना चाहिए। पर ज्यादातर इंसान अपनी ऐनिमल और उबर बनने के बीच में ही फंसे रहते हैं और एक मिड लाइफ जीते हैं। ऊबर मैच का एक अच्छा एग्जाम्पल हमें जो करके एन टैग नेस्ट यानी बैटमैन से मिल सकता है, क्योंकि जोकर की ही तरह बैटमैन ने भी अपनी लाइफ ऐसे ट्रॉमैटिक और बिलीव तोड़ देने वाले इवेंट्स की वजह से चेंज कर ली थी। यह वो इवेंट्स होते हैं जो एक इंसान में एग्ज़िस्टन्स क्राइसिस ट्रिगर करते हैं और बैटमैन के केस में जब उसकी ऑल्टर ईगो यानी ब्रूस वेन के पैरेन्ट्स की डेथ हो जाती है तब वो उस ट्रॉमा पर रिऐक्ट करता है। अपनी फिजिकल और इंटलेक्चुअल कपैसिटी बढ़ा के क्रिमिनल्स को मार के और ऐसे वो एक सुपर हीरो बन जाता है। सो इन नटशेल नीचा ने अपनी फिलॉसफी में ये समझाया कि निगम के दो कॉन्सिक्वेन्सस हो सकते हैं। एक इंसान या तो अपनी पुरानी वैल्यूज़ को नई इंप्रूव्ड और इवन हाइअर वैल्यू से रिप्लेस कर सकता है या फिर वो मीन इंग्लिश ऑनरस को इंप्रेस कर सकता है। पर उसे यह भी समझना चाहिए कि अगर वो सेकंड ऑप्शन को चूज करता है तो वो उसे अपने माइंड के काफी डार्क एरिया तक पहुंचा सकता है।","हिंदी में मनोविज्ञान पर यह एपिसोड शून्यवाद पर जर्मन दार्शनिक, फ्रेडरिक नीत्शे के विचारों को शामिल करता है। हमें Youtube पर खोजें: www.youtube.com/psychologyinhindi" "अपनी फाइनैंशल सिचुएशन को इम्प्रूव करने के लिए आपको कई चीजें करनी होती है जैसे सेविंग इन्वेस्टिंग, बजेटिंग और सिम्पली फाइन्डिंग। न्यू वेज़ टु मेक मोर मनी जहाँ यह सारे स्टेप्स पैसा कमाने के लिए बहुत जरूरी होते हैं, वहीं वेल्थ कट ही करने का एक और ऐस्पेक्ट जैसे ज्यादातर लोग भूल जाते हैं। वो हैं उनका मनी से जुड़ा माइंडसेट यानी आप सब कॉन्शस ली। किस तरह से पैसों, रनिग स्पेंडिंग या फिर इन्वेस्टिंग जैसी चीजों को देखते हो और कैसे आपके पैसों से जुड़े ओपिनियन्स आपकी फ़ीलिंग से जुड़े होते हैं? यही रीज़न है की क्यों? जिंस नज़र के साथ ज्यादातर लोग पैसों को देखते हैं और उसके बारे में सोचते हैं वो गलत है। एक आम इंसान को कोई आइडिया ही नहीं होता कि पैसा असल में क्या चीज़ है और वो उसे कैसे यूज़ कर सकता है लाइफ में ज़्यादा फ़्रीडम पाने के लिए? इसलिए इस एपिसोड में हम मनी माइंडसेट और पैसों को कैसे अप्रोच करें? ये सीखेंगे नंबर वन सी और सेल्फास ब्रोक नॉट पुअर पैसा ना होने और गरीब होने में बहुत ज्यादा फर्क होता है और यह फर्क होता है मेंटैलिटी का, क्योंकि एक इंसान जो खुद को ब्रोक समझता है वो ये सोचता है कि उसके पास अभी पैसा नहीं है और उसका बस अभी हर टाइप चल रहा है। लेकिन पुअर होने का मतलब है कि आपको ऐसा लगता है कि आप अपने ऊपर से कभी भी इस लेवल को हटा ही नहीं पाओगे। गरीबी दिमाग में बैठी होती है और वह बस साइकोलॉजिकली ही एग्ज़िट कर सकती है और आपके पैसों का बढ़ना या फिर घटना आपके बारे में नहीं बल्कि बस आपकी फाइनैंशल सिचुएशन और आपकी थिंकिंग के बारे में बताता है। गरीब घर में माँ बाप बच्चों को समझाते है कि वह गरीबों की तरह ही सोचे है और गरीबी की ही आदत डाल लें। और वो कभी भी उस सिचुएशन से बाहर निकलने की प्लानिंग ही नहीं करते हैं। जबकि ऐसे घर में जहाँ पैरेन्ट्स बस थोड़े मुश्किल दौर से गुजर रहे होते हैं वहाँ घर में सब यह जानते हैं कि हाँ अभी पैसो की थोड़ी कमी है लेकिन हमारे पास पैसा कमाने और अपनी सिचुएशन को बदलने के लिए बहुत से ऑप्शंस भी है। नंबर टू मनी कैन बी हैपिनेस ऐस वेल ऐस मेंटल पीस बैंक में पड़ा पैसा आपको खुश नहीं कर सकता लेकिन जब आप उस पैसे को यूज़ करते हो, दुनिया में बदलाव लाने, अपने पैरेन्ट्स के सपनों को पूरा करने, अपनी कम्युनिटी की मदद करने और जरूरतमंद लोगों की सहायता करने में तब आप अपने इन कॉन्ट्रिब्यूशन की वजह से अपने अंदर एक डीप सेन्स ऑफ फुलफिलमेंट और पीस फील कर पाते हो। पैसों से खुशी नहीं खरीदी जा सकती है, लेकिन पैसों से आप उन चीजों को अफोर्ड कर सकते हो जो एक इंसान की लाइफ को आसान बनाती है और उसके बोझ को कम करती है। इसलिए पैसों का सही यूज़ आपको पावर देता है खुद की और दूसरों की फाइनैंशल प्रॉब्लम्स को सॉल्व करने की ताकि आप अपनी सर्वाइवल नीड्स की चिंताओं से ऊपर बढ़ सको और ब्रह्मांड के और गहरे सचो को जान सको। बजाय बस एक रेट रेस में लगे रहने के नंबर थ्री, मनी कैन वर्क, हार्ड न्यू आप फिज़िकली और मेंटली कितना काम कर सकते हो, इस पर एक लिमिट लगी हुई है और अगर आप इस लिमिट के पार जाने की कोशिश करो तो आपकी बॉडी और माइंड जवाब देने लगते हैं और इससे आपकी हेल्थ भी नेगेटिव ली इन्फ्लुयेन्स होती है। यह बात हर हाइली सक्सेसफुल इंसान जानता है। खुद से पूछो कि ऐमज़ॉन कंपनी में कौन ज्यादा फिजिकल एग्ज़िस्टिंग काम करता है? ऐमज़ॉन के ओनर जेफ बेज़ोस या फिर ऐमज़ॉन के एंप्लॉयीज़ या वॉरेन बफेट के केस में तो वो ज्यादा मेहनत करते हैं या फिर उनका पैसा, आपका पैसा अगर सही जगह पर इनवेस्टेड हो तो वो आपसे ज्यादा हार्ड वर्क कर सकता है और आप अपने पैसों से दूसरे एंप्लॉयीज को भी हाइअर कर सकते हो जो आपकी ओवर ऑल आउटपुट को बढ़ा सके हैं। इसलिए पैसों को एक जगह पर रखने के बजाय उन्हें यूज़ करो और अपने पैसों को काम पर लगाओ। नंबर फ़ोर मनी इस इन्फिनिट यह फैक्ट शायद आपको थोड़ा सा सरप्राइज़ करें कि इस दुनिया में पैसों या फिर सक्सेस पर कोई लिमिट नहीं लगी है। हमें हमेशा से ही यही सिखाया गया है। की एक कंपनी अपने इम्प्लॉइज को कितना पे कर सकती है? इस पर एक लिमिट होती है जस्ट बिकॉज़। हर एम्प्लॉई के पास काम करने का लिमिटेड समय होता है और उसे उसके बेसिस पर ही पे करा जाता है। लेकिन यह बड़ी कंपनी द्वारा करी गयी आपकी ब्रेनवॉशिंग है ताकि आप एक ओबीडीअन्स इम्प्लॉई बना हो, जो उनकी डिसाइड कर दी गई सैलरी को ले और उनकी हर बात को मानें है पर असलियत में पैसा अनलिमिटेड है। जब भी मार्केट में जरूरत होती है तब आरबीआइ या यूएस फेडरल रिज़र्व जैसे इन्स्टिट्यूशन्स और पैसा प्रिंट करते हैं। दुनिया में कॉन्स्टेंट ली ऐसा बढ़ रहा है आपने बस यह समझना है कि पैसा एक इन्फिनिट रिसोर्स है। दुनिया में पैसों की कमी नहीं है। जिनको अमीर होना आता है वो और अमीर होते जा रहे हैं इसलिए पैसों की चिंता मत करो, बस सही नॉलेज और स्किल्स को हासिल करो, जिससे पैसों का यह फ्लो आपकी तरफ मुड़ने लगे हैं। नंबर फाइव लर्निन्ग इस फर्स्ट अर्निंग सेकंड आपकी इनकम एक रफ इंडिकेशन होती है कि आप मार्केट को कितनी वैल्यू प्रोवाइड कर रहे हो और सच यह है कि आप हमेशा ही अपने वैल्यू आउटपुट को बढ़ा सकते हो। सही एजुकेशन के थ्रू। इसलिए अपनी प्रोडक्टिविटी, अपने काम की वैल्यू और ऐसा रिज़ल्ट अपनी इनकम को बढ़ाने के लिए या फिर बुक्स का सहारा लो। पहले अपनी लर्निंग पर फोकस करो और उसके बाद अर्निंग आपके लिए खुद ब खुद आसान बन जाएगी। नंबर सिक्स मनी मूव्स यू अक्रॉस स्पेस ऐंड टाइम जिसतरह से एक कार आपको पॉइंट एस ए पॉइंट बी तक पहुंचाती है, वैसे ही पैसा वैल्यू को पॉइंट ऐसे पॉइंट भी तक पहुंचाता है। आप अपनी जॉब से वैल्यू निकालते हो और उस वैल्यू को किसी दूसरी जगह तो दूसरे समय तक ले जाते हो। पैसा एक कार की ही तरह आपको कहीं भी ले जाएगा। इस लॉन घास आप एक अच्छे ड्राइवर हो, एक अच्छा ड्राइवर जर्नी को भी इंजॉय करता है और सही सलामत डेस्टिनेशन तक भी पहुँच जाता है। जबकि एक बुरा ड्राइवर रास्ते में ही क्रैश कर जाता है। बिल्कुल इसी तरह से पैसों के बारे में सोचो और खुद से ये पूछो कि क्या आप जीस तरह और जीस जगह पर अपने पैसों को ले जा रहे हो? क्या वो सेफ भी है या फिर आपके क्रैश करने के ज्यादा चान्सेस है? नंबर सेवन यू डोंट स्पेंड मनी यू स्पेंड टाइम हमें पैसा खर्च करना बिल्कुल अच्छा नहीं लगता क्योंकि कहीं ना कहीं हम यह बात जानते हैं कि पैसा कमाने में समय लगता है और पैसा एक तरह से टाइम ही है। यानी पैसा कमाने का दाम होता है। एक लंबे समय तक करी गई मेहनत जब आप पैसों को टाइम के रूप में देखने लगते हों तब आप कहीं भी पैसा खर्च करते समय यह कैलकुलेट कर सकते हो कि अगर मुझे एक नया फ़ोन लेना है और वो ₹50,000 का है तो उसका मतलब वो मेरे कितने घंटों दिनों या महीनों के समय के बराबर है? मुझे अपनी जिंदगी का कितना समय देना पड़ेगा? उस फ़ोन को अपना बोलने के लिए? आप हर चीज़ के लिए पैसों से नहीं बल्कि टाइम से पेमेंट करते हो। नंबर एट मनी इज़ इंट योर्स, इट्स जस्ट यू टर्न टु होल्ड इट। पूरी दुनिया की इकॉनमी लोगों के खर्चों पर रिलाय करती है। नोट एक हाथ से दूसरे हाथ में जाते हैं और यही मनी का कॉन्स्टेंट फ्लो मार्केट या फिर इकोनॉमिक्स को ऐसा सब्जेक्ट बनाता है जिसे ऐलिस करा जा सके। पैसों की मूवमेंट पैसों की स्टील ने से ज्यादा हेल्थी होती है, इसलिए अगर आप को पैसा चाहिए तो खुद को उसके मुताबिक मूव करो। खुद से पूछो कि किसके पास है आपका पैसा? कौन पैसा आपकी तरफ मूव करने के लिए रेडी है? और उसी बदले में आपसे क्या चाहिए होगा? नंबर नाइन बोइंग मनी मीन्स बीइंग मनी एटा। हाइअर प्राइस अगर कोई इंसान आपको बोले की वो आपको ₹50 का नोट ₹100 में बेचेगा, तो आप बोलोगे कि यह क्या बेवकूफ़ी है, लेकिन पैसे उधार लेना बिल्कुल ऐसे ही काम करता है। आप कम वैल्यू की चीज़ के लिए ज्यादा पे कर रहे होते हो और किसी दूसरी पार्टी के पैसों को रेंट पर लेकर अपना वो ले होते हो। लोन्स या फिर क्रेडिट कार्ड जैसी चीजें आपके फ्यूचर की मेहनत और टाइम को वेस्ट करते है। इसलिए हमेशा पैसा बोरो करने से पहले उसके लॉन्ग टर्म कॉन्सिक्वेन्सस और उसके रियल मीनिंग को समझो नंबर 10 मनी। इस इन रिअल पैसा बस एक कॉनसेप्ट है जो हमारे दिमाग में एग्जिस्ट करता है वो एक कागज का टुकड़ा या फिर स्क्रीन पर फ्लैश हो रही है, कुछ डिजिट से ज्यादा नहीं है और हम इस आइडिया को यूज़ करते है। वैल्यू को एक्स्चेंज करने और वैल्यू को मेजर करने की कन्वीन्यन्स के लिए है। पैसा उतना ही असली है जितना असली आसमान का नीला रंग है पैराडॉक्सिकल लिए जब आपको यह समझ आ जाता है कि पैसा मैटर नहीं करता और वो बस एक कलेक्टिव हॉट है। सिर्फ तभी आप पैसों को कंट्रोल करना और उसे अपने बेनिफिट के लिए यूज़ करना सीख पाते हो।","अपनी आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए आपको बचत करनी होगी, निवेश करना होगा, बजट बनाना होगा और अधिक पैसे कमाने के नए तरीके खोजने होंगे। लेकिन एक बात है जो ज्यादातर लोग अपनी आय बढ़ाने की कोशिश करते समय भूल जाते हैं, और यह उनकी मानसिकता है। अमीर लोग वास्तव में गरीब लोगों से अलग सोचते हैं। इसलिए इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम उन 10 तरीकों के बारे में बात करेंगे जो आप पैसे के बारे में सोचते हैं।" "प्यार वह फीलिंग है जो हम किसी दूसरे के लिए बहुत डीपी फील करते हैं और इस वजह से हम उनमें खुद को देख पाते हैं और खुद मैं उनको प्यार एक बाउन्ड्री डिसॉल्व करने की दवाई है जो हमें हमारी सेल्फिश डिज़ाइनर्स को भुला देती है। लेकिन बहुत बार लव के साथ अटैचमेंट को भी जोड़ा जाता है और इन्हें सम चीज़ को डिफाइन करने के लिए यूज़ करा जाता है। बट लव और अटैचमेंट एक दूसरे से बहुत अलग होते हैं। प्यार के साथ एक फ्रीडम जुड़ी हुई होती है जबकि अटैचमेंट अकेले रहने का डर होता है और वो एक इंसान की खुद की इन सफिशंट और इन्कम्प्लीट फील करने की जगह से आ रहा होता है। लव सेल्फलेस होता है और अटैचमेंट सेल्फिश। इन दोनों चीजों का एक सेम जगह पर प्रेज़ेंट होना भी पॉसिबल है। लेकिन जब ये दोनों चीजें सेपरेटली एग्जिस्ट करती है तब उन केसेस के लिए हमें इन डिफरेन्स की नॉलेज होना बहुत ज़रूरी है। जैसे एक माँ अपने बच्चे को प्यार भी करती है और उसके साथ अटैच भी होती है जिससे वो अपने बच्चे के बिना इन्कम्प्लीट फील करती है। लेकिन जब एक ऐडल्ट अपने हस्बैंड, वाइफ या फिर बॉयफ्रेंड या गर्लफ्रेंड से अटैच होता है और वो अपनी इस अटैचमेंट को ही प्यार समझ रहा होता है तब वहाँ दोनों पार्टीज़ ही सफर करती है। प्यार का मतलब है कि आप एक जगह पर हो ही नहीं। बस वो दूसरा इंसान ही हैं जो आपके लिए मैटर करता है और आप हमेशा कोई ना कोई तरीका ढूंढ ही लेते हो जिससे आप उन्हें यह फीलिंग कम्यूनिकेट कर सको और उन्हें लव फील करा सको क्योंकि असली प्यार में आप ये चीज़ हमेशा फील करोगे कि आपको बस किसी का फिजिकल साथ या इमोशनल और फाइनैंशल सपोर्ट नहीं बल्कि आपको प्यार मिलता है और वो आपके रिलेशनशिप को दीप और मजबूत रखता है। प्यार में आपना तो कोई हिसाब रखते हो कि आपने दूसरे के लिए कितना करा या फिर दूसरे ने आपके लिए और ना ही आप एक दूसरे की खुशी में कोई बाधा डालते हो। दूसरे इंसान की ग्रोथ में ही आपकी खुशी है। आप अपने को छुपाने के बजाय इस चीज़ को करते हो कि आप एक दूसरे के साथ जितना ट्रांसपेरेंट हो सकते हो उतना ट्रांसपेरेंट हो। ऐसे रिलेशनशिप में दोनों लोगों की ग्रोथ होती है और आप दोनों साथ में बेहतर इंसान और एक बेहतर कपल बन पाते हो। जबकि दूसरी साइट पर अगर हम सिर्फ अटैचमेंट को देखें तो वहाँ एक दूसरे के बीच की बाउनड्रीज़ डिसॉल्व नहीं होती बल्कि वहाँ अलग हीरोज होते है। हमने अपने हाउ टू गेट ओवर संबंध वाले एपिसोड में एक कॉन्सेप्ट को डिस्कस कर रहा था जो है पार्टिसिपेशन मिस्टेक। इसका मतलब एक इंसान अपने बचपन में मिलेट रोमांस की वजह से इन्कम्प्लीट होता है, उसकी एनर्जी सिम बैलेंस होती है और वो इंटरनली हॉल फील्ड करने के बजाए अपनी होलनेस आउटसोर्स कर रहा होता है और अपने खुद के रिजेक्टेड हिस्सों को बाहर दूसरे लोगों में ढूंढ रहा होता है। ऐसा इंसान कभी भी पूरी तरह से खुश नहीं रह सकता और ना ही वो किसी से सच्चा प्यार कर सकता है। क्योंकि जैसे ही आप किसी इंसान में अपना मतलब ढूंढने लग गए कि अब वो आकर आपको होल फील कराएगा, बजाए आप खुद अपने ऊपर काम करने के वैसे ही आप ट्रान्ज़ैक्शन माइंडसेट में आ जाते हो। एक चम्पल के तौर पर अगर एक इंसान को बचपन में शैतानी गन्ने चीजें बिखेरने या फिर बस मस्ती करने के लिए डाटा जाता था तो यह चीज़ उसके दिमाग में बैठ जाएगी कि मस्ती गणना गलत है। लेकिन अपनी पर्सनैलिटी के इस हिस्से को दबाने के बाद वह अपने इसी हिस्से को दूसरे लोगों में ढूँढता है और ऐसे लोगों के साथ हैंग आउट करता है या फिर ऐसे लोगों को अपना पार्टनर बनाता है जो उसके कंपैरिजन में बहुत ज्यादा मस्ती, शैतानी या मज़ा करते हैं। ये ही होता है पार्टिसिपेशन मिस्टिक और इसी तरह से दूसरों में खुद के मिसिंग पार्ट्स को ढूंढने से हम ब्रेकअप के बाद भी ना तो मूव ऑन कर पाते हैं और जब हम उनके साथ होते हैं तब भी उन्हें पूरी तरह से प्यार नहीं कर पाते हैं। इस डिफरेन्स को ढंग से समझो प्यार में हम दूसरे इंसान में खुद को ऐसा हॉल देखते है, जबकि अटैचमेंट में हम बस उनमें अपनी पर्सनैलिटी के मिसिंग पार्ट्स को देखते हैं। असली प्यार दो हो लोगों के बीच में होता है जबकि अटैचमेंट घायल और बीमार लोगों में जिन्होंने कभी भी अपने ड्रामा सको ही नहीं करा होता। जब भी आपको एक इंसान की मौजूदगी ही प्यार और खुशी से भर देती है और आपकी टाइम की परसेप्शन स्लो होने लग जाती है या एकदम गायब ही हो जाती है, आप अपनी इन सेक्युरिटीज़ अपनी कमियों और इवन उनकी कमियों को भी भूल जाते हो। वो होता है असली प्यार जहाँ दो इंसानों से ज्यादा प्यार मौजूद होता है। लेकिन अटैचमेंट में आप हर समय यही सोच रहे होते हो कि आपका पार्टनर आपको किस नज़र से देख रहा है, क्या वो आपकी अभी भी केर करता है या नहीं? आप कैसे उनसे अपना मतलब निकलवा सकते हो? वो किन लोगों से बात करते हैं? एंड सोन प्यार आपको लिमिटेड होकर भी लिमिट्लेस फील्ड कराता है और अटैचमेंट आपको एक ही जगह पर बाउनड्रीज़ के बीच में रख देती है। प्यार को बायोलॉजिकल टर्म्स में डिफाइन करना बहुत मुश्किल होता है और इसका एक क्लिअर रेवल्यूशनरी पर्पस किसी साइअन्टिस्ट को नहीं पता। लेकिन अटैचमेंट को बस कुछ होरमोंस और न्यूरोकेमिकल्स की इंटरैक्शन की तरह देखा जाता है जिसका एवोल्यूशनरी पर्पस या तो अपने जीन्स को अगली जेनरेशन में पहुंचाना होता है या फिर बस उस चीज़ या इंसान को अपने पास रखना, खुद के बारे में अच्छा फील करने के लिए प्यार में हम किसी के लिए जान दे भी सकते हैं और जान ले भी बिना इस एक्स्पेक्टेशन के की वो इंसान भी हमारे लिए कुछ ऐसा ही करेगा। लेकिन अटैचमेंट में हमारी ही जान दूसरे में अटकी होती है और हम उनसे एक्सपेक्ट कर रहे होते हैं कि वो हमारे लिए कुछ करे। जस्ट बिकॉज़ हमने अपने मिसिंग हिस्से उन्हें दे दिए हैं, जिससे भी रिलेशनशिप में प्यार ही मौजूद नहीं होता। वहाँ सिर्फ सौदा और एक्सपेक्टेशन्स है और जैसा कि हिंदू मंक स्वामी विवेकानंद ने बोला था कि जैसे ही आप किसी चीज़ से अटैच हो जाते हो, वैसे ही आप अपने आप को खो देते हो और आप खुद के मालिक नहीं बल्कि एक गुलाम बन जाते हो।","प्यार एक भावना है जिसे हम अपने जीवन में किसी विशेष के लिए गहराई से रखते हैं, लेकिन अक्सर लोग प्यार के साथ "लगाव" शब्द का प्रयोग करते हैं। हालाँकि दोनों एक ही समय और स्थान पर मौजूद हो सकते हैं, लेकिन अलग होने पर आसक्ति आकर्षण का निम्न रूप बन जाती है। तो, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम प्यार बनाम लगाव के बीच के अंतर को स्पष्ट करेंगे, इससे आपको अपने खुद के रिश्तों को आंकने में मदद मिलेगी और आपको यह सिखाया जाएगा कि आपके भविष्य के रिश्ते कैसे होने चाहिए।" "सैक्रिफ़ाइस एक लैटिन वर्ड्स से बना है जिसका लिटल मतलब होता है टु मेक सेक्रेड। यानी अपने किसी ऐक्शन को पवित्र बनाना नोर्मल्ली जब भी हम सैक्रिफ़ाइस करने की बात करते हैं तब हमें ये लगता है कि किसी लॉस की बात हो रही है, लेकिन असलियत में सैक्रिफ़ाइस होता है। एक वैल्यूएबल चीज़ को गिवअप करना, उससे भी ज्यादा वैल्यूएबल चीज़ पाने के लिए जैसा आप बोलते है ना कि कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है तो वो सैक्रिफ़ाइस की इम्पोर्टेन्स के बारे में ही बोला जाता है। अगर आप अपनी लाइफ में कोई बहुत अच्छी चीज़ पाना चाहते हो तो आपको बदले में कुछ ना कुछ छोड़ना जरूर पड़ेगा। खुद को और यूनिवर्स को ये प्रूफ करने के लिए कि आप जीस चीज़ को पाना चाहते हो। आप उसके लिए सिरिअस हो, मॉडर्न दुनिया में सैक्रिफ़ाइस इस और त्याग करने की बातें बहुत कम होती है। लेकिन हर कल्चर के इतिहास में इस चीज़ का जिक्र बहुत बार हुआ है। आज कल जो रिचुअल्स या सैक्रिफ़ाइस इस करें भी जाते हैं, उनके पीछे की सिग्निफिकन्स भी किसी को नहीं पता नाउ अगर हम बनना चाहते हैं और लाइफ को बेस्ट पॉसिबल तरह से जीना चाहते हैं तो हमें इन रीती रिवाजों को एक साइकोलॉजिकल पॉइंट ऑफ क्यूँ से देखना होगा और इनकी सर ऑफिस के नीचे छुपे इनकी डी पर मीनिंग को समझना होगा। सबसे पहले यह नोटिस करो कि सेक्रिफाइस करना काफी ह्यूमन क्वालिटी है। जस्ट बिकॉज़ ये चीज़ जुड़ी है हमारे फ्यूचर के बारे में सोचने और उसके लिए प्लैन करने की एबिलिटी से है। बाकी कोई भी जानवर हमारी तरह टाइम को इस तरह से नहीं देख पाता कि वो अपने फ्यूचर को बेहतर बनाने के लिए अपने प्रेस में मुश्किलों को इनवाइट करे। हम मानते हैं कि फ्यूचर एक ऐसी चीज़ है जिसे इम्प्रूव करा जा सकता है और ये भी कि हम अपने मरीजों को अभी के लिए रोक सकते हैं और उसका फल हमें एक ऐसे टाइम और जगह पर मिलेगा जो अभी एग्ज़िट भी नहीं करते है। हर इंसान को डीप इनसाइड ये पता है कि इस बात में बहुत दम है। बचपन से ही हमें सैक्रिफ़ाइस करने की इम्पोर्टेन्ट समझाई जाती है। हमें बोला जाता है कि अगर हम अभी पढ़ाई करेंगे तो उससे हमें आगे चलकर अच्छे मार्क्स और उसके बेसिस पर अच्छी जॉब मिले गी। अगर हमने जॉब में मेहनत करि तो हमे प्रमोशन मिलेगा और सोसाइटी में हमारा नाम होगा जिससे हमारी लाइफ भी ज्यादा कंफर्टेबल बनेगी और हमारे आगे आने वाली जेनरेशन स्की भी। ऑफ कोर्स इस सबके बीच में हमने मस्ती भी करी, लेकिन हमारा कृपया इस हमेशा ही हमारी मस्ती से बड़ा था वरना ये इक्वेशन काम नहीं करती और हमें एवरेज रिज़ल्ट ही मिलते हैं। जब भी आप सैक्रिफ़ाइस करने की सोचते हों तब आप बेसिकली खुद से ये क्वेश्चन पूछ रहे होते हो कि क्या आपको फ्यूचर में तड़प तड़प कर दर्दनाक मौत मनी है? या फिर आप मैनेजेबल अमाउंट में थोड़ा थोड़ा रोज़ मरना चाहते हो ताकि आपका फ्यूचर आपके प्रेज़ेंट से बेहतर हो? कोई भी सेंसिबल इंसान दूसरा ऑप्शन ही चूज करेगा, लेकिन यहाँ पर एक और क्वेश्चन ये आता है कि हम सैक्रिफ़ाइस करें क्या और किस तरह से सैक्रिफ़ाइस करने से हमें सबसे अच्छा आउट कम मिलेगा? आन्सर सिंपल है और वो आपको भी पता है यानी उस चीज़ को सैक्रिफ़ाइस करो जो आपके लिए सबसे ज्यादा वैल्यूएबल है और जिसे सैक्रिफ़ाइस करना सही है। अगर आप चाहते हो की आपका फ्यूचर एक्स्ट्राऑर्डिनरी हो तो ये क्लियर है कि आपको सैक्रिफ़ाइस भी कुछ ऐसा ही करना पड़ेगा जो कि आम चीज़ ना हो। जाम पल के तौर पर सक्सेस हर इंसान ही चाहता है पर अगर आप इस गोल को लेकर बहुत सीरियस हो की हाँ, जो भी हो जाए, मैंने तो अपना नाम बनाना है और मैं एक ऐवरेज इंसान बनकर नहीं मरूंगा। तो ऐसे में आपको ये भी पता होना चाहिए कि इतना कुछ अचीव करने और वो बनने के लिए जो दूसरे नहीं बन रहे है, आपको वो सैक्रिफ़ाइस करने होंगे जो दूसरे नहीं कर रहे हैं में बी आपके लिए ये सैक्रिफ़ाइस है अपने यूथ का एक बड़ा हिस्सा अपने गोल्स के लिए त्याग देना जहाँ आपके दोस्त बाहर मस्ती कर रहे होंगे और घूम फिर रहे होंगे वहीं आप अंदर बैठकर अपने काम पर फोकस होंगे और आपको अपनी इसी लेवल की कमिटमेंट तब तक रखनी होगी जब तक आप को सॉलिड रिजल्ट्स देखना नहीं शुरू हो जाते हैं। कुछ इस तरह दिखता है सैक्रिफ़ाइस लेकिन हम कई बार बहुत सी चीजो से अटैच हो जाते हैं या फिर उनसे प्यार करने लगते हैं। और ये सच है कि कई बार जो चीजें हमें आगे बढ़ने से रोक रही होती है वो हमारी उन चीजों से अटैचमेंट होती हैं जिनसे अब हमें अटैच नहीं रहना चाहिए। यहाँ तक कि आप डाइरेक्टली अपनी लाइफ में इस चीज़ को ऑब्जर्व भी कर सकते हो कि अगर आप की प्रोग्रेस धीमी हो गयी या फिर एकदम रुक गई है तो जरूर आपका कोई बिलीफ आपके साथ कोई इंसान या फिर आपकी कोई हैबिट आपको इतनी प्यारी हैं कि आप उसे छोड़ ही नहीं रहे। जीवन दो वो आपको डाइरेक्टली या इनडाइरेक्टली नुकसान पहुंचा रही है और जैसा कि रशियन नॉवलिस्ट डॉक्टर्स की नहीं फिर बोला था कि जवान लोग यह समझने में फेल हो जाते हैं कि अपनी लाइफ का सैक्रिफ़ाइस ज्यादातर केसेस में सबसे आसान सैक्रिफ़ाइस होता है, लेकिन अपनी जवानी के पांच 6 साल सैक्रिफ़ाइस करना, पढ़ाई और मेहनत करने के लिए, जिससे उनमें सच के साथ जीने की ताकत 10 गुना बढ़ जाए और वो अपने गोल को हासिल कर पाए। यह सैक्रिफ़ाइस ज्यादातर लोगों के बस में नहीं होता इसलिए सिर्फ जियो मत बल्कि यह क्वेश्चन करो कि आप जी क्यों रहे हो? और फिर उस रीज़न के लिए सबसे बड़े सैक्रिफ़ाइस दो","मूल्य के कुछ बलिदान का कार्य वास्तव में एक पुराना विचार है और यह कहता है कि यदि आप उच्चतम संभव अच्छे के नाम पर मूल्य का कुछ छोड़ देते हैं जिसकी आप कल्पना कर सकते हैं, तो आपका भविष्य उस परिदृश्य से बेहतर होगा जहां आपने किया था वह बलिदान मत करो। लेकिन क्यों? अपने समय, ऊर्जा, प्रेम, धन आदि का बलिदान एक बड़े अच्छे काम के लिए इतना लोकप्रिय और गहरा विचार क्यों है? इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम बलिदान के पीछे के मनोविज्ञान पर चर्चा करके इस प्रश्न का उत्तर देंगे, इसे करने का सबसे अच्छा तरीका क्या है और आप इस ज्ञान के माध्यम से अपने जीवन में अधिक सफलता, शांति और खुशी कैसे आकर्षित कर सकते हैं।" "जब भी हम किसी फीमेल से डेटिंग और रिलेशनशिप की बात करते हैं, तब हर फीमेल का काफी अलग रिऐक्शन होता है। जहाँ कई फीमेल्स अपने पास रिलेशनशिप से काफी खुश होती है, वहीं कई फीमेल्स को तो रिलेशनशिप के नाम से ही नफरत हो जाती है और वो सिंगल रहना ही प्रिफर करती है। जस्ट बिकॉज़ उन्होंने एक गलत टाइप के पार्टनर्स को चूज कर लिया था और ऐसा नहीं है की आपको कभी कोई परफेक्ट इंसान भी मिलेगा क्योंकि हम सब के अंदर ही कोई ना कोई कमी जरूर होती है पर कई कमियों को इग्नोर करना बहुत भारी पड़ सकता है और तभी आज के एपिसोड में हम उन मेल्स की बात करेंगे जिनसे आप दूर ही रहो तो अच्छा है। नंबर वन एक सिस्टम यानी उस तरह के मेल्स जो काफी सेल्फिश होते हैं उन्हें हमेशा अटेन्शन चाहिए होती हैं। उनके लिए खुद की इमेज से ज्यादा कुछ भी इम्पोर्टेन्ट नहीं होता और वो दूसरों के दर्द या फीलिंग्स को ज़रा भी नहीं समझ पाते हैं। ऐसे मेल्स शुरू में तो काफी अट्रैक्टिव लगते है क्योंकि वो आपका ट्रस्ट पाने के लिए आपको बहुत प्यार दिखाते हैं और आप को स्पेशल फील कराते हैं। पर कुछ टाइम उनके साथ रहने पर आपको पता लगता है कि वो कितने अब्यूसिव है और उनके साथ रहने का मतलब है एक इमोशनल रोलर कोस्टर राइड करना क्योंकि आपको नहीं पता होता की अगले मूवमेंट में वो क्या करेंगे, क्या वो आपको प्यार जताएंगे या फिर आप से किसी छोटी सी बात पर नाराज होकर बैठ जाएंगे ताकि आप उन्हें अटेन्शन दो। इस तरह के मेल्स के खुद के ट्रामा बहुत ज्यादा होते हैं और इन्हें हील करने के चक्कर में आप खुद को मेंटली टॉर्चर करने लगोगे। इसलिए जैसे ही आपको लगे की एक मेल को सिर्फ अपनी इमेज की परवाह है आपकी नहीं तो उससे तभी दूर हो जाओ। नंबर टू ऐसे मेल्स जिनके कोई लाइफ गोल्स नहीं होते हैं, क्योंकि जब आप यंग होते हो तब आपको यह फर्क नहीं पड़ता। ये आपका पार्टनर अपने फ्यूचर के लिए कितना प्रिपेर्ड है या फिर अगर आप उसके साथ लंबे समय तक रहो तो आपकी लाइफ कैसी होगी? ज्यादातर टाइम हम बस यही देखते हैं कि ठीक है, एक इंसान थोड़ा देखने में सही है, हमें अपने बारे में अच्छा महसूस करा देता है और हमारे पास कोई ऐसा इंसान आ जाता है जिसे हम स्पेशल बोल सकते हैं और खुद उनके साथ स्पेशल फील कर सकते हैं। पर चाहे आप किसी के साथ शॉर्ट टर्म के लिए रहने की सोचो या लॉन्ग टर्म के लिए। अगर उनके कोई गोल नहीं है तो उसका मतलब वो क्यूलेस है कि उन्हें कहाँ जाना है। इस तरह के लोग डे बाइ डे बेसिस पर जीते हैं। बट जस्ट बिकॉज़। वो अपने फ्यूचर के लिए सिरिअस नहीं होते तो वो अपना टाइम प्रेसेंट में भी वेस्ट करते रहते हैं और एक पॉइंट के बाद आप भी ये फील करने लग जाते हो की ये इंसान तो आपकी प्रोडक्टिविटी को भी गिरा रहा है। इसलिए ऐसे इंसान से शुरू से ही दूर रहो। नंबर थ्री ऐसे मेल्स जो काफी इमोशनली डिपेन्डेन्ट होते हैं। यानी अगर एक मेल बहुत ही ज्यादा नीडी है और उसे हर समय दूसरे लोगों जैसे अपने फ्रेंड्स, पैरेन्ट्स या आपकी इमोशनल अवेलेबिलिटी चाहिए होती है तो यह भी एक ऐसा साइन है जो बताता है कि ऐसे मेल से दूर ही रहना चाहिए। क्योंकि इमोशनली डिपेन्डेन्ट होने का मतलब है कि उस इंसान ने अभी भी अपने बचपन के ट्रामा को हील नहीं करा है और वो अपने बचपन का मिसिंग प्यार बड़े होने के बाद भी दूसरे लोगों में ढूंढ रहे हैं। शुरू में तो आपको बहुत क्यूट और फनी लगेगा कि एक इंसान जिसे आप इतना लाइक करते हो वो आपको बार बार मैसेज या कॉल कर रहा है और आपको बिल्कुल भी अकेला नहीं फील होने दे रहा है। पर टाइम के साथ साथ यह हैबिट काफी इरिटेटिंग बन जाती है। इसलिए अगर आपको भी किसी मेल में इमोशनल डिपेन्डेन्ट के साइनस दिखे तो उन्हें इग्नोर करने के बजाय अपनी मेंटल हेल्थ को प्रायोरिटी दो। और उस इंसान से दूर रहो नंबर फ़ोर एक ऐसा मेल जो आपकी रिस्पेक्ट नहीं करता। ज्यादातर फीमेल्स को एक अनप्रिडक्टेबल स्पॉन्टेनियस डॉमिनेंट और एक ऐसा मेल चाहिए होता है जो अपने डिसिशन्स में कॉन्फिडेंट हो और जब वो एक बात को ठान ले तो उसे पूरा करे। ये ट्रेड्स मेन ली एक बैड बौ या फिर एक अल्फा मेल को डिफाइन करते हैं, क्योंकि वो अपनी बुरी साइड और अच्छी साइड दोनों को सिचुएशन के हिसाब से कंट्रोल कर पाते हैं और एवल्यूशन रीसनस में अडैप्ट एबिलिटी सबसे अट्रैक्टिव ट्रेड होता है। हाउएवर नई मेल जो असलियत में उतने कॉन्फिडेंट और डॉमिनेंट नहीं होते, वो अपनी कमियों को कॉमपेनसेट करने के चक्कर में अपना एक ऐसा पर सोना बना लेते हैं जो काफी अग्रेसिव होता है। उनके हिसाब से वो एक ऐल्फा की तरह एक्ट कर रहे होते हैं। पर असल में वो ये दिखा रहे होते हैं कि उनका अपनी स्पीच पर बिल्कुल कंट्रोल नहीं है और वो एक फेक ऐल्फा है। पर जो लड़कियां ऐसे लड़कों के इस जाल में फंस जाती है उन्हें मिलता है कॉन्स्टेंट कंपैरिजन और डिस रिस्पेक्ट। इसलिए जब भी एक लड़का बिना बात के आपको डिस रिस्पेक्ट करे तो उससे दूर ही रहो। नंबर फाइव ऐसे मेल्स जो अपने पैसों को ढंग से मैनेज नहीं करते हैं। इस तरह के मेल से दूर रहना इसलिए जरूरी है क्योंकि अगर एक मेल बहुत ज्यादा पैसे उठाता है और कभी भी पैसों को सेव या फिर वीज़्ली यूज़ करने की कोशिश नहीं करता तो उसका मतलब वो बहुत इ रिस्पॉन्सिबल और इम्मेच्युर है। ये मेल अपने ऐडल्ट वुड में भी एक बच्चे की तरह एक करता है और आप से एक्सपेक्ट करता है कि आप उसकी गलतियों का बोझ उठाओ। इसलिए अगर कोई मेल बहुत ज्यादा कंजूस है, पैसे उड़ाता है, उसके पास अपने पैसों का कभी भी कोई हिसाब नहीं होता। या फिर वह आपसे एक्सपेक्ट करता है कि आप सारे बिल्स पे करो तो ऐसे मेल से तो दूर ही रहो नंबर सिक्स ऐसे मेल्स जो सिर्फ आपकी आउटर ब्यूटी को अप्रीशीएट करते हैं। आउटर ब्यूटी हमारी हेल्थ और रीप्रोडक्टिव एबिलिटी को रिफ्लेक्ट करती है। पर सिर्फ आउटर ब्यूटी एक लॉन्ग टर्म हेल्थी रिलेशनशिप को नहीं चला सकती है क्योंकि इसका काम सिर्फ हमें यह ढूँढने में मदद करना है कि हम एक इस इंसान के साथ मेड करना चाहिए। एक हेल्थी ऑफ स्प्रिंग को जन्म देने के लिए है, जबकि इन्नर ब्यूटी एक इंसान की पर्सनैलिटी वैल्यूज़ और उसके वर्ल्डव्यू को रिफ्लेक्ट करती है। यही रीज़न है की क्यों? जो इंसान सिर्फ आपकी आउटर ब्यूटी की तारीफ करता है और आपकी पर्सनैलिटी को इग्नोर कर देता है चान्सेस है की वो आपकी डेथ को भी नहीं समझ पाता और इस वजह से आप दोनों के बीच कम्यूनिकेशन की भी कमी रहेंगी। इसलिए ऐसे इंसान से दूर ही रहो नंबर, सेवन, मेल्स जो बहुत वीक होते हैं। यहाँ पर हम इमोशनल, साइकोलॉजिकल और फिजिकल वीकनेस तीनों की बात कर रहे हैं। क्योंकि अगर एक मेल इन तीनों एरियाज में स्ट्रांग नहीं है तो वो आपके ऊपर डिपेंडेंट रहेगा और वो आपसे एक्सपेक्ट करेगा कि आप उसे प्रोटेक्ट और लीड करो। ये सिचुएशन एक मेल और फीमेल दोनों के लिए ही अनहेलथी होती है क्योंकि एक मेल इस तरह से अपनी मैस्कुलिनिटी को एक्सप्रेस नहीं कर पाता और एक फीमेल अपनी फैमिली को। इसलिए जब भी आपको लगे कि आपको अपने पार्टनर की कमियों को कॉमपेनसेट करना पड़ रहा है ताकि वो अपने बारे में अच्छा फील कर सके तो आपको उस मेल से दूर हो जाना चाहिए क्योंकि ऐसा रिलेशनशिप आपकी खुद की इमोशनल और साइकोलॉजिकल हेल्थ के लिए सही नहीं होगा। नंबर एट ऐसे मेल्स जो बहुत मटिरीअलिस्टिक होते हैं जहाँ एक पैसों को सेव और वाइस ली यूज़ करने वाला इंसान काफी रिलाएबल हो सकता है। नहीं एक ऐसा मेल जो सिर्फ पैसों को ही अपना भगवान मानता है, उसके साथ रहना बहुत टॉक्सिक हो सकता है। यह इसलिए क्योंकि जब एक इंसान सिर्फ मटिरीअल पोज़ीशन को इकट्ठा करने में बिज़ी होता है तब वो ये भूल जाता है कि जीस तरह से एक सक्सेसफुल बिज़नेस को बिल्ड करने में इतना टाइम और एनर्जी लगती है। बिल्कुल वैसे ही एक सक्सेसफुल रिलेशनशिप को बिल्ड करने में भी एक इंसान की पूरी अटेंशन चाहिए होती है। ज्यादातर लोग इस बात को अपनी लाइफ में काफी लेट रियलाइज करते हैं कि जो खुशी वह पैसों में ढूंढने की कोशिश कर रहे थे वो कभी भी वहाँ मिल ही नहीं सकती हैं। इसलिए अगर उस मेल को पैसों के अलावा कुछ नहीं दिखता तो अपना फ़्यूचर दांव पर लगाने के बजाए उससे दूर रहो। नंबर नाइन मेल्स जो झूठ बोलते है इस टाइप के मेल से दूर रहना भी इसलिए जरूरी है क्योंकि आप इन पर ट्रस्ट और रिली नहीं कर सकते हो। आपको नहीं पता होगा कि कब आपसे सच बोला जा रहा है और कब आपको बस मैनिपुलेट करा जा रहा है। एक इंसान की इस तरह से झूठ बोलने की आदत ये बताती है कि यहाँ पर सिर्फ वो ही नहीं बल्कि आप दोनों का रिलेशनशिप भी वीक है क्योंकि सच्चाई की अब सीन्स में आपके पास वो फाउंडेशन ही नहीं होती। जिसकी बेसिस पर आप कुछ मीनिंगफुल क्रीएट कर सको इसलिए अगर कोई मेल आपसे बार बार झूठ बोलता है तो उससे दूर रहो।","जब डेटिंग और रिश्तों की बात आती है, तो कुछ महिलाएं नए अनुभवों और विभिन्न प्रकार के पुरुषों से मिलने के लिए वास्तव में खुली होती हैं, लेकिन कुछ महिलाएं उन पुरुषों के प्रकारों के बारे में अधिक सावधान रहती हैं जिन्हें वे डेट करना चुनती हैं और यह वास्तव में अच्छे कारण के लिए है। यदि आपको मानव व्यवहार की थोड़ी समझ है, तो आप जान सकते हैं कि समूह में एक व्यक्ति की आदतें और व्यवहार अन्य सदस्यों पर भी प्रभाव डालते हैं। यदि आप अपने आप को उन लोगों से घेरते हैं जो सफलता का पीछा कर रहे हैं, तो संभावना है कि आप भी अपनी क्षमता को बाहर लाने पर काम करना शुरू कर सकते हैं, जबकि यदि आप नकारात्मक और दूसरों से ईर्ष्या करने वाले लोगों के साथ अधिक समय बिताते हैं, तो आप भी वही बन सकते हैं या अपने लक्ष्य से भटक जाते हैं। यही कारण है कि इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम सबसे सामान्य प्रकार के पुरुषों पर चर्चा करते हैं जो आपको रोके रखेंगे और इसलिए हर कीमत पर इससे बचना चाहिए।" "लोनलीनेस एक ऐसी चीज़ है जो पॉज़िटिव भी हो सकती है और नेगेटिव भी। अगर आप खुद डिसाइड करते हो कि आप अपने आप को ट्रांसफार्म करने के लिए कुछ टाइम अकेले में बताना चाहते हो तो आप लोनलीनेस को सॉलिट्यूड में कन्वर्ट कर देते हो और अपना पूरा फोकस अपनी पोटेंशिअल को रीच करने में लगा पाते हों, लेकिन जब आप बिना अपनी मर्जी के अकेलापन फील करते हो, वो प्रॉब्लम है। आप लोनलीनेस कभी भी और कहीं भी एक्सपिरियंस कर सकते हो। जब आप अकेले हो तब भी और जब आप फ्रेज़ फैमिली या एक बड़ी सोशल गैदरिंग में हो तब भी यानी लोनलीनेस ये काफी सब्जेक्टिव या इंडीविजुअल इक्स्पिरीयन्स है। और अगर आप लोन्ली फील कर रहे हो तो आप लोनली हो। किसी भी तरह का पैसा, पर्सनैलिटी या आपकी सोशल स्किल्स भी आपको लोनलीनेस से नहीं बचा सकती। और साइकोलॉजी बताती हैं कि कोई भी इंसान दो चीजों की कमी की वजह से लोन्ली फील करता है यानी दीप रिलेशनशिप विथ ऑदर्स ऐंड दीप रिलेशनशिप विद वनसेल्फ पहला फैक्टर सोशल डिप्रिवेशन के डेनजरस को हाइलाइट करता है। जैसे 1944 में हुए एक एक्सपेरिमेंट में ऑस्टिन अमेरिकन साइकोएनालिस्ट वेन इस पेटसने ये देखने की कोशिश करिए कि अगर बच्चों को किसी भी तरह के सोशलाइजेशन या ह्यूमन इंटरेक्शन से दूर रखा जाए तो उनकी साइकोलॉजी और बाइओकेमिस्ट्री पर क्या असर पड़ेगा? स्पीड्स ने बच्चों के दो ग्रुप्स लिए है जहाँ एक ग्रुप को नोर्मल्ली लोगों के बीच रखा गया और दूसरे ग्रुप को उनकी माँ और बाकी लोगों से दूर एक ओरफनेज में रखा गया और वहाँ काम करने वाले केर्गिवर सको भी स्ट्रिक्ट ऑर्डर्स थे कि वो बच्चों को छुए बिना और कुछ महीनों के बाद ही ये क्लियर हो गया की सेकंड ग्रुप वाले बच्चे सोशल डेप्रिसिएशन की वजह से इन्टलेक्चुअल ली। और फिज़िकली ढंग से नहीं डेवलप हो पाए थे। यानी ह्यूमन इंटरैक्शन स् एक बच्चे की डेवलपमेंटल इअर्स में बहुत जरूरी होते हैं। उसे एक हेल्थी इनडिविजुअल बनाने के लिए पर बड़े होने के बाद हमारी सोशलिस्ट करने की इन नीड में थोड़े से चेंजेज आते हैं, क्योंकि तब हमारी पर्सनैलिटी फॉर्म हो चुकी होती है, जहाँ एक एक्स्ट्रोवर्ट बिना सोशलिस्ट करें, एक हफ्ता भी नहीं रह सकता, वहीं एक इंट्रोवर्ट बिना किसी से बात करे महीनों निकाल सकता है। हाउएवर यह फैक्ट है कि इवन इंट्रोवर्ट्स भी टाइम टु टाइम अपने पसंद के लोगों के साथ रहने में ज्यादा खुश रहते हैं और बीड़ी फॉल्ट हम दूसरे इंसानों के साथ डी पर कनेक्शन्स को करेव भी करते हैं और हमारी इस चाहत के पीछे हमारी वो हैं जो हमें जिंदा रहने के लिए गार्डेन्स देती है। क्योंकि एवल्यूशन रीसनस में जीस तरह से दर्द हमें किसी चीज़ से दूर रहने के लिए मोटिवेट करता है। हमें खाना ढूंढने के लिए मोटिवेट करती है, वैसे ही लोनलीनेस की फीलिंग हमे मोटीवेट करती है। खुद के बारे में सोचने के लिए की पूरी ट्राइब ये सोसाइटी में हमारी पोज़ीशन क्या है और क्या हमारी सोशल नीड्स पूरी हो रही है? नहीं क्योंकि लाखों सालों तक वो हमारे दूसरों के साथ दीप रिलेशनशिप सी थे जो हमारे जिंदा रहने के सबसे बड़े प्रिडिक्टर थे। यानी इतने हर्ष एनवायरनमेंट में हमारे जिन सिस्टर्स ने एक दूसरे की मदद करी और दीप कनेक्शन्स बनाये वो बड़े जानवरों से बचने और जिंदा रहने में सक्सेसफुल रहे, जिसकी वजह से हमारा दिमाग टाइम के साथ साथ कुछ इस तरह से इन्वॉल्व हो गया कि हमें बहुत फर्क पड़ता है इन बातों से कि दूसरे लोग हमारे बारे में क्या सोचते हैं, कितने लोग हमारी परवाह करते हैं और हमें सोसाइटी में कैसे ऐक्ट करना चाहिए ताकि दूसरे लोग हमें रिजेक्ट ना करे। इसी वजह से जब भी हमें ऐसा लगता है कि हम बाकी लोगों से दूर हो रहे हैं, तब हमारी बायोलोजी हमें सोशल पेन फील कराती है ताकि हम ये सोचना शुरू करें कि हम क्या गलत कर रहे हैं और हम अपनी गलतियों को कैसे ठीक करें ताकि हम वापस से अपनी के पास जाकर अपने सर्वाइवल के चान्सेस को बढ़ा सके। यही रीज़न है की क्यों रिजेक्शन इतना पेनफुल होता है, जीवन आज के टाइम पर भी, जहाँ हम बाकी लोगों से ज्यादा दूर नहीं रहते, किसी से भी ऑनलाइन जाकर बात कर सकते हैं और हमारे सर्वाइवल के लिए सारी फैसिलिटीज़ दीज़ अली अवेलेबल है। जब भी हमारे पास दूसरों के साथ दीप रिलेशनशिप्स बनाने का टाइम ही नहीं होता और इतने मॉडर्न होने के बाद भी हमारी सोसाइटीज़ में ज्यादातर लोग लोन्ली फील करते हैं और उनकी बायोलोजी उन्हें दर्द देकर ये सिग्नल करने की कोशिश कर रही होती है कि उनके सर्वाइवल के चान्सेस कम है और हम सोचते है की आजकल के लोग इतने डिप्रेस्ड क्यों है? बट ये बात भी सच है कि अच्छे रिलेशनशिप्स बनाना कोई आसान काम नहीं होता और तभी लोनलीनेस क्रॉनिक बन जाती है। क्रोनिक लोनलीनेस यानी वो अकेलापन। जो काफी लंबे समय से चलता आ रहा होता है, आपको उसकी आदत पड़ जाती है और इस वजह से आप हमेशा सेल्फ रिजर्वेशन मोड में रहने लगते हो। यानी आपको ऐसा लगता है कि हर इंसान आप को नुकसान पहुंचाना चाहता है और आपकी सोशल सिग्नल्स के टुवार्ड्ज़ सेन्सिटिविटी इतनी ज्यादा बढ़ जाती है कि आप लोगों के फेशियल एक्स्प्रेशन्स भी ढंग से रीड नहीं कर पाते हैं, जिसकी वजह से आप लोगों से और दूर होने लगते हो। यह वह पॉइंट होता है जब आप पहले से ज्यादा सेल्फिश बन चूके होते हो और आप ये बोलते हो की आपको किसी की जरूरत ही नहीं है। आपका ये ऐटिट्यूड और लोनलीनेस का ये स्पाइरल आपको तब तक दीप रिलेशनशिप्स बनाने से रोकता है, जब तक आप यह नहीं समझ जाते कि आप अपने डिसिशन्स की वजह से ही सफर कर रहे हो। ज्यादा तर टाइम हम लोग फ्री तो होना चाहते हैं पर हम फ्री होने के प्रोसेसर से नहीं गुजरना चाहते हैं और अपनी गलतियों को नहीं फेस करना चाहते हैं। यहाँ पर हम लोनलीनेस की इन्टलेक्चुअल साइड की बात कर रहे हैं, जो कि लोनलीनेस के एवल्यूशन रीज़न से भी ज्यादा डीप जाता है। यानी हम हमेशा कोशिश कर रहे होते हैं कि हम सब से यूनिक बने अपनी डेस्टिनी खुद क्रिएट करे और अपना बेस्ट वर्जन बनने हैं। क्योंकि यही वो चीजें हैं जो हमें बाकी सारे जानवरों से अलग बनाती है। यानी हम अवेर है और हम कॉन्शस ली डिसिशन्स ले सकते हैं, जिससे हम अपनी लाइफ स्पॉन्टेनियस ली जी सके और हर मोमेंट में कुछ ऐसी चीज़ क्रिएट कर सके जो पहले से इस दुनिया में नहीं थी। और जो चीज़ हमें एक यूनीक इनडिविजुअल बनने से रोकती है वो है हमारी अपने खुद के खयालों को फेस ना कर पाने की। ये वो जगह होती है जहाँ हम झुंड से अलग भी होना चाहते हैं। पर हमारे अंदर अपने बुरे थॉट्स को फेस करके अपने ट्रू सेल्फ तक पहुंचने की हिम्मत भी नहीं होती। जिसकी वजह से हम अपनी इस या फॉल्स आइडेंटिटी के साथ लोन्ली फील करने लगते हैं। सो अब हम बात करते हैं कि हम अपनी इस लोनलीनेस की फीलिंग से बाहर कैसे निकल सकते हैं? वेल सबसे पहला स्टेप है कि आपने अपने आप को डिस्ट्रैक्ट करने और लोनलीनेस से जुड़ी एनजीटी को से प्रेस करने के बजाय इस फैट को एक्सेप्ट करना है कि आप लोन ली हो और आप इस वजह से सफर कर रहे हो। सेकंड स्टेप है अपनी लोनलीनेस और उससे जुड़ी एंजाइटी को फेस करना ये डिस कवर करने के लिए कि आपको अपनी लाइफ से क्या चाहिए और आपको क्या करना होगा। उस चीज़ को रिऐलिटी बनाने के लिए ये स्टेप इसीलिए इतना जरूरी है क्योंकि जब आप अपने आप को सोसाइटी के लिए यूज़फुल बनाते हो और अपने दिमाग में आने वाले हाइएस्ट गुड की तरफ एम करते हो तब आप अपने सर्वाइवल मेकनिजम को ये इन्शुर कर देते हो की चाहे आप लोगों के साथ हो या फिर अकेले, आप इतने कैपेबल हो कि आप अपना ध्यान खुद रख सकते हो और हर सिचुएशन में सर्वाइव कर सकते हो। यानी ज्यादातर लोग लोनली इसलिए फील करते हैं क्योंकि वो सब कॉन्शस लिए जानते हैं कि वो ना तो ज्यादा कॉम्पिटेंट है और ना ही वो सोसाइटी में कुछ ज्यादा कॉन्ट्रिब्यूट कर रहे हैं तो इस वजह से उनका माइंड उन्हें बोलता है की भाई तू तो अकेले सर्वाइव नहीं कर पाएगा, इसलिए तू दूसरों के साथ ही रह नहीं, तो कुछ देर भी अकेले रहने पर तू तो लोन्ली फील करने लगेगा। थर्ड ली जब आप अपनी लोनलीनेस से दूर भागने के बजाय कुछ टाइम अकेले रहकर ही अपने नेगेटिव थॉट्स को ऑब्जर्व करते हो तब आप साइकोलॉजिकली अपने आप को दूसरों से अलग बना पाते हो। जिससे आपके अंदर किसी भी तरह की सोशल वैलिडेशन की नीड खत्म हो जाती है। यह इस पूरे एपिसोड का निचोड़ है इसलिए इसे ढंग से समझो। यानी जैसे ही आप अपने आप को पूरे झुंड से अलग कर लेते हो या फिर जब आप इन डिड यू ईट हो जाते हो तब ना तो आपकी एवोल्यूशनरी आपको सोशल पेन देती है और ना ही आपको हर टाइम लोगों के साथ रहने की कोई ऐब्सलूट नीड होती है। अगर कोई आपके पास है तब भी आप मस्त हो और अगर आप अकेले हो तब भी आप मस्त हो। हमारे में से हर इंसान दूसरे से अलग और यूनीक है और हर इंसान में ही अपनी यूनीक टैलेंट हैं, जिन्हें ऐक्सेस करने पर हम अपने सेन्स ऑफ सेल्फ को स्ट्रांग बना सकते हैं। हाउएवर इसका मतलब यह नहीं है कि यूनीक बनने का ये प्रोसेसर आपको और लोनली बना देगा, बल्कि जो लोग अपने सेन्स ऑफ सेल्फ को काफी स्ट्रांग बना लेते है, वो सिर्फ अपनी सोशल स्किल्स ही नहीं, बल्कि अपने रिलेशनशिप्स को भी इम्प्रूव कर पाते हैं। क्योंकि जब आप इन डिड यू ए टेड होते हो तब आपको लोगों की जरूरत नहीं होती है बल्कि लोग खुद आपकी तरफ खिंचे चले आते हैं। यह इसलिए क्योंकि एक स्ट्रॉन्ग सीन्स ऑफ सेल्फ हमें स्पॉन्टेनिटी के साथ बिहेव करने के केपेबल बनाता है और एक स्पॉन्टेनियस इंसान से ज्यादा अट्रैक्टिव इस दुनिया में कुछ नहीं होता।","अगर आप अकेलेपन से निपटने का सही तरीका सीखना चाहते हैं और कभी अकेलापन महसूस नहीं करना चाहते हैं, तो आपको यह समझने की जरूरत है कि इस समस्या के मूल में क्या है। यह न तो दोस्तों की कमी है और न ही आपके खराब सामाजिक कौशल, हालाँकि ये कारक अल्पावधि में मदद कर सकते हैं लेकिन जब हम अकेलेपन की जड़ तक पहुँचते हैं, तो हमें जल्दी पता चलता है कि यह आपकी स्वयं के साथ बैठने की अक्षमता है जो आपको पीड़ित कर रही है। आप अपने विचार नहीं सुन सकते। आप व्यक्तिगत नहीं हैं। तो, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम इस भावना के पीछे के विकासवादी कारणों पर चर्चा करते हैं और आप अकेलेपन को कैसे ठीक कर सकते हैं ताकि भले ही आप अकेले हों या बुरी संगत में हों, आपको कभी कोई नकारात्मक भावना महसूस न हो। 📽️यूट्यूब पर हमें खोजें: WWW.YOUTUBE.COM/PSYCHOLOGYINHINDI" "किंग्स इन क्वीन्स इस एपिसोड में मैं आपको सिखाने वाला हूँ कि कैसे आप अपनी लाइफ में डिसिप्लिन को वेलकम कर सकते हो? जस्ट बी डूइंग द ट्रूथ आपको यह जानने की जरूरत है की चाहे सोसाइटी आपको कितना भी वीक टाइटल, ऑड हेटफुल, मेंटली इल या अनहेलथी बनाने की कोशिश कर लें लेकिन कोई भी आपके अंदर मौजूद उस ग्रेटनेस कि लॉन्ग उस महानता की बुक को नहीं मार सकता। ऐस लॉन्ग ऐस योर डिसिप्लिन वीकनेस इसके प्रॉब्लम डिसिप्लिन इसके सोल्यूशन आपने ये चीज़ नोटिस करी है की यह वीं कोर इन टाइटल लोगों की पॉप्युलेशन एकदम से नंबर में बढ़ी है। 2015 और 2016 तक फिर भी इन्टरनेट पर हेल्थ डिसिप्लिन मोटिवेशन इस तरह के कॉन्टेंट को प्रोमोट कर आ जाता था। बट अब इसी तरह के कॉन्टेंट के बीच बैड हेल्थ, मेंटल इलनेस और डिवाइड तीन को स्मगल करके इन चीजों को नॉर्मलाइज करा जा रहा है। पहले ऐसा लगता था कि अगर मैं अनहेलथी या फिर डिप्रेस दूँ तो अगर मैं अपने आस पास के लोगो को देखू या फिर ऑनलाइन जाऊं तो ज्यादातर लोग हेल्दी और खुश होते थे या फिर एट लिस्ट वो ये दिखा रहे होते थे और इस चीज़ को देखके मेरे को ऐसा फील होता था की ठीक है। अगर मैं इस पोज़ीशन पे हूँ तो मेरे को खुद को इम्प्रूव करना है। या तो मैं गिवअप कर दूँ या फिर मैं खुद को बेहतर बनाऊं। बट अब जब हर जगह ही डिप्रेशन हर जगह ही बैड हेल्थ हर जगह ही मेंटल इलनेस दिख रही है। तो मैं जब इन चीजों की गिरफ्त में आ उ तो मेरे को भी ये लगा की यार यही तो नॉर्मल है क्यों? मैं इससे बाहर निकलने की कोशिश करूँ? और इसी रीज़न की वजह से आप ज्यादातर लोग अपनी वीकनेस को जस्टिफाई कर रहे हैं। अगर हम अपने पैरेन्ट्स की जेनरेशन को देखें तो उनके अपने टॉमस थे बट स्टिल वो हमारे से ज्यादा स्ट्रांग हमारे से ज्यादा तरफ और रिलाएबल थे जीवन हमारे ग्राण्ड पैरेन्ट्स, हमारे दादा दादी की जेनरेशन वो हमारे पैरेंट से ज्यादा फिज़िकली और स्पेसिअली मेंटली स्ट्रॉन्ग थी। एक पेड़ को इमेजिन करो, जिसकी जड़ें स्ट्रांग है। इसकी बार स्ट्रांग है बट ये चीज़ आपको भी पता है कि पूरे पेड़ में सबसे सॉफ्ट चीज़ कौन सी होती है? उस पर लगने वाला फल यानी जो यंगर जेनरेशन होती है, जो फल होता है, उस पर कीड़ा लगना बहुत ज्यादा आसान होता है। इसी वजह से जब भी एक कंट्री अपने एनिमी को डिस्ट्रॉय करना चाहती है तब वो सीधा सीधा उनसे वोट करने नहीं निकल जाती है। बिकॉज़ वोर्स आर एक्स्पेन्सिव और एक अच्छा लीडर हमेशा यह जानता है कि कभी भी अगर आप अपने एनिमी को हराना चाहते हो तो सीधा सीधा उन्हें लात घूंसे उन्हें गोलियां मत मारने लग जाओ। बिकॉज़ इससे बहुत ज्यादा खर्चा होता है और लोग आपको बहुत ज्यादा हेट करने लगते हैं। हम दैट स्वाइ एक अच्छा लीडर पता है कहाँ से शुरुआत करता है वो शुरुआत करता है उसके बच्चों को ब्रेनवॉश करने से और वो सोचता है कि मैं क्या ऐसा करूँ? कैसा प्रोपगैंडा कैंपेन चलाऊ जिससे इनके देश में इनकी सोसाइटी में इन्टरनल कॉनफ्लिक्ट क्रिएट हो। अगर मैं आपको किसी तरह से ये बिलीव करवा दूँ की आपके और आपके पेरेंट्स की बोली हर एक बात गलत थी तो ये चीज़ ऑटोमैटिक की आपकी वीकनेस आपकी और आपकी लैक ऑफ रिस्पॉन्सिबिलिटी को जस्टिफाई कर देती है और इस तरह की विक्टिम माइंड सेट के साथ इस तरह की पोज़ीशन में दूसरों के लिए बहुत बीज़ी हो जाता है। आपको प्रोग्राम ना? इस समय पर ह मेरी प्रोग्राम किया जा रहा है। इन वी डोंट इवन नो इट नाउ बहुत से लोग ये बोल सकते है यहाँ पे की सौरभ बहुत ज्यादा पैरेंट नहीं हो रही हो। अब बहुत ज्यादा नेगेटिविटी फैला रहे हो या फिर कोई ये भी बोल सकता है कि हमने चार यूट्यूब वीडियो देख लिया और अब वह खुद को एक कॉन्सपिरेसी थ्योरी समझ रहा है। बट सी वैन एजुकेटेड ये मेरी रिस्पॉन्सिबिलिटी है की मैं आपकी मदद करूँ धीरे धीरे आपकी कॉन्सियसनेस के लेवल को बढ़ाने के लिए और आपको यह बताने के लिए की दुनिया में ऐसे बहुत से सच है जो अभी आपकी अवेर्नेस से दूर है। आपको पता है, जब भी मैं ऐसे कोई कॉन्ट्रोवर्शल टॉपिक पर वीडियो बनाता हूँ तब मैं उसके बारे में बात करता हूँ करता हूँ करता हूँ लेकिन मैं उसके पास से होकर निकल जाता हूँ। मैं आपको हिंट देता हूँ की मैं किस बारे में बात कर रहा हूँ बट मैं कभी भी उसको डाइरेक्टली एड्रेस नहीं करता बिकॉज़ देर इस ऑलवेज सम रिस्क और उस वीडियो को बनाने के बाद हमेशा मेरे को गिल्टी फील होता है। मेरे को ऐसा लगता है की ये जो आम इंसान की आँखों के आगे पर्दे लगाए गए हैं। अगर मैं इन पदों को हटाकर सच को देख पाता हूँ तो क्यों ना मैं अपनी ऑडियंस के साथ उस सच को शेयर कर उनकी मदद करूँ? बजाय बस हिट्स देने गए। नाउ इट्स बी कॉन्शैस टूगेदर इन थिंक अबाउट दिस लॉजिकली कोई भी दुनिया में बैठकर ये प्लैन नहीं कर रहा। स्टेप बाइ स्टेप की अभी इनके खाने में कुछ मिला देते हैं। अभी इनके पानी में कोई हॉर्मोन्स ऐड कर देते हैं। दुनिया में ऐसे बहुत कम लोग हैं जो प्लेजर ड्राइव करते हैं दूसरों को हम करके बट दुनिया में ऐसे बहुत से लोग हैं जो एक्चुअल में बहुत ज्यादा भूखे हैं। पैसों और पावर के लिए बिकॉज़ पैसा और पावर लोगों को अलाउ करता है। जो भी उनका यूटोपियन विज़न है, उसको रिऐलिटी बनाने के लिए जैसे आपके और मेरे जैसे लोगों के बहुत से ओपिनियन की अगर एक पॉलिटिशियन है उसने ये लो पास कर दिया तो वो लोग पास नहीं होना चाहिए था। उसने ये रूल बना दिया तो वो रूल नहीं बनना चाहिए था या फिर ओवर पॉप्युलेशन हो रही है तो उसका सलूशन क्या हो सकता है? हम खुद ही अपने दिमाग में ओपिनियन्स और सॉल्यूशन्स को फॉर्म कर रहे होते हैं। जीवन तो उसमें से कई सॉल्यूशन्स गलत हो, तब भी बट जस्ट इमेजिन दुनिया में ऐक्चुअल में कई लोग ऐसे हैं, जिनके पास उतनी वेल्थ उतनी पावर है, जिसके थ्रू अपने आइडियाज़ को इंप्लिमेंट कर सके, चाहे उन आइडियाज़ में कहीं आइडियास गलत भी हो तो और यही गुड सॉल्यूशन्स और बैड सॉल्यूशन्स का अनटेस्टेड कॉम्बिनेशन मैनिफेस्ट होता है। मेन स्ट्रीम नैरेटिव में ये आजकल किस तरह की न्यूस चल रही है? किस तरह की डॉक्टर्स दवाइयां सजेस्ट कर रहे हैं, किस तरह के खाने को रिकमेंड कराया जा रहा है या फिर किस तरह की बातें आज के कल्चर में ऑफ लिमिट्स है। हर तरह की मेन स्ट्रीम एडवाइस फिल्टर होकर आती है। लीड्स के थ्रू हाउएवर ये चीज़ सिर्फ उन्हीं लोगों को समझ नहीं आती जो अपनी मॉरैलिटी को आइडियाज़ की पॉपुलैरिटी के बेसिस पर बनाते हैं और इस पर कई अच्छी बुक्स भी हैं। जैसे एक आपने सुनी भी होगी के पैरासिटिक माइंड भी डॉक्टर। जिसमें उन्होंने बताया की कहीं आइडिया ऐसे होते हैं जो हमारे मन में घुस जाते हैं, एक वायरस की तरह और हमारी कॉमन्स को डिस्ट्रॉय कर देते हैं। दुनिया में कभी ये मत सोचना की सबसे खतरनाक चीज़ जो है वो एक मिसाइल या बॉम्ब है दुनिया में सबसे खतरनाक चीज़ होती है गलत आइडियास क्योंकि एक गलत आइडिया जेनरेशन बी जेनरेशन पास ऑन हो सकता है और उसे ईज़ी डिटेक्ट भी नहीं कहा जा सकता। लेकिन यहाँ पर एक अच्छी बात पता है। क्या ये प्रॉब्लम कभी भी एक फ्री माइंड के साथ नहीं आते? एक ऐसा माइंड जो हर चीज़ को क्वेश्चन करता है, अपने मन को एक वेयरहाउस की तरह इमेजिन करो, जिसमे जब भी कोई डिलीवरी होती है तब उसका प्रॉपर इंस्पेक्शन होता है की ये डिलिवरी आई कहाँ से है, ये कितनी स्टोरेज स्पेस लेगी या फिर इसका यहाँ पर काम किया है? बट एक अन डिसिप्लेन इंसान का वेयरहाउस का शटर हमेशा खुला रहता है। वो दूसरी चीजों में डिस्ट्रैक्टिड रहता है और उसे पता ही नहीं होता कि उसके मन में कौन सा थॉट आ रहा है। वो थॉट आया कहाँ से और वो उसके साथ क्या कर रहा है? डिस्ट्रक्शन गिव्स बर्थ टू लक ऑफ डिसिप्लिन अभी आपने देखा है मैजिक कैसे होता है? एक मैजिशियन एक इल्यूजन क्रिएट करता है मैजिक का जस्ट डिस्ट्रैक्टिंग यू। वो दिखाता है कि देखो मेरे इस हाथ में क्या हो रहा है। यहाँ पर ध्यान दो, बट एक्चुअल में वो दूसरे हाथ को यूज़ कर रहा होता है, इस इल्यूजन के प्रोसेसर को पूरा करने के लिए है। इसलिए कभी भी ये मत बोलो की डिसिप्लिन प्रॉब्लम है या फिर हाउ कैन आई बी मोर डिसिप्लिन में अपनी कनसिसटेन्सी कैसे बिल्ड करूँ? डिसिप्लिन और कनसिसटेन्सी प्रॉब्लम्स नहीं बल्कि वो सॉल्यूशन्स है। जिसतरह सुबह उठ के रोज़ ब्रश करते हो जस्ट बिकॉज़ आपको ये पता है की अगर आपने ब्रश नहीं करा तो आपके 30 गंदे रहेंगे। आपके मुँह में स्मेल आएगी और आपके जमसं बढ़ेंगे। आपको दिख गया है कि यह प्रॉब्लम है और यह चीज़ का सॉल्यूशन है। बिल्कुल ऐसे ही अगर एक बार आप पकड़ लो की आप की लाइफ में प्रॉब्लम्स क्या है तो डिसिप्लिन और कनसिसटेन्सी खुद ब खुद आ जाएंगे। आपको क्वेश्चन करना है हर चीज़ को क्वेश्चन एवरीथिंग अपने हर थॉट को क्वेश्चन करो, जो आप खा रहे हो उसको क्वेश्चन करो, जो आप पी रहे हो उसको क्वेश्चन करो। जो आप फ़ोन में देख रहे हो उसको क्वेश्चन करो, ये देखो की आप पहन के आ रहे हो। कभी भी ये मत बोलो की एक साइट 100% सही है या फिर दूसरी साइड 100% रॉन्ग है दोनों साइड की तरफ देखो दोनों की सुनो। और देखो की इसकी बुराइ और अच्छाई क्या है और दूसरे की बुराइ और अच्छाई क्या है? जिसतरह से जब भी आप एक रोड क्रॉस करते हो अब दोनों तरफ से देखते हो की कोई आ तो नहीं रहा क्योंकि अगर आप बस एक साइड पर देख के चलोगे तो चान्सेस है की दूसरी साइड से आपको कोई ठोक के चला जाएगा। वन साइड ही थिंकिंग के साथ अब कॉन्क्लूज़न तक तो बहुत जल्दी पहुंचोगे। बट ये ज़रूरी है कि आप इन कॉन्क्लूज़न उसको क्वेश्चन करो कोशिश करो कि आप इन्हें तोड़ पाओ और देखो की इनकी जड़े कहा तक जाती है और लास्ट्ली जो भी लोग इस ऐपिसोड से रिलेट कर पाए, मैं उन्हें बस यही बोलना चाहूंगा। दैट इट्स नॉट ओके टु बी नॉर्मल, इफ यू आर कैपेबल ऑफ बीइंग नॉर्मल।",इस कड़ी में हम चर्चा करते हैं कि कैसे सत्य का ज्ञान और जागरूकता आत्म अनुशासन को ट्रिगर करती है। "कौन सी चीज़ किसे एक फ्लॉ यानी खराबी लगती है? ये चीज़ सबके लिए अलग हो सकती है। जहाँ कई लोगों के लिए लंबी हाइट वाले लोग ज्यादा अट्रैक्टिव होते हैं, वहीं कई लोग ज्यादा लंबे लोगों की हाइट को उनका एक नेगेटिव पॉइंट मानते हैं। या फिर जहाँ कई लोग आपके बालों, आपकी स्माइल, आपके बोलने के ढंग हर किसी में ही कमियां निकालने बैठ जाएंगे, वहीं कई लोग आपकी इन्हीं यूनीक चीजों में खूबसूरती ढूंढ पाएंगे? बिल्कुल इसी तरह से हम भी खुद को जज करते हैं और दूसरों से खुद के बारे में नेगेटिव सुनने से पहले ही खुद के मन में अपनी कमियों को गिनते रहते हैं। इसलिए यह एपिसोड ऐसी ही कई क्वालिटीज के बारे में है जिन्हें आप शायद अपनी कमी समझ रहे हो। जबकि दूसरे लोगों के लिए वो एक पॉज़िटिव चीज़ है। नंबर वन बीइंग शाइ शाइन एस हर केस में और हर इंसान के लिए नेगेटिव नहीं होती, क्योंकि बहुत से लोग शायद लोगों को एक मिस्ट्री की तरह देखते हैं और वह शायद लोगों की डेथ को जानने के लिए ज्यादा क्युरिअस भी होते हैं। हम नॉर्मल्ली सोचते हैं कि एक्स्ट्रा वर्जन इंट्रो वर्जन से एक सुपिरिअर ट्रेट है, लेकिन इंट्रोवर्ट ऐड या फिर शाय लोग अगर अपनी पर्सनैलिटी को लेकर इन्सेक्योर ना बने तो उनकी ये चीज़ एक स्टार्टेड और लाउड लोगों को बहुत अट्रैक्ट करती है। नंबर टू अपनी से ज्यादा बड़ा या फिर छोटा लगना बहुत से लोग अपनी एज के नहीं बल्कि ज्यादा यंग या फिर लगते है। हाउएवर ये चीज़ भी अपने आप में एक नहीं है और आप किस क्वालिटी के अपने ही कई पॉज़िटिव और नेगेटिव ज़ है। जैसे अगर आप अपनी एज से छोटे लगते हो तो बहुत से लोग इस चीज़ को क्यूट और इनोसेंट मानेंगे। जबकि अगर आप अपनी एज से बड़े लगते हो तो तब भी बहुत से लोग आपको ज्यादा मैच्योर एक्सपिरियंस और वाइस समझने लगेंगे। याद रखो, आप की हर कमी चाहे आप को और दूसरे गिने चुने लोगों को नेगेटिव भी लगे, पर वही कमी एक सही इंसान के लिए आप को पसंद करने का रीज़न भी होगी। नंबर थ्री आप जिद्दी हो जिद्दी लोग दो टाइप के होते हैं, एक वह जो बस बिना किसी रीज़न के ही जिद्दी बन रहे होते हैं और वो बस अपनी मन की चलाना चाहते हैं और वो जिन्हें ये मालूम है कि उनके लिए सही और गलत क्या है। यानी अगर आप इसलिए जिद्दी हो क्योंकि आप जानते हो कि आपको क्या चाहिए और आप चुटकियों में ही सॉलिड डिसिशन्स ले लेते हो तो यह चीज़ भी आपको बहुत से लोगों की नजरों में अट्रैक्टिव बना सकती है। नंबर फ़ोर आप जो मन में आये वो बोल देते हो जहाँ कई केसेस में और कई लोगों के आगे अपने मन की बात रखना आपको उनकी नजरों में अनअट्रैक्टिव बना सकता है और लोग आपके बारे में यह सोच सकते हैं कि आपको अपने ऊपर कंट्रोल नहीं है। वहीं बहुत से लोग जो आपके क्लोज़ आएँगे वो आपकी इस क्वालिटी को अप्रीशिएट करेंगे क्योंकि उन्हें यह पता होगा कि चाहे आप कई बार बहुत ही क्रिटिकल और ब्लड भी हो जाते हो पर आपकी हर कड़वी से कड़वी बात भी सच होती है। सच की वैल्यू बहुत ही कम लोग करते हैं पर आपको खुद को ऐसे ही हाई क्वालिटी लोगों से सराउंड करना चाहिए। जो आपकी स्ट्रैट फॉरवर्ड ने सको। एक पॉज़िटिव क्वालिटी की तरह देखे ना कि एक फ्लो की तरह नंबर फाइव। आप हो गलती से किसी चीज़ को गिरा देना, किसी से टकराना या फिर किसी चीज़ को जाने अनजाने में तोड़ देना। यह चीजें भी आपको बहुत से लोगों की नजरों में अट्रैक्टिव बना सकती है क्योंकि आपकी कंपनी ने उससे दूसरे लोग रिलेट कर पाते हैं। हर कोई ही किसी न किसी पॉइंट पर ऑक्वर्ड फील करता है और ऐसे में आपकी ऑक्वर्डनेस और आपकी क्लब चिनेस आपकी अगेन्स्ट नहीं बल्कि आपके फेवर में काम करती है और आप ऐसे इंसान की तरह लगते हो। जो अपनी कमियों को छुपाने के बजाय उन्हें एक्सेप्ट करता है और इस चीज़ को लोग एक बहुत ही पॉज़िटिव क्वालिटी मानते हैं। नंबर सिक्स आप चीजों को रश नहीं करते हैं, चाहे वो आपके रिलेशनशिप्स हो या फिर फ्रेंड चिप्स। आप किसी को भी एकदम से अपने क्लोज़ नहीं आने देते हैं और जहाँ कई लोग आपको इस रीज़न के लिए बोरिंग बोलेंगे, वहीं कई लोग ये रिस्पेक्ट करेंगे कि आप अपनी बाउनड्रीज़ को बनाए रखने के लिए कितनी परवाह करते हो। आपकी हाँ का मतलब हाँ ही होता है और ना का मतलब ना डिसिशन्स लेने के लिए उनकी हर डिटेल को ढंग से परखना अपने रिलेशनशिप्स में हर कदम पर आंखें खुली रखना ये चीज़ दिखाती है कि आप अपनी वैल्यू करते हो और आप प्लीज़ अली किसी को भी अपने सर्कल में नहीं आने देते है। नंबर सेवन आप बहुत से रिस्कस लेते हो। रिस्क लेने के भी अपने कहीं प्रोज़ और कौनसे होते हैं जहाँ रिस्की बेहेवियर आपके रिलेशनशिप्स, फाइनैंस और आपकी मेंटल हेल्थ को बिगाड़ सकता है। वहीं अगर आप एक ऐसे इंसान हो जो कैलकुलेटेड रिस्क से लेता है और आप अपने दरों को फेस करके उन कामों को भी कर पाते हों जिनसे दूसरे लोग दूर भागते हैं तो आपका यह भी है विर ऐवरेज थिंकिंग रखने वाले लोगों के लिए एक फ्लो होगा। लेकिन जो लोग खुद भी आपकी तरह एक्स्ट्राऑर्डिनरी है वो आपको ज्यादा अट्रैक्टिव मानेंगे और आपको रिस्पेक्ट भी देंगे। इसलिए बस इतना ही याद रखो कि रिस्क लेना बुरी बात नहीं है। पर अगर आप बिना सोचे समझे ही रिस्क लेते रहते हो तो वो बेवकूफ़ी है और उससे बस आपको फेलियर्स ही मिलेंगे, जो आपको ज्यादा अट्रैक्टिव नहीं बल्कि स्टुपिड बनाएंगे। नंबर एट आप में एक ऐटिट्यूड है जेनरली ऐग्रगैट लोग हमें बहुत बुरे लगते हैं, लेकिन जब भी कोई ऐरोगेंट इंसान सेल्फ वेर भी होता है, तो वो चीज़ उसे बहुत ही अट्रैक्टिव बना देती है। हम नोर्मल्ली ऐटिट्यूड कैर्री करने वाले लोगों को इसलिए ना पसंद करते है। जस्ट बिकॉज़ हम सब कॉन्शस ली यह सोचते हैं कि ये अपने ऐटिट्यूड के पीछे पक्का अपनी किसी इन्सेक्युरिटी को छुपा रहे होंगे, लेकिन अगर किसी इंसान की ईगो भी बढ़ी है, लेकिन उस बड़ी गो को जस्टिफाई करने के लिए उसके पास पर्याप्त काबिलियत भी है तो यह चीज़ भी लोगों को सीक्रेटली बहुत ही अट्रैक्टिव लगती है। नंबर नाइन आपकी लुक्स ऐवरेज है यानी आपके फीचर्स में कोई भी एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी चीज़ नहीं है, लेकिन इसमें अच्छी बात यह है कि जहाँ हम एक्स्ट्रीमली ब्यूटीफुल फेसेज़ और मॉडल्स की बॉडी को अप्रीशिएट तो करते हैं, पर जस्ट बिकॉज़ हम खुद उस तरह की ब्यूटी को अनेबल मानते हैं, तो ऐसे में हम उन्हीं लोगों को चूज करते हैं, जिनके फीचर्स हमारे से मिलते जुलते होते हैं। जिसकी वजह से अगर एक हेल्दी रिलेशनशिप या फिर शादी की बात आये तो चान्सेस है कि एक इंसान एक ऐवरेज फेस को ही ज्यादा रिलाएबल और ट्रस्ट वर्दी मानेगा। बजाय एक ऐसे इंसान के जो ऐवरेज से ज्यादा ब्यूटीफुल है। इसी वजह से जहाँ हम खुद की ऐवरेज नेस्को टोटली नेगेटिव चीज़ समझते हैं। वही हमारे पार्टनर्स और चाहने वाले हमें इसी चीज़ के लिए ज्यादा प्यार देंगे।","किस विशेषता से किसको घृणा है यह बहुत ही व्यक्तिपरक है। जिसे कोई नकारात्मक मान सकता है, दूसरे उसे सकारात्मक के रूप में देख सकते हैं। जैसे कुछ लोग ऐसे साथी को पसंद नहीं करते हैं जो वास्तव में लंबे हों, जबकि अन्य लोग कद को एक सकारात्मक लक्षण मानते हैं। ऐसे ही कई गुण होते हैं जिन्हें हम "त्रुटि" का नाम दे देते हैं लेकिन वास्तव में वे आकर्षक होते हैं।" "हर इंसान एक डिफरेंट लेवल ऑफ इन्टेलिजन्स के साथ पैदा होता है। जहाँ कई लोग काफी इन्टेलिजेन्स और मेंटली शाप होते हैं। वहीं दूसरे लोग उनके कंपैरिजन में थोड़े डाल होते हैं और वो जेनरली एक प्रॉब्लम को सॉल्व करने में ज्यादा समय लेते हैं। हाउएवर इसका मतलब यह नहीं है कि हम अपनी इन्टेलिजेन्स को बढ़ा नहीं सकते है। हमारे दिमाग के जो हिस्से लर्निन्ग, मेमोरी कंप्यूटिंग और कॉग्निटिव फंक्शनिंग के लिए यूज़ होते हैं, उन्हें इस समय और प्रैक्टिस के साथ बदला जा सकता है। इसके साथ ही हमारा गोल कभी भी सिर्फ अपने आइक्यू को इन्क्रीज़ करना नहीं होना चाहिए। क्योंकि ज्यादातर कॉम्पिटिशन टास्क्स तो हमारे लिए हमारे मोबाइल्स और कंप्यूटर्स भी कर सकते हैं। आइ क्यू से भी बेटर और ज्यादा यूज़फुल होती है। प्रैक्टिकल इन्टेलिजेन्स यही तो वजह है कि क्यों कई लोग जो बात इन्टेलिजन्ट ली करते हैं और उन्हें देखकर ऐसा लगता है कि वो एक चलती फिरती लाइब्रेरी है। वह कई बार बहुत कोशिश करने के बाद भी कभी सक्सेसफुल नहीं बन पाते हैं। जबकि कई बार काफी सिंपल माइंडेड लोग जो ज्यादा इंटेलीजेंट नहीं लगते वो बहुत जल्दी और बहुत आसानी से सक्सेस की सीढ़ी पर चढ़ जाते हैं। जीवन अमेरिकन साइकोलॉजिकल असोसिएशन में हुई एक स्टडी भी यही बताती है। कि कैरिअर सक्सेस का एक बेटर प्रोडक्टर प्रैक्टिकल इन्टेलिजेन्स होता है ना कि आइ क्यू आपका एक यू आपकी सक्सेस में बस 20% ही कॉन्ट्रिब्यूशन देता है और इमोशनल इन्टेलिजेन्स वर्बल इन्टेलिजेन्स एबिलिटी टु वर्क अन्डर प्रेशर या फिर क्रिएटिव एबिलिटी जैसी स्किल्स आईक्यू से ज्यादा इम्पोर्टेन्ट होती है। इसलिए इसी इन साइट को मन में रखकर हम अब एग्ज़ैक्ट्ली उन मेथड्स के बारे में बात करेंगे जो आपको 10 गुना ज्यादा इंटेलीजेंट बना सकते हैं। मैं थर्ड नंबर वन बी मोर ओपन माइंडेड अमेरिकन नॉवलिस्ट फैन्स इस स्कॉट बोलते थे। द टेस्ट ऑफ फर्स्ट रेट इन्टेलिजेन्स इसके एबिलिटी टु होल्ड टू अपोज़िट आइडियास इन माइन्ड एट द सेम टाइम ऐंड स्टील ब्रिटेन के एबिलिटी टु फंक्शन अपनी बुक बियॉन्ड आईक्यू में साइकोलॉजिस्ट रॉबर्ट स्टर्नबर्ग बताते हैं कि नई साइट्स को वेलकम और मुश्किल प्रॉब्लम्स को जल्दी से सॉल्व करने के लिए हमें ओपन एस की जरूरत होती है। ऐसा एक बहुत ही रेयर इंसान होता है जो ट्रेडिशनल ख्याल रखता है लेकिन नए आइडियाज़ के लिए भी ओपन रहता है। साइंस के हिसाब से यह मेंटल पोज़ीशन ऑप्टिमल होती है। लेटर अली सोचने यानी तो अनरिलेटेड दिखने वाली चीजों में भी कॉमन इट इज़ पकड़ने के लिए और ज्यादा क्रिएटिव बनने के लिए। ऐसा इसलिए क्योंकि हर तरह से खुद को न्बयस रखकर आप अपने मन में आइडियास और इन्फॉर्मेशन के एक फ्री फ्लो को प्रोमोट करते हो, जिससे दीप इनसाइट्स और नॉलेज आपके सब कॉन्शियस और अनकॉन्शस माइंड से निकलकर आपके कॉन्शस माइंड तक ईज़ी पहुँच पाते हैं। जबकि जो लोग क्लोज़ माइंडेड होते हैं और एक्स्ट्रीम आइडिया को एक्सेप्ट करके बाकी हर आइडिया को रिजेक्ट कर देते हैं। वो लोग अपने कॉन्शस और अनकॉन्शस माइंड के बीच के पुल को तोड़ देते हैं। और दुनिया को सिर्फ अपनी आँधी अन्डरस्टैन्डिंग से पर सील करने की कोशिश करते हैं। बट हाफ नॉलेज इस ऑलवेज डैंजरस इसलिए इन्टेलिजेन्स बनने के लिए खुद के मन पर किसी भी तरह की रोक मत लगाओ और अपनी सोच के दायरे को असीम दूरियों तक फैलने दो। मेथड नंबर टू यूज़, द पावर ऑफ नॉन सेन्स हमारा दिमाग हर चीज़ की सेन्स बनाना चाहता है। उसे सेन्स इतनी पसंद है कि अगर हम उसको पर्पस ली नॉन सेन्स इन्फॉर्मेशन दे तो वो उसमें और ज्यादा अर्जेंन्सी के साथ सच ढूंढने लगता है। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया की एक स्टडी में स्टूडेंट्स की लर्निंग को इम्प्रूव करने के लिए उन्हें दो ग्रुप्स में बांटा गया और एक ग्रुप को एक्चुअल टास्क करने से पहले काफ्का पढ़ने को बोला गया और दूसरे ग्रुप को बस कोई नॉर्मल सा नॉर्मल दिया गया और आप में से जीतने भी लोगों ने फ्रेंड्स का नॉवल्स को रीड गिरा है। उन्हें यह पता होगा कि वह कितने विर्ड और कनफ्यूज़िंग होते हैं और इतने सारे ट्विस्ट्स की वजह से वो यूज़्वली कोई ऑब्वियस सेन्स नहीं बनाते हैं। नॉवल्स रीड करने के बाद दोनों ग्रुप्स को एक पैटर्न रिकॉग्निशन टेस्ट दिया गया, जिसमें जिन लोगों ने नन सिकल काफ्का स्टोरीज़ पड़ी थी, उन्होंने उन लोगों से अच्छा परफॉर्म करा जिन्होंने स्ट्रेटफॉरवर्ड कहानियाँ थी। इस फेनोमेनन को साइकोलॉजी में बोला जाता है। काफ्का इफेक्ट जीवन जेन बुद्धिज़म में भी रेग्युलरली पहेलियों और कनफ्यूज़िंग स्टोरीज़ का इस्तेमाल करना जाता है। लोगों की क्रिटिकल थिंकिंग को इम्प्रूव करने और उनके करेंट बिलीव्स को नष्ट करने के लिए एग्जाम्पल के तौर पर जन बुद्धिज़म में कई छोटी छोटी कहावतें हैं। जैसे एक मांग को बोला गया कि वो अपना सब छोड़ दे तो उसने जवाब दिया कि मेरे पास तो कुछ है ही नहीं। तब उसके मास्टर ने बोला कि जो नहीं है उसे भी छोड़ दें या अगर तुम्हें सड़क पर चलते हुए बुद्धा मिल जाए। तो उन्हें मार देना या फिर बिना सच्चाई और बुराइ का सोचे। मुझे अपना वो असली चेहरा दिखाओ जो तुम्हारे माता पिता के पैदा होने से पहले था। यानी अगर एक तरह से देखा जाए तो नॉन सेन्स की गहराई में ही सबसे उच्च स्तर की संस छुपी होती है। मेथड नंबर थ्री कंज्यूम बुक्स, दैट आर स्लाइट्ली अबोव युअर लेवल ऑफ अन्डरस्टैन्डिंग। ये इन्टेलिजेन्स बढ़ाने का एक और बहुत जरूरी तरीका होता है, क्योंकि मुश्किल बुक्स को रीड करना मन के लिए एक्सर्साइज़ की तरह होता है। इसे मसल बिल्डिंग की तरह देखो कि अगर आपने बहुत लाइट वेट उठाया यानी बहुत सिंपल बुक रीड करी तो आपकी कोई मेंटल मसल डेवलप नहीं होगी। और इवन अगर आप एकदम से ही हार डेस्ट बुक्स की तरफ चले गए तब भी आपके ऊपर लोड इतना ज्यादा होगा कि आप की ग्रोथ के नहीं बल्कि एग्ज़ॉशन के चान्सेस ज्यादा होंगे। इसलिए अपने करेंट लेवल ऑफ अन्डरस्टैन्डिंग से बिल्कुल ज़रा सी ऊपर की बुक्स को चुना हो। नाउ आप पूछोगे कि वो एग्ज़ैक्ट्ली क्या चीजे होती है जो एक बुक को डिफिकल्ट या फिर चैलेंजिंग बनाती है? ऐसी दो चीजें होती है नॉवल्टी और एब्सट्रैक्ट आइडियास यानी या तो एक बुक का सब्जेक्ट मैटर, उसकी लैंग्वेज उसमें मौजूद आइडियास और उसमें इस्तेमाल करें। शब्द आपके लिए काफी नए होते हैं और ये नफे मिलिटी आपको अननोन प्रॉब्लम से डील करने के लिए ट्रेन कर देती है या फिर उस बुक में मौजूद आइडियास नॉब विस् और आपकी पांच सेन ***** की अन्डरस्टैन्डिंग के परे होते है। जैसे जब नीचे अपनी बुक बुक्स ज्यादा दूसरा में इंटलेक्चुअल्स का मजाक उड़ाते हैं और उनकी बुराइ करते हुए बोलते है कि मेरी आत्मा उनकी टेबल पर बुक ही बैठी रही लेकिन उसे वहाँ पर कुछ खाने को नहीं मिला। मैं वो नहीं हूँ जो ज्ञान को तोड़ता और उसे टुकड़ों में बांटता है। जिसतरह से एक अखरोट को तोड़ा और टुकड़ों में बांटा जाता है मैं यहाँ गर्मी से बेहाल हूँ लेकिन वह छांव की ठंड में बैठते हैं। वो बस दूर से हर चीज़ के दर्शक बने रहना चाहते हैं। जब भी वह खुद को वाइस दिखाने की कोशिश करते हैं तब उनकी हर बात मुझे कँपकँपी से भर देती हैं। उनकी विज़्डम ऐसी स्मेल करती है जैसे वो सीधा गटर से निकली हो। नाउ यहाँ पर आपको एक्सट्रैक्टेड कॉन्सेप्ट के थ्रू सिम्पली यह समझाने की कोशिश करी जा रही है कि सिर्फ ऐक्ट आपको अपनी गहराइयों तक नहीं पहुंचा सकता और किस तरह से ज्यादातर इन्टलेक्चुअल लोग बस वाइस होने की एक्टिंग करते है। सिमिलरली रूमी की पोएट्री भी बेसिकली उनके एक्सट्रैक्टेड थॉट्स ही है। और दांते की हेल और पैराडाइस की डिस्क्रिप्शन भी और शेक्सपियर के प्लेस भी। इसलिए चाहे कम बुक्स रीड करो लेकिन चैलेंजिंग, इंट्रेस्टिंग और माइंड को एक्सपैंड करने वाली बुक्स को रीड करो, ताकि इस तरह से आपके मन की एक्सरसाइज हो, आपको तेज सोचने के लिए नए टूल्स मिले और आपकी इन्टेलिजेन्स भी बढ़े।","प्रत्येक व्यक्ति एक अलग स्तर की बुद्धि के साथ पैदा होता है। जहाँ कुछ लोग अत्यधिक बुद्धिमान होते हैं और वे मानसिक रूप से तेज होते हैं, वहीं अन्य सुस्त होते हैं और समस्याओं को हल करने में अधिक समय लेते हैं। हालांकि इसका मतलब यह नहीं है कि हम अपनी बुद्धि का स्तर नहीं बढ़ा सकते। सीखने, याद रखने और संज्ञानात्मक कार्यों के लिए जिम्मेदार हमारे मस्तिष्क के क्षेत्र समय और अभ्यास के साथ बदल सकते हैं। इसलिए इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम उन तरीकों के बारे में बात करेंगे जिनके जरिए आप अपनी बुद्धिमता को 10 गुना बढ़ा पाएंगे।" "पिक्चर आ केस जहाँ पर तीन पुराने फ्रेंड्स अराध्या, गरिमा और ईशान लंच कर रहे हैं। गरिमा सडनली बोलती है की मुझे नहीं लगता कि मैं अच्छी दिखती हूँ और शायद मैं अगली हूँ। अराध्या और ईशान गरिमा को असुर करते हुए बोलते हैं, नहीं तुम अच्छी दिखती हो और आधे बोलती है। मैं तो कई बार ये सोचती हूँ की काश मेरे फेशल फीचर्स भी तुम्हारी तरह होते हैं और वो दोनों अपनी इस स्टेटमेंट और थॉट को लेकर काफी सिनसिअर थे। यानी वो बस गरिमा को कॉनसोल करने के लिए उसे नहीं कर रहे थे। बट वो जेन्यून्ली ऐसा फील कर रहे थे, पर ऐसा कैसे हो सकता है कि कोई इंसान दूसरे में ब्यूटी ढूंढ ले? जब वो दूसरा खुद ही अपने में नहीं ढूंढ पाया? कुछ देर और इस टॉपिक पर बात करने पर पता लगा की अराध्य भी उतनी ही सेल्फ़ कॉन्शस हैं, जितनी गरिमा है और शायद ईशान की भी कुछ अपनी इन्सेक्युरिटी होंगे और यह इसलिए क्योंकि हर इंसान अपनी अपीयरेंस को दूसरों से काफी हार्डली जज करता है और जेनरली हम मीडिया को ब्लेम करते हैं। एक नली स्टिक एक्स्पेक्टेशन सेट करने के लिए रिसर्च भी यही सजेस्ट करती है कि मीडिया हमारी सेल्फ इमेज को नेगेटिव इम्पैक्ट कर सकता है और हम ये चीज़ मिरर में भी देखने पर एक्सपिरियंस करते हैं और दूसरों को देखने पर भी, क्योंकि ऑलमोस्ट सारे लोग ही उन ब्यूटी स्टैन्डर्ड के आसपास भी नहीं होते हैं और ये लोग ऐवरेज कहलाते हैं ऐवरेज क्योंकि उनके जीन्स कई बार रेप्लिकेट हो चूके हैं ऐंड दैट स्वाइ। उनके अभी तक टिके होने का मतलब है की वो जीन्स सेफ है। हाउएवर अग्लीनेस अन प्लेज़न्ट। इसलिए लगती है क्योंकि बायोलॉजिकली ऐवरेज अपीयरेन्स में डिविएशन तब आती है जब एक इंडीविजुअल की हेल्थ खराब होती है, उसके जीन्स की वजह से और ये सेल्फ़ कॉन्शस होने का सेकंड रीज़न है। यहाँ तक कि अगर कोई अनिमल बीमार हो जाता है तो वो अकेला रहना प्रिफर करता है ताकि वो इस बिमारी को आने वाली जेनरेशन के डीएनए में ना फैलाये। सो इट डज नॉट मैटर हमें कोई बिमारी है या नहीं अगर हमारी स्किन खराब है, नोस बड़ी है या फिर हमारा फेस एसेमेट्रिकल है? तब भी हमें लोग डिफ्रेंट्ली ट्रीट करेंगे और कई बार हमें अगली बोलेंगे, जिससे हम अगली फील करेंगे। सो यह ऐक्चुअल रीजन्स है। वायु फील अगली नाउ क्वेश्चन ये है हाउ डू वी स्टॉप फीलिंग अगली वेल सबसे सिंपल तरीका है अपने आप को हेल्दी रखना एक्सरसाइज और डाइट की मदद से और उसके बाद भी। जो फ्लॉस हमें नैचुरली मिले हैं उन्हें एक्सेप्ट करना और उनकी रिस्पॉन्सिबिलिटी लेना। क्योंकि जो लोग अपने आप को एक विक्टिम समझते हैं, वो हमेशा ही इनसेक्युर रहते हैं। इसके साथ ही एक और ऑप्शन है अपने कॉन्फिडेंस को अंदर से बढ़ाना, जिससे हमारी सेल्फ वर्थ इक्स्टर्नली रेग्युलेट होने के बजाय इंटरनली रेग्युलेट हो। यानी हमें अपनी कमियों और खामियों से अटेन्शन हटाकर अपने उन फीचर्स और टैलेंट को अप्रीशीएट करना है जो हमें बाकियों से अलग बनाते हैं। इसका एक तरीका है मिरर में अपने आप को देखना बंद करना, क्योंकि ऐसा करने पर हमारी सेल्फ परसेप्शन बाहर से नहीं बल्कि हमारे अंदर से बनना शुरू होगी और हम यह कई बार दूसरों में भी ऑब्जर्व करते हैं। कि कई लोग उतने अट्रैक्टिव ना होने के बावजूद भी काफी कॉन्फिडेंट होते हैं और तभी एक वेल डेवलप्ड पर्सनैलिटी हमेशा लुक्स को हरा सकती है। इट डज नॉट मैटर चाहे वो डेटिंग हो, वन नाइट स्टैंड हो या फिर एक जॉब इंटरव्यू हो, एक कॉन्फिडेंट पर्सनैलिटी का चम् अलग ही होता है। 12015 की स्टडी में भी देखा गया कि लॉन्ग टर्म रिलेशनशिप में अट्रैक्टिवनेस रिलेशनशिप सैटिस्फैक्शन से किसी भी वे में रिलेटेड नहीं होती। ऐंड लास्ट ली इस बात को समझो की हर चीज़ में अगली ब्यूटीफुल सो सो नाइस बैड, क्यूट अमेज़िंग ये सारे ऐज़ एक्टिव सहीं, उनके एस एम एस में होते हैं। वो हमारे ऊपर है की हमें उसमें क्या देखना है और बिल्कुल ऐसे ही हमें अपने आप में देखना चाहिए कि हम अपने कौन से ऐस्पेक्ट को ऐक्सेस कर रहे हैं। क्या हम सिर्फ अपने ऐडसेंस के अगले पार्ट को ही ज्यादा अटेंशन दिए जा रहे हैं? या फिर हम सिर्फ अपने एक ऐस्पेक्ट को ही अपनी रिऐलिटी मान रहे हैं और अपनी रियल पोटेंशिअल को भूल रहे हैं?","कुरूपता को सौंदर्य की दृष्टि से अनाकर्षक के रूप में परिभाषित किया गया है, लेकिन विकासवादी संदर्भ में, एक शारीरिक विसंगति को हमेशा एक परजीवी/फंगल संक्रमण या किसी अन्य बीमारी के संकेत के रूप में देखा गया है क्योंकि लगभग सभी बीमारियों में किसी की उपस्थिति को विकृत करने की क्षमता होती है, जिससे वे बीमार दिखते हैं। या बदसूरत। लेकिन क्या होगा अगर आप पूरी तरह से स्वस्थ हैं और फिर भी उन शारीरिक विशेषताओं को प्रदर्शित करते हैं? इस पॉडकास्ट में, मैंने उन तरीकों पर चर्चा की जिनके माध्यम से कोई भी बदसूरत महसूस करना बंद कर सकता है और अपनी असुरक्षाओं पर काबू पा सकता है।" "कलर्स और हमारे इमोशंस काफी क्लोजली टाइड है। डिफरेंट कलर्स हमें सैड हैप्पी दिस या स्ट्रेस फील करा सकते है, हमारी प्रोडक्टिविटी को घटा या बढ़ा सकते हैं और ये बिहेवरल रिएक्शन्स कल्चरल इन प्रिंटिंग का नतीजा होते है। जैसे ज़्यादातर कल्चर्स में पिंक कलर को गर्ल्स के साथ असोसिएट करा जाता है। ब्लू को बौस के साथ और रेड को रोमैंस के साथ और अगर हम साइकोलॉजी की मदद लें तो हम समझ पाएंगे कि इन जनरलाइजेशन के पीछे असली रीजन्स क्या है? जैसे हमारे एवोल्यूशनरी पास्ट में ब्लू कलर मेनली, स्काइ और ओशन को रिप्रजेंट करता था, जिसकी वजह से उससे हमें एक पॉज़िटिव फीलिंग मिलती है। क्योंकि ब्लू स्काई का मतलब है कि कोई तूफान या फिर आंधी नहीं आने वाली है। बाहर निकलना सेफ है और क्रॉप्स डीज़ल ईग्रो होंगी। इन क्वालिटीज की वजह से ब्लू कलर हमे स्टेबिलिटी कामनेस विज़्डम लौटी और रिलायबिलिटी की याद दिलाता है और तभी ये कलर मेल्स के फर्स्ट इम्प्रेशंस के लिए बेस्ट होता है। यानी अगर एक मेल अपनी डेट और इवन फोर्मल सिचुएशन्स मैं ये दिखाना चाहता है की वो रिलाएबल और लौल है और उसे पता है की वो क्या कर रहा है तो उसे ब्लू कलर पहनना चाहिए। दूसरी तरफ फीमेल्स के लिए अपनी डेट पर रेड कलर पहनना बेस्ट होता है क्योंकि एवल्यूशन की वजह से हमारी ऐंटिऑक्सिडेंट रिच फूड्स को दूर से ही देखने के लिए बनी है, जिसकी वजह से रेड कलर की चीज़े हमारी अटेन्शन छत से ग्रैप कर लेती है और ऐसे ही अलग अलग कलर्स एक पर्टिकुलर सिचुएशन को पॉजिटिवली डिफाइन नेगेटिव इम्पैक्ट कर सकते हैं। जैसे अगर हम वर्क एनवायरनमेंट की बात करें तो ग्रीन, ब्लू, ब्राउन और ब्लैक काफी अच्छे कलर चॉइस होंगी, क्योंकि ग्रीन कलर हारमनी को सिविल लाइंस करता है और जस्ट बिकॉज़ ट्रैफिक में ग्रीन लाइट को देख के हम रिलीव फील करते है। ऑफिस में ग्रीन कपड़े हमें और दूसरों को रिलैक्स फील करा सकते हैं। यहाँ तक की कंप्यूटर में ग्रीन कलर का वॉलपेपर हमारी प्रोडक्टिविटी को बढ़ा सकता है और हमारी ट्रेन हटा सकता है। ब्लू स्टेबिलिटी और रिलायबिलिटी एक्सप्रेस करने के लिए बेस्ट होता है। ब्राउन क्रेडिबिलिटी बनाने में काफी काम आता है और ब्लैक एक सिरीअस और मिस्ट्री से भरी टोन क्रिएट करता है। और अगर हम चाहते हैं कि ऑफिस में सब हमें सीरियसली ले तो ब्लैक कपड़े बेस्ट ऑप्शन है। एक ऑब्जर्वेशन में तो ये भी देखा गया कि जिन स्पोट्स टीम को अग्रेशन के लिए ज्यादा पेनल्टीज़ मिलती है वो ब्लैक जर्सी पहनने वाली टीम्स होती है। हाउएवर ये लो ग्रे और रेड ऑफिस में पहनने के लिए सबसे बेकार कलर ऑप्शन्स हैं। क्योंकि ये लो सबसे ज़्यादा हैपिनेस से जुड़ा है। पर वर्क एनवायरनमेंट में ये कलर पहनने वाले को वीक और अनप्रोफेशनल दिखा सकता है। ग्रे काफी पैसे कलर है जो कि लैक ऑफ एनर्जी को सिंबला इस करता है, जिससे हमारी प्रोडक्टिविटी भी कम हो सकती है और रेड अग्रेशन और पैशन की फीलिंग जग आता है, जिसकी वजह से वो ऑफिस में नहीं बल्कि एक डेट या फिर इनफॉर्मल सेटिंग में बैठकर सूट करता है। ओरेंज हमारे अंदर की स्ट्रेंथ एनर्जी और इन्ट्रेस्ट बढ़ता है, जिसकी वजह से एक्सरसाइज करते टाइम ओरेंज पहनने से हम ज्यादा पॉवरफुल और एनर्जेटिक फील करते हैं। इसके साथ ही हम अलग अलग कलर्स के कॉम्बिनेशन भी बना सकते हैं। एक डिफ़रेंट मैसेज देने के लिए जैसे अगर हम इंडियन क्रिकेट टीम की यूनिफॉर्म को देखें तो उसमें उनकी जर्सी स् ब्लू कलर की होती है। थोड़े से ऑरेंज और व्हाइट कलर्स के टच के साथ ब्लू कलर उनकी कंट्री के टुवार्ड्ज़, लॉयल्टी और रिलायबिलिटी दर्शाता है। ओरिज उनकी एनर्जी को और व्हाइट कलर शो करता है। उनकी प्युरिटी पर हमें यह भी समझना चाहिए कि कई कलर्स को सिर्फ मॉडरेशन में पहनना ही बेस्ट होता है। जैसे पर्पल और व्हाइट क्योंकि पर्पल कलर नेचर में रियली मिलता है, जिसकी वजह से उसे लग्जरी और रॉयल्टी का कलर समझा जाता है। बट ज्यादा पहनने पर ये कलर फेक नेस रिप्रेजेंट करने लगता है और जस्ट बिकॉज़ हमारे एंड सिस्टर्स ने इस कलर को देखा कम और इमेजिन ज्यादा करा है। पर्पल हमें मैजिक और ड्रीम्स की भी याद दिलाता है। इसके साथ ही वाइट् को भी लिमिट में पहन ना ही बेस्ट है क्योंकि वैसे तो एक अलग प्युरिटी और परफेक्शन की याद दिलाता है पर इससे ज्यादा यूज़ करने पर ये अपनी पावर खो देता है और इम्पोटेन सी और कॉन्फिडेंस की कमी को रिप्रेजेंट करता है।","रंग मनोविज्ञान हमें बताता है कि विभिन्न रंग हमारे मूड को सकारात्मक या नकारात्मक तरीके से कैसे प्रभावित कर सकते हैं। यह ज्यादातर रोजमर्रा की वस्तुओं के साथ रंगों के हमारे जुड़ाव के कारण होता है। अंगूठे का एक नियम यह सोचना है कि प्रकृति में एक निश्चित रंग कहां होता है, इसका सांस्कृतिक महत्व क्या है और उस पर हमारी स्वाभाविक प्रतिक्रिया क्या है। उदाहरण के लिए: सफेद रंग को अक्सर पवित्रता और स्वच्छता के प्रतीक के रूप में देखा जाता है, यह वह रंग भी है जिसे कुछ संस्कृतियों में लोग अंत्येष्टि में पहनते हैं। यह सफेद को अच्छा बनाता है, लेकिन केवल संयम में, इससे कहीं अधिक बाँझपन, नपुंसकता, उदासी और इसी तरह की सुस्त भावनात्मक अवस्थाओं का संदेश देता है।" "हमारा मन शब्दों, तस्वीरों और सिंबल्स में सोचता है। यानी अगर आप अपने किसी भी ख्याल को ऑब्जर्व करो तो हो या तो टेक्सट इमेज या फिर एक सिंबल की फॉर्म लेकर बैठा होगा और आपका हर ख्याल बाकी खयालों के एक नेटवर्क से जुड़ा होता है। अगर मैं बोलूं कॉफी तो आप में से जिन लोगों को कॉफी पसंद है उनका मन एकदम से इस वर्ड को एक पॉज़िटिव एक्सपीरियंस है असोसिएट करेगा लेकिन अगर आपका पेट भरा हुआ है या फिर आपको कॉफी नहीं पसंद तो आप इस शब्द को किसी दूसरी में से रिलेट करोगे। अगर मैं बोलूं फादर ब्रदर या फ्रेंड? तो आई कैन गैरन्टी हर सुनने वाला इन शब्दों को एकदम डिफरेंट वर्ड्ज़ इमेज एस आइडियास और सिंबल्स के साथ जुड़ेगा, जिसके फादर उन्हें शुरू से बहुत प्यार करते आ रहे हैं। उनका असोसिएशन और फादर वर्ड से जुड़ा नेटवर्क ऑफ थॉट्स अलग होगा। उस इंसान से जिससे उसके फादर से सिर्फ लेट ताने या फिर मार ही मिली। वन थॉट इस ऑलवेज रिलेटेड टु इट इस ए रिमाइंडर ऑफ समंदर थॉट हमारा मन एक नए ख्याल को समझ पाता है। उसे एक पुराने ख्याल से जोड़कर यानी हर नया ख्याल भी बहुत हद तक पुराना ही होता है। और कोई भी ख्याल ओरिजिनल नहीं होता। अगर आप सच तक पहुंचने के लिए खयालों का रास्ता चुनो गे तो आप कभी भी अपनी पुरानी 22 इस और बिलीव्स को नहीं पकड़ पाओगे और हमेशा सच को मिस कर दोगे। थॉट्स को बनाने में लगने वाला रॉ मटेरियल होता है हमारी पुरानी मेमोरीज़ लेकिन सच कभी भी पुराना नहीं होता। जिंस भी इंसान को सच की प्राप्ति होती है। वो हमेशा सच को फ्रेश, न्यू और ऑलिव घोषित करता है। सच हर दिन और हर मोमेंट में पैदा हो रहा होता है, लेकिन हमारी मेमोरीज़ और उनसे बनने वाले ख्याल पुराने और मरे हुए होते हैं। हाउएवर अगर आप नोटिस करो किसी भी टेम्पल मॉस्क, चर्च या फिर किसी सिमिलर सीक्रेट प्लेस को तो आपको वहाँ बहुत ही सुंदर इमेजरी, सीक्रेट टैक्स और सिंबल्स देखने को मिलेंगे। यह एक कॉन्ट्रिब्यूशन है कि हर एन्शियंट जगह पर हमारे ने लोगों के लिए सच तक पहुंचने के लिए शब्दों इमेज एस और सिंबल्स का यूज़ कर रहा, लेकिन मैं यहाँ पर बोल रहा हूँ कि सच इन चीजों में मौजूद नहीं है। यह दोनों बातें ही सच है क्योंकि कोई भी शब्द तब तक मंत्री नहीं बनता। कोई भी तस्वीर या फिर मूर्ति तब तक पवित्र नहीं कहलाती और किसी भी सिंबल को ताकतवर नहीं माना जाता। जब तक इन चीजों पर इंसान अपनी पूरी अटेंशन नहीं डालते हैं, जिंस भी चीज़ पर हम अपनी फुल अवेर्नेस के साथ अटेन्शन पे करते है। हम उसी चीज़ में खुद को देख पाते हैं। दुनिया में मौजूद हर आइटम की वही कहानी है जो आपकी है। ये बात आपको सिर्फ तभी समझ आती है जब आपकी अटेन्शन में इंटेनसिटी होती है। सोचो कि कैसे दो लोग जो 2025 साल तक एक दूसरे के लिए एकदम अनजान थे, वह साथ मिलने पर एक दूसरे में खुद को देख पाते हैं? जो भी चीजे हमें सेपरेशन के इल्यूजन को बुलाकर ये याद दिलाती है कि दुनिया में हर चीज़ एक ही है। हम इंसान उन चीजों को सोने की तरह सलामत रखते हैं। हर किसी को एक अनजान इंसान से प्यार कराना आसान नहीं होता। इसलिए इस काम के लिए यूज़ करा जाता है ब्यूटी को, क्योंकि ब्यूटी एक बेवकूफ इंसान से लेकर एक हाइली इन्टलेक्चुअल इंसान को भी अपने वश में करना जानती है। इसी वजह से हर इनसाइट या फिर सिम्बॉलिक इमेज को ब्यूटीफुल प्रिज़न करने से सच सोसाइटी के ज्यादातर लोगों के लिए अपीलिंग बन पाता है। आइडियास सिंबल्स वर्ड्ज़ और इमेज एस तब हमारी ग्रोथ और एनलाइटनमेंट का जरिया बन जाते हैं जब हम उन पर अटेन्शन पे करते है। अगर ये सच नहीं होता तो इन एन्शियंट बिल्डिंग्स और स्कल्पचर्स की ब्यूटी पर हमारे सिस्टर्स ने इतना ज्यादा फोकस नहीं करा होता। ब्यूटी के चेजारा टेंशन ऐंड सस्टेन अटेन्शन लीडस् टु हियर अवेर्नेस वेर देर इस नो ब्यूटी देर इस नो अटेन्शन सच्चाई का रास्ता दिखाने के लिए या तो आप एक आम इंसान के आगे खूबसूरती के एसेंस को पेन्टिंग्स मूर्तियों, कहानियों या फिर कविताओं में ज़ाहिर कर सकते हो। या फिर आप सिम्पली उन्हें हर चीज़ में ही खूबसूरती देखना सीखा सकते हो। इंडियन फिलॉसफर ऐंड मिस्टेक कृष्णमूर्ति बोलते हैं कि चाहे एक कवि की लिखी कोई कविता हो, पेंटर की बनाई पेंटिंग हो या फिर एक लेखक की लिखी किताब हो, इन सब कामों को पूरा करने के लिए ही इमैजिनेशन लगती है। बिना इमैजिनेशन के एक कहानी नहीं लिखी जा सकती या फिर कोई पेन्टिंग नहीं बनाई जा सकती है। लेकिन क्या इमैजिनेशन जरूरी है? सच तक पहुंचने के लिए नहीं इमैजिनेशन हमारी पर्सेप्शन को रिऐलिटी को आस इट इस देखने से रोकती है, लेकिन अगर हम अटेंटिव लीये देखें कि हमारे आसपास क्या चल रहा है और हम क्या इमेजिन कर रहे हैं, तो हमारी लिमिटेड इमैजिनेशन भी हमें लिमिट्लेस ट्रूथ के पास पहुंचा सकती है। एक रैन्डम ख्याल या फिर इन्हें टेंशन भी हमारी अवेर्नेस का हिस्सा बन जाता है, जब हम इस फैक्टर टेंशन पे करने लगते हैं कि हम इन अटेंटिव हो गए हैं, हर प्रॉब्लम एक्चुअल में एक सल्यूशन ही है, जो बस अभी अंधेरे में है और हमारी अटेंशन का काम होता है। इस अंधेरे पर रौशनी डालना कृष्णमूर्ति बोलते है कि सच तक पहुंचने के लिए किसी भी चीज़ को रिजेक्ट मत करो। हर ख्याल को बिना कोई मतलब निकाले देखो। और अगर एक ख्याल के साथ उससे जुड़े और आइडियास या फिर इमेजेज भी दिमाग में आए तो उन्हें भी देखो जीवन अगर आप कोई कहानी पढ़ रहे हो, टीवी देख रहे हो या फिर जो भी काम कर रहे हो, उस मोमेंट में किसी भी इन्फॉर्मेशन को बिना उस पर लेबल लगाए प्रोसेसर करना सीख हो, किसी अमीर को देखकर उसे खुश नसीब या फिर गरीब को देखकर उसे बेचारा मत बोलो क्योंकि वो दोनों ही अलग अलग वेज में खुशनसीब और बेचारे है। किसी अनजान इंसान को पराया या फिर सगे भाई, बहन को अपना मत बोलो। सेपरेशन इस ओनली आउट दैट बॉन्ड आउट ऑफ रेवल्यूशनरी मेमोरी बट ऑल मेमोरीज़ लीड टू फलसूंड अनलेस यू स्टार्ट ऑब्सर्विंग ऐंड फॉलोइंग देम एक आइटम दूसरे आइटम से अलग लगता है जब तक आप उसे एक दूरी से नहीं देखते हैं। एक पत्ती दूसरी पत्नी से अलग लगती है जब तक आप उसे दूरी से नहीं देखते हैं। एक इंसान भी दूसरे से अलग लगता है जब तक आप उसे दूरी से नहीं देखते हैं और एक ग्रह दूसरे ग्रह से अलग लगता है जब तक आप उसे दूरी से नहीं देखते है। दूर से देखने पर चीजें आसपास लगती है और पास से दूर दूर सच को जानने और समझने का मतलब है। लाइफ को सबसे ग्रांड या फिर माइक्रो लेवल पर जीना। जितना ज्यादा आप कामन खुलेगा आप उतनी ही आसानी से यह देख पाओगे कि हर चीज़ एक दूसरे से जुड़ी है और जितना आप यह देख पाओगे कि हर चीज़ एक दूसरे से जुड़ी है उतना ही आपका मन खोलने लगेगा। अवेर्नेस के बढ़ने का यही मतलब होता है कि आप हर चीज़ को इतनी अटेंशन के साथ देख पा रहे हो कि अब आपकी नजर में कोई बाउन्ड्री है ही नहीं। जो अंदरूनी है वहीं बाहरी है और जो तू है वो ही मैं हूँ। यही वजह है कि क्यों कृष्णमूर्ति हमेशा ये बोलते थे कि अवेर्नेस लीडस् यू टु ट्रूथ","हमारा मन छवियों, शब्दों और प्रतीकों में सोचता है लेकिन विचारों के माध्यम से सत्य को महसूस करना असंभव है। लेकिन फिर मंदिरों, मस्जिदों और गिरिजाघरों जैसे सभी पवित्र स्थानों की दीवारों पर ऐसे लेख, सुंदर मूर्तियां और प्रतीक क्यों लिखे होते हैं जिनमें एक शक्तिशाली संदेश होता है? भारतीय दार्शनिक और रहस्यवादी जे कृष्णमूर्ति का कहना है कि ऐसा इसलिए है क्योंकि ये चीजें मानव कल्पना की उपज हैं। कल्पना हर समय बदलती रहती है लेकिन जो सुंदर होती है वह हमेशा हमारा ध्यान खींचती है, इसलिए सभी पवित्र स्थान सुंदरता पर बहुत जोर देते हैं। कृष्णमूर्ति कहते हैं कि अगर हम पर्याप्त ध्यान दें तो हम वस्तुतः किसी भी चीज में सुंदरता देखकर अधिक जागरूक हो सकते हैं। इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम कृष्णमूर्ति के दर्शन और उच्च जागरूकता प्राप्त करने के तरीकों पर विस्तार करेंगे।" "हम सब लोगों की स्टोरी हमारे ख्याल हमारे इन्ट्रेस्ट और पर्सनैलिटी एक दूसरे से अलग होती है और यही डिफरेन्स हमें यूनिक बनाते हैं। यूनीक्नेस हमारी लाइफ और नेचर के नैचरल प्रोसेसर का एक बहुत ज़रूरी हिस्सा होती है और ऐसी ही एक यूनीक पर्सनैलिटी होती है उस इंसान की जो हमेशा अकेले रहना और अकेले काम करना पसंद करता है। ऐसे इंसान को हम बोलते है एक लोनर लोनर्स अपने आप को झुंड में गुम रखने के बजाय अपने आपको नेचर के लोगों के साथ लाइन करके चलते हैं और अपनी यूनीकनेस को दबाने के बजाय उसे अपनाते हैं और इसका मतलब यह नहीं है कि ऐसे इंसानों को दूसरे लोगों के साथ रहना नहीं पसंद होता क्योंकि जब टाइम आता है तब यह भी अपने प्यार करने वालों के साथ हर पल को खुलकर एन्जॉय करते हैं। लेकिन इनका एक डिफ़ॉल्ट मोड होता है और वो है अकेले रहना। दुनिया के शोर और छोटे मोटे मसलों से दूर एक लोनर अपनी ही दुनिया में रहता है और अपनी लोन ने समे ही अपना सारा एंटरटेनमेंट और मज़ा ढूँढता है जर्मन फिज़िसिस्ट ऐल्बर्ट आइंस्टाइन ने एक बार बोला था की एक लोन अर्बन हो, इससे आपके पास यूनिवर्स के जादुई एसएमएस को समझने और सच को ढूंढने का टाइम होगा। आपकी सिटी पवित्र होगी और आपकी जिंदगी जीने लायक वैसे तो मैं खुद भी एक लोनर हूँ लेकिन कभी कभी मैं उन लोगों की अदृश्य कम्यूनिटी में खो जाता हूँ जो सच्चाई, ब्यूटी और जस्टिस का पीछा करते हैं और इसी वजह से मैं अकेले रहकर भी अकेला नहीं महसूस करता। इस तरह के लोग अपनी पर्सनल स्पेस में ही सबसे ज्यादा क्रिएटिव और एनर्जाइज फील करते है, क्योंकि कुछ भी ओरिजिनल क्रिएट करने के लिए आपको पहले अपने थॉट्स को जो चीजें ऑलरेडी मौजूद हैं उनसे दूर करना होता है। और इसके साथ ही अगर हम ये देखे कि क्रिएटिव थिंकिंग कौन से पर्सनैलिटी ट्रेड से सबसे ज्यादा क्लोजली टाइड है तो वो है ओपननेस टू इक्स्पिरीयन्स और जो भी इंसान मिस पर्सनैलिटी ट्रेड में हाई स्कोर करता है। उसे आइडियास पसंद होते है। उसे नई नई चीजें या नई जगहें पसंद होती है और वो सोसाइटी के रूल्स की परवाह नहीं करता। इस वजह से कई लोग नैचुरली ही अकेले रहना प्रिफर करते हैं। लेकिन अगर आप ज्यादा क्रिएटिव और यूनीक बनना चाहते हो और आपको भी अपने डीपेस्ट क्वेश्चन्स के आन्सर्स चाहिए तो कुछ कुछ देर के लिए रेग्युलरली एक लोनर की तरह रहना आपके लिए बहुत फायदेमंद हो सकता है। यानी हर समय अपने आप को घर की बातों, सोसाइटी की प्रॉब्लम्स या पॉलिटिक्स में मत उलझिए रखो क्योंकि ऐसे तो आप हमेशा बस उन्हीं चीज़ो के बारे में बात करते रहोगे। जो आपको आपकी ऐनिमल इस्टेट में रखेंगी और आपको यह जानने से रोकेंगी की इन सब चीजों के पार हम इंसानों के समझने के लिए क्या चीज़ मौजूद है और इसका मतलब यह नहीं है कि आपने इन सब चीजों को रिजेक्ट ही कर देना है क्योंकि ऐसे तो आप ना तो खुद के घर से संबंधित होंगे और ना ही अपनी सोसाइटी से है जहाँ हर समय कुछ ना कुछ बदलाव आते रहते हैं जिनकी थोड़ी बहुत नॉलेज होना जरूरी होता है। आपने इन दोनों चीजों के बीच एक बैलेंस ढूंढना है। आयरिश पोएट ऑस्कर वाइल्ड ने एक बार बोला था कि हम सभी गटर में है, लेकिन हमारे में से कुछ लोग सितारों की तरफ देख रहे हैं। यानी जितना जरूरी अपने आप को फिजिकल रिऐलिटी के साथ कॉन्टैक्ट में रखना और अपने आप को यहाँ स्टैब्लिश करना है, उतना ही जरूरी स्पिरिचुअल रिऐलिटी के कॉन्टैक्ट में रहना है। जीस तरह से आप नोर्मल्ली अपने घर पर रहते हों, लेकिन कभी कभी आप छुट्टी लेकर घूमने जाते हो और अपनी प्लेन एग्ज़िस्टन्स में थोड़ा कलर डाल पाते हो, वैसे ही कभी कभी अपने आप को रोज़मर्रा की जिंदगी से ऊपर उठाओ और अपने आप को आइडियाज़ की दुनिया में ले जाओ। कुछ टाइम अकेले रहो। अकेले नेचर में चलो नई नई जगहों को एक्सप्लोर करो। अकेले थिएटर में एक मूवी देखने का एक्स्पीरियंस को समझो और अपने आप को लाइफ को एक डीप लेवल पर फील करने दो। ज्यादातर लोग अपने आपको हमेशा दोस्तों और फैमिली के साथ बीज़ी रखते हैं क्योंकि अकेले रहने से उनके अंदर बहुत ही इंटेन्स फीलिंग आने लगती है जिससे वह डर जाते हैं और अपने आप को डिस्ट्रैक्ट करने की कोशिश करते हैं। लेकिन जो भी इंसान इंटेन्स फीलिंग्स को अपने अंदर आने देता है, उसका रिऐलिटी का एक्सपिरियंस ज्यादा रिच और उसकी लाइफ ज्यादा मीनिंगफुल होती है। अगर हम लंबे समय तक एक झुंड में रहते हैं तो हमारे खुद के आइडियास दबने लग जाते हैं और जो यूनीक कहानी हम अपने बारे में लिखने वाले थे, वो भी एक नॉर्मल और कॉमन कहानी बनकर रह जाती है। लोन और लोनलीनेस में यही फर्क है कि आप हमेशा ही अकेलापन और एमटीएस नहीं फील कर रहे हैं, लेकिन आप इस लिए कई बार अकेले रहते हो क्योंकि आप को अपने साथ मज़ा आता है। जीस तरह से किसी दूसरे इंसान को हर समय अपने अराउंड अपने दोस्त या अपना मोबाइल चाहिए होता है। खुद को एंटरटेन करने के लिए वैसे ही आपको बस अपना साथ चाहिए होता है। इसमें किसी भी इंसान या किसी बुरे आइडिया की इंटरफेरेंस ना हो। रोज़ के बीच भी जब भी किसी वुल्फ को अकेला छोड़ दिया जाता है या फिर वो अपने पैक से बिछड़ जाता है तब वो इन्डिपेन्डेन्ट ली ऐक्ट करने लगता है और अकेले ही रहता है। जीस वजह से उसे लोन वुल्फ बोलते है और तभी जीस तरह से हर इंसान के अंदर सोशलिस्ट करने की सिटी होनी चाहिए, वैसे ही उसके अंदर एक लोन वुल्फ बनने की क्षमता भी जरूर होनी चाहिए।","कुछ खास तरह के लोग होते हैं जो हमेशा अकेले रहना पसंद करते हैं। वे अधिक रचनात्मक होते हैं और उनका सबसे अच्छा समय तब होता है जब वे अकेले रह जाते हैं। लेकिन क्यों? क्या मिलनसार होना हर चीज पर वास्तविक लाभ नहीं है? आम तौर पर हम दुनिया को ऐसे ही यानी काले या सफेद रंग में देखते हैं। हालाँकि, सब कुछ संदर्भ पर निर्भर है। तो, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम कुंवारे होने के बारे में बात करेंगे, "अकेला भेड़िया" शब्द इतना लोकप्रिय क्यों है और आप अपने अकेले समय का अधिकतम लाभ उठाने के लिए कैसे एक कुंवारे बन जाते हैं।" "ऐसा अक्सर होता है जब हम अपने आप को दूसरों से कंपेर करते हैं और ऐसा सोच लेते है कि हम उनसे कम है और वो हमारे से बेटर हमारे अंदर ये फीलिंग्स, दूसरों के अच्छे मार्क्स, उनकी सक्सेस, उनकी लुक्स या उनकी खुशी देखकर भी आ सकती है। कभी कभी ऐसा फील गणना बिल्कुल नॉर्मल होता है क्योंकि हमारी खुद को कम समझने की फीलिंग हमें यह बता सकती है कि हमें अपनी लाइफ केक इन एरियाज में ज्यादा मेहनत करने और उन्हें इम्प्रूव करने की जरूरत है। पर जब ये फीलिंग्स हमारे अंदर परमानेंट बन जाती है और हम इन्फिरीअर फील करने की इस फीलिंग से बाहर नहीं निकल पाते तब उस कंडीशन को बोलते हैं। इनफीरियॉरिटी कॉम्प्लेक्स ये कॉम्प्लेक्स मेनली आपके चाइल्डहुड आपके पर्सनैलिटी ट्रेड्स पर बेस्ट होता है, क्योंकि जिन लोगों को बचपन में अप्रिशिएट नहीं करा जाता और अटेंशन नहीं दी जाती, वो एक न्यूरॉटिक पर्सनैलिटी डेवलप कर लेते हैं और खुद को हमेशा ही एक क्रिटिकल लेवल्स के नीचे रखकर जज करते हैं। ऐसे लोग सोशल सिचुएशन्स में दूसरों से मिलना या फिर कॉम्पीटिशन से दूर भागते हैं ताकि यह सब के आगे ये ना साबित कर दें कि यह एक फेल्यर से ज्यादा कुछ नहीं है। यहाँ इन लोगों के अंदर हारने का डर कम और खुद की कैपेबिलिटीज पर डाउट ज्यादा होता है और इस सेल्फ डाउट की वजह से ये अपने आप को पहले ही हारता हुआ विजुअलाइज कर लेते हैं और रेस के शुरू होने से पहले ही अपने आप को एक लूँ, सर घोषित कर देते है ना वो क्वेश्चन ये आता है की हम खुद को दूसरों से इस तरह से कम समझने की आदत को तोड़े कैसे है फर्स्ट्ली अपनी जजमेंट को एक्सेप्ट करो। यानी अगर आपको लग रहा है कि आपके अंदर कई स्पेसिफिक कमियां हैं तो हाँ इस सच को एक्सेप्ट करो, क्योंकि अगर आपको यह बात चुभ रही है कि कई लोग आपसे बेटर है और आप उनसे बहुत पीछे हो तो इस बात में बहुत सच्चाई है। अगर यह सच नहीं होता तो ये थॉट आपको कभी भी बुरा ही नहीं लगता। हमें हमेशा वही बेजती वहीं ताना या फिर वही सेल्फ डाउट इन ख्याल ऑफेंसिव और हर्टफुल लगता है। जिसमें एक सच छुपा होता है। इन साँचों में जिन चीजों पर आप काम कर सकते हो उन पर काम करो और बाकियों को ओं करो, अपनी यूनीकनेस के साइनस की तरह सेकंडली अपने डरो को फेस करो जो भी इंसान अपने आप को कम समझता है वो यूज़्वली कई कामों को अवॉर्ड कर रहा होता है जबकि उसे डीप इनसाइड पता होता है कि उसे वो करना चाहिए लेकिन अपनी हिचकिचाहट और डर की वजह से वो उससे दूर भागता है। एग्जाम्पल के तौर पर कई अनहेलथी लोग ये बोलते है कि उनके लिए एक अच्छी बॉडी हासिल करना और फिट होना इम्पॉसिबल है लेकिन डीप इनसाइड वो खुद भी ये जानते हैं कि उन्होंने अभी तक कुछ ऐसा करा ही नहीं है। जिससे उनकी बॉडी में कोई चेन जाए या फिर वो स्टूडेंट जो बार बार फेल हो जाता है वो ऊपर से तो बहुत उदास होता है और ये नहीं समझ पाता कि वो फेल क्यों हुआ? लेकिन सच तो ये है कि उसने उतनी पढ़ाई नहीं करी जिससे वो पास हो जाता अपनी लाइफ में। इसी तरह हम तब तक खुद से छोटे छोटे झूठ बोलते रहते हैं जब तक वो झूठ इतने बड़े नहीं बन जाते की वो हमारे करेक्टर को वीक बना दे। इसलिए खुद को कुछ मीनिंगफुल काम करने के लिए चैलेंज करो ताकि जब आप उसे सक्सेसफुली अचीव करो तो आपको भी यह देखकर अच्छा लगे कि आप कुछ अचीव करने के लायक हो। जब तक आप अपनी एबिलिटीज़ को डाउट करते रहने के बजाय एक्चुअल में उन्हें टेस्ट नहीं करोगे, तब तक आप अपने मन में ही खुद को फेल करते रहोगे और इस माइंडसेट में फंसे रहोगे। थर्ड ली अपने ऐक्शंस को जोड़ों अपनी स्टोरी से इन्फिरीअर फील करने वालों के साथ अक्सर ये प्रॉब्लम होती है कि अगर वो कुछ अचीव भी कर लेते हैं तब भी उनका दिमाग उनकी इस अचीवमेंट को रजिस्टर भी नहीं करता। उनके अंदर गुडइनफ ना होने की स्टोरी इतनी स्ट्रोंगली घुसकर बैठी होती है कि चाहे वो कितना भी अच्छा परफॉर्म कर ले। उनकी ये फीलिंग उन्हें हमेशा सताती रहती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि ये लोग नहीं इन्फॉर्मेशन को गैदर तो कर लेते है, लेकिन उसे कभी भी अपने अंदर चलती कहानी और अपने अंदर गूंजती आवाज से रिलेट ही नहीं करते हैं। ये बिल्कुल ऐसा होता है जैसे आप किसी सॉफ्टवेयर को डाउनलोड कर लो लेकिन उसे इन्स्टॉल ना करो। जीस वजह से अपनी अचीवमेंट के बारे में एक जर्नल बनाना या दीवार पर एक अचीवमेंट बोर्ड लगाना बहुत हेल्पफुल हो सकता है और याद रखो बिना कुछ ऐक्शन लिए या अपने आप को इम्प्रूव करे। ये सारी बातें यूज़लेस है क्योंकि सेल्फ रिस्पेक्ट ऐक्शन से आती है। जब आप कुछ अच्छा करते हो और खुद की नजरों में रिस्पेक्ट टर्न करते हो इसलिए खुद को हारा हुआ या फिर दूसरों से कम समझना बंद करो और अपनी काबिलियत को यूज़ करके कुछ महान काम करो। की आपको दूसरे लोग भी रिस्पेक्ट दे और आप खुद भी।","जब हम अपनी तुलना दूसरों से करते हैं तो हमें लगता है कि वे हमसे बहुत बेहतर कर रहे हैं और हम उनसे कमतर हैं। इस स्थिति को हीन भावना कहा जाता है। आपके बचपन और आपके व्यक्तित्व के आधार पर, यह विचार पैटर्न आपको हतोत्साहित, असुरक्षित और आत्म-संदेह करने वाला बनाता है। अपनी हीनता और अपर्याप्तता की भावनाओं पर काबू पाए बिना, आप जीवन में कभी भी प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाएंगे या आत्मविश्वास के साथ खड़े नहीं हो पाएंगे। तो, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम हीन भावना के बारे में और इससे निपटने के सही तरीके के बारे में विस्तार से जानेंगे।" "एक इंसान का कर्मा बनता या फिर कम होता है उन कामों से जिन्हें वो अपने रोजाना जिंदगी में करता है और जिन कामों को हम रोजाना करते हैं वो डिपेंड करते है। हमारी टेंडेंसी यानी प्रवृत्ति पर जिंस तरफ आपके स्वभाव का झुकाव होता है। आपकी किस्मत भी उसी राह पर चलने लगती है। इसलिए खुद की किस्मत बदलने की शुरुआत होती है छोटी छोटी आदतों से और इस एपिसोड में हम ऐसी ही कई जरूरी आदतों के बारे में बात करेंगे। हैबिट नंबर वन रीड ऐंड लिसन टू बुक एट द सेम टाइम कई लोग बुक्स को रीड करना पसंद करते हैं। और कई लोगों के लिए रीडिंग बोरिंग होती है और वो ऑडियो बुक्स प्रिफर करते हैं, कहीं इस तरह के एजुकेशनल कॉन्टेंट को कॉन्स्यूलर करते हैं और कई पॉडकास्ट को सुनते हैं। अपने मोड ऑफ लर्निंग को आइडेंटिफाइ करो। यानी आप इन्फॉर्मेशन को किस फॉर्म में डाइजेस्ट और रिटेन कर सकते हो? ज्यादातर लोगों के लिए रीडिंग और लिसनिंग दोनों मेथड्स का कॉम्बिनेशन बेस्ट रिजल्ट्स यील्ड करता है। यानी जब भी आपको कोई बुक पसंद आए तब उसके पेपर बैग और ऑडियोबुक वर्जन दोनों को परचेस करो। बुक को सुनो और साथ साथ बुक को रीड करो। इस तरह से होता यह है कि आप सेम इन्फॉर्मेशन को दिमाग के दो अलग अलग हिस्सों में स्टोर कर रहे होते हो, जिससे उस इन्फॉर्मेशन के मन में टिके रहने के चान्सेस कई गुना बढ़ जाते हैं। यह स्मॉल हैबिट एक लाइफ चेंजिंग है कि जो आपको ज्यादा स्मार्ट भी बनाएगी और एफिशिएंट भी। हैबिट नंबर टू गिव अप शुगर सी डॉल्स ऐंड जंक फूड चाहे वो जंक फूड हो, सीड औल्स या फिर प्रोसेस्ड शुगर, अगर आप अपने खून को साफ और बॉडी को हेल्दी रखना चाहते हो तो इन चीजों को इमीडियेटली अपनी डाइट से एलिमिनेट करो, शुगर आपकी ट्रीस की वॉल्स को डैमेज करता है। कुकिंग में यूज़ होने वाले सी डॉल्स जैसे सनफ्लावर ऑइल, कैनोला ऑइल से समौल, सैफ्लार ऑइल या फिर सोयाबीन ऑइल ओमेगा सिक्स फैटी एसिड से भरे हुए होते हैं जिनसे आपकी बॉडी में इन्फ्लेमेशन बढ़ता है और लॉन्ग टर्म में यह औल्स कई खतरनाक डिज़ीज़ को जन्म देते हैं और किसी भी तरह का जंक फूड खाने से आप बेसिकली अपने सिस्टम में हर चीज़ को स्लो बना रहे होते हो। आपका डाइजेशन, बॉडी, प्यूरिफिकेशन और थिंकिंग कैपेबिलिटी हर चीज़ स्लो हो जाती है। हैबिट नंबर थ्री गिव योरसेल्फ गाइडलाइन्स डेडलाइंस वर्क एथिक को जन्म देती है और काम की अर्जेंन्सी को बढ़ाती है। अगर आप रोज़ कई जरूरी टास्क को खत्म करने की कोशिश करते हों लेकिन आप हर टास्क की डेडलाइन सेट नहीं करते तो यह पक्का है कि आप अक्सर अपना काम खत्म करने में फेल होते हो गए। जितना आप अपनी डेडलाइन को फ्लेक्सिबल लगते हो, उतना ही आप अपने काम को हल्के में ले कर टाल देते हो। इसलिए अपने फ़ोन में टाइमर वाली ऐप खोलो और हर टास्क को शुरू करते समय कुछ देर बाद का अलार्म सेट करो। हैबिट नंबर फ़ोर ऑलवेज़ कीप लर्निंग न्यू स्किल्स अगर आपके पास कोई भी स्किल है और वो स्किल डिमांड में है तो उसका मतलब आपके पास एक ऑप्शन है किसी के अंडर जॉब करने के बजाय खुद के लिए काम करने का या एट लिस्ट एक हाइर पेन जॉब हासिल करने का ये स्किल हो सकती है कॉपीराइटिंग सेलिंग मार्केटिंग, ब्लॉगिंग या फिर विडिओ एडिटिंग हैबिट नंबर फाइव की प्योर टंग ऑन द रूफ ऑफ योर माउथ आप की टंकी रेस पोज़ीशन क्या है? यानी क्या आपकी जीभ ज्यादातर आपके मुँह के निचले हिस्से में रहती है या फिर क्या आपकी जीभ ज्यादातर समय आपकी मुँह की छत पर टच कर रही होती है? यह बताता है कि आपका फेस कितना ब्यूटीफुल। ये अगली होगा और आप अपनी बॉडी में मौजूद एनर्जी को फ्लो होने में मदद कर रहे हो या फिर अपने एनर्जेटिक फ्लो को ब्लॉक कर रहे हो। एन्शियंट, चाइनीज मार्शल आर्ट्स और इवन बुद्धिज़म में भी जब स्टूडेंट्स को बॉडी के एनर्जी चैनल्स की नॉलेज दी जाती थी, तब उन्हें यह समझाया जाता था कि जीस तरह से एक स्वच्छ को दबाने पर वो दो मेटल प्लेट को मिलाता है, जिससे करेंट पास हो सके और उससे लाइट ऑन हो जाती है। वैसे ही हमारी बॉडी में सर्किट तब कंप्लीट होता है, जब हमारी टंग हमारे मुँह के रूप पर टच कर रही होती है। ये चेंज बहुत ईजी नोटिस एबल होता है जब आप ताई जी जैसी कोई प्रैक्टिस कर रहे होते हो। बॉडी में एनर्जी को बढ़ाने और एनर्जी को कट्टा करने के लिए, इसलिए आप चाहें जूडो करते हो, कराटे ताई ची मोहित आए वेटलिफ्टिंग ये इवन नॉर्मल लाइफ में भी मैक्सिमम एनर्जी, प्रॉपर ब्रीदिंग और पीक हेल्थ के लिए अपनी टांग को हमेशा अपने मुँह के रूप पर रखो। हैबिट्स टैक्स रिफॉर्म योर गोल जब भी आप फ्री होते हो, तब अपने गोल के बारे में विजुअलाइज करो। अगर आपको कोई काम पसंद नहीं आ रहा लेकिन मजबूरी की वजह से आपको वो करना पड़ रहा है तब उस काम को भी अपने हाइएस्ट गोल से जुड़े हों। अपने हर शब्द को अपनी सच्चाई की गहराइयों से बोलो। नेगेटिव और लाइफ डैनिंग बातें नहीं बल्कि लाइफ फोर्मिंग और पॉज़िटिव बातें बोलो। इस तरह से आपकी सारी एनर्जी सिर्फ और सिर्फ आपकी और दूसरों की जिंदगी बेहतर बनाने पर फोकस रहे गी। हैबिट नंबर, सेवन, अनफॉलो दोज़ हूँ मैं क्यूँ फील वर्ड लैस और स्मॉल जो भी इंसान या फिर सोशल मीडिया चैनल आपकी पोटेंशिअल को बाहर निकालने और आपकी सोच का दायरा बढ़ाने में आपकी मदद करने के बजाय आप की सोच को छोटा बनाता है और आपको उलटे सीधे काम करने के लिए मोटिवेट करता है, उन्हें अभी के अभी अनफॉलो करो। आपको हर महीने एट लिस्ट एक बार अपने यूट्यूब, इंस्टा, फेसबुक या फिर जहाँ पर भी आप ऐक्टिव हो वहाँ पर अपनी फॉलोइंग को ऐनालाइज करना चाहिए और ये देखना चाहिए कि कौन सा इन्फ्लुयेन्स सर या फिर चैनल एक्चुअल में आपका दोस्त है और कौन दोस्त के भेष में दुश्मन हैबिट नंबर एट एक्सरसाइज वेन यू आर बोर्ड जब भी आप बोर हो रहे होते हो तब खड़े हो जाओ और 20 जम्प स्कॉट्स और 20 पुश अप्स करो। सीरियसली लोग घंटों तक एक ही जगह पर एक ही पोस्टर में बैठकर काम करते हैं या फिर खुद को एंटरटेन करते हैं। और फिर यह सोचते हैं कि वो अनहेलथी कैसे है या फिर उनकी बॉडी में इतने इश्यूस क्यों है? हेल्थ और फिटनेस को अचीव करने के लिए मेहनत करनी होती है और यह छोटी सी हैबिट एक बहुत बड़ा हक है। इस मेहनत को मैनेजेबल बनाने का हैबिट नंबर नाइन चेक युअर बैंक स्टेटमेंट एव्री वीक आप अपनी करेंट फाइनैंशल सिचुएशन को तब तक नहीं बदल सकते, जब तक आप यह नहीं समझ लेते कि आपकी फाइनैंशल सिचुएशन है। क्या हर हफ्ते में 1 दिन ऐसा सेट करो जब आप अपना बैंक बैलेंस और स्टेटमेंट देखते हो? देखो कि किन जगहों से कितना पैसा आया। या फिर किन जगहों पर कितना पैसा लगा इन डिटेल्स को नोट करो। इससे आपको कुछ हफ्तों और महीनों में एक बहुत यूज़फुल डेटा मिलेगा जो आपको यह दिखाएगा। क्या फाइनैंशली कितनी प्रोग्रेस कर रहे हो या फिर कितना लूज़ कर रहे हो? बी अवेयर ऑफ योर नेट वर्थ सो दैट यू कैन वर्क ऑन इन्क्रीज़िंग इट हैबिट नंबर 10 स्पेंड मोर टाइम आउट साइड आजकल बहुत से लोगों की फिजिकल और मेंटल हेल्थ प्रॉब्लम्स इसलिए इतनी ज्यादा बढ़ गई है क्योंकि लोग धूप में ज्यादा देर तक नहीं रहते। पूरे समय सोशल मीडिया पर दूसरों को जिंदगी एन्जॉय करते हुए देखते हैं और अपने ऑनलाइन पर सोना को रियल लाइफ से ज्यादा महत्त्व देते हैं। इसलिए अब अपने फ़ोन या फिर लैपटॉप को कुछ देर के लिए साइड रखो और असली दुनिया में हाजिरी लगा हो। इन हैबिट्स को अप्लाई करना शुरू करो और लाइफ की डेथ को इक्स्पिरीयन्स करो।",हमारा भाग्य हमारी प्रवृत्ति पर निर्भर करता है और हमारी प्रवृत्ति उन आदतों के माध्यम से आकार लेती है जो हम दैनिक आधार पर करते हैं। इसलिए अपने भाग्य को इच्छानुसार बदलने के लिए आपको अपनी आदतों को बदलना होगा और इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम बात करेंगे उन छोटी-छोटी आदतों के बारे में जो आपकी जिंदगी को तुरंत बदल देंगी। "यूज़्वली हम अपने से बड़े लोगों को अपने से ज्यादा मैच्योर समझते हैं क्योंकि ऑन एवरेज हर इंसान अपने लाइफ इक्स्पिरीयन्स इससे कुछ न कुछ सीखता रहता है और जितना वो जीता है उतना वो अपनी लाइफ और इस दुनिया को बेहतर समझता है। हाउएवर इमोशनल या इवन साइकोलॉजिकल मैच्योरिटी का हमारी एज से कोई रिलेशन नहीं होता क्योंकि इस टाइप की मैच्योरिटी सिर्फ लाइफ के एक्स्पिरियंस से ही नहीं बल्कि हमारे बचपन के एक्स्पिरियंस इससे भी बनती है, जिसकी वजह से कई बार 110 साल का बच्चा भी 30 साल के इंसान से ज्यादा इमोशनली और मेंटली मच्योर हो सकता है। मैच्योरिटी का मतलब है अपने एनवायरनमेंट में सही तरीके से ऐक्ट करना, लोगों के ऐक्शन के पीछे की मोटिवेशन को जानना, दूसरों के लिए एम पी थी रखना और हमेशा अपने आपको इंप्रूव करते रहना और ये है ऐसे 20 साइनस जो हमें बता सकते हैं कि हम इमोशनली मच्योर है या फिर नहीं। नंबर वन आपके लिए पर्सनल ग्रोथ काफी जरूरी है क्योंकि कोई भी इंसान जो मच्योर होता है, उसे पता होता है कि कॉन्स्टेंट इम्प्रूवमेंटस हमारी पर्सनैलिटी को कितना डेवलप कर सकती है, क्योंकि हमारी पर्सनैलिटी बस एक सॉलिड रॉक की तरह नहीं बल्कि एक रबर बैंड की तरह फ्लेक्सिबल होती है। यानी अगर हम अपने आप को इम्प्रूव करने की कोशिश करें तो हम अपनी उस चुप्पी पोटेंशिअल को यूज़ कर पाएंगे जो वैसे कभी बाहर आती ही नहीं। नम्बर टू आपने अपने और दूसरों के बीच पर्सनल बाउंड्रीज़ बना रखी है। यानी आप समझते हो कि आपकी फिजिकल इमोशनल और मेंटल लिमिट्स क्या हैं जिनकी वजह से कोई भी आपको मैनिपुलेट करके आपका फायदा नहीं उठा सकता बाउनड्रीज़ होने का मतलब है कि हमें पता है कि हमें किन चीजों को हाँ बोलना है। हम किस टाइप की बातें लोगों के साथ शेयर कर सकते हैं? हमें दूसरों को अपना कितना टाइम देना है या फिर कब हमें बस अपने आप को प्राइस करना है? नंबर थ्री आप अपनी गलतियों को अडमिट कर सकते हो। अपने आप को पर्फेक्ट समझना या फिर कभी भी अपनी गलतियाँ ना मानना इन मेच्युरिटी का साइन होता है। क्योंकि अपनी किसी भी स्किल को इम्प्रूव करने के लिए हमें पहले फेल्यर से डील करना होता है। यहाँ तक कि स्विच साइकोलॉजिस्ट कार्य उनका भी यही मानना था। वो बोलता था फूल इसके प्रीकर्सर टू द सेवियर यानी किसी भी हीरो को हीरो बनने से पहले एक फूल बनना पड़ता है ताकि वो अपनी गलतियों से सीख सकें और अपनी इन परफेक्शन को एक्सेप्ट कर सकें। नंबर फ़ोर आप कुछ भी बोलने से पहले सोचते हो, किसी भी सिचुएशन में बिना सोचे समझे ऐड करना हमेशा ही बुरे रिजल्ट्स को जन्म देता है और जब भी हम ऐसा करते हैं, तब हम दूसरों को ये सिग्नल दे रहे होते हैं। की हम अंदर से कितने इनसेक्युर है? हमारी अपनी स्पीच पर बिल्कुल कंट्रोल नहीं है और हम रिस्पॉन्सिव स्टेट में होने के बजाय रिऐक्टिव स्टेट में है। नंबर फाइव आप टाइम को अच्छे से समझते हों और उसे सीरियसली लेते हो। टाइम को समझने का मतलब है कि इस बात को याद रखना कि हम 1 दिन मर जाएंगे। ये अन्डरस्टैन्डिंग हमें सिर्फ ज्यादा प्रोडक्टिव ही नहीं बनाती बल्कि हमें दूसरों के पोलाइट और लविंग भी बनाती है। नंबर सिक्स आपको अकेले रहने में कोई प्रॉब्लम नहीं होती। हमें हमेशा समझाया जाता है कि हमें सोशलाइज करना चाहिए और अच्छे रिलेशनशिप्स बनाने चाहिए। पर हमें कोई भी यह नहीं बताता कि हमें अपने आप को जानने के लिए अकेले भी रहना चाहिए। साइकोलॉजिकल रिसर्च बताती है कि कुछ टाइम अपने आप के साथ रहने से हमारी सेल्फ अवेर्नेस बढ़ती है। हम ज्यादा दयालु बनते हैं, हमारी क्रिएटिविटी और प्रोडक्टिविटी बढ़ती है और हम ज्यादा खुश रहने लगते हैं। नंबर सेवन आप लोगों की क्रिटिसिजम को झेल सकते हो। हर इमोशनली मच्योर इंसान ये जनता है की एक हेल्थी लेवल का क्रिटिसिजम हमें हमारी उन आदतों या फिर कमियों के बारे में बता सकता है जिसके बारे में हम पहले से अवेयर नहीं थे। यानी अपने हेटर्स के नेगेटिव कमेंट्स को सुनना और उन पर मेडिटेट करना हमारे लिए बेनेफिशियल हो सकता है। नंबर एट आप समझते हो की कोई भी इंसान अच्छा या फिर बुरा नहीं होता यानी चाहे कोई भी हमें हेट कर रहा हो या फिर वो हमें ऐडमायर कर रहा हो, दोनों चीज़े ही उसकी अब रिंग और उसके पर्सनल इक्स्पिरीअन्सिज़ पर बेस्ड होती है। जिसकी वजह से इमोशनली मच्योर लोग ये समझ पाते हैं कि किसी भी इंसान को अच्छा या बुरा बनाया जा सकता है। उसे बचपन में अच्छाईयाँ बुराइ सिखाकर, जिसे इन्वाइरनमेंट में बच्चों को इक्स्पोज़ करा जाता है, बच्चे की तरह उन्हीं इमोशन्स। या फिर बिहेव इयर्स को अब ज़ोर कर लेते हैं और ये अन्डरस्टैन्डिंग हमारे पर्सनल रिलेशनशिप को स्ट्रॉन्ग बनाने में काफी जरूरी होती है। नंबर नाइन आप पेशेंट हो आज के जमाने में पेशेंट्स और रिअलिस्टिक एक्सपेक्टेशन्स रखना बहुत जरूरी है क्योंकि लाइफ में किसी भी तरह की सक्सेस अचीव करने के रास्ते में हमें काफी सारी रुकावटें मिलती है, जिसकी वजह से अगर हम इस प्रोसेसर में पेशंट नहीं रहते तो हम बार बार फेल होते जाते हैं। नंबर 10 आप अपनी हेल्थ की केयर करते हो? यानी चाहे वो मेंटल हेल्थ की बात हो या फिर फिजिकल या इमोशनल हेल्थ, असली मेच्युरिटी का मतलब है अपने इन टूल्स को शाप रखना। ज्यादातर लोगों के लिए हेल्थ का मतलब होता है एक्सरसाइज करना, क्योंकि अकेला एक वर्कआउट ही हमारी बॉडी, माइंड और मूड को इम्प्रूव कर सकता है। पर कई लोगों के लिए सिर्फ एक्सरसाइजिंग, उनके इमोशन्स या फिर मेंटल क्लैरिटी को इम्प्रूव करने के लिए काफी नहीं होती और ऐसे केसेस में मेडिटेशन और एक कस्टम डाइट बेस्ट ऑप्शंस होते हैं। नंबर 11 आप अपनी रिस्पॉन्सिबिलिटी से दूर नहीं भागते हैं। क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट जॉर्डन पीटरसन का मानना है कि हम अपनी लाइफ में जितनी रिस्पॉन्सिबिलिटीज लेते हैं हमारी लाइफ उतनी ही मीनिंगफुल बन जाती है और ये आइडिया बिल्कुल सही है क्योंकि जो लोग रिस्पॉन्सिबिलिटीज को अवॉइड करते हैं वो या तो स्टिक होते हैं या फिर डिल्यूजन अल और तभी एक मच्योर इंसान जितनी रिस्पॉन्सिबिलिटीज हो सके, उतनी लेने की कोशिश करता है। नंबर 12 आपको फर्क नहीं पड़ता कि दूसरे लोग आपके बारे में क्या सोचते हैं? सी हमारी लाइफ में हेटर्स का जो रोल होता है वो बहुत इम्पोर्टेन्ट होता है। अगर आपको कोई हेल्प नहीं कर रहा तो उसका मतलब आप या तो ज्यादा सक्सेसफुल नहीं हो या फिर आपको कोई जानता ही नहीं है। यानी जो लोग हमारे बारे में नेगेटिविटी फैलातें हैं वो भी इस गेम का ही पार्ट हैं क्योंकि पॉजिटिविटी नेगेटिविटी के बिना एग्ज़िट ही नहीं कर सकती है और जितनी जल्दी हम इस फैक्ट को एक्सेप्ट कर लेते है उतनी ही जल्दी हम आगे बढ़ने लगते हैं। नंबर 13 आप मुश्किल सिचुएशन्स में भी स्टेबल और स्ट्रॉन्ग रहते हो। ये एक फैक्ट है की लाइफ हमेशा ही चेंज होती रहती है क्योंकि ये उसकी नेचर है और इस चेंज के साथ अडैप्ट करना हर इंसान के बस की बात नहीं होती। पर जो लोग ऐसा कर पाते हैं वो टाइम के साथ साथ मेन टली स्ट्रांग और बनते जाते हैं। नंबर 14 आप कमिट कर सकते हो क्योंकि जब हम मेंटली और इमोशनली ग्रो करते हैं, तब हमें समझ आता है। की फुल फील फील करने के लिए हमें अपने रिलेशनशिप्स के नंबर नहीं बल्कि उनकी बढ़ाने की जरूरत है। हाउएवर आज कल ज्यादातर यंगस्टर्स के लिए होकर कल्चर नया ट्रेंड है, जो ये बात प्रूफ करता है की हमारी जेनरेशन रिलेशनशिप को लेकर कितनी इम्मेच्युर है। नंबर 15 आप उन लोगों को माफ़ कर सकते हो जिन्होंने कभी आप को नुकसान पहुंचाया। यानी फॉर गिविंग होना काफी माना जाता है क्योंकि समझदार लोग यह बात समझते हैं कि जब हम किसी के लिए अपने मन में रिज या फिर गुस्सा रखते हैं तो वो इमोशनल एनर्जी हमें ही नेगेटिवली इफेक्ट करने लगती है। मतलब चाहे हमें हर्ट करने वाले इंसान को हमारे समझाने के बाद भी यह समझना आए कि हम हर्ट किस लिए हुए थे। उन्हें माफ़ कर के हम अपनी इमोशनल बैगेज को कम कर सकते हैं। नंबर 16 आप लाइफ की मुश्किलों को समझने के बाद भी एक सेंस ऑफ ह्यूमर रखते हो? ये इमोशनल मैच्योरिटी के सबसे जरूरी साइज में से एक है क्योंकि अगर हम अपनी इस छोटी सी लाइफ में बस मुश्किलों के बोझ से थक कर सिरिअस या फिर उदास रहने लग जाएंगे तो हम अपनी एग्ज़िस्टन्स को पूरी तरह एक्स्प्लोर नहीं कर पाएंगे। यानी जितना जरूरी लाइफ को सीरियसली लेना है उतना ही जरूरी है उस पर हँस पाना। नंबर 17 आप अपने बचपन के टॉमस को हील कर चूके हों और अब आप उन इक्स्पिरीयन्स इससे जुड़े ऑटोमैटिक रिएक्शन्स को अवॉर्ड करते हो। ये साइन हमें सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हम भी अपने बचपन के बुरे एक्सपिरियंस इसको ओवर कम कर चूके हैं? या फिर अभी भी हमें कई रैन्डम चीजें एकदम से गुस्सा दिलाती है, रुलाती है या फिर हमें डार्कनेस की तरफ पुश कर देती है? नहिल ड्रामा के सबसे कॉमन सिम्पटम्स है होपलेस नेस शेम गिल्ट, हेल्पलेस शॉक डेनियल ऐंगर मूड सविन्ग्ज़ सोशल विड्रॉल डिसबिलीफ या फिर डिस्कनेक्टेड फील करना नंबर 18 आप बोलते कम हो और सुनते ज्यादा क्योंकि एक पॉइंट पर आकर हमें ये समझ आ जाता है। की कुछ भी बोलकर हम बस अपने व्यूस एक्सप्रेस कर सकते हैं और जो भी हमें पता है वो दूसरों को कन्वे कर सकते हैं। पर जब हम बस सुन रहे होते हैं तब हम कुछ नया सीख सकते हैं। नंबर 19 आप दूसरों के ओपिनियन सुन सकते हो, बिना उन्हें जज करे। ये साइन एक तरह की स्किल भी हो सकती है जिसे प्रैक्टिस के साथ डेवलप कराया जा सकता है क्योंकि कई बार हमें यह पता भी होता है की हमे दुसरो की किन बातों पर गुस्सा आता है पर उस मोमेंट में हम ये बात भूल जाते हैं। और अपनी फीलिंग्स पर कंट्रोल खो देते हैं। पर इमोशनल मैच्योरिटी डेवलप करने के बाद हम सिम्पली काम रहकर किसी से भी बात कर सकते हैं, फिर चाहे उनके व्यूस हमारे व्यूस के ऑपोजिट ही क्यों ना हो। नंबर 20 आपको अपनी लाइफ का पर्पस समझ आ चुका है। ये साइन सबसे आखिर में इसलिए है क्योंकि यह सबसे ज्यादा इम्पोर्टेन्ट है और ऑलमोस्ट सारे साइंस ही घूमा फिराकर इस पर आते हैं। अपनी लाइफ का पर्पस समझने का मतलब है उस काम को जानना। जिससे पूरा करने के लिए हम इस दुनिया में आये हैं।","भावनात्मक रूप से परिपक्व होने का मतलब है कि आपने सफलतापूर्वक इस अराजक दुनिया को अपना लिया है और आपने अपने खुद के तरीके विकसित कर लिए हैं। हालाँकि, कभी-कभी ऐसा नहीं होता है कि काला या सफेद यानी आप वास्तव में यह नहीं बता सकते हैं कि आपके पास भावनात्मक परिपक्वता है या नहीं। इसीलिए इस पॉडकास्ट में, हम 20 संकेतों पर चर्चा करते हैं जो किसी की परिपक्वता के स्तर को इंगित कर सकते हैं।" "दूसरे लोगों को कन्विंस करके अपनी बात मनवाना एक आठ है। अगर आप अपनी बात मनवाने के लिए किसी के पीछे ही पड़ जाओ तो ऐसा लगेगा कि आप उन्हें फोर्स कर रहे हो और अगर आप उन पर ज़रा सा भी दबाव नहीं बनाते तो आपके मन की बात आपके मन में ही रह जाएगी और आपको कोई रिज़ल्ट नहीं मिलेगा। इसके साथ ही एक इंसान कितनी आसानी के साथ कन्विंस हो सकता है, ये कई फैक्टर्स पर डिपेंड करता है। जैसे वो कितना भूखा थका हुआ या अकेला है। जितना दूसरा इंसान डेस्परेट होगा उतना ही ईजी उससे अपनी बात मनवाना होगा क्योंकि उसके दिमाग को ऐसा लगेगा कि आप उसकी नीड्स को पूरा करके उसे सैटिस्फैक्शन दिला सकते हो। हाउएवर किसी से भी सब कॉन्शस ली? अपनी बात मनवाना अपने आप में ही अच्छा या बुरा नहीं होता। फॉर एग्जाम्पल अगर आप दूसरे लोगों को ड्रिंक ऐंड ड्राइव ना करने के लिए प्रोग्राम कर रहे हो तो ऑब्वियस्ली ये परसुएशन की अच्छी साइड है। ऊपर ज्यादातर क्या होता है? वो सिलेब्रेटीज़ गवर्नमेंट और बड़े ब्रैन्डस होते हैं जो हमसे अपनी बात मनवाते है और तभी हर इंसान के लिए परसुएशन और दूसरों को इन्फ्लुयेन्स करने की साइकोलॉजी की समझ होना जरूरी है। साइकोलॉजिस्ट्स रॉबर्ट चाइल्ड इन ई ने अपनी बुक इन्फ्लुयेन्स द साइकोलॉजी ऑफ परसुएशन में हमें ऐसे छे तरीके बताए हैं जिनकी मदद से हम किसी को भी अपने काम करवाने के लिए कन्विंस कर सकते हैं। फर्स्ट तरीका है। रेसिप्रासिटी यानी कुछ ऐसा काम करना जिससे दोनों पार्टीज़ को बेनिफिट हो जेनरली जब कोई इंसान हमारे लिए कुछ करता है तब हमें भी फील होता है कि हम वापस उनके लिए कुछ करे क्योंकि हमारी एवल्यूशन अरी हिस्टरी में, साथ में मिलकर काम करना हमारी जिंदा रहने की स्ट्रैटिजी थी। इसी वजह से हमारे अंदर एक जेनरल हेट्रेड होती है उन लोगों के लिए जो सिर्फ अपना बेनिफिट देखते हैं और तभी हम कुछ भी करके अपने आप को ऐसा इंसान बनने से रोकते हैं। आपको यह टेक्नीक, रिलेशनशिप्स, जॉब, पब्लिक, ट्रांसपोर्ट, स् और सेल्स हर जगह पर देखने को मिलती है, जैसे किसी मॉल में चलते वक्त। कई बार कोई ब्रैंड आपको फ्री सैंपल देता है और वो लोग यह बात जानते हैं कि इवन एक मिडिओकर प्रॉडक्ट की सेल्स भी बढ़ाई जा सकती है अगर उससे लोगों को फ्री में दे दिया जाए। सेकंड टेक्नीक है कमिटमेंट ऐंड कनसिसटेन्सी जेनरली अगर हम किसी चीज़ के लिए हाँ बोल देते हैं, तब हमारे उस काम को पूरा करने के चान्सेस बहुत बढ़ जाते हैं क्योंकि हमें अपने ऊपर अपनी कमिटमेंट पर डटे रहने का प्रेशर फील होता है। हमारा कल्चर पर्सनल कनसिसटेन्सी को काफी वैल्यू करता है। और हमें डर लगता है कि अगर हम अपनी बात से मुकर गए तो सोसाइटी के लोग हमें झूठा समझेंगे और वो हम पर ट्रस्ट करना छोड़ देंगे और तभी अगर आप किसी इंसान से अपनी बात मनवाना चाहते हो तो उससे दूसरे लोगों के सामने ओरल या फिर रिटर्न कमिटमेंट मांगो ताकि उनका प्रॉमिस उनकी सेल्फ इमेज के साथ जुड़ जाए। पर सबसे पहले उनसे किसी छोटे काम के लिए हाँ बुलवाओ और धीरे धीरे करके अपनी रिक्वेस्ट को बढ़ाओ। थर्ड टेकनीक हैं सोशल प्रूफ ये टेक्नीक हमें याद दिलाती है कि हमारे लिए दूसरों की सोच कितनी मायने रखती है और जितनी मोटिवेशन हमारे अंदर यूनीक बनने की है उतनी ही मोटिवेशन हमारे अंदर बाकी लोगों की तरह बिहेव करने की है ताकि वो लोग हमें एक्सेप्ट करे और अपना दोस्त समझें। अलग अलग सोसाइटीज़ अपने ग्रुप के लिए डिसाइड करती है कि उनके बीच सही और गलत बिहेव्यर क्या है जहाँ एक सिविलाइज्ड किसान के लिए शहर में एक सर्टन तरह के कपड़े पहनना जरूरी है, वरना लोग उसे जज करेंगे और इवन उसे जेल में भी डाला जा सकता है। वहीं दूसरी तरफ अगर आप किसी ब्राज़िलियन ट्राइब को देखो तो उनके लिए बिना कपड़ों के रहना आम बात है, क्योंकि उनके बीच यह बिहेव्यर सोशली एक्सेप्टेबल है। यानी जो भी चीज़ ज्यादातर लोग कर रहे होते हैं, उनको देखकर ही दूसरे लोग भी उसी चीज़ को सही मानने लगते है। ईवेन एक कॉमेडी शो देखते हुए भी अगर हम उसमें से लोगों की हंसने वाली आवाजों को पीछे से हटा दें तो वह शो एकदम से बोरिंग लगने लगता है। ये ताकत है सोशल प्रूफ की और तभी इसकी मदद से दूसरों को कंट्रोल करना इतना आसान है। फोर्थ टेक्नीक है लाइकिंग ये सरप्राइजिंग नहीं होना चाहिए कि जो लोग हमें जानते और लाइक करते हैं उनसे अपनी बात मनवाना काफी आसान होता है। ये लाइकिंग बेस्ट हो सकती है। फिजिकल अट्रैक्शन सिमिलैरिटी या कॉंप्लिमेंट जैसी चीजों पर एग्जाम्पल के तौर पर अगर एकड़ में आपका फेवरिट सिलेब्रिटी किसी प्रॉडक्ट को एंडोर्स करता है तो आपके अंदर उस प्रॉडक्ट को खरीदने की डिज़ाइनर बढ़ जाती है, पर कई बार एक नॉर्मल सेल्समैन भी आपको कॉम्प्लीमेंट, सदेकर और बार बार आपका नाम लेकर अपनी लाइकिंग बढ़ाता है ताकि हम उससे कुछ खरीद ले। फिफ्थ टेक्नीक है अथॉरिटी क्योंकि ज्यादातर केसेस में हम उन लोगों की बात मानते है जो अपनी फील्ड में एक्स्पर्ट होते हैं। जैसे अगर हमें हमारा डॉक्टर एक दवाई लेने को बोलता है तो हम उसकी इस एडवाइस को बहुत सीरियसली लेते हैं और कई बार तो हम किसी डॉक्टर की बोली रैन्डम बात को बिना अपनी रिसर्च करें। सच मानने लगते है। जस्ट बिकॉज़ वह एक डॉक्टर है सिमिलरली एक बच्चे के लिए अथॉरिटी फिगर्स उसके पैरेंटस होते हैं और उसके हिसाब से जो पैरेंटस बोलते हैं वही सच होता है। ये टेक्नीक कौन आर्टिस्ट्स के बीच सबसे ज्यादा पॉपुलर है? क्योंकि हमारे दिमाग में एक चोर का हुलिया बहुत खराब सा होता है। पर एक कॉमन मैन आपके पास थ्री पीस सूट में आता है और आपको पागल बना कर चला जाता है। जस्ट बिकॉज़ उसके कपड़े और ऑथोरिटी दर्शाते हैं। सो इस टेक्नीक को यूज़ करने के लिए और ज्यादा अथॉरिटी दिखने के लिए यह सोचो कि आप जीस इंसान से अपना काम करवाना या फिर अपनी बात मनवाना चाहते हो, वो किस टाइप की अथॉरिटी से इन्फ्लुयेन्स होगा? क्या उसके लिए आपको भी अपने कपड़े और अपनी बात करने का स्टाइल बदलना होगा? या फिर क्या आपको ऑथोरिटी दिखाने के लिए अपनी रिक्वेस्ट में एक्सपर्ट्स को मेन्शन करना होगा? सिक्स्थ टेक्नीक है स्केर्ड सिटी, जो बताती है कि हमें एक ऑपर्च्युनिटीज ज्यादा वैल्यूएबल लगने लगती है, जब उसकी अवेलेबिलिटी लिमिटेड होती है, क्योंकि किसी चीज़ को खोने का डर किसी चीज़ को पाने की खुशी से ज्यादा इंटेन्स होता है और अगर किसी चीज़ को पाना बहुत मुश्किल है तो हमें वो ऑटोमैटिकली उस चीज़ से बेहतर लगने लगती है जिसे पाना आसान है। हम एक आइटम की अवेलेबिलिटी को ऐनालाइज करके ही बता सकते हैं कि उसकी क्वालिटी और डिमांड क्या है? जैसे दुनिया में डाइमंड्ज़, फॉसिल, फ्यूल स् और लैन्ड जैसी चीजें लिमिटेड या फिर स्केर्स है जिसकी वजह से हम ये समझ सकते हैं कि ये चीजें इतनी डिमांड में क्यों हैं और क्यों? यह इतनी महंगी है जैसे जैसे हमें लगने लगता है कि एक आइटम को पाने की ऑपर्च्युनिटीज कम होती जा रही है। वैसे वैसे हम उस चीज़ को और भी ज्यादा डिज़ाइनर करने लगते हैं और तभी आपने कई ऐड में देखा भी होगा कि कई कम्पनीज़ सालों तक यही बोलती है। की ऑफर लिमिटेड समय के लिए है या फिर उनके पास लिमिटेड स्टॉक है। क्योंकि इसमें मैसेज को सुनकर आपके अंदर एक अर्जेंन्सी जागने लगती है और आप सोचने लगते हो की अगर आपने वो प्रॉडक्ट नहीं लिया तो इतना अच्छा ऑफर आपको शायद दोबारा कभी ना मिले। सो जब भी आप किसी से अपना काम करवाना चाहो, आपने बस एक ऐसा इंप्रेशन बनाना है कि सामने वाला इंसान कुछ खो रहा है।","यह पॉडकास्ट सेगमेंट लोगों को अपनी हर बात के लिए हाँ कहने के लिए राजी करने या उनके दिमाग में हेरफेर करने और इसे अपने तरीके से प्राप्त करने के बारे में है। मैंने मनोवैज्ञानिक, रॉबर्ट सियालडिनी की पुस्तक इन्फ्लुएंस: द साइकोलॉजी ऑफ पर्सुएशन से "सिक्स वेपन्स ऑफ पर्सुएशन" का इस्तेमाल किया।" "और मोड पार्टी का मतलब है लव ऑफ एट यानी आपकी लाइफ में चाहे अच्छा हो या बुरा। अगर आपने ग्रेटनेस अचीव करनी है तो आप ने दोनों को ही विलिंगनेस और पैशन के साथ एक्सेप्ट करना होगा। ये आइडिया कहीं जैसे एपीटी टर्म्स और मारकस औरिलिअस की राइटिंग में मिला है। लेकिन अब मोदी को सबसे ज्यादा डिटेल में लिखने वाले और इससे इतना पॉपुलर आइस करने वाले फिलॉसोफर है फ्रेड्रिक नेचर, जिन्होंने अपनी बुक हो में लिखा है की मेरा ह्यूमन ग्रेटनेस का एक फॉर्मूला है। जो की है की एक ग्रेट इंसान अपनी लाइफ में कभी भी कुछ अलग या फिर कुछ आगे पीछे नहीं चाहता। वो अपनी जिंदगी की जरूरत हो और मुश्किलों को सिर्फ झेलता ही नहीं है बल्कि वो उसे सेलिब्रेट भी करता है। हर तरह की परफेक्शनिस्ट फैन्टैसी जिंदगी की मुश्किलों के आगे एक झूठ है और रिऐलिटी के इस फैक्ट से प्यार ही एक इंसान को ग्रेटनेस की तरफ पुश करता है। अपनी लाइफ के बारे में इस तरह से सोचने से आप अपने आप को पॉज़िटिव रिज़ल्ट के ऑपरेशन से डिटैच कर पाते हो ताकि आप जो काम अभी कर रहे हो उस पर फोकस कर सको और फ्यूचर से रिलेटेड ऐंगज़ाइइटी को कम कर सको, क्योंकि हमारी सारी ऐंगज़ाइइटी, डिज़ाइनर्स और ऑफिर्स के अराउंड इवॉल्व करती है। हम डिज़ाइनर करते हैं कि हमें फ्यूचर में कुछ पॉज़िटिव रिज़ल्ट मिले और हम ये फिर् करते हैं कि अगर हम जीस चीज़ को डिज़ाइनर कर रहे हैं, वो हमें नहीं मिली तो क्या होगा? इस भी चीज़ को हम पकड़ के बैठे होते है। वो हमें जिंदगी को खुलकर जीने और हर मूवमेंट में फूलीं इन्वॉल्व होने से रोकती है, जिससे हम वो नहीं कर पाते जो एक्चुअल में मैटर करता है। ने अपनी बुक गैस साइंस में लिखा है कि मैं ज्यादा से ज्यादा नॉलेज गेन करना चाहता हूँ ताकि मैं हर चीज़ के सबसे सुंदर हिस्सों को जान सकूँ और इस समझ के साथ एक ऐसा इंसान बन सकूँ जो सुंदर चीजों को बनाता है और तभी मैं अपनी किस्मत से प्यार करता हूँ। मैं किसी को बुरा नहीं बोलना चाहता और ना ही मैं उन लोगों को बुरा बोलना चाहता हूँ जो दूसरों को बुरा बोलते हैं। अपने काम से काम रखना और अपनी जिंदगी को हाँ बोलना यही मेरा गोल है। हाउएवर अपनी जिंदगी में ज्यादातर टाइम हम इसका बिल्कुल ऑपोजिट करते हैं। हम नेगेटिव आउटकम से लड़ने की कोशिश करते हैं या फिर उनकी यूटिलिटी को रिजेक्ट कर देते हैं। यानी एक सेन्स में हम लाइफ के फ्लो को पूरी तरह से एक्सेप्ट ही नहीं करते हैं। हम अपना काफी सारा टाइम अपनी गलतियों के बारे में सोचते हुए निकाल देते हैं और अपने पास्ट में हुए बुरे हादसों की वजह से अपनी किस्मत को कोसते रहते हैं और विश करते हैं कि काश हमारा पास्ट थोड़ा बेटर होता। अपनी खुद की प्रॉब्लम से भागने के लिए हम अपना फोकस दुनिया की प्रॉब्लम्स पर ले आते है कि पॉलिटिक्स में क्या सही और गलत हो रहा है? इकॉनमी में क्या गलतियाँ चल रही है या फिर दुनिया में कौन से ग्रुप्स, पॉलिटिकल पार्टीज़ या रिलिजन लोगों को नुकसान पहुंचा रहे हैं? हाउएवर जस्ट बिकॉज़ ये तरीका अपनी खुद की प्रॉब्लम से डील करने का एक कोपिंग मेकनिजम है। हम में से ज्यादातर लोग किसी बड़े कॉस्ट के लिए लड़ने के बावजूद भी अपनी लाइफ में ग्रेटनेस तो क्या सैटिस्फैक्शन तक नहीं हासिल कर पाते हैं? क्योंकि वो कॉज़ हमारा नहीं होता। बट इसका मतलब यह नहीं है कि आपको अपने हाथ पर हाथ रखकर बैठना चाहिए। यह अपनी जिंदगी पैसिवली जीनी चाहिए। नीचे की फिलॉसफी का कोर कॉनसेप्ट है पावर जो सीधा सीधा इस तरह की मेंटैलिटी को अपोज करता है। आपकी लाइफ में ऐसे बहुत सारे ओकेशन जाएंगे जब आपको एक ऐसी फिलॉसफी की विज़्डम का सहारा लेना होगा जो आपकी हिम्मत को बढ़ाएगी की खुद की लाइफ भी इतनी ज्यादा ट्रैजिडी से भरी थी। इस औरत को वो प्यार करते थे। उसने उन्हें रिजेक्ट कर दिया था। उनकी बुक्स बहुत कम बिकती थी। उनके पास हमेशा पैसों की कमी रहती थी और उनकी हेल्थ भी टाइम के साथ साथ खराब होती जा रही थी। तभी इतनी सफरिंग की वजह से ही नीचा को अमोर पति का आइडिया इतना पॉवरफुल लगा क्योंकि हमारी जिंदगी के बहुत सारे एरियाज़ हमारे कंट्रोल से बाहर होते हैं। जैसे बहुत से लोग अपनी जिंदगी में हर चीज़ का ख्याल रखते हैं, वह एक्सरसाइज करते हैं, हेल्थी डाइट को फॉलो करते हैं और हमेशा अपने स्ट्रेस को कम रखते हैं और इसके बावजूद उनके एनवायरनमेंट या जीन्स की वजह से उनको कोई जानलेवा डिज़ीज़ हो जाता है। इसका मतलब आप चाहे कितना भी अपनी लाइफ को कंट्रोल करने की कोशिश कर लो, आपको ऐसी कई चीजें हमेशा मिलेंगी। जिनको आप नहीं बदल सकते हैं। इसलिए नीचा ने बोला है कि सिर्फ दर्द ही ह्यूमन स्पिरिट को आज़ाद कर सकता है। मुझे शक है कि दर्द हमें बेहतर बनाता है पर मैं इतना जानता हूँ कि दर्द हमें इंसान बनाता है। यहाँ पर नीचा अपने इस कोट के साथ सफरिंग को एक अच्छी चीज़ बता कर नहीं प्रोमोट कर रहे हैं, बल्कि वो सफरिंग को एक ऐसी चीज़ मानते हैं जो अच्छा ई को जन्म देती है। ये इनसाइट हमें नीचे के हाइअर मैन के कॉन्सेप्ट से मिलती है। हियर मैन एक ऐसा इंसान होता है। जो झुंड को फॉलो करने के बजाय अपना रास्ता खुद बनाता है, अपने डरो का सामना करता है और आम लोगों की तरह एक मीडिया से भरी लाइफ में कंफर्ट ढूँढने के बजाय ग्रेटनेस का पीछा करता है और हाइअर मैन ये बात समझता है कि उसकी लाइफ की सबसे बड़ी सक्सेस और सबसे अच्छे मूवमेंटस उसके सबसे खौफनाक एक्सपिरियंस से ही जन्मे हैं। इस अन्डरस्टैन्डिंग के साथ वह एक पैसे की तरह लाइफ को रिजेक्ट नहीं करता, बल्कि वो लाइफ के सबसे ट्रैजिक पार्ट्स को भी सेलिब्रेट करता है। क्योंकि एक इंसान की स्ट्रेंथ इस बात से पता चलती है कि क्या वो ट्रैजिडी के टाइम पर भी हँस सकता है और उस ट्रैजिडी में मीनिंग ढूंढ सकता है। इसका मतलब जब भी कोई अन् फेवरेबल सिचुएशन आये जिससे आपकी लाइफ मुश्किल होती है तो उसमें भी ब्यूटी ढूंढने की कोशिश करो और सोचो कि आप उस सिचुएशन से क्या सीख सकते हो जैसे अगर आप एक लॉन्ग टर्म रिलेशनशिप से बाहर निकलते हो तो आप सोचते हो की आप अकेले कैसे रहोगे? शुरू में आपको आपके एक्स पार्टनर की याद आती है पर टाइम के साथ साथ जब आप सिंगल रहने के एक्सपिरियंस को और एक्सप्लोर करते हो तब आप उससे प्यार करने लगते हो और उसके पॉज़िटिव एक्सप्रेस को भी देखने लगते हो और काफी सिमिलर चीज़ उन लोगों के साथ होती हैं जो बोलते हैं की वो हमेशा सिंगल रहेंगे। पर जब वो किसी भी रीज़न से एक रिलेशनशिप में आते हैं तब वो बोलते है कि ऐक्चुअल में ये उतना बुरा भी नहीं है यानी जीस। किसी भी डायरेक्शन में आपकी लाइफ जाए। अगर आप उसे एक्सेप्ट कर लो तो आप उसमें कुछ अच्छा ढूंढ सकते हो। हर नई सिचुएशन जिससे आप दूर भागते हो, उसमें कहीं छुपी ऑपर्च्युनिटीज होती है, इसलिए लाइफ को पूरी इन्वॉल्वमेंट के साथ जियो जो काम जरूरी है उसे पूरा करो और फिर जो भी रिज़ल्ट मिले उसे एक्सेप्ट करके लाइफ को एक स्माइल के साथ वेलकम करो।","फ्रेडरिक नीत्शे एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने अपने जीवन में बहुत कुछ सहा और इस दर्द से निपटने के लिए उन्होंने AMOR FATI यानी द लव ऑफ फेट के विचार को अपनाया। अपने भाग्य से प्यार करने का मतलब यह है कि जीवन आप पर चाहे जो भी फेंके, आप उसमें से सर्वश्रेष्ठ निकालेंगे। अपने जीवन में, नीत्शे ने ज्यादा पैसा नहीं कमाया, उनकी किताबें निराशाजनक रूप से बिकीं, उन्हें अपने प्रेम प्रस्ताव के लिए दो बार खारिज कर दिया गया और उनका स्वास्थ्य भी समय से पहले गिरना शुरू हो गया। घटनाओं की इस श्रृंखला ने उसे वह स्वीकार करने के लिए प्रेरित किया जो उसके जीवन ने उसे दिया और उन चीजों के मामले में जो आपके नियंत्रण से बाहर हैं, यह किसी भी प्रकार की नाराजगी या अफसोस को रोकने का सबसे अच्छा तरीका है। इसलिए, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम नीत्शे के दर्शन के बारे में अधिक बात करते हैं ताकि आप भी उनके विचारों को अपने जीवन में लागू कर सकें और कठिन समय में नेविगेट करना सीख सकें।" "कही ना कही हमारे अंदर की शीप मेंटैलिटी सफरिंग के समय लाइफ का पर्पस ढूंढने लगती है ताकि हमें कुछ ऐसे सेट ऑफ रूल्स मिल जाए जिन्हें फॉलो करके हम एक अच्छी जिंदगी जी सकें और हर मोमेंट को एन्जॉय कर सकें। है। हम लाइफ को एक प्लैन गेम की तरह ट्रीट करते हैं, जिसमें जब हम हारने लगते हैं तो हम सोचते हैं कि शायद हमें गेम के रूल्स ढंग से नहीं पता। शायद हम लाइफ ही गलत तरह से जी रहे हैं और पता नहीं जीने का सही तरीका क्या है? यहीं से शुरू होती है लाइफ की मीनिंग या फिर उसके पर्पस की खोज। फ़्रेंच फिलॉसफर अल्बर्ट कामू भी अपने बचपन से ही वाइअलन्स और दुख से घिरे हुए थे। अपने पिता को वर्ल्ड वॉर वन में गुजरते और अपनी गिरती हेल्थ को देखकर कम उनको इन सब इवेंट्स और इस सफरिंग के पीछे कोई भी मीनिंग नहीं दिख रहा था और वो ये सोच रहे थे कि अगर इस दुनिया का कोई मीनिंग नहीं है तो क्या इस दुनिया में हमारी जिंदगी का कोई मीनिंग हो सकता है? जहाँ उस समय के बहुत से एग्ज़िस्टन्स लिस्ट फिलॉसफर्स ये मानते थे कि हर इंसान एक कोरे कागज़ की तरह होता है जिसपर वो अपनी लाइफ का मीनिंग खुद लिखता है। वही काम? उनका मानना था कि हम इंसान एक कॉमन पर्पस के साथ पैदा होते हैं और ऐसा ही हमारा एक कॉमन पर्पस होता है। लाइफ की इतनी सफरिंग और विडनेस के बीच अपनी लाइफ का मीनिंग ढूंढना लेकिन इंसानों की मीनिंग ढूंढने की डिज़ाइनर और उस पर यूनिवर्स की खामोशी हमें ये बताती है कि यूनिवर्स को हमारी नहीं पड़ी और ना ही हमारे जिंदा रहने या फिर मरने से इस दुनिया को कोई फर्क पड़ता है। हाउएवर का मूल सुसाइड करने या फिर लाइफ से एंगेज ना करने को भी गलत ऑप्शन्स मानते हैं और जिंदा रहकर खुद को पूरी तरह से एक्सप्रेस करने को ही असली, फ्रीडम और लाइफ के हर अजीबोगरीब ऐस्पेक्ट को अपनाने को सही बताते हैं। इवन इंडिया के कई पुराने स्क्रिप्ट्स में स्वधर्म बात करी गयी है। यानी आपकी खुद की ड्यूटी या फिर वो लॉ जिसे आपने अपनी लाइफ में फॉलो करना है। सो धर्मा बेसिकली ये बोलता है कि आपकी जिंदगी मीनिंग फॉर तब बनेगी जब आप लाइफ के फ्लो में रहकर यानी यूनिवर्स के लॉ फॉलो करते हुए खुद की जिंदगी के लॉस को भी फॉलो करोगे। यानी अगर आप एक स्टूडेंट हाउसवाइफ वो रिअर फादर डॉटर जो भी हो, अपने रोल को अच्छे से निभाओ। लेकिन एट द सेम टाइम ये भी याद रखो कि सौधर्म के ऊपर भी एक धर्म है जहाँ लाइफ और उसका मीनिंग तो अलग चीजें नहीं बल्कि लाइफ ही मीनिंग है। लाइफ का पर्पस ही है उसकी। अल्ला इवन एस इस पूरे ब्रह्मांड में मीनिंग नहीं है, लेकिन हमारे एक्सपिरियंस में मीनिंग एक बहुत ही रियल चीज़ है। हमें ऐसा फील होता है कि हमें मीनिंग चाहिए वरना हम जिंदगी नहीं जी पाएंगे। जिसतरह से इंसानों को इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन का एक छोटा सा हिस्सा दिखता है जिसे हम कलर बोलते हैं लेकिन कलर्स हमारी परसेप्शन की बाहर एग्ज़िट नहीं करते। बिल्कुल ऐसे ही मीनिंग भी बस हमारे दिमाग में बनता है और वो उसके लिए जरूरी भी है। अब सोचो कि क्या होगा? अगर हमारी परसेप्शन से कलर्स ही गायब हो जाए तो कलर्स रिऐलिटी को हमारी नजर में और खूबसूरत बनाते हैं और हम कलर्स को यूज़ करते है। खाने, लोगों की हेल्थ या फिर जहरीली चीजों को आइडेंटिफाइ करने के लिए हमारी परसेप्शन में बैठी हर एक चीज़ हमारे सर्वाइवल और हमारी ग्रोथ के लिए वॉल हुई है। इसी वजह से इवन दो लाइफ अपने आप में मीनिंग लेस है लेकिन फिर भी हमें मीनिंग चाहिए। आगे बढ़ते रहने और बेसिकली इस ब्रह्मांड के पूरे प्रोसेसर को खुलकर एन्जॉय करने के लिए लाइफ का होना और आपकी लाइफ की मीनिंग लेस होने में बहुत फर्क है। एक जगह पर आप कुछ नहीं हो और दूसरी जगह पर आप खुद से पूछते हो और खुद को याद दिलाते हो कि आप कौन हो और आप क्यों जिंदा हो? इन दोनों रियलिटीज़ को साथ में जीना सीखो। मीन, इंग्लिश, ऑनरस और मीनिंगफुल नेस यह दोनों चीजें ही हमारे एक्सपीरियंस का पार्ट हैं और ऐसे में इनमें से किसी भी एक साइड को रिजेक्ट करने से हम रिऐलिटी को भी आधा ही समझ पाएंगे कि मुँह में समझाते हैं कि चाहे लाइफ मेनलेस भी है, फिर भी तुम इसमें खूबसूरती ढूंढने की कोशिश करो और इस पॉइंट को वो समझाते है। सिर्फ उसकी ग्रीक मिथक के थ्रू। एक राजा था जिसने भगवानों को धोखा दिया था और इसके लिए उसे समय के अंत तक एक बड़ी चट्टान को पहाड़ी के ऊपर धकेलते रहने की पनिशमेंट मिली थी। जब भी चट्टान पहाड़ की चोटी तक पहुंचती थी वैसे ही वो रोल होकर वापस से नीचे चली जाती थी और सिर्फ उसको फिर से इस प्रोसेसर को रिपीट करना होता था। कम उम्र के हिसाब से पूरी इंसानियत ही सिर्फ उसकी पोज़ीशन में है और जब हम अपनी लाइफ की मीनिंग लेस ने इसको एक्सेप्ट कर लेते हैं, सिर्फ तभी हम जिंदगी की चुनौतियों को सर उठाकर फेस कर पाते हैं का मुँह बोलते हैं कि इंसान की ऊंचाइयों को छूने की स्ट्रगल ही उसके दिल को भरें रखने के लिए काफी है। इस दुनिया में तुम्हारा कोई मास्टर नहीं है और यही चीज़ से सिर फंसने प्रूफ करी है। वो एक पत्थर को लुढ़का ना बेटर मानता है जीवन भगवान के रूल्स को फॉलो करने से तुम भी अपनी जिंदगी की रिस्पॉन्सिबिलिटीज में मीनिंग ढूंढो और ये इमेजिन करो। किसी भी अपनी सफरिंग में खुश हैं यानी लाइफ खुद से भर जाती है। जब आप उसके साथ एंगेज करते हो? वो शो हमेशा बोलते थे कि सुनने वाले को पकड़कर सुनो और काम करने वाले को पकड़ कर काम करो। यानी अगर आप अपनी लाइफ में हर मोमेंट इस फ्लैट के बारे में कॉन्शस रहते हो कि आपका शरीर और दिमाग बस रिऐलिटी को एक्सपिरियंस करने वाले औजार है और आप इनसे परे हो, तब आप फुल्ली इन्वॉल्व हो जाते हो। लाइफ के प्रोसेसेस के साथ आप अपने अंदर जाने और खुद की नेचर को जानने के बाद ये क्वेश्चन नहीं पूछते कि लाइफ का पर्पस क्या है या फिर क्या पॉइंट हैं? एग्ज़िस्टन्स का ये क्वेश्चन सिर्फ तब उठते हैं, जब आप खुद को लाइव से अलग समझते हो। आप ही लाइफ हो और लाइफ का पॉइंट है। वो खुद इसी वजह से स्वामी विवेकानंद से जब भी को यह पूछता था वॉट इज़ द पर्पस ऑफ लाइफ? तब वो हमेशा ये रिप्लाइ करते थे कि ये क्वेश्चन ही अपने आप में गलत है क्योंकि लाइफ का पर्पस या फिर उसका पौंड जानने के लिए आपको उसके बारे में इन्टलेक्चुअल क्वेश्चन्स नहीं पूछने होते हैं बल्कि आपको लाइफ को डाइरेक्टली जीना होता है और लाइफ को अपने अंदर एक्सपिरियंस करना होता है।","जब सब कुछ अच्छा चल रहा हो, तो जीवन की बेरुखी आपको ज्यादा परेशान नहीं करती। लेकिन जब आप गहरी निराशा में होते हैं, तो ब्रह्मांड की निरर्थकता स्पष्ट हो जाती है, और आप जीवन के अर्थ या उद्देश्य पर सवाल उठाने लगते हैं। जीवन का क्या अर्थ है? यह वह सवाल है जो हम में से कई लोगों को परेशान करता है और इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम जीवन को ही एक्सप्लोर करने जा रहे हैं और सभी से यह पूछना कि यह सही दृष्टिकोण क्यों नहीं है।" "लौडू की बुक दौलत सिंह को पढ़ना एक नशे के जैसा होता है, लेकिन इस नशे में सिर्फ वही लोग झूम पाते हैं जो लौडू की बातों में लॉजिक नहीं बल्कि सच्चाई ढूंढ़ते हैं। क्योंकि उनके हिसाब से सच काफी इरैशनल होता है और वो बिल्कुल भी नहीं बनाता। इसी वजह से दाऊद हैचिंग में लाउड ज़ू सिर्फ और सिर्फ मेट्रो में बात करते हैं क्योंकि जब भी कोई इंसान उस दुनिया की नॉलेज दे रहा होता है जो हमारे पाँचों सेन्सस के पार है तब उसे मेटा फोर्स यानी रूपकों का ही यूज़ करना पड़ता है। दाऊद एचिंग में लिखी हुई बातें इतनी जादुई है की। आप चाहे उन्हें पहली बार में समझो भी ना तब भी वो खुद आपके मन में वापस आएंगी। और जो बीज इस बुक की बातों से बोया गया था, वह खुद ब खुद बढ़ेगा। ऐसा इसलिए क्योंकि इन बातों को समझने के लिए एक इंसान को अपनी ईगो और लॉजिक की लिमिटेशंस के पार्ट देखना होता है और जैसे जैसे आपकी कॉन्सियसनेस का लेवल बढ़ेगा वैसे वैसे आपको इस बुक की बातों में और छुपी हुई लेयर्स देखने को मिलेंगी। इसमें बोली गई बातों की गहराई का कोई अंत नहीं है। हर शब्द 100 किताबों के बराबर है। आप लव जू की बातों को गलत भी साबित नहीं कर सकते हैं क्योंकि वो कभी कोई आर्ग्यूमेंट ही पेश नहीं करते हैं। कुछ ऐसा ही स्वभाव है दांव इस फिलॉसफी का। इसलिए अब बात करते हैं लाउड ज़ू की। दाऊद हैचिंग में दिए सबसे जरूरी लाइफ लाइसेंस की लेसन वन ट्रूथ इस ओनली रीच थ्रू साइलेंस साइलेंस अपने आप में होल है और वह हर पॉसिबल लैंग्वेज, वर्ड या एक्सप्लेनेशन से प्रेग्नेंट हैं। लेकिन जैसे ही हम साइन्स में से कुछ शब्द निकालकर कोई बात बोलते हैं, तब हम सच का बस एक छोटा सा टुकड़ा ही व्यक्त कर पाते हैं। साइलेंट सबसे ऊंचे स्तर का कम्यूनिकेशन होता है। शब्द हमेशा थोड़े फीके रह जाते हैं। इसी वजह से लाउड ज़ू बुक की स्टार्टिंग में ही लिखते हैं कि जीस रास्ते को समझाया जा सकता है। वो असली रास्ता नहीं है। जिंस नाम को नाम दिया जा सकता है। वो शाश्वत नाम नहीं है, लेकिन जिसका नाम नहीं लिया जा सकता, सिर्फ वही हमेशा था, हमेशा होता है और हमेशा रहेगा। लव जो यहाँ बोल रहे हैं कि अगर आप सच जानना चाहते हो तो बोलना व्यर्थ है लेकिन ज्यादातर लोग शांति से डरते हैं इसलिए वो खुद की असलियत को हमेशा शब्दों की चादर से ढक कर रखते हैं। शब्दों को यूज़ कर के आप एग्ज़िस्टिंग से बात करना बंद कर देते हो। और जिन सीक्रेट्स को आप उसकी साइलेंट लैंग्वेज में सुन सकते थे, वहीं सीक्रेट्स बाप शोरगुल में ढूंढने लगते हो और ट्रूथ से दूर होते जाते हो। खुद सोचो इस बात को कि अगर हर लैंग्वेज और हर बुक मैं बोली बातें साइलेंट में से ही निकलकर आई है, तो आप असली नॉलेज हासिल करने के लिए बुक्स को प्रायोरिटी दोगे या खुद साइलेंस को? जहाँ से आप डाइरेक्टली इन्फिनिट बुक्स की नॉलेज ले सकते हो? हर महान बुक भी इसलिए लिखी जाती है ताकि आप उस बुक से इन्स्पाइअर्ड होकर असली नॉलेज की तरफ कदम बढ़ा सको। बुक्स बस चाँद की तरफ इशारा करने वाली उँगली है। खुद चाँद नहीं, इसलिए कभी साइलेंस में घुलकर देखो, उसे अपने अंदर भरने दो और जब आप शांत रहकर साइलेंस की आवाज को सुनने के काबिल बनो गे, तब आप सच्चाई को सिर्फ जान ही नहीं पाओगे, बल्कि आप खुद सच में डूब जाओगे। आप में और सच्चाई के बीच कोई बाउंड्री नहीं होगी। हर उस चीज़ से अपने मन में दूरी बनाओ जिसके बारे में बात करी जा सकती है। लिसन टु बीच औस लेस जहाँ भी आप को कोई चॉइस लेनी पड़ती है वहाँ आपका मन बीच में आ जाता है। लेकिन जैसे ही आप अपनी जिंदगी को लगभग 24 लेंस बना लेते हो, वैसे ही मन ठहर जाता है। और आप यूनिवर्स के फ्लो के साथ खुद को अलाइन कर पाते हो। यही रीज़न है की क्यों लाउड ज़ू कभी भी मेडिटेट करने के लिए नहीं बोलते है। वो बस इतना कहते हैं कि यूनिवर्स के फ्लो में पानी की तरह बहो कहीं भी पहुंचने के लिए ज्यादा ज़ोर मत लगा हो। इस तरह से वो हमे हर समय ही मेडिटेटिव स्टेट में रहने का इशारा देते हैं ताकि हम किसी भी चीज़ को रिजेक्ट ना करे और हर चीज़ को आस इट इस देखे। ये बात हमने स्कूल ऑफ विजन के एपिसोड सही और गलत में भी करी है कि अगर आप अपनी अवेर्नेस की रौशनी अपने किसी भी ख्याल या क्वेश्चन पर रखो तो हर वो ख्याल प्रमोशन या क्वेश्चन गायब हो जाएगा, जो बस असली होने का ढोंग कर रहा था। एक्ज़ाम्पल के तौर पर कोई भी इंसान कॉन्शस ली गुस्सा हो ही नहीं सकता। जैसे ही आप अपने गुस्से के बारे में अवेयर हो जाते हो, वैसे ही आपका गुस्सा गायब हो जाता है। इस तरह से हर वो क्वेश्चन या डाउट खुद ब खुद गायब हो जाएगा और आप एक चौसला से जिंदगी जी पाओगे। जब आप हर चीज़ कौन सी असली करोगे, खुद को बस एक विटनेस बना लो, जो बस पूरी दुनिया को बिना किसी बायरस के देखता है। ऐसे में जीस चीज़ पर भी आपकी नजर पड़ेगी और जितनी बार भी नजर पड़ेगी जब आपको हर बार ऐसा ही लगेगा कि आप उसे पहली बार देख रहे हो, अपनी जिंदगी को जानबूझकर मुश्किल मत बनाओ। जिंदगी आसान और बहुत खूबसूरत है। बस इस फैट को देखने के लिए खुद के पुराने बिलीव्स को गिराओ, अपने थॉट्स के साथ आइडेंटिफाइ ना करके ले। सन थ्री लव विदाउट हेट इस नॉट ट्रू लव जो प्यार नफरत को भी प्यार नहीं दे सकता, वह प्यार कमजोर और नपुंसक हैं। बिना हिट के लव अधूरा है क्योंकि हेट लव का ही एक पार्ट है। वह उसी की संतान है। प्यार को अच्छे से समझने के लिए को ध्यान में रखो, क्योंकि जो चीज़ अब साइलेंट में सुनोगे उसी आवाज और उसी जगह तक आपको प्यार पहुंचाएगा। बिना जुदाई और नफरत के प्यार के दिल में एक छेद रह जाता है जिसे सिर्फ नफरत ही बढ़ सकती है। दुनिया में इतनी ज्यादा हेट इसलिए है क्योंकि लोग हेट को रिजेक्ट करते हैं और उसे ऐसे ट्रीट करते है जैसे वो इस अस्तित्व का पाठ है ही नहीं। इसी वजह से हेट हमारी परछाई बनकर हमें अनकॉन्शियस ली कंट्रोल करने लगती है। लेकिन जब प्यार और नफरत को साथ में एक्सेप्ट करा जाता है तब प्यार नफरत को निगल जाता है। और सिर्फ प्यार ही बचता है लेकिन नफरत और प्यार को अलग कर देने से नफरत अपनी एक अलग झूठी जिंदगी जीना चालू कर देता है। इसलिए हेट को भी खुले दिल से एक्सेप्ट करो। अगर कोई इंसान आपको गुस्सा करे तो समझ जाओ कि वो प्यार से बिछड़ गया है और वो बस अपनी आत्मरक्षा के लिए भार से बुरा बनना पड़ा है। हर इंसान का स्वभाव प्यार का ही है। प्यार हमेशा नफरत से ज्यादा ताकतवर रहता है। इसलिए अगर आपके घर में या आपके अपने पार्टनर या दोस्तों के साथ लड़ाई हो तो इस लड़ाई को भी उनके प्यार का ही हिस्सा समझो। हर इंसान की हेट उसकी प्यार की पुकार होती है। हेटर्स प्यार के भूखे होते हैं लेकिन प्यार अपने आप में कंप्लीट होता है, इसलिए प्यार बनो। लहसुन फॉर द नेचर ऑफ एग्ज़िस्टन्स इस फेमिनिन दाचिंग जितनी फेमिनिन बुक मैंने आज तक नहीं देखी है, क्योंकि रिऐलिटी भी फेमिनिन के जैसी ही है, तो ये ऑब्वियस है कि रिऐलिटी को समझाने वाली बुक भी इसी नेचर की होगी। एक फीमेल का जादू कुछ ऐसा होता है कि वो एक मेल को बिना सिड्यूस करें ही सिड्यूस कर देती है बिना फंसाए फंसा लेती है बिना हाँ बोले हाँ, बोल देती है। और वो बिना कुछ करे ही सब कर देती है। फेमिनिन का रास्ता होता है पैसिविटी का जबकि मैस्कुलिन का रास्ता होता है। अग्रेशन का की बातें भी इसलिए इतनी कन्विन्सिंग लगती है क्योंकि वो एक तरह से हमें फेमिनिन एनर्जी को यूज़ करके कर रहे हैं। वो हमें सच बता भी रहे हैं लेकिन सच को साथ साथ छुपा भी रहे हैं। वह मैस्कुलिन की तरह डाइरेक्टली नहीं बल्कि इन डाइरेक्टली हमें सच के पास पहुंचा रहे हैं। एक मेल हर तरह की तरकीबें बनाता है और अपनी एड़ी चोटी का ज़ोर लगा देता है एक फीमेल को अट्रैक्ट करने के लिए, लेकिन एक फीमेल कोई इनिशिएटिव नहीं लेती है। वो बिना एक मेल के पीछे भागे ही उसे पकड़ लेती है। और तो और वो ऐसा प्रिटेंड करती है कि वो उस मेल में इंट्रेस्टेड ही नहीं है। कुछ ऐसी ही लव जो की दाऊद एचिंग है जिसमें ना तो कोई लॉजिक है और ना ही पड़ने वाले को कन्विंस करने की कोई चाहा लव जू के हिसाब से एग्ज़िस्टन्स एक ऐसी तेज हो रही है जो ज़ोर जबरदस्ती से नहीं बल्कि शांत रहने से खुलती है। अगर आप एग्ज़िस्टन्स को समझने के लिए लॉजिक का यूज़ कर रहे हो तो आप बहुत ज्यादा अग्रेसिव बन रहे हो और आपके हाथ कुछ नहीं लगेगा। सच जानने के लिए एग्ज़िस्टन्स से मोहब्बत करनी पड़ती है। उसकी नजरों में देखना पड़ता है। एक शायर बनना पड़ता है और तब वह खुद ही आपके आगे अपने सारे रहस्य खोल देती है, लेकिन लॉजिक की पेनिट्रेशन सच को अपने आप को झूठ के कपड़ों से ढंकने के लिए मजबूर कर देती है। लाउड जो बोलते हैं कि डाउ कोठे ग्रेट मदर बोला जाता है वो खाली है लेकिन उसकी कोई सीमा नहीं है और उसे खत्म नहीं करा जा सकता। वो असीम दुनिया को जन्म देती है। वो तुम्हारे अंदर हमेशा मौजूद होती है और तुम उसे अपनी मर्जी से यूज़ कर सकते हो। यानी जो चीज़ हर चीज़ को जन्म देती है वो हमारे अंदर ऑल रेडी है। यहाँ इस बात पर भी ध्यान दो कि जस्ट बिकॉज़ रिऐलिटी हर चीज़ को जन्म देती है, इसलिए ही उसे फैमिली इन बोला जाता है क्योंकि जन्म देना एक फैमिली इन क्वालिटी है। बायोलॉजिकली भी हर बच्चा पहले एक फीमेल ही होता है और टेस्टॉस्टोरोन के रिलीज होने पर ही उन फीमेल फाइट इसमें से आगे चलकर एक मेल बच्चा बनता है। रिऐलिटी की नैचरल स्टेट मैं सेक्युलर नहीं हम सब यूनिवर्स की कोख में है और हम यूनिवर्स से भरे हुए हैं। इस यूनिवर्स के एफर्टलेस ऐक्शन को ही बोला जाता है। यूनिवर्स कोई मेहनत और ज़रा सी भी जल्दी नहीं मचाता। लेकिन वो अपने सारे काम पूरे कर लेता है इसलिए हमेशा डाउन में रहो और जैसा कि बोलते हैं कि कलर्स आंखो को अंधा बनाते हैं, आवाजें कानों को बहरा बनाती है, फ्लेवर्स टेस्ट को मारते हैं, ख्याल मन को कमजोर बनाते हैं और डिज़ाइनर्स दिल को सुखा देती है। असली मास्टर दुनिया को बस ऑब्जर्व करता है, लेकिन सिर्फ अपनी इन्नर विज़न को ही ट्रस्ट करता है। वो बिना अटैच हुए चीजों को आने और जाने देता है और उसका दिल खुले आसमान की तरह अजाद होता है।","लाओत्से की ताओ ते चिंग केवल एक किताब नहीं है बल्कि अपने आप में एक अनुभव है। चीनी दार्शनिक रूपकों के माध्यम से अस्तित्व की प्रकृति की व्याख्या करते हैं। वह कहते हैं कि अस्तित्व की प्रकृति तर्कहीन है, और इसलिए सत्य को समझने के लिए आपको भी तर्कहीन होना होगा। तो, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम लाओ त्ज़ु की किताब से जीवन के 4 प्रमुख पाठों पर चर्चा करेंगे।" "अगर आप पर्सनल डेवलपमेंट में बिलीव करते हो और कॉन्स्टेंट ली इंटरनेट पर ऐसे आइडियाज़ और लोगों को ढूंढ़ते रहते हो, जो आपको आपकी सेल्फ अवेर्नेस बढ़ाने में मदद कर सके तो आई ऐम शुर आपने श्वेत। आप गंगवार का नाम जरूर सुना होगा। श्वेता अब एक थिंकर और प्रोफेशनल प्रॉब्लम सॉल्वर है, जो अपने यूट्यूब चैनल पर लोगों को यह समझाते हैं कि सोचते कैसे है और लाइफ की सबसे बड़ी प्रॉब्लम से कैसे डील करते है। सो आज के एपिसोड में हम श्वेता आपकी बुक के रूडा सबुकें वर में दिए टॉप थ्री पर्सपेक्टिव को डिस्कस करेंगे। जो साइकोलॉजिकली काफी डीप है नंबर वन एक फ्री थिंकर होने का मतलब है फ्रीली अननोन टेरिटरी में जाना। ये ले सन श्वेता आपने बुक के पहले चैपटर में डिस्कस करना है। जहाँ पर उन्होंने बताया है कि जिन लोगों को शुरू से नॉन एनवायरनमेंट में रखा जाता है और उन्हें बचपन से ही कई बिलीव सिस्टम्स या फिलॉसफी इसको फ़ैक्स की तरह पेश कर आ जाता है, वो लोग कभी भी नए आइडियाज़ को एक्स्प्लोर करना सीख ही नहीं पाते हैं। साइकोलॉजी भी यही बताती है कि अपनी थिंकिंग की लिमिट्स को इक्स्पैन्ड करने के लिए हमें कौनस्टेन्ट ली। कुछ ना कुछ नया चैलेंज चाहिए होता है पर जिन लोगों को शुरू से ये सिखाया होता है कि सोचना क्या है? वो कभी भी अपनी थिंकिंग इक्स्पैन्ड ही नहीं कर पाते हैं और जब भी उनके आगे एकदम एलियन सी प्रॉब्लम रख दी जाती हैं, जिनसे वह वाकिफ नहीं होते, वह या तो उस प्रॉब्लम को इग्नोर कर देते हैं या फिर उसका सलूशन दूसरे लोगों से पूछने लगते हैं। यही रीज़न है कि क्यों आज के टाइम पर इतने सारे लोग आपको सेल्फ हेल्प बुक्स बेच रहे हैं, इन्टरनेट पर रैन्डम कोर्सेस प्रोमोट कर रहे हैं या फिर आपको ये बता रहे है की सक्सेसफुल कैसे बने हैं? पर कोई भी आपको यह नहीं सीखा रहा कि आप आत्मनिर्भर बनकर सोचना कैसे सीख सकते हो। ताकि आपको बार बार किसी की एडवाइस की जरूरत ही ना पड़े और यह सिर्फ तभी पॉसिबल होगा जब आप अपने बिलीव्स को क्वेश्चन करना चालू करो गे अपनी जिंदगी की प्रॉब्लम्स के आन्सर, दूसरों से पूछने या फिर गूगल करने के बजाय खुद उन्हें सॉल्व करने की कोशिश करोगे और जिन आइडियाज़ को आप सीधा सीधा रिजेक्ट करते हो उन्हें एक्स्प्लोर करना शुरू करोगे। नंबर टू हॉलनेस कभी भी आउटसोर्स नहीं करि जा सकती। इसलिए सन् को श्वेताभ ने रिलेशनशिप और इंडिविजुअलिटी के कॉन्टैक्ट में समझाया है और ये बताया है कि किस तरह से जब हमारा सेन्स ऑफ सेल्फ इतना स्ट्रॉन्ग नहीं होता जब हम दूसरे लोगों पर रिलीज करते हैं कि वो हमें सच बताएंगे या फिर वो हमारी वैल्यू डिसाइड करेंगे। जीवन जिन लोगों को बचपन में किसी ऐसे काम को करते हुए टोका जाता है, जिससे उन्हें बहुत सेल्फ सैटिस्फैक्शन मिल रही थी, तब वो बच्चा अपनी इंडिविजुअलिटी को रिजेक्ट कर देता है और दूसरे लोगों से अप्रूवल मांगना शुरू कर देता है। इसी वजह से कई लोग सोचते हैं कि उन्हें एक रिलेशनशिप में जाने से कंप्लीट फील होगा या फिर दूसरे लोग उन्हें खुशी ला कर देंगे। पर असलियत में ऐसा कभी नहीं होता। आपकी खुशी का परमानेंट सोर्स सिर्फ आप खुद ही बन सकते हो। प्रताप इस आइडिया को एक स्टेप और ले जाकर ये बोलते है कि हैपिनेस से भी बढ़कर जो चीज़ है वो है सेल्फ सैटिस्फैक्शन जो कि अगेन सेल्फ अवेर्नेस की मदद से सेल्फ यानी अपनी ट्रू आइडेंटिटी के टच में आकर ही आती है। यानी जब आप होल बनते हो और अपनी मिसिंग या रिजेक्टेड पार्ट्स को वापस से ढूंढ़ते हो। साइकोलॉजी में होललिन्स और इंडिविजुअलिटी का कॉन्सेप्ट सबसे स्ट्रेटफॉरवर्ड ली कार में रखा है, जिनके हिसाब से होलनेस एक ऐसी स्टेट है, जिसमें आपका कॉन्शस माइंड और अनकॉन्शस माइंड साथ मिलकर काम करते हैं, पर जब भी आप सेल्फ अवेर्नेस खोकर गलत रास्ते पर निकल जाते हो तब जो भी चीज़ आपको सेल्फ के पास ले जा सकती है वो आपको ऑफ एंड करती है और काफी चुप्पी है। और जब तक हम अपने आप से ये क्वेश्चन पूछना चालु नहीं करते कि ये पर्टिकुलर आइडियास इंसान या टॉपिक हमे और फ्रेंड क्यों करते हैं? तब तक हम होल्ड नहीं बन सकते हैं। बुक में श्वेता ने इस कॉन्सेप्ट के लिए सेल्फ अवेर्नेस और इन्ट्रोस्पेक्शन जैसे वर्ड्स यूज़ करें है और वो भी आपको घूमा फिराकर इसी पॉइंट पर लाते है। जहाँ पर आपके कॉन्शस और अनकॉन्शियस प्रोसेसेस हारमनी में काम कर रहे होते हैं। यानी या तो आप अपनी जज, मेंस और रिएक्शन्स को क्वेश्चन करना चालू कर सकते हो या फिर आप छोटे छोटे इन्फॉर्मेशन पैकेट्स को अवॉर्ड करके ज़ीरो से स्टार्ट कर सकते हो, इस आइडिया के साथ कि आपको कुछ नहीं पता और आप हो इस तरह से जब आप करना चालू करो गे तब आपको मिले हर डेटा पॉइंट को आप एक नबियास वे में ऐनालाइज कर पाओगे और फाइनली होलनेस अचीव कर पाओगे। नंबर थ्री इंसानों को डीपी समझने के लिए छाई और बुराइ से ऊपर उठो, क्योंकि जब तक आप पूरी दुनिया और दुनिया में रहने वाले इंसानों को अच्छे या बुरे के साथ देखो गे, तब तक आप दूसरों पर अपनी ऐडमिशन या हेट प्रोजेक्ट करते हुए ये बोलते रहोगे कि कोई इंसान आपका हीरो है और कोई इंसान तो इस दुनिया में जिंदा रहना भी डिज़र्व नहीं करता। पर आपकी साइकोलॉजिकल ग्रोथ के लिए ये अन्डरस्टैन्डिंग बहुत जरूरी है कि कोई भी इंसान अपने आप में अच्छा या बुरा नहीं होता। हर इंसान को बस इंसान की तरह देखो जो कभी अच्छा काम करता है और कभी बुरा। स्वेता हमने बताया है कि हीरो उसका ये आइडिया हमें मूवीज़ और टीवी शो से मिलता है और उसके बाद ये आइडिया एक पैरासाइट की तरह हमारी थिंकिंग प्रोसेसेस को खराब कर देता है। अगर हम जोसेफ, कैंबल और कार्लिन जैसे थिंकर्स की बात कर रहे हैं जिन्होंने हिरोस और हीरो एक थॉट को काफी डीप स्टडी करा है तो वो बताते हैं कि हिरोस और आइडल्स कोई नए आइडियाज़ नहीं है, बल्कि महान हीरोज के किस्से तो हम सालों से सुनाते आ रहे हैं और यह हीरोज लोगों को यह समझाते आये है कि एक इंसान को दुनिया में किस तरह से ऐक्ट करना चाहिए। क्योंकि कुछ 100 साल पहले जब फिलॉसफी और साइकोलॉजी जैसी फील्ड का जन्म नहीं हुआ था, उससे पहले हमारे पास साइकोलॉजी समझाने के लिए सिर्फ स्टोरीज़ ही थी। यानी हमारी साइट में एक हाइएस्ट आइडिल को रखने की जगह पहले से ही बनी हुई है। पर जब हम इस जगह को मूवी, ऐक्टर्स या फिर टीवी शो के कैरेक्टर्स से भर लेते हैं तब सारी प्रॉब्लम शुरू होती है क्योंकि इस केस में हम अपने जैसे ही एक दूसरे इंसान को भगवान की तरह ट्रीट करने लगते हैं और यह सोचते हैं कि वो कभी कुछ गलत काम कर ही नहीं सकता। यहाँ तक कि हम लॉजिकली ये एक्सपेक्ट करते हैं कि जैसे जैसे हम बड़े होंगे और मैच्योर बनेंगे, वैसे वैसे हम इन सिंपल गुड और बैड जैसे आइडियाज़ को आउट ग्रो कर लेंगे पर बड़े होने के बाद भी हम पॉलिटिक्स में अच्छे और बुरे लोगों को ढूंढ रहे होते हैं। जिसकी से हम मिलते हैं उस पर भी अच्छा या बुरा का लेबल लगा देते हैं और कभी भी ये कौन सी डर ही नहीं करते कि इंसानों की जो इमेज हम बनाकर बैठे हैं, क्या वह सच भी है? इसलिए इस अच्छाई और बुराइ के ट्रैप से बाहर निकलने के लिए सबसे पहले ये मानो कि आप में बाकी हर इंसान की तरह छाई के साथ साथ बुराइ करने की क्षमता भी है और आप शायद अननोइंगली बुरे काम करते भी हो। आपके अंदर की जजमेंट से तब तक कम नहीं होंगी जब तक आप दुनिया को ओवर सिंप्लिफाइ करने के बजाय अच्छा ई और बुरा ई सही और गलत। दोनों साइड्स को इक्वलिटी रीड करना नहीं स्टार्ट करते हैं और अपने आप को बुरा करने के केपेबल नहीं समझते हैं। जब आप किसी इंसान को अच्छा या बुरा नहीं समझते, सिर्फ तभी आप उसकी इंसानियत देख सकते हो और दुनिया में चाहे कुछ भी हो या फिर कोई इंसान आपके साथ कितना भी बुरा करें आपके लिए कोई भी चीज़ शॉकिंग या अनएक्सपेक्टेड नहीं होगी क्योंकि अब आप ह्यूमन बिहेव्यर समझ चूके हो?","श्वेताभ गंगवार उर्फ मेंसुत्रा की "द रुडेस्ट बुक एवर" नाम की स्वयं सहायता पुस्तक युवाओं के लिए व्यक्तिगत विकास की पुस्तकों में से एक बन गई है। पुस्तक में दिए गए जीवन के सबक समझने में आसान हैं, लेकिन कुछ के लिए आक्रामक हैं। बहरहाल, इस पुस्तक से कई गहरे मनोवैज्ञानिक सबक निकाले जा सकते हैं। इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, मैं ऐसे 3 पाठों पर जाता हूं और उन्हें मनोवैज्ञानिक लेंस का उपयोग करके समझाता हूं। 📽️ हमें यूट्यूब पर ढूंढें: WWW.YOUTUBE.COM/PSYCHOLOGYINHINDI" "जवानी और ऐडल्ट हुड में ट्रान्ज़ैक्शन एक बहुत ही एक्साइटिंग समय होता है लेकिन जब भी कोई चीज़ बहुत ज्यादा एक्साइटिंग और साथ ही साथ कनफ्यूज़िंग होती है तब वहाँ पर बहुत सी चीजो का गलत होना भी तय होता है। हम अपनी लाइफ में क्या और कितना कर पाएंगे वो बहुत हद तक इन बातों पर डिपेंड करता है कि हम अपने यूथ में क्या काम करते हैं और कितनी गलतियाँ करते हैं। आप अपनी लाइफ के इस फेस में या तो एक हेडस्टार्ट लेकर ऑलरेडी रेस को जीतना शुरू कर सकते हो या फिर आप अपने आस पास के हर इंसान के लिए एक बुरे एग्जाम्पल बन सकते हो। इसलिए एपिसोड आपको यूथ में करी गई सबसे कॉमन मिस्टेक्स के बारे में एजुकेट करेगा, ताकि इन फालतू की मिस्टेक्स को अवॉर्ड करके आप जल्दी से जल्दी अपनी लाइफ को सही ट्रैक पर ला पाओ। मिस्टेक नंबर वन थिंकिंग दैट लव इस एनफ टु सस्टेन रिलेशनशिप आपको अपनी जवानी में ये चीज़ समझना बहुत जरूरी है कि रिलेशनशिप्स आपकी सोच से काफी ज्यादा कॉम्प्लेक्स होते हैं और वो सिर्फ प्यार या फिर इंटिमेसी के बेसिस पर नहीं चल सकते हैं। जिसतरह से एक गाडी को चलने के लिए टाइर्स चाहिए होते है उन टाइर्स में सही अमाउंट की हवा होनी चाहिए। शशी की अलाइनमेंट सही होनी चाहिए। इन जिनमें ऑइल और उसके पिस्टन्स की हेल्थ भी अच्छी होनी चाहिए और एक गाड़ी की ही तरह एक हेल्थी रिलेशनशिप के भी बहुत से इम्पोर्टेन्ट कॉम्पोनेंट्स होते है। जैसे कई बार दो लोग एक लॉन्ग टर्म रिलेशनशिप में होने के बावजूद पैसों, पैशन या फिर पर्सनल गोल्स के बारे में कोई बात ही नहीं करते हैं। उन्हें लगता है कि इन टॉपिक्स पर बात करना रूड या फिर ऑक्वर्ड होगा, लेकिन यह चीजें पता होना बहुत ज़रूरी होती है कि पैसा कितना आ रहा है और उस पैसे को किन चीजों पर स्पेंड करना है। दोनों लोगों के इनडिविजुअल गोल्स क्या है? और क्या उस रिलेशनशिप को कोई चीज़ मुरली चलने से रोक तो नहीं रही? प्यार बस एक रिलेशनशिप का फ्यूल होता है, लेकिन प्यार के साथ साथ आपको इस कॉम्प्लेक्स वीइकल की मेन्टेन्स करनी भी आनी चाहिए। इस इन साइट को हमेशा याद रखना कि बेस्ट रिलेशनशिप सिर्फ तभी सस्टेन कर पाते हैं जब प्यार के अलावा दो लोगों की वैल्यू स् और गोल्स भी मिलते जुलते हों। मिस्टेक नंबर टू लाउनिंग पैरेन्ट्स टू चूज देर करिअर पाथ इंडिया में ये चीज़ वेस्ट से ज्यादा कॉमन है कि पैरंट्स के पास एक बच्चे से ज्यादा अथॉरिटी होती है। उसके फ्यूचर और कैरिअर को डिसाइड करने के लिए और यह एक बहुत ही स्टूपिड चीज़ है। हर इंसान को पहले तो कॉन्शस ली, सोचने की स्किल सिखाई जानी चाहिए, बजाए अनकॉन्शियस ली ऐक्ट करने के और उन्हें खुद की लाइफ में सही रास्ता चूज करने और गलतियाँ करने की फ्रीडम भी देनी चाहिए। जस्ट बिकॉज़ अगर वो कोई गलत कदम भी ले तो वो जिंदगीभर अपने पैरेन्ट्स को कोसने और बेहतर बनने के बजाय खुद अपनी जिंदगी की रिस्पॉन्सिबिलिटी लेना सीख सकें और बेटर डिसिशन्स कैसे लिए जाते हैं, यह समझ सकें है। बहुत बार यंग लोग अपने पैरेन्ट्स के कहने पर वह कोर्स या फिर वो जॉब चुन लेते हैं। जिनमें उन्हें कोई फुलफिलमेंट नहीं मिलती और उन्हें जबरदस्ती खुद को काम करने के लिए घसीटना पड़ता है। इसलिए चाहे आपको अपनी फैमिली के साथ कई बार बैठकर अपने कैरिअर के बारे में डिबेट करनी पड़े या फिर उन्हें अपनी विशेष के बारे में समझाना पड़े या चाहे आपको पूरी रिसर्च करके अपनी आर्ग्यूमेंट को स्ट्रांग बनाना पड़ेगा, कुछ भी करो, लेकिन फ्यूचर के से बचने के लिए कोशिश ये करो कि आप अपने करियर के सबसे बड़े डिसिशन्स खुद ही लो। मिस्टेक नंबर थ्री नॉट रीडिंग ग्रेट बुक्स अगर आप नेचर में नहीं पले बढ़े और शुरू से उनके साथ नहीं रहे हो, तो आपको भी एक सही माइंडसेट डिवेलप करने के लिए महा लोगों की बुक्स को पढ़ना ही होगा। बुक्स अच्छी पेन्टिंग की कमी और एक बुरे एजुकेशन सिस्टम के छोड़ेंगे ऐप्स को बहुत अच्छे से भर सकती है। इस तरह से आप अपने टीनेज इयर्स या फिर 2430 डेज़ में भी उस विजडम को हासिल कर पाओगे जिसे हासिल करने में कई लोगों को अपनी पूरी जिंदगी लग गई और इससे ज्यादा बड़ी एडवांटेज एक यंग इंसान के लिए कुछ नहीं हो सकती है। इसलिए इवन अगर आप अपने बाकी कामों में भी बीज़ी रहते हो तब भी दिन के एटलिस्ट 30 मिनट किसी भी क्लासिकल बुक को जरूर दो और देखो कि आपने कितनी जल्दी बदलाव आना चालू होते है। मिस्टेक नंबर फ़ोर नॉट डेवलपिंग कम्यूनिकेशन स्किल्स ऐंड क्रिटिकल थिंकिंग हमेशा से ही सोसाइटी ऐवरेज लोगों से यह डिमांड करती आई है कि हर इंसान ग्रुप थिंकिंग से बाहर ना सोचे। सोसाइटी आपको क्रिटिकल ली, सोचने और मेन स्ट्रीम नैरेटिव से कुछ भी अलग बोलने पर करेगी और आपको हर तरह से मैनिपुलेट कर आ जाएगा ताकि आप भी एक कंपल्सिव अनकॉन्शियस और ओपीडी इंसान ही बने रहो। ऐसे में हर यंग इंसान और स्पेशल ईमेल्स के लिए ये बहुत जरूरी है कि वो अपने थॉट्स को क्लियरली एक्सप्रेस कर पाए और क्रिटिकली सोच पाए। अपने आइडियाज़ को डिफेंड करने के लिए ये चीज़ आपको स्कूल या फिर कॉलेज में नहीं सिखाई जाएगी। आपको बस यह बता दिया जाएगा कि आपको सोचना क्या है, लेकिन सोचा कि इस तरह से जाता है ये कोई नहीं सीखाता इसलिए अपने कम्यूनिकेशन और थिंकिंग एबिलिटीज़ की खुद रिस्पॉन्सिबिलिटी लो और खुद के ख्यालों में क्लैरिटी लाओ। उन्हें क्लियरली एक्सप्रेस करने की प्रैक्टिस करके मिस्टेक नंबर फाइव इन्वेस्टिंग विदाउट रिसर्च इन गं अर्ली एज में इन्वेस्ट करना बहुत ज़रूरी होता है कंपाउंडिंग इफेक्ट का बेनिफिट लेने के लिए लेकिन इन्वेस्ट किन चीजों में करना है इस पर वॉरेन बफेट बोलते है कि सिर्फ उन चीजों में ही अपना हार्ड मनी इन्वेस्ट करो जो आपको समझ आती है और जिनसे आप बहुत ज्यादा फैमिलियर हो। हर नए ट्रेंड और न्यूज़ में नहीं, बल्कि लॉन्ग लास्टिंग और एवरग्रीन कंपनीस में इन्वेस्ट करो। मिस्टेक नंबर सिक्स सिम पिंग आज मीडिया की ब्रेनवॉशिंग ने बहुत सी फीमेल्स को यह झूठा मैसेज प्रोमोट करने के लिए प्रोग्राम कर दिया है कि उन्हें तो स्वीट नाइस और ड्यूटीफुल मेल्स ही पसंद है, जबकि असलियत इसके एकदम ऑपोजिट है और फीमेल्स को ऐडवेंचरस करेजियस और ऐसे मेल्स अट्रैक्ट करते हैं जो इन टि में डेटिंग हो, लेकिन बहुत से मेल्स, मीडिया और फीमेल्स की बातों को सच मानकर एक्चुअल में काफी ओबीडीअन्स बन चूके हैं और बिना किसी रीज़न के फीमेल्स को टेंशन दे रहे हैं। गाइस इस बात को क्लियरली समझो मेल्स के अटेन्शन एक रिलेशनशिप में उन्हें या तो ज्यादा इंट्रेस्टिंग और अट्रैक्टिव बना सकती है या फिर जरूरत से ज्यादा होने पर वह सारी अट्रैक्शन को खत्म भी कर सकती है। अगर आपकी टेंशन और समय की कोई कीमत नहीं है, तो फीमेल्स भी आपके पूरे कलेक्टर को ऐसे ही देखेंगी कि अगर ये इंसान मेरे पीछे इतना ज्यादा भाग रहा है तो जरूर इसकी वैल्यू मेरे से कम ही होगी और मुझे इससे एक बेटर मेल मिल सकता है। फीमेल्स की बातों पर नहीं, उनके ऐक्शन पर फोकस करो और उनके एक्शन्स यही बोलते हैं कि उन्हें एक बोरिंग, आज्ञाकारी और हमेशा अवेलेबल सिम नहीं बल्कि एक डोमेन मिल चाहिए जिसमें अग्रेशन और जेंटलनेस का प्रॉपर बैंलेंस हो।","युवावस्था और वयस्कता में परिवर्तन वास्तव में रोमांचक लेकिन भ्रमित करने वाला समय होता है, इसलिए हम में से कई लोग बहुत सारी गलतियाँ करते हैं जिनसे बचा जा सकता है। हर युवा या तो अपने साथियों के लिए प्रेरणा बन सकता है या एक बुरा उदाहरण। इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम उन 6 सबसे आम गलतियों पर चर्चा करेंगे जो एक आम युवा करता है।" "इररेजिस्टिबल बनने का मतलब है कि दूसरे लोग बिना समझे और विदाउट एनी रीज़न आपसे अट्रैक्ट हुए हैं। उन्हें यह पता ही ना हो कि आप उन्हें क्यों इतने पसंद आ रहे हो। असली चाम और अट्रैक्टिवनेस ऐसी ही होती है जो लोगों पर एक जादू सा कर दें। इसलिए अब बात करते हैं उन तरीकों की जो आपको इररेजिस्टिबल बनाएंगे नंबर वन बिकम सुपिरिअर इन सम और मेनी एरियाज़ ऑफ लाइफ एक असली इररेजिस्टिबल पर्सन बहुत ही होलिस्टिक होता है और उसकी यूनीक क्वालिटी होती है। उसकी लाइफ के कई अलग एरियाज की जानकारी या फिर उनमें महारथ एग्जाम्पल के तौर पर एक इंसान जो फिज़िकली बहुत ही फिट और अट्रैक्टिव है, वह सिर्फ एक सर्टन लेवल तक ही दूसरों को अपनी तरफ अट्रैक्ट कर सकता है। लेकिन अगर आप उसकी फिजिकल ब्यूटी में इन्टेलिजेन्स और नॉलेज भी +2 तो लोग उसे एक ऐवरेज ब्यूटीफुल इंसान से ज्यादा यूनीक मानने लगेंगे। जितनी ज्यादा क्वालिटीज आप एक्वायर कर सकते हो, खुद की वैल्यू बढ़ाने के लिए उतनी ही क्वालिटीज को मास्टर करो। आप का गोल सिर्फ और सिर्फ अट्रैक्टिवनेस सिर्फ और सिर्फ नॉलेज या फिर सिर्फ पैसा नहीं होना चाहिए। एक चीज़ का पीछा करने से आप बाकी 10 चीजों में पीछे रह जाओगे और आपके जैसे दुनिया में हजारों लोग और होंगे जो आपको किसी भी समय रिप्लेस कर सकते हैं। इसलिए होलिस्टिक बना हो और एक ऑलराउंडर ह्यूमन बीइंग कैसा होता है ये समझो जब आप भी इस तरह से खुद को एक यूनीक पैकेज में कन्वर्ट कर लोगे तब दूसरों के लिए आप बिलकुल इस इस टेबल बन जाओगे। नंबर टू मेक योर कॉन्वर्सेशन्स एन्जॉय बल फॉर बोथ ऑफ यू किसी भी अच्छी कॉन्वरसेशन में जहाँ आप दूसरे इंसान की नजरों में चार्मिंग, अट्रैक्टिव और बहुत ही लाइकेबल देखना चाहते हों, तब आप का गोल उस कन्वर्सेशन को डोमिनेट करना या फिर खुद को सबसे बेहतर दिखाना नहीं, बल्कि आपका गोल होना चाहिए। उन कुछ मोमेंट्स खुद के लिए और दूसरे इंसान के लिए जॉयफुल और मेमोरेबल बनाना। जब आप इस टारगेट के साथ किसी के साथ बात करना शुरू करते हो, तब नैचुरली आप अपनी सबसे एन्गेजिंग और इंट्रेस्टिंग साइट को बाहर आने देते हो। बहुत से लोग खुद को बोरिंग और अन्य अट्रैक्टिव मानते है। जस्ट बिकॉज़ उन्हें ये मालूम ही नहीं है कि वो अपने चार्म को सर ऑफिस पर आने से खुद ही रोक रहे हैं। इसलिए अनलेस आप किसी सीरियस टॉपिक पर बात कर रहे हो। हर इंटरैक्शन या कॉन्वरसेशन को मस्ती के मौके की तरह देखो। नंबर थ्री नेवर रिजेक्ट योरसेल्फ इन योर इमैजिनेशन ये गलती बहुत से वो लोग करते हैं जो किसी इंसान को इम्प्रेस करना चाहते हैं, लेकिन उन्हें मिलने से पहले ही खुद के दिमाग में अलग अलग कहानियाँ बनाने लगते हैं और जजमेंट के डर की वजह से यह सोच लेते हैं कि उन्हें तो पक्का रिजेक्शन ही फेस करना पड़ेगा। जर्मनी फिलॉसफर फ्रेड्रिक नीचे बोलते है कि असली दुनिया बहुत छोटी होती है। हमारी काल्पनिक दुनिया से। यानी रिऐलिटी उतनी कॉम्प्लेक्स और कन्फ्यूजन नहीं है जितना हम उसे अपने दिमाग में बना लेते है। अगर आप ये एक्सपेक्ट करोगे कि आप फेल ही होंगे तो आप अनकॉन्शियस ली, हर वो काम करोगे जिससे आपकी एक्स्पेक्टेशन असलियत बन जाए। इसलिए अगर आप इ रेजिस्टेबल बनना चाहते हो तो इस चीज़ से खुद को कौन सर नहीं मत रखो कि आपको रिजेक्ट या फिर एक्सेप्ट करा जाएगा। आपकी सेल्फ एस्टीम इन चीजों पर नहीं बल्कि खुद की काबिलियत पर बेस्ड होनी चाहिए। नंबर फ़ोर अन रियलिस्टिक सेल्फ बिलीफ सेल्फ बिलीफ बहुत डिफरेंट होता है ओवर कॉन्फिडेन्स से ओवर कॉन्फिडेन्स में आपके पास दिखाने के लिए कुछ नहीं होता और अब बस खुद की ईगो को बचाने के लिए खुद की तारीफें करते रहते हो, लेकिन एक अनरियलिस्टिक सेल्फ बिलीफ होने का मतलब है कि आप के साथ चाहे जितना भी बुरा क्यों ना हो जाए। आपको यह पता होता है कि आप खुद को उस सिचुएशन से किसी भी तरह बाहर निकाल ही लोगे। अगर आप अभी पुअर हो तो तब भी आपके शरीर में मौजूद एक एक्सेल चीख कर ये बोल रहा होता है कि आप 1 दिन रिच और सक्सेसफुल बनो। गे कई लोगों के लिए ऐसी बातें अनरियलिस्टिक या फिर घमंड जैसी साउंड करती है। लेकिन बहुत से लोग आपके इस बिहेव्यर में सच्चाई को ढूंढ पाएंगे और वो आपकी जर्नी। मैं आपके साथ जोड़ने की कोशिश करेंगे। आपको हर इंसान के आगे अपने सेल्फ बिलीफ को दिखाने के लिए बड़ी बड़ी बातें नहीं करनी कि आप अपनी लाइफ में कितनी ऊंचाइयों को छुएंगे। या फिर आप कितने स्पेशल हो? आपने ज्यादातर समय अपने सेल्फ बिलीफ को क्वाइट कॉन्फिडेंस के रूप में दूसरों को दिखाना है। रशियन ऑथर आइरन बोलती थी कि मैंने अपनी जिंदगी बस इस अकेली सोच के साथ शुरू कर दी थी कि दुनिया मेरी है और मैं उसे अपनी हाइएस्ट वैल्यू उसके अकॉर्डिंग शेप दे सकती हूँ और इस स्टैन्डर्ड से नीचे सेटल करना एक ऑप्शन नहीं है, चाहे मेरी स्ट्रगल कितनी भी इंटेन्स और लंबी क्यों ना हो। यह होता है अनरियलिस्टिक सेल्फ बिलीफ क्योंकि एक नॉर्मल इंसान कभी भी ये बोलने की हिम्मत नहीं करेगा कि दुनिया मेरी है और मैं उसे अपनी मर्जी से डाल सकता हूँ। ऐसी बातें सिर्फ महान लोगों के मुँह से निकलती हैं क्योंकि वो उन चीजों को करने के लिए पैदा होते हैं जो कोई भी दूसरा इंसान नहीं कर सकता और इसी वजह से ऐसे लोग अपने हर चाहने वाले के लिए इररेजिस्टिबल बन जाते हैं। नंबर फाइव यूज़ के करेक्ट मैनरिजम स् एक ऋषि स्टेबल पर्सन को हर परिस्थिति और हर इंसान के साथ डील करना आता है। जहाँ कई लोगों को इस बात का आइडिया ही नहीं होता कि उन्हें एक डेट पर एक मीटिंग में किसी से बात करते हुए या फिर कुछ खाते हुए कैसे बिहेव करना चाहिए, वहीं इररेजिस्टिबल पर्सन बेसिक मैनर इस मस्का मास्टर होता है। उसे पता होता है कि किसी ओकेशन के लिए एप्रोप्रियेट ली ड्रेस कैसे करना है, कब उसे बोलने के बजाय बस चुप होकर सुनना है और किस तरह उसे अपनी बॉडी लैंग्वेज का यूज़ करना है। अपनी बातों को भारी और ज्यादा इफेक्टिव बनाने के लिए ये चीजें समझ आती है। प्रैक्टिस और इक्स्पिरीयन्स है। यानी अगर आप अभी तक वैलिड ऐनस और बेसिक एटिकेट्स जैसी क्वालिटीज को एम बॉडी नहीं कर पाए हों तो कोई बात नहीं। हर महान इंसान खुद को एक खूबसूरत मूर्ति की तरह तलाशता है और तब जाकर उसकी अच्छी क्वालिटीज बाकी लोगों को भी देख पाती है। इसलिए खुद पर काम करना शुरू करो। और ये सीखो की एक जेंटलमैन या फिर एक क्लासिक लेडी की तरह बिहेव कैसे करा जाता है?",अप्रतिरोध्य होने का अर्थ है बिना एक शब्द कहे दूसरों को आकर्षित करना और उन्हें यह सोचने पर मजबूर करना कि वे बिना किसी विशेष कारण के आपके बारे में इतने पागल क्यों हो रहे हैं। वास्तविक आकर्षण और आकर्षण दूसरों पर जादू की तरह काम करता है और इसीलिए इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम अप्रतिरोध्य रूप से आकर्षक बनने के 5 रहस्यों के बारे में बात करेंगे। "हर इंसान अपने पैदा होने के समय से ही फ्रीडम और क्रिएटिविटी के साथ नहीं आता, बल्कि असलियत में हम एक इन्कम्प्लीट और अन् रियल इस्टेट में पैदा होते हैं और हमारा काम है कि हम अपनी सोसाइटी, बाकी लोगों और खुद के बनाए पिंजरों को तोड़कर एक बने हैं। अपनी बुक में जर्मन फिलॉसफर फ्रेड्रिक नीचा ने बताया है कि हमें एक फ्री स्पिरिट बनने के लिए तीन ट्रांसफॉर्मेशन से या फिर स्टेज से गुजरना होगा। इन तीन स्टेजेस को पूरा करके एक इंसान पहली बार एक प्युर इनडिविजुअल बनता है, जो दूसरे लोगों से अलग सोच पाता है और सोसाइटी को आगे बढ़ा पाता है। ट्रांसफॉर्मेशन का पहला स्टेज होता है कैमल। अगर हम सोचें कि असली लाइफ में एक कैमल का क्या रोल होता है तो वो दूसरों के लिए भारी सामान उठाता है और जब हम कैमल स्टेज पर होते हैं यानी जब हम लगभग 20 से 25 साल की उम्र से छोटे होते हैं तब हम सोसाइटी, स्कूल, कॉलेज या अपने पैरेन्ट्स के लिए बाहर को एक्सेप्ट करते है और जैसे जैसे हम बड़े होते हैं वैसे वैसे ये भार भी बढ़ता जाता है। लेकिन नीचा के हिसाब से यह अपने आप में एक नेगेटिव चीज़ नहीं है, क्योंकि अगर हम एक फ्री स्पिरिट बनना चाहते हैं तो उससे पहले हमें प्यार डर, धोखा, क्युरिऑसिटी ये गुस्से जैसी चीजों को ढंग से चखना पड़ेगा और एक कैमल को इन चैलेंजेस को अपनी ड्यूटी की तरह देखना चाहिए। इस स्टेज में हम पढ़ते हैं, अपने आप को एजुकेट करते हैं और अपने कल्चर या पैरेन्ट्स की भी वैल्यूज़ को अब ज़ोर करते हैं। यानी एक सेन्स में कैमल पिछली जेनरेशन स्की इन साइट्स या आइडियाज़ को कैर्री फॉरवर्ड कर रहा होता है और उन्हें मरने से बचा रहा होता है। शुरू में कैमल को इसमें कुछ गलत नहीं लगता और वो इस बढ़ते हुए बाहर को बिना कुछ सोचे समझे उठाकर आगे बढ़ रहा होता है। सोसाइटी के दूसरे लोग भी आपसे खुश होते हैं। क्योंकि आप वो सब कर रहे होते हो जो आपको बोला गया होता है, आप उनका वेट उठाकर उनकी मदद कर रहे होते हो। एग्जाम्पल के तौर पर एक इंसान अपने पैरेन्ट्स की सिखाई वैल्यूज़ को फॉलो करता है जो उसे स्कूल में सिखाया जाता है, उसे याद करके अच्छे मार्क्स लाने की कोशिश करता है। फिर कॉलेज जाता है और उसके बाद एक अच्छी जॉब ढूंढ कर कुछ पैसे कमाने की कोशिश करता है। हाउएवर एक पॉइंट के बाद कैमल अपनी इन रिस्पॉन्सिबिलिटी से थककर बर्न आउट हो जाता है और अपने आप को लोनली डेज़र्ट में पाता है। यह डेज़र्ट सिंबला इस करता है एग्ज़िस्टन्स क्राइसिस को यहाँ पर कैमल अपनी हर वैल्यू टीचिंग और बिलीव्स को क्वेश्चन करने लगता है और ये सोचने लगता है कि क्या ये सारी इन्फॉर्मेशन किसी काम की भी है या क्या वह बस दूसरों की वैल्यू उसको अपनी वैल्यू समझकर अपनी जिंदगी जी रहा है? इस क्राइसिस में स्पिरिट की दूसरी ट्रांसफॉर्मेशन होती है, जो है लायन। ये लायन ऑफ फ्रीडम जाता है। लेकिन इस फ्रीडम को पाने के लिए लाइन कोठे ग्रेट ड्रैगन का सामना करना होगा के ग्रेट ड्रैगन सिंबला इस करता है। सदियों से चलती आ रही वैल्यूज़ और टीचिंग उसको उसके शरीर पर हजारों सालों की वो वैल्यूज़ लिखी हुई है जो हमें बताती है कि हमें क्या करना चाहिए। ड्रैगन बोलता है। सारी वैल्यूज़ ऑलरेडी बन चुकी है और कोई भी इंसान इनके अलावा कोई नई वैल्यू नहीं बना सकता। लेकिन अपनी डेवलपमेंट की इस लेवल पर लाइन इन वैल्यू उसको कभी ना बदलने वाले रोज़ की तरह नहीं बल्कि वो इन्हें एक ऑप्शन की तरह देखता है जिसे वो रिजेक्ट भी कर सकता है। जहाँ कैमल पुरानी वैल्यू उसको बिना क्वेश्चन करे बचा रहा था वहीं लाइन् पुरानी वैल्यू उसको क्वेश्चन करके उन्हें डिस्ट्रॉय कर रहा है क्योंकि उसके हिसाब से कल्चर की कई वैल्यूज़ टाइम के साथ साथ यूज़लेस हो जाती है और लोगों को आगे बढ़ने या ग्रो करने से रोकती है। लाइन ये फिगर आउट करने की कोशिश करता है। कि वो कौन सी बातें या कौन से आइडियास थे जिन्होंने उसको एक पिंजरे में रखा हुआ था और यह एक बहुत हार्ड प्रोसेसर होता है क्योंकि जब भी आप सोसाइटल वैल्यू उसके अगेन्स्ट जाते हो तब ना तो आपको दूसरे लोग सपोर्ट करते है। वो आपको शक भरी निगाहों से जज करते हैं और ऊपर से जब आप पुरानी वैल्यू उसको रिजेक्ट कर देते हो तब आपके पास फॉलो करने के लिए कुछ बचता ही नहीं है। जो नक्शा आपको सबसे कॉमन और सेफ डेस्टिनेशन पर ले जा रहा था, आप उस नक्शे को भी फाड़ देते हो। ऐसे में एक इंसान निहाई लिस्टिंग फेस में एंटर कर जाता है। यानी वो बोलता है की लाइफ का कोई पैरेंट मीनिंग नहीं है। एग्ज़िस्टन्स पर्पस लैस है और हर चीज़ जिसे सही या गलत करार कर दिया जाता है, वो भी हमारी ही बनाई वैल्यूज़ हैं। यही रीज़न है कि क्यों ज्यादातर लोग तो कभी भी कैमल स्टेज से निकलकर लाइन स्टेज तक पहुँच ही नहीं पाते। जस्ट बिकॉज़ ये स्टेज आपके पुराने वर्जन को टोटली मार देता है ताकि आप के नए वर्जन के लिए जगह बन सके। हाउएवर कई लोग इसी स्टेज में अटक जाते हैं और पूरे समय ट्रैडिशनल वैल्यू सौर अपने की टीचिंग को ही गलत प्रूफ करने में लगे रहते हैं। लेकिन नीचा इस बारे में काफी क्लिअर है कि लाइन वाला फेस जहाँ आप अपनी पुरानी वैल्यू उसको क्वेश्चन करते हो, वो बस ट्रांजिशनल फेस है ना की आपकी जर्नी का एंड फेस और जस्ट बिकॉज़ लाइन भी नहीं वैल्यू ढूंढने और उन्हें अपनाने के काबिल नहीं है स्पिरिट तीसरी बार ट्रांसफॉर्म होती है चाइल्ड में जहाँ कैमल पुरानी वैल्यू उसको प्रिज़र्व कर रहा था, लाइन उन वैल्यूज़ में से यूज़लेस रूल्स को डिस्ट्रॉय कर रहा था। वहीं अब चाइल्ड फोकस करता है। क्रिएशन पर नीचे बोलते है की वो ऐसा क्या काम है जो एक लाइन नहीं कर सकता, लेकिन एक बच्चा कर सकता है। क्यों एक शिकार करने वाले जानवर को बच्चा बनना चाहिए? यह इसलिए क्योंकि एक बच्चा एक नई शुरुआत और एक नए यश को सिविल लाइंस करता है। जीस तरह से एक बच्चा खेलते समय अपने इंट्रेस्ट को फॉलो करता है और उसके इंट्रेस्ट ही उसकी हाइएस्ट वैल्यूज़ की जगह लेते है। वैसे ही हमें भी उन चीजों को फॉलो करना चाहिए जो हमारी अटेन्शन को अपनी तरफ खींचती है और ऐसा रिज़ल्ट हमे चैलेंज करती है। एक बच्चा कभी भी खेलते समय यह नहीं सोचता कि उसके ऊपर उसके इंट्रेस्ट का भार है। वो बस कभी एक चीज़ से खेलता है और कभी दूसरी से और ऐसे ही वो नहीं इन्फॉर्मेशन को डिस् कवर करके अपनी नॉलेज को बढ़ाता है। चाइल्ड एक नई शुरुआत है, जो अपनी ही मर्जी की करता है। और अपनी ही वैल्यू उसको फॉलो करता है। उसमें पास की गलतियों से सीखकर फ्यूचर को बेहतर बनाने की पोटेंशिअल है। इसलिए एक बच्चे के जैसे बनो हर चीज़ किसी अजेंडा या पर्सनल गेम के लिए नहीं बल्कि कई चीजें सिर्फ उससे मिलने वाले मज़े के लिए भी करो। नीचा बोलते है की लाइफ एक ऐसी चीज़ है जो अपने आप को ओवर कम यानी अपने ऊपर ही जीत हासिल करती है। कन्टिन्यूसली बेटर बनाना और अपने पुराने वर्जन को मार के ज्यादा पॉवरफुल और क्रिएटिव बनना यही लाइफ का गोल होता है और लाइफ के ये तीनों स्टेजेस इसी फैक्ट को दर्शाते हैं।","जर्मन दार्शनिक फ्रेडरिक नीत्शे ने अपनी पुस्तक "दस स्पोक जरथुस्त्रा" में उन 3 परिवर्तनों का वर्णन किया है जो एक व्यक्ति को वास्तव में स्वतंत्र होने और अबाधित रचनात्मकता के लिए करने चाहिए। हर चरण में एक उत्प्रेरक होता है जो व्यक्ति के विकास को गति देता है और आत्मा को और विकसित करने की मांग करता है। जीवन के इन 3 चरणों के बारे में जानने के लिए पूरे पॉडकास्ट सेगमेंट को सुनें, एक अस्तित्वगत संकट या शून्यवाद का सामना क्यों करना पड़ता है, और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि खुद को दूर करने के लिए खुद को कैसे उन्मुख करना चाहिए।" "चाहे आप ये एक्सेप्ट करो या नहीं, लेकिन दूसरे लोग हमें लाइक करते है या डिस्लाइक यह हमारे लिए बहुत मैटर करता है। हम बोलते तो है कि हमें दूसरों के ओपिनियन्स की बिल्कुल नहीं पड़ी, लेकिन जस्ट बिकॉज़ हम इंसान सोशल रहने के लिए इवॉल्व हुए हैं। जीस भी इंसान को ये फैक्ट चिंता में नहीं डालता कि उसके आसपास के ऑलमोस्ट सारे लोग ही उसे डिस्लाइक करते हैं तो वो पक्का एक साइकोपैथ है क्योंकि नोर्मल्ली एक हेल्थी इंसान ये चाहता है कि लोग उसे पसंद करें, अपने ग्रुप में इनवाइट करे और मुश्किल पड़ने पर उसकी मदद करे। जीस वजह से अगर बहुत से लोग आपको डिस्लाइक करते हैं और जहाँ भी आप जाओ वहाँ आप जल्द ही नए दुश्मन बना लेते हो। तो आपको यह पॉसिबिलिटी कन्सिडर्ड करनी चाहिए कि कहीं आपकी ही कई ऐसी हैबिट्स तो नहीं है जो लोगों को बार बार आपसे दूर कर देती है? इस एपिसोड में हम कुछ ऐसी ही हैबिट्स को डिस्कस करेंगे। नंबर वन सेल्फिश नेस लोगों को कभी भी एक सेल्फ सेंटर्ड इंसान पसंद नहीं आता क्योंकि वो हमेशा अपनी नीड्स को लेकर ही कॉन्सर्ट रहता है और दूसरों की नीड्स को इग्नोर कर देता है। इसकी लाइफ उसके आस पास ही रिजॉल्व करती है और वह ईगोइस्टिक बन जाता है। अगर आप इस तरह से अपनी अटेन्शन और अहमियत खुद की तरफ रखने और सेल्फिश बनने के बजाय दूसरों को भी वो केर और अटेन्शन दोगे जो वो डिज़र्व करते हैं। उस केस में ज्यादातर लोग आपको डिस्लाइक करने के बजाय आपकी तरफ अट्रैक्ट होंगे क्योंकि ज्यादातर लोग किसी दूसरे से आई अटेन्शन और नेक इरादों की बहुत परवाह करते हैं और वो ऐसे इंसान की हमेशा मदद करते हैं। इसलिए अगर आप दूसरों की नजर में लाइकेबल बनना चाहते हो तो पहले उन्हें ऐसा ट्रीट करो जैसे वह लाइकेबल है। नंबर टू कॉन्स्टेंट, नेगेटिविटी ऐंड ऑलवेज कंप्लेन इन हर सिचुएशन को हैंडल करने के दो तरीके होते हैं। या तो आप ऑप्टिमिजम को यूज़ करते हो यानी पॉज़िटिव आउटकम्स की एक्सपेक्टेशन्स रखना। ये पैसे में हमको, जिसमें आप ये सोचते रहते हो की आपको हमेशा नेगेटिव आउटकम्स ही मिलेंगी, लेकिन अगर आप में पैसे में जरूरत से ज्यादा है तो इतना नेगेटिव होने की वजह से कोई भी इंसान आपके साथ ज्यादा समय बिताना पसंद नहीं करेगा। दुनिया को देखने का सही नजरियां वो होता है जिसमें आप किसी भी सिचुएशन को एकदम ऐक्यूरेट्लि ऐलिस कर पाओ, चाहे वो पॉज़िटिव हो या नेगेटिव, लेकिन उसके साथ साथ आपके अंदर लॉन्ग टर्म के लिए होप भी हो कि जो भी होगा आप उसके बारे में कंप्लेन करने के बजाय उसे खुलकर एक्सेप्ट करोगे। ये बिहेव्यर आपके आस पास के हर इंसान को इन्स्पाइअर्ड करेगा। और उन्हें आपकी तरफ खींचेगा। नंबर थ्री डीस, ऑनेस्टी ऐंड रिलायबिलिटी रिलायबिलिटी और ऑनेस्टी दो ऐसी चीजें हैं जो किसी भी इंसान को ज्यादा लाइकेबल बनाती है क्योंकि झूठे और अन्य रिलाएबल लोग जो हमेशा बहाने बनाते रहते हैं और अपनी कमिटमेंट्स को टालते रहते हैं, वो किसी को नहीं पसंद, चाहे वो आपके कोलीग हो, आपके पार्टनर फ्रेन्डस या कोई दूसरा इंसान आपके साथ जो भी थोड़ा सा समय बिताएं, उसे आप से बाहर आती स्ट्रोंगली विल पावर फील होनी चाहिए। ये आप जो भी बोलते हो उसे पूरा करते हो और आपके वर्ड्स में ताकत है। सच बोलने के लिए हिम्मत चाहिए होती है। और रिलाएबल बनने के लिए रिस्पॉन्सिबिलिटी लेनी पड़ती है। इन्हीं रीज़न की वजह से जो लोग एक अच्छा इंसान बनने के लिए बिल्कुल मेहनत नहीं करना चाहते हैं, वो हमेशा दूसरे लोगों से ताने ही सुनते रहते हैं और कोई भी उन्हें पसंद नहीं करता। नंबर फ़ोर ऑलवेज बीन लेट, कभी कभी किसी मीटिंग, किसी पार्टी, किसी क्लास या ओकेशन पर लेट होना नॉर्मल और एक्सेप्टेबल होता है क्योंकि ये चीज़ हम सभी एक्सपिरियंस करते हैं। कभी हम कही जाते हुए ट्रैफिक में अटक जाते हैं, कभी हमारी तबियत ठीक नहीं होती और कभी कोई दूसरी इमर्जेन्सी आ जाती है। लेकिन जब लोग आपको जानते ही इस क्वालिटी से हो की ये इंसान तो हर जगह पर लेट ही पहुचता है क्योंकि ये अंदर लेबल है और इसे टाइम की बिल्कुल वैल्यू नहीं पता। तो ऐसे में लोग आपको लाइक ना करने के साथ साथ आपको रिस्पेक्ट भी नहीं देंगे। वो आपको ऐसे देखेंगे कि आप अपने आप को पता नहीं क्या समझते हो। जो आप हर जगह पर सब के बाद आते हो और सबको अपना वेट कराते हो। इसलिए अपनी इस हर चीज़ को डिले करने की आदत को बदलो और टाइम मैनेजमेंट की कला सीखो। नंबर फाइव टॉकिंग बिहाइन्ड पीपल्स बैकहम ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि हम एक इंसान का अप्रूवल लेना चाहते हैं और उनकी नजरों में अच्छा बनना चाहते हैं। लेकिन सच तो ये है कि जब भी आप किसी के साथ मिलकर इस तरह से गॉसिप करते हो और दूसरों की बुराइ करते तो तब कही ना कही वो इंसान थोड़ा चौकन्ना हो जाता है। अगर आप उनके साथ किसी और की बुराइ कर रहे हो तो इस के चान्सेस बहुत ज्यादा है कि आप दूसरों के साथ मिलकर उनकी बुराइ करते होंगे। इस तरह से लोग आपको अंदर ही अंदर टॉक्सिक समझने लगेंगे। आपको एक नेगेटिव लाइट में देखने लगेंगे और आपको डिस्लाइक करने लगेंगे। इसलिए अगर आपको कुछ बोलना ही है तो स्ट्रैट फॉरवर्ड बनो ताकि आप की हिम्मत की वजह से लोग आपसे दूर होने के बजाय आप को लाइक करने लगे हैं।","इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम इसे स्वीकार करते हैं या नहीं, लेकिन हमें इस बात की परवाह है कि दूसरे हमारे बारे में क्या सोचते हैं। और जब हम मिलते हैं ज्यादातर लोग हमें नापसंद और नफरत करना शुरू करते हैं, तो यह वास्तव में सवाल उठता है "क्या मेरे साथ कुछ गलत है?"। आमतौर पर यह हमारी कुछ आदतें और सीखे हुए पैटर्न हैं जिन्हें हमें दोस्त बनाने और अन्य लोगों को प्रभावित करने में सफल होने के लिए दूर करना होगा। इसलिए इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम उन 5 सामान्य आदतों के बारे में जानेंगे, जिनकी वजह से लोग हमें नापसंद करते हैं।" "बहुत से लोगों की एक सीक्रेट विश होती है। इंट्रेस्टिंग बनने की जिंदगी के शोर के बीच हम चाहते हैं कि लोग हमारी आवाज को सुनें, हमें ऐडमायर करें, हमारे साथ बिज़नेस डील्स करें और हमसे इंस्पायर हों। हमारी आइडेंटिटी का एक बहुत बड़ा हिस्सा सोशल होता है, जिसकी वजह से अगर हम दूसरों के लिए बोरिंग है तो ये चीज़ हमारी लाइफ पर बहुत सिरियस नेगेटिव इम्पैक्ट डालेगी। एक बोरिंग पर्सनैलिटी होने का मतलब है कि लोग ना तो हमें अच्छे से ट्रीट करेंगे और हमारी सेन्स ऑफ सेल्फ वर्थ भी कम रहेंगी। इसलिए इस एपिसोड में हम आपको सिखाएंगे कि कैसे आप अपनी बोरिंग नेचर को बदल सकते हो। नहीं सिंपल स्किल्स और हैबिट्स को डेवलप करके नंबर वन डू मोर थिंग इज़ लेज़ी लोग बोरिंग होते है। जितना ज्यादा एक इंसान काम करने से दूर भागता है, उतना ही वोन इंट्रेस्टिंग बनता जाता है। लेज़ी लोग काम चलाने के लिए बस मिनिमम एफर्ट देते हैं, काम से घर आकर टीवी देखते हैं और खुद को एंटरटेन करने के बाद सो जाते हैं और फिर अगले दिन अपना यही नॉन प्रोडक्टिविटी इन रिपीट करते हैं। खुद सोचो क्या ऐसे इंसान के पास कुछ इंट्रेस्टिंग बोलने के लिए होगा? अगर आप उससे पूछो कि वो आजकल कौनसी बुक्स पढ़ रहे हैं? तो वो बोले गा की मैं बुक्स ही नहीं पड़ता। अगर आप पूछो कि क्या नया चल रहा है तो वह बोले गा बस वही सम ओल्ड। दूसरी तरफ एक ऐक्टिव इंसान हमेशा कुछ ना कुछ कर रहा होता है। मेबी वो कोई नहीं बुक पढ़ रहे हैं, किसी एग्ज़ैम की तैयारी कर रहे हैं, ऑनलाइन खुद को एजुकेट कर रहे हैं, अपनी खुद की बुक लिख रहे हैं, फिट रहने के लिए रोज़ नेचर में रनिंग कर रहे हैं या फिर कहीं घूमने का प्लान बना रहे हैं? ऐक्टिव लोग एक के बाद एक किसी नई इंट्रेस्टिंग चीज़ में पार्टिसिपेट कर रहे होते हैं। इसलिए इंट्रेस्टिंग बनने का सबसे सिंपल और इफेक्टिव तरीका होता है। कि आप अपने बेड से उठो और खुद को अलग अलग ऐक्टिविटीज़ में एंगेज करो। नंबर टू और ब्रेन विधि इंट्रेस्टिंग नॉलेज आप जीस तरह की चीजों को कॉन्स्यूलर करते हो, आपके मुँह से भी वैसी ही बातें बाहर आती है। आपका फेवरेट टीवी शो आपके लिए तो बहुत एंटरटेनिंग होता है लेकिन यह कोई ऐसी चीज़ नहीं है जिससे हर कोई रिलेट कर पाएं। इंट्रेस्टिंग बनने के लिए आपने अपनी कन्वर्सेशन को रिलेटेबल और इन्स्पाइरिंग बनाना होता है। इसलिए ऐवरेज लोगों के लिए बने टीवी शोज़, मूवीज़ या फिर सॉन्ग्स को कॉन्स्यूलर करना बंद करो और ग्रेट नोल्स पढ़ो। इंट्रेस्टिंग टॉपिक्स पर डॉक्यूमेंट्रीज देखो या फिर सिम्पली नेचर में एक वॉक के लिए निकल जाओ और बस नेचर की हर छोटी बड़ी डिटेल को ऑब्जर्व करो। नोटिस करो कि कैसे हर वो चीज़ जो हमें इंट्रेस्टिंग बनाती है वो हमारी सेल्फ इंप्रूवमेंट, बेटर हेल्थ और नॉलेज से जुड़ी होती है। इसलिए आप भी इन्हीं तीन चीजों पर अपना फोकस बढ़ा हो। नंबर थ्री, फ्री और विटनेस अपनी यूनीक क्वालिटी ज़ और अपने अजीब विचारों को सिर्फ अपने तक मत रखो। आप ने ये नोटिस भी करा होगा कि जब आप किसी रिलेशनशिप में आते हों तब शुरू में दो लोग थोड़े शर्मीले वो रिज़र्व से रहते हैं लेकिन कुछ समय बाद जब वो एक दूसरे के साथ कंफर्टेबल हो जाते है तब वो खुलने लगते हैं और धीरे धीरे ये दिखाते हैं कि वो कितने अजीब है और यह चीज़ उनके रिलेशनशिप को और ज्यादा दीप बनाती है। कोई भी इंसान स्मॉल टॉक को एन्जॉय नहीं करता और कहीं ना कहीं हम चाहते हैं कि हम अपने किसी चाहने वाले को अपना असली और पागलों वाला रूप भी दिखा सकें और खुद पर हंस सकें। इसलिए दूसरों के बीच फिट इन करने के लिए खुद के हर ख्याल को एडिट करना बंद करो और जो आप असल में हो अपना वो वर्जन सबको दिखाओ। नंबर फ़ोर ट्रैवल समवेयर फार अवे। हम जीस जगह पर रहते हैं। हमारे ख्याल भी वैसे ही बन जाते हैं और अगर हम कभी भी कहीं जाए ही ना तो हमारी थिंकिंग भी इन्वॉल्व नहीं हो पाती। हमारे लिमिटेड एक्सपिरियंस इसकी वजह से अलग अलग जगहों के बारे में पढ़ना या फिर वहा की विडियोज देखना बहुत अलग होता है उस जगह को रिऐलिटी में एक्सपिरियंस करने से। इसके साथ ही आपके बोरिंग होने का ये एक और रीज़न होता है कि आप कभी भी अपने कंफर्ट ज़ोन से बाहर नहीं निकलते हैं। इसलिए जब भी आपको घर से दूर ट्रैवल करने का मौका मिले तब उस मौके को गंवा हो मत इस तरह से आपको कई नयी मेमोरीज़ भी मिलेंगी। नया एनवायरनमेंट आपको नए और इंट्रेस्टिंग आइडियाज़ से भर देगा और आप जो कुछ भी वहाँ देखोगे या फिर सीखोगे, वह बातें और एक्सपिरियंस आपकी डेड कन्वर्सेशन्स को जिंदा कर देंगी और आपको इंट्रेस्टिंग बनाएंगी नंबर फाइव मूव बियॉन्ड इन प्रोडक्शन्स आप जब भी अपनी कम्यूनिकेशन स्किल्स को इम्प्रूव करने की कोशिश करते हों तब आपको पता होता है कि किसी भी तरह की कन्वर्सेशन का मुश्किल पार्ट इन्ट्रोडक्शन नहीं होता क्योंकि आप हाई, हैलो और अपना नाम बोलना तो जानते ही हो, लेकिन असली क्वेश्चन होता है कि इन्ट्रोडक्शन होने के बाद क्या कर रहे हैं? इस पॉइंट पर बहुत से लोग नर्वस होने लग जाते है। जस्ट बिकॉज़ उनके मन में बात करने का कोई टॉपिक ही नहीं आता। दैट स्वाइ आपको इस पॉइंट पर अपने और दूसरे इंसान के बीच एक साइकोलॉजिकल अलाइनमेंट लानी होती है। कहीं सिमिलर इंट्रेस्ट का टॉपिक छेड़ कर यानी इंट्रेस्टिंग बनाने के लिए उन चीजों के बारे में बात करो जो आपके और दूसरे इंसान के बीच में कॉमन है। ऐसा इसलिए क्योंकि आप कभी भी अपने उन दोस्तों से बात करते हुए नर्वस नहीं होते और ना ही नए टॉपिक्स के बारे में सोचते हो। जो दोस्त आपके बहुत सिमिलर होते है, आप बस तभी नर्वस होते हो जब आपको यह लग रहा होता है कि दूसरा इंसान आपसे थोड़ा डिफ़रेंट है, इसलिए कन्वर्सेशन के समय शुरू में सिर्फ और सिर्फ सिमिलैरिटीज पर फोकस करो। नंबर सिक्स बी डेरिंग जब भी आप एक इंट्रेस्टिंग इंसान को इमेजिन करते हो, क्या तब आपके मन में एक डरपोक और सहमे हुए इंसान की तस्वीर आती है? या फिर एक बोल्ड इंसान की डेरिंग लोग वो होते हैं जो बड़े ग्रुप्स में स्टैंड आउट करने से नहीं डरते हैं? इस तरह के लोग अपने करिश्मा और क्रेज को यूज़ करते हैं और नई मूवमेंट से या फिर ट्रेंड को चालू करते हैं। ऐसे लोगों के आगे खुद को वो इंसान मत बनने दो। जो इंट्रेस्टिंग लोगों की मौजूदगी में बस एक बैकग्राउंड करेक्टर बनकर रह जाता है, बल्कि यह समझो कि आप भी वो बन सकते हो जो हर इवेंट की जान होता है और सबकी अटेन्शन बस उसी पर होती है। लेकिन इस पोज़ीशन तक पहुंचने से पहले आपको अपनी पर्सनैलिटी को बदलना होगा और रिस्क लेने की आदत डालनी होगी। नंबर से वन पे अटेन्शन टू योर लुक्स अपिअर ऐनस एक और बहुत अच्छा मीडियम होता है। खुद को दूसरों की नजरों में इंट्रेस्टिंग दिखाने का जितना यूनीक आपका स्टाइल होगा, आप उतना ही बाकियों के बीच अलग और दिलचस्प लग होंगे। अमेरिकन फैशन डिज़ाइनर टॉम फोर्ड बोलते है कि जब भी आप घर के बाहर निकलो तब आपको अपना बेस्ट वर्जन बाहर लाना चाहिए क्योंकि यह एक तरीका होता है दूसरों को यह दिखाने का कि आप उनकी रिस्पेक्ट करते हो और यही बात आपको चार्मिंग बनाती है। यह मैटर नहीं करता कि आप सिम्प्लिसिटी में बिलीव करते हो या फिर ओवर ड्रेसिंग में आप सूट पहनते हो या फिर कैशलेस बस ये पक्का करो कि आपका स्टाइल सबसे अलग हो और वो खुद ही एक कन्वर्सेशन का टॉपिक बन जाए। नंबर एट की प्योर स्टोरी शोर्ट रिसर्च साइंटिस्ट कैंडल हेवन अपनी बुक स्टोरी प्रूफ में लिखते हैं की एवल्यूशन अली बायोलॉजिस्ट ये कन्फर्म करते हैं कि पिछले 1,00,000 सालों से कहानियों पर हमारी डिपेन्डेन्ट ने हमें हार्ड्वेर कर दिया है। स्टोरीज़ के स्ट्रक्चर में सोचने के लिए हम प्रिफर करते हैं कि हमें कोई सच स्टोरी के रूप में बताया जाए ना कि सीधे शब्दों में। स्टोरीज़ हमारे मन को अटेन्शन पे करने के लिए बोलती है और एक अच्छा स्टोरी टेलर बनकर आप अपनी बातों को भी अपने शब्दों से बूस्ट कर सकते हो। हाउएवर कोशिश करो कि आप की स्टोरीज़ शोर्ट लेकिन इमोशनल हो क्योंकि लंबी स्टोरीज़ बहुत जल्दी बोरिंग बन जाती है। इसलिए हमेशा अपने साथ ऑलरेडी कई स्टोरीज़ को तैयार रखो जिन्हें आप जरूरत पड़ने पर यूज़ कर सको। अगर आप भी खुद को इंट्रेस्टिंग बनाने और अपनी सेल्फ इंप्रूवमेंट पर ध्यान दे रहे हो तो अपनी प्रोग्रेस को कमेंट्स में लाइक माइंडेड लोगों के साथ शेर करो।","हम में से कई लोगों की गुप्त इच्छा अधिक रोचक बनने की होती है। दुनिया के शोर के बीच हम चाहते हैं कि दूसरे हमारी आवाज सुनें, हमारी प्रशंसा करें, हमारे साथ व्यापारिक सौदे करें और हमसे प्रेरणा लें। हमारी पहचान का एक बड़ा हिस्सा सामाजिक है, जिसका अर्थ है कि यदि आप उबाऊ हैं, तो आपके लिए सफल होना और समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त करना वास्तव में कठिन होगा। इसलिए इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम दिलचस्प इंसान बनने के 8 शक्तिशाली तरीकों पर चर्चा करेंगे।" "रिसेंटली डीसी कॉमिक्स ने सूइसाइड स्क्वॉड, वंडर वुमन और आपको मैन जैसी सुपरहिट मूवीज़ की मदद से काफी मेन स्ट्रीम पॉपुलैरिटी हासिल कर ली है। पर मार्वल कॉमिक्स डीसी को हमेशा ही ऑलमोस्ट हर डिपार्टमेंट में हर आता आ रहा है तो चाहे वो टोटल रेवेन्यू की बात हो या फिर ऑडियंस की लॉयल्टी की मार्बल फैंटसी जॉनर को डोमिनेट करता है पर एक डिपार्ट्मेन्ट जिसमें मार्वल डीसी के आगे एक सेकंड भी नहीं टिकता वो है डीसी कॉमिक्स के विलन्स क्योंकि वो ज्यादा रीयलिस्टिक होते हैं। और इन विलेन्स की लिस्ट में टॉप पर है जोकर। गरीबी नहीं वे रीज़न जेंटलमैन वैसे तो सूपर हीरो स्टोरी लाइन्स में कई साइकोपैतिक विलन्स है पर जोकर में कोई स्पेशल बात है अभी तक जो करके ओरिजिन को कई अलग स्टोरीज़ की मदद से समझाया गया है। जैसे कई बार उसे एक विलन की तरह दिखाया गया है जो बैटमैन से भागता हुआ एक केमिकल से भरे टब में गिर जाता है और कई बार एक कॉमेडियन के जैसे जो एक बुरे दिन के बाद मेटल ब्रेकडाउन का शिकार बन जाता है और लोगों को मारने लगता है और अक्टूबर 2019 में एक बार फिर जोकर की स्टोरी को थोड़ा बदल कर दिखाया जाएगा। और इस बार सुपर हीरो विलन ड्रामा होने के बजाय जोकर की बैकस्टोरी को एक काफी डार्क साइकोलॉजिकल थ्रिलर के रूप में दिखाया जाएगा। पर अगर हम जोकर के कैरेक्टर को ऐनालाइज करें तो हमें पता लगेगा की असल में वो उसके ओरिजिन की स्टोरीज़ नहीं है जो बार बार चेंज हो रही है बल्कि ये स्टोरीज़ उसके अपने पास की मेमोरी कोना याद कर पाने का नतीजा है, जिसकी वजह से टाइम टु टाइम उसकी मेमोरी बदलती रहती है। भय सौदा, जनाब। कान बोला रहा था खास प्रिफर, टोनी मौत पूछो इस द डार्क नाइट में बीजों करने अपने ऑस्कर के बारे में दो अलग अलग कहानियाँ बताई। वाइरस? सोया वाइफ ऑफ इससे हमें पता चलता है की जब उसके साथ कुछ बुरा हुआ था तब उसकी साइकी ने उस पर्टिकुलर मेमोरी को इन ऐक्सेसिबल बना दिया था की ये फ्रैग्मेन्टेशन हमें उन लोगों में सबसे ज्यादा देखने को मिलती हैं जिन्हें पोस्टमैट्रिक स्ट्रेस डिसॉर्डर यानी पीटीएसडी होता है। यह हमारे ब्रेन का डिफेंस मेकनिजम होता है, जिसकी वजह से हमें एक बुरी मेमोरी को बार बार नहीं एक्सपिरियंस करना पड़ता क्योंकि हमें वो याद ही नहीं होती। बट जोकर की स्टोरी में एक प्रॉब्लम यह है कि उसे एक साइकोपैथ बताया गया है जबकि असलियत में साइकोपैथ के पैदा होने पर ही उनका ऑटोनॉमिक नर्वस सिस्टम अलग होता है। यानी जहाँ पर एक नॉर्मल इंसान का नर्वस सिस्टम काफी एक्साइट हो जाता है, जब वो होता है, कुछ भी बुरा करता है या फिर उसे किसी चीज़ का गिल्ट होता है, जिससे उसकी बीट बढ़ जाती है, ब्रीदिंग शैलो हो जाती है और उसे स्वेटिंग होने लगती है। वहीं में उनका फाइट और फ्लाइट सिस्टम एक्स्ट्रीम सिचुएशन्स जैसे किसी का मर्डर करते टाइम या फिर चोरी करते टाइम बिल्कुल शांत रहता है और यही रीज़न है की क्यों? साइकोपैथ के लिए लाई डिटेक्टर टेस्ट को पास करना बाएं हाथ का खेल होता है, जिसका मतलब अगर जोकर असल में एक साइकोपैथ होता तो उसमें साइकोपैतिक ए साइन्स शुरू से ही होते हैं और उसे किसी ट्रैजिक इवेंट से फर्क भी नहीं पड़ता। जोकर की प्रॉब्लम्स पैट्रिक कम और एग्ज़िस्टन्स ज्यादा लगती है। उसने सोसाइटी के बनाए रूज़ वैल्यूज़ और मॉडल्स को रिजेक्ट कर दिया है और उसे जो चीज़ इंट्रेस्टिंग बनाती है वो है उसकी क्राइम करने की मोटिवेशन, जो बोलती है की हर इंसान में ही उसके जैसे बुरा काम करने की ताकत होती है और हर इंसान ही बुरा बन सकता है अगर उसे पागलपन की तरफ धकेला जाए। इस तरह से जोकर हमें हमारे शैडो आर्केटाइप के बारे में बताता है यानी हमारी साईं की का वो पार्ट जिसमे हमारे सारे रिजेक्टेड और सप्रेस्ड सोते है फॉर एग्ज़ैम्पल अगर हमारी ईगो हमारी पर्सनैलिटी के किसी पार्ट के साथ अपने आप को आइडेंटिफाइ करना नहीं चाहती तो वो उस ट्रेड को इस पर आने से रोकती है जैसे की गुस्सा जेलेसी और इवन हँसी पर उस ट्रेड को दबा देने के बाद भी वो हमें सब कॉन्शस ली कंट्रोल करता है। जितना लंबे टाइम तक हम अपने नेगेटिव, थॉट्स और इन्टूइशन को छुपाते हैं, उतनी ही हमारी शैडो यानी डार्क साइड स्ट्रॉङ्ग और डैन्स होती जाती है और तभी अगर हमे ज्यादा पुष्कर आ जाए। तो हमारी शैडो एकदम से बाहर आ जाती है और हमारे कॉन्शस माइंड की पावर को कम करके उस सिचुएशन को अपने कंट्रोल में ले लेती है और लेट साइकोलॉजिस्ट के हिसाब से शैडों की इरैशनल नेचर की वजह से हम उसे दूसरों पर भी प्रोजेक्ट कर सकते हैं। जिसका मतलब अगर हमें अपने आप की कोई क्वालिटी या ट्रेट अच्छा नहीं लगता तो हमारा ब्रेन उसे दूसरों में ढूंढने लगे। गा जैसे एक इंसान जो काफी रूडली बात करता है वो हमेशा दूसरों को बोलता है की वो रोड है। और जो करके केस में वो हर इंसान में ईवल क्वालिटीज ढूँढता है और वो नॉर्मल सिटिज़न से लेकर बैटमैन तक हर एक को बोलता है की वो भी ईवल है चाहे वो जितना भी मना कर ले, उन्हें बुरा बनाने के लिए बस थोड़ा सा धक्का चाहिए जैसे बैटमैन के किलिंग जोक मूवी में जो कर कमिश्नर गॉर्डन को एक ऐसे ही बुरे दिन से गुजारता है। बस ये प्रूफ करने के लिए की अगर किसी भी अच्छे इंसान को बुरे दिन दिखा कर बुरा बनाया जा सकता है तो उसका मतलब अच्छा ही है ही नहीं। लैंप्स। ओल्ड डेट्स वन। इस तरह से जोकर हमें हमारी साइकोलॉजी के बारे में बताता है, जिसकी वजह से हम समझ पाते हैं की वो इतना बुरा क्यों है और हम उससे सिंपल था। इस कर पाते है जस्ट बिकॉज़ हम सब के अंदर ही एक जोकर होता है और तभी वो बस एक फिक्शनल करेक्टर नहीं लगता बल्कि वो काफी ज्यादा बिलीव एबल है। जबकि दूसरी तरफ ज्यादातर विलन्स अनरियलिस्टिक बैग स्टोरीज़ और इतने पॉवरफुल होने की वजह से रिलेटेबल नहीं लगते हैं। इसके साथ ही बाकी विलन्स के केस में हम एक्सपेक्ट कर सकते हैं कि आगे क्या होगा? शायद उसके पास एक आर्मी है, जिसकी मदद से वो दूसरों को मारेगा या फिर वो अपनी पावर्स की मदद से दुनिया पर राज़ करेगा। पर जोकर काफी अनप्रेडिक्टेबल है। हमें नहीं पता की वो आगे क्या करेगा। कभी उसके लिए सब कुछ एक जोक होता है और दूसरे ही सेकंड वो अपनी ही टीम के मेंबर्स को बिना देखे मार रहा होता है। जोकर को इतना क्रीपी ये फैक्ट बनाता है कि उसके पास कोई ट्रेडिशनल पावर है ही नहीं। यहाँ तक कि उसके पास दूसरे विलेन्स की तरह पैसे भी नहीं है। उसकी पावर उसकी चालाकी है, जिसको यूज़ कर के वो दूसरे लोगों को अपनी रिऐलिटी क्वेश्चन करने पर मजबूर कर देता है। यानी बैटमैन को जोकर से कोई फिजिकल डेन्जर नहीं है, बल्कि जोकर सीधा उसकी सबसे बड़ी वीकनेस पर निशाना लगाता है। जोकर उस चीज़ को खत्म करना चाहता है जो बैटमैन को बैटमैन बनाती है यानी उसकी मोरैलिटी आई वॉन्ट टू सी व्हाट यू डू? यानी दिन तक सबको आई। यू लाइक फाइव पीपल डाइ एक पॉइंट पर जोकर बैटमैन को काफी डिफिकल्ट चौसा देता है। जैसे अगर बैटमैन जोकर को सही मौका मिलने पर मार दे तो बैटमैन मर्डर बन जाएगा और अगर वो जोकर को नहीं मारे तो जोकर दूसरे लोगों को ही मारता रहेगा। दोनों तरफ से ही जोकर की जीत होगी। इसके साथ ही जब जोकर बैटमैन कोच औस देता है की वो या फिर हार्वी डेंट में से एक को ही बचा सकता है तब वो चूज करता है, पर बी चान्स तब हार्वे भी उस बॉम्बे मैं बच जाता है और जोकर उससे भी कन्विंस कर देता है कि इस दुनिया में एक अच्छा इंसान बन के रहने का कोई फायदा नहीं है और हार्वी की डेथ के बाद बैटमैन गिल्टी फील करता है और कुछ सालों के लिए रिटायर हो जाता है, जिसकी वजह से गौतम में विलन्स खुले आम लोगों को मारने लगते हैं और ऐसे जो कर दोबारा जीत जाता है जोकर एक कॉन्सिक्वेन्स है दुनिया की हर रिऐलिटी का जिसपर अब उसे हँसी आती है और जॉन मार मिस ने अपनी बुक ला फिन गेट नथ्थिंग ह्यूमर ऐसा रिस्पॉन्स टू नेहा हमें बताया भी की अपनी एग्ज़िस्टिंग स्कीम इंग्लिश ऑनरस पर हंसना एक काफी हेल्थी को पिंग मेकनिजम हो सकता है। बिल्कुल वैसे ही जैसे हम डार्क ह्यूमर को यूज़ करते हैं। यानी जोकर के लिए दुनिया एक कॉस्मिक ड्रामा का पार्ट है जिसकी स्टुपिडिटी के बारे में सोचकर ही उसे हँसी आती है और इस तरह से वो अपनी ट्रैजिडी को कॉमेडी में कन्वर्ट कर देता है। जोकर अभी तक का बेस्ट विलन नहीं होता अगर उससे हम ह्यूमन लेवल पर रिलेट नहीं कर पाते, हम भी दूसरों की मोरल वैल्यू उसको क्वेश्चन करते हैं, अपनी वैल्यूज़ को बेहतर समझते हैं और हमारी लाइफ में भी ऐसे कई मोमेंट्स आते हैं जब हम पागल होता हुआ महसूस करते हैं और बस दुनिया को खत्म होते हुए देखना चाहते हैं और जो कर इसे काफी ब्यूटीफुल ली, समझाता है। वो बोलता है मैडनेस, इसके इमर्जेन्सी एग्ज़िट","जोकर न केवल डीसी ब्रह्मांड में बल्कि सामान्य रूप से फंतासी शैली में सबसे लोकप्रिय और प्रतिष्ठित सुपर-खलनायकों में से एक है। जोकर को एक आपराधिक मास्टरमाइंड के रूप में चित्रित किया गया है जो शून्यवादी है और हास्य की एक परपीड़क भावना रखता है। कॉमिक्स में, जोकर कभी-कभी गोथम शहर के अन्य खलनायकों के साथ काम करता है लेकिन जोकर की अराजकता पैदा करने की अतृप्त इच्छा के कारण ये रिश्ते लंबे समय तक नहीं चलते हैं। सभी कॉमिक्स और फिल्मों में उनका मुख्य उद्देश्य अन्य लोगों को यह एहसास कराना रहा है कि गहरे में वे भी उन्हीं की तरह दुष्ट हैं और उन्हें बस थोड़ा सा धक्का देने की जरूरत है। अपने हेरफेर के साथ, जोकर ने अपने मनोचिकित्सक हरलीन फ्रांसेस क्विंजेल को हार्ले क्विन में बदल दिया, आयुक्त गॉर्डन को पागल कर दिया और हार्वे डेंट को विश्वास दिलाया कि इस क्रूर दुनिया में अच्छा होना इसके लायक नहीं है। जोकर हमारे एक ऐसे हिस्से का प्रतिनिधित्व करता है जो इतना आदिम है लेकिन जरूरत पड़ने पर किसी भी समय इसका उपयोग किया जा सकता है। चरित्र के साथ यह अवचेतन सापेक्षता गहन मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करने और यह समझने के लिए वास्तव में दिलचस्प बनाती है कि…" "साइकोलॉजी में विज़्डम की एक सिंगल डेफिनेशन ढूंढना काफी मुश्किल है। कई लोगों के हिसाब से विज़्डम एक इंसान के एक्स्पिरियंस इस से रिलेटेड होती है और दूसरों के लिए विज़्डम का मतलब है इस बात का पता होना की सही और गलत क्या है पर अलग अलग डेफिनेशन होने के बावजूद हम किसी भी इंसान को देखकर ही ये बता सकते हैं कि वो है या नहीं। रिसर्च बताती है कि विज़्डम एक काफी अच्छा साइन है कि आप पॉज़िटिव ली एज करोगे और अपनी लाइफ से सैटिस्फाइड फील करोगे। इसके साथ ही साइकोलॉजी में ये भी एक दम क्लियर है कि विज्डम जेनरल प्रॉब्लम सॉल्विंग और लाइफ के सबसे मुश्किल क्वेश्चन्स के साथ डील करने में एक इंसान को एक्स्पर्ट बनाती है। यानी आप जीतने ज्यादा होंगे उतनी ही आपकी दुनिया की अन्डरस्टैन्डिंग दीप होती जाएगी। सो आज के इस एपिसोड में हम बात करेंगे ऐसी पांच क्वालिटीज की जो एक इंसान को बनाती है और कैसे आप हर पॉइंट को यूज़ कर सकते हो? अपनी विज़्डम को बढ़ाने के लिए नंबर वन वाइस लोग काफी एक स्पिल होते हैं। यानी वो हर समय अपनी सराउन्डिंग् ज़ पर अटेन्शन पे कर रहे होते हैं और एक स्टूडेंट की तरह लाइफ की टीचिंग को अब जॉब कर रहे होते है। नोर्मल्ली ये बोला जाता है कि लोग वो होते हैं जो ज्यादा एक्सपिरियंस लेते हैं या जो अकेले ट्रैवल करते हैं और इसमें ये बात सही है कि जो लोग अपना कम्फर्ट ज़ोन छोड़कर दुनिया को एक नए नजरिये से देखते हैं वो अपने आप को कई तरीकों से एक बेहतर इंसान बना पाते हैं। पर सिर्फ नए नए एक्सपिरियंस आपको बनाने के लिए काफी नहीं है। क्योंकि इनके साथ आपको चाहिए इन्ट्रोस्पेक्शन यानी किसी भी एक्सपिरियंस के बाद उस पर रिफ्लेक्ट करो और सोचो कि आपने क्या सीखा। ज्यादातर लोग स्पिरिट्स लेने वाली एडवाइस तो देते रहते हैं, पर ये एडवाइस इन्कम्प्लीट है क्योंकि आपने अपने सर्कल में या रिलेटिव्स में भी कई बार नोटिस करा होगा कि कई लोग एक ऐडल्ट बनने के बाद और लाइफ के इतने दिन देखने के बाद भी काफी इम्मेच्युर होते हैं और उनमें विस्डम का तो नामोनिशान भी नहीं होता। ये क्लू हमें बताता है कि विज़्डम और एज में कोई डायरेक्ट को रिलेशन नहीं है और अगर आप अपनी लाइफ के हर मूवमेंट में अपनी आंखें खुली रखो और अपने आप से सच बोलो तो आप भी अपने अंदर बढ़ा सकते हो। नंबर टू वाइज लोग ऑब्वियस नॉलेज की डेथ को समझते हैं का ये साइन मैंने पहली बार डॉक्टर जॉर्डन पीटरसन की बुक 12 रूल्स फ़ोर लाइफ को पढ़ते हुए समझा था क्योंकि इस बुक में जॉर्डन ने साइंस, फिलॉसफी, मिथोलॉजी और रिलिजन जैसे कई अलग पर्सपेक्टिव से उन बातों को एक्सप्लेन करा है। जो हमें पहले से ही पता है जैसे हमें सच क्यों बोलना चाहिए या फिर सीधे खड़े होकर क्यों चलना चाहिए? नोर्मल्ली अगर कोई इंसान आपको यही सेम बातें बोलता है तो आप उसे इग्नोर कर देते हो। पर जब भी कोई आपको इन बातों की इनकी डेथ के साथ समझाता है तब आप इन के सच को अपने सबसे गहरे हिस्सों में फील कर पाते हो। जाम पल के तौर पर आज कल हमें ये काफी देखने को मिल रहा है कि जो बातें हमारे दादी, दादा ये मम्मी पापा बताते आए हैं उन्हें धीरे धीरे साइनस की मदद से सच प्रूफ करा जा रहा है। जैसे हमें हमेशा बोला गया है कि हमें देर रात में कुछ नहीं खाना चाहिए और अभी बस पिछले कुछ सालों में ही अलग अलग तरह की फास्टिंग इतनी पॉपुलर हो गई है और साइनस इसी तरह की कल्चरल विज़्डम को वैलिडेट भी कर रहा है। जीवन अगर आप किसी साधु या मन से कुछ सवाल पूछते हो तो उनके जवाब भी काफी सिंपल होते हैं और हमे कही ना कही पता होते हैं पर जीस डेथ के साथ वो इस ऑब्वियस नॉलेज को एक्सप्लेन करते है वो है विज़्डम और तभी हमें भी अपने कल्चर या सोसाइटी में पहले से पॉपुलर इन्फॉर्मेशन को सीधा सीधा रिजेक्ट करने के बजाय उनकी डेथ में जाकर खुद एनालाइज करना चाहिए कि वो सही है या गलत। नंबर थ्री लोग होते हैं यहाँ पर हम बात कर रहे हैं सेल्फ इन्ट्रेस्ट वर्सिस सोशल इंट्रेस्ट यानी विज़्डम होने का मतलब है अपने डिसिशन्स कुछ इस तरह से लेना कि आप अपने और सोसाइटी दोनों के इंट्रेस्ट को बैलेंस कर पाओ। इसके साथ ही लाइफ की अन्डरस्टैन्डिंग बढ़ने के साथ साथ आप हर इंसान के साथ काइंडली बिहेव करते हो और उनके साथ एक अच्छा रिलेशन मेंटेन करने की कोशिश करते हो। जहाँ एक नॉर्मल इंसान दूसरे लोगों पर अपने बिलीव्स को फोर्स करता है और उन्हें अपनी फिलॉसफी, पॉलिटिकल, व्यूस या रिलिजन में कन्वर्ट करने की कोशिश करता है, वहीं एक वाइज इंसान के लिए शांति मैटर करती है, जिसकी वजह से वो दूसरों को उनके बिलीव छोड़ने के लिए कन्विंस नहीं करता और जितनी जरूरत होती है सिर्फ उतना ही बोलता है। इस तरह से दूसरों की डिफरेंट ओपिनियन को टॉलरेट करना और लोगों की हेल्थ को भी हँसी में उड़ा देना एक काफी अच्छा साइन है कि एक इंसान काफी नंबर फ़ोर वाइज़ लोगों ने जेनरली काफी प्रॉब्लम्स देखी होती है और वो दुनिया की को बहुत अच्छे से समझते हैं क्योंकि तक पहुंचने का रास्ता सफरिंग से ही होकर गुजरता है। हम कई बार नोटिस भी करते हैं कि कैसे कई छोटे छोटे बच्चे भी अपनी एज के हिसाब से काफी होते हैं क्योंकि उन्होंने अपने घर में किसी की डेथ, पैसों की तंगी या फिर एक तरह का अब्यूस देखा होता है। किसी भी तरह की क्राइसिस हमें उस सिचुएशन में अडैप्ट करने के लिए फोर्स करती है और हम अपने आपसे एक क्वेश्चन करने लगते हैं। कि हम इस सिचुएशन पर किस तरह से रिऐक्ट करें और हर ऐसी सिचुएशन हमें एक नया लेसन देती है। इसी वजह से हमेशा अपनी प्रॉब्लम्स को इग्नोर करने के बजाय उन्हें फेस करो। चाहे आपके घर में कोई दिक्कत चल रही हो या फिर कभी आपकी ट्रैफिक में किसी से तू तू मैं मैं हो जाये तो उन सिचुएशन उसमें कुछ सेकंड से रोका करो और सोचा करो की वहाँ सही रिस्पॉन्स क्या होगा? नंबर फाइव लोग काफी पेशेंट होते हैं क्योंकि पेशेंट्स एक काफी हेल्थी स्टेट ऑफ माइंड होता है। जहाँ हमारी पूरी अटेंशन प्रेज़ेंट पर होती है। पास्ट के बोझ या फिर फ्यूचर की चिंता पर नहीं के बढ़ने के साथ साथ हम ये समझ जाते हैं कि हर चीज़ को फोर्स करके चेंज नहीं करा जा सकता, पर ज्यादातर लोगों में पेशेंट्स की इतनी कमी होती है की उन्हें सारा रिज़ल्ट साथ के साथ ही चाहिए होता है। अगर आप एक्सपेक्ट करते हो की हर चीज़ जल्दी जल्दी हो तो आप उन चीजों को इग्नोर कर देते हो जो आपके आस पास ऑलरेडी हो रही होती है और आप उस मूवमेंट की डेथ को खो देते हो और फार्मर्स इस चीज़ को बहुत अच्छे से जानते हैं। वो मिट्टी में बीज गाड़ते हैं और उसे पानी देते हैं ताकि सीज़न के आते आते उन्हें पके हुए फ्रूट्स और वेजिटेबल्स मिल सके है। पर अगर वह समय से पहले ही पौधों को निकालना शुरू कर दे तो वो कच्चे ही रह जाते हैं। उसके बाद वो चाहे उन्हें कितना भी ट्रीट कर ले, पर उन फ्रूट्स और वेजिटेबल्स में वो फ्लेवर और न्यूट्रिशनल वैल्यू कभी वापस नहीं आती, जो थोड़ी सी पेशेंट्स रखने पर नैचुरली आ जाती है। चाइनीज फिलॉसफर लालू ने बोला है नेचर डज़न्ट हरी गेट एवरीथिंग इस एकॉम्पलिश यानी नैचर किसी भी काम को पूरा करने में जल्दबाजी नहीं लगाती है। यहाँ तक कि हमें एक सिंगल सेल लाइफ से इंसान बनने में भी करोड़ों साल लगे क्योंकि पेशेंट्स नेचर का रूल है और तभी असली विज़्डम है अपने आप को नेचर के इस रूल के साथ लाइन करना।","ज्ञान एक गुण है जो सहज नहीं है, लेकिन केवल अनुभव के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है। कोई भी जो नई चीजों को आजमाने और प्रक्रिया पर चिंतन करने में रुचि रखता है, उसके पास ज्ञान प्राप्त करने की क्षमता है। एक बुद्धिमान व्यक्ति बनने के लिए आवश्यक सभी कदमों को जानने के लिए संपूर्ण पॉडकास्ट सेगमेंट को सुनें। 📽️यूट्यूब पर हमें खोजें: WWW.YOUTUBE.COM/PSYCHOLOGYINHINDI" "कई फिलॉसफी इस थ्योरिटिकल नेचर की होती है और वो समय के साथ अपना चाम और अपनी वैल्यू खो देती है। लेकिन हम कई गिनी में से एक है जो 2000 साल से ज्यादा पुरानी होने के बावजूद हमारी मॉडल लाइफ में काफी प्रैक्टिकल सिग्निफिकन्स रखती है। स्टोरेज सिस्टम एक माइंडसेट या फिर एक टूल है जिसकी मदद से आप अपनी ज़िंदगी में आते उतार और चढ़ाव का डटकर सामना कर सकते हो। अपनी लाइफ सैटिस्फैक्शन को बढ़ा सकते हो और जो आप अपने अंदर एम फिनैन्स या फिर खालीपन फील करते हो उसे भी परमानेंटली भर सकते हो। इसलिए अगर आप अपनी लाइफ को बदलने और उसको अपने कंट्रोल में लेने के लिए रेडी हो तो इस एपिसोड में दिए हर लहसुन को ढंग से समझना हो ले। सन वन एक्सिलेन्स मुश्किलों के पेड़ पर लगा एक फल होता है। स्टॉक फिलॉसफर सैनिक का बोलते हैं कि जीस तरह से आग सोने को टेस्ट करती है, वैसे ही मुश्किल है। हिम्मत वाले इंसानों को टेस्ट करती है। दुनिया में हर जानवर अपने रास्ते से रूकावटों को हटाता है ताकि वो एक कंफर्टेबल जिंदगी जी सकें। लेकिन ये कंफर्ट कभी भी परमानेंट नहीं होता। हर समय उस जानवर को खाये जाने या फिर बदलते मौसम की वजह से मरने का खतरा रहता है। इसलिए उसे पता होता है कि जितनी वो मेहनत करेगा उतना ही उसके जिंदा रहने के चान्सेस ज्यादा रहेंगे। पर हम इंसानों के केस में हम हर समय बदलती सिचुएशन के अकॉर्डिंग अडैप्ट करने में फेल हो जाते हैं और बस यही सोचते रहते हैं कि काश हमें ज़रा सी मेहनत करने पर परमानेंट कम्फर्ट मिल जाए। बट सेना का बोलते हैं कि इस तरह की सोच आपको जीते जी मार देगी क्योंकि एक ऐसा इंसान जिसने कभी भी कोई चैलेंज नहीं लिया और उसे हमेशा वो मिलता रहा जो उसे चाहिए था। ऐसे इंसान की लाइफ एक ट्रैजिडी से ज्यादा कुछ नहीं होती। किस तरह से जीना तो बिल्कुल ऐसा हुआ जैसे मोहम्मद अली ने अपनी पूरी जिंदगी बिना एक फाइट करें निकाल दी हो या फिर माइकल जैक्सन ने कभी कोई गाना ही ना गया हो क्योंकि बिना चैलेंजेस या मुश्किल हो के दुसरो को तो दूर आपको भी यह कभी पता ही नहीं चलेगा कि आप क्या करने के केपेबल हो। यही रीज़न है की क्या स्टोरी सिर्फ यह नहीं बोलता की लाइफ जो भी आपकी तरफ फेंके उसको फेस करो, बल्कि आप खुद भी अपने डरो के पास चलकर जाओ और उन्हें एक फाइट के लिए चैलेंज करो। लेसन टु जितना भी समय निकल चुका है, उससे अब मौत ऑन करती है। ये हमारी सबसे बड़ी गलतियों में से एक है कि हम यह सोचते हैं कि मौत तो अभी फ्यूचर में आएगी, लेकिन असलियत में मौत ने ऑलरेडी हमारी लाइफ का एक एक बीता हुआ सेकंड कट्टा कर रखा है और मौत का एक बड़ा हिस्सा ऑलरेडी जा चुका है। बोलते हैं कि हमें अपने आपको मेंटली हमेशा ही ऐसा रखना चाहिए जैसे हम कभी भी मरने वाले हो, अपनी जिंदगी के हर जरूरी काम को टालना बंद करो और जो भी आपने बुरे काम करें हैं, उन्हें अभी के अभी सही करना शुरू करो। इस तरह से जो भी इंसान रोज़ ही अपनी लाइफ को फिनिशिंग टच दे रहा होता है, उसे टाइम की कभी कमी नहीं पड़ती। ये मत सोचो कि आप हर बीतते सेकंड के साथ मौत के पास जाते जा रहे हो, क्योंकि अब तो हर समय ही थोड़ा थोड़ा मर रहे होते हो। इस एपिसोड को सुनते हुए आप ऑलरेडी कई मिनट मर चूके हों और इसी तरह से किसी भी बीते हुए मिनट, घंटे, दिन या साल को फिर से जिंदा नहीं करा जा सकता। सनाका बोलते है की ऐसा नहीं है कि हमारे पास जीने के लिए बहुत कम समय है, बल्कि प्रॉब्लम यह है कि हम इस समय को वेस्ट कर देते है इसलिए टाइम की अहमियत समझो और अभी के अभी जीना शुरू करो। लेसन थ्री इंसान जानवरों की तरह बस खाने री प्रोड्यूस करने और सोने के लिए नहीं बना। स्टॉक फिलॉसफर मारकस औरिलिअस बोलते है कि जब भी आपको सुबह बेड से उठने में परेशानी हो तब खुद से यह बोलो की मुझे एक इंसान बनकर काम करने का मौका मिल रहा है। मुझे किस चीज़ की कंप्लेन करने की जरूरत है? अगर मैं वो कर रहा हूँ जो करने के लिए मैं पैदा हुआ था और जो काम करने के लिए मुझे इस दुनिया में लाया गया था या फिर मैं बस दुनिया में इसलिए आया हूँ ताकि मैं बस कंबल में घुसकर आराम कर सकूँ। ये चीज़ हम अक्सर फील करते हैं। कभी हमारा काम या पढ़ाई करने का मन नहीं कर रहा होता। और कभी हम बस आलस कर रहे होते हैं। हमें पता तो होता है कि हमारा काम करना जरूरी है, लेकिन बेड पर पड़े रहने का कम्फर्ट भी उस टाइम पर स्वर्ग जैसा लग रहा होता है। मारकस जानते थे कि सुबह को जीतना उन्हें पूरे दिन और पूरी लाइफ को जीतने के पास पहुंचा सकता है। जीस वजह से वो इतना पॉवरफुल होने के बाद भी अपने डिसिप्लिन को कभी नहीं भूले हैं, क्योंकि नेचर इंसान से यही मांगती है कि हम अपना डिसिप्लिन मेंटेन करें और लाइफ के बोझ को कैर्री करें। दुनिया और हमारे खुद के घर की प्रॉब्लम्स हमारे उठने और हमारे द्वारा सॉल्व होने की वेट कर रही होती है। और जितना ज्यादा हम सोकर या आराम करके अपने कामों को डिले करेंगे उतना ही ज्यादा हमें बाद में कटे हो रखे कामों को जल्दी जल्दी और जबरदस्ती करना पड़ेगा। इसलिए अगर आपको ज्यादा प्रोडक्टिव बनना है, ज्यादा काम को निपटाना है और ग्रेटनेस हासिल करनी है तो सुबह जल्दी उठो और अपनी हर समय आराम करने या सोते रहने की डिज़ाइनर को ओवर कम करो। लेसन फॉर जस्टिस ऑनेस्टी सेल्फ कंट्रोल और क्रेज इन चार वर्षीय उसको हमेशा फॉलो करो। स्टॉइक बोलते हैं कि कोई भी चैलेंज या कोई भी प्रॉब्लम इतनी बड़ी नहीं होती। की वो आपको इंचार्जों एक वर्ड्स यूज़ को इस्तेमाल करने से रोक सके, यानी सही काम करना, बीच का रास्ता चुनना, हिम्मत रखना और सच बोलना। किसी भी सिचुएशन में अपनी बेसिक को अपने दिमाग पर हावी मत होने दो। खुद को दूसरों से ऊपर मत रखो। बड़ी प्रॉब्लम्स को देखकर डरो मत, अपना हर कदम साहस के साथ उठाओ और सिर्फ सही काम करने पर फोकस रखो ना कि जो उसका परिणाम मिलता है। बस इन प्रिन्सिपल को याद रखो और आप बड़े से बड़े चैलेंजेस को भी सिंपल बना पाओगे। लेसन फाइव हर चीज़ को दो कैटेगरी में डिवाइड करो वह जिन्हें आप कंट्रोल कर सकते हो। और वो जो आपके कंट्रोल से बाहर है। फिलॉसफर एपीटिट उसके हिसाब से चीजों को डिफ्रेंशीएट करने की ये सिंगल स्किल आपकी लाइफ बदल देगी। यानी ये पता होना कि कौन सी रिस्पॉन्सिबिलिटी हमारे ऊपर है और कौन से कामों को हमें बस होने देना होता है। अगर बाहर मौसम खराब है और आप अपने काम पर या फिर घूमने नहीं जा सकते तो ऐसी सिचुएशन में आप चाहे जितना मर्जी चिल्ला लो या दुखी हो लो, मौसम को जब बदलना होगा वो तभी बदलेगा जितना भी आप प्रे कर लो कि आपकी हाइट एकदम से कम या ज्यादा आपकी शकल या फिर जीस देश में आप पैदा हुए थे वो बदल जाए? ये सारे फैक्टर्स ही आपके कंट्रोल से बाहर हैं और इन्हें आप नहीं बदल सकते हैं। हर वो मिनिट जो आप इन न बदलने वाली चीजों पर वेस्ट करते हो, वो सारा टाइम आप उन चीजों पर लगा सकते थे जो आपको मैक्सिमम रिज़ल्ट देती क्योंकि उस केस में आप सिर्फ ज्यादा खुशी नहीं रहोगे बल्कि आपके पास वो एडवांटेज होगी जो उन लोगों के पास नहीं होती जो अपनी लाइफ के हर ऐस्पेक्ट को बदलने की कोशिश करते हैं और रास्ते में अपना सारा टाइम वेस्ट कर देते हैं। लेसन सिक्स आपको कोई भी प्रॉब्लम नहीं, बल्कि उस प्रॉब्लम की परसेप्शन तंग करती है। इस लाइन ने मॉडर्न साइकोलॉजी में बहुत बड़ा योगदान दिया है, क्योंकि इसी थिंकिंग की फाउंडेशन पर कॉग्निटिव बिहेवरल थैरेपी यानी सीबीटी का जन्म हुआ था। क्योंकि यह हमारी सबसे बड़ी पावर है कि चाहे बाहर कुछ भी हो रहा हो, हम अपने अंदर से यह डिसाइड कर सकते हैं कि हमें उस पर किस तरह से रिऐक्ट करना है। हम डिसाइड कर सकते हैं कि हमें किसी इंसान की बोली हुई बातें या अपने फेलियर्स रोल आते हैं या फिर वह बस हमें कुछ सिखाकर अपनी सारी इमोशनल वैल्यू खो देते हैं। लेसन सेवन उन चीज़ो को सीखना इम्पॉसिबल है जो आपको लगता है की वो ऑलरेडी आपको पता है यानी हमेशा अपने कानों आँखों और दिमाग को खुला रखो क्योंकि एक लहसुन किसी भी रूप में आप के आगे प्रकट हो सकता है। हर चीज़ और हर इंसान हमें कुछ नया सिखाने की ऑपर्च्युनिटीज लाता है, लेकिन हम इन लाइसेंस को रिजेक्ट कर देते हैं। जब हम यह सोचते हैं कि हमें तो सब ऑलरेडी पता है इसलिए खुद की पीठ थपथपाने के बजाय हर उस चीज़ को ढूंढो जो आपको बेहतर बना सकती है। लेसन एट ज्यादातर चीजें हमें बस डराती है बजाय हमें कुचलने के इस लाइन के थ्रू सैनिक का। हमें ये समझाते हैं कि जीस चीज़ के बारे में हमें चिंता करनी चाहिए। वो ये है कि हम किस चीज़ के बारे में चिंता कर रहे हैं। हम अपना इतना सारा टाइम बस चीजों को इमेजिन करने में और ऐडवान्स में ही खुद को इतना ज्यादा टॉर्चर करने में निकाल देते हैं जितना टॉर्चर जीस चीज़ से हम डर रहे थे वो भी ना करती पेन और सफरिंग को अवॉर्ड नहीं करा जा सकता। कभी ना कभी ये दोनों आपको गले लगाने आ ही जाएंगी। इसलिए हमें हमेशा अपने आप को बुरे से बुरे सर्कमस्टान्सेस के लिए प्रिपेर्ड तो रखना है लेकिन एट द सेम टाइम हमें उस सिचुएशन के आने से पहले उसे ओवर थिंक नहीं करना क्योंकि जितना ज्यादा हम अपने दरों के बारे में सोचेंगे उतना ही वो बढ़ते चले जाएंगे। इसलिए अपने डर को फैन टी साइंस मत करो बल्कि उन्हें सीधा जाकर फेस करो। लेसन नाइन उन लोगों के साथ रहो जो आपको बेहतर बना सके और जिन्हें आप भी कुछ सीखा सको। दोस्ती कभी भी ना तो वन साइडेड होनी चाहिए और ना ही आपको ऐसे लोगों को अपना दोस्त बनाना चाहिए जो आपकी ग्रोथ में आपका साथ नहीं देते हैं। जर्मन पॉइंट घर था ने एक बार बोला था कि मुझे बस इतना बता दो कि तुम किन लोगों के साथ अपना समय बिताते हो और मैं तुम्हें तुम्हारा फ्यूचर बता दूंगा। जिसतरह के लोगों से हम खुद को सराउंड करते है वो डाइरेक्टली हमारी थिंकिंग, ऐटिट्यूड और आइडिया जेनरेशन कैपेबिलिटी को इन करते हैं। सैनी का बोलते हैं कि मैं कभी भी घर में वापस घुसते हुए वहीं संकर एक्टर नहीं लाता जो मैं अपने साथ लेकर गया था। जीतने भी इंसानों से हम मिलते हैं। वो हमारे कलेक्टर पर अपने करेक्टर की एक स्टैंप लगा जाते हैं। इसलिए सिर्फ उन्हीं लोगों से मिलो जिनके जैसा आप बनना चाहते हो। ले सन 10 दुनिया और अपने बीच के रिलेशन को पहचानो यानी बहुत से लोग ये बोल तो देते हैं कि हमें क्या फर्क पड़ता है। दूसरे इंसान कुछ भी करे या फिर हमारे अकेले के अच्छे एक्शन्स थोड़ी दुनिया को चेंज कर पाएंगे, लेकिन यह सोच बिल्कुल गलत है। हम लोग एक दूसरे के साथ बहुत क्लोजली कनेक् टेड होते हैं। और हमारी सोच ये हमारे ऐक्शंस उन लोगों को सीधा सीधा करती हैं जिनके साथ हम अपना समय बिताते हैं जिससे हमारे अच्छे एक्शन्स भी मल्टीप्लाई होते चले जाते हैं और बुरे एक्शन्स भी तो क्यों ना? ऐसे में हम खुद को हर इंसान से अलग मानने और सेल्फिश बनने के बजाय वो डिसिशन्स ले जिनसे सबका भला होता है और जैसा कि मारकस और इलियास ने एक बार बोला था कि दुनिया को हमेशा एक जीते जागते ओर्गानिस्म की तरह देखो जो एक ही मटेरियल से बना है और जिसमें एक ही सोल है ऑब्जर्व करो कि कैसे हर चीज़ ही इस बड़ी रिऐलिटी से कनेक्टेड है। और इस बड़े लिविंग बीइंग की लाइफ में कुछ ना कुछ कॉन्ट्रिब्यूट कर रही है। जिसतरह से हमारे शरीर का हर एक बेसिक यूनिट हमारी हेल्थ को प्रोमोट करने की कोशिश कर रहा होता है और यही उसका पर्पस होता है वैसे ही हमारी लाइफ का पर्पस भी यही होता है कि हम दुनिया की हेल्थ और ग्रोथ को प्रोमोट करें, बजाए उसे तबाह करने के।","रूढ़िवाद एक दर्शन है जो लोगों को कृतज्ञता, सकारात्मक मानसिकता, गुण, अनुशासन और एक मजबूत चरित्र के विकास के माध्यम से अपना सर्वश्रेष्ठ जीवन जीने में मदद करता है। जो स्टोइक है, वह कुछ भी सहन कर सकता है और वह सब कुछ संभाल सकता है जो जीवन उस पर फेंकता है। आप दर्द से डरने के बजाय दर्द का स्वागत करते हैं और प्रकृति के अराजक पहलू के लिए उसकी अवहेलना करने के बजाय, आप प्रकृति के अनुसार जीते हैं। यह एक ऐसी मानसिकता है जिसने लाखों लोगों को अपने लक्ष्य पर केंद्रित रखा है जबकि वे सफलता प्राप्त करते हैं या वह प्राप्त करते हैं जो वे हमेशा से चाहते थे। तो, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम स्टोइक स्कूल ऑफ थिंक से 10 सबसे महत्वपूर्ण पाठों पर चर्चा करेंगे।" "अगर हम सिर्फ इस लेवल के नीचे जाए तो हमें साइंस बताती हैं कि हर कल्चर, सोसाइटी और एज में ऐसे कई कॉमन पेरेंट्स होते है, जो एक इंसान को ज्यादा अट्रैक्टिव बनाते हैं। यहाँ हम बात कर रहे हैं एक इंसान की पर्सनैलिटी, उसके बाद करने के तरीके या फिर वो किस तरह से जीता है इन चीजों की यानी अगर हम सक्सेस पैसों या फिजिकल अट्रैक्टिवनेस को साइड रखे तो वो ऐसे कौन से ट्रेड्स होते हैं जो अपने ही बल पर दूसरों को किसी का भी दीवाना बना देते हैं। इस एपिसोड में हम ऐसे ही कई थ्रेड्स को डिस्कस करेंगे। नंबर वन काइंडनेस क्योंकि काइंडनेस का मतलब होता है एक इंसान को इंसान की तरह देखना कि चाहे कोई भी कितना ही अच्छा ये बुरा क्यों ना हो? जो भी इंसान समझदार होता है उससे यह पता होता है कि सामने वाला अगर कुछ नेगेटिव कर या बोल भी रहा है तो जरूर उसके साथ भी कुछ नेगेटिव या बुरा हुआ होगा। और ऐसे इंसान से ऑफेंड होने या इन पर गुस्सा करने का कोई फायदा नहीं है। चली मजाक में ये बोला जाता है कि आपको साइकोलॉजी के बारे में बहुत कुछ पता है। अगर आपको कोई भी चीज़ अली गुस्सा नहीं दिलाती है और ये बात बिलकुल सही है क्योंकि आपको हर इंसान के बिहेव्यर के पीछे का रीज़न पता होता है। जीस वजह से आप हर समय ऑफेंड होने, गुस्सा करने, रोने, चीखने चिल्लाने या अपना गुस्सा दूसरों पर निकालने के बजाय सबके साथ थोड़ा रहते हो और नफरत की जगह प्यार बांटते हो। इस वजह से यह ट्रेड दूसरों के लिए काफी अट्रैक्टिव होता है। नंबर टू सेंस ऑफ ह्यूमर और खुद पर हंसने की एबिलिटी क्योंकि लाइफ हर इंसान के लिए ही मुश्किल और दुख से भरी होती है। लेकिन जो भी इंसान किसी को भी हँसा सकता है, वह दूसरों के लिए बहुत अट्रैक्टिव होता है। इसके साथ ही जो इंसान खुद पर हंस सकता है तो उस केस में भी उसकी एबिलिटी एक स्ट्रांग करेक्टर की निशानी होती है। ऐसा करने से एक इंसान ये नहीं शो कर रहा होता कि वो दूसरों से कितना सुपिरिअर है बल्कि वो दिखाता है कि वो भी बाकी सब की तरह ही है और वो भी गलतियाँ करता है जिसपर उसे भी हँसी आती है। इस तरह से दूसरों के साथ कुछ देर के लिए हमारी सारी टेंशन्स दूर हो जाती है और दूसरे लोगों को भी हमारे साथ रहना पसंद आने लगता है। नंबर थ्री सोशलाइज करने की एबिलिटी सोशलाइजेशन एक ऐसी स्किल है जिससे हम एक सोशल ग्रुप में पार्टिसिपेट करते हैं और खुद को सिचुएशन के अकॉर्डिंग ढाल पाते हैं। जो भी इंसान सोशलिस्ट कर सकता है, उससे यह पता होता है कि क्या बोलने से दूसरा इंसान अच्छा फील करेगा? क्या करने से सामने वाला कंफर्टेबल और रिलैक्स होकर बात करेगा और कैसे दूसरों की अटेंशन अपनी तरफ खींची जाती है, क्योंकि यह मैटर नहीं करता कि आपके पास आइडियास कितने अच्छे हैं। आप कितने स्मार्ट हो या आपके ख्याल कितने यूनीक है। अगर आप इन चीजों को कम्यूनिकेट नहीं कर सकते तो किसी भी तरह की स्मार्टनेस का कोई फायदा नहीं होता और आप खुद की दूसरों को अट्रैक्ट करने की एबिलिटी को लिमिट कर रहे होते हो। लेकिन अगर आप ऐसे इंसान हो जो वीज़्ली नए दोस्त बना लेता है तो वह चीज़ दूसरों को बहुत पसंद आती है क्योंकि इस तरह से आप अपने आप को मुश्किल समय के लिए प्रिपेर कर रहे होते हो की चाहे आपके पास कोई भी प्रॉब्लम आ जाए। आपको पता होता है कि आपको उस प्रॉब्लम को अकेले नहीं फेस करना पड़ेगा और ज्यादा से ज्यादा लोग ऐसे इंसान के साथ रहना प्रिफर करते हैं, जो किसी भी मूवमेंट पर किसी भी प्रॉब्लम को सॉल्व कर सकता है। और उसके पास बहुत से कॉन्टैक्ट है। नंबर फ़ोर लॉयल्टी ऐंड ट्रुथ। क्योंकि ये दोनों चीजें एक दूसरे के बहुत सिमिलर है। नोर्मल्ली हम लॉयल्टी को डिफाइन करते हैं, अपने दोस्तों या पार्टनर को धोखा देने से है लेकिन असली लॉयल्टी वो होती है जिसमे आप एक इंसान के लिए कुछ भी कर सकते हो और एक्स्ट्रीम मेजर्स यूज़ करके उनकी मदद कर सकते हो और ऐसा करने के लिए आपको खुद से और अपने पार्टनर से हमेशा सच बोलना पड़ता है। क्योंकि जब भी हम खुद से झूठ बोलकर ही ऐसा पार्टनर्स चूज कर लेते हैं, जिससे हम डीपेस्ट लेवल पर कनेक्ट नहीं कर पाते और हमें पता होता है कि हम सेटल कर रहे हैं। और हमें एक बेहतर पार्टनर मिल सकता है। तब यह झूठ हमें एक रिलेशनशिप में अपना 100% देने से रोकता है। जिसके बाद हम चाहें उन्हें धोखा ना भी दे लेकिन उनमें उतना इनवेस्टेड ना रहना ही लॉयल्टी को तोड़ने के लिए काफी होता है। इसलिए अगर आप ज्यादा से ज्यादा लोगों की नजर में अट्रैक्टिव बनना चाहते हो तो सबसे पहले अपने स्टैन्डर्ड को बड़ा हो और सिर्फ उन्हीं लोगों को चुनाव के लिए आप अपनी जान भी दे सकते हो। उसके बाद उन्हें ऐसा फील करा हो कि आप उन में 100% इनवेस्टेड हो और उनको ग्रो करने में पूरी मदद करोगे। और अगर वो इंसान भी यही सेम चीज़ करने लग जाता है तो ऐसा रिलेशनशिप कभी नहीं टूट सकता है और ना ही आपको यह फीलिंग सेक्युरिटी किसी दूसरे इंसान के साथ मिले गी नंबर फाइव पैशन आज कल की निहाई लिस्टिक एथिर स्टिक और लॉस जेनरेशन के बीच ऐसे लोगों को ढूंढना जो लाइफ को डैनी करने के बजाय फैशन और जोश से भरे हुए हैं। ये चीज़ बहुत मुश्किल हो गई है। जीस वजह से किसी भी ऐसे इंसान को देखना जो हमेशा मोटिवेटेड, फुल ऑफ एनर्जी, डिसिप्लिन्ड और फोकस रहता है। यह ट्रेड्स उस इंसान को झुंड के बीच अलग ही चमक देते हैं और वो इंसान सबसे अलग लगता है। जब भी आप ये क्लियर कर देते हो कि आपको क्या चाहिए और आप हर बार ही अपने इस वादे को पूरा करके उस चीज़ को पा लेते हो तो आपका ये पैशन दूसरों के लिए बहुत अट्रैक्टिव होता है। इसलिए अगर आप भी किसी को भी अपनी तरफ अट्रैक्ट करना चाहते हो तो पहले अपने आप को अंदर से बदलो।","विज्ञान हमें बताता है कि शारीरिक आकर्षण से परे और भी कई कारक हैं जो यह तय करते हैं कि दूसरे हमें आकर्षक व्यक्ति मानते हैं या नहीं। आप सुंदर, रूपवान, धनी, सफल और चतुर हो सकते हैं, लेकिन आकर्षण के लिए और भी बहुत कुछ है। इसलिए, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम 5 ऐसे गुणों के बारे में जानेंगे जो लोगों को आकर्षित करते हैं और उन्हें आकर्षित करते हैं।" "ब्रिटिश फिलॉसफर ऐलान वर्ड्स बोलते है कि जब आप पानी की सर ऑफिस पर रहने की कोशिश करते हों तब आप डूबने लगते हों लेकिन जब आप हाथ पैर मारने के बजाय डूबने की कोशिश करते हों तब आप पर आकर तैरने लगते हो। यानी जितना हम एक चीज़ के पीछे भागते है उतना ही हमे उसका ऑपोजिट रिज़ल्ट मिलता है और वो चीज़ हम से दूर होती जाती है। इसलिए बोलते हैं खेल ऑफ रिवर्स एफर्ट या फिर बैकवर्ड लॉ इस लोग को एक्सप्लेन करने के लिए एक काफी पॉपुलर एग्जाम्पल दिया जाता है पिंक एलिफेंट का कि अगर आपको बोला जाये कि आपने अगले 10 मिनट तक पिन के एलिफेंट के बारे में नहीं सोचना तो आप जितना उसे मैच को अपने दिमाग से बाहर निकालने की कोशिश करोगे, उतना ही आप उस ऐलिफेंट के बारे में ही सोचते रहोगे। लेकिन जैसे ही आप इस इमेज को अपने दिमाग से निकालने की कोशिश करना बंद करोगे, वैसे ही इमेज खुद ब खुद आपके दिमाग से बाहर निकल जाती है। लेकिन ऐसा क्यों? और क्या ये लो हमारी लाइफ के बाकी एरियाज में भी अप्लाई होता है क्योंकि कॉमन एडवाइस तो ये बोलती है कि जब भी हम भारी दुनिया में कुछ अचीव करना चाहते हैं तो हमें उस पर एम करना चाहिए, उसके पीछे भागना चाहिए और अगर हम दिल लगाकर मेहनत करते हैं तो इवेन चली वो चीज़ हमें मिल भी जाती है। लेकिन बैकवर्ड लॉ हमारी चीजों को हासिल करने के पीछे की मेंटल स्टेट यानी हमारे माइंड सेट पर फोकस करता है अपनी बुक 10 अटल आर्ट ऑफ नॉट गिविंग यू फक में ऑथर मार्क मेन्शन समझाते हैं कि पॉज़िटिव एक्सपिरियंस के पीछे भागना ही अपने आप में नेगेटिव एक्सपिरियंस है, जबकि नेगेटिव एक्सपिरियंस को एक्सेप्ट कर लेना एक पॉज़िटिव एक्सपिरियंस है। इस पैराडॉक्स को एलन वाट से बैकवर्ड लोग बोलते थे। यानी ये आइडिया की जितना आप हर समय अच्छा फील करने की कोशिश करोगे उतना ही आप इस फीलिंग को खोते जाओगे। क्योंकि इस तरह से एक चीज़ का पीछा करना इस फैक्ट को री इनफोर्स करता है कि आपके पास पहले ही उस चीज़ की कमी है और इस तरह से आप इस कमी की स्टेट को बार बार क्रिएट करते रहते हो। एग्जाम्पल के तौर पर इस चैनल पर हमने कई बार ऐडिक्शन से डील करने का तरीका डिस्कस कर रहा है कि किस तरह से अडिक्शन तब तक दूर नहीं होती जब तक आप हमेशा ही अपने अडिक्शन के ऑब्जेक्ट और आप किस तरह से इस बुरी आदत से बाहर निकल सकते हो, इस बारे में सोचते रहते हो क्योंकि ऐसा करने से तो बस आपके माइंड में यह बात और पक्की होती चली जाएगी कि हाँ, आप एक ऐडिक्ट हो और आप से अपनी अडिक्शन छोड़ी नहीं जा रही है। लेकिन जब आप अपनी इस प्रॉब्लम को कस कर पकड़े रहने के बजाय कुछ ज्यादा मीनिंगफुल करने की कोशिश करते हो, अपनी ग्रोथ पर फोकस करते हो और उन्हें बिट्स को डेवलप करना शुरू करते हो आपकी हेल्थ इम्प्रूव हो तो आपकी ऐडिक्शन खुद ब खुद कम होने लग जाती है। सिमिलरली जब आप एक ब्रेकअप के बाद मूव नहीं कर पा रहे होते तब अपने एक्स को भुलाने और अपने दिमाग से वो मेमोरीज़ को डिलीट करने के तरीके में ढूंढो क्योंकि इस तरह से तो आप उनके बारे में और सोचने लागोंगे इसके बजाय एक अच्छी लाइफ जीने पर फोकस करो और अपनी हीलिंग पर ध्यान दो और ऐसे आप खुद ब खुद मूव ऑन कर जाओगे या फिर अगर आप सक्सेस और बहुत सा पैसा चाहते हो, अपने दिमाग को हमेशा पैसों के थॉट से मत भरे रखो, बल्कि उन हैबिट्स को बिल्ड करने और एक ऐसा इंसान बनने पर फोकस करो जो पैसों को अट्रैक्ट करता है और उन स्किल्स को पॉज़ीस करता है। जिनसे पैसा बनाया जाता है। हम अधूरा या दुखी तब महसूस करते हैं जब हम अपने प्रेज़ेंट सर्कम्स्टैन्सज़ से सैटिस्फाइड होते हैं। जितनी ज्यादा ये डिस सैटिस्फैक्शन होगी उतना ही हम दुखी रहेंगे और अपनी करेंट प्रॉब्लम से बाहर नहीं निकल पाएंगे। अगर आप परफेक्शन का पीछा करोगे तो आप हमेशा इमपरफेक्ट रहोगे। अगर आप लोनलीनेस से छुटकारा पाने की कोशिश करोगे तो आप और लोन्ली फील करोगे। अगर आप सोने की कोशिश करते रहोगे तो आपको नींद नहीं आएगी और अगर आप अपने दरों को अवॉर्ड करोगे तो आप और डरा हुआ महसूस करोगे। लेकिन अगर आप नेगेटिव चीजों को एक्सेप्ट कर लो तो आप पॉज़िटिव फील करोगे। ओंलिनेस को एक्सेप्ट करने से आप अकेले रहने पर भी खु़श रहोगे और अपने डरो को फेस करने से आप ज्यादा साहस हासिल कर पाओगे। किसी भी नेगेटिव एक्सपिरियंस को एक्सेप्ट कर लेना ही अपने आप में एक पॉज़िटिव एक्सपिरियंस है। लेकिन अगर आप इस नेगेटिव एक्सपिरियंस से दूर भागते हो तो आपका दुख दोगुना बढ़ जाएगा। इसलिए हैप्पी सक्सेसफुल ये हेल्थी बनने की इतनी कोशिश मत करो। आप बस एक अच्छा इंसान बनने और एक अच्छी लाइफ जीने पर फोकस करो और ये चीजें आपको खुद ब खुद मिल जायेंगी।","ब्रिटिश दार्शनिक एलन वाट्स ने "द बैकवर्ड लॉ" नामक एक अवधारणा के बारे में बात की, जिसमें कहा गया है कि आप किसी चीज का जितना अधिक पीछा करेंगे, वह उतना ही आगे बढ़ेगी और आप उस तक नहीं पहुंच पाएंगे। अगर आप सोने की कोशिश कर रहे हैं, तो आप सो नहीं पाएंगे। यदि आप खुश रहने की कोशिश कर रहे हैं, तो आप खुश नहीं रह पाएंगे और इसी तरह यह प्रभाव हमारे जीवन के लगभग सभी पहलुओं में प्रकट होता है। तो, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम समझेंगे कि यह बैकवर्ड लॉ क्या है, यह कैसे काम करता है और अधिक सफल और खुश रहने के लिए आपको क्या करना होगा।" "***** पर बेस्ड क्वेश्चन्स सबसे ऑक्वर्ड कॉन्वरसेशन की लिस्ट में टॉप पर आते हैं। पर लकीली आज हम साइकोलॉजी इन हिंदी के इस एपिसोड में आप के लिए ***** से जुड़े सबसे जरूरी और फ्रिक्वेंटली आज क्वेश्चन्स को आन्सर करेंगे फर्स्ट क्वेश्चन क्या एक से ज्यादा पार्टनर्स के साथ ***** करना सही है या गलत? ये क्वेश्चन सोसाइटी के रूल्स से ज्यादा हमारी एवल्यूशन अली हिस्टरी पर फोकस करता है, क्योंकि हिस्टरी में ज्यादा तर टाइम हम इंसान। सर हमारे एंड सिस्टर्स पोलिग उमस रहे हैं। यानी एक इंसान के एक से ज्यादा सेक्शुअल पार्टनर्स पर 10 से 11,000 साल पहले जब ऐग्रिकल्चर शुरू हुआ और हमारे एन्सिस्टर्स के पास रीसोर्सेस बढ़ने लगे तब कई गिने चुने मेल्स के पास ज्यादा पावर आने लगी और उस टाइम पर उनकी सोसाइटी में पॉलिसी इंट्रोड्यूस हुआ। यानी मल्टिपल फीमेल्स का एक पॉवरफुल मेल को शेर करना, इस तरह से ये अमीर और हेल्थी मेल्स अपने जीन्स मैक्सिमम लड़कियों में डिस्ट्रीब्यूट कर पाते थे और हर लड़की को अपने और अपने बच्चों के लिए रिसोर्सेस से भरी एक आरामदायक जिंदगी मिल जाती थी और लड़कियों की ये एवल्यूशन अरी आज भी एग्जिस्ट करती है। क्योंकि हर फीमेल ऐसा पार्टनर्स चूज करती है जो स्टेटस में उनके बराबर या उनसे ऊपर हो। इसी वजह से फीमेल्स अपना और अपने बच्चों का सर्वाइवल बढ़ाने के लिए सिर्फ एक टाइम पर एक हाई क्वालिटी पार्टनर के साथ ***** करना प्रिफर करती है। जबकि मेल्स का दिमाग बोलता है कि वो अपना मल्टिपल पार्टनर्स को दें और अपने जीन्स के सर्वाइवल के चान्सेस मैक्सिमाइज करें। हाउएवर अगर किसी केस में लड़के के पास उतने रिसोर्सेज़ या हेल्थी जीन्स नहीं है तो ऑप्शन्स की कमी होने की वजह से वो अपनी सारी इन्वेस्टमेंट एक ही पार्टनर में करेगा। यही रीज़न है कि क्यों एक ऐवरेज लड़का वन मैन वन मोमेंट सिस्टम को ही फॉलो करता है, जबकि टॉप टियर मेल्स के पास। लड़कियों की अनलिमिटेड चौसा होती है। सो, अगर हम कल्चरल जजमेंट को हटाकर देखें तो एक से ज्यादा पार्टनर्स के साथ ***** करना सही है। गलत ये डिपेंड करेगा। एक मेल की वैल्यू के ऊपर अगर उसकी वैल्यू ज्यादा है, तो फीमेल्स उसे शेयर करना बेहतर मानेगी और उसके साथ लॉयल भी रहेंगी। बजाय एक लो वैल्यू मेल के साथ री प्रोड्यूस करने में सेकंड क्वेश्चन चीटिंग के पीछे का रीज़न क्या होता है नाउ? अगर हम पिछले में दिए केस को कंटिन्यू करें वो मेल्स क्यों चीट करते हैं? ये तो बिल्कुल ऑब्वियस है। मेल्स की साइकोलॉजी के साथ साथ उनकी बायोलोजी भी मल्टिपल पार्टनर्स के साथ री प्रोड्यूस करने के लिए बनी है क्योंकि मेल्स के लिए प्रेग्नन्सी की कॉस्ट काफी कम होती है और यही टेम्प्टेशन उन्हें एक पार्टनर के साथ कमिटेड रिलेशनशिप में होने के बाद भी दूसरी लड़कियों की तरफ अट्रैक्ट करती है। पर दूसरी तरफ लड़कियां क्यों चीट करती है? इसके पीछे उनकी एक दुविधा होती है जिसे बोलते हैं गुड जीन्स वर्सिस गुड डैड क्योंकि फीमेल्स अपनी सेक्शुअल अट्रैक्टिवनेस और फर्टिलिटी के पीक पर काफी छोटे समय के लिए होती है। यानी अपने ट्वेंटीज़ में। पर जो क्वालिटी ज़ एक मेल को अच्छा लॉन्ग टर्म पार्टनर बनाती है और जो क्वालिटीज उन्हें एक अच्छा मीटिंग पार्टनर बनाती है, वो रियली ही एक मेल में मिलती है। कई लड़के अच्छे फादर बनते हैं तो कई लड़कों के जीन्स अच्छे होते हैं, इसी वजह से फीमेल्स कई बार, एक नाइस गाय के साथ रिलेशनशिप में तो आ जाएंगी और इवन खुशी, खुशी उससे शादी भी कर लेंगी। क्योंकि यह नाइस गाय एक केरिंग बाप बनेगा पर जस्ट बिकॉज़ इस इंसान के पास ऐल्फा जीन्स नहीं है। ये फीमेल चीट करना जरूरी मानेगी। सो एक तरह से हम ये बोल सकते हैं कि मेल्स इसलिए चीट करते हैं ताकि वो अपने बच्चो की क्वांटिटी बढ़ा सकें और फीमेल्स इसलिए चीट करती है ताकि वो अपने बच्चो की क्वालिटी बढ़ा सके। थर्ड क्वेश्चन क्यों? ज्यादातर इंडियन मील्स को एक वर्जन वाइफ चाहिए। मुझसे ये क्वेश्चन कई बार लड़के और लड़कियां दोनों ने पूछा है और यहाँ तक कि सिर्फ इंडियन मेल्स ही नहीं बल्कि दुनिया के काफी सारे कल्चरस में मेल्स एक वर्जिन वाइफ चाहते हैं। सर ऑफिस लेवल पर ये क्वेश्चन काफ़ी ऑफेंसिव और बैकवर्ड लगता है, पर एवल्यूशन अली साइकोलॉजी बताती है कि इसके पीछे का रीज़न यह है कि इन्शुर करना चाहते हैं कि जिंस फीमेल के साथ वो शादी करने वाले है। वो उन्हीं का बच्चा कैर्री कर रही है, किसी और का नहीं। अगर आपको लास्ट क्वेश्चन में गुड जीन्स वर्सिस गुड डैड वाला पॉइंट समझ आया हो तो आप ये भी समझ गए होंगे की लड़कों में ये डाउट क्यों आता है और क्यों इन लड़कों को इनसेक्युर बोला जाता है? ज्यादातर लड़कियां एक ऐल्फा बैड बॉय के साथ ***** तो कर लेती है पर जब उन्हें ये समझ आता है कि यह इंसान उनके बच्चों की केयर नहीं कर सकता तब वह एक रिलाएबल बेटा मैं ढूँढती है जो एक अच्छा फादर बनेगा और हर लड़की के लिए एक ऐसी सिचुएशन जहाँ उन्हें गुड जीन्स और गुड डैड दोनों मिल जाए वो एक एवल्यूशन अली जैकपॉट होती है। हाउएवर इस नए रिलाएबल फादर का सबसे बड़ा डर यही होता है। कि उसकी होने वाली वाइफ पहले से ही किसी और का बच्चा तो नहीं कैर्री कर रही है। इसलिए वो बोलते है की उन्हें एक वर्जिन वाइफ चाहिए। फोर्थ क्वेश्चन क्या ***** के लिए वेट करना एक अच्छा डिसिशन होता है? ये ऑलमोस्ट हर यंग लड़के की कहानी है। टीनएजर्स में उनकी गर्लफ्रेंड तो बन जाती है, पर जब बात ***** की आती है तो कई फीमेल्स बोलती है की वो इन चीजों को थोड़ा स्लो लेना चाहती है या फिर शादी से पहले ***** नहीं करना चाहती। पर एवल्यूशन अली साइकोलॉजी बोलती है कि ***** के लिए वेट करना कभी भी उतनी वर्थ नहीं रखता, क्योंकि ***** बिना हमारी मर्जी के होने वाले केमिकल रिऐक्शन पर बेस्ट होता है ना कि किसी नेगोशिएशन प्रोसेसेस पर जहाँ पर दो पार्टीज़ एक दूसरे से पहले बारगेनिंग करें और उसके बाद एक दूसरे को प्यार दिखाएं। हर कमिटेड रिलेशनशिप में पहले ***** होना चाहिए और उसके बाद रिलेशनशिप होना चाहिए, क्योंकि ज्यादातर टाइम वो फीमेल्स होती है जिनके हाथ में ***** का डिसिशन होता है। और अगर कोई फीमेल ऐक्चुअल में एक लड़के में इंट्रेस्टेड है तो उसकी बॉडी उस ऑपर्च्युनिटी को नहीं जाने देगी। अगेन फीमेल्स के लिए क्वालिटी मैटर करती है और अगर एक लड़के को ***** के लिए वेट कराया जा रहा है तो उसे खुद ये समझ जाना चाहिए कि वो फीमेल उसमें इतनी इंटरेस्टेड नहीं है और उसे बस एक ऑप्शन की तरह रखा जा रहा है। फिफ्थ क्वेश्चन किस जेंडर को ज्यादा ***** चाहिए होता है? मेल्स को ये फीमेल्स को एक मित्र जो मुझे बार बार लोगों से सुनने को मिलती है, वह यह है कि फीमेल्स मेल से ज्यादा सेक्शुअल होती है, पर यह सच से ज्यादा बस कई लड़कों की फैंटसी हैं। उनका मानना है कि लड़कियां सेक्शुअल तो होती है पर जो चीज़ उन्हें रोकती है वह है एक लड़के के लिए लैक ऑफ ट्रस्ट बट। ये फैक्चुअली गलत है क्योंकि एक हेल्थी मेल 12 से 17 गुना ज्यादा टेस्ट बनाता है। एस कंपेर्ड टु एक हेल्थी फीमेल और टेस्टॉस्टोरोन हमारी ***** ड्राइव को इन्फ्लुयेन्स करने वाला प्राइमरी हार्मोन होता है। फीमेल्स के लिए ये बायोलॉजिकली इम्पॉसिबल है कि उन्हें मेल जितना ***** चाहिए। जब एक फीमेल ये बोलती है कि उसे समझ ही नहीं आता कि मेल्स को इतना ***** क्यों चाहिए होता है और क्यों? मेल्स हमेशा ***** के बारे में सोच रहे होते है तब वो लिटरली सच बोल रही होती है? इसके ऊपर से फीमेल्स की सेक्शुअल डिज़ाइनर साइक्लिकल होती है, क्योंकि मेन्स्ट्रूएशन से पहले जब एक फीमेल अपनी मिलेट्री साइकल के पीक पर होती है तब वो सबसे ज्यादा फर्टाइल और होर नी होती है। पर इसके बावजूद एक फीमेल बायोकेमिकली वो नहीं एक्सपिरियंस कर सकती जो एक मेल, 24 घंटे और सातों दिन एक्सपिरियंस करता है। सिक्स्थ क्वेश्चन क्या ***** देखना सही है? पर फी हम इंसानों के लिए एक काफी नया फिनोमिनल है। इन सेक्शुअली अराउज्ड इन विडीओ से पहले हमारे इस एपेटाइट के लिए पेन्टिंग ज़ स्टोरीज़ और इवन मैगजीन्स होती थी। पर जो वराइटी पॉन्ड में है, वो हमें पहले कहीं नहीं मिली और इसके इतना ऐक्टिव होने का रीज़न है हमारे दिमाग में मौजूद डोपोमिन सर्किट्री जो हमें जिंदा रहने और रिप्रड्यूस करने के लिए मोटिवेट करती है, पर हमारी एवल्यूशन मेरी हिस्टरी में एक ऐसा टाइम था, जब हमारे सिस्टर्स की पॉप्युलेशन काफी कम थी और री प्रड्यूस करने के लिए इतने इंसान भी नहीं थे और इसी वजह से रीप्रोडक्शन को मैक्सिमाइज करने के लिए हमारा दिमाग कुछ इस तरह से इवॉल्व हो गया। दी। सेम इंसान के साथ बार बार ***** करने के कुछ टाइम बाद हमारा दिमाग डोपामाइन बनाना कम कर देता है। पर जैसे ही हम एक नए पार्टनर के साथ मेड करते हैं, वैसे ही हमारा डोप फिर से बढ़ जाता है। यहाँ तक की कई स्टडीज़ में देखा गया है कि एक नया पार्टनर इंट्रोड्यूस कराने से मेल्स का टेस्टॉस्टोरोन बढ़ता है और सेम पार्टनर के साथ उनका टेस्टॉस्टोरोन टाइम के साथ साथ कम हो जाता है और पौंड लड़कों के इसी रिप्रोडक्टिव फैक्टर को टारगेट करता है। बेसिकली आप हर अगले मिनिट एक नए पार्टनर, नई पोज़ीशन या किसी नयी स्टोरी लाइन को इक्स्पिरीयन्स कर सकते हो जिससे आप बार बार डोपामीन को ट्रिगर कर सकते हो। पर जब ये डोपामीन एक लंबे टाइम तक बढ़ा रहता है तब हमारे डोपामिन रिसेप्टर्स ऑटोमैटिकली अपने आप को कम रिसेप्टिव बना लेते है जिसके बाद हमें और स्टिम्युलेशन चाहिए होता है और ऐसे हमें पॉर्न देखने की अडिक्शन हो जाती है। इसके साथ ही ऐडिक्शन हमारे दिमाग में मौजूद ग्रे मैटर को कम कर देती है, जिसकी वजह से हमारी डिसिशन मेकिंग बेकार हो जाती है। हमें ब्रेन फॉग होने लगता है, हमारा सेल्फ कंट्रोल कम हो जाता है। हमारे अंदर कुछ भी करने के लिए मोटिवेशन नहीं रहती और रियल लाइफ से टच होने की वजह से हमारी एक असली इंसान के लिए सेक्शुअल डिज़ाइनर कम हो जाती है। इसी वजह से पौंड देखना किसी के लिए भी हेल्थी नहीं है। सेवंथ क्वेश्चन बर्थ कंट्रोल पिल्स किस तरह से एक फीमेल की साइकोलॉजी को इन्फ्लुयेन्स करती है? बर्थ कंट्रोल पिल्स हिस्टरी में हुए सबसे बड़े और यूनीक इन्वेंशन्स में से एक है और हम अभी तक पूरी तरह से ये समझ भी नहीं पाए हैं कि इसका असर हमारी लाइफ के कितने डाइमेंशन्स में पड़ा है। हमारी एवल्यूशन अली हिस्टरी में ऐसा पहली बार हुआ है कि फीमेल्स अपने रीप्रोडक्टिव फंक्शन को अपनी मर्जी से कंट्रोल कर सकती है। पर ये बेनिफिट काफी बड़ी कॉस्ट पर आता है, क्योंकि बर्थ कंट्रोल पिल यूज़ करने से फीमेल्स मेल्स की तरह बन जाती है। फैट के बढ़ने और एस्ट्रोजेन कम होने की वजह से उनकी आवाज़ के चेंज होने के साथ साथ उनकी बॉडी को ऐसा लगता है कि वो ऑलरेडी प्रेग्नेंट हैं जिसकी वजह से वो एक अच्छे जीन्स वाले मैं स्कूल इन मेल के साथ मेड करने के बजाय वो लो टेस्ट वाले मेल्स की तरफ ज्यादा अट्रैक्ट होने लगती है। यही रीज़न है कि क्यों? 19 सिक्स टीज़ में जब बर्थ कंट्रोल पिल्स मार्केट में आई थी, तब देखते ही देखते डिवोर्स रेट्स एकदम से काफी बढ़ गए थे और अपनी नैचरल के अगेन्स्ट जाने की वजह से फीमेल्स का हैपिनेस लेवल और लाइफ सैटिस्फैक्शन कम हो गई है। फीमेल्स की और उनकी बायोलोजी उन्हें बोलती है की वो एक मैं स्कूल इन ऐल्फा के बच्चों को पैदा करे, जबकि पिल लेने के बाद फीमेल्स इन मैस्कुलिन ऐल्फा टाइप मेल्स को हेट करने लगती है। और एक केरिंग बेटा मेल को अपना पार्टनर बनाती है। इस तरह से बर्थ कंट्रोल पिल्स, मेल्स और फीमेल्स दोनों की मीटिंग स्ट्रैटिजी को नेगेटिवली इन्फ्लुयेन्स करती है।","इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, मैंने सेक्स से संबंधित विषयों के बारे में नियमित रूप से प्राप्त होने वाले 7 सबसे सामान्य प्रश्नों के उत्तर दिए। कुछ नया सीखने के लिए पूरे खंड को सुनें और नाराज/आश्चर्यचकित होने के लिए तैयार रहें। ज़ोर-ज़ोर से हंसना" "तो? बिग 5 पर्सनैलिटी ट्रेड्स में से फिफ्थ और लास्ट रेट है न्यूरॉटिसिज्म, जिसे साइकोमैट्रिक स्केल पर एक्सप्लेन किया गया है। ऐसा 10 सी टू फील नेगेटिव इमोशन्स इस कॉन्टेस्ट में न्यूरॉटिसिज्म कहीं भी इसमें डिफ़रेंट हैं, फ्रॉड इनसे नस में न्युरोटिक बोनस है। दैट स्वाइ कई साइकोलॉजिस्ट न्यूरॉटिसिज्म ट्रेड को इमोशनल स्टेबिलिटी या फिर नैचरल रिएक्शन्स बुलाना प्रिफर करते हैं, जिससे दोनों टर्म्स मिक्स ना हो। इसके अलावा हर इंसान ही नेगेटिव इमोशन्स फील करता है। पर कई लोग दूसरों से ज्यादा सेंसिटिव होते हैं और वह पर्सनैलिटी ज़ जो न्यूरॉटिसिज्म में हाइएस्ट स्कोर करती हैं, उन्हें कलेक्टर आइस किया जाता है। आस पीपल हूँ हारट्रोन टू साइकोलॉजिकल स्ट्रेस दे एक्सपिरियंस सन प्ले सैन्ट इमोशन्स मोरी ज़ ली देर में फाइन्ड देम सेल्फ स्ट्रैप्ड अनप्रोडक्टिव थॉट पैटर्न्स दे यार मोड़ लाइक्ली टू थिंक दैट थिंग्स हैव गॉन इन द पास्ट दे अर गोइंग रॉन्ग नाउ एंड दे विल कंटिन्यू टु गो रॉन्ग इन द फ्यूचर दे यार मोड़ लाइक्ली टू बीन हैप्पी ऐक्शन सैंड इरीटेबल जस्ट बी रिमेम्बरिंग समथिंग सन प्ले ज़ैन फ्रॉम थे पास्ट ऐंड कम इन ग क्रॉस जेन्यूइन प्रॉब्लम एंड दे कैन हैव रीलों सेल्फ एस्टीम पर्टिकुलरली इफ देर लो इन एक्स्ट्रा वर्ज़न। हाइलीन यू नो टिक पर्सनैलिटीज को इन क्वालिटीज की वजह से ऐंगज़ाइइटी डिसॉर्डर्स या फिर डिप्रेशन होने का काफी रिस्क रहता है और वो उन सिचुएशन में भी फील करते हैं जिनमें नॉर्मल लोग काम या न रिऐक्टिव रहते हैं और इसकी वजह से वो क्लियरली सोच भी नहीं पाते हैं। इसके साथ ही ये लोग ऐसे कैरिअर सौर सोशल सिचुएशन चूज करते हैं, जिनमें लॉस होने का रिस्क काफी कम होता है और इसी वजह से इन्हें अपना स्टेटस मेनटेन करना बेटर स्ट्रैटिजी लगती है। आस कंपेर्ड टु कन्टिन्यूसली ट्राइंग टु क्लाइंब के सोशल लैडर बिकॉज़ जितना ज्यादा रिस्क बढ़ेगा उतना ही इन लोगों में नेगेटिव इमोशन्स बढ़ेंगे और ये एक अच्छी स्ट्रैटिजी हो सकती है। स्पेसिअली उन सिचुएशन्स में जो काफी डेनजरस और अनसर्टन होती है, ये ट्रेट हमें फीमेल्स में ज्यादा देखने को मिलता है। एस कंपेर्ड टु मेल्स और ये डिफरेन्स दिखना शुरू होता है जस्ट अराउंड प्यूबर्टी और रेवल्यूशनरी साइकोलॉजी के हिसाब से इसके दो रीज़न हो सकते हैं फर्स्ट्ली जस्ट बिकॉज़। प्यूबर्टी के बाद फीमेल्स की फिजिकल स्ट्रेंथ ऐस कम्पेरड टू मेल्स काफी कम रह जाती हैं और उनकी रीप्रोडक्टिव एबिलिटी बढ़ जाती है क्योंकि एक फीमेल के लिए प्रेग्नन्सी की कॉस्ट काफी ज्यादा होती है। वेरा स्मेल्स के लिए रीप्रोडक्शन उनके सिस्टम के लिए काफी चीपर होता है। सो यहाँ पर फीमेल्स के नेगेटिव इमोशन्स उन्हें अपनी हर चौदस को बार बार क्वेश्चन करने के लिए बोलते हैं ताकि वो बेस्ट पोटेंशिअल मेट ही चूज करें, जो उनको प्रोटेक्ट कर पाए और रिसोर्सेज़ प्रोवाइड कर पाए। सेकंड रीज़न ये हो सकता है कि ह्यूमन बेबीज़ बाकी मेंबर्स के बेबीज़ के कंपैरिजन में काफी डिपेन्डेन्ट और वल्नरेबल होते हैं और उन्हें अपनी मदर की हमेशा एक्स्ट्रा अटेन्शन चाहिए होती है। ऐंड न्यूरॉटिसिज्म फीमेल्स में इतनी चिंता पैदा कर देता है, जिससे मदर्स अपनी बेबीज़ को हर वक्त संभालतीं और केर करती रहती है। फीमेल्स का ये नैचरल बिहेव्यर ये भी एक्सप्लेन करता है कि क्यों 70% डिवोर्स को विमिन इनिशिएट करती है और क्यों विमिन ज्यादा डी सैटिस्फाइड होती है? अपनी वर्क प्लेस और रिलेशनशिप्स में नाउ इन लोगों के बिल्कुल ऑपोजिट जो पर्सनैलिटीज न्यूरोटिसिज्म मेलों स्कोर करती हैं उन्हें पर सेव किया जाता है। आस पीपल हूँ, डोंट फोकस ऑन नेगेटिव थिंग फ्रॉम पास्ट प्रिजेंट और फ्यूचर देर इरली एक्सपिरियंस, टाइम्स ऑफ अन्न हैपिनेस ऐंगज़ाइइटी ओर इर्रिटेबल इ टी दे हैं। व्हाई सेल्फ एस्टीम पर्टिकुलरली इफ देर हाइ इन एक्स्ट्रा वर्जन ऐस वेल दे या रेट मच लोअर रिस्क फॉर डेवलपिंग ऐंग्जाइटी डिस्ऑर्डर सैंड डिप्रेशन दे कैन अप्रिशिएट वैन गुड थिंग्स हैपन टु देम दे कैन टॉलरेट स्ट्रेस वेल देर अन्य उजली हैप्पी विद द रिलेशनशिप्स ऐंड करिअर ऐंड दे कैन एक्सेप्ट फेल्यर, ऐसा नॉर्मल पार्ट ऑफ देर लाइफ बाकी सारे ट्रेड्स की ही तरह हमने रोटी सिस्टम को भी बेहतर समझ सकते हैं। इसके दो ऐस्पेक्ट के थ्रू यानी वॉलेटिलिटी जहाँ पर रिलेटेड है सिपेट्री ऐंगज़ाइइटी सेल्फ कॉन्शसनेस इम्बैरस मेंट विदड्रॉ इन द फेस ऑफ अनएक्सपेक्टेड ऐंड फीलिंग्स ऑफ सैडनेस लोनलीनेस ऐंड इस अपॉइन्टमेंट, दूसरी तरफ जो लोग वॉल टिल होते हैं वो इमोशनली अनस्टेबल आर्ग्यूमेंटेटिव इर्रिटेबल डिफिकल्ट टु गेट अलॉन्ग दे। कांट हैंडल स्ट्रेस प्रॉपर्ली ऐन दे आर ऑलवेज टॉकिंग अबाउट देर प्रॉब्लम्स? सो दोनों ट्रेड्स में जो मेन डिफरेन्स है वो ये है कि जो लोग में हाई स्कोर करते हैं वो कुछ होने के डर से नेगेटिव इमोशन फील करते हैं। पर वॉल टिल लोग कुछ बुरा होने पर और तभी वॉलेटिलिटी हमारे ब्रेन के फाइट, फ्लाइट और फ्री सिस्टम से भी असोसिएटेड है। नाउ इस डिस्कशन से हम समझ सकते हैं कि न्यूरॉटिसिज्म ट्रेड उतना अच्छा साउंड नहीं करता, बट हर पर्सनैलिटी ट्रेड की ही तरह इसके भी अपने एवोल्यूशनरी एडवांटेज एस रही है और ये ट्रेड सिर्फ हमें प्रोटेक्टेड रखने के लिए ही है, क्योंकि अगर हम नेगेटिव इमोशन ही नहीं फील करते या फिर हम अपनी डेथ के बारे में सोचकर डरते नहीं तो अभी तक हम जिंदा ही नहीं होते हैं। ऐंड आफ्टर ऑल फिर रिलेटेड मोटिवेशन हमेशा ज्यादा इफेक्टिव होता है। ऐस कम्पेरड टू प्राइस रिलेटेड मोटिवेशन","मनोविक्षुब्धता एक व्यक्तित्व विशेषता है जो किसी की नकारात्मक भावनाओं को महसूस करने की प्रवृत्ति की भविष्यवाणी करती है। महिलाओं को इस विशेषता में उच्च स्कोर करने के लिए जाना जाता है लेकिन पुरुष विक्षिप्त भी हो सकते हैं। जो लोग न्यूरोटिसिज्म में उच्च होते हैं, वे अतीत, वर्तमान और यहां तक कि भविष्य के बारे में नकारात्मक सोच महसूस करने के लिए जाने जाते हैं, वे अवसाद से ग्रस्त होते हैं और उनमें वास्तव में आत्म-सम्मान हो सकता है, जिससे वे अत्यधिक आत्म-जागरूक हो जाते हैं।" "हम सबने ही कई ऐसे ड्रीम्स देखे होते हैं जो इतने इंटेन्स होते हैं की हमें नींद से जागकर भी एक 2 मिनट लगते हैं। जिससे पहले हम थोड़ा काम डाउन हो पाए क्योंकि जब हम एक सपना देख रहे होते हैं तब हमें वो उतना ही रियल और सच लगने लगता है जितना रीऐलिटी है। सपने हमारे अनकॉन्शस माइंड की क्रिएशन होते हैं, जो इन विज़ुअल इमेज एस के थ्रू हमें गाइड करने और इनसाइट से देने की कोशिश कर रहे होते हैं। अपनी बुक बिगिनर्स गाइड टू ड्रीम इन्टरप्रेटेशन में यूनियन ऐनालिस्ट क्लैरिस आप इनको लास्ट बोलती है कि ड्रीम्स हमारे घर आई एक चिट्ठी की तरह होते हैं। हमारी साइड में एक बहुत गहरी जगह में हमारी लाइफ और हमारी प्रेज़ेंट साइकिक स्टेट की पिक्चर होती जिसे हम अपनी ईगो कॉन्शसनेस से दिन की रौशनी में ऐक्सेस नहीं कर सकते हैं। लेकिन जब हम सोते हैं तब हमारी की यह पिक्चर एक स्टोरी की शक्ल ले लेती है और हमें मेसेजेस देने लगती है। यानी ड्रीम्स को समझना हमारे लिए बहुत बेनेफिशियल हो सकता है। लेकिन जीस तरह से ड्रीम्स हर इंडीविजुअल के लिए यूनीक कॉन्टेस्ट के साथ आते हैं। हमारे लिए हर तरह के ड्रीम को डिस्कस करना इम्पॉसिबल होगा। हाउएवर कई ड्रीम्स यूनिवर्सल होते हैं और उनकी सिग्निफिकन्स इतनी स्ट्रॉन्ग होती है कि हम सिर्फ उन्हें समझकर ही ये आइडिया ले सकते हैं कि हमें अपने बाकी ड्रीम्स को कैसे इंटरप्रेट करना चाहिए। और आपका गोल भी इस ऐपिसोड से यहीं होना चाहिए कि आप ड्रीम्स के सिंबल्स को समझना सीखो, बजाए एक ही ड्रीम के फॉर्मूला को। हर ड्रीम पर अप्लाई करने के तो स्टार्ट करते है नंबर वन ड्रीम से सांप का दिखना ये ड्रीम हर इंसान की लाइफ में एक ना एक बार तो जरूर आता है। कई लोगों को अपने सपने में सांप काट जाता है। कई लोग सांप से दूर भाग रहे होते हैं और कई लोग एक ही में सांप को मार डालते हैं अपनी जान बचाने के लिए। इनमें से जिन सपनों में आपको सांप या जेनरली किसी भी जानवर से डर लगता है कि वो आपको मार देगा तो यह चीज़ आपकी लाइफ में किसी ऐसे थ्रेट को सिंबल आइस कर रही है। जो सबसे ऐनिमल इस टिक और अनकॉन्शियस होता है और इनसे डील करने के लिए आपको ज्यादा अवेयर रहना है और अपने हर डिसिशन या बिहेव्यर को क्वेश्चन करना है की कही आप ही तो अपनी ग्रोथ को अपने अनकॉन्शियस पैटर्न के थ्रू नहीं रोक रहे हैं। दूसरी तरफ जो लोग सांप को मार देते हैं, उनके लिए मैसेज हो सकता है एक एक्चुअल प्रॉब्लम का, जिससे वो ऑलरेडी सॉल्व कर चूके हैं या फिर उनका माइंड उन्हें ये सजेशन दे रहा है कि उन्हें अपनी प्रॉब्लम या किसी नेगेटिव इंसान को ओवर थिंग करने के बजाए उनसे सीधा छुटकारा पा लेना चाहिए? नंबर टू पानी का दिखना ना वो पानी ड्रीम्स में अलग अलग तरह से दिख सकता है। जैसे कही से ओवरफ्लो होता हुआ पानी, बाढ़ या फिर आप खुद पानी में डूब रहे हो सकते हो। जेनरली पानी, अनकॉन्शस माइंड और हमारी खुद की डेथ को ही रिप्रजेंट करता है। तो अगर आप पानी में डूब रहे हो तो उसका मतलब हो सकता है कि आप खुद ही अपनी प्रॉब्लम्स को क्रिएट कर रहे हो और यह इसलिए हो रहा है क्योंकि आपके अंदर विल पावर की कमी है या फिर आप अपने इमोशन्स या डिसिशन्स को पूरी तरह से काबू नहीं कर पा रहे हो और अगर आप पानी पर सर्फ कर रहे हो या उसमें एन्जॉय कर रहे हो तो वह आपकी मुश्किलों से डील करने की कैपेबिलिटी से भी रिलेटेड हो सकता है या फिर आपकी लाइफ में किसी पॉज़िटिव चैन से भी। नंबर थ्री खो जाना एक ऐसा ड्रीम जिसमें आप अपने आप को खोया हुआ देखते हो तो उसका मतलब आप रियल लाइफ में किसी अनसर्टेनिटी से डील कर रहे हो। यहाँ पर डिटेल्स बहुत मैटर करती है। क्या अपने ड्रीम में आप लॉस्ट फील करने के बाद भी वहाँ की अननोन टेरिटरी को एक्स्प्लोर करने की कोशिश कर रहे थे? या फिर आप अपने आस पास के होने के बावजूद खुश और शांत थे? क्योंकि अगर आप लॉस्ट होने पर एक जगह खड़े होने के बजाय इधर उधर जाकर चीजों को एक्सप्लोर कर रहे थे तो उसका मतलब आपकी साइट की आपको ये बोल रही है कि आप अपनी लाइफ को बहुत सेफ बनाकर बैठे हो और आपको ग्रो करने के लिए नई चीजें ट्राई करने की जरूरत है। दूसरी तरफ अगर आपके उसके बीच में भी शांत है तो उसका मतलब आपको रियल लाइफ में भी मुश्किलों के बीच में हड़बड़ाना नहीं है और अगर आप काम रहकर अपने सारे डिसिशन्स लोगे तो सब ठीक हो जाएगा। नंबर फ़ोर एक ही सपना बार बार देखना हमने इस एपिसोड की शुरुआत में बात करी थी कि कैसे ड्रीम्स घर से आई एक चिट्ठी की तरह होते हैं और ऐसे में जब आप अपने ड्रीम्स के मैसेज को रिसीव नहीं करते तो आपकी साइट की तब तक आपको वही सेम ड्रीम बार बार दिखाती रहती है जब तक आप उस चिट्ठी को खोलकर पढ़ नहीं लेते। अगर आपने हैरी पॉटर मूवी देखी है तो आपको याद होगा कि कैसे फर्स्ट पार्ट में जब हैरी को अपने मैजिकल स्कूल ऑक्वर्ड से लेटर आता है तब उसके सौतेले अंकल उसे वो मैसेज पढ़ने नहीं देते हैं। जीस वजह से उनके घर वो चिट्ठी बार बार आने लगती है। जब तक चली हरी उसमें लिखे मैसेज को पढ़ नहीं लेता। बिल्कुल ऐसे ही अगर आपका एक ही सपना रिपीट होता रहता है तो अपने आप को यूनियन साइकोलॉजी की मदद से ड्रीम्स और सिंबल्स के बारे में एजुकेट करो ताकि आप अपने ड्रीम को इंटरप्रेट करके उससे वो जरूरी इनसाइट्स ले पाओ। नंबर फाइव किसी को धोखा देना यानी एक ऐसा सपना देखना जिसमे आप या तो अपने पार्टनर है, फैमिली या अपने दोस्त को धोखा दे रहे हो यूज़्वली यह किसी भी दूसरे किसान से नहीं बल्कि आपके ही अपने एक पार्ट से रिलेटेड होता है। जैसे अगर आपका गोल कुछ और है लेकिन आप किसी मजबूरी की वजह से कोई दूसरा काम कर रहे हो तो उसका मतलब आप अपने लाइफ को चीट कर रहे हो। हमेशा यह याद रखो कि ड्रीम्स में सारा फोकस आपके ऊपर होता है और बाकी करेक्टर्स बस उस स्टोरी के प्रॉप्स होते हैं तो उन करैक्टर्स को लिटरल्ली रियल लाइफ वाले लोगों से कंपेर मत करो बल्कि उन्हें अपने अंदर ही ढूंढो। ड्रीम्स कुछ इस तरह ही काम करते हैं मेटाफर और सिंबल्स के थ्रू और अगर आप भी अपने ड्रीम्स को रेग्युलर बेसिस पर इंटर्प्रिट करना चाहते हो ताकि आप ग्रो कर सको। वो अपने ड्रीम्स को लिखना शुरू करो और उनमें इस तरह के सिंबल्स को ढूंढो।","सपने हमारे अचेतन मन का परिणाम होते हैं जो दुनिया की बेहतर तस्वीर और उसमें हमारे स्थान को पाने के लिए हमारी मदद और मार्गदर्शन करते हैं। सपने आमतौर पर व्यक्ति के लिए अद्वितीय होते हैं क्योंकि वे संदर्भ पर निर्भर होते हैं। लेकिन कुछ सार्वभौमिक सपने हैं जो ज्यादातर लोग अपने जीवन के किसी न किसी मोड़ पर अनुभव करते हैं, अगर हम इन सपनों के पीछे के मनोविज्ञान को समझ लें, तो हम यह समझ पाएंगे कि किसी भी सपने की व्याख्या उनकी रूपक कहानियों और छवियों में कैसे की जाती है। तो, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम ऐसे 5 सामान्य सपनों और उनके अर्थों के बारे में बात करते हैं, जो आपको एक उदाहरण देते हैं कि जुंगियन मनोविज्ञान में सपनों की व्याख्या कैसे की जाती है।" "डिस्ट्रैक्ट होने का मतलब है कि जब भी आप किसी टास्क को पूरा करने की कोशिश करते हों तब आप की अटेंशन कोई दूसरा काम खींचने लग जाता है, जिससे आपका मेन काम अधूरा रह जाता है। हम डिस्ट्रैक्ट इसलिए होते हैं क्योंकि हमें कुछ सेकंड के अंदर ही ये डिसाइड करना होता है कि हम अपने प्राइमरी टास्क पर फोकस रखें और लॉन्ग टर्म में कुछ हासिल करने की कोशिश करें। या फिर एक टेंपरेरी प्लेजर का पीछा करके जल्दी से अपने आप को सैटिस्फाइड कर ले। कुछ भी अच्छा अचीव करने में टाइम लगता है जिसका मतलब अगर हम पॉज़िटिव इमोशन्स फील करना चाहते हैं तो उसके लिए भी हमें पहले मेहनत करनी पड़ेगी और उसके बाद जाकर हम जब कुछ अचीव कर लेंगे तब हम अच्छा फील करेंगे। इस वजह से डिस्ट्रेक्शन्स इस फीलिंग को करने की कोशिश कर रही होती है। एग्जाम्पल के तौर पर अगर आपने गोल बनाया है कि आप आज 3 घंटे तक पढोगे तो आपको अपने बारे में अच्छा सिर्फ तभी फील होगा जब आप अपने इस गोल को पूरा कर लोगे। लेकिन उन तीन घंटों के बीच जब आप अपनी पेंशन स्लूस कर रहे होंगे तब आप एक क्विक डोपामिन हिट के लिए अपना मोबाइल उठा लेते हो और उसमें कुछ फनी या एंटरटेनिंग चीज़ ढूंढने लगते हो। यह यूज़्वली होता है आपके लैक ऑफ इन्ट्रेस्ट की वजह से कि जो भी आप कर रहे हो वो उतना जरूरी या अर्जेन्ट नहीं है और साथ ही साथ अपने आस पास इतनी सारी डिस्ट्रैक्शन होने की वजह से यानी डिस्ट्रैक्शन को ओवर कम करने का सबसे सिंपल तरीका होता है खुद को डिस्ट्रैक्शन फ्री रखना, जो आप सिर्फ तभी कर पाओगे जब आप अपने काम को दिल से पूरा करना चाहते होंगे, वरना आप चाहे अपने फ़ोन या दूसरी डिस्ट्रैक्शन, उसको जितना मर्जी अवॉर्ड कर लो। आप फिर भी टाइम पास के लिए अपनी दीवारों और सराउन्डिंग् को ही देखने लग जाओगे। सो सबसे पहले एक टास्क को अपने पर्पस के साथ जोड़ों जैसे अगर आपने एक बुक पढ़नी है, लेकिन जब भी आप उसे उठाते हों तब आपको नींद आती है या फिर खुद ब खुद आपका हाथ मोबाइल की तरफ जाता है, तो उस बुक के पढ़ने के रीज़न को रिवर्स इंजीनियर करना शुरू करो कि आप उस बुक को पढ़ क्यों रहे हो? शायद आपको नहीं नॉलेज हासिल करनी है। जिससे आपको दुनिया की समझ आए। जब आपको दुनिया के बारे में समझ आएगी तब आप खुद को जान पाओगे। खुद को बेहतर जानने से आप अपनी स्ट्रेंथ को सही जगह पर यूज़ कर पाओगे और अपनी वीकनेस इसको सही डिसिप्लिन की मदद से ओवर कम कर पाओगे। इस तरह से अपनी वीकनेस इसको ओवर कम करने से आप उन कामों को कर पाओगे जो आपके पर्पस तक पहुंचने के लिए जरूरी है। अगर आप इस तरह से अपने पर्पस के पास पहुंचते जाओगे तो आप हर सुबह एक्साइटमेंट के साथ उठोगे बजाय सुस्ती और डिमोटिवेट फील करने के लिए एक्साइटमेंट संक्रामक होती है और दूसरे लोग भी आपकी एनर्जी के टच में आकर बेटर फील करने लगते हैं। जब आप खुद भी अपने गोल्स की तरफ पूरे पैशन के साथ चलते रहते हो और दूसरों के दिल में भी होप जगाते हों तब आप की लाइफ मीनिंग से भर जाती है और लोग आपको रिस्पेक्ट, प्यार, पैसा रिकग्निशन सब देने के लिए तैयार हो जाते हैं। जब आपके पास ये सारी चीजें होती हैं तब आप एक अच्छे पार्टनर को ढूंढ पाते हो और एक अच्छे पार्टनर और सक्सेस के मिलने के बाद आप अपने आप से ये क्वेश्चन पूछ पाते हो कि अब इन सब चीजों के पार क्या है? और ये क्वेश्चन आपको उन जगहों पर ले जाता है जहाँ दुनिया के बहुत कम लोग पहुँच पाते हैं क्योंकि उन्हें हर प्लेयर, हर खुशी और अचीवमेंट की फीलिंग प्रेज़िडन्ट में चाहिए होती है। ये रीज़न था उस बुक को पढ़ने का, लेकिन जब तक आप अपने किसी काम को पकड़ कर उसे खींचना नहीं शुरू करते, तब तक आपको यही नहीं समझ आता कि उसके अगले छोर पर आपके लिए क्या चीज़ वेट कर रही है। ज्यादातर लोगों की यही प्रॉब्लम होती है कि वो हर चीज़ को हिस्सों में बांटकर देखते हैं, बजाय पूरी पिक्चर एक साथ देखने के जीस वजह से आप एक सेकंड से भी कम समय में ऑटोमैटिकली ये डिसाइड कर लेते हो कि आपके लिए क्या ज्यादा इम्पोर्टेन्ट है। आपका काम यह आपकी डिस्ट्रैक्शन और जब आप अपने काम के पीछे के रीज़न को ही नहीं जानते तो यह ऑब्वियस है कि आप उसे ऐसे ही ट्रीट करोगे। की उसकी कोई अहमियत नहीं है। ये मैटर नहीं करता कि आपको क्या काम करना है। अगर डीप इनसाइड आपको उस काम को पूरा ना करने की वजह से गिल्टी फील होता है, तब उस काम को करने की, रीज़न को रिवर्स इंजीनियर करके देखो की आप कहा पहुंचते हो। आपकी बॉडी में आपके लॉजिक से ज्यादा विज़्डम है, इसलिए अपनी बॉडी की सुनो और एक काम की ऐक्चुअल इम्पोर्टेन्ट जाना हो। सिर्फ ऐसा करने से ही आप इतना डिसिप्लिन डेवलप कर पाओगे कि चाहे आपके पास कितनी भी डिस्ट्रेक्शन्स क्यों ना हो, आप वहीं करोगे जो ज़रूरी है ना कि जो मजेदार है।","विचलित होने का मतलब है कि जब भी आप किसी कार्य को पूरा करने की कोशिश करते हैं, लेकिन आपका ध्यान आपके प्राथमिक कार्य के अलावा किसी और चीज़ पर लगा होता है, और आप उस कार्य को अधूरा छोड़ देते हैं ताकि अल्पकालिक संतुष्टि का पीछा किया जा सके। एक सेकंड के एक अंश में, हमारे अवचेतन मन को यह तय करना होता है कि वह किस कार्य पर ध्यान देना चाहता है। और अगर हमने अपने दिमाग को अनुशासित करने के लिए प्रोग्राम नहीं किया है और किसी महत्वपूर्ण कार्य को करने के लिए प्रेरित नहीं किया है, तो हम ध्यान केंद्रित नहीं कर पाएंगे। तो, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम उन तरीकों के बारे में बात करेंगे जिनके माध्यम से आप अपने विकर्षणों को दूर कर पाएंगे और जो कुछ भी आप चाहते हैं उसे हासिल कर पाएंगे।" "एक लड़की से औरत बनने के रास्ते में आपको कई कठिनाइयों को फेस करना होगा, जिसकी वजह से अगर आपको अपने रिलेशनशिप्स, पिअर प्रेशर कैरिअर या हेल्थ को हैंडल करने का तरीका ना पता हो तो इससे आप अपनी जवानी भी वेस्ट कर दोगे और अपनी ऐडल्ट लाइफ में भी आपको बहुत सी मुश्किलें झेलनी पड़ेगी। इसी वजह से इस एपिसोड में हम यंग फीमेल्स के लिए बहुत जरूरी रूज़ या फिर टिप्स की बात करेंगे जो आपको गाइड भी करेंगे और आपको बड़ी गलतियाँ करने से बचाएंगे भी। रोल नंबर वन में किन गेंद मेनटेन? इन रिलेशनशिप से विल बिकम हाँ ऑर्डर टाइम के साथ साथ नए फ्रेंड्स या पार्टनर बनाना आपके लिए बहुत मुश्किल हो जाएगा। जहाँ स्कूल या कॉलेज में नए दोस्त बनाना काफ़ी ईज़ी होता है क्योंकि आप रोज़ एक ही जगह पर सम लोगों से मिलते हो। वहीं बड़े होने पर जब आपके ऊपर रिस्पॉन्सिबिलिटीज आ जाती है और आपका फोकस नए रिलेशनशिप्स बनाने से ज्यादा अपने कैरिअर या फिर फैमिली बनाने पर शिफ्ट हो जाता है तब नए लोगों पर ट्रस्ट करना और उन पर अपनी एनर्जी वेस्ट करना बहुत मुश्किल हो जाता है। इसलिए अपने सर्कल को अभी से टाइट बनाना चालू करो कि बड़े होने पर आपके आस पास ऑलरेडी ऐसे कई लोग हों जिन पर आप ट्रस्ट कर सको। रोल नम्बर टू डोंट रिजेक्ट फेमिनिटी और मैस्कुलिनिटी बिकमा बैलेंस वुमन आज की फीमेल्स को हर तरह से ब्रेनवॉश करने की कोशिश करी जा रही है। कई लोग आपको बोलेंगे कि मैं स्कूल इन बनो, क्योंकि फेमिनन होने का मतलब है वीक होना और कई लोग आपको बोलेंगे की फेमिनिन बनो, क्योंकि मैस्कुलिनिटी टॉक्सिक है हाउएवर ये दोनों एडवाइस ही आपको एक गलत डिरेक्शन में धकेल रही है। आप अपने बेस्ट और स्ट्रॉन्गेस्ट वर्जन सिर्फ तभी बन पाओगे जब आपने मैस्कुलिनिटी और फेमिनिटी का एक बैलेंस होगा। रोल नंबर थ्री लर्न फ्रॉम पीपल हूँ यू डोंट लाइक खुद को जानने का एक बहुत ही अच्छा तरीका होता है अपनी हैट या डिसलाइक्स को स्टडी करना। यानी आप जिन लोगों को बिल्कुल भी पसंद नहीं करते वो आपको अपने बारे में बहुत कुछ बता सकते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हम अपनी पर्सनैलिटी के कई हिस्सों को खुद ही गलत बोलकर अनकॉन्शियस बना लेते हैं और जब भी हम खुद की उन्हीं क्वालिटीज को दूसरों में देखते हैं, तब हमें गुस्सा या फिर घिन आती है क्योंकि एक तरह से दूसरों में आप उनकी कमियां नहीं बल्कि खुद के ही रिजेक्टेड पार्ट्स को देख रहे होते हो। रूल नंबर फ़ोर यू रीच योर पीक फर्टिलिटी ऐंड अट्रैक्टिवनेस इन योर 20 ईज़ ऑफ कोर्स यहाँ पर आप उस 40 या 50 इयर्स ओल्ड फीमेल मॉडल की बात कर सकते हो जो अब पहले से भी ज्यादा अट्रैक्टिव और चार्मिंग लगती है, लेकिन मेजोरिटी की फीमेल्स अट्रैक्शन और फर्टिलिटी वाइज़ अपने ट्वेंटीज़ में ही पिक करती है और उसके बाद उनकी सेक्शुअल अट्रैक्शन और फर्टिलिटी में एक डिक्लाइन आना चालू हो जाता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि फीमेल ब्यूटी रिलाइट होती है। यूथफुलनेस यानी उनकी रिप्रोडक्टिव हेल्थ पर जो एक फीमेल के अर्ली टु मि। 30 नहीं काफी तेजी से गिरने लगती है। मेल्स की अट्रैक्शन टाइम के साथ साथ बढ़ती है जस्ट बिकॉज़। मेल्स को उनकी मैच्योरिटी के लिए अट्रैक्टिव माना जाता है और फीमेल्स को उनके यूथ के लिए। इसी वजह से जो पावर आपकी ब्यूटी आपको अभी देरी है वो पावर आपको फिर से कभी वापस नहीं मिले गी। इसलिए अपने ट्वेंटीज़ को अपनी फाउंडेशन बनाने के लिए यूज़ करो और मॉडर्न आइडीओलॉजी सकीना सुनकर समय को सीरियसली लो। अगर आप आगे चलकर किसी भी तरह का रिग्रेट नहीं फील करना चाहते हैं तो रोल नंबर फाइव बी अवेयर ऑफ पिअर प्रेशर लोग आपको एडवाइस देना कभी बंद नहीं करेंगे। और इसमें कोई गलत बात नहीं है। अनलेस या तो आप उनकी बातों को बिना सुने ही रिजेक्ट कर रहे हो या आप उनकी हर बात को मान रहे हो। पीअर प्रेशर से डील करने का सही तरीका होता है बस एक अच्छा ऑब्जर्वर बनना। यानी लोगों की बातों को सुनो बिना उन पर रिऐक्ट करें। अगर आपको कोई एडवाइस ठीक लगे तो उसे यूज़ करो और अगर आपको कुछ गलत लगे तो बस वो करो जो आपको ठीक लग रहा है। रूल नंबर सिक्स मैरिज इस फॉर किड्स नॉट यू आज बहुत से ये लोग शादी करने से कतराने लगे हैं और डिवोर्स रेट्स काफी तेजी से बढ़ रहे हैं। ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि ज्यादातर लोग शादी को खुद के बेनिफिट या लॉस की तरह देखते हैं। लेकिन शादी का पर्पस आप से नहीं बल्कि आपके बच्चों से जुड़ा होता है। इसका मतलब आपको अपनी शादी से जुड़ा डाउट क्लियर करने के लिए बस खुद से ये क्वेश्चन पूछना है कि क्या आपको किसी पॉइंट पर बच्चा चाहिए या फिर नहीं? इस क्वेश्चन के अलावा बाकी सारे क्वेश्चन्स इर्रेलेवेंट हैं। रोल नंबर सेवन इट्स ओके टु हैव मेल फ्रेंड्स बट यहाँ पर ये बट इसलिए है क्योंकि अगर सिर्फ ई मेल से ये क्वेश्चन पूछा जाए कि क्या मेल्स और फीमेल्स फ्रेंड्स बन सकते हैं? तो उनका आन्सर यूज़्वली बहुत अलग होता है। मेल्स के आन्सर से फीमेल्स की फ्रेन्ड्शिप का मतलब ज्यादातर फ्रेन्ड्शिप ही होता है, जबकि मेल्स की फ्रेंडशिप का मतलब होता है कि वो एक फीमेल को सीक्रेटली पर सेव कर रहे हैं। किसी फीमेल को पर्स यू करना यह मेल्स के लिए बहुत ही नैचरल चीज़ होती है, जबकि फीमेल्स रेरली ही किसी मेल को पर सेव करती हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि फीमेल्स की रीप्रोडक्टिव कॉस्ट मेल्स के कंपैरिजन में बहुत ज्यादा होती है। पहले तो उनके एक्स की क्वांटिटी लिमिटेड होती है और उसके बाद उन्हें नौ महीनों तक एक बच्चे को भी संभालना होता है। इसी वजह से मेल्स रिलेशनशिप में आने के लिए जल्दी मचाते हैं, जबकि फीमेल्स एक मेल को अलग अलग तरह से परख कर देखती है। इसलिए हमेशा इस बात को दिमाग में रखो कि अगर आप किसी मेल को फ्रेंड बनाते हो तो वह डीप इनसाइड आपके लिए बहुत जल्दी फीलिंग्स डेवलप कर सकता है और 19 9% केसेस में यही होता है। अनलेस एक मेल ऑलरेडी, फिजिकली, इमोशनली और स्पिरिचुअली फुलफिल्ड है। रोल नंबर एट नेवर बी प्रॉमिस 10 एक सोसाइटी की इंटेग्रिटी इस बात पर बहुत ज्यादा डिपेंडेंट होती है कि उसके लोग ***** को किस तरह से ट्रीट करते हैं। हिस्टरी की कई महान सिविलाइज़ेशन स् सेक्शुअल फ्रीडम के बढ़ने की वजह से अपनी सारी ड्राइव और लाइफ एनर्जी खोकर दह गई थी। इसी वजह से यहाँ पर यह समझना बहुत जरूरी है कि जहाँ रिलेशनशिप की चाबी मेल्स के पास होती है और उनके लिए सेटल डाउन करना बहुत मुश्किल होता है, वहीं ***** की चाबी या फिर उसकी परमिशन फीमेल्स को देनी होती है और उनके लिए फिजिकल होना मुश्किल होता है। जस्ट बिकॉज़ वो इतनी हाई रीप्रोडक्टिव कॉस्ट होने की वजह से किसी अरे गैरे इंसान के साथ मेट नहीं करना चाहती। इसी वजह से एक सोसाइटी की इतनी सक्सेसफुल होती है और कितने लंबे समय तक सक्सेसफुल रहती है। यह चीज़ फीमेल्स पर डिपेंड करती है कि क्या वो मेल्स को आसानी से ये ऑपर्च्युनिटी देती है या फिर क्या वो मॉडेस्ट और बहुत ही चूज ही रहती है? इसके ऊपर से प्रॉमिस की बेटी जितना मेल्स को नेगेटिवली करता है, उससे कई गुना ज्यादा ये चीज़ फीमेल्स के माइंड को इफेक्ट करती है। इसलिए अपनी यंग एज में ही इस बात को अच्छे से समझो कि ***** को हल्के में लेने के बहुत ही बेकार और एक्स्ट्रीम कॉन्सिक्वेन्सस होते हैं। अंडरस्टैंड ह्यूमन बिहेव्यर क्योंकि बिना लोगों को समझे आप हमेशा ही उनकी चालाकी का शिकार बनोगे। चाहे हम एक फीमेल की वर्कप्लेस की बात करें या उसकी फैमिली की फीमेल्स को एक्स्प्लॉइट करने की पॉसिबिलिटीज़ ज्यादा होती है। जस्ट बिकॉज़ वो नैचुरली ज्यादा ऐग्री बल यानी पोलाइट और कंपैशनेट होती है और इसी वजह से लोग आपकी काइंडनेस को आपकी वीकनेस समझ सकते हैं। अनलेस आप खुद की बुरी साइड को ढूंढकर बुरे लोगों की असलियत जान सको। 10 नो यूरिनेट वैल्यू फीमेल्स बायोलॉजिकल लेवल पर एक हाई वैल्यू के साथ पैदा होती है, जबकि मेल्स को अपनी वैल्यू बनानी पड़ती हैं। बचपन से फीमेल्स एक लिमिटेड अमाउंट ऑफ एक्स के साथ आती है, जबकि सपोस बनाने का प्रोसेसेस एक मेल की प्यूबर्टी में शुरू होता है और इसी वजह से फीमेल एक्स को मेल्स पंप से ज्यादा वैल्यूएबल और एक्स्पेन्सिव माना जाता है और हम भी नैचरल ईमेल्स और फीमेल्स को ऐसे ही ट्रीट करते आए हैं कि मेल्स को अपनी एग्ज़िस्टन्स प्रूफ करनी पड़ती है, जबकि फीमेल्स अपनी वर्थ के साथ पैदा होती हैं। जीवन बेसिक बायोलोजी के बाहर जाने पर भी सोशल लेवल पर इस अन्डरस्टैन्डिंग को ऑब्जर्व करा जा सकता है। इसलिए इस शक्ति को यूज़ करो और ये याद रखो। कि आपको किसी को प्रूफ करने की कोई भी जरूरत नहीं है। रूम नंबर 11 ने वर निग्लेक्ट रिलेशनशिप्स ओवर योर करिअर मॉडर्न फीमेल्स आज खुद के गिफ्ट्स को भूलकर मेल से कम्पीट करने और एक तरह से खुद को प्रूव करने की कोशिश कर रही है। लेकिन जो भी विमिन वाइज है, वो कल्चर और मीडिया की सुनकर अपने कैरिअर या रिलेशनशिप्स किसी भी एक चीज़ को महत्त्व नहीं देती बल्कि वो खुद के एक्शन्स को सिचुएशन के मुताबिक डालती है और उस दौरान भी अपने रिलेशनशिप्स को निग्लेक्ट नहीं करती। यानी आपको यह नहीं चूज करना कि आपने पढ़ाई करनी है, कैरिअर पर फोकस करना है या फिर एक फैमिली बनानी है। आपने बस खुद के दिल की सुननी है और जो जरूरी है वो करना है। अगर आप कैरिअर और फैमिली दोनों पर फोकस करना चाहते हो तो वह भी पॉसिबल है और अगर आप बस फैमिली बिल्ड करना चाहते हो तो उसमें भी गिल्टी फील करने की कोई बात नहीं है। गलती बस लोगों की बातें सुनकर और खुद के ही अगेन्स्ट जाकर एक्स्ट्रीम को पकड़ने में है। रोल नंबर 12 यूज़ और इन्टूइशन चाहे हम ये साइकोलॉजिकल लेवल पर देखे या फिर एलिमेंटल लेवल पर मेल्स और फीमेल्स में कई ऐसे डिफरेन्स है जो उन्हें कहीं अलग गिफ्ट्स देते हैं और उनकी सर 1010 डैन्स ईज़ को सेट करते हैं जहाँ मेल्स की नैचरल 10 सी इनटेल्लेक्ट की होती है यानी वो हर चीज़ में ही रैशनैलिटी ढूंढ़ते हैं। वहीं फीमेल्स की डेथ इससे ज्यादा होती है और वो सीधा अपनी इन्टूइशन की सुनती है। इन्टूइशन इनटेल्लेक्ट से ज्यादा ऐक्युरट और रिलाएबल होता है क्योंकि आपकी बुद्धि आपको ही मैनिपुलेट करना जानती है। जबकि अगर आप खुद की इनोवेशन यानी सहज ज्ञान की आवाज सुनो तो आप हमेशा ही बुरी सिचुएशन्स बुरे डिसिशन्स और बुरे लोगों को अवॉर्ड कर पाओगे। रोल नंबर 13 मास्टर और फिजिकल साइकोलॉजिकल इमोशनल स्पिरिचुअल नेचर बिकॉज़ आप एक मल्टी डाइमेंशनल बीइंग हो और आप अलग अलग लेवल्स पर एग्ज़िट करते हो। इस वजह से अपनी रिऐलिटी की सिर्फ एक साइड को डेवलप करने से आप अपनी पूरी पोटेंशिअल तक नहीं पहुँच पाओगे। इसलिए अपने बॉडी और माइंड की हेल्थ को मैनेज करना शुरू करो जिससे आपके इमोशनस बैलेंस हो सके और आप इस स्ट्रॉन्ग फाउंडेशन के साथ अपनी स्पिरिचुअल जर्नी में भी आगे बढ़ सकू।","लड़की से औरत बनने का सफर आसान नहीं होता है। हर कदम पर समाज आपको लाख तरह से परखता है। पुरुषों के विपरीत, आपको भी जल्दी परिपक्व होना होगा, क्योंकि आपके पास बच्चे पैदा करने के लिए कम समय है और उसके बाद आप एक बच्चे को गर्भ धारण नहीं कर सकती हैं। कम उम्र में इस तरह के दबाव से कई लड़कियां पीड़ित होती हैं और अपने करियर, रिश्तों, परिवार और मानसिक स्वास्थ्य को लेकर बहुत सारी शंकाएं होती हैं। इसलिए युवा महिलाओं का मार्गदर्शन करने के लिए, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम 13 नियमों पर चर्चा करने जा रहे हैं जो एक सम्मानित महिला बनने की आपकी यात्रा में आपकी मदद करेंगे और आपको सबसे आम गलतियाँ करने से रोकेंगे।" "ऐलन वॉट्स एक ब्रिटिश फिलॉसफर थे, जिन्होंने वेस्टर्न ऑडियंस के आगे हिंदुइज़्म बुद्धिज़म और जैसी ईस्टर्न टीचिंग को इंट्रोड्यूस कर रहा था। बचपन से ही नेचर के करीब रहने और अपनी माँ के रिलिजस इन्फ्लुयेन्स की वजह से वॉट्स के अंदर एक छोटी उम्र से ही यूनिवर्स की मिस्ट्रीस और इंसान की जिंदगी के सबसे बड़े क्वेश्चन्स में इंटरेस्ट आने लगा। अपनी लाइफ में एलन ने टोटल 25 बुक्स लिखीं, जिनमें से सबसे पॉपुलर है द वे ऑफ ज़ेन और इन मी ओन वे उन लोगों की ही तरह जो वेस्टर्न और ईस्टर्न टीचिंग दोनों की नॉलेज रखते हैं। एलन वोट्स भी ईस्ट और वेस्ट या फिर उनके वर्ड्स में मटिरीअल को के साथ इंटीग्रेट करना चाहते थे ताकि हर इंसान एक कंप्लीट एग्ज़िस्टन्स जी सके। वॉट्स की नॉलेज हर उस इंसान के लिए बहुत जरूरी है जो साइनस को के साथ देखना और समझना चाहता है और स्पिरिचूऐलिटी को एक साइंटिफिक लेंथ के साथ। इसलिए ये एपिसोड एलन वाट से ही सबसे लाइफ चेंजिंग लाइसेंस के बारे में है। लेसन नंबर वन वे डोंट कम इनटू थिस वर्ड वे कम आउट ऑफ इट ज्यादातर लोगों के अंदर एक सेनसेशन होती है। मैं की ये हमारी फीलिंग्स एक्शन्स और थॉट्स का सेंटर होता है जो हमारी बॉडी में कई फील होता है। एक ऐसा सेंटर जो भारी दुनिया के लोगों और चीजों से मिलता है और उनसे अपने सेन्सस के थ्रू कॉन्टैक्ट बनाता है, हमारी हर बात में ही इस इल्यूजन की रिफ्लेक्शन दिखती है। हम बोलते है कि हम इस दुनिया में आए हैं और हमें हमारे पैरंट्स ने बनाया है, लेकिन असलियत में हम इस दुनिया में नहीं आए, बल्कि हम दुनिया से आए हैं। जिसतरह एक पेड़ से उसकी पत्तियाँ निकलती है या फिर एक समुद्र से उसकी लहरें वैसे ही ब्रह्मांड में से हम निकले हैं और हम उससे अलग नहीं है। हर इंसान पेड़ पर लगी एक पत्ती की तरह ही है ना समझ लोग पत्ती और पेड़ को एक दूसरे से अलग मानते हैं, लेकिन वाइस लोग यह बात जानते हैं कि पेड़ और पत्ते एक दूसरे को कंप्लीट करते हैं। यह फैक्ट्रि ही कोई इंसान एक्सपीरियंस करता है। जीवन जो लोग इस चीज़ को थ्योरी में जानते हैं वो भी संसार के इस सच को समझने और फील करने से बहुत दूर है क्योंकि वो खुद को चमड़ी के थैलों में बंधी इनडिविजुअल ईगो समझते हैं और यही ऐटिट्यूड हमें हर उस चीज़ के खिलाफ़ हिंसक बनाता है जो हमारी फिजिकल बाउंड्री से बाहर एग्जिस्ट करती है। जीवन पैरेन्ट्स भी अपने बच्चों को ये टीचिंग देते हैं कि उन्होंने अपने बच्चों को बनाया है जबकि असल में बच्चों को माँ बाप बनाते नहीं है बल्कि बच्चे माँ बाप के थ्रू इस दुनिया में आते हैं। पहले के इसमें आपके जन्म का कारण आपके पैरेंटस है और दूसरे में पूरा यूनिवर्स लेसन नंबर टू फेथ। इसके ऑपोजिट ऑफ बिलीफ फेथ होता है। किसी चीज़ पर ट्रस्ट करना जबकि बिलीव का मतलब होता है किसी चीज़ को बिना पर्सनल इक्स्पिरीअन्सिज़। सच मान लेना जब आप यूनिवर्स में रखते हों तब आप खुद को उसमें घुसने देते हो। आप अपनी हर चीज़ को कंट्रोल करने की चाह को छोड़कर ब्रह्मांड की दिशा में चलने लगते हो। फेथ रखने का मतलब है कि आप खुद को पानी के हवाले कर देते हो और तैरते समय पानी को पकड़ने की कोशिश नहीं करते हैं, क्योंकि अगर आप ऐसा करोगे तो आप डूब जाओगे। इसलिए आप रिलैक्स करते हो और तैर पाते हो। फेथ होता है खुद के माइंड से चिपके बोझ को गिरा देना। जबकि बिलीफ का मतलब होता है कोई नया बोझ उठा लेना। फेस में आप अपने करिअर या फिर रिलेशनशिप में पूरी मेहनत करोगे लेकिन अगर वो फिर भी काम नहीं करा तो आप उसे पकड़कर नहीं रखोगे। आप अपनी लाइफ को ट्रस्ट करके उस रिलेशनशिप या फिर जॉब को जाने दोगे। कुछ बेहतर पाने के लिए फेत में आप यूनिवर्स को खुद को वो देने देते हो जिसकी आपको जरूरत है। लेकिन बिलीव में आप अपनी अकड़ में ही यह सोच लेते हो की आपको पता है कि आप के लिए क्या चीज़ बेस्ट हैं। इसी तरह से ऐलन वो बोलते है कि जो भी इंसान रिलिजन के मामलों में कट्टर बन जाता है और भगवान या फिर यूनिवर्सिटी कहीं आइडियाज़ के साथ चिपक कर बैठ जाता है। ऐसा इंसान असलियत में अपने भगवान पर कोई ट्रस्ट नहीं करता क्योंकि ट्रस्ट का मतलब होता है लैटिन गो नॉट होल्डिंग ऑन। इसलिए कभी भी किसी उस चीज़ में बिलीव मत करो जिससे आपने खुद एक्सपिरियंस नहीं करा है और जब आप किसी सच को इक्स्पिरीयन्स कर लो तब ऑटोमैटिकली आपको उसमें बिलीव करने की जरूरत ही नहीं पड़ती। लेसन नंबर थ्री यू डोंट फाइन्ड रूथ यू बिकम ट्रुथ ये टीचिंग के लेक्चर्स में दी गई है। वो बोलते है कि जितना आप डाउ यानी यूनिवर्स के लॉस के साथ जीने की कोशिश करोगे उतना ही आपदाओं से दूर होते जाओगे। क्योंकि आप की कोशिश में ही आपकी बाधा पैदा हो जाती है। यानी आप खुद को और यूनिवर्स के लॉस को एक दूसरे से अलग समझने लगते हो। सच को ढूंढने की खोज में ही आप खुद को सच से अलग कर लेते हो और इसी वजह से आपको सच कभी नहीं मिलता। वेस्ट में भी नेचर को एक ऐसी चीज़ की तरह समझा जाता है जो पार्क्स में या फिर पहाड़ों के बीच कहीं एग्जिस्ट करती है जिसकी वजह से आप नेचर को सिर्फ तभी एक्सपिरियंस कर पाते हो जब आप नेचर की कोई डॉक्यूमेंट्री देखते हो या फिर घर से बाहर निकलकर कहीं जाते हो। हमारी डेली लाइफ और नैचरल वर्ल्ड के बीच इतना ज्यादा गैप बढ़ चुका है। कि हमें यही नहीं पता कि हमारा खाना कहाँ से आता है। हम साइलेंस में क्यों नहीं बैठ पाते? और क्यों हम दूसरों से इतना ज्यादा कनेक्टेड होने पर भी उनसे दूर हो गए हैं? इसलिए अगर आप खुद की साइकी रीसेट बटन को दबाना चाहते हो तो आपको हुवे यानी एफर्टलेस, ऐक्शन या फिर बिना किसी डिज़ाइनर के एक्शन करना होगा। वो वे का मतलब होता है किसी काम को करना, बस उस काम को करने के लिए, ना कि किसी रिज़ल्ट को पाने के लिए। इसका मतलब यह नहीं है कि आपको बिना किसी ऑब्जेक्टिव के काम करना है या फिर पर्पस लिए अपने फ्यूचर को इग्नोर करना है। नहीं क्योंकि किसी रिज़ल्ट को ना पाने के चक्कर में भी आप इस रिज़ल्ट के लिए काम कर रहे होते हो कि आपको कोई रिज़ल्ट ना मिले। सिंपल वर्ड्स में जरूरत के मुताबिक काम करो और उससे कम या फिर ज्यादा नहीं। अभी आप किसी दूसरे इंसान की तरह दिखने, किसी दूसरे के कितने पैसे कमाने या फिर दूसरों से सुपिरिअर बनने की कोशिश में लगे हुए हो और यही कोशिश आपको कभी भी होल नहीं बनने देती क्योंकि आप हमेशा फ्यूचर में जी रहे होते हो कि आप क्या बनोगे? आप कितना कमाओगे आप कैसे देखोगे या फिर आपको कितनी रिस्पेक्ट मिले गी? आपका हर ख्याल आपको प्रेसेंट मोमेंट से दूर ले जाता है। यही तो रीज़न है कि क्यों आज बहुत से लोग क्रोनिक प्रोक्रैस्टिनेशन के शिकार बने पड़े हैं। इसी वजह से अपने गोल्स का पीछा मत करो बल्कि खुद मूवमेंट टू मूवमेंट वो करो जिसका काम की जरूरत है जिससे आप हमेशा ही उस पोज़ीशन पर रहोगे जहाँ पर आप बिलौंग करते हो। लेसन नंबर फ़ोर द मीनिंग ऑफ लाइफ इस टू जस्ट लीव ऐंड लिफ्ट फूली वॉट्स बोलते है की लाइफ का कोई अल्टीमेट मीनिंग नहीं है। हमें बस जिंदगी को अच्छे से जीना है। ये बात इतनी प्लेन और ऑब्वियस है, लेकिन फिर भी लोग इधर से उधर इतनी हडबड़ाहट में घूम रहे होते हैं जैसे खुद के पार किसी चीज़ को अचीव करने से उन्हें कुछ मिलेगा। इसी वजह से कई लोग इस मीनिंग को अपनी फैमिली में ढूंढ़ते हैं। कई अपने बिज़नेस में कहीं प्यार में कई लोग एक अच्छा पैरेंट बनने को मीनिंगफुल समझते हैं और कई लोग बस एक नेक इंसान बनने से ही फुल फील फील करने लगते हैं। जो भी चीज़ आपको लाइफ को टोटली जीने देती है और आपके एक्सपिरियंस को खुशी और जीने की इच्छा से बढ़ जाती है, वही चीज़ आपकी लाइफ का मीनिंग बन जाती है। लेसन नंबर फाइव लाइफ इस नॉट जर्नी ऐलान वॉट्स बोलते है कि यूनिवर्स की एग्ज़िस्टन्स एक खेल की तरह है, उसका कोई रीज़न नहीं है और ना ही वो कहीं पहुंचने की कोशिश कर रहा है। वो म्यूसिक की तरह है क्योंकि उसकी कोई डेस्टिनेशन नहीं होती। जबकि जब आप कहीं जाने के लिए ट्रैवल कर रहे होते हो तब आपके दिमाग में अपनी जर्नी का एक एंड पॉइंट होता है। लेकिन कोई भी म्यूजिशियन एंड तक पहुंचने की जल्दी नहीं मचाता क्योंकि ऐसे तो सबसे पॉपुलर म्यूजिशियन वो होता जो सबसे तेजी से इन्स्ट्रूमेंट्स को प्ले करता। म्यूसिक में किसी भी तरह की जल्दबाजी नहीं होती। आप कोई भी गाना सुनते समय ये नहीं सोचते हैं। की वो खत्म कब होगा या फिर उस गाने का एंड गोल क्या है? क्योंकि ऐसे तो आप उस गाने को एन्जॉय नहीं कर पाओगे? इसके बजाय आप बस म्यूजिक को सुनते हो, उसे एन्जॉय करते हो, उसकी सुंदरता को अप्रीशीएट करते हो, उसमें मगन हो जातें हों और आपकी इस एन्जॉयमेंट में ही वो गाना खत्म भी हो जाता है। लाइफ भी कुछ ऐसी ही है जहाँ अगर आप उसके एंड पॉइंट तक पहुंचने में जल्दी मचाओगे तो आपको बस वहाँ डेथ ही मिले गी। इसलिए यह पूछना कि आप जिन्दा क्यों हो या फिर लाइफ का मीनिंग क्या है? ये क्वेश्चन्स बिल्कुल ऐसे ही है कि म्यूसिक का क्या पॉइंट हैं। म्यूजिक का पॉइंट लाइफ की ही तरह उसके एक्सपिरियंस में है।","एलन वाट्स एक ब्रिटिश दार्शनिक थे जिन्होंने पश्चिमी दर्शकों के लिए हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म और ताओवाद की पूर्वी शिक्षाओं को पेश करने में बहुत योगदान दिया। उनका उद्देश्य आध्यात्मिक और भौतिक को एकीकृत करना था ताकि एक पूरा जीवन जी सके। उन्होंने जो 25 पुस्तकें लिखीं, उनमें से सबसे प्रसिद्ध द वे ऑफ़ ज़ेन है। वाट्स की शिक्षाएँ उनके लिए हैं जो आध्यात्मिक को वैज्ञानिक लेंस से और वैज्ञानिक को आध्यात्मिक लेंस से देखना चाहते हैं। इसलिए, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम जीवन के 5 प्रमुख पाठों को कवर करेंगे, जिनके बारे में एलन वाट्स ने अपनी किताबों और व्याख्यानों में बात की थी।" "साइकोलॉजिस्ट इनवॉइस बोलते हैं की सपने हमें नहीं बल्कि हम सपनों को आते हैं। यानी सोते हुए जो भी कहानियाँ हमारे मन में चल रही होती हैं, उनके डाइरेक्टर हम ही होते है हाउएवर ये कहानियाँ या फिर सिनेरीओस बस हमारे खुद को एंटरटेन करने के लिए नहीं होता है। इसके बजाय सपनों की मदद से हमारा मन पुरानी इन्फॉर्मेशन को न इन्फॉर्मेशन के साथ मिला रहा होता है, कहीं सल्यूशनस को जेनरेट करने के लिए। इसलिए इस एपिसोड में हम ऐसे ही कई सपनों और उनके साइकोलॉजिकल मीनिंग के बारे में बात करेंगे ताकि आप उन सपनों में मौजूद सॉल्यूशन्स को समझ पाओ। नंबर वन योर रिलेशनशिप्स आप किस तरह के ओपिनियन रखते हो? अपने फ्रेंड्स और फैमिली के लिए अगर आप अपनी किसी भी तरह की फीलिंग को छुपा रहे हो तो आपकी ड्रीम्स आपके ऑनेस्ट ओपिनियन को बाहर ले ही आएँगे। सपने हमारे इमोशन्स की उथल पुथल को स्टोरीज़ इमेज एस और सिंबल्स में बदल देते है। फॉर एग्ज़ैम्पल अगर आप अपने एक दोस्त को लौल मानते हो और आप सालों से उसके साथ दोस्ती को निभा रहे हों लेकिन एक बार आपको सपना आता है कि आप अपने दोस्त के साथ एक रेस लगा रहे हो जिसमे आपका दोस्त आपसे आगे निकल रहा है। और पूरे हफ्ते ही आपको अलग अलग ड्रीम्स में ऐसा ही पैटर्न देखने को मिलता है तो यह एक साइन होता है डी पर अनरिजर्व्ड कॉनफ्लिक्ट का जैसे इस केस में दोस्तों के बीच में कॉम्पिटिशन या फिर जेलेसी इंसान काफी उलझा हुआ जीव हैं। हम कई बार प्यार में होकर भी इस बारे में अवेयर नहीं होते कि हमें किसी से प्यार हो गया है और कभी हम अपने गुस्से या फिर जलन के बारे में अवेयर नहीं होता है। इसी वजह से खुद के सपनों को नोट करना बहुत हेल्पफुल हो सकता है खुद की सेल्फ अवेयरनेस पढ़ाने के लिए नम्बर टू ड्रीमरी कॉलिंग इस ऐडवांटेज ज्यादातर लोग अपने सपनों को उठते ही भूल जाते हैं। और बहुत से लोग तो ऐसे भी होते हैं जिन्हें उठते ही अपना सपना याद नहीं होता, लेकिन दिन में कोई ऐसी बात या फिर चीज़ होती हैं जिनसे उनकी मेमोरी ट्रिगर होती है और उन्हें याद आता है कि उन्होंने तो एक सपना देखा था, हाउएवर जो लोग नैचुरली अपने सपनों को याद रख पाते हैं या फिर खुद को ऐसा करने के लिए ट्रेन करते हैं, उनके ड्रीम से मिले लेसन्स उन्हें ज्यादा बना सकते हैं। सपनों के माध्यम से नए लाइसेंस सिर्फ वो लोग ले पाते है जो पर्सनैलिटी ट्रेड ओपन एस में हाई होते हैं, क्योंकि ऐसे लोग नए विचारों और ऐसा रिज़ल्ट सपनों की वेडनेस के टुवार्ड्ज़ ज्यादा रिसेप्टिव होते है नंबर थ्री योर सब कॉन्शस ट्रुथ अमेरिकन साइकोलॉजिस्ट कैल्विन हॉल ने अपनी जिंदगी में अलग अलग लोगों के लगभग 50,000 से अपने रिकॉर्ड करें और उन्होंने अपनी स्टडीज़ में इन सपनों के बीच में कॉमन पैटर्न को ढूंढना शुरू करा कैल्विन ये जानना चाहते थे कि सपने कहाँ से आते हैं और वो क्यों आते हैं? उन्होंने नोटिस करा कि हमारे सपने अक्सर हमारी ही रिऐलिटी को हमारे आगे रिवील कर रहे होते हैं। हर सपना एक शीशे की तरह हमारे सच को रिफ्लेक्ट करता है। जो भी आप एक्चुअल में खुद को समझते हो जो भी आप ऐक्चुअल में जाते हो और जो भी आपकी असली डर है वो सब आपके सपनों में बाहर आ जाते हैं। सोते समय ईगो की गैरमौजूदगी में आपका मन आपको बिना आपकी 22 इस मिसकॉन्सेप्शन्स और बिलीफ के सच्चाई दिखा पाता है। कभी आपकी इन सेक्युरिटीज़ एक मॉन्स्टर की फॉर्म में, कभी आपका गुस्सा एक मर्डर की फॉर्म में या फिर कभी आपकी डीपेस्ट फैन्टैसी स् एक सेंशुअल ड्रीम की फॉर्म में है। नंबर फ़ोर कॉन्स्टेंट प्रॉब्लम्स क्या आपको अपने सपनो में कोई ऐसी प्रॉब्लम देखी है जो बार बार रिपीट होती है? जैसे बार बार किसी से बचकर भागना डरा हुआ फील करना, लड़ना या फिर इनसिक्योर फील करना अगर आपका जवाब है हाँ तो इसका मतलब कि आपकी लाइफ में कोई ऐसी बड़ी प्रॉब्लम है जिससे आपको अरजेन्टली सॉल्व करने की जरूरत है। में बी आप एक जॉब में फंसे हुए हों में बी आपके रिलेशनशिप में पहले जैसी बात नहीं रही या फिर शायद आप अपनी लाइफ में लॉस्ट हो। आपको शायद डाइरेक्टली ये समझ ना आये कि आपकी कौन सी प्रॉब्लम आप की ग्रोथ को रोक रही है लेकिन कॉन्स्टेंट ली अपने ड्रीम्स को मॉनिटर करने से यह क्लियर हो जायेगा कि आपको कौन सी समस्या तंग कर रही है और उसे किस तरह से सॉल्व करना है। नंबर फाइव वॉट इफ यू नेवर हैव एनी ड्रीम्स सपनों का नाना बहुत से फैक्टर्स पर डिपेंड कर सकता है। जैसे शायद आपकी नींद पूरी नहीं होती या फिर आप इतना कच्चा सोते हो कि आप ज्यादा समय के लिए डीप स्लीप में जा ही नहीं पाते और किसी भी ड्रीम को बना ही नहीं पाते या फिर ज्यादा चान्सेस इसके भी है कि आपको सपने आते तो है लेकिन आप इतने अनवर हो कि आपको वो याद ही नहीं रहते हैं। सपने ओवरऑल दो तरह के लोगों को नहीं आते हैं यानी जो लोग अनहेलथी या होते हैं या फिर जो लोग हाइली अवेर और कॉन्शस होते हैं, अगर आप एक हाइली कॉन्शस इंसान नहीं हो, तो ये ऑब्वियस है कि या तो आप अपने सपनों को भूल रहे हो और आपको उठते ही अपने सपनों को रिमेम्बर करने की प्रैक्टिस करनी चाहिए या फिर आपको अपनी हेल्थ और स्लीपिंग हैबिट्स पर ध्यान देना चाहिए। नंबर सिक्स लूसिड ड्रीम इंग्लिश ओनली पॉसिबल विद हाइअर कॉन्शसनेस जिसतरह से ड्रीम्स को याद रखना अभी इस बात से रिलेटेड होता है कि आप कितने कॉन्शस हो, वैसे ही आप अपने सपनों को कंट्रोल कर सकते हो या फिर नहीं। यह भी आपके लेवल ऑफ कॉन्सियसनेस पर ही डिपेंड करता है। कॉन्सियसनेस के बढ़ने या फिर गिरने का मतलब बस इतना ही है। कि आप एक मूवमेंट में कितना प्रेज़ेंट और अवेर हो। क्या आप इस मोमेंटम एवेर हो और आपको पता है कि आपकी सराउन्डिंग् में कितनी तरह की आवाजें हैं कि आप अवेर हो कि आपके पैर हो या फिर बैग में किस तरह की संसेशन हो रही है और क्या आप हर चीज़ में एक हारमनी या फिर वन्नेस को देख पा रहे हो? कॉन्शसनेस जितनी ज्यादा होती है एक इंसान का अपनी जिंदगी पर कंट्रोल भी उतना ही ज्यादा होता है और इसका तरीका सिर्फ मेडिटेशन ही नहीं होता जैसे आजकल मार्केट में बहुत से तरह के लूसिड ड्रीमिंग मास का रखे है। ये मास्क आप को ट्रेन करते हैं। कलर लाइट की मदद से जैसे अगर आपके लूसिड ड्रीमिंग मास्क में रेड लाइट्स लगी हुई है तो ये लाइट्स आपकी डीप स्लीप के दौरान ऑन होंगी। आपको यह याद दिलाने के लिए कि आप एक सपने में हो और इस बारे में अवेयर होते ही कि आप एक सपने में हो। आप अपने सपने पर अपनी पकड़ बना पाते हो और उसे कंट्रोल कर पाते हो। आई होप आप इस एपिसोड में सपनों और खुद के बारे में कुछ नया सीख पाए हो गए और अगर आप अपने कोई डाउट या फिर यूनीक ड्रीम्स को शेयर करना चाहते हो तो उन्हें कमेंट्स में लिखो।","सपने हमसे नहीं होते, हम अपने सपनों से होते हैं। मतलब, हम अपने सपने बनाते हैं। हालाँकि, सोते समय हमारा मन हमारा मनोरंजन करने के लिए सपने नहीं बनाता है। बल्कि हमारा दिमाग हमारी दैनिक जीवन की समस्याओं के समाधान के लिए पुरानी जानकारी को नई जानकारी के साथ मिला देता है। इसीलिए इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम विभिन्न समाधानों पर चर्चा करेंगे जो आपके सपने आपको देने की कोशिश कर रहे होंगे।" "फीमेल्स हमेशा इस कन्फ्यूजन में रहती है कि मेल्स को आखिर चाहिए क्या? क्या पॉपुलर स्टीरियोटाइप सच है और मिल्स को इंटिमेसी के अलावा कुछ नहीं सूझता या क्या यह बस उन कई चीजों में से एक है जिसे बेसिस पर मेल्स अपने पार्टनर को चुनते हैं? चाहे वो एक सर्टेन तरह से ड्रेस करने की बात हो, मेकअप स्टाइल या फिर बात करने का तरीका फीमेल्स नहीं जानती की कौन सी चीज़ है? मेल्स को उनके साथ लॉयल और लॉन्ग टर्म के लिए अट्रैक्टेड बना सकती है। इसलिए इस एपिसोड में हम उन यूनीक चीजों की बात करेंगे जो मेल्स खुद भी अननोन ली। लेकिन हमेशा फीमेल नोटिस करते हैं। नंबर वन आइड्रोस इसे मेल सब कॉन्शस ली नोटिस करते हैं, लेकिन जहाँ कई मेल्स को पतली आइब्रो पसंद आती हैं, वहीं कई ईमेल्स को डैन्स और मोटी आइड्रोस ये चॉइस डिपेंड करती है कि वह खुद कितने मैस्कुलिन या फिर फैमिन है, क्योंकि मैं स्कूल इन मेल्स अक्सर फेमिनिन फीमेल से अट्रैक्ट होते हैं और उनको पतली आइब्रो ज्यादा अट्रैक्टिव लगती है, जबकि फेमिनिन मेल्स को मैं स्कूल इन फीमेल्स अट्रैक्ट करती है और तभी वो एक फीमेल पर हेवी आईब्रोज वाली लोग को प्रिफर करते है। हाउएवर एक बैलेंस्ड मेल दोनों टाइप्स की उसमें ही ब्यूटी ढूंढ सकता है। इसलिए अपने टाइप के मेल को ट्रैक करने के लिए एक फीमेल को बाकी चीजों के बीच अपनी पर भी ध्यान देना चाहिए। नंबर टू कॉलर बोन्स यह एक और ऐसा फीमेल बॉडी का फीचर है, जिसके बारे में एनफ डिस्कशन नहीं होती, लेकिन मेल्स इससे भी हमेशा नोटिस करते हैं। जीवन चाहे आप एक मेल हो या फिर फीमेल, आप खुद दो फीमेल्स की पिक्चर को कंपेयर करो जहाँ एक फीमेल की कॉलर बोनस दिख रही हो और दूसरे की ना दिख रही हो और बताओ कि आप किस फीमेल को ज्यादा सिडक्टिव बोलोगे चान्सेस है कि आप भी उसी फीमेल को चुनो। गे जिसकी कॉलर बोनस विज़िबल होती है। ऐसा इसलिए क्योंकि विज़िबल कॉलर बोन्स हमारी बॉडी की ऑप्टीमल फैट परसेंटेज सिमेट्री और फर्टिलिटी का साइन होती है। और यही रीज़न है की क्यों? कॉलर बोनस को ब्यूटी बोनस भी बोला जाता है? नंबर थ्री इन 10 सिटी ऑफ मेकअप मेकअप से जुड़ी क्रिएटिविटी का क्रेज एक बहुत ही रीसेंट फिनोमिनल है। इससे पहले जब कॉस्मेटिक प्रोडक्ट्स में स्कैलेबिलिटी पॉसिबल नहीं थी, तब फीमेल स्नैचर में मिलने वाली चीजों का इस्तेमाल करती थीं। खुद की ब्यूटी को एनहान्स करने के लिए जैसे फूलों की सेंट को खुद के शरीर पर लगाना। चिक्स और लिप्स को जूस तो फिर कई पौधों की पत्तियों से घिसकर लाल गणना या फिर स्किन को ब्राइट बनाने के लिए आटे और नैचरल बटर का इस्तेमाल करना। यह नैचरल चीजें बस इस हफ्ते की ब्यूटी को एनहान्स करती थी कि एक फीमेल हेल्थी लगे या फिर उसके नैचुरली अट्रैक्टिव फीचर्स हाइलाइट हो। लेकिन मॉडर्न मेकअप एन्शियंट कॉस्मेटिक नॉलेज के बिल्कुल ऑपोजिट जाता है और सर टल या फिर नैचरल देखने के बजाय आज फीमेल्स मेकअप का यूज़ करती हैं खुद को उसके पीछे छुपाने के लिए। इसी वजह से ज्यादातर मेल्स को इंटेन्स और लाउड मेकअप पसंद नहीं आता क्योंकि इसका पर्पस एक इंसान की नैचरल और यूनीक ब्यूटी को हाइलाइट करना नहीं, बल्कि खुद की कमियों और यूनीकनेस को छुपाना लगता है। नंबर फ़ोर आइएएस क्योंकि आइस न्यूटनी यानी यूथफुल करेक्टर स्टिक्स का सबसे रिलाएबल फीचर होता है। हम एक इंसान की आंखें देखकर ही यूज़्वली ये बता देते हैं कि वो इंसान कितना स्ट्रेस में रहता है। वो जवान हैं या फिर बूढ़ा और क्या वो हेल्थी और अट्रैक्टिव है या फिर अनहेलथी और बैड लुकिंग? इसी वजह से फीमेल्स आइज़ को बड़ा और यूथफुल दिखाने की कोशिश करती है। फेक आइलैशेज का यूज़ करके अपनी नैचरल इसको सही शेप दे के या फिर आंख ओके अराउंड कुछ इस तरह से मेकअप का यूज़ करके जिससे वो उनकी आँखों को ज्यादा बड़े होने का इल्यूजन दे। नंबर फाइव दैट टाइप ऑफ फीमेल्स को हंसा पाना उनको खुद की तरफ अट्रैक्ट करने का एक बहुत जरूरी हिस्सा होता है और तभी मेल्स के लिए यह बहुत प्राउड की बात होती है कि एक फीमेल उनके साथ ट्रूली खुश हैं और हस्ती रहती है। हाउएवर मेल स्केर्ड फुल्ली ये नोटिस करते हैं कि क्या उस फीमेल की हँसी बस एक नकली स्माइल और पोलाइट गूगल तक ही रुक जाती है या फिर क्या वो फुल बोलो लाफ्टर जैसी दिखती है? नंबर सिक्स हाँ उदय टॉक टू अदर मैन, हरमेल चाहिए रिवील करें या फिर ना करें लेकिन उनके लिए यह जानना और ऑब्जर्व करना बहुत ही जरूरी होता है कि जीस फीमेल में वो इंटरेस्टेड है। वो दूसरे मेल्स के अराउंड किस तरह से बिहेव करती है? क्या वो ईज़ी सब तरह के मेल्स के साथ घुलमिल जाती है? क्या वो अपने मेल फ्रेंड्स को अपनी फीमेल फ्रेंड से ज्यादा टेंशन देती है? और क्या हरमेल के लिए उसे अप्रोच करना ईज़ी या फिर मुश्किल है? क्योंकि अगर एक फीमेल हरमेल के साथ ही फ्लर्टी और इंटिमेट है तो यह चीज़ बताती है कि उसकी सेक्शुअल वैल्यू बहुत ही कम है। मेल्स चाहते हैं कि एक फीमेल को पाने के लिए उन्हें मेहनत करनी पड़े और जिंदगी में कुछ हासिल करना पड़े। जिसकी वजह से ईज़ी इंटिमेसी के अलावा जैसे लॉन्ग टर्म रिलेशनशिप के केस में मेल्स ये नोटिस करते हैं कि एक फीमेल दूसरे मेल्स के बीच खुद को कितना अवेलेबल या फिर क्लोज़ रखती है। नंबर सेवन हर स्टाइल बहुत सी फीमेल सोचती हैं कि मेल्स को फेमिनिन क्लोदिंग या फिर कल्चरल ट्रेंड की कोई समझ नहीं होती और ये बात बहुत हद तक सच भी है। लेकिन मेल्स इस बात को हमेशा नोटिस करते हैं कि क्या एक फीमेल खुद की समझ और यूनीकनेस को छोड़कर बस टीवी और सोशल मीडिया पर दिखा इस टाइल्स को ही फॉलो कर रही है या फिर क्या वो क्लासी और यूनीक कपड़े पहनती है? बिना किसी की जजमेंट की फ़िक्र करे। ऐसा इसलिए क्योंकि एक इंसान का स्टाइल बताता है कि वह कितना ग्लोबल और ईज़ अली मैनिपुलेट होने के काबिल है या फिर वो कितना इन डिड यू ए टेड और नॉन फॉर्मेट है। स्टाइल सीधा सीधा जुड़ा होता है हमारी पर्सनैलिटी से। इसलिए मेल्स सब कॉन्शस लेवल पर एक फीमेल के स्टाइल को नोटिस करते हैं, ताकि वो ये समझ सकें कि उस फीमेल के आगे उन्हें किस तरह से बिहेव करना है और उन दोनों के बीच कौन ज्यादा डोमिनेंट होगा। नंबर एट हर फ्रेंड ज़ यानी किस तरह के लोगों के साथ वो हैंग आउट करती है और कौन उसके सर्कल का हिस्सा है। मेल्स नोटिस करते हैं कि एक फीमेल कितने अच्छे या बुरे करेक्टर के लोगों को अपना फ्रेंड बोलती है। ऐसा करने का पर्पस काफी सीधा होता है। क्योंकि आप कौन और कैसे हो इस का एक बहुत ही आसान एस्टीमेट लगाया जा सकता है। आपके दोस्तों को देखकर जिसतरह की आपके फ्रेंड्स होते है उसी तरह की आपकी सोच और गोल होते हैं। नंबर नाइन कॉन्फिडेन्स इन्सेक्युरिटी जो भी मेल ये बोलता है की उसे अंडरकॉन्फिडेंट और इनसेक्युर फीमेल्स पसंद है। हो या तो झूट बोलना होता है या फिर उसमें खुद ही इतनी ज्यादा इंसिक्योरिटीज होती है कि वो एक से कयुर और स्टेबल फीमेल के साथ रह ही नहीं सकता। हेल्थ ई मेल्स इस बार इसमें उलझने के बजाय ये कॉन्फ्रेंस करते हैं कि कॉन्फिडेन्स और सिक्युरिटी एक रिलाएबल पार्टनर के लिए बहुत जरूरी ट्रेड्स होते हैं। नंबर 10 हाइट ऐंड विथ ऑफ द बॉडी इस चीज़ को दोनों ***** ही नोटिस करते हैं क्योंकि आपकी बॉडी शेप बताती है कि आप कितनी लंबी जिंदगी जी सकते हो और क्या आपके बच्चे हेल्थी और स्मार्ट होंगे या फिर क्या आपके जीन्स इन्फिरीअर है? जेनरली स्पीकिंग एक कर्वी और टॉल बॉडी फीमेल्स को ज्यादा अट्रैक्टिव और फर्टाइल दिखाती है।",महिलाएं हमेशा सवाल करती हैं कि एक पुरुष वास्तव में क्या चाहता है? क्या लोकप्रिय रूढ़ियाँ सच हैं और पुरुष केवल एक ही चीज़ चाहते हैं? या यह कई अन्य चीजों में से एक है जो एक पुरुष को एक महिला की ओर आकर्षित करती है? इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम उन 10 चीजों के बारे में बात करेंगे जो एक पुरुष एक महिला में नोटिस करता है और पसंद करता है। "हर साल यूनाइटेड नेशन्स एक वर्ल्ड हैपिनेस रिपोर्ट निकालता है, जिसमें 156 कन्ट्रीज को उनके सिटिज़न्स की हैपिनेस लेवल के अकॉर्डिंग ट्रैन किया जाता है। यह रैनकिन गज़ बेस्ट होती है कैन्ट लैडर पर यानी इनमें लोगों को बोला जाता है की वो एक लैडर को इमेजिन करें, जिसमें उनकी बेस्ट पॉसिबल लाइफ टेंथ पोज़ीशन पर होगी और वर्स्ट लाइफ फर्स्ट पोज़ीशन पर। इसके बाद उन्हें बोला जाता है कि वो अपनी करेंट लाइफ पोज़ीशन को इस 0210 के स्किल पर रैन करें और 2019 की वर्ल्ड हैपिनेस रिपोर्ट के अकॉर्डिंग इंडिया वन फोर्टीन्थ पोज़ीशन पे हैं 28। इनमें इंडिया की पोज़ीशन 130 थर्ड थी। 2016 में वन एटीन्थ और 2015 में वन सेवेंटींथ यानी धीरे धीरे करके इन्डियन्स ज्यादा डिप्रेस होते जा रहे हैं। बट वो ऐसे कौन से फैक्टर्स हैं जो हमारी हैपिनेस को इस लेवल पर कर रहे हैं कि हम हैपिनेस चार्ट के बॉटम पर है? विल इन्डियन्स की हैपिनेस या फील्ड से इमोशनल स्टेबिलिटी कई फैक्टर्स से होती है जैसे लाइफ एक्सपेक्टेंसी, जेनेटिक्स, लैक ऑफ एक्स्पोज़र, टू सन लाइट एंड नेचर इनकम और फ्रीडम ऑफ ऑपर्च्युनिटी पर जो फैक्टर्स सबसे ज्यादा प्रोमिनेंट है वो है सोशल मीडिया। हमारी डाइट, इग्नोरेंस और स्टिग्मा सबसे पहले अगर हम सोशल मीडिया की बात करें तो हम सबको पता है की सेप्टेम्बर 2016 मेँ जियो के लॉन्च होने के बाद अब करोड़ों मोबाइल यूजर्स इन्टरनेट एक्सेस कर पा रहे है। कंपनी के कमर्शल लॉन्च की शुरुआत में कई महीनों तक तो किसी को इंटरनेट के लिए एक पैसा तक भी नहीं देना पड़ा था, जिसकी वजह से अब जियो के पास अराउंड 32,00,00,000 एक्टिव यूजर्स हैं और वो इंडिया में तीसरी सबसे बड़ी मोबाइल नेटवर्क ऑपरेटिंग कंपनी है। यानी ये लॉस लीडिंग स्ट्रैटिजी इस नई टेलीकम्यूनिकेशन कंपनी के लिए तो बहुत बेनेफिशिअल थी। पर इस सड़न राइज़ ऑफ इनफॉर्मेशन का हमारी मेंटल हेल्थ पर बहुत नेगेटिव इम्पैक्ट पड़ा है। और ये इसलिए क्योंकि सोशल मीडिया का लिमिटेड यूज़ तो हमें दूसरों से कनेक्ट कर देता है। जो की काफी अच्छी बात है। बट जब हम घंटों तक इंस्टाग्राम, फेसबुक या स्नैपचैट यूज़ कर रहे होते हैं तब हमारा ब्रेन ऑन लाइन कन्वर्सेशन्स लाइक्स, कमेंट्स और शेयर्स को रियल लाइफ कनेक्शन्स के बराबर समझने लगता है। इससे हम अपने ऑनलाइन फ्रेंड्स और फॉलोवर्स के तो क्लोज़ आ जाते है पर हम रियल लाइफ रिलेशन्स बनाने में फेल हो जाते हैं जिससे हम लोन्ली फील करने लगते हैं और ये रास्ता काफ़ी ईज़ी हमें डिप्रेशन की तरफ ले जा सकता है और अभी तो हमने सोशल मीडिया पर अपने आप को दूसरों से कंपेर करने की भी बात नहीं करी। इस टेक्नोलॉजिकल रेवोल्यूशन की वजह से पूरी दुनिया हमारे हाथ में आ चुकी है, जिससे हम समझ सकते हैं कि वो कितनी अजीब डिसॉर्डर ली और मीनिंग लेस है। इस टाइप की थिंकिंग हमारे अंदर एग्ज़िस्टन्स क्राइसिस पैदा कर रही है, जोकि कई वेज में क्लिनिकल डिप्रेशन से भी ज्यादा इंटेन्स हो सकती है। तो अब क्वेश्चन ये है कि हम इस प्रॉब्लम को सॉल्व कैसे करें? क्योंकि हम एक ऐसी टेक्नोलॉजी को रिजेक्ट तो नहीं कर सकते हैं जिसने हमें बाकी लोगों के साथ कनेक्ट किया है? आज हम दुनिया के किसी भी कोने में बैठे इंसान के साथ बात कर सकते हैं। हम स्वाइप करके अपने पार्टनर्स ढूंढ सकते हैं। हम अपने पुराने फ्रेंड्स के टच में रह सकते हैं और हम इस वीडियो की तरह यूसफुल इन्फॉर्मेशन को शेयर कर सकते हैं। सो साइकोलॉजिस्ट सजेस्ट करते हैं कि हमें जो चाहिए वो है एक हैप्पी बैंलेंस यानी हम कुछ देर तक अपने डिवाइस यूज़ कर सकते हैं पर उसके बाद हम किसी ऐसी ऐक्टिविटी में अपने आपको इन्वॉल्व कर सकते हैं, जिसमें किसी टाइप की स्क्रीन ना हो। इसके साथ ही हमें यह भी दिमाग में रखना है कि जब भी हम सोशल मीडिया पर जाए तो हम वहाँ पर माइंड लेस्ली स्क्रॉल ना करे। क्योंकि रिसर्च बताती है कि जो लोग अपनी फीड्स को पैसिवली स्क्रॉल करते जाते है, उन्हें सोशल मीडिया का ज्यादा नेगेटिव इम्पैक्ट पड़ता है। रतन दोज़, जो एक्चुअल में दूसरों की पोस्ट के साथ इंटरैक्ट करते हैं, हमारी हैपिनेस के कम होने का सेकंड रीज़न है हमारी डाइट ये फैक्टर सरप्राइजिंग नहीं होना चाहिए क्योंकि हमारी बॉडी का 95% सिरोटोनिन हमारी घट में ही बनता है और तभी डिप्रेशन के ऑलमोस्ट आधे केस में असली रीज़न डाइट या फिर डाइट से जुड़ी होती है। पर अगर हम डिसाइड भी कर लेते है कि अब हम अपनी डाइट को इम्प्रूव करेंगे तब भी हेल्थी लाइफ स्टाइल के ऊपर रिसर्च करने पर हमें काफी कॉनफ्लिक्ट इन रिजल्ट्स मिलते हैं। कोई कहता है कि केटोजेनिक डाइट अच्छी है, कोई का फैन होता है, कोई निजाम में बिलीव करता है, किसी का इंट्रेस्ट में आने लगता है और कोई को फॉलो करता है और तभी ज्यादातर क्या होता है? एक इंडीविजुअल दूसरे की डाइटिंग फिलॉसफी पर अग्रिम नहीं करता क्योंकि हर इंसान के लिए एक अलग टाइप की डाइट काम करती है। यह इसलिए होता है क्योंकि हर इंडीविजुअल की यूनीक न्यूट्रिशनल रिक्वायरमेंट्स होती है, उनके यूनिक जेनेटिक स्ट्रक्चर की वजह से। सो सबसे पहले हमें ये देखना है कि हमारे किस तरीके के एनवायरनमेंट में रहते थे, क्योंकि अर्थ के अलग अलग रीजनस में अलग क्लाइमेट्स होते हैं, जिसकी वजह से एक रीज़न में मिलने वाला खाना दूसरे रीज़न के खाने से बिल्कुल अलग होता है। जैसे जो रीजन्स इक्वेटर के पास होते हैं, उन्हें पूरे साल वेजिटेबल्स मिलती है और इक्वेटर से ज़रा सा दूर जाने वालों को मीट भी मिल जाता है। पर नॉर्थ या साउथ पोल वाले रीजन्स में ज्यादा ठंड होने की वजह से वहाँ कुछ नहीं नहीं पाता और वहाँ के लोग बस जानवरों को खा कर काम चलाते हैं। तो अगर हमारे सिस्टर्स नॉर्थ या साउथ पोल के आसपास वाले रीज़न में रहते थे तो उनके जीन्स ज्यादा क्वांटिटी में मीट को डाइजेस्ट करने के लिए अडैप्ट हो गए होंगे। पर जो लोग गर्म इलाकों में रहते थे, उनकी बॉडी वेजिटेबल्स और अकेजनल मीट दोनों के बैलेंस पर काम करती थी। सो जस्ट बिकॉज़ ये विडीओ हिंदी में है। इस वीडियो को ज्यादातर इक्वेटर के अराउंड रहने वाले लोग देखेंगे और तभी हमारे लिए ना तो कीटों जाने गाइड बेस्ट है। ना ही वीक, नज़्म और ना ही कारनामों डाइट हमें जो चाहिए वो है खूब सारी सीजनल वेजीटेबल और फ्रूट्स और उसके साथ लोड टू मॉडरेट क्वालिटीज में एज़ या फिर मीत इस टाइप की डाइट को बोलते हैं। प्राइमल पैटर्न डाइट या फिर नो डाइट डाइट लास्ट्ली हमें डेरी के ऊपर भी थोड़ी सी डिस्कशन करनी चाहिए क्योंकि हमारे इंडियन कल्चर में मिल्क बटर और घी कौन स्यूम करना काफी कॉमन है। पर हमें यह नहीं पता कि हर फॉर इंडियन इंडिविजुअल्स में से थ्री इंडिविजुअल्स लैक्टोस कॉल रेन्ट होते हैं। यानी उनकी बॉडी दूध में प्रिज़न शुगर मॉलीक्यूल को डाइजेस्ट ही नहीं कर पाती और उनकी बॉडी में इन्फॉर्मेशन बढ़ने लगती है, जिससे उनमें डिप्रेशन होने के चान्सेस भी बढ़ जाते हैं। सो अगर हम अपनी फिजिकल और मेंटल हेल्थ को इंप्रूव करना चाहते हैं तो हम अपनी मिल्क इनटेक के साथ एक्सपेरिमेंट करके देख सकते हैं कि क्या अपनी डाइट में से मिल्क और मिल्क कंटेनिंग प्रोडक्ट्स हटाने पर हमें कैसा फील होता है? क्या हम बेटर फील करते हैं या फिर नहीं? थर्ड फैक्टर जो इंडियन्स की मेंटल हेल्थ प्रॉब्लम्स को बढ़ा रहा है, वो है इग्नोरेंस ऑल स्टिग्मा क्योंकि हमारी कंट्री में ज्यादातर एल्डर्स काफी कन्ज़र्वेटिव है पर आजकल के ज्यादातर यंगस्टर्स लिबरल्स है और हमें पता है की इंडिया की 50% पॉपुलेशन 25 इयर्स ऑफ एज से नीचे की है। 65% पॉपुलेशन 35 इयर्स से नीचे और इर 2020 तक एक इंडियन की ऐवरेज एज 29 इयर्स हो जाएगी। इसी रीज़न से इंडिया में डिप्रेशन के साथ जीना काफी टफ है क्योंकि यहाँ पर हमारी सोसाइटी मेंटल इलनेस से रिलेटेड डिस्कशन्स को बिल्कुल इम्पोर्टेन्स ही नहीं देती। और अगर कोई इनडिविजुअल अपनी मेंटल इलनेस के बारे में बात भी करता है तो उसे या तो चिढ़ाया जाता है या फिर उसे सीधा सीधा बोल दिया जाता है कि ऐसा कुछ है ही नहीं। लोगों के इस एटिट्यूड की वजह से हमारी कंट्री में मेंटल हेल्थ की बिल्कुल अवेर्नेस नहीं है और इस टॉपिक के अराउंड एक स्टिग्मा बना हुआ है जिससे यहाँ पर साइकोलॉजिस्ट और साइकियाट्रिस्ट की काफी शोर्टेज है। तो बताते हैं कि इंडिया में हर 3,00,000 लोगों के लिए सिर्फ एक साइकोलॉजिस्ट हैं। 28। इनमें दीपिका पादुकोण ने भी इस सेम प्रॉब्लम को एड्रेस करते हुए बोला की बाकी सारी कन्ट्रीज की तरह इंडिया में भी मेंटल इलनेस के अराउंड काफी स्टिग्मा है। जो लोग डिप्रेशन से डील कर रहे होते है वो किसी से हेल्प मांगने में भी डरते हैं ताकि लोग उनका मजाक ना उड़ाएं और उन्हें कमजोर या पागल ना बोले। प्रॉपर मेंटल हेल्थ के फैसिलिटीज़ और ट्रेंड प्रोफेशनल्स की कमी इस प्रॉब्लम को और बढ़ा देती है। यानी प्रॉब्लम सिर्फ एक नहीं है, पर अगर हम इस टॉपिक पर बात करना शुरू करें और मेंटल हेल्थ की अवेर्नेस पिलाये तो सिर्फ तब हम इस प्रॉब्लम को बेहतर समझ पाएंगे। और अपनी और दूसरों की हेल्प कर पाएंगे।","वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट 2019 में भारत को 140वें स्थान पर रखा गया है और WHO के अनुसार, भारत दुनिया का सबसे उदास देश है। लेकिन क्यों? भारत को निराशा की ओर क्या धकेल रहा है और हम कैसे वापस आ सकते हैं? मैंने सबसे प्रमुख कारकों को कवर किया जो वास्तव में हमारे सिर के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं जैसे सोशल मीडिया का उपयोग, सूरज की रोशनी की कमी, जंक फूड, पोषक तत्वों की कमी, कलंक, जागरूकता की कमी और मूल रूप से वह सब कुछ नहीं करना जो प्रकृति हमें करने के लिए कहती है। हम जो देख रहे हैं वह एक मानसिक स्वास्थ्य महामारी है और यही वह समय है जब हम गियर बदलते हैं और अपने मन/शरीर/आत्मा को वापस उसकी प्राकृतिक स्थिति में लाते हैं।" "अगर आप पूछो कि आपकी पर्सनैलिटी और लुक्स के अलावा वह ऐसी कौनसी चीजें हैं जो आपकी सेक्सीनेस और अट्रैक्टिवनेस को बढ़ा सकती है तो वो होती है आपकी हैबिट्स। कई हैबिट्स आपको ज्यादा प्रोडक्टिव बनाती है, कई हैबिट्स आपको फिट और हेल्दी बनाती है जबकि जिन हैबिट्स की हम आज बात करने वाले हैं वो इनडाइरेक्ट वेज में आपकी ***** अपील को बढ़ाकर आपको ज्यादा सिडक्टिव और डीज़इर एबल बनाएंगी। इसलिए अब शुरू करते हैं हैबिट नंबर वन वि टी फ्लर्टिंग चाहे आप मेल हो या फिर फीमेल, यह स्किल आपको ज्यादा अट्रैक्टिव और ****** लगने में बहुत मदद करेगी। यह चीज़ आपकी पर्सनैलिटी का हिस्सा नहीं होती और आपको इस स्किल को डेवलप करना पड़ता है। फ्लड करा जाता है जब आप किसी इंसान को, उनमे अपने इंट्रेस्ट को ज़ाहिर करना चाहते हो और पॉसिब्ली एक रिलेशनशिप को बिल्ड करना चाहते हो और तभी सक्सेसफुल फ्लर्टिंग के लिए आपको क्लेवर या फिर होना बहुत ज़रूरी है। हेल्थी और अट्रैक्टिव फ्लर्टिंग में स्माइलिंग लाफिंग ब्रशिंग और इवन टचिंग भी इन्वॉल्व होती है और आप भी फ्लर्टिंग के मास्टर बन सकते हो। नॉन वर्बल कम्यूनिकेशन से स्टार्ट करके यानी अगर आप एक मेल हो तो आई कॉन्टैक्ट मेनटेन करना, अपनी बॉडी को ओपन वाइड और स्टेबल रखना और अगर आप एक फीमेल हो तो अपने बालों के साथ खेलना, म्यूसिक के साथ बॉडी को मूव करना, ब्लश करना या फिर अपना इन्ट्रेस्ट दिखाने के लिए दूसरे इंसान की तरफ झुकना, ये छोटी छोटी चीजें ही दो लोगों के बीच डिज़ाइनर की चिंगारी जलाने के लिए काफी होती है। हैबिट नंबर टू स्पीकिंग विथ फैशन ऐंड डेथ बातों में गहराई होना और उन बातों को एक पैशन के साथ बोलना, यह भी एक बहुत ही ****** हैबिट होती है। क्योंकि आज कल हर कोई इतनी शालों बातें करता है और फ्रेंडली होने की एक्टिंग करता हैं। हम खुद की जिंदगी में इतना ज्यादा मगन होते हैं कि हम दूसरों को जरूरी अटेन्शन देना भूल ही जाते है। हर रिश्तेदार और पड़ोसी एक दूसरे की परवाह करने की बहुत बुरी एक्टिंग करते हैं और इवन हमारे बहुत से दोस्त भी, बस नाम के लिए ही दोस्त होते है। हमारे इंटर पर्सनल रिलेशनशिप आज पहले के कंपैरिजन में बहुत ज्यादा सुपर फेशियल हो गए हैं, जिसकी वजह से जब हम भी इस तरह की चलती हुई डेड बॉडीज के बजाय ऐसे लोगों को देखते हैं, जो पैशन के साथ बात करते हैं। और उनकी में सच्चाई होती है तब उससे बड़ा टर्न ऑन कुछ नहीं होता। इसलिए अगर आप दूसरों के साथ गहरे रिलेशनशिप्स बनाना चाहते हो तो पहले खुद के अंदर थोड़ी गहराई लाओ। हैबिट नंबर थ्री यू सर सिग्नेचर, सेंड स्मेल और साइकोलॉजी का बहुत ही करीबी रिश्ता है। क्योंकि सब कॉन्शस लेवल पर हम लोगों की स्मेल से ही ये अंदाजा लगा लेते हैं कि वो हमारे लिए ठीक पार्टनर है या नहीं। स्मेल का मतलब होता है बॉडी के फेरोमोन्स जो डाइरेक्टली एक इंसान की हेल्थ और उसके जीन्स की क्वालिटी को दर्शाते हैं। या फिर वो परफ्यूम्स जो हेल्थी जीन्स और फिटनेस को मिमिक करती है। इसका मतलब एक हाई क्वालिटी परफ्यूम या फिर डिओडरेंट बेसिकली नैचुरली हेल्थी बॉडी की स्मेल को आर्टिफिशियली क्रिएट करने की कोशिश कर रहा होता है। इसलिए अगर आप भी किसी मेल या फिर फीमेल को अपने पीछे पागल गणना चाहते हो तो एक हाई क्वालिटी यूनीक और एक्स्पेन्सिव परफ्यूम को अपनी सिग्नेचर सेंड बनाओ और हमेशा उस इंसान के साथ उसी सेंट को यूज़ करो और देखो कि वो कितनी जल्दी आपसे अट्रैक्ट होने लगते हैं। हैबिट नंबर फ़ोर टेकिंग केयर ऑफ अदर्स अगेन ये हैबिट भी मेल्स और फीमेल्स दोनों को ज्यादा डिजायरेबल बनाती है। यानी आपको जेनरली भी सबके साथ तो रहना चाहिए लेकिन जब आप किसी डेट पर हों तब स्पेशल ली अपने वेटर को सही तरह से ट्रीट करना। किसी अनफोर्टनेट इंसान की थोड़ी सी मदद कर देना। इन छोटी छोटी चीजों का आपको बहुत ज्यादा ख्याल रखना चाहिए। अगर आप एक लॉन्ग लास्टिंग इंप्रेशन बनाना चाहते हो तो अनजान लोगों की केयर करना ये सिग्नल करता है कि आप सिर्फ खुद से कन्सर्न्ड नहीं हो बल्कि आप ने खुद को इस हद तक मास्टर कर लिया है कि आप दूसरों की भी मदद कर सकते हो। और ये चीज़ आपके पोटेंशिअल पार्टनर को आप में और भी ज्यादा इंटरेस्टेड बनाती है। हैबिट नंबर फाइव ऑलवेज लर्निंग न्यू थिंग्ज़ नॉलेज इस ****** और इसमें कोई डाउट नहीं है। जब भी आप किसी इंसान से बात करते हो तब वह जीस तरह से बात करता है। वो उनकी डिजायरेबिलिटी को या तो बढ़ा सकता है या फिर घटा। एग्जाम्पल के तौर पर अगर कोई मेल या फिर फीमेल बाहर से तो बहुत ही सोफिस्टिकेटेड और गुडलुकिंग लग रहा है, लेकिन जब आप उसके पास जाकर कैचुली बात करते हो तब आप नोटिस करते हो कि ना तो उससे बात करने की समझ है। उसके पास कोई बात करने का टॉपिक भी नहीं है और आप जीस भी टॉपिक के बारे में बात कर रहे हो वो उसके बारे में बिल्कुल अन्न वेर है और यह चीज़ उनके इतने अट्रैक्टिव होने के बावजूद आपके दिमाग में उनकी डिजायरेबिलिटी को कम कर देती है। हैबिट नंबर सिक्स टू मैस्कुलिन और फेमिनिन जेस्चर्स सेक्सीनेस बहुत हद तक जुड़ी होती है। हमारे हॉर्मोनल बैलेंस के सिग्नल से जैसे अगर एक मेल ज्यादा प्रोटेक्टिव, स्ट्रॉङ्ग और रिलाएबल है तो ये चीज़ उसे बाकी लड़कों के बीच ज्यादा मैस्कुलिन और एक मर्द बनाएंगी। सिमिलरली अगर एक फीमेल, जेनिटल, कॉन्फिडेंट, प्लेज़न्ट, क्लासी और यूथफुल है तो वो भी दूसरी फीमेल्स के आगे ज्यादा। फेमिनिन और अट्रैक्टिव लगेंगी ऑफ कोर्स इन क्वालिटीज को एक स्ट्रीम में ले जाना भी हेल्थी नहीं होगा, लेकिन हम बात कर रहे हैं अपनी नैचरल एनर्जी ज़ और प्रो कैविटीज़ को ऑनर गणना यानी अगर आप एक लड़के पैदा हुए हो तो आपको जरूर कही लड़कों वाले रोज़ और रिस्पॉन्सिबिलिटीज उठानी चाहिए। जस्ट बिकॉज़ आप ऐसा करने के केपेबल हो और समय करना चाहिए। फीमेल्स को अपनी फैमिली रिस्पॉन्सिबिलिटी फ़ोन करके एक हेल्थी और मोस्ट डिजायरेबल इनडिविजुअल वो होता है जो अपने अंदर से मैस्कुलिन और फेमिनिन एनर्जी को बैलेंस करके बैठा होता है, लेकिन बाहर से अपनी स्पेसिफिक और यूनिक एबिलिटीज़ को यूज़ करता है दुनिया में अपना कॉन्ट्रिब्यूशन देने के लिए।","आपके व्यक्तित्व और रूप-रंग के अलावा, आपकी आदतें ऐसी चीज़ हैं जो आपके लुक को कम या ज्यादा आकर्षक बना सकती हैं। इसलिए इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम बात करेंगे ऐसी 6 अहम आदतों के बारे में जो आपको और सेक्सी बना देंगी।" "रिलेशनशिप इसका पर्पस होता है की हम ऐसे लोगों के साथ रहे जिन्हें हमारी एग्ज़िस्टन्स मैटर करती हों और जिनके साथ रहने पर हम मुश्किल वक्त को भी आसानी के साथ काट पाए। एक अच्छा रिलेशनशिप वही होता है जहाँ एक दूसरे के लिए ट्रस्ट रिस्पेक्ट और अपने पार्टनर की ग्रोथ में उनका साथ देने की विलिंगनेस हो। हर रिलेशनशिप में कभी ना कभी एक ऐसा पॉइंट आता है जब दो लोगों में लड़ाईयां शुरू हो जाती है और जहाँ ये लड़ाईयां बहुत नॉर्मल और एक अग्रीमेंट तक पहुंचने का काफी नैचरल तरीका है, वहीं अगर आपके रिलेशनशिप में अग्रीमेंट कम और टॉक्सिसिटी चीखना, चिल्लाना शक करना और मेंटल अब्यूज़ ज्यादा होता है तो आपको ये डिसाइड करना होगा कि क्या आपको सच में ऐसे रिलेशनशिप में रहना चाहिए या नहीं? सबसे पहले आपको ये देखना है कि क्या आपके रिलेशनशिप में कम्यूनिकेशन की कोई कमी तो नहीं है क्योंकि हम एक रिलेशनशिप में लव फील करने के लिए अपने पार्टनर से कम्यूनिकेट करना बहुत ज़रूरी होता है ताकि हम उनके ख्याल, उनकी प्रॉब्लम्स, उनकी खुशियां और अचीवमेंट जान सके और उन्हें बेहतर समझने के साथ साथ उन्हें हर मूवमेंट में सपोर्ट कर सके। क्योंकि बिना एक दूसरे से रेग्युलर बेसिस पर एक डीप लेवल पर बात करे। आप दोनों को पता ही नहीं होगा कि आपने कब अपने पार्टनर को स्पेस देनी है, कब उन्हें प्यार या दिलासा देना है। और कब? बस उनकी बात को सुनना है। अगर आपके रिलेशनशिप में कोशिश करने के बाद भी आप उनसे कम्यूनिकेशन नहीं बढ़ा पा रहे तो शायद आपका उनके साथ रहना बस टाइम वेस्ट है। सेकंडली फैमिली और फ्रेंड्स का डिसअप्रूवल और इसका मतलब यह नहीं है कि आपको अपने रिलेशनशिप या लाइफ का हर बड़ा डिसिशन दूसरों से पूछ कर लेना चाहिए। लेकिन कई बार हमें ऐसे लोगों की सलाह की जरूरत पड़ती है जो हमारी सिचुएशन एक थर्ड पर्सन पर्सपेक्टिव से देख रहे होते हैं और जब एक रिलेशनशिप को लेकर हम खुद भी डाउटफुल होते हैं और हमारे फ्रेंड्स और फैमिली भी हमें हमारे पार्टनर के लिए वोन्ट कर रहे होते हैं तो हमें उनकी बात सुननी चाहिए। कभी कभी जोड़ फ्लैग्स हमें नहीं दिख रहे होते। वो हमारे फ्रेंड्स और फैमिली झट से पकड़ लेते हैं। इसलिए अगर आपका पूरा सर कल एक इंसान को स्ट्रोंगली रिजेक्ट कर रहा है और आप भी खुश नहीं हो तो अब टाइम आ चुका है कि आपको उस रिलेशनशिप से बाहर निकल जाना चाहिए। नंबर थ्री ना चाहते हुए भी रिलेशनशिप में रहना बहुत सारे लोग रिलेशनशिप को सिर्फ इसलिए कंटिन्यू रखते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि उन्होंने अपना इतना टाइम बस इस इंसान में इन्वेस्ट कर दिया है और यही प्रोसेसेस फिर से किसी दूसरे इंसान के साथ रिपीट करने का क्या फायदा और इसके साथ ही ऐसे लोग ब्रेक अप इसलिए नहीं कर पाते क्योंकि वह सामने वाले का दिल नहीं तोड़ना चाहते हैं। लेकिन इस तरह से अपने आप को टॉर्चर होने देना और अपना टाइम टेस्ट करने का कोई मतलब नहीं होता। इसलिए अगर आप भी ऐसी सिचुएशन में हो तो थोड़े असर टिफ बनाओ और लॉन्ग टर्म के बारे में सोचो। नंबर फ़ोर अपने पार्टनर से अटैच ना फील करना रिलेशनशिप की स्टार्टिंग में हम अपने पार्टनर से बहुत अटैच फील करते हैं। हमें अपने और उनके बीच एक कनेक्शन फील होता है। लेकिन जैसे जैसे रिलेशनशिप आगे बढ़ता है, तब कहीं रिलेशनशिप्स में नॉवल्टी फैक्टर खत्म हो जाता है और उसके साथ एक दूसरे के लिए एक रेस भी। जिससे यह पता लगता है कि आपको कभी भी उस इंसान से प्यार था ही नहीं। आप दोनों बस एक दूसरे से अट्रैक्ट थे और आप बस उसे ही प्यार समझ बैठे हैं। इस वजह से जब आपके रिलेशनशिप में एक दूसरे के लिए कोई अटैचमेंट ही नहीं है तो बे तो यही होगा कि आप अब इस सिचुएशन से बाहर निकलो। नंबर फाइव आपका पार्टनर अब्यूसिव है यानी चाहे आप एक मेल हो या फीमेल, अगर आपको सामने वाला इंसान मेंटली टॉर्चर करता है, कभी भी अप्रिशिएट नहीं करता, आप को आगे बढ़ाने के बजाय हमेशा पीछे धकेलता रहता है, आप उनके साथ कम्फर्टेबल फील नहीं करते तो उसका मतलब है कि आपका पार्टनर आपको अब यूज़ कर रहा है। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो अपने पार्टनर के हर ऐक्शन को कंट्रोल करने की कोशिश करते हैं और अगर आप उनसे ब्रेकअप की बात करो तो वो आपको ब्लैकमेल करते हैं और आपको ही ऐसा सोचने के लिए फील करवा देते हैं। ऐसे लोग पहले आपको अपने आप से अटैच करवा लेते हैं और फिर अपना असली चेहरा दिखाते हैं। इसलिए इस तरह की अब्यूसिव पार्टनर होने पर सबसे अच्छा ऑप्शन यही होता है कि आप अपनी हिम्मत जुटा हो और बिना उनसे कोई कॉन्टैक्ट रखे। उनसे दूर हो जाओ नंबर सिक्स चीजों का आगे न बढ़ पाना एक हेल्दी रिलेशनशिप वही होता है जिसमें दोनों पार्टनर्स कन्टिन्यूसली एक दूसरे के साथ ग्रो करते रहते हैं और अगर किसी रिलेशनशिप में एक पॉइंट के बाद कोई बड़ा चेंज या आप दोनों की बातों में कोई डेथ नहीं आई है या फिर आप दोनों एक दूसरे के लिए सिरिअस नहीं हो पा रहे हो तो ऐसे केस में यह पक्का है कि यह रिलेशनशिप ज्यादा टाइम तक नहीं चलेगा और आप अपना टाइम वेस्ट कर रहे हो। क्योंकि बिना मेहनत करे और एक दूसरे को जरूरी प्यार और अटेंशन दिए। एक रिलेशनशिप कभी भी आगे बढ़ ही नहीं सकता। इसलिए अगर आपके रिलेशनशिप में भी बात आगे नहीं बढ़ रही तो उसे फोर्स मत करो और वहाँ से निकल जाओ।","एक रिश्ते का उद्देश्य किसी ऐसे व्यक्ति को ढूंढना है जो हर सुख-दुख में आपके साथ खड़ा रहे। जिनके लिए, आपका विशिष्ट होना सबसे महत्वपूर्ण होगा और वे आपको अपना सर्वश्रेष्ठ बनने में भी मदद करेंगे। लेकिन कभी-कभी रिश्ते खराब हो जाते हैं और जिस व्यक्ति को आपको आगे बढ़ाना चाहिए था, वह आपको नीचे लाता है और आप यह गणना नहीं कर सकते कि आपको इस रिश्ते को छोड़ना चाहिए या रहना चाहिए और इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम इसी प्रश्न का उत्तर देने का प्रयास करेंगे।" "आज जहाँ हमें अपनी लाइफ के हर इवेंट को सोशल मीडिया पर पोस्ट करने की आदत हो गयी है और हम दूसरों की अटेंशन पाने या फिर किसी से गहरा बॉन्ड बनाने के लिए उन्हें अपनी सबसे सीक्रेटिव बातें भी बता देते हैं, वहीं हर इंसान की जिंदगी में कई पर्सनल मामले ऐसे भी होते हैं जिन्हें अपने तक ही रखना ज्यादा वाइज होता है। इस तरह की बातों को प्राइवेट रखने से एक इंसान ज्यादा ट्रस्ट ए वेल मैं नर्ड और रिस्पेक्ट के काबिल लगता है जबकि जो इंसान अपनी लाइफ की हर डिटेल दूसरों के आगे रिवील कर देता है, उसमें ना तो कोई मिस्ट्री रहती है और ना ही फिर लोग उसे ज्यादा सीरियसली लेते हैं। इसलिए अब बात करते है स्पेसिफिकल्ली उन चीजों की जिन्हें आपको प्राइवेट रखना चाहिए। नंबर वन योर फाइनेन्स इस आप कितना कमाते हो? आपने क्या नई चीज़ खरीदी, आपकी लॉटरी लगी, आपको अपने पेरेंट्स की प्रॉपर्टी मिली या फिर आपने कितना पैसा जमा कर लिया है? ये बातें आपको दूसरों को नहीं बतानी चाहिए क्योंकि दोस्तों या फिर परिवार वालों को यह बताना कि आपके पास कितने ज्यादा पैसे हैं या फिर आप तो एक दम गरीबी में हो। यह चीज़ उनके दिमाग में आपकी इमेज को बदल देती है। अगर आप उन से कम कमाते हो तो वो आपकी काबिलियत को भी अंडरएस्टीमेट करने लगेंगे। और आपको ज्यादा रिस्पेक्ट भी नहीं देंगे, जबकि अगर आप उनसे बहुत ज्यादा कमाते हों तो इससे भी उनके मन में आपके कड़वाहट आ सकती है। यह मैटर नहीं करता कि वो इंसान आपके कितने क्लोज़ है। उसकी नजर में आप बदल जाओगे। जैसे ही आप उसे अपनी फाइनैंशल सिचुएशन बताओगे, जीवन अगर आप सोशल मीडिया पर भी अपनी किसी नई गाड़ी या घर या अपनी किसी अच्छी जगह पर बिताई, छुट्टियों की फोटोस भी डालो, तब भी आप के बहुत से रिलेटिव या फिर फ्रेंड्स ये सोचने लगेंगे कि आपके पास इतने पैसे कहाँ से आए हैं। इसी वजह से चाहे आप को इस बात का फर्क भी ना पड़ता हो की लोग आपके बारे में क्या सोचते हैं? आपको अपने फाइनैंस के बारे में किसी को नहीं बताना चाहिए। नंबर टू योर लाइफ प्लैन्स चाहे आप अपनी जॉब बदलने की सोच रहे हो, आप अपना कोई बिज़नेस शुरू करना चाहते हो या फिर आप ने ये ठान लिया है कि अब आप अपने ड्रीम्स पर सीरियसली काम करना शुरू करोगे तो इन प्लेन्स के बारे में कभी भी दूसरों को मत बताओ। जीवन अगर आप किसी से एडवाइस भी लेना चाहते हो तब भी उन्हें ज्यादा डिटेल्स मत दो। ऐसा इसलिए क्योंकि आपको अभी ये लग रहा है कि आपने जो भी अपने फ्यूचर के प्लैन्स और गोल्स बनाए हैं, वो सब हमेशा सम रहेंगे। और आपके गोल्स फिक्स्ड है लेकिन लाइफ कभी भी बदल जाती है और लाइफ के साथ हमारे प्लैन्स भी, जिससे अगर आप किसी को बोलो कि आपका लाइफ का गोल हैं एक इंटर नैश्नल कंपनी में इंजीनियर बनना। लेकिन कुछ टाइम बाद जब आपने खुद को और अच्छे से जाना तब आपको समझ आया की नहीं आपको तो एक आर्टिस्ट बनना है। जीवन दो आपको ये पता भी हो कि यह कैरिअर का चेंज आपके लिए कितना ज्यादा जरूरी है। लेकिन फिर भी लोग आपसे मिलकर ये बोलेंगे कि आप तो एक इंजीनियर बनने वाले थे। ऐसे ही अगर आप बोलो कि आप अगले 5 साल में एक नया घर तब भी आपके कोई रिलेटिव ज़ आपको ताने मारेंगे। जब भी आप अपने गोल को बदलोगे या फिर उसमें करोगे इसलिए कभी भी अपने लाइफ प्लैन्स को दूसरों को मत बताओ और साइलेंटली उन पर काम करो। इस तरह से अगर आपने अपनी लाइफ में कुछ अच्छा कर दिया तो लोग हैरान हो जाएंगे कि आपने ये कैसे करा और इवन अगर आप फेल भी हो गए तब भी किसी को पता ही नहीं चलेगा और आप सिम्पली दुबारा से कोई नई स्ट्रैटिजी बना पाओगे। नंबर थ्री योर इंटिमेट लाइफ दो लोगों के बीच की इंटिमेसी सिर्फ उन्हीं दो पार्टीज़ के एन्जॉय करने के लिए होती है। अगर कोई आपके साथ ***** 10 या फिर इंटिमेट पिक्चर्स को एक्स्चेंज कर रहा है तो उसके पीछे भी उनका बहुत ज्यादा ट्रस्ट जुड़ा होता है, क्योंकि आप दोनों एक दूसरे को एक सेफ स्पेस प्रोवाइड करते हो। खुद को पूरी तरह से एक्सप्रेस करने के लिए कभी भी आपका पार्टनर यह नहीं चाहेगा कि आप इन चीजों के बारे में दूसरे लोगों को बताओ। इससे आप सिर्फ और सिर्फ अपने पार्टनर के साथ ही नहीं बल्कि जिसके साथ उन डिटेल्स को शेयर कर रहे हो, उसके साथ भी आपका रिलेशनशिप खराब होगा। नंबर फ़ोर डिटेल्स ऑफ योर रिलेशनशिप यानी चाहे आपके रिलेशनशिप में एक दूसरे के लिए बहुत प्यार है या फिर आप के बीच बहुत ज्यादा लड़ाई होती है आपको इन डिटेल्स को भी बहुत सोच समझकर दूसरों के आगे रिवील करना चाहिए। हर इंसान के रिलेशनशिप में कभी ना कभी कोई प्रॉब्लम या फिर चैलेंज आ ही जाता है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आप अपने पार्टनर का ट्रस्ट तोड़ कर इन पर्सनल मैटर्स को दूसरों के साथ शेर करो और फिर उन लोगों से भी एक्सपेक्ट करो कि वो आपका ये प्राइवेट मैटर किसी और को ना बताए। अगर आपको ये पता चले कि आपका पार्टनर आप दोनों के बीच हुईं सारी बातें अपने दोस्तों को बता रहा है तो ऑब्वियस्ली आपको भी यह काफी लगेगा और आप उन्हें डाउट करने लगोगे। इसी वजह से अनलेस एक रिलेशनशिप अब्यूसिव बन गया है। आपको उसकी डिटेल्स अपने तक ही रखनी चाहिए। नंबर ***** पॉलिटिकल और रिलिजस व्यूस इन टॉपिक्स पर बात करना तब गलत नहीं होता जब आप इंटलेक्चुअल ली और एक डिटैचमेंट की जगह से उन्हें डिस्कस करो तो जैसे कई लोगों के लिए उनके बिलीव से ज्यादा सच की खोज ज्यादा मायने रखती है और वो पॉलिटिक्स या फिर भगवान की बातें करते हैं बस सच तक पहुंचने के लिए और तभी ऐसे केस में इन टॉपिक्स के बारे में बात करना बहुत ज़रूरी होता है। लेकिन अगर आप अपने फ्रेंड्स या फिर फैमिली के साथ पॉलिटिक्स और रिलिजन के टॉपिक्स पर बात करना शुरू करोगे तो ऑब्वियस्ली तब आपके और उनके बीच टकराव आने के चान्सेस बहुत ज्यादा रहेंगे। ऐसा इसलिए क्योंकि यह बातें ही कुछ ऐसी हैं जिनके साथ लोग अपने बिलीव्स को जोड़ते हैं। और अगर आप किसी पॉलिटिकल यू या फिर रिलिजन को क्वेश्चन करो तो उन्हें ऐसा फील होता है जैसे आप उनके पूरे वर्ल्ड यू गो क्वेश्चन कर रहे हो। किसी को एक्चुअल में फर्क नहीं पड़ता कि आप किस पार्टी को सपोर्ट करते हो, किस लीडर को कितना करप्ट समझते हो या फिर क्यों आप एक आस्ते की या नास्तिक हो। इसलिए इन टॉपिक्स को कैजुअली मत छेड़ो नंबर सेवन योर ऑफ काइंडनेस अगर आप बहुत ही दयालु और दूसरों के हेल्पफुल हो तो ये बहुत ही अच्छी बात है क्योंकि दुनिया में काइंडनेस की बहुत जरूरत है। लेकिन अगर आप सिर्फ का इन बनते हो दूसरों के आगे खुद को अच्छा दिखाने के लिए तो यह गलत है। अगर आप दूसरों की मदद करना चाहते हो तो बस उनके लिए ही उनकी मदद करो ना की सोसाइटी की नजर में अच्छा बनने के लिए नंबर एट संबंध एल से सीक्रेट्स क्या आपने कभी किसी पर ट्रस्ट करके उसको अपने सीक्रेट्स बताए हैं और क्या कभी किसी ने आपका ट्रस्ट तोड़ा है? यह चीज़ बहुत ऑब्वियस है कि जब भी कोई इंसान आपको अपने सीक्रेट्स बताता है वह कभी नहीं चाहेगा कि वो बात दूसरों तक पहुंचेगा। यही सिगरेट हो सकता है। फैमिली से जुड़ी प्रॉब्लम्स दूसरे लोगों की अफवाहें दो लोगों के बीच हुई पर्सनल बात या कुछ और चीज़ जो ट्रस्टेड लोगों के मुँह से बाहर नहीं निकलनी चाहिए, चाहे अगर आपको लगे कि आप इन बातों को एटलिस्ट अपने बेस्ट फ्रेंड, हस्बैंड, वाइफ या फिर फैमिली के साथ शेयर कर सकते हो, लेकिन जब भी एक थर्ड पार्टी इन्वॉल्व होती है और उस बात से आपका नहीं, किसी और का लॉस जुड़ा होता है तो ऐसी चीज़ को भी अपने तक ही रखो। जिसतरह से आप अपने खुद के सीक्रेट्स को वैल्यू करते हो वैसे ही दूसरों के सीक्रेट्स को हैंडल करो और अगर किसी ने आप पर ट्रस्ट करा है तो उस ट्रस्ट को कभी मत तोड़ो। नंबर नाइन योर हेल्थ प्रॉब्लम्स ऑफ कोर्स अगर आप अपनी हेल्थ प्रॉब्लम्स को अपने डॉक्टर या फिर किसी दूसरे प्रोफेशनल के साथ शेर कर रहे हो तो उसमें कोई प्रॉब्लम नहीं है। लेकिन अगर आप जिससे भी बात करो उसे घूमा फिरा कर अपने हेल्थ इशूज़ के टॉपिक पर ही ले आओ तो यह चीज़ गलत है क्योंकि ऐसा करने से आपके अंदर एक विक्टिम मेंटैलिटी आ सकती है और आप अपनी प्रॉब्लम्स का सामना करने के बजाय उन्हें एक अटेन्शन पाने के टूल की तरह यूज़ करने लगे। इसी को बोलते हैं एक विक्टिम आइडेंटिटी रखना। यानी बहुत से लोग इतने कायल होते हैं कि वो अपने दुख को यूज़ करते है, दूसरों को मैनिप्युलेट करने और चीजों को खुद के फेवर में लाने के लिए। इसलिए अगर आपको भी कोई हेल्थ इश्यू है तो उसे अपने तक ही रखो। 10। योर लाइफ लॉस ऑफ इ किसी को फर्क नहीं पड़ता कि आप कैसे जीते हो, आप कौन सी डाइट पर हो, आपके बिलीव्स क्या है या फिर आपका फिटनेस रूटीन कैसा दिखता है? काफी सारे लोग खुद को दूसरों से सुपीरियर दिखाने के लिए अपनी लाइफ के बारे में ही बात करते रहते हैं, लेकिन ज्यादातर केसेस में उनकी ये एक्सप्लेनेशन अनमोल होती है। इसलिए अगर आपसे किसी ने स्पेसिफिकल्ली इस बारे में पूछा नहीं है तो खुद की फिलॉसफी इसको अपने तक ही रखो। इस बात को हमेशा याद रखो कि लोग आपकी बातों को वैल्यू तब ज्यादा नहीं करेंगे जब आप जबरदस्ती अपनी इनसाइट्स और नॉलेज को बिना मांगे लोगों में बांटते रहो गए बल्कि खुद के लाइफ स्टाइल को अपने बोलने के ढंग, अपनी सेल्फ अवेर्नेस और अपनी सक्सेस के रूप में देखने दो। इन चीजों को देखकर लोग खुद आपके पास आएँगे। आपकी लाइफ सफी और आपकी इनसाइट्स के बारे में जानने के लिए","किसी के करीब जाने या उनका विश्वास हासिल करने के लिए, हम अक्सर उन्हें अपने सबसे गहरे रहस्य बताते हैं, लेकिन यह आपके सर्कल में लोगों के साथ सम्मान पाने या दीर्घकालिक संबंध बनाए रखने के लिए बहुत अनुकूल नहीं है। ऐसा इसलिए है क्योंकि कोई भी ऐसे व्यक्ति पर भरोसा नहीं करता है जो अपने या दूसरों के रहस्यों को अपने तक नहीं रख सकता। इसलिए इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम 9 सबसे महत्वपूर्ण बातों पर चर्चा करेंगे जो हमेशा निजी रखनी चाहिए और कभी किसी को नहीं बतानी चाहिए।" "जब भी हम मोटिवेटेड फील करते हैं और हमारे में कुछ कर दिखाने का जोश बहुत ज्यादा होता है तब हम अपना टारगेट बनाते हैं और उस पर काम करना शुरू कर देते हैं। पहले कुछ दिन तो बहुत प्रोडक्टिव जाते हैं और हम अपना काफी सारा काम पूरा कर लेते हैं लेकिन धीरे धीरे वो दिन आने लगते हैं जब हमारा काम करने का मन नहीं करता। हम धीरे धीरे काम को स्किप करने लगते हैं और देखते ही देखते हमारी कनसिसटेन्सी भी टूट जाती है और हम फिर से वहीं पहुँच जाते हैं जहाँ से हमने शुरू करा था। हमारे में से ज्यादातर लोग कुछ इसी तरह से अपनी जिंदगी जीते हैं। थोड़े से समय की मोटिवेशन थोड़ी सी मेहनत और फिर वापस से वही पुरानी आदतों पे यही रीज़न है कि क्यों हमें कॉन्स्टेंट रहना आना चाहिए। अगर कोई एक्ट्रेस ऐसा है जो टैलेंट और हर दूसरे ऐडवांटेज को पीछे छोड़ सकता है तो वो कौन सी स्टैन सी ही है? जीवन अमेरिकन ऑथर और स्पीकर जॉन मैक्सवेल भी यही बोलते हैं कि मोटिवेशन आपको काम को शुरू करने का धक्का देती है, लेकिन डिसिप्लिन आपको काम करते रहने की ताकत देता है। इसे बोलते हैं खेल ऑफ कौन सी स्टेन सी ये मैटर नहीं करता कि आप कितने टैलेंटेड हो और ना ही यह कि आपको कितनी ऑपर्च्युनिटीज मिली। अगर आप ग्रो करना चाहते हो और खुद की किस्मत को बदलना चाहते हों तो कॉन्स्टेंट रहो। यानी हमें अपना ध्यान डाइरेक्टली कॉन्स्टेंट रहने पर नहीं बल्कि अपने अंदर डिसिप्लिन बिल्ड करने पर होना चाहिए, क्योंकि एक डिसिप्लिन्ड इंसान खुद ही हर वो चीज़ को करता है जो जरूरी है। डिसिप्लिन होने का मतलब है कि आप अपने काम को पूरा करते हो, चाहे आपका उसे करने का मूड ना हो तब भी ये सक्सेस हासिल करने के लिए सबसे जरूरी ट्रेड है कि आप क्वालिटी वर्क प्रोड्यूस करो। स्पेशल ली उन दिनों पर जिन दिनों पर आपका काम करने का बिल्कुल मन नहीं करता क्योंकि यही चीज़ आपको दूसरों से अलग बनाएगी। यहाँ दूसरे लोग एक पॉइंट के बाद काफी कंफर्टेबल होकर बैठ जाते है। वही आपके आगे एक पॉज़िटिव गोल होता है जो आपको अपनी तरफ खींचता है और आप के पीछे अपनी पोटेंशिअल को ना अचीव करने का डर आपको उससे दूर अपने गोल की तरफ भागने के लिए मोटिवेट करता है। दुनिया के सबसे बड़े साइको बायोलॉजिस्ट में से एक पैन क्स्प्न ने अपनी एक रिसर्च में ऑब्जर्व करा कि चूहों के दिमाग में मौजूद मोटिवेशन सर्किट्स कब सबसे ज्यादा एक्टिवेट होते हैं? क्योंकि हमारे दिमाग की फाउंडेशन भी बलिस्टिक सर्किट्री से ही बनी है, तो दूसरे जानवरों के बिहेव्यर को स्टडी करने से हम खुद के बायोलॉजिकल और साइकोलॉजिकल बिहेव्यर के बारे में बहुत कुछ जान सकते हैं। बिना अपने मॉडर्न कल्चर की 22 इसमें उलझे सोयत बैंक सपने देखा कि जब एक भूखा चूहा कुछ खाने का ढूंढ रहा होता है, तब साइंटिस्ट उसकी पूँछ पर एक स्प्रिंग लगाकर ये मेजर कर सकते हैं कि वो उस फिक्स स्प्रिंग को कितनी फोर्स के साथ खींचता है। जितनी ज्यादा फोर्स होगी उतनी ही ज्यादा उस चूहे के अंदर अपने गोल तक पहुंचने की मोटिवेशन होगी और नोर्मल्ली बूके चूहे एक सर्टन मोटिवेशनल फोर्स दिखाते हैं, लेकिन जब साइअन्टिस्ट एनवायरनमेंट में बिल्ली की स्मेल फैला देते हैं, तब चूहा डर जाता है। और वो अपने एनवायरनमेंट से जल्दी से जल्दी बाहर निकलना चाहता है। और यहाँ हमारे लिए इतनी इंट्रेस्टिंग बात यह है कि चूहा डरने के बाद और मोटिवेटेड फील करता है और वो उस स्प्रिंग को और तेज़ी से खींचता है ताकि वो अपने खाने के पास और जल्दी पहुँच सके और अपना पेट भरने के साथ साथ अपनी जान भी बचा सकें। इसका मतलब कॉन्स्टेंट रहने, हमेशा मोटिवेटेड फील करने और डिसिप्लिन रहने का सीक्रेट यही है कि आप अपनी प्रेसेंट सिचुएशन से बाहर निकलना चाहते हो और एक बड़ा गोल जिसके बारे में सोचते ही आप इमोशनल हो जाते हो, आप उसकी तरफ बढ़ना चाहते हो? जब आप इस चीज़ को ढंग से समझ लेते हो तब आपके लिए हर काम को करना बहुत बीज़ी बन जाता है क्योंकि आपको उसके अलावा कुछ दिखता ही नहीं है। आपको पता है कि आपके पास अपनी लाइफ को बेहतर बनाने का सिर्फ एक ही रास्ता है और आप कुछ भी करके अपने गोल तक पहुंचते हों। यही कहानी होती है हर उस इंसान की जो एकदम जीरो से स्टार्ट करता है। वो अपनी प्रेसेंट सिचुएशन से खुश नहीं होता तो वो उससे बाहर निकलने के लिए मेहनत करना शुरू कर देता है। उसके मन में एक सपना होता है जो उसके दिल में इस आग को जगाए रखता है और हाथ, पैर मारने और स्ट्रगल करने के कुछ समय बाद वो सितारों के बीच खड़ा होता है। हमें भी हमेशा मोटिवेटेड और कॉन्स्टेंट रहने के लिए उस डरे हुए चूहे की तरह एक्ट करना चाहिए। यही वो पॉइंट होता है जहाँ आपकी मोटिवेशन पिक करती है। जबकि वो लोग जो इतने हार्ड वर्किंग नहीं होते वो ज़रा बहुत अचीव करने के बाद ढीले पड़ जाते हैं या वो कॉन्स्टेंट नहीं रह पाते और एक्स्क्लूसिव बनाते है। वो उस चूहे की तरह होते हैं जिससे लगता है कि उसे अपना गोल यानी खाना मिल चुका है और वो अब बिल्ली यानी किसी भी तरह के डेनजरस से दूर एक सेफ एनवायरन्मेंट में आ चुका है। और जैसा कि लाइफ स्टाइल कोच बारबरा शेर बोलती है कि जो लोग ये सोचते है की वो फेल्यर से डरते हैं, तो वो गलत है, वो असल में सक्सेस से डरते हैं क्योंकि अगर आप सच में फेल्यर से डरते तो आप अभी तक बहुत सक्सेसफुल बन गए होते हैं। लोग जीस चीज़ से डरते हैं। वह उससे कोसों दूर रहना चाहते हैं।","व्यक्तिगत विकास और सफलता को सुविधाजनक बनाने के लिए आत्म अनुशासन और निरंतरता बनाने की कुंजी, व्यक्ति को हर उस प्रेरणा का उपयोग करना होगा जो वह प्राप्त कर सकता है। इसलिए इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम मनोविज्ञान का उपयोग यह समझने के लिए करेंगे कि ज्यादातर लोग इतनी जल्दी क्यों छोड़ देते हैं और आप अधिक सुसंगत होकर उस भीड़ का हिस्सा कैसे नहीं बन सकते।" "सोशल ऐंड सिटी के साथ जीने का मतलब है कि आप सबसे कैज़ुअल इंटरैक्शन उसमें भी डरे हुए अनकंफर्टेबल और नर्वस महसूस करते हों। लेकिन इस प्रॉब्लम का नेगेटिव इन्फ्लुयेन्स आपकी लाइफ के दूसरे एरियाज पर भी पड़ता है, जैसे दोस्ती मेनटेन करना या नए दोस्त बनाना, पार्टनर को ढूंढना, बिज़नेस या लर्निंग ऑपर्च्युनिटीज को एक्स्प्लोर करना, ये इवन बस घर से बाहर निकलना, कोई छोटा मोटा काम करने के लिए हर नॉर्मल और आसान काम सोशल एंजाइटी के 710 गुना मुश्किल हो जाता है। साइनस बोलती है कि सोशल इंजाइटी के कई कॉज़ हो सकते हैं। जैसे जेनेटिक यानी आपके किसी फैमिली मेंबर को भी सोशलिस्ट करना नहीं पसंद या शायद आपके पैरेंट सांप को लेकर बहुत ही ज्यादा ओवर प्रोटेक्टिव और ओवर केरिंग थे जिसकी वजह से उन्होंने आपको कभी अपने एनवायरनमेंट को एक्स्प्लोर करने और अनजान लोगों के साथ बात करना सिखाया ही नहीं जिससे माँ बाप की इन सेक्युरिटीज़ बच्चे में आ गई हाउएवर सोशल ऐंड सिटी के कारण चाहे जो भी हो, इस प्रॉब्लम को बहुत हद तक ओवर कम करा जा सकता है। अगर आप इसे डाइरेक्टली फिक्स करने पर ध्यान दो तो इसलिए अब बात करते हैं इसके पॉसिबल सल्यूशनस की सॉल्यूशन नंबर वन शिफ्ट फोकस इक्स्टर्नली सोशल ऐंड सिटी होने का एक बहुत बड़ा रीज़न ये होता है कि हम बस इन्हीं ख्यालों में गुम हुए रहते हैं कि दूसरे लोग हमारे बारे में क्या सोच रहे होंगे। किसी पार्टी या गैदरिंग में हम लोगों से नजरें बचाकर ये अस्यूम कर रहे होते हैं कि दूसरे लोग हमें ऑक्वर्ड समझ रहे होंगे। वह यह सोच रहे होंगे कि हम आज अच्छे नहीं लग रहे कि हम बात अजीब तरह से करते हैं या फिर हम अपने चलने के ढंग को लेकर कॉन्शस हो जाते हैं। हर थॉट जो आपकी अटेन्शन दूसरों से हटाकर अपने ऊपर ले आता है। वो आपको सेल्फ कॉन्शस और इन्सेक्युरिटी बनाएगा। यह एक डिफेन्स मेकनिजम होता है, जिसे एक इंसान एक लंबे पीरियड तक रिपीट करने से अपने बिहेविरल और पर्सनैलिटी का पार्ट बना लेता है। लेकिन आप इस बिल् पैटर्न को तोड़ सकते हो। अपना फोकस खुद पर से हटा कर और दूसरों पर ध्यान देकर सबसे पहले तो हर एक से नज़रें चुराना बंद करो और खुद को छुपाना बंद करो। बिना लोगों को देखे आप ये कैलकुलेट ही नहीं कर पाओगे कि वह क्या सोच रहे होंगे या फिर वो आगे क्या करेंगे, जिससे आप इस मिस इन्फॉर्मेशन को अपनी इमैजिनेशन से भरते रहो। गे इसलिए किसी भी इवेंट में जाकर अपनी जान पहचान के लोगों से मिलो, उनसे आई कॉन्टैक्ट बनाओ और अगर आप किसी को नहीं जानते तब भी खुद की बॉडी लैंग्वेज को ओपन रख हो और अपनी इसको लोगों की तरफ रखो। उनकी तरफ देखो और सोचो कि आप उनसे किस बारे में बात कर सकते हो। फॉर एग्जाम्पल अगर आप एक पार्टी में ज्यादातर लोगों को नहीं जानते, लेकिन आपको बहुत से इंट्रेस्टिंग लोग दिख रहे हैं बात करने के लिए और आप नए दोस्त बनाना चाहते हो तो उनके पास जाओ और अपनी सिटी कम करने के लिए सबसे पहले उनसे सीधा कोई क्वेश्चन पूछो या फिर उन्हें कोई कॉंप्लिमेंट दो अगर उनके कपड़े थोड़े अलग से या फिर अच्छे है तो उन पर कोई कमेंट कर दो या फिर उनकी स्माइल, उनके शूज़ कुछ भी याद रखो, ऐसी सिचुएशन में आप की बातें मैटर नहीं करती क्योंकि आप किसी को इंप्रेस नहीं करना चाहते हैं। आप बस अपने डरो के पार जाना चाहते हो और खुद को खोलना चाहते हो। इसके साथ ही जब भी आप एक ग्रुप के आगे कुछ बोल रहे होते हो तब अपने दिमाग में ये मत सोचो कि आप कई लोगों के 717 बात कर रहे हो। इसके बजाय लोगों से वन बाइ वन बात करो और एक समय पर एक बात बोलते हुए अपनी नज़र सिर्फ एक ही इंसान पर रखो। ऐसा इसलिए क्योंकि आपको ऑलरेडी वन ऑन वन बात करना आता है। हर इंसान एटलिस्ट अपने भाई, बहन, बेस्ट फ्रेंड या पैरेन्ट्स के साथ बिना एक सिस् हुए बात करना जानता है पर एक ऑडियंस के आगे बोलना बहुत ज्यादा मुश्किल होता है। इसी वजह से एक क्राउड में होने पर भी अपना फोकस सिर्फ एक ही इंसान पर रखो। इससे आप अपने सोशलाइजिंग के टास्क को मैनेजेबल बना पाओगे और कम विरली ऐक्ट करोगे। सल्यूशन नंबर टू इन्क्रीज़ एक्स्पोज़र ग्रेजुअली इस के चान्सेस बहुत ज्यादा है कि आपकी सोशल एनजाइटी एक लर्न पैटर्न है। जिसकी वजह से उसे 1 दिन में नहीं भुलाया जा सकता। आपको धीरे धीरे करके अपने इस पैटर्न को ओवर कम करने की प्रैक्टिस करनी होगी। साइकोलॉजी में से एक्स्पोज़र थेरपी बोला जाता है और ये लोगो को ट्रीट करने में इतनी इफेक्टिव इसलिए है क्योंकि अपने किसी भी डर को जड़ से उखाड़ने के लिए आप को उसकी जड़ों तक जाना ही पड़ता है और उसे फेस करना पड़ता है। लेकिन अगर आपने खुद को एकदम से ही अपने डर के अंधेरे में धकेल दिया बिना किसी प्रिपरेशन के फॉर एग्जाम्पल अगर आप बहुत लंबे समय से सोशली ऐस फील करते आ रहे हो, लेकिन एकदम से कोई इंसान आपको कई 100 लोगों के आगे स्टेज पर खड़ा करके कोई स्पीच देने को बोल दे तो चान्सेस है कि वह चीज़ आपके लिए एक टॉर्चर के जैसी होगी और अब ज्यादा कुछ नहीं बोल पाओगे इसलिए खुद को तैयार करो। धीरे धीरे लोगों से बात करके उसके बाद ग्रुप्स में जाकर खुद को इंट्रोड्यूस करने लगो और नए नए लोगों से मिलो। स्टेप बाइ स्टेप खुद को अलग अलग तरह की सिचुएशन्स में जाने के लिए कंफर्टेबल बना हो और देखते ही देखते कुछ समय के अंदर आपकी सोशल एंजाइटी पहले से बहुत कम हो चुकी होगी और आप बहुत आसानी से लोगों के साथ सोशलाइज कर पाओगे। क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉक्टर लॉरी डी कार्वल्हो बोलती है कि इंसानों को दर्द से बचना बहुत पसंद है, लेकिन इससे उनकी मुश्किलें और बढ़ती है क्योंकि उनका दिमाग दर्द को दबाने लगता है। इसलिए एक्स्पोज़र थेरपी एक बहुत अच्छा तरीका है जिससे एक इंसान अपने दर्द को फिर से जी कर एक छोटे समय के अंदर ही हील हो सकता है। सल्यूशन नंबर थ्री स्टडी के प्रॉबलेम इस मेथड को यूज़ करने के लिए आप अपने डर को सीधा उसकी आँखों में आँखें डालकर क्वेश्चन कर सकते हो। इसका मतलब जब भी आपको किसी इवेंट में जाने से डर लगे तो खुद से पूछो कि मैं क्यों इतना डर रहा हूँ? ज़्यादा से ज़्यादा मेरे साथ क्या ही हो जाएगा। ये क्वेश्चन आपको अपने डरावने खयालों की मजबूती टेस्ट करने और अपने पुराने बिलीव्स को तोड़ने में मदद करेगा क्योंकि बहुत बार हम खुद को ही एक झूठी कहानी सुनाकर डर रहे होते हैं। जबकि असलियत में जब आप सोचते हो कि कितने ही लोग आपको नोटिस करेंगे पब्लिक में और इवन अगर आपको कोई नोटिस कर के जज करे भी तो उससे आपकी रिऐलिटी पर क्या प्रभाव पड़ता है? आप दूसरों के ख्यालों को नहीं बदल सकते हैं लेकिन आप खुद के खयालों को जरूर कंट्रोल में ला सकते हो इसलिए अपनी सोशल ऐंड सिटी को क्वेश्चन करना शुरू करो। और देखो कि वो कितनी जल्दी लड़खड़ाने लगती है। सल्यूशन नंबर फ़ोर प्रैक्टिस डिटैचमेंट फ्रॉम थॉट्स, हर वाइज इंसान ये बात जानता है कि अपने मन और शरीर से अटैच होना और उनकी अर्जी उसको ज्यादा सीरियसली लेना है। जितना ज्यादा आप खुद को अपने थॉट्स और अपनी बॉडी से आइडेंटिफाइ करोगे, उतना ही स्ट्रॉन्ग आपकी ईगो होगी। नोर्मल्ली हम यह समझते हैं कि ईगो होने का मतलब है घमंडी होना या फिर खुद को दूसरों से सुपिरिअर समझना। लेकिन चाहे आप ये बोलो कि मैं सबसे बेहतर हूँ। मैं तो कुछ डिज़र्व ही नहीं करता। मैं बहुत इम्पोर्टेन्ट इंसान हूँ, मैं अजीब हूँ। मैं सुपिरिअर या इन्फिरीअर हूँ या लोग मेरी बुराइ करते हैं तो यह सारी अच्छी और बुरी स्टेटमेंट्स आपकी स्ट्रांग ईगो को ही दिखाती है क्योंकि आपका फोकस मैं से हट ही नहीं रहा। आप खुद से इतने ज्यादा कॉन्सर्ट हो कि आप अपने मन से बाहर निकलकर दुनिया को आस इट इस देख ही नहीं पाते है। बिल्कुल यही चीज़ एक सोसिअल्ली इंसान के साथ हो रही होती है। एक सोसिअल्ली की ईगो बहुत स्ट्रांग होती है क्योंकि उसके मन में हमेशा खुद की इज्जत इस सेफ्टी को लेकर डर बना रहता है और वो लोगों की जजमेंट से बहुत ज्यादा इन्फ्लुयेन्स होता है। इसलिए अपनी सोशल ऐंड सिटी कम करने का एक और सॉलिड तरीका होता है अपने नेगेटिविटी से भरे मन को ही अपने से साइड रख देना। यानी खुद को यह याद दिलाना कि ख्याल तो बस पास्ट मेमोरी से आते हैं और वो रिऐलिटी नहीं होते है। अपने ख्यालों में उलझे रहने का मतलब है अपने पास में उलझे रहना और आप तब तक अपने पास से दूर नहीं हो सकते जब तक आप अपने और अपने ख्यालों के बीच एक डिस्टैन्स क्रिएट नहीं कर लेते हैं। बिल्कुल वैसे ही जैसे एक नदी को पास से देखने पर उसमें इतनी हलचल हो रही होती है और पानी की लहरें इतने गुस्से से आपस में टकरा रही होती है। पर जब आप उसी नदी को थोड़ा उचाई से देखते हो तो आपको ऐसा लगता है जैसे वह एकदम स्टिल हो और उसमें कोई हलचल ही ना हो रही हो। दूरी बनाने से आप चीजों को उनके शोर के बिना देख पाते हो और एक हाइर पर्सपेक्टिव हासिल कर पाते हों। दूरी से लड़ाई भी शांति के जैसे लगती है। इसलिए खुद को सोने से पहले और उठते ही याद दिलाओ कि आप अपने ख्याल नहीं हो। दूसरे लोगों और अपनी इनसिक्योरिटी तो दू इसे देखो और समझो दैट नोबडी केर्न्स आज आपको किसी चीज़ का डर है लेकिन कल ये डर मैटर नहीं करेगा। लोग आज आपको किसी छोटी मोटी बात के लिए जज करेंगे और कल वो बात भूल जाएंगे। लेकिन अगर आप कल के लिए ही जीने लगे तो आप आज को खो दोगे। इसलिए आज से ही और अभी से ही अपने मन और ख्यालों से डिटैच होने की प्रैक्टिस करना शुरू करो।","सामाजिक चिंता के साथ जीने का मतलब है कि सबसे अधिक आकस्मिक बातचीत भी आपको असहज और परेशान करती है। लेकिन यह समस्या आपके जीवन के अन्य क्षेत्रों को भी प्रभावित करती है। जैसे दोस्ती निभाना, नए दोस्त बनाना, डेटिंग करना, बिजनेस के मौके लेना आदि। सामाजिक चिंता के साथ हर काम 10 गुना ज्यादा मुश्किल और थका देने वाला हो जाता है। इसलिए इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम सामाजिक चिंता को दूर करने के तरीकों के बारे में बात करेंगे और कैसे सामाजिक रूप से चिंतित होना केवल एक सीखा हुआ व्यवहार पैटर्न है।" "हम दूसरे लोगों से इंटरैक्ट करके ये चीज़ तो समझ जाते हैं कि शायद वो हमारे लिए उतने अच्छे इन्फ्लुयेन्स नहीं है जितना वो खुद को दिखा रहे हैं और वो टॉक्सिक है। लेकिन जब हमारी खुद की बात आती है, तब हम यह कैसे जानें कि हम खुद के लिए और दूसरों के लिए प्रॉब्लम्स क्रिएट कर रहे हैं और हम भी टॉक्सिक बनते जा रहे हैं। कभी कभी हम बिना किसी कॉन्शस रियलाइजेशन के ही नेगेटिविटी फिलाने लग जाते हैं और अपने आसपास वाले लोगों की जिंदगी मुश्किल बना देते हैं, जिसकी वजह से ये जानना बहुत जरूरी होता है कि क्या वो जो बोल रहे है वो सच है और हम दूसरों की लाइफ में मुश्किलें पैदा कर रहे हैं। ताकि हम इस अन्डरस्टैन्डिंग के साथ अपनी गलतियों को सही कर पाए और एक बेहतर इंसान बन पाए। नंबर वन दूसरों को कंट्रोल करना यानी जब भी हम गलत दिशा में जाने लगते हैं और खुद की नीड्स को दूसरों की नीती से ज्यादा इम्पोर्टेन्ट समझने लगते हैं, तब हम एक इमोशनली कन्ट्रोलिंग और मैनिपुलेटिव बिहेव्यर डेवलप कर लेते हैं। हम अपने फ्रेंड्स, फैमिली या पार्टनर को ऐसे ट्रीट करने लगते हैं जैसे हम उनके बॉस है और हम अननोइंगली उन लोगों को इमोशनली ब्लैकमेल करने लग जाते हैं। जब भी वो हमारी कोई बात नहीं मानते है, आप दूसरों को इस हद तक अपने नीचे समझते हो ये चाहे आपकी खुद की ही कोई गलती हो, अब उसकी रिस्पॉन्सबिलिटी खुद लेने के बजाए दूसरों को ब्लेम करने लग जाते हो और धीरे धीरे ये मानना ही छोड़ देते हो कि आप भी गलतियाँ करते हो और उन गलतियों को अडमिट करने में कोई बुराइ नहीं है। साइन नंबर टू लोग आपके साथ टाइम स्पेंड करना पसंद नहीं करते हैं। यानी अगर हर कोई आपके साथ ज़रा सा टाइम बिताकर ही वहाँ से जाने की बात करता है और वो बहाने बनाने लग जाता है। कोई भी इंसान आपके साथ लंबे समय तक रहकर एक दीप रिलेशनशिप नहीं बनाता तो उसका मतलब आपकी टॉक्सिसिटी उन्हें एग्ज़ॉस्ट करती है और वो आपकी नेगेटिविटी को अपने ऊपर हावी होता हुआ महसूस करते हैं। ये पैटर्न आपको बार बार दिखेगा क्योंकि हम या तो दूसरों को खुश और इंस्पायर करते हैं, जिससे वो हमारे साथ और समय बिताने की इच्छा दिखाते हैं या फिर हम दूसरों को तंग करने लग जाते हैं। अपने बुरे बिहैवियर और बुरी आदतों से, जिससे वो हम से दूर रहना ही सही मानते हैं। इसलिए अगर आप को यह लगे कि हर किसी ने आपको अवॉर्ड करना शुरू कर दिया है और लोग आपके साथ हैंग आउट करने में हिचकिचाते हैं तो उसका मतलब जरूर वो लोग आपके ही किसी बिहेव्यर पर रिस्पॉन्ड कर रहे हैं और आपको खुद को ऐनालाइज करके यह डाइरेक्टली दूसरों से पूछकर ही यह पता करना चाहिए। की वो आपका कौन सा बेहेवियर है जो लोगों को आप से दूर करता है? साइन नंबर थ्री बिना किसी रीज़न के लोगों को हिट करना इसका मतलब आपको बिना किसी पर्टिकुलर सीज़न के ही किसी इंसान पर गुस्सा आने लग जाता है। या फिर आप उसकी पीठ पीछे उसकी बुराइ करने लगते हो। ऐसे में अपने आप से क्वेश्चन करो कि आप इस तरह से क्यों बिहेव कर रहे हो? क्या एक्चुअल में सामने वाला इंसान इतना बुरा है? जीवन तो उसने आपके साथ कुछ बुरा नहीं करा या फिर आप बस अपने अंदर की ही नेगेटिविटी और खुद के लिए हेट्रेड उस इंसान पर प्रोजेक्ट कर रहे हो? टॉक्सिक लोगों में ये चीज़ अक्सर देखने को मिलती है। की वो हर समय दूसरों की तरफ ऊँगली उठाकर उन्हें गलत, बुरा या बेकार इंसान बोल रहे होते हैं लेकिन वो खुद किस तरह से दूसरों को ट्रीट करते है, ये चीज़ उन्हें नहीं दिखती। साइन नंबर फ़ोर आप हर चीज़ लेटर ज्यादा हो और देते कुछ नहीं। हर रिलेशनशिप सिर्फ वन साइडेड एफर्ट से नहीं चलता बल्कि सारे लोगों को ही थोड़ा थोड़ा कंट्रीब्यूट करना होता है। लेकिन अगर आपको लोग हमेशा ये बोलते है कि वो हमेशा आपकी मदद करते रहते हैं और आपकी हर रिक्वेस्ट को पूरा करते हैं लेकिन जब वो किसी मुश्किल में फंस जाते हैं तब आप गायब हो जाते हो। और उन्हें अकेला छोड़ देते हो। ओब्विअस्ली हर इंसान की लाइफ में ऐसा समय जरूर आता है जब उसे दूसरों पर रिलीज करना पड़ता है और उनसे मदद लेनी पड़ती है। लेकिन अगर आप हमेशा ही दूसरों पर रिलीज करते हों लेकिन उनके फेवर्स को कभी भी वापस नहीं करते तो यह पक्का है कि आपको अपने बिहेव्यर को रीकन्सीडर करने की जरूरत है। साइन नंबर फाइव आप दूसरों की काइंडनेस का फायदा उठाते हो क्योंकि टॉक्सिक और नेगेटिव लोग काइंडनेस को एक वीकनेस की तरह देखते हैं और जब भी उन्हें मौका मिले वो अच्छे लोगों की अच्छाई को मिस यूज़ करते है। टॉक्सिक लोग खुद से और खुद की नीड से ही इतना ज्यादा कॉन्सर्ट होते हैं। की वो लोग जो दूसरों की मदद करते हैं और प्यार फैलातें हैं वो उन्हें बेवकूफ लगते है। जितनी बार भी एक टॉक्सिक इंसान की जिंदगी में अच्छे लोग आते हैं तब वह उन्हें एक्स्प्लॉइट ही करते हैं जिसके बाद उन लोगों को अच्छाई फैलाने में भी डर लगता है क्योंकि किसी भी इंसान को सबसे ज्यादा चोट तभी पहुंचती है जब वो कुछ अच्छा करने जा रहा होता है लेकिन उसे अपनी अच्छा ई के लिए पनिश कर दिया जाता है। आपको भी यह चीज़ अपने अंदर ऑब्जर्व करनी चाहिए कि आपके अंदर का इन लोगों को देखकर क्या फीलिंग आती है। क्या आप उन से इंस्पायर होते हो या फिर आपको वीक लगते हैं, जिन्हें आसानी से कुचला और यूज़ किया जा सकता है। जितना आप अपने दिमाग में ऑटोमैटिकली आते हुए खयालों को जज करोगे उतना ही आपके पास उन खयालों और इवेन चली। अपने बिहेव्यर को चेंज करने की पावर होगी।","जब भी हम किसी के साथ बातचीत करते हैं, तो हमारे लिए यह समझना आसान हो जाता है कि क्या वे जहरीले हैं और उनके साथ समय बिताना हमारे लिए बुरा हो सकता है। किसी के व्यक्तित्व, शरीर की भाषा, संचार के तरीके और यहां तक कि जिस तरह से वे दूसरों के साथ व्यवहार करते हैं, उसमें संकेत होते हैं। लेकिन अपने बारे में क्या? क्या होगा यदि आप वही हैं जो विषाक्त हो रहा है? अपने स्वयं के पूर्वाग्रहों और झूठों को अनदेखा करना इतना आसान है कि हम स्वाभाविक रूप से पहचान नहीं सकते कि कब हम एक बुरे व्यक्ति में बदल रहे हैं और इस प्रक्रिया में दूसरों को चोट पहुँचा रहे हैं। इसीलिए इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम 5 संकेतों के बारे में बात करेंगे जो आपको यह समझने में मदद करेंगे कि आपमें जहरीली प्रवृत्ति है या नहीं, और आपको इस तरह के व्यवहार को दूर करने के लिए कब कार्रवाई करनी है।" "अपने टीनएजर्स में आपको क्लियरली ये दिख रहा होता है कि अपने पोटेंशिअल है। आपको कई चीजों की दूसरों से ज्यादा नॉलेज है और आपका फ्यूचर ब्राइट है। लेकिन प्रॉपर गाइडेंस की कमी की वजह से आप यह नहीं समझ पाते कि आपने अपनी सेल्फ डेवलपमेंट की जर्नी को शुरू कहाँ से करना हैं? दैट स्वाइ इस एपिसोड में हम आपके साथ शेयर करने वाला हूँ। कही ऐसे लाइफ लेसन्स जो मैं खुद विश करता हूँ कि मुझे पता होते जब मैं था नंबर वन यू डोंट हैव टाइम आपके टीनएजर्स में आपको ऐसा फील कराया जायेगा की आपके पास अभी बहुत समय है। एंड यू डोंट हैव टू हरी बट अगर आप अपने से किसी बड़े इंसान से पूछो तो वो भी यही बोले गा की उससे भी नहीं पता की उसका इतना सारा समय कैसे निकल गया? टाइम बहुत स्लिपरी होता है और वो बहुत जल्दी हाथों से फिसलता है इसलिए डोंट टू कंफर्टेबल उस इंसान की तरह एक्ट मत करो जिससे ऐसा लगता है कि उसके पास तो सक्सेसफुल होने के लिए अभी बहुत समय पड़ा है। वो बहुत बार फेल हो सकता है और उसे फर्क नहीं पड़ता कि उसकी सक्सेस डिले हो रही है। लाइफ को ऐसे जियो जैसे आपके दुश्मन ने आप को चारों ओर से घेर लिया है और आपके पास लड़ने के अलावा कोई दूसरा ऑप्शन नहीं है। नंबर टू भी क्लियर अबाउट योर पर्पस यानी आपकी वैल्यूज क्या है, आपके नॉन नेगोशिएबल क्या है और आपने क्या रूल सेट कर रहे हैं? खुद के लिए? और उन लोगों के लिए जॉब से इंटरैक्ट करते हैं। इस लेवल की क्लैरिटी आपको अपने गोल पर फोकस रखती है और हर तरह की डिस्ट्रक्शन को आप की नज़रों तक नहीं आने देती है। पैसे मिस्टेक नहीं साउंड करना चाहता, लेकिन दुनिया में बढ़ते गवर्नमेंट की वजह से टैक्स हाइ होते जा रहे हैं। इंट्रेस्ट पेमेंट बढ़ती जा रही है। हर चीज़ की महंगाई लोगों की इनकम से ज्यादा तेजी से बढ़ रही है। लोग लॉन्ग टर्म रिलेशनशिप से नहीं बिल्ड कर पा रहे और ऐसे में अगर आप डायरेक्शन लैस हो तो आपको बहुत ईजी कुचल दिया जाएगा। नंबर थ्री डोंट लूज़ गुड फ्रेन्ड ज़ सी हर इंसान ही इमपरफेक्ट होता है और गलतियाँ सबसे होती है और ऐसे में अगर आपका दोस्त कभी कोई गलती करें ट्राई टू फॉरगेट देम अगर कोई एक बार आपकी मदद करता है उसको 10 बार अपनी मदद ऑफर करो और ईजी दोस्ती या तोड़ दें या फिर अपने दिल में पालने के बजाय अपने दोस्त को एक क्लियरली बताओ की आप उनसे क्या एक्सपेक्ट करते हो और उसको एग्ज़ैक्ट्ली क्या करना होगा? आप दोनों के बीच के बॉन्ड को दीप बनाने के लिए नंबर फ़ोर यू आर नॉट मोटिवेटेड बिकॉज़ यू अर स्कैटर्ड मोटिवेशन उस लड़की की तरह है जो सिर्फ में बिलीव करती है और अगर आपकी नजरें 10 अलग अलग इंटरेस्ट में भटकी हुई है तो आपको मोटिवेशन कभी नहीं मिलने वाली है। इसलिए अपने फोकस को एक टाइम पर सिर्फ एक ही चीज़ पर कॉन्सन्ट्रेट करो। फाइव अंडरस्टैंड द ट्रूथ अबाउट बैंलेंस। मैंने इस बारे में ट्वीट भी करा था की असली बैलेंस कभी भी 5050 नहीं होता। लेट से अब महीने में 15 दिन हेल्थी खाते और 15 दिन जंक फूड खाते हो या फिर आप साल में छह महीने वर्कआउट करते हैं और छह महीने वर्कआउट नहीं करते तो आपको नेट रिज़ल्ट मिलेगा। ज़ीरो हमें अपने ऐक्शंस को हमेशा नेट पॉज़िटिव रखना है और अपना ज्यादातर फोकस ईट इन स्लीपिंग फ्लेचर या फिर फन पर नहीं बल्कि काम पर लगाना है। दैट्स वेरी ट्रू बैंलेंस इस नॉट 5050 इट इस नाइन टी 1090% डिसिप्लिन और 10% मस्ती स्पेंड टाइम विद योर पैरेन्ट्स मैंने ये नोटिस कर रहा है की आस चिल्ड्रेन हमें ऐसा फील होता है कि बस हमारी एज बढ़ रही है और हमारे पेरेंट्स इतने सालो से सही लग रहे हैं तो हमें सा फील करते हैं कि क्यों इनको टाइम देना हैं। वो कहीं जा थोड़ी रहे हैं। बट स्लोली आपके पैरंट्स की बॉडी वीक होने लगती है और जितना आप अपनी समझ को डिले करते हो उतना ही आपके पास कम चान्सेस रह जाते हैं। उन्हें अपना ग्रैटिट्यूड और प्यार दिखाने के लिए नंबर सेवन एम टु आउट डोर फ्रेन्ड ज़ थोड़े दिन पहले मैं अपने एक फ्रेंड के साथ वर्कआउट कर रहा था और मैं मिरर में देख के ये बोल रहा था की मैं अभी भी अपनी बॉडी से सैटिस्फाइड नहीं हूँ। मेरी चेस्ट चाहिए। मेरे शोल्डर जैसे होने चाहिए मेरे लेग्स से होने चाहिए और वही पे मेरा फ्रेंड मेरे को देख के बोलता है कि सौरभ अगर मेरी बॉडी तेरे जैसी होती तो मैं इसी में सैटिस्फाइड होता। मैं इसी को मेनटेन करता और मैंने उसे बोला की फर्स्ट ऑफ ऑल थिस इस नॉट थ्रू हम जहाँ पर भी होते हैं, हमे ऐसा लगता है कि हम बेटर बने जितनी भी बॉडी होती है और होनी चाहिए। जितना भी पैसा है और होना चाहिए इन सेकंड थिस इस रीलों गोल आप ऑलरेडी एक सर्कल का पार्ट हो और उस सर्कल में आपको दिख रहा है कि अगर कोई इंसान अब से ऊपर है तो आपका गुल बस इतना नहीं है कि आप उसकी बराबरी करो। आप का गोल होना चाहिए उस इंसान को एक मीडियम की तरह एक स्टेपिंग स्टोन की तरह यूज़ करना उसके भी पार जाने के लिए क्योंकि चान्सेस ये हो सकता है की आपने उससे ज्यादा पोटेंशिअल हो या फिर क्या पता वो इंसान अपनी पोटेंशिअल से बहुत नीचे खेल रहे हो और उसको आइस करके आप भी नीचे ही राजाओं नंबर एट लॉट ऑफ व्हाट यू अर डूइंग इस रॉन्ग जवानी में हर किसी की ईगो बहुत बड़ी होती है। बिकॉज़ अभी तक आपको लाइफ में थप्पड़ मार मारके हम बल नहीं बनाया होता और आपको ऐसा लगता है आप हर जगह पर सही हो। बट थिस इस असाइन ऑफ इन्सेक्युरिटी से इन दैट यू नो एवरीथिंग इस असाइन दैट योर अफ्रेड ऑफ नॉट इनफ। इसलिए अपनी सेल्फ विनेस को बढ़ाओ और इस पेस्ट को एक्सेप्ट करो कि आपने अभी बहुत कमियां हैं। और आप अभी नहीं हो नंबर नाइन कॉन्ट्रिब्यूट इन सम वे आपके टीनएजर्स में आपको बस एक ही रिस्पॉन्सिबिलिटी दी जाती है और वह है पढ़ाई बिकॉज़ बिना एजुकेशन और बिना नॉलेज के लाइफ में सक्सेस मिलना इम्पॉसिबल होता है, लेकिन सिर्फ पढ़ना काफी नहीं है। आपके पेरेंट्स के ऊपर आपसे कई गुना ज्यादा बाहर हैं और ये आपका फर्ज बनता है कि आप उनको किसी न किसी वे में असिस्ट करो। जो भी वो बोल रहे हैं उनकी सुनो और अगर आप फ्री में उनके घर में रह रहे हो तो ये आप की ड्यूटी बनती है कि आप उन्हें किसी ना किसी वे में पेबैक करो। मेबी उन्हें बस ये दिखा दो कि आपने कितना प्यार करते हो। आप उनके लिए कितने ज्यादा ग्रेटफुल हो? या फिर जो भी वो छोटे मोटे काम हुए जो भी वो आप को चोर बोल रहे है कंप्लीट ऐम नंबर टन थिंक मोर अबाउट हूँ और वॉट क्रिएटेड ऑल थिस आई नो। इस चैनल पर बहुत सारे ऐसे लोग हैं जो किसी चीज़ में बिलीव नहीं करते हैं। बट इट इस रियली इम्पोर्टेन्ट फॉर यू टु हैव सम फॉर्म ऑफ कनेक्शन। विधि सोर्स अगर आप खुद क्रिएटिव बनना चाहते हो तो उस क्रिएटिव इन्टेलिजेन्स को समझो, जिसने पूरी दुनिया को बनाया है। एक उस टाइप का इंसान बनता है जो इस तरह की इनसाइट्स को अपनी लाइफ में कभी अप्लाई नहीं करता। वो बहुत सेफ जिंदगी जीता है और इस वजह से उसकी लाइफ में हाँ इ और लो एक्सप्रेस की कमी होती है। टॉप शेर डिसअप्पोइंट बोर्ड क्लियर कर देता है की लाइफ में कुछ भी स्पेशल नहीं है। उसने लाइफ कुछ समझ लिया है और दुनिया में उसकी इन्टेलिजेन्स या फिर उससे ऊपर कुछ नहीं आया। नंबर 11 टेस्टी और लिमिट्स आप अपनी लिमिट्स को पार नहीं कर सकते। बिना ये जाने की आपकी लिमिट्स है। क्या आपको यह पता होना चाहिए कि आपकी बॉडी में कितनी स्ट्रेंथ है? आप कितनी देर बिना किसी डिस्ट्रैक्शन के काम कर सकते हो? आप कितना स्ट्रेस झेल सकते हो या फिर आप कितना डीप्ली किसी इंसान को प्यार कर सकते हो? नंबर 12 स्पीक लाउडली इन क्लियरली जब भी आप कुछ बोलते हों तब अपने वर्ड्स को पूरा और क्लियरली बोलो। अपनी आवाज़ को लाउड और टोन को स्लो रखो। इस तरह जब भी आप किसी से बात करोगे तब आप क्लियरली खुद को एक्सप्रेस कर पाओगे और एक लॉन्ग लास्टिंग इंप्रेशन क्रिएट कर पाओगे। 13। डोंट बी मीन टू आदर्श जब भी कोई मेरे से ये पूछता है कि मैं अपनी लाइफ में क्या रिग्रेट करता हूँ तुम मेरे दिमाग में कोई ज्यादा चीज़े नहीं आती। बट अगर एक चीज़ इसको मैं चेंज करना चाहूंगा वो होगा मेरा वो बिहेव्यर जो मैंने उन लोगों के साथ किया जब मेरे को गुस्सा आया, मैं क्यों ज्यादा मीन हुआ? क्योंकि जब भी आप पास्ट में जाके देखते हो तब आपको हमेशा ही यह लगता है दैट यू आर बी एक्स्ट्रा और उतना मीन होने की जरूरत ही नहीं थी। नंबर 14 लर्न टु परफॉर्म रिगार्डिंग एस ऑफ नाउ यू फील असली डिसिप्लिन का मतलब बस काम को पूरा करना नहीं होता, बल्कि असली डिसिप्लिन होता है तब भी काम करना जब आपका उसे करने का मन नहीं है। नंबर 15 डू नॉट निग्लेक्ट और लुक्स चाहे आपका मेन गोल है पैसा कमाना फिर भी आप बिना अपनी लुक्स को ऑप्टिमाइज़ करें। अपनी इनकम को मैक्सिमाइज नहीं कर सकते हैं। छह लगने के लिए एक्स्पेन्सिव क्लोदिंग या फिर स्किन केयर प्रोडक्ट्स पर नहीं बल्कि एक हेल्थी लाइफ स्टाइल और अपने कपड़ों की फिटिंग पर ध्यान दो।","एक युवा पुरुष या महिला के रूप में, आप स्पष्ट रूप से देख सकते हैं कि आपमें क्षमता है, आप कुछ चीजों को दूसरों की तुलना में अधिक जानते हैं, और आपका भविष्य उज्ज्वल है। लेकिन मार्गदर्शन की कमी के कारण, आप नहीं जानते कि व्यक्तिगत विकास की अपनी यात्रा कहाँ से शुरू करें। इसीलिए इस कड़ी में हम जीवन के 15 पाठों पर चर्चा करेंगे जो आपको बदल देंगे और आपको अधिक परिपक्व बनने में मदद करेंगे।" "जेनरली ज़्यादातर लोगों को कुछ टाइम लगता है जिससे पहले वो किसी चेंजर को अच्छे से जान सकें। पर हमारे फर्स्ट इंप्रेशन पर ही दूसरे लोग ये डिसाइड कर लेते हैं कि क्या वो हमें दोबारा देखना चाहते हैं? हमें डेट करना चाहते हैं, हमें जॉब देना चाहते हैं, हमसे कुछ खरीदना चाहते हैं या फिर नहीं? रिसर्चर्स मानते हैं कि ये बिहेव्यर हमारा सर्वाइवल मेकनिजम होता है, जो हमें सोचने पर मजबूर करता है कि क्या एक इंसान हमारा दोस्त है या फिर दुश्मन? हम भी याद कर सकते हैं। कि कैसे ज्यादातर अच्छे दोस्तों से पहली मुलाकात पर ही हमें कुछ सेकंड के अंदर यह पता चल गया था कि हमारी जोड़ी अच्छी जमेगी। पर कई बार हमें कोई इंसान पहली मीटिंग से ही बुरा लगने लगता है। जीवन दो हमें पता भी नहीं होता कि हमें उनके बारे में क्या बुरा लगा। ये होती है फर्स्ट इंप्रेशन की ताकत पर हम रेरली इसके बारे में सोचते हैं और अगर हम सोचते भी हैं तो हमें ये नहीं पता होता कि हम अपने फर्स्ट इम्प्रेशंस को कैसे अच्छा बनाएं। साइकोलॉजी बताती हैं कि हर इंसान के पास सिर्फ दो सेकंड होते हैं। एक अच्छा इंप्रेशन बनाने के लिए इन दो सेकंड में जो भी इन्फॉर्मेशन वो बिना बोले कम्यूनिकेट करता है, उसे चेंज करना बहुत मुश्किल होता है। फिर चाहे हमारे पास कितने ही अच्छे कॉन्वरसेशन स्टार्टर्स या फिर जोक्स हो। अगर हमने अपने आप को एडवर्टाइज ही अच्छे से नहीं करा तो कोई भी हम पर ट्रस्ट या फिर हमे लाइक कैसे करेगा? हाउएवर गुड न्यूज़ ये है कि हम जब चाहें तब अपने फर्स्ट इम्प्रेशंस को अच्छा बना सकते हैं और आज हम बात करेंगे ऐसे फाइव टिप्स की जो हमें फर्स्ट इम्प्रेशंस का मास्टर बना देंगी। नम्बर वन है हमारी इंटेन्शन यानी हमें पता होना चाहिए कि किसी भी सोशल सिचुएशन से हमें क्या आउटकम चाहिए। क्या हम चाहते हैं की हमें वो नहीं जॉब मिल जाए या फिर हमें बस अच्छे फ्रेंड्स बनाने हैं? इन टेंशन सेट करने से हमें याद रहता है की हमारा गोल क्या है और फिर हम उसके अकॉर्डिंग्ली बिहेव करते है। यानी जब आप तैयार हो रहे होते हो या फिर आप उस इवेंट तक पहुंचने के लिए ड्राइव कर रहे होते हो तब ये सोचो की आप किस तरह के लोगों से मिलना चाहते हो और आप किस तरह की कॉन्वर्सेशन्स का पार्ट बनना चाहते हो? इस टेक्नीक की मदद से हम अपनी एनर्जी को किसी भी सिचुएशन के अकॉर्डिंग ढाल सकते है। जैसे अपने एक फ्रेंड की पार्टी में जाते हुए हम एक इंटेन्शन सेट कर सकते हैं कि हमें आज नए लोगों से मिलना है और उनके साथ काफी सारी मस्ती करनी है और अच्छी मेमोरीज़ बनानी है या फिर अगर एक इंसान को पता है की उसको नई जॉब या फिर स्कूल में बुली करा जाएगा तो वह पहली मीटिंग में ही सबको क्लिर कर सकता है कि अगर कोई भी उससे पंगे लेगा तो वो उसके लिए अच्छा नहीं होगा। नंबर टू है आपकी बॉडी लैंग्वेज क्योंकि जब भी हम किसी इंसान को पहली बार देखते है या फिर मिलते है तो हम अपने तीन क्वेश्चन्स के आन्सर ढूंढ रहे होते हैं। यानी क्या वो हमारा दोस्त है या दुश्मन? क्या वह एक विन्नर है या फिर एक लूँ? सर? और क्या हम उसे अपनी का पार्ट बना सकते हैं? जब भी कोई इंसान इन तीनों क्वेश्चन्स को सक्सेस्स्फुल्ली आन्सर कर देता है तब हम उन पर ट्रस्ट करने लगते हैं और ऐसे एक स्ट्रेंजर हमारा दोस्त बन जाता है। एक डेट, एक कमिटेड पार्टनर और एक लीड बन जाता है हमारा क्लाइन्ट एग्जाम्पल के तौर पर अगर हम सबसे पॉपुलर और टॉक्स की बात करें तो जिन स्पीकर्स को लाइफ चेंजिंग और मेमोरेबल बोला गया था, उन सब में कई स्किल्स कॉमन थी जैसे फर्स्ट्ली वह अपने हाथों को काफी ज्यादा यूज़ करते है। स्टैटस बताते हैं कि सबसे कम पॉपुलर ऑन ऐवरेज 272 यूज़ करते है और सबसे पॉपुलर ऐक्टर्स 465 जेस्चर्स यह इसलिए होता है क्योंकि हमारा दिमाग हाथों की मूवमेंट को बातों से 12 फाइव टाइम्स ज्यादा वेटेज देता है इन्फैक्ट जब हम किसी इंसान के हाथ नहीं देख पाते तो हम डिस्ट्रैक्टिड और एन्जिल्स होने लगते हैं, क्योंकि अगर हम लाखों साल पहले के बारे में सोचें तो जब भी कोई स्ट्रेंजर हमारे के पास आता तो वो सबसे पहले उसके हाथों को देखते हैं उस इंसान की इंटेन्शन से जानने के लिए और अगर उसके हाथों में कोई पत्थर या फिर कोई नुकीली चीज़ होती या फिर वो अपने हाथों को छुपा रहा होता तो हमारे समझ जाते की ये इंसान जरूर कुछ चुराने या फिर किसी को मारने आया है और इवन दो मॉडर्न टाइम में हम किसी रैन्डम स्ट्रेंजर को फिज़िकली हम फुल नहीं समझते हैं। पर ये सर्वाइवल मेकनिजम अभी भी हमें बोलता है की हम हर इंसान की फ्रेन्ड विनेस को डाउट करें। यही रीज़न है कि क्यों? ज्यादातर कल्चर्स में हम एक दूसरे को एक फर्म हैंडशेक के साथ ग्रेट करते हैं और क्यों पुलिस वाले किसी क्रिमिनल को सबसे पहले बोलते है की वो अपने हाथ ऊपर करे? इसके साथ ही हमें ट्रस्ट बनाने के लिए उनके साथ आई कॉन्टैक्ट भी रखना है और अपनी बॉडी को स्ट्रेट रिलैक्स्ड और वाइड रखना है ताकि हम एक विन्नर लगे ना कि एक लूँ। सर नंबर थ्री है आपकी अपीयरेन्स यानी आप कैसे दिखते हो और आपने क्या पहना है, आपके कपड़े और आपकी लुकस बताते हैं कि आप कितने अथॉरिटी एटिव और ऑथेंटिक हो और क्या आप उस इवेंट के लिए अप्रॉक्समट्ली ड्रेस्ड हो? क्योंकि अगर एक फॉर्मल मीटिंग में आप कुछ इन कपड़े पहन कर चले जाओ तो ना तो आप अथॉरिटी वो लगोगे और ना ही ऑथेंटिक। इसके साथ ही हमें कलर्स की साइकोलॉजी भी पता होनी चाहिए की कौन सा कलर किस लोकेशन के लिए बेस्ट होता है और हमें ये भी ध्यान रखना है कि हम वेल ग्रूम्ड हो। यानी हमारे बाल सिचुएशन के अकॉर्डिंग प्रोपरली सेट होने चाहिए। हमारे कपड़े साफ और रिंकल फ्री होने चाहिए। ब्रेथ ऑफ फ्रेश नोस या इयर्स क्लीन और नेल्स छोटे होने चाहिए। अनलेस आप एक फीमेल हो और आप एक इन्फॉर्मल इवेंट में जा रहे हो। नंबर फ़ोर है इन्टरैक्शन और इस पॉइंट पर आते आते हम किसी को दो सेकंड से ज्यादा देख चूके होते हैं। और फर्स्ट इंप्रेशन का दूसरा फेस चालू हो गया होता है, जो हैं वर्बल कम्युनिकेशन। इस टाइम पर हमे देखने वाला अपने मन में हमारे ओपिनियन को पक्का कर रहा होता है जिसके बाद उसे चेंज करना बहुत मुश्किल हो जाएगा और तभी हमें ध्यान रखना है कि हम हर इंसान को अटेन्शन देते हुए उनमें इन्ट्रेस्ट ले क्योंकि अगर हमें किसी के आगे इंट्रेस्टिंग दिखना है तो हमें उनमें इन्ट्रेस्ट लेना पड़ेगा क्योंकि ये चीज़ हमे साफ पता लग जाती है कि किस इंसान को हमसे बात करने या फिर उस सोशल इवेंट में आने का मन नहीं था और मैं बी। उन्हें जबरदस्ती वहाँ पर आना पड़ा। सो जब भी हम किसी से मिले हमें उनकी बातों में जेन्यून्ली इन्ट्रेस्ट लेना है और उन्हें इस तरह से स्पेशल फील कराना है ताकि वो हमें याद रखें। नंबर फाइव आपने कॉन्वरसेशन को एक पॉज़िटिव नोट पर एंड करना है क्योंकि वैसे तो हम नेगेटिव रहकर भी एक मेमोरेबल इंप्रेशन बना सकते हैं, पर अगर हम चाहते हैं कि जिन लोगों से हम बात कर रहे हैं वो हमारे बारे में पॉज़िटिव बातें बोले। हमें बिज़नेस दे या फिर हमारे साथ लौल रहे हैं तो हमें भी उन्हें जितना हो सके उतना रिस्पेक्ट देना होगा। नहीं तो हम बस बुरे फीडबैक्स के बेसिस पर ही पॉपुलर होते रहेंगे, जिससे हमारी रेपुटेशन खराब हो जाएगी और हम इस सोशल गेम मैं हार जाएंगे। पर अगर हम इन पांचों स्टेप्स को फॉलो करें तो हम भी फर्स्ट इंप्रेशन बनाने की स्किल में एक्स्पर्ट बन सकते हैं।","एक स्थायी पहली छाप बनाना सम्मानपूर्ण होना, दूसरों की बात सुनना, आत्मविश्वास होना और अपना सर्वश्रेष्ठ दिखना है। एक बार जब आप इस कौशल का अभ्यास करना शुरू कर देते हैं, तो यह लगभग आपका दूसरा स्वभाव बन जाता है। एक सकारात्मक पहली छाप न केवल आपको अधिक आकर्षक दिखती है बल्कि यह आपको सामाजिक खेल में एक उच्च-प्राप्त खिलाड़ी के रूप में माना जाता है।" "खाना हमारी लाइफ की सबसे बेसिक जरूरत है, पर कई सिचुएशन्स में हम खाने के साथ अपने इस रिलेशनशिप को एक्स्ट्रीम लेवल तक ले जाते हैं और तभी ईटिंग डिसॉर्डर स् काफी कॉमन प्रॉब्लम है। एक डिसोर्डर को डिफाइन करा जाता है ऐसा मेंटल डिस्ऑर्डर जिसमें एक इंसान की अब नोर्मल्ली ईटिंग हैबिट्स, उसकी फिजिकल या फिर मेंटल हेल्थ को नेगेटिव ली इफेक्ट करती है। इसमें इन्क्लूडेड है बिंज ईटिंग डिसॉर्डर जो बेसिकली जरूरत से ज्यादा खाने की आदत होती है। जिसमे लोग काफी कम खाते है और तभी उनका बॉडी वेट भी काफी कम होता है। बोले सा जिसमें लोग पहले काफी सारा खाते है पर उसके बाद उस खाने को अपनी बॉडी से बाहर निकालने की कोशिश करते हैं। वोमिटिंग ओवर एक्सरसाइजिंग या फिर लैक्सेटिव की मदद से पीकर डिसोर्डर में लोग उन चीजों को खाते हैं जिनमें कोई न्यूट्रिशनल वैल्यू नहीं होती। अवॉइडेंट या रिस्ट्रिक्टिव फूड इनटेक डिसॉर्डर, जिसमें लोगों में खाने का इंट्रेस्ट कम हो जाता है या फिर वो अपनी चॉइस इसको लेकर एक्स्ट्रीमली पिकी हो जाते हैं। और रूमिनेशन डिसॉर्डर जो बच्चे से लेकर ऐडल्ट में होता है और उसमें अंडे स्टिक फूड स्टॉलों करने के बाद दुबारा मुँह में आ जाता है और पेशेंट्स या तो उसे वापस से सौलों कर लेते है या फिर उसे स्पिट कर देते हैं। इंडिया में ईटिंग डिसॉर्डर कितने कॉमन है, इसका आइडिया हमें 2018 में हुई एक स्टडी से मिल सकता है। जिसमें मैसूर के 1600 स्टूडेंटस, जिनकी एज 15 से 25 इयर्स के बीच थी, उनके कई टेस्ट लेने से पता चला की 26% पार्टिसिपेंट्स की ईटिंग हैबिट्स अब नॉर्मल थी और उन्हें या तो ये डिसोर्डर पहले से था या फिर चान्सेस है की वो फ्यूचर में कोई ईटिंग डिसॉर्डर डेवलप कर लेंगे। हाउएवर अगर हम नॉर्थ इंडिया का रेलेवेंट डेटा ढूंढें तो लै स्टडी इर 2000 में हुई थी। जिसका डेटा सिर्फ अपने आप में किसी यूज़ का भी नहीं है और यह चीज़ इंडिया में मेंटल हेल्थ अवेरनेस की कमी को दर्शाता है। यहाँ तक की हेल्थ इशूज़ इंडिया के एक आर्टिकल में भी इस बात को पॉइंट आउट करा गया है की इंडिया में डिसॉर्डर्स का कोई ऑफिशल डेटा है ही नहीं। हमारे पास बस कुछ एस्टिमेट्स हैं, जो बताते हैं कि हर 1,00,000 मेल्स में से 10 मेल्स और 1,00,000 फीमेल्स में से 37 फीमेल्स टैक्स एक होती है। बट अगेन ये डेटा भी सिर्फ अपने आप में इस प्रॉब्लम को समझने के लिए काफी नहीं है। नाउ अगर हम ईटिंग डिसॉर्डर के कॉज़िज़ की बात करें तो एक कॉमन ऑब्जर्वेशन यह है कि जिन लोगों को ईटिंग डिसॉर्डर होता है चान्सेस है की उनको बॉडी डिस्मोर्फिक डिस्ऑर्डर भी होगा यानी उनकी सेल्फ परसेप्शन और उनकी आइडियल बॉडी की एक्स्पेक्टेशन उनकी इस तरह से खाने की मोटिवेशन हो सकती है। इसके साथ ही जेनेटिक्स भी लोगों को बुरी ईटिंग हैबिट्स की तरफ पोस्ट कर सकते हैं और अगर लोगों को उनकी की वजह से चढ़ाया जाता है, उन्हें रिजेक्ट करा जाता है या फिर उनका मजाक उड़ाया जाता है। तब भी चान्सेस है की वो या तो ज्यादा खा कर अपने आप को खाने से ही कम्फर्ट करें या फिर कम खा के और अपने आप को टॉर्चर करके परफेक्शन अचीव करने की कोशिश करें। हाउएवर आज कल ज्यादातर लोग खुद ही सोशल मीडिया पर अपने आप को दूसरों से कंपेर करके अपनी कमियां निकालते रहते हैं और कई बार अपनी बॉडी से परेशान होकर अपनी ईटिंग हैबिट्स को खराब कर लेते है। पर हमें पता है कि सोशल मीडिया हर इंसान को नेगेटिव ली इम्पैक्ट नहीं करता क्योंकि हर इंसान की पर्सनैलिटी दूसरे से अलग होती है। और एक स्टडी में पता लगा था कि जो पर्सनैलिटी ट्रेड ईटिंग डिसॉर्डर में सबसे ज्यादा कॉन्ट्रिब्यूट करता है वो है न्यू रोटी सिस्टम जोकि नेगेटिव इमोशन को बढ़ाता है और सैकंडरी कॉन्ट्रिब्यूटर थे। ओपन एस टु इक्स्पिरीयन्स और उस इसके साथ ही एक स्टडी में फंक्शनल मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग यानी एफएमआरआइ की मदद से पता चला कि जब भी पेशेंट्स को कुछ मीठा दिया जाता है तब उनके ब्रेन के पार्ट इन सुन हमें बहुत कम ऐक्टिविटी होती है जबकि जिन लोगों को मीठा पसंद होता है उनका इन 16 काफी ज्यादा ऐक्टिविटी शो करता है। और उससे वो मोटिवेटेड फील करते हैं। इस फाइन्डिंग से रिसर्चर्स को पता चला था कि पेशेंट्स को शुगरी टेस्ट कम प्लेजरेबल लगता है, जिसकी वजह से रिकवरी के बाद भी वो टेस्ट को काफी अलग तरीके से एक्सपिरियंस करते हैं। इसके साथ ही जब लोग सोच रहे होते हैं कि उनको क्या खाना है तब उनके ब्रेन के पार्ट डोर में नॉर्मल से काफी ज्यादा ऐक्टिविटी होती है। यह हमारे ब्रेन का वही पार्ट है जो की हैबिट, फॉर्मेशन और डिसिशन मेकिंग से रिलेटेड है। यानी जो लोग होते हैं वो अपनी मर्ज़ी से चूज नहीं करते कि वह कुछ नहीं खाएंगे या फिर वो बस हेल्थी चीजें खायेंगे। बल्कि उनके सबकॉन्शियस माइंड में यह हैबिट इतनी पक्की बन चुकी है कि वो हमेशा अनकॉन्शियस ली अपनी बुरी ईटिंग हैबिट्स को री इनफोर्स कर रहे होते हैं। मीनिंग यहाँ पर कीवर्ड है हैबिट थिस इस वी ईटिंग डिसॉर्डर को ट्रीट करने में एक हैबिट ब्रेकिंग अप्रोच काफी इफेक्टिव हो सकती है। हाउएवर ईटिंग डिसॉर्डर उसको ट्रीट करने के लिए जेनरली एक से ज़्यादा ट्रीटमेंट यूज़ करे जाते हैं जैसे कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरपी, जिसमें लोगों की थिंकिंग और उनका खाने के साथ रिलेशनशिप चेंज करा जाता है, एक्सेप्टेंस कमिटमेंट थेरपी जो कि कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरपी का ही एक टाइप है, इंटर पर्सनल साइकोथेरपी, न्यूट्रिशन, काउंसलिंग और गाइड सेल्फ हेल्प, जिसमे सपोर्ट ग्रुप्स और सेल्फ हेल्प ग्रुप्स में ईटिंग डिसॉर्डर से रिकवर करते हैं। लोग एक दूसरे को इम्प्रूव करने में और बेटर लाइफ डिसिशन्स लेने में हेल्प करते हैं।","खाने के विकारों को मानसिक विकारों के रूप में परिभाषित किया जाता है जिसमें असामान्य खाने की आदतें शामिल होती हैं जो किसी के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती हैं। कुछ सबसे सामान्य प्रकार के ईटिंग डिसऑर्डर एनोरेक्सिया नर्वोसा, बुलिमिया नर्वोसा, बिंज ईटिंग डिसऑर्डर और रेस्ट्रिक्टिव फूड इनटेक डिसऑर्डर हैं। खाने के विकार मनोवैज्ञानिक आघात, अस्वीकृति या उपहास के कारण या किसी के व्यक्तित्व के कारण भी शुरू हो सकते हैं। हालांकि उनका इलाज करना मुश्किल हो सकता है, जैसे हर 3 में से 1 एनोरेक्सिक्स से ठीक हो जाता है, लेकिन सौभाग्य से, ऐसे कई उपचार उपलब्ध हैं जो ईडी से निपटने वाले व्यक्ति के जीवन में एक महत्वपूर्ण बदलाव ला सकते हैं।" "मेल्स के केस में ये समझना काफी आसान होता है कि उन्हें उनका स्टेटस कॉन्फिडेन्स इन्टेलिजेन्स, ओवरऑल अपीयरेंस और असर टीम ने सहाइ वैल्यू बनाते हैं। बट व्हाट अबाउट विमिन? क्या यही सेम चीज़े एक फीमेल को भी ज्यादा अट्रैक्टिव और हाई वैल्यू बनाती है? नो दोनों जेंडर्स में से मर्द को शारीरिक क्षमता ज्यादा दी गई है और तभी मेल्स हार्ड वर्क करते हुए और दुनिया का बोझ उठाते हुए अच्छे लगते हैं। इसके ऊपर से जस्ट बिकॉज़ स्पीशीज़ कोरी प्रोड्यूस करने की ताकत सिर्फ ईमेल्स को दी गई है। सोसाइटी मेल से वर्क आउटपुट की एक्स्पेक्टेशन और ज्यादा रखती है। यानी फर्स्ट दिन क्वालिटी जो मेल्स और फीमेल्स को बायोलॉजिकली या फिर फिज़िकली डिफरेंट बनाती है वो है वर्क आउटपुट फॉर मेन ऐंड एबिलिटी टु प्रोड्यूस ऐंड रिसर्च, चाइल्ड फॉर विमिन एक मेल को यूज़ फुल समझा जाएगा, जब वो काम अच्छा करेगा और एक फीमेल को यूज़ फुल समझा जाएगा। जब वो बच्चो को ऐसी परवरिश देगी जिससे सोसाइटी का भला हो हाउएवर जस्ट बिकॉज़ मॉडर्न दुनिया में फिजिकल लेबर की नीड इतनी कम हो चुकी है। हम ये भी आर यू कर सकते हैं कि फीमेल वैल्यू में आज एक हद तक उनके वर्क को भी कंसिडर कर आ जाता है। लेकिन ओवर ऑल मेन फोकस फीमेल्स की डॉमिनेंट पावर यानी फैमिली बिल्डिंग पर रहता है और इंटरनेट पर आपको ऐसे अनलिमिटेड केसेस मिलेंगे, जिनमें जब फीमेल्स लोगों की बातों में आकर काम को अपनी फैमिली और रिलेशनशिप से ऊपर रख देती है और अपने फर्टीलिज़ेर्स को वेस्ट कर देती है। बिज़नेस या जॉब में तो वो अपनी लाइफ का सेकंड हाफ रिग्रेट में जीती हैं। अगर आप लोगों को समझना चाहते हो तो उन्हें उनके रिग्रेट से समझो। मेल सलवेस रिग्रेट नॉट वर्किंग हार्ड एनफ ऐंड फीमेल सिगरेट नोट बिल्डिंग रिलेशनशिप्स इन क्रिएटिंग फैमिली एक मर्द लोगों के बिना एक गुफा में भी रह लेगा लेकिन उसे किसी न किसी एंड गोल का पीछा करना ही होता है। लेकिन एक औरत लोगों के बिना नहीं रह सकती। उसके लिए गोल्स का पीछा करना ऑप्शनल है? बट रिलेशनशिप्स, नॉन निगोशिएबल और इसी वजह से फीमेल्स का सेलेक्शन प्रोसेसर मेल से ज्यादा एक्युरेट होता है। वो ये बहुत ऐक्युरेसी के साथ बता पाती हैं कि कौन सा इंसान बस अच्छा होने की एक्टिंग कर रहा है या फिर कौनसा मेल। एक्चुअल में उतना हाइ स्टेटस नहीं है, जितना वह खुद को दिखाने की कोशिश कर रहा है। फीमेल सबसे ज्यादा होती है अपने पार्टनर को चूज करने में। क्योंकि एक मेल के जीन्स और उसकी काबिलियत का लेवल ये डिसाइड करेंगे कि एक फीमेल के बच्चों की क्वालिटी क्या होगी और उन्हें एनवायरनमेंट कैसा मिलेगा? एक फीमेल जितनी ज्यादा ब्यूटीफुल और यूथफुल होती है, उसके पास उतने ही ज्यादा ऑप्शंस होते हैं और तभी उसे उतना ही पिकी बनना पड़ता है। बेस्ट मेट को चूज करने के लिए एक हाई वैल्यू फीमेल अपने लुक्स को ऑप्टिमाइज़ करती है। बिकॉज़ वो ये बात जानती है कि हर किसी को इन्नर ब्यूटी से ज्यादा आउटर ब्यूटी चाहिए होती है। लोग एक इंसान का बुरा बर्ताव भी सही लेते हैं। अगर वो बहुत ज्यादा खूबसूरत हो तो और मोस्ट इम्पोर्टेन्ट ली फीमेल ब्यूटी एक रिलाएबल साइन होता है उसकी फर्टिलिटी का। तभी एक फीमेल को सबसे ज्यादा अटेंशन उसके यूथ में ही मिलती है। एक हाई वैल्यू फीमेल अटेन्शन सीकर नहीं होती। उसे ऑटोमैटिकली बहुत ज्यादा टेंशन मिलती है। हर मेल उसके डी एम्स में उससे अटेन्शन की भीख मांग रहा होता है और इसी वजह से उस फीमेल को सिर्फ अटेन्शन देकर उसका दिल नहीं जीता जा सकता। अटेन्शन से सिर्फ लो वैल्यू फीमेल्स ही खुश होती है क्योंकि उनके स्टैंडर्ड्स और सेल्फ एस्टीम दोनों बहुत लोग होते है। बट एक हाई वैल्यू फीमेल सेल्फ वेर होती है। और उसे मालूम होता है कि वो बहुत ज्यादा वैल्यू प्रोवाइड कर रही है और उस से लोअर क्वालिटी लोगों के साथ सेटल नहीं करना चाहिए। शी एक्सपेक्ट सा लॉट बिकॉज़ शी इस अलॉट इतना चूसी होने की वजह से एक हाई वैल्यू मन कभी भी डिजाइनर एसी और कैजुअल हुकअप का शिकार नहीं बनती। बहुत सारे ऐक्सिस होना एक साइन होता है कि एक फीमेल खुद को ज्यादा वैल्यू नहीं करती और तभी वो केर्फुल होने के बजाय सेक्शुअली केयरलेस है। थ्रूआउट हिस्टरी और इवन मॉडर्न कल्चर में भी फीमेल्स की प्युरिटी के लिए उन्हें वाहवाही मिलती है। और हाइली प्रॉमिस को। फीमेल्स को लो वैल्यू माना जाता है। हर इंसान दीप इनसाइड इस सच को जानता है। बट एक्सेप्ट नहीं करता कि फीमेल्स को अपनी वैल्यू को बचाना होता है, जबकि मेल्स को अपनी वैल्यू को बनाना होता है। इसके साथ ही अगर हम बिहेव्यर की बात करें तो एक हाई वैल्यू मैंने एक एम्पाइअर बिल्डर होती है। उससे लोगों को मैनेज करना, उन्हें अपनी वोट देना, उनके सेल्फ कॉन्फिडेंस को जगाना और अच्छी वैल्यू उसको फैलाना बहुत अच्छे से आता है। ऐसी फीमेल सोसाइटी के लिए एक अच्छी सिटिजेन लड़कियों के लिए एक इन्स्परेशनल फिगर बच्चों के लिए एक असमा बॉयफ्रेंड या हस्बैंड के लिए एक अट्रैक्टिव और सपोर्टिव पार्टनर और एक मिसाल होती है। फेमिनिन पोटेंशिअल की याद रखो एक हाई वैल्यू मन का अकेला काम सिर्फ बच्चे पैदा करना नहीं होता बल्कि उसका काम होता है एक सोसाइटी और घर की बैकबोन बनना और हर इंसान को सपोर्ट करना उनका बेस्ट वर्जन बनने के लिए सोचो। आपकी माँ का आपकी लाइफ में कितना ज़रूरी रोल है? इट डज नॉट मैटर आपको रोज़ उनका कितना प्यार या फिर गालियां मिलती है? अगर वो ना होती तो आप जो हो और जीतने हो वो भी नहीं होते हैं। जो रोल एक तीर को बढ़ाने में धनुष का होता है। जो काम एक पहाड़ को बनाने में एक घाटी का होता है या जो काम एक लहर को बनाने में समुद्र का होता है, वही काम फेमिनिटी करती है। मैं स्कूल इन के लिए अगर इस दुनिया में हाई वैल्यू फीमेल्स नहीं होती तो यह पक्का है कि हाई वैल्यू मेल्स और जो भी काम एल्स ने आज तक करा है वो सब भी कभी हकीकत नहीं बन पाता। पूरी सोसाइटी उन फीमेल्स की चॉइस से आगे बढ़ती या फिर बर्बाद होती हैं, जिनके पास मेल्स के बिहेव्यर को इन्फ्लुयेन्स करने की पावर होती है। एक फीमेल जीस लेवल का खुद का स्टैंडर्ड बनाती है। सोसाइटी के मेल्स भी उसी लेवल को अपना गोल बना लेते हैं। एक लो फीमेल स्टैन्डर्ड सोसाइटी के मेल्स को लू सर बनाए रखता है जबकि एक हाइ फीमेल स्टैन्डर्ड मर्दों को बेहतर इंसान बनने के लिए फोर्स करता है। इसी वजह से एक हाई वैल्यू फीमेल काफी चूजी होती है और वो एक लड़के की मदद करती है उसमें मौजूद मर्द को जगाकर।","महिलाएं उस पुरुष को चुनती हैं जो अपने खेल में सबसे ऊपर है। एक उच्च मूल्य वाली महिला अपनी कीमत जानती है और वह कभी भी एक औसत दर्जे के पुरुष के साथ समझौता नहीं करती है। एक महिला जितना अधिक खुद पर काम करती है, वह उतनी ही अधिक चयनात्मक हो जाती है। उसके पास बहुत सारे विकल्प हैं और यही कारण है कि शीर्ष महिलाएँ अपने भागीदारों के बारे में इतनी चयनात्मक हैं।" "हम इस चैनल पर अक्सर बोलते है कि अपनी वैल्यू को बढ़ाओ, अपने स्टैंडर्ड को हाई रखो और अपनी पोटेंशिअल के नीचे सेटल मत करो, लेकिन यह वैल्यू बढ़ाने का एक्चुअल मतलब क्या होता है और हम अपनी वैल्यू कैसे बढ़ा सकते हैं? फर्स्ट ऑफ ऑल यह समझो कि अपनी वैल्यू बढ़ाने का मतलब अपनी नेट वर्थ बढ़ाना नहीं होता। पैसों के ख्याल को कुछ देर के लिए साइड रखो, क्योंकि वो हाई वैल्यू इंसान होने का एक बाइप्रोडक्ट होता है ना की उसका कॉज़ नाउ ये सोचो कि आप अपनी लाइफ में किन चीजों की वैल्यू दूसरी चीजों से ज्यादा मानते हो? मेबी वो ज्यादा एक्स्पेन्सिव है, आपके उस चीज़ से सेंटिमेंट्स या फिर इमोशन्स जुड़े हुए हैं? वो आपको अपने बारे में अच्छा फील कराती है या फिर उसके होने से आपकी लाइफ ज्यादा आसान बन गई है। अब यही सेम चीज़े हमें खुद के अंदर देखनी है। यानी अपनी वैल्यू को बढ़ाने के लिए आपको दूसरों के लिए वैल्यूएबल और इरिप्लेसबल बनना पड़ेगा और इसके फाइव स्टेप्स है नंबर वन। हाई मोरल वैल्यू से कोई भी इंसान तब तक हाई वैल्यू नहीं कहलाता जब तक उस में मैनर्स या फिर वैल्यूज नहीं होती। अगर एक इंसान अमीर होने के बावजूद रेस्ट्रॉन्ट में जाकर वेटर से बदतमीजी से बात करता है, लोगों का मजाक उड़ाता है, अपने दिल में अपनी फैमिली के लिए कड़वाहट रखता है या फिर हमेशा झूठ बोलता है। तो ऐसा इंसान इतना पैसा होने के बावजूद भी दूसरे लोगों की नजरों में एक लूँ सर ही रहता है। इतना यूनीक रेट होने की वजह से हाई मोरल वैल्यूज रखना बहुत चार्मिंग और अट्रैक्टिव लगता है। इसलिए अपने लिए जीने के कई रूल्स बना हो जैसे आप कभी झूठ नहीं बोलोगे, लोगों को प्यार और रिस्पेक्ट दोगे। पूरे इससे बुरे इंसान में भी छुपी अच्छाई को देखने की आदत डालोगे और अपने आप को हमेशा हम्बल रखोगे नंबर टू डिसिप्लिन आज की सोसाइटी में जहाँ ज्यादातर लोग डेमोरलाइज और खुद के मन के गुलाम हैं, वो वही करते हैं जो उनका मन कहता है। वहीं एक ऐसा इंसान जो अपने मन का नौकर बनने के बजाय अपने मन को कंट्रोल करता है और उसके जीने के अपने ही रूल्स होते हैं। ऐसा इंसान दूसरों से ज्यादा वैल्यूएबल होता है। इंसान होने का यही फायदा है कि हम अपनी जानवर वाली स्टेट से बाहर निकलकर अपनी डिज़ाइनर्स को अपने वश में कर सकते हैं। जीस वजह से हाई स्टैन्डर्ड होने का मतलब होता है कि आपको पता है कि आपको किन चीजों में खुद को इन्वॉल्व करना है और किन में नहीं डिसिप्लिन आपके टेस्ट को एक्स्पेन्सिव बनाता है। एग्जाम्पल के तौर पर अगर आपने डिसाइड कर लिया है कि आप ऐसा लो क्वालिटी फूड नहीं खाओगे जिससे आपकी हेल्थ खराब होती है तो यहाँ पर आपने एक स्टैन्डर्ड सेट कर दिया है। कि मैं सिर्फ ये हाई क्वालिटी फूड नहीं खाता हूँ और इससे नीचे सेटल करने में मेरा बहुत नुकसान होगा। सिमिलरली एक पार्टनर ढूंढ़ते वक्त आपने किसी ऐसे इंसान के साथ सेटल नहीं करना जो आपकी पोटेंशिअल के नीचे है या फिर अगर आप अपनी लाइफ मैं सक्सेसफुल बनना चाहते हो लेकिन आपको पढ़ते या काम करते वक्त लोग डिस्ट्रैक्ट करते हैं और पार्टी या खेलने के लिए बोलते हैं तो उस शोर्ट टर्म प्लेजर को पोस्टपोन करना एक बड़े सपने को पूरा करने के लिए यह होता है डिसिप्लिन, डिसिप्लिन, सैक्रिफ़ाइस और हाई स्टैन्डर्ड ज़ तीनो सेम चीज़ है। सही सैक्रिफ़ाइस करने से आप डिसिप्लिन बनते हो। डिसिप्लिन बनने से आपके स्टैन्डर्ड सहाइ हो जाते हैं और जब आपके स्टैन्डर्ड सहाइ होते हैं, तब वह दूसरों की नजरों में आपको ज्यादा वैल्यूएबल बनाते है। नंबर थ्री हैविंग ऑप्शन्स क्योंकि चाहे वो पोटेंशिअल डेटिंग पार्टनर्स की बात हो या फिर अलग अलग ऑपर्च्युनिटीज की, बहुत सी चीजो को ना बोल पाने की एबिलिटी आपको हाई वैल्यू बनाती है। एक इंसान जिसके पास कोई ऑप्शन ही नहीं होते, वो कभी भी ना बोलना अफोर्ड नहीं कर सकता क्योंकि ऐसे तो फिर उसे कुछ भी नहीं मिलेगा। एक्साम्पल के तौर पर अगर आपने खुद पर मेहनत करना स्टार्ट करा और ऐसा मेल आप बहुत सी फीमेल्स के लिए अट्रैक्टिव बन चूके हों और ऐसा फीमेल मेल्स के लिए। ऐसे में आपके पास इतनी चॉइस होती है कि आप इतने सारे लोगों में से सबसे बेस्ट इंसान को ही अपना पार्टनर बना पाओ। लेकिन यह लग्जरी उन लोगों के पास नहीं होती जो हमेशा मीडिया पर रहते हैं, खुद पर काम ना करने के बहाने बनाते रहते हैं और कंप्लेन करते रहते हैं कि उनका बॉयफ्रेंड या हस्बैंड कितना अब्यूसिव है या उनकी गर्लफ्रेंड या वाइफ कितनी अनअट्रैक्टिव? ये सिर्फ बहाने होते हैं ऐवरेज लोगों के। इसलिए शुरू से ही केर्फुल रहो, अपने आप को वैल्यूएबल बनाओ ताकि आप हाई क्वालिटी लोगों के साथ टाइम स्पेंड करना अफोर्ड कर सको। नंबर फ़ोर है, विनय यूनीक स्किल सेट ये कोई ऐसी स्किल होती है जो आपके और आपके आसपास के लोगों की लाइफ में वैल्यू ऐड करती है। हाउएवर जब भी हम स्किल्स के बारे में सोचते हैं तब हमारे दिमाग में बस हर वो काम आता है जिनसे पैसा कमाया जाता है। लेकिन ऐक्चुअल में एक इंसान की वैल्यू उसकी स्किल से सोसाइटी में हुए कॉन्ट्रिब्यूशन से नापी जाती है, जिसकी वजह से एक अच्छा पड़ोसी एक टीचर होना, एक हार्ड वर्किंग इम्प्लॉई होना और एक अच्छा बाप या माँ होना भी यूनीक स्किल्स हैं जो ऐसे बच्चों को रेज करती है जो आगे चलकर दुनिया में महान काम करते हैं। इसलिए स्किल्स या वैल्यू को सिर्फ पैसों के टर्म्स में नहीं बल्कि उसकी जड़ों यानी एक इंसान के माइंडसेट में देखो। हम हमेशा फेम और पैसों के पीछे भागते हैं। जीस वजह से हम अपना बैलेंस खो देते हैं और एकतरफा बन जाते हैं। याद रखो हमेशा एक पेड़ पर उगने वाले फल की तारीफ होती है ना कि उसकी जड़ों की। लेकिन अगर उसकी जड़ें ही कमजोर है तो फल उगना तो दूर वो पेड़ ज्यादा समय तक सीधा भी नहीं खड़ा रह पाएगा। इसलिए आपके सोसाइटी में जीतने भी रोज़ है। स्टूडेंट, इम्प्लॉई या आन्ट्रप्रनर से लेकर भाई, बहन, माँ, बाप या रिश्तेदार तक अपने हर रोल को अच्छे से निभाऊं और सबके अंदर मौजूद एक बेहतर इंसान बनने की पोटेंशिअल को बाहर लाओ। ये असली मतलब होता है स्किलफुल होने का। नंबर फाइव बि कमा लविंग वॉरिअर जीतने भी लोगों ने मुझे एक बेहतर इंसान बनने में मदद करी है। उन लोगों में एक चीज़ कॉमन है कि वो काफी हद तक होल और बैंलेंस है। जितनी ताकत उनमें पूरी दुनिया से लड़ने और अपने सच को बिना डरे बोलने की है, उतनी ही ताकत 19 सॉफ्ट होने और अपने ऑनसाइट को दिखाने की है। ये चीज़ आपको भी खुद में और अपने आइडल्स में देखनी चाहिए कि क्या जिन लोगों को आप फॉलो करते हो और उस वजह से जो आप खुद बनते हो या अपने माइंड सेट को रखते हो, क्या उसमें बैलेंस है? क्या आपके अंदर और जी दोनों आपकी वेल बीइंग के लिए एक दूसरे को कॉंप्लिमेंट कर रही है या फिर एक दूसरे को कॉन्ट्रैक्ट? क्या आप हमेशा लोगों से दबते रहते हो या फिर आप हमेशा लोगों को दबाते रहते हो? इम्बैलेंस इंसान तब तक अपने कैरेक्टर की कमी नहीं समझते जब तक उनके साथ कोई ट्रैजिडी नहीं हो जाती है और उन्हें एक जरूरी लहसन नहीं मिल जाता। इसलिए ऐसे इंसान बनो की आपको लोगों में प्यार बांटना भी आता हो और जब आप जंग के मैदान में खड़े हों तब आपको अपनी तलवार का इस्तेमाल करना भी आता हो।","हमारे चैनल पर, हम आपके मूल्य को बढ़ाने, उच्च मानकों को रखने और आपकी क्षमता से नीचे नहीं बसने के बारे में बहुत सारी बातें करते हैं, लेकिन वास्तव में यह "मूल्य" क्या है और हम इसे कैसे बढ़ा सकते हैं। जब हम "मूल्य" शब्द सुनते हैं तो आम तौर पर हम धन, सफलता और शक्ति के बारे में सोचते हैं। लेकिन सफलता और कुछ नहीं बल्कि मूल्यवान होने का एक लक्षण या उपोत्पाद है। तो, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम एक मूल्यवान इंसान बनने के लिए आपको उठाए जाने वाले कदमों पर चर्चा करेंगे।" "निहाल इज़म पार्ट फ़ोर यह इस सीरीज का फाइनल पार्ट है और इसमें हम बात करेंगे निहाल इज़म के सॉल्यूशन के बारे में। सो जल्दी से एक करते हैं, पहली तीन वीडिओज़ का और उनमें हमने क्या सीखा था? फर्स्ट पार्ट में हमने डिस्कस किया था की नहीं हज़म एक ऐसा व्यूपॉइंट है जिसमें एक इंसान बोलता है की लाइफ का कोई मीनिंग वैल्यू या पर्पस नहीं है और निहाल इज़म में ऑनली फ़ोर टाइप्स का हो सकता है। फर्स्ट है मोरल निहाल इज़म, जिसमें माना जाता है कि मोरल्स या एथिकल वैल्यू उस ह्यूमन माइंड के बाहर एग्जिस्ट नहीं करतीं और अच्छा, बुरा, सही गलत ये सब ह्यूमन्स के बनाए बिलीव्स है। लॉजिकल ने हज़म सिम्पली बोलता है की नॉलेज जैसी कोई चीज़ नहीं होती और ट्रुथ जाना या तो इम्पॉसिबल होता है या फिर ट्रूथ एग्ज़िट ही नहीं करता। कॉस्मिक नी हेली जम बोलता है की यूनिवर्स में कोई डिवाइन प्रेजेंटस नहीं है। लाइफ में कुछ भी स्पेशल नहीं है और ह्यूमन इन्फिनिट रिऐलिटी में बस एक अन्य इम्पोर्टेन्ट रोल निभा रहे हैं और एग्ज़िस्टन्स इलज़ाम बाकी तीनों पार्ट से मिलकर बनता है। यानी अगर एक इंसान मोरल्स आप इस टेक्नोलॉजी या कॉस्मोस की फिलॉसफी जैसे एरियाज़ में बिलीव खो देता है, तब वो बन जाता है एक एग्ज़िस्टिंग छिलने हाइ लिस्ट। इसके बाद सिरीज़ के सेकंड पार्ट में हमने लाइफ के मीनिंग को एक्स्प्लोर किया और डिस्कस किया की क्यों हमारे अंदर सेन्स ऑफ मीनिंग बढ़ जाता है। अपनी सफरिंग को एक्सेप्ट करने से और अपनी लाइफ को ऑर्डर में लाने से थर्ड पार्ट में हमने एक जर्मनी फिलॉसफर फ्रेड्रिक नीचा के निहाल इज़म पर व्यूस की बात की थी और अब फाइनली क्वेश्चन ये है की इसका सल्यूशन क्या है? सी निहाल शुरू होता है। पुराने बिलीव के खत्म होने पे फॉर एग्जाम्पल। जब हमें समझाता है कि यूनिवर्स का स्केल क्या है, अर्थ जैसे कितने ही प्लैनेट्स है और उनमें कितने ही प्लैनेट्स पर लाइफ हो सकती है। तब हम यह सोचने लगते हैं कि हमारी एग्ज़िस्टन्स शायद उतनी इम्पोर्टेन्ट या स्पेशल नहीं है जितना हम समझते थे और इसमें भी इतनी है यहाँ वो रही होती है एक ऐनिमल दूसरे ऐनिमल को मारने पर लगा रहता है और ऐसी एग्ज़िस्टन्स का क्या फायदा राइट ये चीज़ हर निहाल इस सोचता है आई वॉज़ द पॉइंट ऑफ ऑल थिस दूसरे हाथ पर हमारे एन्सिस्टर्स मानते थे कि अर्थ यूनिवर्स का सेंटर है और हम बहुत स्पेशल हैं और इसी वायु ने उनकी लाइफ को एक मीनिंग दे रखा था। तो क्या यहाँ पे और कल ऑपरेट हमारी नॉलेज है? क्योंकि जितना हम रिलिजन स्पिरिचूऐलिटी और एन्शियंट टीचिंग से दूर होता जा रहा है उतना ही हमारी लाइफ में सेन्स ऑफ पर्पस कम होता जा रहा है। हमारे पास गोल्स तो है पर जब उन्हें सपोर्ट करने के लिए कोई मीनिंग ही नहीं होता तो हमारे अंदर कुछ अचीव करने की ड्राइव ही नहीं आती। यहाँ पर सबसे बड़ी गलती एक इंसान ये कर सकता है कि वो इस फीलिंग को सच मानने लगता है और तभी मेन लेसन एस काफी सब्जेक्टिव है। ये फीलिंग एक बैड ब्रेकअप के बाद की फीलिंग के बहुत सिमिलर है क्योंकि एक टॉक्सिक रिलेशनशिप के बाद हम बोल सकते है की ट्रू लव जैसी कोई चीज़ ही नहीं होती। बट हमारा ये व्यूस चेंज हो जाता है। जैसे ही हमें एक लविंग पार्टनर मिलता है सो निहाल इज़म एक हद तक लॉजिकल है। पर इससे भी ज्यादा ये एक ऑपर्च्युनिटी है। एक ऑपर्च्युनिटी जिसमें हम अपने व्यूस को शार्प पन कर सकते है। बट एक पेन्सिल की ही तरह हमें पहले अपनी कन्डिशनिंग की काफी लेयर्स को उतारना पड़ता है। अपने ट्रू ओपिनियन्स और मीनिंग तक पहुँचने के लिए। इसी वजह से नीचा ने भी निहाल इज़म को एक ट्रांजिशनल फेस की तरह देखा था जिसमें कई नेगेटिव एलिमेंट्स भी है। जैसे ये जनरलाइजेशन की किसी चीज़ का कोई मीनिंग ही नहीं है। सो प्रैक्टिकली हमें अपने निहाल। इस टिक फेस को बस एक फेस ही समझना चाहिए और जितना हो सके उसे अपनी ऐडवांटेज की तरह यूज़ करना चाहिए क्योंकि अपनी हर डार्क फेस से हम कुछ ना कुछ सीख सकते हैं। दुनिया और स्पेसिअली अपने बारे में की। हम अभी तक अपने आप को क्या समझ रहे थे और असल में हम क्या है? जो निहाई लिस्ट अपने नियम को ओवर कम कर लेता है तब वो फाइनली अपनी मीन इंग्लिश ऑनरस से जुड़ी रीज़निंग के एरर को समझ पाता है और सिर्फ तब ही वो निहार इस हमको एक ट्रैन्ज़िशन फेस की तरह देखता है। फाइनली नी हेली चमकी इस अन्डरस्टैन्डिंग के बाद हम ये डिस्कस कर सकते हैं की हमें इस फेस में क्या करना चाहिए और क्या नहीं। सबसे पहले हमें ये समझना है कि सफरिंग लाइफ के मीनिंग से काफी क्लोजली रिलेटेड है और जितना हम इस सफरिंग को फाइट करते हैं और अपने अराउंड ऑर्डर लाते है, उतना ही हम फुलफिल फील करते है। सेकंडली यह समझना काफी इम्पोर्टेन्ट है कि निहाल इज़म ना तो ऐब्सलूट का एंड है और ना ही यह फेस यूज़लेस है। हम इस चैलेंजिंग फेस को यूज़ कर सकते हैं नई इनसाइट्स पाने के लिए और ऐसा पर्सन ग्रो करने के लिए थर्ड ली बिलीव्स को क्वेश्चन करना जरूरी है और क्वेश्चन करने पर चाहे हमें अपने कितने ही पार्ट्स पीछे छोड़ने पड़े हैं, पर सिर्फ ऐसा करके ही हम अपने ट्रू सेल्फ तक पहुँच सकते हैं। अब हम बात करते हैं की हमें क्या नहीं गणना फसली हमें एक पैथ चूज करना है या तो हमने हज़म और मीन इंग्लिश ऑनरस से अपने आप को आइडेंटिफाइ कर सकते हैं या फिर हम विली चूज कर सकते हैं कि हमें इस सिचुएशन से बाहर निकलना है। बिकॉज़ जीवन को निहाल इज़म काफी टाइम होता है, क्योंकि यह बोलकर की कुछ मैटर नहीं करता। हम अपनी रिस्पॉन्सिबिलिटीज से बच सकते हैं पर हमें ये भी समझना चाहिए कि रिस्पॉन्सिबिलिटी मीनिंग का बहुत बड़ा पार्ट है। सेकंडली यह सोचना बिल्कुल गलत है की पर्पस एक इंसान की बनाई बस एक रैन्डम क्रिएशन है क्योंकि वो पर्पस ही होता है जो हमें हमारी मैक्सिमम पोटेंशिअल तक पहुंचा सकता है। जितना बड़ा पर्पस और जितनी मुश्किलें उसके रास्ते में आती है उतनी ही हमारी लाइफ मीनिंगफुल हो जाती है। क्योंकि हर नई मुश्किल को पार करके हम अपने उन पार्ट्स को ऑन करते हैं जो पहले से ऑन नहीं थे। थर्ड ली ज्यादातर हाइ लिस्ट पुराने बिलीव्स को रिजेक्ट करने और नए बिलीफ ढूँढने के बजाय किसी बिलीफ को ढूंढने के प्रोसेसेस को ही पौन प्लेस समझने लगते हैं। और मीनिंग को ढूंढना छोड़ देते हैं। ऐसे पॉइंट पर आकर ज्यादातर लोगों के पास हैपिनेस का सिर्फ एक ही तरीका बच जाता है, जो कि उन्हें लो क्वालिटी इंपल्सिव फ्लेचर से मिलता है, जैसे ड्रिंक करना, जंक फूड खाना, पॉर्न देखना या ऐसा कोई बिहेव्यर जो उन्हें रिऐलिटी से छुपाने में मदद करता है और लाइफ को खराब कर देने वाली इन हैबिट से बाहर निकलने के लिए हमें चाहिए रिस्पॉन्सिबिलिटी ज़। क्योंकि ऐसे पॉइंट पर किसी को मोटिवेट करना बिल्कुल इम्पॉसिबल होता है। उन्हें जो चाहिए होता है वो होता है ओरिएंटेशन। लास्ट ली हम इस सीरीज को कौन क्लाउड करते हैं। नीचा के ही एक कोर्ट से ओवरऑल हमने दुनिया को जितना कीमती समझा था, वो उससे शायद ज्यादा कीमती है। हमें अपनी परफेक्शन के इल्यूजन के पार देखना चाहिए। और जहाँ हमने सोचा था कि हमने इसे पूरा समझ लिया है, वहीं शायद हमने ह्यूमन एग्ज़िस्टन्स को उतनी इम्पोर्टेंस नहीं दी जितना वो डिज़र्व करती है।",यह एपिसोड शून्यवाद श्रृंखला की चौथी और अंतिम किस्त है जो शून्यवादी दृष्टिकोण के मुद्दे को हल करने के बारे में है। हमें Youtube पर खोजें: www.youtube.com/psychologyinhindi "हमारे अंदर कोई ना कोई ऐसा बिहेव्यर जरूर होता है जो हम चेंज करना चाहते हैं। एक बेहतर इंसान बनने के लिए में बी। हम अपनी लेजिनेस को कम करना चाहते हैं या फिर अपनी हेल्थ को इंप्रूव करना चाहते हैं और कई बार हम अपना मन भी बना लेते है कि अब हम अच्छे से काम करेंगे या फिर जिम जाना शुरू करेंगे। पर प्रॉब्लम ये है कि ये टेम्परेरी मोटिवेशन काफी जल्दी खत्म हो जाती है और हम वापस से अपनी पुरानी है, बस पर आ जाते है और तभी क्वेश्चन यह नहीं होना चाहिए कि हम अपने आप को कोई काम करने के लिए कैसे मोटिवेट करें। असली क्वेश्चन तो ये है की हमे क्यों कुछ भी करने के लिए मोटिवेशन चाहिए क्योंकि कुछ ना करना कुछ भी करने से ज्यादा ईज़ी है, जिसकी वजह से हमें कुछ भी करने के लिए एक बड़ा रीज़न चाहिए होता है। बचपन में भी हमें मास लॉस हाइरार्की ऑफ नीड्स के बारे में समझाया गया था, जो बेसिकली 19 का डिस्क्रिप्शन है जो हमे मोटीवेट करती है। इस पिरामिड के हिसाब से हमें सबसे पहले अपनी फिजिकल नीड्स को पूरा करना होता है जिसमे आता है खाना पीना, रेस्ट करना, री प्रोड्यूस करना और सोना पर सबसे आखिर में आता है सेल्फ एक्चुअली स्टेशन यानी अपनी ट्रू पोटेंशिअल को रिवाइज़ करना। पर इस मॉडल के साथ प्रॉब्लम ये है की ये हमारी प्रिमिटिव पर बेस्ट है पर मॉडर्न वर्ल्ड में ज्यादातर लोगों की बेसिक नीड्स डीज़ल पूरी हो जाती है। यानी मॉडर्न प्रॉब्लम ये नहीं है कि हम भूख से मर जाएंगे बल्कि आज की बढ़ती प्रॉब्लम्स, सेल्फ डाउट, लो सेल्फ एस्टीम और डिप्रेशन जैसी चीजें हैं जो हमे लाइफ में आगे बढ़ने से रोकती है और तभी आज के टाइम पर जहाँ हम हर टाइम ही अपने आप को दूसरों से कंपेर कर रहे होते हैं। अपनी पोटेंशिअल और टैलेंट की अवेर्नेस बहुत जरूरी है। यानी अगर हमें मोटिवेशन चाहिए और हम अपनी स्ट्रेंथ और वीकनेस के बारे में अवेयर नहीं है तो चाहे हम कितनी भी मोटिवेशनल वीडियो देख लें या फिर अपने आप को समझा ले, हम किसी भी टास्क को पूरा नहीं करेंगे। सो इस नॉलेज के साथ अगर हमें अपने आप को मोटिवेटेड रखना है तो हमें बस इन फाइव स्टेप्स को फॉलो करना है। स्टेप वन वॉट इज़ योर ड्रीम यानी हमारी लाइफ में क्या गोल है? कौन से गोल्स है? जिनकी हम एक्चुअल में परवाह करते हैं या फिर हमारे हिसाब से हमारे मरने के बाद लोग हमारी लाइफ के बारे में क्या बोले कि हमने कैसी लाइफ जी इन सारे क्वेश्चन्स के आन्सर्स हमें बताएंगे कि हमें अपने फ्यूचर को किस तरफ मोड़ना है और उसके लिए हमें प्रेज़ेंट में क्या करना होगा? और रिमेम्बर मोटिवेटेड रहने के लिए अपने ड्रीम या गोल की अन्डरस्टैन्डिंग काफी जरूरी है। जैसे एक इंसान बोल सकता है कि उसका ड्रीम है। अपनी इनकम को 10 गुना बढ़ाना दूसरे का ड्रीम है एक अच्छा फादर बनना, तीसरा बोलता है उसका ड्रीम है एक राइटर बनना और चौथा बोलता है। वो ज्यादा से ज्यादा लोगों की मदद करना चाहता है। यानी ड्रीम चाहे कितना भी छोटा या बड़ा हो। इम्पोर्टेन्ट चीज़ ये है कि इन लोगों के पास निशाना लगाने के लिए एक टारगेट है पर शर्त ये है की ये टारगेट या गोल इतना बड़ा या इम्पोर्टेन्ट होना चाहिए की ये हमारे एफर्ट्स को जस्टिफाई कर पाया। ब्रैड शुगर का एक फेमस कोट है। डिज़ाइनर फॉर चेन्ज इस ग्रेटर अंदर इज़ी स्टेप्स टू चेन्ज चेंज हैपन्स इसके साथ ही अगर हमारा गोल हमारे अंदर एक इमोशनल रिस्पॉन्स नहीं क्रिएट करता तो मैं बी हमें फिर से एक बार सोच लेना चाहिए कि क्या वो गोल असली में हमारा है या फिर हमने लोगों की बातें सुनकर एक रैन्डम टारगेट को अपना बना लिया है? हाउएवर कई लोगों के पास कोई गोल ही नहीं होता। वो सोचने पर भी नहीं ढूंढ पाते कि उनका पैशन या टैलेंट क्या है? कई लोग सच में सेल्फ अवेयर नहीं होते पर दूसरे अपने गोल्स इसलिए सेट नहीं करते। क्योंकि उनमे फेल होने का डर होता है और इसी वजह से जब वो फेल होते भी हैं तब उन्हें पता भी नहीं चलता और वो तब तक अपने आप को अंधेरे में रखते हैं जब तक वो 40 या 50 इयर्स के नहीं हो जाते हैं और उसके बाद उनकी आँखों में बस रिग्रेट दिखता है। हम इस बारे में बात नहीं करते पर ये सच है। बहुत लोग अपने आप को उस पॉइंट तक करते जाते है। जीस पॉइंट के बाद उनके पास कुछ बचता ही नहीं है। यही रीज़न है कि क्यों हम बिना गोल्स के लाइफ नहीं जी सकते क्योंकि ऐसे हम एग्ज़िस्टन्स इल्ली सफर करने लगते हैं। 100 अगर हम अपने ड्रीम्स को लेकर क्लिअर नहीं है तो हम सिम्पली इन दो में से कोई एक रास्ता चूज कर सकते हैं। फर्स्ट्ली हम देख सकते हैं कि लोगों की लाइफ में जेनरली वो कौनसी चीज़े होती है जो उन्हें मीनिंग देती है। ज्यादातर ये चीजें होती है फैमिली फ्रेंड ज़ करिअर एजुकेशन और मेंटल या फिजिकल हेल्थ। अगर हमारे पास ये चीजें नहीं होंगी तो ऑब्वियस्ली हमारी लाइफ काफी मिजरेबल बन जाएगी। और तभी जो लोग बाकी लोगों के बड़े बड़े गोल्स या एम्बिशन्स के साथ रिलेट नहीं कर पाते वो सिम्पली एक अच्छी और मीनिंगफुल लाइफ में अपना ड्रीम ढूंढ सकते हैं। अपने गोल्स को सेट करने का दूसरा रास्ता जाता है। हमारी पर्सनैलिटी के थ्रू और तभी ये मोटिवेशन हासिल करने का सेकंड स्टेप हैं। फाइन्ड आउट योर पर्सनैलिटी टाइप हमारी पर्सनैलिटी हमारे हर ऐक्शन, डिसिशन या थॉट को इन्फ्लुयेन्स करती है ऐंड दैट स्वाइ अपनी पर्सनैलिटी की नॉलेज हमे लाइफ में आगे बढ़ने का एक रास्ता दिखा सकती है। इसके साथ ही वो हमे मोटीवेट कर सकती है और हमें बता सकती है कि अपने गोल्स तक पहुंचने के लिए हमें अपने अंदर क्या चेंजस करने होंगे? सो, अगर हम बेक फाइव पर्सनैलिटी स्किल पर देखें तो जो लोग हाइली एक्स्ट्रोवर्ट होते हैं, उन्हें अच्छा फील करने के लिए अपने आसपास फ्रेंड चाहिए होते है। इंट्रोवर्ट लोगों को अपनी स्पेस कॉन्सिअस लोग स्ट्रक्चर और रूटीन में थाई करते हैं। जो लोग अग्रि लेबल होते हैं उन्हें एक लविंग रिलेशनशिप चाहिए होता है। डिसऐग्री बल लोगों को कॉम्पटिशन्स को हराने में मज़ा आता है। हाइली लोग क्रिएटिव ऐक्टिविटीज़ में पार्टिसिपेट करना प्रिफर करते हैं और जो लोग हाइली न्यूरॉटिक होते हैं, उन्हें चाहिए होती है। सिक्योरिटी और इमोशनल स्टेबिलिटी। जब भी हम अपने काम को अपनी पर्सनैलिटी के साथ अलाइन करते हैं तो वो काम हमारी स्ट्रेंथ बन जाता है और हम मोटिवेटेड रहते हैं। तो हमें अपने ड्रीम को फ़िगर आउट करने के बाद ये देखना है। की वो हमारी पर्सनैलिटी के कौन से ट्रेड्स हैं जिन्हें ओर डेवलपमेंट की जरूरत है। क्या हमारे ड्रीम के लिए हमें और एक्स्ट्रोवर्ट होना होगा? या फिर क्या हम लेज़ी है और हमें ज्यादा कॉन्शस बनना होगा? इसके साथ ही हमें यह भी समझना चाहिए कि जब भी हम पर्सनैलिटीज की बात करते हैं तब हम अपनी बायोलोजी को रेफर कर रहे होते है और तभी पर्सनैलिटी ज़ ओवरनाइट नहीं बदलतीं। इसके लिए हमें चाहिए टाइम और माइक्रो हैबिट्स जो कि मोटिवेटेड रहने का थर्ड स्टेप है। माइक्रो हैबिट्स या फिर माइक्रो रूटीन का कॉन्सेप्ट सिम्पली ये बोलता है की अगर हमें परमानेंटली अपने आप को चेंज करना है तो हमें अपने आपको फोर्स करने के बजाय छोटे छोटे स्टेप्स लेने चाहिए। जैसे हम अपने बड़े बड़े गोल्स को ब्रेक डाउन करके छोटे रूटीन्स डेवलप कर सकते हैं। अगर हमारा ड्रीम एक राइटर बनना है तो हम अपने आप से पूछ सकते हैं कि मुझे अभी इस मूवमेंट में क्या करना चाहिए जिससे महीनों या सालों बाद में अपनी बुक पब्लिश कर पाऊ शायद मुझे डिसाइड करना चाहिए की मेरी बुक होगी किस बारे में? क्या वो एक नॉर्मल होगी या फिर एक नॉन फिक्शन? या फिर अगर मुझे स्टोरी बनाना नहीं आता तो शायद मुझे सबसे पहले दूसरों की बुक्स पढ़नी चाहिए। अपने गोल्स को इस तरह से छोटे छोटे गोल्स में डिवाइड करके हम अपने आप को बिना फोर्स करे उतना ही काम दे सकते हैं जितना रिअलिस्टिक अली पॉसिबल है ऐंड रिमेम्बर, अगर कोई भी टास्क फोर्स फुल लग रहा है तो हमें ये सोचना चाहिए कि क्या मैं बेकार में ये टास्क कर रहा हूँ या फिर मेरा रिऐक्शन? मेरी इन मेच्युरिटी का पार्ट है जिससे मैं अपनी रिस्पॉन्सिबिलिटीज को अवॉर्ड करता या करती हूँ, क्योंकि एक बच्चे की होती है आई हैव टु पर एक ऐडल्ट बोलता है, आई चूज टु स्टेप फॉर पिक्चर योर हेल्थ जिसतरह से हर इंसान इमेजिन कर सकता है कि उसकी बेस्ट पॉसिबल लाइफ कैसी दिखेगी, वैसे ही हमें ये भी फ़िगर आउट करना है की हमारी वर्स्ट पॉसिबल लाइफ कैसी होगी? यानी अगर हम प्रेज़ेंट मूवमेंट में वो काम ना करे जो ज़रूरी है तो छे महीने, साल या 5 साल बाद हमारा फ्यूचर कैसा दिखेगा? इस टाइप की मोटिवेशन को बोलते हैफिर मोटिवेशन और जिन लोगों को एक गोल आगे बढ़ने पर मजबूर नहीं करता उनके लिए अपनी सबसे बुरी लाइफ को इमेजिन करना काफी हेल्पफुल हो सकता है। इस फीचर को यूज़ करने का बेस्ट तरीका है कि हम एक पेन और पेपर ले और उस पर काफी डिटेल के साथ अपनी लाइफ को डिफाइन करे। पर कंडीशन ये है की हमारी वर्स्ट लाइफ काफिर हमारे ऑप्टिकल्स केफिर से ज्यादा बड़ा होना चाहिए। ताकि जब भी हम डी मोटिवेटेड फील करे तो हमारे दिमाग में एक आवाज हो जो हमें रिमाइंड कराये। गिवअप करने पर हमारे साथ क्या होगा? स्टेप फाइव हार्नेस द पावर ऑफ पॉजिटिविटी हमारे ब्रेन में एक इमोशनली सेन्सिटिव न्यूरॉन्स का सेट होता है, जिसे बोलते है एमिग्डेला। जब भी हम स्ट्रेस याफिर में नहीं होते तो एमिग्डाला शांत रहता है और वो इन्कमिंग इन्फॉर्मेशन को हमारे प्रीफ्रंटल कोर्टेक्स की तरफ भेज देता है। इसके बाद प्रीफ्रंटल कोर्टेक्स का रोल होता है। उस इन्फॉर्मेशन को लॉन्ग टर्म मेमोरी बनाना या फिर उसे कॉग्निटिव और इमोशनल नेटवर्क के थ्रू प्रोसेसर करवाना इस प्रोसेसर में हमारा ब्रेन डिसाइड करता है कि उस इन्फॉर्मेशन पर रिस्पॉन्ड करना है या फिर उसे इग्नोर करना है। हाउएवर यह रिस्पॉन्स एक हाइ स्ट्रेस इमोशनल स्टेट के दौरान इन्फॉर्मेशन के फ्लो को ब्लॉक कर देता है और वेंडरबिल्ट यूनिवर्सिटी में हुई एक स्टडी में हमें पता लगा था कि जो लोग अपने गोल्स को लेकर मोटिवेटेड रहते हैं उनके ब्रेन के पार्ट्स और प्रीफ्रंटल कोर्टेक्स में डॉ ज़्यादा होता है और ये पार्ट्स लिंक्ड है। मोटिवेशन और रिवॉर्ड से सम स्टडी में हमें ये भी पता लगा कि जो लोग वीज़्ली डिमोटिवेट हो जाते हैं, उनके ब्रेन में इन जगहों पर बहुत कम होता है और जीस पार्ट तक डोपामिन ज्यादा पहुँच रहा था। वो था इन सुलह जो कि इमोशन और रिस्क परसेप्शन से लिंक्ड है। इस स्टडी से हमें दो चीजें पता लगी थी फर्स्ट ये की अगर हमारे करेंट टास्क की डिफिकल्टी उससे मिलने वाले रिवॉर्ड से काफी ज्यादा हो जाए तो हम डिमोटिवेट होने लगते हैं। दैट स्वाइ हर मुश्किल टास्क या गोल को छोटे छोटे पार्ट्स में डिवाइड करना जरूरी है ताकि हम कुछ ना कुछ काम पूरा करते रहे। जिससे हमारा ब्रेन हमें रिवॉर्ड देगा और हम मोटिवेटेड रहेंगे। सेकंडली नेगेटिविटी फिर् और स्ट्रेस हमारे रिवॉर्ड पैथ वास्को डी स्टैबिलाइज़ कर सकते हैं और तभी नेगेटिव सेल्फ टॉक से बाहर आना काफी मुश्किल होता है। जितना हम अपने ब्रेन को नेगेटिविटी फीड करते हैं, उतना ही हम अपने आप में भरोसा खोने लगते हैं। दैट स्वाइप, पॉज़िटिव थॉट्स इन पावर इन सॉन्ग्स और गाइडेड विज़ुअलाइज़ेशन जैसी चीजें काफी पावरफुल होती है। सोये थे अपने आप को मोटिवेट करने और मोटिवेटेड रखने के सबसे प्रैक्टिकल स्टेप्स। अगर हम इन्हें सम राइस करें तो सबसे पहले हमें अपना ड्रीम आइडेंटिफाइ करना है। सेकंडली हमें उस ड्रीम को अपनी पर्सनैलिटी के साथ अलाइन करना है। थर्ड ली जो भी हमारी पर्सनैलिटी का पार्ट हमारे ड्रीम्स के रास्ते में है, उसे माइक्रो रूटीन्स के साथ इम्प्रूव करना है। फोर्ट ली हमें अपने पर्सनल हेल्थ को डिफाइन करना है और लास्ट्ली हमें ऑप्टिमिस्टिक रहना है। इसके बाद चाहे हम अपने ट्रैक से हट भी जाए तब भी हम अपने ड्रीम, अपने हेल्थ और अपनी स्ट्रेंथ को याद कर सकते हैं और अपने आप को समझा सकते है की अगर हमे लाइफ में कुछ भी मीनिंगफुल अचीव करना है तो वो आसान नहीं होगा। जिमी नाइन सलाई। चिलिंग नाइट्स फ्लाइट्स।","अपने गधे पर बैठकर प्रेरक वीडियो देखना और कुछ नहीं करना नया व्यसन बन गया है। हम में से अधिकांश अपने आप को पंप करते हैं और खुद को बताते हैं कि हम बदलने वाले हैं; हम फ़िट होने वाले हैं, मेहनत से पढ़ाई करने वाले हैं या कोई नया व्यवसाय शुरू करने वाले हैं जो हम हमेशा से चाहते थे। लेकिन इस प्रत्याशित डोपामाइन प्रतिक्रिया के साथ एकमात्र समस्या यह है कि - यह खत्म हो जाता है और हम छोड़ देते हैं। हम जितनी जल्दी गति पकड़ते हैं उतने ही धीमे हो जाते हैं। इस दुष्चक्र का एक बड़ा कारण हमारी आत्म-जागरूकता की कमी है। हम जितना चबा सकते हैं उससे ज्यादा काटकर खुद को सफल होने की स्थिति में नहीं रख रहे हैं। जब आप अंतर्मुखी होते हैं और आपको सेल्स की नौकरी मिल जाती है तो यह सब मज़ेदार और इंद्रधनुषी लगता है, लेकिन जैसे ही आप किसी व्यक्ति के पास जाते हैं, नई नौकरी भयानक हो जाती है। यह आत्म-जागरूकता की कमी है। यही कारण है कि खुद को प्रेरित करने का सबसे अच्छा और सबसे व्यावहारिक तरीका उन चीजों का लक्ष्य रखना है जिनकी आप परवाह करते हैं और ऐसी चीजें जो वास्तव में आपके अंदर के हिस्सों को बाहर ला सकती हैं, आपको पहले पता नहीं था और यह सब करते हुए अपनी ताकत को दोगुना करना है। ." "यह काफी दुख की बात है कि हमें कभी भी अपनी लाइफ में ये नहीं सिखाया जाता की सोचते कैसे है, बल्कि हमें बचपन से ही ये सिखाया जाता है कि हमें सोचना क्या है और तभी आज के जमाने में जो इंसान खुलकर सोच सकता है, उसकी काफी वैल्यू है, क्योंकि अगर आप यूनीक आइडियाज़ के बारे में सोच सकते हो और उन्हें क्लियरली दूसरों को समझा सकते हो तो आपके लिए सक्सेस हासिल करना काफी आसान होगा। इस किल के साथ अब दुनिया के सबसे मुश्किल मैटर्स को समझ सकते हो। और दूसरों को उसका सॉल्यूशन पेश कर सकते हो। यह मैटर नहीं करता कि आप किस फील्ड में हो और आप किस टाइप की प्रॉब्लम्स के साथ डील करते हो। आपकी मेंटल क्लैरिटी आपके लिए एक सुपर पावर की तरह काम कर सकती है और आपको सोसाइटी के लिए सबसे यूसफुल इंसान बना सकती है और तभी आज हम डिस्कस करेंगे कि हम अपने थॉट्स को ओरगनाइसड करके और अपनी मेंटल क्लैरिटी बढ़ाकर अपने सोचने और समझने की स्पीड कैसे तेज कर सकते हैं। वेल सबसे पहला और जरूरी तरीका है रीडिंग एंड राइटिंग क्योंकि कॉग्निटिव साइकोलॉजी में बोला जाता है राइटिंग इस थिन किन्ग कुछ भी लिखने के लिए आपको सोचना पड़ता है कि आप किन वर्ड्स को यूज़ कर सकते हो अपनी आर्ग्यूमेंट को स्ट्रॉन्ग बनाने के लिए और कौन से वर्ड्ज़ आपके सेन्टेन्स को स्मूदली फ्लो होने से रोक सकते हैं। एम् डी जो डिविलियर्स एक न्यूरोलॉजिस्ट हैं और उनकी रिसर्च बताती है कि किसी भी कॉम्प्लेक्स टॉपिक के बारे में लिखने से हमारे दिमाग की इन्फॉर्मेशन को रिसीव, प्रोसेसेस और याद रखने की इबिल इ टी इम्प्रूव होती है और इसके साथ ही कुछ भी लिखना हमारे दिमाग के लिए एक्सरसाइज की तरह होता है जिसकी मदद से हम अपने दिमाग को इफेक्टिव ली यूज़ कर सकते हैं। जितना खुलकर आप किसी टॉपिक के बारे में लिख सकते हो, वो बता सकता है कि आप कितना खुलकर सोच सकते हो। यहाँ तक कि हम एक इंसान के आइक्यू को भी प्रीडिक्ट कर सकते हैं, उसकी राइटिंग स्किल्स को ऐनालाइज करके नाउ क्वेश्चन ये है कि हम लिखे क्या? क्योंकि हर टाइप की राइटिंग का इफेक्ट और उसके बेनेफिट्स में नहीं होते है, जैसे एक रैन्डम मैगज़ीन में आर्टिकल लिखना काफी अलग होता है, एक ऑटोबायोग्राफी या एक नॉवल लिखने से, सो मेंटल क्लैरिटी हासिल करने के रास्ते की इस रुकावट से डील करने के लिए आप रीड करना स्टार्ट करो, अपने आप को बनाओ। हिस्टरी, साइकोलॉजी और लिटरेचर पढ़ के और फिर किसी भी हार्ट प्रॉब्लम को पकड़ो। और उसके बारे में लिखो। ये असली तरीका है अपने आप को एक दीप थिन कर बनाने का सेकंडली हमें बात करनी चाहिए आपकी हेल्थ की क्योंकि ब्रेन फॉग यानी मेंटल क्लैरिटी ना होने में हमारे लाइफ स्टाइल का भी बहुत बड़ा हाथ होता है। इसमें इन्क्लूडेड है आपकी डाइट और वोटर इन टेक यानी आपकी मील्स में ज्यादातर कैलोरीज़ कहाँ से आती है। क्या आप रेगुलरली जंक फूड खाते हो या फिर आप रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट्स जैसे पास्ता, व्हाइट ब्रेड या ज्यादा मीठी चीजें खाना पसंद करते हो? ये चीज़े टेस्ट में तो काफी अच्छी होती है पर जितना शुगर आप कौन स्यूम करते हो उतना ही आपके दिमाग के लिए नई मेमोरीज़ बनाना मुश्किल होता जाता है और आपकी ओवरऑल कॉग्निटिव एबिलिटीज़ कम होने लगती है। हाउएवर अगर हम अपने दिमाग को हेल्थी फैट्स, प्रोटीन और कॉम्प्लेक्स कार्बोहाइड्रेट्स जैसे वेजिटेबल्स और ग्रीन्स के साथ नरेश करें तो हम अपने दिमाग को उसकी मैक्सिमम कपैसिटी पर यूज़ कर सकते हैं। इसके साथ ही आपकी स्लीप क्वालिटी आपकी मेंटल क्लैरिटी में दिन और रात का फर्क ला सकती है। क्योंकि सोते टाइम आपके ब्रेन सेल्स दिमाग में पैदा होने वाले कई जहरीले केमिकल्स को हटाते हैं ताकि आपका दिमाग ढंग से काम कर पाए। जिसकी वजह से अगर आप लंबे समय तक 7-8 घंटे की नींद नहीं पूरी करते तो आपका दिमाग किसी चीज़ पर फोकस ही नहीं कर पाता और आपके स्ट्रेस लेवल्स हमेशा बड़े रहते हैं। हेल्थी दिमाग के लिए एक और ज़रूरी फैक्टर है एक्सरसाइस या मेडिटेशन और ईव नाउ। इन दोनों में से कोई भी एक ऐक्टिविटी आपकी मेंटल क्लैरिटी को बढ़ाने के लिए काफी है। पर अगर आप इन दोनों ऐक्टिविटीज़ को कंबाइन करदो तो आपका दिमाग और भी ज्यादा कॉम्प्लेक्स प्रॉब्लम्स को हैंडल कर पाएगा। लास्ट्ली हमें बात करनी चाहिए आपके लाइफ स्टाइल की और स्पेशियली आप किन चीजों पर सबसे ज्यादा दिमाग लगाते हो? क्या आपका दिमाग टीवी शोज़, मूवीज़ और गानों से भरा रहता है? या क्या आप पूरे समय लड़कों या लड़कियों के बारे में सोचते रहते हो? आपके दिमाग की वर्किंग मेमोरी एक कंप्यूटर की रैम की तरह काम करती है और वो एक टाइम पर सिर्फ कुछ गिनी चुनी चीज़ो को ही हैंडल कर पाती है। यही रीज़न है कि क्यों, जब आप अपने दिमाग को ऐसे थॉट्स के साथ भर के रखते हो जो आपके कभी काम नहीं आएँगे। आप क्लियरली सोच ही नहीं पाते और आपकी मेंटल एबिलिटी ज़ इं ही यूज़लेस चीजों को फ़िगर आउट करने में वेस्ट होती रहती है। जैसे आपने हर टाइम खाना क्या है, कौन सी मूवी देखनी है, दूसरों को इम्प्रेस कैसे करना है या आप रोज़ कपड़े कौनसे पहनोगे? ये सब डिसिशन्स आपके दिमाग को कट्टर करते हैं। और यही रीज़न है कि क्यों जब आप काफी सक्सेसफुल इंसान ओके लाइफ स्टाइल को स्टडी करते हो। जैसे बिल गेट्स, वॉरेन बफेट या मार्क ज़करबर्ग तो आपको समझाता है कि यह इंसान अपने कपड़ों, रिलेशनशिप्स और रिक्रिएशनल ऐक्टिविटीज़ जैसी चीजों को कितना सिंपल रखते हैं और एक मिनिमलिस्ट की तरह रहते हैं। ये हैबिट्स इनके दिमाग को उन चीजों पर फोकस करने के काबिल बनाती है जो ऐक्चुअल में इनके लिए मैटर करती है और इस तरह से ये अपने सोचने और समझने की स्पीड तेज कर पाते हैं।","मानसिक स्पष्टता मन की फुर्ती से कहीं अधिक है। एक व्यक्ति जो मानसिक रूप से स्पष्ट है वह तेजी से सोचने, समस्याओं को हल करने और काम में रचनात्मक होने में सक्षम होता है। इस क्षमता को विकसित करें और आप अपने काम में अधिक प्रभावी होंगे, जटिल मुद्दों के बेहतर समाधान पर मंथन करेंगे और अंततः अपने करियर में अधिक सफल होंगे। इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, मैं 3 कारकों पर चर्चा करता हूं जो आपकी मानसिक स्पष्टता और इसलिए आपकी मस्तिष्क शक्ति को बढ़ाने में आपकी मदद करेंगे।" "लर्निंग के बारे में अमेरिका के फाउंडिंग फादर बेंजामिन फ्रेंकलिन बोलते है कि अगर मेरे को बताओगे तो मैं भूल जाऊंगा। अगर मेरे को सिखाओगे तो मैं शायद याद रखूँगा, लेकिन अगर मुझे शामिल करोगे तो मैं सीख जाऊंगा। यानी अगर आप एक चीज़ को लर्न करना चाहते हो, जरूरी है कि आप उसके साथ एक मीनिंगफुल वे में इन्वॉल्व हो जाओ। अगर आप उस इन्फॉर्मेशन को अच्छे से समझते हों, सिर्फ तभी आपको वो याद रहे गी वरना आप उसको भूल जाओगे। अपनी बुक रिमेम्बर एवरीथिंग यू वॉन्ट एंड मैनेज के रेस्ट में ऑथर हेलमेट भी ***** लिखते हैं कि हमारे दिमाग में मेमोरी स्टोर होने के तीन स्टेजेस होते हैं। अगला सेंचुरी मेमोरी दूसरा शॉर्ट टर्म मेमोरी और तीसरा लॉन्ग टर्म मेमोरी जब भी आप किसी मटिरीअल को पढ़ते या सुनते हो तो वो चीज़ पहले सेन्चुरी मेमोरी में जाती है। जब आप किसी चीज़ को पैसिवली बार बार पढ़ते हो तो वो आपकी शॉर्ट टर्म मेमोरी में जाती है। लेकिन कुछ टाइम बाद वो इन्फॉर्मेशन गुम हो जाती है और आपने जो याद करा था आप वो भूल जाते हो। वहीं अगर आप एक चीज़ को समझते हो और उसके साथ शामिल हो जाते हो तो वो चीज़ आपकी लॉन्ग टर्म मेमोरी में स्टोर हो जाती है। तो जब भी हम अपने एग्जाम्स की तैयारी कर रहे होते हैं या किसी चीज़ को अच्छे से सीखना और समझना चाहते हैं तब हमारी कोशिश ये होनी चाहिए। ये हम उस इन्फॉर्मेशन को अपनी लॉन्ग टर्म मेमोरी में स्टोर कर रहे हैं, लेकिन ज्यादातर स्टूडेंट्स में एक कॉमन स्टडी प्रैक्टिस होती है मटिरीअल को पैसिव लीड गणना और किताबों में लिखी बातों को रखना क्योंकि स्कूल्स में हमें इसी तरह से पढ़ना सिखाया होता है। हम अलग अलग टॉपिक्स को बार बार रीड करते हैं और ऐसा सोचते हैं की बस इस तरह से पैसिवली और बिना एन्गेजमेंट के पढ़ने से हमें सब याद हो जाएगा। लेकिन यह मेथड बिल्कुल भी इफेक्टिव नहीं होता और इसके तीन मेन रीज़न से है। पहला है कि बार बार एक चीज़ को रीड करने में बहुत टाइम लगता है। सेकंडली जब भी आप बार बार कुछ रीड करते हो तो आपको यह झूठी फीलिंग आती है कि आपको वह चीजें याद हो गई है और थर्ड ली। इस तरह से बस रीड करने से आपको कुछ भी लंबे समय तक याद नहीं रहता ना वो क्वेश्चन ही आता है कि लॉन्ग टर्म मेमोरी में चीजों को कैसे स्टोर करा जा सकता है ताकि आप उन्हें भूलो। नावेल इसके चार तरीके होते हैं नंबर वन रिमूव डिस्ट्रेक्शन्स ऐंड कॉन्सन्ट्रेट और मंथ। इन सबसे पहली चीज़ की आपको कॉन्सन्ट्रेशन के साथ मटिरीअल को पढ़ना होगा और डिस्ट्रेक्शन्स को हटाना होगा। भले ही वो इंटरनल डिस्ट्रेक्शन्स हो जैसे मन में आते हैं, थॉट्स और हर तरह के इमोशन्स या फ़ोन में आती हैं। नोटिफिकेशन स् जब भी आपका दिमाग इधर उधर जाए, आप बस उसे वापस से खींचकर अपने स्टडी मटीरियल पर ले आओ। कई लोगों के लिए सबसे डिस्ट्रैक्टिंग चीज़ उनकी मल्टीटास्किंग की हैबिट होती है पर असलियत में जैसे ही हम मल्टी टास्क करना शुरू करते हैं वैसे ही ना तो हम अपनी स्टडीज़ पर फोकस कर पाते है ना ही कोई दूसरा काम इफेक्टिव ली कर पाते हैं। चाहे वो काम मोबाइल को चेक करना, यह अपने आप को एंटरटेन करना ही क्यों ना हो इसलिए यह डिसाइड कर लो कि आप जितनी देर भी पड़ने बैठो गे तब आप सिर्फ एक चीज़ पर ही यानी अपनी पढ़ाई पर फोकस करोगे और कॉन्शस ली हर डिस्ट्रैक्शन को दूर रखने की कोशिश करोगे। नंबर टू अब जो भी आपने पढ़ा उसको दुबारा से याद करने की कोशिश करो। ऐसा करने के दो बेनिफिटस है फर्स्ट्ली जब भी आप किसी पड़ी हुई चीज़ को दोबारा याद करने की कोशिश करते हो, आप समझ पाते हो कि आपको कितना याद है और कितना नहीं और सेकंडली ऐसा करने से आपके दिमाग में उस इन्फॉर्मेशन से जुड़े न्यूरल कनेक्शंस स्ट्रॉन्ग होने लग जाते हैं जिससे आपको वो चीजें और अच्छे से याद रहती है। यहाँ तक कि आपने जो भी मटिरीअल पड़ा है आप उसे किसी और को समझा सकते हो। देखो कि आप कितने अच्छे से उन्हें समझा पा रहे हो और अगर आप सामने वाले को ढंग से नहीं समझा पा रहे हो, उसका मतलब वो कॉन्सेप्ट्स आपको खुद भी क्लियर नहीं है। इसके साथ ही एक और हेल्पफुल मेथड है कि आपने जो भी चीज़ पड़ी है उसके अपने हाथों से नोट्स बनाना बिना स्टडी मटीरियल को देखें क्योंकि जब भी आप किसी चीज़ को अपने हाथों से अपने वर्ड्स में लिखते हो तब आपका दिमाग उस इन्फॉर्मेशन को ज्यादा अहमियत देता है जिससे आप खुद भी उसे अच्छे से समझ पाते हो और वह चीज़ आपकी लॉन्ग टर्म मेमोरी का हिस्सा बन जाती है। नंबर थ्री इतनी अटेंशन को देर तक बनाए रखो टाइम बॉक्सिंग की मदद से कई बार हमारे पास इतनी इन्फॉर्मेशन होती है की हमें समझ ही नहीं आता कि हम उसको कैसे प्रोसैस करें। कई बार हमें कोई कॉन्सेप्ट समझ नहीं आता और ऐसे में हम एक ही जगह पर अटक जाते हैं। यहाँ हमें ये चीज़ ऑब्जर्व करने की जरूरत है कि जब हमें किसी चीज़ को पढ़ने में मज़ा आता है और वो कॉन्सेप्ट हमें समझ आ रहा होता है तब हमे पढ़ाई से ब्रेक लेने की जरूरत भी महसूस नहीं होती। लेकिन वहीं अगर हमारे आगे कोई मुश्किल कॉनसेप्ट आ जाता है, जो की हमें बिल्कुल नहीं समझ आ रहा होता तब हमारा दिमाग इधर उधर घूमने लग जाता है। और अगर हम इस पॉइंट के बाद भी अपने आप को पढ़ने के लिए फोर्स करते रहते हैं तब हम पहले जीतने प्रोडक्टिव नहीं रहते और अपना सारा मोमेंटम खो देते हैं और तभी ऐसी सिचुएशन में हम टाइमबॉक्सिंग और छोटे छोटे ब्रेक्स को यूज़ करके अपनी प्रोडक्टिविटी को इन्क्रीज़ कर सकते हैं। टाइमबॉक्सिंग का मतलब है कि जब भी आप एक मुश्किल मेंटल टास्क परफॉर्म कर रहे होते हो तब आप फिक्स्ड टाइम इंटरवल्स में ही काम करोगे। एग्जाम्पल के तौर पर अगर एक इंसान एक टाइम बॉक्स बनाया कि वो सिर्फ 30 मिनट लगातार पड़ेगा क्योंकि इसके बाद वह अपनी अटेन्शन खो देता है तो वो सिर्फ 30 मिनट ही अपनी प्रॉब्लम पर फोकस करेगा और उसके बाद 5-10 मिनट का ब्रेक लेगा। इसी तरह आप भी अपना टाइम बॉक्स अपने हिसाब से बना सकते हो। बार बार आओ कली अपनी बुक आ माइंड फॉर नंबर्स में लिखती हैं कि जब भी हम एक मेंटल टास्क से ब्रेक लेते हैं, ऐसे में हम डिफ्यूज मोड ऑफ थिन को ऐक्टिवेट करते हैं। जो हमारे अंदर क्रिएटिविटी बढ़ाता है और चाहे वो ब्रेक झपकी लेने के लिए हो, गाने सुनने के लिए या कुछ खाने के लिए। उस ब्रेक के दौरान हमारा सब कॉन्शस माइंड उसी चीज़ पर काम कर रहा होता है, जिसपर हमने पहले फोकस करा था। नंबर फ़ोर ग्रोथ माइंडसेट अपनी रिसर्च में साइकोलॉजिस्ट कार्ड ने लिखा, जो लोग ऐसा सोचते हैं की वो अपनी इन्टलेक्चुअल एबिलिटीज़ को बढ़ा सकते हैं, वो एक्चुअल में बेहतर परफॉर्म करते हैं। उन लोगों के कंपैरिजन में जिन्हें लगता है कि वो सब्जेक्ट उनके लिए नहीं है या फिर वो उसे कभी नहीं सीख पाएंगे। जीवन जो लोग परफॉरमेंस या मार्क्स के पीछे नहीं भागते बल्कि सिर्फ कुछ सीखना चाहते हैं। वो उन लोगों से बेटर करते हैं जो बस परफॉर्मेन्स गोल्स रखते हैं और नंबर्स या मार्क्स का पीछा करते हैं।","तेजी से सीखना और जो कुछ भी आप पढ़ते हैं उसे याद रखना इस बात पर निर्भर करता है कि आप जिस सामग्री का अध्ययन कर रहे हैं उसमें आप कितने व्यस्त हैं। यदि आप केवल कुछ फिर से पढ़ रहे हैं और इसे बेहतर ढंग से सीखने की उम्मीद कर रहे हैं तो ऐसा नहीं होगा। हमारा दिमाग ऐसे काम नहीं करता। तो, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम वास्तविक अध्ययन तकनीकों और प्रभावी तरीकों पर चर्चा करते हैं जो विज्ञान द्वारा सिद्ध हैं और आप उन्हें अभी लागू कर सकते हैं।" "हम अक्सर खुद को अच्छा बोलते हैं और दूसरों को बुरा। लेकिन ये भी एक पॉपुलर कहावत है कि गुड पीपल डोंट गेट एनी वेर और ये क्वेश्चन कि क्यों हमेशा बुरी चीजें अच्छे लोगों के साथ ही होती है? इन बातों के बीच हम खुद कन्फ्यूज़ होने लग जाते हैं कि क्या हमें एक अच्छा इंसान बनना है? एक बुरा इंसान या फिर एक अच्छा इंसान जो बुराइ की समझ रखता है? हर कोई आपको एक अलग सलाह देना होता है और जो एडवाइस आपको सबसे अच्छी सुनाई देती है, आप उसे ही ब्लाइंडली फॉलो करने लग जाते हो। इस तरह से बहुत से लोग गलत रास्तों पर चल रहे होते हैं और यह सोच रहे होते हैं कि वो सही रास्ते पर है। लेकिन यहाँ आप अपने आप से झूठ बोल रहे हो। हमारे इस गलत रास्ते पर लाइफ हमे हर समय यह बताने की कोशिश कर रही होती है कि हम कुछ गलती कर रहे हैं और तभी हमें गलत रिज़ल्ट मिल रहे हैं। लेकिन हम फिर भी इन मैसेजेस को इग्नोर करके जो मन में आये वही करते रहते हैं और अपने आप को बार बार सम गड्ढ़ों में ही गिराते रहते हैं। अगर लाइफ आपको बार बार पनिश कर रही है तो ये मत सोचो कि आप तो अच्छे हो फिर भी लाइफ आपके साथ इतनी बेरहम क्यों बन रही है? इस थिंकिंग के साथ आप कहीं नहीं पहुँच पाओगे। अपने लिए सॉरी फील, गन्ने और खुद को एक वीक विक्टिम की तरह देखने से आपको ऐसा और ज्यादा लगने लगेगा। कि आपकी जिंदगी आपके कंट्रोल से बाहर है। लाइफ बार बार आपको सम जगह पर सेम सिचुएशन में लाकर खड़ा कर देगी और आप इस सर्कल में तब तक घूमते रहोगे जब तक आप उस लेसन या उस इन साइट को ले नहीं लेते, जो लाइफ आपको देना चाहती है। यह बात सही और गलत की नहीं बल्कि समझ की होती है कि आप खुद की और दुनिया की अवेर्नेस रखते हो, क्योंकि आपकी समझ जितनी लिमिटेड होगी, उतना ही आपसमे सरकमस्टान्सेज को बार बार क्रिएट करते रहोगे और खुद को दर्द पहुंचाते रहोगे। मेरे कई ऑनलाइन मेंटर्स में से एक और होलिस्टिक कोच पॉल चेक बोलते हैं। की दर्द को कभी भी एक बिन बुलाए मेहमान और अनचाहे बोझ की तरह नहीं बल्कि एक टीचर की तरह देखो एक टीचर है जो तब आता है जब आप कोई गलती करते हो और खुद को नुकसान पहुंचाते हो तो जब भी आप के साथ लाइफ कुछ बुरा करे तब अपने आप से ये बोलो कि पेन टीचर आये है आपको एक लहसुन देने के लिए। इस माइंडसेट के आते ही हम अच्छे और बुरे के पार जा पाते है और सिम्पली अपने आप से यह ऑब्वियस क्वेश्चन कर पाते हैं कि अगर हमारी लाइफ फिलॉसफी इतनी ही अच्छी है और हम हर काम सही कर रहे हैं तो इस तरह से तो हमें रिजल्ट्स भी अच्छे ही मिलने चाहिए। लेकिन अगर हम ये बस बोल रहे हैं कि हम सही काम कर रहे हैं और हमारे रिजल्ट्स एक दूसरी ही कहानी सुना रहे हैं तो उसका मतलब हमें वहाँ कुछ सीखने की जरूरत है क्योंकि हम कहीं ना कहीं अपने आप से सच को छुपा रहे हैं। यहाँ इस बात पर ध्यान दो कि जब तक एक स्टूडेंट गलतियाँ नहीं करता तब तक उसे उन गलतियों को सुधारने का मौका भी नहीं मिलता। विस्डम और लाइफ की डीपेस्ट अन्डरस्टैन्डिंग हासिल करने का यही रास्ता है। जीस तरह से हम बचपन में चलना सीखते हैं और सही तरह से चलने से पहले हजारों गलतियाँ करते हैं जिसके बाद इविन्चवली हमें सीधे खड़े होना और चलना आ जाता है। वैसे ही जितनी बार भी आप लाइफ में गिरते हो तब उस गिरने को एक ऐसे जीने के तरीके की तरह देखो जो आपकी डेस्टिनी या फिर एंड गोल नहीं बल्कि वहाँ तक पहुंचने का रास्ता है। एक अच्छा इंसान होने का मतलब यह नहीं होता कि आप भोले या फिर स्टुपिड बन जाओ और अपनी वीकनेस इसके लिए जिंदगी और भगवान को कोसता रहो। ऐसा इंसान कॉन्शसनेस के एक बहुत लोअर लेवल पर जीरा होता है और अपने आप को ऊपर उठाने के लिए हर इंसान को अपनी फ्री वेल को यूज़ करना होता है और अपने अंदर डिसिप्लिन डेवलप करना होता है, जो की दूसरों पर ब्लेम डालने से कई गुना ज्यादा मुश्किल होता है। जीस वजह से ज्यादातर लोग अपना कम्फर्ट अपने दुखों में ही ढूंढ लेते हैं और नर्क में रहने की आदत डाल लेते हैं। लेकिन ये कायरता से ज्यादा कुछ नहीं होता। स्टोरी का हीरो वो नहीं होता जो कंप्लेन करता रहता है कि वो इतना अच्छा है लेकिन सब उसका फायदा उठा लेते हैं। एक पॉइंट के बाद हीरो इतनी मैच्योरिटी डेवलप कर लेता है कि वो ये समझ पाए कि क्यों वो एक ऐसा इंसान बनकर जी रहा था जो दूसरों को अपना फायदा उठाने देता है और अपने साथ बुरा करने देता है। बिना इसलिए सनकी आप हमेशा अपनी इन्कम्प्लीट फॉर्म में रहते हो और वो नहीं बन पाते जो आप बनने के काबिल हो। इसलिए अपने आप को अच्छा या बुरा लेबल करने से बेहतर है अपने आप को सच्चा और साहसी बोलना जो इंसान खुद से यह सच बोलने की हिम्मत रखता है कि हाँ, गलती उसकी थी तभी उसके साथ गलत हुआ। वो उस गलती को ठीक करने और उससे कुछ नया सीखने की भी ताकत रखता है।","हम हमेशा खुद को अच्छा और दूसरों को बुरा देखते हैं। लेकिन हम "अच्छे लोग कभी भी कहीं नहीं मिलते", "अच्छे लोग अंतिम रूप से समाप्त होते हैं" या सामान्य प्रश्न "अच्छे लोगों के लिए बुरी चीजें क्यों होती हैं" जैसे लोकप्रिय वाक्यांश भी सुनते हैं। यह वास्तव में एक आम धारणा है कि अच्छे लोग सबसे ज्यादा पीड़ित होते हैं। लेकिन क्या यह वास्तव में सच है? क्या कोई सद्गुण या नेक दृष्टि आपकी अपनी सफलता के लिए हानिकारक हो सकती है? इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम इन सवालों के जवाब देंगे और अच्छे लोगों के पैटर्न को समझने के महत्व का पता लगाएंगे, ताकि उन्हें तोड़ा जा सके।" "ये एक यूनिवर्सल लॉ है कि हर इफेक्ट का एक को जरूर होता है जिसकी वजह से जो कुछ भी आप अभी कर रहे हो और बहुत टाइम से करते आ रहे हो, आपका फ्यूचर भी वैसा ही बन जायेगा। आपका प्रेज़ेंट आपके पास के ऊपर खड़ा होता है और आपका फ्यूचर आपके प्रेज़ेंट पे जैसे एक घर खड़ा करने से पहले नींव डालना जरूरी होता है। वैसे ही एक अच्छा फ्यूचर पाने के लिए आपको पहले वो जरूरी हैबिट्स बिल्ड करनी होती है जो आपकी हर चॉइस, हर डिसिशन ये हर ऐक्शन को गाइड कर सके और आपको आपके गोल्स के पास पहुंचा सके। हमारे डेली बिहेव्यर का 7280% हिस्सा हमारी हैबिट्स पर ही बेस्ट होता है और तभी जीस इंसान को अच्छी हैबिट्स डेवलप करना नहीं आता। उसको लाइफ को ढंग से जीना नहीं आता। जिसतरह से एक प्लांट को ग्रो करने के लिए आप को खाद चाहिए होती है, सही मात्रा में सनलाइट और पानी चाहिए होता है और कॉन्स्टेंट लिए आपको देखना पड़ता है कि उसकी ग्रोथ में कोई अड़चनें तो नहीं आ रही है। बिल्कुल ऐसे ही आपको अपनी लाइफ में भी उसके हर एरिया को ग्रोथ के लिए ऑप्टिमाइज़ करना होता है। आपको रेगुलरली अच्छे लोगों से मिलना और बात करना होता है क्योंकि आपको प्यार चाहिए। आपको रोज़ रीडिंग या ऑब्जर्व करना होता है ताकि आप के अंदर दुनिया की नॉलेज बढ़े। आपको काम करना होता है ताकि आपका कैरिअर आगे बढ़े और आप सक्सेसफुल बन पाओं ऐसे करते करते आप की हर हैबिट आप को एक हेल्थी और वेल अडैप्टेड इंसान बनाने में बहुत मदद करती है। हैबिट्स और रूटीन्स की इम्पोर्टेन्स हम ऐनिमलस में भी देख सकते हैं। एक्साम्पल के तौर पर अगर आपके पास एक पेट डॉग है तो वो सिर्फ तभी शांत होकर बैठे गा जब उसके रोज़ के जीतने शहर के राउंड होते हैं उतने पूरे हो जाएं वरना वो चिड़चिड़ा और अग्रेसिव बन जाएगा या फिर जल्द ही बीमार पड़ जाएगा। छोटे बच्चों के साथ भी एग्ज़ैक्ट्ली यही होता है कि उनको सेम टाइम पर खेलना, सोना, घूमना उठना या खाना होता है और अगर आप उनकी कोई हैबिट को तोड़ने की कोशिश करो तो यह चीज़ उनके बिहेव्यर और हेल्थ दोनों को ही नेगेटिवली करती है। ज्यादातर लोग रोज़ रिपीट होने वाले रूटीन्स और हैबिट्स को बहुत हल्के में लेते हैं की क्या फर्क पड़ता है लेकिन जैसा कि हमने अपने हाउ टू बी कॉन्स्टेंट वाले एपिसोड में डिस्कस कर रहा था कि सिर्फ छोटे छोटे कॉन्स्टेंट स्टेप्स ही हमें लॉन्ग टर्म में उस जगह पर पहुंचा सकते हैं और वो लाइफ दे सकते हैं जिसके हम सपने देखते है। हाउएवर अगर आप वो इंसान हो जो कौनसी स्टेट ली उन हैबिट्स को परफॉर्म करता है जो उसके हाइएस्ट गोल के अगेन्स्ट है। एग्जाम्पल के तौर पर अगर आपको अपना एक एग्जाम क्रैक करना है अपनी एंट्रेंस क्लियर करने के लिए, लेकिन आप अपना पूरा दिन खाली बैठे रहने, मूवीज़ देखने, गेम्स खेलने या फिर रैन्डम चीजें करने में वेस्ट कर देते हो तो आप उन ऐक्टिविटीज़ को परफॉर्म कर रहे हो जो आपके आपके गोल की ऑपोजिट डायरेक्शन में ले जाएंगे। इनिडियन साइकोलॉजिस्ट डॉक्टर जॉर्डन पीटरसन बोलते हैं डू नॉट प्रैक्टिस वॉट यू डोंट वॉन्ट टू बिकम? यानी अगर आपको पता है कि आप के लिए क्या काम करना जरूरी है, लेकिन आपको वह काम बहुत मुश्किल या फिर डरावना लगता है। तब आप कोई दूसरा मुश्किल काम ढूंढ लेते हो जो पहले वाले काम से थोड़ा कम डरावना होता है। ताकि आप अपने उस काम को अवॉर्ड करने को जस्टिफाई कर सको, लेकिन जितनी बार भी आप किसी काम को अवॉर्ड करने की इस टेम्प्टेशन के आगे पिघल जाते हो, तब उस अवॉर्ड से जुड़े न्यूरल सर्किट्स आपके दिमाग में डोपामाइन रिलीज करते हैं और वो सर्किट्स और पक्के बनते जाते हैं, जिसकी वजह से आप अपने जिंस बिहेव्यर के बीज पर रेग्युलरली पानी डालते हो तब वही बीज धीरे धीरे एक पौधे और फिर एक पेड़ में बदलने लगता है जिसके बाद उसे जान छुड़ाना बहुत मुश्किल हो जाता है। इसलिए आपको बहुत सिंसेरिटी के साथ खुद में ऑब्जर्व करना होता है कि आप अपने अंदर कौन सी आर्ग्यूमेंट को जीतने दे रहे हो। और कौन सी हैबिट्स को रिपीट करने की मोटिवेशन आपके अंदर खत्म होती जा रही है? क्योंकि जितनी बार भी आप किसी अच्छी हैबिट को रिपीट करके उसे स्ट्रांग नहीं बनाते और उसकी एक दम ऑपोजिट चीज़ करते हो, तब आपका ये ऐक्शन उस हैबिट के लिए एक पनिशमेंट की तरह होता है। यही से हमे क्लू मिलता है कि कोई भी हैबिट या फिर ऐडिक्शन सीधा सीधा उसे मारने से नहीं जाती, बल्कि हमें एक दूसरी हेल्थ केयर है। बिट या फिर एक हेल्थी ऐडिक्शन डेवलप करनी पड़ती है ताकि पुरानी हैबिट से जुड़े न्यूरल सर्किट्स खुद ब खुद वीक होने लग जाए। हम ऑलरेडी अपने कई एपिसोड में उन इम्पोर्टेन्ट है। इसको डिस्कस कर चूके हैं जो पर्सनल ग्रोथ के लिए बहुत जरूरी होती है। जैसे सच बोलना, जर्नलिंग करना, वर्कआउट करना, साइलेंस को सुनना, टाइम को अच्छे से यूटिलाइज करना, हेल्थी खाना, अपनी सराउन्डिंग् को सुंदर बनाना और क्लासिक बुक्स पढ़ना। ये हैबिट्स आपको अपने आस पास वाले 99% लोगों से आगे बढ़ा देंगी और आप अपने फ्यूचर के लिए एक बहुत स्ट्रॉन्ग फाउंडेशन बना पाओगे।","यह एक सार्वभौमिक नियम है कि प्रत्येक प्रभाव का एक कारण होता है। जैसे आपका वर्तमान आपके अतीत पर निर्मित होता है, वैसे ही आपका भविष्य आपके वर्तमान पर निर्मित होता है। इसलिए हर आदत जो आप अभी करते हैं, यह निर्धारित करेगी कि आने वाले वर्षों में आप किस प्रकार के व्यक्ति बनेंगे। इसलिए अच्छी आदतों का होना महत्वपूर्ण है और इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम आदतों के दायरे में गहराई से उतरेंगे और समझेंगे कि नई अच्छी आदतों को विकसित करने और बुरी आदतों को रोकने का सबसे अच्छा तरीका क्या है।" "जब भी बाउंड्रीज़ बनाने और खुद की सुरक्षा की बात आती है तब यूज़्वली दो तरह की आर्ग्यूमेंट से उठकर आती है और लोग दो तरह के ग्रुप्स में बढ़ जाते हैं। एक तरह के लोग बोलते है कि हाँ हाँ बाउनड्रीज़ को ढीला कर दो रूल्स को कम कर दो और लोगों को हर चीज़ को एक्स्प्लोर करने की छूट दो। लेकिन दूसरी तरह के लोग बोलते है कि नहीं बाउनड्रीज़ को खोलना, रूल्स को कम करना या फिर लिबरल बन जाना गलत है और इससे हमारी सेफ्टी खतरे में आ जाएगी। पूरी पॉलिटिक्स इन्हीं दो तरह के ग्रुप्स की एकदम अलग सोच की वजह से हमेशा गंदगी से भरी रहती है। क्योंकि हर इंसान के अंदर जीने और खुद को सेफ रखने की होती है। जो उसे बोलती है की वो जिंदा रहने के लिए खाने का इंतजाम करे। खतरनाक जानवरों से बचने के लिए जंगल को खत्म करके मकान और बड़ी बिल्डिंग्स बनाएं। अपने जीन्स को अगली जेनरेशन में भेजने के लिए रिप्रड्यूस करें, लेकिन एट द सेम टाइम ***** को कंट्रोल में भी रखें ताकि ग्रुप में बीमारियां न फैल जाए और दूसरे ग्रुप्स के लोगों से थोड़ी दूरी बनाएं। क्योंकि तुम्हें नहीं पता कि वो लोग तुम्हारे दोस्त है या फिर दुश्मन या क्या वह किसी डिजीज को तो नहीं कैर्री कर रहे हैं? ये होती है कन्जर्वेटिव थिन किन्ग दूसरी तरफ सर्वाइवल के ऊपर उठ कर हमारे अंदर नई नई चीजें ट्राई करने, ग्रो करने, अपनी लिमिट्स के बाहर जाने और नए ग्रुप्स में शामिल होने की भी होती है। हर इंसान इन दोनों तरह की थिंकिंग के ही केपेबल होता है। कई जगहों में कन्ज़र्वेटिव लोग भी लिबरल व्यूस रखते हैं और कई बातों में लिबरल्स भी कन्सरवेटिव ली सोचते हैं और ये बैलेंस काफी हेल्थी और क्रिटिकल थिंकिंग के लिए बहुत जरूरी होता है। लेकिन प्रॉब्लम तब आती है जब हम इंसान वन साइडेड बन जाते हैं और खुद को एक ही साइड से आइडेंटिफाइ करके दूसरी साइड को यूज़लेस बोलकर रिजेक्ट कर देते हैं। इससे जब हम सर्वाइवल को ज्यादा प्रायोरिटी देते हैं तब हम अपने आसपास बाउनड्रीज़ और सेफ्टी के लिए दीवारें तो बना लेते हैं लेकिन जब खतरा चला जाता है और समय आता है हमारी ग्रोथ का तब वही दीवाने जिन्होंने हमें खतरे से बचाया था वो हमारा पिंजरा बन जाती है और इसका मतलब यह नहीं है कि रूज़, बाउनड्रीज़ और लोगों को कई चीजें करने से रोकना गलत है। अगर हमें हर चीज़ करने की पूरी छूट हो और हमें अपने किसी भी काम का कोई बुरा नतीजा न भुगतना पड़े। तो ये ऑब्वियस है कि देखते ही देखते हम पूरी सिविलाइज़ेशन को ही नीचे गिरा देंगे। जस्ट बिकॉज़ हर इंसान के अंदर एक ऐसा राक्षस है जिसे चाहे जितना मर्जी प्लेजर मिल जाए उसकी भूख खत्म ही नहीं होती। उसे और ***** चाहिए, स्वादिष्ट खाना चाहिए और लोगों से खुद की तारीफें चाहिए। इसलिए सोसाइटी इस राक्षस को बाहर आने से रोकने के लिए कई रूस बनाती है और रूल्स को तोड़ने वाले लोगों को टोकती या फिर पनिश करती है। प्लेजर और सेल्फ रिजर्वेशन बायोलॉजिकल स्टिक्स है और कन्सरवेटिव थिन किन्ग हमारी बायोलोजी को ही कंट्रोल से बाहर जाने से रोकने की कोशिश करती है, क्योंकि हमारा शरीर ही हमारी ज़िंदगी की नींव है। अगर हमने अपने शरीर को काबू नहीं करा तो हम अपनी जिंदगी को कैसे काबू करेंगे? इसलिए बाउनड्रीज़ और रूस बनाना और दूसरों को गलती करने पर टोक ना ज़रूरी है क्योंकि उनकी गलती की कीमत अनजान लोगों को भी चुकानी पड़ सकती है जबकि उनकी मेहनत अनजान लोगों की जिंदगी को भी बेहतर बना सकती है। यही रीज़न है कि क्यों हमें अपनी खुद को सेफ रखने की को अपनी ग्रो करने की से बैलेंस करना पड़ता है। अगर आप बहुत ज्यादा सेफ रहने की कोशिश करोगे तो आप खुद को काल कोठरी में बंद कर लोगे और लाइफ को मिस कर दोगे और दूसरी तरफ अगर आप बस अपनी ग्रोथ पर ही ध्यान देते हो, महान और सक्सेसफुल बनना चाहते हो लेकिन आपकी कोई बाउंडरीज ही नहीं है। आप किसी को भी अपना दोस्त बना लेते हो और किसी के साथ भी कैचुली इंटिमेट हो जाते हो तब भी आप रिस्क को ढंग से कैलकुलेट ना कर पाने और अपनी सेफ्टी पर ध्यान ना देने की वजह से कभी भी अपने गोल्स तक पहुँच ही नहीं पाते है। जब तक सेफ्टी और फ्रीडम या कन्ज़र्वेटिव और लिबरल थिंकिंग में एक बैलेंस नहीं आता जब तक आप सफर ही करोगे और दोनों एक स्ट्रीम्स में जाने की वजह से अपनी ग्रोथ की पोटेंशिअल को भी खो दोगे। अपनी बुक दाऊद हैचिंग में लिखते हैं कि डाउ कभी किसी की साइड नहीं लेता, वो अच्छा ई और बुराइ दोनों को जन्म देता है। इसलिए बीच में रहो खाली रहो लड़ ज़ू इस कोट के साथ हमलोगों को खुद की बेसिक इंग्लिश के ऊपर उठने का तरीका बता रहे है। वो बोल रहे हैं कि सही और गलत को मत पकड़ो क्योंकि वो दोनों तो एक दूसरे के बिना रह ही नहीं सकते है। अगर तुमने सिर्फ सही को पकड़ लिया तब भी वो अधूरा सच होगा। और अगर गलत को पकड़ा तब भी दोनों को साथ में यूज़ करो, एक स्ट्रीम्स में मत जाओ, सेंटर में रहो और सिचुएशन के अकॉर्डिंग खुद को ढालना सीखो। इस तरीके से हम खुद को सेफ भी रख सकते हैं और एट के सम टाइम जो चीज़ हमारे अंदर बाउनड्रीज़ को तोड़कर बड़ी होना चाहती है वो भी इस बैलेंस की मदद से ये समझ पाती है कि उसे असल में मटिरीअल ग्रोथ नहीं बल्कि स्पिरिचुअल फ्रीडम चाहिए। जो चीज़ आप खाने, ***** गेम्स, सोशल मीडिया या पैसों में ढूंढ रहे हो वो चीज़ और आपकी टू फ्रीडम आपको अपने अंदर मौजूद उस चीज़ को छूकर मिले गी जो ना तो कभी पैदा हुई थी और ना ही वो कभी मरती हैं और ये चीज़ हम सिर्फ तभी कर पाते है जब हम दोनों साइड्स को एक्सेप्ट करते हैं और होल बनते हैं। जब भी आपके मन या ऐक्शन में डिविजन आ गया, समझ लो वहाँ आप एक कैदी बन गए और अपनी स्पिरिचुअल नेचर से दूर होकर सिर्फ अपनी चमड़ी के कॉन्सर्ट में ही उलझ गए। एक इंसान दूसरे इंसान से इसलिए लड़ता है क्योंकि वो उसे खुद से अलग समझता है। हर इंसान एक शीशा है जो बस चमड़ी के कपड़े से ढका हुआ है। अगर आपने इस फैक्ट को समझ लिया तो आप चमड़ी के पार्क दूसरे इंसान में खुद को देख पाते हो। आप अपने से ऑपोजिट व्यूस रखने वाले लोगों पर गुस्सा नहीं करते, बल्कि आप यह समझ पाते हो कि उसकी ऑपोजिशन भी रिऐलिटी में बैलेंस बनाए रखने के लिए जरूरी है, क्योंकि अगर नफरत नहीं होगी तो प्यार कैसे एग्जिस्ट करेगा, लॉजिक नहीं हुआ तो इमोशन कैसे एग्जिस्ट करेगा? और ऐसे ही अगर हमारा शरीर नहीं होता तो हम इस कैच से बाहर निकलने के लिए कोई प्रयास भी नहीं करते है। दुनिया इस वक्त डिवाइड है और पावर के भूखे लोग आम लोगों को उनकी स्पिरिचुअल नेचर से दूर करके उन्हें उनकी फिजिकल और बायोलॉजिकल नेचर के कॉन्सर्ट में फंसा रहे हैं। एक स्किन कलर के लोगों को ब्रेनवॉश करके ये बोल दिया गया है कि उनके दुश्मन दूसरे स्किन कलर के लोग हैं। एक जाति दूसरी जाति से लड़ रही है। एक पॉलिटिकल ग्रुप कुछ भी करके दूसरे ग्रुप को मिट्टी में मिला देना चाहता है और इंसान आज अपने रिश्तेदारों या पड़ोसियों से तो क्या बल्कि वो खुद के भाई, बहनों और माँ बाप से भी दूर हो गया है। हर जगह हम बस एक दूसरे पर उंगलियां उठा रहे हैं और एक दूसरे के मुँह पर नफरत की बंदूक तानकर खड़े हैं। ये नतीजा होता है जब आप और मेरे जैसे आम लोग बैंलेंस में नहीं रहते हैं और एग्ज़िस्टन्स के आधे सच को रिजेक्ट कर देते है। जैसे ही आप बोलते हो कि लिबरलिज्म सही है कौन सर्वे ऑटिज़म गलत वैसे ही आप खुद को मौत और मोह माया का शिष्य बना लेते हो और सेम चीज़ होती है। जब आप कंज़रवेटिज्म को सही बोलते हो और लिबरलिज्म को गलत शैतान दो ऑपोजिट के बीच की दरार में ही अपना घर बनाता है। डिविज़न एक झूठ है और एग्ज़िस्टन्स झूठ को ज्यादा देर तक दो पैरों पर खड़ा नहीं रहने देती। इसलिए हर तरह की डिविशन और उस डिविशन को अपनाने वाले लोगों का नष्ट होना तय है। जिंदगी कन्टिन्यूसली चेंज होती रहती है, वो बस एक स्ट्रीम में जाकर नहीं बैठ जाती है। एक्स्ट्रीम मेंबर्स लॉजिक और बुद्धि एग्जिस्ट करती है, क्योंकि लॉजिक हमेशा कॉन्क्लूज़न तक पहुंचना चाहता है। उसे कॉन्टिन्यूअस चेंज नहीं बल्कि एक फिक्स्ड और फाइनल आन्सर चाहिए होता है। लेकिन लाइफ का कोई कॉन्क्लूज़न नहीं होता। लाइफ हमेशा चलती और बदलती रहती है और जो कोई भी इस बदलाव के साथ खुद को नहीं बदलता, उसका कोई एवल्यूशन भी नहीं होता। एक स्ट्रीम्स डैड पॉइंट्स होते हैं। जिसतरह से बहुत ज्यादा खाने से भी आपके शरीर को नुकसान पहुंचेगा और बहुत कम खाने से भी हर समय पैसों के बारे में सोचने और बस पैसो की ही परवाह करने से भी आपकी जिंदगी मुश्किल और मीनिंग लेस बन जाएगी और पैसों की बिल्कुल परवाह ना करने से भी सिर्फ मिडल पॉइंट ही ऐसी जगह होती है जहाँ जिंदगी को खुलकर जीने वाले लोग रहते हैं। एक स्ट्रीम्स में जाना बहुत ही वेस्टर्न क्वालिटी हैं जबकि इंडिया में शुरू से बैंलेंस और ऑपोजिट के मिला पर बहुत ध्यान दिया गया है। अपने एक कोर्ट में बोलते हैं कि हमारा वेस्टर्न माइन्ड इस अन्डरस्टैन्डिंग में बहुत पीछे चल रहा है। क्योंकि हम लोगों ने कभी बीच के रास्ते में चलने से होने वाले ऑपोजिट के मिलन जैसा कोई कॉनसेप्ट बनाया ही नहीं। ये इन्नर ग्रोथ की असली चाबी है जिसे इंडिया के लोग योगा बोलते है और चाइना के लोग डाओ। इसलिए अगर आप अपने मेंटल प्रिज़न से बाहर आना चाहते हो तो पहले खुद को अलग अलग आइडीओलॉजी ज़ और कॉन्सेप्ट के साथ आइडेंटिफाइ करना और खुद पर लेबल्स की लिमिटेशंस लगाना बंद करो और दोनों ऑपोजिट को साथ लेकर बीच के रास्ते पर चलो।","जब भी हम सीमाओं के निर्माण और आत्म-संरक्षण की बात करते हैं, तो दो तरह के तर्क सामने आते हैं, एक सुरक्षा के पक्ष में और दूसरा विकास के पक्ष में भले ही इसका मतलब कम सुरक्षा हो। ये दो ध्रुवीय विपरीत विचार क्रमशः रूढ़िवादी और उदारवादी हैं। लेकिन जीने का कौन सा तरीका बेहतर हो सकता है? क्या सुरक्षा ही सब कुछ है? या हमें पूर्ण स्वतंत्रता और विकास के लिए अपनी सारी सुरक्षा छोड़ देनी चाहिए? इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम इन सवालों के जवाब देंगे और जीवन जीने का सबसे अच्छा संभव तरीका खोजने की कोशिश करेंगे।" "अट्रैक्टिव लगने का मतलब महंगे कपड़े, ओवर प्राइस, स्किन केयर प्रोडक्ट्स और कॉस्मेटिक सर्जरी नहीं होता। अगर आप खुद को ज्यादा खूबसूरत बनाना चाहते हो, वो भी फ्री ऑफ कॉस्ट तो आप ऐसा कर सकते हो। अगर आपको फिजिकल अट्रैक्शन के पीछे की साइकोलॉजी पता हो तो और इस एपिसोड में हम यही डिस्कस करने वाले हैं। सो लेटस बिन नंबर वन वेर ब्लैक ब्लैक कपड़ों पर इतने सारे गाने बिना किसी वजह के नहीं बनते हैं। ब्लैक क्लोदिंग एक इल्यूजन क्रिएट करती है। लिन एस और फिटनेस का अगर आप किसी से पूछोगे कि सबसे अट्रैक्टिव कलर कौनसा है? शायद वो बोलेंगे रेड कलर ऐसा इसलिए क्योंकि रेड कलर को हमारा मन जोड़ता है प्यार और रोमैन से। लेकिन अगर हम यूनिवर्सल अपील की बात करें तो विदाउट एनी डाउट ब्लैक से बेटर कोई चॉइस नहीं होती। ये नंबर टू बीट वैन सेकंड ईयर चीक्स फेशियल अट्रैक्टिवनेस के बहुत रिलाएबल साइनस होते हैं। एक इंसान की और उसकी चीक बोन्स एक हेल्थी बॉडी फैट परसेंटेज और प्रॉपर टन पोस्टर का साइन होती है और हाइ चीक बोन्स भी आपकी फुलफिल डेवलपमेंट और जीप की सही पोजिशन को दर्शाती है। इस तरह से चिक्स और जो मिलकर आपको एक प्रॉपर मॉडल लाइक लुक देते हैं हाउएवर जब हमारा बॉडी फैट ज्यादा होता है, ये हमारी जॉब प्रॉपर्ली डेवलप नहीं होती, तब भी हम इन्स्टंटली खुद को ज्यादा अट्रैक्टिव बना सकते हैं। अपने चीक्स को थोड़ा सा बाइट और सचिन करके ये ट्रिक मॉडल्स की दुनिया में बहुत कॉमन है और ज्यादातर गुड लुकिंग लोग नैचुरली अपने चीज़ को सख्त और बाइट करके रखते हैं। इसलिए अपने चीक्स को फुलाएं रखने या फिर उन्हें ढीला छोड़ने के बजाय अपने चीक्स को टाइट और सब दिन रखो। नंबर थ्री हम तंग पोस्टर की बात बिना समझे नहीं कर सकते हैं। का मतलब होता है अपनी टांग को मुँह के ऊपरी हिस्से पर प्रेस करे रखना, जिसमें इंसान का फेशियल स्ट्रक्चर अट्रैक्टिव होता है। ये गारंटी के साथ बोला जा सकता है की उसकी जीव ज्यादातर समय उसकी मुँह की छत पर ही रहती होगी और सिर्फ जीव का आगे का हिस्सा ही नहीं बट स्पेशिलिटी टंका बैकप ऑप्शन भी कॉन्स्टेंट ली। पूरी तंग के प्रेशर से ओवरटाइम हमारे स्कूल की शेप बदलने लगती है, जिससे हमारी आए शेप इम्प्रूव होती है और चीक बोन्स खड़ी होने लगती है। कभी नोटिस करना जिससे इंसान का मुँह खुला रहता है। और उसकी जी मुँह के निचले हिस्से में रस्ट करती है। उसका फेस भी अनअट्रैक्टिव और लगेगा। जबकि करेक्ट इन पॉश्चर फेस को ऊपर की तरफ उठाता है और हमारे फीचर्स को एक्स्ट्रा डेफिनेशन देता है। नंबर थ्री डिस्प्ले और स्ट्रेंथ मेल्स के केस में अट्रैक्टिवनेस का एक बहुत जरुरी साइन होता है उनकी अपर बॉडी स्ट्रेंथ क्योंकि मेल ***** हार्मोन टेस्टॉस्टोरोन के बढ़ते ही मेल्स के ट्रैप्स उनके शोल्डर्स और चेस्ट बड़े और वाइड होने लगते हैं। लेकिन हाइ मटैबलिज़म की वजह से वेस्ट छोटी इससे एक अट्रैक्टिव मेल बॉडी शेप ले देवी या फिर एक डाइमंड के जैसी बन जाती है। इसलिए चाहे आप जिम जाते हो या फिर घर पर एक्सरसाइज करते हो, अगर आपको अपनी अट्रैक्टिवनेस बढ़ानी है तो अपने शोल्डर्स ट्रैप्स और चेस्ट को हाइएस्ट प्रायोरिटी दो नंबर फ़ोर स्टैंड विद योर फ़ीट अपार्ट याद है। स्कूल में असेंबली के दौरान जब हम एरेस पोज़ीशन सिखाई जाती थी तब दो कमांड होती थी स्टैन्डर्ड और अटेन्शन। स्टैंडिंग एटीज़ का मतलब होता है की आप ईज़ में खड़े हो, आप ज्यादा स्टेबल हों और आप अपनी डोमिनेंस को शो कर रहे हो। बट अटेन्शन पोज़ीशन एक सबमें से पोज़ीशन होती है। क्योंकि यहाँ पर आपके पैर इतने क्लोज़ होते है की कोई भी आप को धक्का देकर ईज़ी गिरा सकता है और अपने हाथों को सामने रखकर भी आप यही सिग्नल कर रहे होते हो की अपनी हफ्ते और हार्मलेस हो। पैरों को खुला रखकर खड़े होने से आप ज्यादा कॉन्फिडेंट और स्ट्रॉन्ग लगते हो। इसलिए स्पेशल फॉर्म एल्स कभी भी अपने पैरों को एकदम चिपकाकर मत खड़े हुआ करो। शकीरा ने बिलकुल सही बोला था। हिप्स डोंट लाइ क्योंकि फीमेल्स के केस में ब्रॉड हिप्स और फ्री हिप मूवमेंट उनकी अट्रैक्टिवनेस को 50% तक बढ़ा देता है। ऐसा इसलिए बिकॉज़ एक इंडिकेशन होता है ऑप्टिमल बॉडी फैट परसेंटेज का और एक फीमेल के लिए। कितना ईज़ी होगा एक बेबी को डिलिवर करना? इसी वजह से फीमेल्स हाइ हील्स पहनती हैं। जिम में यूं चली लोअर बॉडी को ज्यादा ट्रेन करती है और ऐसी ड्रेस प्रिफर करती हैं, जिनमें उनकी बॉडी कर भी लगे जीवन एक ग्लास शेप का मेन करेक्टर इस ट्रिक भी वाइब्स होते हैं। नंबर सिक्स ब्रश योर लिप्स हमें पता है कि हमारी स्किन रेग्युलरली खुद को रिन्यू करती है और खुद की स्किन को हेल्दी और ग्लोइंग रखने के लिए हमें उसे एक्स्फोलियेट करना जरूरी होता है। हाउएवर हम ये नहीं जानते कि हमें अपनी लिप्स की डेड स्किन को भी रिमूव करना होता है। हमारे लिप्स तभी अच्छे लगते हैं जब वो फुल हेल्थी और ब्राइट कलर के होते हैं और ऐसा करने का सबसे अच्छा तरीका होता है हफ्ते में एक दो बार अपने लिप्स पर ब्रश यूज़ करना। नंबर सेवन, लुक अप फॉर अहेड चाहे आप अपने शूज़ की तरफ देख रहे हो या फिर फ़ोन को यूज़ कर रहे हो मेल्स और फीमेल्स दोनों को दूसरा जेन्डर अनअट्रैक्टिव लगता है, जब वो नीचे देख रहा होता है क्योंकि सर झुकाए रखना साइन होता है। लो कॉन्फिडेन्स और सैडनेस का इस तरह की बॉडी लैंग्वेज वो लोग रखते हैं जो इन्सिक्युर होते हैं और दूसरे लोगों की जजमेंट या फिर उनकी नजरों से बचना चाहते हैं। इसलिए जब भी आप पब्लिक में हो या फिर किसी रूम में एंटर कर रहे हो, तब हमेशा अपनी नज़रें पूरे रूम पर फैलाओ और बिना किसी डर के खुद को कैर्री करो। नंबर एट हैंग आउट विथ अट्रैक्टिव पीपल जिसतरह से अमीर लोगों के साथ हैंग आउट करने से आप सब कॉन्शस ली रिच हैबिट्स डेवलप करने लगते हो। गरीब लोगों के साथ पुअर हैबिट्स और ऐडिक्ट्स के साथ ऐडिक्शन स् वैसे ही अट्रैक्टिव लोगों के साथ हैंग आउट करने से आप भी खुद की अट्रैक्शन को इम्प्रूव कर पाते हों। इसके साथ ही जब भी हम किसी ग्रुप को देखते हैं तब हम उस ग्रुप के लोगों की अट्रैक्टिवनेस को ऐवरेज आउट कर देते हैं जिसकी वजह से अगर आप हॉट और ब्यूटीफुल लोगों के साथ हैंग आउट करने लगोगे तो चान्सेस है की दूसरे लोग भी आपको ज्यादा हॉट और ब्यूटीफुल मानने लगेंगे। नंबर नाइन रिलैक्स योर रोज़, अट्रैक्टिव आइज यूँ चली दो टाइप्स की होती है। यानी हंटर राइस दैट सिग्नल डॉमिनेंस बि ग्राउंडेड आइस दैट सिग्नल यूथ और यह दोनों आई शिप्स डेवलप होती है। हमारी स्कूल की शेप और अगेन टन पोस्टर्स है। बट ज्यादातर लोग खुद की इसको अट्रैक्टिव दिखाने के लिए आँखों और उस पर ज्यादा ज़ोर डालते हैं, जिससे उनकी आंखें कॉन्फिडेन्स नहीं बल्कि फिर् शो करने लगती है। इसलिए अपनी को हमेशा रिलैक्स रखो। नंबर 10 में क्योर फेस लुक सिमेट्रिकल फेशियल सिमेट्री बहुत जल्दी ये बता पाता है कि एक इंसान के जीन्स कितने लोग या हाई क्वालिटी के हैं। अगर आपके फेस की दोनों साइड सीक्वल है तो ये एक बहुत ही अट्रैक्टिव ट्रेड होता है। हाउएवर अगर आपका फेस ए सी में है तो आप सिमेट्री का इल्यूजन क्रीएट कर सकते हो। बीएड को ग्रो करके या फिर फीमेल्स के केस में मेकअप फेक, आईलैशेस और इअरिंग्स का यूज़ करके। इसके साथ ही यह भी याद रखो कि आपका स्लीपिंग पोस्टर भी आपकी फेशियल सिमेट्री को खराब कर सकता है। अगर आप पेट के बल या फिर एक साइड से फेस डाउन करके सोते हो तो इससे आपकी एक साइड ज्यादा फ्लैट बन जाएगी और दूसरी ज्यादा बल्कि इसलिए सोते टाइम अपने दोनों साइड एक एक पिल्लो रख लो। ताकि आप पल टोना और अपना फेस सीधा रखकर ही सोहो। नंबर 11 डिस्प्ले और कॉन्ट्रास्टिंग करेक्टर आपको पता है की क्यों द रॉक की इतनी बड़ी फैन फॉलोइंग है या फिर क्यों शाहरुख खान के पीछे लोग पागल होते हैं? ऐसा इसलिए क्योंकि इस टाइप के लोग एक कॉन्ट्रास्ट को डिस्प्ले करते हैं। रॉक इतना मस्कुलर और डॉमिनेंट दिखने के बावजूद भी हर एक के साथ काइंडली और रिस्पेक्टफुल में कम्यूनिकेट करता है और शाहरुख भी सबसे बड़े ऐक्टर होने के बावजूद इतने हंबल डाउन टु अर्थ और चार्मिंग है। यानी ऐसे बनो कि सामने वाला एक्सपेक्ट कुछ और करे यानी ऐसे बनो की सामने वाला एक्सपेक्ट कुछ और करे, लेकिन आप उन्हें दो कुछ और नंबर 12 नेवर गेट ओवर, एक्साइटेड इन द बिगिनिंग, ये चीज़ भी मेल्स और फीमेल्स दोनों पर अप्लाई होती है। जब भी आपको कोई अट्रैक्टिव लगें तब सीधा सीधा उसके आगे अपनी फीलिंग्स को एक्सप्रेस मत कर दो, क्योंकि ऐसे तो आप सारी पावर दूसरे इंसान के हाथ में दे दोगे और एक तरह से उन से अप्रूवल मांगने लगे होंगे। हमें खुद को इस वीक पोज़ीशन पर नहीं रखना। इसके बजाय चीजों को स्लो मिस्टीरीअस और पैशनेट रखो। दूसरे इंसान को थोड़ी सी हिट्स दो की आप उसमें इंट्रेस्टेड हो और बाकी का काम उन्हें करने दो।","आकर्षक बनने का मतलब यह नहीं है कि आपको महंगे स्किन केयर उत्पाद खरीदने होंगे, ब्रांडेड कपड़ों पर बड़ी रकम खर्च करनी होगी या सर्जरी करवानी होगी। यदि आप इस पॉडकास्ट सेगमेंट में दी गई मनोवैज्ञानिक तरकीबों को जानते हैं तो आप नि:शुल्क दृष्टिगत रूप से अधिक आकर्षक बन सकते हैं।" "दूसरों को हमारे बारे में ओपिनियन हमारे लिए तब मायने रखता है जब हम खुद को लेकर अनशन उग्र होते हैं और यह सोचते हैं कि हम बिना उनके सपोर्ट और अप्रूवल के एक सुखी जिंदगी नहीं जी पाएंगे। हर कोई उन लोगों की नजरों में अच्छा बने रहना चाहता है जिन्हें वह खुद से सुपिरिअर और बेटर मानता है। यह फीलिंग उन लोगों में ज्यादा होती है जो खुद को अपनी कमियों से आइडेंटिफाइ करके बैठे होते हैं। लेकिन साइकोलॉजी की अन्डरस्टैन्डिंग आपको अपनी इन सिक्युरिटीज़ और फ्लॉस को अपनी ऐडवांटेज के लिए यूज़ करने की ऑपर्च्युनिटी देती है ताकि आप अपना कॉन्फिडेन्स पढ़ा सको। और इस बात की परवाह करना बंद कर सको कि दूसरे आपके बारे में क्या सोचते हैं और यही हम इस एपिसोड में सीखेंगे। नंबर वन बी ऑनेस्ट अबाउट योर फ्लॉस इन सिक्युरिटीज़ खुद की इन्सेक्युरिटी ज़ोर कमियों के दबाव से बचने का तरीका होता है। उन्हें छुपाने के बजाय उन्हें एक्सेप्ट करना। अगर आपकी हाइट कम है और आप इस फैक्ट को एक्सेप्ट नहीं करना चाहते, तो आप हमेशा दूसरों की जजमेंट से डरे रहोगे और खुद की इस कमी को उलटे सीधे तरीकों से छुपाने की कोशिश करोगे में बी आप ज्यादा गुस्सैल बन जाओगे। या फिर दूसरी किसी वे में कॉमपेनसेट करने की कोशिश करोगे? इसके बजाय अगर आप सबके आगे इस फैक्ट को हंसकर एक्सेप्ट कर लो कि हाँ, आप में यह एक कमी है, लेकिन यह कोई बड़ी बात नहीं है और आप इसके बावजूद काफी वैल्यूएबल हो तो इससे दूसरों के मन में भी आप के लिए रिस्पेक्ट बढ़ती है और आप भी यह सोचना बंद कर देते हो कि दूसरे लोग आपके बारे में क्या सोच रहे होंगे? जर्मन थिओलोजी मार्टिन निमोलर ने एक बार बोला था इफ यू कैन लाफ इट योरसेल्फ यू अर गोइंग टु बी फाइन, इफ यू अलाउ अदर्स टू लव विद यू यू विल बी ग्रेट नंबर टू स्टॉप प्रोजेक्ट इन ग् अर्ली 1900 में अमेरिकन सोशियोलॉजिस्ट चावल स्कूली ने हमारी एक साइकोलॉजिकल टेंडेंसी को आइडेंटिफाइ करा और उसे नाम दिया लुकिंग ग्लास शेल्फ, जो बेसिकली ये बोलता है कि हम खुद को दूसरों के हमारे ओपिनियन्स का ऐवरेज समझते हैं। यानी आप खुद को जानने की कोशिश करते हो ये अस्यूम करके कि आपके दोस्त आपके सिबलिंग ज़, आपके पैरेन्ट्स और दूसरे लोग आपके बारे में क्या सोचते हैं? हम नैचुरली खुद को आस इट इस नहीं बल्कि अपने मन में बैठी दूसरे लोगों की इमैजिनेशन के थ्रू खुद को देखते हैं। और हमारी जो भी इन्सेक्युरिटी होती है, हम सोचते हैं कि दूसरे लोग भी हमें हमारी सिर्फ उसी एक कमी की वजह से जानते हैं और वो हमेशा हमें जज कर रहे हैं। लेकिन असलियत में हम सिर्फ अपने डरो और सेल्फ जजमेंट को दूसरों पर प्रोजेक्ट कर रहे होते हैं। अगर आप खुद पर गुस्सा हो तो आपको दूसरों में भी गुस्सा दिखेगा। अगर आप खुद को लेकर डाउटफुल हो तो आपको दूसरों की नजरों में भी डाउट दिखेगा। इसलिए दूसरे आपको किस तरह से जज करेंगे? इस ख्याल को अपने मन से निकालने का बेस्ट तरीका होता है खुद को जज करना, बंद करना नंबर थ्री नोट एव्रीवन इस गोइंग टु लाइक यू हर इंसान के बिलीव्स और उसका दुनिया को देखने का नजरिया अलग होता है। ऐसे में आप ये एक्सपेक्ट नहीं कर सकते कि हर कोई आप को लाइक करें या फिर आपके बारे में कुछ नेगेटिव ना सोचे। स्टॉक फिलॉसफर मार्कोस और इलियास बोलते है अपना बचा हुआ समय यह सोचते हुए वेस्ट मत करो कि दूसरे तो हमारे बारे में क्या सोचते हैं? तुम्हारी ये आदत तुम्हें कुछ भी यूज़फुल करने से रोकेगी क्योंकि तुम हमेशा ही ये सोचते रह जाओगे कि कौन तुम्हारे बारे में क्या सोचता है और वो ऐसा क्यों सोचता है? जीवन अगर आप दुनिया के सबसे दयालु इंसान भी हो, फिर भी बहुत से लोग आपसे नफरत करेंगे और आपकी एग्ज़िस्टन्स उन्हें बॉदर करेगी। इसलिए इफ यू वॉन्ट टू स्टॉप केरिंग अबाउट वॉट अदर्स थिंक ऑफ यू देन चेंज योर एक्सपेक्टेशन्स अगर आप लोगों से मिलते हुए ईजली सेल्फ़ कॉन्शस हो जाते हो, यह सोचकर कि आप उन पर कैसा इंप्रेशन छोड़ोगे तो ऐसा इसलिए ही है क्योंकि आप ये एक्सपेक्ट करते हो कि हर कोई आप को लाइक करें, लेकिन रिऐलिटी ऐसे काम नहीं करती। आप एक्सपेक्ट करते हो कि आप से मिलने वाला हर कोई इंसान आपकी तारीफ ही करें। लेकिन जब ऐसा नहीं होता तब आप खुद को दोष देते हो। आप अपने हेटर्स पर फोकस करते हो और खुद को बदलने लगते हो उनकी एक्सपेक्टेशन्स को मैच करने के लिए लेकिन आप चाहे जितना मर्जी खुद को बदल लो आपको हेट करने वाले लोग हमेशा एग्जिस्ट करेंगे। नंबर फ़ोर ब्रेनवॉश योरसेल्फ इन चेन्स योर इनर डाइलॉग हर इंसान के मन में वो आवाजें गूंज रही होती है जो उसने अपने बचपन में इंटरनल इस करली होती है। कोई इंसान बचपन में अपने पैरेन्ट्स के गुस्से और रिजेक्शन की वजह से अपने अंदर उसी रिजेक्शन की गूंज को आज भी महसूस करता है। और कोई इंसान जैसे बचपन में शेमफुल फील कराया गया था, वह अपनी उससें से आज भी हो सकता है। इसी वजह से खुद के इंटरनल डाइलॉग को बदलना पॉज़िटिव फॉर्मेंशन्स के थ्रू ये बहुत जरूरी होता है। सेल्फ कॉन्फिडेंस बिल्ड करने के लिए नंबर फाइव आस्क वेदर देयर ओपिनियन मैटर्स टु यू हर इंसान किसी न किसी फील्ड में इंटरेस्टेड होता है। कोई इंसान सॉफ्टवेर डेवलपर बनना चाहता है। कोई ऐक्टर और कोई बॉक्सिंग चैंपियन? लेकिन अगर किसी इंसान का ओपिनियन आपके गोल्स और लाइफ से दूर दूर तक भी रिलेटेड नहीं है तो उसके ओपिनियन को उतनी इम्पोर्टेन्स मत दो। अगर आप एक एथलीट बनना चाहते हो तो जीस इंसान ने कभी जिंदगी में एक्सरसाइज ही नहीं करी या फिर खुद की बॉडी को ज्यादा पोस्ट नहीं करा। उसका ओपिनियन या फिर जजमेंट आपको नहीं छोड़ना चाहिए। नंबर सिक्स अंडरस्टैंड दैट ऑलवेज बीन सेल्फ़ कॉन्शस ऐसा फॉर्म ऑफ ऑनर सिस्टम हर समय यह सोचते रहना कि मैं दूसरों की नजरों में कैसा लग रहा हूँ, वह मेरे बारे में क्या सोच रहे होंगे या फिर मैं खुद को ज्यादा कूल कैसे बनाऊँ? ये नर्सें, सिस्टम और सेल्फ ऑफ सेशन नहीं है तो क्या है? आपकी जिंदगी में आपको ऐसे बहुत से लोग मिलेंगे जिनसे आप 10 बार भी मुश्किल मिलोगे और फिर वो आपको कभी नहीं देखेंगे। और अगर आप अपनी सेल्फ एस्टीम इन टेंपरेरी लोगों के ओपिनियन्स पर बेस करोगे तो ऐसे में आप हमेशा ही अंडरकॉन्फिडेंट और इनसिक्योर फील करोगे। सेल्फ़ कॉन्शस होने का मतलब है कि आप अपना फोकस खुद पर से हटा ही नहीं पा रहे हैं। इसलिए दूसरे लोगों के बीच एक अच्छे लिसनर बनना हो और अपना सारा फोकस उन पर रखो और जैसा कि रिटायर्ड नेवी सील डेविड गॉगल्स बोलते है, दूसरे तुम्हारे बारे में क्या सोचते हैं, इसकी परवाह मत करो। क्योंकि हर कोई में जब है, तुम अपने बारे में किसी भी चीज़ को इतना नहीं बदल सकते कि दूसरे तुम्हें जज और हेट करना बंद कर दें। इसलिए इससे बेहतर है अपने कानों को बंद रखना और खुद की लिमिट्स को टेस्ट करने और ग्रो करते रहने पर फोकस करना।","अन्य लोगों की राय हमारे लिए मायने रखती है जब हम अपने कौशल और क्षमता के बारे में संदेह करते हैं और हम सोचते हैं कि हम उनकी स्वीकृति और सत्यापन के बिना एक पूर्ण जीवन जीने में सक्षम नहीं होंगे। यही कारण है कि दूसरे लोग आपके बारे में क्या सोचते हैं, इसकी परवाह करना बंद करना महत्वपूर्ण है।" "लाइफ में सक्सेस हासिल करने के लिए या फिर अपनी लाइफ की प्रॉब्लम्स को सॉल्व करने के लिए सबसे जरूरी चीज़ जो होती है वो है आपका ऐटिट्यूड या फिर आपका माइंड सेट, क्योंकि बिना एक हाइ अचीविंग ऐटिट्यूड के आप लाइफ की इस लंबी रेस में ज्यादा दूर तक भाग ही नहीं पाओगे। आप ना तो कभी भी अपनी सोच को बड़ा बना पाओगे और अपने टैलेंट को ढंग से यूज़ ना करने की वजह से आप हमेशा एक दीप सैडनेस और गिल्टी फील करोगे। जब भी आप फेल होंगे आप दुनिया और किस्मत को कोसो गे। लेकिन जो इंसान 100 बार गिरकर भी वापस से खड़ा हो जाता है और अपनी जिंदगी की आखिरी सांस तक अपनी जीत के लिए लड़ता रहता है। वो होता है ऐसा इंसान जिसमें जीतने का जज्बा और सही ऐटिट्यूड होता है। कोई भी इंसान जो आपको बताता है कि सक्सेसफुल हैप्पी या फुलफिल होना बहुत सिंपल और ईजी है और आप अपने तक बहुत ईजी पहुँच सकते हो तो यह समझ लो कि वह इंसान आपसे झूठ बोल रहा था। लाइफ में कोई भी चीज़ आसानी से नहीं मिलती और अगर आपको कुछ बिना मेहनत के मिल भी जाए तो जितना ईजली वो चीज़ आई उतनी ही ईजी वो चली भी जाती है। जब आप अपनी लाइफ में कुछ भी नहीं होते तब खुद को दूसरों से कंपेर करके ये बोल ना तो बहुत आसान होता है। नहीं वो दूसरा इंसान अपनी लाइफ में कितना अच्छा कर रहा है लेकिन आपको ना तो यह पता होता है कि उसकी स्टोरी का अंत कैसा होगा और ना ही आपको यह पता होता है कि आप दूसरों के साथ नहीं बल्कि खुद के साथ कंप्लीट कर रहे हो। किसी भी जरूरी चीज़ को अचीव करने से पहले आपको अंदर से यह फील होना चाहिए कि आप उस चीज़ को अचीव करने के लायक हो। ये मत सोचो कि दूसरे लोग आपकी कैपेबिलिटीज के बारे में क्या सोचते हैं क्योंकि वो आपकी लाइफ नहीं जी रहे हैं। खुद के लिए रिस्पेक्ट और सेल्फ एस्टीम इसी इनर डाइलॉग से आती है कि मैं कुछ हूँ। मेरी स्टोरी भी मैटर करती है। मैं एक बार बोला था कि दुनिया में इतनी ईवल होने का रीज़न यही है कि बहुत से लोग अपनी स्टोरीज़ नहीं सुना पा रहे हैं। बहुत से लोग ऐसे हैं जो जीते हुए भी जी ये ही नहीं एक दुखी और गुस्सा करते रहने वाले, मासूम इंसान से लेकर एक रेपिस्ट मर्डर या नशों और दूसरे चीप लेजर्स के ऐडिक्ट तक हर ऐसा इंसान ऐसा इसलिए बनता है क्योंकि पहले ना तो उसमें दूसरों ने विश्वास करा और उसके बाद ना ही उसने खुद में है। हमारे अंदर दो तरह के सेल्फ होते हैं एक दर सेल्फ जो हमारी ऐक्चुअल पोटेंशिअल होती है और इसे हम इनर गॉड भी बोल सकते है और दूसरा होता है सेल्फ का कॉनसेप्ट। जैसे हम ईगो बोलते हैं। ऐटिट्यूड में कमी तब आती है, जब आप अपने 10 सेल्फ यानी अपनी टोटल पोटेंशिअल से आइडेंटिफाइड होने के बजाय अपनी ईगो से अटैच होते हो। हमारी ईगो बेसिकली वो स्टोरी होती है जो हम अपने आप को सुना रहे होते हैं कि हम हैं कौन? और अगर एक इंसान के बचपन में उसके पैरंट्स ने उसमें सेल्फ एस्टीम या खुद में कॉन्फिडेंस नहीं डाला था तो उस इंसान की ईगो काफी फ्रैजाइल होगी और उसके अंदर जिंदगी भर यही स्टोरी चलती रहे गी कि वो कुछ नहीं है। लोग उसे पसंद नहीं करते और वो कभी भी कुछ महान काम कर ही नहीं पायेगा और इस तरह से यह फ्रैजाइल तो और नेगेटिव स्टोरी जिसमें एक इंसान हीरो होने के बजाए एक लूँ सर होता है। ये चीजें एक इंसान को डिप्रेस्ड और दूसरों की तरफ बहुत बेरहम बनाती है। एक हारा हुआ इंसान जो अपने आप को हेट करता है, वो अपनी इसी हेट को दूसरों पर प्रोजेक्ट करके उनकी लाइफ डिन्नर जैसी बना देता है। यह फ्यूचर है हर उस इंसान का जिसका ऐटिट्यूड नेगेटिव है और वह एक नेक लक्ष्य की तरफ बढ़ने के बजाय आलस करता है और दूसरों को ब्लेम करता है। याद रखो एक हीरो की जीत सिर्फ उस हीरो की जीत नहीं बल्कि पूरी सोसाइटी, पूरे देश और पूरी दुनिया की जीत होती है। लेकिन एक लूँ सर बिहार सिर्फ उसकी हार नहीं बल्कि पूरी सोसाइटी, पूरे देश और पूरी दुनिया की हार होती है। क्योंकि जीस भी दिशा में आप जाओ और जीस तरह से आप लोगों को इन्फ्लुयेन्स करो। वो इन्फ्लुयेन्स आगे चलकर कई गुना बढ़ जाएगा और वह बढ़ता चला जाएगा। अच्छाई से अच्छाई बढ़ती है और बुराइ से बुरा ई। लेकिन जीस तरह से एक बल्ब अंधेरी रात में सबसे ज्यादा चमकता है। वैसे ही आपका काम है अपनी इनर और आउटर डार्कनेस पर अपनी जीत हासिल करना और इस जीत की शुरुआत होती है आपके ऐटिट्यूड से।","जीवन में किसी भी प्रकार की सफलता प्राप्त करने के लिए एक चीज की सबसे ज्यादा जरूरत होती है, वह है सही नजरिया। क्योंकि जिन लोगों की सोच नकारात्मक होती है, वे कहीं नहीं पहुंच पाते। इसलिए इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम अधिक सफलता और आत्म अनुशासन के लिए इस प्रकार के दृष्टिकोण के महत्व के बारे में बात करेंगे।" "काफी सारे नए बिज़नेस ओनर्स और ऑन्ट्रप्रनर्स सक्सेस हासिल करने से पहले ही फेल हो जाते हैं क्योंकि वो बहुत सी ऐसी ऐक्टिविटीज़ में पार्टिसिपेट कर रहे होते हैं जो टाइम वेस्ट होती है। यानी आपको ऐसा फील तो हो रहा होता है कि आप हर समय बिज़ी रहते हो और बहुत ज्यादा मेहनत करते हों, लेकिन फिर भी आपके रिजल्ट्स ज़ीरो ही रह जाते हैं। इसी वजह से हम डिस्कस करने वाले हैं। कई ऐसी प्रॉब्लम्स बिहेव, इअर्स और रूटीन्स को जो आपका समय वेस्ट करते हैं और जिन्हें सक्सेसफुल लोग किसी भी कीमत पर अवॉर्ड करते हैं। नंबर वन नोट डेली गेटिंग हर हाइली सक्सेसफुल इंसान अपनी वैल्यू जानता है और इसी वजह से वो छोटे मोटे कामों को करने में अपनी एनर्जी और टाइम्स आया नहीं करता। एक जाम पल के तौर पर अगर आपको एक अपना बिज़नेस खड़ा करना है या फिर अपनी जॉब या फिर पढ़ाई के साथ में कोई साइड हंसल शुरू करनी है तो सबसे बेसिक काम हो जैसे खाना बनाने को छोटा मोटा सामान लाने या फिर बिज़नेस को मैनेज करने का काम दूसरों से करवाओ। शुरू में आपके फैमिली और फ्रेंड्स में आप इन रोजाना कामों को डेलिगेट कर सकते हो और थोड़े पैसे कमाने के बाद इन्टर्न्स या असिस्टेंट को बेसिक सैलरी पर रखकर अपना टाइम बचा सकते हो। बहुत से गरीब लोग कभी ज्यादा आगे इसलिए ही नहीं बढ़ पाते क्योंकि उन्हें लगता है कि उन्हें अपना हर छोटे से छोटा काम भी खुद ही करना है। अगर आप अपने दोस्तों को भी बोलोगे कि देखो यार मुझे तो सक्सेसफुल होना है लेकिन मैं यह काम अकेले नहीं कर सकता इसलिए मुझे तुम्हारी मदद चाहिए। अभी मैं किसी को सैलरी नहीं दे सकता, लेकिन अगर तुम मेरे साथ जुड़ गए तो मेरी कंपनी का मैं इतना परसेंट शेर तुम्हें दे सकता हूँ। ऑन्ट्रप्रनर्स कुछ इसी तरह से सोचते हैं वो ट्रस्ट के लायक लोगों को ढूंढ़ते हैं। और शुरू में बिना ज्यादा पैसे खर्च करे ही उन्हें अपनी टीम में लाने की कोशिश करते हैं। इससे वो दूसरा इंसान भी आपके साथ अमीर बन जाता है और उसकी मदद से आप भी अगर आपकी कोई वीकनेस है। जैसे अगर आपको सेल्स के लिए कोल्ड कॉलिंग नहीं पसंद या फिर आपको लोगों को मैनेज करना नहीं आता तो आप अपनी इन कमियों को बैलेंस करने के लिए भी दूसरों को अपने काम में शामिल कर सकते हो। दुनिया की सबसे बड़ी कम्पनीज़ ऐसे ही शुरू हुई थी जब कई दोस्त अपने गैराज में साथ बैठकर ये सोच रहे थे कि अब अमीर कैसे हुए हैं। इसलिए डेलिगेट करना सीखो और दूसरों की मदद मांगने को गलत मत समझो। नंबर टू इम्प्रोवाइज इन योर डे जैसे ही आप सुबह उठते हो, आपको एक दम क्लियर होना चाहिए कि आपको उस पूरे दिन में क्या क्या काम करना है? सक्सेसफुल लोग सुबह उठकर लाइफ को ऑटोमैटिकली अपने दिन को कंट्रोल नहीं करने देते हैं बल्कि वो पहले ही प्लैन बना लेते हैं कि उन्हें अगले दिन अगले हफ्ते या फिर अगले पांच सालों में क्या क्या करना है। सही प्लानिंग आपके बिहेव इअर्स और टेम्पटेशन्स पर नियंत्रण रखता है। ऑफ कोर्स टाइम और सिचुएशन के बदलने के साथ साथ अपने प्लैन्स में चेंजस करना भी जरूरी होता है। लेकिन अगर आपको यही नहीं पता कि आपने किस समय क्या करना है तो आपके पास निशाना लगाने के लिए कोई टारगेट भी नहीं होगा और आप उतने प्रोडक्टिव नहीं बन पाओगे जितना आप एक प्लैन या फिर रूटीन के साथ हो सकते थे। अगर आप डेली प्लेन्स नहीं बनाते तो आप हर समय इम्प्रूव आइस यानी हर नई सिचुएशन के मुताबिक नई स्ट्रैटिजी बनाने बैठ जाओगे, जिससे आपका बहुत सा समझ आया होगा। इसलिए एक रात पहले या फिर सुबह उठते ही एक पेपर पर उन चार से पांच सबसे जरूरी कामों को लिखो जिन्हें आपने किसी भी हाल में उस दिन पूरा करना है। इस तरह से आप अपने सबसे इम्पोर्टेन्ट आस को भी कंप्लीट कर पाओगे और अपने टाइम को भी इफिशिएंट ली यूज़ कर पाओगे। नंबर थ्री नोटिफिकेशंस फालतू की ऐप से आती नोटिफिकेशंस आजकल हमारा बहुत टाइम वेस्ट करती है। आपको अपना 90% फोकस अपनी और अपने काम की ग्रोथ में लगाना चाहिए और अपने एक सिटी होनी ही नहीं चाहिए कि किसने आपकी एक पिक्चर को लाइक करा। आज का वेदर कैसा है या फिर आपकी वॉट्सऐप और टेलिग्राम ग्रुप में लोग क्या पोस्ट कर रहे हैं? नोटिफिकेशन को बड़ी कंपनीज़ ने डिज़ाइन ही कुछ इस तरह से करा है कि जैसे ही आप एक बैल को सुनो वाइब्रेशन को फील करो या फिर मोबाइल की लाइट को जल्द देखो वैसे ही आपके अंदर डोप हो और आप किसी इंटरेक्शन को एंट्री सिपेट करने लगे हो, इसलिए अपने समय को बेचकर बड़ी कंपनी इसका फायदा करना बंद करो और ज्यादातर नोटिफिकेशंस को ऑफ रखो। नंबर फ़ोर वर्किंग मोर अबाउट कॉंपिटिटर्स देन योरसेल्फ। यानी अगर आप अपने किसी प्रॉडक्ट या फिर सर्विस पर काम कर रहे हो तो अपने आइडियाज़ को यूनीक रखने और अपनी क्रिएटिविटी को बढ़ाने के लिए दूसरे लोग क्या कर रहे हैं? उस पर ध्यान मत दो। ऑफ कोर्स आपको अपने कॉम्पटीशन का आइडिया तो होना चाहिए लेकिन बहुत बार लोगों की नजर दूसरों पर इतनी ज्यादा होती है कि वो ये देखकर ही डिमोटिवेट हो जाते हैं। कि दूसरे लोगो ने कितना कुछ अचीव कर लिया या फिर वो कितनी स्पीड से आगे बढ़ रहे हैं। अगर हम दुनिया की सबसे अमीर कंपनी यानी ऐप्पल का एग्जाम्पल ले तो ऐप्पल को फरक भी नहीं पड़ता कि दूसरी कंपनीस हर साल कौन से नए फीचर्स ला रही है। यहाँ तक की कई फीचर्स जो ऐन्ड्रॉइड फ़ोन में तीन से 4 साल पहले आ गए थे वो आई फोन्स में इतना लेट आते हैं लेकिन वो फिर भी अपनी ब्रैंड वैल्यू के दम पर बिकते हैं। ऐप्पल को अपने प्रोडक्ट्स में इतना कॉन्फिडेन्स है कि वो अपने कॉम्पिटिशन को देखकर ये नहीं सोचता कि मुझे भी इन्हीं टेक्नोलॉजीज़ को जल्दी से जल्दी अपने प्रोडक्ट्स में लाना चाहिए। उसे पता है उसका सेलिंग पॉइंट कुछ और है और यही चीज़ ऐप्पल को बाकी कंपनीस से डिफ्रेंशीएट करती है। इसलिए अगर आपके पास दुनिया को ऑफर करने के लिए कोई यूनीक चीज़ है और आप उस चीज़ के साथ एक यूनीक स्टोरी कोभी भेज सकते हो तो अपने कंपिटिटर्स को देखना और उनकी स्ट्रैटिजी को देखकर खुद के प्लेन्स के बारे में इनसिक्योर फील करना बंद करो और अपने काम पर अपना 100% फोकस रखो। नंबर फाइव अबाउट गोइंग आउट ऑफ बिज़नेस दुनिया आपको डिमोटिवेट कर सकती है। लोग आपके रास्ते में बाधाएं बढ़ा सकते हैं। लॉस एक दम से चेंज हो सकते हैं और आपकी किस्मत भी आपका बार बार टेस्ट ले सकती है। लेकिन जो चीज़ आप के बारे में कोई नहीं बदल सकता, वह है आपकी रिज़िल्यन्स और आपका वर्क एथिक। यानी आप मुश्किल समय में भी कितने डटकर खड़े रह सकते हो और चुनौतियों का कितना सामना कर सकते हो? लोग मुश्किलें पैदा कर के बस आप की मूवमेंट को स्लो कर सकते हैं, लेकिन कोई भी आपको काम करते रहने से नहीं रोक सकता। इसलिए अपना ज्यादातर फोकस और टाइम फेल्यर से बचने और दूसरे लोगों को गलत प्रूफ करने में मत लगा वो बल्कि बस दिन से रात तक काम करो। जब तक आप कुछ बन नहीं जाते हैं नंबर सिक्स थिंकिंग अबाउट पीपल हूँ नेवर बिलीव दिन यू। सक्सेस के रास्ते में आपके कई चाहने वाले आपसे दूर होंगे। आपके यूज़लेस फ्रेन्ड ज़, जिन्हें अपनी खुद की लाइफ में कुछ नहीं करना या फिर आपका पार्टनर जिसे आप अपने गोल्स की वजह से उतना टाइम नहीं दे पाते हैं। यह चीजें बिल्कुल नॉर्मल है और अगर आप भी अपनी सक्सेस की जर्नी के शुरुआती पॉइंट पर ही हो तो इस एक्स्पेक्टेशन को अपने दिमाग में रखो कि जो लोग आपने बिलीव नहीं करते या फिर उनमें आपके इस फेस में आपका साथ देने की पेशेंट्स नहीं है तो उनका आप से दूर होना एक पॉज़िटिव चीज़ है। इसलिए पास्ट के लोगों के बारे में सोचकर अपना टाइम वेस्ट करना बंद करो। नंबर सेवन नोट क्रिएटिंग का बैंलेंस इन लाइफ एक साइकोलॉजिकली हेल्थी इंसान जो अपनी लाइफ के हर एरिया में अच्छा परफॉर्म कर रहा होता है वो ऐसा नहीं होता कि वो हर समय काम कर करके खुद को बर्न आउट कर ले या फिर आलसी बनकर खुद को ही हेट करने लगे। इसके बजाय ऐसे इंसान की लाइफ काफी बैलेंस होती है। उसे पता होता है कि अगर उसने अभी अपने काम के साथ साथ अपनी हेल्थ और रिलेशनशिप्स को इतना समय नहीं दिया तो वह उन चीजों को खो देगा। इसलिए लॉन्ग टर्म का सोचो और अपनी लाइफ में बैलेंस लाने की कोशिश करो। नंबर रेट है वैन ओपन डोर पॉलिसी यानी आपके समय की कोई कदर ही नहीं करता और आप किसी को भी अपना समय दे देते हो। अगर आप इस चीज़ के साथ सावधान नहीं रहे तो आप अपना पूरा दिन ही लोगों की फ़ोन कॉल्स अटेंड करने, उनसे फीडबैक लेने या फिर स्ट्रैटिजी डिस्कस करने में लगा दोगे। इसी वजह से आपको अन् स्केडुयूलड कॉन्वर्सेशन्स के लिए हमेशा बाउनड्रीज़ बनानी है ताकि आपके काम करते समय कोई भी आपका टाइम वेस्ट ना करे। नंबर नाइन डेटिंग के रॉन्ग पर्सन हर तरह का इंसान एक आन्ट्रप्रनर या फिर बिज़नेस पर्सन के साथ रहने के लिए नहीं बना होता क्योंकि ऐसे इंसान को जुनून और कुछ कर दिखाने की चाह ऐवरेज लोगों के लिए बहुत ही ओवर वेल्डिंग होती है। एक सक्सेसफुल या फिर ऐम्बिशस इंसान के लिए सही पार्टनर भी वो होता है जिसके खुद के कई बड़े सपने होते हैं। वरना एक गलत इंसान को डेट करने से आप भी डिमोटिवेट हो जाओगे और उसका भी टाइम वेस्ट करोगे। नंबर 10 रीडिंग के रॉन्ग बुक्स अगर आपको एक सक्सेसफुल इंसान बनना है तो क्यों आप अपना समय ऐवरेज सेल्फ हेल्प बुक्स या फिर लिटरेचर पढ़ने में वेस्ट कर रहे हो। बहुत से लोगों के लिए तो सिर्फ उनकी चौसकी बुक्स ही नहीं बल्कि उनका स्कूल या फिर कॉलेज डिग्री भी यूज़लेस होती है। और उन्हें डीप इनसाइड ये पता भी होता है कि उन्हें कुछ नया सीखने को नहीं मिल रहा। इसलिए डाइरेक्टली उन लोगों को उनकी बुक्स के थ्रू अपना बनाओ जो अपनी लाइफ मैं ऑलरेडी वो सब अचीव कर चूके हैं जो आप ज़िक्र करते हो और जैसा कि अमेरिकन बिल्यनेर आन्ट्रप्रनर मार्क बोलते हैं कि टाइम सबसे वैल्यूएबल ऐसेट है जिसे आप फ़ोन नहीं कर सकते है। आपको अभी ये समझ नहीं आएगा लेकिन जीस तरह से आप अपने समय को यूज़ या फिर वेस्ट करते हो, वो बेस्ट इंडिकेशन होता है इस बात का कि आपका फ्यूचर किस तरफ जा रहा है।","किसी ने सही कहा है, "समय ही धन है" और यदि आप अपने समय का बुद्धिमानी से उपयोग नहीं करते हैं, तो आप अपना धन बर्बाद करते हैं। सफल लोग बहुत चिंतित होते हैं कि वे अपना समय कैसे और कहाँ व्यतीत करते हैं, अन्यथा यदि वे ऐसी गतिविधियों में शामिल होने लगेंगे जो कोई मूल्य प्रदान नहीं करते हैं, तो वे खेल को खोने लगेंगे। इसलिए, यदि आप एक नवोदित उद्यमी हैं या आप अपना खुद का व्यवसाय शुरू करना चाहते हैं, तो आपको इन 10 समय की बर्बादी के बारे में पता होना चाहिए, जिससे सफल लोग हर कीमत पर बचते हैं।" "इट डज नॉट मैटर आपको वो लड़की कितनी अट्रैक्टिव लगती है? आपके लू सर दोस्त आपकी जिंदगी में कितना मज़ा और मेमोरीज़ ऐंड करते हैं या फिर आपके टीचर या बॉस आपके ऊपर अननेसेसरी कितना दबाव बनाते हैं? अगर आपको ऐसा लगता है कि आप बहुत बेकार चीज़ो के साथ सेटल कर रहे हो और आप बेटर डिज़र्व करते हो तो ये एपिसोड आपके लिए है। अगर आप अपनी बेकार जिंदगी और उसमें मौजूद बेकार लोगों को एक्सेप्ट और टॉयलेट करते रहोगे तो आप कभी खुश नहीं होंगे। इसलिए अब बात करते हैं उन चीजों की जिन्हें एक मर्द को कभी नहीं रहना चाहिए। नंबर वन समबडी हूँ राइज़ टू कंट्रोल यू चाहे वो आपकी पार्टनर हो, आपके दोस्त, आपके पैरेन्ट्स या फिर आपका बॉस। अगर आप एक अडल्ट हो तो अपनी रिस्पॉन्सिबिलिटी खुद लो और जब भी कोई आपको अपनी मर्जी से चलाने की कोशिश करें तब अपने लिए स्टैंड लो। अगर आपकी लाइफ में कोई ऐसा इंसान है जो आपके सोने उठने आपके पैशन्स या फिर आप कहा जाते और क्या करते हो, इन चीजों को कंट्रोल करता है तो आपको अभी के अभी उनसे दूर हो जाना चाहिए। नंबर टू ट्रैश टॉकिंग कभी भी जब कोई इंसान आपकी पीठ पीछे आपको बुरा भला बोलने लगे। और आपके बारे में झूठी बातें फैलाने लगे तो उसके पास जाओ और काम रहकर बट सीरियसली उससे पूछो कि वह ऐसा क्यों कर रहा है? बोलो कि आपने उसे आप के बारे में कई ऐसी चीजें बोलते हुए सुना है जो सच नहीं है। सोवा इ आर, यू, डूइंग डिस और बस चुप होकर उसे ऑब्जर्व करो। ऐसी सिचुएशन में एक हीटर बहुत ही अनकंफर्टेबल हो जायेगा और आपसे झूठ बोलने लगेगा कि उसने तो ऐसा कुछ नहीं करा, लेकिन यहाँ पर हमारा फोकस उस से सच उगलवाने पर नहीं, बल्कि उसे यह बताने पर है कि आपको पता है कि वो क्या कर रहा है? नंबर थ्री चीटिंग और डिस रिस्पेक्ट फ्रॉम योर पार्ट्नर आजकल चीटिंग को लोगों ने इतना ज्यादा नोर्मल्ली इस कर दिया है कि चाहे वो यंग मेल्स हो या फिर यंग फीमेल्स। बहुत से लोग रिलेशनशिप में होने के बावजूद अनजान लोगों के साथ रोमैन्टिक, इन्ट्रेस्ट या फिर इंटिमेसी डेवलप करने लगते हैं। ओनली बिकॉज़ वो खुद अंदर से खोखले है। आज लोगों के अंदर एक नर्स है जिससे वो हर गलत चीज़ से भरने की कोशिश कर रहे हैं और ऐसी ही एक चीज़ है ***** रोमैंस या फिर इंटिमेट कम्पैन्यन्शिप। इसी वजह से आप डिवोर्स रेट्स इतने हाई हो गए हैं। हर कोई दूसरे से बस अपने प्लेजर और सैटिस्फैक्शन के लिए कुछ लेना चाहता है। और ये बुक कभी नहीं मिटती। जीवन बहुत से मिल्स में आज इतनी कम सेल्फ रिस्पेक्ट रह गई है कि वो फिजिकल प्लेजर के लिए अपने रिलेशनशिप में डिस रिस्पेक्ट भी सहने को तैयार है। लेकिन ये चीज़ एक मेल से उसकी मैस्कुलिनिटी को छीन लेती है। जितनी बार भी आप अपने पार्टनर के बुरे बर्ताव को टॉलरेट करते हो उतना ही आप उनकी और इवन अपनी नजरों में फैमि नेट वीक और वर्थ्लिस बन जाते हो। नंबर फ़ोर जॉब यू हेट बहुत बार लाइफ आपको मुश्किल सिचुएशन में रखकर टेस्ट करेगी। क्या आप कितने स्ट्रांग हो और आप के लिए अपने सपनों को हकीकत बनाना कितना जरूरी है? जैसे बहुत से लोग एक ऐसी जॉब ले तो लेते हैं जिसके बेनिफिटस अच्छे होते हैं और उन्हें उस समय पैसों और स्टेबिलिटी की जरूरत भी होती है। लेकिन जस्ट बिकॉज़ वो अपनी जॉब बॉस या फिर कंपनी से नफरत करते हैं। वो ना तो अपना बेस्ट दे पाते हैं और ना ही अपनी जिंदगी में फुलफिलमेंट ढूंढ पाते हैं। स्टॉप वेस्ट इन योर लाइफ कई हाई इनकम स्किल्स को डेवलप करो। मार्केट में अपनी डिमांड को बढ़ाओ और मौका मिलते ही उस काम के पीछे भागो जिसमें सिर्फ पैसा ही नहीं बल्कि फुलफिलमेंट और मीनिंग भी हो। नंबर फाइव लूजर्स नहीं उन लोगों को टॉयलेट करना बंद करो जो अपनी लाइफ में कुछ नहीं कर रहे हैं। ऐसे लोग आपको कभी ऊपर उठने में और बेहतर बनने में मदद नहीं करेंगे बल्कि ये लोग तो आपके ऊपर बोझ बनकर आपको ही नीचे दबाएँ। रखेंगे नंबर सिक्स मेंटल अब्यूस अगर आप एक ऐडल्ट हो और कोई इंसान आपको किसी भी वे में अब यूज़ कर पा रहा है तो उसका मतलब कि आपकी कोई बाउंडरीज ही नहीं है। आप एक टिपिकल नाइस गए हो और आप कांवड़ ली हो, आई नो अब्यूज़ इंसान को ब्लेम करना गलत साउंड कर रहा है। बट बिकॉज़ हम यहाँ पर बच्चों की बात नहीं कर रहे हैं तो आपको अपनी सिचुएशन की रिस्पॉन्सिबिलिटी लेनी पड़ेगी। ऐडल्ट मेल अगर आप अभी भी मेंटल ये इवन फिजिकल अब्यूज का शिकार बन रहे हो। देन डू समथिंग अबाउट इट। अगर आपको कोई इनसिक्योर फील करा रहा है, आपको इमोशनली टॉर्चर कर रहा है या फिर आपको अपने बारे में बुरा फील करा रहा है तो या तो उस रिलेशनशिप से खुद को बाहर निकालो या फिर खुद को मेंटली स्ट्रॉन्ग बनाओ और ये रिलाइंस करो कि दूसरों की नेगेटिविटी उनकी चोट का प्रूफ है और उनकी बातों का आप से कोई लेना देना नहीं है। नंबर सेवन सम्वन के लिए नेटिंग यू फ्रॉम फ्रेंड्स और फैमिली गलत दोस्त आपको आपकी फैमिली से दूर करते हैं। और गलत पार्टनर आपको फ्रेंड्स और फैमिली दोनों से दूर करते हैं। हम उन लोगों की बात कर रहे हैं जो आप को मैनिपुलेट और यूज़ करना चाहते हैं। ऐसे लोग बोलेंगे कि तुम्हारा परिवार पागल है या फिर तुम्हारे दोस्त बेकार है और मेबी ये बात सच भी हो क्योंकि ऑलमोस्ट हर किसी का परिवार पागल और दोस्त निकम्मे होते हैं। लेकिन अगर कोई इंसान आपको उन लोगों से दूर होने को बोले जिन्हें आप प्यार करते हो और जो आपको हमेशा से सपोर्ट करते आए हैं तो ऐसे इंसान की मैनिपुलेशन को कभी टॉलरेट मत करो। नंबर एट पैरेन्ट्स डिस्ट्रॉय ओर ड्रीम्स इस चीज़ के चान्सेस बहुत ज्यादा है कि आप अपने सबसे बड़े गोल्स को कभी अचीव नहीं कर पाओगे क्योंकि यू अर नथ्थिंग राइट नाउ आप अपनी हाइएस्ट पोटेंशिअल और बेस्ट वर्जन से बहुत दूर हो। इस वजह से दूसरों के लिए आपके ड्रीम्स मैं बिलीव और इन्वेस्ट करना बहुत मुश्किल होता है। बट खुद की लिमिट्स को ढूंढने के लिए यू हैव टु पर्स यू योर ड्रीम्स में बी आपके गोल्स बीच रास्ते में बदल जाए में बी आप फेल हो जाओ और में बी आप आधे रास्ते में भी कर लो कि आप गलत थे और आपके पेरेंट्स ही थे। बट स्टिल यू कैननॉट टेक एनी चान्सेस ज़िंदगी एक ही बार मिलती है और इसमें खुद की मर्जी से फेल होना बहुत बेटर होता है। पूरी जिंदगी दूसरों को कोसने से आप 10 बार फेल होकर फिरसे खड़े हो सकते हो, लेकिन अपने अंदर से उन लोगों के लिए कड़वाहट और गुस्सा हटाना बहुत मुश्किल होगा जिन्होंने आपको अपने सपनों पर गिवअप करने के लिए कन्विंस कर रहा था। नमन नाइन नॉट लुकिंग फॉर बेस्ट आसामाजिक आपको हमेशा यह ध्यान रखना चाहिए कि आप अपनी अपीयरेंस को ऑप्टिमाइज़ करो, रिस्पेक्ट कमांड करने के लिए और खुद में कॉन्फिडेंस फील्ड करने के लिए ज्यादा बैगी या फिर मुझे हुए कपड़े मत पहनो ऐंड स्पेशल ली ड्रेस योर एज एडल्ट होने के बाद भी बच्चों की तरह रंग बिरंगी टी शर्ट्स और वही सेम नीली जीन्स पहनना बंद करो और प्रॉपर फिटिंग वाली शर्ट्स, ट्राउजर्स, शॉर्ट्स या फिर एथनिक क्लोज़ पैनल जिसतरह से आप अपनी हेल्थ फाइनैंस या फिर स्टेटस को लेवल अप करते हो, वैसे ही अपनी अपीयरेंस को लेवल अप करना भी बहुत जरूरी होता है। नंबर 10 इन ऐक्शन खुद से हमेशा ग्रेटनेस एक्सपेक्ट करो और कभी भी हाँ फेस एफर्ट आधा अधूरा काम आलस इन चीजों को खुद से मत जोड़ों इन ऐक्शन ब्रीड्स डेथ जो लोग कुछ काम नहीं करते और रिस्पॉन्सिबिलिटी से नजरें चुराते हैं, वो लोग मौत के पुजारी होते हैं। ऐसे लोग जिंदगी को खुलकर जीने से डरते हैं और आराम में खुशी ढूंढ़ते हैं। आप अपनी लाइफ में बहुत कुछ हासिल कर सकते हो, लेकिन इसके लिए जरूरी है कि आप खुद के स्टैंडर्ड को ऊपर उठाओ और आसामाजिक कई चीजों को टॉलरेट करना बंद करो।","राजाओं, अपने मानकों को ऊंचा रखो। आप में से बहुत से लोग हार मानने का मन कर रहे हैं क्योंकि कायर का जीवन जीना आसान है। अनादर लेना, चालाकी करना या औसत बने रहना आसान है। जो मुश्किल है वह है अपने जीवन पर नियंत्रण रखना, सीमाएँ बनाना और दूसरों के बुरे व्यवहार को बर्दाश्त न करना। इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम उन 10 बातों के बारे में बात करेंगे जो आपको किसी से कभी भी बर्दाश्त नहीं करनी चाहिए।" "अगर आपने कभी एक कोल्ड शॉवर या एक कोल्ड बात ली है तो आपको यह पता होगा कि शुरू की ठंड और डिस्कम्फर्ट के बाद आप ऐक्चूअली काफी अच्छा फील करते हो। साइंटिफिक स्टडीज़ बताती है कि ठंडे पानी से नहाने से हमारा स्ट्रेस कम होता है। टेस्टॉस्टोरोन और इम्युनिटी बढ़ती है, इन्फॉर्मेशन कम हो जाती है और इवन स्किन ज्यादा हेल्थी लगने लगती है और शायद ये सब आपको पहले ही पता होगा क्योंकि यह इन्फॉर्मेशन इन्टरनेट पर हर जगह फैली हुई है। पर जो चीज़ अभी भी क्लियर नहीं है वो यह है कि कोल्ड शॉवर्स हमारी मेंटैलिटी को कैसे बदलते हैं? हिस्टरी की मदद लेने पर पता लगता है कि ठंडे पानी से नहाना ये काफी एनशिएंट होलिस्टिक प्रैक्टिस है। कई सिविलाइज़ेशन स् जैसे चाइनीज रोमन, ग्रीक, ओरिजि ऑप्शन कोल्ड वाटर को काफी थेरप्यूटिक मानते थे। इवन योग्य कल्चर में भी बताया गया है। की ठंडे पानी से नहाना या फिर बहते पानी में डुबकी लगाने से हमारा खून मसल्स से निकलकर ओर गन्स के पास चला जाता है और जब यह खून हर तक पहुंचता है तब अपने इतने तेज इलेक्ट्रोमैग्नेटिक चार्ज की मदद से हर्ट इस खून को लाइफ फोर्स एनर्जी यानी प्राण जिसे चाइनीज कल्चर में बोला जाता है, उसके साथ रिचार्ज कर देता है और यह फ्रेश खून हमें एनर्जेटिक और मेंटली शाप बनाता है। इसके साथ ही जस्ट बिकॉज़ कोल्ड शॉवर्स इतने अनकंफर्टेबल होते है। वो हमारी मेंटल टफनेस को बढ़ाते हैं। यह इसलिए होता है क्योंकि इस मॉडर्न टाइम पर हमारी ऑलमोस्ट सारी बेसिक नीड्स पूरी हो जाती है। हमारे पास खाना, पानी, कपड़े, जंगली जानवरों से सुरक्षा और मौसम से बचने के लिए शेल्टर है। यानी ज्यादातर ह्यूमन पॉप्युलेशन एक काफी कम्फर्टेबल लाइफ जीती हैं। जैसे जैसे ज्यादातर लोग लग्जरी आइटम्स खरीद पा रहे है, वैसे वैसे वो ज्यादा कंफर्टेबल और कई में वीक होते जा रहे हैं। जैसे एक साइकल या बाइक चलाने वाला इंसान एक कार लेने के बाद अपनी पुरानी मुश्किलों को भूल जाता है और अपनी इस नई फैसिलिटीज हल्के में लेने लगता है। या एक गरीब इंसान जब पहली बार एक सेफ और साफ इलाके में रहने लगता है तो कुछ टाइम बाद उसके लिए वो नॉर्मल बन जाता है और वो कम्फर्टेबल हो जाता है। पर एक कम्फर्टेबल लाइफ के साथ प्रॉब्लम यह है कि इसमें कोई ग्रोथ नहीं है। हमारी बॉडी और हमारा दिमाग बोलता है कि हमें उन चीजों से दूर रहना चाहिए जिनसे हमें डर लगता है। स्पेसिअली अगर वो चीज़ जानलेवा है जैसे ऊँचाई या फिर एक शेर। हाउएवर ज्यादातर हम उन अनकंफर्टेबल चीजों को भी अवॉर्ड कर देते हैं जोकि जानलेवा तो नहीं है पर वो हमारी ग्रोथ के लिए बहुत जरूरी है। फॉर एग्जाम्पल। अगर आपको अपने दिमाग को शांत करने के लिए मेडिटेशन करना है तो शुरुआत में आपके लिए एक जगह पर बैठे रहना बिना कुछ करे और बोले बहुत अनकम्फर्टेबल होगा, पर कुछ टाइम बाद जब आप इस मुश्किल स्टेज को पार कर लोगे, सिर्फ तब आप इससे जुड़े बेनेफिट्स ले पाओगे। डॉक्टर अब्दुल कलाम ने अपने एक कोर्ट में बोला है कि हमारी लाइफ में मुश्किलें हमें खत्म करने के लिए नहीं आती बल्कि वो हमें हमारी छुपी पोटेंशिअल तक पहुंचाती है। अपनी मुश्किलों को बता दो कि तुम भी मुश्किल हो। इसका मतलब अगर हम चाहते हैं कि हम लाइफ में आगे बढ़े तो हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि हमारी मुश्किलें हमारे से बढ़ी है बल्कि हमें इन मुश्किलों को यूज़ करना चाहिए अपने आप को एक्सपैंड करने के लिए और कोल्ड शॉवर्स लेने के पीछे। यही रीज़न है, क्योंकि जब आप अपने दिमाग की आवाज को शांत करके ठंडे पानी में जाते हो तब आप सब कॉन्शस ली अपने आपको लाइफ में मिलने वाले और बड़े चैलेंजेस के लिए प्रिपेर कर रहे होते हो। अगर आप इतने डिसिप्लिन बन सकते हो की आप रोज़ ठंडे पानी से नहाओ तो धीरे धीरे आपकी मेंटैलिटी ऐसी हो जाएगी कि आप अपनी प्रॉबलम्स से दूर भागने के बजाय उनको फेस करने लगोगे। कई सालों तक ठंडे पानी में नहाने के बाद मैं ये बोल सकता हूँ। की जितना डिस्कम्फर्ट में पानी में जाते हुए महसूस करता हूँ, उतना ही मैं अपनी विल पावर को बढ़ता हुआ देखता हूँ और हर दिन ऐसा नहीं लगता कि ओके। अब फाइनली ये चैलेंज आसान हो चुका है बल्कि मेरा दिमाग अब ये मान चुका है कि मैं पहले से ज्यादा स्ट्रांग हूँ। कुछ टाइम पहले टेरेन्स मैगना का एक लेक्चर सुनते हुए मुझे एक काफी इम्पोर्टेन्ट बात समझ आयी। उसने बताया कि हमारा यूनिवर्स फैक्टरी में काम करता है। यानी अगर एक पैटर्न एक स्किल पर काम करता है तो हम काफी ऐक्युरेसी के साथ ही एक्सपेक्ट कर सकते हैं कि वो दूसरे स्केल्स पर भी काम करेगा। जैसे ज्यादातर जानवरों की दो आंखें, दो कान, एक मुँह और एक नाक होती है। क्योंकि जब यूनिवर्स को एक ऐसा पैटर्न मिल जाता है जो काम करता है तब वो उसे बाकी जगहों पर भी अप्लाई कर देता है। यही रीज़न है कि क्यों अपने डरो को अपनी मर्जी से फेस करने से यह हिम्मत बाकी कामों में कैरीओवर हो जाती है। अगर आप रोज़ अपने आप को टॉर्चर करने से नहीं डरते तो चान्सेस है कि आप लाइफ में बाकी चीजों से भी नहीं डरोगे और प्रॉब्लम के टाइम पर जब बाकी लोग घबराकर भाग रहे होंगे तब आप वह इंसान होंगे जो एक क्लिअर और काम दिमाग से सोच पाएगा और एक सॉल्यूशन निकाल पाएगा। ठंड में ठंडे पानी से नहाना एक ऐसी प्रैक्टिस है जो आपको यह समझाएगी कि आपके सिस्टर्स इस प्रैक्टिस को परफॉर्म करते हुए क्या महसूस करते थे और क्यों उनके लिए नहाना एक मेडिटेशन की तरह था। सो अगर आप रेगुलरली ठंडे पानी से नहीं नाते तो आप इन थ्री स्टेप्स को यूज़ कर सकते हो। इस नई हैबिट के बेनेफिट्स को मैक्सिमाइज करने के लिए स्टेप वन सबसे पहले आपने अपनी ब्रीदिंग को कंट्रोल करना है यानी पानी में जाने से पहले एक दीप रेट लो और अपने दिमाग को शांत करो ताकि आपके दिमाग में डर कम से कम रहे और अगर आप चाहो तो आप अपनी बॉडी को एक दम से शॉक देने के बजाय पहले गर्म पानी यूज़ कर सकते हो। और नहाने के एंड में ठंडा पानी स्टेप टू ठंडे पानी से नहाते रहने के एक हफ्ते बाद अपने इस पानी में रहने का टाइम बढ़ाना स्टार्ट करदो इससे आपकी ठंड को सहने की टॉलरैंस भी बढ़ेगी और आपकी विल पावर भी। स्टेप थ्री अब जब आपको ठंडे पानी में जाने से कम डर लगता है आपने इस ठंडे पानी को और ठंडा करना है और वीक में एट लिस्ट एक बार अपनी बॉडी की हेल्थ और अपनी हिम्मत टेस्ट करने के लिए इस बर्फीले पानी में नहाना है।","ठंडे पानी से नहाने से मूड में सुधार, स्वस्थ त्वचा/बाल, व्यायाम के बाद तेजी से स्वास्थ्य लाभ आदि जैसे अत्यधिक लाभ मिलते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि यह सब स्वैच्छिक यातना आपकी सोच के साथ क्या करती है? इस पॉडकास्ट में पता करें कि मैं ठंडे पानी के उपचार के मानसिक लाभों के बारे में गहराई से जाता हूं और आप इसे सुरक्षित रूप से कैसे उपयोग कर सकते हैं। हमें Youtube पर खोजें: www.youtube.com/psychologyinhindi" "जब भी हम दुनिया में दूसरे लोगों को देखते हैं, चाहे वो हमारे फ्रेंड्स हो या कोई भी अनजान इंसान सोशल मीडिया पर तब हमारा फोकस उन चीजों पर जाने लगता है जो हमने अभी अचीव नहीं करी है। हम सोचने लगते हैं कि हम तो सबसे पीछे चल रहे हैं और इसी ख्याल के साथ हम खुद को ही ब्लेम करने लगते हैं। हम उन चीजों को इग्नोर करने लगते हैं जो हमने ऑलरेडी अचीव कर ली है और जो चीजें हमें दूसरों से अलग बनाती है, हम ये भूल जाते हैं कि हमने अपनी जर्नी कहाँ से शुरू करी थी और आज हम प्रोग्रेस करते हुए कितनी दूर आ चूके हैं और ये चीज़ हमारे लिए बहुत ही ज्यादा डिस्क अरेंजिंग डी मोटिवेटिंग होती है। जब भी हम अपनी बॉडी को नेगेटिव थिंकिंग की वजह से स्ट्रेस हार्मोन से भर लेते हैं तब अपनी लाइफ के पॉज़िटिव को पहचानना और एक्सेप्ट करना बहुत मुश्किल हो जाता है। इसलिए इस एपिसोड में हम कुछ ऐसे साइंस को डिस्कस करेंगे जिनसे आप ऐक्चुअल में ये फिगर आउट कर पाओगे कि क्या सच में आप अपनी लाइफ में कुछ नहीं कर रहे हैं और आप सबसे पीछे हो या फिर यह बस आपकी एक बायस या आप का इल्यूजन है। साइन नंबर वन यू नेवर गिव अप यानी आपकी लाइफ में चाहे कितनी भी मुश्किलें आई हो और आप जितना भी लॉस क्यों ना फील कर रहे हो आप ये जानते हो की कायरों की तरह गिव अप करना या अपने फेल्यर, उसका ब्लेम दूसरों पर डाल ना कोई ऑप्शन नहीं है। आप जानते हो कि अगर आप आज बहुत लो फील कर रहे हो और लाइफ दिन पर दिन मुश्किल होती जा रही है तब भी असली चैलेंज इन मुश्किलों को सहना नहीं बल्कि इन मुश्किलों के बावजूद वापस से अपने पैरों पर खड़े होना और हंसकर फिर से अपनी जिंदगी पर काम करने लग जाना यही लाइफ है। इसलिए अगर आप भी मुश्किल समय में डटे रहे और जितनी बार भी लाइफ मैं आप को नीचे गिराया उतनी बार ही आप खुद को उठाकर आगे बढ़ते रहे तो इसका मतलब आप अपने आप को हद से ज्यादा डाउट कर रहे हो। और आप जितना सोच रहे हो आप उससे बहुत ज्यादा स्ट्रांग और कैपेबल हो। साइन नंबर टू यू नो द इम्पोर्टेन्स ऑफ बैंलेंस, चाहे वो वर्क लाइफ बैलेंस हो, अपनी हेल्थ को ऑप्टिमाइज़ करना हो या माइंड में घूमते थॉट्स को मैनेज करना हो। आप यह बात समझ चूके हो कि जो भी बैंलेंस डिसिशन आप आज लोगे उसकी वजह से आप सालों बाद भी खुद के पास सेल्फ को शुक्रिया बोलोगे। जबकि जो भी इंसान चीजों को सर ऑफिस पर ही देखता है और एक तरफ ही सोच रखता है वो हमेशा ही अपने डिसिशन स्कोरिंग रेट करता है। एक जाम पल के तौर पर जो भी इंसान पैसों का पीछा करते हुए अपनी हेल्थ को इग्नोर कर देता है या जो सिर्फ अपनी हेल्थ की परवाह करता है लेकिन उसका घर कैसे चलेगा उससे यही नहीं पता तो दोनों ही केसेस में ऐसा इंसान अपनी गलतियों के बुरे नतीजे और अपनी सफरिंग को बढ़ा रहा होता है। साइन नंबर थ्री यू डोंट वॉन्ट सम वन एल्स लाइफ यानी जो भी लोग इम्मेच्युर होते है वो ये ईज़ अली बोल तो देते हैं कि काश वो किसी दूसरे इंसान की जिंदगी जी रहे होते और काश उनके पास भी वो सब होता है जो दूसरे के पास है। लेकिन ऐसे लोग ये भूल जाते हैं कि अगर आप अपनी लाइफ को दूसरे की लाइफ से रिप्लेस कर दो तो उसकी अचीवमेंट के साथ साथ आपको उसकी प्रॉब्लम्स भी मिलेंगी। आप खुद से सिम्पली ये क्वेश्चन कर सकते हो कि जीस भी इंसान को आप अपने से ज्यादा लकी मानते हो कि आप एक्चुअल में वो ही बनना चाहते हो क्योंकि ऐसे तो जो भी उसकी एज है जैसे उसके पैरेन्ट्स है, जितनी उससे हेट मिलती है, ये सारी चीजे ही आपको हैंडल करनी पड़ेगी। लेकिन अगर आप इस थिंकिंग से बाहर निकल चूके हो कि आपको किसी दूसरे इंसान की जिंदगी जीनी है और अब आप खुद अपनी ज़िन्दगी सही करने पर फोकस हो तो उसका मतलब आप ऑलरेडी बहुत प्रोग्रेस कर चूके हों। साइन नंबर फ़ोर यू नो एग्ज़ैक्ट्ली, वॉट यू डोंट वॉन्ट क्योंकि हर इंसान के लिए यह फ़िगर आउट करना आसान नहीं होता कि वो अपनी ज़िन्दगी में क्या करना चाहता है और उसका लाइफ का पर्पस क्या है? लेकिन यह समझ जाना कि आपको क्या नहीं चाहिए और कौन से रास्ते पर नहीं चलना। यह भी अपने आप में एक जीत होती है। आप दूसरे लोगों को देखते हो जो हमेशा ये क्लेम करते हैं कि उन्हें एक ऐसा रिलेशनशिप चाहिए या वैसी जॉब चाहिए, लेकिन जब आपको नहीं पता होता कि आपको एग्ज़ैक्ट्ली क्या चाहिए, जो आपकी लाइफ को मीनिंग दें और आपको खुशी से भर दें तो इसमें कोई भी बुरी बात नहीं है क्योंकि हर इंसान का गोल अलग हो सकता है और आपको बस इस बात का अंदाजा हो गया है कि वो कौन सी चीजें हैं जो दूसरों को चाहिए लेकिन आपको नहीं तो इसका मतलब आप अभी भी सही ट्रैक पर हो क्योंकि गोल्स को लिस्ट से हटाने का ये प्रोसेसेस अपने सच तक पहुंचने का ही पार्ट होता है। नंबर फाइव यू डोंट गेट मिनी प्लेटेड ब्रैन्डस जो भी इंसान ऑलरेडी कॉन्सियसनेस के एक लोअर लेवल पर जीरा होता है, उसे पागल बना कर अपने आइडियाज़ या प्रोडक्ट्स को प्रोमोट करना बहुत आसान होता है। ऐसे लोगों को यही नहीं पता होता कि उनके नए ट्रेंड को फॉलो करने से असली बेनिफिट उनका नहीं बल्कि किसी बड़ी कंपनी या फिर ऑर्गेनाइजेशन का है। चाहे बात हो, किसी नए तरह के, फैशन की, बोलने के ढंग की या सोचने की। अगर किसी इंसान को, हर कुछ महीनों या सालों में बदलते ट्रेंड्स इतना ज्यादा इन्फ्लुयेन्स करते हैं कि वो अपना बैंलेंस और सच को छोड़कर टेंपरेरी प्ले चक्र सौर रिकग्निशन को अपना भगवान बना लेता है तो उसका मतलब वो इतने टाइम में कलेक्टर वाइज बिल्कुल भी वॉल नहीं हुआ है जबकि अगर आपको ये नकली सचो का कोई फर्क नहीं पड़ता आप हर अगले दिन पॉपुलर होते नए प्रोडक्ट्स ये स्कीम्स की चमक के आगे अंधे नहीं हो जाते। और आप इस वजह से बोरिंग कहलाने या अकेले होने से भी नहीं डरते। तो इसका मतलब आपकी समझ दूसरों के कंपैरिजन में और इवन आपके खुद के पुराने वाले वर्जन से बहुत आगे आ चुकी है और आप खुद को जितना सोच रहे हो, आप उससे कई गुना बेहतर कर रहे हो। साइन नंबर सिक्स यू अंडरस्टैंड देर इस मोर टु लाइफ देन मटिरीअल पोज़िशन्स यह एक और ऐसी चीज़ है जो अगर आप को ऑलरेडी पता है तो उसका मतलब आप ऐवरेज पॉप्युलेशन से बेटर कर रहे हो क्योंकि मॉडर्न दुनिया साइनस को अपना भगवान मानती है और मेन स्ट्रीम साइंस मटिरीअलिस्टिक है। यानी वो हर उस चीज़ को डैनी करती है जिससे वह मेजर नहीं कर सकती है। जीस वजह से ज्यादातर लोग अपनी खुशी फिजिकल चीजों में ढूंढ़ते हैं चाहे वो पैसा हो, नई कार, नया घर या लेटेस्ट गैजेट्स। लेकिन इन मटिरीअल चीजों से मिली खुशी कभी भी ज्यादा देर तक नहीं टिकती और आप ये बात जानते हो कि असली शांति और परमानेंट खुशी आउटसोर्स नहीं करी जा सकती और वह आप खुद ही हो जो आपको टू हैपीनेस तक पहुंचा सकता है। साइन सेवन यू आर ग्रेटफुल जहाँ आप ज्यादातर लोग इन टाइटल है और ये सोचते हैं की वो बिना काम करें ही हर चीज़ को डिज़र्व करते हैं, जिससे जब उन्हें कोई अच्छा इंसानियत चीज़ मिल भी जाती है तब भी उसे कोई एक्साइटमेंट या खुशी नहीं होती। ऐसे लोगों का ऐटिट्यूड हमेशा कुछ ऐसा ही रहता है जैसे पूरी दुनिया उनसे उधार लेकर बैठी हैं और उनका जिंदा रहना ही दूसरों पर एक एहसान हैं। लेकिन ये बिहेव्यर बहुत ही इमेच्योर और फूलेश होता है। दूसरी तरफ अगर आपको जितना भी मिला है, आप उसके लिए बहुत खुशकिस्मत फील करते हो तो यह समझ जाओ कि आप इस मतलबी दुनिया में दूसरों के कंपैरिजन में एक बेटर पोज़ीशन पर हो। साइन नंबर एट योर कन्टिन्यूसली ट्राइंग टु बिकम आ बेटर पर्सन लाइफ एक कन्टिन्यूसली लर्निंग प्रोसेसर है, जिसकी वजह से हमेशा खुद को परफेक्ट समझना और कोई गलती की गुंजाइश ना छोड़ना एक मूव नहीं होता। अगर आप हर समय खुद को इम्प्रूव करने के तरीके ढूंढ़ते रहते हो और अपनी कमियों में भी अपनी ग्रोथ की पोटेंशिअल देख पाते हो तो उसका मतलब आपने ऑलरेडी जर्नी का आधा रास्ता पार कर लिया है। साइन नंबर नाइन यू अर नॉट सेम पर्सन यूआर लास्ट इअर अगर आप अपने फ्रेंड सर्कल को बहुत जल्दी आउट कर लेते हो और कुछ ही महीनों या फिर एक 2 साल के बाद आपके पुराने फ्रेंड्स आपको पहचान भी नहीं पाते तो उसका मतलब आप एकदम सही ट्रैक पर हो और आपको बस पेशेंट्स रखकर इस प्रोसेसर को आगे बढ़ने देना है। हर इंसान के लिए अपने पुराने वर्जन को मानना, उससे जुड़ा दर्द सहना और फिर अपने एक नए वर्जन को जन्म देना, यह कोई आसान काम नहीं होता जिसकी वजह से ज्यादातर लोग कभी भी खुद को ट्रांसफॉर्म करना तो दूर वो ये भी नहीं जानना चाहते कि उनका अपने कंफर्ट ज़ोन से बाहर ना निकलना उन्हें कितना ज्यादा हार्म कर रहा है। साइन नंबर 10 यू ब्रिंग जड़ ऐंड होप टु अदर्स ये साइन बहुत रियल लोगों में ही होता है कि वो अपने अंदर जाकर उस ब्राइट लाइट और कभी न खत्म होने वाली एनर्जी को बाहर ला पाते हैं जो सिर्फ उनके खुद के दुख और उनकी डार्कनेस को ही नहीं बल्कि उनके आसपास वाले हर इंसान की जिंदगी से दुख और डार्कनेस को गायब कर देती है। इस पावर को ऐक्सेस करने के लिए पैसा स्टेटस, हाइ इन्टेलिजेन्स या कोई एक्सटर्नल वर्ल्ड में काम आने वाली स्किल नहीं बल्कि आपको बस क्युरिऑसिटी और सच जानने की हिम्मत चाहिए होती है। लेकिन कई बार ऐसे लोग जो दूसरों को तो खुशी और होप ईज़ी दे पाते हैं। वो इस बेसिस पर खुद को जज करने लगते हैं। किया तो वह फाइनैंशली उतना अच्छा नहीं कर पा रहे है या फिर क्या उनकी यह एबिलिटी उतनी मैटर भी गलती है? और अगर आप किसी भी दूसरी लाइफ को इंप्रूव करने के कैपेबल हो तो इवेन चली दूसरे लोग इस चीज़ को नोटिस करने लगेंगे और पूरी दुनिया आपकी तरफ अट्रैक्ट होने लगे गी और जो भी आपको चाहिए वो आपको सब मिलेगा। इसलिए कभी भी ये मत सोचो कि आप दूसरों से कम हो क्योंकि चान्सेस है कि आपको इस बात का अंदाजा भी नहीं है कि आप इस दुनिया में कितना बदलाव लाने के केपेबल हो। अगर आप बस खुद में विश्वास रखो तो","जब भी हम दूसरों को देखते हैं, चाहे वह हमारे दोस्त हों या सोशल मीडिया पर कोई अजनबी हमसे बेहतर कर रहा हो, तो हमें लगता है कि हम सबसे पीछे हैं और हम इस खेल को खो रहे हैं। जब ऐसा विचार हमारे दिमाग में आता है, तो हम अपनी प्रतिभा, उपलब्धियों को भूल जाते हैं और हम अपनी यात्रा में कितनी दूर आ गए हैं। यह इस पॉडकास्ट सेगमेंट में है, हम 10 संकेतों पर चर्चा करेंगे कि आप जितना सोचते हैं उससे बेहतर हैं।" "जिंस घर में किसी समय पैसों की कमी रही थी तब उस घर के लोग और स्पेशल ली। वहाँ के बच्चे बहुत ही इकोनॉमिकली ड्रिवन होते हैं और पैसा उनके लिए बहुत बड़ी चीज़ होती है। बहुत सिमिलर चीज़ उन लोगों के साथ भी होती हैं जिनके पास हद से ज्यादा पैसा होता है। उनके दिमाग से भी पैसा इसलिए बाहर नहीं निकल पाता क्योंकि उन्हें भी अपनी हर प्रॉब्लम का सल्यूशन पैसा ही लगता है। चाहे वो किसी लीगल इश्यू में फंस जाए या उनके घर में किसी की तबियत खराब हो जाए। उन्हें पता है कि पैसा होने से ये सारी प्रॉब्लम्स उनका ज्यादा कुछ नहीं बिगाड़ सकती। इन दोनों एक्स्ट्रीम की वजह से सोसाइटी में हर इंसान की वैल्यू उसकी कमाई से नापी जाती है। बचपन से ही हमारे दिमाग में ये डालना चालू कर दिया जाता है कि पैसा लोगों को जानने के लिए एक पर्याप्त है। एक इंसान की इनकम हमें यह आइडिया दे सकती है कि वह कितना काबिल है, उससे सोसाइटी के दूसरे लोग कितनी रिस्पेक्ट देते होंगे, वो कितना समझदार है, उसका करेक्टर कैसा है और हमें उसके साथ अच्छे संबंध रखने चाहिए या फिर नहीं। जो इंसान अच्छा खासा कमाता है, लोग उसके दोस्त बनना चाहते हैं। ऊपर तक पहुँच होने की वजह से उसे ऑपर्च्युनिटीज भी ज्यादा मिलती है। और उसकी पावर उसे दूसरों की नजरों में ज्यादा चार्मिंग बनाती है। लेकिन दूसरी तरफ जीस इंसान की इनकम कम होती है। उसे ऐसे ट्रीट कर आ जाता है जैसे वो धरती पर एक बोझ है और उसका जीना या मरना एक समान है। इंसान को उसके कॉन्ट्रिब्यूशन और सैक्रिफ़ाइस इसके लिए नहीं बल्कि इकट्ठे करेगा। एक कागज के टुकड़ों के लिए शाबाशी और रिस्पेक्ट दी जाती है चाहे उसे अपना ये सारा पैसा बिना कुछ ज्यादा कॉन्ट्रिब्यूट या बिना सैक्रिफ़ाइस करें ही क्यों ना मिला हो। पैसा गरीब और अमीर लोगों का भगवान है। जीवन कई लोग जिनके पास पैसों की कमी होती है वो ऊपर से तो ऐसा दिखाते हैं कि अमीर लोग कितने करप्ट होते हैं और उन्होंने पक्का गरीबों का पैसा खाया होगा लेकिन अंदर ही अंदर वो खुद भी अमीर बनना चाहते हैं। एक गरीब इंसान को उसके मुश्किल दौर में ये बोलना तो बहुत आसान होता है कि उसे सैलरी कम होने की वजह से खुद को यूज़लेस नहीं समझना चाहिए। लेकिन क्या इस बात में असल में कोई सच्चाई है भी या क्या ये बस लोगों का दुख कम करने या फिर उन्हें ज्यादा बढ़ाना सोचने के लिए बोला जाता है? सबसे पहले ये समझो कि एक इंसान की सैलरी इस बेसिस पर डिसाइड नहीं करी जाती। वो इतना वैल्यूएबल है, कितनी मेहनत करता है, यह कितना अच्छा काम करता है, किसी भी जॉब की सैलरी तय होती है। इस फैक्ट से की एक इम्प्लॉयर को कितना जल्दी या कितनी कुशलता के साथ अपना काम पूरा करवाना है और उसके काम को करने वाले लोग कितने अवेलेबल है? अगर एक काम को करने में बहुत रिक्वायर्ड होती है तो नैचुरली उस काम को करने वाले लोगों की संख्या कम हो जाएगी और अगर वो काम जरूरी भी है तो उस काम से जुड़ा पैसा बहुत ज्यादा होगा। हाउएवर अगर एक काम नेक और वैल्युएबल है, लेकिन उस काम को करने वाले लोगों की संख्या बहुत ज्यादा है। तो नैचुरली ऐसे काम में कम पैसा मिलेगा। एक्ज़ाम्पल के तौर पर दुनिया में ऐसे बहुत कम लोग हैं जो माइकल जॉर्डन जितना अच्छा बास्केटबॉल या विराट कोहली जैसा क्रिकेट खेल सके हैं और जस्ट बिकॉज़ इन स्पॉट्स को देखने वाले लोग बहुत ज्यादा है तो इन स्पोर्ट्स में खेलने वाले लोगों की सैलरी ज़ बहुत ज्यादा होती है। जीवन दो आप ये आर यू तो कर सकते हो कि एक इंसान का एक गेंद को थोड़ी दूर तक पहुंचा पाने और उसकी जिंदगी की वैल्यू में कोई रिलेशन नहीं है और ये बात एकदम सच है। लेकिन अगर एक काम की डिमांड ज्यादा है और सप्लाई कम तो उसके लिए ज्यादा पैसे मिलेंगे। यानी काम की कीमत डाइरेक्टली उस काम से पड़ने वाले पॉज़िटिव इम्पैक्ट से नहीं बल्कि बस उसकी मांग से नापी जाती है। जिसकी वजह से आपके काम की असली वैल्यू और आपकी असली वैल्यू पैसों से नहीं नापी जा सकती है। आज कोई चीज़ डिमांड में होगी और किसी सर टन चीज़ का ट्रेंड होगा और कल वो ट्रेंड बदल जाएगा। आप किसी इंसान की इनकम देखकर उसका चरित्र नहीं बता सकते हैं और ना ही आप ये जान सकते हो कि वो कितनी क्रिएटिविटी, मेहनत, प्यार, निष्ठा और सावधानी के साथ अपना काम करता है। हर रियल लाइफ क्वालिटी जो एक इंसान को डिफाइन करती है वो उसकी इनकम से नहीं पता लगाई जा सकती है और लोगों को सिर्फ उनकी इनकम से जानने का मतलब है कि आपने उन्हें जाना ही नहीं। हमारे दिमाग के सबसे पुराने हिस्सों में से एक यानी ब्रेन स्टेम में न्यूरॉन्स का एक बंडल होता है जिसे बोलते है रेटिकुलर ऐक्टिवेट इन सिस्टम या आरएस इस सिस्टम का काम होता है आपके एनवायरनमेंट में मौजूद इन्फॉर्मेशन को फ़िल्टर करना। जस्ट बिकॉज़ हमारे आसपास हर समय ध्यान देने और समझने के लिए लाखों और करोड़ों चीजें होती है। लेकिन हम इतनी सारी चीजों को एक साथ प्रोसेसन ही कर सकते। इसलिए हमारा आरएएस सिर्फ उन्हीं चीजों को प्रोसेसर करता है, जो हमारे लिए कोई अहमियत रखती है। यही रीज़न है कि क्यों? आप जीस भी चीज़ पर ज्यादा फोकस करते हो? आप को दुनिया में वही देखने लग जाता है। अगर आपने टीवी या इंटरनेट पर एक बहुत अच्छी कार देखी और आपका उसको लेने का मन करा तो आपको फिर हर जगह वही कार्ड दिखने लगे गी। अगर आप शादी करने की सोच रहे हो तो आपको हर जगह ही आपका पोटेंशिअल पार्टनर दिखना शुरू हो जाएगा। अगर आप नेगेटिविटी ढूंढ रहे हो तो आपको हर जगह नेगेटिविटी ही दिखने लगे गी अगर आप ऑलरेडी ये मानकर बैठे थे कि एक तरह की कास्ट, जेंडर या पॉलिटिकल पार्टी बुराइ से भरी है तो आपको अपने इस बिलीफ का प्रूफ हर जगह दिखने लग जाएगा और ऐसे ही जो इंसान पैसों को ढूंढ रहा होता है उसे भी हर जगह पर, हर बात में और हर इंसान में पैसों की ही झलक दिखने लगती है। आपको वही चीज़ हर जगह दिखने लगती है जिसे आप खोज रहे होते हो। इस नॉलेज के साथ हम यह समझ सकते हैं कि कैसे हर इंसान अपनी मर्जी से अपना वर्ल्डव्यू बदल सकता है। यानी लोगों को ऐसा हॉल और उनकी बीइंग के सारे कैरेक्टरिस्टिक्स साथ में देखने के लिए बजाय सिर्फ उन्हें उनकी पॉपुलैरिटी या स्टेटस है। जज करने के सबसे पहले दुनिया को सिर्फ पैसो की गेम की तरह देखना बंद करो और सिर्फ पैसो के पीछे मत भागो। पैसा बस एक सर्वाइवल का टूल है लेकिन इंसान की नीड्स सर्वाइवल से बहुत ज्यादा है। यही रीज़न है कि क्यों पैसा बस आपकी फिजिकल नीड्स को पूरा कर सकता है? और जो लोग जिंदगी को सर्विस लेवल पर जी रहे होते है वो इसी लेवल को सबसे ऊंचे स्तर पर रखते हैं कि कैसे भी करके बस पैसा मिल जाए और मेरी फिजिकल नीड्स पूरी हो जाए। यह बहुत ही लिमिटेड सोच है। क्योंकि पैसा मिलने के बाद भी अगर आप अपनी फिजिकल बॉडी से ऊपर उठकर अपनी स्पिरिचुअल नेचर के टच में नहीं आते तो आपने पैसा नहीं कमाया, आपने बेवकूफ़ी करी वो लोग जो सिर्फ पैसो के पीछे भागते हैं वही लोग कभी पूरी तरह से अमीर नहीं बन पाते हैं क्योंकि पैसे की प्यास अधूरी है और इसकी प्यास किसी को होनी भी नहीं चाहिए, क्योंकि पैसा एक कौन से कोइन्स होता है ना कि अल्टीमेट गोल अपनी ग्रोथ के लिए पैसों का पीछा मत करो। बस खुद को ग्रो होने देने के लिए हर जरूरी काम को करो और अगर इस रास्ते में पैसा आए जब पैसा एक्चुअल मैं आपको रिच बनाता है, लेकिन अगर आप अपने लाइफ पैट से हटकर और दूसरों को देखकर पैसों को ही अपना भगवान बना लेते हो, पर आपकी पोटेंशिअल एक ऐसा इंसान बनने और एक ऐसा काम करने की है, जिसमें ज्यादा पैसे नहीं मिलते तो आपको चाहे जितना मर्जी पैसा दे दिया जाए, आप अपनी पोटेंशिअल की तरफ ना बढ़ने की वजह से हमेशा ही दुखी रहोगे और अंदर ही अंदर मरते रहोगे। इस बात को डीपी समझो, क्योंकि मैं यह नहीं बोल रहा कि पैसा कमाना गलत है। पैसा बस एक सर्टन लाइफ पेट पर चलने का नतीजा है। एग्जाम्पल के तौर पर अगर एक सूरजमुखी के बगीचे में गलती से एक गुलाब का फूल उगने लगे तो वो बहुत ही इनसिक्योर फील करेगा कि वो दूसरों जैसा नहीं है। वो खुद की बुराइ करते हुए बोले गा कि देखो मेरे शरीर पर तो कांटे भी लगे हैं, पता नहीं मैं इतने सुंदर बगीचे में क्यों पैदा हो गया? लेकिन उसे यह नहीं पता कि गुलाब तो हर प्यार करने वाले का दोस्त है, उसकी सुंदरता और महक बहुत से प्रेमियों को साथ लाएगी। एक सूरजमुखी का बीज तो बस पेट भर सकता है और शरीर की नीड्स को पूरा कर सकता है। लेकिन एक गुलाब का काम इससे ज्यादा उच्च और ज़्यादा नेक हैं। हम इंसान भी उसी गुलाब के फूल की तरह है जो एक सूरजमुखी के बगीचे में पैदा हो गया है। हर इंसान झुंड से कुछ अलग करने के केपेबल है। आपकी पोटेंशिअल शायद एक बहुत अच्छे सिंगर, पेन्टर ऐक्टर, क्रिकेटर्स, नर्स या टेनिस प्लेयर बनने की हो, लेकिन अपने आस पड़ोस के लोगों और इंटरनेट पर देख कर आप अपनी पोटेंशिअल को अटेंड ना करके वही करने लगते हो जो दूसरे लोग कर रहे हैं। आप भी पैसों का पीछा करने लगते हो। अगर आजकल ट्रेंड में आन्ट्रप्रनर बनना है और ऑन्ट्रप्रनर्स की स्टोरीज़ आज कल न्यूज़ पर ज्यादा आती है तो ऑटोमैटिकली हर इंसान ही ऑन्ट्रप्रनर बनना चाहेगा। आप बस इन ट्रेंड्स को फॉलो करना बंद करो। अलग अलग कामों को ट्राई करके देखो। अगर आपके अंदर एक ऑन्ट्रप्रनर बनने की एक्चुअल में पोटेंशिअल होगी तो आप खुद ही उस चीज़ की तरफ खिंचे चले जाओगे और आपका प्यार अपने काम के लिए कभी खत्म नहीं होगा। हर काम आपको अमीर नहीं बना सकता और हर अमीर इंसान खुश नहीं होता, इसलिए पैसों को नहीं। अपनी ग्रोथ को प्रायोरिटी दो। इन लोगों की रिस्पेक्ट करो और उन्हें भी प्यार दो जिनका लाइफ पैथ अमेरिका नहीं है लेकिन वो फिर भी अपनी लाइफ से खुश हैं और दुनिया में कुछ कॉन्ट्रिब्यूट कर रहे हैं। जोसेफ कैंबल हमेशा बोलते थे फॉलो योर ब्लेस यानी अपने पैशन्स का पीछा करो। वो आपको असली खजाने की तरफ ले जाएंगे। आपका यूनीक खजाना याद रखो खजाना सिर्फ पैसो का नहीं होता बल्कि हम बस उस चीज़ को खजाना बोलते हैं जिसमें हमारी लाइफ बदलने की काबिलियत होती है और यह चीज़ पैसा भी हो सकती है और कुछ और भी।","जब भी किसी घर में पैसे की कमी होती है, तो परिवार के सदस्य और खासकर बच्चे वास्तव में आर्थिक रूप से प्रेरित हो जाते हैं। वे या तो पैसे का सम्मान करते हैं या अमीर लोगों से नफरत करते हैं, लेकिन दोनों ही तरह से वे पैसा चाहते हैं। यह जीवित रहने का साधन है, बिना पैसे के आप किराने का सामान भी नहीं खरीद सकते। लेकिन समस्या तब आती है जब आप इस एक गुण को बहुत अधिक महत्व देने लगते हैं। आप किसी व्यक्ति की आय देखकर उसके बारे में केवल इतना ही बता सकते हैं, यह उसके चरित्र, उसकी रचनात्मकता, उसके काम के लिए उसके प्यार या भले ही वह दुनिया में कुछ भी योगदान दे रहा है या नहीं, यह नहीं बताता है। पैसा यह वर्णन नहीं करता कि आप कौन हैं, लेकिन हम ऐसा व्यवहार करते हैं जैसे वह करता है। तो, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम इस मुद्दे पर और विस्तार करेंगे और सीखेंगे कि हमें पैसे का पालन करना चाहिए या नहीं।" "फ्रेंड ज़ोन एक ऐसी सिचुएशन को बोला जाता है जहाँ एक इंसान फ्रेंडशिप में ज्यादा इंटेन्स और डी फीलिंग्स डेवलप कर लेता है और वो फ्रेंडशिप के पार जाना चाहता है। लेकिन दूसरा इंसान उस फ्रेंड शिप में ही खुश होता है और वो चीजों को वैसे ही रखना चाहता है। इस तरह से एक इंसान फ्रेंड ज़ोन में फंस जाता है और कमिटेड रिलेशनशिप में ट्रांसलेशन करने में फेल हो जाता है। एवल्यूशन अरीब आइओ लॉजी में एक कॉन्सेप्ट होता है जिसे बोलते है बैटमैन प्रिन्सिपल जो बोलता है कि ज्यादातर स्पीशीज़ में मेल्स के रीप्रोडक्शन में बहुत ज्यादा वैरिएबिलिटी होती है। यानी कई हाई वैल्यू मेल्स को बहुत सी मीटिंग पार्टनर्स मिल रही होती है लेकिन ज्यादातर मेल्स को एक भी नहीं। यह इसलिए होता है क्योंकि मेल्स लाखों और करोड़ों पंप बनाने के कैपेबल होते हैं और इस प्रोसेसर में उनके बहुत कम रिसोर्सेस लगते हैं। जीस वजह से स्पर्म की बायोलॉजिकल कॉस्ट कम होती है, जबकि फीमेल्स को अपनी ज्यादा एनर्जी इन्वेस्ट करनी पड़ती है एक्स को प्रोड्यूस करने के लिए और उसके बाद भी उनके एक्स का काउंट स्पर्म के कंपैरिजन में बहुत कम होता है, जिसकी वजह से एक्स की बायोलॉजिकल कॉस्ट बहुत ज्यादा होती है और फीमेल सपने इन एक्स्पेन्सिव एक्स को वेस्ट करना अफोर्ड नहीं कर सकते हैं। इस वजह से फीमेल्स अपना पार्टनर्स चूज करते है। टाइम काफी चूजी होती है ताकि वो गलत डिसिशन लेकर एक इन्कॉम्पिटेंट या अंदर लेबल मेल के जीन्स में ना इन्वेस्ट कर दें और उनका रिटर्न ऑन इन्वेस्टमेंट उनकी पोटेंशिअल से कम ना हो। इसलिए मेल्स एक दूसरे से कंपीट करते हैं। फीमेल्स को यह प्रूफ करने के लिए कि वो उनके मेट बनने के लायक है, जिसके बाद फीमेल्स उन मेल्स में से सिर्फ बेस्ट मेल्स को ही अपना पार्टनर बनाती है। यानी जब भी एक इंसान दूसरे इंसान को फ्रेन्ड ज़ोन में डालता है तो उसका मतलब वो ये सिग्नल कर रहा होता है कि दूसरा इंसान बातचीत करने के लिए और मदद लेने या करने के लिए तो ठीक है, लेकिन उसे उस इंसान के जीन्स अगली जेनरेशन में पहुंचाने के लायक नहीं लगे। यही रीज़न है की वो ज्यादातर फ्रेंड ज़ोन के केसेस मेल्स के ही होते हैं और चाहे दो लोगों का सीधा गोल रीप्रोडक्शन ना भी हो। लेकिन फिर भी यह बायोलॉजिकल रूज़ जिसमें एक ***** कंप्लीट करता है और दूसरा चूज ही होता है। ये हमेशा अप्लाई होता है। जीस वजह से फ्रेंडज़ोन इस प्रोसेसेस का एक अटल नतीजा होता है यूश़ूअली हम बोलते है कि एक इंसान जो बहुत नाइस होता है, हमेशा ही अपने क्रश के लिए अवेलेबल होता है और उसमें दूसरे इंसानों को एक ऐडवेंचर का प्रॉमिस नहीं दिखता। तब वो इंसान उसे फ्रेंडज़ोन कर देता है और इन बातों में काफी सच्चाई है। क्योंकि हम हर इंसान, चीज़ या जगह को एक टेरिटोरी की तरह देखते हैं। जैसे या तो हमने पूरा मास्टर कर रखा होता है और हम उस के चप्पे चप्पे से वाकिफ हैं या फिर उसमें अभी भी एक्स्प्लोर करने के लिए बहुत कुछ बचा है। जो भी इंसान हमेशा ही अवेलेबल होता है वो अपनी मिस्ट्री खो देता है और उसे दूसरे लोग ऐसे देखने लगते हैं जैसे उन्होंने उसे मास्टर कर लिया है और उसमें अब कुछ एक्स्प्लोर करने लायक नहीं बचा है। वहीं जीस भी इंसान को हम इंट्रेस्टिंग या दीप मानते हैं। वह हमेशा ही हमारी नजरें खींचता है क्योंकि ऐसे इंसान को पाने का मतलब है कि आप इतनी सुंदर वो रेड चीज़ को एक्स्प्लोर कर पा रहे हो की आपका ये ऐडवेंचर खत्म ही नहीं हो रहा है और आप दूसरे इंसान की डेथ में खोते चले जा रहे हो। हर इंसान डीप इनसाइड यही डिज़ाइनर करता है कि उसे एक ऐसा पार्टनर नहीं चाहिए जो हमेशा ही उससे चिपका रहे हैं और उसके साथ रहने में कोई चैलेंज ना हो क्योंकि ऐसे तो जिंदगी बोरिंग हो जाएगी। यही रीज़न है कि क्यों हम कई बार टॉक्सिक लोगों को डेट करने की गलती कर बैठते है। जस्ट बिकॉज़ हमने अपनी लाइफ में ऐडवेंचर चाहिए होता है ना कि बोरियत लेकिन ये दोनों एक स्ट्रीम्स ही अनहेलथी है। बोरिंग लोग भी और टॉक्सिक लोग भी। हमें चाहिए वो इंसान जिसके साथ हम खुद को बेहतर बना सकें। नाउ अगर आप इस नॉलेज को प्रैक्टिकल यूज़ करना शुरू करो। खुद को एक फ्रेंड ज़ोन से बाहर निकालने के लिए तो आपको तीन स्टेप्स को फॉलो करना होगा। नंबर वन वे सबसे पहले अगर आप अपनी गलतियों को सही करना चाहते हो तो जीस इंसान को आप अट्रैक्ट करना चाहते हो। उनके लिए हर समय अवेलेबल रहना बंद करो। फीमेल्स अपने इंट्रेस्ट को छुपाने में यूज़्वली मेल से बेहतर होती है। इसके ऊपर से मेल्स फीमेल्स के हर छोटे मूव को ही एक अट्रैक्शन के साइन की तरह देखते हैं और एक्साइटेड हो जाते हैं। लेकिन शुरुवात में हर इंसान को ही इस एक्साइटमेंट या डेस्पेरेशन को इतना ऑब्वियस नहीं बनाना चाहिए क्योंकि यह चीज़ बहुत अनअट्रैक्टिव होती है। दूसरे इंसान को ऐसा लगने लगता है कि आप बस उनसे अपना मतलब निकलवाने के लिए जल्दी मचा रहे हो और आप टेंपरेरी या अन् रिलाएबल चीज़ होना की कोई ऐसी चीज़ जिसके साथ कमिट करा जाए, इसलिए अपने इंट्रेस्ट को कंट्रोल करो और उस रिलेशनशिप में बैंलेंस को रीस्टोर करो जहाँ दोनों इंसान एक दूसरे को सम लेवल पर देखते है। नंबर टू सोशल प्रूफ यानी अब तक आप बस अपने बेहेवियर से ये सिग्नल कर रहे थे कि आपके पास उतने ऑप्शन्स नहीं है और तभी आप सिर्फ एक इंसान के पीछे घूम रहे हो इसलिए इस स्टोरी को बदलने के लिए दूसरे लोगों से जाकर मिलो। नए फ्रेंड्स बनाओ। और अपने सर्कल को थोड़ा बड़ा करो। इससे आप भी नए रिलेशनशिप्स बनाकर खुश रहोगे और उस इंसान को भी ये प्रूफ मिलेगा कि इतने सारे लोग अगर आपके साथ समय बिताना चाहते हैं तो जरूर आप में कुछ खास बात होगी जो उसे नहीं देख रही है। नंबर थ्री मेक देम इन वेस्ट यह एडवाइस आपको बहुत से लोगों से मिले गी और इसका इतना पॉपुलर होने का रीज़न यही है कि एक काम करती है। अगर आप इसे यूज़ करो तो जहाँ पहले एक इंसान आप में उतना इनवेस्टेड नहीं था, वही आपने बस सिम्पली उनसे कुछ छोटे मोटे फेवर मांगने है क्योंकि जब भी कोई इंसान दूसरे के लिए कुछ भी करता है तब वो उसे ज्यादा लाइक करने लगता है। यह एक साइंटिफिक फैक्ट है और इसे बोलते हैं। बेन फ्रेंकलिन इफेक्ट जितना वो आपने इन्वेस्ट करेंगे उतना ही वो आप को पसंद करने लगेंगे। इसलिए उनके काम करना थोड़ा कम करो और उनसे फेवर्स मांगों और जब भी वो वैसा बिहेव करे जैसा आप चाहते हो तो उनकी तारीफ करके और उन्हें अच्छा फील कराके उन्हें रिवॉर्ड करो, ताकि यह प्रोग्रामिंग उनके मन में बैठ जाएं और आप दोनों एक दूसरे के साथ को ज्यादा अप्रिशिएट कर पाओ।","फ्रेंड जोन एक ऐसी स्थिति है जहां एक व्यक्ति अपनी दोस्ती में अपने दोस्त के लिए तीव्र भावनाओं का विकास करता है और वे दोस्तों से ज्यादा बनना चाहते हैं लेकिन दूसरा व्यक्ति उनके रिश्ते से खुश है। तो, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम चर्चा करेंगे कि आप फ्रेंडज़ोन में क्यों हैं और आप इससे कैसे बाहर निकल सकते हैं।" "कभी ना कभी एक टाइम ऐसा आता है जब हमें लगता है कि कोई हमारे आगे झूठ बोल रहा है या फिर हम श्योर नहीं होते कि हम उनकी बात मानें या फिर नहीं। ये एक इनटेरोगेशन के टाइम भी हो सकता है और हमारे पार्टनर फ्रेन्ड फैमिली या फिर किसी डील को निगोशिएट करते टाइम भी यानी किसी से भी सच बुलवा पाना काफी यूज़फुल स्किल हो सकती है। पर फॉर्चुनेट ली हमें इस किल को यूज़ करने के लिए एक एक्स्पर्ट होने की जरूरत नहीं है पर अगर हम प्रोफेशनल इंटेरोगेटर सको क्लोजली ऑब्जर्व करें। तो हम उनसे कहीं ऐसी टेक्नीक सीख सकते हैं जिनकी मदद से वो किसी का झूठ काफी आसानी से पकड़ लेते हैं। जैसे सबसे पहले वो देखते हैं कि क्या दूसरे इंसान की बॉडी लैंग्वेज और उनके आन्सर्स में कोई इन कॉन्ग वैन सी यानी मिसमैच है। एग्जाम्पल के तौर पे 2007 में अमेरिकन जर्नलिस्ट अमेन्ड नॉक्स पर अपनी फ्लैट मेट को जान से मारने का चार्ज लगा था और कुछ सालों बाद जब एक इंटरव्यू में उससे दुबारा पूछा गया कि क्या वो मर्डर उसने करा था और क्या वो उस रात मर्डर सीन के आसपास थी तो उसके आन्सर्स एक बात बोल रहे थे और उसकी बॉडी लैंग्वेज दूसरी डिड यू क्यों नाउ यू अर यू देर नाउ नाउ? डू यू नो एनीथिंग यू हैव नॉट टु प्लीज़? यू हैव नॉट सर इस पार्क डू यू नो एनीथिंग नाउ यहाँ पर क्वेश्चन पर अमेंडा काफी तेजी से आन्सर कर देती है क्योंकि ये क्वेश्चन उसने एक्सपेक्ट कर रहा था, पर दूसरे क्वेश्चन के टाइम जब उससे पूछा गया कि क्या वह मर्डर के टाइम वहाँ थी, तो उसकी ऊपर उठ गई? उसकी आइज़ वाइड हो गई और वह एक सरप्राइज़ माइक्रो एक्सप्रेशन देने लगी। जिसके बाद उसने अपना सर नॉट करते हुए अपनी बॉडी लैंग्वेज से हाँ बोला, सेकंडली हमें यह ध्यान रखना चाहिए की हम उनके सेन्टेन्स ना पूरे करे। हमें हमेशा कुछ सेकंड से रोकना चाहिए, यह पक्का करने के लिए कि उनके पास और कुछ बोलने के लिए नहीं है और नोडॉन्ग काफी अच्छा जस चक्र है यह कन्वे करने के लिए की हाँ, मैं सुन रहा हूँ बोलते रहो ज्यादातर जब हम चुप रहते हैं तो जो इंसान झूठ बोल रहा होता है वो अपनी नर्वसनेस की वजह से हमें कन्विंस करने के लिए और डिटेल्स देने लगता है। थर्ड ली अगर हम किसी से कोई सीक्रेट उगलवाना चाहते हैं तो उनकी पर्सनल स्पेस में एंटर करना उन्हें ज्यादा ट्रांसपेरेंट बना सकता है। ये हमे मूवीज़ में काफी देखने को मिलता है कि कैसे पुलिस वाले या फिर डिटेक्टिव ज़ सस्पेक्ट के एकदम पास आकर बैठ जाते हैं, जिससे वो इंसान अपनी स्टोरी और भी डीप जाकर सुना पाता है। फोर्स ली जब वो अपनी स्टोरी सुना रहे हों तब हमें उन्हें बोलना चाहिए की वो उसे उल्टा सुनाये या फिर बीच मैं से सुनाना शुरू करें। क्योंकि ज्यादातर लोग अपनी झूठी स्टोरी को एक लिनियर वे में याद करते हैं, जिसकी वजह से जब हम उनसे उनकी स्टोरी किसी नए तरीके से पूछते हैं। तब उनके झूठ को पकड़ना हमारे लिए काफी आसान हो जाता है और इसके साथ ही हम उनकी स्टोरी को और भी बुरा बना कर बोल सकते हैं और नोटिस कर सकते हैं की क्या वो हमें रोककर हमें ठीक करते है? क्योंकि अगर वो ऐसा करते हैं तो वो उनकी कन्फेशन होगी? फॉर एग्जाम्पल। अगर हमें लगता है कि हमारे किसी फैमिली मेंबर ने हमारे वॉलेट से पैसे लिए हैं तो हम उन्हें अपने लॉस को बढ़ाकर ये पूछ सकते हैं कि मुझे सच सच बताओ क्या तुमने मेरा क्रेडिट कार्ड और पैसे लिए हैं? और अगर हमारा क्रेडिट कार्ड नहीं घूमा है तो ऑब्वियस्ली वो उन्होंने नहीं लिया जिसकी वजह से चान्सेस है की वो उस पार्ट को सही करना चाहेंगे जो उन्होंने करा ही नहीं। क्योंकि कोई भी झूठ बोलने वाला उस ब्लेम से बचना चाहता है, जिसका बेनिफिट उसे मिला ही नहीं। लास्ट ली एक और टेकनिक जो किसी से भी निकलवाने में काफी इफेक्टिव हो सकती है, वो है उनसे एम प थिस करना और उनके कामों को ऐसा बना देना जैसे वह कोई बड़ी बात है ही नहीं। ये तरीका काफी अच्छा होता है। उनका ट्रस्ट पाने के लिए जिसके बाद उनके लिए सच बोलना आसान हो जाता है और इस तरह से हम उनसे एक अंडमान में कई निकलवा सकते हैं या फिर सीधा सीधा उनसे कॉन्फ्रेंस करवा सकते हैं।","एक बार जब आप उन मनोवैज्ञानिक तकनीकों को समझ जाते हैं जो पेशेवर पूछताछकर्ता अपने संदिग्धों पर न केवल सच्चाई को बाहर निकालने के लिए उपयोग करते हैं बल्कि उन झूठों का पता लगाने के लिए भी करते हैं जो दूसरों से चूक जाते हैं, तो झूठा को पहचानना और किसी को सच कबूल करवाना वास्तव में आसान हो सकता है।" "करिज्मा का मतलब है किसी को भी अपने चाम की मदद से अपनी तरफ अट्रैक्ट करना और हमारे लिए यह आइडेंटिफाइ करना काफी आसान होता है कि कौन सा इंसान करिज्मैटिक है, क्योंकि इन लोगों के रूम में आते ही सबकी एनर्जी बदल जाती है। हर इंसान इनकी तरफ खींचा चला आता है और वो मोमेंट उनके लिए काफी यादगार बन जाता है और करिज्मा की सबसे अच्छी बात यह है कि यह एक स्किल है, जिसे हम बार बार रिपीट करके अपने आप को ज्यादा अट्रैक्टिव बना सकते हैं। सो, इस एपिसोड में हम बात करेंगे ऐसी फाइव हैबिट्स की जो हर करिज्मैटिक पर्सन में कॉमन होती है। हैबिट नंबर वन मैटिक लोग दीप क्वेश्चन्स पूछते हैं ये हैबिट इस लिए काम करती है क्योंकि नोर्मल्ली किसी से बात करते है टाइम हमारा दिमाग ऑटो पायलट पर आन्सर्स दे रहा होता है। कैसे हो? मैं अच्छा हूँ, आप कैसे हो? मैं भी अच्छा हूँ, काफी टाइम से मिले नहीं। हाँ मैं बीज़ी था। यू सी ऐसी बोरिंग कॉन्वरसेशन किसी को भी याद नहीं रहती क्योंकि इसमें कुछ मीनिंगफुल या फिर नया है ही नहीं। पर जब आप किसी से एक दीप क्वेश्चन पूछ कर उसको अपनी स्टोरी सुनाने के लिए एनकरेज करते हो तो उनके दिमाग में आप काफी इम्पोर्टेन्ट और मेमोरेबल बन जाते हो। यह इसलिए होता है क्योंकि हमारा दिमाग कुछ इस तरह से बना है कि जब भी हम कोई ऐसी नई चीज़ एक्सपिरियंस करते हैं जो हमारे इमोशन्स को जगाती है तो हमारे दिमाग में मौजूद ब्रेन सेल्स लिटरल्ली नहीं मेमोरी बनाने लगते हैं। सो जब भी आप किसी से मिलो ट्री करो कि आप उनके दिमाग का ऑटो पायलट मोड ऑन करने के बजाय उनके पैशन या फिर गोल्स जैसी चीजों के बारे में पूछो, जिससे उनमें इमोशनल अराउजल बढ़ जाए और वो आपके करिश्मा के फैन बन जाए। नंबर टू करिज्मैटिक लोग ऑथेंटिक होते हैं और अगर उनमें कोई खामी या फिर बुरा ई हैं तो वो उससे भी बाहर लाने में नहीं डरते हैं और उनका ये भी है विर बाकी लोगों को उनसे रिलेट करने का मौका देता है। बिकॉज़ हमें वो इंसान बिल्कुल अच्छे नहीं लगते जो ऐसा दिखाते हैं कि उनमें कोई कमी है ही नहीं और वो पर्फेक्ट है और तभी ऐसे लोगों पर ट्रस्ट करना बहुत मुश्किल होता है। हम इस क्वालिटी को सेलेब्रिटीज में भी देख सकते हैं कि कैसे कई ऐक्टर्स मिस्टिक होते हैं और उन्हें काफी हिट करा जाता है। पर दूसरी तरफ कई ऐक्टर्स और ऐक्ट्रेसेस इतने बोल्ड होने के बाद भी अपनी कमियां दिखाकर सबको इम्प्रेस कर देते है। एग्जाम्पल के तौर पर अगर हम डूइंग जॉनसन यानी द रॉक की पर्सनैलिटी को देखें तो वो काफी कॉन्फिडेंट, स्ट्रॉङ्ग और एनर्जेटिक है और उसमें काफी सारी लीडरशिप क्वालिटीज भी हैं, पर जब हम इतने लंबे, चौड़े और मस्कुलर इंसान को वल्नरेबल होते देखते हैं तो हम उसे ऐन्विल करने लगते हैं। जब भी हम किसी और की मिस्टेक्स या फिर फेलियर्स के बारे में सुनते हैं, तब हम उनसे कनेक्ट कर पाते हैं और अपने आप को अपने फेलियर्स की वजह से कम जज करते हैं। यानी कैरिज मैं टिक लोग ऐसे तरीके ढूंढ़ते हैं जिसकी मदद से दूसरे लोग उनसे रिलेट कर पाएं। नंबर थ्री कैरिज मैं टिक लोग गुड लिसनर्स होते हैं यूज़्वली हमें ये समझाया जाता है कि हमारे पास दो कान और एक मूंग इसलिए है ताकि हम बोले कम और सुने ज्यादा और ये बिल्कुल सही है क्योंकि हमे वो लोग बिल्कुल अच्छे नहीं लगते जो हमेशा गॉसिप करते हैं, हमारी बातों को सुनकर भी इग्नोर कर देते हैं या फिर बस अपनी तारीफ करते जाते है। ऐसे लोगों पर ट्रस्ट करना बहुत मुश्किल होता है क्योंकि हमें ये नहीं पता कि कब वो हमारे बारे में भी गॉसिप करने लगे। सो हमे एक कॉन्वरसेशन में ईगोइस्टिक पर्सन बनने के बजाय दूसरे लोगों की अच्छाइयों को अप्रीशीएट करना है। साइकोलॉजी बताती हैं कि अगर हम चाहते हैं कि दूसरे लोग यह सोचें कि हम स्पेशल है तो हमें ऐसी बातें बोलनी चाहिए जिससे वो लोग एक अच्छी लाइट में आ जाए। कैरिज मैं टिक लोगों की यह हैबिट दूसरों को अपलिफ्ट करती है और उन्हें अपने बारे में अच्छा महसूस करने का मौका देती है। इससे पूरे ग्रुप की सोशल एंजाइटी भी कम हो जाती है। और जस्ट बिकॉज़ आई टी कम करने का एफर्ट आपने लिया? आप उन्हें स्पेशल लगने लगते हो। नंबर फ़ोर वो लोगों को एक दूसरे के पास लाते हैं और उन्हें ऐसा फील कराते है जैसे वो किसी बड़ी चीज़ का पार्ट है। हम सब इस मूवमेंट से गुजर चूके हैं। जब एक रूम में सारे लोग बोर्ड होते हैं और एक ऑक्वर्ड साइलेंस फैली होती है, तब हम सोचते हैं कि काश हमारा वो करिज्मैटिक फ्रेंड यहाँ पर होता और जैसे ही वो रूम में आता है वैसे ही वो सबको हर गौर हाइ फाइव करने लग जाता है। वह लोगों को कॉम्प्लिमेंट्स देता है जिससे सबका मूड एकदम से पॉज़िटिव हो जाता है और वो मोमेंट बोरिंग से जॉयफुल बन जाता है। यह होती हैं उनकी एनर्जी की ताकत और उनका ये बिहेव्यर हमें एक लोगो की साइकोलॉजी के बारे में बताता है। जैसे जब भी कोई इंसान हमें हँसते हुए मिलता है तो हम भी उनके इमोशन्स को मिरर करके अच्छा महसूस करने लगते हैं और इसके बाद अगर वो फिस्ट बंप या फिर वेव करने के बजाय हम से सीधा हैंडशेक या इवन हक करते हैं तो उस टच की वजह से हमारे अंदर बॉन्डिंग होर्मोन रिलीज होता है और हमारा दिमाग सडनली उन्हें एक फ्रेंड की तरह देखने लग जाता है। हम ये हैबिट कई सेलिब्रिटीज़ जैसे विल स्मिथ आप ओल्ड या इवन रणवीर सिंह में भी देख सकते हैं नंबर फाइव कैरिज मैं टिक लोग अपनी बोली बातों में बिलीव करते है। नाउ आप बोलोगे कि ऐसा तो हर इंसान ही करता है पर यह सच नहीं है क्योंकि अगर कोई इंसान आपके आगे एक बार भी झूठ बोलता है या फिर बिना किसी प्रूफ के बड़े बड़े दावे करता है तो आप समझ जाते हो कि इसकी बातों में बिल्कुल दम नहीं है और इस पर विश्वास करना बेकार है। किसी भी चीज़ को लो कॉन्फिडेन्स दो अश्योरेंस और एक हाइ पिच वौस के साथ बोलना इस बात को इंडिकेट करता है की वो इंसान अपनी स्टेटमेंट में बिल्कुल बिलीव नहीं करता। जाम पल के तौर पर इस टीवी शो पर जब एक इंसान इन्वेस्टर्स के आगे अपना आइडिया पिच कर रहा था, तब वो खुद ही डाउटफुल लग रहा था। वो आई कॉन्टैक्ट अवॉर्ड करके इधर उधर देख रहा था और ऐसे बिहेव कर रहा था जैसे वो अपने आइडिया पर खुद ही बिलीव नहीं कर पा रहा हो, जिसकी वजह से इन्वेस्टर्स ने उसका ऑफर रिजेक्ट कर दिया। और ऐसे इंसान के बिल्कुल दूसरी तरफ आते है जैसे लोग जो अपनी बातों से हमें एक बड़े पर्पस से जुड़ते हैं। यानी कैरिज मैं टिक हैबिट नंबर फ़ोर और फाइव दोनों को कंबाइन करता है। वो बताता है कि उसका ड्रीम है ह्यूमन सिविलाइज़ेशन को मार्च तक लेकर जाना और उसकी ये बात हमें ह्यूमन पोटेंशिअल के बारे में एक बड़े स्केल पर सोचने पर मजबूर करती है और जस्ट बिकॉज़ अपनी बातों पर कभी मुकरता नहीं है। हमें उस पर ट्रस्ट करने में असानी होती है। सो ये थी मैं टिक लोगों की फाइव कॉमन है।","करिश्मा अन्य लोगों के साथ रहने और बातचीत करने का तरीका है जिससे वे आपकी ओर अधिक आकर्षित हों। हालाँकि, ज्यादातर लोगों के लिए करिश्माई होना एक आनुवंशिक व्यवहार है यानी उन्हें लगता है कि आप अधिक करिश्माई या आकर्षक बनना नहीं सीख सकते लेकिन यह सच नहीं है। करिश्मा एक सामाजिक कौशल है जिसका आप अभ्यास और सुधार कर सकते हैं। हमें Youtube पर खोजें: www.youtube.com/psychologyinhindi" "अगर आप अपने आसपास देखो तो आपको वो सब चीजें दिखेंगी जो एक टाइम पर बस किसी इंसान की मेंटल इमेजेज थी, क्योंकि किसी भी चीज़ को रिऐलिटी बनाने के लिए हमें उसके बारे में पहले इमेजिन करना पड़ता है और हमारा दिमाग कॉन्स्टेंट ली। फ्यूचर एक्सपिरियंस इसको विजुअलाइज कर रहा होता है ताकि हम इसी तरह कुछ ना कुछ प्रोडक्टिव काम करते रहे। ये विज़ुअलाइज़ेशन स् रियल लाइफ के इतनी सिमिलर होती है कि हमारा दिमाग एक ऐक्चुअल फिजिकल इवेंट या उस समय इवेंट की इमैजिनेशन के बीच डिफरेन्स नहीं बता सकता। क्योंकि किसी ऐक्टिविटी को विजुअलाइज करके हम अपने दिमाग के उन्हीं को यूज़ करते हैं जो उस ऐक्टिविटी को परफॉर्म करते टाइम यूज़ होते हैं। जितनी ऐक्यूरेट्लि और विविध हमारी इमैजिनेशन होगी, उतनी ही शार्प हमारी स्किल बनती जाएगी। जैसे एक स्टडी में देखा गया था कि एक वेटलिफ्टर के दिमाग के जो पार्ट्स एक काफी भारी वेट उठाते टाइम ऐक्टिवेट होते हैं वहीं स में पार्ट्स तब भी ऐक्टिवेट होते हैं जब वो अपने आप को उस वेट को उठाते हुए इमेजिन करते हैं। और जब भी वो अपने दिमाग को पहले से कन्विंस कर लेते हैं कि वो एक भारी वेट को उठा सकते हैं, तब उनके उस वेट को उठाने के चान्सेस बढ़ जाते हैं। इस वजह से अपनी डिज़ाइरड आउटकम्स को विजुअलाइज करके हम अपने दिमाग को रिवाइव कर सकते हैं अपनी परफॉर्मेंस, फोकस और मोटिवेशन को बढ़ाने के लिए जिससे हम कम समय में बेहतर रिजल्ट्स प्रोड्यूस कर सके। इस टेक्नीक का कॉन्सेप्ट काफी सिमिलर है। लॉ ऑफ अट्रैक्शन के जो बोलता है की एक इंसान के पॉज़िटिव या नेगेटिव थॉट्स उसकी लाइफ में फेवरेबल या नॉन फेवरेबल इक्स्पिरीयन्स ला सकते हैं। कई स्टडीज़ में देखा गया है कि अगर एक बीमार इंसान सिर्फ अपनी थिंकिंग को चेंज कर दें और अपनी हेल्थ को इम्प्रूव होते हुए इमेजिन करें तो उसकी बिमारी सच में कम होने लगती है और वो बस अपनी विज़ुअलाइज़ेशन की मदद से अपनी बॉडी को हील कर पाता है। यानी अगर हमें किसी चीज़ में बेहतर बनना है तो हमें अपने आप को उसमें ऑलरेडी एक एक्स्पर्ट बनते हुए इमेजिन करना चाहिए। ये तरीका एथलीट्स और ऑन्ट्रप्रनर्स के बीच ऑलरेडी सबसे ज्यादा पॉपुलर हैं। आपने भी कई बार अपने फेवरेट ऐथ्लीट को देखा होगा कि कैसे वो मैच से पहले कुछ मोमेंट्स अकेले बिताते हैं और अपने आप को जीतते हुए विजुअलाइज करते हैं। इस तरह से वो अपनी एक्सपेक्टेशन्स और इमोशन्स को ज्यादा इफेक्टिव ली मैनेज कर पाते हैं। 2010 में हुई एक स्टडी में ये प्रूफ भी हो गया था कि जो लोग अपने पॉज़िटिव गोल्स को रोज़ विजुअलाइज करते हैं वो अपने दिमाग के उन एरियाज़ में ब्लड फ्लो बढ़ाते हैं जो डिसिशन मेकिंग के लिए जरूरी होते हैं। पर जो लोग नेगेटिव सोचते हैं या अपने गोल्स को विजुअलाइज नहीं करते। उनका ब्लड फ्लो उनके दिमाग के इमोशनल सेंटर्स में बढ़ने लगता है और इसी वजह से ये लोग प्रेशर के टाइम पर ना तो ढंग से परफॉर्म कर पाते है ना ही अच्छे डिसिशन ले पाते हैं और अपना प्रेजेंस ऑफ माइंड खो देते हैं। पर लॉ ऑफ अट्रैक्शन का आइडिया इससे भी ज्यादा डीप हैं। और सूफी रूमी ने एक बात बोली थी कि वॉट यू सीक? इस सीकिंग यू यानी जीस चीज़ को आप ढूंढ रहे हो वो आपको ढूंढ रही हैं। सो एग्जाम्पल के तौर पर अगर आप एक काफी हम्बल बैकग्राउंड से हो और आपकी लाइफ का सबसे बड़ा गोल है कि आप खूब सारे पैसे कमाकर अपने पैरेन्ट्स और कम्युनिटी की हेल्प कर सको तो आप विजुअलाइज करोगे की कैसे 1 दिन आप बड़ी बड़ी डील करोगे? अपने पेरेंट्स को नया घर दिलाओगे बड़ी गाड़ियां चलाओगे और बदकिस्मत लोगों की मदद करोगे और जितना आप इन सारे फ्यूचर इवेंट्स को इमेजिन करोगे, उतना आपका दिमाग इन मेंटल इमेजेज को सच मानने लगेगा और इस पॉइंट पर आप के साथ एक काफी अजीब चीज़ होगी। यानी आप अपने एनवायरनमेंट में हर चीज़ को एक टूल या एक ऑप्टिकल की तरह देखने लगे होंगे और जो टूल्स ये ऑपर्च्युनिटी ज़ आपको अपने गोल तक पहुंचा सकती है वो खुद आपके पास आने लगेंगी। इसे बोलते हैं। सिनी सिटी और विज़ुअलाइज़ेशन या लॉ ऑफ अट्रैक्शन को समझने के लिए सिंग्रेनी सिटी को समझना बहुत जरूरी है, क्योंकि पैरा साइकोलॉजी बोलती है की लाइफ एक रैन्डम सिरीज़ ऑफ इवेंट्स नहीं है, बल्कि हर इवेंट बाकी सारे इवेंट्स से कनेक्टेड होता है और तभी जो कुछ भी हम अपने अंदर एक्सपिरियंस कर रहे होते है हमें उसकी रिफ्लेक्शन बाहरी दुनिया में देखने लग जाती है। पर बहुत बार जब हमारे अंदर अपने गोल्स को लेकर कोई क्लैरिटी नहीं होती जब हम इन साइन्स को इग्नोर कर देते है और तभी विज़ुअलाइज़ेशन का काम होता है आपकी आउटर एक्सपिरियंस को आपके इन अरे एक्सपिरियंस के साथ सिंक्रनाइज़ करना। सो, अब हम बात करते हैं कि विजुअलाइज करने का सही तरीका क्या होता है सबसे पहले अपनी विज़ुअलाइज़ेशन को जितना हो सके उतना रीयलिस्टिक बनाने की कोशिश करो। जितनी एक्युरेट आपकी मेंटल इमेज होगी, उतना ही बेटर आपको आउट कम मिलेगा। और ऐसा क्यों होता है? इसको समझाने के लिए साइज के पास तीन थ्योरीज है। फर्स्ट हैं साइको न्यूरो मस्कुलर थ्योरी जो बोलती है की विज़ुअलाइज़ेशन काम करता है। क्योंकि अपने आप को एक ऐक्टिविटी परफॉर्म करते हुए इमेजिन करने से हम अपने उन सब कॉन्शस न्यूरोमस्कुलर पैटर्न्स को ट्रेन करते हैं, जो एक्चुअल ऐक्टिविटी या इवेंट के टाइम पर यूज़ होते हैं। सेकंड थ्योरी है फंक्शनल इक्विवैलेन्स जो बोलती है की विज़ुअल इमेजरी और ऐक्चुअल फिजिकल ऐक्शन स् सं न्यूरोफिजियोलॉजिकल प्रोसेसेस को शेयर करते हैं। जैसे जो न्यूरोकेमिकल्स आपकी बॉडी में तब रिलीज होते हैं जब आप कुछ जीतते हो। वहीं न्यूरोकेमिकल्स उस जीव की क्लिअर विज़ुअलाइज़ेशन के टाइम रिलीज होते हैं और आपको ऐसा फील कराते हैं कि आप ऑलरेडी एक चैंपियन बनने के काबिल हो। थर्ड थ्योरी है। सिम्बॉलिक लर्निंग थ्योरी जो बोलती है की विज़ुअलाइज़ेशन इसलिए काम करता है क्योंकि हम अपने ऐक्शंस और ऑल्टरनेटिव सॉल्यूशन्स को पहले से ही प्लैन कर लेते हैं जिसकी वजह से जब हमारी ऐक्चुअल स्किल यूज़ करने की बारी आती है जब हमें पहले से ही पता होता है की हमे एग्ज़ैक्ट्ली क्या करना है? जैसे हमारे दिमाग में मौजूद मिरर न्यूरॉन्स ऐक्टिवेट हो जाते हैं जब हम खुद कोई ऐक्टिविटी परफॉर्म करते हैं या किसी और को वो ऐक्टिविटी परफॉर्म करते हुए देखते हैं। और तभी इन थ्योरीज के हिसाब से हमें अपनी विज़ुअलाइज़ेशन को जितना हो सके उतना बनाना है ताकि हम सक्सेस्स्फुल्ली अपने न्यूरोफिजियोलॉजिकल और न्यूरोमस्कुलर पैटर्न्स को ऐक्टिवेट कर सके। एक जाम पल के तौर पर अगर आप एक नयी जॉब इंटरव्यू के लिए तैयारी कर रहे हो या आपका कोई मैच है या इवन? अगर आप अपने क्रश को डेट पर ले जाने की सोच रहे हो तो हर पॉसिबल सिनारियो को विजुअलाइज करो। जैसे क्या पता आपका क्रिश पहले से ही एक रिलेशनशिप में हो या फिर यह इमेजिन करो कि जब आप उसके पास खड़े हो गए, तब उसकी बॉडी लैंग्वेज, एक्स्प्रेशन्स और फेशल फीचर्स कैसे दिखेंगे? और अपनी इस मेंटल इमेज को बनाने के लिए इसमें डिटेल्स ऐड करते रहो। जैसे आप दोनों के आसपास क्या हो रहा है, आप कहाँ खड़े हो, आपको क्या सुनाई दे रहा है? आपका ब्रीडिंग पैटर्न कैसा है? या फिर आप उनके साथ कैसा फील कर रहे हो? इस तरह से आप एक मुश्किल काम को करने से पहले उसे अपने दिमाग में प्रैक्टिस कर सकते हो। उससे जुड़ी फीलिंग के साथ फैमिलियर हो सकते हो और जब आपकी बारी उस काम को एक्चुअल में करने की आएँगी तो तब बस बात रह जाएगी। एग्जिक्यूशन की सेकंडली आपने अपनी विज़ुअलाइज़ेशन के साथ कॉन्स्टेंट रहना है। ये इसलिए क्योंकि हमारे दिमाग की लैंग्वेज रेपिटिशन है। आपने कई बार लोगों को ये बोलते हुए सुना भी होगा। पीवीआर क्रीचर्स ऑफ हैबिट यानी हमें हमारी हैबिट्स डिफाइन करती है, जिसका मतलब अगर आप विज़ुअलाइज़ेशन की मदद से अपने गोल्स और ड्रीम्स को हकीकत बनाना चाहते हो तो आपको रोज़ उनसे जुड़े न्यूरल कनेक्शन्स को पक्का और बड़ा बनाना होगा और अपनी बॉडी की केमिस्ट्री बदलनी होगी। बार बार उन गोल्स की अचीवमेंट को इक्स्पिरीयन्स करके और जीतने स्ट्रांग आपके इमोशनस होंगे। उतना ही आप अपने इस विज़न पर अटेन्शन पे करोगे? एक स्ट्रैटिजी जो आपकी मेंटल इमेज से जुड़ी इमोशनल इन्टेंसिटी को बढ़ा सकती है। वो है विजुअलाइज करते टाइम ऐसे गाने सुनना जो ऑलरेडी उस इमोशनल इंटेनसिटी पर हो, जहाँ पर आपका विजुअलाइज फ्यूचर है और लास्ट्ली इफेक्टिव ली। विजुअलाइज करने के लिए आप अपना एक्स्पोज़र बढ़ाओ क्योंकि जो कुछ भी हम अपने दिमाग में इमेजिन करते है, वो हमारी स्टोर मेमोरी से बनता है, जिसकी वजह से किसी ऐसे इवेंट को इमेजिन करना जो अभी आपके साथ नहीं हुआ है, वो बहुत मुश्किल हो सकता है। जैसे अपने आप को मार्स पर विजुअलाइज करना ज्यादा मुश्किल होगा। ऐस कम्पेरड टु अपने आप को अपने लिविंग रूम में विजुअलाइज करना और तभी कई बार एक डिटेल्ड और रियलिस्टिक मेंटल इमेज बनाने के लिए आपको अपने आप को भारी दुनिया में एक सपोज़ करना होगा। एग्जाम्पल के तौर पर अगर आप कोई ऐसी चीज़ करना चाहते हो जो आपने पहले कभी नहीं करी, जैसे स्कूबा डाइविंग तो आपके लिए उसकी एक डिटेल्ड मेंटल इमेज बनाना ऑलमोस्ट इम्पॉसिबल होगा। आपको अपने आप को स्कूबा डाइविंग के एक्स्पिरियंस में एक सपोज़ करना पड़ेगा। आपको उससे रिलेटेड बुक्स पढ़नी पड़ेगी। विडीओ देखनी पड़ेगी और स्कूबा डाइविंग स्कूल जाना पड़ेगा। यानी जो चीज़ आपकी नॉलेज और अवेर्नेस को बढ़ा सकती है, ये समझाने के लिए की एक एक्सपिरियंस कैसा होगा, वो आपको जरूरी डेटा प्रोवाइड करेगी, जिसकी मदद से आप उस एक्सपिरियंस को डिटेल में विजुअलाइज कर पाओ और अगर आप ऐक्चुअल में इन टेक्नीक्स को यूज़ करके रोज़ पॉज़िटिव गोल्स को विजुअलाइज करो और उन पर कुछ ऐक्शन लो तो अगले पांच से 10 सालों में आप अपने सारे गोल्स को पार कर चूके होंगे। और जैसा की चाइनीज फिलोसफर संजू का बोलना था कि जीते हुए योद्धा पहले जीतते हैं और फिर जंग में जाते हैं, जबकि हारे हुए योद्धा पहले जंग में जाते हैं और उसके बाद जीतने की कोशिश करते हैं।","आकर्षण का नियम हमारे जीवन में आकर्षित करने की क्षमता है जिस पर हम ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। यह फोकस विज़ुअलाइज़ेशन द्वारा प्राप्त किया जाता है जो कई एथलीटों, उद्यमियों और मशहूर हस्तियों द्वारा उपयोग किया जाने वाला एक संज्ञानात्मक उपकरण है जो अधिक जीतने और अपने लक्ष्यों को प्रकट करने के लिए उपयोग किया जाता है। आकर्षण के नियम, विज़ुअलाइज़ेशन के मनोविज्ञान और अपने लक्ष्यों को विज़ुअलाइज़ करने की सही तकनीक के बारे में अधिक जानने के लिए पूरा पॉडकास्ट सेगमेंट सुनें।" "हर महान आदमी के स्टैन्डर्ड एक आम आदमी से काफी अलग होते हैं। वो वहाँ झुकेगा, जहाँ आप अपनी अकड़ में खड़े रहोगे और वह झुकने से इनकार कर देगा, जहाँ पर आप डर के मारे कमजोर पड़ जाओगे। ऐसा आदमी दूसरे आम लोगों से सुपिरिअर होता है। फिर चाहे बात हो उसके फ़ाइनैन्स एस लव लाइफ, फ्रेन्ड्शिप या फिर ऐम्बिशन स्की। उसके अंदर की ड्राइव उसे अपनी लाइफ के हर एरिया को मास्टर करने में मदद करती है। इसलिए एपिसोड 1 सुपिरिअर मेल के साइंस को डिस्कस करे गा ताकि आप भी ये जान पाओ कि आप कौन सी चीजें ठीक कर रहे हो। और किन चीजों में आप पीछे हो? साइन नंबर वन, सेल्फ डिसिप्लीन इस नॉट सेल्फ सप्रेशन एक ऐवरेज मेल हमेशा सेल्फ डिसिप्लीन को एक लिमिटेशन की तरह दिखता है। वो सोचता है कि अपनी डिज़ाइनर्स की ना सुनने का मतलब है एक बुरी और इन्कम्प्लीट लाइफ जीना। लेकिन एक सुपिरिअर मेल की सोच थोड़ी अलग होती है। उसे पता होता है कि बिना जिम में मेहनत करे, बॉडी में फिटनेस नहीं आएगी। बिना हेल्दी खाएं। हेल्थी इम्प्रूव नहीं होगी। बिना पढ़ाई के ज्ञान नहीं मिलेगा और बिना अपने पैशन को फॉलो करें फुलफिलमेंट नहीं मिले गी। कोई भी अच्छी चीज़ फ्री में नहीं मिलती और ऐसे में वह सिर्फ ऐवरेज लोग ही होते हैं जो चीप लेक्चर्स को अफोर्ड कर सकते हैं और उसकी पेमेंट अपने सपनों से करते हैं। डिसिप्लिन बिल्ड करने का मतलब यह नहीं है कि आप लाइफ को खुलकर जीने से खुद को रोक रहे हो। डिसिप्लिन होने का मतलब है कि आप बस इतना जानते हो कि आपको सबसे ज्यादा खुशी और फुलफिलमेंट अपने सैक्रिफ़ाइस इससे मिले गी ना कि अपने लालच और प्लेजर की इच्छा से साइन नंबर टू टेक्सस के रॉ ऑफिस फैमिली एक मेल कर अपनी फैमिली में एक बहुत इम्पोर्टेन्ट रोल होता है। क्योंकि वो अपनी फैमिली का होता है। वो एक ऐसा बड़ा भाई या फिर बाप होता है जिसकी हम सबको जरूरत होती है। इसलिए हमेशा कोशिश करो कि जिन लोगों की वजह से आप इस दुनिया में एग्ज़िट करते हो एट लिस्ट वो लोग एक बेकार जिंदगी ना जिए है। एक असली मर्द नहीं होता जो अपने परिवार की परवाह नहीं करता या फिर उनकी इम्पोर्टेन्स नहीं समझ पाता, बल्कि मर्दानगी को डिफाइन करनेवाली सबसे जरूरी चीजों में से एक है। एक मर्द की प्रोटेक्ट प्रोवाइड और विज्डम दें पानी की एबिलिटी यहाँ तक कि आपके करेक्टर और आपकी डेवलपमेंट के लेवल के बारे में भी बहुत आसानी से समझा जा सकता है। ये करके की। आप अपनी फैमिली को किस तरह से ट्रीट करते हो? साइड नंबर थ्री ही फोर्स एव्रीवन अराउंड हिं टु ग्रो एक मेल अपने आसपास रहने वाले हर इंसान को बेहतर बनाने के लिए एनकरेज भी करता है और उन्हें ग्रो होने का रास्ता भी दिखाता है। जिसतरह से एक बुरा निकला इंसान पूरे परिवार और पूरी कम्यूनिटी को ही खराब कर सकता है, वैसे ही एक ऐसा इंसान जो बहुत ही सिनसिअर और डिसिप्लिन हो और उसके एम्बिशन्स भी बहुत बड़े हो तो ऐसा इंसान कभी भी एक फॉलोअर नहीं बनता बल्कि वो लीडरशिप की ओर जाता है। और खुद को गृह करने के साथ साथ अपने एनवायरनमेंट में रहने वाले हर इंसान को बेहतर बनाता है। एक सुपिरिअर मेल रास्ते पर चलता नहीं बल्कि वो रास्ते को बनाता है और फिर उस रास्ते पर दूसरे लोग चलना शुरू करते हैं। साइन नंबर फ़ोर हिस पर्पस इस बिगर देन हिमसेल्फ एक सुपिरिअर मेल बस अपने फायदे के बारे में नहीं सोचता रहता बल्कि उसकी जिंदगी का मकसद उससे भी बड़ा होता है जहाँ एक आम आदमी स्केर सिटी माइंड सेट के साथ जिंदगी जीता है और चाहे पैसा हो, खुशी हो या फिर प्यार, उसे हर चीज़ की ही कमी लगती है। वही एक सुपिरिअर मेल अब बन डैन्स माइंड सेट के साथ जीता है। यानी उसे ऐसा फील नहीं होता कि उसके पास किसी चीज़ की कमी है। वो खुद में होल यानी कंप्लीट फील करता है और बस अपनी ड्यूटी इसको पूरा करने पर ध्यान देता है, जिससे बिना पैसों, प्यार या फिर सपोर्ट को मांगे ही लोगों से ये सब देने को तैयार हो जाते हैं। याद रखो जितना आप अपने के बजाय दुनिया को बेहतर बनाने की कोशिश करोगे उतना ही दुनिया आप को बेहतर बनाने में मदद करेगी। साइन नंबर फाइव हिस वाइज़ नॉलेज एक साइड है और विज़्डम दूसरी जहाँ नॉलेज एक हद तक कोई भी इंसान एक्वायर कर सकता है, वहीं विज्डम का प्राइस टैग थोड़ी ज्यादा बड़ी कीमत को दर्शाता है। एक सुपिरिअर मेल अपनी एजुकेशन किताबों से नहीं बल्कि जिंदगी से लेता है। आप जितना किताबों को पढ़ सकते हो और जीतने बड़े बड़े शब्दों को बोल सकते हो, वो कुछ भी नहीं है। आपके एक्सपिरियंस इसके आगे इसलिए बनो और जिंदगी को पर नहीं बल्कि डीप्ली जीना सीखो। साइन नंबर सिक्स ही इस नॉट अफ्रेड टू ऑफ एंड एनीवन चाहे कल्चर कितना भी पॉलिटिकली करेक्ट क्यों ना हो जाए। एक सुपिरिअर मेल इतनी इनर स्ट्रेंथ और करेज रखता है कि वो अपनी मन की बोल सके। दुनिया डरपोक लोगों को आगे बढ़ाने के लिए नहीं बनी और जिन मेल्स में रूल्स तोड़ने की हिम्मत होती है वो नए रूल्स बनाना भी जानते हैं। इसलिए सच बोलने और सक्सेसफुल बनने की वेट मत करो बल्कि इन चीजों पर अभी से काम करना शुरू करो। और अगर इस प्रोसेसर में लोग या फिर जेलस होते भी है तो होते रहे है। आपका फोकस अपने सच पर होना चाहिए ना कि दूसरों के झूठ पर साइन नंबर सेवन ही सहाइ ली अडैप्ट टेबल इंट्रोवर्ट, एक्स्ट्रोवर्ट, ऐंग्ग्री और कम या फिर कलेवर और लाइव ये सारे लेबल्स आम लोगों के लिए होते हैं जो अपनी लिमिटेशंस के पार नहीं जा पाते है। आम लोगों की फिलॉसफी यही होती है कि गरीब घर में पैदा होने वाला गरीब ही रहता है। इंट्रोवर्ट हमेशा इंट्रोवर्ट नहीं दिखा पाता है और सोसिअल्ली इन अडैप्ट इंसान कभी भी सोशलिस्ट करना नहीं सीख सकता। आम लोग खुद को इस तरह के लेबल्स के एक बॉक्स में बंद करके रखते हैं जिसकी वजह से वो बिल्कुल भी ग्रो नहीं कर पाते हैं, लेकिन एक सुपिरिअर मेल इन डूऐलिटी इसके ऊपर जीता है। वो बोलता है की हाँ मैं कोई स्पेसिफिक क्वालिटीज के साथ पैदा हुआ हूँ, लेकिन इन क्वालिटीज को बदलने का कंट्रोल भी मेरे पास ही है तो क्यों ना मैं बस वो काम करने के काबिल बन जाऊ जिसका नाम की एक मूवमेंट में जरूरत होती है? बस ऐसे मेल्स की यही सोच उन्हें बाकी मेल से बेहतर बनाती है। साइन नंबर एट पेनिट्रेट के वर्ड अपनी बुक द वे ऑफ द सुपिरिअर मैन में ऑथर डेविड डेटा बोलते है कि जब भी तुम एक फीमेल के लिए सेक्शुअल लस्ट या फिर डिज़ाइनर फील करो तब गहरी सांस लो और उस फीलिंग के साथ थोड़ी देर बैठने की कोशिश करो। उस फीलिंग को बढ़ने दो। और अपनी साँसों की मदद से उसे अपनी बॉडी के एक एक्सेल तक जाने दो। अपने पूरे शरीर से ऐसा फील करो कि पूरी दुनिया ही तुम्हारी लवर हैं। इसी फीलिंग के साथ बाहर जाओ, स्किल्स को डेवलप करो और अपनी इस पावर को कंट्रोल में कर के अपने सबसे सुपीरियर वर्जन बना हो।","हर आदमी के अलग-अलग मानक और मूल्य होते हैं जिनका वह पालन करता है, और जबकि अधिकांश पुरुष औसत होते हैं, कुछ पुरुष सर्वश्रेष्ठ के लिए लक्ष्य रखते हैं और इसलिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ मिलता है। इन पुरुषों को श्रेष्ठ पुरुषों के रूप में जाना जाता है। तो, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम एक श्रेष्ठ व्यक्ति के 8 संकेतों पर चर्चा करेंगे।" "क्या कभी आपने यह नोटिस करा है कि 19 9% न्यूज़ हमेशा नेगेटिव और ए क्लाउड इमोशन जगाने वाली ही क्यों होती है? या क्यों ही हमारे अंदर दूसरे शहरों या दुनिया के दूसरे कोने में हो रही घटनाओं को जानने की क्युरिऑसिटी होती है? क्यों आजकल की न्यूज़ पहले से भी ज्यादा ऐक्टिव और ऐसी बन गई है जैसे एक इंसान का गुस्से में या फिर अपना पॉइंट प्रूफ करने के लिए उसको शेयर करना पड़ता है? स्विस ऑथर रोल्फ दुबेली के हिसाब से न्यूस हमारे माइंड के लिए बिल्कुल वैसी होती है जैसे शुगर हमारी बॉडी के लिए होती है। न्यूस को डाइजेस्ट करना तो बहुत ही आसान होता है क्योंकि उसके लिए आपको कुछ भी सोचना नहीं पड़ता, लेकिन हम उससे कभी भी सैटिस्फाइड नहीं फील कर पाते है। जस्ट बिकॉज़ न्यूस में हमारी डेली लाइफ के काम का ज्यादा कुछ नहीं होता। इसके साथ ही न्यूस देखने के कई साइड इफेक्ट्स भी होते हैं, जिनकी नॉलेज के बिना आप हमेशा ही न्यूज़ चैनल्स के प्रॉपेगैंडा का शिकार बनते रहोगे। नंबर वन न्यूज़ ब्लॉक्स क्लिअर थिंकिंग चेंज योर ब्रेन क्लिअर थिंकिंग का मतलब होता है कि आप किसी चीज़ पर कॉन्सन्ट्रेट करने, उसे ऐलिस करने और अपनी अटेन्शन उसी एक चीज़ पर बनाए रखने के काबिल हो। जबकि न्यूस पहले किसी हेडलाइन से आपकी अटेन्शन खींचती है और फिर वो आपकी अटेन्शन को बिखेर देती है, कोई दूसरी हैड्लाइन्स है। आपका फोकस इधर से उधर भटक रहा होता है और आपका ब्रेन एक चीज़ की डेथ में जाने के बजाय 100 चीजों की सर ऑफिस को छूकर निकल जाता है, जिससे आपका अटेन्शन स्पेन भी कम हो जाता है और आपको कोई वैल्यूएबल इन्फॉर्मेशन भी नहीं मिलती इसके ऊपर से न्यूस हमारे ब्रेन का स्ट्रक्चर भी बदल देती है। जिसतरह डीप रीडिंग करने से आपको डीप थिंकिंग करनी आ जाती है, वैसे ही रेग्युलरली न्यूस कॉस्टयूम करने से आपका ब्रेन शैलो रीडिंग और ऐसा रिज़ल्ट शैलो थिंकिंग की आदत डाल लेता है। आप खुद ही नोटिस भी कर सकते हो कि जो लोग बस न्यूस कॉस्टयूम करते हैं बजाए अच्छी बुक्स पढ़ने या फिर डॉक्यूमेंट्रीज देखने के वो लोग हर समय ही गॉसिप करने और फालतू की बातों में इंगेज करने के लिए रेडी रहते हैं, यहाँ तक कि वो कॉन्क्लूज़न पर भी बिना किसी ज्यादा एविडेन्स के ही पहुँच जाते हैं और अपने कचरे जैसे खयालों को भी न्यूस की तरह ही पेश करते हैं। जबकि एक हेल्थी माइंड नैचुरली हर चीज़ की डेथ में जाने की कोशिश करता है। बजाय बिना सोचे समझे चीजों को कन्क्लूड करने के नंबर टू न्यूज़ मैंने प्लेट्स, यू न्यूस पेपर्स या फिर न्यूज़ चैनल्स पर मिलने वाली हर इन्फॉर्मेशन उनके ऐडवर्टाइजर्स और उनके एजेंडा को दिमाग में रखकर दी जाती है, जिसकी वजह से यह सोचना भी बेवकूफ़ी होगी कि कोई भी न्यूस आउटलेट आपके आगे फैक्स पेश कर रहा है। इसके साथ ही न्यूस में सिर्फ वही चीजे होती है जो उस समय ज्यादा पॉपुलर होती है, जबकि वो ज्यादा कॉन्ट्रोवर्शल या खुद के नैरेटिव के अगेन्स्ट जाने वाली चीजों को इग्नोर कर देती हैं। इन 22 इसकी वजह से सीधा सीधा पूरे कल्चर को बदला जा सकता है और लोगों की कलेक्टिव साइकिल में यह बिठाया जा सकता है। कि किन टॉपिक्स पर बात करना अलाउड है और कौन से टॉपिक्स पर बात नहीं करनी चाहिए। अगर एक सोसाइटी के बहुत से लोग न्यूज़ देखते हैं तो मीडिया बहुत आसानी से उस सोसाइटी को अपनी मर्जी से डाल सकती है और लोगो में डिवाइड बढ़ा सकती है ताकि लोग एक दूसरे पर नहीं बल्कि मीडिया पर ही ट्रस्ट करे। नंबर थ्री न्यूस प्रोमोटर्स नेगेटिविटी न्यूस का मेजोरिटी का हिस्सा ऐसा ही होता है जिसे हम डाइरेक्टली इन्फ्लुयेन्स नहीं कर सकते हैं और यह पावरलेस ने उसकी फीलिंग कि हम इतने दुख और दर्द से भरी दुनिया को बदलने के लिए कुछ नहीं कर सकते। ये ख्याल हमारे मन में दुनिया का एक बहुत ही पैसे मिस्टिक लव यू बना देता है और हम दूसरों के आगे भी ज्यादा स्टिक ज्यादा नेगेटिव और ज्यादा नम बन जाते हैं। इस तरह के विक्टिमहुड को बोलते हैं लर्न हेल्पलेस। यह बोलना भी गलत नहीं होगा कि दुनिया में बढ़ते डिप्रेशन और ओवरऑल मेंटल हेल्थ प्रॉब्लम्स और बढ़ती न्यूस की कन्सम्शन में एक क्लिअर कनेक्शन है क्योंकि जीस टाइम लाइन पर मेन स्ट्रीम मीडिया ज्यादा पॉपुलर हुआ, उसी की समे स्पीड पर। सोसाइटी में डिप्रेशन भी ज्यादा बड़ा है और ये भी एक फैक्ट है कि हर समय रेप्स मर्डर, डेथ या फ्लडस की खबरें हमारी मेंटल हेल्थ को बद से बदतर बना देती है। ये मैटर नहीं करता कि ये खबरें दुनिया के किस कोने से है। पर कॉन्स्टेंट नेगेटिविटी हमारे दिमाग के लिए एक जहर का काम करती है। नंबर फ़ोर वीक रेव मोर सेनसेशन निजं यानी रेग्युलर न्यूस कन्सम्शन हमारे ब्रेन को रिवाइव कर के ये एक्सपेक्ट करने के लिए ट्रेन करती है की सेंसेशनल चीजें ऐक्चुअल रिऐलिटी से ज्यादा रेगुलरली होती है। जहाँ न्यूस से पहले एक इंसान की लाइफ में डेथ की बातें अचीवमेंट्स पार्टीज़ या कोई बुरा हादसा यह सारी चीजे ही बहुत रेरली होती थी। वहीं न्यूस हर समय ही आपको इन सारे अलग अलग इवेंट्स और इमोशन से इक्स्पोज़ कर रही होती है। न्यूस चलाते ही आपके दिमाग में ये इन्फॉर्मेशन जाती है कि कोई मर गया है, कहीं बम फटा है या फिर किसी सिलेब्रिटी ने कैसे कपड़े पहने हैं? इस वजह से वो छोटी छोटी प्रॉब्लम्स जो किसी हेडलाइन में फिट नहीं होती, हम उन्हें इग्नोर कर देते हैं और दुनिया को एक इन एक्युरेट रिस्क मैप के साथ इंटर्प्रिट करने लगते हैं। हमारे दिमाग में रिस्क का हर समय ही एक लाभ बज रहा होता है। कि दुनिया में बहुत गलत हो रहा है और हर जगह बर्बादी चालू है और इसी दुनिया की इन एक्युरेट अन्डरस्टैन्डिंग की वजह से हमें मेंटल हेल्थ प्रॉब्लम्स होने लगती है। नंबर फाइव न्यूस इस मोस्टली इर्रेलेवेंट हर इंसान ऑन एवरेज हर साल लगभग 10 से 20,000 न्यूज़ स्टोरीज को कॉन्स्यूलर करता है। लेकिन अगर आप खुद से ये पूछो कि जो हजारों न्यूज़ स्टोरीज़ आपने इस साल रेड करी या फिर सुनी उसमें से कितनी न्यू स्टोरीज़ ने आपकी लाइफ, आपके बिज़नेस या फिर आपके रिलेशनशिप को किसी भी तरह से इम्प्रूव करा तो ज्यादातर लोगों की तरह आप के लिए भी यह नम्बर ज़ीरो ही होगा जीवन तो आपको ऐसा लग सकता है कि अगर दुनिया के किसी कोने में कोई बड़ी क्राइसिस चल रही है तो आपको उस बारे में अरजेन्टली जानना बहुत जरूरी होता है। लेकिन ऐसा नहीं है और अगर कोई घटना बहुत बड़ी और ज़रूरी है भी सही तो ये पक्का है कि वो आपको अपने फ्रेन्डस या फिर फैमिली से सुनने को मिल ही जाएगी। नंबर सिक्स न्यूस मेक्स यू स्ट्रेस्ड न्यूस लिटरल्ली हमारे शरीर के लिए टॉक्सिक होती है क्योंकि खबरें पढ़ने या फिर सुनने से आपका लिम्बिक सिस्टम एक्टिवेट हो जाता है। जो भी न्यू स्टोरी औरफिर क्रिएट करने वाली होती है। वो हमारी बॉडी में कोर्ट कोर्ट से रिलीज करवाती है। ये वो स्ट्रेस होते हैं जो हमारी बॉडी को एक लंबे समय तक अलर्ट मोड पर रखते हैं और ऐसा रिज़ल्ट हमारा इम्यून सिस्टम वीक हो जाता है और हमारी बॉडी खुद को इफेक्टिव ली रिपेर भी नहीं कर पाती नंबर सेवन न्यूज़ ऑफ फंड इ स्टोर टेड बी के जर्नलिस्ट जीस तरह से स्कूल में हर स्टूडेंट एक प्रोजेक्ट को अपनी समझ के साथ करता है, वैसे ही हर जर्नलिस्ट सेम पीस ऑफ इंफॉर्मेशन को अलग अलग तरह से इंटरप्रेट और हमारे आगे प्रिज़न करता है। हर जर्नलिस्ट के पास ना तो इतना टाइम और ना ही किसी न्यूस का इन डेप्थ अनैलिसिस करने के रिसोर्सेज़ होते हैं जिसकी वजह से एक अच्छे प्रोफेशनल और कॉम्पिटेंट जर्नलिस्ट को एक सुपर फेशियल और झूठे जर्नलिस्ट से डिफ्रेंशीएट करना बहुत मुश्किल हो जाता है। जीवन बहुत से जर्नलिस्ट तो बस दूसरे लोगों की ही रिपोर्ट को जोड़कर अपनी न्यू स्टोरी बना लेते है। हाउएवर आम लोग जर्नलिज़म को इस नजर से नहीं देखते हैं क्योंकि उनके हिसाब से तो अगर कोई बात एक बड़े न्यूज़ चैनल पर कोई समझदार इंसान इतने आर्टिकल ए टेड तरीके से बोल रहा है तो जरूर उसे पता ही होगा कि वो क्या बोल रहा है। लेकिन असलियत में ज्यादातर ऐसा नहीं होता। नंबर एट न्यूस इस नॉट एन ऐक्यूरेट्लि ऑफ रीऐलिटी जीवन। अगर हम किसी न्यूस चैनल या फिर किसी जर्नलिस्ट की गुड इन टेंशन्स को अकाउंट में भी ले ले, तब भी समय की कमी की वजह से उनके लिए हर छोटी इन्फॉरमेशन को फैक्ट चेक करना ऑलमोस्ट इम्पॉसिबल होता है। जिसकी वजह से न्यूस में दी गई मेजोरिटी प्रोडक्शन्स और कॉन्क्लूज़न स् गलत होते हैं। रोल्फ दुबे बोलते है कि अगर आप खुद दुनिया में चल रहे इवेंट्स के बेसिस पर फ्यूचर को ऐक्यूरेट्लि प्रिडिक्ट करना सीखना चाहते हो तो न्यूज़ देखने के बजाय बुक्स को रीड करो इन्टेलिजन्ट लोगों से बातें करो और नॉलेजेबल जर्नल्स को पढ़ो। नंबर नाइन वॉचिंग न्यूज़ कम से टा कॉस्ट न्यूस हमारी प्रोडक्टिविटी को तीन तरीकों से इफ़ेक्ट करती है फास्टली न्यूस कन्सम्शन हमारा टाइम वेस्ट करती है वो टाइम जो किसी प्रोडक्टिव काम में लग सकता था। सेकंडली न्यूज़ की डिस्ट्रैक्शन के बाद हमें री फोकल आइज़ एशन यानी किसी जरूरी काम पर री फोकस करने में भी समय लगता है। थर्ड ली न्यूस कौन स्यूम करने के कुछ घंटों या कुछ दिनों बाद भी वो इन्फॉर्मेशन फिर से हमारे मन में आकर हमारे बैलेंस को खराब कर सकती है। आज इंटरनेट के टाइम में इन्फॉर्मेशन एक्स के रिसोर्स नहीं है, बल्कि अटेन्शन है। यानी आज उन लोगों को सबसे समझदार नहीं माना जाता जो बस बड़ बड़ कर के मुँह से इन्फॉर्मेशन बाहर निकाल सकते हैं। बल्कि आज वो लोग डिमांड में है जो इतनी इन्फॉर्मेशन के बीच भी सिर्फ एक चीज़ पर एक लंबे समय के लिए अपनी अटेन्शन बनाए रख सकते हैं।","क्या आपने कभी गौर किया है कि 99% खबरें नकारात्मक कैसे होती हैं और यह आपको इसे साझा करने के लिए क्यों उकसाती हैं? हाल के दिनों में, समाचार और भी व्यसनी और विषाक्त हो गए हैं। स्विस लेखक रॉल्फ डोबेली के अनुसार, हमारे दिमाग के लिए जो खबर है वही चीनी हमारे शरीर के लिए है। इसलिए समाचारों के हानिकारक प्रभावों को समझने के लिए हम 9 कारणों पर चर्चा करेंगे कि आपको समाचार देखना क्यों बंद कर देना चाहिए।" "निहाल इज़म पार्ट टू इस लाइफ रियली मीनिंग लेस? ये कैसा जी प्रोसेसर है? हमें इस दुनिया में लाया जाता है, जिसके बारे में हमें कुछ नहीं पता। थोड़े बड़े हो कर हम काम करने लगते हैं। हम कुछ रिसोर्सेस इकट्ठे करते हैं। हम शादी करते है, अपनी जेनेटिक इन्फॉर्मेशन के थ्रू और लोगों को इस दुनिया में लेकर आते हैं। हम रिटायर होते हैं और हम मर जाते हैं। बट वाइ ये क्वेश्चन हर इंसान के दिमाग में आता है, जब वो एग्ज़िस्टन्स से जुड़ी सफरिंग को एक्सपिरियंस करता है और इस पॉइंट तक पहुंचना ज्यादा मुश्किल नहीं है। अगर हम किसी भी ऐसी चीज़ को क्वेश्चन करने लगे जिसे हम सॉलिड समझते हैं तो इवेन चली हर चीज़ को ही हम मीनिंग लेस बना सकते हैं। फॉर एग्जाम्पल। हमें पानी पीना होता है, वाइ वेल जिंदा रहने के लिए पानी काफी जरूरी होता है। वाइ क्योंकि हमारी बॉडी पानी से कई फंक्शन्स को पूरा करती है जैसे जॉइंट्स को ल्यूब्रिकेट करना, ब्रेन स्पाइनल कोर्ड और टिशूज जैसी चीजों को बचाए रखना और बॉडी को होमियोस्टेसिस पर रखना शुर बट वाइ क्योंकि अर्थ पर सबसे पहला सेल पानी के अंदर ही बना था। और तभी अभी तक हमारी बॉडी 60% पानी से ही बनी है। लाइफ क्यों ओरिजिनेट हुई, इसका तो कोई रीज़न नहीं है हमारे पास। जोक सुसाइड ऐसे एग्ज़िस्टिंग चल क्वेश्चन्स हर बच्चे के दिमाग में आते हैं पर जब वो अपने पेरेंट्स और टीचर्स से इनके आन्सर्स मांगता है तब उसे कुछ क्वेश्चन्स के बाद ही चुप करा दिया जाता है और बच्चा ये नहीं समझ पाता कि बड़े भी उतने ही है जितना की वो है। एनीवे हमारे पास कई थ्योरीज है, जो एक्सप्लेन करती है की लाइफ कैसे स्टार्ट हुई? पर लाइफ क्यूँ स्टार्ट हुई, इसका हमारे पास कोई आइडिया नहीं है। पर हम ठहरे ईगो वाले फीचर्स तो हमें जब किसी चीज़ का आन्सर नहीं पता होता तो हम क्या करते है? हम सिम्पली गैस करते हैं और ये इनसाइड काफी वैल्यूएबल है क्योंकि गैस वर्क बिल्कुल अलग होता है कॉन्क्लूज़न से और जब हम बोलते है की लाइफ मीनिंग लेस है तो वो कॉन्क्लूज़न लाइफ के बारे में कम और हमारी नेचर के बारे में ज्यादा बताता। हम अपनी नेचर और बेहतर समझने के लिए साइकोलॉजी के अलावा फिलॉसफी और साइनस की भी मदद ले सकते हैं, क्योंकि हम काफी कॉम्प्लेक्स क्रीचर्स है और लाइफ को सिर्फ एक डाइमेंशन तक सीमित रखना। इस यू कैन्ट ली फिर नहीं होगा। सो अब हम साइंस में थोड़ा और डीप जाए तो फिज़िक्स का सेकंड ऑफ थर्मो डाइनैमिक्स हमें बताता है की एक आइसोलेटेड सिस्टम यानी जहाँ से ही अंदर या बाहर नहीं जा सकती। जैसे हमारा यूनिवर्स तो यहाँ पर यानी डिसोर्डर टाइम के साथ साथ बढ़ता है और लिव इन गज़ के केस में हम इस सैन्ट पीया डिसॉर्डर को कन्टिन्यूसली फाइट कर रहे होते हैं और अपनी सराउन्डिंग् से एनर्जी लेकर अपनी इंटरनल एन्ट्रॉपी को कम रख रहे होते हैं। आप ये मेन डिफरेन्स है एक डैड कॉलिंग में लिविंग थिंग्स यूनिवर्स के डिसोर्डर को फाइट स्लोडाउन और जीवन एक तरह से रिवर्स कर सकती है। पर अगर किसी चीज़ में लाइफ का कोई साइन नहीं है तो वो इस डिस्ऑर्डर को फाइट नहीं कर पाएगा। ऐंड एक्सेक्टली यही हमारी लाइफ का मीनिंग है, हमारी लाइफ में सफरिंग है और हम यूनिवर्स का वो पार्ट है जो की एन्ट्रॉपी को कम कर सकता है और जितना अच्छे से हम इन दोनों टास्क को हैंडल और परफॉर्म करते हैं उतनी ही फुल फिलिंग हम लाइफ जीते हैं। सो ये लाइफ की क्वेश्चन है। जितना अच्छे से हम लाइफ की सफरिंग को एक्सेप्ट करते समझते और अपनी सफरिंग की रिस्पॉन्सिबिलिटी लेते हैं और जितना हम अपने अराउंड ऑर्डर लाते हैं, हमारी लाइफ उतनी ही मीनिंगफुल बन जाती है। और हम इस इक्वेशन को बार बार टेस्ट भी कर सकते हैं। फॉर एग्जाम्पल हम सब लोगों की लाइफ में कोई ना कोई प्रॉब्लम होती है और अगर अभी कोई प्रॉब्लम नहीं है तो वो इवेन चली आ जाएगी। तो जब हम इन प्रॉब्लम्स को रिस्पॉन्सिबिलिटी, एक्सेप्ट और फाइट करते हैं और अपनी लाइफ और अपने अराउंड बाकी लोगों की लाइफ को इंप्रूव करते हैं। तब हम फुलफिल फील करते है। थिस इस वी हम लाइफ के मीनिंग को तब क्वेश्चन करने लगते हैं जब हमें अपनी सफरिंग का एहसास होता है और लाइफ सफरिंग है। इसमें कोई डाउट नहीं है तो चाहे वो एक बेघर लड़का हो या फिर वो काइली जेनर हो सबकी लाइफ में प्रॉब्लम होती है और यही हमारी लाइफ का मीनिंग है और यह एक पेसमिस्टिक वो नहीं है क्योंकि हमारी लाइफ में काफी सारे छोटे छोटे हैप्पी मोमेंट्स भी आते हैं। बट अगेन यह मूवमेंटस सिर्फ तभी देर तक टिकते हैं जब हमें अपनी की समझ आती है। सफरिंग, ईक्वल, स्पेन, बट बॉटम ईक्वल, सीवन मोरपेन और यह फैक्ट हमें ले आता है निहाल इंजन के ऊपर क्योंकि जब एक निहलिस्ट कॉम्प्लीट कर देता है की लाइफ मीनिंग लेस है तो इससे वो अपनी एग्ज़िस्टन्स की मुश्किलों की रिस्पॉन्सिबिलिटी हटा देता है। और तभी ये बोलना इतना होता है की लाइफ का कोई मीनिंग नहीं है क्योंकि क्यों एक इंसान कोई रिस्पॉन्सिबिलिटी उठाएगा जब वो पूरे सिस्टम को ही बेसलेस बोलकर अपना काम आसान कर सकता है? पर जो लोग निहलिस्ट होते हैं शुरू में ये नहीं समझ आता की कुछ ना हो ना कुछ होने से किसी तरीके से भी बेहतर नहीं है। और ये बिहेव्यर हमें कई साइकोलॉजिकल एक्सपेरिमेंट में भी देखने को मिला है। ऐसे ही एक एक्सपेरिमेंट में जब लोगों को कुछ देर के लिए अकेला छोड़ा गया और उनके पास कुछ काम करने को नहीं था, तब उनके पास बस एक ऑप्शन था अपने आप को इलेक्ट्रिक शॉक देने का और जैसा कि हम सोच सकते हैं बहुत लोगों ने विल्लिंग ली, अपने आप को शौक दिया क्योंकि पेन से काफी बेटर ऑप्शन है। यही हमारी नेचर है। हम ग्रो करते है, लाइफ की प्रॉब्लम्स को फेस करने से, पर जब हम अपने आप को मीन लेसन एस के साथ आइडेंटिफाइ करने लगते हैं, तो उस थॉट्स से अपने आप को बाहर लाना काफी मुश्किल हो जाता है। मीनिंग से जुड़ी रिस्पॉन्सिबिलिटी की वजह से थिंक अबाउट क्यों हम ड्रिंक करते है या फिर रिक्रिएशन ड्रग्स को यूज़ करते है? दोनों का सेम रीज़न है क्योंकि जब हम नशे में होते हैं तब हम अपनी रिस्पॉन्सिबिलिटी ज़ को भूल जाते हैं और ऐसी ही थिंकिंग और बिहेव्यर हमें निहाल इज़म तक लेकर जाता सो लाइफ का मीनिंग है और ना तो वो इ रिस्पॉन्सिबिलिटी है और ना ही हैपिनेस। क्योंकि हैपिनेस भी सिर्फ ह्यूमन इमोशन का एक डाइमेंशन है और इतने सारे इमोशन्स में से एक को अपनी लाइफ का पर्पस बना देना भी बेवकूफ़ी होगी। एक इंसान हाइ लिस्ट होकर भी अपने हैप्पी मोमेंट्स को एक्सपिरियंस तो कर सकता है पर जब वो लंबे टाइम तक नेगेटिव इमोशन फील करता है और उसके पास सहारा लेने के लिए मीनिंग नहीं होता तो इवेन चली उसकी लाइफ काफी शैलो हो जाती है। और वो एक्सपिरियंस करने लगता है डिप्रेशन और सुसाइड थॉट्स। एंड मैं मैं ये बोलना चाहूंगा की मिनिमम लेसन्स ऑफ लाइफ एक लाइफ प्रॉब्लम से ज्यादा एक साइकोलॉजिकल प्रॉब्लम है, क्योंकि जब हम अपनी सिचुएशन को लाइफ की क्वेश्चन में डालते हैं तब हम अपने आप को यूनिवर्स के ऐडसेंस के साथ अलाइन कर लेते हैं और इसमें चाहे हमारी लाइफ का पर्पस चेंज भी होता रहे, तब भी हमारे पास इस प्रोसेसेस की एक बेटर अन्डरस्टैन्डिंग होती है और हम ऐसे बेतुके कॉन्क्लूज़न स् नहीं निकालते है।",हमारा जीवन किस बारे में है? हम सब यहाँ क्या करने आए हैं? क्या शून्यवादी सही हैं? क्या हमारा जीवन अर्थहीन है? इन सभी सवालों के जवाब मनोविज्ञान के हिंदी पॉडकास्ट में इस खंड में पाएं। हमें Youtube पर खोजें: www.youtube.com/psychologyinhindi "दाऊद एचिंग एक चाइनीज टेस्ट है जिसे चाइनीज फिलोसफर और राइटर लाउड ज़ोन ने लिखा है। इसमें उन्होंने एन्शियंट चाइना के रिलिजन की फिलॉसफी एक्सप्लेन करी है और पोएट्री के थ्रू लाइफ और जीने के तरीके के बारे में समझाया है। इसमें ऐसे ही एक पॉम है वोटर के ऊपर कि हम पानी से क्या सीख सकते हैं। पानी एक सिंबल होता है क्रिएटिव फ्लो ओपन एस और फ्रीडम का। हम उसे बंद करके एक बॉटल में भी रख सकते हैं या एक छोटे तालाब में ऑब्जर्व कर सकते हैं। लेकिन जब उसकी मर्जी आती है तब वो पत्थर और लोहे को भी तोड़ देता है सिंबल ऑन्ग में पानी गैंग यानी फेमिनिन होता है, जिसकी वजह से उसका फोकस होता है नयी चीजें क्रिएट करने, नर्चर करने और जब जरूरत पड़े तो अपनी केओ टिक, नेचर के थ्रू पुराने स्ट्रक्चर को तोड़ने और नए स्ट्रक्चर्स के लिए जगह बनाने पर इन सर ऑफिस लेवल पर सॉफ्ट लगता है लेकिन वो अपनी इसी सॉफ्टनेस से सबसे हार्ड चीजों को भी तोड़ सकता है। हमारा कल्चर भी बिल्कुल ऐसे ही काम करता है। हमारा दिमाग रिजिड और यंग होता है, जो किसी भी ऑपोजिट टु यू को सुनने के लिए ज़रा सी भी फ्लेक्सिबिलिटी नहीं दिखाता। इस वजह से नेचर उसके अंदर इस मिसिंग बैलेंस को पूरा करने और उसे एक लहसुन देने के लिए उसकी जिंदगी में बाढ़ लाती है और उसे फ्लेक्सिबल बनने की टीचिंग देती है। पानी हमें हम्बल रहना सीखाता है क्योंकि एक इंसान हमेशा सबके ऊपर रहना चाहता है जहाँ हर इंसान की नजर सिर्फ उसी पर पड़े हैं। लेकिन पानी इस तरह से हवा में नहीं बल्कि ग्राउंडेड रहता है और ज़रा सी भी अटेन्शन डिमांड नहीं करता। वॉल्टर का फोकस खुद पर नहीं बल्कि दूसरों को नरेश करने पर होता है जहाँ हम बहुत आसानी से सेल्फिश और ग्रीडी बन जाते हैं और सिर्फ अपने ही प्लेयर्स को पूरा करने के चक्कर में दूसरों को नुकसान पहुंचाने में बिल्कुल नहीं हिचकिचाते। वहीं वोटर हमें हर एक के साथ का रहना सीखाता है। एक नदी कई घाटियों, गांव और शहरों में बेहतर है और अपने रास्ते में आने वाले हर पौधे और जानवर की प्यास बुझाती है और जब वो अपनी ये रिस्पॉन्सिबिलिटी पूरी कर लेती है तब वो आगे बढ़ जाती है। बिना किसी शाबाशी या रिकग्निशन के दूसरी तरफ हम इंसान जब ज़रा सी भी किसी की मदद कर देते हैं तब हम सब कॉन्शस ली। वापस से कुछ एक्सपेक्ट करने लगते हैं कि हमें साथ के साथ ही अपने अच्छे कर्म करने का फल मिल जाएगा। वन बहुत से अमीर लोग और सेलिब्रिटीज़ भी चैरिटी करते हैं। बदले में वाहवाही पाने और न्यूज़ में आने के लिए, लेकिन ऐसी मदद मदद नहीं बल्कि एक लेन देन होता है। वोटर हमें इस तरह की सोच से ऊपर उठने के लिए इंस्पायर करता है और अपनी तरह अनकन्डिशनल काइंडनेस दिखाने को बोलता है कि जब भी आप किसी के लिए कुछ करो तब साथ के साथ ही उसे भूल जाओ और अपने फल की इच्छा मत करो। हिंदी में एक मुहावरा होता है कि नेकी कर और दरिया मेँ डाल यानी भला काम करो लेकिन उस काम के लिए किसी भी तरह का रिवॉर्ड मत एक्सपेक्ट करो। यह चीज़ आपके कलेक्टर में डेथ डालेगी और आपके दिल को साफ रखेगी क्योंकि सबसे नेक और महान लोग भी एक समुद्र की तरह गहरे होते हैं। उनको पहली मुलाकात में समझना बहुत मुश्किल होता है और हमें कुछ समय लगता है जिससे पहले हम उन्हें एक डी पर लेवल पर जान पाए। वो बड़ी बड़ी लहरों और सन्नाटे से भरे पानी के नीचे दबे हुए खजाने की तरह होते हैं और जो भी उन्हें समझने की हिम्मत और पेशेंट्स रखता है आखिर में वो भी उनके क्लोज़ आकर उनके इस खजाने से अपने लिए कुछ अनमोल ले पाता है। लाओ जो बोलते हैं कि हर नदी समुद्र में जाकर मिलती है क्योंकि उन्हें पता होता है कि वह उससे बहुत कुछ सीख सकती है और अपने फेल्ट एक्सपिरियंस का दायरा बढ़ा सकती है। हाउएवर एक नोट करने वाली बात यह है कि समुद्र नदी से नीचे होता है और हम इंसान भी ऐसी जगहों पर नहीं जाना चाहते जिन्हें हम अपने से नीचे समझते हैं। पर भी यही बोलती है कि जीस चीज़ की हमे सबसे ज्यादा जरूरत है। वो वहाँ मिले गी जहाँ हम बिल्कुल नहीं देखना चाहते हैं। इस तरह से पानी की तरह अपने दिल में शांति और काइंडनेस लाने से हम दूसरों के साथ एकता मेनटेन कर पाते है। जब पानी के रास्ते में कोई रुकावट आती है तब उसका सबसे पहला रिस्पॉन्स यही होता है कि वो बिना उस चीज़ को परेशान करे, उसके साइड से निकल जाए। पानी ना तो कोई कंप्लेन करता है और ना ही वो निराश होता है की उसकी जर्नी कितनी मुश्किल है जिसकी वजह से वो अपनी डेस्टिनेशन तक पहुंचने का रास्ता हमेशा ढूंढ लेता है। लेकिन हम इंसान इन्टॉलरेंट और इमपेशेंट होते हैं। हमारी लाइफ में ज़रा सी प्रॉब्लम आते ही या तो हम एक दम डर जाते हैं और एक ऐस मेंटल स्टेट में गलत डिसिशन ले लेते हैं या फिर हम खुद को ठीक करने के बजाए दूसरों को ब्लेम करना शुरू कर देते हैं। दोनों ही केसेस में सॉल्यूशन तक पहुंचना ऑलमोस्ट इम्पॉसिबल होता है। इसलिए अपने हर मूव में भी स्थिरता रखो और मुश्किलों को अपने दिमाग पर हावी मत होने दो। बोलते हैं कि मिट्टी से भरा पानी तब तक गंदा रहता है। जब तक वो बिना किसी कंट्रोल के बहरा होता है लेकिन जैसे ही वो स्थिर होकर वेट करता है वैसे ही वो साफ होने लग जाता है। जीस वजह से ये पता होना कि कब स्थिर रहने का समय है और कब अपने आप को बहनें देने का यह बहुत जरूरी होता है। पानी को यह पता होता है कि उसे हर बदलते सीज़न के साथ किस तरह से अडैप्ट करना है। सर्दियों में पानी धीमा हो जाता है और ओलों या बर्फ़ के रूप ले लेता है और गर्मियों में पानी भाप बनकर उड़ जाता है और बारिश के रूप में वापस आने की तैयारी करता है। हर प्रोसेसेस के पूरा होने का अपना एक सही वक्त होता है। बिलकुल ऐसे ही हमारे एक्शन्स भी सबसे ज्यादा फ्रूटफुल तब साबित होते हैं जब हम उन्हें सही समय पर लेते है। बिना ज्यादा जल्दी मचाए या फिर लेट होने के लाउड। जो बोलते हैं कि नैचर कभी भी जल्दी नहीं मचाती है, लेकिन फिर भी वो अपने सारे काम पूरे कर लेती है। पानी हर सिचुएशन के साथ अडैप्ट करने के लिए रेडी रहता है, चाहे वो बदलते मौसम में अपनी फॉर्म को बदलना हो या फिर खुद की शेप को बर्तन की शेप में ढालना हो। साइकोलॉजी भी क्रिएटिविटी को ऐसे ही डिफाइन करती है कि क्रिएटिव होने का एक बहुत बड़ा पार्ट नयी नयी सिचुएशन को हैंडल करना और रैन्डम प्रॉब्लम्स को सॉल्व करना होता है। अगर आप अपनी लाइफ में आई रैन्डम प्रॉब्लम्स को फेस नहीं कर पाते और हमेशा बनते हुए काम को बिगाड़ देते हो तो उसका मतलब आप नै चक्र के क्रिएटिव फ्लो के टच में नहीं हो। हमारे रास्ते में क्या और कौन सी रुकावट आती है यह हमारे कंट्रोल से बाहर है। लेकिन क्या हम उस के पार जाने का रास्ता निकाल पाते हैं या फिर एक जगह पर रुके रह जाते हैं? ये हमारे ऊपर डिपेंड करता है। जितना हम लेवल पर जाएंगे और यानी मैं स्कूल रहेंगे, उतना ही हम अपनी पोटेंशिअल और फ्रीविल से दूर रहेंगे। लेकिन इनके टच में आने से हम अपनी डिफेंस को जान पाएंगे। अपने अंदर मौजूद कुछ नया क्रिएट करने की ताकत को ढूंढ पाएंगे। यही रीज़न है कि क्यों हम अक्सर अपने एपिसोड में ये डिस्कस करते हैं कि एक मेल और फीमेल को बस एक्स्ट्रीमली या फिर एक्स्ट्रीमली फेमिनिन नहीं बल्कि दोनों का बैलेंस होना चाहिए। जीतने आप एक्स्ट्रोवर्ट हो उतना ही आपको इंट्रो वर्जन भी आना चाहिए। जितना आप इंटलेक्चुअल ली सोचते हो उतना ही आपको अपनी इनोवेशन या इन्नर विस्डम पर ध्यान देना चाहिए और जो एक सिचुएशन डिमांड कर रही है उसके अकॉर्डिंग खुद को अडैप्ट करना चाहिए। अगर यंग ऊंची ऊंची बिल्डिंग या फिर पहाड़ की चोटी है तो इन समुद्र का तल है। दोनों ही एक दूसरे के बिना हमारी लाइफ के एक्सपिरियंस को अधूरा बनाते हैं। लेकिन हम मॉडर्न इंसान बहुत ही इम्बैलेंस्ड है और हम एक पत्थर की तरह जीते हैं जो दूसरे लोगों से घिस घिसकर और प्रेशर में आकर बाहर से इतना ज्यादा कठोर बन चुका है कि हमें तोड़ने के लिए बस एक ज़रा सा झटका चाहिए होता है और हम चूर चूर होकर बिखर जाते है। हम सब बाहर से तो बहुत खुश और नॉर्मल लगते हैं लेकिन अंदर से हम उतना ही दुखी और अपनी ट्रू नेचर से दूर जाते जा रहे हैं। हम ऐसा दिखाते तो है कि हमारी खुशी हमें अपनी सक्सेस और करियर में आगे बढ़ने से ही मिले गी और हमारा कल्चर भी सिर्फ यंग को ही सेलिब्रेट करता है। लेकिन हम सबके दिलों में एक आवाज वो भी है जो हमें अपने पास बुलाती है और मटिरीअल चीजों से दूर हमें अपनी सेटल और स्पिरिचुअल साइड की तरफ जाने को बोलती है। बात सिर्फ हमारे पर्सपेक्टिव की है कि हम अपने आप को लिमिटेड और सिम्पल रखना चाहते हैं या फिर लिमिट्लेस और डीप। हमारी लाइफ एक राफ्ट ऐडवेंचर की तरह होती है, जिसमें तेज बहता हुआ पानी हमारे अंदर मौजूद सबकॉन्शियस और अनकॉन्शियस फोर्स है, जो हमें कभी एक डायरेक्शन में धकेलती है और कभी दूसरी और एक अच्छी लाइफ जीने के लिए जब हम पूरे समुद्र के साथ आइडेंटिफाइ करने के बजाय एक पतली सी नाम में उसके अगेन्स्ट जाने की कोशिश करते हैं तो हमारा डूबना तो तय है। इसके बजाय हमें इस पानी के फ्लो के साथ आइडेंटिफाइ करना चाहिए और ये सोचना चाहिए कि हम इस में बहती एक नाम नहीं बल्कि पूरी नदी है जो बस समुद्र तक पहुंचने का रास्ता ढूंढ रही हैं। दाऊद एचिंग एक चाइनीज टेस्ट है जिसे चाइनीज फिलोसफर और राइटर लाउड ज़ोन ने लिखा है। इसमें उन्होंने एन्शियंट चाइना के रिलिजन की फिलॉसफी एक्सप्लेन करी है और पॉइट्री के थ्रू लाइफ और जीने के तरीके के बारे में समझाया है। इसमें ऐसे ही एक पॉम है वोटर के ऊपर कि हम पानी से क्या सीख सकते हैं। पानी एक सिंबल होता है क्रिएटिव फ्लो ओपन एस और फ्रीडम का। हम उसे बंद करके एक बॉटल में भी रख सकते हैं या एक छोटे तालाब में ऑब्जर्व कर सकते हैं। लेकिन जब उसकी मर्जी आती है तब वो पत्थर और लोहे को भी तोड़ देता है सिंबल ऑन्ग में पानी यंग यानी फेमिनिन होता है, जिसकी वजह से उसका फोकस होता है नयी चीजें क्रिएट करने, नर्चर करने और जब जरूरत पड़े तो अपनी केओ टिक, नेचर के थ्रू पुराने स्ट्रक्चर को तोड़ने और नए स्ट्रक्चर्स के लिए जगह बनाने पर इन सर ऑफिस लेवल पर सॉफ्ट लगता है लेकिन वो अपनी इसी सॉफ्टनेस से सबसे हार्ड चीजों को भी तोड़ सकता है। हमारा कल्चर भी बिल्कुल ऐसे ही काम करता है। हमारा दिमाग ग्रेड और यंग होता है, जो किसी भी ऑपोजिट टु यू को सुनने के लिए ज़रा सी भी फ्लेक्सिबिलिटी नहीं दिखाता। इस वजह से नेचर उसके अंदर इस मिसिंग बैलेंस को पूरा करने और उसे एक लहसुन देने के लिए उसकी जिंदगी में बाढ़ लाती है और उसे फ्लेक्सिबल बनने की टीचिंग देती है। पानी हमें हम्बल रहना सीखाता है क्योंकि एक ऐजन्ट इंसान हमेशा सबके ऊपर रहना चाहता है जहाँ हर इंसान की नजर सिर्फ उसी पर पड़े हैं। लेकिन पानी इस तरह से हवा में नहीं बल्कि ग्राउंडेड रहता है और ज़रा सी भी अटेन्शन डिमांड नहीं करता। वॉल्टर का फोकस खुद पर नहीं बल्कि दूसरों को नरेश करने पर होता है जहाँ हम बहुत आसानी से सेल्फिश और ग्रीडी बन जाते हैं और सिर्फ अपने ही प्लेयर्स को पूरा करने के चक्कर में दूसरों को नुकसान पहुंचाने में बिल्कुल नहीं हिचकिचाते। वहीं वोटर हमें हर एक के साथ का रहना सीखाता है। एक नदी कई घाटियों, गांव और शहरों में बेहतर है और अपने रास्ते में आने वाले हर पौधे और जानवर की प्यास बुझाती है और जब वो अपनी ये रिस्पॉन्सिबिलिटी पूरी कर लेती है तब वो आगे बढ़ जाती है। बिना किसी शाबाशी या रिकग्निशन के दूसरी तरफ हम इंसान जब ज़रा सी भी किसी की मदद कर देते हैं तब हम सब कॉन्शस ली। वापस से कुछ एक्सपेक्ट करने लगते हैं कि हमें साथ के साथ ही अपने अच्छे कर्म करने का फल मिल जाएगा। वन बहुत से अमीर लोग और सेलिब्रिटीज़ भी चैरिटी करते हैं। बदले में वाहवाही पाने और न्यूज़ में आने के लिए, लेकिन ऐसी मदद मदद नहीं बल्कि एक लेन देन होता है। वोटर हमें इस तरह की सोच से ऊपर उठने के लिए इंस्पायर करता है और अपनी तरह अनकन्डिशनल काइंडनेस दिखाने को बोलता है कि जब भी आप किसी के लिए कुछ करो तब साथ के साथ ही उसे भूल जाओ और अपने फल की इच्छा मत करो। हिंदी में एक मुहावरा होता है कि नेकी कर और दरिया मेँ डाल यानी भला काम करो लेकिन उस काम के लिए किसी भी तरह का रिवॉर्ड मत एक्सपेक्ट करो। यह चीज़ आपके कलेक्टर में डेथ डालेगी और आपके दिल को साफ रखेगी क्योंकि सबसे नेक और महान लोग भी एक समुद्र की तरह गहरे होते हैं। उनको पहली मुलाकात में समझना बहुत मुश्किल होता है और हमें कुछ समय लगता है जिससे पहले हम उन्हें एक डी पर लेवल पर जान पाए। वो बड़ी बड़ी लहरों और सन्नाटे से भरे पानी के नीचे दबे हुए खजाने की तरह होते हैं और जो भी उन्हें समझने की हिम्मत और पेशेंट्स रखता है आखिर में वो भी उनके क्लोज़ आकर उनके इस खजाने से अपने लिए कुछ अनमोल ले पाता है। लाओ जो बोलते हैं कि हर नदी समुद्र में जाकर मिलती है क्योंकि उन्हें पता होता है कि वह उससे बहुत कुछ सीख सकती है और अपने फेल्ट एक्सपिरियंस का दायरा बढ़ा सकती है। हाउएवर एक नोट करने वाली बात यह है कि समुद्र नदी से नीचे होता है और हम इंसान भी ऐसी जगहों पर नहीं जाना चाहते जिन्हें हम अपने से नीचे समझते हैं। पर भी यही बोलती है कि जीस चीज़ की हमे सबसे ज्यादा जरूरत है। वो वहाँ मिले गी जहाँ हम बिल्कुल नहीं देखना चाहते हैं। इस तरह से पानी की तरह अपने दिल में शांति और काइंडनेस लाने से हम दूसरों के साथ एकता मेनटेन कर पाते है। जब पानी के रास्ते में कोई रुकावट आती है तब उसका सबसे पहला रिस्पॉन्स यही होता है कि वो बिना उस चीज़ को परेशान करे, उसके साइड से निकल जाए। पानी ना तो कोई कंप्लेन करता है और ना ही वो निराश होता है कि उसकी जर्नी कितनी मुश्किल है जिसकी वजह से वो अपनी डेस्टिनेशन तक पहुंचने का रास्ता हमेशा ढूंढ लेता है। लेकिन हम इंसान इन्टॉलरेंट और इमपेशेंट होते हैं। हमारी लाइफ में ज़रा सी प्रॉब्लम आते ही या तो हम एक दम डर जाते हैं और एक ऐस मेंटल स्टेट में गलत डिसिशन ले लेते हैं या फिर हम खुद को ठीक करने के बजाए दूसरों को ब्लेम करना शुरू कर देते हैं। दोनों ही केसेस में सॉल्यूशन तक पहुंचना ऑलमोस्ट इम्पॉसिबल होता है। इसलिए अपने हर मूव में भी स्थिरता रखो और मुश्किलों को अपने दिमाग पर हावी मत होने दो। बोलते हैं की मिट्टी से भरा पानी तब तक गंदा रहता है। जब तक वो बिना किसी कंट्रोल के बहरा होता है लेकिन जैसे ही वो स्थिर होकर वेट करता है वैसे ही वो साफ होने लग जाता है। जीस वजह से ये पता होना कि कब स्थिर रहने का समय है और कब अपने आप को बहनें देने का यह बहुत जरूरी होता है। पानी को यह पता होता है कि उसे हर बदलते सीज़न के साथ किस तरह से अडैप्ट करना है। सर्दियों में पानी धीमा हो जाता है और ओलों या बर्फ़ के रूप ले लेता है और गर्मियों में पानी भाप बनकर उड़ जाता है और बारिश के रूप में वापस आने की तैयारी करता है। हर प्रोसेसेस के पूरा होने का अपना एक सही वक्त होता है। बिलकुल ऐसे ही हमारे एक्शन्स भी सबसे ज्यादा फ्रूटफुल तब साबित होते हैं जब हम उन्हें सही समय पर लेते है। बिना ज्यादा जल्दी मचाए या फिर लेट होने के लाउड। जो बोलते हैं कि नैचर कभी भी जल्दी नहीं मचाती है, लेकिन फिर भी वो अपने सारे काम पूरे कर लेती है। पानी हर सिचुएशन के साथ अडैप्ट करने के लिए रेडी रहता है, चाहे वो बदलते मौसम में अपनी फॉर्म को बदलना हो या फिर खुद की शेप को बर्तन की शेप में ढालना हो। साइकोलॉजी भी क्रिएटिविटी को ऐसे ही डिफाइन करती है कि क्रिएटिव होने का एक बहुत बड़ा पार्ट नयी नयी सिचुएशन को हैंडल करना और रैन्डम प्रॉब्लम्स को सॉल्व करना होता है। अगर आप अपनी लाइफ में आई रैन्डम प्रॉब्लम्स को फेस नहीं कर पाते और हमेशा बनते हुए काम को बिगाड़ देते हो तो उसका मतलब आप नै चक्र के क्रिएटिव फ्लो के टच में नहीं हो। हमारे रास्ते में क्या और कौन सी रुकावट आती है यह हमारे कंट्रोल से बाहर है। लेकिन क्या हम उस के पार जाने का रास्ता निकाल पाते हैं या फिर एक जगह पर रुके रह जाते हैं? ये हमारे ऊपर डिपेंड करता है। जितना हम लेवल पर जाएंगे और यानी रहेंगे उतना ही हम अपनी पोटेंशिअल और फ्रीविल से दूर रहेंगे। लेकिन इनके टच में आने से हम अपनी डिफेंस को जान पाएंगे। अपने अंदर मौजूद कुछ नया क्रिएट करने की ताकत को ढूंढ पाएंगे। यही रीज़न है कि क्यों हम अक्सर अपने एपिसोड में ये डिस्कस करते हैं कि एक मेल और फीमेल को बस एक्स्ट्रीमली। मैं स्कूल या फिर एक्स्ट्रीमली फेमिनिन नहीं बल्कि दोनों का बैलेंस होना चाहिए। जीतने आप एक्स्ट्रोवर्ट हो उतना ही आपको इंट्रो वर्जन भी आना चाहिए। जितना आप इंटलेक्चुअल ली सोचते हो उतना ही आपको अपनी इनोवेशन या इन्नर विस्डम पर ध्यान देना चाहिए और जो एक सिचुएशन डिमांड कर रही है उसके अकॉर्डिंग खुद को अडैप्ट करना चाहिए। अगर यंग ऊंची ऊंची बिल्डिंग या फिर पहाड़ की चोटी है तो इन समुद्र का तल है। दोनों ही एक दूसरे के बिना हमारी लाइफ के एक्सपिरियंस को अधूरा बनाते हैं। लेकिन हम मॉडर्न इंसान बहुत ही इम्बैलेंस्ड है और हम एक पत्थर की तरह जीते हैं जो दूसरे लोगों से घिस घिसकर और प्रेशर में आकर बाहर से इतना ज्यादा कठोर बन चुका है कि हमें तोड़ने के लिए बस एक ज़रा सा झटका चाहिए होता है और हम चूर चूर होकर बिखर जाते है। हम सब बाहर से तो बहुत खुश और नॉर्मल लगते हैं लेकिन अंदर से हम उतना ही दुखी और अपनी ट्रू नेचर से दूर जाते जा रहे हैं। हम ऐसा दिखाते तो है कि हमारी खुशी हमें अपनी सक्सेस और करियर में आगे बढ़ने से ही मिले गी और हमारा कल्चर भी सिर्फ यंग को ही सेलिब्रेट करता है। लेकिन हम सबके दिलों में एक आवाज वो भी है जो हमें अपने पास बुलाती है और मटिरीअल चीजों से दूर हमें अपनी सेटल और स्पिरिचुअल साइड की तरफ जाने को बोलती है। बात सिर्फ हमारे पर्सपेक्टिव की है कि हम अपने आप को लिमिटेड और सिम्पल रखना चाहते हैं या फिर लिमिट्लेस और डीप। हमारी लाइफ एक राफ्ट ऐडवेंचर की तरह होती है, जिसमें तेज बहता हुआ पानी हमारे अंदर मौजूद सबकॉन्शियस और अनकॉन्शियस फोर्स है, जो हमें कभी एक डायरेक्शन में धकेलती है और कभी दूसरी और एक अच्छी लाइफ जीने के लिए जब हम पूरे समुद्र के साथ आइडेंटिफाइ करने के बजाय एक पतली सी नाम में उसके अगेन्स्ट जाने की कोशिश करते हैं तो हमारा डूबना तो तय है। इसके बजाय हमें इस पानी के फ्लो के साथ आइडेंटिफाइ करना चाहिए और ये सोचना चाहिए कि हम इस में बहती एक नाम नहीं बल्कि पूरी नदी है जो बस समुद्र तक पहुंचने का रास्ता ढूंढ रही हैं।","लाओ त्ज़ु एक चीनी दार्शनिक और ताओ ते चिंग के लेखक थे, जो चीन में पाए जाने वाले धर्म यानी ताओवाद पर आधारित एक प्राचीन ग्रंथ है। इस प्रसंग में 81 अध्याय या विभिन्न कविताएँ हैं और जिनमें से एक जल के दार्शनिक स्वरूप पर आधारित है। त्ज़ु चाहता है कि हम सोचें कि हम पानी से क्या सीख सकते हैं और ऐसी कौन सी समझदारी है जिसे हम अक्सर दैनिक आधार पर अनदेखा कर देते हैं। इसलिए, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम पानी पर उनके विचारों का विस्तार करेंगे और उन संदेशों को सीखने की कोशिश करेंगे जो यह रूपकों के माध्यम से संवाद करने की कोशिश कर रहा है।" "हमारा ब्रेन हमारी मदद करता है हमारे एनवायरनमेंट लोगों और हर तरह की इन्फॉर्मेशन को समझने में, लेकिन अगर हम खुद के दिमाग और उसमें चल रहा है, प्रोसेसेस को ही नहीं समझते तो इससे हम बिना सोचे समझे ही हर चीज़ को गलत तरह से इंटर्प्रिट करने लगेंगे और खुद की साइकोलॉजी के गुलाम बन जाएंगे। इसलिए खुद की सेल्फ अवेर्नेस और सेल्फ कंट्रोल को बढ़ाने के लिए आज हम बात करेंगे कई ऐसे साइकोलॉजिकल फैक्स और इफेक्ट्स की जो हमारे बिहेव्यर को कंट्रोल करते हैं। नंबर वन आठ डिसिशन्स आर नॉट अंडर कंट्रोल हमारा हर ऐक्शन ये डिसिशन पूरी तरह से हमारे कंट्रोल में नहीं होता। लेट से आपका एक फ्रेंड बहुत ही दुखी है क्योंकि उसके पास बिल्कुल पैसे नहीं हैं तो आप सोचते हो कि आप उसकी मदद करोगे और आप उसे कुछ पैसे उधार दे देते हो। आपको लगता है कि ये डिसिशन एंट्री ली आपका था और आप ऐसा करने के लिए कितने अच्छे हो? जबकि असलियत में हमारे हर डिसिशन को एनवायरनमेंट की हर दिखने सुनाई देने और स्मेल आने वाली चीज़ हर फैक्टर इन्फ्लुयेन्स कर रहा होता है। आपका इस तरह का पॉज़िटिव डिसिशन वीज़्ली बदला जा सकता है। आपके इन्वाइरनमेंट कोंन प्लेज़न्ट बनाकर और आपने नेगेटिव इमोशन्स जगाकर इसलिए खुद को कभी भी ना तो एक अच्छा इंसान मानो और ना ही बुरा इंसान और कॉन्शस डिसिशन्स लेने के लिए। अपने इन्वाइरनमेंट के इन्फ्लुयेन्स को हमेशा कंसिडर करो। नंबर टू पे कूलर शो मी फैक्ट जब एक इंसान दोन रिलेटेड चीजों को साथ देखकर अनकॉन्शियस ली, उनमें एक लॉजिकल कनेक्शन बनाने लगता है। तब उसे बोलते है कूलर शो मी। फैक्ट इस इफेक्ट को अक्सर मार्केटिंग और सेल्स के लिए यूज़ करा जाता है। जैसे एक क्रीम को किसी ऐड में जब बार बार सुंदर चेहरों के साथ दिखाया जाता है, तब व्यूअर इन कॉन्शस ली उस प्रॉडक्ट और सुंदरता को कनेक्ट करने लगता है और धीरे धीरे वो उस प्रॉडक्ट को खरीदने के लिए कन्विंस हो जाता है। ये मैनिपुलेशन आपको हर जगह पर देखने को मिले गी टीवी में, शॉपिंग मॉल्स में, रेस्ट्रॉन्ट्स में और इवन बहुत से चालक लोग भी खुद को आप की नज़रों में अच्छा दिखाने के लिए खुद को अच्छा ई के साथ जोड़ने की कोशिश करेंगे। नंबर थ्री योर वर्ड्स शेप योर रिऐलिटी एक नेटिव अमेरिकन ट्राइब जिसका नाम है चौकट आओ उनकी लैंग्वेज में ब्लू और ग्रीन कलर दोनों को सम वर्ड्स से डिफाइन करा जाता है। एक बार जब उन्हें ग्रीन ब्लू कलर साइड बी साइड दिखाए गए और उनसे दोनों में डिफरेन्स पूछा गया, तब उन्हें उन कलर्स में कोई डिफरेन्स ही नहीं दिखा। उनके हिसाब से ब्लू और ग्रीन कलर सेम ही है। यानी दो चीजों कोसम इनाम देने से हमारा दिमाग उन दोनों चीजों के बीच के डिफरेन्स को छोटा या फिर नॉन एग्ज़िस्टिंग समझने लगता है। इसलिए जीस दिन आप थोड़े से दुखी होते हो तब ये मत बोलो की मैं दुखी हूँ बल्कि बस इतना बोलो कि मैं आज थोड़ा कम खुश हूँ। खुद के लिए अगर आप बुरे वर्ड को यूज़ करोगे तो इवेन चली खुद को बुरा ही बना लोगे। इसलिए अपने हर शब्द को केर्फुल नो नंबर फ़ोर द फेयर ऑफ ड्यूटी। क्या आपने कभी ये नोटिस करा है कि जब भी किसी जगह पर कोई बहुत ही अट्रैक्टिव इंसान बैठा होता है तब आम लोगों के उसके पास बैठने के चान्सेस ऑलमोस्ट ना के बराबर होते हैं और लेंस एक आम दिखने वाला इंसान एक ब्यूटीफुल इंसान को जानता है या फिर कोई दूसरी सीट अवेलेबल नहीं है। वो नैचुरली उस इंसान के पास नहीं बैठेगा। ये बिहेव्यर होता है ब्यूटी से जुड़े जजमेंट और कंपैरिजन का डर। हमें लगता है कि ब्यूटीफुल लोग हर समय दूसरों को जज करते रहते हैं, जिसकी वजह से हम जानें अनजानें में ब्यूटीफुल लोगों को नोटिस तो करते हैं। लेकिन हम उनसे दूर रहने की कोशिश करते हैं। नंबर फाइव ऐंकरिंग इफेक्ट हमें किसी भी चीज़ की वैल्यू को कैलकुलेट करने में आसानी महसूस होती है, जब हमारे पास उसका ओरिजिनल प्राइस होता है, फिर चाहे वो प्राइस झूठा ही क्यों ना हो। इसे बोलते हैं ठिनठिनी, फेक्ट और शॉपिंग स्टोर्स इस साइकोलॉजिकल इफेक्ट को हमेशा यूज़ करते है क्योंकि नोर्मल्ली आप कि सी टी शर्ट या फिर ड्रेस को दो ₹3000 देकर नहीं खरीदोगे, लेकिन अगर आप उसके टैग पर उसके ओरिजिनल प्राइस को देखो और वहाँ पर ₹5000 लिखा हुआ है तो तब आप सोचोगे कि ₹5000 के आगे ₹2000 का प्राइस तो बहुत ही फेर है? और आपको एक प्रीमियम प्रोडक्ट्स पर बहुत ही अच्छी डील मिल रही है। इसलिए ऐसे समय पर खुद को टेक्स्ट होने से रोको और अपने पैसों को बचाव स्टोर्स की इस चालाकी को समझकर नंबर सिक्स यू अर फॉलोयिंग आमनी स्क्रिप्ट अपनी बुक माइन्ड ओवर मनी में ऑथर्स ब्रैड और टेड उसने एक टर्म को इंट्रोड्यूस करा है जिसे बोलते हैं मनी स्क्रिप्ट्स यानी पैसों को लेकर हर वो बेसिक आजम ऑप्शन या फिर बिलीव जिन्हें आपने अपने बचपन में सीख लिया था और आप अनकॉन्शियस ली अपने पूरे ऐडल्ट हुड में भी पैसों को उसी नजर से देखोगे यही रीज़न है की क्यों गरीब घर में जब एक बच्चा अपने पैरेंट से पूर्व माइंडसेट इनहेरिट करता है। तब वो अपनी पावर्टी की साइकल से कभी बाहर निकल ही नहीं पाता जबकि अगर एक अमीर घर के बच्चे को दिया जाए तो वो अपनी फैमिली की दौलत को कहीं और गुना बढ़ा देता है। यानी आप में भी पैसों को लेकर कई बिलीव्स पहले से आप की फैमिली ने आपके अंदर डाल रखे हैं और आप भी अनकॉन्शियस ली एक मनी स्क्रिप को फॉलो कर रहे हो इसलिए अनकॉन्शियस ली पैसा कमाने की स्ट्रगल में उलझे रहने की बजाय ज्यादा कॉन्शस ली। पैसों को हैंडल करो नंबर 740 जजमेंट स् ऑन ऐवरेज हमलोगों को खुद की साइकोलॉजी की बिल्कुल भी अन्डरस्टैन्डिंग नहीं होती। 1977 की एक स्टडी में दो ग्रुप्स को एक मूवी को देखने को बोला गया। एक ग्रुप ने पूरी मूवी को शांति में देखा जबकि दूसरे ग्रुप को बार बार एक बहुत ही इरिटेटिंग और लाउड आवास से डिस्टर्ब करा गया और जब उनसे पूछा गया कि उन्हें मूवी कैसी लगी? तब पहले ग्रुप ने बोला की मूवी बहुत अच्छी थी जबकि दूसरे ग्रुप के लोग मूवी से बहुत ज्यादा डिसअप्पोइंटेड थे और उन्होंने उस मूवी को बहुत ही खराब रेटिंग दी। लेकिन सरप्राइजिंग बात यह है कि लोगों ने अपनी डिसअप्पोइंट और गुस्से का ब्लेम उस मूवी पर ही डाल दिया। किसी एक पार्टिसिपेट ने भी उस लाउड और इरिटेटिंग आवास का जिक्र ही नहीं कर रहा। इससे हमे ये पता चलता है कि हम हर तरह से अपने बिहेव्यर को जस्टिफाई करते हैं, बजाए उसे समझने की कोशिश करने के।","हमारा मस्तिष्क हमारे पर्यावरण को संसाधित करने, भाषा समझने और लोगों से जुड़ने में हमारी मदद करता है। लेकिन अगर हम अपने मन में चल रही प्रक्रियाओं को नहीं समझेंगे, तो हम हर चीज की गलत तरीके से व्याख्या करेंगे। इसलिए आत्म जागरूकता और आत्म नियंत्रण बढ़ाने के लिए हम आपके व्यवहार को नियंत्रित करने वाले 7 मनोवैज्ञानिक तथ्यों पर चर्चा करने जा रहे हैं।" "टेक्नोलॉजिकल रेवोल्यूशन की वजह से जो चीज़ डिज़ाइनर्स ने हमारे बिहेव्यर के बारे में सबसे ज्यादा सीखी है वो है हर गैजेट, ऐप या इंटरफेस को कुछ इस तरह से डिजाइन करना की। वो हमें इतने नैचरल और एफर्टलेस लगे कि हमें उन्हें यूज़ करने की एक सबकॉन्सियस हैबिट लग जाए। जिसके बाद हम नोटिस भी ना करें कि किस तरह से वो गैजेट या ऐप्प हमें बार बार कुछ ऐक्शन लेने के लिए बोलती है। जैसे एक नोटिफिकेशन बेल सुनते ही हमें पता होता है कि हमें अपना फ़ोन चेक करना हैं। रेड कलर के बटन्स हमें अरजेन्टली क्लिक करने को बोलते हैं और हर नई पोस्ट हमारे अंदर एक्साइटमेंट बढ़ती है जिससे हर स्क्रॉल के साथ हम एक्सपेक्ट करते रहते हैं कि शायद हमें कुछ फनी या एंटरटेनिंग चीज़ मिल जाए। इस प्रोसेसर को बोलते हैं ऑपरैंड कन्डिशनिंग यानी एक ऐसा लर्निंग प्रोसेसर जो रिवॉर्ड और पनिशमेंट के बेसिस पर काम करता है और तभी हम अपने फ़ोन और सोशल मीडिया को बार बार चेक करते रहते हैं ताकि हमें कन्टिन्यूसली डोपामिन मिलता रहे और हम पॉज़िटिव फील करते रहे हैं। पर जब हमें कुछ पॉज़िटिव नहीं मिलता तो हम प्रीडिक्ट करने लगते हैं की शायद थोड़ा सा और स्क्रॉल करने पर हमें कुछ इंट्रेस्टिंग मिल जाए। ये बिहेव्यर आपके अपने फ़ोन को देखने से शुरू होता है और रिवॉर्ड मिलने पर खत्म होता है और यही साइकल तब तक चलती रहती है जब तक हमें एकदम से ये नहीं समझ आ जाता की हम तो टाइम वेस्ट कर रहे हैं और पिछले 10 या 15 मिनट से बस रैन्डम चीजों पर अपनी नजरें फेर रहे हैं। इस प्रोसेसर में सबसे नेगेटिव बात ये है की जहाँ हम बाकी गैजेट्स या टूल्स जैसे एक कार, फ्रिज या माइक्रोवेव को यूज़ करने के बाद उनसे दूर हो जाते हैं, क्योंकि इन टूल्स को डिजाइन करते समय डिज़ाइनर्स इस बात का ध्यान रखते हैं। की। हम इन्हें एक छोटे समय के लिए यूज़ करेंगे और उसके बाद बंद कर देंगे। यहाँ तक कि अगर आप किसी भी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस को ज्यादा देर के लिए यूज़ करते हो तो वो जल्दी खराब हो जाता है और तभी इन डिवाइसेस को ऐक्टिव नहीं बनाया जाता पर फोन्स और स्पेशल ली। सोशल मीडिया के केस में हर आइकन, लेआउट, बटन और साउंड इफेक्ट आपकी साइकोलॉजी को हैक करने के लिए डिजाइन करा जाता है ताकि आप अपना ज्यादा से ज्यादा टाइम इन प्लैटफॉर्म्स पर काटो थी। वन फेसबुक के को फाउंडर और पुराने प्रेज़िडन्ट शॉन पारकर ने भी अपने एक इंटरव्यू में खुलासा करा है। कि कैसे ये सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म्स हमारी फ्री विल छीन लेते हैं और हमें एक ऐडिक्ट बना देते है। डेवलपर्स ये बात जानते हैं की एक बार जब आप किसी ओर्गानिस्म का बिहेव्यर समझ लेते हो तो आप ऐसी एल्गोरिदम्स बना सकते हो जो उनके बिहेव्यर को चेंज कर सकते हैं और इस चेंज का असर हमारी पर्सनैलिटी पर भी पड़ता है। अगर आप अपनी इंस्टाग्राम या फेसबुक फीड को देखो तो आपको 19 9% केसेस में ऐसे लोग देखेंगे जो ब्यूटीफुल है और अपनी लाइफ से काफी खुश हैं। जीवन आप भी जब कोई पिक्चर अपलोड करते हो तो आप सबसे अच्छा ऐंगल चूज करते हो और अपनी बेस्ट वर्जन को एडवरटाइज करते हो। आप कॉन्शस ली डिसाइड करते हो कि आप लोगों की नजर में कैसे देखना चाहते हो। फोटो लेते टाइम भी अब सोच रहे होते हो की आप उस मूवमेंट को बाद में किस तरह से याद रखना चाहते हो और आप अपने प्रेज़ेंट को ऑलरेडी एक मेमोरी बनते हुए इमेजिन करने लगते हो। इस तरह से आप एक समय पर दो रिऐलिटी जीने लगते हो और जाने अनजाने में आप अपनी दो आइडेंटिटी ज़ क्रीएट कर लेते हो। एक जो आप असली में हो और एक जीसको आप एडवरटाइज करते हो। अमेरिकन सोशियोलॉजिस्ट चार स्कूली ने इस फेनोमेनन को नाम दिया है लुकिंग ग्लास शेल्फ और उन्होंने बताया है कि हम अपने आप को किस तरह से पर सेव करते हैं। यानी हम अपने आप से बोलते है की हम वो नहीं है जो हम खुद को समझते हैं। हम वो नहीं है जो दूसरे हमें समझते हैं, बल्कि हम वो है जो हम समझते हैं कि दूसरे लोग हमें समझते हैं। सिंपल भाषा में बोले तो आप हमेशा यह सोच रहे होते हो कि दूसरे लोग आप को किस नजर से देख रहे हैं और आप अपनी इसी सोच को अपनी असलियत समझने लगते हो। ऐसा रिज़ल्ट आप ये भूलने लग जाते हो कि आप असलियत में कौन हो। आज के समय पर ज्यादातर घरों में पैरेन्ट्स और बच्चे दोनों ही सोशल मीडिया के इस जाल में फंस चूके हैं और सोसाइटी में ज्यादातर लोग अपनी सारी डेथ खोते जा रहे हैं, जिससे चाहे आप किसी इंसान से एक ऐप पर बात करो या असलियत में आप अपने और उनके बीच एक डिस्कनेक्ट फील कर पाते हो। ये इस टेक्नोलॉजी का पैराडॉक्स है की हम दूसरे इंसानों से कनेक्टेड होने पर भी इतना लोन्ली फील करते है। हाउएवर साइकोलॉजिकल स्टडीज़ बताती हैं कि सोशल मीडिया हर इंसान को उतना नुकसान नहीं पहुंचाता जितना वो उन लोगों को पहुंचाता है जो पहले से ही खोखले है। यानी जिन लोगों का सेन्स ऑफ, सेल्फ या आइडेंटिटी पहले से ही काफी वीक है और उनके पास कोई लॉन्ग टर्म गोल्स नहीं है, उनके लिए सोशल मीडिया सबसे ज्यादा खतरनाक है। लाइफ में एक स्ट्रोंगली नींद की कमी होने की वजह से ऐसे लोग एक खालीपन महसूस करते हैं और सोशल मीडिया ऐप्स इसी खालीपन को भरने का इल्यूजन देती है। तभी इवन अगर आप अपने फ़ोन को यूज़ करने का टाइम भी कम कर दो तब भी आपकी ऐंगज़ाइइटी और सेन्स ऑफ सेल्फ में ज्यादा बदलाव तो नहीं आएगा? पर आपको अपने अंदर जो पहले से मौजूद खालीपन है वो बाहर आता हुआ महसूस होगा और सोशल मीडिया के बुरे साइकोलॉजिकल इफेक्ट से डील करने का सल्यूशन है। अपनी इसी खालीपन को भरना और भरे रखना, जिसके दो तरीके हैं पहला तरीका बोलता है की अगर आपकी लाइफ की क्वालिटी किसी भी एक्सटर्नल या इंटरनल रीज़न की वजह से बेकार है, जैसे इस केस में एक्सटर्नल रीज़न है सोशल मीडिया तो आपको अपनी लाइफ में एक मिशन सेट करना चाहिए और फिर उसे छोटे छोटे डेली गोल्स में डिवाइड कर देना चाहिए। जो आप अचीव कर सको। फिर जैसे जैसे आप अपने अल्टीमेट गोल की तरफ बढ़ने लगे, तब ये जर्नी ही अपने आप में काफी होगी। आपको फुलफिल करने के लिए बिना किसी सोशल वैलिडेशन की आपकी अपनी नजर में खुद की वैल्यू आपकी सिलेक्टेड फोटोस या लोगों की लाइक्स पर नहीं बल्कि आपकी अचीवमेंट पर बेस्ड होगी। नाउ दूसरा तरीका ऐनालिटिकल साइकोलॉजी के फाउंडर के कॉन्सेप्ट पर बेस्ड है, जिनका मानना था कि हम अपना सेन्स ऑफ सेल्फ बढ़ा सकते हैं। अपने आप को सोसाइटी और मीडिया के अजेंडा स् और उनकी बातों से दूर करके और एक यूनीक इनडिविजुअल बनके पर आप एक यूनीक इंसान तब तक नहीं बन सकते, जब तक आप अपने आप को कंप्लीट या होल नहीं बना लेते। हमने साइकोलॉजी हिंदी के कई एपिसोड में डिस्कस कर रहा है कि कैसे अपनी यूनीकनेस बाहर लाने के लिए आपकी लाइफ में या तो खुद ही कोई परेशानी आती है, जो आपकी पोटेंशिअल को बाहर ले आती है या फिर आप खुद इन्ट्रोस्पेक्शन की मदद से अपने खालीपन की जड़ तक पहुंचते हो और अपने आप को गणना स्टार्ट करते हो। दोनों केसेस में आपको बस सेल्फ अवेर्नेस की एक चिंगारी की जरूरत है। जो आपको बतायेगी कि आप अपने आप को जो सोचते हों, असलियत में आप उससे कहीं बढ़कर हो।","सोशल मीडिया के उदय का मतलब है कि हम एक वैश्विक आबादी के रूप में समय के इतिहास में पहले से कहीं अधिक जुड़े हुए हैं। हालाँकि, सोशल मीडिया पर हमारी निर्भरता हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव डाल सकती है। लेकिन क्या सोशल-मीडिया सभी के लिए बुरा है? इस एपिसोड को सुनें और जानें। 📽️यूट्यूब पर हमें खोजें: WWW.YOUTUBE.COM/PSYCHOLOGYINHINDI" "दोस्त हमे हसाते हैं, रुलाते हैं और कभी कभी तो गुस्सा भी दिलाते हैं लेकिन ये बात हर किसी को पता है कि दोस्त जिंदगी का एक बहुत जरूरी हिस्सा होते हैं। दोस्तों के बिना जिंदगी बहुत ही बोरिंग और मीन इंग्लिश होती ना हमारे साथ रूल्स को तोड़ने वाला कोई होता और ना ही हमें कोई गाली देने और हमारा मजाक उड़ाने के बाद भी हमें प्यार करने वाला कोई होता। अच्छे दोस्त हमें ऐसा कॉन्फिडेन्स दिलाते हैं कि हम उनके साथ पूरी दुनिया पर राज़ कर लेंगे, लेकिन बुरे और फेक दोस्त हमसे हमारा सारा कॉन्फिडेंस छीन लेते हैं। इसलिए दोस्ती की एक डी पर अन्डरस्टैन्डिंग के लिए आज हम बात करेंगे फ्रेन्ड्शिप के कई साइकोलॉजिकल फ़ैक्स की नंबर वन मॉडर्न पीपल हैव ड्रास्टिक लीलेस फ़्रेंड्ज़ एक रीसेंट स्टडी में जब 1985 और 2004 के स्टेटस को कंपेर कर आ गया तब पता चला कि इन 20 सालों में उन लोगों की संख्या 25% बढ़ गई है जो अपने दोस्तों पर ट्रस्ट नहीं करते हैं और इतने समय में एक इंसान की फ्रेंड्स का नंबर 30% गिर गया है। ऑफ कोर्स ये नंबर आज के समय में और ज्यादा होगा क्योंकि यह स्टडी सोशल मीडिया के रेवोल्यूशन से पहले की है। आजकल ज्यादातर लोगों के एक या दो या फिर ज़ीरो फ्रेंड्स होते है और ये चीज़ हमारी मेंटल हेल्थ पर बहुत ही बुरा प्रभाव डाल रही है। नंबर टू क्वालिटी मैटर्स मोर अक्सर हम हर चीज़ के साथ ही यह सोचते हैं कि जितना ज्यादा हो उतना अच्छा है। लेकिन फ्रेंडशिप के केस में आप के रिलेशनशिप की डेथ और क्वालिटी ज्यादा मैटर करती है बजाय क्वांटिटी के। यानी अगर आपके 50 फ्रेंड्स हैं, जिनके साथ आप मस्ती, हँसी, मजाक और हैंग आउट कर सकते हो, लेकिन कोई भी ज्यादा रिलाएबल और ट्रस्ट के काबिल नहीं है और ना ही आप खुद किसी अपने दोस्त की परवाह करते हो तो ऐसे दोस्त होने का क्या फायदा? आप उनके साथ रहने पर भी अकेला और आउट ऑफ प्लेस फील करोगे, जबकि अगर आपका बस पांच छह लोगों का ग्रुप है लेकिन आप लोगों के बीच का बॉन्ड बहुत ही स्ट्रांग है तो इस तरह की फ्रेंडशिप आपको ज्यादा फुलफिलमेंट देगी। इसलिए हमेशा यह कोशिश करो कि आपका फ़ोन चाहे कही 100 और हजारों दोस्तों के नंबर से चाहे ना भी भरा हो लेकिन जिन लोगों से आप बोलचाल रखते हो वो आप के लिए अपनी जान भी देने के लिए तैयार हो। नंबर थ्री जेन्यूइन फ्रेन्ड्शिप से इन्वॉल्व ह्यूज फेवर्स सैक्रिफ़ाइस इस अब जान देने की बात आई है तो हमें यह भी समझ लेना चाहिए कि जीस तरह से आप उस फीलिंग को तब तक प्यार नहीं बोल सकते जो दो लोगों के अलग होने पर खत्म हो जाती है, वैसे ही अब उस रिलेशनशिप को दोस्ती नहीं बोल सकते जिसमें दो लोग एक दूसरे के लिए कुछ भी करने में हिचकिचाते हैं। बहुत से लोग इस बात को अपने मन में नॉर्मलाइज करके बैठे है कि सारे दोस्त ही मतलब ही होते है लेकिन यह एक झूठ है और अगर आप भी यह मानते हो की फ्रेंडशिप तो शैलो ही होती है तो चान्सेस है कि आप खुद भी किसी की मदद करने में बिलीव नहीं करते हैं। फ्रेंडशिप का मतलब होता है कि दो या फिर दो से ज्यादा लोगों ने यह वादा कर दिया है कि चाहे उनमें से किसी भी इंसान की लाइफ में प्रॉब्लम आए, वह प्रॉब्लम वह सब मिलकर सॉल्व करेंगे और जरूरत पड़ने पर एक दूसरे के काम आएँगे। यही तो दोस्ती का मतलब होता है कि वो आपके सुख और दुख में आपका साथ दे हैं और आपको हमेशा ग्रो करने में मदद करें। इसलिए अगर आपकी फ्रेंडशिप में आप या फिर आपके दोस्त मतलब ही है तो समझ जाओ कि आपकी फ्रेंडशिप फेक है। नंबर फ़ोर फ्रेंड्स में क्यों मोर प्रोडक्टिव एक ऐसा फ्रेंड जो आप को सच बताने से नहीं डरता? वो आपको लाइफ में नेविगेट करने, खुद को समझने और ज्यादा प्रोडक्टिव बनाने में काफी मदद कर सकता है क्योंकि आपके आसपास के ज्यादातर लोग तो बस आप की नज़रों में अच्छा बने रहने के लिए आपको कभी भी अपने टू थॉट्स नहीं बताएंगे। इससे आप कुछ गलत करते हुए भी अपने फेक फ्रेंड्स की सुनकर ये बिलीव कर लोगे की आप ठीक कर रहे हो और कुछ अच्छा करते हुए भी वो आपको यह बिलीव करने के लिए कन्विंस कर देंगे कि आप कुछ गलत कर रहे हो। इसलिए अपने आसपास मक्खन लगाने वाले और झूठे लोगों को नहीं बल्कि सिर्फ उन्हीं फ्रेंड्स को रखो जो आप को सच बताने की हिम्मत रखते हैं। नंबर फाइव मेन ऐंड विमिन कान, जस्ट ए फ्रेन्ड, ज़ ये कॉन्ट्रोवर्शल ट्रूथ हम पहले भी डिस्कस कर चूके हैं और ई वन यूनिवर्सिटी ऑफ विस्कोन्सिन की एक रीसेंट स्टडी में भी यह पता चला कि मेल और फीमेल फ्रेंड शिप बहुत ही रीसेंट फिनोमिनल है। और कैसे? ऐसे सिचुएशन्स में सेक्शुअल टेंशन और सिडक्शन को अवॉर्ड करना कितना मुश्किल होता है? 88। कपल्स के सैंपल में यह पैटर्न देखने को मिला कि हर मेल फीमेल फ्रेंड शिप में मेल्स अक्सर अपनी फीमेल फ्रेंड के ज्यादा फिजिकली अट्रैक्टेड होते हैं और उनके लिए ज्यादा फीलिंग्स भी रखते हैं। हाउएवर साइकोलॉजी इसके साथ साथ ये भी बताती है कि अगर इस तरह की फ्रेंडशिप एक लॉन्ग टर्म रिलेशनशिप में बदल जाए तो ऐसे कपल के साथ रहने के चान्सेस उन कपल्स से बहुत ज्यादा होते है जो शुरुवात में फ्रेंड्स नहीं थे। इसलिए हमेशा लॉन्ग टर्म रिलेशनशिप के केस में पहले अपने पोटेंशिअल पार्टनर से फ्रेंडशिप करो, लेकिन कभी भी एक्स्पेक्टेशन मत रखो कि आप दोनों हमेशा ही जस्ट फ्रेंड्स रहोगे। नंबर सिक्स फ्रेंड्स कैन हेल्प यू बिल्ड और ब्रेक हैबिट्स आपकी 10 सीज़ आप के आसपास रहने वाले लोगों से बहुत ज्यादा इन्फ्लुयेन्स होती है। एग्जाम्पल के तौर पर अगर आप अपना वेट लूज करना चाहते हो, लेकिन आपके फ्रेंड्स हर टाइम, कुछ न कुछ जंक फूड खाते रहते हैं और रोज़ ज्यादा मूवी नहीं करते तो ऐसे में चाहे आप डाइटिंग और एक्सरसाइज करना शुरू भी कर दो तब भी आप अपने फ्रेंड सर्कल को देखकर इवेन चली अपनी मोटिवेशन खोल दोगे और उनके साथ वापस से एक अनहेलथी लाइफ स्टाइल पर आ जाओगे। यही रीज़न है की क्यों? अगर आप खुद को चेंज करना चाहते हो, लेकिन आपके फ्रेंड्स उस चैन से बिल्कुल अलग है तो आपको अपने फ्रेंड्स को ही चेंज करना होगा। सही फ्रेंड्स के साथ किसी भी गोल को अचीव करना ज्यादा फन और डीज़इर बन जाता है। फिट फ्रेंड्स आपको भी फिट बनाने में मदद करेंगे। अमीर फ्रेंड्स आपको भी अमीर होना सीखा देंगे और बहुत सी बुक्स पढ़ने वाले फ्रेंड्स आपको भी बुक्स का दीवाना बना देंगे। नंबर सेवन के चियरलीडर इफेक्ट यह एक कॉग्निटिव बायरस है, जो हमें ऐसा फील कराती है कि इनडिविजुअल लोग ज्यादा अट्रैक्टिव लगते हैं। जब वो एक ग्रुप में होते हैं जैसे अगर दो सिमिलर, अट्रैक्टिवनेस और कैरिअर वाले लोग अगर अपनी डेटिंग प्रोफाइल पर फोटोस लगाए, जिसमें एक बंदा हर पिक्चर में अकेला है। लेकिन दूसरे की कही पिक्चर्स एक ग्रुप के साथ है तो चान्सेस है कि ग्रुप फोटो वाला इंसान दूसरों को ज्यादा अट्रैक्टिव और हाई वैल्यू लगेगा, जिससे बिकॉज़ हमें पहली नजर में ही इस बात का सोशल प्रूफ मिल जाता है कि चलो एटलिस्ट अगर इतने लोगों ने इस इंसान को अप्रूव कर रखा है तो ये पर्सनैलिटी और करेक्टर वाइज काफी अच्छा होगा। इसलिए अगर आप किसी को अट्रैक्ट या फिर इंप्रेस करना चाहते हो तो मेक शुर की वो आपको आपके फ्रेंड्स के ग्रुप के साथ जरूर देखें।","दोस्त हमें रुलाते हैं, हंसाते हैं और कभी-कभी बहुत गुस्सा दिलाते हैं। लेकिन हम सभी जानते हैं कि हमारे दोस्तों के बिना हमारा जीवन कितना नीरस और नीरस होगा। मित्र हमें सुरक्षा और जीवन का अर्थ प्रदान करते हैं। दोस्तों के बिना जब हम गिरते हैं तो कोई हम पर हंसने वाला नहीं होता और बाद में हमें उठाने वाला कोई नहीं होता। जबकि सच्चे दोस्त हमारे जीवन की गुणवत्ता में सुधार कर सकते हैं, नकली दोस्त हमारे जीवन को बहुत हद तक नष्ट कर सकते हैं। इसलिए दोस्ती को बेहतर तरीके से समझने के लिए हम दोस्ती के बारे में कुछ आश्चर्यजनक मनोवैज्ञानिक तथ्यों पर चर्चा करने जा रहे हैं।" "सक्सेस कोई ऐसी चीज़ नहीं होती जो एकदम से मिल जाती है क्योंकि जल्दी आई सक्सेस जल्दी ही चली भी जाती है। हर ओवरनाइट सक्सेस के पीछे एक स्टोरी होती है और सक्सेसफुल बनने वाले इंसान में कुछ कर दिखाने के साइंस बहुत पहले से ही विज़िबल होते हैं। यही रीज़न है की क्यों हमे सक्सेस फुल लोगों के बीच कई ट्रेंड देखने को मिलते हैं, जो बताते हैं कि ऐसे लोगों में कई पर्सनैलिटी ट्रेट्स और सोचने का तरीका काफी कॉमन होता है। हाउएवर हर सक्सेसफुल इंसान को शुरू से ये नहीं पता होता कि उसकी पोटेंशिअल क्या है? क्योंकि सोसाइटी और पैरेन्ट्स के दबाव में आकर हम अपने नैचरल टैलंट को भूल जाते हैं। और उन कामों में लग जाते हैं जिन्हें हम दिल से पसंद भी नहीं करते हैं। इसलिए इस एपिसोड में हम उन अर्ली साइंस को डिस्कस करेंगे, जो बताएंगे कि आपके 1 दिन सक्सेस हासिल करने के चान्सेस दूसरों के कंपैरिजन में बहुत ज्यादा है। नंबर वन अब बिग पर्पस इस फीलिंग यू बहुत से सक्सेस आर्टिकल्स स्पीचेस ये यूट्यूब विडीओ में अक्सर मोटिवेशन की बात होती है कि एक इंसान को क्या चीज़ मोटिवेट करती है, काम करते रहने के लिए। लेकिन सच तो ये है कि सक्सेस सिर्फ वही लोग हासिल कर पाते हैं और अपनी सक्सेस को सस्टेन कर पाते हैं। जिनकी मोटिवेशन एक्सटर्नल चीजों से नहीं बल्कि उनके अंदर से एक कभी न खत्म होने वाले सोर्स से आ रही होती हैं। मोटिवेशनल विडीओ ज़ आपको कुछ घंटों या ज्यादा से ज्यादा कुछ दिनों के लिए चार्ज कर देती है, लेकिन उसके बाद आप फिर से सवस्थ और डी मोटिवेटेड फील्ड करने लगते हो, जिसके बाद आपको फिर से वही विडीओ देखनी पड़ती है, जिससे पहले आप अपने काम को करने का सही रीज़न ढूंढ पाओ। ये मोटिवेशन का एक टेंपरेरी सोर्स होता है। दूसरी तरफ कई लोग ऐसे होते हैं जिनके अंदर एक आग होती है और ये आग ना तो कभी बुझती है और ना ही उन्हें रोककर ठण्डा होने के लिए बोलती है। हमने अपने हाउ टू फाइन्ड यू टैलेंट वाले एपिसोड में भी यही चीज़ डिस्कस करी थी कि अगर आप अपने हाइएस्ट पर्पस को ढूँढना चाहते हो जो आपको कॉन्स्टेंट ली फ्यूल करता रहे और आप की आग कभी बुझे ना तो अपने इंट्रेस्ट को फॉलो करो और उन्हें असली चीज़ तक पहुंचने की सीढ़ियों की तरह देखो नंबर टू यू अर ऑलवेज ऑब्जर्विंग ऐम आस्किंग क्वेश्चन्स। सक्सेस फुल लोगों का दिमाग हमेशा एक चीता की तरह भाग रहा होता है और उनके दिमाग में हमेशा ही कई क्वेश्चन्स चल रहे होते हैं। अगर वो एक रेस्ट्रॉन्ट में है तो उनको वहाँ आइडियाज़ आने लगते है कि वह रेस्ट्रॉन्ट क्या कर सकता है। अपना रेवेन्यू बढ़ाने के लिए रिलेटिव्स और दोस्तों से मिलकर तो उनके साथ पर्सनल ग्रोथ की आइडियाज़ को डिस्कस करने लगते हैं। या फिर बस अपने फ्यूचर के विजन को लेकर क्वेश्चन्स करने लगते हैं कि क्या होगा अगर मैं इस तरह से काम करते करते? 1 दिन सक्सेसफुल हो गया, मेरी लाइफ कैसी होगी? मुझे किस तरह के लोगों के साथ उठना बैठना पड़ेगा? सक्सेस माइंडसेट हासिल करने के लिए किस तरह की बुक्स रीड करनी होगी? मेरे पास फ्यूचर में कौन सी गाड़ी होगी? मेरी फैमिली कब और कैसे खुश होगी? ऐंड सो ऑन हर समय ही ऐसे इंसान का दिमाग आइडियाज़ और क्वेश्चन से भरा रहता है और यही क्वेश्चन्स के आन्सर ढूंढने के लिए वो अपने हर नए दिन को पिछले दिन से ज्यादा प्रोडक्टिव बनाने की कोशिश करता है। नंबर थ्री यू हैव आ हेल्थी ऑप्शन ये सेकंड लाइन से ही रिलेटेड है क्योंकि जो लोग सक्सेसफुल बनना चाहते हैं और वो सक्सेस हासिल कर लेते हैं, उनमें हमेशा शुरू से ही एक ऑप्शन होता है। वो बोलते है कि उनके पास सक्सेस अचीव करने के अलावा कोई दूसरा ऑप्शन नहीं है। या तो वो ग्रेटनेस हासिल करेंगे या फिर वो मर जाएंगे। उनमें एक डेस्परेशन और एक अर्जेंन्सी होती है। ऐसे लोग दूसरों को शुरू में एकदम पागल लगते हैं और उन्हें बस यही लगता है कि यह इंसान तो बस बड़ी बड़ी बातें बना रहा है लेकिन जो ये बोल रहा है वो असल में इम्पॉसिबल है। लेकिन जब आप सोते उठते रात दिन सुबह शाम हर समय ही अपने दिल और दिमाग में इस आवाज को सुनते रहते हो कि कुछ महान काम करना है, अपना नाम बनाना है, लोगों की मदद करनी है, सक्सेसफुल बनना है तब यह आवाजे आपको कुछ और काम करना ही नहीं देती। अगर आप कुछ समय के लिए अपने ट्रैक से हट भी जाते हो तब भी ये आवाज आपको गिल्टी फील कराती है और आपको कामना करने के लिए टॉर्चर करती है। ऐसा इंसान न तो कभी हार मानता है और ना ही कभी यह बिलीव करता है कि वो भी लाखों और करोड़ों लोगों की इनस्पिरेशन बनने में फेल हो जाएगा। चाहे अपना नाम कमाने की बात हो। या एक अट्रैक्टिव इंसान को अपना पार्टनर बनाने की उनका एक ही मोटो होता है। करो या मरो नंबर फ़ोर यू डोंट रन अवे फ्रॉम हार्ड वर्क, क्योंकि हम बोल तो देते हैं कि स्मार्ट वर्क हार्ड वर्क से बेहतर होता है। लेकिन स्मार्ट लोग भी अपने काम को पूरा करने के आसान रास्ते ढूढ़ते हैं ताकि वो किसी नए काम को अपनी एनर्जी दे सके। वह जितनी भी सक्सेस हासिल कर लें, उन्हें तब भी यही लगता है कि वो अभी भी इस गेम के स्टार्टिंग पॉइंट पर ही है और अभी तो बहुत कुछ अचीव करना रहता है। जो भी स्मार्ट इंसान ज़रा बहुत पैसा इकट्ठा करके लेज़ी बन जाता है, वो अपनी पोटेंशिअल को वेस्ट करता है। इस वजह से जो लोग स्मार्ट डिसिशन्स भी लेते हैं और साथ में हार्ड वर्क करने से भी नहीं डरते, वो ही सबसे ज्यादा सक्सेसफुल फुलफिल्ड और हैप्पी होते हैं। नंबर फाइव यू डोंट वॉन्ट टू इम्प्रेस अदर्स। क्योंकि एक्सटर्नल मोटिवेशन की ही तरह दूसरों को इम्प्रेस करने की डिज़ाइनर भी टेंपरेरी होती है और ये एक पॉइंट के बाद आपको फ्यूल करना बंद कर देती है, जिससे पॉइंट पर आपको एअरलाइंस होता है कि आपके पास तो इन मोटिवेशन की एक स्ट्रांग फाउंडेशन कभी थी ही नहीं। इसमें अपने आप में कुछ गलत नहीं है कि आप उन लोगों को गलत प्रूफ करना चाहते हो जिन लोगों ने आप पर डाउट करा आपकी सक्सेस में बाधा डाली, ये आपको बड़ा सोचने के लिए पागल बोला। लेकिन अगर आपकी सोल मोटिवेशन बस इसी टारगेट पर बेस्ड है तो वह एक प्रॉब्लम है नंबर सिक्स यू ओके विथ फीलिंग। क्योंकि अगर आप कुछ बड़ा करने की सोच रहे हो तो यह तो पक्का है कि आप कई बार फेल्यर से मिलोगे जीस वजह से। अगर आप फेलिंग के साथ एक हेल्दी रिलेशनशिप बनाए रखो और इस बात को एक्सेप्ट कर लो की फेल्यर, सक्सेस का ही एक पार्ट है तो लॉन्ग रन में आप बेहतर परफॉर्म करोगे। लेकिन अगर आप यही सोचते रहे कि चाहे कुछ भी हो जाए, आप कभी फेल नहीं हो सकते और फेल होना एक बुरी बात है। तब आप अपना हर कदम डर के लोग हैं और आपकी रिस्क लेने की क्षमता भी बहुत कम रह जाएगी। इसलिए फेल्यर को अपना दुश्मन नहीं बल्कि अपना दोस्त मानो नंबर से वन यू आर सूपर कॉम्पिटिटिव, यानी चाहे वो खाना खा रहे हो, बिज़नेस को बड़ा करने की सोच रहे हो या जिम में एक्सरसाइज कर रहे हो, हर ऐक्टिविटी परफॉर्म करते टाइम उनके दिमाग में यही चल रहा होता है कि वो किस तरह से दूसरों से तेज, बेहतर ज्यादा और बड़ा काम कर सकते हैं। उनके अंदर यह फीलिंग बहुत स्ट्रॉन्ग होती है की वो जो भी करेंगे वो दूसरों से बेहतर करेंगे वरना उस काम को करने का कोई फायदा नहीं है। सक्सेस सिर्फ उन्हीं लोगों को मिलती है। जो दूसरे लोगों से अपने हक के लिए कंप्लीट करते हैं और यह प्रूफ करते हैं कि वो उस सक्सेस को डिज़र्व करते हैं। नंबर एट योर पर्सनल प्रॉब्लम्स, डू नॉट अफेक्ट योर वर्क। यानी ये मैटर नहीं करता कि आप कितने उदास, खुश, बिज़ी या बोर्ड हो। आपको जो काम करना है, आप उसे पूरा करते हों। बिना अपनी टेंपरेरी, फीलिंग्स और प्रॉब्लम्स के गड्ढे में धंसने के। इसका मतलब यह नहीं होता कि आपको अपनी फीलिंग्स को दबाना या काम के बाहर की सारी प्रॉब्लम्स को इग्नोर करना चाहिए, बल्कि आपको उन प्रॉब्लम्स के बावजूद अपने काम पर उनका कोई असर नहीं होने देना चाहिए। ये एक्सिलेन्स की बहुत बड़ी निशानी होती है कि आपको आपकी जगह से हिलाना और अपने गोल से भटकाना बहुत मुश्किल है। अगर आपने ठान लिया है कि आपने कुछ करना है तो आप वो कर के ही मानोगे? नंबर नाइन यू कैन अडैप्ट क्विकली किसी भी नई प्रॉब्लम या सिचुएशन के अकॉर्डिंग अडैप्ट कर पाने का मतलब है कि आप नए नए क्रिएटिव आइडिया जेनरेट करने के काबिल हो और आप टाइम की अहमियत जानते हो की अगर आपने नया डिसिशन लेने में ज़रा सी भी देरी करी तो यह प्रॉब्लम बद से बदतर बन जाएगी। जीस वजह से जो लोग किसी नई सिचुएशन के आते ही ठंडे दिमाग से सॉल्यूशन्स निकालने के बजाय गड़बड़ा जाते हैं तो बस उनका यही फर्स्ट रिऐक्शन उनके आगे आने वाले हर डिसिशन को नेगेटिवली करता है। नंबर टेन्योर पिअर्स आर मोर सक्सेस फुल कैन यू क्योंकि जो लोग सक्सेसफुल होते हैं वो लूजर्स के साथ हैंगआउट नहीं करते हैं। जो हर समय करते हैं, काम ना करने के बहाने बनाते हैं। लोग उन्हें रिस्पेक्ट नहीं करते और उन्हें टाइम की ज़रा सी भी इम्पोर्टेन्स नहीं पता। हर इंसान जो सक्सेस के पर होता है वह जानता है कि उसकी संगत उसके ख्याल और एनर्जी पर बहुत असर डालती है। एक बुरी संगत आपके खयालों को ऐवरेज और कचरे से भर देती है। और आप हमेशा ही डाउट में जाते हो कि आप उनके साथ रहते भी क्यों हो? यही डाउट एक साइन होता है कि आप को एक बेहतर सर कल की जरूरत है जो आपको अपनी तरफ नीचे नहीं बल्कि ऊपर खींचें।","सफलता कोई ऐसी चीज नहीं है जो आपको इतनी आसानी से मिल जाए, क्योंकि अगर आसानी से आती है तो आसानी से चली भी जाती है। हर रात की सफलता के पीछे एक कहानी होती है। यह कल्पना करना आसान है कि किसी ने बिना कुछ किए बहुत पैसा कमाया है, हम यह भी देखते हैं कि बहुत से लोग बिना कुछ किए ऑनलाइन पैसा कमाते हैं, हम स्कैम कलाकारों को अपने ऑनलाइन पाठ्यक्रम बेचते हुए देखते हैं, लोग गलत सूचना फैलाते हैं और उसके लिए भुगतान प्राप्त करते हैं या पैसे कमाते हैं मात्र भाग्य के माध्यम से, जुए के रूप में। लेकिन इस प्रकार की सफलता अस्थायी होती है। हम यहां जिस बारे में बात कर रहे हैं वह वास्तविक सफलता है जो वास्तविक प्रतिभा और व्यक्तिगत प्रयासों से आती है। तो, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम उन 10 संकेतों के बारे में बात करेंगे जो आपको उस व्यक्ति के शुरुआती संकेतों को समझने में मदद करेंगे, जिसके एक दिन सफलता प्राप्त करने की संभावना बहुत अधिक है।" "आपकी लाइफ में ज्यादातर अच्छी चीजें आपके रिस्क लेने की वजह से ही आएंगी। यहाँ तक कि आपका हर ऐक्शन ही एक सर्टन लेवल का रिस्क केरी करता है। अगर आप अपनी जिंदगी बेहतर बनाने की कोशिश करोगे, डिसिप्लिन डेवलप करके और अनगिनत सैक्रिफ़ाइस इस करके तो यहाँ भी रिस्क है और अगर आप अपनी जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए कुछ नहीं करते तो वहाँ भी आप बहुत बड़ा रिस्क उठा रहे होते हो। आपका कोई भी डिसिशन आपको 100% रिज़ल्ट देने की गारंटी नहीं दे सकता और फेल्यर या फिर चीजों का प्लैन के मुताबिक ना होने के चान्सेस हमेशा रहेंगे। पर अगर किसी काम से मिलने वाला रिवॉर्ड उसके रिस्क से ज्यादा बड़ा है तो ऑफ कोर्स आपको वो काम करना ही चाहिए। इसलिए इस एपिसोड में हम कुछ ऐसे ही कामों के बारे में बात करेंगे जिनके लिए रिस्क लेना वर्थ करता है। नंबर वन रिस्क स्पीक इन द ट्रूथ एक सच्चा इंसान, एक मेन टली स्ट्रांग रिलाएबल और बहुत ही शाप इंसान होता है। सच बोलना ही जीने का सही तरीका है। इतिहास इस बात का गवाह है कि झूठे लोगों के साथ अंत में हमेशा बुरा ही होता आया है। चाहे आप कौन सी असली झूठ बोलो। या फिर अनकॉन्शियस ली और बिना अपनी मर्जी के लाइफ हमेशा ही आप के इस बिहेव्यर की गलती को कनेक्ट करने के लिए आपको किसी बड़ी मुश्किल में फंसा देती है ताकि आप फाइनली उस कड़वे सच को फेस कर सकूँ जिससे आप अभी तक अवॉर्ड कर रहे थे। इसलिए उन बातों को बोलना बंद करो जिनमें आप विश्वास नहीं रखते। झूठे वादे देना बंद करो और लोगों की हाँ में हाँ मिलाना बंद करो। अगर आप अंदर से ना बोलना चाहते हो तो ऑफ कोर्स सच बोलने में एक मीडिएट रिस्क जुड़ा होता है कि लोग आपको जज करेंगे या फिर आपको पनिश करा जाएगा, लेकिन आपका हर झूठ किसी जजमेंट और पनिशमेंट के बिल पर ब्याज लगा देता है। और तभी टाइम के साथ साथ आपके झूठों का बोझ आपको बढ़ता हुआ फील होता है। इसलिए सच बोलने की हिम्मत करो और अगर आपने कोई गलती करी है आप किसी इंसान से अगरी नहीं करते या अगर आप बस किसी को हेल्थी वे में क्रिटिसाइज करना चाहते हो तो तब भी अपने मन की बात सामने रखने से हिचकिचा वो मत सच बोलना आपको भी हेल्प करेगा और दूसरों को भी नम्बर टू रिस्क फाइन्डिंग है और लिमिट्स केनेडियन नॉवलिस्ट बर्नाड अमन बोलते है कि खुद पर ट्रस्ट करने का मतलब है खुद की लिमिट्स को टेस्ट करना क्योंकि ज्यादातर लोगों को खुद की पोटेंशिअल के बारे में कोई आइडिया ही नहीं होता। जस्ट बिकॉज़ वो अपनी एबिलिटी के 40% पर ही क्विट कर देते है। ऑलमोस्ट हर दूसरे लिविंग ऑर्गेनिजम की तरह हम इंसान भी अपनी ट्रू लिमिट्स नहीं जानते, क्योंकि हमारी बॉडी और माइंड हमें दर्द से दूर कम्फर्ट में रखने के लिए इवॉल्व हुए हैं। जिम में भी आप वर्कआउट करते हुए यह चीज़ जरूर नोटिस करोगे कि यूज़्वली आप एक वेट को अपनी मैक्सिमम कपैसिटी तक पहुंचने से पहले ही रख देते हो। आप मैं कपैसिटी थी, 1522 सिर्फ गर्ल्स करने की, लेकिन आपने आठ फिर 10 पर ही छोड़ दिया या फिर काम करते समय आप में कन्टिन्यूसली फोकस करने की कपैसिटी तो 4-5 घंटे की थी लेकिन आप आधे घंटे में ही बोर हो गए और आपने वो काम छोड़ दिया। इस तरह से हम ज्यादातर अपने आपको 100% तक ले जाने से पहले ही क्विट कर देते हैं और हमें यह पता ही नहीं चल पाता कि हम क्या करने के केपेबल है। अंडर परफॉर्म करने और पूरी तरह से अपनी पोटेंशिअल को यूज़ ना करने से हम पूरी दुनिया का नुकसान कर रहे होते है। आपका पर्पस है खुद की फुल पोटेंशिअल को रिवाइज़ करना और उससे दूसरों की लाइफ में बदलाव लाना। बिना इस काम के आप हमेशा ही यूज़लेस एम टी और इन्कम्प्लीट फील करोगे। इसलिए किसी काम में खुद को अपनी लिमिट्स तक पुष्कर के देखो और तब आपको अपनी एबिलिटीज़ का एक ऐक्यूरेट्लि रिफरेन्स पॉइंट मिलेगा जिससे बेसिस पर आप अपने काम और लाइफ को प्लैन कर सकते हो। नंबर थ्री रिस्क पर्स यू ड्रीम पार्टनर जिसे इंसान को आप 10 ऑन 10 समझते हो और आप उससे फिजिकली, इमोशनली, मेंटली और स्पिरिचुअली हरवे में अट्रैक्टेड हो तो उसे अपना पार्टनर बनाने का रिस्क उठा हो। लोग तो हमेशा ही ये झूट बोलते ही रहेंगे। एक परफेक्ट पार्ट्नर एग्ज़िट नहीं करता, एक्सटर्नल ब्यूटी मैटर नहीं करती या फिर आपको क्यों किसी के लिए खुद को चेंज करना है? यह बातें सिर्फ ऐवरेज लोगों के मुँह से ही निकलती है, जो बस ऐवरेज जिंदगी जीना चाहते हैं। पर असलियत में आप किसी भी रिलेशनशिप में खुश नहीं रहोगे। अगर आपका पार्टनर आपकी नजर में पर्फेक्ट नहीं है तो अपने ड्रीम पार्टनर को पर्स यू करने से भी बड़ा रिस्क है उस टाइप के इंसान को अपना पार्टनर बना लेना जो हमेशा इजली अवेलेबल होता है और वो आपको ग्रो करने के लिए फोर्स नहीं करता। यही तो रीज़न है कि क्यों आजकल इतने सारे कपल्स अपने रिलेशनशिप में अनहैप्पी है। क्योंकि उन्हें यही मेसेज़ दिया गया है कि एक ऐवरेज पार्टनर को चुनना नॉर्मल है। ऐसे लोग अकेले रहने से ज्यादा डरते हैं और सही पार्टनर को ढूंढने के रिस्क से मिलने वाले रिटर्न को कम समझते हैं। लेकिन टाइम के साथ साथ उनके अपने रिलेशनशिप में टकरार भी बढ़ती है और उनकी इन्सेक्युरिटी भी इस लिए सही इंसान को ढूंढने का रिस्क उठाओ और खुद को उस इंसान के लायक बना हो। नंबर फ़ोर रिस्क बी एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी ली रिज, अगर आप अभी भी यंग हो आप अपने 20 या फिर अर्ली थर्टीज में हो और आपके ऊपर अभी घर और दुनियादारी की सारी रिस्पॉन्सिबिलिटी नहीं आई है। तो इसका मतलब आपके पास स्टिल कई बड़े रिस्क लेने का टाइम और क्षमता बचे हुए हैं। पास्ट में हर वो इंसान जो सच में अमीर बनना चाहता था, वो ऐनुअली अमीर बना था, लेकिन यह बात उन लोगों के पल्ले नहीं पड़ती जो क्लोस्ड माइंडेड हैं और रिस्क लेने से डरते हैं। ऐसे लोग अपनी जवानी में कम्फर्टेबल हो जाते हैं और अपने बुढ़ापे में पछताते हैं। इसलिए बहुत बड़े गोल बनाओ और एक अर्जेंन्सी के साथ उनका पीछा करो। नंबर फाइव रिस्क डी वोटिंग योर टाइम टु वर्ड स्पिरिचूऐलिटी मनी से सीधा स्पिरिचूऐलिटी यही वो एडवाइस है। जो सिर्फ सबसे यूनीक इंडिविजुअल्स को ही समझाती हैं, जो एक्चुअल मैं खुद की पोटेंशिअल के हर डाइमेंशन को एक्सेस करना चाहते हैं, बहुत से लोग ये सोचते हैं कि स्पिरिचूऐलिटी का समय बुढ़ापे में आता है, वो बोलते है कि पहले हम बस पैसा कमा ले और कैरिअर बना लें। फिर हम मेडिटेशन, योगा और सच्चाई की तलाश का समय निकाल लेंगे और अभी इन सब बातों का क्या फायदा? लेकिन ये थिंकिंग गलत है। स्पिरिचूऐलिटी आपके ऊपर बोझ को बढ़ाएगा नहीं बल्कि आप सिर्फ थोड़ा सा समय ही मेडिटेट करके या फिर किसी तरह का योग करके अपने लाइफ के दूसरे एरिया वो भी ज्यादा एनर्जेटिक और मेंटली शाफ्ट फील करोगे नंबर सिक्स रिस्क इनिशियल फेल्यर इन एक्स्चेंज फॉर सक्सेस आपके शुरू के बिज़नेस आइडियाज़ या फिर करियर डिसिशन्स के गलत प्रूफ होने के बहुत ज्यादा चान्सेस है लेकिन यह गलतियाँ भी जरूरी होती है। एक सही रास्ते को ढूंढने के लिए यह वो समय होता है जब फेल होने के लिए लोग आपका मजाक उड़ायेंगे और आपकी विल पावर या फिर मोटिवेशन को कई ठोकरें लगेंगी। लेकिन इन सब मुश्किलों और दर्दभरे समय से गुज़रने का रिस्क लो और सक्सेस की तरफ बढ़ते चलो। नंबर सेवन रिस्क स्टार्टिंग ओवर ये मैटर नहीं करता कि आप को दूसरों के जीतने प्रिविलेज एस नहीं मिले। आप ऑलरेडी कही बार फेल हो चूके हो आप किसी को जानते नहीं हो। आपके पास के ज्यादातर डिसिशन्स गलत थे या फिर आपको कोई सपोर्ट नहीं करता। फिर से ज़ीरो से स्टार्ट करने का रिस्क लो। लाइफ एक सिंगल गेम नहीं है, जिसमें एक बार ही हार मिलने पर गेम ओवर हो जाए। नहीं, यहाँ पर आपको अनलिमिटेड चान्सेस मिलते हैं। नंबर एट रिस्क नॉट कॉन्फॉर्मिंग इन बीइंग राइट सिंपल सी बात है। अगर आपको एक्स्ट्रा इंसान बनना है तो नैचुरली आप दूसरों के खिलाफ़ जाओगे ही और आपके और उनके आइडियाज़ मैच नहीं करेंगे। लोग आपको बोलेंगे कि आपके ख्याल गलत और इम्पॉसिबल है लेकिन सच तो ये है कि हर बड़ी चीज़ ही इम्पॉसिबल लगती है। जब तक कोई इंसानों से करके नहीं दिखा देता, इसलिए मेन स्ट्रीम आइडियास और बिलीव्स के अगेन्स्ट जाने का रिस्क लो। अगर आप इसमें गलत साबित हुए तो कोई भी हैरान नहीं होगा, लेकिन अगर आप सही साबित हो गए तो सब बदल जाएगा। नंबर नाइन रिस्क हैविंग योर ओन डेफिनिशन ऑफ सक्सेस हर इंसान सक्सेसफुल तो बनना चाहता है लेकिन वो ये नहीं जानता कि उसे क्या चीज़ फुलफिल करेगी और इसी वजह से आपकी सक्सेस की डेफिनेशन आपके लिए यूनीक होनी चाहिए। वरना अगर आपने दूसरों की सक्सेस के मैट्रिक्स को यूज़ करा तो ऑब्वियस सी बात है कि आप एक तरह से सक्सेस पाकर भी एक फेल्यर के जैसा फील करोगे। कई लोगों के लिए सक्सेस पैसा है। कई लोगों के लिए सक्सेस, पैसा, फैमिली और हेल्थ का बैंलेंस है और कई लोगों के लिए सक्सेस है। बस अपने पैशन्स पर काम कर पाना। नंबर 10 रिस्क ब्रिगेड चेंज इन टू योर फैमिली अगर आपके घर या फिर पूरे परिवार में शुरू से कोई प्रॉब्लम चलती आ रही है। मेबी घर में अल्कोहलिक्स बहुत है, मेबी लोग डिप्रेशन में रहते हैं, पैसों की कमी है या फिर सब अंदर ही अंदर एक दूसरे से नफरत करते हैं तो ऐसे में अगर आप इन गहरी चीज़ो को नोटिस करने लगे हो तो मेबी आपका फर्स्ट रिएक्शन इन लोगों से दूर जाने का ही होगा। यह ख्याल खुद बखुद मन में आता है कि जीस सोर्स ने चोट दी उससे दूर हो जाओ हाउएवर अब जो कुछ भी हो वो अपनी रूट्स की वजह से ही हो। इसलिए अगर आपको अपनी अँधेरी लाइफ में थोड़ी सी रौशनी देखें तो उस रौशनी को अपनी फैमिली के साथ शेर करो और अपनी पूरी ब्लड लाइन का ही पास्ट प्रिजेंट और फ्यूचर सब बदल दो।","आपके द्वारा जीवन में प्राप्त की जाने वाली अधिकांश अच्छी चीजें आपके द्वारा लिए गए जोखिमों के कारण आती हैं। एक निश्चित स्तर पर, आपके प्रत्येक कार्य में एक जोखिम होता है। चाहे आप अपने लक्ष्य के लिए काम करते हैं और सफल होने के लिए त्याग करते हैं, या आप आलसी हो जाते हैं और बहुत जल्दी छोड़ देते हैं, दोनों ही मामलों में अपार जोखिम है। लेकिन कुछ जोखिम लेने लायक होते हैं, जबकि अन्य इतना बड़ा रिटर्न नहीं देते। इसलिए इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम उन जोखिमों के बारे में बात करेंगे जो हर किसी को अपने जीवन में लेने चाहिए।" "गुस्सा एक बहुत ही पावरफुल फोर्स है जिसने बहुत सी जानें ली भी है और बहुत सी जानें बचाई भी। हर इंसान अपने अंदर आए गुस्से को अलग अलग तरीके से यूज़ करता है। कोई इंसान खुद को और दूसरों को नुकसान पहुंचाने लग जाता है। कोई अपने गुस्से को कंट्रोल में रख पाता है और उसे अपने काम को इन्फ्लुयेन्स नहीं करने देता। लेकिन एक इंसान इस तरह का भी होता है जो अपने गुस्से को अपनी क्रिएटिविटी और प्रोडक्टिविटी बढ़ाने के लिए यूज़ करता है। जिसतरह से बुराइ में थोड़ी सी अच्छा ही छुपी होती है और अच्छाई में थोड़ी सी बुरा ई वैसे ही गुस्सा है तो एक डिस्ट्रक्टिव इमोशन। लेकिन इस के दिल में क्रिएटिव पोटेंशिअल छुपी होती है। हमारे लिए सबसे बड़ा क्वेश्चन यही होता है कि हम अपने ऐंगर की पॉज़िटिव साइड को कैसे इस्तेमाल कर सकते हैं और साथ साथ उसकी नेगेटिव साइड से होने वाले नुकसान को कैसे खत्म कर सकते हैं। इसके लिए हमें सबसे पहले यह समझना होगा कि ऐन घर होता क्या है और वो कहा से आता है। ऐंगर एक इन्टेंस इमोशनल रिस्पॉन्स होता है। किसी भी ऐसी चीज़ के टुवर्ड, जो हमें अपनी पावर लेसन्स याद दिलाती है, यानी हमारा गुस्सा असल में हमारे कमजोर फील करने के डर को छुपा रहा होता है और यही उसका मेन फंक्शन होता है जहाँ सही जगह पर गुस्सा करने में कोई भी गलत बात नहीं है। क्योंकि गुस्सा आपको बुरे लोगों से बचाए रखने में मदद कर सकता है। वहीं जिंस गुस्से की हम बात कर रहे हैं। वो कभी कभी सिर्फ एक्स्ट्रीमली डेनजरस सिचुएशन्स में नहीं बल्कि कभी भी, कहीं भी और किसी पर भी निकल जाता है जिससे हमें खुद ही नुकसान होता है। ये गुस्सा हमारी इस रियलाइजेशन को छुपा रहा होता है कि कोई चीज़ जो हमारे कंट्रोल से बाहर है, वो हो गई है और अब हम उसके बारे में कुछ नहीं कर सकते हैं। हद से ज्यादा पावर आसानी से एक इंसान को बहुत सॉफ्ट बना देती है क्योंकि इतने पावरफुल इंसान को किसी से लड़ने और अपनी जान बचाने की जरूरत नहीं होती। उसके लिए दूसरे लोग लड़ाई में जाते है। वही हद से कम पावर एक इंसान को बाहर से बहुत हार्ड बना देती है ताकि वो बद से बदतर सिचुएशन के लिए पहले से तैयार रहें। जब एक इंसान अंदर से खोखला होता है और उसे यह लगता है कि वो एक बहुत छोटा इंसान है, जिसकी समाज में ज्यादा अहमियत नहीं है, लेकिन उसके आस पास बहुत से लोग ऐसे हैं जो उससे कई गुना ज्यादा पावरफुल है। तब उसकी यहीं फीलिंग गुस्से और कड़वाहट का रूप ले लेती हैं। हम एक ऐसे समय में जी रहे हैं जहाँ गुस्से को बस बुरा माना जाता है और उसे दबाए रखने की एडवाइस दी जाती है। जिसकी वजह से एक इंसान अंदर ही अंदर और भी ज्यादा टॉक्सिक और अनस्टेबल बन जाता है और उसकी प्रॉब्लम्स बढ़ती चली जाती है। अपने गुस्से को दबाने के साथ साथ वो अपनी क्रिएटिविटी को भी दबा देता है। ये गुस्सा एक बाढ़ की तरह होता है। अगर आप इसे रोकने की कोशिश करोगे तो एक सर्टन पौंड तक तो सब शांत रहेगा, लेकिन जब दीवार के पीछे पानी ज्यादा इकट्ठा हो जाएगा तब वो उसे तोड़ता हुआ आगे बढ़ जाएगा और रास्ते में आने वाली हर चीज़ को नष्ट कर देगा। जीवन अगर आप इसे अंधाधुंध बहनें भी देते हो तब उस केस में भी आपको डिस्ट्रकशन और टूटे हुए घरों से ज्यादा कुछ नहीं रहेगा। इसके बजाय कई सिविलाइज़ेशन स् बाढ़ के ऐक्सिस पानी को चैनल इस करती है। उसके रास्ते में बाउनड्रीज़ या बॉर्डर्स बनाकर जिससे पानी सिर्फ वही करता है जो वो उससे करवाना चाहते हैं, फिर चाहे वह अपने गांव के सूखे तालाब को फिर से भरना हो या फिर एक जमीन की सिंचाई करनी हो। ज्यादातर लोगों की लाइफ में एक ऐसी डायरेक्शन की कमी होती है जिसतरह वो अपने गुस्से को मोड़ सके हैं। लेकिन गुस्से को यूज़ करने का सबसे इफेक्टिव तरीका यही होता है कि आप उसकी नेगेटिव साइड को यूज़ करो। अपने पुराने वर्जन को मारने के लिए और उसकी पॉज़िटिव साइड को कुछ नया क्रिएट करने और अपना नाम बनाने के लिए यूज़्वली लोग अपने सेल्फ डेवलपमेंट के रास्ते पर निकल कर एक जगह पर जाकर अटक जाते हैं क्योंकि वो आगे तो बढ़ना चाहते हैं लेकिन वो अपने पास्ट बिलीव्स, एक्सपिरियंस और नेगेटिव मेमोरीज़ का इतना ज्यादा बोझ साथ लेकर चल रहे होते हैं कि बिना अपने पुराने सेल्फ को सिम्बॉलिक अली मरने देने के वो आगे बढ़ ही नहीं पाते हैं। यहाँ पर गुस्से की डिस्ट्रक्टिव साइड काम आती है यानी सबसे पहले अपने गुस्से को यूज़ करो। अपने सच तक पहुंचने के लिए अपने आप से पूछो कि आप अपने आप से क्या चीज़ छुपा रहे हो और आपकी इस पावरलेस वाली फ़ीलिंग का जन्म कैसे हुआ था? अगर आप सच में इस क्वेश्चन का आन्सर चाहते होंगे तो आपकी साई की आपको सिंबल से भरे हुए सपने दिखाने लगे गी, जिसे इंटर्प्रिट करके आप अपनी रिऐलिटी की मिसिंग अन्डरस्टैन्डिंग को कंप्लीट कर पाओगे या फिर आप बस सिम्पली अपने पास्ट के बारे में लिखना शुरू कर सकते हो और ये देख सकते हो कि आपको अपनी कौन कौन सी भूली हुई मेमोरीज़ याद आती है। इसके बाद आपको अपने गुस्से की पॉज़िटिव साइड को यूज़ करना है। अपने इंट्रेस्ट को एक डिसिप्लिन के साथ फॉलो करके अगर आपका गुस्सा बाढ़ का पानी है तो आपका डिसिप्लिन उसके आसपास खड़े करेगा। ये बोर्डर्स है और आपके इन्ट्रेस्ट या फैशन उस पानी से उपजाऊ बनने वाली जमीन है?","क्रोध वास्तव में एक शक्तिशाली भावना है जिसने कई लोगों की जान ली और बचाई है। हर व्यक्ति अपने गुस्से का इस्तेमाल अलग तरीके से करता है। कुछ खुद को और अपने साथियों को प्रताड़ित करते हैं। दूसरे अपने गुस्से पर काबू रखें और इसका असर अपने काम पर न पड़ने दें। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो अधिक सफलता और अधिक व्यक्तिगत विकास प्राप्त करने के लिए अपने क्रोध का रचनात्मक और उत्पादक तरीके से उपयोग करते हैं। इसलिए इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम बात करेंगे कि आप गुस्से के सकारात्मक पक्ष का कैसे उपयोग कर सकते हैं, ताकि आप खुद को नुकसान पहुंचाने के बजाय अपने जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिए अपनी भावनाओं का उपयोग कर सकें।" "स्किजोफ्रेनिया एक ऐसा मेंटल डिस्ऑर्डर है जो एक इंसान के सोचने, समझने और ऐक्ट करने की एबिलिटी को नेगेटिवली इम्पैक्ट करता है। इसमें वो रिऐलिटी के साथ पूरा टच खो देता है और वो उन चीजों को सुनने या फिर देखने लगता है जो कि सच नहीं होती। लैस जैकेट में हुई एक स्टडी बताती है की इंडिया में स्किज़ोफ्रेनिया हर 1000 लोगों में से तीन लोगों को होता है और ज्यादातर केसेस मेल्स के होते हैं जहाँ पर उनमें स्किजोफ्रेनिया के साइज लेट, तीन सेरली ऐडल्ट हुड में दिखने शुरू हो जाते हैं और फीमेल्स में टिपिकली लेट 20 से अर्ली थर्टीज के बीच इस मेंटल इलनेस को थ्री स्टेजेस की मदद से समझा जाता है। अर्ली अक्यूट ओर क्रोनिक पहले स्टेज में कई हफ्तों या फिर महीनों के टाइम में बिहेव्यर में काफी स्लो और प्रोग्रेसिव चेंजेज आने लगते हैं और अर्ली साइनस दिखना शुरू हो जाते हैं, जैसे अकेले रहना, डेली रूटीन का चेंज होना, मोटिवेशन और इन्ट्रेस्ट खोना या फिर मूडी होना। ज़्यादातर फैमिली मेंबर्स और फ्रेंड्स समझ जाते हैं कि ये डेफिनेटली कोई सिरियस प्रॉब्लम है। जब वो इस सब नॉर्मली बिहेव्यर को ऑब्जर्व करते हैं और ये होता है अक्यूट स्टेज जैसे इस स्टेज में एक इंसान को लगने लगता है की कोई उससे बात कर रहा है जबकि असलियत में उसके आसपास कोई नहीं होता या फिर उसके नेबर्स उसे मारने का प्लान बना रहे हैं, लोग उसका दिमाग पढ़ रहे हैं या फिर उसे इस दुनिया को एलियन इन्वेशन से बचाने की ड्यूटी मिली है और इन एग्जाम्पल से हम इमेजिन कर सकते हैं। की एक स्किज़ोफ्रेनिया पेशंट के लाइफ कितनी स्ट्रेसफुल हो सकती है। इन्टेलिजन्स की वजह से वो ना तो ढंग से खा पाते हैं और ना ही सो पाते हैं। यूज़्वली यही वह स्टेज होता है जब उनके कोई फैमिली मेंबर्स उन्हें डॉक्टर के पास ले जाते हैं और कंडीशन जितनी सिरियस होती है, उसके हिसाब से डॉक्टर या तो ट्रीटमेंट घर पे ही देना शुरू कर देता है या फिर उस पर्सन को कुछ टाइम के लिए हॉस्पिटल में रख लेता है। अक्यूट स्टेज में ट्रीटमेंट मिलने पर के ज्यादातर सिम्पटम्स कुछ हफ्ते या फिर महीनों में खत्म होने लगते हैं। और कई लोग पूरे रिकवर भी हो जाते हैं। हाउएवर ज्यादातर लोगों को शुरू में ही प्रॉपर ट्रीटमेंट ना मिलने पर या फिर उनके ट्रीटमेंट को बीच में रोक देने पर उनके सिम्पटम्स लंबे टाइम तक चलते हैं और यह उनके लिए एक क्रोनिक डिसेबिलिटी बन जाती है। थिस इस वाइ स्किजोफ्रेनिया को शुरू में ही आइडेंटिफाइ करना और ट्रीट करना बहुत ज़रूरी होता है और अगर हम स्किजोफ्रेनिया के क्लिनिकल सिम्पटम्स की बात करें तो उन्हें थ्री कैटेगरीज में डिवाइड किया जाता है। पॉज़िटिव नेगेटिव और कॉग्निटिव पॉज़िटिव सिम्पटम्स वो होते हैं जो नॉर्मल एक्सपिरियंस में कुछ ऐड करते हैं जैसे उन चीजों को देखना, सुनना, स्मेल करना या फिर महसूस करना जो असल में है ही नहीं। ये होते हैं और इसके साथ होते हैं डिल्यूजन स् जिसमें एक इंसान अपने किसी रैन्डम बिलीफ को सच मानने लगता है। सेकंडली नेगेटिव सिम्पटम्स वो होते हैं जो नॉर्मल एक्सपिरियंस में किसी चीज़ को कम कर देते हैं जिससे कुछ भी काम करने की मोटिवेशन की कमी या फिर किसी भी चीज़ को एन्जॉय ना कर पाना कॉग्निटिव सिम्पटम्स उस इंसान के थॉट प्रोसेसर इसको इफ़ेक्ट करते हैं जिससे वो ना तो ढंग से सोच या फिर पढ़ पाता है और ना ही किसी चीज़ पर कॉन्सन्ट्रेट कर पाता है। नाउ अगर हम स्किट्जोफ्रेनिया के कॉज़िज़ की बात करें तो सबसे पहले जेनेटिक्स एक ऑब्वियस कॉज़ है। कई फैमिलीज में एक पर्टिकुलर डिसीस जेनरेशन टु जेनरेशन चलता रहता है, उनके जीन्स की वजह से क्योंकि जीन्स हमारी बॉडी के बिल्डिंग ब्लॉक्स होते हैं, जो हमारे ब्रेन डेवलपमेंट या न्यूरो केमिस्ट्री से लेकर हमारी पर्सनैलिटी तक कोई करते हैं और रीसेंट्ली इन डिन और ऑस्ट्रेलियाई रिसर्चर्स ने एक ऐसे जीन को आइडेंटिफाइ भी करा जिसका नाम है एन ए पी आर टी वन जो वाइटमिन बी थ्री को मेटाबोलाइज करने वाले एक एन्ज़ाइम को इनकोड करता है। पर ये जीन एग्ज़ैक्ट्ली हमारे ब्रेन को कैसे इम्पैक्ट करता है, उस पर रिसर्च अभी भी चालू है। स्किजोफ्रेनिया का एक और पोटेंशिअल कॉल्स हो सकता है इन्वाइरनमेंट क्योंकि जहाँ पर स्टडीज़ ये बताती है कि स्किजोफ्रेनिया जेनेटिक्स की वजह से होता है। इसके साथ ही वो ये भी बताती है कि स्किजोफ्रेनिया में जेनेटिक्स का रोल कभी भी 50-60 परसेंट से ज्यादा नहीं बढ़ता। यानी ये इलनेस बर्थ कॉम्प्लिकेशन्स पूर लिविंग कंडिशन्स या फिर टीनएजर्स में साइकेडेलिक्स जैसे मरवाना या फिर एलएसडी लेने से भी हो सकती है। हाउएवर जस्ट बिकॉज़ की जो के सारे कॉज़िज़ अभी भी क्लियर नहीं है। इसके ट्रीटमेंट से इस इलनेस के सिम्पटम्स को खत्म करने पर फोकस करते है ट्रीटमेंट्स जैसे साइकॉटिक मेडिकेशन स् जिनमें कई मेडिकेशन रिजेक्ट कर दी जाती है और कई पिल की फॉर्म में होती है और सबसे कॉमन है हैलो पराडोल या फिर एपी पैरसॉल साइकोसोशल थेरेपीस जैसे कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरपी या फिर साइको एजुकेशन और कोऑर्डिनेटेड स्पेशिलिटी केर, जिसमें फैमिली इन्वॉल्वमेंट काफी हेल्पफुल हो सकती है स्किन जो फिनिक्स पेंशन के एनवायरनमेंट में स्ट्रेस कम करने के लिए।","मतिभ्रम और भ्रम जैसे लक्षणों के साथ, सिज़ोफ्रेनिया एक विकार है जो किसी व्यक्ति की सोचने, महसूस करने और कार्य करने की क्षमता को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है। इस मानसिक बीमारी से पीड़ित लोगों को ऐसा लग सकता है कि उनका वास्तविकता से संपर्क टूट गया है जिससे उनके लिए नौकरी करना या दैनिक गतिविधियों को करना वास्तव में कठिन हो जाता है। लगभग 14 साल पुराने आंकड़ों के अनुसार, भारत में प्रत्येक 1000 लोगों में से 3 में स्किज़ोफ्रेनिया देखा जाता है और यह संख्या तब से नाटकीय रूप से बढ़ी है।" "पर्सनैलिटी ट्रेट्स में से फोर्थ ट्रेड है अग्रि एबल नेस, जो बेसिकली एक मैटरनल डाइमेंशन है ऐंड तभी फीमेल्स ज्यादा अग्रि बल होती है और मेल्स डिसग्रीस टेबल साइकोमेट्रिक स्केल के हिसाब से एग्री बिज़नेस बताता है कि एक इनडिविजुअल कितना काइन्ड कॉपरेटिव वोर्म ऐम पथेटिक और अल्ट्रा इस टिक है। उसके दो सब कॉम्पोनेंट्स है कम्पैशन और पोलाइटनेस। जो लोग कंपैशनेट होते है वो दूसरे लोगो और ओर्गनाइज़र्स की प्रॉब्लम्स में इंटरेस्टेड होते हैं। उन्हें दूसरे लोगों को अच्छा फील कराने में सैटिस्फैक्शन मिलती है और उन्हें औरों के लिए टाइम निकालने में कोई प्रॉब्लम नहीं होती। दूसरी तरफ पोलाइटनेस में हाई स्कोर करने वाले लोग अथॉरिटी की रिस्पेक्ट करते है। वो लड़ाईयों और आर्ग्युमेंट्स को अवॉर्ड करने की कोशिश करते हैं और उनमें एक जेनरल एथिक होता है जो उन्हें बोलता है की वो हर इंसान को एक डिफ़ॉल्ट लेवल पर रिस्पेक्ट करे। अग्रि बल लोगों का ह्यूमन नेचर के काफी ऑप्टिमिस्टिक भी होता है और उनकी दूसरों से काफी बनती है, क्योंकि सोशल हारमनी उनका सबसे बड़ा गोल होता है। इसके साथ ही जो लोग उनके साथ इंटरैक्ट करते हैं वो उन्हें कॉपरेटिव वोर्म और कन्सिडर्ड समझते हैं। बट हाइली अग्रि एबल होना हमेशा ही अच्छा नहीं माना जाता क्योंकि ऐंग्ग्री एबल लोग हमेशा दूसरों की बुराइयों को इग्नोर करके उनकी पॉज़िटिव क्वालिटीज को देखते हैं। वह लोगों को ईजी फॉरगिव कर देते है। वो बिना कंप्लेन करें लोगों को ज्यादा टॉयलेट करते हैं। वो सब में सेव होते हैं, वो पेशेंट होते हैं। वो अपने से ज्यादा दुसरो की केयर करते हैं और वो कभी भी अपने लिए स्टैंड नहीं ले पाते है। ये क्वालिटीज एक इंसान को डोरमैट की तरह बना देती है जिससे लोग बार बार यूज़ करते है। हम उन लोगों के बारे में बात कर रहे हैं जो दिल के तो काफी अच्छे होते है, बट वो कभी भी अपने लिए निगोशिएट नहीं कर पाते हैं और एक टिपिकल नीस पर्सन की तरह सब उन्हें एक्स्प्लोडेड करते रहते हैं जिसकी वजह से वो प्रेज़ेंट में भी सफर करते हैं और डेवलप करने की वजह से फ्यूचर में भी। इस तरह से एक हाइली अग्रि एबल पर्सन हमेशा अपने फ्यूचर को सैक्रिफ़ाइस कर देता है। शोर्ट टर्म पीस के लिए दूसरी तरफ जो पर्सनैलिटी ज़गरेब इलनेस में लो स्कोर करती है उनका ईज़ी ऐडवांटेज नहीं उठाया जा सकता। उन्हें कॉम्पिटिशन पसंद होता है, वो अपने लिए नेगोशिएट कर पाते हैं, उनमें बनने के कम चान्सेस होते हैं और वो प्रॉब्लम स्कोप रिज़ल्ट में सॉल्व कर पाते हैं। बट अगेन डिसऐग्री बल होने की यही डिसएडवांटेज है कि कम्पैरेटिव होने की वजह से लोग उन्हें रूड या फिर डिटैच्ड समझने लगते हैं। साइको थेरपी में भी जो हाइली अग्रि एबल लोग किसी अब्यूस के विक्टिम होते हैं, उन्हें भी इसी चीज़ की ट्रेनिंग दी जाती है की वो ज्यादा असर टीव और डिसग्रीस बल बने हैं और यह इसलिए नहीं कि डिसग्रीस बल होना अग्रि बल होने से बेटर है। बट इसलिए कि माइल्डली अग्रि बल होना काफी रिसोर्सफुल होता है। एस कंपेर्ड टु बोथ एक स्ट्रीम्स एनीवेस अगर हम जेंडर डिफरेंस की बात करें, तो फीमेल्स ज्यादा अग्रि एबल होती है और उन्हें लोगो में इंटरेस्ट होता है जिसकी वजह से वो ऐसे प्रोफेशन्स ढूँढती है जिनमें वह लोगों से इंटरैक्ट कर पाएं जैसे टीचिंग या फिर नर्सिंग। बट मेलस ज्यादा डिसऐग्री एबल होते हैं और उन्हें चीजों में इंटरेस्ट होता है जिसकी वजह से वो मशीन्स और टेक्नोलॉजी से जुड़े काम चूज करते हैं, जैसे इंजीनीरिंग या फिर कॉन्स्ट्रक्शन। काफी इम्पोर्टेन्ट होता है। एक इंडीविजुअल की लॉजिकल पॉज़िटिव वर्ल्डव्यू और दूसरे लोगों के साथ अच्छे रिलेशन बनाये रखने के लिए हम एक इंडीविजुअल के अग्रि बल ने स्कोर से ये प्रिडिक्ट कर सकते हैं कि उनकी मैनेजमेंट स्किल्स क्या होंगी, वो स्कूल में कैसे बिहेव करेंगे, उनका पिअर सोशल स्टेटस क्या होगा और उनकी सेल्फ एस्टीम कितनी होगी। कई रिसर्च में ये भी देखने की कोशिश करी गयी की क्या चाइल्डहुड का अग्रि बिज़नेस लेवल एक इंडीविजुअल के ऐडल्ट हुड में भी उसे किसी में अफेक्ट कर सकता है? स्टडी में ये ऑब्जर्व किया गया कि जिन लोगों को एक्सटर्नल आइसिंग या फिर इन्टर्न लाइजिंग डिसॉर्डर्स थे। वो यंग एडल्ट्स, कंगड़े बल और ज्यादा न्युरोटिक थे। एस कंपेर्ड टु दोज़ यंग एडल्ट्स जिनको ये डिसॉर्डर्स नहीं थे। सेपरेट स्टडीज़ में यह भी देखा गया किलो एग्री बिज़नेस हमारी हेल्थ को नेगेटिवली इम्पैक्ट करता है जबकि हाइक लिंक्ड हैं लॉन्ग से। और अगर हम रिलेशनशिप्स की बात करें तो 1987 की एक स्टडी में यह पता चला कि जो ऐडल्ट सपने चाइल्डहुड में हाइली डिसऐग्री बल थे, उन लोगों के ज्यादा डाइवोर्स हुए। ऐस कम्पेरड टु दोज़ अडल्ट्स जो अपने चाइल्डहुड में शांत और वेल बिहेव्ड थे। इसके साथ ही सम स्टडी में यह भी ऑब्जर्व किया गया। की उन डिसग्रीस एबल लोगों का एजुकेशन लेवल, ऑक्यूपेशनल स्टेटस और वर्क स्टेबिलिटी भी कम थी। इस डिस्कशन में हमने जाना की अग्रि एबल लोग पेशेंट ऑल टू इस्टिक काइन्ड कन्सिडर्ड रेट ऑथेंटिक और कॉपरेटिव होते है। अग्रि बिज़नेस के दो सब कॉम्पोनेंट्स होते हैं, कम्पैशन और पोलाइटनेस फीमेल्स ज्यादा ऐग्री बल होती है, जबकि मेल्स डिसऐग्री बल होते हैं। ज्यादातर अग्रि बल क्वालिटीज पॉज़िटिव है। बट जब इन्हें एक फार एक्स्ट्रीम तक लेकर जाया जाता है, तब इन लोगों की एडवांटेज भी ली जा सकती है और तभी ज्यादातर केसेस में ही ऐंग्ग्री ये बिज़नेस या लो अग्रि एबल ने उससे बेटर होता है। माइल्डली अग्रि एबल होना ताकि हम अच्छे रिलेशनशिप्स भी बिल्ड कर पाए। और जरूरत आने पर अपने आप को डिफेंड भी कर पाए। अगर ये बिज़नेस साइकोलॉजिकल और फिजिकल वेल बीइंग से भी रिलेटेड है और ये हमारे इंटिमेट रिलेशनशिप्स को भी ऑपरेट कर सकता है।","सभी 5 व्यक्तित्व लक्षणों में से, सहमतता वह है जो सबसे अधिक भ्रमित करने वाला हो सकता है क्योंकि इसे आसानी से बहिर्मुखता या मनोविक्षुब्धता के साथ मिलाया जा सकता है। लेकिन जो चीज इसे दूसरे आयामों से अलग करती है, वह है किसी व्यक्ति को उसकी खुद की जरूरतों के प्रति अंधा बनाने की उसकी शक्ति। पुरुषों की तुलना में महिलाएं स्वभाव से अधिक सहमत होती हैं, क्योंकि एक महिला को अत्यधिक दयालु होना आवश्यक है जब वह एक छोटे से इंसान को जन्म देती है जो वास्तव में कमजोर है और खुद को बचाने में असमर्थ है। हालांकि, वास्तव में इस विशेषता का उच्च स्तर एक व्यक्ति को एक धक्का देने वाला बना सकता है जिसे हमेशा धोखा दिया जाता है और दूसरों (असहमत लोगों) द्वारा चलाया जाता है।" "कलर्स हमारी साइकोलॉजी को सीधा सीधा इन्फ्लुयेन्स करते हैं। कलर्स को देखकर हम ये डिसाइड करते हैं कि हमें किस ब्रैंड के किस प्रॉडक्ट को बी ए करना है। हमारी टेस्ट की परसेप्शन भी कलर्स से बहुत क्लोजली रिलेटेड होती है और सर टन कलर्स हमारे अंदर कोई स्पेसिफिक इमोशन्स को जगाते हैं। बिल्कुल इसी तरह से आपका फ़ेवरेट कलर भी आपके बिहेव, इर और पर्सनैलिटी के बारे में काफी कुछ बता सकता है। इसलिए इस एपिसोड में हम कही डिफरेंट कलर्स और उनकी रिसर्च के बेसिस पर आपको यह बताएंगे कि आप जीस कलर के कपड़ों को अक्सर पहनते हो। उसके थ्रू आप दुनिया को अपने बारे में क्या बताना चाहते हो? सबसे पहले बात करते हैं ब्लैक कलर की ब्लैक कपड़े पहनने वाले और ब्लैक क्लोदिंग को पसंद करने वाले लोग अक्सर इस कलर से यह जताना चाहते हैं कि दूसरे लोग उनको सीरियसली ले हैं। 2005 और 2006 में हुई कई स्टडीज़ में जब ब्लैक कलर पर लोगों के डिफ़रेंट रिएक्शन्स को टेस्ट कराया गया तब ऑन एवरेज लोगों ने ये बोला कि ब्लैक कलर उन्हें मिस्ट्री, लक्ज़री, पावर सीरियसनेस और इन्टेलिजेन्स जैसी क्वालिटीज की याद दिलाता है। यही रीज़न है कि क्यों सबसे कॉमन कॉर्पोरेट कलर ब्लैक ही होता है। ब्लैक पहनने वाले अक्सर कॉन्शस ली और एक पर्पस के साथ इस कलर को पहनते हैं और वो चाहते हैं कि दूसरे लोगों की अटेंशन उनकी भारी अप से हटकर उनकी इनर क्वालिटीज पर आये। यानी एक तरह से ब्लैक कलर, एक इंट्रोवर्ट ऐड और सोचने पर मजबूर करने वाला कलर होता है। नंबर टू ब्लू 2015 के एक पर्सनैलिटी और उससे जुड़े कलर प्रेफरेंस के जर्नल में ब्लू कलर पसंद करने वाले लोगों को पीसफुल, कंपैशनेट, कॉम्पिटेंट, कॉन्फिडेंट और सिनसिअर जैसे शब्दों से डिस्क्राइब किया गया। ब्लू कलर हमे मैस्कुलिनिटी रिलायबिलिटी इन्टेलिजेन्स तो ट्रस्ट की याद दिलाता है और हम ब्लू कलर को देखकर ज्यादा काम महसूस करते हैं। इसी वजह से ब्लू कलर बेस्ट चॉइस होता है। एक इंटरव्यू स्कूल, कॉलेज या स्टडी रूम की दीवारों को पेंट करने या फिर एक मेल की फर्स्ट डेट पर उसके कपड़ों के लिए है और यही रीज़न है की क्यों ज्यादातर यूनिफॉर्म उसका कलर हम ब्लू के किसी शेड को ही चुनते हैं। नंबर थ्री ग्रीन ग्रीन कलर हमारे मूड को अक्सर पॉज़िटिव ली इन्फ्लुयेन्स करता है अपनी बुक डिज़ाइन इस स्टोरीटेलिंग में ऑथर एललप्पन बताती हैं कि किस तरह से ग्रीन कलर को यूज़ किया जाता है। ऑडियंस को हेल्थ पॉजिटिविटी प्रॉब्लम सॉल्विंग और क्रिएटिविटी से जुड़े मेसेजेस देने के लिए ऐसा इसलिए क्योंकि ग्रीन कलर हमें याद दिलाता है। नेचर की इसी वजह से ग्रीन कलर पहनने वाले लोग अक्सर नेचर लवर्स होते हैं या फिर वो नेचर के पास रहते हैं। वो ऑन ऐवरेज दूसरे कलर से ज्यादा फाइनैंशली स्टेबल होते हैं और उनके लिए काइंडनेस और हेल्थ इन एस जैसी क्वालिटी ज़ टॉप प्रायोरिटी होती है। नंबर फ़ोर रेड रेड कलर और रोमैंस के बीच का रिलेशन मूवीज़ ने नहीं बल्कि हमारी साइकोलॉजी ने बनाया है। रेड हमारे खून और ऐसा रिज़ल्ट हमारी हेल्थ को इंडिकेट करता है। और हमारे शरीर से लिंक होने की वजह से ये कलर हमारी अटेन्शन बहुत ईजी ग्रैप कर लेता है और हमें एक्साइटमेंट से भर देता है। इसी वजह से रेड कलर को लस्ट पावर, लव और वैन घर से रिलेट कर आ जाता है और जिन लोगों का रेड कलर होता है वो यूज़्वली अटेन्शन खुद की तरफ रखना पसंद करते है। वो नहीं चाहते कि लोग उन्हें इग्नोर करे या फिर उन्हें एक दल रिस्पॉन्स दे। नंबर फाइव पिंक, पिंक, कलर, गरली, फन, पोलाइट, सोफिस्टिकेटेड और फ्लर्टी होता है। जहाँ रेड कलर लस्ट का एक बहुत स्ट्रांग और इन 10 से एक्स्प्रेशन होता है। वहीं पिंक रेड का इतना टोन डाउन वर्जन होने की वजह से इनोसेंट फेमिनिटी से जुड़ा होता है। इसी वजह से फीमेल किड्स के टौंस के कपड़ों का कलर भी यूज़्वली पिंक ही होता है। नंबर सिक्स येलो येलो कलर होता है हैपिनेस होप और लाइट हार्डनेस का रेड कलर की तरह येलो भी काफी यूज़फुल होता है। हमारी अटेन्शन ग्रैप करने में, जिसकी वजह से बहुत से ऐडवर्टाइजमेंट्स रोड साइन्स और बैनर्स येलो कलर का जरूर इस्तेमाल करते हैं, ताकि आप उनके मैसेज पर अपनी अटेन्शन पे करो। येल्लो कलर पहनने वाले लोग अक्सर ऐक्टिव अप्रोचेबल, ऐडवेंचर सीकर्स और हैप्पी नेचर के होते हैं। नंबर सेवन पर्पल पर्पल को कई 100 और हजारों सालों से लग्जरी के साथ जोड़ा जाता है क्योंकि पहले के समय में वो सिर्फ अमीर लोग ही होते थे जो अपने कपड़ों को पर्पल कलर से डाई करवा ना अफोर्ड कर सकते थे। जीवन एनसीएन्ट जिप में क्वीन क्लियोपेट्रा भी पर्पल कलर की दीवानी थी। वो बहुत से पर्पल कपड़ों और जूलरी को ऑन करती थी। इसके साथ ही मॉडर्न कल्चर में पर्पल को मैजिक विज़्डम और मिस्टी सिस्टम से जुड़ी फीलिंग्स को इंड्यूस करवाने के लिए यूज़ करें। होता है। यानी एक तरह से पर्पल ऐवरेज नेस के बिल्कुल ऑपोजिट है और इस कलर को पहनने वाले लोग भी तभी सबसे अलग सोफिस्टिकेटेड, आर्टिस्टिक, वाइज़, पावरफुल और कई बार तो अल्लू भी लगते हैं। नंबर एट ब्राउन ये कलर थी और रैबिट फीलिंग से जुड़ा है, जिसकी वजह से ब्राउन कलर पहनने वाले लोगों को अक्सर स्टेबल, पीसफुल, रिस्पेक्टफुल और स्ट्रॉन्ग समझा जाता है। अगर आप अपने वॉर्डरोब में ब्राउन कपड़े ऐड करना शुरू करते हो तो लोग आपको सडनली ज्यादा ट्रस्ट वर्दी और ग्राउंडेड समझने लगेंगे। ब्राउन कलर आपको ज्यादा जेन्यूइन और डाउन टू अर्थ होने वाली लुक देगा। नंबर नाइन व्हाइट व्हाइट कलर सिंबल होता है प्युरिटी, फ्रीडम, सिम्प्लिसिटी और इनोसेंस का ज़्यादातर लोग व्हाइट कपड़े तब पहनते है जब वह अपनी जिंदगी में कुछ नया, शुरू या फिर कुछ पुराना खत्म कर रहे होते हैं। व्हाइट पहनने वाले लोगों को अक्सर ऑप्टिमिस्टिक, हैप्पी और पैशनेट माना जाता है और इस तरह के लोग ज्यादा ओरगनाइसड रहना पसंद करते हैं। नंबर 10 ओरेन्ज ओरेंज एक और एक्साइटमेंट पैदा करने वाला कलर होता है जिसे देखकर ही हमें एनर्जेटिक फन चियरफुल वाइब्ज़ आने लगती है। जिन लोगों को ओरेंज कलर पहनना पसंद होता है वो काफी ऐक्टिव जॉयफुल और नॉवल्टी सीकर्स होते हैं ओर इंजर्ड और येलो कलर्स का कॉम्बिनेशन होता है और तभी इसमें कहीं ना कहीं इन दोनों कलर्स की क्वालिटी जाती है। हमारा ब्रेन ओरेंज कलर की ब्राइटनेस को नेचर, फ्रूट और फ्रेशनेस जैसी चीजों से असोसिएट करता है और ये असोसिएशन बाकी कलर्स के कंपैरिजन में और भी ज्यादा स्ट्रॉन्ग होती है। नंबर 11 सिल्वर गोल्ड मेटेलिक कलर्स काफी शाइनी होते हैं और अपनी तरफ बहुत ज्यादा अटेंशन खींचते हैं। कोई भी इंसान बिना किसी पर्पस और कॉन्शस थॉट के इन कलर्स को नहीं बनता और तभी इससे हमें यह पता चलता है कि मेटैलिक कलर्स पहनने वाले लोग एक्सपेरिमेंट करने और दूसरों से हटकर कोई स्टेप लेने से नहीं डरते हैं। नंबर 11 ग्रे जहाँ सिल्वर, चिल्ला, चिल्लाकर सबकी अटेन्शन अपनी तरफ खींचता है, वही ग्रे कलर इसके एकदम ऑपोजिट होता है और ग्रे पहनने वाले लोग ज्यादा लाइमलाइट में नहीं आना चाहते हैं। अगर एक इंसान बहुत सारे ग्रे कपड़ों को ऑन करता है तो यह पक्का है कि वो दूसरों के नोटिस में नहीं आना चाहता। ग्रे के अलग अलग शेड्स में रिलैक्सेशन मेच्युरिटी और सिविल इ टी की याद दिलाते हैं। इसलिए जो भी ग्रे कपड़े पहनता है वो बाकी लोगों से ज्यादा मैच्योर और इवन स्टाइलिश लगता है। उसे देखकर ऐसा लगता है कि उसका स्टाइल दूसरों को इम्प्रेस करने के लिए नहीं बल्कि बस खुद के कंफर्ट और टेस्ट के लिए है और कुछ इसी तरह से आपके फेवरेट कलर्स आपके थॉट्स बिहेव, इर और पर्सनैलिटी को रिवील करते हैं।","रंग हमारे मनोविज्ञान को इस तरह से प्रभावित करते हैं जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते। यह हमें तय करता है कि कौन सा उत्पाद किस ब्रांड से खरीदना है, यह स्वाद की हमारी धारणा को प्रभावित करता है और विभिन्न रंग हमारे अंदर कुछ भावनाओं को भड़का सकते हैं। ठीक इसी तरह आपका पसंदीदा रंग भी आपके व्यवहार और व्यक्तित्व के बारे में बहुत कुछ बता सकता है और इसीलिए इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम बात करेंगे अलग-अलग रंगों के बारे में और उनके खास मायने के बारे में।" "2013 में इंडियन जर्नल ऑफ साइकैट्री में पब्लिश हुए एक पेपर में बताया गया की बॉडी डिस्मोर्फिक डिस्ऑर्डर, जिसे बॉडी इमेज डिसोर्डर या फिर डिस् ऑफ फोबिया भी बोलते हैं, वो एक ऐसा मेंटल डिस्ऑर्डर है जो इतना कॉमन होने के बाद भी रिलेटिव ली अननोन है और ज्यादातर टाइम उसे डाइअग्नोस भी नहीं करा जाता। इस डिस्ऑर्डर में एक इंसान अपनी बॉडी को लेकर काफी ऑब्सेसिव बिहेव्यर दिखाने लगता है। उसे या तो अपने किसी बॉडी पार्ट में कोई कमी लगती है या फिर वो अपनी ओवरऑल अपिअर ऐंड से ही सैटिस्फाइड होता है। एक स्टडी में पता लगा कि बॉडी डिस्मोर्फिक डिस्ऑर्डर सबसे ज्यादा राइनो प्लास्टिक सर्जरी ऐक्ट में डर्मेटोलॉजी जेनरल कॉस्मेटिक सर्जरी जैसे एरियाज़ और साइकैट्री पेशेंट्स में सबसे ज्यादा होता है। इनमें ज्यादातर लोग टीनेजर्स या फिर यंग एडल्ट्स होते हैं, जिसमें से फीमेल्स का नंबर मेल से ज्यादा होता है। इसके साथ ही इंडिया में सबसे कॉमन बॉडी डिस्मोर्फिक डिस्ऑर्डर है मसल डिस्मॉर्फिया जिससे बॉडी बिल्डिंग कम्यूनिटी में या फिर रिवर्स। अभी बोला जाता है। इस डिस्ऑर्डर में एक इंसान को लगता है कि वो काफी स्किनी है। उसकी बॉडी पर मसल काफी कम है या फिर उसका बॉडी स्ट्रक्चर काफी छोटा है और ये डिसोर्डर प्रो बॉडी बिल्डर्स से लेकर ऐवरेज साइज के एथलीट्स तक में देखने को मिलता है। दूसरी तरफ इंडियन गर्ल्स मैं ये डिसोर्डर स्पेसिफिक बॉडी पार्ट्स के टुवार्ड्ज़ होता है और ज्यादातर मेंटल डिस्ऑर्डर की तरह इसके कॉज़िज़ भी बाइओ साइकोसोशल है। यानी बॉडी डिस्मोर्फिक डिस्ऑर्डर, जेनेटिक्स, फिजिकल डिसेबिलिटी, ज़ साइकोलॉजिकल ट्रॉमा, बैड पैरेंटिंग या फिर सोसाइटी की एक्सपेक्टेशन्स और जजमेंट की वजह से भी हो सकता है। अगर हम इस डिस्ऑर्डर के साइज और सिम्पटम्स की बात करें तो बॉडी डिस्मोर्फिक डिस्ऑर्डर के फीचर्स काफी हद तक सिव कंपल्सिव डिसोर्डर से मिलते हैं। हर तीन में से दो केसेस में लोग अपनी अपीयरेंस को खराब मानते हैं और वो उसे बस नॉर्मल बनाना चाहते हैं, पर बाकी लोग डिल्यूजन अल है। इस डिसोर्डर में इन्वोल्वड कॉमन बॉडी एरियाज़ होते हैं। फेस हिअर स्टमक था इस हिप्स या फिर कोई सकार? और ज्यादातर लोग अपनी इन सेक्युरिटीज़ को डर्मेटोलॉजिकल ट्रीटमेंट या फिर कॉस्मेटिक सर्जरी के थ्रू फिक्स करना सही मानते हैं। इसके साथ ही इस डिस्ऑर्डर में डिप्रेशन और सोशल अवॉर्डस भी इन्वोल्वड है और इसी वजह से लोगों की सेल्फ एस्टीम भी काफी कम होती है। वो अपने आपको मिरर या फिर किसी शाइनी सर ऑफिस में देखना अवॉर्ड करते हैं। उन्हें ज्यादा ब्राइट लाइट में रहना बिल्कुल नहीं पसंद होता। वो अच्छा देखने के लिए बार बार कपड़े चेंज करते रहते हैं या फिर अपना खाना एकदम से कम मैं फिर से ज्यादा कर देते हैं और अगर उनमें यह इन्सेक्युरिटी काफी इंटेन्स है तो चान्सेस है की वो एक पिम्पल के होते ही बाहर जाना कम कर दें या अगर उनके बाल नहीं अच्छे लग रहे हैं तो घंटों अपने बाल फिक्स करने में लगा दें और इसकी वजह से उनका कैरिअर, सोशल कनेक्शन्स और एजुकेशन पर भी नेगेटिव इम्पैक्ट पड़ सकता है जिसकी वजह से उनमें अटेन्डेन्स भी आ सकती है। थिस इस वी बॉडी डिस्मोर्फिक डिस्ऑर्डर को कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरपी यानी सीबीटी या फिर सिलेक्टिव जी ऑफ टेक इनहिबिटर्स यानी एस्सार इसकी मदद से ट्रीट कर आ जाता है। सीबीटी में बेसिकली थेरपिस्ट हमारी अवॉर्डस को कम करके हमें अपने डर का सामना करना सिखाते हैं और अपनी कमियों को कैसे एक्सेप्ट करना है वो भी इसे बोलते है। कॉग्निटिव रीस्ट्रक्चरिंग जिसकी मदद से मेंटल हेल्थ प्रोफेशनल्स अपने पेशेंट्स के उनकी अपीयरेंस से रिलेटेड आजम ऑप्शन्स और बिलीव्स को चेंज कर पाते हैं, दूसरी तरफ एस। ऑब्सेसिव कंपल्सिव, बिहेव्यर और बॉडी इमेज से जुड़े डिल्यूजन को कम करने में काफी हेल्पफुल होते हैं।","बॉडी डिस्मॉर्फिक डिसऑर्डर एक मानसिक विकार है जहां व्यक्ति को यह जुनूनी विचार होता है कि उसके अपने शरीर के अंग या उपस्थिति का कुछ पहलू गंभीर रूप से दोषपूर्ण है और इसलिए उस शरीर के हिस्से को छिपाने या ठीक करने के लिए असाधारण उपायों से गुजरना पड़ता है। लगभग 2.4% आबादी बीडीडी से पीड़ित है, फिर भी अधिकांश समय इसका निदान नहीं हो पाता है और कभी-कभी, इसे मेजर डिप्रेसिव डिसऑर्डर, एक ईटिंग डिसऑर्डर या ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर के रूप में गलत समझा जाता है। बीडीडी कुछ हद तक ओसीडी के समान है लेकिन निश्चित रूप से, एक को दूसरे के साथ भ्रमित नहीं होना चाहिए। भारत में, पुरुषों में सबसे आम प्रकार का बॉडी डिस्मॉर्फिक डिसऑर्डर मसल डिस्मॉर्फिया है या जैसा कि बॉडीबिल्डर्स इसे "बिगोरेक्सिया" कहते हैं। हालांकि, महिलाओं के बीच, यह ज्यादातर शरीर का एक निश्चित अंग या सिर्फ समग्र रूप है जो उन्हें लगता है कि त्रुटिपूर्ण है।" "आप अपनी लाइफ में बहुत से फ्रेंड्स बनाओगे, लेकिन कई फ्रेंड्स आपकी फैमिली जैसे होंगे और कई दुश्मन से भी ज्यादा बुरे बाहर से तो हर दोस्ती से नहीं लगती है और कई बार तो ऐसा भी होता है कि आपको समय निकलने के बाद एक इंसान की वैल्यू समझ आती है। इसी वजह से हम इस एपिसोड में उन साइंस की बात करेंगे जिनकी मदद से आप बहुत ही आसानी से ये समझ पाओगे कि आपको अपने किन दोस्तों के साथ रिश्ता कभी नहीं तोड़ना और कौन से दोस्तों से थोड़ा दूर रहना सही है। जस्ट बिकॉज़ वो आपके असली दोस्त नहीं है नंबर वन वो आपने आप से ज्यादा विश्वास रखते हैं। एक अच्छा फ्रेंड वो होता है जो आपकी ट्रू पोटेंशिअल को जानता है। वो आपको हमेशा मोटिवेट करता रहता है और आपको यह याद दिलाता है कि आप क्या करने के केपेबल हो ताकि आप अपने रास्ते से भटकों ना और खुद को डाउट ना करो। बहुत से लोग ऐसे होते हैं जिनमें कोई छुपा हुआ टैलेंट या फिर दुनिया को बदलने की ताकत तो होती है लेकिन वो मुश्किल समय में खुद को डाउट करने लगते हैं। ऐसे समय पर ही अच्छे दोस्तों की जरूरत होती है जो आपको वापस से ट्रैक पर आने में मदद करें और आपके अंदर मौजूद आग को कभी भोजने ना दे। साइन नंबर टू वो आपकी दोस्ती के पीछे एक बड़ा पर्पस देख पाते हैं। दोस्ती सिर्फ मज़ा, गणना और मेमोरीज़ बनाना नहीं है ओलु ये सब चीजे भी दोस्ती का एक जरूरी पार्ट है। लेकिन इसके अलावा एक सच्चा दोस्त जानता है कि वो आपके साथ सिर्फ एक ही मेन रीज़न के लिए है और वह है आप दोनों की ग्रोथ। जिसतरह से एक रिलेशनशिप का हाइएस्ट गोल सिर्फ फिजिकल इंटिमेसी नहीं होती वैसे ही एक दोस्ती का गोल भी खेल और मस्ती नहीं है। अगर आप अपनी लाइफ में सही रास्ते पर चल रहे हो तो आपको ऐसे बहुत से दोस्त मिलेंगे जिनकी पोटेंशिअल आपको तो दिख रही होगी। लेकिन वो ना तो खुद को इतना सीरियसली लेते हैं और ना ही आप दोनों की दोस्ती को। दूसरी तरफ कई रेल दोस्त आपको ऐसे भी मिलेंगे जो आप के बिल्कुल पैरालेल चल रहे होंगे और वो आपको एक बहुत ही गहरे लेवल पर समझ पाएंगे। उनको पता होगा कि आप दोनों की दोस्ती चाहे लंबी चले या ना चले उनका गोल इस दोस्ती में बस इतना है कि वो आपकी ग्रोथ में कुछ कॉन्ट्रिब्यूट कर दे। यानी एक रियल फ्रेंड के मिलने का एक बहुत बड़ा साइन ये होता है कि उनके आते ही अब दोनों की जिंदगी में बदलाव आता है और आप दोनों साथ में जीतने लगते हो। साइन नंबर थ्री वो आपसे झूठ नहीं बोलते है। एक असली दोस्त होने का सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि आपको पता है कि चाहे आप किसी भी प्रॉब्लम में हो, आप कोई डिसिशन नहीं ले पा रहे या फिर आप कहीं खुद को ही आगे बढ़ने से रोक रहे हो तो आपका दोस्त आपको बिना किसी हिचकिचाहट के ही सच बताएगा और आपको अपने झूठों से ऊपर उठने में मदद करेगा। जहाँ एक फेक फ्रेंड आपकी नजरों में बुरा बनने के डर से आपको कभी भी आपकी कमियां या फिर गलतियाँ नहीं बताता, वहीं एक रियल फ्रेंड के लिए आप की ग्रोथ मायने रखती हैं। फिर चाहे आप को सच बताने से आपकी फीलिंग्स ही क्यों ना हर्ट हो जाए। एक अच्छा फ्रेंड आपकी केयर करता है और जो लोग आपकी केयर करते हैं सिर्फ वही आप को सच बताने का जोखिम लेते है। वरना हर कोई आपकी पीठ पीछे ही आपकी बुराइ करेगा और मुँह पर स्वीट बनेगा। साइन नंबर फ़ोर वो मुश्किल समय में आपका साथ नहीं छोड़ते हैं। ये से इन बिल्कुल सही है कि आप फ्रेन्ड इन नीड ऐसा फ्रेंड इन डीड क्योंकि अगर आप किसी इंसान को अपना दोस्त बोलते हो और हर बार जब आप किसी मुश्किल में आते हों तब वो इंसान गायब हो जाता है और आपको सपोर्ट ना करने के लिए बहाने बनाता रहता है। तो ऐसा इंसान आपका दोस्तों क्या वो तो आपके दुश्मन से भी गया गुजरा है क्योंकि वन दुश्मनों के केस में भी आपको यह मालूम होता है कि उनके अंदर आपके लिए कैसी फीलिंग्स है और क्यों आपको उनसे बचकर रहना है? लेकिन एक झूठा फ्रेंड आपसे बस अपना मतलब निकालने के लिए दोस्ती करता है और खुद इस रिलेशनशिप में कुछ कॉन्ट्रिब्यूट नहीं करता। इसलिए अगर आपके दोस्त आपके उतार और चढ़ाव दोनों समय में आपके साथ रहे सिर्फ तभी वो आपके असली दोस्त होंगे और वो दिल से आपका भला चाहते होंगे। साइन नंबर फाइव, वो आपकी सक्सेस से जलते नहीं। बल्कि आपको और सक्सेसफुल होने में मदद करते हैं। कही फ्रेंड्स ऐसे होते हैं जो बस आपके साथ तब तक होते हैं जब तक आप उन्हीं के लेवल पर होते हो लेकिन जैसे ही आप ग्रो करने लगते हो, वैसे ही वो आपसे जेलस होने लगते हैं और वह खुद ब खुद आपसे दूर हो जाते हैं। लेकिन एक सच्चा दोस्त आपके अंदर छुपे खजाने को तब ही पहचान लेता है जब आप अपने ज़ीरो पर होते हो और वो पूरी जर्नी में आपको ग्रो होते हुए देखता भी है और आपको हर मोड़ पर अगले लेवल पर पहुंचने के लिए मदद भी करता है। शुरू में यह जानना बहुत ही मुश्किल होता है कि क्या बाकी लोगों जैसे ही हो या फिर क्या आप यूनीक हो? एक अच्छा फ्रेंड आपकी इस यूनीक्नेस के बीच को पानी भी देगा और एट के सम टाइम आपको हम बल रहना भी सिखाएगा। नंबर सिक्स उन पर करा जा सकता है। एक रियल फ्रेंड कोई ऐसा इंसान नहीं होता जो झूठे प्रॉमिसेस करें और जब वादा निभाने का समय आए तो पीछे हट जाएं। आपको पता होता है कि चाहे आप कितनी भी बड़ी प्रॉब्लम में क्यों ना फंस जाओ। आपका सच्चा दोस्त आपको हेल्प करने में उतनी ही मदद करेगा जितना वो खुद के माँ बाप या भाई बहन के लिए करता क्योंकि आप भी उसकी फैमिली के जैसे ही हो। साइन नंबर सेवन आप उनके साथ रहने पर एनर्जाइज फील करते हो। आपने ये बहुत बार नोटिस करा होगा कि जब भी आप किसी इंसान के साथ हैंग आउट करते हो जो आपके ज्यादा क्लोज़ नहीं है और आपको अंदर से पता है कि वो आप की उतनी परवाह भी नहीं करता तो आप उसके साथ चाहे कितनी मर्ज़ी, इंट्रेस्टिंग चीजें कर लो एंड में आप हमेशा मेंटली थके हुए ही वापस आते हो। आप दूसरों के आगे खुश होने का ढोंग तो कर रहे होते हो लेकिन आपकी बॉडी की केमिस्ट्री एक दूसरा ही सच बोल रही होती है और आपके नाटक की वजह से आपकी बॉडी में स्ट्रेस बढ़ने लगता है। इसी स्ट्रेस की वजह से आप अपने फेक फ्रेंड्स के साथ समय बिताने पर ट्रेंड या थके हुए फील करते हो, लेकिन एक रीयल फ्रेंड के साथ आपको कोई नाटक नहीं करना पड़ता बल्कि आप असलियत में खुश होते हो और स्ट्रेस के बजाय आपकी बॉडी हैप्पी होर्मोन से भर जाती है, जिसकी वजह से आप ज्यादा एनर्जाइज और आनंदित महसूस करते हों। साइन नंबर एट उनकी हर मुलाकात पहली जैसी लगती है। असली प्यार की ही तरह असली दोस्ती भी कभी बूढ़ी नहीं होती। वो सदा ही जवान और फ्रेश रहती है। यानी चाहे आप अपने सबसे पक्के और असली दोस्त से रोज़ मिलों या सालों बाद आपको उनकी प्रेजेंस में ऐसा ही फील होता है कि आप उनसे पहली बार मिल रहे हो, याद रखो सिर्फ नकली चीजें पुरानी होकर अपना जादू खो देती है और मर जाती है। जबकि असली चीजें असली प्यार, असली सच और असली दोस्ती कभी खत्म नहीं होता है। दोस्ती एक ऐसी चीज़ है जो दूरी से और पक्की होती जाती है लेकिन आप ये फीलिंग कभी भी अपने आम और सुपरफिशल दोस्तों के साथ फील नहीं करोगे। वो ना तो खुद ग्रो हो रहे होते हैं। और ना ही इस वजह से आपकी और उनकी दोस्ती ग्रो करती है, जबकि असली दोस्त दूर रहकर भी साथ में ग्रो कर रहे होते हैं। साइन नंबर नाइन असली दोस्त आपका फायदा नहीं उठाते हैं। हर असली दोस्त आपको कभी यूज़ नहीं करेगा और अगर वो आपसे कभी एक लेगा तो 10 वापस देगा। कुछ ऐसी नेचर होती है एक दीप बॉन्ड की, क्योंकि वो ग्रोथ का एनवायरनमेंट होता है। वहाँ हर चीज़ मल्टीप्लाई होती चली जाती है। दो गहरे दोस्त कभी भी ऐवरेज इंसान की तरह नहीं रह सकते हैं क्योंकि उनके बॉन्ड का गहरा पन उन्हें खुद की पोटेंशिअल तक पहुंचने और अपनी बेस्ट वर्जन को बाहर लाने में मदद करेगा। एक ट्रू फ्रेंड कभी भी यह नहीं सोचता कि वो आपसे क्या ले सकता है बल्कि वो ये सोचता है कि वो आप को क्या दे सकता है। यह बेनिफिट आपको किसी फेक फ्रेंड के साथ नहीं मिलेगा। आप उसके साथ ग्रो करना तो दूर बल्कि आप जीस लेवल पर पहले थे। आप उससे भी नीचे आ जाओगे। साइन नंबर 10 वो पब्लिक में आपका मजाक नहीं उड़ाते है ये साइन आप अपने पार्टनर, रिलेटिव्स, फ्रेज़ किसी में भी नोटिस कर सकते हो की वो पब्लिक में आपको कैसा ट्रीट करते है। क्या वो वैसे ही है? जैसे वो आपके साथ अकेले में होते हैं, क्या वो ज्यादा स्वीट बन जाते हैं या फिर क्या वो खुद को सबके आगे सुपिरिअर दिखाने के लिए आपको नीचा दिखाते हैं और आप का मजाक उड़ाते हैं? पब्लिक में लड़ना या फिर एक दूसरे का मजाक उड़ाना? एक बहुत बड़ा रेड फ्लैग होता है क्योंकि आपकी बेजती करके और फिर आपको ही अपना दोस्त बोलकर वह सिर्फ आपको ही नहीं बल्कि खुद को भी एक बेवकूफ की तरह पेश कर रहे होते हैं। जो इंसान एक बेवकूफ का दोस्त होता है वो खुद भी बेवकूफ़ी होता है। इसलिए एक असली दोस्त चाहे आप से जितना मर्जी भी नाराज हो जब भी वो पब्लिक में ऐसा ही दिखायेगा जैसे कुछ हुआ ही नहीं है क्योंकि उसका पर्पस आपको नीचा दिखाना या फिर आप को हराना नहीं बल्कि आपके साथ ग्रो करना है।","आप अपने जीवन में कई दोस्त बनाएंगे, लेकिन उनमें से कई नकली दोस्त होंगे और एक छोटा सा हिस्सा ही एक सच्चे दोस्त की भूमिका निभाएगा। शुरुआत में, लगभग सभी मित्रताएं समान महसूस करती हैं, और भले ही कोई सूक्ष्म बुरी भावना या मामूली लाल झंडे हों, हम उन्हें अनदेखा कर देते हैं क्योंकि हम नहीं जानते कि वे किस ओर इशारा कर रहे हैं। इसीलिए इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम एक सच्चे दोस्त के 10 संकेतों के बारे में बात करेंगे, ताकि आप अपने उन दोस्तों का आकलन कर सकें जिनके बारे में आपको पहले से ही संदेह है और देखें कि क्या यह वास्तव में वे हैं या आप बिना किसी कारण के सिर्फ संदेह कर रहे हैं।" "ब्यूटी मैटर करती है और हम इस फैक्ट को डैनी नहीं कर सकते हैं। जब भी हम किसी सुन्दर चेहरे को देखते हैं तब हमारे दिमाग में डोपामाइन रिलीज होता है जिससे हमें उस चेहरे को देखकर खुशी मिलती है और हमें उसे देखते रहने का मन करता है। फिजिकल ब्यूटी एक इंसान की हेल्थ और उसके जीन्स की क्वालिटी को दर्शाती है कि जस्ट बिकॉज़ एक इंसान का फेस सिमेट्रिकल है या उसके फेस पर ज्यादा दाग धब्बे नहीं है तो उसका मतलब उसकी बॉडी, किसी भी तरह की डिसीस या इन्फेक्शन को फाइट करने के कैपेबल है और उसके होर्मोनेस भी सही बैलेंस में है। फिजिकल ब्यूटी को मैं एक सीडी की तरह देखता हूँ। जो शुरू तो हमारी मंडे इन रोज़मर्रा की दुनिया में होती है, लेकिन उसका ऊपरी छोर एक हाइर फॉर्म ऑफ ड्यूटी के पास होता है। ऐसे इंसान की सुंदरता को निहारते निहारते ही हम उन में गुम हो जाते हैं और फिजिकल रिऐलिटी से टच खोकर हम पहुँच जाते हैं उस दुनिया में जहाँ प्यार का राज़ होता है, यही रीज़न है कि क्यों इतने सारे गानों या कहावतों में सुंदरता को स्पिरिचुअल एक्सपिरियंस से जोड़ा जाता है, जैसे भगवान ने कितनी मेहनत करके इस इंसान को बनाया या फिर कैसे एक इंसान का चेहरा भगवान की याद दिलाता है? लेकिन ऐसे में यहाँ क्वेश्चन ये आता है कि उन लोगों का क्या जो नैचरली ब्यूटीफुल नहीं पैदा हुए? क्या वह हमें एक हाइर, पॉसिबिलिटी या फिर लव की याद नहीं दिला सकते या क्या वो किसी तारीफ के लायक नहीं है? यहाँ पर यह समझो कि हमारी फिजिकल ब्यूटी के ज्यादातर ऐस्पेक्ट हमारे कंट्रोल से बाहर है, जहाँ हम एक हद तक अच्छी डाइट लेकर और एक्सरसाइज करके अपनी स्किन को ज्यादा हेल्थी हर लुक दे सकते हैं, चेहरे की केयर कर के उसपर से दाग धब्बों को कम कर सकते हैं। लेकिन अगर हम चाहें कि हमारी स्किन का कलर हमारे लिप्स का साइज या नाक की शेप बदल जाए। तो वो पॉसिबल नहीं है। जीवन अगर हम प्लास्टिक सर्जरी या एक्सेसिव मेकअप की मदद लें तब भी हम अपनी इन सिक्युरिटीज़ को जड़ों से खत्म नहीं कर रहे होते हैं, बल्कि हम बस उन्हें एक नकाब पहना रहे होते हैं। इसलिए शुरुआत होती है खुद की टोटल एक्सेप्ट इनसे, जिसमें इन्क्लूडेड होती है आपकी सारी स्ट्रेंथ और वीकनेस जीस। हद तक हम अपनी वीकनेसेस और कमियों पर काम करके खुद को हर वे में इम्प्रूव कर सकते हैं। वो हमें करना चाहिए। लेकिन जिन वीकनेस इसको हम चेंज नहीं कर सकते, उन्हें एक्सेप्ट करने से हम उन्हें ही फ्यूल की तरह यूज़ करने लग जाते हैं। जबकि अगर आप अपनी कमियों को रिजेक्ट कर देते हो तो आप खुद की खुशी हमेशा ही दूसरों में ढूंढ़ते रहते हो की वो आपको अप्रूव़ कर दे, वो आपको एक्सेप्ट कर ले या फिर वो आपको प्यार दे दे जो आपको खुद को देना चाहिए। खुद को पूरी तरह से एक्सेप्ट करने का यह फर्स्ट स्टेप आपको उन लोगों से एक काफी बेहतर और हेल्थी और पोज़ीशन पर रखेगा जो खुद को ज़ीरो मानते हैं और वो दूसरे लोगों जैसा बनना चाहते हैं। खुद को एक्सेप्ट करना ब्यूटी और अग्लीनेस के कॉन्टेस्ट में काफी अजीब और एक इन्कम्प्लीट सॉल्यूशन जैसा साउंड करता है, लेकिन अगर हम इस बात की गहराई में जाएं तो यहाँ पर भी वो ही मैसेज दिया जा रहा होता है जो हम अपने इस चैनल पर रेग्युलरली डिस्कस करते हैं कि अपनी पर्सनैलिटी के किसी भी हिस्से को रिजेक्ट मत करो क्योंकि ऐसे तो आपका हर रिजेक्टेड पार्ट आपको ही अनकॉन्शियस ली कंट्रोल करने लगेगा और आप अपने ही मिसिंग हिस्सों को दूसरे लोगों में ढूंढ़ते रहो गे। यही प्रॉब्लम उन लोगों के साथ होती है जो खुद के अंदर मौजूद ब्यूटी के बारे में अनवर होते हैं और उसे दूसरों पर प्रोजेक्ट कर रहे होते है। सेकंडली जिसतरह से हमने इस एपिसोड के शुरुआत में बात कर रही थी कि ब्यूटी एक सीडी की तरह होती है जो कि एक हाइर रिऐलिटी से नीचे आ रही होती है। रोज़मर्रा की दुनिया में लेकिन अगर आपकी सीट ही स्पिरिचुअल प्लेन पर ही खत्म हो जाती है और वो नीचे फिजिकल रिऐलिटी तक नहीं आती तो उसका मतलब आपका काम यह है कि आप खुद उस सीडी को बिल्ड करो जो आपको भी एक ट्रान्सेंडैंटल एक्सपिरियंस के पास पहुंचा पाए और आपसे मिलने वाले लोगों को भी और यह काम पूरा होता है अपने खुद के अंदर मौजूद ब्यूटी के एक कभी न खत्म होने वाले सोर्स के टच में आने से। क्योंकि ज्यादातर लोग यह सोचते हैं कि फिजिकल ब्यूटी बस फिजिकल बॉडी से शुरू होती है और वहीं पर खत्म हो जाती है, लेकिन ये थिंकिंग गलत है। लिटरल्ली हर तरह की ब्यूटी डिवाइन रिऐलिटी को टच करती है। चाहे वो इनर ब्यूटी हो या फिर आउटर। अगर हम इतने लकी नहीं है कि हमें आउटर ब्यूटी मिली हो तो उस केस में हमें सीधा इस ब्यूटी के सोर्स के पास जाना होता है। यह एक ऑपर्च्युनिटी होती है दुनिया में असली और सबसे गहरी तरह की ब्यूटी लाने की। और मज़े की बात तो यह है कि यह ब्यूटी पूरी तरह से आपके कंट्रोल में होती है। यह हो पॉइंट होता है जिसमे आप मैं ब्यूटी नहीं बल्कि आप खुद ब्यूटी बन जाते हो। अपने सेकंड चैनल के स्कूल ऑफ विज़्डम में भी अपनी विडीओ ज़ वाली ब्यूटी मैटर्स और वाइन यूनिटी इस ऑफेंसिव में भी हमने यही बाते करी है। ये एक लोअर फॉर्म ऑफ ड्यूटी वो होती है जिसमें हमारी नजर बस एक इंसान के अलग अलग बॉडी पार्ट्स पर होती है। लेकिन जब एक इंसान अपनी ब्यूटी अपनी डेथ में कैप्चर करके बैठा होता है तब हम उसको एक इंडीविजुअल क्रिएशन की तरह देख रहे होते हैं और हमारी नजर उस इंसान की बॉडी मेट पर होती है कि वो इंसान इंसान होने का रोल कितने अच्छे से निभा रहा है, बजाय बस अपनी सेक्शुअल फिटनेस को एडवर्टाइज करने के ये अन्डरस्टैन्डिंग हमें यह समझाती है कि हमें अपने दुनिया को पर सेव करने के दायरे को इक्स्पैन्ड करना है। हमें अपने आप को अपनी फिजिकल बॉडी के साथ आइडेंटिफाइ करके अपनी पॉसिबिलिटीज़ को लिमिट नहीं करना बल्कि हमें कॉन्शसनेस के एक हाइअर लेवल पर जाना है। वहाँ मौजूद है ब्यूटी का वो सोर्स, जिसके आगे हर तरह की सुंदरता भी फीकी पड़ जाती है और आप वहाँ तक सिर्फ तभी पहुँच पाओगे जब आपके माइंड सेट में ये शिफ्ट आएगा कि आप अपनी बॉडी या अपनी स्किन नहीं बल्कि आप जो हो वह इन चीजों के भी पड़े हैं। यही रीज़न है कि क्यों जो इंसान बाहर से तो बहुत सुन्दर होता है लेकिन वह अपनी सुंदरता पर घमंड करता है, लोगों से बदतमीजी से बात करता है और खुद के साथ साथ दूसरों की जिंदगी भी मुश्किल बना देता है। हमें वो इंसान सुंदर होने के बावजूद इन्कम्प्लीट और इनसेक्युर लगता है क्योंकि वो अपने अंदर मौजूद ब्यूटी के सोर्स से बहुत दूर होता है और एक शैलो जिंदगी जी रहा होता है। उनकी सोच बस मांस से शुरू होती है और वहीं पर खत्म हो जाती है। इसलिए स्ट्रांग और ब्यूटीफुल बनने के लिए खुद को एक्सेप्ट करो। अपने आप को अपनी बॉडी के साथ आइडेंटिफाइ करने के बजाय अपने अंदर मौजूद इन्फिनिट ब्यूटी और लव के सोर्स के साथ आइडेंटिफाइ करो और ये देखो कि आप इस दुनिया में क्या वैल्यू प्रोवाइड कर सकते हो। एक अच्छी जिंदगी जीने और खुद में खूबसूरती ढूंढने के लिए इन चीजों के अलावा आपको किसी दूसरी चीज़ के बारे में सोचने की जरूरत नहीं है।",सुंदरता मायने रखती है और हम इस तथ्य से इनकार नहीं कर सकते। जब भी हम किसी खूबसूरत चेहरे को देखते हैं तो हमारा दिमाग डोपामाइन रिलीज करता है जिससे हम खुश हो जाते हैं और हम उस चेहरे को देखते रहना चाहते हैं। लेकिन उन लोगों के बारे में क्या जो अच्छे अनुवांशिकी के साथ धन्य नहीं हैं? क्या वे गौर किए जाने और सराहना के भी पात्र नहीं हैं? क्या बाहरी सुंदरता ही सब कुछ है? क्या करें जब आप पर्याप्त रूप से सुंदर महसूस नहीं कर रहे हैं और आप सभी को बदसूरत महसूस कर रहे हैं? इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम इन सभी सवालों के जवाब देंगे और चर्चा करेंगे कि हम अपने रूप-रंग से संबंधित इन नकारात्मक भावनाओं को कैसे प्रबंधित कर सकते हैं। "ज्यादातर मेंटल हेल्थ प्रॉब्लम्स एकदम से पैदा नहीं होती, बल्कि वो ओवर के टाइम धीरे धीरे सर ऑफिस पर आती है। कई बार आपकी फैमिली फ्रेन्डस या पार्टनर आप में कई अजीब चेंजेज को नोटिस कर पाते हैं और कई बार आप खुद ही इस चीज़ को अपने अंदर नोटिस कर पाते हो की हाँ, आप शायद कुछ गलत कर रहे हो और आपको अपनी मेंटल हेल्थ पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए। चाहे हम बात करे डिप्रेशन की। एनजीटी की मीटिग या मूड डिसॉर्डर स्की या फिर किसी अडिक्शन की ये चीजे ऐसी होती है कि जितना ज्यादा आप इन को जड़ से निकालने की वेट करते हो उतना ही इनसे छुटकारा पाना मुश्किल होता जाता है। इसलिए यह एपिसोड आपको मेंटल हेल्थ खराब होने के कई शुरुआती साइंस की जानकारी देगा ताकि आप समय रहते खुद को हील कर सको। साइन नंबर वन यू अर स्लीपिंग ऐडीटिंग पैटर्न हैज़ बिकम अनहेलथी अर हमारी नींद और खाने से जुड़ी आदतें ऐसी चीजें होती हैं, जिनकी मदद से या तो हम खुद को ज्यादा स्टेबल और शाप बना सकते हैं या फिर ज्यादा डल और अनहेलथी अगर आपने बिना ज्यादा अपने लाइफ स्टाइल को चेंज करें ही अपनी बुक खो दी है, आपको पहले से बहुत ज्यादा भूख लगती है। या फिर आप बिना किसी रीज़न के ही देर रात तक जागते हो और टाइम से सो नहीं पाते? तो यह चेंजेज एक बहुत ऑब्वियस साइन है। आपकी बिगड़ती मेंटल हेल्थ का बॉडी या फिर आपकी साइकोलॉजी में होने वाले कई नेगेटिव बदलावों से ही डील करने के लिए कभी आपको बहुत ज्यादा नींद आती है। कभी बहुत कम, कभी आपको बहुत ज्यादा भूख लगती है और पेट भरने के बाद भी आप सैटिस्फाइड नहीं फील कर पाते और कई बार आप अपना सारा एपेटाइट खोकर बिना कुछ खाये ही एक जगह पड़े रहते हो। ये चेंजेस ओवर टाइम आपकी पुर्सेल फेर की वजह से आने लगते हैं। यानी अगर आप रेगुलरली अपनी बॉडी को जरूरत के मुताबिक रेस्ट नहीं दे रहे, आप बहुत ज्यादा स्ट्रेस ले रहे हो, आप हमेशा ही अपने ख्यालों में डूबे रहते हो या फिर आप अपनी डेली लाइफ में आने वाले चैलेंजेस को ढंग से फेस नहीं कर पाते तो इससे आप खुद का इन्नर बैलेंस खो देते हो और खुद को स्लीप या फिर खाने के थ्रू ठीक करने की कोशिश करते हो। एक स्ट्रीम्स में जाकर साइन नंबर टू यू आर नॉट ग्राउंडेड ग्राउंडेड होने का मतलब होता है कि आप अपने शरीर में और माइंड वाइज़ कितने बैलैंस्ड कंफर्टेबल और शांत हो? जब भी कोई इंसान बोलता है की वो ग्राउंडेड फील कर रहा है तो उसका मतलब वो कॉन्फिडेंट और सिक्योर है। लेकिन कई बार हम बस अपने दिमाग में ही रहने लग जाते हैं, ओवर थिंकिंग या ज्यादा स्ट्रेस लेने की वजह से और हम एक तरह से अपनी बॉडी से डिस्कनेक्टेड फील करने लगते हैं। ऐसे टाइम पर हमारा कॉन्फिडेन्स कम हो जाता है और हम कन्फ्यूज़्ड या फिर इनसेक्युर बन जाते हैं। इसे बोलते हैंन ग्राउंडेड हो ना? इसलिए अगर आपको भी ऐसा लगता है कि आप कुछ टाइम पहले से ही ऑनग्राउंड होने लगे हो तो खुद को ग्राउंड करने का सबसे अच्छा तरीका होता है नेचर में जाना। यानी आप नेचर में वॉक कर सकते हो। पार्क में कुछ देर बैठ सकते हो और कुछ समय के लिए खुद को अपनी लाइफ प्रॉब्लम से ब्रेक देकर बस नेचर में होने वाले प्रोसेसेस को ऑब्जर्व कर सकते हो। नेचर से अच्छी मेडिसिन ऑनग्राउंड लोगों के लिए और कुछ नहीं होती। साइन नंबर थ्री, एक्स्ट्रीम ऐंड सड़न मूड सविन्ग्ज़ अगर आप पहले से ज्यादा अनस्टेबल बन चूके हो, आप के आसपास रहने वाले लोग भी आपको मोदी बोलने लगे हैं और अगर आप एक मूवमेंट में हद से ज्यादा अच्छा और अगले ही मूवमेंट में हद से ज्यादा बुरा फील करते हो तो यह भी एक मेजर साइन है कि आप अपनी मेंटल हेल्थ का बिल्कुल भी ध्यान नहीं रख रहे हैं। एक्स्ट्रीम मूड स्विंग होना बिल्कुल भी नॉर्मल नहीं होता नॉर्मल्ली आपके अंदर एक इमोशन उठता है और आप उसे कुछ देर के लिए एक्सपिरियंस करते हो और फिर वापस से अपने बेस लेवल पर आ जाते हो, लेकिन जब आपके अंदर हमेशा ही एक रोलर कोस्टर चल रहा होता है तो इससे ना तो आप किसी मूवमेंट को फुल्ली एन्जॉय कर पाते हो और ना ही खुद को ग्रो करने के लिए कुछ कर पाते हों। साइन नंबर फ़ोर अब नॉर्मल लेवल्स ऑफ इर शेम और गिल्ट बिना किसी मेजर रीज़न के डरना शर्म महसूस करना या ऐसा फील गणना कि जैसे आपने कुछ गलत काम करा है। ये चीज़ भी आगे चलकर आपकी मेंटल हेल्थ को बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचा सकती है क्योंकि यह फीलिंग्स यूज़्वली एक इंसान के पुराने अनिल, ड्रामा या फिर उनकी इन्सेक्युरिटी से आ रही होती है, जिसकी वजह से आपको ऐसे पॉइंट पर अपनी हीलिंग पर ध्यान देना चाहिए। अपने पास्ट को रिविजिट करके, जिसके कई तरीके होते है, जैसे अपने पास्ट को डिटेल में लिखना, अपनी अनकॉन्शियस मेमोरीज़ को ट्रिगर करके उन्हें सर ऑफिस पर लाने के लिए मेडिटेट करना या फिर सिम्पली अपने पास्ट के बारे में किसी प्रोफेशनल या फिर इंसान से बात करना, जो आपसे सही क्वेश्चन्स पूछ कर आपको अपने दरों को फेस करने और आपको उन्हें ओवर कम करने में मदद कर सकें। साइन नंबर फाइव ब्रेन फॉग जब भी आपकी मेंटल हेल्थ खराब होने लगती है तो आपकी मेंटल क्लैरिटी सबसे पहले कम होना शुरू होती है। आपका माइंड एक ऐसी तलवार है जिसकी धार सिर्फ तभी सबसे ज्यादा तेज रहती है जब वो खाली रहता है और जब आप खुद के मन को कचरे या यूज़लेस इन्फॉर्मेशन से भर देते हों तब आप का माइंड डल हो जाता है। अगर आपका स्केजूल हमेशा ही भरा रहता है और आपका ध्यान कॉन्स्टेंट ली, अनहेल्दी और अनप्रोडक्टिव चीजें खींचती है। जैसे लोगों के साथ गॉसिप करना, डे ड्रीमिंग करना, सोशल मीडिया से चिपके रहना या फिर जंक फूड खाना और एक्सरसाइज ना करना तो इससे आपके ब्रेन और आपकी थिंकिंग एबिलिटीज़ पर सीधा सीधा प्रभाव पड़ता है और ये चीजें आपको काफी स्लो बना देती है। साइन नंबर सिक्स योर लाइफ फील्स मीनिंग लेस अगर आप एकदम से अपने लाइफ को क्वेश्चन करते हुए इस कॉन्क्लूज़न पर पहुँच गए हो की लाइफ में कोई भी चीज़ मैटर ही नहीं करती, आपके जीने या फिर सफर करने का कोई रीज़न नहीं है और लाइफ एकदम मीनिंग लेस है तो ये निहाल इस टिक कॉन्क्लूज़न भी आपकी मेंटल हेल्थ को बिल्कुल फेवर नहीं करेगा। जब भी एक इंसान लाइफ में खुश होता है तो उसे मीनिंग लेस लेवल नहीं करता पर जैसे ही उसकी सफरिंग उसकी खुशी से ज्यादा बढ़ जाती है, सिर्फ तभी उसके मन में अपनी एग्ज़िस्टन्स को लेकर डाउट्स आने लगते हैं। इसलिए अगर आप अपनी लाइफ में कोई मीनिंग नहीं ढूंढ पा रहे है तो बस इसी पॉइंट पर रुके मत रहो बल्कि अपनी क्वेश्चनिंग चालू रखो क्योंकि मीन इंग्लिश ऑनरस असली मीनिंग तक पहुँचने का बस एक रास्ता है ना कि एग्ज़िस्टिंग चल ट्रूथ का एंड पॉइंट साइन नंबर से वन यू हैव क्लोज़ डाउन यह मूड स्विंग का ऑपोजिट सिम्प्टम है जहाँ एक्स्ट्रीमली लाउड क्या शांत हो जाना सिचुएशन से डील करने का एक तरीका होता है? वहीं दूसरा तरीका होता है नम या फिर इमोशनलेस हो जाना। इस केस में आप बोलते हो कि मेरे अंदर तो कोई फीलिंग ही नहीं है। मेरी कोई वीकनेस नहीं है या फिर आप सिम्पली हंसना और लाइफ को एन्जॉय करना ही बंद कर देते हो। आप के आसपास के लोग भी आपको हमेशा उदास रहने वाला या फिर सारु बोलने लगते हैं। लेकिन असलियत में ये टफ शेल आपका बस एक पर सोना और डिफेन्स मेकनिजम होता है, जो आपकी इनर वीकनेस इसको छुपा रहा होता है। हर नम इंसान के पीछे हमेशा ही एक सैड स्टोरी होती है और वो सिर्फ तब तक ही नम रहता है जब तक कोई इंसान या फिर सिचुएशन उसके इस नकली आउट रशेल को तोड़ नहीं देती। इसलिए अगर आपके अंदर भी ज्यादा इमोशन्स की हलचल नहीं होती और आप खुद को बाहर से बहुत टफ इंसान की तरह एडवरटाइज करते हो तो यह चीज़ भी आपको कुछ टाइम के अंदर ही घिस देगी। ऐसे में आपको खुद से यह क्वेश्चन करना चाहिए कि आप अपने इमोशन्स क्यों नहीं दिखा पा रहे हैं और आप किस जजमेंट से डर रहे हो? साइन नंबर एट आउटसोर्सिंग और स्टेबिलिटी यानी एक मेंटली एग्ज़ॉस्ट एडिनसन अपनी स्टेबिलिटी खुद ना जेनरेट कर पाने की वजह से इस चीजों को सबस्टैन्स या लोगों में ढूंढने की कोशिश करता है। जो चीजें सबसे कॉमन ली यूज़ करी जाती है, स्टेबल फील करने के लिए वो होती हैं खाना और आपके आसपास के लोग। इसका मतलब लाइफ के मुश्किल होने पर आप खुद की इनर स्ट्रेंथ को एक्सेस नहीं कर पाते। आप बल्कि लोगों के साथ ज्यादा समय बिताने लगते हों, उन्हें अपने दुखड़े सुनाने लगते हो। अपने रिलेशनशिप्स में ज्यादा नीडी बन जाते हो, टेस्टी खाने से बार बार केक लेने लगते हो और ऐसे ही आप खुद की गिरती मेंटल हेल्थ को डाइरेक्टली कॉन्फ्रेंस करने के बजाय बस टेंपरेरी सॉल्यूशन्स को ही ढूंढ़ते रहते हो। इसलिए अगर आप अपनी मेंटल हेल्थ को इंप्रूव करना चाहते हो तो उसके रूट कॉस्ट तक जाओ। कई बार तो आपको यह भी पता चलेगा कि जिन चीजों को आप अपने स्ट्रेस को कम करने के लिए यूज़ कर रहे थे, चाहे वह शराब हो, फूड हो या कही, लोग वही आपको स्ट्रेस दे रहे थे। इन गिरती मेंटल हेल्थ के साइंस की नॉलेज होने से आप अपनी जिंदगी को वापस से ट्रैक पर ला सकते हो और खुद को डिप्रेशन या फिर ऐंगज़ाइइटी में जाने से रोक सकते हो। सिर्फ खुद की कमियों और गलतियों की अन्डरस्टैन्डिंग ही आपको ज्यादा कॉन्शस बनाने और खुद पर काम करने की मोटिवेशन देने के लिए काफी होती है।","अधिकांश मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं कहीं से भी अस्तित्व में नहीं आती हैं, बल्कि, वे समय लेती हैं और आपकी जीवनशैली के कारण धीरे-धीरे बढ़ती हैं। आमतौर पर आपके दोस्त, परिवार या साथी आप में कुछ अजीब बदलाव देखते हैं, या आप खुद महसूस कर सकते हैं कि कुछ बंद है। इसलिए इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम बिगड़ते मानसिक स्वास्थ्य के कुछ शुरुआती संकेतों पर चर्चा करेंगे।" "रिस्पेक्ट एक ऐसी चीज़ है जो आपसे ज्यादा आपके अराउंड लोगों से क्न्सर्न होती है। यानी अगर आप रिस्पेक्ट चाहते हो तो आपको दूसरे लोगों को दिमाग में रखकर डिसिशन्स लेने होंगे। आपको खुद से यह पूछना पड़ेगा कि आप किस तरह से दूसरों की मदद कर सकते हो, उनकी लाइफ को बेहतर बना सकते हो, उन्हें इन्स्पाइअर्ड कर सकते हो या उन्हें बड़े लेवल पर सोचना सीखा सकते हो। इसलिए अब सीधा उन टिप्स और ट्रिक्स की बात करते हैं जिनकी मदद से आप इन क्वेश्चन्स को आन्सर कर पाओगे और दूसरों को इन्फ्लुयेन्स करके उनकी रिस्पेक्ट को कमा पाओगे। नंबर वन वो करो जो दूसरे करने से डरते हैं दुनिया में ऐसे बहुत से काम हैं जिन्हें लोग करना तो चाहते हैं लेकिन वह डरते हैं। कोई अपने पैशन को फॉलो करना चाहता है। कोई अपने क्रश को अपने दिल की बात बोलना चाहता है और कोई बस खुश होना चाहता है। लेकिन लोग इन छोटी मोटी चीजों से डरते हैं और लाइफ की इन्टेंसिटी को सबसे कम लेवल पर एक्सपिरियंस करते हैं। पर जो भी इंसान अपनी लाइफ में रिस्क्स लेता है, अपने दिल की बात बोलता है और उन लोगों को भी गलत प्रूफ करता है जिन्होंने उसे डाउट करा था। ऐसा इंसान शुरू में तो सबको पागल और बस बातें बनाने वाला लगता है पर जब वो उन कामों को भी सक्सेस्स्फुल्ली पूरा कर लेता है। जिससे लोग डरते हैं तो इससे लोग खुद भी इन्स्पाइअर्ड फील करते हैं और वो उस इंसान को अपनी लिमिट्स के पार जाने के लिए रिस्पेक्ट करते है। नंबर टू डू व्हाट इस फेर काम अच्छे और बुरे या सही और गलत नहीं होते है। कई कामों को करने की जरूरत होती है और कइयों को नहीं। अगर एक सिचुएशन आपको एक सर टन तरह से ऐक्ट करने और कोई पर्टिकुलर काम को पूरा करने को बोलती है तो उसे पूरा करो। ऐसा इंसान जो निष्पक्ष होता है और सही और गलत के बाहर काम करता है, उसे सिर्फ कोई बेवकूफ इंसानी रिस्पेक्ट नहीं देगा क्योंकि हम लोग इतने बाइस्ड और अपने बिलीव्स में उलझे होने के बावजूद डीप इनसाइड ऐसे लोगों को ढूंढ रहे होते हैं जो इन बायर्स और अचीवमेंट के बंधन से मुक्त हो और वो हमें भी हमारी कष्ट भरी जिंदगी से बाहर निकाल सके। एक जाम पल के तौर पर अगर आपको कोई बुरा भला बोलता है तो आपका पहला रिऐक्शन गुस्से का ही होगा। जबकि अगर आप मैच्योर होते तो आप ये समझ पाते कि दूसरों को बुरा बोलने वाला इंसान एक्चुअल मैं खुद अंदर से दुख में होता है और वो दूसरों से लड़ता है क्योंकि वो खुद को प्रोटेक्ट करना चाहता है। इस लेवल की अन्डरस्टैन्डिंग आपको फेर होना सिखाती है। और जब आप लोगों को फेरली ट्रीट करते हो, गुस्से वाले लोगों के दर्द को समझते हो और ढोंगी लोगों की पोल भी खोल देते हो तब लोग ये समझ जाते हैं कि आपके ऐक्शंस और आपकी बातों में एक गहरा सच छुपा है और आप उनकी रिस्पेक्ट के लायक हो। इसलिए डूऐलिटी से बाहर निकलो राइट और लेफ्ट ये सही और गलत को साथ लेकर चलो और तब लोग खुद बखुद आपकी ओर खिंचे चले आएँगे। नंबर थ्री कॉन्फिडेंट बॉडी लैंग्वेज अगर दो लोगों के बीच बाकी सब सेम है, लेकिन बस एक का पॉस्चर खराब है और दूसरे का अच्छा। तो आप ऑटोमैटिकली उस इंसान को ज्यादा रिस्पेक्ट दोगे। जो अपनी बॉडी लैंग्वेज के थ्रू अपना सेल्फ कॉन्फिडेंस और खुद में विश्वास दिखा रहा होता है। आपकी बॉडी लैंग्वेज आपकी सोच से कई गुना ज्यादा आप के बारे में बता रही होती है। जिसतरह से आप खड़े होते बैठते चलते यह किसी से बात करते हुए जस्टिस बनाते हो, हर छोटी से छोटी चीज़ भी दूसरों का सबकॉन्शियस माइंड नोटिस कर रहा होता है और सेकंड के अंदर ही लोगों पर जजमेंट पास कर रहा होता है। ये चीज़ आप एक ग्रुप के बीच कोई स्पीच, इंटरव्यू या प्रेजेंटेशन देते हुए और ईव अनेक डेट पर भी यूज़ कर सकते हो। यानी अगर आप एक ऑडियंस के सामने हो तो बस एक जगह पर खड़े होकर मत बोलो। एक जगह पर अपनी कोई बात बोलो और फिर स्टेज की दूसरी साइट पर चले जाओ। अगर आप किसी के आमने सामने हो तो अपने हाथों का यूज़ करो, अपनी बॉडी को झुकने मत दो और ज्यादा जगह घेरने की कोशिश करो जहाँ एक क्लोस्ड और सॉफ्ट बॉडी लैंग्वेज यह दिखाएगी कि आप खुद में विश्वास नहीं करते। आप खुद की ही रिस्पेक्ट के लायक नहीं हो और आप इतने छोटे बनकर रहना चाहते हो ताकि लोगों की नजर आप पढ़ना जाए और वो आपसे ऑफ ना हो जाए। वहीं एक ओपन बॉडी बोलती है कि आप खुद की रिस्पेक्ट करते हो। और दूसरों के आगे अपना ओपिनियन रखने से नहीं डरते हैं। आप अपने बैठने या खड़े होने के ढंग से ही लोगों को ये कम्यूनिकेट कर देते हो कि आप सुनने और ध्यान देने के लायक हो। इस तरह से लोग आपकी बातों से इन्फ्लुयेन्स होने लगते हैं और आपको ज्यादा रिस्पेक्ट मिलती है। नंबर फ़ोर जीस चीज़ में आप बिलीव करते हो उसे बोलने से डरो मत। अपने बिलीव्स को बेचना बहुत अलग होता है। उन्हें प्रसाद की तरह लोगों के आगे रखने से एक तरफ आप अपने कोई बिलीफ, आइडीओलॉजी या फिलॉसफी को प्रोमोट करते हो और लोगों को यह कन्विंस करने की कोशिश करते हो कि वह भी कन्वर्ट होकर आपके ग्रुप में ही आ जाए और आपके जैसा सोचने या बोलने लगे हैं। यह तरीका वो लोग अपनाते हैं जिनकी फिलॉसफी सेल्स के बेसिस पर चलती है। लेकिन जो भी इंसान हर समय अपनी पॉलिटिक्स, बिलीव या अपने रिलिजन को ही प्रोमोट करता रहता है, वो कभी भी सच्ची और डीप रिस्पेक्ट नहीं हासिल कर पाता क्योंकि वो बस एक स्पीकर या एक तोते की तरह होता है, जो रटी रटाई बातें बोल रहा होता है। आपने कभी भी यह नहीं करना। इसके बजाय अगर आपके बिलीव्स रिलिजन या पॉलिटिक्स सच में इतने पॉवरफुल और लाइफ चेंजिंग है और लोगों को उसकी बातें नहीं बल्कि उसका फल दिखाओ। हर इंसान अपने बिलीव्स के लिए लड़ने तो बहुत जल्दी आ जाता है लेकिन यह बस उसकी इनर वीकनेस को दिखाता है, क्योंकि जब भी एक इंसान हाइएस्ट लेवल की नॉलेज को प्राप्त कर लेता है तब वह आनंदित रहने लगता है। उसे अपने रिलिजन, पॉलिटिक्स या फिलॉसफी इसको बचाने की जरूरत नहीं लगती। वो खुद ही अपना रिलिजन या पॉलिटिक्स बनकर बैठा होता है। इसे ढंग से समझो कि कई लोग बस बाते बोलते हैं लेकिन कई लोग अपनी बातों को जीते हैं। फॉर एग्जाम्पल आजकल आपको बहुत से लोग ऐसे मिलेंगे जो आपको कुछ न कुछ बेचना चाहते है। वो आपको सीखाना चाहते हैं कि आप अमीर कैसे बन सकते हो या फिर आप खुद के अंदर शांति कैसे ढूंढ सकते हो? जबकि असलियत में रिच होने की स्कीम बेचने वाले ज्यादातर लोग खुद रिच होने की स्कीम्स और कोर्सेस को बेचकर ही रिच होने की कोशिश कर रहे हैं और शांति का प्रचार करने वाले लोग खुद ही गुस्से से भरे हैं और शांति की तलाश में है। हाउएवर झूठ बस कुछ देर तक ही अपने आप को कायम रख सकता है, लेकिन अंत में सच की ही जीत होती है। इसलिए अगर आपकी नॉलेज ने आपकी लाइफ को चेंज करा है और आपको ज्यादा खुश या शांत बनाया है तो इस नॉलेज को अपने ऐक्शंस और जीने के तरीके में दिखने दो। अपने कामों और अपने रहन सहन को अपने मुँह से ज्यादा बोलने दो। एक फूल की तरह बना हो जो ना तो किसी को अपने खुशबू की ताकत के लिए कन्विंस करने की कोशिश करता है और ना ही वो अपनी इस ताकत को बिना यूज़ करें ही मरने देता है। एक फूल बस खेलता है और उससे पूरे बगीचे को पता लग जाता है कि वो खुश हैं और जो भी उसका ग्रो करने का तरीका है, वो ऑब्वियस्ली काम कर रहा है। इसलिए अपनी बातों को सामने रखो तो सही लेकिन उन बातों का प्रूफ आपकी अंदर दिखना चाहिए। नंबर फाइव हर समय नाइस मत बने रहो यानी दूसरों के साथ का इन तो रहो लेकिन ऐसे ऐक्ट मत करो जैसे आप उनका अप्रूवल लेना चाहते हो और उनकी नजरों में अच्छा बनना चाहते हो। अगर आप हर बात में सॉरी बोलते हो, खुद की नीड्स को इग्नोर करके दूसरों को खुश करने की कोशिश करते रहते हो या दूसरों की हर बार मदद ना कर पाने की वजह से गिल्टी फील करते हो तो ऐसे में लोग आप को दिल का अच्छा तो समझेंगे लेकिन वो आपको एक बिचारे, एक कमजोर विक्टिम की तरह देखेंगे जैसे कुछ कंफर्टिंग बातें तो बोली जा सकती है। पर उसे रिस्पेक्ट नहीं दी जा सकती है क्योंकि रिस्पेक्ट दया की तरह नहीं मिलती उसके लिए आपको दर्द को सहना होता है, कोई नेक काम करना होता है या फिर साहसी बनना होता है। जबकि दया तो हमें कमजोर और घायल जानवरों या कीड़े मकोड़ों पर भी आती है ना? इस बनकर आप बेसिकली लोगों से रिस्पेक्ट नहीं बल्कि दया मांग रहे होते हो और आप ऐसे लगते हो जैसे आपके अंदर कोई सेल्फ एस्टीम है ही नहीं और आपको अपने बारे में अच्छा फील करने के लिए बाहर से लोगों का प्यार या वैलिडेशन चाहिए होता है। बनने में ताकत है, क्योंकि काइंडनेस को हम चूज करते हैं। जबकि नाइस नेस कई लोगों की मजबूरी और कमजोरी का रिज़ल्ट होता है और जैसा कि अमेरिकन राइटर और फिलॉसफर रॉबर्ट परसेंट बोलते थे कि वो कभी भी एक नाइस इंसान नहीं होता, जो कोई बड़ा सोशल चेंज लाता है। नाइस और भोले लोग बस इसलिए सबको अच्छे लगते है क्योंकि वो क्राउड की डिमांड के साथ आसानी से कन्फर्म कर जाते हैं जबकि थोड़े टेढ़े लोगों का कॉन्ट्रिब्यूशन उनके मरने के कई 100 साल बाद समझ आता है और ऐसे रिबेलियस लोग ही सोशल एवल्यूशन लाते है।","सम्मान एक ऐसी चीज है जो मुफ्त में नहीं दी जाती, इसे कमाया जाता है। हर कोई महसूस करना चाहता है कि वे समाज के योगदानकर्ता सदस्य हैं और लोग उनके महत्व को जानते हैं। लेकिन हम वास्तव में सम्मान के योग्य कैसे बनते हैं? इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम 5 मनोवैज्ञानिक टिप्स और ट्रिक्स शामिल करेंगे जो आपको तुरंत सम्मान अर्जित करने में मदद करेंगे।" "लिमिट्लेस 2011 में रिलीज हुई एक मूवी है जिसकी स्टोरी की शुरुआत में मेन करेक्टर ऐड मोरा एक काफी बुरी सिचुएशन में होता है। वो अपनी बुक नहीं पूरी कर पा रहा होता। उसके पास पैसे नहीं होते और इस वजह से उसकी गर्लफ्रेंड भी उसे छोड़कर चली जाती है। वो काफी कोशिश करता है कि किसी तरह से उसकी क्रिएटिविटी वर्ड्ज़ में कन्वर्ट हो सके। एक सीन में वो अपने आप को कई दिनों तक एक कमरे में बंद कर लेता है, ये सोचकर कि शायद उसके पास कोई इनस्पिरेशन आ जाये। पर उसकी किस्मत तब बदलती है जब उसे उसकी एक्स वाइफ का भाई एक ऑफर करता है, जिसका नाम होता है एनजीटी 48। यह पिल बेसिकली एक स्पेशल ड्रग क्लास से बिलॉन्ग करती है, जिसे बोलते है न्यू ट्रॉपिक्स सिंपल भाषा में स्मार्ट ड्रग्ज़ और हालांकि इस तरह की आपको ऐमज़ॉन पर भी मिल जाएंगी, जो आपको आपकी मेमोरी मोटिवेशन, फोकस, क्रिएटिविटी और ओवरऑल मेटल परफॉर्मेंस को बढ़ाने में मदद करेंगी। पर मूवी में दिखाई गई फेल एनजीटी 4081 अलग ही लेवल पर काम करती है। क्योंकि इस बिल को लेकर डैडी को जल्द ही ये समझ आ जाता है कि यह पिल उसकी क्रिएटिव साइड को बाहर लाने के अलावा उसे अपने अनकॉन्शस माइंड को ऐक्सेस करने का मौका देती है। और जो कुछ भी उसने कभी पड़ा देखा या सुना, वो सारी इन्फॉर्मेशन उसके प्रीफ्रंटल कोर्टेक्स में आ चुकी है और उससे लिटरल्ली सब याद आ जाता है। एक सीन में हम देखते हैं कि कैसे जब डैडी को कुछ गुंडे मिल जाते है तब वो अपने आप से पूछता है कि क्या उसे लड़ना आता है? और उसी सेकंड उसके दिमाग में वो सारे फाइटिंग, मूवीज़ और स्किल्स आने लग जाती है जो उसने सालों पहले ब्रूस ली की मूवीज़ और सेल्फ डिफेन्स वीडिओज़ में देखी थी। इसके साथ ही उसका आइक्यू 1000 पॉइंट्स के ऊपर चला जाता है। वह 4 दिन में अपनी बुक खत्म कर देता है। स्टॉक मार्केट में मिलियन्स कमा लेता है। उसे हर इंसान की छुपी इन टेंशन्स, इमोशन्स और नीड समझ आने लग जाती है। और वो अपनी लाइफ के सबसे प्रोडक्टिव दौर में आ जाता है। हाउएवर एनजीटी लेने के कुछ टाइम बाद एडी को उसके कुछ साइड इफेक्ट्स दिखने लगते है और उसकी मेमोरीज़ में गैप्स आना शुरू हो जाते हैं। एक मूवमेंट में वो अपनी गर्लफ्रेंड के साथ अपने अपार्टमेंट में होता है और दूसरे ही मूवमेंट में वो अगले दिन हॉलवे में खड़ा होता है और पिछले 18 घंटे में उसके साथ क्या हुआ उसे कुछ याद नहीं होता और इस मूवी का मेन मैसेज इसी फैक्ट के अराउंड इवॉल्व करता है कि शॉर्टकट लेने का प्राइस काफी भारी होता है और चान्सेस है की वो शोर्ट कट कभी भी आपके बेटरमेंट के लिए था ही नहीं। मूवी की शुरुआत में हमें पता चलता है कि एनजीटी की एक ऐसी बिल 800 डॉलर्स की बिकती है पर एडी को वो बिल फ्री में मिल जाती है। एक फेमस कहावत बोलती है की अगर आपको किसी प्रॉडक्ट के लिए पैसे नहीं देने पड़ते तो ऐक्चुअल प्रॉडक्ट आप ही हो और आपको यूज़ करा जा रहा है। यह फैक्ट लिमिट्लेस टीवी सिरीज़ में भी दिखाया गया है। जहाँ पर हमें पता चलता है की मूवी के खत्म होने के बाद डैडी के साथ क्या हुआ, वो अब ईमेल बन चुका है और वो शो के नए मेन करेक्टर को कंट्रोल करता है। एनजीटी को ही यूज़ करके और वो एक तरह से खुद ही इस ड्रग की तरह बन जाता है। जिसतरह से ये बिल उसे कंट्रोल कर रही थी वैसे ही अब वो दूसरों को कंट्रोल कर रहा है। इसके अलावा ये मूवी हमे हर इंसान की उस फैंटसी के बारे में बताती है जो बोलती है की क्या होता अगर हम अपने दिमाग को उसकी मैक्सिमम कपैसिटी पर यूज़ कर पाते हैं। असली लाइफ में कोई भी इंसान अपना 1000 पॉइंट्स तक तो नहीं बढ़ा सकता, पर जो कॉग्निटिव एनहान्स, मेंस और एबिलिटीज़ इस मूवी में दिखाई गई है, जैसे एनहान्स, पैटर्न रिकॉग्निशन ऐंड इन्फॉर्मेशन प्रोसेसिंग, इंप्रूव्ड मेमोरी, हाइपर फोकस, हाइपर क्रिएटिविटी, हाइपर प्रोडक्टिविटी, टाइम लेसन्स और लेटर अल्थिन्ग इन्हें कुछ हद तक नैचुरली अचीव करा जा सकता है, क्योंकि ये सब इम्प्रूवमेंटस करेक्टर स्टिक्स है। फ्लो स्टेट की जो बेसिकली एक ऐसी मेंटल स्टेट होती है, जिसमें एक इंसान एक ऐक्टिविटी में इतना फोकस होता है की उसे कॉन्शस ली सोचना भी नहीं पड़ता कि उसे एक टास्क को कैसे परफॉर्म करना है। उसकी बॉडी खुद ही एक ऑप्टिमल परफॉर्मेंस लेवल पर आ जाती है। उसका दिमाग थिएटर वेज़ रिलीज करना चालू कर देता है। बिल्कुल वैसे ही जैसे एक मक्का, दिमाग, दीप मेडिटेशन के टाइम पर होता है और इसकी मदद से वो अपने सब कॉन्शस और अनकॉन्शस माइंड को ऐक्सेस कर पाता है और अपने प्रीफ्रॉन्टल को टैक्स में ऐक्टिवेशन कम होने की वजह से वो सेल्फ कॉन्सियसनेस खो देता है और अपने आप को जज या क्रिटिसाइज ना करने की वजह से वो एक रिलैक्स हाइ परफॉर्मेंस स्टेट में जाता है। जैसे जब एक ऐथलीट एक काफी आउटस्टैंडिंग परफॉर्मेंस दे रहा होता है तब हम बोलते है की वो ज़ोन या फ्लो में है। ये स्टेट एक लेजेंडरी आर्टिस्ट या एथलीट को डिफ्रेंशीएट करती है, एक नॉर्मल इंसान से। पर असली फैक्ट तो ये है कि कोई भी इंसान फ्लो में जा सकता है। बस शर्त ये है की आप जो भी ऐक्टिविटी परफॉर्म कर रहे हो आप उसको रिपीट करते रहो और अपने आप को उसमें बेहतर बनाते रहो क्योंकि जब भी हम कोई नई स्किल सीखते हैं तब हमारे दिमाग के फ्रंटल लोब सबसे ज्यादा एक्टिवेट होते है। पर जैसे जैसे हम उसमें एक्स्पर्ट बनते जाते है वैसे वैसे फ्रंटल लोब ज़की ये ऐक्टिविटी कम होने लग जाती है और वो स्किल हमारे सब कॉन्शस माइंड में चली जाती है और यही सिमिलर चीज़ मूवी में ऐड के साथ हो रही होती है। बस एक हाइर एक स्टैंड पर और जीस तरह से उसने ये ऑब्जर्व कर लिया था कि एनजीटी 48 का असर किन कंडीशन्स में सबसे अच्छा होता है वैसे ही आप भी अपने आप को प्रिपेर कर सकते हो। एक हाइपर फोकस्ड स्टेट में के लिए जैसे डिस्ट्रेक्शन्स को हटाना, प्रॉपर ड्रेस लेना, एक पर्टिकुलर ऐक्टिविटी या स्किल को रिपीट करना या सिम्पली एक कप कॉफी पीना। क्योंकि कॉफी भी मीडियम दोस्त पर एक स्मार्ट ड्रग की ही तरह काम करती है और हमारी मेंटल परफॉर्मेंस को बढ़ाती है। मूवी में भी पिल लेने के बाद ऐड़ी सबसे पहले अपने अपार्टमेंट को साफ करता है और ये सीन हमें सच में यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्यों प्रोड्यूसर्स ने उसकी ट्रांसफॉर्मेशन दिखाने के लिए इस सीन को चुना। सबसे ऑब्वियस मैसेज तो यही है कि एक लेटर्ड माइंड कभी भी फ्लो में जा ही नहीं सकता। आखिर में आपको खुद से ये क्वेश्चन पूछना चाहिए कि अगर आपको भी एक ऐसी पिल मिले तो क्या आप उसे लोगे? यह एक काफी इम्पोर्टेन्ट क्वेश्चन है क्योंकि अगर आपका जवाब हाँ है तो आपको एग्ज़ैक्ट्ली क्या चीज़ रोक रही है अपनी हाइएस्ट पोटेंशिअल तक पहुंचने के लिए?","यह पॉडकास्ट खंड फिल्म "लिमिटलेस" का एक मनोवैज्ञानिक विश्लेषण है जो एक संघर्षरत लेखक की कहानी बताता है जो एक गंभीर लेखक के अवरोध का सामना कर रहा है। वह बहुत खराब स्थिति में है और वह एक चूतड़ की तरह रहता है, लेकिन उसका जीवन बदल जाता है क्योंकि उसके पूर्व-जीजा उसे एक गोली देते हैं जो उसे अपनी दिमागी शक्ति का 100% उपयोग करने की अनुमति देता है। इस सेगमेंट में, हम इस प्लॉट के पीछे के मनोविज्ञान के बारे में बात करते हैं और कैसे आप प्रवाह में आकर (कुछ हद तक, स्पष्ट रूप से) एक समान स्थिति प्राप्त कर सकते हैं।" "जहाँ इन्टेलिजेन्स को बस एक सर्वाइवल के टूल की तरह देखा जाता है कि जो इंसान बाकी उससे ज्यादा इंटेलीजेंट होगा उसके लिए नए टूल्स बनाना, खतरों से बचने की स्ट्रैटेजीज बनाना और फ्यूचर को प्रिडिक्ट करना आसान होगा। वही विज़्डम सर्वाइवल से कम और हमारी लाइफ की क्वालिटी से ज्यादा कॉन्सर्ट होती है और आज के समय पर जहाँ हम अपने इन्टरनेट को इतनी ज्यादा अहमियत देते हैं और हमारे सर्वाइवल के चान्सेस भी काफी बढ़ चूके हैं वहीं ज्यादातर लोगों को यही नहीं पता कि लाइफ को जीने का सही तरीका क्या है क्योंकि ज्यादातर लोग नहीं है। आइ क्यू की तरह हम विज़्डम को मेजर करके ये नहीं डिक्लेर कर सकते हैं कि कौन किस्से आगे है और शायद तभी वाइस होने को इन्टेलिजन्ट होने से कम जरूरी माना जाता है और यही थिंकिंग लोगों के दुख और उनके गलत डिसिशन का कारण बनती है, जिसकी वजह से आज के समय पर दुनिया को डेस्परेट लीवाइस लोगों की जरूरत है, जो बाकियों को सही रास्ता दिखायें और जिन सिम्पल्स चोको हम भूल चूके हैं, हमें उनकी अहमियत समझाएं। इसलिए इस एपिसोड में हम उन साइट्स को डिस्कस करेंगे जो बताएंगे कि क्या अप वाइस हो या नहीं साइन फ़ोर वन आप अपनी डेस्टिनी खुद लिखते हो, अगर हम यह देखें कि साइकोलॉजी में कर्मा क्या होता है? तो कर्मा बेसिकली है हमारी कॉन्शसनेस यानी हम अपनी लाइफ को किस डायरेक्शन में ले जाते हैं और कौन से डिसिशन्स लेते हैं? जो लोग होते है वो ये बात अच्छे से जानते हैं कि उनके हर ऐक्शन के ऊपर बहुत सी फोर्स कंट्रोल पाना चाहती है। भले ही वो उनकी बायोलॉजिकल मेमोरी हो, उनके चाइल्डहुड ट्रामा सहो, उनके बिलीव्स हो, कल्चर हो या फिर उनके खुद के थॉट्स हो। असली विज़्डम होती है। हर तरह के अनवॉन्टेड धक्कों को सह पाना। और उन के बावजूद अपने रास्ते से बिल्कुल ना डगमगाना। अगर एक इंसान सब कॉन्शस ली या अनकॉन्शियस ली जी रहा है यानी वो आधि अन्डरस्टैन्डिंग या ज़ीरो अन्डरस्टैन्डिंग के साथ काम कर रहा है तो वो हमेशा ही एक अन् डिज़ाइरड डेस्टिनेशन पर पहुंचेगा और उसके बाद कन्फ्यूज़ हो कर ये सोचेगा की उसने क्या गलती कर दी? साइन टू आप 24 घंटे में 99% टाइम खुशी रहते हो। लोगों में जीने की चाह और लाइफ की टुवार्ड्ज़ एक पैशन होता है, जबकि जो लोग इन्टेलिजन्ट होने के बावजूद वाइज नहीं होते जीवन वह भी अपनी लाइफ मैं दूसरों को कोसने में अपना बहुत सा समय वेस्ट कर देते हैं। जर्मन फिलॉसफर फ्रेड्रिक नीचा ऐसे लोगों को लाइफ डेनिल्स बोलते हैं और अपनी बुक फर्स्ट बुक ज्यादा दूसरा में लिखते हैं कि अगर कोई इंसान बोलता है की लाइफ बेकार है और उसे जिंदा रहना नहीं पसंद तो वो असलियत में अपनी लाइफ को ऐसा ही बना लेता है, जिससे उसके पास ना जीने और हर चीज़ को हिट करने के अनेक रीज़न हो। इस तरह की यूज़लेस इंसान बनने के बजाय एक ऐसे इंसान बनो जो लाइफ को एक्सेप्ट करता है और जो भी चैलेंजेस उसकी तरफ फेंके गए उन्हें पार करके ये बोलता है कि उसे अपनी लाइफ इतनी पसंद है कि अगर उसे अपनी यही जिंदगी और इस जिंदगी में आए सारे चैलेंजेस टाइम्स और जीने पड़े तो वो उसके लिए भी रेडी है। अगर आप में जीने का पैशन और जिंदा होने की खुशी नहीं है तो ये क्लिअर है कि आप वाइज तो बिल्कुल नहीं हो। थ्री आप छोटी छोटी बातों पर ऑफिस नहीं होते हैं। लोगों की एक और निशानी यह होती हैं कि उन्हें गुस्सा दिलाना या फिर उनको ऑफ एंड करना बहुत मुश्किल होता है क्योंकि उनको इस बात की समझ होती है कि क्या चीज़ एक्चुअल में मैटर करती है और क्या नहीं। इस वजह से उनको यह पता होता है कि जो भी इंसान उन पर अपना गुस्सा निकाल रहा है, वो एक्चुअल में अंदर से खुद बहुत परेशान और खोखला है और वो ऐसे लोगों की बातों को दिल पर लगाने के बजाय उनके टूवर्ड्स सिंपथी रखते हैं। फ़ोर आप बड़ी पिक्चर को देख पाते हो यानी आप चाहें उन बातों को बोलना पाओ और उन्हें वर्ड्स ना दे पाओ। लेकिन आपको अंदर ही अंदर यह पता होता है कि क्या सही है और क्या गलत। ये एक साइन होता है कि आप अपनी बॉडी की विस्डम से कनेक्टेड हों और उसके मैसेज इसको समझ पाते हो। ज्यादातर लोग अपनी लाइफ के ही इल्यूजन से इतना ज्यादा खोए हुए होते हैं। की वो बस उतना ही देख पाते हैं जितना उनके सामने होता है। लेकिन आप हमेशा यह समझ पाते हो कि आपके एक ऐक्शन का लॉन्ग टर्म रिज़ल्ट क्या होगा या फिर कैसे कल्चर में चलते ट्रेन ज़ उसी कल्चर को नीचे गिराएंगे? साइन फाइव आप अपनी स्पिरिचुअल साइड से कनेक्टेड हों क्योंकि हर इंसान इस अन्डरस्टैन्डिंग के साथ बड़ा नहीं होता कि उसके पास एक ऐसी रिऐलिटी को एक्सपिरियंस करने की ताकत है जिसे वह देख भी नहीं सकता। लेकिन ए क्विज़ इंसान इतनी ज़िन्दगी देख चुका होता है कि वो घूम फिर के उस पॉइंट पर पहुँच ही जाता है जहाँ वह अपने सबसे गहरे हिस्सों को फील कर पाता है। और ये समझ पाता है कि कब वो अपने हाँ इटसेल्फ के साथ अलाइड है और कब वो अपनी फाइनल डेस्टिनेशन से दूर जाता जा रहा है और अपनी पोटेंशिअल को वेस्ट कर रहा है। जो लोग फुलिश होते है वो ये इवन अडमिट भी नहीं कर पाते कि उनकी एक स्पिरिचुअल साइड है। लेकिन ये याद रखो कि वो साइनस जिसमें रिलिजन और स्पिरिचूऐलिटी की कोई जगह नहीं होती, वो बिलकुल उस बच्चे की तरह होती है जो अपने पैरेन्ट्स को अपनी जवानी में हेट करने लगता है क्योंकि साइंस की रूट स्पिरिचूऐलिटी और रिलिजस फिलॉसफी में ही पाई जाती है जिसकी वजह से अगर कोई इंसान अपनी जड़ों को एक नॉलेज ही नहीं करता तो वो खुद को उस ज्ञान और अन्डरस्टैन्डिंग से नरेश भी नहीं कर पाता जिसने उसके को और फुलफिल्ड बनाया था।","जहाँ बुद्धि जीवित रहने के लिए केवल एक उपकरण है, ज्ञान इस बुनियादी आवश्यकता से परे जाता है और जीवन की संतुष्टि के साथ स्वयं को सरोकार रखता है। यही कारण है कि आप कई सफल लोगों को देखते हैं जो स्मार्ट होते हैं और ऐसा लगता है कि उनके पास सब कुछ है, लेकिन वे खुश नहीं हैं, बल्कि वे हमेशा तनावग्रस्त और चिंतित रहते हैं। इसलिए बुद्धिमान होना वास्तव में महत्वपूर्ण है और इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम एक बुद्धिमान व्यक्ति के 5 संकेतों पर चर्चा करेंगे ताकि आप यह जान सकें कि आपके जीने के तरीके में कई बदलाव हैं या नहीं।" "सो हर साल की तरह वो टाइम आ चुका है जब हम अपने नए गोल्स के बारे में सोचते हैं। स्टैटस के हिसाब से लगभग 50-60 परसेंट एडल्ट्स न्यू इयर्स रेज़ोल्यूशन बनाते हैं पर उनमें से सिर्फ 10% लोग ही इस रेज़ोल्यूशन को कुछ महीनों तक रख पाते हैं। यह इसलिए होता है क्योंकि अपनी पुरानी हैबिट्स को छोड़ना और एक नया रूटीन बनाने के लिए हमें अपने दिमाग को लिटरल्ली फिज़िकली चेंज करना पड़ता है, जो कि काफी मुश्किल होता है। साइकोलॉजिस्ट जेरेमी डीन ने अपनी बुक मेकिंग हैबिट्स ब्रेकिंग हैबिट्स में बताया है कि ऑन ऐवरेज हमें लगभग दो महीने लगते हैं जिससे पहले एक नई हैबिट ऑटोमैटिक बन सके। यानी हमें अपने गोल्स कुछ इस तरीके से सेट करने है जिसकी मदद से हम अट्लीस्ट 60 दिनों तक इस पटरी से ना उतरे, पर ज्यादातर केसेस में इस नहीं हैबिट के टूटने का रीज़न होता है एक ऐसा गोल जो किया तो क्लियर नहीं होता या फिर वो बहुत बड़ा और डिस्टिक होता है। इसका मतलब एक इफेक्टिव निल्स रेज़ोल्यूशन बनाने का सबसे पहला स्टेप है अपने गोल ये ड्रीम के बारे में सोचना की। आप 2021 मैं अपनी लाइफ में कौन से बदलाव चाहते हो? सबसे कॉमन न्यू ईयर रिजोल्यूशन होते हैं। वेट लॉस करना, पैसे बचाना। या फिर किसी बुरी आदत को छोड़ना हाउएवर अगर आपको यह नहीं पता कि आप एग्ज़ैक्ट्ली क्या चाहते हो तो बस एक पेन और पेपर लो और इमेजिन करो कि 1 साल बाद एग्ज़ैक्ट्ली इसी दिन पर आप क्या कर रहे हो और आप का दिन कैसा दिख रहा है? फॉर एग्ज़ैम्पल अगर आप अपने आपको फिट और हेल्थी इंसान की तरह देख रहे हो तो अपना रेज़ोल्यूशन अपनी हेल्थ के अराउंड बनाओ। या अगर आप अपनी फाइनैंशल सिचुएशन को बेहतर होता देख रहे हो, तो आपका रिज़ॉल्यूशन पैसों के अराउंड होना चाहिए। इसके बाद सेकंड स्टेप है इन गोल्स को रिअलिस्टिक और क्लिअर बनाना यानी अगर आपको साल के एंड तक एक बेटर बॉडी चाहिए तो आपको एग्ज़ैक्ट्ली कितना वेट लूज़ करना होगा और उसके बाद कितनी मसल्स गेन करनी होगी? क्लैरिटी सबसे ज्यादा जरूरी है। अगर आपको लगता है कि आपको 25 से 26 किलो वेट लॉस करना है। तो इस नंबर को डिवाइड कर दो। हर हफ्ते के हिसाब से ऐसा करने पर यह गोल काफी छोटा और आसान बन जाएगा। जहाँ आपको लग रहा था कि 25 किलो लूज करना तो इम्पॉसिबल होगा, वहीं हर हफ्ते सिर्फ आधा किलो वेट लॉस करना काफी आसान साउंड करता है और आपको शुरली पता है कि आप यह कर सकते हो। इस तरह से चाहे आपका रिज़ॉल्यूशन कुछ भी हो, आप उसे छोटे गोल्स में डिवाइड करके उन्हें कम डरावना बना सकते हो। जिससे पावर आपके हाथ में आ जाएगी। थर्ड ली आपको अपने आप को ऐसी पोज़ीशन में रखना है जहाँ पर आप प्लीज़ अली इन गोल्स को अचीव कर सको और आपके रास्ते में कम से कम मुश्किलें आएं। इस पॉइंट पर आपने अपने लिए एक स्केजूल और रुटीन डिजाइन करना है। पिछले एग्जाम्पल को कंटिन्यू करते हुए एक अच्छी बॉडी हासिल करने के लिए आपको अपनी मील्स पहले से तैयार करके रखनी है और अगर आप सुबह के टाइम जिम जाना चाहते हो तो अपने जिम के कपड़े एक रात पहले ही तैयार कर लो। याद रखो कि फ्यूचर प्रेज़ेंट में बनता है तो जो काम आप आज करोगे वो आपको कल मदद करेगा। इसके बाद अपनी अकाउन्टबिलिटी बढ़ाने के लिए अपनाये रेज़ोल्यूशन फ्रेंड्स और फैमिली मेंबर्स को बताओ और इवन सोशल मीडिया पर भी पोस्ट करो। ऐसा करने पर टाइम टु टाइम बाकी लोग आपको याद दिलाते रहेंगे कि आपने साल के शुरू में एक कमिटमेंट करी थी और जस्ट बिकॉज़ ऐसा ह्यूमन हमारे लिए यह पक्का करना बहुत जरूरी है कि लोग हमारे बारे में बुरा ना बोलें। हमारे अपने रिज़ॉल्यूशन पर टिके रहने के चान्सेस बढ़ जाते है और लास्ट्ली आपने न्यूस रेज़ोल्यूशन को इयरली बेसिस पर नहीं बल्कि वीकली या फिर डेली बेसिस पर देखना है। यानी अपने गोल्स तक पहुंचने के लिए आपने हर दिन न्यूड एस रेज़ोल्यूशन के बारे में सोचना है। जो इवेन चली आपके न्यू इअर्स रिज़ॉल्यूशन को पूरा करेगा। यानी आपने हर रोज़ रुकने के बाद और सोने से पहले उस पर्टिकुलर दिन के गोल्स के बारे में लिखना है। इस ट्रिक की मदद से फेल होने पर भी आप अपने आप को याद दिला सकते हो कि आपने बस 1 दिन को फेल करा है, पूरे साल को नहीं और आपके पास अभी भी काफी टाइम बचा है अपने गोल्स को पूरा करने के लिए और ऑफकोर्स अपनी लाइफ को चेंज करना और अपनी मुश्किलों को फेस करना काफ़ी डरावना हो सकता है। स्पेशल ली अगर आपने पहले भी न्यू ईयर रेजल्यूशन बनाने की कोशिश करी है और आप उसमें फेल होते आ रहे हो पर यह सिर्फ आपकी पास्ट परफॉरमेंस है। जो चीज़ आपके फ्यूचर को बेहतर बनाती है वो है आपका प्रेज़ेंट और शायद पहले आपने अपने गोल्स अनरियलिस्टिक रखे हो या फिर आपने काफी सारी चीजों को एकसाथ अचीव करने की कोशिश करी हो। पर एट द एंड ऑफ द ञ असली सक्सेस है। सक्सेस की तरफ कदम।","एक नया साल अपने भीतर ढेर सारी नई आशा और विश्वास लेकर आता है, जो हमें संकल्प लेने के लिए प्रोत्साहित करता है जो किसी तरह हमारे जीवन की गुणवत्ता में सुधार करेगा। यह संकल्प बुरी आदत छोड़ना, व्यायाम शुरू करना, पैसे बचाना, अधिक अजनबियों से बात करना या सिर्फ अधिक पानी पीना हो सकता है। सुनने में तो अच्छा लगता है? असली समस्या तब पैदा होती है जब नए साल का उत्साह खत्म हो जाता है और आप इस वैगन से गिरने लगते हैं। इसीलिए इस पॉडकास्ट में मैं आपकी शुरुआती योजना को बनाने और उस पर टिके रहने के लिए 5 सरल चरणों पर जाता हूं।" "जब एक इंसान कन्टिन्यूसली काफी लंबे समय तक फिजिकल और मेंटल स्ट्रेस लेने की वजह से इतना घिस जाता है कि वह हमेशा थका हुआ महसूस करता है, चिंता में रहता है और अपने एनवायरनमेंट की डिमांड को पूरा नहीं कर पाता, चाहे वो स्कूल की डिमांड हो, जॉब की या फिर अपनी फैमिली की प्रॉब्लम से डील करना, तब हम बोलते है की वो इंसान बर्नआउट का शिकार बन गया है। यानी उसने पहले अपने ऊपर हद से ज्यादा काम ले लिया और अब यही चीज़ उसे खुद पर डाउट और दूसरे लोगों के टुवार्ड्ज़ गुस्सा फील करवा रही है। जो भी इंसान बर्नआउट होता है, उसका सबसे पहला साइन उसकी बॉडी की केमिस्ट्री में दिखता है उसके अंदर स्ट्रेस हार्मोन कॉर्टिसोल ज्यादातर समय हाइ रहने लगता है और उसका सेरोटोनिन कम होने की वजह से वो खुद को यूज़लेस और अपनी लाइफ को मीनिंगलेस समझने लगता है। हमारी बॉडी में इतना ज्यादा स्ट्रेस हमारे फिजियोलॉजिकल सिस्टम पर काफी लोग डालता है, जिससे हमारे अंदर कभी भी ज्यादा एनर्जी बन ही नहीं पाते और हम अपना सारा समय बेड में सोते हुए डे ड्रीमिंग करते हुए या फिर बस सोशल मीडिया को यूज़ करते हुए ही वेस्ट कर देते है। हम कुछ काम करना तो चाहते हैं लेकिन हमारा मन और हमारा शरीर बिना कुछ करे ही इतना थका हुआ होता है कि हम हर जरूरी काम को पोस्टपोन करते रहते है। ज्यादातर लोग ऐसे बिहेव्यर को लेजिनेस लेबल कर देते हैं लेकिन वो ये नहीं जानते कि लेज़ी ने सौर बर्नआउट एक दूसरे के कितने सिमिलर है और कैसे यूज़्वली लेसन्स बर्नआउट का ही एक नतीजा होता है आज के टाइम पर जहाँ हमें हमेशा कॉम्पिटिशन का प्रेशर फील होता है और लोगों को वो काम करने पड़ते हैं जहाँ पर उनके असली टैलेंट का यूज़ नहीं हो पाता। ऐसे में बर्नआउट की प्रॉब्लम बहुत तेजी से बढ़ रही है इसलिए इसे में हम बर्नआउट के कुछ साइनस डिस्कस करेंगे, ताकि आप यह समझ पाओ कि कहीं आप भी अपने बर्नआउट को अपना आलस तो नहीं मान रहे हैं। साइन नंबर वन यू हैव लॉस्ट योर फाइर जहाँ आलस जुड़ा होता है, हमारी फिजिकल और साइकोलॉजिकल एनर्जी की कमी से वही बर्नआउट से जुड़ी प्रॉब्लम इमोशन्स पर बेस्ड होती है। यानी हम इमोशनली बहुत खाली और दबे हुए महसूस करते हैं। जहाँ पहले हमारे अंदर कुछ कर दिखाने की आग होती थी, वहीं अब हम खुद की काबिलियत को ही डाउट करते हैं और अगर कोई इंसान हमारी कोई तारीफ भी कर दे तो हमें वो भी झूठी लगती है। अपने काम में इन्ट्रेस्ट खो देना और उस काम को करना जिससे आप नफरत करते हों। यह कोई अच्छा सा नहीं होता क्योंकि लॉन्ग टर्म में यह चीज़ आपको मेंटली बहुत बुरी जगहों में ले जा सकती है। इसलिए खुद से ये क्वेश्चन करो कि अगर आपने अभी पहले जैसा पैशन नहीं है तो क्या आपको अपना काम अपना कोर्स बदलने की जरूरत है? या क्या बस अपनी हॉबीज को उतना समय नहीं दे रहे हैं? और आपको मस्ती का टाइम नहीं मिल रहा? अपनी लाइफ के किसी भी पॉइंट पर अपनी डायरेक्शन बदलने से कतरा वो मत अगर आपको लगता है कि आपने कोई गलत डिसिशन ले लिया है तो कोई बात नहीं उससे ठीक करो। मूव ऑन साइन नंबर टू यू हैव बिकम इमोशनली नम अगर आपके अंदर इमोशन्स की उतनी हलचल नहीं होती या आप खुद ही अपने इमोशन्स को मारना चाहते हो तो यह स्टेट मौत के बराबर ही होती है। कई बार जब काम का स्ट्रेस और प्रेशर बढ़ जाता है तब हम उसका लोड अपनी साइकोलॉजी से हटाने के लिए खुद को साइकोलॉजिकल लेवल पर ही दुनिया से दूर कर लेते हैं। हमें किसी फेस्टिवल या पार्टी में मज़ा नहीं आता। हमें लोगों के साथ रहने का मन नहीं करता। हमारी जिंदगी ऑटो पायलट पर चलती रहती है और हर दिन पिछले दिन जैसा ही होता है। इसके ऊपर से हम इस सच्चाई को फेस करने के बजाय खुद को नशों, खाने या एंटरटेनमेंट से डिस्ट्रैक्ट करने लगते हैं। आपको ऐसे लगने लगता है कि आप खुद की लाइफ को ही एक दूरी से चलते और बीते हुए देख रहे हो। आपको कोई भी चीज़ ना तो ज्यादा खुशी देती है और ना ही दुख, लेकिन अंदर ही अंदर यह चीजें कट्टी हो रही होती हैं। बिना खुद की प्रॉब्लम्स को फेस करें और उन्हें दूसरों के आगे एक्सप्रेस करें। आपका ये इंटरनल प्रेशर जहर की तरह आपको अंदर ही अंदर खत्म करने लगता है। इमोशनल नंबने सच से दूर होने पर बढ़ती है। लेकिन उसे एक्सेप्ट करने से घटती है। साइन नंबर थ्री यू डोंट टेक केयर ऑफ योरसेल्फ जहाँ आलसी लोग खाने और खुद की बॉडी की केयर करने में पूरी तरह से फेल नहीं होते, वहीं जो लोग बर्नआउट एक्सपिरियंस कर रहे होते है, उनके पास खुद की इमोशनल, फिजिकल और मेंटल नीड्स को पूरा करने की एनर्जी नहीं होती है। वो या तो बहुत ज्यादा खाने लगते है या एकदम से उनकी बुक खत्म ही हो जाती है और वो कुछ नहीं खा पाते। वो ढंग से नहाना धोना बंद कर देते हैं। कभी बहुत लेट सोते हैं और कभी सोते ही नहीं है। बर्नआउट की वजह से एक इंसान के लिए ये सारे काम मीनिंग लेस बन जाते हैं लेकिन दूसरों को उनका ये बिहेव्यर आलस लगता है। इसलिए अगर आप भी इस प्रॉब्लम से जूझ रहे हो तो खुद की इमोशनल, फिजिकल और मेंटल नीड्स को पूरा करने से शुरुआत करो और बर्नआउट के इन सिम्पटम्स को हैंडल कर के उसकी जड़ तक जाओ। साइन नंबर फ़ोर मूड जब एक इंसान की बॉडी स्ट्रेस की वजह से अंदर ही अंदर खुद को खा रही होती है तो ये ऑब्वियस्ली बात है कि उसका मूड अच्छा तो बिल्कुल भी नहीं होगा। यह साइन इमोशनल नमन एस का ऑपोजिट एक्स्ट्रीम है क्योंकि जहाँ इमोशनल नमन एस में आप कोई भी इमोशन को ज्यादा फील ही नहीं कर पाते। और आपको ऐसा लगता है जैसे आप मर ही गए हो। वहीं मूड स्विंग होने पर आपके अंदर इमोशन्स की बाढ़ आ जाती है। आप छोटे छोटे मूवट्स के लिए खुशी तो फील कर पाते हो लेकिन उसके कुछ ही देर के बाद आपको एक दम से गुस्सा आ जाता है या फिर से अपने डिफ़ॉल्ट इमोशन यानी उदासी पर आ जाते हो। मूड स्विंग को लाने के सबसे बड़े कारण होते हैं गलत टाइम पर सोना या उठना बहुत कम या बहुत ज्यादा सोना बेटर फील करने के लिए जंक फूड खाना, अपनी लाइफ में वो ना कर पाना जो आप करना चाहते थे या फिर बुरी आदतें पाल लेना। और उनकी वजह से अच्छे रिलेशनशिप से न बना पाना हर ऐसी बुरी आदत ही आपके बर्नआउट को बद से बदतर बना देती है। इसलिए मूड स्विंग के केस में अपनी आदतों पर ध्यान देने से शुरुआत करो। साइन नंबर फाइव यू फील लॉस्ट यह एक और बड़ा साइन होता है जो बर्नआउट को लेझीनेस से अलग बनाता है, क्योंकि जहाँ एक लेज़ी इंसान साइकोलॉजिकली अपने अंदर ज्यादा कोई बदलाव नहीं देखता, वही एक कंप्लीट्ली एग्ज़ॉस्टेड इंसान मेंटली खुद से और खुद के लाइफ पैच से ही दूर हो चुका होता है। वो खुद की आइडेंटिटी को लेकर भी डाउट में होता है कि वो कौन है? वो अपनी लाइफ में क्या कर रहा है? क्या उसकी सफरिंग मैटर भी करती है या सिर्फ उसे ही इस प्रॉब्लम से क्यों गुजरना पड़ रहा है? और तो और वो ये भी नहीं समझ पाता कि क्यों उसका मेहनत करना जरूरी है। जब उसे इतनी मेहनत करने के बाद भी अब तक कुछ नहीं मिला, क्या वो जो काम कर रहा है वो उसे फुलफिल नहीं कर रहा या क्या उसे अपना लाइफ पैड बदलना चाहिए ताकि वो अपने बर्नआउट से बाहर निकलकर वापस से हेल्थी और हैप्पी बन सके? यह क्वेश्चन्स एक इंसान के अंदर एक बड़े चेन से पहले ही आते हैं। लेझीनेस आपको चेंज नहीं कर सकता लेकिन बर्नआउट से जुड़ी सफरिंग जरूर आपके पैरों तले जमीन हिला देती है और आपको वापस से सही रास्ते पर आने और अपनी लाइफ में हर चीज़ का बैलेंस बनाने के लिए मजबूर करती है। इसलिए अगर आप भी अपनी लाइफ में लॉस्ट फील कर रहे हो तो होप मत छोड़ो। अपने इस फेस को एक साइन की तरह देखो और खुद की गलतियों को सुधार हो। साइन सिक्स लॉस ऑफ मेंटल शार्पनेस लंबे समय तक चलता स्ट्रेस आपकी कॉन्सन्ट्रेट करने और क्लियरली सोच पाने की एबिलिटी को नेगेटिवली इन्फ्लुयेन्स करता है, क्योंकि स्ट्रेस हमारे बॉडी और माइंड को उस चीज़ पर अपना फोकस पे करने के लिए फोर्स कर रहा होता है। जो हमारे स्ट्रेस का कारण होता है। नैचरल केस में ये स्ट्रेस एक छोटे समय के लिए आता है। हमें डेनजरस से जल्दी से बाहर निकलने के लिए मजबूर करता है और सेफ्टी फील करने पर खुद ब खुद खत्म हो जाता है। लेकिन जब आप अपनी फिजिकल, इमोशनल या मेंटल हेल्थ को उतनी इम्पोर्टेंस नहीं देते और स्ट्रेस को नजरंदाज करके उसकी जड़ तक नहीं पहुँच पाते, तब धीरे धीरे करके जैसे आपकी खुशी और एनर्जी गिरती है, वैसे ही आपकी मेंटल फैकल्टीज़ यानी ध्यान लगा पाने, सोचने, चीजों को याद रखने और समझने की क्षमता भी तेजी से कम होने लगती है। साइन सेवन डिस्प्लेस्ड नगर आलस से कभी गुस्सा पैदा नहीं हो सकता। गुस्से को पैदा करने के लिए आपको बस सच्चाई से दूर होना पड़ता है और आप खुद ही नेगेटिव इमोशन से भर जाते हो। जैसे अगर एक ऐवरेज इंसान बस आलसी बने, पार्टी करें और एक ऐवरेज इन कीजिये जो ज्यादातर लोग जीते हैं तो उसे इन सब कामों से गुस्सा नहीं बल्कि मज़ा आएगा। लेकिन अगर आपके अंदर बहुत ज्यादा पोटेंशिअल है और आपको पता है कि आप अपने लाइफ टाइम में कुछ महान काम कर सकते हो तो उस केस में चाहे आप आलसी बनो, गलत जॉब ले लो या खुद को बुरी आदतों से खुश करने की कोशिश कर लो। आपको हर केस में ही गुस्सा आएगा। जस्ट बिकॉज़ आप वह नहीं कर रहे हैं। इस काम को करने के आप कैपेबल हो और यह कॉन्शस ली ना पता होने से कि आपका सही रास्ता और आपके टैलेंट क्या है। आप अपना यही गुस्सा दूसरों पर निकालते हो इसलिए इन साइन्स को ढंग से समझो और खुद की करेंट सिचुएशन या अपने फ्यूचर के लिए इस नॉलेज को अपने साथ रखो।","जब कोई व्यक्ति लंबे समय तक लगातार शारीरिक, भावनात्मक और मानसिक रूप से तनाव में रहता है, तो यह पुराना तनाव उन्हें बिना किसी ऊर्जा के छोड़ देता है और अपने दिन-प्रतिदिन के काम करने में असमर्थ हो जाता है। इसे बर्न आउट कहा जाता है। मतलब, एक ऐसी अवस्था जहां आपने खुद को थका देने की अपनी अधिकतम क्षमता की दहलीज पर पहुंच गए हैं और अब आप नीचे गिर रहे हैं। बाहरी लोगों को आपका बर्नआउट आलस्य जैसा लग सकता है। इसलिए, आपको शिक्षित करने और आपको इस विषय के बारे में अधिक जानकारी देने के लिए, हम बर्न आउट के 7 संकेतों पर चर्चा करेंगे।" "एक सच वो है जो मीडिया और सोशल प्लैटफॉर्म्स आपके मन में डालने की कोशिश कर रहे हैं और एक सच वो हैं जो एक्चुअल मैं आपको लाइफ में आगे बढ़ने में मदद करेगा। आप सोसाइटी की प्रोमोट करें। किन बातों पर अगरी और किन बातों पर डिसऐग्री करके उन्हें रिजेक्ट कर देते हो? यह बताता है कि आप दुनिया को कितना डीप्ली समझते हो। मॉडर्न सोसाइटी नॉर्मल आइस करती है, कैज़ुअल ***** पुअर, डाइटरी हैबिट्स, पावर्टी, वीकनेस, बैड, हेल्थ और चीटिंग जैसी चीजों को बट मॉडर्न प्रॉब्लम्स रिक्वायर्ड मॉडर्न सॉल्यूशन्स। इसलिए इस एपिसोड में हम ये समझेंगे। या आप मॉडर्न कल्चर में रहकर भी अपने करेक्टर की इंटेग्रिटी को कैसे मेंटेन कर सकते हो और एक मॉडर्न विनर कैसे बन सकते हो? नंबर वन से नो टू कैजुअल ***** चाहे आप एक मेल हो या फिर फीमेल, आपको आज ये कॉन्सेप्ट बेचा जा रहा है कि ***** इस इंपावर इन ग्, एक लड़का अगर कैजुअली इंटरकोर्स करता है तो वो ऐल्फा है और अगर एक लड़की ये करे तो वो इम्पॉवर्ड और फ्री है। हिस्टोरिकल्ली ***** को हमेशा ही एक वेपन की तरह यूज़ कर आ गया है और ***** के पीछे कई महान सिविलाइज़ेशन खत्म हो गई है। ***** गलत नहीं है। इंडिया में ये टॉपिक ब्रिटिश रूम से पहले बिलकुल भी टैबू नहीं था जीवन इतने सारे टेम्पल्स में भी सेक्शुअल इमेजरी को डिस्प्ले करा गया है क्योंकि ***** को पहले एक सेकंड एक माना जाता था। लेकिन स्लोली जब ***** में से उसका सेक्रेड ऐस्पेक्ट निकाल लिया गया और लोग प्यार जताने के लिए या फिर री प्रड्यूस करने के लिए नहीं बल्कि बस अपनी ऐनिमल लिनक्स टीम को सैटिस्फाइड करने के लिए ***** करने लगे तब वो एक बहुत ही अगली ऐक्ट बन गया। ओनली टॉक्सिक आइडीओलॉजी जीस जैसे फेमिनिजम और रेड पिल ही यंग लड़कों और लड़कियों को ब्रेनवॉश करते हैं। इंसानियत को बस शरीर तक सीमित रखने के लिए इसलिए याद रखो कि जो काम कैज़ुअल नहीं है उसे कैजुअली करने से आप हमेशा ही बाद में गिल्टी फील करोगे और खुद के लिए रिस्पेक्ट खो दोगे। नंबर टू रिजेक्ट पूर्व हेल्थ हुक अप कल्चर के साथ साथ आज वो लोग जो खुद अनहेलथी है वो खुद की नेगेटिव हैबिट्स के बारे में अच्छा फील करने के लिए पुअर हेल्थ को प्रोमोट करने लगे हैं। आज इंडिया के 30-40 परसेंट लोगों 20 है। फीमेल्स और मेल्स के बीच इन्फर्टिलिटी और कई दूसरी रीप्रोडक्टिव प्रॉब्लम्स बहुत कॉमन हो चुकी है। हमारी मेजोरिटी ऑफ डाइट डैड और स्टील फूड से भरी हुई है। हमारे पानी में माइक्रोप्लास्टिक्स है और हर किसी के लिए एक सर्टन एज के बाद दवाइयां लेना और बीमारियों से डील करना भी आम बन गया है। डॉक्टर्स भी आज काफी इसलिए बोल देते है कि किसी पेशेंट को तो पूरी जिंदगी ही एक दवाई लेनी पड़ेगी या फिर स्किन इशूज, डाइजेस्टिव प्रॉब्लम्स और मेंटल प्रॉब्लम्स तो जेनेटिक है। ये लीडस् आपको झूट बेच रहे हैं। आपको गलत इन्फॉर्मेशन और गंदी चीजों को कंज्यूम कराके अगर आप कॉन्शस ली अपनी डाइट में रॉ और फ्रेश फूड इन्क्लूड नहीं कर रहे। कहीं से भी और कैसा भी पानी पी रहे हो। और अपनी हेल्थ प्रॉब्लम्स को इग्नोर कर रहे हो तो इसका मतलब आप भी इस मेन स्ट्रीम आइडिया को अपना चूके हों कि अनहेलथी होना बहुत नॉर्मल है। नंबर थ्री कैपिटलिज़्म, ऑलवेज विन्स और लेंस आप कैपिटलिज़्म को अपना मोरल कंपास बना लो। कैपिटलिज़्म एक ऐसा इकोनॉमिक सिस्टम है जहाँ हर वो इंसान जिसके पास कोई मेरिट यानी स्किल या फिर टैलेंट है वो टॉप पर आ जाता है। इंडिया में भी ऐसी लाखों स्टोरीज़ है जहाँ पर लोग बॉटम से शुरू करते हैं, लेकिन जस्ट बिकॉज़ उनमें कोई टैलेंट, स्किल नॉलेज या फिर महान बनने की बुक होती है। वो सिस्टम उन्हें अलाउ करता है सोशल लैडर में ऊपर चढ़ने के लिए, लेकिन मॉडर्न नैरेटिव क्या बोलता है? रिच पीपल आर ईवल कैपिटलिज़्म विज़िबल। अमीर लोग तो बस गरीबों का फायदा उठाते हैं। ये क्रिटिसिजम अक्सर उन लोगों के मुँह से सुनने को मिलता है जो रिच लोगों के टुवार्ड्ज़ होते हैं। ऐसे लोग ये जानते हैं कि इन्होंने अपना समय और पोटेंशिअल दोनों वेस्ट कर दिए हैं और अपने गलत डिसिशन की वजह से ये अपने सपनों को हकीकत नहीं बना पाए और इसी फैक्ट का गुस्सा ये निकालते हैं उन लोगों पर जो एक्चुअल मैं अपनी लाइफ में काफी सक्सेसफुल बन पाए हैं। लूजर्स विल ऑलवेज़ हिट द विनर्स बदलूँ सर हूँ इस ऐम्बिशस विल्हेटा विनर थी वन मोर, इसलिए लाइफ में आगे बढ़ना है तो सक्सेस फुल लोगों को हेट नहीं स्टडी करो। सोचो कि उन्हें दुनिया के बारे में ऐसा क्या पता है जो आपको नहीं पता ऐंड वर्क ऑन बीइंग का विनर योरसेल्फ नंबर फ़ोर ब्रिंग बैठे ट्रेडिशन किसी भी सिविलाइज़ेशन को गिराने का सबसे आसान तरीका होता है उसके हिस्टोरिकल कॉन्टैक्ट को चेंज कर देना, ताकि बच्चे अपने पास्ट को जाने पर अपनी फैमिली, ट्रेडिशन, कल्चर, रिलिजन और इवन खुद को हिट करने लगे हैं। जब लोगों के मन में यह बैठा दिया जाता है कि पास्ट में कुछ भी अच्छा नहीं हुआ, पास्ट के लोग गंदे थे और पास से सीखने को कुछ नहीं है तो ऐसे में लोग अपनी फैमिली को भी हिट करना शुरू कर देते हैं। बच्चे अपने पैरंट्स को ही अपना दुश्मन समझने लगते हैं और जो ये नैरेटिव फैला रहा है, उसे अपना दोस्त जीवन नाज़ी जर्मनी में भी जब लोगों को कैप्चर कराया जाता था, तब सबसे पहले उनका नाम बदला जाता था और उनसे उनका सरनेम छीन लिया जाता था। उनकी जड़ों से उन्हें अलग कर देने के बाद उन्हें कंट्रोल करना बहुत आसान बन जाता था। नंबर फाइव पर्सेप्शन शेप्स और रिऐलिटी आज के समय में अपने पॉलिटिकल लीडर्स पैरेन्ट्स और जिन हालात में आप बड़े हुए, इन को ब्लेम करना बहुत ही आसान है और सोसाइटी आपको एक विक्टिम बनने के लिए रिवॉर्ड भी करेगी। जहाँ पहले सोसाइटी के हीरो उसकी आवाज सबसे लाउड थी और ब्रेवरी को प्रोमोट कर आ जाता था, वहीं आज सिर्फ विक्टिम्स के हाथ में माइक है और वो काम और वीकनेस को प्रोमोट करते हैं। हाउएवर एक विनर का माइंडसेट उसे हमेशा खुद के हालात की रिस्पॉन्सिबिलिटी लेने को बोलता है। वो अपना समय भारी सिचुएशन्स को मैनिप्युलेट करने में नहीं बल्कि उन सिचुएशन पर खुद के रिस्पॉन्स को सही रखने पर फोकस करता है। नंबर सिक्स मी मोशंस, डोंट डिक्टेट मी एक्शन्स एक विन्नर अपने इमोशन्स का गुलाम नहीं होता ऐंड नो अपने इमोशन्स को हर समय आउटवर्ड ली। एक्सप्रेस करना भी हेल्थी नहीं होता। लाइफ को जीतने के लिए आपको अपने इमोशन्स को चैनलाइज करना आना चाहिए यानी आप चाहे दुखी हो, चाहे आपकी लॉटरी लग जाए या फिर आपके साथ कोई ट्रैजिडी हो जाए। आपके अंदर इतनी इनर स्ट्रेंथ होनी चाहिए कि आपके इमोशनस आपके डिसिप्लिन को कभी भी तोड़ना पाए। जीवन एक इंसान 1 साल में कितनी बार बाहरी हालातों से डिस्ट्रैक्ट होता है? येई चली प्रॉडक्ट कर सकता है कि वो इंसान कितना सक्सेसफुल या फिर अनसक्सेसफुल बनेगा। नंबर सेवन ऑलवेज है वेबैक ऑफ योर लव वन्स लेट मी ऑफ एंड यू कैन टेल यू दट रोथ। अगर आप अपने दोस्तों, भाई, बहन या फिर पैरेन्ट्स के लिए मन नहीं सकते और वो आपके लिए ऐसा नहीं कर सकते तो आप के रिलेशनशिप से एकदम बेकार है और मुश्किल पड़ने पर हर कोई बस अपने बारे में सोचेगा। एक रिलेशनशिप बी डेफिनेशन सेल्फ्लिस ने इसकी बुनियाद पर खड़ा होता है। मॉडर्न टीवी शोज़ यूट्यूब ड्रामा और मूवीज़ आपको दिखाते हैं। कि कैसे अपने दोस्तों या फिर फैमिली को सांप की तरह चीट करना नॉर्मल और फनी है। लेकिन लॉन्ग टर्म में अगर आपके पास कोई भी रिलाएबल रिलेशनशिप नहीं है तो ये गैरन्टी ऑड है कि आप लाइफ की रेस में ज्यादा आगे नहीं पहुँच पाओगे।","ऐसी सच्चाईयाँ हैं जो मुख्यधारा के कई मीडिया प्रचारित करते हैं, तो कुछ ऐसे सच हैं जो वास्तव में आपको बढ़ने और एक बेहतर इंसान बनने में मदद करेंगे। आप आधुनिक समाज के आख्यान से कितनी आसानी से सहमत या असहमत होते हैं, यह निर्धारित करता है कि आप दुनिया को कितनी अच्छी तरह जानते हैं। इसलिए आपको आधुनिक दुनिया के लिए और अधिक सुसज्जित बनाने के लिए, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम एक आधुनिक विजेता की मानसिकता के बारे में बात करेंगे।" "मॉडर्न दुनिया एक ऐसी जगह बन चुकी है जहाँ पर ज्यादातर लोग मेंटली अनहेलथी और करप्ट हैं और जितना हम अपने आप को सोसाइटी के साथ लाइन करते हैं, उतना ही हमारा दिमाग भी नेगेटिविटी, प्रोपगैंडा, गुस्से और होपलेस ने से भर जाता है। यह एक नया नॉर्मल है। अलग अलग समय और कल्चर्स में नॉर्मली टी के स्टैन्डर्ड ज़ बदलते रहते हैं, लेकिन इस कॉन्स्टेंट बदलाव के बावजूद नॉर्मल होने का मतलब ढूँढा जा सकता है। लोगों की कन्फर्म में टीम है कौन? फ़ोर मिट्टी का मतलब होता है अपने आपको समाज के मुताबिक ढाल लेना और एक इंसान नॉर्मल सिर्फ तभी कहलाता है जब वो एक कन्फॉर्मिस्ट होता है और सोसाइटी के बताए रूल्स को फॉलो करता है। इंसानों की ज्यादातर हिस्टरी में सोसाइटी के नॉर्म्स को तोड़ना काफी रिस्की चीज़ मानी जाती थी, क्योंकि ऐसे एक इंसान के अपने सोशल ग्रुप से रिजेक्ट होने के चान्सेस बढ़ जाते थे और इस वजह से उसके री प्रड्यूस करने, जिंदा रहने और अपने जीन्स को पास ऑन करने के चान्सेस कम हो जाते थे। इसका मतलब कन्फर्म इ टी एक ऐसा ट्रीट है जो एवल्यूशन के नैचरल प्रोसेसर ने सेलेक्ट करा है। इसके साथ ही कौन फॉर मिट्टी और नोरमल बनना इसलिए इंटरैक्टिव होता है क्योंकि हर जीव जंतु अपनी एनर्जी सेव करने और अपने रिस्क्स को कम रखने के लिए ऐसा रास्ता चूज करता है, जिसमें कम से कम कठिनाइयाँ हो। लाइफ अपने आप में ही इतनी कॉम्पलिकेटेड और मुश्किल है कि हम अपनी मेंटल एनर्जी बचाने के लिए वही काम करते हैं और वही सोचते हैं जो दूसरे लोग करते है या सोचते हैं। यानी एक हद तक कन्फर्म इ टी ग्रुप के लोगों में कॉर्पोरेशन बढ़ाने और सोसाइटी में शांति बरकरार रखने में काफी काम आता है। लेकिन जस्ट बिकॉज़ कन्फर्म ईटी ने हमें पास्ट में जिंदा रखने में मदद करी। इसका मतलब यह नहीं है की कन्फर्म 80 एक कल्चर को आगे भी बढ़ा सकती है क्योंकि कौन फॉर मिट्टी की वैल्यू इस बात पर डिपेंड करती है कि एक सोसाइटी किस हालात में है और ऊपर से अगर एक सोसाइटी की कन्फर्म मिट्टी को नॉन कॉन्फॉर्मिंग थी की एक हेल्थी दोस्त के साथ बैंलेंस नहीं करा जा रहा तो वो सोसाइटी धीरे धीरे खत्म होना शुरू हो जाएगी क्योंकि वो नॉन कॉन्फॉर्मिंग टी यानी दूसरे लोगों से कुछ हटकर सोचना और करना ही होता है जो एक सोसाइटी में नए आइडियाज़, इन्वेंशन्स और नए तरह से काम करने के तरीकों को जन्म देता है। हाउएवर मॉडर्न सोसाइटी में कौन फॉर मिट्टी को ओवरवैल्यू करा जाता है और इसे सोशल मीडिया के थ्रू लोगों के दिमाग में डाला जाता है कि जो लोग रियल लाइफ और इंटरनेट पर नई सोशल पॉलिसीज को फॉलो नहीं करेंगे, उन्हें शेन करा जाएगा, उनकी आवाज को दबाया जाएगा और उन्हें बॉयकॉट करा जाएगा। इस वजह से लोगों पर कन्फर्म करने का प्रेशर और भी बढ़ जाता है। इवन ये चीज़ जानवरों में भी ऑब्जर्व कर दी गई है कि अगर के झुंड में एक ज़ेब्रा के शरीर पर लाल पेंट का मार्क लगा दिया जाता है तो शेर सबसे पहले उसी जी बिना को मारता है। जस्ट बिकॉज़ वो सबसे अलग दिख रहा था और उस पर निशाना लगाना ईज़ी था। यानी अपने आप को झुंड के बीच में छुपाकर रखना अपने आप को सेफ रखने का जरिया होता है। लेकिन जब झुंड के ज्यादातर लोग ही करप्ट डिप्रेस्ड और कन्फ्यूज़ हो तब ऐसे झुंड में अपने सच को दबाना ताकि आप सेफ रहो। ये मेंटल इलनेस और दुनिया के टूवर्ड्स एक नाइलिस्टिक ऐटिट्यूड डेवलप करने का सबसे आसान तरीका है। सो इस साइकैट्रिस्ट अपनी बुक साइकोलॉजिकल टाइप्स में बोलते है कि एक इंसान अपनी सोसाइटी में सिर्फ तब तक फल फूल सकता है जब तक वो और उसका ग्रुप नैचर के लॉस के साथ छेड़खानी करके किसी मुसीबत को नहीं इनवाइट कर लेते। उसके बाद उसे उतना ही नुकसान होगा जितना वो अपने आप को पुरानी सिचुएशन के अकॉर्डिंग डालकर बैठा था। क्योंकि अपने आप को एक सिचुएशन में एडजस्ट कर लेना उस सिचुएशन के अकॉर्डिंग अडैप्ट कर लेने से अलग होता है। अडैप्टेशन का मतलब ये नहीं होता कि आप एक मूवमेंट की कंडिशन्स के साथ साथ स्मूदली चलते रहो बल्कि इसमें आपको उनकी यूनिवर्सल लॉस को समझना होता है जो उस मूवमेंट के टाइम और जगह से ज्यादा जरूरी होते हैं। जहाँ पर एक इंसान किसी सिचुएशन में एडजस्ट करके अपने आप को झुंड के साथ कन्फर्म कर लेता है, वही पर वो अपने आपको लिमिट कर लेता है। यानी जब सोसाइटी स्टेबल होती है तब कन्फर्म करने से हमारी जिंदगी आसान बन सकती है। लेकिन इन स्टेबिलिटी और क्राइसिस के समय पर जितना ज्यादा हम कन्फर्म करते हैं, उतना ही हमारा दिमाग बाहर चल रही है के उसको हमारे अंदर दिखाने लग जाता है। यही रीज़न है कि क्यों एक सोसाइटी में पैदा हुई क्राइसिस कन्फॉर्मिस्ट लोगों के थ्रू पूरी पॉप्युलेशन में आइडेंटिटी क्राइसिस पैदा कर सकती है? और तभी आज के समय पर जो लोग अपनी लाइफ को बेहतर बनाना चाहते हैं और दुनिया में कुछ यूनीक कॉन्ट्रिब्यूट करना चाहते हैं, उनकी ग्रोथ और क्रिएटिविटी के लिए मेन स्ट्रीम इन्फॉर्मेशन जहर के बराबर है। अपने नॉवल ब्रेव न्यू वर्ल्ड रीविसिटेड में ऑथर एल्डर्स असली बोलते है की मेंटल इलनेस के असली होपलेस विक्टिम्स उन लोगों के बीच में मिलते हैं जो सबसे नॉर्मल दिखते हैं। ये लोग सिर्फ अपनी अब नॉर्मल सोसाइटी के रिलेशन में ही नॉर्मल होते हैं और जीस हद तक ये लोग अपनी सोसाइटी में कन्फर्म करते हैं, उतना ही यह मेंटली होते हैं। ये करोड़ों अब नोर्मल्ली नोर्मल्ली लोग बिना कुछ हलचल मचाई जीते हैं। लेकिन अगर यह पूरी तरह से एक हेल्थी इंसान बनना चाहते हैं तो इन्हें सोसाइटी के नक्शेकदम पर चलना बंद करना होगा। दुनिया भर में बढ़ता ड्रग्ज़ या अल्कोहल का यूज़ डिप्रेशन, सुसाइड, मेंटल हेल्थ प्रॉब्लम्स और बढ़ती कलेक्टिव थिन किन्ग यानी अपनी आइडियोलॉजी को एक भगवान की तरह फॉलो करना और जो इस भगवान को वर्शिप ना करे उस पर डिस्क्रिमिनेशन का लेबल लगाकर उसे करना। ये सब हमारी सोसाइटी की कलेक्टिव सिकनेस के ही साइज है। टेक्नोलॉजी इतनी तेजी से हमारे काम करने के तरीकों को बदल रही है कि हमारी साइकोलॉजी इन चेंजेज को मैनेज या इनके साथ अडैप्ट करना सीख ही नहीं पा रही है। ऊपर से इतनी ज्यादा मिस इन्फॉर्मेशन जो अलटिमेटली लोगों को कुछ बेचने के लिए फैलाई जाती है, वो भी मॉडर्न इनडिविजुअल को वीक बना रही है, जहाँ हम बॉडी में जाने वाले वाइरस इसको रोकने और खत्म करने की कोशिश करते हैं। वहीं माइंड में जाने वाले वाइरस एस यानी गलत इन्फॉर्मेशन और हेल्थ या ब्यूटी को डिस्ट्रॉय करने वाले आइडियाज़ बिना दर्द पहुँचाए और बिना आसानी से पकड़ में आए ही पूरी सोसाइटी को अपना गुलाम बना देते हैं। और अगर हमे सोसाइटी को और कमजोर, दुखी या होपलेस बनने से रोकना है तो हमें यह जानना होगा कि वो कौन सी चीजें हैं जो एक सोसाइटी में लोगों को डिवाइड करने के बजाय उन्हें साथ लाती है और फिर अपनी लाइफ को इन्हीं फाउन्डेशन्स के अराउंड बिल्ड करना होगा। अपनी बुक बोलते है कि जब भी किसी जीव जंतु को उसकी जड़ों से काट दिया जाता है, तब वह अपने अस्तित्व की बुनियाद से कनेक्शन खो देता है और देखते ही देखते मर जाता है। यही रीज़न है की क्यों? हमारी सोसाइटी टाइम के साथ साथ कितनी भी बदलती रहे। लेकिन जो चीजें इंसानों के बीच प्यार, हेल्थ, खुशी और सक्सेस प्रोमोट करती है, वो हमेशा कॉन्स्टेंट रहती है और जो लोग अपने कल्चर की हिस्टरी और मिथॉलजी को अच्छे से समझते हैं वो इन टेंपरेरी ट्रेंड्स को अपने कल्चर या भगवान की जगह नहीं लेने देते हैं, बल्कि वो ये देखते हैं की वो अपने कल्चरल रूट्स को किस तरह से यूज़ कर सकते हैं जिससे सोसाइटी के पेड़ पर एक नया ऑफ लुक सकें और यही चीज़ इन लोगों को करप्ट बनने और एक डी जेनरेट सोसाइटी में कन्फर्म करने से रोकती है। याद रखो हम सब के मन के अंदर ही अपने पैरेन्ट्स, कल्चर और भगवान की जगह होती है। लेकिन जब हम इन जगहों को हेल्थी इमेज एस और इंपावरिंग स्टोरी से नहीं भरते तब इन जगहों को भरने के लिए हम नए भगवान इन्वेस्ट कर देते हैं और यही मॉडल लोगों की बिमारी है और जैसा कि डेनिस फिलॉसफर सोरेन के रेगार्ड का बोलना था की जो इंसान हमेशा एक झुंड से घिरा रहता है और जो हर समय संसारी मामलों में उलझा रहता है ऐसा इंसान अपने आप को भूल जाता है। उसे अपने नाम का दैव्य मतलब याद नहीं रहता। वो अपने में विश्वास नहीं कर पाता, उसे वो बनना जो वो असल में है वो रिस्की लगता है, जबकि दूसरे लोगों की तरह बनना उससे ज्यादा सेफ और लगता है। ये इंसान कभी भी एक नकल, एक नंबर या एक झुंड के हिस्से से ज्यादा कुछ नहीं बन पाता और यह उन लोगों की डेस्टिनी होती है, जो कन्फर्म करते हैं।","अनुरूपता का तात्पर्य समूह में फिट होने के लिए अपने स्वयं के विश्वासों, मूल्यों और कार्यों को समायोजित करना है। पूरे इतिहास में, सांस्कृतिक मानदंडों से विचलित होने को कुछ जोखिम भरा माना जाता था, क्योंकि गैर-अनुरूपतावादी एक समूह में रहने के सभी लाभों को खो देंगे, जैसे कि साझा संसाधन, शिकारियों के खिलाफ सुरक्षा और अपने जीन को साझा करने के लिए एक साथी। हालाँकि, आधुनिक दुनिया में, अनुरूप होना अपने आप को सीमित करना है। जहां हर व्यक्ति बीमार, भ्रष्टाचारी या भ्रमित है, भीड़ में खुद को खो देना सही कदम नहीं है। तो, एक आधुनिक व्यक्ति को क्या करना चाहिए? इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम उन कारणों पर जाते हैं कि क्यों अनुरूपता कुछ मामलों में अच्छी और दूसरों में खराब हो सकती है, क्यों गैर-अनुरूपता संस्कृति की सफलता के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण है और कैसे कोई अपने उच्चतम संस्करण को किसी अद्वितीय योगदान के लिए सामने ला सकता है दुनिया।" "अगर हम अपने डर को ओवर कम करना चाहते हैं तो पहले हमें यह समझना होगा कि डर होता क्या हैं? साइनस बताती हैं कि डर सबसे पुराने इमोशन्स में से एक है जो असल में एक बायोकेमिकल रिस्पॉन्स होता है। किसी भी ऐसी चीज़ के टुवार्ड्ज़ जैसे हमारा दिमाग खतरनाक या नुकसान पहुंचाने वाला समझता है। हम डरते है जब या तो हमारे प्रेज़ेंट एनवायरनमेंट में कोई बदलाव आता है या फिर हम बस फ्यूचर में आने वाले खतरे को इमेजिन करने लगते हैं। इस फीचर का पर्पस होता है। हमें जानलेवा चीजों से दूर रखना फॉर एग्जाम्पल अगर हमें सड़क पर चलते हुए ऐसा लग रहा है कि कोई हमारा पीछा कर रहा है तो हमारे दिमाग का एक हिस्सा जिसका नाम होता है एमिग्डेला वो हाइपर एक्टिव हो जाता है और हमें जल्दी से जल्दी उस सिचुएशन से बाहर निकलने की कमान देता है। हमारे अंदर डर पैदा करके इस टाइप काफिर जहाँ ऐक्चुअल में एक खतरा होता है, उसे बोलते हैं रैशनल फिर् लेकिन जब आपको किसी ऐसी चीज़ से डर लगता है जिससे डरने का कोई ऐक्चुअल रीज़न नहीं होता, जैसे पानी, सोशलाइजेशन या तंग जगहों में रहना तो उसे बोलते हैं इरैशनल फिर् या फिर एक फोबिया और इन दोनों फीचर्स के बारे में ये समझना जरूरी है। कि ज्यादातर रैशनल फिगर्स हमारे पैदा होने से ही हमारे अंदर होते है जैसे ऊँचाई का डर या फिर खतरनाक जानवरों का डर। लेकिन इरैशनल ऑफिर्स या फिर फोबियस यूज़्वली वो ऑफर्स होते हैं जिन्हें हमने अपने बचपन में याद करना होता है। जैसे अगर एक बच्चा पानी से भरे पूल में गिर गया था तो वह पानी का डर डेवलप कर लेगा। या अगर उसने अपने पैरेन्ट्स को हमेशा लड़ते झगड़ते देखा तो वो शादी, प्यार या रिलेशनशिप का डर डेवलप कर लेगा। इन एग्जाम्पल से आपको ये आइडिया मिल गया होगा कि जहाँ हमारा डर हमें खतरनाक चीजों से बचा सकता है। वही वो सम डर हमारी लाइफ की क्वालिटी को घटा भी सकता है और हमारी ग्रोथ पोटेंशिअल को रोक सकता है। नाउ अगर हम ये क्वेश्चन करे कि हम अपने डरो को ओवर कम कैसे कर सकते हैं तो हमें इसका अनसर पाने के लिए डर के रूट को उस तक जाना पड़ेगा। अगर हम हर तरह के डर को ले और यह देखें कि उनमें सबसे कॉमन चीज़ क्या है तो वो चीज़ होती है फियर ऑफ डेथ। यानी हम मरने से डरते हैं। साइनस इस पॉइंट पर जाकर अटक जाती है। लेकिन अगर हम अपने मरने के डर को भी ढंग से ऑब्जर्व करें तब हमें समझ आएगा कि हमें मरने से डर भी इसलिए लगता है क्योंकि हम अपनी ईगो या फिर अपनी आइडेंटिटी से बहुत ज्यादा अटैच्ड है। यानी हर तरह केफिर का रूट कॉज होता है। अटैचमेंट की मेरा क्या होगा? अगर मैंने ये कर दिया तो अगर मेरे किसी चाहने वाले को कुछ हो गया तो मैं कैसे जिऊंगा और अगर मैं पानी में डूब गया तो मैं मर जाऊंगा। ये जो हमारी मैं है यह है हमारे डर की प्रॉब्लम। हमारी ईगो हमारे दिमाग में एक ऐसा इल्यूजन बना देती है कि हर वो चीज़ जिससे वो अटैच्ड हैं, फिर चाहे वो आपका पार्टनर हो, आपकी पब्लिक इमेज या फिर आपकी बॉडी, हर ऐसी चीज़ ही हमारे दुख खुशी या डर का कारण बनती है। अगर आप किसी इंसान को अपने दिल की बात बोलने से डर रहे हो तो एक्चुअल मैं वहाँ आपकी ईगो एक इल्यूजन बनाकर आपको ये बोल रही होती है कि अगर उस इंसान ने आपको रिजेक्ट कर दिया तो आपके अंदर जो अब तक अपने बारे में स्टोरी चल रही थी कि मैं तो ये हूँ, मैं तो वो हूँ और जिससेल ऑफ इमेज से आप अटैच थे, वो एक सेकंड में ही खत्म हो जाएगी। अगर आप अपने किसी एग्ज़ैम से डर रहे हो तो वहाँ भी आप यही सोच रहे होते हो कि तब मेरा क्या होगा? अगर मेरा एग्ज़ैम क्लियर नहीं हुआ तो जिंस आउटकम की एक्स्पेक्टेशन से मैं अटैच था, वो भी चली जाएगी। और जो मैं अपनी कैपेबिलिटीज के बारे में सोच कर बैठा था वो भी इसी वजह से। अगर हम अपने डर ओकओवर कम करना चाहते हैं तो हमें आउटकम से अपना फोकस हटाकर ऐक्चुअल काम से प्यार करना होगा, क्योंकि जब आप किसी चीज़ से एक्चुअल में प्यार करते हो, तब ना तो वहाँ कोई अटैचमेंट होती है और ना ही उससे जुड़ा कोई डर। आप बस वो करते हो जो करने की जरूरत है, चाहे उस काम से आपको जितना मर्जी दर्द मिलता रहे। ज्यादातर लोग अपने घरों को इसलिए ओवर कम नहीं कर पाते क्योंकि वो अपने प्रिज़न टास्क को एक बड़ी पिक्चर में फिट नहीं कर पाते। यानी अगर मैं पढ़ाई कर रहा हूँ तो मुझे ये सोचकर किताब नहीं खोलनी चाहिए कि मैं मार्क्स लाने के लिए पढ़ रहा हूँ क्योंकि ऐसे तो मेरी ईगो फिर से एक रिज़ल्ट के साथ अटैच हो जाएगी। इसके बजाय हम एक बड़ा रीज़न ढूंढना होता है जो हमारी खुद की सेल्फिश डिज़ाइनर्स के भी पड़ जाता हो। जैसे मैं इसलिए नहीं पढ़ रहा क्योंकि मेरी जॉब लगे गी या फिर मेरा नाम होगा। ओये चीजें भी आपकी मोटिवेशन में काम आएंगी। लेकिन असली रीज़न यह है कि अगर मैं पढ़ लिखकर अपने आप को इतना शार्प और सक्षम बना पाया तो मैं अपनी किस्मत क्या मैं इस पूरी दुनिया को बदल सकता हूँ? मैं अपनी जेब क्या मैं तो सैकड़ों दूसरे लोगों को भी सीखा सकता हूँ कि वो अपनी जेब कैसे भरे हैं। सिर्फ तभी तो मेरे जीने का फायदा है। इस तरह के प्यार की बात कर रहा हूँ मैं, क्योंकि यह प्यार ही आपको उन सब कामों को करने की ताकत देगा जो अभी आपको बहुत डरावने और बहुत बड़े लग रहे है। अपना फोकस डरो और भारी डार्कनेस पर नहीं बल्कि अपने अंदर मौजूद उस लाइट पर लाओ जो हर तरह की डार्कनेस को अपनी रौशनी से नहला सकती है। जब आप इस तरह के माइंडसेट में आ जाते हो तब कहाँ है कोई डर और कहा है कोई अटैचमेंट? लेकिन प्रॉब्लम ये है कि हमें शुरू से यही बताया गया है। की। हम कितने वीक कितने लिमिटेड और कितने असक्षम है। आपको अपनी इन्हीं बाउंड्रीज़ को तोड़ना है और अपने हर डर को एक एक करके फेस करना है। साइकोलॉजी बोलती है कि हम सब में ही कई ऐसे हिस्से होते हैं, जो उतने अच्छे से डेवेलप नहीं हो रखे होते। जीतने, डेवलप और ग्रो वो हो सकते हैं, लेकिन जस्ट बिकॉज़ उन्हें डेवलप करना बहुत मुश्किल होता है तो हम उन्हें अपने मन की ऐसी जगहों में छुपा देते हैं जहाँ वह हमें दिखे ना। इस वजह से नैचुरली जो चीजें हमें ग्रो होने के लिए चाहिए, वो हमें वहाँ मिलती है जहाँ हम बिल्कुल नहीं देखना चाहते हैं। इसलिए या तो आप इस अन्डरस्टैन्डिंग पर डाइरेक्टली अपने डरो को फेस करने से पहुँच सकते हो या फिर अपने माइंड सेट की लिमिट से बाहर निकलकर और अपनी ईगो की अटैचमेंट से नहीं, बल्कि अपनी हाइअर पॉसिबिलिटीज़ से आइडेंटिफाइ होकर।","डर हमारी सबसे आदिम भावनाओं में से एक है और यह एक खतरनाक उत्तेजना के लिए जैव रासायनिक प्रतिक्रिया है जिसमें हमें नुकसान पहुंचाने की क्षमता है। यह भावना हमारे जीवन की रक्षा के लिए विकसित हुई थी, लेकिन आधुनिक दुनिया में, हम सबसे हानिरहित चीजों से डरते हैं क्योंकि हमारा मस्तिष्क एक घातक शिकारी और लंबित होमवर्क के बीच अंतर नहीं जानता है क्योंकि दोनों परिदृश्यों को खतरनाक या ध्यान देने योग्य कुछ कहा जा सकता है। को। इसलिए इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम डर को दूर करने के सबसे प्रभावी तरीकों को समझेंगे और हम इस बारे में गहराई से बात करेंगे कि वास्तव में डर क्या है।" "अपने दिमाग को एक हाइअर लेवल पर फंक्शन करवाने के लिए आपको कोई न्यूरोलॉजी का कोर्स करने या फिर बुद्धिस्ट मंक बनने की जरूरत नहीं है। यह पॉसिबल हो सकता है। सिर्फ कुछ ही ब्रेन है उसको फॉलो करके नंबर वन डूअल कोड इंग्लिश का मतलब वर्ड्स और विज़ुअल दोनों को कंबाइन करके इन्फॉर्मेशन को याद करना, क्योंकि हमारे दिमाग में टैक्स को रीड करने और एक पिक्चर को देखने के लिए अलग अलग पथ वेज़ होते हैं, जिससे जब आप किसी टैक्स चुल इन्फॉर्मेशन को डाइग्राम्स इमेज एस या वीडिओज़ के साथ कंबाइन कर देते हो तब आप उसे लंबे समय तक याद रख पाते हो। इसलिए कुछ भी पढ़कर उसे लिख कर या फिर उसके डाइग्राम्स बनाकर उसे रिवाइज़ करो और अपने ब्रेन तक सम इन्फॉर्मेशन को दो अलग रास्तों से भेजो। नंबर टू मोमो डोरों टेक्नीक कई बार हम कोशिश करते हैं कि हम 5-6 घंटे तक लगातार पड़े हैं, लेकिन सिर्फ 30 मिनट के बाद ही हमारा ध्यान भटकने लग जाता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि सबका एक अटेन्शन स्पैन होता है और अगर हम अपने अटेन्शन स्पेन के खत्म होने के बाद भी बुक को पकड़े हुए हैं और अपने आप को पढ़ने के लिए फोर्स कर रहे हैं तो हमें कुछ याद नहीं होगा और ऐसा करने से हम सिर्फ अपना टाइम ही वेस्ट करते रहेंगे। अपनी बुक दे पोमोडोरों टेक्नीक में ऑथर उसको बोलते है की आपने जो भी टास्क करने है उनकी एक लिस्ट बनाओ और साथ में एक टाइमर रखो जो हर 25 मिनट बाद बजे है। हर एक टास्क ऐसे 25 मिनट के अलग इंटरवल्स में करो। इस इंटरवल को बोला जाता है पोमोडोरों हर टास्क के खत्म होने के बाद पेपर पर चेकमार्क लगाओ और 5 मिनट का ब्रेक लो। जब आपके ऐसे चार इंटरवल्स कंप्लीट हो जाए तब आधे घंटे का ब्रेक लो। अपने चेक मार्क्स को ज़ीरो पर रीसेट करो और इस प्रोसेसर को रिपीट करो। जब तक आपके सारे टास्क खत्म नहीं हो जाते हैं, ये टेक्नीक फोकस करती है। इन्फॉर्मेशन की ऐसी मेंशन यानी जो भी आप पढ़ रहे हो उसे डाइजेस्ट और प्रोसेसेस करने में और जब हमें पता होता है कि हमें कुछ ही मिनट तक कन्टिन्यूसली एक काम करना है तब हम बिना अपने फ्लो को तोड़े अपनी लर्निंग कपैसिटी को मैक्सिमाइज कर पाते है। नंबर 342 प्रिन्सिपल पर आटो प्रिन्सिपल बोलता है की हर सिचुएशन, पॉप्युलेशन, क्लास या ऑर्गेनाइजेशन में 80% रिज़ल्ट आते हैं। 20% कॉज़िज़ से फॉर एग्जाम्पल माइक्रोसॉफ्ट ने नोटिस करा की उनके सॉफ्टवेयर में सिर्फ 20% बख्श को फिक्स करने से 80% लोगों की सिस्टम क्रैश की कम्प्लेन्ट्स खत्म हो जाती है और सिमिलरली हर मार्केट का 80% पैसा सिर्फ 20% लोगों के पास होता है। यही रीज़न है की वो अगर हम इस प्रिन्सिपल को कुछ याद करने के लिए यूज़ करते हैं तो हमें किसी भी सब्जेक्ट के को 20% हिस्से पर फोकस करना है और ऐसा करने से ही आपको 80% रिज़ल्ट मिल जाएंगे। जैसे अगर आप एक नई लैंग्वेज सीखने की कोशिश कर रहे हो तो उस लैंग्वेज के सारे वर्ड्स को याद करने की कोशिश मत करो। बस उन 20% वर्ड्स को ढूंढो जो आपकी डेली कन्वर्सेशन में काम आयेंगे और उन्हें याद करो। नंबर फ़ोर स्कैन थ्रू पेजेस किसी भी चीज़ को याद करने के लिए पेजेस के थ्रू स्कैन करना एक बहुत ही गलत टेक्नीक लग सकती है। ज्यादातर लोग ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि वो हर पेज को डिटेल में पढ़ने के लिए बहुत आलसी होते हैं। लेकिन इस तरह से पेजेस को जल्दी जल्दी पलटने और उनमें दी गई इन्फॉर्मेशन पर बस नज़र मारने से आपके मन में उस इन्फॉर्मेशन का एक ढांचा बनने लग जाता है और आप को एक रफ आइडिया मिल जाता है कि ऑथर क्या बोलना चाहता है और जब आपको बेसिक आइडिया क्लियर हो जाए तब हर पेज को डिटेल में रीड करना शुरू करो और उस ढांचे पर मांस चढ़ाव हाउएवर। यह टेक्नीक सिर्फ अपने आप को एक नई इन्फॉर्मेशन से इंट्रोड्यूस करने के ही काम आती है। यानी अगर आप बस पेजेस को स्कैन करके ही बुक को बंद करदो तो आपको कुछ नहीं समझ आएगा। जस्ट बिकॉज़ उस इन्फॉर्मेशन का मेन्स आपके दिमाग से गायब होगा। इसलिए उन कॉन्सेप्ट्स पर नजर मारने के बाद उन्हें शुरू से पढ़ना स्टार्ट करो और अपने दिमाग में मौजूद ढांचे को यूज़ करो। उस इन्फॉर्मेशन को अच्छे से समझने के लिए नंबर फाइव डाइवर्सिफाइड यानी अपना टाइम ये सोचने में वेस्ट मत करो की कौन सा लर्निंग मेथड आपके लिए बेस्ट होगा? क्योंकि सच बात तो यह है कि हर मेथड की ही अपनी कई अच्छाइयां और कमियां होती है और अगर आप अपनी लर्निंग कपैसिटी को मैक्सिमाइज करना चाहते हो तो आपको अलग अलग मेथड्स को ट्राई करना चाहिए ताकि आप खुद ही इन मेथड्स को अपने मन में जोड़ पाओ। हमारा दिमाग हर समय कुछ नई और बेहतर चीज़ को ढूंढ रहा होता है और ऐसे में जब आप अपने स्टडी रूटीन में एक नई टेक्नीक को ऐड करते हो तब आपका दिमाग उस टेक्नीक के थ्रू आयी नयी इन्फॉर्मेशन पर ज्यादा ध्यान देता है और आपको इस तरह से बेटर रिजल्ट्स मिलते हैं। इसलिए कुछ भी याद और अच्छे से फोकस करने की अल्टीमेट टेक्नीक यही है कि आप अलग अलग टेक्नीक्स को यूज़ करते रहो।","अपने मस्तिष्क को उच्च स्तर पर काम करने देने का मतलब यह नहीं है कि आपको न्यूरोलॉजी का कोर्स करना होगा या बौद्ध भिक्षु बनना होगा। यह आपके दिमाग से अधिकतम लाभ उठाने के लिए प्रभावी तकनीकों का उपयोग करने के बारे में है। इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम 5 ऐसे ब्रेन हैक्स/तकनीकों के बारे में जानेंगे जो आपको सिखाएंगे कि आप कैसे तेजी से कुछ भी सीख सकते हैं, ध्यान केंद्रित कर सकते हैं और एक बेहतर शिक्षार्थी बन सकते हैं।" "सो दिस इस द ट्रूथ थिंक इंग्लिश गुड बिकॉज़ यही सबसे बड़ा फैक्टर है जिसने हमारी कैपेबिलिटी उसको इतना ज़्यादा इक्स्पैन्ड करा है। इन रिलेशन टु अदर लिविंग बिकॉज़ हम पास्ट के बारे में सोचते हैं, पुरानी गलतियों से सीखने के लिए और हम फ्यूचर से जुड़ी पॉसिबिलिटीज़ के बारे में सोचते हैं। ये प्री ऑडिट करने के लिए की हमारी लाइफ में आगे क्या होगा? पर प्रॉब्लम तब आती है जब हम इन चीजों को वर्थ इन करने लगते हैं क्योंकि ओवरथिंकिंग एक फिर् रिस्पॉन्स है। अगर हम एवल्यूशन के कॉन्टेस्ट में बात करें तो हमें लिव रखने के लिए हमारा ब्रेन हर टाइम हमारी सराउंडिंग में डेनजरस और उसको ढूंढ रहा होता है। और वो ट्री कर रहा होता है की वो अपने आसपास के एन्विरॉनमेंट को मास्टर कर पाए। इसी मेकनिजम की वजह से हमारे एन्सिस्टर्स, जंगली जानवर और नैचरल कैटलिस्ट हमसे अपने आप को बचा पाए थे और ये एक्सप्लेन करता है कि हमारे थॉट्स एक्चुअल मैं हमारे नहीं है, बल्कि वो हमारे और उनके अपने एनवायरनमेंट से सीखे गए। लेसन्स है एग्जाम्पल के तौर पे। जब अपने क्रश को टैक्स करने के 30 मिनट्स बाद भी हमें कोई रिप्लाय नहीं मिलता तो हम उसे ओवर थिंक करने लगते हैं। बट वाइ एक अन्ड्रॉइड फ्लर्टी टैक्सट हमारे ब्रेन के लिए थ्रेटनिंग क्यों होगा? वेल फर्स्ट ऑफ ऑल हमें ये समझना जरूरी है कि फ्लर्टिंग की अंडरलाइन मोटिवेशन क्या है? इट्स सर्वाइवल राइट। हमारी बायोलॉजिकल हमें किसी के साथ मेड करने के लिए बोलती है और मेटिंग पार्टनर को इंप्रेस करने के लिए हम उनसे फ्लर्ट करते हैं और उनका अप्रूवल लेते हैं। 100। अगर इस प्रोसेसर में हमे डाउट आने लगता है की हमारा पोटेंशिअल मेट हमारे में इन्ट्रेस्ट लूज़ कर रहा है तो वो हमारे ब्रेन के लिए एक होता है। हमारे सर्वाइवल और हमारी स्पीसीज़ के कन्टिन्यूएशन का सिमिलरली हम वर्क, स्कूल मनी या बिज़नेस जैसी चीजों को भी ओवर थिंक करते हैं क्योंकि ये सारी चीजे हमें रिसोर्सेज़ करने के कैपेबल बनाती है जो की अगेन टाइड है, हमारे सर्वाइवल से हर चीज़ घूमा फिरा के सर्वाइवल पे ही आती है और अगर हमें डिप्रेशन, ऐंग्जाइटी, पैनिक अटैक्स और ओवरथिंकिंग जैसी प्रॉब्लम्स को दूर रखना है तो हमें बस अपने ब्रेन को इस चीज़ की तसल्ली देनी है की हाँ, हम अपने एनवायरनमेंट को अच्छे से जानते हैं और हमारे सर्वाइवल में कोई प्रॉब्लम नहीं आएगी। सो जितना अच्छे से हम अपने आप को बाकी लोगों और पूरे वर्ल्ड को समझते हैं, उतना हम काम रहते हैं और हमारे ब्रेन के पार्ट में लो ऐक्टिवेशन रहने की वजह से हमारा फाइट फ्लाइट और फ्री सिस्टम भी कम ऐक्टिवेट होता है। हाउएवर कई लोग दूसरों से ज्यादा सेंसिटिव होते हैं और उन्हें ज्यादा नेगेटिव थॉट्स आते हैं। हम बात कर रहे हैं उन लोगों की जो पर्सनैलिटी ट्रेड ने रोटी सिस्टम में हाई होते हैं, न लें सहर इंडिविडुअल अपनी ओवरथिंकिंग की हैबिट को कंट्रोल कर सकता है। सिर्फ फाइव स्टेप्स के थ्रू स्टेप वन ऑब्जर्व इन क्वाइअर ऐंड पैसिफ़िक सबसे पहले जैसे ही हम अपने ओवरथिंकिंग पैटर्न में आते हैं, वैसे ही हमें अपने थॉट्स को ऑब्जर्व करना है और इस ऑटोपायलट बिहेव्यर को रोकना है क्योंकि हम किसी भी प्रॉब्लम को तब तक सॉल्व नहीं कर सकते। जब तक हम उसके बारे में पूरे अवेयर नहीं होते हैं और ओवरथिंकिंग के केस में अपने थॉट्स में गुम हो जाना बहुत बीज़ी हैं। इसके साथ ही हमें इस प्रॉब्लम को ऐक्टिवली सॉल्व करना है। अपने थॉट्स को अच्छे से एनक्वाइरर करके यानी हमें एक डिटेल्ड के साथ यह देखना है की ये थॉट्स ऐक्चूअली है। किस बारे में? क्या हमने कुछ पास में ऐसी गलती कर दी थी जिसके बारे में अभी तक हम ढंग से समझ नहीं पाए हैं और हमारा ब्रेन हमें बार बार उस गलती के बारे में करा रहे हैं या फिर क्या हम बस अपने फ्यूचर के बारे में सोचकर ही ऐन्सर सोये जा रहे हैं? इन क्वेश्चन्स के आन्सर ढूंढना बहुत जरूरी है। बट हमें ये भी माइंड में रखना है। कि हम इन थॉट्स के साथ फाइट ना करें क्योंकि अगर हम ओवरथिंकिंग को ही ओवर थिंक करने लगे तोये साइकल कभी एंड ही नहीं होगी और हम ऑर्डर लाने के बजाए इसके उसमें और के उस ऐड करके इसे बढ़ाते रहेंगे। सो इनस्टेड ऑफ फाइटिंग के थॉट्स वी हैव टु देम और ये इनसाइड हमें ले चलती है सेकंड स्टेप पर वी कैन द ओल्ड पैटर्न बी स्ट्रेंथनिंग के न्यू वन हमारी हर हैबिट हमारे ब्रेन में एक स्पेसिफिक न्यूरल से होती है और जितनी बार हम एक हैबिट को परफॉर्म करते हैं, उतना ही हम उस हैबिट से रिलेटेड न्यूरल पैलेस को स्ट्रॉन्ग बनाते जाते हैं। सो ये स्टेप अभी स्ट्रेटफॉरवर्ड है, हमें अपने नेगेटिव औरफिर फुल थॉट्स को रिप्लेस करना है। पॉज़िटिव थॉट्स के साथ जितनी बार भी ओवरथिंकिंग पैटर्न चालू होता है, हमें उसे नोटिस करना है और जल्दी से अपने ब्रेन को पॉजिटिविटी फीड करनी है। इस प्रोसेसर में न्यूरल के चेंज होने को बोलते हैं न्यूरोप्लास्टिसिटी और नए हैबिट से बनने वाले को बोलते हैं जेनिसिस स्टेप थ्री हैव ड्रीम 1 दिन में लगभग 62 80,000 थॉट्स हमारे दिमाग में आते हैं और इन में से 90% थॉट्स नेगेटिव होते है। बट अगर हमें पता है कि हमारा ड्रीम क्या हैं तो हम ऑटोमैटिकली उसे यूज़ कर सकते हैं एक फिल्ट्रेशन सिस्टम की तरह। क्योंकि हमारा ड्रीम एक कंपस या जीपीएस की तरह होता है जो हमें बताता है कि हम एक इस डायरेक्शन में आगे बढ़ना है। फुल्फिल्मन्ट अचीव करने के लिए और अगर कोई ऐक्शन हैबिट याद आउट हमारे ड्रीम के रास्ते में आता है तो हम सिम्पली उसे रिजेक्ट कर सकते हैं। एक्साम्पल के तौर पे अगर हमारा ड्रीम है की हमें एट लिस्ट एक बार ऐसी बॉडी बनानी है जो मैगज़ीन कवर्स पर होती है तो ये ड्रीम हमारा फिल्ट्रेशन सिस्टम होगा और हम इसे माइंड में रखकर वीज़्ली डिसाइड कर पाएंगे कि कौन सी ईटिंग हैबिट्स और रूटीन्स इस ड्रीम को सपोर्ट करेंगे। और कौन से नहीं? स्टेप फ़ोर हार्नेस द पावर ऑफ नाउ जब भी हम ओवरथिंकिंग की बात करते हैं तो हम ज्यादातर पास्ट या फ्यूचर से जुड़े। फिर फुल यार इन ग्रेटफुल थॉट्स के बारे में बात कर रहे होते है। पर हमें यह समझना पड़ेगा कि रूमिनेशन और डिफ़रेंट होते हैं प्रॉब्लम सॉल्विंग और प्लानिंग से। इसी वजह से हम ओवरथिंकिंग को कम कर सकते हैं मूवमेंट में प्रेज़ेंट रह के और हम यह कर सकते हैं अपनी बेडिंग को फॉलो करके क्योंकि जैसे ही हम किसी डेंजरस या फिर सिचुएशन में आते हैं तो उससे हमारा सिम्पथैटिक नर्वस सिस्टम एक्टिवेट हो जाता है और हमारी ब्रीडिंग शैलो हो जाती है। पर दूसरी तरफ जब हम डीप्ली ब्रीद कर रहे होते हैं, तो उससे हमारा पैरा सिम्पथैटिक नर्वस सिस्टम ऐक्टिवेट होता है जो रेस्ट, डाइजेशन और हीलिंग को प्रोमोट करता है। इसके साथ ही हमारा माइंड ग्लिटर होने लगता है, जिससे फालतू के थॉट्स निकल जाते हैं और हम बिल्कुल स्ट्रेस फ्री हो जाते हैं। अगर हम प्रॉपर ब्रीदिंग टेक्नीक की बात करें तो सबसे पहले हमें अपना फेस रिलैक्स रखना है। हमारी तंग माउथ के रूप पर होनी चाहिए क्योंकि वो उसकी नैचरल पोज़ीशन है। हमें ब्रीद नो से करना है, माउथ से नहीं। इन्हेलेशन स्लो होनी चाहिए, जिसमें चेस्ट के बजाय बैली इक्स्पैन्ड हुए और उसके बाद हमें बस स्लोली करना है। स्टेप फाइव बी इन द बॉडी नॉट इन द माइन्ड ओवर थिंकिंग से जुड़ी सबसे बड़ी प्रॉब्लम यह है कि जो लोग काफी स्मार्ट होते हैं या जस्ट ज्यादा सोचते हैं, उनका हेड एक तरीके से डिटैच्ड होता है। उनकी बॉडी से ये वो लोग होते हैं जिन्हें हम क्रिटिसाइज करते हुए बोलते है की वो तो बस अपने दिमाग में ही रहते हैं। यानी ओवरथिंकिंग की वजह से कई लोग अपनी बॉडी की सेन्सिटिविटी से टच खो देते हैं और सिर्फ माइंड को वर्शिप करने लगते हैं। बट अगर हमें अपने माइंड से निकलकर अपनी बॉडी में आना है तो हमें ओवरथिंकिंग जैसी मेंटल ऐक्टिविटी के बजाय फिजिकल ऐक्टिविटी पर ध्यान देना होगा। जैसे इन 10 से एक्सरसाइस मेडिटेशन या फिर एक सिंपल कोल्ड चार?",मन की अंतहीन बकबक उन चीजों में से एक है जिनसे हमें अत्यधिक विकसित बंदरों के रूप में निपटना है। जरूरत से ज्यादा सोचना न केवल हमारी रचनात्मकता को नष्ट कर सकता है बल्कि यह हमारे स्वास्थ्य को भी खराब कर सकता है और कई स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म दे सकता है। अत्यधिक सोचने के लक्षण अनिद्रा और सिरदर्द से लेकर भयभीत सोच और थकान तक हो सकते हैं। ये नकारात्मक और डरावने विचार आपके जीवन की गुणवत्ता को कम कर सकते हैं यही कारण है कि लड़ाई न करना या इस व्यवहार पर अधिक ध्यान देना बुद्धिमानी है और इसके बजाय आपको इसे अनदेखा करने का प्रयास करना चाहिए। हमें Youtube पर खोजें: www.youtube.com/psychologyinhindi "अपने फ़ोन में कॉन्टैक्ट लिस्ट खोलो और देखो कि उसमें ऐसे कितने लोग हैं जिन्हें आप यह मानते हो की वो ग्रेटनेस के लिए बने हैं तीन लोग, दो लोग मेबी एक इंसान अगर आप अपने 700% सच्चे हो तो चान्सेस है कि आप के लिए यह नंबर होगा ज़ीरो। आपका कोई ऐसा रिश्तेदार या फिर दोस्त नहीं है जिसकी पोटेंशिअल एक ऐवरेज इंसान से कई गुना ज्यादा हो। जीवन आपके जिन फ्रेंड्स की ज़रा बहुत पोटेंशिअल है भी सही, वो भी डिसिप्लिन ना होने की वजह से अपनी लाइफ में कुछ अचीव नहीं कर पाएंगे। ऐसे में आपको सीरियसली खुद से यह पूछने की जरूरत है। कि आप अपनी लाइफ के साथ क्या कर रहे हो। यह बिलकुल भी मत सोचो कि आप अपने गोल्स तक अकेले ही पहुँच जाओगे या फिर आपके फ्रेंड्स आपकी प्रोग्रेस को स्लोडाउन या फिर स्पीड अप नहीं कर सकते हैं। लंबी गेम खेलने के लिए एक स्ट्रांग टीम का होना बहुत ज़रूरी होता है इसलिए इस एपिसोड में हम आपके दोस्तों की ऐसी पांच आदतों को डिस्कस करेंगे जिनकी वजह से आप अपनी लाइफ में फुल स्पीड के साथ ग्रो नहीं कर पा रहे है। नंबर वन दे हाफ डाउट यू एंड हाफ सपोर्ट यू यह चीज़ मैंने अपने और दूसरों के उन फ्रेंड्स में देखी है जो कहीं ना कहीं ये जानते है। कि उनके दोस्त में कुछ स्पेशल तो हैं और उसमें अपनी लाइफ में कुछ ग्रेड करने की काबिलियत भी है, लेकिन वो डाउटफुल है कि क्या उनका दोस्त एक्चुअल में अपनी पोटेंशिअल को असलियत बना पायेगा या फिर नहीं? और इसी डाउट की वजह से उनके ना तो सपोर्ट में दम होती है और ना ही ऑपोजिशन में। वो बस आपके गले में एक भार बन कर लटके रहते हैं और आपका टाइम वेस्ट करते है। अगर आपका कोई दोस्त आपकी प्रोग्रेस का हिस्सा नहीं है तो उसका मतलब वो आपके फेल्यर में कॉन्ट्रिब्यूट कर रहा है। एक यूज़लेस फ्रेंड के आधे सपोर्ट और आधे डाउट से बेटर होता है। कि आपका कोई फ्रेंड ही ना हो। ऐसे दोस्त सांप की तरह कभी आपको सपोर्ट दिखाएंगे और कभी आपके छोटे मोटे फेलियर के बाद आप से दूरी बनाने लगेंगे। नंबर टू दे डोंट टेल यू द ट्रूथ यह फैक्ट मैंने अपने ट्विटर पर भी किसी के पूछने पर शेयर करा था कि असली दोस्त ये परवाह नहीं करते हैं कि वो आपके साथ रूट तो नहीं हो रहे हैं। वो सीधा आपके मुँह पर सच बोल देते है। सच को सिर्फ वो लोग छुपाते हैं जो आप से कुछ चाहते हैं और वो सच बोलकर आपको लूज़ करना फॉर नहीं कर सकते हैं और तभी वो अपने मतलब को डिसगाइस करते हैं। शेर की जस्टिफिकेशन के साथ ऐसी केयर की आपको बिलकुल केयर नहीं करनी चाहिए। लॉन्ग टर्म में सिर्फ सच ही आपकी केयर कर सकता है। जीवन अगर कोई ऑटो थोड़ा हार्श भी है तब भी उसे बताने का एक सही तरीका होता है और झूट जस्टिफाइड नहीं होता। इसलिए अगर आपके दोस्त आपके साथ ब्रूटली ऑनेस्ट नहीं है, वह आपकी फीलिंग्स की परवाह ना करके आपको फ्रेंड नहीं करते और आपको सच नहीं बताते तो यह पक्का है कि आपके दोस्त असल में आपके है ही नहीं। वो आपसे झूठ बोलने को भी तैयार हैं। आपकी अच्छी साइट पर रहने के लिए नंबर थ्री देमसेल्व्स हैव नो पोटेंशिअल ऐंड दे डिमोटिवेट यू। आप की ग्रोथ को स्लो करना एक अलग बात है, लेकिन अगर आपके फ्रेंड्स मैं खुद भी कोई पोटेंशिअल नहीं है और वो आपको भी अपनी ही तरह एक ऐवरेज इंसान बनाए रखना चाहते हैं तो यह एक बहुत बड़ी प्रॉब्लम है। खुद सोचो कि एक ऐसा इंसान कितना रेर होता है जो सक्सेस की सीढ़ी पर चढ़कर हमेशा के लिए अपने खानदान की किस्मत को बदल देता है और अपनी कम्युनिटी के लिए बहुत ही वैल्यूएबल बन जाता है और जब भी ऐसे इंसान को छोटी सोच वाले उसके संगी साथी रोकते और डिमोटिवेट करते हैं, तो इससे बड़ा पाप और क्या ही होगा? ऐक्टिवली एक हीरो की सुपर पॉवर्स को सप्रेस और डैनी करना यह होता है ऐसे नकली लोगों का काम। इसलिए कभी भी किसी लू सर को अपना दोस्त मत बनाओ और खुद ऑब्ज़रव करो कि कैसे आप के सबसे गए गुजरे दोस्त आपको भी ऐवरेज बने रहने के लिए ब्रेनवॉश करते हैं। नंबर फ़ोर दे डोंट थिंक इन टर्म्स ऑफ विन विन सिचुएशन्स एक हेल्थी फ्रेन्ड्शिप दोनों पार्टीज़ के लिए ही एक ऐडवांटेज होती है। ऐसे रिलेशनशिप में आप भी मेहनत करते हो और आपका दोस्त भी और आप दोनों साथ में खुद से भी बड़ा कुछ कर पाते हो। रिलेशनशिप्स के केस में दो और दो चार नहीं बल्कि पांच होते हैं। जब एक से ज्यादा लाइक माइंडेड लोग सम गोल की तरफ काम करते हैं तब उनके एफर्ट्स का रिज़ल्ट कंपाउंड होता चला जाता है। ज्यादातर दोस्त विन विन सिचुएशन्स इसलिए ही नहीं क्रिएट कर पाते क्योंकि वो डरते है कि अगर उन्होंने अपनी साइड से 100% दे दिया। लेकिन सामने से इतना एफर्ट ना मिला तो जिसकी दोस्ती में ट्रस्ट की कमी और आपस में कॉम्पिटिशन होता है वो दोस्ती कभी भी आप की ग्रोथ का साधन नहीं बन सकती। नंबर फाइव देख के लॉट ऑफ बैगेज कई बार डूबने वाले के साथ खुद भी डूब जाने से बेहतर होता है। उसे डूबने देना और खुद को बचाना आप हमेशा हर किसी को रेस्क्यू नहीं कर सकते हैं। कई लोगों का पास ट्रोमा और उनकी बैड हैबिट्स इतनी ज्यादा टॉक्सिक होती है कि उनके साथ जो भी रहता है वो भी उनके इसी जहर का शिकार बन जाता है। प्यार और केर अपनी जगह है लेकिन जब बात आपकी ग्रोथ की आ जाती है तब आप ये नहीं बोल सकते हैं कि टॉक से के अन्य विशेस हुआ तो क्या है? तो मेरा दोस्त ना नहीं, ये बोलकर आप खुद की जिंदगी को धोखा दे देते हो। इस जिंदगी में आपकी सबसे बड़ी रिस्पॉन्सिबिलिटी है खुद की मैक्सिमम पोटेंशिअल को अचीव करना। आपके ऊपर दुनिया का जितना उधर है, उसको चूता करने का अकेला तरीका आपकी खुद की ग्रोथ ही है। इसलिए अगर आपका कोई फ्रेंड बहुत ज्यादा टॉक्सिक है या फिर अपने साथ बहुत ज्यादा ट्रामा और नेगेटिविटी लाता है तो अपने लाइफ पर्पस के खातिर उससे खुद को दूर करो।","आपके कितने दोस्त ऐसे हैं जिनमें विकास की अपार संभावनाएं हैं? क्या वे महान बनने के लिए हैं? क्या वे अपनी उच्चतम क्षमता की ओर काम कर रहे हैं? संभावना है कि आपके लगभग सभी दोस्त औसत दर्जे के हैं और वे आपको भी औसत दर्जे का रख रहे हैं। शीर्ष पर पहुंचने के लिए आपको वास्तव में एक शक्तिशाली और प्रेमपूर्ण मंडली की आवश्यकता होती है, लेकिन ऐसे लोग जो आप पर आधा संदेह करते हैं और आधा समर्थन करते हैं। इसीलिए अपने औसत दर्जे के दोस्तों से छुटकारा पाने के लिए, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम चर्चा करेंगे कि वे आपको क्यों और कैसे रोके रखते हैं।" "हर दिन हम अपनी ऐसी कई हैबिट्स को रिपीट करते हैं जो पहली नज़र में काफी इम्पोर्टेन्ट लगती है पर साइकोलॉजी बताती हैं कि हमारी हर छोटी से छोटी आदत हमारी पर्सनैलिटी को रिफ्लेक्ट करती है और दूसरों को बताती है कि हम अपनी लाइफ को किस तरीके से अप्रोच करते हैं और आज हम ऐसी ही छे हैबिट्स के बारे में हम बात करेंगे नंबर वन आपकी म्यूसिक परेफरेंस क्योंकि म्यूसिक हमारे एक पर्टिकुलर मूवमेंट के टेंपरेरी इमोशन्स और परमानेंट पर्सपेक्टिव स्कोर री इनफोर्स करने की ताकत रखता है। जब हम सैड होते हैं तब हमारी प्लेलिस्ट में अलग तरह के गाने होते हैं और जब हम एक्सरसाइज करते हैं तब अलग तरह के जिसतरह का म्यूसिक आप सबसे ज्यादा और बार बार सुनते हो वो दूसरों को आपकी में चल रहे यूनीक प्रोसेसेस के बारे में बताता है और यह इसलिए क्योंकि हमारे दिमाग पर म्यूसिक का असर काफी लंबे टाइम तक रहता है और साइकोलॉजिकल स्टडीज़ बताती हैं कि जो लोग अग्रेसिव म्यूजिक सुनते हैं वो दूसरे लोगों से ज्यादा रेस्ट्लेस और नर्वस रहते हैं। टॉप म्यूजिक के फैन्स यूज़्वली एक्स्ट्रोवर्ट होते हैं पर उनमें क्रिएटिविटी कम होती है। हिप हॉप या रैप सुनने वाले लोगों की सेल्फ एस्टीम या तो नैचुरली हाई होती है या फिर वो सीधा इस टाइप के गानों को सुनते हैं। कॉन्फिडेंट फील करने के लिए सैड या डिप्रेसिंग म्यूजिक सुनने वाले लोग ज्यादा मूडी होते हैं और सिर्फ इन्स्ट्रुमेन्टल सुनने वाले लोग इन्टलेक्चुअल ली क्युरिअस और दीप थिंकर्स होते है। नंबर टू आपका आर्ट के टुवार्ड्ज़ ऐटिट्यूड अपने आप से पूछो। कि जब आप एक पॉपुलर पेन्टिंग को देखते हो या फिर पोएट्री या नॉवेल्स पढ़ते हो, तो आपका जेनरल रिस्पॉन्स क्या होता है? क्या आपको आर्ट बोरिंग लगती है या फिर क्या आपके हिसाब से आठ हमारी जिंदगी को एक डी पर मीनिंग देता है? क्योंकि जो लोग आर्टिस्टिक चीजों को अप्रीशीएट करते है वो खुद भी ज्यादा क्रिएटिव ऐडवेंचरस, ओपन माइंडेड और क्युरिअस होते हैं। साइकोलॉजी में इस टाइप के लोगों को जिंस पर्सनैलिटी ट्रेड के साथ क्लासिफाइ करा जाता है। उसे बोलते हैं ओपन एस नंबर थ्री आप अपना रूम कितना साफ और ओरगनाइसड रखते हो? क्योंकि जो लोग अपने रूम को हमेशा साफ सुथरा और ओरगनाइसड रखते हैं वो ज्यादा हार्डवर्किंग और रिलाएबल होते हैं। इसके साथ ही वो अपनी लाइफ को गोल्स और अचीवमेंट के बेसिस पर डिफाइन करते हैं। हाउएवर इस टाइप के लोगों के लिए एक एक्सट्रीमिस्ट बनना बहुत ईजी और कॉमन होता है और उसके बाद ये एक परफेक्शनिस्ट भी बन सकते हैं और ऑब्सेसिव बिहेव्यर दिखा सकते हैं। पर दूसरी तरफ अगर आपको अपने रूम को मेसी रखने की आदत है तो आप ईजी गोइंग और डिसोर्डर ली हो, आपको रूटीन्स और स्ट्रक्चर्स नहीं पसंद और आप रूल्स को तोड़ने में हिचकिचाते नहीं हो। नंबर फ़ोर आप वर्ड्स को किस तरह से यूज़ करते हो यह भी आपकी पर्सनैलिटी के बारे में बता सकता है। साइकोलॉजिस्ट जेम्स पेनीबैकर कई सालों से फंक्शनल वर्ड्ज़ जैसे आए थिस और दर को स्टडी करते आए हैं और उनकी स्टडीज़ में यह पता लगा कि हम किसी भी इंसान की एज जेन्डर मेंटल हेल्थ और पर्सनैलिटी के बारे में जान सकते हैं। उनके लिखे या बोले वर्ड्स को ऐनालाइज करके जैसे अगर एक इंसान अपने टैक्सट या वर्बल कन्वर्सेशन और इवन ईमेल्स में आए में या माइसेल्फ जैसे वर्ड्स को यूज़ करता है तो उसका मतलब वो सच बोल रहा है क्योंकि जो लोग झूठ बोल रहे होते हैं वो अपने आप को उस कॉन्वरसेशन में मेन्शन करने से हिचकिचाते हैं और अपने आप को झूठ से डिटैच करने के लिए वो बार बार अपने आप को रेफर नहीं करते हैं और इसके साथ ही स्टडी में एक और शॉकिंग चीज़ ये पता लगी कि जिन लोगों को अपने आप को रेफर करने की हैबिट होती है वो ओवरऑल ज्यादा डिप्रेस्ड या डिस सैटिस्फाइड रहते हैं और अपने आपको क्रिटिसाइज भी ज्यादा करते हैं। यानी हमारा लैंग्वेज को यूज़ करने का तरीका पूरा बदल जाता है। जब हमारे इमोशन्स बदल जाते हैं सो आप भी अपने टैक्सट मैसेज इसको चेक करो कि आप कौन से वर्ड्स यूज़ करते हो। नंबर फाइव आप अपने फ़ोन से कितने ऐडिक्टेड हो ये बता सकता है कि आप इमोशनली कितने स्टेबल हों। उनमें से ज्यादातर लोगों को बार बार अपने फ़ोन को चेक करने की आदत होती है। इट डज नॉट मैटर हम किसी लाइन में खड़े हैं, दोस्तों के साथ है या फिर इवन कुछ पढ़ रहे हैं? हमारा फ़ोन हमें बीच बीच में थोड़ा थोड़ा डोज देकर हमारे इमोशन्स को स्टेबल लगता है और हमें बोर या इरिटेटेड फील करने से बचाता है। पर एक स्टडी बताती हैं कि फ़ोन ऐडिक्शन सीधा सीधा रिलेटेड है। इमोशनल इनस्टेबिलिटी यानी न्यूरॉटिसिज्म से है। यानी अगर आप को हर समय अपना फ़ोन यूज़ करने की आदत है और आप उसके बिना ज्यादा टाइम तक नहीं रह सकते, तो चान्सेस है कि आप एक मूडी पर्सन हो और आप दूसरों से ज्यादा डर, गुस्सा, एंजाइटी और लोनलीनेस फील करते हो। नंबर सिक्स आपकी हैंड राइटिंग यानी आप किस तरह से हर लेटर को जोड़ते हो, आप के लैटर्स कितने बड़े होते हैं और हर लेटर किस तरफ झुका हुआ होता है? आपकी हैंड राइटिंग से जुड़ी हर छोटी से छोटी हैबिट आपकी पर्सनैलिटी को रिवील कर सकती है। एक रिसर्च बताती है कि जिन लोगों की हैंडराइटिंग छोटी होती है वो ज्यादा शाइ और इंट्रोवर्ट होते हैं, जबकि बड़ी हैन्ड्राइटिंग वाले लोगों को अटेन्शन पसंद होती है और वो एक्स्ट्रोवर्ट होते है। सेकंडली अगर आप के लैटर्स राइट साइड में झुके होते है तो उसका मतलब आप फ्रेंड्ली और इंपल्सिव हो। लेफ्ट साइड में झुके होने का मतलब है आप रिज़र्व्ड और अकेले रहते हो पर सीधे लैटर्स इंडिकेट कर सकते हैं की आप लॉजिकल और प्रैक्टिकल हो। थर्ड ली ये नोटिस करो कि आप कितने प्रेशर के साथ हर वर्ग को लिखते हो, क्योंकि ज्यादा प्रेशर के साथ लिखने से आपकी हैंड राइटिंग ज्यादा डार्क और मोटी बन जाती है? यह एक साइन होता है कि आप अपनी कमिटमेंट पर डटे रहते हो और चीजों को सीरियसली लेते हो, जबकि हल्की हैन्ड्राइटिंग वाले लोग ज्यादा सेंसिटिव और इमोशनल होते हैं और उनमें लाइव विनेस कम होती है।","क्या आप जानते हैं कि आपके शब्दों का चुनाव, आपकी लिखावट और यहां तक कि आपका कमरा कितना साफ है जैसी छोटी-छोटी चीजें आपके व्यक्तित्व के बारे में बहुत कुछ बता सकती हैं? मनोविज्ञान आपको बता सकता है कि आप जो काम करते हैं उसे क्यों करते हैं और आप इसे अपने लाभ के लिए कैसे उपयोग कर सकते हैं।" "जब भी हम किसी इंसान से इंटरैक्ट करते हैं तब हमें यह याद दिलाया जाता है कि दुनिया में दो तरह के लोग होते हैं एक वो जो सीधी तरह से बात करते हैं और जिन्हें समझना और ट्रस्ट करना आसान होता है और एक वह जो थोड़े जटिल किस्म के होते हैं वो बातों को घूमा फिराकर बोलते हैं और उन पर ट्रस्ट करना बहुत मुश्किल होता है। हर इंसान एक उलझे हुए दोस्त से ज्यादा एक सिंपल और स्ट्रेटफॉरवर्ड दुश्मन को प्रिफर करता है। ऐसा इसलिए क्योंकि एक स्ट्रेटफॉरवर्ड इंसान के साथ हमें ये क्लियरली पता होता है कि वो क्या चाहता है और उसके असली विचार क्या है? जिससे हमें उनके साथ शुरू से ही यह पता होता है कि हम किस तरह के इंसान के साथ डील कर रहे हैं। हमें गैस करने, तरकीबें बनाने और उनकी बातों को डीकोड करने की कोई जरूरत नहीं होती। अगर एक स्ट्रेटफॉरवर्ड इंसान को हमारी कोई बात नहीं पसंद आई तो वो हमसे नाराज होंगे और हमें ये बताएंगे कि उन्हें क्या अच्छा नहीं लगा। वो अपने गुस्से और कड़वाहट को छुपाकर हमसे फ्रेंडली बने रहने की एक्टिंग नहीं करेंगे। अगर उन्हें किसी काम को करते हुए बिल्कुल भी मज़ा नहीं आ रहा तो वो ये प्रिटेंड नहीं करेंगे कि हर चीज़ ठीक है। जीवन अगर उन्हें कोई इंसान पसंद है जब भी वो फालतू की गेम खेलने के बजाय डायरेक्ट या फिर इनडाइरेक्ट वेज में अपनी फीलिंग्स को ज़ाहिर करने की कोशिश करेंगे। हाउएवर एक जटिल और उलझे हुए इंसान को खुद ही क्लियरली ये नहीं पता होता कि उसे क्या चाहिए? उसके ख्याल दूसरे लोगों की बातों और उनकी फीलिंग्स पर बेस्ट होते हैं। अगर आप भी ज्यादा स्ट्रेट फॉर्वर्ड नहीं हो तो जब आपको अपने दोस्त हो या फिर फैमिली के साथ बाहर जाने का मन नहीं होगा तब भी आप उनके लिए झूठे एक्साइटमेंट दिखाओगे। आप दूसरों की मदद करने में खुद को बीज़ी कर लोगे। जब आपके पास खुद समय की कमी होगी, आप दूसरों के आगे खुश होने की एक्टिंग करोगे। जबकि अंदर ही अंदर आप दर्द और अकेलापन की वजह से उदास हो गए। आपको यह फील्ड तो होगा कि आपको एनफ, टेंशन और अप्रीशिएशन नहीं मिल रही है, लेकिन फिर भी आप अपने हक के लिए कोई आवाज नहीं उठाओगे। आप चाहते तो हो कि दूसरे लोग आपको समझे, लेकिन आप खुद को समझाने के लिए कभी कुछ नहीं बोलते है और अगर आप किसी इंसान से अट्रैक्टेड हो तब भी आप खुद के दिल की बात जताने के बजाय खुद को अपने ख्यालों में ही रिजेक्ट कर देते हो। स्ट्रैट फॉरवर्ड ना हो पाने की वजह इंटेन्शनल मैनिपुलेशन या मिस्ट्री क्रिएट करना नहीं बल्कि अक्सर हम अपने डर की वजह से सीधी तरह से बात नहीं कर पाते हैं। हमें लगता है कि अगर हमने सच बोला तो सामने वाला इंसान किस तरह से रिएक्ट करेगा और कही हमारे रिलेशनशिप पर कोई नेगेटिव इम्पैक्ट तो नहीं पड़ेगा। अगर आपको आपके बचपन में सच बोलने के लिए डाटा या फिर मारा गया था तो आपने भी पक्का अपनी बातों को छुपाने और कभी भी सीडी तरह से कन्वर्सेशन ना करने की हैबिट डेवलप कर ली होगी। कभी एक बच्चे को अपनी फेवरेट कुकी चाहिए होती है। कभी आप अपने पेरेंट्स को बोलते थे कि आपको अपने रिश्तेदार के घर नहीं जाना और कभी आपको अपने बचपन में एक खिलौना चाहिए होता था? लेकिन अगर आपने अपने पेरेंट्स को कई बार अपनी नीड्स पर गुस्सा या फिर इरिटेट होते देखा था तो आप हमेशा अपने बचपन में इसी कन्फ्यूजन में रहे होंगे कि आपके क्या बोलने से आपके पैरेन्ट्स गुस्सा होंगे और क्या बोलने से वो प्लीज़ होएंगे अगर एक बच्चे को उसके पैरंट्स अपने गुस्सा होने का कोई रीज़न भी नहीं देते तो बच्चा बेसिकली अपनी ऑथेंटिक फीलिंग्स को छुपाने लगता है। पहले वो अपने पैरेंट से झूठ बोलता है और फिर जाने अनजाने में खुद से वो धीरे धीरे अपनी बातों की धार को कम करने लगता है और सिर्फ वही बोलने लगता है जो दूसरे लोग सुनना चाहते है। आपको इस पॉइंट पर यह समझने की जरूरत है कि स्ट्रैट फॉरवर्ड ना हो ना कोई वर्च्यू यानी कोई अच्छा गुण नहीं है और आप खुद को स्ट्रेटफॉरवर्ड बना सकते हो। थ्री सिंपल स्टेप्स में स्टेप नंबर वन ड्रॉप योर ओल्ड पैटर्न ऑफ बिहेव्यर जो नेगेटिव और लिमिटेड चीज़े आपने अपने बचपन या फिर टीनएज में सीखी, वो चीजें अभी आपको डरपोक और कमजोर बना रही है। अगर आपको असर टिप बनाने और अपनी फीलिंग्स या फिर खयालों को क्लियरली एक्सप्रेस करने में मुश्किल होती है तो सबसे पहले ये समझो कि यह प्रॉब्लम एक लर्न बिहेव्यर है जिसे आपने अनलर्न करना है। खुद की पर्सनैलिटी को टोटली चेंज करके साइकोलॉजी की फील्ड में खुद को स्ट्रेटफॉरवर्ड बनाने का सबसे ऑप्टिमल मेथड होता है सर टेनिस ट्रेनिंग, जिसमे आप बेसिकली पहले खुद की इन टेंशन्स को अपने मन में क्लिअर बनाते हो, दूसरों से बात करते हुए उन्हें ऑब्जर्व करते हो। अप्रोपिरियेट सोशल बिहेव्यर समझने के लिए और रियल लाइफ में बार बार अपनी कम्यूनिकेशन स्किल्स पर काम करते हो। सोशलाइजिंग की प्रैक्टिस करके स्टेप नंबर टू डोंट वरी अबाउट थे डिफरेंस ऑफ ओपिनियन। अगर दो इंसान एक दूसरे के आगे अपने पर्सनल एक्सपीरियंस के बेसिस पर कोई ओपिनियन देंगे तो चान्सेस है की वो ओपिनियन से एक दूसरे से बहुत अलग होंगे। जस्ट बिकॉज़ डिफरेंट लोग एक डिफ़रेंट नज़र के साथ दुनिया को देखते हैं। हर कोई एक ऐसी दुनिया चाहता तो है जिसमें हर कोई ईक्वल हो और हर कोई दूसरों के ओपिनियन्स को एक्सेप्ट कर सके। लेकिन असलियत में इंडिविजुअलिटी का मतलब ही होता है डिफरेन्स ऑफ ओपिनियन और डिफरेन्स बहुत से लोगों को बॉदर करते हैं क्योंकि उन्हें क्रिटिकल ही सोचना नहीं पसंद। इसलिए आप दूसरों के बारे में सोचना बंद करो कि दूसरे लोग आपके ओपिनियन को एक्सेप्ट करेंगे या नहीं और जो बातें आप बोलना चाहते हो उन्हें बिना किसी डर के और क्लियरली सबके आगे रखो। स्टेप नंबर थ्री नेवर सैक्रिफ़ाइस क्लैरिटी फॉर पोलाइटनेस किसी भी अच्छी कॉन्वरसेशन के दो बेसिक रूल्स होते हैं यानी क्लैरिटी और पोलाइटनेस। लेकिन इन दोनों फैक्टर्स में कॉनफ्लिक्ट तब आता है जब आप अपनी बात की क्लैरिटी और स्ट्रेटफॉरवर्ड नेस्को सैक्रिफ़ाइस करने लगते हो। ज्यादा पोलाइट और फ्रेंडली लगने के लिए हम अक्सर ऑफेंसिव बनने को गलत मानते है, चाहे हमें इसके लिए झूट ही क्यों ना बोलना पड़े। इसलिए जब भी आप किसी कनवर्सेशन में हों तब अपने मन में खुद से यह पूछो कि कहीं मैं स्वीट और एक्सेप्टेबल बनने के लिए खुद की इंटेन्शन सकोन क्लिअर और इनडायरेक्ट तो नहीं बना रहा? अगर आप हिम्मत करके लोगों के साथ स्ट्रेट फॉर्वर्ड होंगे तो शुरू में तो वो सच को सुनकर गुस्सा और इरिटेट होंगे लेकिन लॉन्ग टर्म में वो आप के इस बिहेव्यर को अप्रीशिएट करेंगे।",जब भी हम किसी से बात करते हैं तो हमें याद आता है कि दुनिया में दो तरह के लोग होते हैं एक जो ज्यादा सीधे और भरोसेमंद होते हैं लेकिन दूसरे जटिल होते हैं और ऐसे शख्स पर भरोसा करने में हमें ज्यादा झिझक होती है। सीधेपन के गुण की सभी सराहना करते हैं क्योंकि इसमें छल-कपट नहीं होता और इसमें झूठ नहीं होता। इसलिए इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम बात करेंगे कि कैसे आप भी अधिक सीधे हो सकते हैं। "मेथोलॉजी मैं गॉड सरसरी एक जादूगरनी होती है जो अपने जादू से अपने दुश्मनों को जानवरों में बदल देती है और अपनी बुक ह्यूमन ऑल टू ह्यूमन में जर्मन फिलॉसफर फ्रेड्रिक नीचा सर सी को रेफर करते हुए बोलते है की सर सी से कोई गलती हो गई है जिससे जानवर इंसान में बदल गए हैं। तो क्या अब सच्चाई इंसान को दुबारा से जानवर बनाने के लिए काफी होगी? नीचा यहाँ पर हमें यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि हम हमेशा यह मानते आए हैं कि हम इंसान जानवरों से इतने सुपिरिअर है। साइनस भी अवलेश अनरी थ्योरी के थ्रू यही मैसेज कन्वे करती है और रिलिजन भी यही बोलता है कि भगवान ने इंसानों को बनाते वक्त उन्हें वो अटेंशन और प्यार दिया जो उन्होंने बाकी पूरी क्रिएशन को नहीं दिया और हम इंसान भगवान के ज्यादा पास है, बजाय किसी दूसरे लिविंग ऑर्गेनिजम के इन रीज़न की वजह से। हमारे दिमाग में यह रेगंस आ चुकी है कि इस दुनिया को हम ही चला रहे हैं और बाकी अनकॉन्शियस ली जीने वाले जानवरों के बीच सिर्फ हम ही ऐसे ओर्गानिस्म है जो कॉन्शस ली और रैशनल ली सोच पाते हैं, लेकिन नीचा मानते हैं कि हमारे इस घमंड औ रेवल्यूशनरी ऐड्वैन्स के पीछे सिर्फ हम ही ऐसे जानवर हैं जिन्हें अपनी खुद की चोट पहुंचा रही है और सारी स्पीसीज़ में से सबसे अनहेलथी स्पीसीज़ इंसान ही हैं। वो बोलते है नहीं, मैं एक जानवर स्पीशीज़ एक इनडिविजुअल को तब करप्ट बोलता हूँ जब वो अपनी को खो देता है और उन चीज़ो को चुनता है जो उसे ही नुकसान पहुंचाती है। हम सबसे शातिर ओर्गनाइज़ होने के बाद भी सबसे ज्यादा सफर कर रहे हैं। हजारों और लाखों साल पहले जब हमारे अपनी के टच में थे और हर ऐक्शन ही लेते थे तब वो आधे इंसान और आधे जानवर थे जो जंगल में रहने, युद्ध करने और एक्सप्लोरेशन जैसी चीजों के लिए वेल अडैप्टेड थे, लेकिन जब हमारे जंगल से निकलकर सिविलाइज़ेशन में शिफ्ट हुए तब इतने सेफ शांत और बंद एनवायरनमेंट में रहने की वजह से हम इनसानों ने लॉस और लॉक तोड़ने की पनिशमेंट बनाई और हिस्टरी में ऐसा पहली बार था, जहाँ हमारे ऊपर एक जूडिशियल पनिशमेंट का डर था और इसी मॉडर्न डर की वजह से हमने अपनी ऐनिमल को दबाना शुरू कर दिया। ने हमारे बीच शांति और सेफ्टी की फीलिंग तो बढ़ा दी लेकिन हम काफी वीक बन गए। साइकोलॉजिकल लॉ बोलता है कि हमारी साइट की ऐसे काम नहीं करती है कि हम कभी भी अपनी रिऐलिटी के एक हिस्से को दबा दें और उस हिस्से का इन्फ्लुयेन्स खत्म हो जाए। स्विस साइकिऐट्रिस्ट बोलते हैं कि अच्छाई को हद से ज्यादा अहमियत दे देने से वो बढ़ती नहीं बल्कि घटती है और एक छोटी सी खराबी बढ़ जाती है जब उसे रिप्लेस या इग्नोर कर आ जाता है। हमारी येरि प्रेस जो डार्क साइड होती है शैडो और अपनी शैडो के बारे में अवेयर ना होने से आप अपनी पर्सनैलिटी के एक हिस्से को नॉन एग्ज़िस्टिंग घोषित कर देते हो। फिर ऑयशैडो ओर डैन्स हो जाती है और आप को कंट्रोल करने लगती हैं। अगर आप अपनी उन क्वालिटीज से छुटकारा पाने के लिए जो आपको पसंद नहीं है, उन्हें आप रिजेक्ट कर देते हो तब आप उन क्वालिटीज के बारे में और ज्यादा अनवर बन जाते हो और एक तरह से आप अपने आप को ही नॉन एग्ज़िस्टिंग बना लेते हो, बिल्कुल ऐसे ही सिविल लाइंस होने पर जब हमने अपनी ऐनिमल को दबाया तब हमारी यही इन जस्ट इन केस वापस मुड़कर हमे कंट्रोल करने लगी और हम इंसानों के बीच एक कभी न खत्म होने वाली सिकनेस फैल गई। एक ऐसी सिकनेस जिसमें हम अपने आपको ही नुकसान पहुंचाने की इच्छा जताते हैं, आज अगर हम अपनी ऐनिमल नेचर की बात भी करे तो लोग हमें पिछड़ा हुआ बोलकर हमें ऐसा फील करा देते हैं जैसे हम अभी भी पास्ट में जी रहे हैं और मॉडर्न होना कोई अच्छी चीज़ है। लेकिन सच तो यह है कि साइकोलॉजिकली हेल्थी रहने के लिए हमारा पास्ट में रहना नहीं, बल्कि पास्ट का हमारे में जिंदा रहना बहुत जरूरी है, क्योंकि हमारे पास में ही वो जड़े हैं। उनके पेड़ों पर खुशी, गुस्से, डर और घमंड हर तरह के एक्स्पिरियंस के फल उगते हैं और अगर हम अपनी अग्रेसिव और डार्क साइड को दबाएंगे तो उसके साथ साथ हमारी पॉज़िटिव साइड भी दबेगी मॉडर्न इंसान और हमारे में यही फर्क है। जहाँ हमारे ताकतवर और आजाद जानवर थे, वहीं अब हम डोमेस्टिक ए, टेड और वीक है। हमारी सोसाइटी में शांति और सेफ्टी तो है लेकिन हमारे दिलों में निराशा, शर्म और उदासी है। हम सोचते हैं कि हमने अपनी डेनजरस और प्रिमिटिव स्टिक से छुटकारा पा लिया है, लेकिन यही इन जस्ट इन केस अब हमें अनकॉन्शियस ली कंट्रोल करती है। रिचा बोलते है कि तुम ऊंचाईयों को छूना चाहते हो और तुम्हारी आत्मा सितारों को याद करती है। बिल्कुल ऐसे ही तुम्हारी बुरी इस टीम्स भी आजादी मांगतीं है। नीचा के हिसाब से अगर हम अपनी वाइल्ड साइड और उससे जुड़ी क्रिएटिव पोटेंशिअल या खुशी को फिर से महसूस करना चाहते हैं तो हमें अपनी को दबाने के बजाए उन्हें एक्सेप्ट करना चाहिए और अपने अंदर राइट जजमेंट को क्वेश्चन करना चाहिए। हमें एक गुड़ और से ऊपर उठकर रिऐलिटी को आस इट इस देखना चाहिए और पैराडॉक्सिकल ली सिर्फ इसी तरह से अपनी ऐनिमल साइड को एक्सेप्ट करने पर हम फुल्ली इंसान बन पाएंगे?","जैसे-जैसे हम मनुष्य आधुनिक और सभ्य होते गए, वैसे-वैसे हमें अपनी पाशविक प्रवृत्ति को दबाना पड़ा जिसने हमें आनंद, क्रोध, स्वतंत्रता की भावना और जीवन के अनुभव के स्पेक्ट्रम पर हर संभव भावना ला दी। लेकिन अपने अतीत के एक (बुरे पक्ष) पहलू को दबाने से हमारे जीवन के अन्य पहलुओं (अच्छे पक्ष) में भी गड़बड़ी आ जाती है। हम भगवान होने का ढोंग करने वाले जानवर हैं, हम अपने अतीत से इतने कटे हुए हैं कि इसने हमारी आत्मा में एक तरह की बीमारी पैदा कर दी है। एक गहरी लालसा जो किसी भी चीज से पूरी नहीं हो सकती है, लेकिन हमारे जीने के पुराने तरीकों के साथ एक स्वस्थ संबंध है। इसका मतलब यह नहीं है कि हमें फिर से जंगली बनना होगा, लेकिन हमें अपने इस अंधेरे पक्ष को स्वीकार करना होगा और इसे एकीकृत करना होगा ताकि इसे नियंत्रित न किया जा सके। तो, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम बात करते हैं कि ऐसा क्यों हुआ और हम इसे कैसे ठीक कर सकते हैं।" "हर सुबह उठते ही हमारे दिमाग में सबसे पहले आने वाली चीजों में से एक होती है कि हम आज क्या पहनेंगे? जीवन दो हमारे में से ज्यादातर लोगों को फैशन के बारे में कुछ नहीं पता लेकिन फिर भी हम रोज़ एक सबकॉन्सियस पर्पस के साथ खुद को ड्रेस करते हैं। हाउएवर ये पर्पस पैसिव और एक्सटर्नल होता है। यानी आपकी डेली लाइफ में आप सिचुएशन को नहीं बल्कि सिचुएशन आपको डिफाइन करती है और इसी प्रॉब्लम को ओवर कम करने का काम होता है। फैशन का फैशन आपको खुद की रिऐलिटी क्रिएट करने की पावर देता है और आप कपड़ों या फिर ऐक्सेसरीज की मदद से दूसरों को अपने बारे में एक कहानी सुना पाते हो। या कौन हो अगर आप खुद को इंट्रोड्यूस करना चाहते हो? बिना एक भी शब्द बोले तो फैशन इस काम में आपकी बहुत मदद कर सकता है। इसी रीज़न की वजह से आज क्लोदिंग एक ट्रिलियन डॉलर इंडस्ट्री है, जो करोड़ों लोगों को इम्प्लॉयमेंट देती है। अगर हम फैशन की हिस्टरी की बात करें तो फैशन की शुरुआत भी तभी हो गई थी जब इंसानों ने कपड़े पहनना शुरू करा था, हमारे कपड़े बने होते थे। पत्तो जानवरों की खाल और हड्डियों से जिनका ऑब्सेशन और इन्फ्लुयेन्स मॉडर्न फैशन में भी झलकता है, जहाँ हमारे कपड़ों पर फ्लावर्स ऐनिमल प्रिन्स या फिर जीओमेट्रिक डिज़ाइन्स बने होते हैं। फैशन का क्रेज रीसेंट हिस्टरी में तब बनना शुरू हुआ जब लेट 1700 में फ़्रेंच फैशन मैगज़ीन स्प्रिंट होने लगी और धीरे धीरे लोग सेलिब्रिटीज़ के स्टाइल को भी कॉपी करने लगे और लोगों के सोशल स्टेटस को उनके कपड़ों से नापा जाने लगा। पुरानी पिक्चर्स देखने पर हम यह नोटिस कर सकते हैं कि कैसे फैशन टाइम के साथ साथ बदलता है और जिन चीजों को आज ट्रेंडी और कूल माना जा रहा है वो कल आउट डेटेड और पुरानी हो जाएंगी। हाउएवर दुनिया के कई सबसे बड़े फैशन डिज़ाइनर्स खुद भी ट्रेंड्स को हेट करते आए हैं। जैसे लक्ज़री फैशन ब्रैंड वर्साचे के फाउंडर जियानी वर्साचे बोलते थे कि कभी भी ट्रेंड में हिस्सा मत लो। फैशन को अपना मालिक मत बनाओ बल्कि तुम डिसाइड करो कि तुम कौन हो, तुम क्या एक्सप्रेस करना चाहते हो? अपने ड्रेस करने और अपने जीने के तरीके से जो भी हम पहनते हैं, चाहे वो कपड़े हो, कैप हो, वॉच हो, मेकअप या फिर एक हैंडबैग, ये सारी चीजे हमारी स्किन के सबसे पास होती है और ऑलमोस्ट हमारी सेकंड स्किन का ही रोल निभा रही होती है। यानी अगर आपको फैशन और स्टाइल की समझ है तो आप अपने कॉम्प्लेक्शन हाइट, बालों या फेशियल फीचर्स के अकॉर्डिंग्ली अपनी लुक बना सकते हो और जो फिजिकल कमियां आपको आपके जीन्स ने दी है उन्हें अपनी सूपर पावर में बदल सकते हो। फैशन के पांच सिंपल रूल्स होते हैं यानी पर्पस फिटिंग, सिम्प्लिसिटी कॉन्फिडेन्स और एक्स्प्रेशन पर्पस का मतलब आप एक तरह के कपड़े पहन कर उनसे क्या चीज़ करना चाहते हो? क्या आप एक डेट पर अपने पार्टनर को इंप्रेस करना चाहते हो कि आप किसी रिश्तेदार की शादी में जा रहे हो या फिर क्या आप अपने दोस्तों के साथ कैजुअली है? करने जा रहे हो। हर सिचुएशन अलग तरह के कपड़े और एक्सेसरीज डिमांड करती है। इसलिए कुछ भी पहनने या फिर खरीदने से पहले उसके पीछे के पर्पस के बारे में सोचो। सेकंडली फिटिंग यानी जो भी कपड़े आप खरीद रहे हो वो आपको ना तो ज्यादा ढीले होना चाहिए और ना ही एकदम टाइट। अगर आपके कपड़े काफी लूज है तो वह घर में तो काफी कंफर्टेबल लगेंगे लेकिन पब्लिक में वो ये सिग्नल करेंगे कि आप लेज़ी हो और ऐसे ही टाइट कपड़े भी आपको एक इम्मेच्युर और अन्य इंट्रेस्टिंग लुक देंगे। इसलिए हमेशा अपने कपड़ों की फिटिंग पर ध्यान दो। और अपने सूट्स या फिर ड्रेसेस को रेडिमेड लेने के बजाए उन्हें एक अच्छे टेलर से अपनी मेजरमेंट के अकॉर्डिंग बनवाओ थर्ड ली सिम्प्लिसिटी होती है। ज्यादा फालतू की चीजों या फिर अटेन्शन सी क्लोदिंग को ना पहनना। हम यहाँ पर बात कर रहे हैं ब्राइटन मैचिंग कलर्स जो एक चिप लुक क्रिएट करते हैं। अग्ली फैशन ट्रेंड, ज़ या फिर अटेन्शन पाने के लिए क्रिएटिविटी की जगह का यूज़ करना फोर्सली कॉन्फिडेन्स होता है। अपने स्टाइल को ओं करना ट्रेंड्स को मानने वाले लोग आपके क्लासिक और सिंपल स्टाइल को ट्रेडिशनल और आउटडेटेड बोलेंगे। लेकिन वो खुद हर सीज़न के साथ अपना स्टाइल इसलिए बदलते रहते हैं क्योंकि वो खुद की लुक को लेकर ही इनसेक्युर होते है। फिफ्थ फैशन रूल है एक्स्प्रेशन यानी अपने कपड़ों को एक जिंदा एंटिटी की तरह देखो जो आपके बिहाफ पर आप के लिए बात कर सकती है और सिर्फ ऐसे कपड़ों या फिर एक्सेसरीज़ को यूज़ करो जो आपके लिए कुछ पॉज़िटिव मैसेज को एक्सप्रेस कर सकते हैं। जो कुछ भी आप पहनते हो वो सिर्फ आपके लिए ही नहीं बल्कि आपसे जो कोई भी मिलता है उसके लिए भी होते हैं। अमेरिकन फैशन डिज़ाइनर टॉम फोर्ड बोलते हैं कि फैशन शरीर पर डाले गए कपड़ों से बहुत ज्यादा होता है। क्योंकि इसका इम्पैक्ट आपकी सेल्फ परसेप्शन और दूसरों के आपसे जुड़े व्यूज़ पर भी पड़ता है। आपको हमेशा खुद को अपने बेस्ट वर्जन से ढकना चाहिए। अपने आसपास मौजूद लोगों को रिस्पेक्ट शो करने के लिए खुद सोचो। अगर आप किसी मीटिंग में एक पुरानी टी शर्ट या फिर गन्दी सी शर्ट पहन कर चले जाओ तो सामने वाला सिर्फ यही नहीं सोचेगा कि आप कितने बुरे लग रहे हो बल्कि उसे ये चीज़ डिस रिस्पेक्टफुल भी लगे गी क्योंकि उसके हिसाब से आपको उससे मिलना, इतने इम्पोर्टेन्ट भी नहीं लगा कि आप खुद को अच्छे से प्रेसेंट कर सको। एक प्रॉपर सेन्स ऑफ स्टाइल दूसरों को बताता है। कि आप सिर्फ खुद की फीलिंग्स को ही नहीं बल्कि उनकी नजरों की भी परवाह करते हो। फैशन एक सोशल टूल है इसलिए एक फैशन डिज़ाइनर की तरह सोचो। कपड़ों और कलर की साइकोलॉजी को अपने फायदे के लिए यूज़ करो, अपने स्टाइल को इम्प्रूव करो और जो भी आप पहन रहे हो उसे एक कम्यूनिकेशन डिवाइस की तरह देखो और जैसा कि फ़्रेंच फैशन डिज़ाइनर को कुछ बोलती थी की बुरी तरह से ड्रेस करने से लोगों को सिर्फ वो ड्रेस याद रह जाती है, लेकिन एक स्टाइलिश में मैं ड्रेस करने से उसे पहनने वाला ज्यादा मेमोरेबल बन जाता है।","जब हम जागते हैं तो हमारे दिमाग में एक बात आती है कि आज हम क्या पहनने जा रहे हैं? भले ही हममें से ज्यादातर लोग फैशन या स्टाइल के बारे में कुछ नहीं जानते हों, लेकिन हर रोज हम अवचेतन उद्देश्य के साथ अपनी वर्दी चुनते हैं। हां, आप जो कुछ भी पहनते हैं वह आपके लिए या आपके खिलाफ काम करता है। लेकिन सिर्फ इसलिए कि यह पसंद या उद्देश्य हमेशा बाहरी और निष्क्रिय होता है, यह हमारा पर्यावरण है जो हमें अन्य तरीकों के बजाय नियंत्रित और परिभाषित करता है। इसलिए इस नियंत्रण को वापस लेने के लिए हम फैशन का इस्तेमाल करते हैं। फैशन हमें अपनी वास्तविकता को क्यूरेट करने की शक्ति देता है। यह बिना एक भी शब्द बोले बोलने में हमारी मदद करता है। इसलिए, व्यक्तिगत विकास के संदर्भ में फैशन के महत्व और आवश्यकता पर चर्चा करने के लिए, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम फैशन के पीछे के मनोविज्ञान का पता लगाएंगे।" "जिसतरह से सूरज की रौशनी तब तक रौशनी नहीं बनती। जब तक वह एक आंख पर नहीं पड़ती वैसे ही दुनिया का शोर भी तब तक शोर नहीं बनता जब तक वह एक अशांत और अस्थिर मन तक नहीं पहुंचता। हम हर समय खुद से बाहर दुनिया को नहीं बल्कि खुद को ही देख रहे होते हैं। एक पर्पस इंसान की नजर में दुनिया भी पर्पस लैस होती है और एक डरपोक इन्सान की नज़र में दुनिया खतरनाक और कठोर होती है। जो भी रूप आपकी अंदरूनी दुनिया लेकर बैठी होती है, उसी नाम से आप बाहरी दुनिया को पुकारने लगते हो, इससे हमे पता लगता है कि हमारे मन और भारी दुनिया को एक दूसरे से अलग नहीं करा जा सकता। जो भी आप सोचोगे, आपको वही भरी दुनिया में रिफ्लेक्ट होता है। वो देखेगा। बहुत से लोग हो जाते हैं जब मैं ये बोलता हूँ कि हम थिन किनके थ्रू तक नहीं पहुँच सकते हैं, क्योंकि थिन किन्ग सिर्फ थॉट्स के बारे में ही हो सकती है। आप कुछ भी सोचकर रिऐलिटी की सेन्स नहीं बना सकते हैं। बिकॉज़ थिस भी शेड के आपके थॉट्स होंगे। आप उन्हीं को भारी दुनिया पर प्रोजेक्ट करने लग हो गए। इन ऑर्डर टु ट्रूली अंडरस्टैंड रिऐलिटी यू नीड ने किड माइन्ड आपको एक खाली और संतुलित मन चाहिए। एक स्टेबल और अनस्टेबल माइंड में वही डिफरेन्स होता है जो समझदारी और पागलपन में होता है। पागलपन मन से नीचे होता है क्योंकि उसमें किसी भी तरह की इन्टेलिजेन्स इन्वॉल्व नहीं होती और समझदारी मन के ऊपर होती है, क्योंकि समझदार बनने के लिए आपको अपने मन का मास्टर बनना पड़ता है। रैन्डम या फिर अनप्रोडक्टिव थॉट से लड़ाई करने वाले लोग मन की ताकत के नीचे रहते हैं, लेकिन जिनका मन खाली और पानी की तरह साफ रहता है, वो मन की ताकत से भी बड़े होते हैं। मन के ऊपर रहने वाले बुद्ध कहलाते हैं। और मन के नीचे रहने वाले बुद्ध एक बुद्धू सोचता है की वो दुनिया को समझ सकता है। अपनी इंद्रियों पर ज़ोर डालकर जैसे जब हमें स्कूल में अटेन्शन पे करने के लिए बोला जाता है तब हम अपनी आंखें बोर्ड पर गाड़कर ध्यान देने की एक्टिंग करने लगते हैं। चाहे हमें कोई क्लू भी ना हो की टीचर क्या पढ़ा रहे हैं या फिर अगर हम एक बुक पढ़ने की कोशिश कर रहे हैं, बट हमारे आसपास शोर हो रहा है या फिर हम बोर्ड है तब भी हम अपने सेन ***** को फोर्स करने लगते हैं उस चीज़ को समझने के लिए? लेकिन इस तरह से खुद के ध्यान को फोर्स के थ्रू कहीं केन्द्रित करना कभी काम नहीं करता क्योंकि हमारे सेन्सस मैन्युअली नहीं बल्कि ऑटोमैटिकली काम करते हैं। यानी हमारी आँखों को बाहर जाकर रौशनी को पकड़ना नहीं पड़ता। वो चालें को देखने के लिए और हमारे कानों को बाहर जाकर शब्दों को नहीं पकड़ना पड़ता। अब वालों को सुनने के लिए रौशनी, ध्वनि या सुगंध खुद हमारी इंद्रियों तक आते है। जीवन किसी चीज़ को छूने पर भी उनका स्पर्श खुद ही हमारी उँगलियों तक आता है। हर समय चारों ओर से दुनिया खुद हमारी तरफ आ रही होती है और जितना हम ऑलरेडी हर बढ़ा रहे होते हैं और खुद पर ज़ोर डालने होते हैं, उसे समझने के लिए उतना ही हम अपने समझने की क्षमता को ब्लॉक कर रहे होते है। जैसे जब एक हिरन बर्ड फेस को ढूंढ रही होती है, तब उसे कई बार कई घंटों तक एकदम पोज़ीशन में रहना पड़ता है ताकि वो पानी में होने वाली हर छोटी से छोटी गतिविधि को नोटिस कर सके हैं। रन पानी में ऐसे खड़ी रहती है जैसे वो वहाँ पर है ही नहीं ताकि वो शांत रहकर दूर दूर तक पानी में हो रही हर हलचल को अपनी नजरों में समेट सके और जैसे ही पानी में एक छोटी सी भी लहर बनती है वो झट से उसपर वार करती है और मछली को पकड़ लेती है। भारी दुनिया को समझने के लिए स्टेबिलिटी का होना बहुत जरूरी है। दुनिया के बारे में सोचने का मतलब है खुद को बस उसके ख्यालों से भरकर खुद के मन को दूषित करना। खयालों के माध्यम से भी हम अपने मन को बाहर जाकर दुनिया को समझने को बोल रहे होते हैं। जबकि हमने अभी सीखा है कि हमें दुनिया के पास जाने की जरूरत है ही नहीं। वो खुद हर समय चारों ओर से हमारी तरफ आ रही है और हमें उसे खुद में समाने देने के लिए बस उसके रास्ते से हटना है। हमारे ख्याल लिनियर फॉर्म में चलते हैं यानी पहले एक ख्याल आता है। फिर दूसरा फिर तीसरा फिर चौथा एंड सोन लेकिन हमारी नज़र या फिर फील्ड ऑफ विजन कंप्लीट होता है और बहुत बड़े एरिया को कवर करता है। यानी सोचने की प्रक्रिया काफी धीमी होती है देखने या मन को पूरी तरह साथ में यूज़ करने से इसी वजह से हमें मेहनत लगानी पड़ती है। अपने खयालों को अपने सुनने या फिर देखने की स्पीड से मैच करने के लिए। इसके साथ ही हमारे ख्याल लाइफ लैस होते हैं और उनके और रियल वर्ल्ड के बीच में एक गैप होता है। फॉर एग्ज़ैम्पल अगर मैं एक इंसान से पहली बार मैं लू तो उसकी कॉम्प्लैक्सिटी को सिंप्लिफाइ करने के लिए मैं उससे जुड़ा एक ख्याल बना लूँगा। ये अच्छा ये इंसान तो बेवकूफ हैं, ये अच्छे से बात करता है या फिर यह इंसान गुड लुकिंग है? अगर मैं किसी से मिलकर जल्दी कोई ओपिनियन नहीं फॉर्म करता तो मुझे उस इंसान की लाखों क्वालिटीज से डील करना पड़ेगा और मेरे लिए बहुत ही ओवर वेल्डिंग होगा। इसलिए रिऐलिटी को आस इट इस देखने के बजाय हम रिऐलिटी के खयालों से डील करते हैं। जिसतरह ताजमहल की फोटो को खुद ताज महल समझना गलत होगा वैसे ही असली दुनिया के ख्यालों को असली दुनिया समझना भी गलत है। हम जीस भी चीज़ के बारे में सोच रहे होते हैं। हम एक तरह से उसकी फोटो को ही देख रहे होते हैं। सोचने का मतलब है अपने और उस चीज़ के बीच ख्याल की दीवार खड़ी कर लेना। मन किसी भी चीज़ को समझने के लिए उसे छोटे छोटे टुकड़ों में बांट देता है और ये चीज़ बहुत से एरियाज में यूज़फुल भी होती है जैसे साइन्टिफिक एक्सपेरिमेंट्स में हाउएवर अगर मैं किसी चीज़ के थ्रू एसएमएस को समझना चाहता हूँ तो इसके लिए मुझे उसे टुकड़ों में या फिर फोटो में नहीं बल्कि आस इट इस देखना पड़ेगा। याद रखो आप सिर्फ किसी चीज़ के ख्यालों के बारे में सोच सकते हो, उस ऐक्चुअल चीज़ के बारे में नहीं थिंक इंग्लिश ऑलवेज अबाउट थॉट्स सोचना खुद से बात करने के जैसा होता है। लेकिन जीस तरह हमें दूसरे लोगों की बातें सुनने और समझने के लिए शांत होना पड़ता है वैसे ही हमारे मन का शांत होना भी बहुत जरूरी होता है। अगर हम ख्यालों के अलावा किसी चीज़ को अपने मन में जगह देना चाहते हैं तो थिंकिंग को अपने आप में गलत मत समझना। हमें लाखों और करोड़ों साल लगे हैं। क्लियरली सोच पानी की एबिलिटी हासिल करने के लिए थिंक इंग्लिश डेफिनेटली यूजफुल टूल बट। इसकी वैल्यू सिर्फ तभी है, जब हम इसे बैलेंस कर सके। नॉन थिंकिंग से बहुत से लोग हर समय किसी प्रैक्टिस या फिर टेक्नीक को ढूंढ रहे होते हैं, जिससे वो अपने माइंड को स्टेबल और साइलेंट कर सके। लेकिन अब आपको पता है कि माइंड को साइलेंट करने का ख्याल ऐक्चुअल साइलेंस को जन्म नहीं दे सकता। मेडिटेशन के बारे में सोचना मेडिटेशन नहीं होता, माइंड को साइलेंट और स्टेबल सिर्फ और सिर्फ बिना ओपिनियन बनाए चीजों को देखने से करा जाता है। यानी किसी भी चीज़ को देखो बिना उसे जज करे बस उसके सच को अब जॉब करो। जैसे अगर आप एक पेड़ को देख रहे हो तो बस उसकी टहनियों, उसके रंग, उसके पत्तों या फिर उस पर लगे फूलों को देखो, लेकिन उस पर अपने ओपिनियन का लेबल मत लगाओ। अपने मन को **** और साफ रखो। हर रोज़ अपनी फैमिली को देखने पर उन्हें फ्रेश नजरों से देखो कल को ओपिनियन आज में मत लाओ ऐंड द होल वर्ल्ड कम टु यू खुद अपना दिमाग मत चलाओ की क्या सही है और क्या गलत या फिर कौन अच्छा है और कौन बुरा? आपको क्या करना है ये खुद ही क्लियर हो जाएगा जब आप सर्च और असली दुनिया को आस इट इस देख पाओगे।","आपकी वास्तविकता यह है कि आप कैसा सोचते हैं। इसका मतलब है कि वास्तविकता के हमेशा दो संस्करण होते हैं। एक वह वास्तविक वास्तविकता है जो आपके पक्षपातपूर्ण विचारों से अछूती है और दूसरी आपकी वह वास्तविकता है जो आपकी अपनी मान्यताओं पर आधारित है। एक अस्थिर मन जो विचारों से भरा हुआ है वह मन है जो सत्य को नहीं देख सकता है। यदि आपका मन कभी शांत नहीं होता, तो आप वास्तविक दुनिया का स्वाद कभी नहीं ले पाते।" "हम एक ऐसी सोसाइटी में रहते हैं जिसमें ज्यादातर लोगों का एक विक्टिम माइंडसेट होता है। यानी उन्हें हमेशा ऐसा लगता है कि वो अपनी लाइफ में अच्छा नहीं कर पा रहे दूसरे लोगों की वजह से और वो हमेशा एक डिसएडवांटेज पर है। इसके ऊपर से दुख की बात यह है कि आज कल ऐसे लोगों के वीक माइंडसेट को सेलिब्रेट करा जाता है, जो बस अपनी रिस्पॉन्सिबिलिटी इससे बचना चाहते हैं तो वो अपनी पूरी आइडेंटिटी ही एक विक्टिम होने के अराउंड बना लेते है। हाउएवर हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि लाइफ हर इंसान के लिए ही मुश्किल होती है। एक गरीब घर में पैदा होने वाले इंसान की अपनी प्रॉब्लम्स है। और एक अमीर घर में पैदा होने वाले की अपनी जैसा कि फ़्रेंच फिलॉसफर ऐल्बर्ट कमीने बोला था कि कई बार हमें अपने आप को गोली मारने से ज्यादा जीने के लिए हिम्मत चाहिए होती है, लेकिन अगर हम इसी बात पर रेस लगाने लग जाए कि किस इंसान की प्रॉब्लम्स ज्यादा बड़ी है तो ऑफ कोर्स हर इंसान अपने आप को दूसरे से बड़ा दिखाने की कोशिश करेगा और जो ब्लेम वो दुसरो पर डाल रहा है कि दूसरे लोग उसे आगे बढ़ने से रोक रहे हैं वो चीज़ वो अपनी आपके साथ करने लग जाएगा। इसी वजह से अपनी सब से डटकर मुकाबला करने का और अपने आप को मेंटली टफ बनाने का सल्यूशन है। अपने अंदर करेज बिल्ड करना एक करेजियस में नरमे ऐक्ट करने का मतलब है कि आप अपने नेगेटिव इमोशन्स के आगे सरेंडर नहीं करते हो और उन्हें ऐसी रुकावट की तरह नहीं देखते हो जो आपको लाइफ में आगे बढ़ने से रोकती है। हम सबके दिमाग में ही ऐसी बहुत सी चीजे आती है जो हम ज्यादा हिम्मत होने पर जरूर करते हैं। में बी हम पब्लिक स्पीकिंग कर पाते हैं। अपने पैरंट्स को यह बता पाते कि हमें उनके बताए रास्ते पर न चलकर अपने पैशन को फॉलो करना है। में बी हम फाइनली अपने क्रश को अपने दिल की बात बता पाते हैं या फिर हम उन लोगों को फेस कर पाते जो हमें बुली करते हैं। पर जब भी हम अपने सबसे बड़े दरों को देखते हैं तो हम उन्हें फेस करने के बजाय अपने कंफर्ट ज़ोन में रहकर ऑपर्च्युनिटीज को अपनी आँखों के सामने से गुजरते हुए देखते रहते हैं और कुछ ऐक्शन लेने के लिए सही टाइम के आने का वेट करते रहते हैं। यहाँ तक कि हम खुद से पूछते हैं कि यार मैं कब तक अपने घरों से दूर भागता रहूँगा? ये इनसाइट हमें ये बताती हैं कि किस तरह से हमारे इमोशन्स क्रेज के कंपैरिजन में ज्यादा ऐनिमल इस टिक है, क्योंकि हर इमोशन को इन्वॉल्व होने में लाखों साल लगे। एक कॉमन पर्पस को सर्व करने के लिए यानी हमारे सर्वाइवल के लिए जिससे जब भी कोई सिचुएशन हमारे अंदर डर पैदा करती है तब हमारा प्रिमिटिव ब्रेन उसे एक जहरीले सांप या फिर शेर जैसे की तरह देखता है जिनसे हमारी जान को खतरा हो सकता है। यानी एक जंगल जैसे एनवायरनमेंट से बाहर आने के बाद भी जंगली चीज़ हो या फिर किसी ऐसे अनदेखे खतरे से मौत का डर हमारे अंदर अभी भी है और तभी हमारा हर इमोशन हमें एक एनवायरनमेंट को ढंग से परखने और उसके साथ अडैप्ट करने के काबिल बनाता है और ये प्रोसेसिंग इतना तेज होता है कि जब तक हम एक सिचुएशन को लॉजिकली प्रोसैस करते हैं, उससे पहले ही हमारी बॉडी उसे इमोशनली प्रोसेसर कर चुकी होती है। पर इमोशन्स के साथ प्रॉब्लम ये है कि कई बार वो हमें एक सिचुएशन से जुड़े रिस्क या रिवॉर्ड के बारे में गलत इन्फॉर्मेशन भी दे सकते हैं और यह तब होता है जब हमारे इमोशन्स कैन्सर सेल्स की तरह अपनी एक अलग जिंदगी जीना शुरू कर देते हैं और हमारे कंट्रोल से बाहर निकलकर हमें छोड़ जाते हैं। एंजाइटी, डिप्रेशन, गिल्ट, फोबियस या शेन के साथ कई लोग अपने ऊपर हावी हो रखें। इन नेगेटिव इमोशन्स को या तो एक्स्क्यूस रैशनल की मदद से जस्टिफाई करने की कोशिश करते हैं या फिर वो अपने इमोशन्स को दबाते हैं अलग अलग सबस्टैन्स को यूज़ करके पर दोनों तरीके ही लॉन्ग टर्म के लिए सस्टेनेबल नहीं है। जब जब हम रैशनल को यूज़ करके अपने इमोशन्स को ओवर कम करने की कोशिश करते हैं तब हम ये एक्सपेक्ट कर रहे होते हैं कि हम अपने दिमाग की लॉजिकल एबिलिटीज़ को यूज़ करके अपने इन अनकॉन्शियस इमोशन्स को चैलेंज कर पाएंगे। पर हर वो पैटर्न जो अनकॉन्शियस बन चुका होता है और हमारी साइड में काफी डीप जा चुका होता है, उसे सिर्फ लॉजिक के साथ ठीक नहीं करा जा सकता। कितनी बार भी आप अपने इमोशन्स को फाइट करने की कोशिश करोगे तो चान्सेस है कि आप अपनी थिंकिंग से अपने अनहेलथी इमोशन्स को नहीं बदल पाओगे बल्कि आपके इमोशनस आपकी थिंकिंग को बदल देंगे। दूसरी तरफ जब हम किसी सबस्टैन्स का सहारा लेते हैं या बस ज्यादा सोकर अपने फोबियस फिरंज़ या दूसरे बुरे पैटर्न्स को अपनी कॉन्शस अवेर्नेस से बाहर रखने की कोशिश करते हैं तब ये इमोशन्स हमारे अनकॉन्शस माइंड में और डीप चले जाते हैं और हमारी लाइफ को बद से बदतर बना देते हैं। इसका मतलब किसी भी तरह से अपने डरो से दूर भागना इम्पॉसिबल है। जितना आप अपने डरो को अवॉर्ड करोगे उतना ही वो बड़े होते जाएंगे। सो ऐसे में क्वेश्चन ये आता है कि हम अपने डर को ओवर कम करके अपने अंदर करेज कैसे बढ़ाएं। कैनेडियन साइकोलॉजिस्ट लेस्ली ग्रीन बर्ड ने अपनी रिसर्च के थ्रू ये दिखाया है कि अपने इमोशन्स को लेबल करना उन्हें समझने और उनके साथ मिलकर काम करने का सबसे इफेक्टिव तरीका है। यानी जब भी आपके अंदर कोई नेगेटिव इमोशन आए तो ये क्लियर करने के लिए कि आप किस चीज़ के साथ डील कर रहे हो उसे नोटिस करो। जाम पल के तौर पर अपने मन में बोलो की मैं गुस्सा फील कर रहा हूँ। मैं डर को एक्सपिरियंस कर रहा हूँ या फिर मेरे अंदर ऐंगज़ाइइटी बढ़ रही है? इस तरह से आप अपने अनकॉन्शस माइंड के कॉन्टेंट को आइडेंटिफाइ और एक्सेप्ट कर पाते हो बजाए उन्हें इग्नोर करने के हाउएवर शुरू में शायद आपको अपने इमोशन्स को लेबल करना थोड़ा पॉइंट्स लगे पर जब आप अपने अनकॉन्शियस प्रोसेसेस को एक नाम दे देते हो तब उन्हें अपने कॉन्शस माइंड में लाकर अपने कंट्रोल में रखना काफी इजी हो जाता है। इसे ऐसे देखो कि अगर आप का डर एक इंसान होता जिससे आप बहुत प्यार करते हो। और उससे आपको कुछ बोलना है तो आप क्या करते हैं? आप उन्हें इग्नोर या फिर शांत करने की कोशिश नहीं करते बल्कि आप सुनते कि वो आपको क्या बताना चाहते हैं। यही रीज़न है कि क्यों अपने इमोशन्स को लेबल करना आपकी पर्सनल ग्रोथ की बस शुरुआत है, क्योंकि हमारे सबसे बड़े दरों में एक ऐसा करेक्टर बिल्ड करने की ऑपर्च्युनिटीज छिपी होती है, जो सिर्फ हमारी ही नहीं बल्कि पूरी कम्यूनिटी के लिए यूज़फुल होगा। जर्मनी फिलॉसफर नीचा का बोलना था की अगर तुम्हारे अंदर आग में जलने और राख बनने की हिम्मत नहीं है तो तुम कभी भी नए नहीं बन सकते हैं और ना ही तुम दोबारा जवान बन सकते हो। इसलिए अगर हम चाहते हैं कि हमें भी अपने आप को एक नया इंसान बनाने की ऑपर्च्युनिटीज मिले तो हमें धीरे धीरे करके अपने आप को, अपने डरो के आगे एक सपोज़ करना होगा। जहाँ अपने सबसे बड़े डरो को एकदम से फेस करने पर आप काफी ट्रॉमेटिक फील करोगे वही उन्हें छोटे छोटे टुकड़ों में बांटकर सहने से आप अपनी क्रेज और अपने करेक्टर को इन्साइड आउट बिल्ड कर पाओगे।","एक ऐसे समाज में जहां ज्यादातर लोग पीड़ित अवस्था में रहते हैं, साहस एक ऐसा गुण है जिसकी भारी कमी है। लेकिन क्यों? लोगों को बहादुर होने या अपने डर पर काबू पाने से क्या रोकता है? इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, मैं इन सवालों के जवाब देता हूं और उन तरीकों पर चर्चा करता हूं जिससे आप भी आंतरिक साहस का निर्माण कर सकते हैं।" "आपकी आज तक की ज्यादातर फ्रेन्ड्शिप से एक को इन्सिडेन्स या फिर एक मतलबी एक्स्चेंज से ज्यादा कुछ नहीं थी। यानी या तो आपको आपके फ्रेंड ज़ स्कूल, कॉलेज जॉब या फिर किसी और जगह पर मौजूद होने से मिल गए या फिर आप दोनों को एक दूसरे से बस अपना अपना मतलब निकालना था। इसलिए आप दोस्त बने है? आपने उन्हें कॉन्शस ली चूज नहीं करा था, बल्कि सिचुएशन कुछ ऐसी थी कि उसने दो लोगों को आपस में मिला दिया। आप बस उनके साथ फ्रैंडली इसलिए हुए थे क्योंकि आप सम एनवायरनमेंट में पढ़ाई या फिर काम करते थे। आपकी फ्रेंडशिप ऐक्सिडेंट है ना कि आपकी बेस्ट ऑलमोस्ट यूसफुल चॉइस यही वजह है कि क्यों ज्यादातर दोस्त या कॉलेज या फिर स्कूल खत्म होने या फिर ऑफिस बदलने पर खत्म हो जाती है क्योंकि असल में वो फ्रेंडशिप नहीं बल्कि बस फ्रेडली इन एस थी। ऐसी दोस्ती को आप असली दोस्ती नहीं बोल सकते है। असली दोस्ती में आप ये नहीं सोचते कि उसमें आपका क्या बेनिफिट है बल्कि आप किसी को इसलिए अपना दोस्त बनाते हो क्योंकि आप उसमें मौजूद क्वालिटीज को ऐडमायर करते हो और उसे और बेहतर बनाने में मदद करना चाहते हो। इस तरह की फ्रेंडशिप अक्सर वो लोग डेवलप कर पाते हैं। जो वाइज होते हैं और अपने साथ साथ दूसरों के बारे में भी सोचना जानते हैं। आम और सिचुएशनल फ्रेंडशिप में आप और आपका दोस्त अपने पागलपन, सच्चे मोटिव, अपने सबसे बड़े सपनों और अपनी ट्रू नेचर को छुपाते या फिर सिर्फ एक हद तक ही बाहर आने देते हो। इसलिए ही आपके ज्यादातर दोस्तों को कभी भी यह जानने को नहीं मिलता कि आप असल में हो कौन? वो आप की लहरों से तो वाकिफ हैं, लेकिन आप की गहराइयों में कौन सा खजाना गड़ा हुआ है, उनको इसका कोई आइडिया नहीं है। ट्रू फ्रेंड्स एक दूसरे के आगे अपनी उन कमियों और इन्सेक्युरिटी वो भी एक्सप्रेस कर पाते हैं जो शायद वो कभी खुद के आगे भी नहीं बोलते है। यह एक तरीका होता है जिससे हम अपने बुरे हिस्सों को एक प्यार करने वाले के हाथ में देकर उन्हें इनडायरेक्टली एक्सेप्ट कर पाते हैं। असली दोस्त आपको हमेशा आपके पास पहुंचाते हैं, बजाए आपको आप सही दूर ले जाने के। लेकिन बहुत बार हम ऐसे लोगों के साथ भी टाइम स्पेंड करने लगते हैं जिनके साथ रहने से ना तो हमारी ग्रोथ होती है और ना ही उनकी ऐसे लोगों और हमारे में ना तो कुछ ज्यादा सिमिलर होता है। उनके आगे हम अपना मजाक उड़ाने के डर से अपना पागलपन और वीकनेसेस भी रिवील नहीं करते। और वो कही ना कही हमारे फेल्यर से खुश भी होते है। वो बस हमारी जिंदगी में बहुत से दूसरे रैन्डम लोगों की तरह एंटर करते हैं और हमारा टाइम और एनर्जी वेस्ट करने के अलावा किसी काम नहीं आते हैं। हम भी इसी डाउट में रहते हैं कि क्या उनके साथ फ्रेंडशिप रखनी भी चाहिए या फिर नहीं। लेकिन यही डाउट एक साइन होता है कि हमें ऐसे लोगों के साथ ज्यादा स्ट्रिक्ट रहना चाहिए और नीम पावरिंग और नीम विशेस लोगों को खुद से दूर रखना चाहिए। अपने अनप्रोडक्टिव फ्रेंड्स को दूर करने का मतलब यह नहीं होता कि हमें फ्रेन्ड्शिप सी नहीं पसंद बल्कि इसका मतलब बस इतना होता है कि हम इस बात को लेकर और क्लियर होते जा रहे हैं कि हमें अपनी जिंदगी से क्या चाहिए और किस तरह के लोग हमारी लाइफ को फुलफिल लिंक बना सकते हैं। फ्रेन्ड्शिप का पर्पस और ऐसी फ्रेंडशिप निभाने वाले लोगों को हम तीन पॉइंट्स मैं समझ सकते है। नंबर वन फ्रेंडशिप के फिजिकल एंड के साइकोलॉजिकल नीड ज़ एक रोमेंटिक रिलेशनशिप फिजिकल नीड्स पर बेस्ट हो सकता है और साइकोलॉजिकल नीड्स तो हर तरह के रिलेशनशिप से पूरी कर ली जा सकती है। अपनी फैंटसीज़ को दूसरों पर प्रोजेक्ट करके हाउएवर अगर हम फ्रेंडशिप को उसकी गहराई में समझने की कोशिश करें। तो यहाँ ना तो आपको फिज़िकली अपने फ्रेंड से कुछ चाहिए होता है, ना ही आप उससे फाइनैंशली कुछ गेन करना चाहते हो और ना ही आप ये सोचकर उसके साथ हो कि उसके साथ रहने से दूसरे लोग आपको ज्यादा रिस्पेक्ट या फिर अटेन्शन देंगे। फ्रेन्ड्शिप का असली पर्पस थ्रू लॉट की ही तरह स्पिरिचुअल नेचर का होता है क्योंकि फ्रेन्ड्शिप भी एक तरह का प्यार ही है। नंबर टू ऑफ फ्रेंडशिप ब्रिंग सूट रिमेन्डर हेल्थ खुद सोचो कि किस तरह का फ्रेंड असली फ्रेंड होता है। एक, जिसके आने से आपकी हेल्थ हर तरह से इम्प्रूव हो या फिर एक ऐसा फ्रेंड जिसके आपकी जिंदगी में आते ही आपकी हेल्थ खराब होने लगे हैं। फ्रेंड से मिलने वाली खुशी उनके साथ रहने और उनके सपोर्ट से कम हुआ। हमारा स्ट्रेस और उनकी बातों का सच हमें मेंटली, पीसफुल और फिज़िकली हेल्थी बनाता है। आप ये सोच भी नहीं सकते कि लॉन्ग टर्म में सच किसी भी रिलेशनशिप को कितना स्ट्रॉन्ग बना सकता है। फ्रेंडशिप का मतलब है कि दूसरा इंसान आपको अपना व्यूपॉइंट एकदम सच्चाई के साथ बताता है। आपको पता है कि वह कोई भी चीज़ आपको इंप्रेस करने के लिए नहीं बोल रहा और उनकी हर सलाह आपकी भलाई के लिए है। फ्रेन्ड्शिप का ट्रू पर्पस ऐसे इंसान से फ्रेंडशिप करने पर ही समझ आता है। क्योंकि यहाँ दोनों पार्टीज़ की ही ग्रोथ हो रही होती है और फोकस लॉन्ग टर्म के बेनिफिटस पर होता है। नंबर थ्री फ्रेन्ड्शिप इस नॉट ऑफ नेसेसिटी, बट ऑफ इन नोबलमेन ट जो भी फ्रेंडशिप सिचुएशनल यानी बस आउट ऑफ नेसेसिटी शुरू होती है, वो फ्रेंडशिप टेंपरेरी होती है और आपको ज्यादा ग्रो नहीं करती। इससे डीप्ली समझो की टाइम पास करने के लिए किसी को अपना कंपैनियन बना लेना। गिफ्ट फ्रेंडशिप नहीं बल्कि बस फ्रेंडली इन एस होती है। फ्रेंडशिप में आप दोनों का फोकस एक दूसरे की नोबेल मेट यानी एक दूसरे को ज्यादा रिस्पेक्टफुल बनाने महानता की तरफ धकेलने और एक दूसरे की सफरिंग कम करने पर होता है। आप जब एक इंसान को खेल खेल में ही उसे उसके सांसारिक जीवन से ऊपर उठना सीखा देते हो, उसे बोला जाता है। फ्रेंडशिप फ्रेंडशिप सिर्फ इतनी नहीं होती कि चलो बाहर घूमने या फिर खाने पीने चले या फिर साथ में गेम्स खेलें और खुद को एंटरटेन करें। ये चीजें एक प्रूफ फ्रेन्ड्शिप का हिस्सा सिर्फ तभी बन सकती है जब इनके साथ आप दोनों की स्पिरिचुअल डेवलपमेंट भी जुड़ी हो।","अब तक आपकी अधिकांश मित्रताएं एक दुर्घटना से अधिक नहीं रही हैं। या तो आप उनके साथ दोस्ताना हो गए क्योंकि आप एक ही स्कूल, कॉलेज या कार्यालय में थे, मतलब, स्थिति की आवश्यकता के कारण आप दोनों को एक साथ लाया गया था। जब किसी रिश्ते की अखंडता में कम सचेत विकल्प और अधिक बाहरी कारक शामिल होते हैं तो ऐसे बंधन का विफल होना तय है। इसलिए इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम दोस्ती के असली मकसद पर चर्चा करेंगे।" "मेडिटेशन एक ऐसी प्रैक्टिस है जिसे हजारों सालों से फिजिकल, साइकोलॉजिकल और स्पिरिचुअल ग्रोथ के लिए यूज़ करा जा रहा है। मेडिटेशन या ध्यान लगाने का सबसे पुराना जिक्र हिंदू लिटरेचर में उप नेशन्स महाभारत और गीता में कहा गया है। पर पिछले कई डेकेड्स तक मेडिटेशन को सिर्फ मंदिर हो या बुद्धिस्ट मंथ्स के बीच होने वाली एक प्रैक्टिस माना जाता था और ये मेन स्ट्रीम तब बना जब वेस्टर्न कल्चर ने मेडिटेशन के बेनिफिटस को साइनस की मदद से अप्रूव़ कर दिया। और बड़े बड़े ऐथलीट्स और सिलेब्रिटीज भी इस प्रैक्टिस को प्रोमोट करने लग गए, जिससे पिछले कई सालों में मेडिटेशन यंग लोगो के लिए काफी कूल बन गया। अभी तक की रिसर्च बताती है कि मेडिटेशन करने से हमारा स्ट्रेस ऐंगज़ाइइटी, मेमोरी लॉस, ब्लड प्रेशर और डिप्रेशन कम होता है। ऐडिक्शन छोड़ने में आसानी होती है और इससे हमारी मेंटल क्लैरिटी, फोकस अटेन्शन स्पैन, इम्युनिटी और सेल्फ ऑफिस भी बढ़ती है। इसके साथ ही साइंटिफिक डेटा यह भी बताता है कि किस तरह से अलग अलग तरह की मेडिटेशन टेक्नीक्स किस तरह से हमारे दिमाग में मौजूद न्यूरॉन्स के बीच होने वाली इलेक्ट्रिकल कम्यूनिकेशन यानी ब्रेनवेव्स को बदल देती है। जैसे माइंडफुलनेस मेडिटेशन, जिसमें आप बस अपनी आँखें बंद करके अपने दिमाग से गुजरते हुए थॉट्स को ऑब्जर्व करते हो, बिना उन्हें जज करे। उसमें ऐल्फा ब्रेनवेव्स रिलीज होती हैं जो आप की अलर्टनेस को बढ़ाती है और आपको मूवमेंट में प्रिज़न फील कराती है। एक विज़ुअलाइज़ेशन में स्टेशन जहाँ पर हम किसी सिचुएशन या इवेंट को इमेजिन करते हैं, उसमें हमारा दिमाग थे, 12 स्टेट में आ जाता है और एक काफी डीप मेडिटेटिव स्टेट, जहाँ पर हमारी आइडेंटिटी और टाइम गायब हो जाते हैं। हमें पता नहीं होता की हमारे पास एक बॉडी भी है या फिर हम कौन हैं। इस समय पर हमारा दिमाग डेल्टा वेज़ बना रहा होता है जो हीलिंग और रिजेनरेशन के लिए बेस्ट रेट होती है और जो लोग सालों से मैं इरिटेट कर रहे होते हैं सिर्फ वो ही इतने डीप मेडिटेशन में जा पाते है। मेडिटेशन ने हमें हमारे दिमाग के बारे में काफी बातें बताई हैं, पर मेडिटेशन का साइकोलॉजी की फील्ड में सबसे बड़ा कॉन्ट्रिब्यूशन है। हमें हमारे सेल्फ या ईगो के बारे में समझाना। सेल्फ जेनरली हमारी आइडेंटिटी को बोला जाता है। यानी जिन इन्ट्रेस्ट या हैबिट्स को हम अपने साथ असोसिएट करते हैं और बोलते है की ये मैं हूँ पर जब हम मेरिट एट करते हैं तब हम अपने आप से पूछना स्टार्ट करते है की क्या हम बस यही है क्योंकि मेडिटेट करते टाइम हम यह बात समझ जाते हैं। पेज इस चीज़ को हम अपनी आइडेंटिटी बोल रहे है। वो बस वो चीजें हैं जिनको हम प्रेज़ेंट मूवमेंट में पकड़ के बैठे हैं। मेडिटेशन हमें सीखाता है की हम कितने ऑप्शनल है और कभी भी अपने आप को अपनी मर्जी से बदल सकते हैं। धीरे धीरे हमें यह भी समझ आ जाता है कि हमारी कोई पक्की आइडेंटिटी है ही नहीं और हमारी ईगो या सेल्फ जैसे हम मैं बोलते है वो एक इल्यूजन है और वो हमारी असलियत की एक अधूरी सच्चाई को रिफ्लेक्ट करता है। तभी बुद्धिज़म में बोला जाता है देर इस नो यू नाउ, ये तो हो गयी मेडिटेशन के फिजिकल और मेंटल ऐस्पेक्ट की बात। लेकिन इंटरनेट पर जीस ऐस्पेक्ट के बारे में सबसे कम बात करी जाती है वो है मेडिटेशन की कॉन्ट्रोवर्शियल साइड यानी उसका स्पिरिचुअल ऐस्पेक्ट। ट्रेडिशनल हिंदुइज़्म में योग करना या फिर ध्यान लगाने की प्रैक्टिस को मोक्ष प्राप्त करके अपने कर्मों को मिटाने का तरीका बताया गया है। और योगसूत्र इसमें संत पतंजलि ने बताया है कि किस तरह से हमारी आत्मा पर पिछले जन्मों के कर्मों का भार बढ़ता जाता है और तभी पिछली जिंदगियों की प्रॉब्लम्स को सॉल्व करने के लिए उन्होंने एक प्रोसेसेस को इंट्रोड्यूस किया, जिसे बोला गया प्रति प्रसव जिसका लिटरल मतलब है रिवर्स बर्थिंग और आज के टाइम पर हम इस थेरपी को जानते हैं। पास्ट लाइफ रिग्रेशन के नाम से कई स्टडीज़ में यह देखा भी गया है कि जब सब्जेक्ट्स को इस थेरपी से गुज़ारा जाता है तब वह एकदम से एक नई आइडेंटिटी ले लेते हैं और अपनी पास्ट लाइफ का एक काफी डिटेल्ड डिस्क्रिप्शन देने लगते हैं। यहाँ तक की अभी तक इंडिया में ऐसे कई योगियों ने ये दावा करा है की वो एक दीप मेडिटेटिव स्टेट में जाकर पास्ट और फ्यूचर भी देख सकते हैं और दुनिया की किसी भी नॉलेज को ऐक्सेस कर सकते हैं। मेडिटेशन के चमत्कारों का जिक्र गुरु परमहंस योगानंद ने अपनी बुक ऑटोबायोग्राफी ऑफ आयोग में भी करा है। पर इतने सारे क्लेम्स के बीच ये छांटना बहुत मुश्किल है कि कौन सा क्लेम सच है और कौन सा नहीं हाउएवर कई साइकोलॉजी स्कॉलर्स मानते हैं की थिओरी में फ्यूचर या पास्ट को देखना पॉसिबल हो सकता है और वह इस फिनोमिनल को कार्य उनके एक कॉन्सेप्ट कलेक्टिव अनकॉन्शियस से समझाते हैं। वो बोलते है कि जीस तरह से हमारी इन्टेलिजेन्स के तीन मेजर पार्ट्स है। कॉन्शियस जिसके बारे में आप इस वक्त अवेयर हो सबकॉन्शियस जिसके बारे में आप पार्शियली अवेयर हो और अनकॉन्शियस जिसके बारे में आप बिलकुल अवेयर नहीं हो। इनमें से हमारे अनकॉन्शस माइंड में पुरानी भूली हुई मेमोरीज़ के साथ साथ वो मेमोरीज़ और नॉलेज है जो हम बाकी सारे इंसानों और अपने एन्सिस्टर्स के साथ शेयर करते है। हमारे दिमाग का ये हिस्सा खुद इंडिविजुअली डेवलप नहीं होता, बल्कि यह हमें हमारे पूर्वजों से मिलता है। यानी हर वो थॉट जो कभी किसी ने सोचा। वो अभी भी हमारे अंदर एग्जिस्ट करता है। कई साइंटिस्ट इस मॉडल को एक स्टेप और आगे ले जाते हैं और बोलते हैं कि जीस तरह से कलेक्टिव अनकॉन्शियस हमें बाकी इंसानों और जानवरों के दिमाग और उनकी हिस्टरी से कनेक्ट करता है। वैसे ही पास्ट प्रिजेंट और फ्यूचर की इन्फॉर्मेशन का एक और ऐसा कलेक्शन है जो हमारी के बाहर एग्जिस्ट करता है, जिसे नाम दिया गया है कलेक्टिव कॉन्शसनेस, जिसे कई लोग यूनिवर्सल माइंड या आंशिक रिकॉर्ड भी बोलते हैं। और ये वो इन्टेलिजेन्स है जिससे पूरी दुनिया बनी है और मेडिटेशन हमें इसी इन्टेलिजेन्स को चैनलाइज करने का मौका देता है। यहाँ तक कि हंगेरियन साइन्टिफिक फिलॉसफर ने अपनी बुक आकाश इक्स्पिरीयन्स साइंस ऐंड कॉस्मिक मेमोरी फील्ड में ऐसे कई केस को डॉक्यूमेंट भी करा हैं, जहाँ पर लोग मेडिटेटिव और ब्रीदिंग टेक्नीक की मदद से ये याद कर पा रहे थे की वो पैदा होने से पहले कहा थे। उनके एक कौन थे, उनकी लाइफ कैसी थी और उस टाइम का आर्किटेक्चर कैसा था? और ऐसी काफी सारी डिटेल्स को वेरिफाइ भी करा गया है। ऑथर ने एक चैपटर मैं खुद कभी एक्सपिरियंस शेयर करा है, जहाँ पर उन्होंने अपने गुजरे हुए भाई से बात करि और इस बुक में ये भी बताया गया है कि इस इन्टेलिजेन्स को हम सिर्फ एक ऑल्टर स्टेट ऑफ कॉन्सियसनेस में ही ऐक्सेस कर सकते हैं। यानी जब हमारी ब्रेन वेव्ज़ यूचुअल बेटा से हटकर अल्फा और डेल्टा पर शिफ्ट हो जाती है, बिल्कुल वैसे ही जैसे हम अपने टीवी या रेडियो सुनने के लिए उनकी फ्रीक्वेन्सी को बदलते हैं। फाइनली अगर आप भी अपनी साइट की गहराइयों में जाकर इस कलेक्टीव विस्डम को इक्स्पिरीयन्स करना चाहते हो तो इसकी कई टेक्नीक्स है। पर इसके लिए पहले आपको वॉर्मअप करना होगा और अपने आप को डीप जाना सीखाना होगा। सबसे पहले आप एक इंटेन्शन सेट करो कि आप एक दीप मेडिटेटिव स्टेट में जाना चाहते हो और सबसे बेसिक तकनीक से स्टार्ट करो। जो की है माइंडफुलनेस मेडिटेशन जिसमें आप एक चेर पर या फिर एक लोटस पोज़ीशन में बैठते हो, आँखें बंद करके अपने आपको रिलैक्स करते हो। और अपनी अटेन्शन प्रेसेंट मोमेंट में चल रहे अपने इक्स्पिरीयन्स पर ले आते हो। पर ट्रिक ये है कि आप अपने आसपास हो रही हर चीज़ पर फोकस करने के बजाय सिर्फ एक चीज़ को चूज करो, जैसे अपनी बर्थ पर फोकस करो या फिर आपके दिमाग में कौन से थॉट सारे हैं, उन्हें ऑब्जर्व करो। बिना किसी जजमेंट के ये टेक्नीक आपको यह समझने के लिए ट्रेन करेगी कि कैसे आपके दिमाग में पास्ट प्रिजेंट और फ्यूचर के थॉट्स या इवेंट्स आते हैं और अगर आप अपने आप को उनके साथ अटैच ना करो तो वो देखते ही देखते खुद चले भी जाते है आपने इस मेडिटेशन को रोज़ 10-20 मिनट तक करना है और अपने आपको हर चीज़ से डिटैच करके दिमाग को शांत करना सीखाना है। जब आपको मेडिटेट करते हुए थोड़ा टाइम हो जाता है तब आपको अपने आप को प्रिपेर करना है अनएक्सपेक्टेड चीजों को एक्सपेक्ट करने के लिए क्योंकि एक डीप मेडिटेशन के टाइम लोगों को काफी अलग अलग चीजें दिखती और महसूस होती है। जैसे कई लोगों को एक चमकती हुई लाइट दिखने लग जाती है। कई लोगों को रिलिजस फिगर्स देखने लग जाते हैं और कईयों को अपनी बॉडी हल्की होती हुई महसूस होती है। पर यह बस आप एक कॉन्शस माइंड की ऐक्टिविटी के कम होने का रिज़ल्ट होता है और यह काफी नॉर्मल है। इसके बाद आपने अपने दिमाग को डेल्टा ब्रेनवेव्स रिलीज करने के लिए ट्रेन करना है क्योंकि डेल्टा वेज़ के बढ़ते ही हमारी फिजिकल वर्ल्ड की अवेर्नेस कम हो जाती है और हम अपने अनकॉन्शस माइंड की इन्फॉर्मेशन को ऐक्सेस कर पाते हैं और ऐसा करने के लिए बेस्ट मेडिटेटिव टेक्नीक है नन डायरेक्टिव मेडिटेशन यानी आपने बिल्कुल वैसे ही मेडिटेट करना है जैसे आप नोर्मल्ली करते हो। बस आपने किसी पर्टिकुलर चीज़ पर फोकस नहीं करना। ये तरीका मेडिटेट करने के बेस्ट तरीकों में से एक है और अगर आप बिना अपने आप को फोर्स करे, रोज़ एटलिस्ट 20-30 मिनट तक मेडिटेट करो, तो इवेन चली, आप इस टेक्नीक से अपने थॉट्स के पार जा पाओगे। बलिस्टिक स्पिरिट्स कर पाओगे और प्युर कॉन्शसनेस क्या होती है यह जान पाओगे?","ध्यान एक मानसिक व्यायाम है जो ध्यान और जागरूकता को प्रशिक्षित करता है। ध्यान के मनोवैज्ञानिक लाभ व्यापक हैं: बढ़ी हुई रचनात्मकता, तनाव और चिंता में कमी, चिड़चिड़ापन में कमी, याददाश्त में सुधार और यहां तक कि खुशी और भावनात्मक स्थिरता में वृद्धि। नियमित ध्यान आपको अधिक केंद्रित दिमाग के साथ एक बेहतर समस्या समाधानकर्ता बनने में भी मदद कर सकता है, जिससे समग्र उत्पादकता अधिक हो सकती है। इसके अलावा, मनोवैज्ञानिक रूप से बोलना, ध्यान जागरूकता बढ़ा सकता है, जबकि आत्म-वास्तविकता को अधिक संभावित बना सकता है, मिजाज में मदद करता है, आत्मविश्वास बढ़ाता है, आत्म-स्वीकृति और सहानुभूति बढ़ाता है। लेकिन ध्यान के शारीरिक और मानसिक पहलुओं के अलावा और भी बहुत कुछ है क्योंकि ध्यान का एक आध्यात्मिक पक्ष भी है और लोग हजारों वर्षों से ज्ञान प्राप्त करने के लिए इसका उपयोग कर रहे हैं। यही कारण है कि मैं ध्यान के तीनों पहलुओं, कर्म पर इसके प्रभाव, हिंदू दर्शन, गहराई तक जाने की सही तकनीकों, और अधिकतम समग्रता के लिए आप इसका अभ्यास कैसे कर सकते हैं, पर चर्चा करने का प्रयास करता हूं..." "आसान और मुश्किल ये शब्द हर इंसान के लिए बहुत ही रिलेटिव होते है। जैसे 120 किलो के डंबल कई लोगों के लिए बहुत भारी होता है और दो चार रेपिटेशन में ही वह खुद को चोट पहुंचा सकते हैं, जबकि कई लोग इतने वजन से वॉर्मअप करते हैं। किसी भी काम की डिफिकल्टी डिपेंड करती है। उस काम को करने वाले इंसान की काबिलियत के ऊपर अगर एक स्टूडेंट ने एग्ज़ैम की पूरी तैयारी करी है और पिछले सालों के क्वेश्चन पेपर्स को भी स्टडी कर रहा है तो उसके लिए वो एग्ज़ैम आसान होगा, जबकि बिना तैयारी वाले स्टूडेंट को एग्ज़ैम मुश्किल और आउट ऑफ सिलेबस लगेगा। सिमिलरली जिन लोगों को जिंदगी की पूरी समझ होती है वो शतरंज के खेल की तरह दुश्मन की हर चाल को पहले देखते और समझते हैं। पूरे चेस बोर्ड का मुआयना करते हैं और फिर अगली चाल चलते हैं इन ऑर्डर टू विन लाइफ यू नीड टु पुट योरसेल्फ इन द मोस्ट एडवांटेज यस एक्सटर्नल ऐंड इंटरनल सिचुएशन्स आप चाहे किसी भी बैकग्राउंड से हो और लाइफ में कितने भी पीछे हो, आप गेम को जीत सकते हो। अपनी लाइफ में इन पांच लाइसेंस को अपनाकर नंबर वन थिंक इट्स स्पीक अबाउट योर गोल्स आसिफ दे हैव ऑलरेडी हैपन्ड। हमारा मन हमेशा बस दो विरोधी ख्यालों के बारे में ही सोच सकता है। जैसे अच्छा और बुरा या फिर पॉज़िटिव और नेगेटिव। आप जीस भी ख्याल पर अपनी अटेन्शन देते हो और जीस भी तरह की बातें करते हो। आपका मन आपके पूरे सिस्टम को उसी फ्लेवर का बना देता है। मन सिर्फ ऐडिशन और मल्टिप्लिकेशन को जानता है और उसे सब ट्रैक्शन और डिविज़न करना नहीं आता। यानी आप किसी भी ख्याल को अपने मन से फोर्स्फुली बाहर नहीं निकाल सकते हैं। आप बस नए ख्यालों को ऐड कर सकते हो। दैट स्वाइ खुद को रिपीटेड ली पॉज़िटिव, फॉर्मेंशन्स और खुद के गोल से फीड करना बहुत ज़रूरी होता है। खुद को पॉज़िटिव ली ट्रांसफॉर्म करने के लिए जब भी आप अपने गोल्स के बारे में सोचो या बोलो तब ऐसा फील करो जैसे आपने उस गोल को ऑलरेडी अचीव कर लिया है। फॉर एग्ज़ैम्पल ये बिलीव करने से कि आप ऑलरेडी एक अरबपति हो, आपका बहुत बड़ा बिज़नेस है आपके अंदर बहुत सारे एम्पलॉईस काम करते हैं और आप देश की ग्रोथ में बहुत ज्यादा कॉन्ट्रिब्यूट कर रहे हो। यू स्टार्ट बिहेव इन लाइक रिच रिस्पॉन्सिबल ऐंड मैच्योर पर्सन आप एक लीडर की तरह खड़े होने और बात करने लगते हो। थिस इस नॉट फेक इट टिल यू मेक इट थिस इस मेकिंग इट इंटरनली बिफोर यू मेक इट एक्सटर्नल ली इंटरप्रिटर माइंडसेट बिफोर यू ऐक्चूअली बिकम रिज इन्टरप्रेटर वाइज माइंडसेट बिफोर यू एक्चुअली बिकम वाइज़ जो अबैन्डन से या फिर सक्सेस तुम अपने बाहर देखना चाहते हो? पहले उसे अपने अंदर एक परमानेंट जगह दो नंबर टू टेक रिस्पॉन्सिबिलिटी गोल्स और एक्स्प्रेशन्स तो सबके होते हैं लेकिन उन गोल्स पर ऐक्शन लेना और अपनी लाइफ को अपने गोल्स के अराउंड ऑर्गनाइज करना ये बताता है कि आप अपनी लाइफ की कितनी रिस्पॉन्सिबिलिटी ले रहे हो। पर्सनल रिस्पॉन्सिबिलिटी लाइफ को बहुत ही आसान और सिंपल बना देती है, क्योंकि एक रिस्पॉन्सिबल इंसान को पता होता है। कि उसकी लाइफ उसके कंट्रोल में है और वो चाहे जितनी बार भी हारे या फिर कितनी भी बड़ी मुश्किल में फंस जाए, वो फिर भी कोई ना कोई जुगाड़ लगाकर जीत सकता है। रिस्पॉन्सिबिलिटी कोई बोझ नहीं है, बल्कि यह एक तरीका है जिससे आप दूसरों के ऊपर बोझ नहीं बनते हैं और अपनी जिंदगी को कले की तरह अपना मनचाहा आकार दे पाते हो। नंबर थ्री फाइन्ड मीनिंग इन लाइफ जिंदगी मीनिंग के बिना अधूरी और बहुत मुश्किल लगती है। मीनिंग वो चमक होती है जो आपको जिंदगी के अंधेरे में रास्ता दिखाती है। आपको पता होता है कि ठीक है, मैं इतनी ज्यादा मुश्किलों को झेल रहा हूँ। सफर कर रहा हूँ बट ये सब एक बड़े कॉस्ट के लिए है। इंसान को कष्ट उतने तंग नहीं करते जितना उन्हें रियलाइजेशन तंग करती है कि वो बिना किसी वजह के इन कष्टों को झेल रहे हैं। इसलिए अपने जीने की वजह ढूंढो। आपका लाइफ पर्पस है अपनी हाइएस्ट पोटेंशिअल तक पहुंचना, लेकिन आप ये काम कैसे करोगे? यह फ़िगर आउट करो नंबर फ़ोर टेक युअर फ्रेन्डस एंड फैमिली टू द बैटल विद यू आप में से बहुत से लोग अपनी फैमिली और इवन अपने फ्रेंड्स के ज्यादा क्लोज़ नहीं है, जिसकी वजह से हर इंसान की शक्ति एक ही जगह पर कॉन्सन्ट्रेट होने के बजाय आप लोगों की शक्ति इधर उधर बिखरी हुई है और आप किसी बड़े गोल पर काम नहीं कर सकते हैं। टीम एफर्ट में इतनी ताकत होती है कि वह एक पहाड़ को भी हिला दे। जितना बड़ा गोल होगा उतना ही आपको दूसरों का साथ चाहिए होगा, जबकि छोटे गोज़ तो आप अकेले ही अचीव कर लोगे। लेकिन छोटे गोल्स के साथ प्रॉब्लम ये होती है कि वो आपको हमेशा ही मीडिया होकर बनाए रखते हैं। आपको भी लाइफ का मज़ा सिर्फ तभी आएगा जब आप एक अनरियलिस्टिक और पागलों वाली चीज़ का पीछा करोगे। जब तक आप खुद को अपनी लिमिट्स के पास स्ट्रेच नहीं करोगे, तब तक आपको यह फील ही नहीं होगा। क्या आप जिन्दा हो और आप अपनी सोच से ज्यादा पॉवरफुल हो? इसलिए अपने फ्रेंड्स और फैमिली कोसमे पेज पर लाओ उनसे गोल्स, पर्पस और मीनिंग की बातें करो। पहले खुद की और फिर उनकी ट्रांसफॉर्मेशन पर ध्यान दो और साथ में ग्रो करने का प्लान बना हो। नंबर फाइव बिकम बिगर देन यू ऑफिर्स तुम्हे लाइफ काफी मैनेजेबल और आसान लगने लगे गी जब तुम ये करोगे कि तुम अपने डरो से ज्यादा बड़े हो, हर डर मौत से ही जुड़ा होता है और डर को ओवर कम करने का मतलब होता है मौत को ओवर कम करना। अब हम अपने शरीर को तो मरने से रोक नहीं सकते लेकिन हम ये जरूर समझ सकते हैं कि जीस इन्टेलिजेन्स ने हमें बनाया है। वो कभी मर या फिर पैदा हो ही नहीं सकती। वो अनन्त और शाश्वत है। अगर आप इस बारे में अपनी ईगो नाम के तिनके का सहारा लेने की कोशिश करोगे तो आपका डूबना तय है। इसलिए कभी भी खुद को अपने शरीर या फिर मनसे आइडेंटिफाइ मत करो। खुद की आइडेंटिटी में छुपे झूठ को देखो। जितना आप अपनी ईगो को सीरियसली लोगे, उतना ही आप डर, लालच, मोह, पीड़ा और गुस्से जैसी चीजों में रहोगे ओवर कमिंग फिल्स इसका स्पिरिचुअल टास्क नॉट साइकोलॉजिकल आपका दिमाग और शरीर प्रोग्राम्ड है, डरो से दूर भागने के लिए है क्योंकि मौत आपके शरीर और मन से बढ़ी है। अपने अंदर उस ताकत को ढूंढो जो मौत से भी बड़ी है और तब तुम बोलोगे कि जिंदगी उतनी मुश्किल और दुखदायी नहीं है जितना हम उसे बना देते हैं। स्टॉप मेकिंग योर लाइफ अननेसेसरी ली हार्ड तुम्हारी जिंदगी कभी ना अंत होने वाली लीला का हिस्सा है। इसका रस लो और जितना हो सके उतना इस दुनिया में बदलाव लाओ। फुट पर और खुद की पोटेंशिअल पर काम करके लाइफ इज़ रियली हार्ड फॉर यू बट इट इस वेइट् फॉर दोज़ हूँ और लिविंग अप टु देर पोटेंशिअल।","आसान हो या मुश्किल, ये शब्द ज्यादातर लोगों के लिए सापेक्ष होते हैं। जो आपके लिए आसान है वह किसी और के लिए मुश्किल हो सकता है और इसके विपरीत। किसी कार्य की कठिनाई उसे करने वाले व्यक्ति की क्षमता पर निर्भर करती है। एक खास मानसिकता रखने वालों के लिए जीवन आसान होता है और इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम ऐसी ही मानसिकता के बारे में बात करेंगे।" "मेल्स और फीमेल्स एक दूसरे से मेंटली और फिजिकली बहुत अलग है। हम इन्फॉर्मेशन को अलग तरह से प्रोसेसेस और यूज़ करते है। हम एकदम अलग प्रायोरिटी ज़ के साथ इन्वॉल्व हुए हैं और हमारा एक एक्सेल भी काफी डिफरेंट होर्मोन से होता है। इन रीजन्स की वजह से मेल्स और फीमेल्स की कही अलग स्ट्रेंथ, वीकनेस और टैलेंट होते हैं। पर अगर हमें दोनों जेनरेटर के इन बेसिक डिफरेन्स की नॉलेज नहीं होती तो हमें यही नहीं पता होता कि हमारा सोसाइटी में रोल क्या है? हमारी लिमिट्स क्या है? किस तरह से हम अपने नैचरल टैलंट को अन्डर यूटिलाइज कर रहे हैं? और किस तरह से हम अपनी बायोलोजी की सुनने के बजाय सोसाइटी में चल रहे ट्रेंड को फॉलो कर रहे हैं। इसलिए इस एपिसोड में हम फोकस करेंगे फीमेल्स की कई ऐसी क्वालिटीज पर, जिन्हें रिवर्स इंजीनियर करके हम उनकी साइकोलॉजी को और बेहतर समझ सकते है। नंबर नाइन फीमेल्स की परसेप्शन ज्यादा होलिस्टिक होती है, यानी जहाँ हर चीज़ को लॉजिक के साथ देखना और अपना इनटेल्लेक्ट यूज़ करके हर पीस ऑफ इंफॉर्मेशन को डाइसेक्ट करके देखना एक मैं स्कूल इन्ट्रेट है, वहीं इस ट्रेड को बैलेंस करती है फीमेल इन्टूइशन जिसे हाइएस्ट फॉर्म ऑफ इन्टेलिजेन्स माना जाता है। इसका मतलब एक हेल्थी फीमेल का दुनिया का नजरिया मेल से काफी अलग होता है। वो हर चीज़ की छोटी छोटी डिटेल्स को नहीं बल्कि उसे ऐसा होल देखती है। वो उन छिपे मीनिंग ज़ साइंस और कनेक्शन्स को समझ पाती हैं जिन्हें समझने में मेल्स को काफी मुश्किल होती है और उन्हें हमेशा अंदर से पता होता है कि सही चीज़ क्या है। पर अगर एक फीमेल अपनी इन्टूइशन को इस्तेमाल नहीं करती तो उनका ये नैचरल कंपास उन्हें दिशा दिखाना बंद कर देता है। अपनी विमिन हूँ रन विद में यूनियन ऐनालिस्ट क्लैरिस आप इनको लास्ट इसने लिखा है कि नैचर को अपना दोस्त टीचर बनाने से हम दो आँखों से नहीं बल्कि इंटरवेंशन की अनेक आँखों से देख पाते हैं। इंटरवेंशन के साथ हम एक तारों से भरे आसमान जैसे बन जाते हैं और दुनिया को हजारों आँखों से देखते हैं। जबकि किसी भी तरह की ओवर इन्टलेक्चुअल आइज़ एशन एक विमिन की वाइल्ड और नेचर को दबाती है, नंबर एट वो दूसरे लोगों की फीलिंग्स को ज्यादा अच्छे से समझ पाती है। हमारे दिमाग में दो इमोशनल सिस्टम्स होते हैं यानी मिरर, न्यूरॉन सिस्टम या फिर एम् एन एस और टेम्पल, पेराइटल जंक्शन या फिर टी पी जे एम् एन एस रिस्पॉन्सिबल होता है। इमोशनल एम्पथी के लिए यानी वो फील कर पाना जो दूसरा इंसान फील कर रहा होता है और टीपीजी रिस्पॉन्सिबल होता है। कॉग्निटिव के लिए जो आपको दूसरे इंसान के इमोशन से डिटैच होकर ऐक्चुअल प्रॉब्लम पर फोकस करने के काबिल बनाता है। फीमेल्स इमोशनल एम्पथी में हाई होती है और मेल्स कॉग्नेटिव एम्पथी में एक स्टडी में जहाँ कई कपल्स को लिया गया, उसमें पहले फीमेल्स को इलेक्ट्रिक शॉक दिए गए और फिर मेल्स को फीमेल्स को बताया गया कि उनके पार्टनर को किस तरह के शौक मिल रहे हैं और जीवन दो। वो अपने पार्टनर को देख भी नहीं सकती थी। उनके दिमाग में वही स में पेन ऐक्टिवेट हो गए जो उनके खुद शौक लगते टाइम हुए थे। हाउएवर मेल्स के बीच ऐसा कोई दिमागी रिस्पॉन्स था ही नहीं। नंबर सेवन फीमेल्स की हिरोइन बेटर होती है। यह इसलिए क्योंकि फीमेल्स के दिमाग के लैंग्वेज और हियरिंग सेंटर्स में 11% ज्यादा न्यूरॉन्स होते हैं। ऐस कम्पेरड टू मेल्स ओर तो ओर फीमेल। सिर्फ बेहतर सुनने के साथ साथ ह्यूमन वौस की इमोशनल टोन भी काफी ऐक्यूरेट्लि डिटेक्ट कर पाती है। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि फीमेल्स को ये समझना होता है की उनका बेबी क्या बोलना चाहता है। और ये एक ऐसी स्किल है जो फीमेल्स में उनके पैदा होने से ही होती है, क्योंकि एक स्टडी में जहाँ मेल और फीमेल बच्चों को लिया गया उसमें ये देखने को मिला कि वो सिर्फ ईमेल्स ही थी जो दूसरे बच्चों के रोने और तेज आवाजों पर ज्यादा ध्यान दे रही थी। बजाय बौस के नंबर सिक्स गर्ल्स खेलते टाइम रिलेशन शिप बिल्डिंग पर फोकस करती है जहाँ बौस खेलते टाइम उस गेम पर फोकस करते है, गेम को रफ बनाते है, काफी कंपैरटिव्ली खेलते हैं, अपनी फिजिकल स्ट्रेंथ को शो ऑफ कर के डोमिनेंस इस्टैब्लिश करने की कोशिश करते हैं। और हायरार्की इस बनाते हैं कि कौन सा बौ सबसे ज्यादा अच्छा खेलता है। वहीं गर्ल्स ज्यादा फोकस करती है रिलेशनशिप बिल्डिंग पर। वो बौस के कंपैरिजन में 20 गुना ज्यादा बार टर्न्स बदलती है और सब को खेलने का मौका देती है और उनका प्ले ज्यादातर देखभाल ई और रिलेशनशिप्स के बारे में होता है। हमारा ये बिहेव्यर हमारे क्लोज़ रिलेटिव ज़ म क मंकीज़ में भी देखने को मिलता है, जिनमें मेल मंकीज़ फीमेल्स के कंपैरिजन में छे गुना ज्यादा रफली और कंपैरटिव्ली खेलते हैं, जबकि फीमेल म ज़ दूसरे बेबी मन की इसको बेबीसिट करना प्रिफर करती है। नंबर फाइव फीमेल स्वर बल्ली ज्यादा गुस्सा करती है। फीमेल्स की ये क्वालिटी ऑलमोस्ट हर दूसरे में देखने को मिलती है और ये इसलिए होता है क्योंकि मेल्स और फीमेल्स गुस्से को अलग तरह से प्रोसेसर करते है। एक मेल का अग्रेशन उनके उन ब्रेन एरिया से ज्यादा डाइरेक्टली कनेक्टेड होता है जो फिजिकल ऐक्शन से जुड़े हैं और एक फीमेल का अग्रेशन ज्यादा क्लोजली लिंक होता है। उनके वर्बल फंक्शन से मेल्स का साइज में काफी बड़ा होता है और ये उन्हें रेटिंग सिचुएशन्स में काफी स्ट्रोंगली रिऐक्ट करने के काबिल बनाता है, जबकि फीमेल्स के केस में उनका ज्यादा बड़ा होता है और वो मेल्स के कंपैरिजन में मैच्योर भी जल्दी हो जाता है, जिससे उनका अपने गुस्से पर ज्यादा कंट्रोल रह पाता है। इसके साथ ही मेल्स का ज्यादा ऐक्टिव होता है, जो उन्हें ऐक्शन लेने को बोलता है और फीमेल्स के केस में उनका लेफ्टि में कडीला ज्यादा ऐक्टिव रहता है जो रिस्पॉन्सिबल होता है। एक स्ट्रॉन्ग फिजिकल नहीं, बल्कि एक मेंटल रिऐक्शन चालू करने में और याद रखो, हमारा हर बिहेव्यर हमारे सर्वाइवल को बढ़ाने के लिए इवॉल्व हुआ है। बट जस्ट बिकॉज़ फीमेल्स मेल से, कंपैरिजन में साइज में छोटी होती है, सो अपने से दो गुना बड़े मेल के साथ वाइल लेट होना एक फीमेल की जेनेटिक लेगेसी को वहीं खत्म कर सकता है। अपनी लाइफ के एक बड़े हिस्से में फीमेल्स काफी वल्नरेबल होती है। यानी जब वो प्रेग्नेंट होती है या फिर जब वो अपने बच्चे को संभाल रही होती है। इस टाइम पर उनका सर्वाइवल डिपेन्डेन्ट होता है। उनके सोशल ग्रुप पे और जस्ट बिकॉज़ फीमेल्स को प्रोटेक्शन के लिए साथ मिलकर रहना पड़ता है। दूसरी फीमेल से लड़ना एक रिस्की चीज़ हो सकती है। इसके साथ ही फिज़िकली गुस्साना करने का एक और रीज़न होता है कि इससे फीमेल्स के अपने बच्चे को हर्ट करने के चान्सेस भी कम रहते हैं। यही रीज़न है की चाहे वो स्कूल हो या वर्क प्लेस, मेल्स अपने हाथ और लातों से लड़ते हैं, और फीमेल्स अपनी बातों से नंबर फ़ोर वो लोगो की इन टेंशन्स झट से समझ जाती है। फीमेल्स लोगों के फेस पर सैडनेस 10 में से नौ बार रीड कर पाती है, जबकि मेल्स 10 में से सिर्फ चार बार ये पकड़ पाते हैं कि कोई इंसान दुखी हैं। एक स्टैनफोर्ड स्टडी भी यह बताती है की लड़कियां फेक फेशियल एक्सप्रेशंस को भी लड़कों के कंपैरिजन में ज्यादा डीज़ल ई आइडेंटिफाइ कर पाती है। अगर हम इस क्वालिटी के एवल्यूशन रीबेन की बात करें तो फीमेल्स का नॉन वर्बल फेसिअल क्यों? उसको समझ पाना इसलिए सेन्स बनाता है क्योंकि उन्हें यह समझना होता है कि उनका बच्चा क्या फील कर रहा है और उसे किस चीज़ की जरूरत है। जहाँ मेल्स के ब्रेन सर्किट्स और को ज्यादा यूज़ करते हैं वहीं एक फीमेल का ब्रेन ऑक्सीटोसिन पर एस्ट्रोजन को ज्यादा यूज़ करता है। शायद यही रीज़न है की वो जब किसी मेल को सिर्फ एक सिंगल डोज दी जाती है तब उसकी नॉन वर्बल फेसिअल की उसको रीड करने की एबिलिटी भी एकदम से काफी इम्प्रूव हो जाती है। नंबर थ्री फीमेल स्ट्रेस के टाइम नए रोमेंटिक रिलेशनशिप्स नहीं बनाती है। ये ए क वैल्यू शनरी फैक्ट है कि मेल्स एक स्ट्रेसफुल एनवायरनमेंट में टर्न ऑन होते हैं, पर फीमेल स्ट्रेस के अंदर टर्न ऑफ होती हैं स्ट्रेस हार्मोन कोर्टिसोल फीमेल्स के दिमाग तक बॉन्डिंग होर्मोन ऑक्सीटोसिन को पहुँचने से रोकता है, जिससे उनकी फिजिकल टच की डिज़ाइनर एकदम ना के बराबर हो जाती है। जीवन अगर एक फीमेल स्ट्रेस के अंदर मेट करती भी है तब वो ऑर्गैज़म नहीं अचीव कर पाएगी। ये इसलिए क्योंकि एक फीमेल कि स्ट्रेस्ड होने का मतलब है। की वो एक अनस्टेबल एनवायरनमेंट में है तो ऐसे में प्रेग्नेंट होना एक बहुत बेकार आइडिया होगा। नम्बर टू फीमेल्स के लिए लव एट फर्स्ट साइट होना बहुत रेर होता है। यह इसलिए क्योंकि एक फीमेल का ब्रेन अपने पोटेंशिअल मेड्स को चूज करने के केस में काफी सावधान रहता है ताकि वो किसी गलत मेल के साथ ना मेट कर लें। ब्रेन इमेजिंग स्टडीज़ बताती हैं कि जब एक फीमेल प्यार में होती है तब उसके दिमाग के मेमोरी इनोवेशन और अटेन्शन पे करने वाले एरियाज़ में ज्यादा ऐक्टिविटी होती है, जिससे वो एक मेल की सर्वाइवल और रीप्रोडक्टिव वैल्यू को कैलकुलेट कर पाती है। यही रीज़न है की वो पिक अप आर्टिस्ट हमेशा अपने आप को सुंदर लड़कियों से घेरे रखते हैं क्योंकि इससे दूसरी लड़कियों को ये सिंगल मिलता है की इसमें लकी मेटिन, गौर सर्वाइवल क्वालिटीज को दूसरी लड़कियों ने ऑलरेडी बहुत बार टेस्ट कर रखा है और जस्ट बिकॉज़ वो लड़कियां अभी भी इसके साथ है तो जरूर इस मिल की रीप्रोडक्टिव वैल्यू काफी हानि और इसके जीन्स काफी अच्छे होंगे। इस स्ट्रैटिजी को बोला जाता है। प्रिंस, इलेक्शन नंबर, वन, म्यूसिक फीमेल्स को ज्यादा पॉज़िटिव ली इन्फ्लुयेन्स करता है। एक स्टडी में ये ऑब्जर्व कर आ गया था। की जिन बेबी गर्ल्स को काफी छोटी उम्र में म्यूजिक थेरपी मिली थी, उनमें सबसे कम हेल्थ प्रॉब्लम्स थी। वो जल्दी बड़ी हो गई थी और उन्हें उन गर्ल्स से पहले डिस्चार्ज कर दिया गया था, जिनको म्यूजिक थेरपी नहीं मिली थी। जबकि मेल्स पर म्यूसिक का ना तो कोई पॉज़िटिव इफेक्ट देखने को मिला था और ना ही नेगेटिव।","जब हमारे जीव विज्ञान के साथ-साथ हमारे मनोविज्ञान की बात आती है तो नर और मादा वास्तव में भिन्न होते हैं। हम जानकारी को अलग तरीके से संसाधित और उपयोग करते हैं, हम अलग-अलग प्राथमिकताओं के साथ विकसित हुए हैं और हमारी अलग-अलग ताकत, कमजोरियां और प्रतिभाएं हैं। लेकिन अगर किसी को पुरुषों और महिलाओं के बीच बुनियादी अंतरों का ज्ञान नहीं है, तो उसे समाज में उनकी भूमिका का पता नहीं चलेगा, कैसे कोई अपनी प्रतिभा का कम उपयोग कर रहा है और कैसे कोई अपने शरीर को सुनने के बजाय आँख बंद करके सामाजिक प्रवृत्तियों का अनुसरण करने लगता है। ." "दुनिया के ज्यादातर लोग इन दो में से एक कैटेगरी में आते हैं। यानी मिनिमलिस्ट या फिर मैक्सिमम लिस्ट मिनिमलिस्ट वो होते हैं जो कम से कम चीजों के साथ खुश रहते हैं और वो बस अपनी बेसिक नीड्स पर फोकस करते है। जबकि दूसरी तरफ मैक्सिमम लिस्ट वो होते हैं जो चाहते हैं उनके पास ज्यादा से ज्यादा चीजे हो। ज्यादा से ज्यादा पैसा बड़े से बड़ा घर, लग्जरी गाड़ी, डिज़ाइनर कपड़े और दुनिया भर का सामान मिनिमलिस्ट बोल देंगे। तुम्हे क्यों इतनी सारी चीजों से अटैच होना है? खुशी तो हमारे अंदर होती है जबकि मैक्सिमम लिस्ट बोलते है की खुशी सिर्फ हमारे अंदर से नहीं बल्कि बाहर से भी मिल सकती है। और जब मैं इतनी सारी खूबसूरत पेंटिंग ज़ डिज़ाइनर कपड़े, जूलरी और लेटेस्ट गैजेट से सराउंडेड होता हूँ। तब मैं ज्यादा इन्स्पाइअर्ड फील करता हूँ और ये सारी चीजे मेरी लाइफ की क्वालिटी को इंप्रूव करते हैं। इतने समय से ऑनलाइन के बीच एक ट्रेंड चल रहा है जहाँ पर वो अपनी ऑडियंस को मिनिमम की आइडियोलॉजी भेजते हैं। बिकॉज़ ज्यादातर लोग किसी न किसी तरीके से अपनी लाइफ को जस्टिफाई करना चाहते हैं ताकि उन्हें कोई भी काम ना करना पड़े और वो अपने बारे में अच्छा फील कर सके। और तभी इस एपिसोड में हम के कई डिसएडवांटेज इसके बारे में बात करके एक बैलेंस पर्सपेक्टिव हासिल करने की कोशिश करेंगे। सो डिसएडवांटेज नंबर वन लिमिटेड, एक्स्पोज़र मिनिमल इज़म लिमिट्स, क्रिएटिविटी बिकॉज़ हम इंसान कुछ भी नया क्रिएट नहीं कर सकते हैं, हम बस उसी चीज़ के ऊपर बिल्ड कर सकते हैं जिससे हम इक्स्पोज़ थे। यही वजह है कि क्यों जीस इंसान ने अपने बचपन में गरीबी देखी होती है। उसके आगे चलकर भी एक गरीब इंसान रहने के चान्सेस ऑलमोस्ट 50% होते है। बिकॉज़ हम उसी चीज़ को रीक्रिएट करने की कोशिश करते हैं जिसके साथ हम फैमिली होते हैं। अगर किसी इंसान ने अपने बचपन में अपने पैरेन्ट्स को हमेशा लड़ते झगड़ते हुए देखा था तो इस बात के चान्सेस बहुत हाई होते हैं कि वह भी आगे चलकर एक हेल्दी रिलेशनशिप नहीं डेवलप कर पाएगा या फिर वो रिलेशनशिप के नाम से ही दूर भागेगा। चूहों पर हुई बहुत सी स्टडीज़ बताती है प्री कोड जीन्स भी नए प्रोटीन बनाने लगते हैं, जब उन्हें एक पूरे इन्वाइरनमेंट यानी जहाँ पर एनफ चीजें नहीं होती उससे निकाल कर एक रिच इनमें प्लेस करा जाता है। सोचो कितनी लाइफ चेंजिंग इन साइट है कि आप खुद की जेनेटिक डेस्टिनी को भी बदल सकते हो। बस खुद के एनवायरनमेंट और जो आपके आस पास चीजे हैं उन्हें बदल के खुद को ग्रो करने के लिए आपको वराइटी ऑफ इक्स्पिरीयन्स ने आइडियाज़ और नै चैलेंजेस चाहिए होते है। लेकिन जो लोग मिनिमल इज़म और रिडक्शन में बिलीव करते है, वो खुद के एक्स्पिरियंस और लर्निंग ऑपर्च्युनिटीज को भी लिमिट कर लेते है। नंबर टू स्केर्ड सिटी साइड बार बार खुद का मन मार के ये बोलने से की आपको कुछ नहीं चाहिए। खुद को एक ऐसे मेंटल फ्रेमवर्क में बिठा लेते हो जो लिमिट्लेस पॉसिबिलिटीज़ और अब बन डैन्स माइंडसेट को बेतुका समझता है या अगर मैं आपको एक साइट पर एक मिनिमलिस्ट आर्किटेक्चर और दूसरी साइट पर एक मैक्सिमम लिस्ट आर्किटेक्चर दिखाकर ये पूछूं कि कौन सी सराउन्डिंग् में रहकर आप ज्यादा इन्स्पाइअर्ड, मोटिवेटेड, हैप्पी और दुनिया में ने की लाने की सोचोगे तो चान्सेस है कि आप में से 99% लोग एक मैक्सिमम लिस्ट यूनीक और ब्यूटीफुल सराउन्डिंग् को ही प्रिफर करोगे। बिकॉज़ किसी भी खूबसूरत चीज़ को पहचानने के लिए हमारे अंदर भी उस खूबसूरती का एक अंश होना जरूरी होता है। इस वजह से जब भी हम फीलगुड चीज़ हो या फिर ब्यूटीफुल चीजों से सराउंडेड होते हैं, तब ये सारी चीजे हमें याद दिलाती है कि हम भी दुनिया में ब्यूटी को लाने के काबिल है। नंबर थ्री लिमिटेड सेल्फ एक्सप्रेशन हम चीजों को यूज़ करते हैं खुद को एक्सप्रेस करने के लिए और तभी जब भी हम किसी इंसान से मिलते हैं तब हम उन्हें समझने की कोशिश करते हैं। उनके कपड़ों, उनके घर के इन्टीरीअर और न जाने किन किन चीजों से है। अपने शायद ये खुद भी इक्स्पिरीयन्स करो या फिर किसी दूसरे इंसान से सुनो की जब भी आप किसी इंटरव्यू में जा रहे हो तब अपनी शर्ट को प्रेस करके अपने शूज़ को पॉलिश करके जाओ या फिर जब भी कोई रिलेटिव घर पे आ रहा होता है तब आपके पेरेंट्स क्यों आपको बोलते हैं की अपने रूम को साफ करो? ये सारी चीजें फैली हुई है। ये सारी बातें इसलिए ही बोली जाती है बिकॉज़ जो भी चीजें हमारे आसपास होती है वो हमें डिफाइन करती है और वो बताती हैं कि हम हैं कौन? लेकिन मिनिमलिस्ट हम आपको झूठा आइडिया देता है की हमें चीजें थोड़ी डिफाइन करती है। लेकिन वही सेम लोग जो ये बात बोलता है की हमें चीजें डिफाइन नहीं करती, वो खुद को डिफाइन करते हैं। संबंध जैसे किसी चीज़ की जरूरत नहीं है। यानी एक मिनिमलिस्ट भी खुद को डिफाइन तो चीजों से ही करता है, लेकिन वो ऐसा करता है कि उसे किसी चीज़ की नहीं पड़ी ताकि वो खुद के बारे में अच्छा फील कर सके। लेकिन इवन दुनिया के सात अजूबों को भी कई लोगों ने खुद को एक्सप्रेस करने के लिए बनाया था और हम इन मॉन्यूमेंट्स को इनकी कॉम्प्लेक्स इसलिए प्यार करते हैं, इनकी सिम्प्लिसिटी के लिए नहीं। बिकॉज़ सिम्प्लिसिटी के लिमिटेड इलाके में कभी भी ग्रेट नेसतमा ही नहीं सकती है। खुद से ये क्वेश्चन पूछो इस देर एनीथिंग सिम्पली स्टिक और मिनिमलिस्टिक अबाउट ताज महल के रूम का सिम्पल है। अगर ये मॉन्यूमेंट सिंपल होते तो ना तो ये मॉन्यूमेंट्स होते और ना ही हमें याद रहते हैं। बिकॉज़ सिम्प्लिसिटी इतनी ऐवरेज चीज़ है की वो हमारे दिल पर कोई प्रभाव डाल ही नहीं पाते। अगर आप आज इंस्टाग्राम मॉडल को देखो तो उनकी फोटोस इतनी ऐडेड होती है की उनकी स्क्रीन पर ना तो कोई स्ट्रेच मार्क होता है, उनका फेस एकदम पर्फेक्ट और स्पॉटलेस होता है और उन्हें देखकर ऐसा लगता है की उन्होंने जिंदगी को जिया ही नहीं है और उनके पास सुनाने के लिए कोई कहानी नहीं है। ये रिज़ल्ट होता है जब एक सोसाइटी मिनिमम जैसी आइडीओलॉजी को प्रोमोट करती है। आइडीओलॉजी का मतलब होता है कि एक इंसान की आइडियास और आइडियाज़ में बिलीव करता है और सच बताऊँ तो किसी भी तरह की आइडियोलॉजी सही नहीं होती। ये आप में से बहुत से लोगों ने ऑलरेडी डिसाइड कर लिया होगा कि दूसरे साइड की आर्ग्यूमेंट चाहे कुछ भी हो, मैं तो एक मिनिमलिस्ट या फिर मैक्सिमम लिस्ट हूँ, लेकिन सच किसी भी एक्स्ट्रीम साइट पर जाकर नहीं बैठ जाता। सच हमेशा दोनों साइड्स के बीच में झूल रहा होता है और सच यह है कि हमारे अंदर एक ऐसी साइड है। जो ये चाहती है कि हम एक सिंपल और एक बहुत शांत जिन कीजिये लेकिन हमारे अंदर एक ऐसी साइड भी है जिसको ग्लैमर और सबकी अटेन्शन पसंद है। ज्यादातर लोग अपने अंदर मौजूद सिम्प्लिसिटी की नीती को तो आइडेंटिफाइ कर लेते हैं, लेकिन वो इस फैक्ट को डैनी करते हैं कि उनके अंदर एक मिट्टी रियलिस्टिक साइड भी है जो चाहती है कि उनके पास बहुत सारी और अच्छी से अच्छी चीजे हो और अगर आप भी इस पेस्ट को डैनी करते हो की आपकी एक मटिरीअलिस्टिक साइड है तो एक थॉट एक्सपेरिमेंट करके देखते है। अगर आपके पास एक बटन होता जिसको दबाते आपके घर की सारी प्रॉब्लम सॉल्व हो जाती है, तो क्या आपके घर में जो पैसों की कमी है? जो आपके पापा गंदे से स्कूटर, गन्दी सी बाइक या फिर पुरानी गाड़ी लेकर घूम रहे होते हैं जो घर के बार बार एक सैप लाइन्स खराब हो रहे हैं, लेकिन आप उन्हें रिप्लेस नहीं कर पाते, बिकॉज़ ऑफ मनी या फिर आपको अपने भाई या बहन को कॉलेजों में भेजना या फिर उनकी शादी करानी है। अगर आपके पास एक ऑप्शन होता कि आप इन सब लोगों को बेस्ट ऑफ द बेस्ट चीजें दिला सकते हो तो क्या आप तब भी यही चाहते हैं कि नहीं? मेरा भाई या बहन सिंपल से बहुत एवरेज कॉलेज में जाए। ऐवरेज से उसकी शादी हो या फिर आपका बाप एक गंदी सी या फिर एक बहुत होकर ऐवरेज गाड़ी चलाया। आप भी बेस्ट ऑफ द बेस्ट चीजों को चाहोगे अगर आपको वो बैठे बैठाए मिल जाए तो लेकिन जस्ट बिकॉज़ बेस्ट ऑफ द बेस्ट चीजों को पाने के लिए बहुत ज्यादा मेहनत लगती है तो कॉमन एक्स्क्यूस यही बन जाता है की मेरे को वो चाहिए ही नहीं। इसके बजाय आप का ऐटिट्यूड ही होना चाहिए की हाँ, मुझे दुनिया के बेस्ट एक्स्पेन्सस और बेस्ट चीजें चाहिए, लेकिन मैं इतना इन्वोल्वड हूँ कि मैं किसी भी चीज़ से अटैच नहीं होने वाला, जिसमें इंसान के अंदर ज़रा सी भी होती है या फिर उसके अंदर बहुत ज्यादा बुक होती है। पर हम सच को जानने की वो इंसान कभी भी चीजों को यूज़ नहीं करता। अपने अंदर के खोखलेपन को भरने के लिए ये मिनिमम और मैक्सिमम जैसे ही आइडीओलॉजी वो लोग यूज़ करते हैं जो स्पिरिचुअल वैन करप्ट और गॉड ब्लेस होते हैं मिनिमम इच मिसा, गॉड ब्लेस बिहेव्यर एंड सो इस मैक्सिमम इस कोड को हमेशा याद रखना।","अधिकतर लोग इन्हीं दो श्रेणियों में से किसी एक में आते हैं यानी अतिसूक्ष्मवाद या अधिकतावाद। मिनिमलिस्ट एक बहुत ही सरल जीवन जीते हैं और केवल उसी पर ध्यान केंद्रित करते हैं जिसकी आवश्यकता है, जबकि मैक्सिममिस्ट किसी भी चीज़ की आवश्यकता से परे जाते हैं जो उनके जीवन की गुणवत्ता को बढ़ा सकता है।" "एक अच्छी लाइफ जीने के लिए जरूरी है कि आप हर नई सिचुएशन और बदलते टाइम के साथ अडैप्ट कर पाओ और जो तरकीबें काम नहीं कर रही, आप उन्हें बुलाकर कुछ नया सीख पाओ। लेकिन आजकल ज्यादातर लोग ऑटो पायलट मोड पर जीते हैं और वो कभी भी रुककर यह नहीं देखते हैं कि जिन ऐक्शन सको वो इतने टाइम से रिपीट करते आ रहे हैं। उनका उनके ऊपर और दूसरों पर क्या इम्पैक्ट हो रहा है? यूश़ूअली हम इस क्वेश्चन को अपनी लाइफ में एक बहुत ही लेट स्टेज पर जाकर पूछते हैं। जब हम चाहकर भी अपनी गलतियों को नहीं सुधार सकते हैं तो क्यों ना हम ऐसे लोगों की लाइफ लाइसेंस को जाने जिनकी जिंदगी भर की नॉलेज आपको इस पॉइंट पर ये समझाएगी कि ज्यादातर लोगों को उम्र के बढ़ने पर किन चीजों का पछतावा होता है ताकि आप यह जानकर सम गलतियाँ ना करो और अपनी लाइफ में बेटर डिसिशन्स ले पाओ नंबर वन जिंस इन्वेस्टमेंट में आपको सबसे ज्यादा रिटर्न मिलेगा वो हो आप खुद हम सोचते हैं कि हम ऐसे कौन से ऐसेट में इन्वेस्ट करे जिससे हमें रिटर्न ऑन इन्वेस्टमेंट सबसे ज्यादा मिले और उस इन्वेस्टमेंट में रिस्क भी कम हो। लेकिन ये इन्वेस्टमेंट कोई स्टॉक या बिज़नेस में नहीं बल्कि ये होता है अपने आप को हर वो चीज़ प्रोवाइड करना जिससे हम खुद ही इतने समझदार स्किलफुल नॉलेजेबल और वैल्युएबल बन जाए की हम ऑटोमैटिकली ज्यादा पैसे कमा पाए और हेल्थी और खुश रहें हैं, इसलिए उन बुक्स को रीड करो। उन कोर्सेस, वर्कशॉप या प्रोडक्ट्स पर अपना पैसा इन्वेस्ट करो, जो आपको एक ज्यादा वैल्यूएबल इंसान बनाते है। नंबर टू लाइफ में खुश रहने के लिए सबसे जरूरी चीज़ होती है रिलेशनशिप्स। यह हम सबके लिए कॉमन नॉलेज है कि आजकल दुनिया में डिप्रेशन और दूसरी मेंटल हेल्थ प्रॉब्लम्स इतनी बढ़ चुकी है। और इन प्रॉब्लम्स के सबसे बड़े रीज़न में से एक है हेल्थी रिलेशनशिप्स की कमी। और ये प्रॉब्लम टेक्नोलॉजी और सोशल मीडिया के बढ़ने के साथ साथ बद से बदतर बनती जा रही है। क्योंकि जो खालीपन हम अच्छे रिलेशनशिप की कमी से फील करते है उसे हम टेंपोररिली भर देते हैं। अपने फेवरेट टीवी शोज़ ***** या सोशल मीडिया से ज्यादातर लोग अपने आप को यह कॉन्शस ली समझने भी नहीं देते कि उन्हें दूसरे लोगों के साथ मिलने जुलने, गले लगने और उनके प्यार की जरूरत है, क्योंकि वो अपने दिमाग को इंटरनेट पर मिली उलटी सीधी चीजो से भर लेते हैं। लेकिन यह एक टेंपरेरी फिक्स है। इसलिए अपनी लॉन्ग टर्म हैपीनेस के बारे में सोचो और अपने रिलेशनशिप्स को सबसे ज्यादा इम्पोर्टेन्स और एनर्जी दो और अगर आपके मौजूद रिलेशनशिप्स टॉक्सिक तो नए लोगों से मिलो नंबर थ्री टाइम पैसों से ज्यादा वैल्यूएबल होता है, जहाँ हम अपने बैंक अकाउंट्स को देखकर येस एस करते हैं कि हमारे पास खर्च करने के लिए कितना पैसा है और हम उसे किस तरह से यूज़ कर सकते हैं। वही हम अपने टाइम को इस नजर से नहीं देखते हैं और यह एक बहुत बड़ी गलती होती है, क्योंकि टाइम पैसों से ज्यादा वैल्यूएबल रिसोर्स होता है। अगर आप किसी बूढ़े इंसान से यह पूछो कि उन्हें पैसा चाहिए या फिर वो फिर से जवान होना चाहते हैं तो ज्यादातर लोग अपना टाइम ही वापस मांगेंगे क्योंकि अब पैसे खर्च करके तो वापस होने काम आ सकते हो लेकिन आप खर्च करे हुए टाइम को वापस नहीं कमा सकते हैं। बहुत से लोग इस बात को काफी लेट रियलाइज करते हैं और बोलते हैं कि अगर उन्होंने अपने टाइम को ढंग से यूटिलाइज करना होता तो आज वो एक बेहतर जगह पर होते हैं। नंबर फ़ोर आप झुंड से तभी अलग अलग होंगे जब आप ऑथेंटिक रहोगे क्योंकि ज्यादातर लोग झुंड का हिस्सा इसलिए नहीं है क्योंकि वह कुछ अलग नहीं करते हैं। बल्कि इसलिए क्योंकि वो जो असली में है वो उससे दुनिया को नहीं दिखा रहे हैं और कुछ और बनने की कोशिश कर रहे हैं। जितनी सच्चाई से आप दुनिया को दिखाओगे कि आप कौन हो और आप किन चीजों को सही मानते हो, उतना ही आप एक इनडिविजुअल लगोगे ना कि बस एक क्राउड का हिस्सा। हम सब में ही कुछ ना कुछ यूनीक्नेस होती है और हमारे पास सुनाने के लिए एक डिफ़रेंट कहानी होती है। लेकिन हम अपने इस सच को दबा लेते हैं ये सोचकर कि हमारी कहानी यह हमारा सच कौन ही सुनना चाहता है, बल्कि ज्यादातर लोग तो हमारी बातें सुन कर हंसेंगे। लेकिन सच तो ये है कि जब आप अपने सबसे ट्रू वर्जन को सामने लाओगे तब जीतने लोग आप पर हँसेंगे। उससे कहीं ज्यादा लोग आपसे इन्स्पाइअर्ड होंगे। नंबर फाइव आपकी लाइफ पूरी तरह से आप पर डिपेंड करती है। स्टोइक फिलॉसफर सैनिक का बोलते हैं कि अपने मन को इस तरह से तैयार कर लो जैसे आपकी जिंदगी अब खत्म होने वाली है और आप किसी भी चीज़ को पोस्टपोन नहीं कर सकते हैं। यानी अपनी लाइफ के लिमिटेड टाइम को सीरियसली, क्योंकि आपको नहीं पता कि आप इस दुनिया में कब तक रहोगे और इसी सोच के साथ अपने हर जरूरी काम को पूरा करो और अपनी लाइफ की रिस्पॉन्सिबिलिटी लो। एक ऐडल्ट बनने का मतलब यही होता है कि आप अपनी लाइफ के इंचार्ज होना कि आपके पैरेन्ट्स, आपका पार्टनर या आपके दुश्मन जिन्हें आप अपने के लिए ब्लेम करते हो, इसलिए अपने माइंडसेट को चेंज करो और इस बात में यकीन रखो कि आप मेहनत करके अपनी किस्मत को बदल सकते हो। नंबर सिक्स अगर आप आज अपनी बॉडी का साथ नहीं दोगे तो वह बाद में आपका साथ नहीं देगी। ये चीज़ हमारे पैरेंटस और उन लोगों में बहुत कॉमन है जो अपनी मिड लाइफ के पार जा चूके हैं। वो बोलते है की उनकी रेग्युलरली तबियत खराब होना इंजरी हो ना और हेल्थ में खराबियाँ आना उनकी उम्र में आम बात होती है। लेकिन यही थिंकिंग हमें बहुत वीक बना देती है। इवन साइनस भी यही बोलती है कि एज के बढ़ने के साथ साथ हमारी बॉडी अपनी मसल्स को खुद खाने लग जाती है, जिससे हमारे हाथ और पैर बहुत ही वीक हो जाते हैं और हम उतनी तेजी से मसल बिल्ड नहीं कर पाते जितनी तेजी से हम अपनी जवानी में कर पाते थे। लेकिन जो लोग रेगुलरली एक्सरसाइज करते हैं और अपनी बॉडी को फिट रखते हैं। उनकी मसल्स एज के साथ बहुत धीरे धीरे कम होती है और वो अपने सेवन टीज़ और एटीज़ में भी उतने ही मेंटली, शार्प और फिट होते हैं जितना वो अपने फोर्टीज़ और फिफ्टीज में हुआ करते थे। इसलिए अपनी हेल्थ की फाउंडेशन अभी से बनाओ ताकि आप अपनी यंग बॉडी की कैपेबिलिटीज का पूरी तरह से फायदा उठा पाओ।","एक अच्छा जीवन जीने के लिए आपको लगातार नई परिस्थितियों और बदलते समय के अनुकूल होने में सक्षम होना चाहिए, लेकिन ज्यादातर लोग अपने जीवन को ऑटोपायलट पर जीते हैं, और जब उन्हें अंत में एहसास होता है कि उन्होंने कितनी गलतियां की हैं, तो यह बहुत ही अज्ञानी है। देर। इसीलिए इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम जीवन के उन पाठों के बारे में बात करते हैं जिन्हें हर कोई सीख सकता है और बेहतर भविष्य की नींव बनाने के लिए अपने जीवन में लागू कर सकता है।" "हिस्टरी के हिसाब से हम पिछले हजारों सालों से आसमान में मौजूद स्टार्स और प्लैनेट्स को देखकर ये सोचते है की ये चीजें हमारे से कितनी दूर है और इतनी बड़ी दुनिया में हमारा क्या रोल है? जब भी हम अपनी नजरें ऊपर करते है, हम एक सेन्स ऑफ वंडर या फिर और एक्सपिरियंस करते हैं। ये वही फ़ीलिंग है जो हम एक काफी सुन्दर चीज़ जैसे एक बेहतरीन गाना आर्ट या नेचर को देखते हुए फील करते हैं। और हम जानते हैं कि नैचर में टाइम बिताने से और उसकी ब्यूटी को अप्रीशिएट करने से हमारी फिजिकल और मेंटल हेल्थ इम्प्रूव होती है। इसके साथ ही जब भी हम ये फीलिंग एक्सपिरियंस करते हैं तब हमारे दूसरों को हेल्प करने के चान्सेस भी बढ़ जाते हैं। यानी नेचर का सुन्दर लग ना हमारे सर्वाइवल और हेल्थ से जुड़ा है और हम एक सिमिलर केस आठ के लिए भी बना सकते हैं। पर जो सेन्स ऑफ वंडर हम स्पेस के बारे में सोचकर एक्सपिरियंस करते हैं। वो काफी अलग और मिस्टीरीअस है क्योंकि हमने आउटर स्पेस को कभी डाइरेक्टली एक्सपिरियंस ही नहीं करा है। हमारे एक्सपिरियंस में बस हर रात आसमान में कुछ टिमटिमाती हुई लाइट्स और टेलिस्कोप से मिली कुछ फोटोस है हाउएवर स्पेस को लेकर हमारी क्युरिऑसिटी मॉडर्न टाइम्स में बनी मूवीज़ और हमारी ऐस्ट्रोनॉमिकल डिस्कवरी से बहुत पहले से एग्जिस्ट करती है। जस्ट इमेजिन जिंस नाइट्स का एक को हम बस उन जगहों पर देख सकते हैं। जहाँ लाइट और एयर पोल्लुशन कम होता है। जैसे कि एक हिल स्टेशन या ईव अनेक फॉरेस्ट वो नाइट्स का है। हमारे सिस्टर्स रोज़ एक्सपिरियंस करते थे और वो उसकी पेन्टिंग भी बनाते थे। पर हमारी हर एबिलिटी की तरह आउटर स्पेस में अपनी पोज़िशन को समझना भी हमारे सर्वाइवल से ही रिलेटेड है। कई साइकोलॉजिस्ट मानते हैं कि हम और या एक सेन्स ऑफ वंडर तब एक्सपिरियंस करते हैं जब हम उस सिचुएशन से कुछ जरूरी इन्फॉर्मेशन निकाल सकते हैं। फ्यूचर में यूज़ करने के लिए और ये एक्सप्लेनेशन काफी सेंसिबल है क्योंकि अगर कोई चीज़ हमारी दुनिया की समझ में फिट नहीं होती जैसे कभी ना खत्म होने वाला स्पेस तो शायद हमें ऐसी चीज़ के बारे में ज्यादा समझना चाहिए ताकि हम शुर हो सके कि हमें उससे कोई खतरा नहीं है। तभी हमें कई बार लिटरल्ली ऐसा लगता है कि कोई पेंटिंग या फिर मून या चार्ज हमें कुछ बताना चाहते हैं। यह फीलिंग हमें बोलती है कि हम अपने ऊपर से अटेन्शन हटाकर अपने एनवायरनमेंट पर फोकस करें। इसी वजह से कई लोग आसमान में देखकर और नहीं बल्कि डर महसूस करते हैं क्योंकि हमें नहीं पता कि वहाँ पर क्या है और यह फैक्ट हमें हम्बल फील कराता है। रिसर्चर्स इस टाइप की थिंकिंग को बोलते हैं। एपिसोड 1 फ्यूचर थिंकिंग जो बताती हैं कि हमारे दिमाग में स्पेशल ली ऐसे सेल्स होते हैं जो तब ऐक्टिवेट होते हैं जब हम यह सोचते हैं कि हमें कहाँ जाना है या फिर अगला कदम किस तर एक्शन में लेना है। इस तरह से हम अपने एनवायरनमेंट और उसमें अपनी पोज़ीशन को समझते हैं और जहाँ भी जाना है उसका अपने दिमाग में एक वर्चुअल मैप बना पाते है। सो जब भी हम डाइरेक्टली आसमान में सारी ऐस्ट्रोनॉमिकल बॉडीज़ या फिर स्पेस की सीजीआई विडीओ उसको देखते हैं। तब हमारे दिमाग में काफी सारी चीजें चल रही होती है। सबसे पहले स्पेस के इतना बड़े होने की वजह से हम उसके आगे काफी छोटा फील करते हैं और यह फीलिंग हमें याद दिलाती है कि हम इस दुनिया के टेंपरेरी मेहमान हैं और हम अपने आप को जितना भी सीरियसली ले ले, हमारी प्रॉब्लम्स इतने बड़े यूनिवर्स में मैटर ही नहीं करती। इसके साथ ही स्पेस एक सिंबल है अननोन और एक्स्प्लोरेशन का एवल्यूशन की वजह से हम जेनेटिकली वाइड है। अन्न उन जगहों को एक्सप्लोर करने के लिए, क्योंकि अगर हम नए एनवायरनमेंट को मास्टर करने के लिए क्युरिअस नहीं होते तो हमारे कभी अफ्रीका से बाहर निकलते ही नहीं। हम अर्थ को डोमिनेट नहीं कर पाते और शायद ह्यूमैनिटी की स्टोरी शुरू होने से पहले ही खत्म हो जाती है और इस बात के काफी ज्यादा चान्सेस है की अननोन जगहों को एक्सप्लोर करने की हमारी यही क्युरिऑसिटी हमें यूनिवर्सिटी काफी दूर जगहों पर लेकर जाएगी।","कभी आपने सोचा है कि बाहरी अंतरिक्ष इतना विस्मयकारी क्यों है? मनोविज्ञान कहता है कि जब भी हम वास्तव में किसी चीज से विनम्र होते हैं, तो हम उसके लिए एक सम्मान विकसित करते हैं और अंतरिक्ष वह है जो इस काम को सबसे उचित रूप से करता है। लेकिन वहाँ और .." "अपने आप से क्वेश्चन करो कि आपके कितने फ्रेंड्स है। अगर आपका आन्सर 120 है, तो ऐसे में आपके कम फ्रेंड्स होने के दो रीज़न हो सकते हैं। यानी या तो आप उतना सोशलाइज नहीं करते और आप उतने लाइकेबल नहीं हो या फिर आप दूसरों से ज्यादा स्मार्ट हो। 2016 में ब्रिटिश जर्नल ऑफ साइकोलॉजी में पब्लिश हुई एक स्टडी में लगभग 15,000 लोगों के हैपिनेस लेवल्स को मेजर करा गया और उन्हें उनके आइक्यू लेवल से रिलेट कर आ गया। उनमें देखा गया कि वो कब ज्यादा खुश और सैटिस्फाइड होते हैं, जब वो अपने फ्रेंड्स के साथ सोशलिस्ट कर रहे होते हैं। या फिर अकेले रिजल्ट्स में पता चला कि जो लोग ऐवरेज और उससे नीचे के आइक्यू के थे वो ज्यादा खुश और सैटिस्फाइड थे। जब वह अपने दोस्तों के साथ समय बिता रहे थे और जीतने ज्यादा उनके दोस्त थे, उतने ही ज्यादा वो खुश थे, लेकिन जो लोग हाइली इन्टेलिजन्ट थे, उनके साथ एकदम ऑपोजिट रिज़ल्ट देखने को मिला और वो तब सबसे ज्यादा खुश और सैटिस्फाइड थे जब वो अकेले थे। जीवन महान इन्वेन्टर निकोला टेस्ला ने भी कभी शादी नहीं करी। आइजैक न्यूटन ने कभी भी कोई दोस्त नहीं बनाए और ऐल्बर्ट आइंस्टाइन भी अकेले में समय जाना ही प्रिफर करते थे। सबसे ज्यादा स्मार्ट लोगों में ये पैटर्न ऑब्वियस होता है और हम अब उन रीजन्स को डिस्कस करेंगे जो ये बताएंगे कि ज्यादातर इन्टेलिजन्ट लोगों का फ्रेंड सर्कल इतना छोटा क्यों होता है? नंबर वन जितना बड़ा फ्रेंड सर्कल उतनी कम उसकी क्वालिटी। एक और चीज़ जो इसी समय स्टडी में पता लगी थी वो यह है कि जो लोग बहुत ज्यादा डैंसली पॉपुलेटेड एरिया में रहते हैं, वो उन लोगों से कम खुश होते हैं जो कम पॉपुलेटेड एरियाज में रहते हैं। यानी बड़े शहरों में ज्यादातर लोग एक दूसरे के कड़वाहट और ही ट्रेड रखते हैं। जबकि छोटे शहरों और छोटे गांव में आपको सबसे ज्यादा फ्रेंडली इन्वाइटिंग और लविंग लोग मिलेंगे और ये चीज़ आप खुद भी नोटिस कर सकते हो। जब आप अपने शहर के शोर शराबे से दूर किसी छोटे से हिल स्टेशन या बीच पर घूमने जाते हो, वहाँ के लोगों में आपस में भी ज्यादा प्यार और ट्रस्ट होता है और वह बाहर के लोगों को भी अच्छे से ट्रीट करते हैं और इसके पीछे एक एवल्यूशन रीज़न है क्योंकि हम हजारों और लाखों सालों से छोटी छोटी ड्राइव में ही रहते आए हैं। जहाँ हम हर इंसान को जानते थे और हर कोई एक दूसरे से मिलजुलकर रहता था। जबकि एक शहर की सेटिंग जहाँ इतनी छोटी सी जगह में इतने सारे लोग रहते हैं, वहाँ टेंशन तो क्रिएट होनी ही है और स्मार्ट लोग इस बात को समझते हैं कि वो जितना ज्यादा अपने फ्रेंड सर्कल को बड़ा करेंगे उतनी ही ज्यादा उन्हें प्रॉब्लम्स और टेंशन्स मिलेंगी और वो दूसरों से उतना डीप बॉन्ड भी नहीं बना पाएंगे जो वो कम लोगों के साथ बना सकते है। नंबर टू दूसरों को जज करना क्योंकि जो लोग बहुत इंटेलीजेंट होते हैं लेकिन वाइज नहीं। वो दूसरों में ज्यादा कमियां निकाल पाते हैं और इस वजह से वह खुद को दूसरों से सुपिरिअर मानते हैं। वो लोगों के बोलने के ढंग उनकी बॉडी लैंग्वेज, उनके बैकग्राउंड या उनकी इन्टेलिजेन्स किसी भी चीज़ में कोई कमी निकाल लेते हैं और धीरे धीरे उनसे बात करना बंद कर देते है। हाउएवर इसकी एक पॉज़िटिव साइड भी है कि इन्टेलिजन्ट लोग उन लोगों को भी पहचान लेते हैं जो लोग नेगेटिव, अनप्रोडक्टिव और सेल्फिश होते हैं और उनके साथ रहने पर हर इंसान का लॉस ही होता है। इन्टेलिजन्ट लोग उनके फ्रेंड्ली सोशल मास्क के पीछे देख पाते हैं और ये समझ पाते हैं कि कौन सा इंसान रीयल है और कौन बस अपनी पर्सनैलिटी को फेक कर रहा है और वो ऐसे लोगों को अपने सर्कल में नहीं आने देते हैं। नंबर थ्री स्मार्ट लोगों को उतना इमोशनल सपोर्ट नहीं चाहिए होता जहाँ क्रिएटिविटी जैसे ट्रेट को हाइ न्यूरोटिसिज्म से जोड़ा जाता है। वहीं इन्टेलिजेन्स को यूज़्वली लोगों ने रोटी सिस्टम यानी इमोशनल स्टेबिलिटी से जोड़ा जाता है। जीस वजह से जब भी वो बोर्ड या लो फील करते हैं उन्हें तब दूसरों का साथ नहीं चाहिए होता। उनके अपने ही कई कोपिंग मेकनिजम से और इंट्रेस्ट होते हैं, जो उन्हें अपने आप में ही सैटिस्फाइड रखते हैं। नंबर फ़ोर आउट ऑफ द बॉक्स सोचने के लिए क्योंकि क्रियेटिव आइडियाज़ प्रोड्यूस करने का मतलब है कि आप अपने अंदर मौजूद इन्फॉर्मेशन को यूज़ करो। किसी ऐसी चीज़ को बनाने के लिए जो सबसे यूनीक हो लेकिन जब आप हर समय ही अपने आप को बहुत से लोगों से घेरे रखते हो और वो आपके कानों में यूज़लेस इन्फॉर्मेशन से भरा गंध डाल रहे होते हैं, तब उस गंध से कुछ भी नया और यूज़फुल क्रिएट करना बहुत मुश्किल होता है, जिसकी वजह से स्मार्ट लोग क्रिएटिव बनने और आउट ऑफ बॉक्स थिंकिंग डेवलप करने के लिए अकेले रहना प्रिफर करते हैं। नंबर फाइव उन्हें अपनी लाइफ में ड्रामा नहीं चाहिए होता। जहाँ स्मार्ट लोग अपनी लाइफ में प्रोडक्टिव बनाने और आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे होते हैं, वहीं एक बड़ा फ्रेंड सर्कल ऐसे केस में एक डिस्ट्रैक्शन का काम करता है। क्योंकि जब आप अपने गोल से बहुत दूर होते हो तब आपके लिए ऐसे फ्रेंड्स ढूँढना बहुत मुश्किल होता है। जिनकी सोच आप जैसी हो, वो भी आपके जैसे ही एक बड़े गोल का पीछा कर रहे हो और वो आपको समझते हो। इस पॉइंट से पहले आपको बस ऐसे लोग मिलते हैं जिनका ना तो आप के जैसा विजन है और ना ही वो आपकी उतनी वैल्यू करते हैं। इसलिए जो लोग इंटेलीजेंट होते हैं वो अपनी लाइफ में ड्रामा को कम से कम रखते हैं और बहुत कम दोस्त बनाते हैं।","चाहे वह निकोला टेस्ला, आइजैक न्यूटन या अल्बर्ट आइंस्टीन हों, यह सर्वविदित है कि अत्यधिक बुद्धिमान लोगों के कम दोस्त होते हैं। हाल के एक अध्ययन में, यह पाया गया कि स्मार्ट लोग दोस्तों के साथ रहने के बजाय अकेले होने पर खुश और अधिक संतुष्ट होते हैं। लेकिन क्यों? इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम इस सवाल का जवाब विभिन्न कारणों से देने की कोशिश करेंगे कि स्मार्ट लोगों के कम दोस्त क्यों होते हैं।" "मोटिवेशन एक ऐसी चीज़ है जिसके बारे में हम बात तो करते हैं लेकिन ज्यादातर लोग यह नहीं जानते कि मोटिवेटेड फील करने का मतलब क्या होता है। मोटिवेशन हमारी ड्राइव या फिर कुछ भी करने की इच्छा नहीं होती। मोटिवेशन बस एक टेंपरेरी बूस्ट होता है, जो हमें एक्साइटमेंट से भर देता है और एक सर्टन टाइम पीरियड के बाद खत्म हो जाता है। मोटिवेशन न्यूरोकेमिकल्स के बेसिस पर काम करता है। जैसे जब भी आप एक मोटिवेशनल वीडियो देखते हो, किसी मेहनती इंसान को अपनी रोज़ी रोटी कमाते हुए देखते हो या फिर किसी सक्सेसफुल इंसान की स्टोरी सुन लेते हो जब आपके अंदर डोपामाइन रिलीज होता है और वो आपको भी ऐसा फील कराता है कि आप भी अपनी लाइफ में दूसरों की ही तरह हर बाधा यह रुकावट को पार कर सकते हो। हाउएवर केमिकल्स के फाउंडेशन पर बनी यह फीलिंग ज्यादा देर तक नहीं टिकती और इवेन चली कुछ घंटों या फिर कुछ दिनों के अंदर ही हम फिर से अपनी मोटिवेशन खो देते हैं। इस वजह से इस एपिसोड में हम डाइरेक्टली यह नहीं समझेंगे कि आप मोटिवेट कैसा फील कर सकते हो। वो तो आप पहले ही जानते हो। हम बात करने वाले हैं उन टेक्नीक्स और इनसाइट्स की। जिनसे आप अपनी लाइफ एनर्जी के साथ मिलकर काम कर सकते हो और हर समय एनर्जाइज और वाइब्रेंट रहकर उन कामों को कर सकते हो, जो आपको आपकी मैक्सिमम पोटेंशिअल तक ले जाएं। नंबर वन ओनली इन गेज इन थिंग इज़ दैट मूवी यू टू वॉज़ योर गोल हमारी पूरी जिंदगी एक छुपन छुपाई की गेम की तरह होती है जिसमे हम अपनी जिंदगी का हाइएस्ट पर्पस यानी अपने पैदा होने का रीज़न ढूंढ रहे होते हैं। इसी वजह से एक लेवल पे ये मैटर ही नहीं करता कि आप क्या गोल सेट करते हो। आप बोल सकते हो कि आपको एक पायलट, एक ऐक्टर, एक बिज़नेस पर्सन एक एथलीट बनना है लेकिन ज्यादातर केसेस में ये कुछ बनने की डिज़ाइनर्स आपके अंदर से नहीं बल्कि सोसाइटी और पैरेन्ट्स की एक्सपेक्टेशन्स या फिर मूवीज़ को देख कर आ रही होती है। दुनिया आपको बोलती है कि यह गोल सेट करो या फिर वह गोल सेट करो लेकिन अगर आप इस ख्याल पर मेडिटेट करो तो आपको समझ आएगा कि आप एक गोल के साथ पैदा होते हो और बाकी गोल्स जो आप प्लैन करते हो वो या तो आपको अपने लाइफ पैच से भटकाते हैं या फिर वह बस एक पुल की तरह होते हैं जो आपके और आपके हाइएस्ट गोल के बीच में होते हैं। याद रखो, जिंस गोल को सेट किया जा सके वो असली गोल नहीं है। इसी वजह से बहुत से लोग यह सोचकर कन्फ्यूज होते रहते हैं कि उन्होंने तो इतने बड़े बड़े गोल भी सेट कर लिए हैं लेकिन फिर भी वो आप कुछ करने के लिए मोटिवेटेड क्यों नहीं फील कर रहे हैं? ऐसे में वह ऑनलाइन जाकर मोटिवेशनल वीडियो देखते हैं। एक इमोशनल सा बैकग्राउंड म्यूजिक चलाकर लोगों की बड़ी बड़ी बातों को सुनते हैं और कुछ देर के लिए एक्साइटेड हो जाते हैं। लेकिन असलियत में वह खुद के दिमाग में गंध डालकर खुद को सच से दूर ले जा रहे होते हैं। सच हमेशा आपके अंदर से निकलता है। जबकि झूठ आपके पास बाहर से सच के भेष में आता है। सच अनंत हैं, लेकिन झूठ टेंपरेरी इसी वजह से जीस जोश की आग को बुझाया जा सके। वो झूठ है इसलिए मोटिवेशनल वीडियो देख कर लेना बंद करो नाउ क्वेश्चन ये आता है कि अगर हम एक गोल के साथ पैदा होते हैं तो हम उस गोल को ढूंढकर परमानेंटली अपनी लाइफ के टुवार्ड्ज़ एक्साइटेड कैसे रहे हैं? ये चीज़ भी बहुत सिम्पल है। यानी आपने बस उन चीजों में एंगेज करना है जो आपके उस मूवमेंट को मीनिंग से भर देती है। हमारे अंदर एक कम्पास होता है। जो सिर्फ उसी दिशा में पॉइंट करता है, जिससे रास्ते पर चलकर हम अपने अल्टीमेट गोल तक पहुँच सके। ये कंपस हमें उन चीजों में इंटरेस्टेड फील करवाता है जो हमें इन्वॉल्व कर सकती है। आप ये चीज़ महान लोगों की ऑटोबायोग्राफी इसमें भी पढ़ सकते हो कि उनकी लाइफ में एक ऐसा मोमेंट आया जब उनकी नजर किसी चीज़ ने खींची और वहीं से उनकी लाइफ बदल गई। एक महान पियानो प्लेयर महान बनने से पहले अपने बचपन में गोल तो बना लेता है कि मैं ऐस्ट्रनॉट बनूँगा या फिर मैं कोई बड़ी कंपनी खोलूँगा लेकिन जैसे ही वो किसी को प्यानो पर कोई बहुत प्यारी सी धुन बजाता, वह सुनता है। वैसे ही वो उसमें खो सा जाता है और उसे पता होता है कि हाँ वो तो बस इस दुनिया में प्यानो बजाने और अपनी धुन से लोगों के दिल को छूने आया है। यही रीज़न है कि क्यों उन चीजों पर ध्यान देना बहुत जरूरी होता है जो आपकी नजरें खींचती है और आपको बहुत इंट्रेस्टिंग लगती है। अपने इंट्रेस्ट के बारे में सोचो कि आपको कौन सी चीज़ सबसे ज्यादा प्यारी है? कौन सा काम आप बिना थके और बिना सोए लगातार कर सकते हो? वो काम ही आपको अपने अल्टीमेट लाइफ गोल और अपनी हाइएस्ट पोटेंशिअल तक ले जाएगा और यही वो काम होगा। कैसे करने के लिए आपको किसी भी तरह की मोटिवेशन की जरूरत नहीं पड़ेगी। नंबर टू ब्रेक की और बिग गोल डाउन इन टू स्मॉलर गोल्स नाउ जब आप अपने इंट्रेस्ट या पैशन को फॉलो करना शुरू करने लगते हो तब भी आप अपने रास्ते में कई मुश्किलों को फेस करते हो और जस्ट बिकॉज़ आप अभी वह नहीं हो जो आप बन सकते हो। आप अपना हर कदम डर डर के लेने लगते हो। आपके दिमाग में यही क्वेश्चन होता है कि क्या मैं यह कर पाऊंगा? मैंने अपनी दिल की सुनना तो शुरू कर दिया है, लेकिन अगर मैं बीच में फेल हो गया तो क्या होगा? ये क्वेश्चन्स हर इंसान के दिमाग में आते हैं। इसी वजह से जो भी आपका शौक है, उसे छोटे छोटे भागों में बांट दो। फर्स्ट पॉइंट में हमने यही समझा था कि आपका असली गोल आप नहीं बनाते बल्कि आप उसके साथ पैदा होते हो लेकिन जस्ट बिकॉज़ यह गोल आपसे अभी बहुत दूर है। इसी वजह से आपको अपने और अपने हाइएस्ट गोल के बीच कई पुल बनाने पड़ेंगे और यह इम्पोर्टेन्स होती है छोटे छोटे गोल बनाने की। जैसे अगर हम पहले वाला एग्जाम्पल ही लें कि एक इंसान पियानो बजाना सीखना चाहता है और वहीं उसका पैशन है, जिसमें वो अपनी पूरी जिंदगी लगाने को तैयार है। लेकिन उसके पास अभी पियानो खरीदने और पियानो लाइसेंस लेने के लिए पैसे नहीं है। इसी वजह से वह कई छोटे गोल्स का ब्रिज बनाता है कि पहले वह खुद को एक इंटरव्यू के लिए प्रिपेर करेगा। वो इंटरव्यू देगा, एक ऐवरेज सी जॉब ले लेगा और वहाँ एक 2 साल काम करते हुए थोड़े थोड़े पैसे सेव करना शुरू करेगा। जिससे इवेन चली वो अपने पैशन को पर्स यू कर सके और एक प्यानो खरीद सकें। इस नज़र के साथ आपके टेंपरेरी गोल्स भी आपको मोटिवेटेड रखेंगे। जस्ट बिकॉज़ आपको यह पता होगा कि हाँ आप सही रास्ते पर ही हो और आप अपने लाइफ पर्पस से भटके नहीं हो? नंबर थ्री रिड्यूस जी आपने इस चीज़ को बहुत बार एक्सपिरियंस करा होगा कि आपका किसी काम को पूरा करने का मन तो होता है और आपको उस काम से प्यार भी होता है लेकिन तब भी आप लेज़ी फील करने लगते हो और आप अपना काम पूरा नहीं कर पाते हैं। ऐसा तब होता है जब आपकी फिजिकल बॉडी आपका साथ नहीं देती। इसी वजह से अगर आप अपने इंट्रेस्ट को फॉलो करने के बावजूद लेज़ी या फिर डी मोटिवेटेड फील कर रहे हो तो चान्सेस है की कमी आपके साइकोलॉजिकल लेवल पर नहीं बल्कि फिजिकल लेवल पर हैं। यानी आप क्या खाते हो? क्या पीते हो, कितना सोते हो, कितना स्ट्रेस लेते हो या फिर कितनी एक्सरसाइज करते हो, ये सारी चीजे ही आपको या तो लाइफ के टुवर्ड ज्यादा पैशनेट बनाती है या फिर आलसी और नेगेटिव। हर वो फूड जो या तो पैकेज्ड है या फिर किसी जानवर को मार कर बना होता है, उसे डाइजेस्ट करने में बहुत समय लगता है और वो हमारे शरीर में बहुत ज्यादा प्रॉब्लम क्रिएट करता है। जहाँ फ्रूट्स, वेजिटेबल्स, नट्स, सीड्स या ग्रेन्स जैसी चीजें बिना बॉडी को ज्यादा डिस्टर्ब करे और काफी जल्दी डाइजेस्ट हो जाती है। वहीं नॉन वेजिटेरियन और जंक फूड शरीर को धीमा और आलसी बना देते है। आप ये चीज़ अपनी मील्स के साथ भी नोटिस कर सकते हो कि जब आप थोड़ा सा फ्रेश फ्रूट खाते हो तब आपको पता भी नहीं चलता कि आपने कुछ खाया हैं। जबकि जब आप पिज़्ज़ा, बर्गर या चिकन जैसी चीजें खाते हो, तब आप अपनी मेंटल क्लैरिटी भी खो देते हो और थोड़े से सुस्त बन जाते हो? जस्ट बिकॉज़ आपकी बॉडी उस खाने को पचाने में बीज़ी हो जाती है, इसलिए अपने माइंड को उसकी पीक परफॉर्मेंस पर लाने के साथ साथ अपनी बॉडी पर भी ध्यान दो। जब तक आपकी बॉडी आपका साथ नहीं देगी जब तक आप अपनी लाइफ में कुछ भी मीनिंगफुल हासिल नहीं कर सकते हैं। नंबर फ़ोर ड्रॉप बैगेज जो चीज़ बहुत से लोगों की लाइफ एक्सपिरियंस को ऐवरेज और डर लगती है वो है उनकी पास मेमोरीज़ और उनकी बिलीव्स। आप तब तक अपने काम में अपना 100% नहीं दे सकते जब तक आप अपने पास से एक दम फ्री नहीं हो जाते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि आपके मन पर जीस भी चीज़ का इन्फ्लुयेन्स होता है। आप उसी चीज़ को हर जगह देखने लगते हों जिसकी वजह से अगर आप अभी भी अपने पास्ट के ट्रामा किसी आइडियोलॉजी या फिर अपने लिमिटेड बिलीव्स में ही अटके हुए हो। तो आपको पहले उन्हें पीछे छोड़ना होगा। उनकी रिऐलिटी को समझकर यानी अपनी रिऐलिटी को क्वेश्चन करो। जो भी झूठ आपकी ईगो से एक फैक्ट बनकर चिपका है, उसे टेस्ट करो और एक बैंलेंस ड्यू फिर से वापस हासिल करो। सिर्फ इन्हीं तरीकों से आप मोटिवेशन के भी पार जा सकते हो और जो काम करने की जरूरत है उसे बिना किसी इन्नर रिजिस्टन्स के पूरा कर सकते हो।","प्रेरणा एक ऐसी चीज है जिसके बारे में हम अक्सर बात करते हैं लेकिन यह नहीं समझते कि यह वास्तव में क्या है। यह हमारी ड्राइव या कुछ करने की इच्छा नहीं है। बल्कि, यह केवल मनोबल में एक अस्थायी वृद्धि है, जो आपके द्वारा की जाने वाली किसी भी चीज़ के प्रति अधिक उत्साहित होने की अनुमति देता है। हालाँकि, प्रेरणा की अल्पकालिक प्रकृति ही इसे दीर्घकालिक सफलता के लिए वास्तव में एक बुरा साधन बनाती है। इसीलिए इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम 4 हैक्स के बारे में बात करेंगे जो आपकी प्रेरणा की आवश्यकता को पार करने में आपकी मदद करेंगे और आपको जीवंत और हर समय काम करने के लिए तैयार करेंगे।" "फ्रेड्रिक नीचा एक जर्मन फिलॉसफर थे, जिन्हें अब तक के सबसे साहसी और महान थिंकर्स में से एक माना जाता है। अपनी किताबों में नीचा ने रिलिजन कल्चर, साइंस, आर्ट, ट्रैजिडी और ह्यूमन सफरिंग जैसे टॉपिक्स को डिस्कस करना है। उनकी फिलॉसफी में बहुत सी बातें इतनी कॉन्ट्रोवर्शल है कि आप चाहकर भी उनकी बातों को इग्नोर नहीं कर सकते हैं और वो आप को और गहराई से सोचने के लिए मजबूर करते हैं। जो भी इंसान एग्ज़िस्टन्स से जुड़े फिलॉसफिकल क्वेश्चन्स के आन्सर जुड़ना चालू करता है वो यूज़्वली नीचे वो पड़ने से ही अपनी फिलॉसॉफिकल जर्नी की शुरुआत करता है। इसी वजह से नीचा ने कई महान फिलॉसफर्स और साइकोलॉजिस्ट्स को इन्फ्लुयेन्स कर रहा है और तभी इस एपिसोड में हम उनकी सबसे जरूरी और प्रैक्टिकल लाइसेंस को डिस्कस करेंगे। ले सन वन लीव डेंजरसली नीचा के हिसाब से कोई भी इंसान कभी भी ना तो ग्रेड बन सकता है और ना ही खुलकर जिंदगी को एन्जॉय कर सकता है। जब तक वह खुद को खतरनाक सिचुएशन्स में डालकर टेस्ट नहीं करता, हमें खुद की लिमिट्स को रेग्युलरली पर रखना चाहिए। यही अकेला तरीका होता है जिससे हम कंफर्ट ज़ोन से बाहर निकलकर खुद को ओवर कम कर सकते हैं। नेचर उनका टीचर्स का साथ नहीं देती, जो हमेशा डरे सहमे से रहते हैं और लाइफ से दूर भागते हैं। इसके बजाय वह उन यूनीक इंडिविजुअल्स को फेवर करती है जो ऑर्डर और किया उसके बीच रहते हैं और उन्हें फर्क नहीं पड़ता कि दूसरे आम लोग जो खुद की बुद्धि के ही गुलाम बन चूके हैं, उनका क्या ओपिनियन है? ऐसी वीक मेंटैलिटी वाले लोगों को नीचा लाइफ डेनिल्स बोलते है, क्योंकि बंद कमरों और घर, स्कूल, कॉलेज या ऑफिस की सेफ्टी, मैं हर समय रहना, ये कोई साहसी काम थोड़ी हुआ। अगर आप लाइफ के फ्लो में आना चाहते हो तो आपको बहुत से रिस्क लेने पड़ेंगे। अपनी जेबें भरने के साथ अपने दिल को भी भरना होगा। अपने मन के गुलाम बनने के बजाय उसे शांत करना होगा और झुंड में गुम हो जाने के बजाय अकेले खड़े होने की हिम्मत करनी होगी। जो इंसान इस तरह से जिंदगी जीते हैं, उन्हीं के नाम हमारी इतिहास की किताबों में छपते हैं, उनके लिए स्टैचूज खड़े करे जाते हैं और उन पर मूवीज़ बनाई जाती है ताकि दूसरे लोग भी उनसे कुछ सीखे और वह भी डेनजरस ली और खुलकर जिएं। लेसन टु इन्क्रीज़ योर अवेर्नेस नीचा बोलते है कि ज्यादातर लोग खुद को डिस्ट्रैक्ट करते रहते हैं। जिससे वो कभी भी लाइफ के एसेंस के बारे में अवेयर हो ही नहीं पाते। जब हमारी लाइफ में मीनिंग रिस्पॉन्सिबिलिटी या एक बहुत बड़ा सपना नहीं होता, जो हमें चैन से ना बैठने दें तब हम आलसी बन जाते हैं। हमारा लाइफ स्टाइल ही झूठ का जीता जागता अवतार होता है और हमारे इरादे भी नेक नहीं रहते है। हम किसी ना किसी काम में बिज़ी तो रहते हैं, चाहे वो माइंड लेस्ली, कुछ ना कुछ खाते रहना हो, कोई मूवी देखनी हो या फिर डे ड्रीमिंग करनी हो लेकिन हमारी हर आदत हमें शार्प और कॉन्शस बनाने के बजाय हमें डल और अनकॉन्शियस बनाती है। इसी वजह से नीचा हमें खुद से ऑनेस्ट होने के लिए बोलते हैं कि अगर हम ऐसे ही ऑटो पायलट पर जिंदगी जीते रहे तो हम यही सोचते रह जाएंगे कि लाइफ खुद आकर हमारे दरवाजे पर दस्तक देगी और शायद तब कुछ इंट्रेस्टिंग होगा। हम इतने डल इसलिए बन जाते है जस्ट बिकॉज़ हम महान बनने और महान बनने के लिए जीस चुनौती भरे रास्ते से गुजरना होता है उससे डरते है। इसके बाद जब हम लाइफ में फेल होने लगते हैं तब हम खुद के ऐक्शन को जस्टिफाई करने के लिए ये बोलने लगते है कि मैं तो कभी ज्यादा पैसे कमाना ही नहीं चाहता था। पैसा ही हर चीज़ थोड़ी है। या फिर जो इंसान एक लविंग और स्टेबल पार्टनर नहीं ढूंढ पाता जस्ट बिकॉज़ वो खुद रिलेशनशिप्स में कोई वैल्यू प्रोवाइड नहीं करता। वो बोलता है कि रिलेशनशिप्स और प्यार तो बकवास चीजें हैं। पैसों का पीछा करो, लेकिन ये सब बहाने हैं जो सिर्फ एक इंसान ही बनाता है। जबकि एक ऐसा इंसान जो अपनी लाइफ की रिस्पॉन्सिबिलिटी खुद अपने हाथ में लेता है, वो अपनी लाइफ के हर एरिया में सक्सेसफुल बनता है। इसलिए सिर्फ वो काम करो जो आप को ऊपर उठाते हैं बजाय आप को नीचे गिराने और आपको दल बनाने के लहसुन थ्री फाइंड योर वि नीचे बोलते है कि जीस इंसान के पास एक वाय यानी एक पर्पस होता है, वो दुनिया की मुश्किल से मुश्किल चुनौती को भी पार कर सकता है। नीचे के हिसाब से हमें लाइफ कुछ इस तरह से जीनी चाहिए कि जब भी हम खुद को शीशे के आगे देखें तब हम गर्व महसूस करें ना कि शर्म। हमें किसी दूसरी अथॉरिटी के डर से नहीं बल्कि खुद के डर से काम करना चाहिए, दूसरों की जजमेंट से नहीं, बल्कि खुद के फ्यूचर सेल्फ की जजमेंट से डर हो ताकि 10 साल बाद आपका फ्यूचर वर्जन आपके अभी वाले वर्जन को मेहनत करने के लिए शुक्रिया बोले बजाय खुद को हिट करने के कि काश आपने पास में अपना टाइम वेस्ट नहीं करना होता, इसलिए हमेशा खुद से सच्चे रहो और अपने इंट्रेस्ट को फॉलो करने की हिम्मत करो। बाकी सारी प्रॉब्लम्स इसके आगे बहुत छोटी है। लेसन फॉर सफर इंग्लिश गुड ज्यादातर समय सफरिंग के बारे में यही बोला जाता है कि वो निगेटिव होती है और सफरिंग दुनिया में जितनी कम हो उतना अच्छा रहेगा। लेकिन नीचा बोलते है कि जो भी चीज़ हमें जान से नहीं मारती वो हमें और स्ट्रॉन्ग बनाती है। यानी हमें एक फ़ीनिक्स वर्ड की तरह जिंदगी जीनी चाहिए। हमें इतने जोखिम उठाने चाहिए। इतने कष्ट झेलने चाहिए कि उनके बोझ तले दब कर हमारे वो हिस्से मर जाए जो हमारी ग्रोथ में बाधा डाल रहे थे और हमारे वो हिस्से और ग्रो करें जो हमें एक बेहतर इंसान बना सकते हैं। एक कोर्ट में नीचा बोलते है कि कई बार इन्वॉल्व होने के लिए हमें खुद को किसी न किसी तरह से बर्बाद होने देना चाहिए ताकि हम एक नया जन्म लेकर और स्ट्रांग बन सके। अपनी सफरिंग को ग्रोथ की एक ऑपर्च्युनिटी की तरह देखो। जितना संबंध आप रौशनी से बनाते हो उतना ही संबंध अंधेरे से भी बनाओ और दोनों से दोस्ती करो ताकि आप अपने सुख में भी हँस सको। और दुख में भी लेसन फाइव प्रिज़र्व योर लाइफ फोर्स अपने एक डिस्कोर्स में नीचा हमें उन लोगों से दूर रहने के लिए बोलते हैं जो खुद खोखले होते हैं और वो हमारी एनर्जी पर फीड करते हैं। ऐसे लोगों को नीचा ने खून चूसने वाले मच्छर के समान बताया है कि कैसे कई लोग ऊपर से तो बहुत इनोसेंट और स्वीट बनकर हमारे पास आते हैं, लेकिन असलियत में वो हमसे जलते हैं और हमें खुद से बेहतर समझ कर हमें हेट भी करते हैं। ऐसे मच्छर जैसे लोगों को अपनी स्किन के आसपास भी मत भटकने दो और सिर्फ उन लोगों के साथ ही टाइम स्पेंड करो। जो आपकी एनर्जी आपसे चुराते नहीं बल्कि वो खुद इतना ओवरफ्लो कर रहे होते हैं कि वो आपको अपनी कुछ पॉज़िटिव एनर्जी देकर जाते हैं। लेसन्स सिक्स रिज़ल्ट मेक्स यू टॉक्सिक यानी चाहे आपकी लाइफ में कितना भी बुरा क्यों ना हो जाए आपको जॉब से निकाल दिया जाए। आपके रिलेटिव आपको कोई बात सुना जाए या आपका पार्टनर आपसे ब्रेकअप कर लें। आपने किसी भी इंसान के लिए अपने दिल में हेट और कड़वाहट नहीं रखनी है क्योंकि नीचा बोलते है कि अपने दुश्मनों और ट्रैजिडी इसको सीरियसली ना लेना यह एक साइन होता है। स्ट्रांग करेक्टर का एक जहर है जो हमारे शरीर में बहुत तेजी से फैलता है। इसलिए जैसे ही आप को यह लगे कि आप दूसरों के टुवार्ड्ज़ हेट पालने लगे हो तो तभी अपने आप को पकड़ो और खुद को याद दिलाओ कि आपका यह मोशन आपको ही नेगेटिवली इन्फ्लुयेन्स कर रहा है। यही रीज़न है कि क्यों जिन लोगों में होती है, उन्हें नीचे स्लेव मेंटैलिटी वाले लोग बोलते है जस्ट बिकॉज़ ये खुद की बुद्धि के ही गुलाम बन जाते हैं और खुद को ही नुकसान पहुंचाना चालू कर देते हैं। लेसन सेवन नॉलेज कम्स फ्रॉम फर्स्ट हैंड एक्सपीरियंस नीचा लिखते हैं कि अलटिमेटली कोई भी इंसान किसी भी बुक से उससे ज्यादा ज्ञान नहीं ले सकता, जितना उसके पास ऑलरेडी है। अगर आपके इक्स्पिरीयन्स से कोई नॉलेज कोसों दूर है तो आपके कानों में उसकी बातें ऐसी पड़ेगी जैसे वह एक पत्थर पर पड़ रही हो। यानी हमें कोई बात समझ ही तब आती है जब एक डी पर लेवल पर हम ऑलरेडी उससे ज्यादा दूर नहीं होते। वरना आप कितनी भी बुक्स रीड कर लो, यह कितने भी महान लोगों की बातें सुन लो। आप उनकी बातों को तब तक डीपी नहीं समझ पाओगे जब तक उनकी बातें आपका एक्सपीरियंस नहीं बन जाती। लाइफ एक्सपिरियंस से बड़ा कोई टीचर नहीं होता। थ्योरिटिकल अन्डरस्टैन्डिंग सिर्फ उन चीजों की होनी चाहिए जो बिल्कुल जानलेवा है। जैसे आपको इस चीज़ को इक्स्पिरीयन्स इल्ली कन्फर्म करने की जरूरत नहीं है कि एक शेर के आगे जाने से वो शायद आपको खाने की कोशिश करें, लेकिन लाइफ के बाकी ऐस्पेक्ट इसको डाइरेक्टली उन्हें जीकर ही समझना चाहिए। लेसन एट सरेंडर टु लाइफ नीचा बोलते है कि जो इंसान कभी कुछ सैक्रिफ़ाइस नहीं करता वो लाइफ को डीप्ली फील भी नहीं कर सकता, क्योंकि जो भाव आप को दान देने के लिए अपने अंदर चाहिए होता है, वही भाव आपको लाइफ के सबसे गहरे एक्सपिरियंस इसको रिसीव करने के लिए भी चाहिए होता है, यानी फेमिनिन होना। लेकिन आज कल जहाँ ज्यादातर लोग मटिरीअल चीजों का पीछा करते नहीं थकते, ऐसे में चाहे एक लड़का हो या एक लड़की, दोनों ही फेमिनिन होने और अपनी इनर रिऐलिटी को कल्टीवेट करने से कतराते हैं। लेकिन जब तक आप अपने अंदर एक बैलेंस लाकर अपने फैमिली इन पार्ट को भी उतनी ही अटेन्शन और इम्पोर्टेंस नहीं देते, जितनी आप अपने मैं स्कूल इन पार्ट को देते हो, तब तक आप इन वर्ड लीग रो होना नहीं शुरू करते हैं।","फ्रेडरिक नीत्शे एक जर्मन दार्शनिक थे और उन्हें अब तक के सबसे साहसी और प्रभावशाली विचारकों में से एक माना जाता है। यही कारण है कि उन्होंने कई दार्शनिकों और मनोवैज्ञानिकों को प्रभावित किया। नीत्शे ने धर्म, संस्कृति, विज्ञान, कला, त्रासदी और मानवीय पीड़ा के बारे में विस्तार से लिखा। यही कारण है कि उन्हें अस्तित्ववाद यानी एक ऐसे दर्शन के अग्रदूत के रूप में देखा जाता है जो मानव अस्तित्व से संबंधित समस्याओं से निपटता है। तो, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम फ्रेडरिक नीत्शे के काम से जीवन के 8 बड़े सबक के बारे में बात करेंगे।" "लोग अक्सर हैपिनेस को एक डेस्टिनेशन मानते हैं, जहाँ वो फ्यूचर में पहुँचेंगे। इसी के लिए एक डेस्टिनेशन होती है अपना पसंद का कैरिअर और किसी के लिए एक बड़ा घर या अच्छा रिलेशनशिप पर। हैरानी की बात तो यह है कि जैसे ही कोई इंसान अपनी इस हैपिनेस की मंजिल पर पहुंचता है, वैसे ही उसकी हैपिनेस आगे बढ़कर किसी दूसरी जगह पर चली जाती है और ये इसलिए है क्योंकि खुशी एक मंजिल नहीं बल्कि जीने का तरीका है। आपकी खुशी आपके फ्यूचर में नहीं बल्कि आपके हाथों में पड़ी है, लेकिन आपने अपने अराउंड कई ऐसे बैरियर्स बना लिए हैं, जो आपको पूरी तरह से खुश होने से रोकते हैं। इसलिए इस एपिसोड में हम डिस्कस करेंगे। ऐसी पांच हैबिट्स जिन्हें हर हैप्पी इंसान फॉलो करता है नंबर वन हैप्पी लोग लाइफ में छोटी छोटी चीजों को भी एन्जॉय करते है। हम सब आज इतनी जल्दबाजी में जीते है कि हम लाइफ की छोटी छोटी चीजों को इग्नोर कर देते हैं। लेकिन सच तो यह है कि लाइफ का ऐसे नस इन्हीं चीजों में छुपा होता है। कई लोग बारिश आने पर इतना खुश हो जाते हैं और उसमें भीग कर वह वापस से जिंदा महसूस करते हैं और लाइफ के टुवार्ड्ज़ अपनी एक्साइटमेंट को सस्टेन कर पाते हैं। कई लोग एक छोटे से पप्पी को देखकर उसके साथ खेलने लग जाते हैं और कई लोग अपने प्यार करने वाले लोगों के साथ दो पल हंसकर बिताने पर ही हफ्तों और महीनों तक अच्छे मूड में रहते हैं। ये वो लोग हैं जो प्रेज़ेंट को इक्स्पिरीयन्स कर रहे होते है। इनको पता होता है कि लाइफ में कुछ ना कुछ तो चलता ही रहेगा। एक प्रॉब्लम जाएगी तो दूसरी आजाएगी तो खुश होने के लिए अगर हम हर चीज़ के ठीक होने का वेट करने लगे तो ऐसे तो हमारी पूरी जिंदगी ही निकल जाएगी। कई बार आपको अपनी दौड़ वाली जिंदगी से बाहर निकलकर अपने आसपास की ब्यूटी को अप्रीशिएट करना होता है और अपनी जिंदगी का शुक्र मनाना होता है क्योंकि यही वो चीजे होती है जो हमें मुश्किल समय में भी हिम्मत देती है और हमें बाकी लोगों से ज्यादा स्ट्रांग और रिलाएबल बनाती है। नंबर टू सेल्फ केरला रहने वाले लोग अपनी मेंटल, फिजिकल और इमोशनल हेल्थ को टॉप कंडीशन में रखते हैं। फिर भले ही वह अपनी हॉबीज को समय देना हो, मेडिटेट, एक्सरसाइस या अपने स्टैंडर्ड सेट करना हो या फिर हर उस चीज़ पर फोकस करना हो, जिससे उनकी लाइफ इम्प्रूव हो सकती है। यूश़ूअली जो लोग अपनी लाइफ में हैप्पी नहीं होते हैं और अक्सर परेशान रहते हैं या कंप्लेन करते रहते हैं, वो अपनी खुद की केयर नहीं करते हैं। लेकिन हमेशा यह याद रखो कि अगर आपको अपने आपको चेंज करना है और हैप्पी रहना है तो इस प्रोसेसर की शुरुआत आपको ही करनी होगी और अपनी हैपिनेस की रिस्पॉन्सिबिलिटी खुद ही लेनी होगी। इसलिए कई सेल्फ कैरिंग है। उसको अपने रूटीन में ऐड ताकि उससे आपकी हेल्थ भी इम्प्रूव हो और आपका मूड भी। नंबर थ्री। वह दूसरे लोगों के साथ रहते हैं और उनकी हेल्प करते है। हैपीनेस एक ऐसी चीज़ है जो दूसरे लोगों के साथ बांटने पर कम नहीं होती बल्कि वो बढ़ती है। खुश रहने वाले लोग अक्सर दूसरों के साथ बहुत ही दयालु होते हैं और अपनी हैपिनेस को आसपास के लोगों के साथ शेयर करते हैं। यहाँ तक कि आप ने ये भी नोटिस करा होगा कि जिन लोगों के चेहरे पर हमेशा एक स्माइल रहती है, लोग उनसे अट्रैक्ट होते हैं क्योंकि वो काफी वेलकमिंग और फ्रेंडली लगते हैं। इसलिए खुदकुशी फील करने के लिए यह फीलिंग दूसरों के दिल में जगाना भी सीखो। ये लोग प्रॉब्लम्स को बोझ नहीं, बल्कि ऑपर्च्युनिटीज की तरह देखते हैं। जहाँ बहुत से लोग डिफिकल्ट सिचुएशन्स में डर जाते हैं, ये बहुत ही ज्यादा टेंशन लेने लग जाते हैं और अपनी प्रॉब्लम्स का जमकर सामना नहीं कर पाते। वहीं जो लोग ज्यादातर समय खुश रहते हैं, वह मुश्किल समय के दौरान भी एकदम काम रहते हैं और हर्ट प्रॉब्लम को एक नई ऑपर्च्युनिटी और एक चैलेंज की तरह देखते हैं, जिसे फेस करने से वह और ग्रो कर पाएंगे। इस तरह से चाहे कोई भी सिचुएशन उनके कंट्रोल के बाहर ही क्यों ना हो, वह उससे भी अच्छे से हैंडल कर पाते हैं। यह आदत हर इंसान डेवलप कर सकता है। दुनिया के टूवर्ड्स ऑप्टिमिस्टिक ऐटिट्यूड रखें। क्योंकि जो लोग प्रॉब्लम्स को एक खतरे की तरह देखते हैं, उनका डर और उनकी बॉडी में नेगेटिव इमोशन्स बनाने वाले केमिकल्स बढ़ने लग जाते हैं, जिससे उनकी मोटिवेशन भी कम हो जाती है और ओब्विअस्ली उनकी हैपिनेस भी। इसलिए अपनी प्रोब्लम्स को फेस करने की आदत डालो और जैसा कि अमेरिकन फिलॉसफर राल्फ वाल्डो इमर्सन ने बोला था कि जो इंसान हर रोज़ अपने किसी डर का सामना नहीं करता, उसे जिंदगी का असली राज़ नहीं पता। नंबर फाइव उनके दिल में दुनिया या दूसरे इंसानों के लिए कड़वाहट नहीं होती। माफ़ करना और पुरानी बातों को भुला ना हैप्पी रहने के लिए बहुत जरूरी होता है क्योंकि जो लोग अपने अंदर गुस्सा, जलन और कड़वाहट को भरें रखते हैं वो लोग अपनी ही आग में जलकर धीरे धीरे मर जाते हैं। कोई भी टॉक्सिक इंसान कभी भी खुद पूरी तरह से खुश नहीं होता और यह एक फैक्ट है इसलिए अपने अंदर थोड़ी मैच्योरिटी देखा हो। अपनी कॉन्शसनेस के लेवल को हेट्रेड या जलन जैसी चीजों से उठाकर प्यार की तरफ लाओ और सिर्फ तब आप खुशी हासिल कर पाओगे।","लोग आमतौर पर खुशी को एक ऐसे गंतव्य के रूप में देखते हैं जहां वे दूर के भविष्य में पहुंचेंगे। यह गंतव्य धन लाभ, घर खरीदना या अपने सपनों के साथी से शादी करना हो सकता है। लेकिन जब भी कोई इस स्थान पर पहुंचता है तो उसकी खुशी किसी और मंजिल पर चली जाती है और खुशी का पीछा करने का सिलसिला चलता रहता है। इसीलिए इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम चर्चा करते हैं कि कैसे खुश रहें और वे कौन सी आदतें हैं जो सबसे खुश लोगों द्वारा नियमित रूप से की जाती हैं ताकि आप भी उनका अनुकरण कर सकें और बेहतर जीवन जी सकें।" "हमारी डेवलपमेंट में एक सबसे जरूरी पार्ट होता है अपनी और दुनिया की अन्डरस्टैन्डिंग को बढ़ाना। हमारा दिमाग हर टाइम ही अपने एनवायरनमेंट को स्कैन कर रहा होता है और देख रहा होता है कि उसे क्या पता है और क्या नहीं। जितना आपका दिमाग शुर हो जाता है कि उसे दुनिया की समझ है उतना ही वो शांत होने लग जाता है और आपको ऑपर्च्युनिटी मिलती है अपने अंदर झांकने की। हर महान गुरु या सीईओ का यही अंतिम मैसेज था। वो बोलते थे। एक्चुअल आइस योरसेल्फ यानी ये जानो कि तुम कौन हो और तुम्हारा इतने बड़े यूनिवर्स में क्या गोल हैं? और अपनी इसी अन्डरस्टैन्डिंग को बढ़ाने के लिए आज हम बात करेंगे ऐसी तेरा बुक्स की, जिनकी मदद से कई साइकोलॉजिस्ट, साइंटिस्ट और फिलॉसफर्स हमें ह्यूमन बिहेव्यर और लाइफ के बारे में समझाते हैं। नंबर 13 ब्रेन रूज़ बी डॉक्टर जॉन में डिनर यह बुक एक मॉलिक्यूलर बायोलॉजिस्ट ने लिखी है और इसमें उसने हमारे दिमाग की कई लेटेस्ट डिस्कवरीज़ को डिस्कस कर रहा है। जो हमें समझाती है कि हम याद कैसे करते है। नींद और स्ट्रेस हमारे दिमाग के साथ एग्ज़ैक्ट्ली क्या करते है? कैसे हम किसी नई नॉलेज को परमानेंटली अपने दिमाग का पार्ट बना सकते हैं और क्या यह सच है कि एक आदमी और औरत का दिमाग एक दूसरे से अलग होता है? हर चैपटर में डॉक्टर मेडिना एक नया रूल बताता है जिससे हम अपनी डेली लाइफ में अप्लाई कर सकते हैं और उसे ट्रांसफार्म कर सकते हैं। नंबर 12 फ्रॉम द डायरी ऑफ साइकोलॉजिस्ट डॉक्टर आशा दिनेश यह एक काफी ज़रूरी बुक है उन लोगों के लिए जो यह जानना चाहते हैं कि एक साइकोलॉजिस्ट हमारी डेली लाइफ प्रॉब्लम्स को किस नजर से देखता है। डॉक्टर आशा हमें अपने कई क्लाइंट्स की स्टोरी से गुजारती हैं और फिर उन पर अपना साइन्टिफिक साइकोलॉजिकल पर्सपेक्टिव देती है। जैसे चैपटर थ्री में आशा हमें ह्यूमन बिहेव्यर के बारे में एक ट्रिक समझाती है। वह बताती हैं कि कैसे हमारी आदतें और पर्सनैलिटी इस बात पर डिपेंड करती है। कि हमें किन बिहेव इयर्स के लिए अप्रिशिएट करा जाता है और किन बिहेव इयर्स के लिए क्रिटिसाइज करा जाता है। जैसे अगर एक बच्चा या इवन आपका पार्टनर आपकी बात नहीं मान रहा तो उसके इस बुरे बिहेव्यर को अटेन्शन मत दो और जब वो कुछ अच्छा काम करे तो उन्हें अटेंशन भी दो और उन्हें अप्रिशिएट भी करो। इस तरह से उनके दिमाग में एक पॉज़िटिव फीडबैक लूप बन जाता है और हम लिटरल्ली उन्हें बिना बताए उन्हें एक अच्छा इंसान बनने के लिए ट्रेन कर देते हैं। नंबर 11 द सीक्रेट लाइफ ऑफ प्रोनाउन्स बी जेम्स पेन्बे कर कई बार एक टैक्स कॉन्वरसेशन के दौरान हम सोचने लगते हैं कि शायद हमने इमोशन्स में बहकर कोई वर्ड बहुत लम्बा लिख दिया है और फिर हम उसे छोटा करते हैं। बट क्यों इस टाइप के बिहेव्यर को एक्सप्लेन करा गया है? सीक्रेट लाइफ ऑफ प्रोनाउन्स में ये बुक बताती हैं कि कैसे हमारी कन्वर्सेशन के हर वर्ड और उसकी टोन में एक छुपा हुआ मीनिंग होता है, जिसको समझने पर हम यह जान सकते हैं। कि कौन कितना सच्चा है, उसकी पर्सनैलिटी कैसी है, उसकी इमोशनल स्टेट क्या है? एंड सो ऑन नंबर 1048 लॉस ऑफ पावर बी रॉबर्ट ग्रीन ये क्लासिक बुक आपको आपकी लाइफ के कई एरियाज़ में सक्सेस हासिल करना सिखाती है और पूरे 48 लॉस ह्यूमन नेचर पर बेस्ट है। जैसे लॉ नंबर फ़ोर बोलता है की हमेशा जरूरत से कम बोलो यानी अगर आप अपने वर्ड्ज़ के थ्रू दूसरों को इम्प्रेस करना चाहते हो तो जितना ज्यादा आप बोलोगे उतना ही आप कॉमन देखोगे और ऐसा लगेगा कि आप कंट्रोल में नहीं हो। पर अगर आप कम बोलते हो तो आपके मुँह से निकला हर वर्ड ज्यादा मिस्टिरियस और दीप लगता है। नंबर नाइन द पावर ऑफ हैबिट बी चार्ल्स जो हेग इस बुक में न्यूरोसाइंस की मदद से समझाया गया है कि ह्यूमन्स में अपने आप को ट्रांसफॉर्म करने की काफी पोटेंशिअल है और इन ट्रांसफॉर्मेशन सको शुरू करती हैं हमारी नयी हैबिट्स ऑथर ने कई फेमस लोगों की हैबिट्स डिस्कस करी है। जैसे ओलंपिक स्विमर माइकल फेल्प्स, मार्टिन लूथर किंग और स्टारबक्स सीओ हार्वर्ड शर्ट्स और पावर ऑफ हैबिट आप को सबसे बेसिक लेवल पर समझाती है कि एक हैबिट होती क्या है, एक नई हैबिट बनाते कैसे हैं और पुरानी हैबिट्स को तोड़ते कैसे है नंबर 812 रूल्स फॉर लाइफ बी डॉक्टर जॉर्डन पीटरसन इस सेल्फ हेल्प बुक का गोल हैं। साइन्टिफिक और फिलॉसॉफिकल प्रिन्सिपल्स की मदद से आप की लाइफ को ऑर्डर मिला ना? सबसे पहले जॉर्डन ऑर्डर और केऑस का मतलब समझाता है और उन्हें डाइवेस्ट सिंबल इन और यंग से कंपेर करता है। ऑर्डर मैस्कुलिन है और केओस फेमिनिन इस पॉइंट पर एक एनर्जी खत्म होती है, वहीं से दूसरी चालू होती है और तभी हमारा सबसे बुरा टाइम भी एक खुशहाल जिंदगी को जन्म दे सकता है और यह 12 रूज़ आपको समझाते हैं कि इस ट्रांसफॉर्मेशन को शुरू कैसे करना है नंबर सेवन। बिहेव बी रॉबर्ट सपोज़ की ये बुक ह्यूमन बिहेव्यर की डीप साइनस को कवर करती है। सपोज़ की ने हर चैपटर ऐसे लिखा है कि पहले वो हमें एक सिचुएशन देता है और फिर उसे साइनस की मदद से रिवर्स इंजीनियर करके समझाता है कि ऐसा क्यों होता है? जैसे हम सबको पता है कि टीनेजर्स के ऐक्शंस ज्यादा डम और रिस्की होते हैं। कभी वो एक दूसरे से रेस लगा रहे होते हैं और कभी वो लड़ रहे होते है। सपोज़ की बताता है कि यह बिहेव्यर सिर्फ ह्यूमन्स में नहीं बल्कि चूहों और बंदरों में भी होता है, जिसका असली रीज़न होता है नए एक्सपिरियंस। इसकी मदद से यह समझना कि हमारी लिमिट्स क्या है और कौन सी ऐक्टिविटी? ग्रुप का ट्रस्ट पाने के लिए बेस्ट है नंबर सिक्स द हैपिनेस हाइपोथीसिस बी जोनाथन हाइड इस बुक में जोनाथन प्लेटों, बुद्धा और जीसस जैसे टीचर्स के कई महान आइडियाज़ को डिस्कस करता है और उनकी एन्शियंट नॉलेज को साइकोलॉजिकल रिसर्च की मदद से प्रूफ करके हमें हैपिनेस और मीनिंग हासिल करने के अलग अलग तरीके बताता है। नंबर फाइव द आर कि टाइप्स ऐंड कलेक्टिव अनकॉन्शियस बी कार्लिन ये बुक उन लोगों के लिए है जिन्हें अपनी साइट की गहराइयों को समझने में काफी इंटरेस्ट आता है। योग का मानना था कि हमारे ने नैचरल इवेंट्स को फेरी टेल्स और मिथोलॉजी में डालना शुरू करा ताकि हम एक्सटर्नल वर्ड को यूज़ कर पाए। अपने इन्नर वर्ल्ड को समझने के लिए। जैसे एक शेर हमें समझाता है, ताकत और हिम्मत के बारे में या एक बच्चा समझाता है। मासूमियत के बारे में इस तरह से ये सिंबल्स या आर के टाइप्स मूवीज़ स्टोरीज़ और हमारे सपनों में हमें एक इनडिविजुअल की फीलिंग ज़ और एक्शन्स को समझने का मौका देते हैं। नंबर फ़ोर फ्लो बी मि चिक्स हाइ फ्लो का मतलब है एक ऑप्टिमल स्टेट ऑफ कॉन्सियसनेस में रहना। ये स्टेट तब आती है जब हमारी कॉन्सन्ट्रेशन सिर्फ एक ऐक्टिविटी पर फोकस जो होती है। एक पेन्टर के बारे में सोचो कि कैसे वह ध्यान से ऑब्जर्व करता है कि उसकी लाइन्स स्ट्रेट और प्री साइंस हो या फिर एक बास्केट बॉल प्लेयर जो उस गेम पर इतना फोकस्ड है कि उसे पता ही नहीं है कि उसके आसपास क्या हो रहा है और कितना टाइम बीत गया है। इस बुक में आप जानोगे कि कैसे आप अपने रोज़ के कामों में भी स्टेट हासिल कर सकते हो और क्यों यह एक फुल फिलिंग लाइफ के लिए बहुत जरूरी है। नंबर 368 डॉन बी क्रिस्टोफर राइन ये कॉन्ट्रोवर्शल बुक एवल्यूशन अरी साइकोलॉजी की मदद से आपके ***** से जुड़े हर बिलीफ और वैल्यू को चैलेंज करती है। जैसे ऐग्रिकल्चर के बाद शुरू हुआ था। उससे पहले हर इंसान के मल्टिपल पार्टनर्स होते थे और फीमेल्स को भी उतना ही ***** चाहिए होता है जितना कि मेल्स को चाहिए होता है। पर वो इस बात को ऑब्वियस नहीं बनाती ताकि वो प्रॉमिस को इस ना लगे। ये बुक आपको हर लेवल पर हैरान भी करेगी और साथ साथ एजुकेट भी करेगी। और अगर आप जानना चाहते हो कि हमारे एन्सिस्टर्स के ***** के टुवार्ड्ज़ कैसे बिलीव्स थे तो ये बुक आपके लिए बेस्ट है। नंबर टू मेन सर्च फॉर मीनिंग बी विक्टर फ्रैंकल ये बुक विक्टर फ्रेंकली के नाज़ी कॉन्सन्ट्रेशन कैंप में रहने के एक्सपिरियंस को कवर करती है और हमें उन लोगों की मेंटल स्टेट को समझने का मौका देती है। उस दौरान विक्टर भी अपने साथियों की मुश्किलों और बदलती नेचर को नोटिस कर पा रहा था और उसको उनके मेंटल स्टेजेस में एक पैटर्न मिला, जिसकी मदद से उसने खुद ही उनके लिए एक टाइप की साइकोथेरपी बना दी, जिसका उसने नाम दिया लोगों थेरपी जो हर इंसान को अपनी लाइफ में मीनिंग ढूंढना सिखाती है। और यही फ्रैंकल की फिलॉसफी का बेसिस है। यानी उसके हिसाब से अगर एक इंसान अपनी लाइफ का मीनिंग ढूंढ लेता है तो वह कुछ भी सह सकता है। नंबर वन बियॉन्ड गुड एनी विल बी फ्रेड्रिक नेचर ये बुक उन बुक्स में से एक हैं जिन्हें खत्म करते करते आप एक नए इंसान बन चूके होते हो। नीचा कोई साइकोलॉजिस्ट या साइंटिस्ट नहीं था। पर उसके व्यूस इतने डीप और डरावने थे कि उसकी फिलॉसफी ने कई फील्ड के एक्सपर्ट्स को दुनिया को एक नई तरीके से देखने का मौका दिया। और ये सरप्राइज़ नहीं होना चाहिए कि इवन यू भी नीचे का ही स्टूडेंट था और बियॉन्ड गुड निवल में नीचे बताता है कि सारे फिलॉसफर्स और रिलिजन्स कॉम्प्लेक्स सिस्टम्स ऑफ थॉट बनाते है। सिर्फ अपनी आजम ऑप्शन्स और 20 इसको जस्टिफाई करने के लिए और उनमें फ्री स्पिरिट जैसी कोई चीज़। है ही नहीं। उसके हिसाब से ट्रूथ और थॉट्स हमेशा चेंज और इम्प्रूव होते रहते हैं। और तभी जो आइडियास रिलिजन या फिलॉसफर्स एक टाइम पर प्रोमोट करते हैं, वो कुछ टाइम बाद अपना सच और अपनी वैल्यू खो देते हैं। इन थॉट्स और आइडियाज़ को बदलने वाली फोर्स होती है पावर और विल। सो जिन लोगों के पास अभी पावर है या फिर जो आइडियास अपने आप में पावरफुल है वो आज के सच को डिफाइन करते हैं। पर कल यह सच कुछ और होगा। जैसे ही पावर बदलेगी, वैसे ही हमारी गुड और ईवल की डेफिनिशन बदलेगी।","ये किताबें न केवल आपको खुद को समझने में मदद करेंगी बल्कि आप दुनिया को कितना समझ पाए हैं, इससे आप हैरान रह जाएंगे। अधिकांश महान विचारकों ने मानवता के लिए एक ही संदेश छोड़ा: "स्वयं को वास्तविक बनाएं", और यह सूची आपको उसके करीब लाएगी। हमें Youtube पर खोजें: www.youtube.com/psychologyinhindi" "19 फोर्टीज़ में होलोकॉस्ट के समय विक्टर फैन गलने कई साल कॉन्सन्ट्रेशन कैंप में एक कैदी की तरह काटे और उनके माँ, बाप, भाई और पत्नी को जान से मार दिया गया था। उन्हें बाकी जो इस कैदियों के साथ काफी गन्दी हालत में रखा जाता था, उन्हें ज्यादा कुछ खाने के लिए भी नहीं मिलता था और उनके आसपास हर समय मौत मंडरा रही होती थी। कभी लोग खाने की कमी से मर जाते थे और कई बार जहरीली गैस की वजह से। पर जहाँ ज्यादातर कैदी कुछ दिनों के बाद ही हिम्मत हार कर अपनी लाइफ में होप और मीनिंग खो देते थे। वहीं विक्टर के लिए तो हर मोमेंट ही मीनिंग से भरा था। यह इसलिए क्योंकि वो एक न्यूरोलॉजिस्ट और साइकिल थे, जिसकी वजह से उनके लिए हर नया दिन काफी इंट्रेस्टिंग होता था क्योंकि उन्हें हर तरह के लोगों का बिहेव्यर देखने को मिलता था। विक्टर ने बुक में बताया है कि उनकी तरह ही जो लोग इतनी सफरिंग में भी होप और मीनिंग नहीं खो रहे थे, उनका लाइफ को देखने का नजरिया कुछ ऐसा था कि वो उस सिचुएशन को एक चैलेंज की तरह देख रहे थे। जिससे उन्हें ओवर कम करना था। कॉन्सन्ट्रेशन कैंपस में हर परिस्थिति कैदियों से हर मनमाने के लिए काफी थी। हर इंसान से उसके सारे सपने और हिम्मत छीन ली जाती थी और जो चीज़ उनके पास बचती थी वो है हर इंसान की ये चूज करने की एबिलिटी की। वो इस सिचुएशन पर कैसे रिऐक्ट करता है? इस फ्रीडम की बात इन और इवन मॉडर्न एग्ज़िस्टन्स फिलॉसफर्स ने भी करी है और एग्ज़िस्टन्स लिम्का तो सेंट्रल थीम भी यही बोलता है की जीने का मतलब है सफर करना और सफरिंग में डटे रहने का मतलब है अपनी सफरिंग में मीनिंग ढूंढना अगर लाइफ में कोई पर्पस है तो हमारे मरने और सफर करने में भी कोई पर्पस जरूर होगा। पर कोई भी एक इंसान दूसरे इंसान को ये नहीं बता सकता कि ये पर्पस क्या है क्योंकि हर इंसान की लाइफ का पर्पस अलग होता है। उसका काम है इस पर्पस को ढूंढना और इससे जुड़ी रिस्पॉन्सिबिलिटी को उठाना। बुक में बताया गया है कि यह मैटर नहीं करता कि हम लाइफ से क्या एक्सपेक्ट करते हैं, बल्कि असली क्वेश्चन तो ये है कि लाइफ हमारे से क्या एक्सपेक्ट करती है। अपने आप से लाइफ का मीनिंग पूछने के बजाय अपनी सिचुएशन को ऐसे देखो की लाइफ हर मिनट और हर घंटे आपसे पूछ रही है कि आप इस दुनिया में क्या कॉन्ट्रिब्यूशन देना चाहते हो? फ्रैंकल के हिसाब से जीने का असली मतलब है जिंदगी की प्रॉब्लम्स के सही जवाब ढूंढने की रिस्पॉन्सिबिलिटी लेना और इन जवाबों को ढूंढने के रास्ते में रखी गई रूकावटों को पार करना। यानी अपनी लाइफ में एक लोड उठाना या फिर किसी चीज़ के लिए रिस्पॉन्सिबल बनना बहुत जरूरी है। फ्रेंकल ने जर्मनी फिलॉसफर फ्रेड्रिक नीचे को कोट करते हुए बोला है ही हूँ हैं जावा ए टु लीव कैन बेअर विथ ऑलमोस्ट एनीहाउ यानी जीस इंसान की लाइफ में कोई मीनिंग और रिस्पॉन्सिबिलिटी है वो लाइफ की हर मुश्किल को झेल सकता है। वन अपने वर्ग के दौरान भी फ्रेंकल ने अपने कई पेशंट्स में देखा कि उनकी लाइफ में मीनिंग कितना जरूरी था। उन्होंने ऑब्जर्व करा कि जिन पेशेंट्स के पास कोई मीनिंग नहीं था, उन्हें आसानी से चीजों की लत लग जाती थी। उन्हें गुस्से की प्रॉब्लम थी और उनमें डिप्रेशन भी ज्यादा था। इसके साथ ही फ्रैंकल ने ये भी बताया है। उसकी मीनिंग एक आरामदायक लाइफ, सक्सेस और पैसे से रिलेटेड नहीं है, क्योंकि जब हमारी लाइफ थोड़ी आसान हो जाती है और हम कन्टिन्यूसली जिंदा रहने के लिए लड़ नहीं रहे होते, तब हमारे दिमाग में क्वेश्चन आता है कि हम जिंदा रहेंगे। इसलिए आज के समय पर ज्यादातर लोगों की यही कहानी है। उनके पास जिंदा रहने के साधन तो है पर उनके पास कोई रीज़न नहीं है जिसके लिए वो जिंदा रहे। लाइफ के इस खालीपन को नाम दिया है एग्ज़िस्टन्स ऑइल और जो लोग इस खालीपन के शिकार बनते हैं। उनमें तीन मेन सिम्पटम्स देखने को मिलते हैं यानी डिप्रेशन, गुस्सा और ऐडिक्शन। लोगों की इस ऑब्जर्वेशन के बेसिस पर फ्रेंकली एक नई तरह की थैरेपी को जन्म दिया, जिसे उन्होंने नाम दिया लोगों थेरपी जिसका लिटरल मतलब है मीनिंग थेरपी। ये थेरपी एक गाइड की तरह लोगों को उनका पर्पस और मीनिंग ढूंढना सिखाती है। फ्रेंकल के मुताबिक, हम अपनी लाइफ में तीन अलग तरीकों से मीनिंग को ढूंढ सकते हैं। पहला तरीका है कुछ काम करना या फिर एक गोल को पर्स यू करना। क्योंकि जीस इंसान की लाइफ में एक वैल्यूड गोल नहीं होता, वो अपनी पूरी लाइफ को एम लेस्ली भटकते हुए वेस्ट कर देता है। हर इंसान के अंदर इस दुनिया में कुछ ना कुछ यूनीक कॉन्ट्रिब्यूट करने की क्षमता होती है जो सिर्फ तभी बाहर आती है जब वो एक टारगेट सेट करता है और किसी ऐसी अनोखी चीज़ को जन्म देता है जो सिर्फ उसके यूनीक एक्सपिरियंस नॉलेज और अन्डरस्टैन्डिंग से बनी होती है। इस तरह से किसी टास्क को पूरा करना मीनिंगफुल होता है। क्योंकि हम इंसान अपनी कम्युनिटी में यूसफुल फील करने के लिए इवॉल्व हुए हैं। अगर हम हर समय कुछ ना कुछ काम करके प्रोडक्टिव नहीं बन रहे होते तो हम डिप्रेस्ड और यूज़लेस फील करने लग जाते हैं। यही रीज़न है कि क्यों? हम दूसरे लोगों को उनके काम से जानते हैं और उनके काम से ही उन्हें याद रखते हैं। इसलिए फ्रैंकल का बोलना है कि जीस किसी भी चीज़ के लिए आप पैशनेट हो, उसे अपनी लाइफ का मिशन बना लो। और अगर आपका कोई पैशन इन्ट्रेस्ट या हॉबी नहीं है या फिर आपको ये नहीं पता कि आपको किस काम को अपनी लाइफ का गोल बनाना चाहिए तो सिम्पली बाहर निकलो और नए नए एक्सपीरियंसेस लो, अपनी नॉलेज बढ़ाओ और थोड़ी सी स्किल्स डेवेलप करो, उसके बाद नयी नयी ऑपर्च्युनिटीज को ढूंढो, जो आपके एक्सपिरियंस नॉलेज और इन स्किल्स का फायदा उठा सके और जब आपको लगे कि आप अपनी पूरी लाइफ अपने आप को उस काम को पूरा करने के लिए प्रिपेर कर रहे हो, जिसके लिए आप पैदा हुए थे, तब आपको अपनी लाइफ मीनिंगफुल लगे गी। दूसरा तरीका है अच्छे रिलेशनशिप्स बनाना पर फ्रैंकल के लिए प्यार और रिलेशनशिप की डेफिनेशन। दूसरों से थोड़ी अलग है। उनके हिसाब से प्यार का मतलब बस प्यार करने वाली फ़ीलिंग नहीं होती, बल्कि असली प्यार है दूसरों की पोटेंशिअल को रिकॉग्नाइज करना और उन्हें उनकी हाइएस्ट पोटेंशिअल तक पहुंचने में मदद करना, जैसे अपने बच्चे के लिए ऑपर्च्युनिटीज बनाना, अपने छोटे भाई बहन को लाइफ के बारे में समझाना, अपने दोस्तों को बुरे समय में सपोर्ट करना या फिर अपनी टीम में अपने से जूनियर मेंबर्स को मेन्टर करना, ताकि वो इस दुनिया में अच्छे से जीने के लिए हिम्मत जुटा पाए। ये है प्यार अगर आप एक दूसरे के लेवल को ऊपर नहीं उठा रहे हैं तो शायद वो प्यार नहीं, बस एक कॉन्ट्रैक्शन है, पर अच्छे और रिलेशनशिप्स हमारी लाइफ की क्वालिटी और इवन हमारी प्रोडक्टिविटी बढ़ाते हैं। ये ऐसा अकेला रास्ता है जो हमें दूसरे इंसानों के सबसे गहरे हिस्सों को समझने का मौका देता है। कोई भी इंसान दूसरे इंसान की नेचर के बारे में पूरी तरह से अवेयर नहीं हो सकता अनलेस वो उससे प्यार करता है और आपके सारे रिलेशनशिप्स का गोल यही होना चाहिए। यानी अगर आपकी लाइफ में कोई मीनिंग नहीं है तो किसी ऐसे इंसान को ढूंढो जिसकी लाइफ आप कुछ हद तक बेहतर बना सकते हो। लाइफ में मीनिंग ढूंढने का तीसरा तरीका है अपनी सफरिंग को बहादुरी के साथ बेर करना और उसकी रिस्पॉन्सिबिलिटी लेना। फ्रैंकल ने अपना एग्जाम्पल देते हुए बताया है कि किस तरह से इतनी सफरिंग के दौरान भी उन्होंने अपने आप को वहाँ से निकलने पर कॉन्सन्ट्रेशन कैंप की साइकोलॉजी पर लेक्चर देते हुए इमेजिन करा, जिसकी वजह से उनका सारा दर्द और दुख मीनिंग से भर गया। उनका हर मूवमेंट वो काफी चौकन्ने होकर और एक साइंटिफिक लेन्स के साथ ऑब्जर्व करते हुए काट रहे थे। इस तरह से वह लोगों की साइकोलॉजी समझने के साथ साथ अपनी सफरिंग को बीट कर रहे थे। इसी वजह से उन्होंने हमें एक काफी देते हुए बोला है की जब भी आप किसी मुश्किल में फंसे हों या बुरा फील कर रहे हो तब उस मुश्किल का एक यूज़ ढूंढो और अपने आप से पूछो कि मैं किस तरह से अपनी इस सफरिंग को वैल्यूएबल बना सकता हूँ। जीवन ऑलमोस्ट हर स्टोरी या मूवी में भी सफरिंग को एक ट्रांसफॉर्मेशन सिंबल की तरह दिखाया जाता है। यानी स्टोरी के £1 पर कलेक्टर थोड़ा सफर करता है और रास्ते में आने वाली रूकावटों को पार करता है, जिससे हमें पता चलता है कि उस करेक्टर की डेथ क्या है और वह किन वैल्यू उसको फॉलो करता है। वो सफर इन्हीं होती है, जो हमें दीप और मेंटली स्ट्रॉन्ग बनाती है। फ्रैंकल ने तो ये भी बोला है कि हम अपनी डिसअप्पोइंट में नट्स या प्रॉब्लम्स के दर्द को कभी भी अवॉर्ड नहीं कर सकते हैं। लेकिन सफरिंग 164 है जो इस चीज़ पर डिपेन्डेन्ट है। कि आप अपनी एग्ज़िस्टन्स और पेन को अपने से ज्यादा खुशकिस्मत इंसान से कंपेर करके अपनी किस्मत को कोसते हो या फिर आप उन लोगों की लाइफ को देखते हों जिनके एक्सपिरियंस आपसे बेकार है और खुद की लाइफ के लिए खुशकिस्मत फील करते हो। दुनिया के हर कोने में रहने वाला इंसान किस्मत की इस दुविधा को फेस करता है तो चाहे वो कॉन्सन्ट्रेशन कैंप हो या आपकी नॉर्मल लाइफ सफरिंग में भी मीनिंग ढूँढा जा सकता है। बस शर्त ये है कि आप गिवअप या कंप्लेन करने के बजाय अपने अंदर की उस उजाले को ढूंढो जो इस अंधेरे को हरा सकता है।","मैन्स सर्च फॉर मीनिंग विक्टर फ्रैंकल की 1946 की एक किताब है, जो द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान नाजी एकाग्रता शिविरों में एक कैदी के रूप में अपने अनुभवों को बताती है, और अपनी मनोचिकित्सा पद्धति का वर्णन करती है, जिसमें सकारात्मक महसूस करने के लिए जीवन में एक उद्देश्य की पहचान करना और फिर उस परिणाम की कल्पना करना शामिल है। . 📽️यूट्यूब पर हमें खोजें: WWW.YOUTUBE.COM/PSYCHOLOGYINHINDI" "अगर आप रिच बनना चाहते हो तो अपने से कम सक्सेसफुल लोगों से एडवाइस लेना बंद करो। ऐवरेज लोगों की ये बहुत बुरी आदत होती है कि उनके सपने तो बड़े बड़े होते हैं लेकिन वो उनसे रिलेटेड सलाह अपने ही जैसे ऐवरेज और अनसक्सेसफुल लोगों से लेते हैं। इस तरह से आपको कभी पता ही नहीं चलता कि आपको आपके आसपास रहने वाले लोग पुअर बने रहने के लिए प्रोग्राम कर रहे हैं। इसलिए इस एपिसोड में दी गई लिस्ट की मदद से आप भी ये नोट करो कि आप भी किन झूठी मनी रिलेटेड एडवाइस इसको अभी तक सच मान रहे थे। नंबर वन स्लो इन स्टडी विन्स ब्रेस बिज़नेस और प्रोफेशनल सेटिंग में अगर कोई ये बात बोल भी दे तो उसे लोग बहुत ही कच्चा खिलाड़ी समझते हैं। यह बात बस बोलने में अच्छी लगती है लेकिन कोई भी इंसान ये नहीं चाहता कि वो पूरी जिंदगी मेहनत करे और वो जब 60 या 70 साल का हो तब जाकर वो सक्सेसफुल बने। पैसा तब मायने रखता है और ज्यादा काम आता है जब आप यंग होते हो। जीवन मार्केट प्लेस में भी आप एक आइडिया को कितनी जल्दी बेचना और उससे पैसा कमाना शुरू कर सकते हो? ये आपकी सक्सेस और फेल्योर के बीच का डिफरेन्स हो सकता है अगर आप अपना स्लोअर स्टडी ऐक्शन लेते रह गए लेकिन आपके कॉम्पिटिशन ने मेजोरिटी की मार्केट खुद ही कैप्चर कर ली तो आप के रेवोल्यूशनरी आइडिया और मेहनत का क्या फायदा। इसलिए इस बकवास और झूठे कोर्ट को अपने मन से निकालो और तेज़ी और पूरे फोकस के साथ अपने गोल की तरफ निकल पड़े। हो नम्बर टू यू नीड मनी टु मेक मनी। कितनी बार आपने लोगों से यह सुना होगा कि पैसा पैसे को खींचता है और यह बात पूरी तरह से गलत नहीं है क्योंकि पैसा आपको लेवरेज देता है। आप पैसों से एक टीम को हायर कर सकते हो ताकि आपका आउटपुट और ऐसा रिज़ल्ट आपकी इनकम बढ़ सके या फिर आप अपने पैसों को कहीं इन्वेस्ट कर सकते हो। हाउएवर ये बोलना भी ईक्वली ट्रू है। कि आपको पैसा बनाने के लिए पैसा नहीं बल्कि बस स्किल्स एक ग्रेट आइडिया और उस पर एग्जिक्यूशन चाहिए। बहुत से पुअर लोग अपने फेल्यर को यही बोल कर जस्टिफाई कर देते हैं कि एक पुअर फैमिली से बिलॉन्ग करने की वजह से उनके पास तो शुरू से ही पैसों की कमी थी तो वो कैसे अमीर बनते हैं? लेकिन असलियत में पैसों के बिना भी और पैसा बनाया जा सकता है। बस इस केस में मेहनत ज्यादा लगती है इसलिए बहाने मारने के बजाय अपनी पैसों की कमी को बदलना शुरू करो। हाइपेंग स्किल्स को डेवलप करके नंबर थ्री इन्वेस्ट इंग्लिश टू रिस्की टू बी गोल्डन यह पुअर लोगों की डोमेस्टिक डिवाइस में से एक है क्योंकि हर पुअर इंसान इन्वेस्टिंग कोई गैंबल की तरह समझता है। उन्हें यह समझ नहीं आता कि मार्केट और कम्पनीज़ की समझ लॉन्ग टर्म में एक इंसान की जिंदगी बदल सकती है। इन्वेस्टिंग नहीं, आप जानते हो असली जुआ क्या है? हर दिन अपने ज़रा बहुत पैसों को भी फालतू की चीजों में उड़ा देना और फ्यूचर की कोई प्लानिंग ना करना अपने फ़्यूचर सेल्फ को अमीर बनाने पर काम ना करना ये होता है जुआ जो आप अपनी लाइफ के साथ खेल रहे हो इसलिए खुद को इन्वेस्टिंग के बारे में जितना हो सके उतना एजुकेट करो। नंबर फ़ोर एम् फॉर गवर्नमेंट जॉब बी से फॉरेस्ट ऑफ योर लाइफ। ये बहुत दुख की बात है कि आज भी बहुत से मूर्ख लोग 40 साल पहले वाले माइंडसेट को लेकर घूम रहे हैं। बहुत से पुअर लोगों की सोच बस गवर्नमेंट जॉब तक ही पहुँच पाती है। जीवन अगर किसी इंसान में दुनिया में कोई नया इनोवेशन लाने की क्षमता भी है, तब भी उसके आसपास के लोग उसे यही बोलते हैं कि तू बस गवर्नमेंट जॉब की तैयारी कर, क्योंकि बाकी सब कामों में सेफ्टी कहा है और इसी तरह बस ज़रा सी स्टेबिलिटी के पीछे आज बहुत से लोग अपने काम में इंटरेस्ट ना होने की वजह से गवर्नमेंट को भी प्रॉपर्ली फंक्शन नहीं करने दे रहे हैं और खुद भी अपनी पोटेंशिअल को वेस्ट कर रहे हैं। गवर्नमेंट जॉब का आइडिया हमारे पेरेंट्स और ग्रैंडपैरेंट्स के जमाने में फिर भी सेन्स बनाता था, क्योंकि तब इंडिया में इतनी सारी एमएनसीएस आंत्रप्रेन्योरियल, ऑपर्च्युनिटी, ज़ और बिज़नेस की समझ लेने के सोर्सेस नहीं थे। लेकिन अगर आप आज भी अपनी ब्रेनवॉशिंग की वजह से तोते की तरह यही बोलते जा रहे हो की गवर्नमेंट जॉब भी अल्टीमेट गोल है तो समझ जाओ कि पुअर लोगों की इस डम अड्वाइज़ ने आपकी सोच को छोटा बना रखा है। नंबर फाइव इट इस बेटर टू ओन रेन्ट आम लोग अपनी पूरी जिंदगी लगा देते हैं अपना एक घर गाड़ी और फैमिली बनाने के लिए घर को तो आम लोगों के दिमाग में। बैंक्स ने एक ऐसी चीज़ बना कर रखा है कि अगर आपका अपना घर नहीं है तो पता नहीं यह कितनी शर्म की बात है। अनलेस आप बहुत ज्यादा बूढ़े या फिर अल्ट्रा वेल्दी हो। आपको कभी भी एक घर पर अपनी अर्न्ड इनकम को नहीं स्पेंड करना चाहिए। पहले तो आप ईज़ी एक प्लेस से दूसरी प्लेस पर मूव नहीं कर सकते। आपका पैसा एक नॉन लिक्विड ऐसेट में फंस जाएगा और आप खुद को अमीर बनाने के बजाय बैंक्स को ही अमीर बनाते रहोगे। याद रखो अपना घर और गाड़ी का सपना बैंक्स ने अड्वर्टाइज़ कर कर के लोगों के दिमाग में डाला है, वरना जब तक आप हाइली सक्सेसफुल नहीं बन जाते, तब तक के लिए बेस्ट चॉइस रेंट कर नहीं होता है और इसमें कोई शर्म की बात नहीं है। नंबर सिक्स ओनली पीपल हूँ, मेक मनी फ्रॉम सेल्फ हेल्प बुक्स ओर के ऑथर्स इससे ज्यादा क्लियरली कोई शायद ही बोले गा की वो अमीर लोगों को हिट करता है। बहुत से पुअर लोग ये मानते हैं कि बुक्स लिखी जाती है ताकि उन्हें लिखने वाले अमीर बन सके। इस तरह की इग्नोरेंस ऐसे लोगों को उस नॉलेज और विज़्डम से दूर रखती है। जो उन्हें उनकी हाइएस्ट पोटेंशिअल तक पहुंचा सकती थी। अपनी नॉलेज को बढ़ाने के लिए कोई पैसा खर्च न करना इस ऐरोन थॉट से आता है कि मुझे तो सब पता है और यह बुक्स बेचने वाले तो सिर्फ मेरे पैसो के पीछे है। अगर आपने कोई भी डीसेंट सेल्फ हेल्प बुक को फिनिश करा है तो आपको इस बात का आइडिया होगा कि बुक से मिली नॉलेज आपकी पर्सनल डेवलपमेंट में आपको कितनी ज्यादा एडवांटेज दे सकती है। बुक्स कौन स्यूम करना आपके लिए कोई ऑप्शन नहीं बल्कि आपके रूटीन की प्रायोरिटी होनी चाहिए। नंबर से 150 यू मेक इट सोशल मीडिया पर और दूसरों के आगे शो ऑफ करने का कल्चर आप में से बहुत से लोगों के पैसों को बर्बाद कर रहा है। फेक टेल यू मेक इट। मैं बस वो लोग ही बिलीव करते है जो यह सोचते हैं कि सिर्फ अमीर लोगों की तरह दिखने से और खुद की सिर्फ बाहरी अपीरियंस बदलने से उनकी किस्मत भी बदल जाएगी। जबकि असलियत में यह एडवाइस बिल्कुल काम नहीं करती क्योंकि अमीर होने के लिए एक्सटर्नल चेंज से ज्यादा इंटरनल चेंजस जरूरी होते हैं।","अमीर बनना है तो असफल लोगों से धन की सलाह क्यों लेते हो। औसत लोगों की यह बहुत बुरी आदत होती है कि वे बेकार की सलाह से अपने दिमाग को प्रदूषित करते हैं। नतीजतन, ज्यादातर लोग सफल होना चाहते हैं लेकिन ऐसा नहीं बनने के लिए वे सब कुछ कर रहे हैं जो वे कर सकते हैं। इसीलिए इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम 7 बेवकूफ पैसे की सलाह पर चर्चा करेंगे जो गरीब लोग आपको देते हैं जिन्हें आपको नहीं सुनना चाहिए।" "आप आजकल जीतने भी मिल से मिलो। उनमें से 8290% मेल्स लो, वैल्यू अनकॉन्शियस और इमैक्युलेट होते हैं। यानी ना तो उन्हें ब्यूटीफुल फीमेल्स को अट्रैक्ट करना और उनके साथ एक हेल्दी रिलेशनशिप को मेंटेन करना आता है। ना वो अपनी किस्मत को अपनी मर्जी से लिख रहे हैं और ना ही उनमें कोई पॉज़िटिव। मैं स्कूल इन क्वालिटी होती है। ऐसे मेल्स को अक्सर बेटा मेल बोला जाता है। ये पैसे लो सेल्फ एस्टीम वाले डरपोक और ओवर लीना इस मिल्स होते हैं। उनकी एग्ज़िस्टन्स ना तो उनके लिए यूज़फुल या फिर जॉयफुल होती है और न ही उनके आसपास के लोगों के लिए। ये वो लड़के होते हैं जिन्हें लड़कियां अक्सर फ्रेंडज़ोन कर देती है और इनके इतने डल बेहेवियर और असर टनेस की कमी की वजह से लोग इनकी ज्यादा रिस्पेक्ट भी नहीं करते हैं। लेकिन सबसे बड़ी प्रॉब्लम यह है कि बेटा मिल्स को यूज़्वली ये पता ही नहीं होता कि वो सोसाइटी में कहाँ स्टैंड करते हैं और किन वजहों से वो एक आइडियल मेल बनने से दूर है। इसी वजह से हम इस एपिसोड में एक टिपिकल बेटा मिलके कहीं ऑब्वियस साइंस को डिस्कस करेंगे। साइन नंबर वन यू हैव बिगो विदाउट एनी रीज़न मोहम्मद अली माइक टाइसन फ्लॉयड मेवेदर या फिर जैसे लोगों की बड़ी ईगो हो तो चलता है, क्योंकि इतनी ज्यादा सक्सेस हासिल करने और लोगों को इंस्पायर करने के बाद एटलिस्ट इस तरह के लोगों के पास स्पेशल और इम्पोर्टेन्ट फील करने का रीज़न तो होता है, लेकिन इससे बड़ा बेटा मिल का साइन शायद ही कोई हो कि आपने ऐक्चुअल में अभी तक कुछ अचीव नहीं करा है और ना ही आप में कुछ स्पेशल है। लेकिन फिर भी आप बिना बात के एक ऐटिट्यूड लेकर घूमते हो। बेटा मिल्स उसी तरह के लड़के होते हैं जो सोचते हैं कि वो किसी को भी कुछ भी बोल सकते हैं और वो गुस्सा आने पर किसी को भी मार गिराएंगे। लेकिन जब उनकी बड़ी ईगो की वजह से उनकी लड़ाई हो जाती है वो हमेशा ही पिट कर और एक रिऐलिटी चेक लेकर वापस आते हैं। साइन नंबर टू लाइफ को 1210 के स्केल पर रेट करो कि आप कितने ऐडवेंचरस हो और कितना इंटेन्शनली जिंदगी को जीते हो ज्यादातर मेल्स बस अपने मन में ये सोचते हैं कि वो कितने निडर और ऐडवेंचरस है? लेकिन असलियत में उन्होंने ना तो कभी खुद को मुश्किल सिचुएशन में रखकर खुद की लिमिट को टेस्ट करा होता है और ना ही उनमें जिंदगी को लेकर कोई भी एक्साइटमेंट होती है। नीचा बोलते थे कि देर इस नथ्थिंग तोफिर बट फिर इटसेल्फ क्योंकि डर एक अच्छे खासे इंसान को अपाहिज बना सकता है और ज्यादातर बेटा मिल्स भी इसी तरह से जीते हैं। जैसे वह एक अपाहिज हो। साइन नंबर थ्री यू डोंट नो हाउ टू फाइट? हर जवान मेल को हमेशा किसी भी तरह की कॉन्फ़िगरेशन के लिए रेडी रहना चाहिए। फाइटिंग लर्न करना इसलिए ज़रूरी नहीं होता ताकि आप दूसरों को इंटिमेट कर सको या फिर जो भी आप से अग्रि ना करे उसके साथ वाइल लेट हो सको। बल्कि फाइटिंग की स्किल जरूरी होती है ताकि दूसरे लोग आपको इंटिमेट डेट या फिर बोली ना करे। आपकी सेल्फ डिफ़ेन्स की टेक्नीक्स आपको खुद को और आपके चाहने वालों को सेफ रखने के लिए बहुत जरूरी होती है। आज ज्यादातर मेल्स मॉडर्न सिविलाइज़ेशन में रहकर अपनी रिस्पॉन्सिबिलिटीज को भूल गए हैं और कंफर्ट में रहकर ये सोचते हैं कि उन्हें क्या जरूरत है खुद को स्ट्रांग और डेनजरस बनाने की, लेकिन इसी तरह की सोच उन्हें प्रॉब्लमैटिक सिचुएशन्स में बिलकुल यूज़लेस बना देती है। जबकि एक्चुअल, सेल्फ डिफेन्स और बेसिक फाइटिंग जानने वाले लोग पीस को रिस्टोर करने में ज्यादा काम आते हैं। साइन नंबर फ़ोर यू कैन नेवर मेनटेन आई कॉन्टैक्ट एक टिपिकल बेटा मिल कॉन्फेडरेशन से डरता है और तभी उसकी सेल्फ कॉन्फिडेन्स या फिर सेल्फ अश्योरेंस की कमी उसकी नजरों की चोरी में सबसे पहले पता चलती है। आई कॉन्टैक्ट दूसरों को ये सिग्नल करता है कि आप उस पर अटेन्शन पे कर रहे हो और उस कन्वर्सेशन को सीरियसली ले रहे हो। लेकिन नज़रें चुराना एक साइन होता है कि आप खुद की एबिलिटीज़ में इतना डाउट करते हो कि आप खुद से अटेंशन हटाकर और अपने मन में सेल्फ रिजर्वेशन के मूड को ऑफ करके दूसरे पर ध्यान दे ही नहीं सकते हैं और आप सेल्फ़ कॉन्शस हो? इसलिए अगर आप डिफिकल्ट और इवन नॉर्मल टॉपिक्स पर बात करते हुए भी आई कॉन्टैक्ट नहीं मेनटेन कर पाते तो इस बात के चान्सेस हाइ है कि आप एक बेटा मेल हो। साइन नंबर फाइव यू नेवर गेट एनी ***** ये बात काफी पर्सनल होती है और आप चाहे जितना मर्जी बोल लो कि आपको तो फीमेल्स का चक्कर बेकार लगता है या फिर आपका अकेला फोकस बस पैसों पर है। लेकिन अगर आपको चाहकर भी ***** नहीं मिल रहा तो यह पक्का है कि आप एक यानी इन्वॉल्व टरी सेलिब्रेट और एक बेटा मिल हो। आप फीमेल्स को अट्रैक्ट तो करना चाहते हो, लेकिन आपके पास कोई टूल क्वालिटी या एबिलिटी ही नहीं है, जिससे कोई फीमेल आपको ज़रा सा भी भाव दे। नंबर ***** यू हैव नो सेन्स ऑफ स्टाइल आप एक ऐल्फा या फिर हाई वैल्यू मेल को दूर से ही पहचान सकते हो। उसके कपड़ों की क्वालिटी, ग्रूमिंग, उसके कपड़ों की फिटिंग और उसका पॉचर ही इनफ होता है। उसके करेक्टर के बारे में जानने के लिए। लेकिन ऐसा बेटा मेल आप बस एक बैकग्राउंड करेक्टर जैसे होते हो जो झुंड में कहीं गुम है। स्टाइल का मतलब ये नहीं होता कि आपको एक्स्पेन्सिव या फिर बस अटेन्शन सीकिंग क्लोज़ पहनने है बल्कि स्टाइल होता है। अपनी बॉडी शेप, अपने कॉम्प्लेक्शन और सही टेक्सचर या फिर कलर्स का यूज़ करना, अपनी अट्रैक्टिवनेस और अपनी आइडेंटिटी को एम्प्लिफायर करने के लिए साइन नंबर सेवन योर एन टाइअर्ड हिंसा पास टाइम ये आपका पूरा दिन बस इन्टरनेट सर्व करते हुए, टीवी शोज़ देखते हुए या फिर फालतू की गेम्स खेलते हुए निकल जाता है। आजकल खुद को रिऐलिटी की हार्श ने से दूर रखने के लिए इतने सारे साधना गए हैं और बेटा मिल्स भी खुद को एक ही कमरे में बंद रखकर ऑल्टर्नेट रियलिटीज़ में जीने लगे हैं। ऐसे में असली जिंदगी में तो कूल और सक्सेसफुल नहीं बन सकते हैं तो ये मूवीज़ और वीडियो गेम्स के थ्रू जीते हैं। जहाँ असली दुनिया में इनकी मैं स्कूल इन्स्टैंट इन्हें हीरोइजम और महानता की तरफ धकेलती, वहीं विडियोगेम्स में इनकी मैं स्कूल इन डिज़ाइनर सैटिस्फाइड हो जाती है। कुछ बटन को प्रेस करने से इस तरह की जिंदगी सिर्फ मैस्कुलिनिटी के लिए ही नहीं बल्कि ह्यूमैनिटी के लिए भी एक डिसग्रीस है। साइन नंबर एट यू ऑलवेज गिव वे टू अर्ली ऐसा नहीं है कि एक बेटा मिल के अंदर ग्रेटनेस अचीव करने की बुक नहीं होती, लेकिन वो कहीं ना कहीं अपने कंफर्ट को छोड़ने से डरता है। यूज़्वली यह डर उनमे उनके बचपन में बिठाया जाता है कि वो कई चीजें कर सकते हैं और कई चीजें उनके बस के पार है। कोई भी मेल एक बेटा माइंड सेट के साथ पैदा नहीं होता बल्कि उसे स्लोली बेटा बनाया जाता है। साइन नंबर नाइन जीवन युअर फ्रेन्डस मेक फन ऑफ यू लाइक अट्रैक्ट सलाइक ऐवरेज ने सैवेज ने उसको खींचती है हर ग्रुप या फिर फ्रेंड सर्कल में ऑटोमैटिकली काफी जल्दी लोग हाइरार्की इस बना लेते है। हर फ्रेंड को अंदर से ये पता होता है कि दूसरा इंसान कहा स्टैंड करता है और वो कितनी रिस्पेक्ट डिजर्व करता है। जैसे वजह से अगर आपके दोस्त ही आप का मजाक उड़ाते हैं और आपकी रिस्पेक्ट नहीं करते तो इसके बहुत ज्यादा चान्सेस है कि आप एक लो वैल्यू बेटा मेल हो जिससे उसके फ्रेंड्स ने भी रिजेक्ट कर दिया है। लाइफ डिज़्नी फील लाइक इट इस गेटिंग बेटर। यह भी एक बेटा मील होने का क्लिअर कट साइन होता है। कि आप अपनी जिंदगी से बहुत नाखुश हो और आपकी जिंदगी किसी भी तरह से बदलती हुई नहीं दिख रही है। आप सुबह उठते ही अपने बारे में बुरा फील करते हो और रिऐलिटी से जितना हो सके उतना खुद को दूर रखने की कोशिश करते हो। खुद को डिस्ट्रिक्ट करके आपकी ज़िंदगी बोरिंग और रिपिटेटिव है और आपके या फिर आपके लाइफ के बारे में कुछ भी यूनीक या इंट्रेस्टिंग नहीं है। ये बातें आपको या तो बहुत ज्यादा हर्ट और करेंगी या फिर आप इन बातों को सुनकर अपनी रिऐलिटी को सही तरह से इवैल्यूएट कर पाओगे और खुद को ट्रैक पर लाना शुरू करोगे। ये डिसिशन आपका हैं कि क्या आप हमेशा ही डेनियल में रहकर एक लो वैल्यू बेटा मिल बने रहना चाहते हो या फिर आप अपने सारे लिमिटिंग बिलीफ को डिस्ट्रॉय करके अपनी लाइफ को जीने लायक बनाना चाहते हो?","एक बीटा पुरुष वह होता है जो दूसरों की तुलना में अधिक अधीनस्थ और निष्क्रिय होता है। उसके पास मर्दानगी की कमी है, वह कमजोर है और आमतौर पर महिलाओं के साथ कहीं नहीं मिलता है। लेकिन बीटा पुरुष होने के बारे में सबसे बुरी बात यह है कि आप यह भी नहीं जानते कि आप एक हैं। इसलिए इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम बीटा मेल के 10 संकेतों के बारे में बात करेंगे।" "जल्दी उठना आपके लिए कोई मजबूरी नहीं बल्कि एक ऑब्वियस कॉन्सिक्वेन्स होना चाहिए अपने शरीर की समझ का। यानी अगर आप खुद के बॉडी और माइंड को अच्छे से समझते हो तो आप ऑटोमैटिकली जल्दी उठना शुरू कर दोगे और अपनी ट्रू नेचर के साथ लाइनर होंगे। मैक्सिमल हेल्थ बेनेफिट्स के लिए है, जबकि अगर आपको खुद की बॉडी की नॉलेज नहीं है तो आपको अपनी नींद से एक बहुत ही खराब रिलेशनशिप रहेगा और आप उन लोगों की तरह बन जाओगे जो लेटस होते है, लेट उठते हैं या बॉडी को ढंग से यूज़ ही नहीं कर पाते हैं। लेकिन जल्दी उठने की बात करने से पहले हमें यह समझना चाहिए कि हम सोते क्यों है? साइनस बताती हैं कि हमारी बॉडी सन और मून की साइकल्स के साथ काम करती है जिसकी वजह से सुबह के दौरान जब सूरज उगने का समय होता है तब ऑटोमैटिकली हमारी बॉडी में एनर्जी और अलर्ट्नेस पैदा करने वाले केमिकल्स रिलीज होने लगते हैं ताकि हम उठ सके और हमारे अंदर दिन के सारे काम को करने के लिए पर्याप्त एनर्जी हो। शाम के बाद जब सूरज ढलता है और बाहर अंधेरा होने लगता है तब हमारी बॉडी में नींद जगाने वाले केमिकल्स रिलीज होने लगते हैं। ताकि हम सोने की तैयारी कर सके। सुबह बॉडी रेडी होती है एनर्जी को स्पेंड करने के लिए या जरूरत पड़ने पर तेजी से मूव करने के लिए और रात को बॉडी तैयार होती है रेस्ट करने, खाये हुए खाने को डाइजेस्ट करने और एनर्जी को सेव करने के लिए ताकि उससे वो आपको हील कर सके। जेनरली ये हीलिंग साइकल शुरू होती है रात के 10:00 बजे के आसपास। इस समय पर सोने से आपकी बॉडी सबसे ज्यादा एफिशिएंट तरह से खुद को फिजिकल हील कर पाती है। यानी जो भी आपके रिपेर होने हैं, दिमाग और शरीर से जो भी वेस्ट प्रोडक्ट्स बाहर निकलने है और जो भी नए सेल्स यह प्रोटीन्स बनने हैं वो सारा प्रोसेसर पूरा होता है। यह प्रोसेसर लगभग रात के 2:00 बजे तक ऑप्टिमल ही चलता है और इसके बाद दूसरी साइकल शुरू होती है जिसे बोलते है साइकोजेनिक रिपेर। ये साइकल 2:00 बजे से लेकर सुबह 6:00 बजे तक ऑप्टिमल ही चलती है और इसमें हमारे दिमाग, नर्वस सिस्टम और उनसे होने वाले मेंटल इम्पैक्ट की रिपेरिंग होती है। यही रीज़न है कि क्यों? जब हमें सपने भी आते है तो वो एकदम से सोते ही नहीं आते हैं। क्योंकि तब फोकस हमारी फिजिकल बॉडी पर होता है। सपने आते है नींद के लेटर स्टेजेस में या फिर एकदम हमारे उठने से पहले और जो इंसान रात के 10-2 बजे की साइकल को मिस कर देता है, उसकी बॉडी में दर्द होना शुरू हो जाता है और उसका शरीर उतने अच्छे से रिकवर नहीं कर पाता जबकि जो इंसान 2-6 बजे की विंडो को मिस कर देता है और इस समय नींद नहीं लेता तब उसको इमोशनल और मेंटल इश्यूज होने लगते हैं और वो चिड़चिड़ा और हमेशा मेंटली एग्ज़ॉस्टेड रहने लगता है। सेकंडली हमें स्लिप के बारे में यह चीज़ भी समझना बहुत जरूरी है। कि हमारे सोने का टाइम और स्लीप क्वालिटी ज्यादा इम्पोर्टेन्ट होते हैं। टोटल स्लीप ड्यूरेशन से यानी अगर आप 10:00 बजे के आसपास सो जाते हो और आपकी नींद बहुत गहरी होती है तो आपकी बॉडी नैचुरली सुबह 6:00 बजे से पहले ही अपने सारे जरूरी हीलिंग प्रोसेसर उसको कंप्लीट कर लेती है और आप बिना किसी अलार्म के ही उठ जाते हो। इसका मतलब सुबह जल्दी उठने के लिए आपको सिर्फ लाभ नहीं लगाना होता। यह जल्दी उठने की सबसे खराब अप्रोच होती है। इसके बजाय आपने अपना पूरा लाइफ स्टाइल बदलना है और जल्दी सोने और अपनी नींद की गहराई को बढ़ाने पर काम करना है। इससे आपका सुबह उठना एक नैचरल प्रोसेसर होगा। बजाय एक टॉर्चर के नाउ। जल्दी नींद लाने के लिए आपको यह पक्का रखना पड़ेगा कि आप सोने के टाइम के 3-4 घंटे के आसपास कुछ खाओ ना। क्योंकि अगर आपने अपना डिनर बहुत लेट करा तो इससे उस खाने को डाइजेस्ट होने में बहुत समय लगेगा और आपको सोने में काफी मुश्किल होगी। इसके अलावा रात को आपका बॉडी टेम्प्रेचर क्या है यह भी बहुत मायने रखता है, क्योंकि अगर आपके रूम में बहुत गर्मी है तो आपका दिमाग खुद को शांत नहीं कर पायेगा। इसलिए या तो एक ठंडे रूम में आरामदायक कपड़ों में सोने की कोशिश करो या फिर सोने से कुछ देर पहले नहाकर फ्रेश हो जाओ जिससे आपका बॉडी टेंपरेचर कम हो जाए और नींद भी आसानी से आ जाए। याद रखो एक अच्छी नींद का पहला स्टेप सोने से कुछ घंटे पहले ही शुरू हो जाता है। इसके साथ ही आपको यह भी पक्का रखना है कि आपका सोने का टाइम रोज़ रोज़ बदलें ना क्योंकि अगर आप कभी लेट सोते हो और कभी जल्दी तो इससे आपकी सर, निगम या फिर बॉडी क्लॉक बार बार चेंज होने की वजह से हमेशा कन्फ्यूज रहे गी। और सही समय पर सोने वाला होर्मोन यानी मेलाटोनिन नहीं रिलीज कर पाएगी। एक हेल्थी इंसान के शरीर में मेलाटोनिन रात के 10:00 बजे ही पिक करता है और यह एक और रीज़न है कि क्यों 10:00 बजे के आसपास सोने से आपको बहुत अच्छी और रिफ्रेशिंग नींद आएगी और इससे आपको ज्यादा देर भी नहीं सोना पड़ेगा। हाउएवर आपको यह पता होना चाहिए कि जो लोग ज़्यादा टेंशन लेते हैं, स्ट्रेस में रहते हैं या ओवर थिंक करते हैं, उन्हें नींद की ज्यादा जरूरत पड़ती है। इसलिए अगर आप अपनी नींद को इम्प्रूव करना चाहते हो तो अपने स्ट्रेस पर भी ध्यान दो, जिसमें सिर्फ आपका मेंटल स्ट्रेस नहीं बल्कि अनहेलथी खाने से होने वाला फिजिकल स्ट्रेस भी शामिल है। खुद ही अपनी प्रॉब्लम को समझना सिखों की क्या आपको ज़्यादा स्ट्रेस होता है? क्या आपकी बॉडी में पेन रहता है कि आप में मेंटल क्लैरिटी नहीं है और ब्रेन फॉग रहता है? या फिर क्या बहुत ज्यादा मूडी हो? खुद की बॉडी की सुनो हो, देखो कि आपको किस समय उबासी आने लगती है। कबाब बहुत ज्यादा थके हुए महसूस करते हो या फिर क्या आप हर समय ही उबासी लेते रहते हो और आंधी नींद में ही सारे काम करते हो? खुद से इस तरह की क्वेश्चन्स पूछने से आपको अपनी प्रॉब्लम पता लगे गी और यह भी समझ आ जाएगा कि क्या आपको प्रॉब्लम जल्दी ना सोने की वजह से हो रही है? नींद ***** होने की वजह से या ज्यादा ना सोने की वजह से? इस तरह से आप बस सोने की शुरुआत और एक्चुअल प्रोसैस पर फोकस करते हो और आपको रिज़ल्ट खुद ब खुद मिल जाता है। इस बात को अच्छे से समझो कि ललाम लगाना आपकी हेल्थ के लिए बहुत हार्मफुल होता हैं। आपको नींद भी नैचुरली बिना कोई गोलियां खाया नहीं चाहिए और आपकी नींद खुलने भी बिना किसी अलार्म एक कॉफी के चाहिए और लगाम लगाने या फिर सुबह सुबह स्ट्रांग कॉफी पीने का मतलब है कि आपकी बॉडी अपने ऑप्टिमल लेवल पर फंक्शन नहीं कर रही है और वह एक खराब गाड़ी की तरह है जिसे आगे बढ़ाने के लिए धक्का मारना पड़ता है। हर इंसान आपको यह तो बहुत आसानी से बोल देता है कि जल्दी उठ जाओ क्योंकि बहुत से सक्सेसफुल लोग भी जल्दी उठते हैं और देर तक सोने वाले लोग आलसी होते हैं। लेकिन कोई भी आपको यह नहीं बताता कि जल्दी उठना अपने आप में एक गोल नहीं बल्कि वह एक नतीजा होता है। खुद के बॉडी और माइंड की कैपेबिलिटीज को ऑप्टिमाइज़ करने का यानी जो भी इंसान अपनी फील्ड के टॉप पर पहुंचना चाहता है, वो ये बात समझता है कि बिना अपने माइंड और बॉडी को उनकी लिमिट्स पर ले जाएं और एक्स्ट्राऑर्डिनरी परफॉरमेंस दिए। वो जितनी ग्रोथ हासिल कर सकता था, उतना ग्रोथ नहीं कर पाएगा। इसी वजह से हर टॉप एथलीट सुबह जल्दी उठता है। इसी वजह से ज्यादातर सक्सेसफुल बिज़नेस मैन और ऑन्ट्रप्रनर्स जल्दी उठते हैं। ज्यादातर लोग जल्दी उठना नहीं चाहते, लेकिन जल्दी उठना बेस्ट बनने के लिए जरूरी होता है क्योंकि इस समय पर जब ज्यादातर लोग आराम से अपने बिस्तर पर बिना किसी अर्जेंन्सी के सो रहे होते हैं। तब हमारी सराउंडिंग एकदम शांत होती है और हम अपना काम बिना किसी शोर शराबे और बिना डिस्टरबैंस के कर सकते हैं। इससे हम कम समय में ही ज्यादा प्रोडक्टिव काम कर पाते हैं क्योंकि इस समय पर हमें डिस चैट करने वाले सिर्फ हम खुद ही हो सकते हैं और कोई नहीं देर रात तक जाकर काम करने से 100 गुना बेहतर है। सुबह जल्दी उठकर काम करना इससे ना तो आप अपनी बॉडी और माइंड की रिपेरिंग साइकल्स में बाधा डालकर अपनी हेल्थ को खराब करते हो और ऊपर से आप ज्यादा फोकस के साथ और ज्यादा देर तक काम कर पाते हो अगर आप अपनी ज़िन्दगी में कुछ करना चाहते हो तो सुबह उठने के लिए आपको इतना सोचना ही नहीं चाहिए। इसलिए जल्दी उठने के गोल पर नहीं बल्कि अपनी ग्रोथ को मैक्सिमाइज करने, हेल्थ को इंप्रूव करने और नेचर के साथ जीने पर ध्यान दो और लाइव राइटर बनने के लिए अपना पूरा लाइफ स्टाइल चेंज करो। 10:00 बजे के आसपास सो उससे दो 3 घंटे पहले कुछ खाओ मत। स्लिप को दीप बनाने के लिए कमरे को ठंडा रखो और अपना स्ट्रेस कम से कम रखने की आदत डालो, जिससे आपको जितनी टोटल नींद चाहिए उसकी जरूरत खुद ब खुद कम हो जाए। याद रखो, आप अपनी स्लिप को तब तक मास्टर नहीं कर सकते जब तक आप अपनी व् एक फुलनेस को मास्टर नहीं कर लेते हैं।","जल्दी उठना कोई मजबूरी नहीं होनी चाहिए, यह स्वाभाविक रूप से आपके अपने शरीर और मन की समझ से आना चाहिए। अधिकांश सफल लोग जल्दी उठने के कारण सफल नहीं हो जाते हैं, लेकिन वे जानते हैं कि मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक रूप से सर्वश्रेष्ठ बनने के लिए उन्हें जल्दी उठने की आवश्यकता है। देर रात तक काम करने और सुबह जल्दी काम करने में बड़ा अंतर होता है। तो, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम नींद के विज्ञान में गहराई से गोता लगाएंगे और यह जानने की कोशिश करेंगे कि हम स्वस्थ सोने/जागने की दिनचर्या को कैसे अपना सकते हैं।" "अगर हम पास्ट में देखें तो ज्यादातर लोगों के लिए खाली टाइम निकाल पाना और आराम करना एक लग्ज़री था। चाहे वो जवान हो, बूढ़ा औरत, आदमी या कोई बच्चा, हर कोई ही पूरे टाइम जिंदा रहने और अपना पेट भरने के लिए मेहनत कर रहा होता था। पर ये सब बदल गया। कुछ 100 साल पहले इंडस्ट्रियल रिवोल्यूशन की वजह से देखते ही देखते हाथ से चलने वाली मशीन्स बिजली से चलने लग गई। हर छोटे से छोटा प्रोडक्ट्स फैक्टरीज में बनना शुरू हो गया और लोगों के पास अब इतना खाली समय था की वो टीवी, टेलीफोन या रेडियो जैसे इन्वेंशन्स को एन्जॉय कर सके और अपने आप को किसी भी समय एंटरटेन कर सके। यानी इसमें कोई डाउट नहीं है की लेजिनेस एक मॉडर्न प्रॉब्लम है। इंडस्ट्रियल रेवल्यूशन के डेढ़ से 200 साल बाद भी टेक्नोलॉजी इतनी तेजी से बदल रही है कि हम इस कन्टिन्यूअस चेंज के साथ अडैप्ट ही नहीं कर पा रहे है। हम फ्री तो है पर हम फ्री क्या करने के लिए है ये हम नहीं जानते है। यानी ऑलमोस्ट हर आम आदमी जिंदा रहने की स्ट्रगल से तो बाहर निकल चुका है पर इस नई फ्रीडम के साथ एक बहुत जरुरी क्वेश्चन बाहर निकल के आता है ये हम अपने इस खाली समय को बेस्ट पॉसिबल वे में कैसे यूज़ कर सकते हैं? ज्यादातर लोग तो इस क्वेश्चन के बारे में कभी सोचते ही नहीं है और वो खुद ही ये मान लेते हैं की उनका फ्री टाइम आराम करने सोने और पैसिवली कंज्यूम करने के लिए है और लोगों की यही आदत उन्हें हमेशा मीडिया पर बनाए रखती है। अपनी बुक री स्टोर इन प्राइड में कैनेडियन फिलॉसफर रिचर्ड टेलर ने बोला है कि ज्यादातर लोग ऑर्डिनरी से नस में काफी लिमिटेड है। वो दिन पर दिन अपना टाइम खाली बैठे रहने में, फालतू की चीजों का पीछा करने में या बस गेम्स और टीवी जैसी चीजों को देखते हुए वेस्ट करते है या फिर वो घंटों तक एकदम यूज़लेस चीजों के बारे में बात करते रहते हैं। जैसे कौन आया, कौन गया, ये दूसरे लोग क्या कर रहे हैं? ये ऐसी बातें होती हैं जिन्हें वो बोलते ही भूल जाते हैं। इन लोगों का गोल बस इतना ही होता है कि इन्हें हर अगले दिन वही करना है जो इन्होंने पिछले दिन करा था। ये अपनी लाइफ के हर स्टेज से उसी नॉलेज के साथ बाहर निकलते हैं जिससे नॉलेज के साथ ही उसमें गए थे। ऐसे लोग अपनी पूरी जिंदगी काट देते हैं और इनके दिमाग में एक भी डीप या ओरिजिनल थॉट नहीं आता और ये वो चीज़ है जो बहुत कॉमन नॉर्मल है और वो बहुत रेयर लोग होते हैं जो इस मीडिया बेटी से ऊपर उठ पाते हैं। कई लोगों का मानना है कि ऐसी एक नॉर्मल लाइफ जीने में कोई बुराइ नहीं है। मॉडल लाइफ वैसे ही इतनी स्ट्रेसफुल है और आज कल तो लोगों में मेंटल हेल्थ प्रॉब्लम्स भी काफी बढ़ी हुई है। तो ऐसे में शायद जो चीज़ ज़रूरी है वो है अपना टाइम आराम करते हुए और सुस्ताते हुए काटना हाउएवर बहुत सारे महान थिंकर्स इस बात को खारिज करते हैं, जैसे ब्रिटिश फिलॉसफर कॉल इन विल्सन ने बोला है की आलस और खाली बैठे रहना, लोगों की मेंटल हेल्थ को इंप्रूव करने के बजाय उन्हें डिप्रेशन और एक पर्पस लाइफ की तरफ धकेलता है। विल्सन ने अपनी खुद की लाइफ में भी नोटिस करा की जब वो अपने टाइम को इंट्रेस्टिंग टास्क्स चैलेंजेस ये प्रॉब्लम्स को सॉल्व करने के लिए यूज़ नहीं कर रहे होते तब वो ज्यादा डिप्रेस्ड और पेसमिस्टिक फील करते है। काफी पॉपुलर कहावत है खाली दिमाग शैतान का घर क्योंकि हम इंसान लंबे समय तक खाली बैठने के लिए नहीं बने हैं। इसलिए आपके पास दो ऑप्शंस हैं या तो आप अपना खाली समय वेस्ट कर सकते हो और अपनी पोटेंशिअल को न् यूज़ छोड़ सकते हो। माइंडलेस पर स्यूट्स और पैसिव कंजम्पशन पर ध्यान दें के या फिर आप अपना ज्यादातर खाली समय कुछ नया सीखने करने, बनाने, अपने आप को चैलेंज करने और अपने टैलेंट को इम्प्रूव करने पर यूज़ कर सकते हो। दूसरा ऑप्शन मुश्किल तो है और इसमें आपको काफी सारे सैक्रिफ़ाइस इस स्ट्रगल और मेहनत करनी पड़ेगी और शायद आपको आराम करने का भी ज्यादा टाइम ना मिले। पर इतना पक्का है की जो कीमती लाइसेंस, पर्सनल ग्रोथ, सैटिस्फैक्शन और विज़्डम आपको मिले गी वो आपकी मेहनत को पूरी तरह से जस्टिफाई कर पाएगी। कैनेडियन साइकोलॉजिस्ट डॉक्टर जॉर्डन पीटरसन ने अपनी बुक 12 रूस फॉर लाइफ मैं बोला है कि अपने आप को ये स्टोरी मत सुनाओ कि आपकी लाइफ में कितनी डिसएडवांटेज हैं या फिर आपकी मेहनत एक बड़ी पिक्चर में कोई मायने नहीं रखती है। हर इंसान की लाइफ ही मुश्किल हो और सफरिंग से भरी है। पर इसका मतलब यह नहीं है की आप आलसी बनकर लाइफ को पैसिवली जीना शुरू कर दो और अपनी लाइफ में आने वाली हर अपॉर्चुनिटी को मिस कर दो। ये कोई ऑप्शन नहीं है क्योंकि अगर आप कुछ मीनिंगफुल काम करते हो तब भी आपकी लाइफ में मुश्किल है और दुख रहेगा और अगर आप कुछ नहीं करते तब भी पर अटलीस्ट अपने आप को एक स्ट्रांग पर यूज़फुल इंसान बनाने से आपकी लाइफ उस नर्क से बेहतर होगी जिसमे आपको आपका आलस पहुंचाएगा। इसलिए अगर आपको अपनी लाइफ को जीने लायक बनाना है तो कोई लोड उठाओ और किसी चीज़ के लिए रिस्पॉन्सिबल बनाओ। जीवन अगर टाइम वेस्ट करने से जुड़ा ऐंगज़ाइइटी और डिप्रेशन सिर्फ उन गिने चुने लोगों को ही तंग करता है जिनमें ग्रेटनेस हासिल करने की एक स्ट्रांग अर्ज होती है और चाहे ज्यादातर पॉप्युलेशन को खाली बैठे रहने में कोई प्रॉब्लम नहीं फील होती तब भी कुछ ब्यूटीफुल और क्रिएटिव चीज़ को रिऐलिटी में लाने की मेहनत हमेशा वर्थ करती है, चाहे आप अपने टैलेंटेड और गिफ्टेड नहीं हो। या फिर अभी आपको ये नहीं पता कि आपकी मेहनत रंग लाएगी या नहीं? किसी भी केस में एक पर्पस और उस पर्पस से जुड़े हार्ड वर्क से भरी लाइफ एक सैटिसफाइंग लाइफ होती है। अगर आपको ये नहीं पता कि आपको कहाँ से स्टार्ट करना चाहिए तो सिम्पली अपने इंट्रेस्ट को फॉलो करो। टाइम टु टाइम आपको अलग अलग चीजें अपने आप में इंट्रेस्टेड फील करवाएंगी ताकि आप उस चीज़ के थ्रू ग्रो कर सको। शुरू में शायद आपको ये भी ना समझ आया की आपको अपने कौन से इंट्रेस्ट को फॉलो करना चाहिए और कौन से इंट्रेस्ट को फॉलो करना बस टाइम वेस्ट है। पर जस्ट बिकॉज़ हाथ पर हाथ रखकर बैठना एक वैलिड ऑप्शन नहीं है। आपका फोकस बस इस चीज़ पर होना चाहिए कि आप एक जगह पर रुके हैं नहीं और अपने ख्यालों में डूबे रहने के बजाय कुछ ऐक्शन लेना शुरू करो। और जैसा कि डेनिस फिलॉसफर सोरेन किर्केगार्द का बोलना था कि इंसान होना एक फैक्ट नहीं, बल्कि एक टास्क है।","आलस्य एक आधुनिक समस्या है, पहले हमारे पास आलस्य को वहन करने का समय या पैसा भी नहीं था। आलसी होना एक विलासिता हुआ करती थी लेकिन आधुनिक प्रगति के साथ, हमारे अस्तित्व पर अब कोई खतरा नहीं है और अधिकांश लोग सदियों पहले महान राजाओं की तुलना में अधिक सुरक्षित जीवन जीते हैं। हालाँकि, खाली समय होना कोई वरदान नहीं है। ऐसा इसलिए है क्योंकि लंबे समय तक निष्क्रियता सामान्यता और उद्देश्यहीनता की ओर ले जाती है, यही कारण है कि इस पॉडकास्ट खंड में हम चर्चा करते हैं कि वास्तव में आलस्य क्या है, आधुनिक लोग इतने आलसी क्यों हैं और हम अपने आलस्य को कैसे दूर कर सकते हैं" "डिजिटल रिवोल्यूशन की वजह से आज के टाइम पर बिना ज्यादा पैसे खर्च करे। अपने खुद का बॉस बनना पॉसिबल हो गया है और तभी हमारी कंट्री में एक नया ट्रेंड आया है जो की है ऑन्ट्रप्रेन्यरशिप ऑन्ट्रप्रनर एक फ़्रेंच वर्ब ऑन्ट्रप्रेन्यर जिसका मतलब होता है टु अंडरटेक और इंग्लिश वर्ड एंटरप्राइज़ से मिलकर बना है और तभी ऑन्ट्रप्रेन्यरशिप को डिफाइन किया गया है एक प्रोसैस की तरह जिसमे एक नया बिज़नेस या कंपनी बनाई जाती है। उससे जुड़े सारे रिस्क्स उठाए जाते हैं और उस बिज़नेस का गोल होता है। प्रॉफिट इस वक्त इंडिया में टोटल 5,00,00,000 से ज्यादा स्मॉल बिज़नेस है। ऐडल्ट पॉप्युलेशन का 11% अर्ली स्टेज आन्ट्रप्रनरीअल ऐक्टिविटीज़ में इंगेजड है। सिर्फ 5% इंडियन ऐडल्ट सक्सेस्स्फुल्ली अपना बिज़नेस सस्टेन कर पा रहे हैं और 4% लोग अभी नर्स है यानी वो कोई बिज़नेस खड़ा कर रहे हैं जिससे वह फ्यूचर में एक ऑन्ट्रप्रनर बनेंगे। यानी इंडिया में लोग इन्ट्रप्रेन्यूरशिप की तरफ बढ़ तो रहे हैं और वो भी काफी स्पीड से। पर इन लोगों में से बहुत कम ऐसे लोग होते हैं जो सक्सेसफुल ऑन्ट्रप्रनर्स बन पाते हैं। यही रीज़न है की क्यों? जितनी तेजी से लोग ऑन्ट्रप्रेन्यरशिप के प्रोफेशनल में आ रहे हैं, उतनी ही तेज़ी से लोग अपने बिज़नेस बंद कर रहे हैं और यह इनसाइट उन लोगों के लिए बहुत जरूरी है जो सोशल मीडिया पर अपने आप को ऑन्ट्रप्रनर बोलते हैं। पर उनका बिज़नेस कभी भी प्रॉफिट में आया ही नहीं या फिर वो अपने बिज़नेस को लंबे टाइम तक सस्टेन नहीं कर पाए ऐंड दैट इस नॉट रिले ऑन्ट्रप्रनर शिप एक ऑन्ट्रप्रनर बनने के लिए हमें किसी प्रॉब्लम को सॉल्व करना है और एट के सम्टाइम पैसे भी कमाने है। नाउ ये तो हो गई ऑन्ट्रप्रेन्यरशिप की बात इसके बाद क्वेश्चन ये आता है की एक इंडीविजुअल लेवल पर हमें कौन से करेक्टर स्टिक्स चाहिए एक सक्सेसफुल ऑन्ट्रप्रनर बनने के लिए? वेल, हमारे पास ऐट लिस्ट सिक्स ऐसे करेक्टर स्टिक्स है जो प्रेडिक्ट कर सकते हैं की एक इंसान सक्सेसफुल ऑन्ट्रप्रनर बन पायेगा या फिर नहीं। हर क्वालिटी को हम एक एग्जाम्पल के साथ समझेंगे ताकि हमें इस टॉपिक का एक बेटर आइडिया मिल पाए। तो सबसे पहले है क्यूँ? क्योंकि आइक्यू एक ऐसा फैक्टर है जो हमें एक इनडिविजुअल की प्रॉब्लम सॉल्विंग कैपेबिलिटीज के बारे में बताता है। इसके साथ ही हर टाइम बदलती मार्केट और कॉम्प्लेक्स डिसिशन मेकिंग के लिए भी आयेगी। बहुत जरूरी होता है एग्जाम्पल के तौर पर इस वीडियो में गैरी वेन अर्चक जो कि एक अमेरिकन ऑन्ट्रप्रनर है वो समझा रहे हैं कि कैसे उसे डे टु डे बेसिस पर इतने कॉम्प्लेक्स डिसिशन्स लेने होते हैं। वेब सक्सेस फॉर बिज़नेस यू मेक सेवन टु 7000 डिसिशन्स क्रिटिकल ऐड यू कैन ओनली में कम विथ योर सेल्फ ऐनस मोमेंट न डेली बेसिस सेकंड करेक्टर इस टिक है विलिंगनेस टु टेक रिस्क्स एंड परसिस्टेंस क्योंकि अनलेस एक इंसान काफी लकी है और उससे पहले ही ड्रीम ए सक्सेस मिल गई है। ज्यादातर लोग कई बार फेल होते हैं और ऑन्ट्रप्रेन्यरशिप एक ऐसी गेम है जहाँ पर हमारे ज्यादातर आइडियास इतना कॉम्पिटिशन होने की वजह से किसी के नोटिस में भी नहीं आते हैं। बट अगर हम फेल होने के रिस्क की वजह से किसी आइडिया को एग्जिक्यूटिव नहीं करते तो चाहे हमारे अंदर कितनी भी ऑन्ट्रप्रनर 10 सीज़ हो हम कभी भी सक्सेस नहीं देख पाएंगे। दैट स्वाइ रिस्क टेकिंग ऐंड परसिस्टेंस गो अहेड इन हैंड एग्जाम्पल के तौर पे डेली यूनिवर्सिटी के एक इवेंट में सुंदर पिचाई ने समझाया कि रिस्क लेना और बार बार फेल होना कितना जरूरी होता है। उस ट्राइंग टु डू समथिंग यू रियली यू नो एक्साइटेड बाइ द फर्स्ट टाइम टु डू इट यू नो यू कैन ट्राई अगेन यू थिंक 10 टु वर्क आउट इन लॉन्ग इन सिलिकन वैली यू नो रीज़न सो मेनी पीपल स्टार्ट कंपनी इस स्टार्टिंग आपका कंपनी वन हैविंग फेल्योर यू कैन वेरी बैच ऑफ ऑनर राइट है नद आई थिंक इट्स इम्पोर्टेन्ट यू नो कल्चरली यू नो रिस्क रिवॉर्ड आई रिमेम्बर वेन आई स्टार्टेड वर्क इन गूगल यू नो इफ इफ आई वॉन्ट न्यू पीपल डिसकसिंग आइडियास द अदर पीपल हूँ ह्रदय आइडियाज़ ट्राई टु बिल्ड ऑन द साइड से एंकरेज यू सो इट्स कल्चर ऑप्टिमिजम इट्स कल्चर ऑफ रिस्क टेकिंग एनी थिंग दैट एस रियली इम्पोर्टेन्स थर्ड करेक्टर इस टिक सेकंड से ही रिलेटेड है और वो ये है की सक्सेसफुल ऑन्ट्रप्रनर्स अपने वाइड रेन्ज ऑफ इन्ट्रेस्ट की वजह से सिर्फ एक चीज़ पर ही फोकस नहीं करते हैं। यानी वो एक टाइम पर काफी गेम खेल रहे होते हैं और उन्हें मज़ा आता है। कन्टिन्यूसली डिफ़रेंट प्रॉब्लम्स को सॉल्व करने में यह क्वालिटी उनकी लेट अल्थिन्ग कैपेबिलिटीज का रिज़ल्ट हो सकती है। यानी जब वो एक आइडिया के बारे में सोच रहे होते है तो उसके साथ वो साइमल्टेनीअस्ली उस आइडिया को बाकी आइडियाज़ और ऑपर्च्युनिटीज के साथ जोड़कर देख रहे होते हैं। और ये एबिलिटी उनके आइडियाज़ को यूनीक और एक नए वे में यूज़ फुल बनाती है तो चाहे वो एक टाइम पर सिर्फ एक चीज़ को बिल करने में फोकस करे या फिर कई चीजों को एक साथ एक ट्रू एंटरप्रेनर कभी भी सिर्फ एक चीज़ पर फोकस नहीं करता। एक्साम्पल में गैरी यहाँ पर बता रहा है कि कैसे वो चाहकर भी सिर्फ एक चीज़ पर फोकस कर ही नहीं सकता। आई ऐम फकिंग मौन कंपनी। मीडिया ऑफ लाइब्रेरी गैरी वी ऑफ कैन बेस्ट ऑफ कोर्स। फक अनफोकस्ड फोर्कैस्ट फॉर यू ईट फॉर मी। इफ यू आन्ट्रप्रनर, जस्ट यू वॉन्ट? दैट हाउ अबाउट फक्ड राइट लाइक टू कम अप विथ बिज़नेस आइडियाज़ इन नेक्सट? अंकित दैट एवरीडे अन्य अन्ड्रॉइड यू टू हिम इन देइर बिकॉज़ फॉर्मिकस् हैप्पी फोर्थ करेक्टर इस टिक हे हाइ ओपन एस एंड हाइ कॉन्शसनेस नाउ यहाँ पर हम बात कर रहे हैं उनके पर्सनैलिटी ट्रेट्स की, तो ओपन होने का मतलब होता है टु इक्स्पिरीयन्स पर्सनैलिटी ट्रेड में हाई होना। यह वो पर्सनैलिटी ट्रेड होता है जो क्रिएटिविटी इनटेल्लेक्ट के डॉ। सिटी और इंट्रेस्टिंग आइडिया से रिलेटेड होता है। दैट स्वाइ आंत्रप्रेन्योर्स काफी हद तक आर्टिस्ट्स की तरह भी होते हैं। और कॉन्शन्स रेट होता है जो हार्ड वर्क ऑर्डर लिन एस, सेल्फ डिसिप्लीन और अचीवमेंट्स ड्राइविंग से रिलेटेड है। इन दोनों ट्रेड्स में से ओपननेस तो मस्त है पर ये दोनों ट्रेड्स ज्यादातर एक दूसरे को अब पोस्ट करते हैं। लाइक ओपन इस रिलेटेड है लिबरलिज्म से और कॉन्सियसनेस रिलेटेड है कौन सर्वे ऑटिज़म से? सो अगर एक इंडीविजुअल कॉन्सिअस यानी हार्ड वर्किंग और ऑर्डर ली नहीं है तो उसके लिए बेस्ट ऑप्शन ये होता है की वो एक ऐसा पार्टनर ढूंढ लें जिसमें ये सारी क्वालिटीज हैं। क्योंकि किसी भी सक्सेसफुल बिज़नेस ऑर्गेनाइजेशन में हमें हाइली क्रिएटिव लोग भी चाहिए, पर अगर इन क्रियेटिव आइडियाज़ को इंप्लिमेंट करने वाला कोई नहीं है तो वो और्गनाइज़ेशन फेल हो जाएगी। फॉर एग्जाम्पल इस डिस्कशन में कैनेडियन क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट जॉर्डन पीटरसन और एक ब्रिटिश ऑन्ट्रप्रनर के बीच में डिस्कशन हो रही है। की क्यों? हाई ओपन एस और हाइ कॉन्शसनेस इतने अलग होने के बावजूद भी एक बिज़नेस में कितने जरूरी होते हैं? इन ओपन। इम्प्लिमेंटेशन कि टैस्टी यू कैन डू थे पेपर वर्क यू कैन यू फॉलो अप युअर मैस सो फाइन्ड सम वन यू शॉर्टली ऐट वर्क विथ सम्वन हूँ सर डेली बिकॉज़ देर इस ट्रेन में इट्स लाइक एवेरी वैन यू नीड इट सो दैट यू नो मी फॉर थिस इस फॉर मोडी से ग्रेबेंकिन मी ऐंड आई वुड से मोडली ऐंड वे मोटर्स कैपिटल ऐंड आइ ऑलवेज़ आउट गोइंग टू दिस वीक एंड देर इस वैन ऑपरेटर इन अदर ऑपर्च्युनिटी ऐंड व्हाट डस इस लॉ नो इट्स फ्रस्ट्रेटिंग ऑफ कोर्स, बट पर्सनली वाउ बिकॉज़ यू सी इफ यू ओपन यू सी द लाइन्स कीपर ऑफ यूनिटी बट। इतिहास इस पर विधि नस्लों, पेनफुल ऐंड वर्किंग विथ सम्वन हूँ, सेज़ नो ऑफ ऑपर्च्युनिटी, टु हैव क्विक देर ऐक्चुअली प्रेफरबल फिफ्थ करेक्टर इस टिकर हाइ स्ट्रेस थ्रेशहोल्ड या फिर इमोशनल स्टेबिलिटी यानी सक्सेसफुल ऑन्ट्रप्रनर्स को डेली बेसिस पर काफी स्ट्रेस से डील करना होता है और तभी उनमें इमोशनल स्टेबिलिटी होना बहुत जरूरी है, जिससे उनकी हैपिनेस कंडिशनल नहीं बनती है। ऐसा नहीं होता कि अगर उनका काम अच्छा चल रहा है तो वो खुश हैं। बट जैसे ही उनके हाथ से एक डील निकली वैसे ही वो इरीटेबल या ऐंग्री हो जाए और उनकी इमोशनल ट्रजेक्टरी एक रोलर कोस्टर की तरह दिखाई दे नो, ये बस हमें लगता है कि जो भी लोग के टॉप पर होते हैं, उनकी लाइफ काफी ईजी और स्ट्रेस फ्री होती है। पर रिऐलिटी इसके बिल्कुल ऑपोजिट है क्योंकि उस लेवल पर हमारे ऊपर काफी रिस्पॉन्सिबिलिटीज होती है जो हमे ईज़ अली, डिप्रेशन या फिर ऐज़ आई टी रिसोर्स की तरफ पुश कर सकती है और तभी हर इंसान सक्सेसफुल नहीं बनना चाहता। बिकॉज़ मोर सक्सेस ईक्वल्स मोर रिस्पॉन्सिबिलिटी ज़ फॉर एग्जाम्पल इस इंटरव्यू में बता रहा है कि कैसे 2008 के रिसेप्शन के टाइम पर उसकी दोनों कम्पनीज़ यानी स्पेस एक्स और टेस्ला बंद होने की कगार पर थी, जिसके स्ट्रेस की वजह से उसे लगा की वो पहली बार नर्वस ब्रेकडाउन के इतना क्लोज़ आया है। चॉइस देर बिकॉज़ आई नीड प्रोवाइड ऑफ द मनी फॉर स्पेस एक्स ऐंड देन इन्क्रीज़ पे चान्स दैट वन ऑफ द वुड्स वाइफ ओर आई जस्ट मणी जैन। लाइक यू सो मच, थैंक यू हद टू शोल्डर अंकित सो मच फॉर डॉट। सर वॉज़ द चॉइस सो अदर्वाइज़ क्लोज़ इसमें मूवमेंट ऑफ ऐम फेल्यर, वुड यू से टु योरसेल्फ यू नो कैन आई सर्वाइव थिस नाउ इट इन क्वेश्चन योरसेल्फ नो। नो इस मो। अमीन, विश्वस्त ध। बिकॉज़ तक इन सिचुएशन्स यू हैव 210 पड़ौस इन्वेस्टर्स लॉन्ग सो? वो डिपेंड एक्स्ट्रीमली दिस आवर फैन पॉइंट। रिस्पॉन्सिबिलिटी के थ्रू। इस सारे ऑलमोस्ट है द नर्वस ब्रेक नाउ, वेयर डिड टू नै सिटी ओर रिज़िल्यन्स कम फ्रॉम। प्राइम इन द। डू यू नो इश्यूस? + ऑन द सन डे बिफोर क्रिसमस इन इन 2000 ऐट नथ्थिंग लाइक डैम। थिस इस। सिक्स्थ और लास्ट करेक्टर इस टिक है। पैशन बिकॉज़ अगर हम पहले फाइव रिक्वायर्ड करेक्टर स्टिक्स को देखें तो एक सेन और नोरमल इंडिविडुअल कभी भी इतना स्ट्रेस रिस्पॉन्सिबिलिटी ज़ और प्रेशर क्यों चाहेगा और क्यों कोई कॉन्स्टेंट ली हार्ड वर्क करेगा? बट एक पैशनेट इनडिविजुअल के लिए कोई भी ऑप्टिकल उनके ड्रीम से बड़ा नहीं होता। कई लोगों के पैशन को सक्सेस के साथ आने वाली फ्रीडम मनी और ऑप्शंस फीड करते हैं। पर ऑलमोस्ट हर ऑन्ट्रप्रनर का पैशन उसके डीएनए में होता है। जिसे पैरेंटिंग और एनवायरनमेंट दोनों करते हैं। हम पल के तौर पर यहाँ पर एक इंडीविजुअल स्टीव जॉब्स से पूछता है कि अगर एक इंसान को एक बड़ा बिज़नेस शुरू करना है तो उसके लिए सबसे जरूरी चीज़ क्या होती है? और यह जॉब्स कानसर था भी तो सही यू हैव लॉट ऑफ पैशन फॉर व्हाट यू डूइंग इट, इस टोटली टू इन रीज़न इस। इस बिकॉज़ इट्स सो हार्ड इफ यू डॉन, एनी रैशनल पर्सन, गुड गिवअप। इट्स वैरी हार्ड यू हैव टु डू ओवर स्टेन फ्री टाइम सो इफ यू डोंट लव यू हैव फन डू यू नो एंट्री लव यू गिव अप ऐट वन्स मोर पीपल यू लुक ऐट ऐट वन्स दैट ऐट अप यू नो बिग 640 इस आईटी इन ऑफ टाइम इट्स धवन सक्सेसफुल लव देड्सो लेकिन पर्सवीर यूनिट ऑफ ऐट वन्स दिन ललित वेदर @ सो इट्स आवर हार्ड वर्क ऐट सॉवरिन कॉस्टली इं इफ यू वॉन्ट लव। फेल?","उद्यमिता भारत में नई चर्चा है और आर्थिक रूप से, यह देश के लिए भी अच्छा है। लेकिन इस पेशे से जुड़ी असफलताओं का क्या? खैर, असफल होने वाले व्यवसाय (और लोग) अक्सर एक अच्छे उद्यमी के गुणों के बारे में नहीं जानते हैं। हां, हर कोई उद्यमी नहीं हो सकता है और यदि आप स्वयं जागरूक नहीं हैं, और आप एक व्यवसाय शुरू करते हैं, तो वह विफल हो जाएगा। यही कारण है कि इस वीडियो में मैंने बात की है कि उद्यमिता के मूल में क्या है और एक सफल उद्यमी में क्या विशेषताएं होती हैं। अवधारणा के बारे में समझ होने से, आप वास्तव में अपना आकलन कर सकते हैं और जान सकते हैं कि आप एक उद्यमी प्रकार हैं या नहीं। हमें Youtube पर खोजें: www.youtube.com/psychologyinhindi" "हम अपने आप को किस तरह से जज करते हैं, ये हमारी पर्सनैलिटी पर डिपेंड करता है। जहाँ कई लोग अपनी अट्रैक्टिवनेस को ओवर एस्टीमेट करते हैं, वहीं ज्यादातर लोग अपने आपको काफी हार्डली जज करते हैं और वो जीतने अट्रैक्टिव असलियत में होते हैं। अपने आप को उससे कम समझते हैं। ये इसलिए होता है क्योंकि हम इंसानों के अंदर एक नेगेटिविटी बाइअर्स होती है यानी जस्ट बिकॉज़ नेगेटिव चीज़े हमारी जिंदगी के लिए खतरनाक हो सकती है। हम सिर्फ इसी बात पर फोकस करने लगते हैं कि हमारे अंदर नेगेटिव क्या है? यही रीज़न है कि क्यों अपने आपको कम अट्रैक्टिव समझने वाले लोगों की सेल्फ एस्टीम कम होती है। और उनमें बॉडी इमेज डिसॉर्डर्स भी ज्यादा होते है। हाउएवर जब हम अपने आप को ऐनालाइज करते हैं, तब हम अपनी पर्सनैलिटी को इग्नोर करके सिर्फ आउटर अपिअर्स को दूसरों से कंपेर करने लगते हैं और तभी आज हम ऐसे 10 साइंस के बारे में बात करेंगे जो बताएंगे कि शायद आप भी अपनी ओवरऑल अट्रैक्टिवनेस को कैलकुलेट करने में गलती कर रहे हो और आपसे मिलने वाले लोग आपको ज्यादा अट्रैक्टिव मानते हैं। नंबर सेवन आप सिम्पली दूसरों से अलग हो। यू शनरी साइकोलॉजी में एक कॉन्सेप्ट होता है जिसे बोलते है असॉल्ट। मीटिंग या फिर जो बताता है कि कई लोग सिर्फ उन लोगों को अट्रैक्टिव मानते हैं, जिनके फीचर्स उनके जैसे होते है। एक बिहेवियरल रिसर्चर, जिनका नाम हेलेन फिशर है, उन्होंने अपनी रिसर्च में ये ऑब्जर्व करा है की हमें सिर्फ वही लोग ज्यादा अट्रैक्टिव लगते हैं जिनकी बायोलोजी हमारी बायोलोजी को कॉम्प्लिमेंट करती है। जैसे अगर कोई इंसान खुद काफी ऐडवेंचरस और एनर्जेटिक है या फिर वो काफी हंसमुख है तो वो अपना पार्टनर भी ऐसा ही ढूंढेगा जो एकदम उसके जैसा हो। यही रीज़न है की आपकी पर्सनैलिटी और आपके फीचर्स कई लोगों के लिए अट्रैक्टिव नहीं होंगे और अगर आप हमेशा सिर्फ उन्हीं लोगों के साथ हैंगआउट करोगे तो आपको यही लगेगा कि आप उतने अट्रैक्टिव नहीं हो, जबकि बाकी लोगों के लिए आप अपने आप को जितना अट्रैक्टिव सोचते हो, उससे कहीं ज्यादा अट्रैक्टिव हो। नंबर सिक्स लोगों के लिए ये मानना बहुत मुश्किल होता है कि आपकी भी इन सेक्युरिटीज़ है। ये साइन आपको तब देखने को मिल सकता है जब आप किसी इंसान को यह बताते हो कि आपकी सेल्फ एस्टीम कम है। आप में कॉन्फिडेन्स नहीं है या फिर आप अपनी को लेकर काफी परेशान रहते हो, क्योंकि हम सब कॉन्शस ली। हमेशा यह एक्सपेक्ट करते हैं कि जो लोग ज्यादा अट्रैक्टिव होते हैं, उनकी कोई इन सेक्युरिटीज़ नहीं हो सकती। सो जब कोई इंसान बहुत हैरान हो जाता है, आपकी सेल्फ इमेज की प्रॉब्लम्स को सुनकर तो वो एक काफी क्लिअर साइन होता है कि दूसरे लोग आपको काफी अट्रैक्टिव समझते हैं और आपकी अपनी अपीयरेंस को लेकर सारी प्रॉब्लम्स बस आपके दिमाग में है। नंबर फाइव लोग आपकी तरफ देखकर स्माइल पास करते हैं। ये हमारा नैचुरल रिऐक्शन होता है कि जब भी हम किसी अट्रैक्टिव इंसान को देखते हैं, तब हमारे दिमाग में डोपामाइन रिलीज होता है, जिससे हमें अच्छा फील होता है और हम उन्हें स्माइल पास कर देते हैं। ये सिग्नल करने के लिए कि हम उनसे बात करने में इंट्रेस्टेड हैं, इस तरह की स्माइल काफी अलग होती हैं और मुँह पर देर तक टिक्की रहती है उस माइल के कंपैरिजन में जो हम दूसरों को अपने मैनर्स या फिर रिस्पेक्ट दिखाने के लिए देते हैं, सो, अगर आप ये नोटिस करते हो कि ज्यादातर अनजान लोग आपके पास से गुजरते हुए आप को एक फ्रेंड्ली स्माइल दे रहे हैं। तो चान्सेस है की उन्हें आप अट्रैक्टिव लगें। नंबर फ़ोर आप अपने आप को सिर्फ अपने से ज्यादा अट्रैक्टिव लोगों से कंपेर करते हो जेनरली जब भी हम अपने आप को किसी से कंपेर करते हैं तब हम किसी एक ट्रेड को चुनते हैं जैसे कि इन्टेलिजेन्स या फिर फिटनेस और उसके बाद हम दूसरे लोगों में देखते हैं कि कौन हमारे से ज्यादा इंटेलीजेंट या फिट है और कौन कम और यही सेम चीज़ हमें अपनी अट्रैक्टिवनेस को मेजर करते हुए करनी चाहिए। पर प्रॉब्लम तब आती है जब हम अपने आप को सिर्फ उन लोगों से कंपेर करने लगते हैं। जो हमारे से ज्यादा अट्रैक्टिव है और रिसर्च बताती है कि बार बार ये देखना कि आप किसी और के जितना अट्रैक्टिव नहीं हो, आपकी इन्फॉर्मेशन को बाइअर्स बना देता है और आप अपने आप को कम अट्रैक्टिव समझने लगते हो। नंबर थ्री आप अट्रैक्शन और अट्रैक्टिवनेस को से मानते हो। अट्रैक्शन का मतलब है कि दूसरे लोग आपकी ओवरऑल पर्सनैलिटी, इन्टेलिजेन्स, लुक्स या सक्सेस के बेसिस पर आपको अट्रैक्टिव मानते हैं, पर अट्रैक्टिवनेस सिर्फ आपकी आउटर अपीयरेन्स होती है। जैसे कई बार आपको कोई इंसान अट्रैक्टिव तो लग सकता है लेकिन सेम टाइम पर आप उससे अट्रैक्ट नहीं होते हैं क्योंकि हम दूसरे लोगों को काफी सारी डाइमेंशन्स में जज करके देखते है की वो ओवरऑल कितने इंट्रेस्टिंग कॉन्फिडेंट, इन्टेलिजन्ट या फिर इन्स्पाइरिंग है। यहाँ तक की 2013 में हुई एक स्टडी में देखा गया था कि जो लोग दूसरों की मदद करते हैं, वो ज्यादातर लोगों को बहुत अट्रैक्टिव लगते हैं और एक स्टडी में देखा गया कि जो मेल्स ज्यादा क्रिएटिव होते हैं, वो फीमेल्स की नजर में ज्यादा अट्रैक्टिव बन जाते हैं। तभी जब भी आप अपने आप को जज करो तो यही सोचो कि क्या अब बस अपनी फिजिकल अट्रैक्शन को जज कर के अपने आप को अंडरएस्टीमेट कर रहे हो या फिर आप अपनी ओवरऑल अट्रैक्शन पर ध्यान दे रहे हो? नंबर टू आपसे मिलने वाले लोग आपके लिए काफी स्ट्रांग फीलिंग्स रखते हैं, क्योंकि जब आप अट्रैक्टिव होते हो तब कई लोगों का आपके ऊपर ओपिनियन काफी एक्स्ट्रीम होता है। यानी या तो वह आपके साथ काफी फ्रेंडली होते हैं। पीठ पीछे भी आपकी तारीफ करते हैं और हर समय आपकी मदद करने के लिए रेडी होते है। जस्ट बिकॉज़ आप उन्हें अट्रैक्टिव लगते हो और वो आपको अच्छे से जानना चाहते हैं। या फिर वो आप का नाम सुनते ही गुस्सा हो जाते हैं और आपकी पीठ पीछे आपकी बुराइ करते हैं, वह भी बिना किसी रीज़न के? साइकोलॉजी के हिसाब से इस तरह का बिहेव इर उन इंसानों में देखने को मिलता है जो किसी इंसान से जेलस होता है और वो अपना गुस्सा दिखाता है। उस इंसान की रेपुटेशन खराब करके नंबर वन आपको रिलेशनशिप्स काफी इजली अवेलेबल होते हैं। ये काफी स्ट्रैट फॉरवर्ड है जो बोलता है की आप चाहे एक मेल हो या एक फीमेल, अगर आपके आसपास ऐसे लोग हमेशा होते हैं जो आपको अपना पार्टनर बनाना चाहते हैं। और वो ये मौका ढूंढने के लिए आपसे हमेशा फ्लर्ट करते रहते हैं तो चान्सेस है कि दूसरे लोग आपको काफी अट्रैक्टिव मानते हैं और आपकी सेल्फ परसेप्शन गलत है। बट अगेन यहाँ पर बात सिर्फ आपकी लुक्स की नहीं है, बट आप ओवरऑल दूसरों को अपनी तरफ कितना अट्रैक्ट कर पाते हो? ये मैटर करता है।","जब रूप, व्यक्तित्व और समग्र आकर्षण की बात आती है तो यह आश्चर्य करना आम बात है कि दूसरे लोग आपके बारे में क्या सोचते हैं। कभी-कभी असुरक्षाएं उन चीजों की आत्म-चेतना की ओर ले जाती हैं जो किसी और के लिए मायने नहीं रखती हैं। आप महसूस नहीं कर सकते हैं कि आप आकर्षक हैं, लेकिन व्यक्तिगत गुण हैं जो दूसरों को अद्वितीय, सराहनीय और यहां तक कि सेक्सी भी लग सकते हैं। सिर्फ इसलिए कि किसी ने उल्लेख नहीं किया है, इसका मतलब यह नहीं है कि आप किसी के लिए या कई लोगों के लिए वांछनीय नहीं हैं। तो, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम उन 7 संकेतों के बारे में बात करने जा रहे हैं, जो बताते हैं कि आप अपनी सोच से कहीं ज्यादा आकर्षक हैं। 📽️ हमें यूट्यूब पर ढूंढें: WWW.YOUTUBE.COM/PSYCHOLOGYINHINDI" "चाहे आप अभी एक टीनेजर हो, अपने ट्वेंटीज़ में हो या ईमेल, आप खुद एक पैरेंट हो। आपको यह समझना चाहिए कि पैरेंटिंग सबसे मुश्किल कामों में से एक है। छोटी से छोटी गलती भी एक इंसान की लाइफ को बहुत मुश्किल बना सकती है और तभी आज हम डिस्कस करेंगे की हमारे पैरंट्स की कौन सी गलतियाँ हमारी साइकोलॉजिकल ग्रोथ के लिए हम फुल होती है और ये गलतियाँ किस रूप में बाहर आती है नंबर सेवन अपने आपको दूसरे लोगों से कंपेर करना और खुद को उनसे कम समझना ये साइकोलॉजिकल प्रॉब्लम आती है लो सेल्फ एस्टीम की वजह से। जब पैरेन्ट्स अपने बच्चे को दूसरे के बच्चों से कंपेर करते हैं और उनकी अचीवमेंट्स को ज्यादा बढ़ावा देते हैं बजाए अपने बच्चे को मोटिवेट करने के या फिर वो अपने सिर्फ एक बच्चे पर ज्यादा फोकस करते है और दूसरों पर कम। इस वजह से ये बच्चा सोचता है की शायद उसका पैरेंट उसे प्यार और अटेंशन इसलिए नहीं दे रहा क्योंकि उसमें कोई कमी है और इस सोच के साथ वो काफी सेल्फ क्रिटिकल बन जाता है और चाहे वो जितना भी अचीव कर ले, उसे हमेशा यही लगता है कि वो यूज़लेस है। नंबर सिक्स दूसरों पर रिलाय करना। ये प्रॉब्लम उन लोगों में आती है जिनके पैरेन्ट्स ओवर प्रोटेक्टिव होते हैं और जो अपने बच्चों को खुद कोई काम नहीं करने देते। फ्रीडम की कमी होने की वजह से ऐसे बच्चे काफी रेस्पॉन्सिबल बन जाते हैं क्योंकि उन्हें उनके पैरंट्स ने कभी रिस्पॉन्सिबिलिटी लेना सिखाया ही नहीं होता। इस टाइप के पैरेन्ट्स खुद भी साइकोलॉजिकली अब्यूज जो होते है और जाने अनजाने में वह अपने बच्चों को भी अब यूज़ कर देते हैं। उनसे उनकी इंडिपेंडेन्स छीनकर यूज़्वली अपने बचपन में अटेन्शन और प्यार की कमी की वजह से ये पैरेन्ट्स नार्सिसिस्टिक बन जाते हैं। और इन्हीं कॉन्स्टेंट, वैलिडेशन, अटेन्शन और अपनी तारीफे चाहिए होती है। इन्हें सब कॉन्शस ली। ये पता होता है की अगर इनके बच्चे अपने पैरों पर खड़े हो गए तो वो इनसे दूर चले जाएंगे और इन्हें कॉन्स्टेंट अटेंशन नहीं मिलेंगी। इसी वजह से इस तरह की पेन्टिंग करने से एक बच्चा बड़े होने के बाद भी अपनी जिम्मेदारियों से दूर भागता है और हमेशा अपने फेल्यर के लिए दूसरों को ब्लेम करता है। नंबर फाइव ऐडिक्शन एक काफी पॉपुलर कैनेडियन फ़िज़िशन जिनका नाम गब्बर मानते हैं, उन्होंने अपनी बुक इन द रेल्म ऑफ हंगरी गोष में लिखा है कि किस तरह से ऐडिक्शन का सोर्स हमारे जीन्स या एनवायरनमेंट नहीं, बल्कि हमारा चाइल्डहुड ट्रामा होता है। उनके हिसाब से कोई भी सबस्टैन्स अपने आप में ऐक्टिव नहीं होता बल्कि वो हमारी पर्सनैलिटी होती है जो अपने खालीपन को इन चीजों से भरने की कोशिश करती है। यानी चाहे वो अल्कोहल हो, वीड या कोई। हर ड्रग हर सबस्टैन्स को जब यूज़ करा जाता है, तब वो उस ऐडिक्ट के लिए एक पेन किलर का काम करता है। ये इसलिए क्योंकि फिजिकल पेन और इमोशनल पेन दोनों से जुड़ी सफरिंग हमारे दिमाग के सम हिस्सों को ही एक्टिवेट करती है। सो जब भी कोई इंसान अपने बचपन में इमोशनल रिजेक्शन फील करता है, तब उसके दिमाग का वही पार्ट ऐक्टिवेट होता है जो तब ऐक्टिवेट होता जब उसे चाकू मारा जाता। तभी गब्बर बोलते है कि हर अडिक्शन दर्द को कम करने की कोशिश होती है। अगर पैरेन्ट्स अपने बच्चे को यह नहीं फील करा रहे कि उसके माँ बाप उसकी परवाह करते हैं तो वो बच्चा बड़े होते होते कई तरह की ऐडिक्शन डेवलप कर सकता है जो तब तक दूर नहीं होंगी जब तक वो अपने बचपन के ट्रामा को फेस नहीं करता। और उसे वैसा ही प्यार दुबारा नहीं मिल जाता। नंबर फ़ोर किसी से ढंग से बात ना कर पाना यहाँ पर हम बात कर रहे हैं कन्वर्सेशन स्किल्स की। यानी जब कई पैरंट्स अपने बच्चों के बिहाफ पर डिसिशन लेते हैं और उनकी पर ही दूसरों को जवाब देते हैं तब वो बच्चा खुद एक कन्वर्सेशन होल्ड करना नहीं सीख पाता। जैसे जब एक बच्चे से कोई इंसान उसका नाम या उसकी क्लास पूछता है और उस बच्चे की आन्सर करने से पहले ही उसके पैरेन्ट्स बिना कुछ सोचे समझे खुद आन्सर कर देते हैं। इस वजह से कई बार बच्चों का जवाब उनकी मुँह में ही अटक जाता है और वो कभी भी सेल्फ कॉन्फिडेन्स नहीं डेवलप कर पाते। यही रीज़न है की क्यों बच्चों को एनकरेज करना चाहिए कि वह अपने आन्सर्स खुद दे और एक कन्वर्सेशन में पार्टिसिपेट करना सीखे है। नंबर थ्री हर समय गिल्टी और शेमफुल महसूस करना ये साइकोलॉजिकल प्रॉब्लम डेवलप होती है। जब पैरेन्ट्स अपने बच्चे के दिमाग में ये बात डाल देते हैं कि उन्होंने कितने सैक्रिफ़ाइस इस करें है और उसके बावजूद भी उनका बच्चा ढंग से बिहेव नहीं कर रहा। इस तरह से किसी बच्चे को डांटते हुए ये बोलना की आपने उसके लिए बहुत कुछ करा है पर फिर भी वो गुडइनफ नहीं है। ये सुनकर बच्चे का दिमाग और माँ बाप की इस इस के बोझ से भर जाता है। वो बच्चा सोचने लगता है कि वो दुनिया की कोई भी अच्छी चीज़ डिज़र्व नहीं करता और उसके माँ बाप उसे इसलिए अप्रिशिएट नहीं करते क्योंकि वो एक फेल्यर है। इसलिए बच्चों को मोटिवेट करने के लिए समय या गिल्ट को यूज़ करना गलत है। इसके बजाय उन्हें दोबारा कोशिश करने के लिए एनकरेज करना और अपनी गलतियों से कैसे सीखना है ये समझाना चाहिए। नंबर टू कभी भी रिलैक्स ना कर पाना आई ऐम शुर आप में से बहुत सारे लोग इस प्रॉब्लम से रिलेट कर पाओगे क्योंकि ज्यादातर पैरंट्स अपने बच्चों को काफी छोटी उम्र में ही ये बोलना स्टार्ट कर देते हैं कि वो अपना टाइम वेस्ट कर रहे हैं या फिर खेलने में ज्यादा दिमाग लगा रहे हैं और पढ़ाई में कम बच्चों को टाइम से पहले ये बोल दिया जाता है कि उन्हें अपना बचपना कम कर देना चाहिए और यही बच्चे बड़े होने पर इनमें चोर और आलसी लोगों को हिट करते हैं और खुद को आराम करने से रोकते हैं इवन। अगर वो ज़रा सा आलस भी फील करते हैं तो उनके अंदर गिल्ट इतना बढ़ जाता है। की उन्हें फिर से अपने आप को किसी काम में बिज़ी करना पड़ता है ताकि वो यूज़लेस ना फील करे। नंबर वन अपने ऑपोजिट जेन्डर पैरेंट जैसा पार्टनर ढूंढना। रिसर्चर्स ने ये पैटर्न कई जानवरों की स्पीसीज़ में देखा है जिसमें कई तरह की बर्ड ज़ फिशेस और मैं ऐसे मीट्स प्रिफर करते हैं जो उनके पैरेन्ट्स के जैसे होते है। हाउएवर ये फ्रॉड के ऐड़ी पास कॉम्प्लेक्स के कॉन्सेप्ट से थोड़ा अलग है, क्योंकि फ्रॉड का मानना था कि हमारे अंदर बचपन से ही अपने पैरेन्ट्स के लिए एक सरप्राइज़ ज़िक्र होती है। पर एक्चुअल रिसर्च बताती है कि ये बिहेव्यर तब डेवलप होता है जब एक इंसान को बचपन में इन कॉन्स्टेंट ली अटेन्शन दी जाती है। यानी कभी एक पैरेंट आपको प्यार करता है, आपको अपने बारे में अच्छा महसूस कराता है और दूसरे ही पल वो गायब हो जाता है या फिर आप को डांटने लग जाता है। इस तरह की अटैचमेंट एक बच्चे को हर समय अपने उस पैरेट की वैलिडेशन लेने के लिए बोलती है। इवन बड़े होने के बाद भी ये बच्चे सिर्फ एक तरह के अटैचमेंट स्टाइल से ही फैमिलियर होते हैं यानी अपने पैरेंट की वैलिडेशन लेने से यही रीज़न है की क्यों इस तरह के ट्रॉमा टाइस लोग अपने पैरेन्ट्स जैसे पार्टनर्स को ढूंढ़ते हैं ताकि वो ये फील्ड उपाय की। फाइनली उन्हें अपने पैरेंट का मिसिंग प्यार मिल गया है।","इसमें कोई संदेह नहीं है कि बच्चे के विकास में माता-पिता महत्वपूर्ण व्यक्ति होते हैं। हम जानते हैं कि परिवार से संबंधित शुरुआती अनुभवों का बच्चों पर गहरा और दीर्घकालिक प्रभाव पड़ता है - जिनमें से कई सकारात्मक होते हैं। हालाँकि, प्रतिकूल बचपन के अनुभव नुकसान या परेशानी का कारण बन सकते हैं और कुछ हद तक बच्चे के शारीरिक और/या मनोवैज्ञानिक विकास को बाधित कर सकते हैं। इसलिए इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम बचपन के आघात के कारण होने वाली 7 ऐसी समस्याओं पर चर्चा करते हैं। 📽️यूट्यूब पर हमें खोजें: WWW.YOUTUBE.COM/PSYCHOLOGYINHINDI" "हम पॉज़िटिव थिंकिंग और पॉज़िटिव स्पीच पर इतना ज्यादा ध्यान देते हैं क्योंकि जो भी इंसान नेगेटिव सोचता रहता है वह कभी भी सक्सेस हासिल करना तो दूर वह तो अपने अंदर एक लंबे समय तक मोटिवेशन भी मेनटेन नहीं रख सकता। लेकिन जैसे हमने अपने ये वाले एपिसोड में भी डिस्कस कर रहा था कि हर बुरी चीज़ के में एक अच्छी चीज़ होती है और हर अच्छी चीज़ में बुरी चीज़ तो जब हम पॉजिटिविटी को भी एक्सेस में प्रोमोट करते हैं तो वो पॉजिटिविटी, नेगेटिविटी और टॉक्सिसिटी में कन्वर्ट हो जाती है और टॉक्सिक ली पॉज़िटिव। लोग आपके सर्कल में भी हो सकते हैं और ऑनलाइन भी जो लोगों को अपने कन्टेन्ट से इन्फ्लुयेन्स करते हैं। इन लोगों के चेहरों पर हमेशा एक स्माइल रहती हैं और इनकी बातों में हद से ज्यादा ऑप्टिमिजम इवन जब ये किसी को दिलासा भी दे रहे होते हैं तो किसी के अंदर होप जगाने और उन्हें स्ट्रांग फील कराने के बजाय यह उन्हें मीनिंग लेस पॉजिटिविटी देने लगते हैं कि सब ठीक हो जाएगा और बस पॉज़िटिव सोचो। इतने पॉज़िटिव लोगों के लिए लाइफ की 99% प्रॉब्लम का सल्यूशन पॉजिटिविटी ही है और इसका मतलब यह नहीं है कि एक ऑप्टिमिस्टिक आउटलुक रखना या फिर अपने चाहने वालों को पॉज़िटिव सोचने की एडवाइस देना गलत है और चाहे एक ऐसा इंसान आपके सर्कल में हो या फिर एक इंटरनेट पर्सनैलिटी हो पॉजिटिविटी यूज़्वली एक सिनसिअर जगह से ही आ रही होती है, लेकिन जब एक इंसान एक्स्ट्रीम में जाकर पॉजिटिविटी पीच करने की ऐडिक्शन डेवलप कर लेता है, तब वो जाने अनजाने में रिऐलिटी के आधे हिस्से को इग्नोर कर देता है। पॉजिटिविटी सीधा सीधा नेगेटिविटी को रिजेक्ट करने की प्रैक्टिस है। लेकिन अगर हम ग्रो करना चाहते हैं तो ग्रोथ हमेशा फॉलो करती हैं उन चीजों को जिनपर हम नेगेटिव लेबल्स लगाते हैं, जैसे सैक्रिफ़ाइस करना, अकेले रहकर अपने काम पर फोकस करना और उन चीजों को फेस करना जिनसे आप डरते हो। नेगेटिव और मुश्किल सर्कमस्टान्सेस की ये इम्पोर्टेन्स हमने अपने सेकंड चैनल स्कूल ऑफ विज़्डम के एपिसोड हाउ टू गो डाउन में भी डिस्कस करी है की कैसे? अगर हम ग्रो अप करना चाहते हैं तो पहले हमें ग्रोथ डाउन करना पड़ेगा और अपनी साइकोलॉजिकल ग्रोथ को बढ़ाने के लिए अपनी साइकोलॉजिकल रूट्स को डार्कनेस में भेजना होगा। बिना नेगेटिविटी डेन्जर या डार्कनेस को पॉजिटिविटी के लेवल पर रखे हम एक पॉइंट के बाद ग्रो करना बंद कर देंगे और अगर कोई इंसान नेगेटिविटी को बिल्कुल भी टॉलरेट नहीं करता तो वह इस वजह से कम नहीं बल्कि ज्यादा सफर करेगा क्योंकि दुनिया सिर्फ पॉज़िटिव ली काम नहीं करती और ना ही हर चीज़ आपको अच्छा फील कराएगी। बल्कि इस दुनिया में अच्छाई और बुराइ दोनों है। उससे कभी आपको पॉज़िटिव होने का रीज़न मिलेगा और कभी आपको अपने बुरे सर्कम्स्टैन्सज़ के बारे में सोचने और उनसे कुछ सीखने का मौका मिलेगा। साइकोलॉजिकल लॉ बोलता है की हर वो चीज़ जिसे हम नेगेटिव या यूज़लेस बोलकर रिजेक्ट कर देते है वो एकदम से हमारे एक्सपिरियंस से गायब नहीं हो जाती बल्कि वो एक डार्क रूप लेकर वापस आती है और हमें अनकॉन्शियस फोर्स के थ्रू कंट्रोल करने लगती है। यही रीज़न है की क्यों वही सहमे लोग जो इतनी ज्यादा पॉजिटिविटी प्रीच करते हैं। कई बार वह अपने कलेक्टर से बाहर निकलकर चीखने चिल्लाने और गुस्सा करने लग जाते हैं और बाद में दुबारा से गिलटी और रिग्रेट फुल महसूस करते हैं, जिससे यही एन घर या शेम उन्हें और ज्यादा कंट्रोल करने लगते हैं। ऐसा इंसान हमेशा एक खुशी का मास्क पहनने के चक्कर में अपनी सारी डेथ खो देता है और पैराडॉक्सिकल ली नेगेटिविटी का ही गुलाम बन जाता है। हाउएवर अगर हम चाहे तो हम इस एक्स्ट्रीम और टॉक्सिक पॉजिटिविटी को खींचकर सेंटर और रिऐलिटी के पास ला सकते हैं। हर सिचुएशन में हैपिनेस को फोर्स करने के बजाय एक सिचुएशन के नेगेटिव ऐस्पेक्ट उसको एक्सेप्ट करने से इसके बाद उसे ऑप्टिमिस्टिक ली। हैंडल करने के लिए भी जगह छोड़ने से हेल्थी और पॉजिटिविटी में यही डिफरेन्स होता है। यहाँ टॉक्सिक पॉजिटिविटी नेगेटिविटी का रिजेक्शन है। वहीं हेल्थी पॉजिटिविटी, नेगेटिविटी और पॉजिटिविटी दोनों को ही एक्सेप्ट करती है ताकि आप रिऐलिटी को आस इट इस देख पाओ, बजाए उसे शुगर कोट करने के बिना इस बैलेंस के हम अपनी चुनौतियों से लड़ ही नहीं पाएंगे और अपने आप को हिम्मत देने के बजाय झूठा कम्फर्ट दे रहे होंगे। जीस तरह से एक प्रेशर कुकर में इस टीम के ज्यादा बढ़ने पर दबाव की वजह से वो ऐनुअली या तो धीरे धीरे बाहर निकल जाती है या फिर कुकर फट जाता है। बिल्कुल इसी तरह अगर हम अपनी नेगेटिव साइड को दबाते रहेंगे तो हमारी लाइफ में कई इन्सिडेन्स कैसे आएँगे जब हम अपनी इस डार्कनेस के प्रेशर को कंट्रोल नहीं कर पाएंगे और एकदम से अपनी सबसे डार्क और ऐनिमल इस टिक साइड को सबके आगे रख देंगे। इसलिए टॉक्सिक पॉजिटिविटी का मास्क पहनने और रिऐलिटी की पर्सेप्शन को इतना मीठा बनाने के बजाय उस की कड़वाहट को भी अकाउंट मिलों और हर समय खुश रहने पर नहीं बल्कि लाइफ को मीनिंगफुल बनाने पर फोकस करो ताकि आप अपनी लाइफ में अच्छा ई और बुरा ई दोनों को हैंडल करना सीख पाओ।","टॉक्सिक पॉज़िटिविटी से तात्पर्य इस विश्वास और प्रचार से है कि हर कठिन परिस्थिति में अत्यधिक सकारात्मकता आपको इससे बाहर निकाल देगी। यह सकारात्मक सोच का जुनून है, जो व्यक्ति को अपने अंदर और बाहर के अंधेरे के प्रति अंधा बना देता है। वास्तविकता का यह आंशिक दृष्टिकोण न केवल इस विचार का प्रचार करने वाले के लिए बल्कि उन लोगों के लिए भी विषैला है जिनके साथ वह इस पर चर्चा कर रहा है। तो, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम इस टॉक्सिक में गहराई से जाएंगे और समझेंगे कि क्यों और कैसे लोग इतने टॉक्सिक पॉज़िटिव हो जाते हैं।" "साइंस के हिसाब से एक इंसान कितना ****** है, यह बताता है कि उसको री प्रड्यूस करने और अपने जीन्स को अगली जेनरेशन में ले जाने की कितनी ऑपर्च्युनिटीज मिलेंगी। डार्विन की सेक्शुअल सेलेक्शन की थ्योरी बोलती है कि पास्ट में जब एक जेंडर ने लगातार दूसरे जेंडर के कई स्पेसिफिक ट्रेड्स को ही चुना तो जिन लोगों के पास वो ट्रेड्स थे, सिर्फ उन्हीं को रीप्रोडक्शन के ज्यादा चान्सेस मिलते थे और इस तरह से जानवरों से लेकर इंसानों तक हर जीव में कई ऐसी क्वालिटीज उभर कर आईं जिन्हें उस चीज़ के लोग ज्यादा अट्रैक्टिव और सेक्शुअल हेल्थ के साइन समझते हैं। एग्जाम्पल के तौर पर कई मेल पी कॉक्स में अपने फेदर्स को बहुत ज्यादा बड़ा और भारी बनाने की काबिलियत होती है। जस्ट बिकॉज़ टाइम के साथ साथ फीमेल पी कॉक्स ने इस तरह के फेदर्स को ज्यादा अट्रैक्टिव समझकर इसी तरह के पीकॉक से मेड करा था। ऐसा इसलिए क्योंकि एक पीकॉक के लिए पंख बनाने और उन्हें कैर्री करने में उसकी बहुत ज्यादा एनर्जी लगती है, जिसकी वजह से ज्यादा भार उठा पाने वाले पीकॉक को ज्यादा हेल्थी और अट्रैक्टिव माना जाता है। इसी तरह इंसानों में भी चाहे वो एक इंसान की ब्यूटी हो या फिर जीस चीज़ को हम सेक्सीनेस बोलते हैं। ये चीजे उसकी हेल्थ और फर्टिलिटी को दर्शाती है। हाउएवर इंसान जानवरों के जीतने सिंपल नहीं होते हैं और हम सिर्फ दूसरों की फिजिकल क्वालिटीज को ही नहीं बल्कि कई दूसरी क्वालिटीज को भी उनकी सेक्सीनेस मेजर करने के लिए यूज़ करते है। इसलिए इस एपिसोड में हम उन पेरेंट्स की बात करेंगे जो एक इंसान को ****** बनाते है। नंबर वन सेंस ऑफ ह्यूमर ये क्वालिटी स्पेशल ईमेल्स को फीमेल्स की नजर में काफी ****** बनाती है। जस्ट बिकॉज़ एक अच्छा सेंस ऑफ ह्यूमर होना एक इंसान की इन्टेलिजेन्स को दर्शाता है। और क्योंकि ये ट्रेड भी जीन्स के थ्रू पास ऑन करा जा सकता है। फीमेल्स बचपन से ही वाइड होती है, ऐसे मेल्स की तरफ अटेंशन पे करने के लिए जो उन्हें हंसा सकें। ऐसा इसलिए भी हो सकता है क्योंकि अच्छा सेंस ऑफ ह्यूमर रखने वाले मेल्स यूज़्वली लाइफ में ज्यादा सक्सेसफुल भी बनते हैं और उनके कॉन्टैक्ट्स भी ज्यादा होते है। नंबर टू बॉडी सिमेट्री जहाँ ब्यूटी सिर्फ एस की सिमेट्री पर ही रुक जाती है, वहीं सेक्सीनेस एक इंसान की बॉडी की सिमेट्री पर डिपेंड करती है। यानी एक इंसान के शरीर की लेफ्ट साइड। उसकी राइट साइड से कितनी मिलती जुलती है? अगर आपकी एक काम लैग, हिप, चेस्ट या थाई दूसरी साइट की शेप और साइज से अलग है तो यह डिफरेन्स आपकी सेक्सीनेस को कम करता है। जस्ट बिकॉज़ सिमेट्री एक इंसान की हेल्थ और उसके जीन्स की क्वालिटी का बहुत अच्छा इंडिकेटर होता है। क्योंकि जिन लोगों की इम्युनिटी उतनी स्ट्रॉन्ग नहीं होती उन्हें बीमारियाँ बहुत आसानी से हो जाती है। अगर उनका बैठने, लेटने या खड़े होने का पॉस्चर अच्छा नहीं है, तो इससे उन्हें कई फिजिकल और मेंटल हेल्थ प्रॉब्लम्स हो सकती है। और इसी तरह से अलग अलग फैक्टर्स एक इंसान की बॉडी सिमेट्री को खराब करके उनकी पुअर हेल्थ को इंडिकेट करते हैं। टॉप मॉडल स्टॉप तक क्यूँ पहुंचते हैं? इसके पीछे का एक बड़ा रीज़न उनकी पर्सनैलिटी और कॉन्टैक्ट्स के अलावा उनकी सिमेट्री ही होती है, क्योंकि रनवे पर आपकी किसी भी तरह की ए सिमेट्री या फिर बॉडी अलाइनमेंट की प्रॉब्लम्स हर चीज़ बहुत आसानी से लोगों की नजर में आ जाती है और सिर्फ उन मॉडल्स की वॉक को ही ज्यादा प्रेस करा जाता है जो एक प्रॉपर हेल्थ स्टैंडर्ड को रिप्रेजेंट करते हैं। यह बात भी ध्यान देने लायक है। स्टैन्डर्ड ब्यूटी या फिर ****** नर्स के नहीं बल्कि हेल्थ और जीन क्वालिटी के होते हैं और उन्हें हम चाहकर भी नहीं बदल सकते हैं। जिन क्वालिटीज को हम इतने 100 और हजारों सालों से ****** या फिर ब्यूटीफुल मानते आए हैं, वहीं क्वालिटीज आगे भी चलेंगी। और हम सब कॉन्शस ली लोगों की हेल्थ का अंदाजा इन्हीं गिनी चुनी क्वालिटीज के बेसिस पर लगाएंगे नंबर थ्री इंडिविजुअलिटी जहाँ ब्यूटी और क्यूटनेस फिर भी थोड़े जुवेनाइल ट्रेड्स होते हैं और ये चीजें हम सिर्फ यंग लोगो में ही ढूंढ़ते हैं, वहीं सेक्सीनेस थोड़ी मेच्युर क्वालिटी होती है। इसी वजह से जो लोग इन डिड यू ए टेड और इन्डिपेन्डेन्ट होते हैं वो हमें उन लोगों के कंपैरिजन में ज्यादा ****** लगते हैं, जो बाकी लोगों की तरह ही बात करते सोचते या उन्हीं के जैसे जीते हैं। इंडिविजुअलिटी को हम यूनीक्नेस भी बोल सकते है जिससे अब तक एक इंसान खुद को दूसरे इंसानों से डिफ्रेंशीएट करके खुद की यूनीक्नेस दिखाता है। इतना कोई दूसरा जानवर नहीं कर सकता। हम सब की शकल अलग है और हम दीप इनसाइड हर इंसान और इवन खुद से भी यही एक्सपेक्ट करते हैं कि हम इस दुनिया में कुछ यूनिक कॉन्ट्रिब्यूशन दे पाए। इसलिए अगर आप दूसरों की नजरों में ज्यादा ****** बनना चाहते हो तो अपने उन टैलेंट या फिर क्वालिटीज को बाहर लाओ जो आपको दुनिया में मौजूद हर दूसरे इंसान से अलग बनाती है। नंबर फ़ोर बॉडी रेशियो वो जहाँ एक मेल के लिए शोल्डर टू वेस्ट रेश्यो काफी मायने रखती है, वहीं एक फीमेल के लिए हिप टू वेस्ट रेश्यो उनको ज्यादा अट्रैक्टिव या फिर अन्य अट्रैक्टिव बनाती है। ये रेशों इस हमारे ***** हॉर्मोन्स के बेसिस पर बनती है यानी जिन मेल्स की बॉडी में हेल्थी अमाउंट में टेस्टॉस्टोरोन बना रहा होता है, उनके शोल्डर्स ब्रॉड होते हैं और वेस्ट छोटी इससे यह पता चलता है कि एक मेल की अपर बॉडी में कितनी स्ट्रेंथ है और वो कितना फर्टाइल है जबकि जिन फीमेल्स की बॉडी में हेल्थी अमाउंट में ऐस्ट्रोजन बन रहा होता है, उनके हिप्स वाइड होते हैं और वेस्ट स्मॉल। इससे भी यही पता चलता है कि एक फीमेल कितनी फर्टाइल है। जस्ट बिकॉज़ वाइड हिप्स ये इन्शुर करते हैं कि बर्थ गिविंग का प्रोसेसर आसान हो और बच्चा एकदम हेल्दी पैदा हो। इसके साथ ही जिन लोगों में यह आइडियल बॉडी रेशो होती है, उन्हें हर डिसीस डाइअबीटीज़ या कैंसर जैसी बीमारियां भी कम होती है। नंबर फाइव इंटेग्रिटी। ये एक ऐसा ट्रेड है जिसे बहुत से मॉडल लोग भूल ही गए हैं, लेकिन यह सिर्फ आपको ज्यादा डिज़ैर एबल बनने में ही नहीं बल्कि आपको दूसरों की रिस्पेक्ट दिलाने में भी मदद करता है। यानी अगर आप झूठ नहीं बोलते, लोगों को चीट नहीं करते, खुद की लाइफ की रिस्पॉन्सिबिलिटी लेते हो, हर तरह के इंसान से अच्छे से बात करते हो और आप मेंटली टफ होने के बावजूद काइन्ड भी हो तो इससे आपके करेक्टर के बारे में बहुत कुछ पता लगता है और इस तरह का स्ट्रांग करेक्टर दूसरों को बहुत ही ****** लगता है। जस्ट बिकॉज़ वो आपके ऊपर विश्वास कर सकते हैं। और आपकी इतनी डेथ आपके अंदर मौजूद विज़्डम और दुनिया की अन्डरस्टैन्डिंग को इंडिकेट करती है। इसके साथ ही करेक्टर, इंटेग्रिटी, फिजिकल अपीयरेंस से ज्यादा सुपिरिअर होता है, क्योंकि ये हमारी बॉडी की तरह समय के साथ अपनी ताकत खो नहीं देता, बल्कि जो इंसान अभी इतना वाइज है चान्सेस है कि वो कई सालों बाद और ज्यादा वाइज बन जाएगा। नंबर सिक्स फेरोमोन्स आपकी जेनेटिक प्रोफाइल, आपकी डाइट, आपका फिटनेस लेवल और आपकी ओवरऑल हेल्थ यह सारी चीजे ही साथ मिलकर आपकी बॉडी की स्मेल को इन्फ्लुयेन्स करती है। एक्स्पेन्सिव परफ्यूम्स का पर्पस भी बस अच्छे जीन्स की स्मेल को मिमिक करना होता है। यानी अगर आप एक ट्राइड और टेस्टेड क्लासिक पर्फ्यूम को यूज़ करते हो, जिसपर हमेशा ही सब को कॉम्प्लिमेंट्स मिलते हैं तो उस समय आप बेसिकली एक आर्टिफिशियल तरीके से लोगों को ऐसा फील करा रहे होते हो जैसे आपकी जीन्स की क्वालिटी बहुत अच्छी है और आप भी बहुत हेल्थी हो। इसी वजह से कई पर्फ्यूम ****** होते है। जस्ट बिकॉज़ वो हमारे नैचरल फेरोमोन्स की तरह स्मेल करते हैं। जबकि सस्ते परफ्यूम्स सीधा सीधा केमिकल के जैसे स्मेल करते हैं। जितना ज्यादा एक परफ्यूम नैचरल स्मेल करता है। उतना ही वो एक्स्पेन्सिव और पॉपुलर होता है। इसलिए अगर आप अपनी स्मेल के थ्रू भी ज्यादा ****** बनना चाहते हो तो या तो अपनी डाइट को अच्छा करके, एक्सरसाइज करके और अपने हाइजिन पर ध्यान देकर अपनी नैचरल बॉडी ओडोर को इम्प्रूव करो या फिर आप चीटिंग करके और एक शॉर्टकट लेकर ऑल टाइम क्लासिकल परफ्युम्स का सहारा ले सकते हो। नंबर से वन यू लीव डेनजरस ली जो भी इंसान लाइफ में बहुत ही सेफ खेलता है वो खुद भी मौत का शिष्य होता है और उसे तारीफ भी सिर्फ उन्हीं लोगों से मिलती है जो खुद आधे मरे हुए होते हैं। कम्फर्ट का पीछा करना मौत को इन्वाइट करने का सबसे आसान रास्ता होता है बिना डेनजरस लीजिए और खुद की लिमिट्स को तोड़े आप लाइफ और डेथ को एक साथ एक्सपिरियंस कर ही नहीं सकते हैं और यह ही लोगों को दूसरों की नजरों में आम और अन्य ट्रैक्टर बनाती है। जबकि जो इंसान हमेशा ही आज पर रहता है वो जिंदगी का रस पूरी तरह से चक पाता है। जस्ट बिकॉज़ वो मौत से नहीं डरता ऑफिस या फिर घर की सेफ्टी, मैं तो बस कायर ही रहते है जो बाहर जाकर जिंदगी जीने से डरते हैं। याद रखो जिंदगी और मौत सिर्फ आपकी लिमिटेड सोच की वजह से ही एक दूसरे से अलग लगते हैं जबकि असलियत में मौत एग्ज़िट ही नहीं करती। लाइफ और डेथ सम है लेकिन यह सच आपके लॉजिक की बाउंड्रीज़ मैं नहीं समझ सकता। जर्मन फिलॉसफर फ्रेड्रिक नीचा बोलते है कि मेरा विश्वास करो तुम्हें जिंदगी में हाइएस्ट फुलफिलमेंट और सबसे ज्यादा खुशी सिर्फ तभी मिले गी जब तुम डेंजरसली जीना शुरू करोगे। ज्यादातर लोग एक ***** जिंदगी जीते हैं और जिंदगी के पकने से पहले ही मर भी जाते हैं। लेकिन जब आप इस माइंडसेट में आ जाते हो, तब आप दूसरों की नजरों में सिर्फ अट्रैक्टिव ही नहीं, बल्कि आप उनके लिए एक हीरो और एक इनस्पिरेशन बन जाते हो, जिसे देखकर वो भी खुलकर जीने का मतलब सीख पाते हैं।","विज्ञान के अनुसार, किसी की कामुकता किसी के जीन की गुणवत्ता की भविष्यवाणी करती है और अगली पीढ़ी को उनके पारित होने की कितनी संभावना है। खूबसूरती हो या कामुकता, ये बातें इंसान के स्वास्थ्य की ओर इशारा करती हैं। हालाँकि, लोकप्रिय दृष्टिकोण के विपरीत, कामुकता केवल शारीरिक नहीं है। बल्कि कुछ गुण ऐसे होते हैं जो किसी व्यक्ति की शारीरिक प्रकृति से परे जाकर उनके कामुकता के स्तर को बढ़ा देते हैं। तो, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम कुछ बुनियादी भौतिक गुणों पर चर्चा करेंगे और फिर कुछ कम चर्चित चरित्र आधारित गुणों के बारे में जो एक व्यक्ति को सेक्सी बनाते हैं।" "हर इंसान के अंदर किसी न किसी तरह की रेस्क्यू फैन्टैसी होती है। यानी जब एक इंसान किसी ऐसे पार्टनर को ढूंढने में एक अननैचरल इंटरेस्ट दिखाता है, जो दुखी और टॉम एट इस हैं। ओये फैन्टैसी एक हद तक फीमेल्स में भी होती है, जो एक बैड बॉय को रेस्क्यू करने को फैंसी साइंस करती है। लेकिन ये चीज़ सबसे ज्यादा मेल्स के बीच कॉमन होती है, जो एक मुश्किल वक्त से गुजर रही फीमेल से सबसे ज्यादा अट्रैक्ट होते हैं। दोनों ही केसेस में यह फैंटसी एक बायोलॉजिकल लेवल से निकल कर आ रही होती है। फीमेल्स एक बैड बॉय को इसलिए सेव करना चाहती है क्योंकि उस लड़के मैं ऑलरेडी आँधी, वो क्वालिटीज मौजूद है जो एक लड़की एक लड़के में डिज़ाइनर करती है यानी वो बुराइ से अच्छे से वाकिफ है और वो दुनिया में मौजूद जीवन को हैंडल करना जानता है। उसमें बस कमी है। थोड़ी काइंडनेस और प्यार की इस तरह से बुराइ की समझ और काइंडनेस को कंबाइन करवाके फीमेल्स एक बैड बॉय को एक आइडियल मैन बनाने की फैंटसी देखती है। सही समय पर अग्रेशन और सही समय पर दया दिखा पाना, ये बैंलेंस ही फीमेल्स को एक ऐसे मिलकर दीवाना बना देता है। कई बार कोई फीमेल, किसी ऐग्रेसिव मेल को बैलेंस में लाकर अपनी फैंटसी को पूरा कर पाती हैं। लेकिन कई बार वो फीमेल्स जो एक अनहेलथी एनवायरनमेंट में बढ़ी हुई थी, वो एक टॉक्सिक इंसान के साथ फंस जाती है, जिसे बदलना ऑलमोस्ट इम्पॉसिबल होता है। दूसरी तरफ एक मेल किसी डिप्रेस्ड या ट्रॉमा टाइस फीमेल को इसलिए रेस्क्यू करने के लिए फैंसी साइंस करता है क्योंकि वो खुद घायल होता है और वो अपने आप को हील करने के बजाए अपने पेन को दूसरों पर प्रोजेक्ट करता है। प्रॉब्लम किसी की हेल्प करने में नहीं है, लेकिन जब आप अट्रैक्ट ही ऐसे लोगों से होते हो जो एक कुएं में गिरे हुए होते हैं और आप सोचते हो कि आपको उनको बाहर निकाल कर एक सुपर हीरो की तरह ट्रीट कर आ जाएगा। तो ये चीज़ आपके वर्ल्डव्यू को धुंधला बना देती है और आप सिर्फ दुनिया में मौजूद दुख को ही देख पाते हो और दुख को ही ज्यादा महत्त्व देते हो। कई बार तो ये भी होता है कि एक ट्रॉमा टाइस इंसान जो आप से पहले अट्रैक्टेड था, वो हील होने के बाद आपके लिए सारी अट्रैक्शन खो देता है क्योंकि तब वो होल बन जाता है। लेकिन आप इन्कम्प्लीट के इन्कम्प्लीट ही रहते हो और दूसरों में अपनी खुशी ढूंढ़ते रहते हो। दुख से लड़ने का यही नतीजा होता है क्योंकि दुनिया में दुख की तो कोई कमी नहीं है जिससे आप खुशी की रौशनी फैलाने के बजाय दुख के अंधेरे में ही हाथ पैर चलाते हुए खुद को घायल कर लेते हो। यहाँ यह भी समझो कि दुख भी अपने आप में बुरा नहीं है बल्कि सैडनेस तो एक बहुत ब्यूटीफुल ह्यूमन इमोशन है और तभी हमें दूसरों की सैड स्टोरीज़ और इवन सैड सॉन्ग अपनी तरफ इतना अट्रैक्ट करते हैं। एक मूवी में जब किसी करेक्टर का दिल टूटता है तब थोड़ा दर्द हमें भी होता है लेकिन उसके साथ हम उस इमोशन की ब्यूटी को भी इक्स्पिरीयन्स कर पाते हैं क्योंकि वो मूवी दुख के आसपास एक फ्रेम लगाकर ये बोल रही होती है कि देखो इंसान कितनी दीप और सुन्दर होते हैं। स्क्रीन पर इंसानियत से जुड़ी खूबसूरती को देखकर हम भी उसी खूबसूरती को अपने अंदर फील कर पाते हैं जब हमारा फेवरेट ऐथ्लीट या स्पोर्ट्स टीम जीतती है तब एक लेवल पर हमें ऐसा लगता है जैसे हम ही जीते हो। बिल्कुल ऐसी ही फीलिंग के पीछे वो इंसान भाग रहा होता है जो अनकॉन्शियस ली ट्रॉमा टाइस लोगों की तरफ खींचा चला जाता है। वह ये एक्सपेक्ट करता है कि अगर वो उस इंसान को फिक्स कर लें तो शायद उसका रिलीफ वो अपने अंदर भी महसूस कर पाए। पर ऑफकोर्स जिसतरह से आपकी फेवरेट टीम का जीतना एक्चुअल में आपका जितना नहीं होता। वैसे ही दूसरे इंसान की हीलिंग डाइरेक्टली आपकी हीलिंग मैं ट्रांसलेट नहीं होती। जो भी अट्रैक्शन सिर्फ और सिर्फ दूसरे की थी के बेसिस पर होती है वो बस अट्रैक्शन ही होती है। प्यार नहीं, वल्नरेबल हो पाना बस प्यार को अंदर आने देने का दरवाज़ा होता है। जब हम किसी इंसान को उनके सबसे वल्नरेबल यानी कमजोर और असुरक्षित मूवमेंट पर देखते हैं तब हमें उन पर दया और प्यार आता है। लेकिन अगर हमारा गोल ही ये बन जाए कि हमें लोगों को उनके सबसे असुरक्षित मूवमेंट पर ढूंढना है तो यह है प्रॉबलेम। इसके बजाय हमारा गोल होना चाहिए। खुद को टाइम टु टाइम ढीला छोड़ कर अपने अंदर जाना और खुद की चोटों पर मरहम लगाना। क्योंकि रेस्क्यू फैन्टैसी एक अनकॉन्शियस लेवल पर खुद को हील करने की चाह है। हम दूसरे लोगों में तो बहुत जल्दी ही पकड़ लेते हैं कि वो कितने अनहैप्पी ऑनफील्ड बहुत ही ज्यादा अग्रेसिव या फिर बहुत ही ज्यादा पैसिव है। लेकिन जब बात हमारी खुद की कमियों और इम्बैलेंसेस की आती है तब हमें कोई आइडिया ही नहीं होता कि हम कहाँ से शुरुआत करें और अपने कौन से बिहेविरल पैटर्न को ठीक करें। हर मेजर साइको बायोलॉजिकल प्रॉब्लम की तरह रेस्क्यू फैंटसीज़ का जन्म भी हमारे चाइल्डहुड एक्सपीरियंस से ही होता है, क्योंकि जब एक बच्चे को अपने आप को खुलकर एक्सप्रेस नहीं करने दिया जाता या फिर वो जब रोता है तो उसके पैरंट्स उससे बात करना कम कर देते हैं और उस्से पनिश करते हैं, तो वो बच्चा खुद के इमोशन्स और खुद के इशूज को अटेंड करना ही बंद कर देता है। उसकी प्रॉब्लम्स अंदर ही अंदर कट्टी होती रहती है, लेकिन सारी प्रॉब्लम्स अनकॉन्शस माइंड में रखने की वजह से उसका माइंड उन्हें सॉल्व करने की अपनी इस अर्ज को भारी दुनिया और दूसरे इंसानों में ढूंढने लगता है। हम बाहर से तो खुद को बहुत स्ट्रॉन्ग और इंडिपेंडेंट दिखाते हैं। लेकिन अंदर से हम उतने ही इनसेक्युर लोनली और ऐसा फील करने वाले हैं जैसे हम एक कैदखाने में बंद है। हमें सख्त और मतलब ही बनने का इतना स्ट्रॉन्ग रीज़न दे दिया जाता है कि जब भी कोई इंसान हमे थोड़ा खुलने और अपनी वल्नरेबल साइट को बाहर लाने के लिए बोलता है तब भी हम इसी डर से खोल नहीं पाते कि अगर हमने इस इंसान के आगे ज़रा सी भी अपनी वीकनेस दिखा दी तो पास्ट अपने आप को रिपीट करेगा और यह इंसान भी हमें वैसे ही धोखा देगा जैसे हमें बचपन में मिला था। इसलिए हमे दूसरे इंसान को बचाना खुद को बचाने का सबसे सेफ रास्ता लगता है। क्योंकि ऐसे हमें अपनी कमियों को भी खुले में नहीं रखना पड़ता। हमें पास्ट की अपनी हर दुखद मेमोरी को फिर से एक्सपिरियंस नहीं करना पड़ता और हमें यह डर भी नहीं होता कि कोई इंसान हमारे ट रोमांस को देखकर हमें छोड़कर चला जाएगा। लेकिन हीलिंग का एक रूल होता है कि इसमें कोई शॉर्टकट्स काम नहीं करते हैं। हमें खुद ही अपने ऊपर काम करना होता है। खुद ही अपने अंदर जाना होता है और खुद ही अपने सड़ते हुए हिस्सों को मरने देना होता है ताकि हम ग्रो कर सके। दूसरों की मदद करने में अच्छा ही तो है, लेकिन इससे भी ज्यादा हीरो एक काम है। खुद की मदद करना और खुद को मास्टर करना। आपकी कमियां और फिर उन कमियों को ओवर कम करने की आपकी जर्नी ही आपको एक इंसान बनाती है। खुद को इस पॉइंट तक ऊपर उठाना कि आप खुद की ईगो से डिटैच हो सको। ये आपका असली मिशन होना चाहिए। दुनिया की सारी प्रॉब्लम्स बहुत हद तक छोटी और एफर्टलेस लगने लगती है, जब आप खुद की प्रॉब्लम से डील कर चूके होते हो, जिससे इंसान ने खुद को ही नहीं करा होता, उसे पूरी दुनिया ही ट्रॉमा टाइल्स लगती है और जो इंसान खुद को प्यार नहीं करता, उसे भी ऐसे ही पूरी दुनिया में सिर्फ हेट दिखती है। हम सभी किसी न किसी तरह से डैमेज और ब्रोकन है और खुद को बेस्ट फ़ोर में लाना हमारी ड्यूटी है। लेकिन अगर इस जर्नी में हमारी जिंदगी में कोई ऐसा इंसान आ जाता है जो हमें अपनी हीलिंग और डेवलपमेंट में थोड़ा और आगे ले जा सकता है तो इसमें कोई बुराइ नहीं है। ऐसे लोगों में आप खुद के ही एक अंश को देख सकते हो जो आपको अपनी तरफ बेहतर बनाने के लिए बुला रहा होता है। इसलिए उनका हाथ पकड़ो और जहाँ आप उन्हें इम्प्रूव होने में मदद कर सकते हो वहाँ वो काम करो और जहाँ वो आपको आगे बढ़ने में मदद कर सकते हो। वहाँ उनसे मदद लेने में भी मत है। जाओ रिलेशनशिप्स का। यही तो पर्पस होता है कि आप उसमें एक हीरो बनने की नहीं बल्कि एक अच्छे पार्टनर, एक अच्छे पैरेंट भाई, बहन या अच्छे पड़ोसी बनने की कोशिश करते हो। किसी भी इंसान का ट्रामा आपके लिए कोई फैट इस नहीं होनी चाहिए जो आपको टर्न ऑन करें और आपके मन को फैंटसी से भर दें बल्कि किसी की भी सफरिंग आप के लिए दुनिया में प्यार बांटने का एक बहाना होना चाहिए। पर अगर आपके अंदर खुद ही प्यार की कमी है तो आप ये चीज़ दूसरों को कैसे दोगे? बहुत से लोग अपना फोकस दुनिया की प्रॉब्लम्स पर इतना ज्यादा रखते हैं। ताकि उन्हें अपनी प्रॉब्लम्स की याद ना जाए। वो दुनिया में मौजूद राक्षसों से लड़ने के लिए तो तैयार रहते हैं लेकिन खुद के अंदर मौजूद राक्षस से डरते हैं। उन्हें इस बात की तो पूरी खबर रहती है कि किस पॉलिटिशियन, सेलिब्रिटी या इन्फ्लुयेन्स ने क्या बोला। पर उनके पैरेन्ट्स कितने सीक्रेटली डिप्रेस्ड और बर्न डाउट है या उनके घर में कैसे सब लोग एक दूसरे से दूर होते जा रहे हैं। इन बातों से उन्हें कोई मतलब ही नहीं आया। इसलिए अपना फोकस वापस एक्सटर्नल दुनिया से घुमाकर अपने अंदर लाओ। दूसरों को तैरना सिखाने से पहले खुद को डूबने से बचाव और अगर आप दूसरों की नजरों में हीरो बनना चाहते हो तो पहले अपनी नजरों में हीरो बना हो और खुद में डिसिप्लिन बिल्ड करके अपनी सेल्फ रिस्पेक्ट हासिल करो।","क्या आप किसी को "ठीक करने" या "बचाव" करने की कोशिश कर रहे हैं? हम सभी के मन में किसी न किसी की समस्या को दूर करने की कल्पना होती है और इस वजह से हम स्वतः ही परेशान लोगों की ओर आकर्षित होने लगते हैं। दूसरों की मदद करना कोई समस्या नहीं है, लेकिन जब आप केवल किसी ऐसे व्यक्ति की कामना करते हैं जो किसी तरह से टूटा या घायल हो, तो यही समस्या है। इसलिए, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम हीरो की तरह महसूस करने के लिए लोगों की तलाश करने की इस समस्या में गहराई से गोता लगाएंगे और महसूस करेंगे कि आपने अपनी समस्याओं को दूर करने के लिए कुछ किया है।" "इंडियन कॉन्स्टिट्यूशन के हिसाब से हमारी कंट्री में टोटल 22 मेजर लैंग्वेजेस है। और हर लैंग्वेज में काफी सिमिलर गलियों का यूज़ होता है। पर एक इम्पोर्टेन्ट क्वेश्चन ये है की ये गलियां आई कहाँ से और कितने टाइम से हम इनको यूज़ कर रहे हैं? ऑलिव मिनट के एक आर्टिकल के हिसाब से सबसे पहला हमें हिंदी की सबसे पॉपुलर गली में मिल सकता है। यहाँ पर माँ दर का मतलब होता है मदर और ये वर्ड फारसी यानी पर्सनल लैंग्वेज से लिया गया था जो मुगल्स यहाँ पर लाये थे। पर इस के साथ का वर्ड जो की सेक्शुअल इंटरकोर्स को इंप्लाई करता है, फारसी नहीं है बल्कि वो हिन्दुस्तानी है और सिमिलर गाली जो की सिस्टर के लिए यूज़ होती है, उसमें बहन वर्ड भी हिन्दुस्तानी है। दोनों वर्ड ही काफी रीसेंट है और हम ऐसा इसलिए बोल सकते है क्योंकि मुगल एम्पायर 1526 में ढूंढी गई थी तो इन डिटेल्स के अकॉर्डिंग ये दोनों गालियां 1700 के आसपास बनी थी। पर हर गाली एक अलग लेवल पर फैंसी होती है। फॉर एग्ज़ैम्पल अगर हम एक मॉडरेटली ऑफेंसिव गली को ले जैसे साला तो इसका मतलब होता है की एक आदमी की वाइफ का भाई और जब हम किसी को साला बुलाते है तो हम उस पर अपनी डॉमिनेंस दिखाते हैं। ये बोलके की हमने उसकी सिस्टर के साथ ***** किया। शुरू में ज्यादातर गलियां मेल्स को हर्ट और डिसओनर करने के लिए बनी थी, क्योंकि ओनर एक मेल वर्चू है और फीमेल्स के केस में उन्हें यूज़्वली प्रॉमिस को इस बोलकर अटैक किया जाता है। इसके साथ ही एक फीमेल जब सेक्शुअल अब्यूस के ऊपर कोई गाली देती है तब वो उतनी कन्विन्सिंग नहीं लगती और उनके वर्जित ने चूकते नहीं है। क्योंकि फीमेल्स पेनिट्रेट नहीं कर सकती ऑन द अदर हैंड इंडियन मील्स दूसरे मेल को पेनिट्रेट करने की अपनी इंटेन्शन को एक्सप्रेस करते हैं अपनी डॉमिनेंस दिखाने के लिए पर ये अभी उसे विन टेंशन हर कोई यूज़ नहीं करता। अगर हम यूरोपियन्स की बात करें तो वहाँ पर मेल्स एक दूसरे को ऐसी गाली नहीं देते क्योंकि यूरोप में मेडिकल टाइम्स तक होमोसेक्शुऐलिटी कोड इस ऑगस्ट से देखा जाता था और जो भी खुलेआम मेल पेनेट्रेशन की बात भी करता था, उससे भी सीधा सीधा मार दिया जाता था। पर ऐसा क्यों होता है कि कई वर्ड्ज़ कम ऑफेंसिव होते हैं और कई बिलकुल ही टॉलरेट नहीं किए जाते हैं? वेल यह डिपेंड करता है कि उस वर्ड से रिलेटेड ऐक्टिविटी को एक कल्चर में कितना टैबू माना जाता है। फॉर एग्ज़ैम्पल इंडिया में सूरत इस काफी ऑफन गलियों को यूज़ करते हैं और कानपुर को तो गाली कैपिटल भी बोला जाता है पर ओवरऑल इंडियन कल्चर काफी कौन सर्वे टीम है? और अभी तक बहुत लोग ***** के बारे में बात करने में भी हेज़िटेट करते हैं। इस वजह से हमारी लैंग्वेज में ***** और ***** से रिलेटेड चीजे टैबू बन गई और तभी इन वर्ड्स को टीवी या रेडियो पर भी उपनल यूज़ नहीं किया जाता। जब भी पब्लिक में इन टैबू वर्ड्स को यूज़ किया जाता है तो कई लोग काफी अपसेट हो जाते हैं और ऐसा नहीं है की उन्होंने अवार्ड सुने नहीं है और ये जानने के लिए की ऐसा क्यों होता है? हमें इन वर्ड से ब्रेन पर होने वाले इम्पैक्ट को डिस्कस करना होगा। कई ऑब्जर्वेशन से हमें पता लगा कि जहाँ हमारे ब्रेन का लेफ्ट हम इस फेर हमारी इंटेन्शनल और प्रोपोज़िशन स्पीच को कंट्रोल करता है, वहीं ब्रेन का राइट है। मिस फिर ऑटोमैटिक स्पीच को कंट्रोल करता है जैसे गाली देना और इसका ऐडिशनल एविडेन्स हमें एक मेडिकल केस में भी मिल सकता है जहाँ पर एक पेंशन का लेफ्ट हम इस फेर ब्रेन ट्यूमर की वजह से हटा दिया गया था। बिना लिफ्ट हेमिस्फेयर के वो पेशंट जब भी एक मीनिंगफुल सेन्टेन्स बनाने के लिए वर्ड्स को ऑर्गनाइज करने की कोशिश करता तब वो कुछ रैन्डम वर्ड्स बोलता और जब उससे एक लॉजिकल सेन्टेन्स नहीं बन पाता तो वो गुस्से में कोई गाली दे देता। मीनिंग अगर एक इंसान के ब्रेन का मेन लैंग्वेज प्रोसेसिंग एरिया डैमेज हो जाए तो उसके बावजूद भी उसे गाली देने में कोई प्रॉब्लम नहीं होगी। सिमिलरली बेसन गया का राइट पार्ट भी स्विमिंग में यूज़ होता है और हमें मालूम है कि बेसल गैन्ग्लिया मोटर फंक्शन्स को कंट्रोल करने में भी काफी इम्पोर्टेन्ट होता है। सो हम गाली देने को एक मोटर ऐक्टिविटी के जरिए भी देख सकते हैं जिसमें इमोशन्स भी जुड़े हुए हैं। आप लास्ट्ली स्विमिंग में एक और एसेंशियल ब्रेन पार्ट इन्वॉल्व होता है, जिसे बोलते हैं जो की हमारे सिस्टम का पार्ट होता है। ब्रेन का ये पार्ट इमोशनल प्रोसेसिंग और थ्रेड्स को डिटेक्ट करने का काम करता है और ये एक्सप्लेन कर सकता है की क्यों गाली देते है या फिर सुनते टाइम हमारी हर्ट भी तेज हो जाती है। हमें स्वेटर होने लगती है और फाइट फ्लाइट रिस्पॉन्स की वजह से हमारा पेन टॉलरेंस लेवल भी बढ़ जाता है। जहाँ पर हम ब्रेन कनेक्टिविटी की बात कर रहे हैं, वहाँ पर हमें उन केमिकल मैसेंजर की भी बात करनी चाहिए जो प्री और पोस्ट साइनैप्टिक्स न्यूरॉन्स को बाइंड करते हैं। यानी न्यूरोट्रांस्मीटर्स स्विंग के साथ का इंपल्सिव अग्रेशन काफी हद तक और सिरोटोनिन जैसे न्यूरोट्रांसमीटर के बैलेंस पर डिपेन्डेन्ट होता है। इन न्यूरोट्रांसमीटर से होने वाले इम्पैक्ट का सबसे बड़ा ऐविडेंस हमें टॉरेट सिंड्रोम के पेशेंट्स में देखने को मिलता है। यह एक न्यूरोलॉजिकल प्रॉब्लम है जिसमें लोगों के कई ब्रेन पार्ट्स जैसे मंगलिया फ्रंटल लोब और को टैक्स में प्रॉब्लम आने लगती हैं जिनकी वजह से उनमें इनवॉलंटरी मूवमेंट होने लगती है और उन मूवमेंटस में से एक है गाली देना। कई ऑब्जर्वेशन्स में पता लगा कि जब इन पेशेंट्स में डोप ऐक्सिस में रिलीज हो जाता है तब इनके सिम्प्टम्स और भी बढ़ जाते हैं और इन लोगों में से जिन लोगों को डोप कम करने वाली मेडिकेशन से दी जाती है, उनके सिम्पटम्स बेटर होने लगते हैं। इसके साथ ही जब एक स्टडी में 10 पेशेंट्स को सेंसैक्स और समाज के हेल्थी लोगों से कंपेर किया गया तो उसमें ये पता लगा कि उनका सेरोटोनिन लेवल नॉर्मल से काफी कम था मीनिंग जितना कम सेरोटोनिन उतनी ज्यादा रैन्डम इनवॉलंटरी मूवमेंट्स। 2015 में अग्रेशन पर हुई एक स्टडी में ये चीज़ हमे दुबारा देखने को मिली जो गुस्से वाले पेशेंट्स डिप्रेस थे और सूइसाइड करने की पे थे। उनमें भी यह देखा गया कि उन लोगों का लेवल भी नॉर्मल से काफी कम था। सो दैट वॉज़ सबसे इम्पोर्टेन्ट चीज़ यहाँ पर सेरोटोनिन और डोपैमिन का बैंलेंस है क्योंकि सिस्टम फ़ंक्शन को सप्रेस कर देता है। मीनिंग जितना कम होगा उतना ही ज्यादा होगा और उस पर इफेक्ट डायरेक्ट नहीं होता, पर जैसे ही सेरोटोनिन कम होता है वैसे ही सिस्टम फ्री हो जाता है जिससे हम गाली देने लगते हैं। वॉव। एक कॉग्नेटिव साइकोलॉजिस्ट स्टीव फिन कर के हिसाब से गलियां टोटल फाइव टाइप्स की हो सकती है। फर्स्ट होती है। एक ऐसा वर्ड होता है जो थोड़ा जेनरल होता है और उसे यूज़ करके हम एक अन् प्ले ज़ैन टॉपिक पर भी बात कर सकते हैं। यूके में से हम यूज़ करके हम दूसरों को सिग्नल देते हैं की हाँ, हमे पता है की टॉपिक सन प्ले सैन्ट है और हम उसकी रिस्पेक्ट करना चाहते हैं। आप एक्साम्पल के तौर पे एक बायोलोजी क्लास में हम कभी भी वक्त नहीं बोलते है। हम बोलते है सेक्शुअल इंटरकोर्स पर इनके बिल्कुल ऑपोजिट होते हैं। आप फॉर एग्जाम्पल ही टॉक सर, ऐसे वर्ड्स यूज़ करके हम अपनी स्ट्रॉ, इमोशन्स को कौन वे करते हैं क्योंकि एक सेक्शुअल इंटरकोर्स या फिर कोई बोलकर हम लिसनर को वो नेगेटिव इमोशन नहीं फील करा सकते हैं जो हम फील कर रहे होते हैं। हम सेकंड टाइप की स्विंग होती है अब्यूसिव स्विमिंग इसमें वर्ड्स को मेटाफोर निकल सेन्स में यूज़ किया जाता है। लिसनर की इनसल्ट करने के लिए, उसे इन्टरमीडिएट करने के लिए या फिर उसे इमोशनली हार्म करने के लिए ज्यादातर केस में अब काफी भी होती है और उनमें पॉलिटिक्स डिवाइस जैसे मेटाफर, कौन टेंशन इमेजरी, अल्टरेशन, मीटर और राइम को यूज़ किया जाता है। फॉर एग्जाम्पल एस डी कार्ड या फिर ऐस्होल थर्ड है एडीओ मैट्रिक्स वेडिंग ये सबसे कॉमन टाइप की स्विंग है, जिसमें किसी चीज़ को इंफोसिस नहीं किया जा रहा होता और ये काफी कैज़ुअल इन्वाइरनमेंट में यूज़ की जाती है। आप फॉर एग्जाम्पल हक मैन, गेट टूगेदर और वर्धक यहाँ पर ऐसे वर्ड्स को दूसरों की अटेन्शन ग्रैप करने, इन फॉर्मैलिटी दिखाने और कूल दिखने के लिए भी यूज़ किया जा सकता है। डॉ। मैटिक स्विंग से ही रिलेटेड है इन फैक्स वेअरिंग जिसमे हम £1 को इंफोसिस करने के लिए गाली देते है। मीनिंग इन वर्ड्स को नोर्मल्ली यूज़ नहीं किया जाता पर जब हमें बताना होता है कि हमारे इमोशन्स प्रॉपर सोशल बिहेव्यर से ज्यादा इम्पोर्टेन्ट हैं। तब हम ऐसी गाली देते है फॉर एग्जाम्पल थिस इस फकिंग ब्रिल्लीएंट या फिर थिस फॉर इस फकिंग डिलिशियस लास्ट्ली हमारे पास है कथा जिसको हम यूज़ करते हैं किसी मिस फॉर्चून के टाइम जैसे जब हमें कोई चोट लग जाती है या फिर हमारी कॉफी गिर जाती है, तब हमको एक गाली देते हैं जिससे उस मिस फॉर्चून का पर्सीव्ड पेन्ट कम हो जाता है और मेडिकल टर्म्स में गाली देने से मिलने वाले पेन रिलीफ को बोलते हैं। लालों की ज़िया इसका प्रूफ हमें 2009 में हुई एक स्टडी में मिल सकता है। जिसमें सब्जेक्ट्स को बोला गया था कि उन्हें अपना हाथ ठंडे पानी में जितनी देर तक हो सके उतनी देर तक रखना है। कई पार्टिसिपेंट्स को बोला गया की वो दर्द होते टाइम गाली दे सकते हैं और बाकियों को बोला गया की वो बस न्यूट्रल वर्ड्स बोल सकते हैं। और जब रिसर्चर्स ने दोनों ग्रुप्स का पेन, टॉलरेंस लेवल और ड्यूरेशन कंपेर करी तब पता चला कि जिन लोगों ने गालियों को यूज़ किया था, उन्हें दर्द कम हुआ था और वो ज्यादा देर तक इस दर्द को सह पाए थे। तो अब हम ये जान चूके हैं की गाली देना उतना भी बुरा नहीं होता जितना हमे सोसाइटी में बताया जाता है। ये हमारी लैंग्वेज का वो डाइमेंशन है जो हमें हमारी इमोशन्स को कम्यूनिकेट करने के कैपेबल बनाता है और ऐल्टो जैसे जैसे एक कल्चर इन्वॉल्व होता है, वैसे उसमें टैबू वर्ड्स भी चेंज होते रहते हैं। तो जो वर्ड्स अभी ऑफेंसिव है, वो कुछ टाइम बाद अपनी इफेक्टिवनेस खो देंगे और के साथ हमारे दिन पर दिन इमोशन्स बढ़ते जा रहे हैं जैसे डिप्रेशन, सूइसाइड और स्किड जो ये वर्ड्स टाइम के साथ साथ नए टैबू बन जाएंगे। नौ चार।","हममें से कुछ बहुत कसम खाते हैं, कुछ कभी-कभी अपशब्दों का प्रयोग करते हैं और कुछ एक साथ गाली देने से बचने की कोशिश करते हैं लेकिन गाली देने में इतना संतोषजनक और साथ ही वर्जित क्या है? गाली देने का मनोविज्ञान क्या है? इस वीडियो में मैंने प्रमुख हिंदी शपथ शब्दों का एक संक्षिप्त इतिहास, मस्तिष्क पर अपशब्दों के प्रभाव और अपशब्दों के प्रकारों को सामने रखा है, जो आपको भाषा के इस कुख्यात आयाम की बेहतर समझ प्रदान करेंगे।" "यूज़्वली हमें बताया जाता है की अट्रैक्शन और प्यार खुद ब खुद होता है और हमारा अपने पार्टनर या क्रश को चूज करने पर कोई कंट्रोल नहीं होता। और एक हद तक यह बात सच है कि हम कॉन्शस ली सोचकर किसी से अट्रैक्ट नहीं होते हैं, पर ऐसी बहुत सारी चॉइस है जो हम अनकॉन्शियस ली या सब कॉन्शस ली ले रहे होते हैं और आज हम इसी अन्डरस्टैन्डिंग के साथ उन ट्रेड्स को डिस्कस करेंगे जो एक फीमेल की एक मेल में ढूँढती है नंबर नाइन वेस्ट टु चेस्ट रेशियो एक ऐसी फिज़ीक जिसमें वेस्ट कम होती है। शोल्डर्स ब्रॉड होते हैं और चेस्ट मस्कुलर होती है, वो फिज़ीक फीमेल्स के लिए सबसे ज्यादा अट्रैक्टिव होती है, क्योंकि अपना पार्टनर्स चूज करते हुए फीमेल्स ऐसे करेक्टर स्टिक्स को ढूंढ रही होती है, जो हाइअर सोशल स्टेटस डॉमिनेंस, रिसोर्सेस और प्रोटेक्शन को रिप्रेजेंट करते हैं और मेल्स के बीच यह ट्रेड सिंडिकेटेड होते है। ऐन्ड्रॉइड फैट डिस्ट्रिब्यूशन से ये वो फैट होता है जो मेल्स की अपर बॉडी में ज्यादा होता है और उन्हें एक देता है और यह फैट इंडिकेट करता है की एक मिल के टेस्टोस्टेरोन लेवल सहाइ है या लो नंबर एट मसल्स 2005 में पब्लिश हुई एक स्टडी में देखा गया था कि मेल्स की किस टाइप की बॉडी उन मैगजीन्स में दिखाई जाती है जो मेल्स को मार्केट करी जाती है और किस टाइप की बॉडी उन मैगजीन्स में दिखाई जाती है, जो फीमेल्स को मार्केट करी जाती है। और तब ये चीज़ कन्फर्म हो गई कि फीमेल्स को मस्क्युलर लड़के बहुत पसंद है। हाउएवर मेल्स की मैगज़ीन में दिखाई बॉडीज़ ज्यादा मस्क्युलर थी। यह फाइन्डिंग हमें बताती है कि मेल्स एक ज्यादा मस्क्युलर बॉडी को अपना आइडियल मानते हैं। जबकि फीमेल्स को मसल्स सिर्फ एक हद तक ही पसंद आती है। एक दूसरी स्टडी में देखा गया कि फीमेल्स के लिए मेल्स की सबसे अट्रैक्टिव बॉडी कॉंपोज़िशन वो थी, जिसमे वो सबसे ज्यादा हेल्थी और एथलेटिक लग रहे थे। यानी एक लीन और मस्कुलर फ़िज़िक मेल अट्रैक्शन का स्वीट स्पॉट है। नंबर सेवन हाइट इस ट्रेड के केस में स्टीरियोटाइप्स एकदम सच है। यानी ज्यादातर फीमेल्स को अपने से लंबे मेल्स पसंद आते हैं। अपने से ज्यादा लंबे इंसान की यह परेफरेंस इंडिकेट करती है कि लड़कियों को डोमिनेट से रिलेटेड क्वालिटीज बहुत पसंद है। रेवल्यूशनरी बायोलोजी मैं इसे बोलते हैं सेक्शुअल डीएम ऑफिस हम जहाँ एक ***** दूसरे से काफी हद तक बढ़ा और देखने में अलग होता है। कई स्पीसीज़ जैसे स्पाइडर्स के बीच वो फीमेल्स होती है, जो मेल से साइज में बड़ी होती है और ह्यूमन्स के सबसे करीबी रिश्तेदार जैसे चिंपैंज़ी गोरे, लास और और टैक्स के बीच मेल्स फीमेल से ज्यादा बड़े और फिज़िकली स्ट्रांग होते हैं और जो मेल्स छोटे रह जाते हैं, वह फीमेल्स के लिए उतने अट्रैक्टिव नहीं होते, क्योंकि ऐसे मेल्स अपने पार्टनर को किसी भी दूसरे लंबे चौड़े मेल से नहीं प्रोटेक्ट कर सकते हैं। इसके साथ ही एक मेल उनकी हाइट उनके पोस्टर से भी रिलेटेड होती है, क्योंकि जिन मेल्स का सोशल स्टेटस कम होता है उनके दिमाग में सिरोटोनिन की प्रोडक्शन कम होती है, जिसकी वजह से वो कम कॉन्फिडेंट होते हैं और झुक कर चलते हैं। नंबर सिक्स फ्लैट ऐप्स साइनस बताती हैं कि मेल्स में फैट के बढ़ने के साथ साथ उनका टेस्टॉस्टोरोन कम होने लगता है और फिज़िकल अट्रैक्शन पर रिसर्च भी यही बताती है कि जिन मेल्स का पेट थोड़ा सा बाहर होता है, वह फीमेल्स को सबसे कम अट्रैक्टिव लगते है। हाउएवर इसका मतलब यह नहीं है। फीमेल्स को अपने पार्टनर में एकदम की ऐप्स चाहिए होती है क्योंकि अपनी अब्डॉमिनल मसल्स को इतना डेवलप करने और विज़ुअली इतना बनाने के लिए आपको अपनी बॉडी फैट परसेंटेज हेल्थी लेवल से भी नीचे ले जानी पड़ेगी और इससे भी मेल्स का टेस्टॉस्टोरोन कम होता है। इसी वजह से ज्यादातर फीमेल्स के लिए सबसे अट्रैक्टिव टाइप की ऐप्स होती है फ्लैट ऐप्स जो आपकी ऑप्टिमम हेल्थ को रिप्रेजेंट करती है। नंबर फाइव जॉब, आइब्रो, सैंड चैन, ज्यादातर केसेस में फीमेल्स किसी मेल को पहली नज़र में देख कर ही ये बता सकती है। की वो कितना मैस्कुलिन है और उसका टेस्ट ज्यादा है या कम, इसका सबसे ईज़ी क्लू हमें अपनी जॉब और में मिलता है क्योंकि हाइ टेस्टॉस्टोरोन और एक लो फैट बॉडी परसेंटेज मेल्स की जड़ को एक चीज़ लुक दे देती है और साथ ही उनकी भी ज्यादा डैन्स और स्ट्रॉन्ग लगने लगती है। इसके साथ ही एक इंसान की जॉब और चीन की शेप ये भी बता सकती है कि वो किस तरह का खाना खाता है। जैसे सॉफ्ट फूड्स आपकी जॉब को भी दे सकते हैं, जबकि मीट जिसे ज्यादा चबाना पड़ता है। उसमें प्रोटीन और विटामिन बी 12 जैसे इम्पोर्टेन्ट न्यूट्रिअन्ट्स भी ज्यादा होते है और वो आपकी जॉब को एक शार्प पेरिस देते हैं और इस तरह की डाइट एक मेल को ज्यादा अट्रैक्टिव बनाती है। नंबर फ़ोर मेच्युरिटी यानी हर वो ट्रेड जो एक मेल को ज्यादा मेच्युर और ओल्डर लुक इन ग पेरिस देता है, वो भी फीमेल्स को अट्रैक्टिव लगते हैं और ये स्पेशिलिटी ट्रू है यंगर फीमेल्स के लिए, क्योंकि एक ऐसा मेल जिसकी एज चाहे कुछ भी हो पर वो मच्योर दिखता है। वो ये सिंगल करता है की वो बाकी लड़कों से ज्यादा वाइस रिलाएबल और फाइनैंशली स्टेबल है। यानी इवन अगर एक फीमेल अपनी एज के मेल को ही अपना पार्टनर बना ले जो ज्यादा मैच्योर देखता है तो उस लड़की की इस पार्टनर से सैटिस्फाइड होगी क्योंकि उस लड़के की मेच्युर पि रैंस उसकी रिलायबिलिटी को सिविल लाइंस करती है। इसके साथ ही हम यहाँ पर प्रोजेक्शन की भी बात कर सकते हैं क्योंकि हमारे दिमाग में इस चीज़ की समझ की हमारा पार्टनर कैसा होना चाहिए? वो अपने पैरेन्ट्स को देखकर ही आती है और तभी जब हमें अपने ऑपोजिट ***** पैरेंट से प्रॉपर अटेंशन नहीं मिलती। तब हम वो अटेंशन अपने इंटिमेट रिलेशनशिप्स में ढूंढने लगते हैं और ईव नाउ ज्यादातर लोग इतने सेल्फ। वे नहीं है कि वह इस फैक्ट को रिकॉग्नाइज कर पाए, पर आजकल ज्यादातर मेल्स फीमेल्स में अपनी मदर को ढूंढ रहे हैं और फीमेल स्मेल्स मैं अपने फादर को नंबर थ्री लोपेज वौस दोनों जेंडर्स के बीच आवाज़ के डिफरेन्स काफी क्लियर है। फीमेल वौस इसकी पिच एस्ट्रोजन की वजह से ज्यादा हाई होती है और मेल्स की पिच टेस्टोस्टरोन होने की वजह से ज्यादा लो होती है। यह इसलिए होता है क्योंकि ज्यादातर बड़े जानवरों की पिच भी लो ही होती है। जिसकी वजह से अपनी फैमिली को सेफ रखने के लिए मेल्स की आवाज़ भी टाइम के साथ साथ भारी होने लग गयी ताकि वो भी अपनी लो पिच वौस को यूज़ करके अपनी फिजिकल डॉमिनेंस दिखा सके और अपनी हर तरह के कॉम्पिटिटर को डॉमिनेट कर सकते हैं जिसकी वजह से एक दीप या भारी आवाज़ लड़कों को ज्यादा मैं स्कूल इन बनाती है और फीमेल्स को अपनी तरफ अट्रैक्ट करती है। नंबर टू बॉडी सेन्ड कई स्टडीज़ बताती हैं कि जब फीमेल्स को अलग अलग मेल्स की नैचरल सेन्ड स्मेल कराई जाती है, तब वो बिना उस मेल को देखेगी। ये बता सकती है कि वो मेल दिखने में भी अट्रैक्टिव होगा, क्योंकि उसकी बॉडी ओडोर भी इतनी प्लेज़न्ट है। ये इसलिए क्योंकि हमारी बॉडी ओडोर ऑपोजिट ***** को मेनली दो सिग्नल्स देरी होती है यानी हमारी डाइट और हमारी फेशियल सिमेट्री। यानी जो मेल्स अपनी डाइट में प्रोटीन और वेजिटेबल्स ज्यादा लेते हैं और सिंपल कार्बोहाइड्रेट्स को अवॉर्ड करते हैं, उनकी बॉडी ओडोर फीमेल्स को ज्यादा पसंद आती है। नंबर वन फेसिअल सिमेट्री ये एक ऐसा ट्रेट है, जो मेल्स और फीमेल्स दोनों के लिए इम्पोर्टेन्ट है क्योंकि हमारी फेशियल सिमेट्री हमारी जीन्स की क्वालिटी को रिप्रेजेंट करती है। इसके ऊपर से फीमेल्स के केस में वो सिमेट्री से कितना अट्रैक्ट होती है? यह उनकी मंथ्ली साइकल पर डिपेंड करता है क्योंकि जब एक फीमेल अपनी फर्टिलिटी के पीक पर होती है तब वो सिमेट्रिकल फेसेज़ से सबसे ज्यादा अट्रैक्ट होती है। यहाँ तक की एक स्टडी में तो ये भी देखा गया कि जिन फीमेल्स के पार्टनर्स के फेस ज्यादा सिमेट्रिकल थे, उन्होंने ज्यादा कॉपी लेटर ऑर्गैज़म से एक्सपिरियंस करें है बजाय उन फीमेल्स के जिनके पार्टनर्स के फेस एसिमेट्रिकल थे। इसके साथ ही एक फीमेल अपने आप को जितना अट्रैक्टिव मानती है वो उतना ही अपने पोटेंशिअल मेड्स में फेशियल सिमेट्री पर एम्फेसिस करेगी। और उन्हें उसी बेसिस पर रैंक करेगी।","आम धारणा के विपरीत, शारीरिक आकर्षण एक जटिल चीज है। भावुक प्रेम के पीछे का विज्ञान प्राकृतिक चयन की डार्विनियन धारणा पर आधारित है और सबसे दिलचस्प हिस्सा यह है कि आप व्यवहार के इन तरीकों को वास्तविक जीवन में लागू कर सकते हैं या देख भी सकते हैं। तो, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम पुरुषों के 9 शारीरिक लक्षणों पर जाते हैं जो महिलाओं को सबसे आकर्षक लगते हैं। 📽️ हमें यूट्यूब पर ढूंढें: WWW.YOUTUBE.COM/PSYCHOLOGYINHINDI" "किसी पर भी क्रश होने या उनसे प्यार करने की फीलिंग बहुत सिमिलर लग सकती है क्योंकि दोनों ही फीलिंग्स बहुत इंटेंस और दीप लगती है। लेकिन असलियत में क्रशिंग और लव एक दूसरे से काफी अलग होते हैं और ये चीज़ आप अपनी जवानी में अपने रैन्डम रिलेशनशिप्स के एक्स्पिरियंस से नहीं बल्कि बड़े होकर समझते हो क्योंकि उस समय तक आपको यह समझ आ चुका होता है कि आपके अंदर कई बार कई लोगों के लिए फीलिंग्स दूसरे लोगों से ज्यादा थी और आप उस फीलिंग को सालों बाद भी अपने अंदर महसूस कर सकते हो। जबकि कई बार इस चीज़ को आप प्यार समझ रहे थे वो चीज़ आपको मैच्योर होने के बाद बहुत ही शैलो लगने लगती है। इसलिए क्रश और लव से जुड़े डाउट्स को दूर करने के लिए इस एपिसोड में हम इन दोनों फीलिंग्स के कई डिफरेन्स को डिस्कस करेंगे। डिफरेन्स नंबर वन दैट ड्यूरेशन कृषि नग एक बहुत ही छोटे टाइम पीरियड की फीलिंग होती है जहाँ आप किसी को देखते मिलते या बस उनसे थोड़ी सी बात करते हो और वहीं से आपके अंदर उनके लिए इंटेन्स फीलिंग गाना चालू हो जाती है। लेकिन चाहे आपकी बात आगे बढ़े या ना बढ़े, यह पक्का है। की कुछ हफ्तों और महीनों बाद ही आपकी ये फीलिंग खत्म होने लगे गी। जो इंसान कुछ समय पहले आपको एकदम पर्फेक्ट लग रहा था, आपको उसमें भी कई कमियां दिखना शुरू हो जाएंगी। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि शुरू में तो हम किसी को देखकर यह सोचने लगते हैं कि हाँ उसके कई फीचर्स या फिर क्वालिटी ज़ हमारे एक आइडियल पार्टनर की इमेज से मैच करती है और इस तरह से हम बस उनकी पॉज़िटिव साइड से ज्यादा इंटेन्शनली अट्रैक्ट होने लग जाते हैं। लेकिन उनकी नेगेटिव क्वालिटीज को इग्नोर कर देते हैं। पर जस्ट बिकॉज़ अब ज्यादा समय तक खुद से झूठ नहीं बोल सकते। और आपके अंदर उस इंसान के ख्याल से जुड़ा हार्मोनल रिस्पॉन्स भी टाइम के साथ साथ कम हो जाता है। आप नैचुरली अपने क्रश के ऊपर से अपनी प्रोजेक्शन को हटा लेते हो और आपकी नजर में उनकी अट्रैक्टिवनेस कम हो जाती है जबकि दूसरी तरफ प्यार में कोई टाइम एग्ज़िट ही नहीं करता, प्यार टाइम्लेस होता है। यानी एक बार जब आप किसी इंसान को अपना समझकर उसे टोटली एक्सेप्ट कर लेते हो तब उसके बाद आपके अंदर उस इंसान के लिए प्यार का खत्म होना इम्पॉसिबल होता है और अगर आपको ऐसा लगता है कि नहीं आपके ब्रेकअप के बाद तो आपके अंदर अपने इसके लिए फीलिंग्स खत्म हो गई थी और आपने उसे प्यार करना बंद कर दिया था तो ये समझ जाओ कि आपको कभी भी उससे प्यार था ही नहीं। डिफरेन्स नंबर टू लेवल ऑफ कमिटमेंट जस्ट बिकॉज़ क्रश एक इंसान के दिमाग में एक कॉन्सेप्ट की तरह होता है, जिसपर उसने अभी ऐक्शन लेकर उसे रिऐलिटी नहीं बनाया होता। तो इस वजह से उस इंसान की अपने क्रश को लेकर बातें तो बहुत बड़ी बड़ी होती है, लेकिन उसके ऐक्शंस उसकी बातों को मैच नहीं करते। जस्ट बिकॉज़ उसे पता होता है कि अभी सिचुएशन उतनी सिरियस नहीं हुई है और जरूरत से ज्यादा कमिट करने का कोई फायदा नहीं है। जीवन अगर आप अपने क्रश के लिए कुछ बड़ा करते भी हो तो वो भी आउट ऑफ लव या फिर कम्पैशन नहीं बल्कि आप उसे इंप्रेस करने के लिए ही करते हो। क्रशिंग के समय आप एक सेल्समैन की तरह बन जाते हो जहा पर आप अलग अलग तरीकों से खुद को एक अच्छा पोटेंशिअल पार्ट्नर दिखाकर खुद को बेचने की कोशिश कर रहे होते हो। हाउएवर प्यार वर्बल, कम और ऐक्शन ओरिएंटेड ज्यादा होता है। आप प्यार में किसी को इंप्रेस करने के लिए नहीं बल्कि आप उनके लिए कुछ अच्छा करते हो। जस्ट बिकॉज़ आप वो काम करना चाहते हो बिना किसी एक्सपेक्टेशन्स के आप प्यार में बड़े से बड़ा सैक्रिफ़ाइस करते हो। और एक्स्ट्रीम सिचुएशन्स में भी चले जाते हो। बिना ज्यादा ये सोचें कि क्या आप कितने सैक्रिफ़ाइस इस मैटर भी करते हैं जबकि क्रश के केस में आपकी सारी मेहनत और सारे काम इस एक्स्पेक्टेशन से जुड़े होते हैं कि शायद वो इंसान आपसे इम्प्रेस हो जाए और आप के साथ रिलेशनशिप में आ जाए। इसे और अच्छे से समझने के लिए एक पैरेंट और चाइल्ड के रिलेशनशिप को देखो कि किस तरह से एक पैरेंट अपने बच्चों को खिलाता है, उन्हें पढ़ाता है और लाइफ में हर छोटी बड़ी मुश्किल में उनके साथ खड़ा रहता है। जस्ट बिकॉज़ वो अपने बच्चे से प्यार करता है। और उसे उसकी ग्रोथ में मदद करना चाहता है। बिना उसे वापस कुछ मांगे। इसलिए जब भी आप कमिट करने या कोई ज्यादा बड़ा सैक्रिफ़ाइस करने से डरते हो और ऊपर से आपकी एक्सपेक्टेशन्स भी बहुत हाई है तो समझ जाओ कि आप किसी के प्यार में नहीं हो बल्कि आपको बस उस इंसान पर क्रश है। डिफरेन्स नंबर थ्री एक्सेप्टेंस ऐसा होल आपने अपनी लाइफ में ये चीज़ खुद भी कई बार नोटिस करी होगी कि जब भी आप के अंदर किसी इंसान के लिए फीलिंग्स डेवलप होना शुरू होती है और वो इंसान आपका क्रश बन जाता है तब उस फेस में आप उस इंसान के लिए एकदम पागल से हो जाते हो। और आपको उन में कोई भी खराबी नहीं दिखती। आपको ऐसा लगता है कि जैसे वह पर्फेक्ट है, चाहे उसमें कई कमियां हों भी, तब भी आप उन कमियों को इग्नोर कर देते हो और उस संस्थान का ख्याल आपके रैशनल माइंड को एक तरह से हाइजैक कर लेता है जिससे आप उन के अलावा कुछ और क्लियरली सोच ही नहीं पाते हैं। लेकिन प्यार का एक्सपिरियंस इससे बिल्कुल अलग होता है क्योंकि प्यार में आप एक इंसान की कमियां देख तो पाते हों लेकिन आप उन्हें इन पर्फेक्ट होने के लिए ही प्यार करते हो। आप उनके फ्लॉस और इन परफेक्शन को नज़रअन्दाज़ नहीं करते हैं। बल्कि आप उन्हें ऐसा हॉल एक्सेप्ट करते हो? प्यार टोटल एक्सेप्टेंस होता है। जबकि क्रश में आप बस एक इंसान की पॉज़िटिव क्वालिटीज को ही हद से ज्यादा महत्त्व दे देते हो और उनकी नेगेटिव क्वालिटीज को खुद ही जान बूझकर इग्नोर कर देते हो। यही रीज़न है कि क्यों किसी इंसान की कमियां ना देख पाना और उसकी कमियों के बावजूद उसके साथ रहना। इन दोनों चीजों में जमीन आसमान का फर्क है। डिफरेन्स नंबर फ़ोर वेरिएशन इन क्लैरिटी जहाँ एक क्रश के केस में आपकी सोच थोड़ी धुंधली हो जाती है। जस्ट बिकॉज़ आपके माइंड से ज्यादा लाउड आपके हॉर्मोन्स और उस इंसान से जुड़ी फैंटसीज़ बन जाती है। वही प्यार आपकी आँखों के आगे धुंध नहीं बल्कि क्लैरिटी लाता है। क्रश होने पर आप खुद से पूछते हो कि क्या आप एक्चुअल मैं प्यार में हो? लेकिन प्यार में आप एकदम क्लियर होते हो कि हाँ, यही तो था इसी चीज़ की तो मैं कब से वेट कर रहा था? प्यार आपके आगे से परदे हट आता है और आप को सच के पास ले जाता है। जबकि क्रैशिंग कॉन्शसनेस की काफी लोअर स्टेट में काउंट होता है। जस्ट बिकॉज़ ये चीज़ आपको अपनी फिजिकल एग्ज़िस्टन्स से बांधे रखती है। यही रीज़न है कि क्यों? क्रशर्स यूज़्वली हमारी यंग एज में ही बनते हैं। जब हमारे हॉर्मोन्स पीक लेवल पर होते हैं और हम अपनी फिजिकल नेचर के अलावा किसी दूसरे एक्सपिरियंस से वाकिफ नहीं होते हैं। डिफरेन्स नंबर फाइव क्रशर्स डायोड विद टाइम बट लव इन्क्रीज़ एस। अगर हम एक क्रश को ग्राफिक अली रिप्रेजेंट करें तो वो यूँ चली एक इन्वर्टेड यू कर बनाएगा जहाँ आपके अंदर एक इंसान के लिए एक दम से फीलिंग्स बढ़ती है। एक पॉइंट पर वो फीलिंग्स पी करती है, लेकिन बहुत ही जल्दी आपकी फीलिंग्स में नाना चालू हो जाता है। लेकिन जब हम प्यार को एक ग्राफ में बनाते हैं तो वह एक जेकर की तरह दिखता है जहाँ पर आप के अंदर एक इंसान के लिए फीलिंग्स टाइम के साथ साथ और ग्रो करती है। क्रश के केस में तो आप एक इंसान के थोड़े बहुत फ्लॉस को देखकर उन्हें रिजेक्ट कर देते हो लेकिन प्यार में जब आप एक इंसान को लाइफटाइम के लिए कमिट कर देते हो और वो इंसान टाइम के साथ साथ अपना यूथ और ब्यूटी भी खोने लगता है तब आप उसकी गिरती अट्रैक्टिवनेस में भी ब्यूटी ढूंढ पाते हो। प्यार इंटरनल ब्यूटी से जुड़ा होता है और क्रश टेंपरेरी ब्यूटी से इंटरनल ब्यूटी में एक इंसान की अगली नस ऑलरेडी इन्क्लूडेड होती है क्योंकि आप किसी भी चीज़ को पूरी तरह से एक्सेप्ट कर ही नहीं सकते, जब तक आप उसकी पॉज़िटिव और नेगेटिव दोनों साइड्स को एक्सेप्ट नहीं कर लेते है, ब्यूटी की पावर अग्लीनेस में ही छुपी होती है। इसी वजह से प्यार में ब्यूटी और अग्लीनेस दोनों ही साथ मिलकर कुछ अनोखा क्रिएट करने की कोशिश कर रहे होते हैं। जबकि क्रशिंग एक अन रियलिस्टिक और पर्फेक्ट चीज़ की खोज होती है। जब आपको किसी पर क्रश आता है तब आप उस इंसान के साथ एक पर्फेक्ट लाइफ इमेजिन करने लगते हो और खुद ही अपने मन में एक डीटेल बनाने लगते हो हाउएवर जहाँ क्रश होने की ये साइंस ऑलमोस्ट हमले सोते है, वही क्रशिंग की एक डार्क साइड भी होती है जिसमें एक इंसान दूसरे इंसान के बारे में इतना ज्यादा फैन टी साइंस करने लगता है कि वो उसे इंटरनेट पर या फिर रियल लाइफ में भी स्टॉक करने लगता है और इसके साथ ही अगर उसका क्रश उसके सामने किसी दूसरे इंसान को अटेंशन देने लगे तो ये चीज़ भी उसे जेलेसी और गुस्से से भर देती है और इस पॉइंट के बाद वो इंसान कोई रिस्क की और डेनजरस कदम भी ले सकता है। जबकि प्यार में ये चीजें दूर दूर तक एग्जिस्ट नहीं करतीं। क्रिश्चियन के एक्स्ट्रीम पॉइंट पर एक इंसान दूसरे इंसान को ऑलमोस्ट एक बंदी बनाकर रखता है, लेकिन प्यार के एक्स्ट्रीम पॉइंट पर एक इंसान अपने पार्टनर को टोटल फ्रीडम देता है। ये मेजर डिफरेन्स एस आपको अबसे यह पक्का करने में मदद करेंगे कि आप जीस चीज़ को एक दीप कनेक्शन समझ रहे हो। क्या वह बस एक क्रश है या फिर प्यार?","क्रश के दौरान आपके पास जो तीव्र भावना होती है, वह वास्तव में प्यार में होने की भावना के समान होती है। हालाँकि, कुचलना और प्यार में पड़ना पूरी तरह से दो विपरीत प्रकार के बंधन हैं। लेकिन जब आप युवा होते हैं और आपने कभी सच्चे प्यार का अनुभव नहीं किया है तो आप इसे नहीं समझते हैं। जब आप परिपक्व होते हैं, तो आप उस समय से अधिक परिचित हो जाते हैं जब आप शांत महसूस करते हैं और जब आप किसी ऐसे व्यक्ति से परेशान होते हैं जिसे आप "विशेष" मानते हैं। ये अंतर हैं जो एक क्रश को सच्चे प्यार से अलग करते हैं। तो, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम कुचलने और प्यार में पड़ने के बीच 5 प्रमुख अंतरों के बारे में बात करेंगे।" "एक टिपिकल कंपनी में प्रोडक्टिविटी को बढ़ाने का मतलब होता है की कैसे वहाँ पर कम से कम एनर्जी टाइम और पैसा यूज़ करके ज्यादा से ज्यादा आउटपुट निकाला जा सके? फिर भले ही ह्यूमन वर्कर्स को रिप्लेस करना पड़े मशीन्स के साथ और यही चीज़ तुरंत इंडस्ट्रियल रिवोल्यूशन के बाद शुरू हुई थी। और जब हम अपनी लाइफ में प्रोडक्टिविटी को बढ़ाने की बात करते हैं, तब उसका मतलब होता है कि हम कम से कम टाइम में ज्यादा अचीव कर के अपने फ्रेन्ड ज़ फैमिली रिलेशनशिप्स या अपनी हॉबीज को टाइम कैसे दें? इस तरह से अपनी प्रोडक्टिविटी बढ़ाने से हम एक वेल बैलेंस लाइफ जी पाएंगे। बजाए एक रोबोट की तरह पूरे दिन काम करने के। सो बात करते हैं उन टेक्नीक्स की जिनको यूज़ करके आप अपनी प्रोडक्टिविटी को 10 गुना बढ़ा सकते हो। सबसे पहली चीज़ प्रोडक्टिविटी को बढ़ाने के लिए है। इफिशियंसी यानी आपको पूरा दिन बिज़ी नहीं रहना बल्कि अपने टास्क को पूरा करो। कम से कम रिसोर्सेस लगाकर जस्ट बिकॉज़ टाइम एक बहुत ही इम्पोर्टेन्ट रिसोर्स होता है। अक्सर आपने सुना होगा लोग बोलते है की मैंने आज 10 घंटे काम किया लेकिन यहाँ पर उनका मतलब यह नहीं होता की वो 10 के 10 घंटे प्रोडक्टिव थे। वो बस 10 घंटे बिज़ी थे और उसमें से कुछ समय में भी 2-3 घंटे वो प्रोडक्टिव होंगे। यानी अगर आप एक स्टूडेंट हो तो आपको बस बुक्स खोल के सामने नहीं बैठे रहना या अगर आप एक राइटर हो तो 10 घंटे बस लैपटॉप के सामने मत बैठे रहो क्योंकि कोई भी इंसान 24 घंटे प्रोडक्टिव नहीं हो सकता। आपका फोकस होना चाहिए कि जब आपका माइंड सबसे ज्यादा एलर्ट होता है तब आप उससे मैक्सिमम आउटपुट निकलवा पाओ और जब आप किसी टास्क को करो तो उसको अपनी अनडिवाइडेड अटेन्शन दो। इसलिए अपनी बॉडी की सुनो और यह देखो कि आप किस टाइम पर सबसे ज्यादा प्रोडक्टिव होते हो क्योंकि अगर आप किसी दूसरे को देखकर सुबह 4:00 बजे उठ जाते हो यह सोचकर कि ऐसा करने से आप ज्यादा प्रोडक्टिव बन जाओगे। लेकिन फिर आधा 1 घंटे बाद ही आपको नींद आने लग जाती है और आप पूरा दिन थकान के साथ काम करते हो तो ऐसे में यह क्लिअर है कि यह स्ट्रैटिजी आपकी प्रोडक्टिविटी को बढ़ाने के बजाय घटा देगी। इसलिए अपनी प्रोडक्टिविटी का प्लैन खुद बनाओ और ब्लाइंडली किसी दूसरे के रूटीन को फॉलो मत करो। नम्बर टू मेक प्रोडक्टिविटी स्लॉट्स यानी जब आपने यह फ़िगर आउट कर लिया कि आपने दिन में किस टाइम पर काम करना है तो उसके बाद आपने कुछ टाइम स्लॉट्स बनाने हैं जिनमें आप टास्कों अनडिवाइडेड अटेन्शन दोगे और आपका ध्यान बस आपके काम पर होगा ना कि फ़ोन। या सोशल मीडिया जैसी डिस्ट्रेक्शन्स पर इन टाइम स्लॉट्स को स्प्रिट्स की तरह समझो, क्योंकि जैसे आपको स्प्रिंट करते टाइम एक छोटे समय के लिए अपनी मैक्सिमम स्पीड पर भागना होता है और फिर आराम करना होता है, वैसे ही इन टाइम स्लॉट्स में आप अपने काम को पूरी शिद्दत के साथ करोगे बिना डिस्ट्रिक्ट हुए और यह टाइम स्लॉट्स आप अपने अकॉर्डिंग कस्टमाइज़ कर सकते हो। जैसे 20 मिनट, 30 मिनट या फिर एक घंटा और इसके साथ ही यह भी डिसाइड करो कि आप एक टास्क कंप्लीट करने के लिए ऐसे कितने टाइम स्लॉट्स लोगे? नंबर थ्री अपने एनवायरनमेंट में से डिस्ट्रेक्शन्स को हटाओ। एग्जाम्पल के तौर पर अपना काम करने के लिए किसी ऐसी जगह पर बैठो जहाँ पर आपको कोई डिस्टर्ब ना करे। जीवन अगर आपके आसपास कुछ डिस्ट्रेक्शन्स है जैसे आपका फ़ोन या आपके रूम में फैले कपड़े तो पहले उन्हें दूर करो क्योंकि अगर आप ऐसी किये उसमें अपना काम पूरा करने की कोशिश करोगे तो आपका फोकस बार बार उसमें सपर ही जाएगा। इसलिए अपने एनवायरनमेंट को अपनी प्रोडक्टिविटी के लिए ऑप्टिमाइज़ करो। नंबर फ़ोर अपनी कपैसिटी को समझो यानी अपनी प्रोडक्टिविटी को बढ़ाने के लिए अनरियलिस्टिक गोल्स को मत सेट करो कि आप एक हफ्ते का काम कुछ घंटों में खत्म कर लोगे या फिर वो मुश्किल बुक जिसे आप कब से पढ़ने की सोच रहे हो? वो आप आज ही खत्म कर दोगे क्योंकि अगर आपने ऐसा कर भी लिया तो ना तो ये स्ट्रैटिजी सस्टेनेबल है और ऊपर से आप ऐसा कर के कुछ दिनों के लिए टाइअर्ड फील करोगे और आने वाले दिनों के लिए अनप्रोडक्टिव हो जाओगे। इसलिए याद रखो प्रोडक्टिविटी कनसिसटेन्सी से आती है और कौन सी स्टैन सी मेनटेन करने के लिए अपनी कपैसिटी और लिमिट्स का पता होना बहुत ज़रूरी होता है। जितना हो सके उतना हार्ड वर्क को रिप्लेस करने की कोशिश करो स्मार्ट वर्क से और जैसा कि फोर्ड कंपनी के फाउंडर हेनरी फोर्ड का बोलना था की प्रोडक्टिविटी के बढ़ने का मतलब होता है कम खून और पसीने का यूज़ होना ना की ज्यादा","एक संगठन में उत्पादकता बढ़ाने का अर्थ है समय, ऊर्जा और धन जैसे संसाधनों की न्यूनतम मात्रा के साथ अधिक से अधिक उत्पादन प्राप्त करना, इसी तरह, हमारा लक्ष्य होना चाहिए कि हम अपने पेशेवर जीवन से अधिकतम उत्पादन प्राप्त करें ताकि हम अपने को भी कुछ समय दे सकें। रिश्ते, परिवार, शौक आदि। इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम विभिन्न तरीकों पर चर्चा करते हैं जिनके माध्यम से हम इस लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं।" "एक तरह से हम सब लोग ही एक बिगनर साइकोलॉजिस्ट की तरह एक्टिंग कर रहे होते है। हमने दुनिया को ऑब्जर्व करा है, सालों तक अलग अलग सिचुएशन्स और लोगों को बदलते देखा है और इन्हीं सब चीजो की वजह से हमारे कई बिलीव्स बनते जाते हैं, जिन्हें हम एक्चुअल फैक्स मानने लगते हैं। इसलिए आज हम आपके ऐसे ही कई झूठे बिलीव्स या फिर साइकोलॉजिकल मिक्स को तोड़ेंगे। मिथ नंबर वन दुख बांटने से कम होता है। आपने ये कहावत कई बार सुनी होगी। लोग ये मानते हैं कि अगर वह दुखी है या फिर किसी प्रॉब्लम में फंसे हुए हैं तो अपनी सफरिंग को और लोगों के साथ शेयर करने से उनकी सफरिंग कम हो जाएगी। इस बात में थोड़ी सच्चाई तो है कि आप अपनी प्रॉबलम्स को डिस्कस करने से उन पर एक नया पर्सपेक्टिव हासिल कर पाते हों, लेकिन अगर आप बस ये सोचते हो कि अपनी नेगेटिव फीलिंग्स को शेयर करना आपकी और सुनने वाले दोनों की लाइफ को बेहतर बना रहा है तो आप यहाँ पर गलत हो। ऐसा इसलिए क्योंकि हमारी लाइफ की बहुत सी प्रॉब्लम्स सॉल्व एबल होती है और हम खुद ही उनकी रिस्पॉन्सिबिलिटी लेकर उनको हैंडल कर सकते हैं। जीवन जो प्रॉब्लम्स आपके कंट्रोल के बाहर भी है, आप उनके बारे में भी ज्यादा समय तक कम्प्लेन्ट्स नहीं कर सकते हैं। क्योंकि एक पॉइंट के बाद लोग आपकी नेगेटिविटी से परेशान हो जाएंगे और वो भी आपको यही बोलेंगे कि लाइफ तो मुश्किल रहे गी ही। ऐसे में यह आपके ऊपर है कि आप उन मुश्किलों पर किस तरह से रिस्पॉन्ड करते हो। मिथ नंबर टू हम अपने दिमाग का बस 10% ही यूज़ कर पाते हैं। यह भी एक बहुत ही पॉपुलर मिथ है, जो बोलती है कि नॉर्मल लोगो का दिमाग अपनी कपैसिटी से नीचे काम कर रहा होता है। जबकि आइंस्टाइन या फिर निकोला टेस्ला जैसे जेनिसिस अपने दिमाग का एक ज्यादा बड़ा हिस्सा यूज़ कर पाते हैं। हाउएवर न्यूरोसाइन्स इस आइडिया को सपोर्ट नहीं करती। स्टडीज़ के हिसाब से हर इंसान ही अपने दिमाग को पूरी तरह से यूज़ करने के लिए इन्वॉल्व हुआ है। लेकिन कई लोग अपने दिमाग को खुलकर चलने से रोकते हैं। गलत इन्फॉर्मेशन कौन स्यूम करके जिसतरह से ब्रेक लगे होने पर आपकी गाड़ी अपनी पूरी कपैसिटी पर नहीं चलेगी, चाहे आप उसे जितना मर्जी 1 साल रेट करलो बिल्कुल ऐसे ही आपका दिमाग हर समय ही एक एफिशिएंट गाड़ी की तरह भागने के लिए रेडी रहता है। बस आपके मन में किसी भी तरह की फालतू इन्फॉर्मेशन नहीं होनी चाहिए, जो उसकी गति को धीमा करें। ये सच है कि हर इंसान का इन्टेलिजेन्स लेवल्स में नहीं होता। लेकिन अगर आप बस अपने माइंड को फालतू आइडियास, मूवीज़, गॉसिपिंग या फिर न्यूस से भरना बंद करो तो वो ऑटोमेटिकली आपकी प्रेज़ेंट एबिलिटी से ऊपर परफॉर्म करने लगेगा। ये चीज़ सर ऑफिस पर ऐसे लगे गी जैसे एक इंसान की इन्टेलिजेन्स बढ़ गई हों, लेकिन असलियत में आपने बस अपने मन को खाली और शांत करके उस पर से किसी भी तरह की ब्रेक हटा दी। मिथ नंबर थ्री साइकोलॉजी बस कॉमन सेन्स है। साइकोलॉजिकल फाइन्ड इस का एक बहुत बड़ा हिस्सा वो होता है। जिससे आम लोग रिलेट कर पाते हैं। जैसे अगर मैं बोलूं कि साइनस ने अब यह प्रूफ कर दिया है कि इंसानों के लिए सबसे जरूरी चीज़ है अच्छे रिलेशनशिप्स। या फिर नेचर में ज्यादा समय बिताना हमारी हेल्थ के लिए अच्छा होता है तो आप ऐसे रिसर्च पर बोलोगे कि हाँ ऑब्वियस्ली ये जानकारी सेन्स बनाती है। हाउएवर साइकोलॉजी की बहुत सी फाइन्डिंग ऐसी भी होती है जो हमारी कॉमन्स के ऑपोजिट होती है। अगर हम स्टैनली मिलीग्राम के एक्सपेरिमेंट की बात करें तो किसने सोचा था कि लोग एक अथॉरिटी फिगर के कहने पर अनजान लोगों को इलेक्ट्रिकल शॉक देने लगेंगे या फिर कैसे फिलिप्स ज़िम्बाब्वे के स्टैंड फॉर प्रेज़िडन्ट एक्सपेरिमेंट में लोग अपनी असली आइडेंटिटी छुपी होने की वजह से दूसरों को टॉर्चर करने लगे और उन्हें इस टॉर्चर में मज़ा भी आ रहा था। ह्यूमन बिहेव्यर की इस तरह की फाइंडिंग ज़ हमारी कॉमन्स के परे है। इसलिए साइकोलॉजी इंसान की बस कॉमन सेन्स को ही नहीं बल्कि हमारी सबसे डीप और डार्क नेचर को भी स्टडी करती है। मिथ नंबर फ़ोर हमारी मेमोरी पास्ट इवेंट्स की स्टोरेज है। हम नोर्मल्ली ये सोचते हैं कि हमारा माइंड पास्ट को ऐक्यूरेट्लि स्टोर करके बैठा है। और हम अपने पास्ट को आस इट इस समझने के लिए अपनी मेमोरीज़ पर लीक कर सकते हैं, लेकिन असलियत में हमारी मेमोरीज़ अक्सर पास्ट की रिकॉर्डिंग नहीं, बल्कि हमारे पास की हमारी समझ होती हैं जो टाइम के साथ साथ बदलती रहती है। एक रीसेंट सर्वे बताता है कि 63% लोग ये मानते हैं कि हमारी मेमोरी एक वीडियो कैमरा की तरह काम करती है और ज्यादातर लोगों की यही गलत परसेप्शन उन्हें रिऐलिटी को आस इट इस देखने से रोकती है। यही तो रीज़न है कि क्यों? एक लीगल इन्वेस्टिगेशन में भी एक जज एक आईविटनेस की बातों को उतना ही ट्रस्ट नहीं मानता है जितना वी विट्नेस अपनी मेमोरी को लेकर कॉन्फिडेंट होता है। मिथ नंबर फाइव मेंटल इलनेस का कोर्स होता है। केमिकल इम्बैलेंस ज्यादातर लोग पहली गलती ये करते हैं कि वो हर तरह की मेंटल इलनेस को दिमाग में चल रहा है, किसी केमिकल इम्बैलेंस का रिज़ल्ट मानते हैं और उसके बाद वो ये सोचते हैं कि केमिकल इम्बैलेंस को सही करने का अकेला तरीका होता है। दवाइयां लेना। ये आइडिया आम जनता में बढ़ने लगा है। ऐन्टीडिप्रेसन्ट की वजह से ड्रग कम्पनीज़ हमेशा ही ये अड्वर्टाइज़ करती है। की मेंटल प्रॉब्लम का मेन कॉज़ दिमाग में चल रहा है। एक केमिकल इम्बैलेंस ही होता है। लेकिन यह मेंटल इलनेस की एक ओवर सिंप्लिफिकेशन है। जैसे डिप्रेशन के कई बायोलॉजिकल कोर्स हो सकते हैं। हॉर्मोन्स का ढंग से ना रेग्युलेट हो पाना, बॉडी में ग्लूकोस की बुरी यूटिलाइजेशन या फिर न्यूरो, इन्फ्लेमेशन और ऐसे हर कोर्स के लिए दवाईयां सबसे ऑप्टिमल सलूशन नहीं होती। कई बार बस रेगुलर एक्सर्साइज़ डाइट में बदलाव, एक साइकोथेरपिस्ट से बात और खुश किस्मत फील करना ही काफी होता है। आपके मेंटल बैलेंस को रिस्टोर करने के लिए अमित नंबर सिक्स, लाई डिटेक्टर टेस्ट एक्युरेट होते हैं पॉलिग्राफ मशीन को ऑपरेट करने वाले लोग बिना किसी ऐक्चुअल एविडेन्स के ये तो बोल देते है कि लाई डिटेक्टर मशीन्स की ऐक्युरेसी 99% है। लेकिन सच तो ये है कि कोई भी मशीन या फिर इंसान ये पक्का पक्का डिसाइड नहीं कर सकता कि कौन झूठ बोल रहा है और कौन सच। हमें बस सच और झूठ की कई इंडिकेशन्स मिल सकती है, क्योंकि हम इंसान इतने कैपेबल है कि जिसे भी एक्चुअल में झूठ बोलकर बचना है, वो लाई डिटेक्टर मशीन को पास करने के लिए खुद को ट्रेन भी कर सकता है। लाई डिटेक्टर मशीन्स इस मिशन पर काम करती है कि झूठ बोलने वाले की हर्टबीट, उसके ब्लड प्रेशर और ब्रीदिंग में बदलाव आएगा जब वो झूठ बोलने की कोशिश करेगा। हाउएवर जो भी इंसान अपनी बॉडी को अपने कंट्रोल में रखना सीख जाता है, वो किसी भी तरह के लाई डिटेक्टर टेस्ट को आसानी से पार कर पाता है।","हम सभी अपने दैनिक जीवन में शौकिया मनोवैज्ञानिकों की तरह व्यवहार करते हैं। हम दुनिया को देखते हैं, हम हमेशा बदलते परिवेश के साथ बातचीत करते हैं, और हम इस आधार पर राय बनाते हैं, जो बदले में हमारे मनोविज्ञान का निर्माण करती है। लेकिन गलत सूचनाओं के उपभोग और गलत वातावरण के संपर्क में आने के कारण कभी-कभी हम उन चीजों पर विश्वास करने लगते हैं जो वास्तव में सच नहीं हैं। इसलिए इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम उन मनोवैज्ञानिक मिथकों के बारे में बात करेंगे जिन पर आप अभी भी विश्वास करते हैं।" "प्यार और हमारी प्यार से जुड़ी फीलिंग ज़ दुनिया की सबसे स्ट्रॉन्ग फोर्स में से एक है और अगर आपने इस फोर्स को एक्सपिरियंस करा है तो आपको पता होगा कि प्यार के साथ कितनी खुशियां, मस्ती और मुश्किलें आती है, पर इसके बावजूद भी ज्यादातर लोगों के लिए सिर्फ प्यार भरे रिलेशनशिप्स ही उनकी लाइफ को मीनिंग देते है। सो आज हम बात करेंगे प्यार के ऐसे कई साइकोलॉजिकल फ़ैक्स की जो आपको चौंका कर रख देंगे। नंबर 13 एक लड़का और लड़की कभी भी दोस्त नहीं बन सकते है। हाँ, यह फैक्ट इतना कॉन्ट्रोवर्शल होने के बावजूद सच है। एवल्यूशन री साइकोलॉजी के हिसाब से अगर हम अपने ऑपोजिट ***** के किसी मेंबर से सेक्शुअली अट्रैक्ट ऐड नहीं है तो चान्सेस है कि हमारा दिमाग उन्हें ऐसा समझने लगेगा जैसे वो हमारे स में ***** के ही हो। जैसे अगर एक लड़की एक लड़के को बोले की वो बस उसकी फ्रेंड बन कर रहना चाहती है। तो एक्चुअल मैं उस मैसेज का मतलब होगा कि मुझे तू बिल्कुल मेरी सहेलियों जैसा लगता है और मैं तेरे साथ अपने जीन्स नहीं शेयर करना चाहती और सिमिलरली एक लड़का जब एक लड़की से अट्रैक्टेड नहीं होता तो वो सब कॉन्शस ली। उसे अपने मेल फ्रेंड्स जैसा ट्रीट करने लगता है। नंबर 12 हर पांच में से दो फीमेल्स को अनुपता फोबिया होता है। यानी इस बात का डर किया तो उनकी कभी शादी नहीं होगी या फिर वो गलत इंसान से शादी कर लेंगी। और उनमें इस डर के आने का रीज़न हो सकता है बचपन में एक कपल को लड़ते हुए देखना। एक रिलाएबल पार्टनर ना ढूंढ पाना या फिर रिजेक्टेड महसूस करना। नंबर 11 जब भी आप एक रोमेंटिक रिलेशनशिप को सीक्रेट रखते हों तब दोनों पार्टनर्स के अंदर रोमैन्टिक फीलिंग्स बढ़ने लगती है। ऐसा रिलेशनशिप आपके एक्साइटमेंट लेवल्स को काफी लंबे टाइम तक हाई लेवल पर मेंटेन करके रखता है, जिससे आप अपनी हैपिनेस अपने पार्टनर के साथ सीक्रेटली शेयर कर सकते हो। और इससे ब्रेकअप होने के चान्सेस कम रहते हैं। नंबर 10 एक मेल के लिए दूसरे ***** को अट्रैक्ट करने का चान्सेस बढ़ जाते हैं। अगर वो ब्लू कलर पहनता है क्योंकि ये कलर स्टेबिलिटी रिलायबिलिटी कामनेस कॉन्फिडेन्स और लॉयल्टी को सिंबला इस करता है नंबर नाइन प्यार में अंधा होना और अपने पार्टनर के नेगेटिव ट्रेड्स को इग्नोर करने का एक काफी अच्छा साइंटिफिक रीज़न है यानी इवन दो। एक इंसान आपके हर बॉक्स को टिक नहीं करता। और आपने जीस इंसान को अपना पार्टनर इमेजिन करा था, वो आपके ऐक्चुअल पार्टनर से बिल्कुल अलग हो तब भी आप इस इमपरफेक्ट इंसान के प्यार में पागल हो जाते हो और ये इसलिए होता है ताकि आप अपनी अनरियलिस्टिक एक्सपेक्टेशन्स को छोड़कर ऐक्चुअल में टि नग या फिर अपनी स्पीसीज़ के बल पर फोकस कर सको। नंबर एट जब भी हम बीमार होते हैं या फिर हमे चोट लग जाती है तब हमें उन लोगों के साथ टाइम स्पेंड करना चाहिए जो हमें प्यार करते हैं। क्योंकि एक पॉज़िटिव इमोशनल कनेक्शन हमारे अंदर ऐसे केमिकल्स को ट्रिगर करता है जो पेन किलर की तरह काम करके हमारी हीलिंग की स्पीड को तेज कर देते हैं। नंबर सेवन क्या आप जानते हो? मेल्स और फीमेल्स दोनों अलग तरह से बैठने पर इमोशनली कनेक्टेड फील करते हैं? फीमेल्स दूसरे इंसान से ज्यादा कनेक्टेड फील करती है जब वो उनसे फेस टू फेस बात करती है पर मेल्स एक दूसरे के साइड में बैठकर इमोशनल कनेक्शन बनाते हैं। यह इसलिए होता है क्योंकि हजारों सालों से फैमिली को बचाने की ड्यूटी मेल्स की रही है और तभी वो आमने सामने बैठने के बजाय साइट टु साइड बैठना प्रिफर करते हैं ताकि वो अपनी सराउन्डिंग् पर नज़र रख पाए और किसी भी खतरे के लिए पहले से अपने आप को तैयार कर पाए। नंबर सिक्स सबसे सक्सेसफुल रिलेशनशिप्स वो होते हैं जिनमें दोनों पार्टनर्स के बिलीव्स और वैल्यू उस दूसरे के सिमिलर होती है। हाउएवर अगर आपका पार्टनर। आपके काफी ज्यादा सिमिलर है या फिर पूरा ऑपोजिट है तब आपको अपने रिलेशनशिप में काफी प्रॉब्लम्स देखनी पड़ेगी। नंबर फाइव ज्यादातर लोगों को यह नहीं समझ आता कि लड़कियों को अपने पार्टनर में पैसा और पावर पसंद आती है या फिर वो बस उन के नेचर को पसंद करती है। वेल एवल्यूशन अली साइकोलॉजी बताती है की लड़कियां ज्यादातर केसेस में उन लड़कों को प्रिफर करती हैं, जिनका सोशल स्टेटस उनसे ज्यादा हो, क्योंकि ऐसा करके उनको इस बात की श्योरिटी मिल जाती है। कि यह इंसान उसके बच्चों और उसको रिसोर्सेस दे पाएगा और उन्हें एक सेफ जगह पर रख पाएगा। यानी गोल्ड इन ऐक्चुअली एवल्यूशन का रिज़ल्ट है नंबर फ़ोर। प्यार एक ऐसी फ़ीलिंग है जिसे ट्रांसफर करा जा सकता है। अगर हम दूसरों को केर, कम्पैशन और एम्पथी दिखाते हैं तो इससे उनके अंदर भी ये फीलिंग्स जागने लगती है। और तभी सबसे प्रॉमिनेंट लीडर्स जैसे दलाई लामा या फिर नेल्सन मंडेला लाखों इन्सानों को एक अच्छा इंसान बनने के लिए इंस्पायर कर पाए। नंबर थ्री जो लोग अपने आप को ज्यादा वैल्यू करते हैं और अपनी रिस्पेक्ट करते हैं, उन लोगों के रिलेशनशिप्स ज्यादा सक्सेसफुल रहते हैं। बजाए उनके जिनमें अपनी रिस्पेक्ट यानी सेल्फ एस्टीम कम होती है और ये ऑब्वियस होना चाहिए क्योंकि अगर आप खुद को ही प्यार नहीं कर सकते तो आप किसी दूसरे इंसान को कैसे एक्सपेक्ट कर सकते हो की वो आपको प्यार दे। नंबर टू। प्यार पैशन या फिजिकल अट्रैक्शन से काफी अलग होता है क्योंकि ओलु फिज़िकल अट्रैक्शन हमारे प्यार करने का एक काफी बड़ा और जरूरी हिस्सा होता है पर इमोशनल प्यार इससे अलग होता है और तभी वन नाइट स्टैंड या अल्कोहल के इन्फ्लुयेन्स में हुप्स कभी भी लॉन्ग टर्म रिलेशनशिप में कन्वर्ट नहीं होते। नंबर 1175 इयर्स लंबी स्टडी में पता चला कि एक इंसान की हेल्थ हैपिनेस और उसकी लाइफ में फुलफिलमेंट सिर्फ एक फैक्टर के अराउंड घूमती है, जो हैं प्यार या फिर रिलेशनशिप्स। यह फैक्टर हमारी लाइफ में करिअर, सक्सेस या पैसा सबसे ज्यादा इम्पोर्टेन्ट है और यही हमारी लाइफ की सबसे बड़ी टीचिंग हैं।","प्यार सबसे मजबूत ताकतों में से एक है जिसे हम कभी भी अनुभव कर सकते हैं और यदि आपने इस ताकत का अनुभव किया है, तो आप जान सकते हैं कि यह आपको नष्ट करने या आपको अपना बेहतर संस्करण बनाने की शक्ति कैसे रखती है। यही कारण है कि इस पॉडकास्ट में मैं प्यार और आकर्षण के बारे में कुछ चौंकाने वाले मनोवैज्ञानिक तथ्यों पर चर्चा करके आपको प्यार के बारे में अपनी समझ बढ़ाने में मदद करूंगा।" "अपनी लाइफ के सबसे बुरे दौर से बाहर आते आते हैं। जब मैंने सर्कुलर डिज़ाइन्स जैसे मंडाला बनाने शुरू करें, तब मुझे समझ आने लगा कि हमारी साइकिक डेवलपमेंट का गोल हमें हमारी असली पोटेंशिअल तक पहुंचाना है और ये प्रोग्रेस कभी भी एक सीधी लाइन की तरह नहीं बल्कि एक परिक्रमा की तरह दिखती है। 19। फोर्टिस की शुरुआत में जहाँ ज्यादातर साइकोलॉजिस्ट मेंटल इलनेस पर फोकस थे, वहीं इब्राहिम मास्लो ने सोचा। की साइकोलॉजी का गोल सिर्फ हमारी बीमारियों को ठीक करना नहीं है। इसकी मदद से हमें यह भी समझ आना चाहिए कि एक इंसान के टैलेंट स् और उसकी पोटेंशिअल क्या है? उसके हिसाब से जो चीज़ साइकोलॉजिकली ग्रो करते रहने वाले लोगों को मेंटली इन लोगों से अलग करती है, वो है उनकी सेल फुलफिलमेंट की डीज़इर जिसे बोलते है सेल्फ ऐक्चुअली स्टेशन। यानी हमारी सोसाइटी में सबसे हेल्थी और हैप्पी लोग हमेशा अपने आप को बेहतर बनाने और अपने आप को ट्रांसफॉर्म करने पर काम कर रहे होते है। सो, इस वीडियो में हम बात करेंगे कि क्यों ज्यादातर लोग खुद ही अपनी पर्सनल डेवलपमेंट के रास्ते में आ जाते है। क्यों अपनी पोटेंशिअल तक पहुंचना हमारी लाइफ का सबसे बड़ा गोल है? क्या होगा अगर हम अपने आप को कन्टिन्यूसली डेवलप नहीं करेंगे और कैसे हम अपने आप को ट्रांसफॉर्म करके एक फुल फिलिंग लाइफ जी सकते हैं? हमारी सोसाइटी में ज्यादातर लोग एक एम टि ने इस फील करते हैं एक तरह की लॉन्ग। उन्हें नहीं पता कि यह फीलिंग क्यों आती है। उन्हें ऐसा लगता है जैसे वो अपनी लाइफ वेस्ट कर रहे हो। इट डज नॉट मैटर हमारी लाइफ कितनी आसान या मुश्किल है? हमें टाइम टु टाइम साइनस सिंबल्स या स्टोरीज़ के थ्रू ही याद दिलाया जाता है कि हम अपना फ़्यूचर और अपनी लाइफ को खराब कर रहे हैं और जीवन अगर हम अपनी लाइफ में कुछ बनना भी चाहते हैं तब भी। इस फ्रस्ट्रेशन के साथ सालों गुजर जाते हैं और हम अपनी डेवलपमेंट के लिए कोई कड़ा ऐक्शन नहीं लेते। कई बार अपने अंदर की इस आवाज को शांत करने के लिए हम अल्कोहल या फिर ड्रग्स का सहारा लेते हैं और उसके बाद या तो 40 या 50 साल के हो कर हम सोचते हैं कि अब काफी देर हो चुकी है या फिर हम अपनी पूरी लाइफ ही इस फीलिंग से बचने में निकाल देते हैं। हाउएवर जिन लोगों के पास अभी भी टाइम बचा है, उनको यह नहीं समझ आता। कि वो अपनी प्रॉब्लम्स को एक हद तक ही इग्नोर कर सकते हैं। क्योंकि एक सर्टन पॉइंट के बाद हमारी प्रॉब्लम्स सिर्फ हमारी नहीं रहती। यानी अगर आप अपने आप को वो नहीं बना रहे जो अब बन सकते हो तो आप गिल्ट शेम और सेल फ्लैट रेट में जीने लगोगे और अपने गोल्स ना अचीव करने की वजह से अपने आप को टॉर्चर करने लगोगे। मास्लो ने अपने एक कोर्ट में बोला कि कई इंसान अपने टैलेंट को क्लेम नहीं करते हैं। कई पेंटर्स एक दुकान में कपड़े बेचते हैं। कई समझदार लोग एक बेवकूफ़ी से भरी लाइफ जीते हैं। कोई इंसान सच देखकर भी अपना मुँह बंद रखते हैं और कई अपनी हिम्मत को छोड़कर एक कायर बन जाते हैं। ये सब लोग ये जानते हैं कि इन्होंने अपने साथ गलत करा है और इस वजह से यह अपने आपको कोसते हैं। अपने आप को दी ऐसी सजा पागलपन को जन्म देती है, बट जीतने चान्सेस इनके अपने आप को खत्म करने के है, उतने ही चान्सेस अपने आप को इम्प्रूव करने के है। इसी वजह से सेल्फ ट्रांसफॉर्मेशन का सबसे पहला स्टेप होता है अपनी करेंट सिचुएशन की अन्डरस्टैन्डिंग बढ़ाना। और ये समझना कि हम एग्ज़ैक्ट्ली कहाँ पर स्टैंड करते हैं। यानी हमें नोटिस करना है कि कौन सी चीज़ कितनी बार हमे गुस्सा दिलाती हैं या फिर गिलटी या महसूस कराती है क्योंकि ज्यादातर केसेस में ये नेगेटिव फीलिंग्स इंडिकेट करती है। एक इंसान अपनी लाइफ को गलत तरीके से अप्रोच कर रहा है और उसे चेंज की जरूरत है। पर इन फीलिंग से दूर भागने के बजाय हमें इन्हें पॉज़िटिव ली यूज़ करना है। अपनी लिमिट्स और पॉसिबिलिटीज़ को जानने के लिए। जिसके बाद हम सेकंड स्टेप पर जा सकते हैं। जो है अपनी लाइफ का पर्पस ढूंढना रॉबर्ट बर्नी अपने एक कोर्ट में हमें समझाता है कि लाइफ का पर्पस है एक पर्पस फुल लाइफ जीना अगर आप इतने लकी हो कि आपको आपकी लाइफ का पर्पस मिल चुका है और अगर आप इतने हिम्मत वाले हो की आप अपनी लाइफ रिस्क पर लगादो उससे जुड़े जोखिम और मुश्किलों को पार करने में तो आपकी मौत भी उस पर्पस को जिंदा रखेगी। यानी जैसे ही हम अपनी लाइफ को एक पर्पस के साथ देखने लगते हैं और उसकी तरफ चलना स्टार्ट कर देते हैं। वैसे ही हम एक ऐसे मिशन को जन्म दे देते हैं जो हमारी एग्ज़िस्टन्स से भी बड़ा है और उसके बाद हम अपनी उन हैबिट्स और ऐक्शन स्कोर रिफाइन करने लगते हैं, जो हमें हमारे गोल के पास ले जाएंगी। ऐसा गोल बहुत जरूरी होता है, इसलिए नहीं क्योंकि उसको अचीव करने के बाद हमें कुछ प्राइस मिलेगा। बल्कि असली प्राइस तो हमारी ट्रांसफॉर्मेशन है, जो हमें उसे अचीव करने के काबिल बनाती है जितना बड़ा और मीनिंगफुल हमारा पर्पस होता है। उतना ही हमें अपने आप को ट्रांसफार्म करना पड़ता है। उस पर्पस को पूरा करने के लिए पर ज्यादातर लोगों की असली प्रॉब्लम होती है। लेजिनेस या फिर उन्हें पता ही नहीं होता कि वो अपनी इस कुछ कर दिखाने की फीलिंग को ऐक्शन में कैसे कन्वर्ट करें। इस पॉइंट पर ज्यादातर लोग सोचते हैं कि शायद उन्हें पहले अपने डिप्रेशन ऐंगज़ाइइटी फिर् या लैक ऑफ कॉन्फिडेन्स को ठीक करना चाहिए। हाउएवर ये अप्रोच कभी काम नहीं करती क्योंकि इन नेगेटिव इमोशन्स का रूट कॉज होता है। हमारी अपनी गोल्स को पूरा ना कर पाने की इनेबिलिटी इन नेगेटिव इमोशन्स को ना तो मेडिटेशन दूर कर सकता है और ना ही ड्रग्ज़ यही रीज़न है कि क्यों? हमें तब भी अपनी पोटेंशिअल के टुवार्ड्ज़ काम करते रहना चाहिए जब हम डर रहे होते हैं या फिर जब हम डिप्रेस्ड होते हैं और इस अन्डरस्टैन्डिंग के साथ हम चल सकते हैं सबसे इम्पोर्टेन्ट और फाइनल स्टेप पर। यानी थर्ड स्टेप जो है एक ऐडवेंचर पर जाना। ये ऐडवेंचर आपके पास खुद भी चल करा सकता है जैसे एक ऐसी जॉब ऑपर्च्युनिटी जिसके बारे में आप श्योर नहीं हो या फिर कोई सड़न प्रॉब्लम या फिर आप खुद ही अपने आप को किसी ऐसी सिचुएशन में डाल सकते हो, जहा पर आप कंफर्टेबल नहीं हो। जैसे अगर आप एक इंट्रोवर्ट हो तो आपके लिए ऐडवेंचर होगा। पब्लिक स्पीकिंग और अगर आप एक जगह पर कम्फर्टेबली रह रहे हो तो आपकी ग्रोथ के लिए बेस्ट ऑप्शन होगा वहाँ से मूव करना और इस ऐडवेंचर के दौरान आपको काफी मुश्किलें झेलनी पड़ेगी और शायद आपको अपनी कई बुरी हैबिट्स को खत्म भी करना पड़े पर अपने आप को ट्रांसफॉर्म करने और अपनी फुल लिस्ट पोटेंशिअल तक पहुंचने का यही तरीका है। जिन चीजों से आप डरते हो आप उन्हीं की आँखों में आँखें डालकर उनको ओवर कम करने की कोशिश करते हो जिसका रिज़ल्ट आपकी ट्रांसफॉर्मेशन होती है और जस्ट बिकॉज़ ये काम इतना मुश्किल है। ज्यादातर लोग अपनी पूरी लाइफ वेस्ट कर देते हैं और बूढ़े होने पर सोचते हैं कि क्या होता अगर उन्होंने अपनी लाइफ में रिस्क लिए होते हैं? साइकोलॉजी में ये कॉनसेप्ट इंट्रोड्यूस करा था। उसके हिसाब से हमारी पोटेंशिअल यानी जो कुछ भी हम बन सकते हैं। वो टाइम टु टाइम हमे अलग अलग चीजों में दिलचस्पी दिलाती है और ये चीजें हमें हमारी मैक्सिमम डेवलपमेंट तक लेकर जा सकती है। कभी हम आउटर स्पेस में इंटरेस्टेड होते हैं, कभी टेक्नोलॉजी में, कभी ऐनिमलस में तो कभी ह्यूमन ब्रेन में। हमारा हर अलग इन्ट्रेस्ट हमें अपनी पोटेंशिअल को अच्छे से यूज़ करने का मौका दे सकता है और ये जर्नी बिल्कुल ऐसी दिखती है जैसे हम अपनी पोटेंशिअल के आसपास परिक्रमा कर रहे हो और हर चीज़ को टेस्ट कर रहे हो। ये जानने के लिए कि हमें अपनी किन हैबिट्स रिलेशनशिप्स, करिअर, पैट्स और इन्ट्रेस्ट को पर्स यू करते रहना चाहिए। और किन चीजों को पास्ट में छोड़ देना चाहिए, जिससे हम अपनी बीइंग के सेंटर में पहुँच सके। सो, अगर हम एक पथ पर चलना शुरू करें और उसके रास्ते में आने वाली हर चीज़ का डटकर सामना करें तो हम अपनी साइट के उन पार्ट्स को ऑन कर पाएंगे जिनके बारे में अभी हम सोच भी नहीं सकते और ये एक जगह पर खड़े रहने से बहुत बेटर है क्योंकि यहाँ पर ग्रोथ की कोई लिमिट नहीं है। हर ट्रांसफॉर्मेशन एक प्रोसेसेस का रिज़ल्ट होती है। पानी को भाप में ट्रांसफॉर्म होने के लिए बौलिंग से गुजरना होता है और ग्रेप्स को वाइन में ट्रांसफॉर्म होने के लिए फर्मेन्टेशन से है। यानी हर ट्रांसफॉर्मेशन को अचीव करने के लिए आपको एक प्राइस पे करना पड़ता है और ये सोचना बेवकूफ़ी है कि आप बिना ड्रैगन का सामना करे गोल्डन एक तक पहुँच जाओगे। अपनी बुक सिंबल्स ऑफ ट्रांसफॉर्मेशन में युग बोलता किसी भी इंसान को एक रिस्की ऐडवेंचर के खतरों को नज़रअन्दाज़ नहीं करना चाहिए। पर इससे मिलने वाली फुलफिलमेंट इस खतरे के लायक है। किसी को इस खतरे को उठाने की जरूरत नहीं है। पर ये पक्का है कि कोई ना कोई ये खतरा जरूर लेगा और उसे यह अपने होशो हवास में करना होगा। यह एक सैक्रिफ़ाइस है जिससे भगवान भी थर थर कांपते हैं। हर मुश्किल ऐडवेंचर के बाद हमें एक नया सच पता लगता है पर यह सच सिर्फ तभी मैटर करता है जब इसे बदलाव से गुज़ारा जाता है और एक नई नज़र के साथ परखा जाता है। बिल्कुल वैसे ही जैसे नई वाइन को नई बॉटल्स में डाला जा।","स्व-परिवर्तन मनोविज्ञान की एक ऐसी प्रक्रिया है जो हमारी उच्चतम क्षमता से संबंधित है अर्थात वह सब कुछ जो हम स्वयं को विकसित करते हुए बन सकते हैं। हालाँकि, यह प्रक्रिया आमतौर पर बहुत अस्पष्ट तरीके से सिखाई जाती है जिससे इसे समझना मुश्किल हो जाता है और इसीलिए इस वीडियो में मैंने आत्म-परिवर्तन को 3 सरल चरणों में तोड़ दिया है जो आपको आत्म-विकास/आत्म-बोध की यात्रा में अत्यधिक मदद करेगा। . हमें Youtube पर खोजें: www.youtube.com/psychologyinhindi" "थिंकिंग का अपना एक गोल होता है, जिसे अचीव करने के बाद हमारे थॉट्स को खुद ब खुद रुक जाना चाहिए। बिल्कुल वैसे ही जैसे हम फिट होने के लिए कुछ देर भागते हैं और एक पॉइंट के बाद उस दिन की एक्सरसाइज को कंप्लीट करके रेस्ट मोड में आ जाते हैं। लेकिन ओवर थिंकिंग तो ऐसी चीज़ हुई जहाँ पर हम भागते ही चले जा रहे हैं। जीवन दो अब हम थक चूके हैं। यह प्रॉब्लम कोई नई नहीं है। हमेशा से ही इंसान की सबसे बड़ी ताकत और उसकी कमज़ोरी उसका मन ही रहा है। हाउएवर यहाँ असली प्रॉब्लम हमारा माइंड नहीं, बल्कि उसके रास्ते में आने वाले हमारे थॉट्स है। इसलिए ओवरथिंकिंग माइंडसेट रिंग ये चिंता करने का सॉल्यूशन भी माइंड से रिलेटेड नहीं होता। ये सारी प्रॉब्लम्स आती है हमारे खयालों की वजह से और ख्याल बनते है। माइंड में जा रही इन्फॉर्मेशन और पास्ट की मेमोरीज़ है। इसी मेमोरी और नई इन्फॉर्मेशन के बेसिस पर हमारे अंदर डिज़ाइनर्स और फैंटसी जुटती है, जो कई बार हमारे कंट्रोल से बाहर चली जाती है और हम बोलते है कि हम ओवर थिंक या फिर चिंता कर रहे हैं। इस प्रॉब्लम से ज्यादातर लोग इसलिए नहीं निकल पाते क्योंकि उन्हें यह नहीं समझ आता कि इस प्रॉब्लम की जड़ क्या है? अवेर्नेस हर इंसान में है लेकिन जब भी हमारी अवेर्नेस या कॉन्सियसनेस के आगे हमारे खयालों के काले बादल आ जाते हैं तब हमें कुछ दिखना ही बंद हो जाता है। कॉन्शियस या अवेयर होने का मतलब है इन काले बादलों को हटाकर वो देखना जो असल में है, क्योंकि हमारा हर ख्याल ही हमें सच और हमारी असली नेचर से दूर रखता है। सच है शांति की जगह, लेकिन जब भी हम खुद को किसी भी इल्यूजन से अटैच कर लेते हैं तब हमारे अंदर शोर मचने लगता है। यहाँ इस चीज़ को डीप्ली समझो कि किन इल्ल्यूशंस की बात हो रही है। आपके दिमाग में आने वाला हर ख्याल, हर डिज़ाइनर, हर टेम्प्टेशन, आपकी सेल्फ आइडेंटिटी, आपकी पास मेमोरीज़ और आपकी फ्यूचर की फैन थी। सीस हर वो चीज़ जिसका आपके माइंड के बाहर अपना कोई अस्तित्व नहीं है, वह एक इल्यूजन से ज्यादा कुछ नहीं है। पास्ट की मेमोरीज़ को पकड़े रखना इसलिए गलत है क्योंकि वो अब डैड है। डेड बॉडीज को अपने साथ कैर्री करने का क्या फायदा? और फ्यूचर तो अभी पैदा ही नहीं हुआ है तो उसका बोझ भी हमारी बस इमैजिनेशन है। क्या हो चुका है और क्या होगा? इन दोनों खयालों की लड़ाई के बीच? हम उस सच को भूल ही जाते हैं जो इस समय पर हो रहा है। इस तरह से प्रेज़ेंट से दूर भागते हुए हम खुद से ही दूर चले जाते हैं। सिर्फ वही इंसान ज्यादा कॉन्शस बन पाता है और अपने माइंड को स्थिर रख पाता है, जो पास्ट और फ्यूचर से मुक्त हो चुका है। वह अभी मैं जीता है क्योंकि अभी मैं पास्ट और फ्यूचर ऑलरेडी अपनी प्युर फॉर्म में एग्जिस्ट करते हैं। पास्ट प्रिजेंट में से पैदा हुआ था और फ्यूचर प्रेसेंट में से पैदा होगा प्रेज़ेंट मैं ऑलरेडी इटर्निटी यानी अनंत काल के साथ छुपे हैं, यही रीज़न है की क्यों अभी तक के हर इंसान का मैसेज यही रहा है कि प्रेज़ेंट में रहो बिंद नाउ क्योंकि नाउ ज़ीरो की स्टेट है। यहाँ ना तो कोई ख्याल होता है और ना ही कोई हलचल। आपका माइंड स्टैंडबाई मोड पर रहता है और आप हमेशा ही शांत और खुशहाल स्टेट में होते हो, बिल्कुल वैसे ही जीस तरह से कंप्यूटर प्रोसेसर फंक्शन करता है। यानी अगर एक कंप्यूटर में कोई ऐप या प्रोग्राम रैमको यूज़ नहीं कर रही तो उसकी पूरी रैम फ्री होती है। हर तरह की कॉम्पिटिशन करने और प्रॉब्लम्स को सॉल्व करने के लिए अगर एक कंप्यूटर में सैकड़ों टैब्स और ऐप्लिकेशन साथ में मिली हुई है तो उसकी रैम में कुछ और जरूरी काम करने के लिए जगह बचेगी ही नहीं। जितना आप किसी ऐप्लिकेशन को बंद करने की कोशिश करोगे, उतना ही आपका सिस्टम हैंग होगा। यह मैटर बहुत जरूरी है अपने मन को डीपी समझने के लिए, क्योंकि एस मुरली चलते हुए कंप्यूटर की तरह हमारा दिमाग भी हर समय अपनी पूरी कपैसिटी पर नहीं चल रहा होता। माइंड एक कंप्यूटर की तरह स्टैंडबाई मोड पर रहता है जब तक उसे कोई कमांड नहीं दी जाती है। मन के केस में ये कमांड होता है। हमारा कोई भी ख्याल, लेकिन इमेजिन तब क्या होगा? अगर एक कंप्यूटर कई रैन्डम ऐप्स को बंद ही ना कर पाए। यही आपके साथ तब तक होता है जब तक आप अपने खयालों से ही खुद को आइडेंटिफाइ करते हो और इस वजह से वो ख्याल बंद ही नहीं हो पाते है। जब तक आप और आपके खयालों के बीच में थोड़ा सा डिस्टैन्स नहीं आता तब तक आपको यही लगेगा कि आपके ख्याल आपका ही एक पार्ट है। अब इस इन्फॉर्मेशन को सिंपल बनाने के लिए इन्हें स्टेप बाइ स्टेप समझते हैं। स्टेप नंबर वन अंडरस्टैंड दैट माइंड इज़ इन द प्रॉब्लम माइंड एक धारदार चाकू है और ये आपके ऊपर डिपेंड करता है। कि आप इस चाकू से फल सब्जी काटते हो और इसे औजार बनाने के लिए यूज़ करते हो या खुद को ही नुकसान पहुंचाने के लिए हर टूल की इफेक्टिवनेस उस टूल को यूज़ करने वाले से जानी जाती है। अगर एक मूर्ख इंसान को कुछ पैसे दो तो वह कुछ ही देर में सारा पैसा वेस्ट कर देगा, लेकिन एक समझदार इंसान उस थोड़े से पैसों से ही धीरे धीरे करके अपनी पूरी एम्पाइअर खड़ी कर लेगा। इसलिए कभी भी ये मत सोचो कि माइंड आपकी प्रॉब्लम है और काश आपका ये माइंड कुछ देर के लिए ठहर जाता। असली प्रॉब्लम है आपके थॉट्स अगर आपने अपने थॉट से डील कर लिया शो ओवरथिंकिंग तो क्या आपका सारा डर, आपकी ऐडिक्शन स् और आपका खुद को नुकसान पहुंचाने का पैटर्न सब गायब हो जाएगा? स्टेप टू रिमाइंड योरसेल्फ दैट यू आर नॉट योर थॉट्स अगर आप ये सोचते हों कि आप अपने थॉट्स हो, तो ऐसे में आपके थॉट्स हमेशा ही आपके माइंड में रहेंगे ताकि आप उन्हें किसी भी समय यूज़ कर सको। जिसतरह से आप अपने किसी बॉडी पार्ट को यूज़ करते हो, लेकिन अगर आप खुद को यही याद दिलाकर कि आप अपने थॉट्स नहीं हो, आप अपने और अपने ख्यालों के बीच एक डिस्टैन्स बना लो तब वो खुद ही चले जाएंगे। और सिर्फ आपके बोल लाने पर ही वापस आएँगे। थॉट्स मन में उठते हैं किसी गोल को पूरा करने के लिए खाने का ख्याल आता है जब आप भूखे होते हो और पेट भरने के बाद वह ख्याल चला जाता है। फ्रेंड्स के साथ पार्टी करने का ख्याल आपके अंदर तब आता है जब आप अकेले बहुत समय तक बोर हो रहे होते हो। लेकिन जब आप पार्टी में नाचने गाने के बाद थक जाते हो तब आपके मन में से पार्टी का ख्याल भी गायब हो जाता है। हर ख्याल इसी तरह से किसी काम को पूरा करवाने के लिए आया होता है, लेकिन अगर आप अपने पास्ट और फ्यूचर के ख्यालों को भी पकड़कर बैठे हो तो तब आपका माइंड उन्हें भी एक टास्क की तरह ही देखने लगता है, जिसे आपने अभी के अभी पूरा करना है। यही रीज़न है कि क्यों? अगर आपके मन में पुरानी मेमोरी या फ्यूचर की फैंटसीज़ आये भी, तब भी उन्हें अटेंड मत करो, क्योंकि अपने किसी भी ख्याल को अटेंड करने और उन्हें छेड़ने का मतलब है कि आप उनसे किसी गोल को पूरा करवाना चाहते हो, इसलिए अपने थॉट्स के ऊपर से अपनी पकड़ को थोड़ा ढीला करो। इन्टेलिजेन्स भरे हुए और ओवरऐक्टिव माइंड से नहीं, बल्कि माइंड की स्टेबिलिटी और क्लैरिटी से मेजर करी जाती है। अगर आपका दिमाग हमेशा ही ख्यालों से भरा रहता है तो ये ऑब्वियस है कि आप गलत डिसिशन सौर गलत ऐक्शन ही लोगे, क्योंकि हर डिसिशन को प्रोसेसर करने के लिए आपके मन में जगह ही नहीं है। वो पहले ही मरे और सड़ते हुए थॉट्स के साथ प्रिय ऑक्यूपाइड है। इसलिए खुद को अपने थॉट से डिटैच करो। खुद को हमेशा याद दिलाओ कि मैं ये हूँ ही नहीं। जब ये नॉलेज आपकी लिविंग एक्सपिरियंस में बदलेगी तब खुद ब खुद आपका मंच शांत हो जाएगा और माइंड हमेशा थॉट से फ्री रहेगा। स्टेप थ्री चेन्ज वॉट यू फीड टू योर माइन्ड ये स्टेप आपके मन में आने वाले खयालों की क्वालिटी बदलने में आपकी मदद करेगा। क्योंकि बहुत से लोगों को जो चीजें तंग करती है वह है उनके पास्ट रोमांस, उनके ऐक्सिस की मेमोरीज़, फ्यूचर की चिंता, घरवालों और रिलेटिव्स और सोसाइटी की नेगेटिव बातें या फिर उलटे सीधे आइडियास जो उनके मन में न्यूस, मूवीज़ या सोशल मीडिया के थ्रू आ जाते हैं। इन थॉट्स को भी अब जितना एंटरटेन करोगे उतना ही यह आपके दिमाग में ज्यादा जगह घेरेंगे। फॉर एग्जाम्पल जो लोग अपने पास ट्रॉमा से मूव नहीं कर पा रहे हैं, उनका माइंड हमेशा ही उसी नेगेटिव स्टेट में रहेगा जो स्टेट उनको ट्रामा के मिलते वक्त एक्सपिरियंस हुई थी। क्योंकि यह ड्रामा भी उनकी आइडेंटिटी के साथ चिपक कर बैठ जाता है। लेकिन ट्रॉमा के साथ प्रॉब्लम ये होती है कि वो नॉर्मल खयालों की तरह सर ऑफिस पर हमारे कॉन्शस माइंड में नहीं, बल्कि गहराई में हमारे अनकॉन्शस माइंड में छुपकर बैठा होता है। इसलिए अपने ट्रामा या फिर एक दुखद पास्ट को सबसे पहले सर ऑफिस पर लाने और उससे मूव ऑन करने की जर्नी भी अपने थॉट्स या ईगो के इल्यूजन को समझने और उनसे दूर होने से ही शुरू होती है। जैसे ही आप अपनी ईगो यानी सेल्फ आइडेंटिटी से दूरी बना लेते हो, वैसे ही आप अपने अनकॉन्शस माइंड तक पहुँच जाते हो। और उस पॉइंट पर आप अपने ट्रॉमा को समझकर उनसे दूरी बना पाते हो, इसलिए अपनी ओवरथिंकिंग की हैबिट को तोड़ने और मेंटल क्लैरिटी हासिल करने के लिए अपने मन और उसमें मौजूद हर चीज़ से थोड़ी दूरी बनाओ और बस फिर अपनी मेंटल डाइट यानी अपनी इन्फॉर्मेशन से जुड़े कन्सम्शन को बदलो।","सोचने का अपना लक्ष्य होता है और उसे हासिल करने के बाद हमारे विचार अपने आप गायब हो जाते हैं। लेकिन ज्यादा सोचने, मन की बात कहने, या चिंता करने की स्थिति में, जैसे-जैसे हम उनके साथ बातचीत करते हैं, हमारे विचार बढ़ते और अधिक तीव्र होते जाते हैं। हालाँकि, यह समस्या सीधे हमारे मन से संबंधित नहीं है, यह हमारे विचारों और यादों के साथ हमारी पहचान से अधिक प्रभावित होती है। तो, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम इस विचार पर और अधिक विस्तार करेंगे और यह भी बताएंगे कि कैसे आप अपनी अत्यधिक सोच को ठीक कर सकते हैं और अपने दिमाग को आराम दे सकते हैं।" "दिन पर दिन ये ऑब्वियस होता जा रहा है कि सोसाइटी मेल्स को ज्यादा वीक और ओबी बनाने की कोशिश कर रही है। जहाँ कुछ दिन पहले तक मेल्स को मैं स्कूल इन होने के लिए अप्रीशीएट करना जाता था, वहीं आज मेल्स को पैसे फेमिनिन और ज्यादा अग्रि एबल होने के लिए वाहवाही मिलती है। मेल्स के अंदर की वो रिअर स्पिरिट खत्म होती जा रही है और आज हर मेल ऐडल्ट एक अनटाइटल्ड बच्चे की तरह एक्ट कर रहा है, जिसे बिना मेहनत के ही हर अच्छी चीज़ चाहिए। लेकिन मॉडर्न सिविलाइज़ेशन आसानी से ट्रिगर हो जाने वाले वीक मिल्स ने नहीं खड़ी करी थी। बल्कि हमारे एन्सिस्टर्स हमारे से कई गुना ज्यादा मेंटली और फिजिकली स्ट्रॉग भी थे और उनमें अपनी फ्यूचर जेनरेशन की जिंदगी आसान बनाने की ड्राइव भी हमारे से ज्यादा थी। लेकिन सोसाइटी के कंफर्ट और स्कूल्स या फिर मीडिया के द्वारा कराई गई ब्रेनवॉशिंग ने हमें इतना ज्यादा वीक बना दिया है कि हम अपने आइडल और गोल से भटक गए है और टोटली गलत है, बिट्स में उलझे हुए हैं। अगर आप वो मेल बनना चाहते हो, जॉब बनने के काबिल हो तो आपको उन डम चीजों को करना रोकना होगा जो आपको एक बेहतर मेल बनने से रोकती है और ये एपिसोड कुछ ऐसी ही उन चीजों के बारे में है नंबर वन ब्लेमिंग विमिन फॉर बीइंग डिफिकल्ट। ये स्टुपिड चीज़ हर लो वैल्यू मेल करता है। यानी जब भी उसे किसी फीमेल से रिजेक्शन मिलता है या फिर उसे यह लगने लगता है कि उसके लिए एक फीमेल आइडिल को प्लीज़ करना ऑलमोस्ट इम्पॉसिबल है, तब वो फीमेल्स के टुवार्ड्ज़ रिज़ल्ट फुल बन जाता है। वो कंप्लेन करने लगता है कि फीमेल्स कितने नखरे होते हैं या फिर फीमेल्स को तो बस मेल्स के पैसो से मतलब है। इन फालतू की बातों को सिर्फ वही मेल्स बोल रहे होते हैं जिनको दीप इनसाइड ये पता होता है कि वो एक हाई वैल्यू फीमेल के लायक नहीं है। और वो खुद को ज्यादा काबिल बनाने के बजाय फीमेल्स की चॉइस पर ऊँगली उठाने लगते हैं ताकि वह उनके जैसे एक लूँ। सर के साथ सेटल कर लें, लेकिन याद रखो फीमेल्स की ये मेटिंग स्ट्रैटिजी होती है कि वो अपने से ज्यादा वैल्यू वाले मेल को ही अपना पार्टनर बनाती है। यह बायोलॉजिकली उनमें वाइड है कि वो सिर्फ हाइली कैपेबल और इंटेलीजेंट मैन को ही चुनें हैं ताकि उनकी ऑफ स्प्रिंग भी किसी कैपेबिलिटी के साथ पैदा हुए, इसलिए फीमेल्स को ब्लेम करना जस्ट बिकॉज़ वो आपको भाव नहीं देती या फिर आपकी रिस्पेक्ट नहीं करती क्योंकि आप ज्यादा कैपेबल नहीं हो ये बहुत ही डम चीज़ होती है। एक असली मिल को यह पता होता है कि कंप्लेन करने से कुछ नहीं होने वाला और इसके बजाय उसे खुद की वैल्यू बढ़ाने पर काम करना चाहिए। गेम के रूल्स को बदलने की कोशिश मत करो बल्कि सिनसिअर ली ये समझो कि आप इस गेम को जीत कैसे सकते हो। नंबर टू नॉट टेकिंग केयर ऑफ योर स्किन यूज़्वली मेल सपने ट्वेंटीज़ के खत्म होने तक भी अपनी स्किन की ज्यादा परवाह नहीं करते हैं। इस समय पर आपकी स्किन पर आपकी अधूरी नींद, बुरी डाइट या फिर स्ट्रेस का उतना ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ता। लेकिन जैसे ही आप अपने 30 जाने लगते हो तब आपके ट्वेंटीज़ में चलने वाली सारी हैबिट्स आपके ऊपर से ज़्यादा इम्पैक्ट डालने लगती है और आपकी स्किन भी इसी वजह से बहुत जल्दी लू, स् और अन्य अट्रैक्टिव बन जाती है। आप यंग होने के बावजूद भी अपनी एज से 10 से 15 साल बड़े लगने लगते हो। इसलिए अपनी स्किन को इतनी बुरी तरह से ट्रीट करना बंद करो और फालतू के प्रोडक्ट्स को स्किन पर लगाने के बजाए इस थम रूल को याद रखो कि अगर किसी चीज़ को आप खा नहीं सकते तो उसे स्किन पर लगाना भी हार्मफुल होगा क्योंकि हमारी स्किन उस पर लगी हर चीज़ को अब ज़ोर कर लेती है। इस वजह से आपकी स्किन बेस्ट तब लगेंगी जब आप उस पर कम से कम केमिकल्स को यूज़ करोगे और एक हेल्थी लाइफ स्टाइल को फॉलो करोगे। नंबर थ्री मेकिंग इक्स्क्लूसिव फॉर नॉट बीइंग ****** हर यंग मेल को अपने 20 ज़ोर 30 डेज़ में अपनी बेस्ट पॉसिबल फिज़िक्स में होना चाहिए क्योंकि इस टाइम पर आपका टेस्टॉस्टोरोन अपनी पीठ के आसपास होता है और आप जितनी जल्दी और जितनी कम एफर्ट्स के साथ अभी मसल्स को बोल्ड कर सकते हो वो ऑपर्च्युनिटी आप अपने मि। 30 के अराउंड ही खोने लगोगे। जीवन आप जो मसल अभी बिल्ड करोगे वो आपके बुढ़ापे में भी आपको काम आएँगी। जस्ट बिकॉज़ बढ़ती है। इसके साथ मसल्स कम होने लगती है। आज एट लिस्ट बहुत से यंग मेल्स मस्क्युलर मेल्स को आइडल आइस तो करने लगे हैं, लेकिन फिर भी मेच्युरिटी की मेल पॉप्युलेशन अपनी फिज़ीक की जेनेटिक पोटेंशिअल के बहुत नीचे है। कई मेल सपने अनहेल्थी लाइफस्टाइल और ओवरईटिंग की वजह से ऐक्सिस फैट कैर्री कर रहे हैं और कई ईमेल्स न्यूट्रिअन्ट रिच फूड्स ना खाने की वजह से बहुत ही स्किनी है। इसलिए इस ऑपर्च्युनिटी को मिस मत करो और अपनी ***** अपील को बढ़ाओ जाकर और हेल्थी डाइट लेकर नंबर फ़ोर टू मच, वीड शुगर और अल्कोहल इन तीनों चीजों और इवन वीडियो गेम्स को भी मैं सम कैटगरी में ही डालता हूँ क्योंकि ये चीजें आपको बहुत ही स्लो और अनप्रोडक्टिव बनाती है। यह बातें बस बोलने की होती है कि आप लेने से ज्यादा क्रिएटिव बन जाते हो या फिर आप बिना अल्कोहल के किसी पार्टी को खुलकर एन्जॉय कर ही नहीं सकते है। असलियत में आप इन चीजों को यूज़ करते हो, रिऐलिटी को एस्केप करने के लिए और जो केक आपको लाइफ से नहीं मिलती उसीके को इन नशों या फिर खाने की चीजों में ढूंढने के लिए ओकेशनली ये चीज़े आपको ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचाएंगी। लेकिन अगर आप हर अगले दिन ही नशे में होते हो, हर समय गेम्स खेलते रहते हो या फिर अपने इमोशन्स को बेहतर बनाने के लिए खाना खाते हो तो ऑब्वियस्ली ये एक बहुत ही डम आदत है जिसे आपको जरूर बदलना चाहिए। नंबर फाइव नॉट इन्वेस्ट इन गरली यानी फ्यूचर के बारे में एनफ लैनिंग ना करना। आज बहुत से यंग लोग ये बोलते तो है कि वो अपने ओर दुनिया के फ्यूचर के बारे में काफी एक्साइटेड और क्न्सर्न हैं। लेकिन उनकी यह बात उनके ऐक्शन में नहीं दिखती। लोग बोलते तो है कि उन्हें अमीर होना है। लेकिन वो कभी एक सही तरह से इन्वेस्ट करना नहीं शुरू करते हैं। नंबर सिक्स बीइंग थिन स्किन एंड थिन स्किन डोर सेन्सिटिव बने रहना एक ऐसी लग्जरी है, जिसे सिर्फ यूज़र्स और डरपोक लोग अफोर्ड कर सकते हैं। और ये बहुत हद तक एक फर्स्ट वर्ल्ड प्रॉब्लम है। वरना असलियत में क्या फर्क पड़ता है कि आपको किसी ने इंटरनेट पर गाली दे दी, आपके फ्रेंड सर्कल या फैमिली में किसीने आप का मजाक उड़ा दिया या फिर आपको एक छोटा मोटा फेल्यर मिला? लाइफ ऐसी ही है। यहाँ अगर आप स्ट्रांग नहीं बने तो दूसरे लोग या फिर आपके हालात ही आप को कुचल देंगे। इसलिए हर छोटी बात पर ऑफेंड होने या फिर लाइफ कितनी मुश्किल है इस बारे में कंप्लेन करने के बजाय अपनी लाइफ में होने वाली हर अच्छी और बुरी चीज़ की ओनरशिप लो। बोलो की मैं ही रिस्पॉन्सिबल हूँ कि मुझसे वो लड़की नहीं पटी। मेरी ही गलती है कि मेरे पास पैसे नहीं है और मैं ही अपनी कम्युनिटी को आगे बढ़ने से रोक रहा हूँ। जितनी जल्दी आप अपनी किस्मत की रिस्पॉन्सिबिलिटी लोगे, उतनी ही जल्दी आप अपनी लाइफ की दिशा को कंट्रोल करना शुरू कर पाओगे। नंबर सेवन ऑफ सेंसिंग ओवर नोफैप नोफैप एक्स्ट्रीम रिस्पॉन्स है एक्स्ट्रीम प्रॉब्लम का। यानी जीस तरह पिछले कई डेज़ में ऐडल्ट एन्टरटेनमेन्ट इतना ईज़ी ऐक्सेसिबल हो गया है उसी स्पीड से आज कल का यूथ भी इन चीजों को हर समय और हर जगह देखने के लिए प्रोग्राम हो गया है, जिसकी वजह से आज के मेल्स रियल लाइफ में इंटिमेसी को पाने में उतनी मेहनत नहीं लगा रहे हैं। यही इंटिमेसी की कमी मेल्स की इस चीप लेज़र कोचेस करने के ऐडिक्शन में दिखती है। हाउएवर नोफैप इंटिमेसी की इस कमी को एड्रेस ही नहीं करता और एक मेल की अर्जी इसको सही डायरेक्शन देने के बजाय नोफैप उन को सप्रेस करने की कोशिश करता है लेकिन साइकोलॉजी बोलती है कि हम जीस भी ख्याल या फिर को दबाने की कोशिश करते हैं, तब वो ख्याल या फिर इन्स्टिट्यूट हमारे ऊपर और कंट्रोल बनाने लगती है। इसी वजह से नोफैप हमेशा लॉन्ग टर्म में सेक्शुअल थॉट्स को बढ़ाता है और आपकी एक्चुअल ***** ड्राइव को गिराता है। नोफैप एक ट्रेंड है जिसके पीछे की इंटेन्शन बिल्कुल सही है। लेकिन प्रॉब्लम को सॉल्व करने का तरीका एकदम गलत। इसलिए इस तरह की डम चीजों को रिपीट करना बंद करो और याद से आईडी मनी ऐप को डिस्क्रिप्शन लिंक से डाउनलोड करके टेस्ला के फ्री शेयर्स को क्लेम करो। रिमेम्बर कोड पीएच टेस्ला आइएनडी मनी को ओवर थ्री मिलियन इंडियन्स यूज़ करते हैं तो आप भी अपनी फाइनैंशल लाइफ को ट्रांसफॉर्म करने के लिए इस ऐप को जरूर डाउनलोड करो।",पुरुष प्रत्येक पीढ़ी से कमजोर होते जा रहे हैं और पुरुषत्व में इस गिरावट का एक कारण आधुनिक पुरुषों द्वारा विकसित की गई आदतें हैं। ये आदतें और व्यवहार पैटर्न सिर्फ मूर्ख हैं क्योंकि वे आपको अपना सर्वश्रेष्ठ संस्करण बनने से रोकते हैं और वे आपके कीमती समय को भी नष्ट कर देते हैं। इसलिए इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम उन 7 गंदी आदतों के बारे में चर्चा करेंगे जो युवा पुरुषों को करने से रोकने की जरूरत है। "एक काफी पुराना क्वेश्चन जिसने फिलॉसफी और साइकोलॉजी दोनों ही फील्ड के एक्सपर्ट्स को रखा है, वह यह है कि क्या हमारे पास फ्री विल है या नहीं, क्योंकि हमारा हर ऐक्शन आउट क्रिएशन ऐम्बिशन फीलिंग हर चीज़ की जस्टिफाई हो सकती है। एवल्यूशन की मदद से बट वॉट अबाउट बोर्ड हम वेल ये तो पक्का है कि कोई भी इंसान ऑन पर्पस बोर नहीं होता तो एक फैसिनेटिंग क्वेश्चन ये है कि बोर्ड हम की क्या एवोल्यूशनरी सिग्निफिकन्स है? 2012 में रिलीज हुए एक रिसर्च पेपर में ऑथर्स ने बताया कि इस बोर होने की स्टेट को बनाने वाले दो में इन फैक्टर्स हैं। फर्स्ट्ली बोर होने के लिए हमें एक सर्टन लेवल का अराउजल या फिर साइकोलॉजिकल स्टिम्युलेशन चाहिए होता है। यानी जब हम कम साइकोलॉजिकली स्टिमुलेटेड होते हैं और हमारा ब्रेन किसी टास्क में इन गेज नहीं होता, तब हम रिलैक्स फील करते है। जैसे मेडिटेशन के टाइम पे बट जब हम ज्यादा होते है और हमारे अंदर एक टास्क में एंगेज होने की एनर्जी भी होती है। ऑपरेट के सम टाइम हमे कोई चीज़ फीलिंग नहीं लगती तब हम बोर होने लगते हैं। सेकंड लीग बोर्ड हम की फीलिंग तब आने लगती है जब हम किसी चीज़ पर अटेन्शन नहीं पे कर पाते हैं और ज्यादातर हमें यह लगता है कि यह हमारे एनवायरनमेंट की वजह से होता है। फॉर एग्जाम्पल जब हम एअरपोर्ट में बैठे होते हैं, तब हमारे आस पास बहुत कुछ हो रहा होता है। इतने सारे लोग आपस में बात कर रहे होते है। हमारे पास रीड करने के लिए भी काफी चीज़े होती है और कई बार हमारे आसपास टीवी भी चल रहा होता है। पर जब फ्लाइट के डिले होने के स्ट्रेस की वजह से हम किसी भी एक चीज़ पर फोकस नहीं कर पाते और हमारा माइंड एक चीज़ से दूसरी चीज़ पर जम कर रहा होता है तब हम ये सोचने लगते हैं कि यह हमारे एनवायरनमेंट की वजह से हो रहा है और अगेन हम बोर होने लगते हैं। इसी रिसर्च पेपर में ऑथर्स ने एक ऑल इंट्रेस्टिंग स्टडी को रेफर किया, जिसमें पार्टिसिपेंट्स को एक साइकोलॉजी पर बेस्ट रेकोर्ड ऑडियो को सुनना था पर सेम टाइम पर दूसरे रूम में टेलीविज़न पर 100 पूरा चल रहा था। कई लोगों के लिए टीवी काफी लाउड और डिस्ट्रैक्टिंग था पर दूसरे लोगो ने टीवी के शोर को नोटिस भी नहीं किया और कई लोगों के हिसाब से तो टीवी चल ही नहीं रहा था। इसमें से जिन लोगों ने टीवी के शोर को नोटिस भी नहीं किया था, उन्होंने अपने आप को बोर्ड के स्केल पर काफी हाइली रेट किया। ऐस कम्पेरड टु दोज़ जिन्हें टीवी काफी नॉइज़ी लग रहा था तो आइडिया यह है कि टीवी की आवाज काफी डिस्ट्रैक्टिंग थी, पर जो लोग बोर्ड थे उन्होंने अपने एन्वॉयरनट को नोटिस भी नहीं किया। यह इसलिए होता है क्योंकि बोर होने पर कॉन्सन्ट्रेट करना काफी मुश्किल हो जाता है, जिससे हम डे ड्रीमिंग करने लगते हैं और हमारा माइंड वंडर करने लगता है। स्टडीज़ तो ये भी बताती हैं कि जितना हमारा माइंड करता है और हमारे को रैन्डम थॉट्स आते हैं, उतना ही हम बोर्ड फील करते हैं। इसके साथ ही एवल्यूशन अली साइकोलॉजी के हिसाब से ये माइंड और डे ड्रीमिंग हमें नई चीजों को समझने और पास्ट या फ्यूचर से रिलेटेड प्रॉब्लम्स को रिजॉल्व करने का टाइम देता है। क्योंकि जब हम बोर्ड होते हैं, तब हर टाइप के थॉट्स हमारे दिमाग में आते हैं। थिस इस ऑल्सो वी छोटे बच्चे भी एक खिलौने के साथ खेल खेल कर बोर हो जाते हैं और फिर उन्हें कुछ नया चाहिए होता है। यह हमारी इन्हें ज़िक्र है। नयी चीज़ो को लर्न करने की बोर्ड इन डिकेट करता है की हमारा करेन्ट टास्क हमें कुछ नया नहीं सीखा पा रहा है और ये हमें एक तरीके से फोर्स करता है कि हम अपनी नॉलेज की बाउनड्रीज़ को एक्सप्लोर करें और क्युरिअस बने। तभी जिन स्टडीज़ में लोग ज्यादा बोर होते हैं वो ज्यादा क्रिएटिव ली सोच पाते हैं। नाउ अगर हम ढूंढे की हमारे ब्रेन के किस पार्ट से सबसे ज्यादा क्लोजली रिलेटेड है तो वो है। जो की हमारा सीकिंग सिस्टम होता है और जब यह पार्ट ज्यादा ऐक्टिवेटेड होता है तब हमारी ऑब्जर्वेशन लर्निंग कपैसिटी इन्क्रीज़ हो जाती है और सरप्राइजिंगली इनफ हम ज्यादा अल्ट्रा स्टिक हो जाते है और रूल्स को फॉलो करते हैं। इसके साथ ही हमारे सिस्टम के साथ मिलकर हमें नई चीजें लर्न करते टाइम रिवॉर्ड वाली फीलिंग देता है और यह सिर्फ ऑब्वियस रिवॉर्ड से ही नहीं बल्कि किसी टाइप का फीडबैक लेते टाइम मेंटल प्रोसेसेस का डेटा ऐनालाइज करते टाइम और ब्यूटी को प्रोसेसर करते टाइम भी ऐक्टिवेट होता है। बट काफी होता है। यह हमने बार बार कई एक्सपेरिमेंट्स में देखा है कि कैसे अगर लोगों को ऑप्शन दिया जाए, किया तो उन्हें 10 से 15 मिनिट बिना किसी डिस्ट्रैक्शन के सिर्फ अपने थॉट्स के साथ बैठना है या फिर वो अपने आप को एक इलेक्ट्रिक शॉक देकर इस से बाहर निकल सकते हैं और ज्यादातर लोग अपने आप को शौक देना प्रिफर करते हैं। हम भी अपने फोन्स और लैपटॉप से यूज़ करके बोर्ड को इंस्टैंटली खत्म तो कर सकते हैं पर इसमें एक प्रॉब्लम है और वो ये है की जब हम अपने एक इमोशन को बार बार सप्रेस करते हैं उससे वो अपना एवल्यूशन अली पर्पस फुलफिल नहीं कर पाता। एक चार्टर्ड साइकोलॉजिस्ट जिसका नाम सैन्डी मैन है उसने एक अनैलिसिस में देखा। कीबोर्ड ऐन घर के बाद सबसे ज्यादा सरप्राइज़ करें जाने वाले इमोशन है। तो अब जब हम यह समझ चूके हैं कीबोर्ड ऐक्चुअल में कितना यूज़फुल है तो बॉल हमारे कोर्ट में आ चुकी है। और अब हम ये डिसाइड करना है कि हम किस चीज़ को प्राइस करेंगे, बोर्ड से इन्स्पाइअर्ड नहीं लर्निंग और क्रिएटिविटी को या फिर कंटिन्यू स्क्रीनटाइम को?","बोरियत, जैसा कि हम जानते हैं, बहुत ज्यादा आकर्षक नहीं लगती। यह बोर होने से जुड़ी अप्रिय भावनाओं के कारण है। इन दिनों हम बोर भी नहीं होते हैं और अगर हम करते हैं तो हमारे पास इस अप्रिय स्थिति से बाहर निकालने के लिए लाखों वीडियो, मीम्स, गाने हमारी उंगलियों पर हैं। लेकिन बोरियत के विकासवादी उद्देश्य को जानने के बाद, आप इसकी सराहना करने में सक्षम होंगे और अंत में हर उस चीज़ से विराम लेंगे जो आपको ऊबने से रोकती है। हमें Youtube पर खोजें: www.youtube.com/psychologyinhindi" "चाहे आप को यह फैक्ट अच्छा लगे या ना लगे, लेकिन आप जैसे भी हो वह अपने बचपन और अपनी यूनीक पैरेंटिंग की वजह से ही हो। जिसतरह से आपके पेरेंट्स ने आपको पाला आपको जो बातें सिखाई जो बातें आपने उनकी बिहेव्यर से कॉपी कर ली और जीस तरह के एनवायरनमेंट में आप बड़े हुए, आपके पास की हर अच्छी या बुरी चीज़ आपके प्रेज़ेंट के हर अच्छे या बुरे एक्सपिरियंस की बुनियाद है। जिसतरह से आपके पैरेंट से आप में उनके फेशियल, फीचर्स, आवाज, हाइट या बॉडी स्ट्रक्चर आ जाता है, वैसे ही आपने उनकी हैबिट्स भी आ जाती है। जहाँ इनमें से कई हैबिट्स अच्छी हो सकती है और आपको एक वेल डेवलप्ड इंसान बनने में मदद कर सकती है, वहीं आपको मिली और बचपन में बनी कई हैबिट्स ऐसे भी हो सकती है जो आपके लिए बहुत ज्यादा हानिकारक होंगी। इसलिए यह एपिसोड कुछ ऐसी ही पुरानी हैबिट्स के बारे में है जो शायद आपने अपने बचपन में अपने पैरेंट से सीखी हो। हैबिट नंबर वन झगड़ों से बाहर ना पाना हमारे पेरेंट्स और ग्रैंडपैरेंट्स ने इंसान के सबसे बुरे रूप को देखा है। उन्हें पता है कि जंग के समय में हर समय घुट घुटकर रह ना ये अपने भाई बंधुओं से बिछड़ना कैसा महसूस होता है? और अपने इन्हीं ट्रॉमैटिक एक्सपिरियंस इसकी वजह से उनकी नॉर्मल स्टेट लोगों को शक करने और अनजान लोगों से दूर रहने की है। अगर आप अपने ग्रांड पेरेंट्स से पूछो तो वह भी आपको यही बताएंगे कि माँ बाप का यह बोलना कि अनजान लोगों से बात नहीं करनी या फिर अनजान लोगों का दिया कुछ खाना नहीं है। यह एडवाइस बहुत ही रीसेंट्ली पैदा हुई है और तीन चार जेनरेशन से पहले लोगों के बीच इतना ज्यादा डिवाइड और मिस ट्रस्ट नहीं था। अनजान लोगों और घर आए मेहमानों को भगवान का रूप माना जाता था जिनकी सेवा कर के आप उन्हें अपना कल्चर और उन्हें उनके सुख दुख में मदद करने की अपनी चाह दिखाते थे। लेकिन वर्ल्ड वोर्स और स्पेसिफिकल्ली ब्रिटिश रूल की वजह से हमारे ग्रैंड पैरेन्ट्स ने हमारे पैरंट्स को और फिर हमारे पैरेंट से हमें लोगों को शक करने और उनसे दूरी बनाए रखने की टीचिंग दी है। लेकिन इसी वजह से हम बहुत बार अनजान लोगों के साथ तो क्या बल्कि अपनों के साथ ही परायों की तरह बिहेव करने लगते हैं और उनसे दूर हो जाते हैं। अगर हमारी अपने दोस्त से किसी छोटी सी बात पर लड़ाई हो जाए तो हमारे अंदर पहला ख्याल उस लड़ाई को शांति से सॉल्व करने का नहीं बल्कि अपनी दोस्ती को हमेशा के लिए खत्म करने का आता है। यह ख्याल बिल्कुल भी नैचरल नहीं है। जस्ट बिकॉज़ हम इंसान ग्रुप्स में रहने के लिए ही बने हैं। हमें नैचुरली लड़ाई करना और अपने अंदर नफरत रखना नहीं पसंद क्योंकि ये चीजें हमारे सर्वाइवल के अगेन्स्ट है इसलिए अपनी इस लर्न हैबिट को अनलर्न करो। लोग जैसे हैं उन्हें बस वैसे ही देखो क्योंकि हर इंसान में अच्छा ई और बुरा ई दोनों है। हैबिट नंबर टू स्ट्रेस को मैनेज करने के गलत तरीके यह भी एक बहुत बुरी हैबिट्स है। आप कितना स्ट्रेस लेते हो और किन चीजों के बारे में स्ट्रेस लेते हो या आपके बचपन और पैरेंटिंग पर ही डिपेंड करता है? एग्जाम्पल के तौर पर अगर एक फादर हमेशा अपने लाइफ के दुखों को भुलाने और उनका दर्द कम करने के लिए शराब के नशे का सहारा लेता है तो उसका बच्चा भी जब छोटी उम्र में उसे ऐसे देखेगा तो वो भी यही याद कर लेगा कि लाइफ की प्रॉब्लम से डील करने का बेस्ट सलूशन है उनसे दूर भागना, बजाए उन्हें फेस करने के सिमिलरली कई पैरेन्ट्स नशों का नहीं बल्कि सिर्फ इग्नोरेंस का सहारा लेते हैं और अपनी हर छोटी बड़ी प्रॉब्लम को बस इग्नोर कर देते हैं। अगर उनके बच्चे को कुछ हो जाए तो वो उसे बोलते हैं कि कोई बात नहीं, सब ठीक है। कितना भी बुरा हो या कोई भी प्रॉब्लम हो, उनका फोकस उस प्रॉब्लम को सॉल्व करने में नहीं बल्कि उसे टेंपोररिली मैनेज करने पर होता है। इसलिए अपने स्ट्रेस पर बेस्ट रिएक्शन्स को नोटिस करो और देखो कि कहीं आप भी अपने पेरेंट्स की बुरी आदतों को रिपीट तो नहीं कर रहे हैं। बिट नंबर थ्री खुद की गलती ना मांगना। कभी भी सॉरी ना बोलना और अपनी गलती ना मानना। ये आदत आती है दूसरों के आगे टफ बने रहने की जरूरत से। लोग डरते है कि अगर वो ज़रा सा भी किसी के आगे झुक गए और उन्होंने अपनी सॉफ्ट साइड दिखा दी तो इससे दूसरे लोग उन्हें यूज़ करने लगेंगे और उन्हें दबाने की कोशिश करेंगे। ऐसे पैरेन्ट्स की वजह से एक बच्चे के लिए भी सॉरी बोलना और अपनी गलती मान ना बहुत मुश्किल हो जाता है क्योंकि उसने कभी अपने घर में एक हेल्थी अपोलोजी देखी ही नहीं होती। सिर्फ एक इंसान की पैरेंटिंग ही उसे अपने बिहेव्यर की रिस्पॉन्सिबिलिटी ना लेना। और कभी भी दूसरों को नुकसान पहुंचाकर उनसे फिर माफी ना मांगना सीखा सकती है। इसलिए आपको हर बार यह कॉन्शस डिसिशन लेना चाहिए कि आप अपनी इस हैबिट को बदलना चाहते हों और जब भी आप जाने अनजाने में किसी को हर्ट कर दो तो बस उसे सॉरी बोलो और अपना मन वही पर हल्का कर लो, बजाए अपने अंदर कड़वाहट का वजन रखने के हैबिट नंबर फ़ोर अनहेलथी रिलेशनशिप में रहना। आज के बहुत से मॉडर्न बच्चे अपने पैरंट्स के अनहेलथी रिलेशनशिप को देखकर यह सीख रहे हैं कि नॉर्मल रिलेशनशिप्स तो ऐसे ही होते हैं। यहाँ हर अगले दिन लड़ाई झगड़े, गाली गलौज और रोना धोना होता है। हर बच्चा एक रिलेशनशिप और प्यार का आइडिया अपने पैरेन्ट्स को देख कर ही लेता है जिसकी वजह से ज्यादातर मॉडल लोगों को एक हेल्थी रिलेशनशिप, एक सुंदर सपने या कहानी की तरह लगता है। इसलिए अगर आप भी एक हेल्दी रिलेशनशिप नहीं मेनटेन कर पाते या फिर आप ये मानते ही नहीं हो कि रिलेशनशिप स्टेबल और जिंदगी में वैल्यू ऐड करने वाले भी हो सकते हैं तो अपने पास्ट में जाकर देखो और सोचो कि कहीं आपने अपना रिलेशनशिप्स और प्यार को देखने का नजरिया अपने पैरेंट से तो नहीं बोरे कर रखा है। बिट नंबर फाइव पुअर कम्यूनिकेशन स्किल्स अगर आपके पैरेंटस आपके साथ ढंग से बात नहीं करते थे या फिर आपके आगे आपस में ज्यादा बात नहीं करते थे तो चान्सेस है कि इसका असर आपकी कम्यूनिकेट करने की भी लिटी पर जरूर पड़ा होगा। बच्चे अपने पैरंट्स के बोलने का ढंग, उनकी लाउडनेस, उनकी बोलते हुए हिचकिचाहट हर चीज़ को पकड़ लेते हैं। इसी वजह से यूज़्वली ज्यादा बोलने वाले पैरेन्ट्स के बच्चे खुद भी ज्यादा ऐक्टिव और बातूनी होते हैं जबकि शांत पैरेंटस के बच्चे ज्यादा डिसिप्लिन्ड और कम बोलने वाले होते हैं। इसलिए अगर आपको भी कम्यूनिकेट करने में प्रॉब्लम होती है तो चान्सेस है कि यह चीज़ आपको एक लर्न पैटर्न ही है जिसे आप बदल सकते हो। खुद को एक बुरा कम्युनिकेटर ना लेबल करके और ऑब्वियस्ली अपने पैरेन्ट्स, पार्टनर या थेरपिस्ट के साथ प्रैक्टिस करके हैबिट नंबर, सिक्स, मेंटल हेल्थ टॉपिक्स को टैबू मानना। हमारी जेनरेशन में मेंटल हेल्थ प्रॉब्लम्स इसलिए इतनी ज्यादा तेजी से बढ़ रही है क्योंकि हमारे पेरेंट्स और टीचर्स को हेल्थ को मैनेज करने के बेसिक्स की नॉलेज नहीं है। आज अगर एक घर में कोई बच्चा डिप्रेशन में भी हो तो उसके पैरंट्स को यह पता ही नहीं होता कि वो क्या करे जिसकी वजह से बच्चे को या तो एक बहुत बेकार सी मोटिवेशनल स्पीच मिल जाती है या फिर उससे बस ज्यादा ना सोचने की सलाह दी जाती है। मेंटल हेल्थ की समझ कम होने की वजह से हमारे देश में साइकोलॉजिस्ट्स और थेरपिस्ट्स की भी बहुत कमी है। ऐसे में यंग लोग कन्फ्यूज है कि वो अपनी प्रॉब्लम्स को किसी इंसान के साथ डिस्कस करे। इसलिए चाहे आपको खुद ऐसी कोई प्रॉब्लम हो या आपके किसी फ्रेंड को आपको पता होना चाहिए। की ये चीज़ इग्नोर करने से नहीं बल्कि एक्सेप्टेंस और दूसरों से शेयर करके ही ठीक हो सकती है। हैबिट नंबर सेवन सक्सेस से डरना आज कल के यंग लोग सक्सेस चाहते तो है और ई वन उनमे अपने पैरेंट से ज्यादा सक्सेसफुल बनने की बुक भी है। लेकिन कही ना कही ज्यादातर लोग सक्सेस से डरते हैं। आपको यह टीचिंग मिली हो सकती है कि आपने अपनी चादर देखकर पैर पसारने है। जितना है उसी में खुश रहना है। सेफ्टी और स्टेबिलिटी को हर समय दिमाग में रखना है ना की क्रिएटिविटी को या फिर दूसरों के आगे कभी भी ये नहीं दिखाना ये आपके पास कुछ पैसा भी है। ये एडवाइस आ तो एक काइंड और केरिंग सोर्स से भी होती है। पर यही अपनी ऐवरेज ने इसको एक्सेप्ट करने या ज्यादा बड़ा ना बनने की बातें ही हमे कही ना कही अपनी पूरी पोटेंशिअल को बाहर लाने से रोकती है। पैरेंटस को डीप इनसाइड ये डर भी होता है कि अगर आप ज्यादा सक्सेसफुल बन गए तो आप उनसे दूर चले जाओगे और उनकी लाइफ में कोई मीनिंग ही नहीं बचेगा और इसी डर की वजह से वो अपने बच्चों को ब्रेनवॉश कर देते हैं ताकि वो बस दूसरों की तरह एक आम जिंदगी जी है। चाहे इस तरह उनके बच्चों की पोटेंशिअल और उनके टैलेंट स् वेस्ट ही क्यों ना हो जाए। इसलिए अगर आपको भी यही टीचिंग दी गई है तो अपने पुअर माइंडसेट से बाहर निकलो। समझो कि आपके ऊपर कुछ भी करने की लिमिट्स बस आपके खयालों में ही एग्जिस्ट करती है और याद रखो आपकी हर बुरी या अच्छी हैबिट आपके बचपन की नींव के ऊपर ही खड़ी होती है। लेकिन एक अडल्ट बनने के बाद आप चाहें तो हेल्थी और लाइफ ऑफ लिविंग हैबिट्स को डेवलप कर सकते हो या आप सेल्फ डिस्ट्रक्शन और बुरी आदतों में खुद को फंसा सकते हो, चाहे वो दूसरों पर शक करना हो हर समय चिड़चिड़ा रहना हो, मोबाइल और लैपटॉप में घुसे रहकर पूरा दिन काटना हो, अपनी पोटेंशिअल को वेस्ट करना हो या खुद को अपनी चाइल्डहुड टीचिंग से आइडेंटिफाइ ना करके अपना बेस्ट वर्जन बनना हो, चॉइस आपकी हैं।","आप अपने बचपन और पालन-पोषण का परिणाम हैं। जिस तरह से आपके माता-पिता ने आपका पालन-पोषण किया, जो चीजें आपको सिखाई गईं, जिस माहौल में आपको रखा गया, और जो आदतें आपने अपने बड़ों या भाई-बहनों से सीखीं, उन सभी चीजों ने आपको बनाने में योगदान दिया। लेकिन इस प्रक्रिया में हम बहुत सारी गलत आदतें भी जमा कर लेते हैं। तो, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम बात करेंगे ऐसी ही 7 बुरी आदतों के बारे में जो आपको बचपन से मिली हैं और अब समय आ गया है कि आप उन्हें छोड़ दें।" "आज के मेल्स पिछली कई जेनरेशन के मेल्स के कंपैरिजन में साइकोलॉजिकली और फिज़िकली वीक है। आज के अंदर मेल्स का टेस्टॉस्टोरोन उनकी पैरेन्ट्स की जेनरेशन से लगभग 3240% कम हो चुका है। वो अपने ट्वेंटीज़ में ही इरेक्टाइल डिस्फंक्शन को एक्सपिरियंस कर रहे हैं। सुसाइड करने वालों में से भी 80% लोग मेल्स ही है और जवान लड़के असली रिलेशनशिप्स बनाने और नए लोगों के साथ सोशलिस्ट करने के बजाय ***** और मैस्टरबेशन से एडिक्टेड है। मेल्स इतने वीक लॉस्ट और हेल्पलेस पहले कभी नहीं हुए। ऐसे में ये क्वेश्चन दिमाग में आता है कि ऐसा क्यों हो रहा है? क्यों आजकल के ज्यादातर मेल्स हर बात पर और फ्रेंड हो जाते हैं? क्यों इतने सारे मेल्स फेमिनिन और नीडी बन चूके हैं और क्यों? मेल्स चाहकर भी अपनी लाइफ में आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं। वेल, इसके पीछे दो मेन रीज़न है। पहला है लैक ऑफ गार्डन्स। क्योंकि हमारी लाइफ के पहले कुछ साल हम काफी कमजोर होते हैं और हम अपनी मदर पर डिपेंडेंट होते हैं। सेफ रहने के लिए जीस तरह से एक पॉइंट पर हमारी बॉडी अपनी मदर से जुड़ी हुई होती है। बिल्कुल वैसे ही पैदा होने के कुछ टाइम बाद भी हमारी साइकोलॉजी भी अपनी मदर से ही जुड़ी हुई होती है। इस पॉइंट पर एक बच्चे के लिए उसकी मदर ही उसकी दुनिया और प्यार केर और प्रोटेक्शन का सोर्स होती है। लेकिन लाइफ के पहले एक या डेढ़ साल के बाद एक बच्चा ये समझने लग जाता है कि वो अपनी मदर से अलग एक सेपरेट इंडीविजुअल है। जहाँ लड़कों और लड़कियों दोनों को ही इस टेस्ट से गुजरना होता है वही ये स्टेज लड़कों के लिए ज्यादा मुश्किल होता है क्योंकि एक सेपरेट आइडेंटिटी बनाने के बाद भी लड़कियां अपनी मदर से साइकोलॉजिकली रिलेट कर पाती हैं। उन्हें अपनी आइडेंटिटी एस्टैब्लिश करने के लिए कुछ भी एक्स्ट्रा नहीं करना पड़ता और उनकी बॉडी उन्हें याद दिलाती रहती है। कि एक फीमेल होने का मतलब क्या है? लेकिन लड़कों के केस में उन्हें एक मैस्कुलिन आइडेंटिटी एस्टैब्लिश करने के लिए अपने आप को अपनी मदर और फैमिली के साथ आइडेंटिफिकेशन खत्म करना पड़ता है और अपनी मदर से दूर होना पड़ता है ताकि वो अपने फादर के साथ मर्दों की दुनिया में आ सके। अपनी बुकमार्क हुड इनके मेकिंग में ऑथर डेविड गिलमोर ने लिखा है कि इस पॉइंट पर एक लड़का एक प्रॉब्लम को फेस करता है, जो है अपनी मदर के साथ पहेली बनी सेन्स ऑफ यूनिटी को तोड़ना। एक इन्डिपेन्डेन्ट आइडेंटिटी डेवलप करने के लिए और मैं स्कूल इन बनने के लिए एक लड़की इस प्रॉब्लम से नहीं गुजरती हैं, क्योंकि उसकी फेमिनिटी तो अपनी मदर के साथ साइको लॉजिकल यूनिटी होने से और स्ट्रांग हो जाती है। यही रीज़न है की क्यों? बौस के लिए सेपरेशन और इन डि वि ड्यूरेशन का ये टास्क कठोरता और रिस्पॉन्सिबिलिटी से भरा होता है। अलग अलग कल्चर्स में लड़कों को आदमी बनाने के लिए कई रिचुअल्स या इनिशिएशन से गुज़ारा जाता है जैसे उन्हें जंगल में छोड़ दिया जाता है, उन्हें जहरीली चीटियों से भरे ग्लव्स पहने जाते हैं और बेसिकली कोई भी ऐसा तरीका अपनाया जाता है जिससे वो लड़का अपनी कम्फर्ट भरी दुनिया से बाहर निकल सके। इस तरह से एक बच्चे के अंदर का लड़का सिम्बॉलिक अली मर जाता है। और एक मर्द पैदा होता है क्योंकि वो मुश्किलें ही है जो एक लड़के को मर्द बनाती है। अमेरिकन ऐकैडेमिक कैमल पैग लिया का बोलना है कि एक औरत अपने आप में वैल्यूएबल होती है, लेकिन एक मर्द को अपनी वैल्यू बनानी पड़ती है। हाउएवर आज के समय पर लड़कों को इनिशिएट करने के लिए कोई रोल मॉडल या एक मैं स्कूल इन फादर है ही नहीं, जिसकी वजह से आजकल काफी सारे लड़के एक ऐडल्ट तो बन जाते हैं लेकिन वो साइकोलॉजिकली अपनी माँ के पेट में ही रहते है। मॉडर्न मेल्स के वीक होने का दूसरा रीज़न है डिस्कनेक्शन फ्रॉम रिऐलिटी। क्योंकि इनिशिएट ना होने से और बिना ये जाने रिऐलिटी क्या है? यंग मेल्स अपनी नैचरल इन स्टेप्स को गलत जगहों पर यूज़ कर रहे हैं। वो असली फ्रेंड्स बनाने के बजाय सोशल मीडिया पर अपना पूरा समय बिता रहे हैं। वो डीप रिलेशनशिप बनाने और ***** करने के बजाय पौंड और ********** को यूज़ कर रहे हैं। नेचर में रहने के बजाय वो हर समय एक बंद कमरे में रह रहे हैं और धरती से निकलने वाले नैचरल फूड को खाने के बजाय वो जंक फूड खा रहे हैं और इनमें से भी पॉन्ड और ********** मेल्स को वीक बनाने वाला सबसे बड़ा फैक्टर है, क्योंकि ये मेल्स को रिऐलिटी से बहुत दूर ले जाता है और अगर हम इस फैक्टर को ठीक कर लें तो बाकी फैक्टर्स में खुद ब खुद इम्प्रूवमेंट देखने को मिल सकती है। सो क्यों? आज के यंग मेल्स ***** और मैस्टरबेशन से ऐडिक्टेड है? वेल, यह प्रॉब्लम शुरू होती है मेल्स की सेक्शुअल नेचर से, क्योंकि मेल्स इन्वॉल्व हुए हैं अपने जीन्स को ज्यादा से ज्यादा स्प्रेड करने के लिए, जिससे अगर एक मेल एक ही फीमेल के साथ लंबे समय तक रहता है, तब उसका टेस्ट और डोपामिन लेवल्स कम हो जाते हैं। लेकिन जब उन्हें एक नया पार्टनर मिलता है तब उनका टेस्ट और फिर से बढ़ जाता है और जस्ट बिकॉज़ मेल्स इतने विज़ुअल होते हैं। पॉन्ड उनके लिए एक काफी कॉनविनईएन्ट आउटलेट बन जाता है, क्योंकि वो बार बार नए नए सीन्स, पोज़िशन्स और फीमेल्स को देख सकते हैं और इस प्लेजर की साइकल को कंटिन्यू रख सकते हैं। हाउएवर ***** या ********** हर आदमी के लिये ऐक्टिव नहीं होते हैं और इसके पीछे एक एवल्यूशन रीज़न है। क्योंकि हर इंसान तीन बेसिक चीजें करने के लिए पैदा होता है जो हैं सर्वाइव करना, री प्रोड्यूस करना और कुछ ऐसा काम करना जो उस इंसान और सोसाइटी दोनों के काम आए। हमारे एन्सिस्टर्स हर समय इन्हीं तीन कामों को पूरा करने के लिए मेहनत कर रहे होते थे, लेकिन पिछले कुछ 100 सालों के अंदर हमारी लाइफ काफी आरामदायक बन चुकी है। दुनिया के ज्यादा से ज्यादा लोगों के पास पेट भरने के लिए खाना रहने के लिए घर और अपने आप को एंटरटेन करने के लिए टीवी या इंटरनेट है, जिसकी वजह से ज्यादातर लोगों का सर्वाइवल ऑलमोस्ट गैरन्टी ऑड है। पर आपको यह समझना चाहिए कि हम कम्फर्ट के लिए नहीं बल्कि कुछ लोड उठाने के लिए कुछ मीनिंगफुल काम करते रहने के लिए बने हैं। लेकिन जब टीवी पर चल रहा हमारा फेवरेट शो इंटरनेट पर आई नई वेब सिरीज़ या ***** साइट्स पर हमारा वेट कर रही अनलिमिटेड लड़कियां हमें बहकाती है, तब देखते ही देखते हमें इस कम्फर्ट की ऐडिक्शन हो जाती है और इसलिए क्यों कोई इंसान बाहर जाकर ड्रैगन्स का सामना करेगा, जब वो घर पर बैठे ही कभी न खत्म होने वाली लड़कियों की सप्लाइ और एन्टरटेनमेन्ट को ऐक्सेस कर सकता है या बना बनाया खाना अपने दरवाजे तक मंगवा सकता है? इनकम फोर्स की वजह से एक लूँ। सर अपने दिमाग को ऐसा फील करा सकता है जैसे वो कहीं का राजा हो या फिर उसने बहुत कुछ अचीव कर लिया हो, जिससे उसमें लकी को ऐसा लगता है कि उसका सर्वाइवल पक्का है क्योंकि उसका पेट भरा हुआ है। उसने कुछ मीनिंगफुल कॉन्ट्रिब्यूशन भी दे दिया है क्योंकि वो एक आरामदायक जिंदगी जी रहा है और जो चीज़ रह गई है वो है। ये प्रोड्यूस करना और अपनी जीन्स को पास ऑन करते रहना। इस तरह से आपकी बायोलोजी आपको री प्रोड्यूस करने की अर्जी देती है और आपको आपके ऐक्चुअल पर्पस से डिस्ट्रैक्ट करती है। ऐसा रिज़ल्ट एक मेल कुछ क्रिएट करने की अपनी इस कर्ज को री इनफोर्स करता रहता है। साइकोलॉजी में इस क्रिएटिव वर्ष को बोलते हैं लिबिडो लिबिडो बेसिकली एक इंसान की दुनिया में कुछ नया लाने की बुक होती है। ये नहीं क्रिएशन कोई इन्वेन्शन या अचीवमेंट भी हो सकती है या फिर सिम्पली ये एक बच्चा पैदा करना भी हो सकती है। जीस इंसान में लिबिडो कम होगा। ना तो वो एक बच्चे को पैदा कर पाएगा और ना ही वो कुछ बड़ा हासिल कर पाएगा। एक्साम्पल के तौर पर जीस तरह से आप एक शॉप में जाते हो और एक प्रॉडक्ट को खरीदने के लिए बदले में पैसे देते हो। बिल्कुल वैसे ही आप ***** साइट्स पर भी एक प्रॉडक्ट को खरीदने जाते हो, जिसके बदले में आप अपना यानी दुनिया में कुछ क्रिएट करने की डिज़ाइनर देते हो। याद रखो, हर वो चीज़ जो प्लेजर देकर आपसे आपका छिनतई है वो आपको ज्यादा फेमिनिन वीक और एन टाइटल बनाती है। यहाँ तक की टेम्प्टेशन को। सिम्बॉलिक अली एक मैंने इन के रूप में ही दिखाया गया है क्योंकि सबसे पॉवरफुल टेम्प्टेशन जो एक मेल को अपनी मंजिल के रास्ते से भटका सकती है वह एक ब्यूटीफुल फीमेल ही होती है। जितना आप अपनी इन टेम्पटेशन्स के आगे झुकेंगे, उतना ही आप नेचर के गुलाम बनते जाओगे। यही रीज़न है की क्यों? ज्यादातर मॉडर्न मेल्स या तो लड़कियों को अट्रैक्ट नहीं कर पाते या फिर वह उन्हें खुश नहीं रख पाते, क्योंकि फीमेल्स को नीड इन एस बिलकुल नहीं पसंद। आजकल के मेल्स इतने वीक है क्योंकि ज्यादातर समय उनकी बॉल सैम टी और उनकी पी न सॉफ्ट रहती है। एक मर्द की तरह सोचने और फैक्ट करने के लिए आपको अपने अंदर अपना क्रिएटिव जूस चाहिए। यही रीज़न है कि क्यों आजकल नोफैप जैसी मूवमेंटस इतनी पॉपुलर हो गई है, क्योंकि जब आपने नहीं करा होता तब आपकी कुछ क्रिएट करने की भूख मिटती नहीं होती और यह स्टेट बहुत होती है। एक कंस्ट्रक्टिव एनर्जी है और फेमिनिटी डिस्ट्रक्टिव। अगर आप दुनिया में ऑर्डर नहीं ला रहे हो तो आप दुनिया में क्या लाओगे और हम यह जानते हैं कि केओस फेमिनिन होती है, क्योंकि फेमिनिन की ही तरह वो के ओसी होती है जो ऑर्डर को जन्म देती है। इसलिए अगर आप अपनी लाइफ को ठीक करना चाहते हो और अपनी वीकनेस, इसको ओवर कम करना चाहते हो तो शुरुआत अपनी बुरी आदतों को ठीक करने से नहीं बल्कि नई और अच्छी आदतों को डेवलप करने से करो। अगर आपने ये एपिसोड ढंग से सुना हो तो आप ने ये नोटिस करा होगा कि मेल्स को ये प्रॉब्लम आती ही नहीं। अगर उनकी लाइफ में एक स्ट्रांग पर्पस होता, जो उन्हें अपनी अर्जी इसके आगे झुकने से रोकता और याद रखो। हमारा लाइफ पर्पस सीधा सीधा जुड़ा होता है उन चीजों से जो हमे मीनिंग देती है। अलग अलग चीजों को ट्राई करके देखो की कौन सा काम आपको मीनिंगफुल और एक खेल जैसा लगता है। पिछले कई एपिसोड में हमने ये डिस्कस भी करा है। कि कैसे अपने फ्यूचर के गोल्स और अपनी आइडिल लाइफ के बारे में लिखना कितना यूज़फुल हो सकता है और लास्ट्ली अपनी सराउन्डिंग् ज़ और अपने कंसम्पशन पैटर्न्स को बदलो। धीरे धीरे पॉज़िटिव और नॉलेजेबल चीजें सुनने की, मेडिटेट करने की, हिस्टरी के महान मेल्स की स्टोरी सुनने की या अपने रूम को साफ करने की आदत डालो क्योंकि अपने सब कॉन्शस पैटर्न्स को चेंज करने का सबसे स्ट्रेटफॉरवर्ड तरीका अपनी सेन ***** को कंट्रोल करना ही है। पहले अपनी लाइफ को ट्रैक पर लाने की रिस्पॉन्सिबिलिटी लो और फिर सोसाइटी को बेहतर बनाने की और ये टास्क ही आपका इनिशिएशन प्रोसेसेस है।","नर पहले से कमजोर हो गए हैं। आज के पुरुषों में पिछली पीढ़ी की तुलना में 30-40% कम टेस्टोस्टेरोन है, वे मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों से पीड़ित हैं, वे वास्तविक दुनिया का सामना करने के बजाय सोशल मीडिया पर जी रहे हैं, मुद्दे सिर्फ ढेर होते जा रहे हैं लेकिन पुरुषों को कोई व्यावहारिक समाधान नहीं दिया गया है . लेकिन फिर भी पुरुष इतना कष्ट क्यों उठा रहे हैं? पुरुष इतने विनम्र और कमजोर क्यों हो गए हैं? इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम ऐसा होने के 2 मुख्य कारणों के बारे में जानेंगे।" "कई लोग हमारे इतने अच्छे दोस्त बनकर हमारे परिवार जैसे बन जाते हैं, जबकि हमारे कई दोस्त हर लेवल पर ही हमारे लिए अन्न रिसोर्सफुल होते हैं और हमारी ग्रोथ में बाधा डालते हैं। इसलिए इन गलत फ्रेंड्स को शुरू में ही आइडेंटिफाइ करने के लिए इस एपिसोड में हम कई ऐसे टाइप के लोगों की बात करेंगे, जिनसे आपको कभी दोस्ती नहीं करनी चाहिए। नंबर वन पे पर्सन हूँ गैस लाइट्स यू अगर आपका दोस्त हमेशा ये कंप्लेंट करता है कि आपकी दोस्ती में हर गलती आप ही करते हो तो इसका मतलब वो आपको गैस लाइट करने की कोशिश कर रहा है। गैस लाइटिंग का मतलब होता है किसी इंसान को उसके खुद के बिलीव और पर्सेप्शन को क्वेश्चन करने के लिए मजबूर कर देना। ऐसे इंसान की असलियत जानने के लिए बस इन्हें कुछ देर बोलने दो और आप बस इनकी बातों को सुनो। ये अक्सर खुद ही इनडायरेक्ट वेज में आपको यह बता देंगे कि किस तरह यह आप की बिलकुल परवाह नहीं करते हैं और बस अपने मतलब के लिए आपके साथ हैं। इसलिए अगर हर बात का ब्लेम बिना किसी क्लिअर एक्सप्लेनेशन के आपके ऊपर डाल दिया जाता है तो उसका मतलब कि आपको आपका दोस्त गैस लाइट करने की कोशिश कर रहा है। नंबर टू द स्टोन वॉलर, स्टोन्वॉल अर बनने का मतलब होता है किसी को इग्नोर करना। और अपने लैक ऑफ इंट्रेस्ट को दिखाना। अक्सर हम कुछ इस तरह के इंसान को अपना दोस्तों बना लेते हैं जो शुरू में तो हमारे में बहुत इंटरेस्टेड होता है और हम भी उसकी कंपनी में एन्जॉय करते हैं। लेकिन कुछ समय बाद उसका बिहेव्यर एकदम से बदल जाता है और वो आपको अवॉर्ड करने लगता है। आपसे ना मिलने के बहाने बनाने लगता है और आपको ऐसा फील कराता है कि आप किसी की जिंदगी में कितने अनमोन टेड हो प्लेस और यूज़लेस पर्सन हो। आपको इस तरह के इंसान के साथ एक बोझ बनने की फीलिंग आती है। इस तरह की दोस्ती बिल्कुल भी हेल्थी नहीं होती है। इसलिए जब भी आपका पाला एक स्टोन्वॉल अरसे पड़े या फिर आपका पुराना दोस्त ऐसा बन जाए, तब सही ऐक्शन यही होता है कि आप उनसे खुद ही दूर हो जाओ। नंबर थ्री के कॉम्पिटिटिव वन एक दूसरे से कंपीट करना एक हद तक अच्छा होता है। अगर ये चीज़ आप दोनों के अंदर के बेस्ट पार्ट्स को बाहर निकलने का मौका देता हो, लेकिन अगर आपके किसी दोस्त का मोटिव कॉम्पिटिशन के बहाने आपके साथ ग्रो करना नहीं, बल्कि बस आप को हराकर अपने बारे में अच्छा फील करना है तो समझ जाओ कि उसका दिमाग कितना गलत जगह पर है और ऐसे इंसान से दोस्ती मत रखो। लॉन्ग टर्म में ऐसा इंसान हर तरह से ये कोशिश करेगा। या आप किसी भी तरीके से उससे पीछे ही रहो और आप कभी सक्सेसफुल ना बन पाओं अगर आपकी सक्सेस और ग्रोथ किसी इंसान को बॉदर करती है तो ऐसे इंसान को आप क्यों ही अपना दोस्त बनाना चाहोगे? नंबर फ़ोर सेवन हूँ, प्रेशर यू टु डू रॉन्ग थिंग इज़ मैं ऐसे फ्रेंड्स को एक्चुअल में केरिंग और दूसरे टाइप के फ्रेंड से बेहतर मानता हूँ जो मुझे प्रेशर करते है। अपना लेवल अब करते रहने के लिए अगर मैं लेज़ी फील कर रहा हूँ, गिवअप करने की सोच रहा हूँ और मेहनत ना करने के लिए बहाने बना रहा हूँ तो मैं ऐसे दोस्तों को अपने अराउंड प्रिफर करूँगा, जो एक्चुअल मैं मुझे पुश करें। और मुझे इस तरह से मीडिऑक्रिटी के जाल में जाने से रोकें है। हाउएवर अगर कोई दोस्त आपको बेहतर बनने के लिए नहीं बल्कि पार्टी करने, टाइम वेस्ट करने या फिर कोई और ऐसा उल्टा सीधा काम करने के लिए प्रेशर करता है, जिससे आपका फ्यूचर भी खतरे में पड़ सकता है तो ऐसे इंसान को कभी अपना दोस्त मत बनाओ। शुरू में आपको उनके साथ हैंगआउट करना ऐडवेंचरस और एक्साइटिंग लगेगा, लेकिन कुछ समय बाद जब आप खुद को मुश्किलों में फंसा हुआ और खुद का जरूरी समय वेस्ट करते हुए पाओगे तब आप ऐसे इंसान से खुद ही दूर होना चाहोगे। नंबर फाइव द वन हूँ इस ऑलवेज ट्राइंग टू एजुकेट, यूबी पुटिंग यू डाउन? अगर आपका कोई दोस्त आपको कोई ऐसी नई बात बताता है जो आपको नहीं पता थी तो आप खुश होंगे कि आपको कुछ नया सीखने को मिला। लेकिन कई लोगों की ये आदत होती है कि वह खुद के बारे में बेहतर फील करते हैं। दूसरों के आगे ये दिखाकर कि वो उनसे कितने ज्यादा प्रोग्रेसिव एजुकेटेड और यूनीक है। इस तरह से अक्सर वो लोग बिहेव करते हैं जो इन्टलेक्चुअल और ऐजन्ट होते हैं। उन्हें लगता है कि उनकी ज़रा सी नॉलेज उन्हें हर दूसरे इंसान से सुपिरिअर बनाती है। उनका सेल्फ इम्पोर्टेन्स का डिल्यूजन सिर्फ उन्हें ही नहीं बल्कि उनके आसपास रहने वाले लोगों को भी नेगेटिव ली इन्फ्लुयेन्स करता है इसलिए इस तरह के ऐन्ट और डिसेप्टिव इंटलेक्चुअल्स को अपना दोस्त बनाना एक वाइस चॉइस नहीं होगी। नंबर सिक्स के कंप्लेन इग्लू सर कंप्लेन करने के साथ साथ खुद सल्यूशन तक पहुंचने की बुख आपको बहुत सक्सेसफुल और हेल्पफुल इंसान बना सकती है, क्योंकि आप प्रॉब्लम्स को भी आइडेंटिफाइ कर सकते हो और आप उनके सल्यूशन तक कैसे पहुंचना है, यह भी जानते हो, लेकिन अगर किसी इंसान की जिंदगी बस कंप्लेन से भरी हुई है और उसके पास दुनिया या फिर खुद को ज़रा सा भी बेहतर बनाने का कोई उपाय नहीं है तो इसका मतलब वह बहुत ही टॉक्सिक और ऑनर्स सिस्टिक है। उसका फोकस बस दुनिया की हर नेगेटिव चीज़ पढ़ जाता है और इसी वजह से वो ये सोचता है कि सिर्फ उसके बदलने से दुनिया थोड़ी बदल जाएगी। इसलिए वो काम करने के बजाय बस कंप्लेन करता है। इसलिए ऐसे लोगों को कभी अपना दोस्त मत बनाओ जिनकी नज़र बस प्रॉब्लम्स को ढूंढने के लिए प्रोग्राम्ड है। नंबर सेवन सम्वन हूँ इस इट गुड फॉर यू स्पेसिफिकल्ली फ्रेंडशिप में सिमिलैरिटी इज़ कॉमन इंट्रेस्ट या कहीं ऐसी चीजों का होना बहुत ज़रूरी होता है। जहाँ दो लोग किसी चीज़ पर एग्री कर सके। लोगों के इतने यूनीक और डिफ़रेंट होने की वजह से हर कोई आपके लिए एक आइडियल फ्रेंड नहीं बन सकता। जो इंसान किसी दूसरे के लिए एक अच्छा फ्रेंड है, वो आपके लिए टॉक्सिक हो सकता है और हम यह गलती अक्सर करते हैं। कभी हम किसी को बस उसकी पॉपुलैरिटी के बेसिस पर जज करके उससे दोस्ती करना चाहते हैं और कभी हम उन्हें उनके टोमास या बुरे पास्ट से रेस्क्यू करके उनके हीरो बनना चाहते हैं, लेकिन अगर ऐसे इंसान की दोस्ती आप अपने भाई, बहन, माँ, बाप या फिर अपने बच्चों को रिकमेंड नहीं करोगे तो खुद से पूछो कि आप ऐसे इंसान के साथ खुद भी क्यों हो? आपको एनकरेजिंग और एम्पॉवर इन लोगों को अपना दोस्त बनाना चाहिए जो आपकी बेस्ट इन्ट्रेस्ट के बारे में सोचते हैं बजाय आपको डिस्करेज और पावर करने के नंबर एट ऐन्टी सोशल वन बहुत से लोग इंट्रोवर्ट होने को ऐन्टी सोशल होने से कंपेर करते हैं। लेकिन इन दोनों में डिफरेन्स ये है कि जहाँ इंट्रो वर्जन का मतलब होता है कि आपको पब्लिक में जाना या फिर बहुत से लोगों से इंटरैक्ट करना एग्ज़िस्टिंग लगता है, वहीं ऐन्टी सोशल होना एक पर्सनैलिटी डिसॉर्डर होता है। एक ऐन्टी सोशल इनडिविजुअल को ये फरक नहीं पड़ता। कि क्या सही है और क्या गलत। वो दूसरों की फीलिंग्स की कोई परवाह नहीं करता क्योंकि उसमें साइकोपैथी और जैसे ट्रेड्स है जो उसे दूसरों के लिए एम प थ्री फील करने और उनके साथ घुलने मिलने से रोकते हैं। आप एक ऐन्टी सोशल इंसान को आइडेंटिफाइ कर सकते हो, उनके इंपल्सिव और सेल्फिश बिहेव्यर के साथ साथ उनकी दूसरों को नुकसान पहुंचाने की टेंडेंसी से नंबर नाइन सेवन हूँ। कीप्स कम इन गोइंग आउट ऑफ योर लाइफ टॉक्सिक रिलेशन शिप से भी ज्यादा डेंजरस वो रिलेशनशिप्स होते हैं जिसमें आपको ये पता ही नहीं होता की क्या दूसरा इंसान एक्चुअल मैं आपकी साइड है और आपका भला चाहता है या फिर क्या वो इनडाइरेक्ट वेज में आपको हर तरह से बर्बाद कर देना चाहता है? ये रिलेशनशिप सैम बिल ऐन्ट यानी मिक्स फीलिंग्स वाले होते हैं। आप उस दोस्त को हेट भी करते हो लेकिन कहीं ना कहीं उसकी परवाह भी करते हो, वो कभी आपकी जिंदगी में वापस आता है और कभी आपसे खुद ही दूर चला जाता है। इस तरह की फ्रेंडशिप बहुत एग्ज़िस्टिंग होती है। इसलिए अगर किसी इंसान की पर्सनैलिटी कुछ इसी तरह की है तो ये आपकी रिस्पॉन्सिबिलिटी और अन्डरस्टैन्डिंग होनी चाहिए कि आप उस इंसान से कभी भी ज्यादा डीप बॉन्ड ना बना हो। अदर्वाइज़ आपको सिर्फ डिसअप्पोइंट और स्ट्रेस ही मिलेगा।","कुछ दोस्त हमारे परिवार की तरह ही हमारे लिए इतने मूल्यवान हो जाते हैं, जबकि अन्य हमारे सबसे बुरे दुश्मनों की तरह काम करते हैं। इसलिए यह जानना बहुत जरूरी है कि आपका दोस्त आपकी दोस्ती के काबिल भी है या नहीं और इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम 9 तरह के लोगों के बारे में बात करेंगे जिनसे आपको दोस्ती नहीं करनी चाहिए।" "एवल्यूशन की वजह से पिछले करोड़ों सालों से काफी सारी स्पीशीज़ के जानवर अपने सोशल स्ट्रक्चर्स को हाइरार्की ज़ यानी अलग अलग रैंस में बांटते आए हैं। ग्रुप का सबसे डॉमिनेंट मेल दूसरों से साइज में थोड़ा बड़ा और ताकतवर होता है और वह सब के साथ लड़ झगड़ के हाइएस्ट रैंक ले लेता है। इस हाइ रैनकिन गमेल को एवोल्यूशनरी बायोलॉजिस्ट बोलते है। ऐल्फा मेल ये पूरे ग्रुप का आइडियल होता है। फीमेल्स इसके साथ मेट करना चाहती है। और मेल्स इसके जैसा बनना चाहते हैं, पर हम इंसानों के केस में इस टाइप की हाइरार्की चीज़ पॉसिबल नहीं है, क्योंकि मॉडर्न इंसान सिविल लाइंस बन चुका है और जो कोई भी डॉमिनेटिंग और फिज़िकली स्ट्रांग मेल हमारी सोसाइटी में लड़ाई या धमकियों से टॉप रैंक तक जाने की कोशिश करता है, उसे जेल में डाल दिया जाता है। इसी वजह से इंसानों के बीच डोमिनेंस नहीं बल्कि कॉम्पिटेंस है जो देखती हैं कि किस मेल में एक काम को सक्सेस्स्फुल्ली और एफ़्फ़िशिएण्ट्ली पूरा करने की एबिलिटी है। एग्जाम्पल के तौर पर जब कुछ मेल्स आपस में दोस्ती करते हैं तब सब कॉन्शस लेवल पर वो लोग एक दूसरे को एक हाइरार्की कल स्ट्रक्चर में ओरगनाइसड कर लेते हैं। यानी उनको पता होता है कि उनके ग्रुप को लीड करने की एबिलिटी किस इंसान में है और वो इंसान उस ग्रुप का ऐल्फा होता है। इट डज नॉट मैटर उस ग्रुप की प्राइऑरटी इन्टेलिजेन्स है या फिर फिजिकल स्ट्रेंथ या लड़कियों को अट्रैक्ट करने की? हर स्किल और सिचुएशन का एक अलग ऐल्फा हो सकता है। पर हम यह भी कर सकते हैं कि अगर एक मेल एक ग्रुप में ऐल्फा है और दूसरे में बेटा तो वो बेटा ही है और असली ऐल्फा वो होगा जो हर सिचुएशन में ऐल्फा रहेगा, जिसे कई साइकोलॉजिस्ट यूनिवर्सल ऐल्फा बोलते है। इस सब कॉन्शस रैंकिंग का मकसद होता है हर ग्रुप में से सबसे सुपिरिअर जीन्स को ढूंढना और उन्हें अगली जेनरेशन तक लेकर जाना। इस तरह से हर आगे आने वाली जेनरेशन पिछली जेनरेशन से ज्यादा फिट इन्टेलिजन्ट और स्किलफुल होती है। हाउएवर जीस तरह से हमें ऐल्फ़ा मेल्स के बारे में समझाया जाता है और जीस तरह से ऐल्फा सको मूवीज़ में पोटरे करा जाता है। वो काफी इन्कम्प्लीट और शैलो होता है क्योंकि हर रैन्डम लाइफ कोच आपको बताता है कि एक ऐल्फा वो होता है जो लोगों को इंस्पायर करता है। अपने बिलीव्स को बिना डरे बोलता है, वो सक्सेसफुल होता है, लड़कियां उसके पास खींची चली आती है। उसे किसी का अप्रूवल नहीं चाहिए होता और वो जहाँ जाता है उस जगह को डोमिनेट करता है। पर ये सब क्वालिटी ज़ एक असली ऐल्फा की ऐल्फा नेस्को बस ऐडवर्टाइजर्स करती है। बिल्कुल वैसे ही जैसे एक प्रॉडक्ट की पैकेजिंग एडवर्टाइज करती है की आपको उसके अंदर क्या मिलेगा? कई बार कोई प्रॉडक्ट दूर से चमक रहा होता है और उसकी पैकेजिंग काफी कन्विंसिंग लग रही होती है। पर जब आप उसे खोलकर देखते हो तब आप डिसअप्पोइंटेड फील करते हो। यही थिन किन्ग लोगों को ऐल्फा बनने से रोकती है। इस कॉन्सेप्ट को अच्छे से समझने के लिए हम दो मेल्स को लेते हैं। एक है रॉक जो काफी मस्कुलर, लंबा, चार्मिंग, कॉन्फिडेंट और अपनी इंडस्ट्री में टॉप पर है और दूसरी तरफ एक आदमी है पर उसके पास लुक्स और कॉन्फिडेन्स के अलावा बाकी कुछ नहीं है। जहाँ द रॉक ने अपनी स्किल्स और टैलेंट की मदद से सक्सेस हासिल करी, वहीं इस आदमी को सारा पैसा इसकी फैमिली से मिला। नाउ आपके हिसाब से इन दोनों ऐल्फा लगने वाले मेल्स में से असली ऐल्फा कौन है? ओब्विअस्ली द रॉक क्योंकि उसकी एल फर्नेस इंटरनल है और अगर उसे इस दूसरे आदमी के साथ एक जंगल में छोड़ दिया जाए तो वह तब भी अपनी स्किल्स के साथ वहाँ सर्वाइव कर पाएगा, जबकि दूसरे नकली ऐल्फा के पास कोई असली स्किल है ही नहीं। यानी इट डज नॉट मैटर। आप कितने मैस्कुलिन देखते हो या फिर आप कितने फिट या पैसे वाले हो? आपके अंदर एक एनवायरनमेंट को मास्टर करके टॉप पर पहुंचने की कैपेबिलिटी होनी चाहिए। अगर आप कैपेबल नहीं हो तो आप ऐल्फा नहीं हो। अपनी स्किल्स के साथ आप जितनी ज्यादा हाइरार्की इसके टॉप पर पहुँच सकते हो। वो बताते हैं कि आपके जीन्स का सर्वाइवल कितना जरूरी है। अगर आप एक बेटा मेल हो जिसमें किसी को मास्टर करने की कैपेबिलिटी नहीं है, तो नैचुरली एक लो रैनकिन गमेल होने की वजह से आप हमेशा स्ट्रेस डाउट रहोगे। आप झुक कर चलोगे आपकी बॉडी उतना टेस्ट नहीं बनाएगी और आपका कॉन्फिडेंस या सेल्फ एस्टीम भी कम होगी। सो सबसे बड़ा क्वेश्चन ये है कि हम ऐल्फा बने कैसे वेल? सबसे पहले आप ये समझो कि हाइरार्की इसके टॉप पर पहुंचने के लिए कई रास्ते होते हैं। कई अच्छे और कई बुरे और इस आइडिया को अपने दिमाग से निकाल दो की अग्रेशन आपको एक टॉप रैंकिंग मेल बनाने के लिए हेल्पफुल होगा। क्योंकि चिम्पैंजी इस पर हुई। कई स्टडीज़ बताती हैं कि जो हाइरार्की ज़, अग्रेशन या डोमिनेंस पर बेस्ट होती है, वो कभी भी स्टेबल और एथिकल नहीं रहती। सबसे स्टेबल तरीका है अपने आप को इम्प्रूव करना। और ज्यादा कॉम्पिटेंट बनना और जब आप इस माइंडसेट में आओगे तब ऑटोमैटिकली अपने आप को ज्यादा एफिशिएंट बनाने के लिए आप खुद को फिट रखोगे। अपनी सोशल स्किल्स पर काम करोगे और टॉप तक पहुंचने के लिए जीस किसी भी स्किल की जरूरत पड़ेगी आप उसे मास्टर करोगे। इन शोर्ट ऐल्फा बनने का सबसे बड़ा सीक्रेट है एक लर्निग माइंडसेट रखना और उसकी मदद से लाइफ के अलग अलग एरियाज में एक सेल करना।",""अल्फा पुरुष" की अवधारणा कुछ समय के लिए आसपास रही है और यह वैज्ञानिक समुदाय में हमेशा एक गर्म विषय रहा है। कुछ इसके अस्तित्व से इनकार करते हैं, अन्य जोर देते हैं कि अल्फाज मौजूद हैं और वे ऐसे लोग हैं जो सक्षम होने के कारण "सब कुछ सर्वश्रेष्ठ" प्राप्त करते हैं। वास्तव में, हमारे प्रमुख सामाजिक पदानुक्रम प्रभुत्व पर आधारित नहीं हैं जैसा कि वे अन्य जानवरों के मामले में करते हैं। हमारे पदानुक्रम बहुत अधिक स्थिर हैं और शीर्ष पर चढ़ने और वहां बने रहने का एकमात्र तरीका अनुकूली कौशल या क्षमताएं हैं। बदले में, यह आपको एक स्वस्थ, आत्मविश्वासी, दृढ़ निश्चयी और उच्च कोटि के पुरुष यानी द अल्फा की घिसी-पिटी छवि देता है।" "हमें ये जानने के लिए कोई साइकोलॉजिकल रिसर्च नहीं चाहिए की जब हम किसी मूवमेंट को एन्जॉय कर रहे होते हैं तब टाइम जल्दी जल्दी बीत जाता है और जब हम बोर हो रहे होते हैं तब टाइम का फ्लो स्लो हो जाता है। बट जैसे जैसे हम बड़े होते हैं, हमें लगने लगता है की टाइम का फ्लो तेज होता जा रहा है और ये टाइम जेनरली हमारे लेट ट्वेंटीज़ में आता है जिसके बाद यह फीलिंग कन्टिन्यूसली बढ़ती जाती है। इस फीलिंग को बोलते हैं जेनो साइन और साइकोलॉजी में इस फिनोमिनल को फॉर्वर्ड टेलिस्कोप इनकी मदद से समझाया गया है। जो हमारी नेचर के बारे में बताता है कि कैसे हमें लगता है कि पास इवेंट्स अभी रिसेंटली ही हुए हैं। लाइक कई बार युअर के नाइन्थ या टेंथ मंथ में हम सोचने लगते हैं की ये इर अभी तो रिसेंटली स्टार्ट हुआ था और अब कुछ हफ्तों बाद न्यू ईयर भी आ जायेगा। या फिर जब हम अपने पुराने फेवरेट टीवी शोज़ के बारे में सोचते हैं तो हम ज्यादातर सरप्राइज़ हो जाते हैं की वो इवेंट्स असल में कितने पुराने हैं और टाइम शायद काफी जल्दी बीत गया है। ये काफी कॉमन है और यह क्यों होता है, इसे एक्सप्लेन करने के लिए कई थे। वीजा जैसे प्रपोर्शनल थे और ये जो सजेस्ट करती है की बचपन में टाइम स्लो और बड़े होने पर फास्ट इसलिए लगता है क्योंकि जब हम छोटे होते हैं तब हर पास इन गिअर हमारी एग्ज़िस्टन्स का एक बहुत बड़ा पार्ट होता है। फॉर एग्जाम्पल जब हम फाइव इयर्स के थे तब वन ईयर हमारी पूरी लाइफ का 20% था। पर जब हम 30 इयर्स के हो जाते है तब वो वन ईयर हमारी एग्ज़िस्टन्स का लगभग सिर्फ 3% रह जाता है और तभी वो उतना सिग्निफिकेन्ट नहीं लगता। इस थ्योरी में थोड़ी सी वो तो है लाइक वीकेंड रिमेम्बर स्कूल में समर वेकेशन सैसी लगती है की वो कभी खत्म ही नहीं होंगी, पर बड़े होने पर दो तीन महीने कैसे निकल जाते हैं, हमें पता भी नहीं लगता। बट इस थ्योरी के साथ एक प्रॉब्लम है और वह यह है कि यह थ्योरी प्रेज़ेंट को भी पास की ही तरह ट्रीट करती है और ऐसे बहुत सारे लोग हैं, जो 40 इयर्स के होकर भी हर पास इन घर को वैसे ही फील करते है जैसे कि एक टीनेजर फील करता है और उनके लिए टाइम भी नोर्मल्ली फ्लो कर रहा होता है। सो ये थ्योरी हमारे इस क्वेश्चन का आन्सर नहीं है। सेकंड आइडिआ जो इस फेनोमेनन को एक्सप्लेन कर सके वो है ये वेकेशन पैराडॉक्स, जो हमें कराता है कि कैसे हम जब भी किसी वेकेशन पर जाते हैं तो उसके दौरान जब हम फन कर रहे होते हैं या फिर मेमोरीज़ बना रहे होते हैं तब टाइम कब निकल जाता है, हमें पता भी नहीं लगता। पर वापस आकर वो ट्रिप काफी बड़ी और डीप लगती है ऐंड इट डज नॉट मैटर की। चाहे वो ट्रिप 2 दिन की भी हो तब भी हमें वो सालों तक याद रहती है। सो क्या टाइम को फास्ट कर देने वाली चीज़ हमारी लोकेशन होती है? वेल नॉट एग्ज़ैक्ट्ली क्योंकि एक एक्सपेरिमेंट में जब लोगों को डेस्टिनेशन एस ए बी तक जाना था और उन्हें पूरा रास्ता पता था तब भी उन्हें यही लग रहा था की टाइम तेजी से निकलता जा रहा है। बट एक्सपेरिमेंट में ट्विस्ट तब आया जब उन्हें डेस्टिनेशन एस ए बी तक जाने के लिए एक नया रास्ता दिया गया। इस रास्ते के बारे में उन्हें कुछ नहीं पता था। उन्हें लोगों से रास्ता पूछना पड़ रहा था। उनकी नजर हर लैंडमार्क पर थी और उन्हें सोचना पड़ रहा था की वो उस सिचुएशन में एग्ज़ैक्ट्ली क्या करे? फाइनली जब ट्रिप के बाद उनसे पूछा गया कि उन्होंने ट्रिप के दौरान टाइम को कैसे पर रिसीव किया तब उन्होंने बताया कि टाइम प्रॉपर्ली फ्लो हो रहा था। जस्ट बिकॉज़ वो हर चीज़ पर अटेन्शन पे कर रहे थे और उनका ब्रेन कन्टिन्यूसली उस मोमेंट में इन गेज था ऐंड दिस इस आर क्लू बिकॉज़ जस्ट थिंक अबाउट। अगर उन लोगों को पूरे रास्ते में मोबाइल यूज़ करने के लिए दे दिया जाता और उनका ध्यान अपनी सराउन्डिंग् पर नहीं होता तो क्या उनके लिए टाइम स्लो होता? 921 जो यहाँ पर इन्वोल्वड है वो है नॉवल्टी बिकॉज़ नॉवल इक्स्पिरीयन्स हमें कुछ नया सीखा सकते हैं और हमारा ब्रेन कॉन्स्टेंट ही अपनी सराउन्डिंग् को फ़िगर आउट करने में लगा होता है क्योंकि वो शुर होना चाहता है की हमारी सराउंडिंग ज़ में कोई प्रेडेटर तो नहीं जिससे हमारे सर्वाइवल को कोई हो ऐंड दैट स्वाइ नए एक्सपिरियंस हमारी ब्रेन की लर्निंग कपैसिटी को बढ़ा देते हैं और नैचरल सलेक्शन की वजह से हम उस मोमेंट में काफी अटेंटिव होते हैं जिससे टाइम नोर्मल्ली फ्लो करता है। एक और फैक्टर जो टाइम के पर्सेप्शन को स्लो करता है वो हैफिर क्योंकि फिरभी सर्वाइवल के लिए हमारी सेन्सस को बढ़ा देता है और हमें बोलता है की हम हर डिटेल को ऑब्जर्व और नोटिस करें के लिए हम अपने आप को एक रोड ऐक्सिडेंट में इमेजिन कर सकते हैं क्योंकि जैसे ही हमारा ऐक्सिडेंट होने वाला होता है, हमारे ब्रेन काफिर सेंटर यानी मेमोरीज़ को ओवर प्रोड्यूस करने लग जाता है और जब हम बाद में उस ऐक्सिडेंट को रीकॉल करते हैं, तब हमें उस एक सेकंड से भी छोटे मोमेंट की एक एक डिटेल याद होती है। मीनिंग फिरके टाइम पर हमारा ब्रेन रिच और दीप मेमोरीज़ बनाता है एंड जस्ट बिकॉज़ वो मेमोरीज़ इतनी डिटेल होती है। हमारा ब्रेन उन्हें ऐसे पर सेव करता है जैसे वो मोमेंट काफी लंबा था और टाइम स्लो हो गया था। हाउएवर टाइम पर्सेप्शन को ठीक करने के लिए फिर् ऑप्टिमल स्टेट नहीं है, क्योंकि कॉन्स्टेंट फिरके साथ काफी ज्यादा स्ट्रेस और एग्ज़ॉशन भी आता है। सो हमें एक ऐसी स्टेट चाहिए जो हमारा स्ट्रेस भी कम रखें और जिससे हमें टाइम का पैसे तेज भी ना लगे। ऐसी एक स्टेट होती है फ्लो स्टेट। इस स्टेट को कई साइकोलॉजिस्ट ऑप्टिमल स्टेट ऑफ कॉन्सियसनेस भी बोलते हैं क्योंकि इसमें हम काफी अच्छा फील कर रहे होते हैं। हम अपने कामों को अच्छे से कर पाते हैं और ये वो मोमेंट सोते है जिसमे हम एक टास्क में इतना अब ज़ोर होते हैं कि हमारे आगे से बाकी सारी चीजें हट जाती है और टाइम डाइलेट होने लगता है। एग्जाम्पल के तौर पर जब हम मेडिटेट करते हैं या फिर जब एक ऐथलीट अपने ज़ोन में चला जाता है और उनके लिए टाइम डिस अपिअर हो जाता है, वो होती है एक फ्लो स्टेट और जो हमारी थिंकिंग है की हम अपना ब्रेन सिर्फ 10% यूज़ कर सकते हैं। और हमारा ब्रेन अपनी ऑप्टिमल परफॉर्मेन्स में तब आएगा जब उसका हर पार्ट ऑन होगा। यह थिंकिंग बिलकुल गलत है के हिसाब से ब्रेन के फ्लो में उसके पार्ट्स हाइपर एक्टिव नहीं बल्कि स्लो हो जाते हैं और वो डिऐक्टिवेट होने लगते हैं। मैं इस स्टेट को बोलते है। हाइपो फ्रैलिटी, टेंपरेरी हाइपो मीनिंग, रिड्यूस्ड फ्रैलिटी, आसिन, प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स यानी ब्रेन का वो पार्ट जो हमारे हाइअर, कॉग्निटिव फंक्शन्स, हमारी सेल्फ आइडेंटिटी और टाइम परसेप्शन जैसी चीजों को मैनेज करता है। ये एक्सप्लेन कर सकता है कि क्यों मेडिटेशन के टाइम पर हमें पास्ट प्रिजेंट और फ्यूचर लिनियर फॉर्म में नहीं बल्कि एक सिंगुलैरिटी की तरह लगते हैं और हम वो ब्रेन स्टेट को इक्स्पिरीयन्स करने लगते हैं जिसे रिसर्चर्स डीप नाउ एथलीट्स रनर्स आए और स्पिरिचुअल पीपल बी इन वन विद्या वृत्तिङ्ग बोलते है। इस सिचुएशन में हमारी क्रिएटिविटी काफी इन्क्रीज़ हो जाती है। हमारा इन्नर क्रिटिक शांत हो जाता है और फाइनली हम एक सेन्स ऑफ लिबरेशन फील करते हैं। हम नाउ दैट वी अंडरस्टैंड की क्यों? जब हम बोर हो रहे होते हैं तब लैक ऑफ स्टिम्युलेशन की वजह से हमारा ब्रेन अपने रिसोर्सेस टाइम को मॉनिटर करने में लगा देता है। ऐट मेक सेंस की क्यों? हमे टाइम का पैसेज कई बार स्लो और कई बार तेज लगने लगता है ना? वो टाइम को अपनी नॉर्मल स्पीड में लाने के लिए हमारे पास दो तरीके हैं या तो हम नई चीजें सीखें। नए आइडियाज़ के बारे में बात करे, अपने आप को नए एनवायरनमेंट में डाले। हर चीज़ पर फोकस करें और अपने आप को चैलेंज करे, क्योंकि इन सब से हम हर टाइम ही अपनी मेमोरीज़ को रिच और दीप बना रहे होते हैं, जिससे वो एक टैंकर की तरह काम करते हैं। बट अगर हमारे इक्स्पिरीयन्स इसमें कोई डेथ नहीं होती तो बिना किसी रुकावट के हमें टाइम की स्पीड बढ़ती ही लगती है और ऐसे ही हमारी लाइफ ऑटो पायलट पर चलती रहती है। दूसरी तरफ हम दूसरा ऑप्शन लेकर सिम्पली टाइम्लेस फील कर सकते है हाइपो फ्रैलिटी या फ्लो स्टेट की मदद से जिसे हम अचीव कर सकते हैं। अपने एक इंट्रेस्ट पर फोकस करके, मेडिटेट करके या एक्सरसाइज करते टाइम अपनी बॉडी को उसकी लिमिट तक पुष्कर के","हम में से प्रत्येक के जीवन में एक ऐसा बिंदु आता है जब "समय" शब्द भी हमें चिंतित कर देता है। आम तौर पर यह इस धारणा के कारण होता है कि समय इतनी तेजी से आगे बढ़ रहा है और जैसे-जैसे आप बड़े होते जा रहे हैं यह केवल तेज होता जा रहा है। इस भावना को "जेनोसिने" कहा जाता है और इस वीडियो में, मैंने संभावित कारणों पर चर्चा की कि हम ऐसा क्यों महसूस कर सकते हैं और समय की धारणा को धीमा कैसे करें।" "हमें हमेशा से ही समझाया गया है ढक्की टु सक्सेस इस हार्ड वर्क जितना काम करोगे, उतना ही तुम्हें फल मिलेगा। कॉमन विस्डम के हिसाब से यही वो चीज़ है जो गरीब और अमीर इंसान को एक दूसरे से डिफरेंट बनाती है। एक टाइप का इंसान आलसी होता है और वो काम करने से बचने के बहाने बनाता है और कभी सक्सेसफुल नहीं बन पाता। जबकि दूसरे टाइप का इंसान हार्ड वर्किंग होता है और वह दिन रात अपना फोकस सिर्फ खुद के कैरिअर पर रखता है और सक्सेसफुल बन जाता है। हाउएवर रिऐलिटी इतनी स्ट्रैट फॉरवर्ड नहीं होती। और असलियत में सिर्फ आपकी मेहनत के बल पर आप सक्सेसफुल और फुलफिल्ड नहीं बन सकता है। दुनिया हमेशा इफेक्टिव लोगों को भी वोट करती है ना कि हार्डवर्किंग। लोगों को। असलियत में आप भी ये जानते हो कि यह फर्क नहीं पड़ता कि आप अगले पांच सालों में सक्सेसफुल बनो गे या फिर अगले 10 सालों में? लेकिन आप यह 100% पक्का करना चाहते हो कि हाँ अब सक्सेसफुल जरूर बनोगे। सिमिलरली दूसरे लोगों की एक्सपेक्टेशन्स भी चाहे बाहर से हार्ड वर्क पर बेस लग रही हो, लेकिन एक्चुअल में हर कोई बस काम को पूरा होता है। देखना चाहता है ज्यादातर जॉब्स ये लेज़ी वर्क को एक्स्क्यूस कर दिया जाता है। अगर आप दूसरे एंप्लॉयीज से ज्यादा इफेक्टिव हो तो फॉर एग्ज़ैम्पल अगर आप सेल्स की जॉब करते हो तो आपके एंप्लॉयर को एक्चुअल में यह कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप हफ्ते में कितने दिन और कितने घंटे काम करते हो। अगर आप अपनी टारगेट सेल्स को कंप्लीट कर रहे हो तो एक इन्टेलिजन्ट एम्प्लॉयर आपको हमेशा इस चीज़ के लिए रिवॉर्ड करेगा और तभी हार्ड वर्क की काउन्टर आर्ग्यूमेंट भी यही होती है कि मेहनत तो गधा भी करता है। मेहनत एक्चुअल में सक्सेस की चाबी नहीं है। दुनिया में इतने सारे नेक और शरीफ लोग अपना दिन रात एक करके काम करते हैं ताकि उन्हें दो वक्त का खाना नसीब हो सके और उनकी फैमिली की बेसिक रिक्वायरमेंट्स पूरी हो सके हैं। अगर हार्डवर्क ईक्वल सक्सेस का लॉजिक सही होता तो एक स्कूल के प्रिन्सिपल से ज्यादा इनकम उसके पिओन की होती है। यानी सक्सेस की क्वेश्चन में। अगर इफेक्टिव बनने की सही स्ट्रैटेजी ही ना हो तो आपकी सारी मेहनत ही बेकार जाएगी। किसी को फर्क नहीं पड़ता अगर आप दिन में 15 घंटे पढ़ाई करने के बाद भी बस पासिंग मार्क्स ला रहे हों, लेकिन अगर आप बस दो 3 घंटे पढ़ने के बाद ही क्लास में टॉप करते हो तो सब लोग आपको ऐसे ट्रीट करते हैं। जैसे आप दूसरों से ज्यादा काम करते हो और आप उनसे कितने बेटर हो, वर्क हार्ड और काम करते रहो। जैसे ही एडवाइस सिर्फ उन लोगों के केस में सबसे ज्यादा इफेक्टिव रहती हैं, जो एक्चुअल में कुछ काम नहीं करते हैं। अगर आप पूरा दिन टीवी देखते हुए और इंटरनेट को यूज़ करते हुए वेस्ट कर देते हो तो ऑफ कोर्स यू शुड वर्क हार्ड कुछ करना कुछ ना करने से बहुत बेहतर होता है। लेकिन अगर आप ऑलरेडी काफी कोशिश कर रहे हो नेक्स्ट लेवल पर जाने की तो आपको यह बात अभी तक समझ आ चुकी होगी कि आपको हार्ड वर्क से ज्यादा स्मार्ट और इफेक्टिव वर्ग की जरूरत है। इफेक्टिव वर्क करने के पांच मेथड्स होते हैं। नंबर वन फोकस ऑन व्हाट यू आर गुड ऐट ये अड्वाइज़ उन लोगों के लिए भी बहुत काम की हैं जिन्हें यह नहीं पता कि उन्हें अपनी लाइफ में क्या करना चाहिए। आपको शुरुआत में ऐसा काम करना है जो आपके नैचरल टैलंट के साथ लाइन हो। अमेरिकन ऑथर टॉम रेथ अपनी बुक आर यू फुल्ली चार्ज में लिखते हैं कि अनलेस तुम्हारा गोल मीडिया होकर बने रहना है। उन चीजों से शुरुआत करो जिनमे तुम पहले से अच्छे हो। यह रास्ता मैक्सिमम एफिशियंसी का है। हर वो घंटा जो तुम अपने नैचुरल टैलेंट में इन्वेस्ट करते हो उसका तुम्हारी ग्रोथ पर एक मल्टीप्ल इफेक्ट आता है। जबकि अपनी वीकनेस इसको ठीक करने पर लगाया। आपका एक एक घंटा आपको ऐसा फील होगा जैसे आप ग्रेविटी के अगेन्स्ट काम करने की कोशिश कर रहे हो। जब हम अपने गोल्स की लिस्ट को नैरो डाउन करके बस उन्हीं कामों पर फोकस करना शुरू करते हैं जो हमारे करेक्टर के साथ लाइन है। तब इस एक्स्लेन्सी में हमें अपना पैशन भी मिल जाता है और हम वो काम करने लगते हैं जो दूसरों के लिए एक्चुअल में काम है और हमारे लिए एक खेल नंबर टू स्ट्रेंथ अन्य ओर वर्क मसल्स जिसतरह से एक भारी वेट एक मस्कुलर इंसान के लिए उठाना बहुत ईजी होता है, एस कंपेर्ड टु वो लोग जिनकी कोई मसल्स नहीं होती। बिल्कुल ऐसे ही उन लोगों के लिए कम समय में ज्यादा काम करना आसान होता है जिनके मन में वर्क मसल्स टाइम के साथ साथ स्ट्रांग हो चुकी होती है। यहाँ पर हम आपके माइंड सेट की बात कर रहे हैं। लेज़ी लोग कर करके ही अपने काम को इतने लंबे समय तक लटकाए रखते हैं कि उनका काम जल्दी से खत्म होने के बजाय एक लंबे समय तक उन्हें टॉर्चर करता और उन्हें मेंटली ऑक्यूपाइ करें रखता है। ऐसे लोग पूरे दिन काम करते दिखाई देते हैं, लेकिन इनकी प्रोडक्टिविटी बहुत कम होती है। इसलिए अपने हर टास्क को जरूरत से ज्यादा हार्ड मत बनाओ। उसे डिले तो फिर मिस मैनेज करके नंबर थ्री टू डीप वर्क अमेरिकन प्रोफेसर कार्ड न्यूपोर्ट ने अपनी बुक दीप वर्क में पहली बार इस टर्म को इंट्रोड्यूस कर रहा था। दीप वर्क का मतलब होता है कि आप अपना सारा जरूरी काम एक डिस्ट्रैक्शन फ्री कॉन्सन्ट्रेशन के साथ करो। अपनी कॉग्निटिव एबिलिटीज़ को उनकी लिमिट्स तक पोस्ट करने के लिए इस तरह का एफर्ट वैल्यू भी क्रिएट करता है, आपकी सेल्स को इम्प्रूव करता है और आपको इरिप्लेसबल बना देता है। दीप वॉकमैन गेज करने के लिए अपने वीक में कहीं डेस या फिर अपने दिन में कई घंटे ऐसे प्लैन करो जिनमें आप किसी भी तरह का शैलो वर्क नहीं करोगे। जैसे सोशल मीडिया यूज़ करना, टीवी देखना या फिर कोई और आसान काम करना अपने मुश्किल टास्क को अलग अटेन्शन और प्रायोरिटी दो। ऐसे आप खुद को धीरे धीरे फोकस करने और कम टाइम में ज्यादा टास्क कंप्लीट करने के लिए ट्रेन करते हो। ऑलवेज़ बी एट पीस विद इन योरसेल्फ आपका शरीर और दिमाग सिर्फ तभी अपनी मैक्सिमम परफॉर्मेंस दे पाते है जब आप अंदर से जॉयफुल, पीसफुल और रिलैक्स रहते हो। चाहे आपका काम कितना भी जरूरी क्यों ना हो। हमेशा खुद को अंदर से शांत रखो। उस सिचुएशन की जल्दबाजी में अगर आप भी इमपेशेंट हो गए तो इसका असर सीधा आपकी प्रोडक्टिविटी पर दिखेगा और आपके काम की क्वालिटी भी कम हो जाएगी। दुनिया के बेस्ट टेनिस प्लेयर्स में से एक रफाइल ना दाल बोलते हैं कि हेल्ती रहो और काम करो, लेकिन काम से भी जरूरी काम करते हुए खुश रहो। चाहे तुम कंप्लीट करते हो या फिर बस अपनी सैटिस्फैक्शन के लिए काम करते हो। सिम्पली एन्जॉय करो और अपना बेस्ट एफर्ट दो नंबर फाइव ओनली डू व्हाट इस नेसेसरी मैंने ये मैसेज कई बार आपके साथ ट्विटर पर भी शेयर करा है और अगर आप ब्रह्मांड के सबसे बेसिक रूल्स को ऑब्जर्व करो तो आप भी इस बात से अगरी करोगे। एक काम के बारे में इतना सोचने की तो कोई जरूरत ही नहीं है। क्यों हम सिर्फ हार्ड वर्क, स्मार्ट वर्क या फिर इफेक्टिव वर्क में से किसी एक तरीके को चूज करें? ऐसा इसलिए क्योंकि हर सिचुएशन डिफरेंट होती है। आपको नहीं पता कि अगले ही मूवमेंट में आपको अपने कि स्टूल की जरूरत पड़ सकती है। इस वजह से सिर्फ वह काम करो और उतना ही काम करो जितना जरूरी है। देखो कि किस सिचुएशन की क्या डिमांड है और क्या आप उससे ज्यादा या फिर कम काम कर रहे हो? इस तरह की सोच आपको प्रोडक्टिव तो बनाएगी ही लेकिन साथ ही साथ आप इस दिशा में चल कर स्पिरिचुअल ब्रोकर पाओगे जस्ट बिकॉज़ आप खुद को दुनिया की डूऐलिटी में नहीं फंसा रहे हैं। आप जरूरत पड़ने पर कभी दिन के 20 घंटे भी खुश रहकर काम कर रहे हो और कभी आप बस एक दो घंटा ही काम करते हो और रिलैक्स करते हो। अगर आपकी फैमिली पैसों के लिए स्ट्रगल कर रही है तो आप शांत रहकर दो तीन जॉब साथ में लोगे और इस सिचुएशन को वाइस ली हैंडल करोगे और जब आप इस सिचुएशन से बाहर निकल जाओगे तब आप अगेन बस उतना ही काम करोगे जितना जरूरी है। आई होप आपको इस बात की गहराई समझ आई हो और आप अब काम करने को एक डिफ़रेंट नज़र से देखो गे",हमें हमेशा सिखाया गया है कि कड़ी मेहनत ही सफलता की कुंजी है। हम सहज रूप से यह मान लेते हैं कि एक सफल व्यक्ति वह होना चाहिए जो हर समय काम करता हो और एक असफल व्यक्ति वह है जहाँ वह है क्योंकि वह उतना काम नहीं करता है। लेकिन क्या होगा अगर हम जिस तरह से कड़ी मेहनत करते हैं वह गलत है? क्या होगा अगर कड़ी मेहनत सफलता की कुंजी नहीं है? इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम बात करेंगे कि कैसे कड़ी मेहनत आपको सफलता और संतुष्टि नहीं दिला सकती है। "एक स्ट्रॉन्ग पर्सनैलिटी होने का मतलब है कि एक इंसान अपने हर ऐक्शन और डिसिशन में इतना कॉन्फिडेन्स है और उसकी लाइफ इस हद तक उसके कंट्रोल में है। उसकी ये क्वालिटी दूसरे लोगों को दहला देती है जहाँ यूज़्वली ये समझा जाता है कि एक स्ट्रॉन्ग पर्सनैलिटी उस इंसान की होती है जो दूसरों के साथ बहुत ही रूड, लाउड और डोमिनेट होता है। लेकिन असलियत में ये क्वालिटीज बहुत अलग होती है एक इंसान में स्ट्रांग करेक्टर होने से और तभी आज हम ऐसे आठ साइंस को डिस्कस करेंगे जो हमें ये क्लियरली समझाएंगे। एक स्ट्रॉन्ग पर्सनैलिटी के क्या फीचर्स होते हैं? नंबर वन आपको ना बोलना आता है क्योंकि जो लोग किसी भी चीज़ के लिए मना नहीं कर पाते हैं उनकी सेल्फ एस्टीम बहुत कम होती है और ऊपर से इस तरह के लोगों को उतना अप्रिशिएट भी नहीं करा जाता क्योंकि ये लोग हर समय ही दूसरों के लिए अवेलेबल होते हैं। इसके ऊपर से जब भी ऐसे लोग दूसरों के आगे पोलाइट बनने के लिए हाँ में हाँ मिला देते हैं तब उसके बाद ये अपने ही डिसिशन स्कोरिंग रेट भी करते हैं और ऐंगज़ाइइटी या डिप्रेशन से जूझते हैं। यही रीज़न है की क्यों जो लोग इतनी हिम्मत और सेल्फ रिस्पेक्ट रखते हैं कि वो किसी को भी साफ साफ ना बोल सकें। उनकी हिम्मत दूसरों को चुप्पी है नंबर टू आप दूसरों को रीड कर पाते हो। ये स्ट्रॉङ्ग पर्सनैलिटीज के सबसे कॉमन रेट्स में से एक है। क्योंकि इस तरह के लोग दूसरों से बात करते हुए उन्हें बहुत ध्यान से सुनते हैं और उनके हर ऐक्शन को ऑब्जर्व करते हैं ताकि उन्हें यह पता चल सके कि सामने वाला इंसान कितना सच बोल रहा है और कितना झूठ। यानी नॉन वर्बल की उसको समझ पाने की एबिलिटी, जो इन लोगों में नैचुरली ही होती है और अगर ये क्वालिटी आप में भी है तो समझ जाओ कि आपकी पर्सनैलिटी भी दूसरों की नजर में स्ट्रांग है। नंबर थ्री आप में सेल्फ कंट्रोल है यानी अपनी बॉडी और माइंड दोनों को अपने नियंत्रण में रखना क्योंकि किसी भी इंसान के लिए अपने गोल्स तक पहुंचना इम्पॉसिबल होगा अगर उसमें सेल्फ कंट्रोल नहीं है। दुनिया भर की टेम्पटेशन्स और डिस्ट्रेक्शन्स किसी को भी अपने रास्ते से भटकाने के लिए काफी होती है। पर ऐसे इंसान वीक पर्सनैलिटी वाले होते हैं, क्योंकि अपने आप को बैलेंस और डिसिप्लिन रखने के लिए हमारे अंदर स्ट्रेंथ ऑफ करेक्टर का होना बहुत ज़रूरी है। नंबर फ़ोर आपके सपने बहुत बड़े हैं और आप उनके बारे में बात करने से बिल्कुल नहीं डरते हैं, क्योंकि हर स्ट्रॉन्ग पर्सनैलिटी एक इंसान के बड़े सपनों की बुनियाद पर ही बनती है। यही रीज़न है कि क्यों कई लोग अपने गोल्स की तरफ काम करना तो दूर वह अपने लिमिटेड माइंडसेट की वजह से इतने बड़े गोल्स के बारे में इमेजिन भी नहीं कर पाते और बस छोटी मोटी मिडिओकर चीजों में ही सेटल कर लेते है। नंबर फाइव आप इमोशनली मच्योर हो एक स्ट्रॉन्ग पर्सनैलिटी वाला इंसान वो होता है जो अपने इमोशंस में बहकर कुछ भी गलत नहीं करता और वो अपने बिहेव्यर को अपने हिसाब से मैनेज कर पाता है। यहाँ पर एक चीज़ याद रखो कि इमोशन्स का होना कोई बुरी बात नहीं है, लेकिन हर इमोशन को एक्सप्रेस करने के लिए सही जगह सही टाइम और सही तरीका होना चाहिए। अगर आप अपने इमोशन्स को मैनेज करना जानते हो, आपको पता है कि हर इंसान से कैसे बात करी जाती है और आप लोगों को क्लियरली बता देते हो। की आपकी पर्सनल बाउंड्रीज़ कहा है तो आपकी ये क्वालिटी ज़ ऐवरेज लोगों को इंटिमेट डेट करती है। नंबर सिक्स आप अपनी लाइफ की पूरी तरह से रिस्पॉन्सिबिलिटी लेते हो। अपनी प्रॉब्लम्स और नाकामी का ब्लेम दूसरे लोगों पर डालकर अपने आप को विक्टिम दिखाना बहुत आसान है, लेकिन सिर्फ एक स्ट्रॉन्ग इंसान ही ऐसा होता है जो अपनी लाइफ की रिस्पॉन्सिबिलिटी ले सकता है। रिस्पॉन्सिबल होने का मतलब है कि आप का ऐटिट्यूड लाइफ को लेकर कुछ इस तरीके का है कि भले ही आप किसी चीज़ में फेल हो जाते हो या सक्सेस हासिल कर लेते हो, हर केस की पूरी जिम्मेदारी आपकी ही है। आपको पता है कि इस जर्नी में आपको ही ड्राइवर सीट पर बैठना पड़ेगा और सिर्फ तभी आप अपने गोल्स तक पर पाओगे नंबर सेवन आप सच बोलने और अपना ओपिनियन शेर करने से नहीं डरते हैं क्योंकि दुनिया में ऐसे लोग बहुत कम है जो वो चीजे बोलने की हिम्मत रखते हैं। जो ज्यादातर लोग बस अपने दिमाग में ही सोच रहे होते हैं लेकिन बोलने से डरते हैं। लोग अपने सच को एक्सप्रेस नहीं करते क्योंकि उन्हें ये पता है कि सच बोलने का नतीजा ज्यादातर खराब ही होता है। लेकिन अगर आप अपने और दूसरों के साथ एकदम ऑनेस्ट हो तो ये छोटी मोटी चीज़े आपको बिल्कुल मैटर नहीं करती और आप वही बोलते और करते हो जो आपको सही लगता है। बिना नतीजे की परवाह करें और यही चीज़ आपको दूसरों से अलग और आपकी पर्सनैलिटी को स्ट्रॉन्ग बनाती है। नंबर रेट आप स्ट्रॉंगहोल्ड और हार्ड वर्किंग हो यानी अगर आपने ठान लिया है कि आपने एक चीज़ करनी हैं तो चाहे कुछ भी हो जाए, आप उसे पूरा करोगे, चाहे उसका मतलब ये ही क्यों ना हो कि आपको दूसरे लोगों की एक्सपेक्टेशन्स को तोड़ना पड़े और ये चीज़ दूसरों के लिए बहुत इन टि में डेटिंग होती है क्योंकि आपकी मेहनत और आपकी स्ट्रॉन्ग विल पावर उन्हें याद दिलाती है कि वो खुद किस तरह से मेहनत करने या अपनी विल पावर पर काम करने से दूर भाग रहे हैं।","एक मजबूत व्यक्तित्व का अर्थ है कि एक व्यक्ति अपने निर्णय लेने और कार्यों के बारे में इतना आश्वस्त है, और उनका जीवन नियंत्रण में है, कि उनका अनुशासन और आकर्षण लोगों के लिए लगभग पराया है। ऐसा इसलिए है क्योंकि ज्यादातर लोग औसत होते हैं और कभी भी एक मजबूत व्यक्तित्व विकसित करने की कोशिश नहीं करते हैं। इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम एक मजबूत व्यक्तित्व के 8 संकेतों पर ध्यान केंद्रित करते हैं ताकि आप यह भी जांच सकें कि क्या आपके पास इनमें से कोई गुण हैं और यदि नहीं हैं, तो आप उन पर काम कर सकते हैं।" "आपके पेरेंट्स ने आपको बड़ा करने, पढ़ाने, लिखने और आपको एक अच्छा इंसान बनाने के लिए बहुत से सैक्रिफ़ाइस कर रहे हैं और इवन दो हर पेरेंट अपने बच्चों के लिए बेस्ट ही विश करता है। चाहे कभी कभी यह फैक्ट उनके बिहेव्यर में ना भी रिफ्लेक्ट करे तब भी जाने अनजाने में ज्यादातर पैरंट्स अपनी खुद की लापरवाही की वजह से अपने बच्चों में इन्सेक्युरिटी शाइन एस फिर् या फिर इनफीरियॉरिटी कॉम्प्लेक्स डाल देते हैं। इसलिए चाहे आप अपने चाइल्डहुड को ओवर कम करना चाहते हो या फिर आप खुद ही पैरेंट बनना चाहते हो। इस एपिसोड में दी गई इन्फॉर्मेशन आपके बहुत कम आएगी नंबर वन नेगेटिव बॉडी इमेज, पैरेन्ट्स जो इन्सिक्युर होते हैं खुद की बॉडी को लेकर वो अपनी यही इन्सेक्युरिटी बुरे कमेंट्स और क्रिटिसिजम के थ्रू डाल देते हैं। अपने बच्चों में एक पैरेंट जो खुद के शरीर से नफरत करता है वो अपने बच्चों के साथ भी बहुत स्ट्रिक्ट रहेगा और उन्हें बचपन में ही अपनी डाइट, वेट और लुक्स के बारे में इतना कॉन्शियस बना देगा कि वो बच्चा बड़े होने के बाद भी अपनी सेल्फ एस्टीम या फिर वैल्यू अपने लुक्स के बेसिस पर ही मेजर करेगा। नेगेटिव बॉडी इमेज की प्रॉब्लम हमेशा बाहर से किसी के मन में प्रवेश करती है। और तभी अगर पैरेन्ट्स चाहें तो अपनी मर्जी से अपने बच्चों में कॉन्फिडेन्स और हाइ सेल्फ एस्टीम को भी डाला जा सकता है। उन्हें लगातार क्रिटिसाइज करने के बजाय उन्हें अप्रिशिएट और हर अच्छे काम के लिए रिवॉर्ड करके नंबर टू कार्ड एक्शन सिंड्रोम यानी ये थिंकिंग कि आप बिना ज्यादा काम करें ही ग्रेट, फेमस और सक्सेसफुल बन जाओगे। ये एनटाइटलमेंट का ऐटिट्यूड उन बच्चों में आता है जिन्हें उनके पैरेन्ट्स हद से ज्यादा प्रोटेक्ट करते हैं और उनकी हर मांग की चीज़ उन्हें दे देते हैं। जीवन अगर एक पैरेंट के पास ज्यादा पैसे नहीं है लेकिन वो फिर भी हर बार जुगाड़ करके अपने बच्चे की नई नई ख्वाहिशों को पूरा करता है। तब भी ऐसे बच्चे केएन टाइटल बनने के चान्सेस बहुत ज्यादा होते है। इस टाइप का बच्चा बड़े होकर सबको ऐसे ट्रीट करता है जैसे वो तो एक राजा है और बाकी सब उसके सेवक हैं। बहुत से पैरंट्स सोचते हैं कि बच्चों की हर विश को पूरा करना तो उनका फर्ज है, लेकिन रिऐलिटी में ऐसा करने से बच्चों के मन में दुनिया के टूवर्ड्स एक अनरियलिस्टिक एक्स्पेक्टेशन आ जाती है कि उन्हें तो हर चीज़ आसानी से मिल जाएगी। लेकिन जब बड़े होने पर ऐसा नहीं होता तब वो अपने पैरेन्ट्स को हिट करने लगते हैं। नंबर थ्री कॉन्स्टेंट डाउट लाइफ या फिर रिलेशनशिप्स में किसी पर भी इसी ट्रस्ट ना कर पाना एक बिमारी के जैसा होता है। ऑफ कोर्स, ब्लाइन्ड ट्रस्ट या फिर अंधविश्वास भी कोई अच्छी चीज़ नहीं होती, लेकिन डाउट जिंदगी के फ्लो पर एक ठहराव सा लगा देता है क्योंकि अब ना तो किसी रिलेशनशिप में खुशी से रह सकते हो ना तो आपको ये काम कर सकते हो। हर समय आपका मन अपने हर ऐक्शन और दूसरे लोगों पर डाउट करने को ही बोले गा। ये दिक्कत शुरू होती है जब पैरंट्स अपने बच्चों का ट्रस्ट तोड़ देते हैं। उनके आगे बोलकर कुछ और फिर टोटली डिफरेंट वे में ऐक्ट करके ऐसे पेरेंट्स अपने बच्चों को बोलते है कि अपने माँ बाप की इज्जत करो फिर 1 दिन वो खुद ही अपने माँ बाप से लड़ रहे होते है। वो बोलते हैं कि हेल्दी खाना खाओ फिर वो अगले ही मूवमेंट, कुछ तला हुआ या मीठा खाते हुए मिलते हैं। ऐसी सिचुएशन को फेस करने के बाद बच्चे के मन में यह बैठ जाता है कि ट्रस्ट करना फिजूल का काम होता है और दुनिया झूठी है। नंबर फाइव इमोशनल इनस्टेबिलिटी आज के समय पर दुनिया में इमोशनल इनस्टेबिलिटी का एपिडेमिक चल रहा है। जवान से लेकर बूढ़े लोग भी अपने इमोशन्स को मैनेज करने में नाकाम साबित हो रहे हैं। बचपन में जब भी एक पैरेंट अपने बच्चों को उसकी छोटी मोटी प्रॉब्लम से खुद डील करना नहीं सीखाता जैसे बच्चे को दूसरे बच्चों के साथ खेलने के लिए भेजना, अनजान लोगों से बात करने की आदत डलवाना या फिर कोई गेम जीतने या फिर हारने पर कैसे रिऐक्ट करना होता है, ये सीखाना तब उस बच्चे की इमोशनल प्रोग्रेस रुक जाती है और वो ना तो दूसरों के इमोशन्स को ढंग से समझ पाता है और ना ही खुद के नंबर *****। फियर ऑफ फेल्यर, फियर ऑफ फेल्यर, इस द फेयर ऑफ लाइफ क्योंकि जिंदगी को जिसने भी समझ नहीं कोशिश करी है उसे जिंदगी ने पहले पूरी तरह से नष्ट करा है। और फिर जाकर उसे जिंदगी थोड़ी बहुत समझ आई है लेकिन बहुत से लोग जिंदगी में हारने और अपने डरो का सामना करने से डरते हैं और वो अपना यही डर अपने बच्चों में डाल देते हैं। उन्हें ये बोलकर की बेटा मार्क्स कम नहीं आना चाहिए या फिर लाइफ में क्या करना है ये तुम्हें अभी से पता होना चाहिए। ऐसी बातें सुनकर एक बच्चा फेल्यर से दूर भागने लगता है और बड़े होने के बाद भी ज्यादा सक्सेसफुल नहीं बन पाता क्योंकि हर अनकॉमन सक्सेस का रास्ता बहुत से फेल्यर से गुजरता है। नंबर सेवन बैट पैरेंट ये बात अपने मन में रखो कि एक बैट पैरेंट एक बैड चाइल्ड को नहीं बल्कि एक बैड पैरेंट को ही जन्म देता है क्योंकि जीस इंसान को बुरी पे रेटिंग मिली होती है उसके लिए पैरेंटिंग का मीनिंग खुद के पैरेन्ट्स की वजह से काफी विक्रेता यानी डीस्टॉर्टेड होता है। उससे लगता है कि रिलेशनशिप्स में लड़ाईयां, झूठ बोलना, कड़वाहट रखना या फिर पीठ पीछे बुराइ करना तो आम बात होती है। नंबर एट को डिपेंडेंसी आई कैन गैरन्टी कि यह प्रॉब्लम आपकी या फिर आपकी किसी पार्टनर की जरूर रही होगी कि रिलेशनशिप में एक इंसान दूसरे के बिना रह ही नहीं पाता। थोड़ी थोड़ी देर में कॉल्स, मेसेजेस ये फिर रिलेशनशिप में एक इंसान का दूसरे इंसान में ज्यादा रुचि हो ना ये साइनस होते हैं को डिपेंडेंसी के यानी एक इंसान अच्छा और खुश फील करने के लिए दूसरों पर डिपेंडेंट है। ये प्रॉब्लम भी एक पैरेंट के हर काम खुद ही करने की वजह से आती है। एक बच्चा कभी सीख ही नहीं पाता कि अकेले कैसे रहा जाता है और खुद में संतुष्ट कैसे फील करा जाता है। इस तरह से एक इंसान ऐडल्ट बनने के बाद भी अपने रिलेशनशिप्स में बच्चों की तरह बिहेव करता है। पैरेंटिंग मिस्टेक्स बहुत कॉमन है और इनकी कीमत बच्चों को चुकानी पड़ती है। इसलिए, इस इन्फॉर्मेशन को ज्यादा से ज्यादा लोगों के साथ शेयर करो और समझो की एक अच्छा पैरेंट कैसे बना जाता है।","आपके माता-पिता ने आपका पालन-पोषण किया, आपको बोलना और चलना सिखाया, और आज आप जहां हैं वहां पहुंचने के लिए कई बलिदान दिए हैं। लेकिन अनजाने में उन्होंने आपको कुछ झटके भी दिए हैं। इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम 8 सबसे आम असफलताओं या समस्याओं पर चर्चा करेंगे जो विषाक्त पालन-पोषण के कारण होती हैं।" "रविकांत एक ऑन्ट्रप्रनर और इन्वेस्टर है और वो पॉपुलर है अपने जीने के तरीकों और ऐसी देने के लिए जिसे सुनते ही हर इंसान के अंदर एक लाइट बल्ब ऑन हो जाता है। उनकी जेनरेशन वेल्थ बनाने, खुश रहने, ग्रेटनेस हासिल करने, बुक्स रीड करने और अच्छी हैबिट्स बनाने की एडवाइस इतनी टाइम्लेस है कि हर इंसान ही उनकी टीचिंग उसको अपनी लाइफ में अप्लाई कर सकता है और अपनी लाइफ के हर एरिया को ही इम्प्रूव कर सकता है। नवाल के ख्याल इसलिए इतने सच और ऑब्वियस लगते है क्योंकि वो खुद भी काफी होलिस्टिक है। वो अमीर भी हैं। वो खुश भी हैं। वो बुक्स पढ़ते हैं, उनको फिलॉसफी में भी इंटरेस्ट है और उन्हें हेल्थ की भी नॉलेज है। यही रीज़न है की वो हमारे लिए उनके थॉट्स को जानना बहुत बेनेफिशियल हो सकता है। इसलिए आपको इस एपिसोड के एंड तक दिखना चाहिए क्योंकि आपको बहुत कुछ नया सीखने को मिलेगा और आपको लाइफ चेंजिंग एडवाइस मिले गी ले सन वन खुद को एक अब नॉर्मल लू सर की तरह देखने से शुरुआत करो। यहाँ नवाल ये नहीं बोल रहे हैं कि आप एक लूँ सर हो या फिर आपको अपनी सेल्फ एस्टीम खुद ही डिस्ट्रॉय कर लेनी चाहिए बल्कि वो बोल रहे हैं कि हर इंसान खुद को स्मार्ट, सक्सेसफुल हर समय खुद को सही दिखाना चाहता है, जबकि सक्सेस सिर्फ उन्हीं लोगों को मिलती है जो खुद के अंदर की यूनीक्नेस को ढूंढ पाते हैं और वो काम करते हैं जो ऐवरेज लोग नहीं करते हैं। लू सर होने की फीलिंग आपको अपने अंदर छुपे बेस्ट आइडियाज़ को बाहर लाने के लिए फोर्स करेगी। वो बोलते है कि अगर आप खुद को एक यू सर की तरह देखोगे जिसको सोसाइटी ने रिजेक्ट कर दिया है और उसका अब सोसाइटी में ज्यादा कोई बड़ा रोल नहीं है, तब आप अपने दिल की कर सकते हो और आपके सक्सेस तक पहुंचने के चान्सेस ज्यादा होते है। शुरू में खुद को यह बोलना मददगार हो सकता है कि मैं कभी पॉपुलर नहीं बनूँगा। मुझे सोसाइटी एक्सेप्ट नहीं करेगी और मैं ऑलरेडी एक लूँ सर हूँ, मुझे वो नहीं मिलेगा जो दूसरे लोगों के पास है। इसलिए जैसा मैं हूँ, मुझे उसी में खुशी ढूंढनी पड़ेगी। इस कोट की लास्ट लाइन ही की यूनीक थॉट्स को एक्सप्लेन करती है। उनके हिसाब से हम तब तक अपने यूनीक टैलेंट को छुपाते रहेंगे जब तक हम खुद के लिए नहीं बल्कि दूसरों के जजमेंट के बेसिस पर ऐक्शन लेंगे। लेसन टु रीडिंग आपकी जिंदगी बदल देगी। बोलते है कि मैं हमेशा से ही बुक्स पर बहुत से पैसे लगाता आया हूँ, लेकिन मैं इसे एक एक्स्पेन्स की तरह नहीं बल्कि एक इन्वेस्टमेंट की तरह देखता हूँ। इसके साथ ही वो बोलते है कि जब भी हम किसी बुक को पढ़ने के लिए उठाते हैं तब यह जरूरी नहीं है कि हम उसे कवर टु कवर पड़े हैं और जब तक वो खत्म ना हो तब तक कोई दूसरी बुक ना खोले। इसके बजाय नवाब बोलते है कि अपने इंट्रेस्ट का पीछा करो। अगर आपको एक बुक अपनी तरफ बुला रही है तो ठीक है, उसे खोलों और तब तक पढ़ो जब तक आप उसमें से कुछ इनसाइट्स नहीं निकाल लेते और आपका इन्ट्रेस्ट उसमें बना रहता है। लेकिन जैसे ही आप बोर हो जाते हो तब उस बुक को बंद करके एक दूसरी बुक को उठाना बिल्कुल नॉर्मल है। बुक रीडिंग को ऐसे मत देखा करो। कि आप एक स्कूल में हो और आपको कोई शुरू से एंड तक रीड करने के लिए फोर्स कर रहा है क्योंकि ऐसे तो आप रीडिंग को हेड करने लगोगे और नॉलेज से दूर भागोगे इवन अगर आप एक बुक को रीड करते टाइम कहीं अटक जाते हो और आप आगे नहीं बढ़ पा रहे है तो रीडिंग से थोड़ा ब्रेक लो। जो चीज़ रीडिंग को यूज़ फुल बनाती है वह है आपकी और नॉलेज की बुक। जैसे ही ये दोनों चीजें सैटिस्फाइड हो जाए तब आपको वो बुक बंद कर देनी चाहिए। लेसन थ्री आप स्मार्ट तब कहलाते हों जब आप मुश्किल चीजों को सिंपल बना पाते हो। बोलते हैं कि उनके हिसाब से असली जेनेसिस वो होते हैं। जो मुश्किल से मुश्किल चीजें भी एक बच्चे को समझा सकते हैं। अगर आप कोई चीज़ एक बच्चे को नहीं समझा सकते तो उसका मतलब आपको उसकी कंप्लीट नॉलेज नहीं है। हर नॉलेज एक कुएं की तरह होती है, जिसमें अलग अलग ऊंचाइयां या फिर लेवल्स होते हैं। जो लोग खुद को स्मार्ट दिखाते हैं और सिंपल चीजों को भी कॉम्प्लेक्स बना देते है, वो यूज़्वली इस कुएं के सिर्फ एक सर्टन पौंड से ही वाकिफ होते हैं। जबकि एक असली जीनियस पूरे कुएं को ही नाप कर बैठा होता है। उसकी नॉलेज होती है और उसके बेसिक्स उसके दिमाग में एकदम क्लियर होते हैं। लेसन फॉर हमेशा अच्छे डिसिशन लेने के लिए मेंटल मॉडल्स बनाओ मेंटल मॉडल्स हमारे मन में बने हुए ढांचे या फिर एक इक्वेशन की तरह होते हैं, जिसमें कोई भी प्रॉब्लम डालने पर हमें सही सलूशन मिल जाता है। एग्जाम्पल के तौर पर मेरे खुद के मेंटल मॉडल्स में से सबसे स्ट्रॉन्ग मॉडल है सच बोलने का। यानी मैंने इतने सारे एविडेंस इसका ठीक कर लिए हैं। इतने वाइस लोगों की बातें सुन ली है, इतनी बुक्स पढ़ ली है और लोगों की लाइफ पैटर्न्स को ऑब्जर्व कर लिया है कि मेरे दिमाग में एक ढांचा है जिसपर मैं कोई भी प्रॉब्लम या डिसिशन रख दूँ। मुझे पता होता है कि लॉन्ग टर्म में मैं सच पर रि लाइक कर सकता हूँ और मेरा सच पर बेस्ट डिसिशन कभी भी मुझे गलत या फिर गिलटी नहीं फील करवाएगा। नवल बोलते हैं कि हमारा दिमाग एक मेमोरी प्रोडक्शन मशीन की तरह चलता है। यानी अगर पास्ट में एक्स हुआ था तो हम बोल सकते हैं कि फ्यूचर में भी एक्स जरूर होगा। इसी तरह से अपने बेसिक्स को क्लियर करो। क्लासिक और टाइम्लेस नॉलेज हासिल करके अगर आपने बिज़नेस खड़ा करना है तो उन प्रिंसिपल्स को अप्लाई करो जो हमेशा से काम करते आए हैं। अच्छी लाइफ जीनी है तो यह देखो कि अब तक लोगों की लाइफ को अच्छा बनाने वाली चीजें क्या रही है? इसी तरह से अपने जेन्यूइन मेंटल मॉडल्स बनाओ। लेसन फाइव लाइफ एक सिंगल प्लेयर गेम है। ज्यादातर लोग सोचते है की लाइफ एक मल्टीप्लेयर गेम है जहाँ सक्सेस, पैसा और स्टेटस बहुत ईजी मेजर करा जा सकता है। लेकिन ऐसी गेम में इनर हैपिनेस और इन्नर पीस को मेजर करना इम्पॉसिबल होता है। हमें सोसाइटी में अलग अलग गेम खेलने को बोला जाता है कि हम कभी पढ़ाई करे, कभी दोस्तों के साथ ड्रिंक करे या फिर सक्सेस हासिल करें ताकि गेम के दूसरे प्लेयर्स हमारे से इंप्रेस हो, लेकिन ट्रू हैपिनेस एक्सटर्नल नहीं बल्कि इंटरनल होती है और हमें खुद को ट्रेन करना होता है अपने अंदर खुशी ढूंढने के लिए। इसलिए इस तरह से सोचो कि आप एक सिंगल प्लेयर गेम में हो, जहाँ आप सिर्फ अपने आप से कंप्लीट कर रहे हो और आपको किसी भी एक्सटर्नल वैलिडेशन की जरूरत नहीं है। लेसन सिक्स सेल्फ एस्टीम का मतलब है खुद के साथ एक रिलेशनशिप बिल्ड करना। यानी खुद से ये पूछो कि आपको बुरे काम करने से कौन रोकता है। दूसरे लोग या फिर आपके खुद के मॉडल्स बोलते हैं कि जीतने आप अच्छे काम करोगे, उतना ही आप खुद को रिस्पेक्ट और प्यार करोगे। लेकिन जब आप दूसरों से झूठ बोलोगे और धीरे धीरे आप खुद को कम प्यार करने लगोगे और आपकी सेल्फ एस्टीम भी कम हो जाएगी। लोग वो होते हैं जो इसलिए बुरा करना बंद नहीं कर देते हैं। क्योंकि दूसरे लोगों ने देख रहे हैं बल्कि इसलिए क्योंकि वो देख रहे हैं। अब दूसरों से तो दूर भाग सकते हो लेकिन खुद से नहीं। इसलिए कोई भी काम ऐसा मत करो जो आपके अंदर सेल्फ हेट्रेड गिल्ट या जैसी फीलिंग्स को जन्म दे। लेसन सेवन अमीर होने के बेसिक फॉर्मूला को अप्लाई करो, करते हैं कि अमीर होने को सबसे पहले एक लॉन्ग टर्म गेम की तरह देखो जहाँ आप बस रिचिज़ नहीं बल्कि वेल्थ बनाने पर फोकस होते हो। वो बोलते है की आपको वेल्थ क्रिएट करने के लिए तीन चीजें चाहिए। स्पेसिफिक नॉलेज अकाउंटेबिलिटी और लेवरेज आपकी स्पेसिफिक नॉलेज स्कूल जाने से नहीं बल्कि अपनी क्लिओ सिटी को फॉलो करने से बनती है। अकाउंटेबल होने का मतलब होता है या आप खुद के नाम पर रिस्क ले रहे हो और अपनी कमिटमेंट शो कर रहे हो बजाय अपनी सक्सेस की रिस्पॉन्सिबिलिटी दूसरों के कंधों पर लादने से और फाइनली लेवरेज होती है। किसी भी ऐक्शन के थ्रू मैक्सिमम ऐडवांटेज निकाल पाना आप तीन तरह की ऐवरेज को यूज़ कर सकते हो। यानी लेबर, कैपिटल और कोडन मीडिया पहले दो टाइप्स परमिशन लेवरेज है। यानी आपको अपने आस पास लोग चाहिए होते हैं जो आपकी कमांड को फॉलो करे या फिर एक इन्वेस्टर जो आपको पैसा दे। जबकि तीसरा टाइप कोडन मीडिया परमिशनलेस लेवरेज है जिसमें आप एक सॉफ्टवेयर लिख सकते हो, पॉडकास्ट बना सकते हो, लॉग इन कर सकते हो या एक बुक लिख सकते हो, हर इंसान के पास लेबर और कैपिटल का ऐक्सेस नहीं होता। इस वजह से नवाल वेल्थ बनाने के लिए परमिशनलेस लेवरेज यूज़ करने की एडवाइज देते हैं। लेसन एट महान लोगों को हमेशा महान रिज़ल्ट ही मिलते हैं। यंग लोग जिनके सपने बहुत बड़े होते है वो खुद को बहुत जल्दी जज कर लेते हैं। उन्हें लगता है कि वो ऑलरेडी सक्सेस डिज़र्व करते हैं और उन्हें हर चीज़ जल्दी से जल्दी चाहिए होती है। लेकिन नवाल जो नई टेक्नोलॉजी बनाने वाले लोगों के साथ रेगुलरली काम करते है वो ये बोलते है कि अगर आपके अंदर महानता है तो आपको सक्सेस भी मिल ही जाएगी। ग्रेट लोगों को ग्रेट आउटकम्स मिलती है। ऑफ कोर्स ग्रेटनेस हासिल करने में जितना समय हम एक्सपेक्ट करते हैं, उससे कई गुना ज्यादा समय लगता है। लेकिन जो लोग सबसे अलग आइडियाज़ प्रोड्यूस करते हैं और पेशेंट बने रहते हैं, वो आगे चलकर सबसे ज्यादा सक्सेसफुल बनते हैं। इसलिए जल्दी सक्सेस हासिल करने पर नहीं बल्कि खुद को एजुकेट करते रहने और नए कॉन्टैक्ट्स बनाने पर अपना फोकस रखो। लेसन नाइन डिज़ाइनर सफरिंग क्रिएट करती है। सवाल बोलते हैं कि डिज़ाइनर एक कॉन्ट्रैक्ट होता है जो आप खुद के साथ बनाते हो, तब तक दुखी रहने के लिए जब तक आपको वो नहीं मिल जाता जो आपको चाहिए। ये चीज़ आपको अपने गोल तक पहुंचने में और धीमा कर देती है क्योंकि एक फ्यूचर की डिज़ाइनर से अटैचमेंट हमारे प्रेज़ेंट में हमें दुखी और इन्कम्प्लीट फील कराती है, जिसकी वजह से हम खुशी और एक्साइटमेंट के साथ नहीं बल्कि दर्द और चिंता के साथ काम करते हैं और ये चीज़ हमारे काम की क्वालिटी को भी नेगेटिव ली करती है। इसलिए ट्रोफी से नहीं बल्कि गेम से प्यार करो।","नवल रविकांत एक भारतीय-अमेरिकी उद्यमी, निवेशक और विचारक हैं। बहुत से लोग उनकी सलाह का पालन करते हैं क्योंकि वह वास्तव में समग्र है, अर्थात वह अमीर है, वह खुश है, वह बेहद सफल है, वह बहुत पढ़ता है, और उसके जीवन के हर पहलू को एक सार्थक जीवन बनाने के लिए अनुकूलित किया गया है। "पैसे कैसे कमाएं" पर उनकी सलाह को ऑनलाइन लाखों बार देखा गया और शेयर किया गया। इसीलिए इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम जीवन के विभिन्न क्षेत्रों पर उनके 9 सबसे बुद्धिमान और व्यावहारिक पाठ साझा करेंगे।" "ट्रस्ट दुनिया की सबसे कीमती चीजों में से एक है क्योंकि इसको बनाने में तो सालों लग जाते हैं, लेकिन टूटने में चंद सेकंड्स ट्रस्ट के बिना कोई भी रिलेशनशिप लंबे समय तक नहीं चल सकता। अगर एक रिलेशनशिप में ट्रस्ट होता है तो आपके लिए बहुत ही ईजी हो जाता है। अपनी बातों को कम्यूनिकेट करना और सामने वाले के साथ एक इमोशनल कनेक्शन बनाना यानी ट्रस्ट रिलेशनशिप्स को गहराई देता है। बट ऐसे में जरूरी है कि आप सिर्फ उन्हीं लोगों पर विश्वास करो जो सच में आपके विश्वास के लायक है और तभी इस एपिसोड में हम डिस्कस करेंगे। उन लोगों के टाइप्स जिन पर आपको कभी ट्रस्ट नहीं करना चाहिए। नंबर वन पीपल हूँ लाइ हम सभी कभी न कभी लाइफ में झूठ बोलते हैं। अगर हम स्कूल या फिर काम के लिए लेट हो जाए तो हम बोल देते है कि रास्ते में ट्रैफिक था और हम ट्रैफिक की वजह से लेट हो गए। या अगर हम किसी को पसंद नहीं करते तो हम उसके आगे भी नाइस बनने की एक्टिंग करते हैं ताकि वो सिचुएशन ऑक्वर्ड ना बने। बट कई लोगों को झूठ बोलने की आदत होती है। ये लोग अक्सर सच को कुछ इस तरीके से मोड़कर हमें मैनिपुलेट करते हैं ताकि वो अपनी नीड्स और डिज़ाइनर्स को पूरा कर सके। जीवन अगर आप इनके सफेद झूठ को पकड़ भी लो तब भी अपनी गलती मानने के बजाय उसको डिफेंड करने लग जाते हैं। इसलिए बेहतर होगा कि आप ऐसे लोगों से थोड़ा डिस्टैन्स मेनटेन करो। नम्बर टू दे कांट कीप सीक्रेट्स सोचो जो लोग दूसरों की पर्सनल बातें आपको बता रहे है क्या वो आपके सीक्रेट्स अपने तक रखते होंगे? बिलकुल भी नहीं। ऐसे लोगों को अपने सीक्रेट्स बताना बिल्कुल ऐसा होगा जैसे आपने अपने पैसे या फिर सबसे कीमती सामान एक ऐसी तिजोरी में रख दिया हो जिसका कोई ताला ही नहीं है। ऐसे लोगों को बस लोगों की बुराइ करने और इधर की बात उधर करने में मज़ा आता है। फिर भले ही इनकी बातों से कोई हर्ट क्यों ना हो जाए इसलिए ऐसे लोगों पर आपको बिलकुल ट्रस्ट नहीं करना चाहिए, चाहे वो आपको प्रॉमिस भी करे की वो आपके साथ ऐसा नहीं करेंगे। नंबर थ्री दे कांट कम टु एनी कॉन्क्लूज़न यानी ऐसे लोग जो एक चीज़ पर कभी भी टिक ही नहीं पाते हैं और बार बार अपना ओपिनियन बदलते रहते हैं। ये लोग अक्सर आप से एडवाइस लेते हैं और ध्यान से आपकी बात सुनने के बाद वही स में क्वेश्चन या प्रॉब्लम किसी और के पास लेकर चले जाते हैं। ऐसे लोगों में कॉन्फिडेंस की कमी होती है और तभी इनका मन बार बार हर चीज़ को लेकर चेंज हो रहा होता है। अगर आप इस तरह के कन्फ्यूज़्ड इंसान के साथ बिज़नेस करो तो शुरू में ये बोलेंगे की हाँ, आपका काम हो जाएगा लेकिन कुछ टाइम के बाद ही अपना मन बदल लेंगे और बोलेंगे कि नहीं। वो काम तो बहुत ही मुश्किल था। अगर आपका कोई दोस्त इस तरह का है तो वो भी इस तरह के वादे तो करेगा कि वो मुश्किल समय में आपका साथ देगा, लेकिन एक्चुअल नेगेटिव सिचुएशन में वो गायब हो जाएगा। इसलिए अगर कोई इंसान एक आध बार भी यह दिखा दें कि वो अपनी बातों पर टिका नहीं रहता तो ऐसे इंसान पर दोबारा बिलकुल ट्रस्ट मत करना नंबर फ़ोर दे यार, वे टू नाइस हम यूज़्वली ऐसे लोगों पर बहुत ईजी ट्रस्ट कर लेते हैं जो बहुत ही नाइस और स्वीट होते हैं लेकिन किसी को सिर्फ उसकी ना इसने उसके बेसिस पर ट्रस्ट करना ये बिलकुल भी नहीं होता। ऐसा इसलिए क्योंकि बहुत से लोगों को वही चीजे बोलने की आदत होती है जो दूसरे लोग सुनना चाहते है। वो बहुत बार कड़वे सच को सामने रखने के बजाय मीठे झूठ सब में बांट देते हैं ताकि कोई भी उन्हें डिस्लाइक ना करें। इस तरह के लोग कायल होते हैं और ये किसी भी तरह के टकराव को अवॉर्ड करने के लिए एक्स्ट्रीम जगहों पर जा सकते हैं और एक के बाद एक झूठ बोल सकते हैं। इसलिए अगर कोई इंसान हद से ज्यादा नाइस है तो उसे बस लेवल पर जज मत करो और बिना किसी पक्के रीज़न के उस पर ट्रस्ट मत करो। नंबर फाइव दिलैक सेल्फ अवेर्नेस जो भी इंसान खुद को अच्छे से नहीं जानता वह दूसरों के इमोशन्स के टुवार्ड्ज़ भी एकदम इन डिफ़रेंट और इनसेंसिटिव रहता है और वो बहुत ही सेल्फिश होता है। वो अपने बारे में सोचने में ही इतना ज्यादा बीज़ी होता है कि उसे ये समझ नहीं आ पाता कि कैसे उसके शब्द या फिर ऐक्शंस दूसरों को हर्ट कर रहे हैं और जब आप ऐसे इंसान को बताओ कि उनकी कोई बात आपको बुरी लगी या फिर वो कितने सेल्फिश अली जीते हैं तो वोल्टास सारा ब्लेम आपके ऊपर शिफ्ट कर देते हैं। ऐसे लोग कभी भी खुद के एक्शन्स की रिस्पॉन्सिबिलिटी ले ही नहीं पाते हैं, जिसकी वजह से आपको कभी भी ऐसे इंसान पर बिलकुल ट्रस्ट नहीं करना जिनकी सेल्फ अवेर्नेस और सोशल इन्टेलिजेन्स इतनी कम हो। नंबर सिक्स दे ऑलवेज फील विक्टिम आइस्ड जो लोग अपनी स्टोरी में एक विक्टिम होते हैं और हमेशा दूसरों को अपने के लिए ब्लेम कर रहे होते हैं, ऐसे लोग बिल्कुल भी ट्रस्ट के काबिल नहीं होते हैं। इन्हें डीप इनसाइड ये पता होता है कि इनका फेल्यर इनको जीते जी शांति से नहीं रहने देगा। लेकिन अपनी लाइफ की रिस्पॉन्सिबिलिटी लेने की मोटिवेशन ना होने के कारण ये अपनी लाइफ में कुछ ना कर पाने की वजह एक्सटर्नल चीजों को बताते हैं। लेकिन सिंपल सी बात है जिसे भी लाइफ में कुछ करना होता है वह लाख मुश्किलों और रूकावटों के बाद भी सक्सेस हासिल कर लेता है। लेकिन जिसके दिमाग में विक्टिम आइडेंटिटी बैठी हुई होती है, वो अपनी पूरी जिंदगी ही बहाने बनाने में निकाल देता है। इसलिए ऐसे लोग भी ट्रस्ट के लायक नहीं होते जो अपनी किस्मत और अपनी लाइफ का कंट्रोल खुद के हाथ में नहीं लेते हैं। नंबर से वन अन्न ग्रेटफुल वन ये वो लोग होते हैं जिनके लिए आप चाहे जितना मर्जी करलो और जितना भी सैक्रिफ़ाइस इस ले लो, यह तब भी थैंकफुल नहीं फील करेंगे और आपके एफर्ट्स में कमियां निकालते रहेंगे जिसकी वजह से आप भी कॉन्स्टेंट ली उन्हें प्लीज़ करने में लगे रहते हो ताकि 1 दिन फाइनली वो आपकी दोस्ती या फिर प्यार को समझ सकें है। लेकिन ऐसा दिन कभी नहीं आता और आप ऐसे इंसान की वैलिडेशन लेने के चक्कर में उन्हीं के आगे पीछे घूमते रहते हो। इस तरह के लोग खुद अपनी जिंदगी से परेशान होते हैं और अंदर ही अंदर खोखला फील कर रहे होते है। वो आप को मैनिप्युलेट करते हैं ताकि आप उनके इस खोखलेपन को भर पाओ। लेकिन ऑब्वियस्ली एक इंसान की सैडनेस या फिर एम्पटीनेस सिर्फ वो खुद ही दूर कर सकता है। इसलिए अगर कोई इंसान आपके लिए उनकी मदद करने पर भी थोड़ा सा भी थैंकफुल नहीं होता तो उसका मतलब ना तो वो आपकी इज्जत करता है और ना ही वो आपके ट्रस्ट के काबिल है। नंबर एट धन नार्सिसिस्ट यानी वो लोग जिनको लगता है कि पूरी दुनिया ही उनके अराउंड घूमती है। ये लोग हमेशा अपने बारे में सोचते हैं और दूसरों से लेना जानते हैं और देना नहीं। एक टिपिकल नर्स असिस्ट चाहे वो आपका दोस्त हो या फिर पार्टनर, वो शुरू में तो आपको बहुत ही चार्मिंग लगता है। क्योंकि वो अपने असली रूप को छुपा रहा होता है लेकिन जैसे जैसे आप उसे जानने लगते हों तब आप को समझाने लगता है कि वो स्टार्टिंग में बस चार्मिंग होने की एक्टिंग कर रहा था ताकि वो आप को मैनिपुलेट कर सके। एक नर्स असिस्ट को पहचानने के लिए एक इंसान में देखो कि क्या उसकी सेल्फ इम्पोर्टेन्स बहुत ज्यादा है? क्या वो अपने ही डिल्यूजन से भरी एक दुनिया में रहता है जहाँ वो सबसे सुपीरियर है? क्या वो कभी अपनी गलती को नहीं मानता या फिर क्या उसमें बहुत ज्यादा सेन्स ऑफ एनटाइटलमेंट है? अगर एक इंसान के अंदर ये सारी नेगेटिव क्वालिटीज है तो उसका मतलब वो पक्का एक नार्सिसिस्ट है। और आपको उस पर कभी ट्रस्ट नहीं करना चाहिए। नंबर नाइन दे यार पैसे मिस्टिक लाइफ पहले से ही इतनी टफ और चैलेंजिंग है और तभी इससे डील करने के लिए एक सही ऐटिट्यूड होता है। ऑप्टिमिजम और सच की एक्सेप्टेंस का जीवन अगर सच कड़वा भी है तो तब भी आपके पास निराश होने का ऑप्शन नहीं होता। नेगेटिविटी एक खुशहाल और पीसफुल लाइफ जीने के लिए ऑप्टिमल नहीं होती, लेकिन कई लोगों में नेगेटिव थिंकिंग प्रोग्राम हो रखी होती है। या तो उनके बचपन में ही उन्हें यह बताया गया होता है कि दुनिया कितनी बेकार, मतलबी मीनिंग लेस है या फिर उनका खुद का कोई ब्रेक अप फाइनैंशल क्राइसिस या कोई और दूसरा लॉस उन्हें इस तरह के थॉट पैटर्न में फंसा देता है। पैसे में हम सिर्फ एक इंसान को ही नहीं बल्कि उसके आसपास रहने वाले लोगों को भी डीमोटीवेट कर देता है और लाइफ में अपना बेस्ट एफर्ट देने और अपनी हाइएस्ट पोटेंशिअल तक पहुंचने से सब को रोक देता है। इसलिए अगर आपके सर्कल में भी कोई पैसे मिस्टेक इंसान है तो उससे दूर रहो और कभी भी उसकी बातों पर ट्रस्ट मत करो। नम्बर 10 दें वॉन्ट टू बीट यू यानी एक ऐसा इंसान जो हमेशा आपसे कंप्लीट करता रहता है। आपको अपने अराउंड ऐसे लोगों को रखना चाहिए जो आपके साथ एक लड़ाई को लड़ें ना कि आप के अगेन्स्ट फॉर एग्जाम्पल। अगर एक रिलेशनशिप ऐसा है जहाँ एक लड़का अपनी पार्टनर को यह दिखाना चाहता है कि वो उससे कितना सुपिरिअर है और वो लड़की भी ये प्रूफ करना चाहती है कि वो भी उससे कुछ कम नहीं है तो ऐसे लोग कभी भी ज्यादा आगे नहीं बढ़ पाएंगे क्योंकि वो एक दूसरे के अगेन्स्ट है। वह नहीं चाहते कि उनका प्यार करने वाला उनसे कभी भी ज़रा सा बेहतर हो। इसलिए अगर आपके अराउंड भी ऐसे लोग हैं जो आपको बेहतर बनने में मदद करने के बजाय अपना फोकस बस आप को हराने में लगाते हैं तो ऐसे लोगों पर ट्रस्ट करना तो दूर, आपको उनसे बात भी नहीं करनी चाहिए।","विश्वास हमारे जीवन की सबसे मूल्यवान चीजों में से एक है क्योंकि दो लोगों के बीच विश्वास पैदा करने में बहुत समय लगता है लेकिन इसे नष्ट करने में केवल एक क्षण लगता है। भरोसे की बुनियाद के बिना कोई भी रिश्ता लंबे समय तक टिक नहीं सकता। इसलिए यह जानने के लिए कि किस पर भरोसा किया जाए और कौन आपके भरोसे के लायक नहीं है, हम ऐसे 10 तरह के लोगों के बारे में बात करेंगे जिन पर आपको कभी भरोसा नहीं करना चाहिए।" "हम सभी अपनी लाइफ में एक ऐसे इंसान से जरूर मिलते हैं जिसको सब बहुत ज्यादा पसंद करते हैं और उनकी प्रेजेंस ही सबकी अटेन्शन उनकी तरफ खींचने के लिए काफी होती है। सब उनकी तरफ खुद ब खुद खिंचे चले आते हैं, लेकिन किसी को भी ये नहीं समझ आता कि उनमें ऐसी क्या बात है जो इतनी अट्रैक्टिव है और वो मैग्नेट की तरह लोगों को पुल करती है। ऐसे इंसान की पर्सनैलिटी काफी चार्मिंग यानी दिलकश होती है। कई लोगों के अंदर यह चाम अपने पैरेन्ट्स को देखकर और जिन सराउन्डिंग् में वो पले बड़े होते हैं, उनसे आती है, लेकिन दूसरे लोगों को चार्मिंग और अट्रैक्टिव बनाती है। उनकी प्रैक्टिस और उनकी नॉलेज, इस टाइप के लोग हर वो बुक पढ़ते हैं, कोर्स लेते हैं या फिर बस शीशे के सामने खड़े होकर घंटों तक प्रैक्टिस करते हैं। और इस एपिसोड में दी गई टिप्स इसी कैटगरी के लोगों के लिए है। नंबर वन रेस अदर पीपल, सिनर्जी क्योंकि चार लोग वो होते हैं जो हर पार्टी डिस्कशन या मीटअप की शान होते हैं। उनके बिना लोग बोर्ड फील करते हैं, लेकिन उनके आते ही पूरा रूम एनर्जी से भर जाता है। ये चीज़ डिपेंड करती है एक इंसान के बोलने की टोन जिंस फैशन के साथ वो बोलता है उसके कॉन्फिडेन्स पर जहाँ ज्यादातर लोग झुंड में बोलने को ही आसान मानते हैं, वही आपका काम है, बाकी लोगों की एनर्जी के हमेशा एक लेवल ऊपर रहना। एग्जाम्पल के तौर पर अगर आप कुछ बोल रहे हो तो एकदम स्लोली ऐसे मत बोलो जैसे आपको जीने में कोई इंटरेस्ट ही नहीं है, बल्कि ऐसे बोलो कि आप अपनी लाइफ के हर बीतते सेकंड के साथ इस क्रिएशन के साथ और प्यार करते जा रहे हो और आप एग्ज़िस्टन्स की ब्यूटी को अपने वर्ड्ज़ में एक्सप्रेस कर ही नहीं पा रहे हैं। अगर आप लोगों से मिल रहे हो तो मुँह पर एक स्माइल रख हो अपनी ऑथेंटिक फीलिंग्स दिखाने के लिए की। हाँ, आप सच में खुश हो उनसे मिलकर खड़े होते हुए झुकने के बजाय बैकस्ट्रीट रखो और हर समय नॉर्मल या फिर स्ट्रिप रहने के बजाय कभी कभी अपने अंदर मौजूद मस्ती वाले पार्ट को भी बाहर लाओ। ऐसा बिहेव्यर लोगों के दिल में होप जगाता है और आपको उनकी नजरों में ज्यादा चार्मिंग बनाता है। नंबर टू एबिलिटी टु बी वल्नरेबल साइकोलॉजिस्ट रिचर्ड वाइजमैन ने अपनी एक स्टडी में दो ऐक्ट्रेसेस लिए और उन्हें एक एक करके ऑडियंस के आगे जाने को बोला। एक्ट्रेस बहुत ब्यूटीफुल और हर तरह से एकदम पर्फेक्ट थी और उसने कोई गलती नहीं करी। जबकि दूसरी एक्ट्रेस को गलती करने और ऐक्सिडेंटली किसी चीज़ को गिरा देने को बोला गया। नोर्मल्ली हम सोचेंगे कि जीस इंसान ने गलती करी, उससे तो लोग बिल्कुल भी नहीं इंप्रेस हुए होंगे और जीस इंसान में एक भी कमी नहीं दिखी। वो ही सब को पसंद आया होगा लेकिन ऐसा नहीं है। स्टडी में पार्टिसिपेंट्स को वो एक्ट्रेस ज्यादा ऑथेंटिक लगी जिससे एक गलती हो गई थी और उसने अपनी गलती को ओं करा जीवन। हम भी अपने फेवरेट सेलिब्रिटीज़ में यही चीज़ देखते हैं कि हम सबसे ज्यादा रिस्पेक्ट उसी की करते हैं जो एकदम पर्फेक्ट नहीं होता। लेकिन उनसे हम एक ह्यूमन लेवल पर रिलेट कर पाते हैं और यही रिलेटिविटी वाला फैक्टर उन्हें ज्यादा चार्मिंग बनाता है। नंबर थ्री लिफ्ट दर्ज अब क्योंकि किसी भी इंसान को वो बंदा बिल्कुल नहीं पसंद आता जो हर समय बस अपनी ही बातें करता रहता है। हमें वो लोग अच्छे लगते हैं जो हमारे पॉज़िटिव एलिमेंट्स को नोटिस करके हमें जेन्यूइन कॉम्पलिमेंट देते हैं, हमारी लाइफ के बारे में पूछते हैं और हमारे इन्ट्रेस्ट में अपना इन्ट्रेस्ट दिखाने लगते हैं। चार लोग हमें अपने बारे में बोलना शुरू करवा देते हैं और खुद बहुत ध्यान से हमारी बातों को सुन रहे होते हैं। यह भी उनके ऑथेंटिक होने का ही एक पार्ट होता है क्योंकि अगर आप बस बोलते रहो और सामने वाला आपको इग्नोर करता रहे इसमें कुछ भी चार्मिंग नहीं होता। लेकिन वो इंसान जो आपकी स्टोरी को ऐसे सुनता है जैसे उसे सुनना उसके लिए मैटर करता हो। वो चीज़ हमें अट्रैक्ट करती है जिसकी वजह से अगर हम भी चार्मिंग बनना चाहते हैं तो हमें दूसरों को ऐसा फील कराना चाहिए जैसे उनकी अच्छी क्वालिटीज को पहली बार किसी ने ढंग से देखा हो। नंबर फ़ोर दीप गेसिंग हम नोर्मल्ली ये सोचते हैं कि जितना ज्यादा हम दूसरे इंसान के साथ आई कॉन्टैक्ट बनाएंगे उतना ही वो हमे पसंद करने लगेगा। लेकिन जरूरत से ज्यादा आई कॉन्टैक्ट क्रिपि और अजीब लगने लगता है। आपका फोकस होना चाहिए एक मूवमेंट में दूसरे इंसान की आँखों में कुछ सेकंड के लिए देखना उनके आई कलर को ऑब्जर्व करना और फिर नैचुरली अपनी आइस को वहाँ से हटने देना। फिर जब आपको अपनी स्पीच के एक सेन्टेन्स में एक ड्रमैटिक इफेक्ट डालना होता है, तब फिर से आई कॉन्टैक्ट बना लो। कॉन्स्टेंट ली इधर उधर देखना या फिर कॉन्स्टेंट ली आई कॉन्टैक्ट बनाये रखना दोनों ही गलत है। इसलिए जब भी आप कुछ सोच रहे हो और अपनी मेमोरीज़ को ऐक्सेस करने की कोशिश कर रहे हों तब कुछ सेकंड के लिए नीचे देखो और फिर वापस से अपनी जिससे आप बात कर रहे हो उस पर ले आओ। इस तरह से उन्हें ये लगेगा कि आप जो भी बोल रहे हो वो एकदम सच है जिसकी वजह से आप उनकी नजरों में ज्यादा कॉलिंग बन जाओगे?","हम सभी उस व्यक्ति से मिले हैं जिसके पास बस कुछ ऐसा है जो पूरे कमरे की ऊर्जा को बदल देता है। वे सभी का ध्यान आकर्षित करते हैं, जब वे हंसते हैं तो लोग हंसते हैं, जब वे बोलते हैं तो लोग ध्यान से सुनते हैं और बिना कारण जाने हर कोई उनके प्यार में पड़ जाता है। तो, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम इस सवाल का जवाब देंगे: आकर्षक कैसे बनें और किसी को भी प्रभावित करें जिसे आप चाहते हैं।" "ज्यादातर केसेस में पैरंट्स अपने बच्चों को जितना हो सके उतना ऐक्यूरेट्लि यह समझाते हैं कि दुनिया कैसी होती है और उसमें कैसे ऐक्ट करना चाहिए और वह इस बात का ख्याल रखते हैं कि उनके बच्चों तक कोई भी ऐसी मिस इन्फॉर्मेशन ना पहुंचे जिससे उन्हें लाइफ के बारे में कोई गलत आइडियास मिले। हाउएवर कई बार पैरंट्स के खुद केट, रोमांस या फिर उनकी नॉलेज की कमी की वजह से वो जाने अनजाने में अपने बच्चों को ऐसी इन्फॉर्मेशन दे देते हैं जो कि गलत है। अगर वो आपके पैरेन्ट्स नहीं तो आपको झूठी इन्फॉर्मेशन देने वाले लोग आपके टीचर्स, रिलेटिव, फ्रेंड, ज़ या फिर आपके उस टाइम के फेवरेट टीवी शोज़ भी हो सकते हैं और तभी इस एपिसोड में हम ऐसी ही कई झूठी बातों को डिस्कस करेंगे जिन्हें आपने अपने बचपन में सुना था और आप अभी भी उन्हें सच मानते हों। लाइन नंबर वन जस्ट बोर सेल्फ ये एडवाइस ऑलमोस्ट हर बच्चे को दी जाती है पर ये काफी टॉक्सिक चीज़ है। किसी को ये बोलना की वो जैसा है वैसे ही रहें और ऑफ कोर्स शायद आपको ये अड्वाइज़ देने वाले इंसान की इन टेंशन्स बुरी ना हो पर तब भी आपको एक बार ढंग से ये सोचना चाहिए कि क्या आप अपने प्रेज़ेंट वर्जन से सैटिस्फाइड हो? क्या आप अपनी सारी पोटेंशिअल ऑलरेडी यूज़ कर चूके हों और कभी अपने आप को दोबारा ट्रांसफॉर्म नहीं करोगे? कई लोग सोचते हैं कि अगर आप अपने आप को बदल रहे हो तो आप ऑथेंटिक नहीं हो। पर उस इंसान का क्या जो इस समय एक झूठी लाइफ जी रहा है और अपने ट्रू सेल्फ से बहुत दूर है या फिर एक ऐसा इंसान जो हमेशा अपने कामों को टालता रहता है, अनहेल्दी खाना खाता है, हमेशा गुस्सा करता रहता है और टॉक्सिक लोगों के साथ रहना प्रिफर करता है? क्या उससे भी यही मानना चाहिए कि वह जैसा है वैसा ही ठीक है? यह एग्जाम्पल्स आपको यह सोचने के लिए मजबूर करते हैं। जी 19 9% केसेस में किसी को ये बोलना जस्ट बी और सेल्फ कितना टॉक्सिक हो सकता है। इसलिए अपने आप को और दूसरों को जस्ट बी और सेल्फ बोलने के बजाय ये बोलो कीप सीकिंग योरसेल्फ लाइन नंबर टू आपकी लाइफ में क्या होगा? ये सब पहले से लिखा हुआ है डेथ साइकोलॉजी और इवन स्पिरिचूऐलिटी के कई कॉन्सेप्ट्स में हमारी किस्मत को हमारे अनकॉन्शस माइंड से जोड़ा जाता है कि हमारी कोई गॉड गिवन डेस्टिनी नहीं होती, बल्कि जो चीजें हमें बचपन में सिखाई जाती है, जिसतरह से हमारे जीन्स की मेमोरी होती है और जो भी हमे अपनी लाइफ मेट्रोमास मिलते है वो हमारी डेस्टिनी डिसाइड करते है और अगर हम अपनी डेस्टिनी को चेंज करना चाहते हैं तो हमे अपनी लाइफ अनकॉन्शियस ली नहीं, बल्कि कॉन्शस ली जी कर अपने सर्कम्स्टैन्सज़ को अपने कंट्रोल में लाना होगा। हाउएवर ज्यादातर बच्चों को यह बताकर एम्पॉवर नहीं करा जाता कि वो अपनी किस्मत को बदल सकते हैं, बल्कि उन्हें ये बोला जाता है कि अगर वह एक गरीब घर में पैदा हुए हैं तो उनकी किस्मत खराब है और उनका अमीर बनना ऑलमोस्ट इम्पॉसिबल है या फिर अगर वो नैचुरली पढ़ाई में अच्छे नहीं है? तो वो कभी भी अपनी लाइफ को फ़िगर आउट नहीं कर पाएंगे। ये टीचिंग काफी सारे लोगों के लिए बहुत डी मोटिवेटिंग होती है और इस वजह से सोसाइटी के ज्यादातर लोग ऐसे बिहेव करते है जैसे वो ऑलरेडी लाइफ की जंग में हारे हुए पैदा हुए थे। इसलिए अगर आपके अंदर भी ये नेगेटिव प्रोग्रामिंग है तो इसे बदलो और अपने आप को ये बोलने के बजाय की आपकी लाइफ आपके कंट्रोल में नहीं है। अपने आप को ये बोलो कि आप अपनी लाइफ को बदल सकते हो। अपनी हैबिट्स को बदलकर लाइन नंबर थ्री प्यार के चक्कर में पड़ना टाइम वेस्ट है। ये उन ऐडल्ट की एडवाइस होती है जो खुद काफी न्युरोटिक होते हैं और अपनी लाइफ में गलत लोगों पर ट्रस्ट करके बैठे होते है, जिसकी वजह से उनका वर्ल्डव्यू भी काफी नेगेटिव बन चुका होता है। इस तरह के लोगों में या तो ट्रामा की वजह से काफी कड़वाहट होती है या फिर ये मीडिया और अपने फ्रेंड सर्कल से इस नेगेटिव आउटलुक को लर्न कर लेते हैं। पर रीज़न चाहे कुछ भी हो, एक इंसान को यह सीखाना की प्यार बहुत बेकार चीज़ होती है और ज्यादातर लोग सेल्फिश होते हैं। यह बिल्कुल गलत टीचिंग है। असलियत में प्यार हमारी जिंदगी की सबसे खूबसूरत और जरूरी चीज़ है। आज कल के यूथ के बीच लोनलीनेस ***** एडिक्शन और डिप्रेशन इस बात के प्रूफ है कि ज्यादातर लोग प्यार के लिए बहुत है और वह इसे एक दम गलत जगहों में ढूंढ रहे हैं। आप जब ज्यादा मैच्योर होंगे और अपनी लाइफ के काफी सारे साल जीत चूके होंगे तब शायद आप ये समझ पाओगे कि अपने पास्ट को याद करते हुए आपके लिए ये इम्पोर्टेन्ट नहीं होता कि आपने अपनी जिंदगी में कितने पैसे कमाए, कितने लोगों को कैजुअली डेट कराया? फिर अपने अकेले रहकर कितना सोशल मीडिया यूज़ करा जो चीज़ आपके मुँह पर स्माइल लाएगी? वो है आपके रिलेशनशिप्स। इसलिए अगर आपको भी प्यार से डर लगता है तो यह समझ लो कि या तो आपके अंदर की ये आवाज आपकी है ही नहीं। या फिर आपने अभी तक अपने आप को ही नहीं करा है और आप अपने पास्ट में जी रहे हो। लाइन नंबर फ़ोर लाइफ का गोल हैं, हमेशा खुश रहना और अगर आप खुश नहीं हो तो मतलब आप कुछ गलत कर रहे हो। ये सच है कि अगर हम उन चीजों को फॉलो करें जो हमें जेन्यूइन खुशी देती है तो हमारी लाइफ सैटिस्फैक्शन काफी ज्यादा होगी और हर सुबह हमारे पास बैट से बाहर निकलने का एक सॉलिड रीज़न होगा। अगर कोई भी इंसान आपको यह नहीं बताता कि अपनी इस खुशी को पर्स यू करने के रास्ते में बहुत सारे पॉइंट्स ऐसे भी आएँगे जहाँ आप खुश नहीं होंगे और एक मीनिंगफुल लाइफ के लिए जितनी जरूरी खुशी और कंफर्ट होता है उतना ही जरूरी दर्द भी होता है। बिना दर्द का सामना करे आप स्ट्रांग नहीं बन सकते हैं और जितनी बार भी आपकी ट्रांसफॉर्मेशन का समय आएगा, उतनी बार ही आपको अपने कई पुराने और अन्न रिसोर्सफुल पार्ट्स को मारना होगा, जो खुशी देने वाला प्रोसेसेस तो बिल्कुल नहीं होगा। इसलिए इस बात को भूल जाओ कि आपको हमेशा खुश रहना है। बल्कि यह इन्शुर करो कि आप हमेशा कुछ मीनिंगफुल काम कर रहे हो फिर चाहे वो काम पेनफुल ही क्यों ना हो। लाइन नंबर फाइव आपकी पढ़ाई कॉलेज के बाद खत्म हो जाएगी। ये भी एक ऐसी टीचिंग हैं जो ऑलमोस्ट हर बच्चे को मिलती है। उससे बोला जाता है कि बेटा तू नाइन स्टैंडर्ड तक हार्ड वर्क कर ले, उसके बाद मज़े ही मज़े है। फिर 12 स्टैंडर्ड तक पढ़ाई कर ले। उसके बाद कॉलेज में तो मज़े ही मज़े ऐसा करते करते एक इंसान अपनी फॉर्मूला एजुकेशन भी कंप्लीट कर लेता है। एक जॉब भी ढूंढ लेता है और शादी भी कर लेता है और उसके बाद वो सोचता है की ये मज़ा शुरू करें। होगा। उसने तो अपनी आंधी से ज्यादा लाइफ इस एक्स्पेक्टेशन के साथ निकाल दी कि उसे ना तो कभी दुबारा पढ़ना होगा और ना ही उस पर हार्ड वर्क करने का कोई प्रेशर होगा, लेकिन असलियत में ऐसा नहीं होता। और तभी ये टीचिंग इतनी गलत है कि इससे एक इंसान की लाइफ के टुवार्ड्ज़ सारी क्युरिऑसिटी ही खत्म हो सकती है। इसलिए आपकी एज चाहे कुछ भी हो, आपने हमेशा ही अपने आप को लाइफ के स्टूडेंट की तरह देखना है, क्योंकि असली लर्निन्ग किसी भी क्लासरूम में नहीं बल्कि डाइरेक्टली लाइफ को जीने से मिलती है।","इससे पहले कि हम खुद को विकसित करने के लिए खुद को छोड़ दें, हमारे बुजुर्ग यह सुनिश्चित करते हैं कि हम आवश्यक ज्ञान और दुनिया के एक सटीक मॉडल से लैस हैं। लेकिन कभी-कभी चाहे जानबूझकर या अनजाने में, हमारे माता-पिता, शिक्षक या यहां तक कि मीडिया हमारे दिमाग में ऐसी जानकारी डालता है जो झूठ है। यह एक अनजान वयस्क या सिर्फ एक छोटा सा झूठ हो सकता है जो हमें चोट लगने से रोकने के लिए किया गया था। लेकिन जो भी कारण हो सकता है, ऐसी कई चीजें हैं जो हम में से अधिकांश अभी भी मानते हैं कि यह सच नहीं है। तो, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम 5 सबसे आम झूठों के बारे में जानेंगे जो आपको एक बच्चे के रूप में सिखाए गए थे।" "बिग 5 पर्सनैलिटी ट्रेट्स एक ऐसा पर्सनैलिटी मॉडल है, जो एक क्वेश्चन के अराउंड इवॉल्व करता है। हू आर यू ये क्वेश्चन काफी सिंपल और सेम टाइम पर काफी कॉम्प्लेक्स है क्योंकि जीतने लोगों से भी ये क्वेश्चन पूछा जाता है। उन सबके आन्सर्स यूनीक होने के बजाय काफी जर्नलिस्ट होते हैं, कोई बस अपना नाम बता देता है, कोई अपनी सक्सेस से अपने आप को डिफाइन करता है। कोई अपनी हॉबीज से, कोई अपने बिलीव्स या वैल्यू से और कोई अपनी सेक्शुअल ओरिएंटेशन से। बट एक चीज़ जो इन सब फैक्टर्स को प्रेडिक्ट कर सकती है। और जो एक इंसान को दूसरे इंसान से अलग बनाती है वो होती हैं उनकी पर्सनैलिटी। यानी अगर हम किसी को भी अच्छे से जानना चाहते हैं तो हमें बस उनकी पर्सनैलिटी के बारे में पता होना चाहिए और हम काफी डिसेंट ऐक्युरेसी के साथ क्रेडिट कर सकते हैं कि उनकी क्या हॉब्बीज़ होंगी, वो किस टाइप का करियर चूज करेंगे? किस टाइप की ऐक्टिविटीज़ में पार्टिसिपेट करेंगे उनका फेवरेट म्यूसिक जानना क्या होगा और उनके क्या बिलीव्स होंगे। वैसे तो पर्सनैलिटी को करने के लिए हमारे पास कई मॉडल्स हैं, पर बढ़ता एविडेन्स यही सजेस्ट करता है। जी फाइव फैक्टर मॉडल अभी तक का सबसे रिलाएबल पर्सनैलिटी मॉडल है। सो, इन फाइव ट्रेड्स को हम एक ऐक्रोनिम ओशन के थ्रू याद रख सकते हैं, जहाँ पर वो स्टैंडस फॉर ओपन एस टु इक्स्पिरीयन्स सी स्टैंडस फॉर कॉन्शसनेस ई स्टैंडस फॉर एक्स्ट्रा वर्जन ए स्टैंडस फॉर एग्रीएबलनेस ऐंड स्टैंडस फॉर ने रोटी सिस्टम हर पर्सनैलिटी ट्रेड दो पोलर ऑपोजिट में डिवाइड होता है। फॉर एग्ज़ैम्पल अगर कोई इंसान कॉन्सिअस यानी इंडस्ट्रीज़ नहीं है तो वो कौन सी उसने स्ट्रेट मेलों स्कोर करेगा और इस अन्डरस्टैन्डिंग के थ्रू वो अपनी लाइफ में बेटर डिसिशन्स ले पाएगा और एक फुल फिलिंग लाइफ जी पाएगा? नाउ सबसे पहले हमारे पास है पर्सनैलिटी ट्रेड ओपन एस टु इक्स्पिरीयन्स जो लोग ओपन इसमें हाइ स्कोर करते हैं, वो लोग काफी इन्टलेक्चुअल ई क्युरिअस ब्यूटी के टुवार्ड्ज़ सेन्सिटिव और काफी ऐडवेंचरस होते हैं और उनमें एक जेनरल अप्रीशीएशन होता है। आठ इमोशन अन्युज्वल आइडियास इमैजिनेशन, क्युरिऑसिटी और अलग अलग टाइप्स के एक्स्पिरियंस के लिए इसके साथ ही अगर इन लोगों को क्लोज़ माइंडेड या फिर लोअर ओपन एस वाले लोगों से कंपेर किया जाए तो यह ज्यादा क्रिएटिव होते हैं और इनके काफी अनकन्वेंशनल बिलीव्स भी होते है। हाउएवर हाइ ओपन एस के ट्रेड्स रिस्क टेकन बिहेव्यर जैसे ड्रग्स लेना अल्कोहल कौनसे तुम करना या फिर किसी डेंजरस स्पोर्ट्स में पार्टिसिपेट करने से भी रिलेटेड है और हाइली ओपन लोगों को लेकिन फोकस और अनप्रिडक्टेबल भी समझा जाता है। हाइ ओपन एस की सैंपल प्रो किलोमीटर ई स्टेटमेन्ट् है। आई हैव एक्सलेंट। आइडियाज़ आई ऐम क्विट टु अंडरस्टैंड थिंग्ज़ आई लाइक टॉकिंग अबाउट आइडियास आई ऐम फुल ऑफ इंटेलेक्चुअल आइडियास आई लाइक बीइंग क्रिएटिव आई ऐम इंट्रेस्टेड इन इन्स्ट्रक्शन्स ऐंड आइ हैव गुड इमैजिनेशन कॉन्सिअस ने स्ट्रेट हमें बताता है की एक इंसान कितना सेल्फ डिसिप्लिन्ड थॉटफुल और गोल ओरिएन्टेड है। जो लोग ज्यादा कॉन्शस होते हैं, उनका अपनी इम्पल्स इस पर काफी कंट्रोल होता है। वो काफी फोकस्ड और स्टंट होते हैं और वो अपने हार्ड वर्क के साथ काफी असिस्टेंट भी रहते हैं। इसके बिल्कुल ऑपोजिट हम इमेजिन कर सकते हैं। जो लोग कॉन्शसनेस में लो होते हैं वो काफी फ्लेक्सिबल और इंपल्सिव होते हैं और वो प्रोग्राम भी करते हैं। हाइ कॉन्शसनेस की सैंपल ब्रोकली मटर ई स्टेटमेन्ट् है आइ ऑलवेज़ लाइक टू प्लैन अहेड ऑफ टाइम आई पे अटेन्शन टू डिटेल्स आई गेट चोर सडन राइट अवे आई लाइक ऑर्डर आई फॉलो स्केड्यूल आई ऐम एग्ज़ैक्ट इन मी वर्क नेवर लीव मी बिलॉन्ग सराउंड आई डोंट में काम एस ऑफ थिंग्स ऐंड आइ नेवर फॉरगेट टू पुट थिंग्स बै किन देर प्रॉपर प्लेस? एक्स्ट्रा वर्जन ट्रेड हमें बताता है कि एक इंसान कितना एक्स्ट्रोवर्ट ऐड या इंट्रोवर्ट ऐड है, क्योंकि जो लोग एक्स्ट्रा वर्जन में हाई स्कोर करते हैं वह काफी सोशल टॉकटीव, सर्टिफिकेट और एक्स्प्रेसिव होते हैं। इन टू वर्ड्स के बिल्कुल ऑपोजिट ये लोग दूसरे लोगों से इंटरैक्ट करके अपने आप को रिचार्ज करते हैं। हाइ एक्स्ट्रा वर्जन की सैंपल प्रोक्सिमिटी स्टेटमेंट है। आई डोंट माइंड भी इनके सेंटर ऑफ अटेन्शन, आई फील कंफर्टेबल अराउंड, पीपल आई स्टार्ट कन्वर्सेशन्स आई, टॉक टू, अलॉट ऑफ डिफरेंट, पीपल ऐट पार्टीज़ आई डोंट थिंक अलॉट बिफोर आई स्पीक ओर ऐक्ट आई लाइक टू ड्रॉ अटेन्शन टू माइसेल्फ ऐंड आइ एम् टॉक एक्टिव थी वन अराउंड स्ट्रेंजर्स। ऐंग्ग्री बल ने स्ट्रैट बताता है कि एक इनडिविजुअल कितना जे ऑनरस हेल्पफुल पोलाइट ट्रस्ट वर्दी और ओवरऑल कितना प्रो सोशल है? यानी अग्रि एबल पीपल आपने इन्ट्रेस्ट से पहले दूसरों के इंट्रेस्ट को रखते हैं और एक ग्रुप सेटिंग में ये काफी कॉपरेटिव होते हैं। जबकि डिसऐग्री एबल पीपल काफी कॉम्पिटिटिव आर्ग्यूमेंटेटिव चैलेंजिंग अन कॉपरेटिव और अन् फ्रेंड्ली होते हैं। हाइ अग्रिम इलनेस की सैंपल प्रो किलोमीटर ई स्टेटमेन्ट् है। आई ऐम इंट्रेस्टेड इन पीपल। आई सिम्पली था इस विद अदर्स फीलिंग ज़ आई है वास् ऑफ हार्ट आई टेक टाइम आउट फॉर अदर्स आई फील दरस इमोशन्स आई मेक पीपल फील एटीज़ आई डू नॉट इनसल्ट पीपल ऐंड आई ऐम इंट्रेस्टेड इन अदर पीपल प्रॉब्लम्स। लास्ट्ली हमारे पास है। ट्रेड न्यूरोटिसिज्म हम जो एक इंसान की नेगेटिव इमोशन फील करने की टेंडेंसी को बताता है यानी एक इंसान जितना ईजली, ऐंग्री, ऐक्शंस या डिप्रेस होता है, उतना ही वो न्यूरॉटिसिज्म में हाई स्कोर करता है। जेनरली इस ट्रेड को सैडनेस ऐसे मिजं सेल्फ क्रिटिसिजम जेलसी इन्सेक्युरिटी लैक ऑफ कॉन्फिडेन्स मूड इन एस और इमोशनल इनस्टेबिलिटी से रिलेट किया जाता है। हाँ, इन दिनों डिसीजन की सैंपल प्रोक्सिमिटी स्टेटमेंट है। आई गेट इरिटेटेड चली आई गेट स्ट्रेस डाउट वीज़्ली आई गेट अपसेट इस ली आई हैव फ्रिक्वेंट मूवीज़ आइवरी अबाउट थिंग्ज़ आई ऐम मच मोर ऐनिस्टन अदर पीपल ऐंड आई ऐम नॉट रिलैक्स मोस्ट ऑफ द टाइम। सो, ये थे द बिग 5 पर्सनैलिटी ट्रेट्स और इस सीरीज की बाकी वीडिओज़ में हम डिस्कस करेंगे कि रियल लाइफ में एग्ज़ैक्ट्ली इन ट्रेट्स की क्या सिग्निफिकन्स है और कैसे हम अपनी पर्सनैलिटी के बारे में जानकर अपने कैरिअर और लाइफ को काफी बेहतर बना सकते हैं आप।","यह पॉडकास्ट बिग 5 पर्सनैलिटी ट्रेट मॉडल का परिचय है, जिसका उपयोग व्यक्तित्व सर्वेक्षण में अधिकांश मनोवैज्ञानिकों और व्यवहार विशेषज्ञों द्वारा किसी व्यक्ति के भविष्य के निर्णयों या कार्यों को समझने और भविष्यवाणी करने के लिए किया जाता है। फाइव फैक्टर मॉडल या OCEAN मॉडल लेक्सिकल परिकल्पना की नींव पर आधारित है, जो बताता है कि व्यक्तिगत अंतर जो लोगों के जीवन में सबसे प्रमुख और सामाजिक रूप से प्रासंगिक हैं, उनकी भाषा में कूटबद्ध हो जाते हैं। इसलिए, एक संसाधन और एक नमूने के रूप में भाषा का उपयोग करके व्यक्तित्व लक्षणों के एक पूर्ण स्पेक्ट्रम और वर्गीकरण को इकट्ठा किया जा सकता है। हमें Youtube पर खोजें: www.youtube.com/psychologyinhindi" "हम इस चैनल पर अक्सर यह बात करते हैं कि कैसे फीमेल्स ज्यादा चूसी जेंडर होती है। अपनी रीप्रोडक्टिव कॉस्ट की वजह से यानी जहाँ मेल्स नए स्पर्म्स प्रोड्यूस कर सकते हैं और उनकी री प्रोडक्टिव इन्वेस्टमेंट बायोलॉजिकल टर्म्स में बहुत ही छोटी और सस्ती होती है, वहीं फीमेल्स के पास लिमिटेड एक्स होते हैं और उन्हें ही बच्चों को नौ महीने तक कैर्री करना होता है, जिसकी वजह से उनके लिए एक सही पार्टनर को चूज करना ज्यादा इम्पोर्टेन्ट होता है और ये पक्का करने के लिए कि वो एक सही और हाई क्वालिटी पार्टनर के साथ ही है, फीमेल स्मेल्स को अलग अलग तरह से टेस्ट करती है। यूज़्वली ना तो मेल से इस बारे में अवेयर होते हैं कि एक फीमेल उनका टेस्ट ले रही है और ना ही फीमेल्स खुद ये जानती है कि वो सब कॉन्शस ली ऐसा कर रही होती हैं। यही वो पॉइंट होता है जहाँ एक फीमेल या तो एक मेल को चूज करती है या फिर उसे रिजेक्ट कर देती है। नाउ टेस्टिंग के ऐक्चुअल तरीकों को डिस्कस करने से पहले यह समझते हैं कि फीमेल्स आँखें टेस्ट क्या करना चाहती है। वेल सबसे सिंपल टर्म्स में फीमेल्स टेस्ट करती है। मेल्स की कॉम्पिटेंस यानी उनकी काबिलियत और उनकी क्षमता और इसके साथ ही अगर वो उसे अपना बनाएँ तो क्या वो उसके साथ कमिट करने की हिम्मत रखेगा? या फिर क्या उसका करेक्टर वीक और लेबल है? यह टेस्ट इंग्लिश लिए जरूरी होती है। जस्ट बिकॉज़ फीमेल्स डाइरेक्टली एक मेल से उसकी पोटेंशिअल के बारे में नहीं पूछ सकती, क्योंकि कोई भी मेल रीप्रोडक्टिव ऑपर्च्युनिटी पाने के लिए वीज़्ली ये वादा कर सकता है कि हाँ वो कॉन्फिडेंट और कमिटेड हैं। चाहे अंदर से वह कितना भी वीक इनसेक्युर और इन्ट्रेस्ट वर्दी क्यों ना हो। एक पॉपुलर है कि ऐक्शन, स्पीक, लाउड अर्थन, वर्ड्ज़ और इसी वजह से फीमेल्स कई बार मेल्स को चैलेंज करने के लिए उन्हें मुश्किल सिचुएशन में रख देती है। ताकि वो ये जान सकें कि एक मेल की प्रायोरिटीज क्या है और वो प्रेशर में कैसे रिऐक्ट करता है। सो अब बात करते है एक्चुअल टेस्टिंग के तरीकों की नंबर वन पेंशन टेस्ट सी सिंपल सी बात है। अगर एक मेल एक हाई क्वालिटी फीमेल पार्टनर को हासिल करना चाहता है तो वो फीमेल चली उसके हाथ में नहीं आएगी। जीवन अगर एक फीमेल एक मेल को लाइक भी करती है तब भी वो उसकी नजर में अपनी वैल्यू बनाएं रखने के लिए चीजों को स्लोली आगे बढाएगी। देखेगी कि अगर वो रिलेशनशिप्स और इंटिमेसी को डिले करें तो क्या वो मेल फिर भी उसके साथ टिका रहता है या फिर क्या वो अपनी पेंशन स्लूस करके और जल्दी हार मानकर किसी दूसरी फीमेल के पीछे निकल जाता है? इस तरह से फीमेल्स ये जान पाती है कि एक मेल उनसे कितना कमिटेड है और क्या वो एक्चुअल में उन्हीं को पसंद करता है या फिर क्या वो बस जल्दी से जल्दी कमिटमेंट की एक्टिंग करके इंटिमेसी हासिल करना चाहता है? फीमेल्स कई बार जानबूझकर उस मेल से मिलने के लिए लेट होंगी या फिर थोड़े नखरे दिखाएंगी। और अगर वो मेल इस पॉइंट पर फ्रस्ट्रेट या फिर गुस्सा हो जाता है तो वो उसी समय वो टेस्ट हार जाता है। इसलिए अगर आप एक मेल हो तो ऐसी सिचुएशन्स में अपने गुस्से को कंट्रोल करो और शांत रहो। आपकी फ्रस्ट्रेशन आपके फेवर में बिल्कुल काम नहीं करेगी। नम्बर टू पुलिंग वे बहुत बार फीमेल्स एक मेल की वैल्यू जानने के लिए पहले एक मेल के थोड़ा सा क्लोज़ आना शुरू करती है, उसमें अपने लिए इंट्रेस्ट डेवलप करवाती है और थोड़े सपने दिखाने के बाद दूरी बना लेती हैं। यह चीज़ सोशल मीडिया पर रेग्युलरली चैटिंग करते हुए, डेटिंग करते हुए और इवन रिलेशनशिप में आने के बाद भी होती है। यहाँ पर भी इस टेस्ट में सबसे जल्दी फेल होने का तरीका है डेस्पेरेशन दिखाना और जितना वो लड़की दूर जाए उतना ही उससे हो जाना और उससे पहले से भी ज्यादा कॉल्स या फिर मैसेजेस करना। इससे पता चलता है कि एक मेल इतना लो वैल्यू है कि उसके पास उस एक लड़की के अलावा कोई दूसरा ऑप्शन है ही नहीं। ये होता है एक चीज़ टेस्ट जो यह बताता है कि एक मेल के पास उस फीमेल को पर्स यू करने के अलावा दूसरा कोई इम्पोर्टेन्ट या फिर इंट्रेस्टिंग काम नहीं है और ये एक बहुत बड़ा टर्न ऑफ होता है। नंबर थ्री कन्सल्टिंग यह मैथड ऑलमोस्ट हर सोशल सिचुएशन में सामने वाले को परखने के लिए यूज़ करा जाता है। चाहे वो मेल हो या फिर फीमेल। जैसे कई बार जब आप नए लोगों से मिलते हो तब आप थोड़ी बहुत एक दूसरे की टांग खींचते हो। यह फ़िगर आउट करने के लिए कि दूसरे इंसान की लिमिट्स क्या है और वो किस हद तक आपको खुद को डॉमिनेट करने देता है। अगर आपके इनसल्ट करने पर भी कोई इंसान हँसता रहता है तो आप समझ जाते हो कि आपको उसको सीरियसली लेने की जरूरत नहीं है। लेकिन अगर वो बहुत ही जल्दी ऑफेंड हो जाए तब आपको ये पता चल जाता है। कि आपको उसके साथ ढंग से पेश आना है और वह खुद की बेइज्जती बर्दाश्त नहीं करेगा। बिल्कुल ऐसे ही फीमेल्स भी एक मेल को डेटिंग या फिर रिलेशनशिप के शुरुआती फेस में, मजाक मजाक में या फिर कई बार सिरियस मैनर में इनसल्ट करती है। इससे उन्हें कुछ सेकंड के अंदर ही ये पता चल जाता है कि एक मेल की सेल्फ एस्टीम और उसका कॉन्फिडेंस का लेवल क्या है। एक इनसल्ट का मकसद होता है आपके अंदर से एक रिऐक्शन निकलवाना और जैसा वो रिऐक्शन होता है, वहीं दूसरे इंसान को ये बताता है कि आप कितने रिस्पेक्टेबल या फिर कितने इनसेक्युर हो। जिंस भी मेल में बहुत ही लो सेल्फ एस्टीम होती है और जो मेल इनसेक्युर होता है उसका एक इनसल्ट पर टिपिकल रिऐक्शन होता है। गुस्सा सिर्फ इस पर आप यही सोचोगे कि अगर कोई इंसान आपकी इन्सल्ट करें तो आपको भी गुस्सा आएगा। हाउएवर ये एक साइन होता है कि आप दूसरों से वैलिडेशन लेना चाहते हो और अगर आपको वैलिडेशन की जगह एक नेगेटिव फीडबैक मिले तो आप उसे हैंडल नहीं कर पाते। जस्ट बिकॉज़ आपकी सेल्फ एस्टीम दूसरों के ओपिनियन्स पर बेस्ट है। हर ऐसी फीमेल जिसकी खुद की सेल्फ एस्टीम बहुत हाई होती है। वो किसी ऐसे मिल के साथ सेटल नहीं करेगी जो किसी के कुछ शब्दों को ही हैंडल नहीं कर पाता। जहाँ एक वीक मेल इस बात से काफी क्न्सर्न रहता है कि उसकी पार्टनर क्रश या फिर डेट उसके बारे में क्या ओपिनियन रखती है, वहीं एक से कयुर और स्ट्रॉन्ग मेल ऐसा दिखाता है, जैसे उसे किसी के ओपिनियन या फिर वैलिडेशन की जरूरत है ही नहीं और उसमें इतनी सेल्फ अवेर्नेस है कि वो खुद की रियल वैल्यू को जानता है। इसलिए हमेशा इनसल्टिंग का सही रिस्पॉन्स होता है। या तो इन डिफेन्स या फिर ह्यूमर यानी या तो उसकी इनसल्ट को इग्नोर ही कर दो। जैसे आपने वो सुना ही ना हो या फिर उसे एक मजाक में बदल दो नंबर फ़ोर जेलेसी टेस्ट। ये टेस्ट नाम से ही क्लियर है क्योंकि इसमें एक फीमेल एक मेल में इन्ट्रेस्ट तो दिखाती है लेकिन टाइम टु टाइम वो सिमिलर चीज़ दूसरों के साथ बिगड़ती है। ऐसा एक फीमेल तब करती है जब वो किसी मेल के बारे में डाउटफुल होती है और वो अपना डिसिशन लेने से पहले उसे टेस्ट करती है। उसको अपने बाकी ऑप्शन्स दिखाकर नाउ एक मेल के लिए यह दिखाना बहुत जरूरी होता है कि उसे फर्क नहीं पड़ता। अगर उसकी एक पोटेंशिअल पार्टनर किसी दूसरे मेल से बात करे तो क्योंकि उसके हिसाब से वो उन मेल से काफी हद तक बेटर है और अगर वो फीमेल किसी दूसरे मेल के साथ रिलेशनशिप में आ भी जाए तब भी वो चीज़ उस फीमेल की बेकार चॉइस के बारे में बताये गी। इसलिए जेलसी टेस्ट का बेस्ट रिस्पॉन्स भी इन डिफेन्स ही होता है। यानी एक मेल को फरक ही नहीं पड़ना चाहिए जब एक फीमेल उसके आगे दूसरे मेल से फ्लर्ट करें। नंबर फाइव लीडरशिप टेस्ट इस टिपिकल सिनारियो से हर फीमेल और हर मेल दोनों रिलेट कर पाएंगे कि जब भी एक कपल को कहीं खाने या कहीं शॉपिंग करने के लिए जाना होता है या फिर कोई ऐसा प्लैन बनाना होता है, तब यूज़्वली एक फीमेल खुद को एक क्लिअर डिसिशन नहीं लेती की उसे क्या करना है, कहाँ जाना है या फिर क्या खाना है? फीमेल सब कॉन्शस ली ऐसे ऐक्ट कर रही होती हैं जैसे उन्हें पता ही नहीं है कि उन्हें चाहिए क्या? ताकि वो एक मेल की लीडरशिप स्किल्स को टेस्ट कर सकें। इसलिए जब भी एक फीमेल ऐसे बिहेव कर रही होती है जैसे कि वो इन डिसाइसिव है और वो कुछ डिसाइड नहीं कर पा रही तो वो मोमेंट एक मेल के लिए साइन होना चाहिए, उस सिचुएशन को लीड करने का और खुद को ही सॉल्यूशन निकालने का। यानी अगर एक फीमेल को ये नहीं पता कि उसे क्या चाहिए। तो ये एक मेल की ड्यूटी है कि वो उसकी अनकही बातों को भी समझ सकें। नंबर सिक्स क्रेज टेस्ट यह टेस्ट अक्सर फीमेल्स रिलेशनशिप से पहले भी लेती है और रिलेशनशिप के शुरुआती फेस में भी। यानी वो एक मेल को उन कामों को करने या फिर उन सिचुएशन में जाने को बोल लेंगी जिनमें वो मेल अच्छा नहीं है या फिर जिनमें नॉर्मल मेल्स फेल हो जाते हैं। एक फीमेल ऐसा इसलिए करती है ताकि वो ये पक्का कर सके कि जीस मेल को वो अपना लॉन्ग टर्म पार्टनर बनाने जा रही है। क्या वो खुद को मुश्किल सिचुएशन से बाहर निकाल सकता है या फिर क्या उसे बचाने के लिए उस फीमेल को ही बीच में आना पड़ेगा। बहुत से मेल्स ऐसे होते हैं, जिन्होंने अपने घर के कम्फर्ट से बाहर निकलकर दुनिया की कठोरता को कभी एक्सपीरियंस करा ही नहीं होता और ऐसे मेल्स मेंटली बहुत ही वीक होते हैं, जिसकी वजह से फीमेल्स को एक मेल की मच्योरिटी, उसका साहस और उसकी अननोन एनवायरनमेंट में जाने की क्षमता बताती हैं कि वो मेल अनएक्सपेक्टेड प्रॉब्लम्स उठने पर भी ढीला नहीं पड़ेगा और वो हर तरह से रिलाएबल है।","लड़कियां अपनी प्रजनन लागत के कारण लड़कों की तुलना में अधिक चयनात्मक होती हैं, जिसका अर्थ है कि पुरुष हमेशा खुद को एक ऐसी इकाई में बदलने की कोशिश करते हैं जो महिलाओं को खुश करे और उनकी प्रशंसा करे। इसी तरह, सर्वश्रेष्ठ पुरुष पाने के लिए, महिलाएं विभिन्न परीक्षणों के माध्यम से एक पुरुष के आत्मविश्वास, क्षमता या चरित्र की ताकत का आकलन करती हैं, और इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम 6 सबसे चतुर तरीकों पर चर्चा करेंगे, जिनमें से लड़कियां एक लड़के का परीक्षण करती हैं।" "इमेजिन आप एक क्लास में हो और आपका टीचर आपको एक असाइनमेंट देते है, बोलता है की आपने बताना है कि यह यूनिवर्स कैसे खत्म होगा। नाउ आप इस क्वेश्चन को कैसे आन्सर करोगे? आप सोच सकते हो की मैं बी हम जैसे अपने प्लैनेट को डिस्ट्रॉय करते जा रहे हैं, वैसे ही इवेन चली हम अपनी पूरी गैलैक्सी और यूनिवर्स को भी डिस्ट्रॉय कर देंगे या शायद हर गैलेक्सी में मौजूद डार्क हॉर्स इतने बड़े हो जाएंगे की वो हर फिजिकल चीज़ को अपने अंदर अब जॉब कर लेंगे और एंड में कुछ भी नहीं बचेगा। या फिर आपने कोई साइनस डॉक्यूमेंट्री देखी और अब बोलते हो की करोड़ों सालों बाद यूनिवर्स एक्सपैंड होना बंद कर देगा और अपने आप में ढहने लगेगा। यह तीन अलग आइडियाज़ शायद सही हो या फिर ना हो, पर तीन आइडियाज़ को जेनरेट करने के लिए आपको क्रिएटिव होना पड़ा। पर अगर आप बोलते हो की नहीं नहीं, ये सब बकवास है। मुझे इस क्वेश्चन को आन्सर करने के लिए असली फिज़िक्स को समझना होगा। तो आप सलूशन तक पहुंचने के लिए क्रिएटिविटी का नहीं बल्कि फ़ैक्स की मदद ले रहे हो? ये डिफरेन्स है डिवरजेंट और कनवर्ज़न थिंकिंग में और अगर हम डेफिनेशन की बात करें तो कन्वर्जन थिंकिंग उस टाइप की थिंकिंग को बोला जाता है, जिसे यूज़ करके हम एक प्रॉब्लम का स्ट्रेटफॉरवर्ड सल्यूशन निकालते है। फॉर एग्ज़ैम्पल अगर आपसे पूछा जाए कि इंडिया का सबसे अमीर इंसान कौन है? और अगर आपको आन्सर पता है तो आप बोलोगे मुकेश अंबानी पर इससे आन्सर करने में आपकी कोई क्रिएटिविटी नहीं लगी क्योंकि यह एक सिंगल आन्सर वाला फैक्ट है और किसी फैट को याद या फिर ऐनालाइज करने के लिए आपको क्रिएटिव होने की जरूरत नहीं है। आपको बस लिनियर तरीके से एक लॉजिकल आन्सर देना है जो कि ऐक्युरट भी हो और उसमें ज्यादा टाइम भी ना लगे। एक इंसान को कन्वर्जन थिंक करतब माना जाता है, जब उसका बस एक गोल होता है। यानी एक जीवन प्रॉब्लम का बेस्ट पॉसिबल सलूशन। निकाल ना वो इसमें अपनी नॉलेज भी यूज़ कर सकता है या फिर पहले से सॉल्व हुए आन्सर्स को रेफरेन्स की तरह यूज़ कर सकता है और इस टाइप की थिंकिंग उन लोगों में ज्यादा देखने को मिलती है जो एक टाइम पर सिर्फ एक प्रॉब्लम पर फोकस करना प्रिफर करते हैं। पर दूसरी तरफ डाइवर्जन थिंकिंग का मतलब होता है बहुत सारे आइडियाज़ प्रोड्यूस करना और उन्हें ब्रेन स्टोर्मिंग की मदद से एक्स्प्लोर करना। यानी एक डाइवर्जन थिन कर कुछ इस तरह से सोचता है जिससे सॉल्यूशन तक पहुंचने के लिए वो सारी पॉसिबिलिटीज़ को ढूंढ पाए। एक इंसान डाइव अरजेन्टली तब सोच पाता है जब उसके टाइम या फिर इमैजिनेशन पर कोई लिमिट्स ना लगी हो। और ये थिंकिंग उन लोगों के लिए काफी नैचरल होती है, जो पहले से काफी क्रिएटिव होते है। जैसे कोई आर्टिस्ट या फिर हाई लेवल ऑन्ट्रप्रनर नाउ अगर हम स्पेसिफिक पर्सनैलिटी ट्रेड्स की बात करें तो कई स्टडीज़ बताती हैं कि डाइवर्जन थिंकिंग दो पर्सनैलिटी ट्रेड से सबसे ज्यादा रिलेटेड है, जो है ओपन एस और एक्स्ट्रा वर्जन ओपन। इसका मतलब है कि एक इंसान कितना क्युरिअस क्रिएटिव, ओरिजिनल और इमेजिनेटिव है और एक्स्ट्रा वर्जन मतलब वो कितना सोशिअल या फिर आउटगोइंग है। हाउएवर कनवर्ज़न थिन्ग्किंग का हमारी पर्सनैलिटी से कोई रिलेशन नहीं होता। जिसका मतलब ऑलमोस्ट हर इंसान ही कनवर्ज़न टली सोच पाता है, क्योंकि हम सभी हर टाइम कोई ना कोई डिसिशन ले रहे होते हैं, जिसका मतलब हम सिर्फ एक सल्यूशन पर फोकस कर रहे होते हैं और यह फैक्ट इन डिकेट करता है कि डाइवर्जन थिंकिंग कैपेबिलिटी कनवर्ज़न थिंकिंग से ज्यादा रेर होती है और इसमें हमारे कल्चर का बहुत बड़ा हाथ है, क्योंकि हमारा कल्चर हमें नए आइडियाज़ या फिर सल्यूशनस बनाने के लिए ट्रेन नहीं करता और ना ही हमें कोई ऐसा एनवायरनमेंट प्रोवाइड करा जाता है। जहाँ नए आइडियाज़ बनाना और पॉसिबिलिटीज़ को एक्स्प्लोर करना सेफ हो। ज्यादातर ऑर्गनाइजेशन्स लोगों को ऐनालिटिकल ली सोचने के लिए ट्रेन करती है। यहाँ तक कि स्कूल में भी हमने अपने आन्सर्स को टेस्ट बनाने वाले के आन्सर्स के साथ कन्वर्ज यानी मैच करना होता है, जिसकी वजह से हम में से ज्यादातर लोग क्रिएटिवली सोचना सीख ही नहीं पाते और इफेक्टिव आइडियास प्रोड्यूस करने के रास्ते में यही रुकावट आती है। यानी या तो एक इंसान सिर्फ कनवर्ज़न ली सोच पाता है। या सिर्फ डाइवर्जन लिए अगर एक इंसान सिर्फ डाइवर्जन थिंकिंग पर रिलीज करता है तो वो कभी भी सिर्फ एक सलूशन तक पहुँच ही नहीं पायेगा और अगर वो सिर्फ कनवर्ज़न थिन्ग्किंग पर रिलायंस करें तो वो एक प्रॉब्लम को सिर्फ एक ही एंगल से ओवन ऐलिस करने लगेगा। इस प्रॉब्लम को बोला जाता है ऐलिस इस पैरालिसिस सो क्रिटिकली सोचने और इफेक्टिव सॉल्यूशन्स को प्रोड्यूस करने के लिए हमें दोनों टाइप्स की थिंकिंग का फायदा उठाना होगा, जिसके लिए सबसे पहले हमें इन दोनों प्रोसेसेस को अलग अलग टाइम देना पड़ेगा ताकि आइडियाज़ बनाने का प्रोसेसेस और उन आइडियाज़ पर काम करने का प्रोसेसेस मिक्स ना हो। सबसे पहले हमें कुछ टाइम निकालना है ब्रेन स्टोर्मिंग के लिए जहाँ पर हमारा पूरा फोकस नए नए आइडियाज़ जेनरेट करने पर होना चाहिए। इस स्टेज पर हमें ऐसी हर पॉसिबिलिटी के बारे में सोचना चाहिए जो एक प्रॉब्लम को सॉल्व कर पाए। पर इस स्टेज पर हमें इन आइडियाज़ को जज नहीं करना है क्योंकि जैसे ही हम किसी आइडिया को ऐनालाइज करना स्टार्ट कर देते हैं, वैसे ही हम कन्वर्ट अभी सोचना शुरू कर देते हैं और बाकी पोटेंशिअल सॉल्यूशन्स को इग्नोर कर देते हैं। सो जब एक बार हम सारे पॉसिबल सल्यूशनस को प्रोड्यूस कर लेते है, उसके बाद आता है सेकंड स्टेज जो है उन आइडियाज़ को डीप्ली ऐलिस करना, उनमें से सबसे इफेक्टिव आइडिया को चूज करना और उसे यूज़ करना। ये तरीका क्रिएटिविटी रिसर्च में काफी लंबे टाइम से जाना जाता है और कॉग्निटिव साइकोलॉजी में इस तरीके को समझा जाता है। जैन फ्लोर मॉडल की मदद से जो बोलता है की सबसे ज्यादा इफेक्टिव और क्रियेटिव आइडियाज़ दो स्टेजेस में बनते हैं। पहला स्टेज होता है जेनरेटिव स्टेज जहाँ पर एक इंसान उन आइडियाज़ की मेंटल रिप्रजेंटेशन बनाता है जिसे बोलते है प्रिवेंटिव स्ट्रक्चर्स और इसके बाद होता है एक्सप्लोरेटरी स्टेज जहाँ पर उन स्ट्रक्चर्स को यूज़ करा जाता है। एक सल्यूशन तक पहुंचने के लिए और इस कंटिन्यू साइकल से जनम होता है उन आइडियास का जो क्रिएटिव भी होते हैं और इफेक्टिव","जिस तरह से हम किसी समस्या से संपर्क करते हैं वह हमारे व्यक्तित्व और यहां तक कि हाथ में आने वाली समस्या से भी निर्धारित होता है। हम अपसारी या अभिसारी तरीके से सोच सकते हैं, अर्थात या तो हम उन सभी तरीकों के बारे में सोच सकते हैं जिनके द्वारा हम उस समस्या को हल कर सकते हैं या हम केवल एक तरीका चुन सकते हैं और समस्या को हल करने का प्रयास कर सकते हैं। हालाँकि, दोनों को एक ही समय में करने से पठार बन सकता है। हमें Youtube पर खोजें: www.youtube.com/psychologyinhindi" "बोलोजी में कई ऐसी थ्योरिज़ है जो एक इंडीविजुअल का अपनी के अंदर और इवन दूसरी चीज़ के साथ भी अनकॉन्शियस कम्यूनिकेशन को स्टडी करते हैं। ये होती है सिग्नलिंग की ओर ईज़ सिग्नल्स कई बातों को कम्यूनिकेट करने के लिए दिए जा सकते हैं, जैसे मीटिंग के लिए क्रेडिटर्स से बचने के लिए और ग्रुप का ट्रस्ट पाने के लिए। ये सिग्नल्स रिसीवर के बिहेव्यर को मॉडिफाइ करते हैं, जिससे सिग्नल को काफी बेनिफिट मिलता है। और जब बात रीप्रोडक्शन या फिर बायोलॉजिकल सक्सेस से जुड़े बेनेफिट्स की आती है तो कोई भी ऐनिमल या फिर ह्यूमैन टूटे सिग्नल्स भी दे सकता है। एग्जाम्पल के तौर पे अगर हम एक मेल पीकॉक को ऑब्जर्व करें तो उसकी टेल काफी बड़ी हेवी और कैर्री करने में इन कॉनविनईएन्ट होती है, जो की नैचरल सलेक्शन थ्योरी के बिल्कुल ऑपोजिट है और इवन भी डिसएडवांटेज स्ट्रेट को एक्सप्लेन नहीं कर पाया था। अब हम में से ज्यादातर लोग ये सोचे है की ये कितना सिल्ली क्वेश्चन है। पी कॉकटेल इतनी बड़ी और भारी इसलिए होती है क्योंकि वो इतनी अट्रैक्टिव होती है। सिम्पल बट वेट ऐनिमल किंगडम को अभी तक जितना हम समझ पाए हैं उसके हिसाब से ब्यूटी अपने आप में काफी नहीं होती। फिजिकल ट्रेड्स का एक सेट सिर्फ तभी नैचुरली सिलैक्ट होता है जब वो फिटनेस या फिर किसी ऐसी एबिलिटी को दर्शाए जो अगली जेनरेशन में भी पास करी जा सके। पर एक हेवी तो पीकॉक की मूवमेंट कोई मुश्किल बना देती है और इसकी वजह से पीकॉक बड़े जानवरों से भी नहीं बच पाता होगा। तो फिर क्यों एवल्यूशन ने टाइम के 771 लंबी तेल को इतना परमानेंट बना दिया? एक बायोलॉजिस्ट रोनाल्ड फिशर ने सजेस्ट किया की शायद ये भारी तेल जब पहली बार किसी स्ट्रांग मेल पीकॉक में उभर कर बाहर आई होगी तो कई फीमेल पी कॉक्स को यह ट्रेड पसंद आया होगा और ओवरटाइम फीमेल्स लंबी टेल वाले मेल्स के साथ मेड करना प्रिफर करने लगीं होंगी। जिससे यह ट्रेड परमानेंट बन गया होगा। पर टाइम के साथ साथ ये इग्ज़ैजरैट होता गया और अब बस ये एक बोझ बनकर रह गया। पर उस टाइम फिशर की इस एक्सप्लेनेशन को सपोर्ट करने के लिए एक्सपेरिमेंटल एविडन्स काफी कम था और कुछ देर बाद एक इस रैली एवल्यूशन ही बायोलॉजिस्ट जहाँ वीं और उसकी वाइफ ने इस प्रॉब्लम को सॉल्व किया हैन्डीकैप प्रिन्सिपल से ये नाम हैन्डीकैप प्रेस से लिया गया था जिसमें सबसे तेज और हेल्थी हॉर्स को सबसे भारी हैन्डीकैप दिया जाता है ताकि रेस स्लोअर हॉर्स इसके लिए अनफेयर ना हो। वैल्यूएशन के कॉन्टेस्ट में हैन्डीकैप प्रिन्सिपल सिम्पली ये बोलता है की एक सिग्नल सिर्फ तभी ऑनेस्ट होता है, जब वो एक्स्पेन्सिव होता है और अगर ऐसा नहीं होता तो हर कोई अपने बेनिफिट के लिए दूसरों को डिसओन सिग्नल दे रहा होता। और उनको चीट कर रहा होता। सो पीकॉक के केस में उनकी लंबी उनकी फिटनेस को एडवर्टाइज करती है और वो उससे ये सिग्नल देते हैं की देखो इतनी भारी तेल होने के बाद भी मैं अपने रोज़ के कामों को उतने ही अच्छे से कर सकता हूँ जितना एक छोटी टेल वाला करता है। इसके साथ ही ने यह भी बताया कि एक सिग्नल इसलिए एक्स्पेन्सिव होना चाहिए क्योंकि ये सिग्नल्स फ्री में नहीं आते हैं। इनको डिस्प्ले करने में एक कॉस्ट लगती है। पीकॉक के केस में ये कॉस्ट एनर्जी होती है तो एक इनडिविजुअल जितना ज्यादा स्ट्रांग होगा वह उतना ही ईजी इस कॉस्ट को बेर कर पायेगा। ऐसी सिग्नलिंग हमे काफी सारे एनिमल्स में देखने को मिलती है। जैसे मेल, ग्रेटर ईफ रॉक्स फीमेल्स को अट्रैक्ट करने के लिए एक आवाज निकालते हैं। अगर फीमेल ने इस मेल को मीटिंग के लिए चूज कर लिया, तो फीमेल्स को अट्रैक्ट करने का नया सिग्नल यही आवाज बन जाएगा। गज़ल के केस में जब उन्हें पता चल जाता है कि आसपास एक डेड्ली ऐनिमल है जो की देख रहा है की वो ग्रुप में किस को टेक्स्ट करें तो भागने से पहले गजल्स उछल उछल के अटेन्शन अपने आप पर ले आते हैं। इस सिचुएशन में एक क्रेडिटर देख रहा होता है कि ग्रुप में सबसे वीक और ईजी टारगेट कौन है और वही कई गजल्स उछल उछल के अपने आप को इतना विज़िबल बना लेते हैं। पर क्यों? क्यों एक गज़ल अटेन्शन अपने ऊपर ले आता है जब प्रिंटर की नजर इतने बड़े ग्रुप में किसी पर भी हो सकती है आप यह इसलिए क्योंकि ऑपरेटरके आगे जो गज़ल उछल रहा होता है, वो सिग्नल दे रहा होता है की देखो। अगर मैं तुम्हारे आगे ऊपर नीचे उछल सकता हूँ और अपने आप को इतना बना सकता हूँ, तो सोचो मैं कितना फिट होगा और तुम्हारा मेरा पीछे करना बिल्कुल बेकार जायेगा। सो, इस सिग्नल को देखकर अपना टाइम और एनर्जी बचाने के लिए अपना फोकस उन गज़ल्स पर ले आता है जो ये सिग्नल नहीं दे रहे होते हैं। सिमिलर बिहेव्यर हमें ह्यूमन कल्चर में भी देखने को मिलता है। एक हिस्टोरियन जैविक डाइमंड ने सजेस्ट किया की ह्युम्न्स में रिस्की बिहेव्यर जैसे बंजी जंपिंग, रेकलेस, ड्राइविंग रेसिंग और फाइटिंग वही है जो की हैन्डीकैप प्रिन्सिपल के यूज़ से वॉल्व हुई है। यानी एक मेल जो एक फिजिकल रिस्क लेता है वो ये सिग्नल करता है कि उसमें इतनी स्ट्रेंथ और स्किल्स हैं की वो इतनी डेंजरस ऐक्टिविटी को परफॉर्म करने के बाद भी सर्वाइव कर सकता है। ऐमज़ॉन में भी एक ट्राइब है जिसका नाम है स तेरे माँ। वे उसमें भी एक काफी पॉपुलर सिग्नलिंग रिचुअल होता है। मावे लोग मानते हैं की अगर एक लड़के को आदमी बनना है तो उसे जंगल में मिलने वाला है। सबसे बुरे दर्द को सहना होगा यानी उन्हें बुलेट एड्स के काटने से होने वाले दर्द को बिना चीखें झेलना होगा। इस में बुलेटिन्स को पत्तों से बने ग्लव्स में डाल दिया जाता है और लड़कों को ही ग्लव्स पूरे 10 मिनट तक पहनने होते हैं जिसके बाद घंटों तक ये पागल कर देने वाला दर्द उनकी मसल्स को पैरालाइस भी कर सकता है और उन्हें भी होने लगते हैं। आप एक लड़के को ये रिचुअल आने वाले महीनों में टोटल 20 बार करना होता है और अगर वो ये सक्सेस्स्फुल्ली कर लेता है तो ये पूरी ट्री के लिए सिग्नल होता है, उसकी स्ट्रेंथ डिसिप्लिन और का, जिससे उसे एक आदमी का दर्जा मिलने लग जाता एक लेंस, एक्स्ट्रीम रिस्क जैसे ब्लड डोनेशन, जो कि एक हीरो, एक रिस्क है, उसमें कॉस्ट होती है पेन और रिस्क ऑफ इन्फेक्शन और इससे दूसरों को सिग्नल मिलता है की डोनर काफी जेन रस और फिज़िकली हेल्थी है। हैंडीकैप प्रिन्सिपल लोगों की कन्सम्शन को भी एक्सप्लेन कर सकता है क्योंकि जब एक आदमी एक हाइपर कार खरीदता है तब वह सिग्नल करता है कि देखो अगर मैं करोड़ों रुपए एक ऐसी कार में उड़ा सकता हूँ जो की बिल्कुल इन प्रैक्टिकल है। तो सोचो मैं कितना अमीर हूँगा अगेन एक सिग्नल से तभी ऑनेस्ट माना जाता है, जब वो एक्स्पेन्सिव होता है। और हम ये बिहेव्यर रिलेशनशिप्स में भी देख सकते हैं एक एंगेजमेंट रिंग एक आदमी की महीनों की सैलरी के बराबर हो सकती है और इतना महंगा गिफ्ट देकर मेल्स अपनी फीलिंग्स की ऑनेस्टी दिखाते हैं क्योंकि अगर फीलिंग्स को प्रूफ करने का प्राइस कम होता तो हरमेल ही सिग्नल को अफोर्ड कर पाता और फीमेल्स कभी भी ऑनेस्ट और रिलाएबल मेल्स को चीटर्स के बीच में से छाटी ना बातें सो बेसिकली हमारे अंदर उन लोगों को प्रेस करने की जो मुश्किलों के बाद भी सक्सेस हासिल कर लेते है। जहाँ पर एक बॉडी बिल्डर को उसकी मेहनत के लिए इतना प्रेस किया जाता है, वहीं एक डिसेबल्ड बॉडी बिल्डर को और भी अप्रिशिएट किया जाता है। और उनसे लोग इन्स्पाइअर्ड भी होते हैं और ऐसी सिचुएशन में ही हैन्डीकैप प्रिन्सिपल हमारे फेवर में काम करता।","इस पॉडकास्ट में मैंने फिशरियन रनअवे परिकल्पना और हैंडीकैप सिद्धांत (ज़ाहवियन सिग्नलिंग) जैसे सिग्नलिंग सिद्धांतों का वर्णन किया, जो विशिष्ट उपभोग, महंगे उपहार खरीदने और अन्य जैसे व्यवहारों की व्याख्या करते हैं।" "1900 की शुरुआत में मद्रास में रहने वाले मैथ मैं टेंशन श्रीनिवास रामानुजन ने एक के बाद एक कई ऐसे मैथमैटिकल फोर्मुलास को जन्म दिया जिन्हें उस टाइम पर इम्पॉसिबल माना जाता था। लोगों के पूछने पर उसने बताया कि उसके पास यह फोर्मुले उसके सपनों में आए। 1905 में आइंस्टाइन ने बताया कि उसे अपनी थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी की इनस्पिरेशन उसके एक सपने से मिली और 1913 में नील्स बोर को अपने सपने में आइटम का स्ट्रक्चर पता लग गया था। हमारे पास ऐसे जीनियस लोगों की हजारों कहानियाँ हैं जिन्होंने अपने सपने में कुछ देखा और उनके उस सपने ने ह्यूमैनिटी का पूरा फ्यूचर ही बदल दिया। बट यहाँ पर क्वेश्चन ये आता है कि सपने आखिर है क्या? और जो इन्फॉर्मेशन या स्टोरी हम सोते टाइम देखते हैं, वो असल में कहाँ से आ रही होती है? वेल हिस्टोरिकल एविडेन्स बताता है कि सबसे पहला रेकॉर्डेड ड्रीम 4500 साल पुराना है और उस टाइम से लेकर अब तक लोगों का ड्रीम्स के टुवार्ड्ज़ बिहेव्यर काफी चेंज हो चुका है। जहाँ पुराने जमाने के लोग अपने सपनों को अपने पूर्वजों की नॉलेज समझते थे, वहीं मॉडर्न साइअन्टिस्ट इन्हें बस दिमाग में होने वाली कुछ रैन्डम ऐक्टिविटी समझते हैं। पर अगर आप ध्यान से अपने ड्रीम्स को ऐलिस करो तो आप ये समझ जाओगे। ड्रीम्स रैन्डम बिल्कुल नहीं होते और यहाँ से शुरू होता है साइकोलॉजी का काम बिकॉज़ 80199 में सिगमन फ्रॉयड ने अपनी बुक इन्टरप्रेटेशन ऑफ ड्रीम्स में बताया कि हमारे ड्रीम्स हमारी विशेष पूरी करने के लिए होते हैं। फॉर एग्जाम्पल आपकी एक सबकॉन्शियस सेक्शुअल फैंटेसी जो असली लाइफ में पूरी नहीं हो सकती, वो आपके ड्रीम्स पूरी कर देते हैं और ये काफी हद तक लॉजिकल साउंड करता है। अगर हम इसे एवल्यूशन के कॉन्टेस्ट में देखें यानी जीस तरह से हमारे हर ऐक्शन या बिहेव्यर की बेसिक अंडरलाइन मोटिवेशन सक्सेसफुल रीप्रोडक्शन की मदद से अपनी स्पीसीज़ को कंटिन्यू रखना है। वैसे ही हमारे ड्रीम्स भी हमारी सेक्शुअल लीडस् पर बेस्ट होते हैं। पर फ्रॉड की ये एक्सप्लेनेशन इन्कम्प्लीट है क्योंकि हर ड्रीम हमारी फैन्टैसी से रिलेटेड नहीं होता। कई बार हमें मरने का ड्रीम भी आ सकता है। कई बार कही से गिरने का और कई बार एक नाइटमेर दैट स्वाइ फ्रॉड के कोलीग ने अपनी थ्योरी मैं बोला की फर्स्ट ऑफ ऑल हम जितना दीप अपने दिमाग को समझते हैं, वो असल में उससे कहीं ज्यादा डीप हैं। और हमारा दिमाग सिर्फ कॉन्शस और सब कॉन्शस में डिवाइड नहीं है, बल्कि हमारे दिमाग में एक अनकॉन्शियस पार्ट भी होता है, जिसमें हमारे बचपन से लेकर अब तक की पर्सनल मेमोरीज़ और हमारे की कलेक्टिव मेमोरीज़ होती है और सोते टाइम अनकॉन्शियस स्टेट में होने की वजह से हम अपने अनकॉन्शस माइंड को ऐक्सेस कर पाते हैं। हमारे दिमाग का ये हिस्सा आर्ट, हिस्टरी, फिलॉसफी, मिथोलॉजी कल्चर, ट्रेडिशन्स रिचुअल्स। और सिंबल से भरा हुआ है और तभी हमारे ड्रीम्स हिंदी, इंग्लिश या स्पैनिश जैसी लैंग्वेजेस में नहीं बल्कि सिम्बॉलिक इमेज एस की लैंग्वेज में बात करते हैं। हमारा दिमाग इन इमेजेज को यूज़ करता है उस इन्फॉर्मेशन को कॉन्शस माइंड तक पहुंचाने के लिए, जो हमें किसी मुश्किल से बाहर निकाल सकती हैं, सो लेट से आप एक टॉक्सिक रिलेशनशिप में हो और आपको समझ नहीं आ रहा कि आप उस इंसान को कैसे दूर कर सकते हो तो चान्सेस है कि आपका अनकॉन्शस माइंड आपके ड्रीम? मैं आपको साफ जैसा कोई क्रीचर दिखाएं क्योंकि ज्यादातर कल्चर्स में सांप टॉक्सिसिटी ट्रांसफॉर्मेशन या के उसको सिंबला इस करता है या शायद आप को एक पूरी स्टोरी दिखे जिसकी मदद से आप को यह समझ आ जाए कि आपको रियल लाइफ में इस नई नॉलेज को कैसे यूज़ करना है? हमारा दिमाग हमें वो चीज़ दिखाने की कोशिश करता है जो अभी तक हमें समझ नहीं आई है। इससे हम एक तरह का अनकॉन्शियस रिस्पॉन्स समझ सकते हैं। अपनी कॉन्शस स्टेट के लिए बट जस्ट बिकॉज़ हमारा अनकॉन्शस माइंड कॉन्शस माइंड की तरह मॉडर्न नहीं है और वर्ड्स उसकी फर्स्ट प्रायोरिटी नहीं है। वो एक पर्टिकुलर इमोशन का सबसे करीबी सिंबल चूज करता है। जैसे अगर आप अपनी जॉब स्कूल या कॉलेज को हिट करते हो और आपको समझ नहीं आ रहा कि आप अपनी लाइफ के साथ क्या कर रहे हो तो आपका ड्रीम इस इमोशन को कई अलग सिंबल्स के थ्रू एक्सप्रेस कर सकता है। जैसे एक जंगल में गुम हो ना। एक अंधेरे रास्ते पर चलना या फिर अपनी आंखें खो देना। तीनों सिंबल्स एक ही मैसेज देना चाहते हैं कि आपको नहीं पता कि आप क्या कर रहे हो और शायद आपको अपनी चॉइस के बारे में दोबारा सोचना चाहिए। जितना आप अपने ड्रीम्स की इस लैंग्वेज को समझने की कोशिश करोगे उतना ही आपके ड्रीम्स आपसे बात करने की कोशिश करेंगे। यह एक काफी अच्छा तरीका होता है सेल्फ अवेर्नेस हासिल करने का और अपनी नॉलेज की लिमिट्स को इक्स्पैन्ड करने का। ड्रीम्स की एक और क्वालिटी होती है उनकी विगनेस। यानी अगर हम इस आइडिया को एक्सेप्ट भी कर लेते है कि ड्रीम्स हमारी अपनी दुनिया की नॉलेज बढ़ाने का जरिया होते हैं, तब भी शुरुआत में यह डाइजेस्ट करना बहुत मुश्किल होता है कि उनमें कोई सेन्स भी है क्योंकि ड्रीम्स बिल्कुल लॉजिकल होते हैं। दैट स्वाइ अगर कोई दूसरों के आगे बोले किओ मैंने अपने सपने में अपने आप को डूबते हुए देखा पर जब मैं पानी के तल तक पहुंचा वहाँ पर मुझे एक खजाना मिला और इस सपने से मुझे समझ आ गया। कि अगर मैं अपनी मुश्किलों से दूर नहीं भागूंगा तो शायद मुझे उसका कुछ इनाम मिलेगा। ऐसे इंसान को लोग पागल बोलेंगे पर कुछ टाइम बाद यही लोग सबसे ज्यादा सक्सेसफुल और समझदार बन जाते हैं। हाउएवर लोगों की यह नासमझी इसलिए एग्जिस्ट करती हैं क्योंकि उन्हें यह नहीं समझ आता कि ड्रीम्स में लॉजिक कम हो जाता है ताकि आपकी थिंकिंग की लिमिट्स इक्स्पैन्ड हो सके और आपको दिखाए जाने वाले इन आइडियाज़ को आप अपनी लाइफ में अप्लाई कर सको। लास्ट ली हमे ये जानना बहुत जरूरी है कि ड्रीम्स कुछ समझा कैसे जाए? फर्स्ट्ली हमें ड्रीम्स का बेसिक रूल याद रखना है जो हैं कि अगर कई चीजें सम इमोशन जेनरेट करती है तो वो सेम चीज़ ही है। कई चीजे हमें खुश करती है, कई चीजें हमें रुलाती है और कई चीजें हमें डराती है। सेकंडली कभी भी अपने ड्रीम को लिटरल्ली लेने की कोशिश मत करना अपने ड्रीम को ऐसे देखो जैसे आप एक मूवी या फिर एक स्टोरी को देखते हो। यानी अगर आप अपने सपने में मर जाते हो तो इसका मतलब यह नहीं है कि आप असली में भी मर जाओगे क्योंकि ड्रीम्स में टफर्स में बात करते हैं। जैसे एक स्टोरी को सुनकर आप उसके मॉडल या लहसुन के बारे में सोचते हो, वैसे ही ड्रीम्स के बारे में सोचो। थर्ड ली ड्रीम्स को समझने वाले के अंदर मिथोलॉजी और एवल्यूशन अली साइकोलॉजी की जेनरल नॉलेज होना बहुत जरूरी है। वरना अगर आप गूगल पर रैंडम वेब साइट्स पर अपने ड्रीम्स के मतलब देखना चालू करो गे तो आपको हर जगह नॉन सेन्स इन्फॉर्मेशन मिले गी जो हर इंसान पर अप्लाइ नहीं हो सकती और लास्ट्ली जब भी आप अपने ड्रीम का सही मतलब जान लेते हो तब नैचुरली आपको ऐसा लगता है कि आपको एक अधूरी फसल का पीस मिल गया हो। यानी शुरू में चाहे एक सपना, अजीब और सेन्स लगे बट जब आप उसका सही मतलब निकालने में कामयाब हो जाते हो तब आपको इनवेस्टिगेटिव ली वो सही लगता है और यही सबसे बड़ा इंडिकेटर होता है यह जानने का कि हमने ड्रीम इन्टरप्रेटेशन सही करी है या गलत। अपनी पूरी जिंदगी में हम लोगों के ऐक्शन से मिलने वाले कॉमन पैटर्न्स को देखते और समझते हैं। और ये पैटर्न्स लाखों सालों के टाइम पीरियड में उभरने वाले बाकी पैटर्न्स के साथ मिलकर एक कलेक्टिव पैटर्न बनाते हैं और यही वो पैटर्न होता है। जो हमें अपने सपनों में दिखता है।",ड्रीम इंटरप्रिटेशन मनोविज्ञान और न्यूरोबायोलॉजी की चर्चाओं में तब तक रहा है जब तक अध्ययन के ये क्षेत्र आसपास रहे हैं। यह एक सपने का विश्लेषण और अर्थ देने की एक प्रक्रिया है क्योंकि सपनों को विकास का प्रतिफल माना जाता है जो हमें अपने अचेतन मन में टैप करने की अनुमति देता है। हमें Youtube पर खोजें: www.youtube.com/psychologyinhindi "हर वैल्यूएबल चीज़ किसी रीज़न की वजह से अपनी वैल्यू को होल्ड करती है। एक सक्सेसफुल इंसान की वैल्यू होती है उसकी सक्सेस की पीछे की सालों की मेहनत और उसका डिसिप्लिन एक सुंदर इंसान की सुंदरता वैल्यूएबल लगती है क्योंकि वो उसकी हेल्थ को दर्शाती है और एक महंगी लग्जरी का इसलिए वैल्यूएबल लगती है क्योंकि उसको बनाने में बहुत से लोगों का खून, पसीना टेक्नोलॉजी और रेवोल्यूशनरी आइडियास लगे होते है। किसी भी चीज़ की वैल्यू उसके फन्डामेंटल यूज़ से जुड़ी होती है जिसकी वजह से पर्पस लेस चीजें वैल्यू लैस होती है। बिल्कुल ऐसे ही अगर हम आठ के बारे में सोचें कि आठ का पर्पस क्या होता है? तो इस क्वेश्चन कानसर उतना ऑब्वियस नहीं होता। जिसतरह से एक चेर बैठने के लिए होती है, कपड़े होते हैं, चमड़ी को ढकने के लिए और गाड़ी होती है ट्रांसपोर्टेशन के लिए। पर एक पेन्टिंग का क्या यूज़ होता है? क्यों लोग म्यूज़ियम में जाते हैं और क्यों कई पेंटिग्स करोड़ों में बिकती है? क्यों हम ज्यादातर बिल्डिंग्स को आम मानते हैं और कई गिनी चुनी बिल्डिंग्स को दुनिया के अजूब है कि हम नाचते गाते है या फिर पोएट्री पढ़ते हैं? सर ऑफिस पर तो ये सारी चीजे ही पॉइंट्स लगती है। पर फिर भी हमें गाने, मूवीज़ और कलाकृतियाँ बहुत खूबसूरत लगती है। हम प्रोग्राम्ड है ब्यूटी पर अटेन्शन पर करने के लिए चाहे हमें पता भी ना हो कि उस ब्यूटी का एक्चुअल पर्पस क्या है? आर्ट की इम्पोर्टेन्स को समझने के लिए हम उसे एक डेस्टिनेशन की तरह देख सकते हैं जहाँ हम पहुँचना चाहते हैं जिसे हम समझना चाहते हैं और जो हम बनना चाहते हैं। एक आर्टिस्ट का टैलेंट उसकी आर्ट में कम और उसकी ऑब्जर्वेशन में ज्यादा दिखता है क्योंकि एक टिपिकल आर्टिस्ट ऐसा ही होता है। वो हर छोटी डिटेल को दूसरों से ज्यादा नोटिस करता है। और उन डिटेल्स को अपनी आठ में डाल देता है। आम जनता और एक आर्टिस्ट को जो चीजें डिफ्रेंशीएट करती है वह है एक आर्टिस्ट की चीजों को एक डिस्टैन्स से देख पाने की एबिलिटी। नॉर्मल लोग हर समय अनकॉन्शियस ली जी रहे होते है। लाइफ के किसी भी ऐस्पेक्ट पर अपनी फुल अटेन्शन नहीं पे कर रहे होते और इसी वजह से उनकी सेल्फ अवेयरनेस भी कम होती है। इसी वजह से आर्टिस्ट्स का लाइफ पर्पस ही होता है। खुद को झुंड की सोच से ऊपर उठाना ताकि वो कल्चर में चल रही चीजों को एक दूरी से देख सकें और वापस आकर कल्चर के आगे एक सेल्फ रिफ्लेक्शन का आइना रख सके। आठ हमें हमारे बारे में बताती है। वो हमारे एक्सपिरियंस को रिप्रेजेंट करती है, बिना हमें इन्क्लूड करे जैसे पाब्लो पिकासो की पेंटिंग द ओल्ड गिटारिस्ट में एक बूढ़े इंसान को दिखाया गया है, जो बहुत ही उदास लग रहा है। उसके कपड़े पुराने और कटे फटे है और वह स्पेन की सड़कों पर झुक कर बैठा। गिटार बजा रहा है। ये पेंटिंग पिकासो के खुद के मुश्किल दौर को रिप्रेजेंट करती है। जब वो डिप्रेशन में थे और उनके पास ज्यादा पैसे नहीं थे। पेन्टिंग में यूज़ करा गया पेल ब्लू कलर उदासी का थीम क्रिएट करता है और ट्रैजिडी की फीलिंग गो भरता है। बूढ़े गिटारिस्ट का बुरा पॉस्चर, उसकी होपलेस नेस और गिरती हेल्थ को सिविल लाइंस कर रहा है। पूरी पेन्टिंग में गिटार का ब्राउन कलर एक अकेला बड़ा कलर शिफ्ट है जो यह बताता है कि अब इस बूढ़े इंसान की आखिरी उम्मीद और जीने का माध्यम बस ये गिटार ही है। इस तरह की पेंटिंग को देखकर हम भी गरीबी और सैडनेस को उनकी प्युरिटी में इक्स्पिरीयन्स कर पाते हैं। चाहे हम इस पेंटिंग को देखते समय उदास ना भी हो तब भी हमारे अंदर एक सैडनेस की लहर गुजरती है और हमें रिऐलिटी के एक सच के बारे में पता लगता है। कैस्पर डेविड फ्रेड्रिक की पेंटिंग वंडर अब ऑफ द सी ऑफ फॉग में एक आदमी को दिखाया गया है जिसकी पीठ पेन्टिंग देखने वाले की तरफ है और वो किसी पहाड़ की चोटी पर खड़ा है। उसने एक डार्क ग्रीन कोट पहना हुआ है। उसके हाथ में एक छड़ी है, उसके बाल हवा में लहरा रहे हैं और वो बस एक दूरी में देख रहा है। ये पेंटिंग सेल्फ रिफ्लेक्शन और एक इंसान के उस फेस के बारे में है, जब वो अपनी लोअर से ऊपर उठकर अपनी जिंदगी के बारे में सोचना शुरू करता है। सिमिलरली बैठो वन का एक रिलैक्स्ड और प्लेफुल थीम के साथ शुरू होता है। थोड़े गम और डार्कनेस से गुजरता है और फिर वापस से एक रिलैक्सिंग मूड में आ जाता है, जो हमें भी अपनी लाइफ के लिए होप और इनस्पिरेशन देता है। हर अच्छा पीस ऑफ आर्ट अच्छा और पॉपुलर इसलिए बन जाता है जस्ट बिकॉज़ हम उसमें अपनी लाइफ की सच्चाई रिफ्लेक्ट होते हुए देख पाते हैं। जो भी आर्टिस्टिक चीज़ आपको सुन्दर लगती है और आपके मन को लुभाती है, वो बेसिकली आपको अपनी सेल्फ अवेर्नेस को बढ़ाने की ऑपर्च्युनिटी दे रही होती है। हाउएवर ये चीज़ हर इंसान के साथ नहीं होती। कई लोग किसी भी तरह की पेन्टिंग स्टैचू म्यूसिक या फिर आर्किटेक्चर को अप्रीशिएट ही नहीं कर पाते हैं क्योंकि ऐसे लोगों की ईगो बहुत स्ट्रांग होती है और उनकी कॉन्शस अवेर्नेस बहुत कम जिंस भी। इंसान का संबंध ब्यूटी से नहीं होता। वो इंसान अपनी पोटेंशिअल के बहुत नीचे जीरा होता है। आप किस चीज़ को ब्यूटीफुल बोलते हो और किस चीज़ को अगली ये चीज़ आपकी कॉन्शसनेस पर डिपेंड करती है? सबसे कम कॉन्शसनेस वाले लोग अग्लीनेस और डिवाइड को प्रोमोट करते हैं। ये यूज़्वली होती है। आम जनता इससे ऊपर होते हैं। टॉप के आर्टिस्ट्स जो ब्यूटीफुल चीजों को बनाते हैं। और ब्यूटी को प्रोमोट करते हैं, लेकिन सबसे ऊपर होते हैं उस तरह के लोग जो हर चीज़ से ही होने और ज्यादा अवेर होने की वजह से हर चीज़ में ही ब्यूटी देख पाते हैं। पर इस कैटगरी में बस लाइट एंड लोग ही आते हैं। आर्ट का काम होता है आम जनता को उनकी नींद से जगाना और उन्हें भी आर्टिस्ट्स या फिर लोगों के लेवल तक लेकर आना। अगर आपकी लाइफ में ब्यूटी की कमी है तो उसका मतलब आप अभी सच से बहुत दूर हो और आपकी ईगो यानी आपके सेल्फ कॉन्सर्ट्स आपको अपने पार नहीं जाने दे रहे हैं। एक इंसान या फिर इवन पूरे कल्चर का माइंडसेट और उनकी स्पिरिचुअल डेवलपमेंट को मेजर करा जा सकता है। उनकी आठ को ऐनालाइज करके अमेरिकन साइकोलॉजिस्ट में बोलते हैं कि अगर आप किसी भी हिस्टोरिकल पिरियड या फिर किसी पुरानी सिविलाइज़ेशन के लोगों की पर्सनैलिटी को जानना चाहते हो तो सिम्पली उनकी आर्ट को देखो। यानी किस चीज़ को वो सुंदर या फिर एंटरटेनिंग मानते थे क्योंकि हर समय के लोगों की सोच डाइरेक्टली उनकी आठ के सिंबल्स में जलती है। अच्छी आठ हमेशा आपको अपने असली घर की याद दिलाएगी। वो बतायेगी अब जहाँ भी हो वो आपकी असली डेस्टिनेशन नहीं है और आपकी लाइफ बेहतर होने लगे गी। जब आप ब्यूटी की तरफ बढ़ना शुरू करोगे, याद रखो आर्ट की ब्यूटी भी हम लोगो का लक्ष्य नहीं है, वो बस एक डोर वे हैं हाइअर कॉन्शसनेस तक पहुंचने का आर्ट, ब्यूटी और ऐसा रिज़ल्ट हियर अवेर्नेस को पूछती है ताकि आप उसके पास इतना आ सको कि आप उसके भी पार चले जाओ। बिल्कुल वैसे ही जैसे एक बहुत खूबसूरत गाना सुनते समय आप गाने का पीछा करते और उसे एन्जॉय करते हुए उसके भी पार कही चले जाते हो और वो म्यूसिक बस आपकी अटेन्शन का बैकग्राउंड बन जाता है। ब्यूटीफुल आर्ट पूरे कल्चर को स्टेग्नन्ट बनने से रोकती है और कन्टिन्यूसली कुछ ना कुछ बदलाव लाने की कोशिश करती है। जो भी चीजें आप खुद के बारे में आठ के थ्रू जान पाते हो वह सब आप मिस कर देते। अगर आपने उस पर्टिकुलर बुक मूवी, म्यूसिक, पेन्टिंग या फिर आर्किटेक्चर को एनकाउंटर नहीं करा होता तो और एक बार जब आप मैं ब्यूटी को देखने और समझने की काबिलियत आने लगी, तब आपके अंदर भी कॉन्शसनेस यानी आपकी रिऐलिटी की परसेप्शन बढ़ने लगे गी और इसी वजह से आठ मैटर करती है।","जो कुछ भी मूल्यवान समझा जाता है, उसका मूल्य किसी कारण से होता है। लक्ज़री कारें मूल्यवान हैं क्योंकि उन्हें बहुत श्रम, अनुसंधान और प्रचार की आवश्यकता होती है। एक सफल व्यक्ति को उसके द्वारा किए गए प्रयासों और बलिदानों के कारण मूल्यवान माना जाता है और एक सुंदर व्यक्ति को उसके अच्छे स्वास्थ्य के कारण मूल्यवान माना जाता है। लेकिन कला का क्या? एक पेंटिंग के लिए लोग लाखों डॉलर क्यों देते हैं? हम संग्रहालय क्यों जाते हैं? हम ऐसा क्यों मानते हैं कि अधिकांश इमारतें सामान्य या सांसारिक हैं, लेकिन कुछ को दुनिया के आश्चर्यों के रूप में माना जाता है? इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम कला की अवधारणा में गहराई से उतरेंगे और समझेंगे कि कला वास्तव में क्यों मायने रखती है।" "जब आप लोगों और इवन अपने आप के आगे भी अपनी अचीवमेंट्स और पोटेंशिअल को छुपाते हो और खुद को इस तरह से प्रेज़ेंट नहीं करते। जैसे आप ऐक्चुअल में हो तो उसका मतलब आप अपने आप को अंडर वैल्यू कर रहे हो और इस वजह से आपको खुद भी नहीं पता कि आप कहाँ स्टैंड करते हो। आपने अपनी लाइफ में ऐसे बहुत से लोग देखे होंगे जो अपनी स्किल्स और अचीवमेंट के बारे में बहुत ज्यादा बढ़ा चढ़ाकर बात करते हैं और कुछ लोग ऐसे होते हैं जो अपने टैलेंट और स्किल्स को छुपाते रहते हैं क्योंकि उनकी प्रोग्रामिंग कुछ इस तरह की होती है कि उन्हें लगता है कि वो कुछ भी करले। वो हमेशा एक लूँ, सर ही रहेंगे और अगर उन्होंने अपना एक बेटर वर्जन सबकी आगे दिखा भी दिया, तब भी लोग उन्हें बस जज ही करेंगे। इसलिए आज के एपिसोड में हम यही समझेंगे कि आप अपने आप को अंडर वैल्यू बढ़ने से कैसे रोक सकते हो और अपनी असली वैल्यू को कैसे जान सकते हो? नंबर वन आप अपनी स्किल्स और अचीवमेंट्स की खुद वैल्यू नहीं जानते है। यानी जब भी कोई दूसरा इंसान आपकी स्ट्रेंथ और स्किल्स के बारे में आपको बताता भी है, तब भी आप उन्हें एक्सेप्ट नहीं कर पाते हैं और कभी कभी तो आप ऐसे बिहेव करते हो जैसे वो अचीवमेंट सांप की है ही नहीं। लेकिन अगर आप अपनी सेल्फ अवेर्नेस को बढ़ाना चाहते हो और अपने आप को इम्प्रूव करना चाहते हो तो पहले आपको यह पता होना बहुत ज़रूरी है। ये आप कहाँ पर स्टैंड करते हो? इसलिए अपनी अचीवमेंट्स, अपनी अच्छी क्वालिटीज और स्किल्स की एक लिस्ट बनाओ और जो स्टोरी आप अपने आप को सुना रहे हों, उसे अपडेट करो। नम्बर टू नयी ऑपर्च्युनिटीज से दूर मत भागो। जब हम खुद को ही वैल्यू नहीं करते, तब हम अपनी एबिलिटीज़ को भी कम समझते हैं और हमेशा अपनी पोटेंशिअल से नीचे ऑपरेट करते हुए उन लो वैल्यू टास्क्स में अपने आप को उलझा लेते हैं जो एकदम मीनिंग लेस होते हैं। लेकिन ज्यादातर लोग नहीं ऑपर्च्युनिटीज को रिजेक्ट कर देते हैं क्योंकि वो अपनी प्रेसेंट सिचुएशन में बहुत ज्यादा कंफर्टेबल होकर बैठे होते हैं। जबकि एक हाई वैल्यू इंसान जो अपनी कैपेबिलिटीज को अच्छे से जानता है वो हर नई ऑपर्च्युनिटी को वेलकम करता है चाहे उसे उसके लिए अपने कंफर्ट ज़ोन से बाहर ही क्यों ना निकलना पड़े। इस तरह से जब आप नए चैन्जिस में खुद को फोर्स करते हो तो उससे आपका सेल्फ कॉन्फिडेंस बूस्ट होता है और आप खुद को मौका देते हो नहीं नॉलेज गेन करने का और आप ये भी समझ पाते हो कि आपकी स्ट्रेंथ और वीकनेस क्या है? नंबर थ्री यह पता करो कि दूसरे लोग आपके बारे में क्या सोचते हैं, क्योंकि अगर आप अननोइंगली खुद को अंडरवैल्यू कर रहे हो तो आप सिम्पली अपने फ्रेंड्स, फैमिली और आप को जानने वाले दूसरे लोगों से यह पूछ सकते हो कि उनका आपके बारे में क्या ओपिनियन है? और ऑफकोर्स यह जरूरी नहीं है कि आपको हमेशा अपने बारे में पॉज़िटिव फीडबैक ही मिलेगा। पर इतना पक्का है की अगर आप बहुत से लोगों से ये क्वेश्चन करो तो आप उनके रिस्पॉन्स का ऐवरेज निकालकर एक एस्टीमेट पा सकते हो जो आपको यह आइडिया दे देगा कि आप एग्ज़ैक्ट्ली अपने आप को कहा समझने में गलती कर रहे हो और अपने आप को कैसे इम्प्रूव कर सकते हो ताकि आप ज्यादा अवेर बन सको। नंबर फ़ोर अपनी स्किल्स को इंप्रूव करते रहो क्योंकि कई लोग जो अपने आप को वैल्यू नहीं करते उनके पास असली में कोई स्किल यह अचीवमेंट नहीं होती। और ऐसे केस में यह बहुत जरूरी है कि आप अपनी खूबियों को तराशते रहो, चाहे आप किसी इंटरव्यू के लिए तैयारी कर रहे हो। या फिर बस दूसरों पर एक अच्छा इम्प्रैशन छोड़ना चाहते हो तो किसी भी केस में अगर आप ये चाहते हो कि सामने वाला भी आपकी पोटेंशिअल को समझे तो उन्हें पहले कुछ प्रूफ दो की हाँ, आप भी बड़ी बड़ी चीजें करने, अच्छे से कन्वर्सेशन को होल्ड करने और लोगों की लाइफ में वैल्यू ऐड करने के काबिल हो। अगर आप कन्टिन्यूसली अपने आप को ग्रो करते रहोगे तो आप खुद ही अपने इंटरनल स्टोरी को चेंज, करदोगे और अपनी स्किल्स को छुपाने के बजाय उन्हें काम में लाओगे। इसलिए अपने आप को डेवलप करो। लोगों से बात करके, बुक्स रीड करके और खुद के बिहेव इयर्स की अन्डरस्टैन्डिंग हासिल करके और सिर्फ ऐसे ही आप अपने आप को अंडर एस्टीमेट करना और अपने आप को दूसरों से कम समझना बंद करोगे।","हम में से बहुत से लोग खुद को कम आंकते हैं और हम एक इंसान के रूप में अपने सच्चे मूल्य का आकलन नहीं कर पाते हैं। हम खुद को इस तरह पेश करते हैं कि दूसरों को भी यह संदेश मिलने लगे कि हम वही हैं जो हम दूसरों के लिए प्रदर्शित कर रहे हैं और हमारी पूरी क्षमता यही है। लेकिन अगर आप भी ऐसा ही करते हैं और आपके दोस्तों/परिवार को आपको आपकी उपलब्धियों या सफलता के बारे में याद दिलाना पड़ता है, तो आपको खुद को महत्व देना सीखना होगा और इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम चर्चा करेंगे कि वास्तव में हम ऐसा कैसे कर सकते हैं।" "चाहे आप अपनी लाइफ में कितनी भी सक्सेस हासिल कर लो, अच्छे दोस्त बना लो या अपना हर शौक पूरा कर लो, आप तब तक इन्कम्प्लीट फील करोगे जब तक आप खुद के साथ एन्जॉय करना नहीं सीख लेते है। अगर आप खुद को ही अप्रिशिएट और रिस्पेक्ट नहीं करते तो आप इंटरनली कभी भी फुलफिल नहीं फील कर पाओगे और इस इन्नर एम् 10 एस को एक्सटर्नल चीजों से भरने की कोशिश करोगे। हमें अपने अंदर मौजूद लव के सोर्स के टच में आना चाहिए जिससे हम अपनी सोसाइटी में भी लव और काइंडनेस बांट सके हैं। बहुत से लोग जो हमेशा एक अच्छे पार्टनर या दोस्त की तलाश में होते है वो ये नहीं समझ पाते। की उनका अभी तक कोई अच्छा कंपैनियन इसलिए नहीं है क्योंकि वो खुद के लिए ही एक बुरे कंपैनियन है। वो दूसरों के साथ एक अच्छा दोस्त बनना तो दूर वह खुद को ही एक दुश्मन की तरह ट्रीट करते है। अगर हम किसी अनजान इंसान को देखें जो दूसरों को वैसे ही ट्रीट करता है जैसे हम खुद को ट्रीट करते हैं तब हम बोलते है की वो कितना बेकार इंसान है और उसमें इंसानियत की कमी है। लेकिन सच तो ये है कि खुद को पसंद ना करने और खुद को आगे बढ़ने से रोकने में सिर्फ हमारा ही नहीं बल्कि हमारी सोसाइटी और पूरी दुनिया का लॉस होता है। अगर हम खुद को एक्सेप्ट नहीं कर रहे हैं तो उसका मतलब हम दूसरों को भी एक्सेप्ट नहीं कर रहे हैं, क्योंकि हम हमेशा दूसरों पर अपनी यहीं फीलिंग चेक करते रहते हैं कि अगर जो चीज़ हमारे पास नहीं है वो किसी दूसरे के पास है तो वो कितना खुश होगा? मेबी हमें हमारी नाक नहीं पसंद, हमारे कपड़े बेकार है। हमें दूसरों से बात करना नहीं आता। हम दूसरों के जितना कमाते नहीं है या फिर कोई और फैक्टर जिसके बेसिस पर हम खुद को जज करते हैं। हमारी जजमेंट हमारी रिऐलिटी की पर्सेप्शन को तोड़मरोड़ देती है और हम हर इंसान को वैसे देखने के बजाय जैसे वो असल में है। हम उन्हें ऐसे देखने लगते हैं कि उनके पास वह है जो हमारे पास नहीं है और शायद हम कभी भी उस चीज़ के लायक थे भी नहीं। अगर हमारा फ्रेंड कभी फेल हो जाता है या खुद को डाउट कर रहा होता है तब हम उससे ये नहीं बोलते है की वो तो धरती पर एक बोझ है। उसकी एग्ज़िस्टन्स मैटर ही नहीं करती और उसके जीने या मरने से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता। इसके बजाय अपने उदास दोस्त को देख कर हमारे अंदर छुपा एक और लव इंसान बाहर आता है और हर तरह से अपने दोस्त को कंफर्ट करने की कोशिश करता है। एक अच्छा फ्रेंड होने के नाते ना तो हम उन्हें अकेला छोड़ देते हैं और ना ही उन्हें झूठी एन्करेजमेंट देते हैं कि सब ठीक है या फिर उनकी प्रॉब्लम्स कितनी छोटी है। हम उनकी प्रॉब्लम खुद सॉल्व करने के बजाय उन्हें उनके ही दिल में मौजूद रौशनी और साहस के पास पहुंचा देते हैं ताकि वो अपनी लड़ाई खुद लड़ सकें और अपनी इनर स्ट्रेंथ को ढूंढ सकें। ये वो चीजें हैं जो हमारे अंदर से अपने चाहने वालों के लिए बहुत बीज़ी निकलती है, लेकिन जब हमारी खुद की बात आती है तब हम अपनी इन्नर विज़्डम को भूल जाते हैं। एक अच्छा फ्रेंड हमें याद दिलाता है कि वो हमें वैसे ही एक्सेप्ट करता है जैसे हम है, लेकिन वो साथ साथ हमें कॉन्स्टेंट ही अपने आप को इम्प्रूव करने और अपनी गलतियों से सीखने के लिए भी मोटिवेट करता है। जब हम अपने दुख के काले बादलों के बीच अपनी खुद की पोटेंशिअल को नहीं देख पा रहे होते, तब वो हमारे क्लोसेस्ट फ्रेंड्स ही होते हैं जो हमें हाइप करते हैं और हमें याद दिलाते हैं कि हम क्या करने के केपेबल है और हमें लाइफ में कहाँ जाना है और यह मैटर नहीं करता कि हम कितनी बार भी नीचे गिरे हैं। हमारे बेस्ट फ्रेंड्स हमें अपना हाथ देते हैं और हमें वापस से खड़े होने में मदद करते हैं। इस तरह से एक फ्रेंड का काम होता है हमें यह याद दिलाना कि इंसान ऐसे ही होते है। हमारे अंदर कई खराबियाँ होती है। कई अच्छाइयां और कई बार हम खुद को डाउट भी करते हैं। यह सब ह्यूमन एक्स्पीरियंस का ही पार्ट हैं क्योंकि सिर्फ हम ही नहीं बल्कि हर कोई फेल होता है और हर किसी की लाइफ एक हॉरर शो से कम नहीं होती है। इस वजह से नैचुरली एक दुखी इंसान को देखकर हम भी उससे रिलेट कर पाते हैं और उसकी मदद करने की कोशिश करते हैं। बिलकुल यही फीलिंग हमें अपने दिल में तब भी रखनी चाहिए जब हम लोग फील कर रहे होते हैं या फिर अपने जरूरी कामों को पूरा करने के लिए आलस दिखा रहे होते हैं। अगर हमारा सबसे बड़ा दुश्मन हमारे अंदर की ही नेगेटिव आवाज है तो हमने अपना चियरलीडर भी अपने अंदर ही ढूंढना चाहिए।","इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कितने सफल हो जाते हैं, आपके कितने दोस्त हैं या आप अपने लिए कितनी विलासिता की चीजें खरीद सकते हैं, अगर आप खुद से खुश नहीं हैं और आप अपनी खुद की कंपनी से नफरत करते हैं, तो बाकी सब बेकार है। जब हमारे मित्र कठिन समय से गुजर रहे होते हैं, तो हम उन्हें सांत्वना देते हैं और उन्हें अपना आंतरिक प्रकाश दिखाते हैं। लेकिन जब खुद की बात आती है, तो हम कभी भी अपनी आंतरिक शक्ति का प्रदर्शन नहीं करते हैं, बल्कि हम खुद से नफरत करते हैं और खुद को दोष देते हैं। इसीलिए इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम इस बारे में बात करेंगे कि आपको अपना सबसे अच्छा दोस्त बनने के लिए क्या करना होगा, ताकि जब आप अकेले हों तो आप सबसे अधिक शांतिपूर्ण हों।" "यह बहुत कॉमन चीज़ है कि लोग काइंडनेस को वीकनेस से कन्फ्यूज कर लेते है। यानी जब भी आप किसी का भला करने की कोशिश करते हों तब वो आपकी भलाई को कमजोरी समझकर आपकी ऐडवांटेज लेने की कोशिश करता है। लेकिन काइंडनेस का ये मतलब नहीं होता कि आप बस दूसरों के साथ ना इसलिए बिहेव कर रहे हो क्योंकि आपने उनको ना बोलने की हिम्मत नहीं है बल्कि काइंडनेस ना इसने से बहुत अलग होती है। हमने अपने एपिसोड बीइंग ना इस इस ए बैड थिंग मैं इस चीज़ को डिस्कस भी करा है की वो लोग जो बहुत अग्रि बल होते हैं और दूसरों की नीड्स को पूरा करने और उनसे अप्रूवल लेने के चक्कर में अपनी खुद की नीड्स को इग्नोर कर देते हैं। ऐसे लोग दूसरों के साथ इसलिए अच्छे नहीं होते क्योंकि इनके पास ऐसा करने की चॉइस है बल्कि नाइस लोग ना इस इस लिए होते हैं क्योंकि वो बुराइ से नहीं लड़ सकते हैं और वो अपनी नाइस नेस्को ही एक हथियार की तरह यूज़ करते है। यानी जो चीज़ नाइस और काइन्ड लोगों को एक दूसरे से अलग बनाती है वो है चौसा। अगर एक अग्रेसिव इंसान जो किसी को भी ईज़ी नुकसान पहुंचा सकता है, वो ये चूज करता है कि उसे दूसरों को अच्छे से ट्रीट करना है और उनकी मदद करनी है। तो ये होती है काइंडनेस और सिर्फ ऐसा इंसान ही अच्छाई को रिप्रजेंट करता है, लेकिन अगर आप खुद ही इमोशनली ये फिज़िकली कमजोर हो और खुद स्टेबल फील करने के लिए दूसरों पर रिप्लाय करते हो तो आप दूसरों के साथ इसलिए अच्छे से बिहेव नहीं करते क्योंकि आप खुद एक बहुत नेक इंसान हो बल्कि आप इसलिए दूसरों के साथ नाइस होते हो क्योंकि इसके अलावा आपके पास कोई ऑप्शन है ही नहीं। इसका मतलब आप का गोल होना चाहिए। पहले अपने आप को हर पॉसिबल वे में स्ट्रांग बनाना और उसके बाद काइंडनेस को चूज करना एक्साम्पल के तौर पर एक पैरेंट की जॉब होती है। अपने बच्चों को कॉन्फिडेंट और सोशल बनाना, उनको अच्छी वैल्यूज़ देकर उन्हें विज़्डम डालना। लेकिन अगर एक पैरेंट बहुत ही नाइस है और उसे लगता है कि किसी भी इंसान को ऊंची आवाज में डांट ना ये अपनी एग्रेसिव साइड को बाहर लाना गलत है, तो उसके बच्चे सही रूज़ और गाइडेंस की कमी की वजह से बिगड़ जाते हैं। आपने ये चीज़ अपने रिलेटिव्स यह अपनी सोसाइटी में जरूर देखी होगी। जहाँ पर पैरेन्ट्स बहुत ही स्वीट, जेंटल और केयरिंग होते हैं और किसी को भी कभी कुछ बुरा नहीं बोलते हैं लेकिन उनका बच्चा बिल्कुल उनके ऑपोजिट होता है। वो या तो बहुत बिगड़ा हुआ या बहुत शांत रहता है। उसके अंदर अपने पैरेन्ट्स के लिए कड़वाहट होती है और वो अपनी लाइफ में एक गलत रास्ते पर चल रहा है जिसमें आगे चलकर उसने ठोकर खानी ही खानी है। यहाँ पर ज्यादातर लोग उस बच्चे को दोष देंगे। लेकिन असलियत में वो उसके पैरंट्स की ना इसने 100 रन कौन डिश नल प्यार था जिसने उस बच्चे को करप्ट बना दिया। वहीं अगर वह पैरेन्ट्स नाइस होने की जगह पर काइंड होते हैं तो वो आउट ऑफ लव अपने बच्चे को डांटते मारते उसे प्यार से समझाने की कोशिश करते हैं या फिर शुरू से ही उसमें इतनी समझ डालते हैं की वो बच्चा खुद ब खुद बड़ा होकर सही रास्ते पर चलता और अपनी रिस्पॉन्सिबिलिटी से दूर नहीं भागता। यानी होने का मतलब है वह काम करना जो सही है। कई बार आप ऐसी सिचुएशन में फंस जाते हो जहा पर आपको अपनी पूरी ताकत जुटाकर झूठ और बुराइ को बिना डरे इक्स्पोज़ करना होता है। तो उनसे लड़ना होता है और ऐसी सिचुएशन में ज्यादातर लोग आपको एक बुरा इंसान बोलेंगे क्योंकि उनके खुद के कोई मॉडल्स नहीं है और वो खुद इतने वीक है कि वो अपने सच के लिए खड़े नहीं हो सकते हैं और इसी वजह से काइन्ड बनने के लिए हमें एक स्ट्रॉन्ग इंसान बनना है। लेकिन कोई भी अच्छा इंसान तब तक स्ट्रांग नहीं कहलाता जब तक वो बुराइ से नहीं लड़ सकता और कोई भी इंसान तब तक बुराइ से नहीं लड़ सकता जब तक वह उस बुराइ को अपने अंदर नहीं ढूंढ लेता।","यह वास्तव में एक सामान्य घटना है कि बहुत से लोग दयालुता को कमजोरी के साथ भ्रमित करते हैं। मतलब जब भी आप किसी की मदद करने की कोशिश करते हैं तो वो इसे आपकी कमजोरी के रूप में देखते हैं और आपका फायदा उठाने की कोशिश करते हैं। लेकिन अच्छा होने और दयालु होने के बीच एक बड़ा अंतर है, एक के लिए ताकत चाहिए और दूसरे के लिए कमजोरी। यही कारण है कि इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम दयालुता को एक बुरी चीज के रूप में साफ करते हैं।" "एक इंसान के लिए दुनिया की सबसे मुश्किल चीजों में से एक है। यह समझना और फुल्ली एक्सेप्ट करना की 1 दिन उसकी इस दुनिया में एग्ज़िस्टन्स खत्म हो जाएगी और वो दिन कब या कहाँ आएगा, इस बारे में उसे कुछ नहीं पता। कैसे हम अपनी जिंदगी और उसमें मिलने वाली हर चीज़ से प्यार करे। जब हमें यह पता है कि ये सब टेंपरेरी है कैसे? हम अपने आप को एक कैरिअर को पर्स यू करने के लिए मोटिवेट करें या फिर अपनी एक पहचान बनाने और अपनी पर्सनैलिटी को इम्प्रूव करने पर काम करें। जब हमारी ये सारी क्वालिटीज ही धुएं की तरह हवा में घुल जाएंगे? अगर एक पहचान बनाने का रास्ता मौत पर जाकर खत्म होता है तो क्या इसका मतलब यह है कि एक बड़ी पिक्चर में हमारी कोई पहचान है ही नहीं? अमेरिकन कल्चरल एंथ्रोपोलॉजिस्ट अर्नेस्ट बैकेंड ने अपनी बुक के डेनिल ऑफ डेथ में बताया है कि उन इवेंट्स ऑब् जेक् ट्स और सिचुएशन के बारे में सोच पाना जो प्रेज़ेंट रिऐलिटी का पार्ट नहीं है। इस एबिलिटी ने इंसानों को धरती पर रहने वाली सबसे ऐडवान्स स्पीशीज़ बना दिया है। हाउएवर टाइम की ये समझ जितनी यूज़फुल है, उतनी ही यह हमारी जिंदगी में मुश्किलें पैदा करती है। सारे जानवरों के बीच सिर्फ हम ही उस मीनिंग लेस खालीपन के बारे में सोच सकते हैं जो हमारे पैदा होने के समय से ही हमारा इंतजार कर रहा होता है। बैककर का बोलना है की सेल्फ कॉन्शस होने का मतलब है यह समझ पाना कि हम कीड़े मकोड़ों का खाना है। ये आइडिया अपने आप में ही इतना खौफनाक है कि हम शून्यता से निकले ताकि हम एक नाम ले सके, अपने आपके और अपनी भावनाओं के बारे में कॉन्शस हो सके, जीने की इच्छा ज़ाहिर कर सके और अपने आप को एक्सप्रेस कर सके। लेकिन इतना सब पाना आखिर में सिर्फ मर जाने के लिए यह एक धो के जैसा लगता है। अपने आप को कन्विंस करने के लिए की मौत हमारी फाइनल डेस्टिनी नहीं है। हम अपनी जिंदगी को मीनिंग देते हैं कुछ ऐसा काम करके जो हमारे मरने के बाद भी जिंदा रह सके। चाहे वो गांधीजी की अहिंसा की फिलॉसफी और उनका साहस हो या माइकल जैक्सन का डान्सिंग स्टाइल, आइंस्टाइन की जनरल रिलेटिविटी की थ्योरी, ये निकोला टेस्ला के बिजली से जुड़े सारे इन्वेंशन्स ये सब एग्जाम्पल्स है की किस तरह से एक इंसान अपनी मौत के बाद भी दुनिया को इन्फ्लुयेन्स कर सकता है। यानी असल में हम मरने से उतना नहीं डरते हैं जितना हम एक यूज़लेस लाइफ जीने से करते है। हम ऐसा फील करना चाहते हैं कि हमारी जिंदगी भी मायने रखती है, चाहे वो हमारे लिए मायने ना रखें पर अगर एक बड़ी पिक्चर में हम अपनी एग्ज़िस्टन्स की कोई निशानी छोड़ सकें तो इससे ज्यादा मीनिंगफुल और कुछ नहीं हो सकता। ज्यादातर लोग इस तरह से ऐक्ट करते है जैसे वो या तो बाकी जानवरों के बीच एक भगवान है या फिर वो अमर हैं। पर हमारी यही एरोगैंस हमें कॉन्स्टेंट ली एक स्टेट में रखती है क्योंकि हम ये सोचते हैं कि हमें दुनिया के बारे में बहुत कुछ पता है। ऑलमोस्ट सारी चीजों को इक्स्पोज़ कर चुकी है। और आगे आने वाले कुछ सालों में बचे हुए सच भी बाहर आ जाएंगे। हाउएवर ये थिंकिंग गलत है क्योंकि असलियत में हमारी इन्टेलिजेन्स यूनिवर्स के सीक्रेट्स को ढूंढने और दुनिया के हर सच को समझने के लिए नहीं बनी है। इसके बजाय हमारा दिमाग उन सच्चाइयों को ढूंढने के लिए बना है जो बस इस हद तक सच होती है की वो हमें जिंदा रख सकें और हमारी एग्ज़िस्टन्स को जस्टिफाई कर सके। जैसे प्यार की फीलिंग शायद बस एक हॉर्मोनल रिस्पॉन्स ही क्यों ना हो, लेकिन जब हम प्यार को स्टडी करने के बजाए उसे डाइरेक्टली एक्सपिरियंस करते हैं तब हमे ऐसा लगता है जैसे वो फिजिकल रिऐलिटी के भी पार जाता है और कहीं ना कहीं हम ये भी मानते हैं कि वो प्यार जो सिर्फ फिजिकल होता है वो काफी शैलो होता हैं। हम प्यार के पीछे पॉल्ट्री लिखते हैं, मूवीज़ बनाते हैं और अपने चाहने वालों को अपना सबकुछ दे देते हैं। यानी फन्डामेंटल लेवल पर हम ये जानना ही नहीं चाहते कि प्यार किस चीज़ का बना है। जो चीज़ हमारे लिए ज्यादा मीनिंगफुल है वो है उसे एक्सपिरियंस करना और उसके साथ जीना यही रीज़न है कि क्यों अपनी डेथ के बारे में सोचना अपनी लाइफ की क्वालिटी बढ़ाने का काफी अच्छा जरिया होता है। अमेरिकन साइकैट्रिस्ट अरविंद ने अपनी बुक एग्ज़िस्टिंग सिल साइकोथेरपी मैं बोला है की ऑलमोस्ट हर महान थिंकर, साइकोलॉजिस्ट और फिलॉसफर ने डेथ के बारे में काफी गहराई से सोचा और लिखा है और उनमें से ज्यादातर इस कॉन्क्लूज़न पर पहुंचे की डेथ लाइफ का एक ऐसा हिस्सा है जिसे हम चाहकर भी लाइफ से अलग नहीं कर सकते हैं और यह भी कि डेथ के बारे में सोचने से लाइफ की क्वॉलिटी घटती नहीं बल्कि बढ़ती है जीवन मॉडर्न रिसर्च भी यही बताती है कि जो लोग एंड के बारे में सोचते हैं वो हेल्थी वे में ऐक्ट करते हैं और उस वजह से एक लंबे समय तक जिंदा रह पाते हैं। जैसे अगर आप एक ट्रेडमिल पर चढ़ते हो, इस सोच के साथ कि आप आज पूरे 30 मिनट तक भागोगे तब ज़रा सी एक्सरसाइज करने के बाद ही बचे हुए टाइम को देख कर आप काफी डिमोटिवेट हो जाते हो और अपना वर्क आउट टाइम से ही पहले रोक देते हो। पर जब आप 30 मिनट को पांच 5 मिनट के चंक्स में डिवाइड कर देते हो तब आप अपने फ्यूचर के डर को एक मैनेजेबल लेवल पर ले आते हो। ये इसलिए होता है क्योंकि आपको लगता है कि आपकी ये ऐक्टिविटी एंड होने वाली है तो आपको अपने बचे हुए टाइम को वेस्ट करने के बजाय जैसे अच्छे से यूज़ करना चाहिए सिमिलरली जब एग्जाम से पहले आपको लगता है की अभी तो बहुत टाइम है या फिर आपको टाइम का कोई अता पता ही नहीं होता तब आप काफी केयरलेस हो जाते हो और अपना टाइम वेस्ट करते हो। जब कि जब आपको पता होता है कि आपके एग्जाम्स बहुत नजदीक है और आपके पास ज्यादा टाइम नहीं है तब आप अपने बिहेव्यर को ठीक करते हो और पढ़ना शुरू कर देते हो। यानी टाइम का एक हेल्थी लेवल का डर हमें प्रिज़न मूवमेंट में उन चीजों पर फोकस करने में मदद करता है जो ऐक्चुअल में मैटर करती है। यहाँ तक की काफी सारे लोग जो एक निर्गत एक्सपिरियंस से गुजरते हैं और एक पॉइंट पर ये एक्सेप्ट कर लेते हैं कि वो मरने वाले हैं पर उसके बाद जब वो किसी वजह से बच जाते है तब उनमें एक काफी बड़ी साइकोलॉजिकल ट्रांसफॉर्मेशन देखने को मिलती है। यह इसलिए क्योंकि हमारी अपनी डेथ का ख्याल हमें लाइफ का एक रियलिस्टिक पर्सपेक्टिव देता है, जिससे हम अपने इल्यूजन को ओवर कम करके ये एक्स्प्लोर कर पाते हैं कि लाइफ के पास हमें ऑफर करने के लिए क्या है और अभी तक हम अपना इतना कीमती समय कहा बेकार कर रहे थे। अमेरिकन फिलॉसफर हेनरी डेविड थोरो का बोलना था। कि किसी भी चीज़ की कीमत इस बात से जानी जाती है कि उसके बदले में आपको अपनी लाइफ का कितना बड़ा हिस्सा देना पड़ेगा। लिमिटेड टाइम की ये अर्जेंन्सी हमें यह समझाती है कि अगर हमें अपने इस लिविंग एक्सपिरियंस को अपनी बेस्ट एडवांटेज के लिए यूज़ करना है तो हमें इसके रूल्स को कोसने के बजाए उन्हें एक्सेप्ट करना होगा। और जैसा कि स्टॉक फिलॉसफर एपिक टाइटंस का बोलना था कि मैंने तो 1 दिन मरना ही है। अगर मेरी मौत अभी आ जाती है तो मैं अभी मर जाऊंगा और अगर वो बाद में आएगी तो मैं अभी कुछ खा लेता हूँ क्योंकि अभी मेरे खाने का समय है।","मृत्यु को जीवन के ठीक विपरीत माना जाता है और इसलिए, हममें से बहुत से लोग इससे डरते हैं। हम डरते हैं कि जीवन बहुत छोटा है और अगर यह सब खत्म होने वाला है, तो जीने, बनाने, काम करने या प्यार करने का क्या मतलब है? इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम अमेरिकन कल्चरल एंथ्रोपोलॉजिस्ट, अर्नेस्ट बेकर के मृत्यु पर दृष्टिकोण का पता लगाते हैं और अपनी मृत्यु पर विचार करने से कैसे लाभ हो सकता है। जैसा कि लैटिन अवधारणा "मेमेंटो मोरी" कहती है, जिसका अर्थ है: याद रखें कि आप मर जाएंगे।" "किसी भी महान इंसान का करेक्टर साफ नहीं होता। चाहे हम माइकल जॉर्डन की बात करे, विराट कोहली को भी ब्राइट मोहम्मद अली शाह रुख खान या स्टीव जॉब्स की हर किसी को सबसे ऊंचे लेवल पर पहुंचने के लिए अपने हाथों को खून से रंग नहीं पड़ता है। ग्रेटनेस के रास्ते में इतना ज्यादा कॉम्पटीशन है कि आप बिना वायलेंट बने टॉपर नहीं पहुँच सकता है। हर कोई बस सक्सेस की पॉज़िटिव साइट के बारे में बात करता है, लेकिन एक्चुअल में सक्सेस बहुत ही ज्यादा टॉक्सिक डर्टी अन्न फॉर गिविंग अनसिविलाइज्ड और इन्हें मेन होती है। अगर आप जैसे तैसे करके टॉप पर पहुँच भी गए तो वहाँ पर सक्सेस खुली बाहों के साथ आप का वेट कर रही होगी। लेकिन वो अगले ही मोमेंट आप को धक्का देकर किसी और के लिए जगह बनाने लगे गी। सक्सेस किसी की सगी नहीं होती है, क्योंकि इट डज नॉट मैटर आप कितने महान इंसान हो? अगर आप ढीले पड़ जाओगे तो आपको अगले ही मोमेंट रिप्लेस कर दिया जाएगा। मुझे पता है आप इस समय अपनी लाइफ को बहुत हल्के में ले रहे हो। आपको लगता है आपके पास अभी बहुत समय हैं? इस वजह से आपकी हाइट प्रायोरिटी आपके सपने नहीं बल्कि एंटरटेनमेंट और फालतू भी डिस्ट्रेक्शन्स है। आप खुद को फालतू की चीजों में उलझाए रखते हो ताकि आपको अपने अंदर मौजूद उस इंसान का सामना न करना पड़े जो है ग्रेटनेस के लिए आपको डर लगता है कि अगर आपने अपनी सक्सेस की रिस्पॉन्सिबिलिटी ले ली तो आपको अपने फ़ीड के लिए भी रिस्पॉन्सिबल होना पड़ेगा। बट सच बताऊँ तो आप बिल्कुल गलत चीज़ से डर रहे हो। ऐक्चुअल में जो कुछ भी आपको सक्सेस के बारे में बताया गया है वो झूठ है। सक्सेस ना तो ग्लैमरस होती है और ना ही मजेदार और आज के एपिसोड को एंड तक सुनने के बाद आप भी सक्सेस कोसम नज़र के साथ नहीं देखोगे ना? उस सक्सेस को समझने से पहले हमें उन रेट्स को समझने की जरूरत है जो हर टॉप तक पहुंचने वाले इंसान ने कॉमन होते हैं। हर विनर में दो ऐसे ट्रेड्स होते हैं जो उन्हें कॉन्स्टेंट ली टॉर्चर और सपोर्ट करते है। आगे बढ़ते रहने के लिए पहले ट्रेट उनकी डार्क साइड आपके अंदर एक ऐसी शक्ति है जो आपकी आम बने रहने की इच्छा को अस्वीकार करती हैं। यह आपकी वो साइड होती हैं जो बिल्कुल रॉक और जंगली होती है। एक ऐसी साइड जिसे आप अंधेरे में ही रखना प्रिफर करते हो। आपकी डार्क साइड आपकी बस नहीं बल्कि वो आपकी किलर इंस्टिंक्ट होती है और जो वो चाहती हैं आपको उन चीजों के बारे में दूसरों को बताने में भी डर लगता है। अगर आप पूछो कि आप अपनी डार्क साइड को आइडेंटिफाइ कैसे कर सकते हो तो जो भी डर जो भी सीक्रेट्स, जो भी इन सेक्युरिटीज़ या फिर जो भी डाउट्स आते है आपके मन में जब भी आप अकेले होते हो या फिर फेल्यर या फ्यूचर की रोशन या फिर दूसरों को निराश करने का खौफ? ये सारी वो चीजें होती हैं जिनके थ्रू आपकी डार्क साइड आपसे बात करती है। आपकी डार्क साइड वो है जिससे आप खुद डरते हो लेकिन वह एक ऐसा भूत है कि आप चाहे कही भी चले जाओ, वो हमेशा आपके साथ रहता है। उसके बॉल प्लेयर को भी ब्रिटेन की डार्क साइड इतनी बड़ी थी कि उसकी खुद की एक पर्सनैलिटी थी, जिसका नाम था के ब्लैक नंबर जो की एक बहुत ही खतरनाक सांप की जाति का नाम है। उन्होंने अपनी ये ऑल्टर ईगो तब बनाई थी, जब वो फैमिली वाइज फाइनैंशली और लीगल्ली बहुत सारी मुश्किलों में फंसे हुए थे और वो चाहते थे कि उनके मन में एक ऐसी जगह खुल जाए। जहाँ जाकर वो हाइएस्ट लेवल पर परफॉर्म कर पाए और उनकी लाइफ में जो भी मुश्किलें चल रही है वो उन्हें छू भी ना पाए। सिमिलरली अमेरिकन सिंगर बियॉन्से को अपने कैरिअर की शुरुआत में स्टेज पर जाकर इतने सारे लोगों के आगे परफॉर्म करने में मुश्किल होती थी और वो अंडरकॉन्फिडेंट फील करती थी तो इसी प्रॉब्लम को सॉल्व करने के लिए उन्होंने भी अपनी एक ऑल्टर ईगो को जन्म दिया, जिसका नाम था तो को बी की ही तरह जैसे ही वो स्टेज पर चढ़ती थी, वैसे ही वो नहीं रहती थी। वो बन जाती थी साथ मेरे एक्सपिरियंस में मैंने अपनी डार्क साइड को तब डिस् कवर करा था, जब पांच 6 साल पहले मैं डिप्रेशन में था। मैं एक ब्रेक अप से गुजर रहा था और कैरिअर वाइज भी मेरे को कोई आइडिया नहीं था की मेरे को अपनी लाइफ में क्या करना है तो इन प्रॉब्लम्स ने मेरे मन की उस कोने में एक ओपनिंग क्रिकेट की जहाँ पर मैं पहले कभी नहीं गया था और वहाँ से बहुत इंट्रेस्टिंग चीजें बाहर निकल कर आये है। जैसे मुझे ये लग रहा था कि मैं हर समय खुद को एक थर्ड पर्सन पर्सपेक्टिव से देख रहा हूँ और रूम में बस मैप रिज़ल्ट नहीं हूँ बल्कि मेरे साथ एक और प्रेजेंटस है मेरा एक दूसरा वर्ज़न जो मेरे हर ऐक्शन को ऑब्जर्व कर रहा है। ऐसा इसलिए है क्योंकि जब आपकी वो साइट जिसके बारे में आप वेरी नहीं थे की वो एग्ज़िट करती है वो बाहर आने लगती है। तब आपको ऐसा लगता है कि आपके लिमिटेड और आपके स्पिरिचुअल सेल्स में स्कैप आ गया है और आप क्लियरली ये देख पाते हो की आपकी पर्सनैलिटी और आपके बिहेव्यर का 90% हिस्सा आप हो ही नहीं और आपने दूसरों के बीच घुलने मिलने के लिए अपने हर यूनीक फीचर को अंधेरे में धकेल दिया है और शिल्ली अपनी स्टोरी, डार्क साइड, ऑल्टर ईगो इन सब चीज़ो की मदद से मैं आपको यह समझने की कोशिश कर रहा हूँ की जैसे ही आप अपनी मन की ऊपरी परत को तोड़कर नीचे जाने की कोशिश करोगे वैसे ही वहाँ पर आपको वो शक्ति मिले गी जो एक्चुअल मैं आपको चला रही है और अगर आप उस शक्ति को अपने कंट्रोल में करना चाहते हो तो आपको भी अंधेरे में जाना ही पड़ेगा। आपको भी अपने हर डर, हर इन्सेक्युरिटी और जो भी आप की कमी है उसको अपना दोस्त बनाना पड़ेगा। हर किसी के अंदर कोई न कोई ऐसी चोट जरूर होती है जो कभी ठीक नहीं होती है और टॉप के लोगों के लिए इस तरह की चोट एक फ्यूल का काम करती है। किसी इंसान को उसके पैरेंट से प्यार नहीं मिला होता। किसी ने बहुत ज्यादा गरीबी देखी होती है। कोई मोटा होने की वजह से बहुत ज्यादा बोली होता है और वह यह बात किसी को नहीं बताता और किसी इंसान को ये बोल दिया जाता है कि उसे कभी सक्सेस मिले गी ही नहीं। ये सारे वो राक्षस हैं जिन्हें अंधेरे में छुपाने पर ये हमारी एनर्जी को चूसते है लेकिन जैसे ही हम इन्हें अंधेरे से बाहर निकालकर अपने सामने खड़ा कर देते हैं वैसे ही हम इन पर फीड करने लगते हैं। लेटस डू एक्सर्साइज़ जब भी आपको किसी ने तंग करा जब भी आपको ऐसा फील कराया गया कि आप किसी काम के नहीं हो, जब भी आपको नीचा दिखाया गया या फिर आपका जो भी रिलेशनशिप एक बुरे नोट पर हुआ, अपनी सारी डिसअप्पोइंट को अपने सामने फैलो इमेजिन करो। सोचो की एक इमैजिनरी टेबल है, जिसपर आपकी हर्ड इस पोस्ट को प्लेस करा गया है। अब एक एक करके अपनी हर डिसअप्पोइंट के ऊपर अपना हाथ रखो और उस इमोशन के साथ रीकनेक्ट करने की कोशिश करो जो उसने आपको फील कराया था। आपको फील लोगों की कैसे आपकी कई डिसअप्पोइंट सभी भी थोड़ी गर्म है। कई टाइम के साथ ठंडी हो चुकी है। भाइयो को छूने पर ही घिन आती है बट इन सब चीजों के बीच में आपको कोई चीज़ ऐसी मिलेंगी जो लावा के जितनी गर्म होगी वो है आपकी डार्क साइड वो है आपका फ्यूल जैसे छूने से पहले ही आपका हाथ जलने लगे। नाउ रिमेम्बर, हम इन सारी पुरानी डिसअप्पोइंट मिनट्स को इसलिए याद नहीं कर रहे हैं ताकि हमें गुस्सा आये, हम कड़वाहट से भर जाए और हम लेने के बारे में सोचने लगे है नहीं, इसके बजाय जो भी आपकी डिसअप्पोइंट से जुड़ा इमोशनल चार्ज है, हमें बस उसे चुराना है ना वो ट्रेन नंबर टू फिजिकल कैपेबिलिटी अपनी डार्क साइड को मास्टर करने से आप मेंटली कैपेबल बनते हो, लेकिन किसी भी जंग में दिमाग के साथ साथ हथियार का चलना बहुत जरूरी होता है। जो भी इंसान हाइली कॉम्पिटिटिव और हाइली डेनजरस होता है, उसका शरीर कभी भी बीच रास्ते में उसे धोखा नहीं देता, चाहे उसका शरीर थक जाए, चाहे उसकी एनर्जी खत्म हो जाए या फिर उसको कोई बिमारी भी हो जाए। अगर वो खुद में बिलीव करता है तो वो अपनी बॉडी को उसकी लिमिट के पार ले जा पाएगा। कितनी सारी क्रेडिबल स्टडीज़ में यह देखा गया है कि जब आप खुद को एक विन्नर की तरह देखते हो और अपने अंदर छुपे अग्रेशन को बाहर लाते हो, बजाय खुद को एक यू सर समझने के तो बस थॉट्स के थ्रू ही आपका टेस्ट करने लग जाता है। इसके साथ ही एक स्टडी में यह भी देखा गया कि जब हम हर रोज़ बस ये इमेजिन करते हैं कि हम एक बहुत भारी वेट उठा रहे हैं जब उससे ऐक्चुअल में हमारे मसल्स के साइज और स्ट्रेंथ में नोटिसेबिल डिफरेन्स आता है। यानी स्ट्रॉन्ग बनाने के लिए आपको बॉक्सिंग, मार्शल आर्ट्स और वेटलिफ्टिंग तो करनी है लेकिन इसके साथ साथ जो आपका इन्नर डाइलॉग है यानी जीस नज़र के साथ आप खुद को देखते हो वो आपको दर्द को सहने और उसके पार जाने के काबिल बनाता है। जो भी इंसान अपनी इन दोनों साइड्स को मास्टर कर लेता है, उससे ज्यादा अट्रैक्टिव और पॉवरफुल कोई दूसरा इंसान नहीं होता। जब एक फीमेल अपनी डार्क साइड को मास्टर कर लेती है तब वो एक्सेप्ट फील करने के लिए लो वैल्यू मिल्स के साथ हुकअप नहीं करती। वो अपने लिए स्टैंड ले पाती है और जरूरत पड़ने पर वो अपनी साइट को भी बाहर ला पाती है। लेकिन जब एक मेल अपनी डार्क साइड को मास्टर करता है तब वो एक ऐसा इंसान बन जाता है जो बहुत ज्यादा खतरनाक लेकिन रिस्पेक्ट के काबिल और अट्रैक्टिव होता है।","कोई भी व्यक्ति उससे ज्यादा खतरनाक नहीं है जिसके पास उसका अंधेरा पक्ष है और वह शारीरिक रूप से सक्षम है। माइंड और मसल के संयोजन को कोई नहीं हरा सकता, खासकर जब बात जीवन में जीतने और प्रतियोगिता को मात देने की हो।" "जिन लोगों में कॉन्फिडेंस की कमी और साइनस होती है, उन्हें सोशलाइज करने में बहुत मुश्किल होती है। पहले तो शाइन एस उनको दूसरों से दूर अपने कंफर्ट ज़ोन में रहने को बोलती है और उनका लो सेल्फ कॉन्फिडेंस उन्हें सोशलिस्ट करने की कोशिश करने से भी रोकता है। इसलिए इस एपिसोड में हम उन मेथड्स के बारे में बात करेंगे जो आपको किसी भी सिचुएशन में कॉन्फिडेंट बनने और अपनी शाइन एस के बबल को तोड़ने में मदद करेंगे। मेथड नंबर वन चेन्ज द वे यू लेबल योरसेल्फ हमेशा इस फैक्ट को याद रखो कि शाइन एस या फिर कॉन्फिडेंस की कमी का एक बहुत बड़ा हिस्सा होता है। आपका उनमें बिलीव यानी आप शायद और अंडरकॉन्फिडेंट इसलिए हो क्योंकि यह कहानी आपके मन में बैठी हुई है कि आपको लोगों से बात करना ना तो अच्छा लगता है और ना ही आपको बात करना आता है। इस बिलीफ को सबसे पहले हमारे पैरेन्ट्स हमारे मन में बिठाते हैं। आप भी अगर शायद हो या फिर खुद में ज्यादा विश्वास नहीं रखते तो शायद आपने भी अपने पेरेंट्स को दूसरों को यह बोलते हुए सुना होगा कि हमारा बच्चा तो बहुत ही शर्मीला है इसलिए वह दूसरों से बात नहीं करता। जीवन अगर किसी दूसरे ने भी आपको आपके बचपन में आपके पैरंट्स के आगे शर्मिला बोला हो तब भी अगर आपके पैरेन्ट्स उन्हें ठीक करके ये नहीं बोलते कि आप शर्मीले नहीं हो तो ये चीज़ आपके दिमाग में सेटल कर जाती है। एक नई आइडेंटिटी की तरह हमारी आइडेंटिटी बचपन में पूरी तरह से दूसरों के ओपिनियन पर बेस्ट होती है। अगर दूसरे लोग ये बोल दे की हम कितने कॉन्फिडेंट और समझदार हैं तो ऑटोमैटिकली हमारी पर्सनैलिटी भी एक्स्ट्रा वर्जन और एंथोस इम जैसे ट्रेड्स की तरफ डेवलप होने लगे गी। लेकिन जब हम बड़े होते हैं और हमें अपनी पर्सनैलिटी की वजह से मुश्किलें फेस करनी पड़ती है, तब हमें इस फैट को सुनने और समझने की बहुत जरूरत होती है। कि हम खुद की पर्सनैलिटी और अपने बिहेव्यर की कमियों को बदल सकते हैं और चाहे वो शाइन एस हो या फिर ओवरऑल कॉन्फिडेंस की कमी, हम प्रैक्टिस करके और खुद पर विश्वास रखने से खुद को ग्रो करने के लिए रीप्रोग्राम कर सकते हैं। पहले आप खुद को कॉन्फिडेंट समझना शुरू करोगे और उसके बाद आपने असलियत में कॉन्फिडेंस बढ़ेगा। इसलिए खुद के दिमाग में इस बात को बिठा लो और बार बार ये बोलो कि आप कॉन्फिडेंट और सोसिअल्ली टैलेंटेड हो। मेथड नंबर टू रिमेन काम अगर आपको हर तरह के लोगों से बात करने की आदत नहीं है तो ऑफ कोर्स शुरू में आपको काफी डर लगेगा। और आपको कन्वर्सेशन को इनिशिएट करने में भी बहुत हैबिटेशन फील होगी और ऐसे में अगर आप खुद को रिलैक्स नहीं रख पाए तो आप चाहे जितनी बार भी कोशिश कर लो, आप अपने अंदर ज़रा सा भी कॉन्फिडेन्स नहीं बढ़ा पाओगे शायद या फिर अंडरकॉन्फिडेंट लोगों को अक्सर अपनी बॉडी में कई बायोलॉजिकल चेंजेस देखने को मिलते हैं। जब भी वो अपने सोशलिस्ट करने के डर को फेस करने की कोशिश करते हैं। इसी वजह से बढ़ती हर्टबीट स्वेटिंग और चढ़ती सांस के साथ किसी को कन्वर्सेशन को हैंडल करना शायद लोगों के लिए और भी मुश्किल हो जाता है। यानी आपको सिर्फ कॉन्फिडेंटली खुद को कैर्री करने की स्किल नहीं डेवलप करनी है। बल्कि आपको एक एस एम टाइम इस प्रोसेसर में खुद को काम भी रखना है। इसलिए जब भी आप किसी से बात करो तब अपनी ब्रीडिंग को गहरा और स्लो रखो। इससे दो चीजें होंगी। पहले तो आपकी ऐंगज़ाइइटी और एलिवेटेड हर्टबीट कंट्रोल में रहेंगी और दूसरा आप स्लोली और आराम से हर बात को बोलोगे जिससे आप और ज्यादा कॉन्फिडेंट और क्लिअर माइंडेड लगोगे। में थर्ड नंबर थ्री स्ट्रेंथ अन्य ओर स्ट्रेंथ ये पॉइंट सेल्फ अवेर्नेस के बारे में है। बहुत से लोग अपनी कमियों को बेहतर बनाने में अपना इतना ज्यादा समय वेस्ट कर देते हैं कि वो अपने असली टैलेंट से और गिफ्ट्स को डेवलप ही नहीं कर पाते हैं और ये चीज़ सोशल सिचुएशन्स में उनकी नर्वसनेस और शाइन एस को बढ़ाती है। सिर्फ इस बात पर फोकस मत करो कि आपको खुद में क्या क्या इम्प्रूव करना है। अपनी स्ट्रेंथ के बारे में भी सोचो शायद आप थोड़े रिज़र्व्ड हो लेकिन आप लोगों को ऑब्जर्व करने और उन्हें समझने में बहुत अच्छे हो। ऐसे केस में आपको दूसरों पर अटेन्शन पे करनी चाहिए और उनसे एम प थिस करना चाहिए, जिससे आपके लिए किसी भी इंसान के साथ कॉन्वरसेशन शुरू करना बहुत आसान बन जायेगा। फॉर एग्ज़ैम्पल अगर कोई इंसान ऊपर से बहुत खडूस और इरिटेटेड लग रहा है लेकिन उसकी बॉडी लैंग्वेज ये बोल रही है की वो बहुत बल और वीक है। तो ऐसे इंसान से जब आप बात करना शुरू करोगे तो वो भी आपके इस जेस्चर को अप्रीशिएट करेगा और आप भी उनसे बात करने के बहाने खुद की स्ट्रेंथ को और स्ट्रांग बनाते जाओगे। आपकी स्ट्रेंथ सिर्फ आपको पता है इसलिए अपनी कमियों से भी पहले अपनी उन फाउन्डेशन्स क्वालिटीज को और पक्का बनाओ जो आपको यूनिक बनाती है। मैं थर्ड नंबर फ़ोर टू व्हाटएवर इट टैक्स टू बी कंफर्टेबल विद योरसेल्फ, अक्सर एक इंसान की लो सेल्फ एस्टीम के पीछे बहुत से ऐसे रीज़न होते हैं। जिन पर वो काम करके वापस से अपने कॉन्फिडेन्स को बड़ा और अपनी सेल्फ रिसेप्शन को इम्प्रूव कर सकता है। एग्जाम्पल के तौर पर अगर आप बहुत अंडरवेट या फिर ओवर वेट हो तो जिम जाकर और सही डाइट लेकर खुद को फिट और फिज़िकली अट्रैक्टिव बना हो। अगर आपको अनजान लोगों से बात करना नहीं आता तो अपने दोस्तों और फैमिली के साथ प्रैक्टिस करना शुरू करो और लंबी और गहरी कन्वर्सेशन्स की आदत डालो। अगर आप अपनी शाइन एस को इसलिए ओवर कम नहीं कर पा रहे हैं, क्योंकि आपके पास कोई बड़ा रीज़न नहीं है। खुद को पुश करने के लिए तो अपने पैशन के बहाने उन लोगों से मिलो जिनके इंट्रेस्ट आपसे मिलते जुलते हैं। अगर आप अपने लोग कॉन्फिडेन्स के पीछे की प्रॉब्लम को सॉल्व कर सकते हो तो आप किस चीज़ की वेट कर रहे हो? हर उस रुकावट को जल्दी से जल्दी साइड करो जो पूरी तरह से आपके कंट्रोल में है और जो खुद ही आपको ज्यादा कॉन्फिडेंट बना सकती है। मेथड नंबर फाइव लर्न मोर ओर हैव के डिओ सिटी फॉर लर्निंग नॉलेज अपने साथ बहुत सा कॉन्फिडेन्स लाती है, जिससे इंसान के पास अलग अलग टॉपिक्स और लाइफ के हर छोटे बड़े एक्सपिरियंस के बारे में अपने विचार ज़ाहिर करने की काबिलियत होती है। उस इंसान में नैचुरली कॉन्फिडेन्स काफी ज्यादा होता है। जीवन अगर उससे ज़्यादा नॉलेज नहीं है, लेकिन उसमें नॉलेज हासिल करने की क्रिया सिटी है तो वो तब भी शाइन एस या फिर अन्डर कॉन्फिडेन्स का शिकार नहीं बनेगा। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हम लोग खुद को वैल्यू करते हैं, अपनी दुनिया में कुछ कॉन्ट्रिब्यूट करने की क्षमता से है जिसकी वजह से ज्यादा नॉलेजेबल या फिर क्युरिअस लोग खुद की एग्ज़िस्टन्स में मीनिंग और ऐसा रिज़ल्ट अपने करेक्टर में कॉन्फिडेन्स ढूंढ पाते हैं। इसलिए ज्ञान हासिल करो हिस्टरी लिटरेचर और ह्यूमन बिहेव्यर के बारे में पढ़ो। इससे आप दूसरों के लिए इंट्रेस्टिंग भी बन पाओगे और खुद की नजर में कॉन्फिडेंट भी। मैं थर्ड नंबर सिक्स मेक इन्क्रीमेंटल इम्प्रूवमेंटस कोई भी इंसान एकदम से कॉन्फिडेंट नहीं बन सकता। कॉन्फिडेन्स को धीरे धीरे अपने अंदर ग्रो करा जाता है। जैसे अगर आपको किसी से कॉन्वरसेशन के दौरान आई कॉन्टैक्ट बनाना नहीं आता तो सिम्पली सबसे पहले उस से बात करते हुए बस आई कॉन्टैक्ट मेनटेन करने की कोशिश करो। अगर आपको कॉन्वरसेशन को स्टार्ट करना ही नहीं आता तो कॉंप्लिमेंट देने या फिर सिंपल क्वेश्चन्स पूछने से शुरू करो। इस तरह आप आसानी से किसी से भी बातचीत चालू कर सकते हो और जब एक बार बात शुरू हो गई तब आप अपने कॉन्फिडेंस को मेनटेन कर सकते हो। बस अपनी बॉडी लैंग्वेज को सही रखकर और दूसरे इंसान में इन्ट्रेस्ट दिखा कर अपना गोल्ड डाइरेक्टली ये मत बनाओ कि आपको कॉन्फिडेंट बनना है बल्कि अपने दिमाग में बस यही रखो कि आपको एक इंट्रेस्टिंग कन्वर्सेशन करनी है और नए दोस्त बनाने है। इस माइंडसेट के साथ आप खुद ही अपनी शाइन एस और सेल्फ कॉन्शसनेस को छोड़कर सोशल गेम को खेलने लग जाओगे और सोशलाइजिंग के मास्टर बन पाओगे। लास्ट्ली आपके लिए एक बोनस स्टेप यानी किसी से भी सोशल इंटरेक्शन से पहले कोई ऐसी ऐक्टिविटी को परफॉर्म करो जिसमे आपको बहुत मज़ा आता है। जैसे अगर आपको किसी पार्टी, मीटिंग या फिर डेट पर जाना है तो कोई बुक रीड करो, गानों को सुनो या फिर अपने फेवरेट टीवी शो को देखो। इससे आप ज्यादा क्युरिअस और आउटगोइंग बनोगे। आपने ये अपने अंदर भी नोटिस करा होगा कि जब भी आप कोई अच्छी बुक पढ़ते हो या फिर कोई मूवी देखते हो तब आप उस चोरी या फिर अपने उस चीज़ पर व्यूस दूसरों के साथ शेयर करना चाहते हो की वन बहुत से लोग अपने वर्कआउट की बात ज्यादा एक्स्ट्रोवर्ट और कॉन्फिडेंट फील कर रहे होते हैं क्योंकि किसी भी तरह की ऐरोबिक एक्सर्साइज़ हमारी नर्व्स को काम करने में बहुत मदद करती है। हमारे शरीर में मौजूद एक्स्ट्रा ट्रैन लिन को बर्न करके यह ट्रिक आपके सोशलाइजिंग की प्रैक्टिस में बहुत कम आएगी। लेकिन सबसे ज्यादा बेनिफिट आपको इन छह मेथड्स को फॉलो करने से नहीं बल्कि इनको एक साइकल की तरह रिपीटेड ली परफॉर्म करने से मिलेगा। अगर आप ऐक्चुअल में इस एपिसोड से अपने साथ कुछ ले कर जाना चाहते हो तो ये होनी चाहिए कि आप वो बन सकते हो जो आप खुद के बारे में बिलीव करते हो। एक लूँ सर सिर्फ तब तक ही लू सर रहता है, जब तक वह अपनी सिचुएशन के आगे खुद को हेल्पलेस समझता है और ऐसे ही एक शाय या फिर अंडरकॉन्फिडेंट इंसान भी खुद को तब तक ही शाय या फिर अंडरकॉन्फिडेंट समझता है जब तक वो अपने मन में चल रही इस पुरानी और लिमिटिंग कहानी को चेंज नहीं करता।",जो लोग शर्मीले या कम आत्मविश्वास वाले होते हैं उनके लिए दूसरों के साथ संवाद करने और सामाजिककरण करने में वास्तव में कठिन समय होता है। उनका शर्मीलापन उन्हें उनके सुविधा क्षेत्र से दूर नहीं जाने देता और उनके आत्मविश्वास की कमी उन्हें सामूहीकरण करने की कोशिश करने से भी रोकती है। इसलिए इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम आपके आत्मविश्वास को बढ़ाने और शर्मीलेपन पर काबू पाने के 6 अलग-अलग तरीकों के बारे में बात करेंगे। "स्वामी विवेकानंद एक हिंदू मंदिर और एक स्पिरिचुअल टीचर थे, जिनका वेदांत और योग जैसी टीचिंग उसको वेस्ट में पॉपुलर बनाने में बहुत बड़ा योगदान है। जहाँ हिंदुइज़्म पहले बस भारत तक ही सीमित था, वहीं स्वामी विवेकानंद जैसे लोगों की वजह से वो देखते ही देखते एक वर्ल्ड रिलिजन बन गया। विवेकानंद को साइनस और हमारी स्पिरिचुअल नेचर के बारे में बहुत डीप अन्डरस्टैन्डिंग थी और उनकी टीचिंग इसमें दोनों ही फील्ड की नॉलेज को एग्जिस्ट करती है, जिसकी वजह से इस एपिसोड में हम उनके सबसे जरूरी और पॉवरफुल लेसन्स को डिस्कस करेंगे। तो ये समझने की कोशिश करेंगे कि उनका दिमाग कैसे काम करता था। ले सन वन ग्रो फ्रॉम इन्साइड आउट स्वामी विवेकानंद बोलते हैं कि आपको अपने अंदर से पहले ग्रो करना होगा, उस से आपकी भारी ग्रोथ खुद ब खुद हो जाएगी। आपको यह चीज़ कोई नहीं सीखा सकता कि आपको स्पिरिचुअल कैसे बनना है? आपके इस रोल के अलावा आपके पास कोई दूसरा टीचर नहीं है। यानी हर एक्सटर्नल नॉलेज जैसे बुक्स, स्टोरीज़, टीचर्स या साइकोलॉजी इन हिंदी जैसे ऑनलाइन नॉलेज के मीडियम्स ये सब आपको बस हिज़ दे सकते हैं। और आपको इशारा करके ये बता सकते हैं कि आपको किस तरफ देखना है और किस तरफ चलना है। लेकिन इस यात्रा को तय करने वाले सिर्फ आप हो मार्केट में आई हर नई बुक को पढ़ना या पूरे दिन इंटरनेट पर कुछ न कुछ कौन स्यूम करते रहना, ज्यादातर लोगों की ये आदत उनकी असली नॉलेज की बुक को ही दर्शाती है। हर इंसान हाइएस्ट नॉलेज के लिए बुखा है, लेकिन जब तक वह खुद के अंदर झांकना नहीं सीख लेता तब तक वह पूरी दुनिया में उस चीज़ को पाने के लिए भटकता रहेगा जो उसे शांत और स्थिर रहने पर वैसे ही मिल जाती है। इसलिए इस इनसाइड को भी बस एक हिट की तरह ही समझो। क्योंकि असली सच वो होता है जिसे बोला नहीं, बस समझा और फील करा जाता है। लेसन टु ऑल वेस भी हम बल स्वामी विवेकानंद एक बार जब इंग्लैंड में अपने दोस्त के साथ बैठकर बस बातचीत कर रहे थे तब उन्होंने नोटिस करा कि उनका फ्रेंड इंग्लिश लैंग्वेज का यूज़ करते हुए कोई गलती कर रहा है और उन्होंने ये चीज़ अपने फ्रेंड को भी बताई लेकिन उनके फ्रेंड को ये बात अच्छी नहीं लगी और उन्होंने गुस्से में जवाब दिया कि इंग्लिश मेरी मातृभाषा है, मैं कैसे गलत हो सकता हूँ? स्वामी विवेकानंद ने शांति से अपने दोस्त को बोला कि तुमने तो इस भाषा को सुनते सुनते याद करा है, लेकिन मैंने इसको सीखा है। इसे रिप्लाइ को सुनकर उनके दोस्त भी दंग रह गए और यह चीज़ हमारे साथ भी अक्सर होती है कि हम दूसरों की छोटी छोटी बातों पर गुस्सा हो जाते हैं। स्पेशल ली जब वो हमें हमारी किसी बात के लिए टोकते हैं। इसके बजाय हमें भी हमेशा शांत और हम बल रहना चाहिए, चाहे हमें कोई कितना भी ऑफ एंड करने की कोशिश कर ले। ले सन थ्री रिजेक्ट एवरीथिंग दैट मेक्स यू वीक स्वामी विवेकानंद बोलते हैं कि कोई भी चीज़ जो आपको फिज़िकली इन्टलेक्चुअल ली ये स्पिरिचुअली वीक बनाती हैं उसे जहर समझकर रिजेक्ट करो वीक हो ना किसी को नहीं पसंद लेकिन वीकनेस उन लोगों की डेस्टिनी होती है। जो अपने कंफर्ट ज़ोन से बाहर आना नहीं चाहते या फिर वो सच को फेस नहीं करना चाहते हैं। आजकल ज्यादातर बड़ी ऑर्गनाइजेशन्स का फाइनैंशल मॉडल कुछ इसी तरह का होता है की वो हमें अपने प्रॉडक्ट की लत लगवा देते हैं और हमारी अटेन्शन के बदले एक चिप लेज़र के अलावा कुछ नहीं देना चाहते हैं। हर सोशल मीडिया ऐप डेटिंग ऐप खाने की चीज़ टॉक्सिक आइडियास या न्यूस हमें कमजोर और बनाने के लिए डिजाइन करें जाते हैं क्योंकि कमजोर लोग कभी भी आवाज नहीं उठाते और ना ही अपनों की रक्षा करते हैं। इसलिए खुद से यह पूछो कि आप जो भी खा रहे हो सुन रही हो, पढ़ रही हो या जीस तरह से आप जी रहे हो क्या वो आप को स्ट्रांग बना रहा है या फिर वीक लेसन फॉर कम्पैशन ऐंड काइंडनेस शो योर स्पिरिचुअल ग्रोथ देश से बाहर जाने से पहले जब स्वामी विवेकानंद अपनी माँ के पास आशीर्वाद लेने गए, तब उनकी माँ ने उन्हें टेस्ट करने के लिए उनसे एक चाकू मांगा। उसके बाद उनकी माँ ने बोला, अब तुम जा सकते हो। वो बस इतना देखना चाहती थी कि विवेकानंद किस तरह से चाकू को पकड़ाते हैं, क्योंकि नोर्मल्ली हम खुद हैंडल से चाकू को पकड़ते हैं और उसका नुकीला छोर दूसरे की ओर कर देते हैं। लेकिन विवेकानंद ने खुद धार वाला हिस्सा पकड़ा और लकड़ी वाला हिस्सा अपनी माँ की तरफ करा ताकि अगर चोट लगे भी तो उन्हें लगे उनकी माँ को नहीं। इससे उनकी माँ को यह यकीन हो गया कि उनका बेटा अब इतना स्पिरिचुअली ग्रो कर चुका है कि वह खुद के साथ हुए अच्छे या बुरे की परवाह नहीं करता, लेकिन वह दूसरों के लिए हमेशा ही काइन्ड और केरिंग रहता है। ये इसलिए क्योंकि जब तक एक इंसान की थिंकिंग और उसके एक्सपिरियंस का स्कोप लिमिटेड होता है, तब वह सिर्फ अपनी ही परवाह करता है, लेकिन जैसे जैसे हमारी कॉन्शस अवेर्नेस बढ़ती है, तब हमें यह समझाने लगता है कि हर दूसरा इंसान हमारी ही एक रिफ्लेक्शन है। अगर हम खुद को बचा रहे हैं, दूसरों को चोट पहुंचाकर तो हम खुद को ही चोट पहुंचा रहे हैं, इसलिए हमेशा हर इंसान के साथ हो और उसे भी अपना ही एक हिस्सा समझो। लहसुन 521 थिंग एटा टाइम स्वामी विवेकानंद बोलते है कि एक समय पर सिर्फ एक ही चीज़ करो और उसे करते हुए अपना पूरा सोल उसी में डाल दो और बाकी सब भूल जाओ। साइट के बारे में हमारे कई स्क्रिप्ट्स में बात कर ली गई है कि अगर हम किसी चीज़ को अपने सच्चे दिल से पाना चाहते हैं तो हमें अपनी मेंटल, फिजिकल, इमोशनल और स्पिरिचुअल एनर्जी एक ही डायरेक्शन में मोड़ नहीं होंगी। अगर आप खुद के गोल्स को लेकर ही कन्फ्यूज़ हो और आपको यह नहीं पता कि आपको अपने कौन से गोल को हाइएस्ट प्रायोरिटी देनी चाहिए तो आपकी बॉडी आपको एक दिशा में खींचेगी और आपके इमोशनस दूसरी लहसन सिक्स आ स्कैन वॉन्ट ऑन थिस रिटर्न। विवेकानंद बोलते है कि कभी भी वापस से कुछ मांगो या फिर फल की इच्छा मत करो। जो देना है वह दो और वह आप के पास खुदा जाएगा। लेकिन अभी इस बारे में चिंता मत करो। यानी अगर आप इस लेवल तक ग्रो कर चूके हो या आप दूसरों की मदद करने लगे हों तब जब भी आप किसी की मदद कर रहे हो तब उनसे बदले में कुछ मांगो मत और ना ही कोई चीज़ एक्सपेक्ट करो। आपने बस अच्छे कदम के बीज बोने है और आगे बढ़ जाना है। थोड़े समय बाद जब आपके कदम पकेंगे तब आपको खुद बखुद आपकी मेहनत और अपनी काइंडनेस के लिए सराहा जाएगा। लहसुन सेवन लव योरसेल्फ टू लव अदर्स अपने कोर्ट में विवेकानंद बोलते है कि अगर मैं खुद को प्यार करता हूँ, मेरी अनेक कमियों के बावजूद तो कैसे मैं किसी दूसरे की चंद खराबियों के लिए उन्हें हेट कर सकता हूँ। यानी हर वो इंसान जो दूसरों को बुरा बोलता है। और दूसरों को ब्लेम करता है। वो असल में दूसरों के साथ इतना ज्यादा रूड इसलिए होता है क्योंकि वो खुद को ही पसंद नहीं करता। हमारी साइकोलॉजी कुछ इसी तरह से काम करती है। अगर हमें खुद के बारे में कोई चीज़ पसंद नहीं होती तो हम उसकी वजह बाहरी दुनिया में ढूंढने लगते हैं और खुद की इन सेक्युरिटीज़ को आउटवर्ड ली प्रोजेक्ट करने लगते हैं। इसलिए सबसे पहले खुद को प्यार करना और खुद को एक्सेप्ट करना सीखो ले। सिनेट नेवर बी अफ्रेड स्वामी विवेकानंद बोलते थे कि इस एग्ज़िस्टन्स का असली सच यही है कि आपको यहाँ डर के नहीं जीना इस बात को सोचकर डरो मत। ये आपके साथ क्या होगा या आपको क्या सहना पड़ेगा? आप बस खुद किसी पर डिपेंड मत करो और खुद को हर तरह की अटैचमेंट से मुक्त रखो। जितना ज्यादा आप चीजों लोगों या अपने बिलीव्स के साथ अटैच होंगे, उतना ही ज्यादा अपने डर पैदा होगा कि क्या होगा? अगर आपके हाथों से यह सारी चीजें छूट गई तो इस लिए साहस को अपना साथी बनाओ और खुलकर जिंदगी को जीना सीखो। लेसन नाइन लव इस एक्स्पैन्शन हेट इस कॉन्ट्रैक्शन विवेकानंद अपने एक पॉपुलर कोर्ट में बोलते हैं कि हर तरह का प्यार तुम्हारी बाउनड्रीज़ और तुम्हारी सोच का दायरा बढ़ाएगा। लेकिन हर तरह की सेल्फिश नेस तुम्हें और तुम्हारी सोच के दायरे को घटाएगी इसलिए प्यार ही जिंदगी का मात्र रूल है। जो प्यार करता है वो जीता है और जो सेल्फिश बनता है वो मर मर के जीता है। इसलिए प्यार करो सिर्फ प्यार करने के लिए, बिल्कुल वैसे ही जैसे तुम सांस लेते हो, जिंदा रहने के लिए यही रीज़न है की क्यों? अक्सर ये बोला जाता है कि पावर इस इन यूनिटी क्योंकि एक अकेले इंसान के पास बस एक ही तरह के ओपिनियन्स बिलीव्स विल पावर या स्टडी करने के लिए बस एक ही स्टोरी होती है, लेकिन जब कई लोग साथ में मिल जाते हैं जब एक इंसान की क्षमता कई गुना बढ़ जाती है और एक दूसरे की मदद करते करते इंसान उतना आगे बढ़ जाते हैं जितना वो अकेले रहने पर नहीं बढ़ पाते हैं। विवेकानंद एक सिंपल सा रूल बताते हैं कि किसी भी डिसिशन को लेते टाइम ये क्वेश्चन करो कि वो सेल्फिश है या फिर सेल्फलेस आप अपनी पूरी मोरालिटी इसी क्वेश्चन पर बना सकते हो कि जो भी चीज़ सिर्फ आपको खुश करेगी वो गलत है और जो आपको आपके परिवार को और पूरी कम्यूनिटी को सुख देगी वो चीज़ सही है। लेसन 10 यू आर द सोल स्वामी विवेकानंद इस बात पर काफी करते हैं कि हमारे अंदर आत्मा नहीं बल्कि हम ही आत्मा है। हमारा शरीर तो बस इस पृथ्वी से उधार लिया हुआ मैटर है और हमारे ख्याल वो भी हम नहीं हैं क्योंकि हमारा हर थॉट हमारे अंदर जाती इन्फॉर्मेशन के बेसिस पर आता है। जैसे ही हम अलग इन्फॉर्मेशन कॉस्टयूम करने लगते हैं, वैसे ही हमारे ख्याल भी बदलने लगते है। तो अगर हम अपनी बॉडी नहीं है और अपने थॉट्स नहीं है, तो हम हैं। क्या? विवेकानंद बोलते है कि तुम आत्मा हो, जो हमेशा ही मुक्त और हमेशा ही सूखी रहती है। इस बात की गहराई में उतरो और तुम एक मिनिट में हर तरह के बंधन से मुक्त हो सकते हो। ये अन्डरस्टैन्डिंग, साइकोलॉजिकल और फिलॉसॉफिकल बेसिस पर शुरू होती है और आपकी स्पिरिचुअल नेचर पर जाकर खत्म होती है। इसलिए खुद के ही स्कोप को लिमिट मत करो और विवेकानंद की भी इस इन साइट पर मेडिटेट करो।","स्वामी विवेकानंद एक हिंदू भिक्षु और एक आध्यात्मिक शिक्षक थे जिन्होंने वेदांत और योग जैसे कई भारतीय दर्शन को लोकप्रिय बनाया। उन्हें विज्ञान और धर्म दोनों की गहरी समझ थी, इसलिए उनकी शिक्षाओं में दोनों का सह-अस्तित्व था। तो, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम सबसे महान आध्यात्मिक गुरुओं में से एक के जीवन के 10 पाठों के बारे में बात करेंगे जो आपको सिखाएंगे कि आप अपनी विकास क्षमता को कैसे बढ़ा सकते हैं, अपनी भावनाओं को नियंत्रित कर सकते हैं, मानसिक रूप से सख्त हो सकते हैं, प्यार फैला सकते हैं और अपने सभी क्षेत्रों में सफल हो सकते हैं। ज़िंदगी।" "हमारे इमोशन्स बेसिकली हमारी अलग अलग बायोलॉजिकल स्टेटस को बोला जाता है जो किसी इंटरनल या एक्सटर्नल्स टि मिला इसकी वजह से ट्रिगर होती है। साइकोलॉजिस्ट रॉबर्ट के हिसाब से हमारे अंदर आठ बेसिक इमोशन्स होते हैं यानी जॉय सैडनेस, ट्रस्ट, डिस ऑगस्ट, फिर्, सरप्राइज़, ऐन घर और ऐंटि पेंशन। बाकी सारे इमोशन्स इन्हीं आठ टाइप्स के वी कर या स्ट्रॉन्गर वर्जन होते है। जैसे सेम फेर का ही एक माइल्ड वर्जन होता है और सैटिस्फैक्शन जॉय का अगर एक इमोशन सही मात्रा में और सही समय पर आता है तो वो हमे कुछ प्रोडक्टिव काम करने में मदद करता है पर जब हमारे इमोशन्स हमारे कंट्रोल के बाहर चले जाते है तब वो हमारी पूरी जिंदगी को ही खराब कर सकते हैं। एक गुस्सैल इंसान हर किसी से लड़कर अपने दुश्मन बढ़ाता रहता है। एक डरपोक इंसान कभी भी अपने दरों को फेस ना करने की वजह से हमेशा कमजोर ही रहता है और एक दुखी इंसान अपने आपको ही नुकसान पहुंचाने लग जाता है। दूसरी तरफ अगर आप इन्हीं सम एमोशन्स को चैनलाइज करना सीख जाओ तो आप अपने गुस्से को अपनी मेंटल और फिजिकल स्ट्रेंथ बढ़ाने के लिए इस्तेमाल कर सकते हो। और अपने दुख को इस्तेमाल कर सकते हो। रिऐलिटी की एक दीप अन्डरस्टैन्डिंग हासिल करने के लिए इसका मतलब अगर आप अपने इमोशन्स के मास्टर नहीं हो तो आप उसके स्लेव यानी नौकर हो और आप अपने इमोशन्स को सिर्फ तभी मास्टर कर पाओगे जब आप उन्हें फोर्स्फुली अपने अंदर से हटाने के बजाय उन्हें अपनी कॉन्शस अटेन्शन दोगे। मूवी एक्टर जोनाथन मार्टिन सन का बोलना है कि इमोशन्स पानी की लहरों की तरह होते हैं। हम उन्हें अपनी तरफ आने से रोक नहीं सकते, लेकिन हम ये चूज कर सकते हैं कि हमें कौन सी लहर पर सर्फ करना है। न्यूरोसाइन्स बताती हैं कि हमारे इमोशन्स दिमाग के कई अलग हिस्सों से कंट्रोल होते हैं, जिसके कलेक्शन को बोलते हैं सिस्टम यह एक ऐसा सिस्टम होता है जो अनकॉन्शियस ली यानी हमारे दिमाग के सोचने वाले हिस्से की मदद के बिना काम करता है और हम ये जानते हैं कि वो हमारा इमोशनल एक्सपिरियंस ही होता है जो हमारे सब कॉन्शस और अनकॉन्शियस पैटर्न्स को कंट्रोल करता है, जिसमें इन्क्लूडेड है। हमारा हर इमोशन और उस इमोशन के बेसिस पर लिए गए सारे डिसिशन्स यानी अगर हम अपने इमोशन्स को मास्टर करना चाहते हैं तो हमें एक बॉटम अप अप्रोच लेनी होगी ताकि हम उस जगह को फिक्स कर पाए जहाँ पर हमारे इमोशन्स पैदा होते हैं। अमेरिकन ऑन्ट्रप्रनर और मोटिवेशनल स्पीकर टोनी रॉबिन्स के हिसाब से हमारे इमोशन्स तीन अलग फैक्टर से इन्फ्लुयेन्स होते हैं जो की है। फिजियोलॉजी, फोकस और लैंग्वेज और इन फैक्टर्स पर काम करने के लिए हमें अपने आप से तीन क्वेश्चन्स पूछने होंगे। क्वेश्चन नंबर वन आप अपनी बॉडी के साथ क्या कर रहे हो? क्योंकि आज के समय पर ज्यादातर हेल्थ प्रॉब्लम्स साइकोसोमैटिक होती है। यानी या तो अपने आप को मेंटली स्ट्रेन करने की वजह से आपकी बॉडी में बीमारियाँ पैदा होना शुरू हो जाती है और फिर अगर आपकी बॉडी में कुछ प्रॉब्लम आ जाती है या फिर आप अपनी बॉडी की केयर नहीं करते हो तो उसका अफेक्ट आपको अपनी थिंकिंग और अपने इमोशन्स पर भी देखने को मिलेगा। जैसे अगर आप अपना पॉस्चर ठीक रखते हो और झुककर चलने के बजाय सीधे खड़े होकर चलते हो, कुछ खाते समय भी अपनी बैकों स्ट्रेट रखते हो या सांस लेते टाइम अपनी ब्रेट को अपने पेट तक पहुंचने देते हो तो बस अकेला इतना करने से ही आप सडनली बेटर फील करने लगते हो, क्योंकि आप अपनी बॉडी के थ्रू अपनी बाइओकेमिस्ट्री को चेंज कर पाते हों, जिससे आप अपना कॉन्फिडेन्स, इमोशनल स्टेबिलिटी और अलर्ट्नेस बढ़ा पाते हो। जबकि जब आप कभी एक्सरसाइज नहीं करते हो, झुक कर चलते हो, अपने हाइजीन का ख्याल नहीं रखते हो, तब ये सारी चीजें आप को मेंटली फिट करने लग जाती है। याद रखो कि हर इमोशन को पहले आपकी बॉडी प्रोसैस करती है और उसके बाद आपका माइंड जीस वजह से अगर आप अपने इमोशन्स को कंट्रोल करना चाहते हो तो सबसे पहले अपनी बॉडी से ही शुरू करो। पर जहाँ ये अपने इमोशन्स को जल्दी से चेंज करने का काफी अच्छा मेथड है वहीं अगर आप अपने पैटर्न को उनकी जड़ों तक पहुँचकर ठीक करना चाहते हो तो बाकी दोनों फैक्टर्स को भी अच्छे से समझो। क्वेश्चन नंबर टू आप किन चीजों पर फोकस कर रहे हो? साइकोलॉजी से लेकर भगवद्गीता तक आपको इमोशनल और मेंटल मास्टरी का ये मैं थर्ड कई जगहों पर देखने को मिलेगा, क्योंकि आप क्या पढ़ते हो? सुनते हो कि इन लोगों के साथ टाइम स्पेंड करते हो। हर चीज़ जिसपर आप अपना फोकस रखते हो, आपकी एनर्जी उसी डायरेक्शन में बहने लग जाती है। इसका मतलब अगर आप अपने सबकॉन्शियस और अनकॉन्शियस पैटर्न्स को बदलना चाहते हों तो जीस तरह की इन्फॉर्मेशन आप कौन स्यूम करते हो उसे मॉनिटर करो। यानी अगर एक काम आपके गोल्स के साथ अलाइंड नहीं है तो उसमें घुसो ही मत और अपने माइंड में स्टोर हो रखें। पुराने पैटर्न को चैलेंज करो। अपना एनवायरनमेंट या अपने सोर्स ऑफ इंफॉर्मेशन को बदलकर क्वेश्चन नंबर थ्री। आप किस तरह की लैंग्वेज यूज़ कर रहे हो? क्योंकि आप जीस तरह के वर्ड्स यूज़ करते हो? वो भी आपकी इमोशनल स्टेट को बदल सकता है? अगर आप एक काम करते हुए बोलते हो की ये काम तो बहुत मुश्किल है, ये तो मेरे से होगा ही नहीं। मैं इतना थका हुआ हूँ, मैं तो हमेशा ही ये गलती करता हूँ या फिर मेरी किस्मत ही खराब है तो ये याद रखो कि आपके मुँह से निकली हर स्टेटमेंट एक फॉर्मेशन की तरह काम करती है और आपको एम्पॉवर पावर करती है। तो जब अपने आप को आगे बढ़ाने का कंट्रोल आपके पास पहले से ही मौजूद है तो ऐसे में अपने आप को डाउट करना ये नेगेटिव लैंग्वेज यूज़ करना बहुत काउंटर प्रोडक्टिव हो सकता है। इसलिए सिर्फ वही बातें बोलो जो आप को मेंटली स्ट्रॉन्ग बनाती है ना कि वीक या स्टिक और याद रखो। वो आपका एनवायरनमेंट नहीं होता जो आपके इमोशन्स को बनाता है बल्कि जीस तरह से आप अपने एनवायरनमेंट को देखते हो। वो नज़र आपके इमोशन्स को बनाती है।","हमारी भावनाएँ मूल रूप से हमारी विभिन्न जैविक अवस्थाओं की अभिव्यक्तियाँ हैं जो हमें प्रतिक्रिया करने और स्थिति के अनुकूल होने की अनुमति देती हैं। हालाँकि, यदि कोई भावना अपना जीवन जीने लगती है और वह हमें नियंत्रित करने लगती है, तो हमारी भावनाएँ अपनी उपयोगिता खो देती हैं और अपने जीवन को संभालने के लिए हमें इस नियंत्रण को अपने चेतन स्व पर वापस लाना चाहिए। इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम भावनाओं के प्रकार, भावनात्मक त्रय के मनोविज्ञान और उन 3 प्रश्नों पर जाते हैं जो हमें अपनी भावनाओं के साथ-साथ अपने मन पर काबू पाने के लिए खुद से पूछने चाहिए।" "बहुत बार फ्रेंडशिप और रोमेंटिक अट्रैक्शन के बीच की लाइन का फिर धुली बन जाती है, जिसकी वजह से ये जानना ऑलमोस्ट इम्पॉसिबल हो जाता है कि वो इंसान एक्चुअल मैं बस आपके साथ पोलाइटली बिहेव कर रहा है या फिर क्या वो एक्चुअल में आप में इंटरेस्टेड हैं? इसलिए इस एपिसोड में हम कई ऐसे हिडन सिग्नल्स और साइंस के बारे में बात करेंगे जो बताएंगे कि कोई इंसान आपको सीक्रेटली लाइक करता है। नंबर वन देश सब कॉन्शस ली ट्राई टु इम्प्रूव देर अपियरेंस यह एक लंबे पीरियड में भी हो सकता है जब दूसरे इंसान के अंदर आपके फीलिंग्स बढ़ने लगती है। और वो धीरे धीरे खुद को बेहतर वे में ड्रेस और प्रेज़ेंट करने लगते हैं और यह चीज़ आमने सामने कुछ सेकंड के अंदर भी हो सकती है। जैसे जब मेल्स एक फीमेल के आगे खुद को ज्यादा अट्रैक्टिव दिखाना चाहते हैं तब वह अपने शोल्डर्स, बैक् और चेस्ट ऊपर करके ये सिग्नल करने की कोशिश करते हैं कि हाइ टेस्टॉस्टोरोन की वजह से उनकी अपर बॉडी स्ट्रेंथ ज्यादा है। वो ज्यादा जगह घेरने लगेंगे। ये सिग्नल करने के लिए कि वो डोमिनेट हैं और उनकी सोशल वैल्यू ज्यादा है या फिर वह फीमेल की किसी में मदद करने या अपनी प्रोटेक्ट करने की कैपेबिलिटी को दिखाने लगेंगे। ताकि वो ज्यादा मैस्कुलिन और अट्रैक्टिव लगे हैं। दूसरी तरफ फीमेल्स अपने बालों के साथ खेलने या फिर उन्हें बार बार ठीक करने लगती है, जिससे उस मेल की नजर उस फीमेल के हेल्थी बालों पर पड़े और उस तक यह सिग्नल पहुंचे कि वो फीमेल कितनी फर्टाइल है या फिर वो अपने यूथ और फर्टिलिटी को सिग्नल करने के लिए उस मेल के साथ लंबे समय तक आई कॉन्टैक्ट बनाने की कोशिश करती हैं ताकि उनकी आइस बड़ी लगे जो कि अगेन फर्टिलिटी का साइन होता है। ये सब चीजें हम इसलिए करते हैं क्योंकि जो इंसान आपको अट्रैक्टिव समझता है, वो आपके आगे खुद की अपील बढ़ाने के लिए खुद को भी आपकी नजर में अट्रैक्टिव दिखाना चाहता है। साइन नंबर टू रोमैन्टिक टच यानी जब भी कोई इंसान आप को लाइक करता है तब वो नैचुरली आपकी पर्सनल स्पेस में आने की कोशिश करेगा। वो हँसी मजाक में आपको टच करेगा, आपके पास बैठेगा या फिर कोई बहाना ढूंढ लेगा जिससे आप दोनों के बीच का फिजिकल गैप कम हो। जैसे अगर आप एक डेट पर हो और आप दोनों एक दूसरे की तरफ लीन कर रहे हो, आप एक दूसरे को टच करके टीस भी कर रहे हो और आप फिज़िकली क्लोज़ रहने में भी कंफर्टेबल हों तो ये एक बहुत ही अच्छा साइन होता है। जबकि अगर दोनों या फिर कोई एक इंसान टच को अवॉर्ड करें और अपने पॉश्चर की मदद से दूसरे इंसान से थोड़ी दूरी बनाने की कोशिश करें तो यह ऑब्वियस साइन होता है कि वो इंसान दूसरे इंसान में इंटरेस्टेड नहीं है। कोई भी इन चीजों को सोचकर नहीं करता, बल्कि अक्सर सब कॉन्शस ली। हम खुद ही धीरे धीरे किसी के पास या फिर उससे दूर जाने लगते हैं। इसलिए अगर आपको भी कई ऐसे बदलाव देखें दूसरे की बॉडी लैंग्वेज में तब समझ जाओ कि उनका बार बार आपकी पर्सनल स्पेस में एंटर करना कोई इत्तेफ़ाक नहीं, बल्कि उनकी अट्रैक्शन का साइन है। साइन नंबर थ्री अनडिवाइडेड अटेन्शन जब भी कोई इंसान आपसे कुछ सेकंड से ज्यादा ये कॉन्टैक्ट बनाता है या फिर आपको अपने हर दूसरे काम को इग्नोर करके अपनी पूरी टेंशन देता है तब उसका मतलब यह साफ है कि वो आपको अपने गोल की तरह ट्रीट कर रहा है, जिसे वो इंसान पाना चाहता है। साइनस बताती हैं कि हमारी आँखों के आसपास सफेद कोटिंग इसलिए होती है जस्ट बिकॉज़ हम एम करने वाले क्रीचर्स है। हम किसी एक चीज़ पर बहुत देर तक फोकस करने और उसके अलावा बाकी हर चीज़ को इग्नोर करने के काबिल होते हैं। हमारी आँखों का यह फीचर सोशलाइज करने के लिए भी बहुत जरूरी होता है क्योंकि हम दूसरों की आँखों को देखकर एग्ज़ैक्ट्ली ये समझ पाते हैं कि उनका फोकस कहाँ पर है और उनकी इन टेंशन्स क्या है? इसलिए अट्रैक्शन का एक बड़ा साइन आपको दूसरे इंसान की आँखों और उनकी अंडे वाइड अटेन्शन में मिलेगा। बस आपको इतना ऑब्जर्व करना है कि आप दोनों का आई कॉन्टैक्ट के समय रिएक्शन कैसा होता है। अगर आप दोनों एक लंबे समय के आई कॉन्टैक्ट के साथ इमोशनल, फ्लर्टी या फिर एक दूसरे के साथ हर लेवल पर डीप्ली कनेक्ट करने लगते हो तो यह एक पक्का साइन है कि आप दोनों के बीच की अट्रैक्शन की आग बहुत तेज़ी से जल्दी है। सीन नंबर फ़ोर दे कॉंप्लिमेंट यू वेरी ऑफन हर इंसान को खुद की तारीफ सुनना बहुत अच्छा लगता है और किसी के भी मन में अपने लिए फीलिंग्स बढ़ाने के लिए सबसे अच्छा तरीका यही होता है कि आप उसे सही चीजों और सही समय पर कॉंप्लिमेंट करो। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि कहीं ना कहीं हर इंसान को दूसरे के प्यार से पहले खुद के प्यार की जरूरत होती है। अगर कोई इंसान हमे सेल्फ हेल्प करना सीखा दें तो आइरन निकली। हम उस इंसान को भी ज्यादा लाइक करने लगते हैं। साइन नंबर फाइव शाइन एस इन एबिलिटी टु टॉक हम सोचते हैं कि हम जीस भी इंसान को लाइक करते हैं। या फिर जिसपर हमारा क्रश है, हम उससे मिलते ही बहुत सारी बातें करेंगे और उन्हें बताएंगे कि हमने कितना लाइक करते हैं। लेकिन असलियत में उनके सामने आते ही अक्सर हमारी बायोलोजी हमारे माइंड को हाइजैक कर लेती है और हम नर्वस हो जाते हैं। हम सोचते हैं कि हम ऐसी सिचुएशन में काफी कूल और कॉन्फिडेंट ऐट करके उन्हें इम्प्रेस कर देंगे, लेकिन रिऐलिटी में हम ऑक्वर्ड और शायद बन जाते हैं और अपने क्रश या फिर डेट के आगे ज्यादा कुछ बोल ही नहीं पाते हैं। दूसरी तरफ अगर कोई दूसरा इंसान आपसे मिलकर ऑक्वर्ड और शाई बन जाए तो चान्सेस है कि उनमें आपके लिए रोमैन्टिक फीलिंग्स है और उनमें आपको इंप्रेस करने का प्रेशर इतना ज्यादा है कि वो सर ऑफिस लेवल पर एकदम चुप और डिस्टैन्स लग रहे हैं। इसलिए ऑकवर्ड मोमेंट्स पर ध्यान दो और देखो कि कब आप दोनों के बीच एक दम, शांति और रोमैन्टिक टेन्शन बढ़ने लगती है। साइबर ***** लाइफ इन गेट एवरीथिंग क्या कोई इंसान आपको ऐसा फील कराता है जिसे आप दुनिया के सबसे फनी इंसान हो? हँसी एक बहुत ही रिलाएबल साइन होता है इन्ट्रेस्ट और अट्रैक्शन का क्योंकि हम कभी भी किसी ऐसे इंसान की हर दूसरी बात पर नहीं हस्ते जिसे हम हद से ज्यादा लाइक नहीं करते हैं। यह डिफरेन्स होता हैं कॉन्स्टेंट लाफ्टर और एक नॉर्मल लाफटर में नोर्मल्ली हम हस्ते है जब कोई इंसान कोई फनी चीज़ बोलता है या फिर करता है। लेकिन अगर हम किसी की हर बात को ही ऐसे ट्रीट कर रहे हैं कि उनका हर शब्द इतना कलेवर और फनी है तो वो रिवील करता है। अंडरलाइंग लाइकिंग को हँसी बताती हैं कि कोई इंसान आपके पास होने से खुश हैं और वो आप पर अटेन्शन पे कर रहा है। साइड नंबर सेवन इनवेस्टिगेटिव क्वेश्चन्स क्या कभी आपको ऐसा लगता है कि कोई आपसे क्वेश्चन्स पूछते हुए एक तरह से आपका इंटरव्यू ही लेने लग गया है? ये चीज़ आपके अंदर मिक्स रिऐक्शन को जगा सकती है और आपका रिस्पॉन्स इतने सारे क्वेश्चन्स पर पॉज़िटिव होगा या फिर नेगेटिव ये डिपेंड करता है कि आप उस इंसान को कितना अट्रैक्टिव मानते हों, लेकिन दूसरे के लिए यह हमेशा एक साइन होता है कि वह इंसान आप को लाइक करता है और आपको एक डी पर लेवल पर जाना जाता है। साइन नंबर एट रिवीलिंग पर्सनल इंफॉर्मेशन एक रूल ऑफ थम ये है कि जितना एक इंसान आपके साथ अपनी पर्सनल इंफॉर्मेशन और सीक्रेट को शेर करता है वो उतना ही ज्यादा अपने इंट्रेस्टेड है। अक्सर हम सिर्फ उन्हीं लोगों को अपनी सबसे गहरी और डार्क बातें बताते हैं जिन पर हम ट्रस्ट करते हैं और लाइकिंग ट्रस्ट से बहुत क्लोजली जुड़ा हुआ है। इसलिए अगर आप सोच रहे हो कि वो इंसान क्यों? आपको इतनी सारी पर्सनल बातें बताया जा रहा है तो समझ जाओ कि वह आपको लाइक करता है ना? इन देशों द्जेलस्सी यानी जब भी कोई इंसान आपको सीक्रेटली लाइक करता है, तब उसकी यह फीलिंग उसकी जेलसी और पजेसिवनेस जैसे बिहेव्यर में दिखती है। वो नहीं चाहता कि उसे आपको किसी के साथ शेयर करना पड़े या फिर आप उससे ज्यादा किसी और को अपना समय दो और इसी वजह से वह दूसरे लोगों को एक क्या देखता है? इसलिए अगर आप ये जानना चाहते हो कि क्या कोई इंसान सच में आपके फ्रेंड से कुछ ज्यादा बनना चाहता है तो यह नोटिस करो कि आपके दूसरों से बात करने पर क्या वहाँ पर अपना हक जमाने की कोशिश करता है या फिर आप के लिए पोजेसिव होता है।","जब दोनों के बीच की रेखा धुंधली हो जाती है तो अक्सर वास्तविक दोस्ती और रोमांटिक आकर्षण के बीच अंतर करना वास्तव में कठिन हो जाता है। क्योंकि प्यार और पसंद / आकर्षण के बीच सूक्ष्म अंतर के ज्ञान के बिना, यह पता लगाना असंभव है कि क्या आपका दोस्त वास्तव में दोस्त से ज्यादा बनना चाहता है या यह सिर्फ उनकी विनम्रता है। इसलिए इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम उन 9 सूक्ष्म संकेतों के बारे में बात करेंगे जो बताते हैं कि कोई वास्तव में आपको पसंद करता है, न कि सिर्फ दोस्ताना व्यवहार।" "अमेरिकन इन्वेस्टर वॉरेन बफेट ने एक बार बोला था कि हमारी बुरी आदतें हमारे पैरों से बंधी उन चेन्स की तरह होती है जो शुरू में इतनी हल्की होती है कि वो हमें फील्ड ही नहीं होती। लेकिन देखते ही देखते वो इतनी भारी बन जाती है कि वो हमारी हर मोमेंट को इम्पॉसिबल बना देती है। यानी आपकी बुरी हैबिट्स का नेचर कुछ ऐसा होता है कि अगर आप उन्हें समय रहते ही पहचानलों तो आप उन्हें ओवर कम कर सकते हो। लेकिन अगर आप बहुत लंबे समय तक इस काम को पोस्टपोन करते रहे तो आपकी इन्हीं हैबिट्स का भार इतना ज्यादा बढ़ चुका होगा कि आप के लिए उनके चंगुल से बाहर आने की संभावना ना के बराबर होगी। आपने ऐसे बहुत से लोगों को अपने आसपास देखा होगा जिनकी बुरी आदतों ने उनका पूरा घर बर्बाद कर दिया। इसलिए इस एपिसोड में हम ऐसी ही छे बुरी हैबिट्स को डिस्कस करेंगे। नंबर वन बीइंग केयरलेस अगर आप ऐसे इंसान हो जिसका रूम हमेशा बिखरा रहता है, आपको अपने पैसों को मैनेज करना नहीं आता और आपको यह भी नहीं पता कि आपको दूसरों को किस तरह से ट्रीट करना चाहिए। तो ये आदत शुरू में तो आपको बहुत कूल लगे गी कि आप कितने रिबेलियस और कितने प्रोग्रेसिव हो, लेकिन आगे चलकर जब आप एक बड़ी ठोकर खाओगे तब आपका लाइफ को लेकर यही ऐटिट्यूड और केयरलेस होने की यही आदत आपको एक ऐसे पॉइंट पर लाकर खड़ा कर देगी, जहाँ वो आपको तब तक सफर कराएगी और आपको डार्कनेस में रखेगी जब तक आप अपनी गलतियों को समझकर उन्हें ठीक नहीं कर लेते है। नंबर टू हेट इन गॉन दरस चाइनीज फिलॉसोफर कन्फ्यूशियस बोलते थे कि किसी को भी हेट करना बहुत आसान होता है लेकिन प्यार करना मुश्किल। कुछ इसी तरह से पूरी दुनिया काम करती है। हर अच्छी चीज़ को पाना मुश्किल होता है और बुरी चीज़ को पाना आसान। बहुत से लोग अपनी पूरी जिंदगी दूसरों को हेट करने और उन्हें नीचे दबाने में वेस्ट कर देते हैं। उनका टाइम और एनर्जी दूसरों को हराने में इतना ज्यादा लग जाता है कि वो खुद की लाइफ में खुशी और शांति लाने में फेल हो जाते हैं। लेकिन हर बिहेव्यर की तरह दूसरों को बुरा बोलने की आदत भी बदली जा सकती है। अगर आपको लोग बार बार ये बोलते है कि आप फालतू में दूसरे लोगों के बारे में बुरा भला बोलते रहते हो तो उनकी बातों को सीरियसली लो और खुद से क्वेश्चन करो कि क्या सच में आप खुद की नेगेटिविटी को दूसरे लोगों पर प्रोजेक्ट कर रहे हो? और अगली बार जब भी आपको किसी पर गुस्सा आये तो खुद के इस बिहेविरल पैटर्न को ऑब्जर्व करो। और खुद को कंट्रोल करो नंबर थ्री पॉलिटिक्स की टॉक्सिसिटी में खुद को फंसा लेना। हमारे यूट्यूब चैनल और इंस्टाग्राम पर हर हफ्ते एटलिस्ट 100 मेसेजेस सिर्फ इसी टॉपिक पर होते हैं कि मैं पॉलिटिक्स मैं लेफ्ट और राइट विंग के तमाशा के बीच फंस गया, फंस गयी हो और इस वजह से ना तो मैं अपने कैरिअर पर ध्यान दे पाता हूँ और इससे मेरे रिलेशनशिप्स भी सफर करने लगे हैं। आपको यहाँ पर यह समझना जरूरी होगा कि यह प्रॉब्लम कोई नई नहीं है। हिस्टरी में जब भी पॉलिटिक्स एक स्लाइड पर ज्यादा टॉक्सिक होने लगती है और दूसरी साइड को दबाने लगती है तब ये इम्बैलेंस नॉर्मल सिटिज़न्स का ध्यान खींचने लगता है। और करप्ट लोग अपना फायदा उठाने के लिए लोगो में डिवाइड क्रिएट करने लगते हैं। अगर आपको भी यह लगता है कि आप लेफ्ट या राइट या किसी पर्टिकुलर आइडीओलॉजी के ग्रुप से बिलॉन्ग करते हो, बजाय सबसे यूनीक थॉट्स रखने के तो ऑलरेडी यह एक साइन है कि आप अपने सेंटर और बैंलेंस में नहीं हो और आपको मीडिया या करप्ट पॉलिटिशियन सौर सेलिब्रिटीज़ ने ब्रेनवॉश कर दिया है। हाउएवर अगर आप सच जानने और अपने वर्ल्डव्यू को बदलने के लिए रेडी हो तो सबसे पहले सोशल मीडिया, टीवी, मूवीज़ और अपने जैसे सोचने वाले लोगों से थोड़े टाइम के लिए दूर रहो। और बस अकेले रहकर अपने इन बिलीव्स या आइडीओलॉजी स् और अपने ट्रू सेल्फ के बीच एक सेपरेशन बनाओ। देखो की क्या एक्चुअल में आप इन आइडियाज़ को पकड़कर बैठे थे या फिर वो आइडियास आपको नंबर फ़ोर। अगर आप इंटरनेट पर देखो तो हर किसी का इन चीजों को लेकर एक अलग ओपिनियन होता है। कोई बोलता है की हमें इन चीजों से ज्यादा कोई फर्क नहीं पड़ता और यह नैचरल है। लेकिन दूसरे एक्स्ट्रीम पर कई लोग बोलते है कि अगर हम खुद की बॉडी को एक्स्प्लोर भी कर रहे हैं तो वो भी गलत है। इस टॉपिक पर मेरी आर्ग्यूमेंट हमेशा एक इंसान की वाइटैलिटी यानी उसकी लाइफ फोर्स से शुरू होती है और अपनी बॉडी की विजन के साथ चलने पर खत्म होती है। इसका मतलब अगर आप ये सोच रहे हो की मैं करना सही है गलत या फिर आपको ये कितना करना चाहिए? तो सिंपल सी बात ये है या आपको कुछ पढ़ने या फिर कुछ सुनने की जरूरत नहीं है। बस 3-4 दिन हो या फिर एक वीक के लिए खुद को ***** और मैस्टरबेशन से दूर करो, खुद को दूसरे कामों में उलझा के और फिर दो चीजों को ऑब्जर्व करो। एक आपकी एनर्जी और दूसरी आपकी मेंटल क्लैरिटी। आपको खुद ही आन्सर मिल जाएगा कि हाँ, अपनी सीमेन को रिटेन करके रखने से आपके अंदर ज्यादा एनर्जी और लाइफ के टुवर्ड ज्यादा पैशन होता है। ये इसलिए होता है क्योंकि आप अपनी लाइफ फोर्स को वेस्ट नहीं कर रहे हैं और अपने लिबिडो को एक चीप लेज़र के लिए सैक्रिफ़ाइस नहीं कर रहे हैं। दूसरी तरफ अगर आप इन नैचरल इंस्टेंस को एकदम ही गलत बोलकर दबाने लग जाओ तब भी आप ये नोटिस करोगे कि आपके दिमाग में सेक्शुअल थॉट्स के अलावा कुछ चल ही नहीं रहा और यह रास्ता सिर्फ उन्हीं लोगों को सूट करता है जो एक स्पिरिचुअल पथ पर होते हैं और सिर्फ अपनी बॉडी को ही नहीं बल्कि अपने माइंड को भी मास्टर करने की प्रैक्टिस कर रहे होते हैं। इसलिए जितना हो सके उतना इन चीजों को मॉडरेशन में रखो और अपनी लाइफ फोर्स क्रिएटिविटी के डायरेक्शन में चैनलाइज करो, बजाए उसे एक करेन्सी की तरह यूज़ करने के जिसको बनाने में तो आपके बहुत सारे रिसोर्सेस लगते हैं लेकिन गवाने से सिर्फ कुछ सेकंड का ही मिलता है नंबर फाइव खुद को दूसरों से कंपेर करना ये प्रॉब्लम शुरू से एग्जिस्ट करती आई है, क्योंकि किसी इंसान के पास कोई चीज़ कम होती है तो दूसरे के पास ज्यादा, जिससे उस इंसान में जेलसी आने लगती है। लेकिन आज के मॉडर्न समय में सोशल मीडिया इस प्रॉब्लम को एक अलग ही लेवल पर ले गया है। जहाँ इंटरनेट से पहले आपको बस उन्हीं लोगो से कंप्लीट करना होता था जो आपके स्कूल, कॉलेज, घर के आसपास या आपके रिलेशन में थे। वही आज आपका कॉम्पिटिशन बेसिकली इंटरनेट पर बैठे करोड़ों लोग हैं। आप खुद को कंपेर कर सकते हो, अपनी लुक्स, अपनी एबिलिटीज़ अपनी इनकम या अपनी खुशी के बेसिस पर और आपको हमेशा अपने से बेहतर इंसान दिख ही जाएगा। क्योंकि इंटरनेट पर हर इंसान अपने बेस्ट वर्जन या अपनी लाइफ की बेस्ट हाइलाइट्स को ही पोस्ट करता है। लेकिन जैसा कि हमने अपने लू सर वाले एपिसोड में भी डिस्कस कर रहा था कि दुनिया में मौजूद हर इंसान एक अलग रेस में भाग रहा होता है तो ऐसे में खुद को बाकी लोगों से कंपेर करना लॉजिकली सिर्फ गलत ही नहीं बल्कि ये बेवकूफ़ी है। इसलिए अपनी इस बुरी हैबिट्स पर ध्यान दो और इससे चेंज करो नंबर सिक्स अनहेलथी रिलेशनशिप में। बिना आजकल जीस तरह से लोगों के ट्रामा इन सेक्युरिटीज़ और अटैचमेंट इशूज़ इतने बढ़ चूके हैं। वहीं इन चीजों के साथ साथ टॉक्सिक फ्रेज़ और पार्टनर्स के साथ अटैच हो जाना भी बहुत कॉमन है। गलत पैरेंटिंग और बचपन में बुरे एनवायरनमेंट मैं बड़े होने की वजह से एक इंसान हमेशा दूसरे लोगों में अपनी खुशी ढूंढने लगता है और उनसे अप्रूवल सीख करने लगता है। ऐसे इनसिक्योर लोग एक टॉक्सिक रिलेशन शिप से जैसे तैसे निकल भी जाते है तो दूसरे पार्टनर के साथ रहने पर भी उन्हें यही लगता है कि ये रिलेशनशिप भी पहले वाले जैसा ही है। और या तो उनकी किस्मत खराब है या फिर दूसरे लोग। इसलिए अगर आपकी आदत भी यही है कि आप उन लोगों के साथ हैंग आउट करते हो जो आपके लिए अच्छे नहीं हैं, तो इस रीज़न को पकड़ो कि आप उनके साथ क्यों हो? ऐसा क्या मिलता है आपको इन लोगों से जो दूसरे लोगों से नहीं मिल पाता? क्या वो एक फैमिली वैराइटी फैक्टर है कि आपको ऐसा लगता है कि अगर आपने इस इंसान को छोड़ दिया तो आपको कोई दूसरा नहीं मिलेगा? या क्या आप इस रिलेशनशिप में बहुत कंफर्टेबल हो चूके हों और अब नए लोगों को ढूंढने के प्रोसेसर को फिर से नहीं दोहराना चाहते हैं? रीज़न चाहे कुछ भी निकल कर आए अगर आप उनके साथ खुश नहीं हो तो आपको कुछ समय के लिए अकेले रहकर अपने आप को स्टेबल और हील करना ही पड़ेगा और तब आप उसके बाद एक्चुअल में उन लोगों को अपनी तरफ अट्रैक्ट कर पाओगे, जो आपकी लाइफ को मुश्किल नहीं बल्कि आसान और जीने लायक बनाएंगे। लास्ट्ली हैबिट्स के बारे में हमेशा ये चीज़ याद रखो कि चाहे आपकी कोई भी अच्छी आदत हो या फिर बुरी, हर आदत एक ही तरह से बनती या फिर खत्म होती है। हमने अपने एपिसोड और हैबिट, सीक्वल सी और फ्यूचर वाले एपिसोड में इस फैक्ट को और डिटेल में डिस्कस कर रहा है कि कैसे चाहे आपको ड्रिंक करने या स्मोक करने ***** देखने करने की आदत है। नहीं कर पा रहे तो हर ऐसी बुरी हैबिट्स को तोड़ने का सिर्फ एक ही तरीका होता है और वो है इन से फोकस हटाकर कहीं बेहतर और हेल्थी हैबिट्स को डेवलप करना। अपने दिमाग में आप जीस भी थॉट को ज्यादा टेंशन देते हो, वो ग्रो करने लगता है और जिससे अटेन्शन हटा लेते हो वो छोटा और कमजोर होने लगता है। इसी प्रैक्टिकल इन साइट को अपनी लाइफ में अप्लाई करो और अपनी लाइफ को सही ट्रैक पर लाओ क्योंकि इस समय दुनिया में आपकी अच्छाई की बहुत जरूरत है।","हमारी आदतें या तो हमें बना सकती हैं या बिगाड़ सकती हैं। कहा जाता है कि हम आदतों के प्राणी हैं, सिर्फ इसलिए कि कोई भी कार्य जिसे हम पर्याप्त बार दोहराते हैं, हमारे मानस में तार-तार हो जाता है और हमारा दूसरा स्वभाव बन जाता है। इसलिए हम सफलता प्राप्त करने, पैसा कमाने, अधिक आत्मविश्वासी होने या एक बेहतर इंसान बनने के लिए खुद को प्रशिक्षित कर सकते हैं। जैसे अच्छी आदतें हमें खुद को बेहतर बनाने में मदद कर सकती हैं, वैसे ही बुरी आदतें हमारे जीवन को बर्बाद करने के लिए काफी हैं। इसलिए इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम 6 आधुनिक आदतों के बारे में बात करेंगे जो आपकी सफलता और विकास के लिए हानिकारक हैं।" "हम हमेशा लोगों से सुनते हैं और कई सेल्फ हेल्प बुक्स में भी ये चीज़ पढ़ते हैं कि हमें हमेशा प्रेज़ेंट मूवमेंट में रहना चाहिए, बजाय पास्ट या फ्यूचर के बारे में सोचते रहने के। हम अपना इतना सारा टाइम इसी चीज़ को सोचने में वेस्ट कर देते हैं कि पहले क्या हुआ था या फिर आगे क्या होगा? लेकिन हमारी लाइफ में जहाँ इतनी सारी डिस्ट्रैक्शन है और हमारा अटेन्शन स्पैन इतना कम हो चुका है। मूवमेंट में प्रेज़ेंट रहना एक बहुत मुश्किल टास्क बन चुका है। हमारी भागदौड़ वाली जिंदगी में हर समय हमें किसी ना किसी काम को पूरा करना होता है या फिर हम इतने फ्रस्ट्रेटेड होते हैं कि हमें बस कुछ देर खाली बैठकर टाइम वेस्ट करना होता है ताकि हम बेटर फील कर पाए। इसी वजह से आज हम इस साइकल को ब्रेक करने के लिए सबसे सिंपल मेडिटेटिव टेक्नीक्स के बारे में बात करेंगे, जो आपका ध्यान प्रेसेंट मूवमेंट मिला कर आपके माइंड को स्टेबल और बनाने में मदद करेंगी। नंबर वन लिसन टू अदर्स यानी अपने घर में फ्रेंड्स के साथ या इवन फ़ोन पर भी। जब भी आप किसी से बात करते हों तब उनके एक एक वर्ड को ढंग से सुनो। ऐसा करने से आपकी अटेन्शन, जो आपकी खुद की तरफ थी या इधर उधर के रैन्डम थॉट्स में उलझी हुई थी, वह प्रेसेंट मोमेंट में आ जाती है और आप सामने वाले पर ध्यान देने की वजह से अपनी कन्वर्सेशन को काफी दीप और इंट्रेस्टिंग बना पाते हो। आज कल हमारी सोसाइटी में ऐसी कन्वर्सेशन्स की बहुत कमी है। यहाँ तक कि जब लोग आपस में दीप टॉपिक्स को डिस्कस भी कर रहे होते हैं तब भी वो एक दूसरे के एक एक शब्द को सुनने के बजाए अपनी बात पहले रखना चाहते हैं ताकि वो ज्यादा इंटेलीजेंट लगे और उनकी बात सही प्रूफ हो जाए। लेकिन अगर आप एक ऐडवेंचर चाहते हो तो उस केस में बस दूसरों पर ध्यान दो। इससे आपको मेंटल पीस भी मिलेगा और आपको ह्यूमन बिहेव्यर के बारे में भी बहुत कुछ पता चलेगा। नंबर टू साइलेंस अपनी विडिओ द पावर ऑफ साइलेंस में हमने ये चीज़ डिस्कस भी करी थी कि साइलेंस कभी भी ट्रूली एम टी नहीं होता। अगर आप कुछ देर चुप होकर बैठो और बस ऑब्जर्व करो तब आप ट्रैफिक चिड़ियों हवा के झोंकों या अपने आसपास काम करते हैं या कहीं जाते हुए लोगों की आवाज सुनोगे इवन रात के समय भी जब बाहर कोई आवाज नहीं होती तब भी उस साइलेंस में एक आवाज होती है जीसको सिर्फ वही लोग समझ सकते हैं जो इस तरह से शांत होकर बैठते हैं। ये प्रैक्टिस आप किसी को साफ बनाएगी और आपको यह संदेह गी की सेटल चीजों को इक्स्पिरीयन्स करने के लिए अपने आपको शांत और स्थिर करना पड़ता है। नंबर थ्री फोकस ऑन द ब्रेथ ये मेडिटेट करने और प्रेज़ेंट मूवमेंट में आने के सबसे कॉमन मेथड्स में से एक है। इसमें आप सिम्पली आंखें बंद करके लेट सकते हो जब लोटस पोर्शन में भी बैठ सकते हो, बेहतर यही होगा कि आप प्रॉपर्ली बैठकर अपनी बैकों स्ट्रेट रखो और अपने हाथों को अपनी था इस पर, क्योंकि इस तरह से आप ज्यादा अटेंटिव रहोगे। आपने इस पोज़ीशन में अपनी बर्थ को फॉलो करना है। हर बड़ी सांस के साथ यह नोटिस करो कि किस तरह से यह हवा बाहरी एनवायरनमेंट से आपके अंदर आती है। उससे अपने लंग्स को भरते हुए फील करो और अपनी ब्रीदिंग को डीप रखो, जिसमें आपकी आपकी चेस्ट को नहीं बल्कि आपके पेट को बाहर लाए। सिमिलर चीज़ आप अपने थॉट्स के साथ भी कर सकते हो। जीस तरह से आप अपनी सांसों को ऑब्जर्व कर रहे थे, वैसे ही अपने दिमाग में आते और जाते हुए थॉट्स को ऑब्जर्व करो। नंबर फ़ोर इनर ऑब्जर्वेशन यानी थॉट्स और बीजिंग के अलावा आप अपनी बॉडी में होती हलचल को ऑब्जर्व कर सकते हो क्योंकि मेडिटेटिव प्रोसेसेस का काम होता है अपने कॉन्शस और उसमें मौजूद ईगो से फोकस हटाकर अपने अनकॉन्शस माइंड को एक्सेस करना और डाइरेक्टली वहाँ से अपने पैटर्न को बदलना और हमारी बॉडी के इंटरनल प्रोसेसेस भी ऑटोमैटिक और अनकॉन्शियस ली चलते हैं। यानी उन्हें कंट्रोल करने के लिए हमें कॉन्शस ली सोचना नहीं पड़ता। ऐसे में जब भी आप अपनी फिजिकल बॉडी को ऑब्जर्व करते हो तब आप उसके साथ ही अपने अनकॉन्शस माइंड को भी ऑब्ज़रव कर रहे होते हो। आप ऑब्ज़रव कर सकते हो कि कैसे आपकी मसल्स मूव करती है। जो आपने खाना खाया वो अंदर जाकर कैसा फील हो रहा है? अगर आपकी बॉडी में कहीं दर्द है तो उस पर बॉडी कैसा रिएक्ट कर रही है? और इसी तरह से अपने अंदर मौजूद लाइफ को होते हुए ऑब्जर्व करो। नंबर फाइव मंत्र आस दुनिया के बहुत से कल्चर्स में लैंग्वेज वर्ड्स और उन पर बेस्ट साउंड को बहुत अहमियत दी जाती है और मूवमेंट मैं प्रेजेन्ट रहने के लिए वर्ड्स हमारी मदद करते हैं। हमारी अटेन्शन को फोकस रखकर क्योंकि जब भी आप कोई मंत्र पढ़ते हो जैसे सबसे पॉपुलर और सबसे पोर्ट मंत्र ओम, तब आप अपने दिमाग को एक टैंकर दे रहे होते हो जिससे उसे कुछ समय के लिए पकड़ कर रखना होता है और इस तरह से रोज़ मेडिटेटिव टेक्नीक्स को प्रैक्टिस करने से आपकी अटेन्शन प्रेज़ेंट में रहेगीं। वन इन टेक्नीक्स को खत्म करने के बाद भी।","हम हमेशा स्वयं सहायता गुरुओं को सुनते हैं या किताबों में पढ़ते हैं कि आपको अतीत के बारे में सोचने या भविष्य के बारे में चिंता करने के बजाय हमेशा वर्तमान में रहना चाहिए। लेकिन हमारे आधुनिक जीवन में कई विकर्षणों के कारण उपस्थित रहना वास्तव में कठिन है। इसीलिए इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम 5 आसान ध्यान तकनीकों के बारे में बात करेंगे जो आपको अधिक शांतिपूर्ण, चौकस, केंद्रित और पल में उपस्थित होने में मदद करेंगी।" "यह एपिसोड उन लोगों के लिए है जो अभी भी यंग है और वो ये ढूंढने की कोशिश कर रहे हैं कि उनकी लाइफ का पर्पस क्या है? उन्हें कौन सी आदतों, किताबों या लोगों को फॉलो करना चाहिए, उन्हें ये नहीं पता की वो ज्यादा प्रोडक्टिव बन कर अपने टाइम को इफेक्टिव ली। कैसे यूज़ कर सकते हैं और मोस्ट इम्पोर्टेन्ट ली ये यंग लोग कुछ ऐसी लाइफ एडवाइस के लिए डेस्परेट है जो इन्हें एक पैरेंट या ग्रांड पैरेंट से मिलती है। क्योंकि लेटस बी ऑनेस्ट हमारे पैरंट्स ने चाहिए हमें पालने में अपना 100% ही क्यों ना दिया हो? बट जस्ट बिकॉज़ उनसे पहले वाली जेनरेशन यानी हमारे ग्रैंड पैरेन्ट्स ने दुनिया की सबसे खौफनाक घटनाओं को एक्सपिरियंस करा है तो उनका यह ड्रामा उनकी पैरेंटिंग के थ्रू हमारे पैरेन्ट्स में भी है जिसकी वजह से आजकल के बहुत से बच्चे बैड पैरेंटिंग का शिकार बनते हैं और वो भटके हुए हैं। इसलिए अगर आपको लगता है कि आप भी ऐसे यंग लोगों में से एक हो तो इन 10 ऐडवाइजर्स को ढंग से सुनो और अपनी लाइफ को ट्रैक पर लाओ। नंबर 10 एंटर इनटू उन फेमिलियर एनवायरनमेंट यानी किसी ऐसी जगह पर जाओ जिसे आप समझते नहीं हो। येयन फेमिलियर चीज़ ऐक्चुअल फिजिकल डेस्टिनेशन भी हो सकती है। जैसे एक ऐसी सिटी जिसका कल्चर आपके लिए एकदम नया हो या फिर कोई ऐसी ऐक्टिविटी जो आपने पहले कभी नहीं करी जैसे किसी ऐसे सब्जेक्ट को एक्स्प्लोर करना जिससे आप हमेशा से समझना चाहते थे क्योंकि साइकोलॉजी बताती हैं कि जब हमारा किसी ऐसी चीज़ से सामना होता है जिससे हम वाकिफ नहीं है, तब वो हमारी प्रेज़ेंट नॉलेज को चैलेंज करती है और हम एग्रो करने के लिए फोर्स करती है ताकि हम अपनी रिऐलिटी की अन्डरस्टैन्डिंग को इक्स्पैन्ड कर सके। ये एडवाइस आपकी कन्टिन्यूअस ग्रोथ के लिए बहुत इफेक्टिव हो सकती है क्योंकि दुनिया में ऐसी बहुत सी चीजें हैं जिन्हें आप अभी नहीं समझते हो और अगर आप अपनी सोच हिम्मत और ज्ञान का दायरा बढ़ाना चाहते हो तो अपने आप को अननोन जगहों और एक्सपिरियंस में धकेल दो और अपनी सिचुएशन के अकॉर्डिंग अडैप्ट करो। नंबर नाइन लुक वेरी लिस्ट वॉन्ट टू ये पॉइंट वन फेमिलियर एनवायरनमेंट को फेस करने के भी दो कदम आगे जाता है क्योंकि जहाँ नई चीजें आपको नई नॉलेज दे सकती है, वहीं वह चीजें जिनसे आप डरते हो वो आपको वो नॉलेज दे सकती हैं जिसकी आपको सबसे ज्यादा जरूरत है। आपने बहुत से लोगों को यह बोलते हुए सुना भी होगा कि फेस से और फिरंज़ उन चीजों का मुकाबला करो जिनसे तुम सबसे ज्यादा डरते हो। मैं क्यों? क्यों मैं अपने आप को अन्कम्फरटेबल बनाओ और अपनी मर्जी से मुश्किलों को अपनी तरफ बुलाऊँ वेल साइकोलॉजी बताती हैं कि जब हम किसी ऐसी चीज़ को अपनी मर्जी से फेस करते हैं जो हमें डराती है या फिर हमारे अंदर डिस ऑगस्ट पैदा करती है तब उस कन्फ्रंटेशन से हमें वो इनसाइट्स मिलती है जो हमारी डेवलपमेंट के लिए इतनी ज्यादा जरूरी होती है कि उनके बिना हम अपनी पोटेंशिअल को अनलॉक कर ही नहीं सकते। एल कमी में एक कहावत है। जिसकी हिंदी ट्रांसलेशन है की वो गंदगी में मिलेगा। यानी हम सब के अंदर ही कई ऐसे सड़ते हुए आइडियास पुराने डर भूली हुई दर्दनाक मेमोरीज़ और अपनी नाकामियों की शर्म है जो हमें कभी भी आगे नहीं बढ़ने देंगी। जब तक हम उन्हें अवॉर्ड करते रहेंगे क्योंकि आप मानो या ना मानो आपकी अनकॉन्शस माइंड में दबी हुई ये रिजेक्टेड चीजें आपको हर टाइम कंट्रोल करती रहती है और इस कंट्रोल से बाहर निकलने का एक ही रास्ता होता है वो है इस गंदगी में हाथ डालना और इसमें छिपे हुए सोने को बाहर निकालना। नंबर एट ऑब्जर्व नैचरल फिनॉमिना क्योंकि नेचर को समझने का मतलब है अपने आप को समझना। आज कल के ज्यादातर लोग जो अपने बंद कमरों में आर्टिफिशियल लाइट में अपना पूरा समय बिताते हैं, वो सिर्फ नेचर से ही नहीं बल्कि अपने आप से भी डिस्कनेक्टेड है। डिब्बों के जैसी बिल्डिंग्स में रहने से हमारे अंदर की वो सारी मर जाती हैं जो नेचर में जाने से अपने आप बाहर आने लगती है। हर पेड़, पत्ता, कीड़ा, फूल और जानवर हमारे दिमाग को नए क्वेश्चन्स और आइडिया से भर देता है, क्योंकि हमारी बॉडी नैचरल इन्वाइरनमेंट में ही ऑप्टिमल अनशन करने के लिए बनी हैं। जहाँ हमें भरपूर सनलाइट भी मिलती है और इसका इलेक्ट्रिकल चार्ज हमारी बॉडी को भी हेल्दी रखता है और नेचर की ब्यूटी हमें यूनिवर्स और उसमें अपनी जगह के बारे में समझाती है। नेचर में एक सिंगल वॉक ही हमारे दिमाग को आइडियास से भर देती है। इसलिए अगर आप अपनी उम्र के लोगों से आगे निकलना चाहते हो और लाइफ में कुछ करना चाहते हो तो अपने आप को नैचर के फ्लो के साथ अलाइन करो। नंबर सेव अनलर्न टु रीड राइट एंड स्पीक यह एक और ऐसी चीज़ है जिसकी इम्पोर्टेन्स आजकल के लोग भूलते जा रहे हैं और इस वजह से ज्यादातर लोग क्रिटिकल थिंकर्स होने के बजाय मीडिया होकर फॉलोअर्स हैं, जो दूसरों के थॉट्स पर रिलीज करते हैं और ये एक्सपेक्ट करते हैं कि वो दूसरे लोग हैं जिन्हें दुनिया को समझने की जरूरत है और वो उनकी रिस्पॉन्सिबिलिटी है की वो इनको सही रास्ता दिखायें। पर रिऐलिटी में जो लोग शीप मेंटैलिटी यानी भेड़चाल से बाहर निकलकर खुद के लिए नहीं सोच पाते, उनका हमेशा फायदा उठाया जाता है। यही रीज़न है की क्यों? अगर आप मुश्किल चीजों को भी ईजली पड़ समझ लिख और बोल सकते हो तो कोई भी आपका फायदा नहीं उठा सकता। इसलिए हर रोज़ कुछ रीड करो। किसी मुश्किल चीज़ के बारे में जैसे अपनी खुद की लाइफ के बारे में, ताकि आप सेल्फ अवेयरनेस बढ़ाने के साथ साथ अपने थॉट्स को ऑर्गनाइज करने की भी प्रैक्टिस कर पाओ और दूसरे लोगों से बात करो। इस मकसद के साथ की आप सच्चाई तक पहुँचना चाहते हो ताकि आप अपने थॉट्स को फ्लुएंटली कम्यूनिकेट कर पाओ। और जब आपके घर ये सोसाइटी में कोई प्रॉब्लम आती है, उसे क्लियरली एड्रेस कर पाओ। नंबर सिक्स स्पेंड सम टाइम इन सॉलिट्यूड ये अपनी लाइफ को फ़िगर आउट करने का बेस्ट तरीका है। लेकिन आज कल के ज्यादातर जवान लोग कुछ देर भी अकेले बैठ ही नहीं सकते क्योंकि वो अपने खुद के थॉट से डरते हैं। अकेले बैठने पर उनके दिमाग में नेगेटिव थॉट्स आते हैं। और उनसे फोकस हटाने के लिए वो सोशल मीडिया म्यूसिक या न्यूस को कॉस्टयूम करने लग जाते हैं। ऐसे लोग ना ही कभी सेल्फ वेर बन पाते हैं और ना ही एक हेल्दी रिलेशनशिप रख पाते हैं, क्योंकि जब तक आप अकेले रहना नहीं सीख लेते हो तब तक आप दूसरों पर रिलाय करते हो की वो आपको होल और हैप्पी फील कराएं। जब तक आप दूसरे लोगों के साथ होते हो तब आप अपने आप को एक बेटा, माँ, दोस्त, डॉक्टर या स्टूडेंट समझते हो, पर जब आप अकेले होते हो तब आप कौन होते हो? इस क्वेश्चन का ऐन्सर पाने के लिए आपको हर तरह की सोशल सिचुएशन से दूर रहना होता है। और यही रीज़न है की क्यों सॉलिट्यूड एक यंग इनडिविजुअल की लाइफ को सही दिशा में मोड़ सकता है? नंबर फाइव वर्क इस हार्ड एस यू कैन ऑन एट लिस्ट वन थिंग क्योंकि जब हम यंग होते हैं और हमारे पास बहुत सी ऑपर्च्युनिटीज और चौसा होती है और हम बार बार एक काम से दूसरे काम पर जम करते रहते हैं, तब हम किसी भी एक चीज़ में डीप्ली इन्वेस्ट करने में फेल हो जाते हैं। हाउएवर ये ऐसा टाइम है जब आप अपनी लाइफ में सबसे ज्यादा रिस्क ले सकते हो और अपने पैशन्स को टेस्ट करके देख सकते हो और ऐसे में सिर्फ ये एक्सपिरियंस भी बहुत वैल्युएबल है कि आपने अपना सब दांव पर लगा दिया। और अपनी पूरी पोटेंशिअल बाहर निकालने की कोशिश करी सिर्फ एक चीज़ को परसयु करने में और फिर अगर आप फेल भी हो जाते हो तब भी आपको बहुत कुछ सीखने को मिलेगा और जस्ट बिकॉज़ आप अभी यंग हो। आप इस फेल्यर को अफोर्ड भी कर सकते हो क्योंकि आपके पास टाइम है नंबर फोर्ट एक रिस्पॉन्सिबिलिटी ऐंड बिकम इन्डिपेन्डेन्ट। इस अर्ली एस पॉसिबल एक एडल्ट बनने का एक बहुत बड़ा पार्ट होता है अपने पैरंट्स के घर से बाहर निकलना और किसी चीज़ के लिए रिस्पॉन्सिबल बनना। क्योंकि जब हम अपने पैरेन्ट्स की प्रोटेक्शन और उनकी निगरानी में होते हैं तब हम कम्फर्टेबल तो होते हैं। पर वहाँ पर कोई ग्रोथ नहीं होती। इस टाइम पर आपको अपने पैरेन्ट्स की हर बात सुननी पड़ती है क्योंकि आपको यह लगता है कि अगर कुछ भी होता है तो आपके पैरेंट सांप को संभाल लेंगे और इस तरह से वो आपको दुनिया की हार्श रिऐलिटी से दूर रखते हैं। लेकिन बड़े होते होते एक पॉइंट पर हम ये रियललाइज करते हैं कि अब हमारे पैरंट्स के पास हमारे क्वेश्चन्स के आन्सर्स नहीं है और ना ही वो हमसे बेहतर जानते हैं कि हमें क्या करना चाहिए और यह आपकी पर्सनल ग्रोथ के लिए एक टर्निंग पॉइंट होता है। पर प्रॉब्लम ये है कि कई लोग इस पॉइंट तक पहुंचने के बाद भी किसी तरह की रिस्पॉन्सिबिलिटी उठाने और अपने पैरेन्ट्स की छाया से दूर होने से डरते हैं। इसमें एक हद तक पैरेन्ट्स का भी फॉल्ट है जो अपने बच्चों को रिस्पॉन्सिबिलिटी लेने के लिए एनकरेज नहीं करते और ऐसा रिज़ल्ट ये बच्चे बड़े होकर 30 या 40 साल के होने के बाद भी एक बच्चे की तरह ही ऐक्ट करते हैं। इसलिए अपना वेट खुद उठाना शुरू करो। ग्रो अप नंबर थ्री में एक पीस विद योर फैमिली यानी इन्डिपेन्डेन्ट होने का यह मतलब नहीं है कि आप अपनी फैमिली से लड़ झगड़कर उन्हें हमेशा के लिए बाई बाई बोल दो, बल्कि आपने आत्मनिर्भर बनना है और उसके साथ साथ अपनी फैमिली की वैल्यू स् और इन साइट्स को भी अपनी लाइफ में इन्कॉर्पोरेट करना है। इसका एक बड़ा एग्जाम्पल हमें ईस्टर्न और वेस्टर्न कल्चर की फैमिली वैल्यूज़ में मिलता है। क्योंकि पॉलिटिक्स की वजह से वेस्ट में एक नुक्लेअर फैमिली के आइडिया को बहुत पिछड़ी हुई चीज़ की तरह देखा जा रहा है, जिसकी वजह से वहाँ डिवोर्स रेट्स और अनहैप्पी कपल्स की तादाद ऑल टाइम हाई पर है और अगर हम भी वेस्ट को फॉलो करने लगे तो हमारा फैमिली ऑयल बॉन्ड भी कच्चा हो जाएगा और कई हद तक इंडिया में ये ऑलरेडी हो भी रहा है क्योंकि हम वेस्ट को कॉपी करते है। अभी तक जीस चीज़ ने साउथ एशियन कन्ट्रीज को वेस्ट के कंपैरिजन में ज्यादा स्टेबल रखा है। वो हमारी फैमिली वैल्यूज़ ही है क्योंकि हम अपनी फैमिली को बड़े होने के बाद और इवन घर से निकलने के बाद भी अकेला नहीं छोड़ देते हैं। इसलिए अगर आपकी फैमिली में भी रिश्ते कच्चे हो रहे हैं तो उन्हें ठीक करने की कोशिश करो। अपनी फैमिली से बात करो, अपने के बारे में जानने की कोशिश करो अपने पैरेन्ट्स से अपने कल्चर के बारे में सिखों और अपने फैमिली में चलते आ रहे ट्रॉमा सको ढूंढो और देखो कि आप उनसे क्या सीख सकते हो। नंबर टू अंडरस्टैंड योर रोल इनके सोसाइटी अपनी पोटेंशिअल को पूरी तरह से बाहर लाने का और अपने टैलेंट को अच्छे से यूटिलाइज करने का सबसे बढ़िया तरीका है। ये जानना की आपका सोसाइटी में रोल क्या है? और आपका इस प्लैनेट पर जन्म लेने के पीछे का पर्पस क्या है? अगर आप एक मेल हो तो उसका क्या मतलब है? मेल्स क्या करते है, मेल्स की क्या स्ट्रेंथ और वीकनेस होती है? अगर आप फीमेल हो तो उसका क्या मतलब है और उसकी क्या स्ट्रेंथ और वीकनेस हैं? मोर इम्पोर्टेन्ट ली एक इंसान का सोसाइटी और दुनिया के इतने बड़े स्ट्रक्चर में क्या रोल है? कौन सी चीजें एक इंसान की लाइफ में मीनिंग ऐड करती आई है ये क्वेश्चन्स ऐक्चुअल मैं आपको यह समझाते हैं कि आपको एग्ज़ैक्ट्ली कौन से काम करने चाहिए जो आपकी लाइफ को जीने लायक बनाएं। आजकल के बहुत से यंग लोग इतने कन्फ्यूज़्ड है क्योंकि उन्हें यही नहीं पता की वो पैदा होने के टाइम से ही एक रोल अदा कर रहे हैं और ये ऑब्वियस है कि जीस इंसान को अपना रोल नहीं पता होगा, वो बैडली ऐक्ट करेगा और लॉस्ट महसूस करेगा। नंबर वन, मेक हेल्थ ऐंड फिटनेस योर टॉप प्रायोरिटी जहाँ आजकल लोगों को अनफिट, अनहेलथी या फिर अन्य अट्रैक्टिव बोलना सच होने के बावजूद पॉलिटिकली इनकरेक्ट माना जाता है, वहाँ यूथ के लिए ये मैसेज बहुत जरूरी है कि आपकी फिजिकल और मेंटल हेल्थ मैटर करती है और अनहेलथी होना ना तो कूल है और ना ही ये सेलिब्रेट करने वाली कोई चीज़ है। नहीं अट्रैक्टिवनेस और ब्यूटी चाहे वो इन्नर ब्यूटी हो या फिर आउट और ब्यूटी दोनों ही आपके हाथ में है। आप डिसाइड कर सकते हो कि क्या आप एक्सरसाइज करना चाहते हो, हेल्थी खाना चाहते हो और अपने दिमाग में पॉज़िटिव थॉट्स डालना चाहते हो या फिर नहीं। इसलिए अपने पर्सनल डेवलपमेंट के रूटीन में अपनी हेल्थ और फिटनेस को सबसे पहली प्रायोरिटी दो और देखो कि सिर्फ हेल्थी होने से ही आपकी लाइफ के बाकी एरियाज में कितना ज्यादा बदलाव आता है।","यह एपिसोड उन लोगों के लिए है जो अभी भी युवा हैं और वे अपने उद्देश्य को खोजने की कोशिश कर रहे हैं, उन्हें कौन सी आदतें अपनानी चाहिए, उन्हें किस प्रकार के गुरुओं का पालन करना चाहिए और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उन्हें कुछ मार्गदर्शन और सलाह की सख्त जरूरत है जो एक बुद्धिमान माता-पिता या दादा-दादी उन्हें दे देंगे। इसलिए, मैंने 10 ऐसी चीजें सूचीबद्ध की हैं जो आपके रास्ते को रोशन करेंगी क्योंकि आप खुद का सबसे अच्छा संस्करण बनने की यात्रा शुरू करते हैं" "क्या आपने कभी ये सोचा है कि क्यों कई लोग अपनी जिंदगी में खुशी और मीनिंग ढूंढ पाते हैं और कहीं नहीं ढूंढ पाते हैं? वो कौनसी चीज़े होती है जो हमें हैप्पी और फुलफिल्ड फील कराती है? लोगों ने इन क्वेश्चन्स का आन्सर, पैसा खाना भगवान और ना जाने कौन कौन सी जगहों में ढूंढा है और तभी हमारी जिंदगी काफी आसान बन सकती है। अगर हमें यह पता चल जाए कि दूसरे लोगों के लिए खुश रहने के लिए कौन सा तरीका काम करा और कौन सा नहीं अमेरिकन सोशल साइकोलॉजिस्ट जोनाथन हाइट की द हैपीनेस हाइपोथीसिस एक ऐसी साइकोलॉजी बुक है, जो हमारे पास्ट के सबसे महान थिंकर्स के आइडियाज़ को साइनस की मदद से टेस्ट करती हैं और उनकी विज़न को आसानी से समझ आने वाले 10 प्रैक्टिकल आइडियाज़ में डिवाइड करके हमें ये बताती है कि हैपिनेस कैसे हासिल कर ली जाती है। ये बुक उन लोगों के लिए है जो ये जानना चाहते हैं कि एक सुखी जिंदगी कैसे जी जाती है और हमें अपनी लाइफ किन प्रिन्सिपल्स पर जीनी चाहिए। चैपटर वन दैट डिवाइड सेल्फ सबसे पहले चैपटर में जोनाथन ने बताया है। की हमारे माइंड कई अलग पार्ट्स में डिवाइड होता है और सबसे जरूरी डिविज़न होता है हमारे दिमाग में चलने वाले कॉन्शस वर्सिस ऑटोमैटिक प्रोसेसेस का, जो कई बार एक दूसरे को अपोज करते है। जैसे जब भी आप कोई गोल सेट करते हो तब आप शुरू में बहुत मोटिवेटेड होते हो पर धीरे धीरे आप उसे भूल ही जाते हो। ये इसलिए क्योंकि आपका दिमाग एक सिंगल यूनिट नहीं है। उसमें मौजूद हर पार्ट आपको एक अलग डिरेक्शन में खींच रहा होता है। बुक में ये एग्जाम्पल दिया गया है कि जीस तरह से एक रैशनल इंसान एक जंगली हाथी को कंट्रोल करने की कोशिश कर रहा होता। वैसे ही हमारा कॉन्शस माइंड कन्टिन्यूसली अनकॉन्शस माइंड की मोटिवेशन के साथ निगोशिएट कर रहा होता है ताकि उसे कुछ पॉज़िटिव आउटकम मिल जाए और तभी सेल्फ इंप्रूवमेंट का गोल है। अपने अंदर मौजूद किसी जंगली हाथी यानी इमोशन्स गट, फीलिंग या अपने बेसिक मोटिवेशन को जबरदस्ती बदलने के बजाय उनके साथ मिलकर काम करना। जैसे अगर आपके दोस्त ने आपसे ढंग से बात नहीं करी और आप इस वजह से काफी दुखी महसूस कर रहे हो। तो उस समय पर आपने अपने रैशनल माइंड की मदद लेनी है अपने ऑटोमैटिक रिएक्शन्स को कंट्रोल करने में ताकि आपके माइंड में मौजूद वो जंगली हाथी कुछ गलत कदम न ले ले। ये एडवाइस काफी जरूरी है अपना सेल्फ कंट्रोल बढ़ाने के लिए और अपनी ओवरथिंकिंग कम करने के लिए। चैपटर टू चेंजिंग योर माइन्ड ये चैपटर बताता है की इवन दो हमारी हैपिनेस, आउटर सर्कल, स्टेन्स और जीवन हमारे जीन्स की वजह से भी इन्फ्लुयेन्स हो सकती है। हम अपनी हैपिनेस को बढ़ा सकते हैं। अपनी थिंकिंग और अपने ब्रेन की केमिस्ट्री को चेंज कर के ये पॉसिबल हो सकता है। तीन तरीकों से सबसे पहला तरीका है मेडिटेशन, जो हमारे पैसे में जम या नेगेटिव थिंकिंग को ऑप्टिमिजम में बदल सकता है। दूसरा तरीका है कॉग्निटिव थेरपी, जो फिलॉसफी के प्रिंसिपल्स पर बेस्ट है और इसमें आप एक बिहेवियरल थेरपिस्ट से बात करते हो जो आपकी थिंकिंग और बिहेव्यर को चेंज करने में मदद करता है। इस टाइप की थेरपी लोगों की ऐंगज़ाइइटी कम करके उन्हें ज्यादा हैप्पी बनाने में सबसे ज्यादा यूज़फुल होती है और तीसरा तरीका है एक सेरेटोनिन बढ़ाने वाली मेडिकेशन लेना। जैसे की प्रोजेक्ट अपनी हैपिनेस को हेल्थी लेवल्स पर लाने का ये तरीका उन लोगों के लिए बेस्ट होता है जो बहुत ज्यादा स्ट्रेस लेते हैं और इस स्ट्रेस की वजह से उनके दिमाग में फिजिकल चेंजेज आ चूके हैं। चैपटर थ्री रेसिप्रोसिटी विदा वेन्जेन्स ज्यादातर जानवरों की लाइफ काफी सोशलाइजेशन से भरी होती है, पर बाकी स्पीशीज़ के बीच हम इंसान अल्ट्रा सोशल कहलाते हैं। यानी हम छोटे छोटे ग्रुप्स में भी रह सकते हैं और बड़ी बड़ी सोसाइटीज़ में भी यही रीज़न है की क्यों? जब हम घर से बाहर निकलते हैं तब पहले से ही सड़कें बनी हुई है। स्ट्रीट में लाइट्स है और अगर आप एक अनजान इंसान से कोई छोटी मोटी मदद भी मांग लेते हो तो चान्सेस है की वो आपको मना नहीं करेगा। यानी हम इंसानों के बीच यह अग्रीमेंट हुआ पड़ा है कि हमें एक दूसरे की मदद करनी है और हम सब से अलग होकर नहीं रह सकते हैं। एवल्यूशन की नजर में ये बिहेव्यर सेल्फिश जीन के कॉन्सेप्ट से समझाया जाता है। यानी अगर आपने एवल्यूशन की गेम में जीतना है तो आपने कुछ भी करके अपने जीन्स अगली जेनरेशन में पहुंचाने है। आपके बच्चे और आपके भाई बहन आप के 750% जीन्स को शेयर करते है आप का भांजा भांजी आपके 725% जीन्स शेर करते हैं और आपके कज़न्स आपके 712.5% जीन शेयर करते हैं और एवल्यूशन की नजर में आप जितना जोखिम अपने चार कज़न्स की जिंदगी बचाने में लगाओगे, उतना ही जोखिम आपको अपने एक बच्चे को बचाने में लगाना चाहिए। पर जब हम अननोन लोगो को भी अपने बच्चों या भाई बहन जैसा ट्रीट करने लगते हैं तो हमारे एक दूसरे को मदद देने के चान्सेस बढ़ जाते हैं। लेकिन कई लोग हमारी इस लेन देन करने की का फायदा उठाने की कोशिश करते हैं और बदले में हमें दुख देकर चले जाते हैं। इसी वजह से हम बोलते है जैसे को तैसा। इसका मतलब चाहे आपको कोई प्यार दे या फिर धोखा की समझ, आपको इमोशनली स्टेबल और फुलफिल्ड रहने में मदद कर सकती है। चैपटर फ़ोर द फॉल्ट ऑफ अदर्स अल्ट्रा सोशल होने की एक और साइड है दूसरों को मैनिपुलेट करना। बिना खुद ये जाने कि आप कुछ गलत कर रहे हो ज्यादा तर हम दूसरों के बारे में यह सोचते हैं। की भाई इसको अपनी गलती और बेवकूफ़ी क्यों नहीं समझ आ रही है और वो सेम चीज़ आपके बारे में सोच रहे होते है पर कहीं ना कहीं हमारे अंदर अपनी गलतियों को इग्नोर करने की एक बायस होती है। अगर हमें सीधा सीधा हमारी गलती बता दी जाती है तो हम उसे एक्सेप्ट नहीं कर पाते हैं और ये बायरस हमारे रिलेशनशिप को खराब करता है। इसी वजह से हम अपने कॉग्निटिव 22 को कमजोर बना सकते हैं। कॉन्शस ली अपनी गलतियों को ढूंढने में एफर्ट लगा के और अपनी उस गलती या कमी को अडमिट कर के चैपटर फाइव द परसूट ऑफ हैपिनेस यह एक कॉमन नॉलेज है कि हम खुशी मटिरीअलिस्टिक चीजों में नहीं ढूंढ सकते हैं और खुशी बस हमारे अंदर से ही आती है। पर जोनाथन का बोलना है कि एक सुखी लाइफ में कई एक्सटर्नल चीजें भी जरूरी होती है। जैसे हम पैसों को कैसे खर्च करते हैं और किस तरह के लोगों के साथ रहते हैं। यही रीज़न है कि क्यों जिन लोगों के सोशल कनेक्शन्स ज्यादा नहीं होते या फिर उनके रिलेशन्स की क्वालिटी बेकार होती है, वो हमेशा दुखी और परेशान रहते हैं। इसके साथ ही आपकी हॉब्बीज़ और आपके गोल्स भी आपकी लाइफ सैटिस्फैक्शन को काफी इन्फ्लुयेन्स करते है। स्पेसिफिकल्ली जोनाथन ने बताया है कि पैसा या स्टेटस के पीछे मत भागो बल्कि अपने काम में एक्सिलेन्स हासिल करने की कोशिश करो और ऐसा काम करो जिसको करते करते आप फ्लो स्टेट में चले जाते हो। ये वो स्टेट है जो एक चैलेंजिंग पर मैनेजेबल काम को करते हुए आती है। चैपटर सिक्स बचपन से ही दूसरे लोगों से अटैचमेंट्स हमें सेक्युरिटी प्रोवाइड करती आई है पर जॉनथन के हिसाब से हमें अपनी रोमैन्टिक लव की डीज़इर पैशनेट लव से नहीं बल्कि कम पैशनेट लव से पूरी करनी चाहिए। पैशनेट लव वो होता है जो रिलेशनशिप की शुरुआत में बहुत स्ट्रांग होता है पर टाइम के साथ साथ वो प्यार कम हो जाता है। दूसरी तरफ कंपैशनेट लव का मतलब है हर इंसान के लिए ही पॉज़िटिव फीलिंग्स रखना और उन्हें प्यार से ट्रीट करना। इस तरह का प्यार आपको अपने बारे में अच्छा महसूस कराता है, क्योंकि आप दूसरों को अच्छा फील करा रहे होते हो और अपने सोशल कनेक्शन्स को मजबूत बना रहे होते हो। चैपटर सेवन के यूज़ ऑफ एडवर्ड सिटी इस चैपटर में जोनाथन ने जर्मन फिलॉसफर फ्रेड्रिक नीचा को कोट करते हुए बोला है वॉट डज़न्ट किल मी मेक्स मी स्ट्रॉन्गर। पर ये हर इंसान के लिए सच नहीं है। क्योंकि कई लोगों को मुश्किलें पीटीएसडी यानी पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसॉर्डर देकर चली जाती है और तभी हमे ये सीखना जरूरी है कि हम मुश्किलों के वजन के नीचे दबने से कैसे बचे हैं और उसे अपनी ग्रोथ के लिए कैसे यूज़ करे। रिसर्च बताती है कि यह हमारी सेल्फ इमेज पर डिपेंड करता है। जैसे जब हमारा पार्टनर हमें रिजेक्ट कर देता है या फिर हमारा बिज़नेस फेल हो जाता है तब हम अपने आप को एग्ज़ैम इन करने लग जाते हैं कि क्या हमारे में कोई कमी है जिसकी वजह से हमें ये लॉस झेलना पड़ रहा है? ये स्पेशिलिटी ट्रू है यंग एडल्ट्स के लिए जो लाइफ में मीनिंग और अपनी आइडेंटिटी ढूंढ रहे होते हैं तो जब भी उनका कोई ब्रेकअप होता है या फिर वो फेल हो जाते हैं तब उन्हें अपने अंदर झांकने और अपनी पर्सनैलिटी को डेवलप करने का मौका मिल जाता है। चैपटर एट द फिल्ली सिटी ऑफ वर्च्यू इस चैपटर में जोनाथन ने बुद्ध की एडवाइस शेयर करी है, जिसमें उन्होंने बोला है कि अपना ध्यान अच्छे और नेक काम करने पर लगा हो। उन्हें बार बार दोहराओ और तब आपको खुशी मिले गी। एक नादान इंसान सिर्फ तब तक खुश रहता है जब उसके बुरे काम उसकी जिंदगी को बुरा नहीं बना देते हैं। पर एक अच्छा इंसान सिर्फ तब तक दुखी रहता है जब तक उसकी अच्छा ई बाहर नहीं आ जाती। आज के समय पर ज्यादातर लोगों को शुरू से अच्छाई और बुराइ का मतलब तो सिखाया जाता है पर उन्हें कभी भी ये नहीं सिखाया जाता की अच्छे से बिहेव कैसे करा जाता है। सो अपनी मोरालिटी को प्रैक्टिस करने के लिए आप एक ऐसी कम्युनिटी का पार्ट बन सकते हो, जिसमे आपको कई फिक्स्ड रूल्स को फॉलो करना होगा। बहुत सारे रूल्स हमे सोसाइटी भी देती है और बाकी रूल्स हम फिलॉसफी, ज़, रिलिजन या किसी ऐसे सर्कल में ढूंढ सकते हैं, जिसके मेंबर्स हमारे जैसे ही बिलीव शेयर करते हैं। जितना आप अपनी वैल्यू उसको क्लियरली डिफाइन करोगे और उन्हें फॉलो करोगे उतना ही आप फिजिकली और साइकोलॉजिकली हेल्ती रहो। गे चैपटर नाइन डिविनिटी विद और विदाउट गॉड। चाहे हम इंसानों की साइकोलॉजी को स्टडी करे या फिर डाइरेक्टली रिलिजन को स्टडी करे। ये बात तो क्लिअर है कि भगवान या एक भगवान जैसा आइडियल हमारी जिंदगी में बहुत जरूरी होता है। चाहे आप एक आस्तिक हों या फिर एक नास्तिक हो, हमारे माइंड में एक मीटर होता है जो हमें बताता है कि एक चीज़ कितनी पवित्र या फिर अपवित्र है। हमारे पास के हर कल्चर के पास किसी ना किसी तरह का रिलिजन जरूर होता था, क्योंकि रीलिजस, एक्सपिरियंस जैसे रात में तारों से भरा आसमान देखना या फिर काफी खूबसूरत आर्किटेक्चर को हैरानी के साथ अप्रीशीएट करना हमें ज्यादा हैप्पी और फुलफिल्ड फील कराता है? हमें ऐसा लगता है कि यह ब्यूटी हमें हमारी रोज़ की दर रिऐलिटी से ऊपर उठा रही है और तभी हमें या तो इन एक्सपिरियंस इसको डाइरेक्टली रिलिजियस प्रैक्टिसेस में ढूंढना चाहिए या फिर आठ और नैचर जैसी चीजों में है चैपटर 10 हैपिनेस कम्स फ्रॉम बिटवीन इस चैपटर में जोनाथन ने लाइफ का मीनिंग डिस्कस कर रहा है और बताया है कि जिंदगी का पर्पस होना काफी अलग है। जिंदगी में पर्पस होने से दो मेन चीज़े जो हमारी जिंदगी में पर्पस ऐड करती है वो है प्यार और काम यानी आपने अपनी जिंदगी उन लोगों के साथ शेयर करनी है जिनकी आपकेर करते हो और अपने काम में मीनिंग ढूंढने के लिए यह पक्का करो कि आप सिर्फ उन्हीं कामों में हाथ डालो जो आपको अपनी पोटेंशिअल को यूज़ करने का मौका देते हैं और आपकी वैल्यू उसके साथ ऑनलाइन करते है। जैसे एक स्टडी में देखा गया कि जो हॉस्पिटल में काम करने वाले क्लीनर्स ये मानते थे कि वो उस टीम का हिस्सा है जो लोगों की जान बचाती है। वो क्लीनर्स ज्यादा खुश थे बजाए उन क्लीनर्स के जो अपने काम को गंदा और यूज़लेस समझते थे।","द हैप्पीनेस हाइपोथीसिस: फाइंडिंग मॉडर्न ट्रूथ इन एनशिएंट विज़डम, जोनाथन हैडट द्वारा 2006 में लिखी गई एक मनोविज्ञान की किताब है, जिसे आम दर्शकों के लिए लिखा गया है। इसमें, हैडट अतीत के विचारकों - प्लेटो, बुद्ध, जीसस और अन्य - के विचारकों द्वारा समर्थित खुशी पर कई "महान विचार" रखता है और समकालीन मनोवैज्ञानिक अनुसंधान के प्रकाश में उनकी जांच करता है, उनसे कोई भी सबक निकालता है जो अभी भी हमारे आधुनिक जीवन पर लागू होता है। . पुस्तक के केंद्र में सद्गुण, खुशी, पूर्ति और अर्थ की अवधारणाएं हैं। 📽️यूट्यूब पर हमें खोजें: WWW.YOUTUBE.COM/PSYCHOLOGYINHINDI" "दुनिया के दो वर्जन से है। एक दुनिया में ऐवरेज लोग जीते हैं और दूसरी दुनिया में टॉप टिअर, ऐल्फा, इंटेलीजेंट और विजनरी लोग जीते हैं। ऐवरेज लोगों की दुनिया कुछ इस तरह से बनाई गई है कि वो कभी यही न समझ पाए कि दुनिया के एक दूसरे वर्जन में लोग कितनी शानो शौकत से रह रहे हैं। ऐवरेज लोगो को एजुकेशन के नाम पर मिडिओकर बने रहने की ट्रेनिंग मिलती है, जबकि दूसरी दुनिया में रहने वाले लीड्स को ग्रेटनेस का रास्ता दिखाया जाता है। उनके साथ दुनिया के कड़वे सच और ग्रेट लोगों के सीक्रेट शेयर करके दुनिया के बारे में ऐसे बहुत से सीक्रेट्स है। जो सिर्फ अमीर पॉवरफुल और महान लोग जानते हैं और इस एपिसोड में हम कही ऐसे ही सीक्रेट्स का खुलासा करने वाले हैं। सीक्रेट नंबर वन रूज़ डोंट में क्यों? ग्रेट ग्रेट नेस का सबसे पहला सीक्रेट है कि ग्रेट लोग कभी भी रूल्स को फॉलो नहीं करते हैं। किसी भी सोसाइटी में रूज़ उसके सबसे स्लो वेस्ट मेंबर्स को ध्यान में रखकर बनाए जाते हैं और तभी ये रूज़ हाइली कैपेबल लोगों पर लागू नहीं होते है। जैसे ऐवरेज पैरेन्ट्स अपने बच्चों को ऐवरेज बनाए रखते हैं, उन्हें एक बॉक्स में बंद रख के ऐवरेज बच्चे ज्यादा रिस्क नहीं लेते। सेफ्टी में रहने की वजह से उनके पास दुनिया का ज्यादा एक्सपीरियंस नहीं होता। और इसके साथ ही उनके ज्यादा दोस्त नहीं होते क्योंकि उनके पैरेन्ट्स उन्हें पराये लोगों से दूर रहने को बोलते हैं जबकि एक एलीट फैमिली में बच्चों को ये बोला जाता है कि उन्हें जो भी चाहिए वो सब एक अनजान इंसान के पास है। पैसा, प्यार, इज्जत, मदद ये सब दूसरे लोगों से मिलते हैं। इसलिए अनजान लोगों को अपना दोस्त बनाओ, अपने माँ बाप और स्कूल के सिखाए हर रूल को क्वेश्चन करो और देखो की क्या अमीर पॉवरफुल और ग्रेट लोग भी इसी रूलबुक को फॉलो कर रहे हैं या फिर क्या उनके तरीके एकदम अलग है? सीक्रेट नंबर टू द बिग अर यू थिंक दम ओर यू अचीव आज तक छोटी सोच रखने वाले लोगों ने कोई महान काम नहीं कर रहा है ऐंड लेट मी टेल यू। मैंने खुद आज तक ऐसा कोई इंसान नहीं देखा जो अपने पूरे दिल से किसी गोल तक पहुंचना चाहता हो। वो उस पर मेहनत भी करता हो और उसे वो चीज़ मिली ना हो। कमी आपके मन में है, दुनिया में नहीं पैसा गुड लुकिंग पार्टनर स्पिरिचुअल इनसाइट्स आप जो मांगोगे दुनिया वो आपको देने के लिए मना नहीं करेगी। लेकिन प्रॉब्लम यह है कि हर कोई बड़ा सोचने से डरता है। जीवन अगर आप अभी अपने मैं कोई बड़ी डिज़ाइनर लेबिया हो, तब भी 5 मिनट बाद ही आपका मन फिर से अपनी डिफ़ॉल्ट पोजिशन पर आ जाएगा और आप अपनी उस को अनरियलिस्टिक बोलकर डिस्कार्ड कर दोगे। कोई भी डिज़ाइनर सिर्फ तभी असलियत बनती है जब आप हर घड़ी बस उस एक ही चीज़ के बारे में सोच रहे होते हो। सीक्रेट नंबर थ्री मनी इस इन रियल पैसा एक आइडिया है। डेट एक आइडिया है और हर एवरेज इंसान इन्हीं आइडियाज़ का गुलाम बना पड़ा है। खुद 2 मिनट शान्ति में बैठो और सोचो कि क्या सच में कागज का टुकड़ा तुम्हारी जिंदगी से ज्यादा कीमती हो सकता है? लीडस् ने ऐवरेज लोगों को ब्रेनवॉश कर रखा है। कागज की गुलामी करने के लिए पैसा असलियत में उतना ही वैल्यूएबल है जितना आप उसे समझते हो। अगर आप पैसे को एक ऐसी चीज़ समझते हो जिसके पीछे भागने पर वो आपसे दूर होता जाता है तो आप कभी अमीर नहीं बनोगे। एक कोने में जब भी लोग डर के मारे पैसा स्पेंड करना कम कर देते हैं, तब गवर्नमेंट और पैसा छापती है। इकॉनमी में लिक्विडिटी लाने के लिए सोचो। यहाँ पर आप ज़रा ज़रा करके अपना पैसा बचाने में लगे हों और वहाँ गवर्नमेंट कभी भी प्रिंटर चालू करके हजारों करोड़ रुपये छाप कर करेंसी की वैल्यू गिरा देती है। इसलिए पैसों को खुद से ऊपर मत समझो। अपनी वैल्यू पर ध्यान दो। इस थॉट को अपने मन में रेपुटेशन के थ्रू गाड़ लो कि आप वो इंसान हो जो करोड़ों रुपए कमाता है। मनी इस नॉट रियल बट योर थॉट्स अबाउट मनी आर दैट्स वाइल यू नीड टु चेंज योर थॉट्स फर्स्ट सीक्रेट नंबर फ़ोर स्पीड पर इवेंट्स मीडिऑक्रिटी महान बनने के लिए बहुत काम करना पड़ता है और एक टिपिकल महान इंसान अपनी लाइफ में एक ऐवरेज इंसान से कई 100 गुना काम पूरा करके जाता है। इसी वजह से एक महानता की तरफ बढ़ रहे इंसान की काम करने की स्पीड एक आम इंसान से बहुत ज्यादा होती है। बोलते हैं कि तुम अपने जिंस भी गोल को 10 सालों में पूरा करने की सोच रहे हो, उसे छह महीनों में पूरा करने की कोशिश करो। तेजी से काम करने से आप तेजी से बहुत से फेल्यर, कट्ठे करोगे और इवेन चली अपने गोल को एक्स्पेक्टड टाइम से पहले अचीव कर लोगे। सीक्रेट नंबर फाइव यू डोंट बिकम ग्रेड बी बीइंग सेल्फिश दूर से देखने पर हमेशा ऐसा ही लगता है कि जो भी इंसान बहुत अमीर, फेमस या महान है, वो उस मुकाम पर सिर्फ खुद के बेनिफिट के बारे में सोचकर पहुंचा है। लेकिन अगर आप किसी बड़े ऐक्टर को देखो तो उसकी शुरुआती फ़िल्म से लेकर अब तक लाखों लोग उसे देखकर खुद की लाइफ को बेहतर बनाने के लिए इंस्पायर हुए होते हैं। हर सक्सेसफुल बिज़नेस मैन हजारों लाखों लोगों को इम्प्लॉयमेंट देता है और ईव अनेक महान सिंगर भी अपने म्यूसिक से बहुत से लोगों की लाइफ को बदल देता है। फॉर ए बेटर हर सफल आदमी कभी भी बिना दूसरे लोगों को पॉजिटिवली इफेक्ट करें, टॉप पर नहीं पहुँच सकता। इसलिए ग्रेट बनने का सबसे सीधा और आसान तरीका होता है दूसरे लोगों की मदद करने पर फोकस करना। सीक्रेट नंबर सिक्स मोटिवेशन, कैन बी पॉज़िटिव और नेगेटिव अगर मैं आपसे पूछूं कि आप अपनी लाइफ में किन चीजों को पाना चाहते हो या फिर क्या चीजें आप को मोटिवेट करती है तो आप बोलोगे, पैसा, फैमिली की खुशी, गुड लुकिंग पार्टनर या फिर फेम बट। दूसरी तरफ अगर इन चीजों के अलावा आपकी फैमिली को सडनली कुछ हो गया है तो क्या तब भी आपकी मोटिवेशन, घर, गाड़ी या फिर फेम ही रहेंगे? नहीं, आप बोलोगे कि मैं कुछ भी करके अपनी फैमिली को बचाना चाहूंगा। बहुत से ग्रेट लोगों की लाइफ ट्रैजिडी से भरी होती है और उनकी मोटिवेशन एक्चुअल में फिर बेस्ट होती है ना कि ग्रिड बेस्ट। क्योंकि अगर किसी की मोटिवेशन पैसा है तो वो ज़रा बहुत अमीर होकर ही ढीला पड़ जाएगा। लेकिन जीस इंसान ने बहुत गहरा दुख देखा है। वो इंसान जितना हो सके उस दुख से दूर रहना चाहेगा। इसलिए अगर आपको पॉज़िटिव चीज़े मोटिवेट नहीं कर रही है तो अपनी लाइफ मैं नेगेटिव चीजों को अपना फ्यूल बना लो। हर इंसान की लाइफ में कुछ ना कुछ ट्रैजिक जरूर होता है। जीवन अगर आपके पास पागलों की तरह काम करने का कोई अर्जेन्ट रीज़न नहीं है तब भी आप अपने मन में नेगेटिव सिनेरीओस को बिल्ड कर सकते हो। अगर अभी सब ठीक चल रहा है तो सोचो अगले ही मूवमेंट अगर कुछ खराब हो गया तो आप उस सिचुएशन को कैसे संभालोगे? आई नो थिस साउंड्स रॉन्ग बट बहुत से लोगों के लिए फिर बेस मोटिवेशन ज्यादा इफेक्टिव होता है। ड्रीम बेस्ट मोटिवेशन से।","वास्तविकता के दो भिन्न संस्करण हैं। एक वास्तविकता में औसत दर्जे के लोग रहते हैं और दूसरे में अभिजात वर्ग के लोग। औसत व्यक्ति की वास्तविकता इस तरह से निर्मित होती है कि वे कभी भी बड़े अभिजात वर्ग के तौर-तरीकों को नहीं समझ पाते। इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम महानता के उन रहस्यों को उजागर करेंगे जिन्हें अधिकांश औसत लोग समझने में विफल रहते हैं।" "यह क्वेश्चन बहुत से साइंटिस्ट को परेशान करता है कि क्या होता अगर हम अपने दिमाग को उसकी 100% कपैसिटी पर यूज़ कर पाते हैं। कॉमन मिसकन्सेप्शन ये है कि हम अपने दिमाग की सिर्फ 10% पावर को ही यूज़ कर सकते हैं और इस आइडिया को कई मूवीज़ जैसे लूसी और लिमिट्लेस में दिखाया गया है जहाँ एक कलेक्टर पहले अपने दिमाग के सिर्फ बहुत थोड़ी सी शक्ति को इस्तेमाल कर रहा था लेकिन एक सर्टन तरह की ड्रग लेने के बाद वह एकदम से अपने दिमाग को उसकी पूरी क्षमता पर यूज़ करने लगता है। हमारा दिमाग काफी कॉम्प्लेक्स है। हम हजारों सालों से ही ये समझने की कोशिश कर रहे हैं। कि आखिर ये दिमाग कितना शक्तिशाली है और इसकी लिमिट्स क्या है? ब्रेन के सिर्फ 10% कपैसिटी पर चलने को ज्यादातर साइंटिस्ट एक मिथ बोलते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि ब्रेन स्कैन से दिखाते हैं कि किस तरह से हमारे दिमाग का हर हिस्सा ही ऐक्टिव होता है। चाहे हम कोई काम ना कर रहे हो तब भी इसका मतलब फिजिकल लेवल पर हम दिमाग नाम के ऑर्गन को पूरी तरह से यूटिलाइज करते हैं। हर कोई कही ना कही यह तो फील करता है कि वह अपनी पोटेंशिअल से नीचे जी रहा है और उसकी क्षमता इससे बहुत ज्यादा है। लेकिन यह क्षमता जैसे सरली, हमारे ब्रेन की कपैसिटी से इन्फ्लुयेन्स नहीं होती। हाउएवर जस्ट बिकॉज़ ये आइडिया अपने आप में काफी अट्रैक्टिव और पॉपुलर है। इस वजह से बहुत से लोग इसका फायदा उठाते हैं। आपको झूठी इन्फॉर्मेशन दे कर जीवन बहुत से मोटिवेशनल स्पीकर सौर एजुकेटर्स भी 10% थ्योरी के झूठ को सच बताकर बेचते हैं। एवल्यूशन अली साइंटिस्ट बोलते है कि हम इतना कॉम्प्लेक्स और एफिशिएंट दिमाग इवॉल्व भी नहीं कर पाए होते। अगर हम हमेशा से अपने दिमाग कितने छोटे से पोर्शन को यूज़ करते आ रहे होते तो क्योंकि अगर 10% ब्रेन की मिथ सच होती तो उसका मतलब ये होता कि हमारे ब्रेन का बाकी का हिस्सा यूज़लेस या फिर अननेसेसरी है, लेकिन हमारे शरीर के हर दूसरे हिस्से की ही तरह ब्रेन के भी हर हिस्से का अपना एक रोल होता है और उसका कोई भी पार्ट वन न्यूस नहीं है। इसके ऊपर से अगर हम अपने दिमाग को सिर्फ 10% ही यूज़ कर रहे होते तो किसी भी तरह की ब्रेन इंजरी इतनी हार्मफुल नहीं होती। साइकोलॉजी प्रोफेसर स्कॉट लेलिन फील्ड बोलते हैं कि इवन सिंपल टास्क्स में भी जेनरली हमारे दिमाग के हर कोने में फैले पार्ट्स का कॉन्ट्रिब्यूशन लगता है और जहाँ दुनिया में कोई भी ऐसी ड्रग नहीं है जो आपको लिमिट्लेस और सुपर जीनियस बना सके। लेकिन हमारे पास कई ऐसे केमिकल्स और ड्रग जरूर है जो हमारी मेमोरी प्रोसेसिंग, पावर और अलर्ट्नेस को इम्प्रूव कर सके। इस तरह की ड्रग्स या फिर सप्लिमेंट्स को न्यू ट्रॉपिक्स बोला जाता है, जो अक्सर सिंथेटिक या फिर नैचरल इन्ग्रीडिएंट का इस्तेमाल करती हैं। हमारी कॉग्निटिव एबिलिटीज़ को थोड़ा सा बूस्ट देने के लिए जीवन कॉफी भी हमें ज्यादा एनर्जाइज और मोटिवेटेड फील कराती है। आपने शायद ये कभी नोटिस भी करा हो कि जब भी आप कॉफी पीते हो तब आपके लिए कुछ पढ़ना उससे ज्यादा देर तक याद रखना ईज़ी हो जाता है और आप एक लंबे समय तक बिना थके काम कर सकते हो और आप एक लंबे समय तक बिना थके काम कर पाते हो। हमारे में से बहुत से लोगों को कॉफी पीते रहने की आदत होती है क्योंकि कॉफी हमें अपने डेली टास्क्स को परफॉर्म करने में कबूस देती है। लेकिन क्या इसका मतलब यह है कि कॉफी हमारी मेंटल कपैसिटी या ब्रेन पावर को भी बढ़ा सकती है? वेल नहीं, क्योंकि किसी भी चीज़ को ऐक्सेस में कौन स्यूम करना हमारी हेल्थ के लिए बुरा होता है? ज्यादा कॉफी पीने से हमारे अंदर इन और कोर्टिसोल जैसे केमिकल्स बढ़ने लगते हैं। और हम ज्यादा स्ट्रेस्ड और बर्नआउट फील करते हैं। हमारा मन करता है कि हम इस स्ट्रेस ऐंगज़ाइइटी और बर्नआउट को दूर करने के लिए एक कप और कॉफी पी लें है और इसी तरह से यह साइकल रिपीट होती जाती है। हर्डल भी एक और है। सब रेनॉल्ट रिंग सबस्टैन्स है जैसे एडीएचडी ट्रीट करने और कॉन्सन्ट्रेशन को बढ़ाने के लिए यूज़ करा जाता है। ये हमारे नर्वस सिस्टम को ओवर स्टिम्युलेट करके हमारी फोकस करने की काबिलियत को बढ़ाता है, लेकिन कॉफी की ही तरह रोल भी हमें स्ट्रेस हार्मोन से भर देता है और एक पॉइंट के बाद आपको यह ड्रग लेना रोक नहीं पड़ता है। हर किसी को शुरू में इन सब स्टैंडस पर ऐसा फील होता है जैसे उनके पास एक सुपर पावर आ गई है। लेकिन यह सूपर पावर बहुत जल्दी सूपर सिकनेस में बदल जाती है और आपको पहले से भी ज्यादा मेंटल फॉर के साथ छोड़ जाती है। कॉफी और रोल के अलावा मार्केट में बस कई ऐसे सबस्टैन्स को ही न्यू ट्रोपिक बोलकर बेचा जाता है जो या तो प्लांट बेस्ट मेडिसिन्स होते हैं या फिर उन्हें ऑलरेडी हमारी बॉडी स्मॉलर क्वालिटीज मैं प्रोड्यूस कर रही होती है जैसे कि क्रिएटिन मेथियोनिन या फिर एल कार्निटिन लेकिन 100% ब्रेन ना यूज़ कर पाने और कोई स्पेशल ब्रेन ड्रग ना होने का मतलब यह नहीं है कि आप ज्यादा स्मार्ट और इंटेलीजेंट नहीं बन सकते हैं। 2008 में पब्लिश हुई एक स्टडी बताती हैं कि कैसे सिर्फ रीडिंग और बेसिक कैलकुलेशन्स ही अपने आप में हमारी कॉग्निटिव फंक्शन को बढ़ाने के लिए काफी होती हैं। जीवन हम खुद के अनकॉन्शस माइंड को ट्रेन कर सकते हैं। बिना सोचे ही जल्दी से जल्दी कैल्कुलेशन्स करने और डिसिशन्स लेने के लिए नाउ ब्रेन पावर बढ़ाने के लिए एक और इफेक्टिव और सबसे हेल्थी तरीका होता है और टुरिस्ट बेहेवियर आइनोल टुरिज़म सेल्फ्लिस ने सौर दूसरों का क्न्सर्न दिमाग से किसी भी वे में रिलेटेड नहीं लगता। लेकिन 2005 में पब्लिश हुई एक स्टडी बताती हैं कि लटोरी स्टिक बिहेव्यर जुड़ा होता है। हमारे डोपामिनर्जिक सिस्टम्स की ऐक्टिवेशन और हमारी ओवरऑल ब्रेन हेल्थ से डार्विन के समय से एवोल्यूशनरी कॉन्टेस्ट में हमको एक बहुत ही पैराडॉक्सिकल कॉन्सेप्ट माना जाता है, क्योंकि इसके साथ एक ऑब्वियस क्वेश्चन ये आता है कि हम खुद की फिटनेस या फिर सर्वाइवल के रिसोर्सेस को कम करके ज्यादा हेल्थी या फिर एक लंबे समय तक जिंदा कैसे रह सकते हैं। लेकिन सेल्फ्लिस नेस एक ऐसी चीज़ है जो एक इनडिविजुअल के सर्वाइवल पर नहीं बल्कि पूरे ग्रुप के सर्वाइवल और वेल बीइंग से जुड़ी होती है। इसलिए खुद के ब्रेन को 100% यूज़ करने पर नहीं बल्कि रीडिंग, प्रॉब्लम सॉल्विंग और काइंडनेस को प्रैक्टिस करने पर फोकस करो खुद की ब्रेन पावर को बढ़ाने के लिए।","क्या हम वास्तव में अपने दिमाग का 10% क्षमता से उपयोग कर रहे हैं जैसा कि कई फिल्में और शिक्षक हमें बताते हैं? क्या हम अपनी दिमागी शक्ति को बढ़ा सकते हैं और पूरी तरह से असीमित हो सकते हैं? हम सदियों से इन सवालों का जवाब खोजने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन कई वैज्ञानिक दावा करते हैं कि 10% मस्तिष्क सिद्धांत केवल एक मिथक है। हालाँकि, अभी भी स्मार्ट और अधिक बुद्धिमान बनने के कुछ वास्तविक तरीके हैं। इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम चर्चा करेंगे कि क्या होगा यदि हम अपने मस्तिष्क का 100% उपयोग करने में सक्षम थे और हम वास्तव में अधिक मस्तिष्क शक्ति कैसे प्राप्त कर सकते हैं।" "दुनिया में जीतने भी महान स्पीकर्स हैं। उनकी बोली हर एक बात इतनी ज्यादा जादुई लगती है क्योंकि वो किसी दूसरे इंसान की तरह बोलने की कोशिश नहीं करते हैं और इस के साथ बहुत ज्यादा कॉन्फिडेन्स आता है क्योंकि हमारे को हमारे साथ अच्छा कोई दूसरा इंसान नहीं जानता। लेकिन हम फिर भी कहीं ना कहीं अपनी यूनीकनेस को बाहर लाने से डरते हैं। चैपमैन यूनिवर्सिटी का एक सर्वे बताता है कि लोगों को सबसे कॉमन है पब्लिक स्पीकिंग। मुझे याद है 1112 की बात है और हमारी इंग्लिश की क्लास चल रही थी। हो या फिर टू किल बट जो भी हमारी उस टाइम पे बुक होती थी, वो हम रीड कर रहे थे और बारी बारी सब को खड़ा करा जा रहा था। एक एक चैपटर रीड करने के लिए और मैं छुपने की कोशिश कर रहा था की मैं मेरे को ना देखें और मेरे को ना बोले कि सौरभ चैपटर रीड करो। बट ऑफ कोर्स जितना आप छुपने की कोशिश करते हो, उतना ही आप नजर में आते हो तो मैडम ने मेरे को देखा और हमने बोला कि सौरभ उठो रीड करो चैपटर मैं भी डर डर के खड़ा हुआ और मैं इतना ज्यादा नर्वस था की मेरा पूरा वह पसीने से भरा हुआ था। जस्ट इमेजिन वहाँ पे सीन का चल रहा था, मेरे एक हाथ में बुक थी जीसको मैं टूटा टूटा पढ़ रहा हूँ और दूसरे हाथ में रहेंगे, जिससे मैं अपना पसीना साफ कर रहा हूँ और मैंने भी ये देख लिया की इसके बस की नहीं है और मामा ने मेरे को बहुत जल्दी बिठा दिया ना। अगर हम इस चीज़ को डीप्ली ऐनालाइज करें तो ये फिर ऑफ पब्लिक स्पीकिंग नहीं है। ये फिर ऑफ जजमेंट और फिर ऑफ स्टैन्डींग आउट है। की अगर मैं इन सब लोगों के बीच में खड़ा हूँ, इन सबकी नजरें मेरे पे है तो ये मेरे को जज करेंगे। अगर मेरेसे कोई भी गलती हो गयी तो मेरी बेइज्जती हो जाएगी और लोग फिर मेरे से बात नहीं करेंगे और मेरे को अपने ग्रुप से निकाल देंगे। और ये जो हमारी एक्सपेक्टेशन होती है ना खुद से की लोग हमें जज करेंगे। ये चीज़ हमें और ज्यादा इनसेक्युर अंडरकॉन्फिडेंट और बहुत ज्यादा ऑक्वर्ड बना देती है दैट स्वाद के फर्स्ट टु बिकम ग्रेट स्पीकर इस बीइंग ऑथेंटिक अगर आप चाहते हो कि दूसरे लोग आपको एक्सेप्ट करे तो पहले खुद को एक्सेप्ट करना सीखो। जो भी आपको लग रहा है की आपकी इन सेक्युरिटीज़ है या फिर इस वजह से दूसरे लोग आपको रिजेक्ट करेंगे। उन चीज़ो को छुपाओ मत, क्योंकि जब भी आप अपनी इन्सेक्युरिटी वो सब प्रेस करोगे तब आपका जो है टर है वो दूसरे देखेगा की अच्छा ये इन चीजों के बारे में बात करने से डरता है और वो उन्हीं चीजों को पॉइंट आउट करके बोले गा देखा मैंने तेरी चोरी पकड़ ली। इसके बजाय अपनी सारी इन्सेक्युरिटी इसको सबके आगे खोल दो की हाँ ये है हाँ मेरी हाइट कम है। हाँ मेरे बाल ऐसे हाँ मेरी शकल ऐसी है नाउ व्हाट? क्या हम इन्हीं चीजों के बारे में बात करते रहेंगे या फिर कैन यू मूव ऑन? जब आप इस तरीके से खुद को एक्सप्रेस करते हो तब आप बेसिकली अपनी हर बात पर अपना सिग्नेचर कर देते हो की हमें इस तरीके से बात करता हूँ और ये मैं हूँ। अगर आपको मैं पसंद आया तो गुड अगर आप को मैं पसंद नहीं आया, दैट सो फाइन नंबर टू नो व्हाट यू अर टॉकिंग अबाउट आपने कभी नोटिस करा जो घर पर बना हुआ जूस होता है वो बहुत ज्यादा डिफरेंट होता है। मार्केट में मिलने वाले बॉटल जूस से जो घर पर बना हुआ जूस होता है वो बहुत ज्यादा पलटी होता है। कभी कभी उसमें बीजा जाता है और उसको पीने पर ये आपको पता लग जाता है की इसमें बहुत ज़्यादा लाइफ फोर्स है और उसको पीने से आपकी हेल्थ इम्प्रूव होगी। बट जो मार्केट में मिलने वाला बॉटल जूस होता है उसकी एक लेने पर ही आपको पता लग जाता है की यार ये तो शुगर वोटर हैं और इसको अगर मैंने ज्यादा पीया तो मेरी तबियत खराब भी हो सकती है। बिल्कुल ऐसे ही चाहे आप किसी टॉपिक की समझ उसके बारे में बात कर रहे हो। बट आपको उस टॉपिक के बारे में एक्चुअल में कोई नॉलेज नहीं है, तो ये चीज़ भी एक ऑडियंस क्लियरली पकड़ पाती है की आप उस पूरे प्रोसेसर से गुजरे ही नहीं हो, जो उस लेवल की नॉलेज को निकालने के लिए जरूरी था और आप पकड़ रख के बोल रहे हो। हमारे सेन्सस बहुत ज्यादा शाप है और जीस तरह से आपकी जुबान पर एक नकली जूस की बूंद पड़ती है। आप ये बता सकते हो कि यह एक असली फ्रूट का एक्स्पेन्स नहीं हो सकता। बिल्कुल ऐसे ही जब भी कोई कोई बात बोल रहा होता है। डीप इनसाइड हमें पता लग जाता है कि यहाँ पर कोई गडबड है। मेरे को वाइफ सही नहीं आ रही है और ये बंदा नकली है। नंबर थ्री एट द लिस्टेनेर्स अप्रिशिएट योर स्पीच बहुत बार ये होता है जब भी हम किसी ऐसे स्पीकर को सुन्दर जो फट फट फट फट तेजी से बोल रहा होता है तब हमे ये लग जाता है कि होने का मतलब यह है कि हम हर चीज़ को तेजी के साथ बोले हैं। बट इन रिऐलिटी एक अच्छा स्पीकर वो नहीं होता जो बहुत स्पीड के साथ हर शब्द को बोले। एक अच्छा स्पीकर वो होता है जो सुनने वाले के ऊपर एक इम्पैक्ट क्रिएट कर पाए और उसके फॉल्स बिलीव को तोड़ पाए। इसलिए अपनी स्पीच को थोड़ा सा धीमा और काम बना दो और अपनी हर इम्पैक्टफुल सेन्टेन्स के बाद एक ब्रेक लो। इससे दो चीजें होंगी। पहला ये होता है की हम अपने हर शब्द को कंप्लीट्ली बोलते हैं। पता है हम जल्दबाजी में क्या करते है? हम ओवर करते हैं, हम आधे अधूरे वर्ड्स बोल देते है और इस चीज़ को हम रेजिस्टेंस नहीं करते है। बट ऑडियंस कन्फ्यूज़ हो जाती है की इसने वो वाला शब्द क्या बोला था, ये वाली बातें इसकी समझ नहीं आई। इसलिए अपनी स्पीच को थोड़ा सा स्लो करो और जब भी आप एक इम्पैक्टफुल सेन्टेन्स के बाद ब्रेक लेते हो, जस्ट ब्रीफ पॉज़ ये चीज़ उस सेन्टेन्स को हाइलाइट कर देती है और एक लिसनर के लिए बहुत बीज़ी हो जाता है। उस बात को आपकी इंटरनल आइस करना नेक्स्ट स्टेप कीप योर आइज़, रिलैक्स्ड, एक अच्छे स्पीकर की आंखें आपकी आगे चलती हुई गाड़ी की टेललाइट्स की तरह होती है। जिन्हें फॉलो करते हो आप वही पर पहुँच सकते हो जहा पर वो आपको ले जाना चाहते है। बट एक बुरे स्पीकर की आंखें टूटी हुई टेल लाइट्स की तरह होती है जिन्हें ना तो आप फॉलो कर सकते हो और आप खुद से ये क्वेश्चन पूछते हो कि जाना कहाँ पर जाता है? एक बुरा स्पीकर इधर उधर देखता रहता है। वो आपसे कॉन्टैक्ट में नहीं कर पाता और अक्सर डर की वजह से उसकी आंखें जरूरत से ज्यादा खुली रहती है। इसलिए अपनी आँखों को रिलैक्स रखो ताकि लोग आप पर ट्रस्ट कर पाए और जो भी आप बोल रहे हो उसे वो समझ पाए। नेक्स्ट स्टेप स्पीक लाउडर बहुत बार ये होता है की जो इंसान खुद को टोटली एक्सेप्ट करके नहीं बैठा होता वो बहुत धीमी आवाज में बात करता है। तो बस उतना तेज़ बोलता है की सामने वाला उसकी बात को सुन लें लेकिन कोई भी आस पास खड़ा हुआ उसको अटेंशन ना दे। कोई भी उसको जज ना करें। लेकिन यह एक ऐसा ट्रेड हैं जो बुरे स्पीकर का होता है क्योंकि इस तरह की आवाज़ में कोई दम ही नहीं होती है। आपकी आवाज़ इतनी तेज़ और इतनी स्ट्रांग होनी चाहिए की वो बस दूसरे के कान में न घुसे। वो उसके दिल में जाकर गूंजने लगे। इसलिए डर डर के नहीं बल्कि कॉन्फिडेंस के साथ अपनी हर बात को सामने रखो। नंबर सिक्स पेन्स पिक्चर्स इन वर्ड्ज़ एक स्पीच टू डाइमेंशनल होती है। यानी जब भी आप कोई स्टोरी सुना रहे हो आप ये बता सकते हो की वो स्टोरी कितनी लंबी है। और आप ये बता सकते हो की उसमें क्या क्या हुआ? बट इस तरह की स्टोरी में कोई भी डेथ नहीं होती। कोई भी इसे एक्सपिरियंस नहीं कर सकता। किसी भी स्टोरी में डेथ आती है जब आपने वर्ड को यूज़ करते हो दूसरे इंसान के मन में सीन्स को बनाने के लिए जैसे ये सोचो कि आपका आपकी जुबान एक पेंट ब्रश है और जो भी इंसान सुन रहा है आपकी बातों को उसका मन एक कोरा कागज है जिसपर आप अपने शब्दों के थ्रू पेमेंट कर सकते हो। कई शब्द ऐसे होते हैं जिन्हें हम जब भी बोलते हैं तो वो सुनने वाले के मन में शब्द ही बने रहे जाते है। बट कई शब्द ऐसे होते हैं जब हम उन्हें बोलते है तो वो दूसरे इंसान के माइंड में इंटर करते ही एक तस्वीर का रूप ले लेते हैं। जिन वर्ड्स ओरिजिनल प्रेस के बारे में हम बात कर रहे हैं उन्हें बोला जाता है मेटाफर जिसे मैंने अभी आपको एग्ज़ैम्पल दिया की अगर आपकी जुबान एक पेन ब्रश है तो दूसरे इंसान का मन एक कोरा कागज है। ये एक मेटाफर है और मैं टफर्स यूज़ करने से आपकी स्पीच बहुत ज्यादा कलरफुल और बहुत ज्यादा लाइफ बन जाती है ऐंड लास्ट्ली आई होप इस एपिसोड से आपने कुछ नया सीखा हो और जो बातें आपको कम्यूनिकेशन के बारे में पहले नहीं पता थी वो अब पता चल चुकी हो। ऐम बर यू डोंट हैव टु बैड स्पीकर। आप जितना चाहो आप उतना मेहनत के थ्रू खुद की कम्यूनिकेशन स्किल्स को इम्प्रूव कर सकते हो और खुद को ज्यादा आर्टिकुलर बना सकते हो।","इस कड़ी में हम उन तरीकों पर चर्चा करते हैं जिनके माध्यम से आप अपने संचार कौशल को विकसित कर सकते हैं, अधिक स्पष्टवादी बन सकते हैं, बातचीत कर सकते हैं और बोलने की कला में महारत हासिल कर सकते हैं।" "आपके बिलीव्स ये डिसाइड करते हैं कि आप दुनिया को किस नजर से देखते हो और उस जानकारी से क्या कॉन्क्लूज़न निकालते हो? बिलीव की समझ के साथ आप या तो खुद के लिए सक्सेस तक पहुंचने का नक्शा बना सकते हो और हर चुनौती का डटकर मुकाबला कर सकते हो या फिर आप सीधा अपने बिलीव्स के पार जाकर दुनिया को वैसे देख सकते हो। जैसे ही वह असल में है, जो इंसान खुद के बिलीव के बारे में अवेयर हो जाता है, उसके मन में एक अलग लेवल की क्लैरिटी आ जाती है। जबकि नेगेटिव बिलीव रखने वाले लोग जाने अनजाने में खुद के लिए ही अड़चनें पैदा करते रहते हैं। इसलिए इस एपिसोड में हम कुछ ऐसे ही लिमिट इंग्लिश के बारे में बात करेंगे और ये समझेंगे कि आप उन्हें कैसे ओवर कम कर सकते हो। नंबर वन इट्स टू अर्ली ओर टू लेट फॉर मी टू स्टार्ट बिलीव उन लोगों के दिमाग में बैठा होता है जो खुद की सक्सेस और उसके रास्ते में आने वाली मुश्किलों से डरते हैं। ये बोलकर कि अपने सपनों का पीछा करने के लिए आप अभी बहुत यंग हो या फिर अब आपका समय निकल चुका है। आप अपनी कायरता और हिचकिचाहट को खुद की एक झूठी लिमिटेशन के पीछे छुपा रहे होते हो, लेकिन दुनिया ना तो आपके डरो की परवाह करती है। और ना ही आपके एक्स्क्लूसिव की। अगर आप अभी बहुत यंग हो और कोई बिज़नेस चालू करना चाहते हो तो लीगल रिक्वायरमेंट्स पूरी करने के लिए अपने पैरेन्ट्स की हेल्प लो या फिर अपने से किसी बड़े उम्र के इंसान के साथ दोस्ती करो जो आपको इस काम में मदद कर सकें। जीवन अगर आप अपने 30 ज़ फोर्टीज़ या 50 में हो तब भी अपनी जिंदगी को पटरी पर लाना पॉसिबल है। जे के रॉलिंग ने हैरी पॉटर सिरीज़ 32 इयर्स की उम्र में लिखी थी। केएफसी स्टार्ट करने वाले सैंडर्स ने भी यह ब्रैंड 65 इयर्स की उम्र में बनाई थी। इस्कॉन के फाउंडर स्वामी प्रभुपाद ने ये मूवमेंट 69 इयर्स में शुरू करी थी। यहाँ तक कि जॉर्जियो अरमानी ने भी अपनी कंपनी तब शुरू करी थी जब वो 41 इयर्स के थे। हिस्टरी उन लोगों के एग्जाम्पल से भरी हुई है जिन्होंने अपनी लाइफ में बहुत जल्दी या फिर बहुत लेट शुरू करा था। ऐसे में आपका ये बिलीफ कि आप अपनी एज की वजह से कुछ नहीं कर सकते। ये बस आपके मन में बैठा एक ख्याल है ना कि रिऐलिटी नंबर टू आई ऐम नॉट गुडइनफ। यह बिलीव यूज़्वली एक इंसान के बचपन में शुरू होता है और उससे बड़ा होने पर भी ऐसा फील कराता है। कि चाहे वह जो भी काम करे वो उसे खराब ही करेगा। उसकी सारी अचीवमेंट झूठी है और वो गुडइनफ नहीं है। साइकोलॉजी में इस फीलिंग को इंपोस्टर सिंड्रोम बोला जाता है। यानी ये ख्याल कि आपने अपनी सक्सेस को अपनी मेहनत और असली टैलेंट से हासिल नहीं करा और आप कुछ भी अच्छा डिज़र्व नहीं करते हैं। आप इस बिलीफ को ओवर कम कर सकते हो। अपनी फीलिंग्स को रियल फैक्ट से अलग करके यानी ये पर्सपेक्टिव हासिल करो कि आपका गुडइनफ ना फील गणना किसी ऐक्चुअल फैक्ट को नहीं बल्कि बस आपके ड्रामा को दर्शाता है। नंबर थ्री आई ऐम नॉट यूनीक। यह फील गणना कि आपके पास दुनिया में कुछ भी नया और यूनिक कॉन्ट्रिब्यूट करने के लिए कुछ नहीं है और दूसरे लोग आपसे बेटर है चान्सेस है कि ये आपकी ह्यूमैनिटी नहीं बल्कि आपका परफेक्शनिज़्म है। ये आदत आती है लगातार खुद को दूसरों से कंपेर करने से और उस कंपैरिजन के बेसिस पर ही अपनी वर्ष का हिसाब लगाने से। लेकिन ये तरीका खुद की काबिलियत को जानने का एक दम गलत तरीका है क्योंकि आपको हमेशा ही अपने से बेहतर दिखने वाले अमीर और ज्यादा टैलेंटेड लोग मिलेंगे ही। हाउएवर इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि आप में कुछ यूनीक नहीं है क्योंकि दुनिया में आप सिर्फ आप ही हो और आपका गोल दूसरों को हराना या फिर उनसे बेहतर बनना नहीं बल्कि खुद का बेस्ट वर्जन बना होना चाहिए। नंबर फ़ोर लाइफ इस हार्ड इस बात में काफी सच्चाई भी है कि लाइफ मुश्किलों और दर्द से भरी है। लेकिन एट द सेम टाइम ये भी सच है कि लाइफ कई बार बहुत मजेदार और खुशहाल भी बन जाती है। हर इंसान की लाइफ खुशी और गम के बीच में झूली होती है पर ये बैंलेंस उन लोगों को नहीं दिखता। वो एक सर्टेन बिलीव के साथ चिपके पड़े होते है। जैसे ये सोचना कि जिंदगी जीना ही टॉर्चर है और आपको मरते दम तक दुख ही झेलना पड़ेगा। ऐसे बिलीफ को ओवर कम करने के लिए आपको यह नोटिस करना होगा कि वो आप ही हो जो अपनी लाइफ को हार्ड और टोर चरस बना रहा है और आप खुद की इस फीलिंग को बदल सकते हो। एक्सटर्नल चीजों पर ओवर रिऐक्ट ना करके नंबर फाइव ऑल मेन आर सेक्सिस्ट एंड ऑल विमिन आर गोल्ड डिगर्स इस बिलीव के साथ बेसिकली आप पॉप्युलेशन के बड़े हिस्सों की क्वालिटीज को जेनरलाइज कर देते हो। अपने पास टिन काउन्टर्स के बेसिस पर। लेकिन अगर आपकी लाइफ में आने वाले सारे मेल्स ही टॉक्सिक और ***** इस थे तो उन सब के बीच की कॉमन चीज़ आप हो प्रॉब्लम हरमेल की सक्सेस थिंकिंग नहीं बल्कि आपका सिर्फ इसी तरह के मेल्स पर ध्यान देना और उनसे कोई डिफ़रेंट रिज़ल्ट एक्सपेक्ट करना है। जीवन इसकी दूसरी साइट पर जो मेल्स ये बोलते है कि हर फीमेल की गोल्ड अगर होती है, वो भी अपने पास टिन, काउन्टर्स और इन सिक्युरिटीज़ को ही फीमेल्स पर प्रोजेक्ट कर रहे होते है। रिऐलिटी इस तरह के ऐब्सलूट में काम नहीं करती। जहाँ पर आप हर इंसान को ही एक अम्ब्रेला के नीचे रखकर डिफाइन कर सको, बल्कि रिऐलिटी बैलैंस्ड है, जहाँ अच्छे मेल्स और फीमेल्स भी है और बुरे भी। ये आप पर डिपेंड करता है कि आप अपना टाइम किस तरह के लोगों के साथ एंगेज करते हुए काटना चाहते हो। नंबर सिक्स रिच पीपल आर थीव्स ऐंड मैनिपुलेटर्स यहाँ पर आपको मैं एक साइकोलॉजिकल ट्रिक देना चाहता हूँ यानी लोग उस चीज़ को हेड करने लगते हैं जिससे वह पाने की उम्मीद खो देते हैं और जिससे वो ढंग से समझ नहीं पाते और इस तरह से किसी चीज़ को हैलैट करके आप ही और पक्का कर देते हो। कि आप कभी वह नहीं बनोगे, उन लोगों को नोटिस करो जो हमेशा अमीर लोगों और सेलिब्रिटीज़ को हद से ज्यादा हिट करते हैं। एक अनजान इंसान के लिए इतनी हेट यू चली जलन से आ री होती है और यह जलन लोग अपनी हैट और मोरल बिहेव्यर के नीचे छुपा लेते हैं। इसलिए अगर आप भी इस बिलीफ को रखते हो कि अमीर और पॉपुलर लोगों ने धोखाधड़ी से पैसा कमाया है और वो बस अमीर और फेमस होने के लिए ही आपसे इन्फिरीअर है तो ये चीज़ उन्हें नहीं बल्कि आपको ही आगे बढ़ने से रोकेगी। इसके बजाय आप भी खुद को एजुकेट करो। थोड़े हम्बल बनो और अमीर लोगों से सिखों की। उन्होंने अपनी अंपायर्स कैसे बिल्ड करी? नंबर सेवन मी फैमिली डज़न्ट सपोर्ट मी यह एक बिलीव से ज्यादा बस एक्स्क्यूस होता है। अगर आप अपनी लाइफ में अपनी मर्जी से कुछ करना चाहोगे तो कोई ना कोई तो आपसे डिसऐग्री करके आपके डिसिशन्स को गलत बोले गा ही। ऐसे में आप किसी दूसरे पर ये रिस्पॉन्सिबिलिटी नहीं डाल सकते हैं कि वो आपका साथ दे और आपकी ड्रीम्स को रिऐलिटी बनाएं। अगर आपके पास अपनी फैमिली की सपोर्ट नहीं है तो आपको ही जुगाड़ लगा के कॉन्टैक्ट्स बनाकर और साइड सलसकर के अकेले ही अपने गोल्स पर काम करना होगा। अगर सपने आपके है तो उन सपनों को पूरा करने की जिम्मेदारी भी आपकी ही है। नंबर एट आई सफर मोर दैन अदर्स यह बिलीव होता है बैड लक और एक नेगेटिव वर्ल्डव्यू का। यानी जीस भी इंसान को अपने प्यार करने वालों से धोखा मिला होता है या फिर उनके पैरेन्ट्स ने उन्हें कभी भी अच्छे से अप्रिशिएट नहीं करा होता तो उनकी वाइरिंग ही कुछ इस तरह से बन जाती है कि वो खुद को ही मनहूस समझने लगते है। आपका यह बिलीव आपके साथ तब तक चिपका रहता है, जब तक आप एक हिस्टोरिकल अन्डरस्टैन्डिंग हासिल नहीं कर लेते हैं। इसका मतलब अपने पास्ट को ह्यूमैनिटी के पास के साथ जोड़ना और दुनिया में अपनी रियल प्लेस को आइडेंटिफाइ करना, ज्यादातर लोगों को हिस्टरी की ट्रैजिडी इसकी कोई नॉलेज ही नहीं है और इस वजह से उन्हें खुद की सफरिंग जितनी है, उससे कई गुना ज्यादा लगती है। नंबर नाइन आई विल नेवर हैव एनफ इस बिलीफ के साथ आप गेम को खेलने से पहले ही उसे क्विट कर देते हो। आप ऑपर्च्युनिटीज के दरवाजे पर ताला लगा देते हो और बोलते हो कि आपको तो पहले ही पता था कि आपके नसीब में सक्सेस और अच्छी चीजें नहीं लिखी। यह बिलीफ आपकी ग्रोथ के चान्सेस को ही ज़ीरो बना देता है। पर यहाँ पर अच्छी बात यह है कि इस बिलीफ कोई ज़मीं बदला जा सकता है। अपना पर्सपेक्टिव और आसा रिज़ल्ट अपने ऐक्शंस को बदलने से खुद को यह बोलने के बजाय कि मेरे पास तो कभी एनफ पैसा होगा ही नहीं, ये बोलो कि मुझे अपने अंदर क्या बदलाव लाना पड़ेगा, जिससे मैं एनफ पैसा कमा सकू? नंबर 10 आई डोंट हैव टाइम फॉर मी पैशन्स ऑफ कोर्स हर इंसान के ऊपर अलग अलग तरह की रिस्पॉन्सिबिलिटीज होती है और ऐसे में आपके लिए उस काम के लिए समय निकाल पाना जिससे आप प्यार करते हो। ये बहुत ही मुश्किल हो सकता है। इसी वजह से ऐसे केस में आपको अपने पैशन को एक साइड हंसल बनाना चाहिए। यानी दिन के समय में अपने स्कूल या फिर कॉलेज की पढ़ाई या जॉब करो और रात के कुछ घंटे अपने पैशन को दो टाइम के साथ साथ जब आपको खुद अपनी साइड में प्रोग्रेस आता दिखेगा तब आप अपनी प्रायोरिटी इसको भी चेंज कर पाओगे और अपने बिलीव्स को भी।","आपकी मान्यताएँ तय करती हैं कि आप दुनिया को कैसे देखते हैं और इससे आप क्या निष्कर्ष निकालते हैं। आपकी खुद की मान्यताओं का ज्ञान या तो आपको सफलता की दिशा में अपना रास्ता सही करने में मदद कर सकता है या यह आपको अपने सभी विश्वासों पर काबू पाने में मदद कर सकता है, ताकि आप सब कुछ वैसा ही देख सकें जैसा वह है। इसलिए इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम 10 सीमित मान्यताओं के बारे में बात करेंगे और आप उनसे आगे कैसे सफल हो सकते हैं।" "ज्यादातर लोगों की तरह आपने भी वो सिचुएशन से एक्सपिरियंस करी होंगी जहाँ आप कुछ कहना चाहते थे लेकिन कह नहीं पाए या आपने खुद को बोलने से रोक लिया। भले ही आप सामने वाले को जानते थे या नहीं। ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि आपके अंदर एक डर है जिसकी वजह से आप कई बार सोचते हो की अभी कुछ बोलना सही नहीं होगा। सामने वाला क्या सोचेगा या वो आपसे बात करने में इंटरेस्ट ही नहीं दिखाएगा और आपकी बेजती हो जाएगी। आप का डर आपके इमोशन्स और आपके एक्शन्स को गाइड करता है। लेकिन हम इसी डर को एक टूल की तरह यूज़ कर सकते हैं ये समझने के लिए कि वो हमें क्या टीचिंग दे सकता है? जब भी आपको किसी से बात करने में ऑक्वर्ड या डर लगे तो अपने आप से पूछो कि मैं क्यों डर रहा हूँ? और फिर सच्चाई से इस क्वेश्चन का आन्सर ढूंढो? कई बार हम सिर्फ इसलिए डर रहे होते हैं क्योंकि या तो वो स्पेसिफिक सिचुएशन हमने कभी पहले फेस नहीं करी होती या फिर हमें अपनी कम्यूनिकेशन स्किल्स पर भरोसा नहीं होता। लेकिन किसी भी केस में बिना अपने डर को फेस करे, आप बस सिचुएशन से भागते ही रहोगे और कभी भी किसी से एक स्किल्ड वे में बात नहीं कर पाओगे। इसलिए डर को फेस करने के लिए सबसे पहले अपनी स्किल्स को इम्प्रूव करो। चाहे आप अपने शीशे के आगे खड़े होकर अपने आप से बात करो या फिर अपने फ्रेंड्स या भाई बहन से है आपका माइंड सेट कुछ ऐसा होना चाहिए कि आप यह न सोचो या दूसरों को इम्प्रेस करने के लिए कम्यूनिकेट करना सीख रहे हैं बल्कि ये सोचो कि आप अपने आप को एक्सप्रेस करना सीख रहे हो ना हो। यह हो गई माइंडसेट की बात अब हम बात करते हैं कि आपने एग्ज़ैक्ट्ली किसी से इंटरैक्ट कैसे करना है? इंटरैक्शन के फोर्स स्टेजेस होते हैं। स्टेज नंबर वन वॉट इसके आउट कम यानी किसी से भी बात करने से पहले ये सोचो कि आप उस इंटरेक्शन से क्या आउट कम निकालना चाहते हो? क्योंकि जब आप अपना गोल सेट करोगे तभी आप उन वर्ड्ज़ और स्टोन को यूज़ कर पाओगे जिससे आपको आपका डिज़ाइरड रिज़ल्ट मिल सके। कई केसेस में आप बस एक ऑक्वर्ड साइलेंस को तोड़ना चाहते हो, कई बार आप कुछ बेचना चाहते हो कई बार आप नया दोस्त बनाना चाहते हो। अभी एक स्पीच देना चाहते हो और कभी आप किसी को डेट के लिए पूछना चाहते हो। एक जाम पल के तौर पर अगर आप एक बुकस्टोर में हो और वहाँ कोई इंसान लॉस ऑफ बुक्स देख रहा है और आप भी कोई सिमिलर बुक लेने की सोच रहे हो, उनके पास जाकर सीधा ये मत पूछो कि आपको कौन सी बुक पसंद है क्योंकि ऐसा करने से वह ये सोचेंगे कि आप ऐसा क्यों पूछ रहे हो और शायद उन्हें यह चीज़ ऑक्वर्ड लगेगा। इसके बजाय एक कन्वर्सेशन स्टार्ट ही कॉन्टेस्ट देने से करो की आपको भी फिलॉसफी अच्छी लगती है और क्या वह आपको कोई बुक रिकमेंड कर सकते हैं? इस तरह से अपना क्न्सर्न बता देने से आप सामने वाले को कंफर्टेबल बना देते हो। इतनी कन्वर्सेशन को आगे बढ़ा पाते हो दूसरी चीज़ येही याद रखो कि किसी से भी बात शुरू करने की टाइमिग और जगह बहुत इम्पोर्टेन्ट होती है। जैसे अगर आप एक बहुत ही कॉन्फिडेंट, ओपन और फ्रेंडली इंसान को देखते हो तो उन्हें अप्रोच कर ओवन। अगर आप से खुद कोई अनजान इंसान टाइम पूछता है या फिर कोई हेल्प मांगता है तो उसी टाइम पर आप उन से इंटरैक्ट करना शुरू कर सकते हो और बहुत से लोग इस चीज़ को पसंद भी करेंगे। इसलिए अपने मन में आउटकम को क्लिअर रखो। हमेशा अपनी बॉडी लैंग्वेज को भी ओपन रखो ताकि आप फ्रेंडली लाखों लोगों को शुरू में ही अपनी बात का कॉन्टेस्ट दे दो ताकि आपका उनसे बात करना उन्हें एकदम नैचरल लगे। स्टेज नंबर टू क्रिएटिंग क्रिओ सिटी ऐंड इंट्रेस्ट यानी जब भी आप किसी से बात कर रहे हो, आपका ऑब्जेक्टिव ये होना चाहिए कि आप उनकी अटेन्शन को होल्ड कर पाओगे। सिर्फ तभी आप उनके अंदर ट्रस्ट बिल्ड कर पाओगे और अपने डिज़ाइरड आउटकम तक पहुँच पाओगे। कई बार लोगों को आपकी बात समझ ही नहीं आती या फिर वो आप से उतना कनेक्ट नहीं कर पाते। ऐसे कॉन्वरसेशन स्टार्ट तो हो जाती है लेकिन बहुत जल्द ही सामने वाला बोर हो जाता है और तभी आप उनकी अटेन्शन सिर्फ तभी होल्ड कर पाओगे, जब आप उन्हें अपने साथ इन्वॉल्व करोगे। फॉर एग्ज़ैम्पल अगर कोई इंसान आपको बताता है कि उन्हें ठंडा मौसम पसंद है तो आप उनसे यह पूछ सकते हो। अगर उन्हें चांस मिले तो वह दुनिया के किस कोने में रहना पसंद करेंगे? या फिर अगर किसी इंसान को जिम जाना और फिट रहना पसंद है तो उनसे उनकी फेवरेट एक्सरसाइजेस या फिर उनके फेवरेट एथलीट्स के नाम पूछो? ऐसा करने से वो आपके क्वेश्चन के आन्सर सोचने लग जाते हैं और उन्हें भी कॉन्वरसेशन में इन्ट्रेस्ट आने लग जाता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि जब भी हम किसी इंसान के इंट्रेस्ट या पैशन के बारे में बात करते हैं तो वो चीज़ उन्हें एक्साइट करती है। नंबर थ्री मेकिंग का कनेक्शन अंडरस्टुड कनेक्शन एक टू वे प्रोसेसर है और आप किसी से कनेक्शन सिर्फ तभी बना सकते हो जब आप दूसरा इंसान एक दूसरे से रिलेट कर पाते हो और आप दोनों में कई सिमिलैरिटीज निकलती हैं। इसके साथ ही अन्डरस्टैन्डिंग का नंबर वन टूल है। लिसनिंग जब आप किसी को ध्यान से सुनते हो और उनके क्वेश्चन्स को ढंग से एड्रेस करते हो तब उनको लगता है कि आप उनको समझते हो और तभी वहाँ एक कनेक्शन बन पाता है जितना आप एक कन्वर्सेशन मैं जेन्यूइन रहोगे। आप उतना ही बेहतर और स्ट्रॉन्ग कनेक्शन बना पाओगे। लेकिन अगर आप कुछ फेक करोगे तो आपकी बॉडी लैंग्वेज इस बात को क्लियर कर देगी और सामने वाला इंसान अपने सारा ट्रस्ट खो देगा। स्टेज नंबर फ़ोर मेक देम विजुअलाइज भले ही आप किसी इंसान को अपना क्लाइंट बनाना चाहते हो किसी अट्रैक्टिव इंसान का नंबर लेना चाहते हो। आपको कॉन्वरसेशन को कुछ इस तरह से मोड़ना होगा कि वो सामने वाला इंसान हो, जो असली ऐक्शन ले और आपके गोल को पूरा करें। फॉर एग्जाम्पल अगर आप एक डील को क्लोज़ करना चाहते हो तो अपने क्लाइंट से यह मत पूछो कि सर हम नेक्स्ट टाइम मिलेंगे या नहीं बल्कि यह बोलो सर जब हम नेक्स्ट टाइम मिलेंगे तो ये होगा। ऐसा करने से आप कन्वर्सेशन और सामने वाले इंसान को एक राह दिखा देते हो, जिससे बाहर निकलना नैचुरली थोड़ा मुश्किल होता है और ऊपर से इस तरह से दूसरा इंसान ये भी समझ जाता है कि आप कितने कॉन्फिडेंट हो। इसलिए दूसरों को एक अच्छा फ्यूचर विजुअलाइज करवाओ और उन्हें कुछ ऐक्शन लेने के लिए करो। आप उनसे पहले ही कमिटमेंट ले सकते हो जैसे आप बोल सकते हो कि आप उन्हें कल दिन में 10:00 बजे कॉल करोगे ताकि वह अवेयर रहे और यह भी बता दे कि वो अवेलेबल होंगे या नहीं। और इस तरह से आप किसी से भी अच्छे से कम्यूनिकेट करने, अपने आप को एक्सप्रेस करने और उनसे कनेक्शन बनाने के काबिल बन पाओगे।","हममें से कई लोग लोगों से बात करने से खुद को रोक लेते हैं। चाहे वह हमारा मजाक उड़ाए जाने का डर हो या खराब संचार कौशल का अहसास। यह डर हमारी भावनाओं और कार्यों का मार्गदर्शन करता है, और इस डर पर काबू पाने के बिना हम कभी भी किसी से भी बात नहीं कर पाएंगे जिसे हम चाहते हैं। तो, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम बातचीत के 4 चरणों पर चर्चा करेंगे, अपनी मानसिकता बदलें और अपने संचार कौशल को कैसे सुधारें।" "साइकोलॉजी को डिफाइन करा जाता है। ऐसा साइंटिफिक स्टडी जिसका फोकस हमारे दिमाग, उसके फंक्शन्स और हमारे ओवरऑल बिहेव्यर पर होता है। डेटा इकट्ठा करने के लिए साइकोलॉजी, न्यूरो साइंस, एंथ्रोपोलॉजी और फिजियोलॉजी जैसी फील्ड की मदद लेती है। पर हिस्टोरिकल एविडेन्स बताता है की दिमागी प्रोसेसेस में एक फिलॉसफिकल इन्ट्रेस्ट तो काफी सारे पुराने कल्चर में हजारों सालों से रहा है। साइकोलॉजिकल अन्डरस्टैन्डिंग का काफी सारा एवीडेंस एन्शिएंट इजिप्ट के मेडिकल टेस्ट और हिंदू क्योंकि वैदिक स्क्रिप्ट्स में मिला है। वेस्टर्न कल्चर में भी साइकोलॉजी को डेवलप करने में कई ग्रीक फिलॉसफर्स का कॉन्ट्रिब्यूशन है जैसे प्लेटों, थेल्स, पाइथागोरस और एरिस्टॉटल। इसके साथ ही लगभग 2300 साल पहले। जी की पहली अन ऑफिशयल पर्सनैलिटी थ्योरी पेश कर रही थी, जहाँ पर उन्होंने बॉडी में मौजूद फ्लूइड्स को लोगों के बिहेव्यर के साथ जोड़ा और सेवेन्टीन्थ सेंचुरी में फ़्रेंच फिलॉसफर रहने दी। काटने डुअल इंजन थ्योरी पेश कर रही थी, जिसमें उन्होंने ये बोला था कि ह्यूमैन इक्स्पिरीयन्स माइंड और बॉडी जैसी दो अलग एंटिटीज के मिलन का रिज़ल्ट है। साइकोलॉजी की फील्ड एक सेपरेट स्टडी बनने से पहले इसी तरह से फिलॉसोफी इस करी जाती थी और ये सच है कि साइकोलॉजी फिलॉसॉफी से ही निकलकर बना है। फिर साइकोलॉजी को एक फॉर्मल डिसिप्लिन 1879 में विल हिं वोन्ट ने बनाया, जिन्हें मॉडर्न साइकोलॉजी का फादर माना जाता है। उनका गोल था साइन्टिफिक एक्सपेरिमेंट्स की मदद से फिलॉसफिकल प्रॉब्लम्स को सॉल्व करना और हमारे कॉन्शस एक्सपिरियंस को स्टडी करना स्पेसिफिकल्ली वोन्ट का मानना था कि हम अपने माइंड के स्ट्रक्चर को समझ सकते हैं। यानी खुद के मेंटल और इमोशनल प्रोसेसेस को ऑब्जर्व करने से इस मेथडोलॉजी को नाम दिया गया। स्ट्रक्चरल इं। ज़ अँ? ये हिस्टरी में पहली बार हुआ था कि साइकोलॉजी को एक साइनस की तरह देखा जाने लगा, क्योंकि अब हम अपने मेंटल प्रोसेसेस को क्वांटिफाइड कर सकते थे। एक और इम्पोर्टेन्ट शुरुआती साइकोलॉजिस्ट थे विलियम जेम्स जिन्होंने डार्विन की नैचरल सलेक्शन थ्योरी को यूज़ करा ह्यूमन बिहेव्यर को समझाने के लिए और बताया कि हमारे फिजिकल करेक्टर स्टिक्स की तरह हमारे साइकोलॉजिकल करेक्टर स्टिक्स भी इसलिए वॉल्व हुए हैं, क्योंकि वो फंक्शनल है और हमें किसी ना किसी तरह से एक रेवल्यूशनरी ऐडवांटेज देते हैं। इस थिंकिंग को नाम दिया गया फंक्शनल हज़म। लेकिन आज के टाइम पर इस स्टडी को बोला जाता है। एवल्यूशन अरी साइकोलॉजी इस पौंड तक साइकोलॉजी का मेन फोकस इन्सानों के कॉन्शस इक्स्पिरीयन्स पर था, लेकिन लेट 1800 में ऑस्ट्रिया के एक न्यूरोलॉजिस्ट सिगमन फ्रॉयड ने साइकोलॉजी की फील्ड का पूरा नक्शा ही बदल दिया, क्योंकि उनका गोल था एक ऐसी पर्सनैलिटी थ्योरी बनाना, जिसका फोकस अनकॉन्शस माइंड पर हो। फ्रॉड का मानना था कि हमारा बिहेव्यर बचपन की भूली हुई मेमोरीज़ और अनकॉन्शियस डिज़ाइनर से इन्फ्लुयेन्स होता है और उन्होंने ड्रीम्स और टॉक थेरपी जैसी चीज़ो की मदद ली। इस सबकॉन्शियस और अनकॉन्शियस इन्फॉर्मेशन को बाहर निकालने के लिए फ्रॉड की इस अप्रोच को बोला जाता है। साइकोएनालिसिस और इस अप्रोच ने आगे आने वाले कई साइकोलॉजिस्ट्स को एक्सपाइर कर रहा जैसे और केरन होर्नी पर साइकोलॉजी की फील्ड में फिर से एक बड़ा बदलाव आया। 1900 की शुरुआत में जब रशियन फिजियोलॉजिस्ट इवन पावलोव ने साइकोलॉजी में कॉन्शस और अनकॉन्शस माइंड से फोकस हटाकर बिहेव्यर को मेजर करना चालू करा और साइकोलॉजी की एक नयी ब्रांच को जन्म दिया, जिसे बोलते है बिहेवियरिज़म डॉग्स पर हुए एक क्लासिक एक्सपेरिमेंट में पावलोव ने ऑब्जर्व करा कि कैसे एक स्ट्रांग स्टिम्युलस जैसे खाना एक न्यूट्रल स्टिम्युलस जैसे घंटी की आवाज के साथ मिलकर इस न्यूट्रल स्टिमुलस के रिस्पॉन्स को भी ऐसा बना देता है, जो पहले सिर्फ स्ट्रॉन्ग स्टिमुलस के साथ देखने पर मिला था। एक्ज़ाम्पल के तौर पर जब आप एक सर्टन फूड खाते हो पर वो आपको सूट नहीं करता और आपकी तबियत खराब होने लग जाती है तब आपका दिमाग उस खाने की स्मेल या टेस्ट और आपकी बॉडी में होने वाले नेगेटिव रिस्पॉन्स को कनेक्ट कर देता है, जिससे जब भी आपको दोबारा उस खाने की स्मेल आती है तब आपको फिर से वही सिकनेस बोर्ड इस ऑगस्ट फील होने लग जाती है। इस बिहेव्यर को बोलते हैं क्लासिक कन्डिशनिंग आगे आने वाले कई साइकोलॉजिस्ट जैसे जॉन वॉटसन और बीएफ स्कैनर भी बिहेवियरिज़म के काफी बड़े ऐडवोकेट थे। पर मेन 1900 में कई साइकोलॉजिस्ट साइकोवनैलिसिस और बिहेवियरिज़म जैसे कॉन्सेप्ट्स को क्रिटिसाइज करने लगे और उन्हें इन्कम्प्लीट बोलने लगे। कई साइकोलॉजिस्ट जैसे ए अब्राहम, मास्लो और कार रोजर्स अपनी थ्योरीज बनाने लगे, जिनका फोकस पर्सनल रिस्पॉन्सिबिलिटी गोल सेटिंग और सेल्फ ऐक्चुअली स्टेशन जैसी चीजें थी। साइकोलॉजी की इस ब्रांच को बोलते हैं ह्यूमन इस टिक साइकोलॉजी और इसका एक मॉडल हमें स्कूल में भी पढ़ाया गया है, जिसका नाम है मांस लोस हाइरार्की ऑफ नीड जिसमें माँ सलोने हमारी 19 को मेन्शन करा हैं, जो हमें अलग अलग काम करने के लिए और चीज़ो को एक्वायर करने के लिए मोटिवेट करती है। ये ऐसा पहला ऑफिशल साइकोलॉजिकल मॉडल है, जो काफी होलिस्टिक है और हमारी लाइफ के हर ट्रैक पर फोकस करता है। 19 सिक्स टीज़ के आते आते और टेक्नोलॉजी के बढ़ने की वजह से साइकोलॉजी की एक नयी ब्रांच ज़ोर पकड़ने लगी, जो है कॉग्निटिव साइकोलॉजी, जो हमारी अटेन्शन, मेमोरी परसेप्शन, प्रॉब्लम सॉल्विंग और थिंकिंग जैसी कैपेबिलिटीज को डेटा में कन्वर्ट करती है। साइकोलॉजिकल एक्सपेरिमेंट की मदद से ताकि हम समझ सकें कि कौन सी चीजें इन कैपेबिलिटीज को बढ़ाती है और कौन सी हमें नुकसान पहुंचाती है। 19। सेवन टीज़ में हुई टेक्नोलॉजिकल डेवलपमेंट्स जैसे एमआरआई और पेट स्कैन। उसने इस फील्ड को हमारे दिमाग को और भी अच्छे से समझने के काबिल बनाया। उस टाइम से लेकर अब तक साइकोलॉजी की फील्ड में कन्टिन्यूअस एडवान्स्मेन्ट देखने को मिली है। रीसेंट रिसर्च ह्यूमन एक्स्पीरियंस के काफी अलग अलग ऐस्पेक्ट पर फोकस करती है, जैसे कल्चर, सोसाइटी, रिलेशनशिप्स, रिलिजन चाइल्डहुड सोशल मीडिया और इवन। आर्टिफिशियल इन्टेलिजेन्स आज के समय पर ज्यादातर साइकोलॉजिस्ट अपने आप को किसी एक स्कूल ऑफ थॉट के साथ असोसिएट नहीं करते। इसके बजाय वो एक पर्टिकुलर एरिया में स्पेशलिस्ट करते हैं और अलग अलग आइडियाज़ को साइकोलॉजिकल कॉन्टेस्ट में टेस्ट करते हैं।","आज, मनोविज्ञान को "व्यवहार और मानसिक प्रक्रियाओं के वैज्ञानिक अध्ययन" के रूप में परिभाषित किया गया है। मानव मन और व्यवहार में दार्शनिक रुचि मिस्र, फारस, ग्रीस, चीन और भारत की प्राचीन सभ्यताओं से शुरू होती है। 📽️ हमें यूट्यूब पर ढूंढें: WWW.YOUTUBE.COM/PSYCHOLOGYINHINDI" "एक फाइन डाइनिंग रेस्ट्रॉन्ट आपको बहुत ही अलग एक्स्पीरियंस देता है। एस कंपेर्ड टु फास्ट फूड जॉन्स जैसे कि मैकडॉनल्ड्स डॉमिनोस बर्गर किंग या फिर केएफसी जहाँ आप एक फास्ट फूड जॉइंट में बस कुछ खाने के लिए जाते हो, वही फाइन डाइनिंग रेस्ट्रॉन्ट अपने आप में एक काफी यूनीक एक्सपिरियंस होता है, जिसमें खाना उस पूरे एक्सपिरियंस का बस एक छोटा सा पार्ट होता है। यहाँ पर आपको बहुत ही अच्छे से सजा हुआ और बहुत छोटे पोषण में खाना दिया जाता है और आप एक ही मील में 10 से 15 डिशज़ ट्राई कर सकते हो। इस तरह के रेस्ट्रॉन्ट्स कई अलग टेक्नीक्स और साइकोलॉजिकल ट्रिक्स का यूज़ करते हैं ताकि आप वहाँ पर ज्यादा टाइम बिताओ। ज्यादा खाना ऑर्डर करो और ज़्यादा पे करो और इस एपिसोड में हम कुछ ऐसी ही ट्रिक्स को डिस्कस करेंगे। नंबर वन ज्यादातर फैंसी रेस्ट्रॉन्ट्स में लाइटिंग काफी डिम रखी जाती है और इसके बहुत से रीज़न होते है, जैसे सबसे पहले तो अगर लाइट्स डिम होती है तो हम ज्यादा रिलैक्स फील करते हैं, क्योंकि दिन मेसन होता है तो नैचुरली ज्यादा लाइट होती है और हमारी बॉडी हमें पूरी तरह से रिलैक्स होने से रोकती है। लेकिन डिम लाइट्स हमारी बॉडी को ये सिग्नल करती है कि अब रात हो चुकी है और अब काम का नहीं बल्कि रिलैक्स करने का टाइम है। अगर एक रेस्ट्रॉन्ट में बहुत ही ब्राइट लाइट्स हो तो अब ज्यादा ऐक्टिव फील करते हो और जल्दी से कुछ खा कर वहाँ से चले जाते हो, लेकिन कोई भी रेस्ट्रॉन्ट ये नहीं चाहता। वो चाहते हैं कि आप रिलैक्स करो और वहाँ ज्यादा से ज्यादा टाइम स्पेंड करो। इसके साथ ही जब लाइट्स डिम होती है, तब आप अपने खाने को भी अच्छे से नहीं देख पाते हैं, जिससे आप कितना खा रहे हो। आपको उसका भी कोई आइडिया नहीं होता। ऊपर से डिम लाइट इनमें फेसेज़ बहुत स्मूद लगते है। एनवायरनमेंट की कमियां भी एक हद तक गायब हो जाती है और माहौल काफी प्लेज़न्ट बन जाता है। यही कॉन्सेप्ट होता है कैंडल लाइट डिनर का नंबर टू यहाँ पर खाना एक पीस ऑफ आर्ट की तरह प्रिज़न जाता है। यानी ऐसे रेस्ट्रॉन्ट्स में आप खाने के लिए नहीं बल्कि एक्सपिरियंस के लिए पे करते हो। एक्स्पेन्सिव इन्टीरीअर, एक्जॉटिक इन्ग्रीडियेंट्स, क्रिएटिव डिशेस और वेल ट्रेंड स्टाफ हर चीज़ का ध्यान रखा जाता है ताकि आपके एक्सपिरियंस को मेमोरेबल बनाया जा सके। जहाँ नोर्मल्ली ईटिंग जॉइंट्स में ज्यादा से ज्यादा थ्री कोर्स मील सरकारी जाती है, वहीं फैंसी रेस्ट्रॉन्ट्स में 101520 कोर्स मील तक सरकारी जाती है। और क्योंकि आप इतनी सारी चीजें टेस्ट करते हो, खाने का सर्विंग साइज छोटा रखा जाता है ताकि आप का पेट जल्दी ना भर जाएं। इसके साथ ही अगर आप एक बड़ी मील खाते हो तो वह आपको उतनी लाइफ चेंजिंग नहीं लगती और आप उसके टेस्ट को लेकर यू हो जाते हो, लेकिन क्वांटिटी के कम मिलने पर जब आपको कोई चीज़ पसंद आती हैं, तब आप उसे दोबारा ऑर्डर करते हो। हर मिलाप को ऐसे सर्व कर दी जाती है जैसे वो उस मील का लिमिटेड एडिशन हो और साइकोलॉजी भी यही बोलती है कि हम उन चीजों को ज्यादा अप्रीशीएट करते हैं जो रेर और एक्स्क्लूसिव होती है। इस तरह से हम भी अपने खाने से ज्यादा सैटिस्फाइड फील करते हैं। शेफ अपनी क्रिएटिव स्किल्स दिखा पाता है और रेस्ट्रॉन्ट भी ज्यादा पैसे कमा पाता है। नंबर थ्री रेस्ट्रॉन्ट्स का मेनू बहुत स्ट्रैटिजिक ली प्लैन होता है क्योंकि मेनू एक कस्टमर कि चौसा में एक बहुत बड़े रोल को निभाता है। मिश्री रेस्ट्रॉन्ट्स चाहते हैं कि आप उनकी सब से एक्स्पेन्सिव डिशेस तभी ज्यादातर में न्यूस के टॉप साइड में वो डिशेस होती है, जो उस रेस्ट्रॉन्ट की स्पेशल्टीज होती है या फिर जो बहुत महंगी होती है। यूश़ूअली इन महंगी डिशेज के इनग्रेडिएंट भी डिश के नीचे लिखे जाते हैं ताकि वो उसकी वैल्यू को जस्टिफाई कर सके। फिर भले ही उस देश में उन एक्स्पेन्सिव इन्ग्रीडियेंट्स की क्वांटिटी ना के बराबर ही क्यों ना हो। मेनू में ऑप्टिमल ऑप्शन्स दिए जाते हैं जो ना तो बहुत कम होते हैं की कस्टमर के पास कोई चॉइस ही ना रहे और ना ही बहुत ज्यादा कस्टमर कन्फ्यूज़ ना हो जाए। इसके साथ ही डिशेस को फैंसी नेम्स दिए जाते हैं। की वो आपके अंदर की ऑडियो सिटी जगाएं और आपकी अटेन्शन खींचें है। नंबर फ़ोर म्यूसिक ऐंड फ्रेग्रेन्स इस तरह के रेस्ट्रॉन्ट्स में म्यूसिक बहुत ही स्लो चलाया जाता है क्योंकि ऐसा करने से कस्टमर एक रिलैक्स मेंटल स्टेट में आ जाता है। वहीं जब म्यूसिक तेज चलता है तब आप जल्दी खाना खत्म करते हो और अपनी मील को उतना एन्जॉय भी नहीं करते हो। इसके साथ ही रेस्ट्रॉन्ट में फैली भी काफी माइल्ड होती है, जो आपके एपेटाइट को बढ़ाती है। नंबर फाइव वेटिंग टाइम आप जब भी एक अच्छे रेस्टोरेंट में जाते हो और फ्री टेबल के लिए पूछते हो तो वह आपको ज्यादातर केसेस में एक ऑप्टिमल टाइम बता देते हैं। जैसे 15 मिनट्स भले ही एक टेबल को फ्री होने में आधा घंटा ही क्यों ना लगना होता कि आपको यह ना लगे कि आपको ज्यादा वेट करना पड़ेगा। इवन अगर वो रेस्ट्रॉन्ट खाली भी रहता है तब भी आपको यह बोला जाता है कि आप अपनी टेबल पहले से ही बुक कर लो ताकि किसी को भी ऐसा ना लगे कि उस रेस्ट्रॉन्ट को कस्टमर अट्रैक्ट करने में कोई मुश्किल हो रही है। यहाँ तक कि जब डिश को बनाने में टाइम लग रहा होता है तब वेटर को एडवाइस दी हुई होती है कि वह कभी आपकी टेबल पर आकर प्लेट्स को सजा ए और कभी आपको पानी सर्व करें ताकि आपको ऐसा ना लगे कि आपका कीमती टाइम वेस्ट हो रहा है और इस तरह से जितना एक रेस्ट्रॉन्ट आपको अपने बारे में अच्छा फील कराता है। उतना ही वो आपसे आपके पैसे निकलवा पाता है।","फाइन-डाइनिंग रेस्तरां में आपका अनुभव वास्तव में फास्ट-फूड संयुक्त से अलग है। पूर्व के मामले में, आप स्वयं अनुभव के लिए भुगतान करते हैं लेकिन बाद में, केवल भोजन के लिए। ये रेस्तरां आपको लंबे समय तक रहने, अधिक चीजें ऑर्डर करने और अधिक भुगतान करने के लिए कई तकनीकों और मनोवैज्ञानिक तरकीबों का उपयोग करते हैं। इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम 5 ऐसे मनोवैज्ञानिक ट्रिक्स के बारे में बात करते हैं जो आपको यह समझने में मदद करेंगे कि एक हाई एंड रेस्तरां अपने ग्राहकों से किस चतुर तरीके से पैसे कमाता है।" "रिसेंटली जॉनी डेप और एंबर हर्ड के ट्रायल से निकली वाइरल वीडीओ ने लोगों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि किस तरह से अगर उन्होंने भी एक टॉक्सिक पार्टनर कोरलियॉन आइडेंटिफाइ नहीं करा तो उनकी जिंदगी के भी सालो वेस्ट हो जाएंगे और आखिर में वह फाइनैंशल लॉस में चले जाएंगे और उनकी पब्लिक इमेज भी खराब हो जाएगी। जो चीज़ डेप और हर्ड के केस को ज्यादातर डोमेस्टिक अभी उसके केस से अलग बनाती है, वो ये है कि यहाँ पर एविडेन्स एक फीमेल के खिलाफ़ है और विक्टिम एक मेल है। यानी ना तो हर तरह का अब्यूस सम होता है। और ना ही हम किसी इंसान की टॉक्सिक बिहेव्यर को सिम्पली उसके जेंडर के बेसिस पर गैस कर सकते हैं। हर टॉक्सिक इंसान की खुद की कहानी भी अलग हो सकती है और उनकी अब्यूस करने का तरीका भी हाउएवर एक टॉक्सिक पार्टनर रिलेशनशिप के हर स्टेज पर अपने सच के कई साइनस और क्लूस हमेशा रिवील कर रहा होता है और आपकी बेटर अन्डरस्टैन्डिंग के लिए इस एपिसोड में हम कही। ऐसे ही साइनस को एक्सप्लेन करेंगे साइन नंबर वन ब्लेमिंग योर पार्टनर्स फॉर योर ओन इमोशन्स जब भी एक ऐसा इम्मेच्युर इंसान किसी रिलेशनशिप में आता है जहाँ पर ना तो उसे अपनी खुद की बाउंड्रीज पता होती है। और ना ही दूसरे की। तब उसे लगता है कि अगर वह परेशान है तो उसे खुश करने की जिम्मेदारी दूसरों की है। मैच्योर होने का सबसे पहला साइन होता है कि एक इंसान खुद के इमोशन्स को खुद कंट्रोल में रखना जानता है। वह ना तो भारी सिचुएशन्स को खुद को इन्फ्लुयेन्स करने देता है और ना ही अपने मूड की जिम्मेदारी को आउटसोर्स करता है। लेकिन टॉक्सिक पार्टनर्स हमेशा आप को ब्लेम करेंगे और खुद की नेगेटिव इमोशन्स की जड़ तक पहुंचने और सेल्फ रिफ्लेक्ट करने के बजाय वो बोलेंगे कि उनकी साइड ने इसकी वजह आप हो। यह लोगों के सबसे टॉक्सिक बिहेव इयर्स में से एक है। क्योंकि बिना वजह की दूसरों को एक यूज़ करने से सिर्फ आपका रिलेशनशिप ही खराब नहीं होता बल्कि आप इस तरह से दूसरे इंसान का मोरल डाउन करते हो और उसे अच्छा इंसान बनने के लिए अप्रिशिएट करने के बजाय उसके मन में यह डाल देते हो कि अच्छा ई करने से उसे कितनी ज्यादा बुरा ई मिल सकती है। इसलिए अगर आपके रिलेशनशिप में शुरुआत में ही आपका पार्टनर आपको ब्लेम करने लगता है, खुद की नेगेटिव इमोशन्स के लिए तो समझ जाओ कि उसकी यह फीलिंग कुछ महीनों और सालों बाद सिर्फ ब्लेमिंग के रूप में ही नहीं बल्कि लैक ऑफ सेल्फ अवेर्नेस अब्यूस और फॉल्स एक्यूजेशन जैसी चीजों के रूप में बाहर आएगी। साइन नंबर टू जस्टिफाई इन घर आ सैन एक्स्प्रेशन ऑफ लव लोग अपने बुरे एक्शन्स को हमेशा कवर अप करने की कोशिश करते हैं। प्यार के नाम पर जैसे कुछ महीनों पहले विल स्मिथ की कॉमेडियन क्रिस रॉक को पूरी दुनिया के आगे थप्पड़ मारने की जस्टिफिकेशन ये थी कि वो विल का प्यार था जिसने उन्हें क्रिस रॉक को स्लैप करने पर मजबूर कर रहा। इस तरह का बेहेवियर यूज़्वली एक लॉन्ग टर्म टॉक्सिक रिलेशनशिप में ही बाहर आना शुरू होता है क्योंकि इस पॉइंट पर दोनों लोग एक दूसरे से डीप्ली अटैच तो हो ही पड़े होते हैं। लेकिन उनमें डिफरेन्स इतने ज्यादा बढ़ गए होते हैं कि वो अपनी हैट और एग्रेसिव बिहेव्यर को भी प्यार समझने लगते हैं। ऐसे में अगर आप अपने पार्टनर पर चीट करो तो आप उससे भी प्यार से जस्टिफाई कर सकते हो। अगर आप किसी को थप्पड़ मारो तब भी या इवन अगर आप किसी को डिफेम या फिर एक यूज़ करो तब भी अपने गुस्से को प्यार का नाम देकर एक इंसान ये प्रूफ कर रहा होता है कि ना तो वो अपने इमोशन्स को ओं करने की हिम्मत रखता है और ना ही वो ये एक्सेप्ट कर पा रहा है कि उसका रिलेशनशिप तो ऑलरेडी ओवर हो चुका है। साइन नंबर थ्री बाइंग के सॉल्यूशन्स टू रिलेशनशिप प्रॉब्लम्स ऐसा भी बहुत से रिलेशनशिप में होता है कि जब भी उन दो लोगों के बीच में लड़ाई होती है तब एक इंसान हमेशा दूसरे को मनाता है। उसे कोई गिफ्ट देकर अपने पार्टनर को अच्छी चीजों से ट्रीट करने में कोई बुराइ नहीं है। लेकिन इस तरह मटिरीअल चीजों को यूज़ करना किसी के इमोशन्स को स्टेबल करने के लिए बजाए एक्चुअल प्रॉब्लम पर ध्यान देने के इससे ओवर टाइम प्रॉब्लम्स और बढ़ती है। जीवन बहुत से केसेस में ये सॉल्यूशन सिम्पली फिजिकल इंटिमसी के रूप में भी दिख सकता है। पर हर तरह से बात यही है कि आप अपनी प्रॉबलम्स की जड़ तक पहुंचने के बजाय बार बार दूसरे इंसान को सुपौल करते हो। इस तरह से रिपीटेड ली। जब एक इंसान दूसरे की प्रॉब्लम को इनडायरेक्ट वेज में सॉल्व करने की कोशिश करता है तो दूसरे इंसान के पास कोई वजह ही नहीं होती खुद को चेंज करने की या फिर अपने बुरे बर्ताव के लिए अकाउंटेबल होने की और उसे बेसिकली एक इन्सेंटिव मिल जाता है फालतू की लड़ाईयां करने का, क्योंकि जितनी ज्यादा लड़ाइया उतने ज्यादा गिफ्ट्स यह बिहेव्यर बहुत ही ज्यादा टॉक्सिक होता है और इवेन चली दोनों लोगों को एक दूसरे के लिए बहुत ही बना देता है। साइन नंबर फ़ोर हॉट स्टाइल वे ऑफ कम्यूनिकेशन टॉक्सिक इंसान आपको काफ़ी शुरू में ही अपनी साइट की झलक दिखा देता है जब वह खुलकर कम्यूनिकेट करने के बजाय 10 सिचुएशन्स में एक होस्टाइल इंसान का रूप ले लेता है यानी वो गुस्सा होने पर चीजों को तोड़ता या फेंकता है, चिल्लाता है, आपको गलत नामों से पुकार ता है या फिर आपको साइलेंट ट्रीटमेंट देता है, जब तक आप उसके पीछे पड़ कर उसे मनाने नहीं आते हैं। यह बिहेव्यर सीधा सीधा उस इंसान के चाइल्डहुड से जुड़ा होता है। जिसतरह से एक बच्चा अपनी विशेष पूरी ना होने पर दिखाता है वैसे ही एक टॉक्सिक पार्टनर भी अपनी बात मनवाने के लिए अपने अंदर के बच्चे को बाहर ले आता है। साइन नंबर फाइव हाइ लेवल्स ऑफ अगर आपका पार्टनर खुद की सफलता से ज्यादा दूसरों को हिट करने और खुद को एक विक्टिम दिखाने में अपनी एनर्जी लगाता है तो यह क्लिअर है कि उसकी टॉक्सिसिटी आपकी ग्रोथ को भी धीमा कर देगी। ऐसा इंसान बोलता तो है कि उसमें कुछ कर दिखाने की क्षमता है और उसका फ्यूचर ब्राइट है। लेकिन पास्ट को पास्ट में छोड़कर मूव ऑन करने के बजाय वो एक ही जगह पर खड़े रहकर अपने दुखों की परिक्रमा करता रहता है। कोई भी सक्सेस जीवन इंसान वीज़्ली फेल्यर का शिकार बन सकता है अगर उसके सबसे करीबी लोग मीडियोकर और कम प्लैनर्स हो तो साइन नंबर सिक्स दें वॉन्ट टू कंट्रोल योर एवरी मूव, हर तरह का कन्ट्रोलिंग बिर यानी जहाँ एक इंसान अपने से भारी चीज़ हो या फिर लोगों को अपने नियंत्रण में रखने की कोशिश करता है, वह इसलिए ऐसा करता है बिकॉज़ उसका खुद पर कोई कंट्रोल नहीं होता। यह बिहेव्यर अक्सर उन लोगों में कॉमन होता है जिन्हें ओसीडी यानी ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसोर्डर होता है। वो अपनी साइट के कॉन्टेंट को तो मैनेज नहीं कर पाते हैं इसलिए एक सीन्स ऑफ कंट्रोल फील करने के लिए वो अपनी इस कमी को भारी दुनिया में प्रोजेक्ट कर देते हैं और दूसरे लोगों को कंट्रोल करने लगते हैं। ऐसा पार्टनर यह जानना चाहता है कि आप किस किस से बात करते हो, कहाँ जाते हो, पूरे दिन क्या करते हो, क्या खाते हो, क्यों खाते हो? अगर इनका बस चले तो ये तो आपको सांस लेने की परमिशन लेने के लिए भी मजबूर करते हैं। इसी वजह से कन्ट्रोलिंग बिहेव्यर को कभी भी रिलेशनशिप की शुरुआत में इग्नोर मत करो क्योंकि यह क्लिअर कट साइन होता है। टॉक्सिसिटी का साइन नंबर सेवन लाइंस एंड ओनली इस टॉक्सिक लोगों की पूरी रीऐलिटी ही झूठ की बुनियाद पर टिक्की होती है। जिससे वो खुद से भी झूठ बोलकर खुद को बना लेते हैं और वो आपकी अवेर्नेस भी छीनने की कोशिश करते हैं। आप से झूठ बोलकर झूठ बोलने वाले लोगों में कोई इंटेग्रिटी नहीं होती और वो कभी भी आपको धोखा दे सकते हैं, क्योंकि उनकी परसेप्शन ही धोखे से बनी है। इसलिए अगर आप अपने पार्टनर कोरलियॉन झूठ बोलते पकड़ लो तो इस बात को इग्नोर मत करो और उसी पॉइंट से सावधान हो जाओ क्योंकि चान्सेस है कि आपको एक बहुत ही टॉक्सिक इंसान प्यार करना का पहन कर मैनिपुलेट करना शुरू कर रहा है।","हाल ही में कई हाई प्रोफाइल कपल्स ने साबित किया है कि एक टॉक्सिक पार्टनर आपको केवल मानसिक रूप से थका सकता है, लेकिन वे आपकी सामाजिक छवि को भी बर्बाद कर सकते हैं और दूसरों को आपकी ईमानदारी पर सवाल उठा सकते हैं। एक साथी का चयन एक सचेत प्रक्रिया होनी चाहिए न कि एक आवेगी कार्य। इसीलिए इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम 7 शुरुआती संकेतों के बारे में बात करेंगे जो आपको संभावित जहरीले साथी की पहचान करने में मदद कर सकते हैं।" "ये रीज़न है कि क्यों? अगर हमें ट्रांसफॉर्म होना है और अपना एक बेटर वर्जन बनना है तो हम बिना मुश्किलों को पार करें और सैक्रिफ़ाइस करें, आगे नहीं बढ़ सकते हैं। ये आइडिया काफी अच्छे से सिंबला इस किया गया है मैथोलॉजिकल क्रीचर फ़ीनिक्स के थ्रू क्योंकि फिनिक्स एक ऐसा बर्ड है जो जीता है, बूढ़ा होता है और अपने आप को जल के मरने देता है जिसके बाद वो उसी राख से निकलकर एक नई लाइफ जीना शुरू करता है। बट इन ट्रांसफॉर्मेशन में जो असली फिनिक्स था वो पूरे टाइम कॉन्स्टेंट रहता है और के कॉन्सेप्ट में ये कॉन्स्टेंट होता है। 10 सेल्फ यानी 10 सेल्फ। हमारी साइकिल का वो पार्ट होता है जो हमारी ट्रांसफॉर्मेशन समे कॉन्स्टेंट या फिर इम्पैक्ट रहता है, क्योंकि द सेल्फ एक तरीके से हमारा प्रेसेंट और फ्यूचर का टोटल होता है। यानी हम जो है और जो कुछ भी हम अभी भी बन सकते हैं, पर हम अपना मैक्सिमम पोटेंशिअल कभी रीच नहीं कर पाएंगे। अगर हम अपने पुराने पार्ट्स को जलने नहीं देते क्योंकि ऐसा बहुत रेरली होता है कि हम कुछ गेन कर पाते हैं। बिना कुछ लूज़ करें दैट स्वाइ जो चीज़ ओके है वो असल में ये पूरा प्रोसेसर है जीना मरना और फिर से पैदा होना जितनी बार हम अपने उन पार्ट्स को मरने देते हैं जो हमें वो इंसान नहीं बनने देते हैं जो हम बन सकते हैं उतनी बार ही हम अपनी लाइफ में थोड़ा थोड़ा करके आगे बढ़ते हैं और अपने आई डी एल के पास पहुंचते जाते हैं। 2012 में रिलीज हुए एक रिसर्च पेपर में ऑथर्स ने बताया कि इस बोर होने की स्टेट को बनाने वाले दो महीन फैक्टर्स हैं। फर्स्ट्ली बोर होने के लिए हमें एक सर्टन लेवल का अराउजल या फिर साइकोलॉजिकल स्टिम्युलेशन चाहिए होता है। यानी जब हम कम साइकोलॉजिकली स्टिमुलेटेड होते हैं और हमारा ब्रेन किसी टास्क में इन गेज नहीं होता, तब हम रिलैक्स फील करते है। जैसे मेडिटेशन के टाइम पे बट जब हम ज्यादा होते है और हमारे अंदर एक टास्क में एंगेज होने की एनर्जी भी होती है। पर एट द सेम टाइम हमे कोई चीज़ अपीलिंग नहीं लगती, तब हम बोर होने लगते हैं। सेकंडली बोर्ड हम की फीलिंग तब आने लगती है जब हम किसी चीज़ पर अटेन्शन नहीं पे कर पाते हैं और ज्यादातर हमें ये लगता है की ये हमारे एनवायरनमेंट की वजह से होता है। फॉर एग्जाम्पल जब हम एअरपोर्ट में बैठे होते हैं, तब हमारे आस पास बहुत कुछ हो रहा होता है। इतने सारे लोग आपस में बात कर रहे होते है। हमारे पास रीड करने के लिए भी काफी चीज़े होती है और कई बार हमारे आसपास टीवी भी चल रहा होता है। पर जब फ्लाइट के डिले होने के स्ट्रेस की वजह से हम किसी भी एक चीज़ पर फोकस नहीं कर पाते हैं और हमारा माइंड एक चीज़ से दूसरी चीज़ पर जम कर रहा होता है तब हम ये सोचने लगते हैं की ये हमारे एनवायरनमेंट की वजह से हो रहा है और अगेन हम बोर होने लगते हैं। सी नी हेली जम शुरू होता है। पुराने बिलीव के खत्म होने पे है फॉर एग्ज़ैम्पल जब हमें समझाता है कि यूनिवर्स का स्केल क्या है? अर्थ जैसे कितने ही प्लैनेट्स है और उनमें कितने ही प्लैनेट्स पर लाइफ हो सकती है। तब हम यह सोचने लगते हैं कि हमारी एग्ज़िस्टन्स शायद उतनी इम्पोर्टेन्ट ये स्पेशल नहीं है जितना हम समझते थे और इसमें भी इतनी है यहाँ वो रही होती है एक ऐनिमल दूसरे ऐनिमल को मारने पर लगा रहता है और ऐसी एग्ज़िस्टन्स का क्या फायदा राइट ये चीज़ हर निहाल इस सोचता है कि वॉट से पॉइंट ऑफ ऑल थिस दूसरे हाथ पर हमारे सिस्टर्स मानते थे कि अर्थ यूनिवर्स का सेंटर है और हम बहुत स्पेशल हैं। और इसी वायु ने उनकी लाइफ को एक मीनिंग दे रखा था। तो क्या यहाँ पे और कल ऑपरेट हमारी नॉलेज है? क्योंकि जितना हम रिलिजन स्पिरिचूऐलिटी और एन्शिएन्ट टीचिंग से दूर होते जा रहे हैं उतना ही हमारी लाइफ में सेन्स ऑफ पर्पस कम होता जा रहा है। हमारे पास गोल्स तो है पर जब उन्हें सपोर्ट करने के लिए कोई मीनिंग ही नहीं होता तो हमारे अंदर कुछ अचीव करने की ड्राइव ही नहीं आती। यहाँ पर सबसे बड़ी गलती एक इंसान ये कर सकता है कि वो इस फीलिंग को सच मानने लगता है और तभी मेन लेसन एस काफी सब्जेक्टिव है। ये फीलिंग एक बैड ब्रेकअप के बाद की फीलिंग के बहुत सिमिलर है क्योंकि एक टॉक्सिक रिलेशनशिप के बाद हम बोल सकते है की ट्रू लव जैसी कोई चीज़ ही नहीं होती। बट हमारा ये व्यूस चेंज हो जाता है। जैसे ही हमें एक लविंग पार्टनर मिलता है सो निहाल इज़म एक हद तक लॉजिकल है। पर इससे भी ज्यादा ये एक ऑपर्च्युनिटी है। एक ऑपर्च्युनिटी जिसमें हम अपने व्यूस को शार्प कर सकते है, बट एक पेन्सिल की ही तरह हमें पहले अपनी कन्डिशनिंग की काफी लेंडर्स को उतारना पड़ता है। अपने ट्रू ओपिनियन्स और मीनिंग तक पहुँचने के लिए ऑलमोस्ट सारे लोग ही उन ब्यूटी स्टैन्डर्ड के आसपास भी नहीं होते हैं और ये लोग ऐवरेज कहलाते हैं ऐवरेज क्योंकि उनके जीन्स कई बार रेप्लिकेट हो चूके हैं ऐंड दैट स्वाइ उनके अभी तक टिके होने का मतलब है की वो जीन्स सेफ है हाउएवर अग्लीनेस अन प्लेज़न्ट इसलिए लगती है क्योंकि बायोलॉजिकली ऐवरेज अपीयरेंस में डिविएशन तब आती है जब एक इनडिविजुअल की हेल्थ खराब होती है उसके जीन्स की वजह से, यहाँ तक कि अगर कोई ऐनिमल बीमार हो जाता है तो वो अकेला रहना प्रिफर करता है ताकि वो इस बिमारी को आने वाली जेनरेशन के डीएनए में ना फैलाये। सो इट डज नॉट मैटर हमें कोई बिमारी है या नहीं? अगर हमारी स्किन खराब है, नोस बड़ी है या फिर हमारा फेस एसिमिट्रिकल है, तब भी हमें लोग डिफ्रेंट्ली ट्रीट करेंगे और कई बार हमें अगली बोलेंगे, जिससे हम अगली फील करेंगे। सो ये एक्चुअल रीजन्स है। वायु फील अगली नाउ क्वेश्चन ये है हाउ डू वी स्टॉप फीलिंग अगली वेल सबसे सिंपल तरीका है अपने आप को हेल्दी रखना एक्सरसाइज और डाइट की मदद से और उसके बाद भी। जो फ्लॉस हमें नैचुरली मिले हैं उन्हें एक्सेप्ट करना और उनकी रिस्पॉन्सिबिलिटी लेना। क्योंकि जो लोग अपने आप को एक विक्टिम समझते हैं, वो हमेशा ही इनसेक्युर रहते हैं। इसके साथ ही एक और ऑप्शन है अपने कॉन्फिडेंस को अंदर से बढ़ाना, जिससे हमारी सेल्फ वर्थ इक्स्टर्नली रेग्युलेट होने के बजाय इंटरनली रेग्युलेट हो। यानी हमें अपनी कमियों और खामियों से अटेन्शन हटा कर अपने उन फीचर्स और टैलेंट को अप्रीशीएट करना है जो हमें बाकियों से अलग बनाते हैं। इसका एक तरीका है मिरर में अपने आप को देखना बंद करना, क्योंकि ऐसा करने पर हमारी सेल्फ परसेप्शन बाहर से नहीं बल्कि हमारे अंदर से बनना शुरू होगी और हम यह कई बार दूसरों में भी ऑब्जर्व करते हैं कि कई लोग उतने अट्रैक्टिव ना होने के बावजूद भी काफी कॉन्फिडेंट होते हैं और तभी एक वेल डेवलप्ड पर्सनैलिटी हमेशा लुक्स को हरा सकती है। इट डज नॉट मैटर चाहे वो डेटिंग हो, वन नाइट स्टैंड हो या फिर एक जॉब इंटरव्यू हो एक कॉन्फिडेंट पर्सनैलिटी का चम् अलग ही होता है। 12015 की स्टडी में भी देखा गया की लॉन्ग टर्म रिलेशनशिप में अट्रैक्टिवनेस रिलेशनशिप सैटिस्फैक्शन से किसी भी वे में रिलेटेड नहीं होती ऐंड लास्ट ली इस बात को समझो की हर चीज़ में अगली ब्यूटीफुल सो नाइस, बैड, क्यूट, अमेज़िंग ये सारे ऐज़ एक्टिव ही उनके एस एम एस में होते हैं। वो हमारे ऊपर है की हमें उसमें क्या देखना है और बिल्कुल ऐसे ही हमें अपने आप में देखना चाहिए। कि हम अपने कौन से ऐस्पेक्ट को ऐक्सेस कर रहे हैं। क्या हम सिर्फ अपने के अगली पार्ट को ही ज्यादा अटेंशन दिए जा रहे हैं? या फिर हम सिर्फ अपने एक ऐस्पेक्ट को ही अपनी रिऐलिटी मान रहे हैं और अपनी रियल पोटेंशिअल को भूल रहे हैं? जहाँ पुराने जमाने के लोग अपने सपनों को अपने पूर्वजों की नॉलेज समझते थे, वहीं मॉडर्न साइअन्टिस्ट इन्हें बस दिमाग में होने वाली कुछ रैन्डम ऐक्टिविटी समझते हैं। पर अगर आप ध्यान से अपने ड्रीम्स को ऐनालाइज करो तो आप ये समझ जाओगे। की ड्रीम्स रैन्डम बिल्कुल नहीं होते। और यहाँ से शुरू होता है साइकोलॉजी का काम बिकॉज़ 80199 में सिगमन फ्रॉयड ने अपनी बुक इन्टरप्रेटेशन ऑफ ड्रीम्स में बताया कि हमारे ड्रीम्स हमारी विशेष पूरी करने के लिए होते हैं। फॉर एग्जाम्पल आपकी एक सबकॉन्शियस सेक्शुअल फैंटेसी जो असली लाइफ में पूरी नहीं हो सकती, वो आपके ड्रीम्स पूरी कर देते हैं और ये काफी हद तक लॉजिकल साउंड करता है। अगर हम इसे एवल्यूशन के कॉन्टेस्ट में देखें यानी जीस तरह से हमारे हर ऐक्शन जब बेहेवियर की बेसिक अंडरलाइन मोटिवेशन सक्सेसफुल रीप्रोडक्शन की मदद से अपनी स्पीसीज़ को कंटिन्यू रखना है वैसे ही हमारे ड्रीम्स भी हमारी सेक्शुअल लीडस् पर बेस्ट होते हैं। पर फ्रॉड की ये एक्सप्लेनेशन इन्कम्प्लीट है क्योंकि हर ड्रीम हमारी फैंटसीज़ से रिलेटेड नहीं होता। कई बार हमें मरने का ड्रीम भी आ सकता है। कई बार कही से गिरने का और कई बार एक नाइटमेर दैट स्वाइ फ्रॉड के कोलीग कार युग ने अपनी थ्योरी मैं बोला की फर्स्ट ऑफ ऑल हम जितना डीप अपने दिमाग को समझते हैं, वो असल में उससे कहीं ज्यादा डीप हैं। और हमारा दिमाग सिर्फ कॉन्शस और सब कॉन्शस में डिवाइड नहीं है, बल्कि हमारे दिमाग में एक अनकॉन्शियस पार्ट भी होता है, जिसमें हमारे बचपन से लेकर अब तक की पर्सनल मेमोरीज़ और हमारे की कलेक्टिव मेमोरीज़ होती है और सोते टाइम अनकॉन्शियस स्टेट में होने की वजह से हम अपने अनकॉन्शस माइंड को ऐक्सेस कर पाते हैं। हमारे दिमाग का ये हिस्सा आठ हिस्टरी फिलॉसफी, मिथोलॉजी कल्चर ट्रेडिशन्स रिचुअल्स। और सिंबल से भरा हुआ है और तभी हमारे ड्रीम्स हिंदी, इंग्लिश या स्पैनिश जैसी लैंग्वेजेस में नहीं बल्कि सिम्बॉलिक इमेज एस की लैंग्वेज में बात करते हैं। हमारा दिमाग इन इमेजेज को यूज़ करता है उस इन्फॉर्मेशन को कॉन्शस माइंड तक पहुंचाने के लिए, जो हमें किसी मुश्किल से बाहर निकाल सकती हैं, सो लेट से आप एक टॉक्सिक रिलेशनशिप में हो और आपको समझ नहीं आ रहा कि आप उस इंसान को कैसे दूर कर सकते हो तो चान्सेस है कि आपका अनकॉन्शस माइंड आपके ड्रीम? मैं आपको साफ जैसा कोई क्रीचर दिखाएं क्योंकि ज्यादातर कल्चर्स में सांप टॉक्सिसिटी ट्रांसफॉर्मेशन या के उसको सिंबला इस करता है या शायद आप को एक पूरी स्टोरी दिखे जिसकी मदद से आप को यह समझ आ जाए कि आपको रियल लाइफ में इस नई नॉलेज को कैसे यूज़ करना है? हमारा दिमाग हमें वो चीज़ दिखाने की कोशिश करता है जो अभी तक हमें समझ नहीं आई है। इससे हम एक तरह का अनकॉन्शियस रिस्पॉन्स समझ सकते हैं। अपनी कॉन्शस स्टेट के लिए बट जस्ट बिकॉज़ हमारा अनकॉन्शस माइंड कॉन्शस माइंड की तरह मॉडर्न नहीं है और वर्ड्स उसकी फर्स्ट प्रायोरिटी नहीं है। वो एक पर्टिकुलर इमोशन का सबसे करीबी सिंबल चूज करता है। जैसे अगर आप अपनी जॉब स्कूल या कॉलेज को हिट करते हो और आपको समझ नहीं आ रहा कि आप अपनी लाइफ के साथ क्या कर रहे हो तो आपका ड्रीम इस इमोशन को कई अलग सिंबल्स के थ्रू एक्सप्रेस कर सकता है। जैसे एक जंगल में गुम हो ना। एक अंधेरे रास्ते पर चलना या फिर अपनी आंखें खो देना। तीनों सिंबल्स एक ही मैसेज देना चाहते हैं कि आपको नहीं पता कि आप क्या कर रहे हो और शायद आपको अपनी चॉइस के बारे में दोबारा सोचना चाहिए। जितना आप अपने ड्रीम्स की इस लैंग्वेज को समझने की कोशिश करोगे उतना ही आपके ड्रीम्स आपसे बात करने की कोशिश करेंगे। यह एक काफी अच्छा तरीका होता है सेल्फ अवेर्नेस हासिल करने का और अपनी नॉलेज की लिमिट्स को इक्स्पैन्ड करने का। ड्रीम्स की एक और क्वालिटी होती है उनकी विगनेस। यानी अगर हम इस आइडिया को एक्सेप्ट भी कर लेते है कि ड्रीम्स हमारी अपनी दुनिया की नॉलेज बढ़ाने का जरिया होते हैं तब भी शुरुआत में ये डाइजेस्ट करना बहुत मुश्किल होता है कि उनमें कोई सेन्स भी है क्योंकि ड्रीम्स बिल्कुल लॉजिकल होते हैं। दैट स्वाइ अगर कोई दूसरों के आगे बोले किओ मैंने अपने सपने में अपने आप को डूबते हुए देखा पर जब मैं पानी के तल तक पहुंचा वहाँ पर मुझे एक खजाना मिला और इस सपने से मुझे समझ आ गया। कि अगर मैं अपनी मुश्किलों से दूर नहीं भागूंगा तो शायद मुझे उसका कुछ इनाम मिलेगा। ऐसे इंसान को लोग पागल बोलेंगे पर कुछ टाइम बाद यही लोग सबसे ज्यादा सक्सेसफुल और समझदार बन जाते हैं। हाउएवर लोगों की यह नासमझी इसलिए एग्जिस्ट करती हैं क्योंकि उन्हें यह नहीं समझ आता कि ड्रीम्स में लॉजिक कम हो जाता है ताकि आपकी थिंकिंग की लिमिट से इक्स्पैन्ड हो सके और आपको दिखाए जाने वाले इन आइडियाज़ को आप अपनी लाइफ में अप्लाई कर सको। लास्ट ली हमे ये जानना बहुत जरूरी है कि ड्रीम्स कुछ समझा कैसे जाए? फास्टली हमें ड्रीम्स का बेसिक रूल याद रखना है जो हैं कि अगर कई चीजें सम इमोशन जेनरेट करती है तो वो सेम चीज़ ही है। कई चीजे हमें खुश करती है, कई चीजें हमें रुलाती है और कई चीजें हमें डराती है। सेकंडली कभी भी अपने ड्रीम को लिटरल्ली लेने की कोशिश मत करना अपने ड्रीम को ऐसे देखो जैसे आप एक मूवी या फिर एक स्टोरी को देखते हो। यानी अगर आप अपने सपने में मर जाते हो तो इसका मतलब यह नहीं है कि आप असली में भी मर जाओगे क्योंकि ड्रीम्स में टफर्स में बात करते हैं। जैसे एक स्टोरी को सुनकर आप उसके मॉडल या लहसुन के बारे में सोचते हो, वैसे ही ड्रीम्स के बारे में सोचो। थर्ड ली ड्रीम्स को समझने वाले के अंदर मिथोलॉजी और एवल्यूशन अली साइकोलॉजी की जेनरल नॉलेज होना बहुत जरूरी है। वरना अगर आप गूगल पर रैंडम वेब साइट्स पर अपने ड्रीम्स के मतलब देखना चालू करो गे तो आपको हर जगह नॉन सेन्स इन्फॉर्मेशन मिले गी जो हर इंसान पर अप्लाइ नहीं हो सकती और लास्ट्ली जब भी आप अपने ड्रीम का सही मतलब जान लेते हो तब नैचुरली आपको ऐसा लगता है कि आपको एक अधूरी फसल का पीस मिल गया हो। यानी शुरू में चाहे एक सपना, अजीब और सेन्स लगे बट जब आप उसका सही मतलब निकालने में कामयाब हो जाते हो तब आपको इनवेस्टिगेटिव ली वह सही लगता है और यही सबसे बड़ा इंडिकेटर होता है यह जानने का कि हमने ड्रीम इन्टरप्रेटेशन सही करी है या गलत? सो आर के टाइप्स को समझने के लिए हम उन्हें अपनी में मौजूद ऐसी इमेज एस पैटर्न ऑफ थॉट या फिर करैक्टर्स की तरह देख सकते हैं, जो हमारी एवोल्यूशनरी को दर्शाते हैं और ये इमेज एस हर इंसान के सबकॉन्शियस माइंड का पार्ट होती है, जिसे यू कलेक्टिव अनकॉन्शियस बोलता था। यानी आरके टाइप्स यूनिवर्सल होते हैं। जिसकी वजह से वो हर रिलिजन कल्चर, ट्रेडिशन, फेरी, टेल मूवी या नॉवेल में करैक्टर्स को उनके रोल और ड्यूटीज बताते हैं। और तभी अमेरिकन मैं थो लॉजिस्ट जोसेफ कैंबल हर स्टोरी में एक कॉमन थीम ढूंढ पाया था, जिसको उसने नाम दिया द हीरो जर्नी। एग्जाम्पल के तौर पे इंडिया में हर साल दशहरा पर हम देखते हैं कि कैसे छोटे छोटे बच्चे तीर, कमान, तलवार और गदा लेकर बिल्कुल ऐसे ऐक्ट करते हैं जैसे की वो असली में एक वॉरिअर है क्योंकि वो उन नकली को उठाने पर वो रिअर आर्केटाइप को ऐक्सेस करने लगते हैं। सिमिलरली कई फीमेल्स में मैटरनल ज्यादा होती है यानी वो एक मदर की तरह केरिंग अन्डरस्टैन्डिंग फूल टाइल और लविंग होती है। यानी वो मदर आर्केटाइप को एक्सेस करती है पर हर चीज़ की ही तरह आर के टाइप्स की भी दो साइड्स हो सकती है। अच्छी और बुरी और इस केस में मदर अपने बच्चों के काफी लविंग भी हो सकती है और वह उन्हें मार भी सकती है। ऐसे ही कई और आरके टाइप्स के एग्जाम्पल्स है। रेबल द हीरो दम एजुकेशन, द किंग, द क्वीन ऑफ एक्स्प्लोरर दल, ओवर द जस्टर, द रूलर, द आर्टिस्ट, द एव्रीमैन ओर द इनोसेंट ये आर के टाइप्स अपने आप को कई तरीकों से एक्सप्रेस कर सकते हैं, जैसे रिलेशनशिप्स में सोशल रोल्स में हमारे इमोशन्स के थ्रू और स्पेशल ली हमारे ड्रीम्स में। जैसे अगर हम एक ड्रीम में सांपों को देखते हैं, उनसे इंटरैक्ट करते हैं या फिर उन्हें सीधा मार देते है तो उस स्टोरी कभी फाउंडेशन आर्केटाइप से ही बनता हैं जहाँ पर सांप या वैसा कोई खतरनाक जानवर लाइफ की मुश्किलों को दर्शाता है और हम ज्यादातर हीरो आर्केटाइप का रोल निभा रहे होते हैं जो इस मुश्किल को पार करके जीत हासिल कर लेता है। हर कल्चर और बदलते टाइम के साथ आर्केटाइप से एक अलग रूप में बाहर निकलते हैं और हर आर्केटाइप किसी ना किसी तरीके से हमारी मदद करता है। जैसे जब हम बढ़ती से गुजरते हैं तब मेल्स में टेस्ट बढ़ने की वजह से वो वो रिअर आर्केटाइप को ऐक्सेस करने लगते हैं और फीमेल्स एस्ट्रोजन बढ़ने की वजह से, लवर आर्किटाइप को और इस नए बदलाव में उनकी साइकिल में पहले से मौजूद ये मेंटल इमेज एस उन्हें गाइड कर रही होती है की उन्हें कैसे बिहेव करना है, जिससे वो इस रोल को अच्छे से निभा पाए। सिमिलरली आरके टाइप्स हमें ड्रीम्स में सिंबल्स और स्टोरीज़ की मदद से मेसेजेस देने की कोशिश करते हैं, जिन्हें समझना हमारी रिस्पॉन्सिबिलिटी है। पर जेनरली हम अपने ड्रीम्स को उतना सीरियसली नहीं लेते हैं क्योंकि हमें लगता है कि वो बस हमारे दिमाग की बनाई रैन्डम इमेजेज है। लेकिन असल में वो करोड़ों साल के एवल्यूशन से बने। ऐसे एपिसोड्स है जो सिंबल्स इमेज एस और थॉट्स को जोड़कर हमें हमारे एन्सिस्टर्स के एक्स्पिरियंस के बेसिस पर वो इनसाइट्स देते हैं जिनकी मदद से हम लाइफ में आगे बढ़ सकते हैं और तभी जो लोग काफी इमेजिनेटिव होते हैं उन्हें अपने मुश्किल टाइम में काफी ड्रीम जाते हैं जो की एक्चुअल स्टोरीज़ के जैसे होते है। हाउएवर एक आर्केटाइप को कैसे एक्सप्रेस करना है वो काफी इम्पोर्टेन्ट है। यानी हमें ये नहीं चाहिए की एक आर्केटाइप हर टाइम हमारी पर्सनैलिटी को डोमिनेट करता रहे क्योंकि यह काफी अनहेलथी तरीका है एक आर्केटाइप को इंटिग्रेट करने का। दूसरी तरफ एक हेल्थी तरीका वो होगा जिसमे आर्केटाइप हमारी पर्सनैलिटी के साथ मिलकर काम करें और अपने आप को एक्सप्रेस करने के लिए वह हमारी पर्सनैलिटी के पार्ट्स को ना सरप्राइज़ करें। सो लेट से अगर एक इंसान ने केर्गिवर आर्किटाइप को काफी अच्छे से अपनी आइडेंटिटी के साथ इंटीग्रेट करा हुआ है, जो उसकी पर्सनैलिटी को भी डॉमिनेंट नहीं कर रहा तो वो इंसान हैपिनेस फॉर फुल्फिल्मन्ट अचीव कर पाएगा। दूसरों की केरकर के पर अगर उसने इस टाइप को ढंग से इंटिग्रेट नहीं करा हुआ तो वो अपने आप को खोने लगे गा दूसरों की मदद करने के चक्कर में और इस तरह से हर आर्केटाइप अपने नेगेटिव ऐस्पेक्ट भी दिखा सकता है, सो आर के टाइप्स को इंटिग्रेट करने का एक काफी सिंपल तरीका है अपने आइडियाज़ को इमिटेट करना। बिल्कुल वैसे ही जैसे बच्चे खेलते टाइम उन चीजों को करना सीखते हैं जो ऐडल्ट करते हैं। एक बच्चा कभी एक पुलिसमैन होता है, कभी एक डिटेक्टिव या डॉक्टर और कभी एक नया स् कार ड्राइवर। क्योंकि इन रोज़ को प्रैक्टिस करके वो उन स्किल्स को सीखने की कोशिश कर रहा होता है जो ऐडल्ट में होती है ताकि वो उन्हें बड़ा होने के बाद यूज़ कर पाए। इस तरह से वो आर्किटेक्ट को नैचुरली इंटिग्रेट करता है पर बड़े होने पर हम अपनी आइडेंटिटी और आरके टाइप्स को सिंक्रनाइज़ करना भूल जाते हैं। दैट स्वाइ अपने फेवरिट सिलेब्रिटी ज़ कैरेक्टर्स को इमिटेट करना काफी इफेक्टिव हो सकता है। आरके टाइप्स को एक्सेस करने का एक और अच्छा तरीका है उससे रिलेटेड म्यूसिक सुनना जैसे गैंगस्टर रैप हमारे अंदर आउट्लॉ ओर के रूलर आर्किटाइप को जगा सकता है। फ्लैट म्यूसिक 10 से जको और क्लासिकल म्यूसिक द आर्टिस्ट को हर अलग ट्यून हमारी साइट में मौजूद एक अलग सिंबल को ऐक्टिवेट करने की ताकत रखती है और हम ये अपनी अपीयरेंस की मदद से भी कर सकते हैं। जैसे एक शॉट हेर्कट और कैमोफ्लाज प्रिंट के कपड़े हमें एक वॉरिअर या फिर फाइटर जैसी वाइड दे सकते हैं और हमारे अंदर के वो रिअर को जगा सकते हैं या फिर एक रेड ड्रेस हमारे लवर को जगा सकती है। बट अगेन मुश्किल काम यही है की हम बिना अपनी पर्सनैलिटी को सप्रेस करें। एक आर्केटाइप को कैसे एक्सप्रेस करें? कई लोग उतने सेल्फ अवेयर नहीं होते हैं तो उनमें हमेशा टेम्प्टेशन आती है की वो अपनी पर्सनैलिटी के उन पार्ट्स को सप्रेस कर लें जो किसी पर्टिकुलर रोल या फिर आर्किटाइप से मैच नहीं करते। सो हम डिस्कस कर सकते हैं। ऐसे थ्री स्टेप्स जिनकी मदद से हम आर के टाइप्स को यूज़ करके अपने आप को और अपनी लाइफ को बेहतर बना सकते हैं। स्टेप वन फाइन्ड आउट योर डॉमिनेंट टाइप्स। क्योंकि हम सब ही हर टाइम किसी ना किसी आर्केटाइप को एक्सप्रेस कर रहे होते हैं। इवन जब हम खाली बैठे होते हैं तब भी हम द एव्रीमैन आर्केटाइप के रोल को निभा रहे होते हैं। सो हम देख सकते हैं कि इस लिस्ट में से कौन से आर्किटाइप सबसे ऐक्यूरेट्लि हमें डिफाइन करते हैं और अगर हमें कहीं ऐसे आगे टाइप्स मिलते हैं, जो हमारी पर्सनैलिटी को डोमिनेट कर रहे हैं। तो सबसे पहला टास्क यही होगा कि हम उन आर्केटाइप से सप्रेस हुए अपनी पर्सनैलिटी के पार्ट्स को वापस से एक्सप्रेस करना शुरू करें। स्टेप टू ग्रैप के वेटिंग पोटेंशिअल हम में से कई लोगों के लिए आर के टाइप्स काफी इंट्रेस्टिंग और यूज़फुल साबित हो सकते हैं। पर बाकी लोगों को नए आर्केटाइप को एक्सप्रेस करना इन ऑथेंटिक लग सकता है। पर हमें ये समझना जरूरी है कि हमारी पर्सनैलिटी हमारी साइट के उस पार्ट से आती है जिसमें हमारे पास्ट प्रिजेंट और फ्यूचर की सारी पोटेंशिअल छुपी हुई है। तो जो चीज़ हमें अभी ठीक लग रही है वो असल में हमारी अनयूज्ड और सप्रेस्ड पोटेंशिअल को जगा सकती है। फॉर एग्ज़ैम्पल अगर हमें एक लीडर का रोल निभाने की मिलती है पर हमें लगता है की एक लीडर बनना हमारे लिए इन ऑथेंटिक होगा और हम उससे रिलेट नहीं कर सकते तो वो बस इसलिए होता है क्योंकि हमने अभी तक उस टाइप को इंटिग्रेट नहीं करा है। सो, अपने उस पाठ को ऐक्सेस करने के लिए हम एक आर्केटाइप की मदद ले सकते हैं जिससे हम उस आर्केटाइप की स्ट्रेंथ को ऐक्सेस कर पाएंगे। और अपनी वेटिंग पोटेंशिअल को फाइनली अनलॉक कर पाएंगे और किसी भी आर्केटाइप को ऐक्सेस करने के लिए हम अपने आप से सिम्पली क्वेश्चन कर सकते हैं की वो पर्टिकुलर आर्केटाइप इस सिचुएशन में क्या करता? स्टेप थ्री स्टार्ट वॉकिंग टुवार्ड्ज़ और आइडिल लास्ट्ली हमारे पास एम करने के लिए एक गोल होना बहुत ज़रूरी है तो चाहे वो हमारे फेवरेट स्टोरी करैक्टर्स हो, ऐक्टर्स हो या फिर हमारा कोई फ्रेन्ड या रिलेटिव हो, हमें ऑब्जर्व करना चाहिए की क्यों हम सर टन स्टोरीज़ या फिर लोगों की तरफ खिंचे चले जाते हैं। क्योंकि चान्सेस है की वो लोग उन आरके टाइप्स को एक्सेस कर पा रहे हैं जिन्हें हमें अपने अंदर इंटीग्रेट करने की जरूरत है और इस तरह से बिना किसी को कॉपी करें या फिर एक मास्क पहने हम उस आर्केटाइप को अपने अंदर ढूंढ पाएंगे जितना हम आर के टाइप्स को बेहतर समझेंगे और अपनी लाइफ में उभरता हुआ महसूस करेंगे, उतना ही हम उस रोल के साथ कनेक्ट कर पाएंगे जिसके थ्रू हमारी कॉन्शसनेस इस लाइफ को जीना चाहती है। ये कैसा जी प्रोसेसेस है? हमें इस दुनिया में लाया जाता है जिसके बारे में हमें कुछ नहीं पता। थोड़े बड़े हो कर हम काम करने लगते हैं। हम कुछ रिसोर्सेस इकट्ठे करते हैं। हम शादी करते है, अपनी जेनेटिक इन्फॉर्मेशन के थ्रू और लोगों को इस दुनिया में लेकर आते हैं। हम रिटायर होते हैं और हम मर जाते हैं। बट वाइ ये क्वेश्चन हर इंसान के दिमाग में आता है, जब वो एग्ज़िस्टन्स से जुड़ी सफरिंग को एक्सपिरियंस करता है और इस पॉइंट तक पहुंचना ज्यादा मुश्किल नहीं है। अगर हम किसी भी ऐसी चीज़ को क्वेश्चन करने लगे जिसे हम सॉलिड समझते हैं तो ऐनुअली हर चीज़ को ही हम मीनिंग लेस बना सकते हैं। फॉर एग्जाम्पल। हमें पानी पीना होता है, वाइ वेल जिंदा रहने के लिए पानी काफी जरूरी होता है। वाइ क्योंकि हमारी बॉडी पानी से कई फंक्शन्स को पूरा करती है जैसे जॉइंट्स को ल्यूब्रिकेट करना, ब्रेन स्पाइनल कोर्ड और टिशूज जैसी चीजों को बचाए रखना और बॉडी को होमियोस्टेसिस पर रखना शुर बट वाइ क्योंकि अर्थ पर सबसे पहला सेल पानी के अंदर ही बना था। और तभी अभी तक हमारी बॉडी 60% पानी से ही बनी है। वाह लाइफ क्यों ओरिजिनेट हुई, इसका तो कोई रीज़न नहीं है हमारे पास। जोक सुसाइड ऐसे एग्ज़िस्टिंग चल क्वेश्चन्स हर बच्चे के दिमाग में आते हैं पर जब वो अपने पेरेंट्स और टीचर्स से इनके आन्सर्स मांगता है तब उसे कुछ क्वेश्चन्स के बाद ही चुप करा दिया जाता है और बच्चा ये नहीं समझ पाता कि बड़े भी उतने ही है जितना की वो है। एनीवे हमारे पास कई थ्योरीज है, जो एक्सप्लेन करती है की लाइफ कैसे स्टार्ट हुई? पर लाइफ क्यूँ स्टार्ट हुई, इसका हमारे पास कोई ऐडिया नहीं है, पर हम ठहरे ईगो वाले क्रीचर्स तो हमें जब किसी चीज़ का असर नहीं पता होता तो हम क्या करते हैं? हम सिम्पली गैस करते हैं और ये इनसाइड काफी वैल्यूएबल है क्योंकि गैस वर्क बिल्कुल अलग होता है कॉन्क्लूज़न से और जब हम बोलते है की लाइफ मीनिंग लेस है तो वो कॉन्क्लूज़न लाइफ के बारे में कम और हमारी नेचर के बारे में ज्यादा बताता। हम अपनी नेचर और बेहतर समझने के लिए साइकोलॉजी के अलावा फिलॉसफी और साइनस की भी मदद ले सकते हैं, क्योंकि हम काफी कॉम्प्लेक्स क्रीचर्स है और लाइफ को सिर्फ एक डाइमेंशन तक सीमित रखना इस आर्ग्यूमेंट के फेर नहीं होगा। 100 अब हम साइंस में थोड़ा और डीप जाए। तो फिज़िक्स का सेकंड ऑफ थर्मो डाइनैमिक्स हमें बताता है की एक आइसोलेटेड सिस्टम यानी जहाँ से ही अंदर या बाहर नहीं जा सकती। जैसे हमारा यूनिवर्स तो यहाँ पर यानी डिसोर्डर टाइम के साथ साथ बढ़ता है और लिव इन गज़ के केस में हम इस एन्ट्रॉपी या डिसॉर्डर को कन्टिन्यूसली फाइट कर रहे होते हैं और अपनी सराउन्डिंग् से एनर्जी लेकर अपनी इंटरनल एन्ट्रॉपी को कम रख रहे होते हैं। आप यह मेन डिफरेन्स है। एक डैड और लिविंग थिंग में लिविंग थिंग्स यूनिवर्स के डिसोर्डर को फाइट स्लोडाउन अभी इवन एक तरह से रिवर्स कर सकती है पर अगर किसी चीज़ में लाइफ का कोई साइन नहीं है तो वो इस डिस्ऑर्डर को फाइट नहीं कर पाएगा। ऐक्ट ली यही हमारी लाइफ का मीनिंग है, हमारी लाइफ में सफरिंग है और हम यूनिवर्स का वो पार्ट है जो की एन्ट्रॉपी को कम कर सकता है और जितना अच्छे से हम इन दोनों टास्क को हैंडल और परफॉर्म करते हैं उतनी ही फुल फिलिंग हम लाइफ जीते हैं। सो ये लाइफ की क्वेश्चन है जितना अच्छे से हम लाइफ की सफरिंग को एक्सेप्ट करते समझते और अपनी सफरिंग की रिस्पॉन्सिबिलिटी लेते हैं और जितना हम अपने अराउंड ऑर्डर लाते हैं, हमारी लाइफ उतनी ही मीनिंगफुल बन जाती है और हम इसे क्वेश्चन को बार बार टेस्ट भी कर सकते हैं। फॉर एग्जाम्पल हम सब लोगों की लाइफ में कोई ना कोई प्रॉब्लम होती है और अगर अभी कोई प्रॉब्लम नहीं है तो वो इवेन चली आ जाएगी। तो जब हम इन प्रॉब्लम्स को रिस्पॉन्सिबिलिटी, एक्सेप्ट और फाइट करते हैं और अपनी लाइफ और अपने अराउंड बाकी लोगों की लाइफ को इंप्रूव करते हैं, तब हम फुल फील फील करते हैं। थिस इस वी हम लाइफ के मीनिंग को तब क्वेश्चन करने लगते हैं जब हमें अपनी सफरिंग का एहसास होता है और लाइफ सफरिंग है। इसमें कोई डाउट नहीं है तो चाहे वह एक बेघर लड़का हो या फिर वो काइली जेनर हो सबकी लाइफ में प्रॉब्लम होती है और यही हमारी लाइफ का मीनिंग है और यह एक पैसे में स्टिक वो नहीं है क्योंकि हमारी लाइफ में काफी सारे छोटे छोटे हैप्पी मोमेंट्स भी आते हैं। बट अगेन ये मूवमेंटस सिर्फ तभी देर तक टिकते हैं जब हमें अपनी सफरिंग की समझ आती है। सफरिंग ईक्वल स्पेन बट ईक्वल, सीवन, मोरपेन और ये फैक्ट हमें ले आता है निहाल इंजन के ऊपर क्योंकि जब एक निहलिस्ट कॉन्क्लेव कर देता है की लाइफ मीनिंग लेस है तो इससे वो अपनी एग्ज़िस्टन्स की मुश्किलों की रिस्पॉन्सिबिलिटी हटा देता है। और तभी ये बोलना इतना होता है कि लाइफ का कोई मीनिंग नहीं है क्योंकि क्यों एक इंसान कोई रिस्पॉन्सिबिलिटी उठाएगा जब वो पूरे सिस्टम को ही बेसलेस बोलकर अपना काम आसान कर सकता है? पर जो लोग निहाई लिस्ट होते हैं उन्हें शुरू में यह नहीं समझ आता है की कुछ ना हो ना कुछ होने से किसी तरीके से भी बेहतर नहीं है और ये बेहेवियर हमें कई साइकोलॉजिकल एक्सपेरिमेंट्स में भी देखने को मिला है। ऐसे ही एक्सपेरिमेंट में जब लोगों को कुछ देर के लिए अकेला छोड़ा गया और उनके पास कुछ काम करने को नहीं था, तब उनके पास बस एक ऑप्शन था अपने आप को इलेक्ट्रिक शॉक देने का और जैसा कि हम सोच सकते हैं बहुत लोगों ने ली अपने आप को शौक दिया क्योंकि पेन बोर्ड हमसे काफी बेटर ऑप्शन है। यही हमारी नेचर है। हम ग्रो करते है, लाइफ की प्रॉब्लम्स को फेस करने से, पर जब हम अपने आप को मीन लेसन एस के साथ आइडेंटिफाइ करने लगते हैं, तो उस थॉट्स से अपने आप को बाहर लाना काफी मुश्किल हो जाता है। मीनिंग से जुड़ी रिस्पॉन्सिबिलिटी की वजह से थिंक अबाउट क्यों हम ड्रिंक करते है या फिर रिक्रिएशन ड्रग्स को यूज़ करते है? दोनों का सेम रीज़न है क्योंकि जब हम नशे में होते हैं तब हम अपनी रिस्पॉन्सिबिलिटीज को भूल जाते हैं और ऐसी ही थिंकिंग और बिहेव्यर हमें निहाल इज़म तक लेकर जाता सो लाइफ का मीनिंग है और ना तो वो इ रिस्पॉन्सिबिलिटी है और ना ही हैपिनेस। क्योंकि हैपिनेस भी सिर्फ ह्यूमन इमोशन का एक डाइमेंशन है और इतने सारे इमोशन्स में से एक को अपनी लाइफ का पर्पस बना देना भी बेवकूफ़ी होगी। एक इंसान हाइ लिस्ट होकर भी अपने हैप्पी मोमेंट्स को एक्सपिरियंस तो कर सकता है पर जब वो लंबे टाइम तक नेगेटिव इमोशन फील करता है और उसके पास सहारा लेने के लिए मीनिंग नहीं होता तो इवेन चली उसकी लाइफ काफी शैलो हो जाती है। और वो एक्सपिरियंस करने लगता है डिप्रेशन और सुसाइड थॉट्स। एंड मैं मैं ये बोलना चाहूंगा की मिनिमम लेसन्स ऑफ लाइफ एक लाइफ प्रॉब्लम से ज्यादा एक साइकोलॉजिकल प्रॉब्लम है, क्योंकि जब हम अपनी सिचुएशन को लाइफ की क्वेश्चन में डालते हैं तब हम अपने आप को यूनिवर्स के ऐडसेंस के साथ ऑनलाइन कर लेते हैं और इसमें चाहे हमारी लाइफ का पर्पस चेंज भी होता रहे तब भी हमारे पास इस प्रोसेसेस की एक बेहतर अन्डरस्टैन्डिंग होती है और हम ऐसे बेतुके कॉन्क्लूज़न से नहीं निकालते है। क्या होगा अगर हम भी अपना दिमाग एक कंप्यूटर में डाल दें और एक वर्चुअल रिऐलिटी में जीने लगे हैं? हम अभी से ही देख सकते हैं कि कैसे वर्चुअल रिऐलिटी गेम्स इतनी रियलिस्टिक हो गई है और उनको चलाने वाले कंप् यूटर्स इतने पॉवरफुल इन गेम्स की दुनिया अलग ही होती है और यहाँ पर जीतना और रूल्स को तोड़ना असली लाइफ के कंपैरिजन में काफी आसान होता है और तभी यह इतनी टेंपरिंग होती है, हाउएवर अगर हम इन मशीन्स को अपने दिमाग से कंपेर करें तो ये उसके आसपास भी नहीं है। आपका कंप्यूटर एक ऑपरेटिंग सिस्टम पर काम करता है जैसे विंडोस, मैक ओएस या लिनक्स, जिन्हें प्रोग्रामर्स शुरू से एंड तक लिखते है। पर दिमाग इस तरह से काम नहीं करता क्योंकि वो एवल्यूशन का रिज़ल्ट है। यानी वो करोड़ों सालों तक अपने हर टाइम बदलते एनवायरनमेंट में अडैप्ट करने की एबिलिटी थी, जिसने हमारे दिमाग को इतना कॉम्प्लेक्स बना दिया। फॉर एग्जाम्पल अगर हमारे किसी के डीएनए में कोई हम चेन जाता, जिससे हम ये याद रख पाते हैं कि खाना कहाँ पर है, हम अपने से बड़े जानवरों को कैसे चकमा दे सकते हैं या फिर हम अपनी एनर्जी कैसे बचा सकते हैं? तो उस के जिंदा रहने और अपना डीएनए अगली जेनरेशन में पास करने के चान्सेस उन एन्सिस्टर्स के कंपैरिजन में बढ़ जाते हैं, जिनके डीएनए में वो चेंज नहीं था। हमारे दिमाग में कई सारी ऐसी चीजें हैं जिनको हम समझ भी नहीं सकते कि वो आई कहाँ से क्योंकि दिमाग का हर पार्ट और इवन हर न्यूरल कनेक्शन का रीज़न हमारे जेनेटिक पास्ट में काफी डीप्ली गड़ा हुआ है। यह पार्ट्स मेनली तीन फंक्शनैलिटी, ज़ को रिप्रजेंट करते हैं। रेप टेलिन में मिलियन और प्राइमेट और जीस तरह से ये तीनों लेयर्स आपस में बात करती है। हमारी पर्सनैलिटी वैसी ही बन जाती है और अगर आप अपने माइंड को एक कंप्यूटर में डालना चाहते हो तो आपको इन तीनों लेयर्स इनमें हर एक न्यूरॉन और उसके सारे कनेक्शन्स को सेम टु सेम बनाना पड़ेगा वरना आपके वर्चुअल सेल्फ की पर्सनैलिटी उसके डिसिशन्स और चौ। सेंस आप से अलग होंगी। एक रीसेंट कंपनी जिसका नाम है नेक्स्ट ओम। वो एक काफी स्ट्रेन्ज प्रॉडक्ट ऑफर करती है, जिससे हम अपने दिमाग का एक बैकअप बनवा सकते हैं। पर इसके लिए हमें सूइसाइड करनी होगी। लाइक लिटरली नेक्स्ट तुम बोलता है कि हमारे दिमाग को कंप्यूटर में ट्रांसफर करने का सिर्फ एक तरीका है यानी एक जिंदा दिमाग को फ्रीज़ करके न्यूरो स्टे से हासिल करना और उन्होंने इस टेक्नीक को पेटेंट भी करा लिया है। इससे कोई भी इंसान अपने दिमाग को सिर्फ कुछ 100 सालों के लिए ही नहीं बल्कि हजारों सालों के लिए प्रिजर्व कर सकता है और जब भी फ्यूचर टेक्नोलॉजी इतनी ऐडवान्स हो जाएगी कि वो उसके नर्वस सिस्टम को एक सॉफ्टवेयर की तरह कंप्यूटर में डाल सकें, तब उस इंसान के माइंड को इस लंबी नींद से जगाया जाएगा। पर चान्सेस है कि उस टाइम हम एक बॉडी के साथ एक ऑपरेटिंग रूम में नहीं बल्कि एक डेटा सर्वर में उठे अलैस वो हमारे माइंड को एक रोबोटिक बॉडी के साथ अटैच कर पाए। पर इस प्रोसीज़र में एक ट्विस्ट यही है कि हमें ये होप करना होगा कि हम फाइनली 1 दिन वापस आ सके और उसके लिए नेक्स्ट तुमको हमारा जिंदा दिमाग निकालने के लिए हमें मानना होगा क्योंकि अगर वो उस टाइम का वेट करे, जब हम नैचुरली मरेंगे तो उस प्रोसीज़र का कोई फायदा ही नहीं होगा क्योंकि दिमाग के सबसे इम्पोर्टेन्ट फंक्शन्स जैसे मेमोरी ऐक्चुअल डेथ पर डैमेज हो सकती है और क्योंकि दिमाग बिना ऑक्सीजन के 4 मिनट तक जिंदा रह सकता है। कस्टमर को डायरेक्ट साइंटिस्ट के बीच में मारना और 4 मिनट के अंदर उसे लीक विज्ञान ट्रोजन में डूबा देना हासिल करने का अकेला तरीका है। पर ऑब्वियस्ली ये तरीका ज्यादातर लोगों के लिए इतना डरावना और इन लॉजिकल है, जिसकी वजह से इस प्रोसीज़र में जाने वाले लोगों की लंबी लिस्ट उन लोगों से भरी हुई है जिनको कोई जानलेवा बिमारी है और वो ऑलरेडी मरने वाले हैं तो वो बोलते है क्यों ना हम अपनी लाइफ को इस होप में खत्म कर दे की हम 1 दिन बिना किसी सफरिंग और दर्द के दुबारा जी पाएंगे पर अगर हम ये अस्यूम भी कर लें कि माइंड अपलोडिंग 1 दिन पॉसिबल होगा तब भी हमें एक फिलॉसोफिकल क्वेश्चन अपने आप से पूछना होगा कि क्या वो अपलोडेड माइंड आप ही होंगे? आइ मीन हूँ आर यू वो क्या होता है जिसे हम बोलते है माइसेल्फ या फिर योरसेल्फ? क्या आप अपनी मेमोरीज़ हो ओर गन्स, बॉडी पार्ट्स या फिर अपने थॉट्स कई रिलिजन्स? और इवन फिलॉसफर्स ने इस प्रॉब्लम को अलग अलग ऐंगल से सॉल्व करने की कोशिश करी है। पर सब से कंपलिंग और प्रैक्टिकल आन्सर हमें के कॉन्सेप्ट्स में मिलता है। साइकोएनालिसिस के फादर सिगमेंट फ्रॉड का स्टूडेंट था पर कई डिफरेन्स इसकी वजह से वो दोनों अलग हो गए हैं जहाँ पर फ्रॉड का मानना था कि हम एक ब्लैंक मेमोरी के साथ पैदा होते हैं और हमारा सेल्फ वो होता है जो हमें बताता है कि क्या सही है और क्या गलत। वही युग की अन्डरस्टैन्डिंग इससे थोड़ी ज़्यादा डीप थी। उसके हिसाब से ह्यूमन माइन्ड के अंदर हमारे सिस्टर्स की अनकॉन्शियस, मोटिवेशन, स् और बायोलॉजिकल मेमोरी बची रहती है। यानी एक बच्चा एक ब्लैंक स्लेट की तरह नहीं, बल्कि एक नए कंप्यूटर की तरह होता है, जिसमें पुराने कंप्यूटर्स के बेसिक फंक्शन्स भी होते हैं और नई चीजें स्टोर करने की कैपेबिलिटी भी। युग का मानना था कि सेल्फ हमारी साई का सेंटर होता है, जिसमें कॉन्शस और अनकॉन्शस माइंड दोनों होते हैं। इसका मतलब हमारी पूरी लाइफ में हमारी पर्सनैलिटी, डार्क साइड या कॉन्शस आइडेंटिटी सब चेंज होंगे। पर जो चीज़ सम रहे गी वो है हमारा सेल्फ, क्योंकि जो कुछ भी अभी हम है और जो कुछ भी हम बन सकते हैं वो सब सेल्फ के अंदर ही आता है। सिंपल वर्ड्स में बोले तो हमारा सेल्फ। हमारी पोटेंशिअल है जिससे हमारी साइट के बाकी सारे पार्ट्स कनेक्टेड हैं और ओलु युगों इस बात के लिए काफी क्रिटिसाइज भी करा गया था पर उसने अपनी बुक साइकोलॉजी ऐंड रिलिजन में 10 सेल्फ को गॉड विधि नस बोला और ये भी समझाया कि कैसे ज्यादातर रिलिजन्स में जीस चीज़ को सोल या फिर आत्मा बोला जाता है। वो असल में 10 सेल्फी होता है क्योंकि सिर्फ यही एक ऐसी चीज़ है जो हमें हमारे सबसे पहले और इवन पूरे यूनिवर्स से जोड़ती है। नाउ अगर हम अपने फिजिकल ब्रेन में इस सेल्फ को ढूंढें तो न्यूरोसाइन्स बताती हैं कि हमारी आइडेंटिटी ब्रेन के कई पार्ट्स में एक नेटवर्क की तरह फैली होती है, जैसे हमारी ऑटोबायोग्राफिकल मेमोरी स्टोर होती है। हिप्पोकैंपस रेट्रो स्पैनियल को टैक्स पैरा हिप्पोकैम्पस और पोस्ट इरिन फिर ईयर पे रिटेल लोन में। पर अगर हम बात करें पर्सनल इन्फॉर्मेशन को प्रोसेसर करने की या फिर फ़्यूचर गोल्स के बारे में सोचने की तो वो काम मीडिल प्रीफ्रंटल कोर्टेक्स का होता है। इसका मतलब अगर हम अपने सेल्फ या अपनी आइडेंटिटी को अपलोड करना चाहते हैं तो हमें कुछ ऐसा करना होगा कि हम ब्रेन के इन पार्ट्स में से इन्फॉर्मेशन को रीड कर पाए और उसे एक कंप्यूटर में रीक्रिएट कर पाए। न्यूरोलॉजिस्ट बताते हैं कि हमारे दिमाग में इन्फॉर्मेशन सिनैप्टिक कनेक्शन्स में स्टोर होती है, जो न्यूरॉन्स के बीच में होते हैं और हमारे दिमाग में तकरीबन 1000 करोड़ न्यूरॉन्स होते हैं। जिसमें हर न्यूरॉन एटलिस्ट हजारों कनेक्शन्स बनाता है। इसका मतलब हम बात कर रहे हैं टोटल खरबों सिनैप्टिक कनेक्शन्स की, जिसमें से हर कनेक्शन हमारे लाइफ एक्सपीरियंस की वजह से किसी न किसी तरह से इन्फ्लुयेन्स है। यानी माइंड अपलोडिंग के लिए हमें इन खरबों कनेक्शन्स को एकदम ऐक्युरेसी के साथ स्कैन करना होगा और उसके बाद इन्हें डिजिटल फॉर्म में दोबारा बनाना होगा। नाउ ये चीज़ सुनने में तो काफी इंट्रेस्टिंग है। पर अभी तक हमने एक भी ह्यूमन ब्रेन को पूरा स्कैन नहीं करा है। पर इसका मतलब ये भी नहीं है कि साइनस ने इस एरिया में कोई प्रोग्रेस नहीं करी है। दुनिया के अलग अलग कोनों में साइंटिस्ट दिमाग को स्कैन और कॉपी करने के प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहे हैं ताकि हम हेल्थकेर और मेडिसिन इंडस्ट्री के अगले रेवोल्यूशन तक पहुँच पाए और तभी ज्यादातर ऐकैडैमिक्स के हिसाब से दुनिया भर के लोगों का यह एफर्ट हमें हमेशा जिंदा रखने के लिए नहीं बल्कि हमारे दिमाग की मिस्ट्री को समझने के लिए है। 2014 में रिसर्चर्स ने एक राउंड वर्म के ब्रेन को स्कैन करके उसकी कॉपी एक रोबोट में लगा दी और इस कॉपी ब्रेन के साथ रोबोट बिना किसी प्रोग्रामिंग के फ्रीली मूव करने लग गया। इसके साथ ही ऐसे कई दूसरे प्रोजेक्ट्स भी हैं जहाँ पर ब्रेन को रिवर्स इंजीनियर करके लोगों के अंदर नई मेमोरीज़ डालने की कोशिश करी जा रही है। हाउएवर अब तक का सबसे बड़ा ब्रेन स्कैनिंग प्रोजेक्ट चल रहा है। सिऐटल के एलन इन्स्टिट्यूट में, जहाँ पर उन्होंने एक चूहे के दिमाग के एक क्यूबिक मिलीमीटर को डिजिटली रीकंस्ट्रक्ट करा है। एक क्यूबिक मिलीमीटर का मतलब है रेत के एक दाने जितना साइज जिसमें 1,00,000 न्यूरॉन्स और करोड़ों साइनैप्स से जा जाते हैं और सिर्फ इतने से पार्ट को स्कैन करने के लिए पहले ब्रेन को 25,000 स्लाइस में काट कर आ गया, जिनकी थिकनेस हमारे एक बाल के पांचवें हिस्से जितनी थी यानी 40 नैनो मीटर्स। इसके बाद उन स्लाइस इसकी लाखों पिक्चर्स ली गई और सिर्फ तब रिसर्चर्स समझ पाए थे। की उस चूहे के दिमाग को एग्ज़ैक्ट्ली कैसे डिजिटल बनाना है? इससे आपको आइडिया हो गया होगा कि एक इंसान के दिमाग को स्कैन करने और डिजिटल बनाने में कितनी मेहनत, टाइम और पैसा लगेगा। यहाँ तक कि हमारे पास उतनी टेक्नोलॉजी ही नहीं है जिसकी मदद से हम एक ह्यूमन ब्रेन को ऐक्यूरेट्लि कैप्चर कर पाए। इस फील्ड में काफी सारे प्रोफेशनल्स का मानना है कि ऐसा एक प्रोसीज़र काम कर जाएगा और हम एक इंसान की एग्ज़ैक्ट पर्सनैलिटी कंप्यूटर में डाल पाएंगे। पर दूसरे लोग डाउट करते हुए बोलते है कि अभी हम कुछ भी शुरली नहीं बोल सकते कि शायद हम किसी और प्रॉब्लम को तो नहीं भूल रहे हैं। यह डिस्कशन और भी इंट्रेस्टिंग बन जाती है जब हम कॉन्वरसेशन में पॉपुलर फिज़िसिस्ट मिर्चियों काकू की बुक द फ्यूचर ऑफ माइंड की बात करते हैं। इसमें बताया गया है कि कैसे टेलिपैथी अब रिसर्चर्स के लिए एक काफी सिरियस सब्जेक्ट बन गया है। साइअन्टिस्ट ऑलरेडी एडवान्स्ड सेन्सर्स को यूज़ करके किसी भी इंसान के दिमाग में से इनडिविजुअल वर्ड, फोटो और इवन थॉट को भी रीड कर सकते हैं। और आईबीएम के लीड साइंटिस्ट्स का मानना है कि अगले 5 साल के अंदर हम अपने कंप्यूटर से मेंटली बात करने लगेंगे, जिससे हमें माउस या फिर वौस कमान डस की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। यहाँ तक कि जिन अनबिलीवेबल साइकिक एबिलिटीज़ को हम सिर्फ मूवीज़ में देखते हैं जैसे टेलीफ़ोन इसिस वो भी हमारी डेली लाइफ का पार्ट बनने के बहुत पास है और 2012 में हमें इस टेक्नोलॉजी का सबसे पहला डेमो मिल गया था। जब एक पैरालाइज फीमेल ने अपने दिमाग पर लगी एक छोटी सी चिप की मदद से एक रोबोटिक आम को हिलाना शुरू कर दिया। इसके साथ ही मिर्चियों आर्टिफिशियल माइंड की इन्टेलिजन्स का एग्जाम्पल देते हुए आईबीएम कंप्यूटर वॉटसन के बारे में बताता है, जिसने 2011 में पॉपुलर गेम शो जय पड़ी में बाकी दोनों कंटेस्टेंट्स को हरा दिया और ऐसे एक कंप्यूटर वन मिलियन डॉलर का प्राइस जीत गया। आइबीएम ने बताया कि वॉटसन की डेटा को प्रोसेसर करने की स्पीड 500 गीगाबाइट्स पर सेकंड है। जो की एक सेकंड में 10,00,000 बुक्स पढ़ने के बराबर है और उसकी 16 टेराबाइट्स है। वॉटसन की इस जीत के बाद काफी सारे लोग बहुत डर गए थे कि फ्यूचर में मशीन्स हमारी दुनिया और हम पर राज़ करेंगी। पर अगर हम सारी हाइप को हटाकर सिर्फ वॉटसन की कैपेबिलिटीज को स्टडी करे तो वो बस एक ऐसी ऐडवान्स मशीन है जो डेटा फाइल्स को ह्यूमन ब्रेन के कंपैरिजन में तेजी से छंट सकती है, पर उसमें कोई सेल्फ अवेर्नेस या फिर कॉमन सेंस नहीं है। यानी हम घूमा फिराकर एक टिपिकल रोबोट पर ही आ जाते हैं, जिसमें कंप्यूटर पावर के अलावा कोई इमोशनल अन्डरस्टैन्डिंग या फिर कॉन्शसनेस है ही नहीं। आर्टिफिशियल इन्टेलिजेन्स की डेवलपमेंट प्रोसेसर में इतने बूम और बस्ट के साइकल्स की वजह से ये बताना बहुत मुश्किल है कि इसकी किस्मत में क्या लिखा है। जैसे 1950 में बनते बेसिक रोबोट्स को देखकर लोग यह सोचने लगे थे कि मैकनिकल में डेज़ और बटलर तो बस कुछ सालों के अंदर ही सच्चाई बन जाएंगे और यही मैसेज 1950 ज़ के कार्टून्स जैसे रिची रिच की मदद से बच्चों तक पहुंचाया जा रहा था। पर 19 सेवन टीज़ के आते आते लोगों की ये सारी ऑप्टिमिजम खत्म हो गई जब उन्हें ये समझ आया कि उनकी यह इतनी ऐडवान्स मशीन्स सिर्फ एक स्पेशलिस्ट काम ही कर सकती है जैसे एक इंसान को चेस में हराना और भारी चीज़ो को एक जगह से दूसरी जगह पर रखना। आर्टिफिशियल इन्टेलिजेन्स के पुराने मॉडल्स का फेल्यर। हमें उनकी एक खामी के बारे में बताता है। यानी साइअन्टिस्ट ने हमेशा दिमाग को एक ऐसे डिजिटल कंप्यूटर की तरह देखा है जो एक सीपीयू की तरह काम करता है, पर दिमाग की यह अन्डरस्टैन्डिंग काफी सिम्पली स्टिक हैं, क्योंकि अगर हम एक पेंटियम चिप में से सिंगल ट्रांज़िस्टर निकाल दें तो कंप्यूटर उसी टाइम क्रैश हो जाएगा। पर दूसरी तरफ अगर हमारा आधा दिमाग निकाल लिया जाता है तब भी हमारा बचा हुआ दिमाग काफी अच्छे से काम कर सकता है। और अभी तक ऐसे कई पेशंट्स के केसेस हैं, जिनके दिमाग के एक हेमिस्फेयर को सर्जरी की मदद से हटाया गया है। इस प्रोसेसर को बोलते हैं हेमिसफेरिक टू मी इन साइट्स के साथ रिसर्चर्स की दिमाग को समझने की नई अप्रोच एवल्यूशन को इम्पोर्टेन्स देती है और एक होलिस्टिक वैल्यू रखती है। मिर्चियों काकू के हिसाब से यह समझने के लिए कि कंप्यूटर्स अभी तक अवेर्नेस हासिल क्यों नहीं कर पाए हैं, हमें उनकी कॉन्शसनेस के लेवल को समझना होगा क्योंकि कॉन्शसनेस के फ़ोर लेवल्स होते हैं। लेवल ज़ीरो पर होते हैं, थर्मोस्टेट और प्लांट्स यानी जिन चीजों में बस गिने चुने फीडबैक लूप होते हैं जैसे टेम्परेचर ना अपना या फिर सनलाइट को एब्जॉर्ब करना लेवल वन पर होते हैं। इन ***** और रेप्टाइल्स जिनके पास एक सेंट्रल नर्वस सिस्टम होता है और जो मूव कर सकते हैं, लेवल टू पर होते हैं। वो एनिमल्स जो दुनिया को समझ पाते हैं, अपने स्पीसीज़ के ऐनिमलस के साथ रिलेशन बना कर जैसे चिम्पैंजी, जीस और फाइनली कॉन्शसनेस लेवल थ्री पर होते हैं। ह्यूमन्स जो टाइम और सेल्फ अवेयरनेस की मदद से अपने फ्यूचर के बारे में सोच पाते हैं। ज्यादातर साइअन्टिस्ट इस बात पर अगरी करते हैं कि ट्वेंटिएथ सेंचुरी के रोबोट्स लेवल ज़ीरो पर थे और मॉडर्न रोबोट्स लेवल वन पर या नी वनथु हम अभी भी एक ह्यूमन जैसे कंप्यूटर बनाने और उसमें अपना माइंड अपलोड करने से कुछ डेकेड्स दूर है पर रोबॉट्स की यह प्रोग्रेस इम्प्रेसिव भी है और एट के सम्टाइम डरावनी भी। 1940 शुरुआत में जहाँ ज्यादातर साइकोलॉजिस्ट मेंटल इलनेस इस पर फोकस थे, वहीं ए अब्राहम मास्लो ने सोचा की साइकोलॉजी का गोल सिर्फ हमारी बीमारियों को ठीक करना नहीं है। इसकी मदद से हमें यह भी समझ आना चाहिए कि एक इंसान के टैलेंट स् और उसकी पोटेंशिअल क्या है? उसके हिसाब से जो चीज़ साइकोलॉजिकली ग्रो करते रहने वाले लोगों को मेंटली इन लोगों से अलग करती है, वह है उनकी सेल फुलफिलमेंट की डिज़ाइनर, जिसे बोलते है सेल्फ। एशन। यानी हमारी सोसाइटी में सबसे हेल्थी और हैप्पी लोग हमेशा अपने आप को बेहतर बनाने और अपने आप को ट्रांसफॉर्म करने पर काम कर रहे होते हैं। हमारी सोसाइटी में ज्यादातर लोग एक एम तीन एस फील करते हैं। एक तरह की लॉन्ग। फीलिंग क्यों आती है, उन्हें ऐसा लगता है जैसे वो अपनी लाइफ वेस्ट कर रहे हो। इट डज नॉट मैटर हमारी लाइफ कितनी आसान या मुश्किल है? हमें टाइम टु टाइम साइनस सिंबल्स या स्टोरीज़ के थ्रू ही याद दिलाया जाता है कि हम अपना फ़्यूचर और अपनी लाइफ को खराब कर रहे हैं और जीवन अगर हम अपनी लाइफ में कुछ बनना भी चाहते हैं तब भी। इस फ्रस्ट्रेशन के साथ सालों गुजर जाते हैं और हम अपनी डेवलपमेंट के लिए कोई कड़ा ऐक्शन नहीं लेते। कई बार अपने अंदर की इस आवाज को शांत करने के लिए हम अल्कोहल या फिर ड्रग्स का सहारा लेते हैं और उसके बाद या तो 40 या 50 साल के हो कर हम में सोचते हैं कि अब काफी देर हो चुकी है या फिर हम अपनी पूरी लाइफ ही इस फीलिंग से बचने में निकाल देते हैं। हाउएवर जिन लोगों के पास अभी भी टाइम बचा है, उनको यह नहीं समझ आता। कि वो अपनी प्रॉब्लम्स को एक हद तक ही इग्नोर कर सकते हैं। क्योंकि एक सर्टन पॉइंट के बाद हमारी प्रॉब्लम्स सिर्फ हमारी नहीं रहती। यानी अगर आप अपने आप को वो नहीं बना रहे जो अब बन सकते हो तो आप गिल्ट शेम और सेल फ्लैट रेट में जीने लगोगे और अपने गोल्स ना अचीव करने की वजह से अपने आप को टॉर्चर करने लगोगे। मास्लो ने अपने एक कोर्ट में बोला कि कई इंसान अपने टैलेंट को क्लेम नहीं करते हैं। कई पेंटर्स एक दुकान में कपड़े बेचते हैं। कई समझदार लोग एक बेवकूफ़ी से भरी लाइफ जीते हैं। कोई इंसान सच देखकर भी अपना मुँह बंद रखते हैं और कई अपनी हिम्मत को छोड़कर एक कायर बन जाते हैं। ये सब लोग यह जानते हैं कि इन्होंने अपने साथ गलत करा है और इस वजह से यह अपने आपको कोसते हैं। अपने आप को दी ऐसी सजा पागलपन को जन्म देती है, बट जीतने चान्सेस इनके अपने आप को खत्म करने के है, उतने ही चान्सेस अपने आप को इम्प्रूव करने के है। इसी वजह से सेल्फ ट्रांसफॉर्मेशन का सबसे पहला स्टेप होता है अपनी करेंट सिचुएशन की अन्डरस्टैन्डिंग बढ़ाना। और ये समझना कि हम एग्ज़ैक्ट्ली कहाँ पर स्टैंड करते हैं। यानी हमें नोटिस करना है कि कौन सी चीज़ कितनी बार हमे गुस्सा दिलाती हैं या फिर गिलटी या महसूस कराती है क्योंकि ज्यादातर केसेस में ये नेगेटिव फीलिंग्स इंडिकेट करती है। एक इंसान अपनी लाइफ को गलत तरीके से अप्रोच कर रहा है और उसे चेंज की जरूरत है। पर इन फीलिंग से दूर भागने के बजाय हमें इन्हें पॉज़िटिव ली यूज़ करना है। अपनी लिमिट्स और पॉसिबिलिटीज़ को जानने के लिए। जिसके बाद हम सेकंड स्टेप पर जा सकते हैं। जो है अपनी लाइफ का पर्पस ढूंढना रॉबर्ट बर्नी अपने एक कोर्ट में हमें समझाता है कि लाइफ का पर्पस है एक पर्पस फुल लाइफ जीना अगर आप इतने लकी हो कि आपको आपकी लाइफ का पर्पस मिल चुका है और अगर आप इतने हिम्मत वाले हो कि आप अपनी लाइफ रिस्क पर लगादो उससे जुड़े जोखिम और मुश्किलों को पार करने में तो आपकी मौत भी उस पर्पस को जिंदा रखेगी। यानी जैसे ही हम अपनी लाइफ को एक पर्पस के साथ देखने लगते हैं और उसकी तरफ चलना स्टार्ट कर देते हैं। वैसे ही हम एक ऐसे मिशन को जन्म दे देते हैं जो हमारी एग्ज़िस्टन्स से भी बड़ा है और उसके बाद हम अपनी उन हैबिट्स और ऐक्शन स्कोर रिफाइन करने लगते हैं, जो हमें हमारे गोल के पास ले जाएंगी। ऐसा गोल बहुत जरूरी होता है, इसलिए नहीं क्योंकि उसको अचीव करने के बाद हमें कुछ प्राइस मिलेगा। बल्कि असली प्राइस तो हमारी ट्रांसफॉर्मेशन है, जो हमें उसे अचीव करने के काबिल बनाती है जितना बड़ा और मीनिंगफुल हमारा पर्पस होता है। उतना ही हमें अपने आप को ट्रांसफार्म करना पड़ता है। उस पर्पस को पूरा करने के लिए पर ज्यादातर लोगों की असली प्रॉब्लम होती है। लेजिनेस या फिर उन्हें पता ही नहीं होता कि वो अपनी इस कुछ कर दिखाने की फीलिंग को ऐक्शंस में कैसे कन्वर्ट करें। इस पॉइंट पर ज्यादातर लोग सोचते हैं कि शायद उन्हें पहले अपने डिप्रेशन एंजाइटी, फिर् या लैक ऑफ कॉन्फिडेन्स को ठीक करना चाहिए। हाउएवर ये अप्रोच कभी काम नहीं करती क्योंकि इन नेगेटिव इमोशन्स का रूट कॉज होता है। हमारी अपनी गोल्स को पूरा ना कर पाने की इनेबिलिटी इन नेगेटिव इमोशन्स को ना तो मेडिटेशन दूर कर सकता है और ना ही ड्रग्ज़ यही रीज़न है कि क्यों? हमें तब भी अपनी पोटेंशिअल के टुवार्ड्ज़ काम करते रहना चाहिए जब हम डर रहे होते हैं या फिर जब हम डिप्रेस्ड होते हैं और इस अन्डरस्टैन्डिंग के साथ हम चल सकते हैं सबसे इम्पोर्टेन्ट और फाइनल स्टेप पर। यानी थर्ड स्टेप जो है एक ऐडवेंचर पर जाना। ये ऐडवेंचर आपके पास खुद भी चल करा सकता है। जैसे एक ऐसी जॉब ओप्पोर्चुनिटी जिसके बारे में आप श्योर नहीं हो या फिर कोई सड़न, प्रॉब्लम या फिर आप खुद ही अपने आप को किसी ऐसी सिचुएशन में डाल सकते हो, जहा पर आप कंफर्टेबल नहीं हो। जैसे अगर आप एक इंट्रोवर्ट हो तो आपके लिए ऐडवेंचर होगा। पब्लिक स्पीकिंग और अगर आप एक जगह पर कम्फर्टेबली रह रहे हो तो आपकी ग्रोथ के लिए बेस्ट ऑप्शन होगा वहाँ से मूव करना और इस ऐडवेंचर के दौरान आपको काफी मुश्किलें झेलनी पड़ेगी और शायद आपको अपनी कई बुरी हैबिट्स को खत्म भी करना पड़े। पर अपने आप को ट्रांसफार्म करने और अपनी फुल लिस्ट पोटेंशिअल तक पहुंचने का यही तरीका है। जिन चीजों से आप डरते हो, आप उन्हीं की आँखों में आँखें डालकर उनको ओवर कम करने की कोशिश करते हो जिसका रिज़ल्ट आपकी ट्रांसफॉर्मेशन होती है और जस्ट बिकॉज़ ये काम इतना मुश्किल है। ज्यादातर लोग अपनी पूरी लाइफ वेस्ट कर देते हैं और बूढ़े होने पर सोचते हैं कि क्या होता अगर उन्होंने अपनी लाइफ में रिस्क लिए होते हैं? साइकोलॉजी में ये कॉनसेप्ट इंट्रोड्यूस कर रहा था। उसके हिसाब से हमारी पोटेंशिअल यानी जो कुछ भी हम बन सकते हैं वो टाइम टु टाइम हमे अलग अलग चीजों में दिलचस्पी दिलाती है और ये चीजें हमें हमारी मैक्सिमम डेवलपमेंट तक लेकर जा सकती है। कभी हम आउटर स्पेस में इंटरेस्टेड होते हैं, कभी टेक्नोलॉजी में, कभी ऐनिमलस में तो कभी ह्यूमन ब्रेन में। हमारा हर अलग इन्ट्रेस्ट हमें अपनी पोटेंशिअल को अच्छे से यूज़ करने का मौका दे सकता है और ये जर्नी बिल्कुल ऐसी दिखती है। जैसे हम अपनी पोटेंशिअल के आसपास परिक्रमा कर रहे हो और हर चीज़ को टेस्ट कर रहे हो, यह जानने के लिए कि हमें अपनी किन हैबिट्स रिलेशनशिप्स, कैरिअर, पैट्स और इन्ट्रेस्ट को परसू करते रहना चाहिए। और किन चीजों को पास्ट में छोड़ देना चाहिए, जिससे हम अपनी बीइंग के सेंटर में पहुँच सके। सो, अगर हम एक पथ पर चलना शुरू करें और उसके रास्ते में आने वाली हर चीज़ का डटकर सामना करें तो हम अपनी साइकिल के उन पार्ट्स को ऑन कर पाएंगे। जिनके बारे में अभी हम सोच भी नहीं सकते और ये एक जगह पर खड़े रहने से बहुत बेटर है क्योंकि यहाँ पर ग्रोथ की कोई लिमिट नहीं है। हर ट्रांसफॉर्मेशन एक प्रोसेसेस का रिज़ल्ट होती है। पानी को भाप में ट्रांसफॉर्म होने के लिए बौलिंग से गुजरना होता है और ग्रेप्स को वाइन में ट्रांसफॉर्म होने के लिए फर्मेन्टेशन से है। यानी हर ट्रांसफॉर्मेशन को अचीव करने के लिए आपको एक प्राइस पे करना पड़ता है और ये सोचना बेवकूफ़ी है कि अब बिना ड्रैगन का सामना करे गोल्डन एज तक पहुँच जाओगे। जेनरली ज़्यादातर लोगों को कुछ टाइम लगता है जिससे पहले वो किसी चेंजर को अच्छे से जान सकें। पर हमारे फर्स्ट इम्प्रैशन पर ही दूसरे लोग ये डिसाइड कर लेते हैं कि क्या वो हमें दोबारा देखना चाहते हैं? हमें डेट करना चाहते हैं, हमें जॉब देना चाहते हैं, हमसे कुछ खरीदना चाहते हैं या फिर नहीं? रिसर्चर्स मानते हैं कि ये बिहेव्यर हमारा सर्वाइवल मेकनिजम होता है, जो हमें सोचने पर मजबूर करता है कि क्या एक इंसान हमारा दोस्त है या फिर दुश्मन? हम भी याद कर सकते हैं। की कैसे? ज्यादातर अच्छे दोस्तों से पहली मुलाकात पर ही हमें कुछ सेकंड के अंदर यह पता चल गया था कि हमारी जोड़ी अच्छी जमेगी। पर कई बार हमें कोई इंसान पहली मीटिंग से ही बुरा लगने लगता है। जीवन दो हमें पता भी नहीं होता कि हमें उनके बारे में क्या बुरा लगा। ये होती है फर्स्ट इंप्रेशन की ताकत पर हम रेरली इसके बारे में सोचते हैं और अगर हम सोचते भी हैं तो हमें ये नहीं पता होता कि हम अपने फर्स्ट इम्प्रेशंस को कैसे अच्छा बनाएं। साइकोलॉजी बताती हैं कि हर इंसान के पास सिर्फ दो सेकंड होते हैं। एक अच्छा इंप्रेशन बनाने के लिए इन दो सेकंड में जो भी इन्फॉर्मेशन वो बिना बोले कम्यूनिकेट करता है, उसे चेंज करना बहुत मुश्किल होता है। फिर चाहे हमारे पास कितने ही अच्छे कॉन्वरसेशन स्टार्टर्स या फिर जोक्स हो। अगर हमने अपने आप को एडवर्टाइज ही अच्छे से नहीं करा तो कोई भी हम पर ट्रस्ट या फिर हमे लाइक कैसे करेगा? हाउएवर गुड न्यूज़ ये है कि हम जब चाहें तब अपने फर्स्ट इम्प्रेशंस को अच्छा बना सकते हैं और आज हम बात करेंगे ऐसे फाइव टिप्स की जो हमें फर्स्ट इम्प्रेशंस का मास्टर बना देंगी। नम्बर वन है हमारी इंटेन्शन यानी हमें पता होना चाहिए कि किसी भी सोशल सिचुएशन से हमें क्या आउटकम चाहिए। क्या हम चाहते हैं कि हमें वो नहीं जॉब मिल जाए या फिर हमें बस अच्छे फ्रेंड्स बनाने हैं? इन टेंशन सेट करने से हमें याद रहता है की हमारा गोल क्या है और फिर हम उसके अकॉर्डिंग्ली बिहेव करते है। यानी जब आप तैयार हो रहे होते हो या फिर आप उस इवेंट तक पहुंचने के लिए ड्राइव कर रहे होते हो तब ये सोचो की आप किस तरह के लोगों से मिलना चाहते हो और आप किस तरह की कॉन्वर्सेशन्स का पार्ट बनना चाहते हो? इस टेक्नीक की मदद से हम अपनी एनर्जी को किसी भी सिचुएशन के अकॉर्डिंग ढाल सकते है। जैसे अपने एक फ्रेंड की पार्टी में जाते हुए हम एक इंटेन्शन सेट कर सकते हैं कि हमें आज नए लोगों से मिलना है और उनके साथ काफी सारी मस्ती करनी है और अच्छी मेमोरीज़ बनानी है या फिर अगर एक इंसान को पता है की उसको नई जॉब या फिर स्कूल में बुली करा जाएगा तो वो पहली मीटिंग में ही सबको क्लिर कर सकता है कि अगर कोई भी उससे पंगे लेगा तो वो उसके लिए अच्छा नहीं होगा। नंबर टू है आपकी बॉडी लैंग्वेज क्योंकि जब भी हम किसी इंसान को पहली बार देखते है या फिर मिलते है तो हम अपने तीन क्वेश्चन्स के आन्सर ढूंढ रहे होते हैं। यानी क्या वो हमारा दोस्त है या दुश्मन? क्या वह एक विन्नर है या फिर एक लूँ? सर? और क्या हम उसे अपनी ट्रिप का पार्ट बना सकते हैं? जब भी कोई इंसान इन तीनों क्वेश्चन्स को सक्सेस्स्फुल्ली आन्सर कर देता है तब हम उन पर ट्रस्ट करने लगते हैं और ऐसे एक स्ट्रेंजर हमारा दोस्त बन जाता है। एक डेट एक कमिटेड पार्ट्नर और एक लीड बन जाता है हमारा क्लाइन्ट एग्जाम्पल के तौर पर अगर हम सबसे पॉपुलर और टॉक्स की बात करें तो जिन स्पीकर्स को लाइफ चेंजिंग और मेमोरेबल बोला गया था, उन सब में कई स्किल्स कॉमन थी जैसे फर्स्ट्ली वह अपने हाथों को काफी ज्यादा यूज़ करते हैं। बताते हैं कि सबसे कम पॉपुलर स्टॉकर्स ऑन ऐवरेज 272 हैंड जस्टिस यूज़ करते है और सबसे पॉपुलर टॉक अर्श 465 जेस्चर्स। यह इसलिए होता है क्योंकि हमारा दिमाग हाथों की मूवमेंट्स को बातों से 12.5 टाइम्स ज्यादा वेटेज देता है। इन्फैक्ट जब हम किसी इंसान के हाथ नहीं देख पाते तो हम डिस्ट्रैक्टिड और विस् होने लगते हैं, क्योंकि अगर हम लाखों साल पहले के बारे में सोचें तो जब भी कोई स्ट्रेंजर हमारे के पास आता तो वो सबसे पहले उसके हाथों को देखते उस इंसान की इंटेन्शन से जानने के लिए और अगर उसके हाथों में कोई पत्थर या फिर कोई नुकीली चीज़ होती या फिर वो अपने हाथों को छुपा रहा होता। तो हमारे एंड सिस्टर्स समझ जाते की ये इंसान जरूर कुछ चुराने या फिर किसी को मारने आया है और ईव नाउ मॉडर्न टाइम में हम किसी रैन्डम स्ट्रेंजर को फिज़िकली हार्मफुल नहीं समझते हैं। पर ये सर्वाइवल मेकैनिज़म अभी भी हमें बोलता है कि हम हर इंसान की फ्रेंडली नेस्को डाउट करें। यही रीज़न है कि क्यों? ज्यादातर कल्चर्स में हम एक दूसरे को एक फर्म हैंडशेक के साथ ग्रिड करते हैं और क्यों पुलिस वाले किसी क्रिमिनल को सबसे पहले बोलते है की वो अपने हाथ ऊपर करे? इसके साथ ही हमें ट्रस्ट बनाने के लिए उनके साथ आई कॉन्टैक्ट भी रखना है और अपनी बॉडी को स्ट्रेट, रिलैक्स्ड और वाइड रखना है ताकि हम एक विन्नर लगे ना कि एक लूँ। सर नंबर थ्री है आपकी अपीयरेन्स यानी आप कैसे दिखते हो और आपने क्या पहना है, आपके कपड़े और आपकी लुकस बताते हैं कि आप कितने अथॉरिटी एटिव और ऑथेंटिक हो और क्या आप उस इवेंट के लिए अप्रॉक्समट्ली ड्रेस्ड हो? क्योंकि अगर एक फॉर्मल मीटिंग में आप कुछ इन कपड़े पहन कर चले जाओ तो ना तो आप हेरिटिक लगोगे और ना ही ऑथेंटिक। इसके साथ ही हमें कलर्स की साइकोलॉजी भी पता होनी चाहिए कि कौन सा कलर किस लोकेशन के लिए बेस्ट होता है और हमें यह भी ध्यान रखना है कि हम वेल ग्रूम्ड हो। यानी हमारे बाल सिचुएशन के अकॉर्डिंग प्रोपरली सेट होने चाहिए। हमारे कपड़े साफ और रिंकल फ्री होने चाहिए। ब्रेथ ऑफ फ्रेश नोस याइर स्क्रीन और नेल्स छोटे होने चाहिए। अनलेस आप एक फीमेल हो और आप एक इन्फॉर्मल इवेंट में जा रहे हो। नंबर फ़ोर है। इन्टरैक्शन और इस पॉइंट पर आते आते हम किसी को दो सेकंड से ज्यादा देख चूके होते हैं और फर्स्ट इंप्रेशन का दूसरा फेस चालू हो गया होता है। जो हैं वर्बल कम्युनिकेशन। इस टाइम पर हमे देखने वाला अपने मन में हमारे ओपिनियन को पक्का कर रहा होता है जिसके बाद उसे चेंज करना बहुत मुश्किल हो जाएगा और तभी हमें ध्यान रखना है कि हम हर इंसान को अटेन्शन देते हुए उनमें इन्ट्रेस्ट ले क्योंकि अगर हमें किसी के आगे इंट्रेस्टिंग दिखना है तो हमें उनमें इन्ट्रेस्ट लेना पड़ेगा क्योंकि ये चीज़ हमे साफ पता लग जाती है कि किस इंसान को हमसे बात करने या फिर उस सोशल इवेंट में आने का मन नहीं था और मैं बी। उन्हें जबरदस्ती वहाँ पर आना पड़ा। सो जब भी हम किसी से मिले हमें उनकी बातों में जेन्यून्ली इन्ट्रेस्ट लेना है और उन्हें इस तरह से स्पेशल फील कराना है ताकि वो हमें याद रखें। नंबर फाइव आपने कॉन्वरसेशन को एक पॉज़िटिव नोट पर एंड करना है क्योंकि वैसे तो हम नेगेटिव रहकर भी एक मेमोरेबल इंप्रेशन बना सकते हैं। पर अगर हम चाहते हैं कि जिन लोगों से हम बात कर रहे हैं वह हमारे बारे में पॉज़िटिव बातें बोले। हमें बिज़नेस दे या फिर हमारे साथ लौल रहे हैं तो हमें भी उन्हें जितना हो सके उतना रिस्पेक्ट देना होगा। नहीं तो हम बस बुरे फीडबैक्स के बेसिस पर ही पॉपुलर होते रहेंगे, जिससे हमारी रेपुटेशन खराब हो जाएगी और हम इस सोशल गेम मैं हार जाएंगे।","स्व-विकास, तंत्रिका विज्ञान, दर्शनशास्त्र, व्यवहार विज्ञान और गहराई-मनोविज्ञान के आसपास के विषयों पर हिंदी के शीर्ष 10 सबसे गहन एपिसोड में मनोविज्ञान से ऑडियो क्लिप।" "जहाँ मॉडर्न विमिन पहले से बेहतर एजुकेशन हासिल कर रही हैं, उन्हें आज मेल्स का कंपैरिजन में ज्यादा कॉलेज डिग्री मिल रही है। वह मेल डोमिनेटेड फील्ड में भी टॉप पर पहुँच रही है और इक्वैलिटी ऑफ ऑपर्च्युनिटी मिलने की वजह से वो सक्सेस हासिल करके देश की इकॉनमी को भी आगे बढ़ा रही है। वहीं 2009 में नेशनल ब्यूरो ऑफ इकोनॉमिक रिसर्च में पब्लिश हुए एक रिसर्च पेपर में पता चला कि 1970 से पहले वो हमेशा ईमेल्स होती थी जो हैपिनेस स्केल पर मेल से ज्यादा स्कोर करती थी। और जब से हमने हैपिनेस को मेजर करना शुरू करा है, तब से ऐसा पहली बार हुआ है। फीमेल स्मेल से कम हैप्पी है तो ऐसे मैं क्वेश्चन नहीं आता है की क्यों मॉडर्न विमिन लाइफ क्वालिटी बेहतर होने के बाद भी इतना अनहैप्पी महसूस कर रही है? वेल, इसके पीछे तीन मेन रीज़न है पहला है सोशल कन्डिशनिंग। बचपन से ही लड़कियों को ये समझाया जाता है कि उन्हें बड़ा होकर पॉवरफुल बनना है, अच्छा करियर बनाना है, शादी करनी है, बच्चे पैदा करने हैं और अपने घर का ध्यान रखना है। लड़कियां जैसे जैसे बड़ी होती है, इन एक्सपेक्टेशन्स को दिमाग में रख के काम करने लगते हैं। उन्हें कॉन्स्टेंट ली वर्क इन्वाइरनमेंट में कंप्लीट करना पड़ता है। हर दिन वो लॉन्ग आर्ट्स तक काम करती है। घर आने के बाद अपने घर का काम करती है। बच्चों को संभाल ती है जिसकी वजह से उनके पास अपने लिए ज़रा भी टाइम नहीं बचता। वो पूरा टाइम जो एक्स्पेक्टेशन सेट की गई है, उन पर खरा उतरने की कोशिश करती है जिसकी वजह से वो अपने आप को मैक्सिमम पुश करती है, जब तक उनकी बॉडी उनका साथ न छोड़ दे। इस वजह से आज उनमें काफी सारी प्रॉब्लम्स जैसे की इनसोम्निया डिप्रेशन और रीप्रोडक्टिव इशूज़ जैसे पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम इनफर्टिलिटी बढ़ती जा रही है। इवन ये सब प्रॉब्लम्स के बाद भी बहुत सारी फीमेल्स को लगता है। वो शायद सोसाइटी की या अपनी फैमिली की एक्सपेक्टेशन्स पूरी नहीं कर पा रही, जिसकी वजह से वो अक्सर फील करती है। दे आर नॉट गुडइनफ और इस फीलिंग से डील करने के लिए कई बार लड़कियां अनहेल्थी बिहैवियर जैसे की ड्रिंकिंग ड्रग्स या प्रॉमिस क्वीटी से अपने आप को डिस्ट्रैक्ट करने की कोशिश करती है। या फिर अपनी इस सिचुएशन की रिस्पॉन्सिबिलिटी के लिए वो अपनी इस फीलिंग का ब्लेम लड़कों या सोसाइटी के ऊपर डाल देती है। अपनी बुक के हीरोइन्स जर्नी में मॉरीन मर्डोक लिखती हैं की थेरपिस्ट की तरह काम करते हुए वो कई ऐसी लड़कियों से मिली है जो अपनी सक्सेस के बाद भी खुश नहीं हैं, जो अपने आप को बहुत थका हुआ महसूस करती है और इसकी बहुत बड़ी वजह ये है की लड़कियां आज अपनी फेमिनिन नेचर से दूर होती जा रही है। हमें यहाँ पर समझना पड़ेगा कि हमारी सोसाइटी सक्सेस को मैं स्कूल इन वैल्यू से जोड़ती है। सक्सेस को हमेशा पावर स्टेटस और मनी से मेजर करा जाता है। अगर एक हाउसवाइफ अपने घर का काम करती है और फैमिली को आगे बढ़ाने के लिए घर में एक ऑप्टिमल इन्वाइरनमेंट बनाती है तो सोसाइटी आपको ये नहीं बोले गी की आप सक्सेसफुल हो। सक्सेसफुल होने का मतलब यही रह गया है कि आपके पास कितना पैसा और पावर है। अब इस मनी और पावर को पाने के लिए एक लड़की को मैं स्कूल इन एनवायरनमेंट में जाना पड़ता है। बाकी लड़के और लड़कियों से कम्पीट करना पड़ता है ताकि वो आगे बढ़ पाए या अपनी पोज़ीशन को मेनटेन कर पाए। ये रोल बहुत ही अलग है। 100 साल पुरानी हमारी फीमेल एन्सिस्टर्स क्योंकि वो घर पर रहकर बच्चों की देखभाल करती थी और घर का काम करती थी। बर्थ कंट्रोल पिल, सैनिटरी पैड्स और टेक्नोलॉजिकल रेवोल्यूशन ने फीमेल्स को घर से बाहर निकलने का मौका दिया और इस बदलाव के आने से फीमेल्स की एनर्जी में एक बड़ा शिफ्ट आया है, जहाँ वो पहले फेमिनिन ड्यूटीज निभाती थी। वही फीमेल्स आज वो सारे काम कर रहे हैं जो पहले सिर्फ मेल्स करते थे। ये काम वो है जहाँ आपको बहुत ज्यादा फोकस करना पड़ता है, रिजल्ट्स देने होते है और लगातार दूसरे लोगों से कंप्लीट करना होता है। अगर फीमेल से मैं स्कूल इन ड्यूटीज करते हुए अपना ध्यान नहीं रखती और अपनी फैमिली नेचर को इग्नोर कर देती है तो वह अक्सर बर्नआउट का शिकार हो जाती है और यह प्रॉब्लम अराइज़ नहीं होती। अगर फीमेल्स के पास सही गाइडेंस होती तो इसी से हम आते हैं। पॉइंट नंबर टू पे लैक ऑफ स्ट्रॉन्ग फेमिनिन फिगर हम बचपन में अपने पैरेंट से सब चीजें सीखते हैं और एक लड़की अपनी माँ से सीखती है। की लड़की होने का मतलब क्या होता है और एक अच्छी लाइफ जीने के लिए उसको क्या करना होगा? बट आज लड़कियों के पास स्ट्रॉन्ग फेमिनिस्ट फिगर नहीं है। अलग अलग कल्चर्स में फैमिली की बूढ़ी औरतें एक बच्ची को सिखाती आई है की उसे अपनी लाइफ कैसे जीनी चाहिए और खुश रहने के लिए उसको क्या करना चाहिए। अगर एक लड़की की मदर बहुत वीक होती है तो अक्सर ये लड़कियां फेमिनिटी को रिजेक्ट कर देती है और यह सोच की फेमिनिन होने का मतलब है वीक हो ना इसलिए ये लड़कियां अपनी मदर की तरह ना बनके अपने फादर्स की तरह बनने की कोशिश करती है। ये घर से बाहर निकलती हैं। ये सोच के की ये अच्छा करियर बनाएंगी, पैसे कमाएगी और पावरफुल बनेंगी और तभी सोसाइटी इन्हें वो वैल्यू देगी जो एक लड़की डिज़र्व करती है और इसी थिंकिंग के साथ फेमिनिज्म जैसी मूवमेंट शुरू हुई थी। फेमिनिज्म की वजह से आज लड़कियों के पास पहले से ज्यादा राइट्स तो है बट वो कहते है ना? दवाई को अगर ढंग से नाले तो वह जहर बन जाती है। वहीं लड़कियों के केस में आज हो रहा है। जहाँ लड़कियां 100 साल पहले अपने टैलेंट, इन्टेलिजेन्स और क्रिएटिविटी को यूज़ नहीं कर पा रही थी। वहीं आज लड़कियां सोशल हाइरार्की क्लाइंब करने के चक्कर में अपनी फैमिली इनसाइट्स जो उनकी केरिंग, सॉफ्ट पैसिव और होलिस्टिक नेचर है, उससे दूर हो गई है। पहले की प्रॉब्लम का सल्यूशन तो फेमिनिजम ने दे दिया, बट उसका साइड इफेक्ट ये हुआ कि आज लड़कियां अपनी एक साइट से बिल्कुल कट ऑफ हो गई है। इस इम्बैलेंस की वजह से आज लड़कियां इमोशनली ट्रेंड डिप्रेस्ड और फिज़िकली स्टिप हो गई है और इस वजह से वो अपने पार्टनर में भी गलत क्वालिटीज ढूंढ रही हैं, जो कि उनकी अन् हैपिनेस का थर्ड रीज़न है। यानी जस्ट बिकॉज़ ज्यादा तर लड़कियों ने अपनी फेमिनिस्ट साइड को दबाकर अनकॉन्शियस बना दिया है। वो अपनी मिसिंग एनर्जी को मेल्स में ढूंढ रही हैं ताकि वो अपनी होलनेस को आउटसोर्स कर पाए। इस प्रोसेसेस को बोलते है साइकोलॉजिकल प्रोजेक्शन या फिर शैडो प्रोजेक्शन। आज की लड़कियां लड़कों को अपना पार्टनर बना रही है। और मैं स्कूल इन लड़कों को टॉक्सिक बोलकर रिजेक्ट कर रही है। जीस वजह से वो अपनी फैमिली यूनिटी, एक वीक और पैसिव मेल पर प्रोजेक्ट करके टेम्परेरली हॉल तो फील कर लेती है लेकिन लॉन्ग टर्म में उनका अनकॉन्शस माइंड उन्हें रिमाइंड करा रहा होता है की वो अपनी बायोलोजी के अगेन्स्ट जा रही है। एक ऐसा मेल चूज करके जो रिप्रोडक्टिव ली एक इन्फिरीअर मेट है और वो इससे बेटर कर सकती है। याद रखो हर इंसान में भले ही वो लड़की हो या लड़का हो, उनमें दो तरीके की एनर्जी होती है। एक होती है फेमिनिन और दूसरी होती है मैं स्कूल इन जिसको योगी कल्चर में शिव और शक्ति बोला जाता है। दांव इज्म में येन और येन बोला जाता है। एक लड़की अगर हमेशा ही काम कर रही हैं, कभी अपनी फीलिंग्स को एड्रेस नहीं कर रही और अपनी बॉडी से कट ऑफ है यानी की उसमें मैं स्कूल इन एनर्जी बढ़ गई है और फेमिनिन एनर्जी कम हो गई है तो वो पूरी दुनिया को एक इम्बैलेंस या 22 वें में देखने लगे गी क्योंकि उसकी थिंकिंग पर उसके अनकॉन्शस माइंड का कंट्रोल है। यहाँ इम्पोर्टेन्ट है कि एक लड़की अपने इस इम्बैलेंस को रीस्टोर करें ताकि वो अपनी फैमिली, लड़कों या सोसाइटी में ढूँढने के बजाय खुद अपने आप में होल बन पाए। तो सबसे पहली चीज़ जो एक लड़की को करनी है वो है अपनी बॉडी की आवाज को सुनना। हमारी बॉडी बहुत स्मार्ट है और हमेशा हमें सिग्नल्स देती है की उसको किस चीज़ की जरूरत है? बस हमें एक अच्छा लिसनर बनना है और उसकी सुननी है। हमारी बॉडी हमें हमेशा सिग्नल करके बता रही होती है तब हमे हेल्दी खाना चाहिए। कब रेस्ट चाहिए? या फिर कब हम एक डेनजरस इन्वाइरनमेंट में है। जब भी एक लड़की बॉडी की रिक्वायरमेंट जैसे की केर रेस नरिशमेंट मूवमेंट को पूरा नहीं करती, उसकी बॉडी शट डाउन होने लगती है और काफी सारी प्रॉब्लम्स यहीं से शुरू होती है। पहले घर की बूढ़ी औरतें लड़कियों को सिखाती थी कैसे उन्हें लाइफ के अलग अलग स्टेजेस पे अपनी बॉडी का ध्यान रखना है या कैसे अपनी इंट्यूइशन की सुननी है। लेकिन क्योंकि आज नुक्लेअर फैमिली इस बढ़ गयी है। लड़कियों को यह विज़्डम नहीं मिल पाती। ऐसे में एक लड़की अपनी बॉडी की सुनके उसकी नींद को पूरा कर सकती है। नेक्सट बात करते है इन्नर क्रिटिक की ऑथर्स आराम स्टोर अपनी बुक द बुक ऑफ शी में बोलती है। आज लड़कियों का इनर क्रिटिक बहुत स्ट्रांग हो गया है। यानी अंदर की वो आवाज़ जो ने हर चीज़ में क्रिटिसाइज करती है और इसका बहुत बड़ा रीज़न है कि कई जनरेशन्स ने फीमेल्स को दबाया है, फेमिनिन नेचर की वैल्यू नहीं की? और आज भी सोसाइटी मैं स्कूल इन प्रिन्सिपल को प्रिफर करती है। इसी वजह से लड़कियों को लगता है की अपनी वर्थ प्रूफ करने के लिए उन्हें एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी अचीवमेंट हासिल करनी होंगी या फिर हैपिनेस हासिल करने के लिए लड़कों की तरह ऐड करना होगा और लड़कों की तरह अपनी सेक्शुऐलिटी को चीफ बनाना होगा। यहाँ लड़कियों को ये समझना इम्पोर्टेन्ट है कि वो अपने आप को बाकी लोगों से कंपेर करने के बजाए अपने प्रेज़ेंट को अपने पास से कंपेर करे। अगर वो हमेशा अपनी पास्ट की सक्सेस को और अकाम्प्लिश मिनट्स को इग्नोर करेंगी, दूसरी लड़कियों और लड़कों से कंप्लीट करती रहेंगी और अपने ऊपर हार्ट रहेंगी तो वो एक हैप्पी और मीनिंगफुल लाइफ नहीं जी पाएगी। जहाँ आज फेमिनिन नेचर को वीक माना जाता है, वही सालों पहले एक इंटरव्यू में जब अमेरिकन मैं थो लॉजिस्ट जोसेफ कैंबल से पूछा गया उन्हें क्या लगता है? लड़कियों को क्या करना चाहिए अपनी जर्नी पे? तो वो बोले लड़कियां ऑलरेडी वहाँ खड़ी है जहाँ लड़के पहुँचने की कोशिश कर रहे हैं। जो लड़की ये समझ जाएगी, वो कभी भी एक सूडो मेल बनने की कोशिश नहीं करेगी। होना वीक नहीं है। एक लड़की एक बच्चे को इतने पेन और सैक्रिफ़ाइस इसके बाद जन्म देती है। एक लड़के को प्यार करना सिखाती है और सोसाइटी को आगे बढ़ने की हिम्मत और मुश्किल समय में आशा देती हैं। बस आज हम अपनी वैल्यू को प्रूव करने के चक्कर में अपने आप से दूर हो रहे हैं, जो कि हमें हैपिनेस से दूर कर रहा है। रिमेम्बर फ़्रीडम ऐंड मनी इस नॉट इक्विवेलेंट टू हैपीनेस","महिलाएं आज पहले से ज्यादा दुखी होती जा रही हैं। 1970 के दशक से पहले यह महिलाएं थीं जो हमेशा खुशी में उच्च स्कोर करती थीं लेकिन तब से महिलाओं की खुशी में नाटकीय रूप से गिरावट आई है। पुरुषों से ज्यादा डिग्रियां हासिल करने, पुरुष प्रधान क्षेत्रों में काम करने, अपने अधिकारों को पाने, पहले से ज्यादा पैसा कमाने और देश की अर्थव्यवस्था में योगदान देने के बाद भी महिलाएं अभी भी अपनी पूर्णता से दूर हैं। लेकिन क्यों? क्या एक महिला के रूप में खुश रहने के लिए सफलता और स्वतंत्रता पर्याप्त नहीं है? या क्या ये चीजें उन्हें नाखुश रख रही हैं? इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, मैं और मेरी बहन @SurbhiGandhii इन सवालों के जवाब देने की कोशिश करते हैं और महिलाओं की घटती खुशी के विरोधाभास को समझाते हैं" "कि आप एक्चुअल में उतना इंटेलीजेंट और कॉम्पिटेंट हो, जितना आप खुद को समझते हो। आप खुद को दूसरों के कंपैरिजन में कितना हेल्दी मानते हो? आप लोगों को कितना अच्छे से समझ पाते हो कि आपके अंदर सेल्फ कंट्रोल और डिसिप्लिन दूसरों से ज्यादा है? या फिर क्या आप अपनी एज के लोगों से ज्यादा वाइज हो? अपनी असली एबिलिटीज़ के बारे में अवेयर होने और ये पता होने से कि हमारी एबिलिटीज़ दूसरों के कंपैरिजन में कहाँ स्टैंड करती है? हमें ये आइडिया मिल सकता है कि कब हम अपने डिसिशन्स के बेसिस पर ही रिलीज करके आगे बढ़ सकते हैं और कब हमें हम्बल होकर दूसरों से एडवाइस लेनी चाहिए और आगे बढ़ते रहने के लिए उन से मदद माँगनी चाहिए। हाउएवर साइकोलॉजी बताती है कि हम खुद की काबिलियत का अंदाजा लगाने में ज्यादातर गलत होते हैं। यहाँ तक कि हम यूज़्वली अपनी एबिलिटीज़ को ओवर एस्टीमेट करते हैं। इसमें नॉमिनल का नाम होता है डनिंग क्रूगर इफेक्ट जो बोलता है कि जिन लोगों में ज्यादा काबिलियत नहीं होती वो खुद की काबिलियत को ओवर एस्टीमेट करते हैं और जो लोग किसी टास्क में हाइली कैपेबल होते है वो खुद की काबिलियत को अंडरएस्टीमेट करते हैं। इस इफेक्ट को 19199 में साइकोलॉजिस्ट डेविड निंग और जस्टिन क्रूगर ने पहली बार डिस्क्राइब और जनरल पब्लिक के बीच पॉपुलर बनाया था। उनके हिसाब से जो भी इंसान किसी पर्टिकुलर फील्ड या फिर टॉपिक पर नॉलेज और स्किल दोनों चीजों को लैक करता है, उसे दुगनी प्रॉब्लम झेलनी पड़ती है। पहले तो वो स्किल की कमी होने की वजह से उस काम में कोई गलती कर देता है और उसके बाद उस काम की नॉलेज की कमी की वजह से उसे यहीं नहीं समझ आता कि उसने क्या गलती करी है। एग्जाम्पल के तौर पर अगर आपके सर्कल में और सोशल मीडिया पर आप इन्वेस्टिंग की इम्पोर्टेन्स को सुन लेते हो और बिना ज्यादा सोचे समझे ही अपना पैसा, स्टॉक्स या जैसी चीजों में लगा देते हो तो इस के चान्सेस बहुत ज्यादा है कि आप कोई गलत डिसिशन लेकर अपना काफी सारा पैसा डूबा हो गए और इन्वेस्टिंग की नॉलेज ना होने से आप यह भी नहीं पकड़ पाओगे कि आप कहाँ गलत थे और अगली बार आप कैसे उस गलती को अवॉर्ड कर सकते हो। बिना नॉलेज और स्किल के आपने यह समझने की एक्स्पर्टीज़ ही नहीं होती कि आप एक पर्टिकुलर टास्क में कितने बुरे हो। जबकि जिन लोगों में किसी टास्क फील्ड या टॉपिक की थोड़ी बहुत भी पार्टीज़ होती है। उन्हें ये पता होता है कि उन्हें कितना कुछ नहीं पता हाउएवर एक जीनियस इंसान जो एक्स्पर्ट इसके हाइएस्ट लेवल पर होता है वह एक दूसरी तरह की गलती करता है। वो सोचता है कि सब लोग ही उसके जीतने नॉलेजेबल है और वो खुद की एक्स्ट्राऑर्डिनरी पोटेंशिअल के बारे में अन्न वेर होता है? यही तो रीज़न है कि क्यों हम ऐसे लोगों को बहुत अप्रीशिएट करते हैं, जो एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी जीनियस या फिर अपनी फील्ड के टॉपर होने के बावजूद इतने हंबल होते हैं और खुद को ऐसे प्रेज़ेंट करते हैं जैसे उनकी सिटीज में कुछ भी स्पेशल है ही नहीं। सो, अगर डाइनिंग क्रूगर इफेक्ट दोनों एक स्ट्रीम्स पर लोगों को अपनी एबिलिटीज़ के बारे में बनाता है तो ऐसे में हम क्या कर सकते हैं? अपनी असली काबिलियत के बारे में जानने के लिए वेल हमें कई सिंपल स्टेप्स को फॉलो करना होगा जो हमारी सेल्फ अवेर्नेस बढ़ा सके हैं। स्टेप नंबर वन आस्क आदर्श फॉर फीडबैक सेल्फ अवेर्नेस बढ़ाने का शायद ये सबसे सिंपल और इफेक्टिव तरीका होता है कि आप अपने जान पहचान के बहुत से लोगों से खुद के बारे में पूछो कि आप कैसे इंसान हो और आप कितने केपेबल हो। उनकी नजर में ये करना इसलिए जरूरी है क्योंकि जहाँ हमें खुद के कई ऐसे एरियाज़ क्लियरली दिखते हैं जिन्हें इम्प्रूवमेंट की जरूरत है, वही हमारे करेक्टर और पर्सनैलिटी के कई ऐसे पार्ट्स भी होते हैं जो हमारी अवेर्नेस के बाहर होते हैं और दूसरे लोग हमारे इन्हीं ब्लाइंड स्पोट्स को हमारे सामने लाने में बहुत काम आ सकते हैं। शुरुआत करो अपने पैरेन्ट्स और अपने सिबलिंग से, फिर फ्रेंड्स या पार्टनर से और उसके बाद अपने ऑफिस के लोगों या फिर रिलेटिव्स से जो आपसे ज्यादा क्लोज़ नहीं है। सबके अलग अलग ओपिनियन्स को बिना ज्यादा डिफेंसिव और फ्रेन्ड हुए लोगों और ये बात पहले ही दिमाग में रखो कि कभी भी दूसरों से खुद के बारे में नेगेटिव सुनना कोई मजेदार चीज़ नहीं होती और कई लोग तो जानबूझकर आपको गलत फीडबैक भी देंगे। आप को भटकाने के लिए लेकिन जीतने ज्यादा लोगों से आप खुद के बारे में पूछो गे, उतना ही आप उनके आन्सर्स को ऐवरेज आउट करके अपने बारे में एक असली कलेक्टिव ओपिनियन को जान पाओगे। अगर 100 में से 30 लोग एकदम अलग अलग बातें बोल रहे हैं जो बिल्कुल सेन्स नहीं बनाती, लेकिन 70 लोगों की बातें और उनकी आपको लेकर ऑब्जर्वेशन काफी सिमिलर है। तो इस मेच्युरिटी के फीडबैक को सीरियसली लो और इस फीडबैक के थ्रू खुद को ग्रो करने की कोशिश करो। स्टेप नंबर टू पे अटेन्शन टू हॉट बॉर्डर्स यूं कि आप को बहुत गुस्सा आता है या फिर इरिटेशन होती है। जब कोई इंसान आपकी लुक्स पर कमेंट करता है। आपको यह बोलता है कि आपको पैसों को मैनेज करना नहीं आता। क्या आपको दूसरों से यह सुनना नहीं पसंद कि आप इम्मेच्युर हो या फिर क्या आपको गुस्सा आता है जब कोई आके बिलीफ को चैलेंज करता है और आपको गलत बोलता है? हर ऐसी चीज़ जो आपकी स्टेबिलिटी को खत्म कर सकती है, वो आप पर अनकॉन्शियस ली कंट्रोल करती है और आपको खुद के ब्लाइंड स्पॉट को पकड़ने में बहुत हेल्प भी कर सकती है। इसलिए अगर आपको किसी की कोई बात बहुत बुरी लगती है तो उससे क्वेश्चन करो, आपको उसमें कुछ ना कुछ सच जरूर मिलेगा। और इसी सच को एक्सेप्ट करके आप अपनी नॉलेज में जो होल्स और गैप्स हैं, उन्हें फेल कर पाओगे। स्टेप नंबर थ्री कीप लर्निन्ग ऐंड लर्निंग अपनी नॉलेज के गैप को भरने का एक और बड़ा तरीका होता है कन्टिन्यूसली नई नई चीजें सीखना और अपने पुराने और अनप्रोडक्टिव बिलीव्स को ड्रॉप करना। यहाँ पर भी बहुत से लोग सोचते हैं कि उनकी सर्टन फील्ड या फिर टॉपिक्स की नॉलेज पर्याप्त है और अपनी इसी अकड़ की वजह से वो सेल्फ इंप्रूवमेंट में कोई इंटरेस्ट नहीं दिखाते हैं। लेकिन जो लोग खुद की असली वैल्यू और सोशल स्टैंडिंग को जानना चाहते हैं, उन्हें हमेशा ही लर्निंग और अनलर्निग के लिए ओपन रहना चाहिए। लर्न करने के लिए अपने अंदर यह पता होना जरूरी है कि आपको बहुत सी चीजे नहीं पता और ऑनलाइन करने के लिए जरूरी है। यह समझ कि जीस नॉलेज को आप ऑलरेडी सही समझकर कट्टा करें बैठे हो, वो गलत भी हो सकती है और आपको अपनी नॉलेज से अटैच नहीं होना चाहिए। फॉर्मेशन को एनकाउंटर करने से आप खुद को एक अननोन टेरिटरी में डाल देते हो। और इसी नई इन्फॉर्मेशन यह टेरिटरी को समझने के लिए आपको नए नए तरीकों से सोचना पड़ता है, जिससे आप अपनी पुरानी कंफर्टेबल रिऐलिटी के बल से बाहर निकलकर अपनी अवेर्नेस को इक्स्पैन्ड कर पाते हो। स्टेप नंबर फ़ोर ड्रॉप टाइम लाइन ऑफ योर लाइफ जब भी कोई ऐसा इंसान एक साइकोलॉजिस्ट के पास आता है जिसमे सेल्फ अवेयरनेस की बहुत कमी होती है और वह खुद की ऑब्वियस प्रॉब्लम्स को ही देख नहीं पा रहा होता तो साइकोलॉजिस्ट उसे बोलता है कि वो अगले सेशन से पहले अपनी लाइफ के हर मेजर इवेंट के बारे में लिखें। यानी पैदा होने से लेकर अब तक और उस चीज़ के बारे में लिखने से जिसने आपकी पर्सनैलिटी को शेप करा। आप खुद के बारे में बहुत सी बातें जान सकते हो स्पेसिफिकल्ली आप अपने मन में चल रही स्टोरी को अपडेट कर पाते हो। अपने नेगेटिव इक्स्पिरीअन्सिज़ पर एक नया पर्सपेक्टिव हासिल करके ये एक्सरसाइज उन लोगों के लिए बहुत कम आ सकती है जो खुद की स्किल्स को अंडर या फिर ओवर एस्टीमेट करते हैं और खुद की डेवलपमेंट को खुद की सेल्फ परसेप्शन से नहीं जोड़ते हैं। इसलिए खुद की स्टोरी को समझो खुद की लाइफ के बारे में लिख कर। स्टेप नंबर फाइव फाइन्ड इमोशन यूआर वोर्डिंग साइकोलॉजी में ऐसे बोलते है इमोशनल क्रिप्टोनाइट यानी वैसे तो किसी को भी दुखी होना या फिर शर्म महसूस करना अच्छा नहीं लगता, लेकिन कई लोगों के दिमाग में हर समय ही बस किसी पर्टिकुलर इमोशन को लेकर रेड अलार्म बज रहा होता है और वो उस इमोशन को किसी भी कीमत पर अवॉर्ड करने की कोशिश कर रहे होते हैं। ज्यादातर केसेस में लोग सैड और वीक फील करने से ही डरते हैं और वो एक्स्ट्रीम सिचुएशन्स में जाते हैं। खुद की फीलिंग्स को दबाते हैं या फिर खुद को डिस्ट्रैक्ट करते हैं अपनी सैडनेस को नम करने के लिए फिर चाहे इस प्रोसेसर में उन्हें दूसरे इमोशन्स जैसे गुस्से, नाराजगी या फिर गिल्ट को ही क्यों ना फील करना पड़े। एग्जाम्पल के तौर पर अगर एक ऐसा इंसान जो ज्यादा खुश नहीं हो पाता क्योंकि बचपन में उसे एन्जॉय करने और ज्यादा लाउड होने के लिए पनिश करा गया था, तो ऐसे में वो इंसान खुद की लाइफ में ही प्रॉब्लम्स क्रिएट करेगा। वो खुद की एबिलिटीज़ को अंडरएस्टीमेट करेगा और खुद को कम समझेगा। जबकि दूसरी तरफ जो इंसान दुख को अवॉर्ड कर रहा होता है वो अपनी एबिलिटीज़ को ओवर एस्टीमेट करता है ताकि उसे अपनी कमियों को फेस करने का बोझ और उससे जुड़ी सफरिंग ना उठानी पड़े। इसलिए खुद में सेल्फ बिज़नेस बढ़ाने के लिए अपने उस इमोशन को ढूंढो जिससे आप ज्यादा पसंद नहीं करते और फिर वह काम करो जो आप करना नहीं चाहते और जिससे आप डरते हो।","क्या आप वास्तव में इतने बुद्धिमान या सक्षम हैं या यह सिर्फ आपका व्यक्तिगत पूर्वाग्रह है जो आपकी वास्तविकता को गलत तरीके से रंग रहा है? डनिंग-क्रूगर प्रभाव कहता है कि कम क्षमता वाला व्यक्ति खुद को शीर्ष प्रदर्शन करने वाले व्यक्तियों के हिस्से के रूप में देख सकता है, जबकि सबसे प्रतिभाशाली और असाधारण लोग खुद पर संदेह करते हैं। लेकिन हममें से अधिकांश के पास यह पूर्वाग्रह क्यों है? इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम धूर्त क्रूगर प्रभाव के मनोविज्ञान का पता लगाएंगे और बेवकूफ लोग क्यों सोचते हैं कि वे स्मार्ट हैं।" "पिछले कुछ सालों में टैटू उसकी पॉपुलैरिटी काफी बढ़ गई है। पर इंडिया में टैटू इन कल्चर हजारों सालों से चलता आ रहा है। अगर हम टैटूज़ के सबसे पुराने रिकॉर्ड्स की बात करें तो आर्कियोलॉजिकल साइट्स पर मिली एन्शियंट आर्ट और टैटू इन टूल्स के हिसाब से ह्यूमन्स तकरीबन 10 से 50,000 साल पहले से टैटूज़ को अलग अलग रीजनस के लिए यूज़ करते आ रहे हैं। हम हाउएवर ऐक्चुअल ह्यूमन बॉडी पर टैटू इनका सबसे पुराना एविडेन्स हमें एक 5300 इयर्स ओल्ड मम्मी से मिला था जिसको के पहाड़ों की रेंज में ढूंढा गया था। और इसी वजह से उसका नाम वॉज़ द आइस्मैन रख दिया गया था की बॉडी पर टोटल 6012 थे जो कि सूट और ऐश यानी जो ब्लैक पाउडर कोल या फिर वोट जैसी चीजों के जलाने के बाद बच जाता है, उनकी मदद से बनाए गए थे। अगर हम इंडियन टू इन हिस्टरी की बात करें तो यहाँ पर सबसे पहले ट्राइबल कम्युनिटिज में ऐनिमलस सिंबल्स पैटर्न्स और मेस के टैटूज बनाए जाते थे जिससे वो लोग बोलते थे। पर इंडिया में टैटूज़ को सबसे ज्यादा यूज़ करने वाली सुनसान इलाकों में रहती थी, जहाँ पर एक ड्राइव का दूसरी की औरतों को किडनैप करना काफी आम बात थी। ऐसी एक ट्राइब अरुणाचल प्रदेश में रहती है जिसका नाम है आ पत्नी ट्राइब इस ट्राइब में टैटूज़ का यूज़ किया जाता है सबसे अट्रैक्टिव लड़कियों को अन्य अट्रैक्टिव बनाने के लिए ताकि उसे दूसरी ड्राइव के लोग उठा कर ना ले जाएं। एक अलग ट्रैक जिसका नाम सिंगपो है, उसमें दोनों जेंडर्स के लिए अलग अलग रूल्स थे। जो औरतें मैरीड होती थी, उनके ऐंकल से लेकर नीस तक टैटू किया जाता था जबकि आदमियों के बस हाथों पर टैटू किया जाता था और अरुणाचल के नोक के और वंचो लोग अपनी स्ट्रेंथ करेज और मैं स्कूल नहीं दिखाने के लिए टैटू करवातें थे। इन सब से बिल्कुल अलग उड़ीसा की कुटिया कोंध ट्राइब में औरतें अपने फेस को जियोमैट्रिक टैटू से सजाती हैं और इन लोगों में ये माना जाता है कि मरने के बाद लोग एक दूसरे को इन्हीं टैटू की मदद से आसानी से पहचान लेंगे। इसके अलावा टेम्परेरी टैटू आठ मेहंदी भी इंडियन कल्चर में डीप्ली रूटेड है और ऐसे ही रिचुअल्स को स्टडी करने पर हमें पता लगता है की टाइम के साथ साथ टैटू इन प्रैक्टिस काफी इनवॉल्व हो चुकी है। पर पिछले कई सालों तक टैटू उसको टैबू और ओवर ली ऐग्रेसिव मानते थे। और ओलों टैटू उसकी बढ़ती पॉपुलैरिटी की वजह से ये वैल्यू चेंज भी होता जा रहा है। पर अभी भी असली क्वेश्चन यही है की क्या हम किसी के टैटू से उसकी पर्सनैलिटी या फिर हैबिट्स के बारे में कुछ जान सकते है? हम 2017 में वर्ल्ड जर्नल ऑफ साइकेट्री में पब्लिश हुए एक पेपर में ऐसी कई स्टडीज़ को रिव्यु किया गया, जिनमें अलग अलग एक्सपेरिमेंट के थ्रू इसी कोश्चन कानसर ढूंढा गया कि क्या टैटूज़ एक इंसान की साइट के बारे में कुछ बता सकते हैं आप? 2012 की एक स्टडी में ये हाइपोथीसिस किया गया कि टैटू कराने का चाहे कोई भी रीज़न हो पर उसका मेन एवल्यूशन अली पर्पस असल में सेक्शुअल सेलेक्शन में रूटेड है और रिसर्चर्स ने दो हाइपोथीसिस को प्रिंट किया, जिनका नाम था ह्यूमन कैन्वस और ऐन्टी ह्यूमन कैन्वस थ्योरी। सिम्पली ये बोलती है की एक सिम्बॉलिक को रिप्रेजेंट करने का मीडियम है, जिससे हम अपनी स्टोरी और हिस्टरी को डॉक्यूमेंट करते हैं। ये थ्योरी उस टाइम को इंफोसिस करती है जब हम गुफाओं की दीवारों से हटकर अपनी बॉडी पर आठ बनाने लग गए थे। दूसरी तरफ अपना ऐन्टी थ्योरी बोलती है की टैटू इन एक फिटनेस इंडिकेटर की तरह इवॉल्व हुए हैं जो की एक इंसान की अपीयरेंस को इम्प्रूव करते हैं, ताकि वो सेक्शुअल मार्केट में दूसरों से कंप्लीट कर पाए। ऐन्टी थ्योरी का एविडेन्स हमें बाकी एनिमल्स के बिहेव्यर में भी देखने को मिलता है और ये हमने हमारी हैं। प्रिन्सिपल वाली भीड़ में भी डिस्कस किया था कि फिटनेस शो करने के सिग्नल्स सिर्फ तभी ऑनेस्ट माने जाते हैं, जब वो एक्स्पेन्सिव कॉस्ट के साथ आते हैं और टैटू इनके केस में ये कॉस्ट है रिस्क ऑफ इन्फेक्शन और एक्स्क्यूस सेटिंग पेन तो टैटू करवाके एक इंसान सिम्पली ये सिग्नल देता है कि उसकी बॉडी इतनी फिट हैं। क्यों इन्फेक्शन से बची रह सकती है और इतने ज्यादा को भी बेर कर सकती है? हाउएवर, मॉडर्न टूल्स और हाइजीनिक प्रोसीजर्स की हेल्प से टैटू से जुड़ा इन्फेक्शन करें। इस काफी कम हो चुका है जिससे इस सिग्नल की कॉस्ट काफी कम हो चुकी है और तभी टैटू उसको ज्यादा से ज्यादा लोग फिटनेस दिखाने के लिए यूज़ करने लगे हैं। है। जहाँ पर कई रिसर्चर्स ने टैटू को एवल्यूशन की नजर से देखा, वहीं पर कई रिसर्चर्स ने उन्हें साइकोवनैलिसिस प्रिंसिपल्स के साथ समझने की कोशिश करिये तो उन्होंने माना कि टैटू से एक यूनीक आइडेंटिटी या फिर एक ग्रुप में अपनी लॉयल्टी दिखाने के लिए भी यूज़ करे जा सकते हैं। पर सेम टाइम पर ये भी आर्ग्यूमेंट भराई की शायद टैटूज़ किसी साइकोपैथोलॉजी यानी कोई बिहेव्यर डिसॉर्डर्स की भी निशानी हो सकती है। फॉर एग्ज़ैम्पल ऐन्टी सोशिअल इ टी ए ज़ इ बिशन इज़म या फिर टैटू उसकी मदद से अपनी लो सेल्फ इस टीम को सपोर्ट करना ज्यादातर बिहेवरल एक्स्पर्ट और कली नेशन्स स्किन से एक इंसान को समझने और उससे टैटू करवाने की अनकॉन्शियस मोटिवेशन ढूंढने की बात पर अगरी करते हैं। बट टैटू उसको सिर्फ बिहेव्यर डिसोर्डर से कनेक्ट करना थोड़ी ओल्ड फैशन जनरलाइजेशन लगती है। मीनिंग एक इंडीविजुअल को बेहतर समझने के लिए उसके टैटू उसको सेल्फ रिप्रजेंटेटिव सिंबल्स की तरह देखा जा सकता है, मगर साइकोथेरपी में टैटू उसको सिर्फ साइकोपैथोलॉजी तक ही सीमित नहीं रखना चाहिए। इसी चीज़ को दिमाग में रखते हुए की टैटूज़ कराने का रीज़न सिर्फ साइकोपैथ सीमित नहीं है। एक स्टडी में टैटूज़ को बनवाने की कई मोटिवेशन को एक्स्प्लोर किया गया और जब लोगों से पूछा गया कि उनका टैटू बनवाने का क्या रीज़न था, तो सबसे कॉमन रीज़न यही था की टैटूज़ उन्हें एक यूनीक आइडेंटिटी बिल्ड करने में काफी हेल्प करते है। आप और ये मोटिवेशन एज से भी रिलेटेड हो सकती है क्योंकि जब हम यंग होते हैं तब हमारी आइडेंटिटी पूरी फॉर्म नहीं हुई होती और हम अलग अलग परसों ना उसको ट्री कर रहे होते है। आप इसके साथ ही एक स्टडी बताती है कि कई लोग टैटूज़ को एक फैशन ऐक्सेसरी या फिर एक पीस ऑफ आर्ट की तरह भी यूज़ करते है और एक स्टडी में ये भी पता लगा की कॉमन बिलीफ के बिल्कुल ऑपोजिट ज्यादातर अडल्ट्स टू उसको रिबेलियस नेस या फिर कल्चरल एलिमिनेशन का साइन नहीं समझते और इसके साथ ही वो मानते हैं कि ज्यादातर लोग टैटूज़ बिना सोचे समझे नहीं करवातें और ज्यादातर लोग अपने टैटू स्कोरिंग रेट भी नहीं करते हैं और यूएस के एक सर्वे में ये चीज़ कन्फर्म भी हो गयी कि ज्यादातर लोग एक टैटू करवाने से पहले महीनों तक सोचते है की वो क्या बनवाना चाहते हैं और इसके साथ ही वो एक अच्छा टैटू पार्लर ढूंढ़ते हैं और वो अपने टैटू उस पर काफी ज्यादा पैसे भी खर्च रिस्पॉन्डेंट्स ने यह भी बताया कि वो अपने टैटू से काफी सैटिस्फाइड थे, पर जिन लोगों के एक से ज्यादा टैटूज थे, उन्होंने बताया कि उनका दूसरा या फिर तीसरा टैटू जो उन्होंने सबसे पहले वाले टैटू के काफी टाइम बाद बनवाया था, वो उनका सबसे फेवरेट है। इस चीज़ से हमें ये समा जाता है कि टैटू करवाने का कॉन्सेप्ट काफी सब्जेक्ट होता है और वो टाइम के साथ साथ चेंज होता रहता है। मल्टिपल स्टडीज़ हमें बताती है की टैटू और नॉन टैटू लोगों की पर्सनैलिटीज में काफी डिफरेन्स होते हैं और ये डिफेन्स मेजर किए जाते हैं। बिग 5 पर्सनैलिटी ट्रेड से यानी ओपन इस टू इक्स्पिरीयन्स न्यूरोटिसिज्म हम एक्स्ट्रा वर्जन कॉन्सियसनेस और अग्रि एबल नेस इस पर्सनैलिटी के सर्वे में 521 इंडीविजुअल को चूज किया गया और उनको 44 डिफरेंट क्वेश्चन्स को आन्सर करना था जिनमें उनसे ये भी पूछा गया कि उनकी एज ***** और एजुकेशन लेवल क्या है और क्या उन्होंने कोई टैटूज़ करवा रखे हैं? आप? हर पर्सनैलिटी ट्रेड को मेजर करने के लिए एक यूनीक क्वेश्चन पूछा गया था। जैसे कॉन्सियसनेस यानी वोट रेट जो बताता है कि एक इंसान एक को कितना अच्छे से कर सकता है। उसमें उन्हें कई स्टेटमेंट को रेट करना था। जैसे मैं एक काम को काफी अच्छे से करता हूँ या फिर मैं एक रिलाएबल वर्कर हूँ और ऐसे ही बाकी पर्सनैलिटी को भी मेजर किया गया। रिज़ल्ट में पता लगा की 521 में से 255 यानी 49% लोग थे और दोनों डिफरेंट ग्रुप्स के ट्रेड जैसे कॉन्शसनेस और ने रोटी सिस्टम में कोई डिफरेंस नहीं था और जब उनमें एक्स्ट्रा वर्जन के लेवल्स को कंपेर किया गया तब पता लगा कि जो लोग टैटू थे वो ज्यादा एक्स्ट्रोवर्ट थे और एक्स्ट्रा वर्जन काफी अच्छा प्रिडिक्टर होता है। टास्क, परफॉर्मेन्स और जॉब सक्सेस का ये फाइन्डिंग इतनी सिग्निफिकेन्ट है कि अगर एक इंडस्ट्री चाहे तो वो काफी हाई क्वालिटी एम्प्लॉईस गेन कर सकती है, जो कि उनकी लॉन्ग टर्म सक्सेस में भी हेल्प करेंगे। मगर ये सिर्फ तब हो पाएगा जब उनके हाइरिंग क्राइटीरिया में से टैटू लोगों के नेगेटिव ज़ीरो टाइपिंग हटेगी। जस्ट बिकॉज़ टैटू स्नैचर से काफी इंटीमेट और परमानेंट होते है। उनसे ये एक्सपेक्ट किया जाता है कि वो उन्हें पहनने वाले की अपनी बॉडी परसेप्शन और उनकी आइडेंटिटी चेंज कर देते हैं। इस सेशन को टेस्ट करने के लिए लंदन के एक टैटू पार्लर में आने वाले लोगों से पूछा गया कि वो क्या सोचते हैं? अपनी अपीयरेंस, बॉडी इमेज, नीड फॉर यूनीक्नेस, फिजिकल ऐक्टिविटी और सेल्फ एस्टीम जैसी चीजों के बारे में आप सम क्वेश्चन्स टैटू करवाने के बाद भी पूछे गए और फॉलोअप के लिए टैटू करवाने के तीन हफ्ते बाद ये टेस्ट फिर से हुआ। टैटू करवाने के एकदम बाद मेल्स और फीमेल्स दोनों ने बताया कि अब वो कम मेन्शन फील कर रहे हैं। वो अपनी से खुश हैं और ये फीलिंग्स टैटू करवाने के तीन हफ्ते बाद तक भी थी। पार्टिसिपेंट्स ने ये भी बताया कि नए टैटू करवाने की वजह से उनकी सेल्फ एस्टीम भी बढ़ गई है। मतलब ये तो पक्का है कि टैटू करवाने से हम अपनी स्किन में कॉन्फिडेंट और हैप्पी फील करते है। हाउएवर कई केसेस में फीमेल्स की सोशल फिजिकल ऐक्टिविटी वापस आ सकती है, क्योंकि अभी भी हमारी सोसाइटी में फीमेल्स को नेगेटिवली देखा जाता है। बट ओवरऑल इस सर्वे से हमें पता चला की एटलिस्ट शॉर्ट टर्म में टैटूज़ काफी पोटेंट है हमारी सेल्फ एस्टीम और सैटिस्फैक्शन बढ़ाने में। पिछले 100 सालों में टैटूज़ एक कल्चरल टैबू से इन्वॉल्व होकर मेन फैशन और अपने आप को एक्सप्रेस करने का जरिया बन गया है। शुरू में फीमेल्स की बॉडी पर बनाए गए डिज़ाइन्स ने नैचरल सेलेक्शन में बहुत बड़ा रोल निभाया था, वो अपनी बॉडी उसको डेकोरेट करती थी मेल्स को अट्रैक्ट करने के लिए और तभी मेल्स फीमेल्स को प्रॉमिस या फिर डी सी टु गेट समझते हैं। पर ये चीज़ क्लीन इशन्स को भी समझाया जाती है की वो अपने पेशेंट्स को उनके टैटूज की वजह से ओवर जेनरलाइज ना करे और इसके बजाय वो इंडीविजुअल पेशेंट्स और उनके अलग अलग टैटू से जुड़े पर्सनल मीनिंग को एक्स्प्लोर करें। हम ऑलमोस्ट हर टैटू हमें एक इंडीविजुअल के बारे में कुछ ना कुछ बताता है। एक रैन्डम मीनिंग लेस टैटू हमें उस इंसान की इंपल्सिव इ टी के बारे में बता सकता है और एक अल्कोहल की इन्फ्लुयेन्स में कराया गया टैटू बैड हैबिट्स के बारे में टैटूज़ एक काफी अच्छा नॉन वर्बल फॉर्म ऑफ कम्यूनिकेशन है और अगर हम इससे जुड़े रिस्क और कॉन्सिक्वेन्सस को अच्छे से समझते हैं तो इनको बनवाने और फ्लॉन्ट करने में कोई बुरी बात नहीं है। दिल।","इस पॉडकास्ट में आप टैटू और भारतीय टैटू बनाने के पीछे के मनोविज्ञान के बारे में जानेंगे, जो कुछ सवालों के जवाब दे सकते हैं जैसे हम टैटू क्यों बनवाते हैं, टैटू का अर्थ, इसका विकासवादी महत्व, इससे जुड़ा कलंक, अगर यह आपको बदमाश और मूर्ख बनाता है , क्यों युवाओं का स्याही लगवाने की ओर अधिक झुकाव है और अधिक।" "अगर मैं आपसे पूछूं कि आप इस एपिसोड में जिंदगी के सच को जानना चाहोगे या फिर कुछ ऐसा सुनना चाहोगे जो आपको अपने बारे में अच्छा फील कराएं तो चान्सेस है कि आप बोलोगे कि आप सच को ही जानना चाहते हो। हाउएवर लाइफ इतनी स्ट्रैट फॉरवर्ड नहीं होती कि वो आपको ऐसे दो ऑप्शन्स दें जिसकी वजह से आप नैचरली सच से जुड़े डिस्कम्फर्ट को झेलने के बजाय आप उन झूठी बातों को अपना लेते हो जो आपको अच्छा फील कराती है। यही रीज़न है कि क्यों? यह एपिसोड सिर्फ उन्हीं लोगों के लिए है जिनमें सच को फेस करने की हिम्मत है बिना उससे हुए या फिर बुरा फील करे। याद रखो सच सिर्फ शॉर्ट टर्म में आपको चुभेगा लेकिन झूठ धीरे धीरे आपको सालों तक काटेगा। इसलिए अब बात करते हैं जिंदगी के 10 कड़वे सचो की। ग्रोथ नंबर वन पूअर्स टेप पुअर बिकॉज़ ऑफ देर माइंडसेट ये आपकी गलती नहीं है कि आप एक गरीब या फिर मिडल क्लास फैमिली में पैदा हुए, लेकिन अगर आप एक गरीब फैमिली में ही मरो तो वो टोटली आपका ही फॉल्ट है। गरीब लोग अमीर लोगों से डिफ्रेंट्ली बिहेव करते हैं, उनकी हैबिट्स अलग होती है और मोस्ट इम्पोर्टेन्ट ली उनका माइंड सेट भी गरीबी का ही होता है जिसकी वजह से वो चाहे जितनी मर्जी मेहनत कर ले, उनका हर डिसिशन उन्हें घूमा फिराकर गरीबी के पास ही ले आता है। आज हमारे पास सही इन्फॉर्मेशन लेने के इतने सारे सोर्सेस हैं, जिनकी मदद से कोई भी इंसान अपना माइंडसेट बदल सकता है। इसलिए अमीर लोगों के लिखी बुक्स को पढ़ हो, उन्हें अपना मेन्टर बनाओ और इंटरनेट पर रिसर्च करो कि सेट होने का मतलब क्या होता है? अगर इस इन्फॉर्मेशन के दौर में भी आप एक्स्क्लूसिव बना रहे हो तो आपके पास पैसा ना होने का पूरा फॉल्ट आपका ही है। तो उस नंबर टू यू कैन बिज़ी इट स्टिल नॉट अचीव एनीथिंग यानी अगर आप हमेशा किसी ना किसी काम में बिज़ी रहते हो तो उसका मतलब यह नहीं है कि आप कुछ प्रोडक्टिव काम कर रहे हो और अपनी लाइफ को बेहतर बना रहे हो। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि बहुत से लोग अपना कीमती समय ऐसे कामों को करने में लगा देते हैं जो उस मोमेंट मैं तो अर्जेन्ट लग रहे होते हैं लेकिन असल में वो उतने जरूरी नहीं होते है। आपके दिन का ज्यादातर समय जाना चाहिए। आपकी हेल्थ, आपके रिलेशनशिप्स और आपके करियर की तरफ ना कि सोशल मीडिया। वेब सिरीज़ या फिर गेम्स जैसी चीजों में अगर आपका कोई ऐक्शन आपकी पर्सनल डेवलपमेंट के साथ नहीं जुड़ा तो उसका मतलब आप उस काम को अपने रूटीन से हटा सकते हो और उसके बजाय कोई ऐसी चीज़ कर सकते हो, जो एक्चुअल मैं आपकी लाइफ में कोई पॉज़िटिव इम्पैक्ट डाले। ट्रुथ नंबर थ्री योर बिग्गेस्ट प्रॉब्लम्स वोल्ट मैटर इन फाइव इयर्स आपके आने वाले एग्जाम्स आपकी इन्कम्प्लीट प्रोजेक्ट्स, आपकी जॉब से जुड़े असाइनमेंट्स इस तरह की प्रॉब्लम्स आपको स्ट्रेस देती है और आपके इमोशन्स को इंचार्ज बना देती है। इसलिए जब भी आप किसी प्रॉब्लम में से हो और आप बहुत टेंशन में हो तब खुद से पूछो कि क्या यह प्रॉब्लम 5 साल बाद भी मैटर करेगी? अगर आपका जवाब हाँ है तो आपको उस प्रॉब्लम को लेकर और ज्यादा सीरियस हो जाना चाहिए और उसे ओवर कम करने के लिए और तेजी से काम करना चाहिए। लेकिन दूसरी तरफ अगर आपको वो प्रॉब्लम 5 साल बाद याद भी नहीं होगी तो आप उस पर इतना समय और एनर्जी क्यों वेस्ट कर रहे हो? उसे सिम्पली जल्दी से जल्दी खत्म करो, ताकि आप ज्यादा जरूरी प्रॉब्लम्स पर ध्यान दे सको। ग्रोथ नंबर फ़ोर वी आर नॉट बोर्न ईक्वल हर इंसान एक ऐसी दुनिया के बारे में फैंटसाइज तो करता है जहाँ हमारे रिलिजन कास्ट स्टेटस अट्रैक्टिवनेस या फिर जेन्डर मैटर ही ना करें। लेकिन जीस दुनिया में हम रहते हैं। वहाँ कई लोग अमीर घर में पैदा होते हैं। कई गरीबी में कई देशों में औरतों को पूजा जाता है और कई देशों में अब्यूस। कई लोग ज्यादा टैलेंट के साथ जन्म लेते हैं और कई लाख कोशिश करने के बाद भी लाइफ में कुछ कर ही नहीं पाते हैं। इन्हें क्वालिटी हमारी जिंदगी के कण कण में बसी है और यह सब हजारों सालों से चलता आ रहा है। इन सचो को अवॉर्ड करने के बजाय इन्हें फेस करो ताकि आप इन के दूसरे विकल्प ढूंढ सको। प्लैन करो कि आपको कैसी लाइफ चाहिए, कौनसी सोसाइटी, सिटी या कंट्री के लोगों से आपकी थिंकिंग मेल खाती है या फिर आपको किस तरह का कैरिअर चूज करना होगा? अपने टैलेंट को अच्छे से यूटिलाइज करने के लिए ट्रुथ नंबर फाइव यू आर नॉट दैट इम्पोर्टेन्ट। कई बार अपनी जिंदगी की भागादौड़ी में हम इस फैक्ट को भूल जाते हैं कि हम स्पेशल नहीं है। हम इस ब्रह्मांड में अपने ही जैसे बहुत से दूसरे क्रीचर्स के साथ एक रैन्डम प्लैनेट पर स्पेस के बीच उड़ रहे हैं। इस छोटे से नीले पत्थर के बाहर ना तो हमारी प्रॉब्लम्स मैटर करती है और ना ही हम इस धरती की सारी प्रॉब्लम्स चाहे वो वो रहो, इनइक्वालिटी हो, करप्शन हो, यह सारी चीजे ही एक दूरी से देखने पर बिल्कुल महत्वहीन लगती है। इसलिए जब भी आप खुद को दूसरों के सामने एम होता फील करो, आपको किसी सिचुएशन में डर लगे या फिर आप खुद को जरूरत से ज्यादा इम्पोर्टेन्ट समझने लगो तो अपने पैर जमीन पर लाने के लिए अपनी इन सिग्निफिकन्स के बारे में सोचो और खुद को खुशकिस्मत फील करो कि आप यूनिवर्स के आगे इतने इर्रेलेवेंट होने के बाद भी इस जिंदगी को इतना डीप्ली एक्सपीरियंस कर सकते हो और कैसे आपकी प्रॉब्लम्स के लकी कॉन्टेस्ट में इतना स्ट्रेस लेने के लायक है ही नहीं। ग्रोथ नंबर सिक्स योर अपियरेंस मैटर लॉट लोग चाहेये बोले कि वो दूसरों को उनकी भारी सुंदरता से नहीं बल्कि उन्हें उनकी इन्नर ब्यूटी के बेसिस पर जज करते हैं। लेकिन असलियत में हम कैसे दिखते हैं, हम किस तरह के कपड़े पहनते हैं, हमारे बाल कितने टी डी या फिर मेसी है? हर छोटी से छोटी एक्सटर्नल चीज़ हमें दूसरों की नजरों में या तो ऊपर उठाती है फिर गिराती है जीवन हम खुद को कितना रिस्पेक्ट के काबिल समझते हैं, यह फैक्टर भी बहुत हद तक हमारी अपील पर ही बेस्ट होता है। इस सच को बहुत से लोग एक्सेप्ट नहीं करते क्योंकि या तो वह खुद की लुक्स को लेकर बहुत ही इनसिक्योर होते हैं या फिर उन्हें ये समझ ही नहीं होती कि वो अपने लुक्स को इंप्रूव कैसे कर सकते हैं। इसलिए अपनी अपीयरेंस को इग्नोर करने के बजाय उसे एक टूल की तरह यूज़ करो। अगर आप और एक दूसरा इंसान सम इंटरव्यू के लिए जा रहे हो, लेकिन उसके कपड़े अच्छे से प्रेस हुए साफ और प्रोफेशनल लग रहे हैं। लेकिन आपके कपड़े मुड़े हुए हैं या फिर आपने अपने बालों को ढंग से स्टाइल नहीं करा तो चान्सेस है कि समय क्वालिफिकेशन्स होने के बाद भी वो जॉब दूसरे इंसान को मिले गी ना कि आपको अच्छे कपड़ों में इन्वेस्ट करने की आदत डालें हो और याद रखो। कपड़ों के केस में क्वालिटी मैटर करती है ना की क्वांटिटी। अच्छे देखने को अपनी किस्मत की तरह नहीं बल्कि एक स्किल की तरह देखो जिससे आप डेवलप कर सकते हो। नंबर से वन लाइफ इज़ बेटर वेन यू आर रिच। हम अब उस जमाने में नहीं रहते हैं जहाँ आप बिना ज्यादा पैसों के भी एक पीसफुल जिंदगी जीसको आज आपके ऊपर पहले से भी ज्यादा सोशल और पॉलिटिकल प्रेशर है। अमीर होने के लिए दुनिया में करप्शन बहुत ज्यादा बढ़ चुकी है और यह गेम अमीर लोगों के फेवर में है। चाहे वो इन्फ्लेशन की बात हो, बढ़ते टैक्सेस या फिर टेक्नोलॉजिकल डेवलपमेंट। हर इंसान डीप इनसाइड ये बात जानता है कि उसकी लाइफ बहुत बेटर होती। अगर उसके पास ज्यादा पैसे होते तो हो इसलिए अमीर लोगों को हेट करने या फिर उनसे जेलस होने के बजाय इस गेम को जीतना कैसे है? इसका प्लान बनाओ और जल्दी से जल्दी अपने फाइनैंस को ठीक करना शुरू करो। इस नंबर एट नोट एव्रीवन इस गोइंग टु लाइक यू आपको कभी भी ये ट्राई करना ही नहीं चाहिए कि जिन से भी आप मिलों वो आप को लाइक करें। लाइफ एक पॉपुलैरिटी कॉन्टेस्ट नहीं है, जहाँ आपको हर इंसान की नजरों में अच्छा बनने के लिए कोई प्राइस मिलेगा, इसलिए हर रिजेक्शन, बुरे बिहैवियर या हेट को लाइफ का पार्ट समझो और किसी भी हेटर की बातों को सीरियसली मत लो। नंबर नाइन यू विल लूज़ का लॉट ऑफ फ्रेन्ड ज़ बी फॉलोइंग एक्सिलेन्स जब भी आप अपने आप को बेहतर बनाने की कोशिश करोगे तब वह लोग जो खुद को लेवल अप नहीं करना चाहते, वो एक एक करके आपकी लाइफ से खुद ब खुद निकलना चालू कर देंगे। इसी वजह से आपको कभी भी अपने पास्ट में नहीं अटके रहना चाहिए, जहाँ पर आप अपने पुराने अनप्रोडक्टिव फ्रेंड्स को छोड़ ही ना पाओ। जैसे ही कोई इंसान आपके साथ आगे बढ़ने में हिचकिचाने लगे, उसी टाइम समझ जाओ कि वह आपके लिए एक लाइबिलिटी है। ट्रुथ नंबर 10 फेलियर्स विल बी योर बेस्ट टीचर्स यह जिंदगी का सबसे बड़ा और जरूरी सच है कि हम तब ज्यादा नहीं सीखते हैं जब हम अच्छा परफॉर्म कर रहे होते हैं, बल्कि तब जब हम फेल होकर बार बार लाइफ से ठोकर खा रहे होते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि फेल्यर आपको अपनी हर बुरी हैबिट, हर टॉक्सिक पैटर्न और यूज़लेस बिलीव्स की ओर भेजता है और आपको उन्हें चेंज करने के लिए फोर्स करता है। अगर आप अपनी लाइफ में कुछ बड़ा करना चाहते हो तो पहले आपको अपने फेलियर्स को स्टडी करना होगा ताकि आप अपनी कमियों को ओवर कम कर सकू और सक्सेसफुल बनने से पहले एक ऐसे इंसान बन सकूँ जो सक्सेस के लायक है।","अधिकांश मनुष्यों के बारे में सच्चाई यह है कि हम सच सुनना पसंद नहीं करते। हम सत्य के ज्ञान से संबंधित असुविधा का सामना करने के बजाय, अपनी कल्पनाओं के आराम में रहना पसंद करते हैं। इसलिए इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम कुछ साहस जुटाएंगे और उन सबसे आम सच्चाइयों को पचाने की कोशिश करेंगे जिन्हें सुनने से लोग नफरत करते हैं।" "इंसान पैसे को बनाता है, पैसा इंसान को नहीं। जिसकी वजह से अमीर बनने के लिए आपको पैसों से जुड़े लोगों के बिहेव्यर को स्टडी करना बहुत जरूरी होता है। सही शब्दों का इस्तेमाल करने से आप किसी को अपना प्रॉडक्ट खरीदने के लिए परसों ऐड कर सकते हो। कंज्यूमर साइकोलॉजी को रिवर्स इंजीनियर करने से आप लोगों की बर्निंग प्रॉब्लम्स को सॉल्व करके बहुत सारा पैसा बना सकते हो या फिर लोगो केफिर या ग्रिड को स्टडी करके आप अपनी इन्वेस्टमेंट्स के आरोग्य को मैक्सिमाइज कर सकते हो। पैसा बनाने के लिए आपको डाइरेक्टली या फिर इनडायरेक्टली ह्यूमन साइकोलॉजी को ही समझना होता है। इसलिए अगर आप भी खुद की इनकम के आगे अगले एक दो सालों में एक से दो ज़ीरो सेट करना चाहते हो तो इस एपिसोड पर एंड तक टिके रहना क्योंकि लास्ट के दो रूस को आप इसी मूवमेंट से अप्लाई करना शुरू कर सकते हो। रोल नंबर 100 एक्स शुड बी के मिनिमम गोल आजकल एक क्लिप बहुत वायरल हो रही है, जिसमें एक बोल रहा होता है कि सोचो कि तुम कितने बड़े सपने देखते अगर तुम्हें यह पता होता कि तुम फेल ही नहीं हो सकते हैं, यह बात बिल्कुल एक्युरेट है। आपको सक्सेसफुल बनने के लिए सबसे पहले एक बहुत बड़ा इंटरनल शिफ्ट चाहिए होता है। ज्यादातर लोग लाइफ में इसलिए नहीं फेल हो जाते हैं क्योंकि वो अन रियलिस्टिक गोल्स बनाते हैं बल्कि वो फेल्ड इसलिए होते हैं क्योंकि उनके गोल्स काफी छोटे और रीयल इस्टेट होते हैं और इवेन चली वो उन्हें अचीव कर लेते है। अगर आप अभी महीने के 30 या फिर 50,000 कमाते हो और आपका गोल है 1,00,000 तक पहुंचना तो यह गोल बहुत छोटा है। इसके बजाय इस गोल को 100 से मल्टीप्लाई करो और वो होना चाहिए आपका रियल गोल क्योंकि यह नया गोल आप को अन्कम्फरटेबल बनाएगा। आप इस नंबर को देखकर बोलोगे कि महीने का 1,00,00,000 अभी तो मेरी जेब में 10,000 भी मुश्किल बचता है, पर यही इसलिए ट्रिक है खुद के गोल को इतना पागल हो जैसा सेट कर लो कि वो आपको ग्रो होने के लिए फोर्स करे। अगर आपका गोल है बस अगले कुछ 100 किलोमीटर तक जाना तो उस काम के लिए आप एक गाड़ी को चुनो गे, लेकिन अगर आप का गोल हैं चाँद पर जाना तो उसके लिए आपको एक रॉकेट का बंदोबस्त करना पड़ेगा। जितना बड़ा गोल होगा उतना ही बड़ा आपका एफर्ट होगा। इसलिए बड़ी सोच रखने से डरो मत और वो इंसान बनो जिसको हर कोई सिरफिरा बोलता है। रूम टु मनी 22 हैपिनेस हैपिनेस दो तरह की होती है। एक साइकोलॉजिकल और दूसरी एग्ज़िस्टिंग शिल जब भी कोई इंसान बोलता है कि पैसों से खुशी खरीदी जा सकती है तब वो एग्ज़िट स्टेनसिल हैपीनेस की नहीं बल्कि साइकोलॉजिकल हैपिनेस की बात कर रहा होता है। क्योंकि अगर आपके माँ बाप की सडनली तबियत खराब हो जाए तब उनके इलाज के लिए पैसा लगेगा, घर में राशन लाना है तब भी पैसा चाहिए और जब रास्ते में आपकी पुरानी गाड़ी खराब हो जाए तब भी आप ये सोचते हो कि काश आपके पास एक नई गाड़ी लेने लायक पैसे होते है। लाइफ की बहुत सी मुश्किलें आसान बन जाती है। जब हमारी जेब में पैसा होता है इसलिए ये बोलना बंद करो। जी पैसों और खुशी के बीच कोई संबंध नहीं है। रोल नंबर थ्री दम ओर यू गिव मी मोर यू गेट अपना फोकस हमेशा लेने पर नहीं बल्कि देने पर शिफ्ट करो। सोचो कि आप दूसरे लोगों को क्या वैल्यू प्रोवाइड कर सकते हो और उनकी कैसे हेल्प कर सकते हो? पैसा खुद ही उनकी तरफ लो करने लगता है, जो दुनिया को बिना मांगे उधार देते रहते हैं। दुनिया में दूसरे लोगों की मदद करो, उन्हें सच्चाई का रास्ता दिखाओ, अपने से कमजोर इंसान को सहारा दो और अपनी सोच को लिमिट्लेस बनाओ। ये मत सोचो कि आपके पास कमी है और देने के लिए कुछ नहीं है। इसके बजाय यह सोचो कि आपके पास इतना कुछ है कि आप दूसरों को जितना मर्ज़ी देदो आपके पास तब भी ज्यादा प्यार, ज्यादा मदद, ज्यादा पैसा और दुआएं बची रहेंगी। फ़ोर ऑलवेज़ नो योर नेक्स्ट फाइव मूवीज़ यानी एस एस करूँ कि आप अभी जीस सिचुएशन में हो। वहाँ से एक बेहतर जगह पर पहुंचने के लिए आप की अगली पांच चालक क्या होंगी? जैसे की दुनिया में एक ग्रैंड मास्टर बनने के लिए आपको अपनी अगली पांच चालें पता होना जरूरी होता है और लाइफ भी ऐसे ही काम करती है। रोल नंबर फाइव बिल्डर ड्रीम टीम अनलेस एक इंसान की लॉटरी लग जाए। जब भी एक इंसान अमीर बनता है तब उसके साथ और बहुत से लोग अमीर बनते हैं। पैसों का बादल सिर्फ एक इंसान पर बारिश नहीं करता। इसी वजह से अगर आप अनकॉमन सक्सेस पाना चाहते हो तो अपने सपने में दूसरे लोगों को शामिल करो। एक कंपनी में जीतने ज्यादा लोग अच्छा पैसा बनाते हैं। उतनी ही वो कंपनी बड़ी बनती चली जाती है और उसमें सिर्फ एक इंसान की नहीं बल्कि सबकी जीत होती है। रोल नंबर ***** यूज़ वॉट यू हैव अकेले में बैठो और आपके पास जो भी ऐसेट्स है उनकी एक लिस्ट बनाओ। क्या आप फिज़िकली बहुत स्ट्रांग हो क्या आप बहुत एक्स्ट्रोवर्ट ऐड हो और किसी से भी इजली बात कर लेते हो? क्या आपका फ्रेंड सर्कल बहुत स्ट्रांग और लौल है? क्या आप किसी अमीर इंसान को जानते हो कि आपके भाई बहन खाली बैठे रहते है और वो आपकी बिज़नेस बिल करने में आपका हाथ बंटा सकते हैं या फिर क्या आपको वेब डिज़ाइनिंग आती है? आपके पास जो भी एडवांटेज हैं, उन्हें लिखो और वहाँ से शुरू करो। ये मत सोचो कि मैं तब शुरू करूँगा जब मेरे पास वो महंगा वाला एक होगा या फिर जब मेरे पास थोड़ा पैसा यह समय होगा। अपने यूनीक एसेट्स की लिस्ट बनाने से आपको कई नए बिज़नेस आइडियाज़ तो ऐसे ही आने लगेंगे। और अगर आपके पास एक अच्छा आइडिया है तो आपको उसे हकीकत बनाने के लिए कोई और एडवांटेज नहीं बल्कि बस हार्ड वर्क चाहिए। सेवन यू डोंट गेट वॉट यू? हेट अमीर बनने और पैसा कमाने के लिए आपको अमीरी से प्यार करना जरूरी है। जिंस भी चीज़ से आप नफरत करते हो। आप हमेशा उसी चीज़ के बारे में सोचते रह जाते हो लेकिन आप उसे कभी हासिल नहीं कर पाते हैं। जितनी बार आप किसी अमीर इंसान को सिर्फ अमीर होने के लिए ही हिट करते हो उतनी बार ही आप खुद से यह बोल रहे होते हो कि आपको उसकी पोज़ीशन में कभी नहीं आना और आपको अमीर नहीं बनना इसलिए पैसों और स्पेशल ली। बहुत से पैसों की रिस्पेक्ट करो और सक्सेस कि इस गेम से प्यार करो। रोल नंबर एट यू हैव टु चेंज द वे यू थिंक अबाउट मनी पैसा बनाने के लिए आप जीस नजर से पैसों को देखते हो, वो बदलना जरूरी है और यह पॉसिबल होगा। अपनी नजरों को पैसा ढूंढने के लिए ट्रेन करने से जब भी आप घर से बाहर निकलते हो तब देखो कि पैसा किन जगहों पर कॉन्संट्रेटेड है। कौनसा मॉल, कौन सी शॉप, कौनसा शोरूम या फिर कौनसा रेस्टोरेंट अमीर लोगों से भरा हुआ है और वो क्या कर सकते हैं। अपना रेवेन्यू और बढ़ाने के लिए किस तरह की डील्स ऐसा कस्टमर आप चाहते हैं हर सक्सेसफुल इंसान या फिर बिज़नेस को रिवर्स इंजीनियर करो, सबवे, स्टारबक्स या मैकडी पर बस खाना खाने के लिए नहीं, बल्कि लोगों की साइकोलॉजी को समझने के लिए जाओ। किस टाइप का क्राउड कौन सी जगह जाता है और क्यों कोई ब्रैंड आपकी जेब से 500 या फिर ₹1000 निकालने में सक्सेसफुल रहा, जबकि दूसरे ब्रैन्डस फेल हो गए। नेटवर्क इस एवरीथिंग अगर आप मोटा पैसा बनाना चाहते हो तो उन लोगों के साथ उठो बैठो जो पूरे दिन पैसा बनाते और हंसल करते हैं। आपका फ्रेंड चाहे फनी हो और शायद वो एक हद तक लौल भी हो लेकिन अगर उसकी सोच छोटी है और वो लेज़ी है तो उसकी यह मीडिऑक्रिटी आपके ऊपर भी दबाव करेगी। आपको अपने अराउंड एक ऐसा नेटवर्क चाहिए। आपको अपने फ़ोन में ऐसे कॉन्टैक्ट चाहिए जो इम्पोर्टेन्ट हो और बड़ी चीज़े करते हो। आपको विनर्स के बीच में घुलना हैं और उनकी एनर्जी और माइंडसेट को अब जॉब करना है। रूम नंबर 10 स्टडी मार्केट क्रैश एस 2020 में जब यूएस फेडरल रिज़र्व ने क्वांटिटेटिव सिंह यानी इकॉनमी में बैलेंस लाने के लिए पैसा प्रिंट करना शुरू करा था और लोगों को गवर्नमेंट स्टिम्युलस टैक्स देने लगी थी। उन्हें पावर्टी से बाहर निकालने के लिए तो बहुत से लोगों ने वो पैसा, स्टॉक्स और इन्वेस्ट कर दिया था और हम इन मार्केट्स में एक बहुत अच्छा देखने को मिला था। लेकिन 2020 के हाँ, इसके बाद मार्केट कन्टिन्यूसली गिरती जा रही है और बहुत से इकॉनमिस्ट्स तो ये बोल रहे हैं कि हम ऑलरेडी एक रिसेप्शन में है और मार्केट अभी और नीचे गिरेगी। ये मार्केट की वो साइकल होती है जो बहुत से करोड़पतियों को बैकअप बना देती है और बहुत से लखपतियों को करोड़पति हर मार्केट क्रैश से पहले क्या होता है? उसके दौरान क्या होता है और उसके बाद क्या होता है इसे स्टडी करो। मार्केट में रिपीट होने वाले पैटर्न्स को समझो। इससे आपको ये समझ जाएगा कि किस पॉइंट पर पैसों को इन्वेस्ट करना बेस्ट होता है और कब आपको पैसा बैंक में कूँ ऑमलेट करना चाहिए ताकि आप मार्केट गिरने पर हर चीज़ सस्ते में खरीद सको।","आदमी पैसा बनाता है, पैसा आदमी नहीं बनाता। पैसा बनाने के लिए, आपको अंतर्निहित मनोविज्ञान को समझना होगा जो धन के प्रवाह को संचालित करता है। सही शब्दों का प्रयोग करके आप अपनी बिक्री बढ़ा सकते हैं, रिवर्स इंजीनियरिंग उपभोक्ता मनोविज्ञान द्वारा आप एक बेहतर उत्पाद बना सकते हैं और लोगों के लालच/डर का अध्ययन करके आप बेहतर निवेश कर सकते हैं। तो, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम पैसे के 10 नियमों के बारे में बात करेंगे जो आपको अमीर बना सकते हैं।" "ज़्यादा तर रोमेंटिक मूवीज़ में एक करेक्टर ऐसा होता है जो काफी बुरा होता है पर किसी वजह से लड़कियां उसकी तरफ खींची चली आती है। ये करैक्टर होता है मूवी का बैड बौ अगर हम बॉलीवुड और हॉलीवुड दोनों इंडस्ट्रीज़ के बैड बॉईज को देखें तो उनमें कई क्वालिटीज कॉमन है जैसे वो काफी अग्रेसिव होते हैं, वो रिस्की ऐक्टिविटीज़ में पार्टिसिपेट करते हैं। वो अन रियलिस्टिक ली ऑप्टिमिस्टिक होते हैं, वो काफी मिस्टीरीअस होते हैं और इतने अनप्रिडक्टेबल होने की वजह से वो सबसे अलग होते हैं। पर बुरे काम करने के बावजूद हमें यह धीरे धीरे समझ आने लग जाता है कि उसकी भी वैल्यूज़ है और वह भी जस्टिस की परवाह करता है। लेकिन अपने स्टाइल में 100 साइकोलॉजी इन हिंदी के इस एपिसोड में हम बात करेंगे कि क्यों फीमेल्स बैड बॉय उसको इतना अट्रैक्टिव मानती है और क्यों हमे वो इतने कूल लगते हैं। ज्यादातर फीमेल्स इस बात से रिलेट कर पाती है कि जिन लड़कों को वो पसंद करती हैं उन्हें उनके पैरेन्ट्स रिजेक्ट कर देते हैं। पर इन लड़कियों की साइकोलॉजी और बायोलोजी दोनों ही उन्हें इस तरह के लड़कों को डेट करने के लिए पुश करती है और रिसर्च बताती है कि इसके पीछे कई साइंटिफिक रीज़न होते हैं और हालांकि बैड बौस कई टाइप्स के होते हैं, पर जो टाइप्स सबसे ज्यादा अट्रैक्टिव होता है वो है एक पॉवरफुल एरोगेंट डेनजरस करिज्मैटिक ओर गुड लुकिंग मेल जो अपने इमोशन्स कभी नहीं दिखाता। पर जब उसे सही लड़की मिलती है तब उसकी इमोशनल साइड भी बाहर आने लग जाती है। बैड बॉय के इस वर्जन को काफी सारी जेम्स बॉन्ड की मूवीज़ में दिखाया गया है क्योंकि वो लड़की के पास होकर भी उससे इतना दूर होता है। और अपनी ही दुनिया में रहता है पर चाहे वो अपनी मर्ज़ी से किसी के साथ मीनिंगफुल रिलेशनशिप में नहीं आता या फिर उसकी कोई मजबूरी है। इस टाइप के बैड बॉय को हमेशा इमोशनली डिस्टैन्स दिखाया जाता है, जो अपने काम के नेचर की वजह से कभी भी अपनी पूरी आइडेंटिटी रिवील नहीं करता। इसी वजह से अगर हम इन स्टोरीज़ को एक लड़की की नजर से देखें तो बैड बौस एक ऐसी प्रॉब्लम की तरह होते हैं जिससे उन्हें सॉल्व करना होता है। इसका एक और काफी पॉवरफुल एग्जाम्पल है ब्यूटी ऐंड द बीस्ट। जिसमें एक काफी खूबसूरत और जवान लड़की एक काफी सेल्फिश और गुस्सैल प्रिन्सिप्ल प्यार करने लग जाती है जो अब 120 यानी राक्षस बन चुका है और उसकी इंसानियत सिर्फ तभी वापस आएगी जब उसे एक सच्चा प्यार होगा। ये सच बहुत सारी बॉलीवुड मूवीज़ में भी दिखाया गया है जहाँ पर एक हस्ती मुस्कुराती लड़की को एक विलन या गुंडे से प्यार हो जाता है और ये प्यार उस गुंडे को उसकी इंसानियत याद दिलाता है। इस तरह के मेल्स लड़कियों की कई फैंटसीज़ को बाहर ला पाते हैं। जैसे एक सबसे कॉमन फैन्टैसी है उस काम को करना जो सोसाइटी की वैल्यू स् और लड़की के खुद के मॉडल्स के अगेन्स्ट जाता है। ये फैंटसी हमें 365 डेज़ 50 शेड्स ऑफ ग्रे और सूइसाइड स्क्वॉड जैसी मूवीज़ में देखने को मिली है। बैड बौस अपने पार्टनर को याद दिलाते हैं कि रूल्स को तोड़ना कितना जरूरी और मजेदार हो सकता है। रूल्स को तोड़ने में जो थ्रिल और फ्रीडम का एहसास है वो नॉर्मल लड़कों ने तो कभी एक्सपिरियंस भी नहीं करा होता। हाउएवर लड़कियां एक नाइस गाइज़ से अट्रैक्ट होंगी। या एक बैड बॉय से ये इस बात पर डिपेंड करता है कि वो अपनी लाइफ के किस फेस में है और वो अपनी मेन्स्ट्रूअल साइकल से कितनी दूर है। बताती हैं कि जो लड़कियां नैचुरली ज्यादा फर्टाइल होती है या फिर पीरियड से पहले अपनी साइकल के पीक पर होती है वो अपनी फर्टिलिटी का फायदा उठाने के लिए एक ऐसे ऐल्फा बैड वर्ड टाइप के लड़के को ढूंढती हैं जिनका टेस्टॉस्टोरोन ज्यादा हो। पर ज्यादा टेस्टोस्टरोन होने का मतलब है कि वो मेल ज्यादा कॉम्पिटिटिव डिसग्रीस टेबल ऐरोगेंट और स्ट्रॉन्ग होगा। इस तरह की पॉज़िटिव और नेगेटिव क्वालिटीज का मिक्सचर बैड बॉईज को एक नाइस गाय से बेटर ऑप्शन बनाता है क्योंकि खुद के अंदर बुरी क्वालिटीज होने की वजह से एक बैड बौ उन क्वालिटीज को दूसरे लोगों में भी आइडेंटिफाइ कर पाता है। एग्जाम्पल के तौर पर 1978 में रिलीज हुई डॉन के शुरुआती सीन में ही हमें डॉन की एक काफी एथिकल साइट देखने को मिलती है, जहाँ पर वो काफी ईमानदारी के साथ बिज़नेस कर रहा होता है पर उसी समय उसके क्लाइंट्स उसको धोखा दे देते हैं। इस केस में एक नाइस गाय दूसरों की बुराइ को इग्नोर कर देता और पहले से कोई प्लैन भी नहीं बनाता पर जस्ट बिकॉज़ डॉन मैं खुद भी वोई वन क्वालिटीज है तो उसे इतनी समझ थी कि अगर सामने वाला भी अपनी वन क्वालिटीज दिखाए तो उसके साथ कैसे डील करना है? यूनियन साइकोलॉजी में ऐसे इंसान को साइकोलॉजिकली काफी बैलेंस्ड माना जाता है, क्योंकि उसे अपनी डार्क साइड यानी शैडो और गुड साइड दोनों की अंडरस्टैंडिंग होती है। एवल्यूशन अली कॉन्टेस्ट में आप इसे ऐसे सोच सकते हो कि जीस इंसान को बुराइ की समझ नहीं होती, वो खुद उस बुराइ का शिकार बन जाता है। यही रीज़न है कि क्यों लड़कियां बैड बॉय उसके साथ सेफ और प्रोटेक्टेड फील करती है क्योंकि उन्हें पता होता है कि उनके इन्वाइरनमेंट में चाहे कुछ भी हो, उनका पार्टनर उन्हें उस चीज़ से बचा पाएगा। इसके साथ ही हमें उन्हें बिट्स और रिस्की बिहेव इयर्स के बारे में भी बात करनी चाहिए जिन्हें हमेशा बैड बॉईज के साथ असोसिएट करा जाता है। जैसे ज्यादातर मूवीज़ में बैड बॉईज को सिगरेट पीते हुए, ड्रिंक करते हुए या उसके किसी ऐसे शौक को दिखाया जाता है। जो अनहेलथी होता है। यहाँ पर बात आती है सिग्नलिंग बिहेव्यर की रेवल्यूशनरी बायोलॉजिस्ट अमोर से। जहावी ने अपनी रिसर्च में ऑब्जर्व करा है कि हम अपनी फिटनेस या अपने जीन्स की सुपिरियॉरिटी को किस तरह से एडवरटाइज करते हैं। उन्होंने बताया है कि अगर हम चाहते हैं कि दूसरा इंसान या फिर जैसे हम इंप्रेस करना चाहते हैं, वो ये मान लें कि हमारे जीन्स अच्छे है तो इसे प्रूव करने का प्राइस काफी ज्यादा होना चाहिए। जैसे अगर आप वन्स अपॉन ए टाइम इन मुंबई के कलेक्टर्स को देखो तो उसने बार बार हर मेन करेक्टर सिगरेट पीते हुए दिखाया गया है और अपने इस बिहेव्यर से यह करैक्टर्स हमें सब कॉन्शस ली ये सिग्नल कर रहे हैं कि देखो अगर मैं इतनी अन हेल्थी हैबिट्स रखने के बाद भी इतना फिट रह सकता हूँ और इतना अट्रैक्टिव लग सकता हूँ, तो सोचो मेरा इम्यून सिस्टम कितना स्ट्रॉन्ग होगा और मेरे जीन्स कितने हेल्थी होंगे जीवन अगर हम रेस टू में सैफ अली खान के कैरेक्टर को देखें जो कि डेफिनेटली एक बैड बॉय है तो वो एक सीन में जुआ खेलते हुए 40,00,00,000 की बाजी लगा देता है। और हार जाता है और कसीनो का मालिक भी इतना हैरान होता है यह जानने के लिए कि यह बंदा कौन हैं और तब हमे पता लगता है कि उसने इतने सारे पैसे अपने सिग्नल की ऑनेस्टी प्रूफ करने के लिए लगाए थे। इस बिहेव्यर को बोलते हैं हैन्डीकैप प्रिन्सिपल जो हमें बताता है कि किसी भी तरह का सिग्नल ऑनेस्ट तब माना जाता है जब वो कॉस्ट्ली होता है। यही रीज़न है कि क्यों एक लवर अपनी फ्यूचर वाइफ को लाखों या करोड़ों रुपए की रिंग देता है। ये प्रूफ करने के लिए नहीं उसकी फ़ीलिंग ऑनेस्ट है सिमिलरली जितनी चोट एक बैड बॉय का शरीर उसके इमोशन्स या फिर उसका बैंक अकाउंट सह सकता है। वो सिग्नल हमें बताता है कि वो टॉप मेल्स में से एक है। हाउएवर लड़कियों के लिए ऐसे मेल्स के साथ रहने में प्रॉब्लम ये है कि ये मेल्स बहुत अनस्टेबल और अग्रेसिव होते हैं, जिसकी वजह से वो मैरिज मटीरियल नहीं बल्कि सिर्फ डेटिंग मटिरीअल या फिर वन नाइट स्टैंड के लिए ही बेस्ट होते हैं। यानी बैड बॉय उसकी जो नेगेटिव क्वालिटी ज़ लड़कियों को अट्रैक्ट करती है। वो ही सेम क्वालिटी ज़ उन्हें उनसे दूर धकेल देती है। बहुत बार बैड बॉईज की इस निगेटिव बिहेव्यर को जस्टिफाई कर आ जाता है एक ट्रैजिक बैकस्टोरी की मदद से, जिसमें उसके पास के ट्रॉमा से पर्दा उठाया जाता है, जब वो अपने सर्कमस्टान्सेस के आगे एकदम पावरलेस था। यूज़्वली इन स्टोरीज़ में बैड बॉय्ज़ के ट्रोमा का सोर्स उनके फादर होते हैं और इस तरह से किसी बुरे इंसान के बुरे पास्ट के बारे में जानकर हम उस करेक्टर कीन प्लेज़न्ट एक्शन्स को इग्नोर कर देते हैं और उनसे सिंपल था। इस कर पाते हैं इसके ऊपर से बैड बॉईज के पास जो क्वालिटी ज़ और स्किल्स होती है, वह फीमेल्स को कहीं और नहीं मिल सकती और ना इस गाइस तो वैसे ही उनकी प्रायोरिटी नहीं होते है और तभी फीमेल्स प्रिफर करती है की वो इसी बैड बॉय को एक अच्छे इंसान में कन्वर्ट कर दें, जिसमें एक एज हैं। यानी ये मेल अच्छा तो है, पर इसमें बुरा करने की कैपेबिलिटी भी है। दूसरे वर्ड्ज़ में इसकी आदतें बुरी नहीं है, पर अगर ये ड्रिंक स्मोक, गैंबल या किसी और रिस्की बिहेव्यर में पार्टिसिपेट करें। तब भी ये मेल उस बिहेव्यर के प्राइस को अफोर्ड कर पाएगा और जब भी लड़कियां बोलती है की उन्हें एक बैड बॉय चाहिए तब वो ऐसे ही मेल के बारे में बात कर रही होती है जिसके जीन्स भी अच्छे हो और जो बाप भी अच्छा बन सके। सेक्शुअल, फिटनेस और मैच्योरिटी का यही कॉम्बिनेशन लड़कियों को सबसे ज्यादा पसंद है।","हर महिला ने एक ऐसे लड़के को डेट किया है जो स्पष्ट रूप से बुरी खबर थी, लेकिन वह विरोध नहीं कर सकी। और फिर भी, सभी चेतावनियों और लाल झंडों के बावजूद, एक "बुरे लड़के" को डेट करने का खिंचाव बहुत मजबूत था। तो, उन सभी संकेतों के बावजूद भी कि दिल टूटना क्षितिज पर है, लड़कियों को अभी भी बुरे लड़के इतने आकर्षक क्यों लगते हैं? यह जानने के लिए पूरा पॉडकास्ट सेगमेंट सुनें। 📽️यूट्यूब पर हमें खोजें: WWW.YOUTUBE.COM/PSYCHOLOGYINHINDI" "ब्रेन हैकिंग या फिर स्पेसिफिकल्ली न्यूरो हैकिंग का मतलब होता है टेक्नोलॉजी ट्रेडिशनल मेथड्स और कॉग्निटिव ट्रेनिंग की मदद से अपने ब्रेन फंक्शन को एनहान्स करना काम या पढ़ाई का स्ट्रेस लेजिनेस और डिमोटिवेशन क्रिएट करता है, जिससे हमारा ब्रेन अपनी तेजी को खो देता है। इसलिए इस एपिसोड में हम आपके साथ शेयर करेंगे। कई ऐसी ब्रेन है कि एक्सरसाइजेस जो आपके मेमोरी और फोकस को तो इम्प्रूव करेंगे ही लेकिन साथ ही साथ आपकी डिमोटिवेशन और स्ट्रेस जैसी प्रॉब्लम्स को भी खत्म कर देंगे। हैक नंबर वन मूवी और आइसलेट अली लेटरल लाइन मूवमेंटस यानी अपनी आँखों को कुछ सेकंड तक एक साइड से दूसरी साइड तक ले जाने से हमारे ब्रेन में मौजूद इमोशनल सेंटर यानी अमिग्डेला शांत हो जाता है और इससे हमारी लर्निंग इम्प्रूव होती है। हमारी आंखें साइड टु साइड का मूव करती है जब हम किसी चीज़ की तरफ आगे बढ़ते हैं। स्टैनफोर्ड न्यूरोसाइंटिस्ट डॉक्टर ऐन्ड्रयू बर्मैन के अंदर हुई एक रिसर्च में देखा गया की जब भी चूहों के आगे कोई खतरनाक चैलेंज रखा जाता तब या तो वो हैरान होकर फीस हो जाते या फिर वहाँ से भाग जाते है। हाउएवर अगर वो डर और खतरे के बावजूद आगे बढ़ते रहते तो उनका दिमाग हैप्पी और मोटिवेटिंग केमिकल दो पर रिलीज करने लगता। उन्हें उनकी फॉर्वर्ड मूवमेंट के लिए भी वोट देने के लिए यह एक ग्रोथ माइंडसेट होता है कि चाहे एक सिचुएशन कितनी इमर्जिंग चैलेंजिंग क्यों ना हो, मैं उससे फेस करूँगा और जैसे ही हमारे मन में एक खतरे से दूर भागने के बजाय उससे लड़ने का ख्याल आ जाता है, वैसे ही हम सडनली ज्यादा मोटिवेटेड फील्ड करने लगते हैं। जीवन थेरपी में भी जब एक डिप्रेस्ड या इंग्लिश पेशंट को थेरपिस्ट फिज़िकली मूव नहीं करा सकता तब वो नहीं बोलता है की वो अपनी आँखों को लेटर रीमूव करें। ताकि उनका दिमाग ये सोचे की वो फिज़िकली आगे बढ़ रहे हैं और इससे उन्हें मिले हैट नंबर टू वोकैब्लरी 2016 में हुई एक रिसर्च बताती है कि रेग्युलरली नए वर्ड्स सीखने से आप अपने दिमाग के विज़ुअल ऑडिटरी और लॉन्ग टर्म मेमोरी से रिलेटेड एरियाज़ को यूज़ करते हो, जिससे आपकी इन्फॉर्मेशन को प्रोसेसर करने की स्पीड बढ़ जाती है। इसलिए रेग्युलरली लिटरेचर बुक्स को रीड करो और अपने साथ एक नोटबुक को रखो। नए वर्ष को नोट डाउन करने के लिए इसके बाद उन वर्ड्स का मीनिंग ढूंढ लो और अगले दिन उन शब्दों को अपनी नॉर्मल स्पीच में यूज़ करने की कोशिश करो। वोकैब्लरी इम्प्रूव करने के लिए मेरी बेस्ट रिकमेन्डेशन्स है हैमलेट बी शेक्सपियर क्राइम एंड पनिशमेंट भी डॉक्टर्स की ओर टु किला मॉकिंगबर्ड जिसकी रिच वोकैब्लरी की वजह से उसे स्कूल्स में भी पढ़ाया जाता है। हैक नंबर थ्री लिसन टू बाइनॉरल बिट्स बाइनॉरल बिट्स का मतलब होता है दोनों कानों में एक डिफरेंट फ्रिक्वेन्सी की साउंड साथ में सुनना। इससे दिमाग इन दोनों फ्रिक्वेन्सी उसको कंबाइन कर देता है, जिससे हमारा फोकस और कॉन्सन्ट्रेशन बढ़ते हैं। बेस्ट और मोस्ट इफेक्टिव फ्रीक्वेन्सी होती है 40 हर्ट्स की। यानी जब भी आपको कोई कॉग्निटिव ली डिमान्डिंग वर्क करना है, जब उससे 5 मिनट पहले या फिर उसकी शुरुआत में यू ट्यूब या फिर स्पॉटिफाइ पर जाकर हेडफोन्स लगाकर 40 हँस फ्रिक्वेन्सी को सुना हो। इस तरह जैसे लकड़ी को काटने से पहले आरी को तेज कर आ जाता है। आप भी अपने मन को तेज़ बना पाते हो। खुद को सही मेंटल स्टेट में पहुंचाकर हैक नंबर फ़ोर टेक कोल्ड चार्ल्स गर्मी हो या सर्दी, कोल्ड चार्ज लेना या रूम टेम्प्रेचर से चार से पांच डिग्री नीचे के पानी में जाना फिजिकल और मेंटल हेल्थ के लिए बहुत बेनेफिशियल होता है क्योंकि कोल्ड वाटर के स्किन पर लगते ही हमारी बॉडी एड्रेनेलिन और जैसे केमिकल्स को दिमाग और खून में रिलीज कर देती है, जिससे हमें मोटिवेशन और एनर्जी मिलती है और ये अपलिफ्टिंग फील इन घंटों तक कंटिन्यू रहती है। इसलिए अपनी पानी वाली रोड पर गीजर को बंद करो और ठंडे पानी के बेनिफिट स्लो है। एक नंबर फाइव यूज़ ऑफ योर सेन्सस 2015 की एक रिसर्च बताती है कि अपने पांचों सेंस यानी टेस्ट टच स्मेल हियर इन गौर सींग सबको साथ में यूज़ करने से हमारी मेमोरी और कॉन्सनट्रेशन ड्रेस टिकली इम्प्रूव हो जाते हैं। जैसे अगर आप बायोलोजी क्लास में फ्लवर्स के बारे में स्टडी कर रहे हो तो वहाँ की अटेंशन डिवाइड रहे गी क्योंकि आपके पाँचों सेन्सस उस मोमेंट में इन गेस्ट नहीं है। वहीं दूसरी तरफ अगर आप लार्ड्स की किसी वर्क शॉप में जाओ और वहाँ पर आप उन्हें टच स्मेल हिअर और ऑब्जर्व कर पाओ तो आप उसी समय टॉपिक को ज्यादा गहराई से समझ पाओगे और आपको वो नहीं इन्फॉर्मेशन हमेशा याद रहेंगी। इसी वजह से प्रैक्टिकल लर्निंग हमेशा थ्योरी से सुपिरिअर होती है और एक लेसन को एक्सपिरियंस करना उसे किसी बुक में रीड करने से ज्यादा इफेक्टिव होता है। ट्रैक नंबर सिक्स गिव योर सेल्फ रूटीन शॉक रूटीन शौक का मतलब यह नहीं है कि आप को रेग्युलरली बिजली के झटके लेने हैं। हमारे मन के लिए बहुत आसान होता है डेली टास्क ओन कॉन्शस ली परफॉर्म करना शुरू कर देना। मन ज्यादा सोचना नहीं चाहता। वो नहीं चाहता कि आप कुछ नया कर हो, क्योंकि कुछ नया सोचने, नया समझने और नया काम करने में एफर्ट लगता है हाउएवर जब आप नई नई चीजें ट्राई करते हो, कॉलेज या जॉब पर जाते हुए एक नए रास्ते को चुनते हों, नई तरह की बुक्स पढ़ते हो और एक दमन फेमिलियर जगहों पर ट्रैवल करते हो जब आप अपने माइंड को फोर्स करते हो। अपनी अवेर्नेस को हाई रखने के लिए जिसतरह एक सम वर्कआउट प्लैन को हफ्तों और महीनों तक यूज़ करने से आपकी मसल्स उस प्लेन के अकॉर्डिंग अटैक कर लेती है और ग्रो होना बंद कर देती है और आपको उन्हें शौक करना पड़ता है नहीं एक्सरसाइजेस या ट्रेनिंग मेथड्स के साथ वैसे ही हमारा ब्रेन भी यूज़ तो हो जाता है। एक ही रूटीन के साथ और वो ग्रो करना बंद कर देता है। हैक नंबर से वन पे अटेन्शन टू अदर्स जिन लोगों को दूसरों के नाम या उनके साथ हुई पुरानी बातें याद नहीं रहती, अक्सर उनकी अवेर्नेस भी बहुत कम होती है। नॉट पेइंग अटेन्शन टू डिटेल्स इस असाइन दैट योर अटेन्शन इस डिवाइडेड डिविज़न एक वीक फोर्स है इसलिए अपने फोकस को बढ़ाने की प्रैक्टिस करो। जब भी आप किसी से मिलते हो तब अपना पूरा ध्यान सिर्फ और सिर्फ उन्हीं पर रखो। जीवन आप चाहे एक वॉचमैन से भी मिल रहे हो। मेक देम द सेंटर ऑफ अटेन्शन। इससे आपका उनके साथ रिलेशनशिप भी इम्प्रूव होगा। वो आपको ज्यादा रिस्पेक्ट देंगे और आप घर जाकर री कॉल कर सकते हो कि उन्होंने क्या पहना था, उनका नाम क्या था और इवन उनके माइक्रो एक्स्प्रेशन्स कैसे थे? हैक नंबर एट विजुअलाइजर रैन्डम शेप देन ड्रॉ इट मन का सबसे स्ट्रॉन्ग फीचर यही है की वो एक ख्याल को फिजिकल फॉर्म दे सकता है। जब भी आप कुछ सोचते हो तब कोशिश करो कि आप उस चीज़ को मैं मोराइस करो और उसे एक पेपर पर उतारो, लेटस ट्राई वन थिंग अपनी आइस क्लोज़ करो और किसी रैन्डम शेप और उसमें किसी भी कलर को इमेजिन करो। नोटिस करो कि वो शेप कितनी धुंधली है और आपके हाथ में आने से पहले ही वो कैसे बदल जाती है। जितना ज्यादा आप उस पहली शेप को स्टेबल लग पाओगे बार बार उसे बनाने की प्रैक्टिस करके उतना ही आपकी अवेर्नेस भी बढ़ेगी। और कॉग्निटिव पावर भी हैक नंबर नाइन लुक एट वन ऑब्जेक्ट विदाउट लिसनिंग टु योर ओपिनियन जो नेट हिंदुइज़्म में एक कॉनसेप्ट है, जिसका नाम है यानी नॉन अटैचमेंट जो ये क्लेम करता है कि अगर हम अपने मन को नॉन जजमेंटल बनाकर हर चीज़ को देखे हैं तो इससे हमारी कॉन्शस अवेर्नेस बढ़ती है और तेज बनता है। किसी भी तरह की अटैचमेंट या फिर लोगों या चीज़ो पर हमारी जजमेंट हमारे माइंड के लिए एक डिस्ट्रैक्शन होती है। हमारे अल्टीमेट गोल से है। किसी भी इंसान या फिर चीज़ के बारे में ओपिनियन बना लेने से आप उसकी गहराई को समझने की पॉसिबिलिटी को खत्म कर देते हो और खुद को बहुत वेज़ मैडम बना लेते हो। येस आपने सही सुना, हाइली ओपिनियन ए टेड लोगो का माइंड कभी अपनी पोटेंशिअल को नहीं छुपाता हाउएवर लिटरल्ली हर ऐडवान्स स्पिरिचुअल लीडर का दिमाग बहुत तेज चलता है और ऐसा किताबें पढ़ने या फिर फालतू के ब्रेन सप्लिमेंट्स लेने से नहीं, बल्कि नॉन जजमेंटल अवेर्नेस बढ़ने से ही मुमकिन हो पाता है। जीवन गौतम बुद्ध ने भी बोला है की नॉन अटैचमेंट ट्रांसफॉर्मेशन का सबसे पॉवरफुल टूल है क्योंकि यह हमें ज्यादा फोकस्ड रिलैक्स और क्लियरली सोच पाने के काबिल बनाता है हैक नंबर 10 रीड आउट लाउड किसी भी बुक को पढ़ते हुए हमारे दिमाग की विज़ुअल प्रोसेसिंग चालू हो जाती है। लेकिन जब हम एक बुक को सुनते हैं तब ब्रेन के दूसरे एरिया ऐक्टिवेट होते हैं जो ऑडियो प्रोसेसिंग से जुड़े होते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि रीडिंग एक विज़ुअल स्टिम्युलस है। बट बोल बोलकर रीड करना एक ऑडिटर ही स्टिम्युलस है और दोनों को कंबाइन करने से हमारी लर्निंग कैबिटी बढ़ जाती है। फॉर एग्ज़ैम्पल एक बाल्टी के बारे में सोचो जिसे भरने के लिए हम एक नल का यूज़ कर रहे हैं। पानी भरेगा, लेकिन एक धीमी स्पीड से हाउएवर। लेकिन जीस मोमेंट में हम एक ओर नल खोल देते हैं तब बाल्टी के भरने की स्पीड दुगनी हो जाती है। यही सेम बेनिफिट हमें मिलता है ऑडियो और विज़ुअल लर्निंग को कंबाइन करने से।","ब्रेन हैकिंग का अर्थ है मस्तिष्क की शक्ति, स्मृति, सीखने की क्षमता को बढ़ाने के लिए विभिन्न वैज्ञानिक, पारंपरिक पद्धति और संज्ञानात्मक अभ्यासों का उपयोग करना। इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम 10 सर्वश्रेष्ठ मस्तिष्क व्यायाम साझा करेंगे जो न केवल आपके मस्तिष्क को बढ़ावा देंगे बल्कि आलस्य और तनाव को दूर करने में भी आपकी मदद करेंगे।" "लस्ट यानी *** की जेनरली एक बहुत ही खराब रेपुटेशन होती है जस्ट बिकॉज़ ये ख्याल ही हमारे लिए बहुत ज्यादा डिस रिस्पेक्टफुल होता है कि कोई इंसान हमारे साथ टाइम स्पेंड कर सकता है और हमारे अंदर लाइफ के लिए एक नई होप जगा सकता है। बस अलटिमेटली हमारे सबसे बाहरी शेल को पाने के लिए लस्ट एक ह्यूमन बीइंग की बस फिजिकल डाइमेंशन को एक्स्प्लोर करती है और इसी वजह से लस्ट को लव के कंपैरिजन में शैलो समझा जाता है। हाउएवर ज्यादातर केसेस में लस्ट प्यार के शुरुआती फेस में दो लोगों के बीच केमिस्ट्री बनाने के लिए बहुत जरूरी होती है। लेकिन प्रॉब्लम बस तब आती है जब एक रिलेशनशिप अपने इनिशियल फीस के बाद भी सिर्फ फिजिकल इंटिमेसी के बेसिस पर ही चल रहा हो। और लस्ट या लव के इसी डाउट को दूर करने के लिए हम इस एपिसोड में डिस्कस करेंगे। उन चीजों को जो लस्ट और लव को डिफ्रेंशीएट करती है। साइन नंबर वन यू कांट स्पेंड टाइम विद ईच अदर विदाउट बीइंग फिज़िकली इंटिमेट यानी जब भी आप अपने पार्टनर के साथ डेट पर जा रहे होते हो तब क्या आप एक्साइटेड होते हो? उनसे अपनी बातें शेयर करने, उन्हें बेहतर जानने या फिर लाइफ को साथ में एक गहरे लेवल पर एक्स्प्लोर करने के लिए या फिर क्या बस यही सोच रहे होते हो कि अब आपको अपने प्लेजर के लिए उनकी बॉडी मिले गी जीवन आप अपने क्रिश के साथ भी ऑब्जर्व कर सकते हो जिसे आप ज्यादा जानते भी नहीं हो कि क्या आपके उनके बारे में ख्याल और आप दोनों की बातें ज्यादातर फिजिकल इंटिमेसी के बारे में ही होती है। अगर आप एक दूसरे के साथ बिना ***** को इन्क्लूड करे हैंग आउट या फिर बात भी नहीं कर सकते तो यह सबसे स्ट्रेटफॉरवर्ड साइन होता है कि आप का या फिर आपके पार्टनर का इंट्रेस्ट लस्ट की तरफ ज्यादा है और प्यार में कम इंटिमेसी हर हेल्थी रिलेशनशिप का एक नॉर्मल पार्ट होता है। बट जब आपके पास एक दूसरे को देने के लिए अपने शरीर के अलावा कोई दूसरी चीज़ है ही नहीं तो उसका मतलब कि आपका रिलेशनशिप शैलो है और जो एक्साइटमेंट आपको अभी मिल रही है वो लॉन्ग टर्म में आपके लिए में बदल जाएगी। साइन नंबर टू ओवर टाइम लव ग्रोथ स्ट्रॉन्ग अगर वे रास लस्ट बिकम स्वीकर प्यार में हम जब अपने पार्टनर को और अच्छे से जाना शुरू करते हैं उनकी पास्ट की स्टोरीज़ को सुनते हैं, उनके फ्यूचर के प्लेन्स उनके साथ डिस्कस करते हैं और उनके साथ जिंदगी के उतार चढ़ाव में सफर करते हैं। तब हम उनसे और डीपी अटैच हो जाते हैं। प्यार का नेचर कुछ ऐसा ही होता है कि जितना प्यार को ऐक्टिवली यूज़ करते हो, उतना ही वो ताकतवर होता जाता है। जबकि लस्ट के केस में आप एक इंसान से एक हद तक की सेक्शुअल सैटिस्फैक्शन ले सकते हो और एक पॉइंट के बाद बोर हो जाते हो और किसी नए इंसान को ढूंढने लगते हो। इसलिए अपने रिलेशनशिप में हमेशा पेशेंट्स रखकर इस चीज़ को जरूर नोटिस करो कि क्या टाइम के साथ साथ आप दोनों के बीच की बॉन्डिंग कम होती जा रही है या फिर बढ़ती जा रही है? साइन नंबर थ्री नीदर ऑफ यू वॉन्ट टू ऐक्चूअली नो ईच अदर डीप्ली। लास्ट में कभी भी कोई इंसान दूसरे को ज्यादा जानने या फिर उसकी लाइफ का एक बड़ा पार्ट बनने के लिए कोई मेहनत नहीं करता। उसका गोल बस एक ही होता है कि वह जल्दी से जल्दी इंटिमेट हुए और फिर अगले टारगेट की तरफ निकल जाए। आप भी खुद में या फिर अपने पार्टनर में इस चीज़ को नोटिस कर सकते हो कि आप एक दूसरे के साथ कितनी बार अपनी बातों की गहराइयों में खो जाते हो या फिर कैसे बात करते हुए आपको यह पता ही नहीं चलता कि कितना समय बीत चुका है। एक हेल्दी कॉन्वरसेशन जंगल में लगी आग की तरह होती है जो बहुत तेजी से फैलती जाती है और यही तब होता है जब दो लोग एक दूसरे को बस फिज़िकली नहीं बल्कि इमोशनली साइकोलॉजिकली और स्प्रे चली भी पसंद करते हैं। लेकिन अगर इन्ट्रेस्ट सिर्फ और सिर्फ फिजिकल हैं तो कोई भी कन्वर्सेशन ज़्यादा डीप जाएगी ही नहीं। साइन नंबर फ़ोर लस्ट इस बेस्ट ऑन फैंसी सीस, बट लव इस फार्म डॉन रिऐलिटी लस्ट जो होती है वो केमिकल्स के बेसिस पर लोगों के दिमाग को अलग अलग तरह की प्रोबेबल सिचुएशन्स या फिर डिज़ाइनर से भर देती है जबकि लव रियल चीजों पर बेस्ट होता है और उसकी रियल एस्टेट गोल्स होते है। लस्ट के गोल्स काफी शॉर्ट साइड होते हैं और बहुत ही जल्दी आपको रिलीज करवा देते हैं कि किसी भी रिलेशनशिप को सिर्फ इंसानों की चमड़ी तक सीमित नहीं रखा जा सकता। हम बस चलने फिरने वाले मीट और हड्डी नहीं है जिसे यूज़ करा और फेंक दिया मेंटली हेल्दी रहने के लिए हमें एक दूसरे के साथ बात करनी होती है, इमोशन्स को शेयर करना होता है, वादे करने होते हैं और जरूरत पड़ने पर एक दूसरे का साथ देना होता है। लेकिन लस्ट हमारी इन ह्यूमन नीडस को इग्नोर करके बस एक फैंटेसी के पीछे भागने में लगी रहती है। एक ऐसी फैन्टैसी जो कभी पूरी नहीं हो सकती, इसलिए अपने मन में चलने वाले तो फिर अपने पार्टनर के मुँह से निकलने वाले फ्यूचर प्लेन्स पर ध्यान दो। क्या यह प्लैन्स फैंटसीज़ की तरह साउंड करते हैं या क्या आप दोनों एक्चुअल में उन्हें अचीव कर सकते हो? साइन नंबर फाइव देर इस नो केर ओर प्रोटेक्शन इन्वोल्वड इन लास्ट प्यार की एक बहुत बड़ी खासियत यह है कि इसमें आपको अपने चाहने वालों की चिंता होती है और आप एक दूसरे की रक्षा करते हो। सिर्फ प्यार ही एक ऐसी फ़ीलिंग है जिसमें लोग अपनी जान देने के लिए भी तैयार हो जाते हैं किसी दूसरे को बचाने के लिए लेकिन लास्ट ज्यादा सेल्फिश होती है। प्यार में आपका फोकस होता है दूसरे किसान की मदद करने में ताकि उसकी पोटेंशिअल अच्छे से बाहर आ सके और वो भी अपनी लाइफ में फुलफिल हो सके। जबकि लास्ट में आप यूज़्वली किसी को अपलिफ्ट करना तो दूर उल्टा आप उनकी सेल्फ रिस्पेक्ट ट्रस्ट और लॉन्ग टर्म मेंटल हेल्थ सब खराब कर देते हो। यहाँ पर आप कुछ सैक्रिफ़ाइस करने के बजाय सामने वाले से सैक्रिफ़ाइस इस मांगते हो। इसलिए अपने रिलेशनशिप में ये देखो कि कौन किस की ज्यादा परवाह करता है और उसका भला चाहता है। साइन नंबर सिक्स डिजिट एशन टु इंट्रोड्यूस योर पार्टनर्स टू योर फ्रेंड्स और फैमिली के केस में अक्सर एक इंसान अपने पार्टनर पर न तो ट्रस्ट करता है और ना ही उसके लिए उसके दिल में कोई प्यार होता है जिसकी वजह से लटका एक और बड़ा साइन होता है कि आप या फिर आपका पार्टनर कभी भी एक दूसरे को अपने फ्रेंड्स या फिर फैमिली से नहीं मिलाते हैं। सीक्रेट लव वाले किस्से भी बस फैन्टैसी समे ही एग्जिस्ट करते हैं, वरना असलियत में जब भी आप प्यार में होते हो तब आप इतने खुश होते हो और अपने सारे करीबी लोगों में इस खबर को बांट रहे होते हो। आप अपने पार्टनर को लेकर प्राउड फील करते हो और तभी आप उन्हें सबसे मिलवाना चाहते हो, जबकि अगर आप बस किसी को एक सेक्शुअल ऑब्जेक्ट की तरह ट्रीट करने की सोचो तो आप उस इंसान को कभी भी अपने फ्रेंड्स या फिर फैमिली से मिलवाने की गलती नहीं करोगे। उल्टा आप जल्दी से जल्दी उनकी ऐडवांटेज लेने और उन्हें फिर गुड बाइ बोलने की कोशिश करोगे। लस्ट के साथ एक तरह की शेम भी जुड़ी होती है क्योंकि कहीं ना कहीं एक इंसान भी यह बात जानता है कि लोगों को प्लेजर के लिए यूज़ करना सिर्फ दूसरों की इंसानियत को ही नहीं बल्कि उसकी खुद की इंसानियत को भी मिटाता है। इसी वजह से हमेशा इस बात को नोटिस करो कि आप या फिर आपके पार्टनर में से कौन दूसरे को अपनी फैमिली या फिर फ्रेंड से नहीं मिलवाना चाहता। साइन नंबर सेवन इन लस्ट यू इग्नोर अदर पर्सन सैल्यूस यानी जब भी एक इंसान किसी ऐसे रिलेशनशिप में होता है जिसमें उसका मेन गोल बस फिज़िकली इंटिमेट होना होता है तो ऐसे में उसे फरक ही नहीं पड़ता कि उसके पार्टनर की क्या वैल्यूज़ हैं, वो किन चीजो में बिलीव करता है और वो दुनिया को किस नजर से देखता है। वो बस सीधा अपना मतलब निकालना चाहता है बजाय दूसरे को अच्छे से जानने के। लेकिन दूसरी तरफ प्यार बिना एक दूसरे की वैल्यूज जाने और संगोस बनाए नहीं टिक पाता। साइकोलॉजी बोलती है कि किसी भी रिलेशनशिप में अगर आपकी वैल्यूज़ आपके पार्टनर्स से नहीं मिलती। यानी आपके पॉलिटिकल व्यूस एकदम अलग है और आपकी पर्सनैलिटी भी मैच नहीं करती तो आप दोनों हमेशा लड़ते झगड़ते रहोगे और बहुत ज्यादा आरगु करोगे, जिसकी वजह से नैचुरली हर रिलेशनशिप के शुरुआती समय में हम दूसरे इंसान की वैल्यूज जानने के लिए उत्सुक होते हैं। जबकि लस्ट के केस में हमें जरूरी प्रो सेस को स्किप कर देते हैं क्योंकि हमारी इंटेन्शन लॉन्ग टर्म की स्टेबिलिटी की नहीं बल्कि शॉर्ट टर्म की होती है। साइन नंबर एट इन लस्ट यू अर नॉट एबल टु सी ए सिंगल फ्लो इन दैट पर्सन असली प्यार में आप दूसरे इंसान को उसकी कमियों के साथ एक्सेप्ट तो करते हो? बट एट द सेम टाइम। आप उसे ये भी बताते हो कि वो किस तरह खुद को बेहतर बना सकते हैं और अपनी हाइएस्ट पोटेंशिअल के पास पहुँच सकते हैं। प्यार का फोकस एक दूसरे की ग्रोथ पर होता है, जबकि अगर किसी रिलेशनशिप की बुनियाद लास्ट पर बनी है तो आपको अपने पार्टनर में कोई कमी दिखना ही बंद हो जाएगी। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हम अपनी फैंटेसी सुन पर प्रोजेक्ट कर रहे होते हैं। अगर वो इंसान हमारे परफेक्ट पार्टनर की इमेज से ज़रा सा भी मेल खाएं तो हम उसकी बाकी अं सिमिलैरिटीज को इग्नोर करके उसके पीछे पागल हो जाते हैं। इस तरह से लस्ट पहले हमारे मन को अपने वश में लेता है। और फिर हमारे हॉर्मोन्स की मदद से बॉडी को।","वासना एक ऐसी चीज है जिसे आमतौर पर नीची दृष्टि से देखा जाता है और जिसे प्रेम से हीन समझा जाता है। जहाँ प्रेम बहुत गहरा है और इसमें भावनाएँ, आध्यात्मिक संबंध और मनोवैज्ञानिक बंधन शामिल हैं, वहीं वासना बहुत उथली है क्योंकि इसके लिए केवल सतही स्तर के बंधन की आवश्यकता होती है। लगभग हर स्वस्थ रिश्ता शारीरिक आकर्षण की बुनियाद पर टिका होता है लेकिन जब कोई रिश्ता पूरी तरह से भौतिकता पर आधारित होता है, तो आप जानते हैं कि यह अस्थायी है और अच्छे से ज्यादा नुकसान कर रहा है। इसलिए प्यार और वासना के बीच के अंतर को जानना जरूरी है।" "अगर हम खुद से पूछें कि हमारी एग्ज़िस्टन्स में हमारे लिए सबसे वैल्यूएबल चीज़ क्या होती है जिसके बेसिस पर हर दूसरी चीज़ खड़ी होती है तो वो होगा टाइम, चाहे हम कितने भी अमीर और हार्डवर्किंग क्यों ना बन जाये। हमारे दिन में भी दूसरे लोगों की तरह 24 घंटे ही होंगे, जिसमें हमें यह चूज करना होता है कि हम किन ऐक्टिविटीज़ को प्राइवेटाइज करना चाहते हैं और कौन सी ऐक्टिविटीज़ हमारी इमीडिएट अटेंशन नहीं मांग रही है। बहुत बार हम अपने टाइम को वेस्ट कर देते हैं क्योंकि हमें उसे मैनेज करना नहीं आता और फिर बाद में हम गिल्टी फील करते हैं और जब भी हम टाइम मैनेजमेंट की बात करते हैं तब हमारा मेन फोकस यही होना चाहिए कि हम अपनी आदतों पर फोकस करें। ताकि टाइम पर। इसलिए अगर आप भी अपनी आदतों और टाइम का कंट्रोल अपने हाथ में लेना चाहते हो तो इस एपिसोड पर एंड तक ध्यान देना नंबर वन। आपको ये पता होना चाहिए कि आप अपना टाइम कैसे स्पेंड करते हो। यानी आपको यह पता होना चाहिए कि आपका टाइम रोज़ किन कामों में यूज़ होता है? आप कौन सी ऐक्टिविटीज़ में एंगेज करते हो और टोटल कितना टाइम वेस्ट करते हो? इसके साथ ही यह नोटिस करो कि आपने एनर्जी और फोकस किस समय में सबसे ज्यादा होता है, क्योंकि कई लोग सुबह के टाइम सबसे ऐक्टिव और शार्प होते हैं और कई लोग रात को उसके बाद अगर आप रोज़ एक ही समय पर टाइम वेस्ट ऐक्टिविटीज़ में एंगेज करते हो या फिर आपका एक पैटर्न है जैसे रोज़ देर रात तक फ़ोन और लैपटॉप में लगे रहना, सुबह लेट उठना और एकदम लो क्वालिटी। ब्रेकफस्ट खाने की वजह से फिर से सुस्त बन जाना तो ऐसे में आपको अपने इस पैटर्न को ब्रेक करना होगा। टाइम मैनेजमेंट के लिए सबसे सिंपल तरीका होता है इन बेसिक कामों को रोज़ सेम टाइम पर रिपीट करना यानी अपनी स्लीपिंग साइकल और खाने या रेस्ट करने के टाइम को पहले हेल्थी बनाओ और फिर इनके टाइम के साथ बिल्कुल कॉंप्रमाइज़ मत करो। जल्दी सो और जल्दी उठो और उसके बाद ब्रेकफास्ट करते ही काम के लिए रेडी हो जाओ। जब आपको पता होगा कि आपने अपनी रोज़ रिपीट होने वाली ऐक्टिविटीज़ से कैसे डील करना है तब आप उन ऐक्टिविटीज़ को ज्यादा अच्छे से मैनेज कर पाओगे जो आपका टाइम लेती है। नंबर टू जरूरी कामों को सबसे पहले खत्म करो आपको अपनी डेली लाइफ में कुछ चीजों को प्राइस करना चाहिए जो आपके लिए बहुत इम्पोर्टेन्ट है और सुबह उठते ही सबसे पहले सिर्फ इन्हीं कामों को खत्म करो। कई लोगों के लिए यह काम एक्सरसाइज होता है। दूसरों के लिए रिसर्च करना, रीड करना, अपनी शॉप को खोलना या फिर घर के लिए खाना बनाना हर किसी की प्रायोरिटी अलग होती है और ऐसे कामों को पहले करना इसलिए जरूरी होता है ताकि अगर हमे बी चान्स कोई दूसरा काम भी करना पड़ जाए। तो वो नया काम हमारे सबसे जरूरी काम को खराब ना कर दे और तो और इम्पोर्टेन्ट चीज़ो के साथ साथ हमें उन चीजों को भी ज्यादा प्रायोरिटी देनी चाहिए जिसमें हमारी बहुत मेहनत लगती है या फिर वो बहुत ज्यादा टाइम कोन्सुमिंग होते हैं क्योंकि अगर आपने दिन शुरू होने पर इन टाइम कोन्सुमिंग टास्कों एक बार भी डिले करा तो उस काम को समय पर खत्म करना बहुत मुश्किल हो जाएगा। इसलिए हर दिन के लिए एक टू डू लिस्ट बनाओ जिसमें मैक्सिमम तीन से चार जरूरी टास्क्स हो और जितना हो सके उतना इन टास्कों सुबह सुबह ही कंप्लीट करने की कोशिश करो। आप नंबर थ्री एक बार मैं एक काम को करो। जो लोग मल्टीटास्किंग करते हैं और बहुत सारी चीजों को एक साथ अपने ऊपर ले लेते हैं, वो हर चीज़ करने के चक्कर में बस अपना टाइम वेस्ट कर देते हैं और कुछ भी प्रोडक्टिव नहीं कर पाते हैं क्योंकि जब हम लोग एक काम से दूसरे काम पर शिफ्ट हो रहे होते है तब इससे हमारा फोकस कम होता है और हम कोई भी काम ढंग से नहीं कर पाते हैं। इसके साथ ही हमें कभी भी किसी काम को आधा अधूरा छोड़कर दूसरा काम नहीं शुरू करना चाहिए। इस तरह से ना तो हम एक टास्क को अपना 100% रिफंड दे पाते हैं और ऊपर से हमारा स्ट्रेस और बढ़ जाता है कि हमने तो अभी अपनी पिछली ऐक्टिविटी को भी कंप्लीट नहीं करा है। नंबर फ़ोर चेंजेज के केस में अडैप्ट करने के लिए रेडी रहो। यानी जहाँ एक फिक्स्ड रूटीन आपका टाइम बचाने में बहुत यूज़फुल साबित हो सकता है, वहीं कई बार हमारी लाइफ हर रोज़ सेम टु सेम नहीं होती। हमारी लाइफ में कई चेंजेज आते हैं, जो हमारे रूटीन्स को डिस्टर्ब कर देते है। जैसे किसी गेस्ट का घराना, अनएक्सपेक्टेड और अर्जेन्ट प्रॉब्लम या फिर तबियत खराब हो ना। तो ऐसे केस में आपको सिचुएशन के अकॉर्डिंग अडैप्ट करना चाहिए। आपको अपने स्कूल में कुछ जगह चेंज के लिए छोड़नी चाहिए और उनके लिए मेंटली प्रिपेर्ड रहना चाहिए। चेंजेज हमारी ह्यूमन इन्टेलिजेन्स और विजडम को बाहर लाते हैं क्योंकि रिपिटिटिव टास्क्स तो मशीन्स भी परफॉर्म कर सकती है। इसलिए हमेशा अपने स्कूल को इतना टाइट मत बना दो कि उसमें कोई चेंजस या ब्रेक लेने की जगह भी ना हो। टिप नंबर फाइव खुद को टाइम लिमिट्स दो अगर आप ज्यादा एफिशिएंट बनना चाहते हो तो अपने स्कूल में हर चीज़ को एक टाइम लिमिट दो और ये कोशिश करो कि आप उस टाइम लिमिट में ही अपने हर काम को खत्म कर लो। इस तरह से अपने आप को डेडलाइन देने से आप एक ऐसे माइंड सेट में आप आओगे जहाँ आप खुद ब खुद डिस्ट्रैक्शन को मिनिमाइज कर पाओगे और अपने फोकस को ऑप्टिमाइज़ जैसे जैसे हम अपने खुद के सेट किए गोल्स को कंप्लीट करते हैं। हम उतना ही जल्दी किसी टास्क को शुरू करने पर फ्लो स्टेट में आ पाते हैं और किसी भी टास्क को मिनिमम टाइम में कंप्लीट करने की स्किल को डेवलप कर पाते हैं। और इस तरह से अगर आप इन टिप्स को फॉलो करो तो आप भी अपने टाइम को बेहतर मैनेज करना सीख पाओगे।","इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम कितने मेहनती या अमीर बन जाते हैं, हमें अपने दिन में औरों की तरह ही 24 घंटे मिलेंगे। इस दौरान हमें यह तय करना होगा कि हम किन गतिविधियों या कार्यों को प्राथमिकता देना चाहते हैं और किसे विलंबित करना चाहते हैं। लेकिन कभी-कभी हम अपना बहुत सारा कीमती समय बर्बाद कर देते हैं क्योंकि हम नहीं जानते कि इसे कैसे मैनेज किया जाए। इसलिए, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम इस बारे में चर्चा करेंगे कि हम अपने समय का प्रबंधन कैसे कर सकते हैं, अपने काम में अधिक स्मार्ट और कुशल कैसे हो सकते हैं, और किसी अन्य की तरह समय को कैसे मास्टर कर सकते हैं।" "ह्युम्न्स काफी कॉम्प्लिकेटेड है और ये बात हमारे बहुत अच्छे से समझते थे। जीस वजह से उन्होंने दुनिया की अपनी समझ को आठ लिटरेचर रिचुअल्स और स्टोरीज़ में डालना शुरू कर दिया। ताकि आगे आने वाली जेनरेशन को हर्ट रूट को दोबारा से डिस् कवर करने की मेहनत न करनी पड़े। क्योंकि हमारी लाइफ यह फ़िगर आउट करने के लिए बहुत छोटी है कि दुनिया कैसे काम करती है, लोग कैसे होते है और हम एक ऐसा इंसान बनना चाहिए। इसलिए आज हम हिंदुइज़्म के कई महान ग्रंथों में से एक भगवद्गीता में दिए लाइसेंस को डिस्कस करेंगे। ये स्क्रिप्चर अमित जीवन जीने का तरीका बताता है क्योंकि जो क्वेश्चन्स अर्जुन ने पूछे थे वो सिर्फ उसी समय के लिए मायने नहीं रखते थे बल्कि यह क्वेश्चन्स और प्रॉब्लम्स आज भी हमें सताते है और जिंदगी की इस जंग में भगवद्गीता की ये विज़्डम हमें यह समझा सकती है कि हमें हर मुश्किल सिचुएशन से कैसे डील करना चाहिए और हर मोमेंट मैं कैसे ऐक्ट करना चाहिए? भागवत गीता ने दुनिया के कई महान थिंकर्स को इन्फ्लुयेन्स करा है जैसे ऐल्बर्ट आइंस्टाइन, महात्मा गाँधी, हैनरी डेविड और रेल। फोटो एमर्सन। देश भर में लोगों का तो ये भी मानना है कि जो भी इंसान इस ग्रंथ को पड़ता है उसे कभी भी पैसों की कमी नहीं होती। बड़ी से बड़ी चुनौती उसका बाल भी बांका नहीं कर पाती और उसका करेक्टर इतना स्ट्रांग होता है कि वो जहाँ पर भी जाता है उस मिट्टी को सोने में बदल देता है और वहाँ के लोगों को बेहतर इंसान बनने के लिए इंस्पायर करता है। अब जानते हैं कि ऐसी क्या टीचिंग है? भगवद्गीता में जिंस वजह से लोग हजारों सालों बाद भी इसे पढ़ रहे है। नंबर 10 बुरे हालात कुछ ना करने से ही आ जाते हैं, लेकिन अच्छे हालात पैदा करने के लिए ऐक्शन लेना पड़ता है। भगवद्गीता शुरू ही इस इन्साइड के साथ होती है कि अगर आप कुछ हासिल करना चाहते हो लेकिन खुद ऐक्शन लेने के बजाय आप अपनी किस्मत या भगवान पर डाल देते हो कि वो आपका काम करे और आपकी लाइफ को बेहतर बनाएं तो ऐसे में आपको बुरा रिज़ल्ट ही मिलेगा। बिल्कुल वैसे ही जैसे आप को गंदा होने के लिए कुछ नहीं करना होता। बस बैठे रहो और आप गंदे हो जाओगे, लेकिन साफ होने के लिए आपको ऐक्शन लेना पड़ता है, बाथरूम जाना पड़ता है और नहाना पड़ता है। ऐसा इसलिए क्योंकि हमारी बॉडी कॉन्स्टेंट ली दुनिया के डिसोर्डर से फाइट कर रही होती है और जो इंसान इस फाइट में इन ऐक्टिव हो जाता है वो अपनी जिंदगी के हर पहलू में हारता रहता है। नंबर नाइन बदलाव एक यूनिवर्सल लॉ है, इसलिए हर खुशी या दुख टेंपरेरी होता है। चैपटर टू की वर्ड्स 14 में श्रीकृष्ण बोलते हैं और कुन्ती पुत्र। तुम्हारी इन्द्रियां आवाज़, गंध, स्वाद या महसूस करने वाली चीजों के संपर्क में आकर तुम्हारे अंदर ठंड गर्मी, सुख, दुख या स्ट्रेस जैसी सेंसेशन पैदा करती है। यह फीलिंग्स टेंपरेरी है। ये जैसे आती है वैसे ही चली भी जाती है। इसलिए इन बदलावों को सहना सीखो। सक्सेस और महारत हासिल करने के लिए एक इंसान को नई सिचुएशन में अडैप्ट करना होगा। उत्तर सॉल्यूशन्स ढूंढने होंगे। नयी ऑपर्च्युनिटीज को एक्स्प्लोर करना होगा, इसलिए बदलाव को मास्टर करो अपने आपको अन् फेमिलियर सराउन्डिंग् में धकेल के और नए इक्स्पिरीयन्स लेके नंबर एट अपना फोकस अपनी ड्यूटी पर रखो, उससे मिलने वाले फल पर नहीं। यहाँ पर गोल सेटिंग की बात कही जा रही है। कैसे? ज्यादातर लोग यह तो डिसाइड कर लेते हैं कि उन्हें अचीव क्या करना है, लेकिन वो कभी भी अपने गोल तक पहुंचने के रास्ते में आने वाली डिस्ट्रेक्शन्स को पार्क कर ही नहीं पाते। जीवन महाभारत में भी जब गुरु द्रोणाचार्य अपने स्टूडेंट्स को अंदाजी से खा रहे होते हैं और वह उन्हें बोलते हैं कि उन्हें पेड़ पर रखी लकड़ी की चिड़िया की आंख पर निशाना लगाना है। तब हर किसी से पूछा गया कि उन्हें क्या दिख रहा है? किसी ने बोला वो डाली पर बैठी चिड़िया को देख पा रहे हैं। किसी ने बोला पूरा पेड़, उस पर बैठी चिड़िया, उसके पंख, उसकी आंखें सब दिख रहा है। लेकिन जब अर्जुन से पूछा गया कि उन्हें क्या दिख रहा है? तब वो बोले कि उन्हें सिर्फ और सिर्फ चिड़िया की आंख दिख रही है। ना ही वो डाली जिसपर वो बैठी है, ना ही वो पेड़, ना ही चिड़िया का शरीर सिर्फ और सिर्फ उसकी आंख और अर्जुन के तीर चलाते ही वो सीधा चिड़िया की आंख पर ही लगता है। बिलकुल वैसे ही हमें अपने गोल के रास्ते में बहुत सी डिस्ट्रेक्शन्स और रूकावटें मिलेंगी और हमारे फोकस कोंन इम्पोर्टेन्ट चीज़ो की तरफ मोड़ देंगी। इसलिए अपना ध्यान एक टास्क में इतने प्रिसिशन और पैशन के साथ लगाओ कि आपको बाकी कोई चीज़ देखे ही ना। नंबर सेवन आप वो बनते हो जो आप अपने आप को मानते हो क्योंकि बिलीव एक बहुत ताकतवर चीज़ है। यह एक बिमारी इंसान को ही कर सकता है। एक दुखी इंसान को खुश कर सकता है और एक नाकामयाब इंसान को तरक्की दिला सकता है। हर महान इंसान पहले अपने दिमाग को ये बिलीव कराता है। की वो कुछ बड़ा करने के लायक है और सिर्फ उसके बाद उसमें वो चीज़ एक्चुअल में अचीव करने की हिम्मत आती है। इसलिए अपने आपको प्रोग्राम करो यह बिलीव करने के लिए कि आप भी मुश्किल कामों को करने के काबिल हो और आप भी अपने डर को ओवरकम कर सकते हो, क्योंकि यू आर वॉट यू थिंक यू आर नंबर सिक्स कायरता और डर सक्सेस के दुश्मन हैं क्योंकि डर हमारे सबसे पुराने इमोशन्स में से एक है जो हमें अपनी एबिलिटीज़ पर डाउट करवाता है और यह तब बाहर आता है जब या तो हम किसी सिचुएशन को पूरी तरह से समझ नहीं पाते। यानी लैक ऑफ नॉलेज की वजह से या फिर जब हम अपने इमोशन्स को मैनेज नहीं कर पाते यह डर हमें कायर बनाता है और अपने गोल से भटकता है। इसलिए नॉलेज और विज़्डम का पीछा करो क्योंकि ये ही वो दो चीजें हैं जो आपको समझाएंगी कि अननोन और अनएक्सपेक्टेड सिचुएशन को कैसे हैंडल करा जाता है। नंबर फाइव आपका दिमाग या तो आपको बाद कर सकता है या फिर बर्बाद चैपटर सिक्स की वर्ष फाइव में श्रीकृष्ण बोलते है की हर इंसान को अपने आप को अपने मन से ऊपर उठाना चाहिए, वरना वो आगे बढ़ने के बजाय पीछे गिरते जाएंगे। यह सच है कि मन हमारा सबसे अच्छा दोस्त भी बन सकता है। और सबसे बुरा दुश्मन भी। अगर आप अपने मन के मालिक नहीं हो तो आप उसके गुलाम हो और वो आपको धीरे धीरे बर्बाद कर देगा। यही रीज़न है कि क्यों कृष्ण हमें अपने सबकॉन्शस माइंड को मास्टर करने की सलाह देते हैं और अगले पॉइंट में समझाते हैं की ये करना कैसे है? पॉइंट नंबर फ़ोर अपने इमोशन्स और माइंड को मास्टर करने का पहला स्टेप हमारी इंद्रियों से शुरू होता है। भगवद्गीता में हर ऐसी चीज़ जो हमें अपने गोल से भटकाती है, उसे लास्ट यानी *** बोला गया है। जैसे अगर आपका गोल है फैट लूज़ करके हेल्दी होना। लेकिन आप हफ्ते में कई बार चॉकलेट्स या आइस क्रीम खा लेते हो तो आप उन चॉकलेट्स या आइस क्रीम से मिलने वाले टेस्ट के पीछे लस्ट कर रहे हो या फिर अगर आपका गोल है टेस्ट में अच्छे मार्क्स लाना लेकिन आप बार बार सोशल मीडिया को चेक करते रहते हो तो आप उन लाइक्स या नोटिफिकेशन के पीछे लिस्ट कर रहे हो और चैपटर थ्री की वर्ड्स 40 में ये लास्ट रहती कहाँ पर है ये बताया गया है। कृष्ण बोलते है की ये माना जाता है कि वो इन्द्रियां, मन और बुद्धि होती हैं जिनमें यह लस्ट घुसकर बैठा होता है और एक इंसान की सोचने की शक्ति को दबा रहा होता है। इसलिए सबसे पहले अपनी इंद्रियों यानी अपने सेन्सस को कंट्रोल में लाओ। उनके संपर्क में आने वाली चीजों को बदल कर सिंपल सी बात है। अगर आप अपने मूंग का नो या दिमाग में गंदगी डालोगे तो बाहर भी गंदगी ही आएगी। नंबर थ्री रेग्युलरली मेडिटेट करो, क्योंकि मेडिटेशन की मदद से आप अपने अंदर का सारा डाउट, डर, स्ट्रेस और संदेह यानी हेसिटेंट से सीधा सीधा छुटकारा पा सकते हो। इसके साथ ही श्रीकृष्ण अर्जुन को बताते हैं कि मेडिटेशन आपको यह समझा सकता है कि आप अपने शरीर और ख्यालों से परे हो और आपके अंदर एक ऐसी चीज़ है जो कभी मर नहीं सकती। इन सचो को जानने से और अपने ट्रू सेल्फ के टच में आने से अब दूसरे लोगों की एक्स्पेक्टेशन से फ्री हो जाते हो और एक नई तरह की सैटिस्फैक्शन हासिल कर पाते हो। नम्बर टू अपने धर्म यानी ड्यूटी को फॉलो करो। ड्यूटी या धर्म एक ऐसा शब्द है जो यह दर्शाता है कि कोई काम ऐसा है जो उस काम को करने वाले से भी बड़ा है और ज्यादातर लोग अपनी लाइफ में जरूरत के टाइम ऐक्शन इसलिए नहीं ले पाते क्योंकि वो उस ऐक्शन को सिर्फ अपने पर्सनल व्यूपॉइंट और अपने बेनिफिट या लॉस के कॉन्टेस्ट में देख रहे होते हैं। यही प्रॉब्लम हमारी जारस का कारण है। हम सोचते हैं की क्यों इतनी मेहनत करके हम कोई ऐसा काम करें जो दूसरों की लाइफ भी बेहतर बनाएं? हम बस उतना काम ही करते है। जीतने में हमारी डिज़ाइनर्स पूरी हो सके, लेकिन ये डिज़ाइनर्स की भूख कभी न बुझने वाली आग की तरह होती है। श्रीकृष्ण बोलते है कि पृथ्वी हम इनसानों की कर्मभूमि है और यहाँ पर हमें हमारे कर्मों से ही जज करा जाएगा। इसलिए कर्मों से दूर भागने की कोशिश मत करो क्योंकि आपका डिज़ाइरड सैक्शन ही आपकी ड्यूटी है और आपकी ड्यूटी ही आपका रिलिजन है। नंबर वन आपकी जिंदगी आपकी 64 परिणाम होती है। चैपटर 18 कीवर्ड 63 में कृष्ण बोलते है की अर्जुन मैंने तुम्हें पूरी गीता का ज्ञान दे दिया है, उस पर चिंतन यानी रूम इनेट करो और ये चूज करो कि तुम क्या करना चाहते हो। एक तरफ तुम्हारा धर्म है और दूसरी तरफ था। अर्जुन की ही तरह हम भी कई बार अपने आप को मुश्किल सिचुएशन में पाते हैं। यहाँ तक कि कई लोग तो पैदा ही ऐसी सिचुएशन्स में होते हैं, लेकिन इसके बावजूद हमारे पास अपनी किस्मत चूज करने की फ्रीडम है। हमारे पास फ्री विल है, जो हमें अपने बुरे सरकमस्टान्सेज को बदलने की ताकत देती है। क्योंकि हर इंसान अपने डिसिशन्स का ही रिज़ल्ट होता है। इसलिए आप अभी डिसाइड कर सकते हो कि आप अपनी लाइफ की डायरेक्शन को कहाँ मोड़ना चाहते हो, सक्सेस की तरफ या फिर आलस, बहनों या कम्प्लेंट की तरफ?","भगवद गीता एक हिंदू शास्त्र है जो अर्जुन और उनके मार्गदर्शक कृष्ण के बीच संवाद की एक कथात्मक रूपरेखा में स्थापित है। धर्म युद्ध की शुरुआत में, अर्जुन को एक नैतिक दुविधा का सामना करना पड़ता है यानी वह अपने ही चचेरे भाइयों को मौत के घाट नहीं उतारना चाहता। इसलिए, कृष्ण बचाव के लिए आते हैं और उन्हें परामर्श देते हैं, वे उन्हें धार्मिकता के मार्ग के बारे में सिखाते हैं और जीवन, मृत्यु, आत्मा, अस्तित्व, आध्यात्मिकता, ज्ञान, आदि के बारे में उनके सभी सवालों के जवाब देते हैं; उनके प्रश्नों के माध्यम से हम कृष्ण के उत्तरों से भी धन्य हैं। तो, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम भगवद गीता की किताब में उल्लिखित 10 ऐसे विचारों पर चलते हैं जो आपको सिखाएंगे कि आपको जीवन के इस तथाकथित "युद्ध" में खुद को कैसे उन्मुख करना चाहिए।" "हर मेल फीमेल जजमेंट से डरता है। अगर आप एक मेल हो और इससे अगड़ी नहीं करते तो सिम्पली कभी एक ब्यूटीफुल फीमेल के पास जाकर उससे बात करने की कोशिश करो और फिर बताओ कि आप उसके आगे नर्वस हुए और उसके जजमेंट से डरे या फिर नहीं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि ज्यादातर मेल सभी भी कन्फ्यूज़्ड है इस बात को लेकर कि वो कौन सी चीजें हैं, जिन्हें फीमेल्स उनमें सबसे ज्यादा नोटिस करती है और उनके बारे में एक पॉज़िटिव या फिर नेगेटिव ओपिनियन फॉर्म करती है। इसलिए इस एपिसोड में हम उन चीजों की बात करेंगे, जो फीमेल्स मेल्स में नोटिस करती है। नंबर वन पोस्चर फीमेल्स एक मिल को दूर से ही जज कर लेती है उनके पॉस्चर के बेसिस पर, जहाँ मेल्स को इतना फर्क नहीं पड़ता कि एक फीमेल का पॉस्चर थोड़ा सा खराब भी हो, लेकिन फीमेल्स के लिए यह बहुत बड़ा टर्न ऑफ होता है कि एक मेल झुककर चलता है या फिर बैठता है या फिर वो हर समय ही अपनी बॉडी लैंग्वेज के थ्रू ये सिग्नल कर रहा होता है कि वो कितना अग्रि एबल और हार्मलेस है। फीमेल्स हार्मलेस मेल से नफरत करती है। इसी वजह से पॉस्चर और बॉडी लैंग्वेज उनके एक मेट को सिलैक्ट या फिर रिजेक्ट करने की वजह बन सकते हैं। नंबर टू शूज़, ओकेशन के अकॉर्डिंग और क्लीन शूज़ पहनना फीमेल्स को तो क्या? बल्कि हर तरह के इंसान को इंप्रेस कर सकता है। सही शूज़ आपकी पर्सनैलिटी और लुक में एक्स्ट्रा डिटेल का काम करते हैं। जैसे एक डेट पर अगर आप शर्ट और ट्राउजर्स पहन रहे हो तो उसके साथ गंदे और अनपॉलिश्ड ड्रेस शूज़ या फिर कोई कैजुअल स्नीकर्स पहन लेना। ये चीज़ एक मेल को फीमेल्स की नजरों में डीज़ल ईयन, अट्रैक्टिव और अन् सोफिस्टिकेटेड बना सकती है। फीमेल्स हमेशा एक मेल को ऊपर से नीचे तक देखती है और अपने मन में या तो उसे वेल ड्रेस्ड होने के लिए एक्स्ट्रा पॉइंट्स देती है। या फिर इस बेसिक गलती की वजह से एक नेगेटिव ओपिनियन बना लेती है? नंबर थ्री हिस बिड एंड हिअर। एक मेल के लिए भी ग्रूमिंग उतनी ही जरूरी होती है, जितनी वो फीमेल्स के लिए होती है। अगर उसकी बिड या फिर हेयर में सीएनटी डी और अनमैनेज्ड रहते हैं तो ये सिर्फ उसके हाइजीन के बारे में ही नहीं बल्कि उसकी हेल्थ और पर्सनैलिटी के बारे में भी दूसरों के मन में एक नेगेटिव ओपिनियन बना सकते हैं। फीमेल्स जानती है कि अगर एक मेल खुद के हाइजिन और हेल्थ की ही परवाह नहीं कर सकता तो वो उसकी भी कितनी ही परवाह कर पायेगा। जीवन अगर एक मेल की बिड या फिर हिरनही है, जैसे क्लीन शेव्ड रहने या फिर एक बोल्ड पर्सन के केस में, तब भी वो मेल अपने शेविंग रूटीन्स और ग्रूमिंग के साथ कितना रेग्युलर रहता है, यह भी उसे देखते ही पता चल जाता है। नंबर फ़ोर सोशल प्रूफ चाहे एक फीमेल दूसरे मेल्स को सोशल मीडिया पर चेक आउट कर रही हो या फिर रियल लाइफ में उनके लिए ये चीज़ जानना बहुत जरूरी होता है कि उस मेल के बारे में दूसरी फीमेल्स का क्या ओपिनियन है? क्या वो मेल डिमांड में है और उसे रेग्युलरली बहुत सी फीमेल्स के कॉंप्लिमेंट सौर अटेन्शन मिलती है या फिर क्या वो दूसरी फीमेल्स के लिए बिलकुल डिजायरेबल है और उसे कोई लड़की भाव नहीं देती। ज्यादातर फीमेल्स दूसरी फीमेल्स की चॉइस के बेसिस पर ही अपने डिसिशन बनाती हैं, इसलिए उनके लिए सबसे ज्यादा अट्रैक्टिव मिल्स वो होते हैं, जो ऑलरेडी बहुत सी फीमेल्स की नजरों में होते हैं और वो सोसिअल्ली अप्रूव्ड होते हैं। नंबर फाइव ब्रेथ ऐंड बॉडी ओडोर जीवन अगर एक मेल बहुत ही हॉट और अट्रैक्टिव है, लेकिन उसकी ब्रेथ गन्दी है और उसके आसपास खड़े होने पर भी बहुत स्मेल आती है तो उसकी अट्रैक्टिवनेस भी उसे डेट्स दिलाने में कोई काम नहीं आएगी। इसी वजह से प्रॉपर ओरल हाइजीन और हाई क्वालिटी पर्फ्यूम हरमेल के लिए ही हाइएस्ट प्रायोरिटी होने चाहिए नंबर सिक्स हिस फ्रेंड सर्कल बहुत बार मेल्स क्विकली इंटिमेसी हासिल करने के लिए एक झूठा चेहरा पहन कर फीमेल्स को अपने चरम से इंप्रेस करने की कोशिश करते हैं। इसी वजह से समझदार फीमेल्स हमेशा उनके फ्रेंड से मिलने के लिए जरूर बोलती है क्योंकि उसके फ्रेंड्स को देखकर और उनसे बात करके इस बात का काफी ऐक्यूरेट्लि अंदाजा लगाया जा सकता है कि वो मेल के असली में उतना अच्छा है जितना वो दिखने की कोशिश कर रहा है या फिर क्या वो मेल फेक है? नंबर सेवन हिज़ वे ऑफ टॉकिंग, एक मेल की कन्वर्सेशन और पीपल स्किल्स, उसकी डेवलपमेंट के लेवल और इन्टेलिजेन्स को दर्शाती है। यानी वो किस तरह से बात करता है, क्या उसकी आवाज और टोन में कॉन्फिडेन्स जा सकता है? क्या उसके बोलने का ढंग सोफिस्टिकेटेड है? क्या वो दूसरों की बातों को ढंग से सुनता भी है और क्या उससे जब कोई डिसऐग्री करता है तब उसका रिएक्शन गुस्से का होता है या फिर क्या वो अपने इमोशन्स को मैनेज करना भी जानता है? आप नहीं जानते कि मिल्स का बात करने का तरीका फीमेल्स के लिए कितना बड़ा टर्न ऑन हो सकता है। नंबर एट मसल्स कम ऑन अगर हम बोले कि फीमेल्स मिल्स की मसल्स से इंप्रेस नहीं होती तो यह एक बहुत बड़ा झूठ होगा। अगर एक मेल ने कभी भी अपनी बॉडी को उसकी लिमिट तक ले जाकर खुद की पोटेंशिअल को टेस्ट ही नहीं करा तो ये काफी शर्मनाक बात है। मेल्स को हमेशा प्रिपेर्ड और स्ट्रॉन्ग रहना चाहिए। किसी भी फ्यूचर की प्रॉब्लम को हैंडल करने के लिए चाहे उसके पैरेन्ट्स, फ्रेन्डस या पार्टनर से कोई बदतमीजी करे या फिर कोई और। ऐसा क्राइम या हादसा उसकी आँखों के सामने हो रहा हो। अगर एक मेल पहले से अपनी स्ट्रेंथ अपनी क्रेज और मेंटैलिटी को ट्रेन करता नहीं आ रहा तो वो सिचुएशन में अपनी रिस्पॉन्सिबिलिटी को नहीं निभा पायेगा और ऐसा मेल फेल हो जाएगा। मेल्स में स्ट्रेंथ और मसल्स को डेवलप करने की कपैसिटी किसी रीज़न से फीमेल से इतनी ज्यादा है। इसलिए ही हर हेल्थी फीमेल जो किसी आइडियोलॉजी से ब्रेनवॉश नहीं है, वो हमेशा स्ट्रॉंन्ग मेल से वीक मेल्स के कंपैरिजन में ज्यादा अट्रैक्ट होती है। नंबर नाइन हिज़ लाइफ स्टाइल यानी इवन अगर एक मेल के पास अच्छी बॉडी, कम्यूनिकेशन स्किल्स और एक अट्रैक्टिव फेस भी है, लेकिन उसका लाइफ स्टाइल और स्टेटस एक दम बेकार है तो ये चीज़ भी ब्रेकर बन सकती है। फीमेल्स की स्टेटस को लेकर डिमांड उनकी एज और इन्टेलिजन्स के साथ साथ बढ़ती है। वो अपने टीनेज इयर्स में तो ऐसे मेल्स को डेट कर लेंगी जिनमें पोटेंशिअल है और वो आगे चलकर शायद कुछ बड़ा करें। लेकिन एज के बढ़ने के साथ साथ फीमेल्स की पेशेंट्स कम होने लगती है और वो पोटेंशिअल कम और ऐक्चुअल फुल्ली डेवलप्ड मेल्स को ढूंढती है। नंबर 10 हिस पर्सनैलिटी क्योंकि पर्सनैलिटी बाकी सब चीजों से अलग एक इंसान की रिऐलिटी और करेक्टर के बारे में बताती है और जहाँ हर तरह की फीमेल एक डिफ़रेंट पर्सनैलिटी टाइप से अट्रैक्ट होती है। वहीं ये भी सच है कि जेनरली अगर एक मेल की पर्सनैलिटी नेगेटिव और लाउड या फिर इवन बहुत ज्यादा सॉफ़्ट है, तब भी उसे फीमेल्स ओवरऑल कम अट्रैक्टिव मानेगी। ऑप्टिमल मेल पर्सनैलिटी का सबसे जरूरी हिस्सा होता है इमोशनल स्टेबिलिटी और यही वो कई जरूरी चीजें होती हैं, जिन्हें फीमेल्स मेल्स में सबसे पहले नोटिस करती है।",पुरुष हमेशा सवाल करते हैं कि एक महिला वास्तव में क्या चाहती है? पुरुष जज किए जाने से डरते हैं क्योंकि ज्यादातर पुरुषों को इस बात का अंदाजा नहीं होता है कि महिलाएं उनमें कौन सी चीजें सबसे पहले नोटिस करती हैं और उन्हें स्वीकार या अस्वीकार करती हैं। इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम उन 10 चीजों के बारे में बात करेंगे जो एक महिला एक पुरुष में नोटिस करती है और पसंद करती है। "स्विच था की एड्रेस डॉक्टर कर लूँगा कॉन्ट्रिब्यूशन सिर्फ साइकोलॉजी की फील्ड में ही नहीं बल्कि उन्होंने फिलॉसफी, लिटरेचर, स्पिरिचूऐलिटी, एस्ट्रोलॉजी, मिथोलॉजी, थिओलॉजी और हार्ड साइंस जैसे एरियाज में कुछ ना कुछ यूनिक चीज़ दी है। इतनी सारी फील्ड की नॉलेज होने की वजह से वो इन सब अलग अलग ने वाली फील्ड के बीच कई सिमिलर पैटर्न भी ढूंढ पाए। इस वजह से वो बाकी साइकोलॉजिस्ट से अलग ये बोलते थे कि सिर्फ साइन्टिफिक इन्स्ट्रूमेंट्स और मेथड्स को यूज़ करके हम साइकोलॉजिकल और एग्ज़िट स्टेनसिल टोथ को नहीं समझ सकते हैं। क्योंकि हमारे सोल का हमारी साइड में बहुत बड़ा रोल होता है। युग ऐसे कई शुरुआती एक्सपर्ट्स में से एक थे, जिन्होंने इंसान की साइकिल और हमारी रीलिजस को इतना दीपली स्टडी कर रहा था। कई कॉनसेप्ट जो हम डेली लाइफ में यूज़ करते है जैसे इंट्रोवर्ट, एक्स्ट्रोवर्ट, पर्सनैलिटी, टाइप्स, कलेक्टिव अनकॉन्शियस और आरके टाइप्स। ये कॉन्सेप्ट्स भी युग नहीं ढूँढें और पॉपुलर आइस कर रहे थे। जो भी इंसान बहुत क्रिएटिव होता है उसे साइनस और रिलिजन दोनों की अच्छाई और बुराइ या पता होती है और उसमें मेटाफिजिकल ट्रूथ को जानने की भी इच्छा होती है। ऐसे इंसान की टीचिंग की तरफ हमेशा ट्रैक होता है। इसलिए ये एपिसोड ऐसे ही कई क्युरिअस लोगों के लिए है जो रिऐलिटी के एक डी पर सच को जानना चाहते हैं। ले सन वन आ गुड लाइफ इस इन्कम्प्लीट विदाउट डार्कनेस साइकोलॉजी में इस क्वेश्चन के बारे में बहुत बात होती है की ये खुशहाल लाइफ कैसे जीएं और जिंदगी को जीने लायक कैसे बनाएं। लेकिन ज्यादातर केस में लाइफ की बस अच्छी साइड की बात होती है कि कैसे भी करके हम लाइफ में से सारा पेन और सारा दुख कैसे निकाले हैं? लेकिन युग के हिसाब से यह एक अच्छी लाइफ की नहीं बल्कि एक अधूरी जिंदगी जीने की रेसिपी है क्योंकि रिऐलिटी में उतार चढ़ाव, दुख, दर्द और फेलियर्स हर नेगेटिव चीज़ ही हमारी ग्रोथ की पोटेंशिअल होती है। अगर हम कभी कुछ गलती नहीं करेंगे और हमें उसके नेगेटिव कॉन्सिक्वेन्सस नहीं झेलने पड़ेंगे तो हम कोई भी लहसुन सीखेंगे। कैसे? लेसन टु ठे इम्पोर्टेन्स ऑफ टेलिंग यू स्टोरी यू बोलते हैं कि दुनिया में इतनी प्रॉब्लम्स और इतनी बुराइ इसलिए है क्योंकि लोग अपनी स्टोरी नहीं सुना पा रहे हैं और एक इंसान लोनली इसलिए नहीं फील करता कि उसके आसपास लोग नहीं है। बल्कि इसलिए क्योंकि वो उन बातों को नहीं बोल पाता जो उसे ज़रूरी लगती है या फिर जिन बातों को वो बोलना चाहता है उन्हें दूसरे लोग बुरा मानते हैं। अपने सच को दबाकर जीना बिल्कुल ऐसा हुआ जैसे आप अपने हाथ ही अपने पैर काटकर जी ने लगो। अगर आपको अपनी स्टोरी नहीं पता आपको अपने बचपन की मेमोरीज़ ढंग से नहीं याद। आप अपने से बहुत दूर हो चूके हों और आप बहुत सर ऑफिस पर लाइफ जीते हो तो वो गाना जो आप गाने के लिए इस दुनिया में आये थे वो कभी भी किसी कान तक पहुँच ही नहीं पाता। ना ही इवन आपके खुद के लहसुन थ्री लिविंग द ओनली गुड लाइफ एक बार बोला था कि एक फैमिली की सबसे बड़ी ट्रैजिडी वो होती है जब बच्चे अपने पैरेंट स्कीन लिव्ड लाइफ जीने लगते हैं। यानी जब पैरेन्ट्स खुद अपने आप को हिलना करने की वजह से अपने सपनों और दूसरों की एक्सपेक्टेशन्स को पूरा नहीं कर पाते तब वो अपने यही सपने अपने बच्चों से पूरा कराने लगते हैं। अगर एक पैरेंट पर हमेशा प्रेशर डाला गया था कि वो सर टन जॉब ले और घर में बहुत पैसे लाये तब वो ट्रॉमैटिक पैरेंट अपने दिमाग में बैठी इसी ऑनफील्ड विश के बेसिस पर अपने बच्चों को जज करने लगते हैं। और उन्हें भी वही जॉब। यह कैरिअर ऑप्शन चूज करने के लिए फोर्स करने लगते हैं, जो उन्हें सही लगता है। इस वजह से एक बच्चा अपने टैलेंट ढूंढने और खुद का पर्पस पूरा करने के बजाय अपने पैरेन्ट्स का पर्पस पूरा करने लग जाता है। ऐसे ना तो एक बच्चा बड़े होने पर कभी खुदकुशी ढूंढ पाता है और ना ही उसके पैरेन्ट्स लेसन फॉर हिस्टरी। इस इन आर ब्लड के हिसाब से हिस्टरी कोई ऐसी चीज़ नहीं है जो मोटी मोटी बुक्स में है बल्कि वो अभी भी हमारे खून में जिंदा है। वो बोलते है कि इंसान कोई ऐसी मशीन नहीं है जिसकी फंक्शनिंग सिचुएशन के अकॉर्डिंग बदली जा सकती है। इस होप के साथ की वो वैसे ही काम करेगा जैसे वो पहले कर रहा था। वो अपनी पूरी हिस्टरी अपने साथ लेकर चलता है। उसके पूरे स्ट्रक्चर में ही इंसान का इतिहास लिखा पड़ा है। यानी जितना आप अपने और दूसरे लोगों के बारे में अपने अंदर झांकने से समझ पाते हो, उतनी इन्फॉर्मेशन आपको कि सी भी बुक में नहीं मिले गी हर हिस्टरी बुक बस आपको ड्राइव फैक्स बता देती है, जिसकी वजह से हमें भी उसे याद रखने के पीछे कोई सॉलिड रीज़न नहीं दिखता। जीवन सोते हुए आप का एक गहरा सपना ही इस बात का प्रूफ है कि आपके अंदर कई ऐसी चीजें चल रही है और कई ऐसे लोग जी रहे हैं। जो आपको हर समय गाइड करने की कोशिश कर रहे होते हैं। इसलिए अगर आप मानव इतिहास को डाइरेक्टली एक्सपिरियंस करना चाहते हो तो खुद के अंदर जाओ, मेडिटेट करो, अपने सपनों को इंटरप्रेट करो, युग करो या फिर अपने हर थॉट या फीलिंग को ऑब्जर्व करो। लेसन फाइव लाइफ बिग इनसेट 40 यूश़ूअली 40 से 50 साल की उम्र में लोग एक डाक फेस से गुजरते हैं, जिसे बोलते है मिड लाइफ क्राइसिस। यह एक साइन होता है कि वह अब अपनी लाइफ के एक ऐसे फेस में आ चूके हैं, जहाँ उन्हें अपने जीने के तरीके में चेंज लाने की जरूरत है। यूनियन साइकोलॉजी बोलती है। कि हर इंसान की लाइफ की फर्स्ट हाफ में उसका काम होता है अपनी ईगो और अपने बिलीव्स को फॉर्म करना, लेकिन लाइफ के सेकंड हाफ में उसे इन्हीं चीजों से दूर जाना होता है। पहला फेस ग्रोइंग डाउन या फिर ग्राउंडिंग के लिए होता है और दूसरा फेस ग्रोइंग अप के लिए डाउन्वर्ड ग्रोथ को ऐसे समझो जैसे एक पौधा बड़े होने से पहले अपनी जड़ों को धरती की गहराइयों में भेज रहा हो। इस प्रोसेसर से वो पौधा एक सॉलिड फाउंडेशन बना पाता है जिससे बाद में जब वो बड़ा होता है तब उसकी जड़ें उसे सीधे रखती है और तेज हवा के झोंकों से बचाती है। सिमिलरली यू बोलते हैं कि हर इंसान लगभग 40 साल तक बस रिसर्च करता है और दुनिया के मेकनिजम को समझता है और सिर्फ इसके बाद उसे एक आइडिया मिल पाता है कि दुनिया में चल क्या रहा है लहसुन सिक्स इन एवरी डिसोर्डर देर इस सीक्रेट ऑर्डर ये लेसन बहुत कम लोग समझ पाते हैं, क्योंकि यह आपको हर चीज़ में उसका ऑपोजिट देखने के लिए मजबूर करता है। जैसे हम चाँद को सूरत से और जीने को मरने से तो रिलेट कर लेते हैं लेकिन जब बात आती है उन लोगों में अच्छाइयां ढूंढने की जिन्हें हम हिट करते हैं और बिल्कुल गलत समझते हैं। यह काम आसान नहीं होता, लेकिन अगर आप वाइस बनना चाहते हो तो अपने दुखों में भी खुश होने के रीज़न को ढूंढो और हर बुरे इंसान में अच्छा ई लहसुन सेवन योर हार्ट नो स्थान सर यू बोलते हैं कि हर कोई अपनी बीम के डीपेस्ट हिस्से में यह बात जानता है कि उसे कहाँ जाना चाहिए और क्या करना चाहिए? लेकिन कई बार यह पागल जैसे हम मैं बोलते है। यह कुछ इस तरह से बिहेव करने लगता है कि हमारी वो इनर वौस अपनी प्रेज़ेंस हमें फील नहीं करा पाती। आपका विज़न तभी क्लियर होगा जब आप अपने दिल में झांकोगे जो बाहर देखता है वो सपने देखता रह जाता है लेकिन जो अपने अंदर देखता है वो उठ जाता है। इसलिए जब भी आप किसी डाउट में हो तब उसी आवाज को फॉलो करो जो आपकी ईगो के अगेन्स्ट जाकर आपको मुश्किल लेकिन सही रास्ता लेने को बोल रही होती है। लेसन एट डील विद योर ओन शेडो टू हैन्डल अदर्स यूनियन साइकोलॉजी में एक कॉन्सेप्ट होता है जिसे बोलते है शैडो यानी हर वो ख्याल बिलीफ या क्वालिटी जिसे हम बुरा मानते हैं और उसे हमारी ईगो रिजेक्ट कर देती है। तब हम उन रिजेक्टेड हिस्सों को दूसरे लोगों पर प्रोजेक्ट करने लगते हैं। इसलिए युग के हिसाब से अगर कोई इंसान आप पर अपना गुस्सा निकलता है, आपको बुरा भला बोलता है और आपको डिमोटिवेट करता है तो ऐसे इंसान से डील करने का बेस्ट तरीका होता है पहले खुद के अंदर मौजूद अब्यूसिव, इरिटेटिंग और डी मोटिवेटेड क्वालिटीज को फेस करना और उन्हें एक्सेप्ट करना। जिसतरह से पुलिस को एक चोर को पकड़ने के लिए चोर की तरह ही सोचना पड़ता है वैसे ही आप बुरे लोगों से डील कर सकते हो। अपने अंदर की बुराइ से डील करके लेसन नाइन स्टॉप प्रोजेक्ट इन ग यह लहसुन एट से ही रिलेटेड है। युग अपने एक कोर्ट में बोलते हैं। कि सबसे अच्छा पॉलिटिकल, सोशल और स्पिरिचुअल काम ये है कि आप अपनी शैडो की प्रोजेक्शन दूसरे लोगों से हटा लो। हर वो चीज़ जो हमें दूसरों के बारे में इरिटेटेड फील कराती है उससे हम सेल्फ अवेर्नेस हासिल कर सकते हैं। अगर आपको किसी की बात या आइडियोलॉजिकल डिफरेन्स पर गुस्सा आता है तो यह चीज़ उनके बारे में कम और आपके बारे में ज्यादा बताती है। इसलिए अपनी फीलिंग्स को दूसरों पर प्रोजेक्ट करना बंद करो और दुनिया को बेहतर बनाने के लिए पहले खुद को ठीक करो। ले सनटैन और हेल्थी मैन डज़न टॉर्चर अदर्स बोलते हैं। कि जो भी इंसान दूसरों को दुख देता है वह दीप इनसाइड खुद भी दुखी ही होता है। क्योंकि ऐसे इंसान की कॉन्शस अवेर्नेस इतनी कम होती है कि वो हर इंसान और जीव जंतु को अपने से अलग मानता है। वो ना तो अपनी लाइफ की रिस्पेक्ट करता है और ना ही दूसरों की। लेकिन दूसरी तरफ एक ऐसा इंसान जिसने अपने पुराने घाव भर लिए हैं और अपने साइकोलॉजिकल ट्राउमा उसको हील कर लिया है। वो ये बात समझता है कि उसमें और किसी भी दूसरे इंसान या जानवर में ज्यादा फर्क नहीं है। उनकी रेस जेन्डर कास्ट या रिलिजन हर चीज़ एक इल्यूजन है और अगर कोई इंसान दुसरो को भी अपना ही पार्ट समझे तो नैचुरली वो दूसरों को दुख नहीं बल्कि बस प्यार ही देता है। इसलिए हमें भी यही कोशिश करनी चाहिए कि हम दूसरे लोगों में खुद को ढूंढ पाए और खुद में दूसरे लोगों को।","स्विस मनोचिकित्सक डॉ. कार्ल जंग ने न केवल मनोविज्ञान के क्षेत्र में बहुत योगदान दिया बल्कि उन्होंने दर्शनशास्त्र, धर्मशास्त्र, अध्यात्म, ज्योतिष और यहां तक कि कठिन विज्ञान जैसे क्षेत्रों को भी प्रभावित किया। अध्ययन के इतने सारे अलग-अलग क्षेत्रों से ज्ञान होने के कारण, वह पैटर्न खोजने में सक्षम थे जो उनके बीच सामान्य थे और उन निष्कर्षों पर उनके सिद्धांत आधारित थे। तो, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम जंग के जीवन के 10 पाठों पर चर्चा करेंगे जो न केवल जुंगियन मनोविज्ञान के बारे में बहुत कुछ सिखाएंगे बल्कि आप जीवन जीने के सही तरीके के बारे में भी बहुत कुछ सीखेंगे।" "बुक्स हमें नहीं नॉलेज पर्सपेक्टिव और डीपी सोचने का रीज़न देती है। जब भी हम किसी अच्छी बुक को पढ़ना चालू करते हैं, तब वो हमें एक इमैजिनेशन की दुनिया में ले जाती है, जहाँ पर हम अपनी थिंकिंग कैपेबिलिटीज को इक्स्पैन्ड कर पाते हैं, लेकिन अगर आप अपने आप को इम्प्रूव करना चाहते हो तो सिर्फ बुक्स को रीड गन्ना काफी नहीं है। आप को पढ़ने के अलावा कई दूसरी चीजें भी करनी होती हैं, जिनसे आप होलिस्टिक अली डेवलप कर सको और तभी हम यह समझने की कोशिश करेंगे कि सिर्फ बुक्स को रीड करने में क्या प्रॉब्लम्स है और आप इस प्रैक्टिस को किन चीजों से रिप्लेस कर सकते हो? नंबर वन, मॉडर्न बुक्स सब स्टैन्डर्ड है। पहले जहाँ बुक्स क्वांटिटी में कम होती थीं, लेकिन उनमें लाइफ को समझने के लिए हर जरूरी टू दिया जाता था। वहीं आज ज्यादातर बुक्स में आपको बस प्रॉब्लम्स के आसपास घुमाया जाता है और डिफ़रेंट वर्ड्स ये स्टाइल डालकर वही बात करी जा रही होती हैं, जो मार्केट में अवेलेबल 10 और बुक्स कर रही होती है। ये डिफरेन्स होता है नॉर्मल बुक्स और ग्रेट बुक्स में। ग्रेड बुक में हर वो बुक आती है जो जेनरेशन से चलती आ रही है और उन बुक्स ने डाइरेक्टली या इनडाइरेक्टली दूसरी बुक्स को करा होता है। जैसे कि वे दास भगवद गीता बाइबल, कुरान यह शेक्सपियर डॉक्टर्स की नीचा और प्लेटों जैसे लोगों की बुक्स इन बुक्स में जिन बातों को कन्टेन्ट करके बोला गया है, उन्हीं बातों को आज मॉडर्न राइटर्स एक नए ट्विस्ट और बहुत से स्पेशल वर्ड्स को यूज़ करके बेच रहे हैं और आज ज्यादातर राइटर्स का गोल लोगों की लाइफ को बदलना नहीं बल्कि ज्यादा से ज्यादा बुक्स बेचना है। लेकिन ज्यादातर बुक्स मिडिओकर होती है। इसलिए सबसे प्रैक्टिकल नॉलेज लेने के लिए क्लासिक्स के पास वापस जाओ और नई चमचमाती बुक्स एटेम्पट होकर अपना टाइम वेस्ट करना बंद करो। नम्बर टू ऐप्लिकेशन ऑफ नॉलेज ये सिर्फ इन्फॉर्मेशन ठीक करने से आप अपने गोल तक नहीं पहुँच पाओगे। आपको उस इन्फॉर्मेशन को प्रैक्टिकली अप्लाई भी करना होगा। आप एक टास्क या किसी पीस ऑफ नॉलेज को सिर्फ तभी समझ पाते हो जब आप उसे यूज़ करना चालू करते हो। एग्जाम्पल के तौर पर आज कल हर इंसान अपनी कम्यूनिकेशन स्किल्स को इम्प्रूव करने के लिए सबसे पहले बुक्स को उठाता है और फिर उन्हें फिनिश करके सोचता है कि उसका काम खत्म हो गया है और उससे कम्यूनिकेट कैसे करना है ये समझ आ गया है। लेकिन कोई भी कॉमन सेन्स वाला इंसान ये बात समझ जाएगा कि कम्यूनिकेशन के लिए बुक से भी ज्यादा इम्पोर्टेन्ट है। एक्चुअल में दूसरों से वन ऑन वन बात करने की प्रैक्टिस करना और बिना इस ऐप्लिकेशन के किसी भी तरह की नॉलेज यूज़लेस है नंबर थ्री आपने एक्सपिरियंस से सीखो आप बुक्स में ज्यादा तर जेनरलाइज चीजें पढ़ते हो, जो आपको एक ऐवरेज ओपिनियन दे देती है कि ज्यादातर लोगों के लिए क्या सही होता हैं, बजाए आपकी यूनीक प्रॉब्लम सॉल्व करने के। ऐसे में यह जरूरी है कि आप अपने एक्सपिरियंस इससे सीखो की क्या चीज़ वर्क करती है और क्या नहीं। एक्सपिरियंस से सीखना एक बहुत ही फन्डामेंटल और नैचरल तरीका है, लेकिन ऐसे लोग बहुत कम होते हैं जो बैठकर कभी अपने एक्सपिरियंस को ऐनालाइज भी करते हैं और उनसे कुछ इनसाइट या विज़्डम निकालने की कोशिश करते हैं। लर्निंग को लोग कन्फ्यूज करते है एजुकेशन के साथ बट सच तो ये है की लाइफ में सबसे बड़ा टीचर आपको स्कूल या कॉलेज में नहीं बल्कि अपने इक्स्पिरीयन्स में मिलेगा जिनसे आप डाइरेक्टली ये समझ पाओगे की क्या काम सही है और क्या नहीं। इसलिए जितनी इम्पोर्टेंस आप अपनी बुक्स को देते हो उससे ज्यादा इम्पोर्टेन्स डाइरेक्टली चीजों को एक्सपिरियंस करने को दो अमेरिकन राइटर रिचर्ड बाख बोलते है कि कई बार जब लर्निंग एक्सपीरिएंस से पहले मिल जाती है तो वो तब कोई सेन्स नहीं बनाती हैं। इसलिए नॉलेज हासिल करने का सही तरीका है बुक्स भी पढ़ना। लेकिन एक्सपिरियंस लेकर उन बुक्स की इन्फॉर्मेशन को चैलेंज भी करना नंबर फ़ोर अपने आसपास के लोगों से सीखो यानी आप अपने पैरेन्ट्स, बॉस, फ्रेंड, पार्टनर या ग्राण्ड पैरेन्ट्स से बहुत कुछ सीख सकते हो। कई लोग अपने अराउंड के लोगों को कंप्लीट्ली इग्नोर कर देते हैं जैसे उनसे कुछ नहीं सीखा जा सकता और वो एक्चुअल बुक्स के आगे बहुत ही शैलो है। बट यह एक बहुत ही इमेच्योर और फूल इस तरह की सोच होती है। जस्ट बिकॉज़ आपके आसपास के लोग फैंसी वोकैब्लरी को नहीं यूज़ करते हैं या इन्हें लेटेस्ट थ्योरी ज़ या रिसर्च एस के बारे में नहीं पता तो इसका मतलब यह नहीं है कि आप इनसे बात करके कुछ नया नहीं सीख सकते हैं। कोई इंसान आप को प्यार करने की इम्पोर्टेन्ट सीखा सकता है। की दुसरो को कन्विंस करने की स्किल और कोई अच्छा इंसान बनने का तरीका बता सकता है। जबकि ये चीजें बुक्स में कुछ इस तरह से पेश कर दी जाती है जहाँ पर वो इन्फॉर्मेशन हमारे लिए सेकंड हैंड नॉलेज होती है और हम उनसे उस लेवल पर रिलेट नहीं कर पाते। जीस लेवल पर हम अपने किसी दोस्त या पैरेंट की स्टोरी से करते हैं। इसलिए सबसे पहले तो मीडियोकर मॉडर्न बुक्स को रीड करना और अपनी थिंकिंग को लिमिट करना बंद करो और ग्रेट बुक्स या फिर ऐक्चुअल फर्स्ट हैंड एक्सपीरियंस को अहमियत दो।","किताबें हमें नया ज्ञान और गहराई से सोचने का कारण प्रदान करती हैं। जब भी हम एक महान पुस्तक पढ़ना शुरू करते हैं, तो यह हमें कल्पना की दुनिया में ले जाती है जहां हम हर चीज को एक अलग नजरिए से देख सकते हैं और अपनी सोचने की क्षमता का विस्तार कर सकते हैं। हालाँकि, यदि आप अपने आप को समग्र रूप से विकसित करना चाहते हैं, तो पुस्तकें पर्याप्त नहीं हैं। इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम इस विचार पर विस्तार करते हैं और आधुनिक पुस्तकों के साथ समस्याओं पर चर्चा करते हैं और आपको उन्हें किससे बदलना चाहिए।" "बहुत से लोग सोशलिस्ट करने और बड़े ग्रुप्स में जाने से डरते हैं, क्योंकि वो बड़े ग्रुप्स को एक की तरह ट्रीट करते हैं, जहाँ पर हर कोई उन्हें जज करेगा। हाउएवर सोशली ऐक्शंस होना बहुत अलग होता है, बस इंट्रोवर्ट होने से, क्योंकि एक इंट्रोवर्ट वो होता है जो बस अकेले रहना पसंद करता है। जबकि एक सोशल ली ए नाइस इंसान वो होता है जो दूसरे लोगों के साथ मिलकर एन्जॉय करना, बातें करना और उनके साथ मेमोरीज़ तो बनाना चाहता है लेकिन वह यह सोचकर डरता है कि अगर वह लोगों के बीच गया तो वह उसे जज करेंगे। तो उसे ऐनालाइज करेंगे, उसकी बुराइ होगी या उनसे कोई गलती हो जाएगी और लोग उनका मजाक उड़ाएंगे। इसी डर की वजह से एक सोशिअल इंसान अपनी लाइफ में बड़े इवेंट्स और ऑपर्च्युनिटीज को भी मिस कर देता है और यह चीज़ उनके बिहेव्यर और बॉडी में भी दिखती है। यानी कहीं जाने के नाम से ही उनके पसीने छूटने लगते हैं, उन्हें एंजाइटी होने लगती है या फिर उनका पेट दर्द होना शुरू हो जाता है। हर ऐसा सिम्प्टम उनके साइकोलॉजिकल लेवल पर पैदा होता है और वहीं से उनकी बायोलोजी तक आ जाता है। ज्यादातर इंट्रोवर्ट्स और शाय लोग ये गलती अक्सर करते हैं कि वो खुद के अकेले रहने की चाह को कोई गलत चीज़ समझने लगते हैं। इसलिए इस एपिसोड में आपके डाउट्स क्लियर करने के लिए हम उन साइट्स को डिस्कस करेंगे जो ये बताएंगे कि क्या आप एक्चुअल मैं सोशली ऐक्टरस होते हो या फिर आप बस एक इन्ट्रुवर्ट हो। साइन नंबर वन फिजियोलॉजिकल चेंज एस सोशल ऐंड सिटी को पकड़ने के लिए सबसे सिंपल और स्ट्रेटफॉरवर्ड साइन होता है। ये नोटिस करना कि आपकी बॉडी में क्या बदलाव आ रहे हैं? जब भी सोशलिस्ट करने का टाइम हो तब उसी समय देखो कि क्या आपके हर्ट रेट में कोई चेंजेज है। आपके हाथों में पसीना तो नहीं आ रहा? आपके फेस का कलर तो नहीं चेंज हो गया या फिर एकदम से आप कमजोर तो नहीं फील कर रहे हैं? अगर आप ये ऑब्जर्व करो कि हर बार किसी इवेंट में जाने के समय ही आपकी बॉडी में ये सारे चेंजेज आने लगते हैं और आपका उस इवेंट में जाने का बिल्कुल भी मन नहीं होता तो ये बिलकुल क्लियर है कि आप सोशियली ए नाइस हो साइन नंबर टू ओवर थिंकिंग अबाउट इंटरैक्शन, स् नॉर्मल लोगों के लिए अनजान या जान पहचान के लोगों से बात करना बहुत आम चीज़ होती है और वो उसके बारे में ज्यादा नहीं सोचते हैं। एक इंट्रोवर्ट भी यही सोचता है कि चलो कोई नहीं मैं थोड़ा सा समय उस पार्टी या इवेंट में रहूँगा तो क्यों ना मैं वहा एन्जॉय करने की कोशिश करूँ और साथ ही साथ ये भी ट्राई करूँ कि मैं जल्दी से वापस भी आ जाऊं जबकि एक सोसिअल्ली ऐक्शन सान अपनी इंटरैक्शन सको। फैन टी साइंस और ओवर थिंक करता है। वो अपने मन में ही खुद को दूसरों से बात करते हुए और लोगों के बीच अपना मजाक बनते हुए हर चीज़ को विजुअलाइज करने लगता है। उसके अंदर से आती एक आवाज उसको बोलती है कि वो बोरिंग अगली या दूसरों के लिए बिल्कुल भी इम्पोर्टेन्स नहीं रखता। और इसलिए उसका कहीं भी जाने का कोई फायदा नहीं है। चाहे अगर वो किसी से टैक्स में भी बात कर रहे हो तब भी अगर सामने वाले से टैक्स आने में देरी हो गई। उन्होंने मैसेज पढ़ा नहीं या मैसेज बहुत लंबा या छोटा है तो एक सोसिअल्ली इन छोटी मोटी चीजों के बारे में ही करने लगता है जैसे उसको लेट रिप्लाइ इसलिए ही मिला होगा। जस्ट बिकॉज़ सामने वाला इंसान उसे पसंद नहीं करता। साइन नंबर थ्री नर्वसनेस यानी अपनी बॉडी में होते छोटे मोटे बदलाव तो सिर्फ आप ही नोटिस कर सकते हो लेकिन नर्वसनेस एक ऐसी चीज़ होती है। जिससे आपके आसपास खड़े लोग भी अपने ईज़ी देख पाएंगे। यानी आप लोगों से बात करते हुए आई कॉन्टैक्ट नहीं बना पाते। आप हकलाते हो या फिर आप किसी को देखकर तेजी से चलने लगते हो ताकि आपको उनसे बात ना करनी पड़े। दूसरे लोग इन छोटे छोटे साइनस को नोटिस करते हैं और वो समझ जाते हैं कि या तो आप बहुत ही ज्यादा विर्ड हो या फिर आपको बस लोगों से बात करना अच्छा नहीं लगता। साइन नंबर फ़ोर यू हैव ट्रबल में किन रिलेशनशिप्स सोशल ऐंड सिटी के साथ नए लोगों से दोस्ती गणना या किसी को डेट करना ऑलमोस्ट इम्पॉसिबल होता है। जहाँ एक इंट्रोवर्ट या शा इंसान, बस तब तक थोड़ा हिचकिचाएगा। जब तक वह एक इंसान को अच्छे से थोड़ा जान नहीं लेता और उसके साथ क्लोज़ नहीं आ जाता, वहीं एक सोशल ली जान किसी अनजान इंसान से बात करने के ख्याल से ही डरता है और वो या तो नए दोस्त या पार्टनर बनाने की ऑपर्च्युनिटी को भी मिस कर देता है या फिर उसके जो एग्ज़िस्टिंग रिलेशनशिप्स है वो उन्हें भी धीरे धीरे करके खत्म कर देता है। जस्ट बिकॉज़ उसे किसी से मिलने और रिलेशनशिप को मेनटेन करने में कोई पॉइंट नहीं दिखता। एक शर्मीला इंसान बस रिलेशनशिप की शुरुआत में ही थोड़ा ऑक्वर्ड फील करता है। लेकिन दूसरे इंसान को अच्छे से जानने के बाद वो खुल जाता है, पर एक सोशली इंसान के लिए ये कंफर्टेबल होने वाला फेस कभी नहीं आता। वह हमेशा ही दूसरों के आगे स्ट्रेस्ड और अन्कम्फरटेबल फील करता है। चाहे वो दूसरे लोग उसके पुराने दोस्त, रिलेटिव या खुद की फैमिली ही क्यों ना हो, वह हर किसी की जजमेंट से डरता है। साइन नंबर फाइव इट इस अफेक्टिड योर ग्रोथ आपको दुनिया में ऐसे बहुत से इंट्रोवर्ट्स मिलेंगे, जो कि हाइली सक्सेसफुल है। लेकिन आपको कभी भी ऐसा कोई इंसान सक्सेसफुल होता नहीं दिखेगा। क्योंकि सोसिअल्ली ऐस है सक्सेसफुल लोग अपने पास की स्टोरी सुनाते हुए तो ये बता देते हैं कि कैसे उन्हें भी सोशल एंजाइटी होती थी, लेकिन बिना इस प्रॉब्लम को ओवर कम करें। कोई भी इंसान अपनी मैक्सिमम पोटेंशिअल को हासिल कर ही नहीं सकता। सोसिअल्ली ऐस लोग अपनी ही ग्रोथ के बीच में आ जाते हैं। जैसे अगर एक इम्प्लॉई बहुत मेहनती है और वो अपनी कंपनी के लिए बहुत ज्यादा काम करता है, बट वो सोशली ऐस है, तो चाहे उसे अपने आगे प्रमोशन की ऑपर्च्युनिटी दिखे भी तो वो उसे भी ना बोल देगा। इसी डर से कि उसे खाना खा लोगों के आगे खुद को प्रेज़ेंट करना पड़ेगा। और सारी अटेन्शन उसी पर आ जाएगी। जहाँ कई लोग अटेन्शन के भूखे होते हैं वहीं सोशल ली ए नाइस लोग अटेन्शन से दूर भागते हैं क्योंकि उनके हिसाब से अटेन्शन के साथ लोगों की जजमेंट फ्री मिलती है। इसलिए अगर आप खुद का नाम बनाने और ग्रो करने से ही कतराने लगो, ताकि आप लोगों की अटेंशन में ना जाओ तो समझ जाओ कि आपकी सोशल ऐंड सिटी की प्रॉब्लम बहुत से वेर है और आपको ऐसे जल्दी से जल्दी ओवर कम करने की जरूरत है। साइन नंबर सिक्स यू अवॉर्ड सोशलाइजिंग ऐट ऑल कॉस्ट्स तो आप अकेले रह कर भी खुश हो तो इसमें कोई प्रॉब्लम नहीं है और बल्कि यह तो बहुत ही पॉज़िटिव क्वालिटी होती है। लेकिन अगर आप अकेले रहकर भी सोशल मीडिया पर दूसरों को मज़ा करते देख उदास हो जाते हो और एट के समटाइम आप खुद बाहर जाकर मस्ती करने से डरते हो तो यह एक बहुत बड़ी प्रॉब्लम है। आप अपने डर की वजह से पार्टी, इन्विटेशन, स् वेडडिंग्स और लोगों की कॉल्स हर चीज़ को अवॉइड करते हो ताकि आपको लोगों के बीच न जाना पड़े। जीवन एक इवेंट में जाने पर भी आप खुद को कोने में छुपा कर बैठ जाते हो ताकि लोग आपको नोटिस ना करे। और आप से बात करने ना आए। साइन नंबर सेवन अब ज्यादातर समय सेल्फ़ कॉन्शस ही रहते हो। सेल्फ़ कॉन्शस होने का मतलब है खुद से बहुत ज्यादा कॉन्सर्ट रहना कि मैं कैसा दिख रहा हूँ, मेरे बोलने का तरीका कैसा है? मैं सोसाइटी में किस पोज़ीशन पर हूँ या लोग मुझे कितना पसंद या नापसंद करते हैं? हर वो सिचुएशन जो ईगो की तरफ एक नेगेटिव सिग्नल भेजती है। यानी आपकी आइडेंटिटी को लेकर जब भी कोई बुराइ होती है, तब वह चीज़ आपको चुभती है और आपको सेल्फ कॉन्शस बनाती है, चाहे यह बुरा ई किसी ने ऐक्चुअल में आपके मुँह पर करी हो। या आप बस खुद ही अपने मन में खुद की कमियां निकालते रहते हो? साइन नंबर एट हमेशा सबसे बुरे आउटकम के बारे में सोचना, एक सिचुएशन को ऐक्यूरेट्लि कैलकुलेट कर पाना और उसकी पॉज़िटिव पॉसिबिलिटीज़ और नेगेटिव पॉसिबिलिटीज़ दोनों पोलैरिटी ज़ को देख पाना यह एक बहुत ही हेल्थी चीज़ होती है लेकिन अगर एक इंसान बस हर समय ही नेगेटिव सोचता रहता है और कहीं भी जाने से पहले हर पॉसिबल नेगेटिव आउटकम को इमेजिन करने बैठ जाता है, तो उसका मतलब वो सोसिअल्ली ऐस है। अगर आपको एक मीटिंग में जाना है प्रेजेंटेशन देने तो आप अपने दिमाग में रैन्डम से नारीउस बनाने लगोगे कि किन किन तरह से आप अपनी प्रेज़ेन्टेशन को खराब कर दोगे। अगर आपने किसी बर्थडे पार्टी में जाना है तो तब भी आप यही सोचने लागोंगे कि आप वहाँ भी कोई गडबड करदोगे तो ऐसे में किसी भी सिचुएशन की खुद की सेफ्टी आपके लिए मायने नहीं रखती है, क्योंकि आप अपने ख्यालों के बोझ तले ही इतने ज्यादा दबे रहते हो कि आप सच को देख ही नहीं पाते, जिससे आपकी ऐंगज़ाइइटी बद से बदतर बन जाती है। साइन नंबर नाइन आपको पहने का टैक्स आते हैं। ये सोशल एनजीटी के सबसे एक्स्ट्रीम सिम्पटम्स में से एक है। यानी जब आप लोगों के बीच में होते हो और आपके अंदर आपको सेल्फ कॉन्शस बनाने वाले नेगेटिव थॉट्स और बढ़ते चले जाते हैं, तब आपकी बॉडी काँपने लगे गी आपको सांस लेने में मुश्किल होगी। आपको बहुत ज्यादा पसीना आएगा, आपको खड़े रहने में प्रॉब्लम होगी और आप कुछ बोल भी नहीं पाओगे और यह स्टेट कई घंटों तक चल सकती है। इसे बोलते हैं एक पहने का टैंक आना, जिसके दौरान अपने स्ट्रेस बहुत ज्यादा बढ़ा रहता है और आपकी बॉडी और माइंड एक तरह से ऑर्डर टपरा जाते हैं।","बहुत से लोग सामाजिक होने और सार्वजनिक रूप से जाने से सिर्फ इसलिए डरते हैं क्योंकि वे दूसरों को एक खतरे के रूप में देखते हैं, जो उनका न्याय करेंगे और उन्हें उनकी तुच्छता की याद दिलाएंगे। हालाँकि, सामाजिक चिंता अंतर्मुखता से बहुत अलग है। एक अंतर्मुखी के रूप में वह है जो अकेले रहना पसंद करता है, लेकिन एक सामाजिक रूप से चिंतित व्यक्ति वह है जो दूसरों के साथ रहना चाहता है और यादें बनाना चाहता है, लेकिन निर्णय लेने की संभावना के कारण बहुत डरा हुआ है। इसलिए, अंतर को स्पष्ट करने और सामाजिक चिंता के बारे में अधिक जानने के लिए, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम 9 संकेतों के बारे में बात करेंगे जो बताएंगे कि आप सामाजिक रूप से चिंतित व्यक्ति हैं या नहीं।" "हमारे आस पास बहुत सारे ऐसे लोग होते हैं जो अपनी साइट को अपने एक नकली मुखौटे के पीछे छुपाकर रखते हैं। यह वो लोग होते हैं जो बाहर से अपने आप को ऐसे दिखाते हैं की वो सबसे नेक और सब को प्यार करने वाले हैं लेकिन अंदर से वो उतने ही फेक और बुरे होते है। वो आपको ऐसा दिखाते तो है की वो आपके बेस्ट इन्ट्रेस्ट में हर काम करते हैं लेकिन सच तो ये है कि वो अपने मतलब के लिए आपको कही बार कुएं में धकेल देते हैं। इसलिए इस एपिसोड में हम ऐसे ही फेकना इस लोगों के कुछ साइंस को डिस्कस करेंगे ताकि अगर आप भी कभी एक ऐसे इंसान से मिलो तो आप उन्हें आइडेंटिफाइ कर पाओ। और उनसे दूरी मेंटेन कर पाओ। साइन नंबर, वन, पैसे वगैरह सब होना यानी जब एक इंसान इन डाइरेक्टली आपको अपना गुस्सा दिखाता है और आप सोच में पड़ जाते हो, क्या ये इंसान एक्चुअल में आपकी बेजती कर रहा है या फिर ये बस इसका मजाक था? इस तरह से ये लोग एक्स्ट्रीम वे में अपना अग्रेशन भी निकाल देते हैं, लेकिन बाहर से स्माइल करते रहते हैं और प्यार दिखाते रहते है। जैसे यह तो कभी भी कुछ नेगेटिव कर ही नहीं सकते हैं। साइन नंबर टू खुद के बारे में बढ़ा चढ़ाकर बात करना ये फेक नाइस लोगों की सबसे बुरी आदतों में से एक होती है की वो हमेशा अपनी ही तारीफ करते रहते हैं, लेकिन वह इस तारीफ को भी एक इनडायरेक्ट वे में प्रेज़ेंट करते हैं। फॉर एग्जाम्पल एक इंसान बोल सकता है की उसे तो इतने सारे लोगों के प्रोपोसल्स आते है कि वो तो अब परेशान हो गया है। इस तरह से वो अपनी तारीफ भी कर देता है और यह भी दिखा देता है कि वो तो एक बिचारा विक्टिम है, जिसे इतना सुपिरिअर होने की वजह से मुश्किलें झेलनी पड़ रही है। इसलिए अगर कोई भी इंसान इस तरह से इन डाइरेक्टली अपनी तारीफ करे तो उसकी टॉक्सिसिटी को वहीं पर आइडेंटिफाइ कर लो और उससे दूर रहो। साइन नंबर थ्री वो हर समय दूसरों की बुराइयां करते हैं। यानी ये लोग ज्यादातर समय दूसरों को नीचा दिखाने और उनकी बुराइयाँ करने में लगे रहते हैं। उन्हें लगता है कि वो इस तरह से आप के साथ मिलकर दूसरों का मजाक उड़ाने से आपका ट्रस्ट हासिल कर पाएंगे। लेकिन सच तो ये है कि जीस तरह से एक इंसान आपके साथ बैठकर दूसरों की बुराइ करता है चान्सेस है की वो दूसरों के साथ बैठकर भी आपकी बुराइ करता होगा। ये लोग ऊपर से नाइस लेकिन अंदर से जलन, गुस्से और कड़वाहट से भरे होते हैं। तो ऐसे में जब दूसरा इंसान इनसे अच्छा कर रहा होता है तो यह तब भी उनकी बुराइ कर रहे होते हैं और अगर कोई इंसान सफर कर रहा होता है तो यह उसका मजाक उड़ाकर भी ये बोलते है की वो इंसान कितना कमजोर है। इसलिए अगर आपके सर्कल में भी कोई ऐसा नेगेटिव इंसान है जो बाहर से बहुत नेक लगता है, लेकिन उसके ऐक्शन सुसकी पर्सोना से मैच नहीं करते तो समझ जाओ कि उसकी नाइस नेम इस फेक है। साइन फ़ोर फेक टिअर्स और फेक स्माइल यानी अगर एक इंसान के रोते हुए भी आंसू नहीं निकलते और ना ही उसके स्माइल करते हुए आई मसल्स मूव होती है तो उसका मतलब वो इमोशन्स को फेक कर रहा है। ऐसे लोग दिखाते हैं की वो कितने दुखी और विक्टिम इस हैं ताकि दूसरे लोग उन्हें अटेंशन दे और देखते ही देखते जब लोग इनकी बात को मान लेते हैं या फिर हर्षाली रिजेक्ट कर देते हैं तब यह एक इमोशन से शिफ्ट होकर दूसरा इमोशन दिखाने लग जाते हैं और यही चीज़ इनकी फिटनेस को दर्शाती है। इसके साथ ही अगर आपको कभी भी शक हो कि एक इंसान जो आपको देखकर और आपसे बात करके फेक स्माइल पास कर रहा है या फिर जेन्यूइन तो बस उसकी आँखों के आसपास वाली मसल्स को देखो। अगर उनकी हँसते टाइम फेस काफी रिलैक्स रहता है तो उसका मतलब उनकी इस माइ फेक है लेकिन अगर उनकी माउथ मसल्स के साथ साथ उनकी आय की मसल्स भी ऐक्टिवेट हो जाए तो चान्सेस है की वो जेन्यून्ली आपके साथ खुश हैं। नंबर फाइव वो उनके पीछे भागते हैं जिनके पास पावर होती है क्योंकि बाहर से तो कोई भी बोल सकता है कि सब लोग इक्वल होते हैं और ईक्वल रिस्पेक्ट डिजर्व करते हैं। लेकिन जब असली में बात आपके खुद के बेनिफिटस की आती है तब ज्यादातर लोग पावरफुल लोगों को ही अपना दोस्त बनाना चाहते हैं। हाउएवर फेकना इस लोग तो एक कदम और आगे जाते हैं और वो तो इन पॉवरफुल लोगों से भी बस मतलब निकलने तक ही रखते हैं और जैसे ही उनका काम निकल जाता है तब उनका असली चेहरा वो ज्यादा लंबे समय तक नहीं छुपा पाते हैं। दूसरी तरफ एक जेन्यूइन इंसान हर किसी की रिस्पेक्ट करता है, चाहे वह पावरफुल हो या नहीं। इसलिए जब भी कोई इंसान आपको इन पॉवरफुल लोगों का पीछा करते हुए देखे वह पावरलेस लोगों को बुरी तरह से ट्रीट करे। लेकिन अपने आपको काफी शरीफ और भला दिखाए तो यह एक साइन होगा। उसकी फेक ना इसने एस का?","नकली अच्छे लोग वे होते हैं जो अपने बुरे इरादों को सदाचार और अच्छाई के मुखौटे से छिपाते हैं। जब आप पहली बार मिलते हैं तो ये लोग बहुत दयालु लगते हैं लेकिन थोड़ी देर बाद, वे अपना असली रंग दिखाना शुरू कर देते हैं और उनकी अच्छाई पूरी तरह गायब हो जाती है। तो, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम ऐसे नकली अच्छे लोगों के 5 संकेतों के बारे में बात करेंगे, ताकि अगली बार जब आप किसी से मिलें, तो आप उनके आसपास अधिक सावधान रहें और उनसे स्वस्थ दूरी बनाए रखें।" "मॉडर्न दुनिया काफी तरह से बहुत खूबसूरत है और अच्छाइयों से भरी है। हमारे पास इलेक्ट्रिसिटी और पीने के लिए साफ पानी है। हमें जंगली जानवरों से कोई खतरा नहीं है। एजुकेशन या नॉलेज हासिल करना बहुत आसान बन चुका है। इंटरनेट की मदद से हम दुनिया में किसी भी कोने में बैठे इंसान से बात कर सकते हैं और हमारी जिंदगी में बहुत आराम है। लेकिन जीस तरह से हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। वैसे ही मॉडर्न दुनिया में जितनी अच्छाइयां हैं, उतनी ही उसमें बुराइयाँ भी है। जितना हम टेक्नोलॉजिकल लेवल पर तरक्की करते जा रहे हैं और लोगों को उतना काम करने की जरूरत नहीं है। जितना कुछ डेज़ पहले तक थी, उतना ही हमारे बीच डिप्रेशन और एंजाइटी जैसी मेंटल हेल्थ प्रॉब्लम्स बढ़ती जा रही है। हम फिज़िकली तो अपने पैरेन्ट्स और ग्राण्ड पैरेन्ट्स से एक बेहतर जिंदगी जी रहे हैं क्योंकि आज कंफर्ट और छोटे मोटे प्लेयर्स बहुत बीज़ी अवेलेबल है लेकिन साइकोलॉजिकली हम अपने से ज्यादा वीक और मेंटल प्रॉब्लम्स के ज्यादा पास है। जहाँ पहले लोगों को वोर में इतनी डेथ देखने या फिर किसी दूसरी प्रॉब्लम की वजह से अपने किसी चाहने वाले को खोने की वजह से पोस्ट रूमैटिक स्ट्रेस डिसॉर्डर यानी पीटीएसडी होता था। वही आज हमें हमारा कम्फर्ट ही खाने लगा है। ये बात बिलकुल सही है कि कुछ भी वैल्यूएबल पाने के लिए हमें उसकी एक कॉस्ट पे करनी होती है या फिर कुछ सैक्रिफ़ाइस करना होता है। सक्सेस के लिए हमें अपनी मस्ती को सैक्रिफ़ाइस करना होता है। फिटनेस के लिए जंक फूड को और ऐसे ही मॉडर्निटी की कॉस्ट है हमारे मन की शांति। हम सोचते हैं कि हम बहुत चालाक है और हम इस रूल को तोड़ सकते हैं और जितना मर्जी प्लेजर ले सकते हैं, बिना उसका प्राइस पे करे। हम पूरे दिन सोशल मीडिया, मूवीज़, टीवी शोज़ ***** मैस्टरबेशन और फास्ट फूड हर चीज़ में अपनी खुशी ढूंढ़ते हैं। हम इन चीजों के बेनिफिटस तो चाहते हैं लेकिन उसके लिए कुछ भी सैक्रिफ़ाइस नहीं करना चाहते हैं। लेकिन सैक्रिफ़ाइस से दूर भागने का यही डिसिशन हमें और ज्यादा डिप्रेस्ड और बनाता है। हर इंसान जहाँ पहले पूरी दुनिया से कट ऑफ था और वो दूसरे लोगों से फिज़िकली मिलता था, वहीं आज हम लोगों को सोशल मीडिया पर पहले उनके लाइक्स के अकाउंट देखकर उनकी वैल्यू या फिर डिजैबिलिटी का हिसाब लगाते हैं। हमारे सोशलिस्ट करने के सबसे बेसिक तरीके में ये बदलाव बहुत तेजी से आया है और ये भी हमारी मेंटल हेल्थ प्रॉब्लम्स का एक बहुत बड़ा रीज़न है कि हम अपनी खुशी अपने अंदर ढूँढने येई। वन रियल लाइफ में भी हेल्थ रिलेशनशिप्स बनाने के बजाय अपने खोखलेपन को गलत चीजों से भरते हैं। हम कॉन्स्टेंट ली स्टिमुलेटेड रहते हैं नोटिफिकेशन, स् कॉल्स, मेसेजेस ओर भाग दौड़ वाली जिंदगी की रिस्पॉन्सिबिलिटीज की वजह से, जिससे हमारे दिमाग को रेस्ट करने और हर समय बदलते एक्सटर्नल वर्ल्ड की बराबरी करने का टाइम मिलता ही नहीं है। इसके ऊपर से आज के समय पर ज्यादा से ज्यादा यंग लोग रिलिजन से दूर भाग रहे हैं। यंग लोगो को सिखाया ही नहीं जा रहा है कि किस तरह से वह पूरी दुनिया से कनेक्टेड हैं और उनके रॉल्स क्या है, जिसकी वजह से हमने रिलिजन की अच्छी साइड को तो भुला दिया है। और जो चीज़ देखने और बात करने के लिए बची है वो है बस उसकी नेगेटिव साइड। पूरी दुनिया में इस वक्त एक लॉस ऑफ मीनिंग की क्राइसिस चल रही है। हम जिन्दा तो है लेकिन हम ये ही नहीं समझ पा रहे हैं कि हम जिन्दा क्यों हैं और जिन जगहों पर हमें इस क्वेश्चन का ऐन्सर मिल पाता वो हमने ऑलरेडी रिजेक्ट कर दी है। जहाँ हम पहले मेन स्ट्रीम मीडिया पर फैक्स और सच्चाई जानने के लिए उन पर विश्वास कर सकते थे, वही आज वो भी अपना प्रोपगैंडा फैलाने और हमें ब्रेनवॉश करके हमारे डिसिशन्स को कंट्रोल करने को ही अपना गोल मानते है। हमारे अंदर होप जगाने और अलग अलग ग्रुप्स को पास लाने के बजाय जानबूझ कर हमारे अंदर टेंशन ऐंगज़ाइइटी और स्ट्रेस भरा जाता है और लोगो में डिवाइड बनाया जाता है ताकि हम और ज्यादा मीडिया कॉस्टयूम करें और इससे हम इस भूलभुलैया में और ज्यादा गुम फील करते हैं। हमने अपने कौन फॉर मिट्टी वाले एपिसोड में भी यह चीज़ काफी डिटेल में डिस्कस करी है कि जब दुनिया खुद एक गलत रास्ते पर चल रही होती है और उसमें मौजूद ज्यादातर लोग भटके हुए होते हैं तो ऐसी डी जेनरेट सोसाइटी में हम जितना ज्यादा बाकी लोगों की तरह बनने और कन्फर्म करने की कोशिश करेंगे, हम भी उतना ही मेंटली और लॉस महसूस करेंगे। ब्रिटिश राइटर योहन हारी अपनी बुक लॉस्ट कनेक्शन्स में बोलते हैं कि वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन और यूनाइटेड नेशन्स के डॉक्टर्स के हिसाब से डिप्रेशन के नाइन साइन्टिफिक कॉज़िज़ होते हैं, जिनमें से सिर्फ दो बायोलॉजिकल होते हैं। लेकिन बाकी साथ सोशल और साइकोलॉजिकल होते हैं। यानी जीस तरह से हम जीते हैं। हमें क्या पढ़ाया जाता है, हमारे रिलेशनशिप कैसे होते हैं या हम क्या इन्फॉर्मेशन कंज्यूम करते हैं। जिसकी वजह से हमारी इस मॉडर्न प्रॉब्लम का सॉल्यूशन सिर्फ दवाइयों, ड्रग्स या हमें टेंपोररिली अच्छा फील कराने वाली बातों में नहीं है। बल्कि वो है हमारे जीने के तरीके में। अगर हम तीन सबसे जरूरी चीजों को लिस्ट करे, जिनके बिना आप मॉडर्न दुनिया में सर्वाइव कर ही नहीं सकते तो वह है रिलेशनशिप्स कनेक्शन टू योर रूट्स और पर्पस। ये तीन स्ट्रांग पिल्लर्स आपकी जिंदगी को स्थिर और सुरक्षित रखने के लिए मिनिमम रिक्वायरमेंट है। क्योंकि पास में हम हर बड़े जानवर को इसलिए हरा पाए और सिविलाइज़ेशन को इसलिए बिल्ड कर पाए क्योंकि हम एक दूसरे के साथ टीम बना कर कॉर्पोरेट कर पाए। सेकंडली रूट्स के साथ कनेक्शन होने का मतलब है कि जिन स्पिरिचुअल इसको आपके सिस्टर्स ने इतनी मेहनत करके ढूंढा, उन्हें यूज़ करना जैसे इंडिया की रूट्स, मैं आपको मिलेगा योग और बहुत ही नॉलेजेबल इनिशिएट टैक्स जिसमे आपकी हर मॉडर्न प्रॉब्लम का सल्यूशन ऑलरेडी लिखा हुआ है, क्योंकि यह प्रॉब्लम्स साइकल्स में चलती है और लास्ट्ली पर्पस जरूरी इसलिए है ताकि हमें दुनिया की टेम्पटेशन्स मीडिया का प्रोपगैंडा या कोई भी बुरी आइडीओलॉजी हमारे रास्ते से भटका ना पाए और हम खुद ही अपनी परफॉर्मेंस को ऑप्टिमाइज़ करने के लिए हर वो काम करे जो हमें सबसे ज्यादा हेल्थी और जिंदगी के टुवार्ड्ज़ पैशनेट बनाएगा।","आधुनिक दुनिया के अपने फायदे हैं, हमारे पास आराम, भोजन, साफ पानी और जंगली जानवरों से सुरक्षा है। लेकिन जो हमारे पास नहीं है वह मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य है। हमारे पूर्वजों की तुलना में, हम शारीरिक रूप से बहुत बेहतर स्थान पर हैं, क्योंकि हमारे जीवन में ज्यादातर एक शिकारी से अपने जीवन के लिए दौड़ने की आवश्यकता नहीं होती है, लेकिन हम मानसिक रूप से कमजोर हैं और मनोवैज्ञानिक मुद्दों से अधिक ग्रस्त हैं। सोशल मीडिया का बढ़ता नेटवर्क, ऑनलाइन पैसे कमाने के लिए इंटरनेट पर हमारी निर्भरता, और लोगों से वर्चुअली भी जुड़ने की हमारी ज़रूरत, ये सभी चीजें हमें एक विकृत संस्करण देने के लिए एक साथ जुड़ती हैं जो वास्तव में हमारे लिए अच्छा है। हर वास्तविक आनंद को एक अस्थायी और सस्ते सुख से बदल दिया गया है और हम इसके लिए अपनी पवित्रता और खुशी का त्याग कर रहे हैं। इसलिए, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम इस आधुनिक समस्या और न केवल भारतीय समाज में बल्कि पूरे विश्व में क्या हो रहा है, इस पर गहराई से विचार करेंगे।" "आप में से बहुत से लोग फाइनैंशली फ्री होना चाहते हैं। इसी वजह से हम इस एपिसोड में उन चीजों को लिस्ट करेंगे जो गरीब लोग करते हैं और उसी वजह से हमेशा गरीब रह जाते हैं। अगर आप अपनी सक्सेस को लेकर सीरियस हो तो आप भी इन पॉइंट्स को नोट डाउन करके ये चेक कर सकते हो कि आप ऐसी कौन सी चीजें कर रहे हो जो आपको अमीरी और सफलता की तरफ बढ़ने से रोक रही है। आपकी सक्सेस में पूरी तरह से मदद करने के लिए हम हर पॉइंट में यह भी डिस्कस करेंगे कि वह इनसाइट किस बुक या फिर किस अमीर इंसान से ली गई है। नंबर वन पुअर पीपल नेवर ट्राई टु गेट नोन हर इंसान उस कंपनी या फिर बिज़नेस के प्रोडक्ट्स और सर्विस को खरीदता है, जिसे वह जानता है और जो उसके लिए कन्वीनियेंट है। आप भी जब ऑनलाइन शॉपिंग करते हो तब आप सब कॉन्शस ली बेस्ट प्रॉडक्ट को नहीं बल्कि बेस्ट नॉन प्रॉडक्ट को चुनते हो। जस्ट बिकॉज़ आपको दिख रहा होता है कि उस प्रॉडक्ट को ऑलरेडी सैकड़ों लोगों ने पॉज़िटिव ली रिव्यु कर रखा है। अगर आपने या लैपटॉप या फिर फ़ोन लेने जाओ तब भी आप उस कंपनी के प्रॉडक्ट को नहीं खरीदते हैं जिसमें सबसे लेटेस्ट और बेस्ट फीचर्स होते हैं, बल्कि आप एक रिलाएबल और नॉन कंपनी को चुनते हो हमारे इसी बिहेव्यर की वजह से रियल एस्टेट इन्वेस्टर और ऑन्ट्रप्रनर ग्रैंड कार्डन बोलते है कि बहुत से लोग इसलिए ही अपने बिज़नेस में फेल हो जाते हैं क्योंकि उनको कोई जानता ही नहीं है। सेल्स के लिए कभी भी एक पर्फेक्ट प्रॉडक्ट नहीं बल्कि बस सही मार्केटिंग और ब्रांडिंग चाहिए होती है। जब तक लोग आपके प्रॉडक्ट को 10 बार 10 जगह पर देख नहीं लेते तब तक वो उस पर ट्रस्ट नहीं करेंगे और तुम्हें अपने पैसे नहीं देंगे। इसलिए ये मत सोचो कि आप चार दीवारों के अंदर बैठे बैठे ही अमीर बन जाओगे। अगर आपको फाइनैंशल फ्रीडम चाहिए और अपनी पोटेंशिअल तक पहुंचना है तो आपको अपनी फील्ड में वेल नोन बनना ही पड़ेगा। नंबर टू पुअर पीपल हैव क्रैपी स्लीप इन रूटीन पुअर लोग अपनी जवानी में अक्सर रिच लोगों से लेज़र और लेंस डिसिप्लिन होते हैं। यानी जहाँ मिड लाइफ में रिस्पॉन्सिबिलिटीज के बढ़ने की वजह से एक गरीब इंसान भी टाइम से उठता और हार्ड वर्क करता है, वहीं अपने टीनेज और अर्ली ट्वेंटीज में जब आपके ऊपर उतनी रिस्पॉन्सिबिलिटीज नहीं होती तब सुबह धूप निकलने से भी पहले उठकर अपना काम शुरू कर देना यह बताता है कि आप एक्चुअल में कितने सक्सेस के लिए भूखे हो, जीवन भी जो दुनिया के सबसे अमीर इंसान है। वो भी पूरे दिन इतनी मेहनत करने के बाद सिर्फ 6 घंटे सोते हैं और सुबह 7:00 बजे के अराउंड उठ भी जाते है। नंबर थ्री पुअर पीपल डोंट अंडरस्टैंड लेवरेज इन्वेस्टरों रथिन कर न वाला। रविकांत बोलते है कि एक स्पोइल ग्रोथ के लिए एक ऐसा बिज़नेस चुनो जो स्केलेबल हो स्केलिबिलिटी आती है। लेवरेज से लेवरेज का मतलब होता है कि कम मेहनत, समय या फिर कैपिटल लगाकर ज्यादा आउटपुट निकालना। जैसे अगर आप एक काम को ज्यादा तेजी से करने और अपनी लिमिट के पार जाने के लिए एक बड़ी टीम की मदद लेते हो। तो इस केस में लेवरेज होगी आपकी टीम या फिर अगर आपके पास अपने प्रॉडक्ट को एडवर्टाइज करने के लिए अपने कंप्यूटर से ज्यादा पैसे हैं तो यहाँ पर लेवरेज होगी। आपकी कैपिटल जो कम समय और कम मेहनत में आपको ज्यादा ग्रोथ देगी। लेवरेज को यूज़ करके आप अपनी सक्सेस की जर्नी को छोटा बना सकते हो की वन सोशल मीडिया भी एक तरह का लेवरेज ही है, जहाँ हर कोई फ्री में अपने ब्रैंड को प्रोमोट कर सकता है। लेकिन बहुत से पुअर लोग डिजिटलाइजेशन का बिल्कुल फायदा नहीं उठाते हैं और यही चीज़ उनकी ग्रोथ को लिमिट करती है। नंबर फ़ोर पुअर पीपल गेट सैटिस्फैक्शन फ्रॉम टेनमेंट टीवी देखना, वेब सीरीज देखते हुए कई घंटे वेस्ट कर देना और हर 2 मिनट में अपना मोबाइल चेक करना। खुद को डोपामिन देते रहने के लिए ये चीजें सिर्फ पुअर लोग ही करते हैं क्योंकि खुद के सपनों का पीछा ना करने की वजह से उनको अपना प्लेजर और सैटिस्फैक्शन इस तरह की यूज़लेस चीजों से लेनी पड़ती है जबकि अमीर लोगों के लिए इंटरटेनमेन्ट होता है उनकी सक्सेस और उस सक्सेस तक पहुंचने की जर्नी। 30 सेकंड यूएस प्रेसिडेंट फ्रेंकलिन डी रोज़वेल्ट बोलते थे कि मुझे खुशी मिलती है। मेरी अचीवमेंट्स और मेरी क्रिएटिविटी में जाने वाली मेहनत से इसलिए अपनी खुशियों और अपने सपनों को छोटा बनाना बंद करो और एंटरटेनमेंट से नहीं बल्कि अपनी मेहनत और अचीवमेंट से खुद को सैटिस्फाई करो। नंबर फाइव पुअर पीपल कॉल द गेम फिक्स्ड इनस्टेड ऑफ लर्निंग के रूज़ यानी ज्यादातर पुअर लोग ये कभी भी समझ ही नहीं पाते कि अमीर होने का असली तरीका क्या होता है और क्यों उन्हें अपना माइंड सेट बदलने की जरूरत है? वो बस आगे बढ़ने की कोशिश करते हैं और जब उन्हें अपनी लाइफ में कोई ज्यादा ग्रोथ नहीं मिलती तब वो बनकर ये बोलने लगते हैं कि ये सक्सेसफुल बनने की पूरी गेम ही फिक्स्ड है। और उनकी किस्मत में पैसा और फ्रीडम नहीं लिखे। एक पुअर माइंडसेट वाले इंसान के साथ जब भी कुछ बुरा होता है तब वह दूसरों को ब्लेम करने लगता है और खुद को एक विक्टिम की तरह दिखने लगता है। जबकि एक सीट वाला इंसान उस चीज़ को स्टडी और ऐनालाइज करना शुरू करता है। रिच लोग यह जानने के लिए क्युरिअस होते हैं कि अगर वो फेल हुए तो वो होए क्यों और वो अगली बार क्या कर सकते हैं? अपनी सक्सेस को गैरन्टी करने के लिए ऑथर और स्पीकर गैरी वेन अर्चक बोलते है कि जो लोग अपनी वीकनेस इस पर ध्यान देते है ना की अपनी स्ट्रेंथ पर वो हमेशा ही अपने फेल्यर को जस्टिफाई करने के लिए एक्स्क्यूस बनाते रहेंगे। नंबर सिक्स नॉट गोइंग ऑल इन वन वॉट यू लव वेल्थ क्रिएट करने का सबसे स्ट्रेटफॉरवर्ड और तेज तरीका होता है उस चीज़ में स्पेशलिस्ट करना जिसमें ऑलरेडी आपको इन्ट्रेस्ट और नॉलेज है क्योंकि ऐसे कामों में आप पैशनेट होने की वजह से अपने हर कंप्यूटर को हरा दोगे। इवन वन ऑफ थे। मोस्ट फेमस इन्वेस्टर्स पीटर लिंच भी यही बोलते हैं कि हमें उन कंपनीज़ में इन्वेस्ट करना चाहिए जिन्हें हम डेली यूज़ करते हैं और उनकी ग्रोथ में बिलीव करते है। नंबर सेवन युअर पीपल नेवर डू एनीथिंग यूनीक यह इनसाइट आती है डॉक्टर विवेक बिंद्रा से, जो बोलते हैं कि अगर तुम बेस्ट बनने की कोशिश करोगे तो तुम नंबर वन बन जाओगे, लेकिन अगर तुम यूनीक बनने की कोशिश करोगे तो तुम ओनली वन बन जाओगे और तुमसे कोई कंपीट ही नहीं कर पायेगा। आपके यूनीक टैलेंट सिर्फ आपके पास ही है, इसलिए दूसरों की जिंदगी जीने की कोशिश मत करो और खुद के अंदर झांककर यह फ़िगर आउट करो कि आप कौन हो? नंबर एट यू अर जस्ट नॉट ऑब्सेस्ड। एक गरीब इंसान अगर सक्सेस और फ्रीडम के लिए पागल नहीं है। तो उसके पास कोई इन्सेंटिव ही नहीं होगा। कॉन्स्टेंट हार्ड वर्क और खुद को एजुकेट करने का ग्रैंड कार्डन अपनी बुक बी ऑफिसर और भी ऐवरेज में लिखते हैं कि गरीब लोग ऑब्सेशन को एक बिमारी की तरह देखते हैं। वो हमेशा एक्स्क्लूसिव बनाते रहते हैं कि वह क्यों अपनी पोटेंशिअल को रिऐलिटी नहीं बना पाए। इसी वजह से ऐवरेज लोग मुझे बोलते है, लेकिन सक्सेसफुल लोग मुझे कॉल करके मुझ से एडवाइस लेते हैं। इसलिए अपनी ऐवरेज थिंकिंग को खत्म करो और अपने ऑब्सेशन की आपको यूज़ करो। अपनी सक्सेस को फ्यूल करने के लिए।","जब आपके पैसे को गुणा करने और अमीर और अमीर बनने की बात आती है, तो इसमें कई कारक शामिल होते हैं। ऐसी चीजें हैं जो आप करते हैं और ऐसी चीजें हैं जिन्हें आपको हर कीमत पर करने से बचना चाहिए। जिनमें से अधिकांश से एक गरीब व्यक्ति अनजान होता है, इसलिए वह गरीब ही रहता है। एक विशिष्ट सफल उद्यमी या व्यवसाय गलती से अपनी स्थिति में नहीं आता है। कोई भी सफलता आकस्मिक नहीं होती। इसलिए आपको सही कदम उठाने की जरूरत है और यह पॉडकास्ट सेगमेंट इसमें आपकी मदद करेगा।" "इमोशनस की धुंध के बीच चीजों को उनके असली रूप में देखना मुश्किल होता है और तभी यही बेस्ट रेट होती है किसी को मैनिप्युलेट या फिर सिड्यूस करने के लिए। रॉबर्ट ग्रीन किसी इंसान को सिड्यूस करने का मतलब होता है उसकी रिऐलिटी को कुछ इस तरह से मैंने प्लेट करना जिससे वो आप में फिजिकल या फिर रोमैन्टिक इंट्रेस्ट लेने लगे नोर्मल्ली जब भी हम अपनी इन्टेलिजेन्स के थ्रू किसी को अट्रैक्ट करते हैं तब हम बोलते है कि सामने वाला इंसान एक्सेप्ट ही हो सेक्शुअल है। यानी वो इंटेलीजेंट लोगो से अट्रैक्ट होता है। लेकिन जब हम किसी को अट्रैक्ट करने के लिए अपनी इन्टेलिजेन्स को सिचुएशन के हिसाब से कभी कम या फिर कभी ज्यादा दिखाते हैं और झूठ भी बोलते हैं तब वो होता है प्युर साइकोलॉजिकल मैनिपुलेशन तभी रियल सिडक्शन नाइस लोगों की बस की बात नहीं होती। किसी को भी सिड्यूस करने के लिए आपको अपनी डार्क साइड की मदद लेनी पड़ती है। इसलिए इस एपिसोड में दी गई टेक्नीक्स को बहुत सोच समझकर और अपनी विजन के साथ यूज़ करना और इनकी ताकत को मिस यूज़ मत करना नाउ लेट्स बिगिन राइट विक्टिम जो लोग ओवर ली इमोशनल होते हैं, उन्हें मैनिपुलेट करना बहुत आसान होता है। इसी वजह से सिडक्शन का पर्फेक्ट विक्टिम वो होता है जो बहुत खुश गुस्सैल मेनली, फेमिनिन शि या लॉस होता है। जस्ट थिंक अबाउट एक्स्ट्रीम इमोशनल स् टेट्स चाहे वो आपको ऑलरेडी बहुत लाइक करता हो या आपको हेट करता हो, चाहे वो बहुत इनसेक्युर हो या फिर ओवर ली कॉन्फिडेंट किसी भी केस में मेक शुर की एक इंसान इमोशन से भरा हुआ है। यूश़ूअली लोग सोचते हैं कि सिडक्शन शुरू होता है, टचिंग और फिजिकल बाउंड्रीज़ को कम करने से, लेकिन असलियत में द फर्स्ट स्टेप इस ऑलवेज साइकोलॉजिकल आपको सामने वाला इंसान एक पर्टिकुलर स्टेट में चाहिए होता है ताकि वो किसी भी तरह की फिजिकल इन्वॉल्वमेंट पर सिर्फ और सिर्फ पॉज़िटिव ली रिस्पॉन्ड करें बजाय अन्कम्फरटेबल फील करने के स्टेप नंबर टू क्रिएटा फॉल सीन्स ऑफ सेक्युरिटी अगर आप शुरुआत में दूसरे इंसान को ये फील करा सको कि वह फर्स्ट स्टेप ले रहे है आपके क्लोज़ जाने के लिए तो यह चीज़ आपको उस रिलेशनशिप में एक ही पोज़ीशन देगी और ये पॉसिबल होगा। उन्हें खुद के साथ सिक्योर फील कराने से शुरू में उन्हें ज्यादा टेंशन मत दो। बहुत जल्दी किसी के आगे पीछे घूमने से उसके पास इमेजिन करने और किसी मिस्ट्री को सॉल्व करने की मोटिवेशन नहीं बचती। सिडक्शन हमेशा इनडायरेक्टली ज्यादा इफेक्टिव होता है इसलिए पहले बातों की क्वांटिटी पर नहीं, क्वालिटी पर फोकस करो। कुछ देर उनसे दीप और इवन मौका मिले तो पर्सनल बाते करो और फिर उनके लिए खुद का ऐक्सिस ब्लॉक कर दो। बस इतना इंटरेस्ट दिखाओ जिससे वो आपने इन्वेस्ट करने लगे और आपको अपने सीक्रेट्स बताने लगे हैं। स्टेप नंबर थ्री गिव मिक्स सिग्नल्स मिक्ससिंह ने उस इन्ट्रेस्ट की सिंसेरिटी को भी कॉन्वे करते हैं और दूसरे इंसान को एक साइट भी करते हैं। एक मिस्टीरीअस इंसान जो आपको क्लियरली यह नहीं पता चलने देता कि वो अपने इंट्रेस्टेड है या नहीं। वो उस इंसान से ज्यादा अट्रैक्टिव लगता है जिसके इन टेंशन्स पानी की तरह साफ होते हैं। इसलिए कभी भी अपने इंट्रेस्ट को सीधा सीधा रिवील मत करो, बस अपने इंट्रेस्ट के हिट्स दो स्टेप नंबर फ़ोर प्रूव्ड ज़िक्र एबिलिटी, किसी को भी सिड्यूस करने के लिए उनको यह एहसास दिलाओ कि आप ऑलरेडी हाइ डिमांड में हो। बहुत से दूसरे लोग भी आपको लाइक करते हैं। और आप किसी और के भी हो सकते हो। इस साइकोलॉजिकल टैक्टिक को मार्केटिंग में यूज़ करा जाता है। गंदे से गंदा प्रॉडक्ट भी अच्छे प्रोडक्ट्स से ज्यादा बिक पाता है। अगर उसे हर जगह प्रोमोट कर आ जाए तो वो ज्यादातर लोग नॉन चीजों में इन्वेस्ट करते हैं नाकि बेस्ट चीजों में आपको भी बेस्ट नहीं बल्कि बस नोन और डिजि रेबल देखना है। जीवन अगर आपके पीछे कोई नहीं है, तब भी अपनी बातों से यही एक्सप्रेस करो कि आप को कैसे इतनी अटेंशन मिलती है और आप हर किसी को अपना टाइम नहीं दे पाते। स्टेप नंबर फाइव क्रिएटर नीड पर्फेक्ट्ली, हैप्पी और सैटिस्फाइड लोगों को सिड्यूस करना इम्पॉसिबल होता है क्योंकि अगर एक इंसान खुद के साथ ही खु़श है तो वो आपके पास क्यों आएगा? इसलिए अपने टारगेट के मन में डिस्ट्रैक्शन क्रिएट करो। अगर वो सिंगल ही खुश हैं तो उन्हें रोमेंटिक मूवीज़, सोशल मीडिया पर कपल्स के अकाउंट्स या फिर रियल लाइफ एग्जाम्पल से ये दिखाओ कि सिंगल होने से बेटर तो एक रिलेशनशिप में होना होता है, उनके अंदर एक अर्जेंन्सी जगह हो ताकि वो जल्द ही अपनी नई नीड्स को पूरा करने की कोशिश करें और इन नीड्स को सिर्फ आपके थ्रू ही पूरा करें। स्टेप नंबर सिक्स इंटर देर स्पिरिट उनको समझो, उनके साथ वाइफ करो। जिन चीजों में उनका इंटरेस्ट है, उनमें खुद का इंटरेस्ट दिखाओ और उनके मूड के अकॉर्डिंग अडैप्ट करो। सिर्फ उन्हें कॉपी मत करो बल्कि वो इंसान बनो जो खुद को बनते हुए देखते हैं। एक बार जब वो आपसे इम्प्रेस हो जाए और आप के साथ खोलने लगे तब धीरे धीरे उन्हें अपनी दुनिया में लाओ। कई बार अपनी बात मनवाने के लिए पहले आपको खुद को सही साबित करने के बजाय दूसरे की बातों में हाँ मिलानी पड़ती है। स्टेप नंबर सेवन क्रीएट टेम्प्टेशन अपने टारगेट को लूभाव, उन्हें मिलने वाले प्लेजर के ख्यालों से उनकी किसी अन् रियल लाइफ फैंटसी या फिर किसी वीकनेस को ढूंढो, जिन पर उनका कोई कंट्रोल नहीं है और उन्हें उसकी तरफ कैम्प करो। हर इंसान कुछ ना कुछ डिज़ाइनर करता है। ये पता लगा हो कि आपका टारगेट हमेशा से क्या एक्सपीरियंस करना चाहता है और उसे उसी चीज़ के सपने देखा हो। स्टेप नंबर एट कीप देम इन सस्पेंस सिडक्शन काम करता है। एक इंसान के पुराने इमोशन्स और थॉट्स को न इमोशन्स और थॉट से रिप्लेस करके अगर दूसरे इंसान के थॉट्स और इमोशन्स हमेशा कॉन्स्टेंट रहते हैं तो आप कभी उन्हें मैनिपुलेट नहीं कर पाओगे, इसलिए उनके आगे कभी प्रिडिक्टेबल मत बनो। उन्हें यह फ़िगर आउट मत करने दो कि उन्हें आपसे क्या एक्सपेक्ट करना चाहिए। अगर आप हमेशा उनसे टाइम पर मिलने आते हो या फिर हमेशा टैक्स का रिप्लाइ करने के लिए अवेलेबल रहते हो तो अब एकदम से अपने रिप्लाइ इसमें डिले करना शुरू कर दो। कभी उनमे इंटरेस्ट दिखाओ और कभी गायब हो जाओ और उन्हें ऐसा फील कराओ कि आपको तो उनकी बिल्कुल परवाह ही नहीं है और अगर वो आपसे इस बदलते बिहेव्यर के बारे में पूछें तो सीधा मना कर के हर ऐक्विज़िशन को डैनी कर दो। स्टेप नंबर नाइन डी सम डैम विथ स्ट्रैटिजिक वीकनेस ज्यादातर लोग अपनी कमियों और कमजोरियों को छुपाते हैं, जिसकी वजह से उन पर ट्रस्ट करना बहुत मुश्किल होता है। लेकिन जब आप किसी को अपनी मिस्टीरीअस पर्सोना के बावजूद उनके आगे अपनी कुछ कमियों या फिर कमजोरियों को रिवील कर देते हो तब उनका बचा कुचा डाउट या फिर शक भी खत्म हो जाता है। ये चीज़ आपको ह्यूमन इस करती है और उनमें आपके टुवार्ड्ज़ रिस्पेक्ट को बढ़ाती है। स्टेप नंबर 10 कॉंप्लिमेंट देर इन सिक्युरिटीज़ किसी को भी खुद से गोंद की तरह अटैच करवाने के लिए उनकी इन सिक्युरिटीज़ की तारीफ करो। अगर उन्हें अपने बाल नहीं पसंद तो उनके बालों की तारीफ करो। अगर उन्हें अपनी आवाज अच्छी नहीं लगती तो उनकी आवाज के दीवाने बन जाओ। हर कोई खुद को एक्सेप्ट और खुद से प्यार करना चाहता है और जो भी इंसान उन्हें उनकी खूबसूरती की याद दिलाता है वो उसके दीवाने बन जाते हैं। इसलिए उनके फ्लोर इन सेक्युरिटीज़ को ढूंढो और उन्हें खुद में कॉन्फिडेंस फील कराके उन्हें एम्पॉवर करो। स्टेप नंबर 11 मास्टर द आर्ट ऑफ बोल्ड मूव इस पौंड तक अगर दूसरा इंसान ऑलरेडी आपके प्यार में पागल नहीं हो गया है और पक्का आपने कोई स्टेप मिस कर दिया है? हाउएवर अगर आपकी गेम ट्रैक पर है तो अब सही समय है फिज़िकली उनके क्लोज़ आने का, उन्हें सोचने का समय मत दो और कोई कॉनफ्लिक्ट क्रिएट करो जैसे एक रैन्डम आर्ग्यूमेंट जैसे शांत करने का सल्यूशन होगा। आपका बोल्ड मूव फॉर एग्ज़ैम्पल अगर आप अभी तक शुरुआत के शर्मीले फेस में हो और आपने उन्हें कसकर हक भी नहीं करा हैं तो उन्हें इस मोमेंट में हक करो। अगर आपने उन्हें किस नहीं करा है तो किस करने की शुरुआत करो। अपने मूव को इनिशिएट करने के बाद भी मन में उस ऐक्शन को रोकने की तैयारी रखो। जैसे अगर वो इंसान अभी इंटिमेट होने के लिए रेडी नहीं है तो वो आपके क्लोज़ आने पर थोड़ा हेसिटेंट होने लगेगा। ऐसे केस में आपको अभी थोड़ा समय और रुकना चाहिए ताकि वो खुद आपके साथ और ज्यादा खुले हैं लेकिन अगर वो रेडी है तो आपको पास आते देख वह भी आपको मिरर करके दूरी को कम करने लगेंगे और आपसे सिड्यूस हो जाएंगे ऑफ कोर्स। आप पहली कोशिश में हर चीज़ पर्फेक्ट्ली नहीं कर पाओगे बट अगर आप ऐक्चुअल में इंट्रेस्टेड हो ह्यूमन बिहेव्यर को समझने के लिए तो आप फिजिकल इंटिमेसी के अलावा बाकी सारे स्टेप्स को किसी भी इंसान पर आजमा सकते हो। फिर चाहे वो आपका फ्रेंड हो कोलीग या फिर बॉस आप आउट ऑफ सिडक्शन को यूज़ कर सकते हो। किसी से भी अपनी बात मनवाने और उनको खुद के पीछे पागल करने के लिए।","किसी को बहकाना उनकी वास्तविकता में इस तरह हेरफेर करना है कि वे आप में रोमांटिक और शारीरिक रुचि लेने लगें। इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम चर्चा करेंगे कि अंधेरे मनोविज्ञान का उपयोग करके किसी को कैसे आकर्षित किया जाए।" "लोग बोलते है कि फीमेल्स को समझना नामुमकिन है, लेकिन यह सिर्फ उन्हीं लोगों का दावा होता है जो सोचते ज्यादा हैं और महसूस कुछ नहीं करते। वो अपनी बुद्धि को तो अपना देवता मानते हैं, लेकिन अपनी बाकी शरीर की विस्डम को अपना नौकर। इसलिए ये एपिसोड बुद्धि और लॉजिक को पकड़े रहने से नहीं बल्कि मन को शांत करने से समझ आएगा। फेमिनिन को समझने का सिर्फ यही उपाय है। इसलिए अब सीधा बात करते हैं उन क्वॉलिटीज की जो आपको यह इंडिगेशन देंगी कि एक फीमेल की कौन सी चीज़ है, उसे एक आइडियल पार्टनर बनाती है। नंबर वन शी इस ब्यूटीफुल इन्साइड आउट ब्यूटी और ट्रुथ में ज्यादा अंतर नहीं है। अगर आप इन पर मेडिटेट करो तो आप यह समझ जाओगे कि ये दोनों एक ही चीज़ है। इसी वजह से इंसान ब्यूटी को इतनी ज्यादा वैल्यू देता है। हमें ब्यूटीफुल पेंटिग्स पसंद आती है। ब्यूटीफुल आर्किटेक्चर हमारे होश उड़ा देता है। दीवारों पर बनी महान लोगों के द्वारा बनाई कलाकृति हमें धरती पर ही स्वर्ग के दर्शन दिला देती है और एक ब्यूटीफुल इंसान भी हमें सुप्रीम ग्रोथ यानी परम सत्य की याद दिलाता है। जो लोग खुद ब्रेनवॉश और अपनी ब्यूटी की रियलाइजेशन से दूर होते हैं। और दीप इनसाइड खुद अगली फील करते हैं। वो ब्यूटी को ऐसे ट्रीट करते है जैसे वह कोई बहुत सुपर फेशियल और बुरी चीज़ है। आपको ऑलमोस्ट सेम करा जाता है ब्यूटी की तारीफ करने के लिए, लेकिन इवन ऐसे लोगों का भी एक्सपिरियंस उनकी बातों से मेल नहीं खाता, क्योंकि ब्यूटी का एक्सपिरियंस ही कुछ ऐसा होता है कि वो हमें अपने आगे इतना छोटा और कमजोर महसूस कराती है, लेकिन साथ साथ हमें अपने असली घर की भी याद दिलाती है और ब्यूटी स्पेसिअली फीमेल्स के केस में ज्यादा इम्पोर्टेन्ट इसलिए मानी जाती है क्योंकि ब्यूटी उन्हें इन ट्रैन्सिट के लिए वैल्यूएबल बनाती है। एक फीमेल की ब्यूटी पूरी दुनिया के खजाने से तो ली जा सकती है। हमारा दिमाग इस बात को इंकार कर सकता है लेकिन दिल यानी हमारे इमोशन्स और बायोलोजी नहीं। इनर और आउटर ब्यूटी का मतलब ये होता है कि एक इंसान डिवाइन के टच में है या एट लिस्ट? वो उसका एक रिमाइंडर है, नंबर टू शी ब्रिंग्स आउट है और पोटेंशिअल हमेशा से ये बोला गया है कि हर ग्रेट आदमी के पीछे एक औरत होती है। लेकिन आज कल लोग इस बात की डेथ ना समझ पाने की वजह से इसे बस एक डायलॉग से ज्यादा कुछ नहीं मानते। पर फेमिनिटी का नेचर ही मल्टिप्लिकेशन है। एक फेमिनिन फीमेल को एक दो तो वो उसे मल्टीप्लाई करके पूरा बच्चा बना देती है, ईटों की बिल्डिंग को घर बना देती है, फल सब्जी दो तो उसकी मील बना देती है और ऐसे ही अगर आप उसे अपनी अच्छा ई और नेक इरादों की झलक दिखा दो तो वो उसे भी एम्प्लिफायर कर देती है। इस तरह की फीमेल जो फेमिनिटी की ऐक्चुअल स्ट्रेंथ जानती है बजाए उसे वीक समझने के वो आपकी आँखों में आँखें डालकर आपको क्लियरली बता देगी कि आपका गलत हो और कब आप बस खुद को डाउट कर रहे हो और आपकी पोटेंशिअल तो इससे बहुत ज्यादा है। एक मेल इस तरह की फीमेल के साथ होने पर पूरी दुनिया से लड़ जाता है। बिना ऐसी फीमेल के मेल्स के करेक्टर में कोई डेथ ही नहीं आती क्योंकि मैस्कुलिनिटी बी नेचर शैलो होती है। अगर मैस्कुलिनिटी पहाड़ों की ऊँचाई है तो फेमिनिटी घाटियों की गहराई है। बिना घाटियों के पहाड़ों की कोई औकात ही नहीं होती। बिल्कुल ऐसे ही एक फीमेल जो आपको हमेशा बेहतर बनाने के लिए पुश करती है, उसकी वैल्यू प्राइसलेस है और ऐसी फीमेल को कभी भी अपने हाथ से मत जाने दो। नंबर थ्री शी डस नॉट कंप्लीट शी कॉम्प्लिमेंट्स पिछले पॉइंट में दिए मेटाफोर से ही आपको एड़ी पर लेवल पर ये बात समझ आ गई होगी कि मेल और फीमेल या मैस्कुलिन और फेमिनिन एक दूसरे के कॉंपिटिटर्स नहीं, बल्कि वो एक दूसरे को कॉम्प्लिमेंट करते हैं। दिन और रात या सूरज और चाँद की लड़ाई नहीं होती बल्कि ऐसे ऑपोजिट तो एक दूसरे के सनातन साथी होते हैं। उनका प्यार एक्टर्नल है लेकिन जो इंसान सोसाइटी की बातों में आकर इन गहरे सचो को भूल जाता है वह इस धरती पर रहने वाले अपने ही भाई बहनों को काटने लगता है और यह समझ ही नहीं पाता कि दूसरे लोग उससे अलग नहीं है। बिल्कुल ऐसे ही अगर एक फीमेल बहुत ज्यादा मैं स्कूल इन बन गई है और उसे दूसरों को हराने से ज्यादा इम्पोर्टेन्ट चीज़ कुछ नहीं दिखती तो ऐसी फीमेल, एक अच्छी पार्टनर तो क्या वो सोसाइटी के लिए भी एक बुरी इन्फ्लुयेन्स होती है? मैं स्कूल इनका स्वभाव कुछ ऐसा ही होता है कि उसके साथ घमंडी बनाना बहुत आसान होता है। अगर उसे बैलेंस ना करा जाए तो? इसी वजह से अगर आपकी पार्टनर आपकी लाइफ में वैल्यू ऐड करने के बजाय आप को हराने की कोशिश करती रहे तो यहाँ पर टीम वर्क और ऑपोजिट का मिलन नहीं बल्कि उनका टकराव होगा। नंबर फ़ोर शीशा बैलेंस ऑफ काइंडनेस इन बोल्डनेस क्योंकि बहुत से लोग यह सोचते हैं कि अगर एक इंसान काइन्ड है तो उसका मतलब वो पक्का वीक होगा, लेकिन असलियत में एक स्ट्रॉन्ग करेक्टर वाला इंसान वो होता है जिसका दिल सॉफ्ट होता है लेकिन माइंड हार्ड यानी इमोशनली। वो दुनिया के हर इंसान के दुख को समझ पाता है और उनकी बिना सेल्फिश हुए मदद भी कर सकता है। लेकिन अगर कोई उसका फायदा उठाने की कोशिश करे या उसके प्यार करने वालों को तंग करे तो वो उससे भी नहीं छोड़ता। एक फीमेल जिसके अंदर इन दोनों क्वालिटीज का बैलेंस होता है वो एक आइडियल फीमेल होती है क्योंकि वो आपकी प्रॉब्लम को भी समझेगी, लेकिन किसी ज़रूरी बात पर स्टैंड लेने से भी नहीं डरेगी। एक फीमेल जो सिर्फ आपसे आर यू करती रहे और आपको हर जगह पर गलत बोले, वो भी आपकी ग्रोथ में बाधा लाएगी और एक फीमेल जो सिर्फ पैसिवली आपकी डाटो को सुनती रहे वो भी इसलिए बैलेंस को ढूंढो। नंबर फाइव शी हेल्प्स यू वेन यू आर डाउन कई फीमेल्स एक इंसान के वीक करेक्टर और उसके बस एक वीक फेस में डिफरेन्स नहीं बता पाती, जिसकी वजह से वो एक ऐसे इंसान को उसके लोवेस्ट पॉइंट पर ये समझकर छोड़ देती है। ये उसके वीक करेक्टर की निशानी है, जबकि असलियत में ये बस उसका एक बुरा फेस था। ऐसी फीमेल्स बिल्कुल भी रिलाएबल नहीं होती और उन पर ट्रस्ट करना बेवकूफ़ी है नंबर सिक्स शी सारा इडाइ पार्टनर जो चीज़ एक फीमेल को एक मेल की नजर में बहुत अट्रैक्टिव और वैल्युएबल बनाती है, वह है उसकी सबसे ऊंचे स्तर की लॉयल्टी। क्योंकि जितना लॉयल एक फीमेल उस इंसान के लिए हो सकती है जिससे वह प्यार करती है, वैसी लॉयल्टी दुनिया में और कहीं नहीं दिखती। जब एक फीमेल प्यार में होती है तब वो अपना पूरा ट्रस्ट और फोकस सिर्फ एक ही इंसान पर ले आती है और उसके साथ हर उतार चढ़ाव में खड़ी रहती है। इसका एक बहुत बड़ा हिस्सा होता है एक मेल खुद क्योंकि अगर एक मेल के बारे में कुछ भी यूनीक नहीं है और ना ही उसमें कुछ बढ़ाकर दिखाने की पोटेंशिअल है तो ये क्लियर सी बात है कि एक फीमेल क्यों ही उसकी राइड आइ पार्टनर बनेगी वो आज होगी और कल चली जाएगी। इसलिए एक फीमेल में ऐसा भाव जगाने की रिस्पॉन्सिबिलिटी उसके पार्टनर की ही होती है और जब आप ये कर पाओ तब ऐसी पार्टनर को छोड़ना बेवकूफ़ी होगी। नंबर सेवन इन्स्पाइअर्ड यू मेल्स के लिए फीमेल से बड़ी इनस्पिरेशन कुछ नहीं है सर ऑफिस लेवल पर हम सोचते हैं कि नहीं? असली मोटिवेशन तो पैसा और पैसे से खरीदे जाने वाली चीजें है। लेकिन अगर हम साइन्टिफिक व्यूस से देखें तो पैसा कमाने का और स्टेटस हासिल करने का में न वैल्यूएशन रीज़न भी सैक्शुअल ऑपर्च्युनिटी हासिल करना और एक हाई क्वालिटी पार्टनर को अट्रैक्ट करना ही है। इसलिए एक मेल पूरी दुनिया का ज़ोर लगा देता है सक्सेसफुल होने के लिए ताकि उसे अपनी सपनों की फीमेल मिल जाए और जब वह उसे मिल जाती है तब भी उस मेल की जर्नी खत्म नहीं होती। क्योंकि फिज़िकली एक फीमेल को पोज़ एस करना बहुत डिफरेंट होता है उसकी ब्यूटी के ट्रैन्सेन्ड पार्ट को पोस्ट करने से क्योंकि यह चीज़ पॉसिबल ही नहीं है। ब्यूटी का शुरुआती छोर फिजिकल हैं, लेकिन उसका दूसरा छोर ढूँढते ढूँढते एक मेल अपनी पूरी जिंदगी काट सकता है और उसे फिर भी वो नहीं मिलेगा। लेकिन यही चीज़ यही एक्स्प्लोरेशन यही फेमिनिन मिस्ट्री को धीरे धीरे समझने की प्रक्रिया ही मेल्स को डीपी फुलफिल करती है और बेहतर बनने के लिए इंस्पायर करती है। नंबर एट प्ले फुल नेस क्योंकि एक आइडियल मेल बी नेचर रिबेलियस होता है और ऑलमोस्ट पूरी दुनिया उसके अगेन्स्ट होती है, जिसकी वजह से उसे खुद को बाहर से बहुत कठोर बनाना पड़ता है। लेकिन जब एक फीमेल की फेमिनिटी की शक्ति और सुंदरता एक मेल को छूती है तब उस मेल के अंदर भी खेलने और प्यार करने वाला पार्ट सक्रिय होने लगता है और वह भी अपनी कठोरता से कुछ समय के लिए छुटकारा पाकर एक बच्चा बन पाता है। फेमिनिटी के इस खेल में भी बहुत डेथ होती है क्योंकि एग्ज़िस्टन्स सबसे फन्डामेंटल लेवल पर एक लड़ाई नहीं बल्कि वो बस एक खेल या एक नाच है। इसी तरह से एक फीमेल एग्ज़िस्टन्स और एक मेल कि मटिरीअलिस्टिक नेचर के बीच के पुल का काम करती है। फेमिनिटी की पावर्स अटल होती है और वो किसी को आसानी से दिखती नहीं है। इसलिए हर इंसान सिर्फ मैस्कुलिनिटी को ज्यादा प्रेस करता है, लेकिन अगर हम एक सेकंड के लिए भी इमेजिन करें कि हमें सिर्फ पैसा दे दिया जाए लेकिन दुनिया से म्यूसिक, ब्यूटी इनस्पिरेशन प्यार और मिस्ट्री गायब हो जाए तो हमारे पास जिंदा रहने के लिए कोई वजह ही नहीं होगी। यही पावर हैं की। इसलिए अगर एक मेल को ऐसी फीमेल मिल जाए जो अपनी इस पावर को यूज़ करना जानती है तो उसके लिए उसे छोड़ना तो दूर उससे एक सेकंड के लिए भी जुदा हो पाना बहुत मुश्किल हो जाएगा।","ज्यादातर लोग सोचते हैं कि एक स्वस्थ, प्यार भरा, गहरा और दीर्घकालिक संबंध केवल परियों की कहानियों में ही संभव है लेकिन यह केवल एक बहाना है कि आप उन सभी कामों को न करें जो आपको दूसरों के लिए अधिक वांछनीय बनाते हैं और आपके संभावित भागीदारों की संख्या बढ़ाते हैं। तो, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम उन गुणों पर ध्यान देंगे जो एक महिला को एक आदर्श साथी बनाते हैं और आपको ऐसी महिला को कभी जाने क्यों नहीं देना चाहिए।" "इमोशनस फ़ोन में आई नोटिफिकेशन की तरह होते हैं जो हमारा ध्यान खींचते है। हमें सर टन इन्फॉर्मेशन देते हैं और उस पर ऐक्शन लेने को बोलते हैं। अगर कोई चीज़ खुशी दे तो हमें लगता है कि हम वो कामौर करें लेकिन अगर कोई चीज़ दुख या फिर दर्द दे तो हम खुद ही उस चीज़ से दूर हो जाते हैं। लेकिन नोटिफिकेशंस की ही तरह हर इमोशन, यूज़फुल और हमारी अटेन्शन के लायक नहीं होता। बहुत बार तो हमारे इमोशनस हमें गाइड करने से ज्यादा डिस्ट्रैक्ट करते हैं मगर ये डिस्ट्रैक्शन उसी इंसान का ध्यान खींचती है जो पहले से ही डिस्ट्रैक्ट होने के बहाने ढूंढ रहा होता है। अगर एक इंसान जो खुद अपनी पोटेंशिअल के आसपास भी नहीं होता तो जब वो किसी रिलेशनशिप में आता है लेकिन उसकी या दोनों पार्टीज़ की इन मेच्युरिटी की वजह से उनका ब्रेकअप हो जाता है तब वो बहुत ज्यादा डिप्रेस्ड फील करता है और अपने नेगेटिव इमोशन्स और प्यार दोनों को ही यूज़लेस बोलकर रिजेक्ट कर देता है। यह चीज़ मॉडर्न और यंग लोगो के लिए बहुत रिलेटेबल होगी क्योंकि इमोशनल डेप्थ और सेल्फ अवेर्नेस ना होने के कारण उनको चोट लगना तय है और जब एक इंसान एक बार गड्ढे में गिरे तो वो दूसरी बार काफी सावधानी से चलता है। जिंस गड्ढे में हम गिरते हैं, वो होती है हमारी इग्नोरेंस यानी हर वो चीज़ जिसे हमने समझना जरूरी नहीं समझा होता और इस गड्ढे को अवॉर्ड करने का मतलब है उन चीजों को फिर से इग्नोर कर देना जिन्होंने पिछली बार भी हमें नुकसान पहुंचाया था। ज्यादातर लोग ऐसे ही जीते हैं। पहले तो वो ये नहीं समझते कि असली प्यार, असली रिलेशनशिप या असली दोस्ती क्या होती है और जब एकाद बार उनका दिल टूट भी जाए तो वो सीधा ये डिक्लेर कर देते हैं कि वो इमोशनल लैस होना चाहते हैं। लेकिन ये एक बेवकूफ़ी और नादानी है। खुद की बायोलोजी पर्सनैलिटी और लिविंग एक्सपिरियंस को रिजेक्ट करने का मतलब है कि अब वो चीज़ आपके कंट्रोल में नहीं बल्कि आप उसके कंट्रोल में हो। यह प्रॉब्लम लड़कों में ज्यादा और लड़कियों में कम होती है। लड़कियों को अपने इमोशन्स को फील करने के लिए उन्हें टोका नहीं जाता जिसकी वजह से वह नेचर के ज्यादा करीब होती है। लेकिन लड़कों के इमोशनल होने को काफी नेगेटिव चीज़ की तरह देखा जाता है क्योंकि सोसाइटी जितनी एक्सपेक्टेशन्स लड़कियों से रखती है उतनी ही एक्सपेक्टेशन्स वो लड़कों से भी रखती हैं और इन एक्सपेक्टेशन्स की एक गुड साइड भी होती है। और डार्क साइड भी। गुड साइड ये है कि आपको कहीं रूस दिए जाते हैं ताकि दुनिया की कॉम्प्लेक्सिटी एक बारी मैं आपके आगे बम की तरह ना फटे और आपके पास एक स्टैन्डर्ड लाइफ जीने के लिए टूल्स हो जिससे आपको मीनिंग मिल सके। लेकिन इसकी बुरी साइड यह है कि ये रूज़ या एक्सपेक्टेशन्स आपकी ग्रोथ को रोकते हैं। मेल्स का सोसाइटी में रोल होता है सोल्जर बनकर देश को सुरक्षित रखना, बिजली के खंभों पर चढ़ना, ताकि हर घर में बिजली आती रहें अपने घर को चोट, सरकारों से बचाना अगर उनके बीवी बच्चों के साथ कोई बदतमीजी करें तो उसकी खबर लेना, अपनी जान जोखिम में डालकर ऊंची ऊंची इमारतें बनाना या फिर खतरनाक सुरंगें बनाकर शहर को पानी या गैस पहुंचाने वाले पाइपों को डालना बिना अपने डरो की आवाज सुनें ताकि दूसरे लोग चैन से रह सके और ऑब्वियस सी बात है। अगर इन सब कामों के बीच एक आदमी इमोशनल हो जाए तो वो सिर्फ अपनी ही नहीं बल्कि दूसरों की जान भी जोखिम में डालेगा। अगर एक सिपाही बॉर्डर पर अपने मरते हुए भाइयों के शरीर को देखकर रोने लगे तो उसके इस सेक्शन से पूरा देश खतरे में पड़ सकता है। यही रीज़न है कि क्यों? और इमोशन्स को एक दूसरे के ऑपोज़िट समझा जाता है क्योंकि इमोशन्स मैं स्कूल ऐंड ड्यूटीज की रुकावट बनते हैं। जब बात हो जिंदगी और मौत की और दूसरों की सेफ्टी की तो इमोशनस नहीं बल्कि साहस और लॉजिक काम आते हैं। पर हम सब हर समय ही जिंदगी और मौत वाली सिचुएशन में नहीं होते हैं और ऐसे में जब हम लंबे समय तक इमोशन्स को इग्नोर करते हैं तब हम खुद की नैचर और सच से दूर होने लगते हैं। मेरा मैसेज स्पेशल ईमेल्स के लिए हमेशा यही होता है कि रोना या इमोशनल होना गलत नहीं है। बल्कि मैं तो कहता हूँ कि खुद को खुल के रोने दो और पागलों की तरह हंसने दो, पर खुद को इन इमोशन से इन्फ्लुयेन्स मत होने दो। अगर आप अभी गुस्सा महसूस कर रहे हो तो यह इमोशन बहुत आसानी से आपकी थिंकिंग कपैसिटी को ब्लॉक कर सकता है और आपको गलत डिसिशन लेने की तरफ धकेल सकता है। अगर आप बहुत ज्यादा खु़श हों तब भी इस इमोशन के कंट्रोल में आकर आप इंपल्सिव डिसिशन्स लोगे जो आपको बस शोर्ट टर्म में प्लेजर देंगे लेकिन लॉन्ग टर्म में आप उन्हें करोगे इसलिए इमोशन्स को बुरा मत बोलो। वो तो बस आपको नोटिफाई कर रहे हैं। तो वो बता रहे हैं कि एक्सटर्नल दुनिया से इंटरैक्ट करने पर आपकी बॉडी में कुछ हलचल हो रही है पर अपनी ड्यूटी को निभाना बिना इस हलचल की परवाह करे। ये बहुत बेहतर होता है बजाए अपने इमोशन्स को कभी फील हीना करने के जीवन जवानों में भी जो अपने आस पास मौत और इंसान की सबसे बुरी साइड को अपनी आँखों के सामने देखते हैं उनमें पीटीएसडी यानी पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसॉर्डर होना बहुत कॉमन है। ऐसे इंसान के इमोशन्स बार बार उसके मन में चीख रहे होते हैं और उसे याद दिला रहे होते हैं। तुम्हारे साथ क्या हुआ, उसके बारे में सोचो और उसे समझो। लेकिन इतने दर्द की वजह से ऐसा इंसान अपने इन्हीं नेगेटिव इमोशन्स की आवाज से दूर भागता रहता है और इन्हें दबाता है। लेकिन चाहे वो बॉर्डर पर लड़ना हो या फिर ब्रेकअप या किसी बड़े लॉस के बाद भी अपने करियर पर फोकस करना हो, अगर कोई काम जरूरी है लेकिन दर्दनाक या घबराहट पैदा करने वाला है तो कोई बात नहीं। रोते रोते उसे पूरा करो। रोने वाले के ऑब्ज़र्वर बनो, ये मत बोलो कि आप दुख फील कर रहे हो बल्कि यह बोलो कि दुख आपकी बॉडी में कुछ समय के लिए आया है। और वो कुछ समय बाद चला भी जाएगा। दुख बुरा नहीं है, खुद को दुखी बोलना बुरा है इसलिए इमोशनलेस बनने को अपना गोल मत बनाओ। आप कोई रोबोट नहीं हो आप मैं जिंदगी के डीपेस्ट इक्स्पिरीअन्सिज़ को अपने एक एक्सेल में फील्ड करने की पोटेंशिअल है। इमोशनलेस लोगों में कोई लाइफ फोर्स या फिर जिंदगी का रस थोड़ी होता हैं। उनकी जिंदगी भी फीकी होती है और उनकी बातें भी। लेकिन एक इमोशनल इंसान सच के ज्यादा करीब होता है क्योंकि सच को जानना इतना भयानक होता है कि हम उसे अपने भीतर समेट ही नहीं पाते हैं और हम रोना या फिर रोते रोते हंसना चालू कर देते हैं, जिसकी वजह से हर इंसान और स्पेशल ईमेल्स को इमोशनल तो होना चाहिए लेकिन उन इमोशन्स को अपने दिमाग पर हावी नहीं होने देना चाहिए। कुछ इस तरह से दिखता है एक मेल जिसमें मैस्कुलिनिटी और फेमिनिटी का बैलेंस होता है और यही आई डी एल मेल होता है।","हमारी भावनाएँ बाहरी या आंतरिक उत्तेजनाओं पर स्वायत्त प्रतिक्रियाएँ हैं जो हमें कार्रवाई करने के लिए प्रेरित कर सकती हैं। लेकिन कभी-कभी हमारी भावनाएं हमारी मदद करने और मार्गदर्शन करने के बजाय हमें विचलित करने लगती हैं। आप एक दिल टूटने का अनुभव कर सकते हैं या अपनी नौकरी खो सकते हैं, और आपकी भावनाएँ आपको हमेशा सबसे खराब महसूस कराएँगी, इसलिए आप तय करते हैं कि आप कुछ भी महसूस नहीं करना चाहते हैं और आप भावनाहीन होना चाहते हैं। लेकिन यह सबसे बचकाना और बेवकूफी भरा काम है जो आप अपने साथ कर सकते हैं। भावहीन होना अपने आप को और उसमें निहित हर चीज को अस्वीकार करने जैसा है, अर्थात आपका व्यक्तित्व, विचार, विश्वास और आपका अस्तित्व। तो, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम चर्चा करेंगे कि अगर भावनाहीन होना सही कदम नहीं है तो हमें क्या करना चाहिए।" "अपनी बुक चाणक्य नीती में आचार्य चाणक्य ने जिंदगी के ऑलमोस्ट हर पहलू की नॉलेज दी है और बताया है कि जीवन जीने का सही तरीका क्या होता है। चाणक्य को भारत के अबतक के सबसे महान थिंकर्स और फिलॉसफर्स में से एक माना जाता है और तभी आज हम उन्हीं की टीचिंग में दिए साइकोलॉजिकल लाइसेंस को समझेंगे। नंबर 10 जो इंसान अपनी फैमिली से जरूरत से ज्यादा अटैच्ड हैं, वो डर और दुख एक्सपिरियंस करता है क्योंकि हर सफरिंग की जड़ अटैचमेंट ही है। इसलिए हर इंसान को खुशी हासिल करने के लिए अटैचमेंट से दूर रहना चाहिए। ये चीज़ हमारे कल्चर में बहुत कॉमन है कि हमारी फैमिली में हेल्थी बाउनड्रीज़ गायब होती है। को हमेशा यह जानना होता है कि उनके बच्चे क्या कर रहे हैं, उनके मन में क्या चल रहा है, वो क्या खा रहे हैं, क्या पहन रहे हैं और किस से बात कर रहे हैं? साइकोलॉजी में इस बिहेव्यर को बोलते हैं इन्वेस्टमेंट और जहाँ एक हद तक इतना कन्सर्न्ड फैमिली होने के नाते सही सुनाई पड़ता है, वहीं अगर फैमिली मैं किसी भी इंसान का ऐसा बेहेवियर 24 घंटे और सातों दिन चलता रहता है तो उनकी वो अटैचमेंट उन्हीं के दुख का कारण बन जाती है, क्योंकि जो भी इंसान अपनी फैमिली से जरूरत से ज्यादा अटैच्ड होता है और उनकी खुद की कोई लाइफ, फैशन या दोस्त नहीं होते। वो दूसरों के बिना खोखला और अकेला फील करते हैं। यही रीज़न है की क्यों चढ़ा के बोलते है की अटैचमेंट को प्यार के नकाब के साथ ढक कर अपने आप को वीक मत बनाओ। नंबर नाइन जीस तरह से एक आईना एक इंसान को उसकी शक्ल दिखाता है। उसी तरह से एक इंसान की पर्सनैलिटी दिखाता है उसका फ्रेंड सर्कल। चाणक्य बोलते है कि अगर आपके दोस्त आपको बेहतर बनने के लिए एक्सपाइर नहीं करते और आपसे बस अपना मतलब निकालते रहते हैं, उनके साथ हैंगआउट करना आपकी बेवकूफ़ी है। चाणक्यनीति में वह लिखते हैं कि जो भी इंसान आपके साथ हर खुशी गम त्योहार और दुश्मन के हमले से शुरू हुई क्राइसिस में रहता है और मरते दम तक आपका साथ नहीं छोड़ता। वो आपका असली दोस्त है, जबकि जीस इंसान की सोच और नियत दोनों ही गंदे हैं और उसके साथ आपको कभी भी अच्छा महसूस नहीं होता तो चान्सेस है कि वह एक बहुत बेकार दोस्त है और उसके साथ आप भी अपना टाइम वेस्ट कर रहे हो। यहाँ तक कि अगर आप ये ऐनालाइज करना शुरू करोगे कि किस तरह से आप का फ्रेंड सर्कल आपको सब कॉन्शस ली, एक बेहतर यह बुरा इंसान बनने की तरफ धकेलता है, तब आप रेला इस करोगे कि आपकी संगत आपकी पर्सनल ग्रोथ में कितना बड़ा रोल निभाती है। नंबर एट शरीर के कोने कोने में थकान के होने और बदलते मौसम में भी काम करते रहना और इसके बाद भी हर सिचुएशन में सैटिस्फाइड रहना। ये ऐसी तीन क्वालिटीज हैं जो हमें एक गधे से सीखनी चाहिए। यहाँ पर चाणक्य बोल रहे है की जीस जानवर को हम इतना बेवकूफ समझते हैं। उसके जीने के तरीके में भी विज़्डम है और बिल्कुल एक डोंकी की ही तरह हमे भी अपना लोड बिना कम्प्लेंट के उठाना चाहिए क्योंकि जो भी हमारी रिस्पॉन्सिबिलिटी है, उसे पूरा करना हमारी ड्यूटी है और असली हिम्मत है इस सफरिंग भरे प्रोसेसर में खुशी और मीनिंग ढूंढना बिना इस ऐटिट्यूड के कोई भी इंसान बिना अपने अंदर कड़वाहट भरे जिंदगी जी ही नहीं सकता। नंबर सेवन जीस इंसान का मन स्थिर नहीं रहता, वो ना तो दूसरे लोगों के बीच खुशी ढूंढ पाता है और ना ही अकेले। जब वो अकेला होता है तब उसे दूसरों का साथ चाहिए होता है और जब वह दूसरों के साथ होता है तब उसे अकेले रहने का मन करता है क्योंकि जो भी इंसान अपने मन को कंट्रोल करने में फेल हो जाता है तब उसका मन उसे कंट्रोल करना शुरू कर देता है। तो जब वो दूसरे लोगों के साथ होता है तब ना तो वो उनके साथ खुलकर बात कर पाता या अपने रैन्डम थॉट्स की वजह से उनकी बातों पर ध्यान दे पाता है। जिससे उसे क्लोज़ रिलेशनशिप बनाने में बहुत मुश्किल होती है और जब वो अकेला होता है तब भी उसका मन उसे सता रहा होता है, क्योंकि जो थॉट्स और मेमोरीज़ उसके मन में आती है, वो यूज़्वली नेगेटिव ही होती है। इसलिए ध्यान लगाकर या फिर रेगुलरली कुछ समय अकेले बिताकर अपने मन को शांत करना सीखो। नंबर सिक्स डर को अपने नजदीक मत आने दो। अगर ये नज़दीक आये तो इस पर हमला कर दो यानी डर से दूर मत भागो बल्कि इसका सामना करो। यहाँ आचार्य चरक के अपने ऑफिसर्स को फेस करने की इम्पोर्टेन्स को दर्शा रहे हैं क्योंकि डर एक ऐसी चीज़ होती है जो अगर एक बार हमारे दिमाग में बैठ जाए तो वो बस हमारे अंदर बैठी बैठी बढ़ती रहती है। इस तरह का डर पूरी तरह से साइकोलॉजिकल होता है और तभी ये हमारी लाइफ के हर एरिया को इम्पैक्ट करता है। एग्जाम्पल के तौर पर अगर आपको किसी इंसान से बात करनी है और उसे अपना दोस्त बनाना है, लेकिन आपके दिमाग में डर आ गया है कि आपको वो इंसान जज तो नहीं करेगा तो ऐसे समय पर आप जितना सोचोगे और जितनी देर कोई ऐक्शन नहीं लोगे, उतना ही आपका डर बढ़ता चला जाएगा। इसलिए जैसे ही आपके अंदर डर आए ऐसे वैसे ही मार दो नंबर फाइव एक अच्छे से खेला हुआ खुशबू से भरा फूल अपने आप में काफी होता है। पूरे गार्डन को महकाने के लिए बिल्कुल ऐसे ही एक होशियार और सक्षम बच्चा काफी होता है। पूरे परिवार की जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए यहाँ चाणक्य एक ऐसे बच्चे को बड़ा करने की बात कर रहे हैं जो इतना लायक हो कि वह अपने साथ साथ पूरे परिवार को भी आगे बढ़ा सकें। वो बोलते है कि ज्यादा क्वांटिटी में ऐसे बच्चे पैदा करने का कोई फायदा नहीं है, जो बस परेशानियां और दुख बढ़ाते हैं, बल्कि एक ऐसा बच्चा अकेला ही काफी होता है जिसके अंदर कुछ कर दिखाने की भूख और उस पर ऐक्शन लेने की हिम्मत होती है। बिल्कुल वैसे ही जीस तरह से एक सूखी पत्ती पूरे आंगन को जलाकर राख में बदल सकती है। एक नालायक बच्चा, एक परिवार की पूरी हिस्टरी और फ्यूचर दोनों को ही मिट्टी में मिला सकता है। नंबर फ़ोर जो तुम्हारी बात सुनते हुए इधर उधर देखे उस पर कभी विश्वास मत करो क्योंकि ऐसे इंसान पर ट्रस्ट करना बहुत मुश्किल होता है। जो बात आप से करें लेकिन साथ ही साथ कुछ न कुछ सोचता रहे, ऐसा इंसान यूज़्वली आपसे बस अपना काम निकलवाना चाहता है और जल्दी से जल्दी उस कन्वर्सेशन को खत्म करना चाहता है। इसलिए अपने आप को ऐसे लोगों से दूर रखो जो आप से बात करते हुए आप में इंटरेस्ट नहीं दिखाते। और इतनी हिम्मत नहीं रखते कि वो बात करते समय आप की आँखों में आंखें डाल सकें। नंबर थ्री, गलत दिशा में बढ़ रही भीड़ में चलने से बेहतर है की एक इंसान सही दिशा में अकेले चले। यानी वो काम करो जो बाकी लोग नहीं कर रहे हैं और अपने आप को झुंड से डिफ्रेंशीएट करो। क्योंकि जब तक आप अपने यूनीक टैलेंट और स्किल्स को यूज़ नहीं करते हो और दुनिया को कुछ ऐसी चीज़ नहीं देते हो जो पहले से एग्जिस्ट नहीं करतीं, तब तक आप एक यूनीक आइडेंटिटी एस्टैब्लिश नहीं कर पाते हो और बस मिडिओकर ही रहते हो। जैसे उस फील्ड में जाओ जहाँ सप्लाई कम और डिमांड ज्यादा है। तो फिर वो करो जो बाकी लोग करने से डरते हैं, क्योंकि अगर आप कॉन्शस ली यह डिसिशन नहीं लेते कि आपको अपने यूनीक रास्ते पर चलकर अपने तक पहुंचना है, तो आप अपनी पोटेंशिअल को वेस्ट करने के साथ साथ ये डिसाइड कर लेते हो कि आपने अपनी पूरी जिंदगी डिप्रेस्ड रहना है और एक मीनिंग लेस लाइफ जीनी है। नंबर टू एक राजा की काबिलियत सिर्फ इस बात से नहीं जानी जाती कि उसने कितने अच्छे रूल्स बनाएं, बल्कि उसने उन रूस को खुद कितना फॉलो कर आये। इसलिए क्योंकि अगर आप खुद ही अपनी बात पर नहीं टिक पाते तो दूसरे लोग आपकी बात की रिस्पेक्ट क्यों करेंगे? एक अच्छा लीडर वही होता है। जो खुद के साथ भी उतना ही स्ट्रिक्ट होता है जितना वो दूसरों के साथ होता है। इसलिए दूसरों को एडवाइस देने और उन पर उंगलियां उठाने से पहले यह देखो कि क्या आप खुद वो सब चीजें कर रहे हो जो अब दूसरों से एक्सपेक्ट करते हो? नंबर वन अधिक सीधा सादा होना भी अच्छा नहीं है। सीधे पेड़ पहले काट लिए जाते हैं और टेढ़े मेढ़े पेड़ बच जाते है। ये चाणक्य के सबसे पॉपुलर कोर्स में से एक है। वो बोलते है कि कभी भी ऐसे इंसान मत बनो जिसका लोग फायदा उठा सके और ना ही ऐसे इंसान बनो जो दूसरों का फायदा उठाता है। ज्यादातर समय जो लोग अपने आप को अच्छा समझते हैं वो दूसरों के साथ तो बुरा नहीं करते हैं लेकिन जब कोई दूसरा उनके साथ बुरा करें तो वह उसे भी नहीं रोक पाते। यानी जो लोग समझदार और पॉवरफुल नहीं होते उनका फायदा उठाना सबसे आसान होता है। इसलिए हिम्मत वाले बनो इसलिए नहीं क्योंकि उससे आपको दूसरों को दबाना है, लड़ना है या उनका फायदा उठाना है बल्कि आपके अंदर हिम्मत और थोड़ा टेढ़ापन इसलिए जरूरी है ताकि दुनिया आपको ना दबा सके। चाणक्य बोलते है कि अगर एक सांप जहरीला नहीं है उसे तब भी अपने आप को ऐसे ही दिखाना चाहिए जैसे वो किसी की भी जान ले सकता है।","चाणक्य को अब तक के सबसे महान भारतीय विचारकों और दार्शनिकों में से एक माना जाता है। अपनी पुस्तक चाणक्य नीति में, वह हमारे जीवन के लगभग हर प्रमुख क्षेत्र पर ज्ञान प्रदान करते हैं। तो, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम ऐसे 10 से अधिक पाठ जानेंगे जो हमें ज्ञान और अखंडता के साथ जीवन में नेविगेट करने में मदद करेंगे।" "हर इंसान में डिफ़रेंट लेवल्स ऑफ सोशल स्किल्स होती है। कई लोग नैचुरली ही ज्यादा चार्मिंग होते हैं और ईजी दूसरों के क्लोज़ आ जाते हैं और कई लोगों को खुद को इंट्रोड्यूस करने में भी बहुत ज्यादा एफर्ट लगाना पड़ता है क्योंकि वह या तो सोशली, ऑक्वर्ड या फिर इंट्रोवर्ट होते हैं। इसका मतलब लाइकेबल बनना कई लोगों के लिए दूसरों से ज्यादा इम्पोर्टेन्ट होता है और जहाँ हम हर समय और हर इंसान के लिए लाइकेबल नहीं बन सकते, वही हम कही ऐसी ट्रिक्स का जरूर इस्तेमाल कर सकते हैं जो हमारी लायक एबिलिटी को जेनरल से नस में बढ़ा सकें और हमें ज्यादा मेमोरेबल बना सके। नंबर वन गेट अदर्स टू टॉक अबाउट वोट दें। लव दूसरों की नजर में खुद को लाइकेबल बनाना खुद की तारीफें करने से शुरू नहीं होता। ऐसा इसलिए क्योंकि हर इंसान को दूसरों के बारे में सुनने से ज्यादा खुद के और उन चीजों के बारे में सुनना पसंद होता है जिनके लिए वो पैशनेट हैं। अपने स्पेसिफिकल्ली एक कन्वर्सेशन मैं ये पूछना है कि उस इंसान को जो चीज़ पसंद है, वो उसे क्यों पसंद है और क्यों उसके लिए मीनिंगफुल हैं। कभी भी किसी से जेनल क्वेश्चन्स मत पूछो कि उसे कोई मूवी कैसी लगी या फिर वो आजकल क्या कर रहा है? ऐसे क्वेश्चन्स कॉन्वरसेशन को डीप जाने से रोकते हैं और दूसरों को सोचने पर मजबूर नहीं करते है। जस्ट बिकॉज़ इन बेसिक क्वेश्चन्स के आन्सर्स हर इंसान के दिमाग में पहले से प्रिपेर्ड होते हैं। आपने ऐसे क्वेश्चन्स पूछने है जो उनके अंदर पॉज़िटिव एमोशन्स जगह है और तभी जैसे ही आप उनको उनकी ही कहानियों में गहरा ले जाना शुरू करोगे तब उसी पॉइंट से आपके लिए उस कन्वर्सेशन की वाइफ को मेनटेन करना ईज़ी हो जाता है और सामने वाला भी आपसे ज्यादा क्लोज़ और आपके साथ कंफर्टेबल फील करने लगता है। उस इंसान को उस कन्वर्सेशन का टॉपिक चाहे याद रहे या ना रहे। लेकिन वो हमेशा ये याद रखेगा कि उसने आपके साथ बात करते हुए कितना अच्छा फील करा और वह सब कॉन्शस ली। आपको पॉज़िटिव फील इन गज़ और जड़ से रिलेट करने लगेगा। नंबर टू ओनली कॉंप्लिमेंट ऑन वॉट दे हैव वर्ड फॉर लाइक एबिलिटी के इस पॉइंट पर ध्यान देना बहुत जरूरी होता है। क्योंकि जब भी आप एक क्लियरली, ब्यूटीफुल फिट या फिर स्मार्ट इंसान को उनकी इन ऑब्वियस क्वालिटीज के लिए कॉम्प्लिमेंट करते हो तब उसमें कुछ भी ओरिजिनल नहीं होता। एक ब्यूटीफुल इंसान दिन में 10 बार 10 लोगों से सुनता है कि वो कितना ब्यूटीफुल है और एक पॉइंट के बाद ऑब्वियस कॉंप्लिमेंट से मिलने वाला प्लेजर कम होने लग जाता है जिसके बाद वो कॉंप्लिमेंट उनके लिए उतना इम्पोर्टेन्ट नहीं रहता लेकिन अगर आपको किसी तरह से यह पता चल जाता है कि वो इंसान किन चीजों पर बहुत ज्यादा मेहनत कर रहा है और उनके साथ अभी भी स्ट्रगल कर रहा है और आप उन चीजों को नोटिस करके उन पर कॉंप्लिमेंट दो तो ये चीज़ उन्हें बहुत डीप्ली इंप्रेस और खुश करेगी। हर इंसान को खुद की स्ट्रेंथ की तारीफ सुनने में थोड़ा मज़ा आता है, लेकिन जब आप उनके वीक और स्ट्रगलिंग पॉइंट्स पर रौशनी डालकर उन्हें शाबाशी देते हो तो ये चीज़ उन पर एक इम्पैक्ट डालती है। इसलिए हमेशा लोगों को सिर्फ उन्हीं चीजों पर कॉम्प्लिमेंट्स दो जिन पर वो मेहनत कर रहे हैं। लोगों की मदद करो उनकी इन्सेक्युरिटी इसको उनकी बेस्ट क्वालिटी बनाने में और देखो कि वो आपके कितनी जल्दी लाइक एबिलिटी डेवलप करने लगते हैं। नंबर थ्री डोंट हेज़िटेट टू जोक अक्सर हम लोगो से बात करते हुए बहुत ही ट्रेन्स, ऑक्वर्ड या फिर सिरियस हो जाते है। स्पेसिअली अगर आप एक ग्रुप में हो तो यह एकदम पर्फेक्ट समय होता है। ग्रुप की कौन फॉर मिट्टी को तोड़ने का एक जो के साथ किसी को भी सिरियस माहौल नहीं पसंद सीरियसनेस अक्सर एक पॉइंट के बाद स्ट्रेस में बदल जाती है। इसलिए जब भी कोई हिम्मत करके माहौल को ठंडा करने की कोशिश करता है तब सब लोग एक चैन की सांस लेते हैं और उस इंसान को ज्यादा लाइक करने लगते हैं। जीवन अगर कोई आपके जो को अप्रीशिएट ना भी करे तब भी आप इस तरह से खुद को बाकियों के बीच नॉन बना देते हो और अटेन्शन लाइक एबिलिटी का सबसे पहला स्टेप होता है। इसमें साइकोलॉजी में बोला जाता है। एक्स्पोज़र इफेक्ट यानी इवन अगर आप किसी इंसान को शुरुआत में पसंद नहीं आये, लेकिन अगर आप बार बार उनके सामने आते हो या फिर उन्हें खुद के बारे में सोचने पर मजबूर करते हो और वो खुद ही धीरे धीरे आपको एक पॉज़िटिव लाइट में देखने लगते हैं और आपको लाइक करने लगते हैं। नंबर फ़ोर शो रिस्पेक्ट फॉर अदर पर्सन से ओपिनियन्स नेवर से दैट यू आर रॉन्ग टू गलत है और मैं सही हूँ। यह मैसेज कभी भी आपको नए दोस्त बनाने में मदद नहीं करेगा। एक कॉन्वरसेशन को पैराडॉक्सिकल ली। आप सिर्फ तभी जीत पाते हो जब आप जीतने की कोशिश करना और उस कन्वर्सेशन को डोमिनेट करना बंद करते हो और दूसरों के ओपिनियन की रिस्पेक्ट करते हो। ये मैटर नहीं करता कि किसी का ओपिनियन आपकी नजर में कितना गलत लॉजिकल और बेकार है। अगर आप एक्चुअल में उनकी गुड बुक्स में आना चाहते हो तो आप कभी भी उन्हें सीधा ये मत बोलो कि वह गलत है बल्कि बस इतना बोलो कि आई अंडरस्टैंड वेयर यू आर कमिंग फ्रॉम बट मेरा ओपिनियन तो ये है नंबर फाइव गिव द अदर पर्सन आ गुड रेप्युटेशन टूल एवं अप टु यहाँ पर आप बेसिकली दूसरे इंसान के मन में आपके टूवर्ड्स अच्छा बने रहने की वजह डाल रहे होते हो। यानी नोर्मल्ली जब हम नए लोगों से मिलते हैं तब हम बात करते हैं। मन ही मन उनकी हर छोटी बड़ी क्वालिटी में कमियां निकालते हैं। उनकी बॉडी लैंग्वेज को ऑब्जर्व करते हैं और उन्हें अपने ही दिमाग में अच्छा या फिर बुरा लेवल कर देते हैं और वो इंसान भी आपके साथ यही सेम चीज़ कर रहा होता है। हाउएवर साइकोलॉजी की समझ आपको इस पूरे प्रोसेसर को स्किप करने में मदद कर सकती है। इसका मतलब आपने सिम्पली किसी से भी मिलने पर उन्हें वो बात बोल देनी है जो आप उनसे सुनना चाहते हो। फॉर एग्ज़ैम्पल अगर आप चाहते हो कि कोई इंसान आपकी केर करें और आप के साथ एक डी बॉन्ड बनाए तो आप उन्हें ये बोल सकते हो कि मुझे तो तुम्हारे साथ बहुत अच्छा लगता है। क्योंकि तुम मुझे बहुत ही केरिंग और सिनसिअर इंसान लगते हो। अगर आप चाहते हो कि वो आपके साथ लॉयल रहे तो उन्हें यह बताओ कि किस तरह से आपको उनकी यह बात सबसे ज्यादा रिस्पेक्ट के काबिल लगती है कि वो आपके साथ इतने लॉयल है। यानी उनको इन डाइरेक्टली ये सिग्नल दो कि आपके दिमाग में उनकी एक पर्टिकुलरली पॉज़िटिव रेप्यूटेशन है। औरास ह्यूमन्स हम अपनी बनी बनाई रेपुटेशन को बिगाड़ना नहीं चाहते हैं, इसलिए वो कुछ भी करेंगे आपकी नजरों में अच्छा बने रहने के लिए और वो जाने अनजाने में आपको लाइक भी करने लगेंगे।","हम सभी के पास सामाजिक कौशल के विभिन्न स्तर हैं। जबकि कुछ लोग स्वाभाविक रूप से आकर्षक होते हैं और वे आसानी से नए दोस्त बना सकते हैं, अन्य इतने भाग्यशाली नहीं होते हैं और वे अपना परिचय देने में भी संकोच करते हैं। इसलिए कुछ लोग दूसरों की तुलना में समानता को अधिक महत्व देते हैं और इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम 5 मनोवैज्ञानिक ट्रिक्स के बारे में बात करेंगे जो लोगों को तुरंत आपके जैसा बना देंगे।" "इमेजिन एक ऐसी लाइफ जिसमें आप खुद की स्टोरी में ही मेन करेक्टर नहीं हो, जब भी आप एग्जाम्पल्स देते हो तब आप दूसरे लोगों की लाइफ एक्सपीरियंस शेयर करते हो। जब भी आप सोचते हो की एक कूल इंसान कैसा होगा, तब आपके दिमाग में किसी और इंसान की मैं जाती है और जब भी आप की लाइफ में कोई प्रॉब्लम आ जाती है तब आप दूसरे लोगो की शक्ले देखते हो की वो आपके पास आये और आपकी मदद करे। दिस इस द लाइफ ऑफ नॉर्मल पर्सन एक नॉर्मल इंसान हमारे बॉडी में मौजूद सेल्स की तरह होता है। हर सेकंड हमारी बॉडी में लाखों सेल्स मर और पैदा हो रहे होते हैं और इस बात का हमें कोई फर्क नहीं पड़ता। हाउएवर एक्स्ट्राऑर्डिनरी इंसान एक सोसाइटी के लिए उतना ही वैल्युएबल होता है। इतने वैल्युएबल हमारे लिए हमारे हाथ पैर होते हैं आप कभी अपने फ्रेंड्स या फिर अपने भाई बहन के लिए नहीं चाहोगे की वो एक कीजिए, वो एक इंसान से शादी करे, उनकी इनकम सीवरेज हो, वो एक एवरेज साइज के घर में रहे या फिर उनकी लाइफ में ना तो ज्यादा खुशी हो और ना ही ज्यादा दुख। आप ये कभी नहीं चाहोगे। राइट बट जीस तरह से आप अपनी जिंदगी जी रहे हो जो आपकी हैबिट्स है और जीस तरह की आपकी सोच है। ये सारी चीजें इस बात की गारंटी है कि आप भी एक मिडिओकर लाइफ भी जीने वाले हो। यू नो ये जो मिसमैच होता है हमारी डिज़ाइनर्स और जीस भी चीज़ को हम एडमायर करते हैं उनमें और हमारे एक्शन्स के बीच इसकी शुरुआत होती है। हमारे चाइल्डहुड में हर बच्चा बिना किसी डर के पैदा होता है, क्योंकि नेचर हर इंसान को चान्स देती है की उसे जो बनना है वो बने और उससे जो करना है वो करे। देयर आर नो लिमिट सोना चाइल्ड क्या कभी आपने किसी बेबी को देखा है की वो बहुत ज्यादा सेल्फ़ कॉन्शस हो या फिर उसमें इन्फिनिटी कॉम्प्लेक्स हो? ऐसा कभी नहीं होता बट हमारे पेरेंट्स हमे सेफ रखने के लिए हमारे अंदर बहुत से डर डाल देते हैं और उनकी यही पॉज़िटिव इंटेन्शन आगे चलकर हमारे लिमिटेशन बन जाते हैं, जिससे पॉइंट पर एक इंसान के अंदर का बच्चा यानी उसका इनर चाइल्ड मर जाता है। उसी पॉइंट से उसके अपने सपनों को अचीव करने का चान्सेस भी बिल्कुल ज़ीरो हो जाते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि बच्चे बहुत इनोसेंट होते हैं। ये समझने के लिए की क्या पॉसिबल है और क्या नहीं दैट स्वाइ अगर आप लाइफ की गेम को जीतना चाहते हो देन यू नीड टु मीट चाइल्ड लाइक चाइल्डिश नहीं चाइल्ड लाइक शायद आपको हँसी आएगी अगर मैं आपको ये बताऊँ तो बट मैं अपने फ्रेंड्स को हमेशा ये बोलता था दैट आई वॉन्ट टू बिकम सूपर हीरो मैं चाहता हूँ मेरी बॉडी एक सुपर हीरो जैसी हो। मैं चाहता हूँ कि मैं एक सुपर हीरो की तरह दूसरों की मदद कर पाऊं और एक सुपर हीरो की तरह मेरे पास पैसे हों। दिस इस मी चाइल्ड लाइक साइड जो मेरे को कभी भी गिवअप नहीं करने देती और ये मेरेको याद दिलाती है कि सौरभ जो भी तेरे को चीज़ चाहिए मेरे को मिल जाएगी एंड नथिंग इस इम्पॉसिबल जितना बड़ा तेरे को सोचना है, तू सोच और कोशिश कर की दूसरे और बड़ा सोच पाया है। बहुत से लोग ये बोलते है की कितने ज्यादा सक्सेसफुल इसलिए बन पाए क्योंकि वो बहुत ज्यादा हार्ड वर्क करते हैं और कभी कभी वो हार्ड वर्क करते हैं, अपनी फैक्टरी में सो जाते है। बट हार्ड वर्क तो आपकी गली में काम करनेवाला धोबी भी करता है तो वो अमीर क्यों नहीं बन पा रहा? उसकी फैमिली अभी भी क्यों सफर कर रही है? वो लोग पावर्टी में क्यों हैं? क्यों लोगों के बीच इतनी ज्यादा इनइक्वालिटी है? डिफरेन्स ना तो हर वक्त होता है और डिफरेन्स जीवन इन्टेलिजेन्स कभी नहीं होता। बिकॉज़ बहुत बार ऐसा होता है। ये गरीब घर में कोई बहुत ज्यादा इंटेलीजेंट बच्चा पैदा होता है। जूनिअस है वो बट वो भी अपनी फैमिली में 1920 का ही फ़र्क ला पाता है। अगर उसके फादर 20,000 30,000 पर मंथ कमा रहे थे तो वो उस इनकम को 50,000, 60,000 या 1,00,000 कर देता है। बट जीस रीज़न की वजह से उसकी फैमिली एक जगह पर अटकी हुई थी। वो रीज़न कभी चेंज नहीं होता और इसी वजह से ही इस जस्ट पुअर ओनली एटा डिफरेंट लेवल और वो इन्टेलिजन्ट होने और मेहनत करने के बावजूद भी अपनी पोटेंशिअल तक कभी नहीं पहुँच पाया। बॉटम के 99% लोगों और टॉप के 1% लोगों में जो असली डिफरेन्स है वो है उनकी सोच। एक इंसान के अंदर का बच्चा अभी भी लिमिट्लेस पॉसिबिलिटीज़ के बारे में सोच पा रहा है, जबकि दूसरे इंसान की चाइल्ड लाइक इनोसेंस को उसकी सराउन्डिंग् उसने मार दिया है। कभी भी सिर्फ एक इंसान की सक्सेस को नहीं बल्कि उस इंसान को स्टडी करो नहीं हो, बस बहुत ज्यादा इंटेलीजेंट हैं। वो बस हार्ड वर्क करते हैं, हिस्सों चाइल्ड लाइक। वो कभी ट्विटर का लोगो रिप्लेस कर देते हैं। डोस को इनके लोगों से कभी वो बिल गेट्स से पंगे ले रहे होते हैं और वो किसी भी रूलबुक को फॉलो नहीं कर रहे हैं। जबकि दूसरी तरफ टिपिकल ऐवरेज इंसान बहुत ज्यादा लॉजिकल होता है। अगर मैं आपको इसी एपिसोड में एक पूरा ब्लू प्रिंट दे दू की इस तरीके से आप अपनी डेस्टिनी को बदल सकते हो और ये तरीका होता है अपनी मैक्सिमम पोटेंशिअल तक पहुंचने का। फिर भी कमेंट्स में कई लोग बोलेंगे कि सौरभ झूठ बोल रहा है और ये चीज़े रियल लाइफ में प्रैक्टिकल नहीं है। लेकिन जब आप ऐसे इंसान पर डाउट करते हो जो आपको ये बता रहा है की जितना आप सोचते हो आप ने उससे कई गुना ज्यादा क्षमता है, तब आप एक्चुअल में उस इंसान को नहीं, आप खुद को डाउट कर रहे होते हो और इसी लेवल का सेल्फ डाउट ज्यादातर लोगों को मीडिऑक्रिटी के जाल में फंसाए रखता है। क्योंकि एक बुरी सिचुएशन में लॉजिक तो होता है कि मैं गरीब घर में पैदा हुआ हूँ। मेरे माँ बाप ने इतनी ज्यादा मेहनत करे, लेकिन फिर भी हम कहीं नहीं पहुँच पाए और जिससे एनवायरनमेंट में मैं हूँ, वहाँ पर ग्रो करना बहुत मुश्किल है। तो ये सारे साइंस इस बात को प्रूव करते हैं कि मैं भी अपनी लाइफ में कुछ नहीं कर पाऊंगा। दैट स्वाइ अगर आपको अपनी लिमिटेशंस को पार करना है तो आपको अपने लॉजिक के पास जाना होगा और जब आप एक ऑफेंस लोगे जब आप पूरे विश्वास और पूरी आस्था के साथ आगे बढ़ोगे तब जो रास्ता आपको अभी बंद दिख रहा है वो धीरे धीरे खुलता चला जाएगा। जोसेफ कैंबल का एक बहुत फेमस कोट है फॉलो। योर ब्लेस एंडोर्स, विलोपन वी अर देर वेर नो डोर्स बिफोर इम्पॉसिबल चीजें भी पॉसिबल बन सकती है। अगर आप खुद को ये बिलीव करा लो की वो पॉसिबल है और सच बताऊँ तो आपके पास कोई दूसरा ऑप्शन नहीं है। अगर आप एक बच्चे की तरह लिमिट्लेस पॉसिबिलिटीज़ को अपनी लाइफ में राइट नहीं कर रहे हैं तो दूसरी तरफ आप अपनी पूरी जिंदगी में लोगों की लाइन में खड़े रहोगे। जिंस लड़के या फिर लड़की को आप पसंद करते हो, आप से पहले 100 लोग और खड़े हैं। उसे पटाने के लिए जो जो अब ये करियर ऑपर्च्युनिटी आपको चाहिए वो आप से पहले किसी और को दे दी जाएगी और आपके हाथ में बस बची कुची ऑपर्च्युनिटीज होंगी। बिकॉज़ देर इस नथ्थिंग स्पेशल अबाउट यू हम सोचते है की बस एक बुरा काम करना गलत होता है, लेकिन असलियत में एक बुरा काम करने से भी ज्यादा बुरा होता है कोई काम ना करना और जिंदगी को बस साइड में खड़े रह कर देखते रहना एक बहुत पॉपुलर नॉवेल है दांत इस डिवाइन कॉमेडी, जिसमें मेन करेक्टर को उसका गाइड हेल्थ के थ्रू ले जा रहा होता है हवन की तरफ और उसे बता रहा हूँ की कैसे हल के अलग अलग सर्कल्स है और जितना हम डीप जाते जाएंगे, उतना ही लोगों की पनिशमेंट बढ़ती जाएगी। और में एंट्री लेने से पहले उनके साथ एक बहुत इंट्रेस्टिंग चीज़ होती है। उन्हें लोगों की आवाजें सुनाई देने लग जाती है। लोग चिल्ला रहे होते हैं और वो बहुत ज्यादा पेन में होते हैं तो जो मेन करेक्टर होते हैं वो अपने गाइड से पूछता है कि कौन लोग हैं, इतना दर्द में क्यों है? तो जो गाइड होता है वो बताता है दीज़ अर नथ्थिंग पीपल यह अपनी जिंदगी जीने में इतने अन्य इंटरेस्टेड थे कि उन्होंने किसी चीज़ के लिए स्टैंड नहीं लिया। ये किसी चीज़ में बिलीव नहीं करते थे। और ये ना तो दुनिया में कोई ज्यादा अच्छा ही लाये और ना ही ज्यादा बुराइ है और इनकी इसी पैसिविटी की वजह से इनको ना तो नर्क में एंट्री मिल रही है और ना ही ने स्वर्ग में आने दिया जाएगा। स्टॉप बीइंग लाइक नथिंग पीपल। ज्यादातर मीडिया पर लोगों की यही प्रॉब्लम होती है की वो किसी चीज़ के लिए स्टैंड नहीं लेते और इस वजह से उनके पास कोई रीज़न ही नहीं होता। खुद को एक्सपैंड करने का ऐसे लोग सोचते है की ये कोई स्पेसिफिक एक्शन मिस कर रहे हैं, लेकिन ऐक्शन बहुत छोटी चीज़ होती है। आपको असल में ये नहीं पूछना चाहिए कि आपको क्या करना है या फिर कैसे करना है। रियल क्वेश्चन इस की आपको क्यों करना है? अगर आप इस एपिसोड से बस एक टेकअवे लेके जाना चाहते हो तो वो ये होना चाहिए दैट सॉफ्टवेर कम्स बिफोर के हार्ड्वेर डीएनए पहले आता है क्रीचर से, कोर्ट पहले आता है कंप्यूटर से और बिल्कुल ऐसे ही आपकी सोच पहले आती है। जो भी आप अपनी लाइफ में क्रीएट कर रहे हो उससे इसलिए जिंदगी को इतना सीरियसली मत लो। अपने इनर चाइल्ड के पास वापस जाओ और उससे पूछो कि उसका ड्रीम क्या है और उसे चाहिए क्या? अब कितना बड़ा सोचोगे अगर आपको ये पता हो की आप जो भी मांगोगे वो आपको मिल जायेगा ना? सॉल्व एस अगर आपने इस एपिसोड से कुछ नया सीखा हो और आपको फाइनली ये रिलेशन हो गयी हो मैं दिल से चाहता हूँ कि आप अपनी लाइफ में सक्सीड करो और अपने पुराने सारे पैटर्न्स को तोड़ो, तो कमेंट्स में बताओ।","कोई भी औसत या औसत दर्जे का नहीं बनना चाहता, लेकिन ज्यादातर लोगों के काम करने का तरीका, उनकी आदतें और उनकी सोच इस बात की गारंटी देती है कि वे भी औसत दर्जे का जीवन जिएंगे। लेकिन आप औसत दर्जे के अभिशाप को तोड़ सकते हैं और अपने दिमाग पर काबू पाकर अपनी अधिकतम क्षमता तक पहुंच सकते हैं।" "एक इंसान भारी दुनिया के स्ट्रेस अर्श जैसे फाइनैंशल लॉस, हेल्थ इशूज़, ब्रेक अप या फैमिली प्रॉब्लम्स पर किस तरह से रिऐक्ट करता है, ये डिपेंड करता है कि उसमें कितनी मेंटल स्ट्रेंथ है। एक इंसान की मेंटल स्ट्रेंथ, उसकी एज जेन्डर ये स्टेटस पर नहीं बल्कि उसकी मेंटैलिटी पर डिपेंड करती है। यानी मेंटल स्ट्रेंथ कोई गिवन ऐडवांटेज से नहीं आती और इसे कोई भी डेवलप कर सकता है। इसलिए आपकी सोच को बदलें और आपकी मेंटल स्ट्रेंथ को बढ़ाने के लिए इस एपिसोड में हम बात करेंगे ऐसे कई साइंस की जो हर मेंटली स्ट्रॉन्ग इंसान में कॉमन होते हैं। साइन नंबर वन वर्किंग विदाउट एनी रिज़ल्ट इनसाइट। जब भी आप किसी नए गोल पर काम करना शुरू करते हो तब आपको मेजर एबल रिजल्ट्स मिलने में बहुत समय लगता है। फॉर एग्ज़ैम्पल अगर मार्केट में एक नई दुकान खुलती है तो वो खुलते ही प्रॉफिट नहीं बनाने लगती। पहले उसे कस्टमर्स को अट्रैक्ट करना होता है, मार्केटिंग करनी होती है। कस्टमर्स को लुभाने के लिए अच्छे अच्छे ऑफर्स देने होते हैं और फिर जाकर कहीं एक स्टोर प्रॉफिटेबल बन पाता है। यह जब एक इंसान फैट लूज करने का गोल बनाता है तब इतने हफ्तों तक तो उसकी मेहनत का कोई रिज़ल्ट ही सामने नहीं आता। बिगिनिंग से लेकर विज़िबल रिज़ल्ट तक की जर्नी। टॉर्च रस होती है। आप एक गोल पर काम कर रहे होते हो, वो भी बिना इस गैरन्टी के कि वो काम इफेक्टिव है और इस प्रोसेसर में सिर्फ वो लोग ही टिक पाते हैं जो मेंटली स्ट्रॉन्ग होते हैं। सिनेमा टु यू नो दैट, नोबडी ओस यू एनीथिंग मेंटली स्ट्रॉन्ग लोग ये बात बहुत अच्छे से समझते हैं कि दुनिया उन्हें कुछ नहीं करती। आप अभी शायद ये सोचते हों कि आप सक्सेस तो ऑलरेडी डिज़र्व करते हो या एटलिस्ट आप जहाँ पर हो आपको उससे एक बेहतर जगह पर होना चाहिए था क्योंकि आपने दूसरों से ज्यादा मुश्किलें झेली हैं। और लाइफ आपके साथ अनफेयर है। लेकिन यह जिंदगी का एक बहुत बड़ा सच है कि कोई भी इंसान इम्प्रूवमेंट और ग्रोथ को डिज़र्व नहीं करता। कोई भी ऑपर्च्युनिटी खुद आपके पास चलकर नहीं आएगी। आपकी जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए यह एक कड़वा सच है जिससे मेंटली स्ट्रांग लोग काफी वाकिफ होते हैं। दैट स्वाइ ऐसे लोग ऐक्शन पहले लेते हैं, सबसे ज्यादा काम करते हैं और कभी कंप्लेन कर के बीच रास्ते में कुछ नहीं करते हैं। जिससे इवेन चली वो अपने डिज़ाइरड गोल तक पहुँच ही जाते हैं। साइन नंबर थ्री देर हार शॉन देमसेल्व्स मेंटली स्ट्रॉन्ग लोग एक लंबी जिंदगी जीने की कोशिश करते हैं। एक छोटे से समय में उनमें जिंदगी को जीने की जल्दबाजी होती है क्योंकि वो ये जानते हैं कि उनके पास खुद पर काम करने के लिए बहुत ही लिमिटेड समय है। इसी वजह से हर मेंटली स्ट्रॉन्ग इंसान खुद पर काफी हर्ष होता है। वो खुद को हर तरह से डिसिप्लीन रखने की कोशिश करता है। वो सोचता लग है खाता अलग है, पहनता अलग है और बोलता अलग है। उसके हर ऐक्शन का बस एक ही पर्पस होता है और वो है खुद की लिमिट्स को पुश करना और अपना बेस्ट वर्जन बनना। साइन नंबर फ़ोर दे कैन सेपरेट फैक्स फ्रॉम फीलिंग्स ज्यादातर लोगों की जिंदगी उनके इमोशन्स के बेसिस पर चलती है। जो रंग उस समय उनके इमोशन्स का होता है, वही रंग उनकी रिऐलिटी ले लेती है। इस साइकोलॉजी में बोलते हैं अफेक्टिव रिले जम यानी रिऐलिटी को अपने इमोशन्स के लेंस से देखना और उसे ही फैक्ट समझना। ऐसा सिर्फ मेंटली वीक लोग ही करते हैं, जो सच्चाई को फेस करने से डरते हैं। वरना जो भी इंसान मेंटली स्ट्रॉन्ग होता है, वो इमोशनल होने पर भी अपने इमोशन्स पर कंट्रोल नहीं होता और अपनी इंटरनल फीलिंग्स को अलग कर पाता है। बाहरी दुनिया से इसी वजह से हम ये भी बोल सकते हैं कि मेंटली स्ट्रांग लोग सच के ज्यादा पास होते हैं। साइन नंबर फाइव दें गिव देर ओन मीनिंग टू नेगेटिव इवेंट्स रिऐलिटी को आस इट इस देखने के साथ साथ मेंटली स्ट्रॉन्ग लोग रिऐलिटी को अपने फेवर में करना भी जानते हैं। उसे एक डिज़ाइरड मीनिंग देकर अगर उनके साथ पास में कुछ बुरा हुआ था तो वो बोलेंगे कि वो होना जरूरी था। उन्हें स्ट्रॉन्ग बनाने के लिए आइंस्टाइन बोलते थे वन कैननॉट सॉल्वर प्रॉब्लम विद द सेम लेवल ऑफ कॉन्सियसनेस यूज़ टु क्रियेट यानी हर नेगेटिव चीज़ को नेगेटिविटी से नहीं, बल्कि पॉजिटिविटी से मारा जाता है। इस तरह से आपकी जिंदगी की दशा दुनिया नहीं बल्कि आप खुद चुन पाते हों। साइन नंबर सिक्स दे ऐक्टिवली वर्क ऑन बिकमिंग मोर, मेंटली स्ट्रांग मेंटल स्ट्रेंथ कोई ऐसा ट्रेड नहीं है जो बिना प्रैक्टिस के एग्जिस्ट कर सके। मेंटली स्ट्रॉन्ग लोग रेगुलरली खुद को चैलेंज करते हैं, खुद को टेंपोररिली डिस्कम्फर्ट देते हैं और बड़े से बड़ा रिस्क लेते हैं। अपनी मानसिकता को बेहतर और मजबूत बनाने के लिए साइन नंबर सेवन दे यार काइन्ड इन क्रू एट द सेम टाइम रिऐलिटी डूअल साइड है और इंसान भी कभी आपको दूसरों की दया और मासूमियत देखने को मिलेंगी और कभी उनकी हैवानियत। मेंटली स्ट्रॉन्ग लोग इन दोनों एक्स्ट्रीम से डील करने के कैपेबल होते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि हर कमजोर इंसान सेफ्टी के लिए एक स्ट्रीम में भागता है। इंट्रोवर्ट एक्स्ट्रोवर्ट बनना चाहता है और एक्स्ट्रोवर्ट इंट्रोवर्ट लोली इंसान लोगों का साथ जाता है और जिसके पास लोगों का साथ ऑलरेडी है, वो अकेलापन जाता है। लेकिन एक मेंटली स्ट्रॉन्ग इंसान दोनों एक स्ट्रीम्स को अपने साथ लेकर चलता है। वो इंट्रोवर्ट भी होता है और एक्स्ट्रोवर्ट भी। अकेला भी और सोशल भी। उसकी पर्सनैलिटी टुकड़ों में डिवाइडेड नहीं बल्कि एक होल यानी कंप्लीट होती है। सीन नंबर एट दे नो देर वीकनेसेस अपनी वीकनेसेस के बारे में उस इंसान से ज्यादा कॉन्शस कोई नहीं हो सकता, जो बहुत स्ट्रांग होता है। अगर आप किसी न किसी वे में स्ट्रेंथ को जानते हो तो ये पक्का है कि आपका रिश्ता वीकनेस से भी जरूर होगा, क्योंकि ये दोनों चीज़े ही साथ साथ चलती है। स्ट्रेंथ के बारे में सोचने पर आप एक तरह से अपनी वीकनेस इसके बारे में भी सोच रहे होते हो। नंबर नाइन दे डोंट फॉल फॉर सन कॉस्ट फैले सी सन कॉस्ट पहले सी का मतलब होता है कि अगर आप किसी चीज़, काम या इंसान में अपना समय, पैसा या एनर्जी इन्वेस्ट करते हो तो इवन अगर वो चीज़ आपको लॉस में ले जा रही हो फिर भी आप उसे छोड़ नहीं पाते क्योंकि आपने उसमें इतना इन्वेस्ट कर रखा है लेकिन मेंटली स्ट्रांग लोगों को ये पता होता है कि कब पानी सर के ऊपर चला गया है और कब समय होता है। क्विट करने का। क्विट इंग्लिश नॉट रॉन्ग वेन विन इंग्लिश नॉट एन ऑप्शन एक हारती हुई गेम में दांव लगाते जाने से बेहतर होता है एक नयी गेम शुरू करना। फिर चाहे दूसरे आपको क्विट और मूव ऑन करने के लिए पागल ही क्यों ना बोले। साइन नंबर 10 मेंटल प्रेजेंस वह मान जो मोमेंट मैं पूरी तरह से प्रेज़ेंट रहता है वह काफी शक्तिशाली होता है क्योंकि वो सिचुएशन के होने पर भी अपने गोल से भटकता नहीं है। ज्यादातर लोगों का मन प्रिय ऑक्यूपाइड होता है जंक इन्फॉर्मेशन से, जिससे वह मीडिया और ऐवरेज लोगों की बातों से हासिल करते हैं, जबकि मेंटली स्ट्रॉन्ग लोगों का मन यूज़्वली काफी खाली और साफ रहता है। एक खाली मन तेज तर्रार और पानी की तरह अनब्रेकेबल होता है, जबकि जो मन बिलीव ज़ नॉलेज और इन्फॉर्मेशन से भरा हुआ होता है, वो कमजोर और धीमा होता है। साइन नंबर 11 यू स्केर्ड ऑफ थे बिग थिंक ऐवरेज लोग बड़ी सोच को एक राक्षस की तरह ट्रीट करते हैं और हर बड़ी सोच रखने वाले को पागल मानते हैं। आज की सोसाइटी में बड़ा सोचने का मतलब है अपने अराउंड 19 9% लोगों को ऑफ एंड करना। आपके बड़े गोल्स दूसरे लोगों के लिए एक थ्रेट है क्योंकि एक वीक माइंडेड पर्सन सब कॉन्शस ली। यह जानता है कि बड़े गोल्ड डिमांड करते हैं। बड़े और इसकी ऐक्शन को। इसलिए बड़े बड़े सपनों गोल्स या फिर सक्सेस की बातें ऐसे लोगों को फिजूल की लगती है, जबकि हर मेंटली स्ट्रॉन्ग इंसान को सक्सेस की अहमियत बहुत अच्छे से पता होती है। और तभी आप नोटिस करोगे कि क्यों हाइली सक्सेसफुल लोग मेंटली इतना प्रेशर झेलने के आदी हो रखे होते हैं। साइन नंबर 12 यू आर विल्लिंग टु सफर टु ब्रिंग गुड फॉर्चून टु ऑल। किसी भी सोसाइटी में सैक्रिफ़ाइस इस वीक लोग नहीं बल्कि स्ट्रॉन्ग लोग देते हैं। हर सिविलाइज़ेशन महान और स्ट्रांग लोगों की देन होती है। खुद को सैक्रिफ़ाइस कर देना। दूसरों की भलाई के लिए यह काम एक कायर कभी नहीं कर सकता क्योंकि एक कायर तो खुद का बोझ उठाने के काबिल भी नहीं होता। इसलिए यह एक और ऐसा साइन है जो सिर्फ मेंटली स्ट्रॉन्ग लोगों में ही देखने को मिलता है यानी देर हाइली सेल्फ सैक्रिफाइजिंग ऐंड काइन्ड साइन नंबर 13 यू आर नाट ऑफ रेड ऑफ डेथ। खुद से पूछो कि क्या अगर मौत अगले ही मूवमेंट में आपकी आँखों के सामने खड़ी हो तो क्या आप उसे अपनाओगे या फिर क्या आप उससे दूर भागोगे? और मरने के डर की वजह से अपनी जिंदगी को भी नर्क जैसा बना दोगे? ज्यादातर लोग डाइरेक्टली या इनडाइरेक्टली अपनी मौत से डरते हैं, क्योंकि हमारी ईगो एक ऐसी चीज़ है जिसका वजूद सिर्फ मैं पर टिका है और इसमें के मरने का डर हमारी गो के लिए एक बहुत बड़ा होता है। हाउएवर मेंटल स्ट्रेंथ होने का मतलब कि एक इंसान यह जानता है कि उसका वजूद उसकी ईगो के पार जाता है और मौत सिर्फ एक आइडिया है ना कि रिऐलिटी।","आप वित्तीय नुकसान, ब्रेकअप या पारिवारिक समस्याओं जैसे बाहरी तनावों पर कैसे प्रतिक्रिया करते हैं, यह आपकी मानसिक शक्ति के स्तर पर निर्भर करता है। किसी की मानसिक शक्ति का उसकी उम्र, लिंग, या सामाजिक स्थिति से कोई संबंध नहीं है और कोई भी अभ्यास के साथ इस विशेषता को विकसित कर सकता है। इसलिए इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम मानसिक मजबूती के संकेतों के बारे में बात करेंगे।" "आप अभी सक्सेसफुल नहीं हो एटलिस्ट उतने सक्सेसफुल नहीं जितना आप बनना चाहते हो। इसी वजह से इस एपिसोड में हम बात करेंगे उन रीजन्स की जो बताएंगे कि आप इतने कैपेबल होने और मेहनत करने के बावजूद भी सक्सेस से इतने दूर क्यों हो। रीज़न नंबर वन यू आर मूविंग टू स्लो पैसों की दुनिया में स्पीड बहुत ज्यादा मायने रखती है। तेजी के बिना कोई भी बिज़नेस ज्यादा समय तक नहीं टिक सकता। आपको एक आइडिया से लेकर उस आइडिया से निकलने वाले रिज़ल्ट तक पहुंचने में कितना ज्यादा समय लगता है यह बताता है कि आप कितने सक्सेसफुल बन पाओगे। जितना आप ऐक्शन लेने में देरी करोगे, उतना ही आपकी ऑपर्च्युनिटी कॉस्ट बढ़ती चली जाएगी और आपके कंपिटिटर्स आप को पीछे छोड़कर आपको इर्रेलेवेंट बना देंगे। अक्सर लोगों के दिमाग में चल रहा है किसी भी टास्क को एग्जिक्यूट करने का टाइम फ्रेम एकदम अनरियलिस्टिक होता है और यही चीज़ उन्हें आलसी बना कर उनके अंदर की अर्जेंन्सी को मार देती है। इसलिए स्पीड की कीमत को समझो और अगर आपको कोई नया बिज़नेस आइडिया आया है तो ये देखो कि आप कितनी जल्दी उसे मॉनिटाइज कर सकते हो। जितनी जल्दी आप उसे मॉनेटाइज कर पाओगे वो बताएगा। की वो आइडिया कितना अच्छा या फिर बुरा है? रीज़न नंबर टू योर ओवर एस्टीमेट इन योर करेंट पोज़ीशन सक्सेस की जर्नी अक्सर छोटी या आसान नहीं होती, लेकिन बहुत से लोग ज़रा सी मेहनत करके ये सोचने लगते हैं कि वह बस अपने गोल तक पहुंचने ही वाले हैं और वो अपनी सक्सेस से पहले ही बहुत घमंडी और सवस्थ बन जाते हैं। जितना बाहर निकलकर दुनिया को और अच्छे से जानोगे, उतना ही आपको यह समझ आता चला जाएगा कि आपको अभी कितना कुछ करना है और आप सक्सेस से कितने दूर हो। दुनिया में हर फील्ड में आपको एक ऐसा इंसान मिलेगा। जो आपसे उस काम में बेहतर है और ऐसे में जो चीज़ आपको उन लोगों से पहले सक्सेस तक पहुंचा सकती है, वह है आपके अंदर की बूख जो कॉन्स्टेंट ली आपको तेजी से अपने गोल की तरफ भागने के लिए मोटिवेट करती है। अगर आप की यह भूख मिट चुकी है तो आपका भी ज्यादा मेहनत नहीं करोगे और अनसक्सेसफुल ही रहोगे। रीज़न नंबर थ्री यू अर ट्राइंग टु गेट रिच ऑन योर ओन यानी बिना एक टीम के आप कभी भी अपनी पोज़ीशन को लेवरेज ही नहीं कर सकते हैं। जितना काम आप अकेले करते आप दूसरे लोगों को अपने साथ जोड़कर उससे कई गुना ज्यादा काम को पूरा कर सकते हो। अगर आपके पास खुद का पैसा नहीं है तो क्राउड फंडिंग की मदद लो। अगर आपके पास आइडिया है लेकिन आपको लेबर चाहिए, उस आइडिया को स्केल करने के लिए तो अपने दोस्तों से मदद मांगों। इस तरह से दूसरों को अपनी ड्रीम में इन्क्लूड करके आप खुद भी पैसा बना पाते हो और उनका भी फायदा कराते हो। रीज़न नंबर फ़ोर योर टू आस्क फॉर हेल्प, हमारी साइकोलॉजी और उस वजह से हमारी सोसाइटीज़ भी कुछ इस तरह से बनी है कि हम कुछ समय के लिए एक लोन वुल्फ की तरह रह तो सकते हैं जिससे हमें मेंटल पीस मिले। लेकिन अगर हम अपनी लाइफ में कुछ भी बड़ा करना चाहते हैं तो हमें उसमें दूसरों की मदद लेनी ही होगी। हाउएवर बहुत से लोग शर्म, डर या अकड़ की वजह से मदद मांगने से कतराते हैं और इसी वजह से एक पॉइंट तक पहुंचने के बाद अटक जाते हैं। जबकि एक समझदार इंसान चाहे लाइफ हो, बिज़नेस हो या फिर इन्वेस्टिंग, वो हमेशा ही जल्दी आगे बढ़ने और फालतू की गलतियों को अवॉर्ड करने के लिए एक्स्पर्ट की मदद लेता है। रीज़न नंबर फाइव यू हैव ऑफ सक्सेस यानी कही ना कही हम लोग प्रोग्रेस और बदलाव से डरते हैं। हमें लगता है कि अगर हमने अपना 100% दे दिया और हम एक्चुअल में कुछ बन गए, तो हम उस प्रोसेसर के बीच अपने आप को खो देंगे। लेकिन ये डर असलियत में सक्सेस पर नहीं बल्कि बस हमारे खुद के पर्सनल फर्श पर फोकस होता है। हमें ये मालूम है कि सक्सेस तक पहुंचने के लिए हमें अपने हर बुरे बिहेव्यर को मानना होगा और अगर हम सब के आगे फेल हो गए तो हमें हमेशा ही उसके लिए जज करा जाएगा। और इसी वजह से हम खुद की सक्सेस को ही सैबोटाज करते हैं और खुद को आगे बढ़ने से रोकते हैं। इसलिए अगर आप अपने सक्सेस के डर को ओवरकम करना चाहते हो तो पहले अपनी उन लिमिटेशंस को ढूंढो जो आपने ही खुद पर लगाई है। रीज़न नंबर सिक्स यू डोंट रीड द बेस्ट सक्सेस बुक्स सक्सेसफुल लोग सक्सेसफुल बनते हैं। अपने सही माइंड सेट की वजह से यही तो रीज़न है कि क्यों महान लोग सक्सेस हासिल करने के बाद भी पढ़ना या फिर एक्स्ट्राऑर्डिनरी लोगों के साथ हैंगआउट करना बंद नहीं करते हैं। आज आपको हर तरह की सक्सेस और सेल्फ हेल्प बुक्स बेची जा रही है, जिनमें से 19 9% बुक्स बस सिंपल अडवाइस को तोड़ मरोड़ कर एक नई पैकेजिंग के साथ भेज रही है। इसलिए आपने सिर्फ उन्हीं बुक्स पर ध्यान देना है जो क्लैसिक्स है। जैसे सक्सेस के क्लासिक ऑथर्स है नेपोलियन हिल, रॉबर्ट कियोसाकी, मैल्कोम ग्लैडवेल या फिर जॉन मैक्सवेल। इस तरह के ऑफर्स की लिखी कई बुक्स ने टाइम का टेस्ट पास किया है और चान्सेस है कि इनमें दी गई टाइम्लेस नॉलेज आपके माइंड सेट को बदलने में भी आपकी बहुत मदद करेगी। रीज़न नंबर से वन यू आर नॉट सिम्पली वर्ड ऑफ सक्सेस सक्सेस हासिल करने से पहले आपको वो इंसान बनना पड़ता है, जो सक्सेस के लायक है। अगर आपके पास हाई इनकम वाली स्किल्स नहीं है तो ये ऑब्वियस सी बात है कि आप क्यों ही सक्सेसफुल हो गए। आप अभी सक्सेस डिज़र्व ही नहीं करते हैं। इसलिए अपने इंट्रेस्ट और पैशन के बेसिस पर कोई हाइपेंग स्किल ढूंढो और उसे डेवलप करो। खुद से पूछो कि आप में अभी किन टूल्स की कमी है, कौन सी नॉलेज इन्फॉर्मेशन या फिर एक्स्पर्ट ईस। आपको नेक्स्ट लेवल तक ले जा सकती है। रीज़न नंबर एट यू अर नॉट टेकिंग बिग्गर रिस्क्स। अपने को उस पर काम करने में बहुत रिस्क होता है, लेकिन उससे भी ज्यादा रिस्क होता है अपने गोल्स पर काम करते रहने में क्योंकि आपको हर कुछ समय में नई चुनौती या फिर रूकावटों का सामना करना पड़ता है। जीतने बड़े आपके गोल्स होंगे और जितना ज्यादा समय तक आप उन पर काम करते रहोगे आपको उतनी ही मुश्किलें मिलेंगी। और इसी वजह से बहुत से लोग शुरुआत के बाद अपना रिस्क एपेटाइट घटा देते हैं और सेफ खेलने लगते हैं, जिससे उनकी ग्रोथ भी स्लो हो जाती है और उनकी अचीवमेंट्स भी रुक जाती है। रीज़न नंबर नाइन यू डोंट साइट ओर ट्रैक शॉर्ट टर्म गोल्स लॉन्ग टर्म में तो हर कोई बता सकता है कि उसे क्या बनना है, कितना पैसा कमाना है या फिर कितना बड़ा बिज़नेस चालू करना है। लेकिन अगर आप डे टुडे प्लेन्स नहीं बनाते और आपको यह आइडिया ही नहीं है कि आपने अभी तक खुद को कितना इम्प्रुव कर लिया है और आप की प्रोग्रेस क्या है? तो ऑब्वियस्ली बात है कि आपके पास हार्ड वर्क करते रहने के लिए कोई सॉलिड मोटिवेशन नहीं होगी। अगर आपको यह नहीं पता कि आपके पिछले हफ्ते की मेहनत रंग लाई या फिर नहीं तो आप क्यों अगले हफ्ते में भी अपना 100% दोगे। इसलिए अपने लॉन्ग टर्म गोल्स को डेली गोल्स में बांटकर ये ट्रैक करो कि आप रोज़ कितने प्रोग्रेस कर रहे हो या फिर कितनी ऑपर्च्युनिटीज को मिस कर रहे हो? रीज़न नंबर 10 यू अर ट्राइंग टू विनय रॉन्ग रेस। हर इंसान के अपने ही कई यूनीक टैलेंट होते हैं, जिनके वो मास्टर बन सकते हैं और पोटेंशिअल ली उस फील्ड को मुन्नार कर सकते हैं। लेकिन अगर आप गलत कैरिअर पैक चूज करके एक ऐसी फील्ड ऐसे कॉलेज या फिर ऐसी जॉब में आ गए हो जहाँ पर आपके टैलेंट को पूरी तरह से यूज़ करना इम्पॉसिबल है तो आप वहाँ कभी सक्सेसफुल नहीं बन पाओगे। बहुत से लोग ऐसी सिचुएशन में खुद को एक लूँ सर की तरह फील कर रहे होते हैं जबकि असलियत में वो बस एक गलत रेस मैं पार्टिसिपेट कर रहे होते हैं। इसलिए अगर आप बहुत ज्यादा मेहनत करके भी आगे नहीं बढ़ पा रहे है तो खुद से ये पूछो कि कहीं आपको बस अपना रास्ता बदलने की जरूरत तो नहीं है?","यदि आप अभी तक सफल नहीं हुए हैं या कम से कम उतने सफल नहीं हुए जितना आप स्वयं को चाहते हैं, तो आप क्यों नहीं हैं, इसके कुछ महत्वपूर्ण कारण होने चाहिए। हो सकता है कि यह आपकी बुरी आदतें, आपकी गरीबी की मानसिकता, आपका डर या सफलता की समझ हासिल करने में आपकी अक्षमता हो। इसलिए इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम उन 10 कारणों के बारे में बात करते हैं जिनकी वजह से आप अब तक सफल नहीं हो पाए हैं।" "जब भी एक रिलेशनशिप खत्म होता है, चाहे वो हमारा एक अच्छा फ्रेंड हो, हमारा इंटिमेट पार्टनर या फिर हमारा कोई फैमिली मेम्बर वो हमारे लिए बहुत पेनफुल होता है और हर इंसान इस ब्रेकअप से अलग तरह से डील करता है। कोई इंसान साथ साथ उस इंसान को किसी और से रिप्लेस कर देता है, कोई किसी तरह की ऐडिक्शन डेवलप कर लेता है, कोई अपने कैरिअर पर फोकस करना शुरू कर देता है और कोई सोचता रहता है की शायद वो इंसान 1 दिन वापस आ जाएगा। यानी मूव ऑन करने में कितना समय लगता है? यह हर इंसान के लिए यूनीक हो सकता है। जहाँ कई लोग दो तीन हफ्तों में ही अपने आप को हील कर लेते हैं। वहीं, कई लोग सालों बाद भी अपने पास रिलेशनशिप्स को ही याद करते रहते हैं। और किस इंसान को मूव ऑन करने में कितनी मुश्किल होगी, यह डिपेंड करता है उसकी खुद की डेवलपमेंट के लेवल पर और तभी इस एपिसोड में हम यही डिस्कस करेंगे कि वो कौन सा फैक्टर होता है जो हमें दूसरे लोगों से अटैच करा देता है और किस तरह से हम इस अनहेलथी अटैचमेंट से मूव ऑन कर सकते हैं। इस प्रॉब्लम को हम तीन पार्ट्स में डिस्कस करेंगे। सबसे पहले हम यही डिस्कस करेंगे कि अनहेलथी अटैचमेंट होती क्या है? सेकंडली हमारी स्पिरिचुअल ग्रोथ हमारे रिलेशनशिप को कैसे अफेक्ट करती है। और थर्ड ली। हम बात करेंगे कि आप अपने इस ट्रोमा को हल कैसे कर सकते हो। हर इंसान के अंदर एक नैचरल लॉन्ग होती है होल यानी कंप्लीट बनने की, क्योंकि पैदा होने से पहले हमारे अंदर मेल और फीमेल दोनों ***** की पोटेंशिअल यूनाइटेड होती है। यानी हम कुछ भी बन सकते हैं, मेल भी और फीमेल भी। लेकिन इस समय पर हम बस प्युर पोटेंशिअल है और ये वो जगह है जहाँ पर इन ऑपोजिट का मिलन ऑलरेडी हुआ पड़ा है। ये हमारी पर्फेक्ट स्टेट होती है जबकि अपनी इस होलनेस को अलग अलग पार्ट्स में डिवाइड करके हम अपनी ट्रू आइडेंटिटी खो देते हैं और पूरी ज़िंदगी इसी होलनेस को गलत जगहों पर ढूंढ़ते हुए सफर करते रहते है। एग्जाम्पल के तौर पर जो मेल्स काफी फेमिनिन होते हैं और उनमें मैस्कुलिनिटी की कमी होती है, वो एक ऐसी पार्टनर्स ढूंढ लेते हैं जो फीमेल होने के बाद भी मैं स्कूल इन ज्यादा होती है या फिर जिन बच्चों में शुरू से ही कॉन्फिडेन्स नहीं डाला जाता वो बड़े होने के बाद भी ये फील करते हैं कि वो इन्कम्प्लीट है और वह दूसरे लोगों के अप्रूवल और उनकी अटेन्शन के बिना होलनेस नहीं अचीव कर सकते हैं। यानी एक अनहेलथी अटैचमेंट तब डेवलप होती है जब हम दूसरे लोगों या फिर मटिरीअल चीजों को यूज़ करने लगते हैं। हॉल फील करने के लिए स्विच साइकैट्रिस्ट इस फेनोमेनन को पार्टिसिपेशन के कॉन्सेप्ट से डिफाइन करा है। पार्टिसिपेशन बेसिकली एक सब्जेक्ट का किसी ऑब्जेक्ट के साथ एक यूनीक तरह का साइकोलॉजिकल कनेक्शन होता है, जिसमें वो सब्जेक्ट अपने आप को उस ऑब्जेक्ट के साथ ऐसे आइडेंटिफाइ करने लगता है जैसे वो ऑब्जेक्ट उसी का पार्ट हो और दोनों में कोई सेपरेशन है ही नहीं। का कहना है। की दुनिया में ज्यादातर कनेक्शन्स रिलेशनशिप्स नहीं बल्कि वो पार्टिसिपेशन मिस्टेक होते हैं। ये चीज़ ज्यादातर उन लोगों में देखने को मिलती हैं जिनकी कॉन्शस लाइफ काफी लिमिटेड होती है और उनकी सेल्फ अवेर्नेस भी बहुत कम होती है। फिर चाहे एक इंसान काफी इंटेलीजेंट हों या डल, अगर वो अपनी लाइफ अपनी अनकॉन्शस माइंड के इन्फ्लुयेन्स पर जीता है और क्लियरली सोचने के बजाय अपने इमोशन्स या फिर बेसिक ऐनिमल के बेसिस पर ऑपरेट करता है तो ये गारंटीड है की वो इंसान हमेशा ही एक अनहेलथी अटैचमेंट डेवलप करेगा। और यहाँ पर आती है आपकी स्पिरिचुअल ग्रोथ की बात यहाँ पर हम साइकोलॉजिकल ग्रोथ की जगह स्पिरिचुअल ग्रोथ की बात इसलिए कर रहे हैं क्योंकि आपकी अवेर्नेस के अलग अलग लेवल पर आप दूसरे लोगों या फिर चीजों के साथ एक अलग तरह से कनेक्शन बनाओगे, जहाँ एक लो अवेर्नेस स्टेट आपकी कॉन्शसनेस को ऐसे बनाए रखेगी जैसे लाखों सालों पहले हमारे सिस्टर्स या फिर जानवरों और कीड़े मकोड़ों की होती है। एग्जाम्पल के तौर पर एक मधुमक्खी के छत्ते के बारे में सोचो कि कैसे इन ***** की कोई इंडीविजुअल आइडेंटिटी नहीं होती है। वो सब एक ही छत्ते पर मिलकर काम कर रही होती है बिना किसी क्वेश्चन के और यही उनकी लाइफ होती है ये अनडिफरेंशिएटेड अवेर्नेस उन लोगों में भी देखने को मिलती है जो कभी भी पैसा, खाना और ***** जैसी चीज़ो से ऊपर नहीं उठ पाते हैं। क्योंकि जब हम सिर्फ अपनी बेसिक को ही फॉलो करने लगते हैं तो हमारे और बाकी जानवरों में कोई डिफरेन्स नहीं रह जाता। जैसे एक मधुमक्खी अपने छत्ते के बिना इन्कम्प्लीट फील करेगी क्योंकि उसके हिसाब से वह और एक ही चीज़ है। वैसे ही एक लोग कॉन्शस अवेर्नेस वाला इंसान जो अपनी लाइफ अनकॉन्शियस ली जीता है वो भी दूसरे लोगों या चीज़ो के बिना इन्कम्प्लीट फील करता है क्योंकि उसके हिसाब से बाकी लोग या मटिरीअल चीजें उसके मिस इन पार्ट्स है। वैदिक टर्म्स में इसे बोला जाता है कि एक इंसान माया के जाल में फंसा हुआ है। दूसरी तरफ, एक इंसान जिसकी कॉन्शस अवेर्नेस बहुत ज्यादा होती है, वह भी एक तरह से अपने और दूसरे लोगों या फिर चीजों के बीच की लाइन को मिटा पाता है। लेकिन एक हेल्थी वे में है जिसे बोलते हैं वनेस या फिर नॉन डुअल अवेर्नेस। इस तरह का इंसान दूसरे लोगों ये फिट चीजों के बिना इन्कम्प्लीट फील नहीं करता और ना ही वो किसी दूसरे पर डिपेंडेंट रहता है। अच्छा महसूस करने के लिए, क्योंकि वो ऑपोजिट स् यानी रिऐलिटी की डूअल नेचर के पार जा चुका होता है। अपनी बुक द साइकोलॉजी ऑफ कुंडलिनी योग में का चक्रास का मेटाफर देते हुए बोला है कि हम अपने फिजिकल सेंटर्स में जितना नीचे जाते है, उतना ही हम एक सेपरेट सेल्फ की कॉन्शसनेस खोते जाते हैं और एक कलेक्टिव स्टेट में आ जाते हैं। जितनी नैरो आपकी कॉन्शसनेस होती है, उतना ही आप पार्टिसिपेशन में 21 स्टेट में होते हो और जब तक आप सबसे नीचे वाले सेंटर पर पहुंचते हों तब तक आप अपनी पूरी पर्सनल कॉन्शसनेस खो चूके होते हो और आपकी ईगो बस आपके नाम से ज्यादा कुछ नहीं रह जाती और तभी आपका गोल भी हमेशा यही होना चाहिए कि आप अपनी इन लोअर स्टेट से ऊपर उठो ताकि ना तो आप एक रिलेशनशिप में नीडी बनो और ना ही रिलेशनशिप खत्म होने के बाद यह सोचकर रोते रहो कि अब तो सब खत्म हो गया है या फिर अब आप कभी भी दुबारा होल नहीं फील कर पाओगे। सो अब हम बात करते हैं कि आप अपने आप को हील कैसे कर सकते हो? सबसे पहले याद रखो कि जब भी आप किसी इंसान के लिए अपनी फीलिंग्स को ओवर कम करना चाहते हो तो उसमें अपनी फीलिंग्स को दबाना, अपने आप को बीज़ी रखना, दुबारा किसी और इंसान को ढूंडना पहले वाले इंसान को रिप्लेस करने के लिए ये सारे तरीके बिल्कुल काम नहीं आते हैं, बल्कि हर बार जब आपका दिल टूटता है तब जो चीज़ उसे परमानेंटली फिक्स करने की ताकत रखती है वह है यह फीलिंग कि आप कुछ सीख रहे हो और आप आगे बढ़ रहे हो। यहाँ पर मैं ये नहीं सजेस्ट कर रहा कि ब्रेकअप होने के बाद अब बुक्स रीड करना स्टार्ट कर दो। या फिर बस अपने कैरिअर पर फोकस करना शुरू कर दो क्योंकि ये चीजें भी आपको होल नहीं बना सकती। यहाँ तक कि कई लोग सोचते हैं कि उन्हें कुछ नहीं करना। बस अपने आप को थोड़ा टाइम देना है और बिना कुछ करे ही टाइम उन्हें उनकी लाइफ के अगले फेस में पहुंचा देगा। पर अपने आप को हील करने के लिए ये पैसे तरीका भी काम नहीं करता, क्योंकि जब आप अपने आप को ऐक्टिवली नहीं हील करते हो तो आपका पेन अनकॉन्शियस बन जाता है और वो वहाँ से आप को कंट्रोल करने लगता है। इसलिए असली सॉल्यूशन है लाइफ की अन्डरस्टैन्डिंग विज़्डम यानी ये समझना। कि आपके साथ हुआ क्या? आपकी लाइफ की स्टोरी क्या है और आपने क्या क्या गलतियाँ कर दी है ताकि अगर आपकी लाइफ में वो सिचुएशन दोबारा आए जिसमें आपका चाहने वाला आपको छोड़ देता है। आप दोनों किसी वजह से दूर हो जाते हो या फिर उनकी डेथ हो जाती है तो आप उस सिचुएशन को एक ज्यादा मैच्योर तरह से हैंडल कर पाओ। इस तरह से अपने पास्ट में से इनसाइट्स लेने का सबसे सिंपल मेथड होता है अपने पास्ट के बारे में लिखना, जिसे बोलते है थेरप्यूटिक जर्नलिंग या फिर एक्स्प्रेसिव राइटिंग, जिसमें आप अपने ट्रामा को काफी डिटेल में अनपैक कर के और अपनी अनकॉन्शियस मेमोरीज़ को ट्रिगर करके उन्हें अपने कॉन्शस माइंड में लाने की कोशिश करते हो। ये तरीका आपकी कॉन्शस अवेर्नेस को इक्स्पैन्ड करेगा, जिससे आप सिर्फ किसी इंसान से मूव ऑन ही नहीं कर पाओगे, बल्कि उसके साथ साथ आप अपनी टू आइडेंटिटी के टच में भी आप आओगे, जो पूरी दुनिया से यूनीक है।","किसी ऐसे व्यक्ति से छुटकारा पाना जिसे आप वास्तव में प्यार करते थे या अभी भी प्यार करते हैं, वास्तव में एक बड़ी चुनौती हो सकती है। आपके पास आगे बढ़ने के अच्छे कारण हो सकते हैं लेकिन आपके पास उनके साथ रहने की अद्भुत यादें भी हैं। तो, आप ऐसी स्थिति को कैसे दूर करते हैं? इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, मैं उन कारणों के बारे में बात करूंगा जो अस्वास्थ्यकर लगाव की आवश्यकता पैदा करते हैं, आपका आध्यात्मिक विकास आपके रिश्तों को कैसे प्रभावित करता है और खुद को ठीक करने का सबसे अच्छा तरीका क्या है।" "स्टैटस बताते हैं कि डिप्रेशन के 45% केसेस असल में डाइट रिलेटेड होते हैं। यानी ऑलमोस्ट आधे पेशेंट्स सिर्फ अपनी डाइट के थ्रू ही डिप्रेशन और मूड डिसॉर्डर से बाहर निकल सकते हैं। और जो लोग अपनी इस इलनेस को नैचुरली ठीक करना चाहते हैं उनके लिए अपना डाइट और लाइफ स्टाइल चेंज करना बेस्ट ऑप्शन है। वैसे तो कई जैकेट्स तक डाइट और डिप्रेशन के रिलेशन को काफी मिस अंडरस्टैंड करा गया था क्योंकि 1950 से पहले मेंटल इलनेस इसको ज्यादातर सर्जरी की मदद से ट्रीट कर आ जाता था। बट 1950 ज़ में दुनिया की सबसे पहली ऐन्टी साइकॉटिक मेडिकेशन बनी थी। हाउएवर इससे पहले भी डॉक्टर्स को इतना अंदाज़ा तो था की हमारी घट और हमारे मूड में कोई ना कोई रिलेशन तो जरूर होता है। इसी थिंकिंग के साथ मेडिकल फील्ड में एक नया सब्जेक्ट बना था जिसे बोलते है न्यूट्रिशनल जो की बेसिकली मेंटल हेल्थ प्रोफेशनल्स को ये समझाता है की वो अपने पेशेंट्स को ट्रीट करते टाइम उनकी डाइट को भी फैक्टर मिले और हो सके तो उन्हें सिंथेटिक दवाइयां देने के बजाय उनकी ईटिंग हैबिट्स को सुधारें। फॉर्चुनेट ली आज कल बहुत सारे मॉडर्न मेंटल हेल्थ प्रोफेशनल्स नैचरल ट्रीटमेंट में बिलीव करते है। यानी वो फार्मास्यूटिकल थेरेपी के बजाय फूड बेस थेरपी को प्रोमोट करते हैं और वो अपनी काउंसलिंग में कई गाइडलाइंस को फॉलो करते हैं। जो की ट्रेडिशनल अप्रोच से थोड़ा अलग है और अगर हम उनकी प्रैक्टिस को सिर्फ ओर स्टेप्स में एक्सप्लेन करें तो पहले वो हमारी डाइट में से उन चीजों को निकाल देते हैं जिनसे इन्फॉर्मेशन बढ़ती है। उसके बाद वो उन चीजों को ऐड कर देते हैं जिनसे इन्फॉर्मेशन कम होती है। और हमारे मूड को रेग्युलेट करने वाले न्यूरो ट्रांसमीटर से बनते हैं। फर्स्ट स्टेप हमें बताता है वॉट टु कट बै कॉन? सो सबसे पहले अगर हम उन खाने की चीजों की बात करें जिनसे इन्फॉर्मेशन बढ़ती है तो ऐल्कोहाल और ट्रांसफैट जैसी चीजें हमारी बॉडी में इम्यून रिस्पॉन्स को चालू कर देती है। सी रिएक्टिव प्रोटीन को बढ़ाकर जिससे बैक्टिरीअल टॉक्सिन्स हमारी घर से निकलकर हमारी बॉडी में आ सकते है। इस कंडिशन को बोलते है ली की गढ़ सिंड्रोम जो की इन्फॉर्मेशन को इतना फैला सकता है की उससे हमारे ऑर्गन्स भी खराब हो जाये। इसके साथ ही ऐडेड शुगर, प्रोसेस्ड कब्ज़ और वेजीटेबल औल्स में प्रेज़ेंट, ओमेगा सिक्स वैन टाइम इन्फ्लेमेटरी, न्यूट्रिअन्ट्स जैसे ओमेगा थ्री इसको अपना काम करने नहीं देता। कई फाइन्डिंग समय ये भी बताती है कि जिन फूड्स में रैंकिंग होने के एसिड होता है जो एक ओमेगा सिक्स का ही टाइप है वो फूड्स हमारी बॉडी में और तुम बॉक्सिंग जैसे इन्फ्लेमेटरी फैट्स को बढ़ाते हैं। एक दूसरी स्टडी में उन लोगों को ऑब्जर्व किया गया जिनकी बॉडी में रैपिड ओनिक्स एसिड ज्यादा था और रिज़ल्ट में पता लगा की इन लोगों में नॉर्मल लोगों से 47% ज्यादा डिप्रेशन में जाने के चान्सेस है और फोर्ट 55% चान्सेस सूइसाइड के हैं। सो अगर हम देखे की रैंकिंग धोनी कै। सिड किन फूड्स में होता है तो हमें मेनली मिलते हैं चिकन गज़, बीफ, फिश और वो डिशेस जिनमें मेनली ऐनिमल बेस्ड फूड्स को यूज़ करा जाता है। इस फाइन्डिंग के बाद रिसर्चर्स ने सजेस्ट कर रहा था कि एक मेडिटेरेनियन डाइट डिप्रेशन को कम करने में काफी पॉवरफुल हो सकती है, क्योंकि मेडिटेरेनियन डाइट में बस फ्रेश फ्रूट्स, वेजिटेबल्स, ग्रेन्स, लेग्यूम्स और अब जैसी चीजें होती है। और उसमें सी फूड बस फ्लेवरिंग की तरह यूज़ होता है। सिमिलर ईटिंग पैटर्न्स हमें ब्लू ज़ोन्स में रहने वाले लोगों में भी दिखता है जिनको उनकी लंबी लाइफ के लिए भी जाना चाहता है। सिमिलरली अगर हम इंडिया की बात करें तो यहाँ पर भी रीजनली हमारे को फ्रूट्स, वेजिटेबल्स और ग्रीन्स काफी ज्यादा क्वांटिटी में मिलता था और मीट मॉडरेट क्वालिटीज में सेकंड स्टेप है। सबसे जरूरी माइक्रो न्यूट्रिअन्ट्स को अपनी डाइट में ऐड करना माइक्रो न्यूट्रिअन्ट्स जैसे वाइटमिन सी जो की इनके बनने में यूज़ होता है। ट्रिप्टोफेन से टोन्न के बनने में और लूटी वाले और किसी टीम जैसे फाइटोकेमिकल्स इन हैप्पी न्यूरोट्रांसमीटर सको वेस्ट होने से बचाते हैं। इसके साथ ही फोलेट, मैग्नीशियम, ओमेगा थ्री, स् और जिंक जैसे न्यूट्रिअन्ट्स की कमी भी डिप्रेशन क्रिएट कर सकती है। थर्ड स्टेप है अपनी डाइट में एंटीऑक्सिडेंट्स को ऐड करना क्योंकि बढ़ता है वैन्स ये बताता है कि हमारी बॉडी में मौजूद ऑक्सिडेटिव फ्री रैडिकल्स हमारी मेंटल हेल्थ को खराब कर सकते हैं। इसको टेस्ट करने के लिए कनाडा में हुई एक स्टडी में देखा गया। नहीं, जो लोग ज्यादा फ्रूट्स और वेजिटेबल्स खाते हैं, उनमें एन्टीऑक्सिडेंट्स इन फ्री रैडिकल्स को खत्म कर देते हैं। इसके साथ ही एक दूसरी स्टडी में इन एंटीऑक्सीडेंट को डाइरेक्टली मेजर करा गया और तब पता लगा कि जिन लोगों की बॉडी में ऑरेंजेस और कैरेट्स में मिलने वाला ऐन्टी ऑक्सीडेंट कैरेटोनॉइड ज्यादा था, उनमें डिप्रेशन के सिम्पटम्स कम थे और ये रिज़ल्ट डोस डिपेन्डेन्ट था। यानी जितना ज्यादा उन लोगों ने कॉन्स्यूलर किया उतना ही ज्यादा उनका मूड बेहतर हो गया और टोमैटोस में मिलने वाला एंटीऑक्सीडेंट लाइकोपिन सबसे ज्यादा इस कैरेटोनॉइड्स में से एक है इतना तेज कि इसका इफेक्ट वाइटमिन इसे ऑलमोस्ट 100 टाइम ज्यादा है। एक और स्टडी में रिसर्चर्स ने 1000 लोगों के सेट में ऑब्जर्व करा कि जिन लोगों ने सबसे ज्यादा टमेटोज़ खाएं, उनमें डिप्रेशन के चान्सेस ऑलमोस्ट आधे थे। और तभी रिसर्चर्स ने कॉन्कलेव डकरा की एक टोमैटो रिच डाइट अपने आप में ही डिप्रेशन के सिम्पटम्स को बेहतर बना सकती है। पर इसमें एक कैच है की अगर हम इन सम न्यूट्रिअन्ट्स को सप्लिमेंट्स के थ्रू ले तो उससे डिप्रेशन में कोई चेंज नहीं आता। यानी सिर्फ होल फूड्स ही डिप्रेशन को कम कर सकते हैं। कोई एन्टीऑक्सिडेंट पिल या फिर मल्टीविटामिन नहीं फ़ोर स्टेप है अपनी गट माइक्रोबायोम को इम्प्रूव करना यानी अपने इन्ट्रेस्ट इसमें मौजूद गुड बैक्टीरिया को बढ़ाना और बैड बैक्टीरिया को कम करना हमारे में इतनी सारी नर्वस होती है कि जो भी हम खाते हैं वो हमारे मूड को इफेक्ट करता है और तभी हमारी सेकंड ब्रेन भी बोला जाता है। इसके साथ ही हमें ये भी पता होना चाहिए कि हमारी बॉडी का 90% सिरोटोनिन हमारी मैं ही बनता है तो क्वेश्चन अब ये है की हम अपने गट बैक्टीरिया को कैसे इम्प्रूव करे? वेल हमें बस दो चीज़ो को ध्यान में रखना है फर्स्ट हम प्रिय और प्रोबायोटिक्स खोलें यानी वो फूड्स जो गुड बैक्टीरिया को बढ़ाते हैं जैसे चीज़, गार्लिक, ओनियन, टोमैटोस, योगर्ट, एक्स्ट्रा और सेकंड। हम अपना स्ट्रेस कम रखें क्योंकि स्ट्रेस हमारे गुड बैक्टीरिया को मार सकता है और इससे प्रूफ करने के लिए एक स्टडी में स्टूडेंट्स को लिया गया और उनके गट बैक्टीरिया को एग्ज़ैम से पहले मेजर करा गया। जोकि नॉर्मल लेवल पर था। पर एग्ज़ैम के दिन ये लेवल नॉर्मल से गिरकर काफी नीचे आ गया और पूरे हफ्ते और कम होता गया। यानी हमारी मेंटल स्टेट हमारी कर सकती है और हमारी हमारी मेंटल स्टेट को जिसतरह से एक अच्छी डाइट हमारी फिजिकल हेल्थ को इंप्रूव कर सकती है वैसे ही वो हमारी मेंटल हेल्थ को भी इम्प्रूव कर सकती है। 2012 की एक स्टडी में लोगों की इनकम, लाइफ स्टाइल और स्टेटस जैसे फैक्टर्स को हटाने के बाद भी देखा गया कि बस फ्रूट्स और वेजिटेबल्स ज्यादा खाने से ही लोगों में डिप्रेसिव सिम्पटम्स कम हो जाते हैं। सो नेक्स्ट टाइम जब भी हम शॉपिंग करने जाए तो हमारी ग्रोसरी लिस्ट में टोमैटोज़ ओर इन जेस, कीवी, लेमन ग्रास, ब्लूबेरी, ज़, चिक पीस, किडनी, बीन्स, नट्स, सीड्स, कैरेट्स, गार्लिक, स्पेनिश, योगर्ट और ओनियन जरूर होने चाहिए। परमिट्स और एक स्कोर इल्ली या फिर मॉडरेटली खाना बेस्ट है ऐंड रिमेम्बर, ये सारे फूड्स हमें अर्थ से मिलते हैं और इनमें सनकी एनर्जी होती है और तभी या तो हम इन्हें खाकर अपनी बॉडी को नरेश कर सकते हैं। या फिर हम डैड फूड को खाकर बस एक मूवमेंट के लिए अच्छा फील कर सकते हैं। ऑप्शन हमारे हाथ में है।","अवसाद के कुल मामलों में से लगभग 45% व्यक्ति के आहार के कारण होते हैं, यही कारण है कि अवसाद के इलाज के लिए आहार संबंधी दृष्टिकोण पूरी तरह से समझ में आता है। यह संबंध मुख्य रूप से हमारे आंत-मस्तिष्क अक्ष और तनाव, चोट, बीमारी या जंक फूड के कारण होने वाली सूजन के कारण मौजूद है। यह अवसाद पर नई श्रंखला की 3 में से 2 ऑडियो क्लिप है। इस वीडियो में, मैंने हमारे मनोदशा और समग्र भावनात्मक स्थिति को विनियमित करने में आहार की भूमिका पर चर्चा की। यह पॉडकास्ट कुछ सवालों के जवाब दे सकता है जैसे रोगी के आहार को सही करना क्यों महत्वपूर्ण है, पहला सूक्ष्म जीव-रोग कनेक्शन कब बनाया गया था, सूजन को कम करने के लिए क्या खाना चाहिए, आंत के माइक्रोबायोम में सुधार के लिए क्या खाना चाहिए, मुक्त कणों से लड़ने के लिए क्या खाना चाहिए, अधिकांश मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर अवसाद को ठीक करने के लिए भूमध्यसागरीय आहार का सुझाव क्यों देते हैं, हमारे पूर्वजों ने क्या खाया और कुछ सबसे गुणकारी खाद्य पदार्थ क्या हैं जिन्हें हमें अपनी किराने की सूची में शामिल करना चाहिए? इस श्रंखला के पॉडकास्ट: 1. डिप्रेशन क्या है: लक्षण, कारण और इलाज 2. डिप्रेशन डाइट: मेटाबोल…" "डॉक्टर जॉन मेडिना की ब्रेन रूज़ एक ऐसी बुक है जो बताती हैं कि किस तरह से साइनस की नॉलेज हमारे पढ़ने, पढ़ाने या काम करने के ढंग को इम्प्रूव कर सकती है। चाहे आप एक स्टूडेंट, टीचर, पैरेंट हाउस वाइफ, हस्बैंड या एक वर्कहॉलिक बिज़नेस मैन हो। ये सिंपल रूल्स आपको समझाएंगे कि आपका दिमाग किन कंडिशन्स में बेस्ट काम करता है और कैसे आप इन रूल्स को अपनी डेली लाइफ को ट्रांसपोर्ट करने के लिए यूज़ कर सकते हो? नंबर वन दिमाग एक सर्वाइवल ऑर्गन है। इस रूल के साथ डॉक्टर मेडिना बताते हैं कि हमारा दिमाग हर समय बदलते आउटडोर एनवायरनमेंट की प्रॉब्लम्स को सॉल्व करने के लिए बना है। जस्ट बिकॉज़ हम बड़े जानवरों से ताकतवर नहीं थे। हमारी सारी ताकत हमारा दिमाग ही था। यानी किस तरह से हम अपनी गलतियों से सीखते हैं और जिंदा रहने के लिए दूसरे इंसानों के साथ कॉर्पोरेट करते हैं? एक दूसरे को समझने की ये एबिलिटी हजारों सालों तक हमारी सबसे जरूरी सर्वाइवल स्ट्रैटेजी रही है। पर आज के टाइम पर एक स्कूल या वर्क एनवायरनमेंट में अगर कोई इंसान अपने टीचर, बॉस या कोलीग के साथ सेफ नहीं फील करता और ग्रुप के बीच में ट्रस्ट की कमी है तो ऐसा एनवायरनमेंट कुछ भी सीखने या प्रोडक्टिविटी को मैक्सिमाइज करने के लिए बेकार है। अपनी क्रिएटिविटी को बाहर लाने के लिए और दिमाग को इफेक्टिव ली यूज़ करने के लिए एक ऐसा एनवायरनमेंट चुनो, जहाँ पर पूरा ग्रुप एक शेड गोल की तरफ काम करता है और सब एक दूसरे के डिफ़रेंट ओपिनियन्स को रिस्पेक्ट करते हैं। रोल नम्बर टू एक्सरसाइज हमारी ब्रेन पावर बढ़ती है। हमारा दिमाग उन कंडीशन्स में इवॉल्व हुआ है जहाँ पर हम कॉन्स्टेंट ली मोशन में होते थे जिसकी वजह से हमारे लिए किसी भी इन्फॉर्मेशन को प्रोसेसर करने के लिए बेस्ट कंडिशन्स वो होती है जिसमे हम एक जगह पर बैठे रहने के बजाय अपनी बॉडी को मूव कर रहे होते हैं। एक रिसर्च में ये देखा भी गया कि जब एक सैनिटरी पॉप्युलेशन एक ऐक्टिव लाइफस्टाइल अडॉप्ट करती है, तब उनके कॉग्निटिव स्कोर्स बढ़ने लगते हैं। स्पेसिअली अगर वो एक एक्सरसाइज करते हैं जैसे रनिंग, वॉकिंग, स्विमिंग या साइक्लिंग। ये इसलिए होता है क्योंकि एक्सरसाइज करने से हमारे दिमाग में मौजूद न्यूरॉन्स की तादाद बढ़ती है और उस तक ऑक्सीजन और ग्लूकोज भी ज्यादा पहुंचता है। ऑक्सीजेन अनस्टेबल इलेक्ट्रॉन्स यानी फ्री रैडिकल्स को कम करती है और हमारी मेंटल शार्पनेस को बढ़ाती है और ग्लूकोज का काम होता है दिमाग को एनर्जी प्रोवाइड करना। रिसर्च के हिसाब से बेस्ट रिज़ल्ट पाने के लिए आपको हफ्ते में एटलिस्ट दो से तीन बार 30 मिनट तक एरोबिक एक्सरसाइज करनी है और अगर आप इसके साथ स्ट्रेंथ ट्रेनिंग भी करो तो वो और भी अच्छा है। पर अगर आपके पास इतना टाइम नहीं है तो लॉन्ग डिस्टेंस वॉकिंग ब्रेन पावर इन्क्रीज़ करने का सबसे सिंपल और इफेक्टिव तरीका है रूल नंबर थ्री। आपकी स्लीप क्वालिटी डाइरेक्टली रिलेटेड है आपकी थिंकिंग कैपेबिलिटीज से डॉक्टर मेडिना ने बताया है कि किस तरह से सोते टाइम भी हमारा दिमाग ऐक्टिव रहता है और मैं बिस का रीज़न है। दिन में ली गई इन्फॉर्मेशन को प्रोसेसर करना। और नई चीजों को याद करना जेनरली हर इंसान को कितनी नींद चाहिए होती है और कब चाहिए होती है, ये वेरी करता है पर दोपहर के टाइम पर नींद आना हर इंसान के लिए काफी नॉर्मल है क्योंकि लगभग 3:00 बजे के आसपास हमारी बॉडी में नीम पैदा करने वाले और सुस्ती लाने वाले केमिकल्स पीक पर होते हैं। यहाँ तक की एक रिसर्च में जब लोग दोपहर में सिर्फ 20-25 मिनट के लिए सोये, तब उनकी मेंटल परफॉरमेंस में 34% की इम्प्रूवमेंट हुई। 100 कोशिश करो की आप 7-8 घंटे की नींद जरूर पूरी करो और अगर दोपहर में नींद आये तब भी एट लिस्ट 15-20 मिनट की झपकी जरूर लो। रोल नंबर फ़ोर आपका दिमाग लंबे समय तक स्ट्रेस सहने के लिए नहीं बना हमारा डिफेन्स सिस्टम एड्रेनेलिन और कॉर्टिसोल जैसे स्ट्रेस हॉर्मोन्स की मदद से हमें किसी इमीडिएट डेनजरस से दूर भागने की एनर्जी और मोटिवेशन देता है और जैसे ही हम डेंजर ज़ोन से बाहर आ जाते हैं वैसे ही ये हॉर्मोन्स भी कम हो जाते हैं। पर जब हम लंबे समय तक स्ट्रेस रहते हैं, घर पढ़ाई या काम की प्रॉब्लम्स की वजह से तब यही स्ट्रेस हॉर्मोन्स हमारी ब्लड वेसल्स को डैमेज करना स्टार्ट कर देते हैं जिससे हमें हर्ट अटैक या स्ट्रोक हो सकता है। इसके साथ ही कोर्टिसोल के बढ़ने से हिप्पो कैंपस में मौजूद सेल्स खराब होने लग जाते हैं, जिसकी वजह से चीजों को समझना और याद रखना भी मुश्किल हो जाता है। इसलिए यह सोचने के बजाय कि आप अपने सरकमस्टान्सेज को नहीं बदल सकते, अपनी सिचुएशन की रिस्पॉन्सिबिलिटी लो। एक काम माइंड के साथ सॉल्यूशन ढूंढो। और साथ साथ अपनी केर भी करो। रूल नंबर फाइव हर दिमाग डिफ्रेंट्ली वाइड होता है। जो भी आप अपनी लाइफ में करते और सीखते हो वो आपके दिमाग को दूसरे लोगों के दिमाग से फिज़िकली डिफ़रेंट बनाता है। यानी किसी भी दो इंसानों के दिमाग से नहीं हो सकते हैं। इसके साथ ही हमारे हर न्यूरॉन का एक अलग फंक्शन हो सकता है। जैसे एक एक्सपेरिमेंट में देखा गया कि जब एक रिसर्चर ने एक सब्जेक्ट को अमेरिकन ऐक्ट्रेसस जेनिफर ऐनिस्टन की फोटो दिखाई। तब उसके दिमाग में एक न्यूरॉन ऐक्टिवेट हुआ और वहीं न्यूरॉन बार बार ऐक्टिवेट हुआ। इस एक्ट्रेस की अलग अलग पिक्चर्स को देखकर जबकि दूसरी इमेजेज देखते टाइम ये न्यूरॉन ऐक्टिवेट नहीं हुआ। इससे उन्हें ये समझ आया की हमारे दिमाग में मौजूद हर न्यूरॉन एक यूनीक पीस ऑफ इंफॉर्मेशन को स्टोर कर सकता है और वो तभी ऐक्टिवेट होगा जब आप उस इन्फॉर्मेशन को दोबारा एनकाउंटर करते हो जिसका मतलब जिन लोगों या सेलिब्रिटीज़ के साथ अब फैमिलियर हो उन्हें पहचानने के लिए आपके दिमाग में एक स्पेशल न्यूरॉन है। रोल नंबर सिक्स हम बोरिंग चीजों को इग्नोर करते हैं और हम किन चीजों को अटेन्शन देते हैं ये हमारी मेमोरी इन्ट्रेस्ट कल्चर और उस चीज़ से मिलने वाली आउटकम पर डिपेंड करता है, क्योंकि ये सारे फैक्टर्स या इवेंट्स हमें इमोशनल बनाते है और जिसकी किसी भी चीज़ के साथ हमारे इमोशन से जुड़ जाते हैं वो हमें लंबे समय तक और ज्यादा ऐक्यूरेट्लि याद रहती है क्योंकि पॉज़िटिव इमोशन्स एक ऐसी ऑपर्च्युनिटी सिग्नल करते हैं। जो हमारे सर्वाइवल और रीप्रोडक्शन के चान्सेस को बढ़ा सकती है और नेगेटिव इमोशन्स हमारा ध्यान इसलिए खींचते हैं क्योंकि नेगेटिव चीजे हमें मार सकती है। रूल नंबर सेवन कुछ भी याद करने के लिए उसे रिपीट करो। हमारी शॉर्ट टर्म मेमोरी एक समय पर बहुत लिमिटेड इन्फॉर्मेशन को स्टोर कर सकती है जिसकी वजह से किसी भी चीज़ को याद करने के लिए हमें उसे बार बार दोहराना पड़ता है। इसके साथ ही जब भी हम अपने दिमाग को कोई इन्फॉर्मेशन देते हैं तब वो उसे टुकड़ों में बांटकर को टैक्स के अलग अलग हिस्सों में भेज देता है। स्टोरेज के लिए और इस इन्फॉर्मेशन के साथ जितनी डिटेल और कॉन्टैक्ट जुड़ा होता है, उतना ही लंबे समय तक हमें वो याद रहता है। रूल नंबर एट हमारी सेन्स इस साथ मिलकर काम करने के लिए बनी है और तभी कुछ भी लर्न करने के लिए सिर्फ एक सेन्स पर रिलायं मत करो। जाम पल के तौर पर स्मेल एक ऐसी सेन्स है जो अपने साथ काफी यादों को कैर्री करती है, जिसकी वजह से कुछ भी याद करने के लिए पढ़ते टाइम अपने रूम में एक सेंटेड कैंडल या इवन एक परफ्यूम को यूज़ करो और वही कैंडल या परफ्यूम दुबारा तब यूज़ करो जब आप उस इन्फॉर्मेशन को याद करना चाहते हो। रूल नंबर नाइन विज़न सबसे जरूरी सेन्स है। ये हम जानते भी है कि अगर हम किसी इंसिडेंट के बारे में सुनते या पढ़ते हैं तो कुछ दिनों बाद हमें मुश्किल से उसका 10% याद रहता है। पर जब हम किसी इन्फॉर्मेशन को विज़ुअली कॉस्टयूम करते हैं, तब वह हमें लंबे समय तक याद रहती है, क्योंकि अपने एवोल्यूशनरी पास्ट में हमने डेनजरस खाना या रीप्रोडक्टिव ऑपर्च्युनिटी को देखकर ही समझा है और उसके बाद वर्ड्ज़ या सिंबल्स में पोर्ट करा है। रूल नंबर 10 हम गाने बनाने और सुनने से भी स्मार्ट बन सकते हैं। कई स्टडीज़ बताती हैं कि म्यूज़िकल ट्रेनिंग लोगों की रीडिंग एबिलिटी, मैक्स, इमोशनल इन्टेलिजेन्स और लैंग्वेज प्रोसेसिंग इम्प्रूव कर सकती है और म्यूसिक सुनना हमारी वोकैब्लरी सेन्सरी मोटर स्किल्स और वर्किंग मेमोरी को इम्प्रूव कर सकता है। और ये बेनिफिट अलग अलग एज ग्रुप्स में भी देखने को मिलता है। ये इसलिए होता है क्योंकि म्यूसिक भी हमारे अंदर इमोशनल को बढ़ाता है जिसकी वजह से हमें अपनी कई अलग अलग स्किल्स में एक टेंपरेरी बूस्ट मिल जाता है। रूल नंबर 11 मेल्स और फीमेल्स का दिमाग एक दूसरे से अलग होता है। मेंटल हेल्थ प्रोफेशनल्स इस रूल को सालों से जानते हैं क्योंकि कई मेंटल डिस्ऑर्डर स् जैसे स्किजोफ्रेनिया लड़कों में ज्यादा देखने को मिलता है पर डिप्रेशन लड़कियों में ज्यादा होता है। इसके साथ ही प्यूबर्टी के टाइम लड़के ज्यादा एंटी सोशल बिहेव्यर दिखाते हैं और लड़कियों में एंजाइटी बढ़ जाती है। स्ट्रेस के टाइम लड़कों के राइट है, मिस फेर का ऐक्टिवेट होता है, जो उन्हें सिचुएशन को आउटलाइन करके उसे समझने में आसान बनाता है। जबकि लड़कियों में स्ट्रेस के टाइम लेफ्ट हेमिस्फेयर का ऐक्टिवेट होता है जो उन्हें सिचुएशन की डिटेल्स समझने के काबिल बनाता है। रोल नंबर 12 हम एक्स्प्लोर करने के लिए बने हैं। ये रूल बताता है कि हम चीजों को समझने का तरीका एक काफी छोटी उम्र से सीख जाते हैं क्योंकि जब हम किसी चीज़ को एक बच्चे के हाथ में देते हैं तब वो उसे फील करता है, पलटता हैं, कान या मुँह में डालता है और उसे तोड़कर देखता है ताकि वो उसके बारे में कुछ जरूरी इन्फॉर्मेशन ठीक कर पाए और उसकी प्रॉपर्टीज़ को समझ पाए। हमारी चीजों को समझने की यही डीज़इर हमारे एक ऐडल्ट बनने के बाद भी हमें अपने एनवायरनमेंट को समझने के लिए क्युरिअस बनाती है ताकि हमारा दिमाग कॉन्स्टेंट ली चेंज होता रहे और हम नयी नयी चीज़े सीखते रहें।","ब्रेन रूल्स डॉ. जॉन मदीना द्वारा लिखित एक पुस्तक है जिसमें 12 अध्याय हैं जो प्रदर्शित करते हैं कि हमारा मस्तिष्क कैसे काम करता है। प्रत्येक अध्याय उन चीजों को प्रकट करता है जो वैज्ञानिक पहले से ही मस्तिष्क के बारे में जानते हैं, और चीजें जो हम लोग करते हैं जो प्रभावित कर सकती हैं कि हमारा मस्तिष्क कैसे विकसित होगा। 📽️यूट्यूब पर हमें खोजें: WWW.YOUTUBE.COM/PSYCHOLOGYINHINDI" "जिद्दू कृष्णमूर्ति एक इंडियन फिलॉसफर और राइटर थे जो सोसाइटी में एक बड़ा बदलाव लाना चाहते थे। लोगों की अवेर्नेस बढ़ाके और उन्हें अपनी लाइफ की रिस्पॉन्सिबिलिटी लेना सिखाके वह खुद को किसी भी कास्ट, रिलिजन, नैशनलिटी या फिलॉसफी से आइडेंटिफाइ नहीं करते थे और वो बचपन से ही जो भी उन पर रूल्स लगाये जाते थे उन्हें तोड़ने की कोशिश करते थे। कृष्णमूर्ति की फिलॉसफी ऐसी है जिसमें वो आपको आपके लेवल पर आकर बात करते हैं और वो खुद को कोई बहुत महान या सुपिरिअर इंसान नहीं बल्कि एक साधारण इंसान की तरह दिखाते थे। और अपने लेक्चर्स में ऑडियंस को बोलते थे कि चलो आज हम साथ में सच को ढूंढने की कोशिश करते हैं। इसलिए अपनी मेंटल क्लैरिटी बढ़ाने और पर्सनल ग्रोथ को एक बूस्ट देने के लिए हमेशा एपिसोड में कृष्णमूर्ति के कई जरूरी लाइफ लाइसेंस को डिस्कस करेंगे। लेसन नंबर वन सेल्फ नॉलेज नेवर एण्ड्स कृष्णमूर्ति बोलते हैं कि जितना तुम खुद को जानोगे, उतनी ही तुम्हारी क्लैरिटी बढ़ेगी। सेल्फ नॉलेज एक ऐसा प्रोसेसेस है जिसका कोई अंत नहीं होता। आप कभी भी ये नहीं बोल सकते हैं कि आपने सेल्फ नोइंग हासिल कर ली है। या फिर आपकी सेल्फ रियलाइजेशन कंप्लीट हो गयी है। हम नॉलेज को नोर्मल्ली एक लिमिटेड प्रोसेसर की तरह समझते हैं, जो हमारे स्कूल या कॉलेज पूरा होने के बाद खत्म हो जाता है या फिर ज्यादा से ज्यादा हम बुक्स रीड करने को नॉलेज समझ बैठते हैं। लेकिन कृष्णमूर्ति के हिसाब से नॉलेज का कभी भी कोई शुरुआती या अंतिम छोड़ नहीं होता। आप जब भी स्पिरिचुअल डेवलपमेंट के रास्ते पर आगे बढ़ने की कोशिश करते हों, तब आप इसी अन्डरस्टैन्डिंग पर आते हो कि अब आप खुद को पहले से ज्यादा जानते हो और दिन पर दिन आपकी खुद को लेकर समझ बढ़ती जा रही है। हर दिन आप सच के ऊपर से एक नई लेयर को हटाते हो और ग्रो होते चले जाते हो। लेसन नंबर टू वॉक इस लेसन के थ्रू कृष्णमूर्ति हमें नैचर के पास जाने और नेचर के प्रोसेसेस को ऑब्जर्व करने को बोलते हैं। ये एक ऐसी वॉक होती है जिसमें आपका शरीर तो मूव कर रहा होता है लेकिन आपका मन एकदम स्थिर होता है। कृष्णमूर्ति बोलते है कि तुम्हें कभी भी किसी ने अकेला रहना नहीं सिखाया। क्या तुम कभी अकेले वॉक पर गए हो? अकेले वॉक पर जाना, एक पेड़ के नीचे बैठना, वो भी बिना किसी बुक या साथी के। ये बहुत जरूरी होता है। अकेले नेचर में एक गिरती पत्ती को देखो पानी में छपाछप आहट मछुआरे का गाना चिड़िया की उड़ान हर चीज़ को बिना किसी डिस्ट्रैक्शन के ऑब्जर्व करना सीखो। अगर तुम अकेले रहकर इन चीज़ो को देखो तो तुम्हें एक ऐसा अनोखा खजाना मिलेगा जिसपर ना तो कोई गवर्नमेंट टैक्स लगा सकती है और ना ही जिसे नष्ट करा जा सकता है। लेसन नंबर थ्री डोंट रियली ऑन योर गुरु कृष्णमूर्ति को कोई भी अथॉरिटी या फिर अपने ऊपर कोई कमांड देता है। इंसान नहीं पसंद था क्योंकि उनके हिसाब से प्रॉब्लम अपने आप में गुरु ये मास्टर बनाने में नहीं है, बल्कि प्रॉब्लम ये है कि गुरु होने से एक शिष्य के मन में यह एक्स्पेक्टेशन आ जाती है कि मैं सच को जानने और खुद को बेहतर बनाने के लिए मेहनत तो कर रहा हूँ लेकिन अगर मैं किसी मुश्किल में फंस गया तो मेरे गुरु मुझे वहाँ से भी निकाल लेंगे। इस तरह की सोच एक इंसान को पूरी तरह से अपनी रिस्पॉन्सिबिलिटी लेने से रोकती है। एक गुरु का काम कभी भी आपको आपकी मुश्किलों से बाहर निकालना नहीं बल्कि बस आपको यह सीखाना होता है कि आप खुद कैसे अपनी प्रॉब्लम्स को सॉल्व कर सकते हो। आपका गुरु आपके लिए सच के रास्ते पर नहीं चल सकता। ये एक ऐसा काम है जो आपको खुद ही करना पड़ता है। इसलिए कभी भी किसी अथॉरिटी के सहारे मत बैठे रहो कि आपका टीचर, गुरु, रिलिजन या पॉलिटिशियन कोई भी आकर आपको बचाएगा। जो सीखने का है वह लोगों से सीखो और फिर खुद अपनी मेहनत और लगन के बेसिस पर आगे बढ़ो। लेसन नंबर फ़ोर बी पैसिव वीवेर कृष्णमूर्ति बोलते हैं कि बिना अपने खयालों और फीलिंग्स के बारे में अवेयर हुए हमें समझ ही नहीं सकते की सही तरह से ऐक्ट कैसे करा जाता है और सही तरह की सोच क्या होती है। इसी वजह से आपकी हर डिस्कशन, हर देखी हुई विडिओ, सुनी हुई बात या पढ़ाई का पर्पस यही होता है कि कैसे भी करके आप खुद के ख्यालों के बारे में अवेयर हो जाओ। अपने किसी भी ख्याल को जज मत करो और ना ही दुनिया में किसी भी चीज़ पर अच्छे या बुरे का लेबल लगा हो। कृष्णमूर्ति बोलते हैं कि अवेर्नेस का मतलब है बिना किसी चॉइस नफरत या वजह के ऑब्जर्व करना। अवेर्नेस वो ऑब्जर्वेशन होती है जिसकी मदद से एक्सपिरियंस करने वाले और जो एक्स्पीरिएंस खुद हैं, उनके बिना सच को देखा और समझा जा सकता है। अवेर्नेस में कोई मैं या तू नहीं होता। आप बस पेसिवली यानी बिना किसी पक्षपात के किसी प्रॉब्लम या सॉल्यूशन को देख पाते हो और उसे पूरा खेलने देते हो ताकि आप उसे आस इट इस जान सको। लेसन नंबर फाइव सेपरेशन ब्रीड्स वाइअलन्स जिद्दू कृष्णमूर्ति बोलते है कि जब भी हम खुद को हिंदू, मुस्लिम, क्रिस्चन या यूरोपियन या कोई भी दूसरी आइडेंटिटी के साथ जोड़ते हैं तब हम वायलेंट बन रहे होते हैं, क्योंकि इस तरह से खुद को दूसरों से अलग लेबल करने से हम अपने और दूसरों के बीच एक्सप्रेशन क्रिएट कर देते हैं। और जब भी हम अपने बिलीफ, नैशनलिटी रिलिजन या ट्रेडिशन के बेसिस पर सेपरेशन बनाते हैं तब हिंसा का होना तय है। इसी वजह से जो भी इंसान शांति और सच की तरफ बढ़ता है वो ये बोलने लगता है कि वो किसी देश, किसी धर्म या फिर किसी पॉलिटिकल पार्टी से बिलॉन्ग नहीं करता। वो बस पूरी इंसानियत को समझने से मतलब रखता है और सेपरेशन इस सच में बाधा डालती है। लेसन नंबर सिक्स बी फ्री ऑफ डिज़ाइनर कृष्णमूर्ति बोलते है कि कुछ ना चाहने कुछ ना बनने और कही ना जाने में सबसे गहरी तरह की खुशी छुपी होती है। बहुत से लोग हर समय कहीं जाना चाहते हैं। वो कुछ बनना चाहते हैं और हर चीज़ करने के बाद भी उन्हें कोई सैटिस्फैक्शन नहीं आती। हर डिज़ाइनर हमें बांध कर रख देती है और हम खुशी और फुलफिलमेंट को अपने से बाहर ढूँढने लगते हैं। लेकिन यह रास्ता अब खुद के लिए नहीं बनाते हैं बल्कि सोसाइटी आपको बना कर देती है। नैचुरली हर इंसान अपने ही पैशन्स और इन्ट्रेस्ट को पर्स यू करता। लेकिन पैरेन्ट्स, टीचर्स और सोसाइटी हमे सेफ खेलने और हर वो काम करने को बोलती है। जो वो खुद नहीं कर पाई। जबकि कृष्णमूर्ति के हिसाब से एक अच्छी जिंदगी वो होती है जिसे आप दुसरो की एक्सपेक्टेशन्स पर वेस्ट करने के बजाय खुद के बनाए रास्ते पर चलते हो और खुद ही सच का फर्स्ट हैंड एक्सपीरियंस लेते हो। लेसन नंबर सेवन वॉन्ट इन ग्लव इस नॉट लव कृष्णमूर्ति बोलते है कि तुम ऐसा फील करना चाहते हो कि दूसरे लोग तुमसे प्यार करते है। जस्ट बिकॉज़ तुम खुद प्यार में नहीं हो लेकिन जैसे ही तुम असली प्यार की गहराइयों में डूबते हो, वहीं से तुम्हारी प्यार की नीड खत्म हो जाती है और तुम ये सोचना बंद कर देते हो। कि कोई तुम्हें प्यार करता है या नहीं। यानी असली प्यार किसी एक पर्टिकुलर इंसान के लिए नहीं बल्कि वो तो इंसानियत के भी पार चला जाता है और प्यार करने वाले को भी अपने अंदर संभाल लेता है। लेकिन जीस चीज़ को हम प्यार बोलते और समझते हैं। वो बस एक फिज़िकल अट्रैक्शन या साइकोलॉजिकल प्रोजेक्शन होती है जिसमे हम दूसरे इंसान से कुछ लेना चाहते हैं पर असल में हम उन में खुद को ही ढूंढने की कोशिश कर रहे होते हैं। इसी वजह से असली प्यार को फील करने के लिए आपको कोई दूसरा इंसान नहीं चाहिए होता। आपको बस खुद के अंदर जाकर खुद की महत्वहीनता समझने की हिम्मत चाहिए होती है। असली प्यार आपकी ईगो को डिसॉल्व करके आपको एक खुद से बड़ी रिऐलिटी से जोड़ देता है। हमारा प्यार तो ऐसा होता है जो आज है और कल नहीं। आप आज किसी को चाहते हो और कल उससे बात करके और उसकी दो बातें जानकर उसे चाहना बंद कर देते हो। लेकिन जीस प्यार की कृष्णमूर्ति बात कर रहे हैं। उसका ना तो कोई जन्म होता है और ना ही कोई अंत। वह प्यार एक पवित्र नदी की तरह होता है जिसमे आप भी डुबकी लगाकर खुद को साफ कर सकते हो। इसलिए अपनी प्यार की बाउंड्रीज को सिर्फ इंसानों तक सीमित मत रखो। दूसरों में खुद को नहीं बल्कि खुद में दूसरों को ढूंढने से शुरुआत करो और देखो कि आपको क्या मिलता है। लेसन नंबर एट अग्रेशन कम्स आउट ऑफ इर अगर इस धरती पर हर इंसान डरना बंद कर दें तो ये पक्का है कि इस दुनिया से धीरे धीरे करके अग्रेशन गायब हो जाएगा और लोग दूसरों पर गुस्सा गणना या उन्हें नीचा दिखाना भी बंद कर देंगे। कृष्णमूर्ति बोलते है कि जो इंसान डरा हुआ नहीं होता वो एग्रेसिव भी नहीं होता। एक ऐसा इंसान जिसमें कोई डर की भावना नहीं होती, वो एक बहुत ही फ्री और पीसफुल इंसान होता है। हमें नैचुरली दूसरों से लड़ने की जरूरत भी तभी फील होती है जब हमें ऐसा लगता है कि हम खतरे में है और हमें खुद को सुरक्षित रखने की जरूरत है। इसलिए हम डिफेंसिव हो जाते हैं। इसी वजह से जो लोग सबसे ज्यादा गुस्सा करते हैं या आपकी नॉर्मल बातों पर भी ऑफ हो जाते हैं, वो इसलिए ऐसा करते हैं क्योंकि वो अंदर से बहुत ही डरे हुए होते हैं। हर तरह के डर की जड़ होता है। मौत का डर इसलिए दुनिया में शांति लाने का एक बहुत जरूरी हिस्सा होता है अपनी मौत की रिऐलिटी को एक्सेप्ट करना और यह समझना कि सिर्फ वो इंसान ही अपनी लाइफ में सच्ची खुशी ढूंढ पाता है। जो अपनी डेथ में भी खुशी ढूंढ लेता है क्योंकि डेथ के बिना लाइफ अधूरी है।","जिद्दू कृष्णमूर्ति एक भारतीय दार्शनिक और लेखक थे जो समाज में आमूलचूल परिवर्तन लाना चाहते थे। उन्होंने खुद को किसी भी धर्म, जाति या राष्ट्रीयता से नहीं जोड़ा और उन सभी नियमों को तोड़ने की कोशिश की जो इन अधिकारियों/संस्थाओं द्वारा उन पर लगाए गए थे। वह कभी किसी का गुरु नहीं बनना चाहता था या बौद्धिक होने के लिए प्रसिद्धि नहीं चाहता था। लेकिन जैसे-जैसे लोगों ने उसे सुनना शुरू किया, बहुतों को यह स्पष्ट हो गया कि यह व्यक्ति आपके विशिष्ट आध्यात्मिक गुरु जैसा नहीं है। व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर कृष्णमूर्ति का जोर और समस्याओं का विश्लेषण करने का उनका तरीका ही उन्हें अद्वितीय बनाता है। तो, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम जे कृष्णमूर्ति के व्याख्यानों और शिक्षाओं से जीवन के 8 महत्वपूर्ण पाठों के बारे में बात करेंगे।" "अगर आप ये मानते हो कि मरे हुए लोग किसी तरह से वापस इस दुनिया में आ सकते हैं दूसरों को परेशान करने के लिए तो आप ऐसा बिलीफ रखने के लिए अकेले नहीं हो। हर चार में से एक इंडिया नहीं यह मानता है कि भूत असली होते हैं। भूत प्रेतों की कहानियाँ हमेशा से ही हमारे कल्चर का हिस्सा रही है। साइनस पर आने से पहले अगर हम अपने स्क्रिप्चर में भूतों के मेंशन्स को ढूंढें तो भगवद्गीता के चैपटर नाइन की वर्ड्स 25। मैं बोला गया है कि जो लोग देवताओं की पूजा करते हैं वह देवताओं के पास चले जाते हैं। जो अपने पूर्वजों की पूजा करते है वो अपने पूर्वजों के पास ही चले जाते हैं। जो भूतों की पूजा करते है वो खुद भी भूत बन जाते हैं और जो मेरी पूजा करते है वो मुझ में समा जाते हैं। हाउएवर यह वर्ष इंसानों के कर्मों पर फोकस जाए ताकि लोग इन बातों को पढ़कर फालतू के कामों में समय बर्बाद करने के बजाय अपने भगवान यानी सिर्फ हाइएस्ट गुड को ही अपना टारगेट बनाएं। पर योगसूत्र, सौर, गरुड़ पुराण जैसे टैक्स में गोस्त को ज्यादा सिम्पली डि सिम बॉडी, बीइंग ज़ या फिर नॉन लिबरेटेड और ईवल फोर्स जैसे नाम दिए गए हैं। भूतों में विश्वास भी तभी बढ़ने लग गया था। जब पॉप्युलेशन के कई लोग स्पिरिचूऐलिटी की तरफ मुड़ने लगे थे और फिजिकल दुनिया के पार क्या है? इसे खोजने लगे थे। लेकिन जहाँ असली और स्प्रे च वालिटी ने कई सिविलाइज़ेशन सको, एक सॉलिड फाउंडेशन तो दी जिससे वो रिलिजन कहानियाँ, रिचुअल्स और सही तरह से जीने का तरीका क्या होता है? यह फ़िगर आउट कर पाए पर इस का एक नेगेटिव आउटकम यह निकला कि बहुत से लोग उन चीजों में भी विश्वास करने लगे, जिसका रिऐलिटी से कोई लेना देना नहीं है और तब से हम भूतों के टॉपिक पर इसी कन्फ्यूजन से बाहर नहीं निकल पाते कि क्या यह चीज़ एक्चुअल में प्रूवन और रियल है या फिर क्या यह बस एक अंधविश्वास है? वेल, अगर हम 200 से 300 साल पीछे जाएं तो तब के समय पर इस चीज़ को बहुत ही शुभ और जरूरी माना जाता था कि आप एक मीडियम को घर बुलाकर अपने गुजरे हुए सिस्टर से बात करो और उनकी ब्लेसिंग स्लो। एक मीडियम बेसिकली वो इंसान होता है जो क्लेम करता है कि वह मरे हुए लोगों को देख या फिर उनसे बात कर सकता है। मीडियम्स की बढ़ती पॉपुलैरिटी के साथ एक इंसिडेंट ऐसा भी हुआ जहाँ उन्हें गोश्त की प्रेजेंस को प्रूफ करने के लिए टेबल को छुपी हुई तारों से हिलाते हुए पकड़ा गया। छुपी तारों की मदद से वो ऐसी एक्टिंग करते कि एक रूम में एक प्रेतात्मा चुकी है और वह गुस्से में है और वो आत्मा ही उस टेबल को हिला या फिर उसे हवा में उठा रही है। अकेले इंडिया में ही हजारों हॉन्टेड प्लेसेस है जहाँ हर साल कई 100 और हजारों साइट इस रिपोर्ट कराई जाती है। यानी भूतों की असलियत जानने में सिर्फ फ्रॉड लोगों की ट्रिक्स को समझने से काम नहीं चलेगा। हमें लोगों के पर्सनल और इंटिमेट इक्स्पिरीअन्सिज़ को भी अकाउंट में लेना होगा। इसलिए इस एपिसोड में हम साइंटिफिकली एक्स्प्लोर करेंगे। फाइव डिफ़रेंट गोस्ट एक्सपिरियंस इसके टाइप्स को और देखेंगे कि क्या साइन्स इन हॉट इन गज़ या फिर गोली एक्सपिरियंस को इक्स्पोज़ कर सकती है या फिर नहीं। नंबर वन सीन गोस्त पैरनोर्मल ऐक्टिविटी से जुड़े विज़ुअल हैलुसिनेशंस को साइनस अक्सर कार्बन मोनोऑक्साइड के एक्स्पोज़र से रिलेट करती है। जब भी कार्बन मोनोऑक्साइड बॉडी में इंटर करती है तब वो हमारे खून के साथ मिल जाती है और खून को हमारे वाइटल ऑर्गन्स तक पहुंचने से रोकती है, जिससे डिज़ाइनर्स, हैलुसिनेशंस और कन्फ्यूजन क्रिएट होती है। इंडिया में अक्सर ये होता है गैस बेस हीटिंग सिस्टम जैसे गास गीजर्स कुकिंग गैस वाले पाइप्स में लीकेज या फिर रूरल एरियाज़ में जो लोग गैस बेस के पास रहते हैं, उससे एक और इंट्रेस्टिंग फैक्ट ये है कि इस तरह की टॉक्सिक पॉइज़निंग पुराने घरों में ज्यादा होती हैं। उनके हिस्से और पुराने इक्विपमेंट की वजह से यही रीज़न हो सकता है कि क्यों गुस्सा इटिंग पुरानी बिल्डिंग में टिपिकली ज्यादा रिपोर्ट कराई जाती है। लेकिन उनको साइट इसका क्या जो सुबह के समय और ऐसी बिल्डिंग्स में होती है जहाँ पर गैस लीकेज का कोई चांस ही नहीं है। वेल 19 एटीज़ में ब्रिटिश इंजीनियर विद डैडीज अब अपनी लैब में देर रात तक काम करने लगे थे। जब वो बोलने लगे कि रात के समय उन्हें अपनी लैब में डिप्रेशन और एक अन्य एक्सप्लेन एबल फीलिंग होती है, उन्हें ऐसा फील होता है जैसे उनके साथ रूम में कोई और भी मौजूद हैं। उन्होंने रिपोर्ट करा कि उन्हें अपनी आँखों के कोने में आत्माएं भी दिखने लगी है। वे एक रिसर्चर होने की वजह से अपने इस एक्सपिरियंस की जड़ तक पहुंचना चाहते थे और 1 दिन उन्होंने नोटिस करा कि उनके आगे उनका एक इन्स्ट्रुमेंट काफी तेजी से वाइब्रेट कर रहा है। उन्होंने उस वाइब्रेशन के सोर्स को ढूंढना शुरू कर रहा और तब पता लगा कि वाइब्रेशन उनके एक रीसेंट्ली लगाए गए फैन से निकल कर आ रही है और ये फैन उसी जगह के पास था जहाँ पर उन्हें आत्माएं दिखती थी। लैब में लगा हुआ फैन अल्ट्रासाउंड को ऐडमिट कर रहा था। 19 हर्ट्ज की फ्रीक्वेंसी पर और साइनस बताती हैं कि जब भी एक फ्रिक्वेन्सी इस रेंज के आसपास आती है तब हम इनसानों में टेन्शन, डर, डिप्रेशन और पैरानॉर्मल सेन सेशन्स बढ़ने लगती है। ऐसा इसलिए क्योंकि 20 हर्ट से नीचे की फ्रिक्वेन्सी पर हमारी आई बॉल्स भी वाइब्रेट करने लगती है और हमें वो चीजें दिखने लगती हैं जिनका कोई असली वजूद नहीं होता। इसका मतलब एक खराब इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस भी आपको पैरनोर्मल ऐक्टिविटी का एक्सपीरियंस दे सकता है। नंबर टू हियर इन गोस्ट छोटे मोटे इन्सिडेन्स जैसे वुडेन फ्लोर के चटकने की आवाज जो किसी के चलने जैसी सुनाई देती है, उन्हे एक्सप्लेन करा जाता है। वुड में ह्यूमिडिटी लेवल्स के चेंज होने से। लेकिन जिन लोगों को अपना नाम या फिर कोई और बात सुनाई देती है और इवन जो गोस्ट हन्टर्स, ईवीपी यानी इलेक्ट्रॉनिक वौस, फिनोमिनल जैसे डिवाइस की मदद से भूतों की बोली बातों को रिकॉर्ड करने का क्लेम करते हैं, उन्हें साइनस ऑडिटरी परेडोलिया जिसका मतलब होता है रैन्डम नौ जिसमें अपनी खुद की लैंग्वेज को रिकॉग्नाइज करना। यानी जीस तरह से कई बार हमें बादलों में कोई चेहरा दिखने लगता है, वैसे ही कई बार हम रैन्डम साउन्ड में भी कोई मीनिंग निकालने लगते है। नंबर थ्री मूविंग ऑब् जेक् ट्स भूतों को देखना और सुनना तो एक बात है, लेकिन क्या साइन्स किसी टच के बिना हुई चीजों की मूवमेंट को एक्सप्लेन कर सकती है? हम अक्सर मूवीज़ में भूतों को ऑब्जेक्ट्स को मूव करते हुए देखते हैं और ये भी कि किस तरह से घोंसली प्रेजेंस इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेस को खराब करना शुरू कर देती है। एपिसोड की शुरुआत में हमने मीडियम्स और उनकी छुपी हुई तारों के थ्रू हुई मूवमेंट की बात कर रही थी। इसके साथ ही दरवाजे के अपने आप बंद हो जाने को जोड़ा जाता है। एयर प्रेशर के चेंज होने से और इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेस की मेल फंक्शनिंग यूँ चली होती है। हवा में कॉन्सेशन और कही फॉरेन पार्टिकल्स जैसे न्यूट्रिनो उसकी वजह से है जो किसी भी इलेक्ट्रॉनिक सर्किटरी कोई जली खराब कर सकते हैं। नंबर फ़ोर ड्रीम इन ऑफ घोस्ट्स भूतों को सपने में देखना या फिर उठते हुए अपने रूम में एक राक्षस की मौजूदगी को एक्सपीरियंस करना, ऐसी चीजों को स्लीप पैरालिसिस से एक्सप्लेन करा जाता है। स्लीप पैरालिसिस एक ऐसी स्टेट होती है जो अक्सर सुबह के समय आती है जब हमारी नींद खुलना शुरू हो रही होती है और हमारी आंखें भी ऐक्टिव हो चुकी होती है लेकिन हमारी बॉडी पैरालाइज होती है। जस्ट बिकॉज़ हमारा मन पूरी तरह से हमारे कॉन्सियस कंट्रोल में नहीं आया होता। जब हम ये रिलाइंस करते हैं कि हम तो उड़ चूके हैं लेकिन हम अपनी बॉडी को मूव ही नहीं कर पा रहे हैं। तब हमारा मन अपनी आँधी नींद में कई डरावनी चीजों या फिर लोगों को इमेजिन करने लगता है। हमें ऐसा फील होता है जैसे कोई एंटिटी हमारी चेस्ट पर बैठी हो। और हमारे साथ कुछ बुरा करना चाहती हो। यहाँ तक कि स्लीप पैरालिसिस से जुड़ा डर और डेल्यूजन इतना कॉमन होता है कि ज्यादातर एलिन अब्डक्शन के केस को भी स्लीप पैरालिसिस से ही जोड़ा जाता है। नंबर फाइव बीइंग टच बी गोस्त साइनस बताती है कि एक सिचुएशन या फिर जगह का कॉन्टेस्ट भी पैरनोर्मल इक्स्पिरीअन्सिज़ को जन्म दे सकता है। 9097 की एक रिसर्च में 22 पार्टिसिपेंट्स को लिया गया 11 लोगों के एक ग्रुप को एक थिएटर में ले जाते हुए ये बोला गया कि वो थिएटर हॉन्टेड है, जबकि दूसरे ग्रुप के लिए वो बस एक नॉर्मल थिएटर ही था। इसके बाद जब पहले ग्रुप से उनके एक्सपीरियंसेस के बारे में पूछा गया तब उन्होंने बताया कि उन्हें अंधेरे कोनों में लोगों के चेहरे घूरते हुए लोग अननोन आवाजें और टच की फीलिंग भी एक्सपीरियंस करने को मिली। जबकि दूसरे ग्रुप ने ऐसा कोई एक्सपीरियंस रिपोर्ट नहीं करा। यह बताता है कि किस तरह से हमारा दिमाग एक डिफ़रेंट कॉन्टेस्ट यानी यह सुनने पर कि एक जगह हॉन्टेड है, वो खुद ही अलग अलग तरह की संसेशन प्रोड्यूस करने लगता है। गोस्ट एनकाउंटर्स का एक बहुत बड़ा पार्ट पैरेनोइया औरफिर ही है। इसके अलावा हम ये भी इमेजिन कर सकते हैं कि शायद भूतों की कहानियों का एक और पर्पस बच्चों और इवन बड़े लोगों को कई पर्टिकुलर चीजों को करने से रोकना भी हो सकता है। अगर एक रोड या फिर जगह डेनजरस है तो एक पैरेंट अपने बच्चों को डरा सकता है और उन्हें वहाँ जाने से रोक सकता है। यह बोलकर कि वह जगह तो हॉन्टेड है। हाउएवर इन सब साइन्टिफिक और रैशनल एक्सप्लेनेशन के बीच हमें यह याद रखना बहुत जरूरी है कि साइनस भूतों को इस बेसिक एजम्प्शन पर अपने इन्स्ट्रुमेंट से कैप्चर करने की कोशिश कर रही है। कि भूत फिजिकल रिऐलिटी में एग्जिस्ट करते हैं और अगर हमारी यहाँ जंक्शन गलत है तो हमारे सारे साइन्टिफिक कॉन्क्लूज़न भी गलत होंगे। साइनस के एक डेफिनिटिव आन्सर के बाद भी भूतों से रिलेटेड बहुत सी ऐसी अजीब चीजें हैं जिसकी कोई एक्सप्लेनेशन नहीं है। भूत से जो लोग पोज़ हो जाते हैं, उनका कॉस्ट भी साइकोलॉजिकल डिस्टरबैंस बताया जाता है। लेकिन उन लोगों का क्या जो फिजिकली और साइकोलॉजिकली टॉप कंडिशन में थे? और क्यों हम भूतों को जानने के लिए सिर्फ साइंस की मदद ले रहे हैं? जबकि फिजिकल रिऐलिटी के पार जो है उससे सबसे गहरा रिश्ता हाइली स्पिरिचुअल लोगों का होता है। या तो साइनस ये बोलने के लिए बिल्कुल सही है कि भूत नहीं होते या फिर हम कन्क्लूशन निकालने में बहुत जल्दी मचा रहे हैं और जो लोग इन टॉपिक्स पर एक्चुअल में हाइली क्वालिफाइड हैं, उन्हें इस कन्वर्सेशन में इन्क्लूड ही नहीं कर रहे हैं।","हर 4 में से 1 भारतीय भूतों में विश्वास करता है। प्रेतवाधित स्थानों और बुरी आत्माओं के बारे में कहानियां दुनिया भर की लगभग सभी संस्कृतियों का हिस्सा रही हैं। लेकिन क्या इन सभी डरावनी कहानियों के पीछे कोई सबूत है या भूत देखे जाने और मान्यताओं के पीछे के सभी दावे सिर्फ अंधविश्वास हैं? इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम पैरानॉर्मल एक्टिविटी के पीछे के विज्ञान के बारे में बात करेंगे और कैसे भूतों के सभी दर्शन, सुनना, सपने देखना आदि सिर्फ हमारे जीव विज्ञान हो सकते हैं जो हम पर चालें चल रहे हैं।" "ये सच है कि कोई भी इंसान हर समय खुश रहकर अपनी जिंदगी नहीं काट सकता। ऑलमोस्ट हर कोई अपनी लाइफ के किसी ना किसी पॉइंट पर लो या फिर होपलेस जरूर फील करता है। हाउएवर वो हमारे सर्कम्स्टैन्सज़ नहीं होते हैं जो हमारी हैपिनेस को डिसाइड करते हैं, बल्कि वो हमारी डेली हैबिट्स होती है जो हमारी पर्सनैलिटी का पार्ट बनकर हमें खुशी या फिर दुखी महसूस कराती है। इसलिए आज के एपिसोड में हम ऐसी ही कई बुरी हैबिट्स को डिस्कस करेंगे जो हमें जरूरत से ज्यादा अनहैप्पी महसूस कराती है और हम किस तरह से इन हैबिट्स को ब्रेक कर सकते हैं। नंबर 12 अनहैप्पी लोग दूसरों को बहुत ज्यादा जज करते हैं क्योंकि जीस तरह से आप दूसरे लोगों को देखते हो, वह उनके बारे में कम और आपके बारे में ज्यादा बताता है कि आप कैसे इंसान हो। एक स्टडी बताती हैं कि जितना पॉज़िटिव ली आप दूसरे लोगों को देखते हो, उतना ही आप हैप्पी और इमोशनली स्टेबल रहते हो। यह इसलिए क्योंकि जब आपके अंदर दूसरों को जज करने की बुरी आदत होती है तब आप हमेशा इसी डाउट में फंसे रहते हो की सामने वाला इंसान आपका दोस्त है या फिर दुश्मन और जितना ज्यादा आपका ये डाउट होता है उतना ही आप दूसरे लोगों में नेगेटिविटी निकालते हो। इसके साथ ही साइकोलॉजी बताती है कि ज्यादातर जजमेंट हमारी खुद की इन्सेक्युरिटी से ही निकल कर आती है। यानी हम अपनी नेगेटिव क्वालिटीज को दूसरे लोगों में ढूंढ़ते हैं और उन्हें उनके लिए जज करते हैं। इसलिए अगर आप खुद की इमोशनल स्टेट को इम्प्रूव करना चाहते हो तो पहले दूसरों को जज या फिर हेट करना बंद करो। नंबर 11 अनहैप्पी लोग ओवर थिंक ओवर रिऐक्ट करते हैं। इस तरह के लोग हर छोटी चीज़ को ही खींच खींचकर एक बहुत बड़ी प्रॉब्लम बना देते हैं। जो चीजें बाकी लोगों के लिए ज़रा बहुत इरिटेटिंग होती है वो इन लोगों के बर्दाश्त के बाहर होती है। इसलिए इस हैबिट को तोड़ने के लिए जब भी आप किसी प्रॉब्लम में फंसे होते हो तब अपने आप से ये पूछो कि यह प्रॉब्लम ज्यादा से ज्यादा मेरे लिए कितनी डेंजरस होसकती है जितना क्लियरली आप एक सिचुएशन के बेस्ट और वर्स्ट के सिनारियो को समझोगे, उतना ही आप हर सिचुएशन में अपनी ओवरथिंकिंग या ओवर रिएक्शन को कंट्रोल में रख पाओगे? नंबर 10 वो अपनी प्रॉब्लम्स को गलत तरह से मैनेज करते हैं। यह एक ऐसी हैबिट है जो अनहैप्पी लोगों को अनहैप्पी बनाए रखती है। क्योंकि जो लोग अपनी सफरिंग से बचने के लिए किसी भी तरह के एस्केप का सहारा लेते हैं, चाहे वो टीवी शोज़ या गेम्स जैसे माइल्ड एस्केप हो या फिर अल्कोहल ***** या ड्रग्स जैसे सबसे हम फुल एस्केपस ये तरीके आपकी परेशानियों को कम करने के बजाय उन्हें बढ़ाते हैं। इसलिए बार बार अपनी प्रॉब्लम्स को दबाने या फिर उनसे दूर भागने के बजाए उन्हें एक ही बार फेस कर लो ताकि आप अपने सेल्फ कंट्रोल को बढ़ा सको। नंबर नाइन वो पैसों और मटिरीअल चीजों को ज्यादा वैल्यू करते हैं। एक स्टडी जिसमें यह पता करने की कोशिश करी गयी थी। कि जो लोग मटिरीअल लिस्ट होते हैं उनकी बिहेव्यर का उनकी लाइफ सैटिस्फैक्शन पर क्या असर पड़ता है? उसमें ये पता चला कि मटिरीअलिस्टिक लोगों के लिए ग्रेटफुल यानी खुशकिस्मत महसूस करना बहुत मुश्किल होता है जिसकी वजह से उनकी ओवरऑल लाइफ सैटिस्फैक्शन ज्यादा नहीं होती और वो इतना सारा पैसा और पोज़िशन्स इकट्ठा करने के बाद भी अनहैप्पी रहते हैं। इसलिए अपनी लाइफ का मेन फोकस कभी भी पैसा, बंगला, गाड़ी इन सब चीजों पर नहीं, बल्कि अपने क्रिएटिव पर सूट्स और अपने रिलेशनशिप्स पर लगाओ। नंबर एट वो अपनी डाइट पर ध्यान नहीं देते हैं। 2017 में हुई एक स्टडी में देखा गया कि डिप्रेशन हाइली असोसिएटेड है। पुअर डाइट रीच औंस है क्योंकि स्टडी में ज्यादातर सब्जेक्ट्स जो डिप्रेस थे, उन्हें अपने इमोशनल रेग्युलेशन में एक काफी बड़ा बदलाव दिखा, जब उन्होंने अपनी डाइट को इम्प्रूव करा। यानी हर मिल में आप जीस तरह के फूड्स को चूज करते हो, वो डाइरेक्टली आपकी हैपिनेस को घटा या बढ़ा सकते हैं। इसलिए फूड को प्लेजर के सोर्स की तरह नहीं बल्कि फ्यूल की तरह देखो और हेल्थी फूड्स जैसे फ्रूट्स, वेजिटेबल्स और एग्स खाओ। नंबर सेवन वो प्रेज़ेंट में नहीं बल्कि पास्ट या फ्यूचर में जीते है। क्योंकि जब आप पास्ट के बारे में सोचकर रिग्रेट महसूस करते हो या फिर फ्यूचर के बारे में सोचकर चिंता करने लगते हो, तब आप अपने प्रेज़ेंट की प्रॉब्लम्स को मैनेज करने में फेल हो जाते हो और टाइम के साथ साथ ना तो आप अपने पास्ट या फ्यूचर से खुश होते हो और ना ही अपने प्रेज़ेंट से। काफी सारी रिसर्च ये बताती है कि अपने पास्ट में लिए गए डिसिशन्स के बारे में बार बार सोचने से हमारे अंदर स्ट्रेस और डिप्रेशन होने के चान्सेस बहुत ज्यादा बढ़ जाते हैं और फ्यूचर की ऐंगज़ाइइटी डाइरेक्टली रिलेटेड है। लोग कॉन्फिडेन्स है इसलिए अगर आप अपना स्ट्रेस कम करके अपने हैपीनेस के लेवल्स को बढ़ाना चाहते हो तो प्रेसेंट में जीना सीखो नंबर सिक्स उनका वर्ल्डव्यू काफी नेगेटिव होता है। ज्यादातर अनहैप्पी लोग पैसे में होते हैं और वो हर सिचुएशन में यही एक्सपेक्ट करते हैं कि कुछ नेगेटिव ही होगा। जीवन अगर उनके साथ कुछ अच्छा भी हो जाता है तब भी वो इस बात को सोचकर परेशान होने लग जाते हैं कि उनकी ये हैपिनेस भी टेंपरेरी ही होगी। इसलिए इस हैबिट को ब्रेक करने का सबसे अच्छा तरीका है कि जैसे ही आपके नेगेटिव पैटर्न्स वापस आने लगे हैं, उन्हें उसी टाइम वही पर रोककर क्वेश्चन करना कि मुझे यह इतने नेगेटिव थॉट्स क्यों आ रहे हैं? जितनी बार भी आप अपने आप को अपनी नेगेटिविटी के साइकल में जाते हुए रंगे हाथों पकड़ोगे, उतना ही आप अपनी नं हैपिनेस को हैपिनेस में कन्वर्ट कर पाओगे। नंबर फाइव वो एक सडन टरी लाइफ स्टाइल जीते हैं क्योंकि हमारी मेंटल हेल्थ और हमारी फिजिकल हेल्थ बहुत क्लोजली रिलेटेड है और अगर आप दोनों में से किसी एक एरिया पर काम नहीं करते हो तो उसका नेगेटिव इन्फ्लुयेन्स दूसरे एरिया पर जरूर पड़ता है। एक्सरसाइज रूटीन रेग्युलर इंटरवल्स में आपकी बॉडी में एंडोर्फिन्स रिलीज करता है और आपके हॉर्मोनल सिस्टम को बैलेंस रखता है। जीस वजह से अगर आप पूरे दिन में ज्यादा मूव नहीं करते और ना ही आप कभी भी वॉक पर जाते हो तो उससे आप डिप्रेस फील करने लगते हो। इसलिए अपने रुटीन में किसी भी तरह की एक्सर्साइज़ या वर्कआउट जरूर ऐड करो। नंबर फ़ोर वो या तो ज्यादा सोशलाइज नहीं करते या फिर ऐसे लोगों के साथ हैंग आउट करते हैं जो खुद भी अनहैप्पी है क्योंकि रिसर्च इस बारे में एकदम क्लियर है कि जो लोग सबसे दूर रहते हैं और लोन्ली फील करते हैं, उनकी लाइफ सैटिस्फैक्शन बहुत कम होती है और उन लोगों में हेल्थ प्रॉब्लम्स भी बहुत ज्यादा होती है और जो लोग अपने जैसे ही अनहैप्पी या फिर नेगेटिव लोगों के बीच रहते हैं, उनके लिए भी अपनी इस बुरी हैबिट्स को बदलना बहुत मुश्किल होगा। इसलिए ऐसे लोगों के साथ रहो जो आपको हर सिचुएशन की ब्राइड साइड को देखने के लिए फोर्स करते है और जो आपकी बुरी हैबिट्स को बदलने में आपकी मदद करते हैं। नंबर थ्री वो दूसरों को ईज़ अली माफ़ नहीं करते। सन हैप्पी लोगों के लिए दूसरों की गलतियों को भुला देना आसान नहीं होता। यह हम सब के साथ ही होता है कि जब कोई इंसान हमारा ट्रस्ट तोड़ देता है तब हमें बहुत बुरा लगता है, पर प्रॉब्लम तब आती है जब हम अपने गुस्से और कड़वाहट को इतने लंबे समय तक अपने अंदर जिंदा रखते हैं, जितना जरूरी नहीं होता और उस वजह से हम अपनी टॉक्सिसिटी मैं खुद ही सफर करने लगते हैं। इसलिए अपनी इमोशनल वेल बीइंग को इम्प्रूव करने के लिए अपने गुस्से पर काम करो और नोटिस करो की किस पॉइंट पर आप अपनी थिंकिंग पर कंट्रोल खो देते हो? और अपने नेगेटिव पैटर्न में जाना शुरू कर देते हो। नंबर टू उन्हें ऐसा लगता है कि उनका अपनी लाइफ पर कोई कंट्रोल नहीं है। स्टॉक्स में इस बुरी हैबिट के बारे में लगभग 2000 साल पहले वॉन कर गए थे। स्टॉक फिलॉसफर एपिक टीचर्स का बोलना था कि हम इंसानों को कोई भी सिचुएशन अपने आप में नुकसान नहीं पहुंचा सकती है। पर अक्सर जीस तरह से हम एक सिचुएशन को देखते हैं। वो हमारा कातिल बनता है। जो लोग हमेशा यह सोचते रहते हैं कि वो लाइफ को नहीं बल्कि लाइफ उन्हें कंट्रोल कर रही है, वो अपने रास्ते में आने वाली हर ऑपर्च्युनिटी को मिस कर देते हैं। और उसके बाद अपनी ही बुरे डिसिशन्स की वजह से हेल्प लेस फील करते हैं। इसलिए कोई भी डिसिशन लेने से घबराओ मत और फिर जो भी आउट कम मिले उसे खुशी के साथ एक्सेप्ट करो नंबर वन वो अपने आप को एक विक्टिम मानते हैं। यह अनहैप्पी लोगों की सबसे बुरी हैबिट्स में से एक है कि उन्हें ऐसा लगता है कि लाइफ उनके साथ फिर नहीं हैं। उन्हें लगता है कि इवन दो, उन्होंने कभी भी कोई ऐसा काम नहीं करा जो उनकी लाइफ को इतना प्रॉब्लम है, टिक बना सकता है। पर फिर भी अपनी इतनी मुश्किलों की वजह से वो अपनी लाइफ को डर डर के जीने लगते हैं और वो दूसरों पर बिजली ट्रस्ट भी नहीं कर पाते हाउएवर ऐसे लोग अपने आप से झूठ बोल रहे होते हैं कि वो दूसरे लोग या फिर पूरी दुनिया है जो उन्हें आगे बढ़ने से रोक रही है। पर असल में ये ब्लेम उनका अपने खुद के डरों से निकल कर आता है, जो उन्हें किसी भी तरह की रिस्पॉन्सिबिलिटी से फ्री कर देता है और इस हैबिट को तोड़ने का बेस्ट तरीका है सबसे पहले यह रिकग्नाइज करना कि आप एक विक्टिम माइंडसेट में फंसे हुए हों और उसके बाद मेडिटेशन या फिर इन्ट्रोस्पेक्शन की मदद से अपने इस बिहेव्यर की जड़ तक जाकर देखना कि आपकी ये हैबिट शुरू कहाँ से हुई थी? ज्यादातर लोगों में ये हैबिट तब शुरू होती है जब बचपन में उनके पैरेन्ट्स उन पर ध्यान नहीं दे रहे होते या फिर अपने दूसरे बच्चे को ज्यादा अहमियत दे रहे होते हैं तो उनकी अटेन्शन अपनी तरफ लाने के लिए वो बच्चा ऐसेट करता है जैसे उसके साथ कुछ बुरा हुआ है और वो बुरा किसी और ने किया है। इसलिए अगर आप अपने पास्ट को ओवर कम करके ट्रू हैपिनेस अचीव करना चाहते हो तो एक हारे हुए विक्टिम को अपनी आइडेंटिटी बनाना बंद करो।","खुशी का परिस्थिति से ज्यादा लेना-देना नहीं है, जितना इस बात से है कि आप उस परिस्थिति से कैसे निपटते हैं। बुद्ध से लेकर स्टोइक तक, कई महान लोग जो कभी इस ग्रह पर चले थे, उन्होंने खुशी और आप इसे कैसे प्राप्त कर सकते हैं, के बारे में बात की है। इसीलिए इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम उन 12 आदतों के बारे में जानेंगे जो एक व्यक्ति को एक खुशहाल स्थिति प्राप्त करने से रोकती हैं और आप इन आदतों को कैसे तोड़ सकते हैं।" "हमारी जिंदगी में हम बहुत से गोल सेट करते हैं। बचपन में यह गोल से एग्जाम से रिलेटेड होते हैं। जवानी में करिअर और हेल्थ, उसके बाद फैमिली बिल्ड करना और फिर रिटायरमेंट प्लैन। लेकिन हर गोल तक पहुंचने के लिए एक चीज़ की सबसे ज्यादा जरूरत पड़ती है और वो है पेशेंट्स यानी सबर पेशेंट्स का मतलब यह नहीं है कि आप बस अपनी लाइफ के बेहतर होने का वेट कर रहे हो, बल्कि इसका मतलब है कि आप एक पॉज़िटिव ऐटिट्यूड के साथ अपने गोल्स तक पहुंचने में लग रहे टाइम को एक्सेप्ट कर रहे हो और अपनी कोशिशों को जारी रख रहे हो। पेशेंट रहने पर आप बेटर डिसिशन्स ले पाते हों, अपने इमोशन्स को स्टेबल रख पाते हो और हर काम में जल्दी मचाने के बजाय प्रोसेसेस को एन्जॉय कर पाते हो। हाउएवर आजकल के लोगों में पेशेंट्स की बहुत ज्यादा कमी है जिसकी वजह से वो अक्सर अपने गोल्स के आसपास भी नहीं पहुँच पाते हैं और बस बड़ी बड़ी बाते ही करते रह जाते हैं। आज अगर आपको किसी की पेशेंट्स टेस्ट करनी हो तो आपने ज्यादा कुछ नहीं करना। बस यह देखना है कि वो इंसान अपनी रोज़मर्रा की जिंदगी में कैसे ऐक्ट करता है। अगर कोई अपने आगे चलती गाड़ी के ज़रा सा स्लो होते ही गालियां देने लग जाता है और कन्टिन्यूसली हॉर्न बजाना चालू कर देता है या फिर अगर कोई अपने फिटनेस रूटीन और डाइट को शुरू करने के 2 दिन बाद ही वापस से जंक फूड खाना शुरू कर देता है तो यह क्लियर हो जाता है कि ऐसे इंसान बिल्कुल भी पेशेंट नहीं है और इन्हें बिना मेहनत करे इन्स्टैंट प्लेजर चाहिए। आज हम देख कि हर इंसान अपने पैरेन्ट्स, फ्रेन्डस या दुश्मनों को ये प्रूफ करना चाहता है कि वो भी कुछ अचीव करने के काबिल है। लेकिन जब यह अपने आप को प्रूफ करने की इच्छा एक इंसान पर हावी हो जाती है तब वह शॉर्टकट्स ढूंढने लगता है और पेशेंट्स की ताकत को रिजेक्ट करके अपना टाइम फालतू की चीजों में वेस्ट करने लगता है। पॉज़िटिव रिज़ल्ट मिलने में लगनेवाला टाइम इमपेशेंट लोगों को फ्रस्ट्रेट करता है और आखिर में वह हार मानकर अपने ड्रीम्स पर गिवअप कर देते हैं। ऐसे में एक क्वेश्चन ये आता है कि आप मुश्किल सिचुएशन में भी धैर्य कैसे रख सकते हो? इसके चार स्टेप्स है स्टेप नंबर वन। जब भी कोई डिसिशन लो तब सिर्फ उसी मूवमेंट के बारे में मत सोचो, बल्कि यह देखो कि उस डिसिशन हाँ, लॉन्ग टर्म इंपैक्ट क्या पड़ेगा? क्योंकि कई बार हम इंपल्सिव होकर ऐसे डिसिशन ले लेते हैं जो हमें प्रिज़न प्रॉब्लम से तो बाहर निकाल देते हैं, लेकिन फ्यूचर में वही प्रॉब्लम और बड़ी बनकर वापस आती है। इसलिए अपने आप को एक सिंगल एंटिटी की तरह मत देखो। इसका कल कभी नहीं आता बल्कि अपने आप को एक स्पेस टाइम के सिक्वेन्स में देखो। यानी आप सिर्फ एक नहीं हो बल्कि एक आपका आज वाला वर्जन है। एक अगले दिन वाला, एक परसों वाला, एक अगले हफ्ते वाला, 5 साल बाद वाला ऐसे आप अपने आप में ही एक कम्यूनिटी की तरह काम करते हो तो जब भी आप किसी मोमेंट रीप्ले चक्र के पीछे सकते हो। किसी पर गुस्सा करके अपना रिलेशन खराब कर लेते हो या गिवअप करने की सोचते हों तो यह याद रखो कि आपकी ये डिसिशन्स आपकी फ्यूचर पोटेंशिअल को खत्म कर रहे हैं। स्टेप नंबर टू इस बात का पता लगा हो की वो क्या चीजें हैं जिनसे आप अपनी पेशेंट्स खो देते हो क्योंकि अगर आपको अपने ट्रिगर्स और वीक पॉइंट्स पता होंगे तो आप एक योजना बनाकर किसी भी मुश्किल सिचुएशन को ईजी फेस कर सकते हो। लेकिन अगर आपको ये ही नहीं पता कि आपको कौन सी चीजें बार बार सम गड्ढे में धकेलती है तो आप उस गड्ढे से बाहर कैसे निकालोगे? अगर आपको रेगुलरली बहुत गुस्सा आता है आप प्लीज़ अली उदास हो जाते हो। अपने आप को डाउट करने लगते हो। यह आपको अपने अंदर एमटीएस फील होती है। तो इन इस लेवल साइंस को फॉलो करो और इनकी रूट्स तक जाकर देखो कि वहाँ पर क्या है? क्या ये बस आपकी एक लर्न हैबिट है या फिर यह एक ट्रोमा है? किसी भी केस में शुरुआत अपने ट्रिगर्स पर अटेन्शन पे करने से ही होगी। स्टेप नंबर थ्री अपने स्ट्रेस को मैनेज करो, क्योंकि हम में से ज्यादातर लोग तब अपनी पेशेंट खो देते हैं जब हम बहुत ज्यादा स्ट्रेस डाउट होते हैं। ऐसे में यह जरूरी है कि हम अपने रुटीन में वो हैबिट्स इन्क्लूड करे जिनसे हम अपने स्ट्रेस और ऐंग्जाइटी से इफेक्टिव ली डील कर पाए। एवरीथिंग क्वालिटी स्लीप जर्नलिंग एक्सरसाइजिंग या मेडिटेशन ये सब कुछ ऐसी चीजें हैं जो आपको अपने अंदर शांति और पेशेंट्स बनाए रखने में मदद करेंगी। स्टेप नंबर फ़ोर कभी भी अपने आप से या इवन दूसरों से अं रीज़नेबल एक्स्पेक्टेशन मत रखो और इसका मतलब यह नहीं है की आपने कोई स्टैंडर्ड सेट नहीं करना कि आपने कब कितना अचीव करना है या फिर किस तरह के लोगों के साथ हैंगआउट करना है। लेकिन जब भी आप अपनी एक्सपेक्टेशन्स को एक स्ट्रीम में ले जाते हो तब वह चीज़ हानिकारक बन जाती है। जैसे अगर आपने एक नई लैंग्वेज सीखना शुरू कर दी है तो अपने आप से ये एक्सपेक्ट मत करो कि आपको कुछ हफ्तों या एक दो महीने में ही वो लैंग्वेज आ जाएगी या फिर अगर आपको अभी एक बिज़नेस आइडिया आया है तो ये एक्सपेक्ट मत करो की आप देखते ही देखते अमीर बन जाओगे, अपने हर सपने को पेशेंट्स की फाउंडेशन पर बिल्ड करना शुरू करो और सिर्फ तभी आप इस दुनिया में कुछ अच्छा कर पाओगे। और जैसा कि अमेरिकन ऑथर जड़ स्मेयर ने बोला था की पेंशन सिर्फ एक इंसान की वेट करने की एबिलिटी नहीं है बल्कि आप वेट करते हुए किस तरह से बिहेव करते हो, वो पेशेंट्स है।","अपने पूरे जीवन में हम कई लक्ष्य बनाते हैं लेकिन कड़ी मेहनत और बुद्धिमत्ता को छोड़कर उन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण गुण धैर्य है। ऐसा इसलिए है क्योंकि किसी भी धैर्य के बिना आप अपनी मेहनत पर कायम नहीं रह सकते हैं और इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कितने स्मार्ट हैं, अगर आप इस प्रक्रिया पर भरोसा नहीं कर सकते हैं, तो आप हमेशा हारेंगे। तो, धैर्य के महत्व के बारे में जानने के लिए इस पॉडकास्ट सेगमेंट को सुनें और अधिक प्राप्त करने, अधिक पैसा बनाने, सफल होने, खुद को विकसित करने और समुदाय की मदद करने के लिए आप इस विशेषता को कैसे विकसित कर सकते हैं।" "हमें शुरू से यही सिखाया गया है कि लाइफ एक रेस होती है और अगर हम तेज नहीं भागे तो दूसरे लोग हमसे आगे निकल जाएंगे और हम ये रेस हार जाएंगे। हमें सिर्फ जीतने की इम्पोर्टेन्ट सिखाई जाती है और यह भी कि सिर्फ विनर्स को इज्ज़त मिलती है, लूजर्स को नहीं। लेकिन हमें कभी भी यह नहीं बताया जाता की लाइफ में सिर्फ एक रेस नहीं बल्कि कई अलग अलग रेस चल रही होती है और सिर्फ इस छोटी सी डिटेल की कमी बहुत से लोगों को हारा हुआ और यूज़लेस फील कराती है। ये लोग सोचते हैं कि इनकी कोई अहमियत नहीं है क्योंकि यह इतनी सारी गेम्स में से एक गेम मैं हार गए, लेकिन बी डेफिनेशन हर इंसान दुनिया में मौजूद हर गेम को खेलने यानी हर फील्ड को डॉमिनेट करने के कैपेबल नहीं है। लेकिन इसके बावजूद लोग हमें हारने पर लू सर और फेल्यर बुलाते हैं और अगर ये बातें लोग नहीं बोल रहे हैं तब भी हम अंदर ही अंदर खुद को एक लूँ सर की तरह देखने लगते हैं। ये इसलिए होता है क्योंकि हमारी सोसाइटी ने हारने और डार्कनेस में जाने को टैबू बना रखा है। यहाँ पर नई ऊंचाइयों को छूने को तो सेलिब्रेट करा जाता है, लेकिन जब भी कोई अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहा होता है तब ज्यादातर लोग उससे दूर हो जाते हैं। ऐसी सोसाइटी हमेशा हमसे ये एक्सपेक्ट करती है कि हम जो भी एग्जाम दे रहे हैं, जो भी कोर्स ले रहे हैं, या जो भी जॉब कर रहे हैं उसमें एक सेल करे, बट वॉट इफ़ वो एग्जाम, वो कोर्स या वो जॉब हमारे टैलेंट को मेजर करने के सही टूल्स नहीं है और हम एक गलत रेस में कंप्लीट करने की कोशिश कर रहे हैं। जहाँ हमारे जीतने की आशंका ना के बराबर है। जब आप अपनी लाइफ को इस कॉन्टेस्ट में देखोगे तब आपको समझ आएगा की आपके पास तो अभी भी बहुत सी ऑपर्च्युनिटीज है और आपके सक्सेसफुल होने के चान्सेस उससे कई गुना ज्यादा है। जितना आप सोच रहे थे ना वो क्वेश्चन यह है कि आप कौन सी गेम जीतना चाहते हो, पहले इसे क्लियर करो। एग्जाम्पल के तौर पर क्या आप आगे चलके एक अच्छे फादर या एक मदर बनना चाहते हो? क्या आप इतने पैसे कमाना चाहते हो कि आप अपनी फैमिली और कम्युनिटी की मदद कर सको और अपनी फेवरेट चीजें खरीद सको। क्या आप एक अच्छे टीचर बनना चाहते हो या फिर आप बस एक ट्रेडिशनल जिंदगी जीना चाहते हो? जहाँ आपकी एक हैप्पी फैमिली हो, आपके पेट्स हो और घर के बैकयार्ड में फ्रेश फ्रूट्स, ये वेजिटेबल्स से भरा एक गार्डन हो। इन क्वेश्चन्स को स्पेसिफिकल्ली आन्सर करने से आपको यह समझ जाएगा कि आपको एग्ज़ैक्ट्ली किस रेस में भागना शुरू करना है और उसके लिए आपको क्या तैयारियां करने की जरूरत है। जैसे अगर आपको बहुत से पैसे कमाने है लेकिन आपके पेरेंट्स आपको किसी पर्टिकुलर कोर्स को करने के लिए फोर्स कर रहे हैं या फिर आप ऑलरेडी एक जॉब या एक कोर्स लेकर बैठे हो और आप उसे हेट करते हो। तो ये समझो की ये डिग्री या जॉब आपके गोल तक पहुंचने के कई रास्तों में से बस एक रास्ता है और आपको अपने एंड गोल तक पहुंचने के लिए अपने आप को इस रास्ते से गुज़रने के लिए फोर्स करने की जरूरत नहीं है। हाउएवर किसी ऐसे इंसान के केस में जो डॉक्टर बनना चाहता है उसके लिए कई गिनी ही होती हैं जिनमें वो जीतने की कोशिश कर सकता है। लेकिन यह बात एक दम क्लियर है कि सिर्फ एक जगह पर पूरी तरह से हार जाने से डिफरेंट होता है। जीस तरह से हर इंसान हर कॉम्पिटिशन में जीत नहीं सकता, वैसे ही हर इंसान हर कॉम्पिटिशन में हार नहीं सकता। आपका काम है अलग अलग चीजों को ट्राई करके देखना। या आप किस काम में बेस्ट आउट कमी निकाल सकते हो और फिर उसनें गोल का पीछा करना शुरू करो, जो एक्चुअल मैं आपका है ना की सोसाइटी या आपके पैरेन्ट्स का। इसलिए एक छोटी सी हार की वजह से डिमोटिवेट होकर बैठने के बजाय अपने दिल की सुनो अपने सामने पड़ी ऑपर्च्युनिटीज को पहचानो और अपने आप को अपनी ही नहीं बल्कि दूसरे लोगों की स्टोरी का भी हीरो बना दो।","हमें हमेशा सिखाया गया है कि जीवन एक दौड़ की तरह है, और यदि आप पहले नहीं आते हैं, तो आप हार जाएंगे और हर कोई केवल जीतने वाले की प्रशंसा करेगा। हमारे जैसे समाज में, जहाँ हारना या रसातल में उतरना वर्जित माना जाता है, यह स्पष्ट होना चाहिए कि वहाँ केवल एक जाति नहीं है, जिसके विफल होने पर सार्वजनिक अपमान होता है, बल्कि कई जातियाँ होती हैं। तो, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम हारे हुए होने की इस भावना के बारे में बात करेंगे और आप अपनी खुद की दौड़ का चयन कैसे कर सकते हैं जहां आप विजेता और अपनी कहानी के नायक हो सकते हैं।" "कुछ टाइम पहले तक डॉक्टर्स का यह मानना था कि बच्चे स्माइल करना अपने पैरेन्ट्स के एक्स्प्रेशन्स को कॉपी करके सीखते हैं। पर ये एक मिथ है क्योंकि जो बच्चे बर्थ से ही ब्लाइंड होते हैं वो भी बाकी बच्चों की तरह ऑपरेशन्स बना पाते हैं, जबकि उन्होंने कभी एक फेस देखा ही नहीं होता। यानी हमारी एक्स्प्रेशन्स बनाने की, पर नहीं, बल्कि हमारे डीएनए पर बेस्ट होती है। इस को जेनरली माइक्रो एक्स्प्रेशन्स की मदद से समझाया जाता है। इसका मतलब होता है वो फेशियल एक्स्प्रेशन्स जो काफी ब्रीफ होते हैं और वो अपने आप हमारे फेस की मसल्स को चेंज कर देते हैं। जब भी हम कोई इन्टेन्सिव मोशन फील करते हैं, ये आइडिया डॉक्टर पॉल ऐंटमैन के लिए काफी फैसिनेटिंग था, जिसकी वजह से उन्होंने माइक्रो एक्स्प्रेशन्स पर कई रिसर्चेस करी और दुनिया के हर कोने में रहने वाले लोगों के साथ एक्सपेरिमेंट करने पर उन्हें यूनिवर्सल माइक्रो एक्स्प्रेशन्स मिले। पर उन्हें रीड करने से पहले हमें तीन चीजें दिमाग में रखनी होंगी। कनेक्शन और स्पीड कॉन्ग वैन सी। यानी हमें ये देखना है कि क्या दूसरे के बताए इमोशन्स उसके एक्चुअल माइक्रो एक्स्प्रेशन से मिलते हैं। जैसे अगर हमारे फ्रेंड बोले की वो हैप्पी है तो उसके फेस पर एक हैप्पी माइक्रो एक्स्प्रेशन होना चाहिए या फिर अगर हमारा पार्टनर बोले की वो ठीक है पर उसके फेस पर एक ऐंग्री माइक्रो एक्स्प्रेशन है तो शायद वो ठीक नहीं है। कनेक्शन यानी चाहे वो बोल रहे हो या फिर सुन रहे हो, लोग हमेशा ही माइक्रो एक्स्प्रेशन्स बना रहे होते हैं। इसका मतलब हम जितना अटेन्शन पे करेंगे, हमें उनके असली इमोशन के बारे में उतनी ही इन्फॉर्मेशन मिले गी और स्पीड यानी माइक्रो एक्स्प्रेशन्स काफी तेज़ी से चेंज होते हैं और वो काफी छोटे मोमेंट के लिए आते हैं, जिसकी वजह से हम अपने एक्स्प्रेशन्स को तो चेंज कर सकते हैं पर माइक्रो एक्स्प्रेशन को कंट्रोल नहीं करा जा सकता। और तभी जो लोग अपनी मैजिक ट्रिक दिखाते टाइम किसी का कार्ड या फिर नंबर गैस कर रहे होते है, वो भी सिर्फ माइक्रो एक्स्प्रेशन्स पर ही ध्यान दे रहे होते हैं। ओवरऑल फेशियल ऑपरेशन पर नहीं। सो अब टाइम है लोगों के छिपे इमोशन्स को स्पोर्ट करने का सबसे पहला माइक्रो एक्स्प्रेशन है ऐन घर जिसको जेनरली हम किसी सिचुएशन या फिर इंसान से इरिटेट होते टाइम दिखाते हैं। इस माइक्रो एक्स्प्रेशन में नीचे की तरफ खींची हुई होती है जिसकी वजह से वो एक दूसरे के पास आ जाती है और उनके बीच में दो वर्टिकल लाइन्स बनती है। नीचे की आइलेट्स काफी टेन्स्ड होती है, आइज़ घूमने वाली हो जाती है और लिप्स या तो टाइटली सील्ड होते हैं। या फिर थोड़े से खुले रहते हैं। चीखने के लिए सेकंड माइक्रो एक्स्प्रेशन है थिस रिस्पेक्ट जो हम तब दिखाते हैं जब हमें लगता है कि हम किसी से सुपिरिअर है या फिर हम किसी बात पर अगरी नहीं करते हैं। इस माइक्रो एक्स्प्रेशन में मेनली एक साइड का चीख उठा हुआ होता है और उसके साथ लिप्स भी सिर्फ एक साइड से ही टाइट होते है। थर्ड माइक्रो एक्स्प्रेशन है हैपिनेस जिसमें हमारी मसल्स जिन्हें और भी और ज़ीरो मैटिक्स मेजर बोला जाता है वो उठी हुई होती है। हमारी आइज़ के आसपास रिंकल्स होते हैं। लिप्स दोनों कोर्नर से ही उठे हुए होते हैं और लिप्स में गैप भी हो सकता है, जिससे हमारे टीम दिखे। पर इतने सारे फीचर्स होने की वजह से कई बार ट्रू हैपिनेस को फेक हैपिनेस या फिर फेक स्माइल से डिफ्रेंशीएट करना मुश्किल हो सकता है और तभी उस केस में हम सिर्फ सबसे स्ट्रॉन्ग इंडिकेटर पर ही फोकस कर सकते हैं जो की है। इसके आसपास आने वाले फोर्थ माइक्रो एक्स्प्रेशन है फिर् जब भी हमें डर लगता है तब हमारी बॉडी फाइट और फ्लाइट मोड में चली जाती है और हमारे फेशियल एक्स्प्रेशन्स उस डेंजर पर रिस्पॉन्ड करने में मदद करते हैं, क्योंकि जैसे ही हमें डर लगने लगता है, वैसे ही हमारी बड़ी हो जाती है और ऊंची ताकि हम जितना हो सके उतना अपने एनवायरनमेंट को देख पाए और उस डेन्जर से बाहर निकल पाए। इसके साथ ही हमारा मुँह खुल जाता है ताकि हम ज्यादा से ज्यादा ऑक्सीजन अंदर ले सकें, जिससे हम मदद के लिए चिल्ला सके और अपनी मसल्स तक जरूरी न्यूट्रिऐंट्स को पहुंचा सकें। शिफ्ट माइक्रो एक्स्प्रेशन है सरप्राइज़ जिसको स्पोर्ट करना काफ़ी ईज़ी होता है। क्योंकि इसमें हमारा मुँह सांस लेने के लिए पूरा खुल जाता है, बड़ी हो जाती है और ऊंची हो जाती है। हाउएवर कई बार फइर और सरप्राइज़ में डिफरेन्स बताना मुश्किल हो सकता है तो उस केस में हमें पर ध्यान देना चाहिए क्योंकि डर लगने पर हमारी फ्लैट रहती है पर सरप्राइज़ फील करने पर वो राउंड या फिर इन्वर्टेड यू जैसी हो जाती है। सिक्स्थ माइक्रो एक्स्प्रेशन है। डिस ऑगस्ट जो तब दिखता है जब हम कुछ अन्न प्लीज़ ऐक्सपीरियंस करते हैं, जैसे एक बुरी स्मेल या फिर इवन जब हम किसी ऐसे इंसान के बारे में बात करते हैं जो हमें पसंद नहीं है। इस माइक्रो एक्स्प्रेशन में हम अपने और चीक्स को उठा लेते हैं और अपनी नोस को टाइट और कॉन्ट्रैक्ट कर लेते है। यानी अगर किसी से बात करते टाइम दूसरा इंसान एक डिस ऑगस्ट माइक्रो एक्स्प्रेशन देता है तो वो हमारे लिए क्यों होगा कि उनके लिए वो टॉपिक अन प्रेज़ेंट है या फिर वो उस पर अगरी नहीं करते है। सेवंथ माइक्रो एक्स्प्रेशन है सैडनेस जिसको फेक करना काफी मुश्किल होता है। और कई बार इसे पोटिंग या फिर से भी कन्फ्यूज़ करा जा सकता है। सो जब भी हम किसी के फेस पर सैडनेस देखें तो हमें समझ जाना चाहिए कि उनकी फीलिंग्स असली में काफी हर्ट हुई हैं। इसके साथ ही सैडनेस रोने से पहले दिखने वाला एक्स्प्रेशन होता है जिसका मतलब वो हमें ये प्रीडिक्ट करने में मदद कर सकता है कि कोई रोने वाला है। इस माइक्रो एक्स्प्रेशन में उसके कोर नर्स और आइलैंड्स नीचे की तरफ झुकी हुई होती है, जिसकी वजह से किसी भी चीज़ पर फोकस करना काफी मुश्किल हो जाता है। लोअर लिप फूला हुआ होता हैं और मुँह दोनों कोर्नर से ही नीचे की तरफ खींचा हुआ होता है और इन माइक्रो एक्स्प्रेशन्स की नॉलेज के साथ हम किसी भी इंसान के छुपे हुए इमोशन्स को समझ सकते हैं और सोशल इन्वाइरनमेंट में सक्सेस हासिल कर सकते हैं।","लोगों के चेहरे और उनकी भावनाओं को पढ़ना हमेशा एक ऐसी चीज के रूप में देखा गया है जिसे दशकों के अनुभव वाला एक पेशेवर ही खींच सकता है लेकिन यह सच्चाई से परे नहीं हो सकता है। सूक्ष्म अभिव्यक्ति को समझने वाला कोई भी व्यक्ति लोगों की छिपी हुई भावनाओं को डिकोड कर सकता है, बेहतर संबंध बनाना सीख सकता है और यहां तक कि सामाजिक सीढ़ी पर चढ़ सकता है। हमें Youtube पर खोजें: www.youtube.com/psychologyinhindi" "जब भी हमारे साथ कुछ अच्छा होता है तब हम बोलते है कि हम लकी हैं और जब कुछ बुरा होता है तब अनलकी लक का मतलब होता है। सक्सेस या फेल्यर का मिलना एक रैन्डम चान्स की वजह से बजाए एक इंसान के ऐक्शंस के। यानी ये एक ऐसी फोर्स है जो अच्छी या बुरी चीजों को सच बनाने की ताकत रखती है। हाउएवर ये फोर्स हमारे से बाहर नहीं बल्कि हमारे दिमाग की बनाई एक स्ट्रॉन्ग इल्यूजन होती है। नोर्मल्ली साइनस लग को रैन्डम नेस बोलती है लेकिन हम इस तरह से लग को नहीं देखते हैं और ना ही ये लग को देखने का सही तरीका है क्योंकि ये बात तो सच है। की हमारी लाइफ में हर समय ही रैनडम इवेंट्स हो रहे होते हैं, लेकिन इन इवेंट्स पर हम किस तरह से रिऐक्ट करते है वो हमारी लकी पर्सेप्शन को करता है तो यहाँ पर सही इक्वेशन होगी। रैन्डम नेस प्लस कॉन्शसनेस ईक्वल्स लक यानी दुनिया में अपनी तरफ आती चीजों पर अपनी समझ और इन्टूइशन अप्लाई करके हम अपने लक को बदल सकते हैं। कितना बदल सकते हैं? यह उस रैन्डम नेस और हमारी एबिलिटीज़ की इन्टेंसिटी पर डिपेंड करता है। एग्जाम्पल के तौर पर अगर आप ड्राइव कर रहे हो और आपके पीछे एक ड्रंक इंसान एकदम पागलों की तरह बहुत तेज और डेनजरस वे में गाड़ी चला रहा है। तो ऐसी सिचुएशन में आपको पता भी नहीं लगेगा जब वो इतनी स्पीड से एकदम से अपनी गाड़ी को आपकी गाड़ी में ठोक देगा। यहाँ पर जीस इंसान की गाड़ी ठोकी। वो ये सोचेगा की उसकी तकदीर ही खराब थी। जीस वजह से उसका पूरा दिन भी खराब हो गया और गाड़ी भी और अगर वो बी चांस किसी दूसरी रोड पर होता या आज घर रुक जाता तो यह ऐक्सिडेंट नहीं हुआ होता। यहाँ पर सिचुएशन की रैन्डम नेस इतनी ज्यादा इंटेन्स थी कि एक इंसान अपनी समझ और कोई भी कॉन्शस सैफर्ट लगाकर ऐक्सिडेंट को नहीं रोक सकता था। ये था एक्स्ट्रीम एग्जाम्पल, जो आपके साथ हर रोज़ नहीं होता जीस वजह से यहाँ एक्सटर्नल फोर्स एस एक इंसान की इंटरनल फोर्स से ज्यादा स्ट्रॉन्ग हो गयी। लेकिन आपकी नॉर्मल डेली लाइफ में आपको रैन्डम ने इसका इतना बड़ा पहाड़ नहीं मिलता बल्कि रैन्डम नेस चोटें छोटे पैकेट्स में आता है जिन्हें समझना और उन पर रिऐक्ट कैसे करना है? ये हमारे कंट्रोल में होता है। रिऐलिटी की सही समझ, उस समझ पर सही ऐक्शन और उस ऐक्शन में अपना कॉन्फिडेन्स ऐड करने से लक नाम का शब्द हमारी डिक्शनरी से गायब होने लग जाता है। यही रीज़न है की क्यों जो लोग लकी चार्म्स में विश्वास रखते हैं और यह मानते हैं कि अब यह चीज़ उनका लक इम्प्रूव कर देगी? उनके साथ एक्चुअल में अच्छा होने लग जाता है। क्योंकि उनके अच्छे एक्सपिरियंस किसी एक्सटर्नल फोर्स पर नहीं बल्कि उनके इस पॉज़िटिव इंटरनल बिलीफ पर भेज थे। जबकि जो इंसान किसी के कहने पर इतनी सारी अंगूठियां या तावीज़ पहन लेता है, लेकिन वह खुद डाउटफुल होता है कि इनसे कुछ होगा भी या नहीं, तब उसकी यही नेगेटिव परसेप्शन उसको बुरे डिसिशन की तरफ धकेलती है जिससे उसे बुरे रिज़ल्ट मिलते हैं और वो अपनी किस्मत को कोसता है। बहुत से लोग इसी तरह से परेशान होते रहते हैं और अपनी इस डी मोटिवेटेड स्टेट में ही हर ऐक्शन ये डिसिशन को लेते हैं। जीस वजह से उनका अपने ऐक्शन पर उतना कंट्रोल नहीं होता और ना ही वो अपनी इस सोच के साथ अपना 100% एफर्ट देते हैं जिससे उन्हें रिजल्ट्स भी पुअर ही मिलते हैं। कई लोग इतने सारे बिज़नेस चालू करते हैं और एक के बाद एक उनके सारे बिज़नेस बंद होते चले जाते हैं। जो भी वो इंसान करता है वो गलत रिज़ल्ट ही प्रोड्यूस करता है और इस रीज़न से वह खुद को बदकिस्मत बोलता है। लेकिन वो इंसान ये नोटिस नहीं करता कि उसके हर बिज़नेस में और हर बड़े लाइफ डिसिशन में जो एक कॉमन फैक्टर था वो था वो खुद अगर वो अपने लक को इम्प्रूव करना चाहता है तो पहले उसे अपने आप को इम्प्रूव करना पड़ेगा और अपनी सेल्फ अवेर्नेस बढ़ानी पड़ेगी, जिससे उसे अपने उन पैटर्न के बारे में पता चलेगा जो उसे बार बार सम जगह पर लाकर खड़ा कर देते हैं। लाइफ में बहुत सी प्रॉब्लम्स और दुख हमारी उन प्रॉब्लम्स की समझ की कमी की वजह से आते हैं। जस्ट बिकॉज़ हम उन पर अटेन्शन नहीं पे कर रहे होते हैं। इसका मतलब अगर आप अपनी प्रॉब्लम्स को सॉल्व करना चाहते हो तो सीधा उन प्रॉब्लम्स की जड़ों तक जाओ और वहाँ पर उन प्रॉब्लम्स के कॉस्ट को ढूंढो। अगर आपके बिज़नेस फेल हुए तो बार बार अपने पैसे डुबाने और किस्मत को टेस्ट करने के बजाय यह देखो कि क्या आपको ही पैसों की अन्डरस्टैन्डिंग नहीं है कि पैसा बनाने और बिज़नेस के बेसिक्स क्या है या फिर किस तरह से एक इन्वेस्टमेंट के रिस्क को मेजर करा जाता है या आपकी फाइनैंशल एजुकेशन बस आपको अपने पैरेन्ट्स और उन रिलेटिव से मिली जिन्होंने खुद कभी एक सक्सेसफुल बिज़नेस नहीं खड़ा करा। ऐसे सिचुएशन में यूज़्वली गलती एक ही होती है जो बार बार रिपीट होती है। सिमिलरली अगर आप बार बार टॉक्सिक लोगों को अपना पार्टनर बना लेते हो और रिलेशनशिप के खत्म होने पर ये बोलते हो की आपको पहले ही पता था कि खुश रहना आपके नसीब में नहीं लिखा तो ऐसे में ये समझने की कोशिश करो कि क्या आप सच में बिना किसी रीज़न के बुरे लोगों के शिकार बन जाते हो या ऐक्चुअल में आपकी नजर अच्छे लोगों को बुरे लोगों से सेपरेट नहीं कर पाती है और आप अनकॉन्शियस ली उसी टाइप के टॉक्सिक प्यार की तरफ अट्रैक्ट होते हो? जिससे आप वाकिफ हो मेबी आप अपने एक टॉक्सिक टैक्स को हर इंसान में ढूंढ रहे हो या अपने पैरेन्ट्स के टॉक्सिक रिलेशनशिप को एक नॉर्मल रिलेशनशिप के मॉडल की तरह यूज़ कर रहे हो और खुद को उसी डाइनैमिक में फंसा रहे हो। लक वहाँ एग्जिस्ट करता है जहाँ इस तरह के रखे हुए अनकॉन्शियस पैटर्न होते हैं और एक इंसान की सेल्फ अवेर्नेस बहुत कम होती है। याद रखो सेल्फ अवेर्नेस का मतलब यह नहीं होता। आप बस खुद को अच्छे से जानते हों, बल्कि इसका मतलब होता है की आपकी नजरों पर किसी बाइस्ड परसेप्शन का लेन्स नहीं लगा। जो आपकी रिऐलिटी की अन्डरस्टैन्डिंग को मिसगाइड करें, बल्कि आप सेल्फ वेर होने के बाद रिऐलिटी को वैसे ही देखते हो। जैसी वो असल में है। आपके फेल्यर सौर सक्सेस के रीज़न आप खुद ही हो जितना जल्दी आप इस फैक्ट को समझ पाओगे उतना ही जल्दी आप अपने लक को कंट्रोल कर पाओगे और अपनी लैक ऑफ अन्डरस्टैन्डिंग को बैड लग के नकाब के पीछे ढकना बंद करोगे।","जब भी हमारे साथ कुछ अच्छा होता है, तो हम कहते हैं कि हम भाग्यशाली हैं और जब कुछ बुरा होता है, तो हम अचानक अशुभ महसूस करते हैं। विज्ञान भाग्य को यादृच्छिकता के रूप में वर्णित करता है। लेकिन हमारा अनुभव कहता है कि यह महज यादृच्छिकता से कहीं अधिक है। यह यादृच्छिकता की तरह अधिक है कि हम अपनी स्वतंत्र इच्छा से कैसे कार्य करते हैं जो हमारे भाग्य और नियति का वर्णन करता है। तो, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम इस बारे में अधिक बात करेंगे कि भाग्य वास्तव में क्या है, हम भाग्यशाली कैसे बनते हैं और भाग्य को बदलने के लिए आत्म-जागरूकता इतनी महत्वपूर्ण क्यों है।" "पावर एक ऐसी चीज़ है जिसे चाहता तो हर कोई है लेकिन जब भी आप दूसरों के आगे ये बोलते हो कि आपको पॉवरफुल बनना है, तब आपको इस ख्याल के साथ जज करा जाता है कि शायद आप भी करप्ट हो और आप दूसरों को धोखा देकर उनका फायदा उठाना चाहते हो। पावर की कमी अक्सर हमें कमजोर और हेल्पलेस फील कराती है, जिसकी वजह से आपको अपने अंदर थोड़ी चालाकी और टेढ़ापन चाहिए होता है ताकि आप बिना किसी की नजर में आए अपने सारे काम पूरे करवा सको। इसी वजह से आज हम रॉबर्ट ग्रीन की कॉन्ट्रोवर्शल बुक 48 लॉस ऑफ पावर में से कई सबसे जरूरी लॉस को डिस्कस करेंगे। जिन्हें सुनने के बाद आप भी मॉडर्न दुनिया में मौजूद पावर डाइनैमिक्स को समझ पाओगे और अपने विरोधियो को साइकोलॉजी और ह्यूमन बिहेव्यर की नॉलेज से हराकर सोशल प्रोफेशनल और इवन पॉलिटिकल लेवल पर भी सक्सेस हासिल कर पाओगे। लॉ नंबर वन नेवर अपिअर टू पर्फेक्ट खुद को दूसरों से बेहतर दिखाना हमेशा ही एक डेनजरस मूव होता है, लेकिन उससे भी डेंजरस होता है। खुद को एकदम पर्फेक्ट और ऐसा दिखाना जैसे आप में कोई कमी या फिर कमजोरी है ही नहीं। ऐसा इसलिए क्योंकि इस तरह का बिहेव्यर जेलेसी को जन्म देता है। और जेलेसी आपके कई नए दुश्मन बनाती है जो साइलेंटली और छुपकर आप पर हमला करते हैं। यह ह्यूमन बिहेव्यर का सबसे बेसिक रूल है कि हम खुद को दूसरों से इन पीरियड नहीं फील करना चाहते हैं। इसलिए समझदारी इस चीज़ में है कि आप जलन को अवॉर्ड करने के लिए खुद की कई छोटी मोटी कमियों को दूसरों के आगे जरूर दिखाओ। इससे वो आपसे ज्यादा रिलेट भी कर पाएंगे और आपको इंसानियत के साथ ट्रीट करेंगे। लॉ नंबर टू बी अनप्रेडिक्टेबल हम इनसानों को हमारी आदतें बनाती है और हमारा दिमाग हर समय दूसरे लोगों के बिहेव्यर मैं रिपीट होने वाले पैटर्न्स को ढूंढ रहा होता है। जितना प्रिडिक्टिबल ही बिहेव करोगे, उतना ही दूसरे लोगों के लिए आपको कंट्रोल करना आसान होगा। इसलिए जानबूझकर अनप्रिडक्टेबल बनो दूसरों का संतुलन खराब करने के लिए कभी भी उनके आगे अपने पर्पस या फिर कौनसी स्टैन सी को रिवील मत करो, इस तरह वह खुद ही थक जाएंगे। यह फ़िगर आउट करते करते है कि आप करना क्या चाहते हो और आप असल में हो कौन? लॉ नंबर थ्री स्टार अप के वॉटर्स टु कैश के फिश गुस्सा और इन्टेन्सिव मोशन आप की स्ट्रैटिजी को खराब कर सकता है। हाउएवर अगर आप खुद शांत और फोकस रहकर अपने विरोधी को गुस्सा दिला दो तो ऐसे में आपके पास एक क्लिअर माइंड की ऐडवांटेज होगी और आप अपने अपोनेंट से कई कदम आगे की प्लानिंग कर पाओगे। लोन नंबर फ़ोर प्ले टू पीपल्स पैन्ट सीस सच को हर इंसान अवॉर्ड करता है क्योंकि सच कड़वा और बदसूरत होता है। कभी भी सच और रिऐलिटी जानने की इच्छा मत करो। अगर आप अपने इल्ल्यूशंस के टूटने से मिलने वाले गुस्से या फिर दुख को कंट्रोल नहीं कर सकते हैं तो इसके साथ ही दूसरों को उनके इल्ल्यूशंस में ही रहने दो। जैसे अगर कोई इंसान खुद को आप से बेहतर समझता है तो उससे लड़ो मत। इसके बजाय सर ऑफिस पर उससे अगरी करो। की हाँ भाई तू तो मुझसे कितना सुपिरिअर है, लेकिन उसके पीछे अपने असली करेक्टर को और ताकतवर बनाने पर काम करो। लॉ नंबर फाइव डिस्कवर्ड ईच मैन्स वीकनेस हर इंसान की कोई न कोई वीकनेस जरूर होती है। यह यूज़्वली होती है। एक इन्सेक्युरिटी, कोई अनकंट्रोल लेबल, इमोशन, प्लेजर की बुक या फिर कोई जरूरत जिसे एक बार जान लेने पर आप उसकी कमज़ोरी को एक्स्प्लोर कर सकते हो। खुद का फायदा बनाने के लिए लॉ नंबर सिक्स बरौली न्यू फैशन ऐट लाइका किंग टू बी ट्रीटेड लाइक वन जीस तरह से आप खुद को कैर्री करते हो। वो बताता है कि आपको किस तरह से दूसरे लोग ट्रीट करेंगे। लॉन्ग रन में बेहूदा या फिर आम देखना आप के अगेन्स्ट काम करेगा और लोग आपको डिस रिस्पेक्ट करने लगेंगे। इसलिए एक राजा की तरह खुद को रिस्पेक्ट करो और ऐसे कपड़े पहनो जो दूसरों को एक्सपाइर करें और उनको भी ये क्लियर कर दें कि आप ऐक्चुअल में एक ताज पहनने के लायक हो। लॉ नंबर से वन मास्टर द आर्ट ऑफ टाइम इन गं कभी भी जल्दी में मत देखो क्योंकि जल्दबाजी में आप खुद के ऊपर बहुत आसानी से कंट्रोल खो सकते हो। हमेशा खुद को दूसरों की नजरों में पेशेंट दिखाओ और ऐसे ऐक्ट करो। जैसे आपको पता है कि आपकी चाही हर चीज़ आखिर में आपको मिल ही जाएगी। लॉ नंबर एट कंट्रोल के ऑप्शंस सबसे इफेक्टिव मैनिपुलेशन वो होता है जिसमे आप सामने वाले इंसान को ऐसा फील करा रहे होते हो जैसे उसके पास 164 है। इस तरह आपका विक्टिम सोचता है कि वो कंट्रोल में है जबकि असलियत में वो आपकी कठपुतली होता है। लोगों को इस तरह के ऑप्शन्स दो जो आपके फेवर में हो, चाहे वो किसी भी ऑप्शन को चूज करें, उन्हें दो शैतानों में से कम खतरनाक शैतान को चूज करने के लिए फोर्स करो। इस तरह चाहे वह जो भी डिसिशन ले, उस डिसिशन से आपका ही पैदा होगा। लोन नंबर नाइन में क्यों रे कॉंप्लिमेंट सीम एफर्टलेस यानी आपके एक्शन्स दूसरों को नैचरल और आप के लिए स् लगने चाहिए। आपकी अचीवमेंट्स में जितनी भी आपकी मेहनत और समझदारी लगी, उसे हमेशा अपने तक ही रखो। जब भी आप इस तरह से अपनी सक्सेस को एफर्टलेस दिखाते हो, तब आप ये सिग्नल कर रहे होते हो कि आप इससे बहुत ज्यादा करने के काबिल हो। इसलिए आप से पंगा लेना बेवकूफ़ी होगी। लॉग नंबर 10 इंटरैक्शन विथ बोल्डनेस अगर आप अपने किसी ऐक्शन को लेकर श्योर नहीं हो तो उस ऐक्शन को करो। कीमत आपके डाउट्स और हिचकिचाहट आपके एग्जिक्यूशन को नेगेटिवली इन्फ्लुयेन्स करेंगे। खुद पर डाउट रखना एक बहुत ही डेंजरस चीज़ होती है इसलिए अपने हर ऐक्शन या डिसिशन को बोल्डनेस और साहस के साथ लोग हिम्मत से लिए गए गलत डिसिशन्स हिम्मत से ही ठीक भी हो सकते हैं। लॉ नंबर 11 प्ले ऑन पीपल्स नीड टु क्रियेट अकल्ट लाइक फॉलोइंग हर इंसान किसी ना किसी चीज़ में बिलीव करना चाहता है। उनकी इसी डिज़ाइनर को एक्स्प्लॉइट करो, उन्हें एक नया कोर्स ऑफर करके अपने शब्दों को अस्पष्ट लेकिन प्रोमिसिंग रखो। ऑलमोस्ट हर तरफ लीडर पावरफुल बनाने के लिए इस लॉ को जरूर यूज़ करता है। वो जोश को लॉजिक और क्लिअर थिंकिंग से सुपिरिअर दिखाता है और एक जैसी फॉलोइंग बना कर लोगों को एक नए रिलिजन को फॉलो करने और उसके लिए सैक्रिफ़ाइस करने के लिए मजबूर कर देता है। लॉ नंबर 12 रीक्रिएट योरसेल्फ उन रोल्स को कभी भी एक्सेप्ट मत करो जो सोसाइटी आपको देती है। सोसाइटी का पर्पस होता है। एक जैसे लोगों और कहना मानने वाली पॉप्युलेशन को क्रिएट करना हमें हर तरह से ब्रेनवॉश कर आ जाता है। एक नाइस इंसान बनने के लिए जिसको चाहे जो भी कमांड मिले तो उसे बिना क्वेश्चन के पूरा करें। इसके बजाय सोसाइटी के एक्सपेक्टेशन्स का बबल तोड़ो और खुद को रीइन्वेंट करो। एक ऐसी नई आइडेंटिटी बनाकर जो अटेन्शन खींचती है, जो बोरिंग नहीं है और वो रिस्पेक्ट के लायक है। खुद की इमेज के मास्टर बनें हो बजाय दूसरों के अकॉर्डिंग ऐक्ट करने गए लोग नंबर 13 डू नॉट बिल्ड वॉल सराउंड यूरसेल्फ़ फॉर सेफ्टी दुनिया एक खतरनाक जगह है जहाँ हर तरफ आपको बहुत से दुश्मन मिलेंगे और हर कोई खुद को सेफ रखना चाहता है। लेकिन ऐसे में सेफ्टी के लिए चार दीवारों के बीच छुप कर बैठने से आप बहुत सी जरूरी इन्फॉर्मेशन से खुद को कट ऑफ कर लेते हो। और आपको ईज़ी टारगेट करा जा सकता है। इसलिए बेहतर होगा कि आप नए नए लोगों से मिलो और अपने कॉन्टैक्ट बनाओ। इस तरह से काफी सारे लोगों के बीच आप को टारगेट करना आपके दुश्मन के लिए बहुत मुश्किल होगा। लोन नंबर 14 नो हूँ यू आर डीलिंग विद डू नॉट ऑफ इंदर रॉन्ग पर्सन दुनिया में बहुत से अलग अलग तरह के लोग होते हैं और आपको किसी से पहली बार मिलने पर ये नहीं पता होता कि वो आपकी स्ट्रैटेजी पर कैसे रिऐक्ट करेंगे और अगर आपने गलत लोगों को धोखा दे दिया तो वो जिंदगी भर आपसे रिवेंज लेने की ताक में बैठे रहेंगे। ऐसे लोग वुल्फ होते हैं। शिप की क्लोदिंग में इसलिए अपने को शुरू में हमेशा टेस्ट करो और देखो कि वो आपके साथ किस तरह से बिहेव करते है। लॉ नंबर 15 क्रशर और एनिमी टोटली हर अच्छे लीडर को यह पता होता है कि अगर उसका दुश्मन किसी पॉइंट पर कमजोर पड़ गया है तो यह सबसे बेहतरीन ऑपर्च्युनिटी है उसे हमेशा के लिए खत्म कर देने की। यानी अगर अंगारे सुलग रहे हैं तो उसका मतलब आग भी लग सकती है जिसकी वजह से एक इंसान कभी 20 ऑपर्च्युनिटी को जाने नहीं देता। लड़ाई के बीच में रुकने से आपका ज़्यादा नुकसान होगा। आपका दुश्मन आपके वार्ड से रिकवर कर लेगा। और फिर आपसे बदला लेने की कोशिश करेगा। इसलिए अपने विरोधी को मौका मिलते ही खत्म कर दो। लोन नंबर 16 इन विक्टरी लर्न वेन टू स्टॉप जीत का वो मूवमेंट हमारे लिए बहुत ही कीमती होता है क्योंकि हमें दिख रहा होता है कि हमारी मेहनत वेस्ट नहीं गयी। लेकिन जीत के बाद ऐरोगेंट या फिर ओवर कॉन्फिडेंट बन जाने से अगर आप दूसरों को चढ़ाने और नीचा दिखाने लगे तो आपने जीतने लोगों को हराया। आप उससे भी ज्यादा अपने नए दुश्मन बना लोगे। इसलिए सक्सेस या फिर अचीवमेंट को कभी भी अपने सर में मत घुसने दो और स्ट्रैटिजी या केर्फुल प्लैन्टिंग को ओवर कॉन्फिडेन्स से रिप्लेस मत करो। लॉग नंबर 17 स्ट्राइक द शेफ़र्ड-इट विल स्कैटर मुसीबत हमेशा एक सिंगल इंडीविजुअल तक ट्रेस कर ली जा सकती है। यानी आपका विरोधी यूज़्वली एक ग्रुप ट्राइब या कम्यूनिटी बस बाहर से देख सकता है। लेकिन रिऐलिटी में उस ग्रुप को चलाने वाला सिर्फ एक मेन लीड ही होता है। अगर आपने उसे खोला छोड़ दिया तो वो धीरे धीरे लोगों को अपनी टीम में आने के लिए ब्रेनवॉश करने लगेगा। इसलिए ऐसे दुश्मन को आइसोलेट करो और फिर अगर आपने चरवाहे पर ही हमला कर दिया तो सारी भेड़ें खुद ब खुद बिखर जाएंगी। यही सबसे चलाक और डाक तरीके होते हैं पावर को हासिल करने और उसे अपने पास रखने के।","हर कोई शक्ति चाहता है और जब हम शक्तिहीन महसूस करते हैं तो हम दुखी होते हैं, लेकिन जब आप किसी को बताते हैं कि आप सत्ता चाहते हैं, तो वे यह सोचकर आपको जज करने लगते हैं कि आप भ्रष्ट हैं और केवल दूसरों पर सत्ता चाहते हैं ताकि आप उन्हें नियंत्रित कर सकें और उनका दुरुपयोग कर सकें। सत्ता की बदनामी होती है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि इसका इस्तेमाल अच्छे के लिए नहीं किया जा सकता है। हालाँकि, सत्ता हासिल करना और उसे बनाए रखना कोई आसान काम नहीं है। आपको इसके लिए लड़ना होगा, दूसरों को हेरफेर करना होगा और उनसे शक्ति चुराने के लिए मनोविज्ञान का उपयोग करना होगा। इसीलिए आपको इन सभी गहनतम कौशलों से लैस करने के लिए, हम रॉबर्ट ग्रीन की पुस्तक 48 लॉज़ ऑफ पावर के 17 सबसे महत्वपूर्ण बिंदुओं पर चर्चा करने जा रहे हैं।" "जब भी हमें अपने बारे में कोई चीज़ पसंद नहीं होती या फिर कोई फैक्ट हमारे दिमाग में चलती स्टोरी के साथ मैच नहीं करता, तब हम उस चीज़ को खुद से ही छुपाने लगते हैं। अपने आप से झूठ बोलकर इसे बोलते हैं। सेल्फ रिसेप्शन हम दूसरों के झूठ पकड़ने और उनसे झूठ बोलकर अपनी बातें मनवाने में तो माहिर होते हैं लेकिन जब हम खुद से झूठ बोल रहे होते हैं तब हम इस चीज़ को नहीं पकड़ पाते हैं। हमें दूसरों को तो शक की निगाहों से देखना आता है लेकिन हमें ये कैसे पता चलेगा कि हमें खुद के ही एक्शन्स बिलीव या थॉट्स को डाउट करना है। अपनी खुद की इन बुरी आदतों और टेढ़े बिलीव्स के साथ साथ हम सब के लिए ही खुद के बारे में अच्छा फील गणना और यह सोचना कि हम सही ट्रैक पर हैं। ये बहुत जरूरी होता है क्योंकि खुद को एक अच्छी लाइट में देखना ये सिग्नल करता है कि हम भी एक अच्छे इंसान हैं और सोसाइटी को हमारे जैसे लोगों की जरूरत है। लेकिन कई बार हम इस फीलिंग को नैचुरली अच्छे काम करके नहीं बल्कि आर्टिफिशियली खुद से झूठ बोलकर इन ड्यूस करने लगते हैं और इस शॉर्टकट का सहारा लेकर खुद की ग्रोथ को ही धीमा कर लेते हैं। हम अपने बुरे कामों को खुद से भी छुपाते हैं और दूसरों से भी, लेकिन हमारे लिए खुद को बेवकूफ बनाना ज्यादा आसान होता है। बजाए दूसरों को किसी ऐसी चीज़ में बिलीव कराने में जो असल में है ही नहीं। हमारी लाइफ हमें कई बार वो ऑपर्च्युनिटीज देती है, मुश्किलों के रूप में जो हमें यह मैसेज देती है कि अब हमें अपने आप से सच बोलना शुरू करना चाहिए और अपने मास्क को उतारकर खुद को वैसे देखना चाहिए जैसे हम असल में है, लेकिन ऐसे पॉइंट पर इस दर और पॉसिबिलिटी की वजह से कि हमारा क्या होगा? अगर ये बात सच निकली कि हमारी पूरी आइडेंटिटी ही झूठों और मिस अंडरस्टैंडिंग पर बनी थी? हम खुद की रिपिटिटिव गलतियों को ऐनालाइज करने के बजाय खुद की मिस्टेक्स के टूवर्ड्स अंधे हो जाते हैं। और पुराने झूठ को छुपाने लगते हैं। नए झूठों से झूठ की नेचर कुछ ऐसी ही होती है। वो बस कुछ समय के लिए हमें एक टेंपरेरी सेफ्टी फील करा देता है, लेकिन आखिर में सच बाहर आ ही जाता है। अगर हम सच के पास खुद पहुंचते हैं तो हम उससे कुछ सीख पाते हैं और अपनी गलतियों या कमियों पर काम करना शुरू कर पाते हैं। लेकिन जब सच फोर्स्फुली खुद बाहर आ जाता है तब वह हमें पूरा बर्बाद कर के जाता है। सच से दूर भागने के चक्कर में हम खुद को सोसाइटी, पॉलिटिक्स और लोगों की मंडी इन प्रॉब्लम्स में उलझा लेते हैं और एक इनडिविजुअल बनकर एक यूनीक करेक्टर कल्टीवेट करने के बजाय हम एक कन्फॉर्मिस्ट बन जाते हैं और खुद को समाज के बीच घूम कर लेते हैं। हम झुंड से बाहर निकलने के लिए इसलिए डरते है कि अगर हम क्राउड की सेफ्टी से बाहर आकर अकेले खड़े हो गए तो हमारी कमियां और झूठ सबके लिए विज़िबल होगा और कोई भी हमारे ऊपर अपनी जजमेंट पास कर पाएगा। यह डर हमारी ईगो के लिए एक बहुत बड़ा थ्रेट होता है। जीस वजह से हम एक कायर की तरह खुद से ही दूर भागते रहते हैं। हाउएवर हम अपनी इस सालों से चलती आ रही झूठी कहानी को बदल सकते हैं क्योंकि सेल्फ डिसेप्शन एक को पिन मेकनिजम होता है, जिसकी जड़ें एक पास ट्रॉमा से निकली होती है। जब हमारे लिए किसी सच का दर्द बहुत ज्यादा होता है, तब हम खुद को प्रोटेक्ट करने लगते हैं। अपने आप को रिऐलिटी से दूर करके जीस वजह से कही ना कही हम यह बात जानते हैं कि हम अपने आप से झूठ बोल रहे है। सेल्फ रिसेप्शन हमें अपनी ही नज़र में काफी धुंधला बना देता है जिससे ना तो हम यह जानते हैं कि हम कौन हैं और ना ही यह कि हमारा क्या गोल है और किस गोल को अचीव करने की हमें जरूरत है क्योंकि कई गोल्स की हमें वॉन्ट होती है। लेकिन कई गोल्स की नीड इसलिए हमें खुद को बदलने की शुरुआत करनी है। अपने आइडियल फ्यूचर के बारे में सोच के शुरू में हमारा ये विजन बहुत वेग होगा लेकिन जैसे जैसे हमारी अवेर्नेस बढ़ेगी तब हमारे विज़न और गोल्स में भी डिटेल्स आना शुरू हो जाएंगी। इस पॉइंट पर हमें अपनी कमियों को रिजेक्ट नहीं बल्कि उन पर काम करना होता है और अगर हमारी कोई कमी हमारी उसे चेंज करने की कपैसिटी से बाहर हैं तो हमें उसमें एक मीनिंग ढूंढना चाहिए ताकि वो भी हमारी पर्सनैलिटी को यूनीक बनाने में कुछ कॉन्ट्रिब्यूट कर सकें। जहाँ आपको दर्द होता है वहाँ आपका घाव छुपा होता है और आप अपने घाव पर झूठ का बैंडेज लगा रहे होते हो। बिना एक गोल की तरफ बढ़ना शुरू करें। हम उस डॉग की तरह बन कर रह जाएंगे। जो अपनी ही पूछ पकड़ने की कोशिश कर रहा होता है और गोल गोल घूम रहा होता है। अगर हमें इस दलदल से बाहर निकलना है तो हमारे हाथ में जो रस्सी मिले हमें उससे ही टाइटली पकड़ लेना चाहिए क्योंकि अगर हम सही रस्सी यानी सही गोल को ढूंढ़ते रहे तो हम हमेशा ही इस दलदल में फंसे रह जाएंगे। याद रखो एक बुरी आदत कभी भी उस आदत को मारने से नहीं बल्कि एक नई और हेल्थी आदत डेवलप करने से जाती है। इस वजह से अगर आप बदलना चाहते हों जैसे इंसान आप अभी हो उसको तो आपको वैसे ऐक्ट करना चाहिए जैसे इंसान आप बनना चाहते हो।","स्वयं को धोखा देने का अर्थ है कि हम किसी ऐसे सत्य को छिपाने के लिए स्वयं से झूठ बोलते हैं जो पहले तो हमें आहत कर सकता है, लेकिन दीर्घकाल में लाभदायक सिद्ध होगा। झूठा को पकड़ना हमारे लिए बहुत आसान है और जब हम उसे देखते हैं तो हम उसे पहचान लेते हैं, लेकिन जब धोखे की अपनी रणनीति की बात आती है, तो हम इससे बेखबर रहते हैं। हमें लगता है कि हम झूठ नहीं बोलते हैं, लेकिन क्योंकि यह आमतौर पर अवचेतन स्तर पर होता है, हमें पता नहीं चलता कि हम खुद से और दूसरों से झूठ बोल रहे हैं। तो, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम चर्चा करेंगे कि कैसे और क्यों हम खुद से झूठ बोलते हैं, आत्म-धोखे के पीछे क्या मनोविज्ञान है और हम इसे दूर करने के लिए क्या करते हैं।" "एक इंसान की पर्सनैलिटी उसके बिहेव इअर्स इमोशनल पैटर्न्स और उसके ख्यालों के बारे में बताती है और किस तरह से हम अपनी डे टु डे लाइफ जीते हैं और हर सिचुएशन में कैसे रिऐक्ट करते हैं ये भी हमारी पर्सनैलिटी ही डिसाइड करती है। इसलिए इस एपिसोड में हम पर्सनैलिटी की मिस्ट्री को और डेथ में समझेंगे। कई साइकोलॉजिकल फ़ैक्स की मदद से नंबर वन, पर्सनैलिटी चेंजेज विद एज हमारी पर्सनैलिटी हमारी बायोलोजी से बहुत ज्यादा इन्फ्लुयेन्स जो होती है और जैसे जैसे हमारे अंदर बायोलॉजिकल चेंजेज आते हैं, वैसे वैसे ही उसका असर हमारी पर्सनैलिटी और हमारे बिहेव्यर में दिखने लगता है। जब हम यंग होते हैं तब हम नैचुरली ज्यादा लेज़ी, लिबरल न्यूरॉटिक और डिसग्रीस बल होते हैं। यानी हम उतना काम नहीं करते, लोगों से ढंग से बात नहीं करते। हमें ऐंगज़ाइइटी ज्यादा होती है और हम ज्यादा ओपन माइंडेड होते हैं। लेकिन जैसे जैसे हमारी एज बढ़ती है और हम दुनिया का एक्सपिरियंस इकट्ठा करने लगते हैं, तब हम खुद ब खुद शांत, मेहनती, स्टेबल और डिसिप्लिन बनने लगते हैं। यही रीज़न है की वो जो बूढ़े लोग उम्र बढ़ने के बाद भी खुश कन्ज़र्वेटिव तू दयालु नहीं बनते, वो अपने बचपन या जवानी में ही जी रहे होते हैं और उन्होंने अपने इक्स्पिरीयन्स इससे ज्यादा कुछ सीखा भी नहीं होता। वरना ये समझ कि दूसरे लोगों को हर्ट करने या उनसे बदला लेने का कोई फायदा नहीं होता और हमें कई रूल्स को फॉलो करना चाहिए। यह आपको कई लोगों से जुदा होने, दिल टूटने और खुद की सफरिंग को ऑब्जर्व करने से ही अपने आप आ जाती है। नंबर टू ऐक्टिव लव लाइफ क्रियेट्स, मेंटल स्टेबिलिटी हम ये ऑलरेडी जानते हैं कि अच्छे रिलेशनशिप हमारी मेंटल हेल्थ के लिए कितने जरूरी होते हैं। जिसकी वजह से इसका हमारी पर्सनैलिटी पर भी बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है, क्योंकि यह देखा गया है कि जो लोग बचपन से ही चिड़चिड़े या फिर चिंता करने वाले होते हैं, वह भी जब प्यार में होते हैं तब उनके दिमाग में मौजूद चिंता करने वाले हिस्से शांत हो जाते है। प्यार लोगों को उनकी पैसे मिस्टिक थिंकिंग से बाहर निकालता है और उनमें ज्यादा कॉन्फिडेन्स और लाइफ के ऑप्टिमिजम लाता है। इसलिए अगर आप भी नैचुरली ज्यादा न्युरोटिक हो और आप के लिए डिप्रेस्ड ऐस इरिटेटेड और इनसिक्योर फील करना रोज़ की ही बात है तो ये देखो। की। क्या आपकी लाइफ में आपको सफीशियंट लव मिल रहा है या नहीं? क्योंकि कई बार हमें यह याद दिलाने के लिए कि हम खुद को प्यार करने और रिस्पेक्ट करने के लायक है, हमें एक दूसरे इंसान से इस बात का प्रूफ चाहिए होता है नंबर थ्री, देर आर फाइव मेन पर्सनैलिटी टाइप्स। इतिहास में साइंटिस्ट्स ने कई पर्सनैलिटी मॉडल्स बनाए और उन्हें फिर रियल लाइफ में यूज़ करने और लोगों को समझने के लिए टेस्ट करा और ये डिबेट बहुत पुरानी है कि टोटल कितने पर्सनैलिटी टाइप्स एग्जिस्ट करते हैं। शुरुआती रिसर्चर्स जैसे गॉर्डन एअरपोर्ट ने सजेस्ट कर रहा था जी टोटल 4000 अलग पर्सनैलिटी ट्रेड्स है जबकि ब्रिटिश साइकोलॉजिस्ट रेमंड कैटल ने बोला था की 16 पर्सनैलिटी टाइप्स है। लेकिन अब तक जीस पर्सनैलिटी मॉडल को सबसे सॉलिड और रिलाएबल माना गया है। वो है फाइव फैक्टर पर्सनैलिटी मॉडल, जिसमें पांच मेन पर्सनैलिटी ट्रेट्स होते हैं, यानी ओपन एस, जो जुड़ा है आपकी क्रिएटिविटी से कॉन्सियसनेस जो है आपका डिसिप्लिन और मेहनत करने की कपैसिटी एक्स्ट्रा वर्जन यानी आपको लोगों के बीच रहना कितना पसंद या फिरना पसंद है? ऐंग्ग्री एबल नेस यानी आप कितने दयालु और लविंग हो और न्यूरोटिसिज्म जो जुड़ा है आपकी इमोशनल स्टेबिलिटी से हर इंसान की पर्सनैलिटी इन ट्रेड्स के अलग अलग तरह के कॉम्बिनेशन से मिलकर बनी होती है। नंबर फ़ोर पर्सनैलिटी ज़ार मोस्टली स्टेबल जहाँ एक हद तक पर्सनैलिटी एज के साथ खुद नैचुरली बदलती हैं। वहीं अगर आप ये चाहो कि आप खुद अपनी मर्जी से अपनी पर्सनैलिटी कोमोडो तो ये काम बहुत मुश्किल होता है। पर्सनैलिटी पर बेस्ट लॉन्ग टर्म स्टडीज़ बताती हैं कि हमारी पर्सनैलिटी का ऐसे नस जो है वो हमारी पूरी जिंदगी स्टेबल रहता है। यानी अगर आप इंट्रोवर्ट हो तो आप बहुत हाथ पैर मारकर प्रैक्टिस कर करके थोड़ा बहुत एक्स्ट्रा वर्जन तो डेवलप कर सकते हो, लेकिन दिन के आखिर में अगर आपसे यह पूछा जाए कि आपको लोगों के बीच रहना या फिर अकेले समय बिताना क्या ज्यादा अच्छा लगता है तो चान्सेस है कि आप दूसरे ऑप्शन को ही चूज करोगे क्योंकि आप दिल से तो इंट्रोवर्ट ऐड ही हो। जो चीज़ पॉसिबल है वो है अपनी लाइफ एक्सपिरियंस को स्ट्रेच करना। अगर आप बहुत ज़्यादा टेंशन लेते हो तो ये संभव है कि खुद पर काम करके और अपने दिमाग को सिर्फ पॉजिटिविटी फीड करके आप अपनी टेंशन से एक हद तक छुटकारा पा सकते हो। अभी तक पर्सनैलिटी को बदलने के लिए सिर्फ दो तरीके ही सबसे ज्यादा इफेक्टिव पाए गए हैं। पहला है माइक्रो रूटीन बनाना और खुद को अपने प्रेज़ेंट पर्सनैलिटी ट्रेड के ऑपोजिट ट्रेड से एक्सपोज़ करना। यानी अगर आप एक्स्ट्रोवर्ट हो तो अकेले रहने की प्रैक्टिस करना हो तो सोशल होने की। अगर आप लेज़ी हो तो डिसिप्लिन बिल्ड करने के लिए रूटीन बनाना और अगर आप बहुत ज्यादा नाइस हो तो खुद के अंदर की डार्कनेस को ढूंढना और दूसरा तरीका है। खुद को अपनी इस लिमिटेड आइडेंटिटी से डिटैच ही कर लेना। क्योंकि जो जो इंसान कॉन्सियसनेस के एक हाइअर लेवल पर पहुंचा है, उसका यही कहना है कि हम अपनी पर्सनैलिटी सिर्फ तभी बदलने में असक्षम रहते हैं जब तक हम खुद को सिर्फ अपनी पर्सनैलिटी से ही आइडेंटिफाइ करते हैं। अगर आप ये समझ कर अपनी पर्सनैलिटी से थोड़ा डिटैच हो जाओ कि आप इंट्रोवर्ट एक्स्ट्रोवर्ट या अग्रि एबल डिसऐग्री बल नहीं बल्कि ये सब तो आपके मन में बिठाए गए थॉट्स है। तो इस अन्डरस्टैन्डिंग से आप सिर्फ अपनी पर्सनैलिटी को साइकोलॉजिकल लेवल पर ही नहीं बल्कि आप बायोलॉजिकल लेवल पर जाकर भी उसे बदल सकते हो। इसलिए अपनी पर्सनैलिटी को मास्टर करने के लिए या तो अपने ऑपोजिट ट्रेड्स को प्रैक्टिस करो या फिर सीधा इस पर्सनैलिटी से अटैचमेंट ही तोड़ दो और खुद को हर सिचुएशन के अकॉर्डिंग अडैप्ट करने के लायक बना। दो नंबर फाइव लास्ट बॉन्ड इश्यू चली लेज़र हमारा बचपन हमारी पर्सनैलिटी को शेप करने में सबसे ज्यादा कॉन्ट्रिब्यूशन देता है। आपने ऑलरेडी इस स्टीरियोटाइप को जरूर सुना होगा कि जो बच्चा सबसे पहले पैदा होता है वो अपने छोटे भाई बहनों से ज्यादा बॉसी और रिस्पॉन्सिबल होता है, जबकि आखिर में पैदा होने वाला बच्चा ज्यादा रिस्पॉन्सिबल और इंपल्सिव होता है और साइनस बताती हैं कि इस बात में बहुत सच्चाई है। आप अपने घर के अकेले बच्चे थे या फिर आप बड़े या छोटे भाई बहन थे? इसका इन्फ्लुयेन्स आपकी बातों थिंकिंग, आपके दोस्तों का टाइप, पार्टनर का टाइप और इवन आपके पसंद के खाने पर भी पड़ता है। नंबर सिक्स कंपैशनेट पीपल हैव मोर ***** 2016 में पब्लिश हुई एक स्टडी में जब अलग अलग पर्सनैलिटीज को उनकी सेक्शुअल फ्रिक्वेन्सी के साथ कंपेर कर आ गया, तब उसमें एक पैटर्न निकलकर आया कि जो लोग उन लोगों की भी मदद करते हैं जो उनके लिए अनजान है, उन्हें ज्यादा रिप्रोडक्टिव ऑपर्च्युनिटीज मिलती है। इसके पीछे की ट्यूशन भी साइकोलॉजी बोलती है कि लटोए स्टिक बिहेव, इर यानी दूसरों की मदद करना। बाकी लोगों तक एक सिग्नल भेजता है कि अगर आप अनजान लोगों की मदद करने के भी काबिल हो तो इसका मतलब आपके पास खुद रिसोर्स की कमी नहीं होगी और यही सिग्नल एक इंसान को ज्यादा ड्जिरे बल बनाता है। इसी रिसर्च में यह भी पता चला कि जो लोग ज्यादा चैरिटी करते है वो खुद ब खुद दूसरों के लिए ज्यादा अट्रैक्टिव बन जाते हैं और यह ट्रेंड स्पेसिअली कॉमन है। मेल्स के बीच यानी अगर एक मेल ज्यादा चैरिटेबल है और वो दूसरों की मदद करता है तो चान्सेस है की उसकी पर्सनैलिटी का यही हिस्सा उससे ज्यादा ड्जिरे बल बनाता है, जिसकी वजह से उससे ज्यादा सेक्शुअल ऑपर्च्युनिटीज मिलती है। नंबर सेवन योर पर्सनैलिटी डिसाइड वॉट यू स्टडी 2015 में हुई एक स्टडी में पता लगा कि जो लोग आठ को चूज करते हैं वो ज्यादा मूडी होते हैं। साइकोलॉजी मेजर चूज करने वाले ट्रेड ओपन एस में हाई स्कोर करते हैं। लॉ या इकोनॉमिक स्टडी करने वालों पर ज्यादा विश्वास नहीं किया जा सकता और वो कम अग्रि एबल होते हैं और मेडिसिन में जाने वाले लोग ज्यादा कॉन्शस यानी डिसिप्लिन होते हैं। यही रीज़न है की क्यों? जो इंसान अपनी पर्सनैलिटी के अकॉर्डिंग अपना करियर चूज नहीं करता, उसे पढ़ने और काम करने में ज्यादा सैटिस्फैक्शन नहीं मिलती और वो अच्छी कमाई करने के बाद भी अंदर से एम टी फील करता है। नंबर एट योर पर्सनैलिटी इन्फ्लुयेन्स इस योर पॉलिटिकल व्यूस यह फैक्ट आपके लिए शॉकिंग नहीं होना चाहिए क्योंकि जहाँ हमारी पर्सनैलिटी हमारी थिंकिंग को इन्फ्लुयेन्स करती है, वहीं ये ऑब्वियस है कि उसका असर इस बात पर भी जरूर पड़ेगा कि हम पॉलिटिकली किस साइड या पार्टी को सपोर्ट करते है। यूनिवर्सिटी ऑफ टोरोंटो में हुई एक स्टडी बताती है कि जो लोग खुद को कौन सर्वे टीम बोलते है वो यूज़्वली पर्सनैलिटी रेट कॉन्शियसनेस में हाई स्कोर करते हैं और जो लोग खुद को लिबरल बोलते है वो ओपन एस और अग्रि एबल ने इसमें हाइ स्कोर करते हैं। इसी वजह से कन्जर्वेटिव लोग हमेशा ज्यादा ऑर्डर ली होते हैं। लेकिन लिबरल लोग क्रिएटिव और जिन लोगों की पर्सनैलिटी काफी बैलेंस्ड होती है यानी वो कॉन्सिअस भी होते हैं। क्रिएटिव भी और अग्रि एबल भी। वो पॉलिटिकल स्पेक्ट्रम के सेंटर के आसपास होते हैं। ये अन्डरस्टैन्डिंग बहुत जरूरी है। हमें ये समझाने में की जो इंसान पॉलिटिकली आपसे एग्री नहीं करता उसका मतलब यह नहीं है कि वो बेवकूफ़ है बल्कि वो आप से अलग इसलिए सोचता है जस्ट बिकॉज़ उसकी पर्सनैलिटी अलग है और उसकी पर्सनैलिटी अलग इसलिए है क्योंकि उसके जीन्स अलग है और वो एक यूनिक हालात में पला बढ़ा है। जिसतरह से हर पर्सनैलिटी ट्रेड, किसी न किसी पर्पस को सर्व करने के लिए इवॉल्व हुआ होता है और हम उन्हें अच्छा या बुरा नहीं बोल सकते, वैसे ही पॉलिटिक्स होती है। आप चाहे एक पार्टी की पॉलिसी ज़ या उनके व्यूस से अग्रि करो या ना करो लेकिन उनका ओपिनियन दुनिया में बैलेंस बनाए रखने के लिए बहुत जरूरी है।","किसी का व्यक्तित्व उसके व्यवहार, भावनात्मक पैटर्न और उसके विचारों को प्रभावित करता है। आपके पसंदीदा संगीत और आपके राजनीतिक रुख के लिए दिन-प्रतिदिन जीने के तरीके से सब कुछ आपके व्यक्तित्व पर निर्भर है और आपका व्यक्तित्व आपके बचपन के दौरान आपके जीन और पर्यावरणीय प्रभाव पर निर्भर है। तो, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में व्यक्तित्व की पहेली को बेहतर ढंग से समझने के लिए, हम व्यक्तित्व के बारे में 8 मनोवैज्ञानिक तथ्यों पर चर्चा करेंगे।" "विर्ड फील करने का मतलब है कि कई बार हम कुछ ऐसा काम करते हैं या फिर हमारे दिमाग में ऐसे ख्याल आते हैं जो ना तो हम दूसरों को बता सकते हैं और ना ही हम उन्हें खुद समझना चाहते हैं। ये वो सिचुएशन होती है जब हम अपनी खुद की इन सेटिंग्स को लेकर ही गिलटी या फिर शेमफुल महसूस करते हैं और अपने आप को इस बिहेव्यर के लिए जज करते हैं। फॉर एग्जाम्पल में बी आपको कई बार इनोसेंट लोगों को मारने के थॉट्स आते हो। आप अकेले में पागलों की तरह डांस करते हो, अपने एक्स के बारे में सोचते रहते हो, जिनसे आप महीनों या सालों पहले अलग हो चूके थे। आप अपने ही बेस्ट फ्रेंड से जेलस फील करते हो? जिन लोगों को आप प्यार करते हो, अपने मन में उन्हीं को धोखा देने और नुकसान पहुंचाने के बारे में फैंटसाइज करते हो और शायद आप अपनी खुद की लुक्स को भी पसंद नहीं करते हैं। इस तरह से हम अपने आप को एक नेगेटिव वे में यूनीक समझने लगते हैं। कई बार हम अपने मन में खुद को ही चोट पहुंचाते हुए या फिर अपने आप को दूसरों के हाथों पीटते और मरते हुए इमेजिन करते हैं ताकि हम ये फील कर सके कि हमें इस तरह से वे होने की सजा मिल चुकी है या फिर हम एक ऐडल्ट होने के बाद भी यह फैंसी साइंस करते हैं कि काश हम फिर से बच्चे बन जाते हैं और अपनी रिस्पॉन्सिबिलिटी ज़्यादा ड्यूटी से फ्री हो जाते हैं और कई बार हम यह सोचकर उदास होने लग जाते हैं। की हम फ्यूचर देखने के लिए जिंदा नहीं रहेंगे और लाइफ कितनी छोटी है और इस तरह से एग्ज़िस्टिंग शैली सोचने के लिए भी हम अपने आप को विर्ड और यूनीक समझने लगते हैं। लेकिन सच तो यह है कि ये सारी फीलिंग्स ही बहुत कॉमन और नॉर्मल है। इन्वैट फीलिंग्स की वजह से बहुत लोग खुद में गिल्टी और शेमफुल महसूस करते हैं और अपने आप को बहुत हार्श ली जज करते हैं। लेकिन ऐसी सिचुएशन में इन चीजों की नॉर्मली टी हमें ये बताती है कि इन वेड फीलिंग्स को एक्सेप्ट करना ही सबसे वाइस डिसिशन होता है। क्योंकि जब तक आप अपने आप को अपने इन एक्शन्स या खयालों के बेसिस पर जज करते रहोगे, और टोकते रहो गे तब तक आप अपने आप को बहुत किया, उसमें फील करोगे जितना आप इन फीलिंग से लड़ने की कोशिश करोगे, उतना ही यह और ताकतवर बनती जाएंगी और इस तरह से आप अपनी ही इन स्टेप्स को रिजेक्ट करने लगोगे, जिससे आप अपने बारे में और ज्यादा नेगेटिव सोचने लागोंगे और तो और हमारी और उलटे सीधे थॉट्स को हम एकदम से इस तरह से अच्छा या बुरा लेबल नहीं कर सकते हैं, क्योंकि यह हमारी नेचर का पार्ट हैं, जहाँ सोशली हम कई चीजें बोल या कर नहीं सकते, क्योंकि वह दूसरों या फिर हमारे लिए अनसेफ हो सकती है, वहीं जब तक हम अपने इन थॉट्स को पकड़ कर नहीं बैठते तब तक हम भी इनकी गिरफ्त से बाहर होते हैं और जीस तरह से यह ख्याल हमारे दिमाग में आते हैं, वैसे ही यह बिना अपने आप को ऐक्ट आउट करने की डिमांड करे। चले भी जाते हैं। इसलिए अपने इस वेब पार्ट को कभी भी बुरा बोलकर रिजेक्ट मत करो, बल्कि इसे खुले हाथों से एक्सेप्ट करो और याद रखो कि हर इंसान ही दीप इनसाइड बिलकुल आपके जैसा ही है और जीस तरह से आप अपने आप को अजीब खोए हुए और ऑक्वर्ड समझते हो वैसे ही बहुत से दूसरे लोग भी अपने आप को बिल्कुल ऐसा ही समझते हैं। लेकिन क्वेश्चन ये है कि क्या आप इस नेगेटिव फीलिंग को अपने ऊपर हावी होने देते हो? या फिर आप इस फीलिंग की यूनिवर्सिटी समझकर अपनी शेम से आगे बढ़ पाते हो और अपने आप को डेवलप कर पाते हो।","अजीब महसूस करने का मतलब है कि हम कुछ ऐसा करते हैं या कुछ ऐसा सोचते हैं जिसे हम दूसरे लोगों को नहीं बता सकते हैं या जानबूझकर लंबे समय तक मनोरंजन भी करते हैं। यह वह जगह है जहां हम अपनी प्रवृत्ति या यादृच्छिक विचारों का न्याय करते हैं और इस तरह सोचने और होने के लिए खुद को आंकते हैं। लेकिन हकीकत यह है कि ऐसा सबके साथ होता है। अजीबता ही एकमात्र आदर्श है, यह सिर्फ इतना है कि हम अक्सर सार्वजनिक रूप से ऐसी चीजों के बारे में बात नहीं करते हैं। तो, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम उन कारणों को उजागर करेंगे कि क्यों लोग इतना अजीब या अजीब महसूस करते हैं और इसके बारे में क्या किया जा सकता है।" "जब भी एक इंसान इस दुनिया में आता है तब उसकी पोटेंशिअल अननोन होती है। कोई नहीं जानता कि किस तरह के ख्याल उठेंगे इस नए दिमाग में और इन खयालों से उसकी जिंदगी किस तरह से आकार लेगी? हमारे ख्याल और जो भी सपने हम जागते हुए देखते हैं, वो मिक्सचर होते है। हमारे जेनेटिक कार्मिक और इन्वाइरन्मेन्टल इन्फ्लुयेन्स के हम एक तरह से सोचने की क्षमता अपने साथ लेकर आते हैं और हमारा हर सपना हमें बताता है कि हमें किस तरफ बढ़ना है। हमारे सपने हर समय हमें अपनी काबिलियत की याद दिला रहे होते हैं। किसी भी इंसान के मन में प्रवेश करने वाले ख्याल उसकी हैसियत से बड़े नहीं होते हैं, लेकिन हम अपने सपनों को छोटा बना लेते है ताकि हम दूसरे लोगों के बीच घुल मिल पाए। इंसान वाइड है यह ज़ूम करने के लिए कि अगर कोई काम ज्यादा लोगों की संख्या में करा जा रहा है तो वो काम सही होगा वरना वो सब क्यों ही उस काम को कर रहे होंगे? ऐसा बहुत रेरली ही होता है कि कोई इंसान दुनिया के बेस्ट ऑफ थे। बेस्ट इक्स्पिरीअन्सिज़ का मज़ा उठा पाएं। बेस्ट चीजें कभी भी पॉपुलर नहीं होती तभी हमें ये क्वेश्चन करना बहुत ज़रूरी होता है। की। हम जो भी काम कर रहे हैं, क्या वो हम इसलिए कर रहे हैं क्योंकि बाकी सब भी वही कर रहे हैं और हमारे पैरंट्स ने हमें वो करने को बोला है या फिर क्या वो ज़रूरी है? हमारी पर्सनल ग्रोथ और यूनीक डेवलपमेंट के लिए जिंदगी मुश्किल होती है। उन लोगों के लिए जो दूसरो के सपने जी रे होते हैं। लेकिन जो लोग अपने सपनों की सुनकर अपने यूनीक पथ पर चलना शुरू कर देते हैं, उनके साथ बहुत निराले को इन्सिडेन्स होने लगते हैं। जब हमें पता होता है कि हम कहाँ जा रहे हैं और हम पूरी लगन के साथ अपने सपनों पर काम कर रहे होते हैं तब ऐसा लगता है कि कहीं अंजान ताकतें हमारी मदद करने के लिए प्रकट हो गयी है। हमें अपनी जर्नी में कई दृश्य और कई अदृश्य ताकतों की सहायता मिलती है। इसका मतलब यह नहीं है कि हमारी जर्नी में कोई कठिनाई या नहीं होंगी। इसके बजाय सफलता तक जाने वाली सुनसान गलियों में सबसे ज्यादा खड़े और रुकावटें होती है और यह एक फिल्टर सिस्टम होता है जो सिर्फ उन्हीं लोगों को सक्सेस तक पहुंचने देता है, जो सक्सेस के बिना जी नहीं सकते है। सफलता का असली वारिस सिर्फ वही इंसान होता है जो सिर्फ सफल होने के वादे नहीं करता बल्कि वो 100% कमिटमेंट देता है और अपना पूरा ध्यान अपने लक्ष्य पर रखता है। अगर आप खुद को पूरी तरह से यानी साइकोलॉजिकली स्पिरिचुअली, फिजिकली और इमोशनली अपने गोल की तरफ मोड़ लेते हो तो ऐसा समझ लो कि वो गोल अचीव हो ही गया है और आपको से अचीव करने के रास्ते में बहुत सी खुशी और अच्छे एक्स्पेन्सस मिलेंगे। यहाँ तक कि वो गोल इतनी जल्दी आपके नज़दीक आ जाएगा कि आपको फिर से एक नया गोल बनाना पड़ेगा। जैसे जैसे हम मेहनत करके अपने बड़े गोल को रिऐलिटी बनाते हैं, हम धीरे धीरे एक ऐसे इंसान बन जाते हैं जिसके लिए उस तरह का गोल नैचरल होता है। विनर प्रोसीड स्विन्ग जीतने वाला जीत से पहले आता है। ऐसा इसलिए क्योंकि कुछ भी करने से पहले हमें कुछ बनना होता है। हम वो बनते हैं जिसके बारे में हम सोचते हैं सफलता उन लोगों को मिलती है, जिनके मन में सफलता का ख्याल डगमगाता नहीं है। उन्हें 10 अलग चीजें नहीं बल्कि बस एक ही चीज़ चाहिए और वो उसे अपने मन से निकाल नहीं सकते हैं। उनकी मांग और उनकी भूख में गहराई है। ऐलिस करो अपनी लाइफ, इच्छाओं, सपनों और अपनी लॉन्ग को और ढूंढो की इन सब में कॉमन क्या है? किस तरह का काम या फिर सर्विस देते हुए आप खुद को देखना चाहते हो? आपका यही विज़न आपके मन के हर कोने में फैला हुआ होना चाहिए। अपने गोल की तस्वीरों को अपने मन की दीवारों पर चिपका हो और अपने सपनों की आवाज को अपना डोमिनेट बना हो। अगर वो एक्चुअल में आपका यूनिक गोल है तो आप खुद को हमेशा ही उसके बारे में रिसर्च करते और डे ड्रीमिंग करते हुए पाओगे। अपना यूनीक और कॉन्स्टेंट इन्ट्रेस्ट मिलने का मतलब है कि आपको वो ना मिल चुकी है जो आपको नदी के दूसरे किनारे तक ले जाएगी। ना वो बहुत से लोग यहाँ सोचेंगे कि हमें गोल्स का पीछा करने की क्या ही जरूरत है? क्यों ना हम हर प्रॉब्लम से उसी मूवमेंट में डील कर रहे हैं? एक गोल हमारे अवचेतन मन को एक तस्वीर देता है। जिसतरह से हम एक रिक्शा या फिर टैक्सी में बैठ कर ड्राइवर को बताते हैं कि हमें कहाँ जाना है वैसे ही कौनसी स्टेट ली खुद के गोल्स को अपने मन में बिठाने से मन खुद ही हमें अपने उस विजन की तरफ धकेलने लगता है। लेकिन एक टैक्सी ड्राइवर की तरह मन हम अपने गोल्स की तरफ बढ़ाने के लिए पैसे नहीं मांगता। मन की करेंसी होती है कौनसी स्टैन सी या फिर रेप्यूटेशन जिंस भी गोल या फिर ख्याल की पेमेंट आप कनसिसटेन्सी और रेपिटिशन के साथ करोगे? वो गोल या ख्याल हमेशा एक हकीकत बनेगा। आलस या फिर जरूरी कामों को टालते रहने की आदत एक साइन है कि आप अपने गोल्स को लेकर कॉन्स्टेंट नहीं हो और आपको छोटे मोटे प्लेयर्स डिस्ट्रिक्ट कर रहे हैं। आपके मन की एक दीवार पर कोई छोटी सी इच्छा है? दूसरी दीवार पर कोई और डिस्ट्रक्शन, तीसरी पर भी एक रैन्डम शॉर्ट टर्म, डिज़ाइनर और मन के किसी कोने में शायद आपने अपने गोल्स की एक छोटी सी कटी फटी तस्वीर को लगा रखा है, लेकिन मन हमें 174 अलग डेस्टिनेशन्स पर नहीं पहुंचा सकता। इट इस टू योर बेनिफिट दैट यू पिक वन थिंग इस ओवर रेट क्योंकि हम अपनी जिंदगी में किसी भी चीज़ को पा सकते हैं लेकिन हर चीज़ को नहीं, अपने मन को ट्रेन करो। मेहनत में प्लेजर ढूंढने के लिए जब भी आपके गोल्स की बात उठे या फिर आपको किसी मुश्किल काम को करना पड़े तब अपने मुँह पर एक स्माइल ले आओ। मन को फोर्स करो कि वो आपको काम करने के लिए भी उतना ही दे जितना वो आपको किसी प्लेजरेबल ऐक्टिविटी को परफॉर्म करने के लिए देता है। रीसेट और डोपामीन, सर्किट्री ऐंड स्क्वीज़, प्लेजर आउट ऑफ फीलिंग ऑफ पेन, मज़ा किसी शराब की बोतल, चीनी से लदे हुए बिस्किट या फिर शरीर के किसी अंग में नहीं बल्कि मज़ा उस चीज़ में है जिसे चीज़ में मज़ा ढूंढने के लिए आप प्रोग्राम्ड हो। अपनी प्रोग्रामिंग को बदलो अपने सपनों और पर्पस को रिपीटेड ली लिखकर, बोलकर या मन में देखकर जिसतरह एक शिप के कैप्टन को बंदरगाह छोड़ने से पहले ये पता होता है कि उसे अगले किस बंदरगाह पर रुकना है वैसे ही हमें भी अपनी अगली डेस्टिनेशन क्लियर होनी चाहिए। अगर आपने कभी एक शिप को पानी में चलते हुए देखा है तो आपको हैरानी हुई होगी कि कैसे बड़ी शेप्स कितनी धीमी गति से चलती है। एक शिप जब बंदरगाह से 30 से 35 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से निकली होती है तब ऐसा लगता है कि उसे तो अपनी डेस्टिनेशन पर पहुंचने में सदियां बीत जाएंगी। लेकिन एक शेप धीरे धीरे पर 24 घंटे कॉन्स्टेंट ली चलती रहती है। वो हर समय ही सही रास्ते पर होती है। जल्द ही वो हार्बर पर पहुँच जाती है और अपना मिशन कंप्लीट कर लेती है और रिफ्यूल करने के बाद फिर से निकल जाती है। एक नई डेस्टिनेशन पर जो लोग अपने गोल को अपने दिल और दिमाग में स्थापित कर लेते है वो भी हर समय धीरे धीरे एक शिप की ही तरह अपने गोल्स की तरफ बढ़ रहे होते हैं। इवन जब वो सो रहे होते हैं तब भी उनका मन उनके इसी प्रोजेक्ट पर काम कर रहा होता है। विज्ञान के आंकड़े बताते हैं कि जिन लोगों के पास कोई पर्पस यानी जीने की वजह होती हैं उनकी उम्र लंबी होती है। गोल्स और स्पेशल ली वो गोल्स जिन्हें पूरा करे बिना हम मरना नहीं चाहते, वो हमारे अंदर जीवन शक्ति को बढ़ाते हैं। इसका मतलब ये सच नहीं है कि सिर्फ वही लोग बड़े गोल को अचीव कर पाते हैं जिनमें बहुत ज्यादा एनर्जी होती है। इसके बजाय जो लोग बड़े गोल बनाते है उनका मन और शरीर ज्यादा ऊर्जा पैदा करने लगते हैं। उनके गोल्स को फ्यूल करने के लिए एक इंसान उतना ही सीमित होता है जिसने सीमित उसके ख्याल होते हैं। मीडिया होकर साइज के ख्याल आपको भी मीडियोकर बनाए रखेंगे, जबकि असाधारण सफलता के ख्याल आपको महानता की तरफ धकेल देंगे।","मनुष्य जब जन्म लेता है तो उसकी क्षमता अज्ञात होती है। कोई नहीं जानता कि उसके दिमाग में किस तरह के विचार आएंगे, वह कितना औसत दर्जे का या असाधारण होगा, उसमें जीवन के प्रति कितनी प्रेरणा होगी और वह समाज के लिए कितना योगदान देगा। मनुष्य की क्षमता तब अधिकतम होती है जब वह अपने सपनों की आवाज सुनता है। आप जो भी सपने देखते हैं, वह इस बात से जुड़ा होता है कि आप कितना कुछ हासिल कर सकते हैं। इसलिए इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम आपको अपना दिमाग खोलने, अपने दिल की आवाज सुनने और असाधारण लक्ष्य बनाने के लिए प्रेरित करेंगे।" "ऐल्फ्रेड साइकोलॉजी की दुनिया के कई महान लोगों में से एक है और उनके फिलॉसफिकल और साइकोलॉजिकल आइडियास इस क्वेश्चन को सॉल्व करने की कोशिश करते हैं कि एक इंसान खुश कैसे रहे? हाउ कैन वन बी हैप्पी? हम सिगमंड फ्रायड की थ्योरी से ऑलरेडी वाकिफ हैं, जो बोलते हैं कि पास्ट डि टर्मिनस दे प्रेज़ेंट जो आपके साथ पास्ट में हुआ, उसके बेसिस पर ही आप प्रेज़ेंट में ऐड करोगे। जो भी आपको ट्रामा मिले कहीं बहुत अच्छे हैं या फिर बुरे दिनों को फेस करना पड़ा। या फिर जो भी नेगेटिव या पॉज़िटिव एक्सपीरियंस आपको आपके चाइल्डहुड में मिले वो बताता है कि आप अपने प्रेज़ेंट में कैसे बिहेव करोगे लेकिन ऐडलर इस बात से डिसऐग्री करते हैं और वो बोलते है कि हमारी जिंदगी हमारे पास्ट पर नहीं, टिक्की होती और हम अपना फ़्यूचर अपनी मर्जी से शेप कर सकते हैं। गोल्स बनाकर इनमें से कई गोल्स हम कॉन्शस ली सेट करते हैं और कई गोल्स अनकॉन्शियस ली यानी बिना सोचे जिन एरियाज में और जिन तरीकों से हम दूसरों से खुद को इन्फिरीअर समझते हैं उसी के बेसिस पर हम अपने गोल्स को सेट करते हैं। एक इंसान जिसके पास ₹10,00,00,000 है और उसके फ्रेंड ज़ और फैमिली मेंबर्स उससे भी 10 गुना ज्यादा अमीर हैं तो उसके ₹10,00,00,000 भी उसके लिए कम होंगे और उसकी यह फीलिंग ऑफ इनफीरियॉरिटी खुद को मैनिफेस्ट करेगी। उसके गोल्स में हाउएवर जिससे इंसान के पास बैंक में मुश्किल से ₹1,00,000 पड़ा है लेकिन उसके फ्रेंड्स और फैमिली भी गरीब है और वह ऐसी जगह पर रहता है जहाँ पर लिविंग एक्सपेंसेस कम होते हैं तो उसे ₹1,00,000 भी ज्यादा लगेंगे और उसके गोल्स भी इसी वजह से डिफरेंट होंगे। गोल्स और बेस्ट ओनर फील इन गज़ नोट द अल्टीमेट रिऐलिटी और किसी न किसी वे में हम गोल्स बनाकर इन्फिनिटी से सुपिरियोरिटी पहुँचने की कोशिश कर रहे होते हैं। आज की सोसाइटी में सुपिरियोरिटी कॉम्प्लेक्स पर तो काफी बातें होती हैं कि कैसे एक व्हाइट रेस का इंसान ब्लैक रेस सुपिरिअर नहीं है। आदमी औरत से सुपीरियर नहीं है या फिर एक रिलिजन दूसरे रिलिजन से सुपीरियर नहीं है, लेकिन सोसाइटी अभी तक इनफीरियॉरिटी कॉम्प्लेक्स के नेगेटिव इंपैक्ट को नहीं समझ पाई है। यानी ये ख्याल कि मैं एक विक्टिम हूँ। मैं हेल्पलेस हूँ और मेरे पास लाइफ में आगे बढ़ने के लिए एनफ ऑपर्च्युनिटीज नहीं है। एडलर बोलते है कि जो लोग अपनी इनफीरियॉरिटी से ही खुद को डिफाइन करने लगते हैं, वो अपनी इन्फिनिटी को एक ऐडवांटेज की तरह यूज़ करने लगते हैं और उससे दूसरों को मैनिप्युलेट करते हैं। ये बोलकर कि वो कितने बदकिस्मत है या फिर उन्हें कितनी मुश्किलें झेलनी पड़ी। वो दूसरे लोगों में खुद के लिए चिंता फैलाने लगते हैं और उनकी स्पीच और बिहेव्यर को अपने बेनिफिट के लिए कंट्रोल करने लगते हैं। अगर मैं आपको यह बिलीव करा दूँ कि मैं एक व्यक्ति हूँ और बहुत से लोगों ने मेरे साथ बहुत बुरा करा तो मैं आपकी सिंपथी और काइंडनेस को यूज़ कर सकता हूँ। खुद के बेनिफिट के लिए आज के कल्चर में वीकनेस को भी स्ट्रेंथ की तरह यूज़ करा जाता है। लेकिन वीकनेस को रिवॉर्ड करने से हम उस इंसान से अपने पास्ट को ओवर कम करने की एबिलिटी को छीन लेते हैं। ऐडलर बोलते है कोई भी एक एक्सपिरियंस अपने आप में हमारी सक्सेस या फिर फेल्यर का रीज़न नहीं बन सकता। हम अपने इक्स्पिरीअन्सिज़ के शौक यानी किसी ट्रॉमा की वजह से सफर नहीं करते हैं, बल्कि हम उसे इक्स्पिरीयन्स से निकाले अपने कॉन्क्लूज़न को सफर करते हैं। हमें हमारे एक्स्पेन्सस डिफाइन नहीं करते हैं, बल्कि हम जो मीनिंग अपने इक्स्पिरीअन्सिज़ को देते हैं वो हमें डिफाइन करता है। ट्रॉमा सिर्फ हमारे मन में एग्जिस्ट करता है। ओनली बिकॉज़ हमने अपने एक्सपीरिएंस को इतनी नेगेटिव वेटेज दे रखी है। ये बात शायद आपको ऑफेंसिव और कॉन्ट्रोवर्शल लगे, बट ट्रामा, इस आँच औस आप दुनिया को ऑब्जेक्टिव आइस से नहीं बल्कि अपनी सब्जेक्ट वाइज से देखते हो। आप अपने हर एक्सपिरियंस को दे देते हो जो आपके पर्पस को सूट करता है। अगर आपके गोल्स या फिर आपका पर्पस पॉज़िटिव है तो आप अपने हर एक्सपिरियंस को एक पॉज़िटिव मीनिंग दोगे। लेकिन अगर आपके गोल्स मीडिया होकर सेल्फिश और ओवरऑल नेगेटिव हैं तो आप अपने हर एक्सपिरियंस को भी नेगेटिव बना दोगे। साइकोलॉजी बोलती है कि अगर आप दुनिया में होने वाले हर इवेंट को ही कॉज़्वै के बेसिस पर देखोगे तो ऐसे आप अनकॉन्शियस ली डिटरमिनिज्म को क्रिएट करोगे। डिटरमिनिज्म का मतलब हर नया इवेंट एक पुराने इवेंट पर बेस्ट है और यह फर्क नहीं पड़ता कि आप क्या और कितना कर रहे हो। आप हमेशा ही अपने पास से रहो गए खुद को बदलने और खुद की यूनीक नेचर को नर्चर करने के लिए आपको कॉज़ के ऊपर से ध्यान हटाना है और इफेक्ट को अपनी मर्जी से डिसाइड करना है। यह मत बोलो की मुझे गुस्सा आता है, मुझे शक होता है या फिर मैं ऐसा ही हूँ। बिकॉज़ ऑफ नेगेटिव पास्ट ईवेन्ट इसके बजाय आपको हर पॉज़िटिव या फिर नेगेटिव मूवमेंट में क्या करना है? आप ये खुद चूज करो। अडलर हमें खुद को ट्रांसफॉर्म करने और यूनीक बनाने के लिए तीन टिप्स देते है नंबर वन डोंट टू अफ्रेड ऑफ चेंज। बदलाव शुरू होता है एक साहसी कदम लेने से, लेकिन ज्यादातर लोग इसलिए ही नहीं ग्रो कर पाते क्योंकि वो डरपोक है। आप अपनी कमियों को अपना और सक्सेस को हासिल इसलिए ही नहीं कर पा रहे। जस्ट बिकॉज़ ऑफ डरते हो अपने एक्स्क्लूसिव को नोटिस करो और देखो कि कैसे उनकी जड़ें आपके डरो से निकलती हैं। डर में कोई सच्चाई नहीं होती, वो बस आपके मन में बैठा है। इसी वजह से अगर आप अपने डर ओकओवर कम करना चाहते हो तो आपको पहले अपने मन को ओवर कम करना होगा। उससे दूरी बनाकर नम्बर टू नो दैट ऑफ योर प्रॉब्लम्स आर इंटर पर्सनल प्रॉब्लम्स साइकोलॉजी बोलती है दैट एवरी सिंगल प्रॉब्लम इस इन इंटर पर्सनल प्रॉब्लम यानी आपकी हर दिक्कत कहीं ना कहीं दूसरे लोगों से रिलेटेड होती है और जो दिक्कत दूसरों से रिलेटेड नहीं है वो दिक्कत है ही नहीं थी। वन अगर आप अपने बारे में इनसिक्योर फील करते हो? तो ये प्रॉब्लम भी दूसरों से खुद को कंपेर करने और चाइल्डहुड में अप्रीशीएशन की कमी से पैदा होती है। इमेजिन करो कि अगर आप इस दुनिया में अकेले होते तो कैसे आपकी 19 9% प्रॉब्लम्स एग्ज़िस्टिंग नहीं करती है प्रॉब्लम्स? कंपैरिजन और डूऐलिटी मैक्सिस करती है नंबर थ्री हैविंग के करेज टू बी डि स् लाइड इसके टू फ्रीडम अगर आपकी आइडेंटिटी दूसरे लोगों के अप्रूवल और सोसाइटी की एक्सेप्टेंस के बेसिस पर बनी है तो इसका मतलब आप दूसरों के गुलाम हो। आप वो ही बन जाते हो जो दूसरे लोग आपसे चाहते हैं। इसी वजह से आपको हिम्मत करनी है दूसरों से अलग और अपने टू सेल्स बनने की। फिर चाहे इसके लिए आपको जितनी मर्जी, हेट और क्रिटिसिजम ही क्यों ना मिले क्योंकि हेट को सह पाने की हिम्मत यही ट्रू फ्रीडम होती है।",अल्फ्रेड एडलर का मनोविज्ञान व्यक्ति पर बहुत अधिक ध्यान केंद्रित करता है और यह हमें जीवन को देखने के लिए सशक्त बनाता है जिसे हमारी इच्छा से नियंत्रित किया जा सकता है। यदि हम ऐसा करना चुनते हैं तो हम अपना भाग्य स्वयं लिख सकते हैं। लेकिन यह तब तक नहीं होगा जब तक कि आपका मानस बाहरी रूप से अन्य लोगों की राय और मांगों से बंधा न हो। इसलिए खुद को भीड़ से अलग करना और एक अद्वितीय व्यक्ति बनना वास्तव में महत्वपूर्ण है। "डेथ साइकोलॉजी एक ऐसी साइकोलॉजिकल अप्रोच है जो हमारे इक्स्पिरीयन्स इसकी जड़ों तक पहुंचती है। सर, ऑफिस लेवल पर हम सोचते हैं कि जो भी हम बोल रहे हैं या कर रहे होते है वो हम अपनी मर्जी से करते हैं पर अपने दिमाग की गहराइयों तक पहुंचने पर हमें पता चलता है कि हमारे अनकॉन्शस माइंड में एक अलग ही दुनिया एग्जिस्ट करती है, जहाँ पर ड्रीम्स, आरके टाइप्स ऐतिहासिक कहानियों और हमारे उन पर्सनल इक्स्पिरीअन्सिज़ का बोलबाला होता है। जो हमें कॉन्शस ली याद भी नहीं होते है, पर ये सब चीजें हमे हर समय एक पपेट की तरह कंट्रोल कर रही होती है और दुनिया के 99% लोगों को कोई अंदाजा भी नहीं है की उनका हर ख्याल और उनके मुँह से निकली हर बात पूरी तरह से उनकी बात या फिर उनका ख्याल है ही नहीं। डेथ साइकोलॉजी को पॉपुलर आइस करने में यूजीन ब्लू कलर और सिगमन फ्रॉयड का बहुत बड़ा हाथ था। पर इस फील्ड को ज्यादा प्रैक्टिकल बनाने वाला इंसान था। और के बारे में इंट्रेस्टिंग बात यह है कि वो फ्रॉड और नेचर दोनों का स्टूडेंट था। पर जहाँ नीचा का मानना था कि हमें निहाल इज़म से बाहर निकलने के लिए खुद ही अपनी वैल्यूज़ बनानी होंगी, वहीं कवरेज बताती हैं कि अगर हमें एक मीनिंगफुल लाइफ जीनी है और अपने अस्तित्व के डीपेस्ट पार्ट तक पहुंचना है तो हमें उन वैल्यूज़ को वापस से ढूंढना होगा जो पहले से ही हमारे अंदर कैद हैं। यह बात युग के स्टूडेंट एक नौ ने अपनी बुक ओरिजिन्स ऐंड हिस्टरी ऑफ कॉन्सियसनेस में भी बताई है कि कैसे एक कॉन्शस ओर्गनाइज़ हम बनने से पहले हम अपनी लाइफ अनकॉन्शियस ली जीते थे। यानी सारे जीव जंतुओं की इन्टेलिजेन्स एक दूसरे के काफी सिमिलर थी और वो उनके लिए एक गाइड का काम करती थी। इस इन्टेलिजेन्स को युग में नाम दिया कलेक्टिव अनकॉन्शियस, जो अभी भी हमारे अनकॉन्शस माइंड का सबसे गहरा पार्ट है और सबसे हैरानी वाली बात तो यह है कि लाखों साल पुरानी ये इन्टेलिजेन्स अभी भी हमें गाइड करती है। हमारे सपनों की मदद से सोयोंग के साइकोलॉजिकल मॉडल के हिसाब से हमारी लाइफ दो स्टेजेस में डिवाइडेड होती है। पहला स्टेज हमारे पैदा होने से लेकर अर्ली ऐडल्ट हुड तक चलता है और इसमें हम भारी दुनिया और दूसरे लोगों से डील करना सीखते है। पर दूसरा स्टेज तब शुरू होता है जब हम किसी क्राइसिस या ट्रॉमा को फेस करते हैं और इस स्टेज का गोल होता है अपने इन कॉन्शस माइंड के टच में आकर और अपनी मैस्कुलिन और फैमिली इन एनर्जी को बैलेंस करके एक कंप्लीट ह्यूमन बीइंग बनना और दोनों स्टेजेस में हम अपनी आउटर और इनर ग्रोथ की डिमांड को कैसे हैंडल करते है। ये डिपेंड करता है कि हम कितने एक्स्ट्रा वर्ड या इंट्रोवर्ट ऐड है, क्योंकि एक्स्ट्रा वर्ड्स की लाइफ शुरू से ही काफी सोशलाइजिंग और दुनिया की एक्स्प्लोरेशन से भरी होती है, जिसकी वजह से उनके लिए लाइफ के पहले स्टेज से गुजरना बहुत आसान होता है। और दूसरा स्टेज मुश्किल पर दूसरी तरफ इंट्रोवर्ट्स के लिए पहला स्टेज काफी चैलेंजिंग होता है और दूसरा स्टेजेज़ ही लाइफ के पहले स्टेज में हमारी आउटर डेवलपमेंट के लिए हमारे अनकॉन्शस माइंड में से दो आर के टाइप्स बाहर आते हैं। यानी हमारी ईगो और पर्सोना हमारी ईगो हमारी का वो पार्ट होता है, जिसे हम मैं बोलते है। यानी जिन डिज़ाइनर्स व्हाट्स योर फीलिंग्स को आप अपने साथ असोसिएट करते हो, वो आपकी ईगो है। ये वो स्टोरी है जो आप अपने आप को बताते हो, पर दूसरी तरफ परसों ना हमारा सोशल मास्क होता है। यानी जीस तरह से हम अपने आप को सोसाइटी में प्रेज़ेंट करते हैं और जीस तरह से दूसरे लोग हमें जानते हैं और सोसाइटी में हमारे एक से ज़्यादा रोज़ होने की वजह से हमारी पर सोना भी एक से ज़्यादा होती है और आप ये बात जानते हो क्योंकि जीस तरह से आपको आपका पार्टनर जानता है। वह काफी अलग होता है। जीस तरह से आप की फैमिली या पब्लिक आपको जानती हैं ना? उ। जब हम बड़े होते हैं और सेकंड स्टेज मैं आना शुरू करते हैं तब हमारी बची हुई लाइफ का गोल होता है। सेल्फ रियलाइजेशन, जिसे नाम दिया इन डि वि ड्यूरेशन यानी एक ऐडल्ट बनने के बाद हमारा काम होता है अपने अनकॉन्शस माइंड के कॉन्टेंट सको कॉन्शस माइंड में लाना ताकि हम एक बैलेंस इंसान बन सकें। का मानना था कि हर इंसान काफी यूनीक होता है और हम अपनी यूनीक डेस्टिनी तक नहीं पहुँच पाएंगे। अगर हम अपनी पुरानी मेमोरीज़ और छुपी हुई डिज़ाइनर्स के बारे में अवेयर नहीं हो जाते हैं। एग्जाम्पल के तौर पे अगर एक इंसान को उसके बचपन में उसके पैरेंट से प्रॉपर अटेंशन नहीं मिलती या फिर उसके पेरेंट्स अब्यूसिव थे तो उसकी साइकी इस मेमोरी और इससे जुड़े डर या ट्रोमा को पूरी तरह से अनकॉन्शियस बना देगी ताकि वो रोज़ रोज़ अपने बचपन के बारे में सोचकर डिप्रेस ना हो। बट यहाँ पर प्रॉब्लम ये है कि सालों बाद भी वो उसी मेंटल स्टेट में रहेगा, जो उसे इनसेक्युर फील कराती है। जस्ट बिकॉज़ उसने असली प्रॉब्लम को कभी एड्रेस ही नहीं करा, उससे बार बार रिपीट होने वाले सपने आएँगे और दुनिया की कोई भी लक्शरी उसे मन की शांति दिलाने में नाकाम रहे गी और ई वन अगर आप बोलो कि आपकी कोई बुरी मेमोरी है ही नहीं, तब भी हमारे अनकॉन्शस माइंड में ऐसी बहुत सारी डिज़ाइनर्स और थॉट्स होते हैं, जिन्हें हमारी ईगो इग्नोर कर चुकी होती है और जो आर्केटाइप हमारे इन रिजेक्टेड पार्ट्स को रिप्रजेंट करता है। उसे बोलते है शैडो ये इग्नोर और रिजेक्टेड चीजे पॉज़िटिव भी हो सकती है और नेगेटिव भी। जैसे अगर एक इंसान को इन सिचुएशन्स में हंसने की आदत है और उसे इस बात के लिए क्रिटिसाइज करा जाता है तो इवेन चुली उसे अपनी इस हैबिट को सप्रेस करना पड़ेगा जिससे उसकी शैडो पॉज़िटिव होगी। दूसरी तरफ अगर एक बुली पनिशमेंट मिलने पर दूसरों को डोमिनेट करना छोड़ देता है तो इस केस में उसकी शैडो के कंटेन्ट्स नेगेटिव होंगे। पर शैडो के कॉन्टेंट्स पॉज़िटिव हो या नेगेटिव, हमें वो दोनों ही कंट्रोल कर सकते हैं और तभी इस सिचुएशन से बाहर निकलने के लिए हमारी साइट की हमारी शैडो को दूसरे लोगों पर प्रोजेक्ट करती है ताकि हम उनमे अपने रिजेक्टेड, थॉट्स और बिलीव्स को देख सकें और अपनी शैडो को कॉन्शस ली फेस कर सकें। और अगर आप खुद चेक करना चाहते हो कि आपकी शैडो में आपके कौन से रिजेक्टेड थॉट्स है तो आप सिम्पली अपनी जजमेंट को ऑब्जर्व कर सकते हो। कि आपको दूसरे लोगों में क्या बुरा लगता है? किस टाइप के लोगों से आप डरते हो और किस टाइप के लोग आपको अपने से इन्फिरीअर लगते है? सेकंड स्टेज मैं अगले आर्क टाइप्स है। ऐनिमा और ऐनिमलस ऐनिमा यानी फेमिनिन साइकोलॉजिकल क्वालिटी ज़ जो एक मेल के अंदर होती है और ऐनिमलस मतलब मैं स्कूल इन साइकोलॉजिकल क्वालिटी ज़ जो एक फीमेल के अंदर होती है। ये क्वालिटी ज़ इसलिए एग्जिस्ट करती है क्योंकि पैदा होने से पहले जब हमारी साइकी डेवलप हो रही होती है तब उसमें दोनों जेंडर्स की क्वालिटीज होती है। पर जब हमारी बॉडी एक जेंडर के ***** ऑर्गन बनाना शुरू कर देती है और पैदा होने के बाद भी हम सिर्फ एक जेंडर के रोल्स को निभाने लगते हैं तब हमारी स्ट्राइक की इस इम्बैलेंस को कॉमपेनसेट करती है हमारे ऑपोजिट जेन्डर केआरके टाइप से और अगर हम अपने ऑपोजिट जेन्डर की क्वालिटीज को एक्सेप्ट नहीं करते तो हमारे बाकी रिजेक्टेड थॉट्स की तरह वह भी हमारे शैडो का पार्ट बन जाते हैं और बाकी आर की टाइप्स की तरह एनिमा और एनिमल्स अपनी एग्ज़िस्टन्स को नॉन बनाते हैं। प्रोजेक्शन और हमारे सपनों की मदद से यूज़्वली जब भी हम अपनी इन क्वालिटीज के टच में आना स्टार्ट करते हैं, तब हमें अपने सपनों में एक ऑपोजिट जेन्डर का फिगर देखने लगता है। एग्जाम्पल के तौर पर कुछ दिनों पहले आप लोगों में से एक लड़के ने मुझे मैसेज कर के बताया कि उसे अपने सपनों में बार बार उसकी क्रश दिख रही है। यहाँ पर सबसे पहले आप ये समझो कि हमारे क्रश या फिर लव एट फर्स्ट साइट एनिमा और एनिमल्स के ही एग्जाम्पल्स होते हैं और इस केस में इस इंसान ने अपनी ऐनिमा यानी फेमिनिन साइड को रिजेक्ट कर रखा है और जैसे की हमने डिस्कस करा हम अपनी साइकिल के रिजेक्टेड पार्ट्स दूसरे लोगों पर प्रोजेक्ट करते है। सो जब इस इंसान को एक लड़की में वो क्वालिटीज दिख गई जो उसने अपने में रिजेक्ट करी हुई थी, तब एकदम से उसकी अटेन्शन उस लड़की पर ही रुक गई और उसे उस लड़की के सपने भी आने लग गए। पर ऑब्वियस्ली यह पागलपन उस लड़की से नहीं बल्कि उसकी अपनी साइड से रिलेटेड है। जितना हम अपने आप को टुकड़ों में बांटते है उतना ही हमारी साइको एक्स्ट्रीम रास्तों पर जाना पड़ता है। हमारी गलतियों को कम पेन सेट करने के लिए और हमारे अंदर बैंलेंस को रिस्टोर करने के लिए इसी वजह से हमारा टास्क है अपने अंदर की फैमिन और मैं स्कूल इन एनर्जी ज़ दोनों को यूज़ करना एक रफ ऐंड टफ मेल को ज्यादा क्रिएटिव, इमोशनल और कंपैशनेट बनने की प्रैक्टिस करनी चाहिए। और एक फीमेल को पॉज़िटिव मेल क्वालिटी ज़ जैसे रैशनैलिटी गुड जजमेंट और असर टिटनेस को प्रैक्टिस करना चाहिए। युग का मानना था कि अपनी एनिमा या एनिमल्स को फाइनली कॉन्शस माइंड में लाना। हमारी साइकोलॉजिकल ग्रोथ का सबसे मुश्किल पर रि वोर्डिंग स्टेप होता है और जब हम इस टास्क को पूरा कर लेते हैं तब फाइनली हमे ऐक्सिस मिल जाता है। अपनी के मेनार के टाइप का जो है 10 सेल्फ यानी जो आप अभी हो। और जो कुछ भी आप फ्यूचर में बन सकते हो वो सारी पोटेंशिअल इसी आर्केटाइप में आती है। यह हमारी के सारे प्रोसैस की टोटेलिटी हैं। इसे हम अपना हाइअर सेल्फ या फिर अपनी कॉन्सियसनेस का सेंटर भी बोल सकते है। क्योंकि कलेक्टिव अनकॉन्शियस के टच में होने की वजह से जिंस किसी भी नॉलेज, एडवाइस या विज़्डम की हमें कभी जरूरत पड़ेगी। वो पहले से ही 10 सेल्फ में मौजूद है। इसी वजह से जब भी आप किसी महान स्पिरिचुअल टीचर या फिलॉसफर की बात सुनते हो तो ऑटोमैटिकली आपको ऐसा लगता है कि आप ने वो बातें ना सुन कर भी पहले सुनी हुई है और वह आपके अंदर किसी ऐसी चीज़ से बात कर पाते हैं जो आप से भी बड़ी है। जैसे जैसे एक इंसान अपने आप को अपनी ईगो या पर्सोना के साथ आइडेंटिफाइ करने के बजाय 10 सेल्फ के साथ कनेक्ट करना शुरू करता है, वैसे वैसे वो अपने अंदर एक यूनिअन या फिर ऑपोजिट के मिलन को एक्सपिरियंस करता है। ये प्रोसेसेस एक हेल्थी पर्सनैलिटी और अपनी मैक्सिमम पोटेंशिअल तक पहुंचने के लिए बहुत जरूरी है। पर पर्सनल बेनिफिटस के अलावा युग का मानना था कि इस लेवल की सेल्फ अवेर्नेस सोसाइटी के लिए भी बहुत बेनेफिशिअल है क्योंकि जो लोग अपने आप को अपनी पर्सोना से ओवर आइडेंटिफाइ करते हैं वो अत्याचारी गवर्नमेंट और बुरे लोगों के सबसे आसान शिकार बनते है और तभी अगर हम इस दुनिया में कोई पॉज़िटिव चेंज लाना चाहते हैं तो यह बहुत जरूरी है कि ज्यादा से ज्यादा लोग इन डि वि ड्यूरेशन प्रोसेसेस की मदद से ये जान पाए कि उनके पास इस दुनिया को ऑफर करने के लिए बहुत कुछ है। और उनका असली रूप उनके सोशल रोल से बहुत बढ़कर है।","कार्ल जंग एक स्विस मनोवैज्ञानिक थे जिन्होंने विश्लेषणात्मक मनोविज्ञान की स्थापना की और दर्शनशास्त्र, पुरातत्व, आध्यात्मिकता और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया। यह पॉडकास्ट सेगमेंट उनके मानस के मॉडल और उनके व्यक्तित्व की अवधारणा का परिचय है, जो किसी को अधिक आत्म-जागरूक और संपूर्ण होने की अनुमति देता है।" "नियमों तुम उस राशि एक जैपनीज़ तलवारबाज और एक फिलॉसफर थे। सिर्फ 15 साल की उम्र में ही अपना गांव छोड़कर मूसा के लिए निकल गए, जो एक वॉरिअर की तीर्थयात्रा या फिर उसकी अपनी स्किल्स डेवलप करने की जर्नी होती है। मैं एक समुराई वॉरियर ट्रैवल करता है और अलग अलग तलवारबाजों से लड़ता है। अपनी लाइफ में मुझे 61 लड़ाईयां लड़े, जिसमें वो एक बार भी नहीं हारे और ये अब तक का हाइएस्ट रेकोर्ड है। और अपने सबसे मुश्किल अपोनेंट को मारने और आखिर की कुछ छोटी मोटी लड़ाई लड़ने के बाद उन्होंने जानलेवा लड़ाईयां करना त्याग दिया और वह एक पहाड़ी के लिये में रहने लगे। वहाँ उन्होंने अपना डिसिप्लिन, लाइफ फिलॉसफी, इज्जत कमाने और एक महान इंसान बनने पर बेस्ट ज्ञान पेपर पर लिखना शुरू करा और इनमें से उनका आखिरी काम था डॉ। कोंडो जैसे हम थे पैथ ऑफ लोन्लीनस या फिर द वे ऑफ वॉकिंग अलोन के नाम से जानते हैं जिसमें उन्होंने लाइफ जीने के 21 रूस दिए हैं और इस एपिसोड में हम मियामोटों के लिए इन्हीं 21 रूल्स को डिस्कस करके सीखेंगे की हम भी एक महान वॉरियर की अपनी लाइफ में किस तरह से यूज़ कर सकते हैं नंबर वन एक्सेप्ट एवरीथिंग के वेइट इस सबसे पहला प्रिन्सिपल ये है कि हमें हर चीज़ को उसी तरह से एक्सेप्ट करना चाहिए, जैसी वो हैं। हमारी लाइफ में हमेशा चेंज होते रहते हैं और जहाँ हम इन चेंजेज को रोक नहीं सकते, हम इनको एक्सेप्ट करने की मेंटैलिटी जरूर डेवलप कर सकते हैं। इसके साथ ही अगर हम नैचुरली किसी डिसएडवांटेज के साथ इस दुनिया में आए मेबी हमारी फैमिली के पास पैसों की कमी थी या फिर हमारे घर में किसी की डेथ हो गयी थी तो इन्फैक्ट से दूर मत भागो बल्कि इन्हें ओवर कम करो। इन्हें एक्सेप्ट कर के नियमों को भी इतने खुशनसीब नहीं थे कि वो किसी स्कूल या किसी मास्टर के पास जा पाते जहाँ उनको जरुरी नॉलेज या फिर स्किल्स दी जाती है। पर फिर भी वो अकेले ही सक्सेस के रास्ते पर निकल गए। जगह जगह जाकर महान वॉरियर्स से लड़ने लगे ताकि वो बस अपनी स्किल्स को बेहतर बना पाए। नंबर टू डू नॉट सीख फ्लेचर फॉर इट्स ओन्स एक ये महानता हासिल करने की मिनिमम रिक्वायरमेंट है कि आप अपने प्लेयर्स और छोटे मोटे मसलों को सैक्रिफ़ाइस कर दो। कुछ बड़ा हासिल करने के लिए जो भी चीज़ आप अपने सेल्फिश और मोम एंट्री बेनिफिट के लिए लोगे वो आपको पीछे खींचेगी और आप बाद में उस फ्लेचर को उससे कई गुना ज्यादा करोगे जितना आपने उसे एन्जॉय करा था। नंबर थ्री डू नॉट अंडर एनी सर्कम्स्टैन्सज़ डिपेंड ऑन ना पार्शियल फीलिंग हमारी फीलिंग्स काम होता है। हमें ये बताना कि क्या करना जरूरी है और किस चीज़ को हमे अवॉर्ड करना चाहिए। लेकिन कई बार जब हम किसी डिसिशन या ऐक्शन को लेकर कन्फ्यूज होते हैं, तब वही सेम फीलिंग जो हमें ऐक्युरट गाइडैंस दे रही थी, अब उनकी बात सुनना गलत होगा। एक पार्शियल फ़ीलिंग पर ऐक्ट करने का मतलब है रिज़ल्ट को वेलकम करना स्पेशल अगर वो फ़ीलिंग आपको कुछ बड़ा कदम लेने को बोल रही है। इसके बजाय जब आपकी फीलिंग्स आपका साथ ना दे तब अपने लॉजिक और रैशनैलिटी पर रिलाय करो। नंबर फ़ोर थिंक लाइटली ऑफ योरसेल्फ ऐंड डीप्ली ऑफ द वर्ल्ड हम सिर्फ खुद पर फोकस करते है और खुद के ही बारे में सोचते रहते हैं तो हम दुनिया की अन्डरस्टैन्डिंग को खो देते हैं और एन टाइटल बन जाते हैं। आपका मेन फोकस खुद की सेल्फिश नीड्स पर नहीं बल्कि दुनिया को सर्व करने पर होना चाहिए जिससे वो चीजें हैं जिनकी आपको जरूरत है वो खुद ब खुद आपके पास आ जाएंगी अपने बारे में लाइटली सोचने का यही मतलब है कि हम घमंडी बनने के बजाय यह समझ लें कि हम भी बाकी करोड़ों लोगों की तरह ही है और अलटिमेटली हमारी जिंदगी की कीमत भी उनकी जिंदगी की जितनी ही है। इसलिए ये मत सोचो की दुनिया आप के आसपास घूमती है बल्कि थोड़े हम्बल बनो और सिर्फ तभी लोग आपको रिस्पेक्ट देंगे। नंबर फाइव डिटेल्स फ्रॉम डि ज़ाइन योर होल लाइफ लॉन्ग किसी चीज़ को डिजाइन करने का मतलब है कॉन्स्टेंट ली उस चीज़ के पीछे भागते रहना और जब तक वो चीज़ आपको मिल नहीं जाती तब तक दुखी और ऑनफील्ड महसूस करना। ये चीज़ बुद्धिज़म में भी बोली गयी है कि सफरिंग का रूट कॉज डिज़ाइनर और अटैचमेंट ही होता है, इसलिए अपनी लाइफ में गोल जरूर सेट करो, लेकिन उस गोल से हमेशा डिटैच रहो ताकि आप उस गोल के पीछे भागने के बजाय वो आपको अपने पास बुलाया। नंबर सिक्स डू नॉट नॉट यू हैव डन? जब हम अपने खुद के ऐक्शन को अच्छे से समझते हैं और हमें उनमें कोई डाउट नहीं होता तो हमारे दिल में उस ऐक्शन को लेकर कोई पछतावा नहीं रहता। चाहे हमारे एक्शन्स का रिज़ल्ट बुरा ही क्यों ना निकले। अगर हमारे इरादे नेक थे तो हमें रिज़ल्ट से कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए। रेगुलेट सिर्फ उन लोगों को होता है जो बिना सोचे समझे कुछ भी बोल या कर देते हैं जिनसे वो भी हर्ट होते हैं और दूसरे लोग भी और बाद में वो इसी चीज़ के लिए गिल्ट महसूस करते हैं। मियामोटों मुंशी बोलते हैं ये अपनी अवेर्नेस का लेवल इतना हाई रखो कि आप जल्दबाजी में हड़बड़ाने के बजाय हमेशा ठंडे दिमाग से सोच सकू। नंबर से वन्नेवर बीज जेलस दूसरों के पास क्या है और क्या नहीं इससे आपको बिल्कुल फर्क नहीं पड़ना चाहिए। दूसरों की अचीवमेंट से पोज़िशन्स को देखकर जेलस हो ना एक टाइम वेस्ट है क्योंकि आपकी लाइफ की जर्नी दूसरों से अलग और अपने आप को दूसरों से कंपेर करने से आपको लॉन्ग टर्म में हमेशा डेमोटीवेशन और अपनी प्रोग्रेस का एक गलत डेटा ही मिलेगा। इसलिए जो एनर्जी आप दूसरों के कामों में इन्वॉल्व होने के लिए यूज़ कर रहे हो, वो एनर्जी अपनी प्रोडक्टिविटी बढ़ाने पर लगा हो? नंबर एट नेवर लेट योरसेल्फ भी साइड बाई उससे ऑपरेशन हमारी लाइफ में लोग आते जाते रहते है और अगर हम उनसे अटैच्ड हैं या उनके बिना इन्कम्प्लीट फील करते हैं तो उनसे अलग होने पर हमारी लाइफ भी डगमगाने लगे गी और हम एक लंबे समय के लिए किसी दूसरी चीज़ पर फोकस ही नहीं कर पाएंगे। इसलिए अपने आप में होल बनाओ और जब आप किसी से दूर होते हो ना तो अपने दिल में उनके लिए कड़वाहट रखो और ना ही अटैचमेंट। बस खुशकिस्मत फील करो कि आप आपको उनके साथ कुछ अच्छे पल बिताने और उनसे कुछ सीखने का मौका मिला। नंबर नाइन ऐंड कम्प्लेंट और अप्रोपिरियेट नीदर फॉर वनसेल्फ नॉट फॉर अदर्स। बेवजह कड़वाहट पालने ये कंप्लेंट करने से बेटर है कि हम दूसरों पर उंगलियां उठाने के बजाए अपने अंदर झांकें और खुद को ऐसा इंसान बनाने पर फोकस करें, जिससे दूसरों के ऐक्शन से फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि रखने से तो बस हम अपने आप में ही परेशान होते रहते हैं और दूसरों के साथ अपने रिलेशन्स को खराब कर लेते हैं। इसलिए जैसे ही आपको लगे कि आप किसी इंसान के बारे में बुरा सोचने लगे हों, तब अपने थॉट्स को वहीं पर पकड़ लो और उन्हें चेंज करो। नंबर कैन डू नॉट योरसेल्फ गाइड बी फीलिंग ऑफ लस्ट ओर लव प्यार और जिंदगी की जंग में ज्यादा डिफरेन्स नहीं है क्योंकि एक सच्चे प्यार को पाने के लिए आपको कई लड़ाईयां लड़नी पड़ेगी। लेकिन जब प्यार या *** आपकी थिंकिंग को धुंधला बनाने लगते हैं और आप हमेशा ही इन चीजों से डिस्ट्रैक्टिड रहते हो तो वह चीज़ आपके लिए बहुत हार्मफुल है। इसलिए खुद को डिसिप्लिन बनाओ, अपने ऊपर कंट्रोल बढ़ाके और इन डिस्ट्रेक्शन्स को ना बोलने की प्रैक्टिस करके नंबर 11 इन ऑल थिंग्स हैव नो परेफरेंस आपका माइंड हमेशा ओपन होना चाहिए और आपको नई चीजें ट्राई करने के लिए और एक्स्प्लोर करने के लिए हमेशा रेडी रहना चाहिए क्योंकि जब भी हम ऐसा बोलने लग जाते हैं कि हमें तो सिर्फ जंक फूड खाना या आराम से बैठे रहना पसंद है, तब हम ये दिखा रहे होते हैं कि हमारा वर्ल्डव्यू हमारी परेफरेंस की वजह से कितना डिस्ट्रो रेटेड है और हम एक्सटर्नल चीजों पर डिपेंड करते है। खुश रहने के लिए इसके बजाय नई नई चीजों को वेलकम करो और किसी भी जगह पर अपनी प्रेफरेंसेस के आगे अंधे मत हो। जाओ नंबर 12 टू वेयर यू लीव यहाँ पर मूसा जी ये बोल रहे हैं कि ग्रोथ कभी भी सिर्फ एक जगह पर रहने से नहीं मिलती है क्योंकि एक पॉइंट के बाद आप अपने घर और अपने मोहल्ले को मास्टर कर लोगे, जिसके बाद आपको कहीं और जाना पड़ेगा। नए चैलेंज को फेस करने और नए लाइसेंस को लेने के लिए अपनी लाइफ में मियामोटों मूसा सी जापान की अलग अलग जगहों पर घूमते रहे और हर किस्म के इंसान से मिलकर लोगो की मेंटैलिटी को समझते रहे। बिल्कुल ऐसे ही अपने घर से इतना लगाव मत बना लो कि आप कभी भी वहाँ से बाहर ही ना निकलो और रिऐलिटी को इक्स्पिरीयन्स ही ना करो। नंबर 13 डू नॉट परसू द टेस्ट ऑफ गुड फूड एक वॉरिअर के लिए खाना बस फ्यूल की तरह होता है। लेकिन हमारी आज की जेनरेशन हर खाने में टेस्ट ढूँढती है और फैक्टरी में प्रोसेसर हुआ खाना खाती है, बजाय नैचरल फूड के। आज बहुत से लोग खाने को अपनी वीकनेस बोलते हैं। जबकि वो उनकी ताकत होना चाहिए था। का कहना है कि हमें टेस्ट के लिए नहीं बल्कि नरेश मेंट न्यूट्रिअन्ट्स और पेट भरने के लिए खाना चाहिए। नंबर 14 डू नॉट होल्ड ऑन टू योर पोज़िशन्स यू नो लॉन्गर नीड यानी जिन चीजों की अब आपको जरूरत नहीं है और वो अब आपको कोई बेनिफिट नहीं दे रही है तो उनको अपने पास रखने का कोई मतलब नहीं होता। इससे अच्छा है कि या तो आप उस चीज़ को नष्ट कर दो या किसी जरूरतमंद को दे दो जो उसे ऐक्चुअल में अप्रिशिएट कर सके में आकर चीजों को खरीद तो लेते हैं लेकिन जब कुछ समय बाद वह अपनी चमक खो देते हैं और हम उनसे बोर हो जाते हैं तब हम किसी नई चीज़ को ढूंढने के साथ साथ उस पुरानी चीज़ को भी पकड़े रखते हैं। ये डिपेंडेंसी और अटैचमेंट हमें मेंटली वीक बनाता है और हमसे हमारी आइडेंटिटी को छीन लेता है। इसलिए ना तो यूज़लेस चीजों को खरीदो और ना ही उन्हें अपने पास कटे होने दो। नंबर 15 डू नॉट ऐट फॉलोइंग कस्टमर ही बिलीव्स यानी हमेशा झुंड में चलने और नए ट्रेंड को फॉलो करने के बजाय अपने बिलीव्स अपनी क्लिअर थिंकिंग के बेसिस पर रखो। ज्यादातर लोग बिना सोचे समझे ही दूसरों को फॉलो करने लग जाते हैं और वो अपने पेट से हटकर दूसरों की लेन में चलने लग जाते हैं। इस तरह से अंधाधुंध पीछा करना और ओबीडीअन्स बनना जानवरों का काम है, इंसानों का नहीं। इसलिए किसी ग्रुप या मूवमेंट के साथ आइडेंटिफाइड होने के बजाय इन्डिपेन्डेन्ट ली। सोचो नंबर 16 डू नॉट कलेक्ट वेपन्स ऑफ प्रैक्टिस विद वेपन्स बियॉन्ड वॉट इस यूज़फुल यानी जहाँ अलग अलग टूल्स अलग सिचुएशन्स में काम आ सकते हैं, वहीं अपने हथियारों या टूल्स कोकट्टा करना 164 नहीं होगी। आपको अपने पास बस उतना रखना चाहिए, जीतने की आपको जरूरत है। खुद भी इतनी तरह की तलवार होने के बावजूद अपने पास सिर्फ दो तलवारें ही रखते थे। इसलिए अपनी लाइफ में बस उन्हीं चीज़ो को रखो जो काम की है। नंबर 17 डू नॉट फिर डेथ एक वॉरिअर मेंटैलिटी रखने का मतलब है डेथ को फुली एक्सेप्ट करना। और उससे कभी ना डर, ना उस आशी हर अगले दिन ही अपनी जान को दांव पर लगा रहे होते थे ताकि वो सबसे महान बन पाए और एक वॉरिअर को हमेशा यह पता होता है। यह लड़ाई उसकी आखिरी लड़ाई हो सकती है। जीस वजह से वह हर बार अपना 100% ही देते है और अगर हम भी अपने आपको फुल्ली डेवलप करना चाहते हैं तो हमें सबसे पहले अपने इस मौत के डर को ओवर कम करना होगा। नंबर 18 डू नॉट सी टू पोज़ एसी दर्द के गुड्ज़ ओर फॉर योर ओल्ड एज हम इंसान अपने बुढ़ापे के लिए बहुत सी चीजें और सामान को संभालकर रखते हैं, लेकिन हमें एक बनने की सलाह देते हैं। उनके हिसाब से अगर हम अभी से अपने बुढ़ापे के लिए चीजों को कलेक्ट करने बैठ गए तो ना तो हम अपने प्रेज़ेंट को एन्जॉय कर पाएंगे और ना ही हम बूढ़े होने पर यह मेंटैलिटी रखेंगे कि हमें अभी भी ऐक्टिव रहना है। ज्यादातर लोगों के साथ यही होता है। वो अपने 50 ज़ोर 16 में आकर यही सोचते हैं कि जगह जगह पर दर्द हो ना और बार बार बीमार होना आम बात है, लेकिन हमारी एज चाहे कुछ भी हो, हमें हमेशा ही फिट और स्ट्रॉन्ग बने रहना चाहिए। 19 रिस्पेक्ट बुद्धा ऐंड द गॉड्स विदाउट काउंटिग ऑन देर हेल्प आपको अपनी लाइफ में लक या बाकी चीजों के लिए बुद्धा जिसमे गॉड में आप विश्वास करते हो उनसे कभी भी मदद नहीं मांगनी चाहिए। आपको बस यह दुआ मांगनी चाहिए कि भगवान आपको वो इनर स्ट्रेंथ दें जिसकी मदद से आप अपनी सारी मुश्किलों और अपने रास्ते में आती बाधाओं को खुद ही ओवर कम कर पाओ। नंबर 20 यू में अबैन्डन योर बॉडी बट यू मस्ट प्रिज़र्व योर ऑनर यानी एक वो ऑर्डर के लिए रिस्पेक्ट अपनी जान से ज्यादा कीमती होती है। वो किसी के आगे झुकने से पहले मरना ज्यादा प्रिफर करेंगे और अगर आप भी एक स्ट्रॉन्ग करैक्टर्स बिल्ड करना चाहते हो तो यह ध्यान रखो कि आपकी वैल्यूज टूटने से पहले आपका शरीर टूटे हैं। इसके साथ ही वैल्यूज़ भी ऐसी जो इतने बड़े सैक्रिफ़ाइस करने के लायक हूँ। नंबर 20 वन्नेवर स्ट्रे फ्रॉम द वे एक वॉरियर की तरह जीने का मतलब है एक्स्ट्रीमली डिसिप्लिन बनना और अपने पैथ से बिल्कुल भी ना डगमगाना। अगर आप ज़रा सा भी कंफर्टेबल हो गए तो आपकी जान भी जा सकती है। इसलिए नियमों तुम उस राशि बोलते है की चाहे आपकी जिंदगी में कितनी भी मुश्किलें या फिर कितनी भी टेम्पटेशन्स आ जाए। अगर आप एक वोरियर के रास्ते पर चलोगे तो इससे आपकी लाइफ किसी भी दूसरी फिलॉसफी के कंपैरिजन में बेहतर उभर कर आएगी।","मियामोतो मुसाशी जापानी समुराई और दार्शनिक थे। जब वह 15 साल का था, तो उसने अपना घर मुशा शुग्यो के लिए छोड़ दिया, जो एक योद्धा की तीर्थ यात्रा है। अपने जीवन में, मुशी ने 61 युगल लड़े, जिनमें से वह 0 लड़ाई हार गया। अपने सबसे कठिन प्रतिद्वंद्वी और कुछ मामूली लड़ाइयों से लड़ने के बाद, वह सेवानिवृत्त हो गए और पहाड़ों में रहने चले गए जहाँ उन्होंने अपने दर्शन को लिखना शुरू किया। अपनी अंतिम कृति डॉककोडो अर्थात अकेले चलने का तरीका में उन्होंने अच्छा जीवन जीने के 21 नियम लिखे थे। तो, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम उन 21 नियमों पर चर्चा करेंगे जो सबसे महान जापानी समुराई में से एक द्वारा लिखे गए हैं।" "क्या कभी आपने नोटिस करा है कि कैसे कई बार आप ऐसे लोगों से अट्रैक्ट होने लगते हो जो बेस्ट लुकिंग नहीं होते हैं? इस फेनोमेनन को बोलते हैं हैलो इफेक्ट यानी आपको उन लोगों की हर बात अच्छी लगने लगती है। जो लोग अट्रैक्टिव होते हैं और जिन लोगों की बातें या फिर आदतें आपको बहुत अच्छी लगती है वो आपको ऑटोमैटिकली ज्यादा अट्रैक्टिव लगने लगते है। आपको ओपिनियन दो स में काम करने वालों पर भी अलग होता है और सम अट्रैक्टिवनेस वाले लोगों पर भी ओनली बिकॉज़ ऑफ के हैलो इफेक्ट नाउ आप ओवरनाइट अपनी अपीयरेंस को तो नहीं बदल सकते हैं? इसलिए किसी को भी अट्रैक्ट करने के लिए सबसे आसान तरीका होता है अपनी आदतो बातों और ओवरऑल बिहेव्यर को चेंज करना और इस एपिसोड में आपको यही सीखने को मिलेगा। हैबिट नंबर वन सीन ऐसे ऑपर्च्युनिटी सोचो कि आप एक ग्रुप का पार्ट हो और जब भी इस ग्रुप को कोई नेगेटिव न्यूस मिलती है तब हर कोई डेमोरलाइज हो जाता है। सिर्फ एक इंसान को छोड़कर यह इंसान मुश्किल समय में भी मोटिवेटेड रहता है। यह इतना मेंटली स्ट्रॉन्ग है कि इसका डिसिप्लिन कोई नहीं तोड़ सकता और तभी यह हर बार ठंडे दिमाग से उस प्रॉब्लम का सल्यूशन निकाल पाता है। नाउ क्या आप इस इंसान को ऑटोमैटिकली एक हीरो एक फिगर की तरह इमेजिन करने लगे हों या फिर एक लूँ? सर की तरह? यूसी हर रुकावट एक्चुअल मैं बस एक मिडिओकर इंसान के लिए ही रुकावट होती है जबकि महान लोगों की महानता तो इसी तरह के चैलेंजेस की देन होती है। रियल लाइफ एक मूवी की तरह नहीं होती जहाँ हीरो को हीरो का टाइटल दे दिया जाता है। सिर्फ उसकी लुक्स की वजह से बल्कि रियल लाइफ में हिरोस वो लोग कहलाते हैं जो साहसी, डिसिप्लिन और इन्स्पाइरिंग होते हैं। हैबिट नंबर टू मेकिंग के इम्पॉसिबल पॉसिबल इस चैनल की सक्सेस से पहले मैंने एक सेल्फ हेल्प वेबसाइट बनाई थी। एक डॉक्टर साइड, एक लॉगिन चैनल, 1 चैनल विग निजाम पर और कुल चार पांच अटेम्प्ट्स और दो 3 साल तक ट्री करने के बाद साइकोलॉजी हिंदी मेरा एक ऐसा वेंचर था जो अच्छी इनकम जेनरेट कर पाया। लेकिन ज्यादातर लोग क्या करते है? वो एक या फिर ज्यादा से ज्यादा दो बार अपना टाइम और पैसा इन्वेस्ट करके देखते हैं, फेल होने पर क्विट कर देते हैं और एक मिडिओकर लाइफ के लिए सेटल कर लेते हैं। लेकिन आपके और मेरे जैसे लोगों की डिक्शनरी में कोटिंग जैसा शब्द एग्ज़िस्टिंग नहीं करता। कोटिंग जैसी बेकार आदत फिज़िकली अट्रैक्टिव लोगों को भी अगली बना देती है। आप अपने टीनेज और अर्ली ट्वेंटीज तक तो अपने लुक्स के सहारे वाहवाही बटोर सकते हो, लेकिन अगर 2425 साल के बाद भी आप में कोई रिस्पेक्ट वर्ड भी क्वालिटी नहीं है तो आपकी अच्छी शकल भी आपको नहीं बचा पाएगी। इसलिए अपने फर्श को कॉन्स्टेंट फेल्यर के बाद भी कंटिन्यू रखो और 1 दिन आपकी मेहनत आपको फल भी देगी और दूसरों को भी आपकी तरफ आकर्षित करेगी। हैबिट नंबर थ्री मिस्ट्री मिस्टीरीअस लोग अट्रैक्टिव होते हैं, क्योंकि ह्यूमन्स नैचुरली काफी क्युरिअस क्रीचर्स है। अगर हमसे कोई बात छुपाई जाए तो हमें उस बात को और डेस्परेट ली जाना होता है। हम यह नहीं चाहते कि कोई इंसान टोटली प्रेडिक्टेबल और शैलो हो, क्योंकि ऐसे इंसान के बारे में कुछ भी एक्साइटिंग नहीं होता, जबकि मिस्ट्री दूसरे लोगों को फोर्स करती है मिस इन गैप्स को भरने के लिए कि आप ऐसे क्यों हो? आपने वो बात क्यों बोली कि फिर आप इस तरह के कपड़े क्यों पहनते हो? मिस्ट्री आपको सम देखने वाले प्रोडक्ट्स के बीच एक यूनीक पर सोना देती है। हैबिट नंबर फ़ोर मास्टर ओवर लैंग्वेज यानी आपकी स्पीकिंग स्किल्स और जितना फ्लुएंटली आप एक लैंग्वेज को बोलते हो। वो भी दूसरों को अट्रैक्ट या फिर रिपेल कर सकता है। आपकी स्पीच में क्लैरिटी और प्रिसिशन होना चाहिए। अक्सर ये मैटर नहीं करता कि एक इंसान किसी कन्वर्सेशन मैं क्या बोल रहा है, बल्कि ये ज्यादा जरूरी है कि उस बात को कौन वे किस तरह से कराया जा रहा है। हैबिट नंबर फाइव बीइंग क्लासी आज के जमाने में जहाँ हर कोई सेल्फ डिफेन्स हुआ रहता है और यह अस्यूम करता है कि सामने वाला उसका किसी तरह से फायदा उठाना चाहता है। अगर आप मेल अपनी डेट के लिए डोर को ओपन करते हो या फिर ऐसा फीमेल आप काफी ग्रेसफुल और मॉडेस्ट हो तो ये चीज़ आपको सबसे अलग और अट्रैक्टिव बनाती है। अगर दूसरे लोग फुल है या फिर किसी आइडियोलॉजी को फॉलो कर रहे हैं तो इसका मतलब यह नहीं है कि आप भी सडनली अपनी वैल्यू उसको ड्रॉप कर दो। इसके बजाय क्लास ही रहो। हैबिट नंबर, सिक्स यूनीक कॉम्प्लिमेंट्स लुक्स या फिर ड्रेसिंग सेन्स पर बेस्ट कॉम्प्लिमेंट तो हर कोई देता है। इसलिए स्टैंड आउट करने के लिए आपको अपने कॉम्प्लिमेंट्स को काफी डिटेल्ड और यूनीक बनाना है। फॉर एग्ज़ैम्पल आप एक मेल को ये बोल सकते हो कि उसकी वौइस् काफी मैस्कुलिन है या फिर कैसे एक फीमेल के कपड़े उनकी पर्सनैलिटी की तरह वाइब्रेंट है। जो भी कॉंप्लिमेंट दो मेक शुर वो आउट ऑफ द बॉक्स और रियल हो हैबिट नंबर से वन यू टीच ओर कनेक्ट पीपल्स मिस्टेक्स विदाउट जिन गेम अगर आपको कोई चीज़ दूसरों से बेहतर पता है या फिर आपको ज्यादा नॉलेज है तो इसका मतलब यह नहीं है कि आप सब क्या आगे ये शो करते रहो कि आप कितने इन्टलेक्चुअल और स्मार्ट हो। ये मूव बहुत ही अन्य अट्रैक्टिव होता है। इसके बजाय दूसरों को कनेक्ट करते हुए ऐसा देखा हो कि ये गलती तो कोई भी कर सकता था और उन्हें होने की कोई जरूरत नहीं है। रैबिट नंबर एट यू वैल्यू योर टाइम यानी एक इंसान जिसके गोल्स बड़े होते हैं और वो अपनी प्रायोरिटिज से निगोशिएट नहीं करता तो उसका ये डिसिप्लिन भी दूसरों के लिए बहुत अट्रैक्टिव होता है। नोर्मल्ली करा जाता है कि हम बस सक्सेस फुल लोगों की तरफ अट्रैक्ट होते हैं, लेकिन असलियत में हम सक्सेस के साथ साथ सक्सेस को पैदा करने वाले ट्रेड से भी अट्रैक्ट होते हैं। हम प्रोग्राम्ड है, डिसिप्लिन, हार्ड वर्क और ऐम्बिशन को इन्सेंटिव आइस करने के लिए है, इसलिए खुद का फोकस डाइरेक्टली दूसरों को प्लीज़ करने पर नहीं बल्कि खुद की पोटेंशिअल को रीच करने पर लगा हो। इससे आपकी ग्रोथ भी होगी और दूसरे भी ऑटोमैटिकली आपकी तरफ अट्रैक्ट होने लगेंगे। हैबिट नंबर नाइन कामनेस एक हाइपर रिऐक्टिव इंसान एक काम और कम्पोस इंसान के आगे काफी इम्मेच्युर लगता है। ऐसा इसलिए क्योंकि 10 सिचुएशन्स मैं भी कॉमर्स जैसी ट्रेड को डिस्प्ले करने से हमें यह पता लगता है कि एक इंसान भारी दुनिया से ज्यादा इन्फ्लुयेन्स नहीं है। वो एक चट्टान की तरह स्थिर और पानी की तरह परिवर्तनीय है जबकि हाइपर रिएक्शन एक साइन होता है। एंजाइटी, फिर् और लैक ऑफ कॉन्फिडेन्स का इसलिए अगर आप अपने बिहेव्यर के थ्रू किसी की नजर में ज्यादा अट्रैक्टिव बनना चाहते हो तो अपने रिएक्शन्स को अपने कंट्रोल में रखो और कुछ भी बोलने से पहले दो सेकंड का ब्रेक लो सोचो और फिर दूसरों को रिप्लाइ करो।",क्या आपने कभी इस बात पर ध्यान दिया है कि आप जिन लोगों की ओर आकर्षित होते हैं उनमें से कुछ वास्तव में शारीरिक रूप से बिल्कुल भी आकर्षक नहीं होते हैं? लोग अपने सुंदर रूप के कारण अधिक दयालु और अपनी दयालुता के कारण अधिक सुंदर लगते हैं। इसका मतलब यह है कि आकर्षण पत्थर में नहीं लिखा जाता है। आप अपनी आदतों और व्यवहार को बदलकर अपने आकर्षण के स्तर को बदल सकते हैं। "जब हम छोटे होते हैं तब हमारे दिमाग में हमारे पैरेंटस भगवान की जगह ले रहे होते हैं क्योंकि वो ही हमें खाना और प्रोडक्शन देते हैं और हमें जिंदा रखते हैं। लेकिन जैसे जैसे हम बड़े होते हैं, हमारा काम होता है अपने पेरेंट्स के ऊपर से यह भगवान और एक हाइर अथॉरिटी की प्रोजेक्शन को हटाना ताकि हम भगवान और पैरेन्ट्स के कॉन्सेप्ट को एक दूसरे से अलग कर सके। इस प्रोसेसर को हम इन डिड यू एशन ये सिम्पली मच्योर होना भी बोल सकते है। इस पॉइंट पर हमारे अंदर इतनी समझ आ चुकी होती है कि हम ये ऑब्जर्व कर पाए कि हमारे पेरेंट्स की लाइफ में बहुत परेशानियां हैं और वो भी हर दूसरे इंसान की तरह सफर करते हैं। लेकिन जहाँ कई पैरंट्स के अपने दुखों से डील करने के हेल्थ तरीके होते हैं और वो अपनी मुश्किलों को अपनी ग्रोथ के लिए यूज़ कर पाते हैं। वहीं कई पैरेंट सेल्फ डिस्ट्रक्टिव बन जाते हैं और अपने साथ साथ अपनी फैमिली को भी नुकसान पहुंचाने लगते हैं। इस दूसरे केस में जहाँ एक पैरेंट अपनी परेशानियों और उनसे जुड़े इमोशन्स को हैंडल नहीं कर पाता, वह पैरेंट खुद एक इन डिड यू ईट ह्यूमन बीइंग यह पूरी तरह से मच्योर्ड नहीं हुआ होता। इसके ऊपर से जब आप खुद काफी यंग होते हो, आपको भी नहीं पता होता कि आपने एक पैरेंट से कैसे डील करना है। ये सिचुएशन आज कल बहुत कॉमन हो चुकी है जहाँ लोग बच्चे तो पैदा कर लेते हैं लेकिन खुद इतने ट्रॉमा टाइस होने की वजह से ये लोग अपने बच्चे को ढंग से रेज़ कर ही नहीं पाते। इसी तरह से एक ट्रॉमा टाइस बच्चा बड़ा होकर एक ट्रॉमा टाइस पार्टनर को अट्रैक्ट करता है। अपने बच्चों को भी वही ड्रामा पास ऑन कर देता है, जिससे ये साइकल जेनरेशन बी जेनरेशन चल कर उसकी पूरी ब्लड लाइन को ही खराब कर देती है। इसे बोलते हैं इंटर जेनरेशनल ट्रामा और अगर आप अपने घर में मौजूद इस ट्रॉमा की साइकल को तोड़ना चाहते हो और अपनी फैमिली का पास्ट और फ्यूचर दोनों बदलना चाहते हो तो सबसे पहला स्टेप यही होगा कि आप अपने पेरेंट्स के ऊपर से इस अथॉरिटी की इमेज को हटाओ। उन्हें वैसे देखो जैसे वो एक्चुअल में है। वो रिस्पॉन्सिबल और ऐडल्ट नहीं है जिनकी आपको हर बात सुनी है या फिर उनके गुस्से को इतनी ज्यादा इम्पोर्टेंस देनी है। आपके पैरेंट स्ट्रॉम आटा इस बच्चे हैं जो साइकोलॉजिकली अपने बचपन में ही अटके पड़े हैं और ऐसे में अगर आपके पैरंट्स के बीच लड़ाईयां होती है तो वहाँ आपकी रिस्पॉन्सिबिलिटी होती है। उसकी एक्चुअल सिरियस ने उसको मेजर करना फॉर एग्ज़ैम्पल अगर इन लड़ाइयों में फिजिकल अब्यूज इन्वॉल्व हो तो आपको सीधा सीधा किसी ऐक्चुअल अथॉरिटी की मदद लेनी चाहिए। अगर आपके दोनों पैरेन्ट्स करते रहते हैं तो उनको सिम्पली समझाने पास्ट की अच्छी मेमोरिस को याद करने और उन्हें अपने आपसे ये क्वेश्चन करवाना चाहिए। की वो ऐसा क्यों कर रहे हैं और उनके एक दूसरे की कौनसी बातें मानने पर ये लड़ाईयां कम हो सकती है? क्योंकि बहुत बार वो काफी छोटी छोटी बातें होती हैं जिन्हें एक इंसान दीज़ अली फिक्स कर सकता है। जैसे अगर आपके एक पैरेंट को आपके दूसरे पैरेंट का उन्हें स्पेस ना देना गुस्सा दिलाता है, वो कहीं जाते हैं तब भी टोका टाकी होती है और कुछ भी करते हैं तब भी तो ज्यादातर केसेस में यह प्रॉब्लम सॉल्व हो सकती है दो लोगों के आपस में बात करने से और ये डिसाइड करने से कि वो दोनों अब एक दूसरे को स्पेस देंगे और उन स्पेसिफिक बातों के लिए एक दूसरे को नहीं टोकेंगे हाउएवर अगर आपके घर में सिर्फ एक पैरेंट ऐसा है जो गुस्सा करता है और लड़ता है और दूसरे पैरेंट को उनका सारा गुस्सा सहना पड़ता है तो उस केस में आपको उस वल्नरेबल पैरेंट को प्रोटेक्ट करना चाहिए। यह पैरेंट आपके पापा भी हो सकते हैं और मम्मी भी। नाउ यह तो है शोर्ट टर्म सॉल्यूशन्स, जिन्हें ढंग से यूज़ करने पर आपकी प्रॉब्लम वहीं पर खत्म हो सकती है। लेकिन अगर हम लॉन्ग टर्म की बात कर रहे हैं तो आपका गोल यही होना चाहिए कि आप अपने घर की प्रॉब्लम्स को सॉल्व करने में अपना 100% दो। लेकिन अगर आपके पैरेंट सभी अपने आप को बेहतर बनाने के लिए रेडी नहीं हो पा रहे हैं तो आपको अपनी पढ़ाई या काम पर फोकस करना चाहिए ताकि इवेन चली आप इस टॉक्सिक से बाहर निकल पाओ। यहाँ पर ये समझना जरूरी है कि टॉक्सिक पैरेन्ट्स चाहे आपको कितना भी प्यार करते हो लेकिन अगर आप उनके साथ रहने से ग्रो नहीं कर पा रहे हैं, उनके हर समय बदलते इमोशन्स या फिर उनकी नेगेटिविटी की वजह से तो आपको अपनी इन सड़ती हुई रूट से ही अपने आप को अलग करना होगा ताकि आप अपने आप को एक नई मिट्टी में प्लैन कर सको और एक नई जगह पर हेल्थी एनवायरनमेंट में ग्रो कर सको और लास्ट्ली ये याद रखो कि आपके पैरेन्ट्स चाहे कैसे भी हो, कितना भी गुस्सा करते हो या कितने भी टॉक्सिक हो लेकिन अब उन्हीं की वजह से एग्ज़िट करते हो और जीस तरह से आप केट रोमांस है। वैसे ही उनकी भी ट्रामा जरूर रहे होंगे। जीस वजह से उनकी पर्सनैलिटी और हैबिट्स नेगेटिव बन गए। इसलिए अपने पैरेन्ट्स को ना तो इतना ऊपर रख दो कि आपको उनकी हर बात माननी पड़े और आपको हर समय उनके अप्रूवल की जरूरत पड़े और ना ही अपने पैरेन्ट्स के लिए अपने दिल में कड़वाहट रखो क्योंकि उनका यह गुस्सा या चिड़चिड़ापन उनकी खुद की बचपन में मिली चोटों का रिज़ल्ट है। इसलिए उनके साथ एम प थिस करो। उनकी जितनी हेल्प हो सके उतनी करो और वो करो जो सही है और लॉन्ग टर्म में सबके लिए अच्छा होगा।","जब हम बच्चे होते हैं, तो हम अपने माता-पिता पर एक भगवान की छवि बनाते हैं क्योंकि हम केवल उन्हें जानते हैं, वे हमारी देखभाल करते हैं, वे हमें खिलाते हैं और हमें जीवित रखते हैं। लेकिन किसी बिंदु पर हमें अपने इस प्रक्षेपण को वापस लेना होगा और अपने माता-पिता को देखना होगा कि वे वास्तव में कौन हैं। वे अच्छे इंसान हैं या बुरे? कभी-कभी जब कोई बच्चा पूरी तरह से वैयक्तिकरण करने में सक्षम नहीं होता है, तो वे रोगात्मक तरीके से कार्य करने के लिए बड़े होते हैं। इनमें से एक पैथोलॉजी चिड़चिड़ा होना और गुस्सा होना है। यह वयस्क-बच्चों में तब्दील हो जाता है, जो केवल अपने आघात से गुजरने के लिए बच्चों के दूसरे सेट को जन्म देते हैं। इसलिए, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम इस विकृति के एक बड़े हिस्से पर ध्यान केंद्रित करेंगे यानी माता-पिता से लड़ना और उनसे निपटने का सही तरीका क्या है और यदि संभव हो तो उन्हें अच्छे के लिए बदल दें।" "यु डरावनी कहानियाँ और किस्से तो हम बचपन से ही सुनते आ रहे हैं और नॉट सरप्राइजिंगली हम अपनी फर्स्ट हॉरर मूवी 11 इयर्स ऑफ एज के आसपास देखते हैं। इस टाइम पर हम बेडटाइम स्टोरी से आगे बढ़कर मॉन्स्टर्स, मर्डर्स और इवन स्पिरिट जैसी चीजों में इंटरेस्ट लेने लगते हैं। आप स्टोरी सुनाने का ये किस्सा उतना ही पुराना है जितनी हमारी लैंग्वेज यूज़ करने की है। पर हॉरर मूवीज़ से पहले हम इन स्टोरीज़ को जंगल में एक कैम्प फायर के आसपास बैठकर सुनाते थे और ड्रॉइंग यार राइटिंग से पहले ये स्टोरीज़ एक जेनरेशन से दूसरी जेनरेशन तक सिर्फ वर्बल फॉर्म में ही ट्रांसफर करि जाती थी। ऐसा जॉनरा हॉरर सबसे पहले 1700 में ब्रिटिश और अमेरिकन राइडर्स के बीच पॉपुलर होना शुरू हुआ था। उस टाइम पर इस जॉनर का नाम था गौथिक हॉरर, जिसमें गौथिक का मतलब है पुराने स्टाइल की बिल्डिंग्स और कैसल्स साइलेंट। इनमे जब फिल्म्स बनना स्टार्ट हुई तब फिल्ममेकर्स ने गौथिक लिटरेचर को ही दिमाग में रखकर स्टोरीज लिखी क्योंकि उस टाइम पर वोही ट्रेंड था ऐसी एक फ़िल्म का एग्जाम्पल है जॉर्ज। इसमें ये इसकी ट्रैवल्स कैंसल। इस इनाम में सब इस नए फिल्ममेकिंग मीडियम की पॉसिबिलिटीज़ को एक्स्प्लोर कर रहे थे और इस एक्स्प्लोरेशन का काफी अच्छा एग्जाम्पल है 1910 में रिलीज हुई फ्रैंकनस्टाइन और 1920 में रिलीज हुई द कैबिनेट ऑफ डॉक्टर कैलगरी। मूवीज़ में साउंड का इंट्रोडक्शन फ़िल्म इंडस्ट्री के लिए एक बहुत बड़ा स्टेप था क्योंकि हमें पता है कि किसी भी होरर मूवी में साउंड इफेक्ट्स कितने इम्पोर्टेन्ट होते हैं और जब हम किसी डरावने सीन को म्यूट करके देखते है तब वो इतना डरावना भी नहीं लगता। इस नई टेक्नोलॉजी का फायदा उठाने वाला सबसे पहला फ़िल्म स्टूडियो था यूनिवर्सल पिक्चर्स जिसकी फर्स्ट हिट थी। जब भी हम कोई हॉरर मूवी देखते है, तब सबसे डरावने सीन पर हम अन् इसी फील्ड करने लगते हैं। हमें स्वेटिंग होने लगती है, हमारी हट बढ़ जाती है। कई बार हम चिल्लाने भी लगते हैं और हम सोचने लगते हैं कि अब आगे क्या होगा? पर वो हॉरर मूवी का कौन सा एलिमेंट होता है जो हमें इतना डिस्टर्ब कर देता है। वेल इवैल्यूशन अली साइकोलॉजी बताती है कि हम हमेशा अपने एनवायरनमेंट में अब नॉर्मली, टीज़ या इन कनसिसटेन्सी इसको ढूंढ रहे होते हैं, क्योंकि डेन्जर ऐसा फोर्स नॉर्मल पैटर्न को डिस्ट्रॉय कर देता है जैसे अगर हम जंगल में है और हमें लग रहा है की कोई जानवर हमारा पीछा कर रहा है। तो इस थॉट के आते ही हम अपने एनवायरनमेंट में इन कौन सी स्टैन सीज़ को ढूंढने लग जाएंगे, जैसे किसी जानवर का फुट प्रिंट या फिर ऐसे ही कोई और निशानी जो हमें बताये कि कुछ गडबड है और हमें इस नफे मिलियन पैटर्न पर और ध्यान देना चाहिए। इसके साथ ही अगर हम इन मूवीज़ के डीमंस या मॉन्स्टर्स को देखें तो उनकी अपीयरेंस में एक ऐनिमल इस टिक एलिमेंट होता है और रिसर्च बताती है कि जब भी हम किसी बड़े ऐनिमल की इमेज को देखते हैं तब हमारे ब्रेन काफिर सेंटर यानी बिला काफी ज्यादा रिस्पॉन्स देने लगता है। यानी जो डर है वह फंडामेंटली बस जिंदा खाये जाने का है और तभी नए और नफे मिलियन पैटर्न्स हमें डरावने लगते हैं, जैसे हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के एक साइकैट्रिस्ट स्टीवंस लोस मैन ने एक टॉक में एग्जाम्पल दिया कि अगर हम एक पप्पी को देखें तो वो ऐस इट इस काफी क्यूट लगता है पर अगर हम इस फैमिलियर पैटर्न को चैलेंज कर देते हैं तो ये पप्पी सडनली लगने लगता है। सिमिलरली एक क्लाउड सर्कस में तो काफी फनी और एंटरटेनिंग लगता है पर अगर वो ही क्लाउन रात के 2:00 बजे हमारे घर के बाहर खड़ा हो और हमे देख रहा हो तो वो पैटर्न सही नहीं बैठेगा और हमें पता चल जाएगा कि कुछ गडबड है। ऐसे टाइम पर हम डरते भी हैं पर हम उस डेन्जर को क्लोजली देखते भी रहते हैं की वो कैसे मूव कर रहा है, वो कहाँ देख रहा है, क्या वो हमारे पास आ सकता है या नहीं? हम जिंदा रहने के लिए अपने डेन्जर की जितनी इन्फॉर्मेशन ले सकते हैं, उतनी लेते हैं और ये बिहेव्यर हमें चैंपियन चीज़ में भी देखने को मिलता है। जैसे अगर उनके आसपास कोई स्नेक आ जाता है तो वो उससे डरते भी हैं और एट के सम टाइम वो घंटों तक देखते रहते है की वो उसने कर क्या रहा है क्योंकि किसी भी डेन्जर येस सर टन क्रीचर से कैसे बचना है ये सीखना बहुत जरूरी है और हॉरर मूवीज़ हमें इसी टास्क को पूरा करने की ऑपर्च्युनिटी देती है। हम हॉरर मूवीज़ इतना डरने के बावजूद भी क्यों देखते हैं? इसका सिर्फ एक रीज़न नहीं है और तभी साइकोलॉजिस्ट अलग अलग थ्योरीज के साथ इस क्वेश्चन का आन्सर ढूंढने में लगे हैं। ऐसी तीन थ्योरीज है नरियल इज़म, सेनसेशन, सीकिंग और इन मूवीज़ की आर्किटेक्ट पल सिग्निफिकन्स 1994 में पब्लिश हुई एक डिस ऑगस्ट से रिलेटेड स्टडी में देखा गया कि जब लोगों को डेथ, हाइजिन या ऐनिमल से रिलेटेड घिनौनी विडीओ दिखाई जाती हैं, तब ज्यादातर लोग एक वीडियो को इन तक पूरा देख भी नहीं पाते। पर वही स में लोग मूवी थिएटर में जाकर ज्यादा पैसे देकर इससे भी बेकार और डरावनी चीजें देखते हैं। यह इसलिए क्योंकि जब हम कोई मूवी देख रहे होते हैं तब हमें पता होता है कि जो भी हमारे सामने हो रहा है वो सच नहीं है। थिस इस वी हम याद कर सकते हैं कि बचपन में देखी गई हॉरर मूवी हम एक इतनी डरावनी लगती थी क्योंकि बच्चों के लिए फिक्शन को रिऐलिटी से डिफ्रेंशीएट करना काफी मुश्किल होता है और उन्हें हॉरर मूवीज़ सच लगने लगती है। इसके साथ ही अगर हम इस रिस्पॉन्स को ब्रेन में स्पॉट करें तो हमने ऑलरेडी डिस्कस किया है कि कैसे हाइपर एक्टिवेट हो जाता है। जब हम किसी बड़े ऐनिमल कि इमेजेज देखते हैं, पर हॉरर मूवीज़ देखते टाइम जब हमारा ब्रिन शुर हो जाता है कि हमें कोई ऐक्चुअल थ्रेट नहीं है तब एमिग्डला शांत हो जाता है और जो पार्ट्स ऐक्टिवेटेड रहते है वो है विज़ुअल कॉर्टेक्स जो विज़ुअल इन्फॉर्मेशन को प्रोसेसर करता है। इन सोलर को टैक्स जो सेल्फ अवेर्नेस से रिलेटेड है थैलेमस और डोर सो मिडल प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स जो प्लैन्टिंग अटेन्शन और प्रॉब्लम सॉल्विंग से रिलेटेड है, यह फाइन्डिंग सजेस्ट करती है कि कैसे होरर मूवीज़ का अन रियलिस्टिक एलिमेंट उन्हें मजेदार, एंटरटेनिंग और एडिक्टिव बनाता है। सेकंडली अगर हम संसेशन सीकिंग थ्योरी की बात करें तो एक साइकोलॉजिस्ट जिसका नाम मारविन सागर मेन था। उसने 1979 में बताया कि जिन लोगों को हॉरर मूवीज़ काफी ज्यादा अच्छी लगती है वह सेनसेशन सीकिंग में हाई होते हैं यानी उन्हें उन ऐक्टिविटीज़ में पार्टिसिपेट करना अच्छा लगता है जो थ्रिलिंग होती है। जैसे रोलरकोस्टर बंजी जंपिंग या फिर हॉरर मूवीज़। हाउएवर हर इंसान संसेशन सीकर नहीं होता और कई लोग को अवॉइड करते हैं। रिसर्च बताती है कि जिन लोगों में रिस्क टॉलरेंस ज्यादा होती है, उनके ब्रेन में ऑटो रिसेप्टर्स कम होते हैं और उनमें डोपामिन ज्यादा रिलीज होता है, जिससे ब्रेन को नेगेटिव फीडबैक कम मिलता है। पर थ्रिल अवॉड्र्स में ऑटो रिसेपटर्स ज्यादा होते है और कम ये एक्सप्लेन करता है कि क्यों कई लोग एक के बाद एक हॉरर मूवीज़ देख सकते हैं पर दूसरे लोग उन मूवीज़ को अवॉइड करते हैं। थर्ड ली अगर हम सिग्निफिकन्स की बात करें तो कई साइकोलॉजिस्ट मानते हैं कि हॉरर मूवीज़ हमें हमारे नेगेटिव ऐस्पेक्ट स् यानी हमारी शैडो के बारे में बताती है। फ्रॉड ने भी सोचा था कि होरर हमारे ब्रेन के प्रिमिटिव पार्ट यानी एड्स से आता है। जैसे हम नोर्मल्ली सप्रेस करके रखते हैं और कार ने सोचा था कि हॉरर मूवीज़ प्राइम मॉडल टाइप से निकलती हैं जो कलेक्टिव अनकॉन्शियस का पार्ट होता है। आर के टाइप्स जैसे मदर और चाइल्ड। क्योंकि मैटरनल बॉन्ड काफी स्ट्रांग होता है, जिसकी वजह से मदर अपने चाइल्ड को बचाने के लिए कुछ भी कर सकती है और तभी हर टाइप की तरह इसके भी पॉज़िटिव और नेगेटिव ऐस्पेक्ट है। इसके साथ ही शैडो आर्किटाइप हमें हमारी नेगेटिव और डार्क साइड को दिखाता है। जैसे जब हम किसी हॉरर मूवी में डीप जाते हैं और हमें समझाता है कि कैसे वो या मॉन्स्टर एक टाइम पर नॉर्मल इंसान था। पर फिर उसके साथ कुछ हुआ जिससे वह कुछ ऐसा बन गया जिसे हम समझ भी नहीं सकते नोर्मल्ली हम भी कई बार एकदम से दूसरा रूप ले लेते है जब हम गुस्से में आते हैं और फिर बाद में हम बोलते है मुझे पता नहीं क्या हो गया था। जो होता है वह है हमारी शैडो का बाहर आना। क्योंकि हम सब लोगों में ही ऐनिमल इस टिक इम्पल्स होती हैं जिन्हें हम दूसरों और अपने आप से छुपाकर रखते हैं और हॉरर मूवीज़ के मीडियम से हमें एक मैसेज बार बार मिलता है। जो बोलता है की जो डार्क शैडो हैं वो ना तो हमेशा छुपी रह सकती है और शायद ना ही उसे हमेशा छुपाना चाहिए। और जैसा कि स्टीफन किंग ने बोला था मेकअप हॉररस टु हेल्प स्कोप विद ठेरिल वन्स।","आम तौर पर, हम डर को एक नकारात्मक भावना के रूप में देखते हैं, जो कि अपेक्षा से अधिक समय तक नहीं रहना चाहिए, जो सच है। लेकिन जब डरावनी फिल्मों की बात आती है, तो हममें से ज्यादातर लोग इतने डरावने होने पर भी उनसे थकते नहीं दिखते। यह आपके और मेरे जैसे जिज्ञासु लोगों को हॉरर फिल्मों के मनोविज्ञान पर सवाल उठाता है और हम उन्हें क्यों देखते हैं। उत्तर सरल नहीं है, लेकिन कुछ सिद्धांत और अध्ययन हैं जो हमें यह बताने के लिए हैं कि क्या हो रहा है।" "लव हमारी लाइफ में काफी इम्पोर्टेन्ट ड्राइव है पर इससे काफी मिसअंडरस्टैंड किया गया है। एवल्यूशन की वजह से हम नैचुरली वाइड है दूसरों के साथ ऐसे कनेक्शन बनाने के लिए और अगर हम कोई कनेक्शन नहीं बना पाते या फिर हमें रिजेक्ट कर दिया जाता है तो ऐसी सिचुएशन हमें काफी लाइफ थ्रेटनिंग लगती है, क्योंकि बायोलॉजिकल और कल्चरल रीजन्स की वजह से हमें ये समझाया जाता है की सिर्फ एक लॉन्ग लास्टिंग रिलेशनशिप ही हमें फुलफिल्ड फील करा सकता है। यहाँ तक की 175 इयर्स लॉन्ग स्टडी में ये चीज़ प्रूफ भी हो गयी। की लव एक हैप्पी और फुल फिलिंग लाइफ में काफी इम्पोर्टेन्ट रोल निभाता है। पर ऐसा क्या है इस इमोशन में जो इसे इतना पावरफुल बनाता है? हमें ये पता है की एक लॉन्ग लास्टिंग रिलेशनशिप में हम अपने पार्टनर में सिमिलर, इन्टेलिजेन्स, सिमिलर सोशियो इकोनॉमिक बैकग्राउंड, सिमिलर लेवल ऑफ गुड लुक, सिमिलर, रिलिजस, वैल्यूज़ और सिमिलर रीप्रोडक्टिव गोल ढूंढ़ते हैं। क्योंकि वो पार्टनर्स जो एक दूसरे के ऑपोज़िट होते हैं उनके लिए रिलेशनशिप इम्पॉसिबल तो नहीं, बट काफी चैलेंजिंग हो जाता है। सो जब भी हम अपने जैसे किसी इंसान को देखते हैं, हम उनसे काफी अट्रैक्ट होते हैं। कॉल टू सेम टाइम पर अगर हम 100 लोगों से मिले और सारे के सारे ही हमारे से सिमिलर, इन्टेलिजेन्स, सिमिलर, वैल्यूज़ और गोल स्कैरी करते हैं तो हम उन सब से तो प्यार नहीं करने लगते। वाइ बिकॉज़ केमिस्ट्री लाइक लिटरली हम जिन लोगों से अट्रैक्ट होते हैं वो हमारे केमिकल मैसेंजर को कुछ इस तरह से मैनिपुलेट कर देते है की हम किसी और चीज़ पर फोकस ही नहीं कर पाते हैं और इस प्रोसेसर में हमारे फ़ोर डिफ़रेंट केमिकल मैसेंजर से इन्वॉल्व होते हैं यानी सिरोटोनिन, डोपामाइन, टेस्टोस्टेरोन और एस्ट्रोजेन, यहाँ पर हर एक सिस्टम डिफ़रेंट सेट ऑफ ट्रेड्स को रिप्रजेंट करता है और हर इनडिविजुअल एक सिस्टम को बाकियों से ज्यादा एक्सप्रेस कर सकता है। इसके साथ ही ये चारो बायोकेमिकल्स, ह्यूमन्स के तीन मेन ब्रेन सिस्टम्स को इन्फ्लुयेन्स करते हैं जो हमें मेट या फिर री प्रड्यूस करने के लिए मोटिवेट करते हैं। ये ब्रेन सिस्टम्स है ***** ड्राइव, रोमैन्टिक अट्रैक्शन और अटैचमेंट ***** ड्राइव यह वो फंक्शन है जिसमें हम सेक्शुअल प्लेजर को गर्व करते हैं और यह ब्रेन सिस्टम एक टाइम पर मल्टिपल पार्टनर्स पर फोकस रह सकता है। रोमैन्टिक अट्रैक्शन जिसमे हम एक इंसान के लिए ऑब्सेशन और पैशन डेवलप कर लेते है। अटैचमेंट ये वो होता है जो हमें एक इंसान के साथ लॉन्ग टर्म तक रहने पर सेन्सस ऑफ काम और सेक्युरिटी फील कराता है। एक अमेरिकन एंथ्रोपोलॉजिस्ट हेलन फिशर के हिसाब से ये तीनों ब्रेन सिस्टम्स काफी अलग अलग रीजनस के लिए वॉल्व हुए। यहाँ फॉर एग्जाम्पल ***** ड्राइव हमें लोगों की एक वाइड रेंज में से अपने पोटेंशिअल पार्टनर्स चूज करने के लिए हेल्प करती है। रोमैन्टिक अट्रैक्शन हमें एक इनडिविजुअल पर फोकस करने के केपेबल बनाता है और अटैचमेंट से हम अपने पार्टनर को लंबे टाइम तक लव और टॉलरेट कर पाते हैं ताकि हम उनके साथ अपने बच्चों को बड़ा कर सके। यह तीनों ब्रेन सिस्टम्स आपस में काफी कॉम्प्लिकेटेड वेज में काम कर सकते हैं। लाइक एक न्यू में ज़रा से टाइम के बाद ही हमें उनका हर मूव, उनकी हर बात सेक्शुअली अट्रैक्टिव लगने लगती है। ये इसलिए होता है क्योंकि रोमैन्टिक लव के टाइम पर हमारा डोपामिन इन्क्रीज़ होता है और डोपामिन पॉजिटिवली को रिलेटेड है। टेस्ट सिस्टम के साथ और जब टेस्टोस्टेरोन इन्क्रीज़ होता है तब हमारी ***** ड्राइव भी इन्क्रीज़ होती है और सिचुएशन इसकी ऑपोजिट भी हो सकती है। जैसे कई बार हम बिना किसी फीलिंग के ही किसी के साथ कैजुअली इंटिमेट हो जाते हैं और तब हमारे अंदर सडनली उनके लिए फीलिंग्स आना शुरू हो जाती है। क्योंकि इस केस में जब हम अपने टेस्ट ड्रॉ स्टोन को इन्क्रीज़ करते हैं उसके साथ डोपामिन मीटर होता है और डोपामीन हमारी फीलिंग्स के लेवल को कैज़ुअल से बढ़ाकर लव तक ले आता है। सो यहाँ पर सिर्फ पहले दो ब्रेन सिस्टम ही इन्वॉल्व नहीं है, क्योंकि ऑर्गैज़म के साथ ऑक्सिटोसिन और वैसोप्रेशिन जैसे हॉर्मोन्स भी रिलीज होते हैं जो हमारे अंदर अटैचमेंट की फीलिंग को बढ़ा देते हैं। सो कैज़ुअल ***** उतना कैज़ुअल नहीं होता जितना हम सोचते हैं अनलेस हम किसी ड्रग या अल्कोहल के में हो ऑब्वियस्ली हाउएवर यह सच है कि ये तीनों ब्रेन सिस्टम्स बिना आपस में कनेक्ट किए भी काम कर सकते हैं। हम किसी के साथ दीप अटैचमेंट भी फील कर सकते हैं और सेम टाइम पर हम रोमैन्टिक लव किसी और के लिए और सेक्शुअल अट्रैक्शन किसी और के लिए फील कर सकते हैं। विडिओ के स्टार्ट में हमने फ़ोर बायोकेमिकल्स की बात करी थी। और कैसे एक इंसान एक पर्टिकुलर केमिकल से रिलेटेड ट्रेड्स को ज्यादा एक्सप्रेस कर सकता है और अब हम बात करेंगे की कैसे? ये न्यूरोट्रांस्मीटर्स और हॉर्मोन्स हमारी पर्सनैलिटी और मेड 64 को फैक्ट करते हैं। फर्स्ट ऑफ ऑल हमें यह पता लगाना पड़ेगा कि हमारे में कौन सा ब्रेन सिस्टम डॉमिनेंट है और ये पता लगता है एक पर्सनैलिटी टेस्ट से, जो आप डिस्क्रिप्शन में दिए लिंक के थ्रू पूरा कर सकते हो। एनीवे हेलन फिशर के पर्सनैलिटी मॉडल में चारों टाइप्स को अलग अलग नेम से रेफर किया गया है। जो लोग सिस्टम को सबसे ज्यादा एक्सप्रेस करते हैं, उन्हें एक्स्प्लोरर बोला जाता है। यह लोग क्युरिअस ओपन माइंडेड क्रिएटिव मैजेस्टिक ऐडवेंचरस और इम्पल्स से होते हैं। इन्हें नई नई चीजें एक्सप्लोर करने में काफी मज़ा आता है। ये लोग सबसे ज्यादा रिस्क लेते हैं। इनके काफी सारे इंट्रेस्ट होते हैं और इस टाइप के लोगों को अपने जैसे लोग पसंद आते है। एग्जाम्पल रिचर्ड ब्रैनसन जो लोग सेरेटोनिन सिस्टम को सबसे ज्यादा एक्सप्रेस करते हैं, उन्हें बिल्डर बोला जाता है। ये लोग काफी सोशल रिस्पेक्टफुल काम, सेल्फ कंट्रोल, स्टोर, एक और कॉपरेटिव होते हैं। इन्हें रूज़ और रूटीन को फॉलो करना अच्छा लगता है। इन्हें फैमिली र्इटी और ऑर्डर पसंद है। ये लोग काफी कॉन्शस भी होते हैं और ये लोग काफी रिलिजस भी होते हैं। दिस इस ऑल्सो। वाइ जब कोई इंसान सी या फिर एलएसडी जैसा साइकेडेलिक लेता है, उससे उनका लेवल बढ़ जाता है और उन्हें एक रिलिजस एक्स्पेन्सस मिलता है। एक और चीज़ जो बिल्डर्स को बाकी तीनों पर्सनैलिटी से डिफ़रेंट बनाती है वो ये है की ये काफी लॉयल होते हैं। पर्सनैलिटी टेस्ट में भी एक क्वेश्चन हैं कि वुड यू रैदर हैव लौल फ़्रेंच और इंट्रेस्टिंग फ्रेन्ड ज़ जेनरली हम ये बोलेंगे की हम सब को ही लौल और इंट्रेस्टिंग फ्रेंड्स पसंद है। पर बिल्डर्स थिस लौल फ्रेंड्स को बिल्कुल टॉलरेट नहीं कर सकते। और दूसरी तरफ बाकी तीनों पर्सनैलिटी ज़ अं? इंट्रेस्टिंग फ्रेंड्स को टॉयलेट नहीं कर सकते। इस टाइप के लोग भी अपने जैसे लोगों से यह अट्रैक्ट होते है। एग्जाम्पल मेग वाइटमैन, थर्ड ली जो लोग टेस्टॉस्टोरोन स्केल पर सबसे ज्यादा स्कोर करते हैं, उन्हें डाइरेक्टर बोला जाता है। यह लोग इनवेटिव ऐनालिटिकल, लॉजिकल रैनक, ओरिएन्टेड टफ माइंडेड इन्डिपेन्डेन्ट ओर है। सर टे होते हैं। ये वो टाइप है जो दूसरे लोगों पर अटैक करते हैं और एक्सपेक्ट करते है की वो भी उन पर वापस अटैक करेंगे और जब वो अटैक नहीं करते अब वो उन्हें वीक समझने लगते है। इस टाइप के लोग अपने से ऑपोजिट टाइप के पार्टनर्स चूज करते हैं। एक्साम्पल स्टीव जॉब्स और हिलेरी क्लिंटन लास्ट्ली जो लोग एस्ट्रोजन स्केल पर सबसे ज्यादा स्कोर करते हैं, उन्हें नेगोशिएटर बोला जाता है। ये लोग इन्टूइटिव, हॉलिस्टिक, एम पैथिक, इमेजिनेटिव और लॉन्ग टर्म थिंकर्स होते हैं। इसके साथ ही यह लोगों को रीड करने में भी काफी अच्छे होते हैं। नेगोशिएटर्स भी डायरेक्टर्स की ही तरह अपने से ऑपोजिट टाइप के पार्टनर्स चूज करते हैं। एक्साम्पल बिल क्लिंटन औलसों रिमेम्बर दैट। हम एक टाइम पर एक से ज़्यादा ब्रेन सिस्टम्स को भी एक्सप्रेस कर सकते हैं। और चार्ल्स डार्विन काफी अच्छा एग्जाम्पल है डोपामीन और एस्ट्रोजन के कॉम्बिनेशन का क्योंकि नैचरल सलेक्शन जैसी कॉम्प्रीहिन्सिव थ्योरी बनाने के लिए हमें क्रिएटिविटी ओपन माइंडेड नेस और क्युरिऑसिटी चाहिए जो सिस्टम के ट्रेड्स है और चीजों को कनेक्ट करना, इमेजिनेटिव होना, होलिस्टिक थिंकिंग रखना ये सारे ऐस्ट्रोजेन सिस्टम के ट्रेड्स है। 2011 और 2012 में पब्लिश हुई एक स्टडी में देखा गया कि क्या लॉन्ग टर्म मैरिड कपल्स का ब्रेन डाइवोर्स कपल्स के ब्रेन से कुछ डिफरेंट होता है जिससे वो लंबे टाइम तक साथ रह पाते हैं। डिफरेन्स एस कंपेर करने के लिए उन कपल्स को लिया गया, जो 20 इयर्स से भी ज्यादा टाइम के लिए मैं रीड थे। एक्सपेरिमेंट दो बार हुआ और दोनों एक्सपेरिमेंट्स के बीच ऑलमोस्ट फ़ोर इयर्स का गैप था और जब सेकंड एक्सपेरिमेंट हुआ, उस टाइम तक 50% कपल्स सेपरेट हो चूके थे। बट जो कपल्स अभी भी साथ थे और हैप्पी थे, उनके ब्रेन में दो चीजें कॉन्स्टेंट थी। फर्स्ट ऑफ ऑल उनके ब्रेन में अपने पार्टनर को देखकर अभी भी उतना ही रिलीज हो रहा था जितना की न्यू कपल्स में होता है। और सेकंडली रिसर्चर्स ने उनके मीडिल प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स में भी ऐक्टिविटी को मेजर किया। ये फाइन्डिंग काफी शॉकिंग थी क्योंकि यह ब्रेन का वो पार्ट होता है जो नेगेटिव जजमेंट को कम रखता है और इसे पॉज़िटिव सलूशन भी बोला जाता है। मीनिंग जब हमारे ब्रेन का ये पार्ट ऐक्टिवेटेड होता है तब हम नेगेटिव एक्सपेक्ट को इग्नोर करके सिर्फ पॉज़िटिव चीजों पर ध्यान देते हैं। तो चाहे नोर्मल्ली हमे अपने पार्टनर की कोई हैबिट पे भी करे तब भी हम उसे इग्नोर कर देते हैं और यही लॉन्ग लास्टिंग लव का सीक्रेट है ऐंड ये काफी लॉजिकल भी है क्योंकि जब हम किसी को अपने हिसाब से एक की तरह कंट्रोल नहीं कर सकते तो कभी कभी उनके नेगेटिव ट्रेड्स को इग्नोर करना ही माना जायेगा। ना? जाओ। यू जस्ट नो। कॉल लव सी नौ चार। नौ चार।","निस्संदेह, प्यार सबसे मजबूत भावनाओं में से एक है जिसे एक जीव अनुभव कर सकता है। हम प्यार के लिए जीते हैं, हम प्यार के लिए लड़ते हैं, हम प्यार के लिए रोते हैं और हम प्यार के लिए मरते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है, क्या कारण है कि हम किसी और के बजाय किसी और से प्यार करते हैं? इस वीडियो में, मैंने बस यही खोजा। मैंने हेलेन फिशर के प्यार के मॉडल को कवर किया, जो "हम प्यार में क्यों पड़ते हैं", "क्या हम अपने जैसे या विपरीत लोगों से प्यार करते हैं", "हम किसी के लिए वासना क्यों करते हैं और फिर उससे जुड़ जाते हैं" जैसे सवालों का जवाब दे सकते हैं। अन्य", "प्यार आखिर क्या होता है" और "प्यार का मनोविज्ञान क्या है"?" "रिलेशनशिप का एसेंस और प्यार का मतलब दुनिया के ऑलमोस्ट हर कोने में सेम ही रहता है, लेकिन लोग अपने उन रिलेशनशिप्स को किस तरह से निभाते और अपने प्यार को किस तरह से जताते हैं। ये डिपेंड करता है कि वो लोग किस कल्चर से बिलॉन्ग करते हैं। इसलिए इस एपिसोड में हम फोकस करेंगे इंडिया के सबसे कॉमन टाइप्स ऑफ रिलेशनशिप्स, उनके साइकोलॉजिकल इफेक्ट और उनकी प्रोसिन कॉन्स पर टाइप नंबर वन ऐंड अरएन्ज रिलेशनशिप यानी एक मेल और फीमेल का रिश्ता और यूज़्वली शादी। उनकी फैमिली, इसकी हेवी इन्वॉल्वमेंट। अप्रूवल के साथ होते हैं और यहाँ वो खुद अपना पार्टनर नहीं ढूंढ़ते हैं बल्कि उनकी फैमिली उनके रिलेशनशिप को अरएन्ज कराती है। इस टाइप की रिलेशनशिप्स हिट ऑर मिस डिस्क्लेमर के साथ आते हैं क्योंकि आप दूसरे इंसान को लंबे समय से नहीं जानते हैं और आपको नहीं पता कि उनके सीक्रेट्स क्या है या फिर क्या उनका असली नेचर वैसा ही है जैसा वो दिखा रहे हैं या फिर वो असलियत में कुछ और है। आपको रिप्लाय करना होता है अपनी और सामने वाले की फैमिली की विस्डम के ऊपर कि अगर आप कोई रेड फ्लैग नहीं पकड़ पाए तो शायद कोई और किसी गलत साइन को पकड़ लें। इस टाइप की रिलेशनशिप का प्रो ये है कि यहाँ पर एक दिमाग नहीं बल्कि कई दिमाग साथ मिलकर ये फिगर आउट करने की कोशिश कर रहे होते हैं कि क्या वह दो लोग आपस में ज़रा से भी कम्पैटिबल है। हाउएवर जो फैमिली ज़्यादा फोर्स फुल और इनफ्लेक्सिबल होती है उनमें दूसरे लोगों के ओपिनियन सी एक कौन बन जाते हैं? क्योंकि मेन फोकस दो लोगों की कम्पैटिबिलिटी से हटकर फैमिलीज की कम्पैटिबिलिटी पर आ जाता है। लेकिन ओवरऑल अगर दोनों फैमिलीज में कॉमन सेन्स है तो डेटा यही साबित करता है कि एक अरेंज मैरिज के स्टेबल रहने के चान्सेस ज्यादा और डिवोर्स के चान्सेस कम होते हैं। ऐस कम्पेरड टू लव मैरिज टाइप नंबर टू द लिव इन रिलेशनशिप इस टाइप का रिलेशनशिप पिछले 510 सालों में यंग कपल्स के बीच काफी कॉमन होता हुआ दिख रहा है। एक लिव इन रिलेशनशिप वो होता है जिसमें एक कपल बिना शादी करे एक दूसरे के साथ लॉन्ग टर्म तक रहने लगते हैं। यूएस में लिव इन रिलेशनशिप स् 7270 5% की रेंज में आते हैं, लेकिन इंडिया में 10% से भी कम कपल्स होते हैं जो एक लिव इन रिलेशनशिप में हैं। अगर आप थोड़े ओपन माइंडेड हो तो सर ऑफिस पर आपको इस टाइप के रिलेशनशिप में कोई कौन नहीं दिखेगा? हाउएवर स्टैटस बताते हैं कि जो कपल्स शादी से पहले एक साथ रहते हैं, उनके शादी के बाद डिवोर्स लेने के चान्सेस कई गुना बढ़ जाते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि हमारा एक लिव इन रिलेशनशिप में आने के पीछे का रीज़न बहुत अलग होता है। शादी करने के रीज़न से ज् इस वजह से ऐसे बहुत ही रेयर कपल्स होते हैं जो लिव इन रिलेशनशिप में रहने के बाद भी शुरुआती 510 साल की टेस्टिंग पीरियड के पार जा पाते है। टाइप नंबर थ्री द लोन्ली कपल इस टाइप का रिलेशनशिप आज कल बहुत ज्यादा कॉमन हो गया है क्योंकि लोगों की जिंदगी ऑनलाइन शिफ्ट हो चुकी है और ज्यादातर लोग एक्सटर्नल वर्ल्ड में कम्पैन्यन्शिप ढूंढने और अपने रिलेशनशिप्स पर काम करने के बजाय अपनी ऑनलाइन प्रजेंस को ज्यादा महत्त्व देते हैं और रिऐलिटी में लोनली होते हैं और जब दो लोनली लोग मिलते हैं, अपनी लोनलीनेस को दूर करने के लिए चाहेये मिलना ऑफ लाइन हो या फिर ऑनलाइन तब यूज़्वली वो दूसरों से और ज्यादा डिटैच हो जाते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि जब आप सिर्फ लोनलीनेस को दूर करने के लिए एक रिलेशनशिप में आते हो और अपने डिफ़रेंट व्यूस डिफ़रेंट इन्ट्रेस्ट या फिर कम्पैटिबिलिटी को इग्नोर कर देते हो तब आप ऐक्चुअल मैं एक रिलेशनशिप बिल्ड करने की नहीं बल्कि दूसरे इंसान में खुद के अधूरे हिस्सों को ढूंढने की कोशिश कर रहे हो। ऐसे रिलेशनशिप का कोई प्रो नहीं होता और कौन ये होता है कि आप और ज्यादा लोन्ली फील करने लगते हो? आप दूसरों को और ज्यादा मिस ट्रस्ट करने लगते हो और खुद को हील करने के बजाय अपना समय खुद को डिस्ट्रैक्ट करने में वेस्ट कर देते हो। टाइप नंबर फ़ोर नन स्प्रिचुअल और मटिरीअलिस्टिक रिलेशनशिप एक रिलेशनशिप जिसमें मन और शरीर के पार किसी इंसान से नाता जुड़ता है। उसे एक स्पिरिचुअली रिच रिलेशनशिप बोला जाता है, लेकिन जो रिलेशनशिप सिर्फ मन और शरीर तक जाकर ही रुक जाता है वो एक नॉन स्पिरिचुअल या फिर मटिरीअलिस्टिक रिलेशनशिप होता है। यहाँ पर लोगों को इन्ट्रेस्ट हो सकता है। ***** मनी फेम, प्ले चर या फिर मोमेंट्री हैपिनेस तभी इसी कैटगरी में फ्रेंड्स विद बेनिफिटस भी आएँगे। यानी एक ऐसा रिलेशनशिप जिसमें प्यार नहीं बल्कि बस मटिरीअल एक्स्चेंज होता है। इसका प्रो ये है कि दोनों लोग अपनी मर्ज़ी से एक दूसरे को प्लेजर तो फिर मटिरीअल दे रहे होते हैं लेकिन कौन ये है कि ये रिलेशनशिप बहुत शैलो होता है और इनके एंड इस टाइप का रिलेशनशिप हमेशा ही अधूरा और थिस सैटिस्फाइड लगने लगता है। टाइप नंबर फाइव द इटरनल लवर्स इस टाइप का रिलेशनशिप सबसे आइडियल होता है। ये वो इंडियन कपल्स होते हैं जो ट्रडिशनल वैल्यू उस जैसे मी लॉयल्टी यूनीक रोज़ ऑफ बोथ इंडिविजुअल्स, इमोशनल, फिजिकल प्रोटेक्शन, स्पिरिचुअल बॉन्डिंग और ट्रुथफुलनेस में विश्वास रखते हैं। ऐसा रिलेशनशिप कभी ये नहीं होता। क्योंकि जो भी रिलेशनशिप शेड, मीनिंग और डीप स्पिरिचुअल अन्डरस्टैन्डिंग के बेसिस पर खड़ा होता है, वो रिलेशनशिप इंटरनल होता है। टाइप नंबर सिक्स दैट जॉइंट फैमिली ऑफ कोर्स इस तरह की फैमिली डाइनैमिक कम मेजर इम्पैक्ट शादी के बाद शुरू होता है। अनलाइक वेस्टर्न कल्चर जिसतरह से इंडिया में पैरेंटस के साथ रहना भी नॉर्मल होता है वैसे ही एक फैमिली मैं चाचा चाची के साथ रहना भी बहुत कॉमन होता है। हाउएवर इस डाइनैमिक का दो लोगों के रिलेशनशिप पर इम्पैक्ट ज्यादा तर केसेस में पॉज़िटिव नहीं होता। इतने सारे अलग अलग लोगों की अलग पर्सनैलिटी ज़ और अलग इंट्रेस्ट होते हैं और एक घर में हर किसी की डिज़ाइनर्स फुलफिल नहीं हो सकती है। इस वजह से अगर एक जॉइंट फैमिली में जेलेसी कॉम्पिटिशन और पैसों या फिर प्रॉपर्टी को लेकर लालच है तो इसका सीधा प्रभाव पड़ेगा। फैमिली में मौजूद लोगों के रिलेशनशिप के ऊपर हाउएवर अगर इतनी बड़ी फैमिली में प्यार कायम है, जो कि बहुत ही रेरली होता है तो उस केस में उनके रोमेंटिक रिलेशनशिप्स ही नहीं बल्कि उनकी लाइफ भी ओवरऑल सक्सेसफुल बन जाएगी। टाइप नंबर से वन दैट इन लवर्स आई डोंट नो आप में से कितने लोगों ने यह नोटिस करा होगा? कि आजकल लोगों का फोर्स, रिलेशनशिप और उनका इंटिमेट एक्सपिरियंस उन्हें बहुत ही अर्ली ऑन मिल जाता है। सोशल मीडिया के की वजह से आज बच्चा बच्चा अपने पार्टनर को शादी और बच्चों के वादे कर रहा होता है और 2 दिन बाद ही उनका ब्रेकअप हो जाता है। यह एक ऐसी चीज़ होती है जहाँ से पढ़ाई की टेंशन कॉलेज और काम की रिस्पॉसिबिलिटी बहुत दूर और खाली समय ज्यादा होता है। बच्चों को बस स्कूल से होमवर्क मिलता है और उसके अलावा वह फ्री होते हैं। खेलने या फिर अपना समय इस तरह की चीजों में लगाने के लिए जिसकी वजह से एक रिलेशनशिप भी इस एज में एक टाइम पास और खेल से ज्यादा कुछ नहीं होता। ऐसा इसलिए क्योंकि जब एक इंसान ने जिंदगी की मुश्किलें और खुद की डेथ ही नहीं देखी तो वो कैसे एक रिश्ते या फिर किसी दूसरे इंसान की डेथ को देख पाएगा? टाइप नंबर एट टॉक्सिक अटैचमेंट अनफारचुनेटली पॉप्युलेशन का एक बहुत बड़ा पार्ट अपने बचपन में ट्रॉमा फेस करने की वजह से पहले गलत लोगों को अपनी लाइफ में एंट्री देता है और फिर उन्हीं टॉक्सिक लोगों के साथ अपने पैरेन्ट्स के अनहेलथी रिलेशनशिप को रिपीट करने लगता है। इंडिया वेस्टर्न कन्ट्रीज से ज्यादा ट्रामा केरी करता है और मुश्किलें ज्यादा होने की वजह से यहाँ पर टॉक्सिक रिलेशनशिप्स और गलत लोगों से अटैचमेंट ज्यादा होती है। लेकिन आप यूज़्वली किसी कपल को देखकर यह नहीं बता सकते कि वो एक दूसरे के लिए टॉक्सिक है या फिर नहीं। ये चीज़ ज्यादातर बस उन्हीं दो लोगों को पता होती है। कोई भी रिलेशनशिप सिर्फ तभी हेल्थी बन पाता है जब दोनों पार्टीज़ अपने आप में हेल्थी और हिल होती है। यह थे एक मोस्ट कॉमन टाइप्स ऑफ रिलेशनशिप्स। इन इंडिया अगर आपको लगता है कि इस लिस्ट में और भी टाइप्स आने चाहिए तो उन्हें कमेंट्स में शेयर करो।","रिश्ते या प्यार का मतलब पूरी दुनिया में एक जैसा ही रहता है। लेकिन लोग अपने प्यार का इजहार कैसे करते हैं, यह उनकी संस्कृति पर निर्भर करता है। इसलिए इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम विभिन्न प्रकार के रिश्तों के बारे में बात करेंगे जो भारतीय संस्कृति में आम हैं।" "हमने इस सीरीज में अभी तक सीखा है की बिग 5 पर्सनैलिटी ट्रेट्स में हर ट्रेड के क्या करैक्टर इस टैक्स और ऐस्पेक्ट है? और अगर अभी तक आपने पांचों ट्रेड्स को ढंग से नहीं समझा है तो मैं आपको इन्क्रीज़ करता हूँ कि पहले आप इस प्लेलिस्ट की बाकी विडियोज को देखो और डिस्क्रिप्शन में दिए लिंक के थ्रू एक पर्सनैलिटी टेस्ट लो ताकि आप इस वीडियो की डिस्कशन में फुल अवेर्नेस के साथ पार्टिसिपेट कर पाओ। सो, 1900 की शुरुआत से ही पर्सनैलिटी से हमारी लाइफ पर होने वाले अफेयर्स को काफी दीपली स्टडी करा जा रहा है। और तब से बिहेविरल एक्सपर्ट्स और इवन रिक्रूटर्स इस चीज़ में इंटरेस्टेड हैं कि कैसे एक इनडिविजुअल की पर्सनैलिटी उसकी कैरिअर 64 करती है? हमें भी इन्टूइटिव ली। पता होता है की कैसे हमारी पर्सनैलिटी हमारी पूरी लाइफ के दौरान लिए गए डिसिशन्स और चौसा इसको प्रीडिक्ट कर सकती है और अगर हमारी पर्सनैलिटी हमारी लाइफ को इस हद तक इन्फ्लुयेन्स करने की पार रखती है तो ये भी ऑलमोस्ट सर टन है की वो हमारे लिए उस करियर पाथ को चूज करने में भी हेल्पफुल होगी, जिसमें हम सक्सेसफुल बन पाएंगे। हाउएवर एक नए कैरिअर पथ को फॉलो करना बहुत लोगों के लिए डरावना हो सकता है, क्योंकि गलत करियर को चूज करने की कॉस्ट वेस्ट हुए टाइम और मनी की वजह से बहुत ज्यादा हो सकती है। इसके साथ ही आज कल मॉडर्न टेक्नोलॉजी और ओर्गनाइजेशंस की वजह से इतने सारे कैरिअर ऑप्शन्स आ गए हैं जिससे यंग आंत्रप्रेन्योर्स के लिए भी सक्सेस अचीव करना पॉसिबल हो गया। जहाँ पर कई लोग इसे एक पॉज़िटिव आउटकम की तरह देखते हैं। वही इतने वाइड ऑप्शन्स हमारे कैरिअर रिलेटेड क्वेश्चन्स और कन्फ्यूजन को और भी बढ़ा देते हैं। बट हम इसी कन्फ्यूजन को कम कर सकते हैं। पर्सनैलिटी साइकोलॉजी की मदद से क्योंकि एक कैरिअर जो हमारी पर्सनैलिटी के साथ मैच करता है, वो हमारी सेल्फ एस्टीम और हैपीनेस को बूस्ट करता है और वो हमें एक ऑपर्च्युनिटी देता है जिससे हम अपनी स्किल्स नॉलेज और गिफ्ट्स के थ्रू दूसरों की लाइफ में वैल्यू ऐड कर पाए। सो अगर हम डिफ़रेंट कैरियर्स को क्लासिफाइ करें तो सबसे पहले है मैनेजर्स और एग्जीक्यूटिव ज़ सेकंड एंट्रप्रेन्योरशिप थर्ड सोशिअल और नॉन प्रॉफिट मेकिंग प्रोफेशन्स फोर्थ है पब्लिक सेक्टर प्रोफेशन्स और लास्ट कैटेगरी में आते हैं साइअन्टिस्ट रिसर्चर्स और इंजीनियर्स मैनेजेरियल और एग्जिक्यूटिव टाइप प्रोफेशन्स में काफी सोशल इंटरेक्शन करना होता है और उनमें एक ऐसा ऐटिट्यूड चाहिए होता है, जो एक्सटर्नल एनवायरनमेंट के चेंजेज को एक्सेप्ट कर पाए। इसके साथ ही उनमें दूसरों से अप्रिशिएट ली और इफेक्टिव ली काम करवाने के लिए सोशल डॉमिनेंस भी चाहिए होती है। और कई बार मैनेजर्स को लिमिटेड टाइम के अंदर डिसिशन्स लेने होते हैं, पैसों को मैनेज करना होता है और हर चीज़ को टाइम पर करवाना होता है, जिसके लिए स्ट्रेस, मैनेज करने की एबिलिटी और इमोशनल स्ट्रेंथ जरूरी है। क्योंकि अगर एक न्यूरॉटिसिज्म में हाई स्कोर करने वाला इनडिविजुअल मैनेजरियल जॉब करना स्टार्ट कर दे तो वो प्रेशर में गलत गलत डिसिशन लेने लगेगा, जो कि सिर्फ ऑर्गेनाइजेशन के लिए ही नहीं बल्कि उसके प्रोफेशनल करिअर के लिए भी हार्मफुल होगा। जस्ट बिकॉज़ मैनेजर्स को अपने सीनियर्स के दिए गए काम को पूरा करवाना होता है। वो ज्यादा वोर्म, सोशल और निगोशिएट करने के कैपेबल होते है। सो इस टाइप के प्रो फैशन के लिए वो लोग सूटेड होते हैं। जो पर्सनैलिटी स्केल में स्कोर करते हैं। हाइ इन कॉन्शसनेस हाइ इन एग्रीएबलनेस लो इन न्यूरॉटिसिज्म ऐवरेज ऑन एक्स्ट्रा वर्जन ऐंड ओपन इस टू इक्स्पिरीयन्स सेकंडली आन्ट्रप्रनर्शिप में चाहिए होती है। एक ऐसी पर्सनैलिटी जो इनिशिएटिव्स ले और रिस्क लेने से बिल्कुल ना डरें। जो लोग नहीं फाउन्डेशन्स क्रिएट करते हैं वो हाइली ओपन होते हैं और यही ट्रेड उनकी ओर्गेनाइजेशन को मार्केट के चेंज होने के टाइम बचाती है। इसके साथ ही उन्हें सोसिअल्ली इंटरैक्ट करना आता है और वो अपने मूवीज़ में काफी डॉमिनेट होते हैं। डिज़ाइरड आउटकम के लिए उन्हें डिटेल्स पर अटेन्शन पे करना पड़ता है और क्रिएटिविटी उन्हें दूसरों से अलग बनाती है। मार्केट कभी भी चेंज हो सकती है और इसकी वजह से हाइली अडिशन ट्रेनर्स छोटी से छोटी डिटेल पर फोकस करते है, जो कि उन्हें कौन बनाता है ऐंड जस्ट बिकॉज़ एक ऑन्ट्रप्रनर को इतने रिस्क प्रेशर और स्ट्रेस से डील करना होता है। जो लोग न्यूरोटिसिज्म मेलों स्कोर करते हैं, सिर्फ वही एक सक्सेसफुल ऑन्ट्रप्रनर बन पाते हैं। सो एक ऑन्ट्रप्रनर बनने के लिए चाहिए। हाइ ओपन एस ऐवरेज अग्रि एबल नेस हाइ कॉन्शसनेस लोगों ने रोटी सिस्टम ऐक्स्ट्रा वर्ज़न एक ऑन्ट्रप्रनर के स्पेसिफिक टास्क पर डिपेन्डेन्ट होता है। सोशल और नॉन प्रॉफिट मेकिंग प्रोफेशन्स में हमें एक ऐसी पर्सनैलिटी चाहिए जो अपने रेस्ट और कंफर्ट को सैक्रिफ़ाइस करके दुसरो की हेल्प करे उन्हें दूसरों से इंटरैक्ट करना भी आना चाहिए। उनके इमोशन्स इतने स्टेबल होने चाहिए की वो ईज़ अली डिप्रेस ना हो। बट अगर वो में ज्यादा ही लो हैं तो वह दूसरों के लिए कुछ फील ही नहीं कर पाएंगे। बट शायद या सेल्फ सेंटर लोग इस प्रोफेशनल में सक्सेसफुल नहीं बन सकते हैं, क्योंकि इसमें काफी सोशल फ्रेंड्ली और इंटरैक्टिव होना पड़ता है जिससे लोगों को टाइम पर हेल्प या फिर सपोर्ट देने में किसी को कोई हिचकिचाहट ना हो। सो एक नॉन प्रॉफिट प्रोफैशन में काम करने के लिए हमें एक ऐसी पर्सनैलिटी चाहिए, जो अग्रि एबल, नेस और एक्स्ट्रा वर्जन में हाई हो। बट न्यूरॉटिसिज्म में ऐवरेज हो पब्लिक सेक्टर प्रोफेशन्स हर स्टेप में सक्सेसफुल होने के लिए डिमांड करते हैं। सेल्फ डिसिप्लीन सेल्फ कंट्रोल मैनेजमेंट और कॉन्सियसनेस पंक्चुऐलिटी और प्रैक्टिकैलिटी पब्लिक सेक्टरों ऑर्गनाइजेशन्स के की सिंबल्स है और चान्सेस है की इमोशनली कैपेबल लोग अपने काम को अच्छे से और सही टाइम पर पूरा करेंगे। राज़ रतन वो लोग जो स्ट्रेसफुल सिचुएशन से फेल हो जाते हैं। यह दिमाग में रखना काफी जरूरी है क्योंकि टाइम कॉल की वजह से पब्लिक सेक्टर में काम करते हैं। टाइम रिलैक्स और इमोशनली स्टेबल रहना बहुत जरूरी है। सो एक पब्लिक सेक्टर में सक्सीड करने के लिए एक ऐसी पर्सनैलिटी चाहिए जो कॉन्शसनेस में हाइ और न्यूरॉटिसिज्म मेलों हो। साइंटिस्ट, रिसर्चर्स और इंजीनियर्स को काफी कॉम्प्लेक्स प्रॉब्लम्स और ऑप्टिकल्स के साथ डील करना होता है, जिसके लिए उन्हें चाहिए होता है एक्सपिरियंस और उन्हें एक नई चीजों को समझने के लिए ओपन रहना होता है। ये एबिलिटी में फ्रिक्वेंटली देखने को मिलती है क्योंकि इंट्रो वर्ज़न एक प्रॉब्लम को डिफ़रेंट ऐंगल से देखने में मदद करता है। पर दूसरी तरफ एक्स्ट्रा वर्ड्स अपने आसपास के एन्विरॉनमेंट के टुवार्ड्ज़ उतने सेन्सिटिव नहीं होते हैं। सो, इस प्रोफेशनल में जो ट्रेड्स बेस्ट शूट करते है वह है हाइ ओपन एस ऐंड लो, एक्स्ट्रा वर्ज़न। इस क्लासिफिकेशन के थ्रू हम समझ सकते हैं कि हमारे लिए हमारे मोस्ट डॉमिनेंट पर्सनैलिटी ट्रेड्स के अकॉर्डिंग कौनसा करियर बेस्ट रहेगा। बट अगर हमें इन रिजल्ट्स को और भी ऐक्युरट बनाना है तो हमें आइक्यू को भी क्वेश्चन में लेना पड़ेगा क्योंकि वो एक इंसान का आइक्यू ही होता है जो उसके लिए एक जॉब की कॉम्प्लैक्सिटी को मैनेजेबल या फिर अं मैनेजेबल बनाता है। एक ईज़ी जॉब वो होती है जिसमें एक टास्क को सीखकर हमें बस उसे बार बार रिपीट करना होता है। बट एक कॉम्प्लेक्स जॉब वो होती है जिसमे हमें कंटिन्यू चेंजेज से डील करना होता है और जैसे जैसे हम डॉमिनेंट सहाइ रुड़की में ऊपर जाते है वैसे वैसे फ्लूइड इन्टेलिजन्स की डिमांड बढ़ती जाती है। और हमे लिमिटेड टाइम में काफी कॉम्प्लेक्स डिसिशन्स लेने होते हैं। इस फैक्टर को ऐक्नॉलज करना बहुत जरूरी है क्योंकि अगर एक इंसान को ऐसी जॉब मिल जाए जिसका कॉम्प्लेक्सिटी लेवल उसके लिए बहुत ज्यादा है तो वो उसके लिए काफी स्ट्रेसफुल होगा और वह कोई भी काम ढंग से नहीं कर पाएगा। ये हैं कुछ एग्जाम्पल्स जो हमें आइडिया देंगे कि हर आईक्यू रेंज में किस टाइप की जॉब ज्यादा सूटेबल होती है। सो अगर हमारा आइक्यू 116730 के बीच में है तो हम बन सकते हैं। एक अटर्नी रिसर्च ऐनालिस्ट, एडिटर, ऐड्वर्टाइज़िंग मैनेजर, इंजीनियर, एग्जीक्यूटिव मैनेजर ट्रेनी सिस्टम्स ऐनालिस्ट या फिर एक ऑडिटर आइक्यू रेंज 110, 715 की कॉम्प्लैक्सिटी रेंज में आते है। कॉपी राइटर, अकाउंटेंट, मैनेजर, सुपरवाइजर, सेल्स मैनेजर, सेल्स प्रोग्रामर, टीचर, जनरल मैनेजर, परचेसिंग एजेंट। और सेल्स अकाउंट एग्जीक्यूटिव आइक्यू रेंज 103 708 में आते हैं। ऐड्मिनिस्ट्रेटिव असिस्टेंट, स्टोर मैनेजर, बुक कीपर, क्रेडिट क्लर्क, ड्राफ्ट डिज़ाइनर, लैब टेस्टर, असिस्टेंट मैनेजर जनरल सेल्स, टेलीफोन सेल्स सेक्रिटेरी अकाउंटिंग क्लर्क, कंप्यूटर ऑपरेटर, कस्टमर सर्विस रैप टेक्निशन, ऑटोमोटिव सेल्स मैन ओर टाइपिस्ट। आइक्यू रेंज 102, 102 में आते हैं डिस्पैचर पुलिस पेट्रोल ऑफिसर रिसेप्शनिस्ट के शेर जेनरल क्लैरिकल मीटर रीडर प्रिंटर टेलर डाटा एंट्री और इलेक्ट्रिकल हेल्पर आइक्यू रेंज 95298 में आते हैं मशीनिस्ट, फूड डिपार्टमेंट मैनेजर, क्वालिटी कंट्रोल चक्कर क्लेम्स क्लर्क, ड्राइवर, डिलीवरीमैन, सेक्युरिटी गार्ड अनस्किल्ड लेबर मेनटेनेंस मशीन ऑपरेटर, आर्क, वेल्डर, डाइरेक्टर मेकनिक मेडिकल और डेंटल असिस्टेंट आइक्यू रेन्ज 87293 में आते हैं मैसेंजर, फैक्टरी प्रोडक्शन असेम्बलर, फूड सर्विस वर्कर, वेयरहाउस मैन, जेनेटर, मटिरीअल हैंडलर और पैकर अगेन। इस क्लासिफिकेशन में भी हम ऑब्जर्व कर सकते हैं कि जैसे जैसे हम हाइरार्की में नीचे आते हैं वैसे वैसे जॉब्ज़ ज्यादा सिंपल होती जाती है और वो बस रिपिटेटिव टास्क पर बेस्ड होती है। ऐवरेज 92110 के बीच में होता है और 130 से ऊपर के वाले लोग। जेनरली फिज़िसिस्ट कॉलेज प्रोफेसर्स एम् डीस मैथमैटिशन स् साइंटिस्ट्स और चेस चैंपियन्स होते हैं और 87 से नीचे के आइक्यू वाले लोगों के लिए कोई ऑफिशयल जॉब नहीं होती। इसके साथ ही हमने यहाँ पर ऑन्ट्रप्रनर्स को भी मेन्शन नहीं किया है क्योंकि ऑन्ट्रप्रनर्स सिंपल रिपीटेटिव टास्क भी परफॉर्म करते हैं और सबसे ज्यादा कॉम्प्लेक्स टास्क भी। बट अगर हम सिर्फ हाइपर फोरमैन ट्रेनर्स की बात करें तो वो भी आइक्यू स्केल के हिरेन पर ही आते हैं। सेल्फ अवेर्नेस एक हैप्पी और मीनिंगफुल लाइफ जीने के लिए बहुत जरूरी होता है क्योंकि हमारी ज्यादातर लाइफ हम काम करते हुए निकाल देते हैं और अगर वो काम, हमारी पर्सनैलिटी या फिर ट्रू आइडेंटिटी के साथ लाइन नहीं होता तो ना तो हम सक्सेस अचीव कर पाते है, ना ही हैपिनेस और ना ही हम इस वर्ल्ड में कोई डिफरेंट क्रिएट कर पाते हैं। अपना फ़्यूचर अपनी पर्सनैलिटी और इन्टेलिजेन्स लेवल के बेसिस पर प्लैन करने से ज्यादा कुछ नहीं होता और उसके लिए ये हैं कुछ टेकअवे पॉइंट्स। जिन लोगों का मोस्ट डॉमिनेंट पर्सनैलिटी ट्रेड ओपन इस टू इक्स्पिरीयन्स होता है वो रिस्की प्रोफेशन्स में थ्राइव करते हैं। और वो उनके रिवर्स में फेल हो जाते हैं, जिनमें रूटीन और टास्क्स होते हैं जिनमें ज़रा सी भी क्रिएटिविटी यूज़ नहीं होती। इसके साथ ही ये लोग हाइरार्की इसके बॉटम लेवल पर भी फिट नहीं होते क्योंकि उस जगह पर वो लैक ऑफ रिसोर्सेस की वजह से ना तो कोई रिस्क ले पाते है और ना ही वो अपना पैशन पर सेव कर पाते हैं। अगर हम बेस्ट के सिनारियो की बात करें तो जो लोग ओपननेस टू इक्स्पिरीयन्स में हाई होने के साथ साथ कॉन्शसनेस और एक्स्ट्रा वर्जन में भी हाई होते हैं, वो काफ़ी सक्सेसफुल और रेवोल्यूशनरी बनते हैं। कॉन्सिअस लोग काफी अच्छे फिट होते हैं। मैनेजेरियल और ऐडमिनिस्ट्रेटिव जॉब्ज़ में ये लोग जो बोलते हैं वो करते है एंड दैट स्वाइ चाहेये किसी भी प्रोफेशनल में चले जाए चान्सेस है की इनकी जॉब परफॉर्मेंस काफी हाई रहेंगी। एक्स्ट्रोवर्ट लोग काफी अच्छा परफॉर्म करते हैं। सेल्स, पब्लिक स्पीकिंग और परसुएशन में जबकि इंट्रोवर्ट लोग काफी अच्छे साइंटिस्ट और इंजीनियर्स बनते है। अग्रि एबल लोग दूसरों की ज्यादा केयर करते हैं तो वो टीचिंग या फिर नर्सिंग जैसी जॉब्ज़ में फिट होते हैं ऐंड दैट स्वाइ इन प्रोफेशन्स में फीमेल ज्यादा होती है। बट जो लोग एग्रीएबलनेस मेलों स्कोर करते हैं वो ऐसी जॉब चूज करते हैं, जिनमें टेक्नोलॉजी और मशीन्स इन्वॉल्व होती है। छोटे सीज़न में हाई स्कोर करने वाले लोग प्लीज़ अली डिस्ट्रैक्ट हो जाते हैं। वो डेडलाइंस को मीट नहीं कर पाते और वो स्ट्रेस को भी डॉल डेट नहीं कर पाते। दैट स्वाइ वो जेनरली किसी भी काम में अच्छे नहीं होते ऐंड लास्ट्ली आइक्यू पॉज़िटिव ली को रिलेटेड है। अर्निंग ज़ और जॉब पर फोरमैन से बट, आइक्यू और जॉब सैटिस्फैक्शन में कोई रिलेशन नहीं है। नौ चार।","हम अपना अधिकांश जीवन उन संसाधनों को हासिल करने में लगाते हैं जो हमारे जीवन को बेहतर बनाने वाले हैं, लेकिन ऐसे करियर का क्या मतलब है जो आपके सच्चे स्व के साथ भी प्रतिध्वनित न हो? यह न केवल अपने दिल की सुनने के बारे में है बल्कि खुद को समझने और आपकी ताकत और कमजोरियों को समझने के बारे में भी है। यह जानकर कि आप व्यक्तित्व के पैमाने पर कहां खड़े हैं, आप अपने रास्ते को बदलकर खुद को बढ़ने दे सकते हैं और इस तरह आप कहां पहुंचेंगे। साथ ही, केवल आत्म-जागरूकता से ही आप वास्तव में इस दुनिया में बदलाव ला सकते हैं।" "हम इनसानों के लिए कपड़ों के दो फंक्शन्स होते हैं। पहला है सेफ्टी यानी अपने आपको ठंड, गर्मी या सोशल अकाउंट्स से बचाना और दूसरा है सेल्फ एक्सप्रेशन। क्योंकि जब भी हम किसी से मिलते हैं तब हमारा दिमाग कही शॉर्टकट्स को यूज़ करता है यह फ़िगर आउट करने के लिए कि वह इंसान हमारा दोस्त है या दुश्मन या फिर उनका स्टेटस क्या है और उनकी पर्सनैलिटी कैसी है? और इस कैलकुलेशन में कपड़े एक गाइड का काम करते हैं क्योंकि जाने अनजाने में हम उन कपड़ों को पहनते हैं जो हमारे सबसे इंट्रेस्टिंग फीचर्स को हाइलाइट करते हैं और ये अनाउंस करते हैं कि हम कौन हैं। ये हमारा सोसाइटी में क्या रोल है? और इसी वजह से हमारा वॉर्डरोब हमारी ऑटोबायोग्राफी की तरह होता है। 2012 में पब्लिश हुई एक स्टडी में यह जानने की कोशिश करी गयी कि क्या सच में जो हम कपड़े पहनते हैं, उनका कोई सिम्बॉलिक मीनिंग होता है और क्या हमारे कपड़े हमारी थिंकिंग को भी चेंज कर सकते हैं? स्टडी में एक लैब कोट लिया गया और कई लोगों को बोला गया की ये कोट एक डॉक्टर का है, जबकि दूसरे लोगों को बोला गया कि यह एक पेन्टर का कोट है। उसके बाद उन्हें एक्सटेंशन से जुड़ा टास्क दिया गया और सरप्राइजिंगली लोगों को यह लग रहा था कि उन्होंने एक डॉक्टर का कोट पहना है। उनकी अटेन्शन और ओवरऑल परफॉर्मेंस उन लोगों से बेहतर थी जिन्हें यह लग रहा था कि उन्होंने एक पेन्टर का कोट पहना है। क्योंकि एक डॉक्टर का कोट अचीवमेन्ट, इन्टेलिजेन्स और पावर को सिविल लाइंस करता है, जिससे जब एक नॉर्मल इंसान भी उस कोर्ट को पहनता है तब उसके अंदर से यही समे क्वालिटीज खुद ब खुद बाहर आने लग जाती है। इस इफेक्ट को बोला जाता है इन्क्लूड कॉग्निशन यानी हमारे कपड़ों और हमारी साइकोलॉजी में डायरेक्ट को रिलेशन है। ये इफेक्ट सूट पहनने वाले बिजनेसमैन यूनिफॉर्म पहनने वाले सोल्जर्स और एथलीट्स और इवन फायर फाइटर्स में भी देखने को मिलता है। जो इन कपड़ों को पहनते ही एक अलग माइंड सेट में आ जाते हैं। इसके ऊपर से मेल्स और फीमेल्स के ऐस्थेटिक गोल्स एक दूसरे से काफी अलग होते हैं। मेल्स अपनी के थ्रू अपनी यूटिलिटी यानी अपने यूज़ फुलनेस पावर क्रेडिबिलिटी और स्टेटस को सिग्नल करते है। जैसे कोई मेल एक सूट पहनता है जो उसकी पावर को दर्शाता है। कोई मेल, सिर्फ सॉलिड टी शर्ट्स या फिर स्वेटर्स पहनता है अपनी सिम्प्लिसिटी और अपनी सिनसिअर पर्सनैलिटी को दिखाने के लिए और कोई मेल महंगे कपड़े पहनता है अपनी हैसियत दिखाने के लिए, जबकि फीमेल्स अपनी क्लोदिंग और मेकअप के थ्रू फेमिनिटी यानी फर्टिलिटी, ब्यूटी और यूथ को सिग्नल करती है। वो हील्स पहनती हैं जो उनके हिप्स, लेग्स और ब्रेस्ट की शेप को उभारती है। मस्कारा और आइ शैडो फीमेल्स की आइस को ज्यादा बड़ा बनाती है क्योंकि बड़ी आइस यूथ को सिविल लाइंस करती है और वो उन लेटेस्ट ट्रेंड्स को फॉलो करती है जो किसी नए तरीके से यूथ की अपीयरेंस देते हैं। इसके साथ ही आप किस कलर के कपड़े पहनते हो, वो भी आपकी अप्रैल को बेहतर या बेकार बनाता है, क्योंकि कई कलर्स के कॉम्बिनेशन स् आपकी स्किन को एक हेल्थी लुक देते हैं और कई अनहेलथी और आपको कौनसा कलर सबसे ज्यादा सूट करेगा वो डिपेंड करता है। आपके बालों के कलर और आपके स्क्रीन के कॉम्प्लेक्शन पे। अमेरिकन ऑथर और डिज़ाइनर ऐलन फ्लो सर ने अपनी बुक ड्रेसिंग के मामले में बताया है कि अगर आपके बाल और स्किन दोनों ही लाइट कलर के है तब आपका फेस अलग अलग कलर्स की वेरिएशन के साथ अच्छा नहीं लगेगा। इसलिए अपना फोकस एक कलर के ही अलग अलग शेड्स पर रखो। सेकंडली अगर आपके बाल डार्क और स्किन लाइट या मीडियम है तो आप ऑपोजिट कलर्स की कॉम्बिनेशन में सबसे ज्यादा हेल्थी लगोगे। जैसे ब्लैक और व्हाइट। ब्लू और ऑरेंज या फिर रेड और ग्रीन थर्ड ली अगर आपके बाल और स्किन दोनों ही डार्क या किसी दूसरे बच्चे कॉम्बिनेशन के हैं तो आप ऑलमोस्ट किसी भी ऐसे कलर के साथ अपनी हेल्थ को सिग्नल कर सकते हो जो आपके इनडिविजुअल टेस्ट को मैच करे और अगर आप एक बोल्ड पर्सन हो तो लाइट स्किन बेस्ट मैच करती है। नैचरल कलर्स जैसे रेड, ब्लू, ब्राउन, फॉरेस्ट, ग्रीन और ब्लैक के साथ एक डार्क बॉल इंसान ऑलमोस्ट सारे कलर्स के साथ ही अच्छा लगता है बजाय डार्क ब्राउन के जो उनकी स्किन टोन के साथ एक काफी बोरिंग लुक देता है। और मीडियम स्किन टोन वाले बॉल लोग सबसे हेल्थी लगते हैं। दीप नैचरल कलर्स जैसे ब्लैक, ग्रे या नेवी ब्लू के साथ जितना आप अपने कपड़ों को एक टूल की तरह यूज़ करोगे, उतना ही आप अपने नैचरल फीचर्स और टैलेंट को ऐम्प्लफाइअर पाओगे। अपनी बुक ऑफ पावर में ऑथर ट्रेनर गाज़ी ने बताया है कि थ्रूआउट हिस्टरी एक इंसान की अपीयरेन्स सोसाइटी का एक बहुत ज़रूरी हिस्सा रही है, क्योंकि हम ये चाहे या न चाहें लेकिन हम लोगों को उनकी अपीयरेंस के बेसिस पर ही जज करते हैं। इसलिए सेल्फ इंप्रूवमेंट का एक बहुत बड़ा पार्ट आपकी क्लोदिंग होनी चाहिए। यानी आप जीस तरह के इंसान बनना चाहते हो। उस इंसान की तरह ड्रेस करने से आप अपने इस ट्रांसफॉर्मेशन प्रोसैस की स्पीड को बढ़ा सकते हो। जर्मन फिलॉसफर फ्रेड्रिक नीचा ने बोला था कि हर महान इंसान एक्चुअल में अपने आइडियल की एक्टिंग कर रहा होता है। इसलिए आपकी ट्रांसफॉर्मेशन की शुरुआत में एक विज़िबल ड्रास्टिक चेंज दो काम करेगा। पहले वो दूसरे लोगों को आपकी ग्रोथ के बारे में बताएगा और दूसरा वो आपको याद दिलाएगा कि आप अपने पुराने वर्जन को बदलने के मिशन पर हो, क्योंकि जब भी हम अपनी लाइफ को चेंज करना शुरू करते हैं तब रिजल्ट्स मिलने में बहुत टाइम लगता है, जिसकी वजह से पर्सनल डेवलपमेंट के रास्ते में कई लोग डिमोटिवेट होकर अपनी पुरानी स्टेट में वापस चले जाते हैं। यानी सिर्फ इंटरनल इम्प्रूवमेंटस बिना मेजर एबल रिजल्ट्स के काफी नहीं होती है। इसलिए हमें अपनी इंटरनल इम्प्रूवमेंटस को कॉम्प्लिमेंट करना है। अपनी एक्सटर्नल इम्प्रूवमेंट से याद रखो। हमारी अपीयरेन्स या तो एक ऐसेट बन सकती है या फिर एक लाइबिलिटी। तो ऐसे में क्यों ना हम इसे अपना बेस्ट पॉसिबल ऐसेट बनाकर अपनी ग्रोथ को नेक्स्ट लेवल पर ले जाये?","वस्त्र हमारे दो कार्य करते हैं अर्थात सुरक्षा और आत्म-अभिव्यक्ति। लेकिन कपड़ों के बारे में ज्यादातर लोग जो नहीं जानते हैं, वह यह है कि हम अपनी आंतरिक दुनिया के विकास को उत्प्रेरित करने के लिए स्टाइल और बाहरी दिखावट का उपयोग कर सकते हैं। हाँ, फैशनेबल होना और अच्छा दिखना आत्म-विकास का एक हिस्सा है। इस तरह आप अपने आप को समग्र रूप से विकसित करते हैं। यही कारण है कि इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम चर्चा करते हैं कि कैसे हम कपड़ों, स्टाइल, फैशन और रंग का उपयोग नए विकास को सुविधाजनक बनाने के लिए कर सकते हैं।" "आजकल डेटिंग ऐप्स बाकी सोशल मीडिया ऐप्स जितनी ही कॉमन है क्योंकि वो भी एक तरह का सोशल नेटवर्क बनाती है और इस वक्त दुनिया का सबसे पॉपुलर ऑनलाइन डेटिंग प्लैटफॉर्म है टिंडर जो की एक लोकेशन बेस्ट डेटिंग ऐप्स है और तभी सबसे सिम्पल चीज़ जो टेंडर मैच इसको इन्फ्लुयेन्स करती है वो है हमारी लोकेशन और 28। इनमें टिंडर ने हमारे साथ कुछ ऐनैलिटिक्स शेर करे थे जिसमें बताया गया था की कौनसे इंडियन नेबरहुड में सबसे ज्यादा मैचेस आते हैं। हाउएवर प्राइम लोकेशन के अलावा हम आज उन साइकोलॉजिकल हैक्स के बारे में बात करेंगे जिन्हें यूज़ करने पर एक्सपेरिमेंट्स में लोगों को एकदम से ज्यादा मैचेस मिलने लग गए थे। पहले सेवन हैक्स हमें सही प्रोफाइल पिक्चर्स चूज करना सिखायेंगे और लास्ट के थ्री हैक्स हमें सिखाएंगे की एक डेटिंग एप पर अपनी बाइकों को किस तरह लिखना चाहिए। हैक वन शो स्किन और में बी नॉट यू जल ई मेल्स को बोला जाता है की उन्हें सिर्फ स्किन देखना अच्छा लगता है, पर स्टडी बताती है कि ऑनलाइन डेटिंग में फीमेल्स मेल्स की स्किन देखने में ज्यादा इंटरेस्टेड होती है। यानी क्लीवेज और शोर्ट स्कर्ट हाइ रैंकिंग और लो रैनकिन फीमेल्स में कोई बड़ा डिफरेंस नहीं क्रिएट करता, पर मेल्स के केस में अपनी स्किन को शो ऑफ करना बेनेफिशिअल हो सकता है और तभी जिन मेल्स के सबसे ज्यादा मैचेस थे उनकी प्रोफाइल्स में सबसे ज्यादा शर्टलेस पिक्चर्स थी। हद टु डोंट हाइड ज्यादा मैचेस पाने के लिए ये दिखाना बहुत जरूरी है कि हम अवेलेबल है पर हँस ये सन ग्लासेस हमारे माइक्रो एक्स्प्रेशन्स को छुपाते हैं और हम आई कॉन्टैक्ट की मदद से एक कनेक्शन बनाने में भी फेल हो जाते हैं। और हाँ, यह सच है। जिसतरह से फेस टु फेस मिलने पर कॉन्टैक्ट हमारे अंदर बॉन्डिंग होर्मोन ऑक्सिटोसिन रिलीज करता है, बिल्कुल वैसे ही ये होर्मोन लोगों की पिक्चर्स देखते टाइम भी रिलीज होता है। हद थ्री फ्रंट इन यानी हम अपनी प्रोफाइल पिक्चर्स मेज इस ऐंगल पर खड़े होते हैं। वो भी हमारी अट्रैक्टिवनेस को इन्फ्लुयेन्स करता है और डेटा के हिसाब से हम सबसे ज्यादा अट्रैक्टिव तब लगते हैं, जब हम पूरी तरह से कैमरा को फेस करते हैं और ये फाइन्डिंग मेल्स के लिए और भी ज्यादा इम्पोर्टेन्ट है। क्योंकि फिर नटिंग एक नॉन वर्बल साइन होता है रिस्पेक्ट का और जब हम किसी इंसान के साथ फुल्ली एंगेज होते हैं तब हम अपनी पूरी बॉडी उनकी बॉडी के साथ ऑनलाइन कर लेते हैं, जिससे हमारे सर से लेकर पैर तक पूरी बॉडी उनकी तरफ होती है और फोटोस में ये देखने पर हमें पता लगता है की कौन सा इंसान एक अटेंटिव पार्टनर बनेगा और हमारी रिस्पेक्ट करेगा। जबकि एक दूसरे एंगल पर खींची गई पिक्चर हमे ऐसा फील कराती है जैसे हमे इग्नोर कर आ जा रहा है। हैक फ़ोर कॉन्टेस्ट यानी हमारी पिक्चर की बैकस्टोरी क्या है? ये हैं इसलिए जरूरी है क्योंकि टॉप रैंकिंग टिंडर प्रोफाइल्स में उन लोगों की पिक्चर्स के पीछे कोई स्टोरी थी जैसे हाइकिंग, ट्रैवल, कुकिंग, ड्राइविंग या फिर बीच ट्रिप। जिन फोटोस में मेल्स और फीमेल्स कोई भी ऐक्टिविटी परफॉर्म कर रहे थे, वो फोटोस ज्यादा हॉट और अट्रैक्टिव थी। हाउएवर डिस्प्ले ऑब् जेक् ट्स जैसे गिटार का ऑर्गन्स या फिर मोटर साइकल का कोई पॉज़िटिव इम्पैक्ट नहीं था। हैक फाइव स्माइलिंग बट इसमें एक कैच है। क्योंकि जिन फीमेल्स की प्रोफाइल पिक्चर्स में वो अपना मुँह बंद करके स्माइल कर रही थी, उनके मैचेस काफी कम थे, पर सबसे पॉपुलर फीमेल्स की पिक्चर्स में या तो उनके मुँह पर एक पूरी इस्माइल थी या फिर उनका फेस न्यूट्रल था और मेल्स के केस में भी न्यूट्रल फेस ही बेस्ट परफॉर्म करते हैं यानी सिरियस फेसेज़ दोनों जेंडर्स के लिए बेस्ट काम करते हैं। एक फुल स्माइल सिर्फ ई मेल्स के लिए और क्लोस्ड माउथ स्माइल सबसे बेकार परफॉर्म करती है। हैक सिक्स शो है ज़ ज़्यादातर हाइ रैनकिन फीमेल्स की प्रोफाइल पिक्चर्स में उनके हैंडस विज़िबल होते हैं और ये अट्रैक्शन क्रियेट करता है, क्योंकि हमारे हैज़ काफी अच्छे नॉन वर्बल ट्रस्ट इंडिकेटर्स होते हैं। हाउएवर मेल्स के केस में हैन्ड ज्यादा मैटर नहीं करते हैं हैक सेवन यूज़ के मुनरो गेस मर्लिन मुनरो अपने फ्लर्टी टिल्टेड पोस्ट के लिए काफी फेमस थी और इस स्टडी में भी देखा गया की काफी सारी हाइ रैनकिन फीमेल्स यूज़ करती है। यह एक काफी फ्लर्टेशन जेस्चर है क्योंकि यह बिल्कुल वैसे ही दिखता है जैसे एक फीमेल ऑर्गैज़म के टाइम दिखती है और अपनी नेक को इक्स्पोज़ करने से उनमें फेरोमोन्स भी रिलीज होने लगते हैं और तभी इस की मदद से मेल्स सब कॉन्शस ली असेस कर पाते हैं कि वो फीमेल कितनी अवेलेबल है और वो ज्यादा एस्ट्रोजन होने की वजह से कितनी फर्टाइल है। हैकेट 10730 रूल ज्यादातर लोग अपनी बाइकों लिखते टाइम या तो अपने बारे में जितना हो सके उतना लिख देते हैं या फिर वो उसे ब्लैक छोड़ देते हैं। पर ये गलतियाँ हमें मिलने वाले मैचेस। और मैसेजेस के नंबर को कम कर सकती है। रिसर्च में पता लगा कि हिरेन किन प्रोफाइल्स में लोग 70% अपने बारे में लिखते हैं और 30% ये बताने के लिए की वो अपने पार्टनर में क्या ढूंढ रहे हैं। इससे हमारे पोटेंशिअल मेड्स अपने आप को हमारी प्रोफाइल में ढूंढ पाते हैं जिससे एक दीप कनेक्शन बनाना बहुत ईजी हो जाता है। फॉर एग्ज़ैम्पल अगर हमें ऐडवेंचरस ऐक्टिविटीज़ पसंद है और हम आउट डोर्स रहना प्रिफर करते हैं तो हम अपनी बाइयों में पहले इन्ट्रेस्ट के बारे में बता सकते हैं। और फिर यह भी कि हम एक अपने जैसे इंसान को ढूंढ रहे हैं जिसके साथ हम इन फंड इक्स्पिरीअन्सिज़ को शेयर कर सके। हैक नाइन शो इमोशनल अवेलेबिलिटी सोशल साइकोलॉजी स्टेफनी स्पीलमन और जेफ मैकडोनाल्ड ने अपने एक्सपेरिमेंट में ये देखने की कोशिश करि की। ऑनलाइन डेटिंग प्रोफाइल्स में क्या ज्यादा मैटर करता है अट्रैक्टिवनेस या फिर इमोशनल अवेलेबिलिटी और जब लोगों को एक ****** पर इमोशनली अनअवेलेबल पर्सन या फिर एक ऐवरेज लुकिंग फॉर इमोशनली अवेलेबल और केरिंग पर्सन के बीच चौसा दी गई तो मेल्स और फीमेल्स दोनों ने ही इमोशनली अवेलेबल पर्सन को चूज करा सो, हम अपनी प्रोफाइल में मेन्शन कर सकते हैं कि हम एक कमिटेड पार्टनर को ढूंढ रहे हैं या फिर किसी ऐसे इंसान को जिसके साथ हम काफी सारा टाइम स्पेंड कर सके हैं। इस टाइप के मेसेजेस मेन्शन करना बहुत जरूरी है क्योंकि हम सभी इमोशनल कनेक्शन को क्रिएट करते हैं और अपनी प्रोफाइल में ये कन्फर्म करके की हम इमोशनल अवेलेबिलिटी प्रोवाइड कर सकते हैं। हम ऑलरेडी काफी लोगो का ट्रस्ट पाने लगते हैं। 10 यूज़ थे वर्ड लव रिसेंटली एक डेटिंग साइट ने 12,00,000 प्रोफाइल्स को ऐनालाइज कराये। देखने के लिए की किस टाइप की प्रोफाइल्स सबसे ज्यादा अच्छे रिलेशनशिप्स प्रीडिक्ट कर सकती है और उन्हें पता चला कि जो लोग अपनी प्रोफाइल्स में लव, हर्ट या फिर रोमैन्टिक जैसे वर्ड्स यूज़ करते हैं उन्हें डेटिंग प्लैटफॉर्म पर ज्यादा टेंशन मिलती है क्योंकि यह वर्ड्ज़ लोगों के मन में एक पॉज़िटिव रिइनफोर्समेंट क्रिएट करते हैं। जैसे अगर उनके मन में क्वेश्चन आता है, कैन आई लव थिस पर्सन और जब हमारी प्रोफाइल में लव वर्ड इन्क्लूडेड होता है तो वो उनके दिमाग में क्लिक करता है और उनमें एक कॉन्फिडेन्स आजाता है की हाँ, हम उन्हें लव करने के कैपेबल है और हम इस वर्ड को किसी भी तरह से यूज़ कर सकते हैं जैसे आइ लव, चॉकलेट्स या फिर आइ लव वॉचिंग साइकोलॉजी, विडीओ ज़ और ये थे 10 हैक्स टु गेट मोर टिनडर मैच",टिंडर जैसे ऑनलाइन डेटिंग ऐप पर अधिक मैच होने में परेशानी नहीं होनी चाहिए। आपको बस थोड़ा सा मनोविज्ञान चाहिए और आप न केवल अधिक मैच प्राप्त कर सकते हैं बल्कि बातचीत शुरू करने में रुचि रखने वाले लोगों को भी बना सकते हैं। "हर रिलेशनशिप परमानेंट नहीं होता और लाइफ हमें कई बार ऐसी मुश्किल सिचुएशन में लाकर खड़ा कर देती है कि हमारे पास अपने चाहने वालों को छोड़ने और भुला देने के अलावा कोई बेटर ऑप्शन नहीं होता। कभी आपका ब्रेकअप हो जाता है लेकिन आपके अंदर उस इंसान के लिए प्यार खत्म नहीं हुआ होता। कभी आपको खुद को अपने दोस्तों से दूर करना पड़ता है क्योंकि वो आपकी ग्रोथ में बाधा डाल रहे थे और जब आपके किसी चाहने वाले या आपके पैरेंट का इस धरती पर समय पूरा हो जाता है तब आपको उन्हें भी अलविदा बोलना पड़ता है। लेकिन इस तरह से लोगों से दूर होने से हमारी उनके साथ बनी मेमोरीज़ इतनी आसानी से दूर नहीं जाती बल्कि हम कई महीनों और सालों तक उस एक इंसान के खयालों में ही खोए रहते हैं और चाहकर भी अपनी सफरिंग से बाहर नहीं निकल पाते। अगर आपने इस एपिसोड को सुनना शुरू करा है तो चान्सेस है कि आपके दिमाग में ऑलरेडी एक या कई ऐसे लोगों की तस्वीर आई होगी जिन्हें आप या तो मिस करते हो या फिर उन्हें इस लायक समझते हो कि उनका ख्याल आपके दिमाग में अभी तक है। इस तरह से किसी को मिस करने में प्रॉब्लम यह है कि हम उस इंसान के साथ बिताई सिर्फ अच्छी मेमोरी से ही सारा रस निचोड़ने छोड़कर खुद के घावों को भरने की कोशिश कर रहे होते हैं। और उनके साथ बिताए हर बुरे पल को भूल जाते हैं, जिससे उस इंसान की मेमोरी ही हमारे लिए एक ड्रग की तरह बन जाती है और जब भी हम ज़रा सा खाली होते हैं या फिर उदास फील करते हैं, तब हम अपने पास्ट में ही गुम होने लगते हैं। हम प्रेज़ेंट में खुद को स्टेबल रखने के लिए अपनी गिनी चुनी पास्ट मेमोरीज़ का सहारा लेते हैं। लेकिन यह बात हमेशा याद रखना कि प्यार कभी भी आपको इस तरह से बांधकर नहीं रखता बल्कि प्यार वो होता है जो आपको मुक्त करता है। इसलिए अगर आप अपनी प्रॉब्लम को सॉल्व करना चाहते हो तो पहले ये समझो कि आपकी प्रॉब्लम असल में है क्या प्रॉब्लम ये नहीं है कि आप किसी को मिस कर रहे हो और आप दुखी होने के साथ साथ थोड़े कम्फर्ट भी फील कर रहे हो, बल्कि प्रॉब्लम यह है कि आप अपनी अट्रैक्शन अटैचमेंट या लस्ट को प्यार समझ रहे हो और अपने दिमाग में बैठकर अलग अलग कहानियाँ बनाकर फैन टी साइंस कर रहे हो। जिन चीजों का अंतिम गोल हम प्यार समझ रहे हैं वो असल में प्यार की छाया है। जब हम खुद में अधूरा महसूस करते हैं तो ये ऑब्वियस है कि हम भारी चीजों और भारी लोगों से अटैच हो जाएंगे और जो जीने की इच्छा या फिर खुशी हमारे अंदर से अपने आप आनी चाहिए थी। उसकी तलाश भी हम अपनी अटैचमेंट से ही करने लगते हैं। एक पैरेंट अपने बच्चे को बोलता है कि मैं सिर्फ तुम्हारे लिए ही जिंदा हूँ या फिर मैंने तुम्हारे लिए इतने ज्यादा कष्ट झेले। एक लवर भी अपने पार्टनर को यही चीज़ बोलता है और ई वन मटिरीअल इस लोग भी अपनी खुशी या फिर जीने की वजह को अपनी गाड़ियों या मकानों से जोड़ देते हैं। ये होती है हमारी अटैचमेंट जिसतरह से जब एक बच्चे को उसका फेवरेट खिलौना मिलता है तो वो बहुत खुश होता है लेकिन उस खिलौने के टूटते ही वो रोने लग जाता है। जस्ट बिकॉज़ उस बच्चे ने अपने खिलौने के साथ एक अटैचमेंट बना ली थी। वो उस खिलौने से प्यार नहीं करता था क्योंकि अगर वो उससे प्यार करता तो वो उससे खेलता नहीं बल्कि उसे संभालकर और छुपाकर रखता बजाए उसे अपने प्लेजर के लिए यूज़ करने गए सिमिलरली एक इंसान जो दूसरे इंसान के साथ बस इसलिए है क्योंकि वो अच्छा दिखता है, उसकी बॉडी अच्छी है, उसकी आवाज़ प्यारी है या फिर वो बस सेक्शुअली अट्रैक्टिव है तो यह चीज़ तो अटैचमेंट से भी नीचे है। हम यहाँ पर ये नहीं बोल रहे हैं कि फिजिकल अट्रैक्शन गलत है क्योंकि यह तो बहुत जरूरी हिस्सा है। लाइफ का लेकिन अगर हम फिज़िकल अट्रैक्शन को हाइएस्ट फॉर्म ऑफ लव से कंपेर करे तो उसक एल पर ये काफी नीचे आती है। प्यार का हाइएस्ट लेवल वो होता है जहाँ प्यार करने वाला ही गायब हो जाता है और उसे यह फील हो जाता है कि उसे सब मिल गए हैं। जिंस भी इंसान के प्यार की जरूरत उन्हें महसूस हो रही थी। वो प्यार ऑलरेडी उन्होंने अपने अंदर ढूंढ लिया और उसके बाद दूसरों के साथ अपने इस प्यार को शेयर करा। यही तो होता है प्यार ऐसे पॉइंट पर कहा आपको किसी की याद सताती है और अगर याद आए भी तो वो आपको दुख नहीं देती बल्कि आपको हंसा कर जाती है। आम आदमी ये सोचता है कि ऐसा प्यार करने के काबिल तो सिर्फ भगवान ही है लेकिन ये उन्हीं लोगो की सोच होती है जो अपनी असली नेचर से बहुत दूर आ चूके हैं। प्यार साहस है लेकिन अटैचमेंट और *** कमजोरी है जिसकी वजह से ज्यादातर लोग प्यार करने से डरते हैं और खुद की सारी ताकत दूसरे लोगों या चीज़ो को थमा देते हैं जिनसे दूर होने पर उन्हें ऐसा लगता है जैसे उनका खुद का ही एक जरूरी हिस्सा उनसे दूर चला गया हो। किसी को खोने का दर्द बिल्कुल ऐसा होता है जैसा दर्द एक बच्चा महसूस करता है। जब वो इस दुनिया में आता है या फिर जब एक चिड़िया अंडे से पहली बार बाहर निकलती है। सेफ्टी और आराम से भरी जगह से बाहर एक ऐसी जगह पर आ जाना जहाँ पर आपको यही नहीं पता कि वहाँ जिया कैसे जाता है तो ऐसे में दर्द होना और डर लगना तो तय है जब आप अपने प्यार करने वालों के साथ होते हो। आप बहुत कंफर्टेबल और सेफ फील करते हों लेकिन उनके एकदम से जाते ही आप खुद को खोया हुआ महसूस करते हों। ऐसी जगह पर आपकी बुद्धि भी आपका बिलकुल साथ नहीं देती क्योंकि बुद्धि पुरानी इन्फॉर्मेशन के साथ काम करने के लिए बनी है। और अब जब आपकी रिऐलिटी ही बदल चुकी है, उस इंसान के जाने के बाद तो ऐसे पॉइंट पर ज्यादा सोचना नहीं बल्कि अपने ख्यालों को शांत करना और उनसे दूर हो ना काम आता है। इसलिए अगर आप किसी को मिस कर रहे हो तो खुद को यह याद दिलाओ कि खुद को दूसरों से अटैच कर लेना हॉल बनने का सही रास्ता नहीं है। जितना आप अपनी खुशी दूसरे लोगों में ढूंढोगे उतने ही आपके ख्याल नेगेटिव और दुख भरे होंगे। जस्ट बिकॉज़ आप अपने खुशी के सोर्स से दूर हो आपकी खुशी और आपका प्यार आपसे ही शुरू होने चाहिए और आप पर ही खत्म बीच में जो मिल जाये वो आपका बोनस और जैसा कि इंडियन मिस्टेक ओशो रजनीश बोलते थे की खुद से क्वेश्चन करो कि आपको क्या चीज़ रुलाती है, वो बस आपकी अटैचमेंट होती है। वो क्या चीज़ है जिसे खोने पर आप उसे मिस करते हो? वो होता है आपकी अटैचमेंट का ऑब्जेक्ट जहाँ अटैचमेंट होगी वहाँ दर्द का होना तय है, लेकिन जहाँ प्यार होगा वहाँ दूसरे के लिए भी मुक्ति होगी और तुम्हारे लिए भी प्यार के दोनों छोर पर तुम ही खड़े हो, लेकिन अटैचमेंट में मैं और तू आजाता है।","हर रिश्ता स्थाई नहीं होता। कभी-कभी आपको अपने दोस्तों को पीछे छोड़ना पड़ता है क्योंकि वे आपको सफलता नहीं दे रहे हैं, आपको अपने साथी से संबंध तोड़ना पड़ सकता है जिससे आप बहुत प्यार करते हैं या आप किसी रिश्तेदार या माता-पिता को खो सकते हैं। लोगों का हमारे जीवन में आना-जाना स्वाभाविक है। लेकिन जो अस्वाभाविक है वह है जिस तरह से हम अपने पुराने प्रेमियों या किसी और की अनुपस्थिति पर ध्यान देते हैं। जितना अधिक हम अपने पूर्व, माता-पिता या मित्र को याद करते हैं, उतना ही अधिक हम पीड़ित होते हैं। इसलिए इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम समझेंगे कि हम किसी को क्यों याद करते हैं, प्यार क्या है, दूसरों के साथ अपने लगाव को कैसे दूर करें और हम ऐसी स्थिति में कैसे पहुँचें जहाँ हम अपने अतीत के कारण पीड़ित न हों।" "आजकल जब भी हम वर्ड टीचर यूज़ करते हैं तब ज्यादातर लोगों के दिमाग में या तो एक गुस्सैल और चिड़चिड़े इंसान की इमेज आती है जिन्होंने उन्हें बचपन में बहुत डांटा था। या फिर हमारे दिमाग में अपने फेवरेट वो टीचर्स आते हैं जिन्होंने हमें एक बेहतर इंसान बनने के लिए एक्सपाइर करा था, लेकिन टीचर होना एक प्रोफैशन से कई गुना ज्यादा है। सबसे सिंपल कॉन्टेस्ट में आप एक टीचर की तरह तब ऐक्ट कर रहे होते हो जब आप अपना एक आइडिया अपने दिमाग से निकाल कर दूसरे के दिमाग में बिठा रहे होते हो। अपनी कम्यूनिकेशन स्किल्स, अपने पैशन और अपनी किसी को भी मोटिवेट करने और उनमें इन्ट्रेस्ट जगाने की सिटी से चाहे हम अपने रिलेशनशिप फैमिली या फ्रेंड्स को ले, ये चीज़ बहुत जरूरी होती है किसी को भी कोई नई चीज़ दिखाने के लिए जिसकी वजह से हर इंसान का एक अच्छा और इफेक्टिव टीचर होना बहुत ज़रूरी होता है। इसलिए इस एपिसोड में हम सीखेंगे की हम भी ये स्किल कैसे हासिल कर सकते हैं? नंबर वन एक अच्छा टीचर एक अच्छा कम्युनिकेटर होता है। कम्यूनिकेशन एक अंब्रेला टर्म होती है जिसके अंदर कई बेसिक स्किल्स आती है जैसे दूसरे की बात को अच्छे से सुनना, उसे भी बोलने का मौका देना, दूसरे की बॉडी लैंग्वेज रीड कर पाने के साथ साथ खुद की बॉडी लैंग्वेज भी ठीक रखना। क्वेश्चन्स पूछ ना? और दूसरे इंसान को कोई चीज़ ना पता होने के लिए उन्हें शेम ना करना आपको अपने सुनने वाले को पहले कम्फर्टेबल फील कराना होता है और उसके बाद उनको एक रीज़न देना होता है कि जो कुछ भी आप बोल रहे हो या इन्फॉर्मेशन शेयर कर रहे हो, वो उनके लिए क्यों इम्पोर्टेन्ट है? इससे एक इंसान के अंदर उस नई इन्फॉर्मेशन को रिसीव करने की आती है और आप एक इफेक्टिव मैनर में उन्हें कुछ नया सीखा पाते हो। नम्बर टू ग्रेट टीचर्स डिक्टेटर की तरह नहीं बल्कि दोस्त या मेंटर्स की तरह होते हैं। एक डिक्टेटर वो होता है जो बस अपनी चलाता है, दूसरों की कमी नहीं सुनता और वो अपनी पावर को अब यूज़ करता है। ये अपनी बात सामने रखने का सबसे बेकार तरीका होता है और स्कूल्स या कॉलेजेस में ये चीज़ अक्सर देखने को मिलती है कि एक टीचर बच्चों को एक ग्रेसफुल वे में पढ़ाने के बजाय बात बात पर स्टूडेंट्स को डिस्करेज और डिमोटिवेट करते हैं और अपनी लाइफ की फ्रस्ट्रेशन अपनी पावर के थ्रू बच्चों पर निकालते हैं। इसके बजाय लर्निंग बेस्ट होती है। जब एक टीचर को हम एक बड़े दोस्त या मेंटर की तरह देखते हैं, क्योंकि एक अच्छे दोस्त या मेन्टर दोनों का काम होता है हमें आगे बढ़ने और नेक्स्ट लेवल पर पहुंचने में मदद करना। उनकी सैटिस्फैक्शन इसी चीज़ में होती है कि हम अपनी पोटेंशिअल तक पहुँच पाए। जीस वजह से अगर आप किसी को भी कुछ सीखाना ये समझाना चाहते हो तो अपने दिल में उनके लिए रिस्पेक्ट और उनका बेस्ट इन्ट्रेस्ट रखो। नंबर थ्री एक अच्छा टीचर कॉम्प्लेक्स टॉपिक्स को सिंपल बनाता है क्योंकि अगर हर चीज़ को समझना खुद ब खुद आसान होता तो हमे टीचर्स की जरूरत ही ना पड़ती है। इसलिए एक अच्छा टीचर वही होता है जो मुश्किल चीजों को समझने में आसान बनाता है। जस्ट बिकॉज़ उसे खुद उस चीज़ के बारे में काफी नॉलेज होती है। मैं हमेशा एक मदरबोर्ड की ऐलजी देता हूँ कि किस तरह से एक मदर बर्ड पहले खाने को खुद जब आती है और उसे इतना छोटा बनाती है की वो ईज़ी डाइजेस्ट हो सके और फिर वो इस फूड को अपने बेबी बर्ड मुँह में रख देती है। इसे बोलते है प्री मैं स्टेशन या फिर फ्री चुइंग सिमिलरली एक अच्छा टीचर वो होता है जो अपने स्टूडेंट्स को प्री डाइजेस्ट ऐंड नॉलेज देता है। डाइजेस्ट होने का मतलब वो पहले से अलग अलग कॉन्सेप्ट को समझकर या प्रैक्टिस करके बैठा है। उसने उनसे मिले रिज़ल्ट को भी ऐलिस कर लिया है और वो कॉन्सेप्ट उसने मास्टर कर लिया है। जीस वजह से वो एक ही बात को अलग अलग तरह से अलग अलग ऐंगल से समझा सकता है और मुश्किल से मुश्किल टॉपिक्स को भी डाइजेस्ट टेबल बना सकता है। नंबर फ़ोर एक अच्छा टीचर एक रोल मॉडल होता है यानी एक टीचर को ऐसा बनना चाहिए। वो अपने स्टूडेंट के लिए सिर्फ एक नॉलेज का सोर्स नहीं बल्कि इनस्पिरेशन का सोर्स भी हो क्योंकि ड्री फ़ैक्स जिनमें कोई जान नहीं होती वो तो हमें इन्टरनेट पर भी मिल सकते हैं लेकिन एक इंसान को उन फैक्स और नॉलेज को इन बॉडी करे देखना उनकी नॉलेज को कन्फर्म करता है और दूसरे लोगों को इन्स्पाइअर्ड यह सच है कि आप एक इंसान की वैल्यूज़ और उसकी लाइफ फिलॉसफी को उसके करेक्टर को देखकर ही बता सकते हो। अगर एक इंसान दूसरों को इतना ज्ञान बांट रहा है लेकिन वो खुद ना तो खुश है ना वो अपनी पीठ हेल्थ पर है, ना उसकी अपने घरवालों से बनती है और ना ही उसकी लाइफ में कोई मीनिंग है तो ऐसे इंसान की नॉलेज और एडवाइस को बंदा 10 बार डाउट करता है कि अगर यह इंसान नहीं समझदार है तो इसने अब तक खुद की लाइफ को क्यों नहीं शोर्ट कराये? डिफरेन्स होता है उन लोगों में जो बस बोलते हैं और जो एक्चुअल में कुछ करते हैं और एक टीचर का काम होता है। खुद अपनी नॉलेज को टेस्ट करना और उस नॉलेज को अपने ऐक्शंस में यूज़ करना। इसी वजह से ये बोला जाता है ये एक ऐवरेज टीचर बताता है, एक अच्छा टीचर समझाता है, एक प्रेफर एबल टीचर करके दिखाता है लेकिन एक ग्रेट टीचर इंस्पायर करता है।","जब भी हम "शिक्षक" शब्द का उपयोग करते हैं, तो हम एक क्रोधित और हमेशा झगड़ने वाले शिक्षक के बारे में सोचते हैं जो हमें स्कूल या कॉलेज में हमेशा डांटते थे। लेकिन एक शिक्षक का हमेशा किसी पेशे से संबंध नहीं होता है। दूसरे संदर्भ में, आप एक शिक्षक की तरह व्यवहार कर सकते हैं जब आप अपने मस्तिष्क से किसी और के दिमाग में एक विचार संप्रेषित करने का प्रयास कर रहे हों। तो, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम सीखेंगे कि कैसे आप एक अच्छे शिक्षक बन सकते हैं ताकि आप अपने आप को स्पष्ट रूप से व्यक्त कर सकें।" "रिस्पेक्ट कभी भी फ्री में नहीं मिलती, उसे कमाया जाता है। हर इंसान ऐसा फील करना चाहता है जैसे वह भी सोसाइटी का एक वैल्यूएबल मेंबर है और उसकी इम्पोर्टेन्स दूसरे लोग अच्छे से जानते हैं, जिसकी वजह से वह उससे पोलाइटली बात करते हैं और उसे अप्रिशिएट करते हैं। लेकिन कई बार जाने अनजाने में हम दूसरों की रिस्पेक्ट पाने और अपना नाम बनाने के लिए कई ऐसी गलतियाँ कर देते हैं जिससे हमारे और दूसरे लोगों के बीच में कोई गलतफहमी हो जाती है और एकदम से हम उनकी नजरों में सारी रिस्पेक्ट और इम्पोर्टेन्स खो देते हैं। इसलिए इस एपिसोड में हम आपकी कुछ ऐसी ही बुरी आदतों के बारे में बात करेंगे, जिन्हें अगर आपने समय रहते नहीं बदला तो आप हमेशा की तरह ही हर रिलेशनशिप की शुरुआत में तो लोगों को थोड़ा बहुत इंप्रेस कर पाओगे लेकिन फिर थोड़े समय बाद ही आप वापस से लोगों की नजरों में नीचे गिर जाओगे। हैबिट नंबर वन आप हमेशा अपने बिलीव्स को बेच रहे होते हो। अगर आप अपने बिलीव्स, आइडीओलॉजी, ज़ या वर्ल्डव्यू को बहुत कसकर पकड़ कर बैठे हो तो कोई बात नहीं। यह आपकी पर्सनल चॉइस है। लेकिन जब आप दूसरे लोगों के आगे भी अपनी ही पॉलिटिक्स ये अपनी फिलॉसफी इस बेचना शुरू कर देते हो और ये एक्सपेक्ट करते हो कि सामने वाला भी अपने बिलीव्स को छोड़कर आपकी आइडीओलॉजी इसको पकड़ ले तो ये चीज़ बहुत ही डिस रिस्पेक्टफुल होती है और इससे आप अपनी भी सारी रिस्पेक्ट को खत्म कर देते हो। अनचाही एडवाइस किसी को अच्छी नहीं लगती और वो लोग जो अनचाही एडवाइस बेचते फिरते है वो तो सबसे ज्यादा इरिटेटिंग होते हैं। हैबिट नंबर टू आप दूसरों को खुद को दबाने देते हो या आप खुद ही डोमिनेंस की गेम खेलते रहते हो, एक इंसान जो हर किसी के आगे अपनी डोमिनेंस पावर ये सुपिरियॉरिटी को प्रूव करने के लिए चिड़चिड़ी, टोन या पैसे वगैरह का यूज़ कर रहा होता है तो उससे ज्यादा इम्मेच्युर और फुलिश वहाँ कोई नहीं लगता। ऐसे ही एक इंसान जो ये सब खुद के साथ होने देता है और लोगों को खुद को डॉमिनेट करने देता है तो उसकी रिस्पेक्ट भी कोई नहीं करता। आपको किसी भी इंसान के आगे कुछ प्रूफ करने की जरूरत नहीं है। खुद मैं इस चीज़ को नोटिस करो कि जब आप किसी से कुछ बात कर रहे होते हो और कोई तीसरा इंसान आपकी बात को काटते हुए कुछ बोलने लगता है तो आप क्या करते हो? क्या आप खुद चुप हो जाते हो? यह सोचकर कि आपकी बात तो वैसे भी उतनी इम्पोर्टेन्ट नहीं थी या फिर आप पहले अपनी बात को फिनिश करते हो और उसके बाद उस इंसान की बात का जवाब भी दे देते हो? अगर आप किसी को खुद को इंटरप्ट करने देते हो तो इससे लोगों को यह सिग्नल मिलता है कि आप और आपकी बातों में कोई दम नहीं है। आपको कभी भी रोकना या टोक ना सही है और आपकी यह हैबिट आपको उनकी नजरों में कम इम्पोर्टेन्ट बना देती है। दूसरे एक्स्ट्रीम पर अगर आप बाकियों की कन्वर्सेशन में घुसकर और उनकी बात काटकर अपनी बात रखते हो और ये दिखाते हो कि आपकी बात ज्यादा इम्पोर्टेन्ट है तो उस केस में भी लोग आपको डिस रिस्पेक्ट ठीक करेंगे। इसलिए ना तो किसी दूसरे को दबाव और ना ही खुद किसी के नीचे दब ओं हैबिट नंबर थ्री आप लोगों से लेते ज्यादा हो और देते कुछ नहीं। यह हैबिट भी बहुत कॉमन है क्योंकि बहुत से लोग दूसरों से मदद या उनकी चीजे तो ले लेते हैं लेकिन उनके अंदर कुछ भी लौटाने की समझ नहीं होती। अगर आप किसी इंसान के साथ कुछ खाने पीने या हैंग आउट करने के लिए जाते हो और वो बिल को पे करते हैं तो ऑटोमैटिकली आपको ये पता होना चाहिए। कि अगली बार आपने बिल पे करनाहै जीवन लोग आपको तब ज्यादा रिस्पेक्ट देंगे जब आप पहली बार में ही उन्हें कुछ देने से कतरा आओगे। नहीं हाउएवर अगर आप ही हर बार उस दोस्ती, पार्टनरशिप या रिलेशनशिप में कुछ देते रहते हो तब भी आप गलत हो। हर चीज़ में बैलेंस बनाए रखना बहुत जरूरी होता है ताकि लोग आपको यूज़ ना करे और आप बिना जाने उन्हें ना यूज़ करने लग जाओ। हर इंसान आपके हर ऐक्शन और बात को याद रखता है, चाहे आपने उनसे कोई चीज़ उदाहरण लेकर वापस नहीं करि उनके पैसे नहीं लौटाए। क्या आपने उन्हें उनके मुश्किल समय में सपोर्ट नहीं करा? कोई भी आपको तब तक रिस्पेक्ट नहीं देगा जब तक आप हर तरह के रिलेशनशिप में होने वाले लेन देन को नहीं समझ लेते है। बिट नंबर फ़ोर आप लोगों की बुराइ करते हो ये हैबिट ऐसी होती है जिसपर ऑलमोस्ट हर इंसान ही डिसऐग्री करके बोलता है की वो तो ये काम कभी नहीं करता लेकिन असलियत में ज्यादातर नॉर्मल इंसान किसी ना किसी पॉइंट पर दूसरों की पीठ पीछे उनके बारे में गॉसिप जरूर करते हैं और यह एक बहुत ही अनअट्रैक्टिव हैबिट होती है। आप चाहे अपने कितने भी अच्छे दोस्त के साथ क्यों ना हो कभी भी किसी की बुराइ मत करो और उसे टोटली गलत मत बोलो जीवन अगर आप किसी इंसान के ऐक्शन या बिलीव से अगरी नहीं करते, तब भी उनके बारे में गॉसिप करना यूज़लेस है। गॉसिपिंग उस मोमेंट मैं तो ऐसी लगती है कि आप कुछ जरूरी बात करके एक इंसान के साथ अपनी बॉन्डिंग को स्ट्रॉन्ग बना रहे हों लेकिन आप दूसरे इंसान को सब कॉन्शस ली ये सिग्नल कर रहे होते हो कि आप वो इंसान हो जिसका बुराइ से बहुत क्लोज़ रिलेशन शिप है। जस्ट बिकॉज़ आप दूसरों की बुराइयां अच्छे से देख पाते हो। इस तरह से उस इंसान के मन में आपके ख्याल नेगेटिविटी के साथ जुड़ने लगते हैं। इसलिए दूसरों की रिस्पेक्ट कमाने के लिए कभी भी गॉसिपिंग में खुद को एंगेज मत करो। हैबिट नंबर फाइव आपका फोकस मैं से नहीं हटता यानी किसी से भी बात करते हुए बस अपनी ही तारीफ करते रहना और बस मैं मैं करते रहना कि आप कौन से कॉलेज से ग्रैजुएट हुए, कभी यह कि आपको कौन सी जॉब मिली? आप दूसरों से कितना ज़्यादा कमाते हो, ये सब फालतू की बाते है। अगर कोई इंसान आपसे डाइरेक्टली आपकी अचीवमेंट के बारे में नहीं पूछता तो आपको इस टॉपिक को बाहर लाना ही नहीं चाहिए क्योंकि इससे आप बहुत ही ज्यादा डेस्पेरेट लगते हो। कि आपने अपनी कुछ गिनती की अचीवमेंट के अलावा कोई दूसरी क्वालिटी है ही नहीं? आपकी पर्सनैलिटी आपकी इनकम आपकी जॉब या आपकी मटिरीअल चीजों से नहीं बल्कि आपके बिहेव्यर से डिफाइन होती है। अपनी कामयाबियों या खूबियों को सेलिब्रेट करना और उनकी खुशी दूसरों के साथ बांटने में कोई बुराइ नहीं होती। लेकिन जब एक इंसान अपनी तारीफों के टॉपिक से बाहर निकल ही नहीं पाता तब उसका ये सेल्फ ऑफ सेशन सबके आगे आने लगता है और लोग उससे खुद ब खुद दूरी बनाने लगते हैं क्योंकि सेल्फ ऑफ सेशन या नार्सिसिज़्म सेक्युरिटीज़ को ढकने का तरीका होता है और एक माँ में करता है इंसान। दूसरों को ऐसा लगता है जैसे वह अपने किसी सच को छुपाने की कोशिश कर रहा है और वो झूठा है। इसलिए खुद को ऑब्जर्व करके ये नोटिस करो कि कहीं आप भी हमेशा खुद को एडवर्टाइज करके लोगों की नजरों में अपनी रिस्पेक्ट और इम्पोर्टेन्स तो नहीं खो रहे हैं? बिट नंबर सिक्स किसी चीज़ की रिस्पॉन्सिबिलिटी नाले ना आप जिन लोगों को भी डीप्ली रिस्पेक्ट करते हो उनमे ये चीज़ नोटिस करना कि वो मोस्टली ऐसे ही लोग होंगे जो खुद की रिस्पॉन्सिबिलिटी लेना जानते हैं। वो अपना काम दूसरों पर नहीं डालते हैं और ना ही लाइफ मुश्किल होने की कंप्लेन करते हैं क्योंकि सिर्फ एक वाइस और वेल रिस्पेक्टेड इंसान ही यह बात जानता है कि लाइफ में मीनिंग तभी मिलता है जब उसका बोझ खुद उठाया जाता है और उससे जुड़े काम खुद करे जाते हैं। हैबिट नंबर सेवन अपने शब्दों पर कायम न रहना, एक इंसान के शब्द, उसकी गहराइयों को नापने में बहुत काम आते हैं, लेकिन अगर आप अपने प्रॉमिसेस को तोड़ते हो और जो बोलते हो उसे पूरा नहीं करते तो ऐसे ना तो आपकी बातों की कोई वैल्यू बचती है। और ना ही आपकी एग्जाम्पल के तौर पर। अगर आप पांच सालों से एक कमिटेड रिलेशनशिप में हो लेकिन 1 दिन आपका पार्टनर आपको उन पर चिट करते हुए पकड़ लेता है तो उस मोमेंट में यह मैटर नहीं करता कि आप दोनों का बॉन्ड कितना डीप था या आप कितने सालो से साथ थे। जैसे ही वो आपको अपना वादा तोड़ते हुए देखते हैं वैसे ही उनकी नजरों में आप अपनी सारी रिस्पेक्ट इमीडियेटली खो देते हो। सिमिलरली अगर आप अपने दोस्तों या फैमिली के आगे अपने फ्यूचर के प्लैन्स और गोल्स के बारे में बात करते हों लेकिन कभी भी उन गोल्स पर कॉन्स्टेंट ली काम नहीं करते। तो ऐसे में आप खुद के पैर पर ही कुल्हाड़ी मार देते हो क्योंकि दूसरों को अपने गोल्स बताने से ही आप ऑटोमैटिकली उनके अंदर के जज को भी जगा देते हो और खुद के अंदर के जज को भी आप खुद के आगे तो कोई बहाना बनाकर आलसी होना जस्टिफाइ कर सकते हो पर दूसरे लोग आपकी इस हरकत को नोटिस करेंगे और वह यह समझेंगे कि आपकी बातों पर विश्वास नहीं करा जा सकता। आप बोलते ज्यादा हो लेकिन करते कुछ नहीं। याद रखो, रिस्पेक्ट को कमाने में बहुत समय और मेहनत लगते हैं लेकिन रिस्पेक्ट गवाने में ना तो ज्यादा समय लगता है और ना ही कोई मेहनत है। नंबर एट आप दूसरों को रिस्पेक्ट नहीं देते हैं। रिस्पेक्ट लेने का एक बहुत बड़ा पार्ट होता है रिस्पेक्ट देना। चाहे आप अपने पैरेंट से गलत तरीके से बात करते हो, अपने दोस्तों पर चलाते हो, ट्रैफिक में 2 मिनट में ही अपने आगे वाले को गुस्सा करने लगते हो या रेस्टोरेंट में जाने पर वेटर को गालियां सुनाने लगते हो। हर डिस रिस्पेक्टफुल ऐक्ट आपको दूसरों की नजरों में नीचे ले कर आता है और आपके अंदर लैक ऑफ सुफिस्टिकेशन को दिखाता है। इसलिए रिस्पेक्ट लेने वाले काम करो और बीड़ी फॉल्ट लोगों को रिस्पेक्टफुल्ली ट्रीट करो।","सम्मान एक ऐसी चीज है जो मुफ्त में नहीं दी जाती, इसे कमाया जाता है। हर कोई महसूस करना चाहता है कि वे समाज के योगदानकर्ता सदस्य हैं और लोग उनके महत्व को जानते हैं। लेकिन हम सभी में कुछ ऐसी बुरी आदतें होती हैं जो हमें कम सम्मान के योग्य बनाती हैं और लोग धीरे-धीरे हमें हेय दृष्टि से देखने लगते हैं। कई लोगों के लिए यह एक पैटर्न है, शुरुआत में कोई उन्हें पसंद कर सकता है लेकिन धीरे-धीरे वह थोड़ा तनाव और नींव जिस पर सम्मान का निर्माण हो सकता है, नष्ट हो जाता है। इसलिए इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम ऐसी ही कुछ आदतों के बारे में बात करने जा रहे हैं जिनकी वजह से लोग आपके प्रति सम्मान खो देते हैं।" "कॉन्शस माइंड हमारी इन्टेलिजेन्स का वो हिस्सा है, जहाँ उजाला होता है और वहाँ क्या है? हमें ये क्लियरली दिखता है, लेकिन सबकॉन्शियस माइंड हमारी इन्टेलिजेन्स का वह पार्ट है जहाँ अंधेरा होता है और इसी अंधेरे से हर इन्फॉर्मेशन रौशनी की तरफ आती है। एग्जाम्पल के तौर पर हमारे कॉन्शस माइंड में हर समय कोई ना कोई ख्याल आ रहा होता है। कभी हमे ख्याल आता है कुछ खाने का, घूमने का, एक ऐसे फ्यूचर का जहाँ हम बहुत सुखी और सक्सेसफुल है, हमारे पास्ट का या फिर कोई और रैन्डम ख्याल हम सोचते हैं कि अपने इन ख्यालों को कंट्रोल करने वाले हम हैं। लेकिन असल में अगर आप इन ख्यालों को नोटिस करो तो आपको पता लगेगा कि जो इन्फॉर्मेशन आप अपने माइंड को फीड करते हो, जो भी आप पढ़ते हो, सुनते हो या देखते हो, उसी इन्फॉर्मेशन को आपके दिमाग के गहरे से वापस से उन्हें ख्याल बनाकर आपके आगे रख देते हैं। यही रीज़न है क्योंकि वो हमारा सबकॉन्शियस माइंड इतना पॉवरफुल होता है और हम अपनी हर हैबिट को बदल सकते हैं या फिर खुद को डिसिप्लिन बना सकते हैं, बस अपने मन के इसी हिस्से को मास्टर करके। इसलिए इस एपिसोड में हम सब कॉन्सिअस माइंड यानी अपने अवचेतन मन के फैक्स जान लेंगे। ताकि हम इस नॉलेज को खुद को इम्प्रूव करने के लिए इस्तेमाल कर पाए। नंबर वन सबकॉन्शियस माइंड वर्क्स ऑन हैबिट्स सबकॉन्शियस माइंड के बारे में सबसे सिंपल और सबसे जरूरी फैक्ट होता है कि वो हमारी आदतों को मैनेज करता है और इन्हीं आदतों के बेसिस पर हमें एक सर्टन तरह से सोचने के काबिल बनाता है। एग्जाम्पल के तौर पर अगर आपने ठान लिया है कि आप आज से खुद को फिजिकली ट्रांसफॉर्म करना शुरू करोगे और अब अगले कुछ महीने तक अपनी हेल्थ और फिटनेस को अपना समय और अटेंशन दोगे तो जितना आप अपने इस नए रूटीन के साथ कॉन्स्टेंट रहोगे उतना ही आपका सब कॉन्शस माइंड इस रुटीन को आपकी हैबिट और सेकंड नेचर बना देगा। क्योंकि जब आप अंदर इन्फॉर्मेशन ही ये डाल रहे हो कि हेल्दी खाना है, हेल्थी दिखना है, बॉडी को फिट रखना है तो आप खुद को एक तरह से ब्रेनवॉश ही कर रहे होते हो, जिससे आपका दुनिया का नजरिया ही बदल जाता है। जस्ट बिकॉज़ आपके सब कॉन्शस माइंड के पास रीसाइकल करके थॉट बनाने के लिए कोई और इन्फॉर्मेशन नहीं होती। सिमिलरली अगर आप एक सर्टन तरह की बुक्स पढ़ते हो जैसे कॉमिक बुक्स तो आपकी सोच, आपके मन में आने वाले ख्याल और आपके ओपिनियन्स भी उन्हीं बुक से मिली इन्फॉर्मेशन के बेसिस पर होने लगते हैं। यही रीज़न है कि क्यों यह एडवाइस बिल्कुल सही है कि जो भी आप अपने मन में डाल रहे हो वो सोच समझ कर डाले हो क्योंकि वह चीज़ आपकी सोच को ही बदल सकती है। हमारा दिमाग कॉन्स्टेंट ली बहुत सी इन्फॉर्मेशन को हैंडल कर रहा होता है, जिसकी वजह से उसे एक रिलाएबल तरीका चाहिए होता है जिससे वो अलग अलग तरह की इन्फॉर्मेशन को यूज़, फुल या यूज़लेस लेबल कर सके और उसे अपनी मेमोरी से बाहर कर सकें। इसी वजह से हमारा सबकॉन्शियस माइंड रेपुटेशन पर रिलाय करता है। यानी जो भी ऐक्टिविटी हम बार बार रिपीट करते हैं, हमारा दिमाग समझता है कि वो बहुत यूज़फुल है। और उसे याद कर लेना ही अच्छा रहेगा। इसलिए इस नॉलेज को अच्छा ई के लिए यूज़ करो और खुद के मन में बस अच्छी और यूसफुल इन्फॉर्मेशन ही डालो बजाय सोशल मीडिया या न्यूस का गंध डालने के नंबर टू इट टैक्स ऐवरीथिंग लिटरल्ली जहाँ हमारा अनकॉन्शस माइंड मेटा फर्श और सिंबल्स में बात करता है, वही हमारा सब कॉन्शस माइंड कॉन्शस माइंड की ही तरह हर बात को स्ट्रेटफॉरवर्ड ही लेता है। इस वजह से उसे अच्छे और बुरे, असली या नकली या गंदे और साफ के बीच कोई डिफरेन्स नहीं पता होता। इस रीज़न से अगर आप कन्टिन्यूसली खुद को एक बुरी चीज़ करने के लिए कंडीशन करते हो जब बार बार खुद को ये बोलते हो कि आप कभी किसी चीज़ में सक्सेसफुल नहीं बन पाओगे, तो आपका सब कॉन्शस माइंड इस बात को सच मान लेगा और इविन्चवली आपको फेल्यर के पॉइंट पर लाकर खड़ा कर देगा। याद रखो आप जितना सोचते हो आपका सब कॉन्शस माइंड उससे ज्यादा आपके कंट्रोल में है। वो खुद ही आपको किसी दिशा में नहीं ले जा सकता जब तक आप उसे उस दिशा में जाने के लिए प्रोग्राम नहीं करते है। सब कॉन्शस माइंड की अपनी कोई इन्टेलिजेन्स नहीं होती, वो बस एक प्रोसेसर की तरह काम करता है। जिसे जो इन्फॉर्मेशन दी जाए वो उससे ही यूज़ करना सही मानता है। इसलिए यह कहावत बिल्कुल सही है कि आप जो खुद को मानते हो वो आप बन जाते हो। नंबर थ्री कंट्रोल योर ब्रेथ टू कंट्रोल योर सबकॉन्शियस अपने सबकॉन्शियस माइंड को अपने वश में लाने का एक और तरीका होता है। अपनी सांसों पर ध्यान देना। हमारी ब्रीदिंग हमारा सबकॉन्शियस माइंड कंट्रोल करता है। हम अपने ब्रीडिंग प्रोसेसेस पर कोई ध्यान थोड़ी देते हैं क्योंकि ये चीज़ ऑटोमैटिकली होती रहती है। लेकिन इंडियन कल्चर 700 को बहुत इम्पोर्टेन्स देता है और इसे अपने मन के गहरे हिस्सों तक पहुंचने का पुल मानता है। जब हम अपनी कॉन्शस अवेर्नेस अपनी बर्थ पर लाना चालू करते हैं, और हर सांस के साथ हवा को अपने अंदर जाते और बाहर आते विट्नेस करते हैं। तब हम अपने कॉन्शस माइंड को शांत कर पाते हैं, जिससे हमें अपने सबकॉन्शस माइंड का ऐक्सेस मिल जाता है। यह प्रैक्टिस आप लोटस पोज़ में खड़े बैठे या लेटे हुए बिगड़ सकते हो। आपने बस एट लिस्ट एक टाइम पर 5-10 मिनट तक अपनी पर ध्यान देना है, लेकिन खुद को मेडिटेशन में जाने के लिए फोर्स नहीं करना। यहाँ पर फोर्स का कोई काम नहीं होता। बस स्थिर रहो और खुद को और खुद के ख्यालों को ढीला छोड़ दो और देखो कि आप कहाँ जाते हो। नंबर फ़ोर इट कैन ओवरराइड और जीन्स बेसिक साइंस की अन्डरस्टैन्डिंग यही बोलती है कि हमारे जीन्स हमारी डेस्टिनी है, जो हमारे डीएनए में लिखा होगा, वही हमारे ख्याल इन्टेलिजेन्स, ऐटिट्यूड, स्ट्रेंथ, कॉन्फिडेन्स या लुक्स होंगी। लेकिन ये थिंकिंग 100% सच नहीं है। पिछले डे कट की कई स्टडीज़ बताती हैं कि जहाँ हम अपने जीन्स के साथ कोई छेड़छाड़ तो नहीं कर सकते लेकिन वो जीन्स किस तरह से खुद को एक्सप्रेस करते हैं और कौन से जीन्स ऐक्टिवेट होते हैं और कौन से नहीं। यह चीज़ हमारे ख्याल और जीस तरह से हमारा माइंड अपने एनवायरनमेंट को पर सेव करता है। इस पर डिपेंड करती है। इस फाइन्डिंग को देखकर साइंटिस्ट्स भी आश्चर्यचकित रह गए थे। यही रीज़न है कि क्यों? हम अक्सर सुनते हैं कि हमारे बिलीफ में बहुत पावर होती है। अगर एक बिमारी इंसान मान लें कि वह ठीक है और स्ट्रांग है तो उसकी बॉडी में हीलिंग प्रोसेसर की स्पीड तेज होने लग जाती है और अगर कोई इंसान ये मान लें कि वो मुश्किल से मुश्किल टेस्ट देने और सक्सेस हासिल करने के काबिल है, तब भी उसकी मेंटल परफॉर्मेन्स और उसका फोकस खुद ब खुद बढ़ने लगता है। अगर आपका बिलीव साफ और सच्चा है और आपने खुद की इस बिलीफ को लेकर कोई डाउट नहीं है तो आपको आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता। नंबर फाइव सब कॉन्शस माइंड वर्क्स इन दे प्रेज़ेंट जब भी हमें ये बोला जाता है कि प्रेज़ेंट मेरा हो, नाव को फील करो, या बी इन द मोमेंट तब इन डाइरेक्टली हमें अपने सबकॉन्शियस माइंड की पावर के टच में आने को ही बोला जा रहा होता है। पास्ट और फ्यूचर में तो हमारा कॉन्शस माइंड जीता है अनलेस आप अपने पास्ट या फ्यूचर के बारे में सोच सोचकर अपने ख्यालों में गुम रहने की हैबिट बना लो, वरना आपका सब कॉन्शस माइंड क्न्सर्न होता है। प्रेज़ेंट से की अभी क्या हो रहा है और अभी आपको कैसे एक्सटर्नल सिचुएशन्स पर रिऐक्ट करना चाहिए। नंबर सिक्स स्लो डाउन टू ब्रेक के ऑटोपायलट सब कॉन्शस का काम होता है। हमारी रोज़ रिपीट होने वाली हैबिट्स को ऑटोमेटा इस कर देना जिससे उन कामों को करने के बारे में हमें ज्यादा सोचना न पड़े। लेकिन जब आप खुद को बुरी आदतों में फंसा लेते हो, तब इस ऑटो पायलट को रोकने के लिए इधर उधर भागने और हड़बड़ाने के बजाय बस एक जगह रुको और अपनी अर जीस, थॉट्स या इमोशन्स को उनसे दूर रहकर विट्नेस करो कॉन्शस माइंड का स्वभाव के जी का है। लेकिन जब हम अपने मन में नीचे उतरना चालू करते हैं तब चीजें धीमी होने लगती है जिसकी वजह से अगर आपकी हैबिट्स आपके हाथ से बाहर निकल गयी हैं तो सबसे पहले सबकॉन्शस माइंड की स्पीड पर आओ और खुद को उसके साथ ऑनलाइन करो। अपनी आदतों से दूर मत भागो क्योंकि ऐसे तो वो आप का पीछा करने लगेंगी, बल्कि अपने थॉट्स को ऑब्जर्व करो और बुरे ऐक्शन लेने के बजाय कोई दूसरा ऐक्शन लेने की कॉन्शस चौ। स्लो जितनी बार आप इस तरह से अपने ऑटो पायलट पर ब्रेक लगा के कॉन्शस ली कुछ एक नेक काम करते हो, तब थोड़ा थोड़ा करके आपके लिए अपनी पुरानी आदत को छोड़ना और नई आदत को डेवलप करना आसान होता चला जाता है। नंबर सेवन सबकॉन्शियस माइंड ना का मतलब नहीं जानता। यह एक और बहुमूल्य इनसाइट है। उन लोगों के लिए जो अपनी बुरी आदतें छोड़ नहीं पाते और डिसिप्लिन नहीं बिल्ड कर पाते। एग्जाम्पल के तौर पर अगर आपको चॉकलेट खाते रहने की लत लगी हुई है तो हर समय ये मत सोचो कि आपने चॉकलेट खाना छोड़ना है क्योंकि ऐसा सोचते ही आपके मन में चॉकलेट की तस्वीर आज आएगी, जिससे आपकी फ़ीलिंग चॉकलेट के लिए और इंटेन्स होती जाएगी। इसके बजाय हेल्थी खाने और अपना टेस्ट बदलने पर फोकस करो। अगर आपने इस एपिसोड का सार निकाल लिया हो तो आपको यह समझ आ गया होगा कि हमारे सब कॉन्शस की भाषा रेपिटिशन है, उसमें नई एल्गोरिदम को प्रोग्राम करने के लिए भी रिपीटेड ऐक्शन और थॉट चाहिए और पुरानी एल्गोरिदम को बदलने के लिए भी। लेकिन अगर आप डाइरेक्टली अपनी पुरानी हैबिट्स पर ही फोकस करने लग गए तो आपका माइंड उससे भी एक पॉज़िटिव सिग्नल की तरह ही देखेगा और उस बुरी आदत को और स्ट्रॉन्ग बनाता चला जाएगा। इसलिए आपने चाहे जो भी गोल अचीव करना हो, अगर आप अपने सबकॉन्शियस माइंड की पावर को अपनी सफलता के लिए यूज़ करना चाहते हो तो बुराइ पर नहीं अच्छा ई और नेकी पर फोकस करो।","अवचेतन मन सबसे बड़े रहस्यों में से एक है जिसे विज्ञान सुलझाने की कोशिश कर रहा है। जहाँ चेतन मन वह है जिससे हम अवगत हैं, अवचेतन मन हमारे मन का वह भाग है जो हमारी जागरूकता के नीचे संचालित होता है, इसलिए हमारी सीधी पहुँच नहीं है। इसीलिए इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम अवचेतन मन के बारे में सबसे आश्चर्यजनक और रहस्यमय मनोवैज्ञानिक तथ्यों के बारे में बात करेंगे और इसकी शक्ति का उपयोग करने के लिए इसे कैसे प्रोग्राम करें, इसके बारे में कुछ सुझाव देंगे।" "जब भी हम किसी इलनेस डिज़ीज़ या इवन एक पर्टिकुलर बिहेव्यर के बारे में बात करते हैं, तब उसके रूट को उस तक पहुंचने पर हमें एक ही एक्सप्लेनेशन मिलती है एवल्यूशन हर डिज़ीज़ से लेकर एडीएचडी तक हर इलनेस को एवल्यूशन के कॉन्टेस्ट में एक्सप्लेन करा जा सकता है। पर क्वेश्चन ये है कि डिप्रेशन ने हमारे एवल्यूशन में ऐसा क्या रोल निभाया की ये डिसेबिलिटी नैचरल सेलेक्शन के बाद भी बची रही। एवल्यूशन अरीबा लॉजिस्ट के लिए भी डिप्रेशन काफी बड़ी फसल है, क्योंकि डिप्रेशन एक इनडिविजुअल और उसकी फैमिली के लिए काफी ओवर वेल्डिंग हो सकता है। इसके साथ ही डिप्रेशन प्रोडक्शन के चान्सेस को कम कर देता है और सूइसाइड के चान्सेस को बढ़ा देता है। मतलब अगर इतना हार्मफुल होने के बाद भी ये डिसोर्डर टिका हुआ है तो इसका कोई ना कोई एवल्यूशन अली बेनिफिट तो जरूर होगा। पोटेंशिअल रीजन्स की लिस्ट में टॉप कन्टेंडर है इन्फेक्शन क्योंकि 100 से 200 साल पहले हमारे पास इन्फेक्शन्स के लिए कोई एक्सप्लेनेशन नहीं थी और ऑब्वियस्ली हमारे इतने तो स्मार्ट थे। कि उन्होंने कई ऐसे प्लांट्स ढूंढ लिए होंगे जो हमारा मूड ठीक कर सके हैं। हिस्टरी में ज़रा सा डीप जाने पर हमें पता लगता है की इंडियन स्पिरिचुअल टीचर महावीरा सिक्स थ सेंचुरी बीसी से ही अपनी टीचिंग में ऐसी लाइफ के बारे में बता रहे थे, जिसे हम अपनी आँखों से नहीं देख सकते हैं। फॉर डिज़ीज़ के कॉस्ट को माइक्रोब्स के साथ पहली बार 1876 में जोड़ा गया और लोग इसके बाद शुर हो चूके थे कि अगर हम इन माइक्रो ओर्गानिस्म को कंट्रोल करके रखे तो हम काफी सारे डिज़ीज़ को खत्म कर सकते हैं। पर 11,000 साल पहले फार्मिंग के शुरू होने से ऐनिमलस हमारे काफी क्लोज़ आ गए और उनके साथ उनके डिज़ीज़ेस और इन्फेक्शन्स भी जो वायरस और बैक्टीरिया सिर्फ उनकी बॉडीज़ में होते थे वो अब ह्यूमन स्की बॉडीज़ में भी आने लग गए थे। खाने के बढ़ने से ह्यूमन्स की पॉप्युलेशन भी बढ़ी और उनका पेट भरने के लिए ऐनिमलस की पॉप्युलेशन भी बढ़ी। जंगल काटकर खेत बन गए और जगह जगह पर कटा हुआ गर्म पानी मच्छरों का घर बन गया और ऐसे हमारे की सोसाइटीज़ में कई नए डिज़ीज़ आये। जैसे ट्यूबरक्लोसिस मीजल्स, स्मॉल पॉक्स इन्फ्लूएंजा और मलेरिया और इस टाइप के माइक्रो ओर्गानिस्म सहाइ ली पॉपुलेटेड एरियाज़ में काफ़ी ईज़ी बढ़ते हैं, जिसकी वजह से यह माइक्रो ओर्गानिस्म से हमारे एन्सिस्टर्स के सबसे बड़े दुश्मन रहे होंगे और इसका प्रूफ उनकी ऐवरेज लाइफ एक्सपेक्टेंसी में दिखता है जो कि सिर्फ 25 थी। इसके साथ ही अगर वो किसी जानवर या दुश्मन के अटैक से जिंदा बच भी जाए तब भी उन्हें इन्फेक्शन से मरने का खतरा रहेगा। पर अगर उनका इम्यून सिस्टम स्ट्रॉन्ग है तो उनकी बॉडी सिर्फ मेटरी रिस्पॉन्स के साथ ही इन्फेक्शन को रोक पाएगी और ऐसे वो जिंदा बच जाएंगे। पर जब भी हमारी बॉडी में इन्फ्लेमेशन बढ़ती है तब हमें थकान होने लगती है। हम घटिया फील करने लगते हैं। हमारी मूवमेंट स्लो हो जाती है। हमें नींद आती है। हम किसी से बात नहीं करना चाहते। हमारा कोई काम करने का मन नहीं करता और हम बस सोना चाहते हैं, बिल्कुल वैसे ही जैसे हम डिप्रेस्ड हो। इसके साथ ही हमारी बॉडी अपने आइरन लेवल्स को गिरा देती है और अपना कोर टेम्परेचर बढ़ा लेती है। जिससे वाइरस एस के लिए हमारी बॉडी में सर्वाइव करना काफी मुश्किल हो जाता है। पर हम काफी वीक और फिर कर रहे होते हैं ननदलेस्स ये रिस्पॉन्स काफी इफेक्टिव होता है इन्फेक्शन से लड़ने में क्योंकि रेस्ट करने पर हमारी एनर्जी बचती है और ज्यादा से ज्यादा एनर्जी उस वायरस को मारने में लगाई जा सकती है और अकेले रहने से हम ये बिमारी दूसरों में नहीं फैलाएंगे। ये वो ही एवल्यूशन ली है जो हमें बोलती है की हम बुरी स्मेल से दूर रहें, क्योंकि उन स्मेल्स में वाइरस एस और बैक्टीरिया हो सकते हैं, जो हमें इन फैक्ट कर सकते हैं। यह बिहेव्यर हमें बाकी एनिमल्स में भी देखने को मिलता है। जैसे हनी 20 और मोल रेट्स बीमार होने पर अपने ग्रुप से दूर जाकर अकेले में मरना प्रिफर करते हैं ताकि उनकी कम्युनिटी के लिए बीमार होने का रिस्क कम हो जाए। रीसेंट स्टडीज़ हमें बताती है कि जो लोग डिप्रेस्ड होते हैं, उनमें सी रिएक्टिव प्रोटीन काफी ज्यादा होता है, जो की इन्फॉर्मेशन का एक सीन है, जिसका मतलब हम लोगों में डिप्रेशन बढ़ा सकते हैं। बस उनकी बॉडी में इन्फ्लेमेशन ट्रिगर करवा के जैसे जब कैंसर पेशेंट्स को इंटरफेरॉन दी जाती है तब उनमें से आधे पेशेंट्स में डिप्रेशन के साइनस दिखने लगते हैं। यहाँ तक कि एक वैक्सीन भी डिप्रेसिव सिम्पटम्स को बढ़ा सकती है। सो हमे ये क्वेश्चन करना चाहिए कि ऐसी कौन सी चीजें हैं जो कि इन्फ्लेमेशन को बढ़ाती है? डाइट इंजरी और इन्फेक्शन के अलावा ओबीसिटी और स्ट्रेस दो और ऐसे फैक्टर्स हैं जो काफ़ी ईज़ी इन्फॉर्मेशन को बढ़ा सकते हैं और 20 लोगों में यह इम्यून रिस्पॉन्स ट्रिगर हो सकता है। ओवरईटिंग से या फिर प्रोसेस्ड फूड्स खाने से और स्ट्रेस चाहे फिजिकल हो या फिर साइकोलॉजिकल। जब भी हमारी बॉडी में स्ट्रेस हॉर्मोन्स जैसे कोर्टिसोल ज्यादा टाइम तक रहते हैं तब हमारे ब्रेन को लगता है कि जस्ट बिकॉज़ हमारी बाइओकेमिस्ट्री बिल्कुल वैसी हैं जैसी एक इन्फेक्शन के टाइम पर होती है। वो इम्यून रिस्पॉन्स चालू कर देता है ताकि हमारी बॉडी इन्फेक्शन से इन्फॉर्मेशन की मदद से लड़ पाए। पर किसी इन्फेक्शन या वायरस के ना मिलने पर और लंबे टाइम तक स्ट्रेस में रहने पर। हम डिप्रेशन में चले जाते हैं, जो इवेन चुली हमें स्लो करके हमारे स्ट्रेस को हील करता है और यही डिप्रेशन का एवोल्यूशनरी पर्पस है। अगर हम एक और एग्ज़ैम्पल ले तो आजकल सोशल मीडिया की वजह से बढ़ने वाले डिप्रेशन का भी सेम रीज़न है। जैसे अगर हम इंस्टाग्राम पर अपने आप को किसी दूसरे इंसान के साथ कंपेर कर रहे हैं और अगर हम ऑलरेडी काफी न्यूरॉटिक है तो ऐसी सिचुएशन में हम नेगेटिव इमोशन्स फील्ड करने लगेंगे जिससे स्ट्रेस हार्मोन कोर्टिसोल बढ़ेगा और अगेन इन्फ्लेमेशन के बढ़ने पर हम डिप्रेस्ड फील करने लगेंगे।","विकास समझा सकता है कि हम कुछ चीजें क्यों करते हैं दूसरों को नहीं, हम एक निश्चित तरीके से व्यवहार क्यों करते हैं या यहां तक कि हम उन चीजों को क्यों पसंद करते हैं जिन्हें हम पसंद करते हैं, लेकिन जब हम विकासवादी लेंस को अवसाद पर डालते हैं, तो चीजें बहुत जल्दी भ्रमित हो जाती हैं; क्योंकि प्राकृतिक चयन ऐसा व्यवहार क्यों रखेगा जो प्रजनन क्षमता को कम कर सकता है और आत्महत्या की संभावना बढ़ा सकता है? यह जीव विज्ञान की कक्षा में सीखी गई हर चीज के खिलाफ है। अवसाद के विकासवादी लाभ क्या हो सकते हैं और यह वास्तव में हमारे जीवन को कैसे बचाता है, यह समझने के लिए पूरा ऑडियो सुनें। यह डिप्रेशन पर नई श्रृंखला से 3 में से 3 पॉडकास्ट है। इस श्रृंखला में पॉडकास्ट: 1. डिप्रेशन क्या है: लक्षण, कारण और उपचार 2. डिप्रेशन डाइट: मेटाबोलिक टाइपिंग, अध्ययन और किराने की सूची 3. डिप्रेशन का विकासवादी उद्देश्य" "हैरी पॉटर सिरीज़ अभी तक की सबसे ज्यादा खरीदे जाने वाली बुक्स में से एक है। जे के रॉलिंग की लिखी ये मैजिकल स्टोरी काफी इन्स्पाइरिंग और दीप है और इस चोरी का ये साइकोलॉजिकल अनैलिसिस बताएगा कि इस सीरीज में ऐसा क्या है जो छोटे छोटे बच्चे भी। 700 पेजेस की ये बुक्स इतने इंट्रेस्ट के साथ पढ़ते है। हैरी पॉटर एक क्लासिक स्टोरी स्ट्रक्चर को फॉलो करती है, जिसे बोलते है हिरोस जर्नी यानी स्टोरी की शुरुआत होती है, मगर उसकी दुनिया से यहाँ कोई जादू नहीं है और यहाँ पर हैरी अपने बुरे अंकल के घर रहता है। बचपन में ही अपने पैरेन्ट्स खोदने की वजह से उसमें पीटीएसडी और सोशल ऐंक्ज़ाइटी है और शुरू से ही हैरी के साथ कई अजीब घटनाएं होती आई है। जैसे एक बार जब वो ज़ू में होता है तब अपने बिगड़ैल कजिन डडली से गुस्सा होने पर वह एक कांच के बैरियर को गायब कर देता है, जिससे डडली केज के अंदर गिर जाता है और इसके साथ ही वह एक पार्सल टंग है। यानी वो साँपों से बात कर सकता है। ये एबिलिटी उसमें वोल्डेमॉर्ट से आई थी क्योंकि जब वोल्डेमॉर्ट उसको मारने में नाकामयाब हो गया था तब उसकी आत्मा का एक पार्ट हैरी में आ गया था और ताकि वो कभी मरे ना वो ने अपनी आत्मा के ऐसे छह और पार्ट्स अलग अलग चीजों में कैद कर रखे थे। इसके बाद जब वो 11 साल का होता है तब उसके कंफर्ट ज़ोन को खत्म करते हुए हैग्रिड उसे एक ऐडवेंचर पर आने को बोलता है जो हैं हॉगवर्ट्स में जाकर जादू सीखना। और तब उसे अपनी हिस्टरी और पोटेंशिअल के बारे में समझाने लगता है। हॉगवर्ट्स जाते हुए हैरी रॉन से मिलता है। बुक में बताया गया है कि एक बार बचपन में जब रौन अपने बड़े भाई फ्रेंड की टॉय ब्रूम स्टिक तोड़ देता है तब वो बदला लेने के लिए रॉन के टेडी बीअर को एक स्पाइडर में बदल देता है और ऐसे रॉन रैक नो फोबिया डेवलप कर लेता है। यानी स्पाइडर्स का डर स्टोरी में थर्ड मेन करेक्टर है। हर मिनी जो काफी इंटेलीजेंट ब्लड शेर और ईव न्युरोटिक है और उसे ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसोर्डर है जिसकी वजह से वो बार बार लोगों की गलतियाँ ठीक करती रहती है और उसके लिए टाइम मैनेजमेंट हमेशा से ही एक स्ट्रगल नहीं है। हॉगवर्ट्स पहुंचने पर सारे स्टूडेंटस को एक सोर्टिंग हैट की मदद से अलग अलग हाउस में डाला जाता है और साइकोलॉजी बताती हैं कि इस तरह का हाउसिंग सिस्टेम सोशल ट्राइबल इफेक्ट को जन्म देता है। यानी जब कोई बाहर का इंसान एक ग्रुप को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करता है। सब ग्रुप के मेंबर्स में बॉन्डिंग बढ़ जाती है। पर इस इफेक्ट का नेगेटिव कॉन्सिक्वेन्सस यह है कि कई ग्रुप्स दूसरे ग्रुप को हैलैट करना स्टार्ट कर देते है। स्टोरी के इस पॉइंट पर हम ऑलरेडी हैरी के साथ बॉन करने लगते हैं क्योंकि उसी की तरह हमारे लिए भी जादू की ये दुनिया एकदम नई है। जिसतरह से उसे इस दुनिया के रूज़, क्रीचर्स और पॉसिबिलिटीज़ के बारे में कुछ नहीं पता, वैसे ही उसका ये इमोशन हम भी फील कर पाते हैं और इसी पीरियड के अराउंड हैरी समझना स्टार्ट कर देता है कि उसकी लाइफ का पर्पस क्या है? उसके माथे पर जो निशान है, उसका क्या मतलब है और उसके पैरंट्स को मारने वाला कौन था? इस तरह से अपने अनकॉन्शस माइंड की कन्टेन्ट सको कॉन्शस माइंड में लाने के प्रोसेसेस को यूनियन साइकोलॉजी में इनडिविजुअल एशन प्रोसेसर बोलते हैं, पर एट द सेम टाइम फोर्थ और फिफ्थ पार्ट में हरी वोल्ड अमाउंट की नजर से सपने देखने लगता है और वो काफी गुस्सा और कन्फ्यूज़ होने लगता है। ये सोचकर कि क्या अब वो भी रिमोट जैसा बंदा है। यह एक साइन है उसकी डार्क साइड का, जिसे साइकोलॉजी में शैडो बोलते हैं। और आपको यह समझना जरूरी है कि हम सब के अनकॉन्शस माइंड में ही एक डार्क साइड या शैडो होती है जिसमें हर वो डिज़ाइनर और थॉट होते हैं, जिन्हें हम बुरा बोलकर रिजेक्ट कर देते हैं और हमारी ये बुरी क्वालिटी ज़ या तो कॉन्शस माइंड में हमारे सपनों की मदद से आती है या फिर हम सीधा इन्हें दूसरे लोगों में देख पाते हैं और हैरी के केस में। उस ने उन क्वालिटीज को रिजेक्ट कर दिया है, जो वोल्डेमॉर्ट से जुड़ी है, जैसे पावर की बूख और बेरहमी। और यही रीज़न है कि क्यों वो हाउस इलेक्शन के टाइम पर बार बार बोल रहा था कि सोर्टिंग हैट उसे सलिदर इन में ना डाल दे क्योंकि वो अमाउंट 20 दिन का ही स्टूडेंट था। अपनी जर्नी में हैरी को कई मेंटर्स मिलते हैं। जैसे प्रोफेसर ल्यूपिन और सिरियस ब्लैक पर हरि का सबसे इम्पोर्टेन्ट मेन्टर है। प्रोफेसर डम्बल्डोर जो उसे समझाता है। की क्यों वोल्डेमोर्ट उसे मारने में नाकाम रहा था। इसके अलावा, सिक्स्थ पार्ट में वह हैरी को समझाता है कि वोल्डेमोर्ट को कैसे मानना है, उसकी आत्मा किन किन चीजों में कैद है और सबसे इम्पोर्टेन्ट ली डम्बल्डोर है। रिमेंस सेल्फ कॉन्फिडेन्स जगाता है और उसे याद दिलाता है कि वह इस जर्नी में अकेला नहीं है। हाउएवर जीतने हरी के साथी हैं, उतने ही ज्यादा हैरी के दुश्मन हैं। जैसे सेकंड पार्ट में वोल्डेमोर्ट का फॉलोअर लूसिया, स्मेल फौ चेम्बर ऑफ सीक्रेट्स को खोलने का एक प्लैन बनाता है और बातों बातों में एक डायरी जीनी तक पहुंचा देता है और ये वो डायरी है जिसमें वोल्डेमॉर्ट की आत्मा का दूसरा पार्ट है। ये डायरी जिनको ब्रेनवॉश कर देती है चेंबर को खोलने के लिए जिससे वहाँ पर रहने वाला मॉन्स्टर पैसे लिस्क आज़ाद हो जाता है और जो कोई भी उसकी आँखों में डाइरेक्टली देखता है वो मर जाता है पर अगर वो उसे इनडायरेक्टली देखें तो वो परमानेंटली एक पत्थर की तरह फ्री हो जाता है। और ये एक काफी कॉमन प्री रिस्पॉन्स है। जैसे अगर जंगल में चलते हुए आप को एक बड़ा सांप दिखे तो आपके पास तीन ऑप्शन्स होते हैं भागना, उससे लड़ना या फिर फीस हो जाना ताकि उसे यह लगे कि आप एक पत्थर हो। सुर जीनी के गायब होने पर हैरी चेंबर ऑफ सीक्रेट्स में जाता है और वहाँ पर चीनी को बचाने से पहले उसे बैस लिस्ट का सामना करना पड़ता है और इस आइडिया का बेसिक स्ट्रक्चर भी काफी कॉमन है। क्योंकि ज्यादातर मूवीज़ और गेम्स में जो प्राइस या लड़की हीरो को चाहिए होती है वो एक मॉन्स्टर के पास होती है और जो चीज़ हीरो को इस मॉन्स्टर से जीतने का मौका देती है वो है हीरो के मरने और वापस जिंदा होने की एबिलिटी पर। इस सिरीज़ में हैरी हमेशा के लिए मरने से बच जाता है। एक बार फ़ीनिक्स की मदद से और दूसरी बार रिजर्वेशन स्टोन की मदद से। और इससे ये बिलकुल क्लियर हो जाता है कि स्टोरी का एक काफी स्ट्रॉन्ग थीम है सैक्रिफ़ाइस। औ रेवल्यूशनरी साइकोलॉजी में सैक्रिफ़ाइस के ऊपर एक कॉनसेप्ट है जिसे बोलते है हैमिल्टन रूल जो बोलता है की जेनरली हम उन लोगों के लिए सेक्रिफाइस करना प्रिफर करते हैं जो हमारी फैमिली से क्लोजली रिलेटेड होता है क्योंकि ऐसा करने पर हम इन डाइरेक्टली अपनी फैमिली के जीन्स के सर्वाइव करने के चान्सेस बढ़ा पाते हैं। पर हैरी पॉटर की पूरी सिरीज़ के दौरान कई सैक्रिफ़ाइस इस ऐसे भी हैं जो फैमिली के लिए नहीं बल्कि एक बड़े कॉज़ के लिए है और एक इंसान ऐसा सैक्रिफ़ाइस सिर्फ एक स्ट्रीम सिचुएशन्स में ही देता है जैसे अपनी कम्यूनिटी, रिलिजन या कंट्री को बचाने के लिए। स्टोरी में ऐसे कई हिडन मेसेजेस दिए गए हैं, जैसे हमें पता है कि डर सलीस हैरी को किस तरह से ट्रीट करते थे, पर जिन लोगों ने सिर्फ मूवी देखी है और बुक नहीं पड़ी, उनके लिए यह फैक्ट काफी शॉकिंग होगा कि डर ऐक्चूअली हैरी की काफी केर करते थे। जैसे डेली हैलो उसके एक डिलीटेड सीन में पेटूनिया अपने इस 20 साल के घर को छोड़ने से पहले अकेले खड़े होकर कुछ सोच नहीं होती है और बोलती है जस्ट। यू नो? हैलो सिस्टर थी। वन डडली भी लास्ट पार्ट तक आते आते पूरा चेंज हो जाता है। क्योंकि फिफ्थ पार्ट में डी मेंटर्स हैरी और दिल्ली पर अटैक करते हैं और डि मेन्टर स्की एक क्वालिटी है कि वो अपने विक्टिम्स को उनके सबसे बड़े डर और उनकी बुरी यादों से गुजारते हैं। और जस्ट बिकॉज़ डली की कोई बुरी मेमोरी ही नहीं होती क्योंकि उसे इतना स्पॉइल करके रखा होता है। उससे डी मेंटर्स उसकी रिफ्लेक्शन दिखाने लग जाते हैं कि असली में वो क्या है? एक बिगड़ैल और गुस्सैल लूजर और स्टोरी में इस मूवमेंट के बाद डडली का करेक्टर मैच्योर होने लग जाता है और सेवंथ पार्ट में जाते जाते। वह हैरी से हाथ मिलाता है और बोलता है कि वो उनके घर में सिर्फ एक जगह घेरने वाली चीज़ से बहुत ज्यादा था। इस सीन के साथ जे के रोलिंग हमें ह्यूमन बिहेव्यर के बारे में एक काफी डीप इनसाइड देती है कि कैसे हम में से सबसे बुरे और क्लूलेस लोग भी लाइफ की मुश्किलें देखकर सही ट्रैक पर आ जाते हैं। हर अच्छी स्टोरी की तरह हैरी पॉटर सिरीज़ भी सिंबल्स और मेटा फोर्स की मदद से हमारी के कई अलग अलग पार्ट्स को ऑन करती है, जिससे मूवी के खत्म होते होते हम अनकॉन्शियस ली कई चीजें सीख चूके होते है। हैरी हमें सीखाता है। हिम्मत के बारे में हर्माइनी समझाती है कि जब हमारी हिम्मत काम में नहीं आती तब हमें नॉलेज का सहारा लेना चाहिए। रॉन हमें सीखाता है लॉयल्टी के बारे में डम्बल्डोर समझाता है कि हमें हमारी 64 फाइन्ड करती है डी मेन्टर सिंबला इस करते हैं डिप्रेशन को और वोल्ड अमाउंट उन चीज़ो को सिंबला इस करता है जिनके बारे में हम बोलने पर भी डरते हैं पर जब हम उनके बारे में बात करना स्टार्ट करते हैं तब हम उन्हें ओवर कम करने लगते हैं।","हैरी पॉटर अब तक की सबसे ज्यादा बिकने वाली किताबों में से एक है। यह "द हीरोज जर्नी" नामक विशिष्ट कहानी संरचना पर आधारित है, जो इस नई जादुई दुनिया के लिए हमारे दिमाग को खोलता है लेकिन साथ ही हम इससे संबंधित हो सकते हैं और ऐसी जगह पर जाने का सपना भी देख सकते हैं। यह आश्चर्य की बात नहीं होनी चाहिए कि इस तरह की कहानी मनोवैज्ञानिक शिक्षाओं से भरी है। तो, इस पॉडकास्ट में, हम चर्चा करेंगे कि हैरी पॉटर में मानव-व्यवहार और हमारे जीवन के बारे में क्या सीखना है।" "गुस्सा हमारे सबसे बेसिक इमोशन्स में से एक है जिसकी पॉज़िटिव साइड भी होती है और नेगेटिव भी। क्योंकि गुस्सा आपको काम करने या फिर बुराइ के खिलाफ़ आवाज उठाने के लिए मोटिवेट कर सकता है या फिर वो आपकी और आपके आसपास रहने वाले लोगों की जिंदगी बद से बदतर बना सकता है। हम इस इमोशन को तब फील करते हैं जब हमारे साथ कुछ ऐसा होता है जैसे हमने पहले से एक्सपेक्ट नहीं करा होता। हाउएवर कई केसेस में हमें ये पता भी नहीं होता की हमें कौन सी चीज़ गुस्सा दिला रही है और हम बिना कुछ सोचे समझे किसी और का गुस्सा किसी और पर निकाल देते हैं। और बाद में गिल्टी फील करते हैं। इससे बोलते हैं डिस्प्ले सजन घर पर सिचुएशन और गुस्से का कॉन्टेस्ट चाहे कुछ भी हो, अगर आपका गुस्सा आपके कंट्रोल में नहीं है तो उसका मतलब यह है कि आपके अनकॉन्शस माइंड में कोई ऐसी इन्फॉर्मेशन है जिससे आपकी ईगो आपके कॉन्शस माइंड में आने से ब्लॉक कर रही है। एग्जाम्पल के तौर पर अगर आप एक रिलेशनशिप में हो, आप अपने पार्टनर के साथ बहुत खुश हो, आप उसकी बहुत केयर करते हो और आप उससे भी यही एक्सपेक्ट करते हो कि बदले में वह आप की केयर करे तो आप कभी भी इस आउटकम को प्रीडिक्ट ही नहीं करोगे कि आपका रिलेशनशिप खराब भी हो सकता है, बल्कि आप इस थॉट को सीधा सीधा बेतुका बोल दोगे। पर जब आपको पता लगता है कि आपका पार्टनर आपको धोखा दे रहा है तब एकदम से आपको एक अनप्रोडक्टेड या फिर अनएक्सपेक्टेड आउटकम मिल जाती है, जिसको आपका इमोशनल सिस्टम एक यानी खतरे की तरह प्रोसेसेस करता है और आपके अंदर इमोशन्स का एक धमाका सा हो जाता है जो आपको सोचने पर मजबूर करता है कि आपने इस रिलेशनशिप को समझने में कहा। गलती करी और कैसे आप इस गलती से सीख सकते हो? ताकि आप इसे रिपीट ना करो। पर प्रॉब्लम तब आती है जब आप अपनी जिंदगी में मिले किसी ऐसे दुख से कुछ सीखने के बजाय अपने अंदर नाराजगी बढ़ लेते हो। आपको अपनी लाइफ में ऐसे बहुत से लोग मिलेंगे जो अपने पैरेन्ट्स, अपने बॉयफ्रेंड, गर्लफ्रेंड, पॉलिटिशियंस, अपने कल्चर या इवन अपनी किस्मत से नाराज रहकर जिंदगी जीते हैं और ये चीज़ उन्हें काफी गुस्सैल बनाए रखती है। हाउएवर ज्यादातर लोग यह फैक्ट नहीं समझ पाते कि गुस्सा एक सैकंडरी इमोशन है और अगर हम इस गुस्से की जड़ तक जाए तो हमें अपने सबसे प्राइमरी इमोशन्स मिलते हैं जो की है डर या दुख। डर फ्यूचर की चिंता से रिलेटेड होता है और दुख पास में हुए नुकसान या निराशा से और जितना आप अपने डर या दुख को एक्सेप्ट नहीं करते हो, उन्हें अपनी कॉन्शस थिंकिंग का पाठ नहीं बनाते हो, उतना ही आप उन्हें गुस्से के रूप में एक्सप्रेस करने लगते हो। यही रीज़न है कि जो लोग बोलते है की वो अपने गुस्से को अपनी ताकत की तरह यूज़ करते है, वो अपने डरो और दुखों को भुलाने के बजाय उन्हें फेस करते हैं। और उनसे निकले गुस्से को प्रोडक्टिव एनर्जी में कन्वर्ट कर देते हैं। पर साइकोलॉजी बताती हैं कि गुस्से से डील करने का यह तरीका भी सही नहीं है, क्योंकि कई रिसर्च में पता चला है कि जब हम गुस्से में होते हैं, तब हमारी कॉग्निटिव एबिलिटी कम हो जाती है और जो कुछ भी हमारे आसपास चल रहा होता है, हम उससे भी ढंग से प्रोसेसर नहीं कर पाते हैं। इसके साथ ही गुस्से के टाइम हमें खतरनाक चीजें भी कम रिस्की लगने लगती है। हमे ऐसा लगता है कि हम जो कुछ भी करेंगे वो सक्सेसफुल होगा और हम रिअलिस्टिक ली ये भी ढंग से नहीं प्रेडिक्ट कर पाते हैं कि हमारे ऐक्शन के कॉन्सिक्वेन्सस क्या होंगे। गुस्सा लिटरल्ली हमारे सोचने और समझने की कैपेबिलिटी को ही कम कर देता है। इससे हमें ये समझ आता है कि जो इंसान ये बोलता है की उसे कभी गुस्सा नहीं आता वो भी गलत है क्योंकि उसने अपने डरो और दुखों को कभी फेस ही नहीं करा और जो इंसान हमेशा गुस्से में रहता है वो भी गलत है क्योंकि वो तो ढंग से सोच भी नहीं सकता। हमें बस तभी गुस्सा करना चाहिए जब एक पर्टिकुलर सिचुएशन हमारे इस इमोशन को डिमांड करती है। यानी गुस्से से डील करने का सही और हेल्थी तरीका होता है उसे अपनी कॉन्शस पर्सनैलिटी का पार्ट बनाना, ताकि आप उसे कॉन्शस ली कंट्रोल कर सको। ना कि वो आपको यूनियन साइकोलॉजी में इस तरीके को बोलते है। शैडो वर्क यानी अपनी डार्क साइड को फेस करना और समझना कि आप अपने किस दर दुख या वीकनेस को छुपा रहे हो, सो अपनी डार्क साइड को फेस करके अपने गुस्से को कंट्रोल करने की तीन एक्सरसाइज है। पहली एक्सर्साइज़ अपने रिएक्शन्स और जजमेंट को ऑब्जर्व करो यानी जब भी कोई चीज़ आपको गुस्सा दिलाती हैं या फिर बहुत ज्यादा इरिटेट करती है जैसे जब भी आप किसी बुरे इंसान के बारे में सुनते हो जिसने बहुत सारे लोगों को मारा तो आप फट से बोल देते हो की अगर आप उसकी जगह पर होते तो आप फैसला काम बिल्कुल नहीं करते हैं। लेकिन आपकी यह जजमेंट आप के उस हिस्से के बारे में बताती है जिसे आप रिजेक्ट कर चूके हों। यानी आप का वो हिस्सा जो दूसरों के साथ बहुत बुरा कर सकता है और ये मत सोचो कि हम सिर्फ अपनी नेगेटिव क्वालिटीज को ही रिजेक्ट करते हैं। क्योंकि अगर आपके बचपन में कोई इंसान आपको क्रिएटिव कंपीटिटिव या फिर फनी होने के लिए शेमफुल महसूस कराता है तो आप इन क्वालिटीज को भी रिजेक्ट कर सकते हो और उसके बाद बड़े होने पर जब भी आपको ये सम क्वालिटी ज़ किसी और में दिखेंगी तब आप उन्हें जज करोगे और उन्हें शेमफुल महसूस कर आओगे। ये एक्सरसाइज हर इंसान के लिए बहुत जरूरी है, क्योंकि इस तरह से आप अपने आप को शीशे में देखकर यह समझ सकते हो कि आप किस तरह से अपने आप से झूठ बोल रहे हो और अपने आप को आगे बढ़ने से कैसे रोक रहे हो। सो जब भी आप के अंदर किसी चीज़ के लिए गुस्सा या जजमेंट आये तो उसे ऑब्जर्व करो। सोचो की वो चीज़ आपको इतनी तकलीफ क्यों दे रही है और यह एक्सेप्ट करो कि जीस क्वालिटी को आप दूसरों में रिजेक्ट कर रहे हो। वो आपके अंदर भी है। अगर हम पहले वाले सैंपल को दुबारा यूज़ करें तो अगर आपका पार्टनर आप पर चीट करता है और महीनों बाद भी आप उसी चीज़ की वजह से गुस्सा और नाराज हो तो अपने आप से ये मत बोलो कि ऐसा कैसे हो गया बल्कि आप खुद के अंदर मौजूद उस बुरी साइड को ढूंढो और समझो की अगर आप उनकी जगह पर उनकी स में सरकमस्टान्सेज में होते हैं तो आप भी चीट करते हैं और अगर आप इस फैक्ट को एक्सेप्ट नहीं कर सकते या फिर अपनी जजमेंट में कभी भी कोई गलती नहीं ढूंढ सकते तो समझ जाओ कि आपको अभी और शैडो वर्क करने की जरूरत है। दूसरी एक्सर्साइज़ अपने आप से क्वेश्चन करना चालू करो। यह आइडिया आपको थोड़ा डरावना लग सकता है क्योंकि नोर्मल्ली ये बोला जाता है कि सिर्फ पागल लोग ही अपने आप से बात करते हैं। पर हमारे दिमाग में काफी सारे पार्ट्स ऐसे होते हैं जो हमारी कॉन्शस पर्सनैलिटी से अलग होते हैं और उनकी अपनी ही थिंकिंग और मोटिवेशन चल रही होती हैं, जिनसे हमारा ओवरऑल बिहेव्यर इन्फ्लुयेन्स होता है। और तभी अगर आप अपने आप से क्वेश्चन पूछना चालू करो कि आपको गुस्सा क्यों आता है? आपने उस पर्टिकुलर सिचुएशन में क्यू गुस्सा करा या फिर आपको गुस्सा दिलाने वाली चीजों में कॉमन पैटर्न क्या है? तो आपको इन क्वेश्चन्स के आन्सर खुद ब खुद मिलने लगेंगे। तीसरी एक्सरसाइस अपनी अच्छी साइट को चैलेंज करो हमारे में से ज्यादातर लोग अपने आप को एक अच्छा इंसान मानते हैं पर यह सिर्फ हमारी एक साइड होती है और दूसरी साइड वो होती है जो हमारे से बुरे काम करवा सकती है। हम सोचते हैं कि हम कभी कुछ बुरा कर ही नहीं सकते हैं, जिसकी वजह से हम अपनी पर्सनैलिटी के कई डीप पार्ट्स को रिजेक्ट कर देते हैं और हमें वो पार्ट्स दुनिया में देखेंगे। ये कभी एक्सपेक्ट ही नहीं करते हैं। जिसकी वजह से हमारी एक्सपेक्टेशन टूटने पर हमें गुस्सा आता है सो अपने आप से पूछना चालू करो कि आप के अंदर कौन? कौन सी अच्छी क्वालिटीज है? और उसके बाद उस लिस्ट में हर क्वालिटी का ऑपोजिट लिखो और अपने आप को उस ऑपोजिट क्वालिटी के साथ आइडेंटिफाइ करने की कोशिश करो। जैसे अगर आप बोलते हो की मैं तो लाइफ को बहुत मजाक में लेता हूँ तो इसका मतलब आपने अपनी सिरियस पार्ट को अनकॉन्शियस बनाकर रिजेक्ट कर रखा है। पर ये रिजेक्टेड पार्ट भी आपके बिहेव्यर को आपकी डार्क साइड का हिस्सा बनकर कंट्रोल कर रहा है तो सही रास्ता यही होगा कि आप होल यानी कंप्लीट बनाओ ताकि लोग चाहे कुछ भी करे या फिर आपके साथ कुछ भी हो, आपका गुस्सा हमेशा आपके कंट्रोल में रहेगा।","अन्य भावनात्मक अवस्थाओं की तरह, क्रोध न तो अच्छा होता है और न ही बुरा। हालाँकि, क्रोध समस्याग्रस्त हो सकता है यदि यह आक्रामकता, प्रकोप या यहाँ तक कि शारीरिक परिवर्तन की ओर ले जाता है। आपको कुछ ऐसा कहने या करने से बचने में मदद करने के लिए क्रोध नियंत्रण महत्वपूर्ण है, जिसके लिए आपको पछतावा हो सकता है। तो, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, आप जानेंगे कि क्रोध का मूल कारण क्या है और वे कौन से व्यायाम हैं जिन्हें आप अपने क्रोध को प्रबंधित और नियंत्रित करने के लिए कर सकते हैं। 📽️ हमें यूट्यूब पर ढूंढें: WWW.YOUTUBE.COM/PSYCHOLOGYINHINDI" "निकोला मेकियावेली एक इटालियन फिलॉसफर और पॉलिटिकल थिन कर थे, जिन्होंने अपनी बुक ए प्रिन्स में पॉलिटिक्स की सबसे बड़ी प्रॉब्लम को समझाया है जो हैं कि एक अच्छा पॉलिटिशियन बनना और एट के सम्टाइम एक अच्छा इंसान बनना ये इम्पॉसिबल है। या तो आप बस एक इफेक्टिव पॉलिटिशियन बन सकते हो जो अपने देश को अमीर और पावरफुल बना सके या फिर आप एक अच्छे इंसान बन सकते हो जो देश की तरक्की के लिए किसी भी तरह का काला धंधा नहीं कर सकता। मैं क्या वैली बोलते है कि एक अच्छे प्रिन्स का काम होता है। देश के बाहर ही। ये अंदरूनी खतरों को रोकना, फिर चाहे इसमें उसे अपने दुश्मनों की जान ही क्यों ना लेनी पड़े और इस काम के लिए उसे अपने लोगों को मैनेज भी करना आना चाहिए ताकि वो मुश्किल के समय में उसकी सुने। अगर लोगों को यह लगता है कि उनका रूलर बहुत ही कमजोर या फिर रिस्पेक्ट के लायक नहीं है तो ऐसे में वो उसकी सुनना बंद कर देंगे और दूसरी तरफ अगर एक रूलर बहुत ही स्ट्रिक्ट बन गया तो तब भी लोग उसे अंदर ही अंदर हेट करने लगेंगे। मैं क्या वैली के हिसाब से एक प्रिन्स स्ट्रिक्ट तो होता है पर वो ईक्वली अपने जस्टिस में फिरभी होता है? हाउएवर मैं क्या वाली? ने अपनी पावर हासिल करने की फिलॉसफी एक इन्स्ट्रक्शन मैन्युअल की तरह नहीं लिखी, बल्कि उनकी फिलॉसफी उनकी उनसे भी बेहतर पॉलिटिशियंस की ऑब्जर्वेशन है जिसकी वजह से मैं के वाली को पढ़ते समय हमें यह ध्यान में रखना चाहिए कि वो हमें डाइरेक्टली ये नहीं बोल रहे हैं कि तुम भी एक लीडर बनने के लिए इन टेढ़े रास्तों को यूज़ करो और अगर चीटिंग की जरूरत पड़े तो वो भी करो नहीं। वो बस हमें ये बता रहे हैं कि अगर तुम एक सक्सेसफुल प्रिन्स बनना चाहते हो तो यह रूल्स तुम्हें फॉलो करने ही पड़ेंगे। उनके हिसाब से एक लीडर को प्यार और सम्मान मिलने से भी बेहतर है कि लोग उससे डरें और एक पॉलिटिशियन झूठा या फिर अनैतिक होने के लिए बुरा नहीं है, क्योंकि पॉलिटिशियन का काम ही कुछ ऐसा होता है जो दयालु और सच्चे रहकर नहीं कर सकते हैं। मैं क्या वैली के पावर और पॉलिटिक्स को लेकर व्यूस को हम पांच मेजर पॉइंट्स मैं समझ सकते है? नंबर वन बिहार वुल्फ बिना शिप्स क्लोदिंग मैं क्या वाली बोलते हैं कि ये बातें सुनने में तो बहुत अच्छी लगती है कि अगर तुम्हें लोगों की दया चाहिए तो तुम्हें अपने दुश्मनों पर भी दया खानी चाहिए। हाउएवर ये तरीका पावर हासिल करने और पॉवरफुल बने रहने में काम नहीं आता। निकोलो ने ये इटली के कई प्रिन्सेस में नोटिस करा कि उनमें से जो भी हमेशा लोगों का भला चाहते थे और वह दयालु थे उन्हें सबसे पहले पावर से हटाया और मारा जाता था। इसी वजह से वो बोलते थे कि नाइस बनो लेकिन कभी भी जरूरत से ज्यादा सबकी आगे अपनी सॉफ्ट साइड मत दिखाओ ताकि सही टाइम पर आप अपना काम निकलवाने के लिए हर तरह की चालाकी का भी यूज़ कर सको। लेकिन जनता के आगे आपकी इमेज एक नेक इंसान की हो। एक भेड़ के भेष में एक भेड़िये की तरह बना हो, बाहर से लाइकेबल और चार्मिंग पर अंदर से हर तरह के काम को अंजाम देने वाले मैं क्या वैली अच्छे बने रहने का एग्जाम्पल देते हुए जीसस की बात करते हैं कि कैसे उनकी जिंदगी एक बर्बादी से कम नहीं थी। उन्हें कदम कदम पर अपनी अच्छाई के लिए दबाया और टॉर्चर कर आ गया था और उन्हें मरने के बाद ज्यादा रिस्पेक्ट मिली थी। जबकि जब वो जिंदा थे तब लोगों ने उनकी जिंदगी नर्क के बराबर बना दी थी। इसमें सेज के साथ मैं क्या वैली ये नहीं बोल रहे हैं कि बुरे इंसान मन हो बल्कि वो ये बोल रहे हैं कि बुरे इंसानों से कई जरूरी चीजें सीखो। एक भोला और सिर्फ बातें बनाने वाला लीडर तो जीसस की तरह बनने की कोशिश कर सकता है, लेकिन एक इफेक्टिव लीडर बनने के लिए और पावर को हासिल करने के लिए आपको अपने अंदर थोड़ी बुरा ई चाहिए। इसी वजह से एक अच्छे पॉलिटिशियन को एक बुरे पॉलिटिशन से सीख लेनी चाहिए। एक अच्छे बिजनेसमैन को एक चालाक बिज़नेस मैन की तरकीबें समझनी चाहिए और एक शरीफ सेल्समैन को एक बुरे और जुगाड़ू सेल्समैन की कई टेक्नीक्स को समझना चाहिए। बुराइ की समझ जब अच्छाई के साथ मिलती है, सिर्फ तभी एक इंसान दुनिया में कुछ बड़ा बदलाव लाने लायक बनता है। अगर जो हथियार और तरकीबें एक बुरा इंसान अपने पास रखता है, वह एक अच्छे इंसान के पास नहीं है तो उस अच्छे इंसान का हारना तय है। नंबर टू टू एस्टिमेटर रूलर्स इन्टेलिजेन्स लुक एट द पीपल अराउंड हिं मैं क्या बोलते है कि वीक लीडर्स के पास वीक अधिकारी और समर्थक होते हैं, जबकि एक स्ट्रॉन्ग लीडर सिर्फ बेस्ट लोगों को ही अपने पास रखता है। हर लीडर को चापलूसी करने वाले लोगों को अवॉर्ड करना चाहिए। ऐसा नहीं है कि हर पॉलिटिशियन का ऑफिस चापलूस लोगों से भरा रहता है, पर जस्ट बिकॉज़ ज्यादातर लीडर्स कितने आत्मसंतुष्ट होते हैं कि वो उन लोगों को अपनी टीम में रखी नहीं पाते जो उनकी तारीफ करने के बजाय उन्हें सच बताते हैं। चापलूस लोगों से बचने का सिर्फ यही तरीका होता है कि आप लोगों को शुरू से ही यह समझा दो कि आपको फंड ना करने का उपाय है आपसे सच बोलना हर ऐसा इंसान जो पावर हासिल करने की कोशिश करता है, उसे यह समझना चाहिए कि यह काम एक अकेला इंसान नहीं कर सकता। आपको अपने अराउंड इनफ्लो कटाई करने होंगे जो आपके विजन के साथ रिलेट कर पाए और आपके गोल्स में वह अपने गोल्स को भी ढूंढ पाए। अगर आप के सपोर्टर्स, टीम मेंबर्स या फिर फ्रेंड ज़ आपको पॉवरफुल बनने में मदद करने में हिचकिचाते हैं लेकिन उन्हें आपकी पावर या फिर आपकी सक्सेस से मिले बेनिफिट सबसे पहले चाहिए तो ऐसे लोग आपको कभी भी टॉप पर नहीं पहुंचने देंगे। इसलिए इस चीज़ में केर्फुल हो कि आप किन लोगों पर ट्रस्ट करके उन्हें अपने इनर सर्कल में आने देते हो। यह लोग आपको बना भी सकते हैं और आपको गिरा भी सकते है। नंबर थ्री डोंट लेट, कम्फर्ट में क्यू कंप्लेंट सेंड एक्वा इस प्रिन्स कभी भी शांति और आराम के समय में आलसी नहीं बन जाता। बल्कि वो इस समय कोई यूज़ करता है रिसोर्सेस काटे करने, टीम को स्ट्रॉन्ग बनाने और अपने कॉन्टैक्ट्स को बढ़ाने के लिए ताकि जब बुरा समय आए तब वो उसके लिए पहले से ही प्रिपेर्ड हो। मैं क्या बोलते है कि सैटिस्फैक्शन लीडर्स कैरियर्स और ऑर्गनाइजेशन्स को मार डालता है? इसी वजह से सक्सेस के समय भी नए आइडियाज़ को इंप्लिमेंट करने और नए बिज़नेस मॉडल्स को बनाने की कोशिश जारी रहनी चाहिए। जब तुम हर एक कॉंपिटिटर्स तुम से पीछे हो जाए तब भी तुम्हें रुकना नहीं चाहिए बल्कि प्लानिंग कुछ ऐसी करो कि कॉम्पिटिशन के ज़रा सा कमजोर होते ही तुम उसे खत्म कर सको। नंबर फ़ोर ऐक्सपीरियंस लीडर, ऐसा वाइज लीडर जो भी इंसान किसी गेम को एक लंबे समय तक खेलता है और उस गेम में टिका रहता है वो उस गेम के हर जरूरी पड़ाव से वाकिफ हो जाता है। इसी वजह से निकोला मैं क्या वैली बोलते हैं कि विज़्डम एक्सपिरियंस के साथ आती है। एक आवरग्लास में से जितनी रेट निकल चुकी होती है, उसके पास देखना उतना ही आसान बन जाता है। यानी समय हमारी क्लैरिटी को बढ़ाता है। हम अक्सर ये भूल जाते हैं। कि जीस इंसान के शरीर पर जंग के घाव ज्यादा होते है। उसके पास जंग की सबसे ज्यादा जानकारी होती है। इसलिए मैं क्या वैली एडवाइस देते हैं कि पास्ट के महान लीडर्स के बारे में पढ़ो। उनकी नॉलेज का फायदा उठाओ, उनकी तरकीबों को जानो ताकि अगर तुम उन के जीतने नहीं तो एटलिस्ट आर्मी डर से ज्यादा महान और प्रभावशाली बन पाओगे। कभी भी इस अकड़ में मत रहो कि तुम ये काम सिर्फ खुद की समझ से कर सकते हो। इतिहास की जमीन ऐसे ही मूर्खों की लाशों से लदी पड़ी है जो खुद की काबिलियत को ओवर एस्टीमेट करते थे। इसलिए एक गुरु, मेंटर या फिर बुक्स का सहारा लोगों और उनसे सीखो, जो अपने समय में सक्सेसफुल थे। नंबर फाइव नेवर स्टील पावर हासिल करने के बाद कई पॉलिटिशियंस यही गलती कर देते हैं कि वो बिना सोचे समझे अपनी पावर का ज़ोर लोगों पर निकाल देते हैं और पॉलिसीस को मैनिप्युलेट करके उनका बिज़नेस बंद करवा देते हैं। उन्हें किसी लीगल केस में फंसा देते हैं, उनकी प्रॉपर्टी को हड़प लेते हैं या फिर उनसे उनकी मेहनत की कमाई चुरा लेते हैं। मैं क्या वैली बोलते है कि एक इंसान अपने बाप की मौत को तो बोल सकता है? लेकिन वो कभी भी ये नहीं बोल सकता कि किसने उसके साथ धोखाधड़ी करी। जो भी पॉवरफुल इंसान चोरी और गुंडे पन की मदद से अपने राज्य चलाता है, उसे एक न 1 दिन अपने पुराने पापा का बदला चुकाना ही पड़ता है। साइकोलॉजी और ई वन हिस्टरी भी यही बोलती है कि एक पावरफुल इंसान शुरू में तो लोगों को टॉर्चर करके अपनी बात मनवा सकता है, लेकिन जब उसके दुश्मनों की संख्या उसके चाहने वालों से बढ़ने लगती है तब पावरलेस लोग भी एकजुट होकर उस इंसान को उसकी पॉवरफुल पोज़ीशन से हटा देते है। बिल्कुल इसी तरह से पास ही कई गवर्नमेंट्स और किंगडम्स का नाश हुआ था, जहाँ लीडर्स इफेक्टिव होने और बस चलाकी से अपने राज्य का भला करने के बजाय अपने ही लोगों के अगेन्स्ट हो गए थे। इन लाइसेंस की मदद से आप को यह समझ आ गया होगा कि किस तरह से एक इफेक्टिव लीडर पावर तक पहुंचता है और पावर को थामे रखता है। जहाँ इनमें से कई बातें डाइरेक्टली आपकी लाइफ में अप्लाई नहीं होंगी वही आपके लिए सबसे बड़ा टेक अवे होना चाहिए कि एक बुद्धिमान और इफेक्टिव लीडर की तरह सोचा कैसे जाता है और क्यों एक अच्छा इंसान होना और एक अच्छे लीडर होने में इतने ज्यादा डिफरेन्स होते हैं?","निकोलो मैकियावेली एक इतालवी दार्शनिक और राजनीतिक विचारक थे। मैकियावेली ने अपनी पुस्तक द प्रिंस में सत्ता हासिल करने और उसे बनाए रखने के तरीकों पर चर्चा की है। उनका कहना है कि एक प्रभावी नेता के साथ-साथ एक अच्छा इंसान बनना असंभव है। क्योंकि प्रभावी होने के लिए, किसी को अंधेरे रास्ते अपनाने और क्रूर रणनीति पर भरोसा करने की आवश्यकता हो सकती है। एक नेता के लिए प्रशंसा और सम्मान से डरना बेहतर है, क्योंकि डर से वह काम हो जाता है जो प्रशंसा नहीं कर सकती। ये सत्ता पर उनके विचार नहीं थे, बल्कि उन लोगों के बारे में उनका अवलोकन था जो उनसे अधिक शक्तिशाली और प्रभावी थे। इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम अत्यधिक प्रभावशाली लोगों में मैकियावेली की 5 ऐसी टिप्पणियों पर चर्चा करेंगे।" "यूज़्वली सक्सेस को उन लोगों से रिलेट कर आ जाता है जो बहुत ही एक्स्ट्रोवर्ट होते हैं और हर समय अपने वर्ड से सबको अपनी तरफ खींच रहे होते हैं। लेकिन ये भी सच है कि दुनिया के सबसे सक्सेसफुल लोगों में बहुत से लोग इंट्रोवर्ट्स भी है और वो बहुत कम बोलते हैं। चाहे वो बिल गेट्स हो या फिर मार्क ज़करबर्ग। इन लोगों में कुछ ऐसा है जो इन्हें दूसरे सक्सेस फुल लोगों से ज्यादा अच्छा पैटर्न ऑब्ज़र्वर, फोकस्ड और इनफ्लुएंशियल बनाता है। इसलिए आज हम इन्हीं लोगों की इस पावर के बारे में बात करेंगे और जितना जरूरत हो सिर्फ उतना ही बोलने की अहमियत समझेंगे। नंबर वन साइलेंट लोग अच्छे ऑब्जरवर्स होते हैं। अगर एक इंसान साइलेंट है तो इसका मतलब यह नहीं है कि वो कुछ नहीं कर रहा है क्योंकि साइलेंस कभी भी एमटी नहीं होती है। साइनस में अक्सर ऐसी चीजें होती हैं जो बात करने से नहीं समझी जा सकती है और क्वाइट लोग जब किसी से बात नहीं कर रहे होते तो वो उस टाइम को वेस्ट नहीं कर रहे होते बल्कि वो अपने एनवायरनमेंट को ऑब्जर्व कर रहे होते है। किसी चीज़ को ऑब्जर्व करने का मतलब है की आप वहाँ से कुछ इन्फॉर्मेशन निकल रहे हो। साइलेंट लोग इस इन्फॉर्मेशन को यूज़ करते है लोगों का बिहेव्यर समझने के लिए, अपने आप को असिस्ट करने के लिए और फ्यूचर को प्रिडिक्ट करने के लिए जब आपकी ऑब्जरवेशनल स्किल्स स्ट्रॉन्ग होती है जब आप अपनी तरफ आते चैलेंज और टफ सिचुएशन को प्रेडिक्ट कर सकते हो और उसी को दिमाग में रखकर काम कर सकते हो और यही चीज़ साइलेंट लोगों को टॉकटीव लोगों से अलग बनाती है। नंबर टू साइलेंट लोग सेल्फ वेर होते हैं, क्योंकि वो ज़्यादातर टाइम यही सोच रहे होते हैं कि लोग उन्हें कैसे पर सेव कर रहे हैं। चाहते हैं कि लोग उन्हें सीरियसली लेते है। तभी वो अपने बिहेव्यर, अपने वर्ड्ज़ और इवन अपनी बॉडी लैंग्वेज को कॉन्शस ली मैनेज करते हैं। एक को अच्छे से पता होता है की उसकी स्ट्रेंथ और वीकनेस क्या है और किन एरियाज़ में उन्हें अपने आप को इम्प्रूव करना है। जब एक इंसान को अपनी ताकत और कमजोरी पता होती है तब वो उसपे कुछ ऐक्शन ले सकता है और अपने आप को इम्प्रूव कर सकता है। नंबर थ्री ये लोग ज्यादा क्रिएटिव और ओरिजिनल होते हैं। जहाँ एक्स्ट्रा में अपने ग्रुप की मेन स्ट्रीम और पॉपुलर वैल्यू उसको अडॉप्ट करने की इच्छा ज्यादा होती है, वहीं इंटर में अपनी चॉइस को प्रिफर करने की इच्छा ज्यादा होती है। भले ही उनका ओपिनियन पॉपुलर ओपिनियन से अलग ही क्यों ना हो। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि इंट्रोवर्ट्स अपने साथ ज्यादा टाइम स्पेंड करते है। वो अपने आइडियाज़ या व्यूस को रिफाइन कर पाते हैं और वो किसी ग्रुप का हिस्सा बनने के लिए ब्लाइंडली किसी चीज़ को फॉलो नहीं करते हैं। इवन इंट्रोवर्ट फिज़िसिस्ट अल्बर्ट आइंस्टाइन ने बोला था की एक शांत जिंदगी में मौजूद स्टेबिलिटी और सॉलिट्यूड हमारी क्रिएटिविटी को बढ़ाता है। नंबर फ़ोर साइलेंट लोगों में सेल्फ कंट्रोल ज्यादा होता है क्योंकि उन्हें पता होता है कि सिचुएशन क्या डिमांड कर रही है और वो उसी हिसाब से ऐक्ट करते हैं। उनकी इस क्वालिटी की वजह से दूसरे लोग उन पर ट्रस्ट कर पाते हैं और उनको रिलाएबल मानते हैं। भले ही वो किसी प्लैन को सीक्रेट रखना हो या अपने दोस्तों की बातों को सिर्फ अपने तक रखना हो। साइलेंट लोगों के अंदर इतना सेल्फ कंट्रोल होता है की वो कभी भी कोई ऐसी चीज़ नहीं करते जिससे उन्हें बाद में शर्मिंदगी हो। मैं दूसरे लोग उनसे डिसअप्पोइंट हो। नंबर फाइव साइलेंट और इंट्रोवर्ट लोग आत्मनिर्भर होते हैं। जहाँ एक्स्ट्रा वर्ड्स को अपनी एनर्जी दूसरों से मिलती है, वहीं अकेले रहना ज़्यादा प्रिफर करते हैं और बिना किसी एक्सटर्नल सोर्स के ही खुद को रिचार्ज कर पाते हैं। यही चीज़ एक इंट्रोवर्ट को सेल्फ सफिशंट यानी आत्मनिर्भर बन आती है। वो कभी भी दूसरों पर डिपेंड नहीं करते। खुश, सपोर्टेड या मोटिवेटेड फील्ड करने के लिए आत्मनिर्भर होना एक बहुत पॉवरफुल ट्रेड है, जो सक्सेसफुल लोगों में अक्सर देखा जाता हैं। इंट्रोवर्ट्स जानते हैं कि लोगों पर डिपेंड होना बेवकूफ़ी है। क्योंकि लाइफ बहुत अनप्रिडक्टेबल है और कभी भी कुछ भी हो सकता है इसलिए वो बस अपने ऊपर रिलाय करते हैं। नंबर सिक्स इंट्रोवर्ट्स अपनी बातों को सीधा और मीनिंगफुल वे में बोलते हैं। कई लोग अपनी बात को सामने रखने के लिए बहुत देर लगाते हैं और फिर भी अपने मैसेज को क्लियरली नहीं समझा पाते हैं। वहीं जो लोग कम बोलते हैं वो अपनी बात सीधी और मीनिंगफुल वे में प्रेज़ेंट करते हैं। वो बातों को घुमाते नहीं है और अपने वर्ड्स को इस तरीके से बोलते है की जैसे ही वो बात करना शुरू करते हैं वैसे ही सब चुप हो जाते हैं और सिर्फ उन पर अटेन्शन देने लगते हैं। क्योंकि जो इंसान काम बोलता है उसके हर शब्द में ज्यादा बाहर होता है। इसी वजह से साइलेंट लोग अपने आप को भीड़ से अलग कर पाते हैं और दूसरों पर एक लास्ट इंप्रेशन छोड़ पाते हैं। नंबर सेवन साइलेंट लोग अच्छे लिसनर होते हैं। आपने ये कहावत तो सुनी ही होगी कि हमारे पास दो कान और एक मुँह इसलिए है ताकि हम सुने ज्यादा और बोलें कम एक अच्छे कम्युनिकेटर का साइन होता है कि जितना पैशनेटली वो बोलता है, उतना ही इंट्रेस्ट के साथ वह सुनता भी है। साइलेंट लोग नैचुरली ही गुड लिसनर्स होते हैं क्योंकि वो अपनी सारी एनर्जी सिर्फ बोलने में नहीं बल्कि कुछ नया सीखने में भी लगाना चाहते हैं। ऊपर से उन्हें ये पता होता है कि अगर वह दूसरों को अच्छे से सुनेंगे तो वो उसको पोज़ीशन में कुछ वैल्यू भी ऐड कर पाएंगे। उनकी यही लिसनिंग स्किल्स उन्हें एक अच्छा कम्युनिकेटर बनाती है और उन्हें डीप रिलेशनशिप्स बनाने में मदद करती है। नंबर एट साइलेंट लोग बहुत फोकस वे में काम करते हैं क्योंकि इंट्रोवर्ट सोशलाइजिंग को एक्स्ट्रोवर्ट जितनी इम्पोर्टेंस नहीं देते हैं। इसलिए उनके पास नैचुरली ज्यादा टाइम और अटेंशन होती है जिसे वो यूज़ कर पाते हैं। दूसरी चीजों पर फोकस करने के लिए है उनमें ये एबिलिटी होती है कि वो चुपचाप घंटों तक सिर्फ एक चीज़ को अपना पूरा फोकस दे सकते हैं। जो चीजें एक्स्ट्रोवर्ट को लुभाती हैं, वो चीजें एक इंट्रोवर्ट के दिमाग पर हावी नहीं होती है। अभी ऐसे लोग काफी लंबे समय तक राइटिंग, रिसर्च रीडिंग या मेडिटेट कर पाते हैं। नंबर नाइन साइलेंट लोग दीप रिलेशनशिप्स बनाते हैं। यानी ये लोग क्वालिटी को ज्यादा और क्वांटिटी को कम प्रेफरन्स देते हैं। क्योंकि जब इन्हें पता है कि इनके पास लिमिटेड सोशल एनर्जी ही है तो क्यों ना ये सिर्फ उन्हीं गिने चुने लोगों को अपना समय दें जो खुद भी क्रिएटिव और सक्सेस माइंडेड हैं और जो एक्चुअल में इनकी परवाह करते हैं और जस्ट बिकॉज़ दुनिया मिडिओकर लोगों से भरी पड़ी हैं। ऐसे लोगों का फ्रेंड सर्कल नैचुरली काफी छोटा होता है, लेकिन इनके यही दीप रिलेशनशिप्स उन्हें मोटिवेट भी करते हैं और सक्सेस हासिल करने के लिए इनको ऑपर्च्युनिटीज ढूँढने में मदद भी करते हैं।",आमतौर पर सफलता को बहिर्मुखता और अपने शब्दों से लोगों को आकर्षित करने की क्षमता के परिणाम के रूप में देखा जाता है। लेकिन शीर्ष पर बहिर्मुखी लोगों की तुलना में अधिक अंतर्मुखी और मूक सफल लोग हैं। लेकिन क्यों? जो लोग कम बोलते हैं वे बाकियों से इतने अलग क्यों होते हैं और वे अधिक पैसे क्यों कमाते हैं? मौन की शक्ति के बारे में जानने के लिए इस पॉडकास्ट सेगमेंट को सुनें और आपको इस सेगमेंट में दिए गए सुझावों का उपयोग क्यों करना चाहिए। "हम हमेशा ऐसा कोई तरीका ढूंढ़ते हैं जिसके द्वारा हम अपनी लाइफ की स्ट्रगल 100 ऑर्डरों को एक्सप्रेस कर सके और जिन फीलिंग्स को अपने अंदर दबाए रखने से स्ट्रेस मिलता है उन्हें रिलीज कर सकें। हम इस प्रेशर से डील करने के लिए या तो इन्हें दबाते हैं या फिर इन्हें गुस्से के रूप में निकालने की कोशिश करते हैं। लेकिन यह दोनों तरीके ही अपने इमोशन से डील करने, नहीं इनसाइट्स लेने और मेंटल क्लैरिटी हासिल करने के बेकार मेथड्स है। साइनस बताती है कि अपने माइंड को क्लियर रखने और सेल्फ अवेर्नेस बढ़ाने के लिए सबसे सिंपल और इफेक्टिव तरीका होता है जर्नलिंग क्योंकि जर्नलिंग एक ऐसा टूल है जिससे आप अपने सारे थॉट्स फीलिंग्स और मेमोरीज़ को अपने सिस्टम से बाहर निकालकर उन्हें एक नई नजर से देख सकते हो। इसलिए इस एपिसोड में हम जर्नलिंग के बेनिफिटस और सही तरह से जर्नल कैसे करा जाता है? यह समझेंगे नंबर वन ब्रिगेड अनकॉन्शियस टू कॉन्शियस सेल्फ अवेर्नेस हासिल करने और दुनिया को आस इट इस देखने के लिए हमें सबसे पहले अपनी अनकॉन्शियस 22 इस और सेल फार्मिंग पैटर्न्स को ओवर कम करना होता है और ये पॉसिबल होता है। इन अनकॉन्शियस कन्टेन्ट को कॉन्शस बनाने और इन्हें इग्नोर करने या फिर छुपाने के बजाय इन्हें फेस करके फुल्ली समझने से और जब हम इस गोल को अपने दिमाग में रखते हुए कुछ लिखते हैं तब हम नई इनसाइट्स और अपने आप को करने के तरीकों तक पहुँच पाते हैं। नंबर टू मैनेजिंग नेगेटिव इमोशन्स अपने दिमाग में चलते हैं। रैन्डम या नेगेटिव चार्ज से लदे हुए थॉट्स को पेपर पर लिखने से ऑटोमैटिकली हम बेटर फील करने लगते हैं जैसे हमारे ऊपर से कोई बड़ा बोझ उतर गया हो। यह इसलिए होता है क्योंकि नेगेटिव इमोशन्स जैसे चिंता या डर यूँ चली हमारे ज्यादा सोचने और इन ख्यालों को अपने अंदर लंबे समय तक रखने से आते हैं, जिससे जब हम इन थॉट्स को लिखना शुरू करते हैं तब हम एक इमोशनल रिलीज फील करते हैं। अमेरिकन सोशल साइकोलॉजिस्ट जेम्स पे निबे करने अपनी रिसर्च में ये ऑब्जर्व करा अभी उनकी स्टडी में पार्टिसिपेंट्स 15 मिनट के लिए तीन से चार दिनों के लिए अपने थॉट्स के बारे में लिखते थे। तब वो शोर्ट टर्म में तो नेगेटिव फील करते हैं क्योंकि उन्हें वापस से उन्हीं खयालों को फेस करना पड़ रहा था तब वह शॉर्ट टर्म में तो नेगेटिव फील करते हैं क्योंकि उन्हें वापस से उन्हीं खयालों को फेस करना पड़ रहा था। लेकिन लॉन्ग टर्म में ये चीज़ उन्हें ज्यादा खुश मेंटली क्लिअर और उनमे अपने लाइफ पैथ की अवेर्नेस बढ़ाने में सक्सेसफुल रही है। इस तरह से अपने इमोशन्स और थॉट्स के बारे में लिखने को एक्स्प्रेसिव राइटिंग या फिर थेरप्यूटिक जर्नलिंग बोलते हैं और जो भी इंसान अभी लॉस्ट मेंटल ईयन क्लिअर डिप्रेस महसूस कर रहा है, उसे यह मेथड जरूर ट्राय करना चाहिए। नंबर थ्री रिवाइविंग के ब्रेन यानी जब भी हम जर्नल में कुछ ऐसी चीज़ लिखना शुरू करते हैं जो हम अपनी लाइफ में ज्यादा चाहते हैं, जैसे ग्रैटिट्यूड के बारे में लिखना कि आप किन चीजों के लिए अपने आपको खुशकिस्मत समझते हो या फिर अपने गोल्स के बारे में लिखना तो इस तरह से बार बार इन पॉज़िटिव चीजों को लिखने से हम अपने सबकॉन्शियस माइंड को रिवाइव करने लग जाते हैं और अपने थॉट्स को अपनी रिऐलिटी बना पाते है। बिना रिपीटेड ली अपने ख्यालों को अपने मन से बाहर एक पेपर पर लिखे हमारे ख्याल बस ख्याल ही बनकर रह जाते हैं। जो चीजें हम कर सकते थे, वह एक पोटेंशिअल पोटेंशिअल को रिऐलिटी बनाने के लिए हमें एक ऐसी प्रैक्टिस चाहिए होती है, जो इतने सारे आइडियाज़ की धुन में से सबसे अच्छे आइडिया को चुनने में हमारी मदद कर सकें और हमारी कन्फ्यूजन बढ़ाने की जगह हमारे डाउट को क्लियर कर सके और इस काम के लिए जर्नलिंग सबसे ज्यादा इफेक्टिव होता है। नाउ जर्नलिंग की पॉवर्स और इसके बेनिफिटस तो हमने समझ लिया है, लेकिन अब हम बात करते हैं कि जर्नलिंग स्टार्ट कैसे करना है? वेल जर्नलिंग का कोई फिक्स्ड मेथड नहीं होता। यह आपकी नीड्स के जर्नल करने के रीज़न और आपके टाइम के ऊपर डिपेंड करता है की आपने कैसे और क्या लिखना है। फॉर एग्ज़ैम्पल अगर आप बस रोज़मर्रा के स्ट्रेस को मैनेज करना चाहते हो तो आप अपनी टेंशन के सोर्सेस ये अपने रैन्डम थॉट्स को लिख सकते हो। अगर आप अपने पास्ट को ओवर कम करना चाहते हो तो अपने पास्ट को डिटेल में लिखना शुरू करो। एक स्टोरी की तरह अगर आप अपने गोल्स पर फोकस करना चाहते हो और अपने सपनों को अपनी हकीकत बनाना चाहते हो तो अपने डेली मंथ्ली और वीकली गोल्स को रेग्युलरली लिखो और साथ ही साथ अपने रूटीन को भी जिसकी मदद से आप उन गोल्स की तरफ बढ़ना शुरू करोगे और अगर आप हमेशा नेगेटिव फील करते रहते हो तो उसका सबसे अच्छा सल्यूशन है, ग्रैटिट्यूड जर्नलिंग करना यानी सुबह उठते ही या हर रात सोने से पहले उन चीजों के बारे में लिखो, जिनके लिए आप खुशकिस्मत फील करते हो और उन्हें अप्रीशीएट करते हो। लिखते समय कभी भी ये मैटर नहीं करता कि आपकी ग्रैमर एकदम पर्फेक्ट हो या आपको एक पर्टिकुलर फॉरमैट में ही लिखना है, बल्कि आपको जैसे अपने थॉट्स को अपने मन से बाहर निकालना और लिखना कम्फर्टेबल लगे। वैसे लिखो और हर रोज़ एट लिस्ट 10-15 मिनट इस प्रैक्टिस को जरूर दो। इस तरह से आप अपनी कई अलग प्रॉब्लम्स को जर्नलिंग की मदद से सॉल्व कर पाओगे और अपनी मेंटल क्लैरिटी बढ़ाने के साथ साथ अपने आपको मैक्सिम लीग रो कर पाओगे।","जर्नलिंग अपने बारे में नई अंतर्दृष्टि प्राप्त करने के सर्वोत्तम तरीकों में से एक है जो किसी की मानसिक स्पष्टता को अधिकतम करने के साथ-साथ आत्म जागरूकता को बढ़ाता है। इस तरह से लिखने से हमें अपने विचारों, विचारों, भ्रमों, चिंताओं, भावनाओं आदि को अपने से बाहर निकालने में मदद मिलती है ताकि हम उन्हें अपने से अलग कुछ के रूप में देख सकें और उनका विश्लेषण कर सकें। तो, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम सीखेंगे कि जर्नलिंग क्या है, इसे अधिकतम उत्पादकता के लिए कैसे करें और आप इससे क्या उम्मीद कर सकते हैं।" "हम एक अटेन्शन इकॉनमी में रहते हैं। बिकॉज़ मनी फॉलो सटेंशन जहाँ पर अटेंशन है, वहीं पर पैसा है। चाहे वो आपके मोहल्ले में खुली एक दुकान हो या फिर आपके फेवरेट यूट्यूबर्स का बिज़नेस पैसा सिर्फ वो लोग ही बना पाते है जो लोगों की नजरों में आते हैं और उनकी नजरों को अपने ऊपर टिकाए रखते हैं। जीवन अगर आप का मकसद सिर्फ और सिर्फ ज्यादा से ज्यादा लोगों की मदद करना ही है तब भी आपका ये गोल बिना दूसरों के नोटिस में आए पूरा नहीं होगा। दैट स्वाइ इस एपिसोड में आप सीखोगे कि आप एफर्टलेसली लोगों की अटेंशन कैसे टैप कर सकते हो। विनायक अटेन्शन सीकर लगे हैं नंबर वन ऑलवेज़ यूज़ कन्टेस्टेंट बी केर्फुल विद वर्ड्ज़ हर इंसान इन्फॉर्मेशन को अपने एग्ज़िस्टिंग पॉइंट्स ऑफ रेफरेन्स के बेसिस पर प्रोसेसेस करता है। जैसे 1974 में हुई एक स्टडी में पार्टिसिपेंट्स को एक कार ऐक्सिडेंट का वीडियो दिखाया गया और उनसे पूछा गया कि वह कार्स कितनी तेज थी स्पेसिफिकल्ली कई लोगों से पूछा गया कि वो कर्ज़ कितनी तेज थी जब उनके बीच ठोकर हुई और कई लोगों से पूछा गया कि वो कर्ज़ कितनी तेज थी जब उन दोनों ने एक दूसरे को छुआ। और तब पता चला कि जीस ग्रुप के आगे ठोकर जैसे शब्द का इस्तेमाल हुआ था। उसके मेंबर्स ने बार बार उनका राज़ की स्पीड को ज्यादा एस्टीमेट कराया और जब सब से यह पूछा गया कि उन्होंने वीडियो में टूटता हुआ कहाँ से देखा था जबकि विडिओ में ऐसा कुछ था ही नहीं तब भी ठोकर जैसे एक्स्ट्रीम शब्द को सुनने वाले ग्रुप ने बोला हाँ, उन्होंने तो टूटे हुए कांच को भी देखा था। आपका एक शब्द भी काफी होता है दूसरे लोगों की परसेप्शन को बदलने के लिए, क्योंकि हर वर्ड उस इंसान की कल्चरल एक्सपेक्टेशन्स पास इक्स्पिरीयन्स एस बायोलॉजिकल वाइरिंग और ओपिनियन से जुड़ा होता है। यही वजह है कि क्यों जीस तरह से एक लड़का एक लड़की से बात करता है वो अलग होना चाहिए। जीस तरह से वो अपने यार दोस्तों से बात करता है या फिर जीस तरह की लैंग्वेज। आप अपने दोस्तों के साथ यूज़ करते हो वो अलग होनी चाहिए। आपके घर से बाहर बोलने के ढंग से नम्बर टू टॉक अबाउट देर इन्ट्रेस्ट हर कोई दूसरों के आगे इंट्रेस्टिंग बनना चाहता है और तभी आप लोगों की इस डिज़ाइनर को अपने बेनिफिट के लिए यूज़ कर सकते हो। उनके इन्ट्रेस्ट में इंटरेस्ट लेकर इस तरह से उन्हें एक्सटर्नल वैलिडेशन मिलती है की हाँ, उनकी चौसा अच्छी है और वो इस वैलिडेशन को कंटिन्यू रखने के लिए आप में इन्ट्रेस्ट लेने लगते हैं जिससे भी आप बात करो उसे ऐसा फील कराओ कि वह ही अपनी स्टोरी का मेन करेक्टर है। कभी भी किसी से उसकी लाइमलाइट या फिर सेन्स ऑफ इम्पोर्टेन्स मत छीनो। ये मत प्रूफ करने की कोशिश करो कि आप उनसे ज्यादा इम्पोर्टेन्ट हो। वो ऐसा खुद ही सोचने लगेंगे अगर आप उन्हें अपने से प्यार करना सीखा दो। यही वजह है कि क्यों जीस रिलेशनशिप में भी सामने वाला आपको फ्लो काइन्ड और इंट्रेस्टिंग फील कराता है। आप उस इंसान को रिलेशनशिप ओवर होने के बाद भी नहीं भूल पाते हैं। नंबर थ्री ड्रेस बोर्ड ली बोरिंग लोगों के कपड़े भी उन्हीं की तरह होते हैं यानी बोरिंग और अन्य अट्रैक्टिव बोल्ड कपड़े सबसे ईज़ी हैक होते हैं। अटेन्शन ग्रैप करने के लिए ऑफकोर्स अगर आप बोल्ड बनने के चक्कर में एकदम अजीब या फिर बेतुके कपड़े पहनने लगोगे तो आपको अटेंशन तो मिलेंगी, लेकिन वो सारी अटेन्शन मोस्टली नेगेटिव होगी। इसलिए ऐसे कपड़े पहनो जो उत्तम दर्जे के हो। आपके कपड़ों की चॉइस से ही लोगों को यह समझा जाए कि आप उनकी रिस्पेक्ट और ऐडमिशन के काबिल हो। नंबर फ़ोर स्मेल लाइका मिलियन बुक्स किसी भी गार्डन में हमारी नज़र चाहिए। सबसे पहले एक खूबसूरत फूल खींच लें। लेकिन हमारी नजरों को टिकाकर सिर्फ वही फूल लग पाता हैं, जो सुगंध से भरा हुआ होता है। बुरी स्मेल सुंदर से सुंदर लोगों की अट्रैक्टिवनेस का लेवल गिरा सकती है। अलग अलग लोगों पर अलग तरह की सेन्ड सूट करती है। कई सेन्स ज्यादा स्पाईसी, एग्रेसिव और एक्स्ट्रोवर्ट होती है और कहीं ज्यादा स्वीट, जेंटल और इंट्रोवर्ट ऐड। इसलिए हर इवेंट ये सिचुएशन के हिसाब से अपनी परफॉर्मेंस को चुना हो और आप कैसा स्मेल करते हों इस चीज़ को एक हाइ प्रायोरिटी दो नंबर फाइव बिकम इन आर्किटाइप यानी सब के मन में आपका रोल क्लियर होना चाहिए। हर प्रॉमिनेंट सिलेब्रिटी चाहे आप उनसे प्यार करते हो या फिर नफरत, उनके ट्रेड्स आपके मन में एक दम क्लियर होते हैं। माइकल जैक्सन का नाम लो तो आपको पता होता है कि अच्छा वो बंदा नाश्ता था, गाता था और अपनी जिंदगी में उसने काफी नाम कमाया। रतन टाटा का नाम लो तो आपको पता है कि उन्होंने कितने सैक्रिफ़ाइस इस और डोनेशंस करें। इस देश को आगे बढ़ाने के लिए जीवन अगर आप अपने रिलेटिव्स में भी देखो तो उनके बीच भी कई लोगों के रोज़ एक दम क्लियर होते हैं। बाकी लोगों का बिहेव्यर या फिर ट्रेड्स चाहे टाइम टु टाइम बदलते रहे लेकिन जो लोग एक प्रॉपर करेक्टर या फिर आर्किटाइप की तरह खुद को प्रेसेंट करते हैं, वो सबके बीच अलग ही चमकते हैं। इसलिए आप जिन चीजो में बिलीव करते हो आपका जो दुनिया को देखने का नजरिया है वो सब के आगे रिवील करने से डरो मत ऐंड प्रूफ योरसेल्फ टु बी यूनीक करेक्टर नंबर सिक्स क्रिएटा पॉज़िटिव ओर अराउंड योरसेल्फ ओरा का मतलब होता है कि एक इंसान का एक्स्पेन्स सिर्फ उसके अंदर ही नहीं बल्कि बाहर भी मौजूद हैं। अगर आप एक बहुत ही नेगेटिव इंसान से पहली बार भी मिलों और वो एकदम चुप भी खड़ा रहे तब भी आप क्लियरली ये बता पाओगे। कि इस इंसान में कुछ ना कुछ तो गडबड है और आपको उससे अच्छी वाइफ नहीं आ रही। जब भी हम और आया, फिर वाइब जैसे स्पष्ट शब्दों का इस्तेमाल करते हैं। तब हम बात कर रहे होते हैं हर इंसान में मौजूद इन्टर्वेंशन यानी सहज ज्ञान की हम इन्टूइटिव ली लोगों की पर्सनैलिटी और करेक्टर को रीड करने के कैपेबल होते हैं जीवन। अगर कोई इंसान बाहर से स्वीट बन रहा है लेकिन अंदर से पूरा कड़वाहट से भरा हुआ है, तब भी ये ऑब्वियस होता है कि वो एक्चुअल में वो नहीं है, जो वह खुद को दिखाना चाहता है। इसलिए अपने एसएमएस को बदलो सिर्फ इस लेवल पर ही नहीं बल्कि अपनी गहराइयों को भी इंट्रेस्टिंग और स्वीट बनाओ। गुड क्वालिटीज को इंटरनल आइस करके सिर्फ ये बोलो मत कि आप कितने अच्छे, हेल्पफुल काइन्ड या फिर इंट्रेस्टिंग हो बल्कि इन क्वालिटीज को जीना शुरू करो और तब आपकी और आया फिर में बदलाव आएगा। नंबर से वन स्टैंड आउट ऑन पर्पस बहुत सी सिचुएशन में आपको एक ऐसा मौका मिलेगा जहाँ हर कोई कुछ बोलना या फिर किसी बात पर डिसऐग्री करना तो चाहता है लेकिन किसी में भी स्टैंड लेने की हिम्मत नहीं होती। ऐसे मूवमेंट पर आप वो इंसान बन सकते हो जो सही चीज़ के लिए आवाज उठाता है। ऑफ कोर्स आप के इस ऐक्शन से बहुत लोगों फंड भी होंगे। लेकिन ज्यादा प्यार और ज्यादा नफरत बढ़ती अटेन्शन के ही साइज होते हैं।","हम एक ध्यान अर्थव्यवस्था में रहते हैं। पैसा ध्यान का अनुसरण करता है। चाहे आपके पड़ोस में कोई दुकान हो या आपके पसंदीदा YouTuber का व्यवसाय, बिना पर्याप्त ध्यान दिए कोई भी पैसा नहीं कमा सकता है। पैसा उन्हीं के पास आता है जिन्हें तवज्जो मिलती है। यहां तक कि अगर आपका उद्देश्य जितना संभव हो उतने लोगों की मदद करना है, तो आपको सबसे पहले उनका ध्यान आकर्षित करना होगा। इसलिए इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम दूसरे लोगों का ध्यान आकर्षित करने और बनाए रखने के तरीकों के बारे में बात करेंगे।" "अपनी गलती के लिए माफी मांग पाना सोशिअल इन्टेलिजन्स का एक बहुत जरूरी हिस्सा होता है, क्योंकि जो लोग कभी भी बुरा या गलत करके सॉरी तक नहीं बोलते, उनके साथ कोई भी इंसान लंबे समय तक रहना पसंद नहीं करता। लेकिन दूसरी तरफ जो लोग हर समय ही माफी मांग रहे होते हैं या फिर वहाँ झुक रहे होते हैं, जहाँ उनकी कोई गलती नहीं होती, ऐसे लोग भी ईक्वली गलत होते है। छोटी छोटी चीजों पर माफी मांगना एक पॉइंट के बाद पोलाइट बिहेव्यर नहीं बल्कि कॉन्फिडेंस की कमी की तरह दिखने लगता है और यह हमारे लिए एक फॉर्मेशन या एक मंत्र की तरह बन जाता है जिसकी वजह से हम ऐसा ही फील करने लग जाते हैं कि चाहे कुछ भी हो, गलती हमारी ही होगी या फिर अगर हमें सजा भी दी जाए तो हम बिना ज्यादा कुछ बोले उस सजा को एक्सेप्ट कर लेंगे। सही को सही बोलना और गलत को गलत बहुत जरूरी होता है सेल्फ रिस्पेक्ट डेवलप करने के लिए और तभी आज के एपिसोड में हम उन कॉमन चीजों के बारे में बात करेंगे जिनके लिए आपको माफी मांगने की बिल्कुल जरूरत नहीं होती। नंबर वन अपने ओपिनियन के लिए आजकल जहाँ हर दूसरा इंसान किसी की स्पीच से ऑफेंड हो जाता है और वर्ड्स को वाइअलन्स की तरह ट्रीट करता है, ऐसे लोग दूसरों के ओपिनियन्स को रिजेक्ट करके उनकी रेपुटेशन खराब करने की कोशिश करते हैं और उनकी बातों को कॉन्टैक्ट से बाहर निकाल कर लोगों को उनके खिलाफ़ होने के लिए कन्विंस करते हैं। लेकिन ये वही लोग होते हैं जो सच सुनने से डरते हैं और तभी जब भी कोई इंसान ऐसा कुछ बोल देता है जो ये सुनना नहीं चाहते तो ये गुस्से में आ जाते हैं और आपको धमकियाँ देने लगते हैं। ऐसे में ज्यादातर लोग माफी मांगना शुरू कर देते हैं। लेकिन सच बोलने के लिए माफी मांगना खुद को धोखा देने के बराबर है। लेकिन कभी बाद में जब आप ज्यादा मैच्योर बन जाते हो और आपको तब समझ आता है कि हाँ, आप तो गलत ही थे। उस केस में माफी मांगना सही है लेकिन माफी के पीछे कभी भी आपका डर नहीं होना चाहिए। क्योंकि ऐसी माफी दिल से नहीं बल्कि मजबूरी से आ रही होती है। इसलिए अपने बिलीव्स को खोलकर एक्सप्रेस करो और उसके कॉन्सिक्वेन्सस को एक्सेप्ट करो नम्बर टू टॉक्सिक लोगों को अवॉर्ड करना। हमारी लाइफ में बहुत से ऐसे लोग आते हैं जो हमारी लाइफ की क्वालिटी बढ़ाने के बजाय उसे टॉक्सिसिटी से भर देते हैं। ऐसे लोग धीरे धीरे हमारी लाइफ को मुश्किल और हमारी मेंटैलिटी को नेगेटिव बना देते हैं और बार बार हमें डिसअप्पोइंट ही करते हैं। इसलिए ऐसे लोगों के साथ रहना किसी के लिए भी हेल्थी बिल्कुल नहीं होता। और तभी अगर आप ऐसे इंसान को अवॉर्ड करो और उनसे दूर रहो तो चाहे वो आपको कितना भी गिल्टी फील करा ले की आपने कितना गलत काम किया है या इवन? दूसरे लोग भी आपको यही सेम चीज़ बोले हैं। अगर आपको अपने अंदर से यह पता है कि आप उन से दूर रहने पर मेंटली और इमोशनली हेल्थी फील कर रहे हो तो आपको सॉरी बोलने की कोई जरूरत नहीं है। नंबर थ्री खुद पर काम करने के लिए जो भी इंसान अपनी लाइफ में कम्फर्टेबल हो जाता है, वह दूसरों को भी यही सलाह देता है कि वो भी उनकी तरह एक ऐवरेज जिंदगी जीएं और बड़े बड़े सपने ना देखे। जब आप मीडिया के लोगों के बीच में से बाहर निकलने और अपने सपनों को पूरा करने की तरफ बढ़ोगे तब आपको मेहनत करते देख कई लोग आपको थोड़ा स्लो डाउन होने की एडवाइस देंगे। और आपको खुद को बेहतर बनाने के लिए इन डाइरेक्टली आपको गलत बोलेंगे, क्योंकि अगर आप सक्सेसफुल बन गए तो उसका मतलब यह होगा कि वो एक फेल्यर है जस्ट बिकॉज़। उन्होंने अपनी लाइफ में कुछ नहीं करा। वो ये चाहते हैं कि आप भी उन्हीं की तरह बंद कर रहे हो और तभी ऐसे लोगों की सुनने और अपने बड़े सपनों के लिए उनसे माफी मांगने के बजाय उनकी बातों को इग्नोर करो। नंबर फ़ोर वैल्यूएबल चीजों पर खुद के पैसों को खर्च करने के लिए ऐसे बहुत से लोग होते हैं जो हर समय सब को एडवाइस करते रहते हैं कि उन्हें अपनी ज़िंदगी कैसे जीनी चाहिए। वो दूसरों को सक्सेसफुल होने और खुद की मेहनत से कमाए पैसों को खर्च करने के लिए क्रिटिसाइज करते हैं। जो भी इंसान ज़रा बहुत पैसे कमाने सकता है। वो सिर्फ अपने लिए ही नहीं बल्कि अपनी फैमिली और अपनी कम्युनिटी के लिए भी एक ऐसेट होता है। और ये चीज़ साइंटिफिकली प्रूवन है कि जब भी एक फैमिली एक डीसेंट इनकम कमाना शुरू करती है, तब वो खुद ब खुद एनवायरनमेंट और दूसरे लोगों की परवाह करने लगते हैं। तो अगर कोई इंसान आपको टोके, किसी ऐसी चीज़ पर खुद के पैसे खर्च करने के लिए जो आपको वैल्यू प्रोवाइड करती है तो वहाँ भी माफी मांगने की कोई जरूरत नहीं होती। अगर आपने मेहनत की है तो आप उसके रिवॉर्ड्ज़ भी डिज़र्व करते हो। नंबर फाइव चीजें हैं जो आपके कंट्रोल से बाहर है, क्योंकि हर इंसान की लाइफ में ऐसी बहुत सी चीजें या फैक्टर्स होते हैं। जिन्हें वो चाहकर भी नहीं बदल सकता। जिसकी वजह से अगर कोई आपको किसी ऐसी चीज़ की रिस्पॉन्सिबिलिटी लेने को बोले जो आपके कंट्रोल में नहीं है तो वो बेवकूफ़ी है। आपको बस उस अब तक ही अपने ऑफर्स देने होते है। जितना पॉसिब्ली दे सकते हो उसके बाद आपकी कोई जिम्मेदारी नहीं होती है। इसलिए ऐसे केस में गिल्टी, फील, गन्ने या फिर माफी मांगने की कोई जरूरत नहीं होती।","आपने जो कुछ गलत किया है, उसके लिए माफी माँगने में सक्षम होना, सामाजिक बुद्धिमत्ता का प्रतीक है। क्योंकि जो लोग अपनी किसी भी गलती के लिए कभी सॉरी नहीं बोलते वो लोगों को दूर कर देते हैं और कोई भी उनके साथ अपना समय बिताना पसंद नहीं करता है। जो कभी माफ़ी नहीं माँगता और जो हर छोटी-बड़ी चीज़ के लिए माफ़ी माँगता है जो वे करते हैं और नहीं करते हैं, दोनों ही गलतियाँ करते हैं। बहुत अधिक क्षमा मांगना, एक बिंदु के बाद, एक विनम्र व्यवहार की तरह नहीं लगता, यह आत्मविश्वास की कमी जैसा लगने लगता है। यही वजह है कि इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम ऐसी 5 चीजों के बारे में बात करेंगे जिनके लिए आपको माफी नहीं मांगनी है।" "किसी भी इंसान की अंडरलाइन मोटिवेशन को समझना आसान नहीं होता, क्योंकि कोई भी आपको ऊपर से बहुत प्यार जाता सकता है और आपको ऐसा फील करा सकता है जैसे वो आपकी केयर करता है लेकिन अंदर से वो ही इंसान आपको आपके दुश्मनों से भी ज्यादा हिट करता है और आपकी हर अचीवमेंट से जलता है। जीस वजह से ऐसे लोगों को आइडेंटिफाइ करने के लिए इनके बिहेव्यर के पीछे की साइकोलॉजी पता होना जरूरी है और इस एपिसोड में हम ऐसे ही लोगों के कई साइज को डिस्कस करेंगे जो आपको डिस्लाइक करते हैं। लेकिन इस सच को छुपाते हैं नंबर वन आपकी प्रॉब्लम को इग्नोर करना क्योंकि एक अच्छा दोस्त पार्टनर या कोई भी ऐसा इंसान जो आपकी केयर करता है आप जब भी उसे अपनी प्रॉब्लम्स बताते हों तब वो आपकी प्रॉब्लम उसको ढंग से सुनता है और उसके बाद आपकी मदद करने की कोशिश करता है। जबकि एक ऐसा इंसान जो आपको सीक्रेटली पसंद नहीं करता, उसे आप जैसे ही अपनी मुश्किलों के बारे में बताते हो, वो वैसे ही आपकी प्रॉब्लम्स को छोटा दिखाकर अपनी प्रॉब्लम्स डिस्कस करना चालू कर देता है और यह दिखाने लगता है कि उसकी प्रॉब्लम्स को अटेंड करना ज्यादा जरूरी है। ऐसा इंसान आपके कभी काम नहीं आता, इसलिए ऐसे यूज़लेस इनडिविजुअल को अवॉर्ड करो, जो आपकी प्रॉब्लम्स को अपनी प्रॉब्लम्स नहीं समझता। नंबर टू झूठे प्रॉमिसेस एक रिलेशनशिप की डेथ और सीरियसनेस इस चीज़ से बहुत ईजी नापी जा सकती है कि कौन सा इंसान अपने वादों को बार बार तोड़ता रहता है और उसकी बातें और उसके ऐक्शंस मैच नहीं करते हैं। कई बार जब कोई इंसान आपके साथ किसी मजबूरी या अपने मतलब निकालने के लिए होता है तब उसे ऊपर से ऐसी एक्टिंग करनी पड़ती है कि वो आपको सपोर्ट करता है और आप उस पर रिलीज कर सकते हो क्योंकि अगर वो डाइरेक्टली आपके मुँह पर बोल देगा की वो आपको डिस्लाइक करता है तो उसका सारा काम खराब हो जाएगा। इसलिए वो आपको झूठे वादे करके बस आपको टालता रहता है। और बीच में लटकाए रखता है। नंबर थ्री डिस्टैन्स बॉडी लैंग्वेज और एक्स्प्रेशन्स लोगों की बॉडी में होते बदलाव और उनके एक्सप्रेशंस बहुत बीज़ी हमें यह बता सकते हैं कि वह हमारे बारे में क्या सोचते हैं क्योंकि यह सिग्नल अनकॉन्शियस होते हैं और ना चाहते हुए भी। हर इंसान अपने मन की बात सबके आगे अपनी बॉडी के थ्रू रिवील कर रहा होता है। एग्जाम्पल के तौर पर जो भी इंसान आपको उतना पसंद नहीं करता उसकी बॉडी लैंग्वेज क्लोस्ड होगी और उसकी बॉडी ऐसी पोज़ीशन होगी जैसे वो आपसे दूर जाना चाहता हो। उनकी आमस लंबे समय तक क्रोस्ड रहेंगी। उनकी स्माइल बस मुँह की मसल्स को मूव करेगी और वो आपके साथ आई कॉन्टैक्ट रखने और आपको पूरी अटेंशन देने के बजाय इधर उधर या नीचे देख रहे होंगे। नंबर फ़ोर हमेशा ऐसा फील कराना कि आप गलत हो। अगर कोई इंसान मजाक मजाक में आपको नीचा फील करा देता है या फिर हमेशा ही आपकी बातों मेँ कुछ ना कुछ गलती निकालता रहता है जिससे आप डिमोटिवेट हो जाओ तो उसका मतलब वो इंसान आप की उतनी परवाह नहीं करता जितना आप सोचते हो। क्योंकि नोर्मल्ली अगर हमारा कोई अच्छा फ्रेंड, रिलेटिव या पार्टनर कुछ गलत बोलता भी है तो हम रिस्पेक्टफुल्ली उन्हें कई बार बता देते हैं और कई बार उन्हें अपना पॉइंट रखने देते हैं। इवन दो वो गलत होता है तब भी ताकि सामने वाला डिस्करेज ना हो अपना सच बोलने से। इसलिए अगर कोई इंसान ऐसा दिखाएं कि वो हमेशा ही सही होता है और आप हमेशा गलत तो उसका मतलब वो शायद आपको डिस्लाइक करता है और आपको उससे इतना इंटरैक्ट नहीं करना चाहिए। नंबर फाइव आपकी इन्फॉर्मेशन आपको ये बोलती है कि वो इंसान आपको डिस्लाइक करता है क्योंकि अगर इन बातों को सुनके आपके दिमाग में ऑलरेडी एक इंसान की इमेज आ चुकी है और आपके अंदर हमेशा से ही यही आवाज आती है कि वो इंसान आपको पसंद नहीं करता तो इस बात के सही होने के चान्सेस बहुत ज्यादा है। हमें किसी भी चीज़ के बारे में पता होने से पहले हमारा अनकॉन्शस माइंड ऑलरेडी एक बड़ी पिक्चर देख रहा होता है और हम हमारी इंटरवेंशन सपनों या गट फीलिंग के रूप में गाइडेंस देना होता है। इसलिए अगर आपके अंदर किसी इंसान के टुवार्ड्ज़ बहुत स्ट्रॉन्ग नेगेटिव फीलिंग्स आए तो उन्हें इग्नोर करने या दबाने के बजाए उन फीलिंग्स को क्वेश्चन करो और उस इंसान के बिहेव्यर को क्लोजली नोटिस करो नंबर सिक्स सर ऑफिस लेवल पर बातें करना और अपने सच को छुपाना क्योंकि जो भी इंसान आपको पसंद नहीं करता उसका गोल कभी भी आपके साथ खुद के सीक्रेट शेयर करना या आपकी दीप बातों को समझना नहीं होता। जीवन अगर आप उन्हें अपने बारे में कोई सीक्रेट या डीप सिक्स बताओ भी तब भी वो उसकी रिस्पेक्ट कर ले या कन्वर्सेशन की डेथ मेनटेन करने के बजाय काफी ऊपरी और शैलो बातें करना शुरू कर देते हैं। ऐसे इंसान को ना तो आप के बारे में जानने में कोई इंटरेस्ट होता है और ना ही खुद के बारे में आपको बताने में। इसलिए अगर आपकी कन्वर्सेशन्स में सिर्फ आप ही एक डी पर लेवल पर जाने की कोशिश कर रहे हो ताकि आपका बॉन्ड भी डीप हो सके लेकिन सामने से ये चीज़ नहीं आ रही तो मेबी वो इंसान आप पर ना तो ट्रस्ट करता है और ना ही आपको पसंद।","किसी की अंतर्निहित प्रेरणाओं को समझना आसान नहीं है, क्योंकि कोई व्यक्ति आपको सतह पर प्यार और देखभाल दिखा सकता है, लेकिन अंदर से, वे आपके सबसे बुरे दुश्मनों से भी ज्यादा नफरत कर सकते हैं। असली और नकली की पहचान करने के लिए आपको ऐसे नफरत करने वाले लोगों के पीछे के मनोविज्ञान को समझना होगा। तो, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम बात करेंगे उन लोगों की 5 निशानियों के बारे में जो चुपके से आपको नापसंद करते हैं।" "हमारी सोशल इंटरेक्शन हमारी लाइफ और हमारी साईं को शेप करती है और हमारी पर्सनल ग्रोथ को इन्फ्लुयेन्स करती है। ऐसा फील गणना कि आप भी एक ग्रुप से बिलॉन्ग करते हों, जहाँ लोग आपको बहुत प्यार करते है। आप वहाँ सेफ हो और सब पर ट्रस्ट कर सकते हो। यह फीलिंग हमारे लिए साइकोलॉजिकली हेल्थी फील करने के लिए बहुत जरूरी होती है। लेकिन हर समय ही ग्रुप्स में रहने में प्रॉब्लम यह है कि हम कभी भी अपने खुद के ख्यालों को बाहर ला ही नहीं पाते और जीस डायरेक्शन में पूरा ग्रुप जाता है। हमे भी वही जाना पड़ता है। इस तरह से दूसरे लोगों का साथ पाने के चक्कर में हम खुद को ही खो देते हैं, लेकिन ज्यादातर लोग झुंड की सेफ्टी से बाहर निकलें और खुद के साथ समय बिताने से डरते हैं क्योंकि कहीं ना कहीं वह ढूंढना ही नहीं चाहते कि वो असल में है। कौन क्या होगा? अगर उन्हें यह पता चलेगा कि वो जो स्टोरी अपने आप को अब तक सुना रहे थे, वो एकदम झूठी थी और असल में वो अपनी रिऐलिटी को समझने से कोसों दूर है। हर इंसान डीप इनसाइड ये जानता है कि उसे खुद पर काम करने और अपनी लाइफ के डार्केस्ट फ़ैक्स को समझने की जरूरत है। बट जस्ट बिकॉज़ सेल्फ रियलाइजेशन की जर्नी दर्द बहुत ज्यादा रोने धोने और अपने डरो को फेस करने से गुजरती है। हमारी ईगो हमें अपने अनकॉन्शस माइंड को ऐक्सेस करने और उन कड़वे सचो को जानने से रोकती है। इस केस में ईगो हमारे अकेले रहने और अपनी स्टोरी के बदलने का डर होता है और इस डर को हम छुपाते हैं। अपने सोशल मास्क यानी पर्सोना से यह हमारी का एक डिफेन्स मेकनिजम होता है, जो हमें ऐसा फील करने से रोकता है कि हम जीस टेरिटरी में खड़े हैं। हमें उसके बारे में कुछ नहीं पता। इमेजिन करो कि किस तरह से आपके दुनिया पॉलिटिक्स, प्यार, फैमिली, हेल्थ, रिलेटिव, एजुकेशन, खुद को लेकर कई बिलीव्स है जो आपने दूसरों से बात करके सब को ऑब्जर्व करके मूवीज़ देख के गाने सुन कर और अपने एक्सपिरियंस इसके बेसिस पर बनाए। लेकिन अगर आपको एकदम से यह पता चले कि आपके ये सारे बिल्स तो गलत है और आप अब तक जीस नक्शे को नैविगेट करने के लिए यूज़ कर रहे थे, वो नक्शा भी गलत था। ऐसे पॉइंट पर आप एक एग्ज़िस्टिंग क्राइसिस में चले जाओगे, खुद से यह पूछकर कि अगर आप जैसे दुनिया को समझ रहे थे, वो वैसी नहीं है तो वो है कैसी? और अगर आपकी पुरानी अन्डरस्टैन्डिंग गलत थी तो यह चीज़ आपके बारे में क्या बताती है? आप कैसे इंसान हो? क्या आप कोई जली बेवकूफ बनाया जा सकता है कि अब तक बहुत से लोग आपका यूज़ करते आए हैं? क्या मतलब है इस तरह से जीने का? क्या जीना जरूरी भी है? इस क्वेश्चन्स के पहाड़ के नीचे दबने से हर इंसान डरता है। जब भी आप अकेले रहते हो बिना अपने फ़ोन, किसी इंसान या दूसरी डिस्ट्रक्शन के, तब आपका दिमाग आपको इसी डायरेक्शन में खींचने लगता है क्योंकि नैचुरली हमारी साइट हमे सेल्फ ऐक्चुअली सेशन यानी खुद की पूरी अन्डरस्टैन्डिंग की तरफ ले जाने के लिए इवॉल्व हुई है। आपका दिमाग नेगेटिव थॉट्स से भर जाता है और आप उन थॉट्स का पीछा करने और उनके साथ थोड़ा समय बिताने के बजाय खुद को डिस्ट्रैक्ट करने के तरीके ढूंढ़ते हो। आप या तो किसी को फ़ोन मिलाकर उनसे बात करने लग जाते हो या फिर सोशल मीडिया और गेम्स में खुद को फंसा लेते हो। अपने डार्क हिस्सों को जानने का डर हमें हमारी पोटेंशिअल से दूर रखता है। दूसरे लोगों के बीच हम एक स्टूडेंट, टीचर, लवर, बेटा, बेटी या दोस्त होते है। लेकिन जब हम अकेले होते हैं सिर्फ तभी हम अपने ट्रू आइडेंटिटी के पास पहुंचना शुरू करते हैं। हम खुद को अपने इन्हीं रोज़ के साथ आइडेंटिफाइ करके सोचते हैं कि हम बस यही है, लेकिन सॉलिट्यूड में अपनी पर्सनैलिटी के हर वह इससे और अपने बचपन की हर वो मेमोरी जैसे हमने रिजेक्ट कर दिया था। वो एक राक्षस के रूप में हमारी तरफ आने लगता है, लेकिन बहुत से लोग जिनकी विल पावर कमजोर होती है और वो रिऐलिटी की डार्क साइड से बहुत दूर चले गए होते हैं, उनके लिए इस तरह से अपने ऊपर इस राक्षस का हावी होने देना बहुत खतरनाक हो सकता है। जीस वजह से सॉलिट्यूड सिर्फ उन्हीं लोगों के लिए होता है जो रिऐलिटी और सच को समझने की हिम्मत रखते हैं। नीचा गलत नहीं थे। जब उन्होंने ये बोला था कि जीस भी इंसान को लंबे समय तक अकेले रहने में मज़ा आता है या तो वह खुद एक राक्षस है। या फिर एक भगवान जो लोग खुद में कंप्लीट नहीं होते और ना ही कंप्लीट बनने की हिम्मत रखते हैं वो खुद की डार्कनेस को फेस करने से तो बच जाते है लेकिन बदले के तौर पर उन्हें अपनी पोटेंशिअल देनी पड़ती है। ऐसे लोग हमेशा दूसरों पर ऊँगली उठाते हैं। उन्हें और इवन खुद को जज करते रहते हैं और वो हमेशा एक इन्कम्प्लीट प्रोसैस की तरह लगते है जिसपर अभी काम करना बाकी है। ये लोग अपने आपको दूसरे लोगों में ढूंढ़ते हैं और उन पर रिलाय करते हैं। खुश और स्टेबल रहने या फिर अपनी लाइफ का मीनिंग ढूंढने के लिए सॉलिट्यूड हमें इसी इंटर डिपेंडेंसी से बाहर निकाल कर हमे सेल्फ रिलायंस बनना सीखाता है जहाँ हमारे इमोशन्स, हमारी खुशी और हमारी डेस्टिनी हर चीज़ हमारे ही हाथों में होती है और अपने आप को दूसरों से दूर करने की इस स्ट्रेंथ में ही हम उस जर्नी पर निकल पाते हैं जो आउटर वर्ल्ड में नहीं बल्कि इनर वर्ड में होती है और जैसा कि जो विश नॉवलिस्ट फ्रेन्डस काफ्का ने बोला था कि आपको हर समय दूसरों के साथ रहने की जरूरत नहीं है। अपने रूम में रहो, बस शांति से बैठे रहो और सुनो सुनने से भी बेहतर है कि आप सिम्पली वेट करो और स्थिर रहो। दुनिया खुद ब खुद आपके पास अपना नकाब उतारकर आएगी। उसके पास कोई और दूसरी चॉइस नहीं है। सॉलिट्यूड ही सच्चाई को आज़ाद करता है।","एकांत या अपने दम पर रहने की क्षमता वास्तव में आपको अनुरूप झुंड से अलग करती है। लेकिन ज्यादातर लोग कभी भी समूह के आराम और सुरक्षा को छोड़ने में सक्षम नहीं होते हैं, वे अपने स्वयं के नकारात्मक विचारों से डरते हैं जो जब भी वे अकेले होते हैं और खुद को विचलित करने में सक्षम नहीं होते हैं। इसलिए इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम इस बारे में बात करेंगे कि एकांत में रहना इतना फायदेमंद क्यों है, अपने अकेले समय का अधिकतम लाभ कैसे उठाया जाए और यह क्षमता इतनी आवश्यक क्यों है।" "डिप्रेशन एक काफी कॉमन और सिरिअस मेंटल इलनेस है जो हमारी फीलिंग्स, हमारी थिंकिंग और हमारे ऐक्शन को नेगेटिवली इम्पैक्ट करती है। ये इलनेस हमारे अंदर सैडनेस या वैन घर क्रिएट करती है और जो ऐक्टिविटीज़ हमें पहले से काफी इंट्रेस्टिंग लगती थी वो डिप्रेशन में अपना इन्ट्रेस्ट खो देती है। दुनिया में लगभग 30,00,00,000 से ज्यादा लोग डिप्रेस्ड है पर इतना कॉमन होने के बाद भी डिप्रेशन, डिप्रेशन के साइंस और ट्रीटमेंट की अवेर्नेस काफी कम है और यही एक बड़ा रीज़न है लोगों की मेंटल हेल्थ के खराब होने का। क्योंकि अगर कोई इंसान डिप्रेशन में जाता भी है तो उसे पहले से पता ही नहीं होता कि उसे अब करना क्या है और वो ऐसा किसलिए फील कर रहा है? क्या बस उसका मूड खराब है या फिर उसे फीवर या इन्फेक्शन जैसी कोई फिजिकल प्रॉब्लम है? स्टैटस हमें बताते है की इंडिया में लगभग 15,00,00,000 लोगों को अपने मेंटल हेल्थ डिसॉर्डर्स के लिए थेरेपी की जरूरत है, पर उनमें से सिर्फ 3,00,00,000 लोग ही दूसरों की मदद लेते हैं। इसका एक बड़ा रीज़न है हमारी कंट्री में साइकोलॉजिस्ट और साइकियाट्रिस्ट की कमी यहाँ पर हर दो से 6,00,000 लोगों के लिए सिर्फ एक साइकोलॉजिस्ट हैं और अंडर ग्रैजुएट मेडिकल कोर्स भी पर बहुत कम फोकस करते है, जिसकी वजह से काफी सारे साइकिल ड्रेस इंडिया से निकलकर चले जाते है। अब्रॉड जहाँ पर उन्हें यहाँ से ज्यादा ऑपर्च्युनिटीज मिलती है। इसी वजह से डिप्रेशन की समझ बहुत जरूरी है ताकि हम इस बिमारी को शुरू में ही पहचान पाए और अपने आप को इससे बाहर निकल पाए। अगर हम डिप्रेशन के सिम्पटम्स की बात करें तो इसमें हमारी फीलिंग ज़ बिहेव्यर और थॉट्स में कई चेंजेज आते है। जैसे सैडनेस ऐन घर गिल्ट हो प्लेस नेस सोशल विड्रॉल, लैक ऑफ एनर्जी, लो मोटिवेशन, पुअर कॉन्सन्ट्रेशन स्लीप प्रॉब्लम्स चेंजेज इन एपेटाइट पुअर सेल्फ एस्टीम थॉट्स ऑफ सूइसाइड ओर लॉस ऑफ इन्ट्रेस्ट इनमें से अगर पांच या पांच से ज्यादा सिम्पटम्स हमारे अंदर दो हफ्ते से ज्यादा रहते है और उसकी वजह से हमें कोई भी काम करने में मुश्किल होती है तो उसे बोलते हैं मेजर डिप्रेसिव डिसॉर्डर और जब भी हम डिप्रेशन के बारे में सोचते हैं तो हम ज्यादातर मेजर डिप्रेसिव डिसॉर्डर यानी क्लीनिकल डिप्रेशन के बारे में ही बात कर रहे होते है। हाउएवर अगर ये सिम्पटम्स 2 साल के बाद भी नहीं जाते तो उसे बोलते हैं परसिस्टेंट डिप्रेसिव डिसॉर्डर और डिप्रेशन स्पेसिफिक सिचुएशन्स ये हमारी लाइफ में बड़े चेन जिसकी वजह से भी आ सकता है, जैसे पोस्टपार्टम डिप्रेशन, जो कि फीमेल्स में चाइल्ड बर्थ के बाद आ सकता है। इसके साथ ही सीजनल अफेक्टिव डिसॉर्डर डिप्रेशन का वो टाइप होता है जो सनलाइट की कमी से होता है और तभी इसके ज्यादातर केसेस सर्दियों में आते हैं जब लोग अपने घर के बाहर नहीं निकलते हैं। सबस्टैन्स ये मेडिकेशन इन ड्यूस डिप्रेसिव डिसॉर्डर उन लोगों में देखने को मिलता है। जो कोई दवाई ले रहे होते हैं या फिर अल्कोहल या स्टेरॉएड जैसी ड्रग्स को अब यूज़ कर रहे होते है। लास्ट ली डिप्रेशन किसी और मेडिकल कंडिशन का भी रिज़ल्ट हो सकता है। जैसे कई लोगों को आर्थराइटिस, डाइअबीटीज़ एच, आई, वी या इन्फेक्शन जैसी चीजें होती है और वो भी अपनी मेडिकल कंडिशन की वजह से डिप्रेशन का शिकार बन सकते हैं। हाउएवर जस्ट बिकॉज़ डिप्रेशन ऐसा लगता है की कोई बस थोड़ा सा उदास है और उसका कोई सीधा रीज़न भी नहीं होता। कई लोगों के लिए ये समझना मुश्किल होता है कि डिप्रेशन असल में लोगों को कितना कमजोर बना सकता है। और तभी कई लोग बोलते है की अगर डिप्रेस लोग चाहे तो वो थोड़ी कोशिश करके अपने आप को इस साइकल से बाहर निकाल सकते हैं और हर कोई अपने इमोशन्स को कंट्रोल कर सकता है तो तुम भी यह ठान सकते हो कि तुम्हें डिप्रेस फील नहीं करना है, पर जो कभी डिप्रेशन से गुजरा है वो बता सकता है कि डिप्रेशन ऐसा काम नहीं करता और अगर ऐसा ही होता तो कोई भी कभी डिप्रेस होता ही क्यों? क्योंकि हर इंसान ही अच्छा फील करना चाहता है। साइनस अभी भी ढूंढने में लगी है कि डिप्रेशन किस वजह से होता है और इसका हमारे दिमाग पर क्या असर होता है। क्योंकि डिप्रेशन मल्टीडाइमेंशनल है यानी इस को लाने वाले कॉज़ और सिम्पटम्स एक से ज़्यादा है। ऐसा एक कॉज़ है हमारे जीन्स यानी अगर हमारे पैरेन्ट्स या भाई बहन काफ़ी ईज़ी डिप्रेस हो जाते हैं तो चान्सेस है कि हमारे अंदर भी वो क्वालिटी होगी और सिमिलरली इन्वाइरन्मेन्टल फैक्टर्स जैसे अब्यूस निग्लेक्ट फैमिली में किसी की डेथ या फिर फाइनैंशल इनस्टेबिलिटी भी एक इंसान के अंदर डिप्रेशन क्रिएट कर सकती है। पिछले कुछ सालों तक साइअन्टिस्ट काफी शोर थे कि डिप्रेशन हमारे दिमाग में मौजूद केमिकल्स के इम्बैलेंस से होता है। इसे बोला जाता है। द मोमीन हाइपोथीसिस ऑफ डिप्रेशन ये थ्योरी बोलती है की डिप्रेशन और जैसे की कमी की वजह से होता है क्योंकि ये दोनों केमिकल्स रिवॉर्ड और प्लेजर से रिलेटेड है। इस थ्योरी को सपोर्ट करने के लिए कई फाइन जस्ट है जैसे एक जीन जो सिरोटोनिन रिसेप्टर फाइव एस टी टी के लिए जेनेटिक कोडिंग करता है, उसमें ज़रा सा भी वेरिएशन यानी बदलाव आ जाए तो लोगों में स्ट्रेस से होने वाले डिप्रेशन के चान्सेस ज्यादा होते हैं, बजाय उनके जिनके इस जी में कोई बदलाव नहीं हुआ होता। यह इसलिए क्योंकि इस वेरिएशन की वजह से हमारे दिमाग में सिरोटोनिन रिसेप्टर्स का बनना काफी कम हो जाता है, जिससे सिरोटोनिन अपना काम नहीं कर पाता। इसके साथ ही कई ब्रेन एक्सपेरिमेंट ये भी बताते हैं कि डिप्रेस्ड लोगों के दिमाग में डोपामिन रिस्पॉन्स भी बदल जाता है और तभी ऐसे लोगों के लिए एन्टर डिप्रेसिन्स जैसे सिलेक्टिव सेरिटोनिन रीअपटेक इन्हिबिटर्स एस यानी एस एस राइस बेस्ट ऑप्शन होते हैं। एस राइस पर ही सिरोटोनिन के रिलीज को बदल देते हैं, जिससे ब्रेन के हर पार्ट में सिरे टोनल ऑप्टिमल लेवल्स पर आ जाता है। हाउएवर अब साइअन्टिस्ट नई रिसर्च के थ्रू बता रहे हैं कि डिप्रेशन सिर्फ एक सिंपल केमिकल इम्बैलेंस का रिज़ल्ट नहीं है। कई ब्रेन इमेजिंग स्टडीज़ में पता लगा है कि जिन लोगों को डिप्रेशन होता है उनके ब्रेन के कई पार्ट्स जैसे सिंगुलेट कॉर्टेक्स, हिप्पोकैम्पस और मिड्ल मिक्स ग्रे मैटर काफी कम होता है। ग्रे मैटर नर्व सेल्स डेन्ड्राइट्स, सिनैपसिस, कैपिलरीज़ और गलिल से मिलकर बना होता है। ये वही जगह है जहाँ पर सबसे ज्यादा न्यूरोनल सिग्नलिंग होती है। और तभी ग्रे मैटर की वॉल्यूम में चेंजेज होने पर एक इंसान काफी डल ऐब्सेंट माइंडेड और डिप्रेस फील कर सकता है। यानी डिप्रेशन हमारे दिमाग के उन पार्ट्स को काफी छोटा कर देता है जो हमारे इमोशन्स और डिसिशन मेकिंग को कंट्रोल करते हैं जिसकी वजह से पेशेंट्स अपनी केर नहीं कर पाते और इस कॉन्स्टेंट सैडनेस से बाहर नहीं निकल पाते हैं। इसके साथ ही कई साइंटिस्ट के हिसाब से डिप्रेशन, न्यूरोप्लास्टिसिटी या फिर न्यूरोजेनेसिस के कम होने का नतीजा भी हो सकता है। यानी जीस प्रोसेसर के थ्रू हमारे न्यूरॉन्स नई इन्फॉर्मेशन लेते टाइम अपने आप को बदलते हैं। और जीस प्रोसेसर में नए ब्रेन सेल्स बनते हैं। यह इसलिए भी हो सकता है क्योंकि क्रॉनिक स्ट्रेस प्लास्टिक सिटी को नेगेटिव इम्पैक्ट करता है और ऐसे इम्पैक्ट सहमें डिप्रेशन के पेशेंट्स में भी देखने को मिलते हैं। फॉर्चुनेट ली एंट्री डिप्रेसिन्स नए ब्रेन सेल्स बनने की स्पीड को दुबारा से बढ़ा सकते हैं और जो पेशेंट सैन्टर डिप्रेशन लेते हैं, उनमें न्यूरोजेनेसिस बढ़ाने वाला केमिकल बीडीएनएफ यानी ब्रेन डिराइव्ड न्यूरोट्रॉफिक फैक्टर भी ज्यादा होता है। लास्ट ली एक और पोटेंशिअल कॉज़ लिंक्ड हैं। हमारे इम्यून सिस्टम से एक रिसर्च में पता लगा कि जिन लोगों को डिप्रेशन होता है, उनकी बॉडीज़ में साइटोकाइन्स काफी ज्यादा होते है। यह काफी छोटे प्रोटीन्स की कैटगरी है, जो हमारा इम्यून सिस्टम रिलीज करता है। इन्फ्लेमेशन को कम करने के लिए साइटोकाइन्स जेनरली सिकनेस बिहेव्यर में इन्वॉल्व होते हैं। यानी जब हम बीमार होते हैं, तब हमें भूख कम लगती है। हम किसी चीज़ पर कॉन्सन्ट्रेट नहीं कर पाते और हमें हमेशा नींद आती रहती है और तभी सिकनेस, बिहेव्यर और डिप्रेशन के सिम्पटम्स काफी सिमिलर है। सोये थे बोलती है की स्ट्रेस यह बुरी डाइट की वजह से बनने वाले साइटों हमारी न्यूरोट्रांसमीटर सिग्नलिंग को इंटरप्ट कर सकते हैं, जिससे हम डिप्रेस फील करने लगते हैं। और तभी कई डॉक्टर्स अपने पेशेंट्स को बोलते है की वो एन्टर डिप्रेशन के साथ मेडिकेशन जैसे आइब्यूप्रोफेन भी ले सोये थी। कही थी और ईज़ जो एक्सप्लेन कर सकती है कि डिप्रेशन के टाइम हमारे दिमाग में क्या हो रहा होता है। इसके अलावा हम किसी भी इंसान की लाइफ के बारे में जानकारी ये प्रॉडक्ट कर सकते हैं कि क्या वो कभी डिप्रेशन में जा सकता है या नहीं। हम कई चीजों को ऑब्जर्व कर सकते हैं जैसे क्या वो ज्यादा न्यूरॉटिक है? क्योंकि जो लोग इमोशनली स्टेबल होते है वो लाइफ की मुश्किलों में अपने आप को संभाल लेते हैं। पर जो लोग न्यूरॉटिक किया अनस्टेबल होते हैं वो प्रॉब्लम्स के साथ कोप नहीं कर पाते हैं और उन्हें अवॉर्ड करते रहते है। सेकंडली वह खुद को और दूसरों को कैसे देखते हैं? क्योंकि जिन लोगों की सेल्फ एस्टीम लो होती है उनमें नेगेटिव इमोशन्स काफ़ी ईज़ी आ जाते हैं और वह दूसरों को था की तरह देखते हैं। थर्ड ली क्या उनका खाना उनकी बॉडी की नीड्स को पूरा कर पाता है? क्योंकि ज्यादातर लोगों को ये नहीं पता होता की अगर हम अपनी फिज़िक्स चेंज करने के लिए डाइटिंग नहीं कर रहे हैं तब भी हमें कई चीजों को खाना चाहिए और कइयों को नहीं फोर्ट ली। हमें अपने आप से ये भी पूछना चाहिए कि क्या हमारा कोई गोल या ड्रीम है? क्योंकि के हिसाब से हम पॉज़िटिव इमोशन सिर्फ तभी फील करते हैं जब हमें लगता है की हमारा एक गोल हैं और हम धीरे धीरे उसके पास पहुंचते जा रहे हैं। इसे बोलते हैं सिपेट्री रिस्पॉन्स 50 क्या हमारे पास कोई रूटीन या स्केड्यूल है जो हमारे गोल को सपोर्ट कर सके? सेम टाइम पर सोना और अपनी सर्केडियन रिदम को ठीक रखना डिप्रेशन को दूर रखने में काफी बेनेफिशियल साबित हो सकते हैं। क्या हमारे पास सोशलाइज करने के लिए फ्रेंड्स और फैमिली है? क्या हम फाइनैंशली स्टेबल है क्योंकि सिरोटोनिन डाइरेक्टली लिंक है, हमारे पर्सीव्ड स्टेटस से यानी अगर हमें लगता है कि हम फाइनैंशली काफी अच्छा कर रहे हैं तो हमारा ब्रेन हमें रिवॉर्ड करेगा, सेरिटोनिन के साथ और लास्ट्ली क्या हम अपनी नींद पूरी कर रहे हैं? अगर हम गूगल ट्रेंड्स पर देखें कि लोग डिप्रेशन को किस टाइम पर सबसे ज्यादा सर्च करते हैं। वो डिप्रेशन की सर्च रात के 1:00 बजे से लेकर 3:00 बजे के अराउंड पिक करती है और ये साइन हो सकता है इन्सोम्निया लोनलीनेस और उनसे रिलेटेड इंजाइटी का, क्योंकि वो ही होता है जो हमारी **** में कन्वर्ट हो जाता है मिल्टन में जो कि स्लीपिंग यू सिंग होर्मोन है और तभी जो लोग डिप्रेस्ड होते हैं वो या तो कभी ढंग से सो ही नहीं पाते या फिर वो सोने के बाद भी रेस्ट ऐड नहीं फील करते। जिसतरह से डिप्रेशन के कॉज़िज़ बहुत सारे है वैसे ही फॉर्चुनेट ली इसके ट्रीटमेंट भी बहुत सारे है। हम ऑलरेडी डिस्कस कर चूके हैं की एंट्री डिप्रेसिन्स काम करते हैं और तभी अगर हमारे क्लैन एशन ने हमें मेडिकेशन लेने के लिए एडवाइस करा है तो बेटर ऑप्शन यही है कि हम पहले एंटर डिप्रेशन को 4 टु 6 वीक्स तक लेकर देखें और फिर भी अगर कुछ नहीं होता तब हम बाकी ट्रीटमेंट को भी कंसिडर कर सकते हैं। सेकंड ट्रीटमेंट है थेरपी जिनमें कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरपी इंटर, पर्सनल साइकोथेरपी और माइंडफुलनेस बेस्ट कॉग्निटिव थेरपी काफी कॉमन टाइप्स है जो कि काफी इफेक्टिव भी है। थर्ड ट्रीटमेंट है हमारी डाइट क्योंकि डाइट से होने वाली इंफॉर्मेशन को मेडिकल ही टेस्ट करना काफी मुश्किल होता है और तभी ये हमारे रिस्पॉन्सिबिलिटी है की अगर हम ज्यादा टाइम तक डिप्रेस्ड फील कर रहे हैं तो हम अपनी डाइट को इम्प्रूव करे। फोर्थ ट्रीटमेंट रीसेंट्ली काफी पॉपुलर हो रहा है क्योंकि वो है स्पेशल ली और एलएसडी क्योंकि इन दोनों कंपाउंड पर काफी रिसर्च हुई है और जीतने भी डिप्रेस लोगों को ये सबस्टैन्स दिए गए हैं। उन सबके सिम्पटम्स में इम्प्रूवमेंट देखी गयी है और ये चेंजस परमानेंट भी थे। सोये थी हमारी डिप्रेशन पर डिस्कशन और अगर आप भी डिप्रेस्ड हो या फिर किसी और इंसान को जानते हो जो कि डिप्रेस्ड है तो ये समझ लो कि जितनी जल्दी हम डिप्रेशन को ट्रीट करना स्टार्ट कर देते हैं, उतनी ही आसानी से हम उससे बाहर आ सकते हैं। रिमेम्बर, हेल्थ, हैपिनेस और मीनिंग ये हमारी लाइफ की सबसे इम्पोर्टेन्ट चीज़ है। और तभी इन्हें प्राइस करना बहुत जरूरी है। डिप्रेशन किसी को भी हो सकता है और जितना हम इस मैसेज को देंगे उतना ही हम एक दूसरे की हेल्प कर पाएंगे।","अवसाद (प्रमुख अवसादग्रस्तता विकार) एक आम और गंभीर चिकित्सा बीमारी है जो नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है कि आप कैसा महसूस करते हैं, आप कैसे सोचते हैं और आप कैसे कार्य करते हैं। दुनिया में 30 करोड़ से भी ज्यादा लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं। अगर हम भारत में मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति के बारे में बात करते हैं, तो लगभग 15 मिलियन लोगों को चिकित्सा या मानसिक स्वास्थ्य परामर्श के किसी रूप की आवश्यकता होती है, लेकिन केवल 3 मिलियन लोग ही कभी मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर के पास जाते हैं और यह एक बड़ी समस्या है। इस पॉडकास्ट सेगमेंट में मैंने चर्चा की है कि डिप्रेशन क्या है? भारत में लोग डिप्रेशन के बारे में जागरूक क्यों नहीं हैं? पहली जगह में अवसाद का क्या कारण बनता है? अवसाद के सामान्य प्रकार क्या हैं? अवसाद के लक्षण या लक्षण क्या हैं? सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हम डिप्रेशन को कैसे ठीक कर सकते हैं? हमें Youtube पर खोजें: www.youtube.com/psychologyinhindi" "मन की गहराइयों में मौजूद अंधेरा या तो हमें खुद रौशनी का स्रोत बनना सीखा सकता है या फिर वह हमारी बच्ची की चमक को भी खत्म कर सकता है। कुछ ऐसा ही हुआ था जर्मनी फिलॉसफर फ्रेड्रिक नीचे के साथ। इंसान पृथ्वी के हर छोर तक यात्रा कर चुका है, समुद्र की गहराइयों में डुबकी लगा चुका है और खुद को अंतरिक्ष का सफर करा चुका है। लेकिन हमारा मन अभी भी एक ऐसी चीज़ है जहाँ जाने और जैसे एक्स्प्लोर करने की हिम्मत सिर्फ कई गिने चुने लोगों में ही है। पागल हो जाने और बहुत इन 10 स्पेन के डर से ज्यादातर हम लोग अपने मन की सतह पर ही जीते हैं और बिना खुद के सच को जाने ही मर भी जाते हैं। इसके साथ ही मन एक ऐसी जगह है जिसमें नेविगेट करने के लिए हमारे पास कोई मैप, कंपास या गाइड भी नहीं है। हमेशा जगह पर अकेले जाना होता है और खुद ही उसकी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। नीचा एक ऐसे साहसी ऐडवेंचर थे जो मन की गहराइयों में उतरने से जुड़े जोखिम को उठाने के लिए तैयार थे। वो अपनी बुक द डॉन ऑफ डे में लिखते हैं कि मैंने एक ऐसा कदम उठा लिया है जो हर किसी को नहीं उठाना चाहिए। मैं गहराइयों में उतर गया हूँ। मैंने बुनियाद को ही खोदना शुरू कर दिया है। नीचे की इनर एक्सप्लोरेशन की वजह से हमें उनकी कई अनोखी राइटिंग्स मिली है। लेकिन जब वो 45 साल के थे तब उनकी यही इनर एक्सप्लोरेशन पागलपन पर जाकर रुकी और यह चीज़ उन्होंने इस समय से 8 साल पहले ही प्री ऑडिट कर दी थी। उन्होंने अपने एक लेटर में लिखा कि कई बार मेरे मन में एक चेतावनी आती है जो बोलती है कि मैं एक बहुत ही खतरनाक जिंदगी जी रहा हूँ क्योंकि मैं उन मशीनों में से हूँ जो फट सकती है। अपने पागलपन से 1 साल पहले यानी 1888 में नीचे अपने आपको भगवान और महान राजाओं के नाम से एड्रेस करने लगे थे। उनके आसपास रहने वाले लोग बताते हैं कि वो अपने कमरे से कई दिनों तक बाहर नहीं निकलते थे, लेकिन जब बाहर आते तब एकदम ऐसे ऐक्टर करते और नाचते गाते जैसे उन पर कोई भूत सवार हो गया हो और वो जैन्यूअरी थर्ड 1889 का दिन था। जब नीचा सड़क पर चलते हुए एक घोड़े को पीटते देख बहुत ही इमोशनल हो गए और उस घोड़े को गले लगाने लगे। वो वही पर खुद का एक तमाशा बना कर बेहोश हो गए और वहीं से उनका मेंटल ब्रेक डाउन शुरू हो गया। नीचे के इस केस को समझने से हमें ह्यूमन साइकोलॉजी की एक बहुत डीप अन्डरस्टैन्डिंग मिल सकती है। हाउएवर आम तौर पर नीचा के इस पागलपन को न्यूरोसिफलिस जैसी बिमारी का नतीजा बताया जाता है। लेकिन एक जर्मन स्पेशलिस्ट एरिक प्रोडक् नीचे के मेडिकल रिकॉर्ड्स को एग्ज़ैम इन करने के बाद अपनी बुक के मैडनेस ऑफ नीचा में लिखते हैं कि सिफलिस के ऐसे किसी इन्फेक्शन का कोई सबूत नहीं है। और निचा के सिम्पटम्स सिफलिस की बिमारी के साथ कॉन्स्टेंट भी नहीं है। जीवन अमेरिकन फिलॉसफर जूलियन यंग भी अपनी बुक नीचा अब बायोग्राफी में बोलते हैं। कि नीचे के पागलपन का सबसे बड़ा और ऑब्वियस कारण फिजिकल या फिर जेनेटिक नहीं बल्कि साइकोलॉजिकल नेचर का लगता है। लेकिन अगर नीचे को यह मालूम था कि वह खुद के अनकॉन्शस माइंड की डेथ में गुम हो सकते हैं तो उन्होंने फिर भी इतना बड़ा खतरा क्यों मोल लिया? इसके जब आपको हम उनकी बुक गैस साइंस के एक पैसेज में ढूंढ सकते हैं, जहाँ वो बोलते है कि वो असामान्य दर्द और लंबी और स्लो सफरिंग ही होती हैं जिनकी आग में हम जलकर अंतिम गहराइयों तक पहुँच पाते हैं। यानी नीचे ने खुद को जानबूझकर दर्द के कुएं में फेंका। और उनकी इसी सफरिंग की वजह से उनकी फिलॉसोफिकल इनसाइट्स इतनी डीप थी। इसका मतलब एक तरह से उनका इस तरह मन की अनजान गुफाओं में जाना उनके लिए विज़्डम हासिल करने की जरूरत थी ना कि कोई उनकी चॉइस जिससे वह बदल सकते हैं। नीचा जानते थे कि उनके इस काम और सैक्रिफ़ाइस की वैल्यू चाहे उनके जीते जी ना हो और कोई बात नहीं अगर ज्यादा लोग उनकी बुक्स नहीं खरीद रहे हैं। लेकिन फिर भी वो ये मानते थे कि उनकी हर बुक यूनिटी के लिए एक गिफ्ट है। एक लेटर में उन्होंने अपना दर्द जताते हुए लिखा कि मैं 45 साल का हो चुका हूँ। और 15 किताबें पब्लिश कर चुका हूँ। लेकिन अभी तक मेरी किसी भी किताब का एक अकेला अच्छा रिव्यु भी नहीं है। लोग मेरे काम को अजीब, खतरनाक और पागलपन बोलते हैं। मुझे यह सोचकर बहुत दुख होता है कि इतने सालों में किसी एक इंसान ने भी मेरे काम को डिस्कवर्ड नहीं कर रहा, ना मेरी किसी को जरूरत पड़ी और ना ही मुझे किसीने प्यार करां नीचे अक्सर अपने अकेले पन और उससे जुड़े दर्द के बारे में बताते थे। जीवन एक दूसरी फिलॉसफर लू सलोन के साथ एक छोटे अफेयर के बाद भी नीचे के प्रपोजल को उन्होंने तीन बार रिजेक्ट कर दिया। बिना किसी ह्यूमन इंटरैक्शन और कनेक्शन के नीचे खुद को एक ऐसी जमीन से कंपेर करते थे जहाँ पर कभी बारिश नहीं होती और जहा खुश होने की कोई वजह नहीं होती। उनकी बिगड़ती हेल्थ, उनकी किताबों का न बिकना और उनका अकेलापन उनकी मेंटल हेल्थ को खराब करता जा रहा था और इसी दर्द ने उन्हें खुद के अंदर जाकर उस खजाने को ढूंढने के लिए फोर्स करा जो किसी भी इंसान को बहुत ज्यादा नॉलेजेबल और पॉवरफुल बना सकता है। स्विस साइकियाट्रिस्ट अपनी बुक सिंबल्स ऑफ ट्रांसफॉर्मेशन में लिखते हैं कि हमारे मन की सबसे गहरी गहराइयों में या फिर हमारे अनकॉन्शस माइंड के समुद्र के तले पर एक ऐसा खजाना होता है जिसे तक सिर्फ सबसे साहसी लोग ही पहुँच सकते हैं। ये खजाना एक सिंबल होता है जिंदगी के सबसे बड़े सीक्रेट्स का, जिसे अनगिनत तरीकों से मिथोलॉजी के थ्रू एक्सप्रेस कहा जाता है। इंसानों ने हमेशा से ही इस खजाने की लालसा करी है। नीचे अपने अनकॉन्शस माइंड में नीचे जाते गए ताकि वो इस खजाने को पाकर अपने दर्द को सोने में बदल सके। ये एल कमी का अल्टीमेट गोल था कि किसी तरह से प्राचीन केमिस्ट्री को यूज़ करा जा सके। किसी आम धातु को सोने में बदलने के लिए और यही विज़्डम लाइटमैन के केस में भी अप्लाई होती है। क्योंकि हर इंसान यह बात जानता है कि आपकी परसेप्शन और कॉन्शसनेस तब तक नहीं बढ़ सकती जब तक आप दुनिया की डूऐलिटी के पार्ट देखना नहीं शुरू करते हैं और कीचड़ में भी छुपे हुए खजाने को नहीं ढूंढ पाते हैं। इस बात को लिटरल्ली नहीं मेटाफोर निकली समझो कि हर वो चीज़ जिससे आप गंदा और डिस्गस्टिंग समझते हो, उसमें ही आपको ग्रो करने की सबसे ज्यादा ताकत होती है। नीचे ने भी खुद अपनी इन अर जर्नी पर एक लेटर में ये लिखा था कि अनलेस मुझे किसी तरह से एल कमी के कूड़े के ढेर को सोने में कन्वर्ट करने की ट्रिक पता लग जाए। मैं गुम हूँ और मुझे नहीं मालूम। कि मैं अपने मन की इस भूलभुलैया से कैसे बाहर निकलूंगा। हर इंसान दुनिया को अलग अलग लेवल पर एक्सपीरियंस करता है जैसे फिजिकल लेवल, इमोशनल लेवल और साइकोलॉजिकल लेवल। लेकिन अगर हम किसी वजह से सिर्फ एक लेवल के एक्स्पिरियंस में ही अटक गए तो हमारी सफरिंग का कोई अंत ही नहीं होगा। एक डिसेबल्ड इंसान का एक्सपिरियंस फिजिकल पेन और डिसेबिलिटी की वजह से बॉडी के लेवल पर ही रह जाता है। एक इमोशनल इंसान, जो पर्सनैलिटी वाइज काफी सेंटीमेंटल है, उसका एक्सपिरियंस इमोशन्स के बेसिस पर होता है। हाउएवर नीचा साइकोलॉजिकल लेवल पर थक गए थे और उनकी रिऐलिटी और दुनिया को देखने का नजरिया उनकी साइकोलॉजिकल सफरिंग की वजह से 22 था। जीवन भी जब अपने सपनों और अनकॉन्शस माइंड के सबसे फंडामेंटल स्ट्रक्चर को जानने की कोशिश कर रहे थे, तब उन्हें बहुत ज्यादा हैलो से नेशन्स और डरावनी विज़न सामने लगे थे, जो कई घंटों तक उन्हें टॉर्चर करते थे और उनका साइकोलॉजिकल पेन भी इतना ज्यादा बढ़ गया था कि वो हर रात अपने तकिए के पास गन रखकर सोने लगे थे ताकि जीस मूवमेंट में भी उनकी सफरिंग अनबेयरेबल बन जाए। तब वो उसी समय खुद को खत्म कर सकते हैं। आप बस अभी अपने इनकी सतह और उसकी दो तीन अच्छी क्वालिटीज से वाकिफ हों। लेकिन जो काली और रहस्यमयी चीजें आप के अस्तित्व की बुनियाद है, आपको उनका कोई ज्ञान ही नहीं है। हर साइट के एवल्यूशन एक बड़े ब्रेक डाउन से ही शुरू होता है और ये चीज़ आप जितना सोचते हो उससे बहुत ज्यादा कॉमन है हाउएवर एक इंसान इस ट्रांसफॉर्मेशन और साइकोलॉजिकल ऑब्स्टेकल की दूसरी साइट पर सेफ्ली पहुँच पाता है या फिर नहीं ये डिपेंड करता है कि उसकी एक्सटर्नल लाइफ कितनी स्टेबल है। जैसे युग के भी नीचे की तरह हमेशा के लिए पागल हो जाने के पूरे चान्सेस थे। और उन्होंने भी अपनी की बहुत से गहरी इनसाइट्स की मदद से साइकोलॉजी की फील्ड को इतना रिलाएबल और इंट्रेस्टिंग बनाया। लेकिन जिन चीजों ने योग को अनकॉन्शस माइंड की पावर की आगे भी सलामत रखा, वह थी उनकी फैमिली। उनके पेशेंट्स, उनके डेली रूटीन स् उनके बच्चे और उनकी विज़्डम जो उन्हें बोलती थी कि वो अपने विज़न से में दिखी, किसी भी चीज़ से डिटैच रहे, यही तो रीज़न है कि क्यों हाइली ऐडवान्स डी होगी। इस भी अपने मन की गहराइयों से वाकिफ तो होते हैं लेकिन जस्ट बिकॉज़ वो अपनी साइट के कॉन्टेंट से कभी भी कोई अटैचमेंट ही नहीं बनाते। वो अनकॉन्शस माइंड की गिरफ्त से सेफ रहते हैं। लेकिन नीचे की सबसे बड़ी गलती यह थी कि वो खुद को जीसस, बुद्ध, ऐलैक्ज़ैण्डर के ग्रेट और हर बड़े भगवान या फिर वो रिवर्स आइडेंटिफाइ करने लगे थे। नीचे अपने पैरों के नीचे से जमीन खोने लगे थे। जस्ट बिकॉज़ उनकी एक रिऐलिटी को बैलेंस करने के लिए उनकी आउटर रिऐलिटी में कुछ भी नॉर्मल या फिर स्टेबल नहीं था। साइकोलॉजी में इस कंडिशन को बोलते हैं साइकिक इन्फ्लेशन, जहाँ पर एक इंसान की स्प्रे खुद उस इंसान को मन और शरीर के पार जाने के लिए पुश करने के बजाय करप्ट बनकर बस खुद से बड़ी चीजों के आइडिया आइडेंटिफाइ करने लगती है और इसी साइकिक करप्शन से ही सुपिरियोरिटी और गॉड कॉम्प्लेक्स जैसी साइकोलॉजिकल प्रॉब्लम्स कभी जनम होता है। नीचे का पागलपन असली स्पिरिचूऐलिटी से ज्यादा दूर नहीं है। बस फर्क इतना है कि स्पिरिचुअल लोग बोलते है कि हर किसी में भगवान हैं, लेकिन नीचा अपने मन से आइडेंटिफाइ करने की वजह से ये बोलते थे कि मैं ही भगवान हूँ और जैसा कि नीचा ने अपनी बुक देगा साइंस में बोला था कि जो भी अपने अंदर झांककर खुद में समाए ब्रह्मांड को देख लेता है, उसे पता होता है कि ये ब्रह्मांड कितना अनियमित है। और किस तरह से यह हमें अस्तित्व की अंतहीन भूलभुलैया तक पहुंचा सकता है?","फ्रेडरिक नीत्शे अब तक के सबसे प्रभावशाली दार्शनिकों में से एक थे। वह पारंपरिक नैतिकता और धर्म की आलोचना करने के लिए प्रसिद्ध हैं। लेकिन अपने पूरे जीवन में उन्होंने बहुत शारीरिक और मानसिक पीड़ा झेली। पहले दर्द शारीरिक था, फिर मानसिक रूप से भी सताने लगा। धीरे-धीरे वह खुद को पागलपन की ओर ले गया। लेकिन इसके पीछे मुख्य कारण क्या था? कुछ लोग शारीरिक रोगों को जिम्मेदार ठहराते हैं, लेकिन हाल ही में कई विद्वानों का झुकाव स्वप्रेरित पागलपन की संभावना की ओर रहा है। मतलब हो सकता है कि नीत्शे अपनी मर्जी से पागल हो गया हो, उसने यह जोखिम उठाया। इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम इस विचार को और अधिक एक्सप्लोर करेंगे और समझेंगे कि नीत्शे ने जिस तरह से किया उसका अंत क्यों हुआ।" "एक हीटर और एक लवर में ज्यादा फर्क नहीं होता। दोनों के अंदर ही एक ऑब्सेशन और फैसिनेशन होता है। यानी अगर आप प्यार में हो तब भी आप बस उसी एक इंसान के बारे में सोचते रहते हो और अगर आपके अंदर किसी के लिए बहुत ज्यादा नफरत भरी पड़ी है तब भी आपके मन की दीवारों पर उसी इंसान की तस्वीरें लटकी होती है। दोनों इमोशन्स ही आपका फोकस एक जगह से हटने नहीं देते है। प्यार अपने आप में कंप्लीट होता है, जिसकी वजह से हर इंसान जिसे शुरू से ही अच्छी शिक्षा और अपने परिवार या दोस्तों से प्यार मिला हो वो नैचुरली कभी भी एक है। नहीं बनता बल्कि वो एक लवर ही बनता है जो पूरी दुनिया से प्यार करता है और अच्छे बुरे दोनों को एक्सेप्ट करता है। यानी सच्चे प्यार में ऑलरेडी नफरत इन्क्लूडेड होती है। प्यार अच्छे और बुरे दोनों को अपने में संभाल लेता है। लेकिन हेट अपने आप में कंप्लीट नहीं होती क्योंकि हेट पैदा ही तब होती है जब वो प्यार से दूर हो जाती है। एक ऐसे बच्चे के बारे में सोचो जिसकी छोटी उम्र में उसके पैरेंटस चल बसे या फिर उसे एक ऐसा पैरेंट मिला जो खुद अपने पैरेंट से दूर था और उसे जरूरी प्यार नहीं मिला। ऐसी पैरेंटिंग की वजह से ही ट्रामा एक जेनरेशन से दूसरी जेनरेशन में चला जाता है, जिसकी वजह से एक हीटर का जन्म यूज़्वली उसके चाइल्डहुड में ही होता है, जब उसे प्यार नहीं दिया जाता या प्यार के नाम पर बस थोड़ीसी फॉर्मैलिटीज़ कर दी जाती है और इस वजह से उसके अंदर दूसरों के टुवार्ड्ज़ कड़वाहट बढ़ने लगती है। यही रीज़न है कि क्यों एक ही टर्की हेट का सबसे पहला सब्जेक्ट उसके पैरेन्ट्स ही होते हैं। कई बार पैरंट्स के इरादे तो अच्छे होते हैं और उनका दिल भी साफ होता है लेकिन जस्ट बिकॉज़ उनमें खुद प्यार और जिंदगी के जुनून की कमी होती है। तो वो अपने बच्चे को भी ज्यादा कुछ नहीं दे पाते हैं और इस तरह से वो बच्चा बड़े होते होते प्यार को अपने बाहरी ढूंढता रहता है। एक हेटर यह कोशिश करता है कि वो किसी तरह दूसरे लोगों से थोड़ी लाइफ एनर्जी चुरा ले और उसे अपने घावों पर लगाकर कुछ देर के लिए बेहतर फील कर पाए। आज के समय पर इतने ट्रॉमा टाइस लोग इसलिए है क्योंकि सोसाइटी सिर्फ और सिर्फ हमें प्यार को अपनाने की सलाह दे रही है। ऐसा प्यार जिसके दिल में नफरत और बुराइ की कोई जगह ही नहीं है। इसी वजह से आजकल के लोगो का प्यार अधूरा, कमजोर और डेड है। लोगों की नफरत तो होल हैं, लेकिन उनका प्यार इन्कम्प्लीट ये इन्कम्प्लीट प्यार हर समय किसी न किसी चीज़ को ढूंढता रहता है, जो उसमें मिलकर उसे पूरा बना दे। प्यार नफरत को ढूंढ रहा होता है लेकिन वो नफरत से डरता है और इसी तरह नफरत प्यार को ढूंढ रही होती है। लेकिन वह भी प्यार से डरती है और इसलिए वो गुस्से का नकाब पहने रखती है। याद रखो जब भी एक नेगेटिव चीज़ को रिऐलिटी का हिस्सा ना समझकर उसे रिजेक्ट करा जाता है तब वह नेगेटिव चीज़ कमजोर नहीं बल्कि ताकतवर होती है। ***** को बुरा बोलने और ***** की बात करने वालों को भी गलत इंसान लेबल कर देने से लोग एकदम से ***** करना कम नहीं कर देते हैं बल्कि वह उनके दिमाग में और ज्यादा जगह घेरने लगता है। अल्कोहल को बैन करने से लोग एकदम से शरबत पीने की आदत नहीं डाल लेते हैं बल्कि वो छुप छुपकर पीते हैं और अल्कोहल की सेल्स पहले से ज्यादा बढ़ जाती है। हर वो चीज़ जिसे हम अंधेरे में डाल देते हैं, वही चीज़ हमें वापस से अपनी तरफ खींचती है। आज दुनिया में इतने ज्यादा हेटर्स इसलिए है क्योंकि हम लोग हेट को अपनाते नहीं है और दुनिया में मौजूद हेट को और बढ़ाते हैं। अपने हेटर्स से लड़ाई करके एक हीटर तो प्यार से दूर है ही। लेकिन जो इंसान अपने हेटर को भी हेट करने लगता है वो भी अपने प्यार को कमजोर बना लेता है। इसी वजह से आजकल लोगों की नफरत उनके प्यार से ज़्यादा साफ और जिंदा है। लोगों का प्यार इम्पोर्टेन्ट हो चुका है क्योंकि उन्होंने प्यार के सैक्सो ऑर्गन्स को ही काट दिया है। एक हीटर में सच्चे प्यार के पास जाने की ज्यादा पोटेंशिअल है बजाए एक ऐसे इंसान के जो अपने झूठे और इन्कम्प्लीट प्यार को ही कंप्लीट मानता है, क्योंकि उसे ऐसा लगता है कि उसे कुछ करने की क्या ही जरूरत है। उसने तो प्यार को ऑलरेडी एक्सपिरियंस कर लिया है। और वो खुद को या दूसरों को प्यार करना जानता है। इसी थिंकिंग की वजह से ज्यादातर लोग कभी भी सच्चे प्यार में बादलों के बीच उड़ ही नहीं पाते। आपका शरीर प्यार है लेकिन आपके पंख आपकी नफरत है। बिना नफरत की आपका शरीर आपको प्यार की ऊंचाइयों तक पहुंचा ही नहीं सकता और बिना प्यार के आपकी नफरत यानी आप के पंख भी यूज़लेस है। आपका इन्कम्प्लीट प्यार आधा सच है लेकिन आपकी नफरत एक पूरा झूठ और आधा सच हमेशा पूरे झूठ से ज्यादा खतरनाक होता है क्योंकि वो आप को और बेहतर बनने से रोकता है। अगर आप किसी इंसान को पहले प्यार करते थे और अब नहीं तो इसका मतलब यह है कि आपका प्यार हमेशा से कमजोर और अधूरा था, जो ज़रा सी लड़ाई या नफरत से ही खत्म हो गया। प्यार भगवान का घर है जिसमें हर तरह के लोगों को जाने की अनुमति होती है। इसलिए जब एक कल्चर या सोसाइटी अपने प्यार को डिस्क्रिमिनेशन यानी भेद भाव से भर लेता है तब वह अच्छाई और बुराइ को एक दूसरे से अलग कर देता है और यहीं से उस कल्चर में हेटर्स बनना चालू हो जाते हैं। अगर आप अपनी लाइफ में कुछ भी अच्छा करते हो या अपने कैरिअर की दिशा बदलने की कोशिश करते हो और कई लोग आपको पीछे खींचने के लिए टोकते हैं या आपके डिसिशन्स की वजह से आपको बेवकूफ बोलते हैं तो ऐसे लोगों पर कभी भी गुस्सा मत करो। अगर आप ऐक्चुअल में दुनिया में बदलाव लाना चाहते हो तो उन्हें उनकी हेट के जवाब में भी प्यार दो। उन्हें दूरी से देखो वो आप से नहीं बल्कि खुद से कॉन्सर्ट और परेशान है। वो होलनेस को ढूंढ रहे हैं। इसी वजह से हेटर्स ज़रा बहुत दया और प्यार के साथ ही पिघल जाते हैं। बुरे से बुरे लोगों की अकड़ एकदम से कम हो जाती है जब उनकी हैट का जवाब उन्हें सच्चे प्यार से मिलता है। क्योंकि इस तरह से उनके अंदर मौजूद पापी को उनके अंदर मौजूद साधु मिल जाता है। हम इंसान प्यार के भूखे हैं, प्यार पानी की तरह सॉफ्ट तो है लेकिन वो बड़ी से बड़ी चट्टानों को भी घोल देता है। हेटर्स भी आपको उन बड़ी चट्टानों की तरह फील होंगे जब तक आपका प्यार इन्कम्प्लीट होगा लेकिन जब आपके अंदर एक बैलेंस होगा तब आप शैतान को भी प्यार के नशे में नाचना सीखा दोगे। हेटर्स से सिर्फ वही लोग लड़ते हैं जो खुद इनसेक्युर वीक और इन्कम्प्लीट होते हैं और इस वजह से उन्हें अपनी रक्षा के लिए इतना डिफेंसिव होना पड़ता है। उन्हें पता है कि उनका दिल इस समय बहुत कमजोर है इसलिए वो बाहर से हमेशा लड़ाकू और कड़वे बने रहते हैं ताकि दूसरे लोग उनके पहले से कमजोर दिल को तोड़ना दें। यहाँ यह भी ध्यान दो कि एक हीटर और एक क्रिटिक में बहुत डिफरेंस होता है, जहाँ एक क्रिटिक बस वो इंसान होता है जो आपको आपके काम या डिसिशन में कमियां बताता है ताकि आप उन कमियों पर काम कर सको। वहीं एक हीटर जानबूझकर बस आप की कोई कमी ही ढूंढ रहा होता है ताकि उन्हें आपकी पूरी एग्ज़िस्टन्स और आपके पूरे चरित्र को बुरा बोलने का बहाना मिल जाए। हीटर्स आपको हिट करेंगे जब आप बेहतर बनोगे और वो आपके ऊपर हसेंगे जब आप गिरोगे हर इंसान की हेट उसके बारे में ज्यादा बताती है और जिसे वह हेट करता है उसके बारे में कम इसलिए किसी भी है टर्की कोई भी बात अपने दिल पर मत लगाओ। वो आप से नहीं बल्कि खुद से परेशान हैं। हेडर को हेट मत करो क्योंकि ऐसे तो आप भी एक हीटर बन जाओगे। अमेरिकन ऑथर मार्टी या नेल्सन बोलती है कि जब आप रौशनी और अंधेरे को साथ में अपना पाते हों तब वह एक बहुत ही इन लाइटनिंग स्टेट होती है। इसका मतलब होता है कि आपको अब एक्सपिरियंस के बजाय दूसरे को चूज नहीं करना, आपको लव या हेट माफी या सजा, खुशी और दुख या गुस्से और खुले दिल के बीच कोई एक चीज़ नहीं चूज करनी है। आप अब दो भागों में नहीं बंटे हुए हो। आप की कोई फ़ीलिंग आपको लिमिट नहीं करती और ना ही वो अब आपको अपने ट्रू सेल्फ तक पहुंचने से रोकती है। ऐसे आपके पास ह्यूमन एक्स्पीरियंस की उस पूरी रेंज का ऐक्सेस आ जाता है जिन्हें जीने की क्षमता आप में अपने पैदा होने से ही थी। हेटर्स को या तो इग्नोर करो या उनकी नफरत को प्यार में बदल कर उन्हें वापस दो। अगर आप भी उनके साथ लड़ने या फिर करने लगे तो इससे वो अपना नाटक कंटिन्यू रखेंगे। किसी भी हीटर को तब तक सीरियसली मत लो, जब तक वह एक बोली नहीं बन जाता, लेकिन जब तक वह बस कुछ बोल रहा है, आपकी पीठ पीछे आपके बारे में अफवाहें फैला रहा है या आपको गालियां देकर किसी रैन्डम बात के लिए एक्स्क्यूस कर रहा है, तब तक आपको उसकी किसी भी बात पर एक नेगेटिव रिऐक्शन नहीं देना चाहिए। हेटर्स को बस उस शैतान बच्चे की तरह ट्रीट करो जिससे अपने माँ बाप की अटेंशन नहीं मिलती और वो दूसरे बच्चो से अटेन्शन लेने आ जाता है। हेटर्स की हेट में उनकी प्यार की पुकार को सुनो जिसतरह से एक फूल के कांटे बस उस फूल को सेफ रखने के लिए होते हैं बिल्कुल ऐसे ही हेटर्स का गुस्सा, जेलेसी और चिड़चिड़ापन भी। बस उनके वो काटे हैं जो उनके अंदर मौजूद एक जख्मी बच्चे को प्रोटेक्ट करते हैं। इसलिए नफरत करने वाले पर भी दया दिखाओ, क्योंकि अगर साइकोलॉजी की नॉलेज आपको वाइज़ और ज्यादा काइंड ना बनाएं तो आपने क्या हिस्सा इकोलॉजी पड़ी है?","नफरत करने वाला वह होता है जो आपको बहुत नापसंद करता है और आपको हतोत्साहित करता है। लेकिन उसके मूल में, एक नफरत प्रेमी से अलग नहीं है। दोनों अपनी चिंता के विषय पर मोहित हैं। हालाँकि, प्यार पूरा है लेकिन प्यार से अलग होने से नफरत पैदा होती है, इसलिए प्यार अधूरा और कमजोर भी हो जाता है। यह वह अंतर्दृष्टि है जिसका उपयोग हम इस पॉडकास्ट सेगमेंट में नफरत करने वाले के दिमाग के अंदर यात्रा करने के लिए कर रहे हैं और सीख सकते हैं कि हम नफरत से कैसे निपट सकते हैं और अपने नफरत करने वालों को कैसे संभाल सकते हैं।" "इस साइकोलॉजिकल फ़ैक्स के एपिसोड में हम जानेंगें कि क्यों उदास लोगों को ज्यादा नींद आती है? किस तरह की बुक्स आपको ह्यूमन बिहेव्यर की सबसे गहरी अन्डरस्टैन्डिंग दे सकती है? कैसी बॉडी लैंग्वेज आपको ज्यादा फोकस करने और तेजी से याद करने के काबिल बनाती है? क्यों इन्टेलिजन्ट लोग ज्यादा चिड़चिड़े होते हैं और क्यों कई लोगों को दूसरों को गुस्सा दिलाने में मज़ा आता है। यह फ़ैक्स आपको सिर्फ दूसरों को डीप्ली समझने में ही नहीं बल्कि उन्हें मैनेज करने और आपकी लाइफ को ज्यादा आसान बनाने में भी मदद करेंगे। तो शुरू करते हैं फैक्ट नंबर वन। ओपन बॉडी लैंग्वेज रिटेन समोर इन्फॉर्मेशन आपको ऑलरेडी ये बात मालूम होगी कि जब हम किसी इंसान की बात से एग्री नहीं करते तब हम खुद ब खुद अपनी आमस और लेग्स को क्रॉस कर लेते हैं। लेकिन आपको यह जानकर हैरानी होगी कि क्लोस्ड बॉडी लैंग्वेज का असर सीधा हमारे खुद के दिमाग पर पड़ता है, क्योंकि एक लोस बॉडी दिमाग को ये सिग्नल भेजती है कि जो कुछ भी एनवायरनमेंट में हो रहा है, उसे प्रोसेसेस करने की कोई जरूरत नहीं है और तुम बस अपनी सुरक्षा पर ध्यान दो। क्लोज़ बॉडी का मतलब है कि मेरा ध्यान खुद को बचाने और खुद को दूसरों से दूर रखने पर है। यह बॉडी लैंग्वेज और बिहेव इर संदेहजनक लोगों के आसपास तो सही काम करता है लेकिन जब भी हमें कुछ याद करना होता है, कोई बुक रीड करनी होती है। ये किसी काम पर फोकस करना होता है। तब हमें क्लोज़ बॉडी पोस्चर के साथ अपनी लर्निंग को ऑप्टिमाइज़ नहीं कर सकते हैं। इसलिए जब भी आप पढ़ने या कोई जरूरी काम करने बैठो तो अपनी आर्म्स और स्पेशल ली लेग्स को एक दूसरे पर क्रॉस करके नहीं बल्कि उन्हें सीधा रखकर बैठे हो। इससे आप कॉन्सन्ट्रेट भी ज्यादा अच्छे से कर पाओगे और आपको ज्यादा चीज़े ज्यादा लंबे समय तक याद रहेंगी। फैक्ट नंबर टू इन्टेलिजन्ट पीपल आर ईज़ी इरिटेटेड यह एकदम सच है कि जो भी इंसान ज्यादा इंटेलीजेंट होता है वो दूसरे लोगों से बहुत ईजी, इरिटेट ये गुस्सा हो जाता है। चाहे यह इन्टेलिजन्ट इंसान एक हाई लेवल कॉलेज प्रोफेसर हो जो अपने स्टूडेंट्स को अच्छे से ट्रीट ना करता हो और खडूस बना रहता हो या एक इन्टलेक्चुअल जो दूसरे लोगों को अपने से नीचे समझता है। जस्ट बिकॉज़ वो उनसे ज्यादा इंटेलीजेंट हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि इन्टेलिजन्ट होना सीधा सीधा जुड़ा हुआ है। एक स्ट्रोंगली गो होने से इन्टेलिजेन्स और ईगो हम इनसानों में बहुत रीसेंट्ली इवॉल्व हुए हैं, क्योंकि पहले तो हम इंसान जानवरों की तरह ही रहते थे और हमारे अंदर कोई भी सेन्स ऑफ इंडिविजुअलिटी भी नहीं थी। हम झुंड में ही काम करते थे, लेकिन जैसे जैसे हमारे अंदर बुद्धि विकसित होने लगी, वैसे वैसे हमारी इंडिविजुअलिटी यानी ईगो भी स्ट्रॉन्ग होने लगी। जिसकी वजह से एक इंसान जितना ज्यादा इंटेलीजेंट होगा उतना ही उसके अंदर मैं भी ज्यादा होगी। इसलिए इन्टेलिजेन्स और विस्डम का बैलेंस सिर्फ और सिर्फ इन्टेलिजेन्स होने से बेटर होता है। इन्टेलिजन्ट होने का मतलब है कि आप मॉडर्न एनवायरनमेंट को अच्छे से परखने और समझने के काबिल हो, लेकिन वाइज होने का मतलब है कि आपको पास्ट की भी समझ है और आप उसके बेसिस पर फ्यूचर को भी प्रेरित कर सकते हो। फैक्ट नंबर थ्री रीडिंग फिक्शन इम्प्रूव सोशल स्किल्स बहुत से लोग सोचते हैं कि लिटरेचर पढ़ने में कुछ नहीं रखा और सिर्फ नॉन फिक्शन बुक्स इ रियल लाइफ में काम आती है, पर यह बहुत ही फुलिश थिंकिंग है क्योंकि जो ह्यूमन बिहेव्यर की नॉलेज आपको एक स्टोरी दे सकती है, वो नॉलेज एक नॉन फिक्शन बुक्स से लेना इम्पॉसिबल है। स्टोरीज़ आपके अंदर ज्यादा गहराई में उतरने की काबिलियत रखती है, जबकि सूखे और मरे हुए साइंटिफिक फैक्स आपकी बुद्धि तक जाकर ही रुक जाते हैं। हमारा दिमाग में टास्क फोर्स यानी रूपकों को पकड़ने में बहुत सक्षम होता है और हमें कोई भी बात सुनकर ही यह पता चल जाता है कि हाँ, यह सच है जबकि लॉजिक की स्ट्रेटफॉरवर्ड नेस। हमें उतने अच्छे से समझ नहीं आती और उससे हमारे दिमाग में घुसने में भी ज्यादा समय लगता है। दुनिया में ऐसे बहुत से कल्चर्स है जो बस कहानियों से लोगों को हील करते हैं। क्योंकि स्टोरीज़ अनकॉन्शियस मेमोरीज़ को ट्रिगर करके उन्हें कॉन्शस माइंड में लाने का काम बहुत अच्छे से कर पाती है, चाहे आप का कोई भी ड्रामा हो, आप मिथोलॉजी या क्लासिक लिटरेचर को पढ़कर खुद को हील कर सकते हो और ह्यूमन साइकोलॉजी को एक बहुत ही डाइजेस्ट टेबल फॉर में कॉन्स्यूलर कर सकते हो। स्टोरी में दिए करैक्टर्स के थ्रू फैक्ट नंबर फ़ोर हैपिनेस डिक्रीस स्लीप जितना ज्यादा आप खुश रहते हो, मस्ती करते हो और स्ट्रेस नहीं लेते, उतना ही आपके अंदर नींद की जरूरत गिरने लगती है। जबकि दूसरी तरफ जब आप दुखी रहते हो बहुत ज्यादा स्ट्रेस लेते हो या कुछ भी ऐसा काम नहीं करते जिससे आपको खुशी मिले तो आपकी नींद की जरूरत ऑटोमैटिकली बढ़ने लगती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि लंबे समय तक दुख और तनाव हमारी बॉडी को स्ट्रेस केमिकल से भरे रखते हैं। इन केमिकल्स की वजह से हमारा शरीर बहुत घिसता है और अपने आप को सुरक्षित रखने के लिए बहुत मेहनत लगाता है। इस मेहनत की वजह से आप बिना कुछ करे ही थके हुए फील करते हो क्योंकि चाहे आप फिज़िकली अपनी बॉडी को मूव भी ना करो लेकिन स्ट्रेस की वजह से आपके ओर गन्स आपकी ट्रीस आपका दिमाग हर चीज़ ही ओवर टाइम काम कर रही होती है और इसी वजह से डिप्रेस्ड या स्ट्रेस लोगों को ज्यादा नींद आती है। फैक्ट नंबर फाइव सम पीपल कैन लर्न मोर थ्रू वैन घर 2007 में हुई एक स्टडी में पता चला कि जहाँ ज्यादातर लोगों को तब बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता जब कोई इंसान उन्हें एक गुस्से वाले लुक में देख रहा हो। वहीं जिन लोगों में टेस्टोस्टरोन ज्यादा होता है उन्हें गुस्सैल चेहरे प्लेजर देते हैं और वो जानबूझकर लोगों को गुस्सा होने के लिए उकसाते हैं। यही रीज़न है कि अगर आप एक गुस्से वाले इंसान को रोकना चाहते हो तो इसका बेस्ट तरीका होता है। खुद गुस्सा ना हो ना क्योंकि ऐसे लोगों को मज़ा आता है जब वह दूसरों को भी गुस्सा और चिड़चिड़ा होते हुए देखते हैं। कई लोग हर समय छोटी मोटी लड़ाईयाँ करते हैं। एक किक लेने के लिए रिसर्च में तो ये भी पता चला कि उनके सारे हाइ टेस्टॉस्टोरोन वाले पार्टिसिपेंट्स किसी इन्फॉर्मेशन को याद रखने में ज्यादा सक्षम थे। जब उन्हें वो इन्फॉर्मेशन एक गुस्सैल चेहरे के थ्रू दी गई। इसलिए इस फैक्ट को अपने फायदे के लिए यूज़ करो और गुस्से वाले लोगों को शांति से मैनेज करने की आदत डालो वरना वो तो कभी नहीं रुकेंगे। फैक्ट नंबर सिक्स स्पीक स्लो ऐंड टेक पॉज़ीस किसी से भी बात करते हुए सही समय पर पॉज़ लेने से आपकी स्पीच ज्यादा इफेक्टिव बन जाती है। इसके साथ ही कुछ भी बोलते हुए जल्दी मत मचाओ। इससे आपकी बातों में कोई मिस्ट्री नहीं रहे गी। काम और कॉन्फिडेंट रहकर बोलने और बीच में बार बार पॉज़ लेने से आप दूसरे इंसान के मन में ऐन्टी सिपेट्री डोपामिन रिस्पॉन्स को ट्रिगर करते हो यानी उन्हें यह सोच सोचकर ही किक मिलने लगती है कि आपका अगला वर्ड या सेन्टेन्स क्या होगा? बोलने की स्पीड कम होने से आप उन्हें यह सिग्नल नहीं दोगे कि आप उन से कुछ लेना चाहते हो या अपनी कोई बात मनवाना चाहते हो, बल्कि आप ऐसे ज्यादा कमान्डिंग और ज्यादा चार्मिंग लगते हो, जबकि तेजी में बोलता हुआ इंसान ऐसा लगता है जैसे उसे ऐंगज़ाइइटी हो रही हो या वो बस अपनी किसी बात को प्रूव करना चाहता हो हाउएवर आप ने अपनी स्पीच में बहुत ज्यादा स्लो भी नहीं हो जाना, क्योंकि ऐसे आप बस लेज़ी लगोगे। धीरे बोलने का मतलब बस इतना है कि आप काम हो और अपने हर जरूरी कमेंट के बाद लोगों का ध्यान अपने ऊपर लाने के लिए एक छोटा सा पड़ लेते हो। फैक्ट नंबर सेवन ही इट इस बेटर दैन ऐप थी। साइंस बताती हैं कि जो भी पैरंट्स अपने बच्चों के टुवार्ड्ज़ हेल्पफुल होते है, उनके बच्चे फिर भी बड़े होकर कम स्ट्रगल करते हैं। ऐस कम्पेरड टु वो बच्चे जिनके पैरंट्स उन्हें ऐसे ट्रीट करते है जैसे वो एग्ज़िस्टिंग नहीं करते हैं। यानी सबसे अच्छा पैरेंट तो वो होता है जो अपने बच्चों को प्यार भी करता है, लेकिन उन्हें कुछ गलत करने पर डांटता भी है ताकि उस बच्चे में सही और गलत की समझाने लगे। उसके बाद होता है वह पैरेंट जो बस अपने बच्चों को डांटता ही रहता है। लेकिन उसकी डांट में ही उसकी केर छुपी होती है। ये चीज़ हमने अपने हाउ टू डील विद हेटर्स वाले एपिसोड में भी डिस्कस करी थी कि कैसे हट और लव में ज्यादा डिफरेन्स नहीं होता। हर हैटेक इनर्वल एबिलिटी और एक प्यार की कमी से निकल कर आ रही होती है। इसी वजह से ये चीज़ पैरेंटिंग में भी ऑब्जर्व कर दी गई है कि ईव अनेक हेटफुल पैरेंट भी एक ऐसे पैरेंट से बेटर होता है जो अपने बच्चों की केर ही नहीं करता। अगर उसके बच्चे स्कूल में अच्छे मार्क्स लाए तब भी उसे कोई फर्क नहीं पड़ता और अगर उन्हें कोई चोट लग जाए तब भी उनमें कोई ज्यादा इमोशन उठकर नहीं आता। इस तरह की पैरेंट इंग्लिश पैरेंटिंग होती है क्योंकि ऐसे बच्चा ये सोचने लगता है कि वो तो इतना बुरा है कि वो नफरत के और अपने माँ बाप की डांट के लायक भी नहीं है। इसलिए अगर आपको भी कोई इंसान हेट करता है तो आपको उसके पीछे की साइकोलॉजी पता होना बहुत ज़रूरी है ताकि आप उनके हेट के पीछे छुपी चोटों और केर को देख पाओ बजाय बस लोगों को उनके भारी रूप में जज करने के","मनोविज्ञान की समझ अपने स्वयं के भत्तों के साथ आती है। एक बार जब आप समझ जाते हैं कि मनुष्य कैसे और क्यों व्यवहार करते हैं, तो आप अजीब परिस्थितियों से नेविगेट कर सकते हैं, वृद्धि प्राप्त कर सकते हैं, अधिक बिक्री कर सकते हैं, दूसरों की सहायता कर सकते हैं, अधिक सफल हो सकते हैं, अधिक पैसा कमा सकते हैं, लोगों को प्रभावित कर सकते हैं, अपने जीवन की गुणवत्ता में सुधार कर सकते हैं और बहुत कुछ कर सकते हैं। इन मनोवैज्ञानिक हैक्स का उपयोग करके आप न केवल अच्छी तरह से संवाद करने और बेहतर सामाजिक संबंध बनाने में सक्षम होंगे बल्कि आप खुश भी होंगे, अपनी उत्पादकता बढ़ाएंगे, अपने स्वास्थ्य में सुधार करेंगे और तेजी से सीखेंगे/पढ़ेंगे। हमने 7 सरल लेकिन चौंकाने वाले मनोवैज्ञानिक तथ्यों और तरकीबों पर चर्चा की है जो मनोविज्ञान और मानव व्यवहार के बारे में आपके ज्ञान को बढ़ाएंगे।" "इग्नोरेड और अब ऐंड फील करने से बुरा कुछ नहीं होता, क्योंकि आप इस कन्फ्यूजन में होते हो कि दूसरा इंसान एक्चुअल में अब आपसे बात नहीं करना चाहता या फिर क्या उसका अटैचमेंट स्टाइल ही कुछ ऐसा है, जहाँ उसे अपनी स्पेस चाहिए होती है? जब भी आप इग्नोर फील करोगे तब आपको ऐसा लगेगा जैसे आप की कोई वैल्यू ही नहीं है और आप में कोई ऐसी कमी है जिसकी वजह से लोग आपके साथ एक दीप बॉन्ड नहीं बनाना चाहते हैं? लेकिन असलियत में इस तरह के ख्याल आपको और ज्यादा सेंसिटिव और सोसिअल्ली ऑक्वर्ड बनाते हैं। इसलिए आज हम सीधा उन रीज़न की बात करेंगे। इस वजह से लोग आपको इग्नोर करना शुरू कर देते हैं। रीज़न नंबर वन यू अर फुल ऑफ नेगेटिविटी ऐंड सेल्फ डाउट सबसे पहले इसी बारे में बात करते हैं कि किस तरह से आपको यह लग सकता है कि दूसरे लोग आपके साथ टाइम स्पेंड नहीं करना चाहते हैं और यह सोचकर आप दुखी हो जाते हो, जबकि उनके दिमाग में आपके साथ हैंगआउट ना करने का रीज़न यह हो सकता है कि आप तो बस हमेशा ही दुखी और नेगेटिव रहते हो, यानी आपके अनमोल टेक फील करने का कॉन्सिक्वेन्स दूसरों का आपको इग्नोर करने का रीज़न हो सकता है, क्योंकि कौन ही आपके साथ बैठकर ये सुनेगा? कि किस तरह से आपको कोई पसंद नहीं करता। आपकी किस्मत कितनी बुरी है या फिर दुनिया कितनी मतलब ही है? आप ऐसा करके बेसिकली दूसरों को कन्विंस कर रहे होते हो, यह बिलीव करने के लिए कि आप एक लूँ सर हो और आप से दूर रहना, यह अच्छा है। इसलिए अपनी नेगेटिव थिंकिंग और सेल्फ डाउट को अपने तक ही रखो और आपको बहुत जल्द ही दूसरों का बिहेव्यर चेंज होते हुए भी दिखेगा। रीज़न नंबर टू यू आर सेल्फिश किसी भी रिलेशनशिप को जो क्वालिटी सस्टेन करती है वो होती है सेल्फ्लिस नेस। सेल्फिश लोगों को लॉन्ग टर्म रिलेशनशिप मेनटेन करने में बहुत मुश्किलें आती है। क्योंकि कोई भी किसी ऐसे इंसान के साथ रहना पसंद नहीं करता जो बस खुद के बारे में सोचता रहता है। हमेशा खुद के बारे में बात करना यह दिखाता है कि आप को दूसरों में कोई इंटरेस्ट ही नहीं है और कोई भी आपको अपने समय क्यों देगा, जब उसे पता है कि आप मतलब ही हो इसलिए दूसरों को भी इम्पोर्टेन्स देना सीखो और कभी सेल्फ्लिस बनकर भी देखो कि आप के इस बिहेव्यर का दूसरों पर क्या इम्पैक्ट पड़ता है। रीज़न नंबर थ्री यू आर करेंगी। ऐसे लोगों के अराउंड रहना बहुत ही अनकंफर्टेबल होता है, जो हमेशा दूसरों का अप्रूवल सीख करते हैं और खुद के पैरों पर खड़े नहीं हो पाते हैं। अगर आप बहुत ही ज्यादा नीडी हो और हमेशा वैल्यू देने से ज्यादा लेने की कोशिश करते हो तो £1 के बाद यह चीज़ दूसरों के लिए बहुत ही एग्ज़िस्टिंग और प्रेडिक्टेबल बन जाती है। एक नीडी और कलिंग इंसान के अराउंड लोग ऐसा फील करते हैं, जैसे उनके शरीर पर एक लीड चिपक गई है और उनका खून पिये जा रही है। इसलिए अगर कोई आपसे दूर होने की कोशिश करें आपकी नीड इन एस या फिर क्लीनलीनेस को देखकर तो उसे थोड़ी स्पेस दो। अगर कोई कन्टिन्यूसली ये बोल रहा है कि वो आपसे बात नहीं कर सकता क्योंकि वो बीज़ी है तो उसकी बात मानो और उनके खुद आपके पास आने की वेट करो। रीज़न नंबर फ़ोर यू डोंट टेक एनी थिंग सीरियसली। अगर आप हर मीटिंग पार्टी या फिर गैदरिंग के लिए लेट होते हो और बहुत बार लोगों के साथ अपने प्लैन्स को आखिरी मोमेंट पर कैंसिल कर देते हो और अगर आप अनजाने में अपने प्रॉमिसेस को भी तोड़ देते हो तो ज़ाहिर है कि आप इग्नोर करने के लायक ही हो। जीवन आप खुद भी अपने जैसे इंसान के साथ रहना पसंद नहीं करोगे। सिंसेरिटी किसी भी तरह के रिलेशनशिप में बहुत अट्रैक्टिव लगती है क्योंकि एक सिनसिअर इंसान वो होता है जिसकी बातें विश्वास करने के लायक होती है। इसलिए अगर आप किसी चीज़ को सीरियसली नहीं लेते और अपनी ही दुनिया में गुम रहते हो तो ये चीज़ दूसरों को दिखाती है कि आप उनकी कोई रिस्पेक्ट नहीं करते हैं और कोई भी इंसान किसी ऐसे के साथ क्यों ही रहेगा जो डिस रिस्पेक्टफुल और रिलाएबल है। रीज़न नंबर फाइव यू मेजर लव ऐंड केर इन टर्म्स ऑफ मनी ऑफ कोर्स, गिफ्ट्स एक्स्चेंज करना और एक दूसरे पर अपना हार्ड मनी लगा ना एक साइन हो सकता है कि आप उस इंसान की परवाह करते हो लेकिन अगर आपका प्यार को नापने का अकेला तरीका सिर्फ पैसा ही है तो ये चीज़ दूसरों को बहुत ज्यादा हर्ट करेगी। प्यार और केयर बहुत से रूप में जताए जाते हैं। चाहे वो साइकोलॉजिकल सपोर्ट और अन्डरस्टैन्डिंग हो या फिर फिज़िकली एक दूसरे को कंफर्टेबल फील कराना। हर ऐसा छोटा जेस्चर आपके प्यार करने की क्षमता को दर्शाता है लेकिन अगर आप लोगों से नाराज हो जाते हो और ये बोलते हो कि वो आपके लिए एनफ नहीं करते, आपको ज्यादा स्पेशल फील नहीं कराते और आपका इशारा क्लियरली पैसों की तरफ होता है तो ऐसे में क्यों कोई आपको इग्नोर ना करें? रीज़न नंबर सिक्स यू वास् फॉर टू मच कई लोगों की अपने रिलेशनशिप में बहुत सी डिमांड होती है। और ये अपने आप में एक गलत चीज़ नहीं है। मैं तो कहता हूँ कि हाई एक्सपेक्टेशन्स और हाई स्टैन्डर्ड रखो लेकिन आपकी एक्सपेक्टेशन्स हर इंसान के लिए उतनी ही होनी चाहिए जितनी वो पूरा करने के कैपेबल हो। कभी भी एक सिविक से ये एक्सपेक्ट मत करो कि वो एक फर्रारी की तरह चले। जहाँ कई लोग खुद की हेल्थ की केयर करते हैं, अपनी ग्रोथ पर फोकस करते है और खुद को स्पिरिचुअली भी डेवलप करने की कोशिश करते हैं। वहीं दूसरे लोगों के लिए यह सब बहुत ज्यादा काम होता है और उनसे ये सब एक्सपेक्ट कर नाफेड नहीं होगा इसलिए हर इंसान से उनकी पोटेंशिअल के हिसाब से एक्स्पेक्टेशन रखो। और गिनती के लोगों के अलावा ज्यादातर लोगों से कुछ एक्सपेक्ट ही मत करो। रीज़न नंबर से वन, यू हैव नथ्थिंग इंट्रेस्टिंग टू से बोर्ड हम एक और बड़ा कारण होता है कि क्यों कोई इंसान किसी के साथ रहना और बात करना बंद कर देता है। अगर आपने लाइफ को लेकर ज्यादा कोई पैशन नहीं है, आपके कोई बड़े इंटरेस्ट नहीं है और आपको दुनिया के बारे में भी ज्यादा नहीं पता तो आपसे बात करना एक पॉइंट के बाद काफी बोरिंग हो जाएगा। इनिशियल एक्साइटमेंट के बाद चाहे वो आपका पार्टनर हो, फ्रेंड हो या फिर कोई और इंसान, वो आपसे खुद ही दूरी बनाने लगे। गा कोई भी एक दल इंसान के साथ रहना नहीं पसंद करता। रीज़न नंबर एट यू आर रूड, ऑलवेज रेडी टू आर यू खुद के ओपिनियन्स होना और अपनी बातों को एक्सप्रेस कर पाना अच्छी बात होती है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं होता कि आप खुद की बातों को सही प्रूव करने के लिए दूसरों की इनसल्ट करो और ऐसा प्रिटेंड करो जैसे आपको तो हर चीज़ की नॉलेज है और आप हमेशा सही होते हो। कई बार जब आप को दूसरों की प्रॉब्लम्स का एग्ज़ैक्ट सल्यूशन पता होता है, तब वहाँ सिचुएशन के हिसाब से अपना मुँह बंद रखना एक बेहतर ऑप्शन हो सकता है, क्योंकि अक्सर लोग अपनी प्रॉब्लम उसका कोई सलूशन नहीं चाहते। बल्कि वह बस अपनी फ्रस्ट्रेशन को एक्सप्रेस करना चाहते हैं और किसी ऐसे इंसान के साथ रहना चाहते हैं जो उनकी बातों को बस सुने। इसलिए चाहे आप किसी से स्ट्रोंगली डिसऐग्री करते हो या फिर उनकी गलती को क्लियरली देख पा रहे हो तब भी हमेशा आर यू करने से बेहतर होता है कि आप प्रॉपर सोशल कोर्ट को भी ध्यान में रखो और जितना हो सके उतना पोलाइट रहो। वरना अगर आप हमेशा ही बिना मांगे अपने ओपिनियन्स दूसरों पर थोपते रहोगे तो वो भी आपको इग्नोर और अवॉर्ड करना शुरू कर देंगे।","उपेक्षित और परित्यक्त महसूस करने से बुरा कुछ नहीं है क्योंकि आप भ्रमित हैं, यह सोचकर कि क्या उन्होंने आपकी किसी गलती की प्रतिक्रिया के रूप में ऐसा किया है या यह सिर्फ इतना है कि उनके लगाव की शैली से उन्हें अपना व्यक्तिगत स्थान बनाए रखने की आवश्यकता है। जब भी आप उपेक्षित महसूस करेंगे, ऐसा लगेगा कि आपका कोई मूल्य नहीं है। लेकिन वास्तव में यह सिर्फ आपके नकारात्मक विचार और इस तरह के गलत व्यवहार हैं, जो दूसरों को आपकी उपेक्षा करने पर मजबूर कर देते हैं। इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम 8 प्रमुख कारणों पर चर्चा करेंगे कि लोग आपकी उपेक्षा क्यों करते हैं।" "हर इंसान अपने अंदर कुछ यूनीक काम करने की पोटेंशिअल के साथ पैदा होता है। यह एक नैचरल गिफ्ट होता है जिससे उसे खुद ढूंढना होता है और उसे तराशकर उससे कुछ क्रिएटिव और इन्नोवेटिव बनाना होता है। हम सब के अंदर ही एक क्रिएटर छुपा होता है, जो कुछ क्रिएट करने की वेट कर रहा होता है। लेकिन हमारी यह क्रिएटिव पोटेंशिअल तब तक बाहर नहीं आएगी जब तक हम इसे ढूंढ नहीं लेते और इसे प्रैक्टिस करना नहीं शुरू करते हैं। ज्यादातर लोग टैलेंट को ऐसा समझते हैं कि वो बस क्रिएटिव लोगों में होता है जो पेमेंट करते है, म्यूसिक बनाते हैं या कोई और आर्टिस्टिक चीज़ करते है। पर जीस टैलेंट की हम बात कर रहे हैं वो सिर्फ एक आर्टिस्टिक टैलेंट नहीं बल्कि आपकी कुछ भी महान करने की पोटेंशिअल है जिसे आप बार बार प्रैक्टिस करके अपनी सेकंड नेचर बना सकते हो। यानी सबसे पहले ये मत सोचो कि ये हिडन टैलेंट कोई ऐसी चीज़ है जिसे ढूंढ़ते ही आपको कोई मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। बल्कि सच तो यह है कि जैसे ही आपको यह समझ जाएगा कि आप क्या करने के लिए पैदा हुए हो तब आपको और ज्यादा मेहनत करनी पड़ेगी। लेकिन तब उस मेहनत में मज़ा भी आता है। वो काम मीनिंगफुल भी होता है और जीस काम में दिल और दिमाग की शांति मिले वह फिर काम नहीं मज़ा बन जाता है। नाउ इस काम को ढूंढने के लिए सबसे पहले आपको चाहिए डेटा ये डेटा आपकी वो नॉलेज होती है जो आपको बतायेगी कि आपको किस किस चीज़ में इंटरेस्ट आता है और क्या उस चीज़ को आप अपना प्रोफेशनल बना सकते हो? बहुत से लोगों के लिए यही चीज़ इतनी कनफ्यूज़िंग होती है कि वो किस चीज़ में इंटरेस्टेड हैं क्योंकि ज्यादातर लोग इतने स्पेसिफिक होने के बजाय ये सोचते हैं कि उन्हें तो इतनी सारी चीजों में इंटरेस्ट है लेकिन यह एक मिस अंडरस्टैंडिंग है क्योंकि बहुत सी चीजो में इंटरेस्ट होना इन्ट्रेस्ट की डेफिनेशन की ही अगेन्स्ट है। आप अपने दिन में कभी पढ़ाई करते हो, घर या रूम की सफाई करते हो, खेलते हो, इन टेनमेंट के लिए सोशल मीडिया का यूज़ करते हो, कभी अपने फ्रेंड से मिलने चले जाते हो या नहीं जॉब से रिलेटेड कोई काम कर लेते हो, लेकिन इन सब चीजों में ही इंट्रेस्ट आना इम्पॉसिबल है। जो भी इंसान ये बोलना होता है कि उसे ये नहीं पता कि उसका इंट्रेस्ट क्या है, उसे बस दो सिंपल सी चीजें करनी है। पहली अलग अलग चीजों को ट्राई करना और दूसरा ये देखना कि कौन सी चीज़ उनके उस मूवमेंट को मीनिंग से भर देती है। अलग अलग चीजों को ट्राई करने का मतलब है सिर्फ एक जगह बैठ कर ये मत सोचो ये आपका टैलेंट या आपका इन्ट्रेस्ट क्या है सिर्फ सोचने से इन चीजों तक पहुंचना ऑलमोस्ट इम्पॉसिबल होता है। जीस वजह से आपको डेटा गैदर करना होता है, अलग अलग कामों को करके या फिर नयी नयी फील्ड में जा के जैसे अगर आप अभी अपनी जॉब से खुश नहीं हो तो या तो आप दूसरी जॉब को देखना शुरू करो या अगर आप एकदम से जॉब नहीं छोड़ सकते हैं तो साइड बी साइड किसी छोटे मोटे काम को शुरू करो जो आप हमेशा से करना चाहते थे या फिर उस चीज़ के बारे में अपने आपको एजुकेट करना शुरू करो। इसके बाद जब आप इस प्रोसेसर को रिपीट करना शुरू करोगे और बहुत सी चीजों को ट्राई करोगे तब एक पॉइंट के बाद आपके पास इतना डेटा इकट्ठा हो चुका होगा जिसमें से आप यह ढूंढ पाओगे कि कौन सा काम आपके लिए सबसे ज्यादा मीनिंगफुल था। इस क्वेश्चन कानसर आपके इन्ट्रेस्ट या पैशन को बाकी सारे कामों से अलग कर देगा और आपको मीनिंग देने वाले कामों की लिस्ट में सबसे ऊपर रहेगा। सो आपका गोल होना चाहिए इस इन्ट्रेस्ट या पैशन का पीछा करना और उन सारी चीजों से निपटना जो आपको इस काम को करने से रोकती है, फिर चाहे वो आपके पैरेंटस हो, आपकी जॉब हो, पैसों की कमी हो या कोई और मजबूरी। पहले इन अड़चनों से डील करो ताकि आप एटलिस्ट गेम में एंटर कर सको। यहाँ पर बहुत से लोगों का क्वेश्चन यह आता है कि हमारे लिए अपने पैशन या इन्ट्रेस्ट को फॉलो करना क्यों जरूरी होता है तो इसका बहुत सिंपल सा आन्सर है और वह यह है कि आपका जो भी इन्ट्रेस्ट आपको मीनिंग देता है और आपको ऐसा फील कराता है कि उस काम को करना बहुत ज़रूरी है। और उसके बिना आपकी लाइफ इन्कम्प्लीट होगी। चाहे वह पैसा कमाने का सबसे सीधा या आसान रास्ता ना हो तब भी ऐसे इन्ट्रेस्ट में मिलने वाला मीनिंग एक साइन होता है की वो आपको कहीं ले जाना चाहता है। टाइम टु टाइम आपके इन्ट्रेस्ट चेंज होंगे और एक के बाद एक इन्ट्रेस्ट आपको लाइफ के किसी नए पॉइंट पर लाकर खड़ा कर देगा और इस तरह से आप अपनी हाइएस्ट पोटेंशिअल के पास पहुंचते जाते हो। हमने अपने सेकंड चैनल के स्कूल ऑफ विज़्डम की विडिओ सेल्फ ट्रांसफॉर्मेशन में भी इस चीज़ को बहुत डिटेल में डिस्कस करना है। कैसे अपने इंट्रेस्ट को फॉलो करने की हिम्मत रखने से हम उस ऐडवेंचर पर निकल जाते हैं जिसके दूसरे छोर पर हमारा हाइएस्ट सेल्फ बैठा होता है और रास्ते में हमारी ट्रान्स मिशन्स।","आपकी प्रतिभा या जुनून एक ऐसी चीज है जो आपको वह ईंधन देती है जिसकी आपको अपने सपनों का पीछा करते समय अपने रास्ते में आने वाली किसी भी बाधा को दूर करने के लिए जरूरत होती है। प्रत्येक मनुष्य एक प्राकृतिक प्रतिभा के साथ पैदा होता है जिसका उपयोग वे अपनी उच्चतम क्षमता तक पहुँचने के लिए कर सकते हैं लेकिन जब आप जीवन में खो जाते हैं, तो यह समझना वास्तव में कठिन हो सकता है कि आपकी प्रतिभा क्या हो सकती है। इसीलिए इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम अलग-अलग तरीकों पर चर्चा करेंगे, जिसके माध्यम से आप कुछ ऐसा पा सकते हैं, जिसमें आप अत्यधिक रुचि रखते हैं और प्रतिभाशाली हैं, और इस बात को खोजना इतना महत्वपूर्ण क्यों है कि आप सबसे ज्यादा प्यार करते हैं।" "इसमें कोई शर्म की बात नहीं है की ऑलमोस्ट हम सबको ही एक कम्फर्टेबल लाइफ चाहिए, जिसमें हमारे पास एक अच्छी गाड़ी हो, एक बड़ा घर हो, ब्रैंडेड कपड़े हो, हमारी मेहनत की वजह से लोग हमारी रिस्पेक्ट करे। हमारी फैमिली में एक दूसरे के लिए बहुत प्यार हो और हमारे पास इतना पैसा हो कि हम अपनी फैमिली और अपनी कम्युनिटी की मदद कर सकते हैं और हम इन गोल्स पर काम करना भी शुरू कर देते है। पर प्रॉब्लम तब आती है जब हम अपनी जर्नी को दूसरों की लाइफ से कंपेर करने लगते हैं। सोशल मीडिया पर कुछ टाइम बिताने पर ही आप ये नोटिस कर लेते हो। कि किस तरह से हर इंसान आपसे इतना बेटर है? आपकी उम्र के लोग आपसे 10 गुना ज्यादा सक्सेसफुल है, उनके आपसे ज़्यादा फ्रेंड्स है, वो आपसे ज्यादा बुक्स रीड करते हैं और उनका पूरा लाइफ स्टाइल ही आपको अपनी एबिलिटी पर डाउट करने को मजबूर कर देता है। आपको अपने अंदर से एक प्रेशर फील होने लगता है कि आपको भी और बुक्स पढ़नी चाहिए तो आप बुक्स खरीदने लगते हो? आपको लगता है कि आप लेटेस्ट मूवीज़ या टीवी शोज को मिस कर रहे हो? तो आप अपनी वॉचलिस्ट में मूवीज़ ऐड करने लगते हो, आपको लगता है कि आप इंटरनेट पर उतने कूल नहीं दिखते? तो आपने कपड़े खरीदने लगते हो और ऐसा करते करते आप अपनी फिजिकल और मेंटल स्पेस को ऐसी चीजों से भर लेते हो जो आपकी लाइफ को इंप्रूव करने के बजाय आपको एनजाइटी देती है क्योंकि आपको उन्हें देखकर ये लगता है कि अभी तो आप दूसरों से बहुत पीछे हो और आप अपने आप को आराम नहीं करने दे सकते हैं। हर कोई लाइफ की रेस में फिनिश लाइन तक पहुँचने में और अपना एक झूठा वर्जन एडवरटाइज करने में इतना ज्यादा बीज़ी है की वो अपने पर्सनल ग्रोथ के सबसे जरूरी इंग्रीडिएंट को लाइटली लेने लगता है जो की है सिम्प्लिसिटी दुनिया के सबसे सक्सेसफुल और महान लोग इस बात को काफी अच्छे से जानते हैं। ऐप्पल के फाउंडर स्टीव जॉब्स हमेशा एक प्लेन ब्लैक स्वेट शर्ट और जीन्स पहनते थे। मॉडर्न फिजिक्स के सबसे जरूरी फिगर्स में से एक यानी ऐल्बर्ट आइंस्टाइन अपने पास काफी कम कपड़े रखते थे और उन्होंने अपना ज्यादातर पैसा जरूरतमंद लोगों में बांट दिया था। स्टोरेज सिस्टम में भी मिनिमल इज़म एक कोर प्रिन्सिपल है और इंडिया में महात्मा गाँधी जी के पास भी अपनी मौत के समय सिर्फ एक घड़ी, सैंडल, चश्मा और खाने के एक दो बर्तन के अलावा कुछ नहीं था। यानी हमारे में से सबसे ज्यादा लोग वो होते हैं जो एक काफी सिंपल लाइफ जीते हैं और अपनी को कम से कम रखते हैं। अमेरिकन फिलॉसफर हेनरी डेविड थोरो का बोलना था कि जैसे जैसे आप अपनी लाइफ को सिंप्लिफाइ करते हो, वैसे वैसे आपके लिए यूनिवर्स के लॉस भी सिंपल होने लग जाते हैं। सॉलिट्यूड सॉलिट्यूड नहीं रहता पावर्टी पावर्टी नहीं रहती और वीकनेस वीकनेस नहीं रहती। ज्यादातर लोग कभी भी ये बात समझ ही नहीं पाते कि उनको एक कॉम्प्लेक्स लाइफ जीने के लिए ब्रेनवॉश कर आ जाता है। हर नए प्रॉडक्ट की ऐडवर्टाइजमेंट का एक ही मेन गोल होता है। और वो है आपसे आपके पैसे निकलवाना। इस गोल को अचीव करने के लिए सूपर मार्केट्स में अलग अलग तरह की स्मेल्स आपको ज्यादा से ज्यादा फूड आइटम्स खरीदने के लिए लुभाती हैं। बड़े बड़े लाल बैनर्स पर सेल लिखा जाता है ताकि आपके दिमाग में खरीदने की अर्जेंन्सी क्रिएट हो और हमारे गैजेट्स में एल्गोरिदम को ऐसे डिजाइन करा जाता है जिससे हमें हर दो सेकंड में लाइक्स या नोटिफिकेशन से प्लेजर का एक सस्ता वर्जन मिल सके। आपको लगता है की आपकी हैबिट्स के कंट्रोल में आप हो लेकिन हर इंसान के अंदर इतनी चीज़े कॉस्टयूम करने के बाद भी जो एम् टि वो इस बात का प्रूफ है कि इतने ओवर स्टिमुलेटेड होने के बाद भी हम इतने ओवर क्यों है? तो हमें इन चीजों की जरूरत नहीं होती। फिर भी हमें हमारी साइकोलॉजी से खेलकर ये कन्विंस कर दिया जाता है कि हमें हर पॉपुलर चीज़ की नीड है और हम उसके बिना इन्कम्प्लीट है। हाउएवर यहाँ पर प्रॉब्लम बड़ी ब्रैन्डस की मैनिपुलेशन नहीं बल्कि असली प्रॉब्लम ये है कि हमने अपनी लाइफ के फिजिकल, मेंटल, स्पिरिचुअल और फाइनैंशल ऐस्पेक्ट को काफी कॉम्प्लेक्स बना रखा है। सो अब हम बात करते हैं कि हम अपनी लाइफ को सिंप्लिफाइ कैसे कर सकते हैं? नंबर वन डी क्लटर यह पॉइंट तो ऑब्वियस होना चाहिए कि अगर आपने अपनी फिजिकल और मेंटल स्पेस को भर रखा है तो सबसे पहले आपको उन चीज़ो से छुटकारा पाना चाहिए जो आपके लिए बेनेफिशियल और यूज़फुल नहीं है। जैसे अपने रूम में जाकर देखो कि कौन कौन से कपड़े, बुक्स, बाकी स्टेशनरी, आइटम्स या फिर कोई और पुराना सामान ऐसा है जिसे आप यूज़ नहीं करते या फिर वो आपके घर या दिमाग की बहुत ज्यादा जगह गिरता है। अपनी किचन में जाकर देखो की आपने वहाँ पर क्या यूज़लेस सामान इकट्ठा कर रखा है। जैसे जंक फूड और प्रोसेस्ड फूड्स जो आपकी फिजिकल और मेंटल एबिलिटी ज़ को नुकसान पहुंचाते हैं, जिसे किसी भी चीज़ के लिए आपको बार बार सोचना पड़ता है कि आपको उसे रखना है या नहीं चान्सेस है कि वो चीज़ उतनी यूज़फुल नहीं है। हर छोटी से छोटी चीज़ को संभालने में आपका मेंटल एफर्ट लगता है। तो जो चीजें यूज़लेस है उन पर इतना टाइम और एनर्जी मत वेस्ट किया करो। नम्बर टू इन प्रॉस्पेक्ट ऑन मेडिटेट क्योंकि डिक्लटरिंग सिर्फ फिजिकल चीजों की ही नहीं होती बल्कि ज्यादा प्रोडक्टिव बनने और खुश रहने के लिए हमें अपने हॉट्स को भी सिंपल रखना चाहिए। इसी वजह से आप या तो मेडिटेट कर सकते हो या फिर आप कर सकते हो, इन थॉट्स पर की मुझे कौन सी चीजें इंटेन्शन देती है? मुझे कौन सी चीजों से डर लगता है और मुझे कौन सी चीजें फुलफिल करती है? इस तरह से आप ये समझ पाओगे कि आपको किन चीजों को ज्यादा टेंशन देनी चाहिए और कौन सी चीजें आपको स्ट्रेस के अलावा कुछ नहीं देती। नंबर थ्री, स्मॉल सोशल सर्कल यानी अपना सोशल सर्कल छोटा रख हो और उन लोगों को अपना टाइम देना बंद करो, जो आपके लिए टॉक्सिक है। यहाँ पर हम हेल्थी बाउनड्रीज़ बनाने की बात कर रहे हैं कि अगर आपका कोई फ्रेंड, फैमिली मेंबर या रिलेटिव हर समय कंप्लेन करता रहता है और उसका वर्ल्डव्यू काफी नेगेटिव है तो उसकी नेगेटिविटी आपको भी परेशान करेगी और आपके दिमाग में जगह गिरेगी। इस तरह के लोगों से बात करने से पहले आपको अपनी एनर्जी लूज़ करने के लिए अपने आप को रेडी करना पड़ता है और उनसे बात करने के बाद आपको कुछ टाइम और चाहिए होता है अपने आपको नॉर्मल स्टेट में लाने के लिए। इसलिए अपने सोशल सर्कल को टाइट रिलाएबल और सिंपल रखो। नंबर फ़ोर कंज्यूम, बट केयरफुल्ली। यहाँ पर हम सोशल मीडिया बॉक्स, न्यूस मूवीज़, ये टीवी जैसे सोर्स की बात कर रहे हैं क्योंकि जीस तरह की इन्फॉर्मेशन को हम कौन स्यूम करते हैं। हमारा दिमाग उन्हीं चीजों को एक रेफरेन्स पॉइंट की तरह यूज़ करने लगता है। दुनिया को समझने के लिए और अगर आप कॉन्स्टेंट ली अपने दिमाग में नेगेटिविटी से भरी न्यूस ज़ीरो वैल्यू प्रोवाइड करने वाले टीवी शोज़ या मूवीज़ से भर रहे हो तो ये ऑब्वियस है कि इतनी सारी यूज़लेस इन्फॉर्मेशन आपकी थिंकिंग को क्लॉक कर देगी। इसलिए ऐसी बुक्स पढ़ो या फिर मूवीज़ देखो जो आपकी लाइफ में मीनिंग ऐड कर रहे हैं और जितना हो सके उतना मेन स्ट्रीम न्यूस से दूर रहो। नंबर फाइव टाइम मैनेजमेंट क्योंकि टाइम आपका सबसे वैल्यूएबल ऐसेट है इसलिए आपको काफी पिकी होना पड़ेगा इस बात को लेकर कि आप अपना टाइम किन चीजों पर स्पेंड करते हो और इसका मतलब यह नहीं है की आपने बस हमेशा बिज़ी रहते हुए अपना टाइम निकालना है बल्कि कुछ टाइम अपने लिए भी निकालो जिसमें आप अकेले एक वॉक पर जा सकते हो, सनसेट को देख सकते हो या फिर अपनी हॉबीज को एन्जॉय करते हुए रिलैक्स कर सकते हो यानी ऐसी चीजों को करना बंद करो। जो आपका टाइम वेस्ट करती है। सबसे यूजफुल चीजों का स्केड्यूल बनाओ और कुछ टाइम काम करने के लिए नहीं, बस जीने के लिए निकालो नंबर सिक्स मनी मैनेजमेंट क्योंकि यह फर्क नहीं पड़ता कि आपके पास कितना पैसा है। अगर आपका अपने पैसों पर कंट्रोल नहीं है, तो आपका दिमाग हमेशा पैसों के थॉट से ही भरा रहेगा। इसलिए अपनी लाइफ में स्टेबिलिटी लाओ बजेटिंग करके और अगर आपके ऊपर डेथ है तो सबसे पहले अपना फोकस उसे खत्म करने पर लगा हो, क्योंकि जब आपको पहले से ही पता हुआ कि हर महीने आपका कितना पैसा कहाँ जाएगा? तो इससे आपके फाइनैंशल डिसिशन्स इतने सिंपल हो जाएंगे कि पैसों के बारे में सोचने पर वेस्ट होने वाली आपकी एनर्जी भी बचेगी और आपका टाइम भी नंबर सेवन स्लिप, एक कॉम्प्लेक्स और ऐंगज़ाइइटी से भरी लाइफ का एक काफी अनसुना रीज़न हो सकता है। आपकी स्लीप, क्योंकि काफी बार हम अपनी मेंटल क्लैरिटी की कमी और अपनी एंजाइटी का सोर्स अपनी लाइफ के बाकी एरियाज में ढूंढने की कोशिश करते है। जैसे हमारी टाइम वेस्ट करने की बुरी आदतें या फिर हमारी फाइनैंशल कंडिशन हाउएवर काफी सारे केसेस में हमारी अाधी से ज्यादा प्रॉब्लम्स सिर्फ एक अच्छी नींद से ही दूर हो सकती है। जब भी हम परेशान होते हैं तब हमारे दिमाग में ना जाने उससे बाहर निकलने के लिए क्या क्या उलटे सीधे रास्ते आते हैं? लेकिन शायद हमें एक बेहतर पार्टनर, दूसरी कंट्री में वेकेशन या फिर एक आसान जॉब नहीं चाहिए। जो चीज़ हमें चाहिए वो है एक सिम्पल सी 8 घंटे की नींद।","आधुनिक समय में, एक साधारण जीवन के विचार को अक्सर इसकी व्यय की कमी के कारण अनदेखा कर दिया जाता है। मूल रूप से एक साधारण जीवन जीना "कूल" नहीं है। लेकिन वास्तव में सादा जीवन क्या है? ठीक है, सबसे पहले, यह आपके शारीरिक और मानसिक प्रयासों को कम करने के लिए है कि केवल वही करें जो आवश्यक है और अपने जीवन को इस तरह से व्यवस्थित करें कि यह आपको जीवन में आगे बढ़ने की अनुमति दे। तो, यह जानने के लिए कि आप अपने जीवन को कैसे सरल बना सकते हैं, पूरे पॉडकास्ट सेगमेंट को सुनें।" "एक ओवर रिएक्शन हमेशा वर्ड्स होता है। एक अन्डर रिऐक्शन या फिर नो रिऐक्शन से लेट में एक्सप्लेन वाइ हर इमोशन को पैदा करने में एक इंसान की जीवन शक्ति लगती है, जिसकी वजह से हर इमोशन एक तरह से हमारी लाइफ फोर्स का ही कैरिअर होता है और हमारे इमोशन्स हमें कोई न कोई ऐक्शन लेने के लिए मोटिवेट करते है। जीवन अगर एक इमोशन नेगेटिव है लेकिन वो बहुत ही इम्पोर्टेन्ट और इंटेन्स है तो उसकी नेगेटिविटी को भी यूज़ करा जा सकता है। किसी पॉज़िटिव काम को पूरा करने के लिए जैसे अगर एक बाप को पता है कि उसका बच्चा बीमार है और घर में पैसा लाने की जिम्मेदारी सिर्फ उसी की है तो वो इस साइड मैं इसको यूज़ करेगा। ज्यादा मेहनत करने और इस मुश्किल दौर को ओवर कम करने के लिए सही जगह पर चैनलाइज डिमोशन स् हमें अनलिमिटेड मोटिवेशन दे सकते हैं। एक इंसान जितनी इमोशनल जिंदगी जीता है उतना ही वो जिंदगी की इन्टेंसिटी को इक्स्पिरीयन्स कर पाता है और अपनी लाइफ में डेथ हेड कर पाता है। बिना इमोशन्स के जिंदगी हमेशा अधूरी और डर रहे गी हाउएवर इमोशन्स को एक्सपिरियंस करने के लिए हमेशा उन्हें सबके आगे रिवील करना जरूरी नहीं होता और इमोशन्स को पूरी तरह से एक्सटर्नल ली प्रेस करने से आप उनकी पावर को प्रॉपर्ली यूज़ करने से पहले ही उन्हें खो देते हो। इमोशन्स को हैंडल करने का सही तरीका होता है। उन्हें ना तो इक्स्टर्नली एक्सप्रेस करना और ना ही उन्हें सर प्रेस करके इनफर्टाइल बना देना। बल्कि अपने इमोशन्स को पानी की तरह स्टोर और रीसाइकल करना सीख हो। अगर आप पानी को खाली छोड़ दो तो वो या तो एक निचले लेवल पर जाने की कोशिश करेगा या फिर थोड़ी सी देर में ही पूरा भाप बनकर उड़ जाएगा। लेकिन पानी को प्रॉपर्ली स्टोर करने से आप उसे एक लंबे समय तक यूज़ कर सकते हो। इमोशनल रिऐक्शन पानी के भाप बनने के जैसा होता है। जब भी आप अपनी खुशी, गुस्से, दुख या फिर दर्द को इक्स्टर्नली रिलीज कर देते हो तब आप उस से जुड़े हर नेगेटिव ऐस्पेक्ट के साथ उसकी पॉज़िटिव क्वालिटीज को भी खो देते हो। इमोशन्स को लंबी ड्यूरेशन के लिए यूटिलाइज करने और उन्हें चैनलाइज करने के लिए आपको रिऐक्ट कम करना है और अपने इमोशन्स को अब ज़ोर ज्यादा करना है और इसे छे तरीकों से कराया जा सकता है। नंबर वन मेडिटेट ऑन योर फीलिंग्स इमोशन्स को चैनलाइज करना सैनिटेशन के जैसा नहीं होता, जिसमे आपको एकदम से अपने इमोशनल फ्लो को रोकना हो। नहीं इमोशन्स को रिटेन या फिर कौन स्ट्रेन नहीं, बल्कि उन्हें कॉन्शस ली ऑब्जर्व करना सीखो। अपनी हँसी और अपने आंसुओं पर मेडिटेट करो। जब भी आप बहुत दुखी हो तब उस दुख पर एक्सटर्नल ली रिऐक्ट करने के बजाय अपने दुख के साथ कुछ देर बैठकर उसे चारों तरफ से देखो। अगर आप बहुत खुश हो तब उस खुशी को इंटरनल आइस करो और उसे अच्छे से ऑब्जर्व करो। धीरे धीरे आप चाहे उदास हो या फिर खुश, इस तरह से अपने इमोशन्स को कंट्रोल करने से आपका हर इमोशन ही स्वीट बन जाएगा। डिप्रेशन की जोबन भी मिठास बन जाती है। जब उस डिप्रेशन के अंधकार पर कॉन्शसनेस की रौशनी डाली जाती है। नंबर टू इन्वाइट योर इमोशनस टू योर होम इमोशन्स को एक गेस्ट की तरह देखो। जिसतरह किसी भी इंसान को अपने घर बुला आने से पहले आपको उस पर अटेन्शन पे करनी होती है और उसे जानना होता है वैसे ही आपके इमोशनस भी आपके कंट्रोल में तब तक नहीं आएँगे जब तक आप उन्हें कॉन्शस ली अटेन्शन देना और उनके स्रोत को समझना शुरू नहीं करते हैं। इस तरह से आपको यह समझ जाएगा कि कैसे आप के हर इमोशन की एक अलग पर्सनैलिटी है और हर इमोशन को एक डिफरेंट तरीके से हैंडल करना होता है। नंबर थ्री बी द मास्टर ऑफ केओस अगर आपको के उससे प्यार नहीं है और आपको ज्यादा मेस को मैनेज करने की आदत नहीं है तो आप अपने इमोशन्स की इन्टेंसिटी को लंबे समय तक सस्टेन नहीं कर पाओगे। अगर आप अपने लोस और अपनी डार्कनेस को संभाल नहीं सकते तो आप अपनी पीक्स और लाइट को भी डिज़र्व नहीं करते हैं। इमोशन्स को मैनेज और उन्हें प्रोडक्टिविटी के लिए यूज़ करना भी एक स्किल है जिसे आपको धीरे धीरे डेवलप करना होगा। इसलिए अपना माइंड सेट ही कुछ ऐसा बना लो कि किसी भी लेवल की केऑस आपको आम ही लगे। नंबर फ़ोर ट्रिगर कन्टिन्यूअस, सप्लाई ऑफ द डिज़ाइरड इमोशन अपनी लाइफ के सबसे खुशहाल और दर्दनाक मूवमेंट को याद करो कि कैसे और क्यों आप उतने खुश या फिर दुखी थे? आपकी लाइफ का हाइएस्ट पॉइंट क्या रहा और लोवेस्ट पॉइंट क्या रहा? और क्या रीज़न थे आपकी इमोशनल स्टेट को उन दिशाओं में ले जाने के सोचो कि अगर यह इमोशनल स्टेट आप हर मूवमेंट में फील कर पाते तो आप कितने ज्यादा प्रोडक्टिव और वाइस बन गए होते हैं? आप अपनी इन्नर जड़ से हर मूवमेंट को सुखद बना रहे होते और अपने दुख से जिंदगी की जरूरी इनसाइट्स ले रहे होते हैं। योग का एक मेजर गोल भी यही होता है कि कैसे हम अपनी मर्जी से एक डिज़ाइरड, इमोशनल स्टेट कोइ वो कर सके और अपनी अंदरूनी दुनिया को भारी दुनिया से अछूत रख सकें। है आपको हर मोमेंट? मैं इस फैक्ट के बारे में अवेयर रहना है कि दुनिया की ऑलमोस्ट हर चीज़ जो आपको बहुत खुशी या फिर दुख दे रही है वो झूठ है। किसी भी इमोशन को सीरियसली मत लो और उन्हें खुद से ज्यादा बड़ा या फिर ताकतवर मत समझो। इमोशन्स को काबू में लाना आसान बन जाता है। जब हमारी परसेप्शन यानी नजरिये में बदलाव आता है। नंबर फाइव ओनली बी लाउड वेन यू आर ओवरफ्लो इन ग् अपने इमोशन्स को इक्स्टर्नली एक्सप्रेस करना सिर्फ उनके सेल्समेन प्रॉब्लमैटिक हो सकता है, जिनमें आप ऑलरेडी उस इमोशन से ओवरफ्लो कर रहे हो और आपके पास इतनी इंटेनसिटी है क्या कुछ इंटेनसिटी और एक्साइटमेंट को लूज़ करना अफोर्ड कर सकते हो? जिन लोगों की खुशियां या उदासी कुछ गिने चुने पलों की होती है वो लाउड और एक्सटर्नल ली एक्स्प्रेसिव हो ना अफोर्ड नहीं कर सकते हैं। अगर आप नोटिस करो तो आपकी लाइफ का ज्यादातर हिस्सा मूवमेंट अरी इमोशन से ही भरा हुआ होता है। आप एक मूवमेंट में बहुत अच्छा फील करते हो और दूसरे में बुरा। और जब कोई भी इमोशन नैचुरली खुद को एक लंबे समय तक नहीं जिंदा रख पा रहा होता तो ऐसे में वाइस चौसा उन इमोशन्स को रिलीज करके खत्म करना नहीं बल्कि नॉन रिएक्टिव बनना होती है। नंबर सिक्स वर्क मोर वेनेवर यू आर इमोशनली एक्साइटेड आपका मूड और इमोशन्स दिनभर में कई बार बदलते हैं और इमोशन्स को प्रोडक्टिव ली यूज़ करने के लिए आप इन स्पेसिफिक टाइम इसका फायदा उठा सकते हो। अपने काम को इन्हीं पीरियड्स के अराउंड शिफ्ट करके फॉर एग्जाम्पल मैं पूरे दिन में सबसे ज्यादा एनर्जाइज एक्साइटेड और हैप्पी होता हूँ। अर्ली मॉर्निंग में दैट स्वाइ मेजोरिटी का यू ट्यूब या फिर कोर्स से रिलेटेड काम में मॉर्निंग में ही खत्म करना प्रिफर करता हूँ। जीवन सोने से पहले भी जब मैं अपने गोल्स के बारे में सोच रहा होता हूँ और मेरे इमोशन्स इंटेन्स होते हैं तो मैं इस चार्ज को यूज़ करता हूँ। आपको ट्वीट्स या फिर न्यूज़लेटर के थ्रू कोई मोटिवेशनल मैसेज देने के लिए हाउएवर कई लोग अर्ली मॉर्निंग या फिर नाइट में नहीं, बल्कि दोपहर में इमोशनली चार्ज होते हैं और ऐसे लोगों के लिए बेस्ट होगा। अपनी पढ़ाई या फिर काम को? मेजर ली दोपहर में खत्म करना। यह अपने इमोशन्स को चैनलाइज करने का सबसे सिंपल और स्ट्रेटफॉरवर्ड तरीका होता है। अगर आप अपने हर इमोशन को एक एनर्जी ड्रिंक या फिर एक पॉवरफुल ट्रक की तरह देखो तब आपको समझ जाएगा कि क्यों अपने इमोशन्स को इक्स्टर्नली रिलीज करके खत्म करने से बेटर होता है। उन्हें इन्टर्न लाइंस और चैनलाइज करना।",एक ओवररिएक्शन हमेशा एक अंडररिएक्शन या कोई प्रतिक्रिया नहीं होने से भी बदतर होता है। हर भावना जीवन शक्ति को आकार लेती है और इसका अर्थ है कि प्रत्येक भावना जीवन का वाहक है। आप या तो जीवन के इन छोटे पैकेटों को खो सकते हैं या उन्हें पुन: अवशोषित कर सकते हैं और अधिक उत्पादक बनने के लिए उन्हें चैनलाइज़ कर सकते हैं। "हर इंसान कभी न कभी एक आर्ग्यूमेंट में फंस जाता है, क्योंकि सच तक पहुंचने की डिस्कशन हमेशा ही डिस एग्रीमेंट्स और दूसरों को करने से गुजरती है। अगर आपसे कभी भी कोई डिसऐग्री यार नहीं करता तो उसका मतलब आपकी डिस्कशन बिल्कुल मीनिंग लेस होती है। एक मीनिंगफुल डिस्कशन जिसमें आप सच तक पहुंचने की कोशिश कर रहे होते हो वहाँ सामने वाला इंसान बहुत आसानी से आपकी आर्ग्यूमेंट को आउट ऑफ कॉन्टेक्ट लेकर आपको गलत प्रूफ करने की कोशिश करेगा। ऐसे पॉइंट पर बहुत से इंसान अपने सच तक पहुंचने और प्रॉब्लम को सॉल्व करने के गोल को भूल जाते हैं। और बस आर यू करने के लिए ही आर यू करने लग जाते हैं। इसलिए इस एपिसोड में हम उन साइकोलॉजिकल ट्रिक्स को डिस्कस करेंगे जो आपको अपनी बात क्लियरली सामने रखने, सामने वाले की बात को समझने और एक आर्ग्यूमेंट में स्वच्छ तक कैसे पहुंचा जाता है। ये बताएंगे नंबर वन अंडरस्टैंड प्रॉब्लम क्योंकि किसी भी चीज़ को समझे बिना और उसकी डीप अन्डरस्टैन्डिंग रखे बिना आपकी आर्ग्यूमेंट से एकदम ***** होंगी और आप सामने वाले की बातों को भी नहीं समझ पाओगे। भेंस करना और अपने थॉट्स को एक्सप्रेस करने में यही फर्क होता है। एक जगह पर आप बस बिना सोचे समझे दूसरों को हराने के चक्कर में होते हो। लेकिन दूसरी जगह पर आप ये देख रहे होते हो कि आप उस डिस्कशन से सामने वाले को क्या समझा सकते हो और खुद क्या सीख सकते हो? नंबर टू बिग इनके डिस्कशन विद विल यू अगरी यानी जब आप प्रॉब्लम को समझ लेते हो कि आप किस चीज़ के साथ डील कर रहे हो, तब सबसे पहले वह पॉइंट सामने रखो, जिनसे आप और सामने वाला इंसान नगरी करता है। इस तरह से आप सामने वाले को शांत कर पाते हो, ये कन्फर्म कर पाते हो कि जो आप उनकी बात को समझ रहे हो वो वही कहना चाहते हैं या नहीं और कई बार आप ऐसे उनके व्यूपॉइंट को बदल भी पाते हो क्योंकि शुरू में हर कोई काफी गुस्से में होता है। और वो ये सोचता है कि आप बस उसे नीचा दिखाना चाहते हो। लेकिन डिस अग्रीमेंट पर जाने से पहले अग्रीमेंट को सामने रख देने से आप सामने वाले इंसान को ज्यादा ओपन माइंडेड बना पाते हो। उसे ऐसा लगता है कि आप उसकी बातों पर ध्यान दे रहे हो और वो आपकी आर्ग्यूमेंट को और अच्छे से सुनने लगता है। नंबर थ्री आस्क फॉर स्पेसिफिक क्योंकि हम नोर्मल्ली अपने बहुत से बिलीव्स को बहुत टाइटली होल्ड करके रखते हैं और ये सोचते हैं कि हमारा दुनिया को देखने का नजरिया ही सही है। लेकिन जब भी कोई इंसान हमारे इतने धुंधले बिलीव्स के ऊपर कोई स्पेसिफिक क्वेश्चन पूछ लेता है। अब हमें पता चलता है कि हमने तो अपनी आर्ग्यूमेंट को पक्का बनाया ही नहीं था और हमारे खुद के बिलीव्स की अन्डरस्टैन्डिंग ही हमारी अवेर्नेस से गायब है, जिसकी वजह से जो चीज़ हमें सही लगती है, हम उसे प्रूफ भी नहीं कर पाते कि वो हमें सही क्यों लगती है। इसलिए जब भी आप किसी से कर रहे होते हो और आपको उनका कोई पॉइंट गलत लग रहा होता है, तब उनसे रियल लाइफ एग्जाम्पल्स मांगों और स्पेसिफिक क्वेश्चन्स पूछो नंबर फ़ोर डोंट गेट आइडेंटिफाइड विद योर व्यूस। किसी से भी आर यू करते टाइम आप ईज़ अली अपने ही व्यूस के वश में जा सकते हो और आपका सच तक पहुंचने का गोल बस अपने व्यूस को डिफेंड करने में बदल सकता है। आप दूसरे की बात सुनने और समझने के बजाय एक पपेट की तरह क्लीशेड आर्ग्यूमेंट पास करने लगते हो और कोई भी इन्टेलिजन्ट इंसान ईज़ अली ये बता सकता है कि आपको खुद ही नहीं पता कि आप बोल क्या रहे हो। ऐसे में हर डिस अग्रीमेंट आपको एक पर्सनल अटैक की तरह लगेगा और आप सामने वाले को भी ऐसे ही ट्रीट करने लगोगे जैसे वो एक इंसान नहीं बल्कि वो भी बस अपनी आर्ग्यूमेंट का एक पपेट है। हम सोचते हैं कि हमारे सारे व्यूस असल में हमारे ही है, लेकिन असलियत तो ये है कि हमारे ऑलमोस्ट सारे व्यूस और सारी बातें ही दूसरे लोगों से बोर्ड होती है और एक आर्ग्यूमेंट हमारा चान्स होता है। इन बोरोड व्यूस को टेस्ट करने का किये कितनी देर तक खड़े रहते हैं? इस पर्सपेक्टिव के साथ आप खुद भी हर बात पर बुरा नहीं मानोगे और सामने वाले से भी रिस्पेक्टफुल्ली बात करोगे? नंबर फाइव स्टे काम जब भी आप किसी जरूरी चीज़ के बारे में बात कर रहे होते हो तो उस समय पर इमोशनल होकर बोलना बहुत कॉमन है। आप या तो बहुत अपसेट हो जाते हो, गुस्सा करने लगते हो या फिर सामने वाले को ऐसे ट्रीट करने लगते हो जैसे की वो एक बेवकूफ है। इस तरह से आप फिर से खुद को सही प्रूव करने वाले माइंड सेट में जाते हो और बात को और बिगाड़ देते हो। याद रखो जब भी आप किसी से आर यू कर रहे होते हो तब जो इंसान अपनी आवाज़ ऊंची करता है वो बेसिकली ये सिंगल कर रहा होता है कि उसकी बात में वजन नहीं है इसलिए उसे ओवर कॉमपेनसेट करना पड़ रहा है और एक आर्टिफिशियल तरह से अपने शब्दों को भारी बनाना पड़ रहा है। ऐसे आर यू करने वाला इंसान बिल्कुल भी वाइज नहीं होता। इसलिए हमेशा किसी से भी करते टाइम पहले एक गहरी सांस लो और फिर बोलना शुरू करो। इमोशन्स में बहने के बजाय अपनी अटेन्शन दूसरे के वर्ड्स पर रखो और किसी भी बात को दिल पर लेने के बजाय जो आपको सही और सच लगता है बस वो बोलो।","कभी-कभी हम बहस में पड़ जाते हैं, क्योंकि सच्चाई तक पहुँचने के लिए असहमति और विभिन्न दृष्टिकोणों का टकराव आवश्यक है। यदि कोई आपसे कभी असहमत या बहस नहीं करता है, तो इसका मतलब है कि आपकी चर्चा उथली है और सार्थक नहीं है। जब भी किसी मूल्यवान विषय पर विभिन्न प्रकार के लोगों के साथ चर्चा की जाती है, तो असहमति स्पष्ट होती है। तो ऐसे में आप बहस कैसे जीत सकते हैं? इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम 5 साइकोलॉजिकल ट्रिक्स की मदद से इस सवाल का जवाब देने की कोशिश करेंगे।" "हुवे का एग्ज़ैक्ट मीनिंग होता है। कुछ ना गणना या बिना मेहनत के करना डावेस। लोग मानते हैं कि पूरा यूनिवर्स बिना किसी मेहनत के काम करता है। वो ना तो कुछ सोचता है और ना ही कुछ ज़िक्र करता है लेकिन वो फिर भी अपने सारे काम पूरे कर लेता है। यानी इस हिसाब से अगर आप अपनी लाइफ में बहुत ज्यादा ज़ोर लगा रहे हो या बिना इन्नर पीस के अपने गोल्स की तरफ बढ़ रहे हो तो आप नेचर के बहाव के विपरीत दिशा में तैरने की कोशिश कर रहे हो और इस रास्ते पर आपको अपनी मैक्सिमल ग्रोथ नहीं मिले गी। ग्रोथ सिर्फ नेचर के साथ रहकर चलने में मिलती है। उससे दूर जाने में नहीं। नेचर ने हर जीव जंतु को एक अलग पॉसिबिलिटी और पोटेंशिअल के साथ बनाया है। किसी जानवर में उड़ने की काबिलियत है किसी में रेंगने की और किसी में डस्ट ने की। लेकिन जहाँ बाकी जानवरों की इन्टेलिजेन्स और उनकी एबिलिटीज़ हर स्पीसीज़ के अंदर ऑलमोस्ट सेम ही होती है, जैसे एक शेर दूसरे शेर की तरह ही बस शिकार करना जानता है और वो कुछ यूनीक एबिलिटी नहीं डेवलप कर सकता, वहीं हर इंसान के अंदर एक यूनिक जीनियस होता है। यानी जो काम आप कर सकते हो वो दुनिया में कोई दूसरा इंसान आपके जितना अच्छा नहीं कर सकता। इंसानों का नैचरल मोड ऑफ बीइंग यूनीक्नेस और इन डिड यू एलईटी हैं। इसी वजह से हम अपने जीनियस को तब तक बाहर नहीं ला सकते जब तक हम खुद ही दूसरों को देखकर डिज़ाइनर्स बनाते रहेंगे और अपने अंदर मौजूद इन्टेलिजेन्स को नैचुरली बढ़ने नहीं देंगे। जिसतरह से एक बीज के अंदर ऑलरेडी एक पेड़ बनने के लिए पर्याप्त इन्टेलिजेन्स और पोटेंशिअल ऑलरेडी मौजूद होती है लेकिन उसकी ग्रोथ रुक जाती है और वो अपनी हाइएस्ट पोटेंशिअल तक नहीं पहुँच पाता जब उसे जरूरत के मुताबिक पानी नहीं मिलता या फिर उसके रास्ते में कोई पत्थर मैं कोई और बाधा आ जाती है। इसी तरह अब जो भी अपनी लाइफ में बन सकते हो उसकी पोटेंशिअल आपके अंदर आपके बचपन से ही थी, लेकिन आप अपनी हाइएस्ट पोटेंशिअल तक तब तक नहीं पहुंचोगे जब तक आप अपने आगे आने वाली रूकावटों को नहीं हटाते हैं। अगर आपके आगे कोई रुकावट नहीं है तो आपकी नैचरल ग्रोथ बिना किसी मेहनत के होनी चाहिए। वो वे की फिलॉसफी यही बोलती है कि ज्यादातर समय हम इंसान अपनी ग्रोथ के आगे खुद ही रुकावट बनकर खड़े होते हैं। कभी हम बिना खुद की रियल नेचर को जानने गोल्स बना लेते है। कभी हम अपने पुराने बीफ छोड़ने से डरते हैं या कभी हम सोसाइटी या पैरेंटस के प्रेशर में आकर खुद की पोटेंशिअल के अगेन्स्ट जाने लगते हैं। अमेरिकन ऑथर बेंजामिन हॉफ बोलते है कि जब हम खुद की इनर, नेचर और यूनिवर्स के लॉस के साथ काम करना सीख जाते हैं, तब हम नैचरल ऑर्डर को फॉलो करने लगते हैं और बिना ज्यादा मेहनत के जीने लगते हैं और जस्ट बिकॉज़ पूरी दुनिया ही इस मिनिमल एफर्ट के प्रिन्सिपल को फॉलो करती हैं। ये प्रिन्सिपल कभी कोई गलती नहीं करता। गलतियाँ सिर्फ इंसान ही करता या सोचता है एक ऐसा इंसान जो खुद को नेचर से अलग समझता है और बहुत ज्यादा दम लगाने की वजह से खुद की ही डेवलपमेंट में इंटरफेयर करने लगता है। याद रखो वो वे या डेज़ हम हमें कभी भी आलसी होने के लिए नहीं बोलता। वो बस इतना बोलता है कि मेहनत की तो कोई जरूरत ही नहीं है। जहाँ भी आप टेंशन लेते हो या जिंदगी को मुश्किल समझने लगते हो, बस तब आप गलत रास्ते पर होते हो। इस समझ के साथ जिसतरह से आप अलग अलग सीज़न की सच्चाई को एक्सेप्ट करते हो और खुद को गर्मी, सर्दी या फिर बारिश के अनुसार ढाल लेते हो, बिल्कुल वैसे ही आप अपने सुख को भी अपनी जिंदगी का हिस्सा समझ पाओगे और दुख को भी। नेचर अपने किसी भी सीज़न को ना नहीं बोलती ना आती है ईगो से जबकि यूनिवर्स का स्वभाव हाँ का है ना? दूसरे लोगों से बचे रहने में तो बहुत काम आती है लेकिन जब बात हो आपकी पर्सनल ग्रोथ की तब आपके अंदर से आने वाली एक आवाज आपको अपने डरो को फेस करने, चैलेंजेस लेने और वो सब करने को बोले गी जो आप नहीं करना चाहते हैं। लेकिन अगर आपने इस आवाज को भी ना बोल दिया तो बस वही से आप अपनी पोटेंशिअल को नष्ट करना शुरू कर देते हो। आप एक बढ़ते हुए पौधे को एक छोटे से डिब्बे में बंद कर देते हो। फिलॉसफर एलन वर्ड्स। वो वे को समझाने के लिए एक नाव का एग्जाम्पल देते हैं कि कैसे चप्पू चलाते हुए एक बोट को नदी के पार पहुंचाना एक बहुत ही मेहनत वाला और इन इफिशिएंट तरीका है क्योंकि आपको नदी के बहाव को अब पोज़ करना पड़ेगा ताकि आप आगे बढ़ पाओ। जबकि सेलिंग यानी पाल नौकायन करने में सारी मेहनत नेचर की लगती है। हवा आपकी नाव के पाल पर पड़ती है और आप उसी की मदद से नाव को कहीं भी मोड़ सकते हो और बहुत दूर तक जा सकते हो। नेचर के अगेन्स्ट जाने के बजाय हुवे बोलता है कि नेचर को समझो और उसे अपने बेनिफिट के लिए यूज़ करो। आप और नेचर एक ही प्रोसेसर हो। प्रॉब्लम तब आती है जब आप खुद को नेचर और उसकी ताकत से अलग समझते हो। जहाँ पर भी आपको खुद को फोर्स करके कुछ काम करने के लिए मनाना पड़ता है, वहाँ अपने चक्र से दूर हो जाते हो। आप की कोशिश दुनिया या खुद को बदलने पर नहीं बल्कि अपने सेंटर में आने की होनी चाहिए। जैसे जब भी आप किसी डान, सर या ऐक्टर को देखते हो तब आपको उसी समय पता लग जाता है। की उनकी परफॉरमेंस फोर्स्ड है या फिर नैचरल? और आप बोलते हो की आपको मज़ा नहीं आया? जस्ट बिकॉज़ ऐक्टर की एक्टिंग सच्ची नहीं लग रही थी क्योंकि वो उसके अंदर से नैचुरली नहीं आ रही थी। लाउड जो अपनी बुक दाचिंग में लिखते हैं कि क्या तुम दुनिया को बदलना चाहते हो? मुझे नहीं लगता कि तुम ऐसा कुछ कर सकते हो क्योंकि दुनिया पवित्र है, उससे बेहतर नहीं बनाया जा सकता। अगर तुम उससे छेड़छाड़ करोगे तो तुम उसकी सुंदरता को खराब कर दोगे। हर काम का एक सही समय होता है। एक समय होता है दूसरों से आगे निकलने का एक समय होता है। पुरुषों से पीछे रहने का एक समय होता है। चलने का एक समय होता है। रुकने का एक समय होता है। एनर्जी को यूज़ करने का एक समय होता है। एनर्जी को सेव करने का एक समय होता है सेफ्टी का पीछा करने का और एक समय होता है खतरे में जाने का। एक मास्टर वो होता है जो चीजों को वैसे ही देखता है जैसे वो असलियत में है। बिना उन्हें कंट्रोल करने की चाह के वो दुनिया को अपनी मर्जी से चलने देता है और उसके मुताबिक खुद को ढालता है। लाओ जो हमें यहाँ पर ये बोल रहे हैं कि जो काम एक मूवमेंट में जरूरी है उसे करो और करते ही रुक जाओ। ये समझो कि दुनिया हमेशा ही तुम्हारे कंट्रोल से बाहर रहेंगी और एक्सटर्नल चीजों को बदलने की कोशिश करना यूनिवर्स के लॉस के अगेन्स्ट जाता है। मेहनत सिर्फ वो इंसान करता है जिसे पता होता है कि वो नैचुरली ज्यादा पोटेंशिअल लेकर नहीं पैदा हुआ है। दूसरी तरफ जो इंसान बस अपने अंदर अनफोल्ड होती लाइफ को छू लेता है, वह चाहे दिन के 20 घंटे भी अपने क्राफ्ट को प्रैक्टिस करने के लिए क्यों ना लगाए वो दिन के खत्म होने के बाद भी उतना ही एनर्जाइज होगा जितना वह काम करने से पहले था। उसने बस अपने एनर्जी नस की बात को सुन कर अपने इंट्रेस्ट को फॉलो करा और इससे उसका काम एकदम एफर्टलेस बन गया। उन लोगों के बारे में सोचो जो हमेशा ये बोलते हैं कि उनका काम तो उन्हें मज़े के जैसा लगता है। जस्ट बिकॉज़ वो अपने काम से प्यार करते हैं और वो अपनी पोटेंशिअल को यूज़ कर रहे होते हैं। ऐसे लोग बिना भाव के विपरीत जाए ही अपनी फील्ड के टॉप पर पहुँच जाते हैं। बाहर से कोई इंसान ऐसे लोगों को देखकर ये बोलता है कि ऐसे ऑन्ट्रप्रनर्स एथलीट्स ये सेलिब्रिटीज़ तो खुद को टॉर्चर करते रहते हैं क्योंकि जिसका पै सिटी पर आप वो वे में काम कर सकते हो वो नॉर्मल लोगों के लिए बहुत एक्स्ट्रीम होता है। क्योंकि उनके अंदर का जीनियस आपकी पोटेंशिअल से अलग है, जिसकी वजह से आपको अपने से बेटर लोग हमेशा दिखेंगे और आप को दूसरों से कंप्लीट करके हमेशा हार ही मिले गी। कोई भी इंसान आपके जितना अच्छा आप बन ही नहीं सकता। नेचर में कॉम्पिटिशन सिर्फ सर्वाइवल का होता है। बाकी सारे कॉम्पटिशन्स आपको आपके सच से दूर ले जाते हैं। अनलेस आप बस खुद की एबिलिटीज़ पर ही फोकस कर रहे हो इसलिए बिना मेहनत के अचीव करना सीख हो। अपनी लाइफ को आसान बनाओ अपनी चॉइस को कम करके 64 एस और डिज़ाइनर्स के ख्यालों में सिर्फ वो लोग अटके रहते हैं। जिन्हें अपना लाइफ मिशन नहीं पता होता। जस्ट बिकॉज़ वो खुद की इन्ट्रेस्ट को फॉलो करने से और अपने डरो को फेस करने से कतरा रहे होते है। अपने अंदर मौजूद पोटेंशिअल ये जीनियस को बाहर लाने का यही तरीका होता है कि आप अपने पैशन पर ध्यान दो यानी जिन कामों में आपको फुलफिलमेंट मिलती है और ऐसे आपको अपना काम भी मस्ती लगने लगेगा। बस इसी रास्ते पर आगे बढ़ते चलो क्योंकि यहीं पर आपकी मैक्सिमम ग्रोथ भी होगी और आपकी मेहनत भी सबसे कम लगे गी।","वू वेई का सटीक अर्थ निष्क्रियता या सहज क्रिया है। ताओवादियों का मानना है कि पूरी दुनिया बिना किसी प्रयास के काम करती है और फिर भी, यह अपना काम समय पर पूरा करती है। कोई जल्दी या आराम नहीं है। केवल प्रवाह है और जितना अधिक हम अपने आप को इस ब्रह्मांडीय प्रवाह के साथ संरेखित करेंगे, हम बिना किसी प्रतिरोध और कड़ी मेहनत के अपनी अधिकतम क्षमता तक बढ़ने में भी सक्षम होंगे। हमारे द्वारा किया जाने वाला कार्य भी सहज और सहज हो जाएगा। इसलिए, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम वू वेई के दर्शन में गहराई से गोता लगाएंगे और सीखेंगे कि हम इसे अपने जीवन में कैसे उपयोग कर सकते हैं जो हम बन सकते हैं।" "लाइफ में अच्छे रिलेशनशिप्स, प्यार करने वाले दोस्त और ऐसे लोग जो आपको दिल से सपोर्ट करे। इन की बहुत जरूरत होती है क्योंकि अगर आप अपनी लाइफ की जर्नी में अकेले हो तो ना तो आपके साथ आपकी सक्सेस सेलिब्रेट करने के लिए कोई होगा और ना ही आपके दुख में आपको कोई कंधा देने के लिए होगा। इसी वजह से रियल फ्रेंड्स और फेक फ्रेंड्स में डिफरेन्स समझने से आप उन लोगों पर अपना टाइम और एनर्जी नहीं वेस्ट करोगे जो आपको ना तो आगे बढ़ता हुआ देखना चाहते हैं और जो आपका मुश्किल समय आते ही गायब हो जाएंगे। एक फेक फ्रेंड का पहला साइन है कि वह आपसे बस एक सुपर फेशियल रिलेशन ही मेनटेन करता है क्योंकि जब भी हम किसी इंसान से एक रीयल बॉन्ड बनाते हैं तब हमारे में उनको एक डी पर लेवल पर जानने की इन्स्टिट्यूट होती है। हम जानना चाहते हैं कि उनके गोल्स क्या है? वो लाइफ में कहाँ जा रहे हैं? उन्हें क्या चीज़ पसंद या नापसंद है और हम उनको आगे बढ़ने में कैसे मदद कर सकते हैं? लेकिन एक शैलो या सुपरफिशल दोस्ती वो होती है जहाँ पर आप बस ऊपरी बातें शेयर करते हो, जैसे दूसरे लोगों ने क्या करा? उस मूवी या टीवी शो में क्या हुआ या फिर आजकल ट्रेंड क्या चल रहे हैं? किसी भी जेन्यूइन फ्रेन्ड्शिप में हम सामने वाले को अच्छे से जानना चाहते हैं ताकि हम उनमे इतना ट्रस्ट पैदा कर सके कि वो हमारे मुश्किल समय में हमारा साथ ना छोड़े और उन्हें यह पता हो की। हम भी उनके लिए यही करेंगे। नंबर टू वो आपकी पीठ पीछे आपकी बुराइ करते हैं। यानी अगर आपको दूसरे लोगों से यह पता चलता है कि आपका फ्रेंड आपकी पीठ पीछे आप का मजाक उड़ाता है, आपके सीक्रेट्स दुसरो को बता देता है या आपकी बुराइ करता है तो वो ओब्विअस्ली आपका रियल फ्रेंड नहीं है क्योंकि अगर वो इंसान एक्चुअल मैं आपको इम्प्रूव होते हुए देखना चाहता तो वो आपको डाइरेक्टली आके बताता कि आप क्या चीज़ गलत कर रहे हो। लेकिन बैग बाइटिंग एक साइन होता है की वो इंसान दूसरों की नजर में भी अच्छा बना रहना चाहता है और आपकी नजरों में भी और ऐसे इंसानों को फिक्स करने से बेहतर होगा? कि आप इनसे दूर ही रहो। फाइन नंबर थ्री फेक फ्रेंड्स अक्सर झूठ बोलते हैं क्योंकि झूठ बोलने की आदत उन लोगों की होती है जो इतने स्ट्रांग नहीं होते कि वो रिऐलिटी को ऐस इट इस एक्सेप्ट कर सकें और यही रिऐलिटी का डर इन लोगों को टॉक्सिक और फेक बनाता है। इन लोगों के साथ आपको कभी भी ये पता ही नहीं होता कि क्या ये आपको फुल्ली सपोर्ट करते है या फिर ये इस चीज़ की एक्टिंग करते हैं कि यह आप की परवाह करते हैं और इस वजह से ऐसे झूठे लोगों पर रिलीज करना बहुत मुश्किल होता है। साइन नंबर फ़ोर फेक फ्रेंड्स आपसे तभी कॉन्टैक्ट करते हैं जब उन्हें आप की जरूरत होती है। अपने फ्रेंड से हेल्प मांगना कोई बुरी बात नहीं है। लेकिन अगर कोई हमेशा ही आपको तब याद करता है जब उसे किसी चीज़ की जरूरत होती है तब उसका मतलब वो सेल्फिश है और आपका जेन्यूइन दोस्त नहीं है। वो बस आपको यूज़ कर रहा है अपना मतलब निकालने के लिए जबकि रियल फ्रेंड शिप में सुख हो या दुख लोग हमेशा आपके साथ खड़े होते हैं लेकिन एक फेक फ्रेंड एक परछाई की तरह होता है वो रौशनी में तो आपके साथ खड़े रहता है लेकिन जब आपकी लाइफ में कुछ डाक्यूमेंट्स आते हैं तब उनका कोई अता पता ही नहीं होता। साइन नंबर फाइव एक फेक फ्रेंड आपके बिलीव्स वैल्यूज़ या गोल्स की रिस्पेक्ट नहीं करता, जहाँ हर इंसान की व्यूस और गोल सेम नहीं होते। वहीं किसी के सपनों या उसकी थिंकिंग का मजाक उड़ाना और उसे ऐसा फील करा ना की वो ऐसा सोचने के लिए एक बेवकूफ है। ये चीज़ कभी भी कोई ऐसा इंसान नहीं करता जो आपका अच्छा दोस्त हो और आप की केयर करता हो। जो कोई भी आपको नीचे गिराता है और फिर आप पर हंसता है। ऐसे इंसान से जितना हो सके उतना दूर ही रहना सही होता है। साइन नंबर सिक्स फेक फ्रेंड्स के सॉरी या थैंक यू मैं कभी भी सिंसेरिटी नहीं होती। यानी जब भी वो कोई गलती करते हैं या आपके बीच में कोई मिस अंडरस्टैंडिंग हो जाती है तो वो कभी भी अपनी गलती नहीं मानते है। हर चीज़ का ब्लेम आप पर डाल देते हैं और अगर वो सॉरी बोलते भी है तो वो भी अकड़ के ही बोलते है। ऊपर से जब आप उनके लिए कुछ अच्छा भी करते हो तब भी उनका ऐटिट्यूड अन ग्रेटफुल और कड़वाहट से ही भरा रहता है। इसलिए ऐसे लोगों को आप कभी भी अपना सच्चा दोस्त नहीं बोल सकते है। नंबर सेव अनेक फेक फ्रेंड आपके अगेन्स्ट गैजेट्स होल्ड करता है। यानी अगर आपका फ्रेंड थोड़े थोड़े टाइम बाद वही पुरानी बातें बाहर लाता है जो पहले सॉल्व हो चुकी है तो उसका मतलब वो उन चीजों को जानबूझकर पकड़कर बैठा है ताकि समय आने पर वह उन बातों को आपके ऊपर हथियार की तरह यूज़ कर सके। और ऐसे में आपको ये पता ही नहीं होता की कब आपका दोस्त आपसे रिवेंज लेने की कोशिश करें। तो यहाँ वाइस चौसा यही होगी कि आप ऐसे इंसान से दूर रहो नंबर एट एक फेक फ्रेंड आपकी बाउनड्रीज़ की रिस्पेक्ट नहीं करता, क्योंकि हर डिसिप्लिन इंसान की यह आदत होती है कि वो अपने आसपास कुछ बाउनड्रीज़ बनाता है और वह सब को बताता है कि वह बाउनड्रीज़ है क्या और क्यों दूसरे लोग उन्हें क्रॉस नहीं कर सकते हैं। लेकिन एक फेक फ्रेंड को आपके गोल्स या आपकी ग्रोथ की नहीं पड़ी होती है। वो बस चाहता है कि आप हमेशा उसी के लेवल पर रहो और गलती से भी आगे बढ़कर उन्हें उनकी कमियों की रिफ्लेक्शन ना दिखा। दो लाइन नंबर नाइन आपके फ्रेंड्स तो है लेकिन आपको ऐसा फील नहीं होता। ये सबसे बड़े साइज में से एक है की आपकी फ्रेंडशिप में कुछ ना कुछ गडबड चल रही है और वहाँ पर आपको अटेन्शन पे करने की जरूरत है। यह एक बहुत ही विर्ड लेकिन कॉमन फीलिंग होती है। जहाँ हम यह डिसाइड ही नहीं कर पाते कि हम जिन लोगों को फ्रेंड्स बोल रहे है, क्या वह सच में हमें एक बेहतर इंसान बना रहे हैं या फिर वो बस हमारे टाइम को वेस्ट कर रहे हैं। लेकिन सच तो यह है कि टॉक्सिक फ्रेंड से भी ज्यादा डेंजरस वो फ्रेंड्स होते हैं जिनके बारे में आपको यही नहीं समझ आता कि वो आपके फ्रेंड है या आपके दुश्मन।","हमें अपने जीवन की यात्रा में स्वस्थ संबंधों की आवश्यकता है क्योंकि हमारे आस-पास अच्छे लोगों के बिना, हमारे पास अपनी सफलता का जश्न मनाने के लिए कोई नहीं होगा और हमारे कम समय में रोने के लिए कोई कंधा नहीं होगा। इसीलिए आपके जीवन में ऐसे दोस्त होना महत्वपूर्ण है जो वास्तव में आपकी परवाह करते हैं, लेकिन आप एक सच्चे दोस्त और नकली दोस्त के बीच अंतर कैसे करते हैं? इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम इस सवाल का जवाब 9 अलग-अलग संकेतों के साथ देने की कोशिश करते हैं जो हमें कुछ संकेत देंगे कि एक नकली दोस्त कैसे काम करता है।" "ग्रीक और रोमन कल्चर में एक स्टोरी सुनाई जाती है। एक ऐसे लड़के के बारे में जो काफी सेल्फ संस्था इस लड़के का नाम था ना ये लड़का दुनिया भर में घूमता है ताकि उसे सच्चा प्यार मिल सके, लेकिन वह अपनी हर पोटेंशिअल पार्टनर को रिजेक्ट कर देता है और जब 1 दिन वो अपनी रिफ्लेक्शन को पानी में देखता है, तब उसे अपने आप से प्यार हो जाता है और अपने आप को तालाब में देखते देखते ही वह मर जाता है और उसकी जगह पर एक फूल एक जाता है, जिसका नाम पड़ जाता है नार्सिसस। इस मैथोलॉजिकल स्टोरी की मदद से हम यह समझ सकते हैं कि नार्सिसिज़्म क्या होता है? जो इंसान नार्सिसिस्ट होता है, वो अपने आप को दूसरों से ऊपर रखता है। अपने एक इंटरव्यू में क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉक्टर रहमान इधर वसूला नार्सिसिज़्म को एक सेल्फ एस्टीम के डिसॉर्डर की तरह कैटेगराइज करती है। यानी जो लोग नार्सिसिस्ट होते हैं वो असल में बहुत ही इनसेक्युर होते हैं लेकिन वो अपने आप को प्रेज़ेंट इस तरह से करते है जैसे वो बहुत कॉन्फिडेंट लगे और दूसरे लोग उनके अंदर मौजूद खालीपन को ना देख पाएं। ओनर्स सिस्टम ज्यादातर एक बुरे, चाइल्डहुड और प्रॉपर पैरेंटिंग की कमी से डेवलप होता है। लेकिन किसी भी केस में एक नर्स इस दूसरों के लिए बहुत टॉक्सिक होता है और इस तरह के किसान से दूर रहना ही बेटर ऑप्शन होता है। अगर हम कुछ बिहेवरल पैटर्न्स और ना सिस्टम के साइनस की बात करें तो नै सिस्टम में एम पी थी की कमी होती है यानी उनमें सहानुभूति नहीं होती है। अगर आप उनके पास बैठकर रो भी रहे हो तो चान्सेस है कि वो आपको चुप कराने के बजाय आप को और सुनायेंगे। भले ही गलती उनकी क्यों ना हो। वो अपने आप को दूसरों से बेहतर मानते हैं। जिससे सिटी बोला जाता है उन्हें लगता है कि वह सब अच्छी चीजें डिज़र्व करते हैं यानी एनटाइटलमेंट का ज्यादा होना। वो दूसरों से सिर्फ अपनी तारीफ सुनना चाहते हैं और वैलिडेशन पाना चाहते हैं। वो हाइपर होते हैं। यानी छोटी छोटी बातें भी उन्हें बहुत बुरी लग जाती है। उनका मूड बहुत अनप्रेडिक्टेबल होता है। वो कभी भी गुस्सा करने लग जाते हैं और कभी भी प्यार उनका बिहेव्यर बहुत ही कन्ट्रोलिंग होता है और वो हर चीज़ में टोकाटाकी करते हैं और दूसरों को अपनी मर्जी से चलाना चाहते हैं और वो कुछ इस तरह से झूठ बोलते हैं कि आप अपनी रिऐलिटी को ही क्वेश्चन करने लग जाते हो की कहीं आप तो स्टुपिड नहीं हो। इसे बोलते हैं गैस लाइटिंग लेकिन अगर आप किसी नर्सें से पहली बार मिलोगे तो चान्सेस है कि आप उनसे इम्प्रेस हो जाओगे और वो आपको काफी चार्मिंग लगेंगे लेकिन जैसे जैसे आप उन्हें और जानना शुरू करो वैसे वैसे उनका ये शुरुआती नकाब उठने लगेगा और उनके ऐक्चुअल करेक्टर स्टिक्स जैसे एक रेडियो सिटी, लैक ऑफ एम्पथी और हाइपरसेंसेटिविटी आपको क्लियरली देखना शुरू हो जाएंगे। उनके इन्हीं बिहेव इयर्स की वजह से वो दूसरे लोगों से लंबे समय तक डीप कनेक्शन नहीं बना पाते हैं और अलग अलग तरह से दूसरों को मैनिप्युलेट करने की कोशिश करते रहते है ना वो क्वेश्चन ये आता है कि अगर आपकी लाइफ में भी कोई नार्सिसिस्ट है तो आप उनके साथ कैसे डील कर सकते हो? नंबर वन लीव दे मगर आपका फ्रेंड, बॉयफ्रेंड या गर्लफ्रेंड एक नर्स असिस्ट है तो उस केस में सबसे सही ऑप्शन होगा उनसे दूर हो जाना। क्योंकि नर्सेस अपने बिहेव्यर को तब तक कंट्रोल में नहीं लाते जब तक उन्हें ये नहीं लगता कि उनका बिहेव्यर उनकी लाइफ को खराब कर रहा है और इस रियलाइजेशन से पहले वो जाने अनजाने में दूसरों की लाइफ को खराब करने में लगे रहते हैं। जिन केसेस में आपके पास ऐसे लोगों से दूर होने की लग्जरी है तो ये ऑप्शन बेस्ट हैं। लेकिन हर नार्सिसिस्ट को शायद आप अपनी लाइफ से ना निकल पाए क्योंकि वो आपका कोई फैमिली मेम्बर भी हो सकता है और इसी से हम आते हैं पौंग नंबर टू पे सेट बाउनड्रीज़ अगर आपके फादर, मदर, सिबलिंग या कोई ऐसा इंसान जिनसे आपको रोज़ मिलना होता है और उनसे एकदम से दूर हो जाना कोई ऑप्शन नहीं है तो ऐसे केस में आप अपने आस पास बाउन्ड्री बना सकते हो। अगर आप ऐसे लोगों से थोड़ा डिस्टैन्स मेनटेन करोगे तो ये आप को मैनिप्युलेट और गैस लाइट भी नहीं कर पाएंगे और आप अपनी मेंटल और इमोशनल हेल्थ का ध्यान भी रख पाओगे। इसलिए आप ऐसे लोगों को अपना टाइम देना कम करो। उनके साथ अपनी कन्वर्सेशन्स को छोटा रखो और जितना हो सके इनकी बातों को एक कान से सुनो और दूसरे से निकालो। नंबर थ्री ग्रे रॉक टेक्नीक ग्रे रॉक एक ऐसा टैक्टिक है जिसे आप किसी भी अब्यूसिव इंसान से डील करते हुए यूज़ कर सकते हो। आप इस टेक्नीक को यूज़ कर सकते हो जब आप किसी नार्सिसिस्ट के साथ कन्वर्सेशन में होते हो, इसे यूज़ करने के लिए आपने उन्हें कुछ फीड नहीं करना और उन्हें अटेंशन नहीं देनी है। अं रेस्पॉन्सिव प्रैक्टिस की वजह से ही इस टेक्नीक का नाम है ग्रे रॉक यानी नार्सिसिस्ट के साथ पत्थर की तरह बनकर रहना। क्योंकि नार्सिसिस्ट की टेंडेंसी होती है कि जब वो आपसे कर रहे होते हैं तब अगर आप उनसे लड़ने लग जाओ तो वो और हाइपर हो जाते हैं और यह लड़ाई उनके नार्सिसिस्टिक बिहेव्यर को फ्यूल करके और बढ़ा देती है। वो प्रेज़ेंट आर्ग्यूमेंट को बुलाकर पास्ट की बातों को वापस ले आते हैं और सारा ब्लेम आप पर डाल देते हैं। इसलिए उनकी बातों में ज्यादा कॉन्ट्रिब्यूट मत करो। ऐसे बात करो जैसे आप एकदम अन्न इंट्रेस्टेड हो और ज्यादातर केसेस में जब आप इस तरह से ऐक्ट करोगे। अब एक नर्स असिस्ट अपने आप आपसे बात करने में इंट्रेस्ट खो देगा और किसी दूसरी जगह से वैलिडेशन लेने निकल जायेगा।",""नार्सिसिज़्म" शब्द "नार्सिसस" नाम के एक व्यक्ति के ग्रीक मिथक से आया है, जिसे अपनी ही छवि से प्यार हो गया और धीरे-धीरे उसकी मृत्यु हो गई। क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. रमानी दुर्वासुला कहती हैं कि आत्ममुग्धता आत्मसम्मान का विकार है। जिसका अर्थ है कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि एक narcissist खुद को बाहरी रूप से कैसे प्रस्तुत करता है क्योंकि भीतर से, वह वास्तव में असुरक्षित है। तो, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम इस प्रकार के व्यवहार के बारे में और जानेंगे कि एक नार्सिसिस्ट क्या बनाता है, कैसे वे आपको गैसलाइट करते हैं और कैसे आप एक नार्सिसिस्ट को आपको अकेला छोड़ने के लिए तैयार कर सकते हैं।" "जब भी हमारी लाइफ में कोई बड़ा चेंज या ट्रैजिडी आती है या फिर हम बस फिलॉसफिकल ली, सोचने की वजह से अपनी खुद की आइडेंटिटी और अपनी लाइफ के मीनिंग को क्वेश्चन करने लगते हैं और किसी सैटिस्फाइड कॉन्क्लूज़न पर नहीं पहुँच पाते तो उस पॉइंट को बोला जाता है एग्ज़िट स्टेनसिल क्राइसिस। एक इंसान जो इस क्राइसिस से गुजर रहा होता है, उसमें कई सिम्पटम्स देखने को मिलते है। जैसे उसे ऐसा लगता है कि उसकी लाइफ का कोई पर्पस नहीं है। जो कुछ भी काम वो कर रहा है वो बिल्कुल नहीं बनाता। वो अपनी डेथ के बारे में काफी अवेयर हो जाता है। वो दुनिया के कंपैरिजन में काफी कमज़ोर और छोटा फील करने लगता है। वो दूसरों के साथ होने पर भी अकेला फील करने लगता है और अपनी बॉडी में अनसेफ फील करने की वजह से उसके माइंड और बॉडी में एक तरह का डिस्कनेक्शन आ जाता है। आपकी पर्सनैलिटी के अकॉर्डिंग आप या तो एक एग्ज़िस्टिंग सिल क्राइसिस में कुछ ऐसा काम करने के लिए मोटिवेट हो जाते हो, जो आपकी लाइफ में फिर से मीनिंग ऐड कर सके या फिर आप एकदम नम फील करने लगते हो और अपना कोई भी काम पूरा नहीं कर पाते हो। हाउएवर यह एक काफी नॉर्मल ह्यूमन रिस्पॉन्स है और ऐसी एक क्राइसिस ज्यादातर लोगों की लाइफ में एक टर्निंग पॉइंट का काम करती है, जिसकी मदद से वो अपने पुराने बिलीफ और इल्ल्यूशंस को छोड़ पाते हैं। रिऐलिटी की एक नई समझ हासिल करने के लिए यानी अगर आप एक ऐसे इंसान हो जो हमेशा अपनी अवेर्नेस को एक्सपैंड करने की कोशिश करता है और हर समय रहता है ये समझने के लिए की दुनिया में क्या चल रहा है और हर चीज़ कैसे काम करती है तो ये ऑलमोस्ट गैरन्टी ऑड है कि आप कभी ना कभी एक एग्ज़िस्टिंग चिल क्राइसिस में जरूर जाओगे। पिछले एपिसोड में हमने डिस्कस कर रहा था कि किस तरह से अपनी डेथ के बारे में सोचना हमें साइकोलॉजिकली ग्रो करने में मदद कर सकता है। पर ज्यादातर लोग डर के मारे डेथ के आइडिया से ही काफी दूर रहना प्रिफर करते हैं। मैं हमेशा यह लगता है कि वो दूसरे लोग हैं जो हमेशा मरते हैं और उनके पास तो अभी बहुत समय है। पर डेथ का एक सब कॉन्शस दर उनके डिसिशन्स को हर समय इन्फ्लुयेन्स कर रहा होता है। लेकिन चाहे आप अपनी डेथ के बारे में सोचते हुए एग्ज़िस्टिंग क्राइसिस में चले जाओ या फिर एग्ज़िस्टन्स क्राइसिस में जाने के बाद अपनी डेथ के बारे में डीप्ली सोचना शुरू कर दो। दोनों केसेस में ही आप इस क्वेश्चन पर आकर अटक जाओगे कि वॉट्सऐप के पर्पस ऑफ ऑल थिस क्यों कुछ एग्जिस्ट करता है? बजाय कुछ ना एग्ज़िट करने के। क्या हमारे जिंदा होने के पीछे कोई बड़ा रीज़न है जिसे हम अभी तक समझ नहीं पाए हैं? ये सारे क्वेश्चन्स काफी कॉमन और सेंसिबल है हाउएवर ज्यादातर लोग यह नहीं समझ पाते कि हमारा कॉग्निटिव फ्रेमवर्क दुनिया के मीनिंग को नहीं बल्कि बस अपनी ज़िन्दगी के मीनिंग को ढूंढने के लिए इन्वॉल्व हुआ है। अपनी बुकमार्क सर्च फॉर मीनिंग में विक्टर फ्रेंकली ने बोला है कि इस यूनिवर्स का अल्टीमेट मीनिंग हमारी लिमिटेड इंटलेक्चुअल कैपेबिलिटी के भी पार जाता है। जो चीज़ एक इंसान से डिमांड करी जाती है, वो वैसी नहीं है जो कई एग्ज़िस्टिंग चिल फिलॉसफर सिखाते हैं की हमें लाइफ की मीन इंग्लिश ऑनरस को झेलना है बल्कि असलियत में मैं लाइफ की अनकन्डिशनल मीनिंगफुल नेस्को सीधी भाषा में समझ पाने की इनेबिलिटी को झेलना है, जो रीज़न यूनिवर्स की हर चीज़ को फॉर्म और मीनिंग देता है, वो हमारे लॉजिक के परे हैं। यानी जहाँ हम यूनिवर्स के अल्टीमेट मीनिंग को नहीं समझ सकते, वहीं अपनी पर्सनल लाइफ में मीनिंग ढूंढना काफी आसान है क्योंकि टाइम टु टाइम हमें कोई ना कोई ऐसी ऐक्टिविटी जरूर मिलती है जो हमारी लाइफ के उस मूवमेंट को मीनिंग से भर देती है। ये मीनिंग एक साइन होता है कि लाइफ के इस पर्टिकुलर फेस में ये ऐक्टिविटी हमें साइकोलॉजिकली ग्रो करवा सकती है। यही रीज़न है की क्यों? टाइम टु टाइम हमारे इन्ट्रेस्ट और पैशन्स चेंज होते रहते हैं क्योंकि लाइफ के अलग अलग फेस को मास्टर करने का एक अलग रास्ता होता है। जहाँ कभी आपको अपना काम सबसे ज्यादा मीनिंगफुल लगता है वही लाइफ के दूसरे फेस में आपको अकेले रहने में ज्यादा मीनिंग मिलता है। अमेरिकन मैं थो लॉजिस्ट जोसेफ कैंबल ने एक बार बोला था फॉलो योर ब्लेस यानी अपने दिल की सुनो। उसके बताए रास्ते पर चलना शुरू करो और रास्ते में आने वाली हर मुश्किल का डटकर मुकाबला करो। लाइफ हर इंसान को कई यूनीक एबिलिटीज़ देती है और उसे उन लोगों ये कामों से मिलवातीं है जो उसकी लाइफ को एक पर्पस दे सके, लेकिन ये टोटली हमारे ऊपर है कि हम क्या चौसा लेते हैं? क्या हम लाइफ प्रोसेसर में पूरी तरह से इन्वॉल्व होकर एक मीनिंग से भरी लाइफ जीते हैं और एक सैटिस्फैक्शन के साथ मरते हैं? या फिर हम अपनी इस कॉलिंग को इग्नोर करके एक मिडिओकर और कम्प्लेंट से भरी लाइफ जीते हैं और अपनी मौत के समय अपने पैदा होने को भी एक ट्रैजिडी बताकर कोसते हैं? याद रखो कोई चॉइस ना लेना भी 164 है। अगर हम ढूंढना शुरू करें तो हम अपने हर डिसिशन को रिग्रेट करने का कोई ना कोई रीज़न हमेशा निकाल सकते हैं। मैं अपनी जॉब को छोड़ दू या नहीं? डिवोर्स लू या नहीं प्रोपोज़ करूँ या नहीं डिसिशन चाहे कुछ भी हो हम उस डिसिशन का आउटकम तभी जान पाते है जब हम उस डिसिशन को ले लेते हैं और कोई भी डिसिशन लाइफ की अब सर डीटी को कम नहीं कर सकता। यानी ये उतना इम्पोर्टेन्ट नहीं है कि आपकी लाइफ में हर चीज़ सही होनी चाहिए बल्कि जो चीज़ मैटर करती है वो है हर काम को ईमानदारी और भलाई के साथ करना और इस तरह से लाइफ जीना की। जब आप अपनी लाइफ को पीछे मुड़कर देखो तब आपको समझायें कि शायद आप के कई डिसिशन्स गलत थे पर जिन टेंशन्स के साथ आपने वो डिसिशनस लिए वो सही थे और आपने अपनी लाइफ को जीने में कोई कसर नहीं छोड़ी और यही हमारी एग्ज़िस्टिंग चल क्राइसिस का सॉल्यूशन है।","एक अस्तित्वगत संकट तब होता है जब आप एक त्रासदी या अपने जीवन में एक बड़े बदलाव का सामना करते हैं और इसके परिणामस्वरूप, आप अपने अस्तित्व, जीवन के उद्देश्य और यहां तक कि अपनी पहचान पर सवाल उठाने लगते हैं। लेकिन ठोस जवाब न मिलने के कारण आपको ऐसा लगने लगता है कि वास्तव में कुछ भी मायने नहीं रखता। इसीलिए इस पॉडकास्ट सेगमेंट में मैं समझाता हूं कि अस्तित्वगत संकट के दौरान वास्तव में क्या होता है और आप इससे कैसे निपट सकते हैं।" "ऐसा एक्सपेक्ट तो करा जाता है कि आप एक इंसान को बाकी लोगों के कम्पेरिज़न में बेटर ट्रीटमेंट देते हो, उन्हें स्पेशल फील कराते हो और उन्हें कभी भी जानबूझकर हर्ट नहीं करते हैं। जब आप उनसे प्यार करते हो लेकिन कई बार हम जाने अनजाने में उन लोगों को ज्यादा हर्ट कर देते हैं जिन्हें हम प्यार करते हैं और जिनकी हम सबसे ज्यादा परवाह करते हैं। अगर वो इंसान किसी वजह से दुखी होता है तो हम उन्हें कम्फर्ट करने की कोशिश करते हैं और उन्हें ऐसा फील कराते हैं कि सब ठीक है। लेकिन कई वजहों से हम टाइम टु टाइम उन्हीं से मैं लोगों को बहुत चोट भी पहुंचाते हैं और इसके पीछे कहीं दीप साइकोलॉजिकल रीज़न होते है। रीज़न नंबर वन टू टीचर लिसन टू आर सेल्स जहाँ हम अपने हेटर्स को सबक सिखाने के लिए उन्हें चोट पहुंचाने या फिर उन्हें नीचे खींचने की कोशिश करते है, वही हम अपने प्यार करने वालों को चोट पहुंचाते हैं। खुद को सबक सिखाने के लिए ये भी हेवियर इस इन्सेक्युरिटी से आ रहा होता है कि हम प्यार या फिर किसी भी तरह की केर डिज़र्व नहीं करते हैं। जब हमारे पास में हमें लोगों से यह सुनने को मिला होता है कि हम अपनी लाइफ में कुछ भी अच्छा नहीं कर पाएंगे या फिर हमारे पैरेंट सक सर हम पर गुस्सा हो जाते थे। और हमसे कभी कभी बात करना छोड़ देते थे तो इस तरह की चीजें एक इंसान की साइकिल में बहुत डीप जाकर बैठ जाती है और हम बार बार एक्सटर्नल दुनिया में भी वही सिचुएशन क्रिएट करते रहते हैं जो हमारी साइकिल स्टोर होती है। इस वजह से एक ऐसा इंसान जिसे प्रॉपर प्यार और केयर नहीं मिली थी, वो एक लव इंसान मिलने के बाद भी अनकॉन्शियस ली प्रॉब्लम्स क्रिएट करता रहता है। वो इनडायरेक्टली खुद को अपने ट्रामा की याद दिलाता है। अपने पार्टनर फ्रेन्ड या किसी दूसरे क्लोज़ इंसान को हर्ट कर के ऐसा इसलिए होता है क्योंकि जब तक हम अपने पास्ट को हील नहीं कर लेते जब तक हम अपने पुराने बिहेवरल पैटर्न्स को रिपीट करते रहते हैं इसलिए अगर आप भी बार बार अपने लव्ड वंस को हर्ट करते रहते हो तो खुद से क्वेश्चन करो कि कहीं आप अपने एक ही पैटर्न को नोटिस ना करने की वजह से उसे बार बार रिपीट तो नहीं कर रहे? रीज़न नंबर टू टू टेस्ट देर बाउनड्रीज़ यह बहुत कॉमन चीज़ है कि हम दूसरे इंसान को समझने और यह जानने के लिए कि वो हमारे से ऊपर है या फिर नीचे हम उन्हें थोड़ा छेड़कर और टेस्ट करके देखते है की वो कैसे रिऐक्ट करते हैं। शुरू में तो हम हर रिलेशनशिप में बहुत पोलाइट और रिज़र्व्ड होते हैं। लेकिन धीरे धीरे जब हम एक इंसान के साथ खुलने लगते हैं तब हमारा उनसे बात करने और उनके साथ उठने बैठने का ढंग भी बदल जाता है। जहाँ पहले हम खुद के कई खयालों को एक्सप्रेस नहीं करते थे ताकि हम उन्हें हर्ट ना कर दें वहीं एक पॉइंट के बाद हम बिना सोचे समझे ही बोलने लगते हैं और हमारी स्पीच के ऊपर से फ़िल्टर हट जाता है। ये चीज़ लोगों को क्लोज़ लाने के लिए तो बहुत अच्छी होती है पर बातों बातों में कई बार कोई इंसान कुछ ऐसा बोल देता है जो दूसरे को बहुत बुरी लग जाती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि ऑलमोस्ट हर इंसान ही नए लोगों से मिलते वक्त अपना असली चेहरा दिखाने के बजाय एक सोशल मास्क पहन लेता है। वो बस अपनी पर्सनैलिटी के उन हिस्सों को दिखाता है जो अट्रैक्टिव और पॉज़िटिव होते हैं। लेकिन कुछ समय में ही खुद को एडवर्टाइज करने की नीड चली जाती है और एक इंसान अपना असली रंग दिखाने लगता है। इस प्रॉब्लम को काफी हद तक टाला जा सकता है। अगर आप शुरू से ही लोगों के आगे अपनी असली पर्सनैलिटी को रखो तो यानी आपने जो भी पॉज़िटिव या नेगेटिव क्वालिटीज हैं, उन्हें नैचुरली लोगों के आगे आने दो और इसके बाद अगर वो आपको पसंद ना करे तो भी अच्छा है और अगर वो आपको पसंद करे वो भी क्योंकि ऐसे केस में आप बाद में ऐट लिस्ट उनको अपनी असलियत दिखा कर हर्ट नहीं करोगे। रीज़न नंबर थ्री टु सेन्स ऑफ फ्रीडम जिन लोगों को कॉट एक और डिसफंक्शनल रिलेशनशिप में रहने की आदत होती है, वह जब भी कोई नया दोस्त या पार्टनर बनाते हैं, तब अगर हर चीज़ सही चलने लगे तो यह चीज़ उनके लिए बहुत ही बोरिंग हो जाती है। उन्हें कन्टिन्यूसली अपनी लाइफ में थ्रिल चाहिए होता है और हेल्थी रिलेशनशिप्स उन्हें जेल के जैसा फील होते हैं जिसकी वजह से वो फ्री फील करने के लिए बिना बात के ही लड़ाईयाँ करते हैं और अपने पार्टनर फ्रेंड्स फैमिली के आगे बहुत ही मूडी बन जाते हैं। रीज़न नंबर फ़ोर टु गेन कंट्रोल यह तब होता है जब आप खुद हर्ट होने से डरते हो। जब भी हर चीज़ थोड़ी देर तक अच्छी चल रही होती हैं तब आपको ऐसा लगता है कि किसी भी पॉइंट पर कोई इंसान आप को हर्ट कर देगा क्योंकि आप खुशी से ज्यादा गम और धोखे से वाकिफ हो। इसलिए आप किसी से अपना अच्छा भला रिलेशनशिप खुद ही खराब करना चालू कर देते हो। आपको ऐसा लगता है कि अगर किसी इंसान के साथ सब कुछ ठीक चल रहा है वो आपकी केर भी करता है और आपको रिस्पेक्ट भी देता है तो जरूर कुछ ना कुछ गडबड है। और या तो आपका किसी तरह से फायदा उठाया जा रहा है या फिर वह इंसान भी आपको छोड़कर चला जाएगा। ऐसे में आप खुद को प्रोटेक्ट करने के लिए उन्हें बस अपनी आजम ऑप्शन्स के बेसिस पर ही हर्ट करने लगते हो ताकि आप प्यार प्यार में अपनी साइड उन्हें दिखाकर उनके जाल में न फंस जाओ। खुद से ये क्वेश्चन करके देखो कि आपका बिहेव्यर तब कैसा होता है जब हर चीज़ आपके फ्रेंड या फिर पार्टनर के साथ एकदम सही चल रही होती है तब ड्रामा क्रिएट करने वाले आप होते हो या फिर वो रीज़न नंबर फाइव यू हैव एन इनसेक्युर अटैचमेंट स्टाइल अटैचमेंट स्टाइलस एक इंसान के बचपन में डेवलप होते है उसकी पैरेंटिंग के बेसिस पर यानी जीस टाइप का इमोशनल कनेक्शन। हमारा अपने पैरेन्ट्स के साथ था वैसा ही कनेक्शन हम पूरी जिंदगी अपने फ्रेंड्स और स्पेशल ली अपने पार्टनर्स में ढूंढ रहे होते हैं, जिन्हें का अटैचमेंट स्टाइल सिक्योर होता है। वो अपने बचपन को बहुत ही ब्यूटीफुल और लविंग बताते है। जस्ट बिकॉज़ उन्हें अपने पैरंट्स से बहुत भरपूर प्यार मिला था, जबकि जो एडल्ट्स अपने रिलेशनशिप्स में इनसेक्युर होते हैं वो अपने बचपन को एक ऐसे समय की तरह डिस्क्राइब करते हैं, जब उन्हें प्यार या एक रिलाएबल ऐडल्ट की प्रेजेंस नहीं मिली थी और यही चीज़ कई लोगों को अपने चाहने वालों को ही हर्ट करने पर मजबूर कर देती है। हाउएवर अच्छी बात यह है कि आपका अटैचमेंट स्टाइल चाहे जो भी हो, आप खुद की इन सेक्युरिटीज़ को दूर कर सकते हो। अपने पास्ट को अच्छे से समझकर और अपनी खुशी को दूसरों में ढूँढने के बजाय खुद के अंदर ढूंढकर रीज़न नंबर सिक्स डिस्प्लेसमेंट यानी आप अपने प्यार करने वालों को बस इसलिए हर्ट करते हो क्योंकि वो ही ज्यादातर समय आपके आस पास होते हैं। इसका मतलब जब भी आपको अपनी जॉब करिअर या पढ़ाई की टेंशन होती है या फिर आपका मूड अपने ही ख्याल हो या किसी एक्सटर्नल सिचुएशन की वजह से खराब होता है, तब आप अपना गुस्सा या उदासी कंट्रोल में नहीं रख पाते हैं और बिना किसी रीज़न के इमोशन्स को दूसरों पर निकाल देते हो। आप के आसपास के लोगों को ऐसा लगता है कि उन्होंने तो कुछ करा ही नहीं, लेकिन अब अनकॉन्शियस ली ही अपनी भड़ास उन पर निकाल कर खुद को हल्का कर रहे होते हो। यह चीज़ उन लोगों में बहुत कॉमन होती है जो अपना ज्यादातर समय एक साथ बिताते हैं और जिसमें से एक इंसान को अपने इमोशन्स को हैंडल करना नहीं आता। एग्जाम्पल के तौर पर अगर एक आदमी का दिन अपनी जॉब में बहुत बेकार गया था तो वह घर आकर अपनी सारी फ्रस्ट्रेशन अपने बीवी बच्चों पर निकाल देता है। इसी वजह से कई घरों में लोग खुद ही ऐसे इंसान के साथ डर डर के रहने लगते हैं क्योंकि वो ये सोचते हैं कि अगर उन्होंने छोटी सी भी कोई गलती कर दी तो उसी मूवमेंट पर वो इंसान अपना सारा गुस्सा उन पर ही निकालने लग जाएगा। इसलिए अगर आप भी डिस्प्लेस्ड इमोशन्स के शिकार बनते हो तो अपने इमोशन्स को मास्टर करना सीख हो ये पॉसिबल होगा। हेल्थी कन्सम्शन यानी सिर्फ पॉज़िटिव चीजों को सुनने, बोलने और देखने से हेल्थी डाइट लेने से, क्योंकि जो भी हम खाते हैं वह सीधा सीधा हमारे मूड को इन्फ्लुयेन्स करता है। कई तरह के फूड्स हमें गुस्सैल थका हुआ ये ऐस बनाते हैं जैसे बहुत ही तीखा, मीठा या फिर जंक फूड। जबकि कई तरह के फूड्स हमें शांत बनाते हैं, जिसे रॉ फ्रूट्स और रॉब वेजिटेबल्स आप किस तरह से चलते खड़े होते और किस तरह से सांस लेते हो? क्योंकि अगेन आपकी फिजिकल नेचर आपकी साइकोलॉजी को सीधा सीधा करती है। इसलिए सीधे खड़े होकर और अपने शोल्डर्स को पीछे कर कर चलो सीधी कमर करके बैठो और सांस लेते टाइम हवा को अपनी चेस तक ही मत रोको बल्कि उसे अपने पेट तक जाने दो। आपकी इन चीजों पर फोकस करते हो क्योंकि आपके इमोशनस आपकी अटेन्शन को फॉलो करते है। आप खुद को अपने इमोशन्स या फिर थॉट्स के साथ किस लेवल तक आइडेंटिफाइ करते हो। ये चीज़ भी आपको या तो अपने इमोशन्स का मास्टर बना सकती है या फिर उनका गुलाम।","यह उम्मीद की जाती है कि हम उनका ख्याल रख रहे होंगे और जिन्हें हम सबसे ज्यादा प्यार करते हैं उन्हें कभी चोट नहीं पहुंचाएंगे। लेकिन असल में हममें से कई लोगों को बाकियों से ज्यादा अपने करीबियों पर गुस्सा आता है। लेकिन क्यों? एक ही समय में चाहने के बावजूद कोई अपने रिश्ते को क्यों बर्बाद कर देता है? इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम 6 मनोवैज्ञानिक कारणों के बारे में बात करेंगे कि हम जिससे प्यार करते हैं उसे क्यों ठेस पहुँचाते हैं।" "किसी भी तरह की फिजिकल ट्रेनिंग जैसे वेट लिफ्टिंग, रनिंग या कैलिस्थेनिक्स सिर्फ हमारे शरीर को ही नहीं बल्कि हमारे दिमाग को भी चैलेंज करती है जिससे हमे पता चल पाता है कि हमारी स्ट्रेंथ और वीकनेस क्या है और कैसे हम अपने डरो या सेल्फ डाउट को दूर कर सकते हैं। अपनी मैक्सिमम कपैसिटी को यूटिलाइज करने के लिए हिस्टरी के एक समय पर हमारे एन्सिस्टर्स जिंदा रहने के लिए उन कामों को करने के लिए मजबूर थे जो उनके लिए फिजिकली डिमांडिंग होते थे। पर उनकी ये मजबूरी उन्हें फिजिकली और साइकोलॉजिकली हेल्थी रखती थी। यानी एक्सर्साइज़ इनका असर हमारी थिंकिंग पर भी पड़ता है, लेकिन आज के टाइम पर ज्यादातर लोग एक स्ट्रिक्ट एक्सरसाइज रूटीन का ये मेंटल ऐस्पेक्ट इग्नोर कर देते हैं। पर अपने आपको फुल्ली डेवलप करने के लिए यह प्रैक्टिस बहुत यूज़फुल साबित हो सकती है। फिजिकल ट्रेनिंग की मदद से आप अपने आप को मेंटली टफ बना सकते हो और जिम से ली गई इस विजडम को बाहरी दुनिया में अप्लाई कर सकते हो। बॉडी साइकोलॉजी की इस नॉलेज को अमेरिकन साइकोथेरपिस्ट ऐलैक्ज़ैण्डर लोन ने पॉपुलर बनाया था। उनके हिसाब से हमारा दिमाग अपने आप को एक्सप्रेस करता है, हमारी बॉडी में होने वाली मूवमेंट्स के थ्रू और तभी अपनी मूवमेंटस पर ध्यान देने का मतलब है अपने दिमाग पर ध्यान देना। एग्जाम्पल के तौर पर एक काफी भारी वेट उठाते टाइम चान्सेस है की आपका दिमाग आपकी बॉडी से पहले गिवअप कर देगा और आप डाउट करने लगोगे कि क्या आप इतना वेट उठा भी सकते हो? बॉडी और दिमाग के बीच का ये मिसमैच हमारी प्रोग्रेस को धीमा बना देता है और फिजिकल ट्रेनिंग का काम है। इसी गैप को भरना पर आपको ये भी समझना चाहिए कि ट्रेनिंग का सबसे इम्पोर्टेन्ट पार्ट खुद वेट्स या फिर एक्सर्साइज़ की इन्टेंसिटी नहीं, बल्कि हमें आगे बढ़ाते रहने वाला डिसिप्लिन होता है। अपने आप को हेल्दी बनाने के लिए और एक बेहतरीन बॉडी हासिल करने के लिए आपको रोज़ अपनी बॉडी और अपने माइंड को पेन सहने के लिए फोर्स करना होता है। आपको पता होता है की। अगर आपने अपने गोल्स तक पहुंचना है तो आपको अपनी क्रेविंग ज़ लेजिनेस या टेम्पटेशन्स को सैक्रिफ़ाइस करना होगा। इस तरह से हम अपने डिसिप्लिन को ऐक्शन में कन्वर्ट करते हैं और साइकोलॉजी में भी सैक्रिफ़ाइस काफी दीप सिग्निफिकन्स रखता है। क्योंकि जब भी आप अपने गोल्स को उनकी वैल्यू के हिसाब से रैन करते हो तब आप अपने कई गोल्स को दूसरे गोल्स के ऊपर प्राइस करते हों, जिसकी वजह से लिस्ट में सबसे नीचे आने वाले गोल्स के पूरा होने के चान्सेस सबसे कम हो जाते हैं। और यह सैक्रिफ़ाइस बेस्ट होता है उन गोल्स की ऑपर्च्युनिटी कॉस्ट पर यानी जब आप ये बोलते हो कि आप अपनी फिज़ीक की डेवलपमेंट को वैल्यू करना चाहते हो, बजाय जंक फूड खाने या फिर रात को देर तक जागने के तो आप बेसिकली अपने प्रेज़ेंट के मज़े को पोस्टपोन कर देते हो। अपने फ्यूचर को बेहतर बनाने के लिए इस तरह से फिजिकल ट्रेनिंग आपको सिखाती है की एक हाइरार्की बनाकर एक वैल्यूड गोल की तरफ कैसे बढ़ा जाता है। इसके साथ ही जब भी आप जिम में एक वर्कआउट रुटीन को फॉलो करते हो सब सब कॉन्शस ली। आप उससे भी कई चीजें सीखते हो। सबसे पहले आप को यह समझाता है कि कैल्कुलेटेड रिस्क्स कैसे लेते हैं क्योंकि जब एक वर्कआउट प्लैन आपको बताता है कि आपने एक पर्टिकुलर दिन पर एग्ज़ैक्ट्ली कितनी इन्टेन्सिव ट्रेनिंग करनी है या फिर बार पर कितना वेट लगाना हैं तब आपके पास एक टारगेट नंबर होता है जो ना तो इतना आसान होता है कि आपकी स्ट्रेंथ और मसल ग्रो ही ना हो और ना ही वो वेट। कितना मुश्किल होता है कि आप को चोट लग जाए। द वेस्ट फिलॉसफी इस तरह के रिस्क को सबसे ऑप्टिमल रिस्क मांगती है क्योंकि अपनी बॉडी को उसकी लिमिट तक पुश करते टाइम आपके ओएस और ऑर्डर के बीच में झूल रहे होते हो। ये बैलेंस हमारी बॉडी में सबसे ज्यादा चेंज लाता है और चोट लगने के चान्सेस को कम रखता है। इसके साथ ही जिम्मे आपकी प्रोग्रेस आपकी फिजिकल अपीरियंस के अलावा आपके बढ़ते हुए पर्सनल, बेस्ट या फिर पर्सनल रेकोर्ड से मेजर करी जाती है। एग्जाम्पल के तौर पर अगर आप आज 100 किलो वेट उठा रहे हो और ये आपकी मैक्सिमम कपैसिटी है। तो अगली बार आप कोशिश करोगे कि आप इस नंबर को बड़ा सको और अपने पर्सनल रिकॉर्ड को तोड़ सको। ये प्रैक्टिस आपको साइकोलॉजिकली सिखाती है कि आप अपने आप को दूसरों से कंपेर करने के बजाए खुद से कंपेयर करो कि आप कल क्या थे और आज क्या बन चूके हों। क्या आपकी कैपेबिलिटी ज़ बढ़ रही है या फिर कम हो रही है? ऑलमोस्ट हर जिम जाने वाला इंसान ये बात जानता है कि उसका सबसे बड़ा कॉम्पिटिशन वो खुद ही है। क्योंकि अगर आप खुद को दूसरों से कंपेर करने लग गए तो आपको कोई ना कोई अपने से ज्यादा स्ट्रांग बल्कि लीन यां फ्लेक्सिबल हमेशा मिलेगा। साइकोलॉजी में इस बिहेव्यर को समझाया जाता है। सोशल कंपैरिजन थ्योरी की मदद से जो सिम्पली ये बोलती है कि जब हम सोसाइटी मैं अपनी वैल्यू दूसरों की अचीवमेंट के बेसिस पर डिसाइड करते हैं, तब हम रेग्युलरली डि सैटिस्फैक्शन फील करते हैं और खुद को मोटिवेट करने की भी खो देते हैं। हमारे दिमाग में चल रहे प्रोसेसेस को हम जितना भी छुपा लें, हमारी बॉडी, हमारी सच्चाई हर समय डिस्प्ले कर रही होती है और तभी हम भी हमेशा दूसरों की बॉडी, लैंग्वेज मूवमेंट्स और उनके बॉडी स्ट्रक्चर को नोटिस करते हैं ताकि हमें पता चल सके कि हम किस तरह के इंसान के साथ बात कर रहे हैं और हमें उनके आगे कैसे बिहेव करना चाहिए। लेकिन जब हम खुद ही अपनी बॉडी पर ध्यान नहीं देते तब हम दूसरों को ये सिग्नल करते हैं कि हम ना तो अपनी रिस्पेक्ट करते हैं और ना ही हमारे बारे में कुछ स्पेशल है। इसी आइडिया पर ग्रीक फिलॉसफर सो, क्रिटिक्स ने भी कमेंट करते हुए बोला है कि किसी को भी फिजिकल ट्रेनिंग के मामले में नाडी होने का हक नहीं है। एक आदमी के लिए यह शर्म की बात होगी कि वो बुरा हो जाए। बिना यह जाने कि उसका शरीर की सुंदरता और ताकत के काबिल है। अपनी बॉडी को ट्रेन करना अपनी मैक्सिमम पोटेंशिअल तक पहुंचने के सबसे अच्छे रास्ते में से एक है। जैसे जैसे आपकी मसल एनड्योरेन्स या फिजिकल स्ट्रेंथ बढ़ती है, वैसे वैसे आपकी साइकोलॉजी भी चेंज होने लगती है। और आप हर अगले चैलेंज को लेकर ज्यादा कॉन्फिडेंट फील्ड करने लगते हो। हर इंसान अपनी बॉडी को एक आर्टिस्ट की तरह तराशकर अपनी हाइएस्ट पोटेंशिअल को शीशे में उभरते हुए देख सकता है। ये सुंदरता है फिजिकल ट्रेनिंग की और जैसा कि नीचा ने कहा था देर इज़ मोर विज़्डम इन योर बॉडी देन इन योर डीपेस्ट फिलॉसफी।","हम अक्सर प्रशिक्षण के भौतिक लाभों के बारे में सुनते हैं (जैसे, वसा हानि, मांसपेशियों में वृद्धि), कम अक्सर मनोवैज्ञानिक लाभों को बढ़ावा दिया जाता है। फिर भी, मध्यम मात्रा में शारीरिक गतिविधि में शामिल होने से मूड और भावनात्मक स्थिति में सुधार होगा। व्यायाम मनोवैज्ञानिक कल्याण को बढ़ावा देने के साथ-साथ जीवन की गुणवत्ता में सुधार कर सकता है। आप केवल अपने शरीर को हिलाने और उसके आकार को बदलने से बहुत ज्ञान और वास्तविक जीवन के सबक प्राप्त कर सकते हैं। व्यायाम के इस अनछुए पक्ष को समझने के लिए पूरे पॉडकास्ट सेगमेंट को सुनें।" "सेल्फ सेबोटाज का मतलब होता है कि आप जाने अनजाने में कुछ ऐसा काम कर रहे हों जिसकी वजह से आप अपने गोल से दूर हो रहे हो और आप अपने आपको ही नुकसान पहुंचा रहे हो। ऐसा तब होता है जब आपका सब कॉन्शस माइंड आपके कॉन्शस माइंड के साथ इंटरफियर करने लग जाता है। यानी आप कॉन्शस लिए चाहते तो हो कि आप कुछ अचीव करो और अपने आप को इम्प्रूव करो। लेकिन आपकी सब कॉन्शस प्रोग्रामिंग आपको गलत दिशाओं की तरफ धकेलती है, जिससे आप बार बार अपनी राह से भटक जाते हो और आपको वापस अपने आप को खींच कर सही डिरेक्शन में लाना पड़ता है। यहाँ ये समझो कि हमारा सबकॉन्शियस माइंड कोई 1 दिन में प्रोग्राम नहीं हो जाता। किसी भी बिलीव तो नेगेटिव हैबिट को दिमाग में एक पक्की जगह बनाने में एक लंबा समय लगता है और तभी ये नेगेटिव फोर्स एस हर समय हमारे कॉन्शस डिसिशन्स को ओवरराइड करने की कोशिश कर रही होती है और इस तरह से एक इंसान सेल्फ बिहेव्यर की साइकल में फंस जाता है। इसके बाद आपका कॉन्शस माइंड जितना भी आप को आगे बढ़ाने की कोशिश कर लें, आपका सबकॉन्शियस माइंड आपका दुश्मन बनकर आपको पीछे खींचता रहेगा और जस्ट बिकॉज़ इस साइकल को तोड़ने के लिए बहुत ज्यादा डिसिप्लिन और हिम्मत चाहिए होती है। ज्यादातर लोग कभी भी अपनी इस मीडिऑक्रिटी से ऊपर उठ ही नहीं पाते हैं। यह वह लोग होते हैं। जो अपने आप में बिलीव नहीं करते कि वो अपने गोल तक पहुँच सकते हैं क्योंकि वो बस हमेशा अपनी कमियां गिनते रहते हैं और उनका माइंड बस उनकी कमियों पर ही फोकस करता है। जीस वजह से ये अपने कामों में उतना ज़ोर नहीं डालते हैं जितना उस काम को अच्छे से करने के लिए जरूरी होता है। जो ऑफर फ्रेड्रिक नीचा बोलते है कि कई बार जब हम अपनी लाइफ के बुरे फेस में होते हैं तब हमारा हाइअर सेल्फ हमने अपनी लाइफ को बेहतर बनाने के लिए इंस्पायर करता है। लेकिन ज्यादातर लोग अपने हाइर्स एल्फ से डरते हैं क्योंकि जब वो बोलना शुरू करता है तब वो आपसे बहुत सी डिमांड करता है और आपको बड़ी से बड़ी चुनौती को फेस करने को बोलता है। यानी आज हर इंसान सक्सेसफुल तो बनना चाहता है। लेकिन ना तो वो अपने सबसे बड़े दरों को फेस करना चाहता है, ना ही कोई सैक्रिफ़ाइस करना चाहता है, ना मेहनत करना चाहता है और ना ही वो ज़रा सा भी दर्द सहना चाहता है। अपनी लाइफ को स्टेबल बनाए रखने और अपने एनवायरनमेंट पर कंट्रोल रखने के लिए ऐसे लोग पहले ही अस्यूम कर लेते हैं कि इनकी मेहनत का रिज़ल्ट नेगेटिव ही होगा। जैसे कई लोग बोलते हैं कि कौन इतनी मेहनत करे, ये तो इम्पॉसिबल है या फिर इतनी बड़ी बड़ी बातें सिर्फ बोलने में तो अच्छी लगती है लेकिन करने में जान निकाल देती हैं। ये लोग टाइम से पहले ही अपनी हार डिक्लेर कर देते हैं और इस वजह से जितना ये अपनी हार से डरते हैं उतना ही यह अपनी सक्सेस से डरते हैं, क्योंकि अगर ये कोशिश करके हार भी गए तब भी उनकी बेजती होगी और अगर यह अपने हाइएस्ट गोल की तरफ बढ़ने और ग्रेटनेस हासिल करने की भी कोशिश करें तो इन्हें वह काम करने पड़ेंगे जिन्हें यह एट करते हैं और जिनसे यह डरते हैं तो इन दोनों रीजन्स की वजह से यह जल्दी ही हार मान जाते हैं या अपने आप को कुछ ना अचीव करने के लिए कोसते रहते हैं, बजाए एक नया प्लान बनाने और उसे एग्जिक्यूट करने के इस तरह से अपनी पोटेंशिअल को कूड़े में फेंक देना ही होता है। सेल्फ सबोटाज लेकिन जो गिनती के लोग इस दर्द से गुज़रने और अपने आप को डिसिप्लिन बनाने के लिए तैयार है, उन्हें अपनी इस सेल्फ सबोटाज की साइकल से बाहर निकलने के लिए तीन स्टेप्स को फॉलो करना होगा। नंबर वन कोई भी नेगेटिव थॉट जो आपके माइंड में आये, उसके साथ अपने आप को अटैच मत करो। ये बहुत ही सिंपल लेकिन सबसे इफेक्टिव तरीका है, जिससे ज्यादातर लोग डिसमिस कर देते हैं। लेकिन अपने थॉट्स को बस दूर से ऑब्जर्व करना आपकी पर्सनल ग्रोथ और सेल्फ रियलाइजेशन की जर्नी को नेक्स्ट लेवल पर ले जा सकता है। आप सिम्पली एक सेल्फ सबूत टीचिंग थॉट के आने पर 10 से 15 सेकंड के लिए आँखें बंद करके अपने आप से रिपीटेड ली ये बोल सकते हो कि यह मैं नहीं हूँ। यह सिर्फ मेरा एक थॉट है। इस तरह से अपने मन को कॉन्शस ली। बताओ कि वह इस ख्याल को किस तरह से ट्रीट करें और इस पुराने पैटर्न को रिप्लेस करें। एक हेल्थी और पैटर्न से है जहाँ आप अपने मन को कंट्रोल कर सको ना कि वो आपको नंबर टू आइडेंटिफाइ करो कि वह क्या बिहेव इयर्स है जो आपको अपनी लाइफ में पीछे रखते हैं। क्या आप प्रोग्रेस टी नेट करते हो, अपने फेलियर्स के लिए दूसरों को ब्लेम करते हो या फिर आपने डिसिप्लिन की कमी है? ज्यादातर केसेस में यह बिहेव्यर एक नेगेटिव ख्याल से ही शुरू होगा, लेकिन आपने ये समझना है कि आपके अंदर आती है सेल्फ डाउट या सेल्फ हार्म की आवाज असलियत में आपकी है ही नहीं। यूज़्वली हम बचपन में किसी बड़े से यह सुन लेते है कि हम किसी काम के न या फिर हमें जो भी काम दिया जाता है, हम उसे खराब कर देते हैं और फिर यही आवाज हमारे मन की आवाज़ बन जाती है इसलिए अपने अंदर आती है इस आवाज का पीछा करो और देखो कि वह आपको कहाँ ले जाती है। नंबर थ्री अपने आप को वो गाइडेंस और सपोर्ट दो जो आपको एक से मिलती यह आप खुद अपने किसी प्यार करने वाले को देते हैं यानी अपने आप को ऐसे ट्रीट करो जैसे आप अपने सिब्लिंग्स, फ्रेन्डस या पेरेंट्स को करते हो। क्या आप उन्हें नीचे खींचना चाहते हो और उनकी ग्रोथ को रोकना चाहते हो? नहीं तो यह चीज़ अपने साथ भी मत करो।","सेल्फ सबोटेजिंग का मतलब उन चीजों को करना है जो आपको अपने लक्ष्यों से विचलित करते हैं और जहां आप खुद को चोट पहुंचा रहे हैं। ऐसा तब होता है जब हमारा अवचेतन मन हमारे चेतन मन के लक्ष्यों में हस्तक्षेप करता है। तो, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम सीखेंगे कि अपने अवचेतन मन के पैटर्न को कैसे नियंत्रित किया जाए ताकि हम अपने इच्छित लक्ष्यों को प्राप्त कर सकें और खुद को नुकसान पहुंचाने/खुद को नुकसान पहुंचाने के अपने पुराने पैटर्न को तोड़ सकें।" "भगवान राजनीश या ओशो एक इंडियन मिस्टिक थे, जिनकी टीचिंग बहुत से कल्चर्स और उनकी फिलॉसफी ज़ जैसे हिंदुइज़्म, जे निजं, सूफिज़्म, डाउन, ज़ूम और क्रिश्चियानिटी पर बेस्ड है। ओशो हमेशा मानते थे कि जिंदगी कोई बोझ या फिर दुख का कारण नहीं है, बल्कि वो तो एक उत्सव है और जिंदगी को सिर्फ वही लोग समझ सकते हैं जो इसमें मतलब नहीं ढूंढ़ते हैं। बस इसके साथ नाश्ते है, इससे प्यार करते हैं, हंसते हैं, गाते हैं और रोते हैं। ओशो किसी भी तरह के रिप्रेशन में विश्वास नहीं रखते थे। उनके हिसाब से अगर आप रिऐलिटी के किसी भी हिस्से को दबाने की कोशिश करते हो तो आप सच से दूर हो जाते हो। जिंदगी जीने का सही तरीका है उसे ऐस इट इस जीना और बिना भेदभाव के हर चीज़ को एक्सेप्ट करना। ओशो की किताबें और उनके डिस्कोर्स एस आपकी पर्सनल ग्रोथ में आपको बहुत आगे ले जा सकते हैं। इसलिए इस एपिसोड में हम ओशो के दिए चार बहुत जरूरी लाइफ लाइसेंस को डिस्कस करेंगे। ले सन वन नो नीड टु रीना उनस ओशो की जो बात मुझे पर्सनली बहुत अच्छी लगती है, वो है उनका होलिस्टिक जीने का तरीका। क्योंकि वो गुरु ही क्या जो सच की तलाश में जीवन को ही ना बोलना शुरू कर दें और अपने शरीर दूसरे इंसानों को कष्ट पहुँचाए जहाँ कई लोग अपने बीवी, बच्चों और घर को छोड़कर सच की प्राप्ति के लिए संसारिक जीवन से दूर चले जाते है। वो अपने बच्चों को एक तरह से अनाथ और बीवी को विधवा बना देते है। ऊपर से वो खाने को भी त्याग देते हैं और अपने शरीर को भी टॉर्चर करते हैं। जबकि असलियत में सच को जानने के लिए किसी तरह के रेन इन सिएशन यानी त्याग की जरूरत नहीं है। ओशो बोलते हैं कि बिना मटिरीअल चीजों को त्यागें भी संन्यास लिया जा सकता है। अगर आप इस बात को समझ लो कि आपने किसी चीज़ को कभी पकड़ा ही नहीं था। और जीस चीज़ को आपने कभी पकड़ा नहीं उसे आप छोड़ोगे कैसे? ओशो अपने डिस्कोर्स में अष्टावक्र गीता में दिया लहसुन को समझाते हुए बोलते है कि जब राजा जनक अष्टावक्र को ये बोलते है कि वो सच की प्राप्ति के लिए अपना महल और राजगद्दी भी छोड़ने के लिए तैयार हैं तब अष्टवक्र उन्हें समझाते हैं कि नहीं तुम निर्मल हो जैसे किसी चीज़ में कभी छुआ भी नहीं है। तुम कुछ भी छोड़ या अपना ही नहीं सकते है क्योंकि तुम बस एक द्रष्टा हो। तुम प्युर अवेर्नेस हो जो हर चीज़ को होते हुए बस ऑब्जर्व करता है जो चीजों को पकड़ता और छोड़ता है। वो तुम नहीं बल्कि तुम्हारा मन है। इस चीज़ को समझ लो और तुम्हें याद आ जाएगा कि तुम्हारे और मोह माया में हमेशा सही बहुत दूर ही रही है। यानी जो असल में है उसे तुम छोड़ नहीं सकते और जो असलियत नहीं है उसे छोड़ने की कोई जरूरत नहीं। बस सच की रियलाइजेशन काफी है और सारी अटैचमेंट खुद ब खुद गिर जाएगी। लेसन टु यू विल ऑलवेज़ बी अलोन ओशो बोलते है कि तुम अकेले पैदा हुए थे, अकेले ही जियोगे और अकेले ही मर जाओगे। अकेलापन ही हमारी असली नेचर है, लेकिन हम इस सच्चाई को समझें। नहीं है। इसी मिसिंग अन्डरस्टैन्डिंग की वजह से हम खुद को एक अनजान इंसान की तरह ट्रीट करते हैं और अपने अलोन ने इसकी खूबसूरती, शांति और उसके आनंद में डूबने के बजाय हम उसे लोनलीनेस समझ बैठते हैं। लोनलीनेस असलियत में बस लोन ने उसकी बुरी अन्डरस्टैन्डिंग है। जैसे ही आप खुद को लोनली समझते हो, वैसे ही आप नेगेटिविटी और बदसूरती में डूबने लगते हो और संसार के हो जाते हो। हर कोई लोनलीनेस से दूर भागता है क्योंकि वह एक घाव है। हम खुद को झुंड में घूम कर लेते हैं। दोस्त पड़ोसी बीवी या बच्चों को यूज़ करते हैं ताकि हमें लोनलीनेस का दर्द महसूस हो जाए। लेकिन आज तक कोई भी इंसान अपनी इस लोनलीनेस की फीलिंग से बाहर नहीं निकल पाया है क्योंकि जो चीज़ नैचरल होती है, उससे छुटकारा नहीं पाया जा सकता। लोनलीनेस में आपके अंदर एक गैप आजाता है और आप सोचते हो की कुछ अधूरा है, लेकिन अलोन इन एस में आप कंप्लीट होते हो क्योंकि आप पूरी एग्ज़िस्टन्स के साथ एक होते हो। इसलिए बस अपनी समझ को बदलो और इस फैक्ट को एक्सेप्ट करो कि आप अपनी लोनलीनेस से बाहर नहीं निकल सकते हैं, क्योंकि सच को डिवाइड नहीं करा जा सकता। झूठ के बहुत सारे मुँह होते हैं लेकिन सच हमेशा एक ही होता है और एक बनने पर ही समझ आता है। लहसुन थ्री माइन, डिसा प्रॉस्टिट्यूट ओशो मन को एक की तरह देखते थे जिसे सही समय पर यूज़ करने से आप लकड़ी को तोड़कर घर बना सकते हो, उसे जलाकर खुद को गर्म रख सकते हो या उससे कोई औजार बना सकते हो, लेकिन खुद सोचो अगर आप हर समय ही अपने हाथ में एक आरी पकड़ के बैठे रहे तो क्या होगा? कभी आप अपना हाथ काट लोगे, कभी पैरों पर चोट लगा लो गे और कभी दूसरों को जख्मी कर दोगे? मन बस काटना जानता है, उसमें विज़्डम नहीं है। कभी वो बोरे को काटेगा और कभी अच्छे को, क्योंकि उसका स्वभाव ही काटना है। ओशो एक छोटी सी कहानी सुनाते हैं, जहाँ एक गांव में एक बहुत ही अमीर इंसान रहता था। एक बार वो अमीर इंसान नदी के दूसरे पार्ट जाने के लिए नाव चालक को कुछ पैसे देता है और बोलता है कि मुझे नाव में बस नदी पार करा दो। वो नाव में बैठता है और थोड़ा सा चलने पर ही नाव डगमगाने लगती है क्योंकि उस दिन नदी का बहाव बहुत तेज होता है। देखते ही देखते नाव पलट जाती है। नाव चालक को तैरना आता था तो वो तैर कर किनारे पर चला गया लेकिन वो अमीर इंसान पानी के साथ ही बह गया। जब यह खबर गांव में फैली तो उस इंसान के परिवार ने उसकी बॉडी को ढूंढना चालू करा दो। 3 दिन बाद एक मछुआरा खुद परिवार वालों के पास जाकर बोलता है कि उसे बॉडी मिल गई है लेकिन वो बॉडी परिवार वालों को सौंपने के लिए बहुत भारी रकम मांगता है। रकम इतनी ज्यादा होती है कि वो फैमिली इतना पैसा होने के बावजूद भी काफी घबरा जाती है। ऐसे 2 दिन तक मछुआरा भी चिंता में रहता है कि उसे पैसे मिलेंगे या नहीं। और परिवार वाले भी सोच रहे होते हैं कि क्या इतने पैसे देना सही भी है? समय बीतने लगता है और अंतिम संस्कार के लिए बॉडी वापस लाने का उपाय निकालने के लिए अमीर परिवार के लोग एक लॉ जिशन के पास जाते हैं। लॉ जिशन भी सिंपल सा लॉजिक निकालकर बोलता है कि देखो मछुआरा ज्यादा समय तक बॉडी को अपने पास नहीं रख सकता क्योंकि बॉडी सड़ने लगे गी और वो फिर उसके किसी काम नहीं आएगी। अगर तुम थोड़ा समय रुक जाओगे तो वो खुद अपने पैसे कम कर देगा। बिल्कुल ऐसे ही मछुआरा भी वहाँ परेशान हो रहा होता है क्योंकि असलियत में बॉडी सड़ी होती है। तो वो भी कुछ उपाय निकालने के लिए उसी समय के पास जाता है। लोकेशन उसे भी यही बोलता है कि तुम जल्दी मत मचाओ। परिवार अंतिम संस्कार के लिए कहीं और से कोई बॉडी नहीं ला सकता। उन्हें तुम्हारे पास ही आना पड़ेगा और वो तुम्हे मुंहमांगी कीमत भी दे देंगे। तुम बस ढील मत छोड़ो। इस कहानी के साथ ओशो हमें समझाते है कि मन एक प्रॉस्टिट्यूट है। वह सही और गलत नहीं देखता। उससे कुछ भी करवाया जा सकता है। चाहे कोई भी आर्ग्यूमेंट हो या स्टोरी की तरह दो साइट्स के अलग अलग इन्ट्रेस्ट हो। बुद्धि दोनों साइड्स का काम कर देगी। और हर तरह की आर्ग्यूमेंट पेश कर देगी। इसलिए सच को जानने के लिए अपने मन या बुद्धि पर रिलायंस नहीं करा जा सकता। लॉजिक आपकी बात को भी सही प्रूफ करने की कोशिश करेगा और आपके दुश्मन की बात को भी लॉजिक को अपना यार मत बनाओ, वो तुम्हे धोखा देगा। लॉजिक और मन के पास जाओ तुम्हारे अंदर एक इन्टेलिजन्स ऐसी भी हैं जो कोई पक्षपात नहीं करती और वो कभी चेंज नहीं होती। मन की अटैचमेंट सेपरेशन का इल्यूजन क्रिएट करती है। लेकिन जैसे ही आप अपनी अटैचमेंट से दूरी बना लेते हो, वैसे ही आपका मन भी शांत हो जाता है। और तब आप वाइज बनते हो। विज़्डम इटरनल है और लॉजिक टेंपरेरी दुनिया इन लॉजिकल है इसलिए तुम भी लॉजिक के पार जाओ वरना तुम्हें सच की कभी प्राप्ति नहीं होगी। लेसन नंबर फ़ोर डोंट हरी ऐंड वॉट इस मेन टु हैपन विल हैपन ओशो ने कभी भी ऐम्बिशन यानी महत्वाकांक्षा को ज्यादा इम्पोर्टेंस नहीं दी है, क्योंकि उनके हिसाब से एक इंसान की ग्रोथ उसके खुद के टैलेंट और खुद की पोटेंशिअल को नर्चर करने से होती है। आप दूसरों की सक्सेस को देखकर ये तो डिसाइड कर लेते हो कि आपने भी उनके जैसा ही बनना है। लेकिन आप ये नहीं समझते कि उस संस्थान की जिंदगी का रास्ता आपकी जिंदगी से अलग है। आप सबसे ज्यादा ग्रोथ तब करोगे जब आप किसी से कंपीट नहीं करोगे और बस खुद के अंदर मौजूद बीज को बढ़ने के लिए सही इन्वाइरनमेंट और सही नॉलेज दोगे। होशो बोलते है कि अगर तुम मांगोगे नहीं तो मिल जाएगा। अगर तुम बढ़ने की इच्छा छोड़ दोगे तो बढ़ जाओगे और अगर तुम खुद को उससे अलग नहीं समझोगे तो तुम भी वही बन जाओगे। यानी आपकी डिज़ाइनर्स मैटर नहीं करती क्योंकि आपको नहीं पता कि आपके लिए क्या चीज़ बेस्ट है। इसलिए खुद के गोल्स मत बनाओ। आप ऑलरेडी कई गोल्स को लेकर पैदा हुए हों? अगर आपने खुद को सही तरह से ग्रो होने दिया और अपने हर इन्ट्रेस्ट को फॉलो करा तो आप खुद ही अपने सारे गोल्स को पूरा कर लोगे। अगर आप बीच में कोई अड़चन न डालो तो जो होना है वह होकर रहेगा। अगर आपके अंदर अमीर बनने की पोटेंशिअल है तो आप बन जाओगे और अगर आप सच जानने की बुक के साथ पैदा हुए थे तब भी आप एक ना 1 दिन सच को जान ही लोगे इसलिए जल्दी मत मचाओ, अपने अंदर जिंदगी को होने दो, वो खुद ही तुम्हें तुम्हारी सही जगह पर पहुंचा देगी।","भगवान रजनीश या ओशो एक भारतीय रहस्यवादी थे जिनकी शिक्षाएँ विभिन्न संस्कृतियों और परंपराओं के ज्ञान पर आधारित हैं। उनका मानना था कि जीवन कोई ऐसी चीज नहीं है जिसे भयानक या समस्याग्रस्त होना पड़े, बल्कि जीवन एक उत्सव की तरह है। आप मजा लो। आप इसे पूरी तरह जीते हैं। यही अस्तित्व का संपूर्ण बिंदु है, अर्थात इस प्राकृतिक प्रक्रिया के न्यूनतम प्रतिरोध के साथ सर्वोत्तम संभव तरीके से जीना। ओशो किसी भी तरह के दमन में कभी विश्वास नहीं करते थे। उनके अनुसार, यदि आप किसी अनुभव को अस्वीकार करते हैं, तो वह आपको सत्य जानने से रोकेगा। इसलिए, ओशो की शिक्षाओं के बारे में अधिक जानने के लिए, हम उनकी विभिन्न पुस्तकों और प्रवचनों से जीवन के 4 प्रमुख पाठों पर चर्चा करने जा रहे हैं।" "ये फीलिंग कभी ना कभी हमारे एक्सपीरियंस में जरूर आती है। हम किसी कॉन्वरसेशन या ऐक्टिविटी में एंगेज होते हैं और सडनली हमें लगता है की ये मूवमेंट हमने पहले भी इक्स्पिरीयन्स करा हुआ है। इस फीलिंग को बोलते हैं देजा वो जिसका मतलब है ऑलरेडी सीन पर हम सिर्फ देजा वू ही नहीं एक्सपीरियंस करते हैं हम प्रेस के वो यानी वो फ़ीलिंग जब हमें लगता है कि हमें कुछ पता है पर हम उसे याद नहीं कर पाते और जा में वो जो कि देजा वू का ऑपोजिट होता है हाउएवर कई लोग देश उनको पैरनोर्मल या फिर स्पिरिचुअल कॉन्टेस्ट में देखते हैं और इसे एक्सप्लेन करते है। इंटरनल रिटर्न या फिर रीइनकार्नेशन जैसे कॉन्सेप्ट की मदद से है, पर रीसेंट इयर्स में हुई न्यूरोइमेजिंग स्टडीज़ और कॉग्निटिव साइकोलॉजी में हुई एडवान्स्मेन्ट से हमें कई थ्योरीज के साथ एक नया व् यू दे सकती है कि देश है वो क्यों होता है? फर्स्ट थ्योरी का नाम है स्प्लिट परसेप्शन, जो बोलती है कि देश जब वो तब होता है जब हमारे दिमाग में पहुंचने वाले सिगनल्स में किसी तरह का मिसमैच होता है, जिससे हम एक्सपीरियंस को उसी मूवमेंट में दो बार एक्सपिरियंस करते हैं। पहला सिग्नल हमारे दिमाग तक तब पहुंचता है जब हम डिस्ट्रैक्ट होते हैं या फिर हमारी पूरी अटेंशन सिर्फ एक चीज़ पर नहीं होती और तभी दूसरा सिग्नल हमें ऐसा फील करा सकता है जैसे हमने वो मोमेंट पहले भी इक्स्पिरीयन्स करा है जो कि सच है। हम बस पहले थोड़ा इन अटेंटिव थे सिमिलरली ये फीलिंग तब भी आ सकती है जब हम लिमिटेड इन्फॉर्मेशन को प्रोसेसर करके उसे अपनी पुरानी इन्फॉर्मेशन यानी मेमोरी के साथ मैच करने की कोशिश करते हैं। पर वो दोनों मेमोरीज़ कंप्लीट्ली सेम या फिर कंप्लीट्ली डिफरेंट होने के बजाय बस कुछ हद तक सिमिलर होती है। फॉर एग्ज़ैम्पल एक रेस्ट्रॉन्ट में पास्ता खाते टाइम हम काफी अलग अलग टाइप की सेन्चुरी इन्फॉर्मेशन ले रहे होते है, जैसे वहाँ की स्मेल, पास्ता की स्मेल, बैकग्राउंड म्यूजिक और हम किस तरह से बैठे है या फिर वो फ़ोर कितना हल्का या फिर भारी है? ये सारी इन्फॉर्मेशन अनकॉन्शियस ली हमारे दिमाग में स्टोर हो रही होती है और तभी जब भी हमारा दिमाग एक सिमिलर एक्सपिरियंस को प्रोसेसर करता है तब पुरानी सिचुएशन ना याद पर हमारी मेमोरीज़ मिक्सअप हो जाती है और हमें लगता है की ये पहले भी हो चुका है। इसे बोलते हैं। क्रिप्टॉन एशिया सेकंड थ्योरी है डुअल न्यूरोलॉजिकल प्रोसेसिंग जो 1964 में रॉबर्ट ऐफ्रॉन ने पेश कर रही थी। रॉबर्ट ने अपने एक्सपेरिमेंट्स में देखा कि हर इनकमिंग सेन्सरी इन्फॉर्मेशन को हमारे ब्रेन के लेफ्ट हेमिस्फेयर के टेम्पल लोन में प्रोसेसर करा जाता है, पर ये सिग्नल्स टेम्पल लो में दो बार आते हैं। एक बार दिमाग के लेफ्ट हेमिस्फेयर से ही और दूसरा राइट हेमिस्फर से। पर इन दोनों सिंगल्स में कुछ मिली सेकंड का फर्क होता है और कई बार यह सिग्नल्स अपनी डेस्टिनेशन तक अलग अलग टाइम पर पहुंचते हैं और इन्हें अलग अलग प्रोसेसर करा जाता है, जिससे सेकंड सिग्नल पहले वाले की कॉपी लगता है और हमें एक मूवमेंट दो बार एक्सपीरियंस होता है। थर्ड थ्योरी या कॉज़ हो सकता है एक एपिसोड क्योंकि पिछले कई सालों में रिसर्चर्स ने ऑब्जर्व करा है कि जब भी हमारे मीडिल टेम्पल लो में कोई डिस्टरबैंस आती है, तब हमें दे जावु होने के चान्सेस काफी बढ़ जाते हैं। और एप्पल ऐप टिक पेशेंट्स में इंडस्ट्रियल इलेक्ट्रॉनिक्स की मदद से देखा गया कि उनके कॉ टैक्स में इंटरनल और पेरी रिनल को टीसीएस की स्टिम्युलेशन भी देश है। वो क्रीएट कर सकती है। इसके साथ ही एक और स्टडी में पेशेंट्स के दिमाग के ईईजी स्कैन लेने पर पता लगा कि जब लोगों के दिमाग के पार्ट्स जैसे हिप्पोकैम्पस, रायल कोर्ट, इसिस और इन मिड्ल में न्यूरॉन्स एक साथ एक्टिवेट होते हैं, तब उन्हें देजा वू होता है। इस फाइन्डिंग से हमें पता लगा था कि अगर किसी कौन सी इसकी वजह से मिडल टेम्पल लोभ के पार्ट्स में साथ में ऐक्टिवेशन होती है तो उससे मेमोरी कलेक्शन सिस्टम चालू हो जाता है और अगेन हमारी मेमोरीज़ मिक्सअप होने लगती है। जस्ट लाइक दैट साइनस की मदद से देश शवों को एक्सप्लेन करने वाली थ्योरी इसका नंबर 40 से 50 से गिरकर सिर्फ तीन या चार पर आ गया है। पर अभी भी हमारे पास कोई डेफिनेट इवान सर नहीं है कि हमें देश क्यों होता है और इस मिस्ट्री को सॉल्व करने में शायद हमें कुछ साल और लगे","देजा वु, का शाब्दिक अर्थ है "पहले से ही देखा जा चुका है", यह भावना है कि व्यक्ति वर्तमान स्थिति से पहले रह चुका है। कुछ लोग इस भावना को एक असाधारण या आध्यात्मिक घटना के रूप में देखते हैं लेकिन आधुनिक विज्ञान के अपने कुछ सिद्धांत हैं।" "2021 और इसके आगे आने वाले साल नई ऑपर्च्युनिटी ज़ोर चैलेंजेस से भरे हैं और ऐसे में अपने आप को जरुरी नॉलेज के साथ प्रिपेर्ड और इनफॉर्म्ड रखना बहुत जरूरी है। इसलिए इस एपिसोड में हम ऐसी 10 बुक्स के बारे में डिस्कस करेंगे जो दुनिया में चल रहे हैं। इवेंट्स, प्रॉब्लम्स, पॉलिटिक्स और ट्रेंड्स को मद्दे नजर रखते हुए बतायेंगी की हमारा फ़्यूचर का ऐक्शन प्लैन कैसा होना चाहिए, जिससे हम इस साल अपनी लाइफ के हर एरिया में सक्सेस हासिल कर सके? अपने आप को ग्रो कर सके और जिन गड्ढ़ों में दूसरे लोग गिर रहे हैं, उन्हें अवॉर्ड कर सकते हैं? नंबर 10 द आर्ट ऑफ वुड बी संजू लगभग 2500 साल पहले एक चाइनीज मिलिट्री लीडर द्वारा लिखी गई। ये बुक युद्ध पर लिखी गई सबसे प्रभावशाली बुक है। इसमें 13 अलग चैप्टर्स है और हर चैपटर वोर के एक अलग पहलू पर फोकस करता है। ये बुक आपको समझाएगी कि क्यों हर सोसाइटी बिनावर की अन्डरस्टैन्डिंग रखें और वोर की आठ को मास्टर करें, स्टेबल रहे ही नहीं सकते। संजू के हिसाब से एक ऐसी वोर जिसमें आप बिना लड़ाई जीत जाते हो, ये बेस्ट तरह की वोर होती है और आज की कॉम्पिटिटिव दुनिया में ऐसी फिलॉसफी बिज़नेस पॉलिटिक्स ये स्पोर्ट जैसे एरियाज़ में काफी काम आती है क्योंकि संजू बोलते है की अपने दुश्मन से बेहतर सोच पाना ज्यादा जरूरी है बजाए उससे बेहतर लड़ पाने के नंबर नाइन के राइट्स माइंड बी जॉनाथन हाइट इस बुक में मॉडल साइकोलॉजी की मदद से बताया गया है कि क्यों आजकल पॉलिटिक्स और रिलिजन की वजह से लोगो में डिवाइड बढ़ता जा रहा है और क्यों हर इंसान अपनी पॉलिटिकल आइडियोलॉजी या रिलिजन को ही सही मानता है और दूसरे को गलत। ये बुक तीन पार्ट्स में डिवाइड है। पहले पार्ट में जोनाथन ने बताया है कि किस तरह से कई लोग कई सिचुएशन्स में मॉल जजमेंट तो पास कर देते हैं। कि कैसे एक रिलिजन दूसरे रिलिजन से बेहतर है। या फिर एक आइडियोलॉजी लोगों को दबाती है और दूसरी उन्हें राइट्स दिलाती है, पर वो अपनी इस मॉडल जजमेंट को रैशनल ली एक्सप्लेन कर ही नहीं पाते और बिना किसी लॉजिकल रीज़न के ही अपनी सोच को सही मानते हैं। हाइट इसे बोलते हैं। मॉडल डंप फाउंडिंग बुक के दूसरे पार्ट में बताया गया है कि कैसे हमारा पॉलिटिक्स ये रिलिजन के टूवर्ड्स यू हमारी पर्सनैलिटी से इन्फ्लुयेन्स होता है जैसे जो लोग ज्यादा क्रिएटिव इन्टलेक्चुअल ली क्युरिअस, नए एक्सपिरियंस लेने के शौकीन और ओपन माइंडेड होते हैं। वो पर्सनैलिटी ट्रेड ओपन इस टू इक्स्पिरीयन्स में हाई स्कोर करते हैं और वो अपने आप को लिबरल मानते हैं। जबकि जो लोग ज्यादा हार्डवर्किंग रूटीन को फॉलो करने वाले डिसिप्लिन्ड और रिस्पॉन्सिबल होते हैं, वो पर्सनैलिटी ट्रेड कॉन्शियसनेस में हाई स्कोर करते हैं। और अपने आप को कौन सर्वे टीम मानते हैं? यानी हर इंसान की पॉलिटिकल परेफरेंस का एक बहुत बड़ा पार्ट उनकी पर्सनैलिटी होती है और अगर हमें पॉलिटिक्स या भगवान के नाम पर होने वाली लड़ाइयों को कम करना है तो हमें लोगों के बीच इन नैचरल डिफरेन्स को अपनाना होगा और दोनों पॉलिटिकल साइट्स की अहमियत समझनी होगी, क्योंकि जो सोसाइटी एक्स्ट्रीम लिबरल बन जाती है वो भी पछताती हैं और तो एक्स्ट्रीम कन्सरवेटिव बन जाती है, वो भी वो के तीसरे पार्ट में। जोनाथन ने बताया है कि हम इनसानों की मेंटैलिटी 90% सेल्फिश होती है और 10% हर्ड लाइक। इसका मतलब हम ज्यादातर सेल्फिश अली ऐड करते हैं। हम सिर्फ अपनी फैमिली को ही सेफ रखने के लिए मेहनत करते हैं और सिर्फ अपने बच्चों के लिए ही रिसोर्सेस इकट्ठे करते हैं। लेकिन जब कोई मूवमेंट, ऑर्गेनाइजेशन या आइडीओलॉजी अपने प्रॉफिट के लिए लोगों को अपने ग्रुप के साथ आइडेंटिफाइ करवा देती है की वो एक इंडियन अफ्रीकन गोरे काले लड़का लड़की, गरीब, गे या एक विक्टिम हैं तब इन् लोगो की मेंटैलिटी 10 वर्ष इस डैम में बदल जाती है और ऐसा रिज़ल्ट एक ग्रुप दूसरे ग्रुप को हेट करना शुरू कर देता है। नंबर एट एक्स्ट्रीम ओनरशिप बीजों को विल्लिंग जो को एक रिटाइर्ड नेवी सील हैं और अपनी इस बुक में उन्होंने लीडरशिप और रिस्पॉन्सिबिलिटी के बारे में समझाया है। उनके हिसाब से एक इफेक्टिव लीडर होने का मतलब है की चाहे आपकी टीम के साथ कुछ भी हो, वो आपकी रिस्पॉन्सिबिलिटी है। हर सक्सेस या फेल्यर का भार एक लीडर के कंधों पर होता है और वो इसके लिए किसी दूसरे को ब्लेम नहीं कर सकता। जो को के हिसाब से कोई भी प्रॉब्लम तब तक नहीं सॉल्व करी जा सकती जब तक हर इंसान अपनी फिंगर दूसरों की तरफ पॉइंट करता रहता है। दूसरों को ब्लेम करता रहता है और एक्स्क्यूस बनाता रहता है, बल्कि प्रॉब्लम सॉल्व होती है उनकी ओनरशिप लेने से और सिर्फ ये मेंटैलिटी ही विक्टिम माइंडसेट को कयुर कर सकती है। नंबर से वनसेल्फ रिलायन्स बी रेल फॉलो एमर्सन इस बुक में अमेरिकन ऐसे स्टोर पॉईंट रेल फोल्ड और एमर्सन ने बताया है की क्यों हर इंडीविजुअल के लिए भेड़ चाल को अवॉर्ड गणना और खुद की या आइडियाज़ को फॉलो करना इतना जरूरी है? इनडिविजुअल इम को बढ़ावा देते हुए हमें समझाते हैं कि जीस विजन की हमें सबसे ज्यादा जरूरत है। वो ऑलरेडी हमारे अंदर मौजूद है और इस विस्डम के टच में आने के लिए आपने बस वो करना है जो आपको सही लगता है। सेल्फ रिलायंस यानी आत्मनिर्भर बनना शुरू होता है सॉलिट्यूड में जाने से क्योंकि एमर्सन के हिसाब से हमारे दोस्तों और फैमिली की कॉन्स्टेंट नीड्स और उनका आना जाना हमारी पर्सनल ग्रोथ के लिए एक डिस्ट्रैक्शन होती है और इसका मतलब यह नहीं है कि हमें सब से दूर रहना चाहिए बल्कि हमने अपनी लाइफ के बारे में सोचने के लिए इतना टाइम निकालना चाहिए कि जब हम लोगों के बीच भी रहे हैं तब भी हम अपने अंदर वही स्वीटनेस और शांति मेंटेन रख पाए जो हम अकेले रहने पर फील करते हैं। नंबर सिक्स वे ऑफ बीइंग बी का रॉजर्स का रॉजर्स एक अमेरिकन साइकोलॉजिस्ट थे, जिन्होंने थेरपी को इनडिविजुअल सेंट्रिक बनाने में काफी योगदान दिया। उनका मानना था कि हम अपनी बॉडी के दिए सिग्नल्स को यूज़ कर सकते हैं, यह जानने के लिए कि कब हम अपनी बातों या ऐक्शन की वजह से इन ऑथेंटिक और कमजोर बन रही है और कब ऑथेंटिक और ताकतवर रॉजर्स ने इस बुक में बताया है कि अगर आप अपने मुँह से निकलने वाली हर बात को अपने आप से डिटैच होकर सुनो जैसे कोई स्ट्रेंजर आपकी बातें सुन रहा हो तब आप ये नोटिस करोगे कि आपके मुँह से निकली कई बातें आपको कॉन्फिडेंट और स्ट्रॉन्ग महसूस कराती है और कई बातें वीक अपनी स्पीच को तब तक बदलते रहो जब तक आप यह महसूस नहीं करने लगते कि आपकी बातों में अब वजन है और आपके मुँह से निकली हर बात आपको हिम्मत देती है। ये रूल आपकी लाइफ के हर एरिया में अप्लाई करा जा सकता है और इस तरह के ऑथेंटिक ऐक्शन को बोलते है। अब वे ऑफ बीइंग नंबर फाइव डिस्कवरी ऑफ अनकॉन्शियस बी हेनरी एलन बर्गर क्योंकि जाने अनजाने में आजकल की दुनिया सच को डैनी करके झूठ की तरफ बढ़ती जा रही है। लोगों को अलग अलग प्रोपगैंडा के थ्रू ब्रेनवॉश कराया जा रहा है और साइनस में पॉलिटिकल करप्शन कर जेंडर्स कास्ट रेसेस और दूसरे ग्रुप्स में डिवाइड पैदा कराया जा रहा है। लोगों को बोला जा रहा है की अगर वो अनहेलथी है तब भी वो अट्रैक्टिव है। छोटे बच्चों को स्कूल में खेलने या अपने आपको फुल्ली एक्सप्रेस करने के लिए रोका जा रहा है। क्रिएटिविटी को बढ़ावा देने के बजाय कन्फर्म मिट्टी और ओबीडीअन्स को प्रोमोट करा जा रहा है। हमारी स्पीच को कंट्रोल करा जा रहा है की हम पब्लिक में क्या बोल सकते हैं और क्या नहीं और देखते ही देखते हमारे नैचरल बिहेव्यर को गलत बताकर हमारी बेसिक उसको भी दबाया जा रहा है। डेप साइकोलॉजी के हिसाब से जितना इस दुनिया में झूठ और रिप्रेशन बढ़ेगा, उतना ही हम लोग अनकॉन्शियस ली ऐक्ट करने लगेंगे। ये इतनी डिसअपॉइंटिंग चीज़ है कि ज्यादातर लोगों को अनकॉन्शस माइंड के बारे में कुछ नहीं पता। स्कूल्स और कॉलेजेज में बस इतना ही समझाया जाता है कि आपका एक कॉन्शस माइंड है और एक सबकॉन्शस माइंड और इसी वजह से लोगों के दिमाग में सच ना बोलने के कॉन्सिक्वेन्स का कोई कॉन्सेप्ट है ही नहीं। इसलिए कैनेडियन साइकेट्रिस्ट, हेनरी ऐलान, बर्गर की ये बुक डिस्कवरी ऑफ अनकॉन्शियस को पढ़ो और अपनी गहराई में जाना शुरू करो। नंबर 41984 बी जॉर्ज ओरवेल 19841 सोशल साइंस फिक्शन नॉवेल है। यानी यह है तो एक स्टोरी। लेकिन इस स्टोरी के माध्यम से ऑथर ने हमें यह समझाने की कोशिश करी है कि अगर हम सच के लिए आवाज नहीं उठाते, हमे जो बोला जाता है हम उसे बिना सोचे समझे फॉलो करने लग जाते हैं। और अगर हम क्रिटिकल थिन कर बनने के बजाय किसी ग्रुप या आइडीओलॉजी के फॉलोअर बन जाते हैं तो कैसे देखते ही देखते हम से हमारे राइट्स छीन लिए जाते हैं। हमारे हर ऐक्शन पर नजर रखी जाती है कि क्या हम कोई रूल को तोड़ तो नहीं रहे और हमें फ्री होने पर भी एक कैदी जैसा फील कराया जाता है? ये 70 साल पुराना नॉवेल पिछले पांच से 10 साल में काफी पॉपुलर हो चुका है। जस्ट बिकॉज़ इसमें कही गई एक एक बात सच होती जा रही है। हमें ब्रेनवॉश कराया जा रहा है। न्यूज़ के नाम पर हमें प्रोपगैंडा दिखाया जा रहा है और हमारी फ्रीडम यानी हम क्या कर सकते हैं और क्या बोल सकते है वो भी कम होती जा रही है। नंबर थ्री ब्रेव न्यू वर्ल्ड बी एल्डस हक्सले। ज्यादातर लोग ये मानते हैं कि हम एक फ्री सोसाइटी में रहते है। जस्ट बिकॉज़ हमारे ऊपर बम नहीं गिर रहे हैं और सड़कों पर नाले खून से नहीं भरे हुए लोगों के हिसाब से अगर हमे कंट्रोल करा जा रहा होता तो यह फैक्ट ऑब्वियस होता। और सबको पता होता जैसे जॉर्ज ऑरवेल के नॉवल 1984 में है। हाउएवर मॉडर्न दुनिया के ज्यादातर काले सच छिपे हुए हैं। अपने फ्यूचरिस्टिक नॉवल ब्रेव न्यू वर्ल्ड में एल्डो साक्षी ने एक ऐसे मनहूस दुनिया के बारे में बताया है जिसमें लोगों को कंट्रोल तो करा जाता है, लेकिन डंडों या लाठियों से नहीं बल्कि टेक्नोलॉजी, ड्रग्ज़ और ************ जैसे प्लेजर देने वाली डिस्ट्रैक्शन से ये स्टोरी भी मॉडर्न टाइम की सच्चाई से पर्दा उठाती है, जिसमे हम एक खोखली जिंदगी जीने लगे हैं। पॉपुलर नारा कि मुझे या तो आजादी दो या मौत बन चुका है कि मुझे टीवी और बर्गर दो लेकिन मुझे आज़ादी से जुड़ी रिस्पॉन्सिबिलिटी से दूर रखो। हमने अपने सपनों और आजादी को खुद ही एक्स्चेंज कर लिया है इन टेंपरेरी सैटिस्फैक्शन से जैसा कि जर्मन राइटर घर था ने बोला था कि उन लोगों से बड़ा गुलाम कोई नहीं होता जिन्हें यकीन दिला दिया जाता है कि वो आज़ाद है। नंबर टू आइ ऑन बी कार यू। ये बुक रीड करने वालों में से सिर्फ गिने चुने लोगों को ही पूरी तरह से समझ आएगी और इन लोगों के लिए इसमें दी गई इन्फॉर्मेशन बहुत डरावनी भी होगी। लेकिन फिर भी इस बुक के बारे में बात करना इसलिए इतना जरूरी है क्योंकि इसमें युग में बेसिकली रिलिजन की गिरती पॉपुलैरिटी और साइनस की बढ़ती एक्सेप्टेंस को एक्सप्लेन करा है और इस नए टाइम पीरियड को हमारी साइकी के स्ट्रक्चर से जुड़ा है। ये बुक डेथ साइकोलॉजी से शुरू होती है और उसके बाद एस्ट्रोलॉजी, मिथोलॉजी और इवन एल कमी तक जाती है। बुक का मेन थीम हमारी के मेनार के टाइप 10 सेल्फ के अराउंड इवॉल्व करता है। यानी हमारा हाइएस्ट वर्जन पर रिलिजन से दूर होने की वजह से हम अपने इस हाइएस्ट वर्जन से भी दूर हो गए हैं और इसी प्रॉब्लम को एड्रेस करते हुए बुक में इसका सल्यूशन भी पेश कर रहा है। नंबर वन पे पैरासिटिक माइन्ड आई गेट सैड गैड एक एवल्यूशन री साइकोलॉजिस्ट हैं और अपनी इस बुक में उन्होंने कॉमन्स को खत्म करने वाले आइडियाज़ के बारे में बात करी है जो आज कल काफी तेजी से पॉपुलर होते जा रहे हैं। पॉलिटिकल करेक्टनेस और सप्रेशन ऑफ स्पीच जैसे आइडियाज़ जो अच्छा ई का नकाब पहनकर सच्चाई को दबाते हैं और हमें वीक बनाते हैं, ये ही यूथ के दुश्मन हैं। गैड ऐसे आइडियाज़ या आइडीओलॉजी इसको माइंड वाइरस इस बोलते हैं, जो हमें रिऐलिटी से दूर ले जाते हैं। उनके हिसाब से ये आइडियास नोबल कॉज की तरह शुरू होते हैं और धीरे धीरे एक रिलिजन जैसे बन जाते हैं। जिसके बाद इन आइडियाज़ को फॉलो करने वाले लोग ट्रूथ को परसयु करने के बजाय अपने इस रिलिजन को ही बचाने में बिज़ी रहते हैं। इसलिए अपने आप को माइंड वाइरस इससे दूर रखने और लोगों की साइकोलॉजिकल स्टेट को समझने के लिए इस बुक को जरूर रीड करो।","2021 और आने वाले वर्ष नए अवसरों और चुनौतियों से भरे हुए हैं, जिसका अर्थ है कि आपके लिए आवश्यक ज्ञान के साथ तैयार और सूचित रहना वास्तव में महत्वपूर्ण है। इसीलिए मनोविज्ञान के इस एपिसोड में हम 10 पुस्तकों की एक सूची पर चलते हैं जो आपको दुनिया में चल रही घटनाओं, समस्याओं और प्रवृत्तियों को समझने में मदद करेंगी। यह सुनिश्चित करने के लिए कि यह वर्ष आपके लिए सफलता, धन और व्यक्तिगत विकास से भरा हो, पूरे पॉडकास्ट सेगमेंट को सुनें।" "डिप्रेशन हर केस में और हर इंसान के लिए वैसा नहीं होता जैसा हम उसे इमेजिन करते हैं। डिप्रेशन का नाम सुनते ही हमारे दिमाग में उदास अनप्रोडक्टिव और बीमार दिखने वाले लोगों की मैं जाती है जो अपने बेड से बाहर भी मुश्किल निकल पाते हैं। लेकिन कई लोग डिप्रेस्ड होने के बाद भी अपनी लाइफ नोर्मल्ली जीते हैं और अपने हर उस काम को करते हैं जो वो डिप्रेशन से पहले कर रहे थे। ऐसे लोग दूसरों के साथ मिलकर हँसते और एन्जॉय भी करते हैं और अपनी हर रिस्पॉन्सिबिलिटी को भी पूरा करते हैं। लेकिन अंदर ही अंदर उनमें एक दीप सैडनेस भरी हुई होती है और उनकी अंदरूनी दुनिया में उथल पुथल मची हुई होती है। इस कंडिशन को बोलते हैं- इन डिप्रेशन यानी आप डिप्रेस तो हो, लेकिन डिप्रेशन की ऑब्वियस सिम्पटम्स ना होने की वजह से अब आम लोगों की तरह फंक्शन कर पा रहे हो। इसलिए यह पता करने के लिए कि कहीं आप भी सीक्रेटली डिप्रेशन की इस नन ऑफ इस फॉर्म के साथ तो नहीं जूझ रहे, हम डिस्कस करने वाले हैं- इन डिप्रेशन के कई साइंस को साइन नंबर वन आप कभी भी रिलैक्स नहीं कर पाते। हाइ फंक्शनिंग डिप्रेशन से डील करने वाले लोग ये जानते है। कि जैसे ही वह कुछ भी काम करना बंद करेंगे, वैसे ही उनके अंदर नेगेटिव और डिप्रेसिव ख्याल आने लगेंगे। यही रीज़न है क्योंकि वो बहुत से डिप्रेस लोग हमेशा खुद को रैन्डम चीजों में बीज़ी रखते हैं ताकि वह खुद के सच से दूर रह सकें। साइन नंबर टू पूरी तरह से खुश न हो पाना, इमोशन्स हर इंसान की लाइफ का हिस्सा है। कभी हम खुशी एक्सपिरियंस करते हैं और कभी दुख और- डिप्रेशन से जूझ रहे लोगों की लाइफ में भी खुशियों के पल तो अक्सर आते हैं, लेकिन वह खुद को कभी भी उस खुशी को पूरी तरह से एक्सपिरियंस करने ही नहीं देते हैं। अगर आप की कई ऐसी हॉब्बीज़ या ऐक्टिविटीज़ थीं जिन्होंने पास में आपको बहुत खुशी दी थी लेकिन अब वो हॉब्बीज़ या फिर आपके इन्ट्रेस्ट भी सूखे पड़ गए हैं तो यह एक साइन है कि आपकी साइकोलॉजी में कुछ न कुछ गडबड चल रही है। साइन नंबर थ्री इन प्रॉपर स्लीप इन रूटीन हाइ फंक्शनिंग डिप्रेशन आपकी नींद की क्वालिटी और उसकी ड्यूरेशन को भी करता है। यानी आपको या तो सोने में बहुत मुश्किल होती है या फिर आप नॉर्मल से ज्यादा सोते हो रिऐलिटी को एस्केप करने के लिए बहुत से लोगों में तो ये भी देखा गया है कि चाहे वो 10-11 घंटे भी सोले या फिर देर रात तक जाग भी ले, तब भी दिन में उनके एनर्जी लेवल से हमेशा डाउन ही रहते है। साइन नंबर फ़ोर बिना किसी रीज़न के दुखी फील करना। हर इंसान किसी ना किसी मूवमेंट पर दुखी महसूस करता है, लेकिन उस दुख के पीछे हमेशा कोई न कोई रीज़न होता है। पर अगर आप हमेशा ही दुखी रहते हो और आपको यह समझ ही नहीं आता कि आप इतना सफर क्यों कर रहे हो तो चान्सेस है क्या? आप- इन डिप्रेशन से डील कर रहे हो? ये फीलिंग चाहे इतनी इंटेन्स ना हो की ये आपके कामों में बाधा डाले, लेकिन यह फीलिंग आपको हमेशा ही एक जो स्टेट में रखकर आपकी मेंटल स्ट्रेंथ को ओवरटाइम गिरा सकती है। साइन नंबर फाइव आप हमेशा टाइम की टेंशन लेते हो यानी आपको फिक्र रहती है कि आप अपना समय कहीं वेस्ट तो नहीं कर रहे? आप कॉन्स्टेंट ली यह नोटिस करते हो कि आपको किस काम में कितनी देरी लग रही है, कौन सा इंसान आपका टाइम वेस्ट करता है, किन कामों के लिए आपके पास टाइम नहीं है या फिर कैसे आपके पास अपने अनलिमिटेड कामों को पूरा करने के लिए एनफ टाइम नहीं है और ये फीलिंग सिर्फ कामों या फिर लोगों से रिलेटेड नहीं होती, बल्कि आप अपनी जिंदगी को भी इसी के साथ देखते हो। या आप किस तरह से अपनी छोटी सी लाइफ को वेस्ट कर रहे हो? डिप्रेशन में यह फीलिंग सबसे मेहनती लोगों में भी आ सकती है जहाँ वह समय को लेकर सिर्फ बिहेव्यर दिखाने लगते हैं और खुद को टाइम को सही तरह से यूज़ ना करने के लिए कोसने लगते हैं। साइन नंबर सिक्स आप इंपल्सिव बन गए हो- इन डिप्रेशन एक इंसान को बहुत ही नम और डी सेन्सिटिव बना देता है, जिसकी वजह से आप इस प्रॉब्लम के साथ किसी भी तरह के इमोशन को फील करने के लिए एक्स्ट्रीम जगहों पर जाते हो और इंपल्सिव बिहेव्यर दिखाते हो, जैसे बहुत से लोगों में देखा गया है। कि वो डिप्रेशन में एक दम से ज्यादा रिस्की ऐक्टिविटीज़ में पार्टिसिपेट करने लगते हैं। वो बहुत ही ज्यादा अल्कोहल कौनसे रूम करते हैं, ड्रग्स लेते हैं, करते हैं, एकदम से कोई टैटू करवा लेते हैं ताकि शायद वो दर्द उनकी नमन एस को मिटा सकें या फिर कोई और ऐसा काम करते हैं जो बहुत ही जोखिम भरा हो। डिप्रेशन एक तरह से हमारी इमोशन्स को फील करने की कपैसिटी को दबा देता है और यही रीज़न है क्योंकि उन लोग अपनी लाइफ के ऐसे फेस में एकदम बेपरवाह हो जाते हैं और इन डाइरेक्टली खुद को डिप्रेसिव मोड़ से निकालकर एक्स्प्रेसिव मोड में लाने की कोशिश करते हैं। इंपल्सिव और रिस्की बनकर साइन नंबर सेवन छोटी छोटी बातों से परेशान होना जो चीजें आपको पहले बस थोड़ा बहुत इरिटेट करती थी वहीं अब वह सेम चीज़ है, आपको या तो बहुत ही गुस्सा दिलाती हैं या फिर आपको उदास करती है। आपको दूसरे लोगों की हर एक बात ज्यादा चुभने लगती है, जिससे उन्हें भी आपके अराउंड ज्यादा सॉफ्ट ली बिहेव करना पड़ता है ताकि वो आपको आपके इस वल्नरेबल फेस में हर्ट ना कर दें। अगर आपको भी एकदम माइल्डली स्ट्रेसफुल सिचुएशन बहुत ज्यादा परेशान कर देती है तो यह एक साइन हो सकता है। या आप- इन डिप्रेशन में हो साइन नंबर एट, बहुत गुस्सा या फिर रोना आना। हाइ फंक्शनिंग डिप्रेशन सप्रेशन का दूसरा नाम है क्योंकि यह यूश़ूअली होता ही उन लोगों को है जो अपनी फीलिंग्स को छुपाते और दबाते हैं। कई लोग दूसरों के आगे वीक नहीं दिखना चाहते और कई लोग दूसरों पर बोझ नहीं बनना चाहते हैं। अपने इमोशन्स को एक्सप्रेस ना करने का रीज़न हमेशा बाहरी होता है और दूसरे लोगों से जुड़ा होता है और जहाँ कभी कभी किसी बात पर गुस्सा होना या फिर ज़रा सा रो देना, यह बिल्कुल ही नॉर्मल होता है। वही अगर आप यूज़्वली इमोशनलेस रहते हो लेकिन कहीं ओकेशन पर आपके अंदर छुपा दुख या फिर गुस्सा एकदम से बाहर आ जाता है तो यह समझो कि यह चीज़ बिल्कुल भी नॉर्मल और मेंटली हेल्ती लोगों के साथ नहीं होती। साइकोलॉजिस्ट्स बोलते हैं कि रिप्रेसेंट इमोशन्स बहुत सी फिजिकल और मेंटल हेल्थ प्रॉब्लम्स को जन्म देते हैं। इसलिए अगर आप भी दूसरों से जल्दी गुस्सा या फिर उदास होते हो लेकिन नोर्मल्ली आप अपने एक्स्ट्रीम एमोशन्स के बारे में अवेयर भी नहीं होते तो समझ जाओ कि आप शायद हाइ फंक्शनिंग डिप्रेशन से डील कर रहे हो।","अलग-अलग लोगों में डिप्रेशन एक जैसा नहीं दिखता। जबकि कुछ लोग इस मुद्दे के स्पष्ट संकेत दिखाते हैं, चाहे वह निराशा, अत्यधिक उदासी, कुछ भी करने की अनिच्छा आदि हो। अन्य लोग हमेशा अवसाद के इन लक्षणों को नहीं दिखाते हैं और वे अपना जीवन सामान्य रूप से जीते हैं और वे सभी काम करते हैं जो बिना अवसाद वाला व्यक्ति कर सकता है। लेकिन अंदर से वे किसी से ज्यादा पीड़ित हैं। इस अवस्था को हाई वर्किंग डिप्रेशन के रूप में जाना जाता है। मतलब व्यक्ति ठीक से काम करने वाला और सक्षम है, लेकिन उदास है। तो, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम हाई वर्किंग डिप्रेशन के कुछ संकेतों पर चर्चा करेंगे।" "एक गलतफहमी है जो ज्यादातर लोगों में रहती है। वो ये है कि हाइली इन्टेलिजन्ट लोगों को हर चीज़ आसानी से मिल जाती है और उन्हें लाइफ में कोई भी मुश्किल नहीं झेलनी पड़ती। और जहाँ ये बात सच है कि इन्टेलिजन्ट लोग अपनी स्टडीज़ या फिर कैरिअर में दूसरों से ज्यादा अचीव कर पाते हैं, चाहे वो दूसरों की जितनी मेहनत ना करे, तब भी। लेकिन यह अचीवमेंट्स एक प्राइस के साथ आती है, क्योंकि हाइली इन्टेलिजन्ट लोगों को अपने इस गिफ्ट की वजह से कई सोशल इन्टलेक्चुअल फिजिकल और साइकोलॉजिकल स्ट्रगल्स का सामना करना पड़ता है और ये एपिसोड कुछ ऐसी ही स्ट्रगल्स के बारे में है नंबर वन आप ईज़ी फ्रेंड्स नहीं बना पाते है हाइली इन्टेलिजन्ट लोग अक्सर लोनलीनेस का शिकार बनते हैं और ऐसा इसलिए होता है क्योंकि अपने लेवल की मेंटल कैपेबिलिटी रखने वाले लोगों को ढूंढना आसान नहीं होता, जब आप ऐवरेज से ज्यादा इंटेलीजेंट होते हो। जीवन अगर आप कई लोगों को अपना दोस्त बना भी लो तब भी उनके साथ हैंगआउट करना आपको बोरिंग लगता है और इस वजह से आप यूँ चली किसी दोस्ती में ज्यादा डेप्त भी नहीं ढूंढ पाते हैं। फ्रेन्ड्शिप का एक बहुत जरूरी हिस्सा होता है कि आप दोनों एक दूसरे के साथ कई चीजों पर रिलेट कर सको। और आपने बहुत सी सिमिलैरिटीज हो लेकिन अगर आपके और आपके फ्रेंड्स में डिफरेन्स ज्यादा है और सिमिलैरिटीज कम तो ऐसे में वो फ्रेंडशिप या तो जल्दी ही खत्म हो जाती है या फिर वो बॉन्ड कभी भी ज्यादा स्ट्रॉन्ग नहीं हो पाता। और यह भी एक रीज़न है की वो इंटेलीजेंट लोगो के दोस्त इतने कम होते है। नंबर टू आप बोलते कम हो और सोचते ज्यादा हाइली इन्टेलिजन्ट लोगों का दिमाग उनकी जुबान से ज्यादा तेज चलता है, जिसकी वजह से आप जितना चीजों को समझते हैं और फील करते हो, उतना आप उन्हें एक्सप्रेस नहीं कर पाते हैं। यह चीज़ प्रॉब्लमैटिक इसलिए हैं देखिये ये स्ट्रगल आपको अपनी फैंटसीज़ में फंसा सकती है जिससे आप हमेशा ही कुछ ना कुछ सोचते रहोगे और बोलोगे कुछ नहीं। नंबर थ्री आपके अंदर स्टुपिड लगने का डर है। ये डर अक्सर उन लोगों में देखा जाता है जिन्हें यूज़्वली स्मार्ट या फिर इन्टेलिजन्ट होने के लिए कॉम्प्लिमेंट्स मिलते हैं। लेकिन एक इन्नर इन्सेक्युरिटी की वजह से वो कहीं ना कहीं इन कॉंप्लिमेंट को झूठा मानते हैं और उन्हें ऐसा फील होता है कि वो इतने इंटेलीजेंट नहीं है जितना लोगों ने मानते हैं और एक ना 1 दिन उनकी सबके आगे आ ही जाएगी। नंबर फ़ोर आप ज्यादातर लोगों के आगे इंट्रोवर्ट रहते हो, जहाँ हर इन्टेलिजन्ट इंसान एक इंट्रोवर्ट नहीं होता, वहीं इस चीज़ के चान्सेस ज्यादा रहते हैं कि वो हर एक के साथ खुलकर इंटरैक्ट ना करें क्योंकि अपनी बॉडी से ज्यादा अपने माइंड में रहने की वजह से हर इन्टेलिजन्ट इंसान के लिए एक ऑब्जर्वर की पोज़ीशन से हट कर एक पार्टिसिपेट अर्बन ना ये आसान नहीं होता। यही रीज़न है कि क्यों ज्यादातर इन्टेलिजन्ट लोग अच्छे लिसनर होते हैं। नंबर फाइव आपके लिए एक सूटेबल पार्टनर ढूंढना बहुत मुश्किल होता है। फ्रेंड्स की ही तरह एक पार्ट्नर करने के लिए भी आपको उनमें कई सिमिलैरिटी जरूर नहीं होती है, जिसकी वजह से एक लॉन्ग लास्टिंग रिलेशनशिप ढूँढना और फिर उसे मेनटेन करना। यह काम इन्टेलिजेन्स लोगों के लिए एक स्ट्रगल से कम नहीं होता। वो अपनी और अपने पार्टनर की हर फीलिंग और ऐक्शन को ओवर ऐनालाइज करते हैं और दूसरे इंसान की गहराई को समझने में बहुत ज्यादा एफर्ट्स लगाते हैं। अगर आप भी एक हाइली इन्टेलिजेन्स इंसान की कैटेगरी में आते हो तो यह चीज़ आपने भी अपने रिलेशनशिप्स में अक्सर नोटिस करी होगी कि आप को या तो कोई ऐसा इंसान मिलता ही नहीं है जो आपको समझ सकें। आपको इंटलेक्चुअल ली स्टिम्युलेट कर सके? और जिससे आप भी एक डी पर लेवल पर जुड़ सको या फिर अगर आपको कोई ऐसा इंसान मिल भी जाए तब भी आप उस रिलेशनशिप को एक नए प्रोजेक्ट की तरह देखने लगते हो और अपने पार्टनर को रोमैंटिसाइज करने के बजाय आप उसे इस तरह से इन्टलेक्चुअल आइस करने लगते हो जैसे कि आप उसके एक थेरपिस्ट हो नंबर सिक्स आपको डर मार्ग यू मेट से बचने के लिए हाँ में हाँ मिलाना पड़ता है। कभी कभी किसी से बात करते हुए जब आपको क्लियरली यह दिख रहा होता है कि दूसरे इंसान को आपकी बात समझ में नहीं आ रही, तब एक आर्ग्यूमेंट में जाने के बजाय आप सिम्पली उनकी हाँ में हाँ मिला देते हो। और बात को वही टालने की कोशिश करते हो। इससे आप टेंपोररिली बच तो जाते हो लेकिन लॉन्ग टर्म में आपकी बातों को टालने की यही आदत आपके रिलेशनशिप को नेगेटिव इफ़ेक्ट करती है। नंबर सेवन आप चीजों को ऐनालाइज करने के चक्कर में प्रेज़ेंट मूवमेंट को खो देते हो। इन्टेलिजन्ट लोग अक्सर हर प्रॉब्लम को ओवर इन्टलेक्चुअल इस करते हैं और अपनी फैन थिस इस मैं ज्यादा ईज़ी वो लग जाते हैं जिसकी वजह से वो प्रेसेंट मोमेंट में रहने के बजाय अपने आइडियाज़ की दुनिया में ही अपना सारा समय बिताते हैं। यह चीज़ नए नए इन्वेंशंस करने और प्रॉब्लम सॉल्विंग के लिए तो ठीक है। लेकिन इससे एक इंसान की मेंटल हेल्थ पर बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ता है। नंबर एट आप ईज़ी स्ट्रेस के शिकार बन जाते हो। एक टिपिकल इन्टेलिजन्ट इंसान तब तक ठीक रहता है जब तक वो किसी प्रॉब्लम को ओवर ऐलिस करना शुरू नहीं करता। पिछले कई सालों में हाइक वाले लोगों पर हुई स्टडीज़ बताती हैं कि आपकी हाइ इन्टेलिजेन्स आपको अपनी लाइफ के कई अलग इवेंट्स के बारे में ओवर थिंक करने पर मजबूर कर सकती है, जिससे आप अपने मन में ही अलग अलग कहानियाँ बनाकर बिना किसी ऐक्चुअल रीज़न के स्ट्रेस कट्ठा करने लगते हो। नंबर नाइन आपकी लॉजिक में कई लूपहोल्स और 22 है। दुनिया में हमेशा ही ऐसी इन्फॉर्मेशन रहेंगी, जिसे आप नहीं जानते, लेकिन अगर आपको दुनिया या फिर अपने बारे में कोई चीज़ नहीं पता तो आपको यह कैसे पता चलेगा कि आपको वो नहीं पता? यही पैराडॉक्स इंटेलीजेंट लोगो की थिंकिंग का लूप्होल होता है। यानी आप शायद ये सोचते हो की आपको दूसरों से ज्यादा पता है और इसी ओवर कॉन्फिडेन्स की वजह से आपका ही ऑब्वियस बातों और कॉमन्स को इग्नोर कर देते हो। यही रीज़न है कि बहुत से इन्टेलिजन्ट लोग इतने स्मार्ट होने के बावजूद काफी सोशली ऑक्वर्ड या फिर कॉमन सोशल प्रोटोकॉल्स के बारे में अन्न वेर होते हैं। नंबर 10 आप अपनी इन्टेलिजेन्स के अलावा किसी दूसरी क्वालिटी को प्रायोरिटी नहीं देते हैं। इन्टेलिजेन्स एक बहुत ही पॉवरफुल और यूज़फुल क्वालिटी है। लेकिन इन्टेलिजन्स के अलावा भी कई ऐसी क्वालिटीज हैं जो एक इंसान को ज्यादा वैल्यूएबल बनाती है। हाउएवर बहुत से हाइली इन्टेलिजन्ट लोग अपनी अकड़ में ये समझ लेते हैं कि उन्हें लाइफ में हर चीज़ आसानी से मिल जाएगी। सिर्फ और सिर्फ उनकी इन्टेलिजेन्स के दम पर इसी सोच के साथ वो थोड़े आलसी बन जाते हैं। और खुद के कई एरिया को डेवलप करने में ज़रा सी भी मेहनत नहीं करते हैं।","हम हमेशा सोचते हैं कि बुद्धिमत्ता एक ऐसा गुण है जो आपके जीवन की सभी प्रमुख समस्याओं को मिटा सकता है, यह सच है कि आपके स्कूल, कॉलेज और करियर में अधिक सफल होने की संभावना अधिक होगी, हालाँकि, ऐसी कई समस्याएं हैं जिनका सामना केवल अत्यधिक बुद्धिमान लोग ही करते हैं जिससे हम में से अधिकांश लोग अनजान हैं। तो, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम एक अत्यधिक बुद्धिमान व्यक्ति के 10 संघर्षों पर चर्चा करेंगे।" "आज कल के ज्यादातर लोग रीडिंग को बोरिंग मानते हैं और जितनी मोटी बुक होती है, उतना ही वो उससे दूर रहना प्रिफर करते हैं। ये हमारे एजुकेशन सिस्टम का नतीजा है क्योंकि हमें स्कूल और कॉलेज में ये बताया जाता है कि अगर हम टीचर्स, पैरेन्ट्स और सोसाइटी की रिस्पेक्ट चाहते हैं तो हमें सिर्फ अपनी टैक्स बुक्स पर ध्यान देना है और अगर किसी महान थिंकर की आइडिया सिखाये भी जाते हैं तो उन्हें भी नॉट नस बनाकर उनका सारा चाम खत्म कर दिया जाता है। यही रीज़न है कि मॉडल लोग नॉलेज नहीं बल्कि एंटरटेनमेंट का पीछा कर रहे हैं। इसका एक रीज़न है इन्टरनेट। और सोशल मीडिया जैसी चीजों की ऐक्टिव नेचर और दूसरा रीज़न है की लोगो को ये पता ही नहीं है कि महान बुक्स को रीड करने से उनकी लाइफ में क्या बदलाव आ सकते हैं। इस तरह की बुक्स रीड करने से आप इंसान के मन से निकले बेस्ट आइडियाज़ से मिलते हो और उन प्रॉब्लम्स के बारे में सोच पाते हों जिन्होंने पास्ट के हर इंसान को इन्फ्लुयेन्स करा है। ये आपकी खुद की अन्डरस्टैन्डिंग के लिए बहुत जरूरी है। अपनी बुक वाइड में ऑथर मार्केट बोलते है कि महान बुक्स का काम सिर्फ आपको एक क्लिअर थिन कर बनाना नहीं होता, बल्कि इन बुक्स को रीड करने का बेस्ट सीज़न होता है। ये देखना की क्या वो आपको आपसे बेहतर जानती है? यानी एक लेवल पर महान लोगों के द्वारा लिखी गई यह बुक्स हमारे बारे में है। ज्यादातर टाइम हमारे पास अपने थॉट्स और फीलिंग्स को डिस्क्राइब करने के लिए वर्ड्स भी नहीं होते हैं। लेकिन ग्रेट बुक्स हमें इस प्रॉब्लम से बाहर निकाल सकती है क्योंकि इनके राइटर्स ह्यूमन बिहेव्यर को काफी अच्छे से समझते हैं। इनके करैक्टर्स द्वारा हमें इन्सानों की असली डेथ पता चलती है और ये समझ जाता है कि इन बुक्स में लिखी बातें अभी भी जिंदा है और हमारे कल्चर में सबसे एक्सेप्शनल लोग ऑलरेडी इनकी बातों को फॉलो भी कर रहे हैं, जबकि बाकी लोग जो मिडिओकर है वो इन बुक्स और इनमें विज़्डम को रिजेक्ट करते हैं। यहाँ तक कि आज बड़ी यूनिवर्सिटीज़ के प्रोफेसर्स भी बच्चों को महान बुक्स के आइडिया से इंट्रोड्यूस कराने और इस नॉलेज के साथ बच्चों को एम्पॉवर करने के बजाए उन्हें इनबॉक्स को क्रिटिसाइज करना और अपनी हिस्टरी के महान लोगों में गलतियाँ ढूंढना सिखाते हैं। यह इसलिए क्योंकि आजकल बहुत से लोग पास की बची खुची नॉलेज को करप्ट और बैकवर्ड बताकर रिजेक्ट करते जा रहे हैं। ये वो लोग हैं जो अपने आपको अपने एंड सिस्टर से ज्यादा समझदार समझते हैं। जस्ट बिकॉज़ इनके पास मॉडर्न टेक्नोलॉजी है। इस तरह के स्टूडेंट स्मार्ट तो होते हैं लेकिन जस्ट बिकॉज़ उन्हें अपनी इन्टेलिजेन्स को अच्छा ई के लिए यूज़ करना सिखाया ही नहीं होता। यह अपनी थिंकिंग कैपेबिलिटीज को आइडियास, नॉलेज हिस्टरी और ट्रूथ को क्रिटिसाइज करने के लिए यूज़ करते रहते हैं और क्योंकि इन लोगों को सिर्फ चीजों को तोड़ना और क्रिटिसाइज करना आता है ना की कुछ बिल्ड करना। इस वजह से ना ही इन लोगों के कोई वर्ड चूस यानी लाइफ प्रिन्सिपल्स होते हैं और ना ही कोई वैल्यूज़ और स्टैन्डर्ड ज़ैगमन सन बोलते है कि हम तब तक असली एजुकेशन तक नहीं पहुँच सकते हैं जब तक प्रोफेसर्स और उनके स्टूडेंट्स अपना ये नार्सिसिस्टिक इल्यूजन नहीं छोड़ देते हैं। की वो अपनी किसी थिओरी या क्रिटिसिजम के साथ मिल्टन शेक्सपियर या दांते जैसे महान राइटर से बेहतर बन सकते हैं का? ये डर है कि अगर ज्यादा से ज्यादा इन्टेलिजेन्स स्टूडेंट्स इन ग्रेट वर्क्स ऑफ आर्ट को रिजेक्ट करने लगे तो या तो यह स्टूडेंटस प्लेजर के जाल में फंस जाएंगे या फिर ये पैसा और पावर का पीछा करने लग जाएंगे और कभी भी ये इमेजिन ही नहीं कर पाएंगे कि ह्यूमैनिटी इससे कुछ बेहतर कर सकती थी। महान बुक्स आपको इसी डेन्जर से दूर रखती है क्योंकि यह पक्का है कि जो पास में हुआ था वो दुबारा जरूर होगा। अमेरिकन राइटर मार्क ट्वेन ने एक बार फेमस ली बोला था की हिस्टरी अपने आप को रिपीट नहीं करतीं, लेकिन वो प्रेज़ेंट से राइम जरूर करती है। पुराने बुरे आइडियास जो पास में सोचे गए थे, उनको एक नई पैकेजिंग, नए नाम और नए स्लोगन के साथ प्रोमोट कर आ जाएगा। लेकिन अगर आपको हिस्टरी और टाइम की शुरुआत से चलते आ रहे आइडियाज़ की नॉलेज है तो आप इन बुरे आइडियाज़ के अगेन्स्ट कर पाओगे और अपने कल्चर को सेफ रख पाओगे। इट डज नॉट मैटर आपकी एज क्या है? अगर आपको अभी तक इन महान लोगों के आइडियाज़ से इंट्रोड्यूस नहीं कराया गया है। तो आप अब ये सोच रहे हो कि काश आपका भी कोई रोल मॉडल होता जो आपको लाइफ की बड़ी प्रॉब्लम्स को हैंडल करना? सीखाता तो आप इन बुक्स को यूज़ करो अलग अलग राइटर्स आपको अपने और दूसरे लोगों के बारे में कुछ नई चीजें सिखाएंगे। जॉर्ज ऑरवेल और एल्डर्स असली जैसे राइटर्स आपको यह समझा सकते हैं कि किस तरह से एक सोसाइटी अपनी फ्रीडम और क्रिटिकल थिंकिंग पावर खोकर करप्ट और डी जेनरेट बन जाती है। एक्सपाइर के टाइम्लेस वर्ड्स आपको ह्यूमन इमोशन्स के बारे में काफी अच्छी नॉलेज दे सकते हैं की अपने करैक्टर्स को इतना रियल बना देते हैं। की आपको ऐसा लगता है कि आप उस चोरी को असलियत में जी रहे हो और ह्यूमन साइकोलॉजी समझने के लिए डॉक्टर्स की अब तक के बेस्ट राइटर्स में से एक है। सिमिलरली आपके स्क्रिप्ट्स आपको आपके कल्चर की हिस्टरी और उनकी इनसाइट्स के बारे में बता सकते हैं। ये सारी वो बुक्स हैं जिन्होंने टाइम के टेस्ट को सक्सेस्स्फुल्ली पार कर रहे हैं और इनमें लिखी चीजें अभी भी रेलेवेंट हैं। ना उ ये आइडेंटिफाइ करने के लिए कि कौन सी बुक्स पढ़ने लायक है और कौन सी बस हाइप या टाइम वेस्ट है? हमें किसी महान राइटर की ही एडवाइस लेनी होगी। अपनी बुक मैं जर्मन फिलॉसफर फ्रेड्रिक नीचा समझाते हैं की ये ग्रेट बुक होती क्या है? वो बोलते है की सिर्फ वही राइटर्स पढ़ने लायक है जो अपनी बुक्स अपने खून से लिखते हैं। यानी जीस इंसान ने अपनी जीवन शक्ति अपने पन्नों पर छलका दी है उसे पढ़ो ये जीवन शक्ति एक समय पर भगवान थी। फिर ये एक इंसान बनी और अब यह एक किताब में कैद हैं। आपका काम है राइटर की इस लाइफ एनर्जी के साथ डांस करना और अपने आप को अपनी डल स्टेट से ऊपर उठाना नीचा बोलते है कि सिर्फ उन बुक्स को पढ़ो जो आपके अंदर लाइफ के टूवर्ड्स एक्साइटमेंट को बढ़ाती है, आपको चैलेंज करती है और आपको स्ट्रॉन्ग बनाती है। हर वो बुक जिसे ऑर्थर ने अपने खून से नहीं लिखा यानी जिसे पढ़ने के बाद भी आपके दिल में मौजूद भार दूर नहीं जाता और आपको ऐसा नहीं लगता कि आपके अंदर मौजूद भगवान का एक अंश नाच रहा है, गा रहा है और उड़ रहा है तो वो बुक टाइम वेस्ट है। नीचे के हिसाब से रीडिंग तब तक पॉइंट लैस है जब तक हम बस पैसिव ली बैठकर पढ़ते रहते हैं। इसके बजाय हमें रीडिंग को एक टूल की तरह यूज़ करना चाहिए और बुक में भी विजडम को पूरी हिम्मत के साथ अपनी लाइफ में अपनाना चाहिए। और सिर्फ तब हम रीडिंग का असली पर्पस समझ पाएंगे।","महान पुस्तकें वे हैं जिन्होंने कई पीढ़ियों को प्रभावित किया है और उनकी सामग्री अभी भी आधुनिक कानों के लिए सही है। शेक्सपियर की महान कृतियाँ, नीत्शे की रीढ़-द्रुतशीतन भविष्यवाणियाँ, टॉल्स्टॉय की कल्पना के 1000+ पृष्ठ और दोस्तोवस्की के मनोवैज्ञानिक रूप से गहन उपन्यास कला के महान कार्यों के कुछ उदाहरण हैं। लेकिन ये लंबी, पढ़ने में मुश्किल और चुनौतीपूर्ण किताबें अभी भी इतनी लोकप्रिय क्यों हैं? वे किस कार्य की सेवा करते हैं? इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम ऐसे सवालों का पता लगाते हैं और समझते हैं कि हमारे व्यक्तिगत विकास के लिए ग्रेट बुक्स पढ़ना क्यों महत्वपूर्ण है।" "1859 में चार्ल्स डार्विन ने अपनी एवल्यूशन की थ्योरी पब्लिश करी थी और इस थ्योरी ने साइकोलॉजी की एक नयी ब्रांच को जन्म दिया, जिसका नाम है एवल्यूशन री साइकोलॉजी, जो हमारे बिहेव इयर्स को एवल्यूशन के बेसिस पर समझाती है और आज हम इसी वायु से यह जानने की कोशिश करेंगे कि लड़कों और लड़कियों में एग्ज़ैक्ट्ली कौन से साइकोलॉजिकल डिफरेन्स होते हैं और दोनों जेंडर्स की अपने पार्टनर्स को चूज करने की स्ट्रैटिजी क्या होती है? सो सबसे पहले अगर हम बौस एंड गर्ल्स के पर्सनैलिटी डिफरेन्स को उनके बचपन में देखें तो उनमे यूज़्वली ज्यादा डिफरेन्स नहीं होते है, पर प्यूबर्टी के आसपास होर्मोन अल चेंजेस की वजह से लड़के ज्यादा होर नहीं होने लग जाते हैं। उनका दिमाग सेक्शुअल थॉट से भर जाता है और टेस्ट बढ़ने की वजह से उनकी फिजिकल स्ट्रेंथ भी बढ़ने लगती है। यह मैं करेक्टर स्टिक्स, एक लड़के को कुछ अचीव करने और हर सिचुएशन को डॉमिनेट करने के लिए मोटिवेट करते हैं। यही रीज़न है कि क्यों मेल टीनेजर्स इतने अग्रेसिव या ऐन्टी सोशल होते हैं और क्यों वो इतने रिस्की बिहेव्यर इसमें पार्टिसिपेट करते हैं? दूसरी तरफ लड़कियों में प्यूबर्टी के टाइम नेगेटिव इमोशन्स बढ़ने लग जाते हैं और वो उसके बाद पूरी जिंदगी लड़कों से ज्यादा नेगेटिव रहती है। ये इसलिए होता है क्योंकि लड़कियों का नर्वस सिस्टम एक बच्चे की केयर करने के लिए बना होता है क्योंकि हमारी जिंदगी के शुरू के कुछ साल में हम काफी कमजोर और नाजुक होते हैं और अगर एक माह का दिमाग चिंता करने के लिए नहीं बना होता तो वो अपने बच्चे पर इतना ध्यान नहीं देती और उस बच्चे को हेल्थी डेवलपमेंट के लिए जरूरी अटेन्शन और प्यार भी नहीं मिलता। लड़कियों के इसी ट्रेड की वजह से उनमें डिप्रेशन और एंजाइटी के केस ज्यादा देखने को मिलते हैं। इसके साथ ही लड़कियां लड़कों से ज्यादा अग्रि एबल होती है क्योंकि उनकी फिजिकल स्ट्रेंथ ना होने की वजह से वह सब लोगों के साथ एक हेल्थी कनेक्शन रखना प्रिफर करती है ताकि जरूरत के टाइम पर वो दूसरों की मदद ले सकें और ताकि वो अपने बच्चों की जरूरतों को भी पूरा कर सके। और जहाँ लड़कियों का ये बिहेव्यर स्पीसीज़ को कंटिन्यू रखने में काफी हेल्पफुल होता है, वहीं एक जॉब सेटिंग में यही समे ट्रेड्स उन्हें टॉप पोज़िशन्स तक पहुंचने से रोकते हैं, क्योंकि किसी से भी कम्पीट करने के लिए आपको डिसग्रीस टेबल और सेल्फिश होना जरूरी है। पर फीमेल्स अपने बच्चे के लिए अपने आप को सैक्रिफ़ाइस करने के लिए वाइड होती है और चान्सेस है कि वो अपनी जॉब में भी हाइर स्टेटस तक पहुंचने के लिए दूसरों से लड़ने के बजाय उनसे अच्छे रिलेशन्स बनाए रखना प्रेफर करेंगी। ये फैक्ट हमें मेल्स और फीमेल्स के बारे में एक और इंट्रेस्टिंग चीज़ बताता है यानी मेल्स, गैजेट्स और मशीन्स में इंटरेस्ट दिखाते हैं, जिसकी वजह से वो ज्यादा लॉजिकल होते हैं और फीमेल्स लोगों में इन्ट्रेस्ट दिखाती है जिसकी वजह से वो ज्यादा क्रिएटिव होती है। पर इसके बावजूद दोनों जेंडर्स का ऐवरेज आइक्यू ऑलमोस्ट सेम ही रहता है। हाउएवर जब हम सबसे ज्यादा आइक्यू और सबसे कम आई क्यू वाले लोगों को लेते हैं तो वो हमेशा मेल सोते हैं, पर क्यों? इसका रीज़न है सेक्शुअल सलेक्शन, जो बताता है कि कई फिजिकल, मेंटल या साइकोलॉजिकल ट्रेड्स इन्वॉल्व होते है। जस्ट बिकॉज़ वो लोगों को उनके ऑपोज़िट जेंडर को अट्रैक्ट करने में मदद करते हैं। सो अगर हम दोनों जेनरेट स्कीमैटिक स्ट्रैटिजीज को देखें तो दोनों जे नर्स की ही अलग अलग हाइरार्की ज़ यार होती है और सब कॉन्शस ली। हम ये जानते हैं कि हम इन हाइ में कहाँ स्टैंड करते है। फीमेल स्की हाइरार्की ज़ मेनली ब्यूटी पर बेस्ड होती है और मेल्स की चीज़ सक्सेस और स्किल्स पर और जो ट्रेड स्मेल्स को सक्सेसफुल बनाने में सबसे ज्यादा जरूरी होते हैं, वह है इन्टेलिजेन्स और हार्ड वर्क। फीमेल्स ऐसे मेल्स को चूज करती है, जो हाइरार्की में उनके बराबर या फिर उनसे ऊपर होते हैं और मेल्स ऑब्वियस्ली उन लड़कियों को अपना पार्टनर बनाते हैं, जो हाइरार्की में उनके बराबर या फिर उनसे नीचे होती है। यही रीज़न है की क्यों अलग अलग? कल्चर्स में लड़कियां अपने से चार से 5 साल बड़े मेल्स के साथ शादी करना प्रिफर करती है, जो कि उनसे ज्यादा फाइनैंशली स्टेबल होते हैं। क्योंकि अगर वो अपनी एज के लड़के के साथ शादी करें तो उनको उतने रिसोर्सेस नहीं मिल पाएंगे। ऐसे येस स्ट्रैटिजी दोनों जेंडर्स के फेवर में काम करती है। लड़कियों को श्योरिटी मिल जाती है कि उन्हें और उनके बच्चों को खाने और शेल्टर की कमी नहीं होगी और लड़कों को एक हेल्थी और यंग लड़की मिल जाती है जो हाइली फर्टाइल होती है। इस मीटिंग स्ट्रैटिजी को बोला जाता है। हाइ परगांई यह हमें बताता है कि क्यों फीमेल्स इतनी चूसी होती है और वो मेल्स को आपस में कंप्लीट करने देती है और जो भी मेल हाइरार्की के टॉप पर पहुंचता है, उसके पास सबसे ज्यादा लड़की आती है। पर इस स्ट्रैटिजी में प्रॉब्लम यह है कि फीमेल्स सिर्फ हाइअर स्टेटस और हार्डवर्किंग मेल्स के साथ ही सेटल करती है, जिसकी वजह से हाइरार्की में सबसे नीचे रहने वाले मेल्स जिनके पास रिसोर्सेज़ हेल्थ या स्किल्स नहीं होती। उन्हें री प्रड्यूस करने के लिए कोई फीमेल मिलती ही नहीं है। इसी वजह से स्पीसीज़ को आगे बढ़ाते रहने के लिए नेचर मेल पॉप्युलेशन को ज्यादा डिवोर्स बनाती है, जिनमें कई मेल्स जीनियस निकलते हैं और कई इन्टलेक्चुअल ई वीक 100। एक तरह से हम ये भी बोल सकते हैं कि वो फीमेल्स की इन्टेलिजन्ट मेल्स के टुवार्ड्ज़ परेफरेंस थी, जिसने हमें एक बंदर से इंसान बनाया और इस लाखों सालों के एवल्यूशन की वजह से मेल सिर्फ यही नहीं जानते कि इस टाइप की हाँ। एग्ज़िट करती है बल्कि टाइम के साथ साथ हम और कैपेबल होते जा रहे हैं। यह फ़िगर आउट करने के लिए की हम ज्यादा से ज्यादा हाइरार्की इसके टॉप पर कैसे पहुंचे? और इंसानों में ये क्यूरियोसिटी हमेशा से रही है कि हम आगे कैसे बढ़े और अगला स्टेप क्या है? यही वो क्वेश्चन्स हैं जिन्होंने हमें एक स्टोरी सुनाने के केपेबल बनाया क्योंकि जैसे जैसे हम इन हाइरार्की इसको समझने के केपेबल बनने लगे वैसे वैसे हम ऑब्ज़रव करने लगे कि जो लोग इन उसके टॉप पर पहुँचते हैं, वो कैसे होते है और हम उनके बारे में स्टोरी सुनाने लगे और ऐसे जन्म हुआ एक हीरो और हिरोइन फिगर का, जिनके ऊपर मैथोलॉजिकल स्टोरीज लिखी गई और इन स्टोरीज़ में भी सबसे बड़ा हीरो वो होता है जो हाइरार्की इसके टॉप पर चढ़ने में सबसे ज्यादा केपेबल होता है यानी हमारी मीटिंग स्ट्रैटेजीस सिर्फ जेनेटिक्स के बेसिस पर ही हमें हाइरार्की इसको क्लेम करना नहीं सिखाती बल्कि इसके साथ ही हमारी स्टोरीज़ भी हमें इसी डायरेक्शन में पुश करती है। राम और सीता, शिव और पार्वती, आइसिस और ओसाइरस ये सब मैथोलॉजिकल फिगर्स और इनकी स्टोरीज़ हम इंसानों को समझाती है की एक आइडियल मेल और फीमेल बनने का मतलब क्या होता है और कैसे किसी भी हाइरार्की को क्लाइन करा जाता है। इस तरह से एवल्यूशन अरी साइकोलॉजी सिर्फ हमारे साइकोलॉजिकल बिहेव्यर के बारे में ही नहीं बल्कि हमारी हिस्टरी के बारे में भी बताती है, जिसका सबसे बड़ा एग्जाम्पल मेल और फीमेल के डिफरेन्स रहे हैं। लड़कियां अपने यूथ को प्रिजर्व करती है और अपने आप को हाइरार्की में एक ही पोज़ीशन पर रखती है ताकि वो एक हाई वैल्यू मेल को अट्रैक्ट कर सके और लड़के अलग अलग की इसके टॉप पर पहुंचने के लिए मेहनत करते रहते हैं ताकि वो एक हाई वैल्यू मेल बन सके और एक यंग और ब्यूटीफुल फीमेल के साथ मेड कर सके। दोनों जेंडर्स की यही ड्राइव हमें हमेशा आगे बढ़ते रहने के लिए मोटिवेट करती रहती है।","इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम चर्चा करते हैं कि पुरुष अपने व्यक्तित्व या मनोवैज्ञानिक व्यवहार में महिलाओं से कैसे भिन्न होते हैं और कैसे दोनों विपरीत लिंग को आकर्षित करने के लिए विभिन्न तकनीकों का उपयोग करते हैं। ये सभी विचार विकासवादी मनोविज्ञान पर आधारित हैं और इन्हें सैकड़ों-हजारों वर्षों में खोजा जा सकता है। इसलिए अगर आप खुद को और विपरीत लिंग को समझना चाहते हैं तो आपको हमारी हर क्रिया के पीछे के विज्ञान को समझना होगा और यह पॉडकास्ट उसके लिए एक बेहतरीन शुरुआती बिंदु है।" "सेंस ऑफ ह्यूमर एक कंप्लीट पर्सनैलिटी बनाने के लिए बहुत जरुरी क्वालिटी है। अगर आपके अंदर जोक मारने और डे टु डे लाइफ में हंसने की काबिलियत है तो यह चीज़ आपको दूसरों की नजरों में बहुत अट्रैक्टिव बनाती है। जस्ट बिकॉज़ हंसना एक साइन होता है कि आप एक सिचुएशन में पूरी तरह से गिवअप कर देने या चिंता से हड़बड़ाने के बजाय मुश्किल समय में भी शांत रह सकते हो और आपके साथ रहना ज्यादा सेफ है बजाय किसी ऐसे इंसान के साथ रहने के जो कभी नहीं हंसता और हमेशा मुँह फुलाए रहता है। एक हंसमुख या फनी इंसान जीन्स और ऑकवर्ड मोमेंट्स को भी काफी आसानी से बदल कर उस पल को सबके लिए यादगार बना देता है। यहाँ तक कि बहुत से केसेस में एक डिप्रेस्ड इंसान भी फनी लोगों के आसपास रहने से अपने दुखों को बहुत हद तक कम कर सकता है। अब अमेरिकन ऑथर ग्रेनविल ने एक बार बोला था कि हँसी मजाक हमारे माइंड और बॉडी के लिए एक दवाई का काम करते हैं। यह डिप्रेशन और एंजाइटी को दूर करने का बेस्ट तरीका है। यह एक बिज़नेस ऐसेट है। यह दोस्त बनाने में मदद करता है, सफरिंग को कम करता है और सीधा सीधा हमे ज्यादा सुखी बनाता है। इसलिए अब बात करते हैं कि आप अपना सेंस ऑफ ह्यूमर इम्प्रूव करके ज्यादा फनी कैसे बन सकते हो? नंबर वन टेलर ट्रूथ दैट नो वन एल साइज नोटिस दे फनी होने का एक बहुत बड़ा पार्ट ये होता है कि आप वह बात बोलो जो दूसरे लोगों ने नोटिस भी ना करी हो लेकिन वो सच हो। एक पंच लाइन का मतलब ये होता है कि आप कुछ अनएक्सपेक्टेड ट्रूथ बोल रहे हो जो सिर्फ आपकी ऑब्जर्वेशन और पैटर्न्स को पकड़ने की एबिलिटी से निकलकर आया है। स्टैंडअप कमीडियन से यह चीज़ हर समय कर रहे होते हैं कि वो किसी ऐसे टॉपिक को छेड़ते हैं। जैसे किसी दूसरे ने पहले पॉइंट आउट नहीं करा होता और फिर वो उस स्रोत को इस पॉइंट तक एग्ज़ैक्ट कर देते हैं कि वो बहुत फनी बन जाता है। इसी वजह से तो हर कल्चर, कॉमेडियन्स और जो कर सको इतनी रिस्पेक्ट देता है क्योंकि जो सच एक विदूषक हँसी मजाक में बोल पाता है, वह सच एक आम आदमी नहीं बोल सकता। मजाक के कॉन्टेस्ट में कड़वी बातों में भी एक मिठास आ जाती है, जिससे बाकी लोग भी उसकी हिम्मत की दाद देते हैं और बुरा नहीं मानते है। जीवन अगर कोई उसके मजाक से ऑफेंड भी हो जाए तो लोग ऑफेंड होने वाले को ही गलत और इन्टॉलरेंट बोलते हैं। इसलिए जब आप दुनिया को एक कॉमेडियन की नजर से देखना शुरू करोगे तो आपको हर जगह और हर कोने में मजाक मिलेगा, जिसे सबके आगे बोलने से एक सच भी बाहर निकल कर आएगा और इस वजह से लोगों को उस सच की विनेस पर हंसने का भी मौका मिल जाएगा। नंबर टू लाफायेट योरसेल्फ अगर आप खुद पर हंस नहीं सकते तो यह एक बहुत बुरा साइन होता है जो आपके करेक्टर की खामियों की तरफ इशारा करता है। एग्जाम्पल के तौर पर अगर आप सबके सामने चलते हुए एकदम से गिर जाओ तो आप एक वे में खुद की थोड़ी बेचती सी करवा लेते हो। लेकिन अगर आप तब इस सिचुएशन में खुद ही हंस देते हो तो बाकी लोग भी आपके इस इंसिडेंट को मजाक में लेने लगते हैं, क्योंकि खुद की इज्जत नीचे गिरा देने के बाद भी खुद पर हंस के आप ये सिंगल करते हो कि आप इस फैक्ट को एक्सेप्ट कर सकते हो कि आप इमपरफेक्ट हो और इस फैक्ट को एक्सेप्ट करने से आप साथ ही साथ खुद को उनकी नजरों में वापस से ऊपर भी उठा लेते हो। आप सब कॉन्शस ली? लोगों के मन तक यह बात पहुंचा रहे होते हो कि आप वो इंसान हो जो गलतियाँ करता है, लेकिन आप वह भी इंसान हो जो गलतियाँ करने के बाद उन्हें अच्छे से हैंडल करता है, उन्हें एक्सेप्ट करता है और फिर उस गलती को ओवर कम भी कर लेता है। लोग इस क्वालिटी को बहुत पसंद करते हैं क्योंकि वो जानते है अगर एक इंसान इतना हम्बल है कि वह खुद पर हंस सकता है, बजाय अपनी डाउनफॉल पर दूसरों को गुस्सा करने के तो जरूर हम भी इससे कुछ सीख सकते हैं। आपकी हँसी संक्रामक है इसलिए जैसे ही आप खुद पर कोई गलती करके हँसते हो तो आपकी हँसी को देखकर दूसरे भी आपके ऊपर नहीं बल्कि आपके साथ हंसने लगते है। नंबर थ्री अंडरस्टैंड वेनिस के राइट टाइम एक जो की टाइम इन गौर सेटिंग भी उतनी ही इम्पोर्टेन्ट होती है जितना इम्पोर्टेन्ट एक जो खुद होता है। आपको एक फनी बात बोलने और उस बात को बोलने के बीच में कब पॉज़ लेना है, यह पता होना चाहिए थी। वन एंटरटेनमेंट की दुनिया में भी एक कॉन्सेप्ट होता है जिसे बोलते हैं प्रेग्नेंट पोस, जहाँ एक इंसान अपनी बात को फनी बनाने और उसमें ज्यादा सस्पेंस डालने के लिए अपने हर सेन्टेन्स के बाद एक छोटा सा ब्रेक लेता है और यह छोटी साइलेंस हर सुनने वाले के दिमाग को उन पॉसिबल बातों के बारे में सोचने के लिए मजबूर करती है, जो वो कॉमेडियन आगे बोल सकता है। यही एक्स्पेक्टेशन उनके दिमाग में डोपामाइन रिलीज करती है। आप जीस तरह से एक जोक को डिलिवर करते हो, कितनी बार बीच में रुकते हो कि स्टोन में बोलते हो और आपके इन लोगों के बीच में इस जोक को सुनाते हो। यह चीजें उस जो का मतलब ही बदल सकती है। इसके साथ ही आप जीस जगह पर हो उसी के अकॉर्डिंग अपने ह्यूमर को एडजस्ट करो। हर ऑड इवेन सम नहीं होती जो जो आप अपने ऑफिस में मारोगे वो बिल्कुल अलग होंगे उन जोक से, जो आप अपने फ्रेंड्स या रिलेटिव्स के बीच सुनाओगे नंबर फ़ोर पीस अदर्स यानी जब भी आप अपने फ्रेन्डस या दूसरे जान पहचान के लोगों के साथ होते हो तब मौका मिलने पर आप किसी को छेड़ने के लिए उन पर एक बहुत हल्का और हम लिस्ट जोक मार सकते हो लेकिन यहाँ पर आपको ज्यादा सावधान रहना चाहिए क्योंकि अगर आप इस तरह का जो एक ऐसे इंसान परमारों जो आपके उतना क्लोज़ नहीं है और उन्हें आपकी टेंशन्स नहीं पता कि आप किसी को हर्ट नहीं करना चाहते तो वह आपकी इस बात का बुरा मान जाएंगे। इसलिए धीरे धीरे पहले अपने आप को नए नए ग्रुप्स में शामिल करो और फिर लोगों पर छोटा मोटा जो कमारों इस मेथड को और अच्छे से यूज़ करने के लिए मेरी सलाह यह है कि आप सिर्फ लोगों की उन्हीं बातों का मजाक उड़ाओ जिनके लिए वो ऑलरेडी कॉन्फिडेंट है। अगर एक इंसान बहुत अच्छे से ड्रेस्ड है तो उसके कपड़ों के लिए उसे करदो या अगर कोई इंसान खुद बहुत फनी है तो उसे छेड़ कर और हंस के यह बोल दो कि वो कितना बोरिंग है। इन छोटे मोटे मज़ा को से किसी को ज्यादा बुरा भी नहीं लगेगा और आप दूसरों को ये भी दिखा पाओगे कि आपकी सोशल स्किल्स कितनी अच्छी है। नंबर फाइव यूज़ स्टोरीज़ ये अपना सेंस ऑफ ह्यूमर इम्प्रूव करने का सबसे आसान और इवन मेरा सबसे फेवरेट तरीका है। यानी आपको फनी होने के लिए हर बार एक पंच लाइन मरने की जरूरत नहीं है। इसके बजाय आप कई बार लोगों को फनी कहानियाँ सुना सकते हो क्योंकि फनी स्टोरीज़ हर इंसान के पास होती है और अगर आपके ग्रुप में किसी पॉइंट पर साइलेंस या फिर ऑक्वर्डनेस बढ़ जाए तो उस पॉइंट पर स्टोरी सुनाने पर हर इंसान रिलीव फील करेगा और अंदर ही अंदर आपको साइलेंस और ऑक्वर्डनेस ब्रेक करने के लिए थैंक्यू बोले गा यहाँ पर आपका खुद का पैशन और इन्ट्रेस्ट भी दिखेगा। जस्ट बिकॉज़ वो स्टोरी आप से जुड़ी है। इसके साथ ही जब भी आपको ये कहानी सुना हो तब उसके बिल्डप के साथ थोड़े पेशेंट रहो। बहुत बार ये होता है कि जब हम कोई लंबी बात बोल रहे होते हैं तब सामने वाले के फेस पर कोई एक्स्प्रेशन ना देखकर हम थोड़ा अजीब फील करते हैं और अपनी बात के एंड तक पहुंचने के लिए जल्दी मचाने लगते हैं। लेकिन एक स्टोरी इस तरह से खराब हो सकती है। इसलिए एक स्टोरी सुनाते हुए छोटी छोटी डिटेल्स के बारे में बताने और अपने डिस्क्रिप्शन को लंबा बनाने में डरो मत बल्कि इससे सामने वाले की इमैजिनेशन और ज्यादा स्ट्रॉन्ग हो जाएगी। स्टोरी को हमेशा एक हाइ नोट पर खत्म करो और फनी पार्ट बोलने के बाद उससे ज्यादा खींचो मत। क्लास ली स्टोरी के फनी पॉइंट पर खुद भी दूसरों के साथ हंसो, ये आपकी बात को और ज्यादा फनी बनाएगा। नंबर सिक्स की पका मी वन, वन, नोबडी, लव्ज़ जीवन अच्छे से अच्छे कमीडियन कभी हर जोक फनी नहीं होता और बहुत बार जीस जोक में वो अपनी बहुत ज्यादा एनर्जी डालता है। लोग उसी पर ही नहीं हस्ते है। इसलिए आपको भी फनी ना होने की सिचुएशन को हैंडल करना आना चाहिए। लेकिन आपका अं फ नी होना भी फनी हो जाता है। जब आप खुद की इस कमी या गलती को एक्सेप्ट करके खुद पर हंस पाते हो यानी अगर आपने जोक मारा या फिर कोई फनी स्टोरी सुनाई जिसके बीच में आपने कोई गलती कर दी या फिर किसी वजह से वो उतनी फनी नहीं सुनाई दी जितनी फनी वो आपके दिमाग में लग रही थी तो अपनी उस गलती को भी अपनी ऐडवांटेज की तरह यूज़ करो और खुद पर हंसो। असलियत में जो चीज़ मैटर करती है वो है आपकी लोगों में प्यार और खुशी बांटने की इंटेन्शन और जैसा कि अमेरिकन मोटिवेशनल राइटर विलियम आर्थर वार्ड में एक बार बोला था कि एक वेल डेवलप्ड सेन्स ऑफ ह्यूमर उस डंडे की तरह होता है जो आपके हर कदम में बैंलेंस ऐड करता है। जब आप जिंदगी की रस्सी पर चल रहे होते हो","सेंस ऑफ ह्यूमर वास्तव में एक महत्वपूर्ण गुण है जो व्यक्तित्व को संपूर्ण बनाता है। चुटकुला सुनाने या हंसने की क्षमता के बिना, कोई व्यक्ति उतना करिश्माई नहीं होता जितना हंसने वाला और मजाकिया होता है। सेंस ऑफ ह्यूमर होना इस बात का संकेत है कि आप कठिन परिस्थितियों को अच्छी तरह से हैंडल कर सकते हैं और किसी संकट की स्थिति में किसी ऐसे व्यक्ति से बेहतर होगा जो अपनी नकारात्मकता से स्थिति को और खराब कर रहा हो। तो, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में, हम मजेदार बनने और अपने सेंस ऑफ ह्यूमर को बेहतर बनाने के लिए 6 टिप्स पर चर्चा करेंगे।" "इंग्लिश चाइनीज फिलॉसफी के सबसे इम्पोर्टेन्ट और डीप कॉन्सेप्ट में से एक है। ये कॉन्सेप्ट चाइना में बने रिलिजन डिविज़न में से आता है, जो रिऐलिटी की डूअल नेचर पर इंफोसिस करता है। यूनियन सिंबल बेसिकली एक सर्कल होता है जिसके बीच में एक व्हाइट कलर का सांप होता है और एक ब्लैक और सिम्प्लिसिटी के लिए कई बार इसे बिना सांपों के भी बनाया जाता है। ब्लैक साइड या फिर ब्लैक सांपिन को रिप्रजेंट करता है, जो एक वाइड डॉट के आसपास लिपटकर बैठा होता है और वाइटसाइड या फिर वाइड सांप यंग को, जो कि एक ब्लैक.को संभालना होता है और इसी सिम्बल में इस कॉन्सेप्ट का मतलब छिपा है यानी हर एक चीज़ में उसकी ऑपोजिट चीज़ का एक्स्पेन्स होता है और हमारा गोल होता है दोनों ऑपोजिट के बीच में रहना। एक चीज़ कभी भी कंप्लीट नहीं होती उसकी ऑपोजिट चीज़ के बिना और तभी हर चीज़ अपने आप में ही कंप्लीट्ली। इन या गैंग नहीं होती दिन है तो रात है, अच्छा ही है तो बुराइ है, सोना है तो जागना है और लड़ाई है तो शांति है। इस तरह से हर चीज़ की दो मेन साइड होती है जो एक दूसरे को कॉम्प्लिमेंट करती है। ये होता है फेमिनिन, डार्क विन्टर नाइट मून के ओस और इंट्रो वर्जन जैसी चीजें हैं और यंग होता है मैस्कुलिन हॉट लाइट डे, सन ऑर्डर और एक्स्ट्रा वर्जन जैसी चीजें है। इन रिऐलिटी का वो हिस्सा होता है जिसमें पोटेंशिअल भरी पड़ी होती है, नई चीजों को जन्म देने की और एक पैसे तरह से नई चीजें बनाने की और यंग वो होता है जो ऐक्टिवली अपनी विल को खुले में रखता है। एग्जाम्पल के तौर पर अगर हम एक्सर्साइज़ इनके कॉन्टेस्ट में इन और यंग को समझे तो जब हम वेट्स को उठा रहे होते है, वो यंग होता है और जब हम साइट्स के बीच में रेस्ट ले रहे होते है, वो ये नहीं होता है। आप इसी एग्जाम्पल से ये समझ सकते हो कि ये दोनों प्रिन्सिपल सहीं हर सिचुएशन में एक हेल्थी बैलेंस मेनटेन करने के लिए कितने जरूरी होते हैं। अगर आप बस कन्टिन्यूसली वेट ही उठाते रहो बिना बी मेरे आस लिए और रात को सोए, तब भी आपकी हेल्थ इम्प्रूव नहीं होगी और आपको अपने डिज़ाइरड रिजल्ट्स नहीं मिलेंगे और अगर आप बहुत लंबे रेस्ट पीरियड लेते रहे, लेकिन आपने मेहनत कम करी है तब भी आपको अपने डिज़ाइरड रिजल्ट्स नहीं मिलेंगे। आन्सर छिपा है इन दोनों एक्स्ट्रीम के बीच में इसी तरह जब एक लहर ऊपर उठती है तब वो यंग होती है और जब वो नीचे आती है तब यह जो खाने की चीज़ गर्म होती है वो यंग होती है और जो ठंडी होती है वो लाइफ यंग हैं और डेथ इन यंग एक ऐक्शन को शुरू करता है और इन उसे कंप्लीट डूऐलिटी को हम अपनी पर्सनैलिटी और अपने बिहेव इयर्स में भी नोटिस कर सकते हैं। अगर आप बहुत एक्स्ट्रोवर्ट हो या गुस्सा करते हो और हमेशा ही एनर्जेटिक रहते हो तो उसका मतलब आपके अंदर यंग एनर्जी ऐक्सिस में है और अगर आप इंट्रोवर्ट हो ज्यादा बोलते नहीं हो, चुपचाप रहते हो और आप नैचरली थोड़े डिप्रेस्ड या अपने ख्यालों में ही गुम रहते हो तो उसका मतलब आपने इन एनर्जी ज्यादा है। जब भी हमारे अंदर एक एनर्जी ऐक्सिस में होती है, तब हम एक इम्बैलेंस फील करते हैं और अपनी परफॉर्मेंस और लाइफ को ऑप्टिमाइज़ नहीं कर पाते हैं। जैसे अगर आप हमेशा दूसरों के साथ रहते हो, आपका दिमाग हमेशा गर्म रहता है, आपसे अकेला बिल्कुल नहीं रहा जाता। और ना तो आप मेडिटेट करते हो और ना ही इन प्रॉस्पेक्ट तो आपको अपने लाइफ के कई में इन ऐड करने की जरूरत है जैसे मैं जाना या फिर ध्यान लगाना। इस तरह से आपको वो बेनेफिट्स और वो इनसाइट्स मिल पाएंगी जिनसे आप अभी तक दूर थे। सिमिलरली जीस इंसान को अपनी लाइफ का पर्पस नहीं पता, वो बहुत लॉस महसूस करता है और वो बहुत डिमोटिवेट फील करता है तो उसका मतलब वो जरूरत से ज्यादा यिन है और उसे कुछ भी करके अपने अंदर काम और मेहनत करने की इच्छा जगानी होगी। बोलता है कि दुनिया में एक सबसे शक्तिशाली चीज़ है जो हर दूसरी फोर्स से ज्यादा स्ट्रांग होती है और उसे बोलते हैं। आओ यानी सही रास्ता या फिर बीच का रास्ता। ये यूनिवर्स का नैचुरल फ्लो है और जो इंसान इन और यंग के बीच में चलता है, सिर्फ वहीं रिऐलिटी की एक दी पर अन्डरस्टैन्डिंग हासिल कर पाता है। जैसे जैसे हम इस कॉन्सेप्ट को अपनी डेली लाइफ में अप्लाई करते है, वैसे वैसे हमारी फिजिकल, मेंटल और इमोशनल हेल्थ इम्प्रूव होने लगती है। हम ना तो एक बारी में बहुत ज्यादा खाना खा लेते है और ना ही लगातार कुछ दिनों के लिए फास्टिंग करने बैठ जाते है। हम ना तो को सुपिरिअर या इन्फिरीअर मानते हैं और ना ही मैस्कुलिनिटी को। हम ना तो पूरे दिन ही ***** के बारे में सोचते रहते हैं और ना ही ***** के ख्याल को ही बुरा बोलकर उसे सप्रेस करते हैं। जितना हम अपनी लाइफ में पॉजिटिविटी को उतना ही हम नेगेटिविटी की भी इम्पोर्टेन्ट समझते हैं और इसी बैलेन्सिंग ऐक्ट को फॉलो करते रहना ही शांति और खुशी तक पहुंचने का रास्ता होता है।","यिन यांग चीनी दर्शन और उनके धर्म यानी ताओवाद में सबसे महत्वपूर्ण अवधारणाओं में से एक है। यिन यांग वास्तविकता के द्वैत को दर्शाता है और हमें ध्रुवीय विपरीतताओं के बीच में रहने के महत्व को समझाता है। इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम इस विचार को और अधिक एक्सप्लोर करेंगे, दैनिक जीवन के उदाहरणों के साथ यिन यांग को समझेंगे और आप अपने जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिए इस दर्शन का उपयोग कैसे कर सकते हैं।" "शायद होने का मतलब है कि एक इंसान सेल्फ़ कॉन्शस हो जाता है। जब भी वो दूसरे लोगों से मिलता है और उसमें इस बात का डर आ जाता है कि वो इंसान उनके बारे में क्या सोच रहा होगा, जिसके बाद वो या तो ज्यादा कुछ बोलते नहीं है या फिर ऑक्वर्ड ली ऐक्ट करने लगते हैं। यही रीज़न है की क्यों? शायद लोग एक बड़े क्राउड में जाना और उनके आगे बोलने को अवॉइड करते हैं। जीस वजह से कई लोग उन्हें ऐसा समझते हैं कि उनमें नेगेटिव ऐटिट्यूड है। वो खडूस हैं और वो बहुत अजीब है। इस तरह से शर्मीले लोग ना तो उस मोमेंट को एन्जॉय कर पाते हैं और ना ही अपने रिलेशनशिप को डीप बना पाते है और तभी इस एपिसोड में हम कुछ ऐसे ही टिप्स को डिस्कस करेंगे जिन्हें फॉलो करें कि आप अपनी शाइन एस और ऑक्वर्डनेस को ओवर कम कर पाओगे। नंबर वन खुद के ऊपर से शाइन एस का लेवल हटाना क्योंकि चाहे हमारे ऊपर शाइन एस का ठप्पा हमारे पेरेंट्स ने लगाया हो या टाइम के साथ साथ हमने खुद ही लोगों के बीच में जाने का डर डेवलप कर लिया हो। किसी भी केस में जब हम इस लेवल के साथ आइडेंटिफाइड होते हैं कि हम यह है तो हम कभी भी उस बॉक्स से बाहर नहीं निकल पाते हैं। जब भी आप किसी के साथ खड़े हों और कोई आपको बोले कि आप तो शर्माते हो तब उस चीज़ को इंटरनल आइस करने के बजाय उन्हें बताओ कि आप तो नहीं शर्माते बल्कि ये लेवल एक झूठ है। इस तरह से किसी भी नए एनवायरनमेंट में जाकर वहाँ कोने में घुसने के बजाय खुद को अपनी पर्सनैलिटी को इक्स्पैन्ड करने के लिए फोर्स करो, नम्बर टू ओवर थिंक मत करो, क्योंकि हम सब में ही ये आदत होती है कि हम पहले से ही फ्यूचर को लेकर सब कुछ अपने दिमाग में इमेजिन कर लेते हैं और बैठे बैठे ही कहानियाँ बनाने लगते हैं। हम पहले से ही ये सोचने लगते हैं कि जब हमसे कोई बात करेगा तो हम उनका क्या जवाब देंगे, उनके साथ कितनी देर तक खड़े रहेंगे और यह भी सोचेंगे कि क्या हमारा उस इवेंट में जाना या लोगों से मिलना जरूरी भी है? कुछ नेगेटिव होने से पहले ही हम नेगेटिव को इमेजिन कर लेते हैं और ऐक्चुअल सिचुएशन को फेस करने के बजाय उससे दूर भागते रहते हैं। जिसके बाद हम जब किसी से मिलते भी हैं तब हम ऑलरेडी, नर्वस और ऑक्वर्ड होते हैं और हमारी एंजाइटी बढ़ती जाती है। इसलिए किसी से भी बात करने से पहले इतना मत सोचो बस बात करना स्टार्ट करो। अपने आप को ऑक्वर्ड होने दो और अगर आपकी जुबान लड़खड़ाती है तो उसे लड़खड़ाने दो। ना ज्यादा आप लोगों से बात करने की प्रैक्टिस करोगे, उतना ही आप इसमें बेहतर बनते जाओगे और अपनी शाइन एस को खत्म करते जाओगे। नंबर थ्री सिक्स टू वर्ड्स को अपना दोस्त बनाओ। ऐसा अक्सर होता है कि जब हमारे साथ कोई एक्स्ट्रोवर्ट होता है या फिर कोई ऐसा इंसान जो सोशल सिचुएशन से हम बहुत आसानी से एडजस्ट कर लेता है, तब उनके साथ रहने से हम भी नहीं सिचुएशन्स में जाने और नए लोगों से मिलने की आदत डाल पाते हैं। जितना टाइम हम ऐसे हाइली एक्स्ट्रोवर्ट लोगों के साथ बिताते हैं और ये ऑब्जर्व करते हैं कि वो किन टैक्टिक्स की मदद से लोगों से बात कर पाते हैं, तब हम उनके उन ट्रेड्स को अपने अंदर ढूंढ पाते हैं। लेकिन यह याद रखो कि अगर आपके अंदर अपने शर्मीलेपन को ओवर कम करने की इच्छा ही नहीं है तो फिर आप चाहे जितना मर्जी एक्स्ट्रा उसके साथ हैंग आउट कर लो आप कभी नहीं बदलोगे। चेंज शुरू होगा आपकी चेंज होने की विलिंगनेस से नंबर फ़ोर शीशे के आगे बोलने की प्रैक्टिस जब भी हम इस तरह से शीशे के आगे खड़े होकर बोलने की प्रैक्टिस करते हैं तो हमें अपने फेस के एक्सप्रेशंस और बॉडी लैंग्वेज समझ आने लगती है कि कब हम ऑक्वर्ड ली बोलने या खड़े होने लग जाते हैं। इस तरह से हमें ये पता लग पाता है कि हमें बोलते वक्त अपनी किन चीजों का ध्यान रखना होता है। आपको मेनली आई कॉन्टैक्ट रखने, स्माइल गड़ने सामने वाले के टॉपिक्स के ऊपर कन्वर्सेशन को बिल्ड करने और एक प्रॉपर पोस्टर में खड़े रहने की प्रैक्टिस करनी होती है। जैसे जैसे आप अपनी इन वीकनेस इस पर काम करना शुरू करोगे और खुद को बेहतर बनाओ गे, तब एक पॉइंट के बाद आपको मिरर की भी जरूरत नहीं पड़ेगी और आप जिसे चाहो उससे बात कर पाओगे। नंबर फाइव लोगों को कॉम्प्लीमेंट देना हमारे लिए दूसरों से बात करना इसलिए मुश्किल हो जाता है क्योंकि हम पहले ही इस वजह से घबराने लगते हैं कि हमारी बात को सामने वाला किस तरह से जज करेगा। हम अपने खयालों को अपने मन में ही जज करने लग जाते हैं। जीस वजह से मुँह से बाहर निकलने के लिए कोई शब्द बचता ही नहीं है। ऐसे में कॉन्वरसेशन को आगे बढ़ाने का सबसे सिंपल तरीका है दूसरे इंसान को कॉम्प्लिमेंट करना जैसे आप उन्हें बोल सकते हो कि उनके शूज़ ये ड्रेस बहुत अच्छी लग रही है और वहीं से आप यह पूछ सकते हो कि क्या वह उनका फेवरेट कलर है? उन्होंने वो चीज़ कहाँ से ली और यह चीज़ उनके बारे में क्या बताती हैं? इस तरह से उनके बारे में बात करने से आप सेल्फ कॉन्शस होना बंद कर पाते हो और सामने वाला भी अपने बारे में बात करते हुए एक्साइटेड हो जाता है। इसलिए इन पांच सिंपल टिप्स को फॉलो करो और देखो कि आप अपनी पर्सनैलिटी और अपने करेक्टर को कितना एक्सपैंड कर सकते हो और अपनी लाइफ की क्वालिटी को कितना इम्प्रूव","शर्मीले होने का मतलब है कि जब आप लोगों से मिलते हैं तो आप स्वयं सचेत और असुरक्षित हो जाते हैं और आपको डर लगता है कि वे आपके बारे में क्या सोच रहे होंगे। ऐसे में या तो आप ज्यादा नहीं बोलते हैं या अजीब हरकत करने लगते हैं। तो, इस पॉडकास्ट सेगमेंट में हम उन तरीकों के बारे में बात करेंगे जिनके माध्यम से आप अपने शर्मीलेपन, अजीबता को दूर करने और अपने आत्मविश्वास को बढ़ाने में सक्षम हो सकते हैं।"