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एक ज़ोरदार ठोकर मारती है। पर संस्कृत में ण का उच्चारण न की तरह बिना ठोकर मारे होता था, अन्तर केवल इतना कि जीभ ण के समय मुँह की छत को छूती है।
नुक़्ता वाले व्यञ्जन
हिन्दी भाषा में मुख्यतः अरबी और फ़ारस | एक ज़ो[MASK]दार ठोकर मारती है। प[MASK] संस्कृत मे[MASK] ण [MASK]ा उच्चारण न की तरह [MASK]ि[MASK]ा ठोकर [MASK]ारे होता था, [MASK]न्[MASK]र [MASK]ेवल इतना क[MASK] [MASK]ीभ ण के सम[MASK] मु[MASK]ह की छत को छूत[MASK] है।
नुक़्ता वा[MASK]े व्यञ्जन
हिन्दी भाषा म[MASK]ं [MASK]ुख्य[MASK]ः अ[MASK]बी और फ[MASK]ारस |
ी भाषाओं से आये शब्दों को देवनागरी में लिखने के लिये कुछ वर्णों के नीचे नुक़्ता (बिन्दु) लगे वर्णों का प्रयोग किया जाता है (जैसे क़, ज़ आदि)। किन्तु हिन्दी में भी अधिकांश लोग नुक्तों का प्रयोग नहीं कर | [MASK] [MASK]ाषाओं से [MASK]ये शब्द[MASK]ं को देवनाग[MASK]ी में लिखने के लिये कुछ वर्[MASK]ों के [MASK]ी[MASK]े नुक़्ता (ब[MASK]न्दु) लगे व[MASK]्णों का प्रय[MASK]ग कि[MASK]ा जाता है (जैसे क़, ज़ आदि)। कि[MASK]्तु हिन्दी म[MASK]ं भी अ[MASK]िकांश लोग नु[MASK]्तों का प्[MASK]योग नहीं कर |
ते। इसके अलावा संस्कृत, मराठी, नेपाली एवं अन्य भाषाओं को देवनागरी में लिखने में भी नुक्तों का प्रयोग नहीं किया जाता है।
थ़ का प्रयोग मुख्यतः पहाड़ी भाषाओँ में होता है जैसे की डोगरी (की उत्तरी उपभाषाओं | ते। इसक[MASK] [MASK]लावा संस[MASK]कृत, मराठी, नेपाली ए[MASK]ं अन्य भा[MASK]ाओं को देवनागरी [MASK]ें लिखने [MASK]ें भी न[MASK]क्तों का प्र[MASK]ोग नहीं किया जाता है।
[MASK]़ क[MASK] प[MASK]रयोग मुख्यतः पहाड़ी [MASK]ाषाओँ में [MASK]ोता है जैसे की डोगरी (की उत्तरी उपभ[MASK]षाओं |
) में "आँसू" के लिए शब्द है "अथ़्रू"। हिन्दी में ड़ और ढ़ व्यञ्जन फ़ारसी या अरबी से नहीं लिए गए हैं, न ही ये संस्कृत में पाये जाये हैं। असल में ये संस्कृत के साधारण ड और ढ के बदले हुए रूप हैं।
विराम-च | ) में "आँसू" के लिए शब्[MASK] है "अथ़्रू"। हिन्दी में ड़ और ढ़ व्[MASK]ञ्जन फ़ारसी [MASK]ा अर[MASK]ी से नहीं लिए गए हैं, न ही ये [MASK]ंस्कृत में पाये जाय[MASK] ह[MASK]ं। [MASK]सल में ये संस्कृत [MASK]े साधारण ड और ढ के बदले हुए रूप हैं।
विराम-[MASK] |
िह्न, वैदिक चिह्न आदि
देवनागरी अङ्क निम्न रूप में लिखे जाते हैं :
देवनागरी लिपि में दो व्यञ्जन का संयुक्ताक्षर निम्न रूप में लिखा जाता है :
ब्राह्मी परिवार की लिपियों में देवनागरी लिपि में सबसे अधिक स | िह्न[MASK] वैद[MASK]क चिह्न आ[MASK]ि
देव[MASK]ागर[MASK] अङ्क निम्न रूप में लिखे जात[MASK] हैं :
[MASK]ेवनागरी लि[MASK]ि में दो व्यञ्जन का संयुक्[MASK]ाक्षर निम्न रूप में लिखा जा[MASK]ा ह[MASK] :
ब्राह[MASK]मी परिव[MASK]र की लि[MASK]ियों में देव[MASK]ागरी लिपि में सबसे अधिक स |
ंयुक्ताक्षर समर्थित हैं। डिजिटन उपकरणों पर छन्दस फॉण्ट देवनागरी में बहुत संयुक्ताक्षर समर्थन हैं।
पुराने समय में प्रयुक्त हुई जाने वाली देवनागरी के कुछ वर्ण आधुनिक देवनागरी से भिन्न हैं।
देवनागरी लिपि | ंयुक्ताक्[MASK][MASK] [MASK]मर्थित हैं। ड[MASK]जि[MASK]न उपकरणो[MASK] पर [MASK]न्दस फॉण्ट देवन[MASK]गरी में बहुत संयुक्ताक[MASK]षर समर्थ[MASK] हैं।
पुराने स[MASK]य में [MASK]्रयुक्त हुई जा[MASK]े व[MASK]ली देवन[MASK]गरी के कुछ वर[MASK]ण आधुनिक देवनागरी से भिन्न हैं[MASK]
देव[MASK]ागरी लिपि |
के गुण
भारतीय भाषाओं के लिये वर्णों की पूर्णता एवं सम्पन्नता (५२ वर्ण, न बहुत अधिक न बहुत कम)।
एक ध्वनि के लिये एक सांकेतिक चिह्न -- जैसा बोलें वैसा लिखें।
लेखन और उच्चारण और में एकरुपता -- जैसा लिखे | के ग[MASK]ण
भारतीय भ[MASK]षाओं के लिये वर्णों की पूर्ण[MASK]ा एव[MASK] सम्पन्नता (५२ वर्[MASK], न [MASK]हुत अधिक न [MASK]हुत कम)।
एक ध्वनि के लिये एक सांकेत[MASK]क चिह्न -- जैस[MASK] बो[MASK]ें वैस[MASK] [MASK]िखें।
लेखन और उच्चारण और मे[MASK] एकरुपता -- जैसा लि[MASK]े |
ं, वैसे पढ़े (वाचें)।
एक सांकेतिक चिह्न द्वारा केवल एक ध्वनि का निरूपण -- जैसा लिखें वैसा पढ़ें।
उपरोक्त दोनों गुणों के कारण ब्राह्मी लिपि का उपयोग करने वाली सभी भारतीय भाषाएँ 'स्पेलिंग की समस्या' से | ं, वैसे [MASK][MASK]़[MASK] (व[MASK]चें)।
एक सांकेतिक [MASK][MASK]ह्न द्वारा क[MASK]व[MASK] एक ध्वनि का निरूपण -- ज[MASK]सा लिखें वैसा पढ़ें[MASK]
उ[MASK]रोक्त द[MASK]नों गुणों के कारण ब्राह्मी लिपि का उपयोग करने वाली सभी भारतीय भाषाएँ 'स्पेलिंग की समस्या' से |
मुक्त हैं।
स्वर और व्यंजन में तर्कसंगत एवं वैज्ञानिक क्रम-विन्यास - देवनागरी के वर्णों का क्रमविन्यास उनके उच्चारण के स्थान (ओष्ठ्य, दन्त्य, तालव्य, मूर्धन्य आदि) को ध्यान में रखते हुए बनाया गया है। इ | मुक्त हैं।[MASK]स्वर और [MASK]्यंजन म[MASK]ं तर्कसंगत एवं वैज्ञानिक क्रम-वि[MASK]्यास - [MASK]ेवनागरी के [MASK]र्णों का क्[MASK]मविन्यास उनक[MASK] उच्[MASK]ार[MASK] के स्थ[MASK][MASK] (ओष्ठ्य, दन्त्य, तालव[MASK]य[MASK] मूर्[MASK]न्[MASK] आदि) को ध्यान में रखते हुए बनाया ग[MASK]ा है। इ |
सके अतिरिक्त वर्ण-क्रम के निर्धारण में भाषा-विज्ञान के कई अन्य पहलुओ का भी ध्यान रखा गया है। देवनागरी की वर्णमाला (वास्तव में, ब्राह्मी से उत्पन्न सभी लिपियों की वर्णमालाएँ) एक अत्यन्त तर्कपूर्ण ध्वन् | सके अतिरिक्त वर[MASK]ण-क्रम के निर्धारण में भाष[MASK]-विज्[MASK]ान [MASK]े कई अन्य प[MASK]ल[MASK]ओ का भी ध्यान रखा गया है। देवनागरी की वर्णमाला (वास्तव में, ब[MASK]राह्मी से उत्पन[MASK][MASK] सभी लिपियों की वर्णमालाएँ) [MASK]क अत्यन्त तर्कपूर्ण ध[MASK][MASK]न् |
यात्मक क्रम (फोनेटिक ऑर्डर) में व्यवस्थित है। यह क्रम इतना तर्कपूर्ण है कि अन्तरराष्ट्रीय ध्वन्यात्मक संघ (इपा) ने अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला के निर्माण के लिये मामूली परिवर्तनों के साथ इसी | यात[MASK]मक क्रम ([MASK]ो[MASK]ेटिक ऑर्डर) में व्यवस्थित ह[MASK]। य[MASK] क्रम इतना तर्कपूर्ण है कि अन्[MASK]र[MASK]ाष्ट्रीय ध्वन्यात्मक संघ (इपा) ने अन[MASK]तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक व[MASK]्णमाल[MASK] के नि[MASK]्माण क[MASK] लिये म[MASK]मूली परिवर्[MASK]नों के साथ इसी |
क्रम को अंगीकार कर लिया।
वर्णों का प्रत्याहार रूप में उपयोग : माहेश्वर सूत्र में देवनागरी वर्णों को एक विशिष्ट क्रम में सजाया गया है। इसमें से किसी वर्ण से आरम्भ करके किसी दूसरे वर्ण तक के वर्णसमूह को | क्रम को अंगीकार कर लिया।
[MASK]र्णो[MASK] [MASK]ा प्रत्याहार रूप में उपयोग : माहेश्वर स[MASK]त्[MASK] में देवनागरी वर्णों को एक विशिष्[MASK] क्रम में सजाया गया है। इसमें से किसी वर[MASK]ण से आरम्भ [MASK]रके क[MASK]सी द[MASK]स[MASK]े वर्[MASK] तक के वर[MASK]णसम[MASK]ह को |
दो अक्षर का एक छोटा नाम दे दिया जाता है जिसे 'प्रत्याहार' कहते हैं। प्रत्याहार का प्रयोग करते हुए सन्धि आदि के नियम अत्यन्त सरल और संक्षिप्त ढंग से दिए गये हैं (जैसे, आद् गुणः)
देवनागरी लिपि के वर्णो | [MASK]ो अक्षर का एक छोटा नाम दे दिया जाता ह[MASK] ज[MASK]से 'प[MASK]रत[MASK]याहार' कह[MASK]े हैं। प्रत्याहार का प्[MASK]योग करते हुए [MASK]न[MASK]धि आदि [MASK]े नियम अत्यन्त सरल और संक्षिप्[MASK] ढंग से द[MASK]ए गये [MASK]ै[MASK] (जैसे, आद् गुणः[MASK]
दे[MASK]नागरी लिपि के वर[MASK]णो |
ं का उपयोग संख्याओं को निरूपित करने के लिये किया जाता रहा है। (देखिये कटपयादि, भूतसंख्या तथा आर्यभट्ट की संख्यापद्धति)
मात्राओं की संख्या के आधार पर छन्दों का वर्गीकरण : यह भारतीय लिपियों की अद्भुत वि | ं का उपय[MASK]ग [MASK][MASK]ख्याओं को निरूपित क[MASK]ने के लिये किया जाता रह[MASK] है। ([MASK]ेखि[MASK]े कटपयादि, भूतसंख्या तथा आर्[MASK]भट्ट की संख्यापद्धति)
मात्राओ[MASK] की संख्या [MASK]े आधा[MASK] पर छन्दो[MASK] का वर्गीकरण : यह भारतीय लिपियों की अद्भुत व[MASK] |
शेषता है कि किसी पद्य के लिखित रूप से मात्राओं और उनके क्रम को गिनकर बताया जा सकता है कि कौन सा छन्द है। रोमन, अरबी एवं अन्य में यह गुण अप्राप्य है।
लिपि चिह्नों के नाम और ध्वनि में कोई अन्तर नहीं (जै | शे[MASK]ता है कि किसी पद[MASK]य के लिखित रूप से म[MASK]त्राओं और उनके क[MASK]रम क[MASK] गिनकर बताया [MASK]ा सकत[MASK] है कि [MASK]ौन सा छन्द ह[MASK]। र[MASK]मन, अ[MASK]बी एवं अन्य में यह गुण [MASK]प्रा[MASK]्य ह[MASK]।
लिपि चिह्नों के नाम और ध्वनि में कोई अ[MASK]्तर नहीं (जै |
से रोमन में अक्षर का नाम बी है और ध्वनि ब है)
लेखन और मुद्रण में एकरूपता (रोमन, अरबी और फ़ारसी में हस्तलिखित और मुद्रित रूप अलग-अलग हैं)
देवनागरी, 'स्माल लेटर" और 'कैपिटल लेटर' की अवैज्ञानिक व्यवस्था | से रोम[MASK] में [MASK]क्षर [MASK]ा नाम बी है और ध्वनि ब है)
लेखन और मुद्रण में एक[MASK]ू[MASK]ता (रोमन, अरब[MASK] और फ़[MASK]रसी में हस्त[MASK]िखित और मुद्[MASK]ित रूप अलग-अलग हैं[MASK]
देवन[MASK]गरी, [MASK]स[MASK][MASK][MASK]ल लेटर" और 'कैपिटल लेटर' की अवैज्[MASK]ानिक व्यवस[MASK][MASK]ा |
से मुक्त है।
मात्राओं का प्रयोग
अर्ध-अक्षर के रूप की सुगमता : खड़ी पाई को हटाकर - दायें से बायें क्रम में लिखकर तथा अर्द्ध अक्षर को ऊपर तथा उसके नीचे पूर्ण अक्षर को लिखकर - ऊपर नीचे क्रम में संयुक्ताक | से मु[MASK]्त है।
मात्राओं का प्रयोग
[MASK]र्[MASK]-अक्षर के र[MASK]प की सुगमता : खड[MASK]ी पाई [MASK]ो हटाकर - द[MASK][MASK]ें से बायें क्रम में लिखकर तथा अर्द्ध अक्षर को ऊपर त[MASK][MASK] उसके नीचे पूर्ण अक्षर को लिखक[MASK] [MASK] ऊपर नीचे क्र[MASK] में संयु[MASK]्ताक |
्षर बनाने की दो प्रकार की रीति प्रचलित है।
अन्य - बायें से दायें, शिरोरेखा, संयुक्ताक्षरों का प्रयोग, अधिकांश वर्णों में एक उर्ध्व-रेखा की प्रधानता, अनेक ध्वनियों को निरूपित करने की क्षमता आदि।
भारतवर | [MASK][MASK]र बनाने की दो प्रकार की रीति प्रचलित है।
अन्य - बाये[MASK] स[MASK] दायें, शिरोरेखा, संयुक्ताक्षरों का [MASK]्रयोग, अधिका[MASK]श वर्णों में एक उर्ध्व-रेख[MASK] की प्रधानता, अन[MASK]क ध्व[MASK][MASK]यों को निर[MASK]पि[MASK] क[MASK]ने की क्षमता आदि।
भारतवर |
्ष के साहित्य में कुछ ऐसे रूप विकसित हुए हैं जो दायें-से-बायें अथवा बाये-से-दायें पढ़ने पर समान रहते हैं। उदाहरणस्वरूप केशवदास का एक सवैया लीजिये :
मां सस मोह सजै बन बीन, नवीन बजै सह मोस समा।
मार लतान | ्[MASK] के साहि[MASK]्य मे[MASK] कुछ ऐ[MASK]े रूप वि[MASK]सित हुए हैं जो दाय[MASK]ं-से-बायें अथव[MASK] बाये-से-दायें पढ़[MASK]े पर समान रहते हैं। उद[MASK]हरणस्वरूप केशवदास [MASK]ा एक सवैया लीजिये [MASK]
मां स[MASK] मोह सजै बन बीन, नवीन [MASK]जै [MASK]ह मोस [MASK]मा।[MASK]मार लतान |
ि बनावति सारि, रिसाति वनाबनि ताल रमा ॥
मानव ही रहि मोरद मोद, दमोदर मोहि रही वनमा।
माल बनी बल केसबदास, सदा बसकेल बनी बलमा ॥
इस सवैया की किसी भी पंक्ति को किसी ओर से भी पढिये, कोई अंतर नहीं पड़ेगा।
सदा | ि बनावति सारि, रिसाति वनाबनि ता[MASK] रमा [MASK]
मान[MASK] ही रहि [MASK]ोरद मोद, दमोदर मोहि रही वनमा।
माल बनी बल केसबदास, सदा बसकेल बनी बलमा ॥
इस सवैया की क[MASK]सी भी पंक्ति [MASK]ो किसी ओर से भी पढिये, कोई अंतर नहीं पड़ेगा।
[MASK][MASK]ा |
सील तुम सरद के दरस हर तरह खास।
सखा हर तरह सरद के सर सम तुलसीदास॥
देवनागरी लिपि के दोष
(१) कुल मिलाकर ४०३ टाइप होने के कारण टंकण, मुद्रण में कठिनाई। किन्तु आधुनिक प्रिन्टर तकनीक के लिए यह कोई समस्या नह | सील तुम सरद के दरस हर तरह खास[MASK]
सखा हर त[MASK][MASK] सरद के सर स[MASK] तु[MASK]सीदास॥
[MASK]ेवना[MASK]री लिपि के दोष
([MASK]) कुल मिलाकर ४०३ [MASK]ाइप होने [MASK]े क[MASK]रण [MASK]ंक[MASK], मु[MASK][MASK]रण म[MASK]ं कठिना[MASK]। क[MASK]न्तु आ[MASK]ुनिक [MASK]्रिन्टर तकनीक क[MASK] लि[MASK] यह कोई सम[MASK]्या नह |
ीं है।
(२) कुछ लोग शिरोरेखा का प्रयोग अनावश्यक मानते हैं।
(३) अनावश्यक वर्ण (ऋ, ॠ, लृ, ॡ, ष) बहुत से लोग इनका शुद्ध उच्चारण नहीं कर पाते।
(४) द्विरूप वर्ण (अ, ज्ञ, क्ष, त्र, छ, झ, ण, श) आदि को दो-दो प | [MASK]ं ह[MASK]।
(२[MASK] कुछ लोग शिरोर[MASK]खा का प्रयोग अना[MASK]श्यक मानते है[MASK]।
(३) अनावश्यक वर्ण (ऋ, ॠ, ल[MASK], ॡ, ष[MASK] बहुत से लोग इनका शुद्ध उच्चा[MASK]ण नहीं [MASK]र प[MASK]ते।
(४) द्विरूप वर्[MASK] (अ, ज्ञ[MASK] क्ष[MASK] [MASK]्र, छ, झ, ण, श) आदि को दो-दो प |
्रकार से लिखा जाता है।
(५) समरूप वर्ण (ख में र+व का, घ में ध का, म में भ का भ्रम होना)।
(६) वर्णों के संयुक्त करने की व्यवस्था एकसमान नहीं है।
(७) अनुस्वार एवं अनुनासिक के प्रयोग में एकरूपता का अभाव।
| ्रकार से ल[MASK]ख[MASK] ज[MASK]ता है।
(५) समरू[MASK] वर्ण (ख में र+व का, घ में ध का, म [MASK]ें भ का भ्रम हो[MASK]ा)।
([MASK]) वर्णों के संयुक्त करने की व्यवस्था एक[MASK]मान नहीं है।
(७) अनु[MASK]्व[MASK]र एवं अनुना[MASK]िक के प[MASK][MASK]योग में एकरूपता का अभाव।
|
(८) त्वरापूर्ण लेखन नहीं क्योंकि लेखन में हाथ बारबार उठाना पड़ता है।
(९) वर्णों के संयुक्तीकरण में र के प्रयोग को लेकर अनेक लोगों को भ्रम की स्थिति।
(११) इ की मात्रा (ि) का लेखन वर्ण के पहले, किन्तु उ | (८) त[MASK]वरापूर्ण लेखन नहीं क्योंकि [MASK]ेखन में हाथ [MASK][MASK]रबार उठाना पड़ता है[MASK]
(९) वर्णों के स[MASK]युक्त[MASK]करण में र [MASK]े प्रयोग को लेकर अ[MASK]ेक [MASK]ोगों क[MASK] भ्रम की स्थिति।
(१[MASK]) इ की मात्रा (ि[MASK] क[MASK] ल[MASK]ख[MASK] वर्ण क[MASK] पहले, किन्तु उ |
च्चारण वर्ण के बाद।
देवनागरी पर महापुरुषों के विचार
आचार्य विनोबा भावे संसार की अनेक लिपियों के जानकार थे। उनकी स्पष्ट धारणा थी कि देवनागरी लिपि भारत ही नहीं, संसार की सर्वाधिक वैज्ञानिक लिपि है। अगर | च्चार[MASK] वर्ण के बाद।[MASK]द[MASK][MASK]नागरी पर महापुरुषों के विचा[MASK]
[MASK]चार[MASK]य विनो[MASK]ा भा[MASK][MASK] संसार की अनेक लिपियों के जानक[MASK]र थे। उनकी स[MASK]पष्ट [MASK]ारणा थी कि देवनागरी लिप[MASK] भारत ही नही[MASK], सं[MASK]ार की सर्वाधिक वैज्ञ[MASK]निक लिपि है। अगर |
भारत की सब भाषाओं के लिए इसका व्यवहार चल पड़े तो सारे भारतीय एक दूसरे के बिल्कुल नजदीक आ जाएंगे। हिंदुस्तान की एकता में देवनागरी लिपि हिंदी से ही अधिक उपयोगी हो सकती है। अनन्त शयनम् अयंगार तो दक्षिण भ | भारत [MASK]ी सब भाषाओं के लिए इसका व्यवहार चल पड[MASK]े तो सारे भारतीय एक दूसर[MASK] के बिल्क[MASK]ल नजद[MASK]क आ जाएंगे[MASK] हिंद[MASK]स्[MASK]ान की [MASK]कता में [MASK]ेवना[MASK]री लिपि हि[MASK]दी से ही अधिक उपयोगी हो सकती है[MASK] अनन्त श[MASK]नम् अयंगार तो दक्षिण भ |
ारतीय भाषाओं के लिए भी देवनागरी की संभावना स्वीकार करते थे। सेठ गोविन्ददास इसे राष्ट्रीय लिपि घोषित करने के पक्ष में थे।
(१) हिन्दुस्तान की एकता के लिये हिन्दी भाषा जितना काम देगी, उससे बहुत अधिक काम | ारतीय भा[MASK]ाओं [MASK]े ल[MASK][MASK] भी [MASK]े[MASK]नागरी क[MASK] संभावना स्वीकार करते [MASK]े। सेठ गोविन्ददास इसे राष्ट्री[MASK] लिपि घोषित करन[MASK] क[MASK] प[MASK]्ष में थे।
(१) ह[MASK]न्दुस्तान की एकता के लिये हिन्दी भाषा जितना काम [MASK]ेगी, उससे बहुत [MASK]ध[MASK]क काम |
देवनागरी लिपि दे सकती है।
आचार्य विनोबा भावे
(२) देवनागरी किसी भी लिपि की तुलना में अधिक वैज्ञानिक एवं व्यवस्थित लिपि है।
सर विलियम जोन्स
(३) मानव मस्तिष्क से निकली हुई वर्णमालाओं में नागरी सबसे अधिक | [MASK]ेवना[MASK]री लिपि [MASK]े सकती है।
आचा[MASK]्य [MASK]िनोबा भावे
(२) देव[MASK]ाग[MASK][MASK] किसी भी ल[MASK]पि की तुल[MASK]ा में अधि[MASK] वैज्ञानिक एवं व्यव[MASK]्थित लिपि है[MASK]
स[MASK] विल[MASK]यम जोन्[MASK]
(३) मानव मस्तिष[MASK]क से निकली हु[MASK] वर्णमालाओं में नागरी सबसे अधिक |
पूर्ण वर्णमाला है।
(४) उर्दू लिखने के लिये देवनागरी लिपि अपनाने से उर्दू उत्कर्ष को प्राप्त होगी।
(६) एक सर्वमान्य लिपि स्वीकार करने से भारत की विभिन्न भाषाओं में जो ज्ञान का भंडार भरा है उसे प्राप्त | पूर्ण वर्णमाला है।
([MASK]) उर्दू लिखने के लिये देवनागरी लिपि अपन[MASK]ने से उर्दू उत्कर्[MASK] को प्राप्त ह[MASK]गी।
(६) एक सर्वमान्य लिपि स्वीकार करने से [MASK]ारत की विभ[MASK][MASK]्न [MASK]ाषाओं में जो ज्ञान का भंड[MASK]र भरा है उसे प्राप्[MASK] |
करने का एक साधारण व्यक्ति को सहज ही अवसर प्राप्त होगा। हमारे लिए यदि कोई सर्व-मान्य लिपि स्वीकार करना संभव है तो वह देवनागरी है।
(७) प्राचीन भारत के महत्तम उपलब्धियों में से एक उसकी विलक्षण वर्णमाला ह | करन[MASK] [MASK]ा एक साधारण व्यक्ति को सहज ही [MASK]वसर प्राप[MASK]त होगा। हमारे लिए यदि कोई सर्[MASK]-मान्य [MASK][MASK][MASK]ि स[MASK]वी[MASK]ार करना स[MASK]भव [MASK]ै तो वह [MASK]ेवनागरी है।
([MASK]) प्राचीन भारत के महत्तम उपलब्ध[MASK]यों म[MASK][MASK] से एक उसकी विलक्[MASK]ण वर[MASK]णमाला ह |
ै जिसमें प्रथम स्वर आते हैं और फिर व्यंजन जो सभी उत्पत्ति क्रम के अनुसार अत्यंत वैज्ञानिक ढंग से वर्गीकृत किये गए हैं। इस वर्णमाला का अविचारित रूप से वर्गीकृत तथा अपर्याप्त रोमन वर्णमाला से, जो तीन हज | [MASK] जिसमे[MASK] प्र[MASK]म स्व[MASK] आते हैं औ[MASK] [MASK]ि[MASK] व्यंज[MASK] जो स[MASK]ी उत[MASK]पत[MASK]ति क्र[MASK] के अनुसार अत्यंत [MASK]ैज्ञ[MASK]न[MASK]क ढंग से वर्गीक[MASK]त किय[MASK] ग[MASK] हैं[MASK] इ[MASK] वर[MASK][MASK]माला का अविचारित र[MASK][MASK] से वर्[MASK]ीकृत तथा अपर्याप्त रोमन [MASK]र[MASK]णमाला से, जो तीन [MASK]ज |
ार वर्षों से क्रमशः विकसित हो रही थी, पर्याप्त अंतर है।
ए एल बाशम, "द वंडर दैट वाज इंडिया" के लेखक और इतिहासविद्
भारत के लिये देवनागरी का महत्त्व
बहुत से लोगों का विचार है कि भारत में अनेकों भाषाएँ हो | ार वर्षों से क्रमशः [MASK]िकसित हो रही थी, [MASK]र्य[MASK]प्त अंतर है।
ए एल बाश[MASK], "द वं[MASK]र दै[MASK] वाज इंडिया[MASK] के लेखक और इतिहासविद[MASK]
भारत के लिय[MASK] देवनागरी का महत्त्व
ब[MASK]ुत से [MASK]ोगों का व[MASK]चार है क[MASK] भ[MASK]र[MASK] में अनेकों भाषाए[MASK] हो |
ना कोई समस्या नहीं है जबकि उनकी लिपियाँ अलग-अलग होना बहुत बड़ी समस्या है। न्यायमूर्ति शारदा चरण मित्र (१८४८ - १९१७) ने भारत जैसे विशाल बहुभाषा-भाषी और बहुजातीय राष्ट्र को एक सूत्र में बांधने के उद्देश | ना कोई समस्या नहीं है जबकि उनकी लिपियाँ अलग-अलग [MASK]ोन[MASK] बहुत बड़ी स[MASK]स्य[MASK] ह[MASK]। न्यायमूर्ति शार[MASK]ा [MASK]रण मित[MASK]र (१८४८ - १९१७) ने भारत जैसे वि[MASK]ाल बहुभाषा-भाषी और [MASK]हुजातीय राष्ट्र क[MASK] एक सूत्[MASK] म[MASK]ं बांधने [MASK]े उद्द[MASK]श |
्य से एक लिपि विस्तार परिषद की स्थापना की थी और परिषद की ओर से १९०७ में देवनागर नामक मासिक पत्र निकाला था जो बीच में कुछ व्यवधान के बावजूद उनके जीवन पर्यन्त अर्थात् सन् १९१७ तक निकलता रहा।
गांधीजी ने | ्य से [MASK]क लिपि विस्तार प[MASK]िषद की स्थापना की थी और परिषद की ओर से १९०[MASK] में देव[MASK][MASK]गर नामक मासिक पत्[MASK] निक[MASK]ला था जो बीच म[MASK]ं कुछ व्यवधान के बावजूद उनके जीवन पर्यन्त अर्थात् स[MASK]् १९१७ [MASK]क नि[MASK]ल[MASK]ा र[MASK]ा।
ग[MASK]ंधीजी ने |
१९४० में गुजराती भाषा की एक पुस्तक को देवनागरी लिपि में छपवाया और इसका उद्देश्य बताया था कि मेरा सपना है कि संस्कृत से निकली हर भाषा की लिपि देवनागरी हो।
इस संस्करण को हिंदी में छापने के दो उद्देश्य ह | १९४० में गुजराती [MASK]ाषा की एक पुस्तक को देवनागरी लिपि [MASK]ें छपव[MASK]या और [MASK]सका उद्देश्य बताया था [MASK]ि मेरा सपना है कि संस्कृत से निकली हर भाषा [MASK]ी लिप[MASK] देवनागरी हो।
इस संस्करण को हिंदी में छापन[MASK] के दो उद्दे[MASK]्य ह |
ैं। मुख्य उद्देश्य यह है कि मैं जानना चाहता हूँ कि, गुजराती पढ़ने वालों को देवनागरी लिपि में पढ़ना कितना अच्छा लगता है। मैं जब दक्षिण अफ्रीका में था तब से मेरा स्वप्न है कि संस्कृत से निकली हर भाषा की | [MASK]ं। मुख्य उद्देश्य यह है कि म[MASK]ं जानना चा[MASK]ता हूँ कि, गुजराती पढ़न[MASK] वालों को दे[MASK]नागर[MASK] [MASK]िप[MASK] मे[MASK] प[MASK]़ना क[MASK]तना अच्[MASK]ा लगता है। मै[MASK] जब दक्षिण [MASK]फ्रीका में था तब से मेरा स्वप्[MASK] है कि संस्क[MASK]त [MASK]े निकली हर [MASK]ाषा की |
एक लिपि हो, और वह देवनागरी हो। पर यह अभी भी स्वप्न ही है। एक-लिपि के बारे में बातचीत तो खूब होती हैं, लेकिन वही बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे वाली बात है। कौन पहल करे ! गुजराती कहेगा हमारी लिपि तो | [MASK]क [MASK]ि[MASK]ि हो, और वह देवनागरी हो। [MASK]र यह अभी भी स्वप्न ह[MASK] है। एक-[MASK]िपि के बारे में बातचीत तो [MASK]ूब [MASK]ोती हैं, लेकिन वही बिल्ली के गले [MASK]ें घंट[MASK] कौन बांधे व[MASK][MASK]ी बा[MASK] है[MASK] क[MASK]न पहल [MASK]रे ! गु[MASK]राती कहे[MASK]ा [MASK]म[MASK]री लिपि तो |
बड़ी सुन्दर सलोनी आसान है, इसे कैसे छोडूंगा? बीच में अभी एक नया पक्ष और निकल के आया है, वह ये, कुछ लोग कहते हैं कि देवनागरी खुद ही अभी अधूरी है, कठिन है; मैं भी यह मानता हूँ कि इसमें सुधार होना चाहिए | ब[MASK]़ी सुन्दर सलोन[MASK] आसान है, इ[MASK]े कैसे छोडूं[MASK][MASK]? बीच में [MASK]भी ए[MASK] नया पक्ष और [MASK][MASK]कल के [MASK]य[MASK] है, व[MASK] ये, कुछ लोग कहते हैं कि द[MASK]व[MASK]ागरी खुद ही अभी अधूरी है, कठिन है[MASK] मैं भ[MASK] यह मानता हूँ कि इ[MASK][MASK]ें सुधार होना चाहिए |
। लेकिन अगर हम हर चीज़ के बिलकुल ठीक हो जाने का इंतज़ार करते रहेंगे तो सब हाथ से जायेगा, न जग के रहोगे न जोगी बनोगे। अब हमें यह नहीं करना चाहिए। इसी आजमाइश के लिए हमने यह देवनागरी संस्करण निकाला है। अ | । लेकिन अगर हम हर चीज़ के बिलकुल ठीक हो ज[MASK]ने [MASK]ा इंतज़ार करत[MASK] रहेंगे तो सब हाथ से जा[MASK]ेगा, न जग के रहोगे न जोगी बनो[MASK]े। अब हमें यह नहीं करना [MASK]ाहिए। इसी आजमाइश क[MASK] लिए हमन[MASK] य[MASK] देवना[MASK]री संस्करण [MASK]िकाल[MASK] [MASK]ै। अ |
गर लोग यह (देवनागरी में गुजराती) पसंद करेंगे तो नवजीवन पुस्तक और भाषाओं को भी देवनागरी में प्रकाशित करने का प्रयत्न करेगा।
इस साहस के पीछे दूसरा उद्देश्य यह है कि हिंदी पढ़ने वाली जनता गुजराती पुस्तक | गर लोग यह (देवनाग[MASK]ी में गु[MASK]र[MASK]ती) पसंद [MASK][MASK]ेंग[MASK] तो नव[MASK]ीवन पुस्तक और भाषाओं को भी देवनागरी में प्रकाशित करने [MASK]ा प्रय[MASK]्न करेगा।
इस साह[MASK] के पीछे दू[MASK]रा उद्देश्य यह है क[MASK] हिंदी [MASK]ढ़न[MASK] वाली ज[MASK]ता गुजराती पुस्तक |
देवनागरी लिपि में पढ़ सके। मेरा अभिप्राय यह है कि अगर देवनागरी लिपि में गुजराती किताब छपेगी तो भाषा को सीखने में आने वाली आधी दिक्कतें तो ऐसे ही कम हो जाएँगी।
इस संस्करण को लोकप्रिय बनाने के लिए इसकी | देवनागरी लिपि म[MASK]ं पढ़ सके। मेरा अभि[MASK]्राय यह है कि अगर द[MASK]वना[MASK]री लिपि में गुजराती कित[MASK][MASK] छपेगी तो भाषा को सीखने [MASK]ें आने व[MASK]ली आधी दिक्कतें त[MASK] ऐसे ही कम हो ज[MASK]एँगी[MASK]
इस संस्क[MASK]ण को लोकप[MASK]रिय बनाने के लिए इसकी |
कीमत बहुत कम राखी गयी है, मुझे उम्मीद है कि इस साहस को गुजराती और हिंदी पढ़ने वाले सफल करेंगे।
इसी प्रकार विनोबा भावे का विचार था कि-
हिन्दुस्तान की एकता के लिये हिन्दी भाषा जितना काम देगी, उससे बहुत | कीम[MASK] [MASK]ह[MASK]त क[MASK] [MASK]ाखी गयी है, म[MASK]झे उ[MASK]्मीद ह[MASK] क[MASK] इस साहस को गुजराती और हिंदी पढ़ने वाले [MASK]फल करेंग[MASK]।
इसी प्रकार व[MASK]नो[MASK]ा भावे का [MASK]िचार था कि-
हिन[MASK]दुस्[MASK]ा[MASK] की एकता के लिये हिन्दी भाष[MASK] जितना काम दे[MASK][MASK], उससे बहुत |
अधिक काम देवनागरी लिपि देगी। इसलिए मैं चाहता हूँ कि सभी भाषाएँ देवनागरी में भी लिखी जाएं। सभी लिपियां चलें लेकिन साथ-साथ देवनागरी का भी प्रयोग किया जाये। विनोबा जी "नागरी ही" नहीं "नागरी भी" चाहते थे। | अधिक काम देवन[MASK]गरी लिपि देगी[MASK] इ[MASK]लिए [MASK]ैं चाहता हूँ कि सभी भ[MASK]षाएँ देवन[MASK]गरी में भी लिखी जाए[MASK]। सभी लिप[MASK]यां चलें लेकिन साथ-[MASK]ाथ देवना[MASK]री [MASK]ा भी प[MASK]रयोग [MASK]िया जाये[MASK] विनोबा जी "नागरी ही[MASK] नहीं "न[MASK]गर[MASK] [MASK]ी" चाह[MASK]े थे। |
उन्हीं की सद्प्रेरणा से १९७५ में नागरी लिपि परिषद की स्थापना हुई।
विश्वलिपि के रूप में देवनागरी
बौद्ध संस्कृति से प्रभावित क्षेत्र नागरी के लिए नया नहीं है। चीन और जापान चित्रलिपि का व्यवहार करते हैं | उन्हीं की सद्प्र[MASK]रणा से १[MASK]७५ में नागरी ल[MASK]पि परिषद [MASK]ी स्थापना हुई।
विश्वलिपि के रूप [MASK]ें देवना[MASK][MASK]ी
ब[MASK]द्ध संस्कृति से प्र[MASK][MASK]वित क्षे[MASK]्र नागरी के लिए नया [MASK]हीं है। चीन और जापान चित्रल[MASK]पि का [MASK]्यवहार करते हैं |
। इन चित्रों की संख्या बहुत अधिक होने के कारण भाषा सीखने में बहुत कठिनाई होती है। देववाणी की वाहिका होने के नाते देवनागरी भारत की सीमाओं से बाहर निकलकर चीन और जापान के लिए भी समुचित विकल्प दे सकती है। | । इन चित्[MASK]ों की स[MASK]ख्या बहुत अधिक होन[MASK] [MASK]े कारण भाषा सीखने में बहुत कठ[MASK]नाई ह[MASK]ती [MASK]ै। देववाणी की वाहिका ह[MASK][MASK]े के नाते [MASK]ेवनागरी भा[MASK]त की सीमा[MASK]ं स[MASK] बाहर निकलकर चीन [MASK]र जाप[MASK]न के लिए भी समु[MASK]ित विक[MASK][MASK]प दे सकती है। |
भारतीय मूल के लोग संसार में जहां-जहां भी रहते हैं, वे देवनागरी से परिचय रखते हैं, विशेषकर मारीशस, सूरीनाम, फिजी, गुयाना, त्रिनिदाद, टोबैगो आदि के लोग। इस तरह देवनागरी लिपि न केवल भारत के अंदर सारे प् | भ[MASK]रतीय मूल के लोग संसार में जहां-ज[MASK]ां भी [MASK]हत[MASK] हैं, वे देवनाग[MASK]ी से परिच[MASK] रखते [MASK]ैं, विशेषकर मारीशस[MASK] सूर[MASK]नाम[MASK] फिजी, गुयाना[MASK] त्रिनिदाद, टो[MASK]ैगो आदि के [MASK]ोग। इस तर[MASK] दे[MASK][MASK]ागर[MASK] लिपि न केव[MASK] भारत के अंदर [MASK]ारे प् |
रांतवासियों को प्रेम-बंधन में बांधकर सीमोल्लंघन कर दक्षिण-पूर्व एशिया के पुराने वृहत्तर भारतीय परिवार को भी बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय अनुप्राणित कर सकती है तथा विभिन्न देशों को एक अधिक सुचारू और वैज्ञा | रांतवासियों को प्रेम-बं[MASK]न में बांधकर सीमोल्लं[MASK]न कर दक्षिण-पूर[MASK]व एशिया के पुराने वृहत्तर भारती[MASK] प[MASK][MASK]वार को भ[MASK] बहुजन हिताय, बहुजन सु[MASK]ाय अनुप्राणित कर सकती है तथा विभि[MASK]्न देशों क[MASK] [MASK]क अधि[MASK] सुचा[MASK][MASK] [MASK]र वैज्ञा |
निक विकल्प प्रदान कर विश्व नागरी की पदवी का दावा इक्कीसवीं सदी में कर सकती है। उस पर प्रसार लिपिगत साम्राज्यवाद और शोषण का माध्यम न होकर सत्य, अहिंसा, त्याग, संयम जैसे उदात्त मानवमूल्यों का संवाहक होग | निक वि[MASK]ल्[MASK] [MASK]्र[MASK][MASK]न कर व[MASK]श्व नागरी की पदवी का दावा इक्कीसवीं सदी में [MASK]र सकती [MASK]ै। उस पर प्[MASK]सार लि[MASK]िगत स[MASK]म्राज्[MASK]वाद और शोषण का मा[MASK]्यम न होक[MASK] स[MASK]्य, अहिंस[MASK], त[MASK]याग[MASK] [MASK]ंयम जैसे उदात्त मानवमूल्यों का संवाहक ह[MASK]ग |
ा, असत् से सत्, तमस् से ज्योति तथा मृत्यु से अमरता की दिशा में।देवनागरी एक भारतीय लिपि है जिसमें अनेक भारतीय भाषाएँ तथा कई विदेशी भाषाएँ लिखी जाती हैं। यह बायें से दायें लिखी जाती है। इसकी पहचान एक क् | ा, अस[MASK]् से सत्, तमस् से ज्योति तथ[MASK] [MASK][MASK]त[MASK]यु से [MASK]मरता की दिशा में।देवनागरी एक भारत[MASK]य लिपि है [MASK]िसमें अने[MASK] [MASK]ारतीय भाषाएँ [MASK]था [MASK]ई व[MASK][MASK]ेशी भाषाएँ लिखी जाती हैं। यह [MASK]ायें से दा[MASK]ें लिख[MASK] जाती है। इ[MASK]की पह[MASK]ान एक क् |
षैतिज रेखा से है जिसे शिरोरेखा कहते हैं। संस्कृत, पालि, हिन्दी, मराठी, कोङ्कणी, सिन्धी, कश्मीरी, हरियाणवी डोगरी, खस, नेपाल भाषा (तथा अन्य नेपाली भाषाएँ), तमाङ्ग भाषा, गढ़वाली, बोडो, अङ्गिका, मगही, भोज | षैतिज रे[MASK]ा स[MASK] है जिसे शिरो[MASK]ेखा कहते [MASK]ैं। संस्[MASK]ृत, पालि, हिन्दी, मराठी, कोङ्कणी, सिन[MASK]धी, कश्मी[MASK]ी, हर[MASK]याणवी डोग[MASK][MASK], खस[MASK] नेपाल भाषा ([MASK]था अन्[MASK] नेपाली भाषाएँ), तमाङ्ग भ[MASK]षा, गढ़व[MASK]ली, बोडो, अङ्गिका, [MASK][MASK][MASK]ी, भोज |
पुरी, नागपुरी, मैथिली, सन्थाली, राजस्थानी बघेली आदि भाषाएँ और स्थानीय बोलियाँ भी देवनागरी में लिखी जाती हैं।
इसके अतिरिक्त कुछ स्थितियों में गुजराती, पञ्जाबी, बिष्णुपुरिया मणिपुरी, रोमानी और उर्दू भाष | प[MASK]री, नागपुरी, मैथ[MASK]ली, सन[MASK]थाली, [MASK]ाजस्थ[MASK][MASK]ी बघेली आदि भाषाएँ और स्थानी[MASK] बोलियाँ भी [MASK]ेवनागरी में लिख[MASK] [MASK][MASK]ती हैं।[MASK][MASK]सके अतिरिक्[MASK] कुछ स्थ[MASK]ति[MASK]ों में गुजर[MASK]ती, पञ्ज[MASK]बी[MASK] बिष्णुप[MASK]रिया मणि[MASK]ुरी, रोमानी और उर्दू भा[MASK] |
ाएँ भी देवनागरी में लिखी जाती हैं। देवनागरी विश्व में सर्वाधिक प्रयुक्त लिपियों में से एक है। यह दक्षिण एशिया की १७० से अधिक भाषाओं को लिखने के लिए प्रयुक्त हो रही है।
लिपि-विहीन भाषाओं के लिये देवनाग | ाएँ भी देवन[MASK]गरी में लिखी जाती हैं। देवनागरी विश्व में सर्वाधिक प्रयु[MASK]्त ल[MASK]प[MASK]यों में से एक है। यह द[MASK]्षिण एशिया की १७० से अधिक भाषाओं [MASK]ो ल[MASK]खने के लिए प्[MASK]य[MASK]क्त हो [MASK]ही है।
लिपि-विहीन भाषाओं के लिये द[MASK][MASK]नाग |
री
दुनिया की कई भाषाओं के लिये देवनागरी सबसे अच्छा विकल्प हो सकती है क्योंकि यह यह बोलने की पूरी आजादी देता है। दुनिया की और किसी भी लिपि में यह नहीं हो सकता है। इन्डोनेशिया, विएतनाम, अफ्रीका आदि के ल | री
दुनिया की कई [MASK]ाष[MASK]ओं के लिये दे[MASK]नागरी सबसे अ[MASK]्छा विक[MASK]्प [MASK]ो सकत[MASK] है क[MASK][MASK]ोंक[MASK] यह [MASK]ह बोलने की पूर[MASK] आजादी [MASK]ेत[MASK] ह[MASK]। दुनिया की और किसी भी लिपि में यह नहीं हो सकता है। इन्[MASK]ोनेशिया, विएत[MASK]ाम, अ[MASK]्[MASK]ीका आद[MASK] के ल |
िये तो यही सबसे सही रहेगा। अष्टाध्यायी को देखकर कोई भी समझ सकता है की दुनिया में इससे अच्छी कोई भी लिपि नहीं है। अगर दुनिया पक्षपातरहित हो तो देवनागरी ही दुनिया की सर्वमान्य लिपि होगी क्योंकि यह पूर्ण | िये तो यही [MASK]बसे [MASK]ह[MASK] रहेगा। अष[MASK]टाध्यायी क[MASK] देखकर कोई भी समझ स[MASK]ता है की द[MASK]निया मे[MASK] इससे अच्छी कोई भी लिपि नहीं है। अ[MASK]र दुनिया [MASK]क्षपातरहित हो तो [MASK]ेवनागरी ही दुनिया की स[MASK]्वमान[MASK]य लि[MASK]ि ह[MASK]गी क्योंकि यह पूर्ण |
त: वैज्ञानिक है। अंग्रेजी भाषा में वर्तनी (स्पेलिंग) की विकराल समस्या के कारगर समाधान के लिये देवनागरी पर आधारित देवग्रीक लिपि प्रस्तावित की गयी है।
देवनागरी लिपि में सुधार
देवनागरी का विकास उस युग मे | त: वैज्ञा[MASK]िक है। [MASK]ंग्रेजी भाष[MASK] में वर्तनी (स्पेलिंग) [MASK]ी विकराल समस[MASK]य[MASK] क[MASK] [MASK]ारग[MASK] सम[MASK]धा[MASK] के लिये दे[MASK]नागरी पर आधारित द[MASK]वग्[MASK]ीक लिपि प्रस्तावित की गयी है।
देवनागरी [MASK][MASK]पि में सुधार
देवन[MASK][MASK]री का विकास उस युग मे |
ं हुआ था जब लेखन हाथ से किया जाता था और लेखन के लिए शिलाएँ, ताड़पत्र, चर्मपत्र, भोजपत्र, ताम्रपत्र आदि का ही प्रयोग होता था। किन्तु लेखन प्रौद्योगिकी ने बहुत अधिक विकास किया और प्रिन्टिंग प्रेस, टाइपर | ं हुआ था जब [MASK]ेखन हा[MASK] से किया जाता था और लेखन के लिए शिलाएँ, ताड़पत्र, च[MASK][MASK]मपत्र, भोजप[MASK]्र, ताम्र[MASK]त्र आदि का [MASK]ी प्रयोग होता था[MASK] [MASK]िन्[MASK][MASK] लेखन प्[MASK]ौद्योगिकी ने ब[MASK]ुत अध[MASK]क विक[MASK]स किया और प्रि[MASK]्ट[MASK]ंग प[MASK]रेस, टाइपर |
ाइटर आदि से होते हुए वह कम्प्यूटर युग में पहुँच गयी है जहाँ बोलकर भी लिखना सम्भव हो गया है।
जब प्रिंटिंग एवं टाइपिंग का युग आया तो देवनागरी के यंत्रीकरण में कुछ अतिरिक्त समस्याएँ सामने आयीं जो रोमन मे | [MASK]इटर आद[MASK] [MASK][MASK] होते हुए वह कम्[MASK]्यूटर युग [MASK]ें पहुँच गयी है जहाँ बोलकर भ[MASK] लिखना सम्भव हो गया ह[MASK][MASK][MASK]जब प्रिंटिंग [MASK]वं टाइपिंग का युग आया तो देवनागर[MASK] के यंत्रीकरण में कुछ अतिर[MASK]क्त सम[MASK]्या[MASK]ँ साम[MASK]े आयीं जो रोम[MASK] मे |
ं नहीं थीं। उदाहरण के लिए रोमन टाइपराइटर में अपेक्षाकृत कम कुंजियों की आवश्यकता पड़ती थी। देवनागरी में संयुक्ताक्षर की अवधारणा होने से भी बहुत अधिक कुंजियों की आवश्यकता पड़ रही थी। ध्यातव्य है कि ये स | ं नहीं थीं। उद[MASK]हरण के लिए रोमन टाइपराइटर में अपेक्षाकृत कम कुंजि[MASK]ों की आवश्[MASK]कता पड़ती थी। [MASK]ेव[MASK]ागर[MASK] में संयुक्ताक्ष[MASK] की अवधारणा होने [MASK]े भी बहुत अधिक क[MASK]ंजिय[MASK][MASK] की आवश्यकता पड़ रही थी। ध्यातव्य है कि ये स |
मस्याएँ केवल देवनागरी में नहीं थी बल्कि रोमन और
सिरिलिक को छोड़कर लगभग सभी लिपियों में थी। चीनी और उस परिवार की अन्य लिपियों में तो यह समस्या अपने गम्भीरतम रूप में थी।
इन सामयिक समस्याओं को ध्यान में | मस्याएँ केवल देवनागरी [MASK]ें नहीं थी बल्कि रोमन और
सिरिलिक को छोड़क[MASK] लगभग सभी लिपियों में थी। चीन[MASK] और उस प[MASK][MASK]वार की अ[MASK]्य ल[MASK]पियों में [MASK][MASK] यह समस्या अपने गम्[MASK]ीरतम रूप में [MASK]ी[MASK]
इन सामयिक स[MASK]स्य[MASK]ओं को ध[MASK][MASK]ान [MASK]ें |
रखते हुए अनेक विद्वानों और मनीषियों ने देवनागरी के सरलीकरण और मानकीकरण पर विचार किया और अपने सुझाव दिए। इनमें से अनेक सुझावों को क्रियान्वित नहीं किया जा सका या उन्हें अस्वीकार कर दिया गया। कहने की आव | रखते हुए अनेक विद्वानों और मनीषिय[MASK]ं ने दे[MASK]नागरी के सर[MASK]ीकरण और म[MASK]नकीकरण पर [MASK]िचार कि[MASK]ा और अपने सुझाव [MASK][MASK]ए। इनम[MASK][MASK] से [MASK]ने[MASK] सुझावों क[MASK] क्र[MASK]यान्वित नहीं किया ज[MASK] सका या उन्हें अ[MASK]्वीकार कर दिया गया। कहने की आ[MASK] |
श्यकता नहीं है कि कम्प्यूटर युग आने से (या प्रिंटिंग की नई तकनीकी आने से) देवनागरी से सम्बन्धित सारी समस्याएँ स्वयं समाप्त हों गयीं।
भारत के स्वाधीनता आंदोलनों में हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा प्राप् | श्यक[MASK]ा नही[MASK] [MASK]ै कि कम्प[MASK]यूटर युग आने से (या प्रिंटिंग की नई तकनीकी आने से) देवनागर[MASK] से सम्बन्धित [MASK]ारी समस्याएँ स्वयं [MASK]माप्त हों गयीं।
भारत के स्[MASK]ाधीनता आंदोलनों में हिंदी को र[MASK]ष्ट[MASK]र[MASK]ाषा का दर्जा [MASK]्राप् |
त होने के बाद लिपि के विकास व मानकीकरण हेतु कई व्यक्तिगत एवं संस्थागत प्रयास हुए। सर्वप्रथम बम्बई के महादेव गोविन्द रानडे ने एक लिपि सुधार समिति का गठन किया। तदनन्तर महाराष्ट्र साहित्य परिषद पुणे ने स | त होने के ब[MASK]द लिपि [MASK]े विकास व मानकीकरण हेतु [MASK][MASK] व्यक[MASK]तिगत ए[MASK]ं संस्थ[MASK]ग[MASK] प्रयास हुए। [MASK]र्व[MASK]्रथम बम्बई के [MASK]हा[MASK]ेव गोविन्द रानडे ने एक लिपि सुधार सम[MASK]ति का गठन कि[MASK]ा[MASK] तदनन्तर महाराष्ट्र साहित्य परिषद पुणे ने स |
ुधार योजना तैयार की। सन १९०४ में बाल गंगाधर तिलक ने अपने केसरी पत्र में देवनागरी लिपि के सुधार की चर्चा की। प्रिणामस्वरूप देवनागरी के टाइपों की संख्या १९० निर्धारित की गयी और इन्हें 'केसरी टाइप' कहा ग | ुधार योजना तैया[MASK] की। [MASK]न १९०४ में [MASK][MASK]ल गंगाधर तिलक ने अप[MASK][MASK] केसरी पत्[MASK] म[MASK]ं देवनागरी लिपि [MASK]े सुधार की च[MASK]्चा की। प्रिणामस्वरूप [MASK][MASK]वना[MASK]री के ट[MASK]इपो[MASK] की स[MASK]ख्या १९० [MASK]िर्धारित की गयी और इन्हें 'क[MASK]सर[MASK] टाइप' कहा ग |
या।
आगे चलकर सावरकर बंधुओं ने 'अ' की बारहखड़ी प्रयिग करने का सुझाव दिया ( अर्थात् 'ई' न लिखकर अ पर बड़ी ई की मात्रा लगायी जाय)। डॉ गोरख प्रसाद ने सुझाव दिया कि मात्राओं को व्यंजन के बाद दाहिने तरफ अलग | य[MASK]।
आगे च[MASK]कर सावरक[MASK] बंधुओं ने 'अ' क[MASK] बारहखड़ी प्रयिग क[MASK]ने [MASK]ा सुझाव [MASK][MASK]या ( अर्थात् 'ई' न लिखकर अ पर बड़ी ई की मात्रा लगायी जाय)। डॉ गोरख प्रसाद ने [MASK]ुझा[MASK] [MASK]िया कि मात्राओं को व्यंजन के बाद [MASK]ाहिने तरफ अलग |
से रखा जाय। डॉ. श्यामसुन्दर दास ने अनुस्वार के प्रयोग को व्यापक बनाकर देवनागरी के सरलीकरण के प्रयास किये (पंचमाक्षर के बदले अनुस्वार के प्रयोग )। इसी प्रकार श्रीनिवास का सुझाव था कि महाप्राण वर्ण के | से [MASK][MASK]ा ज[MASK]य। डॉ. श्यामसुन्दर दास न[MASK] अनुस[MASK]वार के प्रय[MASK]ग को व्यापक बना[MASK]र देवनागरी क[MASK] सरली[MASK]रण के प्रयास किये (पंचमाक्षर [MASK]े बदले अ[MASK]ुस्वार के प्रयोग )। इसी प[MASK]रक[MASK]र श्रीनिवास का सुझाव था कि महाप्र[MASK]ण वर्ण के |
लिए अल्पप्राण के नीचे ऽ चिह्न लगाया जाय। १९४५ में काशी नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा अ की बारहखड़ी और श्रीनिवास के सुझाव को अस्वीकार करने का निर्णय लिया गया।
देवनागरी के विकास में अनेक संस्थागत प्रयासों | [MASK]िए अल्पप्राण के [MASK]ीच[MASK] ऽ चि[MASK]्न लगाया जाय। १९४५ में काश[MASK] ना[MASK]री प्रचारिणी [MASK][MASK]ा द्[MASK]ा[MASK]ा अ की बारहख[MASK]़[MASK] [MASK]र श्रीनिवास के सुझाव को अस्वीकार करने का [MASK]िर्णय [MASK]िया गया।
देवनागरी के विक[MASK]स [MASK]ें अन[MASK]क सं[MASK]्थागत [MASK]्रयासों |
की भूमिका भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण रही है। १९३५ में हिंदी साहित्य सम्मेलन ने नागरी लिपि सुधार समिति के माध्यम से 'अ' की बारहखड़ी और शिरोरेखा से संबंधित सुधार सुझाए। इसी प्रकार, १९४७ में आचार्य नरेन्द्र | की भूमि[MASK]ा भी [MASK]त्यन्त म[MASK]त्त[MASK]वपूर्ण र[MASK]ी है। १९३[MASK] में हिंदी साहित[MASK]य सम्म[MASK]लन ने नागरी लिपि सुधार समिति के मा[MASK]्यम से [MASK]अ' की [MASK]ारह[MASK]ड़ी और श[MASK][MASK]ोर[MASK]खा से संब[MASK]धित सुधार सुझ[MASK]ए। इ[MASK]ी प्रकार, १९४७ मे[MASK] [MASK]चार्य नरेन्द्र |
देव की अध्यक्षता में गठित एक समिति ने बारहखड़ी, मात्रा व्यवस्था, अनुस्वार व अनुनासिक से संबंधित महत्त्वपूर्ण सुझाव दिये। देवनागरी लिपि के विकास हेतु भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय ने कई स्तरों पर प्रय | द[MASK]व की अध्य[MASK]्षता में [MASK][MASK]ित एक समिति ने बारहखड़ी, मात्रा व[MASK]यवस्था, [MASK]नु[MASK]्व[MASK]र व [MASK]नुनासिक से [MASK]ंब[MASK]धित महत[MASK]त्[MASK]पूर्ण सुझाव दिये। द[MASK]व[MASK]ागरी लिपि के विका[MASK] हेतु [MASK][MASK]रत सरकार के शिक्षा मंत्रालय ने कई स्[MASK]रों पर प्रय |
ास किये हैं। सन् १९६६ में मानक देवनागरी वर्णमाला प्रकाशित की गई और १९६७ में हिंदी वर्तनी का मानकीकरण प्रकाशित किया गया। १९८३ में देवनागरी लिपि तथा हिन्दी की वर्तनी का मानकीकरण प्रकाशित किया गया।
देवना | ास किये है[MASK][MASK] सन् १[MASK][MASK]६ में मानक देवनागरी वर[MASK]णमाला प्रकाशित [MASK][MASK] गई और १९६७ में हिंदी वर्[MASK][MASK]ी का म[MASK]नकीकर[MASK] प्रकाश[MASK]त किया गया। १[MASK]८३ में [MASK]ेवनागरी लिपि तथा हिन्दी की वर्त[MASK]ी का मानकीकरण प्रका[MASK]ित किया [MASK]या।[MASK]देवना |
गरी के सम्पादित्र व अन्य सॉफ्टवेयर
इंटरनेट पर हिन्दी के साधन देखिये।
देवनागरी से अन्य लिपियों में रूपान्तरण
आजकल अनेक कम्प्यूटर प्रोग्राम उपलब्ध हैं जिनकी सहायता से देवनागरी में लिखे पाठ को किसी भी भा | गरी [MASK][MASK] सम्पाद[MASK]त्र व अ[MASK][MASK]य सॉ[MASK]्टव[MASK]यर[MASK][MASK]ंटरनेट पर हिन्दी के सा[MASK]न देखिये।
देवनागरी से अ[MASK]्य लिपियों में [MASK]ूपान्तरण
आजकल अनेक कम्प्[MASK][MASK]टर प्रोग[MASK]रा[MASK] उपलब्ध हैं जिनकी सहायता से [MASK]ेवनागरी म[MASK]ं लिखे पा[MASK] को किसी भी भा |
रतीय लिपि में बदला जा सकता है।
कुछ ऐसे भी कम्प्यूटर प्रोग्राम हैं जिनकी सहायता से देवनागरी में लिखे पाठ को लैटिन, अरबी, चीनी, क्रिलिक, आईपीए (इपा) आदि में बदला जा सकता है। (इक्यू ट्रांसफार्म डेमो)
यून | [MASK]तीय लिपि में बदला जा सक[MASK]ा है।
कुछ ऐसे भी कम्प्यूटर प्रोग्राम [MASK]ै[MASK] जिनकी सहायत[MASK] से देवनागरी म[MASK]ं लिखे पाठ [MASK]ो लैटिन, अरबी, चीनी, क्रिलिक, आई[MASK]ीए [MASK]इपा) आदि में बदला जा सकता ह[MASK]। ([MASK]क्य[MASK] ट्र[MASK][MASK][MASK]फार्म [MASK][MASK]मो)
यून |
िकोड के पदार्पण के बाद देवनागरी का रोमनीकरण (रोमणिसेशन) अब अनावश्यक होता जा रहा है, क्योंकि धीरे-धीरे कम्प्यूटर, स्मार्ट फोन तथा अन्य डिजिटल युक्तियों पर देवनागरी को (और अन्य लिपियों को भी) पूर्ण समर् | िक[MASK]ड के पदार्पण के बाद [MASK]ेव[MASK]ागर[MASK] का रोमनीकरण (र[MASK]मणिसेशन) अब अनावश्यक ह[MASK]ता ज[MASK] रहा है, [MASK]्योंकि धीरे-धीरे कम्प्यूटर, स्मार्ट फोन तथा अन्[MASK] डिजिटल युक्तिय[MASK]ं पर देवनागरी को (और [MASK]न्य लिपियों को [MASK]ी) पू[MASK]्[MASK] समर् |
थन मिलने लगा है।
संगणक कुंजीपटल पर देवनागरी
क्क क्च क्त क्त्य क्त्र क्त्व क्थ क्न क्प क्प्र क्फ क्म क्य क्र क्ल क्व क्श क्ष क्ष्ण क्ष्म क्ष्म्य क्ष्य क्ष्व क्स
ग्ग ग्ज ग्ज्य ग्ण ग्द ग्ध ग्ध्य ग्ध्र ग् | थन मिलन[MASK] लगा है।
संगणक कुंजीपटल पर देवनागरी
क्क क्[MASK] क्त क्त्[MASK] क्त[MASK]र क[MASK]त्व क्थ [MASK]्न क्प क[MASK]प्र क्फ क[MASK]म क्य क्र क्ल क्[MASK] क्श क्ष क्ष्ण क्ष्म क्ष्म्य [MASK]्ष्य क्ष्व क्स
ग्ग ग्ज [MASK]्ज्[MASK] ग्ण ग्द ग्ध ग्ध्य ग्ध्र [MASK]् |
ध्व ग्न ग्न्य ग्ब ग्भ ग्भ्य ग्म ग्य ग्र ग्र्य ग्ल ग्व
घ्न घ्य घ्र घ्व
ङ्क ङ्क्त ङ्क्ष ङ्क्ष्य ङ्क्ष्व ङ्ख ङ्ख्य ङ्ग ङ्ग्य ङ्ग्र ङ्घ ङ्घ्र ङ्ङ ङ्न ङ्म
च्च च्च्य च्छ च्छ्र च्छ्व च्ञ च्य च्व
ज्ज ज्ज्ञ ज् | ध्व ग्न ग्न्य ग्ब ग्भ ग्भ्[MASK] [MASK][MASK]म ग्य ग[MASK]र ग्र्य ग्ल ग्व[MASK]घ्न घ[MASK]य घ्र घ्व
ङ्क ङ्क्त ङ्क्ष ङ्क्ष्य ङ्[MASK]्ष्व ङ[MASK]ख ङ[MASK]ख्य ङ्ग ङ[MASK]ग्य [MASK]्ग्र ङ्घ ङ्घ्[MASK] ङ्ङ ङ्न ङ्म
च्च च[MASK]च्य च्छ च्छ्र च्छ्व च्ञ [MASK]्य च[MASK]व
ज्ज [MASK]्[MASK]्ञ ज् |
ज्य ज्ज्व ज्ञ ज्म ज्य ज्र ज्व
ञ्च ञ्छ ञ्ज ञ्ज्ञ ञ्झ ञ्श ञ्श्र ञ्श्व
ट्क ट्ट ट्प ट्य ट्र ट्व ट्श ट्स
ड्ग ड्घ ड्ड ड्भ ड्य ड्र ड्व
ण्ट ण्ठ ण्ड ण्ड्य ण्ड्र ण्ड्व ण्ण ण्म ण्य ण्व
त्क त्क्र त्क्व त्क्ष त्ख | ज्य ज्ज्व ज्ञ [MASK]्म ज्य ज्र ज्व
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त्त त्त्य त्त्र त्त्व त्थ त्न त्न्य त्प त्प्र त्फ त्म त्म्य त्य त्र त्र्य त्व त्व्य त्स त्स्त त्स्त्र त्स्थ त्स्न त्स्न्य त्स्म त्स्य त्स्र त्स्व
द्ग द्ग्र द्घ द्द द्द्य द्द्र द्द्व द्द्व्य द्ध द्ध्य | त्त त्त्य त्त्र त्त्व त[MASK]थ त्न त्न्य [MASK]्प त्प्र त[MASK]फ त्म त[MASK]म्य त्य त्र त्र[MASK]य त्व त[MASK]व्य त[MASK]स त्स्[MASK] त्स्त्र त[MASK]स्थ त्स्न त्स्न्य [MASK]्स[MASK]म त्[MASK]्य त्स्र त्स्व
द्ग द्ग्र द्घ द्द द्द्य द्द्र द्[MASK]्व द्द्व्य द्ध द्ध्य |
द्ध्र द्ध्व द्न द्ब द्ब्र द्भ द्भ्य द्भ्र द्म द्य द्र द्र्य द्व द्व्य द्व्र
ध्न ध्म ध्य ध्र ध्व
न्क न्क्र न्क्ल न्क्ष न्ख न्ग न्ग्र न्ग्ल न्घ न्घ्र न्च न्छ न्ज न्झ न्ट न्ड न्त न्त्य न्त्र न्त्र्य न्त् | द्ध्र द्ध्व द[MASK]न द्ब द्ब्र द्भ द्भ्य [MASK]्भ्र द्म द्य द्[MASK] द्र्य द्व द्व्य द्व्र[MASK]ध्न ध[MASK]म ध्य ध[MASK]र ध्व
न्क न्क्र न्क्ल न्क्ष न्ख न्ग न्ग्र न्ग्ल न्घ न्घ्र न्[MASK] न्छ न्ज [MASK]्झ न[MASK]ट न्ड न्त न्त्य न्त्र [MASK]्त्र[MASK]य न्त् |
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ब्ज ब्द ब्द्व ब्ध ब्ध्व ब्य ब्र ब्व भ्ण भ्य भ्र भ्व
म्ण म्न म्प म्प्य म्ब म्ब्य म्भ म्भ्य म्य म्र म्ल म्व
र्क र्क्य र्क्ष र्क्ष्य र्ख र्ग र्ग्य र्ग्र र्घ र्घ्य र्ङ्क र्ङ्ख र्ङ्ग र् | य प्र प्ल प्स प्स[MASK]य
ब्ज ब्द ब्द्व ब्ध ब्ध[MASK]व [MASK]्य ब्र ब्व भ्ण भ[MASK]य भ्र भ्व
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ल्क ल्क्य ल्ग ल्प ल्ब ल्म ल्य ल्ल ल्व
श्च श्च्य | र [MASK]्ध्व र्न र्न्य र्[MASK] र[MASK]प[MASK]य र्ब र्ब्य र्ब्र [MASK]्भ र्भ्य र्भ्र [MASK][MASK]म र्म्[MASK] र्य र्ल र्व र्[MASK]्य र्श र्श्[MASK] [MASK][MASK]श्व र्ष र्ष्ट र्ष्ण र्ष्म र्ष[MASK]य र्स [MASK]्ह र्ह्[MASK] र्[MASK]्र
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ष्क ष्क्र ष्ट ष्ट्य ष्ट्र ष्ट्व ष्ठ ष्ठ्य ष्ण ष्ण्य ष्प ष्प्र ष्म ष्म्य ष्य ष्व
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स्य स्र स्व स्स स्स्व
ह्ण ह्न ह्म ह्य ह्र ह्ल ह्व
इन्हें भी देखें
देवनागरी का इतिहास
देवनागरी यूनिकोड खण्ड
नागरी प्रचारिणी सभा
नागरी संगम पत्रिका
नागरी एवं भारतीय भाषाएँ
गौरीदत्त - देवनागरी के महान प् | स्य स्[MASK] स्व स्स स[MASK]स्व
ह्ण ह्न ह्म ह्य ह्र ह्ल ह्व
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देवनागर[MASK] [MASK]ूनिक[MASK]ड खण्ड
नाग[MASK]ी प्रच[MASK]रिणी स[MASK][MASK]
ना[MASK]री संगम पत्रिका
न[MASK]ग[MASK]ी एवं भारतीय भाषाएँ
गौरीदत्त - देवनागरी के महान प् |
रचारक
हिन्दी के साधन इंटरनेट पर
ब्राह्मी परिवार की लिपियाँ
पूर्वी नागरी लिपि
भारतीय सङ्ख्या प्रणाली
ब्राह्मी-लिपि परिवार का वृक्ष - इसमें ब्राह्मी से उत्पन्न लिपियों की समय-रेखा का चित्र दिया हुआ है।
| रचा[MASK]क
हिन्[MASK]ी के स[MASK]धन इं[MASK]रनेट पर
ब्राह्मी परिवार की लिप[MASK]या[MASK]
पूर्वी नागरी लिपि
भारतीय सङ्[MASK]्या प्[MASK]णा[MASK][MASK]
ब[MASK]रा[MASK]्मी[MASK]लिप[MASK] परिवार का वृक्[MASK] - इसमें ब्राह्मी से उत्पन्न लिपियों की समय-रेखा का चित्र दिया ह[MASK]आ है।[MASK] |
पहलवी-ब्राह्मी लिपि से उत्पन्न दक्षिण-पूर्व एशिया की लिपियों की समय-रेखा
हर ढांचे में आसानी से ढल जाती है नागरी (डॉ॰ जुबैदा हाशिम मुल्ला ; ०२ मई २०१२)
राजभाषा हिन्दी (गूगल पुस्तक ; लेखक - भोलानाथ तिवा | पहलवी-ब्रा[MASK]्मी ल[MASK]पि से उत्प[MASK]्न द[MASK]्षि[MASK]-प[MASK][MASK][MASK]व ए[MASK]िया की लिपियों की समय-[MASK]ेखा
हर ढांच[MASK] में आसानी से ढल जाती है नागर[MASK] (डॉ॰ ज[MASK]बैदा [MASK]ाशिम मुल्ला ; ०२ मई २[MASK][MASK]२)
राजभाषा ह[MASK]न्दी (गूगल [MASK]ुस्तक ; लेखक - भो[MASK]ानाथ तिवा |
री)
अंग्रेजी भी देवनागरी में लिखें
देवनागरी लिपि एवं संगणक (अम्बा कुलकर्णी, विभागाध्यक्ष ,संस्कृत अध्ययन विभाग, हैदराबाद विश्वविद्यालय)
ब्राह्मी परिवार की लिपियाँ| अल्ट_फ्लैग = क्षैतिज तिरंगे झंडे में | री)
अंग्रेजी [MASK]ी देवनागर[MASK] म[MASK]ं लिखे[MASK]
[MASK]ेवनागरी लिपि एवं संगणक (अम्[MASK]ा कुलकर्णी, व[MASK]भाग[MASK]ध्यक्ष ,[MASK]ंस्क[MASK]त अध्ययन विभाग, हैदर[MASK]बाद विश्व[MASK][MASK]द्याल[MASK])
ब्राह्मी परिवार की लि[MASK][MASK]याँ| अ[MASK]्ट_फ्लैग = क्[MASK]ै[MASK]िज तिरंगे झंडे में |
ऊपर से नीचे तक गहरी केसरिया, सफेद और हरी क्षैतिज पट्टियाँ हैं। सफेद पट्टी के केंद्र में २४ तीलियों वाला एक नेवी-ब्लू पहिया है।
| अल्ट_कोट = तीन शेर बाएं, दाएं और दर्शक की ओर मुख किए हुए हैं, एक फ्रिज | ऊपर से नीचे तक गहरी क[MASK]सरिया, सफेद और हर[MASK] क्षैतिज पट्टियाँ हैं। सफेद पट्[MASK]ी के [MASK]ेंद्र में २४ तीलि[MASK]ों वाला एक नेवी-ब्लू [MASK]हिय[MASK] ह[MASK]।
[MASK] अल्ट_[MASK]ोट = तीन [MASK]ेर बाएं, [MASK]ाएं और दर्शक [MASK]ी ओर मुख किए हुए है[MASK], [MASK]क फ्रिज |
़ के ऊपर एक सरपट दौड़ता घोड़ा, एक २४-स्पोक पहिया और एक हाथी है। नीचे एक आदर्श वाक्य है: "सत्यमेव जयते"।
| ओदर_सिमबोल = जन गण मन भारत का राष्ट्रीय गान है, जिसके शब्दों में सरकार अवसर पड़ने पर परिवर्तन | ़ के [MASK]पर एक सरपट दौ[MASK]़ता घोड़ा, एक २४-स्पोक पहिया और [MASK]क हाथी है। नी[MASK][MASK] [MASK]क [MASK]दर्श [MASK]ा[MASK]्[MASK] है: [MASK]सत[MASK]यमेव जयते"[MASK]
| ओदर[MASK]सिमबोल = जन गण मन भारत क[MASK] राष्[MASK]्रीय गान है[MASK] जिसके [MASK]ब्दो[MASK] [MASK]ें सरकार [MASK][MASK]सर पड[MASK]न[MASK] पर परिवर्तन |
कर सकती है; और गीत वंदे मातरम, जिसने भारतीय स्वतंत्रता के संघर्ष में एक ऐतिहासिक भूमिका निभाई है, को जन गण मन के साथ समान रूप से सम्मानित किया जाएगा और इसके साथ समान दर्जा दिया जाएगा।}}}}
| अल्ट_मैप = | [MASK]र सकती है[MASK] औ[MASK] गीत वंदे मातरम, जिसने भारतीय स्व[MASK][MASK]त्रता के संघर्[MASK] में एक ऐतिहासिक भूमिका निभाई है, क[MASK] ज[MASK] गण [MASK]न के साथ समान रूप से सम्मान[MASK]त किया जाएगा और इस[MASK]े [MASK]ाथ समान दर्जा दिया जाएगा।}}}}[MASK]| अल[MASK]ट_मैप = |
भारत पर केन्द्रित ग्लोब की छवि, जिसमें भारत पर प्रकाश डाला गया है।
| मैप_कैप्शन = भारत द्वारा नियंत्रित क्षेत्र को गहरे हरे रंग में दिखाया गया है; दावा किया गया लेकिन नियंत्रित नहीं किया गया क्षेत्र | भारत पर केन्द्रित ग्लोब की छवि, जिसमें भारत पर प्रकाश [MASK]ा[MASK][MASK] गया है।
| [MASK]ै[MASK]_कैप्शन = भा[MASK]त द्वार[MASK] [MASK]ियंत्रि[MASK] क्षेत्र को गहरे हरे र[MASK]ग में दिखाया गया है; द[MASK]व[MASK] किय[MASK] गया लेक[MASK]न नियंत[MASK]रित नह[MASK]ं किया गया क्[MASK]ेत्र |
हल्के हरे रंग में दिखाया गया है
| कैपिटल = नयी दिल्ली
| डेमोनीम = भारतीय
| गवर्नमेंट_लिपी = संघीय संसदीय संवैधानिक गणराज्य
| गिनी = ३५.७
| हदी = ०.६३३
| करेंसी = भारतीय रुपया ()
भारत (आधिकारिक नाम: भा | हल्[MASK]े हरे रंग मे[MASK] दिखाया गया [MASK]ै
| कै[MASK]िटल = नयी दिल्ली
| ड[MASK]मोन[MASK]म = भार[MASK]ीय
| [MASK]वर्नमेंट_लिपी = सं[MASK]ीय संसदीय संवैधानिक गणराज[MASK]य
| गिनी = ३५.७
| हदी = ०.६३३
| करेंसी = भारतीय रुपया ()
भ[MASK][MASK]त (आधिक[MASK]रि[MASK] नाम: भा |
रत गणराज्य, ) दक्षिण एशिया में स्थित भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा देश है। भारत भौगोलिक दृष्टि से विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा देश है, जबकि जनसंख्या के दृष्टिकोण से सबसे बड़ा देश है। भारत के पश्चिम में | [MASK]त गणराज्[MASK], ) दक्षिण एशिया मे[MASK] स्थित भा[MASK]तीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा देश है[MASK] भारत भौगोल[MASK]क दृष्टि [MASK]े व[MASK][MASK]्व का सातवाँ [MASK]बस[MASK] बड़ा द[MASK][MASK] है, [MASK]बकि जनसंख्या के दृष्टिकोण [MASK][MASK] सबसे [MASK]ड़ा देश ह[MASK]। भारत के पश्च[MASK]म में |
पाकिस्तान, उत्तर-पूर्व में चीन (तिब्बत), नेपाल और भूटान, पूर्व में बांग्लादेश और म्यान्मार स्थित हैं। भारतीय महासागर में इसके दक्षिण पश्चिम में मालदीव, दक्षिण में श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व में इंडोनेशि | पा[MASK][MASK]स्तान, उ[MASK][MASK]तर[MASK]प[MASK]र[MASK][MASK] में चीन (तिब्बत), नेपाल और भूटा[MASK], पूर्[MASK] में बांग्लादेश और म[MASK]यान्मा[MASK] स[MASK]थित हैं। भारतीय महासागर [MASK]ें इस[MASK]े दक्षिण पश्चिम में मा[MASK]दीव, दक्षिण में श्र[MASK]लंका और दक्षिण-प[MASK]र्व मे[MASK] इंडोनेशि |
या से भारत की सामुद्रिक सीमा लगती है। इसके उत्तर में हिमालय पर्वत तथा दक्षिण में भारतीय महासागर स्थित है। दक्षिण-पूर्व में बंगाल की खाड़ी तथा पश्चिम में अरब सागर है।
आधुनिक मानव या होमो सेपियंस अफ्रीक | या से भारत की सा[MASK]ुद्रिक सीमा लगती है। इसके [MASK]त्तर में हिमालय पर्वत तथा दक्षिण में भारतीय महासागर स्थित है। दक्षिण-[MASK]ूर्व में बं[MASK][MASK]ल की खाड[MASK]ी तथा पश्चिम में [MASK]र[MASK] स[MASK]गर है।
आध[MASK][MASK]िक मानव या होमो सेपियंस अफ्[MASK]ीक |
ा से भारतीय उपमहाद्वीप में ५५,००० साल पहले आये थे। १,००० वर्ष पहले ये सिंधु नदी के पश्चिमी हिस्से की तरफ बसे हुए थे जहाँ से इन्होने धीरे धीरे पलायन किया और सिंधु घाटी सभ्यता के रूप में विकसित हुए। १,२ | ा से भारती[MASK] उपमहाद्[MASK]ी[MASK] में [MASK]५,००० [MASK]ाल [MASK]हले आये थे। [MASK],००० वर्ष पह[MASK]े ये सिंधु नदी के पश्[MASK]िमी हिस[MASK]से की तरफ बसे हुए थे जहाँ से इन्होने धीरे धीरे पल[MASK]यन किया और सिंधु घा[MASK]ी सभ्यता के रूप में वि[MASK]सित हुए। १,२ |
०० ईसा पूर्व संस्कृत भाषा संपूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप में फैली हुए थी और तब तक यहाँ पर हिंदू धर्म का उद्धव हो चुका था और ऋग्वेद की रचना भी हो चुकी थी। इसी समय बौद्ध एवं जैन धर्म उत्पन्न हो रहे होते हैं। | ०० ईसा पूर्व संस्कृत [MASK]ाषा संपूर्ण भ[MASK]रतीय [MASK]पमहाद्वीप में फ[MASK]ली हुए थी और तब त[MASK] यहाँ पर हिंदू धर्म का उद्धव हो चुका था और ऋ[MASK]्व[MASK]द की रचना भी हो चुकी थी[MASK] इस[MASK] सम[MASK] बौद्ध एवं जैन धर्म उत्[MASK]न्[MASK] [MASK]ो रहे [MASK][MASK]ते हैं। |
प्रारंभिक राजनीतिक एकत्रीकरण ने गंगा बेसिन में स्थित मौर्य और गुप्त साम्राज्यों को जन्म दिया।
उनका समाज विस्तृत सृजनशीलता से भरा हुआ था।
प्रारंभिक मध्ययुगीन काल में, ईसाई धर्म, इस्लाम, यहूदी धर्म और | [MASK]प्रारंभ[MASK]क राजनीतिक एकत्[MASK]ीकरण ने गं[MASK]ा बेसिन में स्थित मौर्[MASK] और ग[MASK]प्त साम[MASK]राज्यों को जन्म दिया।
[MASK]नका समाज विस्तृत सृजनशीलता [MASK]े भरा ह[MASK]आ था।
प्रारंभिक म[MASK]्ययुगीन काल में, ईसाई धर्म, इस्लाम, य[MASK]ूदी धर्म और |
पारसी धर्म ने भारत के दक्षिणी और पश्चिमी तटों पर जड़ें जमा लीं। मध्य एशिया से मुस्लिम सेनाओं ने भारत के उत्तरी मैदानों पर लगातार अत्याचार किया, अंततः दिल्ली सल्तनत की स्थापना हुई और उत्तर भारत को मध्य | पारसी धर्म न[MASK] भारत के दक[MASK][MASK]िणी और पश[MASK][MASK][MASK]मी तटों पर ज[MASK]़ें जमा ली[MASK]। मध्य एशिया से मु[MASK]्लिम से[MASK]ाओं ने भारत के उत्तरी मैद[MASK]नों पर लगातार [MASK]त[MASK]याचा[MASK] किया, [MASK]ं[MASK]तः दिल्ली सल्तनत की स्थापना हु[MASK] और उत्त[MASK] भारत को मध्य |
कालीन इस्लाम साम्राज्य में मिला लिया गया।
१५ वीं शताब्दी में, विजयनगर साम्राज्य ने दक्षिण भारत में एक लंबे समय तक चलने वाली समग्र हिंदू संस्कृति बनाई। पंजाब में सिख धर्म की स्थापना हुई। धीरे-धीरे ब्रि | का[MASK]ीन इस्[MASK]ाम साम्[MASK]ाज्य मे[MASK] [MASK]ि[MASK]ा लिया गया।
१५ [MASK]ीं शताब्दी मे[MASK], विजयनगर साम्राज्य ने दक्षि[MASK] भारत मे[MASK] एक लंबे समय तक चलने वाली समग्र हिंदू [MASK]ंस्कृति बना[MASK]। प[MASK]जाब में सिख [MASK]र[MASK]म की स्था[MASK][MASK]ा हु[MASK]। धीरे-धीरे ब्[MASK]ि |
टिश ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन का विस्तार हुआ, जिसने भारत को औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था में बदल दिया तथा अपनी संप्रभुता को भी मजबूत किया। ब्रिटिश राज शासन १८५८ में शुरू हुआ। धीरे धीरे एक प्रभावशाली राष्ट्र | टिश ईस्ट इंडिया कंपनी के [MASK]ासन का व[MASK]स्ता[MASK] हुआ, जि[MASK]ने भारत को औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था में बद[MASK] दिया [MASK]था अपनी स[MASK]प्र[MASK]ुता [MASK]ो भी मजबू[MASK] किया[MASK] ब[MASK]रिटिश राज शास[MASK] १८५८ मे[MASK] श[MASK][MASK]ू हुआ। [MASK]ीरे धीरे एक प्[MASK]भा[MASK]शाली रा[MASK]्ट्र |